JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )
प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में सबसे ठण्डा स्थान कौन-सा है?
(A) श्रीनगर
(B) शिमला
(C) द्रास
(D) शिलांग
उत्तर:
(C) द्रास।

2. भारत में सबसे गर्म स्थान कौन-सा है?
(A) नागपुर
(B) बंगलुरु
(C) बाड़मेर
(D) कानपुर
उत्तर:
(C) बाड़मेरर।

3. ग्रीष्मकालीन मानसून की दिशा कौन-सी है?
(A) दक्षिण-पश्चिम
(B) उत्तर-पूर्व
(C) दक्षिण-पूर्व
(D) उत्तर-पश्चिम
उत्तर:
(A) दक्षिण-पश्चिम

4. काल बैसाखी किस राज्य से सम्बन्धित है?
(A) केरल
(C) तमिलनाडु
(B) असम
(D) पंजाब
उत्तर:
(A) पेरू

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5. एलनीनो किस देश के तट पर प्रवाहित है?
(A) पेरू
(B) दक्षिण अफ्रीका
(C) आस्ट्रेलिया
(D) यूरोप
उत्तर:
(C) बाड़मेर।

6. उत्तर – पश्चिम भारत में शीतकाल में कौन-सी वर्षा होती है?
(A) संवाहिक
(C) चक्रवातीय
(B) पर्वतीय
(D) पूर्व – मानसून
उत्तर;
(C) चक्रवातीय।

7. शीतकालीन चक्रवातीय वर्षा किस फसल की उपज के लिए लाभदायक है?
(A) चावल
(B) मक्का
(C) गेहूं
(D) कपास
उत्तर:
(C) गेहूं।

8. कर्नाटक राज्य में पूर्व- मानसून वर्षा को कहते हैं
(A) चक्रवातीय
(B) काल बैसाखी
(C) लू
(D) आम की बौछार
उत्तर:
(D) आम की बौछार।

9. किस स्थान पर अधिकतर वर्षा हिमपात में होती है?
(A) अमृतसर
(B) शिमला
(C) लेह
(D) कोलकाता
उत्तर:
(C) लेह

10. किस राज्य में लू चलती है?
(A) मध्यप्रदेश
(B) तमिलनाडु
(C) पंजाब
(C) गुजरात
उत्तर:
(C) पंजाब।

11. कौन-सा क्षेत्र वर्षा छाया क्षेत्र है?
(A) दक्कन पठार
(B) असम
(C) गुजरात
(D) केरल
उत्तर:
(A) दक्कन पठार।

12. उत्तर-पश्चिमी भारत से कब मानसून पवनें पीछे हटती हैं?
(A) जनवरी में
(B) अगस्त में
(C) अक्तूबर में
(D) अप्रैल में
उत्तर:
(C) अक्तूबर में।

13. भारत में मानसून पवनों की अवधि है
(A) 61 दिन
(B) 90 दिन
(C) 120 दिन
(D) 150 दिन
उत्तर:
(C) 120 दिन

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14. जाड़े के आरम्भ में तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा किस कारण होती है?
(A) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(C) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून
(D) स्थानीय वायु परिसरण।
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में किस प्रकार का जलवायु मिलता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 2.
भारत के मध्य से कौन-से अक्षांश की अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 3.
कर्क रेखा द्वारा निर्मित दो जलवायु क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 4.
भारत में सबसे गर्म स्थान का नाम बताएं।
उत्तर:
राजस्थान में बाड़मेर (50° C)।

प्रश्न 5.
भारत में सबसे अधिक ठण्डे स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
द्रास (कारगिल) 45°C 1

प्रश्न 6.
भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
चिरापूंजी के निकट मासिनराम – 1080 सेंटीमीटर वर्षा

प्रश्न 7.
उस राज्य का नाम लिखो जहां सबसे कम तापमान अन्तर होता है।
उत्तर:
केरल

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प्रश्न 8.
भारत में सम जलवायु वाले तटीय राज्य का नाम लिखो।
उत्तर:
तमिलनाडु

प्रश्न 9.
देश के आन्तरिक भाग के एक राज्य का नाम लिखो जहां महाद्वीपीय जलवायु है।
उत्तर:
पंजाब।

प्रश्न 10.
उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा का क्या कारण है?
उत्तर;
उत्तर-पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात)।

प्रश्न 11.
भारत के दक्षिण पूर्व तट पर सर्दियों में होने वाली वर्षा का कारण लिखें।
उत्तर:
उत्तर- पूर्व मानसून।

प्रश्न 12.
मानसून शब्द कहां से बना?
उत्तर:
अरबी भाषा का शब्द – मौसिम।

प्रश्न 13.
किस प्रकार की पवनें मानसून होती हैं?
उत्तर:
मौसमी पवनें।

प्रश्न 14.
गर्मियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर – पूर्व

प्रश्न 15.
सर्दियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर;
उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम।

प्रश्न 16.
ऊपरी वायुमण्डल की वायुराशि बताओ जो भारत में मानसून पवनें लाती है।
उत्तर:
जैट प्रवाह

प्रश्न 17.
उस राज्य का नाम बतायें जो सबसे पहले दक्षिण-पश्चिम मानसून प्राप्त करता है।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 18.
एक राज्य बताओ जहां से मानसून पवनें सबसे पहले लौटती हैं।
उत्तर:
पंजाब

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प्रश्न 19.
मानसून वर्षा पर निर्भर रहने वाली दो खरीफ़ फसलों के नाम लिखो।
उत्तर: चावल और मक्का।

प्रश्न 20.
भारत में चार वर्षा वाले महीने लिखो।
उत्तर:
जून से सितम्बर।

प्रश्न 21.
200 cm से अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
पश्चिमी तट, उत्तर पूर्व पहाड़ी क्षेत्र।

प्रश्न 22.
नार्वेस्टर तथा काल बैसाखी कहां चलते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल तथा असम

प्रश्न 23.
पूर्व – मानसून पवनों की वर्षा का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
Mango Showers.

प्रश्न 24.
किन प्रदेशों में शीतकाल में रात को पाला पड़ता है?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 25.
लू से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गर्मियों में गर्म धूल भरी चलने वाली पवनें।

प्रश्न 26.
उस क्षेत्र का नाम बताओ जो दोनों ऋतुओं में वर्षा प्राप्त करता है।
उत्तर:
तमिलनाडु।

प्रश्न 27.
जलवायु से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी स्थान पर लम्बे समय का औसत मौसम

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प्रश्न 28.
मानसून प्रस्फोट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम मानसून का अचानक पहुंचना।

प्रश्न 29.
अक्तूबर गर्मी से क्या भाव है?
उत्तर;
अधिक आर्द्रता तथा गर्मी के कारण अक्तूबर का घुटन भरा मौसम।

प्रश्न 30.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों द्वारा किन तटीय प्रदेशों में प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा

प्रश्न 31.
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु की क्या मुख्य विशेषता है?
उत्तर:
गर्म आर्द्र गर्मियां तथा ठण्डी शुष्क सर्दियां।

प्रश्न 32.
उन पवनों का नाम बताओ जो ग्रीष्म ऋतु में चलती हैं।
उत्तर:
समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली दक्षिण पश्चिम मानसून।

प्रश्न 33.
भारतीय जलवायु में विशाल विविधता क्यों है?
उत्तर:
विशाल आकार के कारण।

प्रश्न 34.
देश के किस भाग में ‘लू’ चलती है?
उत्तर:
उत्तरी मैदान।

प्रश्न 35.
उन दो शाखाओं के नाम बतायें जिनमें दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें विभाजित होती हैं।
उत्तर:

  1. बंगाल की खाड़ी शाखा
  2. अरब सागर शाखा।

प्रश्न 36.
उन पवनों का नाम बताओ जो तमिलनाडु में वर्षा प्रदान करती हैं।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून।

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प्रश्न 37.
वृष्टि छाया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों की विमुख ढलान।

प्रश्न 38.
वृष्टि छाया क्षेत्र का एक नाम बतायें।
उत्तर:
दक्कन पठार

प्रश्न 39.
किस पर्वत के कारण दक्कन पठार वृष्टि छाया है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

प्रश्न 40.
प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतर कुएं क्यों सूख जाते हैं तथा नदियां छोटे मार्ग में क्यों सिकुड़ जाती हैं?
उत्तर:
अधिक गर्मी होने के कारण

प्रश्न 41.
पठार तथा पहाड़ियां गर्मियों में ठण्डे क्यों होते है ?
उत्तर:
अधिक ऊंचाई होने के कारण।

प्रश्न 42.
सम में कौन-सी फसल गर्मियों की वर्षा से लाभ प्राप्त करती है?
उत्तर:
चाय

प्रश्न 43.
Mango Showers किन फसलों के लिये लाभदायक है?
उत्तर:
चाय तथा कहवा

प्रश्न 44.
भारत में जून सबसे अधिक गर्म महीना होता है जुलाई नहीं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि जुलाई महीने में भारी वर्षा होने के कारण तापमान 10°C तक कम हो जाता है।

प्रश्न 45.
कौन – सा तटीय मैदान दक्षिण पश्चिम मानसून से अधिकतर वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 46.
पूर्व मानसून से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानसून का समय से पहले आने के कारण कुछ स्थानीय पवनें पूर्व – मानसून वर्षा करती हैं।

प्रश्न 47.
बाड़मेर (राजस्थान) में दिन का उच्चतम तापमान कितना है?
उत्तर:
50°C.

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प्रश्न 48.
कारगिल (कश्मीर) में दिसम्बर मास में रात का तापमान कितना है?
उत्तर:
40°C.

प्रश्न 49.
मासिनराम (मेघालय) में वार्षिक वर्षा कितनी है?
उत्तर:
1080 सें०मी०।

प्रश्न 50.
भारत के किस भाग में शीतकाल में उच्च वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर- पश्चिमी भारत।

प्रश्न 51.
भारत में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
मासिनराम (मेघालय)।

प्रश्न 52.
जेट प्रवाह की फरवरी मास में स्थिति बताओ।
उत्तर:
25°N अक्षांश।

प्रश्न 53.
भारत में जुलाई मास में किस भाग में न्यून वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत|

प्रश्न 54.
उत्तरी भारत से कब मानसून पवनें लौटती हैं?
उत्तर:
सितम्बर मास में।

प्रश्न 55.
भारत के किस भाग में पश्चिमी विक्षोभ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत।

प्रश्न 56.
भारत के किस भाग में शीतकाल में लौटती मानसून पवनें वर्षा करती हैं?
उत्तर:
कोरोमण्डल तट पर।

प्रश्न 57.
इलाहाबाद नगर के समीप कौन-सी सम-वर्षा रेखा स्थित है?
उत्तर:
100 सेंमी०।

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प्रश्न 58.
राजस्थान में वर्षा की परिवर्तनशीलता का गुणांक क्या है?
उत्तर:
50-80 प्रतिशत।

प्रश्न 59.
लू भारत में कब चलती है?
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु में (मई-जून)।

प्रश्न 60.
भारत के किन राज्यों में ‘आम्र वर्षा’ होती है?
उत्तर:
केरल, कर्नाटक एवं गोआ।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ है मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना मानसून व्यवस्था के अनुसार पवनें या मौसमी पवनें (Seasonal winds) चलती हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती है। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं।

  1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानसून पवनें, कम वायु दाब क्षेत्र तथा उच्च वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
  3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में उष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा होना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान मासिनराम ( Mawsynram) है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1080 सें० मी० है। यह स्थान मेघालय में खासी पहाड़ियों की दक्षिणी ढाल कर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मासिनराम में वर्षा की मात्रा 1080 सें०मी० है।

प्रश्न 4.
भारतीय मानसून की तीन प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय मानसून व्यवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. वायु दिशा में परिवर्तन ( मौसम के अनुसार )।
  2. मानसून पवनों का अनिश्चित तथा संदिग्ध होना।
  3. मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायु की व्यापक एकता।

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प्रश्न 5.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किस भाग में वे जाड़े की ऋतु में वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
वायु मण्डलों की स्थायी दाब पेटियों में कई प्रकार के विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी विक्षोभ भी एक प्रकार के निम्न दाब केन्द्र (चक्रवात) हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं ये चक्रवात पश्चिमी जेट प्रवाह (Jet Stream) के कारण पूर्व की ओर ईरान, पाकिस्तान तथा भारत की ओर आते हैं। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में जाड़े की ऋतु में ये चक्रवात क्रियाशील होते हैं। इन चक्रवातों के कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में वर्षा होती है । यह वर्षा रबी की फसल (Winter Crop) विशेषकर गेहूं के लिए बहुत लाभदायक होती है। औसत वर्षा 20 सें० मी० से 50 सें० मी० तक होती है

प्रश्न 6.
लू (Loo) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लू एक स्थानीय हवा है। यह ग्रीष्मकाल में उत्तरी भारत के कई भागों में दिन के समय चलती है। यह एक प्रबल, गर्म, धूल भरी हवा है जिसके कारण प्रायः तापमान 40°C से अधिक रहता है। लू की गर्मी असहनीय होती है जिससे प्रायः लोग इस से बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 7.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसून पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। यहां ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Monsoon Burst) कहा जाता है क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े ज़ोर की वर्षा होती है । जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो।

प्रश्न 8.
मानसूनी वर्षा की तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मानसूनी वर्षा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  1. मौसमी वर्षा
  2. अनिश्चित वर्षा
  3. वर्षा का असमान वितरण
  4. वर्षा का लगातार न होना
  5. तट से दूर क्षेत्रों में कम वर्षा होना।

प्रश्न 9.
भारत में कितनी ऋतुएं होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर कोई अन्तर मिलता है? अगर हां तो क्यों?
उत्तर:
भारत के मौसम को ऋतुवत् ढांचे के अनुसार चार ऋतुओं में बांटा जाता है।

  1. शीत ऋतु – दिसम्बर से फरवरी तक
  2. ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक
  3. वर्षा ऋतु – मध्य जून से मध्य सितम्बर तक
  4. शरद् ऋतु – मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक।

इन ऋतुओं की अवधि में प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की ऋतुओं की अवधि में अन्तर पाया जाता है। दक्षिणी भारत में कोई स्पष्ट शीत ऋतु ही नहीं होती। तटीय भागों में कोई ऋतु परिवर्तन नहीं होता दक्षिण भारत में सदैव ग्रीष्म ऋतु रहती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां सारा साल ग्रीष्म ऋतु रहती है, परन्तु उत्तरी भारत शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां स्पष्ट रूप से दो ऋतुएं हैं – ग्रीष्म तथा शीत ऋतु।

प्रश्न 10.
जेट प्रवाह क्या है? समझाइए।
उत्तर:
मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण ‘जेट प्रवाह’ भी माना है। ऊपरी वायुमण्डल में लगभग तीन किलोमीटर की ऊंचाई तक तीव्रगामी धाराएं चलती हैं जिन्हें जेट प्रवाह (Jet Stream) कहा जाता है। ये जेट प्रवाह 20° S, 40°N अक्षांशों के मध्य नियमित रूप से चलता है। हिमालय पर्वत के अवरोध के कारण ये प्रवाह दो भागों में बंट जाते हैं – उत्तरी जेट प्रवाह तथा दक्षिणी जेट प्रवाह दक्षिणी प्रवाह भारत की जलवायु को प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
पश्चिमी जेट प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोभ को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने में मदद करते हैं?
उत्तर:
जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा भारत में हिमालय पर्वत के दक्षिणी तथा पूर्वी भागों में बहती है। जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा की स्थिति 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। जेट प्रवाह की यह शाखा भारत में शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायता करती है। पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट निम्न दाब तन्त्र में ये विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। ये जेट प्रवाह के साथ-साथ ईरान तथा पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आ जाते हैं। जेट प्रवाह के प्रभाव से उत्तर-पश्चिमी भारत में शीतकाल में औसत रूप से चार-पांच चक्रवात पहुंचते हैं जो इस भाग में वर्षा करते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 12.
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबन्ध (I. I. C. Z.) क्या है?
उत्तर:
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबंध ( I. T. C. Z. ):
भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति उष्ण कटिबन्ध के बीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण की ओर सरक जाती है। यह भूमध्य रेखीय निम्न दाब द्रोणी दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 13.
कौन-कौन से कारण भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण को नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। भारत मुख्य रूप से मानसून खण्ड में स्थित होने के कारण गर्म देश है, परन्तु कई कारकों के प्रभाव से विभिन्न प्रदेशों में तापमान वितरण में विविधता पाई जाती है। ये कारक निम्नलिखित हैं

  1. अक्षांश या भूमध्य रेखा से दूरी
  2. धरातल का प्रभाव
  3. पर्वतों की स्थिति
  4. सागर से दूरी
  5. प्रचलित पवनें
  6. चक्रवातों का प्रभाव।

प्रश्न 14.
भारत के अत्यधिक ठण्डे भाग कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा हिमालय पर्वतीय प्रदेश में अधिक ठण्डे तापक्रम पाए जाते हैं। कश्मीर में कारगिल नामक स्थान पर तापक्रम न्यूनतम – 40°C तक पहुंच जाता है। इन प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डे तापक्रम होने का मुख्य कारण यह है कि ये प्रदेश सागर तल से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं। इन पर्वतीय प्रदेशों में शीतकाल में हिमपात होता है तथा तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है।

प्रश्न 15.
भारत के अत्यधिक गर्म भाग कौन-कौन से हैं और उसके कारण क्या हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक तापमान राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं। यहां ग्रीष्म ऋतु में बाड़मेर क्षेत्र में दिन का तापमान 48°C से 50°C तक पहुंच जाता है। इस प्रदेश में उच्च तापमान मिलने का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है । यह प्रदेश देश के भीतरी भागों में स्थित है। यहां सागर का समकारी प्रभाव नहीं पड़ता । ग्रीष्म काल लू के कारण भी तापमान बढ़ जाता है। रेतीली मिट्टी तथा वायु में नमी की कमी के कारण भी तापमान ऊंचे रहते हैं।

प्रश्न 16.
उन चार महीनों के नाम बताइए जिन में भारत में अधिकतम वर्षा होती है।
उत्तर:
भारत में मौसमी वर्षा के कारण अधिकतर वर्षा ग्रीष्म काल में चार महीनों में होती है। इसे वर्षा ऋतु कहा जाता है। अधिकतम वर्षा जून-जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर के महीनों में ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों द्वारा होती है।

प्रश्न 17.
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति किन दो तत्त्वों पर आधारित है?
उत्तर”:
कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

प्रश्न 18.
भारत में अधिकतम एवं निम्नतम वर्षा प्राप्त करने वाले भाग कौन-कौन-से हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
अधिकतम वर्षा वाले भाग- भारत में निम्नलिखित प्रदेशों में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है

  1. उत्तर-पूर्वी हिमालयी प्रदेश ( गारो – खासी पहाड़ियां )।
  2. पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट।

कारण:
ये प्रदेश पर्वतीय प्रदेश हैं तथा मानसून पवनों के सम्मुख स्थित हैं। उत्तर- र-पूर्वी हिमालय प्रदेश में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की सम्मुख ढाल पर अरब सागर की मानसून शाखा अत्यधिक वर्षा करती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  2
निम्नतम वर्षा वाले भाग: भारत के निम्नलिखित भागों में 20 सें० मी० से कम वर्षा होती है

  1. पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल ( बाड़मेर क्षेत्र),
  2. कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र,
  3. प्रायद्वीप में दक्षिण पठार

कारण: राजस्थान में अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए पश्चिमी राजस्थान शुष्क क्षेत्र रह जाता है। प्रायद्वीपीय पठार पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण शुष्क रहता है। इसी प्रकार लद्दाख हिमालय की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 19.
भारतीय मानसून पर एल-नीनो का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
एल-नीनो और भारतीय मानसून:
एल-नीनो एक जटिल मौसम तन्त्र है। यह हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएं आती हैं। महासागरीय और वायुमण्डलीय तन्त्र इसमें शामिल होते हैं। पूर्वी प्रशान्त महासागर में यह पेरू के तट के निकट कोष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है। भारत में मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए एल-नीनो का उपयोग होता है। सन् 1990-91 में एल-नीनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था । इसके कारण देश के अधिकतर भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों तक की देरी हो गई थी।

प्रश्न 20.
कोपेन द्वारा जलवायु के प्रकारों के लिए अक्षरों का संकेत किस प्रकार प्रयोग किया गया?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के प्रकारों को निर्धारित करने के लिए अक्षरों का संकेत के रूप में प्रयोग किया जैसा कि ऊपर दिया गया है। प्रत्येक प्रकार को उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है। इस विभाजन में तापमान और वर्षा के वितरण में मौसमी भिन्नताओं को आधार बनाया गया है। उसने अंग्रेज़ी के बड़े अक्षर S को अर्द्ध मरुस्थल के लिए और W को मरुस्थल लिए प्रयोग किया। इसी तरह उप-विभागों को परिभाषित करने के लिए अंग्रेज़ी के निम्नलिखित छोटे अक्षरों का उपयोग किया है जैसे – f (पर्याप्त वर्षण), m ( शुष्क मानसून होते हुए भी वर्षा वन) w (शुष्क शीत ऋतु ), h (शुष्क और गरम ), c (चार महीनों से कम अवधि में औसत तापमान 10° से अधिक) और g (गंगा का मैदान)।

प्रश्न 21.
भारत में गरमी की लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत के कुछ भागों में मार्च से लेकर जुलाई के महीनों की अवधि में असाधारण रूप से गरम मौसम के दौर आते हैं। ये दौर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की ओर खिसकते रहते हैं। इन्हें गरमी की लहर कहते हैं। गरमी की लहर से प्रभावित इन प्रदेशों के तापमान सामान्य से 6° से अधिक रहते हैं । सामान्य से 8° से या इससे अधिक तापमान के बढ़ जाने पर चलने वाली गरमी की लहर की प्रचंड (severe) माना जाता है। इसे उत्तर भारत में ‘लू’ कहते हैं।

प्रचंड गरमी की लहर की अवधि जब बढ़ जाती है तब किसानों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं। बड़ी संख्या में मनुष्य और पशु मौत के मुंह में चले जाते हैं। दक्षिण के केरल और तमिलनाडु राज्यों तथा पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर देश के लगभग सभी भागों में गरमी की लहर आती है। उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तर-प्रदेश में सबसे अधिक गरमी की लहरें आती हैं। साल में कम-से-कम गरमी की एक लहर तो आती ही है।

प्रश्न 22.
भारत में शीत लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
उत्तर पश्चिम भारत में नवम्बर से लेकर अप्रैल तक ठंडी और शुष्क हवाएं चलती हैं। जब न्यूनतम तापमान सामान्य से 6° से नीचे चला जाता है, तब इसे शीत लहर कहते हैं। जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ठिठुराने वाली शीत लहर चलती है। जम्मू और कश्मीर में औसतन साल में कम-से-कम चार शीत लहर तो आती हैं। इसके विपरीत गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश में साल में एक शीत लहर आती है। ठिठुराने वाली शीत लहरों की आवृत्ति पूर्व और दक्षिण की ओर घट जाती है। दक्षिणी राज्यों में सामान्य शीत लहर नहीं चलती।

प्रश्न 23.
भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेशों में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक न्यूनतम तथा कच्छ और गुजरात में अधिक क्यों हैं?
उत्तर:
भारतीय वर्षा की मुख्य विशेषता इसमें वर्ष-दर- वर्ष होने वाली परिवर्तिता है। एक ही स्थान पर किसी वर्ष वर्षा अधिक होती है तो किसी वर्ष बहुत कम इस प्रकार वास्तविक वर्षा की मात्रा औसत वार्षिक वर्षा से कम या अधिक हो जाती है। वार्षिक वर्षा की इस परिवर्तनशीलता को वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall) कहते हैं। यह परिवर्तिता निम्नलिखित फार्मूले से निकाली जाती है
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  9

इस मूल्य को विचरण गुणांक ( Co-efficient of Variation ) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश में यह विचरण गुणांक 15% से कम है। यहां सागर से समीपता के कारण मानसून पवनों का प्रभाव प्रत्येक वर्ष एक समान रहता है तथा वर्षा की मात्रा में विशेष परिवर्तन नहीं होता। कच्छ तथा गुजरात में विचरण गुणांक 50% से 80% तक पाया जाता है। यहां मानसून पवनें बहुत ही अनिश्चित होती हैं। इन पवनों को रोकने के लिए ऊंचे पर्वतों का अभाव है। इसलिए वर्षा की मात्रा में अधिक उतार-चढ़ाव होता रहता है।

प्रश्न 24.
राजस्थान का पश्चिमी भाग क्यों शुष्क है?
अथवा
‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में राजस्थान का पश्चिमी भाग लगभग शुष्क रहता है’ इस कथन के पक्ष में तीन महत्त्वपूर्ण कारण दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान का पश्चिमी भाग एक मरुस्थल है। यहां वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम है। राजस्थान में अरावली पर्वत दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें इस प्रदेश तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। ये पवनें नमी समाप्त होने के कारण वर्षा नहीं करतीं। यह प्रदेश हिमालय पर्वत से अधिक दूर है। इसलिए यहां वर्षा का अभाव है।

प्रश्न 25.
मासिनराम संसार में सर्वाधिक वर्षा क्यों प्राप्त करता है?
उत्तर:
मासिनराम खासी पहाड़ियों (Meghalaya) की दक्षिणी ढलान पर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1187 सेंटीमीटर है तथा यह स्थान संसार में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां धरातल की आकृति कीपनुमा (Funnel Shape) बन जाती है। खाड़ी बंगाल से आने वाली मानसून पवनें इन पहाड़ियों में फंस कर भारी वर्षा करती हैं। ये पवनें इन पहाड़ियों से बाहर निकलने का प्रयत्न करती हैं परन्तु बाहर नहीं निकल पातीं। इस प्रकार ये पवनें फिर ऊपर उठती हैं तथा फिर वर्षा करती हैं। सन् 1861 में यहां 2262 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा रिकार्ड की गई।

प्रश्न 26.
तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकांश वर्षा जाड़े में क्यों होती है?
उत्तर:
तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। यहां शीतकाल की उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अपेक्षा अधिक वर्षा करती हैं। ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया (Rain Shadow) में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करती हैं। शीतकाल में लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल को पार करके नमी ग्रहण कर लेती हैं। ये पवनें पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकरा कर वर्षा करती हैं। इस प्रकार शीतकाल में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है, परन्तु ग्रीष्मकाल में वृष्टि छाया में होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

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प्रश्न 27.
भारत में उत्तर-पश्चिमी मैदान में शीत ऋतु में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
भारत में उत्तर- पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुंचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर इस वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है।

प्रश्न 28.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की एक परिघटना इसकी क्रम भंग ( वर्षा की अवधि के मध्य शुष्क मौसम के क्षण ) की प्रवृत्ति क्यों है?
उत्तर:
भारत में अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है। इन पवनों द्वारा वर्षा निरन्तर न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस काल में एक लम्बा शुष्क मौसम (Dry Spell) आ जाता है। इससे इन पवनों द्वारा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है। इसका मुख्य कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Depressions) हैं जो खाड़ी बंगाल या अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात मानसून वर्षा की मात्रा को अधिक करते हैं। परन्तु इन चक्रवातों के अनियमित प्रवाह के कारण कई बार एक लम्बा शुष्क समय आ जाता है जिससे फसलों को क्षति पहुंचती है।

प्रश्न 29.
” जैसलमेर की वार्षिक वर्षा शायद ही कभी 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है।” कारण बताओ।
उत्तर;
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह प्रदेश अरब सागर की मानसून पवनों के प्रभाव में है। ये पवनें अरावली पर्वत के समानान्तर चलती हुई पश्चिम से होकर आगे बढ़ जाती हैं जिससे यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें यहां तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। यह प्रदेश पर्वतीय भाग से भी बहुत दूर है। इसलिए यह प्रदेश वर्षा ऋतु में शुष्क रहता है जबकि सारे भारत में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 12 सेंटीमीटर से भी कम है। इसके विपरीत गारो, खासी पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि गारो पहाड़ियों में एक दिन की वर्षा जैसलमेर की दस साल की वर्षा से अधिक होती है।

प्रश्न 30.
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव (Global warming):
प्राचीन काल में जलवायु में परिवर्तन हुआ है इसमें आज भी परिवर्तन हो रहे हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन के अनेक ऐतिहासिक और भू-वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं। इस परिवर्तन के लिए अनेक प्राकृतिक एवं मानवकृत कारक उत्तरदायी हैं। ऐसा कहा जाता है कि भू-मण्डलीय तापन के प्रभाव से ध्रुवीय व हिम की चादरें और पर्वतीय हिमानियां पिघल जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप समुद्रों में जल की मात्रा बढ़ जाएगी। आजकल संसार के तापमान में काफ़ी वृद्धि हो रही है। मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि चिन्ता का प्रमुख कारण है।

जीवाश्म ईंधनों के जलने से वायुमण्डल में इस गैस की मात्रा क्रमशः बढ़ रही है। कुछ अन्य गैसें जैसे मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओज़ोन और नाइट्रस ऑक्साइड, वायुमण्डल में अल्प मात्रा में विद्यमान हैं। इन्हें तथा कार्बन डाइऑक्साइड को हरितगृह गैसें कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में अन्य चार गैसें दीर्घ तरंगी विकिरण का ज्यादा अच्छी तरह से अवशोषण करती हैं। इसीलिए हरित गृह प्रभाव को बढ़ाने में उनका अधिक योगदान है। इन्हीं के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

विगत 150 वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत वार्षिक तापमान बढ़ा है। ऐसा अनुमान है कि सन् 2100 में भू-मण्डलीय तापमान में लगभग 2° सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। तापमान की इस वृद्धि से कई अन्य परिवर्तन भी होंगे। इनमें से एक है गरमी के कारण हिमानियों और समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र तल का ऊंचा होना प्रचलित पूर्वानुमान के अनुसार औसत समुद्र तल 21वीं शताब्दी के अन्त तक 48 से०मी० ऊंचा हो जाएगा। इसके कारण प्राकृतिक बाढ़ों की संख्या बढ़ जाएगी। जलवायु परिवर्तन के कीटजन्य मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ जाएंगी।

साथ ही वर्तमान जलवायु सीमाएं भी बदल जाएंगी, जिसके कारण कुछ भाग अधिक जलसिक्त (Wet) और कुछ अधिक शुष्क हो जाएंगे। कृषीय प्रतिरूपों के स्थान बदल जाएंगे। जनसंख्या और पारितन्त्र में भी परिवर्तन होंगे। यदि आज का समुद्र तल 50 से०मी० ऊंचा हो जाए, तो भारत के तटवर्ती जल निम्न हो जाएंगे।

प्रश्न 31.
भारतीय मानसून की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसून की प्रवृत्ति के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इसके आगमन के समय और निवर्तन (समाप्त) होने के समय में प्रत्येक वर्ष परिवर्तन होता रहता है, कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि की समस्या उत्पन्न होती है जो बाढ़ और सूखे का भी कारण है। मानसूनी वर्षा का रुक-रुक कर होना भी एक समस्या है। अर्थात् मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। इसमें एक अंतराल पाया जाता है, कभी जून में औसत वर्षा अच्छी होती है, लेकिन जुलाई-अगस्त सूखा पड़ जाता है। स्पष्टतः मानसून की प्रकृति में अस्थिरता पाई जाती है और मानसूनी वर्षा परिवर्तनशील है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और देश की कृषि अर्थव्यवस्था में इसका महत्त्व बताइए
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएं (Characteristics of Indian Rainfall):
1. मानसूनी वर्षा (Dependence on Monsoons ): भारत की वर्षा का लगभग 85% भाग ग्रीष्म काल की मानसून पवनों द्वारा होता है। यह वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर तक प्राप्त होती है जिसे वर्षा – काल कहते हैं।

2. अनिश्चितता (Uncertainty ): भारत में मानसून वर्षा समय के अनुसार एकदम अनिश्चित है। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी देर से आरम्भ होती हैं जिससे नदियों में बाढ़ें आ जाती हैं या फसलें सूखे से नष्ट हो जाती हैं। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को बड़ी हानि होती है।

3. असमान वितरण (Unequal Distribution ): भारत में वर्षा का प्रादेशिक वितरण असमान है। कई भागों में अत्यधिक वर्षा होती है जबकि कई प्रदेशों में कम वर्षा के कारण अकाल पड़ जाते हैं। देश के 10% भाग में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है जबकि 25% भाग में 75 से० मी० से भी कम।

4. मूसलाधार वर्षा (Heavy Rains): मानसून वर्षा प्रायः मूसलाधार होती है। इसलिए कहा जाता है, “It pours, it never rains in India. ” मूसलाधार वर्षा से भूमि कटाव तथा नदियों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall): भारत में मानसून पवनें ऊंचे पर्वतों से टकरा कर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु पर्वतों के विमुख ढाल वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रहने के कारण शुष्क रह जाते हैं।

6. अन्तरालता (No Continuity ): कभी – कभी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस शुष्क समय (Dry Spells) के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।

7. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): भारत की 85% वर्षा केवल चार महीनों के वर्षा काल में होती है । वर्ष का शेष भाग शुष्क रहता है। जिससे कृषि के लिए जल सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। साल में वर्षा के दिन बहुत कम होते हैं।

8. संदिग्ध वर्षा (Variable Rainfall ): भारत के कई क्षेत्रों की वर्षा संदिग्ध है। यह आवश्यक नहीं कि वर्षा हो या न हो। ऐसे प्रदेशों में अकाल पड़ जाते हैं। देश के भीतरी भागों में वर्षा विश्वासजनक नहीं होती।

भारतीय कृषि – व्यवस्था में मानसून वर्षा का महत्त्व (Significance of Monsoons in Agricultural System):
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर करती है। कृषि की सफलता मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। मानसून पवनें जब समय पर उचित मात्रा में वर्षा करती हैं तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है। मानसून की असफलता के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज की कमी अनुभव होती है । मानसून पवनों के समय से पूर्व आरम्भ होने से या देर से आरम्भ होने से भी कृषि को हानि पहुंचती है। कई बार नदियों में बढ़ें आ जाती हैं जिससे फसलों की बुआई ठीक समय पर नहीं हो पाती।

वर्षा के ठीक वितरण के कारण भी वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार कृषि तथा मानसून पवनों में गहरा सम्बन्ध है । जल सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण भारतीय कृषि को मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर करना पड़ता है। कृषि पर ही भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कृषि ही किसानों की आय का एकमात्र साधन है। मानसून के असफल होने की दशा में सारे देश की आर्थिक व्यवस्था नष्ट- भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर तथा कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए कहा जाता है कि भारतीय बजट मानसून पवनों पर जुआ है। (Indian budget is a gamble on monsoon.)

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
भारत की जलवायु किन-किन तत्त्वों पर निर्भर है?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। “यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है।” (‘“There is great diversity of climate in India. ” ) एक कथन के अनुसार, “विश्व की लगभग समस्त जलवायु भारत में मिलती है। ” कहीं समुद्र के निकट सम जलवायु है तो कहीं भीतरी भागों में कठोर जलवायु है। कहीं अधिक वर्षा है तो कहीं बहुत कम। परन्तु भारत, मुख्य रूप से मानसून खण्ड (Monsoon Region) में स्थित होने के कारण, एक गर्म देश है। निम्नलिखित तत्त्व भारत की जलवायु पर प्रभाव डालते हैं

1. मानसून पवनें (Monsoons ):
भारत की जलवायु मूलतः मानसूनी जलवायु है। यह जलवायु विभिन्न मौसमों में प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती है। शीत काल की मानसून पवनें स्थल की ओर से आती हैं तथा शुष्क और ठण्डी होती हैं, परन्तु गीष्मकाल की मानसून पवनें समुद्र की ओर से आने के कारण भारी वर्षा करती हैं। इन्हीं पवनों के आधार पर भारत में विभिन्न मौसम बनते हैं।

2. देश का विस्तार (Extent ):
देश के विस्तार का विशेष प्रभाव तापक्रम पर पड़ता है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर जाती है। देश का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। इसलिए उत्तरी भाग में शीतकाल तथा ग्रीष्म काल दोनों ऋतुएं होती हैं, परन्तु दक्षिणी भाग सारा वर्ष गर्म रहता है। दक्षिणी भाग में कोई शीत ऋतु नहीं होती।

3. भूमध्य रेखा से समीपता (Nearness to Equator ):
भारत का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के बहुत निकट है, इसलिए सारा वर्ष ऊंचे तापक्रम मिलते हैं। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) भारत के मध्य में से गुज़रती है। इसलिए इसे एक गर्म देश माना जाता है।

4. हिमालय पर्वत की स्थिति (Location and Direction of the Himalayas ):
हिमालय पर्वत की स्थिति का भारत की जलवायु पर भारी प्रभाव पड़ता है। (“The Himalayas act as a climatic barrier. ” ) यह पर्वत मध्य एशिया से आने वाली बर्फीली पवनों को रोकता है और उत्तरी भारत को शीत लहर से बचाता है। हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है तथा खाड़ी बंगाल से उठने वाली मानसून पवनें इसे पार नहीं कर पातीं जिससे उत्तरी भारत में घनघोर वर्षा करती हैं। यदि हिमालय पर्वत न होता तो उत्तरी भारत एक मरुस्थल होता।

5. हिन्द महासागर से सम्बन्ध (Situation of India with respect to Indian Ocean ): भारत की स्थिति हिन्द महासागर के उत्तर में है। ग्रीष्म काल में हिन्द महासागर पर अधिक वायु दबाव होने के कारण ही मानसून पवनें चलती हैं। खाड़ी बंगाल, तमिलनाडु राज्य में शीतकाल की वर्षा का कारण बनता है। इसी खाड़ी से ग्रीष्म काल में चक्रवात (Depressions) चलते हैं जो भारी वर्षा करते हैं।

6. चक्रवात (Cyclones): भारत की जलवायु पर चक्रवात का विशेष प्रभाव पड़ता है। शीतकाल में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में रूम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा वर्षा होती है। अप्रैल तथा अक्तूबर महीने में खाड़ी बंगाल से चलने वाले चक्रवात भी काफ़ी वर्षा करते हैं।

7. धरातल का प्रभाव (Effects of Relief):
भारत की जलवायु पर धरातल का गहरा प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी घाट तथा असम में अधिक वर्षा होती है क्योंकि ये भाग पर्वतों के सम्मुख ढाल पर है, परन्तु दक्षिणी पठार विमुख ढाल पर होने के कारण वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रह जाता है जिससे शुष्क रह जाता है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें रोक नहीं पाता जिससे राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भारत के धरातल का यहां के तापक्रम, वायु तथा वर्षा पर स्पष्ट नियन्त्रण है । पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम है जबकि मैदानी भाग में अधिक तापक्रम पाए जाते हैं। आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा का जनवरी का तापमान 16°C है जबकि दार्जिलिंग का केवल 4°C है।

8. समुद्र से दूरी (Distance from Sea ):
भारत के तटीय भागों में सम जलवायु मिलता है। जैसे – मुम्बई में जनवरी का तापमान 24°C है तथा जुलाई का तापमान 27°C है। इलाहाबाद समुद्र से बहुत दूर है, वहां जनवरी का तापमान 16°C तथा जुलाई का तापमान 30° C है। इसलिए दक्षिणी भारत तीन ओर समुद्र से घिरा होने के कारण ग्रीष्म में कम गर्मी तथा शीत ऋतु में कम सर्दी पड़ती है।

प्रश्न 3.
“व्यापक जलवायविक एकता के होते हुए भी भारत की जलवायु में प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं।” इस कथन की पुष्टि उपयुक्त उदाहरण देते हुए कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है। परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। यह मानसून व्यवस्था दक्षिण – पूर्वी एशिया के मानसूनी देशों से भारत को जोड़ती है। इस प्रकार मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान, वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। विभिन्न प्रदेशों की जलवायु के अलग-अलग प्रादेशिक स्वरूप मिलते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर कई कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं। जैसे- स्थिति, समुद्र से दूरी, भूमध्य रेखा से दूरी, उच्चावच आदि। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसूनी जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु को व्यापक एकता पाई जाती है।

प्रादेशिक अन्तरं मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।
1. राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर तथा चुरू जिले में ग्रीष्म काल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सैंटीग्रेड के निकट रहता है।

2. दक्षिणी भारत में सारा साल ऊंचे तापमान मिलते हैं तथा कोई शीत ऋतु नहीं होती। उत्तर-पश्चिमी भाग में शीतकाल में तापमान हिमांक से नीचे चले जाते हैं। तटीय भागों में सारा साल समान रूप से दरमियाने तापमान पाए जाते हैं।

3. दिसम्बर मास में द्रास, लेह एवं कारगिल में तापमान – 45°C तक पहुंच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में तापमान + 28°C रहता है।

4. इसी प्रकार औसत वार्षिक वर्षा में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर मासिनराम में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है। जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है। गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है।

5. एक ओर असम, बंगाल तथा पूर्वी तट पर चक्रवातों के कारण भारी वर्षा होती है तो दूसरी ओर दक्षिण तथा पश्चिमी तट शुष्क रहता है।

6. कई भागों में मानसून वर्षा जून के पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागों में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है। अधिकांश भागों में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है तो पश्चिमी भागों में शीतकाल में वर्षा होती है। ग्रीष्म काल में उत्तरी भारत में लू चल रही होती है परन्तु दक्षिणी भारत के तटीय भागों में सुहावनी जलवायु होती है।

7. तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तःस्थ स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहर चल रही होती है तो दक्षिणी भारत में काफ़ी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 4.
भारतीय मौसम रचना तन्त्र का वर्णन जेट प्रवाह के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मौसम रचना तन्त्र – मानसून क्रियाविधि निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  1. वायु दाब ( Pressure) का वितरण।
  2. पवनों (Winds) का धरातलीय वितरण।
  3. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation)।
  4. विभिन्न वायु राशियों का प्रवाह।
  5. पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात) (Cyclones)।
  6. जेट प्रवाह (Jet Stream)।

1. वायु दाब तथा पवनों का वितरण (Distribution of Atmospheric Pressure and Winds):
शीत ऋतु में भारतीय मौसम मध्य एशिया तथा पश्चिमी एशिया में स्थित उच्च वायु दाब द्वारा प्रभावित होता है। इस उच्च दा केन्द्र से प्रायद्वीप की ओर शुष्क पवनें चलती हैं। भारतीय मैदान के उत्तर पश्चिमी भाग में से शुष्क हवाएं महसूस की जाती हैं। मध्य गंगा घाटी तक सम्पूर्ण उत्तर – पश्चिमी भारत उत्तर – पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है। ग्रीष्म काल के आरम्भ में सूर्य के उत्तरायण के समय में वायुदाब तथा पवनों के परिसंचरण में परिवर्तन आरम्भ हो जाता है।

उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाता है। भूमध्य रेखीय निम्न दाब भी उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। इस के प्रभावाधीन दक्षिणी गोलार्द्ध से व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार करके निम्न वायु दाब की ओर बढ़ती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं। ये पवनें भारत में ग्रीष्म काल में वर्षा करती हैं।

2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation ):
वायुदाब तथा पवनें धरातलीय स्तर पर परिवर्तन लाते हैं। परन्तु भारतीय मौसम में ऊपरी वायु परिसंचरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण है। ऊपरी वायु में जेट प्रवाह भारत में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायक हैं। ये जेट प्रवाह भारत के मौसम रचना तन्त्र को प्रभावित करता है।

3. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances ):
भारत में शीतकाल में निम्न वायुदाब केन्द्रों का विस्तार होता है। ये अवदाब या विक्षोभ भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये ईरान, पाकिस्तान से होते हुए भारत में जनवरी-फरवरी में वर्षा करते हैं।

4. जेट प्रवाह (Jet Stream ):
जेट प्रवाह धरातल के लगभग 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली एक ऊपरी वायु- धारा है। यह वायु-धारा क्षोभ मण्डल के ऊपरी वायु भाग में बहती है। यह वायु धारा पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया के ऊपर बहने वाली पश्चिमी पवनों की एक शाखा है। यह शाखा हिमालय पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व दिशा बहती है। इस वायु -धारा की स्थिति फरवरी में 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। यह जेट प्रवाह भारतीय मौसम रचना तन्त्र पर कई प्रकार से प्रभाव डालती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  3

  1. इस जेट प्रवाह के कारण उत्तरी भारत में शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी पवनें चलती हैं।
  2. इस वायु -धारा के साथ-साथ पश्चिम की ओर से भारतीय उपमहाद्वीप में शीतकालीन चक्रवात आते हैं। ये चक्रवात भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात शीतकाल में हल्की-हल्की वर्षा करते हैं।
  3. जुलाई में जेट प्रवाह भारतीय प्रदेशों से लौट चुका होता है। इसका स्थान भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध ले लेता है, जो भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सरक जाता है। इसे अन्तर- उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (I.T.C.Z.) कहा जाता है।
  4. इस निम्न दाब के कारण भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें, वास्तव में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों का उत्तर की ओर विस्तार ही है।
  5. हिमालय तथा तिब्बत के उच्च स्थलों के ग्रीष्म काल में गर्म होने तथा विकिरण के कारण भारत में पूर्वी जेट प्रवाह के रूप में एक वायु धारा बहती है। यह पूर्वी जेट प्रवाह उष्ण कटिबन्धीय गर्तों को भारत की ओर लाने में सहायक है। ये गर्त दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 5.
कोपेन (Koeppen) द्वारा भारत के विभाजित जलवायु प्रदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत मुख्य रूप से एक मानसूनी प्रदेश है। इस विशाल देश में जलवायु की भिन्नता तथा कई प्रादेशिक अन्तरों का होना स्वाभाविक है। देश में मानसूनी जलवायु के कई उप-प्रकार देखे जा सकते हैं। इनके आधार पर भारत को विभिन्न जलवायु विभागों में बांटा जा सकता है। कोपेन का जलवायु वर्गीकरण – जर्मनी के प्रसिद्ध जीव-विज्ञानवेत्ता कोपेन द्वारा संसार को जलवायु विभागों में बांटा गया है। इस विभाजन में मासिक तापमान और वर्षा के औसत मूल्यों के विश्लेषण के आधार पर जलवायु के पांच मुख्य प्रकार माने गए हैं। इस जलवायु प्रदेशों के वर्गों को अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों A, B, C, D तथा E द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन वर्गों के उप प्रकार छोटे अक्षरों द्वारा दिखाए गए हैं। संसार को निम्नलिखित पांच जलवायु वर्गों में बांटा गया है।

(A) उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
(B) शुष्क जलवायु।
(C) गर्म जलवायु।
(D) हिम जलवाय।
(E) बर्फीली जलवायु।

कोपेन द्वारा तैयार किए गए जलवायु मानचित्र में भारत को निम्नलिखित जलवायु विभागों में बांटा गया है:

  1. लघु-शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Amw): इस प्रकार की जलवायु भारत के पश्चिमी तट पर गोआ के दक्षिण में पाई जाती है। यहां ग्रीष्म ऋतु में अधिक वर्षा होती है तथा शुष्क ऋतु बहुत छोटी होती है।
  2. अधिक गर्मी की अवधि में शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (AS): इस प्रकार की जलवायु कोरोमण्डल तट पर तमिलनाडु राज्य में मिलती है। वहां ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है तथा शीत ऋतु में वर्षा होती है।
  3. उष्ण कटिबन्धीय सवाना प्रकार की जलवायु (AW): यह जलवायु प्रायद्वीपीय पठार के अधिकतर भागों में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु शुष्क होती है।
  4. आर्द्र शुष्क स्टैपी जलवायु (Bshw): यह जलवायु राजस्थान तथा हरियाणा के मरुस्थलीय भागों में पाई जाती है।
  5. उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु (Bwhw): यह जलवायु राजस्थान के थार मरुस्थल में बहुत ही कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
  6. शुष्क शीत ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Cwg): यह जलवायु भारत के उत्तरी मैदान में पाई जाती है। यहां अधिकतर वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है।
  7. लघु ग्रीष्म के साथ शीतल आर्द्र शीत वाली जलवायु (Dfc): यह जलवायु भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु ठण्डी, आर्द्र तथा ग्रीष्म ऋतु छोटी होती है।
  8. ध्रुवीय प्रकार (E): यह जलवायु कश्मीर तथा उसकी निकटवर्ती मालाओं में पाई जाती है। यहां वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

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प्रश्न 6.
भारत में वार्षिक वर्षा के वितरण के बारे में बताइए यह देश के उच्चावच से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा का वितरण जलवायु तथा कृषि व्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। भारत में वार्षिक वर्षा का औसत 110 सें० मी० है। परन्तु धरातलीय विभिन्नताओं के कारण इस वितरण में प्रादेशिक अन्तर जाते हैं। वार्षिक वर्षा का स्थानिक तथा मौसमी वितरण असमान है। वार्षिक वर्षा की मात्रा के आधार पर भारत के प्रमुख वर्षा विभाग क्रमशः इस प्रकार हैं

(i) अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Heavy Rain):
ये वे क्षेत्र हैं जिन में वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है। ये क्षेत्र हैं – मेघालय, असम, अरुणाचल, पश्चिमी बंगाल का उत्तरी भाग, हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानें, पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानें।

(ii) मध्य वर्षा वाले क्षेत्र ( Areas of Moderate Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं- पश्चिमी बंगाल का दक्षिणी भाग, उड़ीसा, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश का पूर्वी, एवं उत्तरी भाग, दक्षिणी हिमाचल के पर्वत, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानें तथा तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र। इन क्षेत्रों में वर्षा की वार्षिक मात्रा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच है।

(iii) साधारण वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Average Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं-उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग, हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर, राजस्थान के पूर्वी भाग, गुजरात तथा दक्षिणी पठार।

(iv) अति न्यून वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Scanty Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जहां वार्षिक वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। ये क्षेत्र हैं-कश्मीर से लद्दाख, दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान में विस्तृत थार मरुस्थल तथा गुजरात में कच्छ का रन।
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उच्चावच का वर्षा पर प्रभाव – वार्षिक वर्षा के वितरण से स्पष्ट है कि धरातलीय दिशाओं का वर्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में पर्वतीय उच्च प्रदेशों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। जैसे पश्चिमी घाट, गारो, खासी की पहाड़ियां तथा हिमालयी क्षेत्र मैदानी प्रदेशों में कम वर्षा होती है। इसलिए उत्तरी मैदान से दक्षिण की ओर वर्षा कम होती जाती है। जल से भरी मानसून पवनें मार्ग में पड़ने वाले पर्वतों की सम्मुख ढाल पर अधिक वर्षा करती हैं, जबकि इन पर्वतों के विमुख वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहते हैं।

इसी कारण गारो खासी पहाड़ियों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 1000 सेंटीमीटर है, परन्तु ब्रह्मपुत्र घाटी तथा शिलांग पठार में यह मात्रा घट कर 200 सेंटीमीटर रह जाती है पश्चिमी घाट के अग्र भाग में मालाबार तट पर वर्षा की मात्रा 300 सें० मी० है। परन्तु पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में पठार पर यह मात्रा केवल 60 सें० मी० है। राजस्थान में अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता तथा ये प्रदेश शुष्क हैं।
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प्रश्न 7.
मानसून पवनों से क्या अभिप्राय है? ये किस प्रकार उत्पन्न होती हैं? शीतकाल तथा ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों का वर्णन करो।
उत्तर:
परिभाषा (Definition ) :
मानसून वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ” मौसिम” से बना है। इसका सर्वाधिक प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था। मानसून पवनें वे मौसमी पवनें हैं जिनकी दिशा 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल
मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती है। ये पवनें ग्रीष्म काल के के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

कारण (Causes): मानसून पवनें वास्तव में एक बड़े पैमाने पर स्थल समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल तथा स्थल के गर्म व ठण्डा होने में विभिन्नता (Differences in the cooling and heating of Land and Water ) है। जल और स्थल असमान रूप से गर्म और ठण्डे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायुदाब में भी अन्तर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा पलट जाती है।

स्थल भाग जल की अपेक्षा जल्दी गर्म तथा जल्दी ठण्डा होता है। दिन के समय समुद्र के निकट स्थल पर कम दबाव (Low Pressure) तथा समुद्र पर उच्च वायु दबाव (High Pressure) होता है। परिणामस्वरूप, समुद्र से स्थल की ओर जल समीर (Sea Breeze) चलती है, परन्तु रात में दिशा विपरीत हो जाती है तथा स्थल से समुद्र की ओर स्थल – समीर (Land Breeze) चलती है। इस प्रकार प्रत्येक दिन वायु में दिशा बदलती रहती है। परन्तु मानसून पवनों की दिशा मौसम के अनुसार बदलती रहती है। ये पवनें तट के समीप के प्रदेशों में नहीं परन्तु एक पूरे महाद्वीप पर चलती हैं इसलिए मानसून पवनों को स्थल- समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) का एक बड़े पैमाने का दूसरा रूप कह सकते हैं।

मानसून की उत्पत्ति के लिए आवश्यक दशाएं (Necessary Conditions ): मानसून पवनों की उत्पत्ति के लिए ये दशाएं आवश्यक हैं।

  1. एक विशाल महाद्वीप का होना।
  2. एक विशाल महासागर का होना।
  3. स्थल तथा जल भागों के तापमान में काफ़ी अन्तर होना चाहिए।
  4. एक लम्बी तट – रेखा।

मानसूनी क्षेत्र (Areas):
मानसूनी पवनें उष्ण कटिबन्ध से चलती हैं। परन्तु एशिया में ये पवनें 60° उत्तरी अक्षांश तक चलती हैं। इसलिए मानसूनी क्षेत्र दो भागों में बंटे हुए हैं। हिमालय पर्वत इन्हें पृथक् करता है।

1. पूर्वी एशियाई मानसून (East Asia Monsoons ): हिन्द – चीन (Indo-China), चीन तथा जापान क्षेत्र।
2. भारतीय मानसून (India Monsoons ): भारत, पाकिस्तान, बंगला देश तथा म्यांमार क्षेत्र, आस्ट्रेलिया का उत्तरी भाग।

ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें (Summer Monsoons ): मौनसून पवनों के उत्पन्न होने तथा इनके प्रभाव को एक ही वाक्य में कहा जा सकता है, “The chain of events is from temperature through pressure and winds to rainfall.”
अथवा
Temp.-Pressure – Winds — Rainfall.
इन मानसूनी पवनों की तीन विशेषताएं हैं

  1. मौसम के साथ दिशा परिवर्तन।
  2. मौसम के साथ वायु दबाव केन्द्रों का उल्ट जाना।
  3. ग्रीष्मकाल में वर्षा।

तापक्रम की विभिन्नता के कारण वायुभार में अन्तर पड़ता है तथा अधिक वायु भार से कम वायु भार की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसलिए भारत, चीन तथा मध्य एशिया के मैदान गर्म हो जाते हैं । इन स्थल भागों में वायु दबाव केन्द्र (Low Pressure Centres) स्थापित हो जाते हैं। अतः हिन्द महासागर तथा प्रशान्त महासागर से भारत तथा चीन की ओर समुद्र से स्थल की ओर पवनें (Sea to Land winds) चलती हैं।

भारत में इन्हें दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसून (South-West Summer Monsoons) कहते हैं। चीन में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्वी होती है। भारत में ये पवनें मूसलाधार वर्षा करती हैं जिसे ” मानसून का फटना” (Burst of Monsoon) भी कहा जाता है। भारत में यह वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कृषि इसी वर्षा पर आधारित है। इसलिए ” भारतीय बजट को मानसून का जुआ” (“Indian budget is a gamble of monsoon”) कहा जाता है।

शीतकालीन मानसून पवनें (Winter Monsoons ):
शीतकाल में मानसून पवनों की उत्पत्ति स्थल भागों पर होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध के स्थल भाग आस-पास के सागरों की अपेक्षा ठण्डे हो जाते हैं। मध्य एशिया तथा भारत में राजस्थान प्रदेश में उच्च वायु दबाव हो जाता है। इसलिए इन स्थल भागों से समुद्र की ओर पवनें (Land to Sea Winds) चलती हैं। ये पवनें शुष्क तथा ठण्डी होती हैं। भारत में इन्हें उत्तरी-पूर्वी शीतकालीन मानसून (North East Winter Monsoons) कहते हैं। ये पवनें खाड़ी बंगाल को पार करने के पश्चात् तमिलनाडु प्रदेश में वर्षा करती हैं। भूमध्य रेखा पार करने के पश्चात् आस्ट्रेलिया के तटीय भागों में भी इन्हीं पवनों से वर्षा होती है।

फ्लॉन की विचारधारा (Flohn’s Concept ): मानसून पवनों के तापीय उत्पत्ति में निम्नलिखित त्रुटियां पाई जाती

  1. ग्रीष्मकाल में मानसून वर्षा निरन्तर तथा समान नहीं होती यह वर्षा किसी और तत्त्व जैसे चक्रवात पर निर्भर करती है।
  2. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्र इतने अधिक शक्तिशाली नहीं होते कि मौसम के अनुसार पवनों की दिशा उल्ट हो जाए।
  3. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्रों की उत्पत्ति केवल तापीय नहीं है।
  4. दैनिक ऋतु मानचित्रों पर ग्रीष्म ऋतु में अनेक तीव्र चक्रवात दिखाए जाते हैं।
  5. यह विचार है कि मानसून किसी मूल पवन व्यवस्था पर आरोपित है।

इन त्रुटियों को देखते हुए फ्लॉन नामक विद्वान् ने तापीय विचारधारा का खण्डन किया और एक नई विचारधारा को जन्म दिया। इसके अनुसार व्यापारिक पवनों के अभिसरण के कारण डोलड्रम के क्षेत्र के दोनों ओर एक सीमान्त उत्पन्न हो जाता है जिसे अन्तर – उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (Inter Tropical Convergence) कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में यह अभिसरण क्षेत्र सूर्य की स्थिति के साथ-साथ उत्तर की ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें तथा पश्चिमी भूमध्य रेखीय पवनें उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। इस अभिसरण क्षेत्र में चक्रवात् उत्पन्न हो जाते हैं जो भारी वर्षा करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण-पश्चिम व्यापारिक पवनें तथा चक्रवात ही मानसून पवनों की उत्पत्ति का आधार हैं।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

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पृष्ठ 170

क्रियाकलाप 1 : अरावाकों और स्पेनवासियों के बीच पाए जाने वाले अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। इनमें से कौनसे अन्तरों को आप सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं और क्यों?
उत्तर:
अरावाकों और स्पेनवासियों के बीच पाए जाने वाले अन्तर –
(1) कैरीबियन द्वीप-समूहों में रहने वाले अरावाक शान्तिप्रिय थे तथा लड़ने की बजाय वार्तालाप द्वारा झगड़े निपटाना चाहते थे। दूसरी ओर स्पेनवासी अच्छे योद्धा तथा साम्राज्यवादी थे। वे अपनी सैन्य शक्ति के बल पर अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे।

(2) अरावाक लोगों के पास एक शक्तिशाली तथा प्रशिक्षित सेना का अभाव था जबकि स्पेनवासियों के पास घोड़ों के प्रयोग पर आधारित एक शक्तिशाली सेना थी।

(3) अरावाक लोग सोने को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। उन्हें यदि यूरोपवासी सोने के बदले काँच के मनके दे देते थे, तो वे प्रसन्न हो जाते थे। इसके विपरीत स्पेनवासी सोना-चाँदी प्राप्त करने के लिए लालायित रहते थे। वे उचित- अनुचित सभी प्रकार के तरीकों द्वारा अधिकाधिक सोना-चाँदी प्राप्त करना चाहते थे।

(4) अरावाक लोगों का व्यवहार बहुत उदारतापूर्ण होता था और वे सोने की तलाश में स्पेनी लोगों का साथ देने के लिए सदैव तैयार रहते थे। इसके विपरीत स्पेनी लोग बड़े स्वार्थी, लालची तथा क्रूर होते थे। उन्होंने सोना-चाँदी प्राप्त करने के लिए अऱावक लोगों पर भारी अत्याचार किये। उन्होंने अराबाक लोगों को गुलाम बनाकर सोने-चाँदी की खानों में काम करने के लिए बाध्य किया।

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(5) अरावाक लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित थे। उनमें बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे जीववादी थे। परन्तु स्पेन के लोग अभिजात वर्ग, पादरी वर्ग तथा कृषक वर्ग तथा व्यापारी वर्ग आदि में विभाजित थे।

(6) अरावाक लोगों के पास बन्दूकों, बारूद और उत्तम घोड़ों का अभाव था परन्तु स्पेन के पास एक शक्तिशाली सेना थी। उनके सैनिकों के पास बन्दूकें, गोला-बारूद और उत्तम घोड़े थे।

पृष्ठ 177

क्रियाकलाप 3 : आपके विचार से ऐसे कौनसे कारण थे, जिनसे प्रेरित होकर यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों के लोगों ने खोज यात्राओं पर जाने का जोखिम उठाया?
उत्तर:
खोज – यात्राओं के कारण – यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों के लोगों द्वारा खोज – यात्राएँ करने के निम्नलिखित कारण थे –
(1) 1380 ई. में कुतुबनुमा का आविष्कार हो चुका था। 15वीं शताब्दी में इसका प्रयोग समुद्री यात्राओं में होने लगा।

(2) 1477 में टालेमी की ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। इस पुस्तक के अध्ययन से यूरोपवासियों को संसार के बारे में काफी जानकारी मिली जिसे उन्होंने तीन महाद्वीपों अर्थात् यूरोप, एशिया और अफ्रीका में बँटा हुआ समझा। यूरोपवासियों को इस बात का कोई अनुमान नहीं था कि अटलान्टिक के दूसरी ओर भूमि पर पहुँचने के लिए कितनी दूरी तय करनी होगी। उनका विचार था कि यह दूरी बहुत कम होगी, इसलिए अनेक साहसिक लोग समुद्रों में यात्रा करने के लिए उत्सुक रहते थे।

(3) 14वीं शताब्दी के मध्य से 15वीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई। वहाँ व्यापार में मंदी आ गई तथा सोने और चाँदी की कमी आ गई। 1453 में तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। यद्यपि इटलीवासियों ने तुर्कों के साथ व्यवसाय करने की व्यवस्था तो कर ली, परन्तु उन्हें व्यापार पर अधिक कर देना पड़ता था। अतः अब यूरोपवासी पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने हेतु नये समुद्री मार्ग खोजने लगे।

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(4) यूरोप के धर्मपरायण ईसाई विभिन्न देशों की खोज करके वहाँ ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे

(5) धर्म-युद्धों के कारण एशिया और यूरोप के बीच व्यापार में वृद्धि हुई। अब यूरोपवासियों की एशिया के उत्पादों, विशेषकर मसालों के प्रति रुचि बढ़ गई।

(6) यूरोपवासी सोने और मसालों की तलाश में नए-नए प्रदेशों की खोज करने लगे। इस प्रकार स्पेनवासियों ने मुख्यतः आर्थिक कारणों से प्रेरित होकर नये-नये देशों की खोज करना शुरू कर दिया।

पृष्ठ 181

क्रियाकलाप 4: दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों पर यूरोपीय लोगों के सम्पर्क से क्या प्रभाव पड़ा ? विश्लेषण कीजिए। यूरोप से आकर दक्षिणी अमेरिका में बसे लोगों और जेसुइट पादरियों के प्रति स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों पर यूरोपवासियों के सम्पर्क से प्रभाव –
(1) यूरोपवासियों की मार-काट के कारण दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों की जनसंख्या कम हो गई, उनकी जीवन-शैली का विनाश हो गया और उन्हें गुलाम बनाकर खानों, बागानों तथा कारखानों में उनसे काम लिया जाने लगा।

(2) वहाँ दास प्रथा को प्रोत्साहन मिला। दक्षिणी अमेरिका के पराजित लोगों को गुलाम बना लिया जाता था।

(3) वहाँ उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। अधिक से अधिक धन कमाने के लिए यूरोपवासी यहाँ के स्थानीय लोगों का शोषण करते थे जिससे उनकी स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गई।

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(4) दक्षिणी अमेरिका में नई-नई आर्थिक गतिविधियाँ शुरू हो गईं। जंगलों का सफाया करके प्राप्त की गई भूमि पर पशु-पालन किया जाने लगा। 1700 में सोने की खोज के बाद खानों का काम चल पड़ा और इन सभी कामों के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता थी। अतः बड़ी संख्या में गुलाम अफ्रीका से मँगवाये गए।

(5) स्पेनी अभियानों के कारण भारी संख्या में एजटेक लोग मारे गए। इसके अतिरिक्त स्पेनियों के साथ आई चेचक की महामारी से भी हजारों एजटेक लोग मौत के मुँह में चले गए।

(6) अमेरिकी लोगों की पाण्डुलिपियों तथा स्मारकों को निर्ममतापूर्वक नष्ट कर दिया गया।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एजटेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना कीजिए।
उत्तर:
एजटेक लोगों की सभ्यता की विशेषताएँ –

  1. एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। समाज में अभिजात, योद्धाओं, व्यापारियों, शिल्पियों, किसानों व दासों में विभाजित था। प्रतिभाशाली शिल्पियों, चिकित्सकों और विशिष्ट अध्यापकों को आदर की दृष्टि से देखा जाता था।
  2. एजटेक लोगों ने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाये। राजधानी में बने हुए राजमहल और पिरामिड झील के बीच में खड़े हुए बड़े आकर्षक लगते थे।
  3. साम्राज्य ग्रामीण आधार पर टिका हुआ था। ये लोग मक्का, फलियाँ, कद्दू, कसावा, आलू आदि की फसलें उगाते थे।
  4. एजटेक लोग अपने बच्चों को स्कूलों में भेजते थे।
  5. दास-प्रथा प्रचलित थी। गरीब लोग कभी-कभी अपने बच्चों को भी गुलामों के रूप में बेच देते थे।
  6. एजटेक लोगों की लिपि चित्रात्मक थी।
  7. एजटेक लोग अच्छे भवन निर्माता थे। उन्होंने अनेक भव्य मन्दिरों का निर्माण किया। उनके सर्वाधिक भव्य मन्दिर भी युद्ध के देवताओं और सूर्य भगवान की समर्पित थे।
  8. एजटेक लोगों उनके देवी-देवताओं की पूजा करते थे। सूर्य, युद्ध का देवता आदि उनके प्रमुख देवता थे।
  9. एजटेक लोग इस बात का पूरा ध्यान रखते थे कि उनके सभी बच्चे स्कूल अवश्य जाएँ।

मेसोपोटामिया की सभ्यता की विशेषताएं –

  1. मेसोपोटामियावासी गेहूँ, जौ, मटर, मसूर की खेती करते थे। खेतों की सिंचाई की जाती थी। ये लोग भेड़, बकरी आदि अनेक जानवर पालते थे।
  2. मेसोपोटामिया के लोगों ने सर्वप्रथम लेखन कला का विकास किया। उनकी लिपि ‘क्यूनीफार्म’ कहलाती थी।
  3. ये लोग काँसा, टिन, ताँबा आदि धातुओं से परिचित थे।
  4. मेसोपोटामियावासी लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी आदि तुर्की, ईरान आदि से मँगाते थे तथा वे अपना कपड़ा, कृषि जन्य उत्पाद उन्हें निर्यात करते थे।
  5. इनका समाज उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और दास वर्ग में विभक्त था।
  6. मेसोपोटामिया में अनेक मन्दिर बने हुए थे। मन्दिरों में अनेक देवी-देवताओं की उपासना की जाती थी। उर तथा इन्नाना प्रमुख देवी – देवता थे।
  7. कुम्हार चाक से बर्तन बनाते थे।
  8. युद्ध-बन्दियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिर का अथवा शासक का काम करना पड़ता था। उन्हें काम के बदले अनाज दिया जाता था।
  9. समाज में एकल परिवार की प्रथा प्रचलित थी।
  10. उन्होंने चन्द्रमा के आधार पर एक पंचांग बनाया। उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को 30 दिनों में, एक दिन को 24 घण्टों में, एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया।

प्रश्न 2.
ऐसे कौनसे कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
उत्तर:
यूरोपीय नौचालन – 15वीं शताब्दी में निम्नलिखित कारणों से यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली –
(1) 1380 ई. में कुतुबुनुमा अर्थात् दिशा सूचक यन्त्र का आविष्कार हो चुका था। इससे यात्रियों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी मिलती थी।

(2) समुद्री यात्रा पर जाने वाले यूरोपीय जहाजों में भी काफी सुधार हो चुका था। बड़े-बड़े जहाजों का निर्माण होने लगा था, जो विशाल मात्रा में माल की ढुलाई करते थे। ये जहाज आत्म-रक्षा के अस्त्र- -शस्त्रों से भी सुसज्जित होते थे ताकि शत्रुओं के आक्रमण का मुकाबला किया जा सके।

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(3) 15वीं सदी के अन्तर्गत यात्रा – – वृत्तान्तों और सृष्टि-वर्णन तथा भूगोल की पुस्तकों के प्रसार ने यूरोपीय लोगों में समुद्री खोजों के प्रति रुचि उत्पन्न की।

(4) 1477 में टालेमी की पुस्तक ‘ज्योग्राफी’ प्रकाशित हुई । टालेमी ने विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति को अक्षांश और देशान्तर रेखाओं के रूप में व्यवस्थित किया था। इसके अध्ययन से यूरोपवासियों को विश्व के बारे में पर्याप्त जानकारी मिली। टालेमी ने यह भी बताया कि पृथ्वी गोल है।

(5) 1453 में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने से यूरोपवासियों को नये समुद्री मार्ग खोजने की प्रेरणा मिली।

(6) स्पेन और पुर्तगाल के लोग महत्त्वाकांक्षी थे तथा नये देशों की खोज कर वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। स्पेन तथा पुर्तगाल के शासक सोना तथा धन-सम्पत्ति के भण्डार प्राप्त करना चाहते थे। वे नये-नये प्रदेशों की खोज करके वहाँ अपने साम्राज्य स्थापित करके यश और सम्मान प्राप्त करने हेतु लालायित थे।

(7) यूरोपीय लोग बाहरी विश्व के लोगों को ईसाई बनाना चाहते थे। इसने भी यूरोप के धर्मपरायण ईसाइयों को इन साहसिक कार्यों की ओर उन्मुख किया।

प्रश्न 3.
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पन्द्रहवीं शताब्दी में. सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया?
उत्तर:
स्पेन और पुर्तगाल द्वारा अटलांटिक महासागर के पार जाने के कारण –
(1) स्पेन में आर्थिक कारणों ने लोगों को ‘महासागरीय शूरवीर’ बनने के लिए प्रोत्साहन दिया। धर्म- युद्धों की स्मृति और रीकां क्विस्टा (ईसाई राजाओं द्वारा आइबेरियन द्वीप पर प्राप्त की गई विजय ) की सफलता ने स्पेन के लोगों को उत्साहित किया और इकरारनामों को प्रारम्भ किया। इन इकरारनामों के तहत स्पेन का शासक नये विजित क्षेत्रों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर लेता था और उन्हें जीतने वाले अभियानों के नेताओं को पुरस्कार के रूप में उपाधियाँ और विजित देशों पर शासनाधिकार प्रदान करता था।

(2) स्पेन और पुर्तगाल के शासक नई समुद्री खोजों के लिए सदैव धन जुटाने को तैयार रहते थे। वे नाविकों और साहसी यात्रियों को नये-नये देशों की खोज करने के लिए प्रोत्साहित करते थे और उन्हें हर संभव सहायता प्रदान करते थे। स्पेन के शासक ने कोलम्बस को नई समुद्री खोजों के लिए प्रोत्साहित किया। पुर्तगाल का राजकुमार हेनरी नाविक के नाम से प्रसिद्ध था। उसने पश्चिमी अफ्रीका की तटीय यात्रा की और 1405 में सिउटा पर अधिकार कर लिया।

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(3) चौदहवीं शताब्दी के मध्य से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई थी।. व्यापार में मन्दी आ गई तथा वहाँ सोने-चाँदी की कमी आ गई।

(4) स्पेन और पुर्तगाल के धर्म-परायण ईसाई बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने के लिए लालायित थे।

(5). स्पेनी और पुर्तगाली सोने और मसालों की खोज में नये-नये प्रदेशों में जाने के लिए उत्सुक रहते थे।

(6) 1453 में तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। इससे व्यापार करना कठिन हो गया। अतः यूरोपवासियों ने पूर्वी देशों से व्यापार के लिए नये समुद्री मार्गों की तलाश करना शुरू कर दिया।

(7) स्पेन और पुर्तगाल के लोग बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने के लिए लालायित थे। इस कारण भी वे नवीन समुद्री मार्गों की खोज के लिए उन्मुख हुए।

प्रश्न 4.
कौनसी नई खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमेरिका से बाकी दुनिया में भेजी जाती थीं?
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका से मक्का, आलू, कसावा, कुमाला, तम्बाकू, गन्ने की चीनी, ककाओ, रबड़, लाल मिर्च आदि खाद्य वस्तुएँ बाकी दुनिया को भेजी जाती थीं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राजील ले जाए गए सत्रह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राजील ले जाए गए सत्रह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा – ब्राजील पर पुर्तगालियों का अधिकार था। ब्राजील में इमारती लकड़ी बड़े पैमाने पर उपलब्ध थी। पुर्तगालियों ने स्थानीय लोगों को गुलाम बनाना शुरू कर दिया। 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने बड़े – बड़े बागानों में गन्ना उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। यह चीनी यूरोप के बाजारों में बेची जाती थी।

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बहुत ही गर्म तथा नम जलवायु में चीनी मिलों में काम करने के लिए पुर्तगाली लोग स्थानीय लोगों पर निर्भर थे। परन्तु जब उन लोगों ने इस थकाने वाले नीरस काम को करने से इनकार कर दिया तो मिल मालिकों ने उनका अपहरण करवाकर उन्हें गुलाम बनाना शुरू कर दिया। इस पर स्थानीय लोग इन गुलाम बनाने वाले मिल मालिकों से बचने के लिए जंगलों में भागने लगे। विवश होकर मिल मालिकों ने अफ्रीका से गुलाम प्राप्त करने का निश्चय किया। अतः अंगोला से एक 17 वर्षीय अफ्रीकी को गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राजील लाया गया।

इस सत्रह वर्षीय लड़के की ब्राजील – यात्रा बड़ी कष्टदायक थी। उसे सैकड़ों अन्य गुलामों के साथ पकड़कर एक जहाज द्वारा ब्राजील लाया गया था। इस यात्रा में उसे किसी प्रकार की सुविधा नहीं दी गई थी। उसे पशुओं की भाँति जहाज में ठूंस कर लाया गया। उसकी गतिविधियों पर कठोर नजर रखी जाती थी।

उसे बेड़ियों में जकड़ कर रखा जाता था ताकि वह भागने का प्रयास न करे। उसे भर पेट भोजन नहीं दिया जाता था। उससे जहाज पर कठोर परिश्रम करवाया जाता था और साधारण-सी गलती करने पर उसे कोड़ों से पीटा जाता था। पुर्तगाली लोग बड़े क्रूर थे और वे गुलामों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार करते थे। उससे बेगार ली जाती थी। उसे काम के बदले में कुछ भी पारिश्रमिक नहीं दिया जाता था। इस प्रकार उसके साथ कई दिनों तक अमानवीय व्यवहार किया गया और उसे अमानुषिक यातनाएँ सहनी पड़ीं।

प्रश्न 6.
दक्षिणी अमरीका की खोज ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के विकास को कैसे जन्म दिया?
उत्तर:
यूरोपीय उपनिवेशवाद का विकास – दक्षिण अमरीका की खोज ने यूरोपीय देशों को वहाँ अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस सन्दर्भ में स्पेन तथा पुर्तगाल को विशेष सफलताएँ मिलीं और उन्हें दक्षिण अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित करने का अवसर मिल गया।

1. स्पेन के उपनिवेशवाद का विकास – कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद स्पेन को दक्षिणी अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित करने की प्रेरणा मिली। स्पेनवासी धन-लोलुप थे। वे दक्षिणी अमेरिकी से सोना-चाँदी प्राप्त कर अपने देश में लाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दक्षिणी अमेरिका के विभिन्न प्रदेशों में जाकर बसना शुरू कर दिया। स्पेन के पास एक शक्तिशाली सेना थी। अतः उसने बारूद और घोड़ों के प्रयोग पर आधारित सैन्य शक्ति के बल पर दक्षिणी अमेरिका में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। उन्होंने स्थानीय लोगों को कर, भेंट देने तथा सोने-चाँदी की खानों में काम करने के लिए बाध्य किया।

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स्थानीय प्रधानों को नये-नये प्रदेश तथा सोने के नए-नए स्रोत खोजने के लिए भर्ती किया जाता था। जब स्थानीय लोगों ने प्रतिरोध किया, तो स्पेन के सैनिकों ने उनका कठोरतापूर्वक दमन किया। लम्बस के अभियानों के बाद आधी शताब्दी में ही स्पेनवासियों ने मध्यवर्ती तथा दक्षिणी अमेरिका में लगभग 40 डिग्री उत्तरी से 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक के समस्त क्षेत्र को खोज लिया और उस पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। मैक्सिको तथा इंका साम्राज्य पर अधिकार – स्पेन के निवासी कोर्टेस तथा उसके सैनिकों ने सरलता से मैक्सिको पर अधिकार कर लिया। 1519 में स्पेनी सैनिकों ने ट्लैक्सकलानों को पराजित कर टेनोक्ट्रिटलैन पर अधिकार कर लिया।

जब यहाँ के एजटेक लोगों ने स्पेन के साम्राज्यवाद का विरोध किया, तो स्पेन की सेना ने एजटेक लोगों के विद्रोह को कुचल दिया और अनेक विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया। 1532 में स्पेन के निवासी पिजारों ने इंका – साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। स्पेन के सैनिकों की दमनकारी नीति के विरुद्ध 1534 में इंका – साम्राज्य के लोगों ने विद्रोह कर दिया, जो दो वर्ष तक जारी रहा। इस अवधि में हजारों विद्रोही मारे गये। अगले पाँच वर्षों में स्पेनियों ने पोटोसी (ऊपरी पेरू) की खानों में चाँदी के विशाल भण्डारों का पता लगा लिया और उन खानों में काम करने के लिए उन्होंने इंका लोगों को गुलाम बना लिया।

2. पुर्तगाल के उपनिवेशवाद का विकास – पुर्तगाली कुशल नाविक तथा महत्त्वाकांक्षी लोग थे। दक्षिणी अमरीका की खोज के बाद पुर्तगालियों ने भी वहाँ अपने उपनिवेश स्थापित करने शुरू कर दिये। 1500 ई. में पुर्तगाल निवासी कैब्राल जहाजों का एक बेड़ा लेकर ब्राजील पहुँच गया। ब्राजील में इमारती लकड़ी बड़े पैमाने पर उपलब्ध थी। इमारती लकड़ी के इस व्यापार के कारण पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारियों के बीच भीषण लड़ाइयाँ हुईं।

अन्त में इनमें पुर्तगालियों की विजय हुईं क्योंकि वे स्वयं तटीय क्षेत्र में बसना तथा उपनिवेश स्थापित करना चाहते थे 1534 में पुर्तगाल के राजा ने ब्राजील के तट को 14 आनुवंशिक कप्तानों में बाँट दिया। उनके मालिकाना अधिकार उन पुर्तगालियों को दे दिये गये जो वहाँ स्थायी रूप से रहना चाहते थे। उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का भी अधिकार दे दिया गया। 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने बड़े-बड़े बागानों में गन्ने उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। 1549 में पुर्तगाली राजा के अधीन एक औपचारिक सरकार स्थापित की गई और बहिया ( सैल्वाडोर) को उसकी राजधानी बनाया गया।

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संस्कृतियों का टकराव JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. कैरीबियन द्वीप समूह और ब्राजील के जन-समुदाय – अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे द्वीप समूहों और बृहत्तर ऐंटिलीज में रहते थे –
(i) अरावाक – अरावाक लोग शान्तिप्रिय थे तथा बातचीत से झगड़े निपटाना अधिक पसन्द करते थे। वे खेती, शिकार और मछली पकड़कर अपना जीवन-निर्वाह करते थे। उनमें बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे। वे सोने को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। वे बुनाई में निपुण थे। उनका व्यवहार उदारतापूर्ण होता था।

(ii) तुपिनांबा – तुपिनांबा लोग दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी समुद्री तट पर और ब्राजील नामक पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गाँवों में रहते थे। वहाँ फल, सब्जियाँ तथा मछलियाँ बहुतायत में उपलब्ध थीं। इससे उन्हें खेती पर निर्भर नहीं होना पड़ा।

2. मध्य और दक्षिणी अमरीका की राज-व्यवस्थाएँ – मध्य और दक्षिणी अमरीका में एजटेक, माया तथा इंका जनसमुदाय निवास करते थे। यथा –
(i) एजटेकजन – बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात लोग अपने में से एक सर्वोच्च नेता चुनते थे जो आजीवन शासक बना रहता था। एजटेक लोगों ने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाए। उनके द्वारा निर्मित राजमहल तथा पिरामिड बड़े सुन्दर थे। वे अपने बच्चों को स्कूलों में भेजते थे। कुलीन वर्ग के बच्चे सेना अधिकारी और धार्मिक नेता बनने के लिए प्रशिक्षण लेते थे।

(ii) माया लोग – मैक्सिको की माया संस्कृति की ग्यारहवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी के बीच महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। वहाँ मक्के की खेती खूब होती थी। उनके खेती करने के तरीके उन्नत थे। माया लोगों ने वास्तुकला, खगोल विज्ञान, गणित आदि में भी प्रगति की।

(iii) पेरू के इंका लोग – दक्षिणी अमेरिकी देशों की संस्कृतियों में सबसे बड़ी संस्कृति पेरू में क्वेचुआ या इंका लोगों की संस्कृति थी। इंका साम्राज्य इक्वेडोर से चिली तक 3000 मील में फैला हुआ था। राजा सर्वोच्च अधिकारी था। अनुमानतः इस साम्राज्य में 10 लाख से अधिक लोग रहते थे। इंका लोग उच्चकोटि के भवन निर्माता थे। उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से लेकर चिली तक अनेक सड़कें नाई थीं। उनके किले शिलापट्टियों को बारीकी से तराश कर बनाये जाते थे । राजमिस्त्री खण्डों को सुन्दर रूप देने के लिए शल्क पद्धति (फ्लेकिंग) का प्रयोग करते थे। इंका सभ्यता का आधार कृषि था। उनकी बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने की कला उच्चकोटि की थी।

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3. यूरोपवासियों की खोज यात्राएँ –
(i) स्पेन और पुर्तगाल के लोग खोज – यात्राओं में सबसे आगे थे। स्पेन और पुर्तगाल के शासक आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक कारणों से समुद्री यात्राओं के लिए प्रेरित हुए। ये देश सोने-चाँदी तथा मसालों की खोज में नए-नए प्रदेशों में जाने की योजना बनाने लगे। पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने पश्चिमी अफ्रीका की तटीय यात्रा आयोजित की और 1415 में सिउय पर आक्रमण कर दिया। पुर्तगालियों ने अफ्रीका के बोजाडोर अन्तरीप में अपना व्यापार केन्द्र स्थापित कर लिया। अफ्रीकियों को बड़ी संख्या में गुलाम बना लिया गया।

(ii) स्पेन में आर्थिक कारणों ने लोगों को ‘महासागरीय शूरवीर’ बनने के लिए प्रोत्साहित किया। इकरारनामों के अन्तर्गत स्पेन का शासक नये विजित प्रदेशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर लेता था।

4. अटलांटिक पारगमन –
(i) 3 अगस्त, 1492 को कोलम्बस ने जहाजों और नाविकों के साथ पश्चिम की ओर प्रस्थान किया। अन्त में 12 अक्टूबर, 1492 को कोलम्बस बहामा द्वीप समूह पहुँच गया। अरावाक लोगों ने नाविकों का स्वागत किया। कोलम्बस ने इस स्थान का नाम सैन सैल्वाडोर रखा और अपने आपको वायसराय घोषित कर दिया। आगे चलकर ऐसी तीन यात्राएँ और आयोजित की गईं जिनके दौरान कोलम्बस ने बहामा और बृहत्तर ऐंटिलीज द्वीपों, दक्षिणी अमरीका की मुख्य भूमि और उसके तटवर्ती प्रदेशों में अपना खोज कार्य पूरा किया। बाद में पता चला कि इन स्पेनी नाविकों ने ‘इंडीज’ नहीं बल्कि एक नया महाद्वीप ही खोज निकाला।

(ii) कोलम्बस के द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी और दक्षिणी अमरीका का नामकरण फ्लोरेंन्स के एक भूगोलवेत्ता ‘अमेरिगो वेस्पुस्सी’ के नाम पर किया गया जिसने उन्हें ‘नई दुनिया’ की संज्ञा दी।

5. अमेरिका में स्पेन के साम्राज्य की स्थापना –
(i) अमेरिका में स्पेनी साम्राज्य का विस्तार बारूद और घोड़ों के प्रयोग पर आधारित सैन्य शक्ति के आधार पर हुआ । स्पेनी लोग वहाँ बस्ती बसाते थे तथा स्थानीय मजदूरों पर निगरानी रखते थे। सोने के लालच में स्पेनी लोग स्थानीय शान्तिप्रिय अरावाक लोगों पर अत्याचार करते थे। चेचक जैसी महामारी के कारण भी अरावाकों को बड़ी संख्या में मौत के मुँह में जाना पड़ा।

(ii) कोलम्बस के बाद स्पेनवासियों ने मध्यवर्ती और दक्षिणी अमरीका में खोज का कार्य जारी रखा। आधी शताब्दी में ही स्पेनवासियों ने लगभग 40 डिग्री उत्तरी से 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक के समस्त क्षेत्र को खोज निकाला और उस पर अधिकार कर लिया।

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(iii) स्पेन के दो व्यक्तियों हरमन कोर्टेस तथा फ्रांसिस्को पिजारो ने दो बड़े साम्राज्यों को जीत कर उन्हें स्पेन के अधीन किया। उनके अभियानों का ख़र्चा स्पेन के जमींदारों, नगर परिषदों के अधिकारियों और अभिजात वर्ग ने उठाया था।

6. कोर्टेस और एजटेक लोग –
(i) कोर्टेस और उसके सैनिकों ने बड़ी सरलता से मैक्सिको को जीत लिया। 1519 में कोर्टेस क्यूबा से मैक्सिको आया था जहाँ उसने टाटानैक लोगों से मैत्री कर ली। स्पेनी सैनिकों ने ट्लैक्सक्लानों को पराजित कर दिया और टेनोक्ट्रिटलैन नगर पर अधिकार कर लिया।

(ii) एजटेक के शासक मोंटेजुमा ने कोर्टेस का स्वागत किया और उसे बहुमूल्य उपहार दिए। परन्तु कोर्टेस ने सम्राट को नजरबन्द कर लिया और उसके नाम पर शासन चलाने लगा।

(iii) कोर्टेस के क्यूबा लौट जाने के बाद स्पेनी शासन के अत्याचारों के कारण सामान्य जनता ने विद्रोह कर दिया। इस पर कोर्टेस के सहायक ऐल्वारैडो ने कत्ले-आम का आदेश दे दिया। जब 25 जून, 1520 को कोर्टेस वापस लौटा तो उसे भीषण संकटों का सामना करना पड़ा और उसे विवश होकर वापस लौटना पड़ा।

(iv) इसी समय मोटेजुमा की मृत्यु हो गई। एजटेकों तथा स्पेनियों के बीच लड़ाई चलती रही। उस समय एजटेक लोग यूरोपीय लोगों के साथ आई चेचक के प्रकोप से मौत के मुँह में जा रहे थे। मेक्सिको पर विजय प्राप्त करने में दो वर्ष का समय लग गया। कोर्टेस मैक्सिको में न्यू स्पेन का कैप्टन जनरल बन गया। मैक्सिको में स्पेनियों ने ग्वातेमाला, निकारागुआ और होंडुरास पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

7. पिजारो और इंका लोग –
(i) पिजारो एक निर्धन और अनपढ़ व्यक्ति था। वह सेना में भर्ती होकर 1502 में कैरीबियन द्वीप-समूह में आया था। स्पेन के राजा ने पिजारो को यह वचन दिया था कि यदि वह इंका प्रदेश पर विजय प्राप्त कर लेगा, तो उसे वहाँ का राज्यपाल बना दिया जायेगा।

(ii) 1532 में अताहुआल्पा ने इंका साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। पिजारो वहां पहुँच गया और धोखे से वहाँ के राजा को बन्दी बना लिया। राजा ने अपने आप को मुक्त कराने के लिए एक कमरा – भर सोना फिरौती में देने का प्रस्ताव किया, परन्तु पिजारो ने राजा का वध करवा दिया। पिजारो के सैनिकों ने वहाँ खूब लूट-मार की और इंका – साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।

(iii) अगले पाँच वर्षों में स्पेन के लोगों ने पोटोसी, ऊपरी पेरू आदि की खानों में चाँदी के विशाल भण्डारों का पता लगा लिया और उन खानों में काम करने के लिए उन्होंने इंका लोगों को गुलाम बना लिया।

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8. कैब्राल और ब्राजील –
(i) 1500 ई. में पुर्तगाल निवासी पेड्रो अल्वारिस कैब्राल जहाज लेकर भारत के लिए रवाना हुआ, परन्तु वह ब्राजील पहुँच गया। ब्राजील इमारती लकड़ी के लिए प्रसिद्ध था। इमारती लकड़ी के व्यापार के कारण पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारियों में भयंकर लड़ाइयाँ हुईं। इनमें अन्ततः पुर्तगालियों की विजय हुई 1534 में पुर्तगाल के राजा ने ब्राजील के तट को 14 आनुवंशिक कप्तानियों में बाँट दिया। उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का अधिकार भी दे दिया।

(ii) 1540 में पुर्तगालियों ने बड़े-बड़े बागानों में गन्ना उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। मिल मालिकों ने स्थानीय लोगों को गुलाम बनाना शुरू कर दिया। इस पर स्थानीय लोग गाँव छोड़ कर जंगलों की ओर भागने
लगे।

(iii) 1549 में पुर्तगाली राजा के अधीन एक औपचारिक सरकार स्थापित की गई। इस समय तक जेसुइट पादरी ब्राजील पहुँचने लगे। यूरोपीय लोग इन जेसुइट पादरियों को पसन्द नहीं करते थे क्योंकि वे मूल निवासियों के साथ दया का बर्ताव करने की सलाह देते थे। वे दास प्रथा की कटु आलोचना करते थे।

9. विजय, उपनिवेश और दास व्यापार – अमरीका की खोज के अनेक दीर्घकालीन परिणाम निकले –
(i) सोने-चाँदी की बाढ़ ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और औद्योगीकरण का और अधिक विस्तार किया। 1560 से 1600 तक सैकड़ों जहाज हर वर्ष दक्षिणी अमेरिका की खानों से चाँदी स्पेन को लाते रहे।

(ii) इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम, हालैण्ड आदि देशों के व्यापारियों ने बड़ी-बड़ी संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ बनाईं। अपने बड़े-बड़े व्यापारिक अभियान चलाए और उपनिवेश स्थापित किये।

(iii) यूरोपवासी नई दुनिया में पैदा होने वाली नई-नई चीजों, जैसे- आलू, तम्बाकू, गन्ने की चीनी, रबड़ आदि से परिचित हुए।

(iv) मार-काट के कारण उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों की जनसंख्या कम हो गई, उनकी जीवन-शैली नष्ट हो गई और उन्हें गुलाम बनाकर खानों, बागानों, कारखानों में उनसे काम लिया जाने लगा।

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(v) अब नई-नई आर्थिक गतिविधियाँ शुरू हो गईं। सोने की खोज के बाद खानों का काम जोरों से चल पड़ा। अफ्रीका से गुलाम बड़ी संख्या में मँगाए गए। 1550 के दशक से 1880 के दशक तक ब्राजील में 36 लाख से भी अधिक अफ्रीकी गुलामों का आयात किया गया। परन्तु यह अमरीकी महाद्वीपों में आयातित अफ्रीकी गुलामों की संख्या का लगभग आधा था।

तिथि यूरोपवासियों द्वारा समुद्री यात्राएँ –
1492 कोलम्बस ने बहामा द्वीप – समूह और क्यूबा पर स्पेन की दावेदारी की।
1494 ‘अनखोजी दुनिया’ का पुर्तगाल और स्पेन के बीच बँटवारा हुआ।
1497 एक अंग्रेजी यात्री जॉन कैबोट ने उत्तरी अमरीका के समुद्रतट की खोज की।
1498 वास्कोडिगामा कालीकट / कोझीकोड पहुँचा।
1499 अमेरिगो वेस्पुसी ने दक्षिणी अमरीका के समुद्र तट को देखा।
1500 कैब्राल ने ब्राजील पर पुर्तगाल की दावेदारी की।
1513 बालबोआ ने पनामा इस्थमस को पार किया और प्रशान्त महासागर को देखा।
1521 कोर्टेस ने ऐजटक लोगों को पराजित किया।
1522 स्पेनवासी मैगलन ने जहाज में बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाया।
1532 पिजारो ने इंका राज्य को जीता।
1571 स्पेन के सैनिकों ने फिलिपीन्स को जीता।
1600 ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई।
1602 डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

Jharkhand Board Class 11 History तीन वर्ग In-text Questions and Answers

पृष्ठ 137 क्रियाकलाप 1:

प्रश्न 1.
विभिन्न मानकों; जैसे व्यवसाय, भाषा, धन और शिक्षा पर आधारित श्रेणीबद्ध सामाजिक ढाँचे की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक वर्ग।

1. पादरी वर्ग – यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। ये प्रथम वर्ग के अंग थे। बिशपों के पास भी विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे। कुछ धार्मिक व्यक्ति मठों में रहते थे। ये भिक्षु कहलाते थे। ये लोग अपना समय प्रार्थना करने, अध्ययन करने आदि में व्यतीत करते थे। स्त्री और पुरुष दोनों ही भिक्षु का जीवन अपना सकते थे। पादरियों, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए विवाह करना वर्जित था। मठों के साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे।

2. अभिजात वर्ग-अभिजात वर्ग दूसरे वर्ग में रखा गया था। बड़े-बड़े भू-स्वामी तथा अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। वे अपनी सेना रखते थे, अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।

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वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के मालिक थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। उसका अपना मेनर, भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। नाइट (कुशल घुड़सवार) लार्ड से सम्बद्ध थे। लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था जिसे फीफ कहा जाता था। बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।

3. कृषक वर्ग – कृषक वर्ग को तीसरे वर्ग में रखा गया। कृषक दो प्रकार के होते थे –
(1) स्वतन्त्र कृषक
(2) कृषि – दास (सर्फ )।

स्वतन्त्र कृषक अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। पुरुष कृषक सैनिक सेवा में योगदान देते थे। कृषक परिवारों को लार्ड की जागीर पर जाकर काम करना पड़ता था। उन्हें बेगार भी देनी पड़ती थी। कृषि दासों को उन भूखण्डों पर भी खेती करनी पड़ती थी जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थी, इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी।

4. चौथा वर्ग – नगरवासी – कालान्तर में नगरों का विकास हुआ। नगरों में रहने वाले लोग या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषि – दास थे, जो कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे। बाद में साहूकारों और वकीलों का प्रादुर्भाव हुआ। इस प्रकार नगरों में रहने वाले लोगों ने चौथा वर्ग बना लिया था नगरों में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग भी थे जिनमें व्यापारी, व्यवसायी, शिल्पकार, लेखक, विद्वान आदि थे। यद्यपि इनके पास पर्याप्त धन था, परन्तु अभिजात वर्ग की तुलना में इन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। व्यवसायियों की अनेक श्रेणियाँ बनी हुई थीं।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस की तुलना मेसोपोटामिया तथा रोमन साम्राज्य से करें।
उत्तर:
1. मध्यकालीन फ्रांस की मेसोपोटामिया से तुलना – मेसोपोटामिया का समाज तीन वर्गों में विभाजित –
(1) उच्च वर्ग
(2) मध्यम वर्ग
(3) निम्न वर्ग।

उच्च वर्ग में राजा उसका परिवार, सामन्त, पुरोहित, उच्च पदाधिकारी आदि सम्मिलित थे। अधिकांश धन-दौलत पर इसी वर्ग का अधिकार था । मध्यम वर्ग में व्यापारी, कारीगर, बुद्धिजीवी तथा स्वतन्त्र किसान थे। निम्न वर्ग में अर्द्ध स्वतन्त्र किसान तथा दास लोग सम्मिलित थे। इस वर्ग के लोगों को किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे । मध्यकालीन फ्रांस में भी समाज तीन वर्गों में विभाजित था।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

ये तीन वर्ग थे –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग
(3) कृषक वर्ग। समाज में पादरी वर्ग तथा अभिजात वर्ग का बोलबाला था। इस वर्ग के लोग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। ये लोग कृषकों का शोषण करते थे । कृषक वर्ग की दशा शोचनीय थी।

2. मध्यकालीन फ्रांस की रोमन साम्राज्य से तुलना – पूर्ववर्ती काल में रोमन समाज अनेक वर्गों में बँटा हुआ था। ये वर्ग थे –
(1) सैनेटर
(2) अश्वारोही या नाइट वर्ग
(3) सम्माननीय जनता का वर्ग
(4) फूहड़ निम्नतर वर्ग।

परवर्तीकाल में रोमन समाज निम्नलिखित वर्गों में विभाजित था –
(1) अभिजात वर्ग – इस काल में सैनेटर तथा नाइट एकीकृत होकर अभिजात वर्ग बन चुके थे।
(2) मध्य वर्ग – इस वर्ग में सेना तथा नौकरशाही से सम्बन्धित लोग थे। इसमें धनी सौदागर तथा किसान भी शामिल थे।
(3) निम्न वर्ग – इस वर्ग में ग्रामीण श्रमिक, कामगार, शिल्पकार, दास आदि शामिल थे।

दूसरी ओर मध्यकालीन फ्रांस में समाज तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक वर्ग। कालान्तर में वहाँ नगरों में रहने वाले एक चौथे वर्ग का भी प्रादुर्भाव हुआ।

पृष्ठ 138

क्रियाकलाप 2: मध्यकालीन मेनर, महल और पूजा के स्थान पर विभिन्न सामाजिक स्तर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीकों की उदाहरण देते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर:
1. मध्यकालीन मेनर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – अभिजात वर्ग का घर मेनर कहलाता था। लार्ड का अपना मेनर – भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। कुछ लार्ड अनेक गाँवों के मालिक थे। स्त्रियाँ वस्त्र कातती तथा बुनती थीं और बच्चे लार्ड की मदिरा – सम्पीडक में कार्य करते थे । लार्ड जंगलों में जाकर शिकार करते थे। एक नए वर्ग का उदय हुआ जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। वे लार्ड से सम्बद्ध थे। लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग (फीफ) देते थे और उसकी रक्षा का वचन देते थे।

सामन्ती मेनर की तरह फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे। बदले नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था । अभिजात वर्ग की व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था और साथ ही साथ अपने खेतों पर भी काम करना पड़ता था।

2. मध्यकालीन महल के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनके पास एक शक्तिशाली सेना होती थी। वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और यहाँ तक कि अपने सिक्के भी चला सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के मालिक थे जिनमें उनके शानदार महल, निजी खेत, जोत व चरागाह और उनके असामी- कृषकों के घर और खेत होते थे।

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उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत …भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। वे आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में भी कार्य करते थे। वे शानदार महलों में निवास करते थे। इन महलों में सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थीं तथा अभिजात वर्ग के लोग ऐश्वर्यपूर्ण न व्यतीत करते थे। उनकी सेवा के लिए सैकड़ों नौकर-चाकर होते थे1

3. मध्यकालीन पूजा के स्थान पर व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – यूरोप में पूजा-स्थल के रूप में चर्च होता था। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। चर्च में प्रत्येक रविवार को लोग पादरियों के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होते थे। पुरुष पादरी विवाह नहीं कर सकते थे।

स्त्रियों, दास- कृषक और विकलांगों के पादरी बनने पर प्रतिबन्ध था। बिशपों के पास भी लार्ड की तरह बड़ी-बड़ी जागीरें होती थीं और वे शानदार महलों में रहते थे। कृषक अपनी उपज का दसवाँ भाग चर्च को देते थे, जिसे ‘टीथ’ कहते थे। लोग चर्च में प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकते थे। नाइट भी अपने वरिष्ठ लार्ड के प्रति स्वामि भक्ति की शपथ लेते समय यही तरीका अपनाते थे।

पृष्ठ 149.

क्रियाकलाप 4 : तिथियों के साथ दी गई घटनाओं और प्रक्रियाओं को पढ़िए और उनका विवरणात्मक लेखा-जोखा दीजिए।
उत्तर:
1. तिथि 1066-1066 ई. में नारमैंडी के ड्यूक विलियम ने एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पार किया और इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया। विलियम ने भूमि नपवाई, उसके नक्शे बनवाये तथा उसे अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया।

2. 1100 के पश्चात् – धनी व्यापारी चर्च को दान देते थे। 1100 के पश्चात् फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले चर्चों का निर्माण होने लगा। यद्यपि वे मठों की सम्पत्ति थे, परन्तु लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से कथीड्रलों के निर्माण में सहयोग दिया।

3. 1315-1317 – चौदहवीं शताब्दी में यूरोप को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। इसके बाद 1320 के दशक में अनगिनत पशुओं की मौतें हुईं।

4. 1347-1350 – पश्चिमी यूरोप 1347-1350 के मध्य महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ। यूरोप की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत भाग मौत के मुँह में चला गया जबकि कुछ स्थानों पर मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसंख्या का 40% तक थी।

5. 1338-1461-1338 से 1461 की अवधि में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच युद्ध हुआ जो ‘सौ वर्षीय युद्ध’ कहलाता है।

6. 1381 – मजदूरों की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों में कमी के कारण अभिजात वर्ग की आमदनी घट गई। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने पुराने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर शिक्षित तथा धनी कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया। परिणामस्वरूप 1381 में ब्रिटेन में कृषकों ने विद्रोह कर दिया।

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Jharkhand Board Class 11 History तीन वर्ग Text Book Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के लक्षण-फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के दो प्रमुख लक्षण निम्नलिखित थे-
(1) फ्रांस में सामन्तवाद सामन्त और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित था। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लार्ड के खेतों पर कार्य करते थे। कृषक लार्ड को श्रम सेवा देते थे तथा बदले में लार्ड उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान करते थे। लार्ड के कृषकों पर न्यायिक अधिकार भी थे।

(2) फ्रांस का प्रारंभिक सामन्ती समाज तीन वर्गों में विभाजित था। प्रथम वर्ग पादरी था; द्वितीय वर्ग अभिजात वर्ग था और तृतीय वर्ग कृषक वर्ग था। पादरी वर्ग कैथोलिक चर्च से जुड़ा था। यह राजा पर निर्भर संस्था नहीं थी। अभिजात वर्ग राजा से जुड़ा था तथा धनी और भू-स्वामी था। तीसरा वर्ग किसान भूस्वामी वर्ग के अधीन था तथा इसी दशा दयनीय थी।

प्रश्न 2.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लम्बी अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर:
जनसंख्या के स्तर में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव – जनसंख्या के स्तर में होने वाले परिवर्तनों के यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-

(1) कृषि के विस्तार के परिणामस्वरूप यूरोप में जनसंख्या में भी वृद्धि हुई। यूरोप की जनसंख्या जो 1000 में लगभग 420 लाख थी, वह बढ़कर 1200 में लगभग 620 लाख और 1300 में 730 लाख हो गई। पौष्टिक आहार मिलने के कारण व्यक्ति की जीवन-अवधि लम्बी हो गई। तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय व्यक्ति आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी होती थी, क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे।

(2) जनसंख्या में वृद्धि होने से नगरों का विकास हुआ, परन्तु 14वीं शताब्दी में इस स्थिति में परिवर्तन आया। पिछले 300 वर्षों की तीव्र ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठण्डी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया। उत्तरी यूरोप में तेरहवीं सदी के अन्त तक उपज वाले मौसम छोटे हो गए, चरागाहों की कमी हो गई तथा पशुओं की संख्या में कमी आ गई। जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम हो गए, जिसके परिणामस्वरूप भीषण अकाल पड़े। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। 1347 और 1350 के बीच यूरोप में महामारी का प्रकोप हुआ जिससे यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20% भाग मौत के मुँह में चला गया। यूरोप की जनसंख्या 1300 में 730 लाख से घटकर 1400 में 450 लाख रह गई।

इस विनाशलीला के अतिरिक्त आर्थिक मन्दी से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ। जनसंख्या में कमी होने के कारण मजदूरों की संख्या में बहुत कमी आई। कृषि उत्पादों के मूल्यों में भी कमी आई। महामारी के बाद इंग्लैण्ड में मजदूरों विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। आमदनी घटने से अभिजात वर्ग ने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।

प्रश्न 3.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर:
नाइट- नौवीं शताब्दी से यूरोप में स्थानीय युद्ध प्रायः होते रहते थे। शौकिया कृषक- सैनिक पर्याप्त नहीं थे। अतः इन युद्धों के लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक नये वर्ग का उदय हुआ, जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। वे लार्ड से इसी प्रकार सम्बद्ध थे, जिस प्रकार लार्ड राजा से सम्बद्ध थे। लार्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग दिया, जिसे ‘फीफ’ कहा जाता था और उसकी रक्षा करने का वचन दिया।

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फीफ 1000-2000 एकड़ या उसके अधिक में फैली हुई हो सकती थी तथा इसे उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता था। फीफ में नाइट और उसके परिवार के लिए एक पन-चक्की, मदिरा संपीडक, घर, चर्च आदि थे। दूसरी ओर नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। नाइट्स अपनी वीरता तथा युद्ध-कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। बारहवीं शताब्दी में नाइट वर्ग का पतन हो गया। बारहवीं सदी से गायक फ्रांस के मेनरों में पराक्रमी राजाओं तथा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ, गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे, जो अंशत: ऐतिहासिक एवं अंशतः काल्पनिक होती थीं। अब नाइट्स साहित्यिक रचनाओं के रूप में ही सीमित रह गए थे।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों का कार्य – मध्यकालीन मठों में भिक्षु रहा करते थे। वे प्रार्थना करते, अध्ययन करते तथा कृषि-कार्य भी करते थे। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग मठ थे। भिक्षु का जीवन पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को ‘मौंक’ तथा स्त्रियों को ‘नन’ कहते थे। भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ विवाह नहीं कर सकती थीं। मठों में रहने वाले भिक्षु ईसाई धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन करते थे तथा ईसाई धर्म का प्रचार करते थे।

कुछ मठ सैकड़ों लोगों के समुदाय बन गए जिससे स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। इन मठों ने कला के विकास में भी योगदान दिया। आबेस हिल्डेगार्ड एक कुशल संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उत्पन्न हो गईं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना – मध्यकालीन फ्रांस के नगरों में दुकानदारों, व्यापारियों के साथ-साथ शिल्पकार भी रहते थे। इन शिल्पकारों में लुहार, बढ़ई, मिस्त्री, पत्थर पर डिजाइन बनाने वाले, जुलाहा, अस्त्र-शस्त्र और शराब बनाने वाले शिल्पकार उल्लेखनीय थे। उनकी दिनचर्या काफी व्यस्त रहती थी।

हम पत्थर पर काम करने वाले शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना करते हुए इसका वर्णन करते हैं –
(1) सबसे पहले वह शिल्पकार उस पत्थर को अपने सामने लाता है और उसे उचित ढंग से रखता है।

(2) इसके बाद वह अपने औजारों के बक्से से हथौड़े और छेनी निकालता है। उन्हें काम करने हेतु तैयार करता है। ठीक प्रकार से काम करने योग्य हो जाने पर वह पत्थर पर कार्य हेतु तैयार हो जाता है।

(3) पत्थर पर वह चॉक से डिजायन बनाता है। फिर अपने कार्य में जुट जाता है। वह हथौड़े से छेनी को कभी तेज व कभी धीमी मारता है और पत्थर से कभी बड़ा टुकड़ा और कभी छोटा टुकड़ा निकलता है।

(4) बीच-बीच में म नोरंजन हेतु गाना गुनगुनाता है। वह दोपहर के समय काम बंद कर खाने के लिए चला जाता है और खाना खाने के बाद थोड़ा विश्राम कर पुन: उसी कार्य में जुट जाता है।

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(5) शाम तक वह पत्थर के एक छोटे से भाग पर सुन्दर डिजायन का रूप दे देता है।

(6) इस प्रकार वह दिन भर अपने काम को मनोयोग से करता है। वह दिन भर परिश्रम करता रहता है और शाम को काम बंद कर अपने सामान – पत्थर व औजारों को उचित स्थान पर रखकर प्रसन्न मन से घर को चला जाता है। इस प्रकार उसकी दिनचर्या पूर्णतः व्यस्त रहती है।

प्रश्न 6.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
1. रोम के दास – रोम में बड़ी संख्या में दास रहते थे। दास सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। उन्हें सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे । यद्यपि उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्राय: क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे, परन्तु साधारण लोग उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण बर्ताव करते थे। दासों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था। समूहों में काम करने वाले दासों को प्रायः पैरों में जंजीर डालकर एक-साथ रखा जाता था। दासों के बच्चे भी दास ही कहलाते थे। रोम में दासों को अधिकतर घरेलू कार्यों में लगाया जाता था। उन्हें दिन भर कठोर परिश्रम करना पड़ता था और उन्हें भरपेट भोजन भी प्राप्त नहीं होता था। उन्हें कारखानों, खेतों, जलपोतों आदि पर कार्य पर लगाया जा सकता था। उन्हें मनोरंजन के लिए हिंसक जंगली जानवरों से भी लड़ाया जाता था। रोम में दासों का क्रय-विक्रय भी किया जाता था।

2. फ्रांस के सर्फ-फ्रांस में सर्फ (कृषि – दास) बहुत बड़ी संख्या में थे। ये निम्न वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित थे। अपने जीवन-निर्वाह के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को ही मिलती थीं। सर्फ उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे, जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। सर्फ लार्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे, उनके तन्दूर में ही रोटी सेंक सकते थे तथा उनकी मदिरा सम्पीडक में ही शराब और बीयर तैयार कर सकते थे। लार्ड को कृषि – दासों के विवाह तय करने का भी अधिकार था।

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दोनों की जीवन-दशाओं में अन्तर –
(1) फ्रांस में सर्फ लोगों को अधिकतर लार्ड के खेतों पर ही काम करना पड़ता था। उन्हें बेगार भी करनी पड़ती थी। परन्तु उन्हें कारखानों, जलपोतों आदि पर काम नहीं करना पड़ता था और न ही उन्हें हिंसक जानवरों से लड़ाया जाता था। जबकि सर्पों को केवल कृषि, पशुपालन आदि कार्य ही करने पड़ते थे। चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उत्पन्न हो गईं।
(2) रोम में दासों का क्रय-विक्रय किया जाता था, वहाँ फ्रांस में सर्फ (कृषि-दासों) के क्रय-विक्रय करने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
(3) कृषि-दास लार्ड के स्वामित्व वाले भूखण्डों पर कृषि करते थे तथा लार्ड की उपज में से कृषिदासों को कुछ हिस्सा मिलता था, परन्तु रोमन साम्राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं थी।

तीन वर्ग JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. तीन वर्ग – नौवीं से 16वीं सदी के मध्य पश्चिमी यूरोप में होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिवर्तनों में तीन सामाजिक श्रेणियों (वर्गों) –

  • ईसाई पादरी
  • भूमिधारक अभिजात वर्ग और
  • कृषक वर्ग- के बीच बदलते सम्बन्ध इतिहास को गढने वाले प्रमुख कारक थे।

2. सामन्तवाद-सामन्तवाद जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ ‘एक भूमि का टुकड़ा’ है और यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैण्ड तथा दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ। आर्थिक सन्दर्भ में सामन्तवाद कृषि उत्पादन को इंगित करता है जो सामन्त और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित है। सामन्तवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में 11वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हई।

3. फ्रांस – गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया। छठी सदी से यह ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था। फ्रांसीसियों के चर्च के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध थे।

4. इंग्लैण्ड – एक संकरे जल मार्ग के पार स्थित इंग्लैण्ड – स्काटलैण्ड द्वीपों को ग्यारहवीं शताब्दी में फ्रांस के एक प्रान्त नारमंडी के राजकुमार द्वारा जीत लिया गया।

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5. द्वितीय वर्ग – अभिजात वर्ग-सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक अभिजात वर्ग (भू-स्वामियों) के अधीन होते थे। इस वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। वे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे । वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत जोत व चरागाह और उनके असामी- कृषकों के घर और खेत होते थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था।

6. मेनर की जागीर – लार्ड का अपना मेनर – भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार होते थे। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। लार्ड की भूमि कृषक जोतते थे। जागीरों में विस्तृत अभयारण्य तथा वन चरागाह होते थे तथा एक दुर्ग होता था।

7. नाइट – नौवीं सदी में यूरोप के स्थानीय युद्धों में कुशल अश्व सेना की आवश्यकता हुई। इससे एक नए वर्ग नाइट्स को बढ़ावा मिला। नाइट्स का लार्ड से उसी प्रकार का सम्बन्ध था जिस प्रकार का लार्ड का राजा से सम्बन्ध था। लार्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग (जिसे फीफ कहा गया) दिया और उसकी रक्षा करने का वचन दिया। इस फीफ में नाइट और उसके परिवार के लिए पनचक्की, मदिरा – संपीडक, घर, चर्च आदि होते थे। फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे तथा बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।

8. प्रथम वर्ग – पादरी वर्ग-पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में रखा था। कैथोलिक चर्च अपनी भूमियों से कर वसूल कर सकते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी बड़ी-बड़ी जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे।

9. भिक्षु-ये अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति होते थे जो मठों में रहते थे। भिक्षु अपना सारा जीवन मठों में रहने और हर समय प्रार्थना करने, अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था। भिक्षु और भिक्षुणियां विवाह नहीं कर सकते थे। मठ छोटे समुदाय से बढ़कर सैकड़ों की संख्या के समुदाय बन गए जिनसे बड़ी इमारतें, भू- जागीरें, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। इन्होंने कला के विकास में योगदान दिया।

10. चर्च और समाज- चौथी सदी से ही क्रिसमस तथा ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे। 25 दिसम्बर को मनाये जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व – रोमन त्यौहार का स्थान ले लिया। तीर्थयात्रा ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी।

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11. तीसरा वर्ग – किसान, स्वतंत्र और बंधक – किसान वर्ग तीसरा वर्ग कहलाता था । किसान दो तरह के होते थे –
(1) स्वतन्त्र किसान
(2) सर्फ ( कृषि – दास)।

स्वतन्त्र किसान अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। कृषकों के परिवारों को लार्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे । कृषि दास अपने गुजारे के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को हीं मिलती थी। कृषि – दास अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे तथा उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे।

12. इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास – इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास ग्यारहवीं सदी में हुआ। ग्यारहवीं सदी में नामैंडी के ड्यूक विलियम ने इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया। उसने भूमि को अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया। यही लार्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए थे।

13. सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक – लार्ड और सामन्तों के सामाजिक तथा आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले अनेक कारक थे, जिनमें –

  • पर्यावरण
  • भूमि का उपयोग
  • नई कृषि प्रौद्योगिकी आदि उल्लेखनीय थे।

14. चौथा वर्ग – नये नगर और नगरवासी – ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि का विस्तार होने के कारण कृषक लोग नगरों में आने लगे। स्वतन्त्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषिदास भाग कर नगरों में छिप जाते थे। अपने लार्ड की नजरों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषि दास एक स्वतन्त्र नागरिक बन जाता था । नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषि – दास थे जो अकुशल श्रमिक होते थे। दुकानदार और व्यापारी काफी बड़ी संख्या में थे।

15. श्रेणी ( गिल्ड ) – आर्थिक संस्था का आधार श्रेणी (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक ‘श्रेणी’ के रूप में संगठित था। यह उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियन्त्रण रखती थी। ‘ श्रेणी सभागार’ प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग था।

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16. कथीड्रल नगर – बारहवीं सदी से फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा। कथीड्रल का निर्माण करते समय कथीड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और जब उनका निर्माण पूरा हुआ तो वे स्थान तीर्थ-स्थान बन गए। इस प्रकार उनके चारों ओर छोटे नगर विकसित हुए।

17. चौदहवीं सदी का संकट – 14वीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया। ऐसा तीन कारकों के वजह से हुआ। ये तीन कारक थे –

  • 1315-17 के बीच पड़े भयंकर अकाल
  • धातु मुद्रा में कमी आना तथा
  • प्लेग।

इससे भारी विनाश हुआ। जनसंख्या बढ़ी तथा आर्थिक मंदी के और जुड़ने से सामाजिक विस्थापन हुआ तथा श्रमिक बल में कमी आ गई।

18. सामाजिक असन्तोष- मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आय को घटा दिया। अतः उन्होंने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया और पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया । इसके फलस्वरूप अनेक स्थानों पर कृषकों के विद्रोह हुए।

19. राजनीतिक परिवर्तन – पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया। अनेक सम्राटों ने स्थायी सेनाओं, स्थायी नौकरशाही तथा राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया। स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की योजनाएँ बनाईं।

फ्रांस का प्रारम्भिक इतिहास

तिथि ( ई.) घटना
481 क्लोविस फ्रैंक लोगों का राजा बना।
486 क्लोविस और फ्रैंक.ने उत्तरी गॉल का विजय अभियान शुरू किया।
496 क्लोविस और फ्रैंक लोग धर्म-परिवर्तन करके ईसाई बने।
714 चार्ल्स मारटल राजमहंल का मेयर बना।
751 मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। उसके विजय-अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया। पेपिन का स्थान उसके पुत्र शार्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया।
768 पोप लियो III ने शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट का ताज पहनाया।
800 नार्वे से वाइकिंग लोगों के हमले।
840 मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। उसके विजय-अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया। पेपिन का स्थान उसके पुत्र शार्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया।
ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दियों में (यूरोप)
तिथि (ई.) घटना
1066 नारमन लोगों की एंग्लो-सेक्सन लोगों को हराकर इंग्लैण्ड पर विजय
1100 के पश्चात् फ्रांस में कथीड्रल का निर्माण
1315-1317 यूरोप में महान अकाल
1347-1350 ब्यूबोनिक प्लेग (Black Death)
1338-1461 इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य ‘सौ वर्षीय युद्ध’
1381 कृषकों के विद्रोह।

JAC Class 11 Political Science Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Political Science Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Political Science Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Political Science Part 1 Indian Constitution at Work (भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार भाग-1)

Jharkhand Board Class 11th Political Science Part 2 Political Theory (राजनीतिक-सिद्धान्त भाग-2)

JAC Board Class 11th Political Science Solutions in English Medium

JAC Board Class 11th Political Science Part 1 Indian Constitution at Work

  • Chapter 1 Constitution: Why and How?
  • Chapter 2 Rights in the Indian Constitution
  • Chapter 3 Election and Representation
  • Chapter 4 Executive
  • Chapter 5 Legislature
  • Chapter 6 Judiciary
  • Chapter 7 Federalism
  • Chapter 8 Local Governments
  • Chapter 9 Constitution as a Living Document
  • Chapter 10 The Philosophy of the Constitution

JAC Board Class 11th Political Science Part 2 Political Theory

  • Chapter 1 Political Theory: An Introduction
  • Chapter 2 Freedom
  • Chapter 3 Equality
  • Chapter 4 Social Justice
  • Chapter 5 Rights
  • Chapter 6 Citizenship
  • Chapter 7 Nationalism
  • Chapter 8 Secularism
  • Chapter 9 Peace
  • Chapter 10 Development

JAC Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

Jharkhand Board Class 11 History इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. In-text Questions and Answers

पृष्ठ 86
क्रियाकलाप 1: खिलाफत की बदलती हुई राजधानियों की पहचान करिए। आपके अनुसार सापेक्षिक तौर पर इनमें से कौनसी केन्द्र में स्थित थी ?
उत्तर:
पैगम्बर साहब हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद प्रथम तीन खलीफाओं, अबू बकर, उमर और उथमान ने मदीना को अपनी राजधानी बनाया। चौथे खलीफा अली ने अपने को ‘कुफा’ नगर में स्थापित कर लिया। उमय्यद वंश के प्रथम खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया। अब्बासी वंश के खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया। समारा दूसरी अब्बासी राजधानी थी। 750 ई. में एक अन्य शिया राजवंश फातिमी ने ‘फातिमी खिलाफत’ की स्थापना की। फातिमी राजवंश के खलीफाओं ने काहिरा को अपनी राजधानी बनाया। इनमें से बगदाद सापेक्षिक तौर पर केन्द्र में स्थित थी।

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पृष्ठ 93.

‘क्रियाकलाप – 2 : बसरा में सुबह के एक दृश्य का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
खलीफाओं के समय में बसरा में सुबह का एक दृश्य – प्रातः काल से ही बसरा में लोगों की गतिविधियाँ शुरू हो गई थीं। बसरा के इस्लाम धर्मावलम्बी मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे। व्यापारी लोग नाव द्वारा अपने सामान को ले जाने के लिए तैयारी कर रहे थे। एक नाव बसरा की ओर जा रही थी जिसके नाविक भारतीय थे तथा यात्री अरबी। कुछ लोग बाजार से हरी सब्जियाँ तथा फल आदि खरीद रहे थे।

पृष्ठ 98

क्रियाकलाप 3 : दाईं ओर दिये गए उद्धरण पर टिप्पणी कीजिए। क्या आज के विद्यार्थी के लिए यह प्रासंगिक होगा?
उत्तर:
बारहवीं शताब्दी के बगदाद में कानून और चिकित्सा के विषयों के विद्वान अब्द अल लतीफ ने अपने आदर्श विद्यार्थी को उपदेश देते हुए कहा है कि उसे प्रत्येक विषय के ज्ञान के लिए अपने अध्यापकों का सहारा लेना चाहिए। उसे केवल पुस्तकों से ही विज्ञान नहीं सीखना चाहिए। उसे अपने अध्यापकों का आदर करना चाहिए। उसे पुस्तक को कण्ठस्थ कर लेना चाहिए और पुस्तक के अर्थ को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। उसे इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। उसे पैगम्बर की जीवनी को पढ़ना चाहिए और उनके पद- चिह्नों पर चलना चाहिए। अध्ययन और चिन्तन-मनन पूरा करने के बाद खुदा के नाम का स्मरण करना चाहिए और उसका गुणगान करना चाहिए।

उपर्युक्त उद्धरण में बताई गई बातें आज के लिए काफी सीमा तक प्रासंगिक हैं। आदर्श विद्यार्थी के लिए गहन अध्ययन करना, अध्यापकों का सम्मान करना, इतिहास, जीवनियों और राष्ट्रों के अनुभवों का अध्ययन करना, अल्लाह (ईश्वर) के गुण-गान करना आदि बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्रासंगिक हैं । परन्तु यह बात प्रासंगिक नहीं है कि केवल पुस्तकों और अध्यापकों से ही ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। आज हम दूरसंचार के साधनों से उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और अपनी जटिल समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। दूसरे, पुस्तक को कंठस्थ करना भी प्रासंगिक नहीं है।

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पृष्ठ 103

क्रियाकलाप 4 : इस अध्याय के कौनसे चित्र आपको सबसे अच्छे लगे और क्यों ?
उत्तर:
मुझे इस अध्याय के 1233 ई. में स्थापित मुस्तनसिरिया मदरसे के आँगन का चित्र तथा फिलिस्तीन के खिरबत-अल-मफजर महल के स्नान गृह के फर्श का चित्र सबसे अच्छे लगे हैं। मुस्तनसिरिया मदरसे का चित्र तत्कालीन इस्लामी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इससे इस्लामी राज्य में शिक्षा की स्थिति और उन्नति पर प्रकाश पड़ता है। फिलिस्तीन के खिरबत – अल-मफजर महल के स्नानगृह का चित्र बड़ा सुन्दर और आकर्षक है। इस पर सुन्दर पच्चीकारी की गई है। नीचे दिए गए दृश्य में शान्ति व युद्ध का चित्रण किया गया है जो तत्कालीन राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालता है।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइयों के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइयों के जीवन की विशेषताएँ –
(1) सातवीं शताब्दी में अरब के लोग विभिन्न कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था।
(2) अनेक अरब कबीले खानाबदोश या बद्दू अर्थात् बेदुइन होते थे। ये लोग खजूर आदि खाद्य पदार्थों तथा अपने ऊँटों लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान के सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।
(3) कुछ बदू शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लगे थे।
(4) खलीफा के सैनिकों में अधिकतर बेदुइन थे। वे रेगिस्तान के किनारों पर बसे शहरों जैसे कुफा और बसरा में शिविरों में रहते थे। वे अपने प्राकृतिक आवास-स्थलों के निकट और खलीफा की कमान के अन्तर्गत बने रहना चाहते थे।
(5) बद्दू लोगों के अपने देवी तथा देवता थे जिनकी पूजा बुतों (सनम) के रूप में मस्जिदों में की जाती थी।

प्रश्न 2.
‘अब्बासी क्रान्ति’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अब्बीसी क्रांति – अब्बासी लोग मक्का के निवासी तथा पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे उनका विद्रोह खुरासान ( पूर्वी ईरान) के बहुत दूर स्थित क्षेत्र में शुरू हुआ था। खुरासान में अरब सैनिक अधिकांशतः इराक से आए थे और वे सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे। खुरासान के अरब नागरिक उमय्यद शासन से इसलिए असन्तुष्ट थे क्योंकि उन्होंने करों में रियायतें देने तथा विशेषाधिकार देने के जो वचन दिये थे, वे पूरे नहीं किए थे।

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ईरानी लोग उमय्यद शासन से इसलिए नाराज थे कि उन्हें अरबों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था और वे भी उमय्यद वंश की सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहते थे। 750 ई. में अब्बासी वंश ने, उमय्यद वंश के शासन को समाप्त कर, सत्ता पर अधिकार कर लिया। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वे पैगम्बर मुहम्मद साहब के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे। इसी को अब्बासी क्रांति कहते हैं। इस क्रांति से वंश परिवर्तन के साथ-साथ इस्लाम के राजनैतिक ढाँचे तथा उनकी संस्कृति में भी परिवर्तन हुए।

प्रश्न 3.
अरबों, ईरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अरबों द्वारा स्थापित राज्य में मुसलमान, ईसाई, यहूदी, ईरानी, तुर्क आदि संस्कृतियों के लोग रहते थे। ईरानी साम्राज्य में भी अरब, ईरानी आदि संस्कृतियों का विकास हुआ। अब्बासी शासन के अन्तर्गत अरबों के प्रभाव में कमी आई तथा रानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया। अब्बासियों ने अपनी राजधानी प्राचीन ईरानी महानगर टेसीफोन के निकट बगदाद में स्थापित की। अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति और कार्यों को मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं तथा विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।

नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य कमजोर हो गया क्योंकि सेना और नौकरशाही में अरब – समर्थक तथा ईरान- समर्थक गुटों का आपस में झगड़ा हो गया। 950 से 1200 के मध्य इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) से नहीं, बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से संगठित बना रहा। अब इस्लामी संस्कृति की भाषा के रूप में फारसी भाषा का विकास किया गया।

अरबों, ईरानियों तथा तुर्कों के राज्यों में विद्वान, कलाकार और व्यापारी मुक्त रूप से घूमते रहते थे और अपने विचारों का प्रसार करते थे। दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत के उदय से अरबों और ईरानियों के साथ एक तीसरा प्रजातीय समूह जुड़ गया। तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे जिन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। वे कुशल घुड़सवार और वीर योद्धा थे।

प्रश्न 4.
यूरोप व एशिया पर धर्म- युद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
यूरोप व एशिया पर धर्म – युद्धों का प्रभाव – यूरोप व एशिया पर धर्म- युद्धों के निम्नलिखित प्रभाव हुए –
(1) मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनाई। दीर्घकालीन युद्धों की कटुतापूर्ण यादों और मिली-जुली जनसंख्या वाले प्रदेशों में सुरक्षा की आवश्यकता के परिणामस्वरूप मुस्लिम राज्यों की नीति में परिवर्तन आया और उन्होंने ईसाई लोगों के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार किया।

(2) मुस्लिम सत्ता की स्थापना के बावजूद भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों जैसे पीसा, जेनोआ तथा वैनिस का प्रभाव बढ़ गया।

(3) धर्म- युद्धों के कारण यूरोपवासी पूर्वी देशों के लोगों के साथ सम्पर्क में आए जिसके फलस्वरूप उन्हें पूर्वी देशों की तर्क शक्ति, प्रयोग – पद्धति और वैज्ञानिक खोजों की जानकारी प्राप्त हुई।

(4) धर्म-युद्धों के कारण यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुए व नए-नए पदार्थों का ज्ञान
हुआ। यूरोपवासियों को रेशम, कपास, चीनी, सीसे के बर्तनों, गरम मसालों आदि से परिचय हुआ।

(5) धीरे-धीरे यूरोप की इस्लाम में सैनिक दिलचस्पी समाप्त हो गई और उसका ध्यान अपने आन्तरिक राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास की ओर केन्द्रित हो गया।

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(6) यूरोप व एशिया के लोगों में धैर्य व उत्साह की वृद्धि हुई।

(7) सामन्तों की शक्ति को आघात पहुँचा और यूरोपीय शासकों की शक्ति में वृद्धि हुई। खलीफा की कमान के अन्तर्गत बने रहना चाहते थे।

(5) बद्दू लोगों के अपने देवी तथा देवता थे जिनकी पूजा बुतों (सनम) के रूप में मस्जिदों में की जाती थी।

प्रश्न 2.
‘अब्बासी क्रान्ति’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अब्बीसी क्रांति – अब्बासी लोग मक्का के निवासी तथा पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे उनका विद्रोह खुरासान ( पूर्वी ईरान) के बहुत दूर स्थित क्षेत्र में शुरू हुआ था। खुरासान में अरब सैनिक अधिकांशतः इराक से आए थे और वे सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे। खुरासान के अरब नागरिक उमय्यद शासन से इसलिए असन्तुष्ट थे क्योंकि उन्होंने करों में रियायतें देने तथा विशेषाधिकार देने के जो वचन दिये थे, वे पूरे नहीं किए थे।

ईरानी लोग उमय्यद शासन से इसलिए नाराज थे कि उन्हें अरबों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था और वे भी उमय्यद वंश की सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहते थे। 750 ई. में अब्बासी वंश ने, उमय्यद वंश के शासन को समाप्त कर, सत्ता पर अधिकार कर लिया। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वे पैगम्बर मुहम्मद साहब के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे। इसी को अब्बासी क्रांति कहते हैं। इस क्रांति से वंश परिवर्तन के साथ-साथ इस्लाम के राजनैतिक ढाँचे तथा उनकी संस्कृति में भी परिवर्तन हुए।

प्रश्न 3.
अरबों, ईरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अरबों द्वारा स्थापित राज्य में मुसलमान, ईसाई, यहूदी, ईरानी, तुर्क आदि संस्कृतियों के लोग रहते थे। ईरानी साम्राज्य में भी अरब, ईरानी आदि संस्कृतियों का विकास हुआ। अब्बासी शासन के अन्तर्गत अरबों के प्रभाव में कमी आई तथा रानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया। अब्बासियों ने अपनी राजधानी प्राचीन ईरानी महानगर टेसीफोन के निकट बगदाद में स्थापित की। अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति और कार्यों को मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं तथा विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य कमजोर हो गया क्योंकि सेना और नौकरशाही में अरब – समर्थक तथा ईरान- समर्थक गुटों का आपस में झगड़ा हो गया।

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950 से 1200 के मध्य इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) से नहीं, बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से संगठित बना रहा। अब इस्लामी संस्कृति की भाषा के रूप में फारसी भाषा का विकास किया गया। अरबों, ईरानियों तथा तुर्कों के राज्यों में विद्वान, कलाकार और व्यापारी मुक्त रूप से घूमते रहते थे और अपने विचारों का प्रसार करते थे। दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत के उदय से अरबों और ईरानियों के साथ एक तीसरा प्रजातीय समूह जुड़ गया। तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे जिन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। वे कुशल घुड़सवार और वीर योद्धा थे।

प्रश्न 4.
यूरोप व एशिया पर धर्म- युद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
यूरोप व एशिया पर धर्म – युद्धों का प्रभाव – यूरोप व एशिया पर धर्म- युद्धों के निम्नलिखित प्रभाव हुए –
(1) मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनाई । दीर्घकालीन युद्धों की कटुतापूर्ण यादों और मिली-जुली जनसंख्या वाले प्रदेशों में सुरक्षा की आवश्यकता के परिणामस्वरूप मुस्लिम राज्यों की नीति में परिवर्तन आया और उन्होंने ईसाई लोगों के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार किया।

(2) मुस्लिम सत्ता की स्थापना के बावजूद भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों जैसे पीसा, जेनोआ तथा वैनिस का प्रभाव बढ़ गया।

(3) धर्म- युद्धों के कारण यूरोपवासी पूर्वी देशों के लोगों के साथ सम्पर्क में आए जिसके फलस्वरूप उन्हें पूर्वी देशों की तर्क शक्ति, प्रयोग – पद्धति और वैज्ञानिक खोजों की जानकारी प्राप्त हुई।

(4) धर्म-युद्धों के कारण यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुए व नए-नए पदार्थों का ज्ञान हुआ। यूरोपवासियों को रेशम, कपास, चीनी, सीसे के बर्तनों, गरम मसालों आदि से परिचय हुआ।

(5) धीरे-धीरे यूरोप की इस्लाम में सैनिक दिलचस्पी समाप्त हो गई और उसका ध्यान अपने आन्तरिक राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास की ओर केन्द्रित हो गया।

(6) यूरोप व एशिया के लोगों में धैर्य व उत्साह की वृद्धि हुई।

(7) सामन्तों की शक्ति को आघात पहुँचा और यूरोपीय शासकों की शक्ति में वृद्धि हुई। यह मस्जिदों का शहर है। उमैय्यद मस्जिद यहाँ की सबसे प्रसिद्ध मस्जिद है। कृषि तथा पशुपालन यहाँ के लोगों की जीविका के मुख्य साधन हैं।

इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. अरब में इस्लाम का उदय – सन् 612-632 में पैगम्बर मुहम्मद साहब ने एक ईश्वर, अल्लाह की पूजा करने का और आस्तिकों के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार किया। यह इस्लाम का मूल था। अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था। प्रत्येक कबीले के अपने स्वयं के देवी-देवता होते थे, जो बुतों (सनम ) के रूप में मस्जिदों में पूजे जाते थे।

2. मक्का – पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला कुरैश कबीला मक्का में रहता था और उसका वहाँ के मुख्य धर्म-स्थल पर नियन्त्रण था। इस स्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे ‘काबा’ कहा जाता था, जिसमें बुत रखे हुए थे। काबा को एक पवित्र स्थान माना जाता था।

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3. पैगम्बर द्वारा अपने आप को खुदा का सन्देशवाहक घोषित करना – 612 ई. के आसपास पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आप को खुदा का सन्देशवाहक घोषित किया जिन्हें यह प्रचार करने का आदेश दिया गया था कि केवल अल्लाह की ही आराधना की जानी चाहिए। इबादत (आराधना) की विधियाँ बड़ी सरल थीं।

  • दैनिक प्रार्थना (सलात)
  • नैतिक सिद्धान्त जैसे-खैरात बाँटना
  • चोरी न करना। पैगम्बर मुहम्मद साहब के धर्म-सिद्धान्त को स्वीकार करने वाले लोग मुसलमान कहलाये।

4. पैगम्बर मुहम्मद द्वारा मदीना की ओर कूच करना – मक्का के समृद्ध लोगों द्वारा विरोध करने पर 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा। जिस बर्ष पैगम्बर मुहम्मद मदीना पहुँचे, उस वर्ष से मुस्लिम कलैण्डर अर्थात् हिजरी सन् की शुरुआत हुई।

5. मक्का पर विजय – पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की जिसने उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की। उम्मा (आस्तिकों) को एक बड़े समुदाय के रूप में बदला तथा धर्म को परिष्कृत कर अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया। पैगम्बर मुहम्मद साहब ने मक्का पर भी विजय प्राप्त की। मक्कावासियों नें इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। एक धार्मिक प्रचारक और राजनैतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर- दूर तक फैल गई। मदीना उभरते हुए इस्लामिक राज्य की प्रशासनिक राजधानी और मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया। यह राज्य व्यवस्था काफी लम्बे समय तक अरब कबीलों और कुलों का राज्य संघ बनी रही। 632 ई. में मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गई।

6. खलीफाओं का शासन – विस्तार, गृह युद्ध और सम्प्रदाय निर्माण – 632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् इस्लामी राजसत्ता की बागडोर उम्मा (आस्तिकों के समाज) को सौंप दी गई। इसके फलस्वरूप खिलाफत की संस्था अस्तित्व में आई, जिसमें समुदाय का नेता पैगम्बर का प्रतिनिधि ( खलीफा ) बन गया। पहले चार खलीफाओं- अबू बकर, उमर, उथमान, अली – ने पैगम्बर द्वारा दिए गए मार्ग-निर्देशों के अन्तर्गत उनका कार्य जारी रखा।

पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के एक दशक के अन्दर अरब – इस्लामी राज्य ने नील और आक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। अली के समय में मुसलमानों में दरार उत्पन्न हुई, गृहयुद्ध हुए तथा अली के अनुयायी दो गुटों में बंट गए। एक अली व उसे पुत्र हुसैन का गुट तथा दूसरा मुआविया गुट। 661 ई. में मुआविया ने अपने आपको अगला खलीफा घोषित कर दिया और उमय्यद वंश की स्थापना की।

7. उमय्यद वंश की स्थापना और राजतन्त्र का केन्द्रीकरण – 661 ई. में मुआवियों ने उमय्यद वंश की स्थापना की जो 750 ई. तक चलता रहा। इस काल में मदीना में स्थापित खिलाफत नष्ट हो गई और उसका स्थान सत्तावादी राजतंत्र ने ले लिया। पहला उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया। उसने वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा प्रारंभ की। इसके फलस्वरूप उमय्यद 90 वर्ष तक सत्ता में बने रहे। उमय्यद राज्य एक साम्राज्यिक शक्ति बन गया था। वह शासन – कला और सीरियाई सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था, लेकिन इस्लाम इसे वैधता प्रदान करता रहा। उन्होंने अपनी अरबी पहचान बनाए रखी।

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8. अब्बासी क्रान्ति – 750 ई. में अब्बासियों ने उमय्यद वंश के शासन को समाप्त कर दिया। अब्बासी शासन के अन्तर्गत ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया और अरबों के प्रभाव में कमी आई। अब्बासियों ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया और इस्लामी संस्थाओं तथा विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। अब्बासी मुहम्मद साहब के चाचा अब्बास के वंशज थे

9. खिलाफत का विघटन – अब्बासी राज्य नौवीं शताब्दी से कमजोर होता गया। उनकी सत्ता मध्य इराक तथा पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई। 945 ई. में ईरान के बुवाही नामक शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया। बुवाही शासकों ने विभिन्न उपाधियाँ धारण कीं, लेकिन ‘खलीफा’ की पदवी धारण नहीं की। उन्होंने अब्बासी खलीफा को अपने सुन्नी प्रजाजनों के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा। 969 ई. में फातिमी खिलाफत की स्थापना हुई जिसने मिस्र के शहर काहिरा को अपनी राजधानी बनाया। दोनों प्रतिस्पर्धी राजवंशों (बुवाही तथा फातिमी) ने शिया प्रशासकों, विद्वानों को आश्रय प्रदान किया।

10. तुर्की सल्तनत का उदय – दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत का उदय हुआ। तुर्की सल्तनत के उदय से अरबों, ईरानियों के साथ एक तीसरा प्रजातीय समूह – तुर्क – जुड़ गया। गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पतिगिन ने की थी जिसे महमूद गजनवी ने सुदृढ़ बना दिया था। महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद सल्जुक तुर्की ने खुरासान को जीतकर निशापुर को अपनी राजधानी बनाया। 1055 में उन्होंने बगदाद को अपने अधीन किया। खलीफा ने गरिल बेग को सुल्तान की उपाधि प्रदान की।

11. धर्म – युद्ध – 1095 ई. में पोप ने बाइजेंटाइन सम्राट के साथ मिलकर पवित्र स्थान जेरुस्लम को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध के लिए आह्वान किया। 1095 और 1291 के बीच ईसाइयों और मुसलमानों के बीच अनेक युद्ध लड़े गये, जिन्हें धर्म- युद्ध कहते हैं। प्रथम धर्म – युद्ध ( 1098 – 1099 ई.) में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीआक और जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया। दूसरे धर्म – युद्ध (1145 – 1149) में एक जर्मन तथा फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा। 1189 में तीसरा धर्म – युद्ध हुआ। अन्त में मिस्र के शासकों ने 1291 में धर्म- युद्ध करने वाले सभी ईसाइयों को समस्त फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिय।

12. अर्थव्यवस्था –
(i) कृषि – लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। जमीन के मालिक बड़े और छोटे किसान थे. और कहीं-कहीं राज्य था । कृषि भूमि का सर्वोपरि नियन्त्रण राज्य के हाथों में था । अरबों द्वारा जीती गई भूमि पर, जो मालिकों के हाथों में रहती थी, कर (खराज) लगता था जो उपज के आधे से लेकर उसके पाँचवें हिस्से के बराबर होता था। कपास, संतरा, केला, तरबूज आदि की खेती की गई और यूरोप को उनका निर्यात भी किया गया।

(ii) शहरीकरण – बहुत से नये शहरों की स्थापना की गई जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों को बसाना था। कुफा, बसरा, फुस्तात, काहिरा आदि प्रसिद्ध नगर थे। शहर के केन्द्र में दो भवन – समूह थे, जहाँ से सांस्कृतिक तथा आर्थिक शक्ति का प्रसारण होता था। उनमें से एक मस्जिद तथा दूसरी केन्द्रीय मण्डी होती थी। शहर के प्रशासकों, विद्वानों और व्यापारियों के लिए घर होते थे, जो केन्द्र के निकट होते थे। सामान्य नागरिकों और सैनिकों के रहने के क्वार्टर बाहरी घेरे में होते थे।

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(iii) व्यापार-पाँच शताब्दियों तक अरब और ईरानी व्यापारियों का चीन, भारत और यूरोप के बीच के समुद्री व्यापार पर एकाधिकार रहा। यह व्यापार लाल सागर तथा फारस की खाड़ी से होता था। मसालों, कपड़ों, चीनी मिट्टी की चीजों, बारूद आदि को भारत और चीन से जहाजों पर लाया जाता था। यहाँ से माल को जमीन पर ऊँटों के काफिलों के द्वारा बगदाद, दमिश्क, एलेप्पो आदि के भण्डार गृहों तक ले जाया जाता था। सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के बनाए जाते थे। इस्लामी राज्य ने व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया। साख-पत्रों का उपयोग व्यापारियों, साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अन्तरित करने के लिए किया जाता था।

13. विद्या और संस्कृति – मध्यकाल में उलमा अपना समय कुरान पर टीका लिखने और मुहम्मद साहब की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लिखने में लगाते थे। इस्लामी कानून तैयार करने के लिए विधिवेत्ताओं ने तर्क और अनुमान का प्रयोग भी किया। आठवीं और नौवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ बन गई थीं। ये मलिकी, हनफी, शफीई और हनबली थीं। शरीआ ने सुन्नी समाज के भीतर सभी सम्भव कानूनी मुद्दों के बारे में मार्ग-प्रदर्शन किया था।

14. सूफी – मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक समूह बन गया था, जिन्हें सूफी कहा जाता है। ये लोग तपश्चर्या और रहस्यवाद के द्वारा खुदा का अधिक गहरा और अधिक वैयक्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक होने का विचार है जिसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को उसके निर्माता अर्थात् परमात्मा के साथ मिलाना चाहिए। ईश्वर से मिलन, ईश्वर के साथ तीव्र प्रेम के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। सूफीवाद का द्वार सभी के लिए खुला है।

15. ज्ञान – विज्ञान – इब्नसिना का यह विश्वास नहीं था कि कयामत के दिन व्यक्ति फिर से जीवित हो जाता था। उसने ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ नामक पुस्तक लिखी जिसमें आहार – विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। इस्लाम – पूर्व काल की सबसे अधिक लोकप्रिय रचना सम्बोधन गीत (कसीदा) था। अबु नुवास ने शराब और पुरुष – प्रेम जैसे नये विषयों पर उत्कृष्ट श्रेणी की कविताओं की रचना की। रुदकी को नई फारसी कविता का जनक माना जाता था । इस कविता में छोटे गीत-काव्य (गज़ल) और रुबाई जैसे नये रूप शामिल थे। उमर खय्याम ने रुबाई को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

16. गजनी – फारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र – 11वीं शताब्दी के प्रारम्भ में गजनी फारसी साहित्यिक जीवन का केन्द्र बन गया था। महमूद गजनवी के दरबार में अनेक उच्च कोटि के कवि और विद्वान रहते थे। इनमें सबसे . अधिक प्रसिद्ध फिरदौसी थे जिसने ‘शाहनामा’ नामक पुस्तक की रचना की थी। यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।

17. इतिहास लेखन की परम्परा – पढ़े-लिखे मुस्लिम समाजों में इतिहास लिखने की परम्परा अच्छी तरह स्थापित थी। बालाधुरी के ‘अनसब- अल – अशरफ’ तथा ताबरी के तारीख – अलं – रसूल वल मुलुक में सम्पूर्ण मानव- इतिहास का वर्णन किया गया है।

18. कला – स्पेन से मध्य एशिया तक फैली हुई मस्जिदों, इबादतगाहों और मकबरों का बुनियादी नमूना एक जैसा था-मेहराबें, गुम्बदें, मीनार, खुले सहन। इस्लाम की पहली शताब्दी में, मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्पीय रूप प्राप्त कर लिया था। मस्जिद में एक खुला प्रांगण, सहन, एक फव्वारा अथवा जलाशय, एक बड़ा कमरा आदि की व्यवस्था होती थी । बड़े कमरे की दो विशेषताएँ होती थीं- दीवार में एक मेहराब और एक मंच। इमारत में एक मीनार जुड़ी होती है। इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के दो रूपों को बढ़ावा मिला – खुशनवीसी (सुन्दर लिखने की कला) तथा अरबेस्क (ज्यामितीय और वनस्पतीय डिजाइन )।

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Jharkhand Board Class 12 Political Science सत्ता के वैकल्पिक केंद्र InText Questions and Answers

पृष्ठ 56

प्रश्न 1.
क्या भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है? भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट क्यों हैं?
उत्तर:
भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का हिस्सा है। भारत आसियान देशों क पड़ोसी देश है, इसलिए भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के काफी निकट हैं।

पृष्ठ 57

प्रश्न 2.
आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) के सदस्य कौन हैं?
उत्तर:
कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैण्ड, वियतनाम इत्यादि।

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पृष्ठ 58

प्रश्न 5.
आसियान क्यों सफल रहा और दक्षेस (सार्क) क्यों नहीं? क्या इसलिए कि उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा देश नहीं है?
उत्तर:
आसियान इसलिए सफल रहा क्योंकि इसके सदस्य देशों ने टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अख्तियार करते हुए निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में सफलता पायी है। इसने आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार किया है तथा इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में सहयोग किया है। दक्षेस (सार्क) इसलिए सफल नहीं रहा क्योंकि इसके सदस्य देश बातचीत के माध्यम से टकराव को टालकर एक साझा बाजार स्थापित करने में असफल रहे हैं और निवेश, श्रम तथा सेवाओं के मामलों में इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र नहीं बना सके हैं।

पृष्ठ 60

प्रश्न 6.
कार्टून में (पृष्ठ संख्या 60 ) साइकिल का प्रयोग आज के चीन के दोहरेपन को इंगित करने के लिए किया गया है। यह दोहरापन क्या है? क्या हम इसे अन्तर्विरोध कह सकते हैं?
उत्तर:
चीन विश्व में सर्वाधिक साइकिल प्रयोग करने वाला देश है। इस कार्टून में साइकिल का प्रयोग दोहरापन दर्शाता है क्योंकि एक तरफ तो चीन साम्यवादी विचारधारा वाले देशों का नेता होने की बात करता है, जबकि दूसरी ओर अपनी अर्थव्यवस्था में डालर अर्थात् पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को आमंत्रित कर रहा है। कार्टून में दोनों पहियों में अगला पहिया जहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है, वहीं पीछे का पहिया पूँजीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यह एक प्रकार का विचारधारागत अन्तर्विरोध है।

पृष्ठ 61

प्रश्न 7.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में भारत का दौरा किया। 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन गए थे । इन दौरों में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनके बारे में पता करें।
उत्तर:
अप्रैल, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी चीन यात्रा पर गए यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर वार्ता हुई इसके अतिरिक्त सीमा विवाद को शीघ्रता से निपटाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की, द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी दोनों पक्षों में सहमति हुई। अक्टूबर, 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आये। शी जिनपिंग ने तमिलनाडु के महाबलीपुरम में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक वार्ता में भाग लिया। इसके अतिरिक्त बीजा नियमों में शिथिलता देने, सीमाविवाद को शीघ्र सुलझाने, कैलाश मानसरोवर के लिए नाथूला से नया रास्ता खोलने, आतंकवाद को रोकने, इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए चीन को आमंत्रित करने, दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाने, रेलवे का आधुनिकीकरण करने, अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग करने जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 1.
तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें-
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।
उत्तर:
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना (1957)
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना (1967)
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना (1992)
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश (2001 )।

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प्रश्न 2.
‘ASEAN way’ या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षा नीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।
उत्तर:
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।

प्रश्न 3.
इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई?
(क) चीन
(ख) दक्षिण कोरिया
(ग) जापान
(घ) अमरीका।
उत्तर:
(क) चीन।

प्रश्न 4.
खाली स्थान भरें-
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच ……… और ……….. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में ………… और ……… करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ……………. के साथ दोतरफा संबंध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ) ………….. योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।
उत्तर;
(क) अरुणाचल, लद्दाख
(ख) आसियान के देशों की सुरक्षा, विदेश नीतियों में तालमेल
(ग) अमेरिका
(घ) मार्शल
(ङ) सुरक्षा समुदाय।

प्रश्न 5.
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर;
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य हैं-

  1. अपने-अपने इलाके (क्षेत्र) में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों और कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान ढूंढ़ना।
  2. अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करना।
  3. अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में काम करना।
  4. बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करना।

प्रश्न 6.
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?
उत्तर:
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर सकारात्मक असर पड़ता है। यथा-

  1. इसके कारण उस क्षेत्र के देशों की कई समस्यायें, धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज तथा भाषाएँ समान होती हैं, जिससे क्षेत्रीय संगठन के निर्माण में मदद मिलती है।
  2. इसके कारण क्षेत्र विशेष के देशों में क्षेत्रीय संगठन बनाने की भावना विकसित होती है और इस भावना के विकास के साथ पारस्परिक संघर्ष और युद्ध का स्थान, पारस्परिक सहयोग और शांति ले लेती है।
  3. क्षेत्रीय निकटता और भौगोलिक एकता मेल-मिलाप के साथ आर्थिक सहयोग तथा अन्तर्देशीय व्यापार को बढ़ावा देती है।
  4. भौगोलिक निकटता के कारण उस क्षेत्र विशेष के राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था कर सकते
  5. एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्गों और रेल सेवाओं से आसानी से जुड़ सकते हैं।

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प्रश्न 7.
‘आसियान- विजन 2020′ की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं? उत्तर–‘आसियान-विजन 2020’ की मुख्य-मुख्य बातें ये हैं-

  1. आसियान-विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।
  2. आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा हल निकालने की नीति पर बल दिया गया है। इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।
  3. आसियान – विजन 2020 के तहत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय तथा एक आसियान सामाजिक तथा सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गई है।
  4. आसियान अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और गैर- क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श को महत्त्व देगा।

प्रश्न 8.
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएँ।
उत्तर:
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभ- 2003 में आसियान ने तीन मुख्य स्तंभ बताये हैं। ये हैं

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय,
  2. आसियान आर्थिक समुदाय और
  3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक समुदाय।

आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों के उद्देश्य-आसियान समुदाय के तीनों मुख्य स्तंभों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय – यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाकर उन्हें बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास करता है।
  2. आसियान आर्थिक समुदाय – आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारता है।
  3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय – इसका मुख्य उद्देश्य आसियान क्षेत्र का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना है। इस हेतु यह सदस्य देशों में संवाद और परामर्श के लिए रास्ता तैयार करता है।

प्रश्न 9.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?
उत्तर:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था और आज की अर्थव्यवस्था में अन्तर आज की चीनी अर्थव्यवस्था, उसकी नियंत्रित अर्थव्यवस्था से भिन्नता लिए हुए है। दोनों के अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम खुले द्वार की अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योगों पर राज्य का नियंत्रण था। विदेशी बाजारों से तकनीक और सामान खरीदने पर प्रतिबंध था। इसमें विदेशी व्यापार न के बराबर था, प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी तथा औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ पा रहा था। चीन ने 1970 के बाद अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनीतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण पर बल दिया तथा विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के ‘निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त करने पर बल दिया गया।

(2) राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम निजीकरण की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि तथा उद्यमों पर राज्य का नियंत्रण था। लेकिन चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था निजीकरण लिये हुए बाजारमूलक अर्थव्यवस्था है।

(3) रोजगार तथा सामाजिक कल्याण सम्बन्धी अन्तर:
चीन की राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था में सभी नागरिकों को ‘रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया। लेकिन वर्तमान चीन की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का लाभ सभी नागरिकों को नहीं मिल रहा है।

(4) विदेशी निवेश सम्बन्धी अन्तर;
चीन की नियन्त्रित अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश नगण्य रहा जबकि वर्तमान अर्थव्यवस्था में वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए आकर्षक देश बनकर उभरा है।

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प्रश्न 10.
किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
उत्तर:
यूरोपीय देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् आपसी बातचीत, सहयोग एवं परस्पर विश्वासों के आधार पर अपनी परेशानियों को दूर किया। यथा यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें – 1945 के बाद यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित थीं:

  1. 1945 तक यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएँ बर्बाद हो गयी थीं।
  2. 1945 तक यूरोपीय देशों की वे मान्यताएँ और व्यवस्थाएँ ध्वस्त हो गईं जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।
  3. यूरोप के देशों में प्राचीन समय से ही दुश्मनियाँ चली आ रही थीं।

समस्याओं का निवारण- यूरोप के देशों ने अपनी समस्याओं का निवारण निम्न प्रकार से किया:

  1. शीत युद्ध से सहायता – 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीत युद्ध से भी मदद मिली।
  2. मार्शल योजना से अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन – अमरीका से यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद मिली। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है।
  3. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था – अमेरिका ने नाटो के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया।

यूरोपीय संघ की स्थापना के प्रमुख कदम-

  1. यूरोपीय परिषद् का गठन – 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुआ।
  2. अर्थव्यवस्था के पारस्परिक एकीकरण की प्रक्रिया – यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपियन इकॉनोमिक कम्युनिटी का गठन व यूरोपीय संसद का गठन हुआ तथा 1992 में मॉस्ट्रिस्ट संधि के द्वारा यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
  3. यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य के रूप में- अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। यद्यपि यूरोपीय संघ का कोई संविधान नहीं बन सका है, तथापि इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है।

प्रश्न 11.
यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन के रूप में यूरोपीय संघ को निम्न तत्त्व एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन सिद्ध करते हैं:

  1. समान राजनैतिक रूप-यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों का एक ऐसा राजनैतिक संगठन है जिसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस तथा मुद्रा है। इससे साझी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में मदद मिली है।
  2. सहयोग की नीति – यूरोपीय संघ ने सहयोग की नीति अपनाते हुए यूरोप के देशों में परस्पर सहयोग को बढ़ावा दिया है। इससे इसका प्रभाव बढ़ा है।
  3. यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2005 में यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। विश्व व्यापार संगठन के अन्दर भी यह एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में कार्य करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं, बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के देशों पर भी है।
  4. राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश
    •  ब्रिटेन और
    •  फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।
  5. सैनिक तथा तकनीकी प्रभाव – यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। इसके दो देशों – ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान तथा संचार प्रौद्योगिकी के मामले में यूरोपीय संघ का विश्व में द्वितीय स्थान है।

प्रश्न 12.
चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि चीन और भारत में मौजूदा विश्व – व्यवस्था को चुनौती देने की क्षमता है। इसके समर्थन में अग्र तर्क दिये जा सकते हैं: संजीव पास बुक्स

  1. चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली, साधन- सम्पन्न देश हैं। दोनों में परस्पर सुदृढ़ मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है।
  2. चीन और भारत दोनों ही विशाल जनसंख्या वाले देश हैं। इतना विशाल जनमानस अमेरिका के निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। दोनों देश पश्चिमी व अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।
  3. भारत और चीन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं। तेजी से आर्थिक विकास करके ये आर्थिक क्षेत्र में एकध्रुवीय विश्व को चुनौती दे सकते हैं।
  4. दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति कर एकध्रुवीय विश्व को चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं।
  5. दोनों देश विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमेरिकी एकाधिकार की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर सकते हैं।
  6. दोनों देश बहुउद्देश्यीय योजनाओं में, यातायात के साधनों के विकास में, जल-विद्युत निर्माण क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और आदान-प्रदान की नीतियाँ अपनाकर अपने को शीघ्र महाशक्ति की श्रेणी में ला सकते हैं।

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प्रश्न 13.
मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व शांति और समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आर्थिक संगठन आवश्यक है। प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्योंकि-

  1. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धन्धों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा मिलता है।
  2. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर होगी।
  3. क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण से जब रोजगार बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, यातायात आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
  4. सभी देश चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले तथा अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात हो। यह तभी संभव हो सकता है कि सभी पड़ोसी देशों में शांति तथा सहयोग की भावना हो और यह भावना क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के माध्यम से पैदा होती है। इस प्रकार क्षेत्रीय संगठन समृद्धि और शांति लाते हैं।

प्रश्न 14.
भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच विवाद के मुद्दे – भारत और चीन के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।

  1. सीमा विवाद – दोनों देशों के बीच सीमा विवाद 1962 से चला आ रहा है
  2. मैकमोहन रेखा – मैकमोहन रेखा, जो भारत तथा चीन के क्षेत्र की सीमा निश्चित करती है कि सम्बन्ध में दोनों देशों में मतभेद है।
  3. अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश सम्बन्धी मुद्दा – अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र के सम्बन्ध में दोनों देशों के बीच विवाद चला आ रहा है।
  4. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का मुद्दा – तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर एक परेशानी का कारण रही है।
  5. चीन का पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करना – चीन ने सदैव पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति की है, जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता है।

वृहत्तर सहयोग हेतु मतभेदों को निपटाने के लिए सुझाव: वृहत्तर सहयोग के लिए भारत-चीन मतभेदों को निपटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. दोनों देशों की सरकारें, नेतागण, जनसंचार माध्यम पारस्परिक बातचीत के द्वारा हर विवाद का समाधान निकाल सकते हैं
  2. दोनों देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यथासंभव समान दृष्टिकोण अपना कर और परस्पर सहयोग कर इन्हें निपटाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
  3. दोनों देश पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाली समस्याओं के समाधान में सहयोग दे सकते हैं।
  4. दोनों देशों के प्रमुख नेता समय-समय पर एक-दूसरे के देशों की यात्राएँ करें तथा अपने विचारों का अदानप्रदान करें जिससे दोनों देशों में सद्भाव और मित्रता स्थापित हो।
  5. भारत और चीन के पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा दिया जाये।

सत्ता के वैकल्पिक केंद्र JAC Class 12 Political Science Notes

→ परिचय:
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद द्वि-ध्रुवीयता का अन्त हो गया । आज विश्व में स्वतंत्र देशों ने मिलकर अनेक असैनिक संगठन, जैसे—यूरोपीय संघ और आसियान आदि, खड़े किए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों का आर्थिक विकास करना है। इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके अतिरिक्त विश्व में चीन के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ते कदमों ने भी विश्व राजनीति में नाटकीय प्रभाव डाला है। चीन की आर्थिक व्यवस्था में बढ़ोतरी व यूरोपियन संघ तथा आसियान जैसे संगठनों के द्वारा आर्थिक क्षेत्र में जो प्रयास किये गये हैं, उनसे ऐसा लगने लगा है कि आज विश्व में अमरीका के अलावा सत्ता के अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।

→ यूरोपीय संघ
लम्बे समय से यूरोपीय नेताओं का यह स्वप्न रहा था कि यूरोपीय राज्यों का एक संघ या साझी राजनीतिक- आर्थिक व्यवस्था बनाई जाए। विश्व युद्धों ने इस स्वप्न को आवश्यकता में बदल दिया।

→ यूरोपीय संघ का उद्भव:

  • मार्शल योजना के तहत 1948 ई. में ‘यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन ‘ की स्थापना की गई। इसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार व आर्थिक मामलों में परस्पर मदद शुरू की।
  • 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई।
  • यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी, परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ यूरोपियन पार्लियामेंट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया।

सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। एक लम्बे समय बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। अन्य देशों से संबंधों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है। यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2016 में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 17000 अरब डालर से ज्यादा था जो अमरीका के लगभग है।

विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमरीका सें तीन गुनी ज्यादा है। यह विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के अंदर एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में काम करता है। यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय देश के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। यूरोपीय संघ के दो देशों- ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है। अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है।

यूरोपीय एकता के महत्त्वपूर्ण पड़ाव
→ अप्रैल, 1951: पश्चिमी यूरोप के छह देशों – फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने पेरिस संधि पर दस्तखत करके यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन (Euratom) किया ।

→ मार्च 1957: संजीव पास बुक्स इन्हीं छह देशों ने रोम की सन्धि के माध्यम से यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) और यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय ( Euratom) का गठन किया।

→ जनवरी, 1973: डेनमार्क, आयरलैंड और ब्रिटेन ने भी यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1979: यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव।

→ जनवरी, 1981: यूनान ( ग्रीस) ने यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1985: शांगेन संधि ने यूरोपीय समुदाय के देशों के बीच सीमा नियंत्रण समाप्त किया

→ जनवरी, 1986: स्पेन ओर पुर्तगाल भी यूरोपीय समुदाय में शामिल हुए।

→ अक्टूबर, 1990: जर्मनी का एकीकरण।

→ फरवरी, 1992: यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर दस्तखत।

→ जनवरी, 1993: एकीकृत बाजार का गठन।

→ जनवरी, 2002: नई मुद्रा यूरो को 12 सदस्य देशों ने अपनाया।

→ मई, 2004: साइप्रस, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हगरी, लताविया, लिथुआनिया, माल्टा, पोलैंड, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया भी यूरोपीय संघ में शामिल।

→ जनवरी, 2007: बुल्गारिया और रोमानिया यूरोपीय संघ में शामिल स्लोवेनिया ने यूरो को अपनाया।

→ दिसम्बर, 2009: लिस्बन संधि लागू हुई।

→ 2012: यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार।

→ 2013: क्रोएशिया यूरोपीय संध का 28वाँ सदस्य बना।

→ 2016: ब्रिटेन में जनमत संग्रह, 51.9 प्रतिशत मतदाताओं ने फैसला किया कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो जाए।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

→ दक्षिण – पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) (Association of South-East Asian Nations)
गठन: आसियान का गठन 1967 को हुआ इसके 5 संस्थापक सदस्य देश – इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, फिलीपींस और सिंगापुर हैं। बाद के वर्षों में ब्रुनेई दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी इसके सदस्य बने। इस प्रकार वर्तमान में इसके दस सदस्य देश हैं। उद्देश्य – इसके उद्देश्य हैं

  • क्षेत्र में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विकास को बढ़ावा देना;
  • क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करना;
  • साझे हितों, प्रशिक्षण, शोध-सुविधाओं, कृषि, व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कायम करना;
  • समान उद्देश्यों व लक्ष्यों वाले दूसरे क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ लाभप्रद व निकटतम संबंध कायम करना।

→ भूमिका व उपलब्धियाँ-

  • आसियान आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक उन्नयन, सांस्कृतिक विकास और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा है।
  • आसियान ने आर्थिक सहयोग के उद्देश्य को भी सही रूप में पूरा किया है। मुक्त व्यापार क्षेत्र का गठन, आसियान आर्थिक समुदाय के गठन पर बल, चीन व कोरिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता इसकी उपलब्धियाँ हैं।
  • आसियान ने सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
  • पूर्वी एशिया के देशों के बीच आसियान एक सेतु का कार्य कर रहा है।
  • यह टकराव के स्थान पर बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अपनाए हुए है।
  • यह भारत तथा चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने की ओर प्रयासरत है।

→ चीनी अर्थव्यवस्था का उत्थान
1978 के बाद चीन की आर्थिक सफलता को देखकर इसको एक महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन सबसे आगे है। क्षेत्रफल की दृष्टि से चीन का विश्व में चौथा स्थान है। विश्व में चीन की थल सेना सबसे: जुलाई, 2013 को क्रोएशिया द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण करने से यूरोपीय संघ के सदस्यों की कुल संख्या 28 हो गई है। बड़ी है। आज इसकी प्रति व्यक्ति जी एन पी विश्व में दूसरे स्थान पर है। आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे जयादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है। 1949 में माओ के नेतृतव में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिकी सोवियत मॉडल पर आधारित थी।

इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकालकर सरकारी नियंत्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। इस मॉडल में चीन ने अभूतपूर्व स्तर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्था खड़ा करने का आधार बनाने के लिए सारे संसाधनों का इस्तेमाल किया। सभी नागरिकों को रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया, स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के मामले में चीन सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया।

चीनी नेतृत्व ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। चीन ने ‘शॉक थेरेपी’ पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला 1982 में खेती का ओर 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया व्यापार संबंधी अवरोधों को सिर्फ ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ के लिए ही हटाया गया जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SE2) के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुडाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था को एक मनचाहा रूप देने की है।

चीन की आर्थिकी में तो नाटकीय सुधार हुआ है लेकिन वहाँ बेरोजगारी बढ़ी है। वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। हालाँकि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है। 1977 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है। लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

चीन के साथ भारत के सम्बन्ध
→ सकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  • भारत और चीन के राजनीतिक सम्बन्ध उतार-चढ़ावों के बाद वर्तमान में सौहार्दपूर्ण हो रहे हैं।
  • भारत व चीन ने व्यापारिक तथा आर्थिक क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1999 से दोनों के बीच व्यापार 30 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है।
  • दोनों ने चिकित्सा विज्ञान, बैंकिंग क्षेत्र, ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की सहमति जतायी है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों के मध्य सहयोगी सम्बन्ध बढ़ रहे हैं

→ नकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच सीमा विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है।
  • तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर परेशानी का कारण रही है।
  • चीन का सैन्य आधुनिकीकरण भी भारतीय चिंता का विषय है।
  • चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता व नाभिकीय सहायता भारत के लिए एक सिरदर्द है।
  • भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण व संवेदनशील आर्थिक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की भागीदारी का बढ़ना भारतीय चिंता का विषय है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

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JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत InText Questions and Answers.

पृष्ठ 24

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 24 पर दिये गये मानचित्र में स्वतंत्र मध्य एशियाई देशों को चिह्नित करें।
उत्तर;
स्वतंत्र मध्य एशियाई देश ये हैं-

  1. उज्बेकिस्तान
  2. ताजिकिस्तान
  3. कजाकिस्तान
  4. किरगिझस्तान
  5. तुर्कमेनिस्तान।

प्रश्न 2.
मैंने किसी को कहते हुए सुना है कि, “सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। ” क्या यह संभव है?
उत्तर:
यह सही है कि सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। यद्यपि सोवियत संघ समाजवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक तथा उसका प्रतीक था, लेकिन वह समाजवाद के एक रूप का प्रतीक था। समाजवाद के अनेक रूप हैं और समाजवादी विचारधारा के उन रूपों को अभी भी विश्व के अनेक देशों ने अपना रखा है। दूसरे, समाजवाद एक विचारधारा है जिसमें देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार विकास होता रहा है और अब भी हो रहा है। इसलिए सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है।

पृष्ठ 28

प्रश्न 1.
सोवियत और अमरीकी दोनों खेमों के शीत युद्ध के दौर के पाँच-पाँच देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौर के सोवियत और अमरीकी खेमों के 5-5 देशों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • अमरीकी खेमे के देश:
    1. संयुक्त राज्य अमेरिका
    2. इंग्लैंड
    3. फ्रांस
    4. पश्चिमी जर्मनी
    5. इटली।
  • सोवियत खेमे के देश:
    1. सोवियत संघ
    2. पूर्वी जर्मनी
    3. पोलैंड
    4. रोमानिया
    5. हंगरी।

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व / नियन्त्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियन्त्रण राज्य करता था।
उत्तर:
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ।
(क) अफगान – संकट
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(ख) बर्लिन – दीवार का गिरना
(घ) रूसी क्रान्ति।
उत्तर:
(क) रूसी क्रान्ति, (1917)
(ख) अफगान संकट, (1979)
(ग) बर्लिन – दीवार का गिरना (1989)
(घ) सोवियत संघ का विघटन, (1991)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौनसा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अन्त
(ख) स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल ( सी आई एस ) का जन्म
(ग) विश्व – व्यवस्था के शक्ति सन्तुलन में बदलाव
(घ) मध्य-पूर्व में संकट
उत्तर:
(घ) मध्य-पूर्व में संकट

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(2) शॉक थेरेपी (ख) सैन्य समझौता
(3) रूस (ग) सुधारों की शुरुआत
(4) बोरिस येल्तसिन (घ) आर्थिक मॉडल
(5) वारसॉ (ङ) रूस के राष्ट्रपति

उत्तर:

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (ग) सुधारों की शुरुआत
(2) शॉक थेरेपी (घ) आर्थिक मॉडल
(3) रूस (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(4) बोरिस येल्तसिन (ङ) रूस के राष्ट्रपति
(5) वारसॉ (ख) सैन्य समझौता

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली”…………”की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन” …………था।
(ग) ………… पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) …………. ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) …………. का गिरना शीतयुद्ध के अन्त का प्रतीक था।
उत्तर:
(क) समाजवाद
(ख) वारसॉ पैक्ट
(ग) कम्युनिस्ट
(घ) मिखाइल गोर्बाचेव
(ङ) बर्लिन की दीवार।

प्रश्न 6.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।
उत्तर:

  1. सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी जबकि पूँजीवादी देशों में मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया गया था।
  2. सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित थी जबकि अमेरिका ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया था।
  3. सोवियत अर्थव्यवस्था में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं तथा वितरण व्यवस्था पर राज्य का ही स्वामित्व और नियन्त्रण था जबकि पूँजीवादी देशों में निजीकरण को अपनाया गया था।

प्रश्न 7.
किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?
उत्तर:
गोर्बाचेव द्वारा सोवियत संघ में सुधार के कारण
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य हुए-
(1) अर्थव्यवस्था का गतिरुद्ध हो जाना:
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कई सालों तक गतिरुद्ध हुई। इससे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी कमी हो गयी थी। लोगों का जीवन कठिन हो गया था। गोर्बाचेव ने जनता से अर्थव्यवस्था के गतिरोध को दूर करने का वायदा किया था। अतः वह सुधार लाने के लिए बाध्य हुआ।

(2) पश्चिम के देशों की तुलना में पिछड़ जाना:
सोवियत संघ हथियारों के निर्माण की होड़ में प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे (मसलन परिवहन, ऊर्जा) के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत पिछड़ गया था। पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। अपने पिछड़ेपन की पहचान से लोगों को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ को पश्चिम की बराबरी पर लाने का वायदा किया था । इसलिए वह सुधार लाने को बाध्य हुआ।

(3) प्रशासनिक ढाँचे की त्रुटियाँ;
सोवियत संघ के गतिरुद्ध प्रशासन, नौकरशाही में भारी भ्रष्टाचार और सत्ता के केन्द्रीकृत होने आदि के कारण आम जनता शासन से अलग-थलग पड़ गयी थी। गोर्बाचेव ने जनता को विश्वास में लेने के लिए प्रशासनिक ढाँचे में ढील देने का वायदा किया था। अतः गोर्बाचेव प्रशासनिक ढाँचे में सुधार लाने के लिए बाध्य हो गए थे।

प्रश्न 8.
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
सोविय संघ के विघटन के भारत पर प्रभाव
सोवियत संघ के विघटन से भारत जैसे देशों के लिए निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. सोवियत संघ भारत का एक सच्चा व महान् मित्र रहा था। भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए सोवियत संघ से भारी मात्रा में आर्थिक, सैनिक व तकनीकी सहायता प्राप्त होती थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद अब भारत की अपने आर्थिक विकास के लिए अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भरता बढ़ गयी; जिन्होंने भारत पर आर्थिक सहायता के द्वारा दबाव की कूटनीति थोपी।
  2. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप शीतयुद्ध समाप्त हो गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष में कमी आई। इससे हथियारों की तेज दौड़ में कमी आई। भारत जैसे देशों के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की सम्भावना दिखाई दी तथा वे अपने विकास की तरफ अधिक ध्यान देने को उन्मुख हुए।
  3. सोवियत संघ के पतन के बाद भारत जैसे राष्ट्रों के लिए अमेरिका या अन्य किसी राष्ट्र से नजदीकी सम्बन्ध बनाने के लिए किसी गुट में शामिल होने की बाध्यता नहीं रही।
  4. भारत जैसे देशों में लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली व महत्त्वपूर्ण मानने लगे। परिणामस्वरूप मिश्रित अर्थव्यवस्था को छोड़कर भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां अपना ली गईं।
  5. सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के साथ मजबूती के रिश्ते बनाने की ओर रुख किया।

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?
उत्तर:
साम्यवादी के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को ‘शॉक थेरेपी’ कहा गया । भूतपूर्व ‘दूसरी दुनिया’ के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनता अलग-अलग रही परंतु इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे।

हर देश को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना था। ‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक ‘फार्म’ को निजी ‘फार्म’ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई।

‘शॉक थेरेपी’ से इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रूझान बुनियादीतौर पर बदल गए। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई। अंततः इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह पर प्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी मुल्कों से जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया।

साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के ‘शॉक थेरेपी’ के तरीके को सबसे बेहतर तरीका नहीं कहा जा सकता। अधिक बेहतर उपाय यह होता कि इन देशों में पूँजीवादी सुधार तुरन्त किये जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किये जाते। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लाद देने से सोवियत खेमे में अनेक नकारात्मक प्रभाव पड़े, जैसे- इससे इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस-नहस हो गई; इससे जनता को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा; समाज में गरीबी – अमीरी का भेद बढ़ा तथा जल्दबाजी में लोकतंत्रीकरण का काम भी सही ढंग से नहीं हो पाया।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें -” दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर:
उक्त कथन के विपक्ष में तर्क-दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भी भारत को अपनी विदेश नीति बदलने की आवश्यकता नहीं है। रूस को छोड़कर अमेरिका से ज्यादा दोस्ती भारत के लिए निम्न तथ्यों के आलोक में उचित नहीं कही जा सकती करता है।

  1. अमेरिका भारत के महत्त्व को कम करने के लिए पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध खड़ा करता आ रहा है
  2. अमेरिका भारत की स्वतन्त्र विदेश नीति को प्रभावित करके अपना पिछलग्गू बनाना चाहता है।
  3. अमेरिका भारत को शक्तिशाली रूप में देखना पसन्द नहीं करता है। इस हेतु वह भारत के प्रयासों का विरोध
  4. चीन-अमेरिकी – पाक धुरी भी भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में कटुता का कारण बनती रही है।
  5. आतंकवाद की समस्या से निपटने में भी अमेरिका दोहरी नीति अपनाये हुए है।

उक्त कथन के पक्ष में तर्क- उक्त कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:

  1. सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अब विश्व में अमेरिका ही सुपर शक्ति है, इसलिए अब भारत को अमरीका के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए।
  2. भारत और अमरीका दोनों ही देशों में लोकतंत्र है, दोनों ने ही आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई हुई है। अतः भारत को अमरीका के साथ सम्बन्ध बढ़ाने की नीति अपनानी चाहिए।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को समय-समय पर विभिन्न प्रकार की सहायता की है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण की नीति अपनाने से भारत को अमरीका से सम्बन्ध बढ़ाने चाहिए।
  4. भारत और अमरीका दोनों ही आतंकवाद विरोधी देश हैं।

दो ध्रुवीयता का अंत JAC Class 12 Political Science Notes

→ सोवियत प्रणाली:

  • समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया।
  • सोवियत प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  • वियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।
  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गए। इन सभी देशों की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली में ढाला गया । इन्हें ही
  • समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया । इनका नेता सोवियत संघ था। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा।
  • अमरीका को छोड़कर शेष विश्व की तुलना में सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा विकसित थी।
  • लेकिन, सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।

यह प्रणाली सत्तावादी होती गयी और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया। सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था जिसका सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था तथा यह दल जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं था। सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में रूसी गणराज्य का हर मामले में वर्चस्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता उपेक्षित और दमित महसूस करती थी। हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर अमरीका को बराबर टक्कर दी लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

वह प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया। यह अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप से उसकी अर्थव्यवस्था और कमजोर हुई। उपभोक्ता वस्तु की कमी हो गयी। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में यह व्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी।

→ गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन:
1980 के दशक के मध्य में गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। उसने पश्चिम के देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने और वहाँ सुधार करने का फैसला किया। इस फैसले की अकल्पनीय परिणतियाँ हुईं

  • पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें जनता के दबाव में एक के बाद एक गिर गईं। वहाँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई।
  •  देश के अन्दर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतन्त्रीकरण का जहाँ साम्यवादी दल के नेताओं द्वारा विरोध किया गया, वहीं जनता और तेजी से सुधार चाहती थी। परिणामतः 1991 में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्यों रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। इन्होंने पूँजीवाद और लोकतन्त्र को अपना आधार बनाया। इन्होंने स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल का गठन किया। बाकी गणराज्यों को राष्ट्रकुल का संस्थापक सदस्य बनाया गया।
  • रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली। सोवियत संघ के अन्तर्राष्ट्रीय करार और सन्धियों को निभाने की जिम्मेदारी रूस को सौंपी गयी। इस प्रकार सोवियत संघ का पतन हुआ।

सोवियत संघ के विघटन का घटना चक्र:
→ मार्च, 1985: मिसाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की।

→ 1988: लिथुआनिया में आजादी के लिए आंदोलन शुरू एस्टोनिया और लताविया में भी फैला ।

→ अक्टूबर, 1989: सोवियत संघ ने घोषणा की कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। नवम्बर में बर्लिन की दीवार गिर।

→ फरवरी, 1990: शुरुआत गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की सोवियत सत्ता पर कम्युनिष्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।

→ जून, 1990: रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।

→ मार्च, 1990: लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।

→ जून, 1991: येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा रूस के राष्ट्रपति बने।

→ अगस्त, 1991: कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया।

→  सितम्बर, 1991: एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया बाल्टिक गणराज्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।

→ दिस0म्बर, 1991: रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करके स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल का हिस्सा बने। 1993 में जार्जिया राष्ट्रकुल का सदस्य बना संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।

→ 25 दिसंबर, 1991: गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया सोवियत संघ का अंत

→  सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ?

  • सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएं अन्दरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाएँ पूरा नहीं कर सकीं। यही सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण रहा।
  • परमाणु हथियार, सैन्य साजो-सामान तथा पूर्वी यूरोप के पिछलग्गू देशों के विकास पर हुए खर्चों से सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना, सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
  • पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ की जनता को यह जानकारी मिली कि सोवियत संघ पश्चिमी देशों से काफी पीछे है। इससे जनता को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक धक्का लगा।
  • गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह न होना, खुलापन का अभाव तथा केन्द्रीकृत सत्ता के कारण जनता शासन से अलग-थलग पड़ चुकी थी। सरकार का जनाधार
  • खिसक गया था।
  • गोर्बाचेव ने जब सुधारों को लागू किया तो आकांक्षाओं- अपेक्षाओं का जनता का जो ज्वार उमड़ा, शासक उसका सामना नहीं कर सका। जहाँ आम जनता और तीव्र सुधार चाहती थी, वहाँ सत्ताधारी वर्ग इस बात से असन्तुष्ट था कि गोर्बाचेव सुधारों में बहुत जल्दबाजी दिखा रहे हैं। फलतः गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा।
  • रूस, बाल्टिक गणराज्यों, उक्रेन तथा जार्जिया में राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

विघटन की परिणतियाँ:
→  सोवियत संघ के विघटन से प्रमुख परिणाम ये निकले:

  • शीत युद्ध के दौर की समाप्ति हुई।
  • अमेरिका विश्व में अकेला महाशक्ति बन बैठा। इस प्रकार एकध्रुवीय विश्व का उदय हुआ।
  •  उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभरा।
  •  सोवियत संघ से अलग होकर अनेक नये देशों का उदय हुआ।

साम्यवादी शासन के बाद ‘शॉक थेरेपी’:
→  साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतान्त्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। यथा-

  • निजी स्वामित्व को मान्यता: राज्य की सम्पदा का निजीकरण और पूँजीवादी ढाँचे को तुरन्त अपनाने पर बल दिया गया।
  • मुक्त व्यापार: मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना जरूरी माना गया।
  • पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाना: पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति पर बल दिया गया।
  • पश्चिमी देशों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध की स्थापना: सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबन्धनों को समाप्त कर प्रत्येक देश को सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया।

→  शॉक थेरेपी के परिणाम:

  • ‘शॉक थेरेपी’ से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। पूरा राज्य नियन्त्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया। 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी कम्पनियों को बेचा गया।
  • रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आयी। मुद्रास्फीति इतनी बढ़ गई कि लोगों की जमा पूँजी जाती रही।
  • पुराने व्यापारिक ढाँचे के स्थान पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था स्थापित नहीं हो पायी।
  • खाद्यान्न सुरक्षा व्यवस्था, समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया। इससे अमीर-गरीब की खाई और बढ़ गयी
  • लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण के कार्य को प्राथमिकता के साथ नहीं किया गया। फलतः संसद एक कमजोर संस्था रह गयी। न्यायिक संस्कृति और न्यायपालिका की स्वतन्त्रता स्थापित नहीं हो पायी।
  • अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन का आधार बना – खनिज तेल, प्राकृतिक गैस और धातु।

→  संघर्ष और तनाव:

  • अनेक गणराज्यों में गृहयुद्ध और बगावत हुई।
  • इन देशों में बाहरी ताकतों की दखल बढ़ी।
  • अनेक में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले।
  • मध्य एशियाई गणराज्य पेट्रोलियम के विशाल तेल भण्डारों के कारण बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा का अखाड़ा बन गये अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है और रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती विदेश मानता है और उसका मानना है कि इन्हें रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। चीनियों ने भी सीमावर्ती क्षेत्र में आकर व्यापार शुरू कर दिया है।

→  पूर्व – साम्यवादी देश और भारत:
भारत के सम्बन्ध रूस के साथ गहरे हैं। भारत-रूस सम्बन्धों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है। ये सम्बन्ध जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। भारत को रूस के साथ अपने सम्बन्धों के कारण अनेक मसलों में फायदे हुए हैं, जैसे कश्मीर समस्या, ऊर्जा आपूर्ति, चीन के साथ सम्बन्धों में सन्तुलन लाना आदि रूस का भारत से लाभ यह है कि भारत उसके हथियारों का एक बड़ा खरीददार देश है। रूस ने तेल के संकट की घड़ी में भारत की हमेशा मदद की। रूस भारत की परमाणविक योजना के लिए महत्त्वपूर्ण है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो-
1. संसार के किस प्रदेश में पाताल तोड़ कुएं सबसे अधिक पाए जाते हैं?
(A) गुजरात ( भारत )
(B) क्वींसलैंड (आस्ट्रेलिया)
(C) यूक्रेन (रूस)
(D) ह्वांग – हो मैदान (चीन)।
उत्तर:
(B) क्वीसलैंड (आस्ट्रेलिया)।

2. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक भौम जल स्तर को प्रभावित नहीं करता?
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षा
(C) चट्टानों की कठोरता
(D) चट्टानों की पारगम्यता।
उत्तर:
(D) चट्टानों की पारगम्यता।

3. कार्स्ट प्रदेशों में भूमिगत जल का कार्य अधिकतर किस क्रिया द्वारा होता है?
(A) अपरदन
(B) अपवाहन
(C) अपघर्षण
(D) घुलन।
उत्तर:
(D) घुलन।

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4. ओल्ड फेथफुल गाईज़र किस देश में स्थित है?
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका
(B) आइसलैंड
(C) न्यूज़ीलैंड
(D) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर:
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका।

5. विलयन रंध्र किस प्रकार के धरातल पर बनते हैं ?
(A) कार्स्ट प्रदेश में
(B) नदी घाटी में
(C) महासागरों में
उत्तर:
(A) कार्स्ट प्रदेश में।

6. ‘ग्रेट आर्टेजियन बेसिन’ स्थित है-
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोम पार्क में
(B) न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप में
(C) ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में
(D) आइसलैंड में।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में।

7. ओल्ड फेथफुल गीज़र पाया जाता है-
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोन पार्क में
(B) न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप में
(C) ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में
(D) आइसलैंड में।
उत्तर:
(C) ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में।

8. हिमानी प्रदेशों में शृंग की रचना का मुख्य कारण क्या है?
(A) उत्थान क्रिया
(B) चारों ओर हिमसागर का बनना
(C) अपरदन
(D) अपक्षरण।
उत्तर:
(C) अपरदन।

9. गुम्बद आकार भाग से बहने वाली नदियों द्वारा किस प्रवाह की रचना होती है?
(A) युग्म आकृतिक प्रवाह
(B) समान्तर प्रवाह
(C) जलायित प्रवाह
(D) आरीय प्रवाह
उत्तर:
(D) आरीय प्रवाह।

10. नदी के मुहाने पर बनने वाली संकीर्ण तथा गहरी घाटी को क्या कहते हैं?
(A) डेल्टा
(B) ज्वार नदमुख
(C) मुहाना
(D) घाटी।
उत्तर:
(B) ज्वार नदमुख।

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11. गुफ़ाओं की रचना किस क्रिया द्वारा होती है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जल योजना
(D) घोलीकरण।
उत्तर:
(B) कार्बोनेटीकरण।

12. नदी के किस भाग में जल प्रपात की रचना होती है?
(A) ऊपरी भाग
(B) मध्य भाग
(C) निचला भाग
(D) मुहाना।
उत्तर:
(A) ऊपरी भाग।

13. स्थैतिक साधनों द्वारा चट्टानों का विघटन तथा अपघटन
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) निक्षेपण
(D) परिवहन।
उत्तर:
(A) अपक्षय।

14. कौन-सी अपवाह प्रणाली में महाखड्ड का निर्माण होता है?
(A) द्रुमाकृतिक
(B) पूर्ववर्ती
(C) अरीय
(D) जालीनुमा।
उत्तर:
(C) पूर्ववर्ती।

15. नदी के मध्य मार्ग में इसकी कौन-सी मुख्य विशेषता होती है?
(A) घाटी को गहरा करना
(B) डेल्टा का निर्माण
(C) घाटी को चौड़ा करना
(D) वितरकाओं का निर्माण।
उत्तर:
(C) घाटी को चौड़ा करना

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुख्य भू-आकृतिक कारक कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी
  3. वायु
  4. सागरीय तरंगें।

प्रश्न 2.
अपक्षय के दो मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:
भौतिक तथा रासायनिक।

प्रश्न 3.
रासायनिक अपक्षय की मुख्य क्रियाएं बताओ
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. जल योजन
  3. विलयन
  4. कार्बोनेटीकरण।

प्रश्न 4.
अपरदन चक्र में मुख्य अवस्थाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
युवा, प्रौढ़, वृद्धावस्था।

प्रश्न 5.
भू-आकृतिक कारकों के कार्य के प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. अपरदन
  2. परिवहन
  3. निक्षेपण।

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प्रश्न 6.
मुख अपवाह ढांचों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. आरीय
  2. द्रुमाकृतिक
  3. समान्तर
  4. जलायित।

प्रश्न 7.
नदी की युवा अवस्था में बनने वाले भू-आकार बताओ।
उत्तर:
गार्ज, केनियन, झरने।

प्रश्न 8.
नदी निक्षेप से बनने वाले भू-आकार बताओ।
उत्तर:
विसर्प, तटबन्ध, बाढ़ का मैदान।

प्रश्न 9.
वायु अपरदन से बनने वाले चार भू-आकार बताओ।
उत्तर:

  1. छत्रक,
  2. यारडांग
  3. ज्यूज़न,
  4. इन्सेलबर्ग।

प्रश्न 10.
हिम नदी अपरदन से बनने वाले भू-आकार बताओ।
उत्तर:
सर्क, श्रृंग, लटकती घाटी, ‘U’ आकार घाटी।

प्रश्न 11.
निम्नीकरण (Degradation) किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाह्य कारकों द्वारा धरातल के अपरदन को निम्नीकरण कहते हैं।

प्रश्न 12.
निम्नीकरण में कौन-सी क्रियाएं शामिल हैं?
उत्तर:

  1. अपक्षय
  2. अपरदन
  3. परिवहन।

प्रश्न 13.
अपरदन चक्र की धारणा का सबसे पहले प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
विलियम मारिस डेविस ने।

प्रश्न 14.
यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए तो उसकी भार वाहन शक्ति कितने गुना बढ़ जाएगी?
उत्तर:
64 गुना।

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प्रश्न 15.
ग्रैंड केनियन कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य में, कोलोरेडो नदी पर।

प्रश्न 16.
जल प्रपात किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब नदी चट्टानी कगार पर ऊपर से सीधे नीचे गिरती है तो उसे जल प्रपात कहते हैं।

प्रश्न 17.
उत्तरी अमेरिका के एक प्रसिद्ध जल प्रपात का नाम लिखो।
उत्तर:
नियाग्रा जल प्रपात 120 मीटर ऊंचा।

प्रश्न 18.
भारत में दो प्रसिद्ध जल प्रपातों के उदाहरण दो।
उत्तर:

  1. जोग जल प्रपात 260 मीटर ऊंचा।
  2. हुण्ड्र जल प्रपात 97 मीटर ऊँचा।

प्रश्न 19.
चीन का शोक किस नदी को कहते हैं?
उत्तर:
ह्वांग-हो नदी।

प्रश्न 20.
कोई तीन प्रसिद्ध डैल्टाओं के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. नील डैल्टा
  2. गंगा डैल्टा
  3. मिसीसिपी डेल्टा।

प्रश्न 21.
लोएज प्रदेश कहां पाये जाते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी चीन में ।

प्रश्न 22.
भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े डेल्टा का नाम बताएं
उत्तर:
सुन्दरवन डेल्टा।

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प्रश्न 23.
स्टैलेक्टाइट का निर्माण किस भू-प्राकृतिक कारक द्वारा होता है?
उत्तर:
चूना युक्त जल की गुफा की छत पर लटकी बूंदों के वाष्पीकृत से स्टैलेक्टाइट का निर्माण होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा व ताप्ती नदियां डैल्टे क्यों नहीं बनातीं?
उत्तर:
पश्चिमी तट पर नदियों के निचले भाग में तीव्र ढाल है। नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं तथा मिट्टी का निक्षेप नहीं होता। इसलिए डैल्टा का निर्माण नहीं होता। पश्चिमी तटीय मैदान की चौड़ाई भी कम है। इसलिए डैल्टा निर्माण के लिए समतल भूमि की कमी है।

प्रश्न 2.
गार्ज तथा प्रपात खड्ड में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों में गहरे और तंग नदी मार्ग को गार्ज कहते हैं। नदी कठोर चट्टानों के बने अपने किनारों को तोड़-फोड़ नहीं सकती। इसलिए जब पर्वत ऊंचे उठते रहते हैं तो नदी घाटी लगातार गहरी होती रहती है। प्रपाती खड्ड (कैनियन) प्रायः शुष्क प्रदेशों में बनती हैं। इस घाटी में ऋतु प्रहार (weathering) के कारण घाटी का ऊपरी भाग कुछ अधिक चौड़ा हो जाता है। गार्ज में नदी मार्ग के किनारे दीवार की भांति खड़े (Vertical) होते हैं, परन्तु कैनियन की दीवारें पूर्ण रूप से लम्बवत् नहीं होतीं।

प्रश्न 3.
किसी जल प्रपात की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
जब अधिक ऊंचाई से जल अधिक वेग से खड़े ढाल पर बहता है तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। जब नदी के मार्ग में ऊपरी पर्त कठोर चट्टानों की हो और नीचे की पर्त नर्म चट्टानों की हो, तो नीचे की नर्म चट्टान जल्दी कट जाती है। दोनों परतों में एक अन्तर आ जाता है। कठोर चट्टान आगे बढ़ी रहती है। इस प्रकार इस ढाल पर पानी झरने के रूप में बहता है। भारत में जोग जल प्रपात 260 मीटर ऊंचा है।

प्रश्न 4.
छत्रक शैल किसे कहते हैं? इसके विभिन्न कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय भागों में छतरी के आकार की कठोर चट्टानों को छत्रक कहते हैं। कठोर चट्टानों के निचले भागों में चारों तरफ से नीचे का कटाव (under cutting) होता है। एक पतले आधार के ऊपर छतरी के आकार की चट्टानें खड़ी रहती नीचे की चट्टान एक गुफा के समान कट जाती है। जोधपुर के निकट ग्रेनाइट चट्टानें नीचे से कट कर छत्रक बन गई हैं।

प्रश्न 5.
नदी की शक्ति किन कारकों पर निर्भर करती है? उसकी भार वहन की क्षमता को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
नदी की अपरदन तथा परिवहन शक्ति दो कारकों पर निर्भर करती है

  1. नदी का वेग
  2. जल की मात्रा।

नदी के वेग तथा अपरदन शक्ति में वर्ग का अनुपात होता है, यदि वेग दुगुना हो जाए तो अपरदन शक्ति चौगुनी होती है तथा परिवहन शक्ति 64 गुना बढ़ जाती है। जल की मात्रा बढ़ जाने से नदी अधिक भार का परिवहन कर सकती है। नदी की परिवहन शक्ति मुख्यतः नदी के ढाल तथा नदी के भार पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 6.
समुद्र द्वारा किए जाने वाले विभेदी अपरदन से आप क्या समझते हैं? इस क्रिया से किन स्थलाकृतियों का निर्माण होता है?
उत्तर:
समुद्र तट पर स्थित नर्म तथा कठोर चट्टानों की क्षैतिज अथवा लम्ब स्थिति के कारण विभेदी अपरदन होता है। नर्म चट्टानें शीघ्र टूट जाती हैं परन्तु कठोर चट्टानें खड़ी रहती हैं। इस प्रकार नर्म चट्टानों के अपरदन से खाड़ियां बनती हैं। कठोर चट्टानें भृगु के रूप में खड़ी रहती हैं। घुलनशील चट्टानों के घुल जाने से गुफाओं का निर्माण होता है। उन क्षेत्रों में मेहराब तथा प्राकृतिक पुल बनते हैं। कठोर चट्टानें स्टैक के रूप में बची-खुची रहती हैं।

प्रश्न 7.
पुनर्योवन के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भू-संचरण या जलवायु परिवर्तन के कारण पुरानी नदियां यदि युवा अवस्था में आ जाती हैं तो इसे पुनर्योवन कहते हैं। इस क्रिया के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं:

  1. नदी की अपरदन क्षमता बढ़ जाती है।
  2. पुरानी घाटी में एक नई घाटी का निर्माण शुरू हो जाता है।
  3. नदी वेदिकाएं बनती हैं।
  4. गहरे विसर्प बनते हैं ।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय हिमनदी तथा घाटी हिमनदी में अन्तर बताओ।
उत्तर:
महाद्वीपीय हिमनदी या हिम चादरों का विस्तार ध्रुवीय प्रदेशों में अंटार्कटिका तथा ग्रीनलैण्ड में है। ये विशाल क्षेत्रों में फैले हुए हैं। घाटी हिमनदियां हिमालय, आल्पस आदि ऊंचे पर्वतों के हिम क्षेत्रों से जन्म लेती हैं। यह पर्वतीय क्षेत्रों में तथा ढलानों पर अपरदन का कार्य करती हैं। हिम चादरें किसी क्षेत्र को समतल करने का कार्य करती है। परन्तु घाटी हिमनदी कई भू-आकार जैसे यू-घाटी, सर्प आदि की रचना करती है।

प्रश्न 9.
‘V’ आकार घाटी तथा ‘U’ आकार घाटी में अन्तर बताओ।
उत्तर:
नदी के अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है, परन्तु हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है। ‘V’ आकार घाटी अधिक गहरी होती है। ‘U’ आकार घाटी की दीवारें लगभग लम्बवत् होती हैं परन्तु ‘V’ आकार घाटी की दीवारें पूर्ण रूप से लम्ब नहीं होतीं । हिमनदी अपनी कोई घाटी नहीं बनाती, अपितु वह नदी घाटी का रूप बदल कर उसे ‘U’ आकार बना देती है।

प्रश्न 10.
हिम तोंदों तथा हिमनदियों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
हिम तोंदे हिम चादरों से जन्म लेते हैं। जैसे ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका में परन्तु हिमनदियां ऊंचे पर्वतों के हिम क्षेत्रों से निकलती हैं जैसे हिमालय तथा आल्पस पर्वत हिम तोंदे समुद्र में तैरते हुए दिखाई देते हैं तथा गर्म प्रदेशों में आकर पिघल जाते हैं। हिमनदियां पर्वतीय ढलानों पर खिसकती हैं तथा मैदानों में आकर पिघलती हैं। हिम तोंदों का 1/10 भाग जल से बाहर दिखाई देता है, परन्तु हिमनदी का सारा भाग धरातल पर दिखाई देता है।

प्रश्न 11.
लटकती घाटी (Hanging Valley) की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
हिमनदी की मुख्य घाटी अधिक हिम के कारण अधिक गहरी होती है। पर्वतों की ढलानों से उतरने वाली सहायक हिमनदी की घाटी कम गहरी होती है। जब हिम पिघलती है तो सहायक हिम नदी की घाटी मुख्य घाटी से ऊंची रह जाती है तथा लटकती हुई प्रतीत होती है। इसे लटकती हुई घाटी कहते हैं।

प्रश्न 12.
वायु तथा नदी के कार्य की तुलना करो।
उत्तर:

वायु के कार्य नदी का कार्य
(1) वायु का कार्य मरूस्थल प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है। (1) नदी का कार्य आर्द्र प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है।
(2) नदी अपने मलबे को दूर-दूर प्रदेशों तक परिवहन करती है। (2) नदी का कार्य अपनी घाटी तक ही सीमित होता है।
(3) वायु का कार्य वायु की गति पर निर्भर करता है। (3) नदी का कार्य क्षेत्र की ढलान पर निर्भर करता है।
(4) वायु का कार्य धीमी गति से होता है तथा वायु भार कम होता है। (4) नदी का कार्य तीव्र गति से होता है तथा नदी भार बहुत अधिक होता है।

प्रश्न 13.
“वायु द्वारा अपरदन की तुलना रेगमार से की जाती है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वायु रेत के बारीक कणों को उड़ा कर दूर-दूर तक ले जाती है। वायु के धूलि कण इस अपरदन के यन्त्र (Tools) हैं। तीव्र गति से वायु रेत के कणों को चट्टानों से टकराती है। ये कण एक रेगमार (Sand paper) की तरह कटाव करते हैं। ये कण चट्टानों को रगड़ कर इस तरह मुलायम कर देते हैं जैसे पालिश किया हो या रेगमार से घिसा हो।

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प्रश्न 14.
ज्यूजन तथा यारडांग में क्या अन्तर है?
उत्तर:

यारडांग ज्यूजन
(1) इसमें कठोर तथा नर्म चट्टानें लम्ब रूप में मिलती हैं। (1) इसमें कठोर तथा नर्म चट्टाने एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं।
(2) इसका आकार पसलियों (Ribs) जैसा होता है। (2) इसका आकार एक ढक्कन दवात जैसा होता है।
(3) इसमें लम्बे कटाव मिलते हैं। (3) इसमें गहरे कटाव मिलते हैं।
(4) इसकी ऊंचाई 15 मीटर होती है। (4) इनकी ऊंचाई 10 मीटर होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 1

प्रश्न 15.
लम्बे बालू स्तूप तथा आड़े बालू स्तूप में क्या अन्तर है?
उत्तर:

लम्बे बालू स्तूप आड़े बालू स्तूप
(1) ये रेत की लम्बी दीवारें होती हैं। (1) ये अर्द्ध-चन्द्राकार टीले होते हैं।
(2) ये प्रचलित पवनों की दिशा के समानान्तर बनते हैं। (2) ये प्रचलित पवनों की दिशा के समकोण पर बनते हैं।
(3) ये 100 मीटर तक ऊँचे होते हैं। (3) ये 50 मीटर तक ऊंचे होते हैं।
(4) ये तलवार के आकार जैसे होते हैं तथा इन्हें सीफ़ भी कहा जाता है। (4) ये लहरों के आकार जैसे होते हैं।

प्रश्न 16.
सागरीय लहरों द्वारा अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
सागरीय लहरों द्वारा अपरदन प्रायः तूफ़ानी लहरों द्वारा 200 मीटर की गहराई तक होता है। यह अपरदन कई तत्त्वों पर निर्भर करता है-

  1. लहरों का अधिक वेग तथा ऊँचाई
  2. चट्टानों की रचना
  3. तट का ढाल
  4. जल की गहराई
  5. छिद्रों तथा दरारों का होना
  6. वायु की गति।

प्रश्न 17.
भृगु (Cliff) की रचना कैसे होती है
उत्तर:
समुद्र तट पर खड़ी ढाल वाली चट्टान को भृगु कहते हैं। लहरों के सीधे अपरदन से चट्टान आधार पर कट जाती है तथा दांत (Notch ) की रचना होती है। यह खोखला स्थान धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है। ऊपरी भाग धीरे- धीरे आगे बढ़कर लटकने लगता है। जब ऊपर का भाग टूट कर गिर जाता है, तो नीचे का कठोर भाग एक भृगु का रूप धारण कर लेता है।

प्रश्न 18.
गुम्फित नदी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गुम्फित नदी ( Braided Channels):
नदी द्वारा प्रवाहित नद्य भार का निक्षेपण अगर नदी के मध्य में लम्बी रोधिका या रोध के रूप में हो जाए तो नदी धारा दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं और यह प्रवाह किनारों पर क्षैतिज अपरदन करता है। नदी घाटी की चौड़ाई बढ़ने पर और जल आयतन कम होने पर, प्रजाहित जलोढ़ अधिक मात्रा में एक क्षैतिज अवरोध के रूप में द्वीप की भान्ति निक्षेपित हो जाते हैं तथा मुख्य जल धारा कई जल धाराओं में बंट जाती है।

गुम्फित नदी प्रारूप के लिए तटों पर अपरदन व निक्षेप आवश्यक है। या जब नदी में जल की मात्रा कम तथा जलोढ़ अधिक हो जाए, तब नदी प्रवाह में ही रेत, मिट्टी, बजरी आदि की लम्बी अवरोधिकाओं का जमाव हो जाता है और नदी प्रवाह कई जल वितरिकाओं में बंट जाता है। जल प्रवाह की ये विरिक्ताएं मिलती हैं और फिर उपधाराओं में बंट जाती हैं। इस प्रकार एक गुम्फित नदी प्रारूप का विकास होता है।

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प्रश्न 19.
गम्भीरभूत विसर्प तथा नदी वेदिकाएं किस प्रकार बनती हैं?
उत्तर:
अधः कर्तित विसर्प या गम्भीरभूत विसर्प (Incised or Entrenched Meanders ):
तीव्र ढालों में तीव्रता से बहती हुई नदियां सामान्यतः नदी तल पर अपरदन करती हैं। तीव्र नदी ढालों में भी पार्श्व/ क्षैतिज अपरदन अधिक नहीं होता लेकिन मंद ढालों पर बहती हुई नदियां अधिक पार्श्व अपरदन करती हैं। क्षैतिज अपरदन अधिक होने के कारण, मंद ढालों पर बहती हुई नदियां वक्री होकर बहती हैं या नदी विसर्प बनाती हैं।
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नदी वेदिकाएं (River Terraces):
नदी वेदिकाएं प्रारम्भिक बाढ़ मैदान या पुरानी नदी घाटियों के चिह्न हैं। ये चट्टानी धरातल या नदियों के तल हैं जो जलोढ़ रहित वा निक्षेपित जलोढ़ वेदिकाओं के रूप में पाए जाते हैं। नदी वेदिकाएं मुख्यतः अपरदित स्थलरूप हैं क्योंकि ये नदी निक्षेपित बाढ़ मैदानों के लम्बवत् अपरदन से निर्मित होते हैं। ये वेदिकाएं संख्या में कई तथा भिन्न ऊंचाई की भी हो सकती हैं जो आरम्भिक नदी जल स्तर को दर्शाते हैं। नदी वेदिकाएं नदी के दोनों तरफ समान ऊंचाई वाली हो सकती हैं और इनके इस स्वरूप को युग्म (Paired ) वेदिकाएं कहते हैं।

प्रश्न 20.
नदी के मार्ग को विभिन्न अवस्थाओं में बांट कर प्रत्येक की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
नदी मार्ग को उद्गम से लेकर सागर में गिरने तक तीन प्रमुख भागों में बांटा जाता है:
1. तरुणावस्था (Youth ):
इस अवस्था में नदियों की संख्या बहुत कम होती है तथा इनका मूल ढाल पर दुर्बल एकीकरण होता है। ये नदियां उथली V-आकार घाटी बनाती हैं और जिनमें बाढ़ के मैदान लगभग अनुपस्थित या संकरे बाढ़ मैदान मुख्य नदी के साथ-साथ पाए जाते हैं। जल विभाजक अत्यधिक विस्तृत (चौड़े) व समतल होते हैं, जिनमें दलदल व झीलें होती हैं। इन ऊंचे समतल धरातल पर नदी विसर्प विकसित हो जाते हैं। ये विसर्प अंततः ऊंचे धरातलों में गम्भीरभूत हो जाते हैं (अर्थात् विसर्प की तली में निम्न कटाव होता है और ये गहराई में बढ़ते हैं ।) जहां कठोर चट्टानों का अनावरण होता है वहां जलप्रपात व क्षिप्रितकाएं पाई जाती हैं।
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2. प्रौढ़ावस्था (Mature ):
इस अवस्था में नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है और सहायक नदियां भी इसमें आकर मिलती हैं। नदी घाटियां V-आकार की होती हैं लेकिन गहरी होती हैं। मुख्य नदी व्यापक विस्तृत होने से विस्तृत बाढ़ के मैदान पाए जाते हैं जिसमें घाटी के भीतर ही नदी विसर्प बनाती हुई प्रवाहित होती है। युवावस्था में निर्मित समतल, विस्तृत व दलदली अन्तर नदी क्षेत्र विलीन हो जाते हैं और नदी विभाजक स्पष्ट होते हैं। जलप्रपात व क्षिपिकाएं लुप्त हो जाती हैं।

3. जीर्णावस्था (Old ):
जीर्णावस्था में छोटी सहायक नदियां कम होती हैं और ढाल मंद होता है। नदियां स्वतन्त्र रूप से विस्तृत बाढ़ के मैदानों में बहती हुई नदी विसर्प, प्राकृतिक तटबन्ध, गोखुर झील आदि बनाती है विभाजक विस्तृत तथा समतल होते हैं जिनमें दलदल, कच्छ व अनूप उपस्थित होते हैं। अधिकतर भूदृश्य समुद्रतल के बराबर या थोड़ा ऊंचा होता है।

प्रश्न 21.
पेडीमेंट तथा पदस्थली की रचना बताओ।
उत्तर:
अपरदनात्मक स्थलरूप पेडीमेंट (Pediment ) और पदस्थली (Pediplain): मरुस्थलों में भूदृश्य का विकास मुख्यतः पेडीमेंट का निर्माण व उसका ही विकसित रूप है। पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मंद ढाल वाले चट्टानी तल पेडीमेंट कहलाते हैं। पेडीमेंट का निर्माण पर्वतीय अग्रभाग के अपरदन मुख्यतः सरिता के क्षैतिज अपरदन व परत बाढ़- दोनों के संयुक्त अपरदन से होता है। पर्वतों के तीव्र अग्रभाग या किनारों का अपरदन होता है और ये अपरदित भाग धरातल पर गिरते हैं। बाढ़ के कारण व तत्पश्चात् क्लिफ निर्माण से जो कटाव होते हैं उससे पेडीमेंट निर्मित होते हैं।

ये बाढ़ कटाव व क्लिफ निवर्तन करते हैं। यह अपरदन क्रिया पृष्ठक्षरण (backwasting) द्वारा की गई समानान्तर ढाल निवर्तन प्रक्रिया (paralled retreat of slope) कहलाती है। अत: समानान्तर ढाल विवर्तन द्वारा पेडीमेंट पर्वतों के अग्रभाग को अपरदित करते हुए पीछे हटते हैं और धीरे-धीरे पर्वतों का अपरदन होता है तथा इन्सेलबर्ग (Inselberg ) निर्मित होते हैं जो कि पर्वतों के अवशिष्ट रूप,हैं। इस प्रकार मरुस्थलीय प्रदेशों में एक उच्च धरातल आकृति विहीन मैदान में परिवर्तित हो जाता जिसे पेड़ीप्लेन या पदस्थली कहते हैं।

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प्रश्न 22.
प्लाया तथा ब्नजादा की रचना बताओ।
उत्तर:
प्लाया और बजादा (Playa and Bajada):
मरुभूमियों में मैदान (Plains) प्रमुख स्थलरूप हैं। पर्वत व पहाड़ियों से घिरे बेसिनों में अपवाह मुख्यतः बेसिन के मध्य में होता है, तथा बेसिन के किनारों से लगातार तलछट जमाव के कारण बेसिन के मध्य में लगभग समतल मैदान की रचना हो जाती है। पर्याप्त जल उपलब्ध होने पर यह मैदान उथले जल क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार की उथली जल झीलें ही प्लाया ( Playa) कहलाती हैं। प्लाया में वाष्पीकरण के कारण जल अल्प समय के लिए ही रहता है और अक्सर प्लाया में लवणों के घने निक्षेप पाए जाते हैं।

ऐसे प्लाया मैदान जो लवणों से भरे हों, कल्लर भूमि या क्षारीय क्षेत्र (Alkali flats) कहलाती हैं। अगर प्लाया मरुस्थल बेसिन के समतल मध्य मैदान हैं तो इनके ऊपर के ढाल वाले मैदान (जिनका ढाल 1° से 5° के मध्य है ) और जो गिरिपद पर जमाव से बने हैं, उन्हें बजादा (Bajada) कहते हैं। प्लाया व बजादा मुख्यतः पर्वतों के निवर्तन से बने पेडिमेंट के ही हिस्से हैं, जो बाढ़ अपरदित मलबे से ढके हैं। चूंकि प्लाया व बजादा पर तलछटों के जमाव की मोटी परत नहीं होती और इनके तल अपरदन के फलस्वरूप बनते हैं; इसलिए इन्हें कई बार अपरदनात्मक स्थलरूपों में वर्णित किया जाता है।

प्रश्न 23.
जल चक्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रकृति का जल अपने कई रूपों में बदलते हुए पुन: उसी रूप में लौट आता है। इसे ही जल चक्र की संज्ञा दी जाती है। जैसे पृथ्वी के जलाशयों का जल सूर्य के ताप के कारण जलवाष्प में बदलकर वायुमण्डल में चला जाता है। वायुमण्डल में यह संघनित होकर बर्फ या जल के रूप में पुनः पृथ्वी पर आ जाता है। इस प्रकार जल वायुमण्डल, स्थलमण्डल तथा जलमण्डल पर स्थानान्तरित होता है।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
अपरदन तथा अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:

अपरदन (Erosion) अपक्षय (Weathering)
(1) भू-तल पर खुरचने, काँट-छाँट तथा मलवे को परिवहन करने के कार्य को अपरदन कहते हैं। (1) चट्टानों को अपघटन तथा विघटन के द्वारा अपने मूल स्थान पर तोड़-फोड़ करने की क्रिया को अपक्षय कहते हैं।
(2) अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है। (2) अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है।
(3) अपरदन गतिशील कारकों द्वारा जैसे जल, हिमनदी, वायु आदि से होता है। (3) अपक्षय सूर्यतप, पाला तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
(4) अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। (4) अपक्षय चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में सहायता करता है ।

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प्रश्न 2.
‘V’ आकार घाटी तथा ‘U’ आकार घाटी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

V आकार घाटी ‘U’ आकार घाटी
(1) नदी अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है। (1) हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है।
(2) यह घाटी अधिक गहरी होती है। जब यह ‘T’ आकार में बन जाती है तो इसे कैनियन कहते हैं। (2) यह घाटी अधिक गहरी नहीं होती है। इससे ऊंचाई पर बनी घाटी को लटकती घाटी कहते हैं।
(3) इसके किनारे पूर्ण रूप से लम्ब नहीं होते। (3) इसकी दीवारें पूर्ण रूप से लम्ब होती हैं।
(4) नदी अपने गहरे कटाव से इस घाटी की रचना करती है। (4) हिमनदी की अपनी कोई घाटी नहीं होरी। यह नदी घाटी का रूप बदल कर उसे ‘U’ आकार की घाटी बना देती है।

प्रश्न 3.
निम्नीकरण तथा अधिवृद्धि में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

निम्नीकरण अधिवृद्धि
(1) बाह्य कारकों द्वारा स्थानीय धरातल के अपरदन को निम्नीकरण कहते हैं। (1) धरातल के निचले स्थानों को मलवे के निक्षेप से भरने की क्रिया को अधिवृद्धि कहते हैं।
(2) यह अपरदन का ही दूसरा रूप है। (2) यह निक्षेप का ही दूसरा रूप है।
(3) इससे ऊंचे प्रदेश निचले प्रदेश हो जाते हैं। (3) इससे निचले प्रदेश का तल ऊँचा हो जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
तरंगों (लहरों) द्वारा अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप के कार्य का वर्णन करो।
उत्तर:
समुद्री लहरों का कार्य (Work of Sea Waves) दूसरे कार्यकर्त्ताओं के समान लहरें भी अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप का कार्य करती हैं।
(क) अपरदन (Erosion ): तट पर तोड़-फोड़ का कार्य प्राय: सर्फ ( Surf) लहरें तथा तूफानी लहरों द्वारा ही होता है। समुद्री लहरों द्वारा अपरदन अधिक-से-अधिक 600 फुट की गहराई तक होता है। यह अपरदन चार प्रकार से होता है:

  1. जल दबाव क्रिया (Water Pressure ): छिद्रों में जल के दबाव से चट्टानें टूटने-बिखरने लगती हैं।
  2. अपघर्षण (Abrasion): बड़े – बड़े पत्थर चट्टानों से टकरा कर उन्हें तोड़ते रहते हैं।
  3. संनिघर्षण (Attrition ): पत्थरों के टुकड़े आपस में टकरा कर टूटते रहते हैं।
  4. घुलन क्रिया (Solution ): समुद्री जल चूना युक्त चट्टानों को घुला कर अपरदन कर देता है।

अपरदन द्वारा बने स्थलाकार:
1. खाड़ियां (Bays ): जब किसी तट पर कोमल तथा कठोर चट्टानें लम्ब रूप में स्थित हों तो कोमल चट्टानें (Soft Rocks) भीतर की ओर अधिक कट जाती हैं। इस प्रकार कोमल चट्टानों में खाड़ियां (Bays) बन जाती हैं तथा कठोर चट्टानें आगे निकल जाती हैं तथा अन्तरीप (Cape ) की रचना करती हैं।
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2. भृगु (Cliff): समुद्र तट पर खड्ढे ढाल वाले पर्वत को भृगु या क्लिफ (Cliff) कहते हैं। लहरों के लगातार सीधे आक्रमण के कारण चट्टानें अपने आधार पर कट जाती हैं तथा दांत (Notch ) की रचना होती है। ऊपर का भाग धीरे-धीरे आगे बढ़कर लटकने लगता है। कुछ समय के पश्चात् यह भाग टूट कर गिर जाता है। इससे तटों पर खड़े किनारों की रचना होती है जिसे भृगु ( Cliff) कहते हैं। भारत के पश्चिमी तट पर भृगुओं के उदाहरण मिलते हैं।
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3. समुद्री गुफाएं (Sea Caves): आधार की कोमल चट्टानों के टूटने या घुल जाने पर तट के समीप खोखले स्थान बन जाते हैं । लहरों द्वारा वायु के बार-बार घुसने व निकलने की क्रिया से ये स्थान चौड़े हो जाते हैं तथा गुफाएं बन जाती हैं। दो पड़ोसी गुफाओं के बीच की दीवार टूट जाने से मेहराब (Arch) बन जाती है जिसे प्राकृतिक पुल भी कहते हैं, जैसे- इंग्लैण्ड में Needle’s Eye।
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4. वात छिद्र (Blow Holes): वायु के दबाव से कई बार गुफा की छत में छिद्र हो जाते हैं, इनमें से जल फव्वारे के रूप में बाहर निकलता है। इन छिद्रों से पवन सीटी बजाती हुई ऊपर निकलती है और साथ ही पानी फव्वारे के रूप में बाहर निकलता है। इन्हें उगलने वाले छिद्र (Spouting Horns) कहते हैं।

5. सागरीय स्तम्भ (Stack): मेहराब के छत के टूट जाने से कठोर चट्टानों के कुछ अंश स्तम्भ के रूप में खड़े रह जाते हैं जिन्हें स्तम्भ (Stack) कहते हैं। इंग्लैण्ड में St. Kilda के स्तम्भ 627 फुट ऊंचे हैं।

परिवहन का कार्य (Work of Transportation ): समुद्र में खुरचा हुआ पदार्थ लहरों, वायु तथा धाराओं द्वारा परिवहन होता है। लहरों द्वारा सागरीय पदार्थों का परिवहन दो रूपों में होता है:

  1. तट की ओर
  2. सागर की ओर

निक्षेप के कार्य (Work of Deposition): लहरों द्वारा अपरदन से प्राप्त पदार्थ तट के सहारे या तट के दूर जमा होते हैं। लहरों के नीचे के प्रवाह (Undertow) के कारण तट के दूर सागर में निक्षेप होता है। इससे तट का ढाल कम होता है तथा तट का विस्तार आगे बढ़ता रहता है। इस निक्षेप से कई भू-आकार बनते हैं:

1. पुलिन अथवा बीच (Beach ):
सागरीय तट के साथ-साथ मलवा के निक्षेप से बनी तटीय श्रेणियों को पुलिन कहते हैं। तट के निकट ये ऊंचे से प्रदेश क्रीड़ा के उत्तम स्थल बन जाते हैं। समतल तटों पर चौड़े पुलिन मिलते हैं, परन्तु पर्वतीय भागों में पुलिन कम मिलते हैं, जैसे – चिल्ली का तट।

2. रोधिका (Bars):
लहरों द्वारा तट के समानान्तर निक्षेप से ऊंची मुंडेर या श्रेणी बन जाती है। इन्हें तटीय रोध (Offshore Bars) कहते हैं। ये तट से दूर खुले समुद्र में बनती हैं। ये श्रेणियां तट रेखा तथा सागरीय जल के बीच रुकावट का कार्य करती हैं।

3. लैगून झीलें (Lagoons):
यदि रोधिका के दोनों छोर स्थल भाग से जुड़ जाते हैं तो बीच में खारे जल की झील बन जाती है। तट रेखा और मुंडेरों के बीच का जल एक छोटी झील का रूप धारण कर लेता है जिसे लैगून कहते हैं। भारत के पूर्वी तट पर चिल्का (Chilka) तथा पुलीकट (Pulicat) झीलें तथा केरल में वेम्बनाद झील इसी प्रकार बनी हैं।

4. भूजिहवा (Spit ):
भूजिहवा लहरों के निक्षेप से बनी एक रेतीली श्रेणी होती है। यह एक बांध के समान है जिसका एक सिरा तट से जुड़ा होता है तथा दूसरा सिरा खुले सागर में डूबा रहता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

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बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न- दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में कौन-सी मृदा सबसे विस्तृत उपजाऊ है?
(A) जलोढ़।
(B) काली मृदा
(C) लेटराइट
(D) वन मृदा।
उत्तर:
(A) जलोढ़।

2. किस मृदा को रेगड़ मृदा भी कहते हैं?
(A) नमकीन
(B) काली
(C) शुष्क
(D) लेटराइट।
उत्तर:
(B) काली।

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3. मृदा की ऊपरी तह के उड़ जाने का मुख्य कारण
(A) पवन अपरदन
(B) अपक्षातान
(C) जल अपरदन
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
(A) पवन अपरदन।

4. कृषिकृत भूमि में जल सिंचित क्षेत्र में लवण का क्या कारण है?
(A) जिप्सम
(B) अति जल सिंचाई
(C) अति पशुचारण
(D) उर्वरक।
उत्तर:
(B) अति जल सिंचाई।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा क्या है?
उत्तर:
मृदा भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी परत को मृदा कहते हैं।

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प्रश्न 2.
मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. मूल पदार्थ
  2. उच्चावच
  3. जलवायु
  4. प्राकृतिक वनस्पति।

प्रश्न 3.
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख करो।
उत्तर:

  1. A-स्तर
  2. B-स्तर
  3. C-स्तर।

प्रश्न 4.
मृदा अवकर्षण क्या होता है?
उत्तर:
मृदा की उर्वरता के ह्रास को मृदा अवकर्षण कहते हैं। इससे मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है तथा मृदा की गहराई कम हो जाती है।

प्रश्न 5.
खादर तथा बांगर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पुरातन जलोढ़ के निक्षेप से बने ऊंचे प्रदेश को बांगर कहते हैं। नवीन जलोढ़ के निक्षेप से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों तक दीजिए
प्रश्न 1.
काली मृदाएं किसे कहते हैं? इनके निर्माण तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए
उत्तर:
काली मिट्टी (Black Soil)

1. विस्तार ( Extent ):
इस मिट्टी का विस्तार प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। यह गुजरात, महाराष्ट्र के अधिकांश भाग, मध्य प्रदेश, दक्षिणी उड़ीसा, उत्तरी कर्नाटक, दक्षिणी आंध्र प्रदेश में मिलती है। यह मिट्टी नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी तथा कृष्णा नदी की घाटियों में पाई जाती है।

2. विशेषताएं (Characteristics):
इस मिट्टी का निर्माण लावा प्रवाह से बनी आग्नेय चट्टानों के टूटने-फूटने से हुआ है। यह अधिकतर दक्कन लावा (Deccan Trap) के क्षेत्र में मिलता है। इसलिए इसे लावा मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी का रंग काला होता है इसलिए इसे काली मिट्टी (Black Soil) भी कहते हैं। इसे रेगड़ मिट्टी (Regur Soil) भी कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है, परन्तु फॉस्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की शक्ति अधिक है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। इस मिट्टी की तुलना में इसकी ‘शर्नीज़म’ तथा अमेरिका की ‘प्रेयरी’ मिट्टी से की जाती है।

3. फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops):
यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है। इसलिए इसे ‘कपास की मिट्टी’ (Cotton Soil) भी कहते हैं। पठारों की उच्च भूमि में कम उपजाऊ होने के कारण यहां ज्वारबाजरा, दालों आदि की कृषि होती है। मैदानी भैग में गेहूं, कपास, तम्बाकू, मूंगफली तथा तिलहन की कृषि की जाती है।

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प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण क्या होता है? मृदा संरक्षण के कुछ उपाय सुझाइए
उत्तर:
मृदा संरक्षण यदि मृदा अपरदन और मृदाक्षय मानव द्वारा किया जाता है, तो स्पष्टतः मानवों द्वारा ही इसे रोका भी जा सकता है। मृदा संरक्षण एक विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की अपक्षरित दशाओं को सुधारा जाता है। मृदा अपरदन वास्तव में मनुष्यकृत समस्या है।

1. किसी भी तर्कसंगत समाधान में पहला काम ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत डाल वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिए नहीं होना चाहिए। यदि ऐसी भूमि पर खेती करना ज़रूरी हो जाए, तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेने चाहिएं।

2. भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और झूम कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है। इसी प्रकार विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। ग्रामवासियों को इनके दुष्परिणामों से अवगत करवा कर इन्हें ( अति चराई और झूम कृषि) नियमित और नियन्त्रित करना चाहिए।

3. समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बंदी, समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेती बनाना, नियमित वानिकी, नियन्त्रित चराई, वरणात्मक खरपतवार नाशन, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन, उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिए प्रायः किया जाता है।

4. अवनालिका अपरदन को रोकने तथा उनके बनने पर नियन्त्रण के प्रयत्न किए जाने चाहिएं। अंगुल्याकार अवनालिकाओं को सीढ़ीदार खेत बनाकर खत्म किया जा सकता है। अवनालिकाओं के शीर्ष की ओर के विकास को नियन्त्रित करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इस कार्य को अवनालिकाओं को बन्द करके, सीढ़ीदार खेत बनाकर या आवरण वनस्पति का रोपण करके किया जा सकता है।

5. मरुस्थलीय और अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि पर बालू के टीलों के प्रसार को वनों की रक्षक मेखला बनाकर रोकना चाहिए। कृषि के अयोग्य भूमि को चराई के लिए चरागाहों में बदल देना चाहिए। बालू के टीलों को स्थिर करने के उपाय भी अपनाए जाने चाहिएं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

भारत – स्थिति  JAC Class 11 Geography Notes

→ मिट्टी (Soil): भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी पर्त को मृदा कहते हैं।

→ मिट्टी के तत्त्व (Constituents of Soil): खनिज, ह्यूमस, जल, वायु तथा बैक्टीरिया ।

→ मिट्टी निर्माण के लिये आवश्यक तत्त्व (Formation of Soil): मूल पदार्थ, धरातल, जलवायु, ऋतु प्रहार।

→ मृदा के संस्तर (Horizons of Soil) अ – संस्तर, ब- संस्तर, स- संस्तर

→ मिट्टी की महत्ता (Importance of Soils ): मिट्टी एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। मानव तथा आर्थिक क्रियाएं मिट्टी का उपजाऊपन पर निर्भर करती हैं।

→ भारत में मिट्टी के प्रकार (Types of Soils): भारतीय मिट्टी के समूह निम्नलिखित हैं

  • काली मिट्टी
  • लाल मिट्टी
  • लेटराइट मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी

→ मृदा अपरदन (Soil erosion ): जल, वायु आदि द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत का बहना मृदा अपरदन कहलाता है।

→ मृदा अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion): तीव्र ढलाने, भारी वर्षा, तेज़ हवाएं, चरागाहों का मृदा अत्यधिक प्रयोग, वनों की कटाई आदि।

→ मृदा संरक्षण (Conservation of Soil): मृदा संरक्षण के लिए मृदा का संरक्षण, पुन: नवीकरण तथा उपजाऊपन कायम रखना आवश्यक है। इसके लिए वनारोपण, नियन्त्रित पशु चारण, सीढ़ीनुमा कृषि तथा फ़सलों का हेर-फेर आवश्यक है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

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बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. प्राजैक्ट टाइगर का उद्देश्य क्या था?
(A) शेरों का शिकार करना
(B) अवैध शिकार को रोक कर शेरों की सुरक्षा
(C) शेरों को चिड़ियाघरों में रखना
(D) शेरों पर चित्र बनाना।
उत्तर:
(B) अवैध शिकार को रोककर शेरों की सुरक्षा।

2. नन्दा देवी जीव आरक्षण क्षेत्र किस राज्य में है?
(A) बिहार
(B) उत्तराखण्ड
(C) उत्तर प्रदेश
(D) उड़ीसा।
उत्तर:
(B) उत्तराखण्ड।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

3. संदल किस प्रकार के वन की लकड़ी है?
(A) सदाबहार
(B) डैल्टा वन
(C) पतझड़ीय
(D) कंटीले वन।
उत्तर:
(C) पतझड़ीय।

4. IUCN द्वारा कितने जीव आरक्षण स्थल मान्यता प्राप्त है?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर:
(D) 4

5. वन नीति के अधीन वन क्षेत्र का लक्ष्य कितना था?
(A) 33%
(B) 53%
(C) 44%
(D) 22%.
उत्तर:
(A) 33%.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति क्या है? जलवायु की किन परिस्थितियों में ऊष्ण कटिबन्धीय वन उगते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उस पौधा समुदाय से है जो लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है। इसकी विभिन्न प्रजातियां मृदा व जलवायु के अनुसार पनपती हैं। उष्ण कटिबन्धीय वन-ये वन उष्ण एवं आई प्रदेशों में उगते हैं। यहां वार्षिक वर्षा 200 सें० मी० से अधिक तथा औसत वार्षिक तापमान 22°C से अधिक रहता है। इससे कम वर्षा तथा तापमान में उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन मिलते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 2.
जलवायु की कौन-सी परिस्थितियां सदाबहार वन उगने के लिए अनुकूल हैं?
उत्तर:

  1. वार्षिक वर्षा 200 सें० मी०
  2. औसत वार्षिक तापमान 22°C. ये दशाएं भूमध्य रेखीय जलवायु में मिलती हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक वानिकी से आपका क्या अभिप्रायः है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी का अर्थ है- पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद करने के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनारोपण। इसका उद्देश्य है ग्रामीण जनसंख्या के लिए ज्लावन छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की पूर्ति करना।

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प्रश्न 4.
जीवमण्डल निचय को परिभाषित करें, वन क्षेत्र और वन आवरण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जीवमण्डल निचय आरक्षित क्षेत्र (Bioreserves) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं जिन्हें UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त है। वन क्षेत्र और वन आवरण एक-दूसरे से भिन्न-भिन्न हैं। वन क्षेत्र राजस्व विभाग के अनुसार अधिसूचित क्षेत्र हैं चाहे वहां वृक्ष हो या न हो। वन आवरण वास्तविक रूप से वनों से ढका प्रदेश है। सन् 2001 में भारत में वन आवरण, 20.55% था, परन्तु इनमें 12.6% सघन तथा 7.8% विरल वन थे।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दोप्रश्न
प्रश्न 1.
वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेज़ी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है।
वनों का जीवन तथा पर्यावरण के साथ जटिल सम्बन्ध है, वन संरक्षण के लिए कई कदम उठाए गए हैं:

  1. वन नीति-1952 तथा 1988 में वन संरक्षण हेतु वन नीति लागू की गई।
  2. वन संसाधनों का सतत्-पोषणीय विकास किया जाएगा तथा स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी।
  3. देश में 33% वन लगाने के यत्न किए जा रहे हैं।
  4. वनों में जैव विविधता तथा पारिस्थितिक सन्तुलन कायम रखा जाएगा।
  5. मृदा अपरदन तथा बाढ़ पर नियन्त्रण।
  6. सामाजिक वानिकी तथा वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार हो रहा है।
  7. वनों की उत्पादकता को बढ़ाया जा रहा है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 2.
वन और वन्य जीव संरक्षण में लोगों की भागीदारी कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
वन संरक्षण में लोगों की भागीदारी द्वारा सामाजिक वानिकी की विचारधारा का प्रयोग किया जा रहा है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की संस्थाएं तथा महिलाएं योगदान दे रही हैं।
1. 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले-पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था। इसका अर्थ है-ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।

2. अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं।

3. सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैं: कृषि वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना, वन-भूखण्ड (वुडलाट्स) वन विभागों द्वारा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों, के किनारे, नहर के तटों तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण, सामुदायिक वन-भूखण्ड लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।

4. यह लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया।

प्राकृतिक वनस्पति JAC Class 11 Geography Notes

→ वन-एक प्राकृतिक साधन (Forests-A Natural Resource): वन एक नदी की भाँति बहुमुखी। संसाधन हैं। किसी देश का आर्थिक विकास वनों के उपयोग पर निर्भर करता है। जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति-जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति में घना सम्बन्ध है। विभिन्न प्रकार के वन-सदाबहार, पतझड़ीय, शुष्क; सभी वन तापमान तथा वर्षा पर निर्भर करते हैं।

→ वनों की महत्ता (Importance of Forests):

  • वन हमें भोजन सम्बन्धी वस्तुएं प्रदान करते हैं।
  • इनसे लकड़ी प्राप्त होती है।
  • वन विश्व का 40% ईंधन प्रदान करते हैं। लकड़ी का प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है, जैसे घरों में ईंधन, प्रगलन उद्योगों में तथा रेल इंजनों में।
  • नर्म लकड़ी, लकड़ी की लुग्दी कागज़, रेयॉन उद्योग के लिये कच्चा माल, प्रदान करती है।
  • वन वायु में नमी ग्रहण करके वर्षा लाने में सहायता करते हैं।
  • वन मिट्टी अपरदन तथा बाढ़ को रोकते हैं।
  • ये मरुस्थलों को बढ़ने से रोकते हैं।

→ भारत में वनों के प्रकार (Types of Forests in India): भारत में वर्षा, तापमान तथा ऊंचाई की विभिन्नता होने के कारण विभिन्न प्रकार के वन पाये जाते हैं

  • उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन
  • पतझड़ीय वन
  • शुष्क वन
  • ज्वारीय वन
  • पर्वती वन।

→ वनों का ह्रास (Depletion of Forests): निम्नलिखित कारणों द्वारा उत्तम वनों का विशाल क्षेत्रों पर ह्रास हुआ है

  • विशाल पैमाने पर वन क्षेत्र की कटाई
  • स्थानान्तरी कृषि
  • भारी मृदा अपरदन
  • चरागाहों की अत्यधिक चराई
  • लकड़ी तथा ईंधन के लिये वनों की कटाई
  • भूमि का मानव के लिये प्रयोग।

→ वनों का संरक्षण (Conservation of Forests): देश के वन संसाधनों पर जनसंख्या का भारी दबाव है। बढ़ती। हुई जनसंख्या को कृषि योग्य भूमि की अधिक आवश्यकता है। इसलिए वन संरक्षण उपाय आवश्यक हैं।

→ वृक्षारोपण का विभिन्न क्षेत्रों में विकास हुआ है। घास के मैदानों का विकास किया गया है। रेशम के कीड़े पालने के विकसित तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। तेज़ी से बढ़ने वाले पौधों को लगाया जा रहा है। वनों । के अन्तर्गत क्षेत्रों में वृद्धि की गई है। राष्ट्रीय वन नीति-1988 की राष्ट्रीय वन नीति ने वनों का संरक्षण, पुनः विकास किया है। इसका उद्देश्य वातावरण, का संरक्षण तथा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाये रखना है। इसके अन्य उद्देश्य सामाजिक वाणिकी तथा वन उत्पादन में वृद्धि करना है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. शीतकाल में तमिलनाडु के तटीय मैदान में किन पवनों द्वारा वर्षा होती है?
(A) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून
(C) शीतोष्ण चक्रवात
(D) स्थानिक पवनों।
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून

2. कितने प्रतिशत भाग में भारत में 75 सें० मी० से कम वार्षिक वर्षा होती है?
(A) आधे
(B) दो-तिहाई
(C) एक-तिहाई
(D) तीन चौथाई।
उत्तर:
(D) तीन चौथाई।

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3. दक्षिणी भारत के सम्बन्ध में कौन-सा कथन सही नहीं?
(A) दैनिक तापान्तर कम है
(B) वार्षिक तापान्तर कम है
(C) वर्ष भर तापमान अधिक है
(D) यहां कठोर जलवायु है।
उत्तर:
(D) यहां कठोर जलवायु है।

4. जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लम्ब चमकता है तो क्या होता है?
(A) उत्तर-पश्चिमी भारत में उच्च वायु दाब
(B) उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायु दाब
(C) उत्तर-पश्चिमी भाग में तापमान-वायु दाब में
(D) उत्तर-पश्चिमी भाग में लू चलती है।
उत्तर:
(A) उत्तर-पश्चिमी भारत में उच्च वायु दाब।

5. भारत के किस देश-प्रदेश में कोपेन के ‘AS’ वर्ग की जलवायु है?
(A) केरल तथा कर्नाटक
(B) अण्डेमान निकोबार द्वीप
(C) कोरोमण्डल तट
(D) असम-अरुणाचल।
उत्तर:
(C) कोरोमण्डल तट।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं
1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानसून पवनें, कम वायु दाब क्षेत्र तथा उच्च वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air Circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में ऊष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा होना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।

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प्रश्न 2.
अन्तर ऊष्ण कटिबन्धीय अभिसरण कटिबन्ध (I.T.C.Z.) क्या है?
उत्तर:
अन्तर ऊष्ण कटिबन्धीय अभिसरण कटिबन्ध (I.T. C. Z. ):
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति ऊष्ण कटिबन्ध के बीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण की ओर सरक जाती है । यह भूमध्य रेखीय निम्न दाब द्रोणी दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है ।

प्रश्न 3.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं? भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान बताओ।
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसून पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। यहां ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Monsoon Burst) कहा जाता है क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े ज़ोर की वर्षा होती है। जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो। भारत में मासिनराम (Mawsynram) में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा ( 1080 सें० मी०) होती है। यह स्थान खासी पहाड़ियों में स्थित है।

प्रश्न 4.
जलवायु प्रदेश क्या होता है? कोपेन की पद्धति के प्रमुख आधार कौन से हैं?
उत्तर:
जलवायु प्रदेश – वह प्रदेश जहां वायुमण्डलीय दशाएं तापमान, वर्षा, मेघ, पवनें, वायुदाब आदि सब में लगभग समानता है। कोपेन की जलवायु पद्धति का आकार – कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

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प्रश्न 5.
उत्तर-पश्चिमी भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? वे चक्रवात कहां उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
भारत में उत्तर-पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुंचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर इस वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है। ये चक्रवात रबी की फसलों गेहूँ, बाजरा आदि के लिए लाभदायक हैं

(ग) निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
जलवायु में एक प्रकार का ऐक्य होते हुए भी भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नताएं पाई जाती हैं। उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है। परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान, वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसूनी जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु की व्यापक एकता पाई जाती है
प्रादेशिक अन्तर मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।

1. राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर में ग्रीष्मकाल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सैंटीग्रेड के निकट रहता है।

2. दिसम्बर मास में द्रास एवं कारगिल में तापमान 40°C तक पहुंच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में तापमान + 28°C रहता है ।

3. इसी प्रकार औसत वार्षिक वर्षा में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर मासिनराम में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है। जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सें०मी० से अधिक होती है । गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है ।

4. कई भागों में मानसून वर्षा जून के पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागों में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है।

5. तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तःस्थ स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहर चल रही होती है तो दक्षिणी भारत में काफ़ी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं।

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प्रश्न 2.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार भारत में कितने स्पष्ट मौसम पाए जाते हैं ? किसी एक मौसम की दशाओं की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानसून व्यवस्था के अनुसार भारत में चार ऋतुएं होती हैं

  1. शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी)।
  2. ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून )।
  3. वर्षा ऋतु (मध्य जून से मध्य सितम्बर)।
  4. लौटती मानसून की ऋतु (मध्य सितम्बर से दिसम्बर)।

1. शीत ऋतु:
कम तापमान, मेघ रहित आकाश, सुहावना मौसम तथा कम आर्द्रता इस ऋतु की विशेषताएं होती हैं। इस ऋतु में सूर्य की स्थिति दक्षिणी गोलार्द्ध में होने के कारण भारत में कम तापमान मिलते हैं। शीत लहर तथा हिमपात के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में औसत तापमान 21°C से कम रहते हैं। रात्रि का तापमान हिमांक से नीचे हो जाता है। दक्षिणी भारत में सागरीय प्रभाव के कारण 21°C से अधिक तापमान पाए जाते हैं।

यहां कोई शीत नहीं होती उत्तर – पश्चिमी भारत में उच्च वायु दाब क्षेत्र बन जाता है। उत्तर-पश्चिमी भारत में भूमध्य सागर से आने वाले चक्रवात हल्की-हल्की वर्षा करते हैं। यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभदायक होती है। मानसून पवनें स्थल से सागर (Land to Sea) की ओर चलने के कारण शुष्क होती हैं। ये लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल से नमी ग्रहण करके पूर्वी तट पर वर्षा करती हैं।

2. ग्रीष्म ऋतु:
ग्रीष्म ऋतु में तापमान बढ़ना आरम्भ कर देता है। सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत् पड़ती हैं।
उत्तर:
पश्चिमी भारत में उच्चतम तापमान 42°C से अधिक होते हैं। दिन के समय शुष्क, गर्म लू चलती है। दक्षिणी भारत में औसत तापमान 25°C तक रहता है। तटीय भागों में सागर के समकारी प्रभाव के कारण मौसम सुहावना रहता है। उत्तर – पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब केन्द्र बन जाता है। यह निम्न दाब दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों को उत्तर की ओर आकर्षित करता है। ग्रीष्म ऋतु प्रायः शुष्क रहती है। उत्तर-पूर्वी भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के कारण कुछ वर्षा होती है। गर्मी के कारण स्थानीय रूप से धूल भरी आंधियां (Dust Storms) चलती हैं। इनके कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में कुछ वर्षा हो जाती है जो गर्मी को कम करती है।

3. वर्षा ऋतु:
दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन के साथ भारत में वर्षा ऋतु आरम्भ हो जाती है। तटीय क्षेत्रों में जून के प्रथम सप्ताह में मानसून आरम्भ हो जाती है तथा अचानक भारी वर्षा होती है। इसे ‘मानसून प्रस्फोट’ कहा जाता है। मानसून वर्षा के कारण इस ऋतु में तापमान 5° से 8° कम हो जाते हैं। औसत तापमान 25°C से 30°C तक रहते हैं। इस ऋतु में सागर से स्थल की ओर (Sea to Land) दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें चलती हैं जो भारत की जलवायु में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। प्रायद्वीप के तिकोने आकार के कारण ये पवनें दो शाखाओं में बंट जाती हैं

  1. अरब सागर की मानसून शाखा।
  2. खाड़ी बंगाल की मानसून शाखा।

मानसून की खाड़ी बंगाल की शाखा अराकान पर्वत से टकरा कर उत्तर – पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। ये पवनें उत्तरी मैदान में पंजाब तक वर्षा करती हैं। पश्चिम की ओर जाते हुए वर्षा की मात्रा कम होती है। मानसून की अरब सागरीय शाखा पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, मध्य प्रदेश में वर्षा करती है, परन्तु दक्षिणी पठार पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहता है।

4. लौटती मानसून की ऋतु:
इस ऋतु में दक्षिण-पश्चिमी मानसून उत्तरी भारत से लौटने लगती है । इस ऋतु में तापमान, वायु दाब तथा अन्य सभी दशाएं शनैः-शनैः बदलने लगती हैं। यह ऋतु वर्षा तथा शीत ऋतु में मध्य संक्रात काल होता है। दिन के समय तापमान कम होने लगता है। औसत तापमान 20°C से कम हो जाता है। पवनों की दिशा तथा गति अनिश्चित होती है। धीरे-धीरे प्रति चक्रवातीय दशाएं उत्पन्न होने लगती हैं। वर्षा कम होती है । पूर्वी तटीय प्रदेश पर कुछ वर्षा चक्रवातों द्वारा होती है।

मानचित्र कार्य (Map Skill)

प्रश्न-भारत के रेखा चित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए।

  1. शीतकालीन वर्षा के क्षेत्र
  2. ग्रीष्म ऋतु में पवनों की दिशा
  3. 50 प्रतिशत से अधिक वर्षा की परिवर्तिता के क्षेत्र
  4. जनवरी माह में 15°C से कम तापमान वाले क्षेत्र
  5. भारत में 100 सें० मी० की सम वर्षा रेखा।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु 1

जलवायु JAC Class 11 Geography Notes

→ भारत का जलवायु (Climate of India): भारत में उष्णकटिबन्धीय मानसून प्रकार का जलवायु है। कर्क रेखा भारत को दो समान भागों-उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय में बांटती है।

→ जलवायु विविधता (Climatic Diversity): अधिक विस्तार के कारण जलवायु में बहुत विविधता है। बाड़मेर। में सबसे अधिक तापमान 50° C जबकि कारगिल (लद्दाख ) में सबसे कम तापमान 45°C होता है। मासिनराम (मेघालय) में सबसे अधिक वर्षा 1080 cm जबकि जैसलमेर (रेगिस्तान) में 15 cm से कम वर्षा होती है। भारत की जलवायु को निर्धारित करने वाले कारक

  • मानसूनी पवनें: भारत में मानसूनी जलवायु है । यह मानसून पवनों द्वारा नियन्त्रित होता है।
  • देश का विस्तार: शीतोष्ण प्रदेश में उत्तरी भाग स्थित है। यहां उष्ण ग्रीष्मकाल तथा ठण्डी शीतकाल ऋतु होती है।
  • हिमालय की स्थिति: हिमालय एक जलवायु विभाजक का कार्य करता है। यह पर्वतीय दीवार सर्दियों में भारत को मध्यवर्ती एशिया की शीत पवनों से बचाती है। हिमालय पर्वत हिन्द महासागर की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों को रोक कर वर्षा करने में सहायक है।
  • हिन्द महासागर: दक्षिण-पश्चिमी मानसून का उद्गम इस महासागर से होता है। ये पवनें देश के अधिकतर भागों पर वर्षा प्रदान करती हैं।
  • पश्चिमी विक्षोभ: पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात) सर्दियों में भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में वर्षा प्रदान करते हैं।
  • समुद्र से दूरी: तटीय भागों में समकारी (सागरीय) जलवायु है। इन क्षेत्रों में समकारी जलवायु होता है। परन्तु देश के भीतरी भागों में कठोर या महाद्वीपीय जलवायु मिलता है।
  • धरातल: सम्मुख ढलानों पर भारी वर्षा होती है परन्तु विमुख ढलान पर ( दक्कन पठार) कम वर्षा के कारण वृष्टि छाया रहती है।

→ मानसून (Monsoons): ‘मानसून’ शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ है – मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना। मानसून व्यवस्था के अनुसार मौसमी पवनें चलती हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती है। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल | की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

→ (क) गर्मियों में मानसून: मई तथा जून के महीने के समय ये भारत के उत्तरी मैदानों में बहुत गर्म होती हैं। इसके परिणामस्वरूप उत्तर पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब उत्पन्न होता है। पवनें हिन्द महासागर से भारत के उत्तरी मैदान की ओर चलना आरम्भ कर देती हैं। ये पवनें भारत में दो विभिन्न दिशाओं द्वारा प्रवेश करती हैं

  1. खाड़ी बंगाल की मानसून की शाखा: खाड़ी बंगाल मानसून उत्तर – पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। ये पवनें हिमालय पर्वत के साथ-साथ पश्चिम की ओर वर्षा करती हैं।
  2. अरब सागर की मानसून शाखा: इन पवनों की एक शाखा पश्चिमी घाट पर भारी वर्षा करती है। दूसरी शाखा मध्यवर्ती भारत में प्रवेश करके वर्षा करती है। तीसरी शाखा राजस्थान में अरावली पर्वत के समानान्तर चलती है तथा अरावली पर्वत इन्हें रोक नहीं पाता इसलिए यहां बहुत कम वर्षा होती है।

(ख) शीतकालीन मानसून पवनें: उत्तर-पूर्व मानसून शीतकाल में स्थल से सागर की ओर चलती है तथा शुष्क होती है परन्तु खाड़ी बंगाल को पार करने के पश्चात् तमिलनाडु तट पर वर्षा करती है।

भारत में वर्षा की विशेषताएं (Characteristics of Rainfall in India):

  • मानसूनी वर्षा: भारत में अधिकतर वर्षा मध्य जून से सितम्बर तक दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है। यह वर्षा मौसमी वर्षा है।
  • अनिश्चित वर्षा: गर्मियों में वर्षा अनिश्चित होती है। समय से पहले या बाद में आने वाली मानसून पवनें अकाल तथा बाढ़ का कारण बनती हैं।
  • असमान वितरण: देश में वर्षा का वितरण बहुत असमान है।
  • भारी वर्षा: भारतीय वर्षा बौछारों के रूप में भारी वर्षा करती हैं।
  • उच्चावच से सम्बन्धित वर्षा: पर्वतों के सहारे अधिक वर्षा होती है।
  • वर्षा का निरन्तर न होना: गर्मियों में वर्षा में शुष्क Spells आते हैं।
  • वर्षा की परिवर्तनशीलता: वर्षा की परिवर्तनशीलता लगभग 30% है जिसके कारण अकाल पड़ जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

→ भारत में वर्षा का वितरण (Distribution of Rainfall in India)

  1. भारी वर्षा वाले क्षेत्र: ये क्षेत्र 200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इनमें पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, उप- हिमालय तथा उत्तर-पू -पूर्वी भाग शामिल हैं।
  2. दरमियानी वर्षा वाले क्षेत्र: ये क्षेत्र 100-200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इन क्षेत्रों में पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग तथा मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय मैदान शामिल हैं।
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र: ये क्षेत्र 50-100 सेंटीमीटर तक वर्षा प्राप्त करते हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग, हरियाणा, पंजाब, प्रायद्वीपीय पठार तथा पूर्वी राजस्थान शामिल हैं।
  4. अति कम वर्षा वाले क्षेत्र: ये 50 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इनमें लद्दाख, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, कच्छ तथा थार मरुस्थल शामिल हैं।

→ भारत में मौसम (Seasons in India): मानसून पवनों के आगमन तथा पीछे हटने के क्रम से मौसमों में भी एक क्रम पाया जाता है।

→ मौसम (Seasons)
उत्तर-पूर्व मानसून की ऋतुएं

  • शीत ऋतु: दिसम्बर से फरवरी
  • ग्रीष्म ऋतु: मार्च से मई ।

(ख) दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतुएं

  • वर्षा ऋतु: जून से सितम्बर।
  • लौटती मानसून पवनों की ऋतु: अक्तूबर से नवम्बर।