Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. मुस्लिम कैलेंडर (हिजरी) की शुरुआत हुई-
(अ) 612 ई.
(ब) 642 ई.
(स) 632 ई.
(द) 622 ई.।
उत्तर:
(द) 622 ई.।
2. पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद प्रथम खलीफा बने-
(अ) हुसैन
(ब) अली
(स) अबू बकर
(द) अब्बास।
उत्तर:
(स) अबू बकर
3. उमय्यद वंश की स्थापना की थी –
(अ) अबू बकर
(ब) उथमान
(स) अली
(द) मुआविया।
उत्तर:
(द) मुआविया।
4. उमय्यद वंश की समाप्ति के बाद किस वंश की स्थापना हुई?
(अ) सुन्नी
(ब) अब्बासी
(स) फातिमी
(द) गजनवी।
उत्तर:
(ब) अब्बासी
5. प्रथम धर्म-युद्ध लड़ा गया –
(अ) 1095 ई. में
(ब) 1195 ई. में
(स) 995 ई. में
(द) 1098-99 ई. में।
उत्तर:
(द) 1098-99 ई. में।
6. कुरान शरीफ कितने अध्यायों में विभाजित है –
(अ) 140
(ब) 120
(स) 114
(द) 214
उत्तर:
(स) 114
7. अब्द-अल-लतीफ कौन थे?
(अ) बगदाद के सम्राट
(ब) बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान
(स) प्रसिद्ध सूफी सन्त
(द) अन्तिम खलीफा।
उत्तर:
(ब) बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान
8. ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ (अल़-कानून फिल तिब) का रचयिता था-
(अ) मसूद
(ब) टालेमी
(स) अब्द-अल-लतीफ
(द) इबसिना।
उत्तर:
(द) इबसिना।
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला ………………. मक्का में रहता था और उसका वहाँ के मुख्य धर्मस्थल पर नियंत्रण था।
2. जो लोग पैगम्बर मुहम्मद के धर्म-सिद्धान्त को स्वीकार कर लेते थे, उन्हें ………………. कहा जाता था।
3. जिस वर्ष पैगम्बर मुहम्मद का आगमन ……………….. में हुआ उस वर्ष से हिजरी सन् की शुरुआत हुई।
4. पैगम्बर मुहम्मद के देहान्त के बाद उनकी सत्ता ………………. को अंतरित कर दी गई।
5. ………………. ने 661 ई. में अपने आपको अगला खलीफा घोषित कर उमय्यद वंश की स्थापना की।
उत्तर:
1. कुरैश
2. मुसलमान
3. मदीना
4. उम्मा
5. मुआविया
निम्न में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये –
1. पहले खलीफा अली ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
2. पहले उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया।
3. अरब, तुर्किस्तान के मध्य एशियायी घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे।
4. गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पनितिन ( 961 ई.) द्वारा की गई थी।
5. प्रथम धर्मयुद्ध (1098-1099 ई.) में अरब सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक और जेरूसलम पर कब्जा कर लिया।
उत्तर:
1. असत्य
2 . सत्य
3 . असत्य
4 . सत्य
5 . असत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –
1. बेदुइन |
(अ) खुदा का संदेशवाहक |
2. कुरैश |
(ब) पैगम्बर मुहम्मद का संदेशवाहक |
3. रसूल |
(स) पैगम्बर मुहम्मद का कबीला |
4. जिबरील |
(द) पहला उमय्यद खलीफा |
5. मुआविया |
(य) खानाबदोश अरबी कबीले |
उत्तर:
1. बेदुइन |
(य) खानाबदोश अरबी कबीले |
2. कुरैश |
(स) पैगम्बर मुहम्मद का कबीला |
3. रसूल |
(अ) खुदा का संदेशवाहक |
4. जिबरील |
(ब) पैगम्बर मुहम्मद का संदेशवाहक |
5. मुआविया |
(द) पहला उमय्यद खलीफा |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कबीले का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
कबीले रक्त सम्बन्धों पर संगठित समाज होते हैं।
प्रश्न 2.
इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद साहब।
प्रश्न 3.
पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का सन्देशवाहक ( रसूल ) कब घोषित किया ?
उत्तर:
612 ई. के आस-पास।
प्रश्न 4.
कुरान शब्द किससे बना है ?
उत्तर:
इकरा (पाठ करो) से।
प्रश्न 5.
इस्लामी ब्रह्माण्ड विज्ञान में सृष्टि जीवन के तीन बौद्धिक रूपों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 6.
पैगम्बर मुहम्मद के धर्म – सिद्धान्त को स्वीकार करने वाले लोग क्या कहलाये ?
उत्तर:
मुसलमान।
प्रश्न 7.
प्रथम चार खलीफाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 8.
इस्लाम का किन दो सम्प्रदायों में विभाजन हुआ?
उत्तर:
(1) सुन्नी तथा
(2) शिया।
प्रश्न 9.
अली के बाद कौन खलीफा बना और कब बना?
उत्तर:
661 ई. में अली के बाद मुआविया खलीफा बना।
प्रश्न 10.
चट्टान के गुम्बद (डोम ऑफ रॉक) का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर:
उमय्यद वंश के शासक अब्द-अल-मलिक ने।
प्रश्न 11.
अब्बासी कौन थे ?
उत्तर:
अब्बासी पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे।
प्रश्न 12.
अब्बासी वंश की सत्ता को समाप्त कर किस वंश ने अपनी सत्ता स्थापित की और कब ?
उत्तर:
945 ई. में ईरान के बुवाही शिया वंश ने।
प्रश्न 13.
फातिमी राजवंश के लोग कौन थे ?
उत्तर:
ये लोग पैगम्बर साहब की पुत्री फातिमा के वंशज थे।
प्रश्न 14.
निशापुर को किसने अपनी राजधानी बनाया था ?
उत्तर:
सल्जुक तुर्कों ने।
प्रश्न 15.
तुगरिल बेग कौन था ?
उत्तर:
तुगरिल बेग सल्जुक तुर्कों का प्रसिद्ध नेता था।
प्रश्न 16.
धर्म – युद्ध कब हुए?
उत्तर:
धर्म – युद्ध 1095 और 1291 ई. के बीच हुए।
प्रश्न 17.
धर्म – युद्ध किन – किनके बीच हुए ?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों और मुसलमानों के बीच
प्रश्न 18.
ईसाइयों तथा मुसलमानों में प्रथम धर्म – युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1098-99 ई. में।
प्रश्न 19.
जजिया कर क्या था ?
उत्तर:
गैर-मुसलमानों से लिया जाने वाला कर जजिया कर कहलाता था।
प्रश्न 20.
इस्लामी राज्य में जिन चार नई फसलों की खेती की गई, उनके नाम लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 21.
इस्लामी राज्य के चार फौजी शहरों के नाम लिखिए –
उत्तर:
- कुफा (इराक)
- बसरा (इराक)
- फुस्तात (मिस्र)
- काहिरा (मिस्र)।
प्रश्न 22.
आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों में कानून की चार शाखाएँ कौनसी थीं?
उत्तर:
प्रश्न 23.
कुरान शरीफ कितने अध्यायों (सूराओं) में विभाजित है ? यह किस भाषा में रचित है ?
उत्तर:
(1) 114 अध्यायों (सूराओं) में
(2) अरबी भाषा में।
प्रश्न 24.
सूफी मत के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) संसार का त्याग करना
(2) केवल खुदा पर भरोसा करना।
प्रश्न 25.
रुबाई से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रुबाई चार पंक्तियों वाला छन्द होता है।
प्रश्न 26.
‘शाहनामा’ का रचयिता कौन था ?
उत्तर:
फिरदौसी।
प्रश्न 27.
इस्लामी जगत के पाठकों की नैतिक शिक्षा और उनके मनोरंजन के लिए चार पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- कलीला व दिमना
- अलसिकन्दर
- सिन्दबाद
- एक हजार एक रातें।
प्रश्न 28.
मध्यकालीन मुस्लिम समाज की तस्वीर किस ग्रन्थ में मिलती है ?
उत्तर:
एक हजार एक रातें में।
प्रश्न 29.
‘तहकीक मा लिल-हिंद’ (भारत का इतिहास) नामक पुस्तक का रचयिता कौन था ?
उत्तर:
अल्बरुनी।
प्रश्न 30.
इस्लामी जगत की मस्जिदों का बुनियादी नमूना क्या था ?
उत्तर:
मेहराब, गुम्बद, मीनार और खुला आंगन।
प्रश्न 31.
उमय्यदों द्वारा नखलिस्तानों में बनाये गए ‘मरुस्थली महलों’ का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) फिलिस्तीन में खिरबत – उल – मफजर महल
(2) जार्डन में कुसाईर अमरा महल।
प्रश्न 32.
इस्लामी धार्मिक कला में कला के किन दो रूपों को बढ़ावा मिला ?
उत्तर:
(1) खुशनवीसी (सुन्दर लिखने की कला)
(2) अरबेस्क (ज्यामितीय तथा वनस्पतीय डिजाइन )।
प्रश्न 33.
622 ई. में हज़रत मुहम्मद साहब द्वारा मक्का से मदीना की ओर प्रस्थान से कौनसे संवत् की शुरुआत
उत्तर:
हिजरी सन् की।
प्रश्न 34.
हिजरी वर्ष सौर वर्ष से कितने दिन कम होता है ?
उत्तर:
11 दिन।
प्रश्न 35.
इस्लामी क्षेत्रों के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इतिवृत्त अथवा तवारीख और अर्द्ध – ऐतिहासिक कृतियाँ, जैसे जीवन चरित, पैगम्बर साहब के कथनों और कृत्यों के अभिलेख, कुरान की टीकाएँ।
प्रश्न 36.
अधिकतर ऐतिहासिक और अर्द्ध – ऐतिहासिक रचनाएँ किस भाषा में हैं? इनमें सर्वोत्तम रचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अधिकतर ऐतिहासिक और अर्द्ध – ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं।
(2) इनमें सर्वोत्तम रचना ‘तबरी की तारीख’ है।
प्रश्न 37.
इतिवृत्तों के अतिरिक्त किन स्रोतों से इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ?
उत्तर:
कानूनी पुस्तकों, भूगोल, यात्रा – वृत्तान्त और साहित्यिक रचनाओं से इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रश्न 38.
दस्तावेजी साक्ष्य इतिहास-लेखन के लिए सर्वाधिक बहुमूल्य क्यों हैं ?
उत्तर:
दस्तावेजी साक्ष्य इतिहास-लेखन के लिए सर्वाधिक बहुमूल्य हैं क्योंकि इनमें पूर्व चिन्तन कर घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख नहीं होता ।
प्रश्न 39.
इग्नाज गोल्डजिहर कौन था?-
उत्तर:
इग्नाज गोल्जजिहर हंगरी का एक यहूदी था, जिसने जर्मन भाषा में इस्लामी कानून और धर्म – विज्ञान के बारे में नई राह दिखाने वाली पुस्तकें लिखीं।
प्रश्न 40.
अरबी कबीलों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे । प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 41.
बेदूइन कौन थे ?
उत्तर:
बेदूइन खानाबदोश होते थे, जो खजूर आदि खाद्य तथा अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान के सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।
प्रश्न 42.
पैगम्बर मुहम्मद कौन थे? वे किस कबीले से सम्बन्धित थे?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद सौदागर थे और मक्का में रहने वाले कुरैश कबीले से सम्बन्धित थे। वे इस्लाम धर्म के संस्थापक थे।
प्रश्न 43.
इस्लाम का मूल क्या था ?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद ने एक ईश्वर अर्थात् अल्लाह की पूजा करने का और आस्तिकों के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार किया। यह इस्लाम का मूल था।
प्रश्न 44.
‘काबा’ से क्या अभिप्राय है? काबा के बारे में संक्षेप में बताइये।
अथवा
उत्तर:
मक्का के मुख्य धर्म-स्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे ‘काबा’ कहा जाता था। इसमें बुत रखे
प्रश्न 45.
‘काबा’ की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
‘काबा’ को एक ऐसा पवित्र स्थान (हरम) माना जाता था, जहाँ हिंसा वर्जित थी तथा सभी दर्शनार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी।
प्रश्न 46.
मक्का का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मक्का यमन और सीरिया के बीच के व्यापारी मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था। यह अरबों का एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र था।
प्रश्न 47.
जिबरील कौन था?
उत्तर:
जिबरील एक महादूत था जो पैगम्बर मुहम्मद के लिए सन्देश लाया करता था।
प्रश्न 48.
पैगम्बर मुहम्मद की तीन शिक्षाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मदं की तीन शिक्षाएँ थीं –
- केवल अल्लाह की ही आराधना करना
- नैतिक सिद्धान्त जैसे खैरात बाँटना तथा
- चोरी न करना।
प्रश्न 49.
पैगम्बर मुहम्मद ने अपना क्या उद्देश्य बताया ?
उत्तर:
आस्तिकों (उम्मा) के एक ऐसे समाज की स्थापना करना, जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के द्वारा आपस में जुड़े हुए हों।
प्रश्न 50.
पैगम्बर मुहम्मद को मक्का के लोगों के विरोध का सामना क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
लोग मक्का के देवी-देवताओं के ठुकराए जाने से नाराज थे और वे नये धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा तथा समृद्धि के लिए खतरा समझते थे।
प्रश्न 51.
‘हिजरा’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पैगम्बर मुहम्मद की मक्का से मदीना जाने की यात्रा क्या कहलाती है ?
उत्तर:
मक्का के लोगों के विरोध के कारण 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद को मक्का छोड़कर मदीना के लिए प्रस्थान करना पड़ा। इस यात्रा को ‘हिजरा’ कहते हैं।
प्रश्न 52.
मुस्लिम कैलेण्डर या हिजरी सन् की शुरुआत कब हुई ?
उत्तर:
जिस वर्ष पैगम्बर मुहम्मद मदीना पहुँचे, उसी वर्ष से मुस्लिम कैलेण्डर या हिजरी सन् की शुरुआत हुई।
प्रश्न 53.
पैगम्बर मुहम्मद ने किन तरीकों से मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की ? दो का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) पैगम्बर मुहम्मद ने मुसलमानों के समुदाय को आन्तरिक रूप से सुदृढ़ बनाया।
(2) उन्हें बाहरी खतरों से सुरक्षा प्रदान की।
प्रश्न 54.
खिलाफत की संस्था का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
उत्तराधिकार के किसी निश्चित नियम के अभाव में इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई जिसके फलस्वरूप खिलाफत संस्था का निर्माण हुआ।
प्रश्न 55.
खिलाफत के दो प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
(1) कबीलों पर नियन्त्रण स्थापित करना, जिनसे मिलकर उम्मा का गठन हुआ था।
(2) राज्य के लिए संसाधन जुटाना।
प्रश्न 56.
प्रथम दो खलीफाओं की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) प्रथम खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
(2) द्वितीय खलीफा ने ‘उम्मा की सत्ता का विस्तार किया।
प्रश्न 57.
बाइजेन्टाइन तथा ससानी साम्राज्यों के विरुद्ध अभियानों में अरबों की सफलता के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) अरबों की उत्तम सामरिक नीति
(2) अरबों में धार्मिक जोश,
(3) विरोधियों की कमजोरियाँ।
प्रश्न 58.
इस्लाम का दो सम्प्रदायों में विभाजन क्यों हुआ ?
उत्तर:
खलीफा अली द्वारा मक्का के अभिजात वर्ग के लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े जाने के पश्चात् इस्लाम दो सम्प्रदायों में विभाजित हो गया।
प्रश्न 59.
उमय्यद वंश की स्थापना किसने की और कब की ? इस वंश ने कब तक शासन किया?
उत्तर:
- 661 ई. में मुआविया ने उमय्यद वंश की स्थापना की।
- उमय्यद वंश ने 750 ई. तक शासन किया।
प्रश्न 60.
अब्द-अल-मलिक ने अरब और इस्लाम दोनों पहचानों को सुदृढ़ बनाने के लिए क्या उपाय किये ?
उत्तर:
(1) अब्द अल मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।
(2) उसने इस्लामी सिक्के जारी किये जिन पर अरबी भाषा में लिखा होता था।
प्रश्न 61.
चट्टान का गुम्बद (डोम ऑफ रॉक) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह इस्लामी वास्तुकला का पहला बड़ा नमूना है। यह जेरुस्लम नगर की मुस्लिम संस्कृति का प्रतीक था।
प्रश्न 62.
‘अब्बासी क्रान्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
750 ई. में उमय्यद वंश का स्थान अब्बासियों ने ले लिया। इस घटना को ‘अब्बासी क्रान्ति’ कहते हैं।
प्रश्न 63.
अब्बासियों ने किस प्रकार सत्ता प्राप्त की ?
उत्तर:
उन्होंने लोगों को यह वचन दिया कि पैगम्बर के परिवार का कोई मसीहा उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्त करायेगा ।
प्रश्न 64.
अब्बासियों ने उमय्यद वंश के किस अन्तिम खलीफा को पराजित कर सत्ता प्राप्त की?
उत्तर:
अब्बासियों की सेना का नेतृत्व एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने किया तथा अन्तिम उमय्यद खलीफा मारवान को ज़ब नदी पर हुई लड़ाई में पराजित किया ।
प्रश्न 65.
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) दूर के प्रान्तों पर बग़दाद का नियन्त्रण कम हो गया था।
(2) सेना और नौकरशाही में अरब – समर्थक और ईरान समर्थक गुटों में आपस में झगड़ा हो गया था।
प्रश्न 66.
बुवाही वंश के शासकों की दो उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
(1) बुवाही वंश के शासकों ने बगदाद पर अधिकार कर लिया।
(2) उन्होंने विभिन्न उपाधियाँ धारण कीं, जिनमें ‘शहंशाह’ भी शामिल थी।
प्रश्न 67.
फातिमी राजवंश के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
फातिमी राजवंश का सम्बन्ध इस्माइली सम्प्रदाय इस्माइली से था तथा ये लोग अपने आप को पैगम्बर साहब की पुत्री फातिमा का वंशज मानते थे।
प्रश्न 68.
फातिमी खिलाफत की दो उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 969 ई. में फातिमी लोगों ने मिस्र पर विजय प्राप्त की।
(2) उन्होंने शिया कवियों और विद्वानों को आश्रय प्रदान किया।
प्रश्न 69.
तुर्क लोग कौन थे ?
उत्तर:
तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे। वे कुशल घुड़सवार और वीर योद्धा थे।
प्रश्न 70.
गजनी सल्तनत की स्थापना किसने और कब की थी और उसे किसने सुदृढ़ किया?
उत्तर:
गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पतिगिन ने 961 ई. में की थी और उसे महमूद गजनवी ने सुदृढ़ किया था।
प्रश्न 71.
गजनवी वंश के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
गजनवी वंश एक सैनिक वंश था जिसके पास तुर्कों और भारतीयों जैसी व्यावसायिक सेना थी । उसकी सत्ता और शक्ति का केन्द्र खुरासान और अफगानिस्तान थे।
प्रश्न 72.
सल्जुक तुर्क कौन थे ?
उत्तर:
सल्जुक तुर्क समानियों और काराखानियों की सेनाओं में सैनिकों के रूप में तूरान में पहुँच गए। तुगरिल तथा छागरी बेग इनके प्रसिद्ध नेता थे।
प्रश्न 73.
सल्जुक तुर्कों की दो उपलब्धियाँ बताइये।
उत्तर:
(1) 1037 में सल्जुकों ने खुरासान पर विजय प्राप्त की और
(2) निशापुर को अपनी प्रथम राजधानी बनाया। 1055 में उन्होंने बगदाद पर भी अधिकार कर लिया।
प्रश्न 74.
निशापुर किसलिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
निशापुर सल्जुक तुर्कों की राजधानी थी। यह शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण फारसी – इस्लामी केन्द्र था। यह प्रसिद्ध विद्वान उमर खय्याम का जन्म स्थान भी था।
प्रश्न 75.
तुगरिल बेग की दो उपलब्धियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) तुगरिल बेग के नेतृत्व में सल्जुक तुर्कों ने गजनी को जीत लिया और
( 2) 1055 में बगदाद पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 76.
धर्म – युद्ध से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1095 और 1291 के बीच पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने मुसलमानों से अपने पवित्र धर्म – स्थान को मुक्त कराने के लिए अनेक युद्ध लड़े। जिन्हें धर्म- युद्ध कहा जाता है
प्रश्न 77.
धर्म- युद्धों के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) मुसलमानों ने ईसाइयों के पवित्र स्थान जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया था।
(2) ईसाइयों और मुसलमानों के बीच शत्रुता विद्यमान थी ।
प्रश्न 78.
‘ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन’ क्या था ?
उत्तर:
इस आन्दोलन ने सामन्ती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को ईसाई जगत से हटा कर ईश्वर के शत्रुओं की ओर मोड़ दिया था।
प्रश्न 79.
प्रथम धर्म – युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इस युद्ध में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक तथा जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 80.
‘आउटरैमर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
प्रथम धर्म – युद्ध के दौरान ईसाइयों ने सीरिया – फिलिस्तीन के क्षेत्र में जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन्हें ‘आउटरैमर’ कहा जाता था।
प्रश्न 81.
दूसरा धर्म – युद्ध कब हुआ ? इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
जब तुर्कों ने 1144 में एडेस्सा पर अधिकार कर लिया, तो पोप ने एक दूसरे धर्म – युद्ध के लिए अपील की। परिणामस्वरूप 1145-49 में द्वितीय धर्म – युद्ध शुरू हो गये।
प्रश्न 82.
तीसरा धर्म – युद्ध कब हुआ ? इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
जब मुसलमानों ने जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया, तो 1189 ई. में तीसरे धर्म – युद्ध का सूत्रपात हुआ।
प्रश्न 83.
धर्म – युद्धों के ईसाई – मुस्लिम सम्बन्धों पर क्या स्थायी प्रभाव हुए?
उत्तर:
(1) मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनाना शुरू कर दिया।
(2) पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारी समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।
प्रश्न 84.
फ्रैंक कौन थे ?
उत्तर:
फ्रैंक धर्म- युद्धों में विजय पाने वाले पश्चिमी देशों के नागरिक थे। ये सीरिया तथा फिलिस्तीन में बस गए
प्रश्न 85.
‘खराज’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अरबों द्वारा जोती गई भूमि पर ‘खराज’ कर लगता था जो खेती की स्थिति के अनुसार उसके आधे से लेकर उसके पाँचवें हिस्से के बराबर होता था।
प्रश्न 86.
इस्लामी राज्य में नये शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ?:
उत्तर:
इस्लामी राज्य में नये शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों को बसाना था, जो स्थानीय प्रशासन की रीढ़ थे।
प्रश्न 87.
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान क्या था ?
उत्तर:
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार सम्बन्ध के श्रेष्ठ तरीकों का विकास किया।
प्रश्न 88.
इस्लामी राज्य में साख-पत्रों तथा हुण्डियों का किस प्रकार उपयोग किया जाता था ?
उत्तर:
साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग व्यापारियों, साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अन्तरित करने के लिए किया जाता था।
प्रश्न 89.
वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारी वर्ग को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारी वर्ग को हर स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई तथा इससे उनकी यात्राएँ भी अधिक सुरक्षित हो गईं।
प्रश्न 90.
‘मुज़र्बा’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘मुज़र्बा’ जैसे औपचारिक व्यापारिक प्रबन्धों में निष्क्रिय साझेदार अपनी पूँजी देश-विदेश में जाने वाले सक्रिय सौदागरों को सौंप देते थे।
प्रश्न 91.
कुरान शरीफ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मुस्लिम परम्पराओं के अनुसार कुरान शरीफ उन सन्देशों का संग्रह है, 610 और 632 के बीच की अवधि में दिए थे।
प्रश्न 92.
सूफ़ी कौन थे ? जो खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद को
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का समूह ‘सूफी’ कहलाता था। ये लोग तपश्चर्या और रहस्यवाद के द्वारा खुदा का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।
प्रश्न 93.
सूफी मत के सर्वेश्वरवाद से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक होने का विचार है। इससे अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाना चाहिए।
प्रश्न 94.
अब्द-अल-लतीफ कौन थे ?
उत्तर:
अब्द-अल-लतीफ बारहवीं शताब्दी के बगदाद के कानून और चिकित्सा के विषयों के विद्वान थे।
प्रश्न 95.
अब्द-अल-लतीफ के अनुसार एक आदर्श विद्यार्थी को किन दो शिक्षाओं को ग्रहण करना चाहिए?
उत्तर:
(1) प्रत्येक विषय के ज्ञान के लिए अध्यापकों का ही सहारा लेना चाहिए।
(2) अपने अध्यापकों का आदर करना चाहिए।
प्रश्न 96.
इब्नसिना के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इब्नसिना (980-1037) एक प्रसिद्ध चिकित्सक तथा दार्शनिक था । उसने ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ नामक पुस्तक की रचना की थी ।
प्रश्न 97.
‘अदब’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘अदब’ का अर्थ है – साहित्यिक और सांस्कृतिक परिष्कार । अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य और गद्य शामिल थे।
प्रश्न 98.
नई फारसी कविता क्या थी? इसका जनक कौन था ?
उत्तर:
(1) नई फारसी कविता में छोटे गीत-काव्य (गज़ल) और चतुष्पदी ( रुबाई) जैसे नये रूप शामिल थे । (2) नई फारसी कविता का जनक रुदकी था ।
प्रश्न 99.
उमर खय्याम कौन था ?
उत्तर:
उमर खय्याम एक प्रसिद्ध कवि, खगोल वैज्ञानिक तथा गणितज्ञ था। उसने रुबाई को अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया था।
प्रश्न 100.
‘शाहनामा’ की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) शाहनामा में 50,000 पद हैं। यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
(2) इसमें प्रारम्भ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का चित्रण है।
प्रश्न 101.
मस्जिद के आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था, जहाँ पर एक फव्वारा अथवा जलाशय होता था और यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता था।
प्रश्न 102.
मस्जिद के बड़े कमरे की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) दीवार में एक मेहराब होती है।
(2) एक मंच होता है जहाँ से शुक्रवार को दोपहर की नमाज के समय प्रवचन दिए जाते हैं।
प्रश्न 103.
हदीथ की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर:
हदीथ में पैगम्बर मुहम्मद साहब के कथनों और कृत्यों के अभिलेख हैं।
प्रश्न 104.
‘कलीला व दिमना’ किस भारतीय ग्रन्थ का अरबी अनुवाद है ?
उत्तर:
‘पंचतन्त्र’ का।
प्रश्न 105.
657 ई. में हुई ‘ऊँट की लड़ाई’ में अली ने किसे पराजित किया?
उत्तर:
657 ई. में हुई ‘ऊँट की लड़ाई’ में अली ने मुहम्मद की पत्नी आयशा की सेना को पराजित किया।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अरब में इस्लाम के उदय के पूर्व अरबों की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अरब में इस्लाम के उदय के पूर्व अरबों की स्थिति –
(1) इस्लाम धर्म के उदय के पूर्व अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था। उसका चुनाव कुछ हद तक पारिवारिक सम्बन्धों के आधार किया जाता था, परन्तु वह अधिकतर व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता और उदारता के आधार पर चुना जाता था। कबीले रक्त सम्बन्धों पर संगठित समाज होते थे।
(2) प्रत्येक कबीले के अपने स्वयं के देवी-देवता होते थे, जो बुतों के रूप में मस्जिदों में पूजे जाते थे
(3) बहुत से अरब कबीले खानाबदोश होते थे। ये लोग खजूर आदि खाद्य तथा अपने ऊँटों के लिए चारे कीतलाश में रेगिस्तान में सूखे – क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।
(4) कुछ कबीले शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लगे थे।
प्रश्न 2.
कबीले से क्या अभिप्राय है? कबीले की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कबीले रक्त-सम्बन्धों पर संगठित समाज होते थे। अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे। गैर- अरब व्यक्ति कबीलों के प्रमुखों के संरक्षण में सदस्य बन जाते थे। लेकिन इनके साथ अरब व्यक्तियों (मुसलमानों) द्वारा समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। गैर – रिश्तेदार वंशों का तैयार किए गए वंश – -क्रम के आधार पर इस आशा के साथ विलय होता था कि नया कबीला शक्तिशाली होगा।
प्रश्न 3.
ब्रददू या बेदूइन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बहुत से अरब कबीले खानाबदोश होते थे, जो बद्दू या बेदूइन कहलाते थे। ये लोग ऊँट पशुचारी थे। ये लोग खाद्य और ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान में सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों (नखलिस्तान) की ओर भ्रमण रहते थे। खजूर इन लोगों का प्रमुख भोजन था और इसे प्राप्त करने के लिए हरे-भरे क्षेत्रों (नखलिस्तान) की तलाश में रहते थे। कुछ लोग शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लग गए थे।
प्रश्न 4.
पैगम्बर मुहम्मद के प्रादुर्भाव के पूर्व मक्का के धार्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
काबा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘मक्का का धार्मिक महत्त्व – पैगम्बर मुहम्मद साहब के प्रादुर्भाव के पूर्व मक्का अरबों का एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र था। पैगम्बर मुहम्मद का कबीला कुरैश भी मक्का में रहता था जिसका वहाँ के मुख्य धर्म-स्थल पर नियन्त्रण था। इस धर्म-स्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे ‘काबा’ के नाम से पुकारा जाता था। इसमें बुत रखे हुए थे। मक्का के बाहर के कबीले भी काबा को पवित्र मानते थे। वे इसमें बुत रखते थे और प्रतिवर्ष इस स्थान की धार्मिक यात्रा (हज) करते थे।
मक्का, यमन और सीरिया के बीच के व्यापारी मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था, जिससे शहर का महत्त्व और बढ़ गया था। काबा को एक ऐसा पवित्र स्थान माना जाता था, जहाँ हिंसा का निषेध था और सभी दर्शनार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी। तीर्थयात्रा और व्यापार ने खानाबदोश तथा बसे हुए कबीलों को एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने तथा अपने विश्वासों और रीति-रिवाजों को आपस में बाँटने का अवसर दिया। बहुदेववादी अरब लोगों को अल्लाह की धारणा के बारे में अस्पष्ट-सी ही जानकारी थी, परन्तु उनका मूर्तियों तथा इबादतगाहों के साथ लगाव सीधा और सुदृढ़ था।
प्रश्न 5.
जिबरील के बारे आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जिबरील – जिबरील एक महादूत थे जो पैगम्बर मुहम्मद साहब के लिए सन्देश लाया करते थे। यह माना जाता है कि जो शब्द उन्होंने सबसे पहले बोला, वह इकरा था। इकरा का अर्थ है – बयान करो। कुरान शब्द इकरा से बना है। इस्लामी ब्रह्माण्ड विज्ञान में दूतों को सृष्टि- जीवन के तीन बौद्धिक रूपों में से एक माना जाता है।
अन्य दो रूप हैं –
(1) इन्सान और
(2) जिन्न।
प्रश्न 6.
इस्लाम धर्म के सुदृढ़ीकरण और उसके प्रचार-प्रसार के लिए पैगम्बर मुहम्मद साहब के द्वारा किये गए कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस्लाम धर्म के सुदृढ़ीकरण और उसके प्रचार-प्रसार के लिए पैगम्बर मुहम्मद साहब के कार्य –
(1) मदीना में राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना – पैगम्बर मुहम्मद साहब ने मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की, जिसने उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की और इसके साथ-साथ शहर में चल रही कलह को सुलझाया।
(2) उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में बदलना – उन्होंने उम्मा को एक बड़े समुदाय के में बदल दिया गया ताकि मदीना के बहुदेववादियों तथा यहूदियों को पैगम्बर मुहम्मद के राजनीतिक नेतृत्व के अन्तर्गत लाया जा सके।
(3) कर्मकाण्डों और नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि एवं सुधार करना – पैगम्बर मुहम्मद साहब ने कर्मकाण्डों जैसे उपवास आदि और नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि तथा सुधार करके इस्लाम धर्म को अपने अनुयायियों के लिए सुदृढ़ बनाया।
(4) मक्का पर अधिकार – पैगम्बर मुहम्मद ने मक्का पर भी अधिकार कर लिया । इसके परिणामस्वरूप एक धार्मिक प्रचारक तथा राजनीतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद साहब की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई।
(5) अनेक कबीलों द्वारा इस्लाम धर्म ग्रहण करना – पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षाओं और उपलब्धियों से प्रभावित होकर बहुत से कबीलों ने अधिकांशतः बद्दुओं ने, इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लिया और उस समाज में शामिल हो गए।
(6) प्रशासनिक राजधानी एवं धार्मिक केन्द्र की स्थापना – शीघ्र ही पैगम्बर मुहम्मद द्वारा संरचित गठजोड़ का प्रसार सम्पूर्ण अरब देश में हो गया । मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी तथा मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया।
प्रश्न 7.
खिलाफत की संस्था का निर्माण किस प्रकार हुआ ? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
खिलाफत की संस्था का निर्माण- सन् 632 में पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था। अतः उनकी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इससे मुसलमानों में गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए। सबसे बड़ा नव-परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ। इसमें समुदाय का नेता अर्थात् अमीर अल-मोमिनिन पैगम्बर का प्रतिनिधि (खलीफा) बन गया। पहले चार खलीफाओं ( 632-661 ई.) ने पैगम्बर के साथ अपने गहरे और निकटतम सम्बन्धों के आधार पर अपनी शक्तियों तथा अधिकारों का औचित्य स्थापित किया।
खिलाफत के उद्देश्य –
(1) उम्मा के कबीलों पर नियन्त्रण स्थापित करना।
(2) राज्य के लिए संसाधन जुटाना।
प्रश्न 8.
खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य का विस्तार –
(1) प्रथम खलीफा – पैगम्बर मुहम्मद के देहावसान के बाद बहुल से कबीले इस्लामी राज्य से टूट कर अलग हो गए। कुछ कबीलों ने स्वयं अपने समाजों की स्थापना हेतु अपने स्वयं के पैगम्बर बना लिए थे। इस स्थिति में प्रथम खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
(2) द्वितीय खलीफा – दूसरे खलीफा उमर और उसके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेन्टाइन समुदाय और पूर्व में ‘ससानी साम्राज्य के विरुद्ध अभियान किये। तीन सफल अभियानों (637-642 ई.) में अरबों ने सीरिया, इराक ईरान और मिस्र पर अधिकार कर लिया।
(3) तृतीय खलीफा -तृतीय खलीफा, उथमान (644-656) ने अपना नियन्त्रण मध्य एशिया तक बढ़ाने के लिए और अभियान चलाए। इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के एक दशक के अन्दर अरब-इस्लामी राज्य ने नील और आक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व एवं नियन्त्रण स्थापित कर लिये।
प्रश्न 9.
विजित प्रान्तों में खलीफाओं द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढाँचे का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विजित प्रान्तों में खलीफाओं द्वारा नया प्रशासनिक ढाँचा स्थापित किया गया। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं-
(1) नये प्रशासनिक ढाँचे के अध्यक्ष गवर्नर (अमीर) तथा कबीलों के मुखिया (अशरफ) थे।
(2) केन्द्रीय राजकोष के दो प्रमुख स्रोत थे –
- मुसलमानों द्वारा अदा किये जाने वाले कर तथा
- सैनिक अभियानों. द्वारा मिलने वाली लूट में से प्राप्त हिस्सा।
(3) खलीफा के सैनिक रेगिस्तान के किनारों पर बसे शहरों जैसे कुफा तथा बसरा में शिविरों में रहते थे ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास स्थलों के निकट तथा खलीफा की कमान के अन्तर्गत बने रहें।
(4) शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में हिस्सा मिलता था और मासिक अदायगियाँ प्राप्त होती थीं।
(5) गैर – मुस्लिम लोगों को खराज और जजिया नामक कर देने पड़ते थे । इन करों के अदा करने पर ही उनका सम्पत्ति का तथा धार्मिक कार्यों को सम्पन्न करने का अधिकार बना रहता था।
(6) यहूदी और ईसाई मुस्लिम- – राज्य के संरक्षित लोग (धिम्मीस) घोषित किये गए और अपने सामुदायिक कार्यों को करने के लिए उन्हें काफी अधिक स्वायत्तता दी गई थी।
प्रश्न 10.
तृतीय खलीफा उथमान की हत्या के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तृतीय खलीफा उथमान की हत्या के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-
(1) अरब कबीले राजनैतिक विस्तार तथा एकीकरण का कार्य सरलता से नहीं कर पाये। इस्लामी राज्य के विस्तार से तथा संसाधनों और पदों के वितरण के सम्बन्ध में उत्पन्न हुए झगड़ों से उम्मा की एकता खतरे में पड़ गई।
(2) प्रारम्भिक इस्लामी राज्य के शासन में मक्का के कुरैश लोगों का ही बोलबाला था। तृतीय खलीफा उथमान (644- 656 ) भी एक कुरैश था। उसने सत्ता पर अधिक नियन्त्रण प्राप्त करने के लिए प्रशासन में अपने ही व्यक्ति नियुक्त कर दिए। ‘परिणामस्वरूप अन्य कबीलों में असन्तोष उत्पन्न हुआ और वे उथमान का विरोध करने लगे।
(3) तृतीय खलीफा उथमान की नीतियों से इराक तथा मिस्र में तो पहले से ही विरोध था। अब मदीना में भी विरोध उत्पन्न हो जाने से 656 ई. में उथमान की हत्या कर दी गई।
प्रश्न 11.
चतुर्थ खलीफा अली के शासन काल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
चतुर्थ खलीफा अली के शासन काल की प्रमुख घटनाएँ – चतुर्थ खलीफा अली के शासन काल की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित थीं-
(1) 656 में अली को चतुर्थ खलीफा नियुक्त किया गया। उसने मक्का के अभिजात – तन्त्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। इसके फलस्वरूप मुसलमानों में कटुता और बढ़ गई। अली के समर्थकों और शत्रुओं ने बाद में इस्लाम के दो मुख्य सम्प्रदाय शिया और सुन्नी बना लिए।
(2) अली ने अपनी सत्ता कुफा में स्थापित कर ली। उसने पैगम्बर मुहम्मद की पत्नी आयशा के नेतृत्व में लड़ने वाली सेना को 657 ई. में ‘ऊँट की लड़ाई’ में पराजित कर दिया। लेकिन, वह उथमान (तृतीय खलीफा) के नातेदार और सीरिया के गवर्नर मुआविया के नेतृत्व वाले गुट का दमन नहीं कर सका।
(3) अली को सिफ्फिन (उत्तरी मेसोपोटामिया ) में दूसरा युद्ध लड़ना पड़ा जो सन्धि के रूप में समाप्त हुआ। इसके परिणामस्वरूप उसके अनुयायी दो गुटों में बँट गए, कुछ उसके वफादार बने रहे, जबकि अन्य लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया और वे खरजी कहलाने लगे।
(4) इसके शीघ्र बाद, कुफा में एक खरजी ने एक मस्जिद में अली की हत्या कर दी।
प्रश्न 12.
अब्द-अल-मलिक द्वारा सिक्कों में क्या सुधार किए गए ?
उत्तर:
(1) अब्द-अल-मलिक के पहले जो सिक्के चल रहे थे, वे रोमन और ईरानी अनुकृतियाँ थे जिन पर सलीब और अग्नि – वेदी के चिह्न बने होते थे और यूनानी तथा पहलवी भाषा में लेख अंकित होते थे। अब्द अल-मलिक ने इन चिह्नों को हटवा दिया और सिक्कों पर अरबी भाषा में लेख अंकित कर दिया।
(2) अब्द-अल-मलिक द्वारा सिक्कों में किए गए सुधार उसके राज्य – वित्त के पुनर्गठन से जुड़े हुए थे।
(3) अब्द-अल-मलिक की सिक्के ढालने की प्रक्रिया इतनी सफल थी कि उसके सिक्कों के प्रारूप व वजन के अनुसार ही कई शताब्दियों तक सिक्के ढाले जाते रहे।
प्रश्न 13.
उमय्यद खलीफा शब्द अल-मलिक द्वारा अपनायी गयी नीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शब्द अल-मलिक द्वारा अपनायी गयी नीतियाँ –
(1) शब्द अल-मलिक और उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया जाता रहा।
(2) शब्द अल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा के रूप में अपनाया।
(3) उसने सिक्कों से रोमन तथा ईरानी चिन्हों को हटाकर उन पर अरबी भाषा में लिखा गया। इस प्रकार उसने इस्लामी सिक्कों को जारी किया।
(4) उसने जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक बनवाकर अरब-इस्लामी पहचान को विकसित किया।
प्रश्न 14.
उमय्यदों के किन राजनैतिक उपायों से उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हुआ?
उत्तर:
उमय्यदों ने ऐसे बहुत से राजनैतिक उपाय किए जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हो गया –
(1) प्रथम उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया।
(2) उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों और प्रशासनिक संस्थाओं को अपना लिया।
(3) उसने वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा भी प्रारंभ की और प्रमुख मुसलमानों को मना लिया कि वे उसके पुत्रों को उसका वारिस स्वीकार करें।
(4) बाद वाले खलीफाओं ने भी ये नवीन परिवर्तन अपना लिए।
इन राजनैतिक परिवर्तनों के फलस्वरूप उमय्यद राज्य एक साम्राज्यीय शक्ति बन गया। वह सीधे इस्लाम पर आधारित न होकर शासन – कला और सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था तथा इस्लाम उसे वैधता प्रदान करता रहा।
प्रश्न 15.
सन् 950 से 1200 तक की अवधि में इस्लामी समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सन् 950 से 1200 तक की अवधि में इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा अरबी से नहीं, बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से एकजुट बना रहा। इस एकता को बनाए रखने के लिए राज्य और समाज को अलग माना गया। इसके अतिरिक्त इस्लामी उच्च संस्कृति की भाषा के रूप में फारसी का विकास किया गया। इस एकता के निर्माण में विद्वानों, कलाकारों, व्यापारियों आदि ने भी योगदान दिया। विद्वान, कलाकार, व्यापारी आदि इस्लामी राज्य में घूमते रहते थे । इससे लोगों में विचारों तथा तौर-तरीकों का आदान-प्रदान होता रहता था । इसके फलस्वरूप अनेक लोग इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेते थे। परिणामस्वरूप मुसलमानों की जनसंख्या आगे चलकर बहुत अधिक बढ़ गई। इस्लाम ने एक अलग धर्म तथा सांस्कृतिक प्रणाली के रूप में अपनी पहचान बना ली।
प्रश्न 16.
दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत का उदय हुआ। तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे जिन्होंने धीरे-धीरे इस्लाम धर्म अपना लिया था। तुर्क कुशल घुड़सवार तथा वीर योद्धा थे। वे गुलामों और सैनिकों के रूप में अब्बासी, समानी तथा बुवाही शासकों के अधीन कार्य करने लगे। 961 ई. में अल्पतिगिन ने गजनी सल्तनत की स्थापना की। गजनी सल्तनत को मजबूत बनाने में महमूद गजनवी (998-1030 ई.) ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
गजनवी वंश एक सैनिक वंश था जिसके पास तुर्कों और भारतीयों जैसी पेशेवर सेना थी । उनकी सत्ता और शक्ति का केन्द्र खुरासान ओर अफगानिस्तान था। इसलिए उनके लिए अब्बासी प्रतिद्वन्द्वी नहीं थे, बल्कि उनकी वैधता के स्रोत थे। महमूद गजनवी जानता था कि वह एक गुलाम का पुत्र था और इस कारण वह खलीफा से सुल्तान की उपाधि प्राप्त करने के लिए लालायित था। दूसरी और खलीफा भी गजनवी जो सुन्नी था, को समर्थन देने के लिए सहमत हो गया था।
प्रश्न 17.
सलजुक तुर्कों द्वारा तुर्क – साम्राज्य के विस्तार के लिए किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सलजुक तुर्क समानियों और काराखानियों की सेनाओं में सैनिकों के रूप में तूरान में प्रविष्ट हो गए। उन्होंने बाद में दो भाइयों तुगरिल और छागरी बेग के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह का रूप धारण कर लिया। महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद सलजुक तुर्कों ने 1037 ई. में खुरासान पर अधिकार कर लिया और निशापुर को अपनी राजधानी बनाया। कुछ समय बाद उन्होंने 1055 में बगदाद को पुनः सुन्नी शासन के अधीन कर दिया।
खलीफा अल- कायम ने तुगरिल बेग को सुल्तान की उपाधि प्रदान की जिसके फलस्वरूप धार्मिक सत्ता राजनीतिक सत्ता से अलग हो गई। दोनों सलजुक भाइयों ने इकट्ठे मिलकर शासन का संचालन किया। इसके बाद उनका भतीजा अल्प अरसलन गद्दी पर बैठा। उसके शासन काल में सलजुक साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया ( आधुनिक तुर्की) तक हो गया।
प्रश्न 18.
इस्लामी राज्य में कृषि की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में कृषि की स्थिति – अरबों द्वारा नए जीते गए क्षेत्रों में बसे हुए लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। इस्लामी राज्य ने इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। जमीन के स्वामी बड़े और छोटे किसान थे। कहीं-कहीं राज्य का स्वामित्व भी था। इराक और ईरान में जमीन काफी बड़ी इकाइयों में बँटी हुई थी, जिसकी खेती कृषकों द्वारा की जाती थी। ससानी और इस्लामी कालों में भूमि के स्वामी राज्य की ओर से कर इकट्ठा करते थे।
उन प्रदेशों में, जो पशुचारण की अवस्था से आगे बढ़ कर स्थिर कृषि व्यवस्था तक पहुँच गए थे, जमीन गाँव की सांझी सम्पत्ति थी। जो भूमि- सम्पत्तियाँ इस्लामी विजय के पश्चात् स्वामियों द्वारा छोड़ दी गई थीं, उन्हें राज्य ने अपने हाथ में ले लिया था । इसे साम्राज्य के विशिष्ट वर्ग के मुसलमानों को दे दी गई थी, विशेष रूप से खलीफा के परिवार के सदस्यों को।
प्रश्न 19.
इस्लामी राज्य में कृषि भूमि के नियन्त्रण एवं भू-राजस्व व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में कृषि भूमि का सर्वोपरि नियन्त्रण राज्य के हाथों में था। राज्य अपनी अधिकांश आय भू- राजस्व से प्राप्त करता था । अरबों द्वारा जीती गई भूमि पर जो मालिकों के हाथों में रहती थी, कर (खराज ) लगता था। खराज खेती की स्थिति के अनुसार उपज के आधे हिस्से से लेकर उसके पाँचवें हिस्से के बराबर होता था । जिस भूमि पर मुसलमानों का स्वामित्व था अथवा जिसमें उनके द्वारा खेती की जाती थी, उस पर उपज के दसवें हिस्से के बराबर कर लगता था।
जब गैर-मुसलमान कम कर देने के उद्देश्य से मुसलमान बनने लगे, तो उससे राज्य की आय कम हो गई। इस पर खलीफाओं ने पहले तो धर्मान्तरण को निरुत्साहित किया और बाद में कराधान की एकसमान नीति अपनाई। दसवीं शताब्दी से राज्य ने अधिकारियों को उनका वेतन भूमियों के राजस्व से देना शुरू किया। इसे ‘इक्का’ कहा जाता था, जिसका अर्थ है- ‘राजस्व का हिस्सा’।
प्रश्न 20.
इस्लामी राज्य में खेती में समृद्धि राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ कैसे आई? इस सम्बन्ध में राज्य द्वारा क्या उपाय किये गए ?
उत्तर:
इस्लामी राज्य में खेती में समृद्धि – इस्लामी राज्य में खेती में समृद्धि राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ आई। इस सम्बन्ध में राज्य ने निम्नलिखित उपाय किये–
(1) नीलघाटी सहित अनेक क्षेत्रों में राज्य ने सिंचाई प्रणालियों का विकास किया। राज्य ने अनेक बाँधों तथा नहरों का निर्माण करवाया और अनेक कुएँ खुदवाये।
(2) अपनी भूमि पर पहली बार खेती करने वाले कृषकों को कर में छूट दी गई।
(3) खेती – योग्य भूमि का विस्तार किया गया। इन उपायों के परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हुई।
(4) कुछ नई फसलों, जैसे कपास, संतरा, केला, तरबूज, पालक और बैंगन की खेती की गई और इन फसलों का यूरोप को निर्यात किया गया।
प्रश्न 21.
“मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया।” विवेचना कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग किस प्रकार किया जाता था ?
उत्तर:
साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग – मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया। व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए साख-पत्रों ( सक्क) तथा हुण्डियों (बिल ऑफ एक्सचेंज – सुफतजा ) का उपयोग किया जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को प्रत्येक स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई और इससे उनकी यात्राएँ पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गईं। खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चारणों को इनाम देने के लिए साख-पत्रों (सक्क) का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 22.
उलमा कौन थे? उनके क्या कार्य थे?
उत्तर:
उलमा इस्लाम के धार्मिक विद्वान थे। वे कुरान से प्राप्त ज्ञान (इल्म) और पैगम्बर के आदर्श व्यवहार (सुन्ना) का मार्गदर्शन करते थे। मध्यकाल में उलमा अपना समय कुरान पर टीका (तफसीर) लिखने और पैगम्बर मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध (हदीथ) करने में लगाते थे। कुछ उलेमाओं ने कर्मकाण्डों (इबादत) के द्वारा ईश्वर के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने और सामाजिक कार्यों (मुआमलात) के द्वारा अन्य व्यक्तियों के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने के लिए कानून अथवा शरीआ तैयार करने का काम किया। इस्लामी कानून तैयार करने के लिए विधिवेत्ताओं ने तर्क और अनुमान (कियास) का प्रयोग भी किया। आठवीं तथा नौवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ (मजहब) बन गईं। ये शाखाएँ थीं –
प्रश्न 23.
‘कुरान शरीफ’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कुरान शरीफ- अरबी भाषा में रचित कुरान शरीफ 114 अध्यायों (सूराओं) में विभाजित है। मुस्लिम परम्परा के अनुसार, कुरान उन सन्देशों (रहस्योद्घाटन) का संग्रह है, जो खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद साहब को 610 तथा 632 के बीच की अवधि में पहले मक्का में और फिर मदीना में दिए थे। इन रहस्योद्घाटनों को संकलित करने का कार्य 650 में पूरा किया गया था। वर्तमान में जो सबसे प्राचीन सम्पूर्ण कुरान उपलब्ध है, वह नौवीं शताब्दी की है। कुरान शरीफ मुसलमानों का पवित्र ग्रन्थ है। कुरान शरीफ के अध्याय 31, पद 27 में कहा गया है कि “यदि संसार के सभी पेड़ कलम होते और समुद्र स्याही होते और इस तरह सात समुद्र स्याही की पूर्ति करने के लिए होते, तो भी लिखते-लिखते अल्लाह के शब्द समाप्त न होते। ”
प्रश्न 24.
प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत सामग्री के रूप में कुरान के उपयोग ने कौनसी समस्याएँ प्रस्तुत की हैं?
अथवा
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में उलमा वर्ग कुरान पर टीकाएँ लिखने के लिए क्यों प्रेरित हुआ?
उत्तर:
(1) कुरान एक धर्म-ग्रन्थ है- पहली समस्या यह है कि कुरान शरीफ एक धर्म-ग्रन्थ है। यह एक ऐसा मूल पाठ है, जिसमें धार्मिक सत्ता निहित है। प्रायः मुसलमान यह मानते हैं कि खुदा की वाणी (कलाम अल्लाह) होने के कारण कुरान को शब्दश: समझा जाना चाहिए। परन्तु बुद्धिवादी धर्म विज्ञानी अधिक उदार विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने कुरान की व्याख्या अधिक उदारता से की। 833 ई. में अब्बासी खलीफा अल – मामून मत लागू किया कि कुरान खुदा की वाणी की बजाय उसकी रचना है।
(2) कुरान प्रायः रूपकों में बात करता है – दूसरी समस्या यह है कि कुरान प्रायः रूपकों में बात करता है। ओल्ड टेस्टामेन्ट के विपरीत, यह घटनाओं का वर्णन नहीं करता, बल्कि केवल उनका उल्लेख करता है। इसलिए मध्यकाल के मुस्लिम विद्वानों को पैगम्बर मुहम्मद के वचनों के अभिलेखों (हदीथ) की सहायता से कई टीकाएँ लिखनी पड़ी थीं। कुरान को पढ़ने-समझने के लिए कई हदीथ लिखे गए।
प्रश्न 25.
सूफियों के धार्मिक सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
अथवा
‘सूफीवाद’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मध्यकालीन इस्लाम में सूफियों के धार्मिक विचार बताइये।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक समूह बन गया था, जिन्हें सूफी कहा जाता है। उनके धार्मिक सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –
(1) सूफी लोग तपश्चर्या (रहबनिया) तथा रहस्यवाद के द्वारा खुदा का अधिक गहन और अधिक वैयक्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।
(2) सूफियों की भौतिक पदार्थों तथा सांसारिक सुखों में रुचि नहीं थी। ये लोग संसार का त्याग करना चाहते थे और केवल खुदा पर भरोसा करते थे
(3) सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक होने का विचार है जिसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाना चाहिए।
(4) सूफीवाद के अनुसार ईश्वर से मिलना, ईश्वर के साथ तीव्र प्रेम (इश्क) के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। इस इश्क का उपदेश एक महिला सन्त बसरा की राबिया द्वारा अपनी शायरी में दिया गया था। ईरानी सूफी बयाजिद बिस्तामी प्रथम व्यक्ति था जिसने अपने आप को खुदा में लीन या फना करने का उपदेश दिया था।
(5) सूफी लोग आनन्द उत्पन्न करने तथा प्रेम और भावावेश को तीव्र करने के लिए संगीत समारोहों (सभा) का उपयोग करते हैं।
(6) सूफीवाद का द्वार सबके लिए खुला है
प्रश्न 26.
इब्नसिना के साहित्यिक योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नसिना (980-1037 ई.) एक प्रसिद्ध चिकित्सक और दार्शनिक था । वह इस बात को नहीं मानता था कि कयामत के दिन व्यक्ति पुनः जीवित हो जाता है। उन्होंने ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ (अल-कानून फिलतिब) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी, जो दस लाख शब्दों वाली पाण्डुलिपि थी। इस पुस्तक में तत्कालीन औषधशास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख है। इसमें इब्नसिना द्वारा अस्पतालों में किये गए प्रयोगों तथा अनुभवों की जानकारी भी दी गई है।
इस पुस्तक में आहार – विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। इसमें यह बताया गया है कि जलवायु और पर्यावरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ रोगों के संक्रामक स्वरूप की जानकारी भी दी गई है । इस पुस्तक का महत्त्व इस बात से प्रकट हो जाता है कि इस पुस्तक का उपयोग यूरोप में एक पाठ्यपुस्तक के रूप में किया जाता था।
प्रश्न 27.
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में भाषा और साहित्य के विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में श्रेष्ठ भाषा और सृजनात्मक कल्पना को व्यक्ति के सर्वाधिक प्रशंसनीय गुणों में शामिल किया जाता था । ये गुण किसी भी व्यक्ति की विचार – अभिव्यक्ति को अदब के स्तर तक ऊँचा उठा देते थे। इस्लाम – पूर्व काल की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना संबोधन गीत ( कसीदा ) था।
अब्बासी – काल के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए संबोधन गीत नामक विधा का विकास किया। फारसी मूल के कवियों ने अरबी कविता में नये प्राण फूँके । फारसी मूल के एक कवि अबुनुवास ने इस्लाम द्वारा वर्जित आनन्द मनाने के उद्देश्य से शराब और पुरुष – प्रेम जैसे नये विषयों पर श्रेष्ठ कविताओं की रचना की । सूफियों ने रहस्यवादी प्रेम की सुरा द्वारा उत्पन्न मस्ती का गुणगान किया।
प्रश्न 28.
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में नई फारसी के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में अरबों की ईरान- विजय के बाद नई फारसी का पर्याप्त विकास हुआ। इसमें अरबी शब्दों की संख्या बहुत अधिक थी । खुरासानी और तूरानी राज्यों की स्थापना से नई फारसी सांस्कृतिक ऊँचाइयों पर पहुँच गई। समानी राज दरबार के कवि रुदकी को नई फारसी कविता का जनक माना जाता था।
इस कविता में छोटे गीत-काव्य (गज़ल) तथा चतुष्पदी ( रुबाई) जैसे नये रूप शामिल थे। रुबाई चार पंक्तियों वाला छन्द होता है। इसका प्रयोग प्रियतम अथवा प्रेयसी के सौन्दर्य का वर्णन करने, संरक्षक की प्रशंसा करने अथवा दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए किया जाता है। उमर खय्याम ने रुबाई को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया उमर खय्याम ( 1048-1131 ई.) एक प्रसिद्ध कवि, खगोल वैज्ञानिक तथा गणितज्ञ था।
प्रश्न 29. गजनी साम्राज्य में हुए फारसी साहित्य के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
फारसी भाषा के विकास में फिरदौसी के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गजनी फारसी साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया था। गजनी के शासक विद्या – प्रेमी थे। उन्होंने अनेक विद्वानों, कवियों तथा कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया। गजनी के शासक महमूद गजनवी के दरबार में अनेक कवि और विद्वान आश्रित थे। उसके शासन काल में अनेक काव्य-संग्रहों (दीवानों) तथा महाकाव्यों (मथनवी) की रचना की गई। महमूद गजनवी के दरबार के विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध फिरदौसी थे।
फिरदौसी ने ‘शाहनामा’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी । इसे पूरा करने में 30 वर्ष लगे थे । इस ग्रन्थ में 50,000 पद हैं और यह इस्लामी साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। शाहनामा परम्पराओं और आख्यानों का संग्रह है। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय आख्यान रुस्तम का है। ‘शाहनामा’ में प्रारम्भ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का वर्णन काव्यात्मक शैली में किया गया है।
प्रश्न 30.
बगदाद के पुस्तक-विक्रेता इब्ननदीम की पुस्तक-सूची का उल्लेख कीजिए। इन पुस्तकों की विषय-वस्तु क्या थी?
उत्तर:
बगदाद के पुस्तक विक्रेता इब्ननदीम की पुस्तक सूची (किताब अल – फिहरिस्त ) में ऐसी अनेक पुस्तकों का उल्लेख है, जो पाठकों की नैतिक शिक्षा और उनके मनोरंजन के लिए लिखी गई थीं। इनमें सबसे प्राचीन पुस्तक ‘कलीला व दिमना’ (दो गीदड़ों के नाम, जो पुस्तक के मुख्य पात्र थे ) है। यह जानवरों की कहानियों का संग्रह है।
यह पुस्तक ‘पंचतन्त्र’ के पहलवी संस्करण का अरबी अनुवाद है। सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय रचनाएँ वीरों – साहसियों की कहानियाँ हैं जैसे अल- सिकन्दर तथा सिन्दबाद और दुःखी प्रेमियों जैसे कायस की कहानियाँ। ‘एक हजार एक रातें’ कहानियों का एक अन्य संग्रह है। इन कहानियों में विभिन्न प्रकार के मनुष्यों- उदार, मूर्ख, भोले-भाले और धूर्त मनुष्यों का चित्रण किया गया है। इनको शिक्षा प्रदान करने तथा मनोरंजन के लिए सुनाया जाता है। बसरा के जहीज ने ‘किताब-अल-बुखाला’ (कंजूसों की पुस्तक) नामक पुस्तक लिखी जिसमें कंजूसों के बारे में अनेक कहानियाँ हैं।
प्रश्न 31.
इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के किन दो रूपों को बढ़ावा मिला?
उत्तर:
इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के निम्नलिखित दो रूपों को बढ़ावा मिला –
(1) खुशनवीसी
(2) अरबेस्क। इमारतों को सुसज्जित करने के लिए प्रायः धार्मिक उद्धरणों का छोटे और बड़े शिलालेखों में उपयोग किया जाता था। कुरान शरीफ की आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों की पाण्डुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सर्वोत्तम रूप में सुरक्षित रखा गया है। ‘किताब – अल-अघानी’ (गीत पुस्तक), ‘कलीला व दिमना’, ‘हरिरी की मकामात’ जैसी साहित्यिक रचनाओं को लघु चित्रों से सुसज्जित किया गया था। इसके अतिरिक्त पुस्तक का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए चित्रावली की अनेक प्रकार की तकनीकें शुरू की गई थीं। इमारतों तथा पुस्तकों के चित्रण में उद्यान की कल्पना पर आधारित पौधों और फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था।
प्रश्न 32.
कई शताब्दियों तक दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद के रूप में विख्यात अल-मुतव्वकिल मस्जिद का रेखांकन कीजिये।
उत्तर:
‘अल-मुतव्वकिल’ मस्जिद दूसरी अब्बासी राजधानी समारा में स्थित थी। इसका निर्माण 850 ई. में किया गया था। यह एक विशाल मस्जिद थी। इसकी ईंटों की बनी हुई मीनार 50 मीटर ऊँची है। मेसोपोटामिया की वास्तुकला की परम्पराओं से प्रेरित यह कई शताब्दियों तक विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद थी।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
इस्लामी राज्य के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य के इतिहास की जानकारी के स्रोत प्रमुख इस्लामी राज्य के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का विवेचन निम्नानुसार है –
1. इतिवृत्त अथवा तवारीख-इस्लामी राज्य के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों में इतिवृत्त अथवा तवारीख तथा अर्द्ध- ऐतिहासिक रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इनमें जीवन-चरित, के पैगम्बर मुहम्मद कथनों और कार्यों के अभिलेख (हदीथ) तथा कुरान के बारे में टीकाएँ सम्मिलित हैं। इन कृतियों का निर्माण प्रत्यक्षदर्शी वृत्तान्तों से किया गया था।
प्रत्येक सूचना की प्रामाणिकता की जाँच एक आलोचनात्मक विधि से की जाती थी जिसमें सूचना भेजने की श्रृंखला की जानकारी प्राप्त की जाती थी और वर्णन करने वाले की विश्वसनीयता का पता लगाया जाता था। मध्यकालीन मुस्लिम लेखकों ने सूचना का चयन करने तथा अपने सूचना देने वालों के अभिप्राय को समझने में अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक सतर्कता दिखाई है। उनका वर्णन अधिक सुनियोजित तथा विश्लेषणात्मक है।
2. प्रमुख ऐतिहासिक और अर्द्ध- ऐतिहासिक रचनाएँ – अधिकतर ऐतिहासिक और अर्द्ध- ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं। इनमें सर्वश्रेष्ठ रचना ‘तबरी की तारीख’ है। इसका 38 खण्डों में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। फारसी भाषा में लिखित इतिवृत्तों में ईरान और मध्य एशिया के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। ईसाई इतिवृत्तों से प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
3. दस्तावेजी साक्ष्य – दस्तावेजी साक्ष्य इस्लामी राज्य के इतिहास के निर्माण के लिए सर्वाधिक उपयोगी हैं क्योंकि इनमें पूर्व चिन्तन कर घटनाओं और व्यक्तियों का वर्णन नहीं होता है। दस्तावेजी साहित्य में सरकारी आदेश अथवा निजी पत्राचार सम्मिलित हैं। दस्तावेजी साक्ष्य यूनानी और अरबी पैपाइरस तथा गेनिजा अभिलेखों से प्राप्त होता है।
4. पुरातत्वीय और अन्य साक्ष्य – पुरातत्वीय (उजड़े महलों में की गई खुदाई), मुद्राशास्त्रीय (सिक्कों के अध्ययन) और पुरालेखीय (शिलालेखों का अध्ययन), साक्ष्य आर्थिक इतिहास, कला इतिहास, नामों और तवारीखों के प्रमाणीकरण के लिए बड़े उपयोगी हैं।
5. पाश्चात्य विद्वानों द्वारा इतिहास लेखन – सही अर्थों में इस्लाम के इतिहास ग्रन्थ लिखे जाने का कार्य उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी तथा नीदरलैण्ड के विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों द्वारा किया गया। कुछ ईसाई पादरियों ने भी इस्लाम के इतिहास से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थ लिखे। प्राच्यविद् नामक विद्वान अरबी और फारसी के ज्ञान के लिए तथा मूल ग्रन्थों के आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध है।
इग्नाज गोल्डजिहर नामक यहूदी ने जर्मन भाषा में इस्लामी कानून और धर्म – विज्ञान के बारे में पुस्तकें लिखीं। इस्लाम के बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने अधिकतर प्राच्यविदों के तरीकों का ही अनुसरण किया है। उन्होंने नये विषयों को सम्मिलित कर इस्लाम के इतिहास के क्षेत्रों का विस्तार किया है और अर्थशास्त्र, मानव-विज्ञान और सांख्यिकी जैसे सम्बद्ध विषयों का प्रयोग करके प्राच्य अध्ययन के अनेक पहलुओं को स्पष्ट किया है।
प्रश्न 2.
पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था। वे कुरैश कबीले से सम्बन्धित थे तथा भाषा और संस्कृति की दृष्टि से अरबी थे। उन्होंने खदीजा नामक एक विधवा स्त्री से विवाह किया था। खुदा का सन्देशवाहक घोषित करना – सन् 612 के आसपास पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आप को खुदा का सन्देशवाहक घोषित किया। उन्होंने यह प्रचार किया कि अल्लाह एक है तथा केवल अल्लाह की ही इबादत ( आराधना) की जानी चाहिए। मक्का के निवासियों द्वारा पैगम्बर मुहम्मद का विरोध – पैगम्बर मुहम्मद ने धार्मिक पाखण्डों तथा अन्धविश्वासों का विरोध किया।
मक्का के व्यापारियों तथा पुजारियों को पैगम्बर मुहम्मद के विचार पसन्द नहीं आए क्योंकि वे अपने आप को व्यापार तथा धर्म के लाभों से वंचित अनुभव करते थे । अतः मक्का के धनी लोगों ने पैगम्बर मुहम्मद का विरोध करना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें देवी-देवताओं की उपेक्षा किया जाना बुरा लगा था तथा उन्होंने नये इस्लाम धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा तथा समृद्धि के लिए खतरा समझा था।
मक्का छोड़कर मदीना जाना – पैगम्बर मुहम्मद के विरोधियों ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। अतः विवश होकर 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद साहब को मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा। पैगम्बर मुहम्मद की इस यात्रा को ‘हिजरा’ कहते हैं। सन् 622 से मुस्लिम कलैण्डर अर्थात् हिजरी सन् की शुरुआत हुई। मदीना पहुँचने पर मुहम्मद साहब का भव्य स्वागत किया गया। मदीना में पैगम्बर मुहम्मद ने इस्लाम का प्रचार किया।
पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था स्थापित की, जिसने उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की। इसके साथ-साथ उन्होंने शहर में चल रही कलह को सुलझाया। अब उम्मा को एक बड़े राजनैतिक समुदाय में बदला गया। इसमें मदीना के बहुदेववादियों तथा यहूदियों को पैगम्बर मुहम्मद के नेतृत्व में लाया गया। मक्का पर विजय – पैगम्बर मुहम्मद ने मक्का परं आक्रमण किया। मक्कावासियों की पराजय हुई और उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। मक्का इस्लाम का तीर्थ-स्थान तथा धार्मिक केन्द्र बन गया।
इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार – मक्का पर अधिकार कर लेने के बाद एक धार्मिक प्रचारक और राजनैतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई। पैगम्बर मुहम्मद ने कर्मकाण्डों जैसे उपवास आदि और नैतिक सिद्धान्तों को बढ़ाकर और उनमें सुधार करके इस्लाम धर्म को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया।
उन्होंने अब समुदाय की सदस्यता के लिए धर्मान्तरण को एकमात्र कसौटी माना। पैगम्बर मुहम्मद की उपलब्धियों से प्रभावित होकर हजारों अरब लोगों ने इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लिया। शीघ्र ही इस्लाम धर्म का प्रसार सम्पूर्ण अरब देश में हो गया। मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी और मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया। काबा से बुतों को हटा दिया गया। 632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय तक लगभग सम्पूर्ण अरब देश ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था।
प्रश्न 3.
पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिये।
उत्तर- पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएँ (इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्त) पैगम्बर मुहम्मद साहब की प्रमुख शिक्षाएँ मुसलमानों के पवित्र ग्रन्थ ‘कुरान शरीफ’ में संकलित हैं । इनका वर्णन निम्नानुसार है –
(1) एक अल्लाह की उपासना – पैगम्बर मुहम्मद के अनुसार केवल एक अल्लाह की ही उपासना की जानी चाहिए।
(2) इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्त – प्रत्येक मुसलमान को इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्तों का पालना करना चाहिए –
- अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है और मुहम्मद साहब उसके पैगम्बर हैं।
- उसे प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
- उसे रमज़ान के महीने में रोज़े रखने चाहिए।
- उसे अपनी आय का 40वाँ भाग गरीबों को दान में देना चाहिए।
- उसे जीवन में एक बार हज के लिए मक्का की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
(3) नैतिक गुणों पर बल – मुसलमानों को झूठ नहीं बोलना चाहिए। उन्हें चोरी नहीं करनी चाहिए। उन्हें खैरात बाँटना चाहिए।
(4) सामाजिक समानता – पैगम्बर मुहम्मद साहब के अनुसार सब मुसलमान समान हैं और भाई-भाई हैं।
(5) मूर्ति – पूजा का विरोध – पैगम्बर मुहम्मद ने मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया। उन्होंने मूर्ति-पूजा को इस्लाम धर्म के विरुद्ध बतलाया।
(6) कर्मवाद तथा परलोक में विश्वास – पैगम्बर मुहम्मद साहब के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कयामत के दिन सभी प्राणी अल्लाह के सामने लाए जाते हैं, जहाँ उनके कर्मों के अनुसार न्याय होता है।
(7) आत्मा की अमरता में विश्वास – इस्लाम धर्म के अनुसार आत्मा अजर तथा अमर है। शरीर नश्वर है, परन्तु आत्मा अमर है।
(8) आस्तिकों के समाज की स्थापना – पैगम्बर मुहम्मद ने आस्तिकों (उम्मा) के ऐसे समाज की स्थापना पर बल दिया, जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के द्वारा आपस में जुड़े हों।
प्रश्न 4.
प्रथम चार खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रथम चार खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य का विस्ता प्रथम चार खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार की विवेचना निम्नानुसार है –
(1) प्रथम खलीफा – प्रथम खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
(2) द्वितीय खलीफा – द्वितीय खलीफा उमर ने उम्मा की सत्ता का विस्तार करने का निश्चय किया।
खलीफा जानता था कि उम्मा को व्यापार और करों से होने वाली साधारण आमदनी के बल पर नहीं चलाया जा सकता। इसके लिए बहुत बड़ी धन – राशि की जरूरत पड़ेगी। यह धन-सम्पत्ति सैनिक अभियानों के द्वारा प्राप्त की जा सकती थी। अतः खलीफा तथा उसके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेन्टाइन साम्राज्य तथा पूर्व में ससानी साम्राज्य के विरुद्ध सैनिक अभियानों की योजना बनाई। अरबों के समय इन साम्राज्यों की शक्ति धार्मिक संघर्षों तथा अभिजात वर्गों के विद्रोहों . के कारण क्षीण हो चुकी थी । इस कारण युद्धों और सन्धियों के माध्यम से इन साम्राज्यों को अपने अधीन लाना सरल हो गया था। अतः तीन सफल अभियानों (637-642 ई.) में अरबों ने सीरिया, इराक, ईरान तथा मिस्र पर अधिकार कर लिया। सामरिक नीति, धार्मिक जोश तथा विरोधियों की दुर्बलताओं के कारण अरबों की विजय हुई
(3) तृतीय खलीफा – तृतीय खलीफा उथमान ( 644-656 ई.) ने अपना नियन्त्रण मध्य एशिया तक बढ़ाने के लिए और अभियान चलाए। इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु के एक दशक के अन्दर अरब-इस्लामी राज्य ने नील तथा ऑक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व तथा नियन्त्रण स्थापित कर लिया। ये प्रदेश आज तक मुस्लिम शासन के अन्तर्गत हैं। लेकिन उसने अपने शासन में मक्का के कुरैश समुदाय के लोगों को भर दिया। इससे इराक, मिस्र तथा मदीना में विरोध उत्पन्न हो जाने के परिणामस्वरूप 656 ई. में उथमान की हत्या कर दी गई।
(4) चतुर्थ खलीफा – चतुर्थ खलीफा अली ने मक्का के अभिजात तन्त्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े, जिनसे मुसलमानों में दरार और गहरी हो गई । अली ने मुहम्मद की पत्नी आयशा की सेना को ‘ऊँट की लड़ाई’ में पराजित कर दिया परन्तु वह उथमान के नातेदार तथा सीरिया के गवर्नर मुआविया के नेतृत्व वाले गुट का दमन नहीं कर सका। अली ने सिफ्फिन में दूसरा युद्ध लड़ा, जो सन्धि के रूप में समाप्त हुआ। 661 में अली की हत्या कर दी गई।
प्रश्न 5.
उमय्यद वंश के खलीफाओं की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
अथना
अब्द-अल-मलिक तथा उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया जाता रहा ।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश के खलीफाओं की उपलब्धियाँ –
661 ई. में मुआविया ने अपने आप को खलीफा घोषित कर दिया तथा उसने उमय्यद वंश की स्थापना की, जो 750 ई. तक चलता रहा। उमय्यद वंश के खलीफाओं की उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –
(1) उमय्यदों ने ऐसे अनेक राजनीतिक उपाय किये, जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व मजबूत हो गया।
(2) प्रथम उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया और फिर बाइजेन्टाइन साम्राज्य की राजदरबारी प्रथाओं और प्रशासनिक संस्थाओं को अपना लिया।
(3) मुआविया ने वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा भी शुरू की और प्रमुख मुसलमानों को इस बात पर राजी कर ‘लिया कि वे उसके पुत्र को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार करें। उसके पश्चात् आने वाले खलीफाओं ने भी इस नीति का अनुसरण किया, जिसके परिणामस्वरूप उमय्यद वंश के खलीफा 90 वर्ष तक और अब्बासी खलीफा दो शताब्दियों तक सत्ता में बने रहे।
(4) उमय्यद – राज्य अब एक साम्राज्यिक शक्ति बन चुका था। अब यह राज्य सीधे इस्लाम पर आधारित नहीं था। अब यह शासन – कला तथा सीरियाई सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था।
(5) प्रशासन में ईसाई सलाहकार तथा जरतुश्त लिपिक और अधिकारी भी सम्मिलित थें। इसके बावजूद इस्लाम उमय्यद शासन को वैधता प्रदान करता रहा। उमय्यद सदैव एकता के लिए प्रयत्नशील रहे तथा विद्रोहों का इस्लाम के नाम पर दमन करते रहे।
(6) उमय्यदों ने अपनी अरबी सामाजिक पहचान बनाए रखी। अब्द-अल-मलिक और उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर दृढ़तापूर्वक बल दिया जाता रहा।
यथा –
(i) अब्द-अल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।
(ii) अब्द-अल-मलिक ने इस्लामी सिक्के जारी किये। इस्लामी राज्य में जो सोने के दीनार तथा चाँदी के दिरहम चल रहे थे, वे रोमन तथा ईरान सिक्कों की नकल थे। इन सिक्कों पर सलीब और अग्नि-वेदी के चिन्ह बने होते थे। अब्द-अल-मलिक ने इन चिन्हों को हटवा दिया और सिक्कों पर अरबी भाषा में लिखा गया।
(iii) अब्द-अल-मलिक ने जेरुस्लम में डोम ऑफ रॉक का निर्माण करवाकर अरब-इस्लामी पहचान के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ‘डोम ऑफ रॉक’ इस्लामी वास्तुकला का पहला उत्कृष्ट नमूना है। जेरुस्लम नगर की मुस्लिम संस्कृति के प्रतीक के रूप में इस इमारत का निर्माण किया गया। पैगम्बर मुहम्मद साहब की स्वर्ग की ओर की रात्रि- (मिराज) से यह इमारत जुड़ गई। यह इसका रहस्यमय महत्त्व है।
प्रश्न 6.
अब्बासी क्रान्ति के लिए कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं?
अथवा
अब्बासी क्रान्ति के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अब्बासी क्रान्ति – उमय्यद वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केन्द्रीकरण के लिए भारी मूल्य चुकाना पड़ा। ‘दवा’ नामक एक सुसंगठित आन्दोलन ने उमय्यद वंश की सत्ता को नष्ट कर दिया। 750 में उमय्यद वंश के स्थान पर अब्बासियों की सत्ता स्थापित हुई। अब्बासियों ने उमय्यद – शासन को दुष्ट बताया और यह दावा किया कि वे पैगम्बर मुहम्मद साहब के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे।
अब्बासी क्रान्ति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ अब्बासी क्रान्ति के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –
(1) खुरासान के अरब नागरिकों में असन्तोष – अब्बासियों का विद्रोह पूर्वी ईरान में स्थित खुरासान में हुआ। खुरासान में अरब – ईरानियों की मिली-जुली आबादी थी। खुरासान में अरब सैनिक अधिकांशतः इराक से आए थे। ये लोग सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे। खुरासान के अरब नागरिक उमय्यद शासन से इसलिए घृणा करते थे कि उमय्यद शासकों ने करों में छूट देने तथा विशेषाधिकार देने के जो वचन दिए थे, वे पूरे नहीं किये थे।
(2) ईरानी मुसलमानों में असन्तोष-खुरासान के ईरानी मुसलमानों को अपनी जातीय चेतना से ग्रस्त अरबों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था। अतः वे भी उमय्यदों से नाराज थे तथा उनकी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किसी भी अभियान में सम्मिलित होने के इच्छुक थे।
अब्बासी क्रान्ति की सफलता – अब्बासी पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे। अब्बासियों ने विभिन्न समूहों का समर्थन प्राप्त कर लिया। उन्होंने लोगों को यह आश्वासन दिया कि पैगम्बर मुहम्मद के परिवार का कोई मसीहा (महदी) उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्ति दिलाएगा। इस प्रकार उन्होंने शासन-सत्ता प्राप्त करने के अपने प्रयत्न को वैध ठहराया। अब्बासियों की सेना का नेतृत्व एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने किया। उसने अन्तिम उमय्यदं खलीफा मारवान को जब नदी पर हुई लड़ाई में पराजित कर दिया। इस प्रकार उमय्यद वंश के स्थान पर अब्बासी वंश की सत्ता स्थापित हुई। इस घटना को ‘अब्बासी क्रान्ति’ कहते हैं।
‘अब्बासी क्रान्ति’ का महत्त्व –
(1) अब्बासी क्रान्ति से केवल वंश का ही परिवर्तन नहीं हुआ, बल्कि इस्लाम के राजनीतिक ढाँचे और उसकी संस्कृति में भी परिवर्तन आए।
(2) अब्बासी क्रान्ति के अन्तर्गत अरबों के प्रभाव में कमी आई, जबकि ईरानी संस्कृति के महत्त्व में वृद्धि हुई।
(3) अब्बासियों ने अपनी राजधानी बगदाद में स्थापित की।
(4) अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अब्बासी शासन में सेना और नौकरशाही का पुनर्गठन गैर- कबीलाई आधार पर किया गया।
(5) अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति और कार्यों को सुदृढ़ बनाया और इस्लामी संस्थाओं तथा विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
(6) अब्बासियों ने उमय्यदों की उत्कृष्ट शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परम्पराओं को बनाए रखा।
प्रश्न 7.
खिलाफत के विघटन पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
खिलाफत का विघटन – अब्बासी राज्य नौवीं शताब्दी से कमजोर होता गया और अब्बासियों की सत्ता सीमित होती गई।
अब्बासी राज्य की कमजोरी के कारण – अब्बासी राज्य की कमजोरी के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) अब्बासी राज्य की कमजोरी का एक कारण यह था कि दूर के प्रान्तों पर उनका नियन्त्रण कम हो गया था।
(2) सेना और नौकरशाही में अरब – समर्थक और ईरान समर्थक गुटों में आपस में झगड़ा हो गया था।
(3) सन् 810 में खलीफा हारुन- अल रशीद के पुत्रों, अमीन और मामुन के समर्थकों के बीच गृह-युद्ध छिड़ गया जिससे गुटबन्दी और अधिक गहरी हो गई और तुर्की गुलाम अधिकारियों का एक नया शक्ति – गुट बन गया। शियाओं और सुन्नियों में सत्ता प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई थी।
(4) अनेक नए छोटे राजवंश स्थापित हो गए। खुरासान और ट्रांसोक्सियाना अर्थात् तूरान अथवा ऑक्सस के पार वाले क्षेत्रों में ताहिरी तथा समानी वंश और मिस्र तथा सीरिया में तुलुनी वंश स्थापित हुए। अब्बासियों की सत्ता शीघ्र ही मध्य इराक तथा पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई।
(5) सन् 945 में ईरान के कैस्पियन क्षेत्र में बुवाही नामक शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अब्बासियों की सत्ता समाप्त हो गई। बुवाही शासकों ने अनेक उपाधियाँ धारण कीं जिनमें ‘शहंशाह’ (राजाओं का राजा) नामक उपाधि भी शामिल थी। परन्तु उन्होंने ‘खलीफा’ की पदवी धारण नहीं की।
उन्होंने अब्बासी खलीफा को अपनी सुन्नी प्रजा के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा। इस प्रकार खिलाफत का विघटन हो गया। फातिमी खिलाफत की स्थापना -बुवाही शासकों द्वारा खिलाफत को समाप्त न करने का निर्णय चतुराईपूर्ण था, क्योंकि फातिमी नामक एक अन्य शिया राजवंश इस्लामी जगत पर शासन करना चाहता था।
फातिमी का सम्बन्ध शिया सम्प्रदाय के एक उप-सम्प्रदाय इस्माइली से था और वे अपने आप को पैगम्बर की पुत्री फातिमा का वंशज मानते थे। इस आधार पर वे दावा करते थे कि वे इस्लाम के एकमात्र न्याय संगत शासक हैं। उन्होंने 969 ई. में मिस्र पर विजय प्राप्त की और फातिमी खिलाफत की स्थापना की। उन्होंने मिस्र की पुरानी राजधानी फुस्तात के स्थान पर काहिरा को राजधानी बनाया। दोनों प्रतिस्पर्द्धा राजवंशों ने शिया प्रशासकों, कवियों और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
प्रश्न 8.
धर्म-युद्ध से क्या अभिप्राय है? धर्म – युद्धों के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- धर्म – युद्ध – 1095 से 1291 ई. के बीच यूरोपीय ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच अनेक युद्ध लड़े गए। इन युद्धों को ‘ धर्म – युद्ध’ के नाम से पुकारा जाता है।
धर्म- युद्धों के कारण
धर्म- युद्धों के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) मुसलमानों द्वारा जेरुस्लम पर अधिकार करना – 638 में अरबों ने जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया था। जेरुस्लम ईसाइयों का पवित्र स्थान था। ईसाई लोग जेरुस्लम को ईसा के क्रूसारोपण तथा पुनरुज्जीवन के स्थान के रूप में हमेशा याद करते थे। अतः ईसाई लोग जेरुस्लम पर पुनः अधिकार करने के लिए लालायित थे।
(2) मुसलमानों के प्रति शत्रुता – ग्यारहवीं शताब्दी में ईसाइयों की मुसलमानों के प्रति शत्रुता और अधिक स्पष्ट हो गई। इस समय तक नार्मनों, हंगरीवासियों तथा अनेक स्लाव लोगों को ईसाई बना लिया गया था। अब केवल मुसलमान मुख्य शत्रु रह गए थे।
(3) पश्चिमी यूरोप के सामाजिक और आर्थिक संगठनों में परिवर्तन – ग्यारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के सामाजिक और आर्थिक संगठनों में भी परिवर्तन हो गया था जिससे ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच शत्रुता और अधिक बढ़ गई।
(4) ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन – पादरी और योद्धा वर्ग के लोग राजनीतिक स्थिरता तथा आर्थिक विकास के लिए प्रयत्नशील थे। ‘ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन’ ने सामन्ती राज्यों के बीच सैनिक मुठभेड़ की सम्भावनाओं और लूटमार की प्रवृत्तियों को समाप्त कर दिया था। अब ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन ने सामन्ती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को ईसाई – जगत से हटाकर ईश्वर के शत्रुओं अर्थात् मुसलमानों की ओर मोड़ दिया था। इसके फलस्वरूप ईसाइयों और मुसलमानों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। ईसाइयों के लिए यह संघर्ष न केवल उचित, बल्कि प्रशंसनीय समझा जाने लगा।
(5) सलजुक-साम्राज्य का विघटन – 1092 ई. में बगदाद के सलजुक सुल्तान मलिक शाह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य का विघटन हो गया। इसके परिणामस्वरूप बाइजेन्टाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम को एशिया माइनर तथा उत्तरी सीरिया पर पुनः आधिपत्य स्थापित करने का अवसर मिल गया।
पोप अबर्न द्वितीय भी ईसाई धर्म के पुनरुत्थान के लिए लालायित था। अतः 1095 में पोप अर्बन द्वितीय ने बाइजेन्टाइन-सम्राट के साथ मिलकर ‘पवित्र भूमि’ (होली लैण्ड) को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध के लिए आह्वान किया। उपर्युक्त कारणों में 1095 तथा 1291 के बीच पश्चिमी यूरोपीय ईसाइयों तथा मुसलमानों में अनेक युद्ध लड़े गए जिन्हें ‘धर्म-युद्ध’ के नाम से पुकारा जाता है।
प्रश्न 9.
धर्म – युद्धों की घटनाओं का वर्णन कीजिए। इन धर्म- युद्धों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
धर्म – युद्धों की घटनाएँ 1095 से 1291 ई. के बीच ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच अनेक धर्म – युद्ध लड़े गए। इनका वर्णन निम्नानुसार –
(1) प्रथम धर्म – युद्ध (1098-99 ई.)-ईसाइयों और मुसलमानों के बीच प्रथम धर्म – युद्ध 1098-99 ई. में शुरू हुआ। इस युद्ध में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक और जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया जेरुस्लम में मुसलमानों और यहूदियों की बड़ी संख्या में निर्ममतापूर्ण हत्याएँ की गईं। शीघ्र ही ईसाइयों ने सीरिया- फिलिस्तीन के क्षेत्र में धर्म- युद्ध द्वारा जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से ‘आउटरैमर’ कहा जाता था। बाद के धर्म – युद्ध आउटरैमर की रक्षा तथा विस्तार के लिए किए गए।
(2) द्वितीय धर्म – युद्ध (1145-1149 ई.)-ईसाइयों द्वारा स्थापित ‘आउटरैमर क्षेत्र’ कुछ समय तक भली- भांति स्थापित रहा। परन्तु जब 1144 ई. में तुर्कों ने एड्रेस्सा पर अधिकार कर लिया तो पोप ने ईसाई राजाओं तथा सामन्तों से एक अन्य धर्म – युद्ध (1145-1149 ई.) के लिए अपील की। पोप की अपील पर एक जर्मन तथा फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा और घर लौटना पड़ा। इसके पश्चात् ‘आउटरैमर’ की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गई। अब ईसाइयों में धर्म- युद्धों के प्रति जोश समाप्त हो गया तथा ईसाई शासकों ने विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करना और नये-नये प्रदेशों के लिए लड़ाई करना शुरू कर दिया।
इस युद्ध के दौरान सलाह अल-दीन ने एक मिस्री – सीरियाई साम्राज्य स्थापित किया और ईसाइयों के विरुद्ध धर्म – युद्ध शुरू कर दिया। 1187 ई. में उसने ईसाइयों को पराजित कर दिया। उसने प्रथम धर्म – -युद्ध . के लगभग एक शताब्दी बाद, जेरुस्लम पर पुनः अधिकार कर लिया। सलाह अल-दीन ने ईसाइयों के प्रति दयामय व्यवहार किया । यद्यपि उसने ‘दि चर्च ऑफ दि होली सेपलकर’ नामक गिरजाघर की देखभाल का काम ईसाइयों को सौंप दिया था, परन्तु अनेक गिरजाघरों को मस्जिदों में बदल दिया गया और जेरुस्लम एक बार फिर मुस्लिम शहर बन गया।
(3) तृतीय धर्म – युद्ध (1189 ई.) – जेरुस्लम शहर के छिन जाने से ईसाइयों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ और इसके फलस्वरूप 1189 ई. में तृतीय धर्म- युद्ध छिड़ गया । परन्तु धर्म- युद्ध करने वाले फिलिस्तीन में कुछ तटवर्ती शहरों और ईसाई तीर्थयात्रियों के लिए जेरुस्लम में मुक्त रूप से प्रवेश के सिवाय और कुछ प्राप्त नहीं कर सके । अन्ततः मिस्र के शासकों तथा मामलूकों ने 1291 में धर्म-युद्ध करने वाले सभी ईसाइयों को सम्पूर्ण फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया। धीरे-धीरे यूरोप की इस्लाम में सैनिक दिलचस्पी समाप्त हो गई और उसका ध्यान अपने आन्तरिक राजनैतिक और सांस्कृतिक विकास की ओर केन्द्रित हो गया।
धर्म- युद्धों के प्रभाव – धर्म – युद्धों ने ईसाई – मुस्लिम सम्बन्धों के निम्नलिखित दो पहलुओं पर स्थायी प्रभाव छोड़ा –
(1) मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनाना शुरू किया जो लड़ाइयों की कड़वी यादों और मिली-जुली आबादी वाले इलाकों में सुरक्षा की जरूरतों का परिणाम था।
(2) मुस्लिम सत्ता की पुनर्स्थापना के पश्चात् भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।
प्रश्न 10.
इस्लामी राज्य में शहरों के विकास तथा शहरी विशेषताओं पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
इस्लामी राज्य में शहरीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में शहरों का विकास – इस्लामी राज्य में शहरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई जिसके फलस्वरूप इस्लामी सभ्यता का विकास हुआ। अनेक नये शहरों की स्थापना की गई जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों को बसाना था। ये स्थानीय प्रशासन की रीढ़ थे। इस श्रेणी के फौजी शहरों में इराक में कुफा तथा बसरा और मिस्र में फुस्तात तथा काहिरा थे। इन शहरों के अतिरिक्त बगदाद, इस्फहान, दमिश्क तथा समरकन्द आदि कुछ पुराने शहर थे जिन्हें नया जीवन मिल गया था।
बगदाद अब्बासी खलीफाओं की राजधानी थी तथा अपनी स्थापना के बाद आधी शताब्दी के अन्दर बगदाद की आबादी बढ़ कर लगभग दस लाख तक पहुँच गई थी। खाद्यान्नों तथा शहरी विनिर्माताओं के लिए कपास और चीनी के उत्पादन में वृद्धि की गई जिससे इन शहरों के आकार और इनकी आबादी में वृद्धि हुई। इस प्रकार इस्लामी राज्य में शहरों का एक विशाल जाल विकसित हो गया। एक शहर दूसरे शहर से जुड़ गया जिससे परस्पर सम्पर्क तथा व्यापार वाणिज्य में वृद्धि हुई।
शहरों की विशेषताएँ – शहर की विशेषताओं को दो भागों में विभाजित किया गया है-
(अ) शहर के आंतरिक क्षेत्र की विशेषताएँ और
(ब) शहर के बाह्य क्षेत्र की विशेषताएँ।
यथा –
(अ) शहर के आंतरिक क्षेत्र की विशेषताएँ – शहर के आंतरिक क्षेत्र की विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –
(1) दो भवन समूह-शहर के केन्द्र में दो भवन – समूह होते थे, जहाँ से सांस्कृतिक तथा आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता था।
- मस्जिद – दो भवन – समूहों में एक मस्जिद (मस्जिद अल- जामी) होती थी। इसमें सामूहिक नमाज पढ़ी जाती थी। यह मस्जिद इतनी बड़ी होती थी कि दूर से दिखाई देती थी
- केन्द्रीय मण्डी (सुक ) – दूसरा भवन – समूह केन्द्रीय मण्डी (सुक) होता था। इसमें दुकानों की पंक्तियाँ, व्यापारियों के आवास (फंदुक) और सर्राफ का कार्यालय होता था। इसमें प्रशासकों, विद्वानों और व्यापारियों के लिए घर होते थे, जो केन्द्र के निकट बने होते थे।
(2) आंतरिक क्षेत्र का बाहरी घेरा – सामान्य नागरिकों तथा सैनिकों के रहने के क्वार्टर बाहरी घेरे में होते थे। प्रत्येक इकाई की अपनी मस्जिद, गिरजाघर अथवा सिनेगोग, (यहूदी प्रार्थना – घर), छोटी मण्डी, सार्वजनिक स्नान-घर (हमाम) और एक महत्त्वपूर्ण सभा स्थल होता था।
(ब) शहर के बाह्य क्षेत्र की विशेषताएँ –
- शहर के बाहरी क्षेत्रों में शहरी गरीबों के मकान, हरी सब्जियों और फलों के बाजार, काफिलों के ठिकाने, चमड़ा साफ करने या रंगने की दुकानें और कसाई की दुकानें होती थीं।
- शहर की चारदीवारी के बाहर कब्रिस्तान और सरायें होते थे। सराय में लोग उस समय आराम कर सकते थे, जब शहर के दरवाजे बन्द कर दिये जाते थे। सभी शहरों के मानचित्र एक जैसे नहीं होते थे। इस मानचित्र में परिदृश्य, राजनीतिक परम्पराओं और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर परिवर्तन किये जा सकते थे।
प्रश्न 11.
इस्लामी राज्य में व्यापार-वाणिज्य के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में व्यापार वाणिज्य का विकास राजनीतिक एकीकरण और खाद्य पदार्थों और विलास – वस्तुओं की शहरी मांग ने विनिमय के दायरे का विस्तार कर दिया था । भूगोल ने मुस्लिम साम्राज्य की सहायता की, जो हिन्द महासागर और भूमध्य सागर के व्यापारिक क्षेत्रों के बीच फैल गया। पाँच शताब्दियों तक अरब और ईरानी व्यापारियों का चीन, भारत तथा यूरोप के बीच के समुद्री व्यापार पर. एकाधिकार रहा।
(1) व्यापार – मार्ग – यह व्यापार दो मुख्य मार्गों – लाल सागर तथा फारस की खाड़ी से होता था। लम्बी दूरी के व्यापार के लिए मसालों, कपड़ों, चीनी मिट्टी की वस्तुओं तथा बारूद को भारत और चीन से लाल सागर के पत्तनों (अदन और एधाब तक) और फारस की खाड़ी के पत्तनों (सिराफ तथा बसरा) तक जहाजों द्वारा लाया जाता था । यहाँ से माल को जमीन पर ऊँटों के काफिलों द्वारा बगदाद, दमिश्क और एलेप्पो के भण्डार- -गृहों तक स्थानीय खपत हेतु अथवा आगे भेजने हेतु ले जाया जाता था । हज की यात्रा के समय मक्का के रास्ते से गुजरने वाले काफिले बड़े हो जाते थे।
इन व्यापारिक मार्गों के भूमध्य सागर के सिरे पर सिकन्दरिया के पत्तन से यूरोप को किए जाने वाले निर्यात को यहूदी व्यापारियों द्वारा नियन्त्रित किया जाता था। उनमें से कुछ भारत से सीधे व्यापार करते थे। चौथी शताब्दी से व्यापार एवं शक्ति केन्द्र के रूप में काहिरा के उभरने के कारण तथा इटली के व्यापारिक शहरों से पूर्वी माल की बढ़ती हुई माँग के कारण लाल सागर के मार्ग ने अधिक महत्त्व प्राप्त कर लिया।
पूर्वी सिरे का जहाँ तक सम्बन्ध है, ईरानी व्यापारी मध्य एशियाई और चीनी वस्तुएँ लाने के लिए बगदाद से बुखारा और समरकन्द (तूरान) होते हुए रेशम मार्ग से चीन जाते थे। तूरान भी वाणिज्यिक तन्त्र में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था। यह तन्त्र फर और स्लाव गुलामों के व्यापार के लिए उत्तर में रूस तथा स्केंडीनेविया तक फैला हुआ था । इन बाजारों में तुर्क गुलाम (दास और दासियाँ) भी खलीफाओं तथा सुल्तानों के दरबारों के लिए खरीदे जाते थे।
(2) सिक्के – राजकोषीय प्रणाली (राज्य की आय और व्यय) और बाजार के लेन-देन ने इस्लामी राज्यों में धन का महत्त्व बढ़ा दिया था। इस्लामी राज्यों में सोने, चाँदी तथा ताँबे (फुलस) के सिक्के बनाए जाते थे। वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य चुकाने के लिए प्राय: ये सिक्के सर्राफों द्वारा सीलबन्द किए गए थैलों में भेजे जाते थे। सोना अफ्रीका (सूडान) से तथा चाँदी मध्य एशिया से आती थी।
बहुमूल्य धातुएँ तथा सिक्के यूरोप से भी आते थे। पूर्वी व्यापार की वस्तुओं को खरीदने के लिए यूरोप इन सिक्कों की अदायगी करता था । धन की बढ़ती हुई माँग ने लोगों को अपने संचित भण्डारों तथा निरर्थक पड़ी सम्पत्ति का उपयोग करने के लिए बाध्य कर दिया। उधार का कारोबार भी मुद्राओं के साथ जुड़ गया जिससे वाणिज्य गतिशील हो गया।
(3) साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग – मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया। व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए साख-पत्रों (सक्क) तथा हुण्डियों (बिल ऑफ एक्सचेंज – सुफतजा ) का उपयोग किया जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को प्रत्येक स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई और इससे उनकी यात्राएँ पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गईं। खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चारणों को इनाम देने के लिए साख-पत्रों (सक्क) का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 12.
कागज और गेनिजा अभिलेख इतिहास-लेखन में किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हुए?
उत्तर:
(1) कागज की इतिहास-लेखन में उपयोगिता – कागज के आविष्कार के पश्चात् इस्लामी जगत में लिखित रचनाओं का व्यापक रूप से प्रसार होने लगा। कागज का आविष्कार चीनियों ने किया था, जहाँ कागज बनाने की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया था। 751 ई. में समरकन्द के मुसलमान प्रशासक ने 20 हजार चीनी आक्रमणकारियों को बन्दी बना लिया, जिनमें से कुछ कागज बनाने में अत्यन्त निपुण थे।
अतः अगले सौ वर्षों के लिए, समरकन्द का कागज निर्यात की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु बन गया। समरकन्द के अतिरिक्त अन्य मुस्लिम राज्यों में भी कागज का निर्माण किया जाने लगा। धीरे-धीरे कागज की माँग बढ़ती गई । प्रसिद्ध विद्वान और चिकित्सक अब्द-अल-लतीफ ने लिखा है कि मिस्र के किसानों ने ममियों के ऊपर लपेटे गए लिनन से बने हुए आवरण प्राप्त करने के लिए कब्रों को बुरी तरह लूटा था, ताकि वे लिनन से बने हुए इन आवरणों को कागज के कारखानों को बेच सकें।
(2) गेनिजा अभिलेखों की इतिहास-लेखन में उपयोगिता – जब कागज बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो गया, तो सभी प्रकार के वाणिज्यिक और निजी दस्तावेजों को लिखना भी सुविधाजनक हो गया। 1896 में फुस्तात ( पुराना काहिरा) में बेन एजरा के यहूदी प्रार्थना – भवन के एक सीलबन्द कमरे (गेनिजा ) में मध्यकालीन यहूदी दस्तावेजों का एक विशाल संग्रह प्राप्त हुआ। गेनिजा में लगभग ढाई लाख पाण्डुलिपियाँ तथा उनके टुकड़े थे, जिनमें कई आठवीं शताब्दी मध्यकाल की भी थीं।
अधिकांश सामग्री दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक की थी अर्थात् फातिमी, अयूबी तथा प्रारम्भिक मामलुक काल की थी। निजा अभिलेखों में व्यापारियों, परिवार के सदस्यों और मित्रों के बीच लिखे गए पत्र, संविदा, बिक्री – दस्तावेज आदि शामिल थे। अधिकतर दस्तावेज यहूदी – अरबी भाषा में लिखे गए थे, जो हिब्रू अक्षरों में लिखी जाने वाली अरबी भाषा का ही रूप था, जिसका उपयोग सम्पूर्ण मध्यकालीन भूमध्यसागरीय क्षेत्र में यहूदी समुदायों द्वारा सामान्यतया किया जाता था।
गेनिजा दस्तावेज निजी और आर्थिक अनुभवों से भरे हुए हैं और वे भूमध्यसागरीय और इस्लामी संस्कृति की आन्तरिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं । इन दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि मध्यकालीन इस्लामी जगत के व्यापारियों के व्यापारिक कौशल तथा वाणिज्यिक तकनीकें उनके यूरोपीय प्रतिद्वन्द्वियों की तुलना में बहुत अधिक उन्नत थीं । गेटिन निजा अभिलेखों का प्रयोग करते हुए ‘भूमध्य सागर का इतिहास’ कई संग्रहों में लिखा। गेनिजा के एक पत्र से प्रेरित होकर अमिताभ घोष ने अपनी पुस्तक ‘इन एन एंटीक लैण्ड’ में एक भारतीय गुलाम की कहानी का वर्णन किया है।
प्रश्न 13.
बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान अब्द-अल-लतीफ द्वारा बताए गए आदर्श विद्यार्थी के गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदर्श विद्यार्थी के गुण बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान अब्द-अल-लतीफ द्वारा बताए गए आदर्श विद्यार्थी के गुणों का वर्णन निम्नानुसार है –
(1) ज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्यापकों का सहारा लेना- अब्द-अल-लतीफ के अनुसार एक आदर्श विद्यार्थी को बिना किसी की सहायता के, केवल पुस्तकों से ही विज्ञान न सीखना चाहिए, चाहे उसको समझने की अपनी योग्यता पर विश्वास हो। उसे प्रत्येक विषय के लिए, जिसका ज्ञान वह प्राप्त करना चाहता हो, अध्यापकों का सहारा लेना चाहिए। यदि उसके अध्यापकों का ज्ञान सीमित हो, तो जो कुछ वह दे सकता है, उसे प्राप्त कर लेना चाहिए। जब तक उसको उससे अधिक योग्य अध्यापक न मिल जाए उसे अपने अध्यापक का आदर और सम्मान करना चाहिए।
(2) पुस्तक को कण्ठस्थ करना – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार आदर्श विद्यार्थी जब कोई पुस्तक पढ़े, तो उसे कण्ठस्थ करने और उसके अर्थ पर पूर्ण अधिकार कर लेना चाहिए। पुस्तक खोने की अवस्था में पुस्तक कण्ठस्थ होने पर उसे कुछ भी हानि नहीं होगी।
(3) इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करना – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार आदर्श विद्यार्थी को इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। उसे जीवनियों तथा राष्ट्रों के अनुभवों का अध्ययन करना चाहिए।
(4) पैगम्बर की जीवनी का अध्ययन करना – अब्द-अल-लतीफ का कहना है कि आदर्श विद्यार्थी को अपना आचरण प्रारम्भिक मुसलमानों के आचरण के अनुरूप बनाना चाहिए। इसलिए, उसे पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी का अध्ययन करना चाहिए तथा उनके पद चिन्हों पर चलना चाहिए।
(5) अपने स्वभाव पर अविश्वास करना – आदर्श विद्यार्थी को अपने स्वभाव के बारे में अच्छी राय रखने की बजाय, उस पर बार-बार अविश्वास करना चाहिए। उसे अपना ध्यान विद्वान लोगों और उनकी रचनाओं पर लगाना चाहिए। उसे बहुत सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए और कभी भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
(6) अल्लाह का गुणगान करना – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार जब आदर्श व्यक्ति ने अपना अध्ययन तथा चिन्तन-मनन पूरा कर लिया हो, तो अपनी जीभ को अल्लाह का नाम लेने के कार्य में व्यस्त रखना चाहिए और अल्लाह का गुणगान करना चाहिए।
(7) ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता, वह अपने पीछे अपनी सुगन्ध छोड़ जाता है, जो उसके मालिक का पता बता देती है। ज्ञान प्रकाश और कान्ति की किरण ज्ञानी पर चमकती रहती है और उसकी ओर संकेत करती रहती है।
प्रश्न 14.
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में साहित्य के क्षेत्र में हुई उन्नति का वर्णन कीजिए।
अथवा
“नौवीं शताब्दी से अदब के दायरे का विस्तार किया गया और उसमें जीवनियों, आचार-संहिताओं, राजकुमारों की शासन कला की शिक्षा देने वाली पुस्तकों और सबसे ऊपर इतिहास और भूगोल को शामिल किया गया। ” विवेचना कीजिए –
उत्तर:
अदब से आशय – अदब का अर्थ है – साहित्यिक और सांस्कृतिक परिष्कार। अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य और गद्य दोनों शामिल थे। इस्लाम पूर्व काल की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा, ‘कसीदा’ थी जिसे अब्बासी काल के कवियों ने विकसित किया था। फारस के मूल कवियों ने अरबी कविता का पुनः आविष्कार किया। समानी राजदरबार के कवि रुदकी ने गजल, रुबाई जैसे नए रूप शामिल किए। उमर खय्याम ने रुबाई को उच्चता प्रदान की। गजनी के महमूद के काल में काव्यसंग्रहों और महाकाव्यों की रचना हुई। इस काल में फिरदौसी ने ‘शाहनामा’ की रचना की। इसके अतिरिक्त अनेक किस्से-कहानियों की रचनाएँ भी हुईं।
अदब के दायरे का विस्तार –
(1) इतिहास का अध्ययन – इस्लामी राज्य में नौवीं शताब्दी में अदब के दायरे का विस्तार हुआ और अनेक जीवनियों, आचार-संहिताओं, शासन कला से सम्बन्धित पुस्तकों, ऐतिहासिक ग्रन्थों आदि की रचना की गई। शिक्षित मुस्लिम समाजों में इतिहास लिखने की परम्परा स्थापित थी। विद्यार्थी, विद्वान तथा सुशिक्षित लोग इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करते थे। इतिहास शासकों तथा अधिकारियों के लिए किसी वंश की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने वाले कार्यों तथा उपलब्धियों का विवरण तथा प्रशासन की तकनीकों के उदाहरण प्रस्तुत करता था।
बालाधुरी कृत ‘अनसब अल – अशरफ’ (सामन्तों की वंशावलियाँ) तथा ताबरी कृत तारीख ‘अल- मुलुक’ (पैगम्बरों और राजाओं का इतिहास ) इतिहास के दो प्रमुख ग्रन्थ थे, जिनमें सम्पूर्ण मानव – इतिहास का वर्णन किया गया है। इनमें इस्लामी काल केन्द्र – बिन्दु है। स्थानीय इतिहास लेखन की परम्परा का विकास खिलाफत के विघटन के पश्चात् हुआ। इस्लामी राज्यों की एकता तथा विविधता की खोज के लिए फारसी में वंशों, नगरों और प्रदेशों के सम्बन्ध में अनेक पुस्तकें लिखी गईं।
(2) भूगोल और यात्रा – वृत्तान्त – भूगोल और यात्रावृत्तान्त (रिहला) अदब की एक विशेष विधा थे। इनमें यूनानी, ईरानी तथा भारतीय पुस्तकों के ज्ञान और व्यापारियों तथा यात्रियों के विचार और कथन शामिल थे। गणितीय भूगोल में संसार को भूमध्य रेखा के समानान्तर हमारे तीन महाद्वीपों के अनुरूप, सात प्रकार की जलवायु में विभाजित किया गया। प्रत्येक शहर की यथार्थ स्थिति का वर्णन खगोल वैज्ञानिक तरीके से किया गया।
मुकदसी ने अपने ग्रन्थ ‘अहसान – अल- तकसीम’ अथवा ‘सर्वोत्तम विभाजन’ में विश्व के सभी देशों के लोगों का तुलनात्मक अध्ययन किया है और विदेशों के बारे में वांछित जिज्ञासाओं को शान्त करने का प्रयास किया है। मसूदी ने अपनी पुस्तक ‘मुरुज अल – धाहाब’ में विश्व की संस्कृतियों की व्यापक विविधता दिखाने के लिए भूगोल और सामान्य इतिहास को मिला दिया था। अल्बरुनी ने ‘तहकीक मा लिल – हिंद’ ( भारत का इतिहास ) नामक पुस्तक लिखी जिसमें 11वीं शताब्दी के एक मुस्लिम लेखक का इस्लाम की दुनिया से बाहर देखने और यह जानकारी प्राप्त करने का सबसे बड़ा प्रयास था कि एक अन्य सांस्कृतिक परम्परा में क्या चीज बहुमूल्य है।
प्रश्न 15.
मध्यकालीन इस्लामी वास्तुकला की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘मध्यकालीन इस्लामी राज्य में वास्तुकला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। इस काल में अनेक मस्जिदों, राजमहलों, मकबरों आदि का निर्माण किया गया। मध्यकालीन इस्लामी वास्तुकला की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नानुसार है –
(1) मस्जिद – धार्मिक इमारतें इस्लामी जगत् की सबसे बड़ी बाहरी प्रतीक थीं। स्पेन से लेकर मध्य एशिया तक फैली मस्जिदों, इबादतगाहों और मकबरों का आधारभूत नमूना एक जैसा था। इसकी विशेषताएँ थीं-मेहराबें, गुम्बद, मीनार और खुले सहन। ये इमारतें मुसलमानों की आध्यात्मिक और व्यावहारिक आवश्यकताओं को प्रकट करती थीं
(i) इस्लाम की पहली शताब्दी में मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्प का रूप (खम्भों के सहारे वाली छत ) धारण कर लिया था। मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था। इस प्रांगण में एक फव्वारा अथवा जलाशय बनाया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता था, जिसमें प्रार्थना करने वाले लोगों और प्रार्थना ( नमाज) का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति (इमाम) के लिए काफी स्थान होता था।
(ii) बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं- दीवार में एक मेहराब जो मक्का (काबा) की दिशा का संकेत देती थी तथा एक मंच (मिम्बर) जहाँ से शुक्रवार की दोपहर की नमाज के समय प्रवचन दिए जाते थे। इमारत में एक मीनार जुड़ी होती थी जिसका उपयोग नियत समय पर नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए किया जाता था। मीनार नए धर्म के अस्तित्व का प्रतीक थी। शहरों और गाँवों में लोग समय का अनुमान पाँच दैनिक नमाजों की सहायता से लगाते थे । वर्तमान समय में भी मस्जिद की ये विशेषताएँ दिखाई देती हैं।
(iii) केन्द्रीय प्रांगण (इवान) के चारों ओर बनी इमारतों के निर्माण का स्वरूप न केवल मस्जिदों और मकबरों में बल्कि सरायों, अस्पतालों और महलों में भी पाया जाता था।
(2) महल –
(i) उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थलीय महल’ बनाए। इनमें फिलिस्तीन में ‘खिरबत अल-मफजर’ और जोर्डन में ‘कुसाईर अमरा’ उल्लेखनीय थे। ये महल ऐश्वर्यपूर्ण निवास-स्थानों और शिकार तथा मनोरंजन के लिए विश्रामस्थलों के रूप में काम आते थे। महलों को चित्रों, प्रतिमाओं तथा पच्चीकारी से सजाया जाता था।
(ii) अब्बासियों ने समरा में बागों और बहते हुए पानी के बीच एक नया शाही शहर बनाया जिसका उल्लेख खलीफा हारुन-अल- रशीद से जुड़ी कहानियों और आख्यानों में मिलता है।
(iii) अब्बासियों ने बगदाद में तथा फातिमियों ने काहिरा में विशाल महल बनवाये, परन्तु अब इनका अस्तित्व नहीं –
(3) कला के दो रूपों को बढ़ावा मिलना- इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के दो रूपों को बढ़ावा मिला-खुशनवीसी (सुन्दर लिखने की कला) तथा अरेबस्क (ज्यामितीय तथा वनस्पतीय डिजाइन)। इमारतों को सुसज्जित करने हेतु प्रायः धार्मिक उद्धरणों का शिलालेखों में उपयोग किया जाता था। कुरान की आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों की पाण्डुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सुरक्षित रखा गया है। ‘किताब-अल- अधानी’ (गीत-पुस्तक), ‘कलीला व दिमना’, ‘हरिरी की मकामात’ जैसी साहित्यिक रचनाओं को लघु चित्रों से सजाया गया था। इसके अतिरिक्त पुस्तकों के सौन्दर्य में वृद्धि हेतु चित्रावली की अनेक तकनीकें शुरू की गई थीं। इमारतों और पुस्तकों के चित्रण में पौधों और फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था।