JAC Class 10 Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

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JAC Board Class 10 Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

→ आनुर्वंशिकता-जीवधारियों की एक पीढ़ी से अगली पीड़ी में उनके विभिन्न लक्षणों के प्रेषण अथवा संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।

→ जीन-जीवों में आनुवंशिकता की इकाई को जीन कहते हैं।

→ समयुग्मजी-इसमें जीन के दोनों एलील समान होते है, जैसे-TT।

→ विषमयुग्मजी-इसमें जीन में दोनों एलील असमान होते हैं जैसे-Tt।

→ संकर-किसी प्रजाति के दो परस्पर विरोधी लक्षणों के जीवों के निषेचन से उत्पन्न जीव को संकर (hybrid) कहते हैं।

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→ एलील-एक ही गुण के विभिन्न विपयाययी रूपों को प्रकट करने वाले कारकों को एक-दूसरे का एलील कहते हैं।

→ मेण्डल का प्रभाविता का नियम-विपरीत लक्षणों की जोड़ी में से केवल एक लक्षण ही फीनोटाइप में प्रकट हो सकता है। दूसरा लक्षण पहले लक्षण की उपस्थिति में दबा-छिपा रहता है। व्यक्त करने वाले लक्षण को प्रभावी लक्षण तथा जो लक्षण छिपे रहते हैं, उन्हें अप्रभावी लक्षण कहते हैं।

→ विसंयोजन का सिद्धांत-विसंयोजन के सिद्धांत के अनुसार गैमीटों के बनने के दौरान कारकों की जोड़ी के दो सदस्य सम्मिश्रित नहीं होते, वरन् विभिन्न गैमीटों में विसंयोजित हो जाते हैं। जाइगोट निर्माण के समय यादृच्छिक समेकन के अनुसार गैमीट पुन: परस्पर संयोजित हो जाते हैं। इसे गैमीटों की शुद्धता का नियम भी कहा जाता है।

→ एकसंकर प्रसंकरण-जिस प्रसंकरण में केवल एक ही जोड़ी लक्षण को लिया जाता है, उन्हें एकसंकर प्रसंकरण कहते हैं।

→ द्विसंकर प्रसंकरण-इस प्रकार के संकरण में दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों में प्रसंकरण कराया जाता है।

→ जैव विकास-सरल जीवों से सम्भिश्र प्रकार के जीवों के विकास को जैव विकास कहते हैं।

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→ समयुग्मनज-जब युग्मनज में किसी लक्षण के दोनों कारक एक ही प्रकार के हों, तो ऐसे युग्मनज को समयुग्मनज कहते हैं।

→ विषमयुग्मनज-जब युग्मनज में किसी लक्षण के दोनों कारक एक-दूसरे से भिन रूप के हों, तो ऐसा युग्मन विषमयुग्मनज कहलाता है।

→ फीनोटाइप-किसी जीव्धारी की बाहा संरचना का वर्णन फीनोटाइप कहलाता है।

→ जीनोटाइप-इसके विपरीत जीवधारी की कोशिकाओं की आनुवंशिक संरचना अर्थात् उसकी कोशिका में उपस्थित जीनों का वर्णन, जीनोटाइप कहलाता है।

→ कोमोसोम-क्रोमोसोम केन्द्रक के भीतर पाये जाने वाले सूत्राकार पिण्ड होते हैं। ये क्रोमेटिन सामग्री अर्थात् DNA के बने होते हैं।

→ स्पीशीज में विभिन्नताएँ उसे उत्तरजीविता के योग्य बना सकती हैं अथवा केवल आनुवंशिक विचलन में योगदान देती हैं।

→ जैव-विकास को समझने के लिए केवल वर्तमान स्पीशीज का अध्ययन पर्याप्त नही है, वरन् जीवाश्म अध्ययन भी आवश्यक है।

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→ जैव-विकास के समय अंग अथवा आकृति नए प्रकायों के लिए अनुकूलित होते हैं। उदाहरण के लिए, जो प्रारंभ में उष्पता प्रदान करने के लिए विकसित हुए थे, कालांतर में उड़ने के लिए अनुकूलित हो गए।

→ विकास को ‘निम्न’ अभिरूप से ‘उच्यतर ‘ अभिरूप की ‘प्रगति’ नहीं कहा जा सकता है, बलिक यह प्रतीत होता है कि विकास ने अधिक जटिल शारीरिक अभिकल्प उत्पन्न किए है जबकि सरलतम शारीरिक अभिकल्प भूलीभांति अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।

→ मानव के विकास के अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि हम सभी एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं जिसका उदय अफ्रीका में हुआ था और चरणों में विश्व के विभिन्न भागों में फैला।

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