JAC Class 9 Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana अनुच्छेद-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana अनुच्छेद-लेखन

अनुच्छेद-लेखन एक अत्यंत महत्वपूर्ण कला है। इसमें किसी विषय से संबंधित तथ्यों को बहुत कम शब्दों में लिखना होता है। वास्तव में अनुच्छेद-लेखन एक तरह की संक्षिप्त लेखन शैली है। इसमें मुख्य विषय को ही केंद्र में रखना होता है। अच्छे अनुच्छेद लेखन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • भाषा सजीव, शुद्ध तथा विषय के अनुकूल होनी चाहिए।
  • अनुच्छेद का पहला व अंतिम वाक्य अर्थगर्भित व प्रभावशाली होने चाहिए।
  • मुहावरों, लोकोक्तियों तथा सूक्तियों का प्रयोग भाषा के सौष्ठव के लिए करना चाहिए।
  • अधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन नहीं करना चाहिए।

1. आत्मनिर्भर भारत

संकेत बिंदु – आत्मनिर्भर का मतलब, आत्मनिर्भरता के विभिन्न उदाहरण, आत्मनिर्भरता से राष्ट्र निर्माण
आत्मनिर्भर होने का मतलब है कि आपके पास जो स्वयं का कौशल है उसके माध्यम से एक छोटे स्तर पर स्वयं को आगे की ओर बढ़ाना है या फिर बड़े स्तर पर अपने देश के लिए बहुत कुछ करना है। आप स्वयं को आत्मनिर्भर बनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण हर संकट मे कर सकेंगे और इसके साथ ही आप अपने राष्ट्र मे भी अपना योगदान दे सकेंगे। आज आत्मनिर्भरता शब्द को नया शब्द नहीं कहा जा सकता।

गाँव मे कुटीर उद्योग के द्वारा बनाए गए उत्पादों और उसकी आमदनी से कमाए गए पैसों से परिवार का खर्च चलाने को ही आत्मनिर्भरता कहा जाता है। कुटीर उद्योग या घर में बनाए गए उत्पादों को अपने आस-पास के बाजारों में ही विक्रय किया जाता है, यदि किसी उत्पाद की गुणवत्ता सर्वविदित हो तो, अन्य जगहों पर भी उसकी खूब माँग होती है। कहने का आशय यह है कच्चे मालों से जो उत्पाद घरों में हमारे जीवन के उपयोग के लिए बनाया जाता है तो हम उसे स्थानीय उत्पाद कहते हैं पर सत्य यही है कि यही आत्मनिर्भता का एक रूप है। कुटीर उद्योग के उत्पाद, मत्स्य पालन, मुरगीपालन, इत्यादि आत्मनिर्भर भारत के विविध उदाहरण हैं।

आत्मनिर्भरता की श्रेणी में खेती, मत्स्य पालन, आँगनबाड़ी आदि अनेक तरह के कार्य आते हैं जो हमारे लिए आत्मनिर्भरता की राह में सहारा बनते हैं। इस प्रकार से हम अपने परिवार से गाँव-गाँव से जनपद, एक दूसरे से जोड़कर देखें तो इस प्रकार पूरे राष्ट्र को योगदान देते हैं। अतः हम भारत को आत्मनिर्भर भारत के रूप में देख सकते है। हम सहजता से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों और कच्चे मालों के द्वारा उत्पादों का निर्माण करके अपने आसपास के बाज़ारों में इसे विक्रय कर सकते हैं। इससे आप स्वयं के साथ – साथ आत्मनिर्भर भारत के पथ में अपना योगदान दे सकते हैं और हम सब मिलकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र निर्माण के गांधी के सपने को सुदृढ़ बनाने में सहयोग कर सकते हैं।

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2. स्वदेश-प्रेम

संकेत बिंदु – ममता का प्रतीक, उत्तरदायित्वों का निर्वहन, सम्मान में विद्धि
जिसके दिल में स्वदेश – प्रेम की रस – धारा नहीं बहती उसका इस संसार में होना, न होना एक समान है। स्वदेश प्रेम मनुष्य की स्वाभाविक ममता का प्रतीक है। संस्कृत के एक कवि ने तो जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया है- ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’। स्वदेश- प्रेम हर देशवासी में स्वाभाविक रूप से होता है, चाहे कम हो या अधिक। अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देना ही सच्चा स्वेदश – प्रेम है। देश-प्रेम की भावना मनुष्य को निःस्वार्थ त्याग और निश्चल प्रेम करना सिखाती है।

प्राणों का बलिदान कर देना ही वास्तव से स्वदेश-प्रेम नहीं है। वैज्ञानिक अपने आविष्कारों से, गुरु देश की भावी पीढ़ी को ज्ञानवान, चरित्रवान एवं उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने के योग्य बनाकर, वास्तुकार सुंदर भवनों का निर्माण करके और किसान देशवासियों के लिए अन्न उपजाकर अपना देश-प्रेम प्रकट करते है। वास्तव में स्वदेश-प्रेम वही कहलाता है जिससे हमारे देश की मर्यादा को ठेस न पहुँचे बल्कि उससे हमारे देश के सम्मान में वृद्धि हो।

3. विद्यार्थी और अनुशासन

संकेत बिंदु – अमूल्य निधि, देश की प्रगति, अनुशासित छात्र के गुण
विद्यार्थी का जीवन समाज और देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ हैं क्योंकि वे ही आगे चलकर राजनेता बनते हैं। देश की बागडोर थामकर राष्ट्र-निर्माता बनते हैं। समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर है। अतएव विद्यार्थी का जीवन पूर्णत: अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा। विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्व है। अनुशासन की शिक्षा स्कूल की परिधि में ही संभव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए।

एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी अनुशासित छात्र के गुण हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं, वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलंबी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं। अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुंदर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, संपन्न एवं सुंदर बनाएँ।

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4. वन – महोत्सव या वृक्षारोपण

संकेत बिंदु – आवश्यकताओं की पूर्ति, विविध लाभ, वृक्षारोपण की अति आवश्यकता
प्राचीन समय में मनुष्य की भोजन, वस्त्र, आवास आदि आवश्यकताएँ वृक्षों से पूरी होती थीं। फल उसका भोजन था, वृक्षों की छाल और पत्तियाँ उसके वस्त्र थे और लकड़ी तथा पत्तियों से बनी झोंपड़ियाँ उसका आवास थीं। फिर आग जलाने की जानकारी होने पर ऊष्मा और प्रकाश भी वृक्षों से प्राप्त किया जाने लगा।

आधुनिक युग में भी वृक्षों की महिमा- गरिमा सर्वोपरि है। आज भी वृक्ष मानव-जीवन के आधार हैं। विविध प्रकार के फल वृक्षों से ही संभव हैं। प्रकृति की नयनाभिराम छवि वृक्ष ही प्रदान कर सकते हैं। अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी वनों से मिलती हैं। वन मानव-जीवन के लिए एक निधि है, परंतु जनसंख्या के बढ़ने पर पेड़ कटते गए और ज़मीन खेती करने और रहने के योग्य बनती गई। भारत में बहुत-से घने वन थे, परंतु धीरे-धीरे वनों का नाश भयंकर रूप धारण करने लगा।

नए पेड़ों को लगाने का काम संभव न हो सका। स्वतंत्रता के बाद इसकी ओर ध्यान गया और देश में वन महोत्सव को राष्ट्रीय दिवस के रूप में ही मनाया जाने लगा। यह उत्सव सारे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। वृक्ष तथा वनस्पतियाँ हवा को शुद्ध करते हैं, वर्षा करते हैं तथा वातावरण को संतुलित रखते हैं। साँस लेने के लिए तथा जीवित रहने के लिए पशु-पक्षी और मानव जगत को जिस गैस की आवश्यकता होती है वह ऑक्सीजन गैस वृक्षों से ही प्राप्त होती है।

आज भविष्य की चिंता किए बिना हमने अपनी आवश्यकताओं और सुख-सुविधाओं के लिए वृक्षों का अंधाधुंध सफाया शुरू कर दिया है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है, परंतु वन घटते जा रहे हैं। हम उनका विकास किए बिना उनसे अधिक-से-अधिक सामग्री कैसे प्राप्त कर सकते हैं वृक्षों के महत्व से कौन इनकार कर सकता है। अतएव प्रत्येक गाँव में वृक्ष लगाए जा रहे हैं। मध्य प्रदेश की जनता भी इस संदर्भ में कर्तव्य से अवगत हो रही है। वह वृक्षों के विकास के लिए प्रयत्नशील है। हर वर्ष वन महोत्सव मनाया जाता है। वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है।

5. शिक्षा में खेल का महत्व

संकेत बिंदु – चुस्ती और फुरती, मनोरंजन का आधार, शारीरिक तथा मानसिक विकास
विद्यार्थी – जीवन में खेलों का बड़ा महत्व है। पुस्तकों में उलझकर थका-माँदा विद्यार्थी जब खेल के मैदान में जाता है तो उसकी थकावट तुरंत गायब हो जाती है। विद्यार्थी अपने में चुस्ती और ताज़गी अनुभव करता है। मानव-जीवन में सफलता के लिए मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शक्तियों के विकास से जीवन संपूर्ण बनता है। खेल दो प्रकार के होते हैं। एक वे जो घर में बैठकर खेले जा सकते हैं।

इनमें व्यायाम कम तथा मनोरंजन ज़्यादा होता है, जैसे- शतरंज, ताश, कैरमबोर्ड आदि। दूसरे प्रकार के खेल मैदान में खेले जाते हैं, जैसे- क्रिकेट, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बॉस्केटबॉल, कबड्डी आदि। इन खेलों में व्यायाम के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। स्वस्थ, प्रसन्न, चुस्त और फुर्तीला रहने के लिए शारीरिक शक्ति का विकास ज़रूरी है। इस पर ही मानसिक तथा आत्मिक विकास संभव है। शरीर का विकास खेल – कूद पर निर्भर करता है। सारा दिन काम करने और खेल के मैदान का दर्शन न करने से होशियार विद्यार्थी भी मूर्ख बन जाते हैं। यदि हम सारा दिन कार्य करते रहें तो शरीर में घबराहट, चिड़चिड़ापन या सुस्ती छा जाती है।

ज़रा खेल के मैदान में जाइए, फिर देखिए घबराहट, चिड़चिड़ापन या सुस्ती कैसे दूर भागते हैं। शरीर हलका-फुलका और साहसी बन जाता है। मन में और अधिक कार्य करने की लगन पैदा होती है। खेलों द्वारा मिल-जुलकर काम करने की भावना पैदा होती है। विद्यार्थी सहयोग से सब काम करते हैं। यह सहयोग की भावना उनके भावी जीवन में काम आती है। खेलों द्वारा एक-दूसरे से आगे बढ़ने की भावना दृढ़ होती है। इस प्रकार विद्यार्थी जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की होड़ में लगे रहते हैं। प्रत्येक विद्यालय में ऐसे खेलों का प्रबंध होना चाहिए, जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी भाग लेकर अपना शारीरिक तथा मानसिक विकास कर सके।

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6. गणतंत्र दिवस

संकेत बिंदु – प्रतिवर्ष आयोजन, राष्ट्रीय इतिहास, दृढ़ संकल्प
यद्यपि भारत की पवित्र भूमि पर प्रतिवर्ष अनेक पर्व तथा उत्सव मनाए जाते हैं। इन पर्वों का अपना विशेष महत्व होता है, किंतु धार्मिक तथा सांस्कृतिक पर्वों के अतिरिक्त कुछ ऐसे पर्व हैं, जिनका संबंध सारे राष्ट्र तथा उसमें निवास करने वाले जन-जीवन से होता है, ये राष्ट्रीय पर्वों के नाम से प्रसिद्ध हैं। 26 जनवरी इन्हीं में से एक है। छब्बीस जनवरी राष्ट्रीय पर्वों में महापर्व है, क्योंकि मुक्ति संघर्ष के बाद राष्ट्रीय इतिहास में राष्ट्र को सर्वप्रभुत्ता – संपन्न गणतंत्रात्मक गणराज्य का स्वरूप प्रदान करने का श्रेय इसी पुण्य तिथि को है। भारतीय गणतंत्रात्मक लोकराज्य का स्व-निर्मित संविधान इसी पुण्य तिथि को कार्य रूप में परिणत हुआ था।

स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात भारतीय नेताओं ने 26 जनवरी के दिन नवीन विधान को भारत पर लागू करना उचित समझा। 26 जनवरी, 1950 को प्रातः काल अंतिम गवर्नर जनरल सी० राज गोपालाचार्य ने नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद को कार्यभार सौंपा था। यद्यपि यह समारोह देश के प्रत्येक ओर-छोर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, किंतु भारत की राजधानी दिल्ली में इसकी शोभा देखते ही बनती है। मुख्य समारोह – सलामी व पुरस्कार वितरण आदि तो इंडिया गेट पर ही होता है। पर शोभा यात्रा नई दिल्ली की प्रायः सभी सड़कों पर घूमती है।

इसके साथ तीनों सेनाएँ घुड़सवार, टैंक, मशीन गनें, टैंकनाशक तोपें, विध्वंसक तथा विमान भेदी आदि यंत्र रहते हैं। विभिन्न प्रांतों के लोग नृत्य तथा शिल्प आदि का प्रदर्शन करते हैं। इस दिन राष्ट्रवासियों का आत्म-निरीक्षण भी करना चाहिए और सोचना चाहिए कि हमने क्या खोया तथा क्या पाया है, अपनी निश्चित की गई योजनाओं में हमें कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है। हमने जो लक्ष्य निर्धारित किए थे क्या हम वहाँ तक पहुँच पाए हैं। इस दृष्टि से आगे बढ़ने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए।

7. स्वतंत्रता दिवस

संकेत बिंदु – चिरस्मरणीय दिवस, दीर्घ संघर्ष का परिणाम, सहयोग की शपथ
15 अगस्त, 1947 भारतीय इतिहास में एक चिर – स्मरणीय दिवस रहेगा। इस दिन शताब्दियों से भारत माता की गुलामी के बंधन टूक-टूक हुए थे। भारतीय समाज के लिए दुखों की काली रात्रि समाप्त हो गई थी। एक स्वर्णिम प्रभात आ गया था। सबने शांति एवं सुख की साँस ली। स्वतंत्रता दिवस हमारा सबसे महत्वपूर्ण तथा प्रसन्नता का त्योहार है। इस दिन के साथ गुँथी हुई बलिदानियों की अनेक गाथाएँ हमारे हृदय में स्फूर्ति और उत्साह भर देती हैं। देश के वीरों ने इस स्वतंत्रता यज्ञ में जो आहुति डाली, वह इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई मिलती है। देश के भक्त वीरों ने स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।

देशवासी स्वतंत्रता संघर्ष में लंबे समय तक लगे रहे और उन सबके प्रयत्नों और बलिदानों से 15 अगस्त का शुभ दिन आया जब हमारा देश आज़ाद हो गया। स्वतंत्रता दिवस भारत के प्रत्येक नगर-नगर, ग्राम – ग्राम में बड़े उत्साह तथा प्रसन्नता से मनाया जाता है। इसे भिन्न-भिन्न संस्थाएँ अपनी ओर से मनाती हैं और सरकार सामूहिक रूप से इस उत्सव को विशेष रूप से रोचक बनाने के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करती है।

स्वतंत्रता संघर्ष का अमर प्रतीक हमारा राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज जब नील गगन में फहराता है तो प्रत्येक भारतीय उछल पड़ता है। 15 अगस्त, 1947 के दिन कुछेक मनोरंजक कार्यक्रम संपन्न कर लेने से ही हमारा कर्तव्य खत्म नहीं हो जाता है, बल्कि इस दिन से हमें देश की विकास योजनाओं में पूरा सहयोग देने की शपथ लेनी चाहिए। देश में फैले हुए जातीय भेद-भाव दूर करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। बेकारी की समस्या को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने की नवीनतम योजनाएँ सोचनी चाहिए।

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8. भीड़भाड़ वाले बस स्टैंड का दृश्य

संकेत बिंदु – बस अड्डों पर भारी भीड़, तरह-तरह की आवाज़ें, चहल-पहल
विज्ञान ने यातायात व्यवस्था को बहुत ही सुचारु बना दिया है। बस यातायात अत्यधिक लोकप्रिय होने से बस अड्डों पर भारी भीड़ जमा हो जाती है। बड़े शहरों के बस अड्डों पर मेला ही लगा रहता है। ऐसे ही भीड़-भाड़ वाले बस अड्डे का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ। पिछले रविवार मैं अपने मित्र को विदा करने के लिए जालंधर बस स्टैंड पर पहुँचा। दिन के दो बजे थे। गर्मी का बहुत ज़ोर था। रिक्शा से उतरकर मैं पहले लोकल बस स्टैंड से होता हुआ मुख्य बस अड्डे पर पहुँचा।

यात्री विभिन्न बसों में जाने के लिए पंक्तियों में टिकट लेने के लिए खड़े थे। मेरा मित्र भी लुधियाना की टिकट लेने के लिए एक लाइन में लग गया। इसी समय अखबार वालों, बूट पॉलिश करने वालों, आइसक्रीम वालों और मनियारी का सामान बेचने वालों की आवाजें आने लगीं। पुलिस कर्मचारी भी इधर-उधर घूम रहे थे। अचानक दृष्टि एक बुक स्टॉल पर गई। मैं झट वहाँ पहुँच गया। मैंने कुछ पत्रिकाएँ खरीदीं। इतने में मेरा मित्र बस की टिकट ले आया। बस स्टैंड पर आ चुकी थी। मैंने सामान बस में रखने में मित्र की सहायता की।

कुली बस पर लोगों का सामान चढ़ा रहे थे | हॉकर सामान बेचने के लिए आवाज़ें लगा रहे थे। बहुत से लोग मेरी तरह अपने मित्रों या संबंधियों को विदा करने आए हुए थे। चारों ओर अपरिचित लोग एक-दूसरे को देख रहे थे। बस यात्रियों से भर चुकी थी। कंडक्टर आ चुका था। उसने सीटी बजाई। ड्राइवर अगली खिड़की से बस में सवार हुआ। उसने इंजन स्टार्ट किया और बस धीमी गति से चल पड़ी। वहाँ खड़े लोग अपने मित्रों और संबंधियों को हाथ हिला-हिलाकर विदा कर रहे थे। कुछ ही देर में बस अड्डे से बाहर चली गई। इस प्रकार बस के चले जाने पर भी बस अड्डे पर चहल-पहल पहले जैसी ही थी। मैं इस वातावरण में खो सा गया। धीरे-धीरे मैं बस अड्डे से बाहर की ओर मुड़ा और बाहर पहुँचकर मैं घर की ओर चल दिया।

9. कंप्यूटर- आज की आवश्यकता

संकेत बिंदु – लोकप्रियता, जटिल समस्याओं का समाधान, दिनों-दिन विकास
विज्ञान ने मनुष्य को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की हैं। इन सुविधाओं में कंप्यूटर का विशिष्ट स्थान है। कंप्यूटर के प्रयोग से प्रत्येक कार्य को अविलंब किया जा सकता है। यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। प्रत्येक उन्नत और प्रगतिशील देश स्वयं को कंप्यूटरमय बना रहा है। भारत में भी कंप्यूटर के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। कंप्यूटर ऐसे यांत्रिक मस्तिष्कों का रूपात्मक तथा समन्वयात्मक योग तथा गुणात्मक घनत्व है, जो तीव्रतम गति से न्यूनतम समय में अधिक-से-अधिक काम कर सकता है। गणना के क्षेत्र में इसका विशेष महत्व है।

विज्ञान ने गणितीय गणनाओं के लिए अनेक गणनायंत्रों का आविष्कार किया है पर कंप्यूटर की तुलना किसी से भी संभव नहीं। चार्ल्स बेवेज ने 19वीं शताब्दी के आरंभ में सबसे पहला कंप्यूटर बनाया था। इस कंप्यूटर की यह विशेषता थी कि यह लंबी-लंबी गणनाओं को करने तथा उन्हें मुद्रित करने की क्षमता रखता था। कंप्यूटर स्वयं ही गणना कर जटिल-से-जटिल समस्याओं का समाधान शीघ्र ही कर देता है। भारतीय बैंकों तथा अन्य उपक्रमों के खातों का संचालन तथा हिसाब-किताब रखने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग हो रहा है। समाचार-पत्रों तथा पुस्तकों के प्रकाशन में भी कंप्यूटर अपनी विशेष भूमिका का निर्वाह कर रहा है।

कंप्यूटर संचार का भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है। ‘कंप्यूटर नेटवर्क’ के माध्यम से देश के प्रमुख नगरों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने की व्यवस्था की जा रही है। आधुनिक कंप्यूटर डिज़ाइन तैयार करने में भी सहायक हो रहा है। भवनों, मोटर गाड़ियों, हवाई जहाज़ों आदि के डिज़ाइन तैयार करने में ‘कंप्यूटर ग्राफ़िक’ का व्यापक प्रयोग हो रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कंप्यूटर ने अपना अद्भुत कमाल दिखाया है। इसके माध्यम से अंतरिक्ष के व्यापक चित्र उतारे जा रहे हैं। इन चित्रों का विश्लेषण भी कंप्यूटर के माध्यम से ही किया जा रहा है। औद्योगिक क्षेत्र में, युद्ध के क्षेत्र में तथा अन्य अनेक क्षेत्रों में कंप्यूटर का प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग परीक्षा – फल के निर्माण में, अंतरिक्ष यात्रा में, मौसम संबंधी जानकारी में, चिकित्सा में तथा चुनाव में भी किया जा रहा है। इस प्रकार भारत में कंप्यूटर का प्रयोग दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

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10. मेरे जीवन का लक्ष्य

संकेत बिंदु – योजनाओं का निर्माण, समाज सेवा का चयन, अटल लक्ष्य
मनुष्य अनेक कल्पनाएँ करता है। वह अपने को ऊपर उठाने के लिए योजनाएँ बनाता है। कल्पना सबके पास होती है लेकिन उस कल्पना को साकार करने की शक्ति किसी-किसी के पास होती है। सपनों में सब घूमते हैं। सभी अपने सामने कोई-न-कोई लक्ष्य रखकर चलते हैं। विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न लक्ष्य होते हैं। कोई डॉक्टर बनकर रोगियों की सेवा करना चाहता है तो कोई इंजीनियर बनकर निर्माण करना चाहता है। कोई कर्मचारी बनना चाहता है तो कोई व्यापारी। मेरे मन में भी एक कल्पना है। मैं अध्यापक बनना चाहता हूँ। भले ही कुछ लोग इसे साधारण उद्देश्य समझें पर मेरे लिए यह गौरव की बात है। देश सेवा और समाज सेवा का सबसे बड़ा साधन यही है।

मैं व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र को अधिक महत्व देता हूँ। स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ को महत्व देता हूँ। मैं मानता हूँ कि जो ईंट नींव बनती है, महल उसी पर खड़ा होता है। मैं धन, कीर्ति और यश का भूखा नहीं। मेरे सामने तो राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त का यह सिद्धांत रहता है ‘समष्टि के लिए व्यष्टि हों बलिदान’। विद्यार्थी देश की नींव है। मैं उस नींव को मज़बूत बनाना चाहता हूँ। यदि स्वामी दयानंद, विवेकानंद और शिवाजी जैसे महान व्यक्ति पैदा करने हैं तो अपने व्यक्तित्व को भी ऊँचा उठाना पड़ेगा। आज भारत को आदर्श नागरिकों की आवश्यकता है। आदर्श शिक्षा द्वारा ही उच्चकोटि के व्यक्ति पैदा किए जा सकते हैं। अध्यापक बनने का मेरा निश्चय अटल है। शेष ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है।

11. मेरा प्रिय लेखक

संकेत बिंदु – योगदान, स्वतंत्र विचारधारा, साहित्य जीवन का दर्पण
हिंदी – साहित्य को उन्नत बनाने में अनेक कलाकारों ने योगदान दिया है। प्रत्येक कलाकार का अपना महत्व है, पर प्रेमचंद जैसा असाधारण कलाकार किसी भी देश को बड़े सौभाग्य से मिलता है। यदि उन्हें भारत का गोर्की कहा जाए तो गलत नहीं होगा। प्रेमचंद के उपन्यासों में लोक जीवन के व्यापक चित्रण तथा सामाजिक समस्याओं के गहन विश्लेषण को देखकर कहा गया है कि प्रेमचंद के उपन्यास भारतीय जनजीवन के मुँह-बोलते चित्र हैं। इसी कारण मैं इन्हें अपना प्रिय लेखक मानता हूँ। जन्म वाराणसी के निकट लमही ग्राम में सन 1880 ई० में हुआ।

घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उनका बचपन संकटों में बीता। कठिनाई से बी०ए० किया और शिक्षा विभाग में नौकरी की किंतु उनकी स्वतंत्र विचारधारा आड़े आई। नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखी ‘सोजे वतन’ पुस्तक अंग्रेज़ सरकार ने जब्त कर ली। इसके पश्चात उन्होंने प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया। प्रेमचंद ने एक दर्जन उच्चकोटि के उपन्यास और लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनके उपन्यासों में गोदान, कर्मभूमि, गबन तथा सेवासदन आदि प्रसिद्ध हैं। कहानियों में पूस की रात तथा कफ़न अत्यंत मार्मिक हैं। प्रेमचंद को आदर्शोन्मुख यथार्थवादी साहित्यकार कहा जाता है।

वे मानते थे कि साहित्य समाज का चित्रण करता है किंतु साथ ही समाज के सामने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करता है जिसके सहारे लोग अपने चरित्र को ऊँचा उठा सकें। प्रेमचंद की भाषा सरल तथा मुहावरेदार है। उन्होंने ऐसी भाषा अपनाई जिसे जनता बोलती और समझती थी। यह खेद की बात है कि हिंदी का यह महान सेवक जीवन भर आर्थिक संकटों में घिरा रहा। जीवन भर अथक परिश्रम के कारण स्वास्थ्य गिरने लगा और सन 1936 में हिंदी के उपन्यास सम्राट का देहांत हो गया। उनका साहित्य भारतीय जीवन का दर्पण है। उनके साहित्यिक आदर्श बड़ा मूल्य रखते हैं।

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12. मेरी प्रिय पुस्तक

संकेत बिंदु – अमर रचना, मूल संदेश, अमर और दिव्य वाणी
रामचरितमानस, मेरी सर्वप्रिय पुस्तक है। यह पुस्तक महाकवि तुलसीदास का अमर रचना है। तुलसीदास ही क्यों, वास्तव में इससे हिंदी साहित्य समृद्ध होकर समस्त जगत को आलोक दे रहा है। इसकी श्रेष्ठता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि यह कृति संसार की प्राय: सभी समृद्ध भाषाओं में अनुदित हो चुकी है। रामचरितमानस, मानव-जीवन के लिए अमूल्य निधि है। पत्नी का पति के प्रति, भाई का भाई के

प्रति, बहू का सास-ससुर के प्रति, पुत्र का माता-पिता के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए आदि इस कृति का मूल संदेश है। यह ग्रंथ दोहा – चौपाई में लिखा महाकाव्य है। ग्रंथ में सात कांड हैं जो इस प्रकार हैं – बाल – कांड, अयोध्या – कांड, अरण्य-कांड, किष्किंधा – कांड, सुंदर कांड, लंका – कांड तथा उत्तर – कांड। हर कांड भाषा, भाव आदि की दृष्टि से पुष्ट और उत्कृष्ट है और हर कांड के आरंभ में संस्कृत के श्लोक हैं। तत्पश्चात कला फलागम की ओर बढ़ती है। यह ग्रंथ अवधी भाषा में और दोहा – चौपाई में लिखा हुआ है। चरित्रों का चित्रण जितना प्रभावशाली तथा सफल इसमें हुआ है उतना हिंदी के अन्य किसी महाकाव्य में नहीं हुआ।

राम, सीता, लक्ष्मण, दशरथ, भरत आदि के चरित्र विशेषकर उल्लेखनीय तथा प्रशंसनीय हैं। इस पुस्तक के पढ़ने से प्रतिदिन की पारिवारिक, सामाजिक आदि समस्याओं को दूर करने की प्रेरणा मिलती है। परलोक के साथ-साथ इस लोक में कल्याण का मार्ग दिखाई देता है और मन में शांति का सागर उमड़ पड़ता है। बार- बार पड़ने को मन चाहता है। रामचरितमानस में नीति, धर्म का उपदेश जिस रूप में दिया गया है वह वास्तव में प्रशंसनीय है।

जीवन के प्रत्येक रस का संचार किया है और लोक-मंगल की उच्च भावना का समावेश भी किया गया है। यह वह पतित पावनी गंगा है, जिसमें डुबकी लगाते ही सारा शरीर शुद्ध हो उठता है तथा एक मधुर रस का संचार होता है। सहृदय भक्तों के लिए यह दिव्य तथा अमर वाणी है। उपर्युक्त विवेचन के अनुसार अंत में कह सकते हैं कि रामचरितमानस साहित्यिक तथा धार्मिक दृष्टि से उच्चकोटि की रचना है, जो अपनी उच्चता तथा भव्यता की कहानी स्वयं कहती है, इसलिए मैं इसे अपनी प्रिय पुस्तक मानता हूँ।

13. प्रातः काल का भ्रमण

संकेत बिंदु – विशेष महत्व, सर्वत्र आनंद, तब जीवन का संचार
मनुष्य को सबसे पहले अपनी सेहत की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि हमारे बहुत-से कर्तव्य हैं। ये महत्व कर्तव्य बिना अच्छे स्वास्थ्य के पूरे नहीं हो सकते। स्वास्थ्य रक्षा के अनेक साधन हैं। इन साधनों में प्रातः काल का भ्रमण विशेष महत्व रखता है। दिन के सभी भागों में प्रातः काल सबसे मनोहर तथा चेतनामय होता है। रात्रि के बाद उषा की मधुर मुसकान मन को मोह लेती है।

पृथ्वी के कण-कण में एक नया उल्लास, नया संगीत, नया जीवन छा जाता है। ऐसे मंगलमय समय में भ्रमण करना लाभकारी है। प्रातः काल प्रकृति दोनों हाथों से स्वास्थ्य लुटाती है। विभिन्न ऋतुओं की सुगंधित वायु उसी समय चलती है। सर्वत्र आनंद ही आनंद छाया होता है। सुगंधि से भरे फूल खिलखिलाकर हँसते हुए कितने मोहक होते हैं। बेलों से झड़े फूल पृथ्वी का श्रृंगार करते हुए दिखाई देते हैं। चारों ओर फैली हरियाली नेत्रों को आनंद से भर देती है। पक्षियों का चहचहाना मन को प्रसन्नता से भर देता है।

पूर्व के आकाश पर मुसकराता हुआ प्रातः काल का सूर्य और अस्त होता हुआ चंद्रमा दोनों भगवान के दो नेत्रों की तरह आँख-मिचौली करते दिखाई देते हैं। ऐसे समय भ्रमण करने वाला मनुष्य स्वस्थ ही नहीं, दीर्घ आयु वाला भी होता है। प्रातः काल के भ्रमण से शरीर में फुर्ती और नए जीवन का संचार होता है। मन खुशी से भर जाता है। सारा दिन काम करने पर मनुष्य थकता नहीं। मुख पर तेज़ छाया रहता है। स्वच्छ वायु से रक्त शुद्ध होता है। फेफड़ों को बल मिलता है। मोती के समान ओस की बूँदों से सजी घास पर चलने से मुनष्य का मस्तिष्क रोगों से मुक्त होता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति प्रातः काल भ्रमण को निकल जाते हैं, उनका सारा दिन हँसते हुए बीतता है। अतः भ्रमण की आदत डालनी चाहिए।

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14. वर्षा ऋतु

संकेत बिंदु – असली समय, अनोखी कल्पनाएँ, प्रकृति का मधुर संगीत

धानी चुनर ओढ़ धरा की दुल्हन जैसी मुसकराती है।
नई उमंगें, नई तरंगें, लेकर वर्षा ऋतु आती है।

वैसे तो आषाढ़ मास से वर्षा ऋतु का आरंभ हो जाता है, लेकिन इसके असली महीने सावन और भादों हैं। धरती का ” शस्य श्यामलाम् सुफलाम् नाम सार्थक हो जाता है। इस ऋतु में किसानों की आशा – लता लहलहा उठती है। नदियों, सरोवरों एवं नालों के सूखे हृदय प्रसन्नता के जल से भर जाते हैं। वर्षा ऋतु में प्रकृति मोहक रूप धारण कर लेती है। इस ऋतु में मोर नाचते हैं। औषधियाँ – वनस्पतियाँ लहलहा उठती हैं। खेती हरी- भरी हो जाती है। किसान खुशी में झूमने लगते हैं। पशु-पक्षी आनंदमग्न हो उठते हैं। बच्चे किलकारियाँ मारते हुए इधर से उधर दौड़ते-भागते, खेलते- कूदते हैं। स्त्री-पुरुष हर्षित हो जाते हैं। वर्षा की पहली बूँदों का स्वागत होता है।

वर्षा प्राणी मात्र के लिए जीवन लाती है। जीवन का अर्थ पानी भी है। वर्षा होने पर नदी-नाले, तालाब, झीलें, कुएँ पानी से भर जाते हैं। अधिक वर्षा होने पर चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है। कई बार भयंकर बाढ़ आ जाती है। पुल टूट जाते हैं; खेती तबाह हो जाती है। सच है कि प्रत्येक वस्तु की अति बुरी होती है। वर्षा न होने को ‘अनावृष्टि’ कहते हैं। बहुत वर्षा होने को ‘अतिवृष्टि’ कहते हैं। दोनों ही हानिकारक हैं। जब वर्षा न होने से सूखा पड़ता है, तब अकाल पड़ जाता है। वर्षा से अन्न, चारा, घास, फल आदि पैदा होते हैं जिससे मनुष्यों तथा पशुओं का जीवन – निर्वाह होता है। सभी भाषाओं के कवियों ने ‘बादल’ और ‘वर्षा’ पर बड़ी सुंदर-सुंदर कविताएँ रची हैं; अनोखी कल्पनाएँ की हैं। संस्कृत, हिंदी आदि के कवियों ने सभी ऋतुओं के वर्णन किए हैं।

ऋतु- वर्णन की पद्धति बड़ी लोकप्रिय रही है। श्रावण की पूर्णमासी को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन वर्षा ऋतु का प्रसिद्ध त्योहार है। वर्षा में कीट- पतंगे, मच्छर बहुत बढ़ जाते हैं। साँप आदि जीव बिलों से बाहर निकल आते हैं। वर्षा होते हुए कई दिन हो जाएँ तो लोग तंग आ जाते हैं। रास्ते रुक जाते हैं। गाड़ियाँ बंद हो जाती हैं। वर्षा की अधिकता कभी-कभी बाढ़ का रूप धारण कर जन-जीवन के लिए अभिशाप बन जाती है। निर्धन व्यक्ति का जीवन तो दुख की दृश्यावली बन जाता है।

इन दोषों के होते हुए भी वर्षा का अपना महत्व है। यदि वर्षा न होती तो इस संसार में कुछ भी न होता। न आकाश में इंद्रधनुष की शोभा दिखाई देती और न प्रकृति का मधुर संगीत सुनाई देता। इससे पृथ्वी की प्यास बुझती है और वह तृप्त हो जाती है।

15. आज की भारतीय नारी

संकेत बिंदु – महत्वपूर्ण अंग, कर्तव्य क्षेत्र, देश की उन्नति में भूमिका
नर तथा नारी समाज के दो महत्वपूर्ण अंग हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इतिहास में कई बार ऐसा दिखाई देता है कि पुरुष समाज को नारी – समाज पर श्रेष्ठता प्राप्त रही है। स्त्री को माता का जो महान और भव्य रूप भारतीय शास्त्रकारों ने दिया है, वह संसार के किसी भी देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं होता। लेकिन इतिहास में कुछ ऐसे चरण भी आए, जब नारी की उपेक्षा की गई और उसे भोग की वस्तु बना दिया गया। विशेष कर मध्यकाल में नारी की दशा शोचनीय बन गई। लेकिन आधुनिक काल में नारी ने करवट ली और अपना कायाकल्प कर डाला।

वह पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने लगी। आज की नारी अपनी दोहरी भूमिका का निर्वाह कर रही है। उसके कर्तव्य का क्षेत्र पहले से बढ़ गया है। आज एक ओर वह विवाहित रूप में घर का उत्तरदायित्व सँभालती है, तो दूसरी ओर बाहर के क्षेत्र में काम करके और कुछ कमाकर घर का खर्च चलाने में हाथ बँटाती है। अविवाहित नारी भी बाहरी क्षेत्र में अपनी क्षमता का परिचय देकर कुछ अर्जित करके परिवार की आर्थिक दशा सुधारने में अपना योगदान देती है। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ नारी ने अपनी प्रतिभा का परिचय न दिया हो। राजनीति के क्षेत्र में भी उसने कदम बढ़ाए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में तो उसका बोलबाला है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी वह अपनी कुशलता का परिचय दे रही है। सरकारी कार्यालयों में वह पुरुष के बराबर काम कर रही है। कामकाजी महिलाओं की निरंतर वृद्धि हो रही है।

आज की नारी प्राचीनता की केंचुली उतारकर एक नए आलोक की ओर बढ़ रही है। स्वतंत्रता – प्राप्ति तथा नवजागरण के बाद नारी के कर्तव्य क्षेत्र का विस्तार हुआ है। उसने घर और बाहर सुंदर समन्वय किया है। आज की बढ़ती हुई महँगाई में ऐसी ही नारियों की आवश्यकता है। आज आवश्यकता है नारी के महत्व को समझने की। उसे पुरुष के समान ही आदर देना चाहिए। घर में लड़का हो या लड़की, दोनों के प्रति एक-सा दृष्टिकोण हो; एक-सी सुविधाएँ प्राप्त हों, तो नारी निश्चित रूप से परिवार, समाज तथा देश की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। नारी का भी यह कर्तव्य है कि वह स्वतंत्रता का अनुचित प्रयोग न करे, मर्यादित जीवन व्यतीत करे तथा परिवार के प्रति पूरी आस्था रखे।

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16. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत

संकेत बिंदु – सामाजिक प्राणी, नाशकारी कुसंग, सच्चे व्यक्ति की संगति
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता, तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं – कुछ सदाचारी हैं, तो कुछ दुराचारी। अतः हमें ऐसे लोगों का संग करना चाहिए जो हमारे जीवन को उन्नति एवं निर्मल बनाएँ। अच्छी संगति पर प्रभाव अच्छा तथा बुरी संगति का प्रभाव बुरा होता है। तभी तो कहा है- जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत यह ठीक भी है, क्योंकि दुष्टों के साथ रहने वाला व्यक्ति भला हो ही नहीं सकता। संगति का प्रभाव जाने अथवा अनजाने मनुष्य पर अवश्य पड़ता है। बचपन में जो बालक परिवार अथवा मोहल्ले में जो कुछ सुनते हैं, प्रायः उसी को दोहराते हैं।

गाली सुनने से ही गाली देने की आदत पड़ती है। कहा भी गया है, “दुर्जन यदि विद्वान भी हो तो उसका संग छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला साँप क्या भयंकर नहीं होता?” सत्संगति का हमारे चरित्र के निर्माण में बड़ा हाथ है। बुरी संगति के प्रभाव का परिणाम बड़ा भयंकर होता है; मनुष्य कहीं का नहीं रहता। वह न परिवार का कल्याण कर सकता है और न ही देश और जाति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकता है। कुसंग नाशकारी है तो सुसंग कल्याणकारी। सूरदास जी ने तो दुष्ट व्यक्ति के विषय में यहाँ तक कह दिया है – ‘सूरदास’ खल कारी कामरि चढ़त न दूजो रंग सत्संग के बिना विवेक उत्पन्न नहीं हो सकता और विवेक के बिना जीवन का निर्माण नहीं हो सकता। सज्जन का संग सुखकारी एवं कल्याणकारी होता है। कबीर ने सच्चे साधु की संगति के विषय में ठीक ही कहा है –

कबीरा संगत साध की, ज्यों गंधी की बास।
जो कछु गंधी दे नहीं, तो भी बास सुवास॥

मनुष्य के जीवन की सफलता तथा असफलता उसकी संगति पर निर्भर करती है। यदि हम जीवन में सफलता चाहते हैं, तो अपनी संगति की तरफ़ ध्यान दें। सत्य सत्य को जन्म देता है; अच्छाई अच्छाई को जन्म देती है; बुराई से बुराई उत्पन्न होती है- यह कभी न भूलें।

17. प्रथम सुख नीरोगी क्या

संकेत बिंदु – नियमित व्यायाम, नीरोग जीवन, जागरूकता
मानव तभी सुखी रह सकता है जब उसका शरीर स्वस्थ हो। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना अत्यंत आवश्यक है। व्यायाम करने से शारीरिक सुखों के साथ-साथ मनुष्य को मानसिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है क्योंकि इससे उसका मन भी सदा स्फूर्तिमय, उत्साहपूर्ण तथा आनंदमय बना रहता है। महर्षि चरक ने लिखा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूल आधार स्वास्थ्य ही है। यह बात अपने में नितांत सत्य है। मानव-जीवन की सफलता धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने में ही निहित है परंतु सब की आधारशिला मनुष्य का स्वास्थ्य है, उसका नीरोग जीवन है।

रुग्ण और अस्वस्थ मनुष्य न धर्मचिंतन कर सकता है, न अर्थोपार्जन कर सकता है, न काम प्राप्ति कर सकता है, और न ही मानव-जीवन के सबसे बड़े स्वार्थ मोक्ष की ही उपलब्धि प्राप्त कर सकता है क्योंकि इन सबका मूल आधार शरीर है, इसलिए कहा गया है कि- “शरीरमादद्यम् खलु धर्मसाधनम्”। अस्वस्थ व्यक्ति न अपना कल्याण कर सकता है, न अपने परिवार का, न अपने समाज की उन्नति कर सकता है और न ही देश की। जिस देश के व्यक्ति अस्वस्थ और अशक्त होते हैं, वह देश न आर्थिक उन्नति कर सकता है और न सामाजिक। देश का निर्माण, देश की उन्नति, बाह्य और आंतरिक शत्रुओं से रक्षा, देश का समृद्धिशाली होना वहाँ के नागरिकों पर आधारित होता है। सभ्य और अच्छा नागरिक वही हो सकता है जो तन, मन, धन से देशभक्त हो तथा मानसिक और आत्मिक स्थिति में उन्नत हो।

इन दोनों ही क्रमों में शरीर का स्थान प्रथम है। बिना शारीरिक उन्नति के मनुष्य न देश की रक्षा कर सकता है और न अपनी मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है। प्राय: यह देखा जाता है कि बौद्धिक काम करने वाले लोगों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता, अतः उनके लिए व्यायाम की आवश्यकता अधिक रहती है। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें तथा जीवन के व्यस्त क्षणों में से कुछ समय निकाल कर व्यायाम अवश्य करें। इससे हमारा मन और तन पूर्ण रूप से स्वस्थ रहेगा। नीरोगी काया होने से हम सभी सुखों का उपयोग भी कर सकते हैं।

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18. प्रकृति का प्रकोप – भूकंप

संकेत बिंदु – मानव का प्रकृति के साथ संघर्ष, प्रकृतिक प्रकोप, मानवीय अहं का त्याग
प्रकृति ईश्वर की रचना होने के कारण अजेय है। मनुष्य आदिकाल से ही प्रकृति की शक्तियों के साथ संघर्ष करता आ रहा है। आँधी, तूफ़ान, अकाल, अनावृष्टि, अतिवृष्टि तथा भूकंप प्रकृति के ऐसे ही प्रकोप हैं। भूमि के हिलने को भूचाल, हॉलाडोल या भूकंप की संज्ञा दी जाती है। धरती का ऐसा कोई भी भाग नहीं है, जहाँ कभी-न-कभी भूकंप के झटके न आए हों। भूकंप के हल्के झटकों से तो विशेष हानि नहीं होती, लेकिन जब कभी ज़ोर के झटके आते हैं तो वे प्रलयकारी दृश्य उपस्थित कर देते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रकोप है जो अत्यधिक विनाश का कारण बनता है।

यह जानलेवा ही नहीं बनता बल्कि मनुष्य की शताब्दियों सहस्त्राब्दियों की मेहनत के परिणाम को भी नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। बिहार ने बड़े विनाशकारी भूकंप देखे हैं । हज़ारों लोग मौत के मुँह में चले गए। भूमि में दरारें पड़ गईं, जिनमें जीवित प्राणी समा गए। पृथ्वी के गर्भ से कई प्रकार की विषैली गैसें उत्पन्न हुईं, जिनसे प्राणियों का दम घुट गया। भूकंप के कारण जो लोग धरती में समा जाते हैं, उनके मृत शरीरों को बाहर निकालने के लिए धरती की खुदाई करनी पड़ती है। यातायात के साधन नष्ट हो जाते हैं। बड़े-बड़े भवन धराशायी हो जाते हैं।

लोग बेघर हो जाते हैं। धनवान् अकिंचन बन जाते हैं और लोगों को जीने के लाले पड़ जाते हैं। आज का युग विज्ञान का युग कहलाता है पर विज्ञान प्रकृति के प्रकोप के सामने विवश है। भूकंप के कारण क्षण भर में ही प्रलय का संहारक दृश्य उपस्थित हो जाता है। ईश्वर की इच्छा के आगे सब विवश हैं। मनुष्य को कभी भी अपनी शक्ति और बुद्धि का घमंड नहीं करना चाहिए। उसे हमेशा प्रकृति की शक्ति के आगे नतमस्तक रहना चाहिए।

19. परहित सरिस धरम नहिं भाई

संकेत बिंदु-कर्मानुसार पृष्ठभूमि, आदर्शों की प्रतिष्ठा, कल्याण की भावना
मानव का कर्मक्षेत्र यही समाज है, जिसमें रहकर वह अपने कर्मानुसार अगले जीवन की पृष्ठभूमि तैयार करता है। चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में पड़ने का मूल वह यहीं स्थापित करता है और भारतीय धर्म – साधना में वर्णित अमरत्व के सिद्धांत को अपने श्रेष्ठ कर्मों से प्रमाणित करता है। लाखों-करोड़ों लोगों में से मरणोपरांत केवल वही व्यक्ति समाज में अपना नाम स्थायी बना पाता है जो जीवन काल में ही अपने जीवन को दूसरों के लिए अर्पित कर चुका होता है। परोपकार और दूसरों के प्रति सहानुभूति से समाज स्थापित है और इन तत्वों में समाज के नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा होती है। दूसरे के लिए किए गए कार्य से जहाँ अपना स्वार्थ सिद्ध होता है वहाँ समाज में प्रधानता भी प्राप्त होती है।

निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा लोकप्रियता प्रदान करती है। इससे मानव का अपना कल्याण भी होता है क्योंकि लोक की प्रवृत्ति है कि यदि आप दूसरों के काम आएँगे तो समय पड़ने पर दूसरे भी आप का साथ देंगे। जो व्यक्ति दूसरों के लिए आत्म- बलिदान करता है, समाज उसे अमर बना देता में तुम है और यह यश उपार्जित करता है – ‘कीर्तियस्य स जीवत।’ गुरु अर्जन देव के अमरत्व का यही तो आधार है। ईसा ने कहा है- ‘जो बड़ा होगा वह तुम्हारा सेवक होगा।’ प्रकृति का भी ऐसा ही व्यवहार है। वह कभी भी अपने साधन अपने लिए प्रयुक्त नहीं करती –

वृच्छ कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमार्थ के कारन, साधुन धरा सरीर ॥

मानव-जीवन में लोक सेवा, सहानुभूति और दयालुता प्रायः रोग, दरिद्रता, महामारी, उपद्रवों आदि में संभव हो सकती है। इनमें राजा शिवि, दधीचि और गांधी जैसे बलिदानी की आवश्यकता नहीं है। दयालुता के छोटे-छोटे कार्यों, मृदुता का व्यवहार, दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना, दूसरों की दुर्बलताओं के प्रति आदर होना, अछूतों या निम्नवर्गीय लोगों से घृणा न करना आदि में स्पष्ट रूप से सहानुभूति के चिह्न विद्यमान हैं। भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि में मानव मात्र की कल्याण – भावना निहित है।

वास्तव में परोपकार के समान न कोई दूसरा धर्म है और न पुण्य। पंचतंत्र में भी कहा गया है कि – ” यस्मिन जीवति जीवंति वहवः सोऽत्र जीवतु, वयांसि किम् कुर्वंति चम्त्वास्वोद पूरणम्। ” अर्थात ” जो व्यक्ति अपने जीवन से दूसरे के जीवन को जीने योग्य बनाता है, वही बहुत दिन जीवित रहे। नहीं तो कौए भी बहुत दिन जी लेते हैं और ज्यों-त्यों अपना पेट भर लेते हैं।” जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीते हैं, उनके अपने जीवन में सौ गुना प्रसन्नता और उत्साह का संचार होता है। इससे उसका अपना चरित्र महान बनता है।

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20. नर हो, न निराश करो मन को

संकेत बिंदु – मननशील प्राणी, मानसिक बल पर विश्वास, आशावान दृष्टिकोण
मनुष्य एक मननशील प्राणी है। अपने मानसिक बल से वह असंभव से असंभव कार्य भी कर लेता है। एक कथन है कि “जहाँ चाह है वहाँ राह है” मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने का कार्य उसकी इच्छा-शक्ति अथवा मन ही संपन्न कराता है। मनुष्य जो भी उद्योग, निरंतर उन्नति करने का प्रयास अथवा कार्य करता है, सब मन के बल पर ही करता है। यदि मनुष्य का मन क्रियाशील नहीं रहता अथवा ‘मन मर जाता है ‘ तो उसके लिए संसार के समस्त आकर्षण तुच्छ अथवा अर्थहीन हो जाते हैं। उसे चारों ओर से निराशा घेर लेती है। वह जीवित होते हुए भी मरणासन्न हो जाता है।

कवि का यह कथन भी इसी ओर संकेत करता है कि “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” अर्थात जब तक मनुष्य को अपने मानसिक बल पर विश्वास है तब तक वह संसार को भी जीत लेता है, किंतु ‘मन मर’ जाने पर व्यक्ति स्वयं ही पराजित हो जाता है। इसी मानसिक बल के आधार पर वानरों की सेना के साथ श्रीराम ने रावण को पराजित कर दिया था। नेपोलियन ने आल्पस के अजेय पर्वत को पार कर लिया तथा गुरु गोविंद सिंह जी ने सवा-सवा लाख से एक को लड़ाया था। यदि मनुष्य मानसिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है तो वह कोई भी कार्य नहीं कर पाता। इसलिए कवि ने भी कहा है- “हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम।, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।। ”

अपने आराध्य के प्रति आस्था मनुष्य के मानसिक बल में वृद्धि करती है। जब वह प्रभु का नाम लेकर मन से कोई कार्य करता है तो कोई कारण नहीं कि उसे उस कार्य में सफलता न मिले। यह अवश्य हो सकता है कि उसे फल प्राप्ति के लिए संघर्षरत रहना पड़े, किंतु उसे सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। इस परिवर्तनशील संसार में सुख और दुख चक्र के समान घूमते रहते हैं। अतः जब दुख के बाद सुख आता ही है तो दुख से भी नहीं घबराना चाहिए। बुद्धिमान मनुष्य को जीवन के प्रति आशावान दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिससे वह अपना और अपने राष्ट्र का कल्याण कर सके। हिम्मत हारने से कुछ बनता नहीं, बिगड़ता ही है। दूसरी बात यह है कि दुख और सुख, सफलता और असफलता सब भगवान की दी हुई वस्तुएँ हैं। यदि उसके दिए दुख से आप घबरा जाएँगे तो वह आपको सुख नहीं देगा।

21. आतंकवाद और भारत
अथवा
आतंकवाद – एक ज्वलंत समस्या

संकेत बिंदु – समस्याओं का चक्रव्यूह, देशों में आतंकवाद की स्थिति, कानून की सुदृढ़ता
आज यदि हम भारत की विभिन्न समस्याओं पर विचार करें तो हमें लगता है कि हमारा देश अनेक समस्याओं के चक्रव्यूह में घिरा हुआ है। एक ओर भुखमरी, दूसरी ओर बेरोज़गारी, कहीं अकाल तो कहीं बाढ़ का प्रकोप है। इन सबसे भयानक समस्या आतंकवाद की समस्या है, जो देश रूपी वट-वृक्ष को दीमक के समान चाट-चाटकर खोखला कर रही है। आतंकवाद से तात्पर्य है – ” देश में आतंक की स्थिति उत्पन्न करना “इसके लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर हिंसात्मक उत्पात मचाए जाते हैं जिससे सरकार उनमें उलझकर सामाजिक जीवन के विकास के लिए कोई कार्य न कर सके। कुछ विदेशी शक्तियाँ भारत की विकास दर को देखकर जलने लगी थीं।

आतंकवादी रेल पटरियाँ उखाड़कर, बस यात्रियों को मारकर, बैंकों को लूटकर, सार्वजनिक स्थलों पर बम फेंककर आदि कार्यों द्वारा आतंक फैलाने में सफल होते हैं। धार्मिक कट्टरता आतंकवादी गतिविधियों को अधिक प्रोत्साहित कर रही है। लोग धर्म के नाम पर एक-दूसरे का गला काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। धार्मिक उन्माद अपने विरोधी धर्मावलंबी को सहन नहीं कर पाता। धर्म के नाम पर अनेक दंगे भड़क उठते हैं। भारत सरकार को आतंकवादी गतिविधियों को कुचलने के लिए कठोर पग उठाना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम कानून एवं व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना चाहिए। जहाँ-जहाँ अंतर्राष्ट्रीय सीमा हमारे देश की सीमा को छू रही है, उन समस्त क्षेत्रों की पूरी नाकाबंदी की जानी चाहिए, जिससे आतंकवादियों को सीमा पार से हथियार, गोला-बारूद तथा प्रशिक्षण न प्राप्त हो सके।

पथ – भ्रष्ट युवक-युवतियों को समुचित प्रशिक्षण देकर उनके लिए रोज़गार के पर्याप्त अवसर जुटाए जाने चाहिए। यदि युवा वर्ग को व्यस्त रखने तथा उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप कार्य दे दिया जाए तो वे पथ – भ्रष्ट नहीं होंगे। इससे आतंकवादियों को अपना षड्यंत्र पूरा करने के लिए जन-शक्ति नहीं मिलेगी तथा वे स्वयं ही समाप्त हो जाएँगे। जनता को भी सरकार से सहयोग करना चाहिए। कहीं भी किसी संदिग्ध व्यक्ति अथवा वस्तु को देखते ही उसकी सूचना निकट के पुलिस थाने में देनी चाहिए।

यदि आतंकवाद की समस्या का गंभीरता से समाधान न किया गया तो देश का अस्तित्व खतरे में पड़ा जाएगा। सभी लड़कर समाप्त हो जाएँगे। हमें संगठित होकर उसकी ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए, जिससे उनका मनोबल समाप्त हो जाए तथा वे जान सकें कि उन्होंने गलत मार्ग अपनाया है। वे आत्मग्लानि के वशीभूत होकर जब अपने किए पर पश्चात्ताप करेंगे तभी उन्हें देश की मुख्य धारा में सम्मिलित किया जा सकता है। अतः आतंकवाद की समस्या का समाधान जनता एवं सरकार दोनों के मिले-जुले प्रयासों से ही संभव हो सकता है।

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22. श्रम का महत्व अथवा परिश्रम सफलता की कुंजी है

संकेत बिंदु – श्रम से प्रगति, आलस्य अभिशाप, उन्नति में सहायक
श्रम का अर्थ है – मेहनत। श्रम ही मनुष्य जीवन की गाड़ी को खींचता है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी जीव बिना श्रम के जीवित नहीं रह सकते। फिर मनुष्य तो अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है। संसार की उन्नति प्रगति मनुष्य के श्रम पर निर्भर करती है। परिश्रम के अभाव में जीवन की गाड़ी चल ही नहीं सकती। यहाँ तक कि स्वयं का उठना-बैठना, खाना-पीना भी संभव नहीं हो सकता फिर उन्नति और विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

आज संसार में जो राष्ट्र सर्वाधिक उन्नत हैं, वे परिश्रम के बल पर ही इस उन्नत दशा को प्राप्त हुए हैं। जिस देश के लोग परिश्रमहीन एवं साहसहीन होंगे, वह प्रगति नहीं कर सकता। परिश्रमी मिट्टी से सोना बना लेते हैं। परिश्रम का अभिप्राय ऐसे परिश्रम से है जिससे निर्माण हो, रचना हो, जिस परिश्रम से निर्माण नहीं होता, उसका कुछ अर्थ नहीं। जो व्यक्ति आलस्य का जीवन बिताते हैं, वे कभी उन्नति नहीं कर सकते। आलस्य जीवन को अभिशापमय बना देता है।

कुछ लोग श्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्व देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य में जो है वह अवश्य मिलेगा, अतः दौड़-धूप करना व्यर्थ है। यह तर्क निराधार है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और असफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी प्रकार भी उचित नहीं। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकता है। परिश्रमी व्यक्ति स्वावलंबी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान और सेवा भाव से युक्त होता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी, परिवार की, जाति की तथा राष्ट्र की उन्नति में सहयोग दे सकता है। अतः मनुष्य को परिश्रम करने की प्रवृत्ति विद्यार्थी जीवन में ग्रहण करनी चाहिए।

23. सदाचार

संकेत बिंदु – सर्वोत्तम गुण, सदाचार की महिमा, सामाजिक उन्नति का स्त्रोत
मानव-जीवन का सर्वोत्तम गुण सदाचार ही है। यह मनुष्य को उच्च एवं वंदनीय बनाता है। इसके अभाव में मनुष्य समाज में सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता। किसी विद्वान का कथन है- “धन नष्ट हो गया तो कुछ नष्ट नहीं हुआ, स्वास्थ्यं नष्ट हो गया तो कुछ नष्ट हुआ, लेकिन चरित्र नष्ट हो गया तो सब कुछ नष्ट हो गया।” सदाचार के समक्ष धन तुच्छ हैं। वास्तव में सदाचार ही सर्वश्रेष्ठ मानव धर्म है। सदाचार मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र है। सदाचारी में आत्म-विश्वास होता है। वह निर्भीक होता है। वह असफल होने पर भी साहस नहीं छोड़ता है।

सदाचारी असत्य तथा बेईमानी से दूर रहता है। भावनाओं से पवित्र होता है। वह जानता है कि दूसरों को पीड़ा पहुँचाना सदाचार की राह से भटकना है। सभी दार्शनिक तथा धर्म गुरुओं ने सदाचार की महिमा का प्रतिपादन किया है। सदाचारी व्यक्ति के सत्संग में सद्गुणों का विकास होता है। मार्ग से भटका हुआ व्यक्ति भी सद्मार्ग पर चलने लगता है। सफल एवं सार्थक जीवन के लिए सदाचारी होना आवश्यक है। उत्तम चरित्र का प्रभाव व्यापक एवं अचूक होता है। चरित्र का ह्रास होने से मानव को अनेक दुखों और कष्टों का सामना करना पड़ता है। समाज के लोग उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। सदाचारी का तो केवल भौतिक शरीर ही नष्ट होता है। उसकी यश ज्योति संसार में बिखरी रहती है। सदाचार व्यक्तिगत, राष्ट्रीय तथा सामाजिक उन्नति का स्रोत है। सदाचारी व्यक्तियों के चरण चिह्नों पर युग चलता है।

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24. दीपावली

संकेत बिंदु – श्रम की सार्थकता, पावन स्मृति, बधाई एवं खुशियों का त्योहार
भारतीय त्योहारों में दीपावली का विशेष स्थान है। दीपावली शब्द का अर्थ है- दीपों की पंक्ति या माला। इस पर्व के दिन लोग रात को अपनी प्रसन्नता प्रकट करने के लिए दीपों की पंक्तियाँ जलाते हैं और प्रकाश करते हैं। नगर और गाँव दीप – पंक्तियों से जगमगाने लगते हैं।

रात दिन के रूप में बदल जाती है। इसी कारण इसका नाम दीपावली पड़ा। भगवान राम लंकापति रावण को मारकर तथा वनवास के चौदह वर्ष समाप्त कर अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने उनके आगमन पर हर्षोल्लास प्रकट किया और उनके स्वागत में रात को दीपक जलाए। उस दिन की पावन स्मृति में यह दिन बड़े समारोह के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम की स्मृति ताज़ी हो जाती है। दीपावली भारत का सबसे अधिक प्रसन्नता और मनोरंजन का द्योतक त्योहार है।

बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में खुशी की लहर दौड़ उठती है। आतिशबाज़ी और पटाखों की ध्वनि से सारा आकाश गूँज उठता है। इसके साथ ही खूब मिठाई उड़ती है। सभी राग-रंग में मस्त हो जाते हैं। दीवाली से कई दिन पूर्व तैयारी आरंभ हो जाती है। लोग शरद् ऋतु के आरंभ में ही घरों की लिपाई-पुताई करवाते हैं तथा कमरों को चित्रों से अलंकृत करते हैं। धन त्रयोदशी के दिन पुराने बर्तनों को लोग बेचते हैं और नए बर्तन खरीदते हैं। बर्तनों की दुकानें, बर्तनों से अनोखी ही शोभा देती हैं। चतुर्दशी को लोग घरों का कूड़ा- कर्कट बाहर निकालते हैं।

कार्तिक मास की अमावस्या को दीपमाला का दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने इष्ट- बंधुओं तथा मित्रों को बधाई देते हैं और नूतन वर्ष में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। बालक-बालिकाएँ नव – वस्त्र धारण कर मिठाई बाँटते हैं। रात को आतिशबाजी चलाते हैं। बहुत से लोग रात को लक्ष्मी की पूजा करते हैं। कहीं दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। दीपावली हमारा धार्मिक त्योहार है। इसे यथोचित रीति से मनाना चाहिए। इस दिन विद्वान लोग व्याख्यान देकर जन साधारण को शुभ मार्ग पर चला सकते हैं।

25. क्रिसमस

संकेत बिंदु – बाइबिल की कथा, नामकरण, महान पर्व के रूप में
विश्वभर में ईसा मसीह का जन्मदिन ‘क्रिसमस’ नाम से जाना जाता है। दीन-दुखियों के दर्द को समझने वाले इस महान संत ईसा मसीह का जन्म पच्चीस दिसंबर को मनाया जाता है। ‘बाइबिल’ के अनुसार नाज़रेथ नगर (फिलिस्तीन) के निवासियों में यूसुफ नामक व्यक्ति थे, जिनके साथ मरियम नामक कन्या की मँगनी (सगाई हुई थी। एक दिन मरियम को स्वर्ग दूत ने दर्शन देकर कहा, “आप पर प्रभु की कृपा है। आप गर्भवती होंगी, पुत्र रत्न को जन्म देंगी तथा नवजात शिशु का नाम ‘ईसा’ रखेंगी। वे महान होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलाएँगे।”)

ईसा के जन्म के समय आकाश में एक तारा उदित हुआ। तीन ज्योतिषयों ने उस तारे को देखा और देखते-देखते वे येरुसलम पहुँच गए। वे लोगों से पूछ रहे थे कि यहूदियों के नवजात राजा कहाँ हैं ? हम उन्हें प्रणाम करना चाहते हैं। वे खोजते खोजते बेथेलहेम के अस्तबल में पहुँचे। वहाँ

उन्होंने बालक तथा मरियम को प्रणाम किया। जन्म के ठीक आठवें दिन उस बालक का नाम जीसस रखा गया। वह दिव्य बालक था। ईसा मसीह के जीवन के अनेक वर्ष पर्यटन, एकांतवास एवं चिंतन-मनन में बीते। अनेक वर्षों की अथक साधना के बाद ईसा अपनी पवित्र आत्मा के साथ गलीलिया लौटे। उनका यश सुगंध की तरह सारे प्रदेश में फैल गया। वे सभागारों में शिक्षाप्रद एवं ज्ञानवर्धक उद्बोधन देने लगे। उन्होंने अनेक दुखियों, रोगियों एवं पीड़ितों का दुख दूर किया, अज्ञानियों को ज्ञान दिया और अंधों को दृष्टि दी। फलतः लोगों को पूरा विश्वास हो गया कि ईसा प्रभु के ही दूत हैं। ईसा ने अपने समय में व्याप्त अनाचारों एवं पापाचारों से समाज को त्राण दिलाया और गिरजाघरों को पवित्रता प्रदान कराई। ईसा के बढ़ते प्रभाव से तत्कालीन राजा हेरोद चिंतित हो उठे।

उन्होंने ईर्ष्यावश ईसा को बंदी बनाकर यहूदी महासभा में अपराधी के रूप में उपस्थित कराया। सभाध्यक्ष ईसा को निर्दोष मानकर उन्हें बंधनमुक्त करना चाहते थे। इस पर सभा के पुरोहितों और सदस्यों ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा, ‘इसे क्रूस दीजिए, इसे क्रूस दीजिए।’ सभाध्यक्ष के सामने कोई विकल्प न था। उसने ईसा को सैनिकों के हवाले कर दिया। ईसा मसीह को क्रूस का दंड दिया गया – सिर पर काँटों का किरीट और हाथ-पाँव में कीलें। उनके अंगों से खून बहने लगा। ईसा को इस दशा में देखकर जनता रो रही थी। ईसा ने लोगों को सांत्वना दी। शुक्रवार को ईसा मसीह ने प्राण त्याग किया। विश्वभर में ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार ‘क्रिसमस’ है। प्रभु ईसा के भूमंडल में अवतरित होने से उनके अनुयायियों को शांति मिली। ‘क्रिसमस’ एक महान पर्व है।

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26. वसंत ऋतु

संकेत बिंदु – हर्ष उल्लास, जीवन का संचार, वरदान का लाभ
भारत अनेक ऋतुओं का देश है। यहाँ गरमी – सरदी, बरसात – पतझड़, वसंत आदि छह ऋतुओं का आगमन होता रहता है। इनमें वसंत सबकी प्रिय ऋतु है जिसके आगमन पर सभी प्राणी प्रकृति सहित हर्ष और उल्लास से झूम उठते हैं। इसलिए वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। इस समय ऋतु अत्यंत सुहावनी होती है। सरदी का अंत और गर्मी का आरंभ हो रहा होता है। सरदी से कोई ठिठुरता नहीं और गरमी किसी का बदन नहीं जाती। हर एक व्यक्ति बाहर घूमने-फिरने का इच्छुक होता है। यह इस मीठी ऋतु की विशेषता है।

सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों में नव-जीवन का संचार हो जाता है। वृक्ष नए-नए पत्तों से लद जाते हैं। फूलों का सौंदर्य तथा हरियाली की छटा मन को मुग्ध कर देती है। आमों के वृक्षों पर बौर आ जाता है तथा कोयल भी मीठी कू-कू करती है। खेतों में नई फ़सल पकने लग जाती है। सरसों के खेतों में पीले-पीले फूल वसंत के आगमन पर झूल – झूलकर हर्ष व्यक्त करते हैं आकाश में पक्षी किलकारियाँ भरते ऋतुराज का अभिनंदन करते हैं। वसंत पंचमी को ऋतुराज के स्वागत के लिए उत्सव होता है। इस दिन लोग नाच-गाकर, खेल – कूदकर तथा झूला झूलकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। घर-घर में वसंती हलवा, चावल और केसरिया खीर बनती है।

लोग पीले वस्त्र पहनते हैं तथा बच्चे पीले पतंग उड़ाते हैं। वसंत पंचमी के दिन धर्मवीर हकीकत राय को भी याद किया जाता है। हकीकत राय को आज के दिन अपना धर्म न छोड़ने के कारण मौत के घाट उतार दिया गया था। उस वीर बालक की याद में स्थान-स्थान पर मेले लगते हैं तथा उसको श्रद्धांजलियाँ अर्पित की जाती हैं। हमें इस ऋतु में अपना स्वास्थ्य बनाना चाहिए। प्रातः उठकर बाहर घूमने जाएँ, ठंडी-ठंडी वायु में घूमें और प्राकृतिक सौंदर्य का निरीक्षण करें। वसंत ऋतु एक ईश्वरीय वरदान है और हमें इस वरदान का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए।

27. कोरोना वायरस : एक महामारी

संकेत बिंदु – कोरोना वायरस क्या है ?, कोरोना वायरस कैसे फैलता है ?, कोरोना वायरस के लक्षण क्या हैं?, कोरोना वायरस का क्या इलाज है ?
“कोरोना” का अर्थ ‘मुकुट जैसी आकृति’ होती है। इस अदृश्य वायरस को सूक्षदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है। इसके वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए काँटे जैसे ढाँचों से सूक्ष्मदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखाई देता है, इसी आधार पर इसका नाम रखा गया था। दूसरे अर्थ को समझने के लिए सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तो चंद्रमा के चारों और किरणें निकलती प्रतीत होती हैं उसको भी ‘कोरोना’ कहते हैं।

कोरोना वायरस का प्रकोप चीन के वुहान में दिसंबर 2019 के मध्य में शुरू हुआ था और इसी कारण से इसका कोविड – 19 नामकरण किया गया। इसके प्रसार होते ही से ज़्यादातर मौतें चीन में हुई हैं लेकिन दुनिया भर में इससे कई लाख लोग प्रभावित होकर जान गँवा चुके हैं। चीन ने इस वायरस से बचने के लिए इमरजेंसी कदम उठाया जिसमें कई शहरों को लोकडाउन कर दिया गया था।

इसकी रोकथाम के लिए सार्वजनिक परिवहन को रोक दिया गया था और सार्वजनिक जगहों और पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया था। केवल चीन ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश वायरस से बचने के लिए लोकडाउन लगाने जैसे कदम उठाए थे। कोरोना वायरस मुख्य तौर पर जानवरों के बीच फैलता है लेकिन बाद में इसने मानवों को भी संक्रमित कर दिया। कोरोना वायरस के जो लक्षण हैं, उनमें 90 फीसदी मामलों में बुखार, 80 फीसदी मामलों में थकान और सूखी खाँसी, 20 फीसदी मामलों में साँस लेने में परेशानी देखी गई है। दोनों फेफड़ों में इससे परेशानी देखी गई। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को निमोनिया की भी शिकायत हुई है।

इस बात को माना जा रहा है कि इस वायरस की शुरुआत वुहान शहर के सीफूड बाज़ार में हुई थी। जिन लोगों में शुरुआत में यह पाया गया, वे लोग उस थोक बाजार में काम करते थे। इसके फैलने का जरिया अभी पूरी तरह साफ़ नहीं है। लेकिन इसके एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलने के प्रमाण हैं। इसके साथ ऐसा माना जा रहा है कि इससे प्रभावित एक व्यक्ति कम से कम तीन से चार स्वस्थ लोगों तक वायरस को फैला सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम चीन में इसकी उत्पत्ति को जाँच कर रही है।

वर्तमान में कोरोना वायरस से बचने के लिए अनेक वैक्सीन मौजूद हैं। विश्व के कई देशों में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है। आप इससे बचने के लिए टीकाकरण करवा सकते हैं। टीकाकरण के दौरान भी अभी आप अपने हाथों को साबुन और पानी के साथ कम से कम 20 सेकेंड तक धोएँ। दो गज की सामाजिक दूरी बनाए रखें बिना धुले हुए हाथों से अपनी आँखों, नाक या मुँह को न स्पर्श करें। जो लोग बीमार हैं, उनके ज़्यादा नजदीक न जाएँ, फेस मास्क लगाना न भूलें। टीकाकरण के लिए आप अपनी बारी का इंतजार कर लाभ उठा सकते हैं।

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28. कमरतोड़ महँगाई

संकेत बिंदु – महँगाई के मुख्य कारण, भारत में महँगाई, महँगाई की रोकथाम के उपाय।
आमतौर पर महँगाई का प्रमुख कारण उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव तथा मुद्रास्फीति की दर है। जीवन के लिए आवश्यक दैनिक वस्तुओं की कमी कई बातों पर निर्भर करती है। इनमें, जैसे- अधिक वर्षा, हिमपात, अल्पवर्षा, अकाल, तूफान, फसलों की रोगग्रस्तता, प्रतिकूल मौसम, ओले, अनावृष्टि आदि। इसके अलावा स्वार्थी मानव द्वारा की गई गलत हरकतों द्वारा भी दैनिक उपयोगी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है और फिर उन वस्तुओं को अधिक कीमत वसूल करके बेचा जाता है। इस प्रकार के अनर्गल काम आमतौर पर थोक व्यापारियों द्वारा किए जाते हैं। वे किसी वस्तु विशेष की जमाखोरी करके आकस्मिक अभाव पैदा करते हैं और फिर उस वस्तु को जरूरतमंद के हाथों बेचकर मनमाने दाम वसूल करते हैं।

यही कारण है कि भारत में महँगाई बढ़ जाती है और फिर अचानक घट जाती है। प्राइवेट सेक्टर के उत्पादनों की कीमतों पर प्रतिबंध लगाने तथा लाभ की सीमा तय करने में सरकार असमर्थ है। देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है जिसका कारण जमाखोर तथा मुनाफाखोर हैं। वेतन में हुई भारी वृद्धि का लाभ उठाकर उत्पादकों ने सभी प्रकार के उत्पादों की कीमतें काफी बढ़ा दीं। महँगाई भारत में हीं नहीं वरन पूरे विश्व में गंभीर समस्या के रूप मे सामने आई है। समय के साथ महँगाई और भ्रष्टाचार के कारण हमारे देश की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब गरीबी।

उपभोक्ता और सरकार के बीच अच्छे तालमेल से महँगाई पर काबू पाया जा सकता है। महँगाई बढते ही सरकार देश मे ब्याज दर बढ़ा देती है। सरकार द्वारा तय की हुई राशि का आम आदमी तक पहुँचना बेहद जरूरी है। इससे गरीबी में भी गिरावट आएगी और लोगों के जीने के स्तर में भी सुधार आएगा। समय – समय पर यह जाँच करना ज़रूरी है कि कोई व्यापारी या फिर कोई अन्य व्यक्ति कालाबाज़ारी या अधिक मुनाफाखोरी के काम में तल्लीन तो नहीं है। सरकार द्वारा सर्वेक्षण करना ज़रूरी है कि बाज़ार मे किसी वस्तु का दाम कितना है, यह तय मानक दरों से अधिक तो नहीं है। मूल सुविधाओं और अन्न के दाम समय-समय पर देखने होगे क्योंकि मनुष्य के जीवन के लिए अन्न बेहद ज़रूरी है।

29. परिश्रम सफलता की कुंजी है

संकेत बिंदु – परिश्रम का महत्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल।
संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथैः’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी- भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है। असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं।

कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं। जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है- जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बनकर उपस्थित होगी।

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30. पशु न बोलने से और मनुष्य बोलने से कष्ट उठाता है

संकेत बिंदु – वाणी की शक्ति, दोषपूर्ण वाचालता, व्यर्थ बोलने का दुष्परिणाम।
मनुष्य को ईश्वर की ओर से अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इनमें वाणी अथवा वाक् शक्ति का गुण सबसे महत्वपूर्ण है। जो व्यक्ति वाणी का सदुपयोग करता है, उसके लिए तो यह वरदान है और जिसकी जीभ कतरनी के समान निरंतर चलती रहती है, उसके लिए वाणी का गुण अभिशाप भी बन जाता है। भाव यह है कि वाचालता दोष है। पशु के पास वाणी की शक्ति नहीं, इसी कारण जीवन भर उसे दूसरों के अधीन रहकर कष्ट उठाना पड़ता है। वह सुख-दुख का अनुभव तो करता है पर उसे व्यक्त नहीं कर सकता। उसके पास वाणी का गुण होता तो उसकी दशा कभी दयनीय न बनती। कभी-कभी पशु का सद्व्यवहार भी मनुष्य को भ्राँति में डाल देता है।

अनेक कहानियाँ ऐसी हैं जिनके अध्ययन से पता चलता है कि पशुओं ने मनुष्य जाति के लिए अनेक बार अपने बलिदान और त्याग का परिचय दिया है पर वाक् शक्ति के अभाव के कारण उसे मनुष्य के द्वारा निर्मम मृत्यु का भी सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत मनुष्य अपनी वाणी के दुरुपयोग के कारण अनेक बार कष्ट उठाता है। रहीम ने अपने दोहे में व्यक्त किया है कि जीभ तो अपनी मनचाही बात कहकर मुँह में छिप जाती है पर जूतियों का सामना करना पड़ता है बेचारे सिर को।

अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। इस संसार में बहुत-से झगड़ों का कारण वाणी का दुरुपयोग है। एक नेता के मुख से निकली हुई बात सारे देश को युद्ध की ज्वाला में झोंक सकती है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि पशु न बोलने से कष्ट उठाता है और मनुष्य बोलने से। कोई भी बात कहने से पहले उसके परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए।

31. कारज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर

संकेत बिंदु – धैर्य और इच्छा, शांत मन की उपयोगिता, प्रतीक्षा और उचित फल की प्राप्ति।
जिसके पास धैर्य है, वह जो इच्छा करता है, प्राप्त कर लेता है। प्रकृति हमें धीरज धारण करने की सीख देती है। धैर्य जीवन की लक्ष्य प्राप्ति का द्वार खोलता है। जो लोग ‘जल्दी करो, जल्दी करो’ की रट लगाते हैं, वे वास्तव में ‘अधीर मन, गति कम’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। सफलता और सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। शांत मन से किसी कार्य को करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। बचपन के बाद जवानी धीरे-धीरे आती है। संसार के सभी कार्य धीरे-धीरे संपन्न होते हैं। यदि कोई रोगी डॉक्टर से दवाई लेने के तुरंत पश्चात पूर्णतया स्वस्थ होने की कामना करता है, तो यह उसकी नितांत मूर्खता है। वृक्ष को कितना भी पानी दो, परंतु फल प्राप्ति तो समय पर ही होगी। संसार के सभी महत्वपूर्ण विकास कार्य धीरे-धीरे अपने समय पर ही होते हैं। अतः हमें अधीर होने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने कार्य में संलग्न होना चाहिए।

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32. दूर के ढोल सुहावने होते हैं

संकेत बिंदु – दूर के रिश्ते-नाते, दूर से प्राकृतिक सुंदरता, निकट से रिश्तों की कटुता।
इस उक्ति का अर्थ है कि दूर के रिश्ते-नाते बड़े अच्छे लगते हैं। जो संबंधी एवं मित्रगण हमसे दूर रहते हैं, वे पत्रों के द्वारा हमारे प्रति कितना अगाध स्नेह प्रकट करते हैं। उनके पत्रों से पता चलता है कि वे हमारे पहुँचने पर हमारा अत्यधिक स्वागत करेंगे। हमारी देखभाल तथा हमारे आदर-सत्कार में कुछ कसर न उठा रखेंगे। लेकिन जब उनके पास पहुँचते हैं तो उनका दूसरा ही रूप सामने आने लगता है। उनके व्यवहार में यह चरितार्थ हो जाता है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। दूर बजने वाले ढोल की आवाज़ भी तो कानों को मधुर लगती है। पर निकट पहुँचते ही उसकी ध्वनि कानों को कटु लगने लगती है। दूर से झाड़-झंखाड़ भी सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है पर निकट जाने पर पाँवों के छलनी हो जाने का डर उत्पन्न हो जाता है। ठीक ही कहा है – दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

33. लोभ पाप का मूल है

संकेत बिंदु – लोभ, कारण, अपराधों का जन्मदाता, अनैतिकता का कारण, इच्छाओं पर नियंत्रण न होना।
संस्कृत के किसी नीतिकार का कथन है कि लोभ पाप का मूल है। मन का लोभ ही मनुष्य को चोरी के लिए प्रेरित करता है। लोभ अनेक अपराधों को जन्म देता है। लोभ अत्याचार, अनाचार और अनैतिकता का कारण बनता है। महमूद गज़नवी जैसे शासकों ने धन के लोभ में आकर मनमाने अत्याचार किए। औरंगज़ेब ने अपने तीनों भाइयों का वध कर दिया और पिता को बंदी बना लिया। जर, जोरू तथा ज़मीन के झगड़े भी प्राय: लोभ के कारण होते हैं।

लोभी व्यक्ति का हृदय सब प्रकार की बुराइयों का अड्डा होता है। महात्मा बुद्ध ने कहा है कि इच्छाओं का लोभ ही चिंताओं का मूल कारण है। लालची व्यक्ति बहुत कुछ अपने पास रखकर भी कभी संतुष्ट नहीं होता। उसकी दशा तो उस मूर्ख लालची के समान हो जाती है जो मुर्गी का पेट फाड़कर सारे अंडे निकाल लेना चाहता है। लोभी व्यक्ति अंत में पछताता है। लोभी किसी पर उपकार नहीं कर सकता। वह तो सबका अपकार ही करता है। इसलिए अगर कोई पाप से बचना चाहता है तो वह लोभ से बचे।

34. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं

संकेत बिंदु – पराधीनता का दुख और अभिशाप, पीड़ा और कुंठा।
‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं’ उक्ति का अर्थ है कि पराधीन व्यक्ति सपने में भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता। पराधीन और परावलंबी के लिए सुख बना ही नहीं। पराधीनता एक प्रकार का अभिशाप है। मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक पराधीनता की अवस्था में छटपटाने लगते हैं। पराधीन हमेशा शोषण की चक्की में पिसता रहता है। उसका स्वामी उसके प्रति जैसा भी चाहें अच्छा-बुरा व्यवहार कर सकता है। पराधीन व्यक्ति अथवा जाति अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित नहीं रख सकते। किसी भी व्यक्ति, जाति अथवा देश की पराधीनता की कहानी दुख एवं पीड़ा की कहानी है। स्वतंत्र व्यक्ति दरिद्रता एवं अभाव में भी जिस सुख का अनुभव कर सकता है, पराधीन व्यक्ति उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता। अतः ठीक ही कहा गया है – ‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।’

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35. पर उपदेश कुशल बहुतेरे

संकेत बिंदु – पर उपदेश का प्रभाव, भ्रष्टाचार और बेईमान लोगों की करनी कथनी में अंतर, अनुशासन की आवश्यकता।
दूसरों को उपदेश देना अर्थात सब प्रकार से आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देना सरल है। जैसे कहना सरल तथा करना कठिन है, उसी प्रकार स्वयं अच्छे पथ पर चलने की अपेक्षा दूसरों को अच्छे काम करने का संदेश देना सरल है। जो व्यक्ति दूसरों को उपदेश देता है, वह स्वयं भी उन उपदेशों का पालन कर रहा है, यह ज़रूरी नहीं। हर व्यापारी, अधिकारी तथा नेता अपने नौकरों, कर्मचारियों तथा जनता को ईमानदारी, सच्चाई तथा कर्मठता का उपदेश देता है जबकि वह स्वयं भ्रष्टाचार के पथ पर बढ़ता रहता है। नेता मंच पर आकर कितनी सारगर्भित बातें कहते हैं, पर उनका आचरण हमेशा उनकी बातों के विपरीत होता है। माता-पिता तथा गुरुजन बच्चों को नियंत्रण में रहने का उपदेश देते हैं – पर वे यह भूल जाते हैं कि उनका अपना जीवन ही अनुशासनबद्ध एवं नियंत्रित नहीं है। इसीलिए जो उपदेश हम दूसरों को देते हैं, हमें पहले स्वयं उन्हें जीवन में लाना चाहिए।

36. जैसा करोगे, वैसा भरोगे

संकेत बिंदु – कर्मों का फल, कुकर्मों का बुरा फल, मानवता की सच्ची पहचान, शुभ कर्मों का महत्व।
उपर्युक्त उक्ति का अर्थ है कि मनुष्य अपने जीवन में जैसा कर्म करता है, उसी के अनुरूप ही उसे फल मिलता है। मनुष्य जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। सुकर्मों का फल अच्छा तथा कुकर्मों का फल बुरा होता है। दूसरों को पीड़ित करने वाला व्यक्ति एक दिन स्वयं पीड़ा के सागर में डूब जाता है। जो दूसरों का भला करता है, ईश्वर उसका भला करता है। कहा भी है, ‘कर भला हो भला’। पुण्य से परिपूर्ण कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। जो दूसरों का शोषण करता है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकता। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली बात प्रसिद्ध है। मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्मों में रुचि लेनी चाहिए। दूसरों का हित करना तथा उन्हें संकट से मुक्त करने का प्रयास मानवता की पहचान है। मानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति मानव तथा दानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति दानव कहलाता है। मानवता की पहचान मनुष्य के शुभ कर्म हैं।

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37. समय का महत्व
अथवा
समय सबसे बड़ा धन है।

संकेत बिंदु – जीवन की क्षणिकता, समय का महत्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह, उपसंहार। दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए। हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है।

हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत-से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें।

फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है –

“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥”

38. स्त्री शिक्षा का महत्व

संकेत बिंदु – शिक्षा का महत्व, नारी का घर और समाज में स्थान, सामाजिक कर्तव्य, गृह विज्ञान की शिक्षा।
विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
नारियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।

आज शिक्षा मानव-जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ – साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है।

सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रह कर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी होनी चाहिए।

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39. स्वास्थ्य ही जीवन है

संकेत बिंदु – स्वास्थ्य का महत्व, अस्वस्थ व्यक्ति की मानसिकता, अक्षमता, नशीले पदार्थों की अनुपयोगिता, पौष्टिक और सात्विक भोजन की आवश्यकता, भ्रमण की उपयोगिता।
जीवन का पूर्ण आनंद वही ले सकता है जो स्वस्थ है। स्वास्थ्य के अभाव में सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ व्यर्थ प्रमाणित होती हैं। तभी तो कहा है – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात शरीर ही सब धर्मों का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य जीवन है और अस्वस्थता मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता। बढ़िया से बढ़िया खाद्य पदार्थ उसे विष के समान लगता है। वस्तुतः उसमें काम करने की क्षमता ही नहीं होती।

अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए नियमितता तथा संयम की सबसे अधिक ज़रूरत है। समय पर भोजन, समय पर सोना और जागना अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण हैं। शरीर की सफ़ाई की तरफ़ भी पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है। सफ़ाई के अभाव से तथा असमय खाने-पीने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। क्रोध, भय आदि भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तो शरीर के लिए घातक साबित होता है। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए पौष्टिक एवं सात्विक भोजन भी ज़रूरी है।

स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम का भी सबसे अधिक महत्व है। व्यायाम से बढ़कर न कोई औषधि है और न कोई टॉनिक। व्यायाम से शरीर में स्फूर्ति आती है, शक्ति, उत्साह एवं उल्लास का संचार होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार विविध आसनों का प्रयोग भी बड़ा लाभकारी होता है। खेल भी स्वास्थ्य लाभ का अच्छा साधन है। इनसे मनोरंजन भी होता है और शरीर भी पुष्ट तथा चुस्त बनता है। प्रायः भ्रमण का भी विशेष लाभ है। इससे शरीर का आलस्य भागता है, काम में तत्परता बढ़ती है। जल्दी थकान का अनुभव नहीं होता।

40. मधुर वाणी

संकेत बिंदु – श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी।
वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं। सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है।

जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

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41. नारी शक्ति

संकेत बिंदु – नारी का स्वरूप, प्राचीन ग्रंथों में नारी, नारी के बिना नर नारी की सक्षमता।
नारी त्याग, तपस्या, दया, ममता, प्रेम एवं बलिदान की साक्षात मूर्ति है। नारी तो नर की जन्मदात्री है। वह भगिनी भी और पत्नी भी है। वह सभी रूपों में सुकुमार, सुंदर और कोमल दिखाई देती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नारी को पूज्य माना गया है। कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। उसके हृदय में सदैव स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है। नर की रुक्षता, कठोरता एवं उद्दंडता को नियंत्रित करने में भी नारी की महत्वपूर्ण भूमिका है। वह धात्री, जन्मदात्री और दुखहर्त्री है। नारी के बिना नर अपूर्ण है।

नारी को नर से बढ़कर कहने में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। नारी प्राचीन काल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है। नारियाँ, ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुँचे हैं। अंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बछेंद्री पाल, सानिया मिर्ज़ा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है।

42. चाँदनी रात में नौका विहार

संकेत बिंदु – ग्रीष्म ऋतु में यमुना नदी में विहार, रात्रिकालीन प्राकृतिक सुषमा, उन्माद भरा वातावरण।
ग्रीष्मावकाश में हमें पूर्णिमा के अवसर पर यमुना नदी में नौका विहार का अवसर प्राप्त हुआ। चंद्रमा की चाँदनी से आकाश शांत, तर एवं उज्ज्वल प्रतीत हो रहा था। आकाश में चमकते तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे आकाश के नेत्र हैं जो अपलक चाँदनी में डूबे पृथ्वी के सौंदर्य को देख रहे हैं। तारों से जड़े आकाश की शोभा यमुना के जल में द्विगुणित हो गई थी। इस रात – रजनी के शुभ प्रकाश में हमारी नौका धीरे-धीरे चलती हुई ऐसी लग रही थी मानो कोई सुंदर परी धीरे-धीरे चल रही हो। जब नौका नदी के मध्य में पहुँची तो चाँदनी में चमकता हुआ पुलिन आँखों से ओझल हो गया तथा यमुना के किनारे खड़े हुए वृक्षों की पंक्ति भृकुटि सी वक्र लगने लगी।

नौका के चलने से जल में उत्पन्न लहरों के कारण उसमें चंद्रमा एवं तारकवृंद ऐसे झिलमिला रहे थे मानो तरंगों की लताओं में फूल खिले हों। रजत सर्पों-सी सीधी-तिरछी नाचती हुई चाँदनी की किरणों की छाया चंचल लहरों में ऐसी प्रतीत होती थी मानो जल में आड़ी-तिरछी रजत रेखाएँ खींच दी गई हों। नौका के चलते रहने से आकाश के ओर-छोर भी हिलते हुए लगते थे। जल में तारों की छाया ऐसी प्रतिबिंबित हो रही थी मानो जल में दीपोत्सव हो रहा हो। ऐसे में हमारे एक मित्र ने मधुर राग छेड़ दिया, जिससे वातावरण और भी अधिक उन्मादित हो गया। धीरे-धीरे हम नौका को किनारे की ओर ले आए। डंडों से नौका को खेने पर जो फेन उत्पन्न हो रही थी वह भी चाँदनी के प्रभाव से मोतियों के ढेर – सी प्रतीत हो रही थी। समस्त दृश्य अत्यंत दिव्य एवं अलौकिक ही लग रहा था।

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43. राष्ट्रीय एकता

संकेत बिंदु – क्षेत्रीयता के प्रति मोह, देश की एकता के लिए घातक, राष्ट्रीय भावना का महत्व, भाषाई एकता, अनेकता में एकता।
आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है। अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है।

भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं। भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

44. बारूद के ढेर पर दुनिया

संकेत बिंदु – नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार, अस्त्र-शस्त्रों की भरमार, रासायनिक पदार्थों की अधिकता, रसायनों से जीवन को ख़तरे।
आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य ने अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के लिए इतने अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार कर लिया है कि एक दिन वे सभी उपकरण मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन सकते हैं। एक- दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए अस्त्र-शस्त्रों, परमाणु मों, रासायनिक बमों के निर्माण ने जहाँ परस्पर प्रतिद्वंद्विता पैदा की है वहीं इनका प्रयोग केवल प्रतिपक्षी दल को ही नष्ट नहीं करता अपितु प्रयोग करने वाले देश पर भी इनका प्रभाव पड़ता है। नए-नए कारखानों की स्थापना से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है।

भोपाल गैस दुर्घटना के भीषण परिणाम हम अभी भी सहन कर रहे हैं। देश में एक कोने से दूसरे कोने तक ज़मीन के अंदर पेट्रोल तथा गैस की नालियाँ बिछाईं जा रही हैं, जिनमें आग लगने से सारा देश जलकर राख हो सकता है। घर में गैस के चूल्हों से अक्सर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। पनडुब्बियों के जाल ने सागर तल को भी सुरक्षित नहीं रहने दिया है। धरती का हृदय चीर कर मेट्रो – रेल बनाई गई है। इसमें विस्फोट होने से अनेक नगर ध्वस्त हो सकते हैं। इस प्रकार आज की मानवता बारूद के एक ढेर पर बैठी है, जिसमें छोटी-सी चिंगारी लगने मात्र से भयंकर विस्फोट हो सकता है।

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45. जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता

संकेत बिंदु – समाचार पत्र का महत्व, विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ, अच्छे-बुरे समाचार।
समाचार पत्र का हमारे आधुनिक जीवन में बहुत महत्व है। देश-विदेश के क्रियाकलापों का परिचय हमें समाचार पत्र से ही प्राप्त होता है। कुछ लोग तो प्रायः अपना बिस्तर ही तभी छोड़ते हैं जब उन्हें चाय का कप और समाचार-पत्र प्राप्त हो जाता है। जिस दिन समाचार – पत्र नहीं आता उस दिन इस प्रकार के व्यक्तियों को यह प्रतीत होता है कि मानो दिन निकला ही न हो। कुछ लोग अपने घर के छज्जे आदि पर चढ़कर देखने लगते हैं कि कहीं समाचार-पत्र वाले ने समाचार-पत्र इतनी जोर से तो नहीं फेंका कि वह छज्जे पर जा गिरा हो।

वहाँ से भी जब निराशा हाथ लगती है तो वह आस-पास के घरवालों से पूछते हैं कि क्या उनका समाचार पत्र आ गया है ? यदि उनका समाचार-पत्र आ गया हो तो वे अपने समाचार-पत्र वाले को कोसने लगते हैं। उन्हें लगता है आज उनका दिन अच्छा व्यतीत नहीं होगा। उनका अपने काम पर जाने का मन भी नहीं होता। वे पुराना अखबार उठा कर पढ़ने का प्रयास करते हैं किंतु पढ़ा हुआ होने पर बोर होकर उसे फेंक देते हैं तथा समाचार-पत्र वाहक पर आक्रोश व्यक्त करने लगते हैं। कई लोग तो समाचार-पत्र के अभाव में अपनी नित्य क्रियाओं से भी मुक्त नहीं हो पाते। वास्तव में जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता वह दिन अत्यंत फीका- फीका, उत्साह रहित लगता है।

46. वर्षा ऋतु की पहली बरसात

संकेत बिंदु – गरमी की अधिकता, सभी प्राणियों की पीड़ा, वर्षा ऋतु का आगमन, वातावरण में ठंडक, प्राकृतिक सुंदरता।
गरमी का महीना था। सूर्य आग बरसा रहा था। धरती तप रही थी। पशु-पक्षी तक गरमी के कारण परेशान थे। मज़दूर, किसान, रेहड़ी-खोमचे वाले और रिक्शा चालक तो इस तपती गरमी को झेलने के लिए विवश होते हैं। पंखों, कूलरों और एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस गरमी की तपन का अनुमान नहीं हो सकता। जुलाई का महीना शुरू हुआ इस महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है। सबकी दृष्टि आकाश की ओर उठती है।

किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं। अचानक एक दिन आकाश में बादल छा गए। बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर मोर पिऊ-पिऊ मधुर आवाज़ में बोलने लगे। हवा में भी थोड़ी ठंडक आ गई। धीरे-धीरे हलकी-हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई। मैं अपने साथियों के साथ गाँव की गलियों में निकल पड़ा। साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से ‘। किसान भी खुश थे। वर्षा तेज़ हो गई थी। खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मज़ा ही कुछ और है। वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी। मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता। मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था। मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं।

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47. शक्ति अधिकार की जननी है

संकेत बिंदु-शक्ति के प्रकार, शारीरिक और मानसिक शक्तियों का संयोग, अधिकारों की प्राप्ति, सत्य और अहिंसा का बल, अनाचार का विरोध।
शक्ति का लोहा कौन नहीं मानता है ? इसी के कारण मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। प्राय: यह दो प्रकार की मानी जाती है – शारीरिक और मानसिक। दोनों का संयोग हो जाने से बड़ी से बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि अधिकार सरलता, विनम्रता और गिड़गिड़ाने से प्राप्त नहीं होते। भगवान कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे।

तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी। तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश आज़ाद हुआ था। कहावत है कि लातों भूत बातों से नहीं मानते। व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है।

48. भाषण नहीं राशन चाहिए

संकेत बिंदु – भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी – कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा।
हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातंत्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो भी नेता कुर्सी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता।

जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्ज़बाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है। अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की गरीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है।

सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

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49. हमारे पड़ोसी

संकेत बिंदु – रिश्तेदारों से बेहतर, सुख-दुख के साथी, अच्छे-बुरे स्वभाव।
अच्छे पड़ोसी तो रिश्तेदारों से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। वे हमारे सुख-दुख के भागीदार होते हैं। जीवन के हर सुख-दुख में पड़ोसी पहले आते हैं और दूर रहने वाले सगे-संबंधी तो सदा ही देर से पहुँचते हैं। आज के स्वार्थी युग में ऐसे पड़ोसी मिलना बहुत कठिन है, जो सदा कंधे से कंधा मिलाकर सुख-दुख में एक साथ चलें। हमारे पड़ोस में एक अवकाश प्राप्त अध्यापक रहते हैं।

वे सारे मुहल्ले के बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं। एक दूसरे सज्जन हैं जो सभी पड़ोसियों के छोटे-छोटे काम बड़ी प्रसन्नता से करते हैं। हमारे पड़ोस में एक प्रौढ़ महिला भी रहती हैं, जिन्हें सारे मुहल्ले वाले मौसी कह कर पुकारते हैं। यह मौसी मुहल्ले भर के लोगों की खोज-खबर रखती हैं। मौसी को सारे मुहल्ले की ही नहीं, सारे शहर की खबर रहती है। हम मौसी को चलता-फिरता अखबार कहते हैं। हमारे सारे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं। एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं और समय पड़ने पर उचित सहायता भी करते हैं।

50. सपने में चाँद की यात्रा

संकेत बिंदु – मन में विचार, सपना, चाँद पर भ्रमण, नींद का खुलना।
आज के समाचार-पत्र में पढ़ा कि भारत भी चंद्रमा पर अपना यान भेज रहा है। सारा दिन यही समाचार मेरे अंतर में घूमता रहा। सोया तो स्वप्न में लगा कि मैं चंद्रयान से चंद्रमा पर जाने वाला भारत का प्रथम नागरिक हूँ। जब मैं चंद्रमा के तल पर उतरा तो चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ की धरती चाँदी से ढकी हुई लग रही थी। तभी एकदम सफ़ेद वस्त्र पहने हुए परियों ने मुझे पकड़ लिया और चंद्रलोक के महाराज के पास गईं।

वहाँ भी सभी सफ़ेद उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए थे। उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठा दिया और डाँटने लगीं कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया ? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भागकर बाहर की ओर चला गया।

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51. मेट्रो रेल : महानगरीय जीवन का सुखद सपना

संकेत बिंदु – गति, व्यवस्थित, आराम।
मेट्रो रेल वास्तव में ही महानगरीय जीवन का एक सुखद सपना है। भाग-दौड़ की जिंदगी में भीड़-भाड़ से भरी सड़कों पर लगते हुए गतिरोधों से आज मुक्ति दिला रही है मेट्रो रेल। जहाँ किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने में घंटों लग जाते थे, वहीं मेट्रो रेल मिनटों में पहुँचा देती है। यह यातायात का तीव्रतम एवं सस्ता साधन है। यह एक सुव्यवस्थित क्रम से चलती है। इससे यात्रा सुखद एवं आरामदेह हो गई है। बसों की धक्का-मुक्की, भीड़-भाड़ से मुक्ति मिल गई है। समय पर अपने काम पर पहुँचा जा सकता है। एक निश्चित समय पर इसका आवागमन होता है, इसलिए समय की बचत भी होती है। व्यर्थ में इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। महानगर के जीवन में यातायात क्रांति लाने में मेट्रो रेल का महत्वपूर्ण योगदान है।

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