JAC Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Jharkhand Board JAC Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Jharkhand Board Class 10 Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मेण्डल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जक्क पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी-
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw
उत्तर:
(c) TtWw

प्रश्न 2.
समजात अंगों का उदाहरण है-
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपर्युक्त भ
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किससे अधिक समानता है?
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु
उत्तर:
(a) चीन के विद्यार्थी।

प्रश्न 4.
एक अध्ययन ‘पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नहीं, यह बताना संभव नहीं है कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अप्रभावी जब तक कि दोनों प्रकार के विकल्पों का पता नहीं हो। ऐसा भी संभव है कि जनक में दोनों ही विकल्प हल्के रंग की आँखों के हों, क्योंकि लक्षण की प्रतिकृति दोनों जनकों से वंशानुगत होती हैं, अप्रभावी तभी होंगे, जब दोनों से प्राप्त जीन अप्रभावी हों। अतः हम केवल अनुमान लगा सकते हैं।

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प्रश्न 5.
जैव- विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर सम्बन्धित है?
उत्तर:
जैव विकास के अध्ययन से पता चलता है कि पहले उत्पन्न जीवों का शरीर बाद में उत्पन्न जीवों के शरीर से सरलतम है, अर्थात् जीवों के शरीर सरलता से जटिलता की तरफ विकास हुआ है। यही आधार वर्गीकरण का भी है। जीवों को शरीर के डिजाइन के आधार पर ही उनको विभिन्न वर्गों में रखा गया है। अतः जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन परस्पर सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
समजात अंग-उन अंगों को जो अलग-अलग स्पीशीज के जीवों में अलग-अलग कार्य करते हैं परन्तु आधारभूत संरचना में एकसमान हैं, समजात अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, पक्षी पंख तथा मनुष्य का हाथ दोनों ही रूपांतरित अग्रपाद हैं।

समरूफ अंग- ऐसे अंग जो अलग-अलग जीवों में एक समाने कार्य करते हैं परन्तु उनकी आधारभूत संरचना समान नहीं होती है, उन्हें समरूप अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, तितली के पंख और कबूतर के पंख दोनों ही उड़ने का कार्य करते हैं। परन्तु कबूतर के पंख में हड्डियाँ होती हैं. तितली के पंख नहीं होतीं।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उददेश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:
इसके लिए एक शुद्ध काली खाल वाले कुत्ते (BB) तथा एक शुद्ध सफेद खाल वाली कुतिया (bb) का चयन किया जाता है। उनका समय पर संकरण कराएँ। यदि उनसे उत्पन्न सभी पिल्ले (कुत्ते के बच्चे) काली खाल वाले हैं, तो काली खाल का लक्षण प्रभावी है।
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प्रश्न 8.
विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
जीवाश्म पुराने जीवों के अवशेष अथवा चिह्न या साँचे होते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन से पता चलता कि अमुक जीव कब पाया जाता था, कब लुप्त हो गया, जीवों के विकास क्रम में पहले जीवों की संरचना कैसी थी और बाद में उसमें क्या-क्या परिवर्तन होते गए।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?
उत्तर:
वैज्ञानिक जे. बी. एस. हाल्डेन ने 1929 में सुझाव दिया कि जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से ही हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे।

स्टेनल एल. मिलर हेराल्ड सी. उरे ने 1953 में प्रयोग किए और प्रमाण दिए कि सरल अकार्बनिक अणुओं से कार्बनिक अणु उत्पन्न हो सकते हैं। उन्होंने ऐसे वातावरण का निर्माण किया जो संभवत: प्राथमिक वातावरण समान था जिसमें अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) गैसें तो थीं परन्तु स्वतंत्र ऑक्सीजन नहीं थी। पात्र जल भी था। इस संमिश्रण को 100°C से कुछ कम ताप पर रखा गया। गैसों के इस मिश्रण में कृत्रिम रूप से समय-समय पर चिंगारियाँ उत्पन्न की गई जैसे कि आकाश में तड़ित बिजली उत्पन्न होती है।

इस प्रयोग में देखा गया कि 15% मीथेन का कार्बन उपयोग हुआ और सरल कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हो गए। इन कार्बनिक यौगिकों में विभिन्न अमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो कि प्रोटीन के अणुओं के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।

उपर्युक्त प्रमाण के आधार पर हम परिकल्पना कर सकते हैं कि शायद जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों को विकास किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
अलैंगिक जनन जनन एक ही होता है और उसी का डी.एन.ए. संतति में जाता है। अतः संतति में विभिन्नता तभी आती जब डी. एन. ए. प्रतिकृति में त्रुटियाँ हों जो कि कि न्यून होती हैं।

लैंगिक जनन में दो जनक होते हैं जो कि डी.एन.ए. का एक-एक सेट संतति को प्रदान करते हैं। इससे संतति में भिन्न-भिन्न लक्षणों का समावेश होता है और अलैंगिक जनन से लैंगिक जनन में विविधता अपेक्षाकृत अधिक होती है। लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताएँ जीन (डी.एन.ए.) में परिवर्तन के कारण होती है। अतः ये स्थिर होती हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती हैं। प्राकृतिक चयन के कारण वही विभिन्नताएँ प्रगति करती हैं जोकि पर्यावरण के अनुकूल हों।

अतः समय काल में मौजूदा पीटी अपने पूर्वजों से इतनी भिन्न हो सकती हैं कि वे 5 वे उनसे लैंगिक जनन न कर पायें और एक अन्य स्पीशीज के रूप में उभर कर आ जाएँ तथा जीवों के विकास में सहायक हों।

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प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि मटर के गोल बीज वाले लम्बे पौधों का यदि झुर्रीदार बीजों वाले बौने पौधों से संकरण कराया जाए तो Fg पीढ़ी में लम्बे या बौने लक्षण तथा गोल या झुर्रीदार लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं।

यदि संतति पौधे को जनक पौधे से संपूर्ण जीनों का एक पूर्ण सेट प्राप्त होता है तो चित्र में दिया प्रयोग सफल नहीं हो सकता। क्योंकि दो लक्षण R तथा Y सेट में एक-दूसरे से संलग्न रहेंगे तथा स्वतंत्र रूप में आहरित नहीं हो सकते। वास्तव में जीन केवल एक डी.एन.ए. श्रृंखला के रूप में न होकर डी.एन.ए. के अलग-अलग स्वतंत्र के रूप में होते हैं। इनमें से प्रत्येक एक गुणसूत्र का निर्माण करता है। इसलिए प्रत्येक कोशिका में प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतिकृति होती है जिनमें से एक उन्हें नर तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक जनक कोशिका से गुणसूत्र
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के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुणसूत्र ही एक जनने, कोशिका (युग्मक) में जाता है। जब दो युग्मकों का संलयन होता है, तो इनसे बने युग्मज में गुणसूत्रों की संख्या पुनः सामान्य हो जाती है। इस प्रकार लैंगिक जनन द्वारा संतति में जनक कोशिकाओं जैसी ही गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।

प्रश्न 12.
केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाये रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?
उत्तर:
इस कथन से हम सहमत हैं क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव ( (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन प्रक्रम में वे अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं इसका अर्थ है कि समय न हैं साथ-साथ इन भिन्नताओं वाले जीव समष्टि में प्रमुख हो जाएँगे क्योंकि इनकी विभिन्नताएँ (लक्षण) परिवर्तित पर्यावरण में जीवित रह सकते हैं, प्राकृतिक रूप में सफल रहेंगे तथा अपनी संतति को सतत बनाए रख सकते हैं।

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पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 157)

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण – A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण – B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर:
संभवत: लक्षण B पहले उत्पन्न हुआ होगा क्योंकि पहली पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में कुछ नई विभिन्नताएँ परिलक्षित होती हैं। ये नई विभिन्नताएँ यदि वातावरण के अनुकूल होती हैं, तो उनकी प्रतिशत संख्या समष्टि में अधिक हो जाती है।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर:
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज के अस्तित्व की संभावना इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि स्पीशीज स्वयं को वातावरण के अनुसार अनुकूलित करने में सक्षम हो जाता है। उदाहरण के लिए, उष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवाणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है। यदि वैश्विक ऊष्मीकरण के कारण जल का ताप बढ़ जाता है, तो जीवाणु मर जाते हैं। केवल उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले ही जीवित रह पाते हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 161)

प्रश्न 1.
मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर:
मेण्डल ने दो विकल्पी मटर के पौधे चुने, जैसे-लम्बे पौधे जो कि लम्बे मटर के पौधे ही पैदा करते थे तथा बौने मटर के पौधे जोकि बौने पौधे ही उत्पन्न करते थे। मेण्डल ने इन दोनों पौधों का संकरण कराया, प्रथम संतति पीढ़ी (F1) में सभी मटर के पौधे लम्बे उगेंगे। इसका अर्थ है कि लम्बाई का लक्षण ही F1 पीढ़ी संतति में दिखाई दिया और बौनेपन का लक्षण प्रदर्शित नहीं हुआ।

जब मेण्डल ने F1 पीढ़ी के पौधे में स्वपरागण कराया तो F2 पीढ़ी में दोनों लक्षण दिखाई दिये अर्थात् लम्बे पौधे भी और बौने पौधे भी (3 : 1) के अनुपात में इसका अर्थ यह है कि लम्बे होने का लक्षण प्रभावी और बौनेपन का लक्षण अप्रभावी है।
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यह प्रदर्शित होता है कि F1 पौधों द्वारा लम्बाई एवं बौनेपन दोनों में विकल्पी लक्षणों की वंशानुगति हुई। F1 पीढ़ी में लम्बाई वाला विकल्प अपने आपको व्यक्त कर पाया क्योंकि वह प्रभावी विकल्प है और बौनापन अप्रभावी विकल्प है।

प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?
उत्तर:
मेण्डल के प्रयोग में F1 पीढ़ी के लम्बे थे तथा पुनः तब F1 पीढ़ी के दो पौधों का संकरण किया गया जब F2 पीढ़ी के पौधे या तो लम्बे या बोने थे। लम्बे तथा बौने का अनुपात 3 : 1 था कोई भी पौधा बीच नहीं था। अर्थात् लम्बे या बौनेपन का लक्ष की ऊँचाई स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं।

प्रश्न 3.
एक A- रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन सा विकल्प लक्षण-रुधिर
वर्ग ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर:
नहीं, यह सूचना पर्याप्त नहीं है। यह बताने के लिए कौन सा विकल्प लक्षण रुधिर A या रुधिर वर्ग O प्रभावी है।

प्रश्न 4.
मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मानव के अधिकतर गुणसूत्र माता और पिता के गुणसूत्रों के प्रतिरूप होते हैं। इनकी संख्या 22 जोड़े है। लेकिन एक युग्म जिसे लिंग गुणसूत्र कहते हैं जो सदा पूर्ण जोड़ी नहीं होते हैं। स्त्री में गुणसूत्र का पूर्ण युग्म होता है तथा दोनों X कहलाते हैं। लेकिन पुरुष में यह जोड़ा परिपूर्ण जोड़ा | नहीं होता जिससे एक गुणसूत्र सामान्य आकार का X होता है [ है तथा दूसरा गुणसूत्र छोटा होता है जिसे Y गुणसूत्र कहते हैं अतः स्त्रियों लिंग गुणसूत्र XX तथा पुरुष में XY गुणसूत्र होते हैं।

इस प्रकार सभी स्त्री युग्मक एकसमान होते हैं, परन्तु नर युग्मक दो प्रकार के होते है अब यदि X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है तो बच्चा लड़की होगी परन्तु यदि Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु निषेचन करता है तो बच्चा लड़का होगा।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 165)

प्रश्न 1.
वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर:
निम्नलिखित तरीकों द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है-
(i) प्राकृतिक चयन – प्रकृति द्वारा लाभप्रद विविधताओं वाली समष्टि को सतत बनाये रखना प्राकृतिक चयन कहलाता है। वे लक्षण जो किसी व्यष्टि जीव के उत्तरजीविता तथा प्रजनन में लाभप्रद होती हैं, अगली पीढ़ी में हस्तान्तरित हो जाती हैं। परन्तु जिनसे कोई लाभ नहीं होता वे लक्षण संतति में नहीं जाते हैं।

(ii) आनुवंशिक विचलन – कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटना के कारण किसी समष्टि के ज्यादातर जीव मर जाते हैं ऐसी स्थिति में जीन सीमित रह जाते हैं इसके कारण उस समष्टि का रूप बदल जाता है तथा उनकी संतति में केवल जीवित सदस्यों के लक्षण विचलन कहाँ जाता है। एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण दिखाई देते हैं। इसे आनुवंशिक विचलन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर:
उपार्जित लक्षण का प्रभाव कायिक ऊतकों पर पड़ता है परन्तु अर्जित लक्षण अनुभव का जनन कोशिकाओं के डी एन ए पर नहीं पड़ता। अतः ये लक्षण वंशानुगत नहीं होते।

प्रश्न 3.
बायों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है?
उत्तर:
(i) बाघों की संख्या में कमी दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ गए हैं। इनमें उत्तम परिवर्तन उत्पन्न नहीं हो रहे जोकि पर्यावरण के अनुकूल और अपनी समष्टि का आकार बढ़ा सकें।

(ii) छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है। छोटी समष्टि में दुर्घटनाएँ किसी जीन की आवृत्ति को भी प्रभावित कर सकती हैं चाहे उनका उत्तरजीविता हेतु कोई लाभ हो या न हो। प्राकृतिक चयन और दुर्घटनाओं के कारण बाघों की प्रजाति लुप्त भी हो सकती है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 166)

प्रश्न 1.
वे कौन से कारक हैं जो नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं?
उत्तर:

  • प्राकृतिक चयन।
  • जीन प्रवाह का न होना अथवा बहुत कम होना।
  • आनुवंशिक विचलन।
  • डी.एन.ए. में गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन होना जिससे कि दो समष्टियों के सदस्यों की जनन कोशिकाएँ (युग्मक) संलयन न कर पाए।
  • दो उपसमष्टियों का रूपेण अलग होना जिससे कि उनके सदस्य परस्पर लैंगिक प्रजनन न कर पायें।

प्रश्न 2.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर:
हाँ, भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों की जाति-उद्भव का प्रमुख कारण है क्योंकि अलग-अलग पौधों की स्पीशीज में अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भिन्न-भिन्न विभिन्नताएँ होती हैं। जीन प्रवाह का स्तर दो समष्टियों के मध्य और भी कम हो जाएगा इसलिए वे दूसरे के साथ जनन करने के अयोग्य हो जायेंगी।

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प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
नहीं, भौगोलिक पृथक्करण अलेंगिक जनन करने वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक नहीं हो सकता है क्योंकि अलैंगिक जनन करने वाले जीवों में बहुत कम विभिन्नताएँ होती हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-171)

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर:
समजात अंगों की उपस्थिति से हमें दो स्पीशीज के सदस्यों में विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता मिलती है।

उदाहरण-पक्षियों, सरीसृप एवं जल-स्थलचर की तरह स्तनधारियों के चार पैर (पाद) होते हैं। सभी में पैरों की आधारभूत संरचना एकसमान होती है, परंतु कार्यों में भिन्न होते हैं। ऐसे अंग समजात अंग कहलाते हैं। ये अभिलक्षण इंगित करते हैं कि वे समान जनक से वंशानुगत हुए हैं।

प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
तितली और चमगादड़ के पंख समजात अंग नहीं होते। वे समरूप अंग हैं जो उड़ने का कार्य करते हैं।

कारण-तितली के पंखों की संरचना चमगादड़ के पंख से बिल्कुल भिन्न होती है। चमगादड़ के पंख में अग्रपाद की अंगुली की हड्डियाँ होती हैं जबकि तितली के पंख में हड्डियाँ नहीं होती हैं।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर:
लाखों अथवा हजारों साल पहले पाए जाने वाले जीवों के परिरक्षित कठोर अवशेष, चट्टानों पर पैरों के निशान, मिट्टी में बने मृत जीवों के सांचे आदि को जीवाश्म कहते हैं।

जीवाशम हमें जैव विकास के बारे में निम्नलिखित बातें दर्शाते हैं-

  • ऐसी कौन-सी स्पीशीज हैं जो कभी जीवित थीं परन्तु अब लुप्त हो गई हैं।
  • ऐसे जीवों के अवशेष जीवाश्म के रूप में मिले हैं जोकि एक वर्ग के जीवों का उनसे विकसित उच्च वर्ग के बीच की कड़ी के जीवों का स्वरूप बताते हैं। उदाहरण के लिए, आर्कीऑप्टैरिक्स जीवाश्म में कुछ लक्षण सरीसृप के हैं तो अन्य लक्षण पक्षियों के। यह इंगित करता है कि पक्षी सरीसृप से विकसित हुए हैं।
  • फॉसिल पृथ्वी के अन्दर विभिन्न स्तर पर खुदाई करके निकाले जाते हैं। इससे पता चलता है कि पृथ्वी की सतह के निकट पाए जाने वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 173)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर:
आधुनिक मानव स्पीशीज ‘होमो सैपियंस’ का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। कुछ हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने अफ्रीका छोड़ दिया, जबकि कुछ वहीं रह गए। वे अलग-अलग देश के वातावरण में फैल गए जिसके कारण उनका आकार, आकृति, रंग-रूप भिन्न हो गए। इन विविधताओं के बावजूद वे परस्पर सफल लैंगिक जनन करने में समर्थ हैं तथा बच्चे पैदा कर सकते हैं, जिसके आधार पर उन्हें एक स्पीशीज के सदस्य कहा जाता है।

प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवाणु, मछली, मकड़ी तथा चिम्पैंजी में से चिम्पैंजी में शारीरिक अभिकल्प की जटिलता सबसे अधिक है। चिम्मैंजी का शारीरिक डिजाइन, विकसित शारीरिक अंग संस्थान, मस्तिष्क (Brain) का जीवाणु, मकड़ी और मछली से अधिक विकसित होना तथा हाथों में अंगूठे की अंगुलियों के विपरीत होना जिससे वे चीजें पकड़ सकें आदि लक्षण उनको बाकी सभी से उत्तम बना देते हैं।

हालांकि विकास की दृष्टि से अति उत्तम नहीं माना जा सकता। क्योंकि सरलतम अधिकल्प वाले जीवाणु का समूह विभिन्न पर्यावरण में आज भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, जीवाणु आज भी विषम पर्यावरण जैसे कि उष्ण झरने, गहरे समुद्र के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका की बर्फ में भी पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में यह नहीं कहा जा सकता कि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य से उत्तम है, वरन् वह जैव विकास श्रृंखला में उत्पन्न एक और स्पीशीज है।

क्रिया-कलाप – 9.1

प्रश्न 1.
अपनी कक्षा के सभी छात्रों के कान का जुड़े कर्णपालि अवलोकन कीजिए। ऐसे छात्रों की सूची बनाइए जिनकी कर्णपालि (ear lobe) स्वतंत्र हो तथा जुड़ी हो। (चित्र) वाले छात्रों एवं स्वतंत्र कर्णपालि वाले छात्रों के प्रतिशत की गणना कीजिए। प्रत्येक छात्र के कर्णपालि के प्रकार को उनके जनक से मिलाकर देखिए। इस प्रेक्षण के आधार पर कर्णपालि के वंशागति के संभावित नियम का सुझाव दीजिए।
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(a) स्वतन्त्र तथा (b) जुड़े कर्णपालि कान के निचले भाग को कर्णपालि कहते हैं। यह कुछ लोगों में सिर के पार्श्व में पूर्ण रूप से जुड़ा होता है परन्तु कुछ में नहीं। स्वतन्त्र एवं जुड़े कर्णपालि मानव समष्टि में पाए जाने वाले दो परिवर्त हैं।
उत्तर:
छात्र अपनी कक्षा के सभी छात्रों के कानों का अवलोकन करें तथा एक सूची बनाएँ यह दिखाने के लिए-
(i) स्वतंत्र कान की पालि वाले छात्र

(ii) जुड़े हुए कान की पालि वाले छात्र जब ऐसे छात्रों के जनकों के कानों को मिलाते हैं तो देखा गया कि उनके कान भी उन्हीं के समान हैं। यह गुण वंशानुगति के सिद्धान्त की पुष्टि करता है।
छात्र अपने अवलोकन निम्नलिखित प्रकार लिखें-

कान की पालि का प्रकार
छात्र का नाम पिता का नाम माता का नाम
1.
2.
3.
4.

क्रिया-कलाप – 9.2

प्रश्न 1.
चित्र में हम कौन-सा प्रयोग करते हैं जिससे यह सुनिश्चित होता है कि F2 पीढ़ी में वास्तव में TT, TY, तथा htt का संयोजन 121 अनुपात में प्राप्त होता है?
उत्तर:
जब शुद्ध लम्बे मटर के पौधों के शुद्ध बौने पौधों से परपरागण कराया गया तो F1 में सभी पौधे लम्बे थे और F1 पीढ़ी के पौधों में स्वपरागण कराया गया तो 3 लम्बे व 1 बौने के अनुपात में संतति प्राप्त हुई। इनकी वास्तविक आनुवंशिकी निश्चित करने के लिए अलग-अलग पौधों में स्वपरागण कराया गया तो F3 पीढ़ी में बौने पौधों ने केवल बौने पौधे दिए, एक लम्बे पौधे ने केवल लम्बे पौधे दिए और दो लम्बे पौधों ने लम्बे तथा बौने दोनों पौधे दिए। इसका अर्थ हुआ कि F1 जीनी संरचना में 1 : 2 : 1 का अनुपात था जैसा कि आगे स्पष्ट किया गया है।
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