JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है ?
उत्तर :
अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है।

प्रश्न 2.
कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं ?
उत्तर :
कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं।

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प्रश्न 3.
पति – पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया ?
उत्तर :
पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत गर्मजोशी से किया। लेखक उससे स्नेह भरी मुस्कराहट के साथ गले मिला और लेखक की पत्नी ने उसे सादर नमस्ते की।

प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गई ?
उत्तर :
दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई जिसमें सब्ज़ियों, रायता, चावल, रोटी, मिष्ठान आदि था।

प्रश्न 5.
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा ?
उत्तर :
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने कहा कि मैं धोबी को धोने के लिए कपड़े देना चाहता हूँ।

प्रश्न 6.
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ ?
उत्तर :
लेखक ने अतिथि के लिए पत्नी को खिचड़ी बनाने के लिए कह दिया। लेखक ने यह भी कहा कि यदि वह अब भी न गया तो उसे उपवास करना होगा।

लिखित –

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था ?
उत्तर :
लेखक अतिथि के जाने से पहले उससे कुछ दिन और रुकने का आग्रह करना चाहता था। अतिथि जाने की ज़िद करता और लेखक उसे भावभीनी विदाई देता; उसे छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन तक जाता और भीगे नयनों से उसे विदा करता। दोनों ही इस विदाई के अवसर पर भावविभोर हो जाते।

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प्रश्न 2.
पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए –
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर :
(क) जब लेखक के घर अतिथि आया, तो उसे लगा कि इसके अतिथि सत्कार में जो खर्च करना पड़ेगा, उससे उसके बजट पर भी असर पड़ेगा। इसलिए उसे लगा कि इस अतिथि के आने से उसका खर्चा बढ़ जाएगा।
(ख) लेखक का मानना है कि जब अतिथि एक-दो दिन रहकर चला जाए तो वह देवता है। यदि वह तीसरे दिन चला जाए तो मानव है। यदि अतिथि चार दिन से भी अधिक दिनों तक नहीं जाता है, तो वह राक्षस हो जाता है जो मेज़बान के लिए मुसीबत बन जाता है।
(ग) लेखक का मानना है कि अतिथि को अतिथि के समान आकर तुरंत वापस भी लौट जाना चाहिए, जिससे वह जिसके घर में अतिथि बनकर आया है उसके घर में प्रेमभाव के स्थान पर कलह न होने लगे। उसे उस घर की प्रेम भावना को बनाए रखना चाहिए।
(घ) लेखक कहता है कि यदि अतिथि पाँचवें दिन भी अपने घर नहीं लौटता, तो वह उसे और अधिक सहन नहीं कर सकेगा तथा उसे घर से जाने के लिए गेट आउट तक कहने से भी संकोच नहीं करेगा।
(ङ) लेखक का मानना है कि एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते क्योंकि देवता मनुष्य को दर्शन देकर तुरंत चले जाते हैं, वे उसके पास जमकर नहीं बैठे रहते। मनुष्य भी देवता का दर्शन करके शीघ्र ही अपने घर चला जाता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखक सोच रहा था कि अब तो तीसरा दिन हो गया है, इसलिए अतिथि अवश्य चला जाएगा। तीसरे दिन सुबह जब अतिथि ने लेखक से कहा कि वह अपने कपड़े धुलवाने के लिए धोबी को देना चाहता है, तो लेखक को झटका लगा। उसे यह उम्मीद नहीं थी कि अतिथि अभी कुछ और दिन उसके घर रहेगा। लेकिन अतिथि की बात से स्पष्ट हो गया कि उसका इरादा अभी कुछ दिन और उसके घर रुकने का है। इस प्रकार अतिथि के कपड़े धुलवाने की बात लेखक के लिए अप्रत्याशित आघात था।

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प्रश्न 2.
‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना’ – इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं ? विस्तार से लिखिए।
उत्तर :
जब लेखक के घर आया हुआ अतिथि चौथे दिन भी अपने घर नहीं गया, तो लेखक और अतिथि के बीच मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान समाप्त हो गया। ठहाके लगने बिल्कुल बंद हो गए थे; आपसी चर्चा समाप्त हो गई थी। लेखक कोई उपन्यास पढ़ता रहता था तथा अतिथि पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ उलटता रहता था। परस्पर प्रेमभाव बोरियत में बदल गया था। लेखक की पत्नी ने भी पकवान आदि बनाने के स्थान पर खिचड़ी बनाने का निश्चय कर लिया था। इस प्रकार लेखक और उसके अतिथि के संबंध धीरे-धीरे बदलते जा रहे थे। उनमें अपनेपन के स्थान पर परायापन आ गया था और लेखक चाह रहा था कि अतिथि शीघ्र से शीघ्र उसके घर से चला जाए।

प्रश्न 3.
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए ?
उत्तर :
जब अतिथि चार दिन तक अपने घर नहीं गया, तो लेखक का व्यवहार उसके प्रति बदलने लगा। उसने अतिथि के साथ हँसना-बोलना छोड़ दिया। लेखक ने उपन्यास पढ़ना शुरू कर दिया, जिससे उसे अतिथि के साथ बातचीत न करनी पड़े। लेखक अतिथि के साथ अपने पुराने मित्रों, प्रेमिकाओं आदि का जिक्र किया करता था; वह जिक्र करना भी उसने बंद कर दिया। लेखक का अतिथि के प्रति प्रेमभाव और भाईचारा समाप्त हो गया था। वह मन ही मन अतिथि को गालियाँ देने लगा था। लेखक की पत्नी ने जब कहा कि वह आज खिचड़ी बनाएगी, तो लेखक उसे खिचड़ी बनाने के लिए ही कहता है। वह अब अतिथि की और अधिक आवभगत नहीं करना चाहता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए –
चाँद ज़िक्र आघात ऊष्मा अंतरंग
उत्तर :
चाँद = शशि, इंदु।
ज़िक्र = वर्णन, बयान।
आघात = चोट, प्रहार।
ऊष्मा = तपन, गरमी।
अंतरंग = आत्मीय, अभिन्न।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य)
(ख) किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य)
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल)
(घ) इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
(ङ) कब तक टिकेंगे ये ? (नकारात्मक)
उत्तर :
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे।
(ख) किसी लॉण्ड्री पर देने से क्या जल्दी धुल जाएँगे ?
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी।
(घ) इनके कपड़े कहाँ देने हैं?
(ङ) वे देर तक नहीं टिकेंगे।

प्रश्न 3.
पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य संरचना को समझिए –
(क) तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके।
(ख) तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके।
(ग) आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
(घ) शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए।
(ङ) तुम्हारे भारी-भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए –
(क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
(ख) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
(ग) तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
(घ) कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फ़िल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
(ङ) भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।
उत्तर :
विद्यार्थी प्रश्न 3 और 4 को ध्यान से पढ़कर समझें।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करें तथा आधुनिक युग के संदर्भ में इसका आकलन करें।
उत्तर :
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति का अर्थ है कि घर आए हुए मेहमान का देवताओं के समान आदर-सम्मान करना चाहिए। उन्हें प्रेमभाव से अच्छा भोजन करवाना चाहिए। उनकी समस्त सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए। आधुनिक समय में मेहमान का आना मुसीबत का आगमन माना जाता है। मेहमान बोझ प्रतीत होता है। उसे किसी प्रकार से खिला-पिलाकर तुरंत विदा करने की इच्छा होती है। यदि वह दो-चार दिन टिक जाता है, तो घर का वातावरण बिगड़ जाता है।

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प्रश्न 2.
विद्यार्थी अपने घर आए अतिथियों के सत्कार का अनुभव कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने-अपने अनुभव स्वयं सुनाएँ।

प्रश्न 3.
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ हुईं, उन्हें क्रम से छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की निम्नलिखित प्रतिक्रियाएँ हुईं –

  1. अतिथि ने जब कपड़े धुलवाने की बात की, तो लेखक को लगा कि वह अब शीघ्र नहीं जाएगा।
  2. उसे अतिथि देवता नहीं बल्कि मानव और राक्षस लगने लगा।
  3. उसने अतिथि के साथ हँसना – बोलना बंद कर दिया।
  4. अतिथि के प्रति उसकी आत्मीयता बोरियत में बदल गई।
  5. अतिथि को अच्छा भोजन खिलाने के स्थान पर खिचड़ी बनाई गई।

JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने उन व्यक्तियों की ओर संकेत किया है, जो अपने किसी संबंधी अथवा परिचित के घर बिना बताए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। उनका इस प्रकार आना और फिर वहाँ टिके रहना मेज़बान को अच्छा नहीं लगता। वे एक-दो दिन तो उसकी मेहमाननवाज़ी करते हैं, बाद में उससे बात भी नहीं करते। वे उसे अपने घर से भगाने की चिंता में लगे रहते हैं। अतः जब भी कहीं अतिथि बनकर जाना हो, तो उसे पूर्व सूचना दे देनी चाहिए तथा वहाँ एक- दो दिन ठहरकर वापस लौट जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
लेखक ने यह क्यों कहा कि ‘अतिथि! तुम्हारे जाने का यह उच्च समय अर्थात् हाइटाइम है’ ?
उत्तर :
लेखक चौथे दिन भी अतिथि के न जाने से परेशान हो गया था। वह अतिथि को दिखा-दिखाकर कैलेंडर की तारीखें बदलता है। वह कहता है कि लाखों मील की यात्रा करके चाँद पर पहुँचने वाले अंतरिक्ष यात्री भी चाँद पर इतने समय तक नहीं रुके थे, जितने दिनों से अतिथि उसके घर टिका हुआ है। लेखक को लगता है कि अतिथि ने उससे खूब आत्मीय संबंध स्थापित कर लिए हैं तथा उसका काफ़ी खर्चा करवा दिया है, जिससे उसका बजट भी डगमगा गया है। इसलिए अब उसकी भलाई इसी में है कि वह उसके घर से चला जाए। यही उसके जाने का हाइटाइम अथवा उचित समय है। अन्यथा उसका यहाँ अतिथि सत्कार होना बंद हो जाएगा।

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प्रश्न 3.
लेखक पाँचवें दिन के लिए अतिथि को क्या चेतावनी देता है ?
उत्तर :
लेखक जब देखता है कि अतिथि चौथे दिन भी नहीं गया तो वह चाहता है कि पाँचवें दिन अतिथि सम्मानपूर्वक उसके घर से जाने का निर्णय ले ले अन्यथा वह उसे और अधिक समय तक अपने घर में सहन नहीं कर पाएगा। वह जानता है कि अतिथि देवता के समान होता है। इसलिए वह चाहता है कि जैसे देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं, उसी प्रकार अतिथि भी लौट जाए। यदि अब भी अतिथि नहीं जाता है, तो वह उसे अपमानित करके घर से निकाल देगा।

प्रश्न 4.
लेखक अतिथि को कैलेंडर दिखाकर तारीख क्यों बदल रहा था ?
उत्तर :
अतिथि को लेखक के घर आए हुए चार दिन हो गए थे। उसके व्यवहार से लेखक को कोई भी ऐसी गंध नहीं मिल रही थी कि वह उनके घर से जाना चाहता है। इसलिए लेखक पिछले दो दिन से अतिथि को दिखा-दिखाकर कैलेंडर की तारीख बदल रहा था। यदि अतिथि कैलेंडर को ध्यान से देखता, तो उसे अनुभव हो जाता कि उसे वहाँ आए चार दिन हो गए हैं; अब उसे जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
लेखक ने यह क्यों कहा कि ‘तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन’ ?
उत्तर :
आज का युग महँगाई का युग है; सभी चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में किसी अतिथि की चार दिन तक मेहमाननवाज़ी करना सरल कार्य नहीं है। इसलिए लेखक कह रहा है कि अब वह अतिथि की मेहमाननवाज़ी करके थक गया है। उसका आर्थिक बजट बिगड़ गया है। अब वह अतिथि का और खर्च नहीं उठा सकता। उसने पहले ही उस पर अधिक खर्च कर दिया है।

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प्रश्न 6.
आरंभ में लेखक और उसकी पत्नी ने अतिथि का सेवा-सत्कार किस प्रकार किया ?
उत्तर :
पहले दिन लेखक और उसकी पत्नी ने मुस्कराहट और सम्मान के साथ अतिथि का सेवा-सत्कार किया। उसके लिए खाने में दो सब्जियाँ, रायता और मीठा बनाया। अगले दिन मनोरंजन के लिए उसे सिनेमा भी दिखाया। यह सब उन्होंने यह सोचकर किया कि अतिथि भगवान होता है, जो दर्शन देकर एक-दो दिन में चला जाएगा।

प्रश्न 7.
लेखक का भावभीनी विदाई से क्या तात्पर्य था ?
उत्तर :
लेखक का भावभीनी विदाई से तात्पर्य था कि जब अतिथि घर से जाता है, तो सबके मन भीग जाते हैं। वे लोग अतिथि को कुछ दिन और रुकने का आग्रह करते हैं, परंतु वह वहाँ से जाने के लिए तैयार हो जाता है। अतिथि से फिर आने का वायदा लिया जाता है। परिवार वाले अश्रुपूर्ण आँखों से अतिथि को स्टेशन छोड़ने जाते हैं और जाते-जाते एक-दूसरे को प्रेम भरे आँसुओं से भिगो देते हैं। इससे दोनों के मन प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
अतिथि के लेखक के घर से न जाने पर घर का वातावरण कैसा हो गया ?
उत्तर :
अतिथि को घर आए हुए चार दिन हो गए थे और उसके प्रति सम्मान धीरे-धीरे कम हो रहा था। अतिथि को देखकर खिलने वाला चेहरा मुरझाने लगा था। उनकी आपस में बातचीत समाप्त हो गई थी। लेखक कमरे में लेटा हुआ उपन्यास पढ़ रहा था और अतिथि फिल्मी पत्रिकाओं के पन्ने पलट रहा था। कमरे में बोरियत भरा वातावरण छा गया था। प्यार की भावनाएँ मन-ही-मन गालियों का स्वरूप ग्रहण कर चुकी थीं। परंतु अतिथि के वहाँ से जाने का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा था, जिस कारण घर का वातावरण असहनीय हो गया था।

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प्रश्न 9.
लेखक की पत्नी ने खिचड़ी बनाने का निर्णय क्यों किया ?
उत्तर :
अतिथि को आए हुए चार दिन हो गए थे और इन चार दिन की मेहमाननवाजी से घर का बजट बिगड़ गया था। लेखक की पत्नी भी अतिथि के सेवा – सत्कार से तंग आ गई थी। इसलिए उसने खिचड़ी बनाने का निर्णय किया।

प्रश्न 10.
सत्कार की ऊष्मा क्या है ? वह क्यों समाप्त हो रही थी ?
उत्तर :
सत्कार की ऊष्मा से अभिप्राय है कि घर आने वाले अतिथि का गर्मजोशी से स्वागत करना तथा उसका खूब सेवा-सत्कार करना। लेखक ने भी अपने अतिथि का खूब सेवा-सत्कार किया, परंतु अतिथि को आए हुए चार दिन हो गए थे। अतिथि के कारण लेखक का बजट बिगड़ गया था। अब वह उस पर अधिक खर्च नहीं कर सकता था। इसलिए अतिथि के प्रति अब उसकी सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी।

प्रश्न 11.
अतिथि के जाने का यह चरम क्षण कैसा था ?
उत्तर :
लेखक अतिथि की सेवा करते हुए तंग आ गया था। वह चाहता था कि अतिथि सम्मानपूर्वक उसके यहाँ से चला जाए। अब वह और उसका परिवार अतिथि को सहन करने का धैर्य खो चुके थे। लेखक भी एक मनुष्य है, इसलिए वह चाहता था कि अतिथि उसके घर से चला जाए। यही उसके घर में ठहरने की चरम सीमा थी। इससे ही लेखक और अतिथि में परस्पर मधुर रिश्ते बने रहेंगे।

तुम कब जाओगे, अतिथि Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – शरद जोशी हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य-लेखकों में से एक हैं। जोशी जी का जन्म सन् 1931 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। पिता सरकारी नौकरी में थे, अतः तबादले होते रहते थे जिससे इनकी शिक्षा मध्य प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में हुई। युवावस्था में आकाशवाणी और सरकारी कार्यालयों में काम करने के पश्चात जोशी जी नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन करने लगे। इंदौर से प्रकाशित ‘नई दुनिया’ में इनकी रचनाएँ छपने लगीं। सन् 1980 में ‘हिंदी एक्सप्रेस’ के संपादन का भार भी इन्होंने सँभाला।

शरद जोशी मूलत: व्यंग्य लेखक थे और इसी रूप में इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया था। सन् 1991 में इनका देहावसान हुआ। रचनाएँ – शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य रचनाएँ हैं- परिक्रमा, ‘जीप पर सवार इल्लियाँ, किसी बहाने’, ‘रहा किनारे बैठ’, ‘तिलस्म’, ‘दूसरी सतह’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’, ‘यथासंभव’ तथा ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे ‘।

भाषा-शैली – शरद जोशी व्यंग्य में हास्य का पुट अधिक रखते हैं, क्योंकि उनके ही शब्दों में, “हास्य के माध्यम से कुछ बातें बहुत कम शब्दों में और बड़ी सरलता से कह देने में सफलता मिली है। सामान्य पाठक बड़ी जल्दी विषय-प्रवेश कर जाता है और उसको जब इस बात का अहसास होता है कि इन सीधी-सादी बातों के पीछे गहरा तथ्य है, तो जो ‘शॉक’ पाठक को लगता है वही उसे झकझोरता है।” इस प्रकार वे हास्य को व्यंग्य का औज़ार मानते हैं, न कि लक्ष्य।

‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ में जब अतिथि चार दिन तक लेखक के घर से नहीं जाता, तो पाँचवें दिन लेखक उसे चुनौती देते हुए कहता है – “तुम लौट जाओ, अतिथि ! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ!” लेखक के इस कथन में अनचाहे मेहमानों पर कटाक्ष किया गया है। लेखक ने तत्सम प्रधान – चतुर्थ, दिवस, अंकित, संक्रमण शब्दों के साथ ही एस्ट्रॉनॉट्स, स्वीट- होम, स्वीटनेस, शराफ़त, सेंटर आदि विदेशी शब्दों का यथास्थान सहज रूप से प्रयोग किया है।

लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें यथास्थान लाक्षणिकता एवं चित्रात्मकता भी विद्यमान है; जैसे- ‘मेरी पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी-बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आँखें देख मैंने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था। पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती हैं, तो मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बड़ी हुई थीं कि अतिथि अधिक दिनों तक ठहरेगा।’

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पाठ का सार :

‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ के लेखक शरद जोशी हैं। इस पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है, जो अपने किसी परिचित के घर बिना सूचना दिए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। लेखक के घर अचानक आए हुए अतिथि को आज चार दिन हो गए हैं और वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक सोचता है कि ‘तुम कब जाओगे अतिथि ?’

लेखक के घर आया हुआ अतिथि जहाँ बैठा सिगरेट का धुआँ फेंक रहा है, उसके सामने लगे कैलेंडर की तारीखें पिछले दो दिनों से लेखक ने अतिथि को दिखा-दिखा कर बदली हैं। लेखक के घर आए आज उसका चौथा दिन है, पर वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक कहता है कि इतने समय तक तो चंद्रयात्री भी चाँद पर भी नहीं रुके थे। क्या उसे उसकी अपनी धरती नहीं पुकार रही ?

जिस दिन यह अतिथि लेखक के घर आया था, उस दिन वह किसी अनजानी मुसीबत के आने की संभावना से घबरा गया था और उसे अपने बजट की चिंता होने लगी थी। इतना होने पर भी उसने पत्नी सहित अतिथि का स्वागत किया था। रात के भोजन में उसे दो सब्ज़ियाँ, रायता, मीठा आदि खिलाया था। उन्होंने सोचा था कि कल तो यह अतिथि चला ही जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरे दिन भी उसे अच्छा भोजन करवाया और सिनेमा भी दिखाया। लेखक ने सोचा था कि अगले दिन उसे स्टेशन पहुँचाकर भावभीनी विदाई दे देंगे।

तीसरे दिन जब अतिथि ने अपने कपड़े धोबी को देने के लिए कहा, तो लेखक बहुत घबरा गया। उसे लगा कि अतिथि सदा देवता नहीं होता, वह मानव और राक्षस भी हो सकता है। उसके कपड़े देने के लिए लेखक उसके साथ लॉंड्री की ओर चला, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी की आँखें इस आशंका से फैल गई हैं कि अतिथि अधिक दिन तक ठहरेगा। लाँड्री से कपड़े धुल कर भी आ गए; उसके बिस्तर की चादर भी बदल दी, पर उसके जाने के कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे। दोनों की आपस में बातचीत भी बंद हो गई। लेखक उपन्यास पढ़ता, तो अतिथि फिल्मी पत्रिका के पृष्ठ पलटता रहता था।

लेखक की पत्नी ने पूछा कि यह महाशय कब प्रस्थान करेंगे? लेखक ने केवल इतना ही कहा कि क्या कह सकता हूँ। पत्नी ने कहा कि आज मैं खिचड़ी बना रही हूँ। लेखक ने बनाने के लिए कह दिया। उनके मन में अतिथि सत्कार के सब भाव समाप्त हो गए थे। अब अतिथि को भी खिचड़ी खानी होगी। अगर वह अब भी न गया, तो उसे उपवास भी करना पड़ सकता है। लेखक को लगता है कि अतिथि को यहाँ अच्छा लग रहा है, इसलिए वह यहाँ से जाना नहीं चाहता क्योंकि दूसरों का घर सबको अच्छा लगता है। वह उसे गेट आउट कहना चाहता है, पर शराफत के मारे ऐसा कहता नहीं है।

लेखक सोचता है कि अगले दिन जब अतिथि सो कर उठेगा, तो वह उसका यहाँ आने का पाँचवाँ दिन होगा। लेखक को लगता है कि तब वह यहाँ से सम्मानपूर्वक विदा होने का निर्णय अवश्य ले लेगा। यह लेखक की सहनशीलता का अंतिम दिन होगा। उसके बाद वह उसका आतिथ्य नहीं कर सकेगा। वह जानता है कि अतिथि देवता होता है, पर वह अधिक समय तक देवताओं का भार नहीं उठा सकता क्योंकि देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं न कि उसके समान जमकर बैठ जाते हैं। इसलिए लेखक चाहता है कि उसका अतिथि भी लौट जाए, जिससे उसका देवत्व सुरक्षित रहेगा अन्यथा लेखक उसे भगाने के लिए कुछ भी कर सकता है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

अतिथि – मेहमान। आगमन – आना। चतुर्थ – चौथा। दिवस – दिन। निस्संकोच – बिना किसी संकोच के। नम्रता – नरमी, कोमलता। विगत – पिछले। सतत – निरंतर, लगातार। आतिथ्य – आवभगत, अतिथि का सत्कार। संभावना – उम्मीद, आशा। एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री। अंतरंग – घनिष्ठ। मिट्टी खोदना – बुरी हालत करना। हाईटाइम – उच्च समय, ठीक समय, उचित समय। आशंका – भय, संदेह। डिनर – रात्रि-भोज। मेहमाननवाज़ी – अतिथि सत्कार। आग्रह – अनुरोध। पीड़ा – दुख। लंच – दोपहर का भोज। गरिमा – गौरव। छोर – सीमा, किनारा।

भावभीनी – प्रेम से भरपूर। आघात – चोट, प्रहार। अप्रत्याशित – जिसके बारे में सोचा न गया हो, आकस्मिक, अचानक। मार्मिक – मर्मस्थल पर प्रभाव डालने वाली, प्रभावशाली। सामीप्य – निकटता। बेला – समय, अवसर। लॉड्री – कपड़े धुलने का स्थान। औपचारिक – जो केवल दिखलाने भर के लिए हो। निर्मूल – निराधार, व्यर्थ, बिना जड़ के। लुप्त – समाप्त। कोनलों – कोनों से। चर्चा – बातचीत। चुक गए – समाप्त हो गए। सौहार्द – सज्जनता, मित्रता। शनै:-शनै: – धीरे-धीरे। रूपांतरित – बदल जाना। अदृश्य – जो दिखाई न दे। ऊष्मा – गरमी, आवेश। संक्रमण – एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचना। चरम – अंतिम। होम – घर। स्वीटनेस मिठास। गेट आउट – निकल जाओ। गुंजायमान – गूँजती हुई।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है ? इससे संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका की क्या इच्छा होती है ?
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है ? अपने शब्दों में लिखिए।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या ? स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) तट पर एक गुलाब सोचता है, “देते स्वर यदि मुझे विधाता, अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता। ”

(ख) जब शुक गाता है तो उसका स्वर सारे जंगल में गूँज उठता है, परंतु शुकी चुपचाप रहती है और अपने पंख फुलाकर भविष्य में मिलने वाले मातृत्व के सुखद भावों में डूबी रहती है।

(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका उसका गीत सुनने घर से बाहर उस स्थान तक आ जाती है जहाँ प्रेमी गीत गा रहा होता है। वह एक नीम के पेड़ के नीचे छिपकर उसका गीत सुनती रहती है और मन-ही-मन सोचती है कि वह अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई ? प्रेमी गीत गाता रहता है और प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जाता है।

(घ) नदी पहाड़ से उतरकर कल-कल ध्वनि करती हुई निरंतर बहते हुए सागर की ओर तेजी से बढ़ती जाती है। नदी अपने रास्ते में पड़े हुए पत्थरों से टकराकर आगे बढ़ती जाती है। नदी के किनारे गुलाब के फूल उगे हुए हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है जो किसी सामान्य मानव की तरह अपने भावों को व्यक्त करती है। वह अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए तेज़ वेग से बहती हुई अपने हृदय में छिपी प्रेमकथा अपने तल में पड़े पत्थरों को सुनाती जाती है और नदी किनारे उगा गुलाब सोचता है कि यदि उसके पास वाणी होती तो वह भी पतझड़ के सपनों का गीत सुनाता।

(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों का संबंध तो मणि- कंचन योग की तरह है। पशु-पक्षी अपने सुंदर रंगों, तरह-तरह के रूप- आकारों, आवाज़ों और चहचहाहट से प्रकृति को जीवंतता प्रदान करते हैं। हरे-भरे पेड़ जब तक पक्षियों के कलरव से गुंजायमान नहीं होते; झाड़ियों के झुरमुट तरह-तरह के कीड़े-मकोड़ों की ध्वनियों से नहीं गूँजते और जंगल छोटे-बड़े जीवों की आवाज़ों से नहीं थर्राते तब तक प्रकृति सूनी-सी लगती है। भागते-दौड़ते पशु, उड़ते – मंडराते पक्षी, रेंगते – सरकते कीड़े और सरीसृप, तालाब में तैरती मछलियाँ और टर-टर्राते मेंढक और बादलों में उड़ती सारसों की पंक्तियाँ ही प्रकृति को जीवन देती हैं। प्रकृति और पशु-पक्षी एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं।

(च) मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। मनुष्य प्रकृति का हिस्सा ही तो है। प्रकृति उसे सदा आंदोलित करती रहती है तथा उसकी विभिन्न प्रेरणाओं की आधार बनती है। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल, उड़ते रंग-बिरंगे पक्षी तथा तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े मानव को सदा आंदोलित करते हैं कि वह भी उनकी तरह आकाश में उड़ान भरे और मनुष्य हवा में उड़ान भरने के लिए साधन बना लिए। पानी में मछली की तरह तैरना सीख लिया; सागर की गहराइयों में गोते खाना सीख लिया। ऊँचे पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों को देख ऊँचे-ऊँचे भवनों में रहना सीख लिया। प्रकृति सदा मनुष्य को प्रेरणा देती है, दिशा दिखाती है। तभी तो वह तितली के रंगों से प्रेरित रंग-बिरंगे कपड़े पहनना सीख गया।

(छ) यदि मन के कोमल भावों को गाकर मधुर स्वर में प्रकट करना गीत है तो मन के वे कोमल भाव अगीत हैं जो मन में छिपे रहते हैं। वे मुखर नहीं होते, मौन रह जाते हैं। यदि गीत हैं तो वे अगीत के कारण से हैं। मन में छिपे सभी कोमल-कठोर भाव अगीत ही तो हैं जो शब्दों का रूप नहीं ले पाते। यदि अगीत न हों तो गीत बन नहीं सकते। गीत तो अगीत के ही शाब्दिक रूप हैं। इस संसार के हर मानव में हर समय तरह-तरह के भाव उत्पन्न होते रहते हैं। वे भाव, प्रेम, घृणा, वीरता, भक्ति, साहस, करुणा आदि के हो सकते हैं, पर हर भाव तब तक गीत नहीं बनता जब तक उसे शब्द प्राप्त नहीं हो जाते। वास्तव में भावों के रूप में अगीत पहले बनते हैं और गीतों की सर्जना बाद में होती है।

(ज) ‘गीत-अगीत’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम की पहचान प्रदर्शन में नहीं अपितु मौन-भाव से प्रेम की पीड़ा को पी जाने में है। नदी विरह गीत गाते हुए तीव्र गति से सागर से मिलने चली जाती है। वह अपनी विरह व्यथा अपने मार्ग में आने वाले पत्थरों को सुनाती है, परंतु नदी किनारे उगा हुआ गुलाब मौन-भाव से सोचता रहता है तथा अपने प्रेम-भावों को व्यक्त नहीं करता है। तोता दिन निकलने पर मुखरित हो उठता है परंतु तोती स्नेहभाव में डूबी मौन रहती है। प्रेमी उच्च स्वर में आल्हा गाकर अपना प्रेम व्यक्त करता है परंतु प्रेमिका छिपकर उसका गीत सुनकर भी मौन रहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

प्रश्न 2.
संदर्भ – सहित व्याख्या कीजिए –
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
(ख) गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
(ग) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?
यों मन में गुनती है।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के लिए पद क्रमांक 1, 2, 3 की व्याख्या देखिए।

भाषा-अध्ययन –

निम्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य- विचलन’ को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य – विन्यास लिखिए –
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता- एक गुलाब तट पर सोचता है।
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
(ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
(ङ) शुकी बैठी अंडे है सेती।
उत्तर :
(क) यदि विधाता मुझे स्वर देते।
(ख) उस घनी डाल पर शुक बैठा है।
(ग) वन में शुक का स्वर गूँज रहा है।
(घ) मैं गीत की कड़ी क्यों न हुई ?
(ङ) शुकी बैठकर अंडे सेती है।

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘गीत-अगीत’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु मौन भाव में है।
उत्तर :
‘गीत-अगीत’ कविता में कविवर श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने प्रेम के साहित्यिक पक्ष को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि का मानना है कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु प्रेम की पीड़ा को मौन भाव से पी जाने में है। इसे कवि ने नदी और गुलाब, शुक और शुकी तथा प्रेमी और प्रेमिका की निम्नलिखित तीन स्थितियों के माध्यम से स्पष्ट किया है –

(क) नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेजी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है। लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझड़ में मिलने वाली हताशा और दुख प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गाकर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है।

(ख) एक तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रहा है जिस पर उसका घोंसला है घोंसले में तोती पंख फुला कर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छनकर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में मग्न है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुला कर मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है।

(ग) शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने यह सोचकर नहीं जाती कि कहीं उसका प्रेमी गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई? प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय मूक प्रसन्नता से भरता जा रहा है।

इन तीनों स्थितियों में नदी, शुक और प्रेम मुखरित हैं किंतु गुलाब, शुकी और प्रेमिका अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करते हैं किंतु मन-ही-मन प्रेम का आस्वादन करते हैं। इनका प्रेम भी नदी, शुक और प्रेमी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इनका यह मौन भाव ही इनके सात्विक प्रेम की पहचान है। इसलिए स्पष्ट है कि सच्चा प्रेम मुखरता में नहीं बल्कि मौन भाव में होता है।

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प्रश्न 2.
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कैसे कम करती है और उसके विरह के गीत कौन सुनता है ?
उत्तर :
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कम करने के लिए पहाड़ से नीचे उतरते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते हुए विरह के गीत गाती है। अपनी विरह – पीड़ा की कथा कल-कल ध्वनि से सुनाती है। उसकी विरह कथा किनारे या मध्य पड़े पत्थर सुनते हैं। इस तरह नदी अपनी बात कह कर अपना मन हल्का कर लेती है।

प्रश्न 3.
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब का फूल क्या सोच रहा है ?
उत्तर :
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब सोचता है कि यदि भगवान ने उसे भी वाणी दी होती तो वह भी की कहानी सुनाता। वह भी संसार को बताता कि पतझड़ आने पर वह कैसे निराश और दुखी हो जाता है

प्रश्न 4.
शुक अपना प्यार कैसे व्यक्त करता है ?
उत्तर :
शुक अपने परिवार के साथ पेड़ की शाखा पर बने घोंसले में रहता है। शुकी घोंसले में अंडों को सेने का काम करती है। वह मातृत्व के स्नेह में डूबी हुई है। शुक सूर्य निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छनकर उसकी ओर आती हैं तो वह प्रसन्नता से भर जाता है और मधुर गीत गाने लगता है। इस प्रकार वह अपना प्रेम प्रकट करता है।

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प्रश्न 5.
शुकी, शुक के प्रेम-भरे गीत सुनकर भी बाहर क्यों नहीं आती है ?
उत्तर :
शुकी घोंसले में अपने पंख फैलाकर अपने अंडे सेने का काम कर रही है। वह मातृत्व स्नेह से भरी हुई है। उसे शुक के प्रेम-भरे गीत सुनाई दे रहे हैं। परंतु उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। शुकी अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। वह शुक का प्रेम-गीत सुन रही है, परंतु उसका प्रेम मौन रूप धारण किए हुए है। वह अपना प्रेम प्रकट नहीं करती है क्योंकि वह मातृत्व के सुखद भावों में डूबी हुई है।

प्रश्न 6.
प्रेमी आल्हा गीत क्यों गाता है ?
उत्तर :
कवि एक प्रेमी जोड़े का वर्णन करता है। प्रेमी संध्या होते ही आल्हा की कथा रसमय ढंग से गाने लगता है। से अपनी प्रेमिका को अपने पास बुलाना चाहता है। वह चाहता है कि उसके गीत सुनकर, उसकी प्रेमिका उसके वह अपने प्रेम को गीतों के माध्यम से व्यक्त करता है।

प्रश्न 7.
प्रेमिका का प्रेम मौन क्यों है ?
उत्तर :
प्रेमिका प्रेमी की आल्हा की कथा सुनकर अपने को रोक नहीं पाती है। वह घर से प्रेम में डूबी हुई निकल पड़ती है। वह घर से प्रेमी से मिलने निकलती है, परंतु वह उसके सामने न जाकर एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ी हो जाती है। वहीं खड़े-खड़े वह अपने प्रेमी द्वारा गाए जा रहे गीत सुनती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि ईश्वर उसे प्रेमी के गीत की एक कड़ी बना दे। वह मौन रहकर अपने प्रेम को प्रकट करती है। वह अपने प्रेम को शब्दों में व्यक्त नहीं करती है।

व्याख्या :

1. गाकर गीत विरह के तटिनी वेगवती बहती जाती है।
दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता, “देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता।”
गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : तटिनी नदी वेगवती तेज़ी से बहने वाली। उपलों – पत्थरों। विधाता – ईश्वर। जग – संसार। निर्झरी नदी। पाटल – गुलाब, रंग के जैसा। मूक – चुपचाप।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने प्रेम और शृंगार के भावों को व्यंजित किया है। उसने माना है कि प्रेम-भावों में मौन रहने वालों का महत्व किसी प्रकार से भी कम नही है। तीन चित्रों में से प्रस्तुत पहले चित्र में नदी और गुलाब के रूपक से कवि ने अपने कथन की सार्थकता को प्रमाणित करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए कहता है कि गीत के स्वर प्रकट करना अच्छा है या मौन रहना ? वह प्रश्न का उत्तर देने की अपेक्षा चित्र प्रस्तुत करता है। नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेज़ी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती जाती है। कल-कल की ध्वनि करती हुई नदी निरंतर बहती रहती है, अपनी विरह – पीड़ा की कथा कहती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है।

लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझर में मिलने वाली हताशा और दुख को प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गा कर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है। पता नहीं, व्यक्त किया गया गीत अच्छा है या मौन भाव से प्रकट किया गया भाव श्रेष्ठ है ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

2. बैठा शुक उस घनी डाल पर जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर रह जाते स्नेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : शुक – तोता। खोंते – घोंसले, नीड़। शुकी – तोती। पर्ण – पत्ते। स्नेह – प्यार। सनकर – युक्त होकर। फूला – प्रसन्नता से भरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि प्रेम के मौन और मुखर रूपों में से किसी एक को श्रेष्ठ घोषित करना चाहता है पर वह ऐसा शब्दों में न कर शब्द-चित्रों के द्वारा प्रकट करता है।

व्याख्या : तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रही है। उस पर उसका घोंसला है। घोंसले में तोती पंख फुलाकर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छन कर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुलाकर भावी मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है। कवि प्रश्न करता है कि पता नहीं गीत सुंदर है या अगीत ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

3. दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब पड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?’ यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : बिधना – ब्रह्म, भाग्य। आल्हा – पृथ्वीराज चौहान के समय का एक योद्धा, वीर रस का गीत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गीत-अगीत में अंतर स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चित्र अंकित किए हैं जिनके माध्यम से मौन प्रेम को महत्वपूर्ण बताया है। नदी – गुलाब तथा शुक शुकी के चित्रों के माध्यम से उसने प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम-भाव को प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यहाँ दो प्रेमी हैं। शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने भी एकदम से नहीं जाती शायद यह सोचकर कि उसका प्रेमी कहीं गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई। प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जा रहा है। पता नहीं, प्रेमी के द्वारा गाकर प्रकट किया गया प्रेम-भाव महत्वपूर्ण है या प्रेमिका के द्वारा छिपकर प्रकट किया मौन प्रेम ?

गीत – अगीत Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय चेतना का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। मोकामाघाट के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्होंने सन् 1932 में पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया।

सन् 1950 में बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे सन् 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। इसके बाद वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। कुछ वर्षों तक आप भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1959 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनका निधन सन् 1974 में हुआ।

रचनाएँ – कविवर दिनकर ने अपनी रचनाएँ काव्य, निबंध आलोचना, बाल-साहित्य आदि के रूप में प्रस्तुत की हैं। ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘उर्वशी’, ‘हुंकार’, ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘द्वंद्वगीत’, ‘धूप-छाँह ‘, सीपी और शंख’, ‘धूप और धुआँ’ आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।

‘संस्कृति के चार अध्याय’ आपका संस्कृति संबंधी एक विशाल ग्रंथ है। ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘मिट्टी की ओर’ तथा ‘अर्द्ध- नारीश्वर’, उनकी प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ हैं। ‘चित्तौड़ का साका’ तथा ‘ मिर्च का मज़ा इनके बाल-साहित्य के अंतर्गत लिखी गई पुस्तकें हैं।

काव्य की विशेषताएँ – कविवर दिनकर सर्वोन्मुखी प्रतिभा के कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध पक्षों को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की अनेक समस्याओं को अपने काव्य में संजोया है। उनके काव्य का मुख्य स्वर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय उत्थान की भावना है। उन्होंने विश्व में व्याप्त वर्ग संघर्ष व पूँजीवादी व्यवस्था का भी विरोध किया है। प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से भी इनके काव्य में ग्राम्य-जीवन सजीव हो उठता है।

कवि के हृदय में समाज के दलित वर्ग के प्रति सहानुभूति का स्वर दिखाई देता है। कवि की भाषा सहज, सरल, मधुर एवं तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। लाक्षणिकता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने मुख्य रूप से गीति – शैली को अपनाया है। इन्होंने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों ही शैलियों में काव्य-रचनाएँ की हैं। छंद और अलंकारों की विविधता इनके काव्य की विशेषता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

कविता का सार :

श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ शृंगारिक चेतना से परिपूर्ण रचना है जिसमें जीवन में प्रेम और कोमलता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। कवि मानता है कि प्रेम की महानता उसकी पहचान करने में नहीं है बल्कि मौन भाव में सारी पीड़ा को पी जाने में है। कवि ने तीन रूपकों के माध्यम से अपने भाव कहने चाहे हैं। वे रूपक हैं-सरिता और गुलाब, मुखर शुक और मौन शुकी तथा आल्हा गाने वाला प्रेमी और चोरी-चोरी उसका गीत सुनने वाली उसकी प्रेमिका।

नदी विरह के गीत गाती हुई तीव्र वेग से बहती हुई आगे निकल जाती है। वह किनारे पड़े पत्थरों से कुछ-कुछ कहकर अपना हृदय हल्का कर लेती है पर नदी के किनारे उगा हुआ एक गुलाब मौन भाव से सोच में डूबा रहता है। वह अपने प्रेम-भावों को प्रकट नहीं कर पाता। एक डाली पर तोता बैठा है और उसके कुछ नीचे घोंसले में पड़े अंडों को तोती से रही है। धूप की सुनहरी किरणों को पाकर तोता तो गाता है पर तोती स्नेह भाव में डूबी मौन है, वह कुछ नहीं बोलती।

प्रेमी संध्या समय आल्हा गाता है। वह अपने प्रेम को गीत के माध्यम से व्यक्त करता है पर उसकी प्रेमिका नीम की छाया में चुपचाप गीत सुनती है, कुछ बोलती नहीं, पर सोचती अवश्य है कि भाग्य ने उसे गीत की कड़ी क्यों नहीं बना दिया। इस कविता में जो नहीं कहा गया, वह कहे गए से अधिक महत्वपूर्ण है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति

प्राकृत संख्याएँ वस्तुओं की गिनती करने के लिए हम 1, 2, 3, 4,… आदि संख्याओं का प्रयोग करते हैं। इन संख्याओं को प्राकृत संख्याएँ कहते हैं। इनकी संख्या अनन्त होती है। प्राकृत संख्याओं के समूह को N द्वारा व्यक्त करते हैं।
जैसे N = {1, 2, 3, 4, 5,…..}

पूर्ण संख्याएं: यदि प्राकृत संख्याओं में 0 (शून्य) को सम्मिलित कर लिया जाए, तो प्राप्त संख्याओं के समूह को पूर्ण संख्याएँ कहा जाता है। इस समूह को W से व्यक्त किया जाता है।
जैसे W = {0, 1, 2, 3, 4….}

प्राकृत संख्याओं और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय में अन्तर :
प्राकृत संख्याओं का समुच्चय N = {1, 2, 3…} है और पूर्ण संख्याओं का समुच्चय W = {0, 1, 2, 3….} है।
प्राकृत और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय की तुलना करने पर, हम देखते हैं कि

  • समस्त प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्याएँ हैं।
  • 0 के अतिरिक्त समस्त पूर्ण संख्याएँ प्राकृत संख्याएँ हैं।
  • 1 सबसे छोटी प्राकृत संख्या है जबकि 0 सबसे छोटी पूर्ण संख्या है।
  • प्राकृत तथा पूर्ण संख्याएँ अनन्त होती हैं।

पूर्णांक संख्याएँ : यदि प्राकृत संख्याओं में ऋण संख्याओं को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो प्राप्त संख्याओं के संग्रह को पूर्णांक संख्याएँ कहा जाता है, और इन्हें Z or I प्रतीक से व्यक्त किया जाता हैं। ये दो प्रकार की होती हैं:
(i) धन पूर्णांक,
(ii) ऋण पूर्णांक
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति 1
(i) संख्या रेखा पर शून्य के दार्यों और के पूर्णांक, धन पूर्णांक तथा शून्य के बायीं ओर के पूर्णांक, ऋण पूर्णांक कहलाते हैं।
(ii) शून्य, प्रत्येक धन पूर्णांक से छोटा तथा सभी ऋण पूर्णांकों से बड़ा होता है।

Jharkhand Board Solution

परिमेय संख्याएँ : ऐसी संख्याएँ जो \(\frac{p}{q}\) के रूप में व्यक्त की जा सकती हों तथा जहाँ p और पूर्णांक हों, परन्तु q ≠ 0, परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}, \frac{2}{3}, \frac{-4}{5}, \frac{7}{3}, \frac{-6}{7}, \ldots\) इत्यादि।

  • प्रत्येक प्राकृत संख्या परिमेय संख्या है।
  • 0 एक परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक पूर्णांक परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक भिन्न परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक परिमेय संख्या का दशमलव भिन्न के रूप में प्रसार किया जा सकता है।

परिमेय संख्याओं का दशमलव प्रसार दो प्रकार का होता है:
(i) सांत,
(ii) असांत (अनवसानी आवर्ती)।

सांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्याएँ, जो कि सदा \(\frac{p}{q}\) के रूप में होती है, p में q का भाग देने पर अन्त में शेषफल शुन्य प्राप्त होता है, तो वे दशमलव संख्याएँ सांत दशमलव प्रसार वाली परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}\) = 0.5, \(\frac{3}{2}\) = 1.5, \(\frac{1}{8}\) = 0.125 आदि।

असांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्या को दशमलव संख्या में बदलते समय भाग की क्रिया निरन्तर चलती रहती है और शेषफल की निरंतरता बनी रहती है अर्थात् भागफल में अंकों की पुनरावृत्ति होती रहती है इस प्रकार की दशमलव संख्याओं को असांत आवर्ती दशमलव संख्या कहते हैं असांत दशमलव संख्या को संक्षिप्त रूप में लिखने के लिए पुनरावृत्ति वाले अंकों के ऊपर (-) रेखा खींचते हैं।
जैसे : \(\frac{3}{11}\) = 0.272727…….. = \(0 . \overline{27}\)
\(\frac{1}{3}\) = 0.333……. = \(0 . \overline{3}\) इत्यादि।
इन्हें असांत आवर्ती (Non-terminating Repeating) परिमेय संख्याएँ भी कहते हैं।

Jharkhand Board Solution

परिमेय संख्याओं के महत्त्वपूर्ण बिन्दु :

  1. प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक व भिन्नें सभी परिमेय संख्याएँ होती हैं।
  2. भिन्न के अंश और हर प्राकृत संख्याएँ होती हैं, जबकि परिमेय संख्या के अंश और हर पूर्णांक होते हैं। परन्तु परिमेय संख्या का हर शून्य नहीं होता।
  3. संख्या रेखा पर परिमेय संख्याएँ प्रदर्शित की जा सकती हैं।
  4. किसी परिमेय संख्या के अंश और हर को समान अशून्य पूर्णांक से गुणा करने अथवा भाग देने पर समतुल्य परिमेय संख्याएँ प्राप्त होती हैं।
  5. दो परिमेय संख्याओं के बीच में अनन्त परिमेय संख्याएँ निहित होती हैं।
  6. प्रत्येक परिमेय संख्या को सांत अथवा असांत आवर्ती दशमलव संख्या के रूप में लिखा जा सकता है।
  7. सांत परिमेय संख्या का हर सदैव 2m × 5n के रूप में होता है।
  8. यदि परिमेय संख्या का हर 2m × 5n के रूप में नहीं है तो वह असांत आवृत्ति होती है।
  9. यदि परिमेय संख्या के अंश तथा हर में एक के अतिरिक्त अन्य कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड नहीं है तो वह परिमेय संख्या का मानक रूप (Standard form) कहलाता है।
  10. परिमेय संख्या ऋणात्मक हो सकती है किन्तु उसका हर सदैव धनात्मक ही लिया जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है –
सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
(ख) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
(ग) पुजारी से प्रसाद। फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
(घ) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप
उत्तर :
(क) बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भाँति इस बार उसे।
(ख) ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण – कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप – धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर-बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।
(ग) मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

(घ) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय ! फूल – सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी !
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 2.
बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की थी ?
उत्तर :
बीमार बच्ची ने देवी के प्रसाद के एक फूल को लाकर देने की इच्छा प्रकट की थी।

प्रश्न 3.
सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया ?
उत्तर :
सुखिया के पिता पर यह आरोप लगाया गया कि उसने मंदिर में घुसकर मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है।

प्रश्न 4.
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया ?
उत्तर :
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने देखा कि उसकी बच्ची उसके जेल जाने के बाद मर गई थी। उसे उसके परिचितों ने जला दिया था। वह उसके सामने बुझी हुई चिता की राख के ढेर के समान पड़ी हुई थी।

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प्रश्न 5.
इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘एक फूल की चाह’ कविता के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता से पूर्व हमारे देश में जाति-भेद की समस्या बहुत उग्र थी। जाति विशेष के लोगों को मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता था। सुखिया महामारी से पीड़ित थी। उसने अपने पिता से देवी के मंदिर से देवी के प्रसाद के रूप में एक फूल लाने के लिए कहा। उसका पिता मंदिर गया और उसे देवी का प्रसाद भी मिल गया परंतु कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया और पीटते हुए न्यायालय ले गए। वहाँ उसे सात दिन का दंड मिला। जब वह लौटकर आया तो उसकी बच्ची मर गई थी। उसका दाह-संस्कार भी उसके पड़ोसियों ने कर दिया था। वह बेटी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका था।

प्रश्न 6.
इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों / बिंबों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण – अंधकार की छाया।
उत्तर :
(क) स्वर्ण – धन
(ग) हृदय – चिताएँ
(ख) पुण्य- पुष्प
(घ) चिरकालिक शुचिता
(ङ) उत्सव की धारा

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ- सौंदर्य बताइए-
(क) अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।
(ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी।
(ग) हाय ! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(घ) पापी ने मंदिर में घुसकर, किया अनर्थ बड़ा भारी।
उत्तर :
(क) सुखिया का पिता जेल में बंद निरंतर रोता रहा। वह अपनी बेटी की इच्छा पूरी न कर पाने के कारण मन-ही-मन तड़पता रहा। लगातार रोने पर भी उसकी आँखों से आँसू कम नहीं हुए। मन की पीड़ा आँखों के रास्ते बहती ही रही।
(ख) श्मशान में सुखिया की बेटी की चिता बुझी पड़ी थी। सगे-संबंधी उसे जलाकर जा चुके थे। पिता का हृदय बेटी की चिता को देखकर धधक उठा था।
(ग) बेटी महामारी की चपेट में आ गई थी। हर समय चंचल रहने वाली अटल शांत-सी चुपचाप पड़ी हुई थी। वह कोई गति नहीं कर रही थी: अचंचल थी।
(घ) लोगों ने सुखिया के पिता को इस अपराध में पकड़ लिया था कि वह बीमार बेटी के लिए देवी माँ के चरणों का एक फूल प्रसाद रूप में प्राप्त करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया था। भक्तों को लगा था कि उसने बहुत अनर्थ कर दिया था। उसने देवी का अपमान किया था।

योग्यता- विस्तार –

प्रश्न 1.
‘एक फूल की चाह’ एक कथात्मक कविता है। इसकी कहानी को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
‘बेटी’ पर आधारित निराला की रचना ‘सरोज- स्मृति’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
तत्कालीन समाज में व्याप्त स्पृश्य और अस्पृश्य भावना में आज आए परिवर्तनों पर एक चर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से क्या कहा ?
उत्तर :
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से कहा- क्या मेरा पाप माँ की महिमा से भी बड़ा है। क्या वह किसी बात में माँ की महिमा से भी आगे है। तुम लोग माँ के कैसे अजीब भक्त हो जो माँ के सामने ही माँ के गौरव को छोटा बना रहे हो।

प्रश्न 2.
सुखिया के पिता को अंत में किस बात का पछतावा रहा?
उत्तर :
सुखिया के पिता को अंत में इस बात का पछतावा था कि वह अंत समय में अपनी बेटी की देवी के प्रसाद की फूल-प्राप्ति की इच्छा भी पूरी नहीं कर सका। फूल का प्रसाद पहुँचाने में असमर्थ होने के कारण उसे पश्चात्ताप तथा दुख का अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 3.
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद क्यों नहीं ले पाया ?
उत्तर :
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद लेना इसलिए भूल गया क्योंकि वह जल्दी-से-जल्दी देवी के मंदिर से पुण्य-पुष्प लाकर अपनी बेटी को देना चाहता था।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(ख) माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
उत्तर :
इन प्रश्नों के उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या का अंश देखें।

प्रश्न 5.
स्वर्ण कलश-सरसिज विहाँसित थे
पाकर समुदित रवि कर – जाल।
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि स्वर्ण कलश के सौंदर्य की तुलना कवि ने किससे की है ?
उत्तर :
स्वर्ण कलश की तुलना कवि ने कमल के फूलों से की है। जिस प्रकार सूर्य की किरणों से कमल खिल उठते हैं, उसी प्रकार सूर्य की किरणों के प्रकाश से स्वर्ण कलश चमक उठे थे। यहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग है। मंदिर के स्वर्ण कलश की उपमा स्वर्ण कमल से दी गई है।

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प्रश्न 6.
जान सका न प्रभात सजग से,
हुई अलस कब दोपहरी।
आपके विचार में प्रभात के लिए ‘सजग’ और दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषणों का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर :
प्रभात के लिए कवि ने ‘सजग’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि प्रभात का समय जागरण का समय है। दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि यह समय आलस्य का भाव उत्पन्न करता है।

प्रश्न 7.
भीतर, “जो डर रहा छिपाए, हाय वही बाहर आया” कौन – सा डर था जो बाहर आया? कैसे?
उत्तर :
महामारी का भयंकर प्रकोप इधर-उधर फैल रहा था। सुखिया के पिता को यह डर था कि कहीं उसकी बेटी को यह रोग न घेर ले। एक दिन सुखिया को बुखार आ गया। यह देखकर पिता के मन में छिपा डर बाहर आ गया। उसे जिसका डर था, वही हुआ।

प्रश्न 8.
‘एक फूल की चाह’ कविता में बालिका के पिता के मन में भय क्यों था ?
उत्तर :
चारों ओर भयंकर महामारी फैली हुई थी। बहुत से बच्चे उस महामारी के प्रकोप से काल का ग्रास हो चुके थे। बालिका सुखिया पिता के बार-बार रोकने पर भी खेलने के लिए घर से बाहर चली जाती थी। इसी कारण पिता के मन में भय था कि कहीं उसकी बेटी महामारी की चपेट में न आ जाए।

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प्रश्न 9.
‘एक फूल की चाह’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इस कविता में कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर की दृष्टि में सब बराबर हैं। जात-पात का भाव व्यर्थ है। कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। दूसरों पर अत्याचार करने वाले प्रभुभक्त नहीं हो सकते।

प्रश्न 10.
“छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !” भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यहाँ तिमिर मौत का सूचक है। छोटी-सी और कोमल बच्ची भयंकर महामारी से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी। उस फूल- सी बच्ची की दयनीय दशा देखकर ऐसा लग रहा था मानो प्रचंड महामारी मौत का रूप धारण कर उसे ग्रसने आई हो।

प्रश्न 11.
लोगों की मृत्यु का क्या कारण था ? मृतकों के सगे-संबंधियों का रोना किस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर रहा था ?
उत्तर :
लोगों की मृत्यु का कारण उस क्षेत्र में फैली महामारी थी। महामारी से मरने वालों के सगे-संबंधियों का रोना निरंतर वातावरण में दुख फैला रहा था। उनके हृदय रूपी चिताएँ जल रही थीं, धधक रही थीं व माताओं का रोना सभी दिशाओं को चीरता हुआ फैल रहा था। वे किसी भी प्रकार अपने हृदय को सांत्वना नहीं दे पा रहे थे।

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प्रश्न 12.
सुखिया किस प्रकार लेटी हुई थी और उसका पिता उसे क्यों उकसा रहा था ?
उत्तर :
सुखिया महामारी का शिकार बन तेज़ बुखार में तपती हुई स्थिर व शांत लेटी हुई थी। उसका पिता उसे इस प्रकार लेटे देखकर डर रहा था। सुखिया तो कभी शांत होकर नहीं बैठती थी। पिता उसे पहले की तरह चंचल देखना चाहता था, इसलिए उसे देवी के प्रसाद की प्राप्ति के लिए उकसा रहा था ताकि वह कुछ तो बोले।

प्रश्न 13.
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा क्यों की ?
उत्तर :
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा इसलिए की क्योंकि उन लोगों का मंदिर में आना मना था, परंतु वह अपनी बेटी के लिए देवी माँ का प्रसाद लेने आया था। लोगों के अनुसार उसने मंदिर में आकर मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी थी। उसने ऐसा अपराध किया था जो क्षमा के योग्य नहीं था।

व्याख्या :

1. उद्वेलित कर अश्रु – राशियाँ, हृदय – चिताएँ धधकाकर,
महा महामारी प्रचंड हो फैल रही थी इधर-उधर।
क्षीण- कंठ मृतवत्साओं का करुण रुदन दुर्दात नितांत,
भरे हुए था निज कृश रव में हाहाकार अपार अशांत।

शब्दार्थ : उद्वेलित – भाव-विभोर। अश्रु – राशियाँ – आँसुओं की झड़ी। प्रचंड तीव्र। क्षीण कंठ – दबी आवाज़। मृतवत्साओं – जिन माताओं की संतानें मर गई हैं। रुदन रोना। दुर्दात जिसे वश में करना कठिन हो, हृदय को दहलाने वाला। नितांत – बिलकुल। निज – अपना। कृश – कमज़ोर। रव – शोर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने महामारी से ग्रस्त कन्या की व्यथा को चित्रित किया है जो देवी के चरणों में अर्पित एक फूल की कामना करती है परंतु समाज में व्याप्त छुआछूत की समस्या उसकी इस इच्छापूर्ति में बाधक बन जाती है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि महामारी के फैलने का वर्णन करते हुए लिखता है कि लोग महामारी से मर रहे थे। मृतकों के सगे-संबंधी परेशान और पीड़ित हो निरंतर आँसू बहाते थे। उनके हृदय रूपी चिताएँ धधक – धधक कर पीड़ा को व्यक्त करती थीं। भीषण महामारी प्रचंड होकर इधर-उधर फैल रही थी। जिन ममतामयी माताओं की संतानें मौत को प्राप्त हो गई थीं वे अपने कमज़ोर गले से चीख – चिल्ला रही थीं। उनकी करुणा से भरी चीख-पुकार सब दिशाओं में फैल रही थी। अपने कमज़ोर और दीन-हीन हाहाकार के शोर में उनकी अशांत कर देनेवाली अपार मानसिक पीड़ा छिपी हुई थी।

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2. बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भांति इस बार उसे।

शब्दार्थ : निहार – देखकर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘स्पर्श’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। इसमें उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की दयनीय दशा का चित्रण किया है। महामारी का भयंकर रोग फैल जाता है। एक व्यक्ति अपनी बेटी सुखिया को छूत के इस रोग से बचाने की कोशिश करता है पर अंततः उसकी बेटी इस रोग से प्रभावित हो ही जाती है। इस पद्यांश में पिता की मनःस्थिति का चित्रण हुआ है।

व्याख्या : छूत की बीमारी फैलने पर सुखिया के पिता का हृदय भय से भर गया था कि कहीं उसकी बेटी को भी महामारी का रोग न घेर ले। अतः वह अपनी बेटी को बहुत रोकता था कि वह खेलने के लिए घर से बाहर न जाए। लेकिन स्वभाव से चंचल होने के कारण सुखिया का खेल नहीं रुकता था। वह पलभर के लिए भी घर में न टिकती थी। उसे बाहर गया देखकर पिता का हृदय काँप उठता था। वह यही मनौती मनाता था कि किसी तरह इस बार उसे बचा ले।

3. भीतर जो डर रहा छिपाए, हाय! वही बाहर आया।
एक दिवस सुखिया के तनु को, ताप तप्त मैंने पाया।
ज्वर में विह्वल हो बोली वह, क्या जानूँ किस डर से डर,
मुझको देवी के प्रसाद का, एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : दिवस – दिन। तनु – शरीर। ताप-तप्त – ज्वर, बुखार से पीड़ित। विह्वल – दुखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता, ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इस कविता में कवि ने एक व्यक्ति की दयनीय दशा का चित्रण किया है। उसका हृदय हमेशा डरता रहता था कि कहीं महामारी का रोग उसकी बेटी को ग्रस्त न कर ले।

व्याख्या : वह कहता है कि – मेरे भीतर जो डर का भाव था, वही एक दिन प्रकट रूप में सामने आ गया। मैंने अपनी बेटी सुखिया के शरीर को ज्वर से पीड़ित पाया। ज्वर की पीड़ा से पीड़ित होकर तथा न जाने किस डर से डरकर वह कहने लगी- मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो। सुखिया का एक फूल के प्रसाद की कामना करना उसपर दैवी प्रकोप के प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

4. क्रमशः कंठ क्षीण हो आया, शिथिल हुए अवयव सारे,
बैठा था नव-नव उपाय की, चिंता में मैं मन मारे।
जान सका न प्रभात सजग से, हुई अलस कब दोपहरी,
स्वर्ण- घनों में कब रवि डूबा, कब आई संध्या गहरी।

शब्दार्थ : क्रमशः – क्रम से, सिलसिलेवार। शिथिल – ढीले। अवयव अंग। नव नए। प्रभात – नए। प्रभात – सवेरा। स्वर्ण घने – सोने के रंग जैसे बादल। रवि सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। सुखिया का पिता हमेशा इस बात से डरता था कि कहीं उसकी बेटी भी महामारी का शिकार न बन जाए। आखिर वही हुआ जिसका डर था। सुखिया को भी महामारी ने आ घेरा। सुखिया की दशा का वर्णन करते हुए उसका पिता कहता है।

व्याख्या : धीरे-धीरे सुखिया के गले की आवाज़ कमज़ोर हो गई। सारे अंग ढीले पड़ गए। मैं मन को मारे हुए अर्थात उदास हुए नए-नए तरीके सोचने में लीन था। सोचता था इसके लिए फूल कैसे लाया जाए। सवेरे सजग होकर, जागकर मैं यह जान न सका कि कब दोपहर हो गई। यह भी न समझ सका कि कब सुनहरे बादलों में सूर्य डूबा और कब गहरी घनी, अंधकारपूर्ण संध्या आ गई।

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5. सभी ओर दिखलाई दी बस, अंधकार की ही छाया,
छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !
ऊपर विस्तृत महाकाश में, जलते से अंगारों से,
झुलसी-सी जाती थीं आँखें, जगमग जगते तारों से।

शब्दार्थ : ग्रसने – डसने। तिमिर – अंधकार। महाकाश – विशाल आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित है। करुण रस से ओत-प्रोत इस कविता में कवि ने समाज के एक वर्ग की दयनीय दशा का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। यहाँ सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा का वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा के कारण उसका निराश पिता कहता है कि यद्यपि मैंने अपनी बेटी का हठ पूरा करने के अनेक उपायों पर विचार किया, किंतु केवल निराशा ही मेरे हाथ लगी। मेरी इतनी सुकुमार और छोटी-सी बालिका को ग्रसने के लिए इतनी प्रचंड महामारी का प्रकोप छाया हुआ था। सुखिया की आँखों से आग निकल रही थी, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो विस्तृत आकाश में अंगारों की तरह अगणित तारे चमक रहे हों। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार तारों से आकाश के विस्तार का अनुमान नहीं लग पाता, उसी प्रकार सुखिया की झुलसती आँखों से उसके शरीर के ताप का सही अनुमान नहीं लग सकता था।

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6. देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
सुनना वही चाहता था मैं, उसे स्वयं ही उकसाकर
मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : सुस्थिर एक स्थान पर टिका हुआ, अडिग। अटल – स्थिर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। सुखिया रोग ग्रस्त हो जाने के कारण स्थिर अवस्था में पड़ी रहती थी।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है- जो बेटी स्वभाव से चंचल होने के कारण पल-भर के लिए भी एक स्थान पर टिककर नहीं बैठती थी, वही अब स्थिर शांति धारण किए एक ही स्थान पर पड़ी रहती थी। अब वह दुर्बल तथा क्षीण कंठ होने के कारण बोल भी नहीं सकती थी। उसका पिता अपनी मानसिक शांति के लिए स्वयं उसको उकसाकर एक बार उससे यही सुनना चाहता था – ‘मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो।’

7. ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप- धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर – बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।

शब्दार्थ : शैल शिखिर पर्वत की चोटी। विस्तीर्ण – विस्तृत। विशाल – बहुत बड़े आकारवाला। स्वर्ण कलश – सोने के कलश। सरसिज – कमल। विहसित – हँसते हुए। रवि-कर- जाल सूर्य की किरणों का समूह। आमोदित प्रसन्न।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। कवि मंदिर के बाहरी सौंदर्य तथा भीतरी वातावरण पर प्रकाश डालता हुआ कहता है।

व्याख्या : पर्वत की चोटी पर एक बहुत बड़ा मंदिर था। सूर्य की किरणों के समूह को पाकर सोने का कलश कमल के समान हँसता हुआ दिखाई देता था। भाव यह है कि सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल खिलते हैं। मंदिर का स्वर्णिम कलश भी सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल के समान खिला हुआ दिखाई दे रहा था। दीपकों और सुगंधित धूप से मंदिर का सारा आँगन प्रसन्नता को व्यक्त कर रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर उत्सव की धारा प्रकट हो रही थी। भाव यह है कि मंदिर के भीतर जो भजन आदि गाए जा रहे थे, उनकी आवाज़ भी गूँज रही थी।

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8. भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से, गाते थे सभक्ति मुद-मय-
‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी’ माता तेरी जय-जय।’
‘पतित-तारिणी’ तेरी जय जय, मेरे मुख से भी निकला,
बिना बढ़े ही मैं आगे को, जाने किस बल से ढिकला।

शब्दार्थ : भक्त वृंद – भक्तों का समूह। मुद-मय प्रसन्नतापूर्वक। पतित-तारिणी पापियों को तारने वाली। पाप हारिणी- पापों को हरनेवाली। ढिकला – ढकेला गया; ठेला गया।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। मंदिर में भक्तों का समूह देवी माँ की वंदना कर रहा था।

व्याख्या : भक्तों का समूह भक्ति भाव से भरकर कोमल, मधुर तथा प्रसन्नचित्त मन से यही गा रहा था – हे माता ! तू पतितों को तारनेवाली तथा उनके पापों को हरनेवाली है। हे माता ! तुम्हारी जय-जयकार हो। सुखिया का पिता कहता है कि उन भक्तों के अनुकरण पर मेरे मुख से भी यही निकला – हे पापियों को तारनेवाली तेरी जय हो। वह बिना बढ़े ही भीड़ द्वारा आगे ठेल दिया गया।

9. मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये, पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं,

शब्दार्थ : अंबा – माँ, देवी माँ। अर्पित – भेंट। अंजलि – मुट्ठी। पुण्य-पुष्प – पवित्र फूल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। सुखिया का पिता अपनी बीमार बेटी के लिए देवी के मंदिर में प्रसाद लेने जा पहुँचता है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मेरे दीप और फूल को लेकर पुजारी ने देवी माँ के चरणों में अर्पित कर दिए। पुजारी ने जब अपना हाथ आगे बढ़ाकर मुझे प्रसाद दिया तो मैं उसको लेना ही भूल गया। मैंने परम लाभ पाकर यही सोचा कि मैं अपनी बेटी को शीघ्र अति शीघ्र जाकर माँ के पवित्र फूल दूँ।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

10. सिंह पौर तक भी आँगन से, नहीं पहुँचने मैं पाया,
सहसा यह सुन पड़ा कि – “कैसे यह अछूत भीतर आया ?
पकड़ो, देखो भाग न जावे, बना धूर्त यह धूर्त यह है कैसा;
साफ-स्वच्छ परिधान किए है, भले मानुषों के जैसा !”

शब्दार्थ : सिंह पौर – मंदिर का मुख्य द्वार। सहसा – प्रसंग। अचानक। धूर्त – दुष्ट। परिधान – वस्त्र। मानुषों – मनुष्यों।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। यहाँ सुखिया के पिता के मंदिर में जाने के दुष्परिणाम परिणाम पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है – मैं माँ के मंदिर से पवित्र फूल लेकर अभी मंदिर के मुख्य द्वार पर भी नहीं पहुँचा था कि अचानक यह आवाज़ सुनाई दी कि यह मंदिर के भीतर कैसे घुस आया। सबने कहा कि उसे पकड़ लो, कहीं भाग न जाए। साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर यह दुष्ट भले मानुष का सा रूप धारण करके आ गया है।

11. पापी ने मंदिर में घुसकर किया अनर्थ बड़ा भारी,
कलुषित कर दी है मंदिर की, चिरकालिक शुचिता सारी।
ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है, देवी की गरिमा से भी;
किसी बात में हूँ मैं आगे, माता की महिमा के भी ?

शब्दार्थ : अनर्थ – अविष्ट। कलुषित – अपवित्र। चिरकालिक – बहुत पुराने समय से चली आ रही। शुचिता – पवित्रता। कलुष – पाप। गरिमा – महानता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। जब मंदिर में उपस्थित लोगों को यह पता लगा कि सुखिया का पिता देवी के मंदिर में घुस आया है तो सभी ने उसकी कठोर भर्त्सना एवं निंदा की।

व्याख्या : मंदिर में उपस्थित लोग कहने लगे कि – देखो तो सही, इस पापी ने मंदिर में घुसकर कितना बड़ा अनर्थ कर डाला है। इसने मंदिर की पुरानी पवित्रता को नष्ट कर दिया है। निश्चय ही इसका कृत्य अक्षम्य है। जब सुखिया के पिता ने यह सब सुना तो वह सहज भाव से बोला, हे भाई, क्या मेरा पाप इतना बड़ा है कि देवी की महानता उसे क्षमा नहीं कर सकती ? अभिप्राय यह है कि देवी के समक्ष तो सभी एकसमान हैं- फिर मेरा ही पाप तो इतना बड़ा नहीं है कि मुझे क्षमादान नहीं मिल सकता। मेरी तरह तुम सब भी तो किसी-न-किसी रूप में पापी हो। तात्पर्य यह है कि देवी की गरिमा और महानता को मुझसे और मेरे कृत्यों से कोई क्षति नहीं पहुँच सकती। देवी के सर्वशक्तिशाली रूप के समक्ष मेरा अकिंचन अस्तित्व कोई महत्व नहीं रखता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

12. माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
कुछ न सुना भक्तों ने, झट से मुझे घेर कर पकड़ लिया;
मार मार कर मुक्के घूँसे, धम-से नीचे गिरा दिया !

शब्दार्थ : सम्मुख – सामने। गौरव – सम्मान।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता के उद्गारों का मार्मिक वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया का पिता देवी के भक्तों को संबोधित कर कहता है कि इतना तुच्छ विचार रखकर तुम माँ के कैसे विचित्र भक्त हो। तुम माँ के सम्मुख ही माँ की महिमा को छोटा कर रहे हो। अभिप्राय यह है कि माँ का मंदिर इतना पवित्र है कि वह किसी भी पापी के प्रवेश से अपवित्र बन ही नहीं सकता। मंदिर को अपवित्र कहना माँ के गौरव का हनन करना है। लेकिन देवी के भक्तों ने उसकी बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उसे पकड़ लिया तथा मुक्के और घूँसे मार-मारकर उसे धरती पर गिरा दिया।

13. मेरे हाथों से प्रसाद भी, बिखर गया हा ! सबका सब
हाय ! अभागी बेटी तुझ तक कैसे पहुँच सके यह अब !
न्यायालय ले गए मुझे वे सात दिवस का दंड विधान
मुझको हुआ; हुआ था मुझसे देवी का महान अपमान!

शब्दार्थ : न्यायालय – अदालत। दंड – सज़ा। विधान – नियम।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता की व्यथा का मार्मिक चित्रण है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मंदिर में उपस्थित भक्तों ने उसे खूब पीटा, क्योंकि उसने मंदिर में घुसकर घोर अपराध किया था। मार-पीट के दौरान उसके हाथों का प्रसाद भी नीचे गिर गया था। वह सोचता है कि उसकी अभागी बेटी के पास अब प्रसाद कैसे पहुँचे। सुखिया तक उस प्रसाद के पहुँचने की कोई संभावना न थी। अदालत ने उसे इस अपराध के लिए सात दिन की सज़ा सुनाई। लोगों के अनुसार उसके कारण देवी का घोर अपमान हुआ था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

14. मैंने स्वीकृत किया दंड वह शीश झुकाकर चुप ही रह;
उस असीम अभियोग, दोष का क्या उत्तर देता, क्या कह ?
सात रोज़ ही रहा जेल में या कि वहाँ सदियां बीतीं,
अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। शीश – सिर। असीम – सीमा से रहित, अत्यधिक। अविश्रांत – लगातार, बिना रुके हुए। तनिक – ज़रा भी। रीतीं – खाली हुईं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श- भाग एक’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। कवि ने समाज में व्याप्त धर्म पर आधारित रूढ़ियों का सजीव चित्रण किया है। सुखिया के पिता को मंदिर से प्रसाद लेने के अपराध में जेल में भेज दिया गया था जबकि उसकी बेटी घर में पड़ी मौत से लड़ रही थी।

व्याख्या : सुखिया के पिता का कहना है कि उसने न्यायालय के सामने सिर झुकाकर दिए गए दंड को स्वीकार किया। उस पर लगाए गए इतने बड़े आरोप का भला वह क्या कह कर उत्तर देता। उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। वह सात दिन तक जेल में बंद रहा। उसे ऐसा लगता कि वह सदियों से वहाँ बंद था। निरंतर उसकी आँखें आँसू बहाती रहतीं पर फिर भी वे ज़रा भी खाली न हुईं। आँसू तो उनमें ज्यों- के त्यों भरे ही रहे और बेटी की याद और अपने साथ हुए अन्याय के कारण बरसते रहे।

15. दंड भोगकर जब मैं छूटा, पैर न उठते थे घर को ;
पीछे ठेल रहा था कोई भय जर्जर तनु पंजर को।
पहले की-सी लेने मुझको नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा ! अबकी दी न दिखाई वह।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। ठेल – धकेल। तनु – शरीर।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पर्श (भाग – एक) में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। बेटी के लिए प्रसाद लेने के लिए पिता मंदिर गया था, पर जाति-भेद के कारण उसे मार-पीट कर सात दिन के लिए जेल में भेज दिया गया था।

व्याख्या : सुखिया के पिता जेल में सजा भोगने के बाद जब घर को लौट रहा था तो ग्लानि के कारण उसके पाँव नहीं उठ रहे थे। डर और कमज़ोरी के कारण उसके लड़खड़ाते शरीर को जैसे कोई पीछे धकेल रहा था। वह आगे बढ़ ही नहीं पा रहा था। आज उसे पहले की तरह लेने के लिए उसकी बेटी सुखिया भागकर आगे से नहीं आई थी और न ही किसी खेल – कूद में ही उलझी हुई दिखाई दी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

16. उसे देखने मरघट को ही गया दौड़ता हुआ वहाँ,
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही, फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

शब्दार्थ : मरघट मरघट – श्मशान। बंधु मित्र, रिश्तेदार। फूँक चुके – जला चुके।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पर्श (भाग – एक) ‘ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। महामारी के कारण बेटी चल बसी थी पर पिता उसे देवी माँ के प्रसाद रूप में एक फूल तक न लाकर दे सका।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि वह अपनी मृतक बेटी को देखने के लिए श्मशान की ओर दौड़ता हुआ पहुँचा लेकिन उसके सगे-संबंधी पहले ही उसके मृतक शरीर को जला चुके थे। उसकी बुझी हुई चिता ही थी। पिता का हृदय धधक पड़ा, वह कराह उठा। हाय ! उसकी फूल – सी कोमल बेटी राख की ढेरी बन चुकी थी। पिता अपनी बेटी को अंतिम बार गोद में भी नहीं ले सका। बेटी ने एक ही तो चीज़ माँगी थी और वह देवी माँ का प्रसाद रूप में एक फूल भी उसे नहीं दे सका था। वह अपनी इच्छा को साथ लेकर ही यहाँ से चली गई।

एक फूल की चाह Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – परिचय – सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उनका जन्म सन् 1895 ई० में चिरगाँव, जिला झाँसी में हुआ था। श्वास रोग, पत्नी की असामयिक मृत्यु तथा राष्ट्रीय आंदोलन की असफलता ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था। यही कारण है कि उनके काव्य में करुणा, पीड़ा एवं विषाद का स्वर प्रधान हो गया है। सन् 1963 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – गुप्त जी ने काव्य-रचना के साथ-साथ कहानी, उपन्यास, निबंध एवं नाटक के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। वे कवि रूप में ही अधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं – मौर्य विजय, दूर्वादल, आर्द्रा, पाथेय, आत्मोत्सर्ग, मृण्मयी, बापू, उन्मुक्त, गोपिका, नकुल, दूर्वादल तथा नोआखली आदि। ‘गीता-संवाद’ में श्रीमद्भगवद गीता का काव्यानुवाद है।

काव्य की विशेषताएँ – सियारामशरण गुप्त की कविताओं में मानवतावाद तथा राष्ट्रवाद की प्रधानता है। अतीत के प्रति अनुराग तथा नवीनता के प्रति आस्था उनके काव्य की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। आख्यानक गीति रचने में वे सिद्धहस्त रहे हैं। गाँधी एवं विनोबा के जीवन-दर्शन के प्रभावस्वरूप उन्होंने दया, सहानुभूति, सत्य, अहिंसा एवं परोपकार आदि भावनाओं को विशेष महत्त्व दिया है। गुप्त जी की काव्यभाषा खड़ी बोली है जिसके ऊपर संस्कृत के तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रभाव है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

कविता का सार :

‘एक फूल की चाह’ कविता श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित है। इस कविता में एक ओर पुत्री के प्रति पिता के असीम स्नेह का चित्रण है, तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त छुआछूत एवं ऊँच-नीच की समस्या पर प्रकाश डाला है। कवि ने इस रचना के माध्यम से यह भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि किसी के स्पर्श से देवी की पवित्रता और गरिमा नष्ट नहीं होती, बल्कि देवी की शरण में जाने पर सभी पवित्र हो जाते हैं। देवी की महिमा अपरंपार है और उसकी गरिमा पतितों का उद्धार करने में ही है।

किसी स्थान पर भीषण महामारी फैल गई। इस महामारी के भय से बालिका सुखिया का पिता उसे घर से बाहर नहीं जाने देता। फिर भी सुखिया उस महामारी की चपेट में आ ही गई। महामारी से ग्रस्त सुखिया पिता से देवी के प्रसाद में मिलनेवाले फूल को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करती है। अपनी जाति के कारण पिता मंदिर में जाकर फूल लाने से डरता है किंतु पुत्री के मोह ने उसे देवी के मंदिर से फूल लाने के लिए विवश कर दिया।

प्रसाद रूप में फूल लेकर जैसे ही वह लौटने लगा, कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया तथा पकड़कर बुरी तरह पीटा। फिर उसपर मंदिर की पवित्रता भंग करने का आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया। सात दिन का कारावास का दंड भोगकर जब वह घर लौटा तो उसकी प्यारी बेटी सुखिया की मृत्यु हो चुकी थी। अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी न कर सकने के कारण उसका हृदय चीत्कार कर उठा।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana नारा लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana नारा लेखन

किसी सुंदर विचार अथवा उद्देश्य को बार-बार अभिव्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला आदर्श वाक्य नारा कहलाता है। नारों में प्रभावशाली वाक्य पिरोए जाते हैं। जिनसे ये सहज लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इनमें विस्तृत विवरण तो प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती। नारे सामाजिक दायरे में रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नारा लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए –

  • नारों में आदर्शवादिता का भाव होना आवश्यक है।
  • नारे अनेक क्षेत्रों जैसे – राजनीतिक, धार्मिक, समाज से संबंधित हो सकते हैं।
  • नारों में विवादास्पद शब्दावली का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।
  • नारों के प्रकटन का उद्देश्य सार्वभौमिक होना चाहिए।
  • नारों की शब्दावली सर्वस्वीकार्य होनी चाहिए।
  • नारों की गूँज से ऊर्जा का संचार होता है। रोमांचक होने का अहसास होता है। उदाहरण के तौर पर देश प्रेम के नारे जनमानस में देश –
  • भक्ति का संचार करते हैं।
  • नारों में तुकबंदी अथवा लयात्मक योजना का विशेष महत्व होता है।
  • नारों की विषय सामग्री में आपसी सम्बद्धता व मौलिकता का होना ज़रूरी है।

नारों के महत्वपूर्ण उदाहरण :

प्रश्न 1.
लॉकडाउन के दौरान आप अपने घर पर हैं। जागरूक नागरिक होने के नाते जनमानस के बीच सामाजिक सचेतता फैलाने वाले सुझावों पर 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक दूरी है वायरस से लड़ने का औजार।
पैदल हो या फिर कार पर हो सवार।।
बिना मास्क के घर से मत निकलो यार।
आफत को मत गले लगाओ, बन जाओ समझदार।।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 2.
शिक्षा प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है। शिक्षा के बिना हमारे जीवन का कोई महत्व नहीं है। अशिक्षितों को शिक्षित करने के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
लड़का हो या लड़की, सब बने साक्षर।
शिक्षा से ही फलता-फूलता यह देश निरंतर।।
बच्चे-बच्चे का सपना हो साकार।
शिक्षा पर हम सबका अधिकार ।।

प्रश्न 3.
स्वच्छता अपनाना सभी की जवाबदारी है। हर हाल में सफाई का ध्यान रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
स्वच्छता से है बढ़ते देशों की पहचान।
आओ मिलकर रखें इनका ध्यान ।।
स्वच्छता से बढ़ेगी धरती की शान।
तभी गांधीजी के सपनों का होगा मान।।

प्रश्न 4.
सड़क सुरक्षा अनुशासित जीवन का अंग है। सुरक्षा नियमों का पालन करना मजबूरी नहीं हो सकती। ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूक करने के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
चलो सड़क पर रखो आँखें चार।
पैदल हो, बाईक हो या फिर कार।।
ट्रैफिक सिगनल देख करो सड़क को पार।
रहो सुरक्षित पड़ेगी न दंड की मार ||

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 5.
वृक्षारोपण बहुत ज़रूरी है। इसे पुण्य का काम समझा जाता है। वृक्ष की उपयोगिता का ध्यान रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
वृक्ष ही हैं सबके जीवन का अधिकार।
उदर पूर्ति का होते हैं ये अद्भुत भंडार।।
हरे-भरे वृक्ष जीवन में हरियाली लाते।
अपने कर्तव्यों से हम क्यों मुकर जाते।।

प्रश्न 6.
15 अगस्त को बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इतिहास के इस स्वर्णिम दिन का महत्व बताते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
आज किरन किरन थिरक रही, ले प्रभा नवीन।
आज श्वास है नवीन आज की पवन नवीन।।
मिलती नहीं आजादी खुद, यह ली जाती है मीत।
तलवारों के साये के नीचे गाने पड़ते हैं गीत।।

प्रश्न 7.
विज्ञान को मानव की तीसरी आँख माना गया है। विज्ञान के कारण मानव जीवन में अनेक परिवर्तन आए हैं। विज्ञान के वरदान या अभिशाप को ध्यान में रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
फैल रहा विज्ञान का घर – घर प्रकाश।
करता दोनों काम- नव निर्माण विकास।।
यह विष्णु जैसा पालक है, शंकर जैसा संहारक।
पूजा उसकी शुद्ध भाव से करो तुम यहाँ आराधक।।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 8.
हम कभी न बुझने वाला आशा का दीपक अपने हाथ में लेकर मंजिल की ओर बढ़ते हैं। लक्ष्य प्राप्ति के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
जिस युग में जन्मे उसे बड़ा बनाएँगे।
चाहे कितना हो विस्तीर्ण – कर्म क्षेत्र बनाएँगे।
जीवन में कुछ करना है तो – मन मारकर न बैठेंगे।
यदि आगे-आगे बढ़ना है – हिम्मत हारकर न बैठेंगे।।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

JAC Class 9 Hindi आदमी नामा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) पहले छंद में कवि की दृष्टि आदमी के किन-किन रूपों का बखान करती है? क्रम से लिखिए।
(ख) चारों छंदों में कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों को परस्पर किन-किन रूपों में रखा है ? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘आदमी नामा’ शीर्षक कविता के इन अंशों को पढ़कर आपके मन में मनुष्य के प्रति क्या धारणा बनती है ?
(घ) इस कविता का कौन-सा भाग आपको अच्छा लगा और क्यों ?
(ङ) आदमी की प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
(लघु उत्तरीय प्रश्न) (लघु उत्तरीय प्रश्न)
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर :
(क) पहले छंद में कवि ने आदमी को बादशाह, गरीब, भिखारी, दौलतमंद, कमजोर, स्वादिष्ट भोजन खाने वाले तथा सूखे टुकड़े चबाने वाले के रूप में चित्रित किया है।

(ख) इस कविता में कवि ने आदमी के सकारात्मक रूप को एक बादशाह, दौलतमंद, स्वादिष्ट भोजन खाने वाले, मसजिद बनाने वाले, धर्मगुरु बनने वाले, कुरान शरीफ़ और नमाज़ पढ़ने वाले, दूसरों के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले, शासन करने वाले, सज्जन, राजा, मंत्री, सबके दिलों को लुभाने वाले कार्य करने वाले, शिष्य, गुरु और अच्छे कार्य करने वाले के रूप में चित्रित किया है। कवि ने आदमी के नकारात्मक रूप को गरीब, भिखारी, कमजोर, सूखे टुकड़े चबाने वाले, मसजिद से जूते चुराने वाले, लोगों को तलवार से मारने वाले, दूसरों का अपमान करने वाले, सेवक के कार्य करने वाले, नीच और बुरे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।

(ग) ‘आदमी नामा’ कविता पढ़कर हमें यह ज्ञात होता है कि इस संसार में मनुष्य से अच्छा और मनुष्य से बुरा दूसरा कोई नहीं है। मनुष्य ही राजा के समान महान और मनुष्य ही दीन-हीन भिखारी है। शक्तिशाली भी मनुष्य है और कमजोर भी वही है। मनुष्य धार्मिक और चोर है, तो मनुष्य ही किसी को बचाता और मारता भी है। शासक भी वही है और शासित भी वही है। सज्जन से लेकर नीच और राजा से लेकर मंत्री तक मनुष्य ही होता है। इसलिए मनुष्य को अच्छे कार्य करते हुए इस संसार को सुंदर बनाना चाहिए।

(घ) इस कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगी हैं –

‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी।’

ये पंक्तियाँ मुझे इसलिए अच्छी लगी, क्योंकि इन पंक्तियों से हमें सद्गुणों को अपनाकर अच्छा आदमी बनने की प्रेरणा मिलती है। हमें दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए। दुर्गुणी व्यक्ति बुरा आदमी बन जाता है। समाज में अच्छे आदमी का आदर होता है, बुरे का नहीं।

(ङ) आदमी स्वभाव से अच्छा भी और बुरा भी है। वह दूसरों के दुखों का कारण है, तो वही उन दुखों का निवारण करने वाला भी है। आदमी ही आदमी पर शासन करता है: आदेश देता है और मनचाहे ढंग से परेशान करता है। आदमी दीन-हीन है और आदमी ही संपन्न है। आदमी धर्म-कर्म में विश्वास करता है और आदमी ही उस धर्म-कर्म के ढंग को बनाता है। आदमी के जूते आदमी चुराता है, तो आदमी ही उनकी देख-रेख करता है। आदमी ही आदमी की रक्षा करता है और आदमी ही आदमी का वध करता है। आदमी अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को अपमानित करता है। अपनी रक्षा के लिए आदमी पुकारता है और सहायता के लिए आदमी ही दौड़कर आता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंशों की व्याख्या कीजिए – (निबंधात्मक प्रश्न)
(क) दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी

(ख) अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
उत्तर :
(क) और (ख) की व्याख्या के लिए इस कविता के व्याख्या भाग क्रमांक 1 और 4 को देखिए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में अभिव्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए –
(क) पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
(ख) पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
उत्तर :
(क) कवि ने व्यंग्य किया है मसजिद में आदमी कुरान शरीफ़ पढ़ने और नमाज़ अदा करने जाते हैं परंतु उनमें कुछ ऐसे आदमी भी होते हैं, जो वहाँ आने वालों की जूतियाँ चुराते हैं। उन जूता चोरों पर नज़र रखने वाले भी आदमी ही होते हैं। जूता चोरों और उन पर नज़र रखने वालों का ध्यान परमात्मा की ओर नहीं बल्कि अपने – अपने लक्ष्य पर होता है।

(ख) कवि ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा है कि आदमी ही आदमी का अपमान करता है। सहायता प्राप्ति के लिए आदमी ही आदमी को पुकारता है और सहायता देने के लिए भी आदमी ही दौड़कर आता है। अपमान करने वाला आदमी और सहायता करने वाला भी आदमी ही है। कवि के अनुसार अलग-अलग प्रवृत्तियाँ आदमी से अलग-अलग काम करवाती हैं।

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प्रश्न 4.
नीचे लिखे शब्दों का उच्चारण कीजिए और समझिए कि किस प्रकार नुक्ते के कारण उनमें अर्थ परिवर्तन आ गया है।
(क)                  (ख)
राज (रहस्य) – फ्रन (कौशल)
राज (राज्य) – फन (साँप का मुँह)
ज्रा (थोड़ा) – फलक (आकाश)
जरा (बुढ़ापा) – फलक (लकड़ी का तखा)
जफ़ से युक्त दो-दो शब्दों को और लिखिए।
उत्तर :
ज़ – जमीन, ज़मीर। फ़ – फ़ना, फ़रक।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित मुहावरों का प्रयोग वाक्यों में कीजिए –
(क) टुकड़े चबाना (ख) पगड़ी उतारना (ग) मुरीद होना (घ) जान वारना (ङ) तेग मारना
उत्तर :
(क) टुकड़े चबाना – गरीब को सूखे टुकड़े चबाकर अपना पेट भरना पड़ता है।
(ख) पगड़ी उतारना – भरी सभा में मंत्री ने सेठ करोड़ीमल की कंजूसी का वर्णन करके उनकी पगड़ी उतार दी।
(ग) मुरीद होना – इन दिनों क्रिकेट के दीवाने धोनी के मुरीद हो गए हैं।
(घ) जान वारना – माँ अपने लाडले पर अपनी जान वारती है।
(ङ) तेग मारना – कृष्णन ने तेग मारकर भागते हुए डकैत को घायल कर दिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
अगर ‘बंदर नामा’ लिखना हो तो आप किन-किन सकारात्मक और नकारात्मक बातों का उल्लेख करेंगे ?
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi आदमी नामा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
नज़ीर अकबराबादी की कविता ‘आदमी नामा’ के आधार पर आदमी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
नज़ीर अकबराबादी की कविता ‘आदमी नामा’ के आधार पर आदमी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) धार्मिक – आदमी ईश्वर में विश्वास करता है। वह मसजिदें बनाता है; नमाज अदा करता है; कुरान शरीफ़ पढ़ता-सुनता
है और स्वयं को सौभाग्यशाली मानता है।
(ii) चोर – आदमी मौका मिलने पर दूसरों का सामान चुराने में तनिक नहीं झिझकता। वह तो यह भी नहीं सोचता कि उसे कहाँ चोरी करनी चाहिए और कहाँ नहीं।
(iii) अत्याचारी और अनाचारी – आदमी दूसरे आदमियों का शोषण करता है; उन्हें गरीब बनाता है। उनके मुँह का कोर छीनने को सदा तैयार रहता है। वह दूसरों की हत्या करने में भी नहीं झिझकता। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी का भी अपमान करने को तैयार रहता है।
(iv) दयाभाव से संपन्न – आदमी के हृदय में दया के भाव पैदा होते हैं। वह दूसरों को रोटी देता है। कष्ट की घड़ी में उनकी सहायता करता है। आदमी ही गुरु बनता है और आदमी को शिक्षा देता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 2.
संसार में आकर व्यक्ति क्या-क्या बनता है ?
उत्तर :
संसार में आकर आदमी ही राजा बनता है और आदमी ही दीन-हीन गरीब है। अमीर भी आदमी है और गरीब भी आदमी है। रूखा- सूखा चबाने वाला आदमी है, तो स्वादिष्ट भोजन खाने वाला भी आदमी है।

प्रश्न 3.
संसार में आकर मनुष्य क्या-क्या काम करता है ?
उत्तर :
संसार में आकर मनुष्य कई तरह के काम करता है। वह मस्जिद बनाता है; मस्जिद में नमाज पढ़ने वाला भी आदमी होता है। कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला धर्मगुरु भी आदमी ही है। आदमी ही मस्जिद में आकर जूते चुराने का काम करते हैं तथा जूतों को चुराने वाले आदमियों पर नज़र रखने वाला भी आदमी होता है

प्रश्न 4.
‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो हैं वो भी आदमी’
उपरोक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने आदमी के अच्छे-बुरे रूपों को प्रकट किया है और कहा है कि आदमी ही प्रत्येक अच्छाई और बुराई के पीछे होता है। कवि की भाषा में उर्दू शब्दावली की अधिकता है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है। तुकांत छंद लयात्मकता का आधार बना है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 5.
‘आदमी नामा’ किस प्रकार की रचना है ?
उत्तर :
‘आदमी नामा’ कवि नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। कवि ने अपनी इस रचना में आदमी को संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना माना है। कविता में कवि ने आदमी की कमियों का व्याख्यान करते हुए उसे जीवन में सद्गुणों को अपनाने की बात कही है।

प्रश्न 6.
‘आदमी नामा’ कविता आम आदमी से जुड़ी हुई कविता कैसे है ?
उत्तर :
‘आदमी नामा’ नज़ीर अकबराबादी की एक सर्वश्रेष्ठ रचना है। यह आम आदमी से जुड़ी हुई कविता है। इसे गाकर फेरीवाले, नाचने-गाने वाले नर-नारियाँ अपना जीवन निर्वाह करते थे। कवि ने अपनी इस रचना में तत्कालीन जनजीवन का यथार्थ चित्रण किया है। कवि ने अपनी इस काव्य-कृति में आम आदमी की कमियों से मानव को अवगत करवाना चाहा है। कवि के अनुसार संसार में अच्छा-बुरा, छोटा-बड़ा- हर तरह का काम करने वाला आदमी ही होता है। आदमी के अंतरिक गुण-अवगुण ही समाज में उसकी पहचान निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 7.
कवि के अनुसार संसार में आकर आदमी क्या बनता है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार संसार में आकर जो व्यक्ति राजा बनता है, वह आदमी होता है। संसार में व्याप्त गरीब भी आदमी हैं। ऊँचे-ऊँचे महलों में निवास करने वाले सेठ और बादशाह भी आदमी हैं। बलशाली भी आदमी है और एक दीनहीन भी आदमी है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 8.
कवि नज़ीर अकबराबादी के काव्य की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि नज़ीर अकबराबादी का काव्य आम आदमी से जुड़ा हुआ काव्य है। इस कविता में उन्होंने आदमी के अलग-अलग रूपों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार हर अच्छे बुरे कार्य के पीछे आदमी ही निहित होता है। इन्होंने अपने काव्य में उर्दू-फारसी के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग किया है। इनके काव्य की भाषा को उर्दू मिश्रित खड़ी बोली कहा जा सकता है, जिसमें कहीं-कहीं देशज शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। इनके काव्य में सरल, सहज एवं संक्षिप्त वाक्यों का प्रयोग हुआ है।

आदमी नामा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – नज़ीर अकबराबादी का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में सन 1735 ई० में हुआ था। इन्होंने आगरा के सुप्रसिद्ध शिक्षाविदों से अरबी – फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हें हर प्रकार के तीज-त्योहारों में बहुत दिलचस्पी थी। इन्हें किसी भी विषय पर कविता करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी। इनके प्रशंसक इन्हें रास्ते में रोककर इनसे अपनी मनपसंद कविता सुनते थे। इनका निधन सन 1830 ई० में हुआ।

रचनाएँ -नज़ीर अकबराबादी ने विभिन्न विषयों पर कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविता उर्दू की ‘नज़्म’ शैली में आती है। इन्होंने ‘सब ठाठ पड़ा जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा’ जैसी नीति से संबंधित नज़्मों के अतिरिक्त भिश्ती, ककड़ी बेचने वालों, बिसाती, गाना गाकर जीवनयापन करने वालों आदि के काम में सहायता देने वाली नज़्में भी लिखी हैं। ‘आदमी नामा’ इनकी एक उद्बोधनात्मक कविता है।

काव्य की विशेषताएँ – नज़ीर अकबराबादी की कविता आम आदमी से जुड़ी हुई कविता है। इसे गा-गाकर फेरीवाले, गानेवालियाँ आदि अपना जीवन-यापन करते थे। इन्होंने अपनी कविताओं में तत्कालीन जनजीवन का यथार्थ अंकन किया है। इन नज़्मों में मानव-जीवन के सुख-दुख, हँसी-मज़ाक, मेले- त्योहारों आदि का सहज भाव से चित्रण किया गया है। इनके काव्य की भाषा उर्दू मिश्रित खड़ी बोली है, जिसमें कहीं-कहीं देशज शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है।

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कविता का सार :

आदमी नामा’ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। इसमें कवि ने आदमी को संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना मानते हुए उसे उसकी कमियों से परिचित करवाया है और उसे अपने जीवन में सद्गुणों को अपनाकर संसार को और भी अधिक सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है। कवि के अनुसार इस दुनिया में आदमी ही सबकुछ करता प्रतीत होता है। वही दुनिया का बादशाह है और वही प्रजा है।

मालदार भी वही है और गरीब भी वही है। रोटी देने वाला भी वही है और रोटी खाने वाला भी वही है। मसजिद बनाने वाला, नमाज़ पढ़ने वाला, वहाँ से जूते चुराने वाला यदि आदमी है तो इमाम और खुतबाख्वां भी आदमी ही है। आदमी का अपमान करने वाला आदमी है; हत्यारा भी आदमी है; अपमान करने वाला आदमी है, तो रक्षक भी आदमी है। शरीफ़ भी आदमी है और कमीना भी आदमी है। आदमी ही गुरु है और चेला भी आदमी है। अच्छा भी आदमी है और बुरा भी वही है।

व्याख्या :

1. दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : बादशाह – राजा। मुफ़लिस – गरीब। ओ – और। गदा – भिखारी, फ़कीर। ज़रदार – अमीर, दौलतवाला। बेनवा – कमज़ोर। निअमत – स्वादिष्ट भोजन, बहुत अच्छा पदार्थ।

प्रस्तुत : पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का चित्रण करते हुए उसे सद्गुण अपनाकर, संसार को और भी अच्छा बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में आकर जो राजा बनता है, वह आदमी ही है तथा इस संसार में दीन-हीन, गरीब और भिखारी भी आदमी ही होता है। दौलतवाला आदमी है और कमज़ोर भी आदमी ही है। जो प्रतिदिन स्वादिष्ट भोजन खाता है, वह आदमी है; रूखे टुकड़े चबाने वाला भी आदमी ही है।

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2. मसजिद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी।

शब्दार्थ : यां – यहाँ। मियाँ श्रीमान। इमाम- नमाज़ पढ़ाने वाले धर्मगुरु। खुतबाख्वाँ – कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला। ताड़ता – भाँप लेना, डाँटना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे एक अच्छा आदमी बनकर संसार का कल्याण करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में मसजिद भी आदमी ने बनाई है और आदमी ही मसजिद में नमाज़ पढ़ाने वाले व कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाले धर्मगुरु बनते हैं। आदमी ही कुरान शरीफ़ पढ़ते हैं और नमाज़ अदा करते हैं। आदमी ही मसजिद में आने वालों के जूते चुराते हैं और उन जूतों को चुराने वालों पर नज़र रखने वाला भी आदमी ही होता है।

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3. यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे हैं आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : जान को वारे – प्राण न्योछावर करना। तेग – तलवार। पगड़ी उतारना – अपमान करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे अच्छा आदमी बनकर संसार को सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में मनुष्य ही मनुष्य के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देता है और आदमी ही आदमी को तलवार से मार देता है। आदमी ही दूसरे आदमी का अपमान करता है। आदमी ही आदमी के ऊपर अधिकार जमाते हुए उसे चिल्लाकर पुकारता है, तो उसकी सेवा करने वाला आदमी उसकी पुकार सुनकर दौड़ता चला जाता है।

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4. अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : अशराफ़ – सज्जन, शरीफ़। कमीना ओछा, नीच। शाह – राजा, सम्राट। वज़ीर मंत्री। ता तक। कारे काम। दिलपज़ीर दिल को अच्छा लगने वाला। मुरीद – शिष्य। पीर – गुरु।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे सद्गुणों से युक्त होकर संसार को सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि आदमी ही सज्जन और आदमी ही नीच होता है। राजा से मंत्री तक भी कोई आदमी ही होता है। आदमी ही ऐसे कार्य करता है, जो सबके दिल को लुभाने वाले होते हैं। इस संसार में आदमी ही शिष्य होता है, तो दूसरा आदमी उसका गुरु होता है। कवि कहता है कि संसार में अच्छा आदमी भी होता है और संसार में जो सबसे बुरा है, वह भी आदमी ही होता है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables

Linear Equation In One Variable:
An equation of the form ax + b = 0, where a and bare real numbers with a = 0 and ‘x’ is a variable, is called a linear equation in one variable.
Here ‘a’ is called coefficient of x and ‘b’ is called a constant term. i.e. 3x + 5 = 0, 7x – 2 = 0 etc.

Linear Equation In Two Variables:
An equation of the form ax + by + c = 0 where a, b, c are real numbers and a and b both are not to be zero, and x, y are variables, is called a linear equation in two variables, here ‘a’ is called coefficient of x, ‘b’ is called coefficient of y and ‘c’ is called constant term.
Any pair of values of x and y which satisfies the equation ax + by + c = 0, is called a solution of it.

Graph Of A Linear Equation:
→ In order to draw the graph of a linear equation in one variable we may follow the following algorithm.
Step I: Obtain the linear equation.
Step II: If the equation is of the form ax = b, a ≠ 0, then plot the point \(\left(\frac{\mathrm{b}}{\mathrm{a}}, 0\right)\) and one more point \(\left(\frac{b}{a}, \alpha\right)\) where α is any real number. If the equation is of the form ay = b, a ≠ 0, then plot the point \(\left(0, \frac{b}{a}\right)\) and \(\left(\beta, \frac{b}{a}\right)\) where β is any real number.
Step III: Join the points plotted in step II to obtain the required line. Note: If equation is in the form ax = b then we get a line parallel to y-axis and if equation is in form ay = b then we get a line parallel to x-axis.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables 1

→ In order to draw the graph of a linear equation ax + by + c = 0, we may follow the following algorithm.
Step I: Obtain the linear equation ax + by + c = 0.
Step II: Express y in terms of x i.e. y = \(-\frac{a}{b} x-\frac{c}{b}\) or x in terms of y i.e. x = \(-\frac{b}{a} y-\frac{c}{a}\).
Step III: Put any two or three values for x or y and calculate the corresponding values of y or x respectively from the expression obtained in Step II. Let us suppose that we get the points as (α1, β1),(α2, β2), (α3, β3).
Step IV: Plot the points (α1, β1), (α2, β2), (α3, β3) on graph paper.
Step V: Join the points marked in step IV. The line obtained is the graph of the equation ax + by + c = 0.

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables

Different Forms Of A Line:
→ Slope of a Line: If a line makes an angle θ with positive direction of x-axis, then tangent of this angle is called the slope of a line, it is denoted by m i.e. m = tan θ.
→ Slope-intercept form is y = mx + c where m is the slope of line and c is intercept made by line with y-axis.
→ The equation of a line passing through origin is y = mx. When c = 0, the line always passes through origin.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables 2
→ Intercept form of line is \(\frac{x}{a}+\frac{y}{b}=1\), where a and b are the intercepts on positive direction of x-axis and y-axis respectively made by the line.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables 3

Solution Of Linear Equation In One Variable:
Let ax + b = 0 be the equation then ax = – b
⇒ x= \(-\frac{b}{a}\) is a solution.

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

JAC Class 9 Hindi नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गयाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया ?
उत्तर :
मैना सेनापति ‘हे’ को कहती है कि जिन लोगों ने आपके विरुद्ध शस्त्र उठाए थे, दोषी तो वे लोग थे। इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए इस मकान की रक्षा कीजिए। वह उन्हें अपने और उनकी पुत्री मेरी के साथ अपने प्रेम-संबंधों की याद दिलाती है और कहती है कि वह मेरी की मृत्यु से बहुत दुखी हुई थी। उसने मेरी की यादगार के रूप में उसका एक पत्र भी संभालकर रखा हुआ था। उसने जनरल ‘हे’ को उनके घर आने-जाने तथा उसके परिवार से संबंधों की याद दिलाकर भी मकान की रक्षा के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 2.
मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी पर अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे। क्यों ?
उत्तर :
मैना जड़ पदार्थ मकान को इसलिए बचाना चाहती थी क्योंकि उस मकान ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया था तथा यह मकान उसे बहुत प्रिय था। अंग्रेज़ इस मकान को इसलिए नष्ट करना चाहते हैं क्योंकि वे नाना साहब को पकड़ नहीं सके हैं। वे नाना साहब से संबंधित प्रत्येक वस्तु को नष्ट कर देना चाहते थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

प्रश्न 3.
सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया भाव के क्या कारण रहे थे ?
उत्तर :
सर टामस ‘हे’ ने जब मैना को पहचाना कि यह तो नाना साहब की पुत्री है तो उसके मन में इस छोटी-सी बालिका के प्रति दया का भाव उत्पन्न हो गया। वह नाना साहब के घर आता-जाता रहता था। उसके नाना साहब के घर के साथ पारिवारिक संबंध थे। मैना और उनकी पुत्री मेरी की परस्पर अच्छी मित्रता थी। वह मैना को भी मेरी के समान ही स्नेह करता था। इन सब बातों को सोचकर उसे मैना पर दया आ गई थी और उसने मैना को कहा था कि मैं तुम्हारी रक्षा का प्रयत्न करूँगा।

प्रश्न 4.
मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भर कर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी ?
उत्तर :
पाषाण हृदय वाले जनरल अउटरम ने मैना की अंतिम इच्छा कि वह उस प्रासाद पर बैठकर जी भरकर रोना चाहती है, इसलिए पूरी न होने दी क्योंकि उसे भय था कि कहीं वह भी नाना साहब की तरह भाग न जाए। पहले भी महल की तलाशी लेने पर उसे मैना कहीं नहीं मिली थी। इसलिए उसने उसे फौरन हथकड़ी पहना दी।

प्रश्न 5.
बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर :
मैना एक निडर, स्वाभिमानी, स्वदेश प्रेमी, स्पष्टवादी तथा भावुक बालिका है। इसके चरित्र की इन विशेषताओं को हम अपनाना चाहेंगे। इससे हमारा व्यक्तित्व निखरता है और हमें अपने देश के प्रति आत्म- बलिदान की प्रेरणा मिलती है। हम निडरतापूर्वक प्रत्येक स्थिति का सामना कर सकते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

प्रश्न 6.
‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितंबर को लिखा था – ‘ बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।’ इस वाक्य में ‘भारत सरकार’ से क्या आशय है ?
उत्तर :
इस वाक्य में भारत सरकार से आशय भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी ?
उत्तर :
‘इस प्रकार के लेखों से स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वालों को अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिए आत्म- बलिदान देने की प्रेरणा प्राप्त हुई होगी। अनेक भारतवासी ऐसे लेखों को पढ़कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े होंगे। उन्होंने निडरतापूर्वक विदेशी शक्तियों का डटकर मुकाबला किया होगा।

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि मैना के बलिदान की इस खबर को आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो समाचार तैयार करें और कक्षा में भावपूर्ण शैली में पढ़ें।
उत्तर :
इतिहासकार महादेव चिटनवीस से आज ज्ञात हुआ कि स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के सेनानी नाना साहब की पुत्री मैना को कानपुर के किले में जीवित जला कर भस्म कर दिया। मैना को अंग्रेज़ी सेना के जनरल अउटरम ने नाना साहब के धराशायी महल के पास से बंदी बनाया था। छह सितंबर को हॉउस ऑफ़ लार्ड्स में सर टामस की अध्यक्षता में नाना के परिवारजनों तथा संबंधियों को मार डालने का क्रूरता भरा निर्णय लिया गया था। भीषण अग्नि में शांत भाव से जलती बालिका मैना को वहाँ उपस्थित लोगों ने देवी समझकर प्रणाम किया।

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प्रश्न 9.
इस पाठ में रिपोर्ताज के प्रारंभिक रूप की झलक मिलती है लेकिन आज अखबारों में अधिकांश खबरें रिपोर्ताज की शैली में लिखी जाती हैं। आप –
(क) कोई दो खबरें किसी अखबार से काटकर अपनी कॉपी में चिपकाइए तथा कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
(ख) अपने आस-पास का किसी घटना का वर्णन रिपोर्ताज शैली में कीजिए।
उत्तर :
(क) 1. हिमाचल में मछली फार्म में जहर फैलने से सैकड़ों मछलियों की मौत हिमाचल प्रदेश के मछली फार्म में जहर फैलने की वजह से सैकड़ों हिमालयी मछलियों के मारे जाने की खबर मिली है। बताया गया है कि ये मछलियाँ दुर्लभ प्रजाति की थीं। मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी तारा चंद ने इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी।

उल्लेखनीय है कि हिमाचल के धमवाड़ी सरकारी मछली फार्म में लगभग 3000 छोटी मछलियाँ मरी पाई गईं, जबकि 400 वयस्क मछलियों के मारे जाने की भी खबर मिली है। तारा चंद ने बताया कि मरी हुई मछलियों की जाँच करने से पाया गया है कि मछली- टैंक में जहरीले रासायनिक पदार्थ के फैलने की वजह से इन मछलियों की मौत हुई है। उल्लेखनीय है कि राज्य की राजधानी शिमला से 140 किलोमीटर दूरी पर स्थित पब्बर घाटी पर सरकार द्वारा मछली फार्म संचालित किए जाते हैं, जिन्हें हैचरी बोला जाता है।

2. यहाँ किसी भी हिंदी समाचार पत्र से कोई समाचार काटकर चिपकाइए।
(ख) वह रात अति डरावनी थी, मूसलाधार बारिश में पूरी मुंबई गले तक डूब चुकी थी। लोग घरों तक पहुँचने की जद्दोजहद में अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे।
सारे संपर्क टूट गए थे। मैं तीसरे माले की अपनी बालकनी से प्रकृति का तांडव देख रही थी। बेटे और पति से बड़ी मुश्किल से बात हो पाई थी। पास के रिश्तेदारों के यहाँ उन्हें रुकने को कहने के बाद मैं घर में अकेली थी। हमेशा जगमगाती मुंबई आज अंधकार में डूबी थी। मैंने टॉर्च की रोशनी में देखा कि पास के नाले में भरा कचरा पानी के साथ पूरे मोहल्ले में फैल गया है।

इस दृश्य को मैं कई दिनों तक भुला नहीं पाई। धीरे-धीरे बारिश का प्रकोप थमा और जीवन सामान्य होने लगा। मैंने ठान लिया था कि मुझे क्या करना है। मैंने तीन कचरा पेटी खरीदीं और नाले के सामने रखवा दीं। आस-पास के हर घर में जाकर अपील की कि कचरा नाले में नहीं कचरापेटी में ही डालें। सोसायटी के अध्यक्ष से कहकर नाले की पूरी सफाई करवाई। काफी लोगों ने समझा, तो कुछ ने मजाक बनाया। जानबूझकर कचरा नाले में डाल देते। उनसे उलझने की जगह मैं खुद जाकर कचरा उठाकर पेटी में डाल आती। अब सभी लोग कचरा सही जगह पर डालते हैं और साफ-सुथरी कॉलोनी में रहने पर गर्व महसूस करते हैं।
ऐसी ही कोई न कोई पहल हम सब कर सकते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

प्रश्न 10.
आप किसी ऐसे बालक/बालिका के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए जिसने कोई बहादुरी का काम किया हो।
उत्तर :
पिछले सप्ताह मेरी कक्षा एक पिकनिक ट्रिप पर गई थी। हमारे साथ शीतल मैडम और गुप्ता सर भी थे। हम तीस बच्चे स्कूल की वैन में गए थे। हम बहुत प्रसन्न थे और अपने साथ खेलने और खाने का बहुत-सा सामान ले गए थे। वैन से उतरते ही हम सब झील के किनारे चले गए। झील में किनारे के पास ही एक सुंदर फूल लगा था जिसे संदीप ने तोड़ना चाहा। सब बच्चों ने उसे ऐसा न करने को कहा पर वह माना ही नहीं।

वहाँ थोड़ी ढलान और फिसलन थी। जैसे ही उसने पाँव बढ़ाया वह फ़िसल गया और झील में जा गिरा। हम सब ज़ोर-ज़ोर से चीखने-चिल्लाने लगे। हममें से किसी को भी तैरना नहीं आता था। संदीप गोते खा रहा था। पास ही भैंस चराने वाला एक लड़का अपनी भैंसों को चरा रहा था। हमारी चीख-पुकार सुनकर वह भागा हुआ आया। उसने कपड़ों समेत झील में छलांग लगा दी और डूबते संदीप को झील से बाहर खींच लाया।

तब तक गुप्ता सर भी दूर से भागते हुए हमारे पास पहुँच गए। उन्होंने उस लड़के को शाबाशी दी और एक सौ रुपए इनाम देने की बहुत कोशिश की, पर उसने इनाम नहीं लिया। हम सब बच्चों ने उसकी बहुत प्रशंसा की, पर वह तो सिर नीचा कर चुपचाप बैठा रहा। उसकी बहादुरी के कारण ही संदीप डूबने से बच गया।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 11.
भाषा और वर्तनी का स्वरूप बदलता रहता है। इसी पाठ में हिंदी गद्य का प्रारंभिक रूप व्यक्त हुआ है जो लगभग 75-80 वर्ष पहले प्रचलित था। इस पाठ के किसी पसंदीदा अनुच्छेद को वर्तमान मानक हिंदी रूप में लिखिए।
उत्तर :
मानक रूप – अपना सारा जीवन युद्ध में बिताकर अंत में वृद्धावस्था में सर टामस हे एक मामूली मराठी बालिका के सौंदर्य पर मोहित होकर अपना कर्तव्य ही भूल गए। हमारे मत से नाना के पुत्र, कन्या तथा अन्य कोई भी संबंधी जहाँ कहीं मिलें, मार दिए जाएँ। यह भी जानें –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

पाठेतर सक्रियता –

अपने साथियों के साथ मिलकर बहादुर बच्चों के बारे में जानकारी देने वाली पुस्तकों की सूची बनाइए।
इन पुस्तकों को पढ़िए- ‘ भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाएँ’ – राजम कृष्णन, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली। ‘सन् 1857 की कहानियाँ’ – ख्वाजा हसन निज़ामी, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें –
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
आजाद भारत में दुर्गा भाभी को उपेक्षा और आदर दोनों मिले। सरकारों ने उन्हें पैसों से तोलना चाहा। कई वर्ष पहले पंजाब में उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51 हज़ार रुपये भेंट किए। भाभी ने वे रुपये वहीं वापस कर दिए। कहा – “ जब हम आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय किसी व्यक्तिगत लाभ या उपलब्धि की अपेक्षा नहीं थी।

केवल देश की स्वतंत्रता ही हमारा ध्येय था। उस ध्येय पथ पर हमारे कितने ही साथी अपना सर्वस्व निछावर कर गए, शहीद हो गए। मैं चाहती हूँ कि मुझे जो 51 हज़ार रुपये दिए गए हैं, उस धन से यहाँ शहीदों का एक बड़ा स्मारक बना दिया जाए, जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो, क्योंकि देश की नई पीढ़ी को इसकी बहुत आवश्यकता है।”

मुझे याद आता है सन् 1937 का ज़माना, जब कुछ क्रांतिकारी साथियों ने गाज़ियाबाद तार भेजकर भाभी से चुनाव लड़ने की प्रार्थना की थी। भाभी ने तार से उत्तर दिया – “चुनाव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। अतः लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।”

मुल्क के स्वाधीन होने के बाद की राजनीति भाभी को कभी रास नहीं आई। अनेक शीर्ष नेताओं से निकट संपर्क होने के बाद भी वे संसदीय राजनीति से दूर ही बनी रहीं। शायद इसलिए अपने जीवन का शेष हिस्सा नई पीढ़ी के निर्माण के लिए अपने विद्यालय को उन्होंने समर्पित कर दिया।

1. स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी का सम्मान किस प्रकार किया गया ?
2. दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपये लेने से इंकार क्यों कर दिया ?
3. दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से दूर क्यों रहीं ?
4. आजादी के बाद उन्होंने अपने को किस प्रकार व्यस्त रखा ?
5. दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता आप अपनाना चाहेंगे ?
उत्तर :
1. अनेक सरकारों ने उन्हें पैसे से तोलना चाहा। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार दरबारा सिंह ने उन्हें इक्यावन हज़ार रुपये भेंट किए थे।
2. दुर्गा भाभी ने पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा भेंट स्वरूप दिए गए रुपये इसलिए वापस कर दिए थे क्योंकि वे व्यक्तिगत लाभ नहीं लेना चाहती थीं।
3. दुर्गा भाभी को चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे दलगत राजनीति से दूर रहना चाहती थीं, इसलिए अनेक बड़े-बड़े नेताओं से निकट संपर्क होते हुए भी संसदीय राजनीति से दूर रहीं।
4. आजादी के बाद उन्होंने स्वयं को नयी पीढ़ी के निर्माण में लगा दिया तथा अपना सारा समय अपने विद्यालय को समर्पित कर दिया।
5. दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व से हम उनकी यह विशेषता अपनाना चाहेंगे कि मनुष्य को कोई भी कार्य अपने व्यक्तिगत लाभ अथवा उपलब्धि के लिए न करके समाज के कल्याण के लिए करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

यह भी जानें –

हिंदू – पंच – अपने समय की चर्चित पत्रिका हिंदू पंच का प्रकाशन सन् 1926 में कलकत्ता से हुआ। इसके संपादक थे – ईश्वरीदत्त शर्मा सन् 1930 में इसका ‘बलिदान’ अंक निकला जिसे अंग्रेज़ सरकार ने तत्काल जब्त कर लिया। चाँद के ‘फाँसी’ अंक की तरह यह भी आजादी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस अंक में देश और समाज के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले व्यक्तियों के बारे में बताया गया है।

JAC Class 9 Hindi नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेजों ने क्या किया ?
उत्तर :
कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेज़ों ने अपना सैनिक दल बिठूर भेज दिया। बिठूर आकर उन्होंने नाना साहब का राजमहल लूट लिया। इस लूट में उन्हें बहुत थोड़ी संपत्ति मिली थी। उन्होंने तोप के गोलों से नाना साहब का महल नष्ट करने का निश्चय किया। सैनिकों ने जब वहाँ तोपें लगाईं तो नाना साहब की पुत्री मैना ने सेनापति ‘हे’ से ऐसा न करने की प्रार्थना की, किंतु जनरल अउटरम की आज्ञा से नाना साहब का महल मिट्टी में मिला दिया गया और मैना को कानपुर के एक किले में लाकर जलाकर भस्म कर दिया गया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

प्रश्न 2.
सर टामस हे की रिपोर्ट पर ‘हाउस ऑफ़ लाईस’ ने क्या टिप्पणी की थी ?
उत्तर :
सर टामस हे की रिपोर्ट पर हाउस ऑफ़ लार्ड्स में बहुत आलोचना हुई थी। इस संबंध में टाइम्स ने लिखा था कि ‘हे’ के लिए निश्चय ही यह कलंक की बात है। जिस नाना ने अंग्रेज़ नर-नारियों का संहार किया उसकी कन्या के लिए वे क्षमा- दान की माँग कर रहे हैं। लगता है, अपना सारा जीवन युद्ध में बिताकर अंत में वृद्धावस्था में वे एक मामूली महाराष्ट्रीयन बालिका के सौंदर्य पर मुग्ध होकर अपना कर्तव्य भूल गए हैं। हमारे विचार में नाना का जो भी संबंधी मिले, उसे मार डाला जाए तथा जिस कन्या की ‘हे’ ने क्षमादान की अपील की है, उसे ‘हे’ के सामने फाँसी पर लटका दिया जाए।

प्रश्न 3.
धुंधुपंत नाना साहब से क्या गलती हुई थी और उस ग़लती का परिणाम किसे भुगतना पड़ा ?
उत्तर :
धुंधुपत नाना साहब सन् 1857 ई० के विद्रोह के नेताओं में से एक थे। नाना साहब कानपुर में असफल हो गए थे। वे जल्दी से वहाँ : से भाग निकले थे परंतु जल्दी-जल्दी में वे अपनी पुत्री मैना को अपने साथ नहीं ले सके थे। उनकी इस छोटी सी ग़लती का परिणाम छोटी बच्ची को भुगतना पड़ा। उस छोटी बच्ची मैना को अंग्रेजों की क्रूरता का शिकार होना पड़ा था।

प्रश्न 4.
अंग्रेज़ी सरकार ने सेनापति टामस ‘हे’ को क्या आदेश दिया था ?
उत्तर :
अंग्रेज़ी सरकार सन् 1857 के संग्राम में भाग लेने वालों के विरुद्ध क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर रही थी। नाना साहब के असफल होने पर और वहाँ से सुरक्षित निकल जाने पर अंग्रेज़ों ने उनके महल पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजी सरकार ने सेनापति टामस ‘हे’ को आदेश दिया कि नाना साहब के संबंधी, पुत्र और कन्या जो भी मिले उसे मार डाला जाए। नाना साहब की पुत्री को फाँसी देने का आदेश दिया गया था परंतु अंग्रेजों ने उसे जिंदा जला दिया।

प्रश्न 5.
सेनापति टामस ‘हे’ और नाना साहब की पुत्री मैना के मध्य हुए संवाद को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नाना साहब का महल नष्ट करने के लिए अंग्रेज़ों की तरफ से सेनापति टामस ‘हे’ आए थे। मैना ने उन्हें पहचान लिया कि वे उसकी सहेली के पिता थे। मैना ने उनसे मकान को नष्ट करने से पहले मकान के द्वारा किया गया अपराध पूछा। सेनापति ‘हे’ ने कहा कि वह नाना साहब का निवास स्थान था। हमें उनसे संबंधित सभी वस्तुओं को नष्ट करने का आदेश मिला था। मैना सेनापति ‘हे’ को अपना परिचय उनकी पुत्री मेरी की सखी के रूप में दिया था। साथ ही जड़ पदार्थ मकान को नष्ट न करने की प्रार्थना की।

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प्रश्न 6.
सेनापति ‘हे’ मैना की बातें सुनकर असमंजस में क्यों पड़ जाता है ?
उत्तर :
सेनापति ‘हे’ नाना साहब का महल नष्ट करने आया था परंतु मैना की बातें सेनापति ‘हे’ पर गहरा प्रभाव डालती हैं। वह महल को नष्ट नहीं करना चाहता था परंतु उसे अंग्रेज़ सरकार से आदेश मिला था जिसे वह ठुकरा नहीं सकता था। वह मैना को अपनी पुत्री मेरी के समान प्यार करता था। वह असमंजस में पड़ जाता है कि वह सरकार का आदेश का पालन करे या मैना की बात मानकर महल की रक्षा करे।

प्रश्न 7.
प्रधान सेनापति जनरल अउटरम सेनापति ‘हे’ पर क्यों क्रोधित हुआ ?
उत्तर :
सेनापति ‘हे’ को आदेश दिया गया था कि नाना साहब से संबंधित सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया जाए परंतु सेनापति ‘हे’ ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि मैना उनकी पुत्री मेरी की सहेली थी। वे उसकी रक्षा करने का प्रयत्न करते हैं। उसी समय जनरल अउटरम वहाँ पहुँच जाता है और सेनापति ‘हे’ को आदेश का पालन नहीं करते हुए देखकर वह उस पर बिगड़ जाता है।

प्रश्न 8.
सेनापति ‘हे’ ने नाना साहब के महल को बचाने के लिए क्या प्रयास किए?
उत्तर :
सेनापति ‘हे’ ने अंग्रेज़ी सरकार के आदेश का उल्लंघन करते हुए जनरल अउटरम से प्रार्थना करता है कि नाना साहब के महल को नष्ट न किया जाए। जनरल अउटरम उसकी प्रार्थना को ठुकरा देता है। सेनापति ‘हे’ गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग को एक तार भेजता है। गवर्नर जनरल भी उसकी प्रार्थना को ठुकरा देते हैं। सेनापति ‘हे’ नाना साहब के महल को बचाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं।

प्रश्न 9.
अंत में मैना कहाँ बैठी थी और उसकी अंतिम इच्छा क्या थी ?
उत्तर :
जनरल अउटरम ने नाना साहब के महल को नष्ट कर दिया था। वहाँ उसे मैना कहीं नहीं मिली थी। सितंबर 1857 को आधी रात के समय मैना साफ़ कपड़े पहने हुए महल की राख की पास बैठी रो रही थी। अंग्रेज़ों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। वह मरने से नहीं डर रही थी। वह केवल कुछ देर के लिए अपने पिता के महल की राख के पास बैठकर रोना चाहती थी परंतु अंग्रेजों ने उसकी इच्छा पूरी नहीं की।

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प्रश्न 10.
अंग्रेज़ों ने मैना के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उत्तर :
अंग्रेजों ने मैना को उसके महल में से गिरफ्तार कर लिया। उसे कानपुर के किले में बंद कर दिया। मैना को फाँसी की सजा सुनाई गई थी, परंतु अंग्रेज़ों ने उसे कानपुर के किले में आग में जलाकर भस्म कर दिया। अंग्रेजों ने उस छोटी बच्ची को जिंदा जलाकर नाना साहब से अपना बदला लिया था।

प्रश्न 11.
मैना के मरने का समाचार किसने दिया और मरते समय वह कैसी लग रही थी ?
उत्तर :
मैना के मरने का समाचार महाराष्ट्रीय इतिहास वेत्ता महादेव चिटनवीस ने अपने पत्र ‘बाखर’ में छापा था। उसमें लिखा था, ‘अंग्रेज़ों ने कानपुर के किले में भीषण हत्याकांड किया और मैना को जिंदा आग में जलाकर भस्म कर दिया। भीषण अग्नि में जलते समय मैना शांत और सरल मूर्ति लग रही थी। वहाँ उपस्थित लोगों ने उसे देवी समझकर प्रणाम किया।’

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. सन् 1857 के विद्रोही नेता धुंधुपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ . न ले जा सके। देवी मैना बिठूर में पिता के महल में रहती थी, पर विद्रोह का दमन करने के बाद अंग्रेज़ों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. विद्रोह कब हुआ था ?
2. 1857 के विद्रोही नेता का क्या नाम था ?
3. नाना साहब कानपुर में किसको और क्यों छोड़कर चले गए थे ?
4. अंग्रेज़ों ने किसे अग्नि में भस्म कर दिया था ?
उत्तर :
1. विद्रोह सन् 1857 में हुआ था।
2. सन् 1857 के विद्रोही नेता का नाम धुंधपंत नाना साहब था।
3. सन् 1857 के विद्रोह में नाना साहब असफल हो गए थे, इसलिए वे वहाँ से जल्दी में भागने लगे। इसी जल्दबाजी में वे कानपुर में अपनी पुत्री देवी मैना को छोड़ गए, जो उनके महल में उनके साथ रहती थी।
4. अंग्रेज़ों ने नाना साहब की पुत्री देवी मैना को बड़ी ही क्रूरता से आग में जलाकर भस्म कर दिया।

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2. कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेज़ों का सैनिक दल बिठूर की ओर गया। बिठूर में नाना साहब का राजमहल लूट लिया गया, पर उसमें बहुत थोड़ी संपत्ति अंगरेजों के हाथ लगी। इसके बाद अंग्रेज़ों ने तोप के गोलों से नाना साहब का महल भस्म कर देने का निश्चय किया। सैनिक दल ने जब वहाँ तोपें लगाईं, उस समय महल के बरामदे में एक अत्यंत सुंदर बालिका उठकर खड़ी हो गई।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. अंग्रेज़ों के सैनिक भीषण हत्याकांड के पश्चात् कहाँ गए ?
2. अंग्रेज़ों ने नाना साहब के राजमहल के साथ क्या किया ?
3. अंग्रेज़ों ने क्या निश्चय किया ?
4. नाना साहब के महल को तोपों से उड़ाते समय क्या हुआ ?
उत्तर
1. कानपुर में भीषण हत्याकांड के बाद अंग्रेज़ों के सैनिक दल बिठूर की ओर गए।
2. अंग्रेज़ों ने बिठूर में नाना साहब के राजमहल को लूट लिया। इसके पश्चात अंग्रेज़ों ने तोप के गोलों से उनका राजमहल भस्म करने का निश्चय किया।
3. अंग्रेज़ों ने नाना साहब के महल को तोप से उड़ा देने का निश्चय किया।
4. अंग्रेज़ों ने नाना साहब के महल को तोप से उड़ाने का निश्चय करने के बाद वहाँ पर तोपें लगवा दीं। उसी समय महल के बरामदे में एक सुंदर बालिका उठकर खड़ी हो गई।

3. मैं जानती हूँ कि आप जनरल ‘हे’ हैं। आपकी प्यारी कन्या मेरी में और मुझ में बहुत प्रेम संबंध था। कई वर्ष पूर्व मेरी मेरे पास बराबर आती थी और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे यहाँ आते थे और मुझे अपनी पुत्री के ही समान प्यार करते थे। मालूम होता है कि आप वे सब बातें भूल गए हैं। मेरी की मृत्यु से मैं बहुत दुखी हुई थी, उसकी एक चिट्ठी मेरे पास अब तक है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) यह शब्द किसने, किसे और क्यों कहे ?
(ख) जनरल ‘हे’ कौन था ? वह यहाँ किसलिए आया था ?
(ग) मेरी की सखी जनरल ‘हे’ को क्या समझाना चाहती थी और क्यों ?
(घ) मेरी की सखी ने मेरी का पत्र क्यों संभालकर रखा हुआ था ?
(ङ) जनरल ‘हे’ के मन में मैना ने क्या भाव भरने का प्रयत्न किया था ?
उत्तर :
(क) यह शब्द धुंधुपंत नाना साहब की पुत्री मैना ने अंग्रेज़ सेनापति जनरल ‘हे’ से कहे थे। जब जनरल ‘हे’ सरकार की आज्ञा से नाना साहब का महल तोपों से गिराना चाहता था तो मैना उनसे यह महल न गिराने का अनुरोध करते हुए उन्हें अपना परिचय देती है।
(ख) जनरल ‘हे’ एक अंग्रेज़ अधिकारी था। वह वहाँ नाना साहब का महल गिराने आया था।
(ग) मेरी की सखी मैना जनरल ‘हे’ को यह समझाना चाहती है कि उसका तथा उनकी पुत्री मैरी का आपस में बहुत प्रेम – भाव था। वे उनके घर आते रहते थे तथा मेरी भी उनके घर आती थी। वे उसे भी अपनी पुत्री के समान स्नेह देते थे। इस प्रकार उनके तथा मैना के परिवार के आपस में अच्छे संबंध थे, इसलिए उन्हें उनका महल नष्ट नहीं करना चाहिए।
(घ) मैना का मेरी के साथ बहुत प्रेम-भाव था। वे आपस में मिलती-जुलती रहती थीं। मेरी की मृत्यु से मैना बहुत दु:खी हुई थी। मेरी की यादगार के रूप में मैना ने मेरी का एक पत्र संभालकर रखा हुआ था।
(ङ) मैना ने जनरल ‘हे’ के मन में अपने प्रति प्रेम और सहानुभूति के भाव भरने चाहे थे।

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4. बड़े दुःख का विषय है कि भारत सरकार आज तक इस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी जिस पर समस्त अंग्रेज जाति का भीषण क्रोध है। जब तक हम लोगों के शरीर में रक्त रहेगा, तब तक कानपुर में अंग्रेज़ों के हत्याकांड का बदला लेना हम लोग न भूलेंगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) यह कथन किसने, कब और क्यों कहा ?
(ख) भारत सरकार किसे कहा गया है ? वह असफल क्यों रही ?
(ग) नाना साहब को दुर्दात क्यों कहा गया है ? अंग्रेज़ों को उन पर क्रोध क्यों है ?
(घ) कानपुर में कैसा हत्याकांड हुआ था ? यह घटना कब की है ?
(ङ) अंग्रेज़ सरकार को किसने भड़काया और उकसाया था ?
उत्तर :
(क) यह समाचार लंदन से प्रकाशित ‘टाइम्स’ के 6 सितंबर, सन् 1857 के अंक में छपा था। कानपुर में धुंधुपंत नाना साहब द्वारा अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध किए गए विद्रोह के कारण यह समाचार प्रकाशित हुआ था। अंग्रेज़ सेना नाना को पकड़ नहीं सकी थी।
(ख) भारत सरकार तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार को कहा गया है। वह सरकार नाना साहब द्वारा किए गए विद्रोह को दबा नहीं सकी थी और नाना साहब को भी पकड़ने में असमर्थ रही थी। इसलिए ‘टाइम्स’ ने इस सरकार को असफल कहा था।
(ग) नाना साहब को दुर्गांत इसलिए कहा गया है क्योंकि अंग्रेज़ सरकार के सैनिक नाना साहब के विद्रोह का दमन नहीं कर सके थे और न ही वे नाना साहब को पकड़ सके। नाना साहब द्वारा किए गए विद्रोह और अंग्रेज़ों की हत्याओं के कारण ही अंग्रेज़ों को उन पर क्रोध है।
(घ) कानपुर में अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध हुए नाना साहब के विद्रोह में अनेक अंग्रेज़ मारे गए थे। इसके बाद बदला लेने के लिए अंग्रेज़ सैनिकों ने कानपुर में अनेक भारतीयों को मार दिया था। यह घटना सन् 1857 ई० के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की है।
(ङ) अंग्रेज़ सरकार को भारत सरकार के विरुद्ध समाचार पत्र ‘टाइम्स’ ने भड़काया और उकसाया था।

नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया Summary in Hindi

लेखिका – परिचय :

जीवन परिचय – चपला देवी द्विवेदी युग की लेखिका मानी जाती हैं। इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं है।

रचनाएँ – चपला देवी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में रिपोर्ताज लिखे थे। ‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध रिपोर्ताज है। उनकी अन्य रचनाओं के संबंध में हिंदी साहित्य का इतिहास मौन है।

भाषा-शैली – चपला देवी द्वारा रचित रिपोर्ताज इस शैली का प्रारंभिक रूप है। इसमें लेखिका ने तत्कालीन प्रचलित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इसमें क्रूरता, विद्रोह, दमन, वासस्थान, अल्पवयस, भग्नावशिष्ट आदि तत्सम प्रधान शब्दों के अतिरिक्त महल, बरामदा, चिट्ठी, फिक्र, तार आदि विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। संवादात्मकता ने इस रिपोर्ताज की रोचकता में वृद्धि की है, जैसे-सेनापति ने उससे पूछा – ‘क्या चाहती है ?”

बालिका ने शुद्ध अंग्रेज़ी भाषा में उत्तर दिया – ‘क्या आप कृपा कर इस महल की रक्षा करेंगे ?”
सेनापति – ‘क्यों, तुम्हारा इसमें क्या उद्देश्य है ?’
बालिका – ‘आप ही बताइए कि यह मकान गिराने में आपका क्या उद्देश्य है ?”
कहीं-कहीं विवरणात्मक शैली के दर्शन होते हैं, जैसे – ‘कल कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकांड हो गया। नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गई। भीषण अग्नि में शांत और सरल मूर्ति उस अनुपमा बालिका को जलती देख, सबने उसे देवी समझकर प्रणाम किया।’
इस प्रकार लेखिका ने सहज, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी भाषा – शैली में अपने भावों को व्यक्त किया है।

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पाठ का सार :

‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ चपला देवी द्वारा रचित रिपोर्ताज है, जिसमें लेखिका ने सन् 1857 ई० की क्रांति के नेता धुंधुपंत नाना साहब की पुत्री मैना को अंग्रेजों द्वारा जलाकर मार डालने की लोमहर्षक घटना का हृदयस्पर्शी वर्णन किया गया है। कानपुर में भीषण नरसंहार करने के बाद अंग्रेज़ों की सेना ने बिठूर जाकर नाना साहब का राजमहल लूट लिया।

इसके बाद उन्होंने तोप के गोलों से महल को उड़ाने की तैयारी की तो महल के बरामदे में एक बहुत सुंदर बालिका आकर खड़ी हो गई तथा अंग्रेज सेनापति को महल पर तोप के गोले बरसाने से मना किया। उस छोटी-सी बालिका पर अंग्रेज सेनापति को दया आ गई और उसने उस बालिका से पूछा कि वह क्या चाहती है? उस बालिका ने सेनापति को अंग्रेज़ी भाषा में ही उत्तर दिया कि वह इस महल की रक्षा करना चाहती है क्योंकि जिन्होंने आप के विरुद्ध शस्त्र उठाए थे वे दोषी हो सकते हैं परंतु इस जड़ पदार्थ मकान ने तो आप का कुछ नहीं बिगाड़ा है। सेनापति ने उत्तर दिया कि वह अपने कर्तव्य से बँधा हुआ है, इसलिए उसे यह मकान गिराना ही होगा।

तब वह बालिका उस अंग्रेज सेनापति को बताती है कि वह जानती है कि वे जनरल ‘हे’ हैं। उनकी पुत्री मैरी से उसकी मित्रता थी। मैरी की मृत्यु से वह बहुत दुखी हुई थी। मैरी का एक पत्र आज भी उसके पास सुरक्षित है। तब सेनापति ने उस बालिका को पहचान लिया कि वह नाना साहब की पुत्री मैना है। वह उसे बचाने का प्रयत्न करने की बात कहता है। तभी वहाँ जनरल अउटरम आकर नाना साहब के महल को तोप से उड़ाने के लिए कहता है।

सेनापति ‘हे’ नाना साहब के महल को किसी प्रकार से बचाने के लिए उनसे पूछता है तो अउटरम स्पष्ट कह देता है कि गवर्नर जनरल की आज्ञा के बिना यह संभव नहीं है। सेनापति ‘हे’ गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग से इस विषय में तार भेजकर अनुरोध करता है। लॉर्ड केनिंग का उत्तर आता है कि ‘लंदन के मंत्रिमंडल का यह मत है कि नाना का स्मृति चिह्न तक मिटा दिया जाए।’ उसी क्षण जनरल अउटरम की आज्ञा से नाना का राजमहल तोप के गोले बरसा कर मिट्टी में मिला दिया जाता है।

इस संदर्भ में लंदन से प्रकाशित ‘टाइम्स’ पत्र में छठी सितंबर को एक लेख में नाना साहब को पकड़ सकने में अंग्रेजी सेना की असमर्थता पर खेद व्यक्त किया गया और ‘हाउस ऑफ लाईस’ की सभा में सर टामस ‘हे’ की इस रिपोर्ट की निंदा की गई कि नाना की कन्या पर दया की जाए। उन्होंने नाना के परिवारजनों तथा संबंधियों को मार डालने तथा मैना को फाँसी पर लटकाने का आदेश दिया।

सन् 1857 ई० के सितंबर महीने की आधी रात के समय चाँदनी में स्वच्छ उज्ज्वल वस्त्र पहनकर एक बालिका नाना साहब के धराशायी महल के ढेर पर बैठी रो रही थी। वहीं पास में जनरल अउटरम और उसकी सेना भी ठहरी हुई थी। बालिका के रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ पहुँच गया और उसने उसे पहचान लिया कि यह तो नाना की पुत्री मैना है। उसने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसे कानपुर के किले में लाकर कैद कर दिया गया। बाद में महाराष्ट्रीय इतिहासकार महादेव चिटनवीस के समाचार पत्र ‘बाखर’ में यह प्रकाशित हुआ कि कल कानपुर के किले में नाना साहब की पुत्री मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गई। भीषण अग्नि में भी शांत भाव से उस बालिका को जलती देखकर सबने उसे देवी समझ कर प्रणाम किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • विद्रोही – बाग़ी
  • दमन – बगावत को बलपूर्वक रोकना
  • निरीह – बेचारा, चुपचाप पड़ा रहनेवाला
  • पाषाण – पत्थर
  • अल्पवयस – कम उम्र
  • विध्वंस – नष्ट, नाश
  • दुर्दांत – जिसे दबाना बहुत कठिन हो
  • प्रासाद – महल
  • विद्रोह – राज्य को उलटने के लिए बलवा करना, बगावत
  • कूरता – निर्दयता, निष्ठुरता
  • निरपराध – जिसने कोई अपराध न किया हो, निर्दोष
  • द्रवीभूत – दया से पसीजा हुआ
  • वास स्थान – रहने का स्थान
  • फिक्र – चिंता
  • भग्नावशिष्ट – खंडहर
  • आर्त – दुखी

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

JAC Class 9 Hindi साँवले सपनों की याद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर :
बचपन में सालिम अली एयरगन से खेला करते थे। एक दिन उनकी एयरगन से निकली गोली से एक नीले कंठवाली गौरैया घायल होकर गिर पड़ी। इस घायल गौरैया की दयनीय दशा देखकर सालिम अली को बहुत दुख हुआ। उन्होंने एयरगन न चलाने का फ़ैसला किया और पक्षियों की सेवा करने का निश्चय किया। इस प्रकार एक घायल गौरैया ने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया और वे पक्षी प्रेमी बन गए।

प्रश्न 2.
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं ?
उत्तर :
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री को बताया होगा कि यदि हम ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से नहीं बचाएँगे तो यहाँ का समस्त पर्यावरण दूषित हो जाएगा। पेड़-पौधे सूख जाएँगे। वर्षा नहीं होगी। हरियाली नष्ट हो जाएगी। पक्षियों का चहचहाना सुनाई नहीं देगा। पक्षी किसी दूसरे स्थान पर चले जाएँगे। पशुओं की भी हानि होगी। इस प्रकार से यह सुंदर वैली उजाड़ हो जाएगी। यह सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें नम हो गई होंगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 3.
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरी छत पर बैठनेवाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है??
उत्तर :
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि लॉरेंस को प्रकृति से गहरा लगाव था। वे एक अच्छे ‘बर्ड वाचर’ थे। वे पक्षियों के कलरव से प्रेरणा प्राप्त कर कविताएँ लिखते थे। उनकी प्रकृति संबंधी कविताएँ विशेष प्रसिद्ध हैं। वे अपनी छत पर बैठी हुई गौरैया को अकसर देखा करते थे। इसी कारण उनकी पत्नी ने यह कहा कि मेरी छत पर बैठी गौरैया लॉरेंस के बारे में अधिक बता सकती है।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) वो लॉरेंस की तरह नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
उत्तर :
लेखक को लगता है कि जिस प्रकार सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कवि डी० एच० लॉरेंस प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे और मानते थे कि ‘मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।’ इसलिए ‘हमारा प्रकृति की ओर लौटना ज़रूरी है।’ उसी प्रकार सालिम अली भी प्रकृति से बहुत लगाव रखते थे। वे प्रकृति की दुनिया में अथाह सागर बनकर उभरे थे। इसलिए वे प्राकृतिक जीवन के प्रतिनिधि बन गए थे।

(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ?
उत्तर :
लेखक का कथन है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस मरे हुए व्यक्ति को यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने शरीर की गरमी और अपने दिल की धड़कनें देकर जीवित करना चाहे तो यह संभव नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी साँसें देकर किसी मरे हुए व्यक्ति को जीवित नहीं कर सकता। जो पक्षी मर जाता है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता। वह फिर से अपना कलरव नहीं कर सकता।

(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि सालिम अली को प्रकृति से बहुत प्रेम था। उन्होंने प्रकृति का बहुत सूक्ष्मता से निरीक्षण किया था। वे दूरबीन से प्रकृति के प्रत्येक हृदय का आनंद लेते थे। एकांत के क्षणों में भी वे प्रकृति को अपनी दूरबीन रहित आँखों से निहारते रहते थे। इसी प्रकृति – प्रेम ने उन्हें पक्षियों का प्रेमी भी बना दिया था। जैसे सागर बहुत गहरा होता है उसी प्रकार सालिम अली का प्रकृति – प्रेम भी बहुत गहरा था।

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प्रश्न 5.
इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
(क) सरल भाषा – इस पाठ में लेखक ने बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग किया है, जैसे – ‘आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं हैं। कौन बचा हैं जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा।’

(ख) शब्द प्रयोग – इस पाठ में लेखक ने तत्सम तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। जैसे- अग्रसर, अंतहीन, पलायन, नैसर्गिक, परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, एहसास, तलाश, साइलेंट वैली, आबशारों आदि। इन शब्दों के द्वारा लेखक ने दृश्यों के शब्द – चित्र भी उपस्थित कर दिए हैं जैसे “सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ अग्रसर है।’

(ग) काव्यात्मकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली काव्यात्मक भी हो गई है, जैसे- ‘एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-
खाबड़ जमीन पर जनमे मिथक का नाम है, सालिम अली’।

(घ) रोचकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली अत्यंत रोचक है। वृंदावन में श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रसंग भाषा-शैली की रोचकता का सुंदर उदाहरण है, जैसे- ‘पता नहीं इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँड़े फोड़े थे।’
इस प्रकार इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली सहज, चित्रात्मक तथा रोचक है।

प्रश्न 6.
इस पाठ में लेखक सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस पाठ में लेखक ने सालिम अली को एक सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक तथा समर्पित ‘बर्ड वाचर’ के रूप में प्रस्तुत किया है। बचपन में उनकी एयरगन से एक गौरैया घायल हो गई थी, जिसका दर्द देखकर उनके मन में पक्षी – प्रेम उत्पन्न हो गया था। उसके बाद वे जीवनभर दूरबीन लेकर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की खोज करते रहे और ‘एक गौरैया का गिरना’ शीर्षक पुस्तक में पक्षियों से संबंधित अपने अनुभवों को लिखा।

वे प्रकृति – प्रेमी भी थे। उन्हें प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करने में अपार आनंद आता था। उन्हें पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बहुत चिंता रहती थी। इसलिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा से बचाने का अनुरोध किया था। वे निरंतर लंबी-लंबी यात्राएँ करके पक्षियों पर खोज करते थे। उनकी आँखों पर सदा दूरबीन चढ़ी रहती थी जिसे उनकी मृत्यु के बाद ही उतारा गया था। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 7.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक सालिम अली की मृत्यु पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेखक को लगता है कि सालिम अली की यायावरी से परिचित लोग अभी भी यही सोच रहे हैं कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में निकले हैं और अभी गले में दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। लेखक की आँखें भी नम हैं और वह सोचता है ‘सालिम अली, तुम लौटोगे ना।’

लेखक का यह स्वप्न तब भंग हो जाता है जब वह देखता है कि सालिम अली उस हुजूम में सबसे आगे हैं जो मौत की खामोशवादी की ओर अग्रसर हो रहा है जहाँ जाकर वह प्रकृति में विलीन हो जाएगा। सालिम अली को ले जाने वाले अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटा नहीं सकते। अब तो बस उसकी यादें ही शेष हैं। इस प्रकार इस पाठ का शीर्षक ‘साँवले सपनों की याद’ सार्थक है।

रचना और अभिव्यक्ति – 

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर :
पर्यावरण को बचाने के लिए हमें अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए। अपनी गली-मोहल्ले को साफ़-सुथरा रखना चाहिए। कूड़ा एक स्थान पर जमा करना चाहिए। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तालाबों, झीलों तथा नदियों में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों को कम प्रयोग में लाना चाहिए। वातावरण को शुद्ध बनाकर रखना चाहिए।

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पाठेतर सक्रियता –

अपने घर या विद्यालय के नज़दीक आपको अकसर किसी पक्षी को देखने का मौका मिलता होगा। उस पक्षी का नाम, भोजन, खोने का तरीका, रहने की जगह और अन्य पक्षियों से संबंध आदि के आधार पर एक चित्रात्मक विवरण तैयार करें।
आपकी और आपके सहपाठियों की मातृभाषा में पक्षियों से संबंधित बहुत से लोकगीत होंगे। उन भाषाओं के लोकगीतों का एक संकलन तैयार करें। आपकी मदद के लिए एक लोकगीत दिया जा रहा है –

अरे अरे श्यामा चिरइया झरोखवै मति बोलहु।
मोरी चिरई ! अरी मोरी चिरई ! सिरकी भितर बनिजरवा।
जगाई लइ आवउ, मनाइ लइ आवड ॥1॥
कवने बरन उनकी सिरकी कवने रँग बरदी।
बहिनी ! कवने बरन बनिजरवा जगाइ लै आई मनाइ लै आई ॥2॥
जरद बरन उनकी सिरकी उजले रंग बरदी।
सँवर बरन बनिजरवा जगाइ लै आवउ मनाइ लै आवउ ॥3॥

विभिन्न भाषाओं में प्राप्त पक्षियों से संबंधित लोकगीतों का चयन करके एक संगीतात्मक प्रस्तुति दें।
टी०वी० के विभिन्न चैनलों जैसे- एनिमल किंगडम, डिस्कवरी चैनल, एनिमल प्लेनेट आदि पर दिखाए जानेवाले कार्यक्रमों को देखकर किसी एक कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त करें।
एन०सी०ई० आर०टी० का श्रव्य कार्यक्रम सुनें – डॉ० सालिम अली
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें –

प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली का जन्म 12 नवंबर, सन् 1896 में हुआ और मृत्यु 20 जून, सन् 1987 में उन्होंने फॉल ऑफ़ ए स्पैरो नाम से अपनी आत्मकथा लिखी है जिसमें पक्षियों से संबंधित रोमांचक किस्से हैं। एक गौरैया का गिरना शीर्षक से इसका हिंदी अनुवाद नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है।
डी० एच० लॉरेंस (1885-1930) 20वीं सदी के अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासकार। उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं, विशेषकर प्रकृति संबंधी कविताएँ उल्लेखनीय हैं। प्रकृति से डी०एच० लॉरेंस का गहरा लगाव था और सघन संबंध भी। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। वे यह भी मानते थे कि हमारा प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है।

JAC Class 9 Hindi साँवले सपनों की याद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है ?
उत्तर :
सालिम अली की अंतिम यात्रा के समय लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ वहाँ एकत्र हो गई थी। इस भीड़ में सबसे आगे सालिम अली का जनाज़ा चल रहा था। सब लोग चुपचाप उनके पीछे-पीछे मौत की वादी की ओर अग्रसर हो रहे थे। सालिम अली इस संसार के भीड़-भाड़ एवं तनाव से युक्त वातावरण से आज़ाद हो गए थे। वे उस वन – पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर मौत की गोद में चला गया हो। अब कोई उन्हें अपने जिस्म की गरमी तथा दिल की धड़कन देकर भी लौटा नहीं सकता था।

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प्रश्न 2.
वृंदावन की आज की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर
आज भी वृंदावन जाएँ तो यमुना नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की वृंदावन में की गई अनेक लीलाओं की याद करा देता है। सूर्य निकलने से पहले ही वृंदावन की गलियों से लोग निकलकर यमुना की ओर जाते हैं तो लगता है कि श्रीकृष्ण कहीं से निकलकर बाँसुरी बजाने लगेंगे और सब उस बंसी की तान पर मस्त होकर जहाँ के वहाँ रह जाएँगे। आज भी वृंदावन का वातावरण श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादू से भरा हुआ है।

प्रश्न 3.
सालिम अली ने वर्षों पहले क्या कहा था ?
उत्तर :
वर्षों पहले सामिल अली ने कहा था कि आदमी को पक्षी को आदमी की नज़र की अपेक्षा पक्षियों की नज़र से देखना चाहिए इससे आदमी को पक्षियों के विषय में जानने में मदद मिलेगी। ऐसे ही आदमी प्रकृति को भी अपनी नज़र से देखता है इसलिए उसे जगलों, पहाड़ों, झरनों और आबशारों की असली सुंदरता का पता नहीं है। इन सबको जानने के लिए स्वयं को उसकी तरह अनुभव करना पड़ता है तब हमें पक्षियों और प्रकृति से अनोखा संगीत सुनाने को मिल सकता है।

प्रश्न 4.
‘बर्ड वाचर’ से क्या अभिप्राय है ? इस पाठ में लेखक ने किसे बर्ड वाचर कहा है ?
उत्तर :
‘बर्ड वाचर’ से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसे पक्षियों से प्रेम होता है। वह पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन करता है तथा उनके संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है। वह पक्षियों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने के लिए तैयार रहता है। इस पाठ में लेखक ने ‘बर्ड वाचर’ सालिम अली को कहा है। सालिम अली ने अपनी सारी उम्र पक्षियों की तलाश और हिफ़ाज़त के लिए समर्पित कर दी थी।

प्रश्न 5.
सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
उत्तर :
सालिम अली अपनी दृष्टि से प्रकृति के जादू को बाँध लेते थे। उनके लिए प्रकृति में चारों ओर एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया फैली हुई थी। सालिम अली उन लोगों में से थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने को कायल होते थे। प्रकृति की दुनिया उन्होंने अपने लिए बड़ी मेहनत से बनाई थी।

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प्रश्न 6.
‘सालिम अली ने स्वयं को प्रकृति के लिए अर्पित कर दिया था।’ इसमें उनका साथ किसने दिया ?
उत्तर :
सालिम अली का संपूर्ण जीवन प्रकृति के नए-नए दृश्यों की खोज और पक्षियों की खोज में बीता है। उन्होंने अपने आस-पास प्रकृति की दुनिया बड़ी मेहनत से बनाई थी। इस दुनिया को बनाने में उनकी जीवन-साथी तहमीना ने बहुत सहायता की थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।

प्रश्न 7.
लॉरेंस कौन था ? उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी से लोगों ने क्या कहा ?
उत्तर :
लॉरेंस बीसवीं सदी के अंग्रेज़ी के उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति-प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव और सघन संबंध था। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। वह यह मानते थे कि मनुष्य का प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है। लॉरेंस की मृत्यु के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा से कहा कि वे लॉरेंस के विषय में कुछ लिखें। परंतु फ्रीडा ने यह कहकर इनकार कर दिया कि उसके लिए लॉरेंस पर लिखना कठिन है। उनके बारे में कुछ पता करना है तो छत पर बैठी गौरैया से पूछ लें अर्थात जो उनकी कविता के प्रेरणा स्रोत हैं आप लोगों को उनसे बात करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
प्रकृति की दुनिया में सालिम का क्या स्थान था ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :
सालिम अली के लिए प्रकृति की दुनिया ही उनका जीवन थी। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन प्रकृति और उसमें रहनेवाले पक्षियों की नई-नई खोजों को समर्पित कर दिया। वे हिमालय या लद्दाख की बरफीली जमीनों पर जीनेवाले पक्षियों के अस्तित्व की चिंता करते थे। वे प्रकृति के ज्ञान का अथाह सागर थे। उन्होंने प्रकृति का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने प्रकृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था। क्षण प्रतिक्षण प्रकृति के होनेवाले विनाश को लेकर भी चिंतित थे। वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। उन्हें प्रकृति का प्रतिपल परिवर्तित रूप प्रभावित करता था।

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प्रश्न 9.
सालिम अली को जाननेवालों का उनके संबंध में क्या विचार था ?
उत्तर :
सालिम अली को निकट से जाननेवाले लोगों का मानना है कि वे कहीं नहीं गए। अभी उनकी मृत्यु नहीं हुई है। वे अपने प्रिय पक्षियों की खोज और हिफ़ाज़त के लिए कहीं गए हुए हैं। उनके साथ उनकी दूरबीन है। जो उन्हें पक्षियों की नित नई गतिविधियों से परिचित कराएगी। वे कुछ दिनों में वापिस लौट आएँगे और सबको अपनी यात्रा के अनुभव और खोजों के परिणाम को बताएँगे।

प्रश्न 10.
‘साँवले सपनों की याद’ किस प्रकार की विधा है ? लेखक ने इस पाठ में क्या कहा है?
उत्तर :
‘साँवले सपनों की याद’ जाबिर हुसैन द्वारा रचित एक संस्मरण है। उनका यह संस्मरण प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली के जीवन से संबंधित है। इस संस्मरण में लेखक ने सालिम अली के जीवन को एक किताब की भाँति खोलकर रख दिया उन्होंने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को इस संस्मरण में प्रकट किया है।

प्रश्न 11.
सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को बचाने के लिए क्या किया ?
उत्तर :
सालिम अली ने अपने अथाह परिश्रमों से केरल की साइलेंट वैली को बचाने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया और समझाया कि किस प्रकार प्रकृति विनाश के गर्त में डूबने जा रही है।

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प्रश्न 12.
जाबिर हुसैन की भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
जाबिर हुसैन की भाषा-शैली सरल, सहज तथा भावानुकूल है। इनकी भाषा जनसाधारण के निकट थी। इन्होंने अपने लेखों में उर्दू के शब्दों का बहुत प्रयोग किया है। छोटे-छोटे वाक्य तथा उनमें छिपे गंभीर भाव इनकी सफलता का आधार हैं। इनकी शैली में चित्रात्मकता देखी जा सकती है। प्रकृति का वर्णन करने में इनका कवि हृदय मुखरित हो पड़ता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वे उस वन- पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली कौन से हुजूम में किसकी तरह चल रहे हैं ?
(ख) सालिम अली का अंतिम सफर कैसा था ?
(ग) साँवले सपनों का हुजूम किसकी वादी की ओर बढ़ रहा था ?
(घ) इन पंक्तियों में लेखक ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों के हुजूम में सैलानियों की तरह चल रहे हैं। यह सफ़र उनके सभी सफ़रों से भिन्न है।
(ख) सालिम अली भीड़-भाड़ की जिंदगी तथा तनाव भरे वातावरण से मुक्त हो रहे थे। वे वन के उस पक्षी की तरह विलीन हो रहे थे जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में सो गया हो।
(ग) साँवले सपनों का हुजूम मौत की खामोश वादी की ओर बढ़ रहा है।
(घ) इन पंक्तियों में लेखक ने सालिम अली के अंतिम सफ़र (मृत्यु) के विषय में अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं।

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2. पता नहीं यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटना क्रम की याद दिला देगा। हर सुबह सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) वृंदावन जाने पर नदी का साँवला पानी किस घटनाक्रम की याद करा देगा ?
(ख) लेखक ने वृंदावन की वाटिका का वर्णन किस प्रकार किया है ?
(ग) ‘नदी का साँवला पानी’ पाठ में लेखक किस नदी की बात कर रहे है ?
(घ) ‘भीड़ को चीरकर सामने आएगा’ में लेखक किसके आने की प्रतीक्षा में हैं ?
उत्तर :
(क) वृंदावन जाने पर नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की नदी किनारे की गई लीलाओं की याद करा देगा।
(ख) लेखक के अनुसार वृंदावन में वाटिका का वातावरण आज भी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की जादुई धुन से भरा है। प्रतिदिन संध्या समय जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देता है, तो लगता है जैसे कुछ ही पलों में वह कहीं से आएगा और बाँसुरी की जादुई धुन पूरी वाटिका में छा जाएगी।
(ग) इस पाठ में लेखक यमुना नदी के विषय में कह रहे हैं।
(घ) ‘भीड़ को चीरकर सामने आएगा’ इन पंक्ति में लेखक श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा में हैं।

3. उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूनेवाली उनकी नज़ारों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ़ एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया पसरी थी। यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) ‘बर्ड वाचर’ कौन है ? उन्हें यह नाम क्यों दिया गया ?
(ख) सालिम अली की नज़रों में कैसा जादू था ?
(ग) सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
(घ) सालिम अली बिना दूरबीन कब होते थे ?
उत्तर :
(क) सालिम अली को ‘बर्ड वाचर’ की संज्ञा दी जाती है। यह नाम उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि उन्हें पक्षियों से बहुत प्रेम था। उन्होंने पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया तथा उनके बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई।
(ख) सालिम अली की नज़रों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था जो प्रकृति को अपने वश में कर लेते हैं। वे प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं।
(ग)
सालिम अली के लिए प्रकृति हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया थी, जिसे उन्होंने स्वयं अपने परिश्रम से गढ़ा था।
(घ) सालिम अली एकांत के क्षणों में बिना दूरबीन होते थे।

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4. जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली ही बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गौरैया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ़ ले जाती रही। जिंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली किनके लिए और क्यों पहेली बनी रहे ?
(ख) सालिम अली को किस घटना ने नई नई खोजों के लिए प्रेरणा दी ?
(ग) लॉरेंस कौन था ?
(घ) सालिम अली जीवनभर क्या करते रहे ?
(ङ) ‘डिगा देना’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली जटिल प्राणियों के लिए एक पहेली बन गए थे क्योंकि वे अत्यंत सीधे-साधे व्यक्ति होते हुए भी उनके लिए महान थे।
(ख) सालिम अली ने बचपन में अपनी एयरगन से नीले कंठवाली एक गौरैया को घायल कर दिया था। इस घटना से उनके मन में पक्षियों के प्रति प्रेमभाव उमड़ पड़ा और वे नए-नए पक्षियों की खोज में लग गए।
(ग) लॉरेंस बीसवीं सदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति – प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव था।
वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।
(घ) सालिम अली जीवनभर पक्षियों के जीवन से संबंधित नई-नई खोजें करते रहे।
(ङ) ‘डिगा देना’ से तात्पर्य है- अपने लक्ष्य और सिद्धांतों से दूर हो जाना।

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5. सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली का प्रकृति की दुनिया में क्या स्थान था ?
(ख) सालिम अली के स्वभाव की क्या विशेषता थी ?
(ग) सालिम अली के परिचितों का सालिम अली के संबंध में क्या विचार हैं ?
(घ) सालिम अली पक्षियों की खोज कैसे करते थे ?
(ङ) ‘टापू बनने’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली का प्रकृति की दुनिया में महत्त्वपूर्ण स्थान था। वे एक अथाह सागर के समान थे। उन्होंने प्रकृति का बहुत ही गंभीरता के साथ अध्ययन किया था। वे प्रकृति का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते थे। प्रकृति का प्रतिपल परिवर्तित रूप उन्हें प्रभावित करता था।
(ख) सालिम अली भ्रमणशील स्वभाव के व्यक्ति थे। वे निरंतर घूमते रहते थे। वे एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठते थे। वे घूम-घूम कर पक्षियों के संबंध में खोज करते थे।
(ग) सालिम अली के संबंध में उनके परिचितों का यह विचार है कि उनकी अभी मृत्यु नहीं हुई है। वे आज भी पक्षियों की खोज में कहीं गए हैं और थोड़ी देर में अपने गले में लंबी दूरबीन लटकाए हुए लौट आएँगे और अपनी खोज के परिणामों को बताएँगे।
(घ) सालिम अली पक्षियों की खोज करने के लिए विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे। वे अपनी आँखों पर दूरबीन लगाकर आकाश में पक्षियों को तलाश करते रहते थे। जब उन्हें कोई नई प्रजाति का पक्षी मिल जाता था तो उससे संबंधित विवरण तैयार कर लेते थे। इस प्रकार वे पक्षियों की खोज में लगे रहते थे।
(ङ) ‘टापू बनने’ से तात्पर्य है – एक सीमित क्षेत्र में स्वयं को समेटकर जीवन-यापन करना।

साँवले सपनों की याद Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन – जाबिर हुसैन का जन्म बिहार के नालंदा जिले के नौनहीं राजगीर में सन् 1945 ई० को हुआ था। इन्हें अध्ययन में विशेष रुचि थी। अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य में उपाधियाँ प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया था। इन्होंने राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य किया है। ये सन् 1977 में बिहार के मुँगेर विधानसभा क्षेत्र से सदस्य चुने गए। इन्हें बिहार के मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया था। सन 1995 ई० में इन्हें बिहार विधान परिषद का सभापति बनाया गया। राजनीति के साथ-साथ इन्हें लेखन में भी रुचि थी। इन्हें हिंदी, अंग्रेज़ी तथा उर्दू भाषाओं पर समान अधिकार है।

रचनाएँ – इन्होंने अपनी रचनाओं में आम आदमी के संघर्षरत जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान की है। इनकी मुख्य रचनाएँ हैं – एक नदी रेतभरी, जो आगे हैं, अतीत का चेहरा, लोगां, डोला बीबी का मज़ार।

भाषा-शैली – जाबिर हुसैन की भाषा-शैली अत्यंत सहज तथा रोचक है। प्रस्तुत पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ डायरी शैली में रचित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी संवेदना को व्यक्त किया है। लेखक ने अपनी भाषा में उर्दू के प्रचलित शब्दों का बहुत उपयोग किया है। जैसे – परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, माहौल, एहसास, शोख, मेहनत, महसूस। कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी मिलता है; जैसे- अग्रसर, संभव, अंतहीन, विलीन, वाटिका, क्षितिज, प्रतिरूप।

लेखक ने ऊबड़-खाबड़, भांडे, सोता आदि देशज शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है। इनकी भाषा शैली कहीं-कहीं काव्यात्मक भी हो जाती है जैसे- ‘अब तो वो उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो ज़िंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।’ इनकी शैली में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं वे शब्दों के माध्यम से वातावरण को सजीव कर देते हैं जैसे – ‘पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भांडे फोड़े थे और दूध – छाछ से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह में विश्राम किया था।’ इस प्रकार कह सकते हैं कि लेखक की भाषा-शैली, अत्यंत रोचक, सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

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पाठ का सार :

जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली से संबंधित संस्मरण है। इसमें लेखक ने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। सालिम अली अपने अंतिम सफ़र पर जा रहे हैं। वे उस वन – पक्षी के समान प्रकृति में विलीन होने जा रहे हैं, जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर सदा के लिए खामोश हो गया हो। जैसे मौत की गोद में गए हुए पक्षी को कोई अपना जीवन देकर भी नहीं जीवित कर सकता वैसे ही अब सालिम अली को भी जीवित नहीं किया जा सकता। सालिम अली पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर झूम उठता था।

लेखक कहता है कि न मालूम कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी, गोपियों को अपनी शरारतों से तंग किया था, माखन – भरे भाँड़े फोड़े थे, दूध- छाछ पिया था, कुंजों में विश्राम किया था और अपनी बंसी की तान से वृंदावन को संगीतमय कर दिया था। आज भी वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी का जादू छाया हुआ है। लेखक सालिम अली के संबंध में बताता है कि वह कमज़ोर कायावाला व्यक्ति अब सौ वर्ष में का होने ही वाला था कि कैंसर की बीमारी से चल बसा। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक पक्षियों की खोज और सेवा में लगे रहे। उन जैसा ‘बर्ड वायर’ शायद ही कोई अन्य हो। वे सदा प्रकृति को हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया के समान अपने आस-पास देखते थे। उनके इस कार्य में उनकी जीवन-साथी तहमीना भी उनके साथ थी।

सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था। आज सालिम अली और चौधरी चरण सिंह दोनों ही नहीं हैं। लेखक को चिंता है कि अब पर्यावरण के संभावित खतरों से हिमालय और लद्दाख की बरफ़ीली जमीनों पर जीनेवाले पक्षियों की रक्षा कौन करेगा ? सालिम अली ने ‘फ़ॉल आत्मकथा लिखी थी।

डी० एच० लॉरेंस की मृत्यु के बाद जब कुछ लोगों ने उसकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अपने पति के बारे में कुछ लिखने ४ माफ अ स्पैरो’ नाम से अपनी का अनुरोध किया तो उसने उत्तर दिया था कि छत पर बैठनेवाली गौरैया उसके पति के बारे में उससे अधिक जानती है। बचपन में सालिम अली ने अपनी एयरगन से एक गौरैया को घायल कर दिया था। उसी ने उन्हें आजीवन पक्षियों का सेवक बना दिया। वे उन्हें ही खोजते रहे। लंबी दूरबीन लटकाए जगह-जगह घूमते हुए वे पक्षियों की तलाश करते रहे। अपने खोजपूर्ण नतीजे अपनी रचनाओं के द्वारा देते रहे। लेखक की आँखें उनके जाने पर भीग गई हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • सुनहरे – सोने जैसे रंगवाले
  • हुजूम – भीड़
  • अग्रसर – आगे बढ़नेवाला
  • अंतहीन – जिसका अंत नहीं होता
  • माहौल – वातावरण
  • विलीन – नष्ट, लुप्त
  • हरारत – गरमी, ताप
  • मिथक – प्राचीन पुरा कथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है
  • हिफ़ाज़त – सुरक्षा
  • शब्दों का जामा पहनाना – शब्दों के द्वारा व्यक्त करना
  • नैसर्गिक – स्वाभाविक, प्रकृतिजन्य
  • अथाह – जिसकी कोई थाह न हो
  • परिंदे – पक्षी
  • वादी – घाटी
  • सैलानी – घुमक्कड़, घूमते रहनेवाला
  • सफ़र – यात्रा
  • पलायन – भागना, दूसरी जगह जाना
  • जिस्म – शरीर
  • एहसास – अनुभूति
  • वाटिका – बगीची
  • शती – सौ वर्ष
  • मुमकिन – संभव
  • जटिल – दुरूह, दुर्बोध
  • प्रतिरूप – प्रतिनिधि, नमूना
  • यायावरी – घुमक्कड़ी, घूमते-फिरते रहना, खानाबदोशी

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

आज के वैज्ञानिक युग में चाहे दूरभाष, वायरलेस, ई-मेल, स्काइप आदि के प्रयोग से दूर स्थित सगे-संबंधियों, सरकारी-गैर-सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों से पल भर में बात की जा सकती है पर फिर भी पत्र – लेखन का अभी भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। पत्र – लेखन विचारों के आपसी आदान-प्रदान का सशक्त, सुगम और सस्ता साधन है। पत्र – लेखन केवल विचारों का आदान- प्रदान ही नहीं है बल्कि इससे पत्र – लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, चरित्र, संस्कार, मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान हो जाता है। पत्र लिखते समय अनेक सावधानियाँ अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं –

  • सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
  • स्नेह, शिष्टता और भद्रता का निर्वाह।
  • पत्र प्राप्त करने वाले का पद, योग्यता, संबंध, सामर्थ्य, स्तर, आयु आदि।
  • अनावश्यक विस्तार से बचाव।
  • विषय-वस्तु की पूर्णता।
  • कड़वे, अशिष्ट और अनर्गल भावों तथा शब्दों का निषेध।

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पत्रों के भेद :

प्रमुख रूप से पत्रों को दो प्रकार का माना जाता है, जिनके आगे अनेक भेद – विभेद हो सकते हैं। वे हैं-
(क) औपचारिक पत्र (Formal Letters)
(ख) अनौपचारिक पत्र ( Informal Letters)

(क) औपचारिक पत्र (Formal Letters) :

जिन लोगों के साथ औपचारिक संबंध होते हैं, उन्हें औपचारिक पत्र लिखे जाते हैं। इन पत्रों में व्यक्तिगत और आत्मीय विचार प्रकट नहीं किए जाते। इनमें अपनेपन का भाव पूरी तरह गायब रहता है। इनमें अपने विचारों को भली-भाँति सोच-विचारकर प्रकट किया जाता है। प्रायः औपचारिक – पत्र सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों, निजी संस्थानों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अध्यापकों, प्रधानाचार्यों, व्यापारियों आदि को लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. पत्र का क्रमांक
2. विभाग / कार्यालय / मंत्रालय का नाम
3. दिनांक
4. प्रेषक का नाम तथा पद
5. प्राप्तकर्ता का नाम तथा पद
6. विषय का संक्षिप्त उल्लेख
7. संबोधन
8. विषय-वस्तु
9. समापन शिष्टता
10. प्रेषक के हस्ताक्षर
11. प्रेषित का पद / नाम / पता

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औपचारिक पत्र का प्रारूप –

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव की ओर से मुख्य सचिव, पंजाब राज्य को एक सरकारी- पत्र लिखें, जिसमें राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई हो।

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औपचारिक-पत्र के आरंभ और समापन की विधि –

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(ख) अनौपचारिक पत्र (Informal Letters) :

जिन लोगों के आपसी संबंध आत्मीय होते हैं, उनके द्वारा एक-दूसरे को लिखे जाने वाले पत्र अनौपचारिक पत्र कहलाते हैं। ऐसे पत्र प्रायः रिश्तेदारों, मित्रों, स्नेही संबंधियों आदि के द्वारा लिखे जाते हैं। इन पत्रों में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, लगाव, गुस्से, उलाहने, आदर आदि के भाव अपनत्व के आधार पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इन पत्रों में बनावटीपन की मात्रा कम होती है। वाक्य संरचना बातचीत के स्तर पर आ जाती है।

मन के भाव और विचार बिना किसी संकोच के प्रकट किए जा सकते हैं। इनमें औपचारिकता का समावेश नहीं किया जाता। प्रायः सभी प्रकार के सामाजिक पत्रों को इसी श्रेणी में सम्मिलित कर लिया जाता है। विवाह, जन्म-दिन, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, शोक सूचनाओं आदि को इन्हीं के अंतर्गत ग्रहण किया जाता है। अनौपचारिक पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. पत्र के बाईं ओर भेजने वाले का पता
2. दिनांक
3. पत्र प्राप्त करने के प्रति संबोधन
4. पत्र प्राप्त करने वाले से संबंधानुसार अभिवादन
5. पत्र में अनुच्छेदानुसार पत्र लिखने का कारण, विषय का विस्तार तथा परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति अभिवादन
6. समापन
7. बाईं ओर पत्र – लेखक का पत्र प्राप्त करनेवाले से संबंध
8. पत्र लिखनेवाले का नाम

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अनौपचारिक पत्र का प्रारूप –

अपने मित्र को अपने विद्यालय में हुए वार्षिकोत्सव के विषय में पत्र लिखिए।

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अनौपचारिक पत्र के आरंभ और समापन की विधि

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I. औपचारिक पत्र

(क) कार्यालयी – पत्र :

1. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से महाराष्ट्र सरकार को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पत्र लिखिए।

रजत शर्मा
सचिव, भारत सरकार
शिक्षा मंत्रालय
दिनांक : 12 मार्च, 20XX
सेवा में
सचिव
शिक्षा विभाग
महाराष्ट्र राज्य मुंबई
विषय – नई शिक्षा नीति लागू करने हेतु पत्र।
महोदय

मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि भारत सरकार के निश्चयानुसार शिक्षा सत्र 20…. से संपूर्ण देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाए। महाराष्ट्र में भी इस नीति को क्रियान्वित किया जाए तथा इस योजना को लागू करने के लिए किए गए प्रयासों से मंत्रालय को भी परिचित कराया जाए।
आपका विश्वासपात्र
ह० रजत शर्मा
(रजत शर्मा)
सचिव, शिक्षा मंत्रालय

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2. उपायुक्त, सिरसा की ओर से मुख्य सचिव हरियाणा सरकार को एक पत्र लिखकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अनुरोध कीजिए।

बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा
दिनांक : 16 अगस्त, 20XX
सेवा में
मुख्य सचिव
हरियाणा राज्य
चंडीगढ़
विषय – बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु पत्र।
महोदय
1. मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन दिनों हुई भयंकर वर्षा के परिणामस्वरूप सिरसा के आसपास के गाँवों में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं तथा जन-धन और संपत्ति की भी बहुत हानि हुई है। मैंने अन्य जिला अधिकारियों के साथ स्थिति का निरीक्षण भी किया है।
2. ज़िला – स्तर पर बाढ़ पीड़ितों की यथासंभव सहायता की जा रही है, जो अपर्याप्त है। आपसे प्रार्थना है कि बाढ़ पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे वे अपने टूटे-फूटे मकान बना सकें तथा नष्ट हुई फ़सल के स्थान पर अगली फसल की तैयारी कर सकें।
3. बाढ़ के कारण बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इन बीमारियों पर नियंत्रण करने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हैं। अतः विशेष चिकित्सकों के दल को भी भेजने का प्रबंध करें।
भवदीय
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा

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3. भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग सचिव को राज्य में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पत्र लिखिए।

भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
नई दिल्ली
दिनांक : 22 सितंबर, 20XX
श्री पी० एस० यादव
सचिव, उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश
विषय – उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने हेतु पत्र।
प्रिय श्री यादव जी
विगत दिनों हिमाचल प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने इस मंत्रालय को राज्य में उद्योग-धंधों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया। मुझे बहुत दुख हुआ कि उद्योग-धंधों की उपेक्षा के कारण जहाँ हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को आघात पहुँचा है, वहीं देश की प्रगति भी अवरुद्ध हो रही है। इस संबंध में आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लें तथा प्रदेश में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाएँ। इस संदर्भ में विस्तृत योजनाएँ आपको अलग से भेजी जा रही हैं।
इन योजनाओं को लागू करने में यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित
आपकी सद्भावी
पूनम शर्मा
शिमला

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4. शारदा विद्या मंदिर, लखनऊ के प्राचार्य की ओर से महर्षि दयानंद विद्यालय के प्राचार्य को वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि पद को स्वीकार करने हेतु एक पत्र लिखिए।

शारदा विद्या मंदिर
लखनऊ
दिनांक : 18 अक्तूबर, 20XX
सेवा में
डॉ० नरेश चंद्र मिश्र
प्राचार्य
महर्षि दयानंद विद्यालय
लखनऊ
विषय – मुख्य अतिथि पद के निमंत्रण हेतु पत्र।
प्रिय डॉ० मिश्र जी
हमारे विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 18 जनवरी, 20…. को आयोजित करने का निश्चय किया गया है। इसमें
मुख्य अतिथि
पद को सुशोभित करने हेतु आपसे निवेदन है कि आप अपने अति व्यस्त समय में से कुछ अमूल्य क्षण प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। इस समारोह में विद्यार्थियों को शैक्षणिक तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आप इस विषय में अपनी सुविधानुसार समय दे सकें तो मैं आपका विशेष रूप से आभारी होऊँगा।
शुभकामनाओं सहित
शुभाकांक्षी
डॉ० के० के० मेनन

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5. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

14 / 131, सुभाष नगर
सेलम
दिनांक : 17 मई, 20XX
स्वास्थ्य अधिकारी
नगर-निगम
सेलम
विषय – मलेरिया की रोकथाम हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
इस पत्र के द्वारा मैं अपने क्षेत्र ‘सुभाष नगर’ की सफ़ाई व्यवस्था की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि यह क्षेत्र पर्याप्त ढलान पर बसा हुआ है। बरसात में यहाँ स्थान-स्थान पर पानी रुक जाता है। यही नहीं सड़कों के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। सफाई कर्मचारी कोई ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप यहाँ मक्खियों और मच्छरों का जमघट बना रहता है। रुका हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। अतः इस तरफ़ ध्यान न दिया गया तो इस क्षेत्र में मलेरिया फैलने की पूरी संभावना है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र की तुरंत सफ़ाई करवाने का आदेश दें और मलेरिया की रोकथाम के लिए समुचित व्यवस्था करें। यही नहीं यहाँ के निवासियों को आवश्यक दवाइयाँ भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएँ।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान देंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे। भवदीय
अनुराग छाबड़ा

6. अपने नगर के जलापूर्ति अधिकारी को पर्याप्त और नियमित रूप से पानी न मिलने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।

512, शास्त्री नगर
रोहतक
दिनांक : 14 मार्च, 20XX
जलापूर्ति अधिकारी
नगरपालिका
रोहतक
विषय – पेयजल की कठिनाई हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर
बड़े खेद की बात है कि पिछले एक मास से ‘शास्त्री नगर’ क्षेत्र में पेयजल की कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। नगरपालिका की ओर से पेयजल की सप्लाई बहुत कम होती जा रही है। कभी-कभी तो पूरा-पूरा दिन पानी नलों में नहीं आता। मकानों की पहली दूसरी मंजिल तक तो पानी चढ़ता ही नहीं। आप पानी की आवश्यकता के विषय में जानते हैं।
पानी की कमी के कारण यहाँ के लोगों का जीवन कष्टमय बन गया है। आप से प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेयजल की समस्या का समाधान करें।
आशा है कि आप इस विषय पर ध्यान देंगे और शीघ्र ही उचित कार्रवाई करेंगे।
भवदीय
रामसिंह

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

7. अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुए जल भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखिए।

4/307, जगाधरी गेट
अंबाला
दिनांक : 18 सितंबर, 20XX
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
अंबाला
विषय – जल भराव की समस्या हेतु शिकायती पत्र
महोदय
निवेदन यह है कि मैं जगाधरी गेट का निवासी हूँ। यह क्षेत्र सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। वर्षा के दिनों में तो इसकी और बुरी हालत हो जाती है। इन दिनों प्रायः सभी गलियों में वर्षा का जल भरा हुआ है। नगरपालिका इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। इस जल- भराव के कारण आवागमन में ही कठिनाई नहीं होती बल्कि बीमारी फैलने का भी खतरा है।
आपसे नम्र निवेदन है कि आप स्वयं एक बार आकर इस जल भराव को देखें। तभी आप हमारी कठिनाई को समझ पाएँगे। कृपया इस क्षेत्र से जल निकास का शीघ्र प्रबंध करें।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की तरफ़ ध्यान देंगे।
भवदीय
महेश बजाज

8. चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता घर, विद्यालयों और मार्गदर्शक आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगा जाते हैं। इससे लोगों को होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘दैनिक लोक वाणी’ समाचार-पत्र के ‘जनमत’ कॉलम के लिए पत्र लिखिए।

480, नई बस्ती
चंबा
दिनांक : 22 जनवरी, 20XX
संपादक
दैनिक लोकवाणी
चेन्नई
विषय – जगह-जगह राजनीतिक पोस्टर लगाने हेतु शिकायती पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं आपके लोकप्रिय पत्र के ‘जनमत कॉलम’ के लिए एक पत्र लिख रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने की कृपा करें। आप जानते हैं कि चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता बिना सोचे-समझे, विद्यालयों, घरों तथा मार्गदर्शन चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगा जाते हैं। घर अथवा विद्यालय कोई राजनीतिक संस्थाएँ नहीं। उन पर लगे पोस्टरों से यह भ्रम हो जाता है कि घर तथा विद्यालय भी किसी राजनीतिक दल से संबद्ध है। इन पोस्टरों से मार्गदर्शन चित्र इस तरह ढक जाते हैं कि अजनबी को रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इन पोस्टरों को लगानेवालों की भीड़ के कारण आम लोगों को तथा छात्रों को असुविधा होती है। अतः मैं सरकार तथा राजनीतिक दलों का ध्यान इस तरफ़ दिलाना चाहता हूँ।
आशा है कि आप लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मेरे इस पत्र को प्रकाशित करने का आदेश देंगे।
भवदीय
मोहन मेहता

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(ख) आवेदन-पत्र

9. दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष को एक आवेदन-पत्र लिखिए जिसमें लिपिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।

4/19, अशोक नगर
नई दिल्ली
दिनांक : 15 दिसंबर, 20XX
अध्यक्ष
नगर-निगम
दिल्ली
विषय – लिपिक के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं –
(i) बी० ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव – एक वर्ष
(iv) आयु – 24वें वर्ष में प्रवेश
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित
भवदीय
सुखदेव गोयल
संलग्न : उपर्युक्त

10. ‘जनसंख्या विभाग’ को घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने वाले ऐसे सर्वेक्षकों की आवश्यकता है, जो हिंदी और अंग्रेजी में भली-भाँति बात कर सकते हों और सूचनाओं को सही-सही दर्ज कर सकते हों। इसके साथ ही आवेदकों में विनम्रतापूर्वक बात करने की योग्यता होनी चाहिए। इस काम में अपनी रुचि प्रदर्शित करते हुए जनसंख्या विभाग के सचिव को आवेदन-पत्र लिखिए।

7, रामलीला मार्ग
हमीरपुर
दिनांक : 14 दिसंबर, 20XX
प्रशासनिक अधिकारी
जनसंख्या विभाग
कोयंबटूर
विषय – सर्वेक्षक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय
मुझे आज के दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपको घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षकों की आवश्यकता है। मैं आपके कार्यालय द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूर्ण करता हूँ।
मैंने इसी वर्ष बारहवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। कुछ समय तक मैंने स्थानीय कार्यालय में कार्य भी किया है। मैं हिंदी तथा अंग्रेज़ी बोलने तथा इन दोनों भाषाओं में वार्तालाप करने में दक्ष हूँ।
मैं अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अवसर प्रदान करेंगे। आवश्यक प्रमाण-पत्र मैं भेंटवार्ता के अवसर पर साथ लेकर आऊँगा।
भवदीय
महेश महाजन

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11. ‘प्रचंड भारत’ दैनिक समाचार-पत्र को खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। पद के लिए खेलों का ज्ञान और रुचि के साथ-साथ हिंदी भाषा में अच्छी गति से लिखने का अभ्यास अनिवार्य है। इस पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।

14, पश्चिम विहार,
कोटा
दिनांक : 15 सितंबर, 20XX
संपादक
दैनिक ‘प्रचंड भारत’
कोटा
विषय – खेल संवाददाता के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आपको खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। इस पद के लिए मैं अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी योग्यताओं का विवरण इस प्रकार है –
शैक्षिक योग्यता बी० ए० प्रथम श्रेणी – 2012, पत्रकारिता में डिप्लोमा – 2013
विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान – अवधि 2 वर्ष
मुझे खेलों की सामग्री का पर्याप्त अनुभव है। मुझे हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। विद्यालय तथा महाविद्यालय की पत्रिका में मेरे लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
आवश्यक प्रमाण-पत्र इस आवेदन पत्र के साथ संलग्न हैं
आशा है कि आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
भवदीय
प्रतीक राय

(ग) व्यावसायिक पत्र :

12. रिक्तियों के लिए समाचार-पत्र में विज्ञापन के प्रकाशन हेतु पत्र लिखिए।
रेलवे रोड
जालंधर
दिनांक : 29 सितंबर, 20XX
विज्ञापन व्यवस्थापक
दैनिक ट्रिब्यून
चंडीगढ़
विषय – विज्ञापन प्रकाशन हेतु पत्र।
महोदय
इस पत्र के साथ एक विज्ञापन का प्रारूप भेज रहा हूँ जिसे कृपया 7 अक्तूबर तथा 14 अक्तूबर के अंकों में प्रकाशित कर दें। आपका बिल प्राप्त होते ही उसका भुगतान कर दिया जाएगा।

विज्ञापन का प्रारूप

आवश्यकता है एक ऐसे अनुभवी सेल्स मैनेजर की जो स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठान के बिक्री काउंटर को सँभाल सके। वेतन ₹15000-20000 तथा निःशुल्क आवास की व्यवस्था। बहुत योग्य तथा अनुभवी अभ्यार्थी को योग्यतानुसार उच्च वेतन भी दिया जा सकता है। निम्नलिखित पते पर
15 नवंबर, 20XX तक लिखें या मिलें –
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड, जालंधर शहर।
धन्यवाद
भवदीय
एस० के० सिक्का
प्रबंधक
संलग्न : विज्ञापन

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

13. आपको दिल्ली के किसी पुस्तक-विक्रेता से कुछ पुस्तकें मँगवानी हैं। वी० पी० पी० द्वारा मँगवाने के लिए पत्र लिखिए।

5/714, तिलक नगर
कटक
दिनांक : 17 नवंबर, 20XX
प्रबंधक
मल्होत्रा बुक डिपो
गुलाब भवन
6, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली- 110002
विषय – पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
महोदय
निम्नलिखित पुस्तकें स्थानीय पुस्तक – विक्रेता से नहीं मिल रहीं अतः ये पुस्तकें वी० पी० पी० द्वारा शीघ्र भेजने का कष्ट करें। यदि अग्रिम भेजने की आवश्यकता हो तो सूचित करें। पुस्तकों पर उचित कमीशन काटना न भूलें। पुस्तकें नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए।
1. हिंदी गाइड (कक्षा नौ) …… एक प्रति
2. इंगलिश गाइड (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
3. नागरिक शास्त्र के सिद्धांत (कक्षा नौ) …… एक प्रति
4. भूगोल (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
5. विज्ञान (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
भवदीय
निशा सिंह

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(घ) प्रार्थना-पत्र :

14. अपने प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें कई महीने से अंग्रेज़ी की पढ़ाई न होने के कारण उत्पन्न कठिनाई का वर्णन किया गया हो।

प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
पुड्डूचेरी
विषय – अंग्रेज़ी की पढ़ाई न हो पाने हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
आप भली-भाँति जानते हैं कि हमारे अंग्रेज़ी के अध्यापक श्री ज्ञानचंद जी पिछले तीन सप्ताह से बीमार हैं। अभी भी उनके स्वास्थ्य में विशेष सुधार नहीं हो रहा। डॉक्टर का कहना है कि अभी श्री ज्ञानचंद जी को स्वस्थ होने में कम-से-कम दो सप्ताह और लगेंगे। पिछले तीन सप्ताह से हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो रही। आपने जो प्रबंध किया है, वह संतोषजनक नहीं है। उधर परीक्षा सिर पर आ रही हैं। अभी पाठ्यक्रम भी समाप्त नहीं हुआ है। पुनरावृत्ति के लिए भी समय नहीं बचेगा। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई का उचित एवं संतोषजनक प्रबंध करें। यदि कुछ कालांश बढ़ा दिए जाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।
आशा है कि हमारी कठिनाई को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
नवनीत (नौ ‘क’)

15. अपने प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें पुस्तकालय के लिए नई पुस्तकों और बाल-पत्रिकाओं को मँगाने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाचार्य
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जम्मू
विषय – पुस्तकालय में पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
गत सप्ताह आपने प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विद्यालय के पुस्तकालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला था। आपने छात्रों को पुस्तकालय से अच्छी-अच्छी पुस्तकें निकलवाकर उनका अध्ययन करने की भी प्रेरणा दी थी। लेकिन पुस्तकालय में छात्रों ने जिन पुस्तकों तथा बाल – पत्रिकाओं की माँग की, वे प्रायः विद्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।
आपसे नम्र निवेदन है कि कुछ नई पुस्तकें तथा बालोपयोगी पत्रिकाओं को मँगवाने की व्यवस्था करें। पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के अध्ययन से जहाँ छात्र वर्ग के ज्ञान में वृद्धि होती है, वहाँ उनका पर्याप्त मनोरंजन भी होता है।
आशा है कि आप हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान देंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मनोज कुमार
तिथि : 7.11.20XX

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

16. विद्यालय के प्राचार्य को संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्राचार्य
नवयुग विद्यालय
वर्धमान
विषय – संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध हेतु पत्र।
महोदय
निवेदन यह है कि आप ने प्रातःकालीन सभा में खेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला था। हम विद्यालय परिसर में संध्या के समय खेलना चाहते हैं, परंतु हमारे विद्यालय के परिसर का खेल का मैदान साफ़ नहीं है तथा हमें खेल की उचित सामग्री भी प्राप्त नहीं होती।
आपसे अनुरोध है कि खेल के मैदान को साफ़ करवाने की तथा खेलों की सामग्री दिलवाने की कृपा करें।
धन्यवाद
भवदीय
देबाशीष डे
तथा कक्षा नौवीं के अन्य विद्यार्थी
दिनांक : 24 अप्रैल, 20XX

17. अध्यक्ष परिवहन निगम को अपने गाँव तक बस सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

अध्यक्ष
परिवहन निगम
दिल्ली
विषय – बस सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं गाँव ‘सोनपुरा’ का एक निवासी हूँ। वह गाँव दिल्ली से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। खेद की बात है कि परिवहन निगम की ओर से इस गाँव तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है। यहाँ के किसानों को नगर से कृषि के लिए आवश्यक सामान लाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। छात्र – छात्राओं को अपने-अपने विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहुँचने के लिए भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस गाँव तक बस सेवा उपलब्ध करवाने की कृपा करें।
आशा है कि हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान दिया जाएगा।
धन्यवाद सहित।
भवदीय
रमेश ‘बाल रत्न’
निवासी ‘सोनपुरा गाँव’
तिथि : 18 मार्च, 20XX

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18. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
पणजी
विषय – खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने हेतु पत्र।
मान्यवर
आपने एक छात्र – सभा में भाषण देते हुए इस बात पर बल दिया था कि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ खेलों का महत्व भी समझना चाहिए। खेल शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। खेद की बात यह है कि आप खेलों की आवश्यकता तो खूब समझते हैं पर खेल सामग्री के अभाव की ओर कभी आपका ध्यान नहीं गया। खेलों के अनेक लाभ हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी हैं। ये अनुशासन, समयपालन, सहयोग तथा सद्भावना का भी पाठ पढ़ाते हैं।
अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप खेलों का सामान उपलब्ध करवाने की कृपा करें। इससे छात्रों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ेगी। वे अपनी खेल प्रतिभा का विकास कर सकेंगे।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर उचित ध्यान देंगे और आवश्यक आदेश जारी करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
रजत शर्मा
कक्षा : नौवीं ‘ब’
दिनांक : 17 अप्रैल, 20XX

19. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को भाई के विवाह के कारण चार दिन का अवकाश प्रदान करने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
एस० एम० उच्च विद्यालय
अहमदाबाद
विषय – भाई के विवाह के कारण अवकाश हेतु पत्र।
महोदय
सविनय प्रार्थना है कि मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। मेरा इसमें सम्मिलित होना अति आवश्यक है। इसलिए इन दिनों मैं विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपया मुझे 11 से 14 अक्तूबर तक चार दिन की छुट्टी देकर अनुगृहित करें। अति धन्यवाद सहित।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
जयदीप
कक्षा : नौवीं ‘बी’
दिनांक : 10 अक्तूबर, 20XX

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20. शिक्षा-शुल्क क्षमा करवाने के लिए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय
अकोला
विषय – शिक्षा शुल्क क्षमा करवाने के लिए पत्र।
महोदय
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा नौवीं ‘ए’ में पढ़ता हूँ। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरे पिताजी एक स्थानीय कार्यालय में केवल पाँच हज़ार रुपये मासिक पर कार्य करते हैं। हम परिवार में छह सदस्य हैं। इस महँगाई के समय में इतने कम वेतन में निर्वाह होना अति कठिन है। ऐसी स्थिति में मेरे पिताजी मेरा शुल्क अदा करने में असमर्थ हैं।
मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं सदा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। मैं स्कूल की हॉकी टीम का कप्तान भी हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझसे सर्वथा संतुष्ट हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप मेरा शिक्षा शुल्क माफ़ कर मुझे आगे पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें।
मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रमोद कुमार
कक्षा नौवीं ‘ए’
दिनांक : 15 मई, 20XX

21. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए जिसमें स्कूल फंड से पुस्तकें लेकर देने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
मदुरै
विषय – स्कूल फंड से पुस्तकें लेकर देने हेतु पत्र।
महोदय
निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा नौवीं ‘ए’ का अत्यंत निर्धन विद्यार्थी हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि पिछले वर्ष मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी। मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं है। खेती-बाड़ी या आय का अन्य कोई साधन नहीं है। मेरे अलावा मेरे दो छोटे भाई हैं, जिनमें से एक छठी कक्षा में पढ़ता है। माँ हम सब का मेहनत-मज़दूरी करके पालन-पोषण कर रही है और पढ़ा-लिखा रही है। नवंबर का महीना बीत रहा है और अभी तक मेरे पास एक भी पाठ्य पुस्तक नहीं है। अभी तक मैं साथियों से पुस्तकें माँग कर काम चला रहा हूँ। परंतु परीक्षा के समय मेरे साथी चाहकर भी अपनी पाठ्य-पुस्तकें नहीं दे पाएँगे। यह बात स्मरण करके अपनी बेबसी का बेहद एहसास होता है। वार्षिक परीक्षा दो-तीन महीने बाद शुरू होने वाली है।
अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे निर्धन छात्र- कोष या पुस्तकालय से सभी आवश्यक पाठ्य-पुस्तकें दिलाने की कृपा करें। आपके इस उपकार का मैं जीवन-भर आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
कमल मोहन
कक्षा नौवीं ‘ए’
दिनांक : 11 मई, 20XX

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22. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को विद्यालय-त्याग का प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
शारदा उच्च विद्यालय
धर्मशाला
विषय – विद्यालय – त्याग प्रमाण पत्र प्रदान करने हेतु।
मान्यवर
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी का स्थानांतरण शिमला हो गया है। वे कल यहाँ से जा रहे हैं और साथ में परिवार भी जा रहा है। इस अवस्था में मेरा यहाँ अकेला रहना कठिन है। कृपा करके मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण- पत्र दीजिए ताकि मैं वहाँ जाकर स्कूल में प्रविष्ट हो सकूँ।
कृपा के लिए धन्यवाद।
आपका विनीत शिष्य
सुनील कुमार
कक्षा : नौवीं ‘बी’
दिनांक : 11 फरवरी, 20XX