JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल था।
(क) 1951-1956
(ख) 1952-1957
(ग) 1955-1960
(घ) 1947-1952
उत्तर:
(क) 1951-1956

2. स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में किस आर्थिक प्रणाली को अपनाया गया?
(क) पूँजीवादी
(ख) मिश्रित
(ग) समाजवादी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) मिश्रित

3. योजना आयोग की स्थापना कब की गई?
(क) 1950
(ख) 1952
(ग) 1960
(घ) 1962
उत्तर:
(क) 1950

4. हरित क्रान्ति के दौरान किस फसल का सर्वाधिक उत्पादन हुआ?
(क) गेहूँ
(ख) बाजरा
(ग) सोयाबीन
(घ) चावल
उत्तर:
(क) गेहूँ

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5. लौह-अयस्क का विशाल भंडार था।
(क) उड़ीसा
(ख) पंजाब
(ग) केरल
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) उड़ीसा

6. प्रथम पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक बल किस पर दिया गया।
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) पर्यटन
(घ) संचार
उत्तर:
(क) कृषि

7. भारत में नियोजन प्रक्रिया की प्रेरणा किस देश से ली गई।
(क) सोवियत संघ
(ख) चीन
(ग) जापान
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(क) सोवियत संघ

8. दूसरी पंचवर्षीय योजना कब शुरू हुई?
(क) 1951
(ख) 1956
(ग) 1966
(घ) 1957
उत्तर:
(ख) 1956

9. चौथी पंचवर्षीय योजना कब से शुरू होनी थी?
(क) 1961
(ख) 1966
(ग) 1967
(घ) 1962
उत्तर:
(ख) 1966

10. पहली योजना का मूलमंत्र क्या था?
(क) संरचनात्मक बदलाव
(ख) प्रौद्योगिकी
(ग) धीरज
(घ) कृषि
उत्तर:
(ग) धीरज

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

संजीव पास बुक्सं
1. …………………….. ‘से उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं।
उत्तर:
वामपंथ

2. ……………………… पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।
उत्तर:
दूसरी

3. पहली पंचवर्षीय योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से ……………………….बदलाव करने की थी।
उत्तर:
संरचनात्मक

4. केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना उसे …………………… कहा जाता है।
उत्तर:
केरल मॉडल

5. इकॉनोमी ऑफ परमानेंस के लेखक ……………………….. हैं।
उत्तर:
जे.सी. कुमारप्पा

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र भारत के समक्ष विकास के कौन-कौनसे दो मॉडल थे?
उत्तर:
पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल।

प्रश्न 2.
योजना आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
मार्च, 1950 में।

प्रश्न 3.
1944 में उद्योगपतियों ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया जिसे किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बॉम्बे प्लान।

प्रश्न 4.
वामपंथ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वामपंथ से उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं और इन तबकों को फायदा पहुँचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।

प्रश्न 5.
भारत सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर किस नई संस्था की स्थापना की?
उत्तर:
नीति आयोग।

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प्रश्न 6.
दूसरी पंचवर्षीय योजना में मुख्यतः किस बात पर जोर दिया गया?
उत्तर:
औद्योगिक विकास पर।

प्रश्न 7.
दक्षिणपंथ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दक्षिणपंथ से उन लोगों को इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलंक अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही प्रगति हो सकती है।

प्रश्न 8.
” विकासशील देशों को सार्वजनिक उद्यमों का सहारा लेना ही पड़ता है, क्योंकि इनके सहयोग के बिना अर्थव्यवस्था गतिशील हो ही नहीं सकती ।” यह कथन किसका है? हुआ ?
उत्तर:
यह कथन प्रो. हैन्सन का है।

प्रश्न 9.
भारत में अर्थव्यवस्था के कौनसे स्वरूप को स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 10.
‘मिल्कमैन ऑफ इण्डिया’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वर्गीज कुरियन को।

प्रश्न 11.
नियोजित विकास क्या है?
उत्तर:
नियोजित विकास, विकास की एक प्रक्रिया है।

प्रश्न 12.
पश्चिमी मुल्कों में किस वजह से पुरानी सामाजिक संरचना टूटी और पूँजीवाद तथा उदारवाद का उदय
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

प्रश्न 13.
आधुनिकीकरण किसका पर्यायवाची माना जाता था?
उत्तर:
संवृद्धि, भौतिक प्रगति और वैज्ञानिक तर्कबुद्धि।

प्रश्न 14.
1969 में केन्द्र सरकार ने कितने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया?
उत्तर:
14 बैंकों का।

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प्रश्न 15.
नियोजन की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।

प्रश्न 16.
भारत में नियोजन के दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  1. देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना।
  2. क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना।

प्रश्न 17.
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य आर्थिक पूँजी का निर्माण करना, आधारभूत उद्योगों का विकास करना तथा आर्थिक समानता की स्थापना करना है।

प्रश्न 18.
सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा निर्यात में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा बीमार कारखानों की पुर्नस्थापना होती है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कमियाँ बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों में अनुशासनहीनता, कार्यकुशलता में कमी तथा उत्तरदायित्व की कमी पायी जाती है।

प्रश्न 20.
भारत में हरित क्रान्ति की क्या आवश्यकता थी?
उत्तर:
देश में कृषिगत विकास करने तथा खाद्यान्नों का अधिकाधिक उत्पादन करके इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु हरित क्रान्ति की आवश्यकता पड़ी।

प्रश्न 21.
हरित क्रान्ति के मुख्य उद्देश्य कौन – कौनसे हैं?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के प्रमुख तत्त्व हैं। कृषि का निरन्तर विस्तार करना, दोहरी फसल का उद्देश्य तथा अच्छे बीजों का प्रयोग करना।

प्रश्न 22.
हरित क्रांति का एक नकारात्मक प्रभाव बताएं।
उत्तर:
हरित क्रांति के प्रभावस्वरूप धनाढ्य वर्गों ने गरीब व भूमिहीन किसानों का शोषण व दमन किया। परिणामतः नक्सलवादी आंदोलन को बल मिला।

प्रश्न 23.
हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम लिखिये
उत्तर:

  1. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई।
  2. झोले वर्ग के किसानों का उभार हुआ।

प्रश्न 24.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।

प्रश्न 25.
दूसरी पंचवर्षीय योजना में किसके विकास पर जोर दिया गया?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।

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प्रश्न 26.
बाम्बे प्लान क्या है?
उत्तर:
1944 में भारतीय उद्योगपतियों का एक समूह बॉम्बे में एकत्र हुआ। इस बैठक में इन उद्योगपतियों ने नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ही बाम्बे प्लान के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 27.
भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।

प्रश्न 28.
हरित क्रान्ति का किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के कारण किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। वे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अब किसानों को साथ लेकर चलते हैं ।

प्रश्न 29.
जे. सी. कुमारप्पा का असली नाम क्या था?
उत्तर:
जे. सी. कॉर्नेलियस।

प्रश्न 30.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि सुधार से आशय है भूमि के स्वामित्व का पुनर्वितरण करना।

प्रश्न 31.
आपकी दृष्टि में अंग्रेजी शासन समाप्त होने पर भूमि सुधार का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास कौनसा किया गया था?
उत्तर:
जमींदारी प्रथा को समाप्त करना।

प्रश्न 32.
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब किया गया?
उत्तर:
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण जुलाई, 1969 में किया गया।

प्रश्न 33.
भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु क्या-क्या प्रयास किये गये?
उत्तर:
भारत में कृषि सुधार हेतु उन्नत बीजों का प्रयोग किया, भूमि सुधार किए गए तथा सिंचाई के साधनों की उचित व्यवस्था की गई।

प्रश्न 34.
HYV बीजों का प्रयोग किन राज्यों में किया गया ? इसका क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
HYV (High Yeilding Variety) बीजों का प्रयोग तमिलनाडु, पंजाब एवं आन्ध्रप्रदेश में किया गया तथा इससे गेहूँ की पैदावार अच्छी हुई।

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प्रश्न 35.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय तथा समाजवाद लागू करना था।

प्रश्न 36.
उड़ीसा के आदिवासियों ने लोहा – इस्पात उद्योग की स्थापना का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
उड़ीसा के आदिवासियों को इस बात का डर था कि यदि लोहा – इस्पात के उद्योग की स्थापना होती है, तो वे बेरोजगार हो जायेंगे तथा उन्हें विस्थापित होना पड़ेगा।

प्रश्न 37.
चौधरी चरण सिंह ने काँग्रेस पार्टी से अलग होकर कौन-सी पार्टी बनाई?
उत्तर:
भारतीय लोकदल।

प्रश्न 38.
जमींदारी उन्मूलन से होने वाले दो लाभ बताइये।
उत्तर:

  1. कृषकों का शोषण होना बन्द हो गया।
  2. कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।

प्रश्न 39.
केरल मॉडल में नव लोकतंत्रात्मक पहल नाम का अभियान कैसे चलाया गया था?
उत्तर:
इस अभियान में लोगों को स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के माध्यम से विकास की गतिविधियों में सीधे शामिल करने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 40.
योजना आयोग के सदस्य के रूप में आप भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र पर बल देते?
उत्तर:
योजना आयोग के सदस्य के रूप में मैं भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर बल देता।

प्रश्न 41.
ऑपरेशन फ्लड से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1970 में ऑपरेशन फ्लड के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसमें सहकारी दूध- उत्पादकों को उत्पादन और वितरण के राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है। यह कार्यों को क्रमबद्ध रूप से सम्पादित करने की एक मानसिक पूर्व प्रवृत्ति है, यह कार्य करने से पहले सोचना है तथा अनुमानों के स्थान पर तथ्यों को ध्यान में रखकर काम करना है।

प्रश्न 2.
पर्यावरणविदों के विरोध के क्या कारण थे? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र सरकार उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों देना चाहती थी?
उत्तर:
उड़ीसा में इस्पात प्लांट लगाये जाने से पर्यावरणविदों को इस बात का भय था कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को लगता था कि उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।

प्रश्न 3.
विकास सम्बन्धी निर्णय लेने से पूर्व सरकार को क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं? लोकतन्त्र में किन-किन विशेषज्ञों की सलाह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है?
उत्तर:

  1. सरकार को विकास सम्बन्धी योजना के बारे में निर्णय लेने से पूर्व एक सामाजिक समूह के हितों को दूसरे सामाजिक समूह के हितों की तथा वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ी के हितों की तुलना में तोला जाता है।
  2. लोकतन्त्र में विकास सम्बन्धी निर्णयों के सम्बन्ध में विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए, लेकिन अन्तिम निर्णय जनप्रतिनिधियों द्वारा ही लिया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
1940 और 1950 के दशक में नियोजन के पक्ष में दुनियाभर में हवा क्यों बह रही थी?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के पुननिर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था क्योंकि यूरोप, जापान और जर्मनी ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद नियोजन से अपनी अर्थव्यवस्था पुनः खड़ी कर ली थी। सोवियत संघ ने भारी कठिनाई के बीच नियोजन के द्वारा शानदार आर्थिक प्रगति की थी।

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प्रश्न 5.
योजना आयोग के संगठन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना 15 मार्च, 1950 को की गई। इसमें एक अध्यक्ष ( प्रधानमन्त्री), एक उपाध्यक्ष, तीन अशंकालीन सदस्य:

  1. केन्द्रीय गृह मन्त्री
  2. केन्द्रीय रक्षामन्त्री
  3. केन्द्रीय वित्तमन्त्री तथा तीन पूर्वकालिक सदस्य होते थे।

प्रश्न 6.
नियोजन के प्रमुख तीन तत्त्व बताइये।
उत्तर:
नियोजन के तीन तत्त्व ये हैं।

  1. उपलब्ध साधनों का सही आकलन
  2. इन साधनों के आर्थिक उपयोग हेतु एक योजना
  3. सभी साधनों का अनुकूलतम प्रयोग।

प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत पिछड़ी हुई थी। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी। अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का इतना बुरी तरह दोहन किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब हो गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन, अर्द्धसामन्ती तथा असन्तुलित अर्थव्यवस्था थी।

प्रश्न 8.
उन कारणों का वर्णन कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने उड़ीसा में इस्पात उद्योग स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा।
उत्तर:
इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महत्त्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था । उड़ीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा। उसने अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के इस्पात – निर्माताओं के साथ सहमति – पत्र पर हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 9.
सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रों का निर्माण एवं विस्तार से आशय है। भारी उद्योगों, कोयले तथा तेल की खोज तथा परमाणु ऊर्जा के विकास, अन्य महत्त्वपूर्ण उद्योगों के निर्माण एवं विस्तार का उत्तरदायित्व केन्द्रीय सरकार के पास होना तथा इसके लिए वित्तीय तथा मानव शक्ति संसाधन का प्रबन्ध सरकार द्वारा करना।

प्रश्न 10.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कोई दो समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की समस्याएँ हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में लालफीताशाही और नौकरशाही का बोलबाला है, जिस कारण से सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता निजी क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम है।
  2. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख समस्या प्रबन्ध व्यवस्था का कुशल न होना है।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार की समस्त आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियाँ शामिल की जाती हैं।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र आर्थिक असमानताओं को कम करके आर्थिक समानता की स्थापना का प्रयास करता है।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय नियन्त्रण होता है। इसमें एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 12.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की उत्पत्ति के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर:

  1. राज्य ने जनता के कल्याण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना की।
  2. बहु-उद्देश्यीय परियोजनाएँ सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत ही स्थापित की जा सकती हैं।
  3. समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को अपनाना अतिआवश्यक है।
  4. क्षेत्रीय आर्थिक असमानता सार्वजनिक क्षेत्र के उदय का महत्त्वपूर्ण कारण है।

प्रश्न 13.
दक्षिणपंथी विचारधारा क्या है?
उत्तर:
दक्षिणपंथी विचारधारा: इस विचारधारा में उन लोगों या दलों को सम्मिलित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है अर्थात् सरकार को अर्थव्यवस्था में गैरजरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए भूतपूर्व स्वतन्त्र पार्टी तथा वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को (विशेषकर 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद) दक्षिण पंथ की राजनीतिक पार्टियाँ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
वामपंथी विचारधारा क्या है?
उत्तर:
वामपंथी विचारधारा प्रायः वामपंथी विचारधारा में उन लोगों व राजनीतिक दलों को सम्मिलित किया जाता है जो साम्यवादी या समाजवादी, माओवादी, लेनिनवादी, नक्सलवादी, प्रजा समाजवादी, फॉरवर्ड ब्लॉक आदि दल स्वयं को इसी विचारधारा के पक्षधर एवं उस पर चलने के लिए कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनाते हैं। प्राय: ये गरीब एवं पिछड़े सामाजिक ‘समूह की तरफदारी करते हैं। वे इन्हीं वर्गों को लाभ पहुँचाने वाली सरकारी नीति का समर्थन करते हैं।

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प्रश्न 15.
पी. सी. महालनोबिस कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। इन्होंने सन् 1931 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी। वे दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार थे तथा तीव्र औद्योगीकरण तथा सार्वजनिक क्षेत्र की सक्रिय भूमिका के समर्थक थे ।

प्रश्न 16.
जे. पी. कुमारप्पा कौन थे?
उत्तर:
जे. पी. कुमारप्पा का जन्म 1892 में हुआ। इनका असली नाम जे. सी. कार्नेलियस था। इन्होंने अमेरिका में अर्थशास्त्र एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट की शिक्षा प्राप्त की। ये महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। आजादी के बाद उन्होंने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने का प्रयास किया। उनकी कृति ‘इकानॉमी ऑफ परमानैंस’ को बड़ी ख्याति मिली। योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी उनको ख्याति प्राप्त हुई।

प्रश्न 17.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हरित क्रान्ति: हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि की नई नीति अपनाने के कारण हुई है। जे. जी. हारर के अनुसार, ” हरित क्रान्ति शब्द 1968 में होने वाले उन आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।”

प्रश्न 18.
भारत में नियोजन की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
भारत में नियोजित विकास के कारणों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजन की आवश्यकता मुख्यतः अग्रलिखित कारणों से अनुभव की जाती है।

  1. नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  2. नियोजन द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की स्थापना की जा सकती है।
  3. देश में व्याप्त आर्थिक असंतुलन को समाप्त करने तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने व लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से नियोजन का अत्यधिक महत्त्व समझा गया।
  4. आर्थिक नियोजन का महत्त्व इस दृष्टि से भी था कि समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए।
  5. साधनों के उचित प्रयोग, वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग तथा राष्ट्रीय पूँजी का सही मात्रा में सदुपयोग की दृष्टि से भी नियोजन की अत्यधिक आवश्यकता थी ।

प्रश्न 19.
भारत में नियोजन के महत्त्व एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजन का महत्त्व एवं उपयोगिता – भारत में नियोजन के महत्त्व के सम्बन्ध में अग्रलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. नियोजन के अन्तर्गत आर्थिक विकास का दायित्व राज्य ग्रहण कर लेता है तथा एक सामूहिक गतिविधि के रूप में योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास का प्रारम्भ तथा उसका निर्देशन करता है।
  2. आधुनिक लोककल्याणकारी राज्य में आर्थिक संसाधनों के समानतापूर्ण वितरण में नियोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  3. नियोजन खुले बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में अस्थिरता की सम्भावनाओं को दूर करने में सहायक है।
  4. विदेशी व्यापार की दृष्टि से भी नियोजन उपयोगी है। नियोजन से विदेशी व्यापार को अपने देश के हितों की शर्तों पर किया जा सकता है।
  5. प्रभावी नियोजन द्वारा अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।

प्रश्न 20.
भारत में योजना आयोग की स्थापना किस प्रकार हुई? इसके कार्यों के दायरे का उल्लेख कीजिये।
अथवा
योजना आयोग के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना: योजना आयोग की स्थापना सन् 1950 में भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के द्वारा की। योजना आयोग एक सलाहकारी भूमिका निभाता रहा है। योजना आयोग के कार्य-योजना आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. देश के भौतिक संसाधनों और जनशक्ति का अनुमान लगाना तथा उन संसाधनों की वृद्धि की संभावनाओं का पता लगाना।
  2. देश के संसाधनों के सन्तुलित उपयोग के लिए प्रभावकारी योजना बनाना।
  3. योजना की क्रियान्विति के चरणों का निर्धारण तथा उनके लिए संसाधनों का नियमन करना।
  4. आर्थिक विकास में आने वाली बाधाओं की ओर संकेत करना तथा योजना की सफल क्रियान्विति के लिए उपयुक्त परिस्थिति निर्धारित करना।
  5. योजना की चरणवार प्रगति का अवलोकन करना तथा इस बारे में आवश्यक उपायों की सिफारिश करना।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय विकास परिषद् की रचना तथा उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय विकास परिषद् का संगठन: राष्ट्रीय विकास परिषद् के सदस्यों के रूप में निम्नलिखित व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है।
    1. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष होता है।
    2. योजना आयोग के सभी सदस्य।
    3. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का मुख्यमंत्री या उनका प्रतिनिधि।
  • परिषद् की बैठकों में उन मन्त्रियों को भी बुलाया जाता है, जिनके विभागों के सम्बन्ध में विचार किया जाना है। राष्ट्रीय विकास परिषद् के उद्देश्य
    1. योजना के समर्थन में राष्ट्र के साधनों तथा प्रयत्नों का उपयोग करना और उन्हें शक्तिशाली बनाना।
    2. सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सामान्य आर्थिक नीतियों की उन्नति करना।
    3. देश के सभी भागों का सन्तुलित विकास सुनिश्चित करना।

प्रश्न 22.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य बताइये।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के कार्य: राष्ट्रीय विकास परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
  2. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों सम्बन्धी विषयों पर विचार करना।
  3. राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना।
  4. राष्ट्रीय योजना के निर्माण के लिए तथा इसके साधनों के निर्धारण के लिए पथ-प्रदर्शक सूत्र निश्चित करना।
  5. योजना आयोग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय योजना पर विचार करना।
  6. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक तथा आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना।
  7. समय समय पर योजना के कार्यों की समीक्षा करना तथा राष्ट्रीय योजना में प्रतिपादित उद्देश्यों तथा कार्य लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करना।

प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति की आवश्यकता- 1960 के मध्य भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस काल में चीन तथा पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध, सूखा तथा अकाल, विदेशी मुद्रा संकट तथा खाद्यान्न के भारी संकट का सामना करना पड़ा। खाद्य संकट के कारण सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा। इन सबने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन परिस्थितियों से बाहर निकला जाए।

अतः भारतीय नीति-निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में कृषिगत पैदावार बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था।

प्रश्न 24.
“भारत में स्वतंत्रता से पूर्व ही नियोजन के पक्ष में कुछ उद्योगपति आ गए थे।” इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि भारत 1947 में आजाद हुआ था परंतु नियोजन के पक्ष में दो या ढाई वर्ष पूर्व ही बातें चलने लगी थीं। 1944 में उद्योगपतियों का एक तबका एकत्र हुआ इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ की संज्ञा दी गई। ‘बॉम्बे प्लान’ की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। इस तरह दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों की इच्छा थी कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चले। इस कारण भारत के स्वतंत्र होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने। भारत अपने विकास के लिए कौन सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा यह फैसला करने में इस संस्था ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा ।

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प्रश्न 25.
प्रथम पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य – प्रथम पंचवर्षीय योजना के निम्न उद्देश्य हैं।

  1. प्रथम योजना का सर्वप्रथम उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप देश में जो आर्थिक अव्यवस्था तथा असन्तुलन पैदा हो चुका था उसको ठीक करना था।
  2. दूसरा उद्देश्य देश में सर्वांगीण सन्तुलित विकास प्रारम्भ करना था।
  3. तीसरा उद्देश्य उत्पादन क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासम्भव कम करना था।
  4. प्रथम योजना का एक उद्देश्य मुद्रास्फीति के दबाव को भी कम करना था।
  5. यातायात के साधनों में वृद्धि करना।
  6. बड़े पैमाने पर सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था पर भी जोर दिया गया था।
  7. राज्यों में कुशल प्रशासकीय मशीनरी की व्यवस्था करना भी इस योजना का मुख्य उद्देश्य था।

प्रश्न 26.
नियोजित विकास के शुरुआती दौर का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर का मूल्यांकन निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

  1. भारत के आगामी आर्थिक विकास की बुनियाद इसी दौर में पड़ी।
  2. भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुईं। इसमें सिंचाई और बिजली  उत्पादन के लिए शुरू की गई। भाखड़ा नांगल और हीराकुंड जैसी विशाल बाँध परियोजनाएँ शामिल हैं।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग जैसे इस्पात संयंत्र, तेल शोधक कारखाने, विनिर्माता इकाइयाँ, रक्षा उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू हुए।
  4. इस दौर में परिवहन और संचार के आधारभूत ढाँचे में भी काफी वृद्धि हुई।

प्रश्न 27.
नियोजित विकास के शुरुआती दौर के समय भूमि सुधार के लिए किए गए प्रयास का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर में भूमि सुधार के गंभीर प्रयास हुए। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण और सफल प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। यह प्रथा अंग्रेजी शासन के समय से चली आ रही थी। इस प्रथा को समाप्त करने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इससे राजनीति पर दबदबा कायम रखने की जमींदारों की क्षमता भी घटी। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करने के प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके।

इस बात के लिए भी कानून बनाया गया कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी भूमि अपने नाम पर रख सकता है। हालाँकि यह कानून सफल नहीं हो पाया। काश्तकारों के लिए भी कानून बना कि जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। परंतु इस कानून पर शायद ही अमल हुआ।

प्रश्न 28.
पंचवर्षीय योजनाओं के चार प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य: पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. आर्थिक संवृद्धि: आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय निरंतर सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि है। लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए आर्थिक संवृद्धि (अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना) आवश्यक है।
  2. आधुनिकीकरण: उत्पादन में नई तकनीक का प्रयोग तथा सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन को आधुनिकीकरण कहते हैं। अतः आधुनिकीकरण लाना पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य है।
  3. आत्मनिर्भरता: आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं के आयात से बचना है जिनका उत्पादन देश के अन्दर किया जाता है। पंचवर्षीय योजनाओं में इसी उद्देश्य को पूर्ण करने का प्रयास किया गया है।
  4. न्याय या समानता: सम्पत्ति व आय की विषमता को कम कर प्रत्येक के लिए आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करना भी पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है।

प्रश्न 29.
हरित क्रांति के विषय में कौन-कौनसी आशंकाएँ थीं? क्या यह आशंकाएँ सच निकलीं?
उत्तर:
सामान्यतः हरित क्रान्ति के विषय में दो भ्रान्तियाँ थीं।

  1. हरित क्रान्ति से अमीरों तथा गरीबों में विषमता बढ़ जायेगी क्योंकि बड़े जमींदार ही इच्छित अनुदानों का क्रय कर सकेंगे और उन्हें ही हरित क्रांति का लाभ मिलेगा और वे और अधिक धनी हो जायेंगे। निर्धनों को हरित क्रान्ति से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा।
  2. उन्नत बीज वाली फसलों पर जीव-जन्तु आक्रमण करेंगे। दोनों भ्रांतियाँ सच नहीं हुईं क्योंकि सरकार ने छोटे किसानों को निम्न ब्याज दर पर ऋणों की व्यवस्था की और रासायनिक खादों पर आर्थिक सहायता दी ताकि वे उन्नत बीज तथा रासायनिक खाद सरलता से खरीद सकें और उनका उपयोग कर सके। जीव-जन्तुओं के आक्रमणों को भारत सरकार द्वारा स्थापित अनुसंधान संस्थाओं की सेवाओं द्वारा कम कर दिया गया।

प्रश्न 30.
मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ तथा विशेषताएँ बताइये
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ भारत ने विकास के लिए पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल दोनों ही मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया और अपने देश में उन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया । इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ।

  1. इसमें खेती, किसानी, व्यापार और उद्योगों का एक बड़ा भाग निजी क्षेत्र के हाथों में रहा।
  2. राज्य ने अपने हाथ में भारी उद्योग रखे और उसने आधारभूत ढाँचा प्रदान किया।
  3. राज्य ने व्यापार का नियमन किया तथा कृषि क्षेत्र में कुछ बड़े हस्तक्षेप किये।

प्रश्न 31.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की क्या-क्या आलोचनाएँ की गईं?
उत्तर:
भारत में अपनाये गये विकास के मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों खेमों ने आलोचनाएँ कीं। यथा

  1. योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है और न ही निजी क्षेत्र के बढ़वार के लिए कोई उपाय किया गया है।
  2. विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निहित स्वार्थों को खड़ा किया है और इन न्यस्त हितों ने निवेश के लिए लाइसेंस तथा परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी की राह में रोड़े अटकाए हैं।
  3. सरकार ने अपने नियंत्रण में जरूरत से ज्यादा चीजें रखीं। इससे भ्रष्टाचार और अकुशलता बढ़ी है।
  4. सरकार ने केवल उन्हीं क्षेत्रों में हस्तक्षेप किया जहाँ निजी क्षेत्र जाने को तैयार नहीं थे । इस तरह सरकार ने निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की।

प्रश्न 32.
योजना आयोग का गठन किन कारणों से किया गया था? क्या वह अपने गठन के उद्देश्य में सफल रहा?
उत्तर:
योजना आयोग का गठन:

  • भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च, 1950 को किया गया। इसका गठन निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया था।
    1. पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना,
    2. गरीबी का उन्मूलन करना,
    3. सामाजिक समानता की स्थापना करना,
    4. उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग करना,
    5. संतुलित क्षेत्रीय विकास करना तथा
    6. राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना। लेकिन योजना आयोग अपने गठन के उद्देश्यों में पूर्णतः सफल नहीं हुआ है।
  • वह अपने उद्देश्यों में आंशिक रूप से भी सफल हुआ है क्योंकि:
    1. बेरोजगारी की समस्या अभी भी बनी हुई है।
    2. देश में गरीबी विद्यमान है।
    3. गरीब और गरीब हुआ है तथा अमीर और अमीर बना है। अतः सामाजिक असमानता कम होने के स्थान पर बढ़ी है।
    4. देश में क्षेत्रीय विकास संतुलित न होकर असंतुलित हुआ है।

प्रश्न 33.
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हेतु सरकार द्वारा क्या प्रयास किये गये?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हेतु निम्नलिखित प्रयास किये गये।

  1. जमींदारी प्रथा की समाप्ति: भूमि सुधार सम्बन्धी सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। जमींदारी प्रथा को समाप्त करने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे कृषि में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
  2. चकबन्दी: जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक-साथ करने के प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके।
  3. जोत की अधिकतम सीमा का निर्धारण: भूमि सुधार हेतु इस बात के कानून बनाए गए कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी भूमि अपने पास रख सकता है। लेकिन जिनके पास सीमा से अधिक जमीन थी, उन्होंने इन कानून से बचने के रास्ते खोज लिये।
  4. बटाईदार/ किरायेदार काश्तकार को सुरक्षा: जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें भी ज्यादा कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई, लेकिन इस पर शायद ही कहीं अमल हुआ।

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प्रश्न 34.
उड़ीसा में किसका भंडार है? इससे संबंधित उद्योग लगाने पर आदिवासी, पर्यावरणविदों तथा केन्द्र सरकार को किस बात का भय था?
उत्तर:
उड़ीसा में लौह-अयस्क का भंडार है। लौह-अयस्क के ज्यादातर भंडार उड़ीसा के सर्वाधिक अविकसित. इलाकों में है। खासकर इस राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में। आदिवासियों को डर है अगर यहाँ उद्योग लग गए तो उन्हें अपने घर से बार-बार विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी। पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को भय है कि यदि उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।

प्रश्न 35.
योजना आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
योजना आयोग संविधान द्वारा स्थापित आयोग है, जो दूसरे निकायों से भिन्न है। योजना आयोग की स्थापना मार्च, 1950 में, भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिए की। यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मंत्रिमंडल उन्हें मंजूर करे।

प्रश्न 36.
आर्थिक नीति किसी समाज की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का अंग होती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर के समय भूमि सुधार के लिए कुछ नियम-कायदे बनाए गए। परंतु कृषि की बेहतरी और खेतिहर जनता की भलाई से जुड़ी इन नीतियों को ठीक और कारगर तरीके से अमल में ला पाना इतना आसान नहीं था। यह तभी संभव था जब ग्रामीण भूमिहीन जनता लामबंद हो परन्तु भू-स्वामी बहुत ताकतवर थे। इनका राजनीतिक रसूख भी होता था। इस वजह से भूमि सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या कानून बनने पर मात्र कागज की शोभा बढ़ाते रहे। इस प्रकार हमें यह पता चलता है कि आर्थिक नीति किसी समाज की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का अंग होती है।

प्रश्न 37.
श्वेत क्रांति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुजरात एक ‘आणंद’ नामक शहर है। सहकारी दूध उत्पादन का आंदोलन अमूल इसी शहर में कायम है। इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े हैं। ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के लिहाज से ‘अमूल’ अपने आप में एक अनूठा और कारगर मॉडल है। इसी मॉडल के विस्तार को श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 38.
‘ऑपरेशन फ्लड’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था। इसके अंतर्गत सहकारी दूध: उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। हालाँकि यह कार्यक्रम मात्र डेयरी – कार्यक्रम नहीं था। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम को विकास के एक माध्यम के रूप में अपनाया गया था ताकि ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों, उनकी आमदनी बढ़े और गरीबी दूर हो। इन कार्यक्रमों के कारण सहकारी दूध उत्पादकों की सदस्य संख्या लगातार बढ़ रही है। सदस्यों में महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। महिला सहकारी डेयरी के जमातों में भी इजाफा हुआ है।

प्रश्न 39.
हरित क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।
    1. हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ।
    2. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई।
    3. हरित क्रांति के कारण देश में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ और देश के अनेक हिस्सों में ये प्रभावशाली बनकर उभरे।
  • हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।
    1. समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ।
    2. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के लिहाज से पिछड़ गए।
    3. गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन का अर्थ बताइये तथा उसके उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।
अथवा
नियोजन से आप क्या समझते हैं? भारत में नियोजन के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय योजना आयोग ने नियोजन को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “नियोजन साधनों के संगठन की एक विधि है जिसके माध्यम से साधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। ” नियोजन के उद्देश्य
कराना। भारत में नियोजन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. पूर्ण रोजगार: भारत में बेरोजगारी की समस्या को दूर कर लोगों को पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध
  2. गरीबी का उन्मूलन: निर्धनता निवारण हेतु व्यक्ति की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति व जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराना।
  3. सामाजिक समानता की स्थापना करना: धन के समान वितरण द्वारा सामाजिक समानता की स्थापना करना।
  4. उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग: सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित करना।
  5. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास: विकास सम्बन्धी क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर कर सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करना।
  6. राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी करना: राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना।
  7. सामाजिक उद्देश्य: वर्ग रहित समाज की स्थापना करना।

इस प्रकार नियोजन आधुनिक युग की नूतन प्रवृत्ति है। इसके अभाव में राष्ट्र सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
भारत में नियोजन के विकास का प्रारम्भ किस प्रकार हुआ है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. भारत में नियोजन के विकास का प्रारम्भ: भारत में नियोजन के प्रारम्भ का विवेचन मोटे रूप से निम्नलिखित दो बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है। स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में नियोजन व विकास-

  1. भारत में पहली बार नियोजित विकास का विचार श्री एम. विश्वेश्वरैया ने सन् 1934 में अपनी पुस्तक ‘भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था’ में प्रतिपादित किया।
  2. सन् 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत में नियोजन व विकास के संदर्भ में एक समिति गठित की। इस समिति ने अनेक प्रस्तावों की रूपरेखा तैयार की।
  3. सन् 1944 में देश के प्रमुख उद्योगपतियों ने देश के आर्थिक विकास के लिए बम्बई योजना नामक एक योजना तैयार की तथा श्री एम. एन. राय ने भी एक दस वर्षीय योजना ‘जनता योजना’ तैयार की।
  4. अगस्त, 1944 में तत्कालीन भारत सरकार ने भारत के पुनर्निर्माण हेतु एक दीर्घावधि की तथा एक अल्पावधि की दो योजनाएँ तैयार कीं।
  5. सन् 1946 में गठित एक आयोग ने भारत के विकास के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक योजना आयोग के गठन का सुझाव दिया।

II. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में नियोजन व विकास तथा योजना आयोग की स्थापना: स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 15 मार्च, 1950 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग का गठन किया गया।

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प्रश्न 3.
पहले दो दशकों में भारत के नेताओं ने कौनसी रणनीति अपनाई और उन्होंने ऐसा क्यों किया? विकास की रणनीति
उत्तर:
भारत के योजना आयोग ने विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। इस योजना के अनुसार केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया। एक हिस्सा गैर योजना व्यय का था। इसके अन्तर्गत सालाना आधार पर दैनंदिन मदों पर खर्च करना था। दूसरा हिस्सा योजना- व्यय का था। योजना में तय की गई प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे पांच साल की अवधि में व्यय करना था।

  • प्रथम पंचवर्षीय योजना:
    1. इस योजना में ज्यादा जोर कृषि – क्षेत्र पर था। इसके अंतर्गत बांध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। क्योंकि विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी।
    2. इस योजना में भूमि सुधार पर भी जोर दिया गया।
    3. योजनाकारों का बुनियादी लक्ष्य राष्ट्रीय आय के स्तर को ऊँचा करने का था। यह तभी संभव था जब लोगों की बचत हो। इसलिए बचत को बढ़ावा देने की कोशिश की गई।
  • द्वितीय पंचवर्षीय योजना:
    1. इस योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया क्योंकि तेज गति से संरचनात्मक बदलाव का लक्ष्य रखा गया था।
    2. बिजली, रेलवे, इस्पात, मशीनरी, संचार आदि उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ाया गया।
    3. सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया।

प्रश्न 4.
भारत में प्रारंभिक विकास की रणनीतियों पर उठे किन्हीं दो मुद्दों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
प्रारंभिक दौर के विकास में जो रणनीतियाँ अपनाई गईं उन पर अनेक मुद्दे उठे उनमें से दो प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित थे।

  • कृषि बनाम उद्योग: इस संबंध में मुख्य मुद्दा यह उठा कि भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किसमें ज्यादा संसाधन लगाये जाने चाहिए। यथा-
    1. कुछ लोगों का कहना था कि दूसरी योजना में उद्योगों पर ज्यादा जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँची। इसलिए उन्होंने ग्रामीण औद्योगीकरण तथा कृषि पर बल दिया।
    2. कुछ का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किये बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता।
  • (2) निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र – भारत द्वारा विकास के लिये अपनायी गयी मिश्रित अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में निजी व सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी ये मुद्दे उठे।
    1. योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है और न ही निजी क्षेत्र के बढ़वार के लिए कोई उपाय किया गया है।
    2. विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निहित स्वार्थों के हितों के निवेश के लिए लाइसेंस तथा परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी की राह में रोड़े अटकाए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अकुशलता भी बढ़ी है।
    3. सरकार ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र की उपेक्षा की है तथा निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की है।

प्रश्न 5. भारत
में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका एवं महत्त्व का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका एवं महत्त्व: भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका व इसके महत्त्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. समाजवादी समाज की स्थापना: आर्थिक असमानता को कम करके समाजवादी समाज की स्थापना के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम महत्त्वपूर्ण हैं ।
  2. सन्तुलित आर्थिक विकास में सहायक: सार्वजनिक उद्यम पिछड़े क्षेत्रों के तीव्र विकास करने व पिछड़े तथा सम्पन्न राज्यों के बीच खाई को पाटने में सहायक हैं।
  3. सामरिक (सुरक्षा) उद्योगों के लिए महत्त्वपूर्ण: नागरिकों की सुरक्षा हेतु विश्वसनीय हथियारों का निर्माण निजी क्षेत्र को न सौंपकर सार्वजनिक क्षेत्र को सौंपना अधिक उपयोगी है।
  4. लोककल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कुछ मूलभूत जन उपयोगी सेवाएँ, जैसे पानी, बिजली, परिवहन, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा तथा कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र ही उपयोगी है।
  5. अर्थव्यवस्था पर नियन्त्रण: अर्थव्यवस्था को उतार-चढ़ावों से बचाने के लिए तथा इसको नियमित रखने के लिए सरकारी नियन्त्रण आवश्यक है।
  6.  विदेशी सहायता: विदेशी सहायता की प्राप्ति के लिए भी सार्वजनिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
  7. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा: सार्वजनिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का जनहित में विवेकपूर्ण ढंग से विदोहन संभव होता है
  8. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना: ये उद्योग बेरोजगारी को दूर करने में सहायता प्रदान करते हैं।
  9. निर्यात को प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र देश के निर्यात को बढ़ाने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ. है।
  10. सहायक उद्योगों का विकास: सार्वजनिक क्षेत्र ने सहायक उद्योगों के विकास में सहायता प्रदान की है।

प्रश्न 6.
देश की स्वतंत्रता के पश्चात् विकास के स्वरूप में और इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के बारे में किस सीमा तक टकराव था? क्या यह टकराव आज भी जारी है विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ। आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए जिससे सामाजिक समूह का हित सधे। इनमें से कोई भी फैसला बाकी फैसलों से मुँह फेरकर नहीं लिया जा सकता था। सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक मॉडल या विजन से बँधे हुए थे। लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक-सामाजिक न्याय दोनों ही हैं। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी, उद्योगपति और किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

सरकार को इस मसले में प्रमुख भूमिका निभानी थी। यद्यपि आर्थिक संवृद्धि हो और सामाजिक न्याय मिले इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन सी भूमिका निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजना बनाएं? क्या सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?

इनमें से प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी है। जो फैसले लिए गए उनके राजनीतिक परिणाम सामने आए। इनमें से अधिकतर मसलों पर राजनीतिक रूप से कोई फैसला लेना ही था और इसके लिए राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करना जरूरी था, साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करनी थी।

प्रश्न 7.
भारत में विकास की प्रारंभिक रणनीति की मुख्य उपलब्धियाँ क्या रहीं और इसकी सीमाएँ क्या थीं? विकास की रणनीति की उपलब्धियाँ नियोजित विकास की प्रारंभिक रणनीतियों की अग्र प्रमुख उपलब्धियाँ रहीं।
उत्तर:

  • आर्थिक विकास की नींव की स्थापना- विकास के इस दौर में भारत के आगामी आर्थिक विकास की नींव पड़ी। यथा
    1. भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुईं।
    2. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग, जैसे- इस्पात संयंत्र, तेल शोधक कारखाने, विनिर्माता इकाइयाँ, रक्षा- उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू हुए।
    3. इस दौर में परिवहन और संचार के आधारभूत ढाँचे में भी काफी इजाफा हुआ।
  • भूमि सुधार: इस अवधि में जमींदारी प्रथा की समाप्ति, चकबन्दी, अधिकतम भूमि सीमा का निर्धारण आदि भूमि सुधार के गंभीर प्रयास किये गये।
  • हरित क्रांति: सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनायी इसके अन्तर्गत समृद्ध तथा सिंचाई सुविधा क्षेत्र के किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराये तथा उनकी उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया। इसे हरित क्रांति कहा गया। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई तथा मझोले दर्जे के किसानों का उभार हुआ।

प्रारंभिक रणनीति की सीमाएँ: विकास की इस प्रारंभिक रणनीति की निम्नलिखित सीमाएँ रहीं।

  1. भूमि सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या उनका उचित क्रियान्वयन नहीं हो सका।
  2. हरित क्रांति के दौर में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ और गरीब किसानों बड़े भूस्वामियों के बीच का अन्तर बढ़ा।
  3. इससे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र ही समृद्ध हुए।

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प्रश्न 8.
हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों की परीक्षा कीजिए।
अथवा
हरित क्रांति क्या है? हरित क्रान्ति के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू बताइये।
अथवा
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? हरित क्रान्ति के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं? इसकी सफलता के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ- हरित क्रांति से अभिप्राय कृषिगत उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करने से है। इसके तीन तत्त्व थे।

  1. कृषि का निरन्तर विस्तार
  2. दोहरी फसल लेना तथा
  3. अच्छे बीजों का तथा आधुनिक कृषि पद्धति का प्रयोग।

हरित क्रान्ति के सकारात्मक प्रभाव
अथवा
हरित क्रान्ति की सफलता के विभिन्न पक्ष

  • भारत में हरित क्रान्ति के सकारात्मक परिणाम सामने आये, जो इस प्रकार हैं।
    1. उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई: हरित क्रान्ति के प्रभावस्वरूप कृषिगत उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई जिससे भारत गेहूँ आयात करने के स्थान पर निर्यात करने की स्थिति में आ गया।
    2. औद्योगिक विकास को बढ़ावा: इससे औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा मिला क्योंकि अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों के लिए उद्योग लगाए गए।
    3. बुनियादी ढाँचे का विकास: हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में बुनियादी ढाँचे में उत्साहजनक विकास देखने को मिला।
    4. जलविद्युत शक्ति को बढ़ावा: बाँधों द्वारा संचित किए गये पानी का जलविद्युत शक्ति के उत्पादन में प्रयोग किया गया।
    5. किसानों में संगठनात्मक एकता जागृत हुई- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारतीय किसानों में संगठनात्मक एकता जागृत हुई तथा किसानों में राजनैतिक चेतना आई।
  • हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव।
    1. हरित क्रांति ने निर्धन और छोटे किसानों तथा धनी जमीदारों के बीच की खाई को बहुत गहरा कर दिया।
    2. इससे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि से समृद्ध हो गये जबकि शेष इलाकों में कृषि पिछड़ी रही।

प्रश्न 9.
खाद्य संकट के बारे में विस्तारपूर्वकं लिखिए।
उत्तर:
1960 के दशक में कृषि की दशा बद से बदतर होती गई। 1940 और 1950 के दशक में ही खाद्यान्न के उत्पादन की वृद्धि दर, जनसंख्या की वृद्धि दर से जैसे-तैसे अपने को ऊपर रख पाई थी। 1965 से 1967 के बीच देश अनेक हिस्सों में सूखा पड़ा। इसी समय में भारत ने दो युद्धों का सामना किया और उसे विदेशी मुद्रा के संकट को भी झेलना पड़ा। इन सारी बातों के कारण खाद्यान्न की भारी कमी हो गई।

देश के अनेक भागों में अकाल जैसी स्थिति आन पड़ी। बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे ज्यादा विकराल था। यहाँ स्थिति लगभग अकाल जैसी हो गई थी। बिहार के सभी जिलों में खाद्यान्न का अभाव बड़े पैमाने पर था। इस राज्य के 9 जिलों में अनाज की पैदावार सामान्य स्थिति की तुलना में आधी से भी कम थी।

इनमें से पाँच जिले अपनी सामान्य पैदावार की तुलना में महज एक-तिहाई ही अनाज उपजा रहे थे। खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला और इसने गंभीर रूप धारण किया। 1967 में बिहार की मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34 प्रतिशत बढ़ गई थी। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न की कीमतें भी बढ़ीं। अपेक्षाकृत समृद्ध पंजाब की तुलना में गेहूँ और चावल बिहार में दो गुने अथवा उससे भी ज्यादा दामों में बिक रहे थे। सरकार ने उस वक्त ‘ज़ोनिंग’ या ‘इलाकाबंदी’ की नीति अपना रखी थी। इसी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार बंद था।

इस नीति के कारण उस वक्त बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी मात्रा में गिरावट आई। ऐसी दशा में समाज के सबसे गरीब तबके पर सबसे ज्यादा असर पड़ा। खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा और विदेशी मदद भी स्वीकार करनी पड़ी। अब योजनाकारों के सामने पहली प्राथमिकता यह थी कि किसी भी तरह खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर बने। पूरी योजना-प्रक्रिया और इससे जुड़ी आशा तथा गर्वबोध को इन बातों से धक्का लगा।

प्रश्न 10.
हरित क्रांति की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसके परिणाम लिखिए ।
उत्तर- खाद्यान्न संकट के कारण देश पर बाहरी दबाव पड़ने की आशंका बढ़ गई थी। भारत विदेशी खाद्य सहायता पर निर्भर होने लगा था, खासकर संयुक्त राज्य अमरीका के। संयुक्त राज्य अमरीका ने इसकी एवज में भारत पर अपनी आर्थिक नीतियों को बदलने के लिए दबाव डाला। सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे, सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की रणनीति अपनाई। परंतु कुछ समय पश्चात् इस नीति को छोड़ दिया गया।

सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद थी और जहाँ किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि जो पहले से ही सक्षम है वह कम समय में उत्पादन की रफ्तार को बढ़ाने में सहायक होंगे। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात का भी आश्वासन दिया कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदा जाएगा। यही परिघटना ‘हरित क्रांति’ के नाम से जानी गई।

हरित क्रांति के परिणाम: इस प्रक्रिया में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को अधिक फायदा हुआ। हरि क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई। यद्यपि इसके कारण समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे इलाकों के किसान समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़ गए।

हरि क्रांति के कारण गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई। हरित क्रांति की वजह से कृषि में मध्यम दर्जे के किसानों का उभार हुआ । इन्हें बदलावों का फायदा हुआ था और ये देश के अनेक हिस्सों में ताकतवर बनकर उभरे

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