JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

JAC Class 9 Hindi गिल्लू Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न :

प्रश्न 1.
सोनजुही में लगी पीली कली को देख लेखिका के मन में कौन-से विचार उमड़ने लगे ?
उत्तर :
लेखिका ने मृत गिल्लू को सोनजुही की बेल के नीचे समाधि दी थी। गिल्लू को सोनजुही की बेल विशेष प्रिय थी, जिसमें वह अक्सर छिपता और खेलता रहता था। हर वर्ष सोनजुही पर फूल लगते। लेखिका के मन में यह विचार उमड़ता था कि किसी वर्ष वसंत में जूही के पीले रंग के छोटे-से फूल के रूप में गिल्लू भी उस बेल पर महकेगा। वह फूल के समान था और फूल के रूप में फिर प्रकट होगा।

प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समादरित और अनादरित प्राणी क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
लेखिका को गिलहरी का छोटा-सा बच्चा गमले और दीवार की संधि में से प्राप्त हुआ था, जो घोंसले से गिरने के बाद दो कौवों का आहार बनने से बच गया था। लेखिका को कौवों की चोंच से घायल गिलहरी का बच्चा लगभग दो वर्ष तक मानसिक सुख देता रहा। यदि कौवे उसे वहाँ न फेंकते, तो वह कभी लेखिका के पास न होता। इसलिए कौवे समादरित थे, पर निरीह जीव पर चोट करने के कारण वे अनादरित थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 3.
गिलहरी के घायल बच्चे का उपचार किस प्रकार किया गया ?
उत्तर :
लेखिका ने दो घायल गिलहरी के बच्चे को उठा लिया। वह कौओं द्वारा चोंच मारे जाने से बिल्कुल निश्चेष्ट – सा गमले से चिपटा पड़ा था। लेखिका उसे धीरे से उठाकर अपने कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर मरहम लगाया। लेखिका ने रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर बार-बार उसके नन्हे मुँह पर लगाई, किंतु उसका मुँह पूरी तरह खुल नहीं पाता था इसलिए वह दूध न पी सका। तब काफी देर तक लेखिका उसका उपचार करती रही और उसके मुँह में पानी की बूँद टपकाने में सफल हो गयी। लेखिका के इस प्रकार के उपचार के तीन दिन बाद ही गिलहरी का बच्चा पूरी तरह अच्छा और स्वस्थ हो गया।

प्रश्न 4.
लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था ?
उत्तर :
लेखिका ने घायल गिलहरी के बच्चे का उपचार करके उसे स्वस्थ किया और उसका नाम गिल्लू रखा। कुछ ही दिनों में गिल्लू लेखिका से काफी घुल-मिल गया। जब लेखिका लिखने बैठती, तो गिल्लू उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता। इसके लिए वह लेखिका के पैर तक आकर तेजी से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेज़ी से उतरता। गिल्लू यह क्रिया तब तक करता, जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न दौड़ती। इस प्रकार वह लेखिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो जाता। लेखिका को गिल्लू की समझदारी और उसके इस प्रकार के कार्यों पर हैरानी होती थी।

प्रश्न 5.
गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता क्यों समझी गई और उसके लिए लेखिका ने क्या उपाय किया ?
उत्तर :
लेखिका ने देखा कि वसंत के आगमन के साथ ही बाहर की कुछ गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करने लगी हैं। गिल्लू भी जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकता रहता। तब लेखिका को लगा कि शायद वह मुक्त होना चाहता है। अतः लेखिका ने खिड़की की जाली के एक कोने से कीलें निकालकर कोना पूरी तरह खोल कर दिया। यह मार्ग गिल्लू की मुक्ति के लिए खोला गया था। लेखिका द्वारा मुक्त किए जाने पर गिल्लू बहुत प्रसन्न दिखाई दिया। लेखिका जब घर से बाहर जाती, तो गिल्लू खिड़की की जाली के रास्ते बाहर निकल जाता और जब लेखिका को घर आया देखता, तो उसी रास्ते से वापस घर में आ जाता था।

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प्रश्न 6.
गिल्लू किन अर्थों में परिचारिका की भूमिका निभा रहा था ?
उत्तर :
एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई और उसे कई दिन अस्पताल में रहना पड़ा। अस्पताल से घर आने पर गिल्लू ने उसकी सेवा की। वह लेखिका के पास बैठा रहता। वह सिरहाने बैठकर अपने नन्हे नन्हे पंजों से लेखिका के सिर और बालों को इस प्रकार सहलाता, जिस प्रकार कोई सेविका हल्के हाथों से मालिश करती है। जब तक गिल्लू सिरहाने बैठा रहता, लेखिका को ऐसा प्रतीत होता मानो कोई सेविका उसकी सेवा कर रही है। उसका वहाँ से हटना सेविका के हटने के समान लगता। इस प्रकार लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू ने परिचारिका की भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
गिल्लू की किन चेष्टाओं से यह आभास मिलने लगा था कि अब उसका अंत समय समीप है ?
उत्तर :
गिलहरी के जीवन की अवधि लगभग दो वर्ष होती है। जब गिल्लू का अंत समय आया, तो उसने दिन भर कुछ नहीं खाया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। अपने अंतिम समय में वह अपने झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर आकर निश्चेष्ट लेट गया। उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह अपने ठंडे पंजों से लेखिका की उँगली पकड़कर उसके हाथ से चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे गर्मी देने का प्रयास किया, किंतु कोई लाभ न हुआ। प्रातः काल होने तक गिल्लू की मृत्यु हो चुकी थी।

प्रश्न 8.
प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखिका स्पष्ट करना चाहती है कि प्रभात काल के समय गिल्लू की मृत्यु हो गई। लेखिका का मत है कि गिल्लू की आत्मा किसी अन्य जीव के रूप में जन्म लेने के लिए उसके शरीर से निकल गई थी। लेखिका ने उसके ठंडे शरीर को गर्मी देने का प्रयास किया। लेकिन प्रभातकाल होने तक गिल्लू के शरीर से प्राण निकलकर किसी अन्य जीवन में जागने के लिए निकल गए थे और वह लेखिका का साथ छोड़कर सदा के लिए मौत की नींद में सो गया था।

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प्रश्न 9.
सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में किस विश्वास का जन्म होता है ?
उत्तर :
गिल्लू की मृत्यु के बाद लेखिका ने उसे सोनजुही की लता के नीचे दफना दिया था। वही गिल्लू की समाधि थी। वह लता गिल्लू को
बहुत प्रिय भी थी। सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में इस विश्वास का जन्म हुआ कि किसी वासंती दिन गिल्लू अवश्य ही जूही के छोटे से पीले फूल के रूप में खिलेगा। लेखिका के मन में विश्वास था कि गिल्लू एक-न-एक दिन फिर से उसके आस-पास जन्म लेगा और वह फिर उसे किसी-न-किसी रूप में देख पाएगी।

JAC Class 9 Hindi गिल्लू Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका ने गिलहरी के बच्चे को कहाँ देखा ? वह किस स्थिति में था ?
उत्तर :
लेखिका ने गिलहरी के बच्चे को गमले और दीवार की संधि में छिपे हुए देखा। वह घोंसले से गिर पड़ा था और कौए उसे अपना भोजन बनाने की ताक में थे। कौओं के द्वारा चोंच मारे जाने के कारण गिलहरी का बच्चा बुरी तरह से घायल हो गया था। जब लेखिका ने उसे देखा, तो वह निश्चेष्ट – सा गमले से चिपटा पड़ा था।

प्रश्न 2.
गिल्लू को मुक्त करने के बाद जब लेखिका घर लौटी, तो उसने क्या पाया ?
उत्तर :
लेखिका ने अपने घर की खिड़की की जाली से रास्ता बनाकर गिल्लू को मुक्त कर दिया। वह अपना कमरा बंद करके कॉलेज चली गई। कॉलेज से लौटने पर उसने पाया कि गिल्लू खिड़की के उसी रास्ते से वापस आ गया और उसके चारों ओर दौड़ लगाने लगा। गिल्लू को भी लेखिका से गहरा लगाव था। यह देखकर लेखिका हैरान रह गई।

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प्रश्न 3.
लेखिका को चौंकाने के लिए गिल्लू क्या करता था ?
उत्तर :
लेखिका को चौंकाने के लिए गिल्लू कभी फूलदान के फूलों में, कभी परदे की चुन्नर में और कभी सोनजुही की पत्तियों में छिप जाता था।

प्रश्न 4.
लेखिका ने गिल्लू को किस बात में अन्य पालतू पशु-पक्षियों से भिन्न पाया ?
उत्तर :
लेखिका के पास बहुत से पशु-पक्षी थे और उनका उससे लगाव भी बहुत था, लेकिन उसे गिल्लू सबसे अलग लगा था। गिल्लू से पहले लेखिका की थाली में लेखिका के साथ खाने की हिम्मत किसी की भी नहीं हुई थी। गिल्लू लेखिका के पीछे-पीछे खाने के कमरे में पहुँचता था और उसकी थाली में बैठने का प्रयास करता। लेखिका ने बड़ी कठिनाई से उसे थाली के पास बिठाकर खाना सिखाया। लेखिका को अपने साथ बैठकर खाने वाला जीव पहली बार मिला था। इसी कारण वह उसे सबसे भिन्न लगता था।

प्रश्न 5.
गिल्लू ने गर्मी से बचने का क्या उपाय निकाला ?
उत्तर :
गर्मी के दिनों में गिल्लू न बाहर जाता था और न ही अपने झूले में बैठता था। वह लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाता था। ऐसा करने से वह लेखिका के समीप भी रहता और सुराही से उसे ठंडक भी मिलती थी। इस प्रकार गर्मी से बचने का उपाय उसने स्वयं ही खोज निकाला था।

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प्रश्न 6.
‘गिल्लू’ पाठ के माध्यम से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
‘गिल्लू’ पाठ ‘महादेवी वर्मा’ द्वारा लिखित संस्मरणात्मक गद्य रचना है। लेखिका के पास कई तरह के पालतू पशु-पक्षी थे। गिल्लू उन्हें अपने बगीचे में घायल अवस्था में मिला। उन्होंने उसका उपचार किया। इस प्रकार देखभाल करने पर गिल्लू का लेखिका से एक विशेष प्रकार का लगाव हो गया था, जो उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहा। इस रचना के माध्यम से पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम व उनके संरक्षण की भावना के साथ-साथ उनकी गतिविधियों का पास से सूक्ष्म अवलोकन करने तथा उनसे सद्व्यवहार करने की प्रेरणा मिलती है। इस पाठ द्वारा पशु-पक्षियों को स्वच्छंद और मुक्त रख उनके स्वाभाविक विकास की भावना को प्रोत्साहित किया गया है।

प्रश्न 7.
लेखिका गिल्लू को लिफ़फ़े में क्यों बंद कर देती थी ?
उत्तर :
लेखिका जब लिखने बैठती थी, तो गिल्लू उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसके पैर तक आकर तेज़ी से पर्दे पर चढ़ जाता और उसी तेज़ी से नीचे उतर जाता था। उसकी इस हरकत से लेखिका का ध्यान उचट जाता था। इसलिए लेखिका उसे काम करने के समय लिफ़ाफ़े में बंद कर देती थी।

प्रश्न 8.
लेखिका और गिल्लू में कैसा संबंध था ?
उत्तर :
लेखिका और गिल्लू में एक विशेष संबंध था। लेखिका के पास बहुत सारे पालतू पशु-पक्षी थे। उसका सबसे स्नेह था, परन्तु गिल्लू से उसका विशेष लगाव था। इसका कारण यह था कि गिल्लू उसका ध्यान अपनी ओर खींचकर रखता था। जब वह लिख रही होती थी, तो वह उसकी मेज़ के आस-पास कूदता रहता था। उसके कॉलेज से लौटने पर उसके साथ ही कमरे में प्रवेश करता और आस-पास घूमकर अपना प्यार प्रकट करता। गिल्लू ने सर्वप्रथम लेखिका के साथ उसकी थाली में खाना खाने की चेष्टा की थी। जब लेखिका बीमार हो गई थी, तो उसने उसकी देखभाल एक सेविका की तरह की थी। लेखिका का भी उससे विशेष स्नेह था। उसने उसे अपने पास बैठाकर खाना खाना सिखाया। उसका साथ उसे भी अच्छा लगता था। इस प्रकार दोनों में विशेष संबंध था।

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प्रश्न 9.
‘गिल्लू’ पाठ के आधार पर बताइए कि गिल्लू में क्या-क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
‘गिल्लू’ एक गिलहरी का नाम था, जिसके प्राण लेखिका ने बचाए थे। लेखिका ने उसकी घायल अवस्था में देखभाल की और उसे नया जीवन प्रदान किया। उसी समय से गिल्लू का उससे विशेष लगाव हो गया था। वह हर समय उसका ध्यान अपनी ओर खींचकर रखता था। वह लेखिका के साथ ही कमरे से बाहर निकलता और उसके साथ ही कमरे में प्रवेश करता था। उनके चारों ओर घूमकर अपना प्यार प्रकट करता था।

वह लेखिका के हाथ से ही भोजन ग्रहण करता था। लेखिका के बीमार पड़ने पर उसने कई दिन तक सही ढंग से भोजन नहीं किया। इस प्रकार उसने लेखिका के प्रति अपना दुख प्रकट किया। वह उसके पास बैठकर अपने पंजों से बालों और सिर को सहलाता था। ऐसे लगता था, जैसे कोई सेविका देखभाल कर रही हो। वह उसके साथ बैठकर भोजन करता था। लेखिका बाहर होती थी, तो वह सभी गिलहरियों का मुखिया बनकर घूमता था। उसे देखकर लगता था कि वह गिलहरी न होकर कोई छोटा बच्चा हो, जो लेखिका के साथ वर्षों से रह रहा है। अपनी इन्हीं बातों से वह उनका बहुत प्यारा था।

प्रश्न 10.
गिल्लू कौन था ? लेखिका ने उसे स्वस्थ रखने के लिए क्या उपचार किया ?
उत्तर :
गिल्लू गिलहरी जाति का एक छोटा-सा जीव था। लेखिका ने गिल्लू को ठीक करने के लिए रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर उसके नन्हे मुँह से लगाई। तीसरे दिन वह पूर्णतः स्वस्थ हो गया। वह लेखिका की हथेली पर बैठकर इधर-उधर देखने लगा था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 11.
गिल्लू का घर कैसा था ? लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह क्या करता था ?
उत्तर :
गिल्लू का घर एक डलिया में बिछा रूई का बिछौना था, जो तार से खिड़की पर लटका था। वह देखने में बड़ा ही सुंदर था। जब लेखिका लिखने के लिए बैठती थी, तब गिल्लू लेखिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी उछल-कूद दिखाने लगता था। वह कभी लेखिका के पैरों को छूता, तो कभी परदे पर तेज़ी से चढ़कर तेज़ी से नीचे उतर आता था।

प्रश्न 12.
लेखिका ने पाठ में ‘जातिवाचक संज्ञा’ को ‘व्यक्तिवाचक संज्ञा’ का रूप कैसे दे दिया ?
उत्तर :
पाठ में लेखिका ने बताया है कि गिल्लू जातिवाचक संज्ञा शब्द है, क्योंकि गिलहरी के हर बच्चे को गिल्लू कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद भी गिल्लू व्यक्तिवाचक बन गया, क्योंकि अब वह गिल्लू एक था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 13.
लेखिका ने घायल गिलहरी के बच्चे की करुण दशा का चित्रण किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
लेखिका ने घायल गिलहरी के बच्चे की करुण दशा का चित्रण करते हुए कहा है कि एक दिन जब वह अपने कमरे से बरामदे में आई, तो अचानक उसने देखा कि दो कौए एक गमले के चारों ओर अपनी चोंचों से कुछ छूने का खेल खेल रहे हैं। तभी लेखिका की दृष्टि गमले और दीवार के बीच खाली पड़ी जगह पर गई। जब उसने पास आकर देखा तो वहाँ गिलहरी का एक छोटा-सा बच्चा था, जिसे देखकर लगता था कि वह अपने घोंसले से गिर गया होगा। अब कौए उसे अपना भोजन बनाने का प्रयास कर रहे थे।

गिल्लू Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘गिल्लू’ पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखित है, जिसमें उन्होंने ‘गिल्लू’ नामक एक गिलहरी के बच्चे की चंचलता और उसके क्रियाकलापों के बारे में बताते हुए उसकी मृत्यु तक का वर्णन किया है। एक दिन लेखिका ने दो कौओं द्वारा घायल किए गए गिलहरी के एक बच्चे को देखा। वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पड़ा था। लेखिका उसे धीरे से उठाकर अपने कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर मरहम लगाया। इस उपचार के तीन दिन बाद वह गिलहरी का बच्चा कूदने – फाँदने लगा।

लेखिका ने उसका नाम ‘गिल्लू’ रखा और फूल रखने की डलिया में रूई बिछाकर उसके रहने के लिए घोंसला बना दिया। कुछ ही दिनों में गिल्लू लेखिका से घुलमिल गया। जब लेखिका लिखने बैठती, तो गिल्लू लेखिका के आस-पास तेजी से दौड़कर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता। कई बार लेखिका उसे पकड़कर एक लंबे लिफाफे में बंद कर देती। भूख लगने पर वह चिक-चिक की ध्वनि करके लेखिका को इसकी सूचना देता और लेखिका उसे काजू या बिस्कुट खाने को देती।

एक दिन लेखिका ने देखा कि गिल्लू बाहर घूमती हुई गिलहरियों को बड़े अपनेपन से देख रहा है। लेखिका ने खिड़की की जाली से कीलें निकालकर गिल्लू के बाहर जाने का मार्ग खोल दिया। जब लेखिका घर से बाहर जाती, तो गिल्लू भी उसी रास्ते से बाहर निकल जाता तथा जब लेखिका घर वापस आती, तो वह भी खिड़की के रास्ते घर में आ जाता। लेखिका गिल्लू की एक हरकत से बड़ी हैरान थी। हरकत यह थी कि वह लेखिका के साथ बैठकर खाना चाहता था। धीरे-धीरे लेखिका ने उसे भोजन की थाली के पास बैठना सिखाया और तब से वह लेखिका के साथ बैठकर खाता। काजू गिल्लू का प्रिय खाद्य पदार्थ था।

एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई और उसे कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। गिल्लू ने उसके पीछे अपना प्रिय खाद्य काजू भी खाना छोड़ दिया और लेखिका के घर लौटने पर एक परिचारिका के समान व्यवहार किया। अंततः गिल्लू का अंतिम समय आ गया। उसने खाना-पीना और बाहर जाना छोड़ दिया। वह रात भर लेखिका की उँगली पकड़े रहा और प्रभात होने तक वह सदा के लिए मौत की नींद सो गया। लेखिका ने सोनजूही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि बनाई। लेखिका को विश्वास था कि एक दिन गिल्लू जूही के छोटे से पीले पत्ते के रूप में फिर से खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • बाधा – रूकावट।
  • संधि – दो वस्तुओंस्थितियों के मिलने के स्थान, मेल, संयोग।
  • दृष्टि – नज़र।
  • आहार – भोजन।
  • काकद्वय – दो कौए।
  • लघुप्राण – छोटा-सा जीव।
  • निश्चेष्ट – बिना किसी हरकत के।
  • हौले से – धीरे से।
  • रक्त – खून।
  • उपचार – इलाज।
  • उपरांत – बाद।
  • आश्वस्त – निश्चिंत।
  • स्निग्ध – चिकना।
  • विस्मित – हैरान, आश्चर्यचकित।
  • लघुगात – छोटा शरीर।
  • मुक्त – आज़ाद।
  • नित्य – प्रतिदिन।
  • अपवाद – सामान्य नियम को बाधित या मर्यादित करने वाला।
  • खाद्य – खाने योग्य।
  • अस्वस्थता – बीमारी।
  • परिचारिका – सेविका।
  • सर्वथा – बिल्कुल।
  • यातना – पीड़ा।
  • मरणासन्न – जिसकी मृत्यु निकट हो, मृत्यु के समीप पहुँचा हुआ।
  • उष्णता – गरमी।
  • पीताभ – पीले रंग का।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

JAC Class 9 Hindi नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Textbook Questions and Answers

(क) नए इलाके में –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है ?
(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है ?
(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है ?
(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है ?
(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी की ओर क्यों इशारा किया है ?
(च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता इसलिए भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन नए-नए मकान बनते रहते हैं जिस कारण उसे याद नहीं रहता कि उसे किधर से मुड़कर कहाँ जाना है क्योंकि उसकी याद की हुई सभी निशानियाँ मिट जाती हैं।

(ख) कविता में कवि ने पीपल के पेड़, ढहे हुए मकान, ज़मीन के खाली टुकड़े जहाँ से उसने बाएँ मुड़ना था तथा बिना रंग वाले लोहे के फाटक के इकमंजिले मकान को पुराने निशानों के रूप में उल्लेख किया है।

(ग) नई बस्ती में रोज़ नए-नए घर बन रहे हैं जिस कारण कवि को भ्रम हो जाता है कि वह सही जगह पर आया है या नहीं। इसी भ्रमित अवस्था में वह कभी एक घर पीछे या दो घर आगे चला जाता है और सही स्थान पर नहीं पहुँच पाता।

(घ) इन कथनों का यह अभिप्राय है कि महीनों बाद लौटकर आना।

(ङ) कवि ने इस कविता में समय की कमी की ओर इसलिए संकेत किया है क्योंकि आकाश में बादल घिर आए हैं और कभी भी वर्षा हो सकती है।

(च) इस कविता में शहरों की इस विडंबना की ओर संकेत किया गया है कि अपनेपन का भाव सर्वत्र समाप्त हो गया है। कोई किसी को नहीं पहचानता। सब अपने आप में सिमटे हुए हैं। उन्हें किसी के बारे न तो जानने की इच्छा है और न अपने बारे में बताने की। सब अपने द्वारा बनाए गए खोल में सिमटे रहना चाहते हैं। शहर लगातार फैलते जा रहे हैं। पुराने परिवेश की पहचान समाप्त होती जा रही है। जो कल था, वह आज नहीं है और जो आज है, वह कल नहीं होगा। पुरानी पहचान तो समाप्त ही हो गई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

प्रश्न 2.
व्याख्या कीजिए –
(क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
उत्तर :
उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।

योग्यता- विस्तार –

प्रश्न :
पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी महीनों के नाम क्रम से लिखिए।
उत्तर :
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भादों, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

(ख) खुशबू रचते हैं हाथ –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘खुशबू रचने वाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में और कहाँ-कहाँ रहते हैं ?
(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है ?
(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ ?
(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है ?
(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
(क) खुशबू रचने वाले हाथ अत्यंत दयनीय दशा में कई गलियों के बीच और कई गंदे नालों को पार करने के बाद कूड़े-करकट की बदबू के बीच बसी हुई एक गंदी बस्ती में रहते हैं। वहाँ की बदबू से लोगों के सिर फटने लगते हैं, परंतु वे वहीं रहने के लिए विवश हैं।

(ख) कविता में छह तरह के हाथों की चर्चा हुई है जो बच्चों, जवानों और बूढ़ों के हैं। ये हाथ हैं- उभरी नसों वाले हाथ घिसे नाखूनों वाले हाथ, पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ, जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ और ज़ख्म से फटे हुए हाथ।

(ग) कवि ने यह इसलिए कहा है क्योंकि ये लोग गंदगी तथा बदबू बस्ती में रहते हुए भी अपने हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं वहाँ का माहौल सारी दुनिया की गंदगी और बदबू से भरा हुआ होता है।

(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का चित्रण करते हुए यह बताना है कि खुशबू बनाने वाले स्वयं किस प्रकार नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। समाज को उनके लिए भी कुछ करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

प्रश्न 2.
व्याख्या कीजिए –
(क) (i) पीपल के पत्ते – से नए-नए हाथ
जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ
(ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है। इसका क्या कारण है ?
(ग) कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है ?
उत्तर :
(क) उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।
(ख) कवि ने मेहनत करने वाले निर्धन लोगों, उनकी बस्तियों, टोलों, अगरबत्तियों आदि का वर्णन इस कविता में किया है जो देश की बड़ी जनसंख्या और परिवेश का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए कवि ने ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है।
(ग) कवि ने हाथों के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया है, वे हैं – उभरी नसों वाले, घिसे नाखुनों वाले, पीपल के पत्ते से नए-नए, जूही की डाल से खुशबूदार, गंदे कटे-पिटे, जख्म से फटे हुए।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न :
अगरबत्ती बनाना, माचिस बनाना, मोमबत्ती बनाना, लिफाफ़े बनाना, पापड़ बनाना, मसाले कूटना आदि लघु उद्योगों के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘नए इलाके में’ कविता में नगरीय बोध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जनसंख्या बढ़ती जा रही है। नगरों की ज़मीन कम पड़ती जा रही है और ये गाँवों की ओर पसरते जा रहे हैं। गाँवों-कस्बों में अपनेपन की भावना अधिक होती है। सबकी अपनी एक पहचान होती है लेकिन जब वहाँ नगर फैल जाते हैं तब सब अपनी पहचान खो देते हैं। सारा वातावरण ही अनजाना-सा लगने लगता है। स्थान भी पराया और लोग भी पराये। कोई किसी को नहीं पहचानता। पड़ोसी को पड़ोसी का पता नहीं तो भला किसी पराये का क्या पता होगा। सब अपने आप में सिमटे हुए होते हैं। कोई पराया आदमी तो वहाँ पहुँचकर बेहाल – सा हो जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

प्रश्न 2.
‘खुशबू रचते हैं हाथ’ में निहित विडंबना को प्रकट कीजिए।
उत्तर :
अगरबत्ती बनाने वाले नगरों, कस्बों और बस्तियों से दूर गंदे स्थानों पर रहकर तरह-तरह की सुगंधियों से युक्त अगरबत्तियाँ बनाते हैं। स्वयं को इन असहायों से अलग रखने वाले तथाकथित सभ्य जब अगरबत्तियाँ जलाते हैं, परमात्मा को प्रसन्न करने की कामना करते हैं या अपने परिवेश को सुवासित करते हैं तब वे एक बार भी नहीं सोचते कि इन्हें बनाने वाले कौन हैं? कैसे हैं? वे किस हालत में रहते हैं ?

प्रश्न 3.
कवि नए इलाकों में अपना रास्ता क्यों भूल जाता है ?
उत्तर :
कवि नए बस रहे इलाकों की बात करता है जहाँ प्रतिदिन नई इमारतें बनती दिख रही हैं। इससे कवि अपना पुराना रास्ता भूल जाता है क्योंकि इन नए इलाकों में उसके मंजिल तक पहुँचाने के लिए बनाए गए निशान खो गए हैं। नया रास्ता उसे समझ में नहीं आता है, इसलिए वह रास्ता भूल जाता है।

प्रश्न 4.
कवि किसके माध्यम से जीवन के किस रहस्य की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
कवि नए बसते इलाकों के माध्यम से जीवन और संसार में परिवर्तनशीलता के नियम की बात कर रहा है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। संसार में प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है। जो पहले था अब वह वैसा नहीं है और जो अब है, वह वैसा नहीं रहेगा। परिवर्तन ही जीवन का नाम है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

प्रश्न 5.
कवि को अपनी स्मृतियों पर भरोसा क्यों नहीं रहा है ?
उत्तर :
कवि को अपनी स्मृतियों पर भरोसा इसलिए नहीं रहा है क्योंकि जीवन में हर पल पुराना नए रूप में बदल रहा है। वर्षों पहले की पहचान अब धोखा देने लगी थी। नया बनने के कारण पुराने पहचान चिह्न व्यर्थ सिद्ध होने लगे हैं। उसे मुड़ना कहीं और होता है और मुड़ कहीं और जाता है। रात-दिन बनती-गिरती इमारतों ने उसकी यादों को धोखे में डाल दिया है।

प्रश्न 6.
कवि परिवर्तन से परेशान क्यों है ?
उत्तर :
कवि परिवर्तन और अपनी स्मृतियों से परेशान है। उसके पास समय कम है। परिवर्तन के कारण उसे कोई पहचानता नहीं है और वह किसी को पहचान नहीं पा रहा है। आकाश से पानी बरसने को तैयार है। वह सोच रहा है कि कोई उसे पहचान ले, पुकार ले और वह उस नए इलाके में फिर पुरानी पहचान प्राप्त कर ले।

प्रश्न 7.
‘खुशबू रचने वाले हाथ’ किस जगह रहते हैं ?
उत्तर :
‘खुशबू रचने वाले हाथ’ दुनिया को खुशबू देने के लिए अगरबत्तियाँ बनाते हैं। ये लोग दूसरों को खुशबू देकर स्वयं गंदगी में रहते हैं। इनके घर छोटी-छोटी बस्तियों में होते हैं। वहाँ कूड़े-करकट का ढेर लगा रहता है। इनके घरों के पास गंदे – बदबूदार नाले गुज़रते हैं।

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प्रश्न 8.
अगरबत्तियाँ बनाने में कैसे-कैसे लोग काम करते हैं ?
उत्तर :
अगरबत्तियाँ बनाने में छोटे-बड़े और जवान सभी प्रकार के लोग लगे रहते हैं। कवि ने हाथों की पहचान के माध्यम से उन लोगों का वर्णन किया है। जैसे ‘पीपल के नए-नए पत्ते से हाथ’ अभिप्राय छोटे बच्चों के सुकोमल हाथ से है जो अगरबत्ती बनाने का काम करते हैं। नवयुवतियों के हाथों को जुही की डाल कहा है। बूढ़े लोगों के हाथ गंदे, कटे-पिटे और जख्मों से फटे हुए हैं।

नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – अरुण कमल का जन्म 15 फरवरी, सन् 1954 ई० को बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इन्हें अध्ययन-अध्यापन के अतिरिक्त काव्य लेखन तथा अनुवाद कार्य में विशेष रुचि है। इन्हें साहित्य अकादमी तथा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

रचनाएँ – अरुण कमल की काव्य रचनाएँ हैं – अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में और पुतली में संसार। ‘कविता और समय इनकी आलोचनात्मक रचना है। इन्होंने ‘मायकोव्यस्की की आत्मकथा’ और ‘जंगल बुक’ का भी हिंदी में अनुवाद किया है तथा हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का ‘वॉयसेज़’ नाम से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है।

काव्य की विशेषताएँ – अरुण कमल की कविताओं का मुख्य स्वर आम आदमी के जीवन की विभिन्न विसंगतियों को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत करना है। इनकी रचनाओं में वर्तमान अव्यवस्था के विरुद्ध तीव्र आक्रोश का स्वर सुनाई देता है। इनकी कामना है कि समाज में मानवीय मूल्यों पर आधारित व्यवस्था का निर्माण हो। इनकी काव्य-भाषा अत्यंत सहज तथा व्यावहारिक खड़ी बोली है, जिसमें देशज शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।

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कविताओं का सार :

1. नए इलाके में –

अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि जीवन में सब कुछ परिवर्तनशील है। कवि नए बसते हुए क्षेत्रों में जाकर अक्सर रास्ता भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन कोई-न-कोई नया मकान बन जाता है। वह उन निशानियों को ढूँढ़ता रह जाता है जिनके सहारे उसने अपनी मंजिल पर जाना था। प्रतिदिन बदलने वाले इस क्षेत्र में उसकी स्मृतियाँ भी उसे धोखा दे जाती हैं और वह जहाँ जाना चाहता है उससे दो घर आगे या पीछे पहुँच जाता है। उसे लगता है कि अब तो हर घर का दरवाजा खटखटा कर पूछना पड़ेगा कि क्या यही वह घर है जहाँ उसने जाना था अथवा कोई उसे पहचान कर ही पुकार लेगा कि इधर आओ, तुमने यहाँ आना था।

2. खुशबू रचते हैं हाथ –

‘खुशबू रचते हैं हाथ’ कविता में अरुण कमल ने समाज में व्याप्त विसंगतियों का चित्रण करते हुए बताया है कि जो लोग समाज को सुंदर बना रहे हैं, समाज उन्हें ही अभाव और गंदगी में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश कर रहा है। ये लोग सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते हैं परंतु इन्हें अपना जीवन नारकीय स्थितियों में व्यतीत करना पड़ता है। इनके घर के आस-पास कूड़े-करकट के ढेर लगे हुए हैं। नालियों से बदबू आती रहती है। मेहनत कर-करके इनके शरीर कमज़ोर हो गए हैं। दुनिया की सारी गंदगी के बीच में रहकर भी ये लोग दुनियावालों के लिए सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते रहते हैं।

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व्याख्या :

(क) नए इलाके में –

1. इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था इक मंज़िला
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता

शब्दार्थ : इलाका – क्षेत्र। ताकता – देखता। ढहा – गिरा हुआ। ठकमकाता – धीरे-धीरे, डगमगाते हुए।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नई बसने वाली बस्तियों में प्रतिदिन होने वाले परिवर्तनों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जब भी मैं इस नई बस्ती में आता हूँ, प्रायः रास्ता भूल जाता हूँ। जिन निशानियों के आधार पर मुझे अपनी मंजिल पर जाना होता है वे पुराने निशान मिट चुके होते हैं, क्योंकि रोज नए-नए मकान बन जाते हैं और बस्ती का नक्शा बदल जाता है। वहाँ मैं पीपल का पेड़ और पुराना गिरा हुआ मकान ढूँढ़ता हूँ। वहीं एक खाली ज़मीन के टुकड़े के पास से मुझे मुड़ना था पर वह भी मुझे नहीं दिखाई देता। जिस घर में मुझे जाना था वह वहाँ दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का इक मंजिला मकान था। पर जब वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता तो मैं अपने आप को उस मकान से एक घर पीछे या उस मकान से दो घर आगे डगमगाते हुए चलता अनुभव करता हूँ।

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2. यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर ?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

शब्दार्थ : स्मृति याद। अकास आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नई बनती हुई बस्तियों की परिवर्तनशीलता पर विचार करते हुए स्पष्ट किया है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता, निरंतर परिवर्तन होता रहता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि नई बनने वाली बस्तियों में प्रतिदिन कुछ-न-कुछ नया बनता रहता है तथा पुराना कम होता जाता है। यहाँ पुरानी यादों के सहारे कुछ नहीं ढूँढ़ा जा सकता क्योंकि यहाँ होने वाले नव-निर्माण के कारण पुरानी निशानियाँ मिट जाती हैं। जैसे वसंत में कहीं गया व्यक्ति पतझड़ में लौटकर आए हो अथवा बैसाख का गया भादों में लौटे तो उसे सब कुछ बदला-बदला नज़र आता है। इसलिए सही मकान तलाश करने का अब तो केवल यही उपाय है कि हर घर का दरवाज़ा खटखटाकर पूछा जाए कि क्या यह वही घर है जहाँ उसको जाना है ? कवि को लगता है कि आकाश में बादल घिर आए हैं तथा वर्षा होने वाली है। लगता है कि कोई उसे पहचानकर पुकार लेगा कि इधर आ जाओ, यहीं तुम्हें आना था।

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(ख) खुशबू रचते हैं हाथ –

1. कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

शब्दार्थ : टोले – बस्ती। खुशबू – सुगंध। रचते – बनते।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि बताता है कि सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाने वाले कैसे गंदे वातावरण में रहते हैं। कवि कहता है कि कई गलियों के बीच तथा कई गंदे नालों के पार कूड़े-करकट के ढेरों की बदबू से सने हुए वातावरण की एक बस्ती के अंदर रहने वाले लोग अपने हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

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2. उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ
जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
जख़्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

शब्दार्थ : खुशबूदार – सुगंध से युक्त। जख़्म – घाव, चोट।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि इनमें से कई लोगों के काम करने से हाथों की नसें उभर आई हैं तो कुछ के हाथों के नाखून घिस गए हैं। कुछ कोमल पीपल के पत्ते से हाथों वाले बच्चे हैं जो यह काम कर रहे हैं। कुछ यौवन से संपन्न युवतियाँ भी यही कार्य कर रही हैं जिनके हाथ जूही की डाल जैसे सुगंधित हैं। बूढ़े भी अपने गंदे और कटे-पिटे हाथों से यही कार्य करते हैं तथा घायल हाथों से भी लोगों को यही काम करना पड़ रहा है। ये सभी खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

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3. यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की
मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी
खुशबू रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

शब्दार्थ : मुल्क – देश मशहूर प्रसिद्ध। रचना – बनाना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि ऐसे ही गंदे वातावरण तथा बदबूदार गलियों में देश की प्रसिद्ध सुगंधित अगरबत्तियाँ बनती हैं। इन्हीं गंदे मुहल्लों में रहने वाले गंदे लोग केवड़ा, गुलाब, खस और रात की रानी की सुगंध वाली अगरबत्तियाँ बनाते हैं। ये लोग दुनिया की सबसे गंदी बस्तियों में रहकर अपने हाथों से दुनिया के लिए सुगंध से युक्त अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 अग्नि पथ

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 अग्नि पथ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 अग्नि पथ

JAC Class 9 Hindi अग्नि पथ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) कवि ने ‘अग्नि पथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है ?
(ख) ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है ?
(ग) एक पत्र – छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने ‘अग्नि पथ’ मनुष्य के जीवन में आनेवाले संघर्षों और कठिनाइयों से भरे हुए दिनों के प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है।

(ख) ‘माँग मत’ शब्द के बार-बार प्रयोग से कवि यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मनुष्य कभी किसी से कोई सहायता न माँगकर अपनी कठिनाइयों का समाधान स्वयं ही करेगा। ‘कर शपथ’ शब्दों की पुनरावृत्ति से कवि मनुष्य को कसम खाने के लिए कहता है कि वह कर्मठतापूर्वक बिना थके अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जाएगा। ‘लथपथ’ शब्द के बार-बार प्रयोग से कवि यह सिद्ध करना चाहता है कि थका हुआ तथा खून-पसीने से सना हुआ होने पर भी मनुष्य अपने जीवन संघर्ष के मार्ग पर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर होगा।

(ग) इस पंक्ति के माध्यम से कवि मनुष्य को यह समझाता है कि यदि जीवन संघर्ष में कोई कठिनाई आती है तो उसका सामना भी उसे स्वयं ही करना चाहिए तथा किसी से किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं लेनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
(ख) चल रहा मनुष्य है
अश्रु- स्वेद – रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
उत्तर :
(क) कवि ने मानव से आग्रह किया है कि वह जीवन-मार्ग पर अग्रसर होते हुए कभी भी राह में रुकेगा नहीं। वह निराश नहीं होगा। कर्म से मुँह नहीं मोड़ेगा। वह निरंतर आगे बढ़ता जाएगा। तब तक वह आगे बढ़ेगा जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेता।
(ख) मनुष्य जीवन की राह में आगे बढ़ रहा है। वह आँसुओं, पसीने और खून से लथपथ है फिर भी आगे बढ़ रहा है। मंज़िल प्राप्त न कर पाने के कारण वह निराश हुआ था। उसने आँसू बहाए थे, पसीना बहाया था ताकि मंज़िल की प्राप्ति कर सके। जीवन संघर्ष में वह खून से लथपथ हुआ पर उत्साह नहीं त्यागा। वह आँसू-पसीने- खून से लथपथ मंजिल को प्राप्त करने के लिए बढ़ता ही गया।

प्रश्न 3.
इस कविता का मूलभाव क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘अग्नि पथ’ कविता का मूल भाव मानव को जीवन के कठोर मार्ग पर निरंतर चलते रहने को प्रेरित करना है ताकि वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सके। जीवन की राह पर चलते हुए हार जाना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन हारकर काम त्याग देना बुरा है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सुखों की प्राप्ति की कामना करता है पर केवल कामना करने से इच्छाएँ पूरी नहीं हो जातीं। उनके लिए पसीना बहाना पड़ता है, संघर्ष करना पड़ता है और खून बहाना पड़ता है। मानव ने ऐसा ही किया है तभी तो वह अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है। कवि ने प्रेरणा दी है कि हम जहाँ भी हैं उससे संतुष्ट न हों। हम आगे बढ़ें। निरंतर आगे बढ़ना ही जीवन है। आँसू, पसीने और खून से लथपथ होने पर भी लगातार आगे बढ़ते रहने चाहिए।

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योग्यता-विस्तार –

प्रश्न :
‘जीवन संघर्ष का ही नाम है’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा का आयोजन कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न :
‘जीवन संघर्षमय है, इससे घबराकर थमना नहीं चाहिए’ इससे संबंधित अन्य कवियों की कविताओं को एकत्र कर एक एलबम
बनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi अग्नि पथ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने मानव से किस बात की शपथ लेने का आग्रह किया है और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने मानव से आग्रह किया है कि वह जीवन की राह में आगे बढ़ता हुआ कभी निरुत्साहित नहीं होगा। जीवन की राह सरल नहीं है, यह बहुत कठोर है, पथरीली है पर इस पर आगे चलते हुए वह कभी थकान महसूस नहीं करेगा-न शारीरिक थकान और न मानसिक थकान। वह रास्ते में कभी नहीं रुकेगा। रुकना ही तो मौत है, जीवन की समाप्ति है। संभव है कि उसे जीवन की राह कठिन लगे और वह अपनी दिशा बदलना चाहे पर वह ऐसा न करे। हर रास्ता एक-सा ही कठिन कठोर है। वह वापिस न मुड़े बल्कि निरंतर आगे बढ़े। कवि मानव से इसी कर्मठता और गतिशील जीवन की शपथ लेने का आग्रह करता है।

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प्रश्न 2.
‘अग्नि पथ’ कविता की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
ओज गुण से परिपूर्ण कविता की भाषा सामान्य नहीं है। उत्साह भाव से परिपूर्ण शब्दावली में प्रेरणा है जो मानव को गतिशील रहने के लिए प्रेरित करती है। वीर रस विद्यमान है। कवि ने कुछ शब्दों को बार-बार दोहराया है जिनके द्वारा वह अपनी बात पर बल देकर मानव को लड़ना सिखाता है। सीधे-सादे तत्सम-तद्भव शब्दों में प्रतीकात्मकता है। गतिशीलता का अनूठा गुण कवि की भाषा में विद्यमान है।

प्रश्न 3.
‘अग्नि पथ’ किसका प्रतीक है ?
उत्तर :
अग्नि-पथ मानव जीवन के मार्ग में आने वाली तरह-तरह की कठिनाइयों और मुसीबतों का प्रतीक है। जीवन एक संघर्ष है। इस संसार में किसी का भी जीवन सरल नहीं है। सभी की समस्याएँ भिन्न-भिन्न हैं जिनका सामना उन्हीं को करना होता है जिनके लिए वे समस्याएँ हैं, यही अग्नि पथ है।

प्रश्न 4.
वृक्ष जीवन में किसका बोध कराते हैं ?
उत्तर :
वृक्ष जीवन में सुखों का बोध कराते हैं। जीवन में संघर्ष के समान दूसरों से मिलने वाले सहारे वे वृक्ष हैं, जिनकी छाया में हम पल-भर के लिए विश्राम करते हैं, अपने जीवन के सुख ढूँढ़ते हैं। इनसे हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।

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प्रश्न 5.
‘थकेगा’ शब्द से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कविता में ‘थकेगा’ शब्द विशेष अर्थ को प्रकट करता है। थकान दो प्रकार की होती है – शारीरिक और मानसिक। शारीरिक थकान कुछ विश्राम के बाद मिट जाती है पर मानसिक थकान व्यक्ति की दिशा बदल देती है। कवि नहीं चाहता कि जीवन में संघर्ष के मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति थककर अपने जीवन के मार्ग को बदल दें।

प्रश्न 6.
‘तू न मुड़ेगा कभी’ में ‘मुड़ेगा’ शब्द में छिपे भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता में कवि ने ‘मुड़ेगा ‘ शब्द का साभिप्राय प्रयोग किया है। जीवन के आरंभ में हम जिस राह पर आगे बढ़ते हैं, शुरू के दिनों में वह राह हमें कठोर और कठिन लगती है। हम सोचते हैं कि इस रास्ते को छोड़कर हम दूसरा पकड़ेंगे तो जल्दी ही मंजिल तक पहुँच जाएँगे। परंतु कवि यह नहीं चाहता है कि हम अस्थिर बुद्धि बनें और बार-बार रास्ता बदलें। इससे यह हो सकता है कि हम अंत में कहीं भी न पहुँच पाएँ।

प्रश्न 7.
कवि की दृष्टि में महान दृश्य क्या है ?
उत्तर :
कवि की दृष्टि में महान दृश्य यह है कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए निरंतर कठिन परिश्रम कर रहा है। इस तरह से वह अपने जीवन के साथ-साथ संसार का भी भाग्य सँवार रहा है।

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प्रश्न 8.
‘चल रहा मनुष्य है’ से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘चल रहा मनुष्य है’ से कवि का अभिप्राय यह है कि अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा कर्मशील मानव कर्मरत है। वह कठिन परिश्रम में लीन है। वह निरंतर विकास मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। चाहे उसके लक्ष्य की राह में अनेक रुकावटें आएँ, परंतु वह अपने दृढ़ निश्चय और निरंतर आगे बढ़ने की सोच से उन सबको पार करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर रहा है।

प्रश्न 9.
‘अश्रु, स्वेद, रक्त’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘अश्रु’ असहायता, निराशा और पीड़ा के भावों को प्रकट करता है, ‘स्वेद’ परिश्रम अर्थात् कठोर परिश्रम करके निकलने वाले पसीने को प्रकट करता है, जबकि ‘रक्त’ क्रांति, मुकाबले, संघर्ष और जुझारू प्रवृत्ति का प्रतीक है। कोई भी व्यक्ति कुछ प्राप्त न कर पाने से निराश होता है, पीड़ा अनुभव करता है और फिर उस पर विजय प्राप्त करने के लिए मेहनत करता है, पसीना बहाता है कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए अंततः विजय प्राप्त कर अपनी मंजिल पा लेता है।

अग्नि पथ Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – हरिवंशराय बच्चन आधुनिक युग के लोकप्रिय गीतकार हैं। इनका जन्म इलाहाबाद में 27 नवंबर, सन् 1907 को हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम० ए० की उपाधि प्राप्त की थी। कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। सन् 1952 में इंग्लैंड गए। वहाँ उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी भाषा में पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय तक आकाशवाणी में भी कार्य किया। सन् 1955 में इनकी नियुक्ति भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर हुई। सन् 1966 में ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। इन्हें भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ सम्मान से सम्मानित किया था। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। 19 जनवरी, सन् 2003 को इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – ‘बच्चन’ जी ने किशोरावस्था में ही कविता लिखनी प्रारंभ कर दी थी। एम० ए० के अध्ययन काल में इन्होंने फ़ारसी भाषा के प्रसिद्ध कवि ‘उमर खय्याम’ की रूबाइयों का हिंदी में अनुवाद किया। इस अनुवाद के परिणामस्वरूप वे नवयुवकों के प्रिय कवि बन गए। कवि का उत्साह बढ़ गया। तेरा द्वार, मधुशाला, मधुबाला, एकांत संगीत, मधुकलश, निशा- निमंत्रण, रूपरंगिनी, टूटती चट्टानें आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य-कृतियाँ हैं। ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ तथा ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ इनकी आत्म – कथात्मक गद्य कृतियाँ हैं।

काव्य की विशेषताएँ – बच्चन जी की कविता में मस्ती का आलम है। अपनी कविताओं में जीवन संबंधी विविध अनुभूतियों के चित्रण में इन्हें विशेष सफलता प्राप्त हुई है। इनकी कविताओं में जीवन का जो संघर्ष व्यक्त हुआ है, वह परिस्थितियों के भँवर में फँसे मानव को जीवन-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इनके काव्य में प्रेम, सौंदर्य, मस्ती, निराशा आदि सभी अनुभूतियों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। कवि की रसिकता के पूर्ण दर्शन ‘मधुशाला’ में होते हैं। इस रचना में मात्र मस्ती का ही वर्णन नहीं, अपितु क्रांति और विद्रोह का स्वर भी है। इनकी कविता के ऊपर गांधीवाद का भी प्रभाव लक्षित होता है।

बच्चन जी को गीत लिखने में विशेष सफलता प्राप्त हुई है। इनके गीतों में संक्षिप्तता, लयात्मकता तथा संगीतात्मकता का सुंदर समन्वय है। इनकी भाषा सरल और प्रसाद गुण संपन्न है। भाषा पर उर्दू और फ़ारसी के प्रचलित शब्दों का भी प्रभाव है।

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कविता का सार :

‘अग्निपथ’ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। इस कविता में कवि ने मनुष्य को यह प्रेरणा दी है कि जीवन एक संघर्ष है। इससे घबराकर भागना नहीं चाहिए बल्कि संघर्षों का सामना करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए हमें किसी से सहारा नहीं माँगना चाहिए तथा अपनी मंज़िल की ओर बिना थकान महसूस किए बढ़ते रहना चाहिए। आँसू, पसीने और रक्त से लथपथ होकर भी कर्मठ मनुष्य निरंतर अपने पथ पर आगे ही बढ़ता जाता है। ऐसा कर्मवीर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है।

व्याख्या :

1. अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ !
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र – छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत !
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ !

शब्दार्थ पत्र पत्ता। छाँह – छाया। अग्निपथ कठिनाइयों से भरा रास्ता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘अग्निपथ’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मानव जीवन को संघर्षमय मार्ग बताकर उस पर निरंतर गतिमान रहते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यह जीवन संघर्षमय है। अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते हुए मनुष्य को रास्ते में चाहे कितने ही सुख रूपी घने वृक्ष हों उनसे एक पत्ते के बराबर भी सुख रूपी छाया का आश्रय नहीं लेना चाहिए, अपतु जीवन के संघर्ष – पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

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2. तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी ! – कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ !

शब्दार्थ : थकेगा – थकना। थमेगा – रुकना। शपथ झकसम।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘अग्नि पथ’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य को निरंतर संघर्षशील रहकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि संघर्ष पथ पर चलने वाले मनुष्य का उत्साहवर्धन करते हुए कहता है कि जीवन के संघर्षपूर्ण मार्ग पर चलते हुए तुम कभी मत थकना और न ही कभी रुकना। तुम पीछे मुड़कर भी कभी न देखना। तुम कसम खाओ कि तुम निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओगे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 अग्नि पथ

3. यह महान दृश्य है –
चल रहा मनुष्य है
अश्रु- स्वेद – रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ !
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

शब्दार्थ : अश्रु आँसू। स्वेद पसीना। रक्त – खून। लथपथ – सना हुआ।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘अग्निपथ’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य को निरंतर संघर्षशील रहकर अपनी मंज़िल प्राप्त करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि मनुष्य के निरंतर संघर्षरत रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने के दृश्य का वर्णन किया है। वह कहता है कि यह कितना महान दृश्य है कि मनुष्य आँसुओं, पसीने और रक्त से सना हुआ होने पर भी अपने जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जा रहा है।

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

JAC Board Class 10th English Analytical Paragraph Writing

JAC Class 10th English Analytical Paragraph Writing Textbook Questions and Answers

An analytical paragraph is a body paragraph. It presents evidence in order to prove the thesis. In it, specific words, phrases or ideas are found as evidence. There is specific connection between the evidence and the topic sentence. Its main goal is to explain something bit by bit to enhance understanding. Analytical paragraph is written about the analysis of a text, a process or an idea. Map is actually a diagram that displays information visually. It can be created using pen and paper. The rules for creating a map are simple.

  • Write the subject in the centre of paper.
  • Write meaningful keyword to explain them.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

CHART:

You must have seen graphs, charts, etc., in the newspapers, magazines, books, etc. The main purpose of chart is to show numerical facts in visual form so that they can be understood quickly, easily and clearly.

These are actually visual representation of data collected.
There are various methods through which data can be presented quickly.

1. Bar chart: Bar chart is one of the most popular and commonly used methods of presenting data. It makes the comparative study of data easy. It consists of a group of bars which are equi-distance from each other. Bar charts are read by the measurement of the length or the height of the bars. It is used for the clarity of presentation. The example is as follows:
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 1
2. Pie chart: Pie chart is used to compare a part of whole. It is used to represent a circular representation of data. Each part is in proportion to its share of the whole data. In circular figure, it is divided into different sectors or segments.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 2
3. Tabular presentation: It is one of the most common forms of data presentation.
Production of steel and sales in rupees

Year (Production) Sales (in Rupees)
2015 1500 tons 3 crore
2016 1650 tons 4.5 crore
2017 1725 tons 5.10 crore
2018 1850 tons 6.3 crore
2019 1990 tons 6.75 crore

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

4. X-Y charts: X-Y charts are represented on x-y planes. In this type of charts, the data are represented on x-y planes. In it, one axis represents one or more variable while the other axis represents an another variable. The example is as follows:
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 3
5. Histogram: Histogram is a bar graph that shows data in intervals. It can be represented in the following manner.

Weights (kg) 20-30 30-40 40-50 50-60 60-70
No. of persons 0 8 10 16 18

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 4
Vertical Bar Diagram: In the table given, the birth rate in India has been given according to census survey of different years. Put the information in the form of a vertical simple bar diagram.

Year 1950-60 1961-70 1971-80 1981-90 1991-2000
Birth Rate 43 33 29 27 25

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 5
In the bar diagram discussed above, the birth rate in India has been explained in detail. The birth rate in India in 1950-60 was 43 while in 1961-70, decreased up to 33. As the year advanced, the birth rate of India decreased substantially and in 1971-80, it was 29. While in 1981-90, it decreased up to 27 and in 1991-2000, it came to its lowest, i.e., 25.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Horizontal Bar Diagram:
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 6
In the given diagram, the category of students and the marks obtained by them have been shown. The students of 19 category obtained 250 marks while the category of B obtained 200 marks. The category of students C obtained 150 marks, while the D category of students obtained 100 marks.

Analytical reports: Analytical reports are one of the most important business intelligence components. It is a type of business report that uses qualitative and quantitative company data to analyse as well as evaluate a business strategy or process. Analytical reporting is based on historical data statistics and can also deliver predictive analysis of a specific issue.

Hints for data interpretation:

  • Go through the data carefully. Carefully calculate or interpret things.
  • Draw logical conclusion.
  • Interpret the data in a logical and systematic way.
  • Do not repeat unnecessary details.
  • Do not interpret or calculate things which are not mentioned in the data.
  • Do not exaggerate.
  • Write whatever is depicted or presented in data.

Line Graph

A set of statistical data presented on a graph paper is called a graph. But while presenting the data on a graph paper we get different points. Each point corresponds to a value of statistical series. A line graph has X and Y axis. All line graphs must have a title and a key. All the lines must be connected to the data points. The lines on a line graph can go in upward direction and in downward direction. Line graphs are able to answer the questions pertaining to data. A line graph may also be referred to as a line chart. Line graph can be used to compare different events, situations and information.

There are two axes of a line graph. The x-axis of a graph shows the occurrences and the categories being compared over time and the y-axis represents the scale. All the line graphs must have a title. It provides a general overview of what is being displayed. A line graph represents the event, situation and information being measured in due course of time.

Questions (Solved)

Question 1.
Observe the given graph and analyse the data. Monthly production of an iron factory in(Tons) and sales in (Lakhs) rupees.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 7
Answer:
In the given graph the monthly production and sales of factory are shown. In the month of January, the production of company was 5,000 tons while the sale was 7,50,000 rupees. In February, the production increased more than half and sales also went upto 10,000,00 rupees. But there was a sharp decline in the production and even sales of iron in the month of March. In the month of April, the production and sale of iron increased at a tremendous pace. From April to May the sale and production of the company also increased but from May to June the sale and production increased slightly. So, from the above graph it can be inferred that there was upward and downward trend in both the sale and production of the iron.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Question 2.

Years

 

Depts. Number of workers
Marketing Production Official Accounts HR
2014 15 125 5 10 4
2015 20 150 10 10 6
2016 25 160 15 12 3
2017 30 125 8 7 8
2018 35 105 12 06 9
2019 40 170 5 4 5
2020 42 180 08 4 14

Study the table carefully and give detailed description of the given data logically.
Answer:
The figures in the data show that maximum number of workers were engaged in production and the minimum number of employees were engaged in Human Resource (HR) dept. The numbers of workers engaged in offices were the same in 2014 and 2019 respectively. The number of workers in production increased substantially except in 2017 and 2018. The number of workers in marketing increased substantially as the year advanced.

Question 3.

Years

 

Production of different types ol bike (in thousands)
Kawasaki Suzuki Yamaha ZF-5
2008 125 130 131 135
2009 140 120 125 120
2010 130 115 119 118
2011 135 113 120 117
2012 145 118 121 112
2013 150 121 120 109

Study the table carefully and answer the following questions.
(i) The production of which type of bike decreased substantially?
Answer:
The production of ZF-5 bike decreased substantially.

(ii) Which type of bike witnessed more production?
Answer:
Kawasaki bike witnessed more production.

(iii) How much production of Kawasaki increased between 2012-13?
Answer:
It increased approximately 3%.

(iv) In which year do you find substantial increase in the production of all types of bike?
Answer:
In 2012, we find substantial increase in the production of all types of bike.

Question 4.
Given below is the turnout of voters including male and female of Maharashtra from 1990 to 2020. Interpret the data.

Election years Voters (%) Male (%) female (%)
1990 48.6 45.2 38.2
1995 50.5 42.5 60.3
2000 47.5 58.2 54.2
2005 55.2 50.3 52.0
2010 55.6 52 49.1
2015 58.5 56.4 53.2
2020 60 62.3 44.2

Answer:
The following details have been discussed through tabular presentation. It shows the details of turnout of voters in Maharashtra from 1990 to 2020. In the year 2020, the turnout of voters was 60%. The percentage of male voters was 62.3%. In the year 2020, and female voters was in maximum in 1995. The turnout of male voters increased subsequently from the year 1990 to 2020. In 2000, the turnout of voters was minimum, i.e., 47.5%. The turnout of female voters was least in 1990. So the data mentioned in the table shows that the voters turnout increased in maximum number of years. But in the case of female voters, it fluctuated; sometimes it increased and sometimes it decreased.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Question 5.
Observe the given figure carefully. It shows one weeks’ sales figures of cars of different companies in percentage. Also, interpret the data in detail.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 8
Ans: The above details are of number of cars sold by different auto-companies. The total number of cars sold in a particular week is 10,000. the sales is divided and presented on the pie-chart in terms of swept area according to the percentage sale of a respective car manufacturing company. The exact number of different categories of cars is as follows:
(i) The exact number of the cars of Tata Motors is 5,000.
(ii) The number of cars sold by Maruti is 2,000.
(iii) The number of cars sold by Hyundai is 1,500.
(iv) The number of cars sold by Toyota is 1000.
(v) The number of cars sold used by Ferrari is 200.
(vi) The number of cars sold by Lamborghini is 300.

Question 6.
Study the pie-chart showing the % of pass out students of an engineering college from different states. Study the data and highlight the main trends that emerge out of your study in detail.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 9
Answer:
The pie-chart dearly exhibits that the pass out percentage of Delhi students is the highest. The minimum pass% of students is from Maharashtra. After Delhi, the maximum percentage of pass out students is from Uttar Pradesh. Later on the percentage of pass out students is from Bihar. The pass out % of West Bengal and Madhya Pradesh is same. So, it can be said that the students of Delhi are more intelligent and hardworking.

Question 7.
Railway carriage charges for different cities.

Cities Mumbai Pune Bengaluru Bhubaneshwar
Bengaluru 30 35 40 48
Bhubaneshwar 35 33 44 47
Mumbai 43 53 58
Pune 55 53 44 60

Read the given table showing courier charges (₹) for sending 1 kg parcel from one city to the other. Interpret the given details.
Answer:
The above table shows railway carriage charges for sending 1 kg parcel from one city to another. Mumbai, Pune, Bengaluru and Bhubaneshwar are mentioned in the table. The charges for sending parcel from Bengaluru to Mumbai is the least. The highest charges for sending parcel is from Pune to Bhubaneshwar. If the cost per kg is assumed to be directly proportionate to the distance between the cities, then it can be inferred that the distance between Pune and Bhubaneshwar is the most.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Question 8.
Study the pie-chart and explain it in detail. The ABC Publishers invested crore on all the items.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 10
Answer:
From the above details, it can be inferred that ABC publishers invested a major portion of the amount, i.e., 25 lakh on paper cost. The cost incurred on binding and printing was almost the same, i.e., 20 lakh each on both heads. About 15 lakh was invested on the royalty of authors. The promotion cost and miscellaneous cost was almost the same. It was l0 lakh on each head. So, it can be said tiat the ABC Publishers spent this amount on all the heads concerning to publishing sector.

Question 9.
Study the pie-chart given below and explain it in detail. In the year 2015, Regional Market shares value at 100 crore.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 11
Answer:
In the above pie-chart, the market shares of a region in 2015 have been explained in detail. In the year 2015, on transport sector 50% amount, i.e., ₹50 crore was spent. About 25 crore rupees was spent on industry sector 14% amount i.e., ₹14 crore was spent on household expenditure. In comparison to household sector 9% amount, i.e., ₹9 crore was spent on agriculture. Only 2%, i.e. about 2 crore was spent in miscellaneous expense. So, it can be said that apart from others (Miscellaneous expenses) the market value of agriculture sector was the least.

Question 10.
The chart given below explains the ten causes of deaths in India. It includes the people of all ages due to various diseases. Using the information given in the chart, interpret the data accordingly and rationally. No additional information should be added in the answer.
Ten causes of Death
(People of all age groups)

Causes of Death Male (%) Female (%) Total (%)
1. Heart Disease 18.3 15.9 17.5
2. Respiration Disease 10.1 8.3 9.2
3. Dairrhoeal Disease 7.5 8.9 9.1
4. Fungal Disease 5.4 3.2 4.2
5. Tuberculosis 7.2 5.3 6.4
6. Malignancy 3.9 3.3 3.6
7. Senility 5.0 6.1 5.5
8. Fractures and Injuries 4.0 2.8 3.4
9. Epidemic Disease 8.9 7.5 6.7
10. Unintentional injuries 4.3 4.4 4.3

Answer:
The chart mentioned above shows the data regarding the top ten causes of deaths in India. It is quite evident from the data that most deaths occurred due to heart diseases in India. About 17.5% of men and women died due to heart diseases in India. The males (18.3) and female (15.9) died due to heart diseases. As the data shows, due to respiratory diseases the number of deaths in India was 9.2 in total. Again males dominate over the female in respiration disease, i.e., 10.1% and 8.3% respectively. But the sorry state of affairs is that more female, i.e., 8.9% suffered due to diarrheal diseases. This disease was seen less in male rather thin a females population. Due to fractures and injuries less number of people die. Due to epidemic diseases also, the number of deaths among male was 8.9% while among women it was 7.5%. Unintentional injury was also one of the diseases by which the female were more affected than the males. So, these were the factors that led to the death of the males as well as the females.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Question 11.
The chart given below shows the Index of Markets of various segments of the Indian industries using the information given in the chart, interpret the data in detail and rationally.

Last year(2019) This year (2020)
Real Estate 15,969.01 17,731.04
IT Sector 7,899.02 8,333.05
FMCG 16,764.02 19,081.39
Print and Technology 6,045.03 5,039.04
Science & Tech 8,361.05 7,089.05
Petroleum 18,079.0 19,069.5
FCI 8,237.0 7,8,32.5
Education 5,433.1 6,339.01
Private Sector 9,971.9 9,999.2

Answer:
The given Index shows a mixed trend. In the Real Estate Sector, there was an upward trend in the year 2020 in comparison to 2019. The main jump was seen in FMCG Sector. But in Print and Technology, there was downward trend. It decreased approximately upto 1000 crore. The mixed trend was shown in the given details. In private sector, there was slight jump in comparison to the last year. In Print Technology, science and technology and FCI, there was downward trend. The upbeat mood was seen only in FMCG sector. So, it can be said that in some sectors, there was a boo but in some sectors there was a drop.

Question 12.
Observe the given line graph and analyse the data.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 12
Answer:
The given graph shows the population of men and women in a village through line graph. In the year 2012, the population of men in a village was 12,000 while the population of women – was 10,000. In 2013, the population of men increased approximately half of the population
and women increased about 3%. But the population decreased in 2014 and increased marginally in 2015. But 2015 onward, the population of men increased substantially in all the three years. In 2015, the population of women decreased substantially. But in the year 2016-2017 and 2018 the population of women also increased substantially. The above graph shows the upward and downward trend in both (the number of men as well as women). In years, the population declined while in others the population increased.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Question 13.
Study the given histogram that shows the number of workers of a village corresponding to different range of weekly wages. Interpret the data and explain the main features.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 13
Answer:
The histogram given above shows the number of workers of a village and the distribution of weekly wages. 7 workers were given 5-10 weekly wages while 10 workers were given 15-20 weekly wages, 27 workers were given 35-40 weekly wages. 15 workers were given 35-40 weekly wages. 6 workers were given 40-45 weekly wages. 3 workers were given 45¬65 weekly wages and 2 workers were given 70-80 weekly wages. So, this histogram clearly shows the relation between the number of workers and weekly wages.

There is least difference between the weekly wages of 10-15 and 30-40. The least number of people who were given weekly wages are between 70-80. The maximum number of workers who were given weekly wages were between 25-30.

Question 14.
Study the given histogram that shows distribution of social classes and interpret the data rationally. Also highlight its main features.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 14
Answer:
The histogram mentioned above shows distribution of social classes. The categories of social classes mentioned in the given histogram are: Lower-lower, Lower-middle, upper- lower, lower upper and upper-upper. The least difference is between lower-lower and lower middle social classes. But the main and wide difference lies between the upper-lower and lower -upper classes. The upper-category has the minimum and the upper-lower class has the maximum frequency. It distribution hightlights the main features of the categories of social classes and its frequency.

JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing

Question 15.
See the given image and write an analytical report on this.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 15
Answer:
The above data lays emphasis on healthcare matrices. It combines statistics and historical data. It goes deeper into the analysis of trends. It can serve as a fundamental part of generating future decisions. These are important to run and modify a hospital strategy. The data in healthcare are becoming expansive and increasing the variety of information it provides. It also uses reports in the form of a dashboards so that eveiy analytical information generated has its own measurement and quality of evidence. The average waiting time clearly increases the effectiveness of different hospital departments. The number of patients can explain why some divisions have the bigger amount of waiting time. It therefore proposes a solution to reduce it. It also reduces costs that directly affect the department. This metric is important for the finance department. The holistic view of all the analysis created and presented in this dashboard cell help management to make better decisions. This classification can also serve as an analytical report. It can then be used as road map to a successful hospital strategy.

Question 16.
See the given figure and write an analytical graph analysis on it.
JAC Class 10 English Analytical Paragraph Writing 16
Answer:
This picture shows the trend analysis of an examination at upper level. In it, questions from different segments have been asked. Most of the questions were asked from current affairs segment. The second major area of thrust was economics. Later on, 15 questions were asked from history, 14 questions were asked from polity and 8 questions were asked from science and technology. It is the area from which less number of questions were asked. So, this picture denotes that questions have been asked from almost all the Stearns. And the students will have to lay equal emphasis on all the subjects.

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है –
(अ) सड़क
(स) आभूषण
(ब) मृदभाण्ड
(द) मुहर
उत्तर:
(द) मुहर

2. मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं –
(अ) मोहनजोदड़ो
(स) मिताथल
(ब) बनावली
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(ब) बनावली

3. पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के किस स्थल से हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं?
(अ) धौलावीरा
(स) राखीगढ़ी
(ब) रंगपुर
(द) कालीबंगा
उत्तर:
(द) कालीबंगा

4. थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र क्या कहलाता है?
(अ) नखलिस्तान
(स) पोलिस्तान
(ब) पाकिस्तान
(द) अफगानिस्तान
उत्तर:
(स) पोलिस्तान

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

5. भारतीय पुरातत्व का जनक किसे कहा जाता है?
(अ) जॉन मार्शल
(ब) मैके
(स) दयाराम साहनी
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम
उत्तर:
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम

6. हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत विशाल स्नानागार स्थित
(अ) मोहनजोदड़ो
(ब) कालीबंगा
(स) रंगपुर
(द) चन्हूदड़ो
उत्तर:
(अ) मोहनजोदड़ो

7. मनके बनाने के लिए कौनसी बस्ती प्रसिद्ध थी?
(अ) मोहनजोद
(ब) बणावली
(स) धौलावीरा
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(द) चन्लूदड़ो

8. बालाकोट तथा नागेश्वर किस वस्तु के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं ?
(अ) अस्त्र-शस्त्र
(ब) जहाज
(स) शंख की वस्तुएँ
(द) मृदाभाण्ड
उत्तर:
(स) शंख की वस्तुएँ

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1…………….. प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं।
2. बाजरे के दाने …………. के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
3. भोजन तैयार करने की प्रक्रिया को ………….. धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था।
4. सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ………….. पद्धति में बनाया गया था।
5. विद्वानों के अनुमान से मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग ………….. थी।
6. …………… पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे, जो ………….. तथा क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव लाए।
उत्तर:
1. पुरा वनस्पतिज्ञ
2. गुजरात
3. पत्थर
4. ग्रिड
5. 700
6. यूनान।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जान मार्शल ने 1924 में सिन्धुघाटी में उत्खनन के सन्दर्भ में क्या घोषणा की?
उत्तर:
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा।

प्रश्न 2.
उन दो पुरास्थलों का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पाई समाज द्वारा कृषि के लिए जल संचय किया जाता था।
उत्तर:
(1) अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक पुरास्थल
(2) गुजरात में धौलावीरा नामक पुरास्थल।

प्रश्न 3.
उन दो पुरावस्तुओं का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद् यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए हड़प्पा संस्कृति में बैलों का प्रयोग होता था।
उत्तर:
(1) मोहरों पर किए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ
(2) मिट्टी से बने हल

प्रश्न 4.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डाइरेक्टर जनरल रहे किन्हीं दो पुरातत्त्ववेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) जनरल कनिंघम
(2) आर.ई. एम. व्हीलर।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के सबसे लम्बे अभिलेख में कितने चिह्न हैं ?
उत्तर:
लगभग 26 चिह्न।

प्रश्न 6.
पुरातत्व वैज्ञानिकों के द्वारा खोजे गए हड़प्पा सभ्यता के कोई चार नगरों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • हड़प्पा
  • मोहनजोदड़ो
  • लोथल
  • रंगपुर।

प्रश्न 7.
हड़प्पा स्थलों से किन जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं?
उत्तर:
भेड़, बकरी, भैंस, सूअर, हिरण तथा चढ़ियाल।

प्रश्न 8.
हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा और चावल।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के साधनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुएँ, नहरें तथा जलाशय।

प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन किससे बने होते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के से बने होते थे।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवनों के निर्माण में अधिकतर किस आकार की ईंटों का प्रयोग होता था ?
उत्तर:
सामान्यतः हड़प्पा सभ्यता में 4:2:1 आकार की ईंटों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर स्थित दो प्रमुख संरचना का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) मालगोदाम
(2) विशाल स्नानागार।

प्रश्न 13.
पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता में पाई जाने वाली सामाजिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए किन दो विधियों का प्रयोग किया गया?
उत्तर:
(1) शवाधानों का अध्ययन
(2) उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं की खोज।

प्रश्न 14.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई उपयोगी वस्तुओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
चक्कियाँ, मृदभाण्ड सूइयाँ, झाँवा

प्रश्न 15.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई विलासिता की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) फयॉन्स के छोटे पात्र
(2) सोने, चाँदी तथा बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण।

प्रश्न 16.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के दो प्रमुख स्थानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) चन्लूदड़ो
(2) लोथल।

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प्रश्न 17.
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शिल्प कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहरें बनाना तथा बाट बनाना।

प्रश्न 18.
हड़प्पावासी ताँबा तथा सोना कहाँ से मँगाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी तौबा खेतड़ी (राजस्थान) और ओमान से तथा सोना दक्षिण भारत से मँगवाते थे।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए जिनसे हड़प्पावासियों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के ओमान तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 20.
पुरुवस्तुओं के आधार पर बताइये कि हड़यावासी किनकी पूजा करते थे?
उत्तर:

  • मातृदेवी
  • आद्य शिव
  • पशु – पक्षियों की
  • वृक्षों की
  • लिंग पूजा।

प्रश्न 21.
शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्र थे।

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प्रश्न 22.
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद जिन वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं, उनमें से किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • कच्चा माल
  • औजार
  • अपूर्ण वस्तुएँ
  • कूड़ा-करकट।

प्रश्न 23.
हड़प्पा की खुदाई का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब किया गया?
उत्तर:
1921 ई. में हड़प्पा की खुदाई का कार्य दयाराम साहनी के नेतृत्व में किया गया।

प्रश्न 24.
ऐसे चार भौतिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिये जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के लोगों के जीवन को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं।
उत्तर:

  • मृदभाण्ड
  • औजार
  • आभूषण
  • घरेलू सामान।

प्रश्न 25.
मोहनजोदड़ो में उत्खनन का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब ?
उत्तर:
1922 में श्री राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में।

प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की कटाई
  • भीषण बाढ़
  • नदियों का सूख जाना।

प्रश्न 27.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-कौन से शिल्पकार्य प्रचलित थे? कोई दो लिखिए।
उत्तर:
(1) मनके बनाना
(2) शंख की कटाई।

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प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु कौनसी है?
उत्तर:
हड़प्पाई मुहर

प्रश्न 29.
हड़प्पाई मुहर किससे बनाई गई थी?
उत्तर:
सेलखड़ी पत्थर

प्रश्न 30.
अंग्रेजी में बी.सी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बिफोर क्राइस्ट (ईसा पूर्व)।

प्रश्न 31.
हड़प्पाई सभ्यता के किन स्थलों से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं?
उत्तर:
चोलिस्तान तथा बनावली (हरियाणा)।

प्रश्न 32.
हड़प्पा के किस स्थल से नहरों के अवशेष हैं ?
उत्तर:
अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुधई से

प्रश्न 33.
अवतल चक्कियाँ हड़प्पाई सभ्यता के किस स्थल से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से

प्रश्न 34.
‘फर्दर एक्सकैवेशन्स एट मोहनजोदड़ो’ नामक नुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके

प्रश्न 35.
मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या कितनी नी?
उत्तर:
लगभग 7001

प्रश्न 36.
विशाल स्नानागार कहाँ स्थित है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो में।

प्रश्न 37.
‘अर्ली इंडस सिविलाइजेशन’ नामक पुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके।

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प्रश्न 38.
हड़प्पा सभ्यता में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः किन स्थानों पर मिली हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में।

प्रश्न 39.
मनकों में छेद करने के उपकरण किन स्थानों से मिले हैं ?
उत्तर:

  • चन्द्रदड़ो
  • लोथल
  • धोलावीरा।

प्रश्न 40.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट समुद्र तट के समीप स्थित हैं।

प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिये. किन कच्चे मालों का प्रयोग होता था?
उत्तर:
मिट्टी, पत्थर, लकड़ी तथा धातु।

प्रश्न 42.
हड़प्पाई सभ्यता में अभियान भेजकर राजस्थान तथा दक्षिण भारत से कौनसी वस्तुएँ प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताँबा तथा दक्षिण भारत से सोना।

प्रश्न 43.
हड़प्पाई लिपि में चिह्नों की संख्या कुल कितनी है?
उत्तर:
लगभग 375 से 400 के बीच।

प्रश्न 44.
‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आकिंयालोजी’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
एस. एन. राव

प्रश्न 45.
‘आद्य शिव मुहर’ किस पुरास्थल से प्राप्त हुई है?
उत्तर:
हड़या से।

प्रश्न 46.
हड़प्पाकालीन कृषि प्रौद्योगिकी की कोई दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर:
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
(2) हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 47.
सिन्धुघाटी सभ्यता की खोज कब और किसने की ?
उत्तर:
सन् 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की तथा 1922 में श्री राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।

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प्रश्न 48.
हड़प्पा पूर्व की बस्तियों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:

  • बस्तियाँ प्रायः छोटी होती थीं।
  • इनकी अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली थी।
  • ये कृषि, पशुपालन तथा शिल्पकारी से परिचित थे।

प्रश्न 49.
सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सिन्धुघाटी सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान पर किया गया है, जहाँ वह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी।

प्रश्न 50.
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया गया है।

प्रश्न 51.
मोहनजोदड़ो नगर किन दो भागों में विभाजित था?
उत्तर:
(1) दुर्ग – यह छोटा भाग था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था।
(2) निचला शहर- यह बड़ा भाग था, जो नीचे बनाया गया था।

प्रश्न 52.
अलेक्जेण्डर कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणों के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। उन्हें सामान्यतः ‘भारतीय पुरातत्व का जनक’ कहा जाता है।

प्रश्न 53.
हड़प्पा सभ्यता की नालियों के निर्माण की क्या विशेषताएँ थीं? दो का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
घरों की नालियाँ एक हौदी में खाली होती थीं और गन्दा पानी गली की नालियों में बह जाता था।

प्रश्न 54.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) आवासीय भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे
(2) प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।

प्रश्न 55.
हड़प्पा सभ्यता में मृतकों का अन्तिम संस्कार किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
सामान्यतः मृतकों को गत में दफनाया जाता था तथा मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं।

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प्रश्न 56.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
मनकों के निर्माण में कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी तथा ताँबा, काँसा, सोने जैसी धातुओं का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 57.
चंन्हूदड़ो क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
चन्द्रदड़ो मनकों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ बड़ी मात्रा में मनके बनाये जाते थे।

प्रश्न 58.
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि, सेलखड़ी कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर;
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में शोधई से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से मंगवाते थे।

प्रश्न 59.
हड़प्पा निवासी किन वस्तुओं को सुदूर क्षेत्रों से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी ताँबा ओमान से, लाजवर्द अफगानिस्तान से तथा कार्नेलियन, लाजवर्द मणि, सोना आदि मेलुहा से मँगवाते थे।

प्रश्न 60.
हड़प्या लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
हड़प्पा संस्कृति की लिपि पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
अथवा
हड़प्पा की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिड़ हैं। सम्भवतः यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी।

प्रश्न 61.
हड़प्पा की किन वस्तुओं पर लिखावट मिली है?
उत्तर:
मुहरों, ताँबे के औजारों, तांबे तथा मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, आभूषणों अस्थि घड़ों और एक प्राचीन सूचना पट्ट पर लिखावट मिली है।

प्रश्न 62.
हड़प्पा सभ्यता में बाटों के मानदण्डों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
बाटों के निचले मानदण्ड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16, 32 आदि) थे जबकि ऊपरी मानदण्ड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।

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प्रश्न 63.
कनिंघम ने आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए किस स्रोत का उपयोग किया?
उत्तर:
कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

प्रश्न 64.
1980 से पुरातत्वविद किन नई तकनीकों का अवलम्बन ले रहे हैं?
उत्तर:
1960 से पुरातत्वविद आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं जिसमें मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि का अन्वेषण करते हैं।

प्रश्न 65.
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग किस लिए होता था?
उत्तर:
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।

प्रश्न 66.
डीलर कौन थे ?
उत्तर:
हीलर एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वे 1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने थे।

प्रश्न 67.
हड़प्पा सभ्यता के शासकों के अस्तित्व के बारे में पुरातत्वविदों के मत का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था।
(2) यहाँ कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के शासक
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।

प्रश्न 68.
ए.डी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह एनी डामिनी’ नामक दो लेटिन शब्दों से बना है तथा इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है।

प्रश्न 69.
हड़प्पाई लोग किन वस्तुओं से अपना भोजन प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और मछली सहित जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे।

प्रश्न 70.
मोहनजोदड़ो का दुर्ग ऊंचाई पर क्यों बनाया गया था?
उत्तर:
क्योंकि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं।

प्रश्न 71.
1980 के दशक में हड़या के कब्रिस्तान में उत्खनन में कौनसी वस्तुएँ मिली थीं ?
उत्तर;
एक पुरुष की खोपड़ी के समीप शंख के तीन छल्ले, जैस्पर के मनके तथा सैकड़ों सूक्ष्म मनकों से बना एक आभूषण।

प्रश्न 72.
हड़प्पा सभ्यता में पुरातत्वविदों ने सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए कौनसी विधि का प्रयोग किया ?
उत्तर:
पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं।

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प्रश्न 73.
नागेश्वर तथा बालाकोट क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी वस्तुओं के निर्माण के लिए विशिष्ट केन्द्र थे ।

प्रश्न 74.
जान मार्शल कौन थे?
उत्तर;
जान मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल थे। 1924 ई. में उन्होंने सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रश्न 75.
‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम को ‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक’ कहा जाता है।

प्रश्न 76.
हड़प्पा निवासी ताँबा कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी ताँबा राजस्थान के खेतड़ी अंचल से मँगवाते थे।

प्रश्न 77.
पुरातात्विक पुरास्थल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं।

प्रश्न 78.
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा किसने की और कब की ?
उत्तर:
1924 ई. में जान मार्शल ने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रश्न 79.
‘मोहनजोदड़ो एण्ड द इंडस सिविलाइजेशन’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
जान मार्शल।

प्रश्न 80.
हड़प्पाई मर्तबान किस स्थल से प्राप्त हुआ
उत्तर:
हड़प्पाई मर्तबान ओमान से मिला है।

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प्रश्न 81.
भारत का सबसे आरम्भिक धार्मिक ग्रन्थ कौनसा है?
उत्तर:
ऋग्वेद।

प्रश्न 82.
ऋग्वेद कब संकलित किया गया था?
उत्तर:
ऋग्वेद लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित किया गया था।

प्रश्न 83.
आधुनिक युग में पुरातत्वविद कौनसी दो आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
(1) मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि सतह का अन्वेषण
(2) उपलब्ध साक्ष्य के टुकड़ों का विश्लेषणः।

प्रश्न 84.
‘उत्तर हड़प्पा’ संस्कृति से क्या अभिप्राय
उत्तर:
जिस संस्कृति में पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ एक ग्रामीण जीवन शैली को प्रकट करती हैं, उसे ‘उत्तर हड़प्पा’ कहा जाता है।

प्रश्न 85.
आपको कौनसी परिकल्पना सबसे बुक्तिसंगत दिखाई देती है?
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी
(2) हड़प्पा में कई शासक थे।
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।
उत्तर:
हड़प्पा एक ही राज्य था” यह परिकल्पना सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होती है।

प्रश्न 86.
चोलिस्तान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र चोलिस्तान कहलाता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
नगर योजना बनाते समय आप मोहनजोदड़ो नगर योजना की कौनसी बार विशेषताओं का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
(1) नगर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था ईंटें एक निश्चित आकार की होती थीं।
(2) मोहनजोदड़ों की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
(3) निचले शहरों में आवासीय भवन थे। कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
(4) हर घर का ईंटों के फर्श से बना एक स्नानपर होता था।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में ‘संस्कृति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है। पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं। ऐसे समूहों का सम्बन्ध प्रायः एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल खंड से होता है। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों में मिली हैं।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण, काल तथा अवस्थाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण- हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या कहा जाता है ।

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प्रश्न 4.
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। आजकल ‘ए.डी.’ तथा ‘बी.सी. के स्थान पर किन शब्दों का प्रयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर:
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ-अंग्रेजी में बी.सी. (हिन्दी में ईसा पूर्व) का तात्पर्य ‘बिफोर क्राइस्ट’ (ईसा पूर्व) से है। ए.डी. (A.D.) ‘एनो डॉमिनी’ नामक दो लैटिन शब्दों से बना है। इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है। आजकल ‘ए.डी.’ के स्थान पर सी.ई. तथा बी.सी. के स्थान पर बी.सी.ई. का प्रयोग होता है। ‘सी.ई. का प्रयोग ‘कामन एरा’ तथा ‘बी.सी.ई. का प्रयोग ‘बिफोर कामन एरा’ के लिए होता है।

प्रश्न 5.
सिन्ध और चोलिस्तान में बस्तियों के सम्बन्ध में आँकड़े प्रस्तुत कीजिए। इनमें आरम्भिक हड़प्पा स्थल तथा विकसित हड़प्पा स्थल कितने हैं ?
उत्तर:
आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में बस्तियों की संख्या के सम्बन्ध में निम्नलिखित आँकड़े प्रस्तुत हैं –

सिन्ध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ 43 132
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल 29 33

प्रश्न 6.
“इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं ये संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध थीं। इनके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं प्रायः बस्तियाँ छोटी होती थीं तथा इनमें बड़े आकार की संरचनाओं का अभाव था। कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर जलाए जाने के प्रमाणों से तथा कुछ अन्य स्थलों के त्याग दिए जाने से यह जान पड़ता है कि आरम्भिक हड़प्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम भंग था।

प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीके –

  • हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और जानवरों से प्राप्त मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।
  • वे गेहूँ जी, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे।
  • वे भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे।
  • जंगली जानवरों जैसे बराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हट्टियाँ मिलने से ज्ञात होता है कि हड़प्पा- निवासी इन जानवरों का मांस भी खाते थे।

प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का
वर्णन कीजिये।
उत्तर:

  • खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
  • हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
  • हड़प्पा निवासी कुओं तथा जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे। सिंचाई के लिए नहरों का भी उपयोग किया जाता था अफगानिस्तान में शोधई नामक स्थान पर नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं।

प्रश्न 9.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। ” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित है, एक भाग छोटा है जो ऊँचाई पर बनाया गया है तथा दूसरा भाग अपेक्षाकृत अधिक बड़ा है जो नीचे बनाया गया है। छोटा भाग दुर्ग तथा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था तथा निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। पहले शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया था। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं।

प्रश्न 10.
हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी । व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा की जल निकास प्रणाली शहरों में नालियाँ बनी हुई थीं। पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस पास आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा हुआ होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।

प्रश्न 11.
प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद अलेक्जैंडर कनिंघम ने हड़प्पा नगर की दुर्दशा का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल अलेक्जेण्डर कनिंघम ने 1875 ई. में हड़प्पा नगर की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि “हड़प्पा नंगर को ईंटें चुराने वाले लोगों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। उनके अनुसार हड़प्पा से ले जाई गई ईटों की मात्रा लगभग 100 मील लम्बी लाहौर तथा मुल्तान के बीच की रेल पटरी के लिए ईंटें बिछाने के लिए पर्याप्त थीं।”

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प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार- विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो दुर्ग के आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी थीं। इसके तीनों ओर कक्षा बने हुए थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशया से पानी एक बड़े नाले में यह जाता था। इसके उत्तर में एक छोटा कक्ष था, जिसमें आठ स्नानघर बने थे।

प्रश्न 13.
मोहनजोदड़ो सभ्यता में गृहस्थापत्य की चार विशेषताएँ बताइये।
अथवा
मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताएँ

  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे। कई आवासों के मध्य में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
  • भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को नहीं देखा जा सकता था।
  • प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।
  • कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। कई आवासों में कुएँ बने हुए थे। इससे मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की आज भी प्रासंगिकता बनी हुई है।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
  • सड़कें पर्याप्त चौड़ी थीं तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • मकानों के गन्दे पानी को निकालने के लिए नालियाँ बनी हुई थीं।
  • कई आवासों में कुएँ बने हुए थे।
  • हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः ईंटों के बने होते थे मकानों में रसोईघर, स्नानघर, शौचालय आदि की व्यवस्था थी। छतों अथवा दूसरी मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के शवाधानों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गत में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। हड़प्पा के एक कब्रिस्तान से एक पुरुष की खोपड़ी के पास शंख के तीन छल्ले, जैस्पर (एक. प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सैकड़ों की संख्या में बारीक मनकों से बना एक आभूषण मिला था। कहीं-कहीं पर शवों के साथ ताँबे के दर्पण रख दिए जाते थे।

प्रश्न 16.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों को प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:

  • मनकों के निर्माण में विभिन्न प्रकार के पत्थर जैसे कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का ), जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न), स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थरों को प्रयुक्त किया जाता था। –
  • इनके निर्माण में ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं को भी प्रयुक्त किया जाता था।
  • इनके निर्माण में शंख, फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि का भी प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 17.
मनके बनाने की तकनीकों में क्या भिन्नताएँ थीं ?
उत्तर:
मनके बनाने की तकनीकों में भिन्नताएँ –
(1) मनके बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं। सेलखड़ी, जो एक बहुत मुलायम पत्थर है, पर सरलता से कार्य हो जाता था।
(2) कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किए जाते थे। इससे विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके कैसे बनाए जाते थे, यह प्रश्न प्राचीन तकनीकों का अध्ययन करने वाले पुरातत्वविदों के लिए एक पहेली बना हुआ है।

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प्रश्न 18.
मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनके बनाने की प्रक्रिया-
(1) कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
(2) पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
(3) घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी। चन्हूदड़ो, लोथल तथा धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 19.
हड़प्पा शहरों में तैयार शंख और मनके कहाँ भेजे जाते थे ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट नामक बस्तियाँ समुद्र- तट के समीप स्थित थीं। ये शंख से बनी वस्तुओं जैसे चूड़ियाँ, करछियाँ तथा पच्चीकारी की वस्तुओं के निर्माण के विशिष्ट केन्द्र थे यहाँ से ये वस्तुएँ दूसरी बस्तियों में भेजी जाती थीं। यह भी सम्भव है कि चन्हूदड़ो और लोथल से तैयार माल जैसे मनके, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरी केन्द्रों में भेजे जाते थे।

प्रश्न 20.
शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान पुरातत्वविदों द्वारा किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर:
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान –
(1) शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद प्राय: निम्नलिखित वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरे शंख, तौबा- अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट।
(2) कूड़ा-करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतकों में से एक है।
(3) कभी-कभी बड़े बेकार टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तुएँ बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता था अतः ये बड़े बेकार टुकड़े यह प्रकट करते हैं कि ये स्थल शिल्प- उत्पादन के केन्द्र रहे होंगे।

प्रश्न 21.
शिल्प उत्पादन के लिए हड़प्पा निवासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कौनसी नीतियाँ अपनाते थे ?
उत्तर:
कच्चा माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ –
(1) हड़प्पा निवासी शिल्प उत्पादन के लिए कच्चा माल प्राप्त करने हेतु कई तरीके अपनाते थे नागेश्वर तथा बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। वे लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुमई से कार्नीलियन गुजरात में स्थित भड़ौच से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से और धातु राजस्थान से मँगवाते थे।
(2) अभियान भेजना हड़प्पा वासी ताँबा प्राप्त करने हेतु राजस्थान के खेतड़ी आँचल में तथा सोना प्राप्त करने के लिए दक्षिण भारत में अभियान भेजते थे

प्रश्न 22.
गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्त्वविदों ने ‘गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति’ के नाम से पुकारा है। इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभाण्ड हड़प्पाई मृदभाण्डों से भिन्न थे तथा यहाँ ताँबे की वस्तुओं की विपुल संपदा मिली थी। विद्वानों का अनुमान है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे। राजस्थान के खेतड़ी अंचल से ताँबा प्राप्त करने हेतु हड़प्पा से अभियान भेजे जाते थे।

प्रश्न 23.
हड़प्पा निवासियों का किन देशों से व्यापारिक सम्पर्क था?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पश्चिम छोर पर स्थित ओमान से ताँबा मँगवाते थे मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (हड़प्पाई क्षेत्र) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। यह लेख मेलुहा से प्राप्त उत्पादों जैसे कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना, लकड़ी आदि का उल्लेख करते हैं। ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क समुद्री मार्ग से था।

प्रश्न 24.
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों तथा मुद्रांकनों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्मकों को सुविधाजनक बनाने हेतु किया जाता था। उदाहरणार्थ, जब सामान से भरा हुआ एक बैला एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता था तो उसका मुँह रस्सी से बाँध दिया जाता था तथा गाँठ पर थोड़ी गीली मिट्टी जमाकर एक या अधिक मुहरों से दबा दिया जाता था। इससे मिट्टी पर मुहरों की छाप पड़ जाती थी। मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान का भी पता चलता था।

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प्रश्न 25.
हड़प्पा लिपि के बारे में आप क्या जानते
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की लिपि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
“हड़प्पा लिपि एक रहस्यमयी लिपि थी।””
समझाइये
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की लिपि –

  1. हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है, जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाते हैं। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं।
  2. हड़प्पा सभ्यता की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, इसलिए इसे रहस्यमयी लिपि कहा जाता है।
  3. यह लिपि निश्चित रूप से वर्णमालीय नहीं क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इस लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं।
  4. यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थे।

प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली के बा में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली –

  • विनिमय वाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाल द्वारा नियन्त्रित थे।
  • ये बाट प्रायः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जा
  • सामान्यतः ये किसी भी प्रकार के निशान से रहित और घनाकार होते थे।
  • इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी (12. 4, 8, 16, 32 इत्यादि 12,900 तक) थे, जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली के
    अनुसार थे।
  • छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 27.
” हड़प्पा सभ्यता में सत्ता अस्तित्व में थी।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उदाहरण के लिए, मृदभाण्डों, मुहरों, बायें, ईटों आदि से स्पष्ट होता है कि इन पुरावस्तुओं में अत्यधिक एकरूपता दिखाई देती है। ईंटों का उत्पादन स्पष्ट रूप से किसी एक केन्द्र पर नहीं होता था, फिर भी जम्मू से गुजरात तक सम्पूर्ण क्षेत्र में ईंटें समान अनुपात की थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें बनाने, विशाल दीवारों तथा चबूतरों आदि के निर्माण के लिए किसी सत्ता द्वारा ही श्रम संगठित किया गया था।

प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व –
(1) पुरातत्वविदों ने मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को एक प्रासाद की संज्ञा दी है।
(2) इसी प्रकार उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी गई थी।
(3) कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि यहाँ कई शासक थे। कुछ का यह मत है कि यह एक ही राज्य था। यह मत सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होता है।

प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता का अन्त किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अन्त –
(1) कुछ साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ईसा पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थल उजड़ चुके थे।
(2) कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आया था, जो निम्नानुसार था-

  • सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुएँ बाट, मुहरें या विशिष्ट मनके समाप्त हो गए।
  • लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प- विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई।
  • अब बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण बन्द हो गया।

प्रश्न 30.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या कारण
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. सिन्धु नदी के मार्ग बदलने और जलवायु परिवर्तन से सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई।
  2. वनों की कटाई के कारण भूमि में नमी की कमी हो गई।
  3. सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।
  4. नदियों के सूख जाने के कारण इस क्षेत्र में रेगिस्तान का प्रसार हुआ।
  5. सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई राज्य का अन्त हो गया।

प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी संक्षेप में लिखिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की खोज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की खोज –
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में प्रसिद्ध पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकाल ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा से प्राप्त हुई मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। 1924 ई. में जॉन मार्शल ने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

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प्रश्न 32.
‘पुरास्थल’ और ‘टीले’ से आप क्या समझते
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं जब लोग एक ही स्थान पर नियमित रूप से रहते हैं तो भूमिखंड के लगातार उपयोग और पुनः उपयोग से आवासीय मलबों का निर्माण हो जाता है, जिन्हें ‘टीला’ कहते हैं। अल्पकालीन या स्थायी परित्याग की स्थिति में हवा या प पानी की क्रियाशीलता और कटाव के कारण भूमि खंड के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 33.
‘स्तर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
टीलों में मिले स्तरों से प्राप्त प्राचीन वस्तुओं से आवास का पता चलता है ये स्तर एक-दूसरे से रंग, प्रकृति और इनमें मिली पुरावस्तुओं के संदर्भ में भिन्न होते हैं। परित्यक्त स्तर ‘बंजर स्तर’ कहलाते हैं। इनकी पहचान इन सभी लक्षणों के अभाव से की जाती है। सामान्यतः सबसे निचले स्तर प्राचीनतम और सबसे ऊपरी स्तर नवीनतम होते हैं। स्तरों में मिली पुरावस्तुओं को विशेष सांस्कृतिक काल-खंडों से सम्बद्ध किया जा सकता है।

प्रश्न 34.
अतीत के पुनर्निर्माण में आने वाली समस्याओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। परन्तु भौतिक साक्ष्यों से पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायता मिलती है। भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि उल्लेखनीय हैं। केवल टूटी हुई अथवा अनुपयोगी वस्तुएँ ही फेंकी जाती थीं। परिणामस्वरूप जो बहुमूल्य वस्तुएँ अक्षत अवस्था में मिलती हैं, या तो वे अतीत में खो गई थीं या फिर संचयन के बाद कभी पुनः प्राप्त नहीं की गई थीं।

प्रश्न 35.
पुरातत्वविदों द्वारा अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
खोजों का वर्गीकरण-
(1) पुरावस्तुओं की पुन: प्राप्ति के बाद पुरातत्वविद अपनी खोजों को वर्गीकृत करते हैं वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु अस्थि, हाथीदांत आदि के बारे में होता है।
(2) वर्गीकरणों का दूसरा सिद्धान्त पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है।
(3) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्राय: आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं से उनकी समानता पर आधारित होती है। मनके, चक्कियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता काल में उद्योग-धन्धों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. हड़प्पा में सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्व तैयार किये जाते थे।
  2. मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग भी विकसित
  3. हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि के आभूषण बनाते थे।
  4. यहाँ ताँबे के अनेक औजार और हथियार बनाए जाते थे।
  5. हड़प्पा में मनके बनाने, शंख की कटाई करने, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे।

प्रश्न 37.
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद वस्तुओं को किन भागों में वर्गीकृत करते हैं?
उत्तर:
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद प्रायः पुरावस्तुओं को दो भागों में वर्गीकृत करते हैं –
(1) उपयोगी वस्तुएँ तथा
(2) विलास की वस्तुएँ। पहले वर्ग में दैनिक उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं; जैसे- चक्कियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, झाँवा ये वस्तुएँ सभी नगरों में सर्वत्र पाई जाती हैं। दूसरे वर्ग में कीमती वस्तुएँ सम्मिलित हैं जैसे-फयॉन्स के छोटे पात्र ये केवल बड़े नगरों में – मिलती हैं।

प्रश्न 38.
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ किन स्थानों से प्राप्त होती थीं?
उत्तर:
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिलती हैं। उदाहरणार्थ, फयॉन्स से बने छोटे पात्र, जो सम्भवतः सुगन्धित द्रव्यों के पात्रों के रूप में प्रयुक्त होते थे, अधिकांशतः मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिले हैं, ये कालीबंगा जैसी छोटी बस्तियों से बिल्कुल नहीं।

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प्रश्न 39.
हड़प्पा सभ्यता की खोज में जान मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
1924 में भारत के प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद जान मार्शल ने सम्पूर्ण विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। इस प्रकार विश्व को एक नवीन सभ्यता ‘हड़प्पा की सभ्यता’ की जानकारी : मिली जान मार्शल भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे। यद्यपि कनिंघम की भाँति ही उन्हें भी आकर्षक खोजों में रुचि थी, परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धत्तियों को जानने की उत्सुकता भी थी परन्तु वह पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर देते थे।

प्रश्न 40.
हड़प्पावासियों के पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल में व्यापार के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता-काल में व्यापार का विकास –

  • हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था। व्यापार जल तथा थल दोनों मार्गों से होता था।
  • नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख, अफगानिस्तान (शोतुंभई) से लाजवर्द मणि, ताँबा खेतड़ी (राजस्थान) से मंगाया जाता था।
  • हड़प्पा के लोगों का ईरान, मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था ओमान से तांबा मंगाया जाता था।
  • ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क सामुद्रिक मार्ग से था।

प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्द्रदड़ो बणावली, राखीगढ़ी, रोपड़, रंगपुर, लोथल, धौलावीरा, कालीबंगा आदि अनेक पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात तथा गंगा घाटी तक फैली हुई थी। हड़प्पा की सभ्यता का वर्तमान में ज्ञात भौगोलिक विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 42.
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्रचलित धार्मिक अनुष्ठानों के संकेत पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन –

  • हड़प्पावासी मातृदेवी की पूजा करते थे।
  • हड़प्पावासी शिव की उपासना करते थे।
  • हड़प्पावासी पशुओं तथा वृक्षों की पूजा करते थे।
  • हड़प्पा के लोग लिंग और योनि की उपासना करते थे।

प्रश्न 43.
लिपि के अभाव में किन साक्ष्यों से हड़प्पाई सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर:
यद्यपि विद्वानों को हड़प्पाई लिपि के पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है, फिर भी हड़प्पाई लोगों द्वारा पीछे छोड़ी गई पुरवस्तुओं जैसे उनके आवासों, मृदभाण्डों, आभूषणों, औजारों, मुहरों, मूर्तियों आदि से पर्याप्त जानकारी मिलती है। ये पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पाई सभ्यता एवं संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इन पुरातात्विक साक्ष्यों से हड़प्पा के लोगों के भोजन, नगर योजना, भवन-निर्माण, धार्मिक जीवन, कृषि, व्यापार आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 44.
” 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है। हड़या और मोहनजोद दोनों स्थलों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं। वे आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर धातु की वस्तुएँ तथा वनस्पति और जानवरों के अवशेष प्राप्त करने के लिए सतह की खोज और उपलब्ध साक्ष्य के प्रत्येक सूक्ष्म टुकड़े का विश्लेषण सम्मिलित है। इन खोजों से भविष्य में रोचक परिणाम निकल सकते हैं।

प्रश्न 45.
“हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्त्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर यद्यपि यह नीति पत्थर की चक्कियों तथा पात्रों के सम्बन्ध में सही हो सकती है, परन्तु धार्मिक प्रतीक के बारे में यह अधिक संदिग्ध रहती है।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
(1) नगर योजना मोहनजोदड़ो के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। इन नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी शहरों से बाहर निकाल दिया जाता था। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे मकानों में आंगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों व खिड़कियों की व्यवस्था रहती थी। इस सभ्यता में कुछ विशिष्ट भवन भी मिले हैं जिनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, माल गोदाम आदि उल्लेखनीय हैं।

(2) सामाजिक जीवन समाज में कई वर्ग थे। हड़मा समाज मातृ सत्तात्मक था। स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। ये लोग अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –

  • शव को जलाकर
  • शव को जमीन में गाड़कर
  • शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाना।

(3) आर्थिक अवस्था-मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, दाल, बाजरा, कपास, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। यहाँ अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। (4) धार्मिक अवस्था हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी तथा शिव की उपासना करते थे। ये लोग लिंग और योनि की, पशुओं और वृक्षों की, नांग की भी पूजा करते थे।

(5) राजनीतिक अवस्था हडप्पाई सभ्यता में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार यहाँ पुरोहित, राज शासन करते थे। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।

(6) लिपि हड़प्पाकालीन लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं। यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी।

(7) कला वहाँ के लोग मुहर निर्माण करना, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में निपुण थे। यहाँ के लोग मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ बनाने में मुहर, मनके आदि बनाने में तथा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के आभूषण में दक्ष थे।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण तथा विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण –
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। 1920 ई. में दयाराम साहनी तथा माधोस्वरूप वत्स के नेतृत्व में हड़प्पा की खोज की गई थी। इसके बाद 1922 ई. में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खोज की गई। सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है।

पुरातत्त्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं एक ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से सम्बद्ध पाए जाते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे स्थानों से मिली हैं, जो एक-दूसरे से लम्बी दूरी पर स्थित हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता का काल पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया है। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में गिनी जाती है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या की संस्कृतियाँ कहते हैं।

इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियों की अस्तियों के आँकड़े निम्नलिखित हैं-

सिन्ध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ 43 132
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल 29 33

प्रश्न 3.
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीकों का विवेचन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के रहन-सहन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीके (रहन-सहन ) विकसित हड़प्पा संस्कृति का कुछ ऐसे स्थानों पर विकास हुआ, जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। इन संस्कृतियों में अनेक तत्त्व समान थे। इनके निर्वाह के तरीकों में भी समानता थी।
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से प्राप्त भोजन हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़- पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे।

(2) गेहूँ, जौ, दाल, चना, तिल, बाजरे, चावल का प्रयोग जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई लोगों के भोजन के बारे में काफी जानकारी मिली है। इनका अध्यचन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं हड़प्पाई लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे। हड़प्पा के अनेक स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे तथा चावल के दाने प्राप्त हुए थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने भी मिले थे, परन्तु वे अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं।

(3) जानवरों के मांस का सेवन करना हड़या ‘के स्थलों के उत्खनन में अनेक जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इनमें भेड़, बकरी, भैंस या सूअर की हड्डियाँ सम्मिलित हैं। जीव पुरातत्वविदों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। अनुमान है कि हड़प्पाई लोग इन जानवरों के मांस का सेवन करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा के लोग इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे मुहरों पर उत्कीर्ण मछली के चित्रों से ज्ञात होता है कि हड़प्पाई लोग मछली का भी सेवन करते थे।

(4) मछली तथा पक्षियों के मांस का सेवन करना- उत्खनन में मछली तथा कुछ पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी मछली तथा पक्षियों के मांस का भी सेवन करते थे।

(5) जानवरों के शिकार के बारे में अनिश्चित जानकारी अभी तक विद्वान लोग यह नहीं जान पाए हैं कि हड़प्पा निवासी स्वयं इन जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी की विवेचना कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल की कृषि की स्थिति का विवेचन
कीजिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी (कृषि की स्थिति)
हड़प्पा स्थलों से अनाज के दाने मिले हैं, जिनसे यहाँ कृषि के संकेत मिलते हैं परन्तु वास्तविक कृषि-विधियों के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग- मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मिट्टी की मूर्तियाँ यह संकेत देती हैं कि हड़प्पा निवासियों को वृषभ (बैल) के विषय में जानकारी थी।

इस साक्ष्य के आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान (पाकिस्तान) के कई स्थलों तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हलों के प्रतिरूप मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि लोग कृषि में हलों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त कालीबंगा (राजस्थान) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। यह आरम्भिक हड़प्पा स्तरों से सम्बद्ध है। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते थे। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि एक खेत में एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थीं।

(2) कृषि उपकरण – पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है। इसके लिए हड़प्पा के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे।

(3) सिंचाई अधिकांश हड़प्पा-स्थल अर्थ – शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ सम्भवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिन्ध में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले। ऐसा सम्भव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं।

हड़प्पा स्थलों से कुओं के अवशेष भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता होगा। इसके अतिरिक्त धौलावीरा में जलाशय के अवशेष मिले हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि जलाशयों का प्रयोग सम्भवत: कृषि के लिए जल संचयन के लिए किया जाता था। इस प्रकार जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग भी सिंचाई के लिए किया जाता था।

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प्रश्न 5.
मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का अर्नेस्ट मैके द्वारा दिए गए वृत्तान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके द्वारा अवतल चक्की का दिया गया वृत्तान्त प्राचीन काल में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया के अन्तर्गत अनाज पीसने के यन्त्र तथा उन्हें आपस में मिलाने, मिश्रण करने तथा भोजन पकाने के लिए बर्तनों की आवश्यकता थी। इन सभी वस्तुओं का निर्माण पत्थर, धातु तथा मिट्टी से किया जाता था। अर्नेस्ट मैके नामक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् ने मोहनजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का वृत्तान्त दिया है।

अवतल चक्कियाँ अर्नेस्ट मैके के अनुसार मोहनजोदड़ो के उत्खनन में अनेक अवतल चक्कियाँ प्राप्त हुई हैं। अनुमान किया जाता है कि इन चक्कियों का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था। सम्भवतः अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं प्राय: इन चक्कियों का निर्माण मोटे रूप से कठोर कंकरीले अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से किया गया था।

सामान्यतः इन चक्कियों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता था। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, अतः इन्हें जमीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा, जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ उत्खनन में दो मुख्य प्रकार की अवतल चक्कियाँ मिली हैं –

  • एक प्रकार की चक्कियाँ वे थीं, जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था, जिससे निचला पत्थर खोखला हो गया था।
  • दूसरे प्रकार की चक्कियों से हैं, जिनका प्रयोग सम्भवतः केवल सालान अथवा तरी बनाने के लिए तथा जड़ी-बूटियों और मसालों को कूटने के लिए किया जाता था। इन चक्कियों के पत्थरों को ‘सालन पत्थर’ कहा जाता था अर्नेस्ट मैके के अनुसार इन पत्थरों को सालन पत्थर का नाम उनके श्रमिकों द्वारा दिया गया था। उनके एक रसोइये ने एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा था।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकास प्रणाली का वर्णन कीजिये।
अथवा
“हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा शहरों की नियोजित जल निकास प्रणाली हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) नालियों के साथ गलियों का निर्माण ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था।

(2) मुख्य नालों का निर्माण-मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईटों से ढका गया था, जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके कुछ स्थानों पर नालों को ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियाँ गली की नालियों में मिल जाती थीं।

(3) घरों की नालियों का एक हीदी या मलकुंड में खाली होना घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में वह जाता था। जो नाले बहुत लम्बे थे, उनमें कुछ अन्तरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं।

(4) नालियों के किनारे गड्ढों का बना होना- नालियों के किनारे भी कहीं-कहीं गड्ढे बने मिलते हैं।

(5) नालियों की सफाई समय समय पर नालियों की सफाई की जाती थी। कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि नालों की सफाई के बाद कचरे को सदैव हटाया नहीं जाता था।

(6) छोटी बस्तियों में भी जल निकास प्रणालियों का प्रचलित होना जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी प्रचलित थीं। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है कि “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा सम्पूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”

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प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि हड़प्यावासियों के सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क थे। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पा सभ्यता के सुदूर क्षेत्रों से सम्बन्ध थे
(1) ओमान से सम्बन्ध – हाल ही में हुई पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि अरब प्रायद्वीप के दक्षिण – पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात होता है –

ताँबा लाया जाता था। कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो दोनों के साझा उद्भव की ओर संकेत करते हैं। इसके अतिरिक्त ओमानी स्थलों से एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान, जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी भी मिला है। ऐसी मोटी परतें तरल पदार्थों के रिसाव को रोक देती हैं। अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी इनमें रखे सामान का ओमानी ताँबे से विनिमय करते थे।

(2) मेसोपोटामिया के लेखों से जानकारी प्राप्त होना मेसोपोटामिया के विभिन्न नगरों से हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व के मेसोपोटामिया के लेखों में मगान (सम्भवतः ओमान के लिए प्रयुक्त नाम) नामक क्षेत्र से ताँबे के आने का उल्लेख मिलता है। यह बात उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया के स्थलों से मिले ताँबे में भी निकल के अंश मिले हैं।

(3) लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजें-लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजों में हड़प्पाई मुहरें, बाट, पासे तथा मनके सम्मिलित हैं।

(4) मेसोपोटामिया के लेख से दिलमुन, मगान तथा मेलुहा से सम्पर्क की जानकारी मेसोपोटामिया के लेखों से दिलमुन (सम्भवतः बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (सम्भवतः हड़प्पाई क्षेत्र के लिए प्रयुक्त शब्द ) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। ये लेख मेलुहा से प्राप्त अनेक उत्पादों का उल्लेख करते हैं, जैसे- कार्नी लियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना तथा विविध प्रकार की लकड़ियाँ।

(5) बहरीन में मिली मुहर पर हड़प्पाई चित्रों का मिलना बहरीन में मिली गोलाकार फारस की खाड़ी प्रकार की मुहर पर कभी-कभी हड़प्पाई चित्र मिलते हैं।

प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त मुहरों, लिपि एवं तौल के साधनों की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की मुहरें हड़प्पा सभ्यता की मुहरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) पत्थर, मिट्टी, ताँबे से निर्मित मुहरे हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी नामक पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें काँचली मिट्टी (फयॉन्स), गोमेद, चर्ट और मिट्टी से निर्मित हैं। ताँबे की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं मुहरों पर सामान्यतः पशुओं के चित्र तथा हड़प्पा लिपि के चिह्न उत्कीर्ण हैं।

(2) कला के उत्कृष्ट नमूने – हड़प्पाई मुहरें तत्कालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं अपने आकर्षक विशुद्ध आकार और हल्की चमकदार सतह के कारण वे सुन्दर कलाकृतियों में गिनी जाती हैं।

(3) आकार-प्रकार हड़प्पाई मुहरें वर्गाकार, आयताकार, बटन जैसी घनाकार और गोल हैं। परन्तु मुख्यतः वर्गाकार अथवा चौकोर मुहरें ही लोकप्रिय थीं।

(4) मुहरों पर पशुओं के चित्र एवं संक्षिप्त लेखों का उत्कीर्ण होना सामान्यतः मुहरों पर पशुओं के चित्र तथा संक्षिप्त लेख उत्कीर्ण हैं। इन पर बैल, हाथी, गेंडे, व्याघ्र आदि पशुओं का अंकन उल्लेखनीय है।

(5) रचना-शैली-मुहरों की रचना शैली उत्कृष्ट है। हड़प्पावासी मुहरों पर पशुओं के चित्र उत्कीर्ण करने में निपुण थे। मुहरों पर पीपल आदि वृक्षों के चित्रण भी मिलते हैं।

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(6) विशिष्ट मुहरें हड़प्पाई मुहरों में दो मुहरें विशेष उल्लेखनीय हैं। एक मुहर पर एक देवता की मूर्ति अंकित है इस देवता के तीन मुख और दो सींग हैं। यह देव- पुरुष एक हाथी, चीता, गैंडा तथा भैंस से घिरे हुए हैं। जॉन मार्शल के अनुसार यह मूर्ति शिव की है, दूसरी प्रसिद्ध मुहर पर एक कूबड़दार बैल का अंकन है।

(7) मुहरों का प्रयोग- इन मुहरों एवं मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान की भी जानकारी हो जाती थी । लिपि एवं तौल के साधन इसके लिए लघुत्तरात्मक प्रश्न संख्या 25 एवं 26 का उत्तर देखें।

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के बारे में विभिन्न मतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक का अस्तित्व
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के अस्तित्व के बारे में अनेक मत प्रकट किए गए हैं। इन मतों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत दिया जा सकता
(1) हड़प्पा सभ्यता में सत्ता का अस्तित्व – हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उत्खनन में जो मृदभाण्ड, मुहरें, ईंटें तथा बाढ़ मिले हैं, उनमें असाधारण एकरूपता दिखाई देती है। हड़प्पा सभ्यता काल में भिन्न-भिन्न कारणों से बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें, विशाल दीवार तथा चबूतरे बनाने के लिए बड़े पैमाने पर मजदूरों को संगठित किया गया था ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।

(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं –

  • प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
  • पुरोहित-राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित-राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
  • शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • अनेक शासकों का अस्तित्व-कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
  • हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था। निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।

प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब से यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन शुरू किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था।

भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम- एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।

प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया। उन्होंने हड़या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं।

इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने मजदूरों को संगठित किया गया था। ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता- काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।

(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं-

  • प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
  • पुरोहित राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद | मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
  • शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • अनेक शासकों का अस्तित्व- कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
  • हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद वह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।

निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।

प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब वे यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।

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कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब शुरू उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी।

चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग- आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था।

अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।

प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी:
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़या में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।

उन्होंने हड़प्या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रसिद्ध पुरातत्वविद एस.एन. राव ‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आर्कियोलोजी’ में लिखते हैं कि “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा। ” मेसोपोटामिया के पुरास्थलों में हुए उत्खननों से हड़प्पा पुरास्थलों से प्राप्त मुहरों जैसी मुहरें मिली थीं। इस प्रकार विश्व को न केवल एक नई सभ्यता की जानकारी मिली, बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया की समकालीन थी।

हड़या सभ्यता की खोज में जॉन मार्शल का योगदान – भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था। वह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे। वह भारत में यूनान तथा क्रीट से अपने कार्यों का अनुभव भी लाए थे। कनिंघम की भांति ही उनकी भी आकर्षक खोजों में रुचि थी परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी।

जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में त्रुटि – जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में एक त्रुटि थी कि वह पुरास्थल के स्तर-विन्यास को पूर्णरूप से अनदेखा कर पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास करते थे। इस प्रकार पृथक्- पृथक् स्तरों से सम्बन्धित होने पर भी एक इकाई विशेष रूप से प्राप्त सभी पुरावस्तुओं को सामूहिक रूप से वर्गीकृत कर दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन खोजों के संदर्भ के विषय में बहुमूल्य जानकारी सदा के लिए लुप्त हो जाती थी।

प्रश्न 12.
“बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नई तकनीकें तथा प्रश्न:
बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) व्हीलर द्वारा जॉन मार्शल की त्रुटि को दूर करना 1944 में आर.ई. एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने। उन्होंने जॉन मार्शल द्वारा उत्खनन कार्य में की गई त्रुटि का निवारण किया। व्हीलर ने यह महसूस किया कि एकसमान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक था। इसके अतिरिक्त सेना के पूर्व ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व की पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता को भी शामिल किया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करना हड़प्पा सभ्यता की भौगोलिक सीमाओं का आज की राष्ट्रीय सीमाओं से बहुत थोड़ा या कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु उपमहाद्वीप के विभाजन तथा पाकिस्तान के निर्माण के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थान अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए व्यापक सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसी प्रकार पंजाब तथा हरियाणा में किए गए उत्खनन कार्यों के फलस्वरूप वहाँ भी अनेक पुरास्थलों के बारे में जानकारी ई। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, बणावली, धौलावीरा आदि हड़प्पा स्थल प्रकाश में आए हैं। नई खोजें अब भी जारी हैं।

(3) नये प्रश्नों का महत्त्वपूर्ण होना- इन दशकों में नए प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। कुछ पुरातत्वविद प्रायः सांस्कृतिक उपक्रम को जानने के इच्छुक रहते हैं जबकि अन्य पुरातत्वविद विशेष पुरास्थलों की भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को जानने का प्रयास करते हैं।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुचि बढ़ना 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्वों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि निरन्तर बढ़ती जा रही है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनों स्थानों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से अन्वेषण सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं।

प्रश्न 13.
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की क्या समस्याएँ हैं? पुरातत्वविद अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की समस्याएँ हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता की जानकारी प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में पुरातत्वविद भौतिक साक्ष्यों की सहायता से हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करते हैं। इन भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान सम्मिलित हैं। कुछ खोजें प्रारूपिक की बजाय संयोगिक होती हैं।

पुरातत्वविदों द्वारा खोजों का वर्गीकरण –
(1) वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे- पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है।
(2) वर्गीकरण का दूसरा और अधिक जटिल सिद्धान्त वस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है। पुरातत्वविदों को यह निश्चित करना पड़ता है कि कोई पुरावस्तु एक औजार है या एक आभूषण है या यह आनुष्ठानिक प्रयोग की कोई वस्तु है।

पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ –
(1) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्रायः आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं की समानता पर आधारित होती है। मनके, चकियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।

(2) पुरातत्वविद किसी पुरावस्तु की उपयोगिता को समझने का प्रयास उस संदर्भ में भी करते हैं जिसमें वह मिली थी। उदाहरणार्थ, क्या वह वस्तु घर में मिली थी या नाले में, या कब्र में या भट्टी में मिली थी। अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना कभी-कभी पुरातत्त्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ हड़प्पा स्थलों से कपास के टुकड़े मिले हैं। परन्तु उनकी वेशभूषा के विषय में जानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है, जैसे मूर्तियों में चित्रण इन चित्रों को देखकर हमें तत्कालीन लोगों की वेशभूषा में जानकारी मिलती है।

संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना – पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है। उत्खनन में प्राप्त पहली हड़प्पाई मुहर को तब तक नहीं समझा जा सका, जब तक पुरातत्वविदों को उसे समझने के लिए सही संदर्भ नहीं मिला। सांस्कृतिक अनुक्रम जिसमें वह मुहर प्राप्त हुई थी तथा मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना, दोनों के सम्बन्ध में।

प्रश्न 14.
पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक व्याख्यां की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) धार्मिक प्रथाओं का पुनर्निर्माण आरम्भिक पुरातत्वविद यह महसूस करते थे कि कुछ वस्तुएँ जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, वे सम्भवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन मृण्मूर्तियों के शीर्ष पर विस्तृत प्रसाधन थे। इन्हें ‘मातृ देवी’ की संज्ञा दी गई थी। दुर्लभ पत्थर से बनी पुरुषों की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक हाथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, को भी इसी वर्ग में रखा गया था।

(2) आनुष्ठानिक महत्त्व की संरचनाएँ कुछ अन्य मामलों में संरचनाओं को आनुष्ठानिक महत्त्व का माना गया है। इनमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगा और लोथल से मिली वेदियाँ सम्मिलित हैं।

(3) वृक्षों की पूजा कुछ मुहरों पर पेड़-पौधों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी प्रकृति (वृक्षों) की पूजा करते थे।

(4) शिव की पूजा कुछ मुहरों पर एक आकृति को पालथी मारकर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। उसे हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप कहा गया है।

(5) लिंग की पूजा- उत्खनन में पत्थर की शंक्वाकार वस्तुएँ मिली हैं। इन्हें लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी लिंग की भी पूजा करते थे।

(6) आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताओं के आधार पर हड़प्पाई धर्म के पुनर्निर्माण- हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर अग्रसर होते हैं।

(7) ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण उदाहरण के लिए हम ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण करते हैं। आर्यों के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ ऋग्वेद (लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित) में रुद्र नामक एक देवता का उल्लेख मिलता है जो बाद की पौराणिक परम्पराओं में शिव के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव और उसके विस्तार क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 ई. में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।

उन्होंने हड़प्पा से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 ई. में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र – हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से ही नहीं बल्कि अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं।

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हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल निम्नलिखित प्रान्तों से प्राप्त हुए हैं –

  • बलूचिस्तान-सुत्कागेण्डोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डाबरकोट।
  • सिन्ध – मोहनजोदड़ो, चन्दड़ो, कोटदीजी, अली मुरीद।
  • पंजाब (पाकिस्तान) – हड़प्या, जलीलपुर, रहमान ढेरी, सरायखोला, गनेरीवाल
  • पंजाब (भारत) – रोपड़, संघोल, बाड़ा, कोटलानिहंगखान।
  • हरियाणा- बणावली, मीताथल, राखीगढ़ी।
  • जम्मू-कश्मीर माण्डा।
  • राजस्थान कालीबंगा।
  • उत्तर प्रदेश – आलमगीरपुर (मेरठ), अम्बाखेड़ी (सहारनपुर), कौशाम्बी।
  • गुजरात – रंगपुर, लोथल, रोजदी, सुरकोटड़ा, मालवणा, भगवतराव, धौलावीरा
  • महाराष्ट्र – दाइमाबाद (अहमदनगर)।

इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, गंगाघाटी तक फैली हुई थी। डॉ. विमल चन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि ” इस सभ्यता के क्षेत्र के अन्तर्गत बलूचिस्तान, उत्तर- पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्ध, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगाघाटी का उत्तरी भाग शामिल था।” प्रो. रंगनाथ राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था।”

प्रश्न 16.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता शहरी केन्द्रों का विकास था। हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
(1) नगर का दो भागों में विभाजित होना- मोहनजोदड़ो नगर एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा भाग बड़ा था, जो निचले स्थल में बनाया गया था। छोटा भाग ‘दुर्ग’ कहलाता था तथा बड़ा भाग ‘निचला शहर’ कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग दीवार से घिरा हुआ था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से पृथक् कर दिया था।

(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था, जो नींव का कार्य करते थे। इन भवनों के निर्माण में बहुत बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ी होगी। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम- दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इससे स्पष्ट होता है कि मोहनजोदड़ो के भवनों के निर्माण के लिए बहुत बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी होगी।

(3) नगर का नियोजन किया जाना शहर का समस्त भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इससे ज्ञात होता है कि पहले मोहनजोदड़ो शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया था। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटों का भी महत्त्व है। इन ईंटों को धूप में सुखाकर या भट्टी में पकाकर बनाया गया था। ये ईंटें निश्चित अनुपात की होती थीं इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटों का प्रयोग हड़प्पाई सभ्यता के सभी नगरों में किया गया था।

प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा के नगर नियोजन की वर्तमान संदर्भ में उपादेयता बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना तथा जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नगर – हड़प्पा के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार- योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग भाग’ तथा पूर्व में ‘नगर भाग’ प्राप्त होता है।

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(2) सड़कें नगरों की सड़कें तथा गलियों एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

(3) नालियाँ – शहरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में पक्की नालियाँ बनी हुई थीं। नालियों की जुड़ाई तथा प्लास्तर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता था ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। समय-समय पर इन नालियों की सफाई की जाती थी। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं, जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।

(4) कुएं हड़प्पा सभ्यता काल में प्राय: प्रत्येक पर में एक कुआँ होता था। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था कुछ कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।

(5) भवन निर्माण हड़प्पा सभ्यता के मकान एक निश्चित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे।

  • दीवारों पर प्लास्तर – दीवारों पर मिट्टी का प्लास्तर किया जाता था, कभी-कभी जिप्सम का प्लास्तर भी किया
    जाता था।
  • आँगन, रसोईघर, स्नानघर आदि की व्यवस्था- मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, रोशनदानों आदि की व्यवस्था रहती थी भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगने का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
  • छतें मकानों की छतें समतल थीं ये लकड़ी की कड़ियों से बनाई जाती थीं।
  • सीढ़ियाँ मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे। छत अथवा ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं ये पकी ईटों की बनती थीं।

(6) विशाल स्नानागार-मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी दीवारें और फर्श पक्की ईंटों के बने हैं। स्नानकुंड के चारों ओर गैलेरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुंड के निकट ही एक कुआँ है जिससे स्नानकुंड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुंड के तीन ओर बरामदे थे। स्नानागार के भवन के उत्तर में आठ स्नानकक्ष थे।

प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है—
(1) कृषि – हड़प्पा के निवासियों का मुख्य व्यवसायं कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, कपास, दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।

(2) पशुपालन उत्खनन में अनेक मुहरें मिली हैं जिन पर अनेक पशु-पक्षियों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पावासी गाय, बैल, भैंस, सूअर, भेड़, बकरी, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। ये लोग व्याघ्र, हाथी, गैंडा, भैंसा, हिरण, घड़ियाल आदि जानवरों से परिचित थे।

(3) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा उनी दोनों प्रकार के वस्त्र तैयार किए जाते थे। यहाँ के कुम्भकार | मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। यहाँ मनके बनाने, शंख की कुटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे। सीप, घाँचा, हाथीदांत आदि के काम में भी निपुण थे।

(4) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से होता था। जल यातायात के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का एवं थल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। आन्तरिक व्यापार उन्नत अवस्था में था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था उनका ओमान, मेसोपोटामिया, ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था। मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। मोहनजोदड़ो में भी मेसोपोटामिया की मुहरें मिली हैं।

(5) तोल तथा माप के साधन – हड़प्पा निवासी बाटों का प्रयोग करना भी जानते थे। मोहनजोदड़ो की खुदाई में छोटे-बड़े सभी प्रकार के बाट मिले हैं। ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे और प्रायः ये किसी भी प्रकार के चिह्न से रहित घनाकार होते थे।

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(6) यातायात के साधन स्थल मार्ग से जाने के लिए बैलगाड़ियों, इक्कों आदि का प्रयोग होता था। जलमार्ग से जाने के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 19.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) समाज का वर्गीकरण-उत्खनन में प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज में कई वर्ग थे। कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, दस्तकार, जुलाहे, राजगीर आदि पेशेवर लोग रहे होंगे। सम्भवतः पुरोहितों का एक पृथक् वर्ग रहा होगा। राजकर्मचारियों एवं सेनाधिकारियों का भी एक विशिष्ट वर्ग रहा होगा। दुर्ग भाग में शासक, उच्च पदाधिकारी एवं सम्पन्न लोग रहते होंगे और नगर भाग में अधिकतर सामान्य लोग रहते होंगे

(2) परिवार – उत्खनन में जो भवन मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि उनमें पृथक् पृथक् परिवार रहते होंगे। हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक था। ऐसी स्थिति में स्थियों का परिवार एवं समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।

(3) भोजन – हड़प्पा निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे। वे गेहूं, जौ, चना, दाल, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे। वे मांस, मछली तथा अण्डों का भी सेवन करते थे। वे भेड़, बकरी, सूअर, भैंस, हिरण, कछुआ, घड़ियाल आदि के मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।

(4) वेशभूषा हड़प्पावासी सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पुरुष प्रायः धोती तथा शाल का प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ प्रायः घाघरे की तरह एक पेरेदार वस्त्र का प्रयोग करती थीं।

(5) आभूषण- हड़प्पा के स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। स्वी और पुरुष दोनों ही अंगूठी, कंगन, हार, भुजबन्द, कड़े आदि आभूषण पहनते थे आभूषण सोने, चाँदी, तांबे, काँसे, हाथीदाँत, मनकों तथा विविध बहुमूल्य पत्थरों के बने होते थे।

(6) सौन्दर्य प्रसाधन-स्विय बड़ी शृंगारप्रिय थीं तथा वे दर्पण, कंधी, काजल, सुरमा सिन्दूर, इत्र, पाउडर, लिपस्टिक आदि का प्रयोग करती थीं।

(7) आमोद-प्रमोद के साधन-शिकार करना, शतरंज खेलना, संगीत-नृत्य में भाग लेना, जुआ खेलना, पशु- पक्षियों की लड़ाइयाँ आदि हड़प्पावासियों के मनोरंजन के साधन थे। अनेक प्रकार के खिलौने बच्चों के मनोरंजन के साधन थे।

(8) मृतक संस्कार हड़प्पा निवासी अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –

  • पूर्णं समाधि – इसके अन्तर्गत शव को जमीन में गाड़ दिया जाता था। शव के साथ मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण आदि वस्तुएँ भी रख दी जाती थीं। कुछ कनों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। कुछ शवों के साथ शंख के छल्ले, जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सूक्ष्म मनकों से बने आभूषण, ताँबे के दर्पण भी रख दिए जाते थे।
  • दाह-कर्म- इसमें शव को जला दिया जाता था तथा उसकी भस्म को मटके में डाल कर दबा दिया जाता था।
  • आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था और शव के बचे हुए भाग को जमीन में गाड़ दिया जाता था।

प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति (हड़प्पा के लोगों का धार्मिक जीवन) हड़प्पा के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मातृदेवी की उपासना- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्द्रदड़ो आदि स्थानों से मिट्टी की बनी हुई नारी मूर्तियाँ मिली हैं। इन्हें मातृदेवी की मूर्तियाँ माना गया है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) शिव की उपासना हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है। इस देवता के तीन मुख और दो सौंग हैं। उसे एक हाथी, एक व्याघ्र एक भैंसा तथा एक गैंडा से घिरा हुआ दिखाया गया है। आसन के नीचे हिरण अंकित है, इसे ‘आद्य शिव’ अर्थात् हिन्दू के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप की संज्ञा दी गई है।

(3) लिंग पूजा- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से हमें पत्थर, फॉन्स, सीप आदि से बने हुए छोटे-बड़े आकार के लिंग मिले हैं शिव के प्रतीक होने के कारण ये लिंग पवित्र समझे जाते थे तथा इनकी पूजा की जाती थी।

(4) योनि-पूजा – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में बहुत से छाले मिले हैं। पुरातत्वविद जॉन मार्शल इन छल्लों को योनि का प्रतीक मानते हैं उनका मत है कि हड़प्पा सभ्यता में योनि-पूजा का भी प्रचलन था।

(5) पशु-पूजा – हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडा आदि के चित्र मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडे आदि की उपासना करते थे। हड़प्पावासी नाग की भी पूजा करते थे।

(6) वृक्ष-पूजा मुहरों पर पीपल के वृक्ष के चित्र पर्याप्त मात्रा में अंकित हुए मिले हैं। हड़प्पावासी पीपल, बबूल, तुलसी, खजूर, नीम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे।

(7) अग्नि वेदिकाएँ- कालीबंगा, लोथल, बणावली और राखीगढ़ी की खुदाई से हमें अनेक अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।

(8) जल-पूजा – हड़प्पावासियों को पवित्र स्नान तथा जल पूजा में गहरा विश्वास था।

(9) प्रतीक पूजा हड़या से प्राप्त मुहरों पर स्वस्तिक, चक्र, स्तम्भ आदि के चित्र मिले हैं। ये सम्भवत: मंगल- चिह्न थे। सम्भवतः इनका कुछ धार्मिक महत्व था।

(10) जादू-टोने में विश्वास हड़प्पावासी भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते थे तथा ये लोग पशु बलि में भी विश्वास करते थे।

प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताएँ:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) मूर्तिकला – हड़प्पावासी मूर्तिकला में बड़े निपुण थें। मूर्तियाँ मिट्टी, पत्थर, सोना, चाँदी, पीतल, तांबे, कांस्य आदि की बनाई जाती थीं हड़प्पा से प्राप्त पत्थर की दो मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त काँसे की बनी हुई एक नर्तकी की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर और सजीव है। इस मूर्ति में नारी अंगों का न्यास सुन्दर रूप से हुआ है।

(2) मुहर निर्माण कला-हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा हड़प्पा लिपि में लेख मिलते हैं। इन मुहरों का प्रयोग पत्र अथवा पार्सल पर छाप लगाने के लिए किया जाता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल से विशाल संख्या में मुहरें मिली हैं। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें फयॉन्स (काँचली मिट्टी), गोमेद, चर्ट और मिट्टी की भी हैं। अनेक मुहरों पर हाथी, व्याघ्र गैंडे तथा कूबड़दार बैल आदि का अंकन मिलता है।

(3) चित्रकला खुदाई में अनेक बर्तन तथा मुहरें मिली हैं जिन पर चित्र अंकित हैं। ये चित्र बड़े सुन्दर और सजीव हैं। इनमें सांड तथा बैल के चित्र विशेष रूप से बड़े आकर्षक हैं।

(4) मिट्टी के बर्तन बनाने की कला-मिट्टी के बर्तन कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे तथा उन्हें भट्टियों पर पकाया जाता था।

(5) धातुकला हड़प्पावासी सोना, चाँदी आदि के सुन्दर आभूषण बनाते थे ये लोग धातुओं की मूर्तियाँ भी बनाते थे। धातुओं के बर्तनों पर नक्काशी भी की जाती थी।

(6) लेखन कला – सामान्यतः हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं। यह लिपि रहस्यमय बनी हुई है क्योंकि यह आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

विद्वानों के अनुसार निश्चित रूप से हड़प्या लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है- 400 के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाव से बायीं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दायीं ओर चौड़ा अन्तराल है और बायीं ओर यह संकुचित है जिससे जान पड़ता है कि लिखने वाले व्यक्ति ने दायीं ओर से लिखना शुरू किया और बाद में बायीं ओर स्थान कम पड़ गया।

प्रश्न 22.
1800 ई. तक हड़प्पाई सभ्यता का अन्त किन कारणों से हुआ? उल्लेख कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण विभिन्न विद्वानों और पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण बताए हैं –
(1) जलवायु परिवर्तन कुछ विद्वानों का मत है कि सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से अनेक बस्तियाँ उजड़ गई और लोग बर्बाद हो गए।

(2) पर्यावरण का सूखा होना – ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए ईंट पकाने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए हड़प्पा निवासी बहुत अधिक लकड़ी जलाते थे, जिससे आस-पास के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई।

(3) बाड़ों का प्रकोप कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।

(4) भूकम्प कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः किसी शक्तिशाली भूकम्प के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ होगा।

(5) संक्रामक रोग-कुछ विद्वानों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता का विनाश मलेरिया अथवा किसी अन्य संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने से हुआ होगा।

(6) प्रशासनिक शिथिलता कुछ विद्वानों का विचार है कि शासक का अपने अधिकारियों पर नियन्त्रण नहीं रहा होगा ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई सभ्यता का अंत हो गया होगा।

(7) हड़प्पा के नगरों का समुद्र तट से दूर होना- डेल्स के अनुसार अनेक कारणों से हड़प्पा के अनेक नगर समुद्र तट से दूर होते चले गए। परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के नगरों के व्यापार की प्रगति अवरुद्ध हो गई और उनकी सम्पन्नता नष्ट होती चली गई।

(8) आर्द्रता की कमी घोष के अनुसार कुछ स्थानों पर आर्द्रता की कमी तथा भूमि की शुष्कता के कारण भी हड़प्पा सभ्यता का अन्त हुआ।

(9) नदियों का दिशा परिवर्तन-डेल्स के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का दिशा परिवर्तन उस क्षेत्र में संस्कृति के विनाश का प्रमुख कारण रहा होगा।

(10) विदेशी आक्रमण कुछ विद्वानों का विचार है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हड़प्पा प्रदेश पर आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया होगा। सम्भवतः ये आक्रमणकारी आर्य लोग थे।

प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के अंत के बारे में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अंत:
(1) विकसित हड़प्पा स्थलों का त्याग उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा- स्थलों को त्याग दिया गया था। दूसरी ओर गुजरात, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नयी बस्तियों में आबादी में वृद्धि होने लगी थी।

(2) भौतिक संस्कृति में परिवर्तन विद्वानों के अनुसार उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई.पूर्व के पश्चात् भी अस्तित्व में रहे कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में बदलाव आया था जैसे हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं-बायें, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई। प्रायः थोड़े सामान के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयुक्त किया जाता था।

इसके अतिरिक्त भवन निर्माण की तकनीकों का अन्त हुआ और बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बन्द हो गया। इस प्रकार पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवन शैली को उजागर करती हैं। इन संस्कृतियों को ‘उत्तर हड़प्पा’ अथवा ‘अनुवर्ती संस्कृतियों’ की संज्ञा दी गई।

(3) हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के कारण विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के सम्भावित कारण निम्नलिखित थे-

  • जलवायु परिवर्तन- सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से ‘अनेक बस्तियाँ उजड़ गई तथा हड़प्पा संस्कृति का अन्त हो गया।
  • वनों की कटाई वनों की कटाई से हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई। भी
  • अत्यधिक बाढ़-सिन्धु नदी की अत्यधिक बाड़ें हड़प्पा की सभ्यता के अन्त के लिए उत्तरदायी थीं।
  • नदियों का मार्ग परिवर्तन कुछ विद्वानों के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का मार्ग परिवर्तन उस क्षेत्र में सभ्यता के विनाश का एक प्रमुख कारण था।
  • सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों का अभाव- कुछ विद्वानों का मत है कि सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों के अभाव मैं हड़प्पा सभ्यता का अन्त हो गया था।

 

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता ?
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपनी मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है ?
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता ?
(च) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है ?
(छ) मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) जिस प्रकार टूटे हुए सामान्य धागे को जोड़ने पर उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम के टूटे हुए धागे को जोड़ने पर वह पहले के समान नहीं रह पाता। उसमें अविश्वास की गाँठ पड़ जाती है।
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर इसलिए प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे हमारा दुख बाँट नहीं सकते। अपनी व्यथा कहने से वे हमारा मजाक उड़ाने लगते हैं।
(ग) सागर का जल खारा होता है, जिससे किसी की प्यास नहीं बुझती; जबकि पंक जल मीठा होने के कारण लघु जीवों की प्यास बुझाकर उन्हें तृप्त करता है। उसकी इसी उपयोगिता के कारण कवि ने पंक जल को धन्य कहा है।
(घ) एक पर अटूट विश्वास करके उसकी सेवा करने से सब कार्य सफल हो जाते हैं तथा मनुष्य को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
(ङ) कमल जल में ही खिलता है; उसके अभाव में कमल का कोई अस्तित्व नहीं होता। इसलिए जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर सकता।
(च) नट कुंडली विद्या में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है।
(छ) जिस मोती का पानी अर्थात उसकी चमक समाप्त हो जाती है, उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता। मनुष्य का पानी उतरने से आशय मनुष्य के मान-सम्मान के समाप्त होने से है। जाता है। चूना पानी के अभाव में घुलता नहीं है और सूखा आटा पानी के बिना पेट भरने के काम नहीं आता।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
(ख) सुनि अठि हैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष चून।
उत्तर :
(क) यदि प्रेम संबंधों में एक बार भी टूटन या दरार आ जाती है, तो वे संबंध पुनः पहले की तरह सहज नहीं हो पाते। उनमें कहीं-न-कहीं अविश्वास – रूपी गाँठ पड़ जाती है।
(ख) मानव को अपने जीवन के दुख सबके सामने प्रकट नहीं करने चाहिए, बल्कि उन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखने चाहिए। लोग उन्हें जान कर केवल मज़ाक उड़ाते हैं; कोई भी उन दुखों को बाँटता नहीं है।
(ग) अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करने के स्थान पर एक ही इष्टदेव के प्रति आस्था रखना अधिक अच्छा होता है। जिस प्रकार जड़ के सींचने से पेड़ से फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार अपने एक इष्ट के प्रति ध्यान केंद्रित करने से ही फल की प्राप्ति होती है।
(घ) दोहा – छंद आकार में छोटा और स्वरूप में सरल होता है, पर थोड़े से अक्षरों से ही दीर्घ भावों को प्रकट करने की क्षमता रखता है।
(ङ) हिरण संगीत पर मुग्ध होकर अपना जीवन तक त्याग देते हैं। वे भागने की क्षमता रखते हुए भी भागते नहीं और संगीत के पुरस्कार स्वरूप शिकार बन जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य किसी के गुणों पर रीझकर पुरस्कारस्वरूप धन देते हैं।
(च) जहाँ छोटी चीज़ का उपयोग होता है। वहाँ बड़ी वस्तु किसी काम की नहीं होती और जहाँ बड़ी चीज़ प्रयुक्त होती है, वहाँ छोटी वस्तु बेकार है। सुई जो काम करती है, वह काम तलवार नहीं कर सकती और जिस काम के लिए तलवार है, वह काम सूई नहीं कर सकती। हर चीज़ की अपनी ही उपयोगिता है।
(छ) मोती में यदि चमक न रहे तो वह व्यर्थ है; मनुष्य यदि आत्म-सम्मान के भावों से रहित हो जाए तो बेकार है। सूखा आटा जल के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं। मोती, मनुष्य और चून के लिए पानी का अपना विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है –
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
उत्तर :
(क) चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥
(ख) बिगरी बात बन नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
(ग) रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

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प्रश्न 4.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
उदाहरण: कोय – कोई, जे जो
उत्तर :

  • ज्यों – जैसे
  • नहिं – नहीं
  • धनि – धन्य
  • जिय – जीव
  • होय – होना
  • तरवारि – तलवार
  • मूलहिं – मूल को
  • पिआसो – प्यासा
  • आवे – आना
  • ऊबरै – उबरना
  • बिथा – व्यथा
  • परिजाय – पड़ जाती है
  • कछु – कुछ
  • कोय – कोई
  • आखर – अक्षर
  • थोरे – थोड़े
  • माखन – मक्खन
  • सींचिबो – सींचना
  • पिअत – पीना
  • बिगरी – बिगड़ी
  • सहाय – सहायक
  • बिनु – बिना
  • अठिलैहैं – इठलाना

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘चित्रकूट’ उत्तर प्रदेश में स्थित है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहे / कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों / कविताओं को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रहीम की भाषा पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
रहीम ने अपने काव्य में प्रचलित ब्रज और अवधी भाषा का अधिक प्रयोग किया था। वे तुर्की, अरबी और फ़ारसी के परम विद्वान थे। इसलिए उनकी भाषा पर इन भाषाओं का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इन्होंने दोहे, सवैये, कवित्त और छप्पयों की रचना ब्रजभाषा में की थी। इनके सभी बरवै अवधी भाषा में हैं। इन्होंने खड़ी बोली की कविता भी इन्होंने की थी। ‘मद नाष्टक’ खड़ी बोली में है। कहीं- कहीं इन्होंने एक ही रचना में आठ-आठ भाषाओं का प्रयोग भी किया है। इनकी कविता में माधुर्य और प्रसाद गुण की अधिकता है। इनकी भाषा भावों का अनुसरण करने वाली है, जिसमें सभी गुणों का वहन करने की क्षमता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
‘गाँठ पड़ना’ से तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रहीम के दोहे में ‘ गाँठ पड़ना’ लाक्षणिक प्रयोग है। इसका तात्पर्य है कि जिस प्रकार प्रयत्न करके जोड़ने के बाद भी धागा पहले जैसा एक सार नहीं होता, उसी प्रकार एक बार झगड़ा हो जाने के बाद मन में झगड़े की खटास कभी नहीं मिट पाती; फिर चाहे विवाद को मिटाने का लाख प्रयत्न भी कर लिया जाए। दोनों पक्षों के हृदय में अविश्वास रूपी गाँठ का भाव अवश्य विद्यमान रहता है।

प्रश्न 3.
‘चटकाय’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘चटकाय’ शब्द प्रयोजनमूलक शब्द है, जो किसी विशेष प्रयोजन को प्रकट करता है। यह ‘झटके से तोड़ना और बिना अधिक सोच-समझ कर तोड़ना’ के भाव को प्रकट करता है। जब कोई व्यक्ति बिना किसी कारण के दूसरे व्यक्ति के साथ लड़ता – झगड़ता है और आपसी संबंधों को एकदम से समाप्त कर देता है, तब वह अधिक सोचता – विचारता नहीं है।

प्रश्न 4.
लोग दूसरों के दुखों को क्यों नहीं बाँटना चाहते ?
उत्तर :
इस संसार में सभी व्यक्ति दुखी हैं। सबके पास अपने-अपने दुख हैं। उन्हें अपने दुख ही बहुत बड़े लगते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी दुख का मूल कारण नहीं समझना चाहता और न ही उसके दुख को दूर करने की सोचता है। जब तक किसी भी व्यक्ति को दूसरे का सुख-दुख अपना नहीं लगता, तब तक कोई उन्हें बाँटने को तैयार नहीं होता।

प्रश्न 5.
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से क्या स्पष्ट किया है ?
उत्तर :
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से यह स्पष्ट किया है कि जैसे पेड़ की जड़ में पानी डालने से फल-फूल प्राप्त होते हैं; उसी प्रकार किसी एक इष्टदेव के प्रति भक्ति भाव से सेवा करने से भक्त को सब प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।

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प्रश्न 6.
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से किस काव्य इस रूढ़ि के बारे में बताया है ?
उत्तर :
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से साहित्य में प्रचलित काव्य रूढ़ि को प्रकट किया है कि हिरण संगीत की मधुर ध्वनि पर मुग्ध हो जाते हैं और उस समय इतने तल्लीन हो जाते हैं कि शिकारी के सामने होने पर भी भागते नहीं हैं। शिकारी उनकी इस कमज़ोरी को जानते हैं और शिकार करते समय इस विधि को अपनाते हैं। हिरण अपनी इस कमज़ोरी के कारण अपने प्राण खो देते हैं

प्रश्न 7.
कवि दोहे में प्रयुक्त ‘लघु’ शब्द से क्या भाव प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
‘लघु’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘छोटा’। कोई भी व्यक्ति आयु, जाति, पद, शक्ति, साहस, धन, बुद्धि आदि किसी भी प्रकार से दूसरों की तुलना में छोटा हो सकता है। इसके माध्यम से कवि यह प्रकट करना चाहता है कि कभी भी किसी को छोटा मानकर उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इस संसार में सभी अपना-अपना महत्व रखते हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है। कई बार ऐसा होता है कि जो काम बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते, उस काम को छोटे समझे जाने वाले लोग सरलता से कर देते हैं।

प्रश्न 8.
‘जलज’ शब्द के माध्यम से कवि मनुष्य को क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
‘जलज’ शब्द से अभिप्राय है- ‘जल से उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल’। कमल का फूल सूर्य की उपस्थिति में जल में उगता है; लेकिन जब तालाब का जल सूख जाता है, उस समय सूर्य की किरणों से कमल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता। कवि मनुष्य से कहना चाहता है कि मुसीबत के समय अपनी संपत्ति ही काम आती है, कोई किसी का सहायक नहीं बनता। कवि के अनुसार परिस्थितियों के अनुकूल होने या न होने से अधिक साधन के न होने का अधिक प्रभाव पड़ता है। संचित धन की कमी अनुकूल परिस्थितियों को भी प्रतिकूल बना देती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 9.
मोती का मूल्य कब तक होता है और कवि इसके माध्यम से क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
मोती का मूल्य तब तक होता है, जब तक उस पर चमक होती है। वास्तव में मोती की गुणवत्ता उसके बाहरी भाग पर विद्यमान चमक है। जब चमक समाप्त हो जाती है, तो वह मूल्यहीन हो जाता है। कवि मोती के माध्यम से मनुष्य को यह शिक्षा देना चाहता है कि उसे सदा अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन महत्वहीन हो जाता है।

प्रश्न 10.
रहीम के दोहों की प्रसिद्धि का क्या कारण है ?
उत्तर :
रहीम के दोहे नीतिगत ज्ञान तथा मानव कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होने के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों की सुप्त चेतना को जगाना चाहा है। उन्होंने लोगों में नई चेतना तथा जागृति लाने का भरसक प्रयास किया है। रहीम के दोहों में निहित संदेश लोगों के मन को झकझोर कर रख देता है।

प्रश्न 11.
रहीम ने मानव को अपना दुख मन में ही छिपाकर रखने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
रहीम ने मानव को समझाते हुए कहा है कि मनुष्य को अपने मन की पीड़ा तथा दर्द को सदैव अपने मन में ही छिपाकर रखना चाहिए। उसे यह पीड़ा जग-जाहिर नहीं करनी चाहिए। संसार में लोग एक-दूसरे की पीड़ा देखकर उसकी सहायता करने के स्थान पर उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 12.
कवि ने किसी एक देव को इष्टदेव मानने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने मानव को अनेक देवी-देवताओं की पूजा-आराधना करने की बजाय एक देव की पूजा करने तथा उसे इष्टदेव मानकर सेवा करने की सलाह दी है। ऐसा करने से मानव मन अलग-अलग दिशाओं की ओर नहीं दौड़ता। वह शांत मन होकर एक ईश्वर की पूजा करता है, तो उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

प्रश्न 13.
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में क्या कहा है ?
उत्तर :
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में कहा है कि सुख-दुख सभी के जीवन के अंग हैं। ये सभी के जीवन में आते-जाते हैं। समय परिवर्तनशील है। जीवन में अनेक बार ऐसा समय आता है, जब मानव को ऐसे स्थानों पर आना-जाना पड़ता है जो उसके लिए अनुकूल नहीं होते। सुख-दुख समयानुसार व्यक्ति की परिस्थितियों को बदल देते हैं।

प्रश्न 14.
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में कब जाता है ?
उत्तर :
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में अपने कष्टों को दूर करने के लिए जाता है। विपरीत परिस्थितियों में उसे ऐसी वस्तुओं एवं स्थानों को भी अपनाना पड़ता है, जिसके लिए वह स्वयं को अनुकूल नहीं मानता। अतीत में भगवान राम को भी अयोध्या छोड़कर जंगलों के कष्टों एवं दुखों को भोगना पड़ा था।

प्रश्न 15.
रहीम के दोहे गागर में सागर भरने का साहस रखते हैं, कैसे ?
उत्तर :
रहीम एक नीति परख कवि हैं। इनके दोहे सीधे दिल और दिमाग पर प्रहार करते हैं। इनके दोहों में शब्द तो कम होते हैं, किंतु उन शब्दों की चोट और घाव अत्यंत गहरे होते हैं। इनके दोहों में निहित संदेश अत्यंत गंभीर और मानव कल्याण से ओत-प्रोत होते हैं। कवि ने छोटे-छोटे छंदों के माध्यम से मानव-जीवन की गंभीर समस्याओं को उठाने तथा उनके निवारण का तरीका बताया है। उनके दोहे कम शब्दों में भी मनुष्य को ज्ञान का अथाह सागर प्रदान करते हैं। इसलिए रहीम के दोहों को गागर में सागर की उपमा दी गई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 16.
कवि ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सोच-समझकर बोलने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने अपने दोहों में लोगों को सोच-समझकर बोलने की शिक्षा देते हुए कहा है कि हमें बहुत विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई बात मुँह से बाहर निकालनी चाहिए। यदि एक बार मुख से निकली हुई बात से कोई हानि हो जाती है, तो अथाह प्रयास करने पर भी वह बात ठीक नहीं हो पाती। बिना सोचे-समझे कहे गए शब्द ऐसे तीर की भाँति होते हैं, जिन्हें लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए।

रहीम के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – अब्दुर्रहीम खानखाना अर्थात रहीम का जन्म सन् 1556 ई० में लाहौर में हुआ था। बचपन से ही इनका मुगल दरबार से संबंध रहा। इसी कारण रहीम विद्या – व्यसनी हो गए। इन्होंने संस्कृत, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्त की थी। युवावस्था में अकबर के दरबार में सेनापति के पद को सुशोभित करते हुए भी रहीम कविता करते थे। रहीम दानी स्वभाव के व्यक्ति थे, अतः याचक को यथेच्छ दान देकर संतुष्ट करना अपना कर्तव्य समझते थे। ये तुलसीदास के परम मित्र थे। जहाँगीर के समय में इनकी दशा बिगड़ गई थी। इनकी संपत्ति को राज्याधिकार में लेकर इन्हें पदच्युत कर दिया गया था। सन् 1626 ई० में इनकी मृत्यु हुई थी।

रचनाएँ – रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, श्रृंगार सोरठा, रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, रहीम रत्नावली, भाषिक वर्ण भेद, सदनाष्टक तथा रास पंचाध्यायी इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। इन्हें रहीम ग्रंथावली में संकलित किया गया है।

काव्य की विशेषताएँ – रहीम की कविता का विषय श्रृंगार, नीति और प्रेम है। इनका जीवन – अनुभव बहुत अधिक था। इस कारण इन्होंने जो कुछ लिखा, वह निजी अनुभव के आधार पर लिखा। इसलिए उसमें पाठक को प्रभावित करने की अपूर्व शक्ति है। इन्होंने केवल कल्पना पर उड़ने का प्रयत्न कहीं नहीं किया। जहाँ कहीं कल्पना को स्वीकार किया, वहाँ यथार्थ को भी साथ रखा गया है। इनकी अनेक सूक्तियाँ और नीति-संबंधी दोहे आज भी मानव का पथ-प्रदर्शन करते हैं। आपके कृष्ण-संबंधी दोहे भी सुंदर हैं और रहीम के हृदय की विशालता के परिचायक हैं।

रहीम का अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर ही समान अधिकार था। कविता के लिए इन्होंने सामान्य ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया। दोहों के अतिरिक्त इन्होंने कवित्त, सवैये और सोरठे भी लिखे हैं। इनकी प्रसिद्धि अपनी दोहावली के आधार पर ही है। इन्होंने अपनी कविता में लोकोक्तियों और लोक – प्रचलित उदाहरणों के आधार पर विषय को सरल तथा सुगम बनाने का यत्न किया है। अपनी भावुकतापूर्ण और अनुभव पर आधारित उक्तियों के कारण हिंदी – साहित्य दोहे में रहीम का विशेष स्थान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

दोहों का सार :

रहीम के नीति के दोहे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अनुभव के आधार पर जिन तथ्यों का संग्रह किया है, वे इन दोहों में प्रस्तुत किए गए हैं। उन्होंने मानव जीवन के लिए उपयोगी सभी बातों का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है। वे नीति-सिद्ध कवि थे। उनके काव्य में भक्ति, नीति तथा वैराग्य की त्रिवेणी बह रही है। उनके सूक्तिपरक दोहे भी अत्यधिक प्रभावशाली बन गए हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से उन सब बातों की निंदा की है, जो मानव की प्रतिष्ठा में बाधक होती हैं। उनके दोहे अपनी सरलता, मधुरता, उपदेशात्मकता, सहजता एवं कलात्मकता के कारण हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि बन गए हैं।

व्याख्या –

1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥

शब्दार्थ : चटकाय – झटके से। परि – पड़ना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने प्रेम-संबंधों को सदा बनाकर रखने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि हमें प्रेम-रूपी धागे को चटकाकर नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि टूटे हुए धागे को फिर से जोड़ा नहीं जा सकता। यदि जोड़ते भी हैं, तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। इसी प्रकार आपसी प्रेम-संबंध भी यदि टूट जाएँ, तो वे फिर जुड़ नहीं पाते। यदि जुड़ भी जाएँ, तो उनमें पहले जैसी मधुरता नहीं रहती।

2. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥

शब्दार्थ : बिथा – व्यथा, दुख। गोय – छिपाकर। अठि हैं – मज़ाक उड़ाना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह समझाया है कि कभी भी किसी को अपने मन का दुख नहीं बताना चाहिए।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अपने मन का दुख-दर्द मन में ही छिपाकर रखना चाहिए, क्योंकि सब तुम्हारी बातें सुनकर तुम्हारा मज़ाक ही उड़ाएँगे; कोई तुम्हारा दुख नहीं बाँटेगा। भाव है कि अपने हृदय के भावों को जगजाहिर मत करो। कोई किसी के दुखों को बाँटता नहीं है।

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3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ॥

शब्दार्थ : मूलहिं – जड़ को। अघाय – संतुष्ट होना, तृप्त होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि किसी एक को अपना इष्टदेव मानने की प्रेरणा देता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि किसी एक इष्टदेव की सेवा करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं परंतु कई लोगों की सेवा करने से सबकुछ नष्ट हो जाता है। रहीम कहते हैं कि वृक्ष की जड़ को सींचने से वृक्ष पर खूब फल उगते हैं, जिन्हें खाकर मनुष्य तृप्त हो जाता है। इसी प्रकार से एक इष्ट को साधने से सब कार्य सफल होते हैं।

4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥

शब्दार्थ : अवध – अयोध्या। रमि – रहना, बसना। नरसे – राजा। बिपदा – मुसीबत।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने चित्रकूट की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अयोध्या नरेश श्री रामचंद्र जी चित्रकूट में निवास कर रहे हैं। चित्रकूट ऐसा पवित्र स्थान है कि कष्ट आने पर सभी यहाँ चले आते हैं। जिस पर मुसीबत पड़ती है, वह अपने कष्टों को दूर करने के लिए इस क्षेत्र में चला आता है।

5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं ॥

शब्दार्थ : दीरघ – दीर्घ, विशाल, गहरे। अरथ – अर्थ, भाव। आखर अक्षर। थोरे थोड़े, कम। नट – अभिनेता, बाजीगर। कुंडली – साँप के बैठने की गोलाकार मुद्रा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। कवि ने इस छोटे-से छंद में छिपे अर्थ- गांभीर्य की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि दोहे जैसे छोटे-से छंद में अक्षर तो बहुत कम होते हैं, परंतु उसमें अर्थ बहुत अधिक होता है। जैसे बाजीगर कुंडली मारकर और अपने को समेटकर ऊँचे-से-ऊँचे स्थान पर कूदकर चढ़ जाता है।

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6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय ॥

शब्दार्थ : पंक – कीचड़। लघु – छोटे। जिय – जीत। अघाय – तृप्त हो जाना। उदधि – सागर। पिआसो – प्यासा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि कई बार छोटे-से भी बड़े-बड़े काम बन जाते हैं, जबकि बड़ों से छोटा काम भी नहीं बनता।

व्याख्या : कवि कहता है कि कीचड़ से भरा वह जल भी प्रशंसा करने योग्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव अपनी प्यास बुझाकर तृप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत उस सागर की प्रशंसा कौन करेगा, जिसके पास जाकर भी लोग प्यासे रह जाते हैं; क्योंकि सागर का जल खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं होता।

7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥

शब्दार्थ : नाद – ध्वनि, संगीत। रीझि – प्रसन्न होकर, मोहित होकर। मृग – हिरन। नर – मनुष्य। हेत – उद्देश्य, कारण।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने किसी के कार्य से प्रसन्न होने पर उसे समुचित पुरस्कार देने का संदेश दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कर्णप्रिय ध्वनि अथवा संगीत सुनकर मृग अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है, लोग भी किसी के कार्य से प्रसन्न होकर उसे कुछ न कुछ देते हैं। रहीम उस व्यक्ति को पशु से भी अधिक निम्न श्रेणी का मानते हैं, जो प्रसन्न होने पर भी किसी को कुछ नहीं देता।

8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

शब्दार्थ : बिगरी – बिगड़ी हुई। मथे – मथने से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने सदा सोच-समझकर बोलने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मनुष्य को सोच-विचार कर ही कोई बात मुँह से निकालनी चाहिए। जैसे फटे हुए दूध को मथने से उसमें से मक्खन नहीं निकाला जा सकता, उसी तरह यदि एक बार कही हुई किसी बात से बिगाड़ हो जाता है, तो फिर चाहे कोई लाख प्रयत्न भी करे बिगड़ी हुई बात बन नहीं सकती।

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9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ॥

शब्दार्थ : बड़ेन – बड़े, धनवान तथा प्रतिष्ठित। लघु – छोटे, निर्धन। तरवारि – तलवार।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में रहीम ने यह स्पष्ट किया है कि बड़ी वस्तुओं और बड़े प्राणियों के साथ-साथ छोटी वस्तुओं और छोटे प्राणियों का भी महत्व होता है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि बड़े लोगों का संपर्क पाकर छोटों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए; क्योंकि जहाँ छोटी-सी सुई काम करती है, वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती। भाव है कि छोटे-बड़े सभी महत्वपूर्ण हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है, इसलिए किसी की भी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।

10. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय ॥

शब्दार्थ : बिपति – मुसीबत। जलज – कमल। रवि – सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह संदेश दिया है कि कठिनाई में सदा अपनी संपत्ति ही काम आती है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि जैसे पानी के बिना कमल को सूर्य भी नहीं बचा सकता, उसी तरह अपनी संपत्ति के बिना मुसीबत में कोई भी सहायता नहीं करता, विपत्ति के समय व्यक्ति को अपने पास संचित धन ही सहायता देता है। कष्ट के समय कोई किसी की सहायता नहीं करता।

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11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

शब्दार्थ : पानी – (i) स्वाभिमान, इज्ज़त (ii) चमक (iii) जल। ऊबरे – महत्व पाना। मानुष – मनुष्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहे के रचयिता रहीम हैं। इसमें उन्होंने पानी के विभिन्न अर्थों के माध्यम से अपने काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया है।

व्याख्या : रहीम का कथन है कि मनुष्य को अपने मान-सम्मान का सदैव ध्यान रखना चाहिए। मान-सम्मान के अभाव में मनुष्य उसी प्रकार महत्वहीन हो जाता है, जिस प्रकार चमक रहित मोती तथा बिना जल के आटे का महत्व नहीं होता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

JAC Class 9 Hindi रैदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे – पानी, समानी आदि। इस पद से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए। उदाहरण: दीपक → बाती।
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है ? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है ?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए – मोरा, चंद, खाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धेरै, छोति, तुहीं, गुसईआ।
उत्तर :
(क) भगवान की तुलना – चंदन, घने बादल, चंद्रमा, दीपक, मोती, सुहागा, स्वामी।
भक्त की तुलना – पानी, मोर, चकोर, बाती, धागा, सोना, दास।
(ख) तुकांत शब्द – मोरा – चकोरा, बाती – राती, धागा – सुहागा, दासा – रैदासा।
(ग) चंदन → पानी; घनबन → मोरा; चंद → चकोरा; मोती → धागा; सोना → सुहागा ; स्वामी → दास।
(घ) कवि ने ‘गरीब निवाजु’ अपने आराध्य परमात्मा को कहा है, क्योंकि वे सदा गरीबों तथा दीन-दुखियों पर दया करते हैं।
(ङ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करता है कि जिन लोगों को संसार के लोग अछूत समझते हैं, ऐसे लोगों पर परमात्मा दया करके उनकी सदा सहायता करते हैं। परमात्मा कोई भेदभाव नहीं करते। वे सब पर समान रूप से दया करते हैं।
(च) कवि ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, स्वामी, गोसाई, गोबिंद, हरि कहकर पुकारा है।
(छ) मोरा = मोर। चंद = चंद्रमा, चाँद। बाती = बत्ती। जोति = ज्योत। बर = जले। राती = रात, रात्रि। छत्रु = छत्र। धर = धरना। छोति = छूत। तुहीं = तुम ही, आप ही। गुसईआ = गोसाई, स्वामी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 2.
नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) जाकी अँग- अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर :
(क) भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग-रहित और गंध-रहित है, लेकिन ईश्वररूपी चंदन का सान्निध्य पाकर वह धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। ईश्वरीय भक्ति उसे पापों से मुक्त करके उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।
(ख) भक्त तो सदा भवसागर पार करवाने वाले परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पित कर देना चाहता है। वह हर पल उसी के रूप-दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर अपने प्रिय चंद्रमा को निहारना चाहता है, उसी प्रकार संत रैदास भी प्रभूरूपी चाँद को एकटक देखना चाहते हैं; वे अपने ध्यान को किसी दूसरी ओर नहीं लगाना चाहते।
(ग) कवि कहता है कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में समाया हुआ है। प्रत्येक प्राणी में उसी की ज्योति जगमगा रही है। उसी के कारण हम जीवित हैं। वही हमारे श्वासों को चला रहा है।
(घ) कवि बताना चाहता है कि जीवों पर जैसी कृपा ईश्वर करता है, वैसी कृपा कोई और नहीं कर सकता। वही दीन-दुखियों का रक्षक है। उसके बिना मानव का सहायक कोई और नहीं है।
(ङ) परमात्मा किसी से नहीं डरता। वह तो नीच कों भी उच्च बना देता है। वह अपने भक्तों पर दया करके उनका उद्धार कर देता है।

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प्रश्न 3.
रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पहले पद ‘अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी’ में कवि अपने आराध्य को सदा स्मरण करता है, क्योंकि वह स्वयं को उनसे अलग नहीं मानता। उसके अनुसार वह पानी है, तो प्रभु चंदन हैं। इसी प्रकार से वह स्वयं को मोर, चकोर, बाती, धागा, सोना तथा सेवक कहता है और अपने प्रभु को घनश्याम, चाँद, दीपक, मोती, सुहागा और स्वामी मानता है।

दूसरे पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ में कवि ने अपने आराध्य के दयालु रूप का वर्णन किया है जो ऊँच-नीच, सुवर्ण-अवर्ण, अमीर-गरीब आदि का भेदभाव नहीं जानता। वह किसी भी कुल-गोत्र में उत्पन्न अपने भक्त को सहज भाव से अपनाकर उसे दुनिया में सम्मान दिलाता है तथा उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त कर अपने चरणों में स्थान देता है। ईश्वर द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न जाति में उत्पन्न भक्तों को समाज में उच्च स्थान दिलाने तथा उनका उद्धार करने के उदाहरण देकर कवि ने अपने इस कथन को सिद्ध किया है।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
भक्त कवि कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीराबाई की रचनाओं का संकलन कीजिए।

प्रश्न 2.
पाठ में आए दोनों पदों को याद कीजिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रैदास के पद समान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रैदास की भक्ति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
रैदास की भक्ति भक्त के मन की पुकार है, जो परमात्मा को रिझाने और पाने के लिए व्याकुल हैं। वे संतों के समान दार्शनिक सिद्धांतों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने सीधी-सादी और व्यावहारिक भाषा में अपने भक्त हृदय को प्रकट किया। उनकी भक्ति सच्चे हृदय की आवाज़ को व्यक्त करती है। वे हृदय के सच्चे थे और तर्क-वितर्क से उपलब्ध होने वाले कोरे ज्ञान की अपेक्षा सत्य से पूर्ण अनुभूति में अधिक विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि राम का परिचय पाने के बाद ही हम अपने मन की दुविधा को दूर कर सकते हैं।

जिस प्रकार ‘तूंबा’ जल के ऊपर ही रहता है, उसी प्रकार हमें भी संसार में वैसे ही विचरण करना चाहिए। भक्ति दिखावे का नाम नहीं है। जब तक मनुष्य पूर्ण वैराग्य की स्थिति प्राप्त नहीं करता, तब तक भक्ति के नाम पर की जाने वाली सब साधनाएँ केवल भ्रम और आडंबर है जिनसे कोई लाभ नहीं हो सकता। सोने की शुद्धि का परिचय उसे पीटे, काटे, तपाने या सुरक्षित रखने से नहीं होता बल्कि सुहागे के साथ संयोग से होता है। हमारे हृदय में निर्मलता तभी उत्पन्न होती है, जब परमात्मा से हमारी पहचान हो जाती है।

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प्रश्न 2.
रैदास ने जिस ‘राम’ की भक्ति की थी, उसका परिचय दीजिए।
उत्तर :
कबीर के ‘निर्गुण राम’ के समान रैदास का ‘सत्य राम’ भी निर्गुण और निराकार है, जिसे वे ‘माधो’ कहकर पुकारते हैं। यह राम का वह रूप नहीं है, जिन्हें सामान्य लोग जानते हैं। वह सर्वव्यापक और निर्गुण है; वह निराकार है; सब उसमें व्याप्त है और वह सबमें व्याप्त है। राम सदा एक रस है। वह निर्गुण, निराकार, उदय-अस्त से रहित, सर्वत्र व्यापक, निश्चल, अजन्मा, अनंत, अनुपम, निर्भय, अगम, अगोचर, अक्षर, अतर्क, अनादि, अनंत, निर्विकार और अविनाशी है।

उसमें न कर्म है और न अकर्म; न शुभ है और न अशुभ; न शीत है और न अशीत; न योग है और न भोग। वह शिव – अशिव, धर्म-अधर्म, जरा-मरण, दृष्टि- अदृष्टि, गेय – अगेय आदि के बंधन से परे है। वह एक है। वह अद्वितीय है। वह मूर्ति में नहीं है। जो मूर्ति को पूजते हैं, वे कच्ची बुद्धि वाले हैं। राम तो वह है, जिसका न कोई नाम है और न ही स्थान। वह सबमें व्याप्त है; उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 3.
रैदास ने स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन क्यों माना है ?
उत्तर :
रैदास को प्रभु नाम जपने की लगन लगी है। वे स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। पानी का रंग, गंध व कोई स्वाद नहीं होता, परंतु जब पानी प्रभु-रूपी चंदन के साथ मिल जाता है तो उसमें भी रंग और सुगंध आ जाती है। कवि कहता है कि यदि उसमें कोई गुण विद्यमान है, तो ईश्वर की भक्ति के कारण है। ईश्वर ही सभी गुणों को प्रदान कर अपने भक्त को गुणवान बना देता है।

प्रश्न 4.
रैदास ने स्वयं की तुलना मोर से क्यों की है ?
उत्तर :
रैदास ने स्वयं की तुलना मोर से की है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर अपने हृदय की प्रसन्नता को नाच नाचकर प्रकट करता है, उसी प्रकार भक्त – रूपी कवि भी प्रभु रूपी बादल को अपने मन में अनुभव करता है तथा आत्मविभोर होकर नाच उठता है।

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प्रश्न 5.
कवि ने स्वयं को धागा क्यों माना है ?
उत्तर :
ईश्वर का स्वरूप निराकार है। भक्त अपनी भक्ति के द्वारा उस स्वरूप का गुणगान करता है। वह स्वयं को प्रभु का सेवक बताता है। कवि स्वयं को उस धागे के समान मानता है, जो भक्ति के अमूल्य मोतियों को ईश्वर – नाम के रूप में पिरोता है। ईश्वर भक्त को अपने गुणों से प्रभावित करता है। भक्त के लिए वे सारे गुण मोती के समान हैं, जिन्हें वह भक्ति भावना रूपी धागे में पिरोता है। इसलिए रैदास ने स्वयं को धागा बताया है।

प्रश्न 6.
रैदास ने प्रभु को कैसा बताया है ?
उत्तर :
रैदास ने प्रभु को उदार, कृपालु तथा दयालु बताया है। उनके अतिरिक्त गरीबों तथा दीन-दुखियों का स्वामी अथवा रक्षक अन्य कोई नहीं है। वे ही सबके रक्षक और स्वामी हैं।

प्रश्न 7.
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ॥
उपरोक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
संत रैदास ने दास्य-भाव की भक्ति को प्रकट किया है और माना है कि उनका अस्तित्व परमात्मा के कारण है। परमात्मा ही गुणों का भंडार है और वही अपने भक्तों पर दया करता है। कवि की भाषा सधुक्कड़ी है, जिसमें तद्भव शब्दावली की अधिकता है। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और उपमा का सहज, सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। माधुर्य गुण, शांत रस और अभिधा शब्द-शक्ति का सुंदर प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 8.
कवि रैदास को किसकी आदत पड़ गई है, जो छोड़ने से भी नहीं छूट रही ?
उत्तर :
कवि रैदास बड़े ही दीन भाव से प्रभु से कहते हैं कि हे ईश्वर मुझे तो ‘राम-नाम’ जपने की रट लग गई है। दिन हो या रात – हर पल हर समय मेरी जिह्वा ‘राम-नाम’ का जप करती रहती है। यह आदत ऐसी पड़ गई है कि अब छूटने से भी नहीं छूट रही।

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प्रश्न 9.
कवि रैदास ने प्रभु को कैसा माना है ?
उत्तर :
कवि रैदास ने प्रभु को सबका रक्षक माना है। कवि के अनुसार उनके प्रभु दयावान हैं। वे सभी प्राणियों पर अपनी अनुकम्पा बनाए रखते हैं। उनकी दृष्टि में कोई छोटा-बड़ा नहीं है। वे दया के सागर तथा करुणाशील हैं। वे दीन-दुखियों पर दया करने वाले हैं और सभी प्राणियों को एक भाव से देखते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने दूसरे पद में ऊँच-नीच तथा भेदभाव से संबंधित क्या बातें कही हैं ?
उत्तर :
कवि ने दूसरे पद में स्पष्ट किया है कि ईश्वर के समक्ष ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। वे किसी को छोटा-बड़ा नहीं मानते। वे सभी को एक दृष्टि से देखते हैं। वे किसी भी कुल, गोत्र, जाति आदि में उत्पन्न अपने भक्त को समान रूप से अपना कर तथा उसे समुचित सम्मान देकर उसका उद्धार करते हैं। यही उस परमपिता परमेश्वर की दयालुता है।

प्रश्न 11.
दूसरे पद में कवि ने परमात्मा द्वारा किन लोगों के उद्धार की बात कही है ?
उत्तर :
दूसरे पद में कवि ने परमात्मा द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे लोगों की भक्ति व आराधना से प्रसन्न होकर उनका उद्धार करने की बात कही है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 12.
कवि रैदास के पदों की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि रैदास ने अपने पदों में मुख्य रूप से सरल तथा प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा में कहीं-कहीं उर्दू, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी आदि के शब्दों का प्रयोग भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इनके पदों में स्वरमैत्री तथा संगीतात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। पदों में तत्सम शब्दों के स्थान पर तद्भव शब्दों की अधिकता है। इन्होंने सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग अत्यंत सहज ढंग से किया है।

रैदास के पद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय -रैदास अथवा रविदास निर्गुण काव्यधारा के संत कवियों में प्रमुख माने जाते हैं। आदि ग्रंथ के अनुसार इनका जन्म काशी में हुआ था। इनका समय सन् 1388 ई० से लेकर सन् 1518 ई० तक का माना जाता है। ये कबीर के समकालीन थे। इनके गुरु रामानंद थे। गृहस्थी होते हुए भी इनका जीवन संतों के समान था। इन्होंने अपनी रचनाओं में अपने पूर्ववर्ती और समकालीन संत कवियों नामदेव, कबीर आदि की भी चर्चा की है। इनके ज्ञान से प्रभावित होकर मीराबाई ने इन्हें अपना गुरु स्वीकार किया था। तत्कालीन शासक सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली भी आमंत्रित किया था।

रचनाएँ – रैदास द्वारा रचित दो ग्रंथ – ‘ रविदास की बानी’ और ‘रविदास के पद’ हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहब में भी इनके कुछ पद संग्रहीत हैं। इनकी समस्त रचनाएँ ‘रैदास की बानी’ के नाम से उपलब्ध हैं।

काव्य की विशेषताएँ – रैदास ने अपनी रचनाओं में निर्गुण निराकार ब्रह्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है, किंतु सगुणोपासना से भी इनका कोई विरोध नहीं था। इसलिए इन्होंने अपनी वाणी में निर्गुण-निराकार परमात्मा को स्मरण करने के लिए सगुणोपासना में प्रचलित परमात्मा के माधव, हरि, गोबिंद, राम, केशव आदि शब्दों का निस्संकोच भाव से प्रयोग किया है। इन्होंने एकाग्र मन तथा एकनिष्ठ भाव से प्रभु स्मरण पर बल दिया है।

रैदास जातिगत भेदभाव, तीर्थ, व्रत, आडंबरपूर्ण पूजा आदि में विश्वास नहीं रखते थे। वे सहज, सरल तथा आडंबरहीन प्रभु-भक्ति करते थे। इनकी वाणी में आत्मा-परमात्मा की एकता का भाव व्यक्त हुआ है। वे आत्मा को परमात्मा का अभिन्न अंश मानते थे। इनकी वाणी में प्रमुखता लोक-कल्याण का भाव रहा है।

रैदास ने अपनी रचनाओं में मुख्य रूप से सरल तथा प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है; इसमें कहीं-कहीं खड़ी बोली, अवधी, राजस्थानी, अरबी-फ़ारसी तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी दिखाई दे जाता है। इनके पद ‘खालिक – सिकस्ता मैं तेरा’ में अरबी, फ़ारसी और उर्दू के शब्दों का बहुत प्रयोग हुआ है।

प्रचलित उपमानों तथा नाथों और निरंजनों के सहज, शून्य आदि शब्द भी प्राप्त होते हैं। इन्होंने मुक्तक गेय पदों, दोहा, चौपाई आदि छंदों में अपनी रचनाएँ की हैं। रैदास का काव्य भक्तिभाव से परिपूर्ण है, जिसमें निर्गुण ब्रह्म की आराधना के साथ-साथ गुरु-भक्ति, लोक कल्याण, कर्तव्य पालन, सत्संग, नाम-स्मरण आदि का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

पदों का सार :

पाठ्य-पुस्तक में रैदास द्वारा रचित दो पद संकलित हैं। पहले पद में कवि ने अपने आराध्य की आराधना करते हुए स्पष्ट किया है कि उसे राम-नाम की रट लग गई है, जिसे वह अब छोड़ नहीं सकता। वह अपने प्रभु को चंदन और स्वयं को पानी; उन्हें घनश्याम और स्वयं को मोर; उन्हें चाँद तथा स्वयं को चकोर मानता है। वह अपने प्रभु को दीपक स्वयं को बाती; उन्हें मोती स्वयं को धागा तथा उन्हें स्वामी और स्वयं को उनका दास मानकर उनकी भक्ति करता है।

दूसरे पद में कवि ने प्रभु को सबका रक्षक माना है। कवि के अनुसार दुखियों पर दया करने वाला परमात्मारूपी स्वामी उस जैसे व्यक्ति को भी महान बना देता है। संसार जिसे अछूत मानता है, उसी पर परमात्मा द्रवित होकर कृपा करता है। वह किसी से भी नहीं डरता और नीच को भी ऊँचा बना देता है। कवि कहता है कि उसी परमात्मा की कृपा से नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न जाति में उत्पन्न व्यक्तियों का भी उद्धार हो गया था।

व्याख्या –

1. अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी,
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ॥
बास – सुगंध। घन बादल। बरै जले। सोनहिं सोने में।

शब्दार्थ : बास – सुगंध। घन – बादल। बंर – जले। सोनहिं – सोने में।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रैदास द्वारा रचित है, जोकि हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ (भाग – 1) में संकलित है। इस पद में कवि ने अपने आराध्य के प्रति अपनी अटूट भक्ति का परिचय दिया है।

व्याख्या : रैदास कहते हैं कि हे मेरे प्रभु ! अब मुझे राम नाम जपने की रट लग गई है, जो मुझसे किसी प्रकार से भी नहीं छूट सकती। हे प्रभु! आप चंदन के समान हैं और मैं पानी जैसा हूँ। मैं गंध से रहित पानी की तरह था, जिसमें आपके चंदन रूप की सुगंध घुलकर मेरे अंग-अंग में समा गई है। आप घने बादलों का समूह हैं और मैं मोर हूँ। मैं आपको ऐसे देखता हूँ, जैसे चंद्रमा को चकोर देखता है। आप दीपक हैं और मैं उसमें जलने वाली बत्ती हूँ, जिसकी ज्योत दिन-रात जलती रहती है। आप मोती हैं और मैं मोती को पिरोने वाला धागा हूँ। जैसे सोने को सुहागा शुद्ध कर देता है, वैसे ही आपने मुझे पवित्र कर दिया है। हे प्रभु! आप मेरे स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। ऐसी ही भक्ति रैदास आपकी करता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

2. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

शब्दार्थ : लाल – स्वामी। गरीब निवाजु – गरीबों पर कृपा करने वाला। गुसईआ – स्वामी। माथै छत्रु धेरै महान बनाना। जाकी जिसकी। छोति – छुआछूत, अस्पृश्यता। ढरै द्रवित होना, दया करना। नामदेव महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत; इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों – भाषाओं में रचना की है। तिलोचनु (त्रिलोचन ) – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे। सधना – एक उच्च कोटि के संत, जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं। सैनु ये भी एक प्रसिद्ध संत हैं, ‘आदि गुरुग्रंथ साहब’ में संग्रहीत पद के आधार पर इन्हें रामानंद का समकालीन माना जाता है। जीउ – इच्छा। सरै – होना।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रैदास द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ (भाग – 1) में संकलित है। इस पद में कवि ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा के सामने ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। वह किसी भी कुल, गोत्र, जाति आदि में उत्पन्न अपने भक्त को समान रूप से अपनाकर और उसे समुचित सम्मान देकर उसका उद्धार करता है।

व्याख्या : कवि प्रभु की उदारता, कृपालुता तथा दयालुता का वर्णन करते हुए कहता है कि आपके अतिरिक्त गरीबों तथा दीन-दुखियों का स्वामी अथवा रक्षक अन्य कोई नहीं है। आप गरीबों के रक्षक तथा स्वामी हैं। आपने ही मुझ जैसे व्यक्ति को इतनी महानता प्रदान की है। जिनके स्पर्श को भी दुनिया वाले बुरा मानते हैं, ऐसे लोगों पर भी आप दया करते हैं। कवि कहता है कि मेरा गोबिंद तो नीच को भी उच्च बना देता है; वह किसी से डरता नहीं है। उस परमात्मा ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे लोगों की भक्ति से प्रसन्न होकर उनका उद्धार कर दिया। रविदास कहते हैं कि ‘हे संतो ! हरि की इच्छा से सभी कार्य संपन्न हो जाते हैं’।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

JAC Class 9 Hindi शक्र तारे के समान Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे ?
उत्तर :
महादेव भाई स्वयं का परिचय गांधी जी का ‘हम्माल’ अथवा ‘पीर – बावर्ची – भिश्ती – खर’ कहकर देते थे।

प्रश्न 2.
‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी ?
उत्तर :
‘यंग इंडिया’ में ‘क्रानिकल’ के हॉर्नीमैन लेख लिखते थे। सरकार ने उन्हें देश निकाला देकर इंग्लैंड भेज दिया था। इसलिए ‘यंग इंडिया’ में लेखों की कमी रहने लगी थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया ?
उत्तर :
गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ को सप्ताह में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया।

प्रश्न 4.
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव जी कहाँ नौकरी करते थे ?
उत्तर :
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव जी सरकार के अनुवाद – विभाग में नौकरी करते थे।

प्रश्न 5.
महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था ?
उत्तर :
महादेव भाई के झोलों में ताज़े-से-ताजे समाचार पत्र, मासिक – पत्र और पुस्तकें भरी रहती थीं।

प्रश्न 6.
महादेव भाई ने गांधी जी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था ?
उत्तर :
महादेव भाई ने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अनुवाद किया था।

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प्रश्न 7.
अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे ?
उत्तर :
अहमदाबाद से ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ नामक दो साप्ताहिक – पत्र प्रकाशित होते थे।

प्रश्न 8.
महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे ?
उत्तर :
महादेव भाई काम में रात और दिन के बीच कोई फ़र्क नहीं करते थे। वे निरंतर काम में लगे रहते थे। वे एक घंटे में चार घंटों का काम निपटा देते थे।

प्रश्न 9.
महादेव भाई से गांधी जी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है ?
उत्तर
महादेव भाई की मृत्यु के बाद भी जब प्यारेलाल जी से गांधी जी को कुछ कहना होता था तो उनके मुख से अनायास ही ‘महादेव’ निकलता था।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था ?
उत्तर :
गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस तब कहा था जब वे सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जा रहे थे और उन्हें पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था।

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प्रश्न 2.
गांधी जी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे ?
उत्तर :
गांधी जी से मिलने आनेवालों की बातों को महादेव भाई सुनकर उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधी जी के सम्मुख प्रस्तुत करते थे और आनेवालों के साथ उनकी भेंट भी करवाते थे।

प्रश्न 3.
महादेव जी की साहित्यिक देन क्या है ?
उत्तर :
महादेव भाई की भाषा शिष्ट और संस्कार संपन्न थी। इनकी लेखन शैली मनोहारी थी। इन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था जो प्रत्येक सप्ताह ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित होता रहा था। बाद में पुस्तक के रूप में इसका प्रकाशन हुआ था।

प्रश्न 4.
महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर :
सन् 1935-36 में गांधी जी सेगाँव की सीमा पर झोंपड़ों में रहने लगे थे। महादेव भाई मगनवाड़ी में ही रहते थे। वहीं से वे वर्धा की असहनीय गरमी में रोज़ ग्यारह मील पैदल चलकर आते-जाते थे। यह कार्यक्रम काफ़ी लंबे समय तक चलता रहा। इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और उनकी अकाल मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 5.
महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधी जी क्या कहते थे ?
उत्तर :
महात्मा गांधी कहा करते थे कि महादेव के लिखे नोट के साथ थोड़ा मिलान कर लेना चाहिए था क्योंकि महादेव भाई के द्वारा लिखे गए नोट में कभी कॉमा तक की भी गलती नहीं होती थी

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया ?
उत्तर :
पंजाब में फ़ौजी शासन ने सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों को घेरकर मार दिया था। पंजाब में अधिकांश नेताओं को गिरफ़्तार करके फ़ौजी कानून के अंतर्गत आजीवन कैद की सजाएँ देकर काला पानी भेज दिया गया था। लाहौर से प्रकाशित होनेवाले राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक समाचार-पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को दस वर्ष जेल की सज़ा दे दी गई थी।

प्रश्न 2.
महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था ?
उत्तर :
महादेव जी सेवा-धर्म का पालन करने में निपुण थे। वे लोगों के द्वारा बताई गई बातें भी संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करने और उन्हें गांधी जी के सामने पेश करने, गांधी जी के लेख तैयार करने, उनके यात्रा-वर्णन लिखने, उनकी दैनिक गतिविधियों को देखने तथा सत्यनिष्ठा और विवेकपूर्ण ढंग से विकास करने के कारण सबके लाड़ले बन गए थे।

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प्रश्न 3.
महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
महादेव जी की लेखन शैली अत्यंत मनोहारी थी। वे अपने लेखन में शिष्ट और संस्कार – संपन्न भाषा का प्रयोग करते थे। गांधी जी से मिलने आनेवाले लोगों की व्यथा-कथा सुनकर स्वयं उनसे हुई बातों की संक्षिप्त तथा सटीक टिप्पणियाँ लिखने में वे अत्यंत निपुण थे। इनके द्वारा लिखी गई तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा अन्य विषयों की टिप्पणियों के आधार पर गांधी जी ‘बांबे क्रॉनिकल’, ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखते थे। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद इनकी लेखन शैली का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
‘अपना परिचय उनके ‘पीर- बावर्ची भिश्ती खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
उत्तर :
महादेव भाई लोगों को अपना परिचय गांधी जी के उस परिचारक के रूप में देने में गर्व अनुभव करते थे जो उनके सभी प्रकार के कार्य करने में समर्थ है। वे स्वयं को गांधी जी का ऐसा ही सेवक मानते थे क्योंकि वे उनके सभी कार्य करते थे। इसी में उन्हें गर्व अनुभव होता था कि वे गांधी जी के अनुचर हैं।

प्रश्न 2.
इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
उत्तर :
वकालत का पेशा झूठ बोलने का पेशा माना जाता है क्योंकि इसमें वकील अपने ग्राहक को जिताने के लिए झूठ को सच और सच को झूठ बनाकर प्रस्तुत करते हैं। जो इस कार्य में निपुण होता है वही सफल वकील माना जाता है।

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प्रश्न 3.
देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचनाक अस्त हो गए।
उत्तर
महादेव भाई शुक्रतारे के समान अपनी आभा से संसार को मोहित करके अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

प्रश्न 4.
उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस उसाँस लेते रहते थे।
उत्तर :
महादेव भाई द्वारा लिखे गए पत्रों की विषय-वस्तु को पढ़कर दिल्ली और शिमला में बैठे हुए वाइसराय भी परेशान हो उठते थे।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्दों का निर्माण कीजिए –
सप्ताह, अर्थ, साहित्य, धर्म, व्यक्ति, मास, राजनीति, वर्ष।
उत्तर :
साप्ताहिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक, वैयक्तिक, मासिक, राजनैतिक, वार्षिक।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए –
अ, नि, अन, नि, दुर, वि, कु, पर, सु, अधि।
उत्तर :

  • आर्य – अनार्य
  • डर – निडर
  • सार्थक – निरर्थक
  • सुलभ – दुर्लभ
  • क्रय – विक्रय
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • नायक – अधिनायक
  • आगत – अनागत
  • आकर्षण – विकर्षण
  • मार्ग – कुमार्ग
  • लोक – परलोक
  • भाग्य – दुर्भाग्य
  • आयात – निर्यात
  • विश्वास – अविश्वास।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
आड़े हाथों लेना, अस्त हो जाना, दाँतों तले अंगुली दबाना, मंत्र-मुग्ध करना, लोहे के चने चबाना।
उत्तर :
1. आड़े हाथों लेना – जब जोसफ़ ने बहाना बनाकर विद्यालय जाने से इनकार किया तो मम्मी ने उसे आड़े हाथों लिया और विद्यालय जाने के लिए विवश कर दिया।
2. अस्त हो जाना – आपसी कलह से बड़े-बड़े घरानों की ख्याति अस्त हो जाती है
3. दाँतों तले अंगुली दबाना – ताजमहल का सौंदर्य देखकर बड़े-बड़े कलाकार भी दाँतों तले अँगुली दबा लेते हैं।
4. मंत्र-मुग्ध करना – लोक-नृतकों ने अपने नृत्य से दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर दिया।
5. लोहे के चने चबाना – भारतीय सेना से मुकाबला करना लोहे के चने चबाने के समान है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए-
वारिस, जिगरी, कहर, मुकाम, रूबरू, फ़र्क, तालीम, गिरफ़्तार।
उत्तर :

  • वारिस – उत्तराधिकारी
  • जिगरी – दिली
  • कहर – संकट
  • मुकाम – पड़ाव
  • रूबरू – सामने
  • फ़र्क – अंतर
  • तालीम – शिक्षा
  • गिरफ़्तार – बंदी

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प्रश्न 5.
उदाहरण के अनुसार वाक्य बदलिए –
उदाहरण : गांधी जी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
गांधी जी महादेव भाई को अपना वारिस कहा करते थे।

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर – बावर्ची – भिश्ती – खर’ के रूप में देते थे।
  2. पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते थे।
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे।

उत्तर :

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर – बावर्ची भिश्ती – खर’ के रूप में दिया करते थे।
  2. पीड़ितों के दल – के – दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ा करते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकला करते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी किया करते थे।
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव जी लिखा करते थे।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जलियाँवाला बाग में कौन-सी घटना हुई थी ? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
अहमदाबाद में बापू के आश्रम के विषय में चित्रात्मक जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
सूर्योदय के 2-3 घंटे पहले पूर्व दिशा में या सूर्यास्त के 2-3 घंटे बाद पश्चिम दिशा में एक खूब चमकता हुआ ग्रह दिखाई देता है, वह शुक्र ग्रह है। छोटी दूरबीन से इसकी बदलती हुई कलाएँ देखी जा सकती हैं, जैसे चंद्रमा की कलाएँ।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 5.
वीराने में जहाँ बत्तियाँ न हों वहाँ अँधेरी रात में जब आकाश में चाँद भी दिखाई न दे रहा हो तब शुक्र ग्रह (जिसे हम शुक्रतारा भी कहते हैं) के प्रकाश से अपने साए को चलते हुए देखा जा सकता है। कभी अवसर मिले तो इसे स्वयं अनुभव करके देखिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
सूर्यमंडल में नौ ग्रह हैं। शुक्र सूर्य से क्रमशः दूरी के अनुसार दूसरा ग्रह है और पृथ्वी तीसरा। चित्र सहित परियोजना पुस्तिका में अन्य ग्रहों के क्रम लिखिए।
प्रश्न 2.
‘स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी का योगदान’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

प्रश्न 3.
भारत के मानचित्र पर निम्न स्थानों को दर्शाएँ –
अहमदाबाद, जलियाँवाला बाग (अमृतसर), कालापानी (अंडमान), दिल्ली, शिमला, बिहार, उत्तर प्रदेश।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi शक्र तारे के समान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘शुक्रतारे के समान’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वामी आनंद द्वारा रचित पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में गाँधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के जीवन के कुछ अंशों को प्रस्तुत किया गया है। लेखक के अनुसार महादेव भाई अत्यंत सरल, सज्जन, निष्ठावान, समर्पित एवं निरभिमानी व्यक्ति थे। उन्होंने महात्मा गाँधी की समस्त चिंताओं और उलझनों को अपने सिर पर ले लिया था, इस कारण कोई भी महान व्यक्ति महानतम कार्य तभी कर पाता है जब उसका सहयोगी महादेव भाई जैसा ही हो।

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प्रश्न 2.
महादेव भाई के अध्ययन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
महादेव भाई साहित्यिक पुस्तकों की तरह तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित पुस्तकें अधिक पढ़ते थे। इन पुस्तकों से उन्हें भारत से संबंधित देश-विदेश में होनेवाली गतिविधियों की जानकारी मिल जाती थी। उन्हें ताज़े समाचार-पत्र, मासिक और साप्ताहिक – पत्रों को पढ़ने में विशेष रुचि थी। वे सम-सामयिक विषयों से संबंधित पुस्तकें अधिक पढ़ते थे।

प्रश्न 3.
‘यंग इंडिया’ अख़बार कहाँ से निकलता था ? इसका प्रकाशन करनेवालों ने गाँधी जी को संपादक क्यों बनाया ?
उत्तर :
‘यंग इंडिया’ अख़बार बंबई से निकलता था। इसमें लेखक लिखनेवाले हॉर्नीमैन को ब्रिटिश सरकार ने उनके निर्भीक लेखों के कारण देश निकाला दे दिया, जिससे ‘यंग इंडिया’ अख़बार में लेखों की कमी आ गई। ‘यंग इंडिया’ के मालिकों ने गाँधी जी से संपर्क किया और उन्हें अपने अख़बार का संपादक बनने का आग्रह किया। उन दिनों गाँधी जी को भी अपने लेखों के लिए अख़बार की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 4.
लेखक साबरमती आश्रम में क्या काम करते थे ?
उत्तर :
लेखक छह महीने के लिए साबरमती आश्रम में रहने के लिए गए। वहाँ उन्होंने शुरू में अख़बारों के ग्राहकों का हिसाब-किताब और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था देखने का काम किया। कुछ दिनों बाद दोनों साप्ताहिकों के संपादन और छापाखाने की सारी व्यवस्था लेखक पर आ गई। इस प्रकार आश्रम में रहते हुए उन्होंने ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ समाचार-पत्रों के साप्ताहिक अंकों की व्यवस्था का काम किया।

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प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार महादेव भाई का व्यक्तित्व कैसा था ?
उत्तर :
लघु तलनीय प्रश्न त उत्तर महादेव भाई का व्यक्तित्व उनके संपर्क में आनेवाले लोगों पर जादुई प्रभाव डालता था, जिसका प्रभाव कई-कई दिन तक रहता था। वे कभी भी किसी से कड़वी या चुभनेवाली बात नहीं करते थे। उनकी निर्मल प्रतिभा उनके संपर्क में आनेवाले व्यक्ति को चंद्र- शुक्र की प्रभा के साथ दूध से नहला देती थी।

प्रश्न 6.
महादेव भाई से मिलकर कैसा लगता था ?
उत्तर :
महादेव भाई से मिलकर ऐसा लगता था जैसे उनके व्यक्तित्व ने मिलनेवाले को सम्मोहित कर दिया हो। उनका सारा जीवन गाँधी जी के साथ मिलकर एक रूप हो गया था। उनकी संस्कार संपन्न भाषा और मनोहारी रूप सभी को अपनी ओर खींच लेता था। काम-काज में व्यस्त होने पर भी वे प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे। उनका यही कार्यशैली मिलनेवाले को सुखद आनंद देती थी।

प्रश्न 7.
महादेव भाई के काम करने की गति कैसी थी ?
उत्तर :
महादेव भाई एक पठनशील नवयुवक थे। उन्हें जब भी अवसर मिलता था वे ‘यंग इंडिया’ तथा ‘नव जीवन’ के लिए लेख लिखते थे। उनकी काम करने की गति बहुत तेज़ थी। वे चार घंटों का काम एक ही घंटे में निपटा देते थे। वे चरखे पर सूत बहुत सुंदर कातते थे। उनके लिए काम के बीच रात – दिन में कोई अंतर नहीं था। किसी को भी उनके खाने-पीने का पता नहीं चलता था कि उन्होंने कब खाया, कब पिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 8.
गाँधी जी महादेव भाई से कितना स्नेह करते थे ?
उत्तर :
गाँधी जी महादेव भाई से अत्यधिक स्नेह करते थे। सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में जब गाँधी जी को पंजाब जाते हुए पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तो उसी समय गाँधी जी ने महादेव भाई के प्रति अपने प्रेम का परिचय देते हुए उन्हें अपना वारिस कह दिया था। सन् 1929 में महादेव भाई ने सारे देश में यात्राएँ की थीं।

शक्र तारे के समान Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – स्वामी आनंद का जन्म गुजरात के काठियावाड़ जिले के किमड़ी गाँव में सन् 1887 ई० में हुआ था। इनका बचपन का नाम हिम्मत लाल था। इन्हें दस वर्ष की आयु में कुछ साधु अपने साथ हिमालय की ओर ले गए थे। उन्हीं साधुओं ने इनका नाम स्वामी आनंद रख दिया था। सन् 1907 ई० से स्वामी आनंद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। सन् 1917 ई० में इनका संपर्क गांधी जी से हुआ।

गांधी जी ने इन्हें ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ की प्रसार व्यवस्था का कार्यभार दिया। इन्होंने कुछ समय तक महाराष्ट्र से ‘तरुण हिंद’ नामक समाचार-पत्र निकाला था। इन्होंने बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’ समाचार – पत्र में भी काम किया था। गांधी जी के संपर्क में आने के बाद ही इनका संबंध गांधी जी के निजी सहयोगी महादेव भाई और प्यारेलाल से हुआ।

रचनाएँ – स्वामी आनंद ने ‘तरुण हिंद’, ‘नवजीवन’, ‘केसरी’ आदि समाचार-पत्रों में अनेक लेख लिखे थे।

भाषा-शैली – स्वामी आनंद के आलेख ‘शुक्रतारे के समान’ में गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के जीवन के विभिन्न पक्षों को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेखक की भाषा अत्यंत सहज एवं व्यावहारिक है। तेजस्वी, मुग्ध, आसेतु, हिमाचल, शिष्ट, संस्कार, संपन्न आदि तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर, जुल्म, अलावा, स्याह, सफ़ेद, हफ़्ता आदि विदेशी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है।

इनकी शैली सहज, प्रभावपूर्ण तथा वर्णनप्रधान है, जैसे- ‘प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार संपन्न भाषा और मनोहारी लेखन – शैली की ईश्वरीय देन महादेव को मिली थी।’ इनके वर्णनों में चित्रात्मकता का गुण भी विद्यमान है, जैसे- ‘बिहार और उत्तर प्रदेश के हज़ारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, ‘सोने’ की कीमतवाले ‘गाद’ के बने हैं। आप सौ-सौ कोस चल लीजिए रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं मिलेगा नहीं।’ इस प्रकार स्वामी आनंद ने सहज, सरल भाषा एवं रोचक शैली में महादेव भाई के जीवन के कुछ प्रसंग प्रस्तुत किए हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

पाठ का सार :

‘शुक्रतारे के समान’ पाठ के लेखक स्वामी आनंद हैं। इस पाठ में लेखक ने गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की सरलता, सज्जनता, निष्ठा, समर्पण, लगन और विनम्रता का सजीव अंकन किया है। लेखक का मानना है कि जिस प्रकार शुक्रतारा अपनी आभा दिखाकर घंटे-दो घंटे में अस्त हो जाता है उसी प्रकार से गांधी जी के सचिव महादेव भाई भी भारत की स्वतंत्रता के उषाकाल में अपनी आभा दिखाकर अचानक ही अस्त हो गए। गांधी जी उन्हें अपने पुत्र से भी अधिक मानते थे।

वे सन् 1917 ई० में गांधी जी के पास आए थे। सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में जब गांधी जी को पंजाब जाते हुए पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तो उसी समय उन्होंने महादेव भाई को अपना वारिस कह दिया था। सन् 1929 ई० में महादेव भाई ने सारे देश में यात्राएँ की थीं। इन्हीं दिनों पंजाब में फ़ौजी शासन के अत्याचारों और नेताओं की गिरफ़्तारी के समाचार आ रहे थे। ‘ट्रिब्यून’ के संपादक कालीनाथ राय को दस साल की जेल की सजा दी गई थी।

महादेव भाई इन दिनों के जुल्मों की टिप्पणियाँ तैयार करके गांधी जी को देते थे तथा गांधी जी उनके आधार पर ‘बांबे क्रॉनिकल’ में लेख लिखकर भेजते थे। जब ‘क्रॉनिकल’ के संपादक हार्नोमैन को देश निकाला देकर इंग्लैंड भेज दिया गया तो शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी तथा जमना दास द्वारका दास के अनुरोध पर गांधी जी ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन गए और इसमें लिखने लगे। ‘यंग इंडिया’ सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने लगा।

बाद में ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ दोनों अहमदाबाद से प्रकाशित होने लगे थे। लेखक भी साबरमती में रहने लगा और इन दोनों साप्ताहिकों का वितरण, प्रकाशन आदि का कार्य देखने लगा। गांधी जी और महादेव भाई का अधिकांश समय देश भ्रमण में ही व्यतीत होता था। उनके लेख आते रहते थे। महादेव भाई देश-विदेश के प्रमुख समाचारों पर गांधी जी के साथ टीका-टिप्पणी कर लेख भेजते थे।

गांधी जी के पास आने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे। इन्होंने नरहरि भाई के साथ वकालत पढ़ी थी और अहमदाबाद में वकालत भी प्रारंभ की थी। लुई फिशर और गंथर भी अपनी टिप्पणियों का मिलान महादेव भाई की टिप्पणियों के साथ करने के बाद ही गांधी जी के पास ले जाते थे। महादेव भाई तत्कालीन राजनीति से संबंधित पुस्तकों को भी पढ़ते रहते थे तथा उनमें भारत से संबंधित जानकारियों को सहेज लेते थे तथा जहाँ भी अवसर मिलता ‘यंग इंडिया’ तथा ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते थे।

उनकी काम करने की गति बहुत तेज थी। वे चार घंटों का काम एक घंटे में निपटा देते थे। वे सूत बहुत सुंदर कातते थे। उनके लिए काम में रात और दिन के बीच कोई अंतर नहीं होता था। उनके खाने-पीने का भी किसी को पता नहीं चलता था कि कब खाया ? महादेव भाई से मिलकर ऐसा लगता था जैसे उनके व्यक्तित्व ने मिलनेवाले को सम्मोहित कर दिया हो। महादेव भाई का समूचा जीवन गांधी जी के साथ मिलकर एकरूप हो गया था।

उन्हें गांधी जी से अलग करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कामकाज की व्यस्तताओं में भी वे प्रतिदिन डायरी भी लिखते थे। इनकी लेखन शैली अत्यंत शिष्ट, संस्कार-संपन्न भाषा और मनोहारी थी। इन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया था जो ‘यंग इंडिया’ में हर हफ्ते छपता रहा था। अब उसका पुस्तक संस्करण छप चुका है।

सन् 1934-35 ई० में गांधी जी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद से गाँव की सीमा पर एक पेड़ के नीचे जा बैठे थे। तभी वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान भी बन गए थे। तब तक महादेव भाई, दुर्गा बहन और चिन्नारायण मगनवाड़ी में ही रहते थे। वहीं से वे वर्धा की भयंकर गरमी में भी प्रतिदिन ग्यारह मील चलकर सेवाग्राम आते-जाते थे। इसी के प्रतिकूल प्रभाव से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। गांधी जी के मन पर उनकी मृत्यु का बहुत प्रभाव पड़ा था तथा वे भर्तृहरि के भजन की एक पंक्ति सदा दोहराते रहते थे कि ‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’ अर्थात् यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। कई बार जब उन्हें प्यारेलाल जी को बुलाना होता था तो उनके मुख से ‘महादेव’ ही निकलता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आभा-प्रभा – चमक, तेज़।
  • कोई जोड़ न होना – कोई मुकाबला करने वाला न होना।
  • नक्षत्र-मंडल – तारा समूह।
  • कलगी रूप – तेज़ चमकनेवाला तारा।
  • हम्माल – बोझ उठानेवाला, कुली।
  • पीर – महात्मा, सिद्ध।
  • बावर्ची – खाना पकानेवाला, रसोइया।
  • भिश्ती – मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति।
  • खर – घास, गधा।
  • आसेतुहिमाचल – रामेश्वर से हिमाचल तक विस्तीर्ण सेतुबंध।
  • दुलारे – प्यारे।
  • ब्यौरा – विवरण।
  • कालापानी – आजीवन कैद की सज़ा पाए कैदियों को रखने का स्थान, वर्तमान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह।
  • रूबरू – आमने सामने।
  • धुरंधर – प्रवीण, उत्तम गुणों से युक्त।
  • टीका-टिप्पणी – व्याख्या, आलोचना।
  • चौकसाई – चौकस रहना, नज़र रखना।
  • कट्टर – दृढ़, जिसे अपने मत या विश्वास का अधिक आग्रह हो।
  • लाडला – प्यारा, दुलारा।
  • जिगरी दोस्त – गहरे मित्र।
  • पेशा – व्यवसाय।
  • स्याह – काला।
  • सल्तनत राज्य, हुकूमत।
  • व्याख्यान – भाषण, वक्तृता, किसी विषय की व्याख्या या टीका करना।
  • फुलस्केप – कागज़ का एक आकार।
  • चौथाई – चौथा भाग।
  • अग्रगण्य – प्रमुख, सबसे पहले गिना जाने वाला।
  • विवरण – वर्णन, व्याख्या।
  • अद्यतन – अब तक का, वर्तमान से संबंध रखने वाला।
  • गाद – तलहट, गाढ़ी चीज़।
  • सराबोर – तरबतर, डूबा हुआ।
  • अनवरत – लगातार।
  • सानी – बराबरी करनेवाला, उसी मोड़ का दूसरा।
  • अनगिनत – जिसे गिना न जा सके।
  • सिलसिला – क्रम।
  • अनायास – बिना किसी प्रयास के, आसानी से।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है ?
उत्तर :
आज धर्म के नाम पर उत्पात हो रहे हैं। धर्म के नाम पर लोग जान लेने और देने के लिए तैयार हो जाते हैं। धर्म के नाम पर ज़िद की जाती है

प्रश्न 2.
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए ?
उत्तर :
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होने चाहिए। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्म की आराधना कर सके।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन सबसे बुरा था ?
उत्तर :
स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया।

प्रश्न 4.
साधारण-से- साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है ?
उत्तर :
साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना उचित है।

प्रश्न 5.
धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं ?
उत्तर :
धर्म के स्पष्ट चिह्न शुद्धाचरण और सदाचार हैं।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
चलते – पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं ?
उत्तर :
कुछ चलते – पुरज़े लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए धर्म के नाम पर आम आदमी को भड़का देते हैं और वह बिना कुछ समझे-बूझे जिधर उन्हें हाँक दिया जाता है उधर ही उत्पात मचाने लगते हैं। वे धर्म-ईमान को जानें या न जानें, धर्म के नाम पर जान देने और जान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं।

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प्रश्न 2.
चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं ?
उत्तर :
चालाक लोग यह जानते हैं कि साधारण-से- साधारण आदमी के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। वह धर्म के वास्तविक स्वरूप से परिचित नहीं होता और परंपरा को निभाना ही अपना धर्म समझता है। उसकी अवस्था का चालाक लोग नाजायज़ फ़ायदा उठाकर धर्म के नाम पर दंगे करवा देते हैं।

प्रश्न 3.
आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा ?
उत्तर
आनेवाला समय आडंबरपूर्ण धर्म को टिकने नहीं देगा। वह पाँच समय नमाज़ पढ़ने, दो-दो घंटे पूजा-पाठ करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ़ पहुँचानेवाले धर्म को टिकने नहीं देगा। नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री के नाम पर देश में उत्पात नहीं होने दिए जाएँगे।

प्रश्न 4.
कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा ?
उत्तर :
देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके मन के अनुसार धर्म चुनकर अपनी इच्छा के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों को एक-दूसरे के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधा नहीं डालनी चाहिए। यदि किसी धर्म के माननेवाले किसी दूसरे के धार्मिक मामलों में ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हैं तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा।

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प्रश्न 5.
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में बहुत अंतर है। बड़े-बड़े आलीशान महलों में धनी रहते हैं और निर्धन मामूली-सी झोंपड़ी में जीवन व्यतीत करते हैं। धनी निर्धनों की कमाई से ही दिन-प्रतिदिन और अधिक धनवान होते जाते हैं। वे सदा निर्धनों का शोषण करते रहते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं ?
उत्तर
वे लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं, जो नास्तिक हैं तथा दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं। ऐसे लोग धर्म के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आम आदमी को उकसाते नहीं हैं। इनका आचरण अच्छा होता है। वे मानवतावादी होते हैं। उनमें पशुत्व नहीं होता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (पचास-साठ शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर :
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़तापूर्वक प्रयास करने होंगे। इसके लिए धर्म की उपासना के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए। जो जैसे चाहे उसी प्रकार से अपने धर्म को अपनाकर पूजा-अर्चना करे। दो भिन्न धर्मों को माननेवाले आपस में द्वेष-भाव न रखें। यदि कोई किसी धर्म के माननेवाले के धार्मिक कार्यों में बाधा डाले तो उसे दंडित किया जाए।

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प्रश्न 2.
‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर :
‘बुद्धि की मार’ से लेखक का यह तात्पर्य है कि एक साधारण व्यक्ति को धर्म के तत्वों का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। वह तो अपने धर्म गुरुओं द्वारा बताए हुए नियमों तथा परंपराओं के अनुसार आचरण करता रहता है। कुछ स्वार्थी तथा चालाक धर्मांध लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे आम लोगों को दूसरे धर्मवालों के विरुद्ध इस प्रकार भड़का देते हैं कि वे बिना सोचे-समझे धर्म के नाम पर मरने-मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार उनकी बुद्धि पर परदा पड़ जाता है और वे उत्पात मचाना शुरू कर देते हैं। इसी को ‘बुद्धि की मार’ कहा गया है। इस स्थिति में सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि धर्म की उपासना के मार्ग में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगाने के लिए स्वतंत्र हो। धर्म मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों के बीच टकराव नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति जैसा धर्म अपनाना चाहे उसे वैसा धर्म अपनाने और मानने की आज़ादी मिलनी चाहिए।

प्रश्न 4.
महात्मा गांधी के धर्म संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र मान्यता दी है। वे जीवन का प्रत्येक कार्य धर्म के अनुसार करते थे। धर्म से उनका तात्पर्य आडंबरों से नहीं था। वे धर्म का अर्थ जीवन में ऊँचे तथा उदार भावों को अपनाना मानते थे। वे ऐसी पूजा-पाठ, नमाज़ पढ़ना आदि व्यर्थ मानते थे जिसके बाद मनुष्य दिन-भर बेईमानी करता रहे। वे शुद्ध आचरण तथा सज्जनतापूर्वक जीवन-यापन करने को ही धर्म मानते थे।

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प्रश्न 5.
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि यदि हम समाज को धर्मानुसार चलाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण को सुधारना होगा। यदि हमारा आचरण अच्छा नहीं होगा तो सारा समाज ही भ्रष्ट हो जाएगा। लोग मुँह में राम बगल में छुरी जैसा आचरण करने लगेंगे। सर्वत्र उत्पात होंगे। एक दूसरे का गला काटने को सब तैयार हो जाएँगे। यदि हम अपना आचरण सुधार लेंगे तो हमारी देखा-देखी अन्य लोग भी अपना आचरण सुधार लेंगे। इस प्रकार एक के आचरण के सुधरने से सारा समाज सुधर जाएगा तथा सबका कल्याण होगा।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आम आदमी को धर्म के संबंध में कुछ भी पता नहीं होता। उसे कुछ स्वार्थी लोग दूसरे धर्मावलंबियों के विरुद्ध इतना अधिक भड़का देते हैं कि वह उनके प्रति गुस्से से भर उठता है। वह गुस्से में अपने समझने-बूझने की शक्ति खो बैठता है और स्वार्थी लोग उसे जिस ओर हाँक देते हैं वह उधर ही चल पड़ता है।

प्रश्न 2.
यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर :
इन पंक्तियों में लेखक उन धर्माचार्यों पर कटाक्ष कर रहा है जो आम आदमी को अपने आडंबरपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों से इतना मोहित कर लेते हैं कि वे उन्हें ही ईश्वर का दूत समझने लगते हैं। वे अपनी सोचने-विचारने की शक्ति खो बैठते हैं। तब ये धर्माचार्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इन आम आदमियों को ईश्वर, धर्म, आत्मा, ईमान आदि का नाम लेकर अन्य धर्मों के माननेवालों के विरुद्ध भड़का कर दंगा-फसाद करा देते हैं।

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प्रश्न 3.
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आनेवाले समय में आडंबरपूर्ण तथा बेईमानी भरे धर्म-ईमान के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा। इस युग में कोई किसी के पूजा-पाठ के आधार पर उसे सम्मान नहीं देगा बल्कि यह देखा जाएगा कि उसका आचरण कैसा है ? आपके अच्छे आचरण के आधार पर ही आपकी सज्जनता का मूल्यांकन किया जाएगा

प्रश्न 4.
तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर :
लेखक बेईमान, धोखेबाज़ धर्माचार्यों तथा धार्मिक लोगों की अपेक्षा उन नास्तिकों को श्रेष्ठ मानता है जो अच्छे आचरणवाले हैं तथा दूसरों सुख-दुख में उनका साथ देते हैं। उन पाखंडियों से तो ईश्वर भी यही कहता है कि आप जैसे पाखंडियों के मानने से मेरा ईश्वरत्व दुनिया में कायम नहीं रह सकता। इसलिए तुम मुझपर दया करो और मानवता को मानो। तुम्हें पशुत्व त्याग कर मानव बनना होगा तभी तुम्हें भी ईश्वर मिल सकेगा।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए –
उदाहरण: सुगम – दुर्गम
धर्म, ईमान, साधारण, स्वार्थ, दुरुपयोग, नियंत्रित, स्वाधीनता।
उत्तर :

  • धर्म – अधर्म
  • ईमान – बेईमान
  • साधारण – असाधारण
  • स्वार्थ – निःस्वार्थ
  • दुरुपयोग – सदुपयोग
  • नियंत्रित – अनियंत्रित
  • स्वाधीनता – पराधीनता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए –
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर।
उत्तर :

  • ला – लाचार, लापता।
  • बिला- बिलावजह, बिलाकसूर।
  • बे – बेईमान, बेरहम।
  • बद – बदनाम, बदनियत।
  • ना – नाचीज़, नापसंद।
  • खुश – खुशबू, खुशहाल।
  • हर – हरतरह, हरसाल।
  • गैर- गैरकानूनी, गैरमुल्क।

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प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए –
उदाहरण: देव + त्व = देवत्व
उत्तर :

  • लघु + त्व = लघुत्व
  • गुरु + त्व गुरुत्व
  • प्रभु + त्व प्रभुत्व
  • देव + त्व = देवत्व
  • ईश्वर + त्व = ईश्वरत्व।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरणः चलते-पुरज़े
उत्तर :

  • समझता – बूझता
  • पढ़े – लिखे
  • इने – गिने
  • मन – माना
  • लड़ाना – भिड़ाना
  • भली – भाँति
  • पूजा – पाठ।

प्रश्न 5.
‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए –
उदाहरण : आज मुझे बाज़ार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर :
(क) सलमा तो वहीदा को भी अपने साथ विद्यालय ले जाएगी।
(ख) रोहित भी सैम्सन के साथ मुंबई जाएगा।
(ग) शांता भी कांता के साथ सुबह नौ बजे की लोकल से अँधेरी जाती है।
(घ) अहमद भी अशोक के साथ ट्यूशन पढ़ने जाता है।
(ङ) हमें भी गांधी जी की तरह सत्यवादी बनना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘धर्म एकता का माध्यम है’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘धर्म की आड़’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘धर्म की आड़’ निबंध के लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी हैं। इस निबंध में लेखक ने उन धर्माचार्यों की पोल खोली है जो धर्म की आड़ लेकर जनता को भड़काते हैं तथा एक-दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। लेखक का मानना है कि एक सामान्य व्यक्ति धर्म के रहस्य को समझ नहीं पाता। इसलिए उसके भोलेपन का लाभ तथाकथित धर्म गुरु उठाते हैं। वे उन्हें गुमराह कर दूसरे धर्मवालों से लड़ाते रहते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। लेखक ऐसे लोगों से बचकर मानव-धर्म को अपनाने पर बल देता है। हम सुख-दुख में एक-दूसरे की सहायता करें। हमारा आचरण शुद्ध हो। हम किसी के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधक न बनें। हम सबको अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ की स्वतंत्रता हो। यही सच्चा धर्म है।

प्रश्न 2.
हमारे देश और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर किसके हाथ में है और उसमें क्या अंतर है ?
उत्तर :
सभी जगह आम आदमी की शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। हमारे देश में आम आदमी की डोर धर्म के ठेकेदारों के हाथ में है और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर धनपतियों के हाथ में है। यहाँ आम आदमी को ईश्वर धर्म-कर्म और आत्मा का डर दिखाकर उसे बुद्धिहीन कर दिया जाता है और वह अपने धर्मगुरु के बताए मार्ग पर चलकर उसकी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। पश्चिमी देशों में धनपति धन की शक्ति दिखाकर लोगों को अपने प्रभाव में लेते हैं और अपनी इच्छानुसार उनसे और अधिक धन कमाने के लिए काम करवाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
लेखक धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए क्या सुझाव देता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए हमें साहस और दृढ़ता के साथ स्वार्थी तत्वों को बेनकाब करना होगा। धर्म और उपासना के मार्ग में किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आने देनी चाहिए। धर्म और ईमान, ईश्वर और आत्मा के मध्य संबंध होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म की पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और कोई भी व्यक्ति किसी के धार्मिक कार्यों में अड़चन न डाले।

प्रश्न 4.
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में कौन-सा दिन सबसे बुरा था ? क्यों ?
उत्तर :
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में सबसे बुरा दिन वह था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया। ऐसा करने से मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में धर्म के नाम पर ढोंग, पागलपन और उत्पात आरंभ कर दिए थे और देश को एक अलग ही दिशा दे दी।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी के अनुसार धर्म क्या है ? हमें उनसे क्या सीखना चाहिए ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी जीवन में उच्च विचार और उदार गुण को अपनाने को धर्म मानते हैं। इसके लिए मनुष्य को सदाचारी, सत्यवादी, परोपकारी, सज्जन और सहनशील होना चाहिए। अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सबसे मेल-मिलाप बनाए रखें। सदा दूसरों के सुख-दुख में सहयोगी बनें। हमें गाँधी जी के जीवन से यह सीखना चाहिए कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के अनुसार आचरण करना है, जिससे हम एक अच्छा समाज बना सकें। इससे समाज में धर्म के नाम पर उत्पात नहीं होंगे तथा सब परस्पर मिल-जुलकर रहेंगे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 6.
ला- मज़हब से क्या अभिप्राय है और ईश्वर इन लोगों से अधिक प्यार क्यों करेगा?.
उत्तर :
ला – मज़हब से अभिप्राय यह है कि ‘जिसका कोई धर्म न हो’ अथवा ‘जो किसी भी धर्म को नहीं मानता हो’ ऐसे लोगों को नास्तिक भी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रकार से धार्मिक आडंबरों को नहीं मानते हैं। ईश्वर ऐसे लोगों से अधिक प्यार करेगा जो धर्म के नाम पर दिखावा नहीं करते। जो अच्छे और ऊँचे विचारोंवाले हों। जिनका आचरण शुद्ध हो। जो सुख-दुख में सबका साथ देते हों। इन लोगों की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता है।

प्रश्न 7.
‘मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से यह संदेश देना चाहता है कि हमें मानवता को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए हमें अपने आचरण में मानवतावादी गुणों का विकास करना चाहिए। पशुओं के समान आचरण नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा आचरण करने लगेंगे तो समाज में धार्मिक उत्पात बंद हो जाएँ, विश्वबंधुत्व की भावना को बल मिलेगा और पशुता का नाश होगा।

धर्म की आड़ Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर नगर में सन् 1891 ई० में हुआ था। इन्होंने एंट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर के करेंसी कार्यालय में नौकरी कर ली थी। सन् 1921 ई० में इन्होंने ‘प्रताप’ साप्ताहिक – पत्र निकाला था। इन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपना साहित्यिक गुरु मानकर आज़ादी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणादायक रचनाओं की रचना की थी। इन्होंने ऐसी कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया था। स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ी थीं। सन् 1931 ई० में कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को शांत करवाते हुए इनकी मृत्यु हो गई थी। इनकी मृत्यु पर गांधी जी ने कहा था कि ‘काश ! ऐसी मौत मुझे मिली होती !’

रचनाएँ – गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी रचनाओं में ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों तथा समाज के अन्य शोषित वर्गों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उनकी दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण किया है ‘प्रताप’ साप्ताहिक में इनके लेख देश को आजादी दिलाने के लिए युवा वर्ग को प्रेरित करते थे। इनकी रचनाओं में सांप्रदायिक सद्भाव का स्वर मुखरित होता था।

भाषा-शैली – गणेश शंकर विद्यार्थी की भाषा – शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक तथा प्रभावपूर्ण है। ‘ धर्म की आड़’ लेख में इन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका व्यंग्य अत्यंत तीक्ष्ण तथा मर्मभेदी होता है, जैसे – ‘ इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और ज़िद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर।’

लेखक ने तत्सम प्रधान और लोक प्रचलित उर्दू के शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है, जैसे- दुरुपयोग, नेतृत्व, अट्टालिकाएँ, पाश्चात्य, स्वार्थ, शुद्धाचरण, ईश्वरत्व, कायम, दीनदार, मज़हब, बेईमानी, एतराज़, खिलाफ़त, जाहिल, वाजिब। लेखक ने कहीं-कहीं उद्बोधनात्मक शैली का प्रयोग भी किया है, जैसे- ‘सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।’ इस प्रकार लेखक ने अपने विषय को सहज भाव से व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

पाठ का सार :

‘धर्म की आड़’ गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा रचित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवालों पर कटाक्ष किया है। लेखक का मानना है कि इस समय देश में धर्म की धूम है। धर्म और ईमान के नाम पर उत्पात किए जाते हैं। रमुआ पासी और मियाँ धर्म और ईमान की वास्तविकता चाहे जानें या न जानें पर उनके नाम पर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं।

देश के सभी शहरों की यही दशा है। आम आदमी बिना कुछ समझे-बूझे कुछ स्वार्थी तत्वों के संकेतों पर उत्पात मचाने लग जाता है। इससे उन स्वार्थी लोगों को नेतृत्व मिल जाता है। वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। आम आदमी धर्म के तत्वों को जानता नहीं है। वह तो यही समझता है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। इसी का लाभ उठाकर चालाक स्वार्थी लोग उन्हें भड़का देते हैं।

पाश्चात्य देशों में धनी और गरीबों के संघर्ष के कारण साम्यवाद, बोल्शोविज़्म आदि का जन्म हुआ था। हमारे देश में ऐसी स्थिति तो नहीं है परंतु धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है और इसका लाभ कुछ स्वार्थी लोग उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए जब तक साहस और दृढ़ता के साथ प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक भारतवर्ष में ऐसे झगड़े बढ़ते ही रहेंगे।

लेखक का विचार है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की उपासना अपने ढंग से करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। धर्म और ईमान मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। इससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों में टकराव नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा कार्य करता है तो उसका यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध माना जाए।

लेखक ने स्वाधीनता संग्राम के दिनों में उस दिन को सबसे बुरा दिन माना है जब स्वाधीनता आंदोलन में मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया गया था। इसी के परिणामस्वरूप मौलाना अब्दुल बारी तथा शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर दिया था। महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र महत्त्व दिया है। उनके अनुसार धर्म का अर्थ ऊँचे और उदार विचारों से था।

वे आवाज़ देने, शंख बजाने के स्थान पर शुद्धाचरण और सदाचार को धर्म मानते थे। लेखक भी पाँच समय नमाज़ पढ़ने अथवा दो घंटे तक पूजा करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने को उचित नहीं मानता। वह आचरण को सुधारने पर बल देता है। ऐसे आडंबरी धार्मिक और दीनदार व्यक्तियों से तो वह उन नास्तिकों को अच्छा और ऊँचा मानता है, जिनका आचरण अच्छा है जो दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं और धर्म-ईमान के नाम पर उत्पात मचाना ग़लत समझते हैं। ईश्वर भी ऐसे ही नास्तिकों को प्यार करता है जो मानवता को आदर देते हैं तथा पशुता को त्याग देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आड़ – ओट।
  • उत्पात – उपद्रव।
  • उबल पड़ना – क्रोधित होना।
  • दोष – बुराई।
  • जोत देना – हाँक देना, चला देना।
  • चलते-पुरजज़े – चालाक।
  • जाहिल – मूर्ख।
  • नेतृत्व – अगुवाई।
  • कायम – स्थिर।
  • सुगम – आसान।
  • वाज़िब – उचित।
  • बेजा – अनुचित।
  • फ़ायदा – लाभ।
  • अट्टालिकाएँ – ऊँचे-ऊँचे मकान।
  • धनाढ्य – धनवान, अमीर।
  • चूसा जाना – शोषण होना।
  • स्वार्थ सिद्धि – अपना स्वार्थ पूरा करना।
  • उद्योग – प्रयास।
  • टाँग-अड़ाना – विघ्न डालना।
  • विरुद्ध – विपरीत।
  • अनियंत्रित – जो नियंत्रण में न हो।
  • धूर्त – चालबाज़।
  • खिलाफ़त – ख़लीफ़ा का पद।
  • मज़हबी – धार्मिक।
  • प्रपंच – ढोंग, छल।
  • एतराज़ – विरोध, आपत्ति।
  • भलमनसाहत – सज्जनता, शराफ़त।
  • कसौटी – परख, जाँच।
  • ला-मज़हब – जिसका कोई धर्म न हो, नास्तिक।
  • उकसाना – भड़काना।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
रंग की शोभा ने क्या कर दिया ?
उत्तर :
रंग की शोभा उत्तर दिशा में जमी थी। उस दिशा में लाल रंग ने आज कमाल ही कर दिया था।

प्रश्न 2.
बादल किसकी तरह हो गए थे ?
उत्तर :
बादल धुनी हुई रूई की बत्ती के समान हो गए थे।

प्रश्न 3.
लोग किन-किन चीज़ों का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
लोग आकाश, पृथ्वी और जलाशयों का वर्णन करते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 4.
कीचड़ से क्या होता है ?
उत्तर :
कीचड़ से पैर, शरीर और वस्त्र गंदे हो जाते हैं। किसी को अपने ऊपर कीचड़ लगाना अच्छा नहीं लगता है।

प्रश्न 5.
कीचड़ जैसा रंग कौन पसंद करते हैं ?
उत्तर :
पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर, कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कला के जानकार भी मटमैला रंग पसंद करते हैं।

प्रश्न 6.
नदी के किनारे कीचड़ कब सुंदर दिखता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे का कीचड़ तब सुंदर दिखाई देता है जब उसके सूखकर टुकड़े हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
कीचड़ कहाँ सुंदर लगता है ?
उत्तर :
नदी किनारे मीलों तक जब समतल और चिकना कीचड़ एक-सा फैला हुआ होता है तब और खंभात में मही नदी के आगे दूर-दूर तक फैला हुआ तथा पहाड़ के पहाड़ डुबो लेने की शक्ति रखनेवाला कीचड़ सुंदर लगता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 8.
‘पंक’ और ‘पंकज’ शब्द में क्या अंतर है ?
उत्तर
‘पंक’ कीचड़ को कहते हैं। ‘पंकज’ का अर्थ कमल है। पंकज पंक + ज अर्थात् कीचड़ से उत्पन्न होने वाला। ‘पंक’ शब्द घृणास्पद है और पंकज मन को आनंदित कर देता है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं होती ?
उत्तर :
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति इसलिए नहीं होती क्योंकि कीचड़ में पैर डालना कोई पसंद नहीं करता। कीचड़ से शरीर गंदा हो जाता है। कीचड़ से वस्त्र मैले हो जाते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े, यह किसी को पसंद नहीं है। सब कीचड़ से बचते हैं।

प्रश्न 2.
ज़मीन ठोस होने पर उसपर किनके पदचिह्न अंकित होते हैं ?
उत्तर :
जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर ज़मीन को ठोस बना देती है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, पाड़े, बकरे, भेड़ आदि के पदचिह्न दिखाई देने लगते हैं। कई बार इसपर आपस में लड़ते हुए पाड़े के सींगों के चिह्न भी दिखाई देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
मनुष्य को क्या ज्ञान होता जिससे वह कीचड़ का तिरस्कार न करता ?
उत्तर :
मनुष्य को यदि इस बात का ज्ञान होता है कि हम धान भी कीचड़ में से ही पैदा करते हैं तो वह कभी भी कीचड़ का तिरस्कार नहीं करता। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उगती है।

प्रश्न 4.
पहाड़ लुप्त कर देनेवाली कीचड़ की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
खंभात के पास मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक देखते हैं कीचड़ ही कीचड़ दिखाई देता है। यह कीचड़ इतना गहरा है कि इसमें हाथी तो क्या पहाड़ तक लुप्त हो सकते हैं।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कीचड़ का रंग किन-किन लोगों को खुश करता है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि कीचड़ का रंग बहुत सुंदर होता है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर अथवा शरीर के कीमती कपड़ों के लिए कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं। कला के जानकारों को भी भट्टी में पकाए मिट्टी के बरतनों के लिए यही रंग पसंद है। फोटो लेते समय भी यदि उसमें मटमैलापन आ जाए तो फोटो के जानकार प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य उपस्थित करता है ?
उत्तर :
नदी किनारे जब कीचड़ सूख कर टुकड़े हो जाते हैं तो उसपर पड़ने वाली दरारें बहुत सुंदर लगती हैं। ज्यादा गरमी में जब इन टुकड़ों पर दरारें पड़ती हैं और ये टेढ़े हो जाते हैं, तब ये सुखाए हुए खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। नदी किनारे मीलों तक फैला हुआ समतल और चिकना कीचड़ बहुत आकर्षक दृश्य उपस्थित करता है। इस कीचड़ के कुछ सूख जाने पर इसपर बने हुए बगुले तथा अन्य पक्षियों के चलने के निशान भी देखने में अच्छे लगते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे जब कीचड़ के सूखकर टुकड़े हो जाते हैं तब सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य दिखाई देता है। यही कीचड़ के सूखे हुए टुकड़े अधिक गरमी के कारण टेढ़े होकर सूखे खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। सूखे हुए कीचड़ पर चलनेवाले बगुले तथा अन्य पक्षियों के पद – चिह्न भी देखने में सुंदर लगते हैं। जब कीचड़ अधिक सूखकर ठोस हो जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के अंकित पद – चिह्नों की शोभा निराली ही होती है।

प्रश्न 4.
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य इसलिए कहा है क्योंकि वे लेखक के इस तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे कि जिस ‘पंक’ शब्द को सुनने मात्र से ही वे पंक से घृणा करने लगते हैं, उसी ‘पंक’ से उत्पन्न पंकज का नाम सुनने से उनका मन हर्षित होकर गाने क्यों लगता है ? उस ‘पंक’ से उनकी घृणा व्यर्थ है। हमारा अन्न भी कीचड़ से ही पैदा होता है। इसलिए कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है। वे अपना तर्क देकर लेखक के तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख
में लिखा हो ऐसा भास होता है।
उत्तर :
नदी के किनारे के सूखे कीचड़ में जवान भैंसे जब अपने सींगों को उस सूखे कीचड़ में धँसाकर आपस में मस्त होकर जूझते होंगे तो उनके परस्पर टकराने से उस सूखे कीचड़ पर जो चिह्न बनते हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है मानो भैंसों के परिवार के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कीचड़ पर एक लेख के रूप में लिख दिया गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 2.
आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कंठ में बाँध कर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते !” कम-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम !
उत्तर :
लेखक जब कवियों को समझाना चाहता है कि कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है तो यह सोचकर कवि उसे कहेंगे कि जब वासुदेव की पूजा करने पर वसुदेव को नहीं पूजा जाता, हीरे के लिए अधिक मूल्य देते हैं पर कोयले या पत्थर का अधिक मूल्य नहीं देते तथा मोती कंठ में पहनते हैं परंतु सीपी को तो गले में नहीं बाँधते हैं – वह उनसे कीचड़ की श्रेष्ठता के संबंध में कोई चर्चा न करना ही उचित मानता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए –
उत्तर :
JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम भी लिखिए-
उत्तर :

  1. कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है। – संबंध
  2. क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है ? – संबंध
  3. हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। – करण
  4. पदचिह्न उस पर अंकित होते हैं। – अधिकरण
  5. आप वासुदेव की पूजा करते हैं। – संबंध

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की बनावट को ध्यान से देखिए और इनका पाठ से भिन्न किसी नए प्रसंग में वाक्य प्रयोग कीजिए –
आकर्षक, यथार्थ, तटस्थता, कलाभिज्ञ, पदचिह्न, अंकित, तृप्ति, सनातन, लुप्त, जागृत, घृणास्पद, युक्ति शून्य, वृत्ति।
उत्तर :

  • आकर्षक – कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य बहुत आकर्षक होता है।
  • यथार्थ – प्रेमचंद के साहित्य में ग्राम्य जीवन का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है।
  • तटस्थता – न्याय करते समय हमें तटस्थता की नीति अपनानी चाहिए।
  • कलाभिज्ञ – कलादीर्घा में अनेक कलाभिज्ञ एकत्र हुए।
  • पदचिह्न – हमें महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।
  • अंकित – सुभाषचंद बोस का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
  • तृप्ति – गंगा – स्नान से मुझे तृप्ति मिली।
  • सनातन – हमें अपनी सनातन परंपराओं का पालन करना चाहिए।
  • लुप्त – मेरे देखते-देखते ही सुबह का तारा लुप्त हो गया।
  • जागृत – जागृत अवस्था में स्वप्न देखना उचित नहीं है।
  • घृणास्पद – गंदगी का ढेर देखना ही घृणास्पद है।
  • युक्ति शून्य – जया के सभी तर्क युक्ति शून्य थे।
  • वृत्ति – पीयूष विनम्र वृत्ति का बालक है।

प्रश्न 4.
नीचे दी गई संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग करते हुए कोई अन्य वाक्य बनाइए –
(क) देखते-देखते वहाँ के बादल श्वेत पूनी जैसे हो गए।
उत्तर :
मेरे देखते-देखते ही गाड़ी चल पड़ी।

(ख) कीचड़ देखना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए।
उत्तर :
सागर देखना हो तो सीधे कन्याकुमारी पहुँचना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

(ग) हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है
उत्तर :
कमल कीचड़ में से ही पैदा होता है।

प्रश्न 5.
न नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए-
(क) तुम घर ………. जाओ।
(ख) मोहन कल ………. आएगा।
(ग) उसे ………… जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो …………. प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी ………… जाऊँगा।
(च) ………… वह बोला ……….. मैं।
उत्तर :
(क) तुम घर मत जाओ।
(ख) मोहन कल नहीं आएगा।
(ग) उसे न जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो मत प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।
(च) न वह बोला न मैं।

योग्यता-विस्तार –

1. विद्यार्थी सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखें तथा अपने अनुभवों को लिखें।
2. कीचड़ में पैदा होनेवाली फसलों के नाम लिखिए।
3. भारत के मानचित्र में दिखाएँ कि धान की फसल प्रमुख रूप में किन-किन प्रांतों में उपजाई जाती है ?
4. क्या कीचड़ ‘गंदगी’ है ? इस विषय पर अपनी कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित एक ललित निबंध है। इस निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का वर्णन किया है। लेखक के विचार में हमें कीचड़ के गंदेपन पर नहीं बल्कि उसकी मानव तथा पशु-पक्षियों के जीवन में उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य मटमैला रंग पसंद करता है तथा पशु-पक्षियों को कीचड़ में क्रीड़ा करना और उसपर चलना अच्छा लगता है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उग पाती है। कमल जिसे पंकज कहते हैं ‘पंक’ कीचड़ में से ही उगता है। इस प्रकार लेखक ने कीचड़ को हेय न कह श्रद्धेय माना है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 2.
लेखक ने कीचड़ की महानता कैसे सिद्ध की है ?
उत्तर :
कीचड़ की महानता सिद्ध करने के लिए लेखक ने तीन उदाहरण दिए हैं। लेखक के अनुसार यदि मनुष्य यह अच्छी तरह से समझ ले कि धान जैसी फसल कीचड़ में ही पैदा होती है तो वह कीचड़ का तिरस्कार नहीं करेगा। दूसरे उदाहरण में, लेखक यह बताता है कि पंक से ही पंकज अर्थात कमल पैदा होता है, इसलिए पंक, कीचड़ से घृणा करना उचित नहीं है। इसी प्रकार से मल की मलिनता से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि कमल में मल शब्द का प्रयोग होता है और कमल मन को आनंदित करता है।

प्रश्न 3.
आज लेखक को पूर्व और उत्तर दिशा में क्या अंतर दिखाई दे रहा है ?
उत्तर :
आज लेखक को पूर्व दिशा में विशेष आकर्षण दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि बादलों के कारण पूर्व दिशा रंगहीन थी। दूसरी ओर उत्तर दिशा की लालिमा देखते ही बन रही थी। वहाँ बादलों ने अभी अपने पैर नहीं रखे थे, परंतु कितनी देर तक उत्तर दिशा लाल रंग में रँगी रहेगी। कुछ ही देर में वहाँ भी बादल छा गए।

प्रश्न 4.
कवि कीचड़ का वर्णन क्यों नहीं करते हैं? वे किन-किन चीज़ों की सुंदरता का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
कवि कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं, क्योंकि कीचड़ में पैर डालने से ही शरीर के साथ-साथ मन भी गंदा अनुभव करने लगता है और कपड़े गंदे हो जाते हैं, इसलिए सभी कीचड़ से दूर रहना पसंद करते हैं।
कवि प्रकृति का चित्रण करते हैं-धरती, आकाश, जलाशयों आदि की सुंदरता का वर्णन करते हैं। उन्हें आकाश का खुलापन, धरती की हरियाली और जलाशयों का कल-कल ध्वनि करता जल अधिक आकर्षित करता है। उन्हें चारों ओर रंग बिखेरनेवाली चीजें अधिक पसंद आती हैं। इसलिए वे लोग कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार कीचड़ में कैसा सौंदर्य है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कीचड़ में भी सौंदर्य है। कीचड़ का रंग बहुत सुंदर है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर और घरों की दीवारों पर कीचड़ जैसे ही रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी कीचड़ के रंग पसंद आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कीचड़ में भी सौंदर्य होता है।

प्रश्न 6.
लेखक कीचड़ देखने के लिए कहाँ जाने के लिए कह रहा है ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि यदि कीचड़ देखने की इच्छा हो तो गंगा के किनारे या सिंधु नदी के किनारे जाना चाहिए। वहाँ कीचड़ का विशाल रूप दिखाई देगा। यदि वहाँ कीचड़ देखने से भी तृप्ति न मिले तो उसका विराट रूप देखने के लिए खंभात जाना चाहिए। वहाँ महानदी के मुख से आगे जहाँ तक भी नज़र जाए कीचड़ – ही कीचड़ देखने को मिलेगा। वहाँ कीचड़ इतना गहरा है कि उसमें पहाड़ भी डूब जाएँ।

प्रश्न 7.
कीचड़ में कौन-सा फूल और अन्न पैदा होता है ?
उत्तर :
पूर्वी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही होती है। हमारा राष्ट्रीय फूल कमल जो अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, वह भी कीचड़ में पैदा होता है। पंक, कीचड़ में पैदा होने के कारण उसे पंकज भी कहा जाता है।

कीचड़ का काव्य Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन-परिचय – महात्मा गांधी के जीवन से अत्यंत प्रभावित काका कालेलकर अनूठे व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपका जन्म महाराष्ट्र के सतारा नगर में सन् 1885 ई० में हुआ था। यह मराठी भाषी थे पर इन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। यह महात्मा गांधी के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार कार्य में लंबे समय तक जुड़े रहे। उस समय हिंदी के लिए ही ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का प्रयोग होता था। यह अनेक वर्षों तक साहित्य अकादमी में गुजराती भाषा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते रहे। अपने जीवनकाल में इन्होंने देश-विदेश में दूर-दूर तक भ्रमण किया। यह घुमक्कड़ स्वभाव के थे। इनका देहावसान सन् 1982 में हुआ।

रचनाएँ – काका कालेलकर ने अपने जीवनकाल में लगभग 30 पुस्तकों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं – हिमालनो प्रवास, लोकमाता (यात्रा – विवरण), स्मरण यात्रा संस्मरण, धर्मोदय (आत्मचरित), जीवननो आनंद, अवारनवार (निबंध-संग्रह)। इनकी अधिकांश पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।

भाषा-शैली – काका कालेलकर मात्र घुमक्कड़ ही नहीं थे बल्कि अत्यंत उच्चकोटि के विद्वान और विचारक भी थे। उन्होंने स्वयं को केवल हिंदी के प्रचार तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि हिंदी – साहित्य को अपने लेखन से समृद्ध भी किया। यह घूमने-फिरने के शौकीन थे, इसलिए इन्होंने यात्रा – वृत्तांत के अंतर्गत हिंदी – साहित्य को देश-विदेश के लोगों का रहन-सहन, प्राकृतिक दृश्यों, स्वभावों, आदतों तथा विभिन्न समस्याओं से परिचित कराया। इनके द्वारा रचित निबंध विचारात्मक और विवरणात्मक शैली में हैं।

वर्णन में सजीवता का गुण लाने में इन्हें निपुणता प्राप्त है। तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात को प्रस्तुत करना इनकी लेखन शैली की विशिष्टता है। इनके चिंतन प्रधान निबंधों में भावात्मकता का पुट विद्यमान रहता है। अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इन्होंने मानव मन में झाँकने की चेष्टा की है और किसी क्षेत्र के कण-कण को पहचानने का सफल प्रयत्न किया है। इनका लेखन कार्य अति प्रभावशाली है। सजीव और जीवंत भाषा – प्रयोग में यह सिद्धहस्त थे, इन्होंने तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग कर अपने विचारों को व्यक्त किया।

‘कीचड़ का काव्य’ निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का काव्यमय भाषा – शैली में वर्णन किया है; जैसे- ” नदी के किनारे जब कीचड़ सूखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं, तब वे कितने सुंदर दिखते हैं। ज्यादा गरमी से जब उन्हीं टुकड़ों में दरारें पड़ती हैं और वे टेढ़े हो जाते हैं, तब सुखाए हुए खोपरे जैसे दीख पड़ते हैं। ” इनके इन वर्णनों में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

पाठ का सार :

‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित ललित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उसे श्रद्धेय बताया है। लेखक सूर्योदय का वर्णन करते हुए लिखता है कि आज सुबह पूर्व दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में लालिमा थी जिसे कुछ ही देर बाद श्वेत कपास की पूनी जैसी रंगत के बादलों ने ढक दिया था। आकाश, पृथ्वी, जलाशयों का वर्णन तो सब करते हैं परंतु कीचड़ का वर्णन कोई नहीं करता है।

शायद इसलिए कि कीचड़ से स्वयं को गंदा करना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। लेखक को कीचड़ में भी सौंदर्य दिखाई देता है क्योंकि इसका रंग बहुत सुंदर है और लोग पुस्तकों के गत्ते पर घरों की दीवारों, कीमती कपड़ों आदि के लिए कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी यही रंग पसंद है पर कीचड़ का नाम लेते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं।

लेखक नदी के किनारे सूखे हुए कीचड़ के टुकड़ों को सुखाए हुए खोपरों जैसा देखता है। नदी के किनारे दूर तक समतल और चिकने कीचड़ पर बगुलों और अन्य पक्षियों के पद- चिह्न लेखक को इन्हीं पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कीचड़ जब अधिक सूखकर ठोस ज़मीन बन जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के पद – चिह्न तथा अपने सींगों को कीचड़ से भरकर मल्ल युद्ध करनेवाले मदमस्त भैंसों के चिह्न इस दृश्य को और भी अधिक आकर्षक बना देते हैं के गंगा, सिंधु नदी के किनारे की कीचड़ से भी अधिक कीचड़ खंभात में माही नदी के मुख से आगे कीचड़ ही कीचड़ है जिसमें पहाड़ पहाड़ लुप्त हो सकते हैं।

हम लोग धान भी कीचड़ में पैदा करते हैं। कमल को पंकज भी कहते हैं जो कीचड़ से ही उत्पन्न होता है। मल से मलिनता का बोध होता है परंतु कमल में ‘मल’ शब्दांश के प्रयोग से कमल के समान मन खिल उठता है। लेखक कहता है कि यदि कवियों को ऐसे तर्क दें तो उन्हें नहीं समझाया जा सकता क्योंकि वे तो यही तर्क देंगे कि ‘वासुदेव की पूजा करते हैं परंतु वसुदेव की नहीं, हीरे कीमती होते हैं पर कोयला या पत्थर तो नहीं, मोती को गले में बाँधते हैं पर सीपी को तो नहीं।’ इसलिए वह कवियों से इस संबंध में कोई चर्चा नहीं करना चाहता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पूर्व – पूर्व दिशा।
  • आकर्षक – मुग्ध करनेवाला, रोचक।
  • शोभा – सुंदरता।
  • उत्तर – उत्तर दिशा।
  • श्वेत – सफ़ेद।
  • पूनी – धुनी हुई रूई की बत्ती।
  • जलाशय – तालाब।
  • तटस्थता – बिना भेदभाव के।
  • कलाभिज्ञ – कला के जानकार।
  • वार्मटोन – मटमैला रंग।
  • विज्ञ – जानकार।
  • खोपरे – नारियल।
  • पद-चिहून – पैरों के निशान।
  • अंकित – चिह्नित।
  • कारवाँ – झुंड।
  • पाड़े – भैंस के नर बच्चे।
  • महिषकुल – भैंसों का परिवार।
  • कर्दम – कीचड़।
  • अल्पोक्ति – थोड़ा कहना।
  • लुप्त – गायब।
  • आहूलादकत्व – हर्ष का भाव।
  • युक्तिशून्य – तर्क से रहित।
  • वृत्ति – स्वभाव।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अलावा और क्या थे ?
उत्तर :
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अतिरिक्त एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे।

प्रश्न 2.
समुद्र को देखकर रामन के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं ?
उत्तर :
समुद्र को देखकर रामन के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं कि समुद्र का रंग नीला क्यों होता है और समुद्र का रंग कोई दूसरा क्यों नहीं होता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 3.
रामन के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली ?
उत्तर :
रामन के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी विषयों की सशक्त नींव डाली थी।

प्रश्न 4.
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन क्या करना चाहते थे ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन उनकी ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलना चाहते थे।

प्रश्न 5.
सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन की क्या भावना थी ?
उत्तर :
रामन ने सरकारी नौकरी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 6.
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें ले रहा था।

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प्रश्न 7.
प्रकाश – तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया ?
उत्तर :
आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश – तरंगें प्रकाश के अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान हैं।

प्रश्न 8.
रामन की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया ?
उत्तर :
रामन की खोज ने पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययनों को सहज बनाया।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कॉलेज के दिनों में रामन की दिली इच्छा क्या थी ?
उत्तर :
चपन से ही वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझाने में लगे रहते थे। अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर दिया था। उन्हीं दिनों उनका एक शोध – आलेख ‘फिलॉसॉफिकल’ मैगज़ीन में प्रकाशित भी हुआ था। उनकी दिली इच्छा यह थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्य में लगा दें, किंतु उन दिनों इस कार्य को पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में अपनाने की कोई व्यवस्था नहीं थी।

प्रश्न 2.
वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों पर किए जा रहे अपने शोधकार्यों में रामन ने वायलिन, चैलो, पियानो जैसे विदेशी वाद्यों के साथ ही वीणा, तानपूरा, मृदंगम् जैसे देशी वाद्यों पर भी काम किया था। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को भी तोड़ने की कोशिश की थी कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं।

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प्रश्न 3.
रामन के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था ?
उत्तर :
रामन के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने का निर्णय लेना कठिन था। उन दिनों वे अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे। उन्हें अच्छा वेतन और अनेक सरकारी सुविधाएँ प्राप्त थीं। उन्हें नौकरी करते हुए भी दस साल हो चुके थे।

प्रश्न 4.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ?
उत्तर :
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसायटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 ई० में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। सन् 1930 ई० में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला। सन् 1954 ई० में इन्हें ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया। इन्हें रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक और सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी मिला था।

प्रश्न 5.
‘रामन को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत किया।’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
रामन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्हें अन्य पदक और पुरस्कार तब मिले थे जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलनेवाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास दिया था। उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अन्य भारतीय वैज्ञानिकों ने भी अलग-अलग क्षेत्रों में शोधकार्य प्रारंभ कर दिए थे। इस प्रकार उन्हें मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत कर दिया था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
रामन के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
रामन कोलकाता में सरकारी नौकरी करते थे। इन दिनों भी उनकी वैज्ञानिक शोधकार्यों में रुचि बनी हुई थी। वे अपने कार्यालय से लौटते हुए बहू बाज़ार में स्थित डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित ‘इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला में उपलब्ध उपकरणों की सहायता से अपना शोधकार्य करते थे। उनका यह कार्य वास्तव में आधुनिक हठयोग का उदाहरण था जिसमें एक साधक अपने कार्यालय में कठिन परिश्रम करने के बाद बहू बाज़ार की साधारण – सी प्रयोगशाला में काम चलाऊ उपकरणों की सहायता से और अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने का प्रयास करता था।

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प्रश्न 2.
रामन की खोज ‘रामन प्रभाव’ क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया था। इसी के परिणाम को ‘रामन प्रभाव’ कहा गया है। इसके अनुसार जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। इसका कारण यह होता है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं से टकराते हैं। इस कारण वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में प्रकाश के वर्ण अथवा रंग में बदलाव आता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण आते हैं। एकवर्णीय प्रकाश-तरल या ठोस रवों से गुज़रते हुए जिस परिणाम में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित होता है।

प्रश्न 3.
‘रामन प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन ने जो कहा था उसका प्रायोगिक प्रमाण मिल गया क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन प्रकाश की किरण का तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है। ‘रामन प्रभाव’ से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन में सहायता मिलती है। इस तकनीक द्वारा एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सही जानकारी मिल जाती है। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया है।

प्रश्न 4.
देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रामन केवल व्यक्तिगत प्रयोगों एवं वैज्ञानिक शोध-पत्र लेखन तक ही सीमित नहीं थे। उन्हें अपने भारतीय होने पर गर्व था। उनमें निहित राष्ट्रीय चेतना ने उन्हें देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास की प्रेरणा दी। उन्हें स्मरण था कि किस प्रकार काम चलाऊ उपकरणों से वे बहू बाज़ार की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक अनुसंधान में लगे रहते थे। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के नाम से बंगलौर में स्थापित की। उन्होंने भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘इंडियन जनरल ऑफ़ फीज़िक्स’ निकाला तथा ‘करेंट साइंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने अनेक शोधार्थियों का मार्गदर्शन भी किया था।

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प्रश्न 5.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि मनुष्य अपने जीवन में जो करना चाहता है वह उसे कर सकता है यदि उसमें उस कार्य को करने की लगन तथा इच्छा हो। रामन की शोधकार्य में इच्छा थी परंतु उन्हें एम० ए० करने के बाद वित्त विभाग में सरकारी नौकरी करनी पड़ी। इससे वे विचलित नहीं हुए बल्कि समय निकालकर सामान्य – सी प्रयोगशाला में अपने शोध करते रहे।

जब उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली तो वे सरकारी सुख-सुविधाएँ छोड़कर प्रोफ़ेसर की कम सुविधाओं और वेतनवाली नौकरी करने लगे क्योंकि यहाँ पढ़ने-लिखने और शोधकार्य की सुविधा थी। उनकी इसी दूर – दृष्टि ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बना दिया। रामन के जीवन से हमें यह भी शिक्षा लेनी चाहिए कि हम अपने आस-पास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करें तो हम प्रकृति के अनेक रहस्यों का उद्घाटन रामन की तरह कर सकते हैं।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर :
रामन कोलकाता के सरकारी वित्त विभाग में अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं वाली नौकरी करते थे। उन्हीं दिनों कोलकाता विश्वविद्यालय में एक प्रोफ़ेसर की आवश्यकता थी। सुप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी रामन की प्रतिभा तथा वैज्ञानिक रुचि से परिचित थे। उन्होंने रामन को विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने के लिए कहा। सुख-सुविधाओं और अच्छे वेतन की सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार करना रामन के लिए हिम्मत का काम था। उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार कर ली क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना करना सरकारी सुख-सुविधाओं को भोगने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है। इस प्रकार वे अध्ययन, अध्यापन और शोधकार्य में लग गए।

प्रश्न 2.
हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर :
रामन चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करे। हमारे आसपास प्रकृति में अनेक ऐसी चीजें हैं, जिन्हें यदि हम ध्यान से देखें तो वे हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं और हमसे कहती हैं कि हमारे रहस्य को उद्घाटित करो। कोई रामन जैसा शोधार्थी ही प्रकृति के अज्ञात रहस्यों से परदा उठा सकता है।

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प्रश्न 3.
यह अपने-आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर :
प्राचीनकाल में योगी अनेक कठिन साधनाओं के द्वारा हठयोग का अभ्यास करते थे परंतु रामन ने अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं से युक्त सरकारी नौकरी होते हुए भी अपना वैज्ञानिक शोधकार्य करने के लिए अपने कार्यालय के समय के बाद बहू बाजार की इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में जाया करते थे। यहाँ रामन को पर्याप्त उपकरण भी उपलब्ध नहीं होते थे। फिर भी वे अपना शोधकार्य करते रहे। उनका यह कार्य आधुनिक हठयोग का ही उदाहरण है जिसमें एक साधन दफ्तर में कड़ी मेहनत करने के बाद बहू बाजार की सामान्य-सी प्रयोगशाला में अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध कर रहा था।

(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

प्रश्न :
इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फ़ार द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट
1. रामन का पहला शोध – पत्र …………………….. में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज …………………. के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली सी प्रयोगशाला का नाम ……………… था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान …………………….. नाम से जानी जाती है
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए …………. का सहारा लिया जाता था।
उत्तर :
1. रामन का पहला शोध – पत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
नीचे कुछ समानदर्शी शब्द दिए जा रहे हैं जिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनके अर्थ का अंतर स्पष्ट हो सके।
(क) प्रमाण, (ख) प्रणाम, (ग) धारणा, (घ) धारण, (ङ) पूर्ववर्ती, (च) परवर्ती, (छ) परिवर्तन, (ज) प्रवर्तन
उत्तर :
(क) प्रमाण – इस बात का क्या प्रमाण है कि आप चौदह वर्ष के हैं ?
(ख) प्रणाम – राजेश सुबह उठकर अपने माता – पिता को प्रणाम करता है।
(ग) धारणा – अध्यापिका की सुमन के संबंध में अच्छी धारणा नहीं है।
(घ) धारण – राजा ने सुंदर मुकुट धारण किया हुआ है
(ङ) पूर्ववर्ती – इंदिरा गांधी से पूर्ववर्ती भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे।
(च) परवर्ती – हुमायूँ से परवर्ती मुग़ल सम्राट अकबर था।
(छ) परिवर्तन – प्रकृति में प्रतिपल परिवर्तन होता रहता है।
(ज) प्रवर्तन – हिंदी साहित्य में छायावाद का प्रवर्तन जयशंकर प्रसाद ने किया था।

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प्रश्न 2.
रेखांकित शब्द के विलोम शब्द का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
उत्तर :
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से अशक्त हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी रूप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रूप को देखने के बाद अपकर्षण में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण में रेखांकित अंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ है-
उदाहरण: चाऊतान को गाने-बजाने में आनंद आता है।
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सुख-सुविधा, अच्छा-खासा, प्रचार- प्रसार, आस-पास
उत्तर :
सुख-सुविधा – रामन ने सरस्वती की साधना के लिए सुख-सुविधा त्याग दी।
अच्छा-खासा – सुंदरम अच्छा-खासा कमाता है, फिर भी उधार माँगता रहता है।
प्रचार-प्रसार – किसी भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार दूरदर्शन के माध्यम से शीघ्र हो जाता है।
आस-पास – मीनाक्षी और कुंदा का घर आस- पास है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ में आए अनुस्वार और अनुनासिक शब्दों को निम्नलिखित तालिका में लिखिए –
उत्तर :
अनुस्वार – अनुनासिक
(क) अंदर – (क) ढूँढ़ते
(ख) अंक – (ख) ऊँचे
(ग) संस्था – (ग) भाँति
(घ) ढंग – (घ) पहुँचता
(ङ) संघर्ष – (ङ) जहाँ

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प्रश्न 5.
पाठ में निम्नलिखित विशिष्ट भाषा प्रयोग आए हैं। सामान्य शब्दों में इनका आशय स्पष्ट कीजिए –
घंटों खोए रहते, स्वाभाविक रुझान बनाए रखना, अच्छा-खासा काम किया, हिम्मत का काम था, सटीक जानकारी, काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए, कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था, मोटी तनख्वाह
उत्तर :
बहुत देर तक सोचते रहते, अपनी पसंद बनाए रखना, बहुत काम किया, आसान काम नहीं था, पूरी और सही जानकारी, बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए, बहुत परिश्रम से बनाया था, बहुत अच्छा वेतन

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर मिलान कीजिए –

  1. नीला – कामचलाऊ
  2. पिता – रव
  3. तैनाती – भारतीय वाद्ययंत्र
  4. उपकरण – वैज्ञानिक रहस्य
  5. घटिया – समुद्र
  6. फोटॉन – नींव
  7. भेदन – कोलकाता

उत्तर :

  1. नीला – समुद्र
  2. पिता – नींव
  3. तैनाती – कोलकाता
  4. उपकरण – काम चलाऊ
  5. घटिया – भारतीय वाद्ययंत्र
  6. फोटॉन – रव
  7. भेदन – वैज्ञानिक रहस्य।

प्रश्न 7.
पाठ में आए रंगों की सूची बनाइए। इनके अतिरिक्त दस रंगों के नाम और लिखिए। पाठ में आए रंग – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
उत्तर :
अन्य रंग – गुलाबी, काला, केसरिया, फ़िरोजी, गेहुँआ, सलेटी, बादामी, नसवारी, सफ़ेद, मेंहदी।

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प्रश्न 8.
नीचे दिए गए उदाहरण के अनुसार ‘ही’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए। उदाहरण: उनके ज्ञान की सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी।
उत्तर :

  1. रामन ने ही रामन-प्रभाव की खोज की थी।
  2. हनुमान ने ही लंका में जाकर सीता की खोज की थी।
  3. इंदु की पिटाई करनेवाली सगीता ही थी।
  4. भारत ने ही मोहाली में इंग्लैंड की क्रिकेट टीम को हराया था।
  5. राम ने ही रावण को बाण से मारा था।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘विज्ञान का मानव विकास में योगदान’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
भारत के किन-किन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिला है ? पता लगाइए और लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
न्यूटन के आविष्कार के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों की सूची उनके कार्यों / योगदानों के साथ बनाइए।
प्रश्न 2.
भारत के मानचित्र में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली और कोलकाता की स्थिति दर्शाएँ।
प्रश्न 3.
उत्तर
पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में उन वैज्ञानिक खोजों, उपकरणों की सूची बनाइए, जिसने मानव-जीवन बदल दिया है। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज की प्रेरणा कैसे मिली ?
उत्तर :
रामन को प्रकृति से बहुत लगाव था। सन् 1921 ई० में समुद्री यात्रा कर रहे थे। वे जहाज़ के डेक पर खड़े होकर नीले सागर को घंटों देखते रहते थे। उन्हें सागर की नील वर्णीय आभा बहुत अच्छी लगती थी। वे सोचने लगे कि समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है ? कोई और रंग क्यों नहीं होता ? रामन अपने मन में उत्पन्न इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने में लग गए और उन्होंने ‘रामन-प्रभाव’ की खोज कर ली।

प्रश्न 2.
रामन ने सरकारी नौकरी करते हुए भी शोधकार्य कैसे जारी रखा ?
उत्तर
रामन की हार्दिक इच्छा थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को समर्पित कर दें, किंतु उन दिनों शोधकार्य को एक व्यवसाय के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हुई थी। इन दिनों सभी प्रतिभावान विद्यार्थी सरकारी नौकरी करना पसंद करते थे। रामन ने भी कोलकाता में सरकारी वित्त-विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट की नौकरी कर ली। अपने कार्यालय के बाद वे बहू बाज़ार में डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में उपलब्ध सामान्य उपकरणों के माध्यम से अपना शोधकार्य करते थे।

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प्रश्न 3.
‘रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति मानी जाती है। उनके ‘रामन प्रभाव’ के कारण ही प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, परंतु आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से करते हुए उन्हें फोटॉन नाम दिया था। रामन के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की इस धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के रूप में व्यवहार करती है। रामन की इस खोज के कारण ही पदार्थों की आण्विक एवं परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा।

प्रश्न 4.
न्यूटन ने सेब को नीचे गिरते देख किस सिद्धांत की खोज की थी ?
उत्तर :
न्यूटन ने सेब को पेड़ से नीचे गिरते देखा तो उसे लगा कि पृथ्वी में ऐसी कोई शक्ति है जो सेब को नीचे की ओर खींच रही है। इसी रहस्य की खोज करते हुए उसने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत की खोज की थी।

प्रश्न 5.
रामन की शिक्षा पर किसका प्रभाव था ? उन्होंने अपनी शिक्षा कहाँ प्राप्त की ?
उत्तर :
रामन के पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। उन्हीं के कारण रामन की इन दो विषयों में दिलचस्पी बढ़ गई। उनके गणित और भौतिक से सशक्त ज्ञान की नींव उनके पिता ने तैयार की थी। रामन ने कॉलेज की पढ़ाई पहले ए०बी० एन० कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की।

प्रश्न 6.
रामन ने विश्वविद्यालय की नौकरी करना क्यों स्वीकर किया ?
उत्तर :
रामन के जीवन की एक इच्छा थी कि वे आजीवन शोधकार्य करते रहे, परंतु उस समय सुयोग्य छात्रों को अच्छी सरकारी नौकरियाँ बहुत जल्दी मिल जाती थीं। इसीलिए उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली। जब उन्हें विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य करने का निमंत्रण मिला तो उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस नौकरी के पीछे उनका एक ही मकसद था कि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए शोधकार्य भी कर सकते थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 7.
रामन को भारतीय संस्कृति से कैसा लगाव था ? अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन का स्वभाव कैसा रहा?
उत्तर :
रामन को सदा ही अपनी भारतीय संस्कृति से बहुत लगाव रहा। वे अपनी भारतीय पहचान को बनाए रखने के लिए दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया था। उनका रहन-सहन साधारण था। वे एक आम दक्षिण भारतीय व्यक्ति के समान रहते थे। वे कट्टर शाकाहारी थे। उन्हें मदिरापान से सख्त परहेज़ था। उनमें किसी भी प्रकार का कोई अहंकार नहीं था।

प्रश्न 8.
एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं” से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
रामन को अपने आरंभिक दिनों में शोधकार्यों के लिए बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी थी। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना बंगलौर में की। उनकी बनाई इस प्रयोगशाला और शोध संस्थान में उनके शोध छात्रों ने काफ़ी अच्छा काम किया और कई छात्र बाद में उच्च पदों पर भी सुशोभित हुए। उनका जीवन एक दीपक के समान था जिसके प्रकाश की किरणों ने पूरे देश को आलोकित और प्रभावित किया।

प्रश्न 9.
रामन के अनुसार प्रकृति हमें क्या संदेश देती है और उसका रहस्यभेदन किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर :
रामन के अनुसार प्रकृति हमें यह संदेश देती है कि हम उसका निरीक्षण एक प्रकृति-प्रेमी के रूप में करें और उसमें हो रहे परिवर्तनों के सदस्यों को वैज्ञानिक धरातल पर ढूँढ़ने का प्रयास करें। प्रकृति का रहस्य- भेदन रामन के अनुसार निरंतर कार्य करते हुए किया जा सकता है। इसके लिए हमारे अंदर वैज्ञानिक सूझ-बूझ और जिज्ञासा की प्रवृत्ति होनी चाहिए।

वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय- धीरंजन मालवे का जन्म बिहार राज्य के नालंदा जिले के हुँवरावाँ नामक गाँव में 9 मार्च, सन् 1952 ई० को हुआ था। इन्होंने एम० एससी० (सांख्यिकी), एम०बी०ए० तथा एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की है। इन्होंने आकाशवाणी तथा बी०बी०सी० लंदन में कार्य किया है। इन्होंने विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों का प्रसारण भी किया है। वर्तमान में वे प्रसार भारती से संबंधित हैं।

रचनाएँ – इन्होंने रेडियो विज्ञान पत्रिका ‘ज्ञान-विज्ञान’ का संपादन तथा प्रसारण किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तक ‘विश्व – विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ भारतीय वैज्ञानिकों का संक्षिप्त जीवन प्रस्तुत करती है। इन्होंने पर्यावरण से संबंधित एक पुस्तक भी लिखी है।

भाषा-शैली – धीरंजन मालवे ने अपनी रचनाओं में सीधी, सरल और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग किया है। विषयानुरूप वैज्ञानिक शब्दावली का भी इन्होंने प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहकः चंद्रशेखर वेंकट रामन’ पाठ में भी लेखक ने नीलवर्णीय आभा, असंख्य, समक्ष, जिज्ञासा, अतिशयोक्ति, समृद्ध, एकवर्णीय जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ दौरान, इस्तेमाल, बावजूद, फ़ैसला, दौर जैसे उर्दू के तथा फिलॉसॉफ़िकल, वायलिन, पियानो, फोटॉन, इंफ्रारेड, स्पेक्ट्रोस्कोपी आदि अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग भी किया है। इनकी शैली वर्णन प्रधान तथा प्रवाहमयी है, जैसे- पेड़ से सेब गिरते हुए तो लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले और कोई समझ नहीं पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन। इस प्रकार लेखक की भाषा-शैली सीधी, सरल एवं वैज्ञानिक शब्दावली से युक्त वर्णन प्रधान है।

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पाठ का सार :

‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन’ नामक पाठ में धीरंजन मालवे ने रामन के जीवन और शोधकार्य का संक्षिप्त एवं तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत किया है, जैसे पेड़ से गिरते सेब को देखकर न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज निकाला था, उसी प्रकार से चंद्रशेखर वेंकट रामन ने विराट सागर की नील-वर्णीय आभा देखकर रामन प्रभाव की खोज की थी। सन् 1921 ई० में की गई समुद्री यात्रा ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया था।

चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म 7 नवंबर, सन् 1888 ई० को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। इनके पिता ने इन्हें बचपन से ही ये दोनों विषय पढ़ाए। इन्होंने ए०बी०एन० कॉलेज, तिरुचिरापल्ली और प्रेसीडेंसी कॉलेज चेन्नई में शिक्षा प्राप्त की थी। एम० ए० की परीक्षा उन्होंने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी। कॉलेज के दिनों से ही इन्हें शोध कार्यों में रुचि थी। इनका पहला शोध आलेख फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।

इन्होंने कोलकाता में सरकारी वित्त विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट के रूप में नौकरी कर ली। कार्यालय से समय मिलने पर वे बहू बाज़ार में स्थित डॉ० महेंद्र लाल सरकार द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में अपना शोधकार्य करते रहते थे। इन्हीं दिनों इनका रुझान वाद्य यंत्रों की ओर हुआ तथा वाद्य यंत्रों में कंपन के आधार पर शोध कार्य करते हुए अनेक शोध-पत्र प्रकाशित किए। इनके शोध कार्यों तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर सुप्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने सन् 1917 में इन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया जो इन्होंने स्वीकार कर लिया। इनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

रामन प्रभाव की खोज के लिए इन्होंने ठोस और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया तो इन्हें ज्ञात हुआ कि जब एक वर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल पदार्थ अथवा ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन होता है। इसका कारण यह है कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं के टकराने से या तो वे ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा लेते हैं। दोनों ही दशाओं में प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। लाल वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है।

रामन की इस खोज को भौतिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना गया। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन द्वारा व्यक्त विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे परंतु आइंस्टाइन ने इसे सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान कहा और इनकी तुलना बुलेट से करते हुए इसे फोटॉन नाम दिया। रामन की इस खोज के बाद पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना और अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया।

रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया था। सन् 1929 ई० में इन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई तथा इससे अगले वर्ष उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें रोम में मत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का हयूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी दिया गया था। सन् 1954 ई० में भारत सरकार ने इन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।

रामन को भारतीय संस्कृति से सदा गहरा लगाव रहा है। वे सदा दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। वे शुद्ध शाकाहारी थे। वे मदिरा से सख्त परहेज़ करते थे। जब वे नोबल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए थे तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन प्रभाव का प्रदर्शन किया था। उन्होंने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए बंगलौर में ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की थी। उन्होंने ‘इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध-पत्रिका का प्रकाशन किया था तथा सैकड़ों शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया था। इन्होंने ‘करेंट साइंस’ नामक विज्ञान-पत्रिका का संपादन भी किया था। 21 नवंबर, सन् 1970 ई० को इनका देहांत हो गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • नील-वर्णीय आभा – नीले रंग की चमक।
  • असंख्य – अनेक, जिनकी गिनती न की जा सके।
  • समक्ष – सामने।
  • निहारना – देखना।
  • जिज्ञासा – जानने की इच्छा।
  • विश्वविख्यात – विश्व में प्रसिद्ध।
  • अतिशयोक्ति – किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
  • सशक्त – मज़बूत।
  • कैरियर – व्यवसाय, पेशा।
  • दौरान – मध्य।
  • रुझान – झुकाव।
  • नितांत – बिल्कुल।
  • अभाव – कमी।
  • समृद्ध – उन्नत।
  • आकृष्ट – खिंचा हुआ, आकर्षित।
  • भ्रांति – संदेह।
  • सृजित – बनाया गया, रचा गया।
  • माहौल – वातावरण।
  • परिणति – परिणाम, फल।
  • वर्ण – रंग।
  • फोटॉन – प्रकाश का अंश।
  • एकवर्णीय – एक रंग का।
  • ऊर्जा – शक्ति, बल।
  • तीव्रगामी – तेज़ी से जाने वाली।
  • संश्लेषण – मिलान करना।
  • कृत्रिम – बनावटी।
  • अक्षुण्ण – दृढ़।
  • आहूलादित – आनंदित।