JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 कार्यपालिका

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 कार्यपालिका Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 कार्यपालिका

Jharkhand Board Class 11 Political Science कार्यपालिका InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
कार्यपालिका क्या है?
उत्तर:
सरकार का वह अंग जो विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता है, कार्यपालिका कहलाता है।

प्रश्न 2.
मुझे याद है कोई कह रहा था कि लोकतन्त्र में कार्यपालिका जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। क्या यह बड़ी कम्पनियों के बड़े अधिकारियों के लिए भी सही है? क्या उन्हें हम मुख्य कार्यपालिका अधिकारी नहीं कहते ? वे किसके प्रति उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
बड़ी कम्पनियों के अधिकारी जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होते। उन्हें हम मुख्य कार्यपालिका अधिकारी नहीं कहते क्योंकि वे लोक सेवा आयोगों के माध्यम से नियुक्त नहीं किये जाते हैं । वे अपने कार्यों के लिए कम्पनी बोर्ड के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

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प्रश्न 3.
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:

  • कार्यपालिका को मोटे रूप से दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है
    1. सामूहिक नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित प्रणाली और
    2. एक व्यक्ति के नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित प्रणाली।
  • प्रथम के आधार पर कार्यपालिका के दो प्रकार हैं
    1. संसदात्मक कार्यपालिका,
    2. अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका। दूसरे आधार पर कार्यपालिका का जो प्रकार उभरा है, उसे अध्यक्षात्मक कार्यपालिका कहा जाता है।
  • इस प्रकार लोकतान्त्रिक देशों में कार्यपालिका के तीन प्रकार उभरे हैं
    1. संसदात्मक कार्यपालिका,
    2. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका
    3. अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका।

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प्रश्न 4.
श्रीलंका के राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री की स्थिति भारत से कैसे भिन्न है? भारत और श्रीलंका के राष्ट्रपति के महाभियोग में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की तुलना करें।
उत्तर:
श्रीलंका के राष्ट्रपति और भारत के राष्ट्रपति की स्थिति की तुलना – श्रीलंका के संविधान में अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका लागू की गई है। वहाँ जनता प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति को चुनती है। राज्य का निर्वाचित प्रधान और सशस्त्र सेनाओं का प्रधान सेनापति होने के अतिरिक्त श्रीलंका का राष्ट्रपति सरकार का भी प्रधान होता है। भारत के संविधान में संसदात्मक कार्यपालिका लागू की गई है। यहाँ राष्ट्रपति सरकार का नाम मात्र का (संवैधानिक) अध्यक्ष है, न कि वास्तविक अध्यक्ष । इसका निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता है अर्थात् संसद के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन करते हैं। यह राज्य का प्रधान और सशस्त्र सेनाओं का प्रधान सेनापति होता है, लेकिन सरकार का प्रधान नहीं होता है।

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प्रश्न 5.
नेहा यह तो बहुत सरल है। जिस देश में राष्ट्रपति है, वहाँ अध्यक्षात्मक कार्यपालिका और जिस देश में प्रधानमन्त्री है, वहाँ संसदीय कार्यपालिका है। आप नेहा को कैसे समझायेंगे कि ऐसा हमेशा सच नहीं होता?
उत्तर:
हम नेहा को इस प्रकार समझायेंगे कि जिस देश में कार्यपालिका के संवैधानिक अध्यक्ष और वास्तविक अध्यक्ष अलग-अलग होते हैं और वास्तविक अध्यक्ष, चाहे उसका पद नाम राष्ट्रपति हो या प्रधानमन्त्री, अपने कार्यों के लिये संसद के प्रति उत्तरदायी होता है; उसे संसदात्मक शासन कहते हैं जिस देश में कार्यपालिका का संवैधानिक और वास्तविक अध्यक्ष एक ही होता है चाहे उसका पद-नाम राष्ट्रपति हो या चांसलर तथा जो संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, उसे अध्यक्षात्मक शासन कहते हैं।

उदाहरण के लिए, भारत में राष्ट्रपति कार्यपालिका का संवैधानिक अध्यक्ष है और प्रधानमन्त्री कार्यपालिका का वास्तविक अध्यक्ष है, लेकिन यहाँ वास्तविक अध्यक्ष संसद के प्रति उत्तरदायी है। अतः यहाँ संसदात्मक सरकार है, जबकि यहाँ राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री दोनों ही पद विद्यमान हैं। दूसरी तरफ अमेरिका में राष्ट्रपति संवैधानिक और वास्तविक कार्यपालिका अध्यक्ष दोनों है तथा वह अपने कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं है। अतः वहाँ अध्यक्षात्मक सरकार है।

श्रीलंका के प्रधानमन्त्री और भारत के प्रधानमन्त्री की स्थिति की भिन्नता:
अर्द्ध-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली होने के कारण श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की स्थिति भारत के प्रधानमन्त्री से कमजोर है। भारत का प्रधानमन्त्री सरकार का अध्यक्ष होता है और व्यवहार में संवैधानिक अध्यक्ष या राज्य के अध्यक्ष की समस्त शक्तियों का उपभोग करता है। राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है और जब तक लोकसभा में उसके पक्ष में बहुमत का समर्थन रहता है, राष्ट्रपति उसे पदच्युत नहीं कर सकता। दूसरी तरफ, श्रीलंका में राष्ट्रपति संसद में बहुमत वाले दल के सदस्यों में से प्रधानमन्त्री चुनता है। वह प्रधानमन्त्री और दूसरे मन्त्रियों को हटा सकता है। प्रधानमन्त्री सरकार का अध्यक्ष नहीं होता है तथा वह राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है।

भारत और श्रीलंका के राष्ट्रपति के महाभियोग में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका:

  1. श्रीलंका में राष्ट्रपति छः वर्ष के लिए चुना जाता है और उसे इससे पहले भी संसद की कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत से पारित प्रस्ताव के द्वारा भी हटाया जा सकता है। यदि वह प्रस्ताव संसद के कम-से-कम आधे सदस्यों. द्वारा पास किया जाये और संसद का अध्यक्ष भी सन्तुष्ट हो कि आरोपों में दम है, तो संसद का अध्यक्ष उसे सर्वोच्च न्यायालय को भेज सकता है।
  2. भारत में राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए चुना जाता है और उसे इससे पहले केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर महाभियोग के द्वारा हटाया जा सकता है। संसद विशेष बहुमत की प्रक्रिया के द्वारा राष्ट्रपति को पदच्युत कर सकती है। यहाँ राष्ट्रपति के महाभियोग में सर्वोच्च न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है।

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प्रश्न 6.
राष्ट्रपति के लिए किताबों में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग- दोनों का प्रयोग किया जाता है। क्या कभी कोई महिला भी राष्ट्रपति हुई है?
उत्तर:
हाँ, भारत में महिला भी राष्ट्रपति हुई हैं। श्रीमती प्रतिभा पाटिल महिला राष्ट्रपति हुई हैं।

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प्रश्न 7.
कल्पना करें कि प्रधानमन्त्री किसी राज्य में इस आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाना चाहता है कि वहाँ की सरकार दलितों पर अत्याचार रोकने में विफल रही है। राष्ट्रपति की सोच कुछ अलग है। उसका कहना है कि राष्ट्रपति शासन का अपवाद स्वरूप ही प्रयोग करना चाहिए। इस स्थिति में राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित में से कौनसा विकल्प है?
(क) वह प्रधानमन्त्री को बताए कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा करने वाले आदेश पर वह हस्ताक्षर नहीं करेगा।
(ख) प्रधानमन्त्री को बर्खास्त कर दे।
(ग) वह प्रधानमन्त्री से वहाँ केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल भेजने को कहे।
(घ) एक प्रेस वक्तव्य दे कि क्यों प्रधानमन्त्री गलत है।
(ङ) इस सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री से बातचीत करे और उसे ऐसा करने से रोके परन्तु यदि प्रधानमन्त्री दृढ़ रहे तब उस पर हस्ताक्षर कर दे।
उत्तर:
(ङ) इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री से बातचीत करे और उसे ऐसा करने से रोके परन्तु यदि प्रधानमन्त्री दृढ़ रहे, तब उस पर हस्ताक्षर कर दे।

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प्रश्न 8.
मुख्यमन्त्री विश्वासमत जीतकर भी खुश नहीं हैं। वे कह रहे हैं कि विश्वास मत जीतने के बावजूद उनकी परेशानियाँ बरकरार हैं। क्या आप सोच सकते हैं, वे ऐसा क्यों कह रहे हैं?
उत्तर:
जब विधानसभा में किसी एक दल को या किसी चुनाव पूर्व गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो राज्यपाल सबसे बड़े दल या गठबन्धन के नेता को इस शर्त पर मुख्यमन्त्री बनाता है कि उसे अमुक तिथि तक विधानसभा विश्वासमत जीतना है। इस स्थिति में जब मुख्यमन्त्री विश्वास मत जीत भी लेता है, तो भी उसकी परेशानियाँ बनी रहती हैं। क्योंकि अब उसे एक नेता से अधिक एक मध्यस्थ की भूमिका निभानी होती है। उसे निरन्तर अपने राजनीतिक सहयोगियों से परामर्श कर चलना पड़ता है क्योंकि विभिन्न सहयोगी दलों के बीच काफी बातचीत और समझौते के बाद ही नीतियाँ बन पायेंगी। इसी सन्दर्भ में विश्वासमत जीतने के बावजूद मुख्यमन्त्री ऐसा कह रहे हैं कि अभी उनकी परेशानियाँ बरकरार हैं।

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प्रश्न 9.
मान लीजिए कि प्रधानमन्त्री को मन्त्रिपरिषद् का गठन करना है। वह क्या करेगा/करेगी-
(क) विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों का चयन।
(ख) केवल अपनी पार्टी के लोगों का चयन।
(ग) केवल व्यक्तिगत रूप से निष्ठावान और विश्वसनीय लोगों का चयन।
(घ) केवल सरकार के समर्थकों का चयन।
(ङ) मन्त्री बनने की होड़ में शामिल व्यक्तियों की राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाकर ही उनका चयन।
उत्तर:
(ङ) प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का गठन करते समय मन्त्री बनने की होड़ में शामिल व्यक्तियों की राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाकर ही उनका चयन करेगा।

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प्रश्न 1.
संसदीय कार्यपालिका का अर्थ होता है
(क) जहाँ ससद हो वहाँ कार्यपालिका का होना।
(ख) संसद द्वारा निर्वाचित कार्यपालिका।
(ग) जहाँ संसद कार्यपालिका के रूप में काम करती है।
(घ) ऐसी कार्यपालिका जो संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।
उत्तर:
(घ) संसदीय कार्यपालिका का अर्थ होता है ऐसी कार्यपालिका जो संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित संवाद पढ़ें। आप किस तर्क से सहमत हैं और क्यों? अमित- संविधान के प्रावधानों को देखने से लगता है कि राष्ट्रपति का काम सिर्फ ठप्पा मारना है। शमा: राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है। इस कारण उसे प्रधानमन्त्री को हटाने का भी अधिकार होना चाहिए। राजेश: हमें राष्ट्रपति की जरूरत नहीं। चुनाव के बाद, संसद बैठक बुलाकर एक नेता चुन सकती है जो प्रधानमन्त्री बने।
उत्तर:
अमित, शमा और राजेश के उपर्युक्त संवाद में मैं अमित के तर्क से सहमत हूँ, लेकिन शमा और राजेश के तर्क से सहमत नहीं हूँ। अमित के तर्क से सहमत होने का कारण यह है कि भारत में संसदात्मक कार्यपालिका को अपनाया गया है जिसमें राष्ट्र या राज्य का अध्यक्ष नाम मात्र का कार्यपालिका अध्यक्ष होता है और मन्त्रिपरिषद् सहित प्रधानमन्त्री सरकार का अध्यक्ष होता है और वह वास्तविक कार्यपालिका अध्यक्ष होता है। भारत में राष्ट्रपति का पद नाममात्र की कार्यपालिका अध्यक्ष का पद है।

यद्यपि सिद्धान्त रूप में समस्त सरकार के कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं लेकिन व्यवहार में सामान्य स्थिति में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री सहित मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार ही कार्य करता है। इससे स्पष्ट होता है कि संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्रपति नाम मात्र का अध्यक्ष है। संविधान में स्पष्ट लिखा है कि राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा। राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित को सुमेलित करें:

(क) भारतीय विदेश सेवा जिसमें बहाली हो उसी प्रदेश में काम करती है।
(ख) प्रादेशिक लोक सेवा केन्द्रीय सरकार के दफ्तरों में काम करती हैं जो या तो देश की राजधानी में होते हैं या देश में कहीं और।
(ग) अखिल भारतीय सेवाएँ जिस प्रदेश में भेजा जाए उसमें काम करती है, इसमें प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में भी भेजा जा सकता है।
(घ) केन्द्रीय सेवाएँ भारत के विदेशों में कार्यरत।

उत्तर:

(क) भारतीय विदेश सेवा भारत के विदेशों में कार्यरत।
(ख) प्रादेशिक लोक सेवा जिसमें बहाली हो उसी प्रदेश में काम करती है।
(ग) अखिल भारतीय सेवाएँ जिस प्रदेश में भेजा जाए उसमें काम करती है, इसमें प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में भी भेजा जा सकता है।
(घ) केन्द्रीय सेवाएँ केन्द्रीय सरकार के दफ्तरों में काम करती हैं जो या तो देश की राजधानी में होते हैं या देश में कहीं और।

प्रश्न 4.
उस मन्त्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार को जारी किया होगा। यह मन्त्रालय प्रदेश की सरकार का है या केन्द्र सरकार का और क्यों?
(क) आधिकारिक तौर पर कहा गया है कि सन् 2004-05 में तमिलनाडु पाठ्यपुस्तक निगम कक्षा 7, 10 और 11 की नई पुस्तकें जारी करेगा।
(ख) भीड़ भरे तिरुवल्लूर: चेन्नई खण्ड में लौह-अयस्क निर्यातकों की सुविधा के लिए एक नई रेल लूप लाइन बिछाई जायेगी। नई लाइन लगभग 80 कि.मी. की होगी। यह लाइन पुट्टूर से शुरू होगी और बन्दरगाह के निकट अतिपट्टू तक जाएगी।
(ग) रमयपेट मण्डल में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं की पुष्टि के लिए गठित तीन सदस्यीय उप- विभागीय समिति ने पाया कि इस माह आत्महत्या करने वाले दो किसान फसल के मारे जाने से आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे थे।
उत्तर:
(कं) यह समाचार तमिलनाडु राज्य के शिक्षा मन्त्रालय द्वारा जारी किया गया होगा क्योंकि तमिलनाडु पाठ्यपुस्तक निगम द्वारा तमिलनाडु राज्य में कक्षा 7, 10 और 11 के लिए नया सत्र शुरू करना था।

(ख) पुट्टूर से प्रारम्भ होकर चेन्नई बन्दरगाह के निकट अतिपट्टू तक 80 किमी. लम्बी नई रेल लूप लाइन बिछाने का आदेश रेल मन्त्रालय का है। यह मन्त्रालय केन्द्र सरकार का है क्योंकि रेलवे विषय संघ सूची का विषय है

(ग) रायमपेट मण्डल में दो किसानों ने आत्महत्या की जिसके लिए तीन सदस्यीय सब-डिवीजनल समिति ने जाँच की कि ये किसान फसल के मारे जाने की वजह से आर्थिक समस्या से परेशान थे और इसलिए आत्महत्या कर ली। यह मामला कृषि मन्त्रालय का है जो राज्य मन्त्रिमण्डल के अधीन आता है। लेकिन इसमें केन्द्र सरकार का कृषि मन्त्रालय भी राज्य सरकार के माध्यम से किसानों की सहायता हेतु कदम उठा सकता है।

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प्रश्न 5.
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करने में राष्ट्रपति:
(क) लोकसभा के सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
(ख) लोकसभा में बहुमत अर्जित करने वाले गठबन्धन के दलों में सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
(ग) राज्यसभा के सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
(घ) गठबन्धन अथवा उस दल के नेता को चुनता है जिसे लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
उत्तर:
(घ) प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति गठबन्धन अथवा उस दल के नेता को चुनता है जिसे लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।

प्रश्न 6.
इस चर्चा को पढ़कर बताएँ कि कौनसा कथन भारत पर सबसे ज्यादा लागू होता है।
आलोक:  प्रधानमन्त्री राजा के समान है। वह हमारे देश में हर बात का फैसला करता है।
शेखर: प्रधानमन्त्री सिर्फ ‘समान हैसियत के सदस्यों में प्रथम है। उसे कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं। सभी मन्त्रियों और प्रधानमन्त्री के अधिकार बराबर हैं।
बॉबी: प्रधानमन्त्री को दल के सदस्यों तथा सरकार को समर्थन देने वाले सदस्यों का ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन कुल मिलाकर देखें तो नीति-निर्माण तथा मन्त्रियों के चयन में प्रधानमन्त्री की बहुत ज्यादा चलती है।
उत्तर:
उपर्युक्त चर्चा में तीसरा कथन अर्थात् बॉबी का कथन भारत के सन्दर्भ में सबसे ज्यादा लागू होता है।

प्रश्न 7.
क्या मन्त्रिमण्डल की सलाह राष्ट्रपति को हर हाल में माननी पड़ती है? आप क्या सोचते हैं? अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर:
भारत में राष्ट्रपति संवैधानिक या नाममात्र का अध्यक्ष है और मन्त्रिमण्डल वास्तविक अध्यक्ष। संविधान के अनुच्छेद 74(1) में कहा गया है कि ” राष्ट्रपति की सहायता और सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी जिसका
उत्तर:
(क) भारतीय विदेश सेवा
(ख) प्रादेशिक लोक सेवा
(ग) अखिल भारतीय सेवाएँ
(घ) केन्द्रीय सेवाएँ
भारत के विदेशों में कार्यरत।
जिसमें बहाली ( भर्ती) हो उसी प्रदेश में कार्य करती है।

प्रश्न 8.
संसदीय व्यवस्था ने कार्यपालिका को नियन्त्रण में रखने के लिए विधायिका को बहुत से अधिकार दिये हैं। कार्यपालिका को नियन्त्रित करना इतना जरूरी क्यों है? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के द्वारा संसदीय शासन व्यवस्था की स्थापना की गई है। अतः कार्यपालिका संसद अर्थात् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। मन्त्रिमण्डल उसी समय तक अपने पद पर रहता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो । संसद अनेक प्रकार से कार्यपालिका पर नियन्त्रण रख सकती है। संसद सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीति के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछकर कार्यपालिका पर अंकुश लगाते हैं।

संसद सरकारी विधेयक या बजट को अस्वीकार करके, मन्त्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अथवा किसी सरकारी विधेयक में ऐसा संशोधन करके जिससे सरकार सहमत न हो, अपना विरोध प्रदर्शित कर सकती है। इसके अतिरिक्त वह काम रोको प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव तथा अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखती है।

निम्नलिखित कारणों से संसद द्वारा कार्यपालिका को नियन्त्रित करना आवश्यक है।

  1. एक लोकतान्त्रिक शासन में समस्त शक्तियाँ जनता में निहित होती हैं। कार्यपालिका जनता की तरफ से ही अपनी शक्तियों का प्रयोग करती है। इसलिए इसे संसद, जो कि जनता का प्रतिनिधि सदन है, के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है।
  2. यदि बजट के स्वरूप में कार्यपालिका पर कोई नियन्त्रण नहीं रखा जाये तो कार्यपालिका जनता पर निरंकुश होकर कर लगायेगी और करों का संकलन भी निरंकुशतापूर्ण ढंग से करेगी तथा राष्ट्र के धन को भी निरंकुशतापूर्ण ढंग से व्यय करेगी। इसलिए कार्यपालिका द्वारा प्रस्तुत बजट पर संसद के नियन्त्रण का होना आवश्यक है।
  3. संसदीय नियन्त्रण के अभाव में, कार्यपालिका अपनी शक्तियों का प्रयोग निरंकुश होकर करेगी। इससे लोक- कल्याण से उसका ध्यान हटेगा और उसका व्यवहार पक्षपातपूर्ण होगा क्योंकि शक्ति भ्रष्ट करती है और निरंकुश शक्ति पूर्णत: भ्रष्ट करती है।
  4. यदि कार्यपालिका पर संसद कोई नियन्त्रण नहीं रखे तो कार्यपालिका धीरे-धीरे समस्त शक्तियाँ अपने हाथों में केन्द्रित कर लेगी और वह निरंकुशता का व्यवहार करने लगेगी।

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प्रश्न 9.
कहा जाता है कि प्रशासनिक तन्त्र के कामकाज में बहुत ज्यादा राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। सुझाव के तौर पर कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा स्वायत्त एजेन्सियां बननी चाहिए जिन्हें मन्त्रियों को जवाब न देना पड़े।
(क) क्या आप मानते हैं कि इससे प्रशासन ज्यादा जन हितैषी होगा?
(ख) क्या इससे प्रशासन की कार्यकुशलता बढ़ेगी?
(ग) क्या लोकतन्त्र का अर्थ यह होता है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियन्त्रण हो?
उत्तर:
(क) प्रशासनिक तन्त्र के माध्यम से सरकार अपनी लोक कल्याणकारी नीतियों को जनता तक पहुँचाती है; उन्हें कार्यान्वित करती है। सामान्यतः आम आदमी की पहुँच प्रशासनिक अधिकारियों तक नहीं होती। नौकरशाही आम नागरिकों की माँगों और आशाओं के प्रति संवेदनशील नहीं होती। राजनीतिक हस्तक्षेप के द्वारा प्रजातन्त्र में नौकरशाही की इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन यदि यह राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत ज्यादा हो जाता है तो प्रशासन राजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना बन जाता है तथा प्रशासन पूर्णत: संवेदनहीन होकर राजनीतिज्ञों की हाँ में हाँ मिलाने लगता है।

इससे प्रशासन में भ्रष्टाचार, निरंकुशता, पक्षपातपूर्ण व्यवहार बढ़ जाता है और लोक कल्याण तिरोहित हो जाता है। इस स्थिति से छुटकारा पाने तथा प्रशासन को संवेदनशील, कार्यकुशल तथा निष्पक्ष बनाने रखने के लिए यह सुझाव कि ज्यादा से ज्यादा स्वायत्त एंजेन्सियाँ बनायी जायें ताकि राजनैतिक हस्तक्षेप रुके और प्रशासन जन हितैषी बन सके, उपयुक्त है। इससे प्रशासन अधिक जन हितैषी होगा क्योंकि वह स्वतन्त्रतापूर्वक निष्पक्षता व कुशलता से अपना कार्य कर सकेगा।

(ख) ज्यादा से ज्यादा ऐसी स्वायत्त एजेन्सियाँ बनाने से, जिन्हें मन्त्रियों को जवाब न देना पड़े, भ्रष्टाचार, संवेदनहीनता और निष्क्रियता समाप्त होगी और वह स्वतन्त्रतापूर्वक बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के कार्य करेंगे। इससे उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होगी।

(ग) लोकतन्त्र का अर्थ है कि शासन जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप हो। जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि अर्थात् मन्त्री जब प्रशासन पर नियन्त्रण रखते हैं तो जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप शासन संचालित होता है क्योंकि प्रशासन संवेदनशील होकर लोक कल्याणकारी नीतियों को कार्यान्वित करने लगता है। लेकिन जब चुने हुए प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियन्त्रण हो जाता है, तो प्रशासनिक अधिकारी चाटुकार हो जाते हैं। वे मन्त्रियों की हाँ में हाँ मिलाने को ही अपना प्रमुख कार्य समझने लगते हैं। ऐसी स्थिति में प्रशासन संवेदनशील नहीं रहता, वह जनहित की उपेक्षा करने लगता है; भ्रष्टाचार तथा पक्षपातपूर्ण व्यवहार बढ़ जाता है।

इस प्रकार सही अर्थों में लोकतन्त्र नहीं रहता है। अतः यह कहना सही नहीं है कि चुने हुए प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियन्त्रण होना ही लोकतन्त्र है। लोकतन्त्र का सही अर्थ है। प्रशासन द्वारा जनहितकारी कार्यों को निष्पक्षता तथा कार्यकुशलता से जनता के प्रति संवेदनशील होते हुए करना। जनप्रतिनिधियों का ऐसा नियन्त्रण जो प्रशासन को इस ओर सक्रिय करे, उत्तरदायी बनाए लोकतन्त्रकारी कहलायेगा और ऐसा नियन्त्रण जो उसे जनता के प्रति संवेदनहीन, भ्रष्ट तथा अकुशल बनायेगा, वह लोकतन्त्र विरोधी कहलायेगा।

प्रश्न 10.
नियुक्ति आधारित प्रशासन की जगह निर्वाचित आधारित प्रशासन होना चाहिए- इस विषय पर 200 शब्दों में एक लेख लिखो
उत्तर:
निर्वाचित आधारित प्रशासन
यदि प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्ति के आधार के स्थान पर निर्वाचन के आधार पर लिया जाये तो यह हानिप्रद होगा। इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. नीतियों को लागू करने में अनिश्चितता व अस्थिरता: यदि प्रशासन निर्वाचन के आधार पर लिया जायेगा तो निर्वाचित प्रशासक नीतियों को बदल देंगे। इससे नीतियों को लागू करने में अनिश्चितता और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो जायेगी।

2. निष्पक्षता व तटस्थता का अभाव: नियुक्त प्रशासन पक्षपात रहित होता है क्योंकि सिविल सेवकों को केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों के द्वारा योग्यता के आधार पर नियुक्त किया जाता है। इनकी नियुक्ति एक स्वतन्त्र लोक सेवा आयोग की सिफारिश पर की जाती है। इससे प्रशासन में निष्पक्षता तथा तटस्थता बनी रहती है। लेकिन यदि लोकसेवकों की भर्ती चुनाव के द्वारा की जायेगी तो अलग-अलग पार्टियों के उम्मीदवारों की जीत होने पर नीतियों को लागू करने में अड़चनें आयेंगी। वे निष्पक्ष और तटस्थ नहीं रह पायेंगे।

3. अयोग्य तथा अकुशल प्रशासक: लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित किये गये प्रशासक योग्य तथा कुशल होते हैं क्योंकि उनके चयन का मापदण्ड योग्यता एवं कुशलता ही होता है। लेकिन यदि इनकी भर्ती निर्वाचन के आधार पर होगी तो उनकी योग्यता व कुशलता की गारण्टी नहीं दी जा सकती क्योंकि उनकी भर्ती का आधार उनकी योग्यता व कुशलता न होकर लोकप्रियता होगी। ऐसी स्थिति में प्रशासन में योग्यता व कुशलता का अभाव हो जायेगा अर्थात् प्रशासन प्राय: अकुशल हो जावेगा।

4. अस्थिरता और अनुभवहीनता: निर्वाचन के आधार पर प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों की भर्ती प्रशासन में अस्थिरता और अनुभवहीनता भी लायेगी। लोक सेवा आयोगों द्वारा चयनित प्रशासनिक अधिकारी एक निश्चित आयु तक नियुक्त किये जाते हैं। इसलिए ये एक लम्बी अवधि तक प्रशासन में रहते हैं। इस कारण प्रशासन स्थायी, तटस्थ, अनुभवशील तथा कार्यकुशल होता है लेकिन निर्वाचन द्वारा भर्ती किये गये प्रशासनिक अधिकारी एक छोटी अवधि के लिए निर्वाचित होंगे। फलतः प्रशासन में अस्थिरता आयेगी और आवश्यक नहीं है कि वे पुनः निर्वाचित हो सकें।

इस कारण प्रशासन में अनुभवहीनता का प्रवेश हो जाता है। ऐसी स्थिति में वे नीतियों को बनाने व लागू करने में मन्त्रियों को कोई सहयोग नहीं दे पायेंगे। वे राजनीतिक रूप से तटस्थ भी नहीं रह सकते। अतः स्पष्ट है कि यदि प्रशासन को नियुक्ति के बजाय निर्वाचित किया जायेगा तो प्रशासन पक्षपातमूलक, अस्थिर, अयोग्य, अकुशल हो जायेगा ! अतः नियुक्ति आधारित प्रशासन की जगह निर्वाचित आधारित प्रशासन नहीं होना चाहिए।

 कार्यपालिका JAC Class 11 Political Science Notes

→ परिचय: सरकार के तीन अंग हैं। विधायका, कार्यपालिका और न्यायपालिका । ये तीनों मिलकर शासन का कार्य करते हैं तथा कानून व्यवस्था बनाए रखने और जनता का कल्याण करने में योगदान देते हैं। संविधान यह सुनिश्चित करता है कि ये सभी एक-दूसरे से तालमेल बनाकर काम करें और आपस में सन्तुलन बनाये रखें। कार्यपालिका क्या है? सरकार का वह अंग जो विधायिका द्वारा लिये गये नीतिगत निर्णयों, नियमों और कायदों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता है, कार्यपालिका कहलाता है। कार्यपालिका का औपचारिक नाम अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न होता है। कुछ देशों में राष्ट्रपति होता है, तो कहीं चांसलर। कार्यपालिका में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री या मन्त्री ही नहीं होते बल्कि इसके अन्दर सम्पूर्ण प्रशासनिक ढाँचा भी सामिल है।

→ राजनीतिक कार्यपालिका: सरकार के प्रधान और उनके मन्त्रियों को राजनीतिक कार्यपालिका कहते हैं और वे सरकार के सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होते हैं।

→  स्थायी कार्यपालिका: जो लोग रोज-रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं, उन्हें स्थायी कार्यपालिका कहते हैं।

→  कार्यपालिका के प्रकार: नेतृत्व के आधार पर कार्यपालिका के दो प्रकार बताये जा सकते हैं।

  • सामूहिक नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित प्रणाली और
  • एक व्यक्ति के नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित प्रणाली।

→ सामूहिक नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित प्रणाली: सामूहिक नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित कार्यपालिका के दो प्रकार हैं।
(अ) संसदीय कार्यपालिका,
(ब) अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका। यथा

(अ) संसदीय कार्यपालिका।

  • संसदीय सरकार (कार्यपालिका) के प्रमुख को आम तौर पर प्रधानमन्त्री कहते हैं। प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के पास वास्तविक शक्ति होती है।
  • प्रधानमन्त्री विधायिका में बहुमत वाले दल का नेता होता है।
  • वह विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है
  • संसदीय कार्यपालिका में राजा या राष्ट्रपति देश का (राष्ट्र का) प्रमुख होता है जो औपचारिक या नाम मात्र का कार्यपालिका प्रमुख होती है।
  • जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैण्ड, पुर्तगाल तथा भारत आदि देशों में यह व्यवस्था है।

(ब) अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका-

  • अर्द्ध-अध्यक्षात्मक कार्यपालिका (सरकार) में राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है।
  • इसमें प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख होता है।
  • इसमें प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिपरिषद् विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।
  • फ्रांस, रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है।

→ एक व्यक्ति के नेतृत्व के सिद्धान्त पर आधारित प्रणाली: अध्यक्षात्मक प्रणाली:

  • अध्यक्षात्मक सरकार में राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है। वही सरकार का भी प्रमुख होता है।
  • राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः प्रत्यक्ष मतदान से होता है।
  • वह विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता।
  • अमेरिका, ब्राजील और लैटिन अमेरिका के अनेक देशों में ऐसी व्यवस्था पायी जाती है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 कार्यपालिका

→ भारत में संसदीय कार्यपालिका
भारतीय संविधान में राष्ट्रीय और प्रान्तीय दोनों ही स्तरों पर संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्रपति, भारत में राज्य का औपचारिक प्रधान होता है तथा प्रधानमन्त्री सहित मन्त्रिपरिषद् राष्ट्रीय स्तर पर सरकार चलाते हैं। राज्यों के स्तर पर राज्यपाल राज्य का नाम मात्र का प्रमुख तथा मुख्यमन्त्री और मन्त्रिपरिषद् वास्तविक सरकार के प्रमुख होते हैं।

→  भारत का राष्ट्रपति: भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गई हैं।

→ निर्वाचन: राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष तरीके से होता है। इसका अर्थ यह है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन निर्वाचित विधायक और सांसद करते हैं। यह निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत के सिद्धान्त के अनुसार होता है।

→ पदच्युति: केवल संसद ही राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा उसके पद से हटा सकती है। महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर लगाया जा सकता है।

→ शक्ति और स्थिति: राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान है। उसे औपचारिक रूप से बहुत-सी कार्यकारी, विधायी, कानूनी और आपात शक्तियाँ प्राप्त हैं। लेकिन राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में प्रधानमन्त्री सहित मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार कार्य करेगा। इस प्रकार अधिकतर मामलों में राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह माननी पड़ती है। लेकिन राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद को अपनी सलाह पर एक बार पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है, लेकिन उसे मन्त्रिपरिषद् के द्वारा पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह को मानना ही पड़ेगा।

→ राष्ट्रपति के विशेषाधिकार:

  • संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और मन्त्रिपरिषद् की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
  • राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह को पुनर्विचार करने के लिए एक बार लौटा सकता है।
  • राष्ट्रपति के पास वीटो (निषेधाधिकार) की शक्ति होती है जिससे वह संसद द्वारा पारित विधेयकों (धन विधेयकों को छोड़कर) पर स्वीकृति देने में विलम्ब कर सकता है या स्वीकृति देने से मना कर सकता है। इसे कई बार ‘पाकेट वीटो’ भी कहा जाता है।
  • जब आम चुनाव के बाद किसी एक दल या गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ हो और दो या तीन नेता यह दावा करें कि उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त है। तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर यह निर्णय लेना होता है कि किसे बहुमत का समर्थन प्राप्त है। भारत में 1989 के बाद से राष्ट्रपति के इस विशेषाधिकार का महत्त्व बढ़ गया है।

→ राष्ट्रपति पद की आवश्यकता (महत्त्व):
यद्यपि भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद एक औपचारिक शक्ति वाले आलंकारिक प्रधान का पद है, तथापि संसदीय व्यवस्था में इस पद का अपना महत्त्व है। यथा

→ सामान्य परिस्थितियों में आवश्यकता: संसदीय व्यवस्था में जब कभी मन्त्रिपरिषद् में लोकसभा का विश्वास नहीं रहता तो उसे पद से हटना पड़ता है और तब उसकी जगह एक नई मन्त्रिपरिषद् की नियुक्ति करनी पड़ेगी । ऐसी परिस्थिति में एक ऐसे राष्ट्र प्रमुख की जरूरत पड़ती है, जिसका कार्यकाल स्थायी हो, जिसके पास प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने की शक्ति हो और जो सांकेतिक रूप से पूरे देश का प्रतिनिधित्व कर सके। सामान्य परिस्थितियों में राष्ट्रपति की यही भूमिका है।

→ असामान्य परिस्थितियों में महत्त्व: जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तब राष्ट्रपति पर अपने विवेक से निर्णय लेने और देश की सरकार चलाने के लिए प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है।

→ भारत का उपराष्ट्रपति: भारत का उपराष्ट्रपति पाँच वर्ष के लिए चुना जाता है। इसे संसद के निर्वाचित सदस्य ही चुनते हैं। उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए राज्यसभा को अपने बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पास करना पड़ता है और उस प्रस्ताव पर लोकसभा की सहमति लेनी पड़ती है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है और किसी कारणवश राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर वह कार्यवाहक राष्ट्रपति का काम करता है।

→ मन्त्रिपरिषद् का गठन: प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद्: प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का प्रधान है। लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है और उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। प्रधानमन्त्री विभिन्न मन्त्रियों में पद स्तर और मन्त्रालयों का आबंटन करता है। मन्त्रियों को उनकी वरिष्ठता और राजनीतिक महत्त्व के अनुसार मन्त्रिमण्डल का मन्त्री, राज्यमन्त्री या उपमन्त्री बनाया जाता है। प्रधानमन्त्री और सभी मन्त्रियों के लिए छ: महीने के अन्दर संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की संख्या लोकसभा (राज्यों में विधानसभा) की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।

→ सामूहिक उत्तरदायित्व: मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। यदि किसी एक मन्त्री के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।

→प्रधानमन्त्री की भूमिका तथा शक्तियाँ: मन्त्रिपरिषद् की केन्द्रीय धुरी: भारत में प्रधानमन्त्री का सरकार में स्थान सर्वोपरि है। बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिपरिषद् का कोई अस्तित्व नहीं। प्रधानमन्त्री के पद ग्रहण करने के पश्चात् ही मन्त्रिपरिषद् अस्तित्व में आती है और उसके त्याग-पत्र देने पर पूरी मन्त्रिपरिषद् ही भंग हो जाती है।

→ सेतु की भूमिका; प्रधानमन्त्री एक तरफ मन्त्रिपरिषद् तथा दूसरी ओर राष्ट्रपति और संसद के बीच एक सेतु का काम करता है। सरकार की नीतियों के निर्णय में प्रभावी भूमिका: प्रधानमन्त्री सरकार के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होता है और सरकार की नीतियों के बारे में निर्णय लेता है।

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→ अन्य भूमिकाएँ: प्रधानमन्त्री की अन्य भूमिकाएँ हैं मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण, लोकसभा का नेतृत्व, अधिकारी जमात पर आधिपत्य, मीडिया तक पहुंच, चुनाव के दौरान उसके व्यक्तित्व का उभार, अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और विदेश यात्राओं के दौरान राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरना। जब लोकसभा में किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत मिलता है, तब प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ निर्विवाद रहती हैं, लेकिन गठबन्धन की सरकारों में राष्ट्रपति की ये शक्तियाँ अनेक सीमाओं से बँधी रहती हैं।

→ राज्यों की कार्यपालिका: भारत में कुछेक बदलावों के साथ राज्यों में भी ठीक केन्द्र की तरह ही लोकतान्त्रिक कार्यपालिका होती है।

  • राष्ट्रपति के स्थान पर राज्य में एक राज्यपाल होता है जो ( केन्द्रीय सरकार की सलाह पर) राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • राज्यपाल के पास राष्ट्रपति से कहीं अधिक विवेकाधीन शक्तियाँ हैं।
  • प्रधानमन्त्री की ही तरह राज्य में मुख्यमन्त्री होता है जो विधानसभा में बहुमत दल का नेता होता है।
  • राज्य के स्तर पर भी संसदात्मक सरकार के प्रमुख सिद्धान्त लागू होते हैं।

→ स्थायी कार्यपालिका नौकरशाही:
मन्त्रियों के निर्णय को प्रशासनिक मशीनरी नागरिक सेवा के स्थायी अधिकारी व कर्मचारी लागू करते हैं। इसे ही नौकरशाही कहते हैं। सरकार के स्थायी कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाले प्रशिक्षित और प्रवीण अधिकारी नीतियों को बनाने और उसे लागू करने में मन्त्रियों का सहयोग करते हैं। नौकरशाही से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राजनीतिक रूप से तटस्थ हो। भारत में एक दक्ष प्रशासनिक मशीनरी मौजूद है जो राजनीतिक रूप से उत्तरदायी है।

→ सिविल सेवाओं का वर्गीकरण:

  • अखिल भारतीय सेवाएँ
    • भारतीय प्रशासनिक सेवा
    • भारतीय पुलिस सेवा।
  • केन्द्रीय सेवाएँ
    • भारतीय विदेश सेवा
    • भारतीय राजस्व सेवा।
  • प्रान्तीय सेवाएँ  बिक्रीकर अधिकारी।

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