JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 इस जल प्रलय में

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 इस जल प्रलय में Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 इस जल प्रलय में

JAC Class 9 Hindi इस जल प्रलय में Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे ?
उत्तर :
बाढ़ की खबर सुनकर लोग सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे। लोगों ने अपने घर में ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी, कांपोज़ की गोलियाँ, पत्र-पत्रिकाएँ आदि एकत्र करके रख ली, जिससे बाढ़ के दिनों में उन्हें खाने-पीने की तकलीफ़ न हो तथा बाढ़ के कारण घर से न निकल पाने की स्थिति में पत्रिकाएँ पढ़कर समय व्यतीत किया जा सके।

प्रश्न 2.
बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था ?
उत्तर :
लेखक बचपन से ही बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में ब्वॉय स्काउट, स्वयंसेवक, राजनीतिक कार्यकर्ता अथवा रिलीफ़ वर्कर के रूप में कार्य करता रहा है। इसलिए जब उसने सुना कि पटना के राजभवन, मुख्यमंत्री – निवास, राजेंद्रनगर, कंकड़बाग आदि क्षेत्रों में बाढ़ का पानी घुस आया है, तो वह बाढ़ के इस रूप को देखने के लिए उत्सुक हो उठा। अपनी इसी मनोवृत्ति के कारण बाढ़ की सही स्थिति जानने के लिए लेखक स्वयं अपनी आँखों से बाढ़ को देखना चाहता था।

प्रश्न 3.
सबकी जबान पर एक ही जिज्ञासा-‘पानी कहाँ तक आ गया है ?’- इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं ?
उत्तर :
‘पानी कहाँ तक आ गया है’- लोगों के इस कथन से यह ज्ञात होता है कि लोग बाढ़ की विभीषिका से चिंतित थे। उनमें यह जानने की इच्छा भी थी कि बाढ़ का पानी कहाँ तक पहुँचा है, जिससे वे यह अनुमान लगा सकें कि उनका क्षेत्र बाढ़ से कितना सुरक्षित है अथवा क्या उन तक भी बाढ़ का पानी पहुँच सकता है। वे अपनी तथा अपने परिवार की बाढ़ से सुरक्षा करने के लिए प्रयत्नशील थे।

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प्रश्न 4.
‘मृत्यु का तरल दूत’ किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर :
मृत्यु का तरल दूत बाढ़ के उफनते तथा तेज़ी से सबको अपने अंदर डुबोते हुए पानी को कहा गया है। बाढ़ का पानी जिस-जिस क्षेत्र में जा रहा था, वहाँ अपनी गति और तेज़ी से सबको डुबोता जा रहा था। इसलिए जब लेखक अपने मित्र के साथ रिक्शा पर बैठकर बाढ़ देख रहा था, तो भीड़ में से एक आदमी ने उन्हें सावधान करते हुए कहा था कि करेंट बहुत तेज़ है; आगे मत जाओ।

प्रश्न 5.
आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तरफ़ से कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर :
आपदाओं से निपटने के लिए हमें सदा सचेत रहना चाहिए। पानी की निकासी के लिए नगर के नालों की सफ़ाई वर्षा ऋतु से पहले ही करवा देनी चाहिए। प्लास्टिक, पोलीथीन आदि से निर्मित वस्तुओं को नालों, सीवरों आदि में नहीं डालना चाहिए। नदियों में गंदगी प्रवाहित नहीं करनी चाहिए। इससे नदियों की गहराई कम हो जाती है। अपने घर में पर्याप्त खाद्य सामग्री, पेयजल, ईंधन, आवश्यक दवाइयाँ आदि रख लेनी चाहिए।

प्रश्न 6.
‘ईह ! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए… अब बूझो !’ – इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है ?
उत्तर :
इस कथन के द्वारा लेखक ने उन लोगों की मानसिकता पर चोट की है, जो अपनी चिंता तो करते हैं परंतु उन्हें दूसरों की कोई परवाह नहीं होती। पटना में बाढ़ आने पर सब लोग चिंतित थे तथा अपने-अपने बचाव में लगे हुए थे। लेकिन कुछ तमाशबीन बाढ़ का नज़ारा देखकर अपना मन बहला रहे थे। इसके विपरीत जब बिहार के किसी अन्य क्षेत्र में बाढ़ आती है, तो उन लोगों की दयनीय दशा की कोई चिंता नहीं करता और न ही कोई वहाँ की दुर्दशा देखने जाता है।

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प्रश्न 7.
खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी ?
उत्तर :
जब पटना में बाढ़ आई, तो दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद करके दुकान का सामान सुरक्षित स्थानों अथवा दुकान की ऊपर की मंज़िल पर पहुँचाना शुरू कर दिया था। इससे समस्त व्यापारियों की खरीद-बिक्री बंद हो गई थी। इस स्थिति में भी पानवालों की बिक्री अचानक इसलिए बढ़ गई थी, क्योंकि लोग पान वाले की दुकान पर लगे ट्रांजिस्टर से आकाशवाणी पटना द्वारा प्रसारित बाढ़ से संबंधित समाचारों को सुन रहे थे। इन समाचारों को सुनते हुए वे पान भी चबा रहे थे।

प्रश्न 8.
जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए ?
उत्तर :
लेखक को जनसंपर्क विभाग की घोषणा से ज्ञात हुआ कि बाढ़ का पानी रात्रि के बारह बजे तक लोहानीपुर, कंकड़बाग और राजेंद्रनगर में घुस जाएगा। उसे अहसास हुआ कि उसके क्षेत्र में भी बाढ़ का पानी आ सकता है, इसलिए वह अपनी पत्नी से पूछता है कि गैस की क्या स्थिति है ? पत्नी के उत्तर से लगता है कि फिलहाल काम चल जाएगा। वह घर में खाद्य सामग्री, पीने का पानी, पढ़ने के लिए पत्रिकाओं, दवा आदि का प्रबंध भी कर लेता है।

प्रश्न 9.
बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है ?
उत्तर :
बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में मलेरिया, हैजा, प्लेग, पैर की उँगलियों के सड़ने, तलवों में घाव होने, दस्त लगने, बुखार आदि बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है।

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प्रश्न 10.
नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया। दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया ?
उत्तर :
सन् 1949 में महानंदा की बाढ़ से घिरे वापसी थाना के एक गाँव में लेखक रिलीफ़ कार्य के लिए नौका लेकर गया। नौका पर एक डॉक्टर साहब भी थे। उन्हें गाँव के कई बीमारों को नाव पर चढ़ाकर कैंप लाना था। एक बीमार नौजवान के साथ उसका कुत्ता भी नाव पर चढ़ आया। जब डॉक्टर साहब ने नौजवान के साथ कुत्ते को ले जाने से मना कर दिया, तो नौजवान कहकर पानी में उतर गया कि कुत्ता नहीं जाएगा तो मैं भी नहीं जाऊँगा उसके पीछे-पीछे कुत्ता भी पानी में कूद गया। इससे इन दोनों की एक-दूसरे के प्रति असीम स्नेह की भावना व्यक्त होती है।

प्रश्न 11.
‘अच्छा है, कुछ भी नहीं। कलम थी, वह भी चोरी चली गई। अच्छा है, कुछ भी नहीं-मेरे पास।’ मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर आदि की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने अंत में उपर्युक्त कथन क्यों कहा ?
उत्तर :
लेखक चाहता था कि यदि उसके पास मूवी कैमरा होता, तो वह इस बाढ़ के दृश्य की फ़िल्म बनाता और टेप रिकॉर्डर में वह उन सब ध्वनियों को रिकॉर्ड करता जो इस बाढ़ के कारण उत्पन्न हो रही थीं। इनके अभाव में वह बाढ़ पर लेख लिखना चाहता था, परंतु कलम चोरी हो जाने से वह ऐसा भी नहीं कर पाया। अंत में वह ‘अच्छा हैं, कुछ भी नहीं – मेरे पास’ इसलिए कहता है क्योंकि इन सबके अभाव में वह इस बाढ़ की विभीषिका को पूर्ण रूप से अपने मन में संजोकर रख सका है।

प्रश्न 12.
आपने भी देखा होगा कि मीडिया द्वारा प्रस्तुत की गई घटनाएँ कई बार समस्याएँ बन जाती हैं, ऐसी किसी घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मीडिया द्वारा पूरी तरह से जाँचे – परखे बिना प्रस्तुत की गई घटनाएँ ही समस्याएँ बन जाती हैं। अभी – अभी समस्त संचार माध्यम यह प्रसारित कर रहे हैं कि ‘क’ देश का एक निर्दोष व्यक्ति गलती से सीमा पार कर ‘ख’ देश में चला गया है, जिसे वहाँ की सरकार आतंकवादी मानकर फाँसी की सज़ा दे रही है। ‘क’ देश उस निर्दोष को छोड़ने के लिए ‘ख’ देश से अनुरोध करता है, तो ‘ख’ देश उसके बदले में ‘क’ देश में फाँसी की सजा पाए हुए अपने नागरिक को देने के लिए कहता है। ‘ख’ देश का वह व्यक्ति अपराधी है। जब ‘ख’ देश से पूछा गया, तो उन्होंने इस प्रकार के किसी भी प्रस्ताव से इनकार कर दिया। इस प्रकार मीडिया द्वारा प्रस्तुत यह अस्पष्ट घटना समस्या बन गई।

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प्रश्न 13.
अपनी देखी-सुनी किसी आपदा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
26 जनवरी का वह दर्दनाक दिन कभी भी भुलाया नहीं जा सकता, जब गुजरात के सब लोग दूरदर्शन पर गणतंत्र दिवस की परेड देख रहे थे कि अचानक आए भूकंप ने सारे प्रदेश को ही नहीं देश-विदेश को भी हिलाकर रख दिया। बड़े-बड़े भवन धराशायी हो गए थे और उनमें दबे हुए लोगों की चीख-पुकार से वातावरण त्रस्त था। हज़ारों दबकर मर गए। घायलों की संख्या भी अनगिनत थी। एक दुधमुँहा बालक सीढ़ियों के नीचे से सुरक्षित निकल आया था, पर उसे दूध पिलाने वाली माँ जीवित नहीं थी। राहत कार्य युद्ध- स्तर पर हो रहे थे। आवाज़ के भंडार खोल दिए गए थे। जगह-जगह राहत सामग्री पहुँचाई जा रही थी। रोते-बिलखते लोगों की दयनीय दशा सभी को व्यथित कर रही थी।

JAC Class 9 Hindi इस जल प्रलय में Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक का गाँव किस क्षेत्र में था ? वहाँ लोग क्यों आते थे ?
उत्तर :
लेखक का गाँव बिहार राज्य के ऐसे क्षेत्र में था जहाँ प्रतिवर्ष पश्चिम, पूर्व और दक्षिण की कोसी, पनार, महानंदा व गंगा की बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह सावन-भादों में आकर वहाँ शरण लेते थे क्योंकि लेखक के गाँव की धरती परती थी।

प्रश्न 2.
लेखक को बाढ़ से घिरने का पहली बार अनुभव कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर :
लेखक को बाढ़ से घिरने का पहली बार अनुभव सन् 1967 ई० में पटना में हुआ था। तब वहाँ लगातार अट्ठारह घंटे वर्षा हुई थी। इस वर्षा के कारण पुनपुन नदी का पानी पटना के राजेंद्रनगर, कंकड़बाग आदि निचले क्षेत्रों में घुस गया था। लेखक इसी क्षेत्र में रहता था, इसलिए उसने बाढ की इस विभीषिका को एक आम शहरी आदमी के रूप में भोगा था।

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प्रश्न 3.
मनिहारी में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए लेखक द्वारा क्या ले जाना आवश्यक था ?
उत्तर :
सन् 1947 ई० में लेखक गुरुजी अर्थात् सतीनाथ भादुड़ी के साथ गंगा की बाढ़ से पीड़ित मनिहारी क्षेत्र के लोगों की सहायता के लिए नाव पर गया। वहाँ लोगों के पैरों की उँगलियाँ पानी में रहने के कारण सड़ गई थीं तथा उनके तलवों में भी घाव हो गए थे, जिसके इलाज के लिए सबने इनसे ‘पकाही घाव’ की दवा माँगी। इसके अतिरिक्त उन लोगों को किरासन तेल और दियासलाई की भी ज़रूरत होती थी। इसलिए लेखक इन तीनों वस्तुओं को बाढ़ पीड़ितों में बाँटने के लिए अपनी नाव पर अवश्य रखता था।

प्रश्न 4.
परमान नदी की बाढ़ में डूबे हुए मुसहरों की बस्ती में जब लेखक राहत सामग्री बाँटने गया, तो वहाँ कैसा दृश्य था ?
उत्तर :
लेखक जब अपने साथियों के साथ मुसहरों की बस्ती में राहत सामग्री बाँटने गया, तो वहाँ ढोलक और मंज़ीरा बजने की आवाज़ आ रही थी। वहाँ एक ऊँचे मंच पर बलवाही नाच हो रहा था। कीचड़ भरे पानी में लथपथ भूखे-प्यासे नर-नारियों का झुंड खिलखिला रहा था।

प्रश्न 5.
सन् 1967 में पुनपुन नदी के पानी के राजेंद्रनगर में घुस आने पर वहाँ के सजे-धजे युवक-युवतियों ने क्या किया था ?
उत्तर :
सन् 1967 में जब पुनपुन नदी का पानी राजेंद्रनगर में आ गया था, तब वहाँ के कुछ सजे-धजे युवक-युवतियों ने नौका विहार करने का मन बनाया। वे नौका में बैठकर स्टोव पर केतली चढ़ाकर कॉफी बना रहे थे; साथ में बिस्कुट थे तथा ट्रांजिस्टर पर फ़िल्मी गाने बज रहे थे। एक लड़की कोई सचित्र पत्रिका पढ़ रही थी। जब यह नौका लेखक के ब्लॉक के पास पहुँची, तो छतों पर खड़े लड़कों ने इन पर छींटाकसी करके उन्हें वहाँ से भगा दिया।

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प्रश्न 6.
लेखक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से किस प्रकार जुड़ा हुआ था ?
उत्तर :
लेखक का जन्म परती क्षेत्र अर्थात् जहाँ की भूमि खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती, वहाँ हुआ था। अन्य क्षेत्रों में बाढ़ आने पर लोग उनके क्षेत्र की ओर आते थे। उस समय वह ब्वॉय स्काउट, स्वयंसेवक, राजनीतिक कार्यकर्ता अथवा रिलीफ़ वर्कर की हैसियत से बाढ़ पीड़ित लोगों के लिए काम करता था। उस समय वह बाढ़ से पीड़ित लोगों की मानसिकता को समझने की कोशिश करता था। बाढ़ में संबंधित कई बातों का वर्णन लेखक ने अपने साहित्य में भी किया है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने बाढ़ पर क्या-क्या लिखा है ?
उत्तर :
लेखक ने सबसे पहले हाई स्कूल में बाढ़ पर एक लेख लिखा था, जिस पर उसे प्रथम पुरस्कार मिला था। बड़े होने पर उसने धर्मयुग में ‘कथा – दशक’ के अंतर्गत बाढ़ की पुरानी कहानी को नए रूप के साथ लिखा था। लेखक ने जय गंगा (1947), कोसी (1948), हड्डियों का पुल (1948) आदि छोटे-छोटे रिपोर्ताज लिखे हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों में बाढ़ की विनाशलीला के अनेक चित्र अंकित किए हैं।

प्रश्न 8.
जिन लोगों का बाढ़ से पहली बार सामना होता है, उनकी बाढ़ के पानी को लेकर कैसी उत्सुकता होती है ?
उत्तर :
लेखक ने वैसे तो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बहुत काम किया था, परंतु सन् 1967 में पटना में लेखक को बाढ़ के अनुभव से गुज़रना पड़ा। लोगों में बाढ़ के पानी को लेकर उत्सुकता थी। वह उसका जायजा लेने के लिए मौके पर पहुँचना चाहते थे। इसलिए लोग मोटर, स्कूटर, ट्रैक्टर, मोटर साइकिल, ट्रक, टमटम, साइकिल, रिक्शा आदि पर बैठकर पानी देखने जा रहे थे। जो लोग पानी देखकर लौट रहे थे, उनसे पानी देखने जाने वाले पूछते कि पानी कहाँ तक आ गया है ? जितने लोग होते उतने ही सवालों के जवाबों में पानी आगे बढ़ता जाता था। सबकी जुबान पर एक ही बात होती थी कि पानी आ गया है; घुस गया; डूब गया; बह गया।

प्रश्न 9.
बाढ़ वाले दिन गाँधी मैदान का दृश्य कैसा था ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बाढ़ वाले दिन सब तरफ पानी ही पानी था। गाँधी मैदान में पानी भर गया था। पानी की तेज़ धाराओं में दीवारों पर लगे लाल-पीले रंग के विज्ञापनों की परछाइयाँ रंगीन साँपों के समान लग रही थीं। हज़ारों की संख्या में लोग गाँधी मैदान की रेलिंग के सहारे खड़े पानी की तेज धाराओं को इस प्रकार उत्सुकता से देख रहे थे, जैसे कि दशहरे के दिन रामलीला के ‘राम’ के रथ की प्रतीक्षा करते हैं। गाँधी मैदान में होने वाले आनंद उत्सव, सभा-सम्मेलन और खेलकूद की यादों को गेरुए रंग के पानी ने ढक लिया था। वहाँ की हरियाली भी धीरे-धीरे पानी में विलीन हो रही थी। यह सब देखना लेखक के लिए एक नया अनुभव था।

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प्रश्न 10.
‘बाढ़ तो बचपन से ही देखता आया हूँ, किंतु पानी का इस तरह आना कभी नहीं देखा।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर :
लेखक बचपन से ही बाढ़ को देखता आ रहा था, बाढ़ पीड़ितों के लिए काम करता रहा था, परंतु उसने कभी बाढ़ के पानी को आते नहीं देखा था। उसने अपने जीवन में पहली बार बाढ़ के अनुभव को भोगा था। उसने पानी के आने का इंतजार किया था। लेखक सोचता है कि यदि यह पानी रात के समय आता तो उसका बुरा हाल हो जाता, क्योंकि रात के अँधेरे में पानी विकराल रूप धारण कर लेता है।

इस जल प्रलय में Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘इस जल प्रलय में’ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक मर्मस्पर्शी रिपोर्ताज है, जिसमें उन्होंने सन् 1975 ई० में पटना में आई प्रलयंकारी बाढ़ का आँखों देखे हाल का वर्णन किया है। लेखक का गाँव एक ऐसे क्षेत्र में था, जहाँ की विशाल और परती जमीन पर सावन-भादों के महीनों में पश्चिम, पूर्व और दक्षिण में बहने वाली कोसी, पनार, महानंदा और गंगा की बाढ़ से पीड़ित मानव और पशुओं का समूह शरण लेता था। उन्हें देखने से ही उनके क्षेत्र में आई बाढ़ के भयंकर रूप का अनुमान हो जाता था।

परती क्षेत्र में जन्म लेने के कारण लेखक तैरना नहीं जानता, परंतु दस वर्ष की आयु से ही वह ब्वॉय स्काउट, स्वयंसेवक आदि के रूप में बाढ़ पीड़ितों की सहायता करता रहा है। हाई-स्कूल में बाढ़ पर लिखे लेख पर उसे प्रथम पुरस्कार मिला था। लेखक ने धर्मयुग में ‘कथा – दशक’, ‘जय गंगा’, ‘डायन कोसी’, ‘हड्डियों का प्रलय’ आदि अपनी रचनाओं में बाढ़ की विनाश-लीलाओं का वर्णन किया है। सन् 1967 ई० में जब पटना में अट्ठारह घंटे लगातार वर्षा होती रही, तो एक शहरी आदमी की हैसियत से लेखक ने भी इस बाढ़ की विभीषिका को झेला था।

पटना का पश्चिमी क्षेत्र जब छातीभर पानी में डूब गया, तो वह घर में खाद्य सामग्री, पीने का पानी आदि समेट कर बाढ़ के उतरने की प्रतीक्षा करने लगा। सुबह उसने सुना कि राजभवन और मुख्यमंत्री निवास में भी बाढ़ का पानी घुस गया है। दोपहर को पता चला कि गोलघर में भी पानी घुस आया है। सायं पाँच बजे लेखक अपने एक मित्र के साथ रिक्शे में बैठकर कॉफी हाउस तक बाढ़ के पानी की दशा देखने निकल पड़ा।

अन्य लोग भी अपने-अपने वाहनों पर पानी देखने निकल पड़े थे और सबकी एक ही जिज्ञासा थी कि पानी कहाँ तक आ गया है ? लोगों की बातचीत से लेखक को ज्ञात हुआ कि बाढ़ का पानी फ्रेजर रोड, श्रीकृष्णापुरी, पाटलिपुत्र कॉलोनी, बोरिंग रोड, वीमेंस कॉलेज आदि तक पहुँच गया था। कॉफी हाउस बंद था। पानी तेजी से उनकी ओर आ रहा था। वे रिक्शा मुड़वाकर अप्सरा सिनेमा हॉल से गांधी मैदान की ओर से निकले, तो देखा कि गांधी मैदान भी पानी से भर चुका था।

शाम को साढ़े सात बजे पटना के आकाशवाणी केंद्र ने घोषणा की कि पानी आकाशवाणी के स्टूडियो की सीढ़ियों तक पहुँच गया है। बाढ़ का पानी देखकर आ रहे लोग पान की दुकानों पर खड़े हँस-बोलकर समाचार सुन रहे थे, परंतु लेखक और उसके मित्र के चेहरों पर उदासी थी। कुछ लोग ताश खेलने की तैयारी कर रहे थे। राजेंद्रनगर चौराहे पर मैगजीन कॉर्नर पर पूर्ववत पत्र-पत्रिकाएँ बिक रही थीं।

लेखक कुछ पत्रिकाएँ लेकर तथा अपने मित्र से विदा लेकर अपने फ़्लैट में आ गया। वहाँ उसे जनसंपर्क विभाग की गाड़ी से लाउडस्पीकर पर की गई बाढ़ से संबंधित घोषणाएँ सुनाई दीं। उसमें सबको सावधान रहने के लिए कहा गया। लेखक पत्नी से गैस की स्थिति पूछता है तो वह बताती है कि फिलहाल बहुत है। रात गहरा रही है, परंतु बाढ़ के पानी के वहाँ तक आ जाने के भय से कोई सो नहीं पा रहा।

लेखक को सन् 1947 ई० में मनिहारी के क्षेत्र में गुरुजी के साथ गंगा की बाढ़ से पीड़ित क्षेत्र में नाव से जाने की याद आती है। चारों ओर पानी ही पानी था। एक द्वीप जैसे स्थान पर वह टाँगें सीधी करना चाहता था, तो गुरुजी ने उसे सावधान करते हुए कहा था कि पता नहीं वहाँ पहले से मौजूद लोग कुछ माँग न लें। इसके बाद लेखक को सन् 1949 ई० में महानंदा की बाढ़ से घिरे वापसी थाना के एक गाँव की याद आ जाती है।

इनकी नौका पर डॉक्टर भी थे। गाँव के कई बीमारों को नाव पर चढ़ाकर कैंप ले जाना था। वहाँ का एक बीमार नौजवान अपने साथ अपना कुत्ता भी ले जाना चाहता था। कुत्ता नहीं गया, तो वह भी नहीं गया। इसी प्रकार से परमान नदी की बाढ़ में डूबे मुसहरों की बस्ती में जब वे राहत सामग्री बाँटने गए, तो वहाँ के लोग भूखे-प्यासे होते हुए भी हँस-हँसकर ‘बलवाही’ नृत्य देख रहे थे। इसी संदर्भ में उसे सन् 1937 ई० की सिमरवनी-शंकरपुर की बाढ़ याद आ जाती है, जहाँ गाँव के लोग नाव के अभाव में केले के पौधे का भेला बनाकर काम चला रहे थे तथा जमींदार के लड़के नाव पर हारमोनियम-तबला के साथ जल-विहार कर रहे थे। गाँव के नौजवानों ने उनसे नाव छीन ली थी।

सन् 1967 ई० में जब पुनपुन का पानी राजेंद्रनगर में घुस गया, तो कुछ सजे-धजे युवक-युवतियों की टोली नाव पर स्टोव, केतली, बिस्कुट आदि लेकर जल-विहार करने निकले। उनके ट्रांजिस्टर पर ‘हवा में उड़ता जाए’ गाना बज रहा था। जैसे ही उनकी नाव गोलंबर पहुँची और ब्लॉकों की छतों पर खड़े लड़कों ने उनकी खिल्ली उड़ानी शुरू कर दी, तो वे दुम दबाकर हवा हो गए। रात के ढाई बज गए थे, पर पानी अभी तक वहाँ नहीं आया था।

लेखक को लगा कि शायद इंजीनियरों ने तटबंध ठीक कर दिया हो। चारों ब्लॉकों के लोग सोए नहीं थे, क्योंकि फ़्लैटों की रोशनियाँ जल-बुझ रही थीं। कुत्ते रह-रहकर भौंक रहे थे। लेखक को अपने उन मित्रों-संबंधियों की याद आ जाती है, जो पाटलिपुत्र कॉलोनी, श्रीकृष्णपुरी, बोरिंग रोड आदि क्षेत्रों में जल से घिरे हुए हैं। वह उनसे टेलीफ़ोन पर संपर्क करना चाहता है, पर टेलीफ़ोन डेड था।

बिस्तर पर करवटें बदलते हुए लेखक कुछ लिखने की सोचता रहा। उसे पिछले साल अगस्त में नरपतगंज थाना के चकरदाहा गाँव के पास छातीभर पानी में खड़ी उस गाय की याद आ जाती है, जो आजकल में ही बच्चा जनने वाली थी तथा उनकी ओर निरीह दृष्टि से देख रही थी। वह आँखें बंदकर उजले सफ़ेद भेड़ों के झुंड देखता है, जो कभी काले हो जाते हैं। तभी उसे झकझोर कर जगा दिया गया।

सुबह के साढ़े पाँच बज रहे थे। वह उठकर देखता है कि पश्चिम की ओर से थाने के सामने सड़क पर झाग-फेन लिए हुए बाढ़ का पानी आ रहा था। इसके साथ ही बच्चों का शोर भी सुनाई दे रहा था। लेकिन वह शोर बच्चों का न होकर मोड़ पर पानी के उछलने का स्वर था। पानी का पहला रेला ब्लॉक नंबर एक के पास पुलिस चौंकी के पीछे आया। फिर ब्लॉक नंबर चार के नीचे सेठ की दुकान की बायी तरफ लहरें पहुँच गईं।

लेखक दौड़कर छत पर चला गया। चारों ओर शोर और पानी की कलकल आवाज़ थी। सामने का फुटपाथ पार कर पानी अब तेज़ी से लेखक के फ़्लैट के पीछे बहने लगा। गोलंबर के पार्क के चारों ओर भी पानी था। पानी बहुत तेज़ गति से चढ़ रहा था। लेखक के घर के सामने की दीवार की ईंटें शीघ्रता से डूबती जा रही थीं। बिजली के खंभे का काला हिस्सा और ताड़ के पेड़ का तना भी डूब रहा था।

लेखक सोचता है कि यदि उसके पास मूवी कैमरा और टेप रिकॉर्डर होता, तो वह यह सारा दृश्य फ़िल्मा लेता। वह बाढ़ तो बचपन से देख रहा था, परंतु पानी का इस तरह आना उसने कभी नहीं देखा था। धीरे-धीरे गोल पार्क पानी में डूब गया। अब उनके चारों ओर पानी-ही-पानी था। वह बार-बार यही सोचता है कि काश उसके पास मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर होता, कलम होती पर उसकी तो कलम भी चोरी हो गई थी। वह सोचता है कि अच्छा है कि आज उसके पास कुछ भी नहीं है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • इलाका – क्षेत्र
  • पनाह – शरण
  • परती – जिस ज़मीन पर कुछ भी बोया-जोता नहीं जाता
  • विभीषिका – भयानकता, भयंकरता
  • अंदाज्ञा – अनुमान
  • अविराम – लगातार, बिना रुके, निरंतर
  • वृष्टि – वर्षा
  • प्लावित – पानी में डूब जाना
  • अबले – अब तक
  • अनवरत – लगातार
  • अनर्गल – व्यर्थ, बेतुकी
  • अनगढ़ – बेडौल
  • स्वगतोक्ति – अपने आप में बोलना
  • जिज्ञासा – जानने की इच्छा
  • तरल – द्रव्य
  • अस्पुट – अस्पष्ट
  • अनुनय – प्रार्थना, विनय
  • गैरिक – गेरुए रंग का
  • आच्छादित – ढका हुआ
  • शनै: शनै: – धीरे-धीरे
  • सर्वथा – बिलकुल
  • उत्कर्ण – सुनने को उत्सुक
  • आसन्न – निकट आया हुआ
  • माकूल – उचित
  • कारबारियों – व्यापारियों
  • प्रतिध्वनि – गूंज
  • सन्नाटा – खामोशी
  • स्मृतियाँ – यादें
  • आकुल – व्याकुल
  • बालू – रेत
  • बलवाही – एक लोक-नृत्य
  • रूदन – रोना
  • आसन्न प्रसवा – जो शीघ्र ही संतान उत्पन्न करने वाली हो
  • आ रहलौ है – आ गया है
  • अवरोध – रुकावट
  • पिछवाड़े – पिछला हिस्सा
  • कलरव – शोर
  • सशक्त – तेज़ी से
  • लोप – छिपना, दिखाई न देना

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