Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि
JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Questions and Answers
मौखिक –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न 1.
अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है ?
उत्तर :
अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है।
प्रश्न 2.
कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं ?
उत्तर :
कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं।
प्रश्न 3.
पति – पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया ?
उत्तर :
पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत गर्मजोशी से किया। लेखक उससे स्नेह भरी मुस्कराहट के साथ गले मिला और लेखक की पत्नी ने उसे सादर नमस्ते की।
प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गई ?
उत्तर :
दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई जिसमें सब्ज़ियों, रायता, चावल, रोटी, मिष्ठान आदि था।
प्रश्न 5.
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा ?
उत्तर :
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने कहा कि मैं धोबी को धोने के लिए कपड़े देना चाहता हूँ।
प्रश्न 6.
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ ?
उत्तर :
लेखक ने अतिथि के लिए पत्नी को खिचड़ी बनाने के लिए कह दिया। लेखक ने यह भी कहा कि यदि वह अब भी न गया तो उसे उपवास करना होगा।
लिखित –
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था ?
उत्तर :
लेखक अतिथि के जाने से पहले उससे कुछ दिन और रुकने का आग्रह करना चाहता था। अतिथि जाने की ज़िद करता और लेखक उसे भावभीनी विदाई देता; उसे छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन तक जाता और भीगे नयनों से उसे विदा करता। दोनों ही इस विदाई के अवसर पर भावविभोर हो जाते।
प्रश्न 2.
पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए –
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर :
(क) जब लेखक के घर अतिथि आया, तो उसे लगा कि इसके अतिथि सत्कार में जो खर्च करना पड़ेगा, उससे उसके बजट पर भी असर पड़ेगा। इसलिए उसे लगा कि इस अतिथि के आने से उसका खर्चा बढ़ जाएगा।
(ख) लेखक का मानना है कि जब अतिथि एक-दो दिन रहकर चला जाए तो वह देवता है। यदि वह तीसरे दिन चला जाए तो मानव है। यदि अतिथि चार दिन से भी अधिक दिनों तक नहीं जाता है, तो वह राक्षस हो जाता है जो मेज़बान के लिए मुसीबत बन जाता है।
(ग) लेखक का मानना है कि अतिथि को अतिथि के समान आकर तुरंत वापस भी लौट जाना चाहिए, जिससे वह जिसके घर में अतिथि बनकर आया है उसके घर में प्रेमभाव के स्थान पर कलह न होने लगे। उसे उस घर की प्रेम भावना को बनाए रखना चाहिए।
(घ) लेखक कहता है कि यदि अतिथि पाँचवें दिन भी अपने घर नहीं लौटता, तो वह उसे और अधिक सहन नहीं कर सकेगा तथा उसे घर से जाने के लिए गेट आउट तक कहने से भी संकोच नहीं करेगा।
(ङ) लेखक का मानना है कि एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते क्योंकि देवता मनुष्य को दर्शन देकर तुरंत चले जाते हैं, वे उसके पास जमकर नहीं बैठे रहते। मनुष्य भी देवता का दर्शन करके शीघ्र ही अपने घर चला जाता है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखक सोच रहा था कि अब तो तीसरा दिन हो गया है, इसलिए अतिथि अवश्य चला जाएगा। तीसरे दिन सुबह जब अतिथि ने लेखक से कहा कि वह अपने कपड़े धुलवाने के लिए धोबी को देना चाहता है, तो लेखक को झटका लगा। उसे यह उम्मीद नहीं थी कि अतिथि अभी कुछ और दिन उसके घर रहेगा। लेकिन अतिथि की बात से स्पष्ट हो गया कि उसका इरादा अभी कुछ दिन और उसके घर रुकने का है। इस प्रकार अतिथि के कपड़े धुलवाने की बात लेखक के लिए अप्रत्याशित आघात था।
प्रश्न 2.
‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना’ – इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं ? विस्तार से लिखिए।
उत्तर :
जब लेखक के घर आया हुआ अतिथि चौथे दिन भी अपने घर नहीं गया, तो लेखक और अतिथि के बीच मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान समाप्त हो गया। ठहाके लगने बिल्कुल बंद हो गए थे; आपसी चर्चा समाप्त हो गई थी। लेखक कोई उपन्यास पढ़ता रहता था तथा अतिथि पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ उलटता रहता था। परस्पर प्रेमभाव बोरियत में बदल गया था। लेखक की पत्नी ने भी पकवान आदि बनाने के स्थान पर खिचड़ी बनाने का निश्चय कर लिया था। इस प्रकार लेखक और उसके अतिथि के संबंध धीरे-धीरे बदलते जा रहे थे। उनमें अपनेपन के स्थान पर परायापन आ गया था और लेखक चाह रहा था कि अतिथि शीघ्र से शीघ्र उसके घर से चला जाए।
प्रश्न 3.
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए ?
उत्तर :
जब अतिथि चार दिन तक अपने घर नहीं गया, तो लेखक का व्यवहार उसके प्रति बदलने लगा। उसने अतिथि के साथ हँसना-बोलना छोड़ दिया। लेखक ने उपन्यास पढ़ना शुरू कर दिया, जिससे उसे अतिथि के साथ बातचीत न करनी पड़े। लेखक अतिथि के साथ अपने पुराने मित्रों, प्रेमिकाओं आदि का जिक्र किया करता था; वह जिक्र करना भी उसने बंद कर दिया। लेखक का अतिथि के प्रति प्रेमभाव और भाईचारा समाप्त हो गया था। वह मन ही मन अतिथि को गालियाँ देने लगा था। लेखक की पत्नी ने जब कहा कि वह आज खिचड़ी बनाएगी, तो लेखक उसे खिचड़ी बनाने के लिए ही कहता है। वह अब अतिथि की और अधिक आवभगत नहीं करना चाहता था।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए –
चाँद ज़िक्र आघात ऊष्मा अंतरंग
उत्तर :
चाँद = शशि, इंदु।
ज़िक्र = वर्णन, बयान।
आघात = चोट, प्रहार।
ऊष्मा = तपन, गरमी।
अंतरंग = आत्मीय, अभिन्न।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य)
(ख) किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य)
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल)
(घ) इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
(ङ) कब तक टिकेंगे ये ? (नकारात्मक)
उत्तर :
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे।
(ख) किसी लॉण्ड्री पर देने से क्या जल्दी धुल जाएँगे ?
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी।
(घ) इनके कपड़े कहाँ देने हैं?
(ङ) वे देर तक नहीं टिकेंगे।
प्रश्न 3.
पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य संरचना को समझिए –
(क) तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके।
(ख) तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके।
(ग) आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
(घ) शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए।
(ङ) तुम्हारे भारी-भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए –
(क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
(ख) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
(ग) तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
(घ) कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फ़िल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
(ङ) भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।
उत्तर :
विद्यार्थी प्रश्न 3 और 4 को ध्यान से पढ़कर समझें।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करें तथा आधुनिक युग के संदर्भ में इसका आकलन करें।
उत्तर :
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति का अर्थ है कि घर आए हुए मेहमान का देवताओं के समान आदर-सम्मान करना चाहिए। उन्हें प्रेमभाव से अच्छा भोजन करवाना चाहिए। उनकी समस्त सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए। आधुनिक समय में मेहमान का आना मुसीबत का आगमन माना जाता है। मेहमान बोझ प्रतीत होता है। उसे किसी प्रकार से खिला-पिलाकर तुरंत विदा करने की इच्छा होती है। यदि वह दो-चार दिन टिक जाता है, तो घर का वातावरण बिगड़ जाता है।
प्रश्न 2.
विद्यार्थी अपने घर आए अतिथियों के सत्कार का अनुभव कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने-अपने अनुभव स्वयं सुनाएँ।
प्रश्न 3.
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ हुईं, उन्हें क्रम से छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की निम्नलिखित प्रतिक्रियाएँ हुईं –
- अतिथि ने जब कपड़े धुलवाने की बात की, तो लेखक को लगा कि वह अब शीघ्र नहीं जाएगा।
- उसे अतिथि देवता नहीं बल्कि मानव और राक्षस लगने लगा।
- उसने अतिथि के साथ हँसना – बोलना बंद कर दिया।
- अतिथि के प्रति उसकी आत्मीयता बोरियत में बदल गई।
- अतिथि को अच्छा भोजन खिलाने के स्थान पर खिचड़ी बनाई गई।
JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने उन व्यक्तियों की ओर संकेत किया है, जो अपने किसी संबंधी अथवा परिचित के घर बिना बताए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। उनका इस प्रकार आना और फिर वहाँ टिके रहना मेज़बान को अच्छा नहीं लगता। वे एक-दो दिन तो उसकी मेहमाननवाज़ी करते हैं, बाद में उससे बात भी नहीं करते। वे उसे अपने घर से भगाने की चिंता में लगे रहते हैं। अतः जब भी कहीं अतिथि बनकर जाना हो, तो उसे पूर्व सूचना दे देनी चाहिए तथा वहाँ एक- दो दिन ठहरकर वापस लौट जाना चाहिए।
प्रश्न 2.
लेखक ने यह क्यों कहा कि ‘अतिथि! तुम्हारे जाने का यह उच्च समय अर्थात् हाइटाइम है’ ?
उत्तर :
लेखक चौथे दिन भी अतिथि के न जाने से परेशान हो गया था। वह अतिथि को दिखा-दिखाकर कैलेंडर की तारीखें बदलता है। वह कहता है कि लाखों मील की यात्रा करके चाँद पर पहुँचने वाले अंतरिक्ष यात्री भी चाँद पर इतने समय तक नहीं रुके थे, जितने दिनों से अतिथि उसके घर टिका हुआ है। लेखक को लगता है कि अतिथि ने उससे खूब आत्मीय संबंध स्थापित कर लिए हैं तथा उसका काफ़ी खर्चा करवा दिया है, जिससे उसका बजट भी डगमगा गया है। इसलिए अब उसकी भलाई इसी में है कि वह उसके घर से चला जाए। यही उसके जाने का हाइटाइम अथवा उचित समय है। अन्यथा उसका यहाँ अतिथि सत्कार होना बंद हो जाएगा।
प्रश्न 3.
लेखक पाँचवें दिन के लिए अतिथि को क्या चेतावनी देता है ?
उत्तर :
लेखक जब देखता है कि अतिथि चौथे दिन भी नहीं गया तो वह चाहता है कि पाँचवें दिन अतिथि सम्मानपूर्वक उसके घर से जाने का निर्णय ले ले अन्यथा वह उसे और अधिक समय तक अपने घर में सहन नहीं कर पाएगा। वह जानता है कि अतिथि देवता के समान होता है। इसलिए वह चाहता है कि जैसे देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं, उसी प्रकार अतिथि भी लौट जाए। यदि अब भी अतिथि नहीं जाता है, तो वह उसे अपमानित करके घर से निकाल देगा।
प्रश्न 4.
लेखक अतिथि को कैलेंडर दिखाकर तारीख क्यों बदल रहा था ?
उत्तर :
अतिथि को लेखक के घर आए हुए चार दिन हो गए थे। उसके व्यवहार से लेखक को कोई भी ऐसी गंध नहीं मिल रही थी कि वह उनके घर से जाना चाहता है। इसलिए लेखक पिछले दो दिन से अतिथि को दिखा-दिखाकर कैलेंडर की तारीख बदल रहा था। यदि अतिथि कैलेंडर को ध्यान से देखता, तो उसे अनुभव हो जाता कि उसे वहाँ आए चार दिन हो गए हैं; अब उसे जाना चाहिए।
प्रश्न 5.
लेखक ने यह क्यों कहा कि ‘तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन’ ?
उत्तर :
आज का युग महँगाई का युग है; सभी चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में किसी अतिथि की चार दिन तक मेहमाननवाज़ी करना सरल कार्य नहीं है। इसलिए लेखक कह रहा है कि अब वह अतिथि की मेहमाननवाज़ी करके थक गया है। उसका आर्थिक बजट बिगड़ गया है। अब वह अतिथि का और खर्च नहीं उठा सकता। उसने पहले ही उस पर अधिक खर्च कर दिया है।
प्रश्न 6.
आरंभ में लेखक और उसकी पत्नी ने अतिथि का सेवा-सत्कार किस प्रकार किया ?
उत्तर :
पहले दिन लेखक और उसकी पत्नी ने मुस्कराहट और सम्मान के साथ अतिथि का सेवा-सत्कार किया। उसके लिए खाने में दो सब्जियाँ, रायता और मीठा बनाया। अगले दिन मनोरंजन के लिए उसे सिनेमा भी दिखाया। यह सब उन्होंने यह सोचकर किया कि अतिथि भगवान होता है, जो दर्शन देकर एक-दो दिन में चला जाएगा।
प्रश्न 7.
लेखक का भावभीनी विदाई से क्या तात्पर्य था ?
उत्तर :
लेखक का भावभीनी विदाई से तात्पर्य था कि जब अतिथि घर से जाता है, तो सबके मन भीग जाते हैं। वे लोग अतिथि को कुछ दिन और रुकने का आग्रह करते हैं, परंतु वह वहाँ से जाने के लिए तैयार हो जाता है। अतिथि से फिर आने का वायदा लिया जाता है। परिवार वाले अश्रुपूर्ण आँखों से अतिथि को स्टेशन छोड़ने जाते हैं और जाते-जाते एक-दूसरे को प्रेम भरे आँसुओं से भिगो देते हैं। इससे दोनों के मन प्रसन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 8.
अतिथि के लेखक के घर से न जाने पर घर का वातावरण कैसा हो गया ?
उत्तर :
अतिथि को घर आए हुए चार दिन हो गए थे और उसके प्रति सम्मान धीरे-धीरे कम हो रहा था। अतिथि को देखकर खिलने वाला चेहरा मुरझाने लगा था। उनकी आपस में बातचीत समाप्त हो गई थी। लेखक कमरे में लेटा हुआ उपन्यास पढ़ रहा था और अतिथि फिल्मी पत्रिकाओं के पन्ने पलट रहा था। कमरे में बोरियत भरा वातावरण छा गया था। प्यार की भावनाएँ मन-ही-मन गालियों का स्वरूप ग्रहण कर चुकी थीं। परंतु अतिथि के वहाँ से जाने का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा था, जिस कारण घर का वातावरण असहनीय हो गया था।
प्रश्न 9.
लेखक की पत्नी ने खिचड़ी बनाने का निर्णय क्यों किया ?
उत्तर :
अतिथि को आए हुए चार दिन हो गए थे और इन चार दिन की मेहमाननवाजी से घर का बजट बिगड़ गया था। लेखक की पत्नी भी अतिथि के सेवा – सत्कार से तंग आ गई थी। इसलिए उसने खिचड़ी बनाने का निर्णय किया।
प्रश्न 10.
सत्कार की ऊष्मा क्या है ? वह क्यों समाप्त हो रही थी ?
उत्तर :
सत्कार की ऊष्मा से अभिप्राय है कि घर आने वाले अतिथि का गर्मजोशी से स्वागत करना तथा उसका खूब सेवा-सत्कार करना। लेखक ने भी अपने अतिथि का खूब सेवा-सत्कार किया, परंतु अतिथि को आए हुए चार दिन हो गए थे। अतिथि के कारण लेखक का बजट बिगड़ गया था। अब वह उस पर अधिक खर्च नहीं कर सकता था। इसलिए अतिथि के प्रति अब उसकी सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी।
प्रश्न 11.
अतिथि के जाने का यह चरम क्षण कैसा था ?
उत्तर :
लेखक अतिथि की सेवा करते हुए तंग आ गया था। वह चाहता था कि अतिथि सम्मानपूर्वक उसके यहाँ से चला जाए। अब वह और उसका परिवार अतिथि को सहन करने का धैर्य खो चुके थे। लेखक भी एक मनुष्य है, इसलिए वह चाहता था कि अतिथि उसके घर से चला जाए। यही उसके घर में ठहरने की चरम सीमा थी। इससे ही लेखक और अतिथि में परस्पर मधुर रिश्ते बने रहेंगे।
तुम कब जाओगे, अतिथि Summary in Hindi
लेखक परिचय :
जीवन-परिचय – शरद जोशी हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य-लेखकों में से एक हैं। जोशी जी का जन्म सन् 1931 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। पिता सरकारी नौकरी में थे, अतः तबादले होते रहते थे जिससे इनकी शिक्षा मध्य प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में हुई। युवावस्था में आकाशवाणी और सरकारी कार्यालयों में काम करने के पश्चात जोशी जी नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन करने लगे। इंदौर से प्रकाशित ‘नई दुनिया’ में इनकी रचनाएँ छपने लगीं। सन् 1980 में ‘हिंदी एक्सप्रेस’ के संपादन का भार भी इन्होंने सँभाला।
शरद जोशी मूलत: व्यंग्य लेखक थे और इसी रूप में इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया था। सन् 1991 में इनका देहावसान हुआ। रचनाएँ – शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य रचनाएँ हैं- परिक्रमा, ‘जीप पर सवार इल्लियाँ, किसी बहाने’, ‘रहा किनारे बैठ’, ‘तिलस्म’, ‘दूसरी सतह’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’, ‘यथासंभव’ तथा ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे ‘।
भाषा-शैली – शरद जोशी व्यंग्य में हास्य का पुट अधिक रखते हैं, क्योंकि उनके ही शब्दों में, “हास्य के माध्यम से कुछ बातें बहुत कम शब्दों में और बड़ी सरलता से कह देने में सफलता मिली है। सामान्य पाठक बड़ी जल्दी विषय-प्रवेश कर जाता है और उसको जब इस बात का अहसास होता है कि इन सीधी-सादी बातों के पीछे गहरा तथ्य है, तो जो ‘शॉक’ पाठक को लगता है वही उसे झकझोरता है।” इस प्रकार वे हास्य को व्यंग्य का औज़ार मानते हैं, न कि लक्ष्य।
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ में जब अतिथि चार दिन तक लेखक के घर से नहीं जाता, तो पाँचवें दिन लेखक उसे चुनौती देते हुए कहता है – “तुम लौट जाओ, अतिथि ! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ!” लेखक के इस कथन में अनचाहे मेहमानों पर कटाक्ष किया गया है। लेखक ने तत्सम प्रधान – चतुर्थ, दिवस, अंकित, संक्रमण शब्दों के साथ ही एस्ट्रॉनॉट्स, स्वीट- होम, स्वीटनेस, शराफ़त, सेंटर आदि विदेशी शब्दों का यथास्थान सहज रूप से प्रयोग किया है।
लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें यथास्थान लाक्षणिकता एवं चित्रात्मकता भी विद्यमान है; जैसे- ‘मेरी पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी-बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आँखें देख मैंने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था। पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती हैं, तो मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बड़ी हुई थीं कि अतिथि अधिक दिनों तक ठहरेगा।’
पाठ का सार :
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ के लेखक शरद जोशी हैं। इस पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है, जो अपने किसी परिचित के घर बिना सूचना दिए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। लेखक के घर अचानक आए हुए अतिथि को आज चार दिन हो गए हैं और वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक सोचता है कि ‘तुम कब जाओगे अतिथि ?’
लेखक के घर आया हुआ अतिथि जहाँ बैठा सिगरेट का धुआँ फेंक रहा है, उसके सामने लगे कैलेंडर की तारीखें पिछले दो दिनों से लेखक ने अतिथि को दिखा-दिखा कर बदली हैं। लेखक के घर आए आज उसका चौथा दिन है, पर वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक कहता है कि इतने समय तक तो चंद्रयात्री भी चाँद पर भी नहीं रुके थे। क्या उसे उसकी अपनी धरती नहीं पुकार रही ?
जिस दिन यह अतिथि लेखक के घर आया था, उस दिन वह किसी अनजानी मुसीबत के आने की संभावना से घबरा गया था और उसे अपने बजट की चिंता होने लगी थी। इतना होने पर भी उसने पत्नी सहित अतिथि का स्वागत किया था। रात के भोजन में उसे दो सब्ज़ियाँ, रायता, मीठा आदि खिलाया था। उन्होंने सोचा था कि कल तो यह अतिथि चला ही जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरे दिन भी उसे अच्छा भोजन करवाया और सिनेमा भी दिखाया। लेखक ने सोचा था कि अगले दिन उसे स्टेशन पहुँचाकर भावभीनी विदाई दे देंगे।
तीसरे दिन जब अतिथि ने अपने कपड़े धोबी को देने के लिए कहा, तो लेखक बहुत घबरा गया। उसे लगा कि अतिथि सदा देवता नहीं होता, वह मानव और राक्षस भी हो सकता है। उसके कपड़े देने के लिए लेखक उसके साथ लॉंड्री की ओर चला, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी की आँखें इस आशंका से फैल गई हैं कि अतिथि अधिक दिन तक ठहरेगा। लाँड्री से कपड़े धुल कर भी आ गए; उसके बिस्तर की चादर भी बदल दी, पर उसके जाने के कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे। दोनों की आपस में बातचीत भी बंद हो गई। लेखक उपन्यास पढ़ता, तो अतिथि फिल्मी पत्रिका के पृष्ठ पलटता रहता था।
लेखक की पत्नी ने पूछा कि यह महाशय कब प्रस्थान करेंगे? लेखक ने केवल इतना ही कहा कि क्या कह सकता हूँ। पत्नी ने कहा कि आज मैं खिचड़ी बना रही हूँ। लेखक ने बनाने के लिए कह दिया। उनके मन में अतिथि सत्कार के सब भाव समाप्त हो गए थे। अब अतिथि को भी खिचड़ी खानी होगी। अगर वह अब भी न गया, तो उसे उपवास भी करना पड़ सकता है। लेखक को लगता है कि अतिथि को यहाँ अच्छा लग रहा है, इसलिए वह यहाँ से जाना नहीं चाहता क्योंकि दूसरों का घर सबको अच्छा लगता है। वह उसे गेट आउट कहना चाहता है, पर शराफत के मारे ऐसा कहता नहीं है।
लेखक सोचता है कि अगले दिन जब अतिथि सो कर उठेगा, तो वह उसका यहाँ आने का पाँचवाँ दिन होगा। लेखक को लगता है कि तब वह यहाँ से सम्मानपूर्वक विदा होने का निर्णय अवश्य ले लेगा। यह लेखक की सहनशीलता का अंतिम दिन होगा। उसके बाद वह उसका आतिथ्य नहीं कर सकेगा। वह जानता है कि अतिथि देवता होता है, पर वह अधिक समय तक देवताओं का भार नहीं उठा सकता क्योंकि देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं न कि उसके समान जमकर बैठ जाते हैं। इसलिए लेखक चाहता है कि उसका अतिथि भी लौट जाए, जिससे उसका देवत्व सुरक्षित रहेगा अन्यथा लेखक उसे भगाने के लिए कुछ भी कर सकता है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
अतिथि – मेहमान। आगमन – आना। चतुर्थ – चौथा। दिवस – दिन। निस्संकोच – बिना किसी संकोच के। नम्रता – नरमी, कोमलता। विगत – पिछले। सतत – निरंतर, लगातार। आतिथ्य – आवभगत, अतिथि का सत्कार। संभावना – उम्मीद, आशा। एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री। अंतरंग – घनिष्ठ। मिट्टी खोदना – बुरी हालत करना। हाईटाइम – उच्च समय, ठीक समय, उचित समय। आशंका – भय, संदेह। डिनर – रात्रि-भोज। मेहमाननवाज़ी – अतिथि सत्कार। आग्रह – अनुरोध। पीड़ा – दुख। लंच – दोपहर का भोज। गरिमा – गौरव। छोर – सीमा, किनारा।
भावभीनी – प्रेम से भरपूर। आघात – चोट, प्रहार। अप्रत्याशित – जिसके बारे में सोचा न गया हो, आकस्मिक, अचानक। मार्मिक – मर्मस्थल पर प्रभाव डालने वाली, प्रभावशाली। सामीप्य – निकटता। बेला – समय, अवसर। लॉड्री – कपड़े धुलने का स्थान। औपचारिक – जो केवल दिखलाने भर के लिए हो। निर्मूल – निराधार, व्यर्थ, बिना जड़ के। लुप्त – समाप्त। कोनलों – कोनों से। चर्चा – बातचीत। चुक गए – समाप्त हो गए। सौहार्द – सज्जनता, मित्रता। शनै:-शनै: – धीरे-धीरे। रूपांतरित – बदल जाना। अदृश्य – जो दिखाई न दे। ऊष्मा – गरमी, आवेश। संक्रमण – एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचना। चरम – अंतिम। होम – घर। स्वीटनेस मिठास। गेट आउट – निकल जाओ। गुंजायमान – गूँजती हुई।