JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

JAC Class 10 Hindi हरिहर काका Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं ?
अथवा
हरिहर काका के प्रति लेखक की आसक्ति के क्या कारण थे?
उत्तर :
कथावाचक और हरिहर काका के मध्य स्नेह का संबंध है। यद्यपि हरिहर काका के प्रति स्नेह के कई वैचारिक और व्यावहारिक कारण हैं, लेकिन उनमें से दो कारण प्रमुख हैं। पहला कारण यह था कि हरिहर काका कथावाचक के पड़ोसी थे। दूसरा कारण यह था कि हरिहर काका ने कथावाचक को बहुत प्यार-दुलार दिया था। हरिहर काका उसे बचपन में अपने कंधे पर बैठाकर गाँव भर में घुमाया करते थे। हरिहर काका नि:संतान थे, इसलिए वे एक पिता की तरह कथावाचक की देखभाल करते थे। जब लेखक बड़ा हुआ, तो उसकी पहली मित्रता हरिहर काका के साथ हुई थी। हरिहर काका ने उसकी मित्रता स्वीकार करते हुए, उससे अपने मन की सारी बात की थी। वे उससे कुछ नहीं छिपाते थे। यही कारण था कि हरिहर काका और कथावाचक में उम्र का अंतर होते हुए भी बहुत गहरा संबंध था।

प्रश्न 2.
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगते हैं?
उत्तर :
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के लगते हैं, क्योंकि दोनों में ही स्वार्थ और हिंसावृत्ति की भावना विद्यमान थी। हरिहर काका के पास पंद्रह बीघे जमीन थी। उनके कोई संतान नहीं थी, इसलिए महंत और हरिहर काका के भाई उनके खेत अपने नाम लिखवाना चाहते थे। हरिहर काका अपने जीवित रहते ऐसा नहीं करना चाहते थे, इसलिए महंत और उनके भाई अपने-अपने ढंग से खेत हथियाने के लिए उन पर अत्याचार करने लगे।

दूसरों को मोह-माया से दूर रहने तथा अपना अगला जन्म सुधारने का उपदेश देने वाला महंत हरिहर काका के खेतों को अपने नाम करवाने के लिए उन्हें मारने के लिए तैयार हो जाता है। दूसरी ओर खून के रिश्ते अर्थात उनके सगे भाई भी खेतों को लेकर उनके खून के प्यासे हो जाते हैं। यही कारण था कि हरिहर काका को दोनों गुट एक ही श्रेणी के लगते हैं।

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प्रश्न 3.
ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव हैं उनसे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है?
उत्तर :
कथावाचक के गाँव में तीन स्थान प्रमुख थे-तालाब, पुराना बरगद का वृक्ष और ठाकुरबारी। ठाकुरबारी में सुबह-शाम ठाकुर जी की पूजा होती थी। गाँव के लोगों में ठाकुर जी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे लोग अपने हर कार्य की छोटी-बड़ी सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देते थे। जिसको जैसी सफलता मिलती थी, वह ठाकुर जी को वैसा ही चढ़ावा चढ़ाता था। यह चढ़ावा रुपये, जेवर और अनाज के रूप में होता था। यदि किसी को अपने कार्य में बहुत अधिक सफलता मिलती थी, तो वह अपनी जमीन का छोटा-सा भाग ठाकुर जी के नाम लिख देता था। इस प्रकार ठाकुर जी के प्रति लोगों के अंधविश्वास का पता चलता है। लोगों के इस विश्वास के कारण ही गाँव के विकास की अपेक्षा ठाकुर जी का विकास हज़ार गुणा हो गया था।

प्रश्न 4.
अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं ? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“हरिहर काका एक सीधे सादे और भोले किसान की अपेक्षा चतुर हो चले थे’ कथन के संदर्भ में 60-70 शब्दों में विचार व्यक्त करें।
उत्तर :
हरिहर काका कथावाचक के पड़ोस में रहते थे। वे बहुत समझदार व्यक्ति थे। उनके तीन भाई थे। तीनों भाइयों का अपना परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, लेकिन दोनों पत्नियों से उनकी एक भी संतान नहीं थी। दोनों पलियाँ भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। लोगों ने उन्हें तीसरी शादी के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण इनकार कर दिया था। इस प्रकार तीनों भाइयों का उनके हिस्से के खेतों पर अधिकार था। आरंभ में हरिहर काका की घर में उचित देखभा ने भी काका की देखभाल की जिम्मेदारी अपनी पत्नियों पर डाल दी थी। बाद में उनकी पत्नियों ने हरिहर काका की देखभाल में अनदेखी आरंभ कर दी।

हरिहर काका को बहुत दुख हुआ। उनके दुखी और कोमल हृदय का लाभ ठाकुरबारी के महंत ने उठाना आरंभ कर दिया। उन्होंने काका को अपना अगला जन्म सुधारने के लिए अपने खेत ठाकुरबारी के नाम लिखने के लिए कहा। उधर भाइयों को जब इस बात की भनक लगी, तो उन्होंने भी काका पर दबाव डालना आरंभ कर दिया। हरिहर काका स्वभाव से सीधे व्यक्ति थे, परंतु उन्हें दुनिया का बहुत ज्ञान था। वे जानते थे कि भाइयों व महंत द्वारा उसकी आवभगत करना केवल स्वार्थ और लालच पर आधारित है।

वे अपने जीवित रहते हुए अपने खेत किसी के भी नाम नहीं करना चाहते थे। उन्होंने ऐसे बहुत-से लोगों को देखा था, जिन्होंने जीवित रहते अपना सबकुछ अपने उत्तराधिकारियों के नाम लिख दिया और बाद में उन्हें पछताना पड़ा। इसलिए वे जीवित रहते अपने खेत किसी के भी नाम नहीं लिखना चाहते थे। इससे लगता है कि अनपढ़ होते हुए भी उन्हें दुनिया का बेहतर ज्ञान था।

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प्रश्न 5.
अथवा
महंत ने हरिहर काका से ज़मीन नसीयत होते न देख क्या उपाय सोचा?
उत्तर :
हरिहर को ज़बरदस्ती उठाकर ले जाने वाले ठाकुरबारी के महंत के आदमी थे। महंत हरिहर काका के खेत अपने नाम लिखवाना चाहते थे। जब उन्होंने देखा कि हरिहर काका सीधे ढंग से उनके नाम खेत नहीं लिखना चाहते, तो उन्होंने हरिहर काका को घर से उठवा लिया। महंत ने हरिहर काका को ठाकुरबारी के एक कमरे में बंद कर दिया था और उन्हें मारा-पीटा गया। उनसे कोरे कागज़ों पर ज़बरदस्ती अंगूठे का निशान लगवा लिया गया। बाद में उनके हाथों-पैरों को कपड़े से बाँध दिया और मुँह में कपड़ा लूंसकर कमरे में बंद कर दिया।

प्रश्न 6.
हरिहर काका के मामले में गाँव वालों की क्या राय थी और उसके क्या कारण थे?
उत्तर :
हरिहर काका को लेकर गाँव वाले दो गुटों में बँट गए थे। एक गुट महंत के पक्ष में था और दूसरा गुट उनके भाइयों के पक्ष में था। महंत के पक्ष के लोग धार्मिक संस्कारों के लोग थे। उनकी राय थी कि हरिहर काका को अपनी ज़मीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनकी कीर्ति अचल बनी रहेगी। यह वे लोग थे, जिनका पेट ठाकुर जी को लगाए भोग अर्थात हलवा-पूड़ी से भरता था; उन्हें सारा दिन कुछ करने की ज़रूरत नहीं थी। दूसरे गुट में गाँव के सामाजिक विचारों वाले लोग अर्थात किसान थे। ऐसे लोगों की स्थिति हरिहर काका जैसी थी। वे खून के रिश्तों में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार व्यक्ति का गुजारा अपने परिवार से ही होता है। इस प्रकार हरिहर काका के मामले को लेकर गाँव वाले अपनी-अपनी राय दे रहे थे।

प्रश्न 7.
कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने यह क्यों कहा, “अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार हो जाता है।”
उत्तर :
हरिहर काका के तीन भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की, लेकिन उनके संतान नहीं हुई। दोनों पत्नियों के मरने के बाद हरिहर काका ने अपना सारा समय भजन-कीर्तन और भाइयों के परिवार में बिताना आरंभ कर दिया। शुरू-शुरू में उनका बहुत आदर-सत्कार होता था। लेकिन बाद में उन्हें रूखा-सूखा खाने को देते थे या फिर वह भी देना भूल जाते थे। जिस दिन हरिहर काका ने अपने खेतों पर अधिकार जमाया, उसी दिन से तीनों भाई और महंत उनका भरपूर ख्याल रखने लगे।

हरिहर काका अनपढ़ होते हुए भी समझ गए थे कि यह सारा आदर-सत्कार उनके खेतों के कारण है। इसलिए उन्होंने अपने जीवित रहते अपने खेत किसी एक के नाम करने से मना कर दिया। उसी दिन से भाई और महंत उनके दुश्मन हो गए। हरिहर काका उन लोगों से भयमुक्त हो गए थे, क्योंकि वे अपनी कीमत जान चुके थे। इसलिए वे अपने खेतों का उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाना चाहते थे। जब तक खेत उनके पास हैं, तब तक सभी उनके इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, बाद में उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है-इस सत्य को उन्होंने जान लिया था। इसलिए वे अपने भाइयों द्वारा मारने की धमकी देने से भी नहीं डरे अर्थात उन्होंने जीवित रहते मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी।

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प्रश्न 8.
समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है ? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
आज का समाज भौतिकवाद की ओर अग्रसर हो रहा है जिससे मानवीय रिश्तों का महत्व कम होता जा रहा है। सभी रिश्तों में स्वार्थ दिखाई देता है। आजकल घरों में बड़े आदमी को कोई नहीं पूछता; वे घर में सजावटी वस्तु बनकर रह गए हैं। सभी लोग आज की भागती-दौडती जिंदगी के साथ कदम मिलाने के लिए भाग रहे हैं, जिससे किसी के पास भी एक-दूसरे का सुख-दुख जानने का समय नहीं रहा है। भौतिकवादी और दिखावापसंद जीवन ने घर के बुजुर्गों और बच्चों को एक-दूसरे से दूर कर दिया है। इससे आज की पीढ़ी मानवीय रिश्तों को समझने में नाकाम हो गई है। समाज में रिश्तों की अहमियत में कमी आने से मनुष्य ने अपना स्वाभाविक स्वरूप खो दिया है।

प्रश्न 9.
यदि आपके आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो आप उसकी किस प्रकार मदद करेंगे?
उत्तर :
यदि हमारे घर के आस-पास हरिहर काका जैसी स्थिति वाले बुजुर्ग होंगे, तो हम उनकी पूरी मदद करेंगे। पहले उनके इस फैसले का समर्थन करेंगे कि जीवित रहते अपने खेतों को किसी और के नाम नहीं लिखेंगे। आज के भौतिकवाद की ओर बढ़ते समाज में बुजुर्गों की स्थिति घर में पहले जैसी नहीं रह गई है, इसलिए सरकार और कई अन्य सामाजिक संस्थाओं ने ऐसे वृद्धाश्रम खोल दिए हैं, जहाँ घर में उपेक्षित लोग वहाँ आराम से रह सकें। ऐसे ही वृद्धाश्रम में हम उनके रहने का उचित प्रबंध करेंगे, जहाँ वे अपनी उम्र के दूसरे
लोगों के बीच अपने को सुरक्षित अनुभव करेंगे।

प्रश्न 10.
हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
हरिहर काका का जिस प्रकार से धर्म और खून के रिश्तों से विश्वास उठ चुका था, उससे वे मानसिक रूप से बीमार हो गए थे। वे बिलकुल चुप रहते थे। किसी की भी बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। यदि हरिहर काका के गाँव में मीडिया की पहुँच होती, तो उनकी स्थिति भिन्न होती। मीडिया उनकी स्थिति तथा उनके साथ हुए दुर्व्यवहार की बात को दुनिया के सामने लाती। धर्म के नाम पर संपत्ति इकट्ठा करने वाले महंत का असली चेहरा लोगों के सामने आता।

खून के रिश्ते किस प्रकार निजी स्वार्थ के कारण अपने घर के सदस्य की जान के प्यासे हो जाते हैं-इस बात से दुनिया को अवगत करवाती। हरिहर काका को मीडिया उचित न्याय दिलवाती। उन्हें स्वतंत्र रूप से जीने की व्यवस्था उपलब्ध करवाने में मदद करती। जिस प्रकार के दबाव में वे जी रहे थे, वैसी स्थिति मीडिया की सहायता मिलने के बाद नहीं होती।

JAC Class 10 Hindi हरिहर काका Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘हरिहर काका’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हरिहर काका’ कहानी के कथाकार मिथिलेश्वर हैं। हरिहर काका कथाकार के पड़ोस में रहते थे। कथाकार ने हरिहर काका के माध्यम से हमारे पारिवारिक जीवन तथा हमारे आस्था के प्रतीक धर्मस्थालों पर व्याप्त होती जा रही स्वार्थ लिप्सा को उजागर किया है। हरिहर काका संयुक्त परिवार में रहते थे। वे चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। उनके कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनकी जायदाद के हकदार उनके परिवार के सदस्य थे।

परंतु घर में कुछ इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं, जिसका लाभ ठाकुरबारी के महंत उठाना चाहता है। महंत हरिहर काका को लोक-परलोक सुधारने के लिए अपनी जमीन ठाकुर जी के नाम लिखने के लिए कहता है। यह बात भाइयों को पता चलती है। वे भी हरिहर खून के रिश्तों का दिखावा करके काका से जायदाद उनके नाम करने को कहते हैं। इस खींचतान में हरिहर काका के सामने धर्म और परिवार दोनों का असली चेहरा आता है। उन्हें धर्म का नाम लेकर लोगों को फँसाने वाले महंत और अपने परिवार से घृणा हो जाती है।

यह नफ़रत उन्हें कभी न खत्म होने वाली चुप्पी साध लेने को मजबूर कर देती है। इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने घर और धर्म का असली चेहरा लोगों के सामने रखा है। घर एक ऐसा स्थान होता है, जहाँ लोग अपने सुख-दुख, खुशी-गम आपस में बाँटते हैं। धर्मस्थल वे स्थान होते हैं, लोगों में अपनेपन और सहृदयता के संस्कार देते हैं। परंतु स्वार्थलिप्सा और हिंसावृत्ति के चलते घर और धर्मस्थल दोनों ही अराजकता, अनाचार और अन्याय पथ पर अग्रसर हैं। इसी उद्देश्य को कथाकार ने हरिहर काका के माध्यम से स्पष्ट किया है।

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प्रश्न 2.
कहानी के आधार पर ‘हरिहर काका’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘हरिहर काका’ कहानी के लेखक मिथिलेश्वर हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र हरिहर काका हैं। हरिहर काका का चित्रांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है –
1. परिचय – ‘हरिहर काका’ लेखक के पड़ोस में रहते थे। वे एक संयुक्त परिवार के सदस्य थे। उनके तीन भाई थे। तीनों भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, परंतु उनकी एक भी संतान नहीं हुई। उनके परिवार के पास साठ बीघे खेत थे।

2. धार्मिक विचारों वाले – हरिहर काका धार्मिक विचारों वाले थे। वे अपना कृषि से बचा समय गाँव की ठाकुरबारी में व्यतीत करते थे। वहाँ वे भजन-कीर्तन में ध्यान लगाते थे।

3. संस्कारशील – हरिहर काका संस्कारों को मानने वाले व्यक्ति थे। दोनों पत्नियों के मरने के बाद लोगों ने उन्हें तीसरी शादी करने के लिए कहा परंतु उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र तथा धार्मिक संस्कारों के कारण शादी से इनकार कर दिया।

4. सहनशील – हरिहर काका सहनशील व्यक्ति थे। उनको अपने परिवार में उचित सम्मान नहीं मिलता था। लेकिन वे अपने परिवार की बेरुखी चुपचाप सहन करते हैं।

5. ममतालु – हरिहर काका का स्वभाव दूसरों पर प्यार लुटाने वाला था। उन्होंने लेखक को बचपन में एक पिता की तरह दुलार दिया था। वे अपने भाइयों और उनके परिवार से भी बहुत प्यार करते थे, इसलिए उन सबकी बेरुखी चुपचाप सहन कर लेते थे।

6. जागरूक विचारों वाले – हरिहर काका अनपढ़ व्यक्ति थे, परंतु अपने अधिकारों के प्रति सचेत थे। जब उन्हें घर में उचित सम्मान मिलना बंद हो गया, तब उन्होंने अपने खेतों पर अधिकार जमाना आरंभ कर दिया। वे अपने जीवित रहते किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते थे। उन्होंने बहुत दुनिया देखी थी। उनके अनुसार यदि जीवित रहते अपनी जायदाद दूसरों के नाम लिख दो, तो बाद में उन्हें कोई नहीं पूछता। इससे पता चलता है कि हरिहर काका जागरूक विचारों वाले थे। हरिहर काका अनपढ़ थे, परंतु उन्हें दुनियादारी का पूरा ज्ञान था। वे सहनशील, ममतालु और धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे।

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प्रश्न 3.
ठाकुरबारी का गाँव में मुख्य काम क्या था?
उत्तर
ठाकुरबारी का मुख्य काम गाँव के लोगों में ठाकुर जी के प्रति भक्ति-भावना पैदा करना था। जो लोग धर्म के मार्ग से विमुख हो गए थे, उन्हें सही मार्ग पर लाना भी ठाकुरबारी का प्रमुख कार्य था। गाँव में जब भी बाढ़ या सूखा पड़ता था, उस समय ठाकुरबारी के आँगन में तंबू लगाकर सुबह-शाम ज़ोर-ज़ोर से भजन-कीर्तन शुरू हो जाता था। घरों में सभी शुभ कार्य ठाकुरबारी के महंत द्वारा आरंभ किए जाते थे।

प्रश्न 4.
ठाकुरबारी के महंत और पुजारी की नियुक्ति कौन करता था?
उत्तर
ठाकुरबारी के स्वरूप का विकास होने पर धार्मिक लोगों ने मिलकर समिति बना ली थी। यह समिति हर तीन साल बाद महंत और पुजारी की नियुक्ति करती थी।

प्रश्न 5.
हरिहर काका के परिवार में कौन-कौन थे? उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर
हरिहर काका का परिवार संयुक्त परिवार था। वे चार भाई थे। हरिहर काका ने दो शादियाँ की, परंतु उनकी संतान नहीं थी। दोनों पत्नियों के मरने के उपरांत वे अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। तीनों भाइयों के भरे-पूरे परिवार थे। दो भाइयों ने अपने लड़कों की शादियाँ भी कर दी थीं। उन लड़कों में से एक लड़का शहर में क्लर्की का काम करता था। हरिहर काका के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उनके परिवार के पास साठ बीघे जमीन थी। सभी भाइयों के हिस्से में पंद्रह बीघे खेत थे।

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प्रश्न 6.
किस घटना ने हरिहर काका को क्रोधित किया?
उत्तर
हरिहर काका अपनी दोनों पत्नियों के मरने के उपरांत भाइयों के पास रहने लगे थे। भाइयों ने भी अपने परिवार की औरतों को हरिहर काका की उचित देखभाल करने के लिए कह दिया था। कुछ दिन तक उनकी उचित देखभाल हुई, लेकिन बाद में घर में उनको अनदेखा किया जाने लगा। खाने में भी रूखा-सूखा भोजन दिया जाता था। बीमार पड़ने पर कोई उन्हें पूछने भी नहीं आता था।

एक दिन उनके शहर में रहने वाले भतीजे के साथ उसका मित्र आया। उस मित्र की मेहमानबाजी में घर में अच्छा खाना बना था। उस दिन हरिहर काका अच्छा खाना खाने की सोच रहे थे। लेकिन उन्हें देर तक कोई पूछने भी नहीं आया। हरिहर काका स्वयं रसोई में जाकर खाना माँगने लगे। उनके खाना माँगने पर घर की बहू ने उन्हें प्रतिदिन की तरह थाली में रूखा-सूखा खाना रखकर दे दिया। यह देखकर हरिहर काका को क्रोध आ गया और उन्होंने खाने की थाली घर के आँगन में फेंक दी।

प्रश्न 7.
हरिहर काका की अपने परिवार के साथ हुई लड़ाई का लाभ कौन उठाना चाहता था और उसने हरिहर काका को क्या समझाया?
उत्तर
हरिहर काका की अपने परिवार के साथ हुई लड़ाई का लाभ महंत उठाना चाहते थे। हरिहर काका के पास पंद्रह बीघे ज़मीन थी। उस जमीन को महंत ठाकुरबारी की ज़मीन के साथ मिलाना चाहते थे। इसलिए वे हरिहर काका को बहला-फुसलाकर ठाकुरबारी में ले गए। उन्होंने हरिहर काका को मोह-माया के बंधन से दूर रहने का उपदेश दिया। वे हरिहर काका को अपने खेत ठाकुर जी के नाम लिखने की सलाह दी और कहा कि ऐसा करने से हरिहर काका के लोक-परलोक दोनों सुधर जाएँगे। इस जन्म में उन्हें संतान सुख नहीं मिला, परंतु वे अपना खेत ईश्वर के नाम लिख देंगे तो अगले जन्म में उन्हें ईश्वर सभी प्रकार के सुखों से भर देगा। इस प्रकार की बातें करके महंत हरिहर काका को अपने जाल में फँसाने में लगे थे।

प्रश्न 8.
“जिनका धन वह रहे उपास, खाने वाले करें विलास।” कथावाचक ने यह शब्द किसके लिए और क्यों कहे हैं?
उत्तर :
कथावाचक ने यह शब्द हरिहर काका तथा उनकी सुरक्षा के लिए आए पुलिसकर्मियों के लिए कहे थे। हरिहर काका के खेतों को लेकर गाँव में चर्चाओं का वातावरण गर्म था। महंत और उनके तीनों भाई खेतों को अपने नाम करवाना चाहते थे। इसलिए दोनों ही उन पर अत्याचार करने लगे थे। काका को उन लोगों से बचाने के लिए पुलिस वालों ने उनकी सुरक्षा का प्रबंध कर दिया था। हरिहर काका अपने भाइयों और महंत का बिनौना रूप देखकर सकते में थे। उन्होंने चुष्पी धारण कर ली थी।

वे किसी से कुछ नहीं कहते थे। अब वे भाइयों से अलग हो चुके थे। उन्होंने अपने कार्यों के लिए एक नौकर रख लिया था। अब उन्हें खाने की इच्छा नहीं रह गई थी। जब वे खाना चाहते थे, तब उन्हें खाने के लिए मिलता ही नहीं था। खाने के नाम पर ही सब झगड़ा हुआ था। अब उनके खर्चे पर पुलिस वाले, नौकर आदि खाकर आनंद मना रहे हैं। इसलिए कथाकार ने ये शब्द हरिहर काका के न खा सकने तथा अन्य लोगों द्वारा उनके पैसे पर मौज़ उड़ाने को लेकर कहे हैं।

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प्रश्न 9.
हरिहर काका के साथ उनके सगे भाइयों का व्यवहार क्यों बदल गया?
उत्तर :
हरिहर काका के परिवार के पास साठ बीघे खेत थे। वे चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका निःसंतान थे। इसलिए उनके खेतों की देखभाल और उसका लाभ उनके भाइयों को मिलता था। इसके बदले में उनकी उचित देखभाल होती थी, परंतु थोड़े दिनों बाद वे परिवार में फालतू वस्तु बनकर रह गए थे। इस पर उन्होंने अपने हिस्से के खेतों पर अधिकार जमाना आरंभ कर दिया। उनके तीनों भाइयों का व्यवहार बदल गया। पहले तो प्यार और आदर का दिखावा करके उन्हें अपने खेत उन लोगों के नाम लिखने के लिए कहा।

हरिहर काका ने दुनिया देखी थी; वे समझ गए थे कि यदि जीवित रहते खेत उन लोगों के नाम लिख दिए तो वे लोग उन्हें पूछने तक नहीं आएँगे। उनकी इस सोच ने उनके भाइयों को क्रूर और अत्याचारी बना दिया। वे तीनों उन्हें सताने लगे। वे उनसे मारपीट करते थे तथा उन्हें जान से मार देने की धमकी देते थे। खेतों के लिए भाइयों का बदला व्यवहार देखकर समाज के हर रिश्ते से हरिहर काका का विश्वास उठ गया था।

प्रश्न 10.
आपके विचार में हरिहर काका के न रहने पर उनकी जमीन पर किसके अधिकार की संभावना है? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हरिहर काका के खेतों पर अधिकार जमाने के लिए महंत और उनके भाइयों ने उनसे मारपीट करके कोरे कागजों पर उनके अंगूठे के निशान ले लिए थे। दोनों ही गुट उनकी जमीन के उत्तराधिकारी बन गए थे। परंतु हरिहर काका के न रहने पर उनकी जमीन पर अधिकार करने की संभावना महंत की अधिक है, क्योंकि उनके साथ धर्म का नाम है और वे जानते हैं कि धर्म के नाम पर लोगों को कैसे उकसाया जाता है; कैसे दंगा-फसाद खड़ा किया जा सकता है? उनके साथ गाँव के अंधविश्वासी लोग अधिक हैं।

वे लोग, जो अपने हर छोटे बड़े कार्य की सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देकर चढ़ावा चढ़ाते हैं, तो उन लोगों का समर्थन लेकर खेतों को अपने अधिकार में करना महंत के लिए आसान कार्य था। इसमें हरिहर काका के भाई कुछ भी नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 11.
ठाकुर जी के नाम जमीन वसीयत करने की बात कहने में महंत ने हरिहर काका को क्या-क्या लालच दिए?
उत्तर :
ठाकुर जी के नाम ज़मीन वसीयत करने की बात कहते हुए महंत ने हरिहर काका से कहा कि ऐसा करने से वे समस्त मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाएँगे; वे धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, उन्हें ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए। इससे उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होगी तथा तीनों लोकों में उनकी कीर्ति जगमगा उठेगी। लोग उन्हें सदा स्मरण करते रहेंगे। तुम आराम से ठाकुरबारी में अपना शेष जीवन व्यतीत करना, जहा तुम्ह सबकुछ मिलता रहेगा।

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प्रश्न 12.
भाइयों की किन बातों से हरिहर काका का दिल पसीजा और वे घर लौट आए?
उत्तर :
हरिहर काका ठाकुरबारी से घर नहीं आना चाहते थे, क्योंकि वहाँ उन्हें सब प्रकार का आराम मिल रहा था। लेकिन जब उनके तीनों भाई उन्हें मनाने बार-बार ठाकुरबारी आने लगे; उनके पाँव पकड़कर रोने लगे; अपनी पत्नियों की गलतियों के लिए माफ़ी माँगने लगे, तो उनका दिल पसीज गया। उनके भाइयों ने अपनी पलियों को दंड देने की बात कही तथा खून के रिश्ते की दुहाई दी, तो वे पुन: वापस घर लौट आए।

प्रश्न 13.
ठाकुरबारी में हरिहर काका की सेवा के लिए क्या-क्या व्यवस्था की गई ?
उत्तर :
ठाकुरबारी में हरिहर काका की सेवा के लिए दो सेवकों ने एक साफ़-सुथरे कमरे में पलंग पर बिस्तर लगाकर उन्हें वहाँ लिटा दिया। उनके लिए विशेष प्रकार के भोजन की व्यवस्था की गई। उन्हें घी टपकते मालपुए, रस बुनिया, लड्डू, छेने की तरकारी, दही, खीर आदि खाने के लिए दी गई।

प्रश्न 14.
ठाकुरबारी की देखभाल की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर :
ठाकुरबारी की देखभाल के लिए धार्मिक लोगों की एक समिति थी, जो ठाकुरबारी के संचालन के लिए प्रत्येक तीन वर्ष पर एक महंत और एक पुजारी की नियुक्ति करती थी। ठाकुरबारी का खर्चा चंदे, दान, चढ़ावे तथा बीस बीघे खेतों की फ़सल की आय से चलता था।

प्रश्न 15.
तीसरी शादी करने से हरिहर काका ने क्यों मनाकर दिया?
उत्तर :
हरिहर काका ने अपनी ढलती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण तीसरी शादी करने से इनकार कर दिया था। औलाद के लिए उन्होंने दो शादियाँ की थीं, परंतु जब दोनों ही बिना संतान को जन्म दिए स्वर्ग सिधार गईं, तो वे विरक्त हो गए। इसके बाद तीसरी शादी का विचार छोड़कर ‘प्रभु में लीन’ हो गए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

प्रश्न 16.
हरिहर काका ने खाने की थाली बीच आँगन में क्यों फेंक दी?
उत्तर :
एक दिन हरिहर काका के शहर में रहने वाले भतीजे के साथ उसका मित्र आया। उस मित्र की मेहमानबाजी में अच्छा खाना बना था। उस दिन हरिहर काका को अच्छा खाना मिलने की उम्मीद थी। लेकिन उन्हें देर तक कोई भी पूछने नहीं आया। हरिहर काका स्वयं रसोई में जाकर खाना माँगने लगे। उनके खाना माँगने पर घर की बहू ने उन्हें प्रतिदिन की तरह रूखा-सूखा खाना थाली में रखकर दे दिया। यह देखकर हरिहर काका को क्रोध आ गया और उन्होंने खाने की थाली घर के आँगन में फेंक दी।

प्रश्न 17.
‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर बताइए कि एक महंत से समाज की क्या अपेक्षा होती है। उक्त कहानी में महंतों की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए। उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
उत्तर :
‘हरिहर काका’ पाठ में ठाकुर बारी के महंत किसी न किसी प्रकार से हरिहर काका की संपत्ति हड़पना चाहते हैं। वे एक धर्माधि कारी होते हुए भी धर्म की उचित शिक्षा नहीं दे रहे हैं। वे मात्र अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। वास्तव में एक धर्माधिकारी महंत का सर्वप्रथम कर्तव्य यह है कि वह समाज को धर्मानुसार आचरण करने की शिक्षा दे। जो लोग अधर्म के मार्ग पर चल रहे हैं, उन्हें सही मार्ग पर लाए। इसके लिए उन्हें समाज में नैतिक मूल्यों के विकास का प्रयत्न करते हुए उनमें परंपरागत भारतीय संस्कार जागृत करने होंगे।

इस कार्य को सफल बनाने के लिए उन्हें अपने आचरण के द्वारा लोगों को शिक्षित करना होगा। उदाहरण के लिए एक माँ ने गुरू नानकदेव जी से प्रार्थना की कि उसका बेटा गुड़ बहुत खाता है, उसे गुड़ खाने से मना करें। गुरूजी ने उसे एक सप्ताह बाद आने के लिए कहा। वह एक सप्ताह बाद बेटे के साथ आई तो गुरूजी ने बालक के सिर पर हाथ रख कर कहा कि बेटा गुड़ मत खाना।

इस पर माँ ने गुरूजी को कहा कि इतनी सी बात के लिए उसे दुबारा क्यों बुलाया, उसी दिन कह देते। गुरूजी ने उत्तर दिया कि तब मैं स्वयं गुड़ खाता था, इसलिए गुड़ नहीं खाने का उपदेश नहीं दे सकता था। अब मैं गुड़ नहीं खाता इसलिए बालक को गुड़ नहीं खाने के लिए कह सका हूँ। धर्मानुसार आचरण करने के लिए समाज को प्रेरित करना ही महंतों का मुख्य कार्य है न कि अपना स्वार्थ सिद्ध करना।

हरिहर काका Summary in Hindi

पाठ का सार :

हरिहर काका’ कहानी के कथाकार ‘मिथिलेश्वर’ हैं। इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने ग्रामीण पारिवारिक जीवन तथा हमारी आस्था के प्रतीक धर्मस्थलों में पाँव फैला रही स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है। कहानी में ‘हरिहर काका’ को इसी स्वार्थलिप्सा के कारण पारिवारिक संबंधों से बेदखल किया गया। लेखक का हरिहर काका से परिचय बचपन का है। हरिहर काका उसके पड़ोस में रहते थे। उन्होंने उसे अपने बच्चे की तरह प्यार और दुलार दिया था। वे उससे अपनी कोई भी बात नहीं छिपाते थे।

परंतु पिछले कुछ दिनों की घटी घटनाओं के कारण हरिहर काका ने चुप्पी साध ली थी। वे किसी से बात नहीं करते थे। वे हर समय चुपचाप बैठे हुए कुछ-न-कुछ सोचते रहते थे। ऐसा लगता था कि उनकी यह चुप्पी उनके साथ ही खत्म होगी। लेखक का गाँव आरा शहर से चालीस किलोमीटर की दूरी पर था। गाँव में तीन स्थान प्रमुख हैं। एक तालाब, दूसरा पुराना बरगद का वृक्ष और तीसरा ठाकुर जी का विशाल मंदिर जिसे लोग ठाकुरबारी भी कहते हैं। ठाकुरबारी की स्थापना कब हुई, इसका किसी को विशेष ज्ञान नहीं था।

इस संबंध में प्रचलित है कि जब गाँव बसा था, तो उस समय एक संत इस स्थान पर झोंपड़ी बनाकर रहने लगे थे। उस संत ने इस स्थान पर ठाकुर जी की पूजा आरंभ कर दी। लोगों ने धर्म और सेवा-भावना से प्रेरित होकर चंदा इकट्ठा करके ठाकुर जी का मंदिर बनवा दिया। ग्रामीण लोगों के विश्वास ने ठाकुर जी के मंदिर और संपत्ति में विशेष योगदान दिया। वहाँ के लोग अपने प्रत्येक कार्य की सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देते थे और अपनी जमीन का एक छोटा टुकड़ा ठाकुर जी के नाम लिख देते थे।

लोगों के इस विश्वास के कारण ठाकुर जी के नाम बीस बीघे जमीन हो गई थी। ठाकुरबारी की देखभाल महंत और एक पुजारी करते थे। इनकी नियुक्ति धार्मिक लोगों की समिति द्वारा तीन साल के लिए की जाती थी। ठाकुरबारी का काम लोगों में धर्मभावना और सेवाभावना उत्पन्न करना था। वहाँ के लोगों के सभी काम ठाकुरबारी से शुरू होते थे। लोग अपना कृषि से बचा समय ठाकुरबारी में व्यतीत करते थे। लेखक कभी-कभी ठाकुरबारी में जाता था। उसे वहाँ बैठे साधु-संत अच्छे नहीं लगते थे। लेखक को लगता था कि ये साधु-संत खाली बातें बनाकर हलवा-पूड़ी खाने का कार्य करते हैं। हरिहर काका चार भाई थे।

सबकी शादियाँ हो गई थी और सभी के पास बच्चे थे। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, परंतु उन्हें बच्चे नहीं हुए थे। उनकी दोनों पत्नियाँ भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। हरिहर काका ने तीसरी शादी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण नहीं की थी। वे अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। उनके परिवार के पास साठ बीघे जमीन थी। सभी भाइयों के हिस्से में पंद्रह-पंद्रह बीघे जमीन आई थी। तीनों भाइयों ने अपनी पत्नियों से कह रखा था कि हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करें; उन्हें किसी तरह का कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। कुछ समय तक सबकुछ ठीक प्रकार से चलता रहा।

थोड़े दिनों बाद सब अपने-अपने परिवार और बच्चों में मग्न हो गए। हरिहर काका का ध्यान रखने वाला कोई नहीं रहा। कभी-कभी उन्हें बचा-खुचा खाना दिया जाता था। बीमार पड़ने पर उन्हें पानी देने वाला कोई नहीं था। उनका अपने भाइयों के परिवार से मोहभंग हो गया। एक दिन उनके भतीजे का मित्र शहर से आया। उसके लिए तरह-तरह के व्यंजन बने। हरिहर काका को विश्वास था कि आज उन्हें अच्छा खाना मिलेगा। परंतु उन्हें किसी ने कुछ नहीं दिया। माँगने पर उन्हें वही रूखा-सूखा भोजन थाली में रखकर दे दिया गया।

हरिहर काका को गुस्सा आ गया। उन्होंने वह थाली आँगन में फेंक दी और कहने लगे कि उनके हिस्से के धन पर घर के सभी लोग मज़े कर रहे हैं। जिस समय हरिहर काका बोल रहे थे, उस समय ठाकुरबारी का पुजारी उनके घर के दालान में बैठा हुआ था। उसने ठाकुरबारी के महंत को सारी बात कह सुनाई। महंत ने इस घटना का लाभ उठाते हुए

हरिहर काका को अपने जाल में फंसा लिया। महंत हरिहर काका को एकांत में ले जाकर लोक-परलोक की बातें समझाने लगे कि यदि वह अपने हिस्से की ज़मीन ठाकुरबारी को दान कर दे, तो चारों ओर उनका गुणगान होगा, ईश्वर की भी उसके ऊपर कृपा बनी रहेगी। हरिहर काका ने पिछले जन्म में कोई पाप किया होगा, जिस कारण उसे पत्नी और संतान सुख नहीं मिला।

यदि अब वह अपना तन, मन, धन ईश्वर के नाम कर देगा, तो उसे अगले जन्म में पूर्ण सुख की प्राप्ति होगी। हरिहर काका देर तक महंत की बातों पर विचार करते रहे। महंत ने उन्हें खूब अच्छा खाने को दिया और सोने के लिए एक आरामदायक कमरा दे दिया। हरिहर काका के भाइयों को जब घर में घटी घटना का पता चला, तो उन्होंने अपनी पत्नियों को बहुत फटकारा। वे तीनों काका को लेने ठाकुरबारी पहुँच गए। महंत ने हरिहर काका को एक रात के लिए अपने यहाँ रोक लिया।

इससे भाइयों को हरिहर काका की पंद्रह बीघे जमीन हाथ से निकलती दिखाई देने लगी। सुबह होते ही तीनों फिर से ठाकुरबारी पहुँच गए। हरिहर काका के पैर पकड़कर रोने लगे। हरिहर काका का दिल पसीज गया और वे उनके साथ घर आ गए। घर में सभी लोगों ने उन्हें हाथों पर लिया। उनकी बहत आवभगत हुई। अब उनकी सभी इच्छाओं का ध्यान रखा जाने लगा। हरिहर काका इस परिवर्तन का श्रेय महंत को दे रहे थे। गाँव के लोगों बताया था, परंतु फिर भी उन लोगों को सारी घटना का पता चल गया था।

हरिहर काका को लेकर गाँव में दो गुट बन गए। एक गुट का मानना था कि हरिहर काका को अपना अगला जन्म सुधारने के लिए जमीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए और दूसरे गुट के लोगों का कहना था कि भाइयों के साथ खून का रिश्ता है, इसलिए ज़मीन उनको देनी चाहिए। हरिहर काका को लेकर गाँव का वातावरण तनावपूर्ण हो गया था। सभी लोग अपनी बात को ठीक बताने में लगे थे। हरिहर काका के भाइयों को भी यही आशंका होने लगी थी कि कहीं लोगों और महंत के दबाव के कारण वे अपनी जमीन ठाकुरबारी के नाम न लिख दें। हरिहर काका जीते-जी किसी को भी अपनी जमीन का स्वामी नहीं बनाना चाहते थे।

उन्हें अपने गाँव के कई बुजुर्ग याद थे, जिन्होंने अपने जीवित रहते अपनी जमीन दूसरों के नाम लिख दी और फिर उनका जीवन एक कुत्ते के जीवन के समान हो गया। हरिहर काका ने न तो महंत को इंकार किया और न ही अपने भाइयों को। वे भी इस बदलाव का असली कारण समझ गए थे। हरिहर काका को लेकर महंत चिंता में पड़ गए। उन्हें लगता था कि कहीं हाथ आई चिड़िया उड़ न जाए, इसलिए उन्होंने हरिहर काका का अपहरण करवाने का निश्चय किया। बाहर से कुछ साधु बुलाकर हरिहर काका को आधी रात के समय घर से उठवा लिया गया। उनके भाई उन्हें ढूँढ़ने लगे। उन्हें लग रहा था कि यह काम महंत का है।

वे लोग ठाकुरबारी गए। वहाँ शांति और खामोशी थी, फिर उन्हें लगा कि कहीं रुपये-पैसे के लालच में डाकू न उठाकर ले गए हों। वे यह सोच ही रहे थे कि उन्हें ठाकुरबारी में से बातचीत करने की आवाजें – आने लगीं। उन्होंने ठाकुरबारी के दरवाजे को पीटना आरंभ कर दिया। ठाकुरबारी की छत से पथराव और फायरिंग होने लगी। हरिहर काका के भाइयों ने पुलिस की सहायता लेकर ठाकुरबारी से काका को बाहर निकाला। काका की हालत बिगड़ी हुई थी। उनके अनुसार महंत उनसे जबरदस्ती जमीन के कागजों पर अंगूठा लगवाना चाहते थे। हरिहर काका के मन में महंत, पुजारी और ठाकुरबारी के प्रति नफ़रत। भर गई थी। हरिहर काका के भाई काका की रक्षा इस प्रकार करते थे, जैसे कोई अनमोल वस्तु हो। काका को यह अनुभव हो गया था।

कि भाइयों द्वारा स्नेह और आदर उनकी जायदाद के कारण है। ठाकुरबारी की घटना के पश्चात भाइयों का दबाव बढ़ने लगा था कि जायदाद उनके नाम कर दें, परंतु काका अपनी बात पर अड़े हुए थे। काका की टालने वाली बातें सुनकर तीनों भाइयों ने महंत वाला रास्ता अपनाया। हरिहर काका से मारपीट आरंभ कर दी। मार पड़ने पर हरिहर काका ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे, जिस कारण उनकी आवाजें घर से बाहर निकल गईं। लोगों ने हरिहर काका के साथ हो रही जोर-ज़बरदस्ती की बात महंत को बताई।

महंत ने पुलिस कार्यवाही करने। में तत्परता दिखाई। पुलिस ने हरिहर को भाइयों के कब्जे से बड़ी बुरी हालत में बरामद किया। हरिहर काका का धर्म से तो पहले ही मोहभंग हो गया था, लेकिन भाइयों के व्यवहार को देखकर खून के रिश्ते से भी उनका मन उचट गया था। हरिहर काका को लेकर महंत और तीनों भाइयों में खींचतान आरंभ हो गई। दोनों गुटों को एक-दूसरे से डर लगा रहता था कि हरिहर काका को कोई भी गुट अपने पक्ष में न कर ले। इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस का पहरा लगा दिया गया।

महंत और तीनों भाई हरिहर काका का विश्वास फिर से जीतने में लगे हुए थे। इस बीच गाँव के एक नेताजी का भी ध्यान हरिहर काका और उनकी जायदाद पर जाता है। वे हरिहर काका से स्कूल बनाने के बहाने से ज़मीन हथियाना चाहते थे, लेकिन हरिहर काका अब किसी की भी बातों में नहीं आते थे। नेताजी को खाली हाथ लौटना पड़ा। गाँववालों के पास अब उठते-बैठते एक ही चर्चा थी कि हरिहर काका अपनी जमीन किसके नाम लिखेंगे।

गाँव में खबरों का बाजार गर्म था कि हरिहर काका के मरने के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी दोनों गुटों में झगड़ा होगा, क्योंकि दोनों के पास हरिहर काका के अंगूठा लगे कागज़ थे। हरिहर काका ने तो सबकी बातें सुननी बंद कर दी थीं। वह किसी की भी बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। हरिहर काका ने अपने कामों के लिए एक नौकर रख लिया था। उन्हें तो धर्म के अधर्म स्वरूप ने और खून के रिश्तों की स्वार्थता ने गूंगा बना दिया था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

कठिन शब्दों के अर्थ :

यंत्रणाओं – यातनाओं, मनःस्थिति – मानसिक दशा, आसक्ति – लगाव, सयाना – बड़ा होना, मझदार – बीच में, विलीन – लुप्त होना, विकल्प – दूसरा उपाय, मन्नौती – मन्नत, ठाकुरबारी – देवस्थान, संचालन – चलाना, अखरना – बुरा लगना, नियुक्ति – लगाया गया, दवनी – अन्न निकालने की प्रक्रिया, अगउम – देवता के लिए निकाला गया अंश, घनिष्ठ – गहरा, हाज़िर – उपस्थित, प्रवचन – उपदेश, मशगूल – व्यस्त, चटोर – खाने-पीने वाले, हमाध – हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री, तत्क्षण – उसी पल, अकारथ – बेकार, विलंब – देर, मुस्तैद – तैयार, निष्कर्ष – परिणाम, जून – समय, बय – उम्र, अप्रत्याशित – आकस्मिक, महटिया – टाल जाना, छल, बल, कल – वंचना, शक्ति, बुद्धि, आच्छादित – ढका हुआ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे। वे समाज में क्रांति के माध्यम से परिवर्तन लाना चाहते थे। वे क्रांति चेतना का आह्वान करने में विश्वास रखते थे, जो ओज और जोश पर निर्भर करती है। ओज और जोश के लिए ही कवि बादलों को गरजने के लिए कहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा भया है।
उत्तर :
यह एक आहवान गीत है, जिसमें कवि ने मत्साहपूर्ण उग में अपने प्रगतिवादी स्वर को प्रकट किया है। वह बादलों को गरज-गरजकर सारे संसार को नया जीवन प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है, जिनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। वे संसार को नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए कवि ने बादलों के विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक उत्साह रखा है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
कविता में बादल ललित कल्पना और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है। एक तरफ़ यह पीड़ित-प्यासे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है, वहीं दूसरी तरफ़ वह नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर :

  1. घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ।
  2. ललित ललित, काले धुंघराले।
  3. विद्युत-छवि उर में, कवि नवजीवन वाले।
  4. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही कभी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है-अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है ? लिखिए।
उत्तर :
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माला पाट-पाट शोभा-श्री पट नहीं कही है। कवि कहता है कि हरे पत्तों और लाल कोंपलों से भरी डालियों के बीच खिले सुगंधित फूलों की शोभा बिखरी है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कंठों में सुगंधित फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम वन की शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हैं पर अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा न सकने के कारण वह चारों ओर बिखर रही है। कवि ने अपने मन के भावों को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन में किस तरह प्रभावित करता है?
उत्तर :
कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम प्रभु फागुन की सुंदरता के कण-कण में व्याप्त हैं। उनके श्वास के द्वारा प्रकृति का कोना-कोना सुगंध से आपूरित था। वही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ भरते थे। उनमें विशेष आकर्षण था, जिससे कवि अपनी आँख नहीं हटाना चाहता। उसकी दृष्टि हट ही नहीं रही है।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर :
कवि ने प्रकृति की व्यापकता को फागुन की सुंदरता के रूप में प्रकट किया है। प्रकृति की सुंदरता और व्यापकता फागुन में समा नहीं पाती, इसलिए वह सब तरफ़ फूटी पड़ती दिखाई देती है। प्रकृति के माध्यम से परमात्मा की सर्वव्या किया है। वह परम सत्ता अपनी श्वासों से प्रकृति के कोने-कोने में सुगंध के रूप में व्याप्त है।

प्रकृति ही कवि को कल्पना की ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती है और उसकी रचनाओं में सर्वत्र दिखाई देती है। प्रकृति की व्यापकता ही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देती है। वन का प्रत्येक पेड़-पौधा इसी सुंदरता से भरकर शोभा देता है। प्रकृति की व्यापकता नैसर्गिक सौंदर्य का मूल आधार है।

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प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर :
फागुन का महीना मस्ती से भरा होता है, जो प्रकृति को नया रंग प्रदान कर देता है। पेड़-पौधों की शाखाएँ हरे-हरे पत्तों से लद जाती हैं। लाल-लाल कोंपलें अपार सुंदर लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी छा जाती है। इससे वन की शोभा का वैभव पूरी तरह से प्रकट हो जाता है। प्रकृति ईश्वरीय शोभा को लेकर प्रकट हो जाती है, जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होती है। इस ऋतु में न गरमी का प्रकोप होता है और न ही सरदी की ठिठुरन। इसमें न तो हर समय की वर्षा होती है और न ही पतझड़ से ,ठ बने वृक्ष। यह महीना अपार सुखदायी बनकर सबके मन को मोह लेता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशिष्टताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे, इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे, इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी। उनकी कविताओं के शिल्प में विद्यमान प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं –

1. भाषागत कोमलता – उनकी भाषा में एकरसता की कमी है। उन्होंने सरल, व्यावहारिक, सुबोध, सौष्ठव प्रधान और अलंकृत भाषा का प्रयोग :
किया है। उनकी भाषा पर संस्कृत का विशेष प्रभाव है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर

शीतल कर दो –

2. कोमलता-निराला की कविताओं में कोमलता है। उन्होंने विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से कोमलता को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है –

घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विदयुत-छबि उर में, कवि नवजीवन वाले!

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3. शब्दों की मधुर योजना – निराला ने अन्य छायावादी कवियों की तरह भाषा को भाषानुसारिणी बनाने के लिए शब्दों की मधुर योजना की है। यथा –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्ष-स्थल पर भूला गान,
माताएँ भी पातीं शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

4. लाक्षणिक प्रयोग – निराला की भाषा में लाक्षणिक प्रयोग भरे पड़े हैं। उन्होंने परंपरा के प्रति अपने विरोध-भाव को प्रकट करते समय भी लाक्षणिकता का प्रयोग किया था –

कठिन श्रंखला बज-बजाकर
गाता हूँ अतीत के गान
मुझ भूले पर उस अतीत का
क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

5. संगीतात्मकता – छायावादी कवियों की तरह निराला ने भी प्रायः तुक के संगीत का प्रयोग नहीं किया था और उसके स्थान पर लय-संगीत को अपनाया था। उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। कविता में उनकी यह विशेषता स्थान-स्थान पर दिखाई देती है –

कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध पुष्प-माल
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

6. चित्रात्मकता – निराला ने शब्दों के बल पर भाव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बादलों का ऐसा शब्द चित्र खींचा है कि वे काले घुघराले बालों के समान आँखों के सामने झूमते-गरजते-चमकते से प्रतीत होने लगते हैं।

7. लोकगीतों जैसी भाषा – निराला ने अनेक गीतों की भाषा लोकगीतों के समान प्रयुक्त की है। कहीं-कहीं उन्होंने कजली और गज़ल भी लिखी हैं। इसमें कवि ने देशज शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।

8. मुक्त छंद – निराला ने मुख्य रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त छंद में प्रकट किया है। उन्होंने छंद से मुक्त रहकर अपने काव्य की रचना की है। इनके मुक्त छंद को अनेक लोगों ने खंड छंद, केंचुआ छंद, रबड़ छंद, कंगारू छंद आदि नाम दिए हैं।

9. अलंकार योजना – कवि ने समान रूप से शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग किया है। इससे इनके काव्य में सुंदरता की वृद्धि हुई है।
(i) पुनरुक्ति प्रकाश-घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ममा ललित ललित, काले घुघराले।
(ii) उपमा-बाल कल्पना के-से पाले।
(iii) वीप्सा-विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
(iv) प्रश्न-क्या ऐसा ही होगा ध्यान?
(v) अनुप्रास-कहीं हरी, कहीं लाल
(vi) यमक-पर-पर कर देते हो।

वास्तव में निराला ने मौलिक-शिल्प योजना को महत्व दिया है, जिस कारण साहित्य में उनकी अपनी ही पहचान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
होली के आसपास मौसम में एकदम परिवर्तन आता है। सरदी समाप्त होने लगती है और सूर्य की तपन बढ़ने लगती है। सरदियों में जिस गर्म धूप की इच्छा होती है, वह इच्छा कम हो जाती है। पेड़-पौधों पर हरियाली छाने लगती है। वनस्पतियों पर नई-नई कोंपलें दिखाई देने लगती हैं। घास पर सुबह-सुबह दिखाई देने वाली ओस की बूंदें गायब हो जाती हैं। पक्षियों के जो झुंड सरदियों में न जाने कहाँ चले जाते हैं, वे वापस पेड़ों पर लौटकर चहचहाने लगते हैं। होली के आसपास प्रकृति की शोभा नया-सा रूप प्राप्त कर लेती है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए। इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।

फूटे हैं आमों में बौर – भर गये मोती के झाग,
भौर वन-वन टूटे हैं। – जनों के मन लूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर, – माथे अबीर से लाल,
सभी बंधन छूटे हैं। – गाल सेंदुर के देखे,
फागुन के रंग राग, – आँखें हुए हैं गुलाल,
बाग-वन फाग मचा है, – गेरू के ढेले कूटे हैं।

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला की कविताओं में विद्रोह का स्वर प्रधान है। कवि ने परंपराओं का विरोध करते हुए हिंदी काव्य को मुक्त छंद का प्रयोग प्रदान किया था। उसे लगा था कि ऐसा करना आवश्यक है, क्योंकि नई काव्य परंपराएँ साहित्य का विस्तार करती हैं –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्षःस्थल पर भूला गान
माताएँ भी पाती शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

कवि ने बादलों के माध्यम से विद्रोह के स्वर को ऊँचा उठाया है। वे समझते थे कि इसी रास्ते पर चलकर समाज का कल्याण किया जा सकता है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन,
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –

वास्तव में निराला जीवनपर्यंत कविता के माध्यम से विद्रोह और संघर्ष के स्वर को प्रकट करते रहे थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 2.
‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बसंत में प्रकृति की शोभा का सुंदर उल्लेख किया है। ऐसा लगता है, जैसे इस ऋतु में प्रकृति के कण-कण में सुंदरता समा-सी जाती है। प्रकृति के कोने-कोने में अनूठी-सी सुगंध भर जाती है, जिससे कवियों की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाहकर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सुंदरता के प्रति मन बँधकर रह जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों की शोभा दिखाई देने लगती है।

प्रश्न 3.
‘अट नहीं रही’ कविता में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी को प्रकृति के कण-कण में परमात्मा की अज्ञात सत्ता दिखाई देती है। वे उसका रहस्य जानना चाहते हैं; पर जान नहीं पाते। उन्हें यह तो प्रतीत होता है कि प्रकृति के परिवर्तन के पीछे कुछ-न-कुछ अवश्य है। वह ईश्वर ही हो सकता है, जो परिवर्तन का कारण बनता है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।

कवि निराला को प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की छवि के दर्शन होते हैं। उन्हें प्रकृति के आँचल में छिपे उसी परमात्मा का रूप दिखाई देता है।

प्रश्न 4.
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए क्या उपमान चुना है?
उत्तर :
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए उन्हें सुंदर काले धुंघराले बालों के समान माना है, जो बालकों की अबोध कल्पना के समान पाले गए हैं। बादलों के अंतर में छिपी बिजली चमक-चमककर उनकी शोभा को और भी अधिक आकर्षक बना देती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 5.
बादल से मानव जीवन को क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
कवि ने बादलों को मानव जीवन को हरा-भरा बनाने वाला मानते हुए मनुष्य को सामाजिक क्रांति के लिए प्रेरित किया है। जैसे बादल सबको समान रूप से वर्षा का जल देकर उनकी प्यास बुझाते हैं तथा धरती को अन्न उपजाने योग्य बनाकर मानव-मात्र को सुख प्रदान करते हैं, वैसे ही वह मानव को भी सामाजिक जीवन में विषमताएँ दूर कर सुख व समृद्धिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 6.
उत्साह किस प्रकार की कविता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उत्साह एक आह्वान गीत है। इस गीत में कवि ने बादलों को संबोधित किया है और उनके माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। कवि ने बादलों को जीवनदाता तथा प्रेरणादायक माना है। कवि ने बादलों को बालकों की अबोध कल्पना के समान माना है।

प्रश्न 7.
निराला के काव्य में वेदना एवं करुणा की अनुभूति होती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वेदना, दुख एवं करुणा की अभिव्यक्ति छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। निराला जी ने वेदना एवं दुख को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है।

तप्त धरा, जब से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो!

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उसके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

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प्रश्न 8.
कवि निराला ने ‘उत्साह’ कविता में प्रकृति पर चेतना का आरोप किया है, सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
निराला ने ‘उत्साह’ कविता में सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। उनकी दृष्टि में बादल चेतना है। वे बादल से कहते हैं कि –

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर
ओ!
ललित ललित, काले धुंधराले
बाल कल्पना के-से पाले।

प्रश्न 9.
निराला ने अपने भावों को कैसे और किस माध्यम से प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने नवजीवन और नई कविता के संदर्भो में विचार करते हुए बादलों के माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। वे नई चेतना एवं जागृति लाना चाहते हैं; प्रकृति का सहारा लेकर जनजागरण करना चाहते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों का कैसा रूप-सौंदर्य दिखाया है?
उत्तर :
कवि ने ‘उत्साह’ त्रित करते हुए उन्हें घना तथा प को काले बादल ऐसे लगते हैं, जैसे किसी बच्चे के काले धुंघराले बाल हों। कवि को बादलों का रूप-रंग भी बच्चों के बालों के समान दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य के मन पर फागुन की मस्ती का क्या प्रभाव दिखाई देता है?
उत्तर :
फागुन अपने आप में अत्यंत रंगीन तथा आकर्षक दिखाई देता है। उसकी मस्ती अनूठी है, जिससे मनुष्य का मन हर्षित
तथा प्रसन्नचित्त रहता है। इसके कारण उसके मन में खुशी का संचार होता है। उसका मन दूर नील मान में उड़ने को छ का रहता है। फागुन की सुंदरता उसे अपनी ओर इतना अधिक आकर्षित करती है कि वह चाहकर भी अपना ध्यान दूसरी ओर नहीं कर पता।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(i) लोगों का
(ii) विश्व का
(iii) बादलों का
(iv) दिशाओं का
उत्तर :
(iii) बादलों का

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(ख) विकल और उन्मन कौन थे?
(i) बादल-नभ
(ii) प्रकाश-तारा
(iii) धरा-जल
(iv) विश्व-जन
उत्तर :
(iv) विश्व-जन

(ग) बादल किसका प्रतीक हैं?
(i) क्रांति और नवचेतना के
(ii) भीषण गरमी के
(iii) दुखीं धरा के
(iv) शीतल नभ के
उत्तर :
(i) क्रांति के नवचेतना के

(घ) प्रस्तुत काव्यांश किस कविता से लिया गया है?
(i) फ़सल
(ii) अट नहीं रही है
(iii) बादल
(iv) उत्साह
उत्तर :
(iv) उत्साह

(ङ) कवि ने ‘निदाघ’ से किस ओर संकेत किया है?
(i) तप्त धरा
(ii) सांसारिक सुखों
(iii) सांसारिक दुखों
(iv) भीषण गरमी
उत्तर :
(iii) सांसारिक दुखों

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2. कहीं साँस लेते हो,
पत्तों से लदी डाल
घर-घर भर देते हो,
कहीं हरी, कहीं लाल,
उड़ने को नभ में तुम
कहीं पड़ी है उर में
पर-पर कर देते हो,
मंद-गंध-पुष्प-माल
आँख हटाता हूँ तो
पाट-पाट शोभा-श्री
हट नहीं रही है।
पट नहीं रही है।

(क) कविता में किस माह के सौंदर्य का चित्रण है?
(i) पौष
(ii) फागुन
(iii) चैत्र
(iv) वैशाख
उत्तर :
(ii) फागुन

(ख) पत्तों से लदी डाल पर किन रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(i) लाल-पीली
(ii) लाल-हरी
(iii) हरी-पीली
(iv) लाल-नीली
उत्तर :
(ii) लाल-हरी

(ग) कवि का साँस लेने से क्या तात्पर्य है?
(i) जीवित होना
(ii) सुगंध फैलाना
(iii) सुगंधित पवन का चलना
(iv) पत्तों का हिलना
उत्तर :
(iii) सुगंधित पवन का चलना

(घ) कवि की आँख कहाँ से हट नहीं रही?
(i) फागुन का सुंदरता से
(ii) नीले आसमान से
(iii) तेज़ सूरज से
(iv) शीतल चाँद से
उत्तर :
(i) फागुन का सुंदरता से

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(ङ) प्रस्तुत कविता के कवि कौन हैं?
(i) प्रसाद
(ii) दिनकर
(iii) निराला
(iv) जायसी
उत्तर :
(iii) निराला

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) बादलों को किसके समान सुंदर कहा गया है?
(i) सफ़ेद बालों के समान
(ii) भूरे बालों के समान
(iii) काले-घुघराले बालों के समान
(iv) बच्चों के समान
उत्तर :
(iii) काले-धुंघराले बालों के समान

(ख) कवि ने बादलों के माध्यम से किसका आह्वान किया है?
(i) समृद्धि का
(ii) आपदा का
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का
(iv) वर्षा का
उत्तर :
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का

(ग) ‘अट नहीं रही है’ कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरा है?
(i) कण
(ii) ओस
(iii) बादल
(iv) शोभा-श्री
उत्तर :
(iv) शोभा-श्री

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(घ) कवि ने बादल को क्या कहा है?
(i) विद्युतमय
(ii) वज्रमय
(iii) कल्पनामय
(iv) (i) और (ii) दोनों
उत्तर :
(iii) कल्पनामय

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. उत्साह

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल, गरजो! विकल विकल, उन्मन
थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

शब्दार्थ : गगन – आकाश। धाराधर – मूसलाधार, लगातार। ललित – सुंदर। विद्युत-छवि – बिजली की चमक (शोभा)। उर – हृदय, भीतर। कवि – स्रष्टा। विकल – व्याकुल। उन्मन – अनमना, उदास। निदाघ – गरमी का ताप। तप्त – गर्म। धरा – पृथ्वी! अनंत – आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित की गई है, जिसके रचयिता सप्रसिदध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने अपनी कविता में बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उन्होंने बादलों को नए अंकुर के लिए विध्वंस और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी माना है।

व्याख्या : कवि बादलों से गरज-बरस कर सारे संसार को नया जीवन देने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि बादलो! तुम गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर मूसलाधार वर्षा करो; घनघोर बरसो। हे बादलो! तुम अत्यंत सुंदर हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुघराले बालों के समान है तथा तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले गए हो। तुम हृदय में बिजली की शोभा धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो।

तुम जलरूपी नया जीवन देने वाले हो और तुम्हारे भीतर वज्रपात करने की अपार शक्ति छिपी हुई है। तुम इस संसार को नवीन प्रेरणा और जीवन प्रदान कर दो। बादलो! तुम गरजो और सबमें नया जीवन भर दो। गरमी के तेज ताप के कारण धरती के सारे लोग बहुत ल्याकुल और बेचैन हैं, वे उदास हो रहे हैं। अरे बादलो! तुम सीमाहीन आकाश में पता नहीं किस ओर से आकर सब तरफ़ फैल गए हो। तुम इस गरमी के ताप से तपी हुई धरती को बरसकर शीतलता प्रदान करो। हे बादलो! तुम गरज-गरज कर बरसो और फिर धरती को शीतल करो!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कविता में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों?
3. बादलों को किसके समान संदर माना गया है ?
4. बादल किसकी कल्पना के समान पाले गाए हैं ?
5. बादलों के हृदय में किस प्रकार की शोभा छिपी हुई है?
6. बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं ?
7. धरती के लोग किस कारण व्याकुल और बेचैन थे?
8. बादल कहाँ छा जाते हैं ?
9. कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है ?
उत्तर :
1. कवि ने प्यास और पीड़ित लोगों के कष्टों को दूर कर उनकी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बादलों का आग्रह भा आहवान किया है ! साथ-ही-साथ उसने बादलों को नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना को संपन्न करने वाला माना है। बादल ही धरती को हरा-भरा बनाते हैं और कवि को कविता लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
2. कवि ने बादलों का आह्वान किया है, ताकि वे अपने जल से धरती तथा सारे संसार को नया जीवन प्रदान करें।
3. बादलों को काले धुंघराले बालों के समान सुंदर माना गया है।
4. बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं।
5. बादलों के हृदय में बिजली की शोभा छिपी हुई है, जो समय-समय पर जगमगाकर प्रकट हो जाती है।
6. बादल मानव-जीवन और कवि को नवीन प्रेरणा व जीवन प्रदान करते हैं।
7. धरती के लोग गरमी के ताप के कारण व्याकुल और बेचैन थे।
8. बादल न जाने सीमाहीन आकाश के किस कोने से आकर सब ओर छा गए थे।
9. कवि बादलों से बरसकर गरमी के ताप से तपी धरती को शीतलता प्रदान करने को कहता है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से किस प्रकार प्रतीकात्मकता को प्रस्तुत किया है ?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है।
3. किस प्रकार की शब्दावली का अधिक से प्रयोग किया गया है?
4. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
5. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
6. प्रयुक्त काव्य-गुण का नाम लिखिए।
7. प्रयुक्त बिंब कौन-सा है?
8. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को लिखिए।
9. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. कविता हिंदी साहित्य की किस काव्यधारा से संबंधित है?
11. शैली का नाम लिखिए।
12. कविता में प्रयुक्त अलंकारों का निरूपण कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से सामाजिक क्रांति का आहवान किया है। बादल सृजन और संहार दोनों कर सकते हैं।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग किया है, पर फिर भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।
5. लाक्षणिकता की विशेषता विद्यमान है।
6. ओज गुण विद्यमान है।
7. गतिशील चाक्षुक बिंब का प्रयोग है।
8. बादल, काले।
9. विधुत, ललित।
10. छायावाद।
11. आहवान शैली/संबोधन शैली।
12. अनुप्रास –

  • घेर घेर घोर गगन
  • ललित ललित
  • बाल कल्पना के-से पाले

मानवीकरण –

  • बादल गरजो!
  • घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

पुनरुक्ति प्रकाश –
घेर घेर, ललित ललित, विकल-विकला

उपमा –
बाल कल्पना के-से पाले

2. अट नहीं रही है।

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

शब्दार्थ : अट – समाना, प्रविष्ट। आभा – चमक, सौंदर्य। नभ – आकाश। उर – हृदय। मंद – धीमी। पुष्प-माल – फूलों की माला। पाट-पाट -जगह-जगह। शोभा-श्री – सौंदर्य से भरपूर। पट – समा नहीं रही है।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसे मूल रूप से उनकी काव्य-रचना ‘राग-विराग’ में संकलित किया गया है। कवि ने इसमें फागुन की मादकता को प्रकट किया है, जिसकी सुंदरता और उल्लास सभी दिशाओं में फैला हुआ है।

व्याख्या : कवि कहता है कि फागुन की यह सुंदरता शरीर में किसी भी से प्रकार समा नहीं पा रही है। वह प्रकृति के कण-कण से फूट रही है। अपने रहस्यवादी भावों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि हे प्रिय! पता नहीं तुम कहाँ बैठकर अपनी साँस के द्वारा प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से भर रहे हो। तुम कल्पना के आकाश में ऊँचा उड़ने तुम्हारी के लिए मन को पंख प्रदान करते हो। तुम मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देते हो। सब तरफ़ तुम्हारी सुंदरता ही व्याप्त है।

वह अत्यधिक आकर्षक और सुंदर है। कवि कहता है कि मैं उसकी ओर से अपनी आँख हटाना चाहता हूँ, पर वह वहाँ से हट नहीं पा रही। इस सुंदरता में मन बँधकर रह गया है। पेड़ों की सभी डालियाँ पत्तों से पूरी तरह से लद गई हैं। कहीं तो पत्ते हरे हैं और कहीं कोंपलों में लाली छाई है। उनके बीच सुंदर-सुगंधित फूल खिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके कंठों में सुगंध से भरे फूलों की मालाएँ पड़ी हैं। हे प्रिय! तुम जगह-जगह शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हो पर वह अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा नहीं पा रही और चारों ओर बिखरी पड़ी है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपनी कविता में किसे अपनी बात कहनी चाही है?
3. कवि ने किस महीने की सुंदरता का वर्णन किया है?
4. कवि के प्रिय किसे और किसके द्वारा सुगंध से आपूरित कर देते हैं ?
5. कवि को मन के पंख क्यों प्रदान किए गए हैं ?
6. चारों ओर किसका सौंदर्य व्याप्त है ?
7. कवि किसकी ओर से अपनी आँख नहीं हटा पाता और क्यों ?
8. पेड़-पौधों की डालियाँ किस प्रकार के पत्तों से लद गई हैं ?
9. वन के वैभव में कूट-कूटकर क्या भरा हुआ है ?
10. कविता के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने फागुन महीने की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है, जिसे देखकर कवि के हृदय में अनेक कल्पनाओं का जन्म होता है। कवि के अनुसार ईश्वर की रहस्यमयी शोभा सब तरफ़ व्याप्त है।
2. कवि ने कविता में रहस्यवादी भाव प्रकट करते हुए अपने प्रियतम से अपनी बात कहनी चाही है।
3. कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
4. कवि के प्रिय अपनी श्वास से प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से आपूरित कर देते हैं।
5. कवि के मन को उसके प्रियतम द्वारा पंख इसलिए प्रदान किए गए, ताकि वह कल्पना के आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक ऊँचा उड़ सके।
6. चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य व्याप्त है।
7. कवि अपने चारों ओर फैले परमात्मा के सौंदर्य से आँख नहीं हटा पाता। उसका मन नैसर्गिक सौंदर्य में बँधकर रह गया है।
8. पेड़-पौधों की डालियाँ हरे-भरे पत्तों और नई-नई लाल कोंपलों से लद गई हैं।
9. वन के वैभव में शोभा और सौंदर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है।
10. खड़ी बोली में रचित इस कविता में तत्सम और तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंट है। विशेषोक्ति, असंगति, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, पदमैत्री और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है।

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सिौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस प्रकार की भावना को व्यक्त किया है?
2. कविता में किस सुंदर छटा को मुखरित किया गया है?
3. भाषा में कौन-सा गुण विद्यमान है?
4. किस छंद का प्रयोग किया है ?
5. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
6. काव्य-गुण लिखिए।
7. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
8. किस प्रकार के शब्दों का अधिक प्रयोग है?
9. दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. एक मुहावरे का उल्लेख कीजिए।
11. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। उसे सब दिशाओं में फागुन की सुंदरता और उल्लास समान रूप से फैला हुआ प्रतीत होता है।
2. प्रकृति की सुंदर छटा मुखरित हुई है।
3. भाषा में गेयता का गुण विद्यमान है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
5. लाक्षणिकता के प्रयोग ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. खड़ी बोली।
8. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
9. माँस, आँख।
10. पट जाना, अट जाना।
11. अनुप्रास –

  • नहीं रही है
  • घर-घर भर
  • पर-पर कर
  • पाट-पाट
  • शोभा-श्री

विशेषोक्ति –

  • आँख हटाता हूँ तो
  • हट नहीं रही है।

पुनरुक्ति प्रकाश –
घर-घर, पर-पर, पाट-पाट

मानवीकरण –

  • कहीं साँस लेते हो
  • घर-घर भर देते हो
  • उड़ने को नभ में तुम
  • पर-पर कर देते हो।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी साहित्य जगत में ‘महाप्राण निराला’ नाम से प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के गाँव गढ़ाकोला के निवासी थे। वे तत्कालीन महिषादल रियासत में कोषाध्यक्ष थे। जब निराला जी तीन वर्ष के थे, तो इनकी माता का देहावसान हो गया था।

इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने बाँग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी आदि में रचित साहित्य का गहन अध्ययन किया था। पारिवारिक उत्तरदायित्वों को वहन करने के लिए इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी प्रारंभ की, किंतु कुछ कारणों से त्याग-पत्र देकर वहाँ से चले आए। कुछ समय तक वे रामकृष्ण मिशन कलकत्ता (कोलकाता) के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन करते रहे।

बाद में इन्होंने ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन भी किया। 15 अगस्त 1961 ई० को इनका देहावसान हो गया। निराला जी अत्यंत उदार, स्वाभिमानी, अध्ययनशील, प्रकृति-प्रेमी तथा त्यागी व्यक्ति थे। वे स्वयं संगीत-प्रेमी थे। अतिथि-सत्कार करने में वे अत्यंत संतोष का अनुभव करते थे। वे विद्रोही प्रवृत्ति तथा पुरातन में नवीनता का समावेश करने वाले साहित्यकार थे।

रचनाएँ – निराला जी बहमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में लिखा। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएँ-अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नए पत्ते, अपरा, अराधना, अर्चना, तुलसीदास, सरोज स्मृति, राम की शक्ति-पूजा, राग-विराग, वर्षा गीत आदि।
उपन्यास – अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि।
कहानी संग्रह – लिली, सखी, चतुरी चमार तथा सुकुल की बीबी।
रेखाचित्र-कुल्ली भाट और बकरिहा।
निबंध संग्रह – प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवींद्र कविता कानन।
जीवनियाँ – ध्रुव, भीष्म तथा राणा प्रताप।

अनुवाद – आनंदपाठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेश नंदिगी, कृष्णकांत का विल, युगलांगुलीय, रजनी, देवी चौधरानी, राधा रानी, विष वृक्ष, राजसिंह, महाभारत आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-निराला जी हिंदी की छायावादी कविता के आधार-स्तंभ माने जाते हैं, किंतु इनकी कविता में छायावाद के अतिरिक्त प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. वैयक्तिकता – छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में भी वैयक्तिकता की अभिव्यक्ति है। जूही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति-पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज-स्मृति आदि अनेक कविताओं में हमें निराला की वैयक्तिक भावना की सफल अभिव्यक्ति मिलती है।

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2. निराशा, वेदना, दुखवाद एवं करुणा की विवृत्ति-छायावादी कवि वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व मानते हैं। निराला जी ने वेदना एवं दुखवाद को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है –

“दिए हैं मैंने जगत को फूल फल, किया है अपनी प्रभा से चकित-चल,
यह अनश्वर था सफल पल्लवित तल, ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।”

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उनके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

3. प्रकृति-चित्रण-निराला ने प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उनकी दृष्टि में बादल, प्रपात, यमुना-सभी कुछ चेतना है। वे यमुना से पूछते हैं –

“तू किस विस्मृत की वीणा से, उठ उठ कर कातर झंकार।
उत्सुकता से उकता-उकता, खोल रही स्मृति के दृढ़ द्वार?”

4. मानवतावादी जीवन-दर्शन – निराला के काव्य में मानवतावादी जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है। बादल राग’ में कवि समाज की विषमता से पीड़ित होकर कहता है –

“विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे, आतंक भवन।”

‘तोड़ती पत्थर’ तथा ‘भिक्षुक’ जैसी कविताओं में निराला जी ने मानव में छिपे हुए देवता का दर्शन किया है। यथा –

“ठहरो अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

5. नारी का विविध एवं नवीन रूपों में चित्रण – नारी के प्रति उनके हृदय में गहरी सहानुभूति है। कहीं वह जीवन की सहचरी एवं प्रेयसी है और कहीं उन्हें वह प्रकृति में व्याप्त होकर अलौकिक भावों से अभिभूत करती हुई दिखाई देती है। कहीं वे उसके दिव्यदर्शन की झलक पाते हैं और कहीं नारी को लक्ष्य करके वे कवि प्रेमोन्माद की अस्फुट मनोवृत्ति का चित्रण करते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ कविता में ‘मज़दूरिनी’ के प्रति गहरी सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए निराला यह लिखना नहीं भूलते हैं कि –

“श्याम तन, भर बंधा यौवन…,
देख मुख उस दृष्टि से…,
ढुलक माथे से गिरे सीकर।”

6. सामाजिक चेतना – निराला जी चाहते हैं कि समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी हो। निराला ने अपने प्रसिद्ध वंदना गीत ‘वीणा वादिनी वर दे’ में प्रार्थना की है कि मानव-समाज में नवीन शक्तियों का आविर्भाव हो, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन कर सके। निराला ने अपनी पैनी दृष्टि से समाज के सच्चे रूप को देखा था और अपने गरीब जीवन को सहा था।

7. देश-प्रेम की अभिव्यक्ति – देश के सांस्कृतिक पतन की ओर निराला जी ने बड़ी ओजस्विनी भाषा में इंगित किए हैं। इनका कहना है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी शासक के राहू ने ग्रस रखा है। वे चाहते हैं कि किस प्रकार देश का भाग्योदय हो और भारतीय जन-मन आनंद-विभोर हो उठे। भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी का पत्र आदि कविताओं में निराला जी ने देश-भक्ति के भाव प्रकट किए हैं।

8. विद्रोह का स्वर एवं स्वच्छंदता – अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा निराला जी कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता के प्रेमी थे। वस्तुतः वे जीवनपर्यंत विद्रोह एवं संघर्ष ही करते रहे। अपनी संस्कृति का दंभ भरने वालों को ललकारते हुए निराला जी ने लिखा है-‘हज़ार वर्ष से सलाम ठोकते-ठोकते नाक में दम हो गया, अपनी संस्कृति लिए फिरते हैं। ऐसे लोग संसार की तरफ़ से आँखें बंदकर अपने ही विवर में व्याघ्र बन बैठे रहते हैं। अपनी ही दिशा में ऊँट बनकर चलते हैं।’

9. कला पक्ष-निराला जी ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए जिस छंद को चुना है, उसे मुक्त छंद कहा जाता है। काव्य के कला पक्ष के अंतर्गत हम मुक्तक छंद को निराला की सबसे बड़ी देन कह सकते हैं। निराला की भाषा की प्रमुख विशेषताएँ कोमलता, शब्दों की मधुर योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, प्रकृतिजन्य प्रतीकों की प्रचुरता आदि हैं। निराला को संगीत शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। वे स्वयं भी अच्छे गायक थे। उनकी कविता में संगीतात्मकता का सुंदर निर्वाह मिलता है।

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कविता का सार :

करते हुए निराला जी ने बादलों के माध्यम से अपने भावों को प्रकट किया है। कविता में बादल एक ओर भूखे-प्यासे और पीड़ित लोगों की इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करते दिखाए गए हैं, तो दूसरी ओर उसे नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति की चेतना को वाले तत्व के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि ने जीवन को व्यापक और समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति चेतना की ओर ध्यान दिया है। साहित्य की सामाजिक परिवर्तन में सदा ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

कवि बादलों से गरज-गरजकर : बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे बरसकर गरमी के ताप से तपी हुई धरती को शीतलता प्रदान करें। अट नहीं रही है-निराला जी ने अपनी इस रहस्यवादी कविता में फागुन मास की मादकता का सुंदर चित्रण किया है। जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो, तो हर तरफ़ फागुन की सुंदरता और उल्लास भरा रूप ही दिखाई देता है।

कवि को सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती-सी प्रतीत होतो है; उसके कोने-कोने में सुगंध प्रतीत होती है। इससे मन में तरह-तरह की लेती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद गए हैं। वे पत्ते कहीं हरे हैं, तो कहीं केवल कोंपलों के रूप में लाल हैं। उनके बीच में सुगंधित फूल खिल रहे हैं। सारे वन का वैभव अति आकर्षक और मधुर है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

JAC Class 10 Hindi कारतूस Textbook Questions and Answers

मौखिक निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?
उत्तर :
कर्नल कालिंज ने वज़ीर अली को पकड़ने के लिए जंगल में खेमा लगाया हुआ था।

प्रश्न 2.
वज़ीर अली से सिपाही क्यों तंग आ चुके थे?
उत्तर :
वज़ीर अली की तलाश में जंगल में खेमा लगाए हुए कई दिन बीत चुके थे, किंतु वजीर अली पकड़ में नहीं आ रहा था। इसी कारण सिपाही वज़ीर अली से तंग आ गए थे।

प्रश्न 3.
कर्नल ने सवार पर नज़र रखने के लिए क्यों कहा?
उत्तर :
कर्नल को सवार पर शक था। इसी कारण उसने सिपाहियों से सवार पर नज़र रखने के लिए कहा।

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प्रश्न 4.
सवार ने क्यों कहा कि वज़ीर अली की गिरफ्तारी बहुत मुश्किल है?
उत्तर :
सवार वास्तव में वज़ीर अली था। वह एक जाँबाज सिपाही था और वह जानता था कि उसे गिरफ्तार करना आसान नहीं है। इसी
कारण उसने कहा कि वज़ीर अली को गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
वज़ीर अली के अफ़साने सुनकर कर्नल को राँबिनहुड की याद क्यों आ जाती थी ?
उत्तर :
वज़ीर अली और रॉबिनहुड में काफ़ी समानता थी। वज्तीर अली भी रॉंबिनहुड के समान दिलेर और निडर था। रॉबिनहुड अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बाँटा करता था और वज़ीर अली अपने देशवासियों को आज़ाद करवाने के लिए प्रयास कर रहा था। रॉबिनहुड की वीरता और साहस के समान वज़ीर अली की वीरता और साहस भी प्रसिद्ध था। इसी कारण वज़ीर अली के कारनामे सुनकर कर्नल को रॉंबिनहुड की याद आ जाती थी।

प्रश्न 2.
सआदत अला का सआदत अली कौन था? उसने वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत क्यों समझा ?
उत्तर :
सआदत अली अवध के नवाब आसिफ़उद्दौला का भाई था। वज़ीर अली आसिफ़उद्दौला का पुत्र था। सआदत अली अपने भाई के साथ गद्दारी करके अंग्रेजों के साथ मिल गया था। जब वज़ीर अली का जन्म हुआ था, उसे आभास हो गया कि वह अवश्य उसे मार डालेगा। इसलिए वह वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत समझता था।

प्रश्न 3.
सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाने के पीछे कर्नल का क्या मकसद था?
उत्तर :
सआदत अली अंग्रेजों का मित्र बन गया था। वह ऐशो-आराम से जीवन जीने वाला व्यक्ति था। कर्नल चाहता था कि वह अवध के तख्त पर ऐसे व्यक्ति को बिठाए, जो ब्रिटिश सरकार को अच्छा-खासा पैसा दे। सआदत अली ऐसा ही व्यक्ति था। उसने अपनी आधी जायदाद और दस लाख रुपये नकद ब्रिटिश सरकार को दे दिए थे। इसी कारण कर्नल ने सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाया था।

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प्रश्न 4.
कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वजीर अली ने अपनी हिफाजत कैसे की?
उत्तर :
बनारस में कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वज़ीर अली आजमगढ़ की हिफाजत चला गया। इसके बाद आजमगढ़ के शासक की मदद से वह घागरा तक पहुँच गया। वह अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ के जंगलों में छिप गया। उन जंगलों में उसे ढूँढ़ना सरल नहीं था। इस प्रकार उसने अपनी हिफाज़त की।

प्रश्न 5.
सवार के जाने के बाद कर्नल क्यों हक्का-बक्का रह गया?
उत्तर :
सवार वास्तव में वज़ीर अली था। जब उसने ब्रिटिश सेना के खेमे में जाकर कर्नल को मूर्ख बनाया और उससे दस कारतूस भी ले गया, तो कर्नल उसकी दिलेरी को देखकर हैरान रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई व्यक्ति इतना जाँबाज़ भी हो सकता है। कर्नल – वजीर अली के इस साहस और वीरता को देखकर हक्का-बक्का रह गया था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
लेफ़्टीनेंट को ऐसा क्यों लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है?
उत्तर :
लेफ़्टीनेंट ने सुना था कि वज़ीर अली अफ़गानिस्तान के शासक शाहे- ज़मा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दे रहा है, ताकि वह अंग्रेज़ी शासन की जड़ें हिला सके। कर्नल ने उसे बताया कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वज़ीर अली अफ़गानिस्तान के शासक को दिल्ली भी बुला चुका है। साथ ही बंगाल के नवाब का भाई शमसुद्दौला भी हिंदुस्तान के अंग्रेज़ी शासन पर आक्रमण करवाना चाहता है। इस प्रकार अवध से बंगाल तक सभी अंग्रेज़ी शासन को नष्ट करने का मन बना चुके हैं। इसी कारण लेफ़्टीनेंट को लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है।

प्रश्न 2.
वज़़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया ?
उत्तर :
यहाँ कंपनी से तात्पर्य ईस्ट इंडिया कंपनी से है। कंपनी ने अवध के नवाब वज़ीर अली को उसके पद से हटाकर बनारस पहुँचा दिया। कुछ समय बाद ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल ने वज़ीर अली को कलकत्ता (कोलकाता) बुलवाया। वज़ीर अली को इस प्रकार बुलवाया जाना उचित नहीं लगा। उसने कंपनी के वकील से इसकी शिकायत की। लेकिन वकील ने शिकायत पर ध्यान न देकर उसी को भला-बुरा कह दिया। वज़ीर अली अंग्रेज़ों से नफ़रत करता था। अतः जब वकील ने ऐसा दुर्व्यवहार किया, तो गुस्से में आकर वज़ीर अली ने उसका कत्ल कर दिया।

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प्रश्न 3.
सवार ने कर्नल से कारतूस कैसे हासिल किए ?
उत्तर :
कर्नल कालिंज वज़ीर अली को पकड़ने के लिए एक लेफ़्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में खेमा लगाए हुए था। एक दिन उसे एक सवार खेमेमे की ओर आता दिखाई दिया। उस सवार ने उससे अकेले में बातचीत करने के लिए कहा। कर्नल ने इसे स्वीकार कर लिया। तब सवार ने कहा कि वह वज़ीर अली को गिरफ़्तार कर सकता है और उसके लिए उसे कुछ कारतूस चाहिए। कर्नल ने तुरंत उसे दस कारतूस दे दिए। वास्तव में वह सवार वज़ीर अली था। इस प्रकार उसने बड़ी चालाकी से कर्नल से कारतूस हासिल किए।

प्रश्न 4.
वज़ीर अली एक जाँबाज सिपाही था, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वज़ीर अली ने कर्नल को कैसे मात दी ?
उत्तर :
वज़ीर अली का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालना था। उसकी वीरता और साहस के कारण अंग्रेज़ भी उससे डरते थे। उसने दिलेरी दिखाते हुए अंग्रेज़ बटालियन के खेमे में पहुँचकर वहाँ से कारतूस प्राप्त किए। उसकी निडरता को देखकर कर्नल कालिंज भी हक्का-बक्का रह गया। वज़ीर अली ने शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी से सीधे टक्कर लेने का साहस दिखाया था। कर्नल कालिंज पर उसकी बहादुरी का इतना प्रभाव पड़ा कि उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। वह अपनी जान पर खेलकर साहसिक कारनामे करता था। इससे सिद्ध होता है कि वज़ीर अली एक जाँबाज सिपाही था।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
मुठ्ठी भर आदमी और ये दमखम।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन कर्नल कालिंज का है। वह वज़ीर अली की बहादुरी और साहस के विषय में कहता है कि उसके पास मुट्ठी भर लोग हैं, किंतु वह शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी से टक्कर ले रहा है। वह कंपनी के वकील को मार चुका है और अंग्रेज़ों को हिंदुस्तान से बाहर निकालने की कोशिश में लगा हुआ है। यद्यपि उसके साथ अधिक लोग नहीं हैं, फिर भी उसका साहस कम नहीं है। वह थोड़-से लोगों के साथ ही ब्रिटिश सरकार का मुकाबला करने को तैयार है।

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प्रश्न 2.
गर्द तो ऐसे उड़ रही है जैसे कि पूरा एक काफ़िला चला आ रहा हो मगर मुझे तो एक ही सवार नज़र आता है।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन में कर्नल कालिंज घोड़े पर सवार वज़ीर अली को अपनी ओर आता देखकर कहता है कि उड़ती हुई धूल से ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो अनेक लोगों का समूह उनकी ओर बढ़ रहा है। धूल अधिक उड़ रही है, किंतु घुड़सवार केवल एक दिखाई दे रहा है। वास्तव में वह धूल वज़ीर अली के घोड़े के अधिक तेज़ दौड़ने के कारण उड़ रही थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का एक-एक पर्याय लिखिए –
खिलाफ़, पाक, उम्मीद, हासिल, कामयाब, वजीफ़ा, नफ़रत, हमला, इंतज़ार, मुमकिन
उत्तर :

  • खिलाफ़ = विरुद्ध
  • पाक = पवित्र
  • उम्मीद = आशा
  • हासिल = प्राप्त
  • कामयाब = सफल
  • वजीफ़ा = छात्रवृत्ति
  • नफ़रत = घृणा
  • हमला = आक्रमण
  • इंतज़ार = प्रतीक्षा
  • मुमकिन = संभव

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
आँखों में धूल झोंकना, कूट-कूट कर भरना, काम तमाम कर देना, जान बखा देना, हक्का-बक्का रह जाना।
उत्तर :
आँखों में धूल झोंकना – पुलिस की आँखों में धूल झोंककर चोर भाग गया।
कूट-कूट कर भरना – भगतसिंह में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।
काम तमाम कर देना – भारतीय सैनिकों ने अनेक शत्रु सैनिकों का काम तमाम कर दिया।
जान बखा देना – डाकू ने राहगीरों से रुपये तो लूट लिए, लेकिन उनकी जान बखा दी।
हक्का-बक्का रह जाना – रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को देखकर अंग्रेज़ हक्के-बक्के रह गए।

प्रश्न 3.
कारक वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ संबंध बताता है। निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम लिखिए –
(क) जंगल की जिंदगी बड़ी खतरनाक होती है।
(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई।
(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया।
(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी।
(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था।
उत्तर :
(क) जंगल की जिंदगी बडी खतरनाक होती है। – संबंध कारक
(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई। – संबंध कारक, अधिकरण कारक
(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया। – कर्म कारक, संबंध कारक, अपादान कारक
(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी। – संप्रदान कारक, कर्म कारक
(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था। – अधिकरण कारक

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प्रश्न 4.
क्रिया का लिंग और वचन सामान्यतः कर्ता और कर्म के लिंग और वचन के अनुसार निर्धारित होता है। वाक्य में कर्ता और कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार जब क्रिया के लिंग, वचन आदि में परिवर्तन होता है तो उसे अन्विति कहते हैं।
क्रिया के लिंग, वचन में परिवर्तन तभी होता है जब कर्ता या कर्म परसर्ग रहित हों;
जैसे-स सवार कारतूस माँग रहा था। (कर्ता के कारण)
सवार ने कारतुस माँगे। (कर्म के कारण)
कर्नल ने वज़ीर अली को नहीं पहचाना। (यहाँ क्रिया कर्ता और कर्म किसी के भी कारण प्रभावित नहीं है)
अतः कर्ता और कर्म के परसर्ग सहित होने पर क्रिया कर्ता और कर्म में से किसी के भी लिंग और वचन से प्रभावित नहीं होती वह एकवचन पुल्लिंग में ही प्रयुक्त होती है। नीचे दिए गए वाक्यों में ‘ने’ लगाकर उन्हें दुबारा लिखिए –
(क) घोड़ा पानी पी रहा था।
(ख) बच्चे दशहरे का मेला देखने गए।
(ग) रॉंबिनहुड गरीबों की मदद करता था।
(घ) देशभर के लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
उत्तर :
(क) घोड़े ने पानी पीया।
(ख) बच्चों ने दशहरे का मेला देखा।
(ग) रॉबिनहुड ने गरीबों की मदद की।
(घ) देशभर के लोगों ने उसकी प्रशंसा की।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम-चिह्न लगाइए –
(क) कर्नल ने कहा सिपाहियो इस पर नज़र रखो ये किस तरफ़ जा रहा है
(ख) सवार ने पूछा आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है
(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे एक व्यक्ति कह रहा था दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है
उत्तर :
(क) कर्नल ने कहा, “सिपाहियो! इस पर नज़र रखो, ये किस तरफ़ जा रहा है?”
(ख) सवार ने पूछा, “आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है? इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है?”
(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे। चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे। एक व्यक्ति कह रहा था, “दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है।”

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
पुस्तकालय से रॉबिनहुड के साहसिक कारनामों के बारे में जानकारी हासिल कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
वृंदावनलाल वर्मा की कहानी इब्राहिम गार्दी पढ़िए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना-कार्य –

प्रश्न 1.
‘कारतूस’ एकांकी का मंचन अपने विद्यालय में कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘एकांकी’ और ‘नाटक’ में क्या अंतर है? कुछ नाटकों और एकांकियों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कारतूस Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
जंगल में किसने खेमा लगाया हुआ था और क्यों?
उत्तर :
जंगल में कर्नल कालिंज ने खेमा लगाया हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे वज़ीर अली को पकड़ने का आदेश दिया था। इस आदेश को पूरा करने के लिए ही वह एक लेफ़्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में खेमा लगाए हुए था। वह काफी समय से जंगलों में भटक रहा है, किंतु वज़ीर अली को पकड़ने में सफल नहीं हो सका।

प्रश्न 2.
शमसुद्दौला कौन था? एकांकी में उसका नाम किस संदर्भ में आया है?
उत्तर :
शमसुद्दौला बंगाल के नवाब का रिश्ते में भाई लगता था। वह अंग्रेजों से बहुत नफ़रत करता था। वह बहुत वीर एवं साहसी व्यक्ति था। उसने अफ़गानिस्तान के शासक शाहे-ज़मा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया था। वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजी हुकूमत को हिंदुस्तान से बाहर निकालना चाहता था। एकांकी में अफ़गानिस्तान के शासक को वज़ीर अली द्वारा निमंत्रण देने के संदर्भ में शमसुददौला का नाम आया है। कर्नल कालिंज लेफ्टीनेंट को बताता है कि शमसुद्दौला भी अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत खतरनाक है।

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प्रश्न 3.
वज़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया? इसके बाद वह कहाँ भाग गया?
उत्तर :
कंपनी के वकील से वज़ीर अली ने शिकायत की थी कि उसे बार-बार कलकत्ता न बुलाया जाए। किंतु वकील ने उसे ही भला-बुरा कहा। इससे क्रोधित होकर वज़ीर अली ने उसका कत्ल कर दिया। उसके बाद वह अपने कुछ साथियों के साथ आजमगढ़ की ओर भाग गया। आजमगढ़ के शासक ने मदद करते हुए उसे आगरा तक पहुँचा । दिया। तभी से वज़ीर अली अपने साथियों के साथ वहीं के जंगलों में ही रहने लगा था।

प्रश्न 4.
वज़ीर अली के चरित्र की किन्हीं तीन चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
वज़ीर अली कौन था? उसके चरित्र की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर :
वजीर अली की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) देशभक्त-वज़ीर अली एक सच्चा देशभक्त है। वह हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से नफ़रत करता है। वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकालकर बाहर कर देना चाहता है।
(ii) वीर एवं साहसी-वज़ीर अली अत्यंत वीर एवं साहसी है। दुश्मन भी उसकी वीरता का लोहा मानते हैं। वह सीधे दुश्मन के खेमे में जाकर उसे ललकारने में विश्वास रखता है। वह कर्नल कालिंज के खेमे में जाकर उससे कारतूस लेकर आता है।
(iii) अच्छा शासक-वज़ीर अली एक अच्छा शासक है। उसने केवल पाँच महीने अवध की बागडोर संभाली, किंतु इस दौरान उसने अपनी रियासत को अंग्रेज़ी प्रभाव से लगभग मुक्त करके उसे स्वतंत्र जीवन प्रदान किया।

प्रश्न 5.
‘कारतूस’ एकांकी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘कारतूस’ हबीब तनवीर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ एकांकी है। इसकी भाषा उर्दू-फ़ारसी मिश्रित हिंदी है। इसमें तत्सम, तद्भव एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के शब्दों का भी समन्वय हुआ है। इसमें संवादात्मक एवं चित्रात्मक शैली है, जो पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। इनकी शैली में नाटकीयता, रोचकता एवं प्रभावोत्कता के गुण विद्यमान हैं। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से सजीवता एवं रोचकता का समावेश हुआ है।

प्रश्न 6.
‘कारतूस’ एकांकी का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हबीब तनवीर द्वारा लिखित एकांकी ‘कारतूस’ में उन्होंने 1799 ई० में घटित ऐतिहासिक घटना को सजीवता प्रदान की है। आरंभ में अंग्रेज़ भारतवर्ष में व्यापारी के रूप में आए, किंतु धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने हिंदुस्तान की रियासतों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया। इसे देखते हुए भारत के देशभक्त अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने के प्रयास करने लगे। अनेक हिंदुस्तानी नौजवानों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान दिया। इस एकांकी में वज़ीर अली नामक पात्र के माध्यम से तत्कालीन हिंदुस्तानी जाँबाजों की वीरता का सुंदर चित्रण किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सआदत अली का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘कारतूस’ पाठ में सआदत अली को किस प्रकार का व्यक्ति बताया गया है?
उत्तर :
सआदत अली ऐशो-आराम चाहने वाला व्यक्ति था। वह अंग्रेजी सरकार का पिट्ठू था, इसलिए उसने अंग्रेजी सरकार की अधीनता स्वीकार कर ली। वह एक देशद्रोही था।

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प्रश्न 2.
कर्नल लेफ्टीनेंट को वज़ीर अली के बारे में क्या बताता है?
उत्तर :
कर्नल लेफ्टीनेंट को वजीर अली के बारे में बताता है कि वह रॉबिनहुड के समान वीर एवं साहसी है। अंग्रेजों से उसे घृणा है। वह भारत को अंग्रेजों से मुक्त करना चाहता है और अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए निरंतर योजनाएँ बनाता रहता है।

प्रश्न 3.
सआदत अली ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के साथ उन्हें और क्या दिया?
उत्तर :
सआदत अली ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के साथ उन्हें अपनी आधी जायदाद तथा दस लाख रुपये दे दिए। सआदत अली का यह काम उसकी चाटुकारिता को दर्शाता है।

प्रश्न 4.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने वज़ीर अली के साथ क्या किया?
उत्तर :
ईस्ट इंडिया कंपनी ने वज़ीर अली को अवध के नवाब पद से हटा दिया और उसके स्थान पर सआदत अली को अवध का नवाब बना दिया।

कारतूस Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-हबीब तनवीर का जन्म सन 1923 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में हुआ था। इन्होंने सन 1944 में नागपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इनकी नाट्य-क्षेत्र में विशेष रुचि थी। ये नाट्य लेखन का अध्ययन करने ब्रिटेन भी गए। बाद में दिल्ली लौटकर इन्होंने नाट्यमंच की स्थापना की। हबीब तनवीर एक नाटककार, कवि, पत्रकार, नाट्य निर्देशक तथा अभिनेता के रूप में काफ़ी प्रसिद्ध रहे। लोकनाट्य के क्षेत्र में इनका कार्य महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय रहा है। हबीब तनवीर को अनेक पुरस्कारों, फेलोशिप तथा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। रचनाएँ-हबीब तनवीर मुख्य रूप से नाटककार हैं।

इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में आगरा बाजार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन तथा हिरमा की अमर कहानी हैं। इन्होंने कई रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। इसके साथ-साथ हबीब तनवीर ने बसंत ऋतु का सपना, शाजापुर की शांति बाई, मिट्टी की गाड़ी तथा मुद्राराक्षस जैसे नाटकों का आधुनिक रूपांतर भी किया। भाषा-शैली-हबीब तनवीर की भाषा उर्दू-फ़ारसी मिश्रित हिंदी है। इनकी भाषा में सरलता, सरसता और सहजता सर्वत्र विद्यमान है। चित्रात्मकता, प्रभावोत्यादकता तथा रोचकता इनकी भाषा-शैली के अन्य गुण हैं।

प्रस्तुत एकांकी ‘कारतूस’ में भी इनकी उर्दू फ़ारसी मिश्रित हिंदी के दर्शन होते हैं। कहीं-कहीं तो पूरे वाक्य ही उर्दू-फ़ारसी में आ गए हैं। ऐसे स्थानों पर साधारण पाठक को थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई है; जैसे वज़ीर अली का यह कथन-‘दीवार हमगोश दारद तन्हाई। इसके अतिरिक्त एकांकी की भाषा में सामान्य बोलचाल के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।

उदाहरणस्वरूप-‘वजीर अली कंपनी के वकील के पास गया जो बनारस में रहता था और उससे शिकायत की कि गवर्नर-जनरल उसे कलकत्ता (कोलकाता) में क्यूँ तलब करता है। वकील ने शिकायत की परवाह नहीं की उल्टा उसे बुरा-भला सुना दिया।’ हबीब तनवीर की शैली संवादात्मक है, जो पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। इनकी शैली में नाटकीयता, चित्रात्मकता तथा स्पष्टता साफ़ दिखाई देती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

पाठ का सार :

‘कारतूस’ हबीब तनवीर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ एकांकी है। इस एकांकी में उन्होंने हिंदुस्तान के सन 1799 के वातावरण को सजीव कर दिया है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस समय तक हिंदुस्तान पर अपना काफ़ी अधिकार जमा लिया था। इस एकांकी में वज़ीर अली नामक पात्र के माध्यम से लेखक ने तत्कालीन हिंदुस्तानी वीरों की वीरता का सुंदर चित्रण किया है।

एकांकी का आरंभ ईस्ट इंडिया कंपनी की एक बटालियन के कर्नल कालिंज और उसके लेफ्टीनेंट की बातचीत से होता है। कर्नल एक लेफ्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ वजीर अली नामक एक वीर हिंदुस्तानी को गिरफ्तार करने के लिए गोरखपुर के जंगल में खेमा लगाए हुए है। कर्नल लेफ्टीनेंट को बताता है कि वज़ीर अली रॉबिनहुड के समान वीर एवं साहसी है।

वह अंग्रेजों से घृणा करता है और उन्हें हिंदुस्तान से बाहर निकालना चाहता है। ईस्ट इंडिया कंपनी वज़ीर अली को अवध के नवाब पद से हटाकर उसके स्थान पर सआदत अली को अवध का नवाब बना देती है। सआदत अली ऐशो-आराम पसंद करने वाला व्यक्ति है। वह अंग्रेज़ी सरकार की अंधीनता स्वीकार कर लेता है और अपनी आधी जायदाद व दस लाख रुपये ब्रिटिश सरकार को दे देता है।

कर्नल लेफ़्टीनेंट को बताता है कि वज़ीर अली बहुत खतरनाक आदमी है। वह अफ़गानिस्तान के शासक से मिलकर अंग्रेज़ी सरकार की जड़ें हिलाना चाहता है। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के वकील को भी मार डाला था। वह बहुत ही निडर और साहसी है। अंग्रेज़ी सरकार उसे गिरफ्तार करना चाहती है, किंतु किसी भी तरह से वह उसे पकड़ नहीं पा रही।

कर्नल बताता है कि वज़ीर अली की योजना हिंदुस्तान पर अफ़गानी हमला करवाकर अंग्रेजों की शक्ति कमज़ोर करना, अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाकर अवध का नवाब पद हासिल करना और अंग्रेजों को हिंदुस्तान से बाहर निकालना है। कर्नल कालिंज और लेफ़्टीनेंट इस प्रकार की बातें कर ही रहे थे कि तभी उन्हें दूर से किसी घुड़सवार के आने की आवाज़ सुनाई देती है। कर्नल अपने सिपाहियों को उस सवार पर नज़र रखने का आदेश देता है। थोड़ी ही देर में वह घुड़सवार कर्नल और लेफ्टीनेंट के समीप आकर खड़ा हो जाता है।

घुड़सवार कर्नल कालिंज से मिलने की इच्छा प्रकट करता है। उसे कर्नल तक पहुँचाया जाता है। घुड़सवार कर्नल से कहता है कि वह उससे अकेले में कुछ बात करना चाहता है। कर्नल सिपाही और लेफ़्टीनेंट को बाहर भेज देता है। घुड़सवार कर्नल से पूछता है कि उसने जंगल में खेमा क्यों लगाया हुआ है और वह क्या चाहता है ? कर्नल उसे बताता है कि वह वज़ीर अली को पकड़ना चाहता है। घुड़सवार कर्नल से कुछ कारतूस माँगता है और कहता है कि उसे ये कारतूस वज़ीर अली को पकड़ने के लिए चाहिए।

कर्नल उसे दस कारतूस दे देता है। कर्नल जब उससे उसका नाम पूछता है, तो वह अपना नाम वज्तीर अली बताता है। कर्नल उसका नाम सुनते ही हक्काबक्का रह जाता है। वह उसकी दिलेरी देखकर सन्नाटे में आ जाता है। वज़ीर अली कारतूस लेकर घोड़े पर सवार होकर चला जाता है। उसके जाने के बाद लेप़्टीनेंट अंदर आकर कर्नल से पूछता है कि वह कौन था, तो कर्नल के मुख से यही निकलता है-‘ एक जाँबाज़ सिपाही’।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

कठिन शब्दों के अर्थ :

खेमा – डेरा/अस्थायी पड़ाव, अंदरूनी – भीतरी, खतरनाक – भयंकर, अफ़साने (अफ़साना) – कहानियाँ, कारनामे (कारनामा) – ऐसे काम जो याद रहें, खिलाफ़ – विरुद्ध, नफ़रत – घृणा, असर – प्रभाव, हकमत – शासन, तकरीबन – लगभग, कामयाब में, उम्मीद – आशा, पैदाइश – जन्म, तख्त – सिंहासन, मसलेहत – रहस्य, ऐश-पसंद – भोग-विलास पसंद करने वाला, मुसीबत – धन-दौलत, जायदाद, हमला – आक्रमण, जाँबाज – जान की बाजी लगाने वाला, दमखम – शक्ति और दृढ़ता, जाती तौर से – व्यक्तिगत रूप से, सलाना – वार्षिक, वजीफ़ा – परवरिश के लिए दी जाने वाली राशि, मुकर्रर – तय करना,

तलब किया – याद किया, परवाह – चिंता, काम तमाम करना – मार देना, हुकमराँ – शासक, हिफाज़त – सुरक्षा, स्कीम – योजना, मुमकिन – संभव, गर्द – धूल, मसरूफ – व्यस्त, काफ़िला – एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में। जाने वाले यात्रियों का समूह, शुब्हा – संदेह, गुंजाइश – संभावना, करीब – समीप, खामोश – चुप, तन्हाई – एकांत, राजेदिल – दिल की बात, दीवार हमगोश दारद तनहाई – दीवारों के भी कान होते हैं, राज की बात तनहाई में कही जाती है, मकाम – पड़ाव, हुक्म – आदेश, लावलश्कर – सेना का बड़ा समूह और युद्ध-सामग्री, कारतूस = पीतल आदि की एक नली जिसमें बारूद भरा रहता है, हक्का-बक्का रह जाना = हैरान होना

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर :
कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसका जीवन साधारण-सा है। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिससे लोगों को किसी प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सके। उसका जीवन अभावों से भरा हुआ है, जिन्हें वह औरों के साथ बाटना नहीं चाहता उसके जीवन में किसी के प्रति कोमल भाव अवश्य था, जो उसके निजी सुखद क्षण हैं इसे किसी को बताना नहीं चाहता।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर :
कवि को लगता है कि अभी उसके जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं, जिन्हें दूसरों के सामने प्रकट किया जा सके। वह अपने अभावग्रस्त जीवन के कष्टों को अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहता है। इसलिए वह कहता है- अभी समय भी नहीं ।

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘पाथेय’ का शाब्दिक अर्थ है-‘सबल’ या ‘रास्ते का सहारा’। कवि के हृदय में किसी अति रूपवान के लिए गहरा प्रेमभाव था। उसके प्रति मधुर यादें थीं और वे यादें ही उसके जीवन की आधार थीं, जिन्हें वह न तो औरों के सामने प्रकट करना चाहता था और न ही ‘स्मृति रूपी सहारे’ को अपने से दूर करना चाहता था। कवि के मन में छिपी मधुर स्मृतियाँ उसके सुखों का आधार थीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट करें –
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर :
(क) कवि का कहना है कि उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। हर व्यक्ति की तरह वह भी अपने जीवन में सुख चाहता था। अवचेतन में छिपे सुख के भावों के कारण कवि ने भी सुख भरा सपना देखा था, पर वह सुख कभी उसे वास्तव में प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख उसके बिलकुल पास आते-आते मुस्कुराकर दूर भाग गया।

(ख) कवि का प्रियतम अति सुंदर था। उसकी गालों पर मस्ती भरी लाली छाई हुई थी। उसकी सुंदर छाया में प्रेमभरी भोर भी अपने सुहाग की मधुरिमा प्राप्त करती थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? उत्तर
अभाव
थे: दख थे: पीडा थी. पर फिर भी उसे कोई प्रेम करने वाला था। लेकिन कवि उस प्रेम-भाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह उसे नितांत अपना मानता है, इसलिए वह मधुर चाँदनी की उस उज्ज्वल कहानी को दूसरों के लिए नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर :
जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ पर छायावादी काव्य-शिल्प की सीधी छाप दिखाई देती है, जिसे निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. भाषा की कोमलता-प्रसाद ने अपनी कविता में भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया है। खड़ी बोली में रचित ‘आत्मकथ्य’ में कोमल शब्दों के प्रयोग की अधिकता है। ये शब्द मधुर और कर्णप्रिय हैं –

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

कवि ने तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है, जिससे शब्दों पर उनकी पकड़ का पता चलता है।

2. भाषा की लाक्षणिकता-लाक्षणिकता प्रसाद जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके द्वारा कवि ने अपने सूक्ष्म भावों को सहजता से प्रकट किया है –

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

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3. भाषा की प्रतीकात्मकता-कवि ने अपनी कविता में प्रतीकात्मकता का भी अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने प्रकृति-जगत से अपने अधिकांश प्रतीकों का प्रयोग किया है –

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

‘मधुप’ मनरूपी भँवरा है, जो ‘गुनगुना’ कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती ‘पत्तियाँ’ नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में ‘अनंत-नीलिमा’, ‘गागर रीति’, ‘उज्ज्वल गाथा’, ‘चाँदनी रातों की’, ‘अनुरागिनी उषा’, ‘स्मृति पाथेय’, ‘थके पथिक’, ‘सीवन को उधेड़’, ‘कंथा’ आदि प्रतीकात्मक शब्दों का सहज-सुंदर प्रयोग किया है। -भाषा की चित्रमयता-प्रसाद की इस कविता की एक अनुपम विशेषता है-‘चित्रमयता’। कवि ने इसके द्वारा पाठक के सामने एक चित्र-सा प्रस्तुत किया है। इससे कविता में बिंब उपस्थित करने में सफलता मिली है।

5. भाषा की संगीतात्मकता – इस कविता में संगीतात्मकता का तत्व निश्चित रूप से विद्यमान है। इसका कारण यह है कि कवि को नाद, लय और छंद तीनों का अच्छा ज्ञान था। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की है –

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

6. भाषा की आलंकारिकता – भाषा को सजाने और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रसाद ने अपनी कविता में जगह-जगह अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है –
(i) मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी-अनुप्रास
(ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया-पुनरुक्ति प्रकाश
(iii) सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?-प्रश्न
(iv) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में-मानवीकरण

7. मधुर-शब्द योजना – कवि को शब्दों की अंतरात्मा की सूक्ष्म पहचान है। जो शब्द जहाँ ठीक लगता है, कवि ने इसका वहीं प्रयोग किया है –

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

इन पंक्तियों में ‘पाथेय’, ‘पथिक’, ‘पंथा’, ‘सीवन’, ‘कंथा’ आदि अत्यंत सटीक और सार्थक शब्द हैं, जो विशेष भावों को व्यक्त करते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने सुख के जिस स्वप्न को देखा था उसे वह प्राप्त नहीं कर पाया। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया, पर कवि के मन में उसकी याद गहराई से जमी हुई थी। कवि के हृदय में अपने प्रिय की सुखद छवि विद्यमान थी। उसका प्रिय भोला-भाला था, जिसके लिए कवि ने ‘सरलते’ शब्द का प्रयोग किया है। उसके लिए रस से भीगे अतीत के उन दिनों को भुला पाना कभी संभव नहीं हो पाया। वे प्यार-भरी मधुर चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे उसे अलौकिक आनंद प्रदान करती थीं।

प्रिय की हँसी का स्रोत उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था, पर वह कल्पना मात्र था। जब तक सपना आँखों के सामने छाया रहा, तब तक वह प्रसन्नता से भरा रहा; पर स्वप्न के समाप्त होते ही जीवन की वास्तविकता उसके सामने आ गई। उसकी आनंद-कल्पना अधूरी रह गई। उसका प्रिय अपार सौंदर्य का स्वामी था। उसके गालों की सौंदर्य-लालिमा के सामने उषा की लालिमा भी फीकी थी, पर अब वह दृश्य ही बदल गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी काव्य के प्रवर्तक हैं। उन्होंने इस कविता में अपने व्यक्तित्व की हल्की-सी झलक दी है। वे अभावग्रस्त थे; वे धन-संपन्न नहीं थे; वे सामान्य जीवन जीते हुए यथार्थ को स्वीकार करते थे। वे अति विनम्र थे। उन्हें लगता था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दूसरों को सुख दे सके इसलिए वे अपनी जीवन-कहानी औरों को नहीं सुनाना चाहते थे –

तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति।

वे प्रेमी-हृदय थे। उन्हें किसी से प्रेम था, पर वे उसके प्रेम को पा नहीं सके। वे स्वभाव से ऐसे थे कि न तो अपनी पीड़ा दूसरों के सामने प्रकट करना चाहते थे और न ही किसी की हँसी उड़ाना चाहते थे। वे दूसरों को अपने छोटे-से जीवन की कहानियाँ नहीं सुनाना चाहते थे। वे अपनी पीड़ा को अपने हृदय में समेटकर रखना चाहते थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :
महान व्यक्तियों के द्वारा लिखित आत्मकथाएँ प्रेरणा की स्रोत होती हैं। ये पाठकों का मार्गदर्शन करती हैं। इनमें लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और दशाओं का वर्णन करते हैं। वे अपने जीवन पर पड़े विभिन्न प्रभावों का उल्लेख भी करते हैं। मैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन के द्वारा रचित आत्मकथा ‘मेरी जीवन यात्रा’ पढ़ना चाहूँगा।

इसे पढ़ने से देश-विदेश में घूमने और स्थान-स्थान के ज्ञान को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलेगी, विभिन्न क्षेत्रों के जीवन और रीति-रिवाजों को समझने की क्षमता मिलेगी। इसके अतिरिक्त मैं हरिवंशराय बच्चन की ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ और ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पढ़ना चाहूँगा। इनसे एक महान लेखक और कवि के जीवन को निकट से जानने का अवसर मिलेगा।

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प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर :
मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो; प्रतिष्ठा हो और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचाने। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं; पशु भी जीवित रहते हैं, पर उनका जीवन भी क्या जीवन है ? अनजाने-से इस दुनिया में। आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो, जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहे।

मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आईं और चली गईं। उनका धरती पर आना तो सामान्य था, पर यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उन्हें हमारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उनके कारण उनके पैतृक शहर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि अपने जीवन में मैं इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

प्रश्न 2.
बिना ईमानदारी और साहस की आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन 1956 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।

बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है। आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें –

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ;
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

– कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

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सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

शब्दार्थ : मधुप – भँवरा, मनरूपी भँवरा। घनी – अत्यधिक। अनंत नीलिमा – अंतहीन विस्तार। असंख्य – अनगिनत; जिसकी गणना न की जा सके। मलिन – मैला। उपहास – मज़ाक। दुर्बलता – कमज़ोरी। गागर रीति – खाली घड़ा, ऐसा मन जिसमें कोई भाव नहीं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इसके माध्यम से कवि ने कहा है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है जो औरों को कुछ सरस दे पाए।

व्याख्या : कवि कहता है कि जीवनरूपी उपवन में उसका मनरूपी भँवरा गुनगुना कर न जाने अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुख, वह नहीं जानता। लेकिन इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझाकर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा है। उसे केवल दुख और पीड़ारूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ पूरी हुए बिना ही मन में घुटकर रह गईं।

उचित परिस्थितियों और वातावरण को न पाकर वे समय से पहले ही पीले-सूखे पत्तों की तरह मुरझाकर मिट गईं। जीवन के अंतहीन गंभीर विस्तार में जीवन के असंख्य इतिहास रचे जाते हैं। वे बीती हुई निराशा भरी बातें कवि की स्थिति और पीड़ा पर व्यंग्य करती हैं; उसका उपहास उड़ाती हैं और कवि चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता। वह अपने जीवन की विवशताओं के सामने असहाय है; हताश है।

उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के बारे में जानने की इच्छा रखने वालों से वह दुख भरे स्वर में पूछता है कि उसकी पीड़ा और विवशता को देखकर भी क्या वे चाहते हैं कि कवि अपनी पीड़ा, दुर्बलता और अपने पर बीती दुखभरी कहानी को फिर से सुनाए; फिर से दोहराए ? क्या उसकी पीड़ा देखकर नहीं समझी जा सकती? जब तुम उसकी जीवनरूपी खाली गागर को देखोगे, तो क्या तुम्हें उसे देख-सुनकर सुख प्राप्त होगा? मेरे हताश और निराशा से भरे अभावपूर्ण मन में कोई ऐसा भाव नहीं है, जिसे दूसरों को सुनाया जा सके।

अर्धग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें।
2. ‘मधुप’ में विद्यमान प्रतीकात्मकता लिखिए।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ किसे स्पष्ट करता है?
4. ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ क्या है?
5. कवि किससे कहता है-‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’?
6. ‘रीति गागर’ क्या है?
7. व्यंग्य-उपहास कौन करते हैं ?
8. ‘तुम सुनकर सुख पाओगे’ में छिपे अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
9. कवि का जीवन कैसा था?
10. कवि अपनी कथा क्यों नहीं सुनाना चाहता था?
उत्तर :
1. कवि का जीवन दुखों और अभावों से भरा हुआ है, जिसकी व्यथा भरी कहानी वह औरों को नहीं सुनाना चाहता। किसी व्यक्ति की पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं होती।
2. ‘मधुप’ एक प्रतीकात्मक शब्द है। यह ‘मन’ को प्रकट करता है, जो भँवरे के समान जहाँ-तहाँ उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के अभावों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते थे।
4. ‘अनंत-नीलिमा’ जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में हर समय न जाने कौन-कौन से विचार अनुभव करता है। यदि वे सुखद होते हैं, तो दुखद भी होते हैं। ‘अनंत-नीलिमा’ लाक्षणिक शब्द है, जो अपने भीतर व्यापकता के भावों को छिपाए हुए है। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न वे विभिन्न विचार हैं, जो तरह-तरह की घटनाओं के घटित होने के आधार बने।
5. ‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’-कवि उन लोगों से कहता है, जो उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के विषय में जानना चाहते हैं।
6. ‘रीति सागर’ में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता है, जो कवि के अभावग्रस्त जीवन की ओर संकेत करती है जिसमें कोई सुख-सुविधा नहीं है।
7. कवि के अपने ही मन की निराशा भरी बातें उस पर व्यंग्य-उपहास करती हैं।
8. कवि व्यंग्यार्थ का प्रयोग करते हुए कहता है कि क्या उसके जीवन को जानने की इच्छा रखने वाले लोग उसकी पीड़ा और व्यथा को सुनकर प्रसन्नता प्राप्त कर सकेंगे। निश्चित रूप से उन्हें उसकी पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी आनंद की प्राप्ति कदापि नहीं होगी।
9. कवि का जीवन दुख और निराशा से भरा हुआ था।
10. कवि के जीवन में केवल असफलता, पीड़ा, दुख और निराशा के भाव ही थे; इसलिए वह अपनी कथा नहीं सुनाना चाहता था।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तरी –

प्रश्न :
1. कवि ने किस काव्य-शैली का प्रयोग किया है?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग दिखाई देता है ?
3. कवि ने किन प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग किया है?
4. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है ?
5. पंक्तियों में किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. गेयात्मकता की सृष्टि किससे हुई है?
7. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
8. किस काव्य-रस का समावेशन हुआ है?
9. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. कविता का संबंध हिंदी के किस वाद से है?
11. अवतरण से अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने हृदय की पीड़ा और असहायता को आत्मकथात्मक शैली में प्रकट किया है और कहा है कि उसकी दुख भरी कहानी सुनने-सुनाने के योग्य नहीं है।
2. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है।
3. मधुप, पत्तियाँ, अनंत-नीलिमा, जीवन-इतिहास, रीति गागर आदि में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
4. खड़ी बोली।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. स्वरमैत्री ने गयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. करुण रस का प्रयोग है।
9. मधुप, अनंत।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
कर कह जाता कौन कहानी

रूपकातिशयोक्ति –
‘मधुप गुन-गुना कर कह जाता है’ में ‘मधुप’ मनरूपी भँवरे के लिए प्रयुक्त हुआ है।
‘गागर रीती’, ‘जीवनरूपी खाली गागर’ के लिए प्रयुक्त हुआ है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

2. किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
रह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

शब्दार्थ : विडंबना – निराश करना, उपहास का विषय। प्रवंचना – धोखा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था, लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि वे अति साधारण हैं और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे पढ़-सुनकर लोग वाह-वाह कर उठे। कवि ने यथार्थ के साथ-साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।

व्याख्या : जो लोग कवि की दुखपूर्ण कथा को सुनना चाहते हैं, कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा सुनकर कहीं वे यह न समझने लगे कि वही उसकी जीवनरूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आपको समझें; स्वयं को पहचानें। वे उसके भावों के रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का विषय है कि मैं तुम्हारी हँसी उड़ाऊँ। मैं अपने दवारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करूँ ? आत्मकथा के नाम से मुझे अपनी या औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करनी।

कवि कहता है कि उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा नहीं है; उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं, पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता, क्योंकि वे उसकी निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। वह कभी अपनों के साथ खिलखिलाकर हँसा था; मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका रस लेने की बात कही है ?
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ किसे कहा है?
4. ‘अरी सरलते’ में विद्यमान विशिष्टता क्या है?
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा क्या बताना चाहता है ?
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ में निहित प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. कवि औरों के समक्ष किस गाथा को नहीं गाना चाहता?
8. ‘उन बातों में छिपा भाव स्पष्ट कीजिए।
9. ‘विडंबना’ में छिपा अर्थ व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपने सुख-दुख की गाथा को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह कहता था कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं है, जो औरों को प्रसन्नता दे सके। कवि न तो अपनी सुख भरी बातें प्रकट करना चाहता है और न ही दूसरों की भूलें व्यक्त करना चाहता है।
2. कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है।
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ उन्हें कहा है, जो उसकी दुखभरी कहानी सुनने की इच्छा करते हैं।
4. ‘अरी सरलते’ में प्रेमपूर्ण संबोधन विद्यमान है, जिससे कवि ने अपनत्व का भाव प्रकट किया है।
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा बताना चाहता है कि वह न तो औरों की आलोचना करना चाहता है और न ही सबको अपनी व्यक्तिगत बातें सुनाना चाहता है।
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता से परिपूर्ण है, जिसमें कवि हृदय में छिपा प्रेम और अपनत्व का भाव प्रकट होता है। कवि को इससे सुख की अनुभूति हुई थी।
7. कवि उस गाथा को औरों के समक्ष नहीं गाना चाहता, जो उसकी पूर्ण रूप से व्यक्तिगत है; जिसमें उसकी प्रेमानुभूति छिपी हुई है।
8. ‘उन बातों में गूढार्थ विद्यमान है। इनसे कवि को जीवन में सुख प्राप्त हुआ था।
9. ‘विडंबना’ का अर्थ है-‘उपहास का विषय’ या ‘निराश करना’। कवि किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहता। वह अपनी बात से किसी की हँसी उड़ाकर उसे व्यथित करने के बारे में सोच भी नहीं सकता।

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सौदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसे व्यक्तिगत माना है?
2. पंक्तियों में किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण का प्रयोग दिखाई देता है?
6. नाटकीयता की सृष्टि का आधार क्या है?
7. लयात्मकता का आधार क्या है?
8. कवि ने किस शैली का प्रयोग किया है ?
9. दो तत्सम शब्दों को चुनकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने सुख-दुख को व्यक्तिगत माना है और वह उन्हें सबके साथ नहीं बाँटना चाहता।
2. लाक्षणिकता का सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. संबोधन शैली के प्रयोग ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. प्रवंचना, उज्ज्वल।
10. मानवीकरण –
अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों में।

अनुप्रास –
किंतु कहीं ऐसा न हो।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ।

3. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

शब्दार्थ : स्वप्न – सपना। मुसक्या कर – मुस्कुराकर। अरुण-कपोलों – लाल गालों। मतवाली – मस्ती भरी। अनुरागिनी उषा – प्रेमभरी भोर । निज – अपना। स्मृति पाथेय – स्मृति रूपी सहारा। पथिक – मुसाफ़िर; यात्री। पंथा – रास्ता, राह। सीवन – सिलाई। कंथा – गुदड़ी, अंतर्मन।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि ने अपने जीवन की कहानी किसी को न सुनाने के बारे में सोचा था, क्योंकि उसे लगता था कि उसके जीवन में कुछ भी ऐसा सुखद नहीं था, जो किसी को सुख दे सके। उसके पास केवल सुखद यादें अवश्य थीं।

व्याख्या : कवि कहता है कि उसे अपने जीवन में कभी किसी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। सपने में जिस सुख को अनुभव कर वह नींद से जाग गया था, वह भी उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख देने वाला उसके आलिंगन में आते-आते धीरे से मुस्कुराकर उससे दूर हो गया; उसे प्राप्त नहीं हुआ। जो सपने में सुख और प्रेम का आधार बना था, वह अपार सुंदर और मोहक था। उसके लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हो गई थी।

भाव यह है कि उसके गालों में प्रात:कालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी राह पर थककर चूर हुए कविरूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही एक सहारा थी। उसकी यादें ही उसकी थकान को कुछ कम करती थीं। कवि नहीं चाहता कि उसकी मधुर यादों के आधार को कोई जाने। वह पूछता है कि क्या उसके अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उस छिपे रहस्य को आप देखना चाहेंगे? भाव यह है कि कवि उस रहस्य को अपने भीतर सँभालकर रखना चाहता है; उसे व्यक्त नहीं करना चाहता।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि नींद से क्यों जाग गया था?
3. कवि किसे आलिंगन में लेने को आतुर था?
4. कवि के प्रिय का रूप कैसा था?
5. कवि ने भोर को कैसा माना है?
6. कवि को किसका सहारा प्राप्त हुआ था ?
7. कवि अपना रास्ता कैसा मानता है ?
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ क्या है?
9. ‘कंथा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि को जीवन में किसी से प्रेम हुआ था, पर उसे अपने प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई। कवि को लगता है कि उसके प्रिय की अपार सुंदरता ही उसके जीवन की प्रेरणा है और उसके स्मृतिरूपी सहारे से वह अपने जीवन की थकान को कम करने में सफल हुआ है। कवि के जीवन से परिचित होने की इच्छा रखने वालों को उसके प्रेम के विषय में जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह विषय उसका पूर्णरूप से निजी था।
2. कवि उस स्वप्न को देखकर नींद से जाग गया था, जिसके सुख को उसने पाया ही नहीं था।
3. कवि स्वप्न में देखे अपने प्रिय को आलिंगन में लेने को आतुर था।
4. कवि का प्रिय अपार सुंदर था। उसके मतवाले लाल गाल ऐसे थे, जैसे प्रातः के समय पूर्व दिशा की लाली उसी से प्राप्त की गई हो।
5. कवि ने भोर को प्रेम और लाली से युक्त माना है।
6. कवि को स्वप्न में देखे अपने प्रिय की स्मृतियों का सहारा प्राप्त हुआ था।
7. कवि को अपना रास्ता कठिन प्रतीत होता है, जिस पर उसके थके हुए कदम आसानी से आगे नहीं बढ़ते।
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ से अभिप्राय कवि के मन में छिपी पुरानी यादों को फिर से ताज़ा करना है, जिन्हें वह अपने हृदय में छिपा चुका है।
9. ‘कंथा’ का शाब्दिक अर्थ ‘गुदड़ी’ है, जिसे कवि ने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने पंक्तियों में किसका आभास दिया है ?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
3. किस बोली का प्रयोग है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
5. काव्य-गुण कौन-सा विद्यमान है?
6. किस शैली का प्रयोग है?
7. दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
8. पंक्तियों में से निराशा के भाव का एक उदाहरण दीजिए।
9. कविता का संबंध हिंदी-साहित्य की किस काव्यधारा से है ?
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने जीवन में किसी के प्रेम को प्राप्त करने का आभास दिया है, जिसका परिचय वह किसी को नहीं देना चाहता।
2. लाक्षणिकता विद्यमान है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. आत्मकथात्मक शैली।
7. आलिंगन, अनुरागिनी।
8. मिला कहाँ वह सुख।
9. छायावाद।
10. व्यतिरेक –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी ऊषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

पुनरुक्ति प्रकाश –

आलिंगन में आते-आते अनुप्रास
थके पथिक की पंथा की
क्यों मेरी कंथा की।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

4. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

शब्दार्थ : कथाएँ – कहानियाँ। मौन – चुप। आत्मकथा – अपनी कहानी। व्यथा – पीड़ा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि से कहा गया था कि वह अपनी आत्मकथा लिखे, ताकि सभी उससे परिचित हो सकें। लेकिन कवि को लगता है कि उसकी जीवनी में कुछ भी ऐसा विशेष नहीं है, जिससे दूसरों को सुख प्राप्त हो सके।

व्याख्या : कवि कहता है कि उसका जीवन छोटा-सा है; सुखों से रहित है, इसलिए वह उससे संबंधित बड़ी-बड़ी कहानियाँ किस प्रकार सुनाए? वह अपनी कहानी सुनाने की अपेक्षा चुप रहकर औरों की कहानियों को सुनना अधिक अच्छा मानता है। वह उनकी कहानियों से कुछ पाना चाहता है। वह पूछता है कि लोग उसकी कहानी को सुनकर क्या करेंगे? उसकी जीवन कहानी सीधी-सादी और भोली-भाली थी, जिसमें कोई भी विशेष आकर्षण नहीं था। उसे लगता है कि अभी अपनी कहानी सुनाने का अवसर भी अनुकूल नहीं है। उसकी मौन पीड़ा अभी थकी-हारी सो रही है; उसके मन में छिपी हुई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
3. कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं ?
4. कवि मौन रहकर क्या सुनना चाहता है?
5. कवि ने अपनी कथा को कैसा माना है?
6. कवि की मौन व्यथा हृदय में क्या कर रही है?
7. कवि ने क्यों लिखा कि ‘अभी समय भी नहीं।
8. कवि ने प्रश्न-चिहनों के प्रयोग से शिल्प में किस विशिष्टता को प्रकट किया है ?
9. ‘मौन व्यथा’ में निहित गूढार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी कथा को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। उसे लगता है कि उसकी पीड़ा भरी कहानी किसी को सुख नहीं दे पाएगी। इसलिए उसके लिए यही अच्छा है कि वह दूसरों की कहानी को सुने और अपनी कथा को अपने मन में ही छिपाकर रखे।
2. कवि ने अपने जीवन को छोटा-सा माना है।
3. कवि स्वभाव से विनम्र है। इसलिए हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान होने पर भी वह मानता है कि उसके जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ नहीं थीं।
4. कवि मौन रहकर दूसरों की कथाएँ सुनना चाहता है।
5. कवि ने अपनी कथा को भोली और सीधी-सादी माना है।
6. कवि की मौन व्यथा उसके हृदय में थककर सो रही है। वह उसकी वाणी द्वारा औरों के सामने व्यक्त नहीं होना चाहती।
7. कवि को लगता है कि उसकी आत्मकथा को सुनने से किसी को कोई सुख प्राप्त नहीं होगा। साथ ही वह अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने उजागर करने का यह उचित अवसर नहीं मानता।
8. कवि ने प्रश्न-चिह्नों के प्रयोग से अपनी विनम्रता को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। साथ ही कवि ने इनसे अपने पाठकों या श्रोताओं की जिज्ञासा में वृद्धि की है। कवि ने अपनी नकारात्मकता को प्रकट न कर प्रश्न-चिह्नों से कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
9. ‘मौन व्यथा’ में गूढार्थ विद्यमान है। जब व्यक्ति अपने दुख-दर्द को सबके सामने बार-बार कहता है, तो कोई भी उसे बाँटना नहीं चाहता बल्कि बाद में उस पर कटाक्ष व व्यंग्य करता है। दुख-सुख सभी के जीवन के आवश्यक हिस्से हैं। यह जीवन का यथार्थ है। इसलिए कवि उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। वह उसे अपने भीतर ही छिपाकर रखना चाहता है। कई बार पूछे जाने पर व्यथित व्यक्ति अपने दुख को प्रकट कर देता है, पर कवि अपनी पीड़ा को ‘मौन व्यथा’ कहकर चुप हो जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि किसका परिचय औरों को नहीं देना चाहता?
2. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
4. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
5. कवि के शब्दों में उसकी कौन-सी विशेषता साफ़ रूप से झलकती है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
7. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
8. अवतरण किस शैली से संबंधित है ?
9. प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. यह किस युग की कविता है ?
11. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी पीड़ा भरी आत्मकथा का परिचय औरों को नहीं देना चाहता।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
4. प्रसाद गुण विद्यमान है।
5. कवि की विनम्रता साफ़ रूप से दिखाई देती है।
6. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. मौन, व्यथा।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
मैं मौन, मेरी मौन व्यथा
मानवीकरण –
मेरी भोली आत्मकथा, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा

JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
आप अपना आत्मकथ्य पद्य या गद्य में लिखिए।
उत्तर :
मेरा आत्मकथ्य अभी किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। न तो अभी मैंने यथार्थ जीवन की राह में कदम बढ़ाए हैं और न ही मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया हूँ। अभी मेरी केवल पंद्रह वर्ष की आयु है। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ है, वह मध्यवर्गीय है। पिताजी की नौकरी से प्राप्त होने वाली आय कठिनाई से परिवार को जीवन गुजारने योग्य सुविधाएँ प्रदान करती है। मेरे माता-पिता अपना पेट काटकर हम तीन भाई-बहनों का पेट भरते हैं; हमें पढ़ाते-लिखाते हैं।

स्वयं पुराना और घिसा-पिटा कपड़ा पहनकर भी हमें नए कपड़े लेकर देने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने हमें अच्छे संस्कार दिए हैं और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की शिक्षा दी है। पढ़ाई-लिखाई के साथ मुझे व्यायाम करने और कुश्ती लड़ने का शौक है। मैं अपने स्कूल की ओर से कई बार कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका हूँ और मैंने स्कूल के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। पढ़ाई में भी मैं अच्छा हूँ। कक्षा में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त कर लेता हूँ, जिस कारण माता-पिता के साथ-साथ अपने अध्यापकों की आँखों का भी तारा हूँ। मेरे सहपाठियों और मेरे मोहल्ले के लड़कों को मेरे साथ खेलना और बातें करना अच्छा लगता है। ईश्वर के प्रति मेरी अटूट आस्था है।

प्रश्न 2.
श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?
उत्तर
नामक पत्रिका का प्रकाशन करते थे। वे उसके संपादक थे। सन 1932 में उन्होंने पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रसाद जी से आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें। लेकिन प्रसाद जी को ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे विनम्र थे और उन्हें लगता था कि उन्होंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया, जिससे उन्हें लोगों की वाहवाही मिलती। उनकी आत्मकथा न लिखने की इच्छा के कारण ‘आत्मकथ्य’ की रचना हुई, जिसे ‘हंस’ पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में छापा गया था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 3.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था और क्यों?
उत्तर :
कवि किसी के प्रति अपने प्रेमभाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया नहीं और जिसका केवल सपना-भर देखा, उसे दूसरों के सामने प्रकट करे। वह प्रेम उसकी स्मृतियों का सहारा था, जो उसे जीने की प्रेरणा देता था।

प्रश्न 4.
कवि ने अपनी कथा को भोली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि का जीवन सीधा-सादा और विनम्रता से भरा हुआ था। उसे नहीं लगता था कि उसकी कथा में किसी को कुछ विशेष देने की क्षमता है। उससे किसी प्रकार की वाहवाही भी प्राप्त नहीं की जा सकती। इसलिए कवि ने अपनी कथा को भोली कहा है।

प्रश्न 5.
प्रसाद के काव्य में प्रकृति-प्रेम झलकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि जयशंकर प्रसाद छायावाद के आधार स्तम्भ माने जाते हैं। प्रकृति छायावादी कवियों का मन चाहा शरण स्थल रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना इनके काव्य का प्रमुख गुण है। प्रसाद जी ने प्रकृति को अपने काव्य की सहचरी माना है। इसी कारण उसका सजीव चित्रण भी किया है।

प्रश्न 6.
कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
उत्तर :
कवि ने अपने जीवन को छोटा और सरल माना है। उसका जीवन सुखों से रहित है; उसमें सर्वत्र दुखों का वास है। प्रेम और सुख की कल्पना करना भी उसे पीड़ादायक लगता है। उसका जीवन पीड़ा की एक कहानी है। उसकी यह कहानी किसी को भी सुख प्रदान नहीं कर सकती। वह अपने जीवन को स्वयं तक सीमित रखना चाहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 7.
कवि ने कविता में अपना रास्ता कैसा और किस प्रकार का माना है?
उत्तर :
कवि ने अपना रास्ता अत्यंत कठिन तथा पीड़ादायक माना है। उसका रास्ता हृदय को द्रवित करने वाला है। उसे अपना रास्ता इतना अधिक कठिन प्रतीत होता है कि उस पर उसके थके कदम आसानी से नहीं बढ़ते। उसे पग-पग पर समस्याओं से जूझना पड़ता है। न चाहते हुए भी कष्टों को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 8.
कविता में कवि ने अपने प्रिय के विषय में क्या कहा है?
उत्तर :
कवि ने बताया है कि अतीत में उसने कभी किसी से प्रेम किया था लेकिन जिससे उसने प्रेम किया था, वह उसे प्राप्त नहीं हो सका। उसके प्रिय का अगाध सौंदर्य ही उसके जीवन की प्रेरणा थी। कवि अपने जीवन को पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मानता है। वह अपने दुख भरे जीवन से किसी को परिचित नहीं करवाना चाहता।

प्रश्न 9.
कवि ने कविता में जीवन एवं मन को किस रूप में तथा कैसे प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता में जीवन को एक उपवन के रूप में प्रस्तुत किया है। इसी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुनाता रहता है। किंतु वह चाहे कितनी भी गुंजार करे, उसके आस-पास अनेक पत्तियाँ मुरझाती रहती हैं।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रतिभावान कवि माने जाते हैं। ये छायावाद के प्रवर्तक थे। इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना आदि हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। इनका जन्म सन 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे। जब उनका देहांत हुआ, तब प्रसाद की आयु केवल आठ वर्ष की थी। परिवारजन की मृत्यु, आत्म-संकट, पत्नी वियोग आदि कष्टों को झेलते हुए भी ये काव्य-साधना में लीन रहे। तपेदिक के कारण इनका देहांत 15 नवंबर 1937 में हुआ।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्नलिखित हैं –
काव्य – ‘चित्राधार’, ‘कानन-कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’ आदि।
नाटक – ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’, ‘कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’, ‘एक घुट’ आदि।
कहानी – ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ आदि। उपन्यास कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
साहित्यिक विशेषताएँ – जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उसकी प्रत्येक विधा को समृद्ध किया। प्रसाद विरचित साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. स्वदेश-प्रेम – प्रसाद का स्वदेश-प्रेम सौंदर्य के अछूते चित्रों के रूप में व्यक्त हुआ है। संपूर्ण भारत उनके लिए सौंदर्य का भंडार है।
भारत के प्राकृतिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर कवि ने उसका चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का अमर गीत है
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।’

2. प्रकृति-चित्रण छायावादी कवियों का मनचाहा शरणस्थल प्रकृति ही रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना उनके काव्य में मुख्य रूप से अंकित है। प्रकृति को प्रसाद ने अपने काव्य की पृष्ठभूमि न मानकर सहचरी माना है और उसका सजीव चित्रण किया है। कोलाहल में भरी इस दुनिया से भागकर कवि प्रकृति की गोद में शरण लेना चाहता है, इसलिए वह लिखता है –

‘ले चल मुझे भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे।
तज कोलाहल की अवनि रे।’

3. रहस्यवाद – छायावादी कवि रहस्यवादी हैं और प्रकृति में प्रभु के दर्शन करते हैं। प्रसाद के काव्य में रहस्यवादी तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। जिज्ञासा, प्रेम, विरह तथा मिलन की सीढ़ियों से गुजरने वाली ईश्वर-प्रेम की भावना का कवि ने वर्णन किया है। ईश्वर के अस्तित्व के विषय में जिज्ञासा व्यक्त करता हुआ कवि कहता है –

‘हे अनंत रमणीय! कौन तुम?
यह मैं कैसे कह सकता।
कैसे हो? क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता।’

प्रेम के सौंदर्य के साथ-साथ प्रसाद के काव्य में विश्व-बंधुत्व, सर्व जन हिताय तथा व्यापक मानवतावाद से ओत-प्रोत रचनाएँ भी हैं ! प्रसाद मूलत: आंतरिक अनुभूतियों के कवि हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उनका काव्य समकालीन हलचलों को अनदेखा करता है। प्रसाद की कविता मानव में ईश्वर और ईश्वर में मानव को देखती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

4. भाषा-शैली – प्रसाद की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस है। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना प्रसाद की शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। देश-प्रेम की रचनाओं में ओज गुण प्रधान शब्दावली, शृंगार रस प्रधान रचनाओं में माधुर्य-गुण से युक्त शब्दावली तथा सामान्यतः प्रसाद गुणयुक्त शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

शब्द-चित्रों की सुंदर योजना प्रसाद की रचनाओं में रहती है। इनकी रचनाओं में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। प्रसाद की कविताओं में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रामाणिक रूप मिलता है। इनकी काव्य-भाषा कहीं पर सरल तथा कहीं पर क्लिष्ट एवं तत्सम शब्दावली प्रधान है। स्वाभाविकता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है। भाषा भावानुकल है, इसलिए तत्सम शब्द भी स्वाभाविक लगते हैं। उनकी रचनाओं में मुहावरे बहुत कम हैं।

5. संगीतात्मकता – संगीतात्मकता उनके काव्य का प्रमुख स्वर है ! संगीत की स्वर-लहरी पद-पद पर झलकती है। ‘कामायनी’, ‘आँस’, ‘लहर’, ‘झरना’ सभी कविताएँ गेय हैं।
वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।

कविता का सार :

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्रिका ‘हंस’ में छापने के लिए श्री जयशंकर प्रसाद से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, पर उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने आत्मकथा न लिखकर ‘आत्मकथ्य’ कविता लिखी थी, जो सन 1932 में ‘हंस’ में छपी। कवि ने इस कविता में जीवन के यथार्थ को प्रकट करने के साथ-साथ उन अनेक अभावों को भी लिखा था, जिन्हें उन्होंने झेला था। उनका कहना था कि उनका जीवन किसी भी सामान्य व्यक्ति के जीवन की तरह सरल और सीधा था जिसमें कुछ भी विशेष नहीं था, वह लोगों की वाहवाही लूटने और उन्हें रोचक लगने वाला नहीं था।

जीवनरूपी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुना कर चाहे अपनी कहानी कहता हो, पर उसके आसपास पेड़-पौधों की न जाने कितनी पत्तियाँ मुरझाकर बिखरती रहती हैं। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवन-इतिहास रचे जाते हैं, पर ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर सुख पाया जा सकता है? मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ है, अभावग्रस्त है। इस संसार में व्यक्ति स्वार्थ भरा जीवन जीते हैं। वे दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी होना चाहते हैं। यह जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी नहीं सुनाना चाहता। वह नहीं समझता कि उसके पास दूसरों को सुनाने के लिए मीठी बातें हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मीठी-अच्छी बातें दिखाई नहीं देतीं। उसे प्राप्त होने वाले सुख आधे रास्ते से ही दूर हो जाते हैं। उसकी यादें थके हुए यात्री के समान हैं, जिसमें कहीं सुखद यादें नहीं हैं। कोई भी उसके मन में छिपी दुखभरी बातों को क्यों जानना चाहेगा! उसके छोटे-से जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं।

इसलिए कवि अपनी कहानियाँ न सुनाकर केवल दूसरों की बातें सुनना चाहता है। वह चुप रहना चाहता है। कवि को अपनी आत्मकथा भोली-भाली और सीधी-सादी प्रतीत होती है। उसके हृदय में छिपी हुई पीड़ाएँ मौन-भाव से थककर सो गई थीं, जिन्हें कवि जगाना उचित नहीं समझता। वह नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण के लिए ‘श्रीब्रजदूलह’ का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण ब्रह्म स्वरूप हैं और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला, प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
उत्तर :
(क) अनुप्रास –
(i) कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई
(ii) साँवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(v) जै जग – मंदिर-दीपक सुंदर।

(ख) रूपक –
(i) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके पाँव में पाजेब शोभा देती है, जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी मधुर धुन पैदा कर रही है। उनके साँवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते हैं। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभायान है। ब्रजभाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। वे रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हरियाली, नायिकाओं के झूले, परंपरागत रागों, राग-रंग आदि का बखान करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न होने वाले प्रेम और काम-भावों का वर्णन करते हैं। लेकिन इस कवित्त में कवि ने बसंत का बाल-रूप में चित्रण किया है, जो कामदेव का बालक है। सारी प्रकृति उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती दिखाई गई है, जैसा सामान्य जीवन में नवजात बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की कल्पनाशीलता और सुकुमार भाव प्रवणता का परिचय मिलता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’–इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
काव्य-रूढ़ि है कि सुबह-सवेरे जब कलियाँ फूलों के रूप में खिलती हैं, तो ‘चट्’ की ध्वनि करती हुई खिलती हैं। कवि ने इसी काव्य-रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालकरूपी बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह गुलाब के खिलते ही चटकने की ध्वनि उत्पन्न होती है। कवि ने इससे स्पष्ट किया है कि वे चुटकियाँ बजाकर बाल-बसंत को प्यार से जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों से देखा है?
उत्तर :
कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को स्फटिक की शिलाओं से बने सुधा मंदिर में प्रकट किया है, जो दही के समुद्र में उत्पन्न तरंगों के रूप में दिखाई देती है। वह दूध की झाग के समान सर्वत्र फैलकर अपनी सुंदरता को व्यक्त करती है। सारा आकाश उसकी आभा से जगमगाता है। चाँदनी रात में चाँदनी की तरह दमकती हुई राधा के प्रतिबिंब से ही चाँद सुंदर लगता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
राधा का रूप अति सुंदर है; चाँदनी में नहाया हुआ उसका रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक उसकी अपनी नहीं है, बल्कि वह राधा के रूप को बिंबित कर रहा है। इसलिए वह इतना सुंदर है। इस पंक्ति में उपमा अलंकार है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर :
फटिक सिलानि, उदधि दधि, दूध को सो फेन, मोतिन की जोति, तारासी मल्लिका को मकरंद, आरसी से अंबर।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिनके काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई देती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती हैं –
1. शृंगारिकता – देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी शृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीतिकालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है –

तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

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2. भक्ति-भाव – देव चाहे शृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बँधने के कारण वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है –

माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

3. प्रकृति-चित्रण – देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति-चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है, बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहाँ सराहना करनी पड़ती है, जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है, जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है –

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छवि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावै, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी है।

4. कला-पक्ष-देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद

इन्होंने उपमा का भी अच्छा प्रयोग किया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक है।

रचना और अभिव्यक्ति – 

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर :
मेरा घर यमुना-किनारे से कुछ ही दूरी पर है। इसके आसपास का क्षेत्र हरे-भरे पेड़ों, सरकंडों और झाड़ियों से भरा हुआ है। पूर्णिमा की रात को सारा आकाश तो चाँदनी से जगमगाता ही है, पर यमुना नदी का पानी भी उससे जगमगाता-सा प्रतीत होता है। जब पानी की लहरें तेजी से आगे बढ़ती हैं, तो चाँद के चमकीले टुकड़े उन पर सवार उछलते-कूदते-से प्रतीत होते हैं। अँधेरी रातों में प्राय: न दिखाई देने वाले पेड़ चाँदनी में अपना काला रूप लिए दिखाई देते हैं। वे सुंदर नहीं लगते। वे कुछ-कुछ डरावने से प्रतीत होते हैं। चाँदनी रात में यमुना में तैरती कोई-कोई नौका बहुत सुंदर लगती है।

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पाठेतर सक्रियता – 

प्रश्न 1.
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
गरमी, सरदी, वर्षा, बसंत, हेमंत, शिशिर।

प्रश्न 2.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं ? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
विश्व भर में बड़ी तेज़ी से उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकालकर दिन-रात जलाया जा रहा है। इससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं, पर साथ-ही-साथ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।

इस तापमान वृद्धि का परिणाम ही है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ अर्थात ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है, जो हमारे भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र तटों पर बसे नगर डूबने लगेंगे।

द्वीप पूरी तरह समुद्र में समा जाएँगे। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियाँ बनाकर कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिकसे-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बढ़ें।

वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्युत का प्रयोग किया जाए। इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना-बद्ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें, जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे : इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

यह भी जानें –

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव साम्य के लिए पढ़ें –

सीस मुकुट कटि काछनि, कर मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल॥
– बिहारी

रीतिकालीन कविता की वसंत ऋतु का एक चित्रण यह भी देखिए –

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्ववारे में दिसान में दुनी में देस देसन में
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है।
– पदमाकर

JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
देव की कविता में शब्द भंडार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव शब्दों के कुशल शिल्पी हैं, जिन्होंने एक-एक शब्द को बड़ी कुशलता से तराशकर अपने शब्द भंडार को समृद्ध किया है। उनकी वर्ण-योजना में संगीतात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। भाव और वर्ण-विन्यास में संगति है। उनका एक-एक शब्द मोतियों की तरह कवित्त-सवैयों की जमीन पर सजाया गया है –

पाँयनि नूपुर मंजु बज, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई॥

कवि के पास अक्षय शब्द-भंडार है। भिन्न-भिन्न पर्याय और विशेषणों द्वारा देव ने भावों की विभिन्न छवियों को उतारा है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है –

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

कवि के शब्दों में तत्सम की अधिकता है। तद्भव शब्दावली का उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।

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प्रश्न 2.
पठित पदों के आधार पर देव के चाक्षुक बिंब विधान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देव के काव्य में सुंदर ढंग से बिंब योजनाएँ की गई हैं। इससे श्रृंगारपरक अंश खिल उठे हैं। चाक्षुक बिंब योजना ऐसी है कि श्रोता या पाठक की आँखों के सामने कवि के मन में उभरी रूप-छवि स्पष्ट उभर आती है –

(i) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
(ii) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

देव के बिंब विधान में संवेदनात्मक, अलंकरण और क्रमबद्धता के अतिरिक्त भावात्मक संबंध स्थापित करने की शक्ति है।

प्रश्न 3.
देव के कवित्त और सवैया की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
छंद में लयमान होना कविता की विशेषता है। इससे कविता की सुंदरता की रक्षा होती है। विभिन्न छंदों के प्रयोग से काव्य के भावों को गति दी जा सकती है। देव ने कवित्त और सवैया के प्रयोग से लय की उत्पत्ति की है। कवि ने श्रृंगारिक लय बनाने के लिए कवित्त छंद का अधिक प्रयोग किया है। सवैया से प्रसाद, गुण और ओज तीनों गुणों को सरलता से प्रस्तुत करने में उन्होंने सफलता पाई है।

प्रश्न 4.
पठित कविताओं को आधार बनाकर देव के सौंदर्य-निरूपण पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने अपने अधिकतर साहित्य की रचना सौंदर्य और श्रृंगार के आधार पर की है। उनकी कविता में सौंदर्य और श्रृंगार का पुराना रूप दिखाई देता है। उन्होंने इस क्षेत्र में नई कल्पनाएँ नहीं की थीं। उन्होंने परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया था।

उन्होंने श्रीकृष्ण की सुंदरता सामंती प्रवृत्ति के आधार पर की है।

पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

राधा अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके सौंदर्य के सामने सारे नर-नारी पानी भरते हैं। चाँद भी उसकी सुंदरता का बिंब मात्र है –

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

चाँदनी के रंग वाली वह स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

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प्रश्न 5.
चाँदनी रात के उस रूप का वर्णन कीजिए, जिसे कवि ने अपने कवित्त में वर्णित किया है।
उत्तर :
चाँदनी रात सुंदरता की पर्याय है, जिसकी आभा ने सारे संसार को सुंदरता प्रदान की है। स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन जगमगा उठता है और दही रूपी सागर की तरंगें अपार मात्रा में उमड़ जाती हैं। दूध की झाग-सी चाँदनी इस प्रकार सब ओर फैल जाती है कि बाहर-भीतर की दीवारें तक दिखाई नहीं देतीं। आँगन और फ़र्श चाँदनी-से नहा उठते हैं। तारे-सी सुंदर राधा चाँदनी में झिलमिलाती हुई ऐसी प्रतीत होती है, जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हो। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में चाँदनी फैल जाती है। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप है।

प्रश्न 6.
देव ने मदन महीप बालक किसे और क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि देव ने मदन महीप बालक वसंत ऋतु को कहा है। वह वसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में देखता है, क्योंकि वसंत के आगमन पर ही सारी प्रकृति हरियाली से युक्त हो जाती है। रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं। मंद-मंद सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं। पंक्षी चहचहाने लगते हैं। यही कारण है कि कवि देव ने वसंत को मदन महीप बालक कहा है।

प्रश्न 7.
कवि ने किस कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है और कैसे?
उत्तर :
कवि ने दूसरे कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है। प्रकृति की मनोरम छटा का सहारा लेकर कवि ने रासलीला का सुंदर शब्द-चित्र सजाया है। उन्होंने महारास की कल्पना करते हुए चाँदनी रात को देखा है। वह कल्पना करते हैं, मानो दूर आकाश में स्फटिक शिलाओं से एक सुधा-मंदिर बना हुआ है। उस आकाश का फर्श एक दम पारदर्शी है। वह दूध के झाग के समान उज्ज्वल है। तारों के समान राधा की सखियों का झिलमिलाना रास है। चंद्रमा का प्रकाश भी राधा की परछाईं के समान ही प्रतीत होता है।

प्रश्न 8.
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर :
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय शृंगार है। उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। उन्होंने शृगार रस के दोनों पक्षों का भली-भाँति प्रयोग किया है। संयोग शृंगार को रचने में उनका मन अधिक रमता हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने वैराग्य तथा भक्ति-भाव का भी सफल चित्रण किया है।

प्रश्न 9.
देव की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
देव रीतिकाल के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके जीवन में भक्ति का प्रवेश शीघ्र हो गया था। उन्होंने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर सहज वर्णन किया है। उन्होंने शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन माना है। उनके काव्य में भक्ति के साथ-साथ दार्शनिकता के दर्शन भी बार-बार होते हैं।

प्रश्न 10.
देव के काव्यशिल्प पर विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
देव का काव्यशिल्प उनके भावपक्ष के अनुसार ही अत्यंत समृद्ध है। उनकी भाषा में सहजता तथा सरलता है। उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-धारा प्रवाहित की है। उनकी ब्रजभाषा में सर्वत्र स्वच्छता, एकरूपता विद्यमान है। इसी कारण इनकी भाषा में भावों के अनुकूल चलने की अद्भुत क्षमता है। उन्होंने प्रायः ठेठ ब्रजभाषा के शब्दों का ही अधिक प्रयोग किया है। उनकी भाण की प्रकृति साफ-सुथरी और अत्यंत निखरी है। देव का भाषा पर इतना अधिकार दिखाई पड़ता है कि वह कवि के इशारे पर नाचती है।

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प्रश्न 11.
कवि देव ने पठित छंदों में प्रकृति का मानवीकरण किस प्रकार किया है?
उत्तर :
कवि देव ने प्रकृति को एक बालक के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने ऋतुराज वसंत को कामदेव के पुत्र के समान माना है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक स्थानों पर कवि ने बड़ी सहजता के साथ प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे हवा बालक वसंत का पालना झुलाती है; तोते बालक से बातें करते हैं; वसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई आदि।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

सवैया –

1. पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सुहाई॥

शब्दार्थ : पाँयनि – पाँवों में। नूपुर – पायल, पाजेब। मंजु – सुंदर। कटि – कमर। किंकिनि – करधनि। लसै – शोभा देता है। पट – वस्त्र। पीत – पीला। हिये – छाती, हृदय। हुलसै – आनंदित होना। बनमाल – फूलों की माला। सुहाई – शोभा देती है। किरीट – मुकुट। दृग – आँखें। मंद – धीमी। मुखचंद – चंद्र के समान मुख। जुन्हाई – चाँदनी।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित किया गया है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के बालरूप की अद्भुत सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि श्रीकृष्ण के पाँव में पाजेब है, जो उनके चलने पर अत्यंत सुंदर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी है, जो मीठी धुन पैदा करती है। उनके साँवले-सलोने अंगों पर पीले रंग के वस्त्र शोभा दे रहे हैं। उनकी छाती पर फूलों की माला शोभा देती हुई मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। उनके माथे पर मुकुट है और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें हैं, जो चंचलता से भरी हैं। उनकी मंद-मंद हँसी उनके चाँद जैसे सुंदर चेहरे पर चाँदनी की तरह फैली हुई है। संसाररूपी इस मंदिर में दीपक के समान जगमगाते हुए अति सुंदर श्रीकृष्ण की जय-जयकार हो। कवि कहता है कि जीवन में सदा श्रीकृष्ण सहायता करते रहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में क्या है?
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी किस वस्तु के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है?
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र किस रंग के हैं?
5. उनके गले की शोभा को किसने बढ़ाया है?
6. श्रीकृष्ण की आँखों की सुंदरता को स्पष्ट कीजिए।
7. कवि को बालक कृष्ण के चेहरे पर मुस्कान कैसी प्रतीत हो रही है?
8. कवि ने किसकी जय-जयकार की है?
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा किससे बढ़ी है?
उत्तर :
1. कवि ने पद में श्रीकृष्ण के बालरूप की सुंदरता को प्रस्तुत किया है। साँवले रंग के श्रीकृष्ण पीले रंग के वस्त्रों में सजे हुए अति सुंदर लगते हैं। उनके गले में माला है; पाँव में पाजेब है और कमर में करधनी शोभा दे रही है। उनके माथे पर मुकुट है और चेहरे पर चाँदनी के समान मुस्कान फैली हुई है।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में पायल है।
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी करधनी के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है।
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र पीले रंग के हैं।
5. उनके गले की शोभा को ‘बनमाल’ अर्थात फूलों की माला ने बढ़ाया है।
6. श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी और चंचलता से भरी हुई हैं।
7. कवि को श्रीकृष्ण के चेहरे पर फैली मुस्कान चाँदनी के समान प्रतीत हो रही है।
8. कवि ने श्रीकृष्ण की जय-जयकार की है।
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा मुकुट के कारण बढ़ी है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस रूपक के माध्यम से श्रीकृष्ण से अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर किसका सौंदर्य चित्रण किया है?
5. किस शब्द में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया है ?
6. सवैया में बिंब किस प्रकार है?
7. किस छंद का प्रयोग किया है ?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस प्रकार हुई है?
9. किस शब्दशक्ति के प्रयोग से कवि ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है?
10. किस शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. कवि ने किस काव्य गुण का प्रयोग किया है?
12. पद में निहित अलंकार-योजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने श्रीकृष्ण की सुंदरता का चित्रण किया है और संसाररूपी इस मंदिर में सदा अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है।
2. ब्रजभाषा का सहज व सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया है।
5. ‘जग-मंदिर-दीपक’ में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
6. चाक्षुक बिंब।
7. सवैया छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
10. ‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. माधुर्य गुण।
12. रूपक –

  • मुखचंद
  • मंद हँसी जुन्हाई
  • जग-मंदिर-दीपक

अनुप्रास –

  • हिये हुलसै
  • कटि किंकिनि
  • पट पीत
  • मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
  • जै जग-मंदिर
  • कवित्त

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

2. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

शब्दार्थ : डार – डाली, टहनी, डालकर। द्रुम – पेड़। पलना – बच्चों का झूला। नव पल्लव – नए पत्ते। सुमन – फूल। झिंगूला – झबला, ढीला-ढाला – वस्त्र। तन – शरीर। छबि – शोभा। पवन – हवा। केकी – मोर। कीर – तोता। कोकिल – कोयल। हलावे – हिलाती है। हुलसावै – खुश करती है। कर – हाथ। तारी – ताली। उतारो करै राई नोन – जिस बच्चे को नज़र लगी हो उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने का टोटका। कंजकली – कमल की कली। लतान – बेलें। सारी – साड़ी। मदन – कामदेव। महीप – राजा। प्रातहि – सुबह-सुबह। चटकारी – चुटकी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है, जिसके रचयिता रीतिकालीन कवि देव हैं। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि बसंत एक नन्हे बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पत्तों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उसके शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धजकर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाज़ों में उससे बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है।

कमल की कलीरूपी नायिका सिर पर लतारूपी साड़ी से सिर ढाँपकर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नज़र उतार रही है। बालक बसंत को दूसरों की बुरी नज़र से बचाने के लिए वह वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है, जिसे प्रातः होते ही गुलाब चुटकियाँ बजाकर जगाते हैं। गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है, तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवित्त में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बालक बसंत का बिछौना किससे बना है?
3. बसंत कैसे वस्त्र पहने हुए है?
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य कौन कर रहा है?
5. कोयल क्या कर रही है?
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने अपना सिर किससे ढाँपा और उसने क्या किया?
7. बसंत किसकी संतान है?
8. प्रातः होते ही बसंत को गुलाब किस प्रकार जगाते हैं ?
9. बसंत की नज़र किससे उतारी गई ?
उत्तर :
1. देव द्वारा रचित कवित्त में प्रकृति के मानवीकरण रूप को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कवि के अनुसार बसंत का बालक के रूप में जन्म हुआ है, जिसकी सेवा-सुश्रुषा में सारी प्रकृति जी-जान से जुट गई है। पत्तों के बिछौने पर हवा उसे झुलाती है और फूलों ने उसे वस्त्र प्रदान किए हैं। मोर और तोते उससे बातें करते हैं, तो कोयल तालियाँ बजा-बजाकर प्रसन्न होती है। कमल की कली उसे लगी नज़र को दूर करने के लिए टोटका करती है और गुलाब के फूल चटक-चटककर उसे सुबह जगाने का कार्य करते हैं। कामदेव के बालक की सेवा में सारी प्रकृति पूरी तरह से लगी हुई है।
2. बसंतरूपी बालक का बिछौना पेड़-पौधों के नए-नए कोमल पत्तों से बना हुआ है।
3. बसंत ने फूलों से बना ढीला-ढाला झबला पहना हुआ है।
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य हवा कर रही है।
5. कोयल झूले को हिलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता को प्रकट करती है।
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने बेल से अपने सिर को ढाँपा और पराग-कणों से बसंत को लगी नज़र का टोटका पूरा किया।
7. बसंत कामदेव की संतान है।
8. प्रातः होते ही गुलाब चटक-चटककर बसंत को जगाते हैं।
9. बसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके जन्म के अवसर पर प्रकृति में परिवर्तन चित्रित किए हैं।
2. प्रकृति का चित्रण किस रूप में किया गया है?
3. किस भाषा की योजना की गई है?
4. पद में किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. किस प्रकार की शब्द-योजना की गई है?
6. बिंब योजना किस प्रकार की है?
7. पद में किस छंद का प्रयोग है?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
9. भाषा को कोमल बनाने के लिए किन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है?
10. पद में कौन-सा काव्य गुण विद्यमान है?
11. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने कामदेव के बालक बसंत के जन्म के अवसर पर सारी प्रकृति में दिखाई देने वाले परिवर्तनों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
2. प्रकृति का मानवीकरण रूप में चित्रण किया गया है।
3. ब्रजभाषा के कोमल कांत शब्द अति स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त किए हैं।
4. वात्सल्य रस।
5. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
6. चाक्षुक बिंब है। गतिशील बिंब योजना की गई है।
7. कवित्त छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. डार, तारी।
10. माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
11. अनुप्रास – हलावै-हुलसावै, सिर सारी, मदन महीप, केकी कीर, बालक बसंत, पुरित पराग
रूपक – मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि, प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।

3. फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

शब्दार्थ : फटिक – स्फटिक। सिलानि – शिलाएँ, चट्टानें। सुधा – अमृत। उदधि – समुद्र। दधि – दही। अमंद – जो कम न हो, बहुत अधिक। उमगे – उमड़ना। फेन – झाग। आँगन – अहाता। फरस बंद – फ़र्श के रूप में बना हुआ ऊँचा स्थान। तरुनि – युवती। तामें – उसमें। ठाढ़ी – खड़ी। भीति – दीवार। मल्लिका – बेले की जाति का एक सफ़ेद फूल। मकरंद – पराग, फूलों का रस। आरसी – दर्पण, आईना। अंबर – आकाश। प्रतिबिंब – परछाईं। लगत – लगता है।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है। इसमें कवि ने चाँदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उसमें दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रहीं। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे आँगन और फ़र्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है, जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना किससे की गई है?
3. भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
4. भवन में बाहर से भीतर तक दीवारें क्यों नहीं दिखाई देतीं?
5. आँगन और फ़र्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई है?
6. युवती कैसी प्रतीत हो रही है ?
7. राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई है?
8. आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
9. चंद्रमा कैसा प्रतीत होता है?
उत्तर :
1. महाकवि देव ने चाँदनी रात की आभा के माध्यम से राधा की अपार सुंदरता को प्रस्तुत किया है। उसकी सुंदरता से ही चाँद ने सुंदरता प्राप्त की है। चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है, जिसने सारे भवन को उज्ज्वलता प्रदान कर दी है।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना स्फटिक की शिलाओं से की गई है।
3. भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।
4. भवन स्फटिक का बना है और चाँदनी की उज्ज्वलता का प्रसार ऐसा है कि बाहर से भीतर तक की दीवारें दिखाई नहीं देती।
5. आँगन और फ़र्श पर दूध की झाग-सी उज्ज्वलता चाँदनी के रूप में फैली हुई है।
6. युवती तारे-सी दिखाई दे रही है।
7. राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुंगध मिली हुई है।
8. चाँदनी रात में आकाश आईने के समान साफ़-स्वच्छ और उज्ज्वलता से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
9. चंद्रमा राधा की उज्ज्वलता और सुंदरता से प्रतिबिंबित होता हुआ दिखाई दे रहा है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके माध्यम से राधा की सुंदरता की प्रशंसा की है?
2. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
3. कौन-सा काव्य-गुण प्रयोग किया गया है?
4. कवि ने किस भाषा में अपने भाव व्यक्त किए हैं ?
5. किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. कौन-सा काव्य-रस प्रधान है?
7. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने चाँदनी के माध्यम से राधा की सुंदरता का अद्भुत वर्णन किया है।
2. कवित्त छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
3. माधुर्य गुण विद्यमान है।
4. ब्रजभाषा।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. शृंगार रस विद्यमान है।
7. रूपक –
उदधि दहि

अनुप्रास –

  • सिलानि सौं सुधार्यो सुधा
  • फेन फैल्यो
  • तारा सी तरुनि तामें
  • मिल्यो मल्लिका को मकरंद

उत्प्रेक्षा –
फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर

व्यतिरेक –
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद

उपमा –

  • दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद,
  • तारा-सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
  • आरसी से अंबर में
  • आभा सी उजारी लगै

सवैया और कवित्त Summary in Hindi

कवि-परिचय :

देव रीतिकाल के कवि थे। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में सन 1673 में हुआ था। यह देवसरिया ब्राह्मण थे। इन्होंने स्वयं अपने बारे में लिखा है-‘योसरिया कवि देव को, नगर इटावौ वास’। इन्हें अपने जीवनकाल में आश्रय के लिए अनेक आश्रयदाताओं के पास भटकना पड़ा। ये कुछ समय के लिए औरंगज़ेब के पुत्र आजमशाह के दरबार में भी रहे थे, पर इन्हें जितना संतोष और सुख भोगीलाल नामक आश्रयदाता से प्राप्त हुआ, उतना किसी और से नहीं मिल सका। इनका देहांत सन 1767 में हुआ था।

रचनाएँ-देव के द्वारा रचित ग्रंथों की निश्चित संख्या अभी तक ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वानों ने इनके ग्रंथों की संख्या 52 मानी है, तो किसी ने 72 तक स्वीकार की है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनकी संख्या 25 मानी है। इनके ग्रंथों की संख्या की अनिश्चितता का कारण यह है कि ये अपनी पुरानी रचनाओं में ही थोड़ा-बहुत हेर-फेर करके नया ग्रंथ तैयार कर देते थे।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-भावविलास, रसविलास, काव्यरसायन, भवानीविलास, अष्टयाम, प्रेम तरंग, सुखसागर-तरंग, देव चरित्र, देव माया प्रपंच, शिवाष्टक, शब्द रसायन, देव शतक, प्रेम चंद्रिका आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-देव की कविता का प्रमुख विषय शृंगार था। इन्होंने प्रायः राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने संयोग श्रृंगार की रचना अधिक की है। वियोग श्रृंगार में इन्होंने विभिन्न भाव दशाओं का वर्णन किया है। देव ने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर वर्णन किया है।

ये शरीर और शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन मानते थे। इस संसार में कोई भी मौत से बच नहीं सकता, इसलिए इसकी क्षणभंगुरता देखकर इनके हृदय में इसके प्रति ग्लानि उत्पन्न होती है। देव ने आचार्य-कर्म को पूरा किया था और ‘शब्द रसायन’ के द्वारा काव्य की विभिन्न विशेषताओं का चित्रण किया था। इनके काव्य में दार्शनिकता के बार-बार दर्शन होते हैं।

ये ब्रह्म को एक और सर्वव्यापक मानते हैं। उसका न तो आरंभ है और न ही अंत; वह निर्गुण भी है और सगुण भी; वह अनंत, नित्य, सत्य और शाश्वत है। उसका वर्णन वेद भी नहीं कर सकते –

पै अपने ही गुन बंधे, माया को उपजाइ।
ज्यों मकरी अपने गुननि, उरझि-उरझि मुरझाई॥

देव के काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण है। इनकी कविता में दरबारी संस्कृति का अधिक चित्रण हुआ है। इनकी कविता में दरबारों, आश्रयदाताओं की प्रशंसा भी की गई है। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य के सहज चित्र खींचे हैं। देव ने अपनी कविता ब्रजभाषा में रची थी। इन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह था। इन्होंने शब्द-शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। छंद-योजना में लय और तुक का उन्होंने विशेष ध्यान रखा है। इनकी कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। देव वास्तव में बहुत अच्छे भाषा शिल्पी थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

कवित्त-सवैयों का सार :

देव के द्वारा रचित कवित्त-सवैयों में जहाँ एक ओर रूप-सुंदरता का अलंकारिक चित्रण किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रेम और प्रकृति के प्रति मनोरम भाव अभिव्यक्त किए गए हैं। पहले सवैये में श्रीकृष्ण के सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इसमें उनका लौकिक रूप नहीं, बल्कि सामंती वैभव दिखाया गया है। उनके पाँवों में नूपुर मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं और कमर में बँधी करधनी मीठी धुन-सी पैदा करती है। उनके साँवले रंग पर पीले वस्त्र और गले में फूलों की माला शोभा देती है।

उनके माथे पर सुंदर मुकुट है और चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान चाँदनी के समान बिखरी हुई है। इस संसाररूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है। दूसरे कवित्त में बसंत को बालक के रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा गया है। बालकरूपी बसंत पेड़ों के नए-नए पत्तों के पलने पर झूलता है और तरह- : तरह के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढाले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झुलाती है, तो मोर और तोते उससे बातें करते हैं। कोयल उसे बहलाती है।

कमल की कलीरूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव के बालक बसंत को सुबह-सवेरे गुलाब चुटकी दे-देकर जगाते है। तीसरे कवित्त में पूर्णिमा की रात में चाँद तारों से भरे आकाश की शोभा का वर्णन किया गया है। चाँदनी रात की शोभा को दर्शाने के लिए कवि ने दूध में फेन जैसे पारदर्शी बिंबों का प्रयोग किया है। चाँदनी बाहर से भीतर तक सर्वत्र फैली है। तारे की तरह झिलमिलाती । राधा अनूठी दिखाई देती है। उसके शरीर का अंग-प्रत्यंग अद्भुत छटा से युक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। तब लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने का कारण बताते हुए कहा था कि वह धनुष नहीं, बल्कि धनुही थी। यह बहुत पुराना था और राम के द्वारा हते ही टूट गया था। इसमें राम का कोई दोष नहीं है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
राम और लक्ष्मण दोनों एक ही पिता की संतान थे। उन्होंने एक ही गुरु से शिक्षा पाई थी और एक-से वातावरण में रहे थे लेकिन फिर भी दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। राम स्वभाव से शांत थे, पर लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। धनुष टूट जाने पर राम ने शांत भाव से परशुराम से कहा था कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया, तो लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी से उन्हें उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परशुराम के क्रोध करने पर राम शांत भाव से बैठे थे, पर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें उकसाते रहे। राम ऋषि-मुनियों का आदर-सम्मान करने वाले थे, पर लक्ष्मण का स्वभाव ऐसा नहीं था। लक्ष्मण की वाणी परशुरामरूपी यज्ञ की अग्नि में आहुति के समान थी, तो राम की वाणी शीतल जल के समान उस अग्नि को शांत करने वाली थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर :
लक्ष्मण (मुसकराते हुए) – मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! क्या आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? बार-बार मुझे अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं ? क्यों आप अपनी फॅक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं?
परशुराम (गुस्से में भरकर) – लक्ष्मण! अपने शब्दों को रोक लो। अन्यथा यह फरसा रक्त चखने के लिए व्यग्र है।
लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से) – मुनिवर ! मैं कुम्हड़े का फूल नाहीं हूँ, जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा।
मैंने तो आपके फरसे और धनुष – बाण को देखकर समझा था कि आप कोई क्षत्रिय है। इसलिए अभिमानपूर्वक मैंने आपसे कुछ कह दिया था।
परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए) – हे दुःसाहसी। मैंने कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया है।
लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए) – अरे ! आप तो ब्राह्मण हैं। आपके गले में यज्ञोपवीत भी है। मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा करें। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) – मूर्ख! मेरे फरसे को धार तुम्हारा मस्तक काटने के लिए व्याकुल है। संभल जा, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रह।

लक्ष्मण-ब्राहमण देवता! यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके पैरों में ही पड़ेगा। मुनिवर! आपकी बात ही अनूठी है।
आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वनों के समान है। बताइए कि फिर आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और फरसा क्यों धारण कर रखा है? आपको इन सबकी क्या जरूरत है? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है, कृपया उसके लिए मुझे क्षमा करें।

परशराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए? बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥ भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं; स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

उन्होंने अपने फरसे से लक्ष्मण को डराने के लिए कहा कि अरे राजा के बालक ! तू मेरे द्वारा मारा जाएगा। क्यों अपने माता-पिता को चिंता में डालता है? वे मानते थे कि उनका फ़रसा बड़ा भयानक है, जो गर्भ में ही बच्चों का नाश कर देने वाला है। गुस्सा आने पर वे छोटे-बड़े में कोई अंतर नहीं करते; वे किसी का भी वध कर देते हैं।

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
अथवा
लक्ष्मण ने शूरवीरों के क्या गुण बताए हैं?
उत्तर :
लक्ष्मण ने बीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा कि वे व्यर्थं अपनी वीरता की डोंमें नहीं हाँकते बल्कि युद्ध-भूमि में युद्ध करते हैं; अपने अस्त्र-शस्त्रों से वीरता के जौहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं, वे कायर होते हैं।

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प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
विनम्रता सदा साहसियों और शक्तिशालियों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्न होना उसका गुण नहीं होता बल्कि उसकी मजबूरी होती है। वह किसी का क्या बिगाड़ सकता है? लेकिन कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके जब दोन-दुखियों के प्रति विनम्नता का भाव प्रकट करता है, तो सारे समाज में सम्मान प्राप्त करता है। तुलसीदास ने कहा भी है-‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ तथा ‘पर पीड़ा सम नहि अधमाई’। साहस और धैर्य मन में उत्पन्न होने वाले वे भाव हैं, जो शक्ति को पाकर विपरीत स्थितियों में मानव को विचलित होने से रोक लेते हैं।

साहस और धैर्य ‘असमय के सखा’ हैं, जिन्हें शक्ति की सहायता से बनाकर रखा जाना चाहिए पर उसके साथ विनम्रता का बना रहना आवश्यक है। बिनम्न व्यक्ति ही किसी के साथ होने : वाले अन्याय के विरोध में खड़ा हो सकने का साहस करता है। भगवान विष्णु को जब भृगु ने ठोकर मारी थी और उन्होंने साहस व शक्ति होने के बावजूद विनम्नता का प्रदर्शन किया था, तभी उन्हें देवों में से सबसे बड़ा मान लिया गया था।

समाज में सदा से माना गया है कि अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुण दृष्टि से जिसका हृदय नहीं पसीजा, भूखे व्यक्ति को अपने खाली पेट पर हाथ फिराते देखकर जिसने अपने सामने रखा भोजन उसे नहीं दे दिया, अपने पड़ोसी के घर में लगी आग को देखकर उसे बुझाने के लिए वह उसमें कूद नहीं पड़ा-बह मनुष्य न होकर पशु है, क्योंकि साहस और शक्ति होते हुए अन्याय का प्रतिकार न करना कायरता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता मानव का सदा हित करती है। गुरु नानक देव ने कहा भी है –

जो प्राणी ममता तजे, लोभ, मोह, अहंकार
कह नानक आपन तरे, औरन लेत उबार।

साहस और शक्ति अनेक प्राणियों में होती है, पर विनम्रता के अभाव के कारण वे कभी भी समाज में प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते। जब हमारे हृदय में विनम्रता का भाव होता है, तभी हम स्वयं को भुलाकर दूसरों के कष्टों को कम करने की बात सोचते हैं। सच्ची मनुष्यता इसी बात में छिपी हुई है कि मनुष्य साहस और शक्ति होने के साथ विनम्रता को हमेशा महत्त्व दें।

भगवान शिव इसलिए पूजनीय है कि उन्होंने साहस और शक्ति से संपन्न होते हुए विनम्रता का परिचय दिया था। उन्होंने विषपान कर देवताओं और दानवों की रक्षा की थी। भर्तृहरि ने राक्षस और मनुष्य का अंतर विनम्रता के आधार पर ही किया है। जो विनम्र है, वही महापुरुष है और जो अपने साहस व शक्ति को स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है, वहीं राक्षस है। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है –

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे।
मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

वास्तव में साहस और शक्ति के साथ विनम्नता ही मानव को मानव बनाती है।

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प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोड नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
(ग) गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न जखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
उत्तर :
(क) इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं कि वीर वह होता है, जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हाँके। जब परशुराम ने यह कहा कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटाकर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था, तब लक्ष्मण ने मुसकराकर कहा कि मुनीश्वर !

आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं और बार-बार कुल्हाड़ी दिखाकर डराना चाहते हैं। आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते हैं। भाब है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय बीर नहीं थे, जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।

(ख) कवि ने यहाँ परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूनि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी उक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की ओर तर्जनी का संकेत करने से बह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे, जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शास्त्र और फरसे को देखकर कहा था।

विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट कहीं जाने वाली उनकी वीरता संबंधी बातों को सुनकर मन-ही-मन कहा था कि मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे सामान्य क्षत्रियों को युद्ध में हराते रहे हैं, इसलिए उन्हें लगने लगा है कि वे राम-लक्ष्मण को भी युद्ध में आसानी से हरा देंगे। पर वे यह नहीं समझ पा रहे, कि ये दोनों साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने से बनी खाँड के समान नहीं, बल्कि फौलाद के बने खाँडे के समान हैं। मुनि व्यर्थ में बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को नहीं समझ पा रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर :
“तुलसीदास ने अवधी भाषा के लोकप्रिय और परिनिष्ठित रूप को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्याकरण के नियमों का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है। उनकी भाषा में कहीं भी शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनको वाक्य-रचना पूर्ण रूप से निर्दोष है। उन्होंने शब्द प्रयोग में उदार नीति का परिचय दिया है, जिसमें तत्सम तद्भव शब्दावली के साथ देशी शब्दों का भी प्रयोग दिखाई देता है। लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण उनकी भाषा सजीव, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली बन गई है।

गोस्वामी जी ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। रस की अनुकूलता के अतिरिक्त उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किस स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया जाए। उनकी भाषा सर्वत्र भावों और विचारों की सफल अभिव्यक्ति में समर्थ दिखाई देती है। गुण के सहारे रस की अभिव्यक्ति करने में उन्होंने सफलता पाई है। उनकी भाषा की वर्ण मैत्री दर्शनीय है। उन्होंने नाद सौंदर्य का पूरा ध्यान रखा है। बास्तब में भाषा पर जैसा अधिकार तुलसीदास का है, वैसा किसी और हिंदी कवि का नहीं है।

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प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
तुलसीदास हिंदी के श्रेष्ठतम भक्त कवियों में से एक हैं, जिन्होंने गंभीरतम दार्शनिक काव्य लिखने के साथ-साथ व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में उन्होंने लक्ष्मण के माध्यम से मुनि परशुराम की करनी और कथनी पर कटाक्ष करते हुए व्यंग्य को सहज सुंदर अभिव्यक्ति की है। लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहकर परशुराम के अहं को चुनौती दी थी। उन्होंने व्यंग्य भरी वाणी में कहा –

(i) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू॥

(ii) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥

लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए परशुराम से कहा कि वे जो चाहते हैं, वह कह देना चाहिए। उन्हें क्रोध रोककर असह्य दुख नहीं सहना : चाहिए। परशुराम तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार बुलाते थे। भला इस संसार में ऐसा कौन था, जो उनके शील को नहीं जानता था। वे संसार में प्रसिद्ध थे। लक्ष्मण कहते हैं कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके थे; अब उन्हें अपने गुरु के ऋण से : भी मुक्त हो जाना चाहिए।

सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।

वास्तव में तुलसीदास ने परशुराम के स्वभाव और उनके कश्चन के ढंग पर व्यंग्य कर अनूठे सौंदर्य की प्रस्तुति की है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए –
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा। बार-बार मोहि लागि बोलाया।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा, अनुप्रास
(ग) उत्प्रेक्षा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास
(घ) उपमा, रूपक

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रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दुसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
पक्ष में – वास्तव में हमारे सामाजिक जीवन में क्रोध की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे. तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर न कर पाए और सदा के लिए घुट-घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुखों-दुखों से मिलकर बनता है। हमें प्राय: दुख अपनों से ही नहीं बल्कि बाहर वालों से मिलते हैं। उस पीड़ा को तभी दूर किया जा सकता है, जब हम अपने मन में छिपे भावों को क्रोध प्रकट करके निकालते हैं।

जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता और जीवन में सकारात्मकता हूँढना चाहता है, लोग उसे कमजोर और कायर मानने लगते हैं। छोटे बच्चे भी क्रोध को रोकर या दुख प्रकर कर व्यक्त करते हैं। बिना दुखा के क्रोध उत्पन्न हो नहीं होता। क्रोध में सदा बदले की भावना छिपी हुई नहीं होती, बल्कि इसमें स्वरक्षा की भावना भी मिली होती है। यदि कोई हमें दो-चार टेढ़ी बातें कह जाए, तो उस दुख से बचने के लिए आवश्यक है कि क्रोध करके उसे बतला दिया जाए कि उसका स्थान कौन-सा है और कहाँ है? क्रोध दूसरों में भय को उत्पन्न करता है। जिस पर क्रोध प्रकट किया जाता है, यदि वह डर जाता है तो नम्र होकर पश्चात्ताप करने लगता है। इससे क्षमा का अवसर सामने आता है।

विपक्ष में – क्रोध एक मनोविकार है, जो दुख के कारण उत्पन्न होता है। प्रायः लोग अपनों पर अधिक क्रोध करते हैं। एक शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने के बाद जान जाता है कि उसे भोजन उसी से प्राप्त होगा। तब भूखा होने पर वह उसे देखते ही रोने लगता है और अपने क्रोध का आभास दे देता है। क्रोध चिड़चिड़ाहट को उत्पन्न करता है।

प्रायः क्रोध करने वाला उस तरफ़ देखता है, जिधर वह क्रोध करता है। क्रोध से क्रोध ही उत्पन्न होता है। क्रोध न करने वाला व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक पर नियंत्रण रखता है, जिस कारण वह अनेक अनर्थों से बच जाता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी आदि जैसे महापुरुषों ने अपने क्रोध पर विजय पाकर संसार भर में अपना नाम अमर कर लिया। क्रोध से बचकर हम अपना आत्मिक बल बढ़ा सकते हैं और आंतरिक शक्तियों को अनुकूल कार्यों की ओर लगा सकते हैं।

बाल्मीकि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर आदिकवि होने का यश प्राप्त कर लिया था। क्रोध पर नियंत्रण पाकर वैर से बचा जा सकता है। अतः जहाँ तक संभव हो सके, मनुष्य को क्रोध से बचकर जीवन जीना चाहिए।

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प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?
उत्तर :
परशुराम के समान किए जाने वाले क्रोध से तो सामने वाले के हृदय में भी क्रोध का भाव ही भरेगा, जिससे क्लेश-भाव बढ़ेगा और समस्या बढ़ जाएगी। लक्ष्मण के समान व्यंग्य-बाणों का लगातार उपयोग भी सामने वाले व्यक्ति को भड़काएगा, जिससे उसका गुस्सा बढ़ेगा। विनय का भाव और संयत व्यवहार किसी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शांत कर देने की क्षमता रखता है। इसलिए ऐसी परिस्थिति में श्रीराम के समान विनयपूर्वक और संयत व्यवहार करूँगा।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
मेरे एक परिचित हैं-डॉ. सिंगला। उनका नर्सिंग होम मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। उनका घर भी नर्सिंग होम का ही एक हिस्सा है, जो उनके रोगियों के लिए बहुत उपयुक्त है। किसी भी आपातकाल में वे उनके पास मिनट में पहुँच सकते हैं। मेरे परिचित बहुत साफ-सुधरे रहते हैं। साफ़-सफाई उनके हर काम में दिखाई देती है।

चमचमाते फर्श, साफ-सुथरी दीवारें चुस्त कर्मचारी उनके नर्सिंग होम की पहचान है, जिसमें डॉ. सिंगला के स्वभाव की पहचान साफ़ झलकती है। वे मृदुभाषी हैं। उनके रोगियों का आधा रोग तो उनसे बातचीत करके ही दूर हो जाता है। उन्हें पेड़-पौधे लगाने का शौक है। रंग-बिरंगे फूल, झाड़ियाँ और बेलें उनके घर में महकती रहती हैं। अपने व्यस्त समय में से वे कुछ घड़ियाँ इनके लिए निकाल लेते हैं।

वे बहुत मिलनसार हैं। नगर के बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे, जो उन्हें जानते-पहचानते न हों। वे अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर समाज-सेवा के कार्यों में सहयोग दे रहे हैं। वे सभी के सुख-दुख में सहायता करने के लिए सदा तैयार रहते हैं। उनका व्यक्तित्व उन्हें जानने-पहचानने वाले सभी लोगों को एक उत्साह-सा प्रदान करता है।

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प्रश्न 14.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर :
घने जंगल में एक खरगोश उछलता-कूदता भागा जा रहा था। वह बड़ा प्रसन्न था और मन-ही-मन सोच रहा था कि उस से तेज़ कोई भी नहीं भाग सकता।
बिना ध्यान भागते हुए वह धीरे-धीरे चलते एक कछुए से टकरा गया। उसके पाँव पर हल्की-सी चोट लगी और वह रुक गया। वह कछुए से बोला-“अरे, तुम्हें चलना तो आता नहीं, पर फिर भी मेरे रास्ते में रुकावट बनते हो।”
कछुआ बोला – “भगवान ने चलने की जितनी क्षमता मुझे दी है, मेरे लिए बही काफी है। मेरा इतनी गति से ही काम चल जाता है।”
खरगोश ने व्यंग्य से कहा – ‘नहीं, नहीं! तुम तो बहुत तेज भागते हो; यहाँ तक कि मुझे भी दौड़ में हरा सकते हो। दौड़ लगाओगे मेरे साथ?
कछुए ने कहा-“नहीं भाई। मैं तुम्हारे सामने क्या हूँ? तुमसे दौड़ कैसे लगा सकता है?”
खरगोश ने उसे उकसाते हुए कहा – “अरे, हिम्मत तो कर। हम दोनों एक ही रास्ते पर जा रहे हैं। चल देखते हैं कि बड़े पीपल के पास वाले तालाब तक पहले कौन पहुँचता है। यदि तू जीत गया तो मैं कभी तुम्हें ‘सुस्त’ नहीं कहूँगा।”
कछुए ने धीमे स्वर में कहा – “अच्छा, मैं कोशिश करता हूँ।”
यह सुनते ही खरगोश तेजी से तालाब की दिशा में भागा। बिना पीछे देखे वह लगातार भागता हो गया। कछुए का कहीं कोई अता-पता नहीं था। खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि कछुआ शाम से पहले उस तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वह छाया में कुछ देर सुस्ता ले, तो फिर और तेज़ भाग सकेगा। बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली, तो हल्का-हल्का अंधेरा होने वाला था। वह तेज गति से तालाब की ओर भागा। पर जब वह तालाब के किनारे पहुँचा, तो कछुआ वहाँ पहले से ही पहुँचकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कछुआ धीरे से मुस्कराया। खरगोश खिसियाकर बोला – “अरे, तुम पहुँच गए! मेरी जरा आँख लग गई थी।”
कछुआ बोला – “कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है, पर याद रखना कि तुम्हें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। ईश्वर ने सबको अलग-अलग गुण दिए हैं।”

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर :
पहली घटना – पिछले वर्ष से मैं अपने स्कूल की हॉकी टीम में खेल रहा था। परसों जब शाम को मैं अभ्यास के लिए खेल के मैदान में पहुँचा, तो खेल-कूद के इंचार्ज के निकट एक अनजान लड़का हॉकी लिए खड़ा था। मुझे देखते ही उन्होंने कहा कि तुम्हारी जगह टीम में आज से यह लड़का खेलेगा। यह मेरा भतीजा है और इसने आज ही इस स्कूल में दाखिला लिया है। मैंने कहा कि एक साल से मैं इस टीम का नियमित सदस्य हूँ और मेरा खेल भी अच्छा है। उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और कहा कि निर्णय का अधिकार उनका है कि कौन खेलेगा और कौन नहीं।

मैं चुपचाप वहाँ से चला आया। मैं स्कूल के प्राचार्य के पर गाया और उनसे बात की। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि वे स्कूल में इंचार्ज से बात करके मुझे बताएँगे। मैं नहीं जानता कि प्राचार्य महोदय की सर से क्या बात हुई, पर सातवें पीरियड में स्कूल का चपरासी एक नोटिस लाया कि शाम को मुझे खेलने के लिए पहले की तरह ही पहुँचना है। दुसरी घटना- मेरे घर के बाहर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।

मैं उन्हें खेलता हुआ देख रहा था। जैसे ही एक लड़के ने बॉल को हिट किया, तो वह उछलकर खिड़की से टकराई और शीशा टूट गया। बच्चों ने शीशा टूटता देखा और वहाँ से भागे। एक छोटा लड़का वहाँ खड़ा था। वह खेल नहीं रहा था, बस खेल देख रहा था। मेरा बड़ा भाई साइकिल पर कहीं बाहर से आ रहा था। उसने लड़कों को भागते और खिड़को के टूटे शीशे को देखा। उसने झपटकर उस छोटे लड़के को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह उस पर हाथ उठा पाता, मैंने उसे ऐसा करने से रोका क्योंकि शीशा तोड़ने में लड़के का कोई हाथ नहीं था।

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प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर :
पूर्वी हिंदी की अवधी भाषा जिन-जिन क्षेत्रों में बोली जाती है, वे हैं-उन्नाव, लखनऊ, राय बरेली, फतेहपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच, बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, जौनापुर, मिर्जापुर आदि।

पाठेतर सक्रियता –

1. तुलसी की रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
2. दोहा और चौपाई के वाचन का एक पारंपरिक ढंग है। लय सहित इनके वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा। उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
4. इस प्रसंग की नाट्य प्रस्तुति करें।
5. कोही, कुलिस, खोरि, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए। उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

दोहा : दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती है और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।

चौपाई : मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
तुलसी से पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई-छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा

पाठ में ‘सहसबाहु सम सो रिपु मोरा’ का उल्लेख आया है। परशुराम और सहसबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है –
परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहसबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जो विशेष गाय थी। कहते हैं कि वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहसबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय को प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहसबाहु ने कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया।

इस पर क्रोधित होकर परशुराम ने सहसबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि जमदग्नि ने घोर निंदा की थी और परशुराम को प्रायश्चित करने के लिए कहा था। क्रोध में भर कर सहसबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय बिहीन करने की प्रतिज्ञा की।

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीराम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए क्या किया था?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम ने उनसे विनम्र स्वर में कहा था कि ‘हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो मुझे दीजिए।’ उनकी वाणी में सहजता और मिठास थी। वे किसी भी प्रकार से परशुराम के गुस्से को बढ़ाने वाले शब्द नहीं बोले थे।

प्रश्न 2.
परशुराम ने राम को क्या उत्तर दिया था ?
उत्तर :
परशुराम ने राम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करे, न कि शत्रुता की राह पर चले। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। उसे राज समाज से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर राज सभा में उपस्थित सभी राजा उनके द्वारा मार दिए जाएंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 3.
परशुराम को लक्ष्मण की किस बात पर अधिक गुस्सा आया?
अथवा
यम लक्ष्मण के किन तकों ने परशुराम के क्रोध की आग को भड़काया?
उत्तर :
लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहा था। लक्ष्मण के अनुसार शिव-धनुष इतना कमजोर था कि उस जैसे अनुहियों को वे अपने बचपन में खेल-खेल में ही तोड़ दिया करते थे। वैसे भी पुराने और जर्जर धनुषों को तोड़ देने से न कोई लाभ होता है और न हानि। : शिवजी के धनुष के इस अपमान से परशुराम का क्रोध बढ़ गया था।

प्रश्न 4.
लक्ष्मण ने परशुराम से यह क्यों कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता?
उत्तर :
गाली असभ्य, मूर्ख और शक्तिहीन लोग दिया करते हैं। परशुराम वीर, धैर्यवान और क्षोभरहित थे। यदि उन्हें क्रोध आया था, तो वे अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग से उसे प्रकट कर सकते थे न कि गाली देकर; क्योंकि शुरवीर युद्ध-भूमि में अपनी बीरता दिखाते हैं। इसलिए लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता।

प्रश्न 5.
परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने और क्या संबोधित किया था?
उत्तर :
परशुराम को श्रीराम ने ‘नाथ’ कहकर संबोधित किया था। उन्होंने बड़े ही विनयशीलता के साथ कहा था कि शिव-धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। आपका क्या आदेश है, आप मुझसे कह सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 6.
सेवक धर्म के बारे में परशुराम ने श्रीराम से क्या कहा था?
उत्तर :
जब श्रीराम ने परशुराम से कहा कि शिव-धनुष तोड़ने वाला उनका कोई सेवक अथवा दास ही होगा, तो परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे। लड़ाई अथवा उदंडता करने वाला सेवक नहीं कहलाता। ऐसे व्यक्ति से शत्रुता करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
शिव धनुष तोड़ने वाले के विषय में परशराम ने क्या-क्या कहा?
अथवा
स्वयंवर स्थल पर शिवधनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किस प्रकार धमकाया ?
उत्तर :
परशुराम भरी सभा में श्रीराम के सम्मुख घोषणा करते हुए कहते हैं कि जिस किसी ने भी उनके आराध्य भगवान शिव का धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। वह जो कोई भी हो स्वयं मेरे सामने आ जाए। यदि वह सामने नहीं आएगा, तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 8.
भरी सभा में लक्षण के सम्मुख परशुराम अपनी वीरता का बखान किस प्रकार करते हैं?
अथवा
कि परशुराम ने अपनी किन विशेषताओं के उल्लेख के द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?
उत्तर :
लक्ष्मण द्वारा भड़काने पर परशुराम अत्यंत क्रोध में आ गए। क्रोधावेश में वे अपने बाहुबल एवं बीरता का परिचय देते हुए कहते हैं कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं। उनका स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। वे विश्वभर में क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी वीरता एवं बाहुबल से कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया और बार-बार ब्राहमणों को जीता राज्य दान में दे दिया। सहसबाहु की भुजाओं को भी उन्होंने अपने फरसे से ही काटा था।

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प्रश्न 9.
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने फरसे का किस प्रकार डर दिखाया?
उत्तर :
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने क्रोध तथा फरसे से डराते हुए कहा कि राजा के बेटे! तू अपने माता-पिता को चिंता में क्यों डाल रहा है। मेरे हाथ में जो फरसा है, वह बड़ा ही भयानक है। यह छोटे-बड़े किसी में भेद नहीं करता। यह इतना भयानक है कि गर्भ में पलने वाले बच्चों का भी नाश कर देता है।

प्रश्न 10.
लक्ष्मण के अनुसार रषकुल के लोग किन-किन पर दया करते थे?
उत्तर :
उल्लर लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि रघुकुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ पर सदा दया की जाती है। इन पर कभी कोई अत्याचार अथवा बार नहीं करता। इन्हें मारने से उन्हें पाप लगता है तथा उनके कुल की अपकीर्ति होती है। यदि कोई गलती से उन्हें मार दे, तो क्षमा मांगनी पड़ती है।

प्रश्न 11.
‘गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियो सूझ’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उक्त पंक्ति में मुनि विश्वामित्र मन-ही-मन हँसते हुए कहते हैं कि परशुराम को चारों ओर हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण शन्निय समझ रहे है।

प्रश्न 12.
परशुराम की स्वभावगत विशेषताएँ क्या हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल-ब्रह्मचारी हैं। वे स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

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प्रश्न 13.
‘गाधिसूनु’ किसे कहा गया है? वे मुनि की किस बात पर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे?
उत्तर :
‘गाधिसूनु’ विश्वामित्र जी के लिए कहा गया है। वे मुनि परशुराम की बातों पर मन ही मन हंसते हैं कि परशुराम जी को चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे हैं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करें सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।

(क) श्रीराम ने परशुराम के लिए किस शब्द का संबोधन किया?
(i) नाथ
(ii) भजनहारी
(iii) दास
(iv) समु
उत्तर :
(i) नाथ

(ख) भंजनिहारा का अर्थ है –
(i) सेवक
(ii) मित्र
(iii) शत्रु
(iv) टुकड़े करने वाला
उत्तर :
(iv) टुकड़े करने वाला

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(ग) धनुष था
(i) शिव-धनुष
(ii) ब्रह्म-धनुष
(iii) राम-धनुष
(iv) विष्णु परशु
उत्तर :
(i) शिव-धनुष

(घ) परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु मानते हैं?
(i) सहस्राबाहु के समान
(ii) दसानन के समान
(iii) दशरथ के समान
(iv) बाणासुर के समान
उत्तर :
(i) सहस्राबाहु के समान

(ङ) किसने शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई?
(i) रावण
(ii) लक्ष्मण
(ii) राम
(iv) परशुराम
उत्तर :
(ii) गम

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2. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारूरू। चहत उड़ावन कि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाही।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥

(क) लखनु कौन है?
(i) लक्ष्मण
(iii) परशुराम
(iv) विश्वामित्र
उत्तर :
(i) लक्ष्मण

(ख) परशुराम किस प्रकार लक्ष्मण को डरा रहे हैं?
(i) हाल दिखाकर
(ii) अजगव दिखाकर
(iii) फरसा दिखाकर
(iv) धनुष-बाण दिखाकर
उत्तर :
(iii) फरसा दिखाकर

(ग) ‘कुम्हड़ बतिया’ का यहाँ क्या भाव है?
(i) बहुत वीर
(ii) बहुत नाजुक
(iii) बहुत कठोर
(iv) बहुत शंकालु
उत्तर :
(ii) बहुत नाजुक

(घ) कुम्हड़ बतिया किसको देखकर मर जाती है?
(i) फरसा
(ii) धूप
(iii) अँगूठा
(iv) तरजनी
उत्तर :
(iv) तरजनी

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(ङ) लक्ष्मण की मृदु वाणी सुनकर परशुराम कैसी प्रतिक्रिया कर रहे हैं?
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।
(ii) परशुराम के क्रोध को शांत कर रही है।
(iii) (i) और (ii) दोनों विकल्प
(iv) कोई नहीं
उत्तर :
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘राम-लक्ष्मण’ का संवाद किससे हुआ?
(i) अयोध्यावासियों से
(ii) बालकों से
(iii) परशुराम से
(iv) लंकावासियों से
उत्तर :
(iii) परशुराम से

(ख) राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
(i) ब्रजभाषा
(ii) मैथिली भाषा
(iii) अवधी भाषा
(iv) मगही भाषा
उत्तर :
(ii) अवधी भाषा

(ग) तुलसीदास जी ने प्रस्तुत पद में किन छंदों का प्रयोग किया है?
(a) दोहा-चौपाई
(ii) रोला
(ii) सोरठा
(iv) हरिगीतिका
उत्तर :
(i) दोहा-चौपाई

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(घ) तुलसीदास ने ‘भृगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है।
(i) विश्वामित्र
(ii) लक्ष्मण
(ii) परशुराम
(iv) वशिष्ठ
उत्तर :
(iii) परशुराम

(अ) ‘अपमय खाँड न अखमय’ में अपमय’ का क्या अर्थ है?
(d) गन्ना
(ii) कुठार
(iii) लोहे से बना
(iv) खाँड से बना
उत्तर :
(iii) लोहे से बना

सप्रसंग व्याख्या, अर्थगता संबंधो एवं सौंयँ-सरहुना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
सुनि मुनिबचन लखन मुसकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार।
धनही सम तिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।

शब्दार्थ : नाथ – स्वामी। संभुधनु – शिवजी का धनुष। भंजनिहारा – तोड़ने वाला। आयेसु – आज्ञा। रिसाइ – क्रोध करना। कोही – क्रोधी। सो – वह। सेवकाई – सेवा। अरि – शत्रु। जेहि – जिसने। रिपु – शत्रु। बिलगाउ – अलग होना। लरिकाई – बचपन में। अवमाने – अपमान करना। रिस – गुस्सा करना। भृगुकुलकेतू – ब्राह्मण कुल के केतु, परशुराम। सम – समान। तिपुरारि – भगवान, शिव।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ से लिया गया है। मूल रूप से यह गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण सीता स्वयंवर के अवसर पर राजा जनक की सभा में गए थे। राम ने वहाँ शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था। परशुराम ने क्रोध में भरकर इसका विरोध किया था। तब राम ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया था।

व्याख्या : श्रीराम ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे नाथ! भगवान शिव के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। क्या आज्ञा है, आप मुझसे क्यों नहीं कहते?’ यह सुनकर क्रोधी मुनि गुस्से में भरकर बोले-“सेवक वह होता है, जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! जिसने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नहीं तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे।”

मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले-‘हे स्वामी! अपने बचपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डाली थी। किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। आपको इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है?” यह सुनकर भृगु वंश की ध्वजा के रूप में परशुराम गुस्से में भरकर कहने लगे-“अरे राजपुत्र! अमराज के वश में होने के कारण तुझे बोलने में कुछ होश नहीं है। सारे संसार में प्रसिद्ध भगवान शिव का धनुष क्या धनुही के समान है? तुम्हारे द्वारा शिवजी के धनुष को धनुही कहना तुम्हारा दुस्साहस है।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर :

1. पद में निहित भावों को स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने अपनी बात कही थी?
3. परशुराम का स्वभाव कैसा था?
4. शिव धनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किसके समान शत्रु माना था?
5. परशुराम ने क्या चेतावनी दी थी?
6. परशुराम के वचनों को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर कैसे भाव प्रकट हुए?
7. लक्ष्मण ने शिव धनुष को क्या कहा था?
8. लक्ष्मण की किस बात को सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया था?
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण किसके बस में होकर बोल रहा था?
10. परशुराम ने राम के वचनों का उत्तर कैसे दिया?
उत्तर :
1. रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए इस पद के अनुसार राम ने सौता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे। राम ने उन्हें मीठे शब्दों से शांत करना चाहा, लेकिन लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे शब्दों से उनके क्रोध को भड़का दिया और उनसे जानना चाहा कि यह साधारण-सा धनुष उन्हें क्यों प्रिय है।
2. परशुराम को राम ने ‘नाथ’ कहकर अपनी बात कही थी।
3. परशुराम का स्वभाव अभिमान और क्रोध से भरा हुआ था।
4. परशुराम ने शिव धनुष तोड़ने वाले को सहस्त्रबाहु के समान अपना शत्रु माना था।
5. परशुराम ने चेतावनी दी थी कि यदि शिव का धनुष तोड़ने वाले को सभा से अलग नहीं किया गया, तो वे सभा में उपस्थित सभी राजाओं का वध कर देंगे।
6. परशुराम द्वारा सभी राजाओं का वध कर देने की बात सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर व्यंग्यपूर्ण मुसकराहट का भाव प्रकट हो गया।
7. लक्ष्मण ने शिवधनुष को धनुही कहा था।
8. जब लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने अपने लड़कपन में बैसी अनेक धनुहियाँ खेल-खेल में तोड़ दी थी, तो यह सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया।
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण काल अर्थात मृत्यु के बस में होकर बिना सोचे-समझे बोल रहा था।
10. परशुराम ने राम के विनयपूर्वक कहे गए शाब्दों का उत्तर क्रोध में भरकर दिया। उन्होंने कहा कि तुम कैसे सेवक हो ? सेवक तो वह होता है, जो सेवा करता है। जो शत्रु जैसा व्यवहार करता है, उससे लड़ाई ही की जानी चाहिए।

सौदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किस प्रकार पद में नाटकीयता उत्पन्न की है?
2. किस तत्त्व ने पद को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है?
3. पद में किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
4. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
5. कथन को संगीतात्मकता का गुण कैसे प्राप्त हुआ है?
6. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
7. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
8. पद में से शिव और परशुराम के दो-दो पर्यायवाची छाँटिए।
9. पद में प्रयुक्त अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने परशुराम के क्रोधपूर्ण स्वभाव और लक्ष्मण की निर्भयता को आधार बनाकर पद में नाटकीयता उत्पन्न की है।
2. संवादात्मकता ने कथन को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है।
3. ओज गुण प्रधान है।
4. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
5. स्वरमैत्री ने कवि को संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है।
6. अवधी भाषा।
7. वीर रस का प्रयोग है।
8. शिव – संभु, त्रिपुरारि।
परशुराम – परसुधरहि, भृगुकुलकेतू।
9. अनुप्रास –
आयेसु काह कहिअ किन,
सेवकु सो जो करै सेवकाई.
अरिकरनी करि करिअ,
सहसबाहु सम सो, सकल संसार
जिलगाउ विहाइ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
गर्भह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

शब्दार्थं : छति – हानि। लाभु – लाभ। नयन – नया। भोरे – धोखे। दोसू – दोष। रोसू – क्रोध। सठ – दुष्ट। सुभाउ – स्वभाव। जड़ – मूर्ख। मोही – मुझे। बिस्व – संसार, विश्व। विदित – विख्यात। महिदेव – ब्राह्मण। बिलोकु – देखकर। महीपकुमार – राजकुमार। अर्भक – बच्चा। दलन – नाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। ‘सीता स्वयंवर’ के समय श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया, पर उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हंसकर कहा कि ‘हे देव ! सुनिए ! हमारे लिए तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ और क्या हानि! श्री रामचंद्र ने इसे नया समझ कर धोखे से देखा था। फिर यह छुते ही टूट गया। इसमें रघुकुल के स्वामी श्रीराम का कोई दोष नहीं है। हे मुनि! आप बिना किसी कारण के क्रोध क्यों करते हैं?’ परशुराम ने अपने फ़रसे की ओर देखकर कहा-“अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना? मैं तुम्हें बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख ! क्या तू मुझे निरा मुनि हो समझता है।

मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का शत्रु विश्व भर में प्रसिद्ध हूँ। आपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और कई बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काट देने वाले मेरे इस फरसे को देख ! अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को चिंता के वश में न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। यह छोटे-बड़े किसी की भी परवाह नहीं करता।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते थे?
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने धनुष को किस धोखे से छू लिया था?
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष तोड़ने में राम का कोई दोष क्यों नहीं था?
5. परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
6. परशुराम विश्व भर में अपने किन गुणों के कारण विख्यात थे?
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से क्या किया था?
8. परशुराम ने क्रोध में लक्ष्मण को कौन-सा अस्त्र दिखाया था?
9. परशुराम का फ़रसा क्या कर सकने की योग्यता रखता था?
10. पद के अनुसार परशुराम के परिचय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. गोस्वामी तुलसीदास ने लक्ष्मण के व्यंग्य-भावों तथा परशुराम के गुस्से को प्रकट करते हुए स्पष्ट किया है कि परशुराम को अपने बल-पराक्रम पर घमंड था, पर लक्ष्मण उनके बल से कदापि प्रभावित नहीं थे। वे उनसे डरते नहीं थे।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को एक-सा मानते थे। उनकी दृष्टि में उनमें कोई अंतर नहीं था।
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने शिवजी के धनुष को नया धनुष समझकर छू लिया था।
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का कोई दोष नहीं था। धनुष पुराना था और राम के छूते ही वह टूट गया था।
5. परशुराम लक्ष्मण पर अत्यंत क्रोधित थे, पर वे उसे बालक समझकर उसका बध नहीं कर रहे थे।
6. विश्व भर में परशुराम अपने क्रोध और ब्रह्मचर्य के कारण प्रसिद्ध थे। वे क्षत्रिय वंश को अपना शत्रु मानते थे और उसे कई बार नष्ट करने के कारण विख्यात थे।
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को अनेक बार क्षत्रियों से रहित करके उनका राज्य ब्राह्मणों को दान में दे दिया था।
8. परशुराम ने क्रोध में भरकर लक्ष्मण को अपना फरसा दिखाया था, जिसने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया था।
9. परशुराम का फ़रसा माँ के गर्भ में विद्यमान बच्चों को भी नष्ट कर देने की योग्यता रखता था।
10. परशुराम बाल ब्रह्मचारी, महाक्रोधी, क्षत्रियों के दुश्मन और अपार बलशाली ब्राह्मण थे। उन्होंने क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद की भाषा कौन-सी है?
2. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
3. गेयता के गुण का आधार क्या है?
4. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. इस पद को किस मूल ग्रंथ से लिया गया है?
6. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
7. पद से दो तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की शब्दावली में किन भावों की प्रमुखता है?
9. पद से दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. पद की भाषा अवधी है।
2. दोहा-चौपाई छंद।
3. स्वरमैत्री।
4. बीर रस।
5. रामचरितमानस (बालकांड)।
6. ओज गुण।
7. धनुष, केवल
8. व्यंग्य, क्रोध
10. अनुप्रास –

  • हसि हमरे
  • नहि तोही
  • जून धनु, मुनि बिनु
  • काज करिअ कता
  • सठ सुनहि सुभाउ
  • बालकु बोलि बधौं
  • बाल ब्रह्मचारी
  • बिपुल बार
  • जड़ जानहि
  • भुजबल भूमि भूप

अतिशयोक्ति –

  • छुअत टूट

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

3. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहा ॥
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सही रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
जो बिलोकि अनुचित कहे. छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।।

शब्दार्थ : बिहसि – हँस कर। मृदु बानी – कोमल वाणी। महाभट – महायोद्धा। मानी – समझते हैं। कुठारु – कुल्हाड़ी। कुम्हड़बतिआ – बहुत कमजोर, निर्बल व्यक्ति, काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा फल। तरजनी – अँगूठे के पास की उँगली। सरासन – धनुष। जनेउ – यज्ञोपवीत। बिलोकी – देखकर। रिस – गुस्सा। सुर – देवता। महिसुर – ब्राह्मण। हरिजन – भागवान के भक्त। अपकीरति – अपयश। मारतहू — आप मारें तो भी। पा – पैर। कोटि – करोड़ों। कुलिस – बज। बिलोकि – देखकर। गिरा – वाणी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीना-स्वयंबर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोधित हो गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिससे परशुराम का गुस्सा भड़क उठा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हँस कर कोमल वाणी में कहा-“अहो ! मुनीश्वर तो अपने आप को बड़ा वीर योद्धा समझते हैं। मुझे देखकर ये बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ये तो फैंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कोई काशीफल या कुम्हड़े के फूल से बना छोटा-सा फल नहीं है, जो आपके अंगूठे के साथ वाली उँगली को देखकर ही मर जाए। मैंने जो कुछ कहा है, वह आपके कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान सहित कहा है। भृगुवंशी समझकर और आपका यज्ञोपवीत देखकर आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं अपना गुस्सा रोककर सह लेता हूँ।

देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मारे, तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वजों के समान है। धनुष-बाण और कुल्हाड़ा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। आपके इस धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने कुछ अनुचिता कहा हो, तो हे धौर महामुनि। आप क्षमा कीजिए।” यह सुनकर भृगु वंशमणि परशुराम क्रोध के साथ गंभीर वाणी में बोले।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर।

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम बार-बार अपना कुल्हाड़ा किसे दिखा रहे थे?
3. कवि के द्वारा प्रयुक्त काव्य रूढ़ि और समाज में चली आने वाली मान्यता को स्पष्ट कीजिए।
4. लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्वक बात क्यों की थी?
5. लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात क्यों की थी?
6. रघुकुल के लोग किन-किन पर वीरता का प्रदर्शन नहीं करते थे?
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें क्यों नहीं मारना चाहते थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्या माँगा?
10. लक्ष्मण के क्रोध-भाव को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए शब्दों पर व्यंग्य किया और उन्हें बताया कि उनके वंश में ब्राह्मणों पर शस्त्र नहीं उठाया जाता: भले ही वे बुरा व्यवहार क्यों न करें।
2. परशुराम लक्ष्मण को डराने के लिए उन्हें बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे थे।
3. युगों से समाज में एक मान्यता चली आ रही है कि काशीफल की बेल पर खिलने वाले फूल या छोटे फल की ओर तर्जनी से इशारा किया जाए, तो वह सूख कर गिर जाता है। छोटी आयु के लक्ष्मण की ओर परशुराम बार-बार ऊँगली उठाकर उन्हें डराने का प्रयत्न कर रहे थे। इसलिए लक्ष्मण ने उनसे कहा था कि वे काशीफल की बेल पर लगे फूल या फल की तरह कमजोर नहीं हैं, जो उनकी उठी उँगली से नष्ट हो जाएंगे।
4. लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण देखकर उन्हें क्षत्रिय समझ लिया था और इसी कारण से उनसे अभिमानपूर्वक बात की थी।
5. लक्ष्मण जान गए थे कि परशुराम भृगुवंशी हैं। उनके गले में यज्ञोपवीत भी था। इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात की थी।
6. रघुकुल के लोग देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय पर बोरता का प्रदर्शन नहीं करते थे।
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें कभी मारना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें मारने से पाप लगता था और उनसे हार जाने पर अपयश मिलता था।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्षमा माँगी थी।
10. लक्ष्मण अति क्रोधी स्वभाव का था। वह परशुराम के बड़बोलेपन को झेलने वाला नहीं था। वह निर्भीक, साहसी और वीर था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि के द्वारा किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
2. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. किन छंदों का प्रयोग किया गया है?
5. किस प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
7. काव्यांश में प्रयुक्त दो तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की भाषा में किसकी प्रधानता है?
9. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. वीर रस का प्रयोग है।
3. ओज गुण विद्यमान है।
4. दोहा-चौपाई छंद।
5. स्वरमैत्री के प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है।
6. व्यंजना शब्द-शक्ति विद्यमान है।
7. मृद. कुल
8. व्यंग्य, बाक्वीरता।
9. अनुप्रास
मुनीस् महाभट मानी,
कछु कहा; कछु कहहु, कोटि कुलिस,
सुर, महिसुर: सुनि सरोष,
धरहु धनु
गिरा गंभीर पुनरुक्ति-प्रकाश
पुनि-पुनि उपमा
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

4. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल्ल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहाँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बस्नै पारा।।
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भांति बहु बरनी।।
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
सूर समर करनी करहि कहि न जनावहिं आए।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथाहिं प्रतापु॥

शब्दार्थ : कौसिक – विश्वामित्र। भानु बंस – सूर्यवंशी। राकेस – चंद्र। निपट – बिलकुल। निरंकुसु – उदंड। अवधु – मूर्ख। कालकवलु – काल का ग्रास। खोरि – दोष। मोहि – मेरा। हटकहु – मना करो, रोको। उबारा – बचाना। रोषु – क्रोध। बरनी – वर्णन। दुसह – असह्य। सूर – शूरवीर। समर = बुद्ध। रन – युद्ध। रिपु – शत्रु।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ से लिया गया है. मूल रूप से यह तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। सीता स्वयंवर के समय राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिस कारण उनका क्रोध और अधिक बढ़ गया था।

व्याख्या : परशुराम ने राम और लक्ष्मण के गुरु विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे विश्वामित्र! सुनो! यह बालक बड़ा कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक है। यह बिलकुल उदंड, मूर्ख और निडर है। अभी क्षण भर बाद यह मौत के देवता काल का ग्रास बन जाएगा। मैं पुकार कर कहे देता हूँ कि इसके मर जाने के बाद फिर मुझे दोष नहीं देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो इसे हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर ऐसा करने से रोक दो?’ लक्ष्मण ने तब कहा-‘हे मुनि! आपका सुयश आपके रहते और कौन वर्णन कर सकता है ? आपने पहले ही अनेक बार अपने मुँह से अपनी करनी का कई तरह से वर्णन किया है।

यदि इतने पर भी आपको संतोष न हुआ हो, तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुख मत सहो। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और ओभ रहित हैं। गाली देते हुए आप शोभा नहीं देते। शूरवीर तो युद्ध में अपनी शूरवीरता का कार्य करते हैं। वे बातें कहकर अपनी वीरता को प्रकट नहीं करते। शत्रु को युद्ध में पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें हाँका करते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए किसे संबोधित किया ?
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण की विशेषताएँ कौन-कौन सी थी ?
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने कौन-कौन से गुण लक्ष्मण को बताने के लिए कहा था?
5. लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया?
6. परशुराम राजसभा में क्या बता चुके थे ?
7. परशुराम क्या रोककर अधिक दख सह रहे थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को किन-किन विशेषताओं का स्वामी माना था?
9. शूरवीर अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार देता है?
10. लक्ष्मण की किस बात पर परशुराम नाराज थे?
उत्तर :
1. परशुराम ने विश्वामित्र को सुझाव दिया था कि वे लक्ष्मण को उनके गुण बताकर व्यर्थ बोलने और उकसाने से रोके, ताकि परशुराम उसका वध न करे। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें वीरता का पालन करने की शिक्षा दे दी थी।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए ऋषि विश्वामित्र को संबोधित किया।
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण मूर्ख, कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल था। वह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक था। यह उदंड, मुर्ख और निडर था।
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने बारे में लक्ष्मण को यह बताने के लिए कहा था कि वे बड़े प्रतापी, अति बलशाली और अत्यंत क्रोधी हैं।
5. लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया कि उन्हें अपना सुयश अपने मुँह से स्वयं प्रकट करना चाहिए, क्योंकि उनके स्वयं वहाँ रहते हुए उनके सुयश को ठीक-ठीक ढंग से कोई और नहीं प्रकट कर सकता।
6. राजसभा में परशुराम अनेक बार अपनी विशेषताएँ बता चुके थे।
7. परशुराम अपने क्रोध को रोककर अधिक दुख सह रहे थे।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को वीरता का व्रत धारण करने वाला, धैर्यवान और क्षोभरहित माना था।
9. शूरवीर युद्ध में लड़कर अपनी शूरवीरता को प्रदर्शित करता है, न कि अपनी वीरता की डींगें हाँककर।
10. लक्ष्मण को स्पष्टवादिता, स्वभाव और उग्रता के कारण परशुराम नाराज थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव के किन गुणों/ अवगुणों को प्रकट किया है?
2. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. किस शब्द-शक्ति का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
7. संवादों से कथन को कौन-सा गुण प्राप्त हुआ है?
8. ‘बीरबती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?
9. परशुराम की वाणी में कौन-सा भाव प्रमुख है ?
10. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण की स्पष्टवादिता और साहस तथा परशुराम को डींगें हाँकने के स्वभाव को प्रकट किया है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई का प्रयोग है।
4. वीर रस।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. लक्षणा शब्द-शक्ति का अधिक प्रयोग किया गया है।
7. नाटकीयता का गुण
8. व्यंग्यात्मकता
9. प्रचंड क्रोध
10. अनुप्रास –
पुकारि खोर, बहु बरनी,
दुसह दुख, कुटिल कालबस, कछु कहहू,
करनी करहिं कहि, कायर कथाहिं।

मानवीकरण –
कालकवतु होइहि छन माही

रूपक –
भानु बंस राकेस कलंकू

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

5. तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि परेड कर बोरा ॥
अब जनि दे दोसु मोहि लोमू। कटुबादी बालक बाजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिल अपराधू। बाल दोष गुन गहन साधू
खार कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही
उतर देत छोड़ों बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोर।।
गाधि सून कह हृदय हसि मुनिहि हरियो सझा
अयमय खाँड़ न ऊखमय अबाई न बूझ अबूम।

शब्दार्थ : मोहि लागि- मेरे लिए। परसु – फ़रसा। कर – हाथ। बधजोगू – वध के योग्य। कटुबादी – कड़वा बोलने वाला। बिलोकि – देखकर। बाँचा – बचाया। मरनिहार – मरने को। साँचा – सचमुच। कौसिक – विश्वामित्र। खर कुठार – तीखी धार का कुठार। गाधिसून – विश्वामित्र। हरियो – हरा ही हरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सौता-स्वयंवर के अवसर पर परशुराम और लक्ष्मण के बीच शिव-धनुष के भंग होने के कारण विवाद हुआ था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा कि ‘हे मुनिवर परशुराम ! आप तो मानो काल को बार-बार हाँक लगाकर उसे मेरे लिए बुलाते हैं लक्ष्मण के कठोर वचन सुनते ही परशुराम ने अपने फ़रसे को सुधार कर हाथ में ले लिया और कहा कि “अब लोग मुझे दोष न दें। यह कड़वा बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। बालक समझकर मैंने इसे बहुत देर तक बचाया, लेकिन अब यह सचमुच मरने को आ गया है। तब गुरु विश्वामित्र ने कहा-“अपराध क्षमा कीजिए मुनिवर ! बालकों के दोष और गुण को साधु लोग नहीं गिनते।”

परशुराम बोले-“मेरा तीखी धार का फरसा, मैं दयारहित और क्रोधी हूँ। मेरे सामने यह गुरुद्रोही और अपराधी उत्तर दे रहा है। इतने पर ही मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ। हे ऋषिवर! मैं इसे केवल आपके शोल और प्रेम के कारण बिना मारे छोड़ रहा हूँ। नहीं तो इसे इस कठोर फरसे से काटकर थोड़े से परिश्रम से ही गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता।” विश्वामित्र ने मन-ही-मन हैसकर कहा-“मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अन्य सभी जगह पर विजयी होने के कारण ये राम और लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। पर वे लोहे से बनी हुई खाँड (खाँडा-खड्ग) हैं; गन्ने की खाँड नहीं, जो मुँह में डालते ही गल जाती है। मुनि अब भी बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण के किस कथन से उनकी निडरता का परिचय मिलता है?
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने क्या किया?
4. परशुराम ने सभा से किस कार्य का दोष उन्हें न देने के लिए कहा?
5. विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर समझाया ?
6. परशुराम ने लक्ष्मण को गुरु-द्रोही क्यों कहा था?
7. परशुराम ने अपने किन गुणों का उल्लेख किया ?
8. विश्वामित्र के किस गुण के कारण परशुराम लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहे थे?
9. विश्वामित्र ने अपने आप से क्या कहा था?
10. परशुराम क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर :
1. लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर परशुराम ने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया, पर गुरु विश्वामित्र के समझाने पर वे मान गए। लेकिन परशुराम ने अपनी बीरता की डींग हाँकने की आदत का फिर से परिचय दे दिया, जिसे सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुसकरा सोचने लगे कि ये नहीं समझते कि राम-लक्ष्मण सामान्य क्षत्रिय नहीं हैं।
2. ‘तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा, बार-बार मोहि लागि बोलाबा’- इन पंक्तियों से लक्ष्मण की निडरता का परिचय मिलता है।
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने अपने भयानक फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया।
4. क्रोधित परशुराम ने सभा से बालक लक्ष्मण के वध का दोष न देने के लिए कहा।
5. विश्वामिन ने परशुराम को यह कहकर समझाया कि साधु बालकों के गुण और दोष को नहीं गिनते।
6. परशुराम को भगवान शिव ने बह धनुष संभाल कर रखने के लिए दिया था, जिसे सीता स्वयंवर के समय राम ने भंग कर दिया था। परशुराम ने इसे अपना और भगवान शिव का अपमान मानकर राजसभा में उपस्थित क्षत्रियों को बुरा-भला कहा। लक्ष्मण ने क्रोधभरी और व्यंग्यात्मक बातों से इसका विरोध किया था, जिस कारण परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा।
7. परशुराम ने अपने गुणों को बताते हुए कहा था कि वे दया से रहित और क्रोधी स्वभाव के हैं।
8. विश्वामित्र के शील और प्रेमपूर्ण स्वभाव के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहा था।
9. विश्वामित्र ने अपने आप से कहा था कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अब तक वे साधारण क्षत्रियों पर बिना हारे विजय प्राप्त करते आए थे और अब उन्हें ऐसा लगने लगा था कि वे सभी क्षत्रियों को युद्ध में हरा सकते हैं। ये राम-लक्ष्मण गन्ने से बनी खाँड नहीं हैं, बल्कि फ़ौलाद के खाँडे हैं। जिन्हें हराना इनके लिए संभव नहीं। मुनि इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।
10. लक्ष्मण द्वारा बार बार भड़काए जाने व व्यंग्य भरे वाक्य बोलने के कारण परशुराम क्रोधित हो गए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने किस-किसके स्वभाव का सटीक वर्णन किया है?
2. नाटकीयता की सृष्टि किस कारण हुई है?
3. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-गुण की अधिकता दिखाई देती है?
5. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
6. अवतरण में लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
7. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
8. दो तत्सम शब्द लिखिए।
9. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण के तेज स्वभाव, विश्वामित्र के विवेक और परशुराम के अहंकार का सटीक वर्णन किया है।
2. संवादात्मकता ने कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
3. अवधी भाषा का प्रयोग है।
4. ओज गुण विद्यमान है।
5. बीर रस।
6. स्वरमैत्री और छंद युक्त होने के कारण रचना में लयात्मकता विद्यमान है।
7. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है।
8. दोष, श्रम
9. हरा-ही-हरा सूझना।

उत्प्रेक्षा –
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा

पुनरुक्तिप्रकाश –
बार-बार

रूपकातिशयोक्ति –
अयमय जाँड़ न ऊखमय

अनुप्रास –

  • कौसिक कहा, केवल कौसिक, काटि कुठार कठोरें,
  • गुन गनहि,
  • हृदय हसि मुनिहि हरियरे,
  • परसु
  • सुधारि बरेउ कर घोरा-
  • देई दोसू,
  • कटुबादी बालकु बधजोग, बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

6. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिन बिचारि बचौं नृपद्रोही।
मिले ने कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता बरहि के बाड़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सबनहि लखनु नेवारे।
लखन उतर आहुति सरिस भृगबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।

शब्दार्थ : कहेउ – कहा। विदित – जानता। उरिन – ऋण से मुक्त। व्यवहारिआ – हिसाब करने वाला। कटु – कड़वा। मोही – मुझे। बिन – ब्राह्मण। नृपद्रोही – राजाओं के शत्रु। सुभट – अच्छे बलवान वीर। रन – युद्ध। द्विज – ब्राह्मण। सयनहि – संकेत से; इशारे से। नेवारे – रोक दिया। सरिस – समान। कोपु – क्रोध। कृसानु – आग। रघुकुलभानु – रघुकुल के सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘ रामचरितमानस’ के ‘बालकांड” से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष टूट जाने पर लक्ष्मण और परशुराम में विवाद हुआ था, जिसे राम ने अधिक बढ़ने से पहले ही रोक दिया था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा-‘हे मुनि! आपके शोल को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता के ऋण से तो भली-भाँति मुक्त हो चुके हैं। अब आप पर गुरु का ऋण रह गया है, जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है। आपको उसकी चिंता सता रही है।

वह ऋण मानो हमारे ही माथे निकाला था। बहुत दिन बीत गए। इसमें व्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर उधार चुका हूँ।” लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फ़रसा संभाला। सारी सभा हाय ! हाय ! करके पुकार उठी। लक्ष्मण ने कहा-‘”हे भृगु श्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु! मैं आपको ब्राह्मण समझकर अब तक बचा रहा है।

लगता है कि आपको कभी रणधीर, बलवान वोर नहीं मिले। हे ब्राह्मण देवता! आप घर ही में बड़े हैं।” यह सुनते ही सभी लोग पुकार उठे कि ‘यह अनुचित है ! अनुचित है!’ तब रघुकुलपति श्रीराम ने संकेत से लक्ष्मण को रोक दिया। आहुति के समान लक्ष्मण के उत्तर से परशुराम को क्रोधरूपी आग को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या व्यंग्य किया?
2. लक्ष्मण ने परशुराम के शील के संबंध में क्या कहा?
3. ‘माता पितहि उरिन भये नीके’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
4. परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?
5. यहाँ किस गुरु-ऋण की बात हो रही है? उसे चुकाने के लिए लक्ष्मण ने परशुराम को क्या उपाय सुझाया?
6. लक्ष्मण के व्यवहार का राजसभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
7. लक्ष्मण परशुराम को क्यों बना रहे थे?
8. राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?
10. इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
11. इस अवतरणा के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
12. नृपदोही किसे कहा गया है और क्यों?
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम से व्याय शैली में बात करते हुए कहा कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके हैं, अब गुरु-ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। वे व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए हैं? आज तक उन्हें शक्तिशाली रणवीर मिले ही नहीं थे और इसलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे हैं।
2. लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि सारा संसार उनके शील को भली-भाँति जानता है।
3. इस पंक्ति का आशय है कि परशुराम अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके हैं।
4. परशुराम की चिंता अभी यह सोचकर शेष थी कि वे अपने गुरु के ऋण को किस प्रकार चुकाएँगे।
5. यहाँ लक्ष्मण ने परशुराम को अपने गुरु का ऋण चुकाने के लिए कहा है। लक्ष्मण के अनुसार परशुराम ने अपने गुरु से जो शस्त्र विद्या सौखी है, वे उस ऋण को उतार दें। इसके बाद लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए ब्याज गणना हेतु किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाने के लिए कहा।
6. लक्ष्मण के व्यवहार से सारी राजसभा हाय! हाय! करने लगी और कहने लगी कि लक्ष्मण का परशुराम के प्रति व्यवहार अनुचित है।
7. लक्ष्मण परशुराम को अब तक इसलिए बचा रहे थे, क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और सूर्यवंशी ब्राह्मणों पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाते थे। राम ने संकत के द्वारा नबमण को बोलने से रोका था।
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए क्रोधरूपी आग में आहुति के समान थे, जिस कारण उनका गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था।
10. राम शांत, नम, विनयी, कोमल, मर्यादित और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपने कोमल शब्दों से बिगड़ी हुई स्थिति को नियंत्रित करने में समर्थ थे।
11. लक्ष्मण उग्र, क्रोधी और व्यंग्य करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे बोलते समय विवेकपूर्ण व्यवहार नहीं करते थे।
12. परशुराम को नपदोही कहा गया है, क्योंकि उन्होंने अनेक बार पृथ्वी से क्षत्रियों को समाप्त कर दिया था।
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण को कहार और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर अपना रोष और विरोध प्रकट किया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किम भाषा का प्रयोग किया है?
2. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. कवि ने लयायकना की सृष्टि कैसे की है?
7. लक्ष्मणा के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है?
8. कोई दो नद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
9. संवादों के कारण कौन-सी भाव विशेषता आ गई है?
10. ‘द्विजदेवता’ में कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?
11. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
12. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का स्वाभाविक-समन्वित प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
4. बौर रस का प्रयोग है।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है, जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
8. थैली, दिन
9. नाटकीयता।
10. व्यंग्य, वक्रोक्ति।
11. आहुति, कटु।
12. बीप्सा –
हाय-हाय वक्रोक्ति
कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदिन संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नौकें …………… थैली खोली।

उपमा –
लखन उत्तर आहुति सरिस
जल-सम बचन
भगुबरकोपु कृसानु

अनुप्रास –

व्याज बड़ बाढ़ा, बिन बिचारि बचौं
सब सभा
थैली खोली
कुठार सुधारा

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

तुलसीदास राममार्गीं शाखा के प्रतिनिधि कवि, हिंदी सहित्य के गौरव तथा भारतीय संस्कृति के रक्षक माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ भारतीय धर्म एवं आस्था की प्रतीक बन गई हैं। तुलसीदास का जन्म सन 1532 ई० में उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्मस्थान सोरों (ज़िला एटा) भी मानते हैं। वे जाति से सरयूपारी ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था।

तुलसीदास का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। इनके पिता ने इन्हें मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण त्याग दिया था। बाद में नरहरि बाबा ने इनका पालन-पोषण किया। उनकी कृपा से तुलसीदास ने पुराण, वेद, इतिहास एवं दर्शन का खूब अध्ययन किया।

कहते हैं कि तुलसीदास यौवनकाल में अपनी पली पर विशेष अनुरक्त थे। लेकिन पल्नी की फटकार ने इनकी जीवन-दिशा को बदल दिया। इन्होंने अपना जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया। भगवान राम के प्रति इनके मन में अगाध श्रद्धा थी। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा राम-काव्य को उत्कर्ष प्रदान किया।

सन 1623 ई० में काशी में इनका देहांत हो गया। इनके निधन के विषय में निम्नलिखित दोहा प्रचलित है-

संबत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तग्यो शरीर॥

तुलसीदास ने अपना सारा जीवन राम की आराधना में लगा दिया। इनके द्वारा रचित बारह रचनाएँ हैं, जिनमें रामचरितमानस तथा विनय-पत्रिका
विशेष उल्लेखनीय हैं। रामचरितमानस प्रबंधकाव्य का आदर्श प्रस्तुत करता है, तो विनय-पत्रिका मुक्तक-शौली में रचा गया उत्कृष्ट गीति-काव्य है।

इसके अतिरिक्त तुलसीदास ने हनुमान-चालीसा, दोहावली, कवितावली, गीतावली आदि की रचना भी की। तुलसीदास के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। इनके काव्य को समन्वय की विराट चेष्टा कहा गया हैं। अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण के कारण ही तुलसीदास लोकनायक के आसन पर आसीन हुए। लोकसंग्रह का भाव तुलसी की भक्ति का अभिन्न अंग था। इसलिए इनकी भक्ति कृष्णभक्त कवियों के समान एकांगी न होकर सवांगपूर्ण हैं।

तुलसीदास का भाव-जगत पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी रचनाओं में; विशेषकर ‘मानस’ में; मार्मिक स्थलों के चयन में विशेष सफल रहे हैं। तुलसीदास ने श्रृंगार-रस का चित्रण मर्यदा के भीतर रहकर किया है। वात्सल्य-रस के चित्रण में भी इन्हें पूर्ण सफलता मिली है।तुलसी-काव्य में शांत-रस एवं करुण-रस की प्रधानता रही है। अन्य रसों का भी प्रसंगानुकूल वर्णन मिलता है। तुलसीदास ने धर्म का स्वस्थ रूप सामने रखकर अपने काव्य की रचना की हैं।

विनय-पत्रिका में तुलसीदास की दास्य भाव की भक्ति का आदर्श निहित है। भाषा, अर्थ-गौरव एवं पांडित्य तीनों दृष्टियों से विनय-पत्रिका अपना विशिष्ट स्थान रखती है। तुलसी की विनय की अभिव्यक्ति उनके भक्त-हृदय की परिचायक है –

ऐसो को उदार जग माहीं।
बिना सेवा जो द्रबै-दीन पर, राम सरस कोऊ नाहीं।

तुलसीदास ने अपने पात्रों में आदर्श को प्रतिष्ठा दिखाकर उनके चरित्र को अनुकरण का विषय बना दिया है। इन्होंने पात्रों के माध्यम से अनेक आदर्श हमारे सामने रखे। सामाजिक मर्यादाओं के प्रकाश में इन्होंने धर्म को नवीन रूप प्रदान किया। इन्होंने मानस में व्यक्ति-धर्म, समाज-धर्म तथा साष्ट्र-धर्म की स्थापना की। राम के चरित में विविध आदर्शो की स्थापना की। रमम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श शत्रु तथा आदर्श राजा के रूप में हमारे सामने आते हैं।

तुलसीदास ने तस्कालीन समय में प्रचलित अवधी तथा ब्रज-दोनों भाषाओं को अपनाया है। रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग हैं, जबकि कवितावली तथा विनय-पत्रिका में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास ने सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है जिनमें छप्पय, कवित्त, सवैया पद्धति विशेष उल्लेखनीय हैं। तुलसीदास ने अलंकारों का भी समुचित प्रयोग किया है। उनके काव्य में रूपक, निदर्शना, उपमा, व्यतिरेक, अप्रस्तुत प्रशंसा आदि अनेक अलंकारों का प्रयोग है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

काविता का सार :

रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ में सोता-स्वयंवर के समय राम के द्वारा शिव कें धनुष-भंग करने के बाद मुने पष्युराम के क्रोध और राम-लक्मूण से उनके संवादों का वर्णन किया गया है। परशुराम को जब यह समाचार मिला कि शिब-धनुष खंडंडित कर दिया गया है, तो वे बहुत क्रोधित हुए। उनके क्रोध को देख्रकर राम ने विनयपूर्वक मुनि से कहा कि शिवजी के धनुष को तोड़ने बाला कोई उनका दास ही होगा। मुनि ने गुस्से में भरकर कहा कि सेवक वह होता है, जो सेवा का कान करे।

जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, बह सहसजाहु की तरह उनका शत्तु है। यदि उसने स्वयं को यहाँ उपस्थित राज समाज से अलग नहीं किया, तो सभी राजा मारे आाएंग। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्हौंने लड़कपन में अनेक धनुहियाँ सोड़ दी थीं, पर तब तो उन्होंने ऐसा गुस्सा नहीं किया था। यह सुलकर युनि ने क्रोध में लक्षण को दुलकारते हुए पूला कि क्या उन्हें शिव-धनुष एक धनुहि के समान प्रतीत होता है ? लक्षण ने हैंपते हुए कहा कि धनुष तो सरे एक-से ही होते हैं।

पुराने धनुष को तोड़ने से क्या लाभ और क्या ह्नानि ? त्रीराम ने तो उस युराने धनुप को बह छुआ ही था कि वह टूट गया। गुस्से में भरकर परशुणाम ने कहा कि वे उसे बालक समझकर नहीं मार रहे। वे केबल भुनि ही नहीं है, बलिक बाल-ब्रहमचारी और अल्यंत क्रोधी हैं। से क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका फ़रसा बड़ा भयातक है। लक्षण ने हाँसते हुए युनि का मज़ाक उड़ाया और कहा कि कमजोर तो वे भी नहीं हैं। वे उन्हें व्राहमण समझकर व अज्ञोपवीत देखकर अपने क्रांध को रोक उन्हें सहारते हैं, क्योंकि उनके कुल सें ब्राहुमण, भक्त और गो पर बीरता नहीं दिखाई जाती। इन्हें मारने से पाप लगता है और इससे हार जाने पर अपयश मिलता है।

वैसे आपका एक-एक शन्द ही करोड़ों वज्रों के समान है। आपको किसी अस्न-शख्र को धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुन परखुराम ने गुरु चिरबमित्र से कहा कि लधमण बड़ा कुदुद्धि और दुए हैं। यह सूर्यंश का कलंक है, जिसे वे क्षणभर बाद अपने कुल्हाड़े से काट डालेंगे। यदि वे उसे इचाना चहते है, तो उसे समझा-बुझा कर ऐसा बोलने से रोकें। बिश्वाभित्र तो नहीं सोले, पर लक्ष्मण ने कहा कि यदि परगुराम को अपने यारे में और कुछ भी कहना है, तो वे कह लें 1 वैसे वे अपना यश पहले ही काफ़ी बसान कर चुके हैं।

क्रोध को रोकार व्यर्थ दुख नहीं उठाना चाहिए। वैसे गाली देना उन्हें शोभा नहीं देता। शूरखीर तो अपना वल युद्ध-भुम में दिखाते हैं, वे ब्यर्ध में डींग चर्ति हैंका करते। यह सुन परशुराम ने गुस्से से भरकर अपना परशु सुधार कर हाथ में ले लिया। सब विश्वामित्र ने उनसे कहा कि वे उसके प्रपराध को क्षमा कर दें। बालकों के दोष और गुण को साधु नहीं गिनते।

तब परशुराम ने अहसान जताते हुए कहा कि वे विखायित्र के शील के कारण लक्क्रण को बिना मारे छोड़ रहे हैं, नहीं तो अपने फ़रसे से उसे काटकर अपने गुरु के और जो गुरु का ऋण शेष बचा है, उसे भी पूरी कर लें। यह सुनते ही परशुरान ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार संच गया। लक्ष्सण की वाणी ने परशुरम की क्रोधरूपी अरिन में आहुति का काम किया। तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले झा्द कहे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij, Kritika, Sparsh & Sanchayan Bhag 2 Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 10th Hindi Solutions क्षितिज, कृतिका, स्पर्श, संचयन भाग 2

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JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

JAC Class 10 Hindi कबीर की साखी Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(निबंधात्मक प्रश्न)

प्रश्न 1.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त
अथवा
कबीर ने कैसी वाणी बोलने की सलाह दी है ?
उत्तर :
कबीरदास कहते हैं कि मनुष्य को सदैव मधुर वचन बोलने चाहिए। मीठी वाणी बोलने से उसे सुनने वाला सुख का अनुभव करता है, क्योंकि मीठी वाणी जब हमारे कानों तक पहुँचती है तो उसका प्रभाव हमारे हृदय पर होता है। इसके विपरीत किसी के द्वारा कहे गए कड़वे वचन तीर की भाँति हृदय में चुभने वाले होते हैं। जब हम मीठे वचनों का प्रयोग करते हैं, तो हमारा अहंकार नष्ट हो जाता है। अहंकार के नष्ट होने पर हमें शीतलता प्राप्त होती है। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से न केवल दूसरों को हम सुख प्रदान करते हैं, अपितु स्वयं भी शीतलता को अनुभव करते हैं।

प्रश्न 2.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीरदास के अनुसार जिस प्रकार दीपक के जलने पर अंधकार अपने आप दूर हो जाता है, उसी प्रकार हृदय में ज्ञानरूपी दीपक के जलने कबीरदास के अना पर अज्ञानरूपी अंधकार दूर हो जाता है। जब तक मनुष्य में अज्ञान रहता है, तब तक उसमें अहंकार और अन्य दुर्गुण होते हैं। वह अपने ही हृदय में निवास करने वाले ईश्वर को पहचान नहीं पाता। अज्ञानी मनुष्य अपने आप में डूबा रहता है। लेकिन जैसे ही उसके हृदय में ज्ञानरूपी दीपक जलता है, उसका हृदय प्रकाशित हो उठता है। ज्ञानरूपी दीपक के जलते ही मनुष्य का अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान के दीपक के जलने पर मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 3.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर :
कबीरदास का मानना है कि निर्गुण ब्रह्म कण-कण में समाया हुआ है, किंतु अपनी अज्ञानता के कारण हम उसे नहीं देख पाते। जिस प्रकार कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की अपनी नाभि में ही विद्यमान होता है लेकिन वह उसे जंगल में इधर-उधर ढूँढ़ता है; उसी प्रकार मनुष्य भी अपने हृदय में छिपे ईश्वर को अपनी अज्ञानता के कारण पहचान नहीं पाता। वह ईश्वर को धर्म के अन्य साधनों जैसे मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा आदि में व्यर्थ ढूँढ़ता है। कबीरदास का मत है कि कण-कण में छिपे परमात्मा को देखने के लिए ज्ञान का होना अति आवश्यक है।

प्रश्न 4.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति केवल सांसारिक सुखों में डूबा रहता है और जिसके जीवन का उद्देश्य केवल खाना, पीना और सोना है, वही व्यक्ति सुखी है। इसके विपरीत जो व्यक्ति संसार की नश्वरता को देखकर ईश्वर प्राप्ति के लिए रोता है, वह दखी है। यहाँ ‘सोना’ शब्द सांसारिक सुखों में डूबे रहने का प्रतीक है तथा ‘जागना’ ज्ञान प्राप्त होने का प्रतीक है। इन शब्दों का प्रयोग कवि ने यह बताने के लिए किया है कि मूर्ख व्यक्ति अपना जीवन यूँ ही निश्चित रहकर नष्ट कर देता है। दूसरी ओर ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि संसार नश्वर है। वह ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता है और दुखी रहता है। वह चाहता है कि मनुष्य भौतिक सुखों को त्यागकर ईश्वर-प्राप्ति की ओर अग्रसर हो।

प्रश्न 5.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ?
अथवा
कबीर के विचार से निंदक को निकट रखने के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर :
कबीर का मानना है कि अपने स्वभाव को निर्मल रखने का सबसे अच्छा उपाय निंदा करने वाले को अपने साथ रखना है। निंदा करने वाले को घर में अपने आस-पास रखना चाहिए। ऐसा करने से हमारा स्वभाव अपने आप ही निर्मल हो जाएगा, क्योंकि निंदा करने वाला व्यक्ति हमारे गलत कार्यों की निंदा करेगा तो हम अपने आप को सुधारने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार निंदा करने वाले व्यक्ति के पास रहने पर हम धीरे-धीरे अपने स्वभाव को बिलकुल निर्मल कर लेंगे। इस तरह उसके द्वारा बताए गए अपने अवगुणों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बनाने में सफल हो सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 6.
‘एकै आषिर पीव का, पढे स पंडित होइ’-इस पंक्ति के दवारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
इस पंक्ति के द्वारा कवि स्पष्ट करना चाहता है कि जो व्यक्ति अपने प्रिय परमात्मा के प्रेम का अक्षर पढ़ लेता है, वही ज्ञानवान है। कुछ लोग बड़े-बड़े धर्मग्रंथों को पढ़कर अपने आपको विद्वान और ज्ञानवान सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। कबीर का मत है कि वेदों, पुराणों और उपनिषदों को पढ़ने से कोई लाभ नहीं होता। इनको पढ़ना व्यर्थ है। इसके विपरीत जो ईश्वर-प्रेम के मार्ग को अपनाकर उसमें डूब जाता है, वही वास्तविक विद्वान और ज्ञानवान है।

प्रश्न 7.
कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं इन्होंने पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया है, किंतु अधिकांश साखियों में प्राय: बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। इन साखियों में कबीरदास ने सामान्य भाषा में भी लोक व्यवहार की शिक्षा दी है। जैसे –

ऐसी बाँणी बोलिए, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होई॥

कबीर की भाषा में कहीं-कहीं बौद्धिकता के भी दर्शन होते हैं। यह बौद्धिकता प्राय: उपदेशात्मक साखियों में अधिक है। दोहा छंद में लिखी गई इन साखियों में मुक्तक शैली का प्रयोग है तथा गीति-तत्व के सभी गुण विद्यमान हैं। भाषा पर कबीर के अधिकार को देखते हुए ही डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1.
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर :
कबीरदास का कहना है कि जब विरहरूपी सर्प शरीर में बैठ जाता है, तो विरही व्यक्ति सदा तड़पता है। उस पर किसी प्रकार के मंत्र का कोई प्रभाव नहीं होता। जब आत्मा अपने प्रिय परमात्मा की विरह में तड़पती है, तो वह केवल अपने प्रिय परमात्मा के दर्शन पाकर होती है। विरहरूपी सर्प आत्मा को तब तक तड़पाता है, जब तक परमात्मा के दर्शन नहीं हो जाते।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 2.
कस्तूरी कुंडलि बसैं, मृग ढूँढ़े बन माँहि।
उत्तर :
कवि यहाँ यह स्पष्ट करना चाहता है कि हिरण की अपनी नाभि में ही कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ होता है। जब हिरण को उसकी सुगंध आती है तो वह उसे इधर-उधर खोजता है, किंतु वह उसे ढूँढ़ नहीं पाता। इसी प्रकार ईश्वर भी मनुष्य के हृदय में विद्यमान है, किंतु मनुष्य अज्ञानतावश उसे पहचान नहीं पाता। वह ईश्वर को अन्य स्थानों पर खोज रहा है, जोकि व्यर्थ है।

प्रश्न 3.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर :
यहाँ कबीरदास के कहने का भाव है कि जब तक मनुष्य में ‘मैं’ अर्थात अहंकार की भावना होती है, तब तक वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। मनुष्य जैसे ही अपने भीतर से अहंकार की भावना को नष्ट कर देता है, ईश्वर को सहजता से पा लेता है। ईश्वर को पाने के लिए अहंकार को त्यागना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर :
कबीरदास का मत है कि धार्मिक ग्रंथ आदि पढ़ने से कोई व्यक्ति विद्वान अथवा बुद्धिमान नहीं बनता। जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम को जान लेता है, वही सच्चा विद्वान है। धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर स्वयं को विद्वान और ज्ञानी कहने वाले अनेक लोग मिट जाते हैं, किंतु ईश्वर-प्रेम के एक अक्षर को समझने वाला व्यक्ति अमर हो जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

भाषा अध्ययन –

प्रश्न :
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए –
उदाहरणः जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर :

  • औरन – दूसरे को/अन्य को
  • माँहि – में
  • देख्या – देखा
  • भुवंगम – भुजंग/साँप
  • नेड़ा – निकट/समीप
  • आँगणि – आँगन
  • साबण – साबुन
  • मुवा – मरा
  • पीव – पिया, प्रिय, प्रियतम
  • तास – उस
  • जालौं – जलाऊँ

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती है’ तथा ‘व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’-इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 2.
कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ होता है, जो ‘कस्तूरी’ नामक मृग की नाभि में होता है। भारत में यह मृग हिमालय के वन्य क्षेत्र में पाया जाता है। वर्तमान समय में अनेक लोग कस्तूरी के लिए इस मृग का शिकार कर रहे हैं, जिससे उनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। यही कारण है कि कस्तूरी मृग को दुर्लभ और संरक्षित प्रजाति घोषित किया गया है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
मीठी वाणी/बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कबीर की साखी Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘साखी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
‘साखी’ शब्द साक्षी शब्द से बिगड़कर बना है, जिसका अर्थ है-‘गवाही’। कबीर ने जिन बातों को अपने अनुभव से जाना और सत्य पाया, उन्हें ‘साक्षी’ या साखी रूप में लिखा है। साखियाँ अनुभूत सत्य की प्रतीक हैं और कबीर उस सच्चाई के गवाह हैं।

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प्रश्न 2.
ईश्वर के प्रति भक्ति कब दृढ़ हो जाती है?
उत्तर :
कबीरदास का मत है कि जब ईश्वर की विरह में जलने वाला व्यक्ति ऐसे ही दूसरे व्यक्ति से मिलता है, तो ईश्वर के प्रति भक्ति और दृढ़ हो जाती है। ईश्वर के प्रेम में घायल व्यक्ति जब ईश्वर के प्रेम में तड़पने वाले अपने ही समान अन्य व्यक्ति से मिलता है, तो उनमें विचारों का आदान-प्रदान होता है। दोनों अपने अनुभवों को बताते हैं और इस प्रकार दोनों के हृदयों में ईश्वर के प्रति भक्ति-भाव और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है। इससे ईश्वर के प्रति भक्ति को दृढ़ता मिलती है।

प्रश्न 3.
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौ तास का, जे चलै हमारे साथि।
प्रस्तुत साखी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कबीर ने क्रांतिकारी स्वर में क्या कहा?
उत्तर :
संत कबीर ने जनमानस में चेतना लाने के लिए क्रांतिकारी स्वरों में कहा कि उन्होंने विषय-वासनाओं से युक्त अपने शरीर को जलाकर नष्ट कर दिया है। अब उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। इस सच्चे ज्ञान की मशाल को लेकर वे निकल पड़े हैं। जिसे भी उनके साथ चलना है, वह उनके साथ आ जाए। कबीर उनके सभी विकारों को समाप्त कर देंगे।

प्रश्न 4.
‘बिरह भुवंगम तन बसै …. जिवै तो बौरा होइ’ दोहे में कबीर ने विरह के विषय में क्या कहा है?
उत्तर :
कबीर ने प्रस्तुत दोहे में विरह की पीड़ा और प्रभाव को व्यक्त किया है। उन्होंने विरह को साँप की संज्ञा देते हुए कहा है कि विरहरूपी साँप शरीररूपी बिल में घुसा बैठा है। विरहाग्नि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कोई भी मंत्र इस विरहरूपी जहर पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा। जो व्यक्ति परमात्मा के विरह में तड़पने वाला है, वह उस पीड़ा से जीवित नहीं रह पाता। यदि किसी कारणवश वह जीवित रह भी जाता है, तो भी उसकी स्थिति पागलों के समान हो जाती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 5.
“लिया मुराड़ा हाथि’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘मुराड़ा’ से कवि का अर्थ ‘ज्ञानरूपी मशाल’ से है। कवि का मानना है कि जिस प्रकार जलती हुई लकड़ी या मशाल से अंधकार का नाश होता है; चारों ओर उजाला एवं रोशनी फैलती है, ठीक उसी प्रकार ज्ञानरूपी मशाल से मनुष्य के मन का अज्ञानरूपी अंधकार दूर होता है।

प्रश्न 6.
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति हेतु किसे त्यागने की बात कही है?
उत्तर :
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति हेतु अहंकार को त्यागने की बात कही है। जब तक मनुष्य के मन में अहंकार होता है, तब तक उसे परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती। परमात्मा उसे ही मिलता है, जिसका हृदय अहंकार रहित होता है।

प्रश्न 7.
कबीर ने जीवित रहते हुए भी किस प्रकार के व्यक्ति को मृतक समान माना है?
उत्तर :
कबीरदास ने प्रभु-भक्ति में लीन उन भक्तों को जीवित रहते हुए भी मृतक माना है, जो सांसारिक सुख-सुविधाओं को त्याग चुके हैं; जो परमात्मा की भक्ति में स्वयं को भुला चुके हैं। जिन्हें भौतिक वस्तुओं से कोई लेना-देना नहीं; जिन्होंने सांसारिक सुखों को पाने की इच्छा को त्याग दिया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 8.
कबीर की भाषा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
कबीरदास की भाषा सधुक्कड़ी अथवा खिचड़ी भाषा है। इनकी भाषा-शैली मुक्त है। इनके पदों में अनेक राग-रागनियों का प्रयोग हुआ है। इन्होंने अपनी भाषा में ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, राजस्थानी आदि शब्दों का खूब प्रयोग किया है। इन्हें भाषा डिक्टेटर कवि भी कहा जाता है। अलंकारों तथा प्रतीकों के प्रयोग ने इनकी भाषा को सुंदरता प्रदान की है।

कबीर की साखी Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – कबीर भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। उनकी जन्म-तिथि और जन्म-स्थान के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं। बहुमत के अनुसार कबीर का जन्म सन 1398 में काशी में हुआ था। उनका पालन-पोषण ‘नीरु-नीमा’ नामक दंपति ने किया। कबीर के गुरु का नाम स्वामी रामानंद था। कुछ लोग शेख तकी को भी कबीर का गुरु मानते हैं। रामानंद के विषय में कबीर ने स्वयं कहा है –

काशी में हम प्रकट भए, रामानंद चेताये।

कबीर का विवाह भी हुआ था। उनकी पत्नी का नाम लोई था। उनके ‘कमाल’ एवं ‘कमाली’ नाम के बेटा-बेटी थे। स्वभाव से वैरागी होने के कारण कबीर साधुओं की संगति में रहने लगे। सन 1518 में काशी के निकट मगहर में उनका निधन हुआ। रचनाएँ-कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। वे बहुश्रुत थे। उन्होंने जो कुछ कहा, अपने अनुभव के बल पर कहा। एक स्थान पर उन्होंने शास्त्र-ज्ञाता पंडित को कहा भी है –

मैं कहता आँखिन की देखी, तू कहता कागद की लेखी।

कबीर की वाणी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित है। इस रचना में कबीर द्वारा रचित साखी, रमैनी एवं सबद संग्रहीत हैं।

काव्यगत विशेषताएँ – कबीर के काव्य की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
1. समन्वय-भावना – कबीर के समय में हिंदू एवं मुस्लिम संप्रदायों में संघर्ष की भावना तीव्र हो चुकी थी। कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता तथा विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों में समन्वय लाने का प्रयत्न किया। उन्होंने एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जिस पर मुसलमानों के एकेश्वरवाद, शंकर के अद्वैतवाद, सिद्धों के हठ योग, वैष्णवों की भक्ति एवं सूफ़ियों के पीर-प्रेम का प्रभाव था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

2. ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना – कबीर ईश्वर के निर्गुण रूप के उपासक थे। उनके अनुसार ईश्वर प्रत्येक हृदय में वास करते हैं, उन्हें मंदिर-मस्जिद में ढूँढ़ना व्यर्थ है। भगवान की भक्ति के लिए आडंबर की अपेक्षा मन की शुद्धता एवं पवित्र आचरण की आवश्यकता है –

कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
ऐसैं घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि ॥

3. समाज-सुधार की भावना – कबीर उच्च कोटि के कवि होने के साथ-साथ समाज-सुधारक भी थे। उन्होंने अपने काव्य के द्वारा धर्म एवं जाति के नाम पर होने वाले अत्याचारों का डटकर विरोध किया। जाति-पाँति की भेद-रेखा खींचने वाले पंडितों एवं मौलवियों की उन्होंने खूब खबर ली –

ऊँचे कुल क्या जनमिया, जो करनी ऊँच न होय।
सवरन कलस सुरइ भरा, साधु निंदै सोय॥

4. गुरु महिमा – कबीर ने सच्चे गुरु को भगवान के समान ही मानकर उनकी वंदना की है। उनके अनुसार गुरु ही ईश्वर तक पहुँचने की राह दिखाता है –

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपण, गोबिंद दियो बताय॥

5. सत्संगति का महत्त्व – सत्संगति का प्रभाव अटल होता है। कबीर ने सत्संग की महिमा में अनेक दोहों एवं शब्दों की रचना की है।

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6. रहस्यवाद – आत्मा एवं परमात्मा के मध्य चलने वाली प्रणय लीला को रहस्यवाद कहते हैं। इस विषय में कबीर ने कहा है
कि आत्मा एवं परमात्मा के मिलने में माया सबसे बड़ी बाधा है। माया का पर्दा हटते ही आत्मा-परमात्मा एक हो जाते हैं।
कबीर ने प्रेम-पक्ष की तीव्रता का भी बड़ा मार्मिक चित्रण किया है।

भाषा-शैली – कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए उनके काव्य में कला-पक्ष का अधिक निखार नहीं है। दूसरा कारण यह है कि कबीर सुधारक पहले थे और कवि बाद में। फिर भी उनके काव्य में भाषा का सहज सौंदर्य दिखाई देता है। कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अथवा खिचड़ी भाषा है। उसमें ब्रज, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी आदि भाषाओं के अनेक शब्दों का मिश्रण एवं अलंकारों ने भी सहयोग दिया है। शैली मुक्तक है। कबीर के पदों में अनेक राग-रागनियों का प्रयोग भी हुआ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि कबीर हिंदी साहित्य की महान विभूति हैं। उनकी कविता में क्रांति का स्वर, समाज-सुधार की भावना और एक सच्चे भक्त की पुकार है।

साखियों का सार :

प्रस्तुत साखियाँ कबीरदास द्वारा रचित हैं। इन साखियों में कवि ने विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है। कबीरदास के अनुसार हमें ऐसे मधुर वचनों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे दूसरों को भी सुख का अनुभव हो। उनका मानना है कि ईश्वर प्रत्येक हृदय में विद्यमान है, किंतु मनुष्य कस्तूरी मृग की तरह उसे इधर-उधर ढूँढ़ता फिरता है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अहंकार को नष्ट करना आवश्यक है और मन को पूर्ण एकाग्र करके ही ईश्वर को पाया जा सकता है।

कबीरदास कहते हैं कि सांसारिक लोग विषय – वासनाओं में डूबे रहते हैं, वे खाने-पीने और सोने में सुख अनुभव करते हैं। इसके विपरीत ज्ञानी व्यक्ति जीवन की नश्वरता को देखकर दुखी रहता है। ईश्वर की विरह में तड़पने वाला व्यक्ति अत्यंत कष्टमय जीवन व्यतीत करता है। उनका मानना है कि मनुष्य को अपने आलोचकों को भी अपने आस-पास रखना चाहिए, क्योंकि निंदा करने वाले व्यक्ति के सभी दोषों को दूर कर देते हैं। कवि के अनुसार वेदों, उपनिषदों आदि ग्रंथों को पढ़कर कोई व्यक्ति विद्वान नहीं होता। जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम के मार्ग पर चलता है, वही वास्तविक विद्वान होता है। ईश्वर-प्रेम के प्रकाशित होने पर एक विचित्र-सा प्रकाश फैल जाता है। उसके बाद मनुष्य की वाणी से भी सुगंध आने लगती है। अंत में कबीरदास क्रांतिकारी स्वर में कहते हैं कि ईश्वर-प्रेम के मार्ग पर चलना सरल नहीं है। इस मार्ग में चलने के लिए तो अपना सर्वस्व न्योछावर करना पड़ता है।

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सप्रसंग व्याख्या :

1. ऐसी बॉणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ।।

शब्दार्थ : बाँणी – वाणी, शब्द, वचन। आपा – अहंकार, घमंड। खोइ – नष्ट होना। तन – शरीर। सीतल – शीतलता, सुख, आनंद।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी महान संत कबीरदास द्वारा रचित है। इस साखी में कवि ने मनुष्य को मधुर वचनों के लाभ बताए हैं।

व्याख्या : कबीर मधुर वचन बोलने के संबंध में कहते हैं कि मनुष्य को ऐसे मीठे वचन बोलने चाहिए, जिससे मन का अहंकार समाप्त हो जाए। मनुष्य के द्वारा बोले गए मीठे वचनों से वह स्वयं तो आनंद का अनुभव करता ही है, उसे सुनने वाला भी सुख प्राप्त करता है। कहने का भाव यह है कि मनुष्य को सदैव मधुर वचन बोलने चाहिए।

2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढ़े बन माँहि।
ऐसें घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि॥

शब्दार्थ : कस्तूरी – एक सुंगधित पदार्थ। मृग – हिरण। बन – वन, जंगल। माँहि – में। घटि – हृदय। दुनियाँ – संसार, विश्व।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी महाकवि कबीरदास द्वारा रचित है। इस साखी में उन्होंने बताया है कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है। वह प्रत्येक हुदय में निवास करता है।

व्याख्या : कबीरदास कहते हैं कि कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की अपनी नाभि में ही विद्यमान होता है, किंतु वह इस तथ्य से अनजान होकर उसे जंगल में इधर-उधर खोजता है। इसी प्रकार ईश्वर भी सभी के हृदय में विद्यमान है, किंतु लोग इस बात को नहीं समझते। वे ईश्वर को दुनिया भर में खोजते हैं।

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3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।

शब्दार्थ : हरि – परमात्मा, ईश्वर। अँधियारा – अंधेरा। दीपक – दीया। मिटि – समाप्त। देख्या – देखा।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कवि कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने ईश्वर-प्राप्ति के लिए अहंकार को त्यागने पर बल दिया है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि जब तक मुझमें अहंकार था, तब तक प्रभु मुझसे दूर थे। अब अहंकार के मिट जाने पर मुझे प्रभु मिल गए हैं। जब मैंने ज्ञानरूपी दीपक को लेकर अपने अंत:करण में देखा, तो मेरे हृदय का अज्ञानरूपी अंधकार पूरी तरह से नष्ट हो गया। भाव यह है कि ईश्वर-प्राप्ति के लिए अहंकार को त्यागना आवश्यक है।

4. सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै॥

शब्दार्थ : सुखिया – सुखी। अरू – और। सोवै – सोना। दुखिया – दुखी। रोवै – रोना।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने सांसारिक और ज्ञानी व्यक्ति के अंतर को स्पष्ट किया है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि सारा संसार सुखी है। सांसारिक व्यक्ति खाने-पीने और सोने में जीवन व्यतीत कर देता है। वह इसी को सच्चा सुख मानकर इसमें डूबा हुआ है। दूसरी ओर मैं संसार की नश्वरता को समझ चुका हूँ और ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहा हूँ। उसके वियोग में रो रहा हूँ और उदास हूँ।

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5. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ॥

शब्दार्थ : भुवंगम – भुजंग, साँप । तन – शरीर। वियोगी – विरह में तड़पने वाला। जिवै – जीवित। बौरा – पागल।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने ईश्वरीय विरह की पीड़ा और प्रभाव को व्यक्त किया है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि विरहरूपी साँप शरीररूपी बिल में घुसा बैठा है। कोई भी मंत्र उस पर अपना प्रभाव नहीं डाल पा रहा। ईश्वर के प्रेम की विरह में तड़पने वाला व्यक्ति विरह की पीड़ा के कारण जीवित नहीं रहता और यदि वह जीवित रह जाता है, तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। वह स्वयं में ही डूबा रहता है।

6. निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बंधाइ।
बिन साबण पाणी बिना, निरमल करै सुभाइ॥

शब्दार्थ : निंदक – निंदा करने वाला। नेड़ा – समीप, निकट। आँगणि – आँगन। कुटी – कुटिया। साबण – साबुन। पाँणी – पानी। निरमल – स्वच्छ। सुभाइ – स्वभाव।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने निंदा करने वाले व्यक्ति की उपयोगिता बताई है।

व्याख्या : कबीरदास कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति का भी महत्व होता है। निंदक व्यक्ति बार-बार हमारे अवगुणों को बताता है और इस प्रकार वह साबुन और पानी के बिना ही हमारे स्वभाव को निर्मल एवं स्वच्छ बना देता है। अत: उसे अपने आस-पास ही रखना चाहिए। यदि संभव हो तो अपने घर के आँगन में ही उसके लिए छप्पर डाल देना चाहिए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

7. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ।

शब्दार्थ : पोथी – ग्रंथ, पुस्तक। जग – संसार। पंडित – विद्वान। भया – होना। ऐकै – एक। आषिर – अक्षर। पीव – प्रियतम, ईश्वर। सु – वही।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने बताया है कि जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम के सच्चे रस में डूब जाता है, वही वास्तविक विद्वान है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि इस संसार में धार्मिक ग्रंथों को पढ़-पढ़कर अनेक सांसारिक लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, किंतु कोई भी सच्चा विद्वान नहीं बन सका। दूसरी ओर जो व्यक्ति प्रेम के अक्षर को पढ़ लेता है अर्थात् प्रेम को स्वयं में समाहित कर लेता है, वही सच्चा विद्वान बन जाता है। ईश्वर- प्रेम में डूबने वाला व्यक्ति ही ईश्वर को प्राप्त करने में सफल होता है। धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से कोई लाभ नहीं होता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

8. हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

शब्दार्थ : जाल्या – जलाया। आपणाँ – अपना। मुराड़ा – जलती हुई लकड़ी, मशाल। तास का – उसका। साथि – साथ।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कवि कबीर द्वारा रचित है। इस साखी में उन्होंने समस्त विकारों को त्यागकर ज्ञान-प्राप्ति की बात कही है।

व्याख्या : कबीरदास कहते हैं कि उन्होंने विषय-वासनाओं और अन्य विकारों से युक्त अपने शरीररूपी घर को जलाकर नष्ट कर दिया है। अब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। अब वे ज्ञानरूपी मशाल को लेकर निकल पड़े हैं और जो उनके साथ चलने के लिए तैयार होगा, वे उसके भी अज्ञान को जलाकर नष्ट कर देंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ? Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

JAC Class 10 Hindi मैं क्यों लिखता हूँ? Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनभति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर :
लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति गहरी चीज़ है। प्रत्यक्ष अनुभव सामने घटित हुई घटना का होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना पर आधारित होती है। यह संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को ग्रहण कर लेती है, जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ। लेखक को भी यह अनुभूति सदा प्रभावित करती रही है। इस अनुभूति से ही उसके भीतर एक ज्वलंत प्रकाश आता है और उसे सबकुछ साफ़-साफ़ दिखाई देने लगता है। अनुभूति से ही वह अपने सामने घटित न होने वाली घटनाओं को भी स्पष्ट देखता है। यह अनुभूति ही उसे भीतर से व्याकुल कर देती है और वह लिखने के लिए बाध्य हो जाता है। इसी कारण लेखक को लिखने में प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति अधिक मदद करती है।

प्रश्न 2.
लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर :
जापान में घूमते हुए लेखक ने एक दिन एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया देखी। यह छाया विस्फोट के समय वहाँ खड़े किसी व्यक्ति की थी, जो विस्फोटक पदार्थ के कारण भाप बन गया होगा। वह विस्फोट इतना भयंकर था कि पत्थर भी उससे झुलस गया था। लेखक ने जब उस पत्थर को देखा, तो वह हैरान रह गया। उसके मन-मस्तिष्क में अणु-विस्फोट के समय हुई सारी घटना कल्पना के माध्यम से घूम गई। उसने मन-ही-मन उस सारी घटना को महसूस कर लिया। उसे ऐसा लगा, जैसे उस अणु-विस्फोट के समय वह वहाँ मौजूद है और वह विस्फोट उसके सामने हुआ है। इस प्रकार लेखक अपनी अनुभूति से हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 3.
मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि –
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणा-स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं ?
उत्तर :
(क) लेखक के अनुसार वह स्वयं जानना चाहता है कि वह क्यों लिखता है और यही जानने की इच्छा ही उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है। वह अपने भीतर उमड़ने वाली एक विवशता से मुक्ति पाने के लिए भी लिखता है। यह विवशता ही उसे लिखने के लिए बाध्य करती है। लेखक को उसकी आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने की इच्छा तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने की भावना ही लिखने के लिए प्रेरित करती है।

(ख) निश्चित रूप से किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए उत्साहित करते हैं। जापान के हिरोशिमा नामक स्थान पर अणु-बम गिराने वाले ने भी लेखक को उत्साहित किया। इसके अतिरिक्त हिरोशिमा में जब लेखक ने झुलसे पत्थर को देखा, तो उससे भी कुछ लिखने के लिए उत्साहित हुआ था। उसकी कोमल भावनाओं को उस निर्जीव पत्थर ने भी प्रेरित किया था।

प्रश्न 4.
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाहृय दबाव भी महत्वपूर्ण होता है। ये बाहूय दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं ?
उत्तर :
सामान्य तौर पर लेखक आत्मानुभूति के कारण ही लिखते हैं। वे स्वयं को अपनी आंतरिक विवशता से मुक्ति दिलाने के लिए ही रचनाओं का निर्माण करते हैं। इसके साथ-साथ कुछ लेखकों के लिए स्वयं के अनुभव के अतिरिक्त कुछ बाहय दबाव भी महत्वपूर्ण होते हैं। ये बाहय दबाव संपादकों का आग्रह, प्रकाशक का तकाजा तथा उनकी आर्थिक आवश्यकता आदि हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
क्या बाहूय दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर :
बाहय दबाव सभी क्षेत्रों से जुड़े लोगों को प्रभावित करते हैं। जो व्यक्ति प्रसिद्धि पा लेता है, अन्य लोगों की उससे अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं। फिर वह लोगों के बाहय दबाव से प्रभावित होकर कार्य करता है। इसके साथ-साथ प्रत्येक कार्य में धन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में धन के बिना किसी कार्य की सफलता संभव नहीं है। इसी कारण धन की आवश्यकता जैसा बाहय दबाव भी प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को प्रभावित करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल रचनाकारों को ही नहीं, अपितु अन्य सभी क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी बाह्य दबाव प्रभावित करते हैं।

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प्रश्न 6.
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर :
लेखक जब जापान गया तो उसने हिरोशिमा के अस्पताल में जाकर अनेक ऐसे घायल लोगों को देखा, जो हिरोशिमा पर गिराए गए अणु बम का शिकार हुए थे। वहीं एक दिन उसने झुलसे हुए पत्थर पर एक मानव की छाया भी देखी, जो अणु-बम से भाप बन गया था। यह देखकर उसका हृदय व्यथित हो उठा। उसने अनुमान लगा लिया कि वह घटना कितनी दुःखद और व्यथापूर्ण रही होगी।

इसी व्यथा ने उसे झकझोर कर रख दिया और अपने इसी अंत: दबाव से मुक्ति पाने के लिए उसने हिरोशिमा पर कविता लिखी। इसके अतिरिक्त लेखक जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति पर यह बाहरी दबाव भी था कि वह अपनी जापान-यात्रा से लौटकर कुछ लिखे। इस प्रकार कहा जा सकता है कि हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंत और बाह्य दोनों दबाव का ही परिणाम है।

प्रश्न 7.
हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है?
उत्तर :
आज विज्ञान का दुरुपयोग करके मानव विश्व का संहार करने में व्यस्त है। विज्ञान का दुरुपयोग करके परमाणु बम, एटम बम, हाइड्रोजन बम, मिसाइल्स तथा अनेक ऐसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र बनाए जा रहे हैं, जिनसे संसार क्षण भर में नष्ट हो सकता है। विज्ञान द्वारा अनेक विषैली गैसें तैयार की जा रही हैं। इन गैसों से किसी भी देश की जलवायु को विषाक्त करके लोगों को समाप्त किया जा सकता है। इसके साथ-साथ विज्ञान का दुरुपयोग लोगों को आलसी, निकम्मा, चरित्रहीन आदि बनाने में भी हो रहा है। विज्ञान के नए-नए प्रयोग मनुष्य को हिंसा और अनेक कुवृत्तियों की ओर धकेल रहे हैं।

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प्रश्न 8.
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर :
वर्तमान युग में विज्ञान का दुरुपयोग करके पॉलिथीन का निर्माण हो रहा है। यह पॉलिथीन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। इससे वातावरण प्रदूषित होने के साथ-साथ जीवों का जीवन भी संकट में आ चुका है। इससे प्रभावित होकर कई पशु-पक्षी मर रहे हैं। अत: सबसे पहले हमें पॉलिथीन के निर्माण पर रोक लगानी होगी। इसके साथ-साथ पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग हो रहा है। इनसे बहुत अधिक ज़हर हमारे शरीर में जा रहा है। अतः इसके स्थान पर वही पुरानी गोबर खाद अथवा खाद का प्रयोग करके विज्ञान का दुरुपयोग रोका जा सकता है।

JAC Class 10 Hindi मैं क्यों लिखता हूँ? Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने अपने लिखने का कारण क्या बताया है ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि कोई भी लेखक अपने भीतर की विवशता से मुक्त होने के लिए लिखता है। वह भी अपनी आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है। लेखक का मानना है कि वह बाहरी दबावों से प्रभावित होकर बहुत कम लिखता है। उसके लिखने का मुख्य कारण उसकी आंतरिक विवशता है और लिखकर ही वह स्वयं को उससे मुक्त कर पाता है।

प्रश्न 2.
लेखक ने बाहरी दबाव की तुलना किससे की है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कुछ रचनाकार बाहरी दबाव के बिना नहीं लिख पाते। उनकी स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे कोई व्यक्ति सुबह नींद खुल जाने पर भी अलार्म बजने तक बिस्तर पर पड़ा रहे। जब अलार्म बजता है, तभी वह उठता है। कुछ रचनाकार भी ऐसे ही होते हैं। जब तक बाहरी दबाव उन पर हावी नहीं हो जाता, वे नहीं लिखते हैं। ऐसे रचनाकार बाहरी दबाव के बिना लिख ही नहीं पाते।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 3.
लेखक ने अणु-बम द्वारा होने वाले व्यर्थ जीव-नाश का अनुभव कैसे किया?
उत्तर :
लेखक ने युद्ध के समय देखा कि भारत की पूर्वी सीमा पर सैनिक ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंककर हजारों मछलियाँ मार रहे थे। यद्यपि उन्हें कुछ ही मछलियों की आवश्यकता थी, किंतु वे इस प्रकार बम फेंककर हजारों जीवों को नष्ट कर रहे थे। यह देखकर ही लेखक ने अनुभव किया कि अणु-बम के द्वारा भी ऐसे ही असंख्य लोगों को व्यर्थ में ही मारा जा रहा है। हिरोशिमा पर गिराया गया अणु-बम इसका स्पष्ट उदाहरण है।

प्रश्न 4.
लेखक ने ‘हिरोशिमा’ कविता कहाँ लिखी? यह कब प्रकाशित हुई तथा यह उनके किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
उत्तर :
लेखक ने ‘हिरोशिमा’ कविता भारत लौटकर रेलगाड़ी में बैठे-बैठे लिखी। यह कविता सन 1959 में प्रकाशित हुई तथा यह उनके ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ नामक काव्य-संग्रह में संकलित है।

प्रश्न 5.
हिरोशिमा में हुए विस्फोट की भयावहता को देखकर भी लेखक ने इस विषय पर क्यों नहीं लिखा?
उत्तर :
लेखक ने जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने की घटना के बारे में पढ़ा और सुना, तो भी उसने तत्काल इस विषय पर कुछ न लिखा। इस घटना से लेखक विचलित हुआ था, परंतु इस घटना से उसे आंतरिक अनुभूति पैदा नहीं हुई। वह व्याकुल व दुखी तो हुआ, परंतु केवल बौद्धिक रूप से। किसी भी विषय को कोई तभी लिख सकता है, जब उसे वह विषय आंतरिक रूप से प्रभावित करे; संवेदनाओं को उभारे। हिरोशिमा की यह भयानक घटना लेखक को आकुल न कर सकी।

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प्रश्न 6.
लेखक ने किन बाह्य दबावों का वर्णन किया है, जो रचनाकार को लिखने के लिए बाध्य करते हैं ?
उत्तर :
आत्मानुभूति के साथ-साथ कुछ बाह्य दबाव भी लेखकों को लिखने के लिए बाध्य करते हैं; जैसे-संपादक का आग्रह, पाठकों की इच्छा, प्रकाशक का दबाव, आर्थिक विवशताएँ आदि।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष अनुभव तथा अनुभूति में क्या अंतर है?
उत्तर :
कभी-कभी लेखक के मन में किसी विषय को लेकर कल्पनाएँ उठती हैं, जो उसे अभिभूत कर देती हैं। प्रत्यक्ष रूप से यह लेखक की कल्पना ही होती है, परंतु वह कल्पना भी किसी प्रत्यक्ष घटना के कारण ही उसके मन में संवेदना जगाती है। प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित लेखन तभी जन्म लेता है, जब लेखक की आँखों के सामने कोई वास्तविक घटना घटी हो। यही लेखक का प्रत्यक्ष अनुभव है। अनुभूति मन की गहराइयों में जन्म लेती है और प्रत्यक्ष अनुभव आँखों के सामने घटित होता है।

प्रश्न 8.
किसी भी लेखक के लिए यह प्रश्न कठिन क्यों माना जाता है कि वह क्यों लिखता है?
उत्तर :
किसी भी विषय पर कुछ लिखना लेखक के अंतर्मन से जुड़ा होता है, जहाँ समय-समय पर अलग-अलग भाव उत्पन्न होते हैं। हर लेखक के मन का स्तर अलग होता है और वह भी परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। उनकी प्रेरणाएँ भिन्न होती हैं; उनकी रुचियाँ और मानसिकता अलग होती हैं, इसलिए यह जानना कि ‘वह लिखता क्यों है’ अति कठिन प्रश्न है।

प्रश्न 9.
लेखक और कृतिकार में क्या अंतर होता है?
उत्तर :
लेखक के अनसार जो साहित्य भीतरी दबाव के कारण लिखा जाए: जिसमें मन की सच्ची छटपटाहट छिपी हुई हो, उसे ‘कति’ कहते हैं। उसका रचयिता कृतिकार कहलाता है। इसके विपरीत धन, यश, विवशता आदि की प्रेरणा से लिखा जाने वाला साहित्य लेखन कहलाता है और इस स्थिति में लिखने वाला लेखक कहलाता है।

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प्रश्न 10.
ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंकने और हिरोशिमा के विस्फोट में लेखक ने किस समानता को देखा है ?
उत्तर :
लेखक ने कुछ मछलियों को प्राप्त करने के लिए सैनिकों के द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंकने की बात कही है, जिससे हज़ारों मछलियाँ मर जाती थीं। वे दो-चार मछलियों के लिए हज़ारों मछलियों को मार देते थे। हिरोशिमा में भी इसलिए लाखों इनसान मार डाले गए थे। दोनों ही प्रसंग प्राणियों के अकारण नाश से जुड़े हुए हैं। अतः दोनों में समानता है।

मैं क्यों लिखता हूँ? Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

हिंदी के सुप्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि, मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार, प्रखर चिंतक एवं प्रतिष्ठित निबंध लेखक अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, सन् 1911 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कसिया (कुशीनगर) नामक स्थान पर हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने लाहौर से बी०एससी० की डिग्री प्राप्त की। क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। इन्होंने सेना, आकाशवाणी तथा शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं प्रदान की।

अज्ञेय जीवन-भर साहित्य और पत्रकारिता के प्रति पूर्णतः समर्पित रहे। सन् 1987 में दिल्ली में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ-अज्ञेय की रचनाओं में बौद्धिकता की स्पष्ट छाप है। इनकी प्रमुख रचनाओं में भग्नदूत, चिंता, अरी ओ करुणा प्रभामय, इंद्रधनुष रौदे हुए थे, आँगन के पार द्वार (काव्य-संग्रह), शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप (उपन्यास), विपथगा, शरणार्थी, जयदोल (कहानी-संग्रह), त्रिशंकु, आत्मनेपद (निबंध) तथा अरे यायावर रहेगा याद (यात्रा-वृत्तांत) आदि हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ सहित चार सप्तकों का हिंदी साहित्य की समकालीन हिंदी कविता में महत्वपूर्ण योगदान है।

इनकी विभिन्न रचनाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत-भारती सम्मान तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भाषा-शैली-अज्ञेय की भाषा-शैली में सर्वत्र नवीनता के दर्शन होते हैं। इन्होंने शब्दों को नया अर्थ देने का प्रयास करते हुए हिंदी भाषा का विकास किया है। प्रस्तुत पाठ ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ में इनकी भाषा सरल एवं बोधगम्य है। कहीं-कहीं इनकी भाषा में बौद्धिकता के कारण दुरुहता भी दिखाई देती है। इनकी भाषा में चित्रात्मकता और प्रभावोत्पादकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। यहाँ इनकी शैली कहीं-कहीं आत्मकथात्मक तथा कहीं वर्णनात्मक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

पाठ का सार :

‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ में लेखक ने अपने लिखने के कारणों के साथ-साथ एक लेखक के प्रेरणा-स्रोतों पर भी प्रकाश डाला है। लेखक के अनुसार वह अपनी आंतरिक व्याकुलता से मुक्ति पाने तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है। प्रायः प्रत्येक रचनाकार की आत्मानुभूति ही उसे लेखन-कार्य के लिए प्रेरित करती है, किंतु कुछ बाहरी दबाव भी होते हैं। ये बाहरी दबाव भी कई बार रचनाकार को लिखने के लिए बाध्य करते हैं। इन बाहरी दबावों में संपादकों का आग्रह, प्रकाशक का तकाजा तथा आर्थिक आवश्यकता आदि प्रमुख हैं। लेखक का मत है कि वह बाहरी दबावों से कम प्रभावित होता है।

उसे तो उसकी भीतरी विवशता ही लिखने की ओर प्रेरित करती है। उसका मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव से अनुभूति गहरी चीज़ है। एक रचनाकार को अनुभव सामने घटित घटना को देखकर होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य को भी ग्रहण कर लेती है जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ। फिर वह सत्य आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है और रचनाकार उसका वर्णन करता है। लेखक बताता है कि उसके द्वारा लिखी ‘हिरोशिमा’ नामक कविता भी ऐसी ही है।

एक बार जब वह जापान गया, तो वहाँ हिरोशिमा में उसने देखा कि एक पत्थर बुरी तरह झुलसा हुआ है और उस पर एक व्यक्ति की लंबी उजली छाया है। उसे देखकर उसने अनुमान लगाया कि जब हिरोशिमा पर अणु-बम गिराया गया होगा, तो उस समय वह व्यक्ति इस पत्थर के पास खड़ा होगा। अणु-बम के प्रभाव से वह भाप बनकर उड़ गया, किंतु उसकी छाया उस पत्थर पर ही रह गई।

लेखक को उस झुलसे हुए पत्थर ने झकझोर कर रख दिया। वह हिरोशिमा पर गिराए गए अणु-बम की भयानकता की कल्पना करके बहुत दुखी हुआ। उस समय उसे ऐसे लगा, मानो वह उस दुःखद घटना के समय वहाँ मौजूद रहा हो। इस त्रासदी से उसके भीतर जो व्याकुलता पैदा हुई, उसी का परिणाम उसके द्वारा हिरोशिमा पर लिखी कविता थी। लेखक कहता है कि यह कविता ‘हिरोशिमा’ जैसी भी हो, वह उसकी अनुभूति से पैदा हुई थी। यही उसके लिए महत्वपूर्ण था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

कठिन शब्दों के अर्थ :

आंतरिक – भीतरी। आभ्यंतर – अंदरूनी, भीतर का। विवशता – मज़बूरी। मुक्त – आजाद। कृतिकार – रचनाकार। ख्याति – प्रसिद्धि, यश। उन्मेष – प्रकाश। निमित्त – कारण। बिछौना – बिस्तर। बाधा – रुकावट। बखानना – वर्णन करना। पुस्तकीय – पुस्तकों में लिखा। परवर्ती प्रभाव – बाद में पड़ने वाले प्रभाव। युद्धकाल – युद्ध के समय। ब्रह्मपुत्र – एक नदी का नाम। व्यथा – पीड़ा, दुख। व्यर्थ – बेकार में। अवसर – मौका। आहत – घायल। प्रत्यक्ष – स्पष्ट देखना। तत्काल – उसी क्षण। झुलसाना – जला देना। समूची – सारी। ट्रेजडी – त्रासदी, दुखद घटना। अवाक् – मौन। सहसा – अचानक। भोक्ता – भोगने वाला। आकुलता – बेचैनी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

JAC Class 10 Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर :
इस कहानी में लेखक ने दुलारी और टुन्नू के माध्यम से समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग द्वारा आजादी की लड़ाई में दिए गए योगदान को स्पष्ट किया है। दुलारी को फेंकू सरदार मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारे वाली साड़ियों का बंडल लाकर देता है। दुलारी साड़ियों के उस बंडल को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। वह टुन्नू की दी हुई खादी की साड़ी पहनती है। फेंकू सरदार को अंग्रेज़ों का मुखबिर जानकर उसे झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। टुन्नू विदेशी वस्त्रों के संग्रह करने वाले जुलूस के साथ जाता है और पुलिस द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार लेखक ने स्वतंत्रता संग्राम में इनके योगदान को रेखांकित किया है।

प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर :
दुलारी को कठोर हृदयी तथा कर्कशा गौनहारिन समझा जाता है। वह होली के अवसर पर टुन्नू द्वारा साड़ी लाने पर उसे डाँटती है और साड़ी उठाकर फेंक देती है। परंतु जब उसे टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिलता है, तो उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकलती है। वह बहुत व्याकुल हो जाती है और टुन्नू की लाई हुई खद्दर की धोती निकालकर पहन लेती है। वह वहाँ जाना चाहती है, जहाँ टुन्नू को मारा गया था। वह मन-ही-मन टुन्नू के प्रति कोमल भावनाएँ रखती है। उसका टुन्नू से आत्मिक संबंध है। इन्हीं आत्मिक भावनाओं के वशीभूत होकर वह टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर विचलित हो उठी थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा?
उत्तर :
कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए। कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन लोकगीतों की परंपरा को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाता था। इन आयोजनों में कजली गाने वाले विख्यात शायर भाग लिया करते थे। इससे जनता का मनोरंजन भी होता था तथा श्रेष्ठ गायकों को पुरस्कृत भी किया जाता था। कुछ अन्य परंपरागत लोक-आयोजन कुश्ती, नौटंकी, भांगड़ा, गिद्दा, लावणी, गरबा आदि हैं।

प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है, फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
दुलारी एक गौनहारिन अथवा गाना गाने का पेशा करने वाली महिला है। उसे समाज के विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर माना जाता है। लेकिन उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं ने उसे विशिष्ट बना दिया है –
1. कसरती बदन – दुलारी मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करती थी। वह दंड लगाने में निपुण थी तथा उसे अपने भुजदंडों पर पहलवानों की तरह गर्व था।

2. कर्कशा – दुलारी को अन्य गौनहारियाँ कर्कशा मानती हैं। वे उसे कठोर हृदया कहती हैं। जब टुन्नू उसके लिए धोती लाता है, तो वह उस पर चिल्ला पड़ती है-“खैरियत चाहते हो तो अपना यह कफ़न लेकर यहाँ से सीधे चले जाओ।”

3. कोमल हृदया – दुलारी कर्कशा और कठोर होते हुए भी अत्यंत कोमल है। टुन्नू जब होली पर उसके लिए धोती लाता है, – तो वह उसे फेंक देती है परंतु उसके जाने के बाद वह धोती उठाकर चूमने लगती है। इसी प्रकार से टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर वह इतनी विचलित हो उठती है कि उसकी आँखों से आँसुओं की गंगा बहने लगती है और वह उसकी दी हुई साड़ी पहनकर उसके मृत्यु के स्थान पर जाने के लिए चल पड़ती है।

4. श्रेष्ठ गायिका – दुक्कड़ गानेवालियों में दुलारी बहुत प्रसिद्ध है। उसमें पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। कजली गाने वाले बड़े-बड़े विख्यात शायर भी उसका सामना करते डरते थे। जब टुन्नू को उसके विरुद्ध पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में उतारा गया, तो उसके कंठ से छल-छल करता स्वर का सोता फूट निकला था।

5. देश-प्रेम – दुलारी के मन में अपने देश के प्रति अटूट श्रद्धा है। जब फेंकू सरदार उसे मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल देता है, तो वह उसे अपने पास न रखकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वदेशियों को दे देती है। उसे जैसे ही फेंकू के अंग्रेजों का मुखबिर होने का पता चलता है, वह उसे झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। टाउन हॉल में जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था उधर दृष्टि जमाकर दुलारी का गाना, उसकी टुन्नू के बलिदान के प्रति श्रद्धांजलि थी। इन समस्त विशेषताओं के कारण ही दुलारी त्याज्य होकर भी अति विशिष्ट है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर :
दुलारी का टुन्नू से प्रथम परिचय छह महीने पहले पिछली भादों में तीज के अवसर पर खोजवाँ बाजार में गाना गाते समय हुआ था। यहाँ खोजवाँ वालों का बजरडीहा वालों से मुकाबला था। दुलारी के कारण खोजवाँ वालों को अपनी जीत का पूरा भरोसा था। सामान्य गायन के बाद जब पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी प्रारंभ हुई, तो बजरडीहा वालों की तरफ़ से.टुन्नू ने गाना शुरू किया। उस समय टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था। दुलारी उसके कंठ-स्वर की मधुरता का मुग्ध भाव से रसपान कर रही थी।

प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट…!” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
दुलारी इस कथन के माध्यम से टुन्नू पर यह आक्षेप लगाती है कि वह बढ़-चढ़कर बोलता है। उसके कथनों में सत्यता नहीं है। इसी प्रसंग में आगे वह उस पर बगुला भगत होने का भी आक्षेप लगाती है। वह आज के युवा-वर्ग को बड़बोलापन त्याग कर गंभीर बनने का संदेश देती है। उन्हें आडंबरों को त्यागकर गांधीजी जैसा सीधा-सादा जीवन जीना चाहिए। देश के लिए आत्मबलिदानी बनना चाहिए तथा चातक जैसा प्रेमी बनना चाहिए।

प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू का योगदान सराहनीय एवं अनुकरणीय है। दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा लाया गया मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों में बनी हुई बारीक सूत की धोतियों का बंडल विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे दिया था। उसने अंग्रेज़ों के मुखबिर फेंकू को अपने घर से झाड़ मारकर निकाल दिया था। टुन्नू ने विदेशी वस्त्रों को एकत्र करने वाले जुलूस में शामिल होकर आत्म-बलिदान दे दिया था।

प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देशप्रेम तक कैसे पहुँचाता है ?
उत्तर :
का प्रेम शारीरिक न होकर आत्मिक था। दुलारी टुन्न के कंठ-स्वर की मधुरता पर मुग्ध हो गई थी। टुन्न सोलह सत्रह वर्ष का था और दुलारी यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी। उसके मन के किसी कोने में टुन्नू ने अपना स्थान बना लिया। था। यह सब दोनों के कलाकार मन और कला के कारण हुआ था। टुन्नू द्वारा आबरवाँ की जगह खद्दर पहनना, लखनवी दोपलिया की जगह गांधी टोपी पहनना और दुलारी को खादी की धोती देना और अंत में स्वयं को देश के लिए कुर्बान कर देना दुलारी को भी देश-प्रेम की ओर प्रेरित करता है। दुलारी का विदेशी-वस्त्रों की होली जलानेवालों को कीमती साड़ियाँ देना, टुन्नू की मृत्यु के बाद उसकी दी हुई खादी की साड़ी पहनना, टुन्नू के मरणस्थल पर गाना गाना आदि दुलारी के देशप्रेम के उदाहरण हैं।

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प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे, परंतु दलारी दवारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साडियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर :
टुन्नू जब दुलारी को होली के अवसर पर खादी की धोती देकर चला जाता है, तो दुलारी उसकी भेंट को लेकर उसी के विचारों में खो जाती है। इन विचारों से मुक्ति पाने के लिए वह रसोई की व्यवस्था में जुटना ही चाहती है कि फेंकू सरदार उसके लिए मैंचेस्टर और लंका-शायर की मिलों में बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल लेकर आता है। तभी उधर से जलाने के लिए विदेशी-वस्त्रों का संग्रह करता हुआ देशभक्तों का दल ‘भारत जननी तेरी जय’ गीत गाते हुए निकलता है। लोग अपने पुराने विदेशी वस्त्र उन्हें दे रहे थे। दुलारी अपनी खिड़की खोलकर फेंकू द्वारा लाया गया धोतियों का बंडल नीचे फैली चादर पर फेंक देती है। इससे उसकी फेंकू के प्रति नफ़रत, टुन्नू के प्रति करुणा तथा देश के प्रति प्रेम की भावना व्यक्त होती है।

प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता”। टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर :
टुन्नू जब होली के अवसर पर दुलारी को खादी की साड़ी भेंट करने आता है, तो दुलारी उपेक्षापूर्वक साड़ी टुन्नू के पैरों के पास फेंक देती है। वह उसे बहुत भला-बुरा कहती है। टुन्नू टप-टप आँसू बहाता है और यह कहकर कोठरी से बाहर निकल जाता है कि ‘मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।’ वह ‘आबरवाँ’ पहनना छोड़कर खद्दर पहनने लगता है। स्वदेशियों की हड़ताल में शामिल होता है। विदेशी वस्त्रों को एकत्रकर उनकी होली जलाने वाले जुलूस के साथ टाउन हॉल तक जाता है, जहाँ एक पुलिस जमादार द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार उसका विवेक उसे दैहिक प्रेम से देश-प्रेम की ओर ले जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्न 11.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर :
इस पंक्ति का शाब्दिक अर्थ है कि ‘इसी स्थान पर मेरे नाक की लौंग खो गई है राम’। वास्तव में दुलारी इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहती है कि उसकी ‘नाक की लौंग’ अर्थात् प्रतिष्ठा यहाँ आकर नष्ट हो गई है। जहाँ दुलारी को थाने वालों ने गाने के लिए बुलाया था, उसी स्थान पर टुन्नू को मार दिया गया था। टुन्नू उसकी प्रतिष्ठा थी। टुन्नू के मरणास्थल पर दुलारी को बलपूर्वक नाचने-गाने के लिए कहना उसके सम्मान को नष्ट करना है।

JAC Class 10 Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
टुनू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का जवानी की दहलीज पर पाँव रखने वाला युवक था। जिसका चरित्र बड़ा साफ-स्वच्छ और निर्मल था। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. सुंदर और निर्मल-टुन्नू किशोर अवस्था का अति सुंदर, गोरा, दुबला-पतला एवं लंबा किशोर था, जो पहली ही दृष्टि में आकृष्ट करने की क्षमता रखता था। दुलारी जैसी औरत भी उसकी ओर आकृष्ट होने पर विवश हो गई थी।
2. निर्धन-टुन्नू अति गरीब था। काशी में उसके पिता दिनभर गंगा के घाट पर बैठकर कर्मकांड किया करते थे और बड़ी कठिनाई से घर का खर्च चला पाते थे।
3. मेधावी-टुन्ने चाहे निर्धन परिवार में उत्पन्न हुआ था, पर वह मेधावी था। उसकी कल्पना-शक्ति अद्भुत थी। वह दूर की कौड़ी पकड़ने में अति निपुण था।
4. श्रेष्ठ कलाकार-टुन्नू श्रेष्ठ कलाकार था। उसने कजली जैसी लोक-कला में सिद्धहस्तता प्राप्त कर ली थी। उसमें हिम्मत थी कि वह दुलारी जैसी विख्यात गायिका को चुनौती दे सके।
5. गुण ग्राहक-जब टुन्नू को दुलारी के गुणों का पता लगा, तो वह उसकी कला को सीखने के लिए उसके पास जाने लगा। उसके प्रति उसके मन में श्रद्धा के भाव जग गए थे।
6. सच्चा प्रेमी-टुन्नू चाहे आयु में छोटा था, पर दुलारी के प्रति उसके हृदय में सच्चा प्रेम था। कलाकार के नाते वह उसे अपने प्रेम के योग्य मानता था।
7. सच्चा देशभक्त-टुन्नू देशभक्त था। गांधीजी के आदेशानुसार खद्दर पहनता था। उसी ने दुलारी के दिल में देशभक्ति का भाव भरा था। वह देश के लिए मर भी गया था।

प्रश्न 2.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ कहानी में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ प्रथम दृष्टि में एक किशोर और यौवनावस्था के अस्ताचल पर खड़ी एक गाने वाली की प्रेमकथा प्रतीत होती है, जिसमें आत्मिक प्रेम को महत्व प्रदान किया गया है। इस कथा के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि समाज के उपेक्षित तथा त्याज्य माने जाने वाले वर्ग के लोगों का भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत योगदान रहा है।

गाने का पेशा करने वाली दुलारी देशद्रोही फेंकू को झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। फेंकू के दिए विदेशी वस्त्रों को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। टुन्नू जैसा किशोर गायक विदेशी वस्त्र त्यागकर खादी पहनता है और देशभक्तों के जुलूस में शामिल होकर अंग्रेजों द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार यह देश-प्रेम और त्याग का संदेश देने वाली कहानी है।

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प्रश्न 3.
टुन्नू और दुलारी का प्रेम कैसा था?
उत्तर :
दुलारी ने टुन्नू को खोजवाँ बाज़ार में गाने के अवसर पर देखा था। वहाँ वह उसके कंठ-स्वर की मधुरता पर मुग्ध हो गई थी। तब से उसके मन में टुन्नू के प्रति कोमल भाव जागृत हो गए थे। वह यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी, जबकि टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था। टुन्नू उसके पास आता; घंटे-आध घंटे उसके सामने बैठता; पूछने पर भी अपने हृदय की कामना व्यक्त नहीं करता, केवल अत्यंत मनोयोग से उसकी बातें सुनता था।

दुलारी को लगता यहाँ शरीर का कोई संबंध नहीं, केवल आत्मा का ही संबंध है। टुन्नू का यह कथन भी इसी आत्मिक प्रेम की ओर संकेत करता है-‘मैं तुमसे कुछ माँगता तो हूँ नहीं। देखो, पत्थर की देवी तक अपने भक्त द्वारा दी गई भेंट नहीं ठुकराती, तुम तो हाड़-मांस की बनी हो।’ टुन्नू दुलारी का भक्त है, प्रेमी नहीं। उधर दुलारी के मन में भी ‘इस कृशकाय और कच्ची उमर के पांडुमुख बालक टुन्नू पर करुणा’ है।

प्रश्न 4.
टुन्नू की मृत्यु कैसे हुई और क्यों?
उत्तर :
आज़ादी के आंदोलन से प्रभावित होकर टुन्नू भी उसमें कूद पड़ा। एक दिन जब टुन्नू विदेशी-वस्तुओं का बहिष्कार करने वाले जुलूस के साथ जा रहा था, तो पुलिस के ज़मादार अली सगीर ने उसे पकड़ लिया और उसे गालियाँ देकर जूतों से ठोकर मारी। टाउन हॉल के पास ही यह सब घटित हुआ। टुन्नू ने भी उसके इस व्यवहार का डटकर विरोध किया। अली सगीर ने उसे इतना मारा कि उसकी पसली टूट गई। टुन्नू के मुँह से रक्त की धारा बहने लगी और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले लोग कब हैरान रह गए और क्यों?
उत्तर :
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले लोग तब हैरान रह गए, जब उनकी फैलाई चादर पर कोरी विदेशी साड़ियों का एक बंडल आकर गिरा। वे लोग जलाने के लिए विदेशी वस्त्र एकत्र कर रहे थे। अभी तक जो भी विदेशी-वस्त्र उन्होंने एकत्र किए थे, वे सब पुराने थे। परंतु ये बिल्कुल नई साड़ियाँ थीं, जिनको बंडल से बाहर तक नहीं निकाला गया था।

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प्रश्न 6.
दुलारी ने टुन्नू द्वारा लाया गया उपहार क्यों ठुकरा दिया? .
उत्तर :
दुलारी और टुन्नू कजली गायन के एक दंगल में मिले थे। दोनों ही एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना न रहे, क्योंकि दोनों ही अपनी गायन कला में निपुण थे। टुन्नू ब्राह्मण परिवार से संबंध रखता था और दुलारी एक कजली गायिका थी, जिसे समाज आदर की दृष्टि से नहीं देखता था। टुन्नू दुलारी की कला का पुजारी था। वह दुलारी से आत्मिक प्रेम करने लगा था। कम आयु का टुन्नू समाज की ऊँच-नीच नहीं जानता था, परंतु दुलारी एक परिपक्व महिला थी। उसे टुन्नू का अपने घर में आना न पसंद था। वह नहीं चाहती थी कि उसके कारण टुन्नू की बदनामी हो। वह उसे दुत्कारती थी, ताकि वह कभी दोबारा न आए। इसलिए दुलारी ने उपहार में टुन्न द्वारा दी गई साड़ी को भी उसके सामने ठुकरा दिया।

प्रश्न 7.
टुन्नू ने दुलारी की तुलना कोयल से कर एक साथ कौन-से दो तीर चलाए थे?
उत्तर :
टुन्नू ने दुलारी की आवाज़ को कोयल की मधुर आवाज़ के समान कहकर उसकी मीठी आवाज़ की प्रशंसा की थी और साथ ही उसके साँवले-काले रंग की ओर संकेत कर दिया था। उसके कथन में यह भाव भी छिपा हुआ था कि जैसे कोयल का पालन-पोषण कौवे के घोंसले में होता है, वैसे ही तुम्हारा पोषण भी दूसरों के द्वारा ही हुआ है। यह कहकर टुन्नू ने दुलारी पर दोहरा तीर चलाया था।

प्रश्न 8.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘यही वह स्थान है जहाँ मेरे नाक की लोंग खो गई थी’। लेखक ने लोकगीत के मुखड़े जैसे प्रतीत होने वाले इस वाक्य को कहानी का शीर्षक बताया है, जिसमें गहरी प्रतीकार्थकता विद्यमान है। टुन्नू का दुलारी से विवाह नहीं हुआ था, इसलिए वह उसका सुहाग नहीं था। नाक की नथनी सुहाग का प्रतीक होता है और दुलारी मन-ही-मन टुन्न को अपने पति के रूप में मानती थी। उसके लिए उसके हृदय में वही स्थान था, जो किसी सुहागिन के लिए उसके सुहाग का होता है।

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का जन्म काशी में सन 1911 में हुआ था। इनकी शिक्षा काशी के हरिश्चंद्र कॉलेज, क्वींस कॉलेज एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई थी। इन्होंने स्कूल एवं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया तथा कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। – इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास), ताल तलैया, गजलिका, परीक्षा पचीसी (गीत एवं व्यंग्य गीत संग्रह)। इनकी अनेक संपादित रचनाएँ काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा – प्रकाशित हई हैं। वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधान पद पर भी रहे। सन 1970 में इनका देहांत हो गया। इनकी भाषा आंचलिक, तत्सम प्रधान तथा शैली वर्णनात्मक एवं संवादात्मक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

पाठ का सार :

‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ पाठ के लेखक शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने गाने-बजाने वाले समाज के देश के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता की जंजीरों को उतार फेंकने की तीव्र लालसा का वर्णन किया है।। दुलारी का शरीर पहलवानों की तरह कसरती था। वह मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करने के बाद प्याज और हरी मिर्च के साथ चने खाती थी।

वह अपने रोजाना के कार्य से खाली नहीं हुई थी कि उसके घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। दरवाजा खोलने पर उसने देखा कि टुन्नू बगल में कोई बंडल दबाए खड़ा था। दुलारी टुन्नू को डाँटती है कि उसने उसे यहाँ आने के लिए मनाकर रखा था। टुन्नू उसकी डॉट सुनकर सहम जाता है। वह उसके लिए गांधी आश्रम की खादी से बनी साड़ी लेकर आया था। वह उसे होली के त्योहार पर नई साड़ी देना चाहता था।

दुलारी उसे बुरी तरह फटकारती है कि ऐसे काम करने की अभी उसकी उम्र नहीं है। दुलारी टुन्नू की दी हुई धोती उपेक्षापूर्वक उसके पैरों के पास फेंक देती है। टुन्नू की आँखों से कज्जल-मलिन आँसुओं की बूंदें साड़ी पर टपक पड़ती हैं। वह अपमानित-सा वहाँ से चला जाता है। उसके जाने के बाद दुलारी धोती उठाकर सीने से लगा लेती है और आँसुओं के धब्बों को चूमने लगती है।

दुलारी छह महीने पहले टुनू से मिली थी। भादों की तीज पर खोजवाँ बाजार में गाने का कार्यक्रम था। दुलारी गाने में निपुण थी। उसे पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। बड़े-बड़े शायर भी उसके सामने गाते हुए घबराते थे। खोजवाँ बाज़ार वाले उसे अपनी तरफ़ से खड़ा करके अपनी जीत सुनिश्चित कर चुके थे। विपक्ष में उसके सामने सोलह-सत्रह साल का टुन्नू खड़ा था। टुन्नू के पिता यजमानी करके अपने घर का गुजारा करते थे। टुनू को आवारों को संगति में शायरी का चस्का लग गया था।

उसने भैरोहेला को उस्ताद बनाकर कजली की सुंदर रचना करना सीख लिया था। टुनू ने उस दिन दुलारी से संगीत में मुकाबला किया। दुलारी को भी अपने से बहुत छोटे लड़के से मुकाबला करना अच्छा लग रहा था। मुकाबले में टुन्नू के मुँह से दुलारी की तारीफ़ सुनकर सुंदर के ‘मालिक’ फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी से वार किया। दुलारी ने टुन्नू को उस मार से बचाया था। टुन्नू के जाने के बाद दुलारी उसी के बारे में सोच रही थी।

टुन्नू उसे आज अधिक सभ्य लगा था। टुन्नू ने कपड़े भी सलीके से पहन रखे थे। दुलारी ने टुन्नू की दी हुई साड़ी अपने संदूक में रख दी। उसके मन में टुनू के लिए कोमल भाव उठ रहे थे। टुन्नू उसके पास कई दिन से आ रहा था। वह उसे देखता रहता था और उसकी बातें बड़े ध्यान से सुनता था। दुलारी का यौवन ढल रहा था। टुन्नू पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का था, दुलारी ने दुनिया देख रखी थी। वह समझ गई कि टून्नू और उसका संबंध शरीर का न होकर आत्मा का है।

वह यह बात टुन्नू के सामने स्वीकार करने से डर रही थी। उसी समय फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लेकर दुलारी की कोठरी में आता है। फेंकू सरदार उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वायदा करता है। जब दुलारी और फेंकू सरदार बातचीत कर रहे थे, उसी समय उसकी गली में से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली निकली। चार लोगों ने एक चादर पकड़ रखी थी जिसमें लोग धोती, कमीज़, कुरता, टोपी आदि डाल रहे थे। दुलारी ने भी फेंकू सरदार का दिया मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल फैली चादर में डाल दिया।

अधिकतर लोग जलाने के लिए पुराने कपड़े फेंक रहे थे। दुलारी की खिड़की से नया बंडल फेंकने पर सबकी नजर उस तरफ़ उठ गई। जुलूस के पीछे चल रही खुफिया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया था। दुलारी ने फेंकू सरदार को उसकी किसी बात पर झाड़ से पीट-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। जैसे ही फेंकू दुलारी के घर से निकला, उसे पुलिस रिपोर्टर मिल जाता है। उसे देखकर वह झेंप जाता है। दुलारी के आँगन में रहने वाली सभी स्त्रियाँ इकट्ठी हो जाती हैं। सभी मिलकर दुलारी को शांत करती हैं। सब इस बात से हैरान थीं कि फेंकू सरदार ने दुलारी पर अपना सबकुछ न्योछावर कर रखा था, फिर आज उसने उसे क्यों मारा।

दुलारी कहती है कि यदि फेंकू ने उसे रानी बनाकर रखा था, तो उसने भी अपनी इज्जत, अपना सम्मान उसके नाम कर दिया था। एक नारी के सम्मान की कीमत कुछ नहीं है। पैसों से तन खरीदा जा सकता है, एक औरत का मन नहीं खरीदा जा सकता। उन दोनों के बीच झगड़ा टुन्नू को लेकर हुआ था। सभी स्त्रियाँ बैठी बातें कर रही थीं कि झींगुर ने आकर बताया कि टुनू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार दिया और वे लोग लाशें उठाकर भी ले गए। टुन्नू के मारे जाने का समाचार सुनकर दुलारी की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली। उसकी पड़ोसिनें भी दुलारी का हाल देखकर हैरान थीं।

सभी ने उसके रोने को नाटक समझा। लेकिन दुलारी अपने मन की सच्चाई जानती थी। उसने टुन्नू की दी साधारण खद्दर की धोती पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू के शहीदी स्थल का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकलते ही थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा। प्रधान संवाददाता ने शर्मा जी की लाई हुई रिपोर्ट को मेज पर पटकते हुए डाँटा और अखबार की रिपोर्टरी छोड़कर चाय की दुकान खोलने के लिए कहा।

उनके द्वारा लाई रिपोर्ट को उसने अलिफ़-लैला की कहानी कहा, जिसे प्रकाशित करना वह उचित नहीं समझता। उनकी दी हुई रिपोर्ट को छापने से उसे अपनी अखबार के बंद हो जाने का भय है। इस पर संपादक ने शर्मा जी को रिपोर्ट पढ़ने के लिए कहा। शर्मा जी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ रखा था। उनकी रिपोर्ट के अनुसार ‘कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। खोमचेवाले भी हड़ताल पर थे। सुबह से ही विदेशी वस्त्रों का संग्रह करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे।

उनके साथ प्रसिद्ध कजली गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाउन हॉल पहुँचकर समाप्त हो गया। सब जाने लगे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टन्न को गालियाँ दी। टुन्न के प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली में चोट लगी। वह गिर पड़ा और उसके मुँह से खून निकल पड़ा। गोरे सैनिकों ने उसे उठाकर गाड़ी में डालकर अस्पताल ले जाने के स्थान पर वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्नू का दुलारी नाम की गौनहारिन से संबंध था।

कल शाम अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में आयोजित समारोह में, जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया-गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहन रखी थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर उसने दर्दभरे स्वर में एही ठेयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूलूं’ गाया और जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था, उधर ही नज़र जमाए हुए गाती रही। गाते-गाते उसकी आँखों से आँसू बह निकले मानो टुन्नू की लाश को वरुणा में फेंकने से पानी की जो बूंदें छिटकी थीं, वे अब दुलारी की आँखों से बह निकली हैं।’ संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, परंतु वे इसे छापने में असमर्थ थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

कठिन शब्दों के अर्थ :

दनादन – लगातार। चणक-चर्वण – चने चबाना। विलोल – चंचल। शीर्णवदन – उदास मुख। आर्द्र – गीला, रुंधा। कज्जल-मलिन – काजल से मैली। पाषाण-प्रतिमा – पत्थर की मूर्ति । दुक्कड़ – शहनाई के साथ बजाया जाने वाला एक तबले जैसा बाजा। महती – बहत अधिक। ख्याति – प्रसिद्धि। कजली – भादो की तीज पर गाया जाने वाला लोकगीत। कोर दबना – लिहाज करना। गौनहारिन – गाना गाने वाली, गाना गाने का पेशा करने वाली। दरगोड़े – पैरों से कुचलना या रौंदना।

तीरकमान हो जाना – लड़ने या मुकाबले के लिए तैयार : होना। आविर्भाव – प्रकट होना, सम्मुख आना। रंग उतरना – शोभा या रौनक घटना। वकोट – मुँह नोच लेना। अगोरलन – रखवाली करना। सरबउला बोल – बढ़-चढ़कर बोलना। अझे – इस प्रकार। बिथा – व्यथा। आबरवाँ – बहुत बारीक मलमल। कृशकाय – कमज़ोर शरीर। पांडुमुख – पीला मुँह। कृत्रिम – बनावटी। निभृत – छिपा हुआ, गुप्त, एकांत। उभय पार्श्व – दोनों तरफ़। मुखबर – ख़बर देने वाला। डाँका – लाँघना। आँखों में मेघमाला – आँखों से आँसुओं की झड़ी लगना। एही – इसी। ठैयाँ – स्थान। झुलनी – नाक की लौंग। हेरानी – खो गई। उदभ्रांत – हैरान।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर :
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को सम्मोहित कर रहा था। रहस्यमयी सितारों की रोशनी में उसका सबकुछ समाप्त हो गया था। उसे ऐसे अनुभव हो रहा था, जैसे उसकी चेतना लुप्त हो गई थी। बाहर और अंदर सबकुछ शून्य हो गया था। वह इंद्रियों से दूर एक रोशनी भरे संसार में चली गई थी। उसके लिए आस-पास का वातावरण शून्य हो गया था।

प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?
उत्तर :
गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर इसलिए कहा गया है क्योंकि यहाँ स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी पूरी मेहनत से काम करते हैं। स्त्रियाँ बच्चों को पीठ पर लादकर काम करती हैं। स्कूल जाने वाले विद्यार्थी स्कूल से आने के बाद अपने माता-पिता के कामों में हाथ बँटाते हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ सभी कार्य कड़ी मेहनत से पूरे होते हैं। इसलिए यह मेहनतकश बादशाहों का शहर कहलाता है।

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प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
यूमथांग जाते हुए लेखिका को रास्ते में बहुत सारी बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने बताया कि जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, तो उस समय उसकी आत्मा की शांति के लिए श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। रंगीन पताकाएँ किसी नए कार्य के आरंभ पर लगाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर :
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम के बारे में बताया कि यहाँ का इलाका मैदानी नहीं, पहाड़ी है। मैदानों की तरह यहाँ का जीवन सरल नहीं है। यहाँ कोई भी व्यक्ति कोमल या नाजुक नहीं मिलेगा, क्योंकि यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। मैदानी क्षेत्रों की तरह यहाँ कोने-कोने पर स्कूल नहीं हैं। नीचे की तराई में एक-दो स्कूल होंगे। बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल पढ़ने जाते हैं। ये बच्चे स्कूल से आकर अपनी माँ के काम में सहायता करते हैं। पशुओं को चराना, पानी भरना और जंगल से लकड़ियों : के भारी-भारी गट्ठर सिर पर ढोकर लाते हैं। सिक्किम की प्रकृति जितनी कोमल और सुंदर है, वहाँ की भौगोलिक स्थिति और जनजीवन कठोर है।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर :
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में जितेन ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को उस घूमते चक्र को देखकर लगा कि पूरे भारत के लोगों की आत्मा एक जैसी है। विज्ञान ने चाहे कितनी अधिक प्रगति कर ली है, फिर भी लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की मान्यताएँ सब एक जैसी हैं। वे चाहे पहाड़ पर हों या फिर मैदानी क्षेत्रों में-उनकी धार्मिक मान्यताओं को कोई तोड़ नहीं सकता।

प्रश्न 6.
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर :
जितेन नार्गे ड्राइवर-कम-गाइड था। उसे सिक्किम और उसके आस-पास के क्षेत्रों की भरपूर जानकारी थी। जितेन एक ऐसा गाइड था, जो जानता था कि पर्यटकों को असीम संतुष्टि कैसे दी जा सकती है। इसलिए वह लेखिका और उसके सहयात्रियों को सिक्किम घुमाते हुए बर्फ़ दिखाने के लिए कटाओ तक ले जाता है। उससे आगे चीन की सीमा आरंभ हो जाती है। वह छोटी-छोटी जानकारी भी अपने यात्रियों को देना नहीं भूलता।

यात्रियों की थकान उतारने व उनके मन बहलाव के लिए वह उनकी पसंद के संगीत का सामान भी साथ रखता है। एक गाइड के लिए अपने क्षेत्र के इतिहास की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है, जो जितेन को भरपूर थी। जितेन रास्ते में आने वाले छोटे-छोटे पवित्र स्थानों, जिनके प्रति वहाँ के स्थानीय लोगों में श्रद्धा थी, के बारे में विस्तार से बता रहा था। एक कुशल गाइड से यात्रा का आनंद दोगुना हो जाता है। वह आस-पास के सुनसान वातावरण को भी खुशनुमा बना देता है। इस तरह जितेन नार्गे में एक कुशल गाइड के गुण थे।

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प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका का यात्री दल यूमथांग जाने के लिए जीप द्वारा आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ रही थी, वैसे-वैसे हिमालय का पलपल बदलता वैभव और विराट रूप सामने आता जा रहा था। हिमालय विशालकाय होता गया। आसमान में फैली घटाएँ गहराती हुई पाताल नापने लगी थीं। कहीं-कहीं किसी चमत्कार की तरह फूल मुस्कुराने लगे थे। सारा वातावरण अद्भुत शांति प्रदान कर रहा था।

लेखिका हिमालय के पल-पल बदलते स्वरूप को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। उसने हिमालय को ‘मेरे नागपति मेरे विशाल’ कहकर सलामी दी। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े प्रतीत हो रहा था और कहीं हल्के पीलेपन का कालीन दिखाई दे रहा था। हिमालय का स्वरूप कहीं-कहीं पलस्तर उखड़ी दीवारों की तरह पथरीला लग रहा था। सबकुछ लेखिका को जादू की ‘छाया’ व ‘माया’ का खेल लग रहा था। हिमालय का बदलता रूप लेखिका को रोमांचित कर रहा था।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर :
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को लग रहा था कि वह आदिमयुग की कोई अभिशप्त राजकुमारी है। बहती जलधारा में पैर डुबोने से उसकी आत्मा को अंदर तक भीगकर सत्य और सौंदर्य का अनुभव होने लगा था। हिमालय से बहता झरना उसे जीवन की शक्ति का अहसास करवा रहा था। उसे लग रहा था कि उसकी सारी बुरी बातें और तासिकताएँ निर्मल जलधारा के साथ बह गई थीं। वह भी जलधारा में मिलकर बहने लगी थी; अर्थात् वह एक ऐसे शून्य में पहुँच गई थी, जहाँ अपना कुछ नहीं रहता; सारी इंद्रियाँ आत्मा के वश में हो जाती हैं। लेखिका उस झरने की निर्मल धारा के साथ बहते रहना चाहती थी। वहाँ उसे सुखद अनुभूति का अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर :
प्राकृतिक सौंदर्य के आलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को वहाँ के आम जीवन की निर्ममता झकझोर गई। लेखिका को प्रकृति के असीम सौंदर्य ने ऐसी अनुभूति दी थी कि वह एक चेतन-शून्य संसार में पहुँच गई थी। उसे लग रहा था कि वह ईश्वर के निकट पहुँच गई है, परंतु उस सौंदर्य में कुछ पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़ रही थीं। वे शरीर से कोमल दिखाई दे रही थीं। उनकी पीठ पर टोकरियों में बच्चे बँधे हुए थे। वे बड़े-बड़े हथौड़ों और कुदालों से पत्थरों को तोड़ने का प्रयास कर रही थीं।

यह देखकर लेखिका बेचैन हो गई। वहीं खड़े एक कर्मचारी ने बताया कि पहाड़ों में रास्ता बनाना बहुत कठिन कार्य है। कई बार रास्ता बनाते समय लोगों की जान भी चली जाती है। लेखिका को लगा कि भूख और जिंदा रहने के संघर्ष ने इस स्वर्गीय सौंदर्य में अपना मार्ग इस प्रकार ढूँढ़ा है। कटाओं में फ़ौजियों को देखकर वह सोचने लगी कि सीमा पर तैनात फ़ौजी हमारी सुरक्षा के लिए ऐसी-ऐसी जगहों की रक्षा करते हैं, जहाँ सबकुछ बर्फ़ हो जाता है।

जहाँ पौष और माघ की ठंड की बात तो छोड़ो, वैशाख में भी हाथ-पैर नहीं खुलते। वे इतनी ठंड में प्राकृतिक बाधाओं को सहन करते हुए हमारा कल सुरक्षित करते हैं। पहाड़ी औरतों को भूख से लड़ते पत्थरों को तोड़ना और कड़ाके की ठंड में फ़ौजियों का सीमा पर तैनात रहना लेखिका को अंदर तक झकझोर गया।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर :
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में प्रमुख योगदान पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध सुविधाओं, स्थानीय गाइड तथा आवागमन के मार्ग का होता है। इसके अतिरिक्त वहाँ के लोगों तथा सरकारी रख-रखाव का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।

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प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर :
देश की आर्थिक प्रगति में आम जनता की महत्वपूर्ण भूमिका है। देश के महत्वपूर्ण संस्थानों के निर्माण में आम जनता ही सहयोग करती है। वहाँ पत्थर तोड़ने से लेकर पत्थर जोड़ने तक का कार्य वे लोग ही करते हैं। इस कार्य में व्यक्ति की पूरी शक्ति लगती है, परंतु उसके काम के बदले में उसे बहुत कम पैसे मिलते हैं। बड़े-बड़े लोगों को धनवान बनाने वाले ये लोग उन पैसों से अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी बड़ी कठिनाई से करते हैं। सड़कों को चौड़ा बनाने का कार्य, बाँध बनाने का कार्य और बड़ी-बड़ी फैक्टरियाँ बनाने के कार्य की नींव आम जनता के खून-पसीने पर रखी जाती है।

सड़कों के निर्माण से यातायात का आवागमन सुगम हो जाता है। तैयार माल और कच्चा माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से पहुँचाया जाता है, जिससे देश की आर्थिक प्रगति होती है। बाँधों के निर्माण से बिजली का उत्पादन किया जाता है तथा फ़सलों को उचित सिंचाई के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। इन सब कार्यों में आम जनता का भरपूर योगदान होता है। इन लोगों की भूमिका के बिना देश की आर्थिक प्रगति संभव नहीं है।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है ? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर :
आज की पीढ़ी भौतिकवादी हो चुकी है। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति का निर्मम ढंग से प्रयोग कर रही है। उन्हें यह नहीं पता कि प्रकृति मनुष्य को कितना कुछ देती है, बदले में वह मनुष्य से कुछ नहीं माँगती। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के जल का दुरुपयोग तथा कृषि योग्य भूमि पर बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों के निर्माण ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। मनुष्य को चाहिए यदि वह प्रकृति से लाभ उठाना चाहता है, तो उसकी उचित देख-रेख करें। जितने वृक्ष काटें, उससे दोगुने वृक्षों को लगाएँ।

वृक्ष लगाने से मिट्टी का बहाव रुक जाएगा तथा चारों ओर हरियाली होने से प्रकृति में वायु और वर्षा का संतुलन बन जाएगा। वर्षा उचित समय से होने पर नदियों में जल की कमी नहीं होगी। जल प्रकृति की अनमोल देन है। मनुष्य को चाहिए नदियों के जल का उचित प्रयोग करें। नदियों के जल में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। औद्योगिक संस्थानों से निकले गंदे पानी की निकासी के लिए अलग प्रबंध करना चाहिए। कृषि योग्य भूमि को भी दुरुपयोग से बचाना चाहिए। सरकार को प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए उचित तथा कठोर नियम बनाने चाहिए। उन नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए।

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प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
अथवा
‘साना-साना हाथ जोडि’ पाठ में प्रदूषण के कारण हिमपात में कमी पर चिंता व्यक्त की गई है। प्रदूषण के कारण कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं? हमें इसकी रोकथाम के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
प्रदूषण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। साथ में मनुष्य का स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है। प्रदूषण के कारण पूरे देश का सामाजिक और आर्थिक वातावरण बिगड़ गया है। खेती के आधुनिक उपायों, खादों तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती जा रही है। बीज और खाद के दूषित होने के कारण फ़सलें खराब हो जाती हैं, जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ने मिलकर मनुष्य और प्रकृति को विकलांग बना दिया।

वायु प्रदूषण से साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु की कमी होती जा रही है, जिससे मनुष्य को फेफड़ों से संबंधित कई बीमारियाँ लग रही हैं। ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे मानव के स्वभाव पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए युवा पीढ़ी का जागरूक होना आवश्यक है। उसके लिए सरकार को प्रदूषण संबंधी कार्यक्रम चलाने चाहिए। प्रदूषण संबंधी नियमों का दृढ़ता से पालन और लागू किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता असीम है, जिसे देखकर सैलानी स्वयं को ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जाती हैं तो लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी, जिससे वहाँ गंदगी और प्रदूषण फैलेगा। लोग सफ़ाई संबंधी नियमों का पालन नहीं करते। वस्तुएँ खा-पीकर व्यर्थ का सामान इधर-उधर फेंक देते हैं। लोगों का आना-जाना बढ़ने से जैसे यूमथांग में स्नोफॉल कम हो गया है, वैसा ही यहाँ पर भी होने की संभावना है। ‘कटाओ’ के वास्तविक स्वरूप में रहने के लिए वहाँ किसी भी दुकान का न होना अच्छा है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर :
प्रकृति का जल संचय करने का अपना ही ढंग है। सर्दियों में वह बर्फ के रूप में जल इकट्ठा करती है। गर्मियों में जब लोग पानी के लिए तरसते हैं, तो ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन जाती हैं। इनसे हम जल प्राप्त कर अपनी प्यास बुझाते हैं और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं ? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
अथवा
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी कई तरह से कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। सैनिकों के जीवन से किन-किन जीवन-मूल्यों को अपनाया जा सकता है? चर्चा कीजिए।
उत्तर :
देश की सीमा पर तैनात फ़ौजियों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बर्फीले क्षेत्रों में तैनात फ़ौजी बर्फीली हवाओं और तूफानों का सामना करते हैं। पौष और माघ की ठंड में वहाँ पेट्रोल के अतिरिक्त सबकुछ जम जाता है। फ़ौजी बड़ी मुश्किल से अपने शरीर के तापमान को सामान्य रखते हुए देश की सीमा की रक्षा करते हैं। वहाँ आने-जाने का मार्ग खतरनाक और सँकरा है, जिन पर से गुजरते हुए किसी के भी प्राण जाने की संभावना बनी रहती है।

ऐसे रास्तों पर चलते हुए फ़ौजी अपने जीवन की परवाह न करते हुए हमारे लिए आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं। देश की सीमा की रक्षा करने वाले फ़ौजियों के प्रति आम नागरिक का भी कर्तव्य बन जाता है कि वे उनके परिवार की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील हो, जिससे वे लोग बेफ़िक्र होकर सीमा पर मजबूती से अपना फ़र्ज पूरा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रबंध करना चाहिए।

लोगों को भी देश की संपत्ति की रक्षा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें देश के अंदर शांति-व्यवस्था तथा धार्मिक सौहार्दयता बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए। फौजियों से हम अनुशासन और विपरीत परिस्थितियों से न घबराने की सीख भी ले सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका को गंतोक से कंचनजंघा क्यों नहीं दिखाई दे रहा था?
उत्तर :
लेखिका की वह सुबह गंतोक में आखिरी सुबह थी। वहाँ से वे लोग यूमथांग जा रहे थे। वहाँ के लोगों के अनुसार यदि मौसम साफ़ हो तो वहाँ से कंचनजंघा दिखाई देता है। कंचनजंघा हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी थी। उस दिन मौसम साफ़ होने पर भी लेखिका को हल्के-हल्के बादलों के कारण वह चोटी दिखाई नहीं दी थी।

प्रश्न 2.
क्या लेखिका को लायुग में बर्फ़ देखने को मिली? यदि नहीं, तो उसका क्या कारण था?
उत्तर :
लेखिका जैसे पर्वतों के निकट आती जा रही थी, उसकी बर्फ़ देखने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। लायुग में उसे बर्फ के होने का विश्वास था। परंतु सुबह उठकर जैसे वह बाहर निकली, उसे निराशा हाथ लगी। वहाँ बर्फ का एक भी टुकड़ा नहीं था। लेखिका को लगा कि समुद्र से 14000 फीट की ऊँचाई पर भी बर्फ का न मिलना आश्चर्य है। वहाँ के स्थानीय व्यक्ति ने इस समय स्नोफॉल न होने का कारण बढ़ते प्रदूषण को बताया। जिस प्रकार से प्रदूषण बढ़ रहा है, उसी तरह प्रकृति के साधनों में कमी आती जा रही है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 3.
लेखिका को बर्फ कहाँ देखने को मिल सकती थी और वह कहाँ स्थित है?
उत्तर :
लेखिका को इस समय बर्फ ‘कटाओ’ में देखने को मिल सकती थी। कटाओ को भारत का स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है। अभी तक वह टूरिस्ट स्पॉट नहीं बना, इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। कटाओ लाचुंग से 500 फीट की ऊँचाई पर था। वहाँ पहुँचने के लिए लगभग दो घंटे का समय लगना था।

प्रश्न 4.
‘कटाओ’ का सफ़र कैसा रहा?
उत्तर :
कटाओ का रास्ता खतरनाक था। उस समय धुंध और बारिश हो रही थी, जिसने सफ़र को और खतरनाक बना दिया था। जितेन लगभग र, अनुमान से गाड़ी चला रहा था। खतरनाक रास्तों के अहसास ने सबको मौन कर दिया था। ज़रा-सी असावधानी सबके प्राणों के लिए घातक सिद्ध हो सकती थी। जीप के अंदर केवल एक-दूसरे की साँसों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। वे लोग आस-पास के वातावरण से अनजान थे। जगह-जगह पर सावधानी से यात्रा करने की चेतावनी लिखी हुई थी।

प्रश्न 5.
लेखिका बर्फ पर चलने की इच्छा पूरी क्यों नहीं कर सकी?
उत्तर :
लेखिका और उसका यात्री दल जब कटाओ पहुँचा, उस समय ताजी बर्फ गिरी हुई थी। बर्फ देखकर लेखिका का मन प्रसन्नता से भर उठा। उसकी इच्छा थी कि वह बर्फ पर चलकर इस जन्नत को अनुभव करे। परंतु वह ऐसा कुछ नहीं कर सकी, क्योंकि उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। वहाँ पर ऐसी कोई दुकान नहीं थी, जहाँ से वह जूते किराए पर ले सके।

प्रश्न 6.
लेखिका पर वहाँ के वातावरण ने क्या प्रभाव डाला?
उत्तर :
लेखिका वहाँ पहुँचकर स्वयं को प्रकृति में खोया हुआ अनुभव कर रही थी। वह दूसरे लोगों की तरह फ़ोटो खींचने में नहीं लगी हुई थी। वह उन क्षणों को पूरी तरह अपनी आत्मा में समा लेना चाहती थी। हिमालय के शिखर उसे आध्यात्मिकता से जोड़ रहे थे। उसे लग रहा था कि ऋषि-मुनियों ने इसी दिव्य प्रकृति में जीवन के सत्य को जाना होगा; वेदों की रचना की होगी। जीवन में सब सुख देने वाला महामंत्र भी यहीं से पाया होगा। लेखिका उस सौंदर्य में इतनी खो गई थी कि उसे अपने आस-पास सब चेतन शून्य अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 7.
जितेन ने सैलानियों से गुरु नानक देव जी से संबंधित किस घटना का वर्णन किया है?
उत्तर :
जितेन को वहाँ के इतिहास और भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। वह उन्हें रास्ते भर तरह-तरह की जानकारियाँ देता रहा था। एक स्थान पर उसने बताया कि यहाँ पर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के पैरों के निशान हैं। जब गुरु नानक जी यहाँ आए थे, उस समय उनकी थाली से कुछ चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। जहाँ-जहाँ चावल छिटके थे, वहाँ-वहाँ चावलों की खेती होने लगी थी।

प्रश्न 8.
हिमालय की तीसरी चोटी कौन-सी है? लेखिका उसे क्यों नहीं देख पाई ?
उत्तर :
हिमालय की तीसरी चोटी कंचनजंघा है। लेखिका को गंतोक शहर के लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो यहाँ से हिमालय की तीसरी चोटी कंचनजंघा साफ-साफ दिखाई देती है, लेकिन उस दिन आसमान हलके बादलों से ढका था, जिस कारण लेखिका कंचनजंघा को नहीं देख पाई।

प्रश्न 9.
लेखिका ने गंतोक के रास्ते में एक युवती से प्रार्थना के कौन-से बोल सीखे थे?
उत्तर :
अपनी गंतोक यात्रा के दौरान लेखिका ने एक नेपाली युवती से प्रार्थना के कुछ बोल सीखे थे-‘साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली। इसका अर्थ है-छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो।

प्रश्न 10.
लेखिका ने जब ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ देखा, तो उसे क्या अहसास हुआ?
उत्तर :
लेखिका ने जब ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ देखा, तो उसे एक अजीब जीवन शक्ति का अहसास हुआ। उसे अपने अंदर की सभी बुराइयाँ एवं दुष्ट वासनाएँ दूर होती हुई प्रतीत होने लगीं। उसे लगा कि जैसे वह सरहदों से दूर आकर धारा का रूप धारण करके बहने लगी है। अपने अंदर इस बदलाव को देखकर लेखिका चाह रही थी कि वह ऐसी ही बनी रही और झरनों से बहने वाले निर्मल-स्वच्छ जल की कल-कल ध्वनि सुनती रहे।

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प्रश्न 11.
लेखिका जब चाय बागानों के बीच से गुजर रही थी, तब किस दृश्य ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर :
लेखिका जब चाय बागानों के बीच से गुजर रही थी, तो सिक्किमी परिधान पहने युवतियाँ हरे-भरे बागानों में चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलते सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखरी हुई थी। प्रकृति का ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर लेखिका का ध्यान उसी ओर खींचता जा रहा था।

प्रश्न 12.
पहाड़ी बच्चों का जनजीवन किस प्रकार का होता है?
उत्तर :
पहाड़ी बच्चों का जनजीवन बड़ा ही कठोर होता है। वहाँ बच्चे तीन-चार किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। वहाँ आस-पास कम ही स्कूल होते हैं। वहाँ बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं।

प्रश्न 13.
लायुग में जनजीवन किस प्रकार का है?
उत्तर :
लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब है। इनका जीवन भी गंतोक शहर के लोगों के समान बड़ा कठोर है। परिश्रम की मिसाल देनी हो, तो इन्हीं क्षेत्रों की दी जा सकती है।

प्रश्न 14.
गंतोक का क्या अर्थ है? लोग इसे क्या कहकर पुकारते हैं?
उत्तर :
गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़’। लोग गंगटोक को ही ‘गंतोक’ बुलाते हैं।

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प्रश्न 15.
जितेन के अनुसार पहाड़ी लोग गंदगी क्यों नहीं फैलाते ?
उत्तर :
पहाड़ी लोगों की मान्यता है कि वहाँ विशेष स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। इसी मान्यता के कारण वे लोग यहाँ गंदगी नहीं फैलाते।

साना-साना हाथ जोड़ि Summary in Hindi

लेखिका-परिचय :

मधु कांकरिया का जन्म कोलकाता में सन 1957 में हुआ था। इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम० ए० और कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा प्राप्त किया था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-पत्ताखोर (उपन्यास), सलाम आखिरी, खुले गगन के लाल सितारे, बीतते हुए, अंत में ईशु (कहानी-संग्रह)। इन्होंने अनेक यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। इनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता मिलती है। इन्होंने समाज में व्याप्त समसामयिक समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है। इनकी भाषा सहज, भावानुरूप, प्रवाहमयी तथा शैली वर्णनात्मक, भावपूर्ण तथा चित्रात्मक है।

पाठ का सार :

‘साना-साना हाथ जोड़ि….’ पाठ की लेखिका ‘मधु कांकरिया’ हैं। लेखिका इस पाठ के माध्यम से यह बताना चाहती है कि यात्राओं से मनोरंजन, ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ-साथ भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान भी होता है। लेखिका जब महानगरों की भावशून्यता, भागमभाग और यंत्रवत जीवन से ऊब जाती है, तो दूर-दूर यात्राओं पर निकल पड़ती है। उन्हीं यात्राओं के अनुभवों को उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तांतों में शब्दबद्ध किया है।

इस लेख में भारत के सिक्किम राज्य की राजधानी गंगटोक और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया गया है। लेखिका गंगटोक शहर में तारों से भरे आसमान को देख रही थी। उस रात में ऐसा सम्मोहन था कि वह उसमें खो जाती है। उसकी आत्मा भावशून्य हो जाती है। वह नेपाली भाषा में मंद स्वर में सुबह की प्रार्थना करने लगती है। उन लोगों ने सुबह यूमथांग के लिए जाना था।

यदि वहाँ का मौसम साफ़ हो, तो गंगटोक से हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा दिखाई देती है। मौसम साफ़ होने के बावजूद आसमान में हल्के बादल थे, इसलिए लेखिका को कंचनजंघा पिछले साल की तरह दिखाई नहीं दी। यूमथांग गंगटोक से 149 कि० मी० की दूरी पर था। उन लोगों के गाइड कम ड्राइवर का नाम जितेन नार्गे था। यूमथांग का रास्ता घाटियों और फूलों से भरा था। रास्ते में उन्हें एक जगह पर सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ लगी दिखाई दीं। ये पताकाएँ अहिंसा और शांति की प्रतीक हैं।

जितेन नार्गे ने बताया कि जब कोई बुद्धिस्ट मर जाता है, तो किसी पवित्र स्थल पर एक सौ आठ सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ फहरा दी जाती हैं जिन्हें उतारा नहीं जाता। कई बार किसी नए कार्य के आरंभ पर रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं। जितेन नार्गे की जीप में भी दलाई लामा की फ़ोटो लगी थी। जितेन ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। उन लोगों ने रास्ते में एक घूमता हुआ चक्र देखा, जिसे धर्म-चक्र के नाम से जाना जाता था। वहाँ रहने वाले लोगों का विश्वास था कि उसे घूमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।

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लेखिका को लगता है कि सभी जगह आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास और पाप-पुण्य एक जैसे हैं। जैसे-जैसे वे लोग ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे, वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ आँखों से ओझल होने लगीं। घाटियों में देखने पर सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा था। पहाड़ियों ने विराट रूप धारण कर लिया था। पास से उनका वैभव कुछ अलग था। धीरे-धीरे रास्ता अधिक घुमावदार होने लगा था। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वे किसी हरियाली वाली गुफ़ा के मध्य से गुज़र रहे हों।

सब यात्रियों पर वहाँ के हसीन मौसम का असर हो रहा था। लेखिका अपने आस-पास के दृश्यों को चुप रहकर अपने में समा लेना चाहती थी। सिलीगुड़ी से साथ चल रही तिस्ता नदी का सौंदर्य आगे बढ़ने पर और अधिक निखर गया था। वह उस नदी को देखकर रोमांचित हो रही थी। वह मन-ही-मन हिमालय को सलामी देती है। ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ पर जीप रुकती है। सभी लोग वहाँ की सुंदरता को कैमरे में कैद करने लग जाते हैं।

लेखिका आदिम युग की अभिशप्त राजकुमारी की तरह झरने से बह रहा संगीत आत्मलीन होकर सुनने लगती है। उसे लगा, जैसे उसने सत्य और सौंदर्य को छू लिया हो। झरने का पानी उसमें एक नई शक्ति का अहसास भर रहा था। लेखिका को लग रहा था कि उसके अंदर की सारी कुटिलता और बुरी इच्छाएँ पानी की धारा के साथ बह गई हैं। वह वहाँ से जाने के लिए तैयार नहीं थी। जितेन ने कहा कि आगे इससे भी सुंदर दृश्य हैं। पूरे रास्ते आँखों और आत्मा को सुख देने वाले दृश्य थे। रास्ते में प्राकृतिक दृश्य पलपल अपना रंग बदल रहे थे।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ बदल रहा था। माया और छाया का यह अनूठा खेल लेखिका को जीवन के रहस्य समझा रहा था। पूरा वातावरण प्राकृतिक रहस्यों से भरा था, जो सबको रोमांचित कर रहा था। थोड़ी देर के लिए जीप रुकी। जहाँ जीप रुकी थी, वहाँ लिखा था-‘थिंक ग्रीन’। वहाँ ब्रह्मांड का अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा था। सभी कुछ एक साथ सामने था।

लगातार बहते झरने थे, नीचे पूरे वेग से बह रही तिस्ता नदी थी, सामने धुंध थी, ऊपर आसमान में बादल थे और धीरेधीरे हवा चल रही थी, जो आस-पास के वातावरण में खिले फूलों की हँसी चारों ओर बिखेर रही थी। उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा लग रहा था कि लेखिका का अस्तित्व भी इस वातावरण के साथ बह रहा था।

ऐसा सौंदर्य जीवन में पहली बार देखा था। लेखिका को लग रहा था कि उसका अंदर-बाहर सब एक हो गया था। उसकी आत्मा ईश्वर के निकट पहुँच गई लगती थी। मुँह से सुबह की प्रार्थना के बोल निकल रहे थे। अचानक लेखिका का इंद्रजाल टूट गया। उन्होंने देखा कि इस अद्वितीय सौंदर्य के मध्य कुछ औरतें बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। कुछ औरतों की पीठ पर बंधी टोकरियों में बच्चे थे। इतने सुंदर वातावरण में भूख, गरीबी और मौत के निर्मम दृश्य ने लेखिका को सहमा दिया। ऐसा लग रहा था कि मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ चल रही है। एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाडिनें।

मौत की भी परवाह न करते हुए लोगों के लिए पहाड़ी रास्ते को चौड़ा बना रही हैं। कई बार काम करते समय किसी-न-किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, क्योंकि जब पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाया जाता है तो उनके टुकड़े इधर-उधर गिरते हैं। यदि उस समय सावधानी न ! बरती जाए, तो जानलेवा हादसा घट जाता है। उन लोगों की स्थिति देखकर लेखिका को लगता है कि सभी जगह आम जीवन की कहानी। एक-सी है। मजदूरों के जीवन में आँसू, अभाव और यातना अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। लेखिका की सहयात्री मणि और जितेन उसे गमगीन देखकर कहते हैं कि यह देश की आम जनता है, इसे वे लोग कहीं भी देख सकते हैं।

लेखिका उनकी बात सुनकर चुप रहती है, परंतु मन ही मन सोचती है कि ये लोग समाज को कितना कुछ देते हैं; इस कठिन स्थिति में भी ये खिलखिलाते रहते हैं। वे लोग वहाँ से आगे चलते हैं। रास्ते में बहुत सारे पहाड़ी स्कूली बच्चे मिलते हैं। जितेन बताता है कि ये बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर – की पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। यहाँ आस-पास एक या दो स्कूल हैं। ये बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। रास्ता तंग होता जा रहा था। जगह-जगह सरकार की चेतावनियों के बोर्ड लगे थे कि गाड़ी धीरे चलाएँ।

सूरज ढलने पर पहाड़ी औरतें और बच्चे गाय चराकर घर लौट रहे थे। कुछ के सिर पर लकड़ियों के गट्ठर थे। शाम के समय जीप चाय बागानों में से गुजर रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलती शाम के सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। लेखिका इतना प्राकृतिक सौंदर्य देखकर खुशी से चीख रही थी। यूमथांग पहुँचने से पहले वे लोग लायुंग रुके। लायुग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका सफ़र की थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के किनारे फैले पत्थरों पर बैठ गई। उस वातावरण में अद्भुत शांति थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति अपनी लय, ताल और गति में कुछ कह रही है। इस सफ़र ने लेखिका को दार्शनिक बना दिया था।

रात होने पर जितेन के साथ अन्य साथियों ने नाच-गाना शुरू कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने बहुत सुंदर नृत्य किया। लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका को वहाँ बर्फ़ देखने की इच्छा थी, परंतु वहाँ बर्फ का नाम न था। वे लोग उस समय समुद्र तट से 14000 फीट की ऊँचाई पर थे। एक स्थानीय युवक के अनुसार प्रदूषण के कारण यहाँ स्नोफॉल कम हो। गया था। ‘कटाओ’ में बर्फ देखने को मिल सकती है। कटाओ’ को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। कटाओ को अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनाया गया था, इसलिए यह अब तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।

लायुंग से कटाओ का सफ़र दो घंटे का था। कटाओ का रास्ता खतरनाक था। जितेन अंदाज़ से गाड़ी चला रहा था। वहाँ का सारा वातावरण बादलों से घिरा हुआ था। जरा-सी भी असावधानी होने पर बड़ी घटना घट सकती थी। थोड़ी दूर जाने पर मौसम साफ़ हो गया था। मणि कहने लगी कि यह स्विट्ज़रलैंड से भी सुंदर है। कटाओ दिखने लगा था। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ थे। जितेन कहने लगा कि यह बर्फ रात को ही पड़ी है। पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे चारों ओर चाँदी फैली हो।

कटाओ पहुँचने पर हल्की-हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। बर्फ को देखकर सभी झूमने लगे थे, लेखिका का मन बर्फ पर चलने का हो रहा था, परंतु उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। सभी सहयात्री वहाँ के वातावरण में फोटो खिंचवा रहे थे। लेखिका फोटो खिंचवाने की अपेक्षा वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उसे लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषियोंमुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे असीम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले, तो वह भी आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी दार्शनिकता उभरने लगी थी।

ये हिमशिखर पूरे एशिया को पानी देते हैं। प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी ! इकट्ठा करती है और गर्मियों में ये बर्फ़ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हम लोगों की प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति का यह जल संचय अद्भुत है। इस प्रकार नदियों और हिमशिखरों का हम पर ऋण है। थोड़ा आगे जाने पर फ़ौजी छावनियाँ दिखाई दीं। थोड़ी दूरी पर चीन की सीमा थी। फ़ौजी कड़कड़ाती ठंड में स्वयं को कष्ट देकर हमारी । रक्षा करते हैं।

लेखिका फ़ौजियों को देखकर उदास हो गई। वैशाख के महीने में भी वहाँ बहुत ठंड थी। वे लोग पौष और माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे? वहाँ जाने का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। वास्तव में ये फ़ौजी अपने आज के सुख का त्याग करके हमारे लिए। शांतिपूर्वक कल का निर्माण करते हैं। वे लोग वहाँ से वापस लौट आए थे। यूमथांग की पूरी घाटियाँ प्रियुता और रूडोडेंड्री के फूलों से खिली थीं।

जितेन ने रास्ते में बताया कि यहाँ पर बंदर का माँस भी खाया जाता है। बंदर का मांस खाने से कैंसर नहीं होता। उसने आगे बताया. कि उसने तो कुत्ते का माँस भी खाया हुआ है। सभी को जितेन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन लेखिका को लग रहा था कि वह सच बोल रहा है। उसने पठारी इलाकों की भयानक गरीबी देखी है। लोगों को सुअर का दूध पीते हुए देखा था। यूमथांग वापस आकर उन लोगों को वहाँ सब फीका-फीका लग रहा था।

वहाँ के लोग स्वयं को प्रदेश के नाम से नहीं बल्कि भारतीय के नाम से पुकारे जाने को पसंद करते हैं। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का एक हिस्सा बन गया है। ऐसा करके वहाँ के लोग बहुत खुश हैं। मणि ने बताया। कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रातों में भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। लौटते हुए जितेन ने उन लोगों को कई और महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी। रास्ते में उसने एक जगह दिखाई।

उसके बारे में बताया कि यहाँ पूरे एक किलोमीटर के क्षेत्र में देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। उसने बताया कि वे लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते हैं। वे लोग गंगटोक को गंतोक बुलाते हैं। गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़। सिक्किम में अधिकतर क्षेत्रों को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का श्रेय भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता को जाता है। लेखिका को लगता है कि मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम ही सौंदर्य है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

कठिन शब्दों के अर्थ :

अतींद्रियता – इंद्रियों से परे। संधि – सुलह। उजास – प्रकाश, उजाला। सम्मोहन – मुग्ध करना। रकम-रकम – तरह-तरह के। कपाट – दरवाज़ा। लम्हें – क्षण। रफ़्ता-रफ़्ता – धीरे-धीरे। गहनतम – बहुत गहरी। सघन – घनी। शिद्दत – तीव्रता, प्रबलता, अधिकता। पताका – झंडा। श्वेत – सफ़ेद। मुंडकी – सिर। सुदीर्घ – बहुत बड़े। मशगूल – व्यस्त। प्रेयर व्हील – प्रार्थना का चक्र। अभिशप्त – शापित, शाप युक्त सरहद – सीमा। पराकाष्ठा – चरम-सीमा। तामसिकताएँ – तमोगुण से युक्त, कुटिल। मशगूल – व्यस्त। आदिमयुग – आदि युग।

निर्मल – स्वच्छ, साफ़। श्रम – मेहनत। अनंतता – असीमता। वंचना – धोखा। दुष्ट वासनाएँ – बुरी इच्छाएँ। आवेश – जोश। सयानी – समझदार, चतुर। मौन – चुप। जन्नत – स्वर्ग। सृष्टि – संसार, जगत। सन्नाटा – खामोशी। चैरवेति चैरवेति – चलते रहो, चलते रहो। वजूद – अस्तित्व। सैलानी – यात्री, पर्यटक। वृत्ति – जीविका। ठाठे – हाथ में पड़ने वाली गाँठे या निशान। दिव्यता – सुंदरता। वेस्ट एट रिपेईंग – कम लेना और ज़्यादा देना। मद्धिम – धीमी, हलकी। दुर्लभ – कठिन। हलाहल – विष, ज़हर। सतत – लगातार।

प्रवाहमान – गतिमान। संक्रमण – मिलन, संयोग। चलायमान – चंचल। लेवल – तल, स्तर। सुर्खियाँ – चर्चा में आना। निरपेक्ष – बेपरवाह। गुडुप – निगल लिया। राम रोछो – अच्छा है। टूरिस्ट स्पॉट – भ्रमण-स्थल। असमाप्त – कभी समाप्त न होने वाला। अद्वितीय – अनुपम। कुदाल – भूमि खोदने का अस्त्र। विलय – मिलना। सँकरे – तंग। सात्विक आभा – निर्मल कांति। सुरम्य – अत्यंत मनोहर। मीआद – सीमा। आबोहवा – जलवायु।