Jharkhand Board JAC Class 10 Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Important Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आनुवंशिकता’ की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जीवधारियों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में विभिन्न लक्षणों के प्रेषण या संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों का अर्थ बताइए-
(i) संकर
(ii) एलील
(iii) प्रतीप संकरण
(iv) प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण
(v) एक संकर संकरण
(vi) द्विसंकर संकरण
(vii) समयुग्मनज
(viii) विषमयुग्मनज
(ix) फीनोटाइप
(x) जीनोटाइप।
उत्तर:
(i) संकर – किसी प्रजाति के दो परस्पर विरोधी लक्षणों के जीवों के निषेचन से उत्पन्न जीव को संकर (hy-brid) कहते हैं।
(ii) एलील – एक ही गुण के विभिन्न विपर्यायी रूपों को प्रकट करने वाले कारकों को एक-दूसरे को एलील या एलीलोमॉर्फ कहते हैं।
(iii) प्रतीप संकरण – संकर संतानों को किसी जनक (माता / पिता) से संकरित कराने की क्रिया को प्रतीप संकरण (Back crossing) कहते हैं।
(iv) प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण-जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं। इन्हें कारक कहते हैं। प्रत्येक इकाई – लक्षण कारकों के एक युग्म (pair ) से नियन्त्रित होता है। वास्तव में, इनमें से एक कारक मातृक तथा दूसरा पैतृक होता है। यद्यपि युग्म के दोनों कारक एक-दूसरे के विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है दूसरा दबा रहता है। अतः जो कारक प्रभाव प्रदर्शित करता है उसे प्रभावी (dominant) तथा जो दबा रहता है उसे अप्रभावी (recessive) कहते हैं।
(v) एक संकर संकरण – परस्पर विरोधी किसी एक लक्षण वाले नर एवं मादा जीवों के संकरण को एक संकर क्रॉस कहते हैं।
(vi) द्विसंकर संकरण – परस्पर विरोधी दो लक्षणों वाले नर एवं मादा जीवों के संकरण को द्वि-संकर क्रॉस कहते हैं।
(vii) समयुग्मनज (Homozygote) – जब युग्मनज (zygote) में किसी लक्षण के दोनों कारक एक ही प्रकार के हों तो ऐसे युग्मनज को समयुग्मनज तथा इस अवस्था को समयुग्मी कहते हैं।
(viii) विषमयुग्मनज (Heterozygote) – जब युग्मनज में किसी लक्षण के दोनों कारक एक-दूसरे से भिन्न रूप के हों तो ऐसा युग्मन विषमयुग्मनज कहलाता है।
(ix) फीनोटाइप – किसी जीवधारी की बाह्य संरचना (अर्थात् प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले लक्षणों) का वर्णन, फीनोटाइप (Phenotype) कहलाता है।
(x) जीनोटाइप- इसके विपरीत जीवधारी की कोशिकाओं को आनुवंशिक संरचना अर्थात् उसकी कोशिका में उपस्थित जीनों (genes) का वर्णन, जीनोटाइप (Geno-type) कहलाता है।
प्रश्न 3.
बैंक क्रॉस क्या होता है तथा किसी द्विसंकर क्रॉस में इसका क्या अनुपात होता है?
उत्तर:
बैक क्रॉस-यदि संकर संतानों को किसी भी जनक (माता-पिता) से संकरित कराया जाय तो ऐसे संकरण को प्रतीप संकरण कहते हैं।
अनुपात – 9 : 3 : 3 : 1
उदाहरण – मिराबिलिस जलापा के ऐसे दो पौधों के, जिनमें से एक में लाल पुष्प तथा दूसरे में सफेद पुष्प हों, क्रॉस कराने पर पहली पीढ़ी (F1) लाल पुष्पों के स्थान पर गुलाबी रंग के पुष्प उत्पन्न होते हैं। जब इन्हीं पौधों में स्वपरागण कराया जाता है तो दूसरी पीढ़ी (F2) में 1 लाल, गुलाबी तथा 1 सफेद रंग के पौधे बनते हैं।
प्रश्न 14.
शुद्ध लम्बे (TT) एवं शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य एक संकरण से प्रथम पीढ़ी F1 के वंशज किस प्रकार के प्राप्त होंगे?
उत्तर:
शुद्ध लम्बे (TT) एवं शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य एक संकरण से प्रथम पीढ़ी F1 के वंशज (Tt) लम्बे प्राप्त होंगे।
प्रश्न 5.
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को क्यों चुना?
उत्तर:
मेण्डल ने अपने प्रयोग में मटर का पौधा इसलिए चुना क्योंकि यह आसानी से विभिन्न गुण वाले होते हैं और पूरे वर्ष मिल जाते हैं।
प्रश्न 6.
कोशिका में ‘जीन’ कहाँ पर स्थित होते हैं?
उत्तर:
जीन गुणसूत्रों पर पाये जाते हैं।
प्रश्न 7.
जीन – विनिमय किस प्रकार के कोशिका-विभाजन में होता है?
उत्तर:
जीन-विनिमय का सम्बन्ध अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रक्रिया से है।
प्रश्न 8.
डी. एन. ए. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
डी ऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड।
प्रश्न 9.
मनुष्य के X तथा Y गुणसूत्रों के संयोग से उत्पन्न संतान का लिंग क्या होगा, यदि युग्मनज में उपस्थित संयोग – (a ) XX हो, (b) YY हो, (c) XY हो?
उत्तर:
- मादा
- यह संयोग संभव नहीं
- नर।
प्रश्न 10.
क्या अन्तर है : (a) गुणसूत्र तथा जीन में; (b) जीन तथा DNA में?
उत्तर:
(a) गुणसूत्र तथा जीन में क्रोमेटिन दो पदार्थों प्रोटीन तथा डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड के अणुओं के संयुक्त होने से बनता है। जिस समय कोशिका विभाजित होने लगती है, तब क्रोमेटिन सिकुड़कर अनेक मोटे एवं छोटे धागों के रूप में संगठित हो जाते हैं। इन धागों को गुणसूत्र कहा जाता है।
गुणसूत्रों में सूक्ष्म जैनेक रचनायें होती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये जीन जीवधारी के पैतृक गुणों के वाहक होते हैं।
(b) जीन तथा DNA में जीन डी-ऑक्सी राइबो- न्यूक्लिक एसिड (DNA) अणु के खंड होते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र में DNA का अणु होता है तथा विभिन्न जीन इस अणु के खंड होते हैं। जीन में उपस्थित नाइट्रोजनी बेसों (एडीनीन, ग्वानीन, साइटोसीन तथा थायमीन) युक्त न्यूक्लियोटाइडों का विशेष क्रम जीन द्वारा व्यक्त किसी विशेष आनुवंशिक लक्षण को स्पष्ट करता है।
प्रश्न 11.
मानव कोशिकाओं में ‘अलिंगी’ तथा ‘लिंगी’ गुणसूत्रों की संख्या कितनी कितनी होती है?
उत्तर:
अलिंगी में 22 जोड़ा (44) गुणसूत्र होते हैं तथा मानव में लिंगी गुणसूत्रों की संख्या 23 जोड़ा (46) होते हैं।
प्रश्न 12.
कौन-सा एंजाइम सभी प्राणियों पर क्रिया करता है?
उत्तर:
ट्रिप्सिन।
प्रश्न 13.
जीन कहाँ पर स्थित होते हैं?
उत्तर:
जीन क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं।
प्रश्न 14.
रेट्रोवायरस क्या है?
उत्तर:
जिस वायरस में आर. एन. ए. आनुवंशिक पदार्थ होता है उस वायरस को रेट्रोवायरस कहते हैं। जैसे एड्स का विषाणु।
प्रश्न 15.
DNA में कितने प्रकार के नाइट्रोजनधारी क्षार विद्यमान होते हैं? उनके नाम बताइए।
उत्तर:
DNA में दो प्रकार के नाइट्रोजन क्षार होते हैं- प्यूरीन व पाइरीमिडीन।
प्रश्न 16.
RNA में पाए जाने वाले चार नाइट्रोजनी बेसों का नाम बताइए।
उत्तर:
एडीनीन, गुआनीन, सायटोसीन एवं यूरेसिल।
प्रश्न 17.
समजात अंग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
वे अंग जो संरचना में समान परंतु देखने में अलग दिखाई देते हैं और भिन्न कार्य करते हैं। ऐसे अंगों को समजात अंग कहते हैं।
प्रश्न 18.
समयुग्मजी और विषमयुग्मजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
- समयुग्मजी – इसमें जीन के दोनों एलील समान होते हैं। जैसे- (TT या tt)।
- विषमयुग्मजी – इसमें जीन के दोनों एलील असमान होते हैं। जैसे- (Tt)।
प्रश्न 19.
वियोजन का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
गैमीटों के बनने के दौरान कारकों की जोड़ी के दो सदस्य सम्मिश्रित नहीं होते, वरन् विभिन्न गैमीटों में विसंयोजित हो जाते हैं। जाइगोट निर्माण के समय गैमीट पुनः परस्पर संयोजित हो जाते हैं। इसे गैमीटों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
प्रश्न 20.
DNA के संरचनात्मक मॉडल को किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
वाट्सन और क्रिक ने।
प्रश्न 21.
एक जीन एक एंजाइम मत में क्या कहा गया है?
उत्तर:
एक जीन एक एंजाइम का अर्थ यह है कि प्रत्येक एंजाइम का अथवा विशिष्ट कोशिकीय प्रोटीन का नियंत्रण एक विशिष्ट जीन द्वारा होता है। प्रश्न 22 म्यूटेशन से आप क्या समझते हैं? उत्तर: क्रोमोसोम और जीनों की संख्या और उनकी संरचना में अचानक हुए वंशागतिशील परिवर्तन को म्यूटेशन कहते हैं।
प्रश्न 23.
जीवन के उद्भव तथा जीवन के विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जीवन के उदभव से अभिप्राय है- निर्जीव पदार्थ से सरलतम जीव का विकास। सरल जीवों से जटिल जीवों का बनना, जैव विकास है।
प्रश्न 24.
उस पादप का नाम लिखें जिस पर मेण्डल ने प्रयोग किया था?
उत्तर:
मटर।
प्रश्न 25.
ए.आई. ओपेरिन ने कौन-सा मत प्रस्तुत किया था?
उत्तर:
ए.आई. ओपेरिन के अनुसार जीवन का उद्भव द के भीतर रासायनिक पदार्थों के संयोजन से हुआ।
प्रश्न 26.
जीवाश्म किसे कहते हैं?
उत्तर:
पौधों अथवा प्राणियों के अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं।
प्रश्न 27.
अर्जित लक्षणों की वंशागति का मत किसने प्रस्तुत किया था?
उत्तर:
जीवविज्ञानी ज्यां बैप्टिटस्ट लैमार्क ने।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेण्डल ने अपने प्रयोगों में मटर के पौधे के किन लक्षणों का अध्ययन किया? इनमें से प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
मेण्डल द्वारा अध्ययन किये गये सात लक्षणों के प्रभावी तथा अप्रभावी स्वरूपों की सूची निम्नवत् है-
गुण | प्रभावी लक्षण | अप्रभाबी लक्षण |
1. तने की ऊँचाई | लम्बा (tall) | बौना (dwarf) |
2. बीज की आकृति | गोल (round) | झुरीदार (wrinkled) |
3. पुष्प की स्थिति | कक्षीय (auxillary) | अंतस्थ (terminal) |
4. फली का रंग | हरा (green) | पीला (yellow) |
5. बीज का रंग | पीला (yellow) | हरा (green) |
6. फली की आकृति | फूली हुई (inflated) | संकुचित (constricted) |
7. पुष्प का रंग | लाल (red) | श्वेत (white) |
प्रश्न 2.
मेण्डल के आनुवंशिकता सम्बन्धी नियमों का उल्लेख कीजिए तथा रेखाचित्र बनाकर एकसंकर संकरण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेण्डल के नियम (Mendel’s Laws):
1. प्रभाविता का नियम (Law of Domi- nance)- जब परस्पर विरोधी लक्षणों वाले दो शुद्ध जनकों के बीच संकरण कराया जाता है तो उनकी संतानों में एक लक्षण परिलक्षित होता है तथा दूसरा दिखाई नहीं देता। इसमें पहले को प्रभावी लक्षण (Dominant characteristic ) तथा दूसरे को अप्रभावी लक्षण (Recessive character- istic) कहते हैं।
2. पृथक्करण अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation or Law of Purity of Gametes ) किसी संकर में उपस्थित प्रत्येक लक्षण के वैकल्पिक स्वरूपों का अगली पीढ़ी में एक निश्चित अनुपात (1 : 3) में पृथक्करण हो जाता है।
3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Inde pendent Assortment ) – जब जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले जनकों का संकरण कराया जाता है तो दोनों लक्षणों के वैकल्पिक स्वरूपों का पृथक्करण एक-दूसरे स्वतंत्र रूप से होता है- अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।
प्रश्न 3.
‘एलील’ से क्या तात्पर्य है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
एलील या एलीलोमॉर्फ (Allele or Allelomorph) – एक ही गुण के विभिन्न विपर्यायी रूपों को प्रकट करने वाले कारकों को एक-दूसरे का एलील या एलीलोमॉर्फ कहते हैं। जैसे कि फूल के रंग के सम्बन्ध में लाल रंग व सफेद रंग एक-दूसरे के एलील हैं। लम्बापन व बौनापन एक-दूसरे के एलील हैं। बीजों की गोलाई गोल व झुर्रीदार बीज एक-दूसरे के एलील हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित का अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(i) युग्मक तथा युग्मनज
(ii) समयुग्मनज तथा विषमयुग्मनज
(iii) फीनोटाइप तथा जीनोटाइप
(iv) एकसंकर क्रॉस तथा द्विसंकर क्रॉस
(v) प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण
(vi) शुक्राणु तथा अण्डाणु।
उत्तर:
(i) युग्मक तथा युग्मनज – जीवों के जननांगों में कोशिका के अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) से उत्पन्न संतति कोशिकाओं को युग्मक (Gamete) कहते हैं। युग्मक कोशिकाओं में गुणसूत्रों (chromosomes ) की संख्या मातृ- कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या की आधी होती है। उदाहरणतः मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या 46 तथा इसके अर्द्धसूत्री विभाजन से प्राप्त युग्मकों में गुणसत्रों की संख्या 23 होती है।
लिंगीय प्रजनन में नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संयोग से बनी कोशिका को युग्मनज (zygote) कहते हैं। इसमें गुणसूत्रों की संख्या, जीव की सामान्य कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या के बराबर होती है।
(ii) समयुग्मनज (Homozygote) – जब युग्मनज (zygote) किसी लक्षण के दोनों कारक एक ही प्रकार के हों तो ऐसे युग्मनज को समयुग्मनज तथा इस अवस्था समयुग्मी कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि मटर के किसी जाइगोट में मातृ पौधे से मिला कारक भी लम्बेपन का हो और पितृ पौधे से मिला कारक भी लम्बेपन का हो तो दोनों कारक एक जैसे होने के कारण यह युग्मनज समयुग्मी है। इसी प्रकार कोई युग्मनज बौनेपन के लिए, पुष्प के लाल या सफेद रंग के लिए अर्थात् किसी भी लक्षण के लिए समयुग्मी हो सकता है।
विषमयुग्मनज (Heterozygote) – जब युग्मनज में किसी लक्षण के दोनों कारक एक-दूसरे से भिन्न रूप के हों तो ऐसा युग्मन विषमयुग्मनज कहलाता है। यह अवस्था विषमयुग्मी कहलाती है। जैसे कि यदि मटर का लम्बेन के कारक काला युग्मक, मटर के बौनेपन के कारक वाले युग्मक से संलयन करे तो जो जाइगोट बनेगा उसमें एक कारक लम्बेपन का व दूसरा कारक बौनेपन का होगा।
(iii) फीनोटाइप तथा जीनोटाइप (Phenotype and Genotype) – किसी जीवधारी की बाह्य संरचना (अर्थात् प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले लक्षणों) का वर्णन, फीनोटाइप (Phenotype) कहलाता है।
इसके विपरीत जीवधारी की कोशिकाओं की आनुवंशिक संरचना अर्थात् उसकी कोशिका में उपस्थित जीनों (genes) का वर्णन, जीनोटाइप (Genotype ) कहलात है।
(iv) एक संकर क्रॉस तथा द्विसंकर क्रॉस (Mono- hybrid and Dihybrid Cross) – परस्पर विरोधी किसी एक लक्षण वाले नर एवं मादा जीवों के संकरण को एक संकर क्रॉस (monohybrid cross) तथा परस्पर विरोधी दो लक्षणों वाले नर एवं मादा जीवों के संकरण को द्वि-संकर क्रॉस (Dihybrid cross) कहते हैं। उदाहरणत: सफेद नर एवं भूरे मादा चूहे के बीच निषेचन एक संकर क्रॉस होगा तथा गोल बीज वाले लम्बे पौधे एवं झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधे का निषेचन द्विसंकर क्रॉस होगा।
(v) प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण (Character- istics of Dominant and Recessive) – जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं। इन्हें कारक कहते हैं। प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म (pair) से नियन्त्रित होता है। वास्तव में, इनमें से एक कारक मातृक तथा दूसरा होता है। यद्यपि युग्म के दोनों कारक एक-दूसरे के विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है दूसरा दबा रहता है। अतः जो कारक प्रभाव प्रदर्शित करता है उसे प्रभावी (dominant) तथा जो दबा रहता है उसे अप्रभावी (recessive) कहते हैं। इस प्रकार अप्रभावी लक्षण तब प्रदर्शित होगा जब प्रभावी उपस्थित न हो।
(vi) शुक्राणु तथा अण्डाणु ( Sperm and Ovum) – लैंगिक प्रजनन में नर जीव की कोशिका के अर्धसूत्री विभाजन से उत्पन्न नर युग्मक (male gamete) को शुक्राणु (Sperm) तथा मादा जीव की कोशिका के अर्द्धसूत्री विभाजन से उत्पन्न मादा युग्मक (female ga- mete) को अण्डाणु (Ovum) कहते हैं। शुक्राणु तथा अण्डाणु के संयोजन (निषेचन) से युग्मनज (zygote) उत्पन्न होता है।
प्रश्न 5.
यदि मटर के एक शुद्ध लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधों में संकरण कराया जाय तो द्वितीय संतानीय पीढ़ी (F2) में किस प्रकार के कितने पौधे प्राप्त होंगे? रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
स्पष्टीकरण – एक शुद्ध लम्बे (TT) तथा दूसरा शुद्ध बौने (tt) पौधे के क्रॉस कराने से प्रथम पीढ़ी F मैं लम्बे संकर (Tt) पौधे प्राप्त हुए जिनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी थी।
इन पौधों में स्वपरागण द्वारा निषेचन कराने पर तीन प्रकार के जीन वाले पौधे प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 6.
मानव नर तथा मादा के गुणसूत्रों में क्या अन्तर होता है? स्पष्ट कीजिए कि सन्तान का नर या मादा होना पिता पर निर्भर करता है, माता पर नहीं।
उत्तर:
संतान का नर या मादा होना पिता के दिये गये गुणसूत्र (X या Y) पर निर्भर करता है न कि माता के गुणसूत्रों पर क्योंकि मादा कोशिका में दोनों ही लिंग गुणसूत्र (समान X, X) होते ति हैं।
प्रश्न 7.
आनुवंशिकी के गुणसूत्र सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
आनुवंशिकी के गुणसूत्र सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं-
- जीन में स्वयं विभाजन की क्षमता होती है।
- गुणसूत्रों पर जीन पाये जाते हैं।
- प्रत्येक जीन किसी एक विशेष गुण वाहक होता है।
- गुणसूत्रों की संख्या प्रत्येक जीव में निश्चित होती है।
- युग्मनज द्वारा प्रदर्शित गुणों का सार गुणसूत्रों में होता है।
प्रश्न 8.
‘गुणसूत्र’ क्या होते हैं तथा जीवधारी में कहाँ पर पाये जाते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक जीव कोशिका (पौधे तथा जन्तु) में कोशिका विभाजन के समय केन्द्रक में कुछ मोटे धागे के आकार की रचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें गुणसूत्र कहते हैं। गुणसूत्र सभी जीवधारियों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
प्रश्न 9.
‘जीन’ (Genes) क्या होते हैं तथा जीवधारी कहाँ पर पाये जाते हैं? जीवों में जीन की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित गुणसूत्रों की लम्बाई में अनेक सूक्ष्म रचनायें क्रमबद्ध रूप से स्थित पायी जाती हैं। इन रचनाओं को जीन कहते हैं। किसी जीवधारी के अनेक लक्षण जीनों द्वारा व्यक्त किये जा सकते हैं। जीवधारी के शरीर प्रत्येक भाग की रचना, आकार, आकृति तथा भौतिक एवं मानसिक व्यवहार उसकी कोशिकाओं में उपस्थित जीनों की विशिष्टता पर निर्भर करता है।
प्रश्न 10.
‘क्रोमेटिन’, ‘क्रोमोसोम’ तथा ‘क्रोमेटिङ’ में अंतर बताइए।
उत्तर:
क्रोमेटिन – कोशिका के केन्द्र में पाया जाने वाला जैव पदार्थ क्रोमेटिन कहलाता है, जो लक्षणों (Characters) के स्थानान्तरण का मुख्य भाग है।
क्रोमोसोम-क्रोमेटिन पदार्थ कोशिका विभाजन के समय लम्बी धागे जैसी संरचनाओं में परिवर्तित हो जाता है, प्रत्येक संरचना क्रोमोसोम कहलाती है। क्रोमोसोम पर जीन उपस्थित होते हैं। प्रत्येक जीन जीव के आनुवंशिक गुण के लिए उत्तरदायी होती है।
क्रोमेटिड – कोशिका विभाजन के समय, प्रत्येक क्रोमोसोम दो समान एवं प्रतिरूप संरचनाओं में विभाजित होता है। प्रत्येक संरचना क्रोमेटिड कहलाती है। प्रत्येक क्रोमेटिड मूल क्रोमोसोम की प्रतिलिपि (कापी) होता है।
प्रश्न 11.
जीनों की ‘असहलग्नता’, ‘पूर्ण सहलग्नता’ तथा ‘अपूर्ण सहलग्नता’ का क्या अर्थ है? ये सम्बन्ध किन दशाओं में होते हैं?
उत्तर:
जब किसी कोशिका में दो भिन्न प्रकार के जीन, दो भिन्न गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं तो अर्द्धसूत्री विभाजन से प्राप्त संतति कोशिकाओं में भी ये जीन भिन्न-भिन्न गुणसूत्रों पर ही स्थित रहते हैं – अर्थात् दो भिन्न गुणसूत्रों के बीच जीनों का कोई आदान-प्रदान नहीं होता। यह जीनों के असहलग्नता (Non-linkage) की दशा है।
ऐसे गुणसूत्र जिनमें जीन विनिमय नहीं होता वे मातृ कोशिका की भाँति ही गुणसूत्रों की रचना करते हैं। इनसे बने युग्मकों में आनुवंशिक लक्षण बिना किसी परिवर्तन के स्थानान्तरित होते हैं। इसे पूर्ण जीन सहलग्नता कहते हैं।
इसके विपरीत जिन गुणसूत्रों में जीन विनिमय होता है, उनसे बने युग्मकों में स्थानान्तरित आनुवंशिक लक्षण, मातृ- कोशिका के लक्षणों से भिन्न हो सकते हैं। यही विशेषता अपूर्ण जीन सहलग्नता कहलाती है।
प्रश्न 12.
‘जीन विनिमय’ क्या होता है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
जीन सहलग्नता एवं विनिमय का सम्बन्ध अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रक्रिया से है। अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रथम चरण में एक कोशिका का विभाजन दो संतति कोशिकाओं में होता है तथा इस चरण में मातृ कोशिका में उपस्थित गुणसूत्रों के किसी समजात युग्माक एक संतति कोशिका में तथा दूसरा गुणसूत्र दूसरी कोशिका में चला जाता है। इस क्रिया में मातृ कोशिका की अपेक्षा संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है। इसके दूसरे चरण में दोनों संतति कोशिकाओं का समसूत्री विभाजन होता है जिससे चार संतति कोशिकाओं का समसूत्री विभाजन होता है।
जीन-विनिमय का महत्त्व – (Importance of Gene Cross):
जीन-विनिमय के फलस्वरूप एक ही प्रकार के गुणसूत्रों से विभिन्न प्रकार के पुनर्योजित गुणसूत्र उत्पन्न होते हैं। माना कि किसी मातृ- कोशिका में समजात गुणसूत्रों के जोड़े में से एक पर जीन A, B, C तथा दूसरे पर जीन a, b, c हैं। कोशिका के अर्द्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्र खण्डों के विनिमय के कारण दो नये प्रकार के गुणसूत्र Abe तथा aBC बनेंगे। जब इन गुणसूत्रों से युक्त संतति कोशिकाएं बनेंगी उनमें दो नये प्रकार की जीन श्रृंखला Abe तथा aBC होंगी।
चूंकि जीन ही जीवधारी के लक्षण निर्धारित करते हैं, इन दोनों कोशिकाओं से विकसित होने वाले जीवों के लक्षण मातृ- कोशिका धारण करने वाले जीव से कुछ भिन्न होंगे। उनमें आपस में कुछ विभिन्नता भी होगी। इसी कारण एक इन दोनों संतानों के बहुत से लक्षणों समानता होगी परन्तु ही माता-पिता की सन्तानों में काफी समानता होते हुए भी कुछ अन्तर भी मिलता है। इस अन्तर को विविधता (varia-tions) कहते हैं।
किसी जीव जाति के उभरने एवं अस्तित्व में बने रहने के लिए विविधता का बहुत महत्त्व है। प्राकृतिक वरण (natural selection) की प्रक्रिया द्वारा प्रकृति उन जीवधारियों का चयन करती है जो अपने वातावरण के अनुकूलतम (Most adapted) होते हैं वातावरण निरन्तर बदलता रहता है अतः जितनी अधिक विविधता किसी जाति के जीवधारियों में होगी, उस जाति के बने रहने की सम्भावनाएं उतनी ही अधिक होंगी।
प्रश्न 13.
स्पष्ट कीजिए कि जीन उत्परिवर्तन से जीवों के लक्षणों की वंशानुगति कैसे प्रभावित होती है?
उत्तर:
जीन – उत्परिवर्तन में अकेले जीन की संरचना या गुणसूत्रों की संरचना एवं संख्या तक में परिवर्तन हो सकते हैं। ये परिवर्तन युग्मनज से लेकर जीवधारी की मृत्यु से पहले तक किसी भी समय तथा लैंगिक जनन में युग्मकों के निर्माण के समय हो सकते हैं। ये वंशागत होते हैं अतः आने वाली पीढ़ियों की संतानों में विविधता का कारण बनते हैं।
प्रश्न 14.
जीन की संरचना में परिवर्तन के विभिन्न प्रकार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीन – उत्परिवर्तनों के प्रकार (Types of Gene Mutations):
(क) जीव के जीवनकाल में परिवर्तन होने के समय के अनुसार जीन – उत्परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं-
- युग्मकी उत्परिवर्तन (Gametic Muta-tions) – ये उत्परिवर्तन युग्मक (Gamete) बनने के समय होते हैं।
- युगमनजी उत्परिवर्तन (Zygotic Muta-tions) ये परिवर्तन भ्रूण बनने की क्रिया में युग्मनज के प्रथम विभाजन के समय होते हैं।
- कायिक उत्परिवर्तन (Somatic Muta-tions) – ये परिवर्तन वयस्क शरीर में मृत्यु से पहले कभी भी हो सकते हैं। ये प्रायः दैहिक कोशिकाओं में होते हैं- अतः ये वंशागत नहीं होते।
(ख) जैविक पदार्थ के प्रभावित अंश के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
(a) जीन – उत्परिवर्तन (Gene Mutations) – ऐसे परिवर्तन में किसी विशेष लक्षण के वाहक जीन की रासायनिक संरचना में परिवर्तन हो जाता है। यह परिवर्तन निम्नवत् हो सकता है-
- न्यूक्लियोटाइडों के विलोपन द्वारा इस क्रिया में जीन की न्यूक्लियोटाइड श्रृंखला से एक या अधिक न्यूक्लियोटाइड टूटकर अलग हो जाते हैं।
- न्यूक्लियोटाइडों का संवर्धन- इस क्रिया में जीन (DNA) की न्यूक्लियोटाइड श्रृंखला में एक अथवा अधिक अतिरिक्त न्यूक्लियोटाइड जुड़ जाते हैं।
- नाइट्रोजनी बेस का परिवर्तन- इस प्रकार के उत्परिवर्तन में न्यूक्लियोटाइडों के नाइट्रोजन बेस का परिवर्तन जैसे किसी प्यूरीन बेस का पिरीमिडीन बेस से या पिरीमिडीन बेस का प्यूरीन बेस से अथवा एक प्रकार के प्यूरीन/ पिरीमिडीन बेस का दूसरे प्रकार के प्यूरीन / पिरीमिडीन बेस से परिवर्तन हो जाता है।
(b) गुणसूत्र उत्परिवर्तन (Chromosomal Mutations) – इनमें एक या अधिक गुणसूत्रों की रचना में परिवर्तन हो जाते हैं ये परिवर्तन प्रायः युग्मक जनन के अर्द्धसूत्री विभाजन के समय होते हैं। इन परिवर्तनों में-
- गुणसूत्र पहले दो या दो से अधिक खण्डों में टूटते हैं तथा पुनः जुड़ते समय इनमें अदला-बदली हो सकती है अथवा कुछ खण्ड वापस नहीं जुड़ पाते तथा कोशिका द्रव्य में घुलकर समाप्त हो जाते हैं।
- गुणसूत्रों के एक या एक से अधिक खण्ड गलत स्थानों पर जुड़ जाते हैं।
- एक या एक से अधिक टुकड़ों के जुड़ने में इनके सिरे बदल जाते हैं।
- किसी गुणसूत्र पर एक या एक से अधिक जीन दोहरे हो जाते हैं।
(c) गुणसूत्र समूह में उत्परिवर्तन- इसमें कोशिका के गुणसूत्रों की संख्या बदल (बढ़ या घट सकती है।
प्रश्न 15.
गामा – विकिरणों के प्रभाव से विकलांग संतानों की उत्पत्ति क्यों होती है?
उत्तर:
प्रकृति में अत्यधिक ऊर्जावान विकिरणों जैसे अन्तरिक्ष विकिरण (cosmic radiations ), गामा-विकिरण (gamma radiations), आदि की क्रिया से भी जीन की संरचना में परिवर्तन हो जाते हैं जो उत्परिवर्तन उत्पन्न करते हैं।
इस प्रकार के विकिरणों उत्परिवर्तन के फलस्वरूप, शरीर में विभिन्न प्रकार के कैन्सर तथा सन्तानों में विकलांगता उत्पन्न हो सकती है। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी नामक नगरों पर गिराये गये परमाणु बम के विस्फोट से जो विकिरण उत्पन्न हुए उनके प्रभाव से वहाँ के निवासियों की जीव संरचनाओं में ऐसे उत्परिवर्तन हो गये, जिनके कारण वहाँ अब भी विकलांग सन्तानें उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 16.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए-
(i) लिंग गुणसूत्र
(ii) सेण्ट्रोमियर
(iii) उत्परिवर्तन
उत्तर:
(i) लिंग गुणसूत्र तथा मानव में लिंग निर्धारण – बहुत से एकलिंगी जीवों में प्रत्येक कोशिका में एक जोड़ी विशेष गुणसूत्र होते हैं, जिन्हें लिंग गुणसूत्र (Sex-chromosomes) कहते हैं अनेक प्रकार के जन्तुओं तथा एक जोड़ा तथा उसके विपरीत लिंग का जीव समान लिंग पादपों में कोई भी एकलिंगी जीव असमान लिंग गुणसूत्रों का गुणसूत्रों का एक जोड़ा धारण करता है जैसे मानव के नर में एवं Y लिंग गुणसूत्र तथा मादा में दो X लिंग-गुणसूत्र पाये जाते हैं। इन लिंग गुणसूत्रों के जोड़े को अन्य गुणसूत्रों से विभेदित करने के लिए शेष बचे गुणसूत्रों को अलिंग गुणसूत्र (Autosomal chromosomes ) कहा जाता है।
मानव में लिंग निर्धारण (Sex Determination in Human): मानव गुणसूत्र (Human Chromosomes)-मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में 23 जोड़े (46) गुणसूत्र होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
1. अलिंग गुणसूत्र अथवा ऑटोसोम्स (Autosomes) – ये गुणसूत्र संख्या में 22 जोड़े (44) होते हैं और प्रत्येक जोड़े के गुणसूत्र समजात (Homologous) होते हैं। आटोसोम्स की लिंग निर्धारण में कोई भूमिका नहीं है।
2. लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) अथवा एलोसोम्स (Allosomes) अथवा असमजात (Heterosomes)-ये गुणसूत्र भ्रूण के लिंग निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये दो प्रकार के हैं-
- एक्स गुणसूत्र (X-chromosome)
- वाई गुणसूत्र (Y-chromosome)।
मानव में लैंगिक जनन होता है। इसके लिए पुरुष के जननांगों में अर्द्धसूत्री विभाजन शुक्राणु (Sperms) बनते हैं। प्रत्येक शुक्राणु को आटोसोम्स का एक-एक गुणसूत्र (अर्थात् ऑटोसोम्स) तथा एलोसोम के XY जोड़े का कोई एक गुणसूत्र प्राप्त होता है। इस प्रकार पुरुष में दो प्रकार के शुक्राणु होते हैं-
- जिनमें X + 22 ऑटोसोम्स तथा
- Y + 22 ऑटोसोम्स होते हैं।
इसके विपरीत, स्त्री में 23वें जोड़े के गुणसूत्र भी एकसमान होते हैं। अत: स्त्री के जननांगों में अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप उत्पन्न सभी अंड कोशिका (Ovum) एक ही प्रकार की होती हैं जिनमें X + 22 गुणसूत्र होते हैं। अब यदि पुरुष का (X + 22) गुणसूत्र वाला शुक्राणु अण्ड को निषेचित करता है तो मादा शिशु (लड़की) का जन्म होगा-
इसके विपरीत यदि (Y+22) गुणसूत्र वाला शुक्राणु (X+22) गुणसूत्र वाले अण्ड कोशिका को निषेचित करता है तो नर शिशु (लड़के) का जन्म होता है।
जिनमें 50% में (X + 22) गुणसूत्र तथा 50% में (Y + 22 ) गुणसूत्र होते हैं, यह केवल संयोग पर निर्भर करता है कि कौन-सा शुक्राणु अंड को निषेचित करता है। स्पष्ट है कि पुत्र या पुत्री होने की सम्भावना 50% होती है।
उपर्युक्त से यह भी स्पष्ट होता है कि सन्तान का नर या मादा होना, पिता के द्वारा दिये गये गुणसूत्र (X या Y) पर निर्भर करता है न कि माता के गुणसूत्रों पर क्योंकि मादा कोशिका में दोनों ही लिंग-गुणसूत्र समान (XX) होते हैं।
(ii) सेण्ट्रोमियर (Centromere) – गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स या स या अर्द्धगुणसूत्र सेण्ट्रोमियर (Cen-tromere) द्वारा आपस में जुड़े होते हैं। यह मेटाफेज अवस्था में विभाजन के समय ट्रैक्टाइल तन्तुओं से जुड़ता है मेटाफेज अवस्था में सेण्ट्रोमियर विभाजित ‘जाता है। सेन्टोमियर के विभाजन के आधार पर यह निम्न प्रकार के होते हैं-
- टीलोसेन्ट्रिक – इसमें सेन्ट्रोमियर गुणसूत्र के एक और स्थित होता. है।
- एक्रोसेन्ट्रिक – इसमें गुणसूत्र का एक भाग बहुत छोटा तथा दूसरा बहुत बड़ा होता है।
- सबमेटासेन्ट्रिक – इसमें गुणसूत्र के दोनों भाग असमान होते हैं।
- मेटासेन्ट्रिक – इसमें गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ लगभग समान होती हैं।
(iii) उत्परिवर्तन – ह्यूगो डी व्रीज (Hugo de Vries) नामक वैज्ञानिक ने वर्ष 1901 में जीवों के विकास क्रम में नयी जातियों के उत्पत्ति के बारे में जीन- उत्परिवर्तन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। डी व्रीज के सिद्धान्त के अनुसार, नयी जाति की अकस्मात् उत्पत्ति एक ही बार में होने वाली स्पष्ट एवं स्थायी (वंशागत ) बड़ी विभिन्नताओं (उत्परिवर्तनों) के कारण होती है। ये परिवर्तन जीव कोशिकाओं में उपस्थित जीनों (Gene) की रासायनिक संरचना में उत्पन्न होते हैं।
किसी जीन की रासायनिक संरचना में होने वाले परिवर्तन को जीन उत्परिवर्तन कहते हैं। चूँकि जीन DNA अणु के खण्ड होते हैं, जीन उत्परिवर्तन की क्रिया में DNA खण्ड न्यूक्लियोटाइडों की संख्या तथा क्रमायोजन में परिवर्तन होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आनुवंशिकता से क्या तात्पर्य है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवधारियों की एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में उनके विभिन्न लक्षणों के प्रेषण अथवा संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।
इसका अर्थ है कि प्रत्येक जीवधारी अपने ही समान संरचना एवं गुण वाली सन्तानों को जन्म देता है। शेर का बच्चा शेर ही होता है। खरगोश से केवल खरगोश का ही जन्म होता है। गुलाब से केवल गुलाब ही पैदा होता है, आम से केवल आम इस प्रकार देखा जाता है कि पौधों व जन्तुओं की विभिन्न जातियाँ अपने ही जैसी सन्तानों को जन्म देती हैं। यह बात केवल जाति के स्तर पर ही नहीं, बल्कि और नीचे के भी लागू होती है, जैसे कि परिवार के स्तर पर एक ही परिवार के सदस्यों के बीच काफी ज्यादा समानताएं देखने को मिलती हैं।
बच्चों के अनेक लक्षण (जैसे-रंग-रूप, आंख, कान, नाक, हाथ-पैर की बनावट), आवाज आदि उनके माता-पिता, दादा-दादी, चाचा, बुआ, मामा, मौसी आदि से काफी मिलते हैं। जीवधारियों के के अनेक लक्षण माता-पिता के माध्यम से संतानों में पीढ़ी-दर- चलते रहते हैं। सन्तानों में, माता-पिता से प्राप्त इस प्रकार के गुणों को को पैतृक या आनुवंशिक लक्षण कहते हैं।
इन लक्षणों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी निरन्तरता को ही आनुवंशिकता कहते हैं।
प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। इनके आधार पर प्रतिपादित मेण्डल के नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मेण्डल के प्रयोग (Mendel’s Experi-ments):
मेण्डल द्वारा मटर के पौधे पर किये गये संकरण प्रयोग अत्यन्त मूल्यवान तथा मौलिक माने जाते हैं। इन प्रयोगों द्वारा उन्होंने यह जानने का प्रयत्न किया कि आनुवंशिक लक्षण माता-पिता से अगली पीढ़ी में कैसे पहुँचते हैं। नीचे मेण्डल के प्रयोगों की मुख्य विधियों तथा सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन किया गया है।
मेण्डल ने उद्यान मटर का उपयोग अपने प्रयोगों में इसलिए किया, क्योंकि यह पौधा कुछ महीनों में अपना जीवन-चक्र पूरा कर लेता है, अतः प्रयोग के परिणाम कम समय में ही मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त मटर का पौधा स्वपरागित है तथा इसमें दिखाई देने वाले अनेक वैकल्पिक लक्षण एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न होते हैं, जैसे लम्बा पौधा व बौना पौधा, लाल फूल व सफेद फूल, गोल बीज व झुर्रीदार बीज आदि।
मेण्डल ने आनुवंशिक लक्षणों के निम्नलिखित सात जोड़ों को चुना-
- बीज का रूप – गोल अथवा झुर्रीदार
- बीजपत्र का रंग पीला अथवा हरा
- बीजचोल अथवा फूल का रंग लाल अथवा सफेद
- फली (पॉड) का रूप फूला अथवा संकीर्णित
- फली (पॉड) का रंग हरा अथवा पीला
- फूल का स्थान- कक्षीय अथवा शीर्षस्थ
- तने की लम्बाई – लम्बा अथवा बौना।
मेण्डल ने प्रत्येक लक्षण के लिए शुद्ध वंशाक्रमी (true breeding) पौधों को चुना।
उन्होंने मटर के एक जोड़ी विरोधी लक्षण वाले दो शुद्ध वंशाक्रमी पौधों के बीजों का परागण कराया। उदाहरणार्थ, फूल के रंग के दो विरोधी लक्षण अथवा वैकल्पिक रूप हैं- लाल रंग के फूल और सफेद रंग के फूल। ऐसे दो पौधों के बीच परागण किया गया। इससे बने बीजों को उगाकर अगली पीढ़ी प्राप्त की गयी। इस पीढ़ी के पौधों को संकर (hybrid) कहते हैं।
मेण्डल अपने द्वारा छाँटे गये लक्षणों की सातों जोड़ी में से प्रत्येक के लिए ऊपर दी गयी विधि से संकर बनाये। शुद्ध वंशाक्रमी जनकों के संकरण से प्राप्त पीढ़ी को प्रथम संतानीय पीढ़ी (First filial generation) कहते हैं। इस पीढ़ी को F1 से से प्रदर्शित करते हैं। इसी पीढ़ी के पौधों में स्वपरागण कराया गया और प्राप्त बीजों को उगाकर द्वितीय संतानीय पीढ़ी (Second filial generation) प्राप्त की गयी। इसे F2 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
मेण्डल ने अपनी गणित शिक्षा के आधार पर F2 पीढ़ी में प्राप्त लक्षणों के अनुपात की की गणना की। चूँकि इस प्रयोग में केवल एक लक्षण (फूल का रंग) के दो वैकल्पिक रूपों (लाल व सफेद) का अध्ययन किया गया। अत: गया। अतः इनसे प्राप्त प्राप्त अनुपातों को एकसंकर अनुपात (Monohybrid ratio) कहते हैं।
इसके पश्चात् मेण्डल ने दो जोड़ी विरोधी लक्षणों का एक साथ अध्ययन किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने गोल बीज वाले लम्बे पौधों का परागण झुर्रीदार बीज वाले बौने है। इस पौधों के साथ किया। इस प्रकार के संकरण को द्विसंकरण-क्रॉस (Dihybrid cross) कहा अध्ययन के आधार पर मेण्डल ने द्विसंकर- अनुपात (Dihy- brid ratio) प्रस्तुत किया।
मेण्डल के नियम (Mendel’s Laws):
मेण्डल के प्रयोगों तथा निष्कर्षों के आधार पर जो तथ्य प्राप्त हुए, उन्हें तीन नियमों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जाता है-
1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) – जब परस्पर विरोधी लक्षणों वाले दो शुद्ध जनकों के बीच संकरण कराया जाता है तो उनकी संतानों में एक लक्षण परिलक्षित होता है तथा दूसरा दिखाई नहीं देता। इसमें पहले को प्रभावी लक्षण (Dominant characteristic) तथा दूसरे को अप्रभावी लक्षण (Recessive characteristic) कहते हैं।
2. पृथक्करण अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation or Law of Purity of Gametes) – किसी संकर में उपस्थित प्रत्येक लक्षण के वैकल्पिक स्वरूपों का अगली पीढ़ी में एक निश्चित अनुपात (13) में पृथक्करण हो जाता है।
3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Inde-pendent Assortment) – जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले जनकों का संकरण कराया जाता है तो दोनों लक्षणों के वैकल्पिक स्वरूपों का पृथक्करण एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से होता है- अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।
प्रश्न 3.
मेण्डल के निम्नलिखित नियमों को उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए-
(i) प्रभाविता का नियम
(ii) पृथक्करण का नियम
(iii) स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम।
अथवा
मेण्डल के वंशागति नियमों को समझाइए।
अथवा
स्वतंत्र अपव्यूहन से आप क्या समझते हैं? केवल रेखाचित्र द्वारा द्विसंकर क्रॉस समझाइए।
अथवा
मेण्डल का प्रथम नियम लिखिए। इसको विस्तृत रूप से समझाइए।
अथवा
मेण्डल द्वारा प्रतिपादित पृथक्करण नियम को उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
(i) प्रभाविता का नियम (Law of Dominance):
पौधा युग्मनज से बनता है। इसमें पौधे के प्रत्येक लक्षण के दो वैकल्पिक रूप होते हैं। उदाहरण के लिए, मटर के के रंग के दो वैकल्पिक रूप होंगे- लाल फूल और सफेद ऐसे प्रत्येक रूप को व्यक्त करने के लिए युग्मनज में एक इकाई पायी जाती है। मेण्डल ने इस इकाई को फैक्टर (Factor) कहा, परन्तु अब इन्हें जीन (Gene) के नाम से जाना जाता है।
युग्मनज का निर्माण दो युग्मकों (Gametes) के संलयन (Fusion ) से होता है। प्रत्येक लक्षण के दो वैकल्पिक रूपों में से एक रूप के जीन नर युग्मक में और दूसरे वैकल्पिक रूप के जीन मादा युग्मक में होते हैं। जब ये युग्मक संलयित होकर युग्मनज बनाते हैं तब उसमें प्रत्येक लक्षण के वैकल्पिक रूपों को व्यक्त करने वाली दो जीन आ जाती हैं। उदाहरणार्थ, यदि मटर के हैं और मादा
युग्मक में फूल युग्मक क मैं लाल रंग व्यक्त करने वाली जीन सफेद रंग व्यक्त करने वाली जीन है, तब दोनों युग्मकों के न से बनने वाले युग्मनज में लाल और सफेद, दोनों संलयन रूपों को व्यक्त करने वाली जीन साथ आ जायेंगी। युग्मनज से बीज बनता है और बीज के अंकुरण से पौधा बनता है। पौधे की सभी कोशिकाओं में प्रत्येक लक्षण के वैकल्पिक रूपों के लिए जीन उपस्थित होती हैं। यदि दोनों जीन एक रूप को व्यक्त करती हैं तो वह लक्षण स्पष्ट रूप दिखाई देता है।
जैसे मटर के पौधे में यदि दोनों जीन लाल रंग को व्यक्त करने वाली हैं तो फूल का रंग परंतु फूल लाल होगा और यदि दोनों जीन सफेद रंग को व्यक्त करने वाली हैं तो का रंग सफेद होता है। जब पौधे एक जीन लाल रंग की तथा दूसरी जीन सफेद रंग को व्यक्त करने वाली होगी तब फूल का रंग लाल होगा अथवा सफेद मेण्डल ने यह पाया कि दो विपरीत जीनों में से केवल एक जीन के लक्षण ही संकर में परिलक्षित होते हैं। दूसरी जीन उपस्थित होते भी उसके बाह्य लक्षण व्यक्त नहीं होते। मेण्डल ने प्रथम जीन के लक्षण को प्रभावी लक्षण (Dominant characteristic) तथा दूसरी के लक्षण को अप्रभावी लक्षण (Recessive char-acteristic) कहा।
उदाहरणार्थ लाल तथा सफेद रंग के फूलों वाले पौधों के संकरण से उत्पन्न फूल लाल रंग के होते हैं। अतः लाल रंग प्रभावी लक्षण तथा सफेद रंग अप्रभावी लक्षण है।
(ii) पृथक्करण का नियम (Law of Segregation):
यह नियम विरोधी लक्षणों वाले दो शुद्ध जनकों के संकरण से उत्पन्न संकरों के परस्पर संकरण से प्राप्त परिणामों को व्यक्त करता है।
इस प्रयोग के लिए मेण्डल ने एक लम्बे (200 सेमी) तथा दूसरे बौने (50 सेमी) पौधे को चुना। ये दोनों पौधे शुद्ध वंशानुक्रमी थे – अर्थात् लम्बे पौधे में दोनों जीन लम्बे गुण के (T,T) तथा बौने पौधे में दोनों जीन बौने गुण (t, t) थे। इन पौधों के बीच संकरण कराने से जो पौधे प्रथम संतानीय पीढ़ी (First filial generation, F1) में प्राप्त हुए वे सभी लम्बे थे। इसका अर्थ यह है कि लम्बाई (dominant) तथा तथा बौनेपन का गुण का गुण प्रभावी अप्रभावी (recessive) था, यद्यपि इन सभी पौधों में दोनों प्रकार के जीन (T, t) उपस्थित थे।
प्रथम संतानीय पीढ़ी के (लम्बे) पौधों के बीच परागण से द्वितीय संतानीय पीढ़ी (Second filial generation, F2) प्राप्त होती है। इस पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे नहीं थे। F2 पीढ़ी में केवल 75% (3/4) पौधे लम्बे (प्रभावी लक्षण के) तथा 25% (1/4) पौधे बौने (अप्रभावी लक्षण के) पाये गये। इस प्रकार द्वितीय संतानीय पीढ़ी में प्रभावी तथा अप्रभावी स्वरूप के पौधों का अनुपात 3 : 1 पाया जाता है।
द्वितीय पीढ़ी के सभी बौने पौधे, स्वपरागण करने पर वंशाक्रमी पाये गये अर्थात् इनकी दोनों जीनें बौनेपन द्वितीय पीढ़ी के लम्बे पौधों में से 1/3 अर्थात् शुद्ध वंशाक्रमी थे अर्थात् इनकी सभी जीने लम्बेपन (T, T) की थीं तथा शेष 2/3 अर्थात् 66.67% पौधे संकर थे-अर्थात् इनमें एक जीन लम्बेपन की तथा दूसरी बौनेपन की (T, t) थी।
द्वितीय पीढ़ी में जीनों के इस विवरण को चित्र द्वारा समझा जा सकता है। प्रत्येक जनक में दो जीन होते हैं तथा प्रत्येक जनक संतान को केवल एक जीन प्रदान करता है। चित्र में में प्रदर्शित उदाहरण में लम्बे जनक ने लम्बेपन की जीन (T) तथा बौने जनक ने बौनेपन की जीन (t) प्रदान की। इस प्रकार प्रथम पीढ़ी (F1) की प्रत्येक संतान में दोनों वैकल्पिक जीन (T, ,t) उपस्थित रहीं तथा T जीन के प्रभावी होने के कारण सभी पौधे लम्बे रहे। द्वितीय पीढ़ी की संतानों में प्रत्येक जनक से दो वैकल्पिक जीनों (T तथा t) में से कोई एक प्राप्त होती है।
यदि प्रथम जनक की जीनों को T1, t1 तथा द्वितीय जनक की जीनों को T2, t2 लिखा जाय तो दोनों से
जीन लेकर इनका समूहन निम्नवत् चार प्रकार से एक-एक किया जा सकता है-
(T1, T2), (T1, t2), (T1,T2), (T1,T2)
इससे स्पष्ट है कि इस समूहन से उत्पन्न तीन समूहों में प्रभावी जीन (T) उपस्थित होगी तथा केवल एक समूह में दोनों जीन अप्रभावी होंगे। इस प्रकार प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण वाले पौधों का अनुपात 3 : 1 होगा।
तीनों प्रभावी लक्षण के पौधों में भी केवल एक समूह, शुद्ध लक्षण (T, T) का है तथा शेष दो समूह संकर है। इस प्रकार मेण्डल का द्वितीय नियम (प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों का 3:1 के अनुपात में पृथक्करण) स्पष्ट हो जाता है।
(iii) स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of In-dependent Assortment)
यह नियम द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid cross) के परिणामों पर आधारित है। इस प्रकार के क्रॉस में पौधे के दो जोड़ी लक्षणों का अध्ययन किया जाता है (एक संकर क्रॉस में केवल एक जोड़ी लक्षण का अध्ययन किया जाता है)।
द्विसंकर क्रॉस के लिए मेण्डल ने दो पौधों को चुना-
- पीले (YY) और गोल (RR) बीज वाला समयुग्मजी (अर्थात् शुद्ध वंशाक्रमी) पौधा ये दोनों प्रभावी लक्षण हैं।
- हरे (yy) और झुर्रीदार (Tr) बीज वाला समयुग्मजी (अर्थात् शुद्ध वंशाक्रमी) पौधा ये दोनों अप्रभावी लक्षण हैं।
इस प्रकार एक पौधे के दोनों लक्षण प्रभावी व दूसरे पौधे के लक्षण अप्रभावी थे। इन दोनों पौधों के बीच परागण के बाद प्राप्त प्रथम संतानीय पीढ़ी (F1) के संकर पौधे प्रभाविता के नियम के अनुसार विषमयुग्मजी (Yy Rr) होते हैं। इनका बाह्य रूप (फीनोटाइप) दोनों प्रभावी लक्षण दिखाता है अर्थात् इन पौधों के बीज पीले व गोल होते हैं प्रथम संतानीय पीढ़ी के संकर पौधों के स्वपरागण से द्वितीय संतानीय पीढ़ी (F2) प्राप्त होती है। इस पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे प्राप्त होते हैं। इनका (बाह्य रूप) व जीनोटाइप (जीनी संरचना) तालिका में दर्शाये गये हैं।
तालिका में दिये गये फीनोटाइप व जीनोटाइप का अवलोकन करने पर आप देखेंगे कि जो लक्षण जनकों में साथ-साथ थे, उनका F2 पीढ़ी में साथ रहना आवश्यक नहीं है।
फीनोटाइप | जीनोटाइप (संक्षेपित) | अनुपात |
1. पीले व गोल बीज वाले पौधे | YR | 9 |
2. पीले व झुर्रीदार बीज वाले पौधे | Yr | 3 |
3. हरे व गोल बीज वाले पौधे | yR | 3 |
4. हरे व झुर्रीदार बीज वाले पौधे | yr | 1 |
उपर्युक्त से स्पष्ट है कि पृथक लक्षणों के वैकल्पिक स्वरूपों का पृथक्करण एक-दूसरे से स्वतंत्र होता है।
प्रश्न 4.
‘जीन’ से क्या तात्पर्य है? इसके आधार पर एक संकरण क्रॉस की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक संकरण क्रॉस की व्याख्या (Expla- nation of Monohybrid Cross):
हम जानते हैं कि प्रत्येक जीव जाति (species) की कोशिका में गुणसूत्र (chromosomes) होते हैं जिनकी संख्या निश्चित होती है। ये गुणसूत्र जोड़े (pairs) में होते हैं तथा एक जोड़े के दोनों गुणसूत्र जीव के समान लक्षणों को व्यक्त करता है। उदाहरणार्थ: यदि किसी जोड़े का एक गुणसूत्र आँख के रंग, लम्बाई, बालों के प्रकार आदि का नियंत्रण करता है तो जोड़े का दूसरा गुणसूत्र भी इन्हीं गुणों को निर्धारित करता है। ऐसे जोड़े को समजात गुणसूत्र कहते हैं।
समजात गुणसूत्रों के प्रत्येक जोड़े पर कारक (factors) जिन्हें अब जीन (gene) कहते हैं, पाये जाते हैं। प्रायः जीव के किसी एक लक्षण का वाहक एक जीन होता है तथा एक जीन के दो रूप एलील (alleles) होते हैं – एक प्रभावी (dominant) तथा दूसरा अप्रभावी (recessive)।
जीवधारी कैसा लक्षण प्रदर्शित करता है-यह इस बात पर निर्भर करता है कि समजात गुणसूत्रों पर उस लक्षण के कौन-से एलील उपस्थित हैं। माना कि मटर में लम्बे होने का एलील T तथा बौनेपन का एलील t है। T प्रभावी तथा t अप्रभावी होता है। यदि समजात जोड़े के एक गुणसूत्र पर T तथा दूसरे पर भी T जीन है तो पौधा लम्बा होगा। इसी प्रकार यदि दोनों गुणसूत्रों पर ‘t ‘ जीन है तो पौधा शुद्ध बौना होगा। यदि एक गुणसूत्र पर ‘T ‘ व दूसरे पर ‘t ‘ जीन है तो पौधा संकर लम्बा होगा।
अब जब अर्द्धसूत्री विभाजन होता है तो युग्मकों (जनन कोशिकाओं) में प्रत्येक जोड़े में से केवल एक गुणसूत्र युग्मक में पहुँचता है। स्पष्ट है कि किसी युग्मक में ” T ” पहुँचेगा व किसी में ‘ t ‘ । अब यह केवल संयोग पर निर्भर करता है कि नर युग्मक मादा युग्मक के संलयन से उत्पन्न जाइगोट तथा उसमें विकसित जीवधारी कैसा होगा? यदि ‘T ” जीन वाला नर/मादा युग्मकरण जीन वाले मादा /नर से संलयन करेगा तो नयी पीढ़ी की कोशिका में “TT” जीन (दोनों लम्बाई के) होंगे और पौधा लम्बा होगा।
यदि ‘t ‘ जीन वाला नर/मादा युग्मक, ‘t ‘ जीन वाले मादा/नर से संलयन करेगा तो नयी पीढ़ी की कोशिकाओं में ‘tt’ जीन होंगे (दोनों बौनेपन के), पौधा बौना होगा। यदि ‘T ‘ जीन वाला नर/मादा युग्मक, ‘t’ जीन वाले मादा/नर युग्मक से संलयन करेगा तो ‘Tt’ यानी संकर संतान होगी परन्तु लम्बी होगी क्योंकि T प्रभावी है। अब जीन के आधार पर एकसंकर क्रॉस की व्याख्या की जा सकती है। अब जीन के आधार पर एकसंकर क्रॉस की व्याख्या की जा सकती है।
अपने प्रयोग में मेण्डल ने मटर के शुद्ध लम्बे पौधों व शुद्ध बौने पौधों के बीच संकरण कराया । लम्बेपन के जीन को ‘ T ‘ से तथा बौनेपन के जीन को ‘ t ‘ से प्रदर्शित कर सकते हैं। इस प्रकार शुद्ध लम्बे पौधे का जीनोटाइप ‘TT’ तथा शुद्ध बौने पौधे का जीनोटाइप ‘tt’ हुआ। आप जानते हैं कि शुद्ध लम्बे पौधे में “TT’ जीन जोड़े में से एक “T” जीन समजात गुणसूत्रों के जोड़े में से एक गुणसूत्र पर व दूसरा ‘T ‘ जीन, दूसरे गुणसूत्र पर होगा।
इसी तरह शुद्ध बौने पौधे में tt (दो जीन t व t समजात गुणसूत्रों पर अलग-अलग होंगे।) जब इनसे नर युग्मक व मादा युग्मक (gamete) बनते हैं तो अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप युग्मकों में प्रत्येक जोड़े से केवल एक जीन पहुँचता है अतः युग्मक में केवल एक जीन पहुँचेगा T या t। परन्तु शुद्ध लम्बे पौधे (TT) के सभी युग्मकों में T जीन होगा। इस प्रकार शुद्ध बौने पौधे (tt) के सभी युग्मक में t जीन होगा।
जब लम्बे पौधे के युग्मकों का संलयन बौने पौधे के युग्मक से होगा तो युग्मनज (zygote) में T व t जीन वाले गुणसूत्र होंगे। इसका जीनोटाइप Tt होगा। चूँकि T प्रभावी है तथा t क्षीण है, इसमें विकसित F1 से पीढ़ी के पौधे होंगे तो लम्बे व शुद्ध नहीं बल्कि संकर लम्बे। अब जब इस F1 पीढ़ी के युग्मक बनेंगे तो अर्द्धसूत्री विभाजन के दौरान गुणसूत्र फिर पृथक होंगे और अलग-अलग युग्मों में पहुँचेंगे, परन्तु अबकी बार 50 \% युग्मकों में T जीन व 50 \% युग्मकों में t जीन होगा। इस प्रकार से बने युग्मकों में जब स्वपरागण के बाद संलयन होता है तो 4 प्रकार के संचय बनते हैं-
- नर युग्मक से T, मादा युग्मक से भी T → TT समयुग्मी (शुद्ध) लम्बे
- नर युग्मक से T, मादा युग्मक से t → Tt विषमयुग्मी (संकर) लम्बे
- नर युग्मक से t, मादा युग्मकों से T → tT
- नर युग्मक से t, मादा युग्मक से भी t → tt → समयुग्मी (शुद्ध) बौने
इस प्रकार F2 पीढ़ी में जीनोटाइप के अनुसार 1 : 2 : 3 के अनुपात में TT ( शुद्ध लम्बे), Tt/ tT (संकर लम्बे) व tt ( शुद्ध बौने) पौध्रे प्राप्त होते हैं। फीनोटाइप (बाह्य आकार) के आधार पर लम्बे व बौने पौधे 3: 1 के अनुपात में होते हैं।
अब चूँक TT जीन वाले पौधे शुद्ध लम्बे हैं, ये आगे सभी पीढ़ियों में लम्बे पौधों को ही जन्म देते हैं। इसी प्रकार tt जीन वाले शुद्ध बौने पौधे अगली पीढ़ियों में केवल बौने पौधों को ही जन्म देते हैं, परन्तु Tt जीन वाले अगली पीढ़ी में फिर 3: 1 के अनुपात में लम्बे व बौने पौधों को जन्म देते हैं। यही क्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है।
प्रश्न 5.
‘द्वि-संकरण’ से क्या तात्पर्य है? उपयुक्त नियम के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब दो विपरीत लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो उसे द्वि-संकर संकरण कहते हैं, जैसे पीले गोल बीजों वाले पौधों तथा हरे झुर्रीदार बीजों वाले पौधों के बीच संकरण | इसकी क्रिया स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम पर आधारित है जिसका अर्थ है कि दो पृथक लक्षणों के वैकल्पिक स्वरूपों का पृथक्करण एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से होता है।
द्विसंकर क्रॉस के लिए मेण्डल ने दो पौधों को चुना-
- पीले (YY) और गोल (RR) बीज वाला समयुग्मजी (अर्थात् शुद्ध वंशाक्रमी) पौधा। ये दोनों प्रभावी लक्षण हैं।
- हरे (yy) और झुर्रीदार (rr) बीज वाला समयुग्मजी (अर्थात् शुद्ध वंशाक्रमी) पौधा। ये दोनों अप्रभावी लक्षण हैं।
इस प्रकार एक पौधे के दोनों लक्षण प्रभावी व दूसरे पौधे के लक्षण अप्रभावी थे।
इन दोनों पौधों के बीच परागण के बाद प्राप्त प्रथम संतानीय पीढ़ी (F1) के संकर पौधे प्रभाविता के नियम के अनुसार विषमयुग्मजी (Yy Rr) होते हैं। इनका बाह्य रूप (फीनोटाइप) दोनों प्रभावी लक्षण दिखाता है अर्थात् इन पौधों के बीज पीले व गोल होते हैं। प्रथम संतानीय पीढ़ी के संकर पौधों के स्वपरागण से द्वितीय संतानीय पीढ़ी (F2) प्राप्त होती है। इस पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 6.
‘प्रभावी’ तथा ‘अप्रभावी’ लक्षणों से’ क्या तात्पर्य है? इनके आधार पर ‘प्रभाविता’ का नियम समझाइए।
अथवा
प्रभाविता नियम को समझाइए।
अथवा
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों से क्या तात्पर्य है?
F2 पीढ़ी में उपस्थित प्रभावी लक्षणों को उपयुक्त उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर:
परस्पर विरोधी लक्षणों वाले दो शुद्ध जनकों के बीच संकरण कराने से उनकी संतानों में जो लक्षण परिलक्षित होता है, उसे प्रभावी लक्षण (Dominant characteris- tic) तथा जो लक्षण परिलक्षित नहीं होता उसे अप्रभावी लक्षण (Recessive characteristic) कहते हैं।
प्रभाविता का नियम (Law of Dominance):
पौधा युग्मनज से निर्मित होता है। इसमें पौधे के प्रत्येक लक्षण के दो वैकल्पिक रूप होते हैं। उदाहरण के लिए मटर के युग्मनज में फूल के रंग के दो वैकल्पिक रूप होंगे-लाल और सफेद। ऐसे प्रत्येक रूप को व्यक्त करने के लिए युग्मनज में एक इकाई पायी जाती है। मेण्डल ने इस इकाई को फैक्टर कहा, परन्तु अब इन्हें जीन के नाम से जाना जाता है। युग्मनज का निर्माण दो युग्मकों के संलयन से होता है।
प्रत्येक लक्षण के दो वैकल्पिक रूपों में से एक रूप के जीन नर युग्मक में और दूसरे वैकल्पिक रूप के जीन मादा युग्मक में होते हैं। जब ये युग्मक संलयित होकर युग्मनज बनाते हैं तब उसमें प्रत्येक लक्षण के वैकल्पिक रूपों को व्यक्त करने वाली दो जीन आ जाती हैं। उदाहरणार्थ-यदि मटर के नर युग्मक में फूल का रंग व्यक्त करने वाली जीन है और मादा युग्मक में सफेद रंग व्यक्त करने वाली जीन है तब F2 पीढ़ी में दोनों युग्मकों के संलयन से बनने वाले युग्मनज में लाल और सफेद दोनों रूपों को व्यक्त करने वाली जीन साथ आ जायेंगी।
प्रश्न 7.
आनुवंशिकी के गुणसूत्र सिद्धान्त का आधार क्या है? इसे स्पष्ट करते हुए सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
आनुवंशिकी का गुणसूत्र सिद्धान्त (Chro-mosome Theory of Heredity)
जिस समय मेण्डल, मटर पर किये गये कार्यों को अन्तिम रूप दे रहे थे, लगभग उसी समय विलियम फ्लेमिंग (1879), ने सैलामेण्डर की कोशिकाओं के केन्द्रक में गुणसूत्रों को देखा था। वर्ष 1902 में वाल्टर सटन तथा थियोडोर बावेरी ने मेण्डल के सिद्धान्तों एवं गुणसूत्रों में पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण के समय एवं कोशिका विभाजन -विभाजन समय मेण्डल के कारकों (factors) एवं गुणसूत्रों की कार्यविधि में समानता होती है।
मेण्डल ने कहा था था कि कारक (factors) जोड़ों (allelomorphs) में में होते हैं और गुणसूत्र भी जोड़ों में होते हैं और प्रत्येक जोड़े का एक-एक गुणसूत्र विभिन्न मातृ पौधे से आते हैं। मेण्डल ने यह भी देखा कि जिस समय युग्मक (gamete) का निर्माण होता है जोड़े में आये कारक अलग-अलग हो जाते हैं और अलग युग्मकों में वितरित हो जाते हैं, [मेण्डल का पृथक्करण का नियम (Mendel’s Law of Segregation)]।
अर्द्धसूत्री विभाजन के समय समयुग्मी (homozygous) गुणसूत्रों के के जोड़े फिर अलग-अलग जाते हैं, और एक युग्मक में जोड़े का केवल एक ही सदस्य जाता है। मेण्डल ने यह भी पाया कि यदि एक जोड़े के एक कारक (factor) का अध्ययन किया जाय उनका वितरण दूसरे जोड़े के कारकों से स्वतन्त्र रूप होता [स्वतन्त्र पृथक्करण का सिद्धन्त (Law of Independent Assortment)]। अगर हम यह मान कि एक लक्षण, आनुवंशिक कारक (gene) जैसे फूलों का रंग एक जोड़े गुणसूत्र के ऊपर होता है और दूसरे लक्षण का कारक (gene) जोड़े के दूसरे गुणसूत्र पर है तब अर्द्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्र का स्वतन्त्र पृथक्करण के कारण लक्षणों (कारकों) का भी पृथक्करण होगा।
आनुवंशिक कारकों तथा अर्द्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्रों के व्यवहार की इस समानता के आधार पर आनुवंशिकी का गुणसूत्र सिद्धान्त निम्नवत् समझा जा सकता है-
- युग्मनज (zygote) द्वारा प्रदर्शित गुणों का सार गुणसूत्रों में होता है।
- गुणसूत्रों की संख्या प्रत्येक जीव में निश्चित होती है।
- गुणसूत्रों पर जीन (genes) होते हैं
- जीन डिऑक्सीराइबो – न्यूक्लियक – एसिड (DNA) द्वारा निर्मित होते हैं।
- प्रत्येक जीन किसी एक विशेष गुण का वाहक होता है।
- जीन में स्वयं विभाजन की क्षमता होती है।
प्रश्न 8.
‘जीन – उत्परिवर्तन’ से क्या तात्पर्य है? उदाहरण देते हुए जीन विनिमय की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
जीन का उत्परिवर्तन (Mutations of Gene):
हयूगो डी ब्रीज (Hugo de Vries) नामक वैज्ञानिक ने वर्ष 1901 में जीवों के विकास क्रम में नयी जातियों की उत्पत्ति के बारे में जीन – उत्परिवर्तन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। जब वे ईवनिंग प्रिमरोज नामक पौधे की अनेक पीढ़ियों में वंशानुगति का अध्ययन कर रहे थे थे तो उन्होंने पाया कि कभी-कभी अकस्मात् कुछ ऐसे पौधे उत्पन्न हो जाते हैं जो जनक पौधों से इतने भिन्न होते हैं कि उन्हें नयी जाति का माना जा सकता है।
वंशानुगत में इन अकस्मात् तस्मात् परिवर्तनों की, विकास के सामान्य सिद्धान्तों जीवन-संघर्ष (struggle for existence), योग्यतम की उत्तरजीविता (survival of the fittest), प्राकृतिक वरण (natural selection) आदि के द्वारा व्याख्या नहीं की जा सकती। डी ब्रीज के सिद्धान्त के अनुसार, नयी जाति की अकस्मात् उत्पत्ति एक ही बार में होने वाली स्पष्ट एवं स्थायी (वंशागत) बड़ी विभिन्नताओं (उत्परिवर्तनों) के कारण होती है। ये परिवर्तन परिस्थत जीनों (genes) की रासायनिक जीव-कोशिकाओं में उपस्थित संरचना में में परिवर्तन से उत्पन्न होते हैं।
किसी जीन की रासायनिक संरचना में होने वाले परिवर्तन को जीन-उत्परिवर्तन [न (Gene mutation) कहते हैं। चूँकि जीन DNA अणु के खण्ड होते हैं, जीन उत्परिवर्तन की क्रिया मैं DNA खण्ड के न्यूक्लियोटाइडों को संख्या तथा क्रमायोजन में परिवर्तन होता है।
जीन-उत्परिवर्तन में DNA की संरचना में अकस्मात् एवं स्थायी परिवर्तन हो जाता है। यद्यपि इसके द्वारा DNA के वृहत् अणु के केवल के केवल एक छोटे खण्ड में ही परिवर्तन होता है, फिर भी इसके द्वारा DNA में संचित आनुवंशिक कोड में परिवर्तन हो जाने से कोशिका एवं जीवधारी के विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
उदाहरणत: होमोग्लोबिन प्रोटीन के संश्लेषण से सम्बद्ध जीन की न्यूक्लियोटाइड शृंखला में केवल एक नाइट्रोजनी बेस के बदल जाने से लाल रक्त कणिकाओं की गोल आकृति बदल कर हँसिया की आकृति (sickle shape) हो जाती है जिससे मानव में रक्ताल्पता (anaemia) हो जाता है।
जीन – उत्परिवर्तन में एकाकी जीन की संरचना अथवा गुणसूत्रों की संरचना तथा संख्या तक में परिवर्तन हो सकते हैं। ये परिवर्तन युग्मनज (zygote) से लेकर जीवधारी की मृत्यु से पहले तक किसी भी समय तथा लैंगिक जनन में युग्मकों (gametes) ‘निर्माण के समय हो सकते हैं। ये वंशागत होते हैं – अतः अगली पीढ़ियों की सन्तानों में विभिन्नताओं का कारण बनते हैं।
जीन – विनिमय (Gene Cross-over ) – कोशिका के अर्द्धसूत्री विभाजन के समय यह क्रिया तब होती है जब दो भिन्न-भिन्न जीन एक ही गुणसूत्र पर स्थित हो।
जीन – विनिमय की प्रक्रिया को चित्र में प्रदर्शित किया गया है। चित्र में मातृ-कोशिका के समजात गुणसूत्री का एक युग्म तथा प्रत्येक गुणसूत्र के दो क्रोमेटिड (Chroma- tid), जो सेन्ट्रीमियर पर परस्पर सम्बद्ध होते हैं, प्रदर्शित हैं। इन गुणसूत्रों पर दो भिन्न जीन a एवं b एक गुणसूत्र पर तथा A एवं B दूसरे गुणसूत्र स्थित हैं।
चित्र में एक गुणसूत्र के क्रोमेटिड (a,b) का दूसरे गुणसूत्र के क्रोमेटिड (A,B) से क्रॉस करना प्रदर्शित है। क्रोमेटिडों के क्रॉस करने वाले बिन्दु को कायस्मा (chiasma) कहते हैं। इस बिन्दु पर दोनों क्रोमेटिड, एक एन्जाइम इण्डोन्यूक्लिएज (endo- nuclease) की क्रिया से भंग हो जाते हैं तथा इनके खण्डों के बीच विनिमय (exchange) होकर, दूसरे एन्जाइम लाइगेज (ligase) की क्रिया से पुनः जुड़ जाते हैं। यह अवस्था चित्र में प्रदर्शित है। अन्त में अर्द्धसूत्री विभाजन से दोनों गुणसूत्रों के चार क्रोमेटिड अलग-अलग होकर चार अगुणित गुणसूत्र बनाते हैं।
चित्र से स्पष्ट है कि इन चार संतति गुणसूत्रों में से दो (ab तथा AB) तो मातृ- कोशिका के गुणसूत्रों के समान ही रहेंगे परन्तु दो गुणसूत्र (ab तथा AB) में जीनों का वितरण मातृ – कोशिका से भिन्न होगा।
प्रश्न 9.
‘जीन-विनिमय’ से क्या तात्पर्य है? उत्परिवर्तन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीन विनिमय जब दो गुणसूत्रों (समान या असमान) के बीच अर्द्धसूत्री विभाजन के दौरान गुणों (लक्षण) का आदान-प्रदान होकर नयी पीढ़ी का निर्माण होता है तो उसे जीन विनिमय कहते हैं।
उत्परिवर्तन के कारण (Causes of Mutations):
- युग्मकजनन में त्रुटि – युग्मक निर्माण के समय गुणसूत्रों के अर्धसूत्री विभाजन एवं पारगमन के समय कोई त्रुटि हो जाने से उत्परिवर्तन हो जा सकता है।
- शारीरिक दशाएँ – कभी-कभी असामान्य शारीरिक दशाओं जैसे हॉरमोनों का असामान्य प्रवाह, शारीरिक ताप का असामान्य परिवर्तन, पोषक पदार्थों की कमी, उपापचय क्रियाओं में गड़बड़ी आदि से भी उत्परिवर्तन हो सकता है।
- वातावरणीय दशाएँ – युग्मक निर्माण के समय वातावरण के ताप में अकस्मात् कमी हो जाने से उत्परिवर्तन हो सकता है।
- विकिरणों का प्रभाव – प्रकृति में अत्यधिक ऊर्जावान विकिरणों, जैसे अन्तरिक्ष विकिरण (Cosmic ra- diations), गामा – विकिरण (Gamma radiations), आदि की क्रिया से भी जीन की संरचना में परिवर्तन हो जाते है- जो उत्परिवर्तन उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 10.
DNA के वाटसन एवं क्रिक मॉडल को चित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
वाटसन एवं क्रिक द्वारा बनाये गये DNA मॉडल का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर:
DNA की आण्विक संरचना (Molecular Structure of DNA) – जे. डी. वाटसन (J. D Watson) और एच.एफ.सी. क्रिक (H.F.C. Crick) ने सन् 1953 ई. में DNA की रचना के बारे में एक मॉडल प्रस्तुत किया जिसे उनके नाम पर वाटसन और क्रिक का मॉडल कहते हैं। इसके लिए वाटसन (Watson) एवं क्रिक (Crick) तथा विलकिन्स (Wilkins) को सम्मिलित रूप से सन् 1962 ई. में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उनके अनुसार-
(1) DNA द्विचक्राकार रचना (Double helical structure) है, जिसमें पॉलीन्यूक्लियोटाइड की दोनों श्रृंखलाएँ एक अक्ष रेखा पर एक-दूसरे के विपरीत दिशा में कुण्डलित अथवा रस्सी की तरह ऐंठी हुई रहती हैं।
(2) दोनों श्रृंखलाओं का निर्माण फॉस्फेट (P) एवं शर्करा (S) के अनेक अणुओं के मिलने से होता है। नाइट्रोजनी बेस शर्करा के अणुओं से पार्श्व में लगे होते हैं।
(3) पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं के बेस लम्बी अक्ष रेखा के सीधे कोणीय तल में लगे रहते हैं तथा सीढ़ी के डण्डे के आकार की रचना बनाते हैं
(4) नाइट्रोजनी क्षारक एक विशिष्ट क्रम में जुड़े रहते हैं। एडीनीन (A) तथा थायमीन (T) के मध्य हाइड्रोजन बन्ध (A = T) होते हैं जबकि साइटोसीन (C) तथा ग्वानीन (G) के मध्य तीन हाइड्रोजन बन्ध (C ≡ G) होते हैं।
(5) DNA के दोहरे हेलिक्स का व्यास 20 Å होता है। हेलिक्स के प्रत्येक कुण्डल (turn) में 10 नाइट्रोजन क्षारक जोड़े होते हैं। प्रत्येक नाइट्रोजन क्षारक के मध्य की दूरी 3.4Å होती है और हेलिक्स के प्रत्येक कुण्डल की लम्बाई 34Å होती है।
(6) DNA अणु में एडीनीन की कुल मात्रा थायमीन के बराबर और ग्वानीन की मात्रा साइटोसीन के बराबर होती है। इसे चारगाफ का तुल्यता का नियम कहते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निर्देश – प्रत्येक प्रश्न में दिये गये वैकल्पिक उत्तरों में से सही विकल्प चुनिए-
1. मटर में शुद्ध लम्बे एवं शुद्ध बौने पौधे में संकरण कराया जाता है, तो लम्बे मटर के पौधे प्राप्त होते हैं, द्वितीय पीढ़ी में प्राप्त पौधे होंगे-
(a) शुद्ध लम्बे
(b) शुद्ध बौने
(c) संकर लम्बे
(d) शुद्ध लम्बे एवं शुद्ध बौने
उत्तर:
(c) संकर लम्बे
2. मटर में बीजों का गोल आकार तथा पीला रंग होता है-
(a) अपूर्ण प्रभावी
(b) अप्रभावी
(c) संकर
(d) प्रभावी
उत्तर:
(d) प्रभावी
3. एक संकर संकरण की F2 पीढ़ी में शुद्ध तथा संकर गुणों वाले पौधों का प्रतिशत अनुपात होता है-
(a) 1/3
(b) 3/1
(c) 1/1
(d) 2/3
उत्तर:
(c) 1/1
4. मेण्डल ने आनुवंशिकता के प्रयोग जिस पौधे पर किये उसका नाम है-
(a) गुड़हल
(b) गेंदा
(c) गुलाब
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी
5. TT और tt प्रकार के क्रॉस से संतानों में होगा-
(a) TT
(b) Tt
(c) tt
(d) मटर
उत्तर:
(d) मटर
6. आनुवंशिक लक्षणों के रासायनिक कारक हैं-
(a) DDT
(b) DNA
(c) प्रोटीन
(d) कार्बोहाइड्रेट
उत्तर:
(b) DNA
7. किसी प्राणी की जीनी संरचना को कहते हैं-
(a) जीनोटाइप
(b) फीनोटाइप
(c) एलीलोमॉर्फ
(d) संकर
उत्तर:
(b) फीनोटाइप
8. जीन पाये जाते हैं-
(a) कोशिका में
(b) केन्द्रक में
(c) माइटोकॉण्ड्रिया में
(d) गुणसूत्रों पर
उत्तर:
(d) गुणसूत्रों पर
9. एक संकर संकरण की F2 पी ढ़ी में प्रभावी तथा अप्रभावी गुणों वाले पौधों का अनुपात होगा-
(a) 25 : 75
(b) 75 : 25
(c) 50 : 50
(d) 40 : 60
उत्तर:
(b) 75 : 25
10. उद्यान मटर में अप्रभावी लक्षण है-
(a) लम्बे तने
(b) झुर्रीदार बीज
(c) रंगीन बीजकवक
(d) गोल बीज
उत्तर:
(b) झुर्रीदार बीज
11. आनुवंशिकता के जनक हैं-
(a) चार्ल्स डार्विन
(b) ग्रेगर जान मेण्डल
(c) हयूगो डी ब्रीज
(d) हरगोविन्द
उत्तर:
(b) ग्रेगर जान मेण्डल
12. विपरीत लक्षणों के जोड़ों को कहते हैं-
(a) युग्म विकल्पी या एलीलोमॉर्फ
(b) निर्धारक
(c) समयुग्मजी
(d) समरूप
उत्तर:
(a) युग्म विकल्पी या एलीलोमॉर्फ
13. पृथक्करण का नियम प्रस्तुत किया-
(a) लैमार्क ने
(b) डार्विन ने
(c) ह्युगो डी व्रीज ने
(d) मेण्डल ने
उत्तर:
(d) मेण्डल ने
14. पुष्प में लाल रंग लक्षण प्रभावी है। इसका विपरीत या तुलनात्मक लक्षण क्या होगा?
(a) बौना पौधा
(b) गोल बीज
(c) सफेद पुष्प
(d) हरे बीज
उत्तर:
(c) सफेद पुष्प
15. मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या क्या होती है?
(a) 44
(b) 45
(c) 46
(d) 47
उत्तर:
(c) 46
16. मानव में ऑटोसोम (Autosome) के जोड़े होते हैं-
अथवा
मनुष्य के शुक्राणु में ऑटोसोम की संख्या कितनी होती है?
(a) 22
(b) 23
(c) 1
(d) 46
उत्तर:
(a) 22
17. निम्नलिखित में मादा का जीनोटाइप होगा-
(a) XY
(b) YY
(c) XX
(d) सभी तीनों
उत्तर:
(c) XX
18. निम्नलिखित में प्यूरीन क्षारक है-
(a) ग्वानीन
(b) थाइमीन
(c) साइटोसीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ग्वानीन
19. जीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किया-
(a) मेण्डल ने
(b) जोहन्सन ने
(c) बीजमान ने
(d) ऐवरी ने
उत्तर:
(b) जोहन्सन ने
20. प्यूरीन क्षारक होता है-
(a) एडीनीन
(b) साइटोनिन
(c) यूरेसिल
(d) थायमीन
उत्तर:
(a) एडीनीन
21. सेण्ट्रोमियर एक भाग है-
(a) गुणसूत्र का
(b) जीन का
(c) कोशिकाद्रव्य का
(d) राइबोसोम का
उत्तर:
(a) गुणसूत्र का
22. जीन – विनिमय होता है-
(a) समसूत्री विभाजन में
(b) अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रथम चरण में
(c) अर्द्धसूत्री विभाजन के द्वितीय चरण में
(d) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(b) अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रथम चरण में
23. दो भिन्न जीनों में सहलग्नता नहीं होती, यदि-
(a) वे एक ही गुणसूत्र पर एक-दूसरे से दूर स्थित हों
(b) वे एक ही गुणसूत्र पर परस्पर निकट स्थित हों
(c) वे दो भिन्न गुणसूत्रों पर स्थित हों
(d) समजात गुणसूत्र-युग्म के भिन्न-भिन्न गुणसूत्रों पर हों
उत्तर:
(d) समजात गुणसूत्र-युग्म के भिन्न-भिन्न गुणसूत्रों पर हों
24. उत्परिवर्तन का कारण है-
(a) जीन परिवर्तन
(b) जीवन संघ
(c) उद्विकास
(d) प्राकृतिक चयन
उत्तर:
(a) जीन परिवर्तन
25. गुणसूत्र किस पदार्थ के बन होते हैं?
(a) प्रोटीन
(b) आर.एन.ए.
(c) डी.एन.ए.
(d) डी.एन.ए. व प्रोटीन
उत्तर:
(d) डी.एन.ए. व प्रोटीन
26. डॉ. हरगोविन्द खुराना को नोबेल पुरस्कार मिला है-
(a) 1970 में
(b) 1972 में
(c) 1980 में
(d) 1968 में
उत्तर:
(d) 1968 में
27. टी. च मार्गन ने अपना आनुवंशिक प्रयोग किस पर किया?
(a) घरेलू मक्खी
(b) बालू मक्खी
(c) फल मक्खी
(d) सी.सी. मक्खी
उत्तर:
(c) फल मक्खी
28. निम्नलिखित में आनुवंशिक पदार्थ है-
(a) गॉल्जी बॉडी
(b) DNA
(c) राइबोसोम्स
(d) माइट्रोकॉण्ड्रिया
उत्तर:
(d) माइट्रोकॉण्ड्रिया
29. केन्द्रक का निर्माण होता है-
(a) DNA से
(b) प्रोटीन से
(c) RNA से
(d) न्यूक्लियो प्रोटीन से
उत्तर:
(d) न्यूक्लियो प्रोटीन से
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- एक लाल पुष्पी मटर के पौधे का संकरण सफेद पुष्पी मटर के पौधे से किया गया। F1 पीढ़ी में लाल पुष्प थे। अतः सफेद पुष्प ………………… गुण है।
- Test Cross ……………….. है।
- सफेद फूले हुए तथा चिपके हुए लाल पुष्पों वाले पौधों के बीच संकरण ………………… कहलाता है।
- जैव विकास के सिद्धान्त का मुख्य सम्बन्ध ………………… है।
- जैव विकास में उत्परिवर्तन का महत्त्व ………………… होता है।
उत्तर:
- अप्रभावी
- Ttxxtt
- द्विसंकरण
- धीरे-धीरे होने वाले परिवर्तनों से
- जननिक भिन्नताएँ।