JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board Class 11 Political Science भारतीय संविधान में अधिकार InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कौन-कौनसे मौलिक अधिकार प्रदान करता है?
उत्तर:
1978 में किये गये 44वें संविधान संशोधन के बाद से भारतीय संविधान निम्नलिखित छः मौलिक अधिकार प्रदान करता है।

  1. समता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
  5. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 2.
मूल अधिकारों को कैसे सुरक्षित किया जाता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में सूचीबद्ध मूल अधिकार वाद योग्य हैं। कोई व्यक्ति, निजी संगठन या सरकार के कार्यों से किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है या उन पर सरकार द्वारा अनुचित प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो वह व्यक्ति ऐसे कार्य के विरुद्ध वाद दायर कर सकता है। न्यायालय सरकार के ऐसे कार्य को अवैध घोषित कर सकती है या सरकार को आदेश व निर्देश दे सकती है।

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प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की क्या भूमिका रही है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यथा

  1. न्यायपालिका ने जब-जब उसके समक्ष मूल अधिकारों के अतिक्रमण के वाद नागरिकों के द्वारा दायर किये गये, न्यायपालिका ने तब-तब उनकी व्याख्या कर मूल अधिकारों के अतिक्रमण को रोका है।
  2. विधायिका या न्यायपालिका के किसी कार्य या निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है या उन पर अनुचित प्रतिबन्ध लगाया गया है तो न्यायपालिका ने उस कार्य या प्रतिबन्ध को अवैध घोषित कर मूल अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की है।

प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में अन्तर: मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, लेकिन राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  2. नीति-निर्देशक तत्त्व राज्य से सम्बन्धित हैं, जबकि मौलिक अधिकार नागरिकों से सम्बन्धित हैं।
  3. जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  4. मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, जबकि नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं।

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प्रश्न 5.
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तब क्या होता? यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले इंजीनियर होते तो क्या होता? क्या उनके साथ भी अधिकारों का इसी तरह से हनन होता?
उत्तर:
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तो वह अपने संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए न्यायालय में स्वस्थ होने के बाद ही जेल से मुक्त होने के लिये चुनौती देता और न्यायालय के निर्णय के अनुसार ही जेल की सजा काटता।
यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले इंजीनियर होते तो वह उनका शोषण करने में सक्षम नहीं होता और उनके साथ अधिकारों का इस तरह से हनन नहीं होता।

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प्रश्न 6.
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की तुलना दक्षिण अफ्रीका के संविधान में दिये गये अधिकारों के घोषणा-पत्र से करें। उन अधिकारों की एक सूची बनायें जो।
(क) दोनों संविधानों में पाये जाते हों।
(ख) दक्षिण अफ्रीका में हों पर भारत में नहीं।
(ग) दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिये गये हों पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं?
उत्तर:
(क) भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों के संविधानों में पाये जाने वाले अधिकार निम्नलिखित हैं।

  1. निजता का अधिकार अर्थात् स्वतन्त्रता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार।
  2. श्रम सम्बन्धी समुचित व्यवहार का अधिकार अर्थात् रोजगार में अवसर की समानता, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा कोई भी पेशा चुनने व व्यापार करने की स्वतन्त्रता।
  3. सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषायी समुदायों का अधिकार ( धार्मिक स्वतन्त्रता तथा शिक्षा और संस्कृति सम्बन्धी अधिकार)।

(ख) वे अधिकार जो दक्षिण अफ्रीका में हैं, लेकिन भारत के संविधान में नहीं हैं, ये हैं।

  1. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार
  2. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  3. बाल अधिकार
  4. बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार
  5. सूचना प्राप्त करने का अधिकार।

(ग) वे अधिकार जो दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिये गये हों, पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं, ये हैं।

  1. समुचित आवास का अधिकार
  2. गरिमा का अधिकार।

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार में उपर्युक्त दोनों अधिकारों को निहित माना है।

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प्रश्न 7.
आप एक न्यायाधीश हैं। आपको उड़ीसा के पुरी जिले के दलित समुदाय के एक सदस्य- हादिबन्धु – से एक पोस्टकार्ड मिलता है। उसमें लिखा है कि उसके समुदाय के पुरुषों ने उस प्रथा का पालन करने से इन्कार कर दिया जिसके अनुसार उन्हें उच्च जातियों के विवाहोत्सव में दूल्हे और सभी मेहमानों के पैर धोने पड़ते थे। इसके बदले उस समुदाय की चार महिलाओं को पीटा गया और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया गया। पोस्टकार्ड लिखने वाले के अनुसार, “हमारे बच्चे शिक्षित हैं और वे उच्च जातियों के पुरुषों के पैर धोने, विवाह में भोज के बाद जूठन हटाने और बर्तन मांजने का परम्परागत काम करने को तैयार नहीं हैं। यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही हैं, आपको निर्णय करना है कि क्या इस घटना में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है? आप इसमें सरकार को क्या करने का आदेश देंगे?
उत्तर:
यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही है। एक न्यायाधीश होने के नाते मैं एक निर्णय करूँगा कि इस घटना में ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ तथा कोई भी पेशा चुनने तथा व्यापार करने की स्वतन्त्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। अपने देश में करोड़ों लोग गरीब, दलित-शोषित और वंचित हैं या लोगों द्वारा उनका शोषण बेगार या बन्धुआ मजदूरी के रूप में किया जाता रहा है। ऐसे शोषणों पर संविधान प्रतिबन्ध लगाता है। इसे अपराध घोषित कर दिया गया है और यह शोषण कानून द्वारा दण्डनीय है।

अतः शोषण का विरोध करने पर उस समुदाय की चार महिलाओं को जिन व्यक्तियों ने निर्वस्त्र करके घुमाया, उन्हें मैं कानून सम्मत दण्ड निर्धारित करूँगा तथा सरकार को यह आदेश दूँगा कि समाज में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करें कि सभी लोग बिना किसी बाधा के स्वतन्त्रतापूर्वक अपने व्यवसाय का चुनाव कर सकें। जो व्यक्ति, समुदाय, संगठन इसमें बाधा डालता है, उसे रोके तथा दण्डित करे।

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प्रश्न 8.
कुछ ऐसे मामले भी हो सकते हैं जिनमें कानून एक आदमी की जिन्दगी ले सकता है? यह तो अजीब बात है। क्या आपको कोई ऐसा मामला याद आता है?
उत्तर:
कानून किसी भी आदमी की जिन्दगी नहीं ले सकता क्योंकि भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता के अधिकारों के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।’ किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना उसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अभिप्राय यह है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताये गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किये जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसन्दीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है।

इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घण्टे के अन्दर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे। मजिस्ट्रेट ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं। इस अधिकार के द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन को मनमाने ढंग से समाप्त करने के विरुद्ध गारण्टी मिलती है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी अन्तर्निहित माना है।

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प्रश्न 9.
क्या आप मानते हैं कि निम्न परिस्थितियाँ स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग करती हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।
(क) शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।
(ख) दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मनाही है । मन्दिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।
(ग) सैकड़ों आदिवासियों ने अपने परम्परागत अस्त्र तीर-कमान और कुल्हाड़ी के साथ सड़क जाम कर रखा है। ये माँग कर रहे हैं कि एक उद्योग के लिए अधिग्रहित खाली जमीन उन्हें लौटाई जाये।
(घ) किसी जाति की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गई कि जाति से बाहर विवाह करने के लिए एक नव दंपति को क्या दंड दिया जाए।
उत्तर:
(क) ‘शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।’ यह परिस्थिति स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती क्योंकि इसमें शान्तिपूर्वक ढंग से स्वतन्त्रता के अधिकार का उपयोग किया जा रहा है जिसका उद्देश्य साम्प्रदायिक दंगे फैलाना नहीं, बल्कि शान्तिमय वातावरण की स्थापना करना है।

(ख) ‘दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मनाही है। मन्दिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।’ यह परिस्थिति भी स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती क्योंकि समता के मूल अधिकार के अन्तर्गत सार्वजनिक स्थलों, जैसे दुकान, होटल, मनोरंजन स्थल, कुआँ, स्नान घाट और पूजा-स्थलों में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव वर्जित करता है। अतः दलितों को मन्दिर प्रवेश की मनाही इस मूल अधिकार का उल्लंघन है। इस मूल अधिकार के प्रयोग के लिए मन्दिर में जबरदस्ती प्रवेश का आयोजन करना अनुचित नहीं है। यह स्थिति भी स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती है। मन्दिर में जबरन प्रवेश का आयोजन किसी के स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन नहीं कर रहा है, बल्कि समता के अधिकार को व्यावहारिक बना रहा है।

(ग) आदिवासियों द्वारा अस्त्र-शस्त्र आदि के साथ एकत्रित होना बिना अस्त्र-शस्त्र के शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने के स्वतन्त्रता के अधिकार का अतिक्रमण है। अस्त्र-शस्त्र के साथ एकत्रित होने व सभा करने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध आवश्यक है।

(घ) जाति के बाहर विवाह करने के लिए एक नवदम्पति को दण्ड देने के लिए बुलाई गई जाति की पंचायत की बैठक स्वतन्त्रता के किसी अधिकार का अतिक्रमण नहीं है, बल्कि ‘विवाह कानून’ का उल्लंघन है। जाति की पंचायत को ऐसा दण्ड देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। फिर भी यदि वह दण्ड देने की कार्यवाही करती है तो उसे सामान्य कानून की प्रक्रिया के तहत रोका जा सकता है।

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प्रश्न 10.
मैं अपने मुहल्ले में तो अल्पसंख्यक हूँ पर शहर में बहुसंख्यक भाषा के हिसाब से तो अल्पसंख्यक हूँ लेकिन धर्म के लिहाज से मैं बहुसंख्यक हूँ। क्या हम सभी अल्पसंख्यक नहीं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वे किसी अन्य समूह से छोटा है। इस प्रकार किसी समुदाय को केवल धर्म के आधार पर ही नहीं बल्कि भाषा और संस्कृति के आधार पर भी अल्पसंख्यक माना जाता है। हम सभी अल्पसंख्यक नहीं हैं। चूँकि आप बहुसंख्यक धर्म वाले समुदाय के सदस्य हैं, लेकिन इस क्षेत्र की भाषा आपकी मातृभाषा नहीं है । इसलिए भाषा की दृष्टि से आप अल्पसंख्यक हैं।

दूसरे जिस क्षेत्र में आप निवास कर रहे हैं, उस क्षेत्र के बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय से भिन्न जो दूसरे धार्मिक समुदाय के लोग निवास करते हैं, चाहे वे बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य है, अल्पसंख्यक कहलायेंगे। तीसरे, उस क्षेत्र में ऐसे लोग जो बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय और बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य हैं, वे अल्पसंख्यक नहीं कहलायेंगे।

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प्रश्न 11.
ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। इनमें से 5 प्रतिशत लोगों के पास रात में सोने की जगह भी नहीं है। इनमें सैकड़ों बूढ़े और बीमार बेघर लोगों की जाड़े में शीतलहर से मृत्यु हो जाती है। उन्हें ‘निवास प्रमाण-पत्र’ न दे पाने के कारण रार्शन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र नहीं मिल पाते। इसके अभाव में उन्हें जरूरतमंद मरीज के रूप में सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती। इनमें एक बड़ी संख्या में लोग दिहाड़ी मजदूर हैं जिन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है। वे मजदूरी की तलाश में देश के विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं। आप इन तथ्यों के आधार पर ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’ के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भेजें। आपकी याचिका में निम्न दो बातों का उल्लेख होना चाहिए।
(क) इन बेघर लोगों के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है?
(ख) आप सर्वोच्च न्यायालय से किस प्रकार का आदेश देने की प्रार्थना करेंगे?
उत्तर:
सेवा में,

श्रीमान मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय, भारत

महोदय,
निवेदन है कि ” ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। …………….-वे मजदूरी की तलाश में विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं।”
(क) महोदय, उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि इन लोगों के ‘जीवन जीने’ के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि आपके न्यायालय द्वारा पूर्व में दिये गए एक निर्णय के अनुसार, इस अधिकार में शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार अन्तर्निहित है। इस प्रकार न्यायालय ने माना है कि जीवन के अधिकार का अर्थ है कि व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई जिन्दा नहीं रह सकता।

(ख) उपर्युक्त उद्धरण में दिये गए तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग आवास और मजदूरी के अभाव में सर्दी की शीतलहर में मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। सरकार इन लोगों के ‘गरिमापूर्ण जीवन जीने’ के अधिकार की ओर उदासीन है। अतः आप देश की सरकार को ऐसा आदेश या निर्देश दें कि ये लोग गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उपभोग कर सकें और भविष्य में ऐसे लोगों के बेघर होने तथा शोषण व बिना आजीविका के कारण शीतलहर में मृत्यु न हो सके।

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प्रश्न 12.
मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच सम्बन्धों पर उठे विवाद के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण था: मूल संविधान में सम्पत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण को मौलिक अधिकार दिया गया था। लेकिन संविधान में स्पष्ट कहा गया था कि सरकार लोक-कल्याण के लिए सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाये जिससे सम्पत्ति के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा। मौलिक अधिकारों और नीति- निर्देशक तत्त्वों के मध्य विवाद के केन्द्र में यही अधिकार था। आखिरकार 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को ‘संविधान के मूल ढाँचे’ का तत्त्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान का संशोधन करके इसे प्रतिबन्धित करने का अधिकार है। 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया और संविधान के अनुच्छेद 300 ( क ) के अन्तर्गत उसे एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया। आपकी राय में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से क्या फर्क पड़ता है?
उत्तर:
मेरी राय में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से यह फर्क पड़ता है कि अब सरकार कोई कानून बनाकर लोक-कल्याण के लिए जब किसी सम्पत्ति का अधिग्रहण करेगी तो उसका मालिक सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के हनन के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। अब उसे सम्पत्ति के सामान्य कानून के अन्तर्गत ही न्यायालय में वाद दायर करना होगा।

दूसरे, सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के होने पर सरकार को उसके लोकहित में अधिग्रहण करने पर उसके बाजार मूल्य की राशि का मुआवजा देना पड़ता था, अब सरकार कोई भी राशि उसके एवज में कानून के अन्तर्गत निर्धारित कर सकती है। तीसरे, सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के कारण ही नीति-निर्देशक तत्त्व और मूल अधिकारों के मध्य विवाद पैदा हुए। अब ऐसा कोई विवाद पैदा नहीं होगा।

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प्रश्न 13.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों के घोषणा पत्र और भारतीय संविधान में दिए नीति- निर्देशक तत्त्वों को पढ़ें। दोनों सूचियों में आपको कौनसी बातें एकसमान लगती हैं?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों को घोषणा-पत्र और भारतीय संविधान में दिये नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूचियों में निम्नलिखित बातें एकसमान लगती है।

  1. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण
  2. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा
  3. बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार।

प्रश्न 14.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में क्यों रखा? उत्तर-दक्षिण अफ्रीका का संविधान तब बनाया तथा लागू किया गया जब रंगभेद वाली सरकार के हटने के बाद दक्षिण अफ्रीका गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था। ऐसी स्थिति में नस्ल, लिंग, गर्भधारण, वैवाहिक स्थिति, जातीय या सामाजिक मूल, रंग, आयु, अपंगता, धर्म, अन्तरात्मा, आस्था, संस्कृति, भाषा और जन्म के आधार पर भेदभाव वर्जित करने के लिए नागरिकों को व्यापक अधिकार देना आवश्यक था। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में रखा।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत।
(क) अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
(ख) अधिकार-पत्र व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
(ग) विश्व के हर देश में अधिकार – पत्र होता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार
(ख) कानून द्वारा नागरिक को प्रदत्त समस्त अधिकार
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है। नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को दण्डित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था।
(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।
(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
(घ) आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम से विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है। पदोन्नति दी गई, लेकिन उन्हीं की साथी महिला सहकर्मियों को जिनका वजन बढ़ गया था, दण्डित किया गया। इस दशा में समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन हो रहा है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 16

  1. के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर की समानता होगी। अनुच्छेद 16
  2. के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, निवास के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा। लेकिन उपर्युक्त घटना में लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) ‘एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।’ इस स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का उपयोग हो रहा है। अनुच्छेद 19(i) के अनुसार सभी नागरिकों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।

(ग) ‘एक बड़े बांध के कारण विस्थापित लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
इस स्थिति में अनुच्छेद 19(ii) के नागरिकों को प्रदत्त शान्तिपूर्ण सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता का उपयोग हो रहा है।

(घ) ‘आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम से विद्यालय चलाती है।’
इस स्थिति में अल्पसंख्यकों के अधिकार का उपभोग हो रहा है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। इसी के आधार पर आन्ध्र सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू भाषा के विद्यालय चलाती है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे उस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।
(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।
(ग) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
(घ) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढ़ेंगे।
उत्तर:
उपर्युक्त चारों कथनों में (ग) ‘भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।’ यही सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है।

प्रश्न 5.
इनमें कौन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाना।
(ग) 9 बजे रात के बाद लाऊड स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(घ) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना: शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय में अपने एक निर्णय में इस बात को स्वीकार किया है कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना ‘बेगार’ या ‘बंधुआ मजदूरी’ जैसा है और नागरिकों को प्राप्त ‘शोषण के विरुद्ध’ मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना: इस उदाहरण में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है क्योंकि पुस्तक किसी एक व्यक्ति के या समूह के विचारों की अभिव्यक्ति है।

(ग) एवं

(घ) में किसी भी मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्त्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की जरूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाय। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताइए।
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। यदि मूल अधिकारों को समाप्त कर दिया जायेगा तो समानता, स्वतन्त्रता और शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति में अराजकता आ जायेगी। राजनैतिक स्वतन्त्रता और समानता के अभाव में आर्थिक समानता की स्थापना बाध्यकारी ढंग से करने पर नौकरशाही का बोलबाला हो जायेगा और वह निरंकुश हो जायेगी।

परिणामतः गरीब कार्यकर्त्ता को नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को लागू किये जाने का काम नहीं मिल पायेंगा। दूसरे, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों को बाध्यकारी बनाना संभव नहीं है। यदि इन सिद्धान्तों को बाध्यकारी बना दिया जाये तो उसके लिए व्यापक संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी जो कि एक दुष्कर कार्य है।

प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं, उन्हें अब भी मजबूरन यही काम करना पड़ रहा है। जो लोग अधिकार- पद पर बैठे हैं वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
उत्तर:
इस उदाहरण से अग्रलिखित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
1. स्वतन्त्रता का अधिकार:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतन्त्रता है। उक्त रिपोर्टों से यह पता चलता है कि आजीविका या पेशा चुनने की स्वतन्त्रता नहीं दी जा रही है । अतः उनके स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है।

2. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार:
उपर्युक्त रिपोर्टों में दी गई स्थिति में झाडू देने वाली जातियों के व्यक्तियों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का भी उल्लंघन हुआ है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 29 में यह स्पष्ट कहा गया है कि राज्य द्वारा घोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के भी आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा।

3. समानता का अधिकार:
उपरोक्त घटना में समानता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है। समानता के अधिकार के अनुसार भारत के राज्य-क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान समझा जायेगा। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। लेकिन उपरोक्त घटना में जाति के आधार पर भेदभाव किया गया है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भुखमरी की स्थिति की तरफ खींचा भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था। शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(क) इस मामले में कौन-कौनसे अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ख) क्या ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त उदाहरण के अन्तर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार तथा जीवन का अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार परस्पर जुड़े हुए हैं। भूख से मरने के कारण ‘जीवन के अधिकार’ का उल्लंघन हुआ। गोदामों में पाँच करोड़ टन अनाज होते हुए भी सरकार ने वितरण व्यवस्था ठीक नहीं की और मानव अधिकार समूह द्वारा न्यायालय से यह प्रार्थना की गई कि सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के आदेश दे। इस प्रकार इसमें संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है।

(ख) ये अधिकार यद्यपि अलग-अलग मूल अधिकार हैं तथापि ये इस मामले में ‘जीवन के अधिकार’ के भाग हैं।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धृत सोमनाथ लाहिडी द्वारा संविधान सभा में दिये गये वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि ‘हाँ’ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि ‘नहीं’ तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिडी द्वारा संविधान सभा में दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है: “मैं समझता हूँ कि इनमें से अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है। आप देखेंगे कि काफी कम अधिकार दिये गये हैं और प्रत्येक अधिकार के बाद एक उपबन्ध जोड़ा गया है। लगभग प्रत्येक अनुच्छेद के बाद एक उपबन्ध है जो उस अधिकार को पूरी तरह से वापस ले लेता है। मौलिक अधिकारों की हमारी क्या अवधारणा होनी चाहिए? हम उस प्रत्येक अधिकार को संविधान में पाना चाहते हैं जो हमारी जनता चाहती हैं। ” मैं इस कथन से सहमत हूँ क्योंकि।

1. हमारे संविधान में मौलिक अधिकार कम दिये गये हैं। बहुत-सी ऐसी बातों को छोड़ दिया गया है जो मौलिक अधिकारों में शामिल होनी चाहिए थीं। जैसे काम करने का अधिकार, निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, आवास का अधिकार, सूचना प्राप्त करने का अधिकार आदि।

2. प्रत्येक मौलिक अधिकार के साथ अनेक प्रतिबन्ध लगा दिये गए हैं जिससे यह समझना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को मौलिक अधिकारों से क्या मिला है। भारतीय संविधान इस प्रकार एक हाथ से नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है और दूसरे हाथ से वह उनसे उन मौलिक अधिकारों को छीन लेता है।

3. प्रत्येक मौलिक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाने से यह स्पष्ट होता है कि ये अधिकार पुलिस के सिपाही के दृष्टिकोण से दिये गये हैं। हरिविष्णु कामथ ने भी संविधान सभा में कहा था कि “इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।” इसी प्रकार सरदार हुकुमसिंह ने कहा था कि “यदि हम इन स्वतन्त्रताओं को व्यवस्थापिका की इच्छा पर ही छोड़ देते हैं जो कि एक राजनीतिक दल के अलावा कुछ नहीं है, तो इन स्वतन्त्रताओं के अस्तित्व में भी सन्देह हो जायेगा ।” उदाहरण के लिए ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ पर कानून व्यवस्था, शान्ति और नैतिकता के आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। प्रशासन इस शक्ति का आसानी से दुरुपयोग कर सकता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौनसा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
44वें संविधान द्वारा 1979 में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल देने के पश्चात् भारतीय संविधान में नागरिकों को छः मूल अधिकार दिये गये हैं। ये हैं।

  1. समता का अधिकार,
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार,
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
  5. शिक्षा तथा सम्पत्ति का अधिकार और
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार। यद्यपि ये सभी अधिकार महत्त्वपूर्ण हैं, तथापि इनमें ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार या उल्लंघनकर्त्ता को आदेश या निर्देश दे सकते हैं। ये न्यायालय इस हेतु बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, अधिकार पृच्छा या उत्प्रेषण लेख जारी कर सकते हैं। यह मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में दिये अन्य मौलिक अधिकारों से निम्नलिखित कारणों से अधिक महत्त्वपूर्ण है-

  1. संवैधानिक उपचार के मौलिक अधिकार के माध्यम से ही न्यायालय ऐसे मामलों में त्वरित कार्यवाही करता है ताकि एक क्षण के लिए भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो सके।
  2. संवैधानिक उपचार के मौलिक अधिकार के माध्यम से ही मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सकता है तथा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा की जा सकती है। डॉ. अम्बेडकर ने इसीलिए इस अधिकार को ‘संविधान का हृदय’ और ‘आत्मा’ की संज्ञा दी है। इस अधिकार के बिना सभी मूलकार अव्यावहारिक हो जायेंगे।

भारतीय संविधान में अधिकार JAC Class 11 Political Science Notes

→ परिचय: भारत के संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है; उसमें प्रत्येक मौलिक अधिकार के प्रयोग की सीमा का भी उल्लेख है।

→ अधिकारों का घोषणा-पत्र: अधिकतर लोकतान्त्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया जाता है। संविधान द्वारा प्रदान किये गये और संरक्षित अधिकारों की ऐसी सूची को ‘अधिकारों का घोषणा- पत्र’ कहते हैं। अधिकारों का घोषणा-पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध काम करने से रोकता है और उसका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है। संविधान नागरिकों के अधिकारों को अन्य व्यक्ति या नागरिकों, निजी संगठन तथा सरकार की विभिन्न संस्थाओं से संरक्षित करता है।

→ भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार।

  • मौलिक अधिकार से आशय – संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें सुरक्षा देनी थी और इन अधिकारों को मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गई है। उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाये गये हैं। वे इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि संविधान स्वयं यह सुनिश्चित करता है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके।
  • मौलिक अधिकार अन्य अधिकारों से भिन्न हैं।
    • कानूनी अधिकारों की सुरक्षा हेतु जहाँ साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है, वहाँ मौलिक अधिकारों की गारण्टी व सुरक्षा संविधान स्वयं करता है।
    • सामान्ये अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है, लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान संशोधन आवश्यक है।
    • सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है।
    • मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार नहीं हैं। सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर ‘औचित्यपूर्ण’ प्रतिबन्ध लगा सकती है।

→ भारतीय संविधान में प्रदत्त प्रमुख मौलिक अधिकार; भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित प्रमुख मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। समता का अधिकार: समता के अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • कानून के समक्ष समानता
  • कानून का समान संरक्षण
  • धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध दुकानों, होटलों, कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों आदि में प्रवेश की समानता
  • रोजगार में अवसर की समानता
  • उपाधियों का अन्त
  • छुआछूत की समाप्ति।

→ स्वतन्त्रता का अधिकार:
(क) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इस अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित स्वतन्त्रताओं का समावेश किया गया है।

  • भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
  • शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतन्त्रता,
  • संगठित होने की स्वतन्त्रता,
  • भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता,
  • भारत के किसी भी हिस्से में बसने और रहने की स्वतन्त्रता,
  • कोई भी पेशा चुनने, व्यापार करने की स्वतन्त्रता,

(ख) अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण;
(ग) जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार;
(घ) शिक्षा का अधिकार तथा
(ङ) अभियुक्तों और सजा पांए लोगों के अधिकार।

→ शोषण के विरुद्ध अधिकार: इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • मानव के दुर्व्यापार और बंधुआ मजदूरी पर रोक,
  • 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों को जोखिम वाले कामों में मजदूरी कराने पर रोक। बाल-श्रम को अवैध बनाकर और शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाकर शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार को और अर्थपूर्ण बनाया गया है।

→ धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार: सके अन्तर्गत इन बातों का समावेश किया गया है।

  • आस्था और प्रार्थना की आजादी,
  • धार्मिक मामलों के प्रबन्धन,
  •  किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता,
  • कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता,
  • सभी धर्मों की समानता।

→ सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार: इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें समाहित हैं।

  1. अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
  2. अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार।

→ संवैधानिक उपचारों का अधिकार: इसके तहत मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय में जाने का अधिकार आता है। न्यायालय बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध आदेश, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख के माध्यम से मूल अधिकारों की रक्षा करता है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व: नीति-निर्देशक तत्त्व से आशय संविधान के भाग चार में नीतियों की एक निर्देशक सूची रखी गयी है। निर्देशों की इस सूची को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व कहते हैं। नीति-निर्देशक तत्त्व ‘वाद  योग्य’ नहीं हैं। नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में तीन प्रमुख बातें हैं।

  • वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
  • वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।
  • वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए।

समय-समय पर सरकार ने कुछ नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास किया है।

→  नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्य: राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्य ये हैं।

  • लोगों का कल्याण; सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय।
  • जीवन स्तर ऊँचा उठाना; संसाधनों का समान वितरण।
  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देना।

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→ प्रमुख नीतियाँ:

  • समान नागरिक संहिता,
  • मद्यपान निषेध,
  • घरेलू उद्योगों को बढ़ावा,
  • उपयोगी पशुओं को मारने पर रोक,
  • ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहन।

→ ऐसे अधिकार जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता:

  • पर्याप्त जीवन-यापन,
  • महिलाओं और पुरुषों को समान काम की समान मजदूरी,
  • आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  • काम का अधिकार तथा
  • छः वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा।

→ नीति-निर्देशक तत्त्वों और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध: मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। यथा

  • जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  • मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, पर नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं। लेकिन कभी-कभी जब सरकार नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा सकते हैं।

→ नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य: 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों की एक सूची का समावेश किया गया है जिसमें कुल 10 कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया है। लेकिन इन्हें लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है।

→ प्रमुख कर्त्तव्यु: संविधान में वर्णित नागरिकों के प्रमुख कर्त्तव्य हैं। संविधान का पालन करना, देश की रक्षा करना, सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना तथा पर्यावरण की रक्षा करना। संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे?

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे? Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे?

Jharkhand Board Class 11 Political Science संविधान – क्यों और कैसे? InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
संविधान किस्से कहते हैं? या संविधान क्या है?
उत्तर:
संविधान एक लिखित या अलिखित दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है जिसमें राज्य सम्बन्धी प्रावधान यह बताते हैं कि राज्य का गठन कै से होगा और वह किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।

प्रश्न 2.
संविधान समाज को क्या देता है?
उत्तर:
संविधान समाज में तालमेल बिठाता है।, सरकार का निर्माण करता है, सरकार की सीमाएँ बताता है तथा समाज की आकांक्षाओं और लक्ष् यों को बताता है। यथा

  1. संविधान समाज में तालमेल बिठाता है: संविधान समाज में तालमेल बिठाता है। यह समाज में बुनियादी नियमों को प्रस्तुत कर रता है तथा उन्हें लागू कराता है ताकि समाज के सदस्यों में न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे।
  2. यह शक्ति का वित रण स्पष्ट करता है: यह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है तथा यह स्पष्ट करता है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी तथा सरकार कैसे निर्मित होगी।
  3. सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ: संविधान सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की सीमाएँ तय करता है । इसी सन्दर्भ में वह नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  4. समाज की आकांक्षाएँ और लक्ष्य: संविधान सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करता है जिससे वह समाज की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके।

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प्रश्न 3.
संविधान समाज में शक्ति का बंटवारा कैसे करता है?
उत्तर:
संविधान समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है। संविधान यह तय करता है कि कानून कौन बनायेगा। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि अधिकतर कानून संसद और राज्य विधानमण्डल बनायेंगे। संसद और राज्य विधानमण्डलों को कानून निर्माण का अधिकार संविधान प्रदान करता है। इसी प्रकार संविधान सरकार की अन्य संस्थाओं को भी शक्ति जैसे कार्यपालिका को कानूनों के क्रियान्वयन और न्यायपालिका को कानूनों को लागू करने की शक्ति प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
भारत का संविधान कैसे बनाया गया?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 मास 18 दिन की अवधि में 166 दिनों तक बैठकें कर 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया। संविधान सभा की संविधान निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार रही

  1. सार्वजनिक हित: संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श कर निर्णय लिया।
  2. सार्वजनिक विवेकयुक्त कार्यविधि: विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियाँ थीं। प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गयी । प्रायः प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिये गये।
  3. राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत को मूर्त रूप देना: संविधान सभा ने उन सिद्धान्तों को मूर्त रूप आकार दिया जो उसके सदस्यों ने राष्ट्रीय आन्दोलन से विरासत में प्राप्त किये थे। इन सिद्धान्तों का सारांश नेहरू द्वारा 1946 में प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में मिलता है। इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संप्रभुता को संस्थागत रूप दिया गया।
  4. संस्थागत व्यवस्थाएँ: संविधान सभा ने सरकार को जनकल्याण तथा लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध रखने हेतु शासन . के तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन – किया। परिणामस्वरूप संविधान सभा ने संसदीय व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया।
  5. विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों को ग्रहण करना: संविधान सभा ने शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों व संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारतीय समस्याओं व परिस्थितियों के अनुरूप ढालकर अपना बना लिया।

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प्रश्न 5.
(ख) संविधान कितना प्रभावी है?
उत्तर:
संविधान कितना प्रभावी है? इस बात का निर्धारण इस बात के निर्धारण से किया जाता है कि कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया? किसने संविधान बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी?
यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाये जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान कम प्रभावी या निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद आंदोलन के लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है, ऐसा संविधान प्रभावशाली होता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि जिस संविधान निर्मात्री सभा के सदस्यों में जितनी अधिक लोकप्रियता, जनहित की भावना और समाज के सभी वर्गों को साथ ले चलने की क्षमता होगी संविधान उतना ही अधिक प्रभावी होगा। विश्व के सर्वाधिक सफल व प्रभावी संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया है।

(ग) क्या संविधान न्यायपूर्ण है?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण संविधान, संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है। एक न्यायपूर्ण संविधान वह है जो लोगों को यह विश्वास दिला सके कि वह बुनियादी न्याय को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त ढाँचा उपलब्ध कराता है।

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प्रश्न 6.
नीचे भारतीय और अन्य संविधानों के कुछ प्रावधान दिये गये हैं। बताएँ कि इनमें प्रत्येक प्रावधान का क्या कार्य है?
(क) सरकार किसी भी नागरिक को किसी धर्म का पालन करने या न करने की आज्ञा नहीं दे सकती।
(ख) सरकार को आय और सम्पत्ति की असमानताएँ कम करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
(ग) राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को नियुक्त करने की शक्ति है।
(घ) संविधान वह सर्वोच्च कानून है जिसका सभी को पालन करना पड़ता है।
(ङ) भारतीय नागरिकता किसी खास नस्ल, जाति या धर्म तक सीमित नहीं है।
उत्तर:
(क) सरकार की शक्ति पर सीमा
(ख) समाज की आकांक्षा व लक्ष्य
(ग) निर्णय लेने की शक्ति की विशिष्टता
(घ) संविधान बुनियादी तालमेल बिठाता है।
(ङ) राष्ट्र की बुनियादी पहचान (राष्ट्रीय पहचान)।

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प्रश्न 7.
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे क्या करते हैं?
उत्तर:
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे संविधान के प्रावधानों का आदर नहीं करते। ऐसे संविधान को जनता से निष्ठा मिलनी बंद हो जाती है।

प्रश्न 8.
ऐसे लोगों का क्या होता है जिनका संविधान केवल कागज पर ही होता है?
उत्तर:
ऐसे लोगों को बुनियादी न्याय प्राप्त करने का ढाँचा उपलब्ध नहीं हो पाता।

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प्रश्न 9.
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो क्या होता? क्या वह उस संविधान सभा से भिन्न होती जो बनाई गई?
उत्तर:
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो भी संविधान सभा का रूप यही होता क्योंकि इस संविधान सभा में राष्ट्र के सभी प्रमुख नेता तथा समाज के सभी वर्गों के नेता व प्रबुद्ध लोग सम्मिलित थे। इसका प्रमाण यह है कि संविधान निर्माण के बाद हुए प्रथम आम चुनाव में संविधान सभा के लगभग सभी सदस्य निर्वाचित हो गये थे।

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प्रश्न 10.
यदि हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती तो क्या होता? हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता तो क्या होता? क्या तब बनाया गया संविधान हमारे वर्तमान संविधान से भिन्न होता?
उत्तर:
चाहे हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती, चाहे हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता; यदि स्वतंत्रता के समय विभाजन की परिस्थितियाँ इसी तरह की होतीं, तो हमारा संविधान वर्तमान संविधान से भिन्न नहीं होता क्योंकि हमारे संविधान निर्माता, उनकी लोकप्रियता तथा सार्वजनिक हित की दृष्टि यही होती।

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प्रश्न 11.
क्या यह संविधान उधार का था?
उत्तर:
नहीं, भारत का संविधान उधार का नहीं था । इसमें दूसरे संविधानों के जिन प्रावधानों को ग्रहण किया गया था, उन्हें देश की समस्याओं व परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित कर अपनाया गया था।

प्रश्न 12.
हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो?
उत्तर:
विश्व इतिहास के इस पड़ाव पर बनाये गये संविधान में पूर्णतः नवीन ढांचे को नहीं अपनाया जा सकता। संविधान में यदि कुछ नया हो सकता है तो वह यह है कि उसमें उधार लिए गए प्रावधानों में कुछ ऐसे परिवर्तन किये जाएं जो असफलताओं को दूर कर देश की आवश्यकताओं के अनुरूप बन सकें। भारत के संविधान निर्माताओं ने यह बखूबी किया है।

Jharkhand Board Class 11 Political Science संविधान – क्यों और कैसे? Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें कौनसा संविधान का कार्य नहीं है?
(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारंटी देता है।
(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन करता है।
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आयें।
(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।
उत्तर:
(ग) यह सुनिश्चित करता हैं कि सत्ता में अच्छे लोग आयें.

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की एक बेहतर दलील है कि संविधान की प्रामाणिकता संसद से ज्यादा है?
(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।
(ख) संविधान के निर्माता संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौनसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(घ) संसद, संविधान का संशोधन नहीं कर सकती।
उत्तर:
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौनसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।

प्रश्न 3.
बतायें कि संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या लत?
(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
(ख) संविधान सिर्फ लोकतांत्रिक देशों में होता है और उसकी जरूरत ऐसेही देशों में होती है।
(ग) संविधान एक कानूनी दस्तावेज है और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका नेई सरोकार नहीं।
(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य।

प्रश्न 4.
बतायें कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित नुमान सही हैं या नहीं? अपने उत्तर का कारण बतायें।
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निश्चन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्यंके उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा गरे देशों से लिया गया है।
उत्तर:
(क) यद्यपि यह बात सत्य है कि संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे, तथापि उसे अधिक से अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने का प्रयास शि गया था। विभाजन के बाद संविधान सभा में कांग्रेस का वर्चस्व था। लेकिन कांग्रेस स्वयं विविधताओं से भरी हुई ऐसी पार्टी थी जिसमें लगभग सभी विचारधाराओं की नुमाइंदगी थी। इसमें सभी धर्म के सदस्यों को समुचित प्रनिधित्व दिया गया था। इसके अतिरिक्त संविधान सभा में अनुसूचित वर्गों के भी 26 सदस्य थे। अतः यह कह गलत होगा कि संविधान सभा भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं करती थी।

(ख) यह बात भी असत्य है कि संविधान सभा के सदस्यों के बीच संविधकी बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी इसलिए संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं संविधान सभा के बड़े नेताओं के विचार हर बात पर एक-दूसरे के समान थे। डॉ. अम्बेडकर कांग्रेस और गांधी के कटु आलोचक थे। पटेल और नेहरू अनेक मुद्दों पर एक-दूसरे से असहम्। वास्तव में संविधान का केवल एक ही प्रावधान ऐसा है जो बिना किसी वाद-विवाद के पारित हुआ। यह प्रावधान भौमिक मताधिकार का था। इसके अतिरिक्त प्रत्येक विषय पर गंभीर विचार-विमर्श और वाद-विवाद हुए।

(ग) यह कहना गलत है कि संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि का अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है। वास्तव में हमारे संविधान निर्माताओं ने अन्य देशों की संवैधानिक पाओं से कुछ ग्रहण करने में परहेज नहीं किया। उन्होंने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ सीखने में संकनेहीं किया। परन्तु उन प्रावधानों व परम्पराओं को ग्रहण करने में कोरी अनुकरण की मानसिकता नहीं थी, बल्कि ने संविधान के प्रत्येक प्रावधान को भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप ग्रहण किया और उन्हें अपना बनाग।

भारत का संविधान एक विशाल तथा जटिल दस्तावेज है। इसकी मौलिकता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा ता। संजीव पास बुक्स की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण कर दिया जाता है जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक सीमा कहलाती है।

नागरिकों को सामान्यतः कुछ मौलिक स्वतंत्रताओं का अधिकार है, जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, अंतर्रात्मा की आवाज पर काम करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि। व्यवहार में इन अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का उल्लेख भी करता है जिसमें इन अधिकारों को वापिस लिया जा सकता है।

II. नागरिकों के अधिकारविहीन संविधान की संभावना-संसार का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ, तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं और वे नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधायें प्रदान की जाती हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे?

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें।
(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। उनके लिए जनता के मन में आदर था।
(ख) संविधान ने शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है।
उत्तर:
(क) संविधान का निर्माण उस संविधान सभा ने किया जो विश्वसनीय नेताओं से बनी थी क्योंकि

  1. इन सभी नेताओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था। वे राष्ट्रीय आन्दोलन के लोकप्रिय नेता थे।
  2. संविधान निर्माण के सदस्य भारतीय समाज के सभी अंगों, वर्गों, जातियों; समुदायों और धर्मों के प्रतिनिधि सदस्य थे। भारतीय जनता के मन में उनके प्रति आदर था क्योंकि राष्ट्रीय आन्दोलन में उठने वाली सभी मांगों को संविधान बनाते समय उन्होंने ध्यान में रखा तथा उन्होंने पूरे देश व समाज के हित को ध्यान में रखकर ही विचार-विमर्श किया।

(ख) संविधान ने शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया कि उसमें उलट-फेर मुश्किल है। कोई समूह संविधान को नष्ट नहीं कर सकता है। किसी एक संस्था का सारी शक्तियों पर एकाधिकार नहीं है। संविधान ने शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि में बांट दिया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेंगी। अवरोध और संतुलन का भारतीय संविधान में कुशल प्रयोग किया गया है।

(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है। संविधान न्यायपूर्ण है। भारत के संविधान में न्याय के बुनियादी सिद्धान्तों का विशेष ध्यान दिया गया है। भारतीय संविधान सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करता है जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके और जिन्हें कानून की मदद से लागू किया जा सके। हमारे संविधान में प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक तत्व सरकार वयस्क मताधिकार तथा आरक्षण के प्रावधान आदि के द्वारा लोगों की आशा और आकांक्षाओं को पूरा करने की अपेक्षा की गई है।

प्रश्न 6.
किसी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो तो क्या होगा?
उत्तर:
I. संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों के निर्धारण की आवश्यकता – किसी भी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि

  1. जब कोई एक समूह या संस्था अपनी शक्तियों को बढ़ा लेती है तो वह पूरे संविधान को नष्ट कर सकती है। इस समस्या से बचने के लिए यह आवश्यक है कि संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का निर्धारण साफ-साफ इस तरह से किया जाये कि कोई भी संस्था या समूह संविधान को नष्ट न कर सके।
  2. संविधान की रूपरेखा इस प्रकार से तैयार की जाये कि कोई एक संस्था एकाधिकार प्राप्त न कर सके। ऐसा करने के लिए शक्तियों का विभाजन विभिन्न संस्थाओं में किया जाये। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में समान स्तर पर शक्तियों का वितरण कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य तथा कुछ स्वतन्त्र संवैधानिक निकायों जैसे निर्वाचन आयोग आदि में किया गया है।
  3. इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यदि कोई संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में इसी उद्देश्य से अवरोध व संतुलन के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

II. निर्धारण के अभाव में क्या होगा: यदि संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण नहीं होगा तो कोई एक संस्था या सरकार का कोई अंग अपनी शक्तियों को बढ़ाकर दूसरी संस्थाओं की शक्तियों का अतिक्रमण कर लेगा और इस प्रकार सरकार की समस्त शक्तियों पर एकाधिकार कर संविधान को नष्ट कर सकता है। ऐसा होने पर सरकार निरंकुश हो जायेगी और नागरिकों की स्वतंत्रता नष्ट हो जायेगी।

प्रश्न 7.
शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए क्यों जरूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे?
उत्तर:
I. शासकों की सीमा के निर्धारण की आवश्यकता: संविधान का एक प्रमुख कार्य यह भी है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की कोई सीमा तय करे। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। यदि संविधान द्वारा शासकों पर ऐसी सीमाएँ निर्धारित नहीं की जाती हैं तो सरकार निरंकुश होकर नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन कर सकती है और शासन की शक्ति पर एकाधिकार कर संविधान को ही नष्ट कर सकती है। इसलिए नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा हेतु संविधान सरकार की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण कर दिया जाता है जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती।

नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक सीमा कहलाती है। नागरिकों को सामान्यतः कुछ मौलिक स्वतंत्रताओं का अधिकार है, जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, अंतर्रात्मा की आवाज पर काम करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि । व्यवहार में इन अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का उल्लेख भी करता है जिसमें इन अधिकारों को वापिस लिया जा सकता है।

II. नागरिकों के अधिकारविहीन संविधान की संभावना-संसार का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ, तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं और वे नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधायें प्रदान की जाती हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे?

प्रश्न 8.
जब जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असंभव था, जो अमेरिकी सेना को पसंद न हो क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है ? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर:
संविधान वह लिखित दस्तावेज होता है जिसमें राज्य के विषय में कई प्रावधान होते हैं जो यह बताते हैं कि राज्य किन सिद्धान्तों का पालन करेगा। राज्य की सरकार किस विचारधारा पर आधारित नियमों एवं सिद्धान्तों के द्वारा शासन चलायेगी। जब किसी राज्य पर दूसरे राज्य का आधिपत्य हो जाता है तो उस राज्य के संविधान में शासकों की इच्छाओं के विपरीत कोई प्रावधान नहीं रखे जा सकते। अतः यह स्वाभाविक ही है कि जब जापान का संविधान बना उस समय जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था।

अतः यह स्वाभाविक ही है कि संविधान में कोई ऐसा प्रावधान नहीं रखा गया जो अमेरिकी सेना को पसन्द न हो। अतः जापान के उस संविधान में अमेरिकी शासकों के हितों का विशेष ध्यान रखा जाना स्वाभाविक था। भारत का संविधान बनाते समय कोई ऐसी बात नहीं थी। भारत में जब संविधान बना उस समय भारत एक स्वतंत्र तथा संप्रभु राष्ट्र था। भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से गठित संविधान सभा ने बनाया था। इसमें देश के राष्ट्रीय आंदोलन के लगभग सभी नेता सम्मिलित थे तथा समाज के सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व था।

इसलिए भारत के संविधान में प्रत्येक प्रावधान भारत के राष्ट्रीय हित तथा सार्वजनिक हित तथा लोकतंत्रात्मक को ध्यान में रखकर बनाया गया। संविधान का अंतिम प्रारूप उस समय की राष्ट्रीय व्यापक आम सहमति को व्यक्त करता है। स्पष्ट है कि भारतीय संविधान के निर्माण का अनुभव जापान के संविधान के निर्माण से अलग था। जापान का संविधान एक थोपा गया संविधान था, जबकि भारत का संविधान निर्वाचित जन प्रतिनिधियों द्वारा जनहित में निर्मित किया गया था।

प्रश्न 9.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा: ” संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बतायें कि मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करूँ?” अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?
उत्तर:
यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता।
1. भारतीय संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है। इसमें प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में एक संतुलन रखा गया है। भारतीय संविधान कठोरता और लचीलेपन दोनों का मिश्रण है। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को तो संसद साधारण बहुमत से संशोधित कर सकती है और कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए उसे 2/3 बहुमत की आवश्यकता होती है तथा कुछ विषयों की संशोधन प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है।

जिसमें संशोधन के लिए संसद के 2/3 बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का अनुमोदन आवश्यक है। इस संतुलन के कारण 50 वर्षों के बाद भी भारतीय संविधान बीते युग की बात नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा सकता है। इसमें दिसम्बर 2017 तक तक 101 संशोधन किये जा चुके हैं।

2. भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधान इस प्रकार के हैं जो कभी भी पुराने नहीं पड़ सकते। संविधान का मूल ढांचा सदैव ही एक जैसा रहेगा उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

3. इस संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया जिसमें भारत के सभी घटकों, सभी धर्मों, सभी विचारधाराओं तथा जातियों व वर्गों का प्रतिनिधित्व था। ये सभी प्रतिनिधि राष्ट्रीय आन्दोलन के लोकप्रिय नेता, अनुभवी तथा जनहित से प्रेरित थे। अतः संविधान को काफी विचार-विमर्श के बाद लोकतंत्र तथा जनहित की दृष्टि से निर्मित किया गया तथा भावी परिस्थितियों के अनुरूप ढलने के लिए विशेष प्रावधान में किये गये हैं। अतः भारतीय संविधान पुराना दस्तावेज न होकर एक जीवन्त दस्तावेज है जिसमें भारत की परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार ढलने की क्षमता है।

प्रश्न 10.
संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने अलग-अलग पक्ष लिए।
(क) हरबंस: भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ख) नेहा: संविधान में स्वतंत्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत वादा है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(ग) नाजिमा: संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया। क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं? यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बतायें।
उत्तर:
मैं, हरबंस के इस कथन से सहमत हूँ कि भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान करने में सफ़ल भारतीय संविधान में सभी वर्गों के कल्याण एवं उनकी आवश्यताओं को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने संविधान में लोकतंत्रीय शासन को स्थापित किया गया है। यथा

  1. संविधान में जहाँ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान कर प्रतिनिध्यात्मक शासन की स्थापना की गयी है।
  2. शासन की शक्तियों को समान स्तर पर सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है ताकि कोई भी अंग निरंकुश न बन सके। उदाहरण के लिए संसद ने जब संविधान संशोधन के माध्यम से निरंकुश शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश की तो न्यायपालिका ने ‘मूल ढांचे की अवधारणा’ के माध्यम से संसद के इस अतिक्रमण को रोका है। इस प्रकार संविधान में नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था के द्वारा शासन की शक्ति को मर्यादित किया गया है।
  3. संविधान में नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान कर नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा की गयी है।
  4. भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष और प्रजातंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है। यह भी बताया गया है कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करना है जिससे भारतीय नागरिक अपने को स्वतंत्र महसूस करें।
  5. यद्यपि भारतीय संविधान अभी अपने समानता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया है। इसका प्रमुख कारण संविधान की असफलता नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता के समय मिली यहाँ की विषम परिस्थितियाँ रही हैं, इन परिस्थितियों से जूझते हुए संविधान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ रहा है।

संविधान – क्यों और कैसे? JAC Class 11 Political Science Notes

(अ) हमें संविधान की क्या आवश्यकता है?

→ संविधान तालमेल बिठाता है- प्रत्येक समाज ( बड़े समूह) की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, उसके सदस्यों में अनेक भिन्नताएँ जैसे- धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी भिन्नताएँ होती हैं । लेकिन अपनी भिन्नताओं के बावजूद इसके सदस्यों को एक साथ रहना है तथा वे अनेक रूपों में परस्पर आश्रित। ऐसे समूह को शांतिपूर्वक साथ रहने के लिए कुछ बुनियादी नियमों के बारे में सहमत होना आवश्यक है।

अतः किसी भी समूह को सार्वजनिक रूप से मान्यता प्राप्त कुछ बुनियादी नियमों की आवश्यकता होती है जिसे समूह के सभी सदस्य जानते हों, ताकि आपस में एक न्यूनतम समन्वय बना रहे। जब इन नियमों को न्यायालय द्वारा लागू किया जाता है तो सभी लोग इन नियमों का पालन करते हैं। इस आवश्यकता की पूर्ति संविधान करता है। संविधान के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

→ संविधान का पहला काम यह है कि वह बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह उपलब्ध कराये जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे।

→ निर्णय निर्माण शक्ति की विशिष्टताएँ: संविधान कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धान्तों का समूह है जिसके आधार पर राज्य का निर्माण और शासन होता है। वह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है तथा यह तय करता है कि कानून कौन बनायेगा। वह सत्ता जिसे कानूनों को बनाने का अधिकार है, उसे इस अधिकार को देने का काम संविधान करता है। अतः संविधान सरकार निर्मात्री सत्ता है। दूसरे शब्दों में, संविधान का दूसरा काम यह स्पष्ट करना है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी? संविधान यह भी तय करता है कि सरकार कैसे निर्मित होगी।

→ सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ: संविधान का तीसरा काम यह है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। सरकार की शक्तियों को सीमित करने का सबसे सरल तरीका यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्पष्ट कर दिया जाये और कोई भी सरकार कभी भी उनका उल्लंघन न कर सके। व्यवहार में, इन अधिकारों को राष्ट्री य आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का भी उल्लेख करता है जिनमें इन अधिकारों को वापस लिया जा सकता है या सीमित किया जा सकता है।

→ समाज की आकांक्षाएँ और लक्ष्य: संविधान का चौथा कार्य यह है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जिससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करता है जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके और जिन्हें कानून की मदद से लागू भी किया जा सके। राज्य के नीति निर्देशक तत्व सरकार से लोगों की कुछ आकांक्षाएँ पूरी करने की अपेक्षा करते हैं।

→ राष्ट्र की बुनियादी पहचान: संविधान किसी समाज की बुनियादी पहचान होता है। प्रथमतः, इसके माध्यम से ही किसी समाज की एक सामूहिक इकाई के रूप में पहचान होती है। इसके तहत कोई समाज कुछ बुनियादी नियमों और सिद्धान्तों पर सहमत होकर अपनी मूलभूत राजनीतिक पहचान बनाता है। दूसरे, संवैधानिक नियम समाज को एक ऐसी विशाल ढांचा प्रदान करते हैं जिसके अन्तर्गत उसके सदस्य अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं, संजीव पास बुक्स लक्ष्य और स्वतन्त्रताओं का प्रयोग करते हैं।

अतः संविधान हमें नैतिक पहचान देता है। तीसरा, अनेक बुनियादी राजनैतिक और नैतिक नियम विश्व के सभी प्रकार के संविधानों में स्वीकार किये गये हैं। अधिकतर संविधान कुछ मूलभूत अधिकारों की रक्षा करते हैं; लोकतांत्रिक सरकारों का निर्माण करते हैं। चौथा, विभिन्न राष्ट्रों में देश की केन्द्रीय सरकार और विभिन्न क्षेत्रों के बीच के संबंधों को लेकर भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ होती हैं। यह सम्बन्ध उस देश की राष्ट्रीय पहचान बनाता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे?

→  (ब) संविधान की सत्ता: संविधान की सत्ता के सम्बन्ध निम्नलिखित प्रश्न उभरते हैं।

→ संविधान क्या है ? संविधान एक लिखित या अलिखित दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है जिसमें राज्य सम्बन्धी प्रावधान यह बताते हैं कि राज्य का गठन कैसे होगा और वह किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।

→ संविधान को प्रचलन में लाने का तरीका कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया, किसने संविधान बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी? यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाये जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है।

तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है, ऐसा संविधान प्रभावशाली होता है। विश्व के सर्वाधिक सफल संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया। अतः संविधान बनाने वालों का प्रभाव भी एक हद तक संविधान की सफलता की संभावना सुनिश्चित करता है।

→ संविधान के मौलिक प्रावधान: एक सफल संविधान की यह विशेषता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है। कोई भी संविधान खुद न्याय के आदर्श स्वरूप की स्थापना नहीं करता बल्कि उसे लोगों को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह बुनियादी न्याय को प्राप्त करने के लिए ढाँचा उपलब्ध कराता है। कोई संविधान अपने सभी नागरिकों की स्वतंत्रता और समानता की जितनी अधिक सुरक्षा करता है, उसकी सफलता की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।

→  (स) संस्थाओं की संतुलित रूपरेखा:
संविधान की रूपरेखा बनाने की एक कारगर विधि यह सुनिश्चित करना है कि किसी एक संस्था की सारी शक्तियों पर एकाधिकार न हो। ऐसा करने के लिए शक्ति को कई संस्थाओं में बांट दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि, में बांट देता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेंगी।

अवरोध और संतुलन के कुशल प्रयोग ने भारतीय संविधान की सफलता सुनिश्चित की है। संस्थाओं की रूपरेखा बनाने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसमें बाध्यकारी मूल्य, नियम और प्रक्रियाओं के साथ अपनी कार्यप्रणाली में लचीलापन का संतुलन होना चाहिए जिससे वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढाल सके। सफल संविधान प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में एक संतुलन रखते हैं।

→  (द) भारतीय संविधान कैसे बना?:
औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने संविधान को बनाया जिसे अविभाजित भारत ने ‘कैबिनेट मिशन’ की योजना के अनुसार भारत में निर्वाचित किया गया था। इसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त, 1947 को विभाजित भारत की संविधान सभा के रूप में इसकी पुनः बैठक हुई। विभाजन के बाद संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 2299 रह गई। इनमें से 26 नवम्बर, 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थे। इन्होंने ही संविधान को अंतिम रूप से पारित व इस पर हस्ताक्षर किये। इस प्रकार संविधान सभा ने 9 दिसम्बर, 1946 से संविधान निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जिसे 26 नवम्बर, 1949 को पूर्ण किया।

→ संविधान सभा का स्वरूप: भारत की संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1935 में स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ जिसमें 292 सदस्य ब्रिटिश प्रान्तों से और 93 सीटें देशी रियासतों से आवंटित होनी थीं। प्रत्येक प्रान्त की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों मुसलमान, सिक्ख और सामान्य की सीटों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया।

इस प्रकार हमारी संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे, पर उसे अधिकाधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने के प्रयास किये गये। सभी धर्म के सदस्यों को तथा अनुसूचित वर्ग के सदस्यों को उसमें स्थान दिया गया । संविधान सभा में यद्यपि 82% सीटें कांग्रेस दल से सम्बद्ध थीं, लेकिन कांग्रेस दल स्वयं भी विविधताओं से भरा था।

→ संविधान सभा के कामकाज की शैली: संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श किया। सदस्यों में हुए मतभेद वैध सैद्धान्तिक आधारों पर होते थे। संविधान सभा में लगभग उन सभी विषयों पर गहन चर्चा हुई जो आधुनिक राज्य की बुनियाद हैं। संविधान सभा में केवल एक प्रावधान सार्वभौमिक मताधिकार के अधिकार का प्रावधान – बिना किसी वाद-विवाद के ही पारित हुआ था।

→ संविधान सभा की कार्य विधि: संविधान सभा की सामान्य कार्यविधि में भी सार्वजनिक विवेक का महत्व स्पष्ट दिखाई देता था। विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियाँ थीं। प्राय: पं. नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और डॉ. अंबेडकर इन कमेटियों की अध्यक्षता करते थे जिनके विचार हर बात पर एक-दूसरे के समान नहीं थे, फिर भी सबने एक साथ मिलकर काम किया। प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गई। प्राय: प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिए गये।

→ राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत: संविधान सभा केवल उन सिद्धान्तों को मूर्त रूप और आकार दे रही थी जो उसने राष्ट्रीय आन्दोलन से विरासत में प्राप्त किये थे। इस सिद्धान्तों का सारांश नेहरू द्वास 1946 में प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में मिलता है। इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संप्रभुता को संस्थागत स्वरूप दिया गया था।

→ संस्थागत व्यवस्थाएँ: संविधान को प्रभावी बनाने का तीसरा कारक यह है कि सरकार की सभी संस्थाओं को संतुलित ढंग से व्यवस्थित किया जाये। मूल सिद्धान्त यह रखा गया कि सरकार लोकतांत्रिक रहे, और जन कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो। संविधान सभा ने शासन के तीनों अंगों के बीच समुचित सन्तुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन किया। संविधान सभा ने संसदीय शासन व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया।

शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने में हमारे संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से सीखने में कोई संकोच नहीं किया। अतः उन्होंने विभिन्न देशों से अनेक प्रावधानों को लिया, संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारत की समस्याओं और परिस्थितियों के अनुकूल ढालकर अपना बना लिया।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ

Jharkhand Board Class 11 History बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ In-text Questions and Answers

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क्रियाकलाप 2 : सोलहवीं शताब्दी के इंटली के कलाकारों की कृतियों के विभिन्न वैज्ञानिक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इटली के कलाकारों की कृतियों में वैज्ञानिक तत्त्व – मध्य युग में कला पर धर्म का बहुत अधिक प्रभाव था परन्तु सोलहवीं शताब्दी में कला, धर्म के प्राचीन बन्धनों से मुक्त हो गई। अब कलाकार यथार्थवादी बन गए और स्वतन्त्र रूप से कलाकृति रचने लगे। अतः कला में मौलिकता तथा वास्तविकता पाई जाने लगी। अब कलाकार हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्त्तियाँ बनाना चाहते थे। उनकी इस प्रवृत्ति से वैज्ञानिकों के कार्यों में बड़ी सहायता मिली। नरकंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कालेजों की प्रयोगशालाओं में गए। बेल्जियम मूल के आन्ड्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे।

वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इसी समय से आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान की शुरुआत हुई । चित्रकारों को अब ज्ञात हो गया कि रेखागणित के ज्ञान से चित्रकार अपने परिदृश्य को ठीक तरह से समझ सकता है तथा प्रकाश के बदलते गुणों का अध्ययन करने से उनके चित्रों में त्रि-आयामी रूप दिया जा सकता है। बनाया।

चित्र के लिए तेल के एक माध्यम के रूप में प्रयोग के चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन और चटख लियानार्डो दा विंची इटली का प्रसिद्ध चित्रकार था । उसकी अभिरुचि वनस्पति विज्ञान और शरीर रचना विज्ञान से लेकर गणित शास्त्र तथा कला तक विस्तृत थी। वह वर्षों तक आकाश में पक्षियों के उड़ने का परीक्षण करता रहा और उसने एक उड़न-मशीन का प्रतिरूप बनाया। उसने अपना नाम ‘लियोनार्डो दा विंची, परीक्षण का अनुयायी’ रखा।

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उसने मोनालिसा तथा लास्ट सपर नामक चित्र बनाए। माइकेल एंजिलो भी इटली का एक प्रसिद्ध मूर्त्तिकार, चित्रकार और वास्तुकार था। उसने अपने चित्रों में यथार्थता लाने के लिए शरीर – विज्ञान का गहन अध्ययन किया। उसने पोप के सिस्टाइन चैपल की छत पर लेपचित्र बनाए। इस प्रकार शरीर – विज्ञान, रेखा गणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप प्रदान किया, जिसे बाद में ‘यथार्थवाद’ कहा गया। यथार्थवाद की यह परम्परा उन्नीसवीं सदी तक चलती रही । पृष्ठ 162

क्रियाकलाप 3 : महिलाओं की आकांक्षाओं के संदर्भ में एक महिला (फेदेले) तथा एक पुरुष (कास्टिल्योनी) द्वारा अभिव्यक्त भावों की तुलना कीजिये। उन लोगों की सोच में क्या महिलाओं का एक निर्दिष्ट वर्ग ही था ?
उत्तर:
(1) महिलाओं की आकांक्षाओं के संदर्भ में फेदेले नामक महिला के विचार – सोलहवीं शताब्दी की .. कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत रचनात्मक थीं और मानवतावादी शिक्षा की समर्थक थीं। वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले ने महिलाओं के बारे में अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए लिखा था कि ” यद्यपि महिलाओं को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है और न किसी सम्मान का आश्वासन, तथापि प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए।” फेदेला ने तत्कालीन इस विचारधारा को चुनौती दी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला के पास नहीं हो सकते। फ

ेदेले ने गणतन्त्र की आलोचना “स्वतन्त्रता की एक बहुत सीमित परिभाषा निर्धारित करने के लिए की, जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की इच्छा का अधिक समर्थन करती थी। ” फेदेले के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि उस काल में सब लोग शिक्षा को बहुत महत्त्व देते थे। चाहे वे पुरुष हों या महिला। इससे ज्ञात होता है कि महिलाओं को पुरुष-प्रधान समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वतन्त्रता, सम्पत्ति और शिक्षा मिलनी चाहिए।

(2) महिलाओं की आकांक्षाओं के संदर्भ में कास्टिल्योनी नामक पुरुष के विचार – प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ बाल्थासार कास्टिल्योनी ने अपनी पुस्तक ‘दि कोर्टियर’ में लिखा है कि ” मेरे विचार से अपने तौर-तरीके, व्यवहार, बातचीत के तरीके, भाव-भंगिमा और छवि में एक महिला पुरुष के सदृश नहीं होनी चाहिए।

जैसे कि यह कहना बिल्कुल उपयुक्त होगा कि पुरुषों को हट्टा-कट्टा और पौरुष – सम्पन्न होना चाहिए, इसी तरह एक स्त्री के लिए यह अच्छा ही है कि उसमें कोमलता और सहृदयता हो, एक स्त्रियोचित मधुरता का आभास उसके हर हाव-भाव में हो और यह उसके चाल-चलन, रहन-सहन और हर ऐसे कार्य में हो जो वह करती है, ताकि ये सारे गुण उसे हर हाल में एक स्त्री के रूप में ही दिखाएँ, न कि किसी पुरुष के सदृश।

यदि उन महानुभावों द्वारा दरबारियों को सिखाए गए नियमों में इन नीति वचनों को जोड़ दिया जाए, तो महिलाएँ इनमें से अनेक को अपनाकर स्वयं को श्रेष्ठ गुणों से सुसज्जित कर सकेंगी। मेरा यह मानना है कि मस्तिष्क के कुछ ऐसे गुण हैं जो महिलाओं के लिए उतने ही आवश्यक हैं जितने कि पुरुष के लिए जैसे कि अच्छे कुल का होना, दिखावे का परित्याग करना, सहज रूप से शालीन होना, आचरणवान, चतुर और बुद्धिमान होना, गर्वी, ईर्ष्यालु, कटु और उद्दण्ड न होना ” ” जिससे महिलाएँ उन क्रीड़ाओं को, शिष्टता और मनोहरता के साथ सम्पन्न कर सकें, जो उनके लिए उपयुक्त हैं।”

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उपर्युक्त विचारों से यह ज्ञात होता है कि उस युग में प्रायः सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बहुत सीमित थी और उनमें शिक्षा का प्रसार बहुत कम था। व्यापारी परिवारों में महिलाओं में शिक्षा का प्रसार अधिक था जबकि अभिजात वर्ग के परिवारों की महिलाओं में शिक्षा का प्रसार कम था। उस युग की प्रबुद्ध महिलाओं ने इस बात पर बल दिया कि महिलाओं की शिक्षा पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।

पृष्ठ 164

क्रियाकलाप 4: वे कौनसे मुद्दे थे जिनको लेकर प्रोटेस्टेन्ट धर्म के अनुयायी कैथोलिक चर्च की आलोचना करते थे?
उत्तर:
र – प्रोटेस्टेन्ट धर्म के अनुयायियों द्वारा कैथोलिक चर्च की आलोचना करना – प्रोटैस्टेन्ट धर्म के अनुयायी निम्नलिखित मुद्दों को लेकर कैथोलिक चर्च की आलोचना करते थे –

  1.  कैथोलिक चर्च के अनुयायी अपने पुराने धर्मग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन नहीं कर रहे थे।
  2. कैथोलिक चर्च में अनेक अनावश्यक कर्मकाण्ड, अन्धविश्वास और आडम्बरों का समावेश हो गया था।
  3. कैथोलिक चर्च एक लालची तथा साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गई थी।
  4. पादरी लोगों से धन ऐंठते रहते थे। उनका लोगों से धन ठगने का सबसे आसान तरीका ‘पाप-स्वीकारोक्ति’-नामक दस्तावेज था। इसे खरीदने वाला व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्ति पा सकता था।
  5. चर्च द्वारा लगाए गए अनेक करों के कारण किसानों में असन्तोष था। उन्होंने इन करों का विरोध किया।
  6. यूरोप के शासक भी राज-काज में चर्च के हस्तक्षेप से नाराज थे।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्वों को पुनर्जीवित किया गया?
उत्तर:
चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के तत्वों को पुनर्जीवित करना- चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी तथा रोमन संस्कृतियों के निम्नलिखित तत्वों को पुनर्जीवित किया गया –
(1) साहित्य के क्षेत्र में – प्राचीन यूनानी एवं रोमन साहित्य के अध्ययन पर बल दिया गया। पेट्रार्क ने प्राचीन यूनानी तथा रोमन ग्रन्थों के अध्ययन पर बल दिया।

(2) कला के क्षेत्र में – चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियों में स्थापत्य कला की एक नई शैली का जन्म हुआ जिसमें यूनानी, रोमन तथा अरबी शैलियों का समन्वय था । इस नवीन शैली में शृंगार, सजावट तथा डिजाइन पर विशेष बल दिया गया। इस शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी।

यह नवीन शैली रोमन साम्राज्यकालीन शैली का पुनरुद्धार थी, जिसे बाद में ‘शास्त्रीय शैली’ कहा गया। “मूर्त्तिकला में भी नवीन शैली अपनाई गई। अब मूर्त्तिकला धर्म के प्राचीन बन्धनों से मुक्त हो गई तथा अब साधारण मनुष्य की मूर्त्तियाँ बनाई जाने लगीं। चित्रकला पर से भी धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया। अब धार्मिक चित्रों के स्थान पर जन-जीवन से सम्बन्धित मौलिक एवं यथार्थ चित्र बनने लगे। जियटो ने जीते-जागते रूपचित्र (पोर्ट्रेट) बनाए।

(3) विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में – चौदहवीं शताब्दी में यूरोप के अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रन्थों से अनुवादों का अध्ययन करना शुरू किया। यूरोप के विद्वानों ने यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन किया। ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से सम्बन्धित थे।

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(4) मावतावाद – यूनानी और रोमन संस्कृतियों के प्रभाव से यूरोप में मानवतावादी विचारों का व्यापक प्रसार हुआ। मानवतावादी धार्मिक पाखण्डों, रूढ़ियों और अन्धविश्वासों में विश्वास नहीं करते थे। वे मानव जीवन पर धर्म का नियन्त्रण नहीं चाहते थे। वे भौतिक सुखों पर बल देते थे तथा वर्तमान जीवन को सुखी और आनन्ददायक बनाने पर बल देते थे।

प्रश्न 2.
इस काल में इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इटली की वास्तुकला की विशिष्टताएँ – पन्द्रहवीं शताब्दी में इटली में स्थापत्य कला की एक नई शैली का जन्म हुआ, जिसमें यूनानी, रोमन तथा अरबी शैलियों का समन्वय था। इस नवीन शैली में श्रृंगार, सजावट तथा डिजाइन पर विशेष बल दिया गया। इस शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी। यह नई शैली वास्तव मे रोमन साम्राज्यकालीन शैली का पुनरुद्धार थी जिसे ‘शास्त्रीय शैली’ कहा गया।

चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्र, मूर्तियों तथा उभरे चित्रों से सुसज्जित किया। प्रसिद्ध वास्तुकार ब्रुनेलेशी ने फ्लोरेन्स के भव्य गुम्बद का परिरूप प्रस्तुत किया था। रोम का सन्त पीटर का गिरजाघर तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। लन्दन का सन्त पाल का गिरजाघर तथा वेनिस का सन्त मार्क का गिरजाघर आदि भी तत्कालीन वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने हैं।

इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताएँ – इस्लामी वास्तुकला में अनेक मस्जिदों, राजमहलों, इबादतगाहों तथा मकबरों का निर्माण किया गया। इनका आधारभूत नमूना एक जैसा था। मेहराब, गुम्बद, मीनार और खुले सहन इन इमारतों की विशेषताएँ थीं। ये इमारतें मुसलमानों की आध्यात्मिक और व्यावहारिक आवश्यकताओं को प्रकट करती थीं। मस्जिदों में एक खुला प्रांगण होता था।

इसमें एक फव्वारा अथवा जलाशय बनाया जाता था। बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं –

  1. दीवार में मेहराब तथा
  2. एक मंच इसमें एक मीनार होती थी।

इस्लाम में सजीव चित्रों के निर्माण पर प्रतिबन्ध था परन्तु इससे कला के दो रूपों को प्रोत्साहन मिला-खुशनवीसी (सुन्दर लेखन की कला) तथा अरबेस्क (ज्यामितीय और वनस्पतीय डिजाइन)। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला में हमें कुछ समानताएँ और कुछ अन्तर दिखाई देते हैं। इस्लामी वास्तुकला पर जहाँ धर्म का अधिक प्रभाव दिखाई देता है, वहीं इटली की वास्तुकला में मानवतावादी यथार्थ का अधिक प्रभाव दिखाई देता है।

प्रश्न 3.
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर:
इतालवी शहरों में मानवतावादी विचारों का अनुभव – इतालवी शहरों में मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले निम्नलिखित कारणों से हुआ –
(1) व्यापार एवं वाणिज्य की उन्नति के कारण इटली में बड़े-बड़े नगरों का उदय हुआ। वेनिस, जिनेवा, फ्लोरेन्स आदि प्रसिद्ध नगर थे। ये नगर यूनान के नगर – राज्य जैसे बन गए। ये यूरोप के अन्य नगरों से इस दृष्टि से अलग .थे कि यहाँ पर धर्माधिकारी और सामन्त वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। नगरों के धनी व्यापारी और महाजन नगरों के शासन में स्वतन्त्रतापूर्वक भाग लेते थे। ये नगर शिक्षा, कला और व्यापार के केन्द्र बन गए।

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(2) यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए। इन विश्वविद्यालयों में रोमन कानून, चिकित्साशास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान, गणित, रसायन विज्ञान, व्याकरण आदि विषय पढ़ाए जाते थे। ये विषय धार्मिक नहीं थे, बल्कि उस कौशल पर बल देते थे जो व्यक्ति चर्चा और वाद-1 द- विवाद से विकसित करता है।

(3) पन्द्रहवीं शताब्दी तक रोम तथा यूनानी विद्वानों ने अनेक क्लासिकी ग्रन्थ लिखे । ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, . गणित, खगोल विज्ञान आदि से सम्बन्धित थे। छापेखाने के निर्माण के बाद इन ग्रन्थों का मुद्रण इटली में हुआ था। इन पुस्तकों ने नये विचारों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि मानवतावादी विचारधारा का इतालवी नगरों में प्रसार करने में योगदान दिया।

(4) पेट्रार्क, दोनातेलो, माइकेल एंजेलो, लियोनार्दो दी विन्ची आदि मानवतावादी विचारकों ने इतालवी नगरों में मानवतावादी विचारधारा के प्रसार में योगदान दिया।

प्रश्न 4.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
(1) वेनिस में ‘अच्छी सरकार’ के विचार- इटली में अनेक नगरों का उदय हुआ। ये नगर अपने आपको स्वतन्त्र नगर-राज्यों का एक समूह मानते थे। इन नगरों में वेनिस प्रमुख था । वेनिस एक गणराज्य था। यहाँ पर धर्माधिकारी तथा सामन्त वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। अतः प्रशासन और राजनीति में उनका कोई प्रभाव नहीं था। नगर के धनी व्यापारी और महाजन नगर के शासकों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे जिससे वहाँ नागरिकता की भावना विकसित हुई। इन नगरों के शासन सैनिक तानाशाहों के हाथ में आने के बाद भी इन नगरों के निवासी अपने को यहाँ का नागरिक कहने में गर्व का अनुभव करते थे

(2) फ्रांस में अच्छी सरकार के विचार – समकालीन फ्रांस में निरंकुश राजतन्त्र स्थापित था। वहाँ प्रशासन और राजनीति में धर्माधिकारियों तथा सामन्तों का बोलबाला था। सभी उच्च तथा महत्वपूर्ण पदों पर सामन्त वर्ग के लोग आसीन थे। ये लोग जन-साधारण का शोषण करते थे तथा अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे रहते थे।

यद्यपि फ्रांस में एस्टेट्स जनरल (परामर्शदात्री सभा) बनी हुई थी, परन्तु 1614 के बाद 175 वर्षों तक इसका अधिवेशन नहीं बुलाया गया था। इसका कारण यह था कि फ्रांस के शासक जन साधारण के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे। फ्रांस में स्वतन्त्र किसानों, कृषि – दासों की बहुत बड़ी संख्या थी, परन्तु उन्हें किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे । वहाँ मध्यम वर्ग की भी घोर उपेक्षा की जाती थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर:
मानवतावादी विचारों के अभिलक्षण – मानवतावादी विचारों के अभिलक्षण निम्नलिखित थे –
(1) उन्नत ज्ञान प्राप्त करना – मानवतावाद का शाब्दिक अर्थ है – उन्नत ज्ञान। ‘मानवतावाद’ की विचारधारा के अनुसार ज्ञान असीमित है, बहुत कुछ जानना बाकी है और यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीखते । इसी नयी संस्कृति को इतिहासकारों ने ‘मानवतावाद’ की संज्ञा दी।

(2) ‘मानवतावादी’ शब्द का प्रयोग – पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ‘मानवतावादी’ शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, ‘अलंकारशास्त्र’, कविता, इतिहास और नीति दर्शन पढ़ाते थे। लैटिन शब्द ‘ह्यूमेनिटास’ से ‘ह्यूमेनिटिज’ शब्द अर्थात् ‘मानवतावाद’ की उत्पत्ति हुई है, जिसे कई शताब्दियों पूर्व रोम के वकील तथा निबन्धकार सिसरो ने ‘संस्कृति’ के अर्थ में लिया था। ये विषय धार्मिक नहीं थे, वरन् उस कौशल पर बल देते थे, जो व्यक्ति चर्चा और वाद-विवाद से विकसित करता है।

(3) धार्मिक कर्मकाण्डों और अन्धविश्वासों में अविश्वास – मानवतावादी धार्मिक कर्मकाण्डों, पाखण्डों तथा अन्धविश्वासों में विश्वास नहीं करते थे। मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था-मानव जीवन पर धर्म का नियन्त्रण कमजोर होना।

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(4) भौतिक सुखों पर बल देना – मानवतावादी भौतिक सम्पत्ति, शक्ति तथा गौरव पर बल देते थे। वेनिस के मानवतावादी फ्रेनचेस्को बरबारो ने अपनी एक पुस्तिका में सम्पत्ति प्राप्त करने को एक विशेष गुण बताकर उसका पक्ष लिया। लोरेन्जो वल्ला ने अपनी पुस्तक ‘आन प्लेजर’ में भोग-विलासों पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की ।

(5) अच्छे व्यवहारों पर बल – मानवतावादी अच्छे व्यवहारों पर बल देते थे। उनकी अच्छे व्यवहारों के प्रति रुचि थी-व्यक्ति को किस प्रकार विनम्रता से बोलना चाहिए, कैसे वस्त्र पहनने चाहिए तथा एक सभ्य व्यक्ति को किसमें दक्षता प्राप्त करनी चाहिए।

(6) मनुष्य का स्वभाव बहुमुखी है – मानवतावादियों की मान्यता थी कि मनुष्य का स्वभाव बहुमुखी है। सामन्ती समाज तीन भिन्न-भिन्न वर्गों (पादरी, अभिजात तथा कृषक) में विश्वास करता था परन्तु मानवतावादियों ने इस विचार को नकार दिया।

(7) वर्तमान जीवन को सुन्दर और उपयोगी बनाना – मानवतावादी वर्तमान जीवन को सुन्दर, आनन्ददायक और उपयोगी बनाने पर बल देते थे। वे परलोक की बजाय इस लोक को सफल और सुखी बनाने पर बल देते थे।

(8) सत्य, तर्क और नवीन दृष्टिकोण पर बल देना – मानवतावादी स्वतन्त्र चिन्तन, सत्य, तर्क और नवीन दृष्टिकोण का प्रचार करते थे।

प्रश्न 6.
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा? उसका एक सुचिन्तित विवरण दीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों की दृष्टि में विश्व – सत्रहवीं शताब्दी तक विश्व में कला, विज्ञान, साहित्य, धर्म, समाज, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हो चुके थे। अतः सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों की दृष्टि में विश्व निम्नलिखित बातों में भिन्न लगा-

(1) साहित्य के क्षेत्र में –
(i) मध्य युग में विद्वान लैटिन और यूनानी भाषाओं में अपनी पुस्तकों की रचना करते थे, परन्तु आधुनिक युग में बोलचाल की भाषा में साहित्य की रचना की जाने लगी। अब अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, इतालवी, स्पेनिश, डच आदि भाषाओं का विकास हुआ। अब समस्त विश्व में लोक भाषाओं तथा राष्ट्रीय . साहित्य की रचना होने लगी।
(ii) अब साहित्य पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया । अब साहित्य में मानव जीवन से सम्बन्धित विषयों पर विवेचन किया जाता था। अब साहित्य आलोचना – प्रधान, मानववादी और व्यक्तिवादी हो गया। इस युग में काव्य, महाकाव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि पर उच्च कोटि के ग्रन्थ लिखे गए।

(2) कला के क्षेत्र में – मध्ययुग में कला पर धर्म का बहुत अधिक प्रभाव था तथा उस समय कलाकार स्वतन्त्र रूप से कलाकृति नहीं रच सकता था, परन्तु आधुनिक युग में कला धर्म के बन्धनों से मुक्त हो गई। अब कलाकार यथार्थवादी बन गए और स्वतन्त्र रूप से कलाकृति रचने लगे। अतः कला में मौलिकता तथा वास्तविकता पाई जाने लगी।

(3) विज्ञान के क्षेत्र में – आधुनिक युग में विज्ञान के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। इस युग में नये सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए. तथा नवीन आविष्कार किए गए। कोपरनिकस ने इस मत का प्रतिपादन किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है जिससे दिन-रात होते हैं। केपलर ने कोपरनिकस के सिद्धान्त को गणित के प्रमाणों से पुष्ट किया। इसी प्रकार चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र आदि क्षेत्रों में भी पर्याप्त उन्नति हुई।

(4) भौगोलिक खोजें- आधुनिक युग में सामुद्रिक यात्राओं तथा भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन मिला। 1498 में वास्कोडिगामा उत्तमाशा अन्तरीप होता हुआ भारत के समुद्रतट पर स्थित कालीकट बन्दरगाह पहुँचा। कोलम्बस एक द्वीप पर पहुँचा जिसे यूरोपवासियों ने वेस्टइण्डीज कहा। कोलम्बस की इस यात्रा से ‘नये विश्व’ की खोज करना सरल हो गया। मेगलान के साथियों ने पृथ्वी का सर्वप्रथम चक्कर लगाया। अमेरिगो ने दक्षिणी अमेरिका का पता लगाया।

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(5) सामाजिक क्षेत्र – व्यापारिक वर्ग के प्रभाव में वृद्धि हुई तथा कुलीन लोगों के सम्मान में कमी हुई। साधारण जनता में शिक्षा का प्रसार हुआ तथा दास- कृषकों को मुक्ति मिली।

(6) धार्मिक क्षेत्र में – कैथोलिक चर्च में व्याप्त धार्मिक पाखण्डों, कर्मकाण्डों और अन्धविश्वासों के विरुद्ध सोलहवीं शताब्दी में धर्म सुधार आन्दोलन हुआ।

(7) आर्थिक क्षेत्र में – उद्योग-धन्धों का विकास शुरू हुआ, जिसके फलस्वरूप औद्योगिक क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। व्यापारी वर्ग धनी वर्ग बन गया और पूंजीवाद का विकास हुआ।

(8) राजनीतिक क्षेत्र में – विश्व के विभिन्न देशों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। यूरोप में अनेक राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ। पोप की राजनीतिक शक्ति में कमी हुई और राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई। भाषा के आधार पर यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों ने अपनी पहचान बनानी शुरू की।

(9) बौद्धिक क्षेत्र में – अब लोग स्वतन्त्रतापूर्वक चिन्तन करने लगे। सत्य की खोज, वाद-विवाद, तार्किक दृष्टिकोण आदि को बढ़ावा मिला। इससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ।

(10) भौतिकवादी दृष्टिकोण – आधुनिक युग में मनुष्य की धर्म एवं परलोक में रुचि कम हो गई तथा वह अपने वर्तमान जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बनाने के लिए अधिक प्रयत्न करने लगा। अब मनुष्य का भौतिक जीवन महत्वपूर्ण हो गया। परिणामस्वरूप अधिक आकर्षक नगरों तथा सुविधाजनक घरों का निर्माण किया जाने लगा। अब मानव का रहन-सहन तथा खान-पान का स्तर बढ़ गया।

(11) नगरीय संस्कृति – 17वीं शताब्दी में अनेक नगरों की संख्या बढ़ रही थी। एक विशेष प्रकार की ‘नगरीय संस्कृति’ विकसित हो रही थी। नगर के लोग गाँवों के लोगों से अपने आपको अधिक सभ्य मानते थे। फ्लोरेन्स, वेनिस, रोम आदि नगर कला और विद्या के केन्द्र बन गए थे। अब नगर कला और ज्ञान के केन्द्र बन गए।

बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ JAC Class 11 History Notes

पाठ- सार

1. इटली के नगरों का पुनरुत्थान- जब पश्चिमी यूरोप सामन्ती सम्बन्धों के कारण नया रूप ले रहा था तथा चर्च के नेतृत्व में उसका एकीकरण हो रहा था, पूर्वी यूरोप बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन में बदल रहा था, तब पश्चिम में इस्लाम एक साझी सभ्यता का निर्माण कर रहा था। इन्हीं परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता प्रदान की । इससे इटली के तटवर्ती बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए । बारहवीं शताब्दी से जब मंगोलों ने चीन के साथ व्यापार आरम्भ किया, तो इसके कारण पश्चिमी यूरोपीय देशों के व्यापार को बढ़ावा मिला। इसमें इटली के नगरों ने मुख्य भूमिका निभाई। अब वे अपने आपको स्वतन्त्र नगर- राज्यों का एक समूह मानते थे ।

2. विश्वविद्यालय – यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए। ग्यारहवीं शताब्दी से पादुआ तथा बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केन्द्र रहे थे। पेट्रार्क ने इस बात पर बल दिया कि प्राचीन यूनानी और रोमन लेखकों की रचनाओं का भली-भाँति अध्ययन किया जाना चाहिए।

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3. मानवतावाद –
(i) पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ‘मानवतावादी’ शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास और नीति दर्शन विषय पढ़ाते थे। ये विषय धार्मिक नहीं थे वरन् उस कौशल पर बल देते थे जो व्यक्ति चर्चा और वाद-विवाद से विकसित करता है। इन क्रान्तिकारी विचारों ने अनेक विश्वविद्यालयों का ध्यान आकर्षित किया। फ्लोरेन्स धीरे-धीरे एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय बन गया । वह इटली के सबसे जीवन्त बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा।

(ii) फ्लोरेन्स नगर की प्रसिद्धि में दो व्यक्तियों का प्रमुख हाथ था। ये दो व्यक्ति थे –
(1) दाँते
(2) जोटो।
(iii) ‘रेनेसाँ व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों और अनेक कलाओं में उसे निपुणता प्राप्त हो।

4. इतिहास का मानवतावादी दृष्टिकोण – मानवतावादियों ने पाँचवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक के युग को ‘मध्ययुग’ की संज्ञा दी। उनके अनुसार 15वीं शताब्दी से ‘आधुनिक युग’ की शुरुआत हुई।

5. विज्ञान और दर्शन – अरबों का योगदान – एक ओर यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे, दूसरी ओर यूनानी विद्वान अरबी और फारसी विद्वानों की रचनाओं को अन्य यूरोपीय लोगों के बीच प्रसार के लिए अनुवाद कर रहे थे। ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से सम्बन्धित थे। मुस्लिम लेखकों में अरबी के हकीम और बुखारा के दार्शनिक इब्न-सिना तथा आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल-राजी उल्लेखनीय थे।

6. कलाकार और यथार्थवाद – कला, वास्तुकला और ग्रन्थों ने मानवतावादी विचारों के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  • मूर्तिकला – 1416 में दोनातल्लो ने सजीव मूर्त्तियाँ बनाकर नई परम्परा स्थापित की। नर कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कालेजों की प्रयोगशालाओं में गए।
  • चित्रकला – चित्रकारों ने मूर्तिकारों की भाँति यथार्थ चित्र बनाने का प्रयास किया। लियानार्डो दा विन्ची नामक चित्रकार ने ‘मोनालिसा’ तथा ‘द लॉस्ट सपर’ नामक चित्रों का निर्माण किया।
  • यथार्थवाद – शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया जिसे बाद में ‘यथार्थवाद’ कहा गया। यथार्थवाद की यह परम्परा उन्नीसवीं शताब्दी तक चलती रही।

7. वास्तुकला – पुरातत्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का उत्खनन किया गया। इसने वास्तुकला की एक ‘नई शैली’ को बढ़ावा दिया जिसे ‘शास्त्रीय शैली’ कहा गया। पोप, धनी व्यापारियों और अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों को अपने भवन बनाने के लिए नियुक्त किया, जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे। चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्रों, मूर्त्तियों और उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया। ब्रुनेलेशी ने फ्लोरेन्स के गुम्बद का परिरूप तैयार किया।

8. प्रथम मुद्रित पुस्तकें – 1455 में जर्मन मूल के जोहानेस गुटनबर्ग ने पहले छापेखाने का निर्माण किया। पन्द्रहवीं शताब्दी तक अनेक क्लासिकी ग्रन्थों का मुद्रण इटली में हुआ था। नये विचारों को बढ़ावा देने वाली एक मुद्रित पुस्तक सैकड़ों पाठकों के पास शीघ्रतापूर्वक पहुँच सकती थी। छपी हुई पुस्तकों के वितरण के कारण पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त से इटली की मानवतावादी संस्कृति का आल्पस पर्वत के पार तीव्रगति से प्रसार हुआ।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ

9. मनुष्य की एक नई संकल्पना – मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था – मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर होना। इटली के निवासी भौतिक सम्पत्ति, शक्ति और गौरव से बहुत ज्यादा आकृष्ट थे। लोरेन्जो वल्ला ने भोग-विलास पर ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की तथा अच्छे व्यवहारों की वकालत की।

10. महिलाओं की आकांक्षाएँ – मध्ययुगीन यूरोप में प्रायः सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी अत्यन्त सीमित थी और उन्हें घर-परिवार की देखभाल करने वाले के रूप में देखा जाता था। परन्तु व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति भिन्न थी। दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में प्रायः उनकी सहायता करती थीं। आधुनिक युग में कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से रचनात्मक थीं और मानवतावादी शिक्षा से प्रभावित थीं। वेनिस निवासी कसान्द्रा फेरेले के अनुसार प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए। मंटुआ की मार्चिसा इसाबेल दि इस्ते ने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया।

11. ईसाई धर्म के अन्तर्गत वाद-विवाद –
(1) उत्तरी यूरोप में मानवतावादियों ने ईसाइयों को अपने पुराने धर्मग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने का आह्वान किया। उन्होंने अनावश्यक कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया। इसके बाद दार्शनिकों ने भी कहा कि मनुष्य को अपनी खुशी इसी विश्व में वर्तमान में ढूँढ़नी चाहिए।

(2) इंगलैण्ड के टॉमस मोर तथा हालैण्ड के इरैस्मस ने कहा कि चर्च एक लालची और साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गई है।

(3) पादरी लोगों से धन लूटने के लिए ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज का लाभ उठा रहे थे जिससे जन- साधारण में असन्तोष व्याप्त था।

(4) चर्च द्वारा लगाए गए करों से किसानों में भी असन्तोष था । उन्होंने इन करों का विरोध किया।

(5) यूरोप के शासक भी राज-काज में चर्च के हस्तक्षेप से नाराज थे।

(6) 1517 में एक जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान छेड़ा। इस आन्दोलन को ‘प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद’ की संज्ञा दी गई। फ्रांस में कैथोलिक चर्च ने प्रोटैस्टेन्ट लोगों को अपनी इच्छा के अनुसार उपासना करने की छूट दी। इंग्लैण्ड के शासकों ने पोप से अपने सम्बन्ध तोड़ दिए। इसके बाद राजा / रानी इंग्लैण्ड के चर्च के प्रमुख बन गए।

(7) प्रोटैस्टेन्ट धर्म सुधार आन्दोलन की बढ़ती हुई प्रगति से कैथोलिक चर्च बड़ा चिन्तित हुआ और उसने भी अनेक आन्तरिक सुधार करने शुरू कर दिये।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ

12. कोपरनिकसीय क्रान्ति – पोलैण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसके बाद खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर ने अपने ग्रन्थ में कोपरनिकस के सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया। गैलिलियो ने गतिशील विश्व के सिद्धान्त की पुष्टि की। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

13. ब्रह्माण्ड का अध्ययन – गैलिलियो तथा अन्य विचारकों ने बताया कि ज्ञान विश्वास से हटकर अवलोकन एवं प्रयोगों पर आधारित है। शीघ्र ही भौतिकी, रसायनशास्त्र तथा जीव-विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रयोग और खोज- कार्य तीव्र गति से होने लगे। परिणामस्वरूप सन्देहवादियों तथा नास्तिकों के मन में समस्त सृष्टि की रचना के स्रोत के रूप में प्रकृति ईश्वर का स्थान लेने लगी। वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल दिया जाने लगा और सार्वजनिक क्षेत्र में एक नई वैज्ञानिक संस्कृति की स्थापना हुई।

14. क्या चौदहवीं शताब्दी में पुनर्जागरण हुआ था ?
पुनर्जागरण की अवधारणा –
(1) यूरोप में इस समय आए सांस्कृतिक परिवर्तन में रोम और यूनान की ‘क्लासिकी’ सभ्यता का ही केवल हाथ नहीं था। यूरोपियों ने न केवल यूनानियों तथा रोमनवासियों से सीखा, बल्कि भारत, अरब, ईरान, मध्य एशिया और चीन से भी ज्ञान प्राप्त किया।

(2) इस काल में जो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए, उनमें धीरे-धीरे ‘निजी’ और ‘सार्वजनिक’ दो अलग-अलग क्षेत्र बनने लगे। व्यक्ति की दो भूमिकाएँ थीं – निजी और सार्वजनिक। वह न केवल तीन वर्गों (पादरी, अभिजात, कृषक ) में से किसी एक वर्ग का सदस्य ही था, बल्कि अपने आप में एक स्वतन्त्र व्यक्ति था।

(3) इस काल की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि भाषा के आधार पर यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों ने अपनी पहचान बनानी शुरू की। इन राज्यों के आंतरिक जुड़ाव का कारण समान भाषा का होना था।

चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियाँ:

तिथि घटना
1300 इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद पढ़ाया जाने लगा।
1341 पेट्रार्क को रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
1349 फ्लोरेन्स में विश्वविद्यालय की स्थापना।
1390 जेफ्री चॉसर की ‘केन्टरबरी टेल्स’ का प्रकाशन।
1436 ब्रुनेलेशी ने फ्लोरेन्स में ड्यूमा का परिरूप तैयार किया।
1453 कुस्तुन्तुनिया के बाइजेन्टाइन शासक को ऑटोमन तुर्कों ने पराजित किया।
1454 गुटेनबर्ग ने विभाज्य टाइप से बाइबल का प्रकाशन किया।
1484 पुर्तगाली गणितज्ञों ने सूर्य का अध्ययन कर अक्षांश की गणना की।
1492 कोलम्बस अमरीका पहुँचे।
1495 लियोनार्डो दा विंची ने ‘द लास्ट सपर’ (अन्तिम भोज) चित्र बनाया।
1512 माइकल एंजिलो ने सिस्टीन चैपल की छत पर चित्र बनाए।
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियाँ
1516 टामस मोर की ‘यूटोपिया’ का प्रकाशन।
1517 मार्टिन लूथर द्वारा नाइन्टी – फाइव थीसेज की रचना।
1522 मार्टिन लूथर द्वारा बाइबल का जर्मन में अनुवाद।
1525 जर्मनी में किसान विद्रोह।
1543 एन्ड्रीयास वसेलियस द्वारा ‘ऑन एनाटमी’ ग्रन्थ की रचना।
1559 इंग्लैण्ड में आंग्ल – चर्च की स्थापना जिसके प्रमुख राजा / रानी थे।
1569 गेरहार्डस मरकेटर ने पृथ्वी का पहला बेलनाकार मानचित्र बनाया।
1582 पोप ग्रेगरी – XIII के द्वारा ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रचलन।
1628 विलियम हार्वे ने हृदय को रुधिर – परिसंचरण से जोड़ा।
1673 पेरिस में ‘अकादमी ऑफ साइंसेज’ की स्थापना।
1687 आइजक न्यूटन के ‘प्रिन्सिपिया मैथेमेटिका’ का प्रकाशन।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ 

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. भारत कब स्वतन्त्र हुआ………………………..
(क) सन् 1945 की 14 अगस्त को।
(ख) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को।
(ग) सन् 1946 के 15 अगस्त की मध्यरात्रि को।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को।

2. विभाजन के समय भारत में कुल रजवाड़ों की संख्या कितनी थी?
(क) 565
(ख) 570
(ग) 580
(घ) 562
उत्तर:
(क) 565

3. द्विराष्ट्र सिद्धान्त की बात जिस राजनीतिक दल ने सर्वप्रथम की थी, वह था।
(क) भारतीय जनता पार्टी
(ख) मुस्लिम लीग
(ग) कांग्रेस
(घ) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर:
(ख) मुस्लिम लीग

4. राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई?
(क) सन् 1953
(ख) सन् 1954
(ग) सन् 1955
(घ) सन् 1956
उत्तर:
(क) सन् 1953

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5. देशी रियासतों के एकीकरण में किस भारतीय नेता की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) सरदार पटेल
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(ग) सरदार पटेल

6. भारत का संविधान कब लागू किया गया
(क) 15 अगस्त, 1947
(ख) 26 जनवरी, 1950
(ग) 14 अगस्त, 1947
(घ) 30 जनवरी, 1947
उत्तर:
(ख) 26 जनवरी, 1950

7. खान अब्दुल गफ्फार खान को किस नाम से जाना जाता है
(क) महात्मा गाँधी
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना
(ग) सीमान्त गाँधी
(घ) मौलाना
उत्तर:
(ग) सीमान्त गाँधी

8. बांग्लादेश का निर्माण किस वर्ष हुआ
(क) 1971
(ख) 1975
(ग) 1977
(घ) 1978
उत्तर:
(क) 1971

9. पूर्वी पाकिस्तान को वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है
(क) बांग्लादेश
(ख) म्यांमार
(ग) भूटान
(घ) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(क) बांग्लादेश

10. प्रसिद्ध फिल्म ‘गर्म हवा’ जिस वर्ष बनी, वह था-
(क)1971
(ख) 1965
(ग) 1947
(घ) 1973
उत्तर:
(घ) 1973

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11. 1960 में विभाजित होने से पहले बॉम्बे राज्य में कौनसी दो भाषाएँ बोली जाती थीं?
(क) पंजाबी और मराठी
(ख) गुजराती और पंजाबी
(ग) मराठी और पंजाबी
(घ) मराठी और गुजराती
उत्तर:
(घ) मराठी और गुजराती

12. ‘नोआखली’ अब जिस देश में है, वह है
(क) बांग्लादेश
(ख) पाकिस्तान
(ग) भारत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) बांग्लादेश

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. स्वतंत्र भारत की जनता को जवाहरलाल नेहरू ने एक विशेष सत्र को संबोधित किया। उनका यह प्रसिद्ध भाषण …………………… के नाम से जाना गया।
उत्तर:
ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी

2. सन् ………………….. का साल अभूतपूर्व हिंसा और विस्थापन की त्रासदी का साल था।
उत्तर:
1947

3. संविधान में ………………………… अधिकारों की गारंटी दी गई है और हर नागरिक को ………………. का अधिकार दिया गया है।
उत्तर:
मौलिक, मतदान

4. भारत ने संसदीय शासन पर आधारित ……………………………लोकतंत्र को अपनाया।
उत्तर:
प्रतिनिधित्वमूलक

5.. रजवाड़ों के शासक ………………… पर हस्ताक्षर करके भारतीय संघ में शामिल होते थे।
उत्तर:
इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन

6. स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ………………………थे।
उत्तर:
वल्लभभाई पटेल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1947 में भारत के विभाजन के पीछे कौन – सा सिद्धान्त था?
उत्तर:
द्वि- राष्ट्र सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
भारत में राष्ट्र निर्माण के मार्ग की किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ हैं।

  1. लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कायम रखना
  2. राष्ट्र का विकास करना ताकि समस्त समाज का भला हो।

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण के लिए किन तत्वों का होना अनिवार्य है?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के लिए भाषायी एकता, सामान्य संस्कृति तथा भौगोलिक एकता जैसे तत्वों का होना आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
मेघालय का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
मेघालय राज्य का निर्माण सन् 1972 में किया गया।.

प्रश्न 5.
भारत में राष्ट्र-निर्माण के मार्ग में बाधक तत्त्व कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
भारत में राष्ट्र-निर्माण के मार्ग में बाधक तत्त्वों में निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 6.
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे।

प्रश्न 7.
देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित दो राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित दो राज्य थे— पंजाब और बंगाल।

प्रश्न 8.
भारत विभाजन के समय धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर विभाजित हुए दो प्रान्तों के नाम बताइये।
अथवा
भारत के विभाजन में किन दो प्रान्तों का भी बँटवारा किया गया ?
उत्तर:

  1. पंजाब
  2. बंगाल- दोनों प्रान्तों का भी बँटवारा भारत के विभाजन के समय किया गया।

प्रश्न 9.
आजादी के तुरंत बाद सबसे प्रमुख चुनौती क्या थी?
उत्तर:
राष्ट्र – निर्माण।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले गुजरात और हरियाणा किन मूल राज्यों के अंग थे?
उत्तर:
गुजरात बम्बई राज्य का भाग था जबकि हरियाणा पंजाब का अंग था।

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प्रश्न 11.
उन मूल राज्यों के नाम लिखिये जिनसे निम्नलिखित राज्यों को पृथक् किया गया।
(अ) मेघालय
(ब) गुजरात।
उत्तर:
(अ) असम राज्य
(ब) बम्बई प्रेसीडेंसी।

प्रश्न 12.
सन् 2000 में जिन तीन नए राज्यों का निर्माण किया गया, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सन् 2000 में निम्न तीन राज्य बने:  झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)।

प्रश्न 13.
विभाजन के पश्चात् कौन-कौनसे राज्यों ने भारत और पाकिस्तान दोनों में शामिल होने से मना कर दिया?
उत्तर:
विभाजन के पश्चात् हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों ने भारत तथा पाकिस्तान दोनों में से किसी भी राज्य में शामिल होने से मना कर दिया।

प्रश्न 14.
पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के उस नेता का नाम लिखिये जो द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त का विरोधी था।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खां।

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प्रश्न 15.
भारत के प्रथम गृहमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

प्रश्न 16.
ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने भारत विभाजन की घोषणा कब की?
उत्तर:
ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने 3 जून, 1947 को विभाजन योजना की घोषणा की।

प्रश्न 17.
रियासतों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रियासतों पर उन राजाओं का शासन था जिन्होंने अंग्रेजों के वर्चस्व के तहत अपने आंतरिक मामलों पर नियंत्रण का कोई रूप नियोजित किया था।

प्रश्न 18.
भारत के किस राज्य में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर सर्वप्रथम चुनाव हुए थे?
उत्तर:
मणिपुर में।

प्रश्न 19.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब लागू किया गया ?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम सन् 1956 में लागू किया गया।

प्रश्न 20.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर कितने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई।

प्रश्न 21.
भाषा के आधार पर सर्वप्रथम कब और किस राज्य का निर्माण किया गया?
उत्तर:
दिसम्बर, 1952 में सर्वप्रथम भाषा के आधार पर आंध्रप्रदेश राज्य का निर्माण हुआ।

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प्रश्न 22.
स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को संविधान सभा में जो भाषण दिया, वह किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का वह भाषण ‘भाग्यवधु से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 23.
‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ प्रसिद्ध भाषण किस प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया?
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के द्वारा।

प्रश्न 24.
राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट का आधार क्या था?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट भाषाई पहलुओं को प्रतिबिंबित करने के लिए भाषा के आधार पर राज्यों की सीमाओं के वितरण पर आधारित थी।

प्रश्न 25.
सन् 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन करके कौन-कौनसे दो राज्यों का निर्माण किया गया?
उत्तर:
सन् 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन करके महाराष्ट्र और गुजरात नामक दो राज्यों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 26.
राज्य पुनर्गठन आयोग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिफारिश क्या है?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिफारिश भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन है।

प्रश्न 27.
किन चार देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय अन्यों की तुलना में अधिक कठिन साबित हुआ?
उत्तर:

  1. हैदराबाद
  2. जम्मू एवं कश्मीर
  3. जूनागढ़
  4. मणिपुर।

प्रश्न 28.
अलगाववाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब एक समुदाय या सम्प्रदाय संकीर्ण भावना से ग्रस्त होकर अलग एवं स्वतन्त्र राज्य बनाने की मांग करे तो उसे अलगाववाद कहा जाता है

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प्रश्न 29.
राज्य पुनर्गठन से क्या अभिप्राय है? यह कब किया गया?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन का अर्थ है कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुनः गठन करना। भारत में राज्यों का पुनर्गठन 1956 में किया गया।

प्रश्न 30.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा किन दो चुनौतियों का सामना किया जा रहा था?
उत्तर:

  1. शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या।
  2. राज्यों के पुनर्गठन की समस्या।

प्रश्न 31. भारत में वर्तमान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की स्थिति बताइये।
उत्तर:
भारत में वर्तमान में 28 राज्य और 9 केन्द्रशासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 32.
राज्यों के पुनर्गठन के लिए भाषा आधार होगा। यह प्रस्ताव कांग्रेस के किस सत्र में माना गया?
उत्तर:
सन् 1920 में कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन।

प्रश्न 33.
मद्रास प्रांत के तेलुगुवासी इलाकों को अलग करके नया राज्य बनाने की माँग किस आंदोलन द्वारा की गयी थी?
उत्तर:
विशाल आंध्र आंदोलन|

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प्रश्न 34.
महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन किस सन् में हुआ?
उत्तर:
महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन सन् 1960 में हुआ।

प्रश्न 35.
मुस्लिम लीग का गठन क्यों हुआ था?
उत्तर:
मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रूप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। प्रश्न 36, भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के समय वित्तीय संपदा के साथ-साथ किन चीजों का बँटवारा हुआ ? उत्तर-वित्तीय संपदा के साथ-साथ टेबल, कुर्सी, टाईपराइटर और पुलिस के वाद्ययंत्रों तक का बँटवारा हुआ था।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने मुख्य चुनौतियाँ कौन-कौनसी थीं?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने निम्नलिखित मुख्य चुनौतियाँ थीं

  1. भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखना।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करना।
  3. सभी वर्गों का समान विकास करना।

प्रश्न 2.
“भारत को किसी अन्य देश के बजाय बहुत कठिन परिस्थितियों में स्वतंत्रता मिली।” कथन को सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
भारत को स्वतंत्रता बहुत कठिन परिस्थितियों में मिली:

  1. भारत की स्वतंत्रता भारत के बँटवारे के साथ आई।
  2. वर्ष 1947 अभूतपूर्व हिंसा और आघात का वर्ष बन गया।
  3. फिर भी हमारे नेताओं ने क्षेत्रीय विविधताओं को भी समायोजित करके इन सभी चुनौतियों का सराहनीय तरीके से सामना किया।

प्रश्न 3.
क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि के उस छोटे से टुकड़े को रहने वाले लोगों में एकता की भावना है। यह सामाजिक जीवन के कारण उत्पन्न होती है। क्षेत्र कहा जाता है जो किसी बड़े संगठित क्षेत्र का एक भाग है और जिसमें भावना सामान्य भाषा, सामान्य धर्म, भौगोलिक समीपता, आर्थिक और

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प्रश्न 4.
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का क्या आधार तय किया गया था?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया था कि जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे क्षेत्र पाकिस्तान के भू-भाग होंगे तथा शेष भाग ‘भारत’ कहलायेगा।

प्रश्न 5.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् रजवाड़ों के विलय का क्या आधार निश्चित किया गया था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद रजवाड़ों को भी कानूनी रूप से स्वतंत्र होना था। ब्रिटिश शासन ने यह दृष्टिकोण दिया कि रजवाड़े अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या वे चाहें तो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था, न कि वहाँ की जनता को।

प्रश्न 6.
भारत में हरियाणा राज्य का पुनर्गठन कब हुआ ? इसकी प्रमुख समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
1 नवम्बर, 1966 को पंजाब से हिन्दी भाषी क्षेत्र को पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों का निर्माण हुआ। पंजाब और हरियाणा में भाषा के आधार पर अब भी विवाद बना हुआ है। पंजाब हरियाणा के पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब को हस्तान्तरित करने की माँग करता है, जबकि हरियाणा पंजाब के हिन्दी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा को देने की माँग करता है ।

प्रश्न 7.
पोट्टी श्रीरामुलु कौन थे?
उत्तर:
पोट्टी श्रीरामुलु गाँधीवादी विचारों से प्रभावित कार्यकर्ता थे। इन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए सरकारी पद को त्याग दिया। 19 अक्टूबर, 1952 को वह आन्ध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य निर्माण की माँग को लेकर अनशन पर बैठे। 15 दिसम्बर, 1952 को अनशन के दौरान ही वह मृत्यु को प्राप्त हो गये।

प्रश्न 8.
संक्षेप में देश विभाजन से हुई जन-हानि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक अनुमान के अनुसार विभाजन के फलस्वरूप 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा। विभाजन की हिंसा में लगभग पाँच से दस लाख लोगों ने अपनी जान गँवाई । अनेक लोगों के अंग-भंग कर दिए गए। उनके बच्चे अनाथ हो गये।

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय आंदोलन के नेता एक पंथ निरपेक्ष राज्य के पक्षधर क्यों थे?
उत्तर:
राष्ट्रीय आंदोलन के नेता एक पंथनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर थे क्योंकि वे जानते थे कि बहुधर्मावलम्बी देश भारत में किसी धर्म विशेष को संरक्षण देना भारत की एकता के लिए बाधक बनेगा तथा इससे विविध धर्मावलम्बियों के मूल अधिकारों का हनन होगा।

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प्रश्न 10.
अमृता प्रीतम कौन थी?
उत्तर:
अमृता प्रीतम पंजाबी भाषा की प्रमुख कवयित्री और कथाकार, साहित्य उपलब्धियों के लिए साहित्य अकादमी, पद्मश्री और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महिला थी। राष्ट्र विभाजन के बाद वह दिल्ली में ही स्थायी रूप से बस गई। उन्होंने जीवन के अन्तिम समय पंजाब की साहित्यिक पत्रिका ‘नागमणि’ का सम्पादन किया।

प्रश्न 11.
फैज अहमद फैज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध मानवतावादी तथा क्रांतिकारी कवि फैज अहमद फैज़ का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में ) हुआ। वह विभाजन के बाद पाकिस्तान में ही रहे। वामपंथी रुझान के कारण उनका पाकिस्तानी शासन से हमेशा टकराव बना रहा। उन्होंने लम्बा समय कारावास में बिताया । नक्से फिरयादी, दस्त-ए-सबा तथा जिंदानामा उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं।

प्रश्न 12.
क्षेत्रीय संस्कृति तथा क्षेत्रीय असन्तुलन के आधार पर किन राज्यों का निर्माण किया गया है?
उत्तर:
अनेक उपक्षेत्रों ने अलग क्षेत्रीय संस्कृति अथवा विकास के मामले में क्षेत्रीय असन्तुलन का मुद्दा उठाकर अलग राज्य बनाने की माँग की। ऐसे तीन राज्य झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल ( अब उत्तराखंड) सन् 2000 में बने तथा तेलंगाना 2014 में बना।

प्रश्न 13.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:
1. द्वि- राष्ट्र सिद्धान्त
2. मुस्लिम लीग।
उत्तर:

  1. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त: द्विराष्ट्र सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नामक दो कौमों का है।
  2. मुस्लिम लीग: स्वतंत्रता से पूर्व मुस्लिम लीग मुसलमानों का राजनैतिक दल था। विभाजन से पूर्व इसने द्विराष्ट्र सिद्धान्त के तहत मुसलमानों के लिए पाकिस्तान की माँग की और अन्ततः भारत का विभाजन हुआ।

प्रश्न 14.
भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य कैसे बना?
उत्तर:
यद्यपि भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद 1951 में भारत की कुल आबादी में 12 प्रतिशत मुसलमान थे। इसके अतिरिक्त अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बी भी थे। भारत सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के पक्षधर थे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे जिस धर्म को माने, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर ही होना चाहिए। धर्म को नागरिकता की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके इस धर्मनिरपेक्ष आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। इस प्रकार भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना।

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प्रश्न 15.
विभाजन के समय पाकिस्तान को दो भागों-पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में क्यों बांटा गया?
उत्तर:
भारत के विभाजन का यह आधार तय किया गया कि ब्रिटिश इण्डिया के जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे। अविभाजित भारत में ऐसे दो इलाके थे। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में। इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में ये दो इलाके शामिल होंगे। ये पूर्वी पाकिस्तान तथा पश्चिमी पाकिस्तान कहलाये। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दो इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाये। इसलिए पाकिस्तान को दो भागों में बाँटा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय संघ में जूनागढ़ को शामिल करने की घटना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक रियासत थी। जूनागढ़ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। जबकि भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था। जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ के शासक के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी अन्ततः दिसम्बर, 1947 में करवाये गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 99 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।

प्रश्न 17.
हैदराबाद को भारत में किस प्रकार सम्मिलित किया?
उत्तर:
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय:
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के पश्चात् हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया परन्तु हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण तथा यहाँ की जनसंख्या का हिन्दू बहुसंख्यक होने के कारण भारत में विलय आवश्यक था। तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल को आशंका थी कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। सरदार पटेल तथा लार्ड माउंटबेटन के निजाम को समझाने के प्रयासों की विफलता के बाद भारत ने सैनिक कार्यवाही करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

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प्रश्न 18.
‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस रात संविधान सभा के एक विशेष सत्र को संबोधित किया था। उनका यह प्रसिद्ध भाषण ‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ के नाम से जाना गया।

प्रश्न 19.
भारत में देसी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में देशी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। उनके अथक प्रयास के फलस्वरूप सभी रजवाड़ों का भारत में विलय तो हुआ और साथ ही हैदराबाद के निजाम तथा जूनागढ़ के नवाब के साथ सरदार पटेल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किन्तु उन्होंने उन दिक्कतों के बारे में सोचे बिना इन दोनों रियासतों को भारत का अभिन्न अंग बना दिया।

प्रश्न 20.
देशी राज्यों (रजवाड़ों) के भारत संघ में विलय के संदर्भ में तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
देशी राज्यों के भारत संघ में विलय सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

  1. अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे।
  2. इस संदर्भ में भारत सरकार का रुख लचीला था और वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी, जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ। भारत सरकार ने विभिन्नताओं को सम्मान देने और
  3. विभिन्न क्षेत्रों की माँगों को संतुष्ट करने के लिये यह रुख अपनाया था।
  4. विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी। ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखंडता एकता का प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो उठा था।

प्रश्न 21.
सीमान्त गाँधी कौन थे? उनके द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के बारे में दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमान्त गाँधी कहा जाता है। वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (पेशावर के मूलतः निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वे कांग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के समर्थक थे। सच्चे गाँधीवादी, अहिंसा व शान्ति के समर्थक होने के कारण उनको ‘सीमान्त गाँधी’ कहा जाता था। वे द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के एकदम विरोधी थे। संयोग से उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

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प्रश्न 22.
रजवाड़ों के संदर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रजवाड़ों का सहमति – पत्र – आजादी के तुरन्त पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के समाप्त होने के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से आजाद हो जाएँगे और उसके राजा या शासक अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकते हैं या अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रख सकते। शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के सहमति – पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। इस सहमति – पत्र को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमते हैं।

प्रश्न 23.
संक्षेप में राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्माण की पृष्ठभूमि, कार्य तथा इससे जुड़े एक्ट का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग:
भारत में आंध्रप्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों की भाषायी आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामलों पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियमं पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए।

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प्रश्न 24.
मोहम्मद अली जिन्ना कौन थे? उनके बारे में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मोहम्मद अली जिन्ना:
मोहम्मद अली जिन्ना आधुनिक पाकिस्तान के जनक थे। वे स्वराज्य संघर्ष के कुछ प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी में रहे। बाद में वे मुस्लिम लीग में शामिल हो गये। वे देश विभाजन के साथ-साथ अपने जीवन के सबसे बड़े राजनीतिक उद्देश्य पाकिस्तान निर्माण की प्राप्ति को समीप देखकर साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने के पक्ष में बातें भी करने लगे। जिन्ना ने अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक समुदायों में पारस्परिक एकता के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। पाकिस्तान की संविधान सभा में अध्यक्षीय भाषण में आपने कहा कि पाकिस्तान में आप अपने मंदिर या मस्जिद में जाने या किसी भी अन्य पूजास्थल पर जाने के लिये आजाद हैं। आपके धर्म, आपकी जाति या विश्वास से राज्य का कुछ लेना-देना नहीं है।

प्रश्न 25.
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से उपजी समस्या को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की समस्या – भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से कई राज्यों के लोग सन्तुष्ट नहीं थे, क्योंकि कई राज्यों में रहते लोग, अपनी भाषा के आधार पर अलग राज्य की स्थापना चाहते थे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गम्भीर आंदोलन आरम्भ कर दिए और सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े। उदाहरणार्थ- 1960 में बम्बई राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में, 1966 में पंजाब राज्य को हरियाणा और पंजाब दो राज्यों में बांटना पड़ा था।

इसी प्रकार 1963 में नागालैण्ड और 1972 में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा राज्य की स्थापना करनी पड़ी तथा 1987 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम राज्य वजूद में आए। 2014 में तेलंगाना राज्य वजूद में आया। वर्तमान समय में विदर्भ, मैथली, बोडो, डोगरालैण्ड, गोरखा व कच्छ आदि राज्यों की माँग भाषा के आधार पर ही की जा रही है।

प्रश्न 26.
भारतीय राजनीति पर भाषा के प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति पर भाषा के प्रभाव – भाषा ने राजनीति को अग्र प्रकार से प्रभावित किया

  1. राष्ट्रीय एकता को खतरा: भारत को बहुभाषी होने के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। यद्यपि हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा माना गया है लेकिन दक्षिण के राज्यों तथा उत्तर के राज्यों में मुख्य विवाद का कारण भाषा ही है।
  2. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन: राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के आधार पर भारत को 14 राज्यों तथा 6 संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया। लेकिन इसके बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ और भाषा के आधार पर राज्यों की माँग की समस्या वर्तमान में भी बनी हुई है।
  3. सीमा विवाद: भाषा के कारण अनेक राज्यों में सीमा विवाद उत्पन्न हुए हैं और आज भी अनेक राज्यों के बीच यह विवाद चल रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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प्रश्न 27.
स्वतंत्र भारत को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान किन तीन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
स्वतंत्र भारत को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान निम्न तीन चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

  1. राष्ट्र निर्माण की चुनौती:
    स्वतंत्रता के समय भारत अलग-अलग राज्यों में विभाजित था। इसलिए पहली चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की थी जिसमें भारतीय समाज में सारी विविधताओं के लिए जगह हो। इस कार्य को पूरा करने का काम सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया। इस कार्य को अलग-अलग चरणों में पूरा करने के लिए उन्होंने राजनीति तथा कूटनीति दोनों का प्रयोग किया।
  2. लोकतंत्र कायम करना:
    भारत ने सरकार के संसदीय स्वरूप के आधार पर प्रतिनिधि लोकतंत्र का गठन किया और राष्ट्र में इन लोकतांत्रिक प्रथाओं को विकसित करना एक बड़ी चुनौती थी।
  3. समाज का विकास और कल्याण सुनिश्चित करना:
    भारतीय राजनीति ने राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत लोक-कल्याण के उन लक्ष्यों को स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीति को जरूर पूरा करना चाहिए ।

प्रश्न 28.
“कल हम अंग्रेजी की गुलामी से आजाद हो जायेंगे लेकिन आधी रात को भारत का बँटवारा होगा इसलिए कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन होगा और गम का भी।” गाँधीजी के उपर्युक्त कथन के अनुसार कल का दिन हमारे लिए क्यों खुशी एवं गम दोनों का होगा? उत्तर- गाँधीजी के अनुसार यह दिन खुशी एवं गम का इसलिए होगा क्योंकि 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को लगभग 12 बजे से भारत में लम्बे समय से चला आ रहा ब्रिटिश राज का अन्त हो जायेगा तथा लोग स्वतन्त्रता के वातावरण में जीवन व्यतीत करेंगे। इसलिए 15 अगस्त, 1947 का दिन सभी भारतवासियों के लिए खुशी का दिन होगा । लेकिन उसी दिन गम को भी सहन करना होगा क्योंकि देश का दो स्वतन्त्र राष्ट्रों भारत एवं पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो जायेगा।

प्रश्न 29.
हमें बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की इन जटिलताओं को दूर करने की भावना चाहिए। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदायों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं। अगर मुसलमान पठान, पंजाबी, शिया और सुन्नी आदि समुदायों में बँटे हैं तो हिन्दू भी ब्राह्मण, वैष्णव, खत्री तथा बंगाली, मद्रासी आदि समुदायों। पाकिस्तान में आप आजाद हैं। जिन्ना साहब के उपर्युक्त कथन को समझाइये।
उत्तर:
पाकिस्तान की मुस्लिम लीग की माँग जब लगभग समीप दिखाई दी तो जिन्ना साहब ने पंथ निरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव उत्पन्न करने के लिए अपने भाव व्यक्त किये। उनके विचारानुसार पाकिस्तान में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की जटिलताओं को दूर करने की भावना से काम करना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदायों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं।

जैसे कि अगर हम पाकिस्तान के बहुसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों की बात करते हैं तो हमें मानना पड़ेगा कि उनमें कुछ लोग पठान हैं तो कुछ लोग पंजाबी, कुछ लोग शिया तो कुछ सुन्नी इत्यादि भी हैं अर्थात् बहुसंख्यक भी ‘स्थल’ पर विभाजित हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दू समाज यदि अल्पसंख्यक हैं तो वे भी कई जातियों या वर्णों में विभाजित हैं, जैसे—ब्राह्मण, वैश्य, खत्री, बंगाली, मद्रासी आदि। पाकिस्तान में सभी लोग स्वतन्त्र हैं। वे अपने या अन्य पूजा स्थलों पर जाने के लिए स्वतन्त्र हैं।

प्रश्न 30.
महात्मा गाँधी की शहादत (बलिदान) से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा गाँधी की शहादत (बलिदान) से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. महात्मा गाँधी की नीति एवं कार्यों से तत्कालीन समय के अतिवादी हिन्दू एवं मुसलमान दोनों अप्रसन्न थे। दोनों समुदायों के अतिवादी गाँधीजी पर दोष मंढ रहे थे।
  2. हिन्दू-मुस्लिम एकता के अनेक अडिग प्रयासों से अतिवादी हिन्दू महात्मा गाँधी से इतने नाराज थे कि उन्होंने अनेक बार गाँधीजी को जान से मारने का प्रयास किया।
  3. गाँधीजी ने प्रार्थना सभा में हर किसी से मिलना जारी रखा। आखिरकार 30 जनवरी, 1948 के दिन एक हिन्दू अतिवादी नाथूराम विनायक गोडसे ने गोली मारकर गाँधीजी की हत्या कर दी।
  4. गाँधीजी की मौत का देश के साम्प्रदायिक माहौल पर जादुई असर हुआ । विभाजन से जुड़ा क्रोध और हिंसा अचानक मंद पड़ गये। भारत सरकार ने साम्प्रदायिक संगठनों की मुश्कें कस दीं और साम्प्रदायिक राजनीति का जोश लोगों में घटने लगा।

प्रश्न 31.
“हम भारत के इतिहास के एक यादगार मुकाम पर खड़े हैं। साथ मिलकर चलें तो देश को हम महानता की नयी बुलंदियों तक पहुँचा सकते हैं, जबकि एकता के अभाव में हम अप्रत्याशित विपदाओं के घेरे में होंगे। मैं उम्मीद करता हूँ कि भारत की रियासतें इस बात को पूरी तरह समझेंगी कि अगर हमने सहयोग नहीं किया और सर्व-सामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो अराजकता और अव्यवस्था हममें से सबको चाहे कोई छोटा हो या बड़ा घेर लेंगी और हमें बर्बादी की तरफ ले जाएँगी सरदार पटेल के उपर्युक्त कथन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन में सरदार पटेल ने देश की अनेकानेक रियासतों के शासकों को सम्बोधित कर एक पत्र के माध्यम से (1947) बताया कि हम सभी देशवासी अपने भारत के इतिहास के स्मरणीय क्षण पर खड़े हैं। यदि हम सभी देशवासी साथ-साथ मिलकर चलें तो निःसन्देह देश को महानता की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं। बकि एकता के अभाव में हम अप्रत्याशित संकट से घिर जायेंगे। सरदार पटेल ने आशा प्रकट की कि देशी रियासतें इस बात को पूरी तरह समझेंगी कि यदि हमने परस्पर सहयोग नहीं किया और जनसामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो देश में अराजकता और अव्यवस्था हम सभी को घेर लेंगी और हमें बर्बादी की ओर ले जायेंगी। एकता में बल है, पारस्परिक फूट में बर्बादी है।

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प्रश्न 32.
भारत विभाजन से संबंधित किन्हीं दो परिणामों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
14-15 अगस्त, 1947 को भारत का विभाजन हुआ तथा भारत व पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में आए। इस विभाजन के दो परिणाम निम्नलिखित हैं।

  1. आबादी का स्थानान्तरण: विभाजन से बड़े पैमाने पर एक जगह की अल्पसंख्यक आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था।
  2. हिंसक अलगाववाद: विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बंटवारा नहीं हुआ बल्कि दो समुदायों, जो अब तक पड़ौसियों की तरह रहते थे, में हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा।

प्रश्न 33.
भारत की स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष आई किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष आई दो प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं।

  1. राष्ट्रीय एकता की चुनौती: स्वतंत्र भारत के सामने तात्कालिक चुनौती विविधता से भरे भारत में एकता की स्थापना करती थी। इस समय भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती प्रमुख थी क्योंकि अनेक रियासतें अपने को स्वतंत्र रखना चाह रही थीं तो अनेक पाकिस्तान में मिलने की इच्छा बता रही थीं।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की चुनौती: स्वतंत्र भारत के समक्ष दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की थी। यद्यपि भारतीय संविधान में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की थी, नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारण्टी दी गई थी, वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया था, तथापि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार को प्रचलन में लाने की चुनौती बनी हुई थी।

प्रश्न 34.
जवाहर लाल नेहरू ने भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों के संदर्भ में 15 अक्टूबर, 1947 को मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में क्या लिखा था?
उत्तर:
मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में नेहरूजी ने लिखा था कि- “भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यदि वे चाहें तब भी यहाँ से कहीं और नहीं जा सकते। यह एक बुनियादी तथ्य है और इस पर कोई अँगुली नहीं उठाई जा सकती। पाकिस्तान चाहे जितना उकसावा दे या वहाँ के गैर-मुस्लिमों को अपमान और भय के चाहे जितने भी घूँट पीने पड़ें, हमें अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और शालीनता के साथ पेश आना है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हमें उन्हें नागरिक के अधिकार देने होंगे और उनकी रक्षा करनी होगी। अगर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं होते तो यह एक नासूर बन जाएगा जो पूरी राज व्यवस्था में जहर फैलाएगा और शायद उसको तबाह भी कर दे।”

प्रश्न 35.
पाकिस्तान के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की माँग क्यों मान ली?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ की बात कही और इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ इन दो कौमों का देश था और इसीलिए मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की। काँग्रेस ने इस सिद्धांत का विरोध किया। सन् 1940 के दशक में राजनीतिक मोर्चे पर कई बदलाव आए, काँग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा तथा ब्रिटिश- शासन की भूमिका जैसी कई बातों का जोर रहा । फलस्वरूप पाकिस्तान की माँग मान ली गई ।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 36.
विभाजन के परिणाम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सन् 1947 के विभाजन पर एक जगह की आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। यह स्थानांतरण मानव-इतिहास के अब तक सबसे बड़े स्थानांतरणों में से एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मारा। लोग अपना घर – बार छोड़ने पर मजबूर हुए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग गए और उन्होंने शरणार्थी शिविर में पनाह ली। सीमा के दोनों ओर हजारों की तादाद में औरतों को अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई मामलों में यह भी हुआ कि खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला । बहुत से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गए। लाखों की संख्या में लोग बेघर हो गए।

प्रश्न 37.
भारत के नेताओं ने नागरिकता की कसौटी धर्म को नहीं बनाया । इस कथन को सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रूप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। इसी प्रकार कुछ भारतीय संगठनों ने भी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिन्दुओं को लामबंद करने की कोशिश की। लेकिन भारत की कौमी सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के पक्षधर थे चाहे नागरिक किसी भी धर्म का हो। वे भारत को ऐसे राष्ट्र के रूप में नहीं देखना चाहते थे जहाँ किसी एक धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्मावलंबियों के ऊपर वरीयता दी जाए अथवा किसी एक धर्म के विश्वासियों के मुकाबले बाकियों को हीन समझा जाता हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे किसी भी धर्म का हो, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर होना चाहिए। हमारे नेतागण धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श के हिमायती थे।

प्रश्न 38.
अंग्रेजी – राज का नजरिया यह था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। यह अपने आप में गंभीर समस्या थी। उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।
उत्तर:
आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश-प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से आजाद हो जाएँगे। अंग्रेजी राज के अनुसार रजवाड़े अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिल सकते हैं या स्वतंत्र रह सकते हैं । यह अपने आप में गंभीर समस्या थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था। उदाहरण के लिए – त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की। अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने भी ऐसी ही घोषणा की। कुछ शासक जैसे कि भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे । अतः रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गई कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान कई छोटे- छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला था।

प्रश्न 39.
देशी रजवाड़ों की चर्चा से कौन-सी तीन बातें सामने आती हैं?
उत्तर:
देशी रजवाड़ों की चर्चा से निम्न तीन बातें सामने आती हैं।

  1. अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे संजीव पास बुक्स
  2. भारत सरकार का रुख लचीला था और वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ।
  3. विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखंडता एकता का सवाल सबसे अहम था।

प्रश्न 40.
यदि आजाद भारत को प्रांतों में बाँटने का आधार भाषा को बनाया गया तो अव्यवस्था फैल सकती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आजादी और बँटवारे के बाद स्थितियाँ बदलीं भारत के नेताओं को यह आभास हो गया था कि अगर भाषा के आधार पर प्रांत बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है तथा देश के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है। भाषावार राज्यों के गठन से दूसरी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से ध्यान भटक सकता।

प्रश्न 41.
आंध्रप्रदेश राज्य का गठन क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
भारत के आज़ाद होने पर भारतीय नेताओं ने भाषा के आधार पर प्रांत बनाने का फैसला स्थगित कर दिया। केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दी। पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश शामिल थे। विशाल आंध्र आंदोलन ने माँग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगुवासी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्रप्रदेश बनाया जाए। इस आंदोलन को लोगों का सहयोग मिला।

कांग्रेस के नेता और दिग्गज गाँधीवादी, पोट्टी श्रीरामुलु, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। फलस्वरूप आंध्रप्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुईं। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। मद्रास में अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 42.
भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक समय हो गया। अर्थात् हम यह कह सकते हैं क़ि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। क्योंकि राजनीति और सत्ता में भागीदारी का रास्ता अब एक छोटे-से अंग्रेजी भाषी अभिजात तबके के लिए ही नहीं बल्कि बाकियों के लिए भी खुल चुका था। भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत इससे देश नहीं टूटा। इसके विपरीत देश की एकता . और ज्यादा मजबूत हुई। सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धांत को स्वीकृति मिली।

प्रश्न 43.
भारत देश के लोकतांत्रिक होने का वृहत्तर अर्थ है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब हम यह कहते हैं कि भारत ने लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया है तो इसका मतलब मात्र यह नहीं है कि भारत में लोकतांत्रिक संविधान पर अमल होता है अथवा भारत में चुनाव करवाए जाते हैं। भारत के लोकतांत्रिक होने का वृहत्तर अर्थ है । लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था विभिन्नताओं को पहचानना और उन्हें स्वीकार करना। इसके साथ ही यह भी मानकर चलना कि विभिन्नताओं में आपसी विरोध भी हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में लोकतंत्र की धारणा विचारों और जीवन-पद्धतियों की बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई थी ।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयाँ: भारत के विभाजन में आने वाली प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित थीं।

1. मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना: भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। ऐसा कोई तरीका न था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाये।

2. प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना: मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो, ऐसा भी नहीं था। विशेषकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त जिसके नेता खान अब्दुल गफ्फार खां थे, जो द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे।

3. पंजाब और बंगाल के बँटवारे की समस्या: तीसरी कठिनाई यह थी कि ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। इन प्रान्तों का बंटवारा किस प्रकार किया जाये। 14-15 अगस्त मध्य रात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था।

4. अल्पसंख्यकों की समस्या: सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। ये लोग एक तरह से सांसत में थे। जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी भरा था। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अक्सर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। इस प्रकार विभाजन में सिर्फ संपदा, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि इसमें दोनों समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार भी हुए।

प्रश्न 2.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का हल किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का हल निम्न प्रकार किया गया।

  • मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना: भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा पूर्व में। अतः यह निर्णय किया गया कि पाकिस्तान के दो इलाके होंगे
    1. पूर्वी पाकिस्तान और
    2. पश्चिमी पाकिस्तान।
  • प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना: जो मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था, जैसे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त। उसकी आवाज की अनदेखी कर उसे पाकिस्तान में मिलाया गया।
  • पंजाब व बंगाल के बंटवारे की समस्या: इस सम्बन्ध में यह फैसला किया गया कि इन दोनों प्रान्तों का बंटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा तथा इसमें जिले अथवा तहसील को आधार माना जायेगा। लेकिन यह फैसला देर से होने के कारण दोनों प्रान्तों के बंटवारे में जान-माल की भारी हानि हुई।
  • अल्पसंख्यकों की समस्या: हर हाल में अल्पसंख्यकों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा। दोनों तरफ शरणार्थी शिविर लगाये गये और फिर उन्हें बसाया गया।

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प्रश्न 3.
1947 में भारत के विभाजन के क्या परिणाम हुए?
अथवा
‘भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक था । ‘ विभाजन के परिणामों का उल्लेख उपर्युक्त तथ्य के प्रकाश में कीजिये।
उत्तर:
भारत-विभाजन के परिणाम: 14 – 15 अगस्त, 1947 को ‘ब्रिटिश इंडिया’ का दो राष्ट्रों में विभाजन हो गया। ये राष्ट्र हैं। भारत और पाकिस्तान भारत और पाकिस्तान के विभाजन के निम्न प्रमुख परिणाम सामने आये-

  1. आबादी का स्थानान्तरण: इसके कारण बड़े पैमाने पर एक जगह की अल्पसंख्यक आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी से भरा था।
  2. घर बार छोड़ने की मजबूरी: विभाजन के परिणामस्वरूप दोनों तरफ के 80 लाख अल्पसंख्यक लोगों को अस्थाई तौर पर शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। वहाँ का स्थानीय प्रशासन इन लोगों के साथ रुखाई का बरताव कर रहा था।
  3. महिलाओं तथा बच्चों के साथ अत्याचार हुए- सीमा के दोनों ओर हजारों की तादाद में अल्पसंख्यक औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरन शादी करनी पड़ी और अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। बहुत से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गये।
  4. हिंसक अलगाव: इस विभाजन में दो समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार हुए। विभाजन की हिंसा में लगभग 5 से 10 लाख लोग मारे गये।
  5. भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा: विभाजन में वित्तीय संपदा, परिसम्पत्तियों, सरकारी काम-काज में आने वाले फर्नीचर, मशीनरी तथा सरकारी व रेलवे के कर्मचारियों का बँटवारा हुआ। साथ ही साथ टेबल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्य यंत्रों तक का बंटवारा हुआ था। अतः स्पष्ट है कि भारत तथा पाकिस्तान का विभाजन दर्दनाक तथा त्रासदी से भरा था।

प्रश्न 4.
देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत में देशी राज्यों (रजवाड़ों) के विलय पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
देशी राज्यों या रजवाड़ों के विलय की समस्या:
स्वतंत्रता के तुरन्त पहले ब्रिटिश शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से स्वतंत्र हो जायेंगे तथा ये रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया है। यह एक गंभीर समस्या थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था। राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का समाधान सरदार पटेल के नेतृत्व में देशी रियासतों के विलय की समस्या का समाधान निम्न प्रकार तीन चरणों में किया गया

  1. प्रथम चरण: एकीकरण प्रथम चरण में अधिकांश देशी रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में स्वेच्छा से अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये, जिसे ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत है।
  2. द्वितीय चरण- अधिमिलन: मणिपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।
  3. तृतीय चरण: प्रजातन्त्रीकरण: इस चरण में देशी राज्यों के प्रान्तों में भी संसदीय प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की स्थापना की गई। इस प्रकार इनमें प्रजातन्त्रीकरण की समस्या को हल किया गया।

प्रश्न 5.
विभाजन की विरासतों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत विभाजन के साथ भारत को जो समस्याएँ विरासत में मिलीं उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत को विभाजन के साथ मिली समस्याएँ: भारत विभाजन के साथ भारत को जो समस्याएँ विरासत में मिलीं उन्हें विभाजन की विरासत कहा जाता है। यह समस्याएँ निम्नलिखित हैं।
1. शरणार्थियों की समस्या:
भारत के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान छोड़कर भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या लाखों में थी। अतः सरकार के सामने इन लोगों के पुनर्वास की कठिन समस्या सामने आयी। भारत सरकार को न केवल इन शरणार्थी लोगों को भारत में रहने के लिए घरों की व्यवस्था करनी थी, बल्कि उन्हें मनोवैज्ञानिक आधार पर यह समझाना भी था कि यहाँ उन्हें सुरक्षित रूप से जीवन व्यतीत करने की व्यवस्था भी की जाएगी। पं. नेहरू ने इस समस्या के समाधान हेतु पुनर्वास मन्त्रालय बनाया, शरणार्थियों के लिए जगह- जगह शिविर लगाये,
उन्हें बसाया तथा मुआवजे के रूप में यथायोग्य जमीन-जायदाद दी तथा उन्हें भारत का नागरिक बनाया।

2. कश्मीर समस्या:
भारत के विभाजन के समय देशी रियासत कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को एक स्वतन्त्र राज्य बनाने का निर्णय लिया। परन्तु पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। फलतः आक्रमणकारियों में अधिकांशतः पाकिस्तानी सैनिक थे। इस आक्रमण से कश्मीर के अस्तित्व को खतरा हो गया।

3. कश्मीर के राजा हरिसिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के घोषणा: पत्र पर हस्ताक्षर कर भारत से सहायता माँगी पं. नेहरू और सरदार पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर भेजा, इसके साथ भारत ने पाकिस्तान से यह आग्रह किया कि वह कश्मीर में अपनी सैनिक गतिविधियाँ बन्द करे। परन्तु पाकिस्तान ने इससे इन्कार कर दिया। कश्मीर की समस्या पर कोई सर्वमान्य हल निकल सके, इस हेतु पं. नेहरू इसे संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये परन्तु कश्मीर की समस्या का अब तक भी कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल पाया है।

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प्रश्न 6.
स्वतंत्रता के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को समझाते हुए राज्यों का पुनर्गठन समझाइए।
अथवा
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कब और क्यों हुआ? इसकी मुख्य सिफारिश क्या थी?
अथवा
राज्य पुनर्गठन आयोग का क्या कार्य था? इसकी प्रमुख सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन: भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग के जोर पकड़ने पर केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। राज्य पुनर्गठन आयोग का कार्य: राज्य पुनर्गठन आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मसले पर गौर करना था। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश ।

राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह सिफारिश की कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए इस आयोग की सिफारिश के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ जिसके आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र: शासित प्रदेश बनाये गये। सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण: भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के निम्न परिणाम निकले हैं।

  1. एक लोकतांत्रिक कदम: भाषा के आधार पर नये राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया।
  2. सीमांकन का समरूप आधार: भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला।
  3. एकता को बल: भाषावार पुनर्गठन से देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई।
  4. विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति

प्रश्न 7.
भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में कई गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई राज्यों के लोग अपनी भाषा के आधार पर नये राज्यों की माँग करने लगे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गंभीर आंदोलन आरंभ कर दिए गए और भारत सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े। सन् 1960 में बंबई (मुम्बई) राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में और 1966 में पंजाब राज्य को हरियाणा और पंजाब दो राज्यों में बाँटना पड़ा।

इसी प्रकार, 1963 में नगालैण्ड और 1972 में मेघालय राज्य की स्थापना करनी पड़ी। इसी वर्ष मणिपुर, त्रिपुरा भी अलग राज्य बने तथा अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम 1987 में वजूद में आए। नवम्बर, 2000 में तीन राज्यों उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के गठन तथा 2014 में तेलंगाना के गठन के बावजूद भाषा के आधार पर जम्मू-कश्मीर में डोगरालैंड, पश्चिमी बंगाल में गोरखा राज्य, गुजरात में कच्छ राज्य, मध्य प्रदेश में विदर्भ राज्य की मांग भाषा के आधार पर ही की जा रही है।

भाषायी क्षेत्रवाद की यह भावना देश की राजनीतिक और क्षेत्रीय एकता के लिए निरंतर ख़तरा बन रही है। यदि शुद्ध भाषात्मक एकरूपता के आधार पर भारतीय संघ का गठन किया जाए तो हमारा देश इतने अधिक राज्यों में बँट जाएगा कि भारत के लिए एक राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व कायम रखना असंभव हो सकता है।

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौनसी थीं? व्याख्या करें।
अथवा
स्वतंत्रता के समय, भारत के समक्ष आई किन्हीं तीन चुनौतियों की विस्तार से व्याख्या कीजिये। स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष आई चुनौतियाँ
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष निम्नलिखित तीन तरह की चुनौतियाँ थीं-
1. राष्ट्र निर्माण की चुनौती:
स्वतंत्रता के तुरन्त बाद राष्ट्र-निर्माण की चुनौती प्रमुख थी। यहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों, भाषाओं और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते थे, इनमें एकता कायम करने की एक चुनौती थी। क्योंकि हर क्षेत्रीय व उप-क्षेत्रीय पहचान को कायम रखते हुए देश की एकता व अखण्डता को कायम रखना था। दूसरे, देशी राज्यों को भारत संघ में विलीन करने की भी एक विकट समस्या थी। इस तरह स्वतंत्रता के बाद तात्कालिक प्रश्न राष्ट्र निर्माण की चुनौतीका था।

2. लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करना:
देश के सामने दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी। स्वतन्त्रता के बाद भारत ने संसदीय प्रतिनिध्यात्मक लोकतान्त्रिक मॉडल को अपनाया। लेकिन अब देश के सामने यह चुनौती थी कि संविधान पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवहार की व्यवस्थाएँ चलन में आएं ताकि लोकतंत्र कायम रह सके। दूसरी चुनौती यह थी कि एक ऐसे समतामूलक समाज का विकास किया जाये जिसमें सभी वर्गों का भला हो सके।

3. आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारित करना:
स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष तीसरी प्रमुख चुनौती आर्थिक विकास हेतु नीतियों का निर्धारण करना था। अतः देश के सामने नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अनुरूप आर्थिक विकास करने और गरीबी को खत्म करने के लिए कारगर नीतियों का निर्धारण करने की चुनौती थी।

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प्रश्न 9.
स्वतंत्रता के बाद भारत के एकीकरण को समझाइए स्वतंत्रता के बाद भारत का एकीकरण
उत्तर:
संजीव पास बुक्स: स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष एकीकरण की प्रमुख चुनौती थी। यह चुनौती तीन रूपों में हमारे देश के नेताओं के समक्ष आई। यथा।
1. विभाजन:
विस्थापन और पुनर्वास तथा धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना – परिणामतः स्वतन्त्रता के बाद दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों को अपने-अपने घरों को छोड़कर स्थानान्तरण के लिए मजबूर होना पड़ा। यह स्थानान्तरण त्रासदी भरा रहा। दूसरे, विभाजित भारत में अब भी 12% मुसलमान भारत में रह गये थे। इसके अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बी भी यहाँ रह रहे थे। इस समस्या का निपटारा भारतीय शासकों ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाकर किया तथा संविधान में सभी नागरिकों को समान दर्जा देकर देश के एकीकरण का प्रथम चरण पूरा किया गया।

2. रजवाड़ों का विलय:
स्वतंत्रता के बाद रजवाड़ों का स्वतंत्र होना अपने आप में एक गहरी समस्या थी । इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था। लेकिन शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद भारत की सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गये। हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर तथा मणिपुर की रियासतों का विलय सरदार पटेल की सूझबूझ, जनता के दबाव तथा भारतीय सेना के माध्यम से किया जा सका।

4. राज्यों का पुनर्गठन:
भारतीय प्रान्तों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती को हल करने हेतु 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया और 1956 में इसकी सिफारिशों के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए। इससे देश में विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली और देश की एकता भी सुदृढ़ हुई।

प्रश्न 10.
राज्यों के पुनर्गठन के मसले ने देश में अलगाववाद की भावना को कैसे पनपाया? भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन की सफलताओं का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आजादी के बाद के शुरुआती सालों में एक बड़ी चिंता यह थी कि अलग राज्य बनाने की माँग से देश की एकता पर आँच आएगी। आशंका थी कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना पनपेगी और नवनिर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा। जनता के दबाव में आखिरकार केन्द्रीय नेतृत्व ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का मन बनाया।

आशंका यह थी कि अगर हर इलाके के क्षेत्रीय और भाषाई दावे को मान लिया गया तो बँटवारें और अलगाववाद के खतरे में कमी आएगी। इसके अलावा क्षेत्रीय माँगों को मानना और भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना ‘एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में भी देखा गया। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आन्दोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है।

राजनीति और सत्ता में हिस्सेदारी का रास्ता अब एक सीमित अंग्रेजी अभिजात वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि बाकियों के लिए भी खुल चुका है। भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन ‘के लिए एक समरूप आधार भी मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत इससे देश नहीं टूटा। इसके विपरीत देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई। सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली।

JAC Class 11 History Important Questions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th History Important Questions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th History Important Questions in Hindi Medium

JAC Board Class 11th History Important Questions in English Medium

  • Chapter 1 From the Beginning of Time Important Questions
  • Chapter 2 Writing and City Life Important Questions
  • Chapter 3 An Empire Across Three Continents Important Questions
  • Chapter 4 The Central Islamic Lands Important Questions
  • Chapter 5 Nomadic Empires Important Questions
  • Chapter 6 The Three Orders Important Questions
  • Chapter 7 Changing Cultural Traditions Important Questions
  • Chapter 8 Confrontation of Cultures Important Questions
  • Chapter 9 The Industrial Revolution Important Questions
  • Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples Important Questions
  • Chapter 11 Paths to Modernisation Important Questions

JAC Class 11 History Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th History Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th History Solutions in Hindi Medium

JAC Board Class 11th History Solutions in English Medium

  • Chapter 1 From the Beginning of Time
  • Chapter 2 Writing and City Life
  • Chapter 3 An Empire Across Three Continents
  • Chapter 4 The Central Islamic Lands
  • Chapter 5 Nomadic Empires
  • Chapter 6 The Three Orders
  • Chapter 7 Changing Cultural Traditions
  • Chapter 8 Confrontation of Cultures
  • Chapter 9 The Industrial Revolution
  • Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples
  • Chapter 11 Paths to Modernisation

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Jharkhand Board Class 11 History लेखन कला और शहरी जीवन InText Questions and Answers

पृष्ठ 30

क्रियाकलाप 1: जल प्लावन के बारे में अनेक समाजों में अपनी-अपनी पुराण कथाएँ प्रचलित हैं। ये कुछ हैं जो इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की यादों को अमिट रखते हुए अभिव्यक्त करते हैं। इनके बारे में कुछ और जानकारी का पता लगाएँ और यह बताएँ कि जलप्लावन से पहले और उसके बाद का जन-जीवन कैसा रहा होगा?
उत्तर:
जल-प्लावन के बारे में अनेक समाजों में अपनी-अपनी पुराण कथाएँ प्रचलित हैं। ये कथाएँ इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के अतीत को अपने ढंग से अभिव्यक्त करती हैं। यहूदियों की बाइबिल के अनुसार यह जल-प्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। परन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नोआ नामक एक मनुष्य को सौंपी। नोआ ने सभी जीव-जन्तुओं के एक-एक जोड़े को अपनी विशाल नाव में रख लिया। जब जल – प्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया, परन्तु नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए।

जल – प्लावन के इसी प्रकार के आख्यान विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में विविध रूपों में मिलते हैं। ऐसी ही कहानी मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में भी मिलती है। इस ‘जल प्रलय के आख्यान’ के अनुसार देवताओं ने मनुष्य जाति को नष्ट करने के लिए जल प्रलय करने का निश्चय किया। इस अवसर पर जिउसूद्र नामक व्यक्ति ने एक नाव बनाई और उसे अनेक जीवों के जोड़ों तथा अन्नादि से भर लिया। अन्त में जिउसूद्र ने देवताओं को बलि दी जिससे वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे अमृत्व प्रदान किया और उसे दिलमुन पर्वत पर स्थान दिया।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

इस प्रकार जल-प्लावन के आख्यानों से सृष्टि की रचना, उसके विनाश, तत्कालीन धार्मिक स्थिति आदि पर प्रकाश पड़ता है। जल-प्लावन से पहले मनुष्य का जीवन अनेक गतिविधियों से परिपूर्ण था। मानव-समाज खेती, पशु-पालन आदि क्रिया-कलापों में व्यस्त रहता था। उद्योग-धन्धे, व्यापार आदि विकसित थे। उस समय छोटे-बड़े सभी प्रकार के भवन, राजप्रासाद बने हुए थे। परन्तु जल – प्लावन के बाद मानव समाज को भीषण विनाशलीला का सामना करना पड़ा होगा। सर्वत्र पानी ही पानी होने के कारण बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुषों को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े होंगे और भव्य भवन, कलाकृतियाँ आदि नष्ट हो गए होंगे।

पृष्ठ 32

क्रियाकलाप 2 : क्या शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव होता? इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
शहरी जीवन में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरी जीवन श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण पर निर्भर करता है। नगर के लोग आत्म-निर्भर नहीं रहते और उन्हें अनेक वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए अन्य लोगों पर आश्रित होना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर उकेरने के लिए काँसे के औजारों की आवश्यकता पड़ती है, वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता। वह यह भी नहीं जानता कि मुद्राओं के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर वह कहाँ से प्राप्त करे। काँसे के औजार बनाने वाला भी धातु ताँबा या राँगा (टिन) लाने के लिए स्वयं बाहर नहीं जाता। इस प्रकार पारस्परिक निर्भरता शहरी जीवन की विशेषता हैं। अतः शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव नहीं होता।

मेसोपोटामिया में काँसे का बहुत महत्त्व था। काँसा, ताँबे और राँगे के मिश्रण से बनता है। ये धातुएँ दूर-दूर . से मँगायी जाती थीं। शहरों में रहने वाले नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धातुओं के औजारों और उनका इस्तेमाल करने वालों की आवश्यकता पड़ती है।

बढ़ई का सही काम करने, पत्थर की मुद्राएँ उकेरने, फर्नीचर में जड़ने, सीपियाँ काटने, धातुओं के बर्तन बनाने आदि कामों के लिए धातु के औजारों और कुशल शिल्पियों की जरूरत पड़ती है। अतः शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव नहीं है। मेसोपोटामिया में खनिज संसाधनों का अभाव था। अतः मेसोपोटामिया के लोग ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी आदि धातुओं को तुर्की, ईरान तथा खाड़ी पार के देशों से मँगाते थे । ये धातुएँ शहरी जीवन के विकास के लिए आवश्यक थीं।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

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क्रियाकलाप 4 : आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि असुरबनिपाल और नैबोनिडस ने मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं की कद्र की?
उत्तर:
मेसोपोटामियावासी शहरी जीवन को महत्त्व देते थे। युद्ध में शहरों के नष्ट हो जाने के बाद वे अपने काव्यों के द्वारा उन्हें याद किया करते थे। वे अपनी लेखन कला के कारण ही अपनी अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों को सुरक्षित रख सके हैं। असीरिया का अन्तिम शासक असुरबनिपाल (668-627 ई.पू.) मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं का संरक्षक था।

उसने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की। उसने इतिहास, महाकाव्य, शकुन साहित्य, ज्योतिष- विद्या, स्तुतियों तथा कविताओं की पट्टिकाओं को इकट्ठा करने का भरसक प्रयास किया और उसमें सफल रहा। उसने अपने लिपिकों को दक्षिण में पुरानी पट्टिकाओं की खोज करने के लिए भेजा क्योंकि दक्षिण में लिपिकों को विद्यालयों में पढ़ना- संजीव पास बुक्स लिखना सिखाया जाता था, जहाँ उन्हें बड़ी संख्या में पट्टिकाओं की नकलें तैयार करनी होती थीं।

गिलगमेश के महाकाव्य की पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। कुछ पट्टिकाओं के अन्त में असुरबनिपाल का उल्लेख भी मिलता है : “मैं असुरबनिपाल, ब्रह्माण्ड का सम्राट, असीरिया का शासक, जिसे देवताओं ने विशाल बुद्धि प्रदान की है, जिसने विद्वानों के पाण्डित्य के गूढ़ ज्ञान को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। मैंने देवताओं के बुद्धि-विवेक पर पट्टिकाओं पर लिखा है…और मैंने पट्टिकाओं की जाँच की और उन्हें संग्रहित किया।

मैंने उन्हें निनवै स्थित अपने इष्टदेव नाबू के मन्दिर के पुस्तकालय में भविष्य में उपयोग के लिए रख दिया- अपने जीवन के लिए, अपनी आत्मा के कल्याण के लिए और अपने शाही सिंहासन की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए। ” असुरबनिपाल ने इन पट्टिकाओं की सूची भी तैयार करवाई। असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे तथा लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था।

tatase स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने लिखा है कि उर के नगर – देवता ने उसे सपने में दर्शन दिए और उसे सुदूर दक्षिण के उस पुरातन नगर का कार्य – भार सम्भालने के लिए एक महिला पुरोहित को नियुक्त करने का आदेश दिया। उसने बताया कि उसे एक बहुत पुराने राजा का पट्टलेख मिला और उस पर उसने महिला पुरोहित की आकृति अंकित देखी।

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इसके बाद नैबोनिडस ने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। एक अन्य अवसर पर नैबोनिडस के व्यक्ति उसके पास अक्कद के राजा सारगोन की एक टूटी हुई मूर्ति लाए। नैबोनिडस ने लिखा है कि ” देवताओं के प्रति भक्ति और राजा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण, मैंने कुशल शिल्पियों को बुलाया और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया। ” इससे सिद्ध होता है कि असुरबनिपाल और नैबोनिडस ने मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं की कद्र की।

Jharkhand Board Class 11 History लेखन कला और शहरी जीवन Textbook Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण थे?
उत्तर:
विद्वानों के मतानुसार प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण। प्रमाण के रूप में रोम साम्राज्य सहित सभी पुरानी व्यवस्थाओं में दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पहले नगरों का विकास हुआ क्योंकि दजला और फरात नदियों के कारण दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सर्वाधिक उपज देने वाली थी क्योंकि यहाँ मिट्टी प्राकृतिक रूप से उपजाऊ थी। खेती के अलावा वहाँ पशुपालन की उच्च स्थितियाँ थीं तथा नदियों में पर्याप्त मछलियाँ थीं तथा गर्मियों में खजूर के पेड़ खूब पिंड खजूर होते थे। इस प्रकार प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन की उच्च स्थितियों के कारण ही वहाँ सबसे पहले नगरों का विकास हुआ।

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं –

(1) प्राकृतिक उर्वरता के कारण खाद्य पदार्थों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता था। कृषक लोग अपना फालतू अनाज शहरों में लाने लगे जहाँ उन्हें अच्छा लाभ मिलता था। इससे शहरीकरण को प्रोत्साहन मिला।

(2) प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के कारण जनसंख्या बढ़ी। इसके फलस्वरूप शहर बसने लगे। क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन, व्यापार और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है

(3) शहरों में अनाज तथा अन्य खाद्य पदार्थों के संग्रह तथा वितरण के लिए व्यवस्था करनी होती थी। इससे शहरीकरण को प्रोत्साहन मिला।

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प्रश्न 2.
आपके विचार से निम्नलिखित में से कौनसी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन – कौनसी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुईं?
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती
(ख) जल परिवहन
(ग) धातु और पत्थर की कमी
(घ) श्रम विभाजन
(ङ) मुद्राओं का प्रयोग
(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।
उत्तर:
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ –
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ निम्नलिखित थीं –
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती – अत्यन्त उत्पादक खेती प्रारंभिक शहरीकरण की अत्यन्त आवश्यक दशा थी क्योंकि शहरीकरण तभी संभव है जब खेती में इतनी उपज हो कि वह शहरों के लिए भरण-पोषण का साधन बन सके। यही कारण है कि दक्षिणी मेसोपोटामिया में खेती की उर्वरता एवं खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के कारण ही विश्व में सबसे पहले शहरों का प्रादुर्भाव हुआ।

(ख) जल परिवहन – कुशल परिवहन व्यवस्था भी शहरी विकास के लिए आवश्यक है, शहरी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जल – परिवहन सबसे सस्ता तरीका है। भारवाही पशुओं की पीठ पर रखकर या बैलगाड़ियों में डाल कर शहरों में अनाज या काठ – कोयला लाना – ले जाना बहुत कठिन होता है क्योंकि उसमें बहुत अधिक समय लगता है और उस पर काफी खर्च आता है। इसलिए परिवहन का सबसे सस्ता तरीका सर्वत्र जलमार्ग ही होता है। अनाज के बोरों से लदी हुई नावें या बजरे नदी की धारा अथवा हवा के वेग से चलते हैं, जिसमें कोई खर्च नहीं लगता था। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें परिवहन के अच्छे साधनों के रूप में कार्य करती थीं। फलतः जल परिवहन वहाँ प्रारंभिक शहरीकरण के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ।

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(ग) धातु और पत्थर की कमी – दक्षिणी मेसोपोटामिया में औजार, मोहरें (मुद्राएँ) तथा आभूषण बनाने के लिए पत्थरों की कमी थी । वहाँ औजार, पात्र का आभूषण बनाने के लिए धातुएँ भी उपलब्ध नहीं थीं। इसलिए वहाँ के लोग ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी तथा विभिन्न प्रकार के पत्थर तुर्की, ईरान तथा खाड़ी पार के देशों से मँगाते थे तथा कृषि सम्बन्धी उत्पादों को अन्य देशों के लिए निर्यात किया जाता था। इसके लिए दक्षिणी मेसोपोटामिया में व्यापारिक संगठनों का निर्माण हुआ तथा व्यापार की उन्नत अवस्था ने वहाँ प्रारंभिक शहरीकरण के प्रादुर्भाव में योगदान दिया। शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न दशाएँ :

(घ) श्रम-विभाजन – नगर के लोग आत्मनिर्भर नहीं रहते। उन्हें दूसरे लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार पारस्परिक निर्भरता के कारण नगरीय जीवन में श्रम विभाजन का विकास होता है। उदाहरण के लिए पत्थर को तराशने वाले को काँसे के औजारों की आवश्यकता होती है। वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता और न ही वह पत्थर मँगा सकता है। इस प्रकार श्रम विभाजन शहरी जीवन की विशेषता है1

(ङ) मुद्राओं का प्रयोग – लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर, विभिन्न लोगों द्वारा तथा विभिन्न मामलों के लिए होता था। वह कई प्रकार के मोलभावों के रूप में होता था। परिणामतः पट्टिकाओं के रूप में मुद्राओं का विकास हुआ।

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(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया- राजा का स्थान ऊँचा था तथा समुदाय पर उसका नियन्त्रण था। राजा की आज्ञा से आम लोगों को पत्थर खोदने, धातु खनिज लाने, मिट्टी से ईंटें तैयार करने और मन्दिर में लगाने आदि के कार्य करने पड़ते थे। इससे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारी परिवर्तन आया जो शहरी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ।

प्रश्न 3.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?
उत्तर:
पशुचारक – शहरी जीवन के लिए खतरा – खानाबदोश पशुचारक निम्नलिखित कारणों से शहरी जीवन के लिए खतरा थे-

  1. खानाबदोश पशुचारक कई बार अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों से गुजार कर ले जाते थे जिससे किसानों की फसलों को हानि पहुँचती थी। इसके फलस्वरूप किसानों एवं खानाबदोश पशुचारकों में कई बार झगड़े हो जाते थे।
  2. खानाबदोश पशुचारक कई बार किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे तथा उनका माल लूट ले जाते थे इससे अशान्ति एवं अराजकता फैलती थी जो शहरी जीवन के लिए घातक थी।
  3. कई बार बस्तियों में रहने वाले लोग भी इन खानाबदोश पशुचारकों का रास्ता रोक देते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को नदी – नहरों तक नहीं ले जाने देते थे। इससे दोनों पक्षों में संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी।
  4. कभी-कभी खानाबदोश पशुचारकों के पशु किसानों की तैयार फसल को नष्ट कर देते थे। इसके अतिरिक्त खानाबदोश पशुचारकों के पशुओं की चराई के कारण बहुत-सी उपजाऊ भूमि बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 4.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मन्दिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के पुराने मन्दिर – मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के निवास-स्थान थे। ये मन्दिर ईंट से बनाए जाते थे। समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया। इनके खुले आँगनों के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मन्दिर घरों की तरह ही होते थे क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर ही होता था। परन्तु मन्दिरों एवं घरों में कुछ अन्तर भी था। उदाहरण के लिए मन्दिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशेष अन्तरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई थीं परन्तु साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।

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निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 5.
शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौनसी नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। आपके विचार से उनमें से कौन-कौनसी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं?
उत्तर – मेसोपोटामिया में शहरी जीवन – दक्षिणी मेसोपोटामिया में लगभग 5000 ई.पू. बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया । ये शहर तीन प्रकार के थे –

  1. वे शहर जो मन्दिरों के चारों ओर विकसित हुए।
  2. वे शहर जो व्यापार के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए।
  3. शाही शहर।

मेसोपोटामिया में शहरी जीवन शुरू होने के बाद अस्तित्व में आने वाली नई संस्थाएँ –
शहरी जीवन शुरू होने के बाद मेसोपोटामिया में निम्नलिखित नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं –

(1) मन्दिर – बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में मन्दिर बनाना या उनका पुनर्निर्माण करना शुरू कर दिया। सबसे पहला ज्ञात मन्दिर एक छोटा-सा देवालय था, जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के रहने के स्थान थे। जैसे उर जो चन्द्र देवता था तथा इन्नाना जो प्रेम तथा युद्ध की देवी थी । ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे और समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था।

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लोग देवी-देवता के लिए अन्न, दही, मछली आदि लाते थे । आराध्य देव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था। कुछ समय बाद मन्दिरों में उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया शुरू हो गई। घर-परिवार से ऊपर के स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मन्दिर ने अपने क्रियाकलाप बढ़ा लिए और मुख्य शहरी संस्था का रूप ले लिया।

(2) समुदाय के नेताओं का प्रादुर्भाव – जो मुखिया लड़ाई जीतते थे, वे अपने साथियों व अनुयायियों को लूट का माल बाँट कर प्रसन्न कर देते थे तथा पराजित लोगों को बन्दी बनाकर अपने साथ ले जाते थे, जिन्हें वे अपने चौकीदार अथवा नौकर बना लेते थे। परन्तु युद्ध में विजयी होने वाले ये नेता लोग स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे। कालान्तर में इन नेताओं ने समुदायों के कल्याण पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया और उसके फलस्वरूप नई-नई संस्थाएँ तथा परिपाटियाँ स्थापित हो गईं।

इन विजेता मुखियाओं ने देवताओं की सेवा में बहुमूल्य भेंटें अर्पित करना शुरू कर दिया। उन्होंने मन्दिरों की धन-सम्पदा के वितरण का और मन्दिरों में आने-जाने वाली वस्तुओं का हिसाब-किताब रखकर प्रभावी तरीके से संचालन करने की व्यवस्था की। इसके फलस्वरूप इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा समुदाय पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया।

(3) सेना – मुखिया लोगों ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे कि वे आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त अपनी सेना एकत्रित कर सकें। उरुक नगर से हमें सशस्त्र वीरों के चित्र मिले हैं।

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(4) सामाजिक संस्थाएँ – नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रान्त वर्ग का प्रादुर्भाव हो चुका था। अधिकांश धन-सम्पत्ति पर समाज के एक छोटे से वर्ग का अधिकार था। समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। कन्या के माता – पिता की सहमति से कन्या का विवाह किया जाता था। विवाह की रस्म पूरी हो जाने के बाद वर-वधू दोनों पक्षों की ओर से उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था। पिता का घर, पशु-धन, खेत आदि उसके पुत्रों को मिलते थे।

(5) लिपि – लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी। चूंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर, अलग-अलग लोगों के साथ होते थे तथा सौदा भी कई प्रकार के माल के बारे में होता था। इसलिए शहरीकरण के बाद लिपि का विकास हुआ। मेसोपोटामियावासियों ने ही विश्व में सर्वप्रथम एक लिपि का आविष्कार किया जिसे कीलाकार लिपि कहा जाता था। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे।

(6) विद्यालय – मेसोपोटामिया में देवालय ही शिक्षा के केन्द्र थे। विद्यार्थियों को हिसाब-किताब रखने की कानूनी तथा व्यापारिक शिक्षा दी जाती थी।

(7) व्यापार – शहरीकरण के कारण व्यापार संस्था अस्तित्व में आई। शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन तथा तरह-तरह की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरी लोग आत्मनिर्भर नहीं होते, बल्कि एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इसलिए इस स्थिति में व्यापार, सेवा तथा श्रम विभाजन नामक संस्थाओं का विकास हुआ। मारी नामक नगर व्यापार का प्रमुख केन्द्र था जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा आदि वस्तुएं तुर्की, सीरिया, लेबनान आदि भेजी जाती थी।

प्रश्न 6.
किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया सभ्यता की झलक –
मेसोपोटामियां में प्रचलित कहानियों से मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती हैं। निम्नलिखित प्रचलित कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की जानकारी मिलती है –

(1) सुमेरियन महाकाव्य में वर्णित एनमर्कर की कहानी : लेखन और व्यापार का प्रयोग – मेसोपोटामिया की परम्परागत कथाओं के अनुसार उरुक के राजा एनमर्कर ने ही मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लेखन और व्यापार की व्यवस्था की थी। परम्परागत कथा के अनुसार उरुक के राजा एनमर्कर ने एक सुन्दर मन्दिर को सजाने के लिए बहुमूल्य रत्न और धातुएँ लाने के लिए अपने दूत को अरट्टा नामक देश के शासक के पास भेजा।

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परन्तु जब दूत अपनी बात को सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाया, तो राजा एनमर्कर ने अपने हाथ से चिकनी मिट्टी की पट्टिका बनाई और उस पर शब्द लिख दिए। दूत ने लिखी हुई पट्टिका अरट्टा के शासक के हाथ में दी। उच्चरित शब्द कीलाकार शब्द थे। इस कहानी से ज्ञात होता है कि एनमर्कर ने मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम व्यापार और लेखन की व्यवस्था की थी। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। उनकी लिपि कीलाकार लिपि कहलाती थी।

(2) बाइबिल के प्रथम भाग ‘ ओल्ड टेस्टामेंट’ में ‘सुमेर’ की जानकारी – यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाइबिल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेन्ट’ में इसका उल्लेख कई सन्दर्भों में किया गया है। बाइबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ (Book of Genesis) में ‘शिमार’ अर्थात् सुमेर के बारे में उल्लेख हुआ है। उसके अनुसार वहाँ ईंटों के बने शहर हैं। यूरोप के यात्री और विद्वान मेसोपोटामिया को एक प्रकार से अपने पूर्वजों की भूमि मानते थे और जब इस क्षेत्र में पुरातत्वीय खोज प्रारम्भ हुई तो ओल्ड टेस्टामेन्ट के अक्षरशः सत्य को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया।

(3) जल-प्लावन की कहानी – बाइबल में जल – प्लावन की कहानी का उल्लेख है । बाइबल के अनुसार यह जल-प्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। किन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ नामक एक मनुष्य को चुना। नोआ ने एक बहुत बड़ी नाव बनाई और उसमें सभी जीव- जन्तुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया। जब जल – प्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया परन्तु नाव में रखे गए सभी जोड़े सुरक्षित बच गए। इसी प्रकार की एक कहानी मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में भी मिलती है। इस कहानी के मुख्य पात्र को ‘जिउसूद्र’ या ‘उतनापिष्टम’ कहा जाता है।

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(4) गिलगमेश की कहानी – ‘गिलगमेश’ नामक महाकाव्य से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर बहुत गर्व था। ऐसा कहा जाता है कि गिलगमेश ने एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया था। गिलगमेश एक महान योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था। परन्तु उसे संजीव पास बुक्स उस समय प्रबल आघात पहुँचा जब उसके वीर मित्र की अचानक मृत्यु हो गई।

इससे दुःखी हो वह अमृत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने सागरों – महासागरों को पार किया और दुनिया भर का चक्कर लगाया परन्तु उसे अपने साहसिक अभियान में सफलता नहीं मिली। निराश होकर गिलगमेश अपने नगर उरुक लौट आया। वहाँ जब वह शहर की चहारदीवारी के पास चहलकदमी कर रहा था, तभी उसकी दृष्टि उन पकी ईंटों पर पड़ी जिनसे उसकी नींव गई थी। वह बहुत भाव-विभोर हो गया। इस प्रकार उरुंक नगर की विशाल प्राचीर पर आकर उस महाकाव्य की लम्बी वीरतापूर्ण और साहसभरी कथा का अन्त हो गया। इस प्रकार गिलगमेश को अपने नगर में ही सान्त्वना मिलती है, जिसे उसकी प्रजा ने बनाया था।

लेखन कला और शहरी जीवन JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. शहरी जीवन की शुरुआत – शहरी जीवन की शुरुआत मेसोपोटामिया में हुई थी।

2. मेसोपोटामिया की स्थिति – मेसोपोटामिया दजला और फरात नदियों के बीच स्थित था। वर्तमान में यह प्रदेश इराक गणराज्य का भाग है। मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी सम्पन्नता, शहरी जीवन, विशाल साहित्य, गणित और खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है। मेसोपोटामिया की लेखन प्रणाली और उसका साहित्य पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेशों तथा उत्तरी सीरिया और तुर्की में 2000 ई. पूर्व के बाद फैला।

3. सुमेर तथा अक्कद- इतिहास के आरम्भिक काल में इस प्रदेश को मुख्यतः इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था।

4. बेबीलोनिया – 2000 ई. पूर्व के बाद जब बेबीलोन एक महत्वपूर्ण शहर बन गया तब दक्षिणी क्षेत्र को बेबीलोनिया कहा जाने लगा ।

5. असीरिया – लगभग 1100 ई. पूर्व से जब असीरियन लोगों ने उत्तर में अपना राज्य स्थापित कर लिया, तब उस क्षेत्र को असीरिया कहा जाने लगा।

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6. भाषाएँ – इस प्रदेश की प्रथम ज्ञात भाषा सुमेरियन अर्थात् सुमेरी थी । 2400 ई. पूर्व के आस-पास अक्कदी भाषा प्रचलित हुई। 1400 ई. पूर्व से अरामाइक भाषा का भी प्रचलन होने लगा। यह भाषा हिब्रू से मिलती-जुलती थी और 1000 ई. पूर्व के बाद व्यापक रूप से बोली जाने लगी।

7. मेसोपोटामिया और उसका भूगोल- इराक भौगोलिक विविधता का देश है। यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है। यहाँ पशुपालन खेती की अपेक्षा आजीविका का अधिक अच्छा साधन है। पूर्व में दजला की सहायक नदियाँ परिवहन का अच्छा साधन हैं। इसका दक्षिणी भाग रेगिस्तान है और यहाँ पर ही सबसे पहले नगरों और लेखन – प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। फरात और दजला नदियाँ सिंचाई तथा उपजाऊ मिट्टी यहाँ लाने का काम करती थीं। यहाँ गेहूँ, जौ, मटर, मसूर आदि की खेती की जाती थी तथा भेड़-बकरी आदि जानवर पाले जाते थे। नदियों में मछलियां थीं तथा गर्मी में पिंड खजूर थे।

8. शहरीकरण का महत्त्व – शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त व्यापार, उत्पादन और विभिन्न प्रकार की सेवाओं श्रम विभाजन एवं एक सामाजिक संगठन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरों में संगठित व्यापार, भण्डारण की आवश्यकता भी होती है।

9. शहरों में माल की आवाजाही – मेसोपोटामिया के लोग लकड़ी, ताँबा, सोना, चाँदी आदि विदेशों से मँगाते थे तथा कपड़ा और कृषि जन्य उत्पाद निर्यात करते थे । शिल्प, व्यापार और सेवाओं के अलावा मेसोपोटामिया की नहरें और प्राकृतिक जलधाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच माल के परिवहन के अच्छे मार्ग थे। फरात नदी व्यापार के लिए विश्व – मार्ग के रूप में प्रसिद्ध थी।

10. लेखन कला का विकास – मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। वे अपना हिसाब-किताब रखने तथा शब्दकोश बनाने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने आदि में लेखन का प्रयोग करने लगे। उनकी लिपि क्यूनीफार्म (कीलाकार) थी। यहाँ 2600 ई. पू. के आस-पास वर्ण कीलाकार हो गए और भाषा सुमेरियन थी, लेकिन कीलाकार लेखन का रिवाज पहली शताब्दी तक बना रहा।

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11. लेखन प्रणाली – जिस ध्वनि के लिए कीलाक्षर या कीलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था, वह एक अकेला व्यंजन या स्वर नहीं होता था, परन्तु अक्षर होते थे। इस प्रकार लिपिक को सैकड़ों चिह्न सीखने पड़ते थे। 12. साक्षरता – मेसोपोटामिया के बहुत कम लोग पढ़-लिख सकते थे । इसका कारण था कि प्रतीकों या चिह्नों की संख्या सैकड़ों में थी तथा ये काफी जटिल थे।

13. लेखन का प्रयोग- मेसोपोटामिया में व्यापार और लेखन कला की शुरुआत करने वाला उसका राजा एनमर्कर

14. दक्षिणी मेसोपोटामिया का शहरीकरण – मन्दिर और राजा – दक्षिणी मेसोपेटामिया में कई तरह के शहर विकसित हुए। कुछ मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए, कुछ शहर व्यापारिक केन्द्र थे और कुछ शाही शहर थे। मंदिर शहर – मेसोपोटामिया में अनेक मन्दिरों का निर्माण किया गया। ये मन्दिर देवी-देवताओं के निवास-स्थान थे। ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था । लोग देवी – देवता के लिए अन्न, दही, मछली आदि लाते थे।

कुछ विजेता मुखियाओं ने देवताओं की सेवा में कीमती भेंटें अर्पित करना शुरू कर दिया, जिससे समुदाय के मन्दिरों की सुन्दरता तथा भव्यता बढ़ गई। इससे समुदाय में राजा को ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ और समुदाय पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया। युद्धबन्दियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिर का अथवा प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना पड़ता था। मेसोपोटामिया में खूब तकनीकी प्रगति भी हुई। अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औजारों का प्रयोग होता था। वास्तुविदों ने ईंटों के स्तम्भ बनाना सीख लिया थ। मूर्तिकला के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। कुम्हार चाक के द्वारा बड़े पैमाने पर सुन्दर बर्तन बनाने लगा तथा चित्रों का भी निर्माण हुआ।

15. शहरी जीवन- नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च वर्ग का उदय हो चुका था। अधिकांश धन-दौलत पर एक छोटे से वर्ग का कब्जा था। समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। पिता के घर, पशु-धन, खेत आदि पर उसके पुत्रों का अधिकार था। कन्या के माता-पिता कन्या के विवाह के लिए अपनी सहमति देते थे।

16. उर नगर-उर नगर की गलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी व संकरी थीं। जल निकासी के लिए नालियाँ नहीं थीं। लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बुहार कर गलियों में डाल देते थे । कमरों के अन्दर रोशनी खिड़कियों से नहीं, बल्कि उन दरवाजों से होकर आती थी, जो आंगन में खुला करते थे।

17. पशु- चारक क्षेत्र में एक व्यापारिक नगर- 2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। मारी राज्य में किसान और पशुचारक दोनों ही तरह के लोग रहते थे, परन्तु उस प्रदेश का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था। मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे ।

उन्होंने मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर ही नहीं किया, बल्कि स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए मारी नगर में एक मन्दिर भी बनवाया। मारी का विशाल राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास-स्थान तो था ही, साथ ही वह प्रशासन और उत्पादन, विशेष रूप से कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केन्द्र भी था। मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल भी था।

18. मेसोपोटामिया संस्कृति में शहरों का महत्त्व – मेसोपोटामिया के लोग शहरी जीवन को महत्त्व देते थे जहाँ अनेक समुदायों तथा संस्कृतियों के लोग साथ – साथ रहा करते थे। ये लोग अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व करते थे।

19. लेखन कला की देन – मेसोपोटामिया की काल-गणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परम्परा मेसोपोटामिया की विश्व को सबसे बड़ी देन है। मेसोपोटामियावासी गुणा, भाग, वर्ग तथा वर्गमूल आदि से परिचित थे। उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को चार सप्ताहों में, एक दिन को 24 घण्टों में तथा एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया था। अपनी लेखन कला और विद्यालयों के कारण ही मेसोपोटामियावासी अपनी उपलब्धियों को सुरक्षित रख सके।

20. एक पुराकालीन पुस्तकालय – असीरियाई शासक असुरबनिपाल (668-627 ई. पू.) ने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। उसने इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष विद्या, कविताओं की पट्टिकाओं को इकट्ठा करने का सफल प्रयास किया था। गिलगमेश के महाकाव्य जैसी महत्त्वपूर्ण पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे और लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयवार वर्गीकृत किया गया था।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

21. एक आरम्भिक पुरातत्ववेत्ता – 625 ई. पूर्व में दक्षिणी कछार के एक शूरवीर नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को असीरियनों के आधिपत्य से मुक्त कराया। बेबीलोन एक प्रसिद्ध नगर था जिसमें अनेक बड़े-बड़े राजमहल तथा मन्दिर विद्यमान थे। इसमें एक जिगुरात अर्थात् सीढ़ीदार मीनार थी। यहाँ का व्यापार उन्नत अवस्था में था । नैबोनिडस स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। उसने अक्कद के राजा सारगोन की मूर्ति की मरम्मत करवाई और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया।

कालरेखा

1. लगभग 7000-6000$ ई.पू. उत्तरी मेसोपोटामिया के मैदानों में खेती की शुरुआत।
2. लगभग 5000 ई.पू. दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मन्दिरों का बनना।
3. लगभग 3200 ई.पू. मेसोपोटामिया में लेखन-कार्य की शुरुआत।
4. लगभग 3000 ई.पू. उरुक का एक विशाल नगर के रूप में विकास : काँसे के औजारों के प्रयोग में वृद्धि।
5. लगभग $2700-2500$ ई.पू. आरम्भिक राजाओं का शासन काल जिनमें गिल्गेमिश जैसे पौराणिक राजा भी सम्मिलित हैं।
6. लगभग 2600 ई.पू. कीलाकार लिपि का विकास।
7. लगभग 2400 ई.पू. सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग।
8. 2370 ई.पू. सारगोन, अक्कद सम्राट।
9. लगभग 2000 ई.पू. सीरिया, तुर्की और मिस्न तक कीलाकार लिपि का प्रसार; महत्त्वपूर्ण शहरी केन्द्रों के रूप में मारी और बेबीलोन का उद्भव।
10. लगभग 1800 ई.पू. गणितीय मूलपाठों की रचना; अब सुमेरियन बोलचाल की भाषा नहीं रही।
11. लगभग 1100 ई.पू. असीरियाई राज्य की स्थापना।
12. लगभग 1000 ई.पू. लोहे का प्रयोग।
13. $720-610$ ई.पू. असीरियाई साप्राज्य।
14. 668-627 ई.पू. असुरबनिपाल का शासन।
15. 331 ई.पू. सिकन्दर द्वारा बेबीलोनिया को जीतना।
16. लगभग पहली शताब्दी (ईस्वी) अक्कदी भाषा और कीलाकार लिपि प्रयोग में रहीं।
17. 1850 कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना व पढ़ा गया।

 

JAC Class 11 History Solutions Chapter 1 समय की शुरुआत से

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 1 समय की शुरुआत से Textbook Exercise Questions and Answers.

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पृष्ठ 9.

क्रिया-कलाप संख्या 1 : अधिकांश धर्मों में मानव प्राणियों की रचना के बारे में अनेक केहानियाँ कही गई हैं, पर अक्सर वे वैज्ञानिक खोजों से मेल नहीं खातीं। ऐसी कुछ धार्मिक कथाओं के बारे में पता लगाइए और उनकी तुलना, इस अध्याय में चर्चित मानव के क्रमिक विकास के इतिहास से कीजिए। आप उनके बीच क्या समानताएँ और अन्तर देखते हैं?
उत्तर:
आदि मानव की उत्पत्ति – आदि मानव की उत्पत्ति के विषय में दो मत प्रमुख हैं –
(1) धार्मिक तथा
(2) वैज्ञानिक।
धार्मिक मत के अनुसार इस पृथ्वी का निर्माण ईश्वर ने ही किया है तथा उसी की इच्छा से मनुष्य की भी सृष्टि हुई तथा ईश्वर की कृपा से ही मनुष्य ने निरन्तर विकास किया। ईसाइयों के पवित्र ग्रन्थ बाइबल के ओल्ड टेस्टामेन्ट में यह बताया गया है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ-साथ मनुष्य की भी रचना की। सुमेरियन लोगों के अनुसार ‘देवसमूह’ ने विश्व का निर्माण किया। इस प्रकार ईश्वर ने सब प्रकार के प्राणियों की सृष्टि की थी, बाद में उनकी वंशानुवंश परम्परा चलती रही। परन्तु आधुनिक काल में हुई वैज्ञानिक खोजों ने इस विश्वास को निराधार एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

मानव का विकास – मानव के इतिहास की जानकारी मानव के जीवाश्मों, पत्थर के औजारों और गुफाओं की चित्रकारियों की खोजों से मिलती है । परन्तु जब 200 वर्ष पूर्व ऐसी खोजें सर्वप्रथम की गई थीं, तब अनेक विद्वान् यह मानने को तैयार नहीं थे कि ये जीवाश्म प्रारम्भिक मानवों के हैं। अधिकांश विद्वानों को आदिकालीन मानव द्वारा पत्थर के औजार, चित्रकारियाँ बनाये जाने की योग्यता के बारे में भी सन्देह था। दीर्घकाल के बाद ही इन जीवाश्मों, औजारों और चित्रकारियों के वास्तविक महत्त्व को स्वीकार किया गया। इसका कारण यह था कि बाइबल के ओल्ड टेस्टामेन्ट में यह बताया गया था कि ईश्वर की सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ-साथ मनुष्य की भी रचना की थी।

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अगस्त, 1856 में निअंडर की घाटी में चूने के पत्थरों की खान की खुदाई करते समय मजदूरों को एक खोपड़ी और अस्थिपंजर के कुछ टुकड़े मिले। उस समय विद्वानों ने घोषित किया कि यह खोपड़ी आधुनिक मानव की नहीं है तथा यह खोपड़ी किसी ‘मूर्ख’ या जड़बुद्धि प्राणी की है। प्रो. हरमन शाफहौसेन ने यह दावा किया कि यह खोपड़ी एक ऐसे मानव रूप की है, जो अब अस्तित्व में नहीं है, परन्तु लोगों ने उनके इस दावे को अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार उस समय आदि मानव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में धार्मिक धारणाएँ प्रचलित थीं। मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ है। इस बात का प्रमाण हमें मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं।

पृष्ठ 24
क्रियाकलाप 3 : हादजा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा क्यों नहीं करते? उनके शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन क्यों होता रहता है? सूखा पड़ने पर भी उनके पास भोजन की कमी क्यों नहीं होती? क्या आप आज के भारत के किसी शिकारी-संग्राहक का नाम बता सकते हैं?
उत्तर:
हादजा लोगों का परिचय – हादजा शिकारियों तथा संग्राहकों का एक छोटा समूह है जो ‘लेक इयासी’ नामक एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनी झील के निकट रहते हैं । पूर्वी हादजा का क्षेत्र सूखा और चट्टानी है, परन्तु यहाँ जंगली खाद्य वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। यहाँ हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, जेब्रे, हिरण, चिंकारा, जंगली सूअर, शेर, तेन्दुए आदि अनेक बड़े जानवर मिलते हैं। यहाँ साही मछली, खरगोश, गीदड़, कछुए आदि . जानवर भी उपलब्ध हैं। हादजा लोग हाथी को छोड़कर शेष सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं तथा उनका मांस खाते हैं।

(1) हादजा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा क्यों नहीं करते ? – हादजा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा नहीं करते। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कहीं भी रह सकता है, पशुओं का शिकार कर सकता है, कहीं पर भी कंदमूल – फल, शहद आदि इकट्ठा कर सकता है और पानी ले सकता है। इस सम्बन्ध में हाजा लोगों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।

(2) हादजा लोगों के शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन – सूखे मौसम में हाजा लोगों के शिविर प्रायः जलस्रोत से एक किलोमीटर की दूरी में ही स्थापित किये जाते हैं। उनके शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के बीच विशेषकर वहाँ लगाए जाते हैं जहाँ पेड़ तथा चट्टानें दोनों उपलब्ध हैं । नमी के मौसम में हादजा लोगों के शिविर प्राय: छोटे और दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं और सूखे के मौसम में पानी के स्रोतों के निकट बड़े और घने बसे होते हैं।

(3) सूखे के समय में भी हादजा लोगों को भोजन की कमी न होना- सूखे के समय में भी हादजा लोगों के पास भोजन की कमी नहीं होती है। हादजा प्रदेश में जंगली खाद्य वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। यहाँ सूखे मौसम में भी वनस्पति खाद्य-कन्दमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। हादजा लोग यहाँ पाई जाने वाली जंगली मधुमक्खियों के शहद तथा सुंडियों को भी खाते थे, अतः यहाँ खाद्य वस्तुओं की कोई कमी नहीं रहती। अतः सूखे के समय में भी हादजा लोगों के पास भोजन की कमी नहीं होती।

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पृष्ठ 25

क्रियाकलाप 4: आप क्या सोचते हैं कि प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए ‘संजाति वृत्त’ सम्बन्धी वृत्तान्तों का इस्तेमाल करना, कितना उपयोगी अथवा अनुपयोगी है?
उत्तर:
प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए ‘संजातिवृत्त’ सम्बन्धी वृत्तान्तों का प्रयोग करना – प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए ‘संजातिवृत्त’ सम्बन्धी वृत्तान्तों का प्रयोग करना कितना उपयोगी है अथवा अनुपयोगी है। इस सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ प्रचलित हैं –

(1) पहली विचारधारा – इस विचारधारा के समर्थक विद्वानों ने आज के शिकारी संग्राहक समाजों से प्राप्त तथ्यों तथा आंकड़ों का सीधे अतीत के अवशेषों की व्याख्या करने के लिए उपयोग कर लिया है। उदाहरणार्थ, कुछ पुरातत्त्वविदों का कहना है कि 20 लाख वर्ष पहले होमिनिड स्थल जो तुर्काना झील के किनारे स्थित है, सम्भवत: आदिकालीन मानवों के शिविर या निवास-स्थान थे, जहाँ वे सूखे के मौसम में आकर रहते थे। यह विशेषता वर्तमान हादजा तथा कुंगसैन समाजों में भी पाई जाती है।

(2) दूसरी विचारधारा – इस विचारधारा के समर्थक विद्वानों का मत है कि ‘संजातिवृत्त’ सम्बन्धी तथ्यों और आँकड़ों का उपयोग अतीत के समाजों के अध्ययन के लिए नहीं किया जा सकता है। उनके मतानुसार ये चीजें एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। उदाहरण के लिए –

  • आज के शिकारी संग्राहक समाज शिकार और संग्रहण के साथ-साथ और अनेक आर्थिक क्रिया-कलापों में भी लगे रहते हैं।
  • ये जिन परिस्थितियों में रहते हैं, वे आरम्भिक मानव की अवस्था से बहुत भिन्न हैं।
  • आज के शिकारी-संग्राहक समाजों में आपस में भी बहुत भिन्नता है। वे सब समाज शिकार और संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं, उनके आकार तथा गतिविधियों में भी अन्तर पाया जाता है।
  • भोजन प्राप्त करने के सम्बन्ध में श्रम विभाजन को लेकर भी उनमें कोई आम सहमति नहीं है। अतः वर्तमान स्थिति के समाजों के आधार पर अतीत के बारे में कोई निष्कर्ष निकालना कठिन है।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 13 पर दिए गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था (Positive Feedback Mechanism) को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों (Inputs) की सूची दे सकते हैं जो औजारों के निर्माण में सहायक हुए? औजारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला?
उत्तर:
औजारों के निर्माण में सहायक निवेश – निम्नलिखित निवेश औजारों के निर्माण में सहायक सिद्ध हुए –

  1. मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।
  2. दो पैरों पर खड़े होकर चलने की क्षमता के कारण औजारों के प्रयोग के लिए बच्चों व चीजों को ले जाने के लिए हाथों का मुक्त होना।
  3. सीधे खड़े होकर चलना।
  4. आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लम्बी दूरी तक चलना।
  5. सीधे दो पैरों पर चलने से शारीरिक ऊर्जा की खपत कम होने लगी।

प्रक्रियाएँ जिनको औजारों के निर्माण से बल मिला –

औजारों के निर्माण से निम्न प्रक्रियाओं को बल मिला –
(1) भोजन में सुधार – औजारों की सहायता से मांस को साफ कर लिया जाता था तथा उसे सुखा कर सुरक्षित रख लिया जाता था। इस प्रकार सुरक्षित रखे खाद्य को बाद में खाया जा सकता था।
(2) वस्त्र – कुछ जानवरों की खाल का कपड़ों के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। सुई की सहायता से कपड़ों की सिलाई की जाने लगी।
(3) कला – छेनी या रुखानी जैसे छोटे-छोटे औजार बनाने के लिए तकनीक शुरू हो गई। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना या कुरेदना अब सम्भव हो गया।
(4) आत्मरक्षा – औजारों की सहायता से मनुष्य जंगली एवं हिंसक जानवरों से अपने जीवन की रक्षा करने में सफल हुआ।
(5) यातायात के साधन – पहिए के आविष्कार के फलस्वरूप बैलगाड़ियों का निर्माण किया जाने लगा, जिससे यातायात के साधनों का विकास हुआ।
(6) शिकार करना – औजारों के निर्माण से जानवरों को मारने अथवा शिकार करने के तरीकों में सुधार हुआ।

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प्रश्न 2.
मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पाई जाती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि सम्भवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों से हुआ।
(कं) व्यवहार और
(ख) शरीर रचना शीर्षकों के अन्तर्गत दो अलग-अलग स्तम्भ बनाइए और उन समानताओं की सूची दीजिए। दोनों के बीच पाये जाने वाले उन अन्तरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण समझते हैं।
उत्तर:
मानव तथा लंगूर और वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार में निम्नलिखित समानताएँ पाई जाती हैं –
समानताएँ –
(क) व्यवहार

मानव वानर तथा लंगूर
1. माताएँ अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। मादा वानर भी अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। वानर भी पेड़ों पर चढ़ सकते हैं।
2. मानव वृक्षों पर चढ़ सकता है। वानरों में भी सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता है।
3. मानव में सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता पाई जाती है। वानर भी लम्बी दूरी तक चल सकते हैं।
4. मानव लम्बी दूरी तक चल सकता है। वानर भी अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं और अपनी सन्तानों से प्यार करते हैं।
5. मानव अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं और उन्हें प्यार करते हैं। वानर तथा लंगूर

(ख) शरीर-रचना

मानव वानर तथा लंगूर
1. मानव रीढ़धारी है। वानर भी रीढ़धारी है।
2. मादा मानव के बच्यों को दूध पिलाने हेतु स्तन होते हैं। मादा वानरों के बच्चों को दूध पिलाने हेतु स्तन होते हैं।
3. बच्चा पैदा होने से पहले अपेक्षाकृत दीर्घकाल तक वह माता के गर्भ में पलता है। बंच्चा पैदा होने से पहले वह अपेक्षाकृत दीर्घकाल तक मादा वानर के गर्भ में पलता है।
4. मानव के शरीर पर बाल होते हैं। लंगूर तथा वानर के शरीर पर भी बाल होते हैं।

(क) व्यवहार

मानव वानर तथा लंगूर
1. मानव दो पैरों के बल चलता है। 1. वानर चार पैरों के बल चलता है।
2. मानव खेती और पशुपालन का कार्य करते हैं। 2. वानर खेती और पशुपालन का कार्य नहीं कर सकते।
3. मानव में औजार बनाने की विशेषताएँ होती हैं। उसके हाथों की रचना विशेष प्रकार की होती है। 3. मनुष्य में औजार बनाने की जो विशेषताएँ होती हैं, वे वानरों में नहीं पाई जातीं।
4. मानव सीधे खडे होकर चल सकता है। 4. वानर सीधे खड़े होकर नहीं चल सकते।

(ख) शरीर-रचना

मानव वानर तथा लंगूर
मानव का शरीर वानरों से बड़ा होता है। वानरों का शरीर अपेक्षाकृत छोटा होता है।
मानव की पूँछ नहीं होती। वानरों की पूँछ होती है।
मानव के हाथ की पकड़ सशक्त होती है। वानर के हाथ की पकड़ अपेक्षाकृत कमजोर होती है
मानव का मस्तिष्क बड़ा होता है। वानर का मस्तिष्क छोटा होता है।

प्रश्न 3.
मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा कीजिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है?
उत्तर:
मानव उद्भव का क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल – मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के अनुसार आधुनिक मानव का विकास भिन्न-भिन्न प्रदेशों में रहने वाले होमो सैपियन्स से अलग-अलग समय में हुआ। आधुनिक मानव का विकास धीरे-धीरे तथा अलग-अलग गति से हुआ। इसीलिए आधुनिक मानव विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में अलग-अलग स्वरूप में दिखाई दिया।

यह तर्क इस बात पर आधारित है कि आज के मनुष्यों के विभिन्न लक्षण पाये जाते हैं। इस मॉडल के समर्थकों का कहना है कि ये असमानताएँ एक ही क्षेत्र में पहले से रहने वाले होमो एरेक्टस तथा होमो हाइंडल-बर्गेसिस समुदायों में पाई जाने वाली भिन्नताओं के कारण हैं। हमारे विचार में क्षेत्रीयता निरन्तरता मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है।

प्रश्न 4.
इनमें से कौनसी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं :
(क) संग्रहण
(ख) औजार बनाना
(ग) आग का प्रयोग।
उत्तर:
औजार बनाना – पुरातात्विक अभिलेख में संग्रहण, औजार बनाने और आग का प्रयोग क्रियाओं में औजार बनाने की क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण सर्वाधिक मिलते हैं।

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यथा –

  1. आदि मानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने और उनका प्रयोग करने का सबसे प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया और केन्या के पुरास्थलों से मिला है। ये औजार सम्भवतः आस्ट्रेलोपिथिकस ने बनाए थे।
  2. ओल्डुवई नामक स्थान से प्राप्त आरम्भिक औजारों में एक गंडासा प्राप्त हुआ है, जिसके शल्कों को निकालकर धारदार बना दिया गया है।
  3. इसके अतिरिक्त दूसरा औजार एक हस्त – कुठार है।
  4. लगभग 35,000 वर्ष पहले ‘फेंककर मारने वाले भालों’ तथा ‘तीर-कमान’ जैसे नये प्रकार के औजार बनाए जाने लगे।
  5. सिलने के लिए सूई का आविष्कार भी हुआ । सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला साक्ष्य लगभग 21,000 वर्ष पुराना है।
  6. इसके बाद ‘छेनी’ या ‘रुखानी’ जैसे छोटे-छोटे औजार बनाये जाने लगे। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथी- दाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना सम्भव हो गया।

संक्षेप में निबन्ध लिखिए –

प्रश्न 5.
भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी मदद मिली होगी? इस पर चर्चा करिए। इन क्रिया-कलापों के लिए विचार सम्प्रेषण के अन्य किन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता था?
उत्तर:
(क) भाषा के प्रयोग से शिकार करने में मदद मिलना-जीवित प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो भाषा के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। भाषा और कला दोनों ही सम्प्रेषण अर्थात् विचार – अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। भाषा के प्रयोग

से शिकार करने में काफी मदद मिली होगी जिसका वर्णन निम्नानुसार है-
(1) लोग शिकार की योजना बना सकते थे।
(2) फ्रांस में स्थित लैसकाक्स और शोवे की गुफाओं में और स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफा में जानवरों की सैकड़ों चित्रकारियाँ प्राप्त हुई हैं। विद्वानों के अनुसार जीवन में शिकार का महत्त्व होने के कारण जानवरों की चित्रकारियाँ धार्मिक क्रियाओं, रस्मों और जादू-टोनों से जुड़ी होती थीं। जानवरों का चित्रण इसलिए किया जाता था कि ऐसी रस्म का पालन करने से शिकार करने में सफलता मिले।
(3) लोग शिकार के तरीकों तथा तकनीकों पर एक-दूसरे से चर्चा कर सकते थे।
(4) वे विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाले जानवरों की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
(5) वे जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा के उपायों के बारे में विचार-विमर्श कर सकते थे।
(6) जंगली जानवरों का शिकार करते समय प्रस्तुत होने वाले खतरों के बारे में चर्चा कर सकते थे 1
(7) वे विभिन्न सरकार के जानवरों की प्रकृति एवं स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते थे (8) वे जानवरों के शिकार करते समय सुरक्षात्मक उपायों के बारे में आपस में विचार-विमर्श कर सकते थे।
(9) वे आवश्यकतानुसार नवीन औजारों का निर्माण कर सकते थे।
(10) वे जानवरों की आवाजाही के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते थे तथा उनका जल्दी से बड़ी संख्या में वध करने के तरीकों के बारे में चर्चा कर सकते थे।
(11) शिकारी लोग वर्षा के मौसम में तथा सूखे मौसम में शिकार के लिए उपयुक्त स्थानों पर अपने शिविर लगा सकते हैं।
(12) वे मारे गए पशुओं के मांस, खाल, हड्डियों आदि के उपयोग पर चर्चा कर सकते हैं।

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(ख) भाषा के प्रयोग से आश्रय बनाने में मदद मिलना – भाषा के प्रयोग से आश्रय बनाने में निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं-

  1. लोग जंगली जानवरों तथा मौसम की प्रतिकूलता से अपनी सुरक्षा के लिए उपयुक्त आश्रय स्थलों के निर्माण के बारे में आपस में चर्चा कर सकते थे।
  2. आश्रय स्थल के निर्माण के लिए पत्थरों और अन्य सामग्री के उपयोग के बारे में चर्चा की जा सकती थी।
  3. लोग आश्रय स्थल के निर्माण के लिए उपलब्ध औजारों में सुधार कर सकते थे तथा उनका उपयोग कर सकते थे।
  4. वे आश्रय-स्थल बनाने के लिए उपयुक्त सामग्री की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  5. वे आश्रय स्थल बनाने के तरीकों तथा तकनीकों के बारे में परस्पर चर्चा कर सकते थे।
  6. वे आश्रय स्थल को अधिकाधिक सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के उपायों पर विचार-विमर्श कर सकते थे।

(ग) विचार – सम्प्रेषण के अन्य तरीके- विचार – सम्प्रेषण के लिए चित्रकारी तथा संकेतों का प्रयोग भी किया जाता था। फ्रांस के लैसकाक्स और शोवे की गुफाओं में और स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफाओं में जानवरों की अनेक चित्रकारियाँ पाई गई हैं। इनमें जंगली बैलों, घोड़ों- हिरनों, गैंडों, शेरों, भालुओं, तेन्दुओं, लकड़बग्घों और उल्लुओं के चित्र सम्मिलित हैं। इन चित्रों के माध्यम से मनुष्य ने अपने साथियों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों को शिकार के तरीकों एवं तकनीकों का सन्देश दिया होगा।

प्रश्न 6.
अध्याय के अन्त में दिए गए प्रत्येक कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कालानुक्रम-1 में से दो घटनाओं का विवरण –
1. होमिनाइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन (64 लाख वर्ष पूर्व ) – लगभग 64 लाख वर्ष पूर्व होमिनिड वर्ग का होमिनाइड उपसमूह से विकास हुआ। होमिनाइडों का मस्तिष्क होमिनिडों की अपेक्षा छोटा होता था। संजीव पास बुक्स होमिनाइड चार पैरों के बल चलते थे, परन्तु उनके शरीर का अगला हिस्सा और अगले दोनों पैर लचकदार होते थे। परन्तु होमिनिड सीधे खड़े होकर पिछले दो पैरों के बल चलते थे। उनके हाथ विशेष प्रकार के होते थे जिनकी सहायता से वे औजार बना सकते थे तथा उनका प्रयोग कर सकते थे।

2. आस्ट्रेलोपिथिकस (56 लाख वर्ष पूर्व ) – ‘आस्ट्रेलोपिथिकस, होमिनिडों’ की शाखाओं में से एक होते हैं। इन शाखाओं को जीनस कहते हैं। होमिनिडों की दूसरी प्रमुख शाखा ‘होमो’ कहलाती है। आस्ट्रेलोपिथिकस का समय 56 लाख वर्ष पहले का माना जाता है। ‘आस्ट्रेलोपिथिकस’ दो शब्दों के मेल से बना है – लैटिन शब्द ‘आस्ट्रल’ अर्थात् ‘दक्षिणी’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ अर्थात् वानर। यह नाम इसलिए दिया गया कि मानव के प्राचीन रूप में उसकी वानर अवस्था के अनेक लक्षण पाये जाते थे।

ये लक्षण निम्नलिखित थे –

  1. होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था।
  2. उनके पिछले दाँत बड़े थे।
  3. उनके हाथों की दक्षता सीमित थी।
  4. उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं थी क्योंकि वे अभी भी अपना अधिकतर समय पेड़ों पर बिताते थे।

इसलिए उनमें पेड़ों पर जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक अनेक विशेषताएँ अब भी विद्यमान थीं जैसे आगे के अंगों का लम्बा होना, हाथ और पैरों की हड्डियों का मुड़ा होना तथा टखने के जोड़ों का घुमावदार होना।

कालानुक्रम-2 में से दो घटनाओं का विवरण –
(1) आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव – आधुनिक मानव (होमो सैपियन्स) एक चिन्तनशील और बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। (होमो सैपियन्स के अस्तित्व के बारे में प्राचीनतम साक्ष्य हमें अफ्रीका के भिन्न-भिन्न भागों से मिले हैं। विद्वानों के अनुसार आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव 1,95,000 से 1,60,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इसके प्राचीनतम जीवाश्म इथियोपिया के ओमोकिबिश नामक स्थान से मिले हैं। आधुनिक मानव के मस्तिष्क का आकार बड़ा था। वह दो पैरों के बल सीधा खड़ा हो सकता था तथा सीधा चलता था। अपने हाथों की दक्षता के कारण वह औजार बना सकता था तथा उनका प्रयोग कर सकता था।

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(2) स्वर – तन्त्र का विकास – जीवित प्राणियों में मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है, जिसकी अपनी भाषा है। उच्चरित भाषा से पहले गाने या गुनगुनाने जैसे मौखिक या अ-शाब्दिक संचार का प्रयोग होता था। होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं, जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा । इस प्रकार सम्भवतः भाषा का विकास सबसे पहले 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ। मस्तिष्क में हुए परिवर्तनों के अलावा स्वर-तंत्र का विकास भी उतना ही महत्त्वपूर्ण था। स्वर-तन्त्र का विकास लगभग 2,00,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इसका सम्बन्ध विशेष रूप से आधुनिक मानव से रहा है।

समय की शुरुआत से JAC Class 11 History Notes

पाठ- सार

1. मानव का प्रादुर्भाव – विद्वानों के अनुसार 56 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर मानव का प्रादुर्भाव हुआ। आधुनिक मानव का जन्म 1,60,000 वर्ष पहले हुआ था।

2. मानव का विकास – मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ इस बात का साक्ष्य हमें मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं। 24 नवम्बर, 1859 को चार्ल्स डार्विन की पुस्तक ‘ऑन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ प्रकाशित हुई जिसमें डार्विन ने बताया कि मानव का विकास बहुत समय पहले जानवरों से हुआ।

3. आधुनिक मानव के पूर्वज – लगभग 56 लाख वर्ष पहले होमिनिड प्राणियों का प्रादुर्भाव हुआ। इनका उद्भव अफ्रीका में हुआ था । होमिनिड समूह के प्राणियों की विशेषताएँ हैं –
(1) मस्तिष्क का बड़ा आका
(2) पैरों के बल सीधे खड़े होने की क्षमता
(3) दो पैरों के बल चलना
(4) हाथ की विशेष क्षमता जिससे वह औजार बना सकता था। होमिनिडों को कई शाखाओं (जीनस) में बाँटा जा सकता है। इनमें आस्ट्रेलोपिथिकस और होमो अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। आस्ट्रेलोपिथिकस और होमो के बीच मुख्य अन्तर उनके मस्तिष्क के आकार, जबड़े और दाँतों के सम्बन्ध में पाये जाते हैं।

4. आस्ट्रेलोपिथिकस – आस्ट्रेलोपिथिकस नाम लैटिन भाषा के शब्द ‘आस्ट्रल’ अर्थात् दक्षिणी तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ अर्थात् ‘वानर’ से मिलकर बना है। होमो की अपेक्षा आस्ट्रेलोपिथिकस का मस्तिष्क छोटा होता था, पिछले दाँत बड़े होते थे तथा उसमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं होती थी।

5. आदिकालीन मानव के अवशेषों को भिन्न-भिन्न प्रजातियों में वर्गीकृत करना – आदिकालीन मानव के अवशेषों को भिन्न-भिन्न प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है। इन प्रजातियों को प्रायः उनकी हड्डियों की रचना में पाए जाने वाले अन्तर के आधार पर एक-दूसरे से अलग किया गया है। उदाहरणार्थ, प्रारम्भिक मानवों की प्रजातियों को उनकी खोपड़ी के आकार और जबड़े की विशिष्टता के आधार पर विभाजित किया गया है।

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6. होमो – लगभग 25 लाख वर्ष पहले, ध्रुवीय हिमाच्छादन से जब पृथ्वी के बड़े-बड़े भाग बर्फ से ढक गए तो जलवायु तथा वनस्पति की स्थिति में भारी परिवर्तन आए । जंगल कम हो गए तथा जंगलों में रहने के अभ्यस्त आस्ट्रेलोपिथिकस के प्रारम्भिक रूप लुप्त होते गए तथा उनके स्थान पर उनकी दूसरी प्रजातियों का उद्भव हुआ जिनमें होमो के सबसे पुराने प्रतिनिधि सम्मिलित थे।

7. होमो की प्रजातियाँ – होमो लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है- ‘आदमी’। वैज्ञानिकों ने होमो को होमो हैबिलिस (औजार बनाने वाले), होमो एरेक्टस (सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलने वाले) और होमो सैपियन्स (प्राज्ञ या चिन्तनशील मनुष्य) नामक विभिन्न प्रजातियों में बाँटा है। होमो हैबिलिस के जीवाश्म इथियोपिया में ओमो और तंजानिया में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

होमो एरेक्टस के जीवाश्म अफ्रीका तथा एशिया दोनों महाद्वीपों में पाए गए हैं। एशिया में पाए गए जीवाश्म अफ्रीकी जीवाश्मों की तुलना में परवर्ती काल के हैं। संभवतः ही मीनिड पूर्वी अफ्रीका से चलकर दक्षिणी और उत्तरी अमरीका, दक्षिणी एशिया और शायद यूरोप में गए होंगे। यूरोप में मिले सबसे पुराने जीवाश्म होमो सैपियन्स प्रजाति के होमो हाइडलबर्गेसिस तथा होमोनिअंडरथलैसिस हैं।

8. विश्व में मानव प्रजातियों का निवास –

  • आस्ट्रेलोपिथिकस, प्रारम्भिक होमो तथा होमो एरेक्टस नामक मानव प्रजातियाँ अफ्रीका में सहारा के आसपास के प्रदेश में 50 लाख से 10 लाख वर्ष पूर्व तक निवास करती थीं।
  • होमो एरेक्टस, आद्य होमो सैपियन्स, निअंडरथल मानव, होमो सैपियन्स आधुनिक मानव अफ्रीका, एशिया और यूरोप के मध्य – अक्षांश क्षेत्र में 10 लाख से 40 हजार वर्ष पूर्व निवास करते थे।
  • आधुनिक मानव आस्ट्रेलिया में 45,000 वर्ष पूर्व तक निवास करता था।
  • बाद वाले निअंडरथल, आधुनिक मानव नामक प्रजातियाँ उच्च अक्षांश पर यूरोप तथा एशिया-प्रशान्त द्वीप – समूह तथा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी रेगिस्तान और वर्षा वन में 40,000 वर्ष से अब तक निवास करती हैं।

9. आधुनिक मानव का उद्भव – क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के अनुसार अनेक क्षेत्रों में अलग-अलग मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मनुष्य का उद्भव एक ही स्थान – अफ्रीका में हुआ था।

10. आधुनिक मानवों के प्राचीनतम जीवाश्म-

1. कहाँ कब (वर्षों पहले)
2. इथियोपिया
ओमोकिबिश
1,95,000-1,60,000
3. दक्षिणी अफ्रीका
बार्डर गुफा
दी केल्डर्स
क्लासीज नदी का मुहाना
1,20,000-50,000
4. मोरक्को
दर एस सुल्तान
70,000-50,000
5. इजराइल
कफजेह स्खुल
100,000-80,000
6. आस्ट्रेलिया
मुंगो लेक (मुंगो झील)
45,000-35,000
7. बोर्नियो
नियाह गुफा
40,000
8. फ्रांस
क्रोमैगनन
लेस आइजीस के पास
35,000

11. आदिकालीन मानव का भोजन – आदिकालीन मानव कई तरीकों से अपना भोजन जुटाते थे जैसे संग्रहण, शिकार, मछली पकड़ना, अपमार्जन द्वारा अपने आप मरे या अन्य हिंसक जानवरों द्वारा मार दिये गए जानवरों की लाशों से मांस – मज्जा खुरचना।

12. आदिकालीन मानव का निवास स्थान- एक ही क्षेत्र में होमिनिड अन्य प्राइमेटों तथा मांसाहारियों के साथ निवास करते थे। पुरातत्त्वविदों का मत है कि पूर्व होमिनिड्स भी होमो हैबिलिस की भाँति जहाँ कहीं भी भोजन मिलता था, वहीं खा लेते थे। वे विभिन्न स्थानों पर सोते थे तथा अपना अधिकांश समय वृक्षों पर बिताते थे। 4,00,000 से 1,25,000 वर्ष पहले गुफाओं तथा खुले निवास-क्षेत्रों का प्रयोग किया जाता था। दक्षिणी फ्रांस कलेजले गुफा में 12×4 मीटर आकार का एक आश्रय स्थल मिला है। इसके अन्दर दो चूल्हों तथा विभिन्न भोजन-स्रोतों के प्रमाण मिले हैं।

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13. आदिकालीन मानव के औजार- आदिकालीन मानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने तथा उनका प्रयोग किये जाने के प्रमाण इथियोपिया और केन्या के पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। आस्ट्रेलोपिथिकस ने सम्भवतया सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए थे। फेंककर मारने वाले भाले तथा तीर-कमान जैसे औजार बनाये जाने लगे। सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला प्रमाण लगभग 21,000 वर्ष पुराना है। छेनी तथा रुखानी जैसे छोटे-छोटे औजार भी बनाये जाने लगे। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना या कुरेदना अब सम्भव हो गया।

14. भाषा और कला – जीवित प्राणियों में केवल मनुष्य ही भाषा का प्रयोग करता है। होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा। पहला विचार यह है कि, सम्भवतया भाषा का विकास सर्वप्रथम 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ होगा। दूसरा विचार यह है कि, स्वर तंत्र का विकास 2 लाख वर्ष पहले हुआ था। तीसरा विचार यह है कि भाषा, कला के साथ-साथ लगभग 40,000-35000 साल पहले विकसित हुई।

15. उपसंहार – 10,000 से 4,500 वर्ष पहले तक लोगों ने कुछ जंगली पौधों का अपने उपयोग के लिए उगाना और जानवरों को पालतू बनाना सीख लिया। इसके परिणामस्वरूप खेती और पशु चारण कार्य उनकी जीवन-पद्धति का हिस्सा बन गया। अब लोगों ने गारे, कच्ची ईंटों तथा पत्थरों से स्थायी घर बना लिए। अब लोगों ने मिट्टी के बर्तन बनाना, नये प्रकार के औजारों का प्रयोग करना शुरू कर दिया।

16. काल-रेखा-1 (लाख वर्ष पूर्व)

1. 360-240 लाख वर्ष पूर्व नर-वानर (प्राइमेट); बन्दर एशिया और अफ्रीका में।
2. 240 लाख वर्ष पूर्व (अधिपरिवार) होमिनाइड; गिब्बन, एशियाई ओरांगउटान और अफ्रीकी वानर (गोरिल्ला, चिंपैंजी और बोनोबो ‘पिग्मी’ चिंपैंजी)।
3. 64 लाख वर्ष पूर्व होमिनाइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन।
4. 56 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस।
5. 26-25 लाख वर्ष पूर्व पत्थर के सबसे पहले औजार।
6. 25-20 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका का ठण्डा और शुष्क होना, जिसके परिणामस्वरूप जंगलों में कमी और घास के मैदानों में वृद्धि हुई।
7 25-20 लाख वर्ष पूर्व होमो
8. 22 लाख वर्ष पूर्व होमो हैबिलिस
9. 18 लाख वर्ष पूर्व होमो एरेक्टस
10. 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस का विलुप्त होना
11. 8 लाख वर्ष पूर्व ‘आद्य’ सैपियन्स, होमोहाइडलबर्गेसिस
12. 1.9-1.6 लाख वर्ष पूर्व होमो सैपियन्स सैपियन्स (आधुनिक मानव)
काल-रेखा-2 (लाख वर्ष पूर्व)
1. दफनाने की प्रथा का सबसे पहला साक्ष्य 3,00,000
2. होमो एरेक्टस का लोप 2,00,000
3. स्वर-तन्त्र का विकास 2 ,00000
4. नर्मदा घाटी, भारत में आद्य होमो सैपियन्स की खोपड़ी 200,0O0-1 ,30,000
5. आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव 1,95,000-1 40,000
6. निअंडरथल मानव का प्रादुर्भाव 1,30,000
7. चूल्हों के प्रयोग के विषय में सबसे पहला साक्ष्य 1,25,000
8. निअंडरथल मानवों का लोप 35,000
9. आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियों का सबसे पहला प्रमाण 27,000
10. सिलाई वाली सुई का आविष्कार 21,000

JAC Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Jharkhand Board Class 11 History मूल निवासियों का विस्थापन In-text Questions and Answers

पृष्ठ 219

क्रियाकलाप 1: यूरोपीय लोगों और अमरीकी मूल निवासियों के मन में एक-दूसरे की जो छवि थी तथा प्रकृति को देखने के जो उनके अलग-अलग तरीके थे, उन पर विचार करें।
उत्तर:
यूरोपीय लोगों तथा अमरीकी मूल निवासियों का एक-दूसरे के प्रति दृष्टिकोण
यूरोपीय लोगों तथा अमरीकी मूल निवासियों के एक-दूसरे के प्रति दृष्टिकोण का विवेचन निम्नानुसार है –

1. यूरोपीय लोगों द्वारा अमरीकी मूल निवासियों को ‘असभ्य’ समझना – अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग सभ्य मनुष्य की तरह पहचान साक्षरता, संगठित धर्म तथा शहरीकरण के आधार पर ही करते थे। अतः उन्हें अमरीकी मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए। इंग्लैण्ड के कवि वर्ड्सवर्थ ने अमरीकी मूल निवासियों के विषय में लिखा है कि, ” वे जंगलों में रहते हैं, जहाँ कल्पना – शक्ति के पास उन्हें भाव – सम्पन्न करने, उन्हें ऊँचा उठाने या परिष्कृत करने के अवसर बहुत कम हैं। ”

2. अमरीकी मूल निवासियों द्वारा यूरोपीय लोगों को लालची समझना – अमरीका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उनके लिए मित्रता में दिए गए ‘उपहार’ थे। इसके पीछे उनका कोई स्वार्थ संजीव पास बुक्स नहीं था, परन्तु धनी बनने की आशा में यूरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खाल माल थे, जिन्हें वे यूरोप में बेच कर भारी मुनाफा कमाना चाहते थे। मूल निवासियों को सुदूर यूरोप में स्थित ‘बाजार’ का तनिक भी ज्ञान नहीं था।

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उनके लिए यह बात रहस्य बनी हुई थी कि यूरोपीय व्यापारी उनकी वस्तुओं के बदले में कभी तो उन्हें बहुत सारा सामान देते थे और कभी बहुत कम। वे यूरोपीय लोगों के लालच को देख कर दुःखी होते थे। मूल निवासियों की कई लोककथाओं में यूरोपीय लोगों का उपहास किया गया था और उनका वर्णन लालची तथा धूर्त के रूप में किया गया था। प्रचुर मात्रा में रोएंदार खाल प्राप्त क़रने के लिए उन्होंने सैकड़ों ऊदबिलावों की हत्या कर दी थी। इससे मूल निवासी बड़े परेशान थे। उन्हें डर था कि जानवर उनसे इस विनाश – लीला का बदला लेंगे।

3. जंगल के विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण-मूल निवासियों ने उन मार्गों को चिन्हित किया, जो यूरोपीय लोगों के लिए अदृश्य थे। यूरोपीय लोग कटे हुए जंगलों के स्थान पर मक्के के खेत देखना चाहते थे। मूल निवासी अपनी आवश्यकताओं के लिए फसलें उगाते थे, न कि बिक्री और मुनाफे के लिए। वे जमीन का मालिक बनने को गलत मानते थे।

पृष्ठ 226

क्रियाकलाप 2 : अमरीकी इतिहासकार होवर्ड स्पाडेक के इस कथन पर टिप्पणी करें : ” अमरीकी क्रान्तिका जो प्रभाव गोरे आबादकारों के लिए था, उससे ठीक विपरीत मूल निवासियों के लिए था – फैलाव सिकुड़न बन गया, लोकतन्त्र तानाशाही बन गया, सम्पन्नता विपन्नता बन गई और मुक्ति कैद बन गई। ”
उत्तर:
अमरीकी मूल निवासियों की दशा दयनीय थी। अमरीकी क्रान्ति से गोरे आबादकार ही लाभान्वित हुए। इसके परिणामस्वरूप गोरे लोगों का प्रशासन और राजनीति में वर्चस्व स्थापित हो गया। उनकी धन-सम्पन्नता में वृद्धि हुई और वे समाज तथा राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली एवं शक्तिशाली बन गए। परन्तु इसके विपरीत अमरीकी मूल निवासियों की दशा शोचनीय बनी रही। उनके लिए लोकतन्त्र तानाशाही बन गया, सम्पन्नता विपन्नता बन गई और मुक्ति कैद बन गई। मूल निवासी छोटे इलाकों में कैद कर दिए गए थे जिन्हें ‘रिजर्वेशन्स’ कहा जाता था। जार्जिया प्रान्त के लगभग 15000 चिरोकियों को उनकी जमीनों से बेदखल कर दिया गया।

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संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकतान्त्रिक अधिकार ( राष्ट्रपति और कांग्रेस के प्रतिनिधियों के चुनाव में वोट देने का अधिकार) और सम्पत्ति का अधिकार दोनों केवल गोरे आबादकारों के लिए ही थे, मूल निवासियों के लिए नहीं। मूल निवासी अपनी संस्कृति को पूरी तरह से निभा नहीं सकते थे। उन्हें नागरिकता के अधिकारों से भी वंचित रखा जाता था । स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ भी अपर्याप्त थीं।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिणी और उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बीच के फर्कों से सम्बन्धित किसी भी बिन्दु पर टिप्पणी करिए।
उत्तर:
(i) दक्षिणी अमरीका का आधार कृषि था। वहाँ जमीन खेती के लिए बहुत उपजाऊ नहीं थी, इसलिए लोगों ने पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाए और जल निकासी तथा सिंचाई की प्रणालियों का विकास किया। वहाँ खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी। मक्का, आलू आदि प्रमुख फसलें थीं। उत्तरी अमरीका के लोगों ने बड़े पैमाने पर खेती करने का प्रयास नहीं किया। वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन नहीं करते थे। वे मछली और मांस खाते थे और सब्जियाँ तथा मकई उगाते थे। वे प्रायः मांस की खोज में लम्बी यात्राओं पर जाया करते थे। मुख्य रूप से उन्हें ‘बाइसन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते थे। परन्तु वे उतने ही जानवरों का वध करते थे, जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

(ii) चूंकि उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों ने बड़े पैमाने पर खेती नहीं की और वे अधिशेष अन्न का उत्पादन नहीं करते थे। इसलिए वहाँ केन्द्रीय तथा दक्षिणी अमरीका की भाँति राजशाही तथा साम्राज्य का विकास नहीं हुआ। वे जमीन पर अपना स्वामित्व स्थापित करने की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे तथा उससे मिलने वाले भोजन और आश्रय से सन्तुष्ट थे दूसरी ओर दक्षिणी अमरीका में और मध्य अमेरिका में एजटेक, इंका आदि लोगों ने विशाल साम्राज्य स्थापित कर रखे थे। वे अपनी भूमि के लिए युद्ध करते थे।

प्रश्न 2.
आप उन्नीसवीं सदी के संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौनसी विशेषताएँ देखते हैं?
उत्तर:
(1) जमीन के प्रति यूरोपीय लोगों का दृष्टिकोण मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो छोटे पुत्र होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। वे इसी कारण से अमरीका में जमीन के स्वामी बनना चाहते थे।

(2) संयुक्त राज्य अमरीका में जर्मनी, स्वीडन, इटली आदि देशों से ऐसे आप्रवासी भी बड़ी संख्या में आए, जिनकी जमीनें बड़े किसानों ने खरीद ली थीं। वे ऐसी जमीन चाहते थे जिसे वे अपना कह सकें।

(3) पोलैण्ड से आए लोगों को प्रेयरी चरागाहों में काम करना अच्छा लगता था जो उन्हें अपने देश के स्टेपीज (घास के मैदान) की याद दिलाते थे।

(4) यूरोपीय लोगों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत कम मूल्य पर बड़ी सम्पत्तियाँ खरीद लीं। उन्होंने जमीन को साफ किया और खेती का विकास किया। उन्होंने धान, कपास आदि की फसलें उगाईं, जो यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इन्हें यूरोप में ऊँचे मुनाफे पर बेचा जा सकता था।

(5) उन्होंने अपने खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए शिकार के द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के पश्चात् वे इन जंगली जानवरों से पूर्णतया सुरक्षित हो गए।

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(6) अंग्रेजों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी बस्तियों के विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन से वहाँ के मूल निवासियों को हटा दिया। उन्होंने या तो बहुत कम कीमत देकर या धोखे से उनसे भूमि हथिया ली।

(7) उच्च अधिकारी मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे।

प्रश्न 3.
अमरीकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने थे?
उत्तर:
यूरोपीय द्वारा जीती गई तथा खरीदी गई भूमि के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की पश्चिमी सीमा (फ्रंटियर) खिसकती रहती थी। इस सीमा के खिसकने के साथ-साथ मूल निवासी भी पीछे खिसकने के लिए विवश किए जाते थे। वे संयुक्त राज्य अमेरिका की जिस सीमा तक पहुँच जाते थे, उसे ‘फ्रंटियर’ कहा जाता था।

प्रश्न 4.
इतिहास की किताबों में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था ?
उत्तर:
इतिहास की किताबों में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल नहीं किए जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(i) इतिहासकारों को यूरोपीय लोगों की तुलना में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का निम्न कोटि का जीवन-स्तर, आर्थिक पिछड़ापन आदि आकर्षित नहीं कर सका।

(ii) इतिहासकार केवल यूरोपीय लोगों की उपलब्धियों से चकाचौंध थे और उनका वर्णन करना ही अपना कर्त्तव्य मानते थे। उन्होंने यह जानने का प्रयास ही नहीं किया कि आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के पास अपनी कथाओं, कपड़ासाजी, चित्रकारी, हस्तशिल्प के कौशल का विशाल भण्डार था और वह भण्डार आदर तथा अभिलेखन के योग्य था।

(iii) एक मूल निवासी द्वारा कैप्टन कुक की हत्या कर दिए जाने से यूरोपीय लोग नाराज थे। कैप्टन कुक की हत्या से उत्पन्न कटुता के कारण यूरोपवासियों ने आस्ट्रेलिया के विषय में जानकारी देने का प्रयत्न नहीं किया।

(iv) वे इस कारण भी मूल निवासियों से नाराज थे कि इंग्लैण्ड से केवल अपराधी लोग. आस्ट्रेलिया भेजे जाते थे और उनके कारावास पूरा होने पर ब्रिटेन वापस न लौटने की शर्त पर उन्हें आस्ट्रेलिया में स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने की अनुमति दी गई थी। इन लोगों ने मूल निवासियों को जबरदस्ती उनकी जमीनों से निकालकर बाहर कर दिया । इससे नफरत का वातावरण पैदा होता चला गया। इस कारण भी यूरोपीय लोगों में मूल निवासियों के प्रति नाराजगी थी।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण विचार करिए।
उत्तर:
लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित वस्तुओं का सहायक होना- किसी भी देश के लोगों की संस्कृति को समझने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित वस्तुएँ बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं। संग्रहालय में संजीव पास बुक्स विभिन्न प्रकार के औजार, हथियार, मिट्टी के बर्तन, विभिन्न प्रकार के सिक्के, मिट्टी, पत्थर और धातुओं की बनी हुई मूर्तियाँ, विभिन्न प्रकार के शिलालेख, विभिन्न प्रकार के वस्त्र, वेश-भूषाएँ, ग्रन्थ, चित्र आदि उपलब्ध होते हैं। इनकी सहायता से किसी भी देश के लोगों की संस्कृति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। आस्ट्रेलिया की आदि संस्कृतियाँ इसका उदाहरण हैं। कक्ष हैं –

अलवर संग्रहालय – अलवर संग्रहालय की स्थापना 1940 में की गई थी। इस संग्रहालय में निम्नलिखित चार –
1. प्रथम कक्ष – प्रथम कक्ष में पत्थर की मूर्तियाँ और शिलालेख हैं।

2. द्वितीय कक्ष – द्वितीय कक्ष में विभिन्न शासकों के वस्त्र, चंवर, सिंगारदान, हाथीदाँत की पंखी, खिलौने, पीतल एवं मिट्टी के बर्तन, चाँदी से निर्मित मेज आदि कला के सुन्दर नमूने उपलब्ध हैं।

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3. तृतीय कक्ष – तृतीय कक्ष में हस्तशिल्प कला की अनेक वस्तुएँ जैसे विभिन्न कलाकारों द्वारा बनाए गए चित्र आदि उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त इसमें ‘शाहनामा’, ‘कुरानशरीफ’, ‘अकबरनामा’, ‘नल-दमयन्ती’ आदि अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं।

4. चतुर्थ कक्ष- इस कक्ष में विभिन्न शासकों एवं योद्धाओं की तलवारें, बन्दूकें, नागफांस, बाघनख आदि अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र विद्यमान हैं। संग्रहालय में प्रदर्शित वस्तुओं से किसी भी देश के लोगों के रहन-सहन, वेश-भूषा, धार्मिक विश्वासों, विभिन्न कलाओं, चित्रकला, मूर्तिकला, हस्तशिल्प कला आदि के बारे में जानकारी मिलती है। इनसे लोगों की आर्थिक स्थिति, कला के स्तरों, राजनीतिक स्थिति, विभिन्न शासकों तथा उनकी उपलब्धियों आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

प्रश्न 6.
कैलिफोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाकात की कल्पना कीजिए। ये चार लोग हैं – एक अफ्रीकी गुलाम, एक चीनी मजदूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होपी कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन करिए।
उत्तर:
कैलिफोर्निया संयुक्त राज्य अमेरिका का एक राज्य है। कैलिफोर्निया में चार लोग साथ – साथ रहते थे। इन चार लोगों के बीच प्रायः सबकी छुट्टी के बिना आपसी बातचीत होती रहती थी। इन चार लोगों के बीच 1880 में मुलाकात हुई। ये चार लोग थे –
(1) एक अफ्रीकी गुलाम – जोजेफ
(2) एक चीनी मजदूर – यू-मिन
(3) गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन व्यापारी – मार्शल
(4) होपी कबीले का एक मूल निवासी बॉव।

उनकी बातचीत का वर्णन निम्नानुसार है –
1. अफ्रीकी गुलाम – जोसेफ – 1861 में दास प्रथा का उन्मूलन हो चुका था। इसलिए अब वह एक स्वतंत्र दास था। वह मार्शल से कहता है कि आप 1850 ई. में अमेरिका आ गये थे। यहाँ आकर आपने सोने के व्यापार से अच्छा लाभ कमाया और एक धनी व्यक्ति हो गए। आपका मकान शानदार तथा सभी सुख-सुविधाओं वाला है। आप एक सहृदय व्यक्ति हैं । इसलिए आप इतने धनी होने के बावजूद हमें कभी-कभी अपने यहाँ दावत पर बुला लेते हैं।

2. चीनी मजदूर – यू मिन- मैं भी जोसेफ के विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ कि इतने धनी होने पर भी मार्शल साहब मेरे जैसे रेल विभाग में एक मजदूर के रूप में काम करने वाले व्यक्ति अपने यहाँ दावत पर बुला लेते हैं। आज के युग में हमारे जैसे गरीब को कौन पूछता है ?

JAC Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

3. एक मूल निवासी – बॉव- मेरे पास तो मार्शल साहब की इंसानियत को बखान करने के लिए शब्द ही नहीं हैं। एक दिन मेरी पत्नी अधिक बीमार हो गई, उसे तुरन्त अस्पताल ले जाने हेतु मेरे पास न तो धन था और न गाड़ी। तभी मार्शल साहब यहाँ आकर अपनी कार में मेरी पत्नी को अस्पताल ले गए और उन्होंने बिना बताए उसके इलाज हेतु पैसे भी जमा कर दिए। मैं और मेरा परिवार आपके इस कर्ज को अदा नहीं कर सकता। मार्शल साहब, आप इंसान नहीं देवता हैं।

4. मार्शल – मुझे कैलीफोर्निया आए लगभग 30 वर्ष हो गए हैं और अब मैं अपने मूल देश के बारे में बहुत कुछ भूल चुका हूँ। आप लोगों ने यहाँ मुझे इतना प्यार दिया है कि मैं यहाँ का ही होकर रह गया हूँ। आप लोगों की सेवा करने से मुझे आनंद मिलता है। मैं वास्तव में बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे आप जैसे सच्चे मित्र मिले हैं। हमारी मित्रता सदा बनी रहे, यही ईश्वर से कामना है।

मूल निवासियों का विस्थापन JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. यूरोपीय साम्राज्यवाद – सत्रहवीं शताब्दी के बाद स्पेन और पुर्तगाल के अमरीकी साम्राज्य का विस्तार नहीं हुआ। दूसरी ओर फ्रांस, हालैण्ड तथा इंग्लैण्ड आदि देशों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार करना तथा अमरीका, अफ्रीका एवं एशिया में अपने उपनिवेश बसाना शुरू कर दिया था। दक्षिण एशिया में कंपनियों ने अपने को राजनीतिक सत्ता का रूप दिया।

स्थानीय शासकों को हराकर पुरानी व्यवस्था को कायम रखते हुए भू-स्वामियों से कर वसूला तथा व्यापारिक लाभ हेतु रेलवे, खदानों तथा बागानों का विकास किया। दक्षिणी अफ्रीका को छोड़कर शेष सम्पूर्ण अफ्रीका में यूरोपवासी सब जगह समुद्र तटों पर ही व्यापार करते रहे। इसके बाद कुछ यूरोपीय देशों में अपने उपनिवेशों के रूप में अफ्रीका का बँटवारा करने का समझौता हुआ। इन उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेजी थी। ( कनाडा को छोड़ कर जहाँ फ्रांसीसी भी एक राज – भाषा है ।)

2. उत्तरी अमरीका – उत्तरी अमरीका का महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्करेखा तक और प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक फैला है। कनाडा का 40 प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से ढका है। वहाँ कई क्षेत्रों में तेल, गैस और खनिज संसाधन उपलब्ध हैं। वहाँ अनेक बड़े उद्योग हैं तथा गेहूँ, मकई, फल बड़े पैमाने पर पैदा किए जाते हैं।

3. उत्तरी अमरीका के मूल निवासी- उत्तरी अमरीका के सबसे पहले निवासी 30,000 वर्ष पहले बेरिंग स्ट्रेट्स के आर-पार फैले एशिया से आए और 10,000 वर्ष पहले अन्तिम हिमयुग के दौरान वे दक्षिण की ओर बढ़े। वे लोग नदी – घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मछली और मांस खाते थे तथा सब्जियाँ और मकई उगाते थे। उन्होंने बड़े पैमाने पर खेती करने का कोई प्रयास नहीं किया। उनके बीच औपचारिक सम्बन्ध थे। वे परस्पर मित्रता स्थापित करते थे तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। वे कुशल कारीगर थे और सुन्दर वस्त्र पहनते थे।

4. यूरोपियनों से मुकाबला – 17वीं सदी में यूरोपीय लोग उत्तरी अमेरिकी तट पर पहुँचे। ये लोग मछली और रोएंदार खाल के व्यापार के लिए आए थे। इसमें उन्हें शिकार कुशल देसी लोगों की ओर से अपेक्षित मदद मिली। देसी लोग अपने कबीलों में बने हस्तशिल्पों के बदले कंबल, लोहे के बर्तन, बंदूकें और शराब प्राप्त करते थे। जल्दी ही वे शराब की आदत के शिकार हो गए। इसने यूरोपीय व्यापारियों को उन पर शर्तें थोपने में सक्षम बताया।

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5. पारस्परिक धारणाएँ – यूरोपियन लोगों को अमरीका के मूल निवासी ‘असभ्य’ या उदात्त उत्तम जंगली प्रतीत हुए। यूरोपीय लोग वहाँ से मछली और रोएँदार खाल प्राप्त कर यूरोप में बेचना चाहते थे और मुनाफा कमाना चाहते थे। बहुत से यूरोपीय लोग धार्मिक अत्याचारों से बचने के लिए यूरोप छोड़ कर अमरीका में आकर बस गए। कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमरीका 18वीं सदी के अन्त में अस्तित्व में आए। अमरीका ने कई विशाल क्षेत्रों को खरीद लिया तथा उसने युद्ध में दक्षिणी अमरीका का अधिकांश भाग मैक्सिको से जीत लिया। संयुक्त राज्य अमरीका की पश्चिमी सरहद खिसकती रहती थी और जैसे-जैसे यह खिसकती जाती, मूल निवासी भी पीछे खिसकने को बाध्य किए जाते।

दक्षिण अमरीका के बागान – मालिकों ने अफ्रीका से दास खरीदे। दास-प्रथा विरोधी समूहों के विरोध के चलते वहाँ दासों के व्यापार पर तो रोक लग गई, परन्तु जो अफ्रीकी संयुक्त राज्य अमरीका में थे, वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे। 1861-65 में अमरीका में दास प्रथा को जारी रखने वाले और उसे समाप्त करने की वकालत करने वाले राज्यों के बीच युद्ध हुआ जिसमें दासता – विरोधियों की जीत हुई। दास-प्रथा समाप्त कर दी गई।

6. अपनी जमीन से मूल निवासियों की बेदखली – जब अमरीका ने अपनी बस्तियों का विस्तार करना शुरू किया, तो मूल निवासियों को वहाँ से हटने के लिए प्रेरित या बाध्य किया गया। उन्हें जमीनों की जो कीमतें दी गईं, वे बहुत कम थीं। 1832 में अमेरिका के राष्ट्रपति जैक्सन ने चिरोकी कबीले के लोगों को अपनी जमीन से हटाकर | विस्तृत अमरीकी भूमि की ओर खदेड़ने के लिए अमरीकी सेना भेज दी। जिन 15,000 लोगों को वहाँ से हटने पर बाध्य किया गया, उनमें से एक-चौथाई मौत के मुँह में चले गए।

8. गोल्ड रश और उद्योगों में वृद्धि – 1840 में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिन्ह मिले। इसने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। हजारों लोग अपने भाग्य – निर्माण की आशा में अमरीका पहुँचे। इसके चलते पूरे महाद्वीप में रेलवे लाइनों का निर्माण हुआ जिसके लिए हजारों चीनी मजदूरों की नियुक्ति हुई। संयुक्त राज्य अमरीका तथा कनाडा में औद्योगिक नगरों का विकास हुआ और अनेक कारखानों की स्थापना हुई। बड़े पैमाने पर खेती का भी विस्तार हुआ।

9. संवैधानिक अधिकार – अमेरिका के संविधान में व्यक्ति के ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को शामिल किया गया, जिसे रद्द करने की छूट राज्य को नहीं थी। परन्तु लोकतान्त्रिक अधिकार और सम्पत्ति का अधिकार दोनों केवल गोरे लोगों के लिए थे।

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10. परिवर्तन की लहर – 1934 में इण्डियन री आर्गेनाइजेशन एक्ट पारित किया गया जिसके द्वारा रिजर्वेशन्स में मूल निवासियों को जमीन खरीदने तथा ऋण लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। 1954 में अनेक मूल निवासियों ने अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन ऑफ इण्डियन राइट्स’ में इस शर्त के साथ संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता स्वीकार की कि उनके रिजर्वेशन्स वापस नहीं लिए जायेंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।

11. आस्ट्रेलिया – 18वीं सदी के अन्तिम दौर में आस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के 350 से 750 तक समुदाय थे। हर समुदाय की अपनी भाषा थी। आस्ट्रेलिया के प्रारम्भिक अधिकांश आबादकार इंग्लैण्ड से निर्वासित होकर आए थे और उनके कारावास की सजा पूरी होने पर ब्रिटेन न लौटने की शर्त पर उन्हें आस्ट्रेलिया में स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दे दी गई थी। उन्होंने खेती के लिए ली गई जमीन से मूल निवासियों को निकालना शुरू कर दिया।

12. परिवर्तन की लहर – आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन करने हेतु विश्वविद्यालयी विभागों की स्थापना हुई है। कला – दीर्घाओं में देशी कलाओं की दीर्घाएँ शामिल की गई हैं। अब मूल निवासियों ने अपने जीवन – इतिहासों को लिखना शुरू किया है। 1974 से ‘बहुसंस्कृतिवाद’ आस्ट्रेलिया की राजकीय नीति रही है, जिसने मूल निवासियों की संस्कृतियों और यूरोप तथा एशिया के आप्रवासियों की तरह – तरह की बहुसंस्कृतियों को समान आदर दिया है।

VI. महत्त्वपूर्ण तिथियाँ तथा घटनाएँ

तिथि कनाडा
1701 क्यूबेक के मूल निवासियों के साथ फ्रांसीसियों का समझौता
1763 क्यूबेक पर ब्रिटेन की विजय
1774 क्यूबेक एक्ट
1791 कनाडा संवैधानिक एक्ट
1837 फ्रांसीसी कनाडाई विद्रोह
1840 उच्चतर और निम्नतर कनाडा की कैनेडियन यूनियन
1859 कनाडा गोल्ड रश
1867 कनाडा महासंघ
1869-85 कनाडा में मेटिसों द्वारा रेड रिवर विद्रोह
1876 कनाडा इण्डियन्स एक्ट
1885 पार-महाद्वीपीय रेलवे के द्वारा पूर्वी और पश्चिमी तटों का जुड़ाव

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JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

Jharkhand Board Class 11 History औद्योगिक क्रांति In-text Questions and Answers

पृष्ठ 198

क्रियाकलाप 1 : अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड और विश्व के अन्य भागों में हुए उन परिवर्तनों एवं विकास क्रमों पर चर्चा कीजिए जिनसे ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिला।
उत्तर:
ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलना-ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देने वाले परिवर्तन एवं विकास क्रम निम्नलिखित थे-
(1) सम्पूर्ण देश में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा प्रणाली तथा एक ही बाजार व्यवस्था का होना- इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ एवं स्थिर थी। सम्पूर्ण देश में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा- प्रणाली और एक ही बाजार – व्यवस्था थी। इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था।

सत्रहवीं शताब्दी के संजीव पास बुक्स अन्त तक आते-आते, मुद्रा का प्रयोग विनिमय अर्थात् आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में होने लगा था। तब तक लोग अपनी कमाई, वस्तुओं की अपेक्षा, मजदूरी और वेतन के रूप में पाने लगे। इससे लोगों को अपनी आय से खर्च करने के लिए अधिक विकल्प मिल गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।

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(2) कृषि क्रांति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजरा था जिसे ‘कृषि क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। बड़े जमींदारों ने छोटे-छोटे खेत खरीद लिए और अपने बड़े फार्मों में मिला लिए। इससे खाद्य उत्पादन की वृद्धि हुई। इससे भूमिहीन किसानों, चरवाहों एवं पशुपालकों को अपने जीवन-निर्वाह के लिए शहरों में जाना पड़ा।

(3) नगरों का विकास- ब्रिटेन में अनेक नगरों का विकास हुआ और नगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई। यूरोप के जिन 19 शहरों की आबादी सन् 1750 से 1800 ई. के बीच दोगुनी हो गई थी, उनमें से 11 शहर ब्रिटेन में थे। अतः जनसंख्या बढ़ने से वस्तुओं की माँग बढ़ी जिससे उद्योगपतियों को अधिकाधिक माल तैयार करने की प्रेरणा मिली। इन शहरों में लन्दन सबसे बड़ा शहर था जो देश के बाजारों का केन्द्र था।

(4) भूमण्डलीय व्यापार का केन्द्र हो जाना – 18वीं शताब्दी तक आते-आते भूमण्डलीय व्यापार का केन्द्र इटली तथा फ्रांस के भूमध्यसागरीय बन्दरगाहों से हटकर हालैण्ड और ब्रिटेन के अटलान्टिक बन्दरगाहों पर आ गया था। लन्दन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ऋण – प्राप्ति के प्रधान स्रोत के रूप में एमस्टरडम का स्थान ले चुका था। वह इंग्लैण्ड, अफ्रीका और वेस्ट इण्डीज के बीच स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केन्द्र भी बन गया।

(5) नौ-यातायात की सुविधा – इंग्लैण्ड की नदियों के सभी नौचालनीय भाग समुद्र से जुड़े हुए थे, इसलिए नदी पोतों के द्वारा ढोया जाने वाला माल समुद्र तटीय जहाजों तक सरलता से ले जाया जा सकता था।

(6) बैंकों का विकास – इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था। देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र बैंक ऑफ इंग्लैण्ड था। 1784 तक इंग्लैण्ड में कुल मिलाकर एक सौ से अधिक प्रान्तीय बैंक थे। बड़े-बड़े औद्योगिक उद्यम स्थापित करने तथा चलाने के लिए आवश्यक वित्तीय साधन इन्हीं बैंकों द्वारा उपलब्ध कराए जाते थे।

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(7) कारखानों के लिए श्रमिकों व पूँजी की उपलब्धता – इंग्लैण्ड में गाँवों से आए अनेक गरीब लोग नगरों में कारखानों में काम करने के लिए उपलब्ध हो गए थे। वहाँ बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण- राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक भी विद्यमान थे। वहाँ परिवहन के लिए एक अच्छी व्यवस्था उपलब्ध थी।

(8) विभिन्न आविष्कार – इंग्लैण्ड में 18वीं शताब्दी में अनेक आविष्कार हुए जिनके कारण लोहा उद्योग, वस्त्र उद्योग, भाप की शक्ति तथा रेल मार्गों के विकास आदि में अनेक परिवर्तन हुए।

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क्रियाकलाप 2 : आइरन ब्रिज गोर्ज आज एक प्रमुख विरासत स्थल है। क्या आप बता सकते हैं क्यों?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में लोहे के उत्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। 1709 में प्रथम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया। द्वितीय डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया। हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेल मिल का आविष्कार किया। 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुक डेल में सेर्वन नदी पर बनाया।

विल्किनसन ने पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाईं। उसके बाद लोहा उद्योग कुछ विशेष क्षेत्रों में केन्द्रित हो गया। यह क्षेत्र ‘आइरन ब्रिज’ नामक गाँव के रूप में विकसित हुआ। यह आज एक प्रमुख विरासत स्थल है क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था का एक सुदृढ़ आधार है। यह स्थान बड़े पैमाने पर आम लोहे के उत्पादन के रूप में प्रसिद्ध है। इसके कारण इंग्लैण्ड की राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ।

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क्रियाकलाप 3 : औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करें और इसकी तुलना ठीक उसी प्रकार की परिस्थितियों में भारत के सन्दर्भ में करें।
उत्तर:
औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर प्रभाव – औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(1) नगरों की जनसंख्या बढ़ गई परन्तु गाँवों की जनसंख्या कम हो गई। गाँवों के लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भागने लगे। परिवार विघटित हो गए।

(2) नगरों में रहने वालों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। नगरों में सफाई, शुद्ध जल और शुद्ध वातावरण का अभाव हो गया। बाहर से आकर नये बसे लोगों को नगरों में कारखानों के आस-पास भीड़-भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा। धनवान लोग नगर छोड़ कर आस-पास के उपनगरों में साफ-सुथरे मकान बनाकर रहने लगे जहाँ की हवा स्वच्छ थी और पीने का पानी भी साफ एवं सुरक्षित था।

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(3) नगरों में वेतनभोगी मजदूरों की औसत अवधि नगरों में रहने वाले अन्य सामाजिक समूहों के जीवन काल से कम थी। नए औद्योगिक नगरों में गाँव से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे। ये मौतें हैजा, आंत्रशोथ, क्षय रोग आदि से होती थीं।

(4) नगरों में कारखानों में काम करने वाले बच्चों और स्त्रियों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। कारखानों में काम करते समय बच्चे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे। उन्हें बहुत थोड़ी मजदूरी दी जाती थी तथा उन्हें साधारण-सी गल्ती करने पर बुरी तरह पीटा जाता था। स्त्रियों के बच्चे पैदा होते ही या शैशवावस्था में ही मर जाते थे और उन्हें विवश होकर शहर की घिनौनी व गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता था। भारत के सन्दर्भ में तुलना – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत के नगरों की जनसंख्या काफी बढ़ गई। कोयला और लोहा उत्पादन करने वाले केन्द्रों के आस-पास बड़े – बड़े नगर बस गए।

रोजगार की तलाश में गाँव वालों को शहरों में आना पड़ा जिससे अनेक गाँव उजड़ गए। गाँवों में प्रचलित कुटीर उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए तथा वहाँ और गरीब फैल गई। संयुक्त परिवार विघटित होते चले गए। पूँजीपतियों द्वारा मजदूरों का शोषण करने से उनकी स्थिति शोचनीय हो गई। जीवन निर्वाह करने के लिए स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ा जिसके फलस्वरूप अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं। भारत में अधिकांश कारखानों के स्वामी विदेशी पूँजीपति थे। अतः भारत का विपुल धन इंग्लैण्ड भेजा गया जिससे भारत में पूँजी का अभाव हो गया और देश में गरीबी तथा बेकारी में वृद्धि हुई।

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क्रियाकलाप 4 : उद्योगों में काम की परिस्थितियों के बारे में बनाए गए सरकारी विनियमों के पक्ष और विपक्ष में अपनी दलीलें दें।
उत्तर-कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकार ने निम्नलिखित नियम बनाए –
(1) 1819 में कुछ कानून बनाए गए जिनके तहत नौ वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 9 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों से काम कराने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई।

(2) 1833 के अधिनियम के अन्तर्गत 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई, बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए। कुछ फैक्टरी निरीक्षकों की व्यवस्था की गई ताकि अधिनियम के प्रवर्तन और पालन को सुनिश्चित किया जा सके।

(3) 1847 में ‘दस घण्टा विधेयक’ परित किया गया जिसके अन्तर्गत स्त्रियों और युवकों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिये और पुरुष श्रमिकों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित कर दिया।

(4) 1842 के खान और कोयला खान अधिनियम के अन्तर्गत दस वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से खानों में नीचे काम लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(5) फील्डर्स फैक्टरी अधिनियम ने 1847 में यह कानून बना दिया कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

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पक्ष में तर्क –

  • कारखानों में मजदूरों के काम करने के घण्टे निश्चित करने से उन्हें राहत मिली।
  • अब पूँजीपति अपनी इच्छानुसार मजदूरों से निर्धारित अवधि से अधिक समय तक काम नहीं ले सकते थे।
  • कारखानों में इन्स्पेक्टर नियुक्त किये गए जो सरकारी नियमों का पालन करवाते थे 1

विपक्ष में तर्क –

  1. मजदूरों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित करना अधिक था।
  2. 1819 के कानून में इसका पालन कराने के लिए आवश्यक अधिकारियों की व्यवस्था नहीं की गई थी।
  3. उनके लिए अच्छे वेतन, बीमा, पेंशन आदि की व्यवस्था नहीं की गई ।
  4. कारखानों में छोटे बच्चों के काम करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया । (5) 1842 से पूर्व खानों में मजदूरों के लिए नियम नहीं बनाए गए।
  5. निरीक्षक अपना काम ईमानदारी से नहीं करते थे । उनका वेतन बहुत कम था और कारखानों के मालिक उन्हें रिश्वत देकर उनका मुँह बन्द कर देते थे।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
युद्धों का ब्रिटेन के उद्योगों पर प्रभाव – ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर निम्न प्रभाव पड़े –
(i) इन युद्धों के कारण जो पूँजी निवेश के लिए उधार ली गई थी, वह युद्ध लड़ने में खर्च की गई। युद्ध का 35 प्रतिशत तक खर्च लोगों की आय पर कर लगाकर पूरा किया जाता था। कामगारों तथा श्रमिकों को कारखानों और खेतों में से निकाल कर उन्हें सेना में भर्ती कर लिया जाता था। परिणामस्वरूप कारखानों में उत्पादन का काम ठप हो गया । खाद्य सामग्रियों के दाम अत्यधिक बढ़ गए।

(ii) महाद्वीपीय नाकाबन्दी के कारण ब्रिटिश व्यापार को काफी क्षति पहुँची। ब्रिटेन से निर्यात होने वाला अधिकांश सामान ब्रिटेन के व्यापारियों की पहुँच से बाहर हो गया। इससे अनेक कारखाने बन्द हो गए और हजारों लोग बेरोजगार हो गए। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत अधिक बढ़ गए।

प्रश्न 2.
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ क्या-क्या हैं ?
उत्तर:
I. नहर के सापेक्षिक लाभ – नहर के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने में बड़ी सहायक सिद्ध हुईं। कोयले को उसके परिमाण तथा भार के कारण सड़क मार्ग से ले जाने में समय बहुत लगता था और उस पर धन खर्च भी अधिक आता था। परन्तु कोयले को बज़रों में भर कर नहरों के मार्ग से ले जाने में समय भी कम लगता था तथा खर्चा भी कम आता था।

(2) प्राय: नहरें बड़े-बड़े जमींदारों द्वारा अपनी जमीनों पर स्थित खानों, खदानों या जंगलों के मूल्य को बढ़ाने के लिए बनाई जाती थीं। नहरों के आपस में जुड़ जाने से नये-नये शहरों में बाजार बन गए। इससे अनेक शहरों का विकास हुआ। बर्मिंघम शहर का विकास केवल इसीलिए तेजी से हुआ क्योंकि वह लन्दन, ब्रिस्टल चैनल और मरसी तथा हंबर नदियों के साथ जुड़ने वाली नहर प्रणाली के बीच में स्थित था।

II. रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ – रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) रेलवे परिवहन एक ऐसा साधन है, जो वर्ष भर उपलब्ध रहता है । यह सस्ता तथा तेज भी है। इससे माल देश के भीतरी भागों में भी पहुँचाया जा सकता है, जो नहरों द्वारा सम्भव नहीं है।
(2) रेलवे परिवहन माल तथा यात्री दोनों को ढो सकता है।
(3) नहरों के रास्ते परिवहन में अनेक समस्याएँ हैं । नहरों के कुछ हिस्सों में जलपोतों की भीड़-भाड़ के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ जाती है और पाले, बाढ़ या सूखे के कारण उनके उपयोग का समय भी सीमित हो जाता है। परन्तु रेलवे परिवहन में यह समस्या नहीं है। इसलिए, रेलमार्ग ही परिवहन का सबसे सुविधाजनक विकल्प दिखाई दे रहा है।

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प्रश्न 3.
इस अवधि में किए गए ‘आविष्कारों’ की दिलचस्प विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
यह पता लगाना अवश्य ही दिलचस्प होगा कि वे लोग कौन थे जिनके प्रयत्नों से ये परिवर्तन हुए। उनमें से कुछ लोग प्रशिक्षित वैज्ञानिक थे। चूँकि इन आविष्कारों को सम्पन्न करने के लिए भौतिकी या रसायन विज्ञान के उन सिद्धान्तों या नियमों की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक नहीं था जिन पर ये आविष्कार आधारित थे, इसलिए ये वैज्ञानिक आविष्कार प्रतिभाशाली परन्तु अन्तःप्रज्ञ विचारकों तथा लगनशील प्रयोगकर्ताओं द्वारा किए गए। थीं – आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ – इस अवधि में किए गए आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ अग्रलिखित –

  1. इस अवधि में अधिकतर आविष्कार वैज्ञानिक ज्ञान के अनुप्रयोग की अपेक्षा दृढ़ता, लगन, रुचि, जिज्ञासा तथा भाग्य के बल पर हुए।
  2. कपास उद्योग के क्षेत्र में कुछ आविष्कारक जैसे जॉन के तथा जेम्स हारग्रीव्ज बुनाई और बढ़ईगीरी से परिचित थे। परन्तु रिचर्ड आर्कराइट एक नाई था तथा बालों की विग बनाता था।
  3. सैम्युल क्राम्पटन तकनीकी दृष्टि से कुशल नहीं था।
  4. एडमंड कार्टराइट ने साहित्य, आयुर्विज्ञान तथा कृषि का अध्ययन किया था। प्रारम्भ में वह पादरी बनना चाहता था और वह यान्त्रिकी के बारे में बहुत कम जानता था।
  5. भाप के इंजनों के क्षेत्र में थामस सेवरी नामक व्यक्ति एक सैन्य अधिकारी था।
  6. थॉमस न्यूकोमेन एक लुहार तथा तालासाज था। जेम्स वाट का यन्त्र सम्बन्धी कामकाज की ओर बहुत झुकाव था। उन सबमें अपने-अपने आविष्कार के प्रति कुछ संगत ज्ञान अवश्य था।
  7. सड़क निर्माता जान मेटकाफ, जिसने व्यक्तिगत रूप से सड़कों की सतहों का सर्वेक्षण किया था और उनके बारे में योजना बनाई थी, अन्धा था।
  8. नहर निर्माता जेम्स ब्रिंडले स्वयं निरक्षर था। शब्दों की ‘वर्तनी’ के बारे में उसका ज्ञान इतना कमजोर था कि वह ‘नौ – चालन’ शब्द की सही वर्तनी कभी नहीं बता सका। परन्तु उसमें अद्भुत स्मरण शक्ति, कल्पना – शक्ति तथा एकाग्रता थी।

प्रश्न 4.
बताइए कि ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का प्रभाव – ब्रिटेन निवासी सदैव ऊन और सन से कपड़ा बुना करते थे। सत्रहवीं शताब्दी से इंग्लैण्ड भारत से सूती कपड़ा आयात करता था। परन्तु जब भारत पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो गया, तो इंग्लैण्ड ने कपड़े के साथ-साथ कच्चे कपास (रुई) का आयात करना भी शुरू कर दिया। इसे इंग्लैण्ड में आने पर काता जाता था और उससे कपड़े बुने जाते थे।

कच्चे माल के रूप में इंग्लैण्ड को आवश्यक कपास का आयात करना पड़ता था और जब उनसे कपड़ा तैयार हो जाता, तो उसका अधिकांश भाग बाहर निर्यात किया जाता था। इसके लिए इंग्लैण्ड के पास अपने उपनिवेश होना आवश्यक था जिससे कि इन उपनिवेशों से कच्ची कपास बड़ी मात्रा में मंगाई जा सके और फिर इंग्लैण्ड में उससे कपड़ा बनाकर उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेचा जा सके। इस प्रकार औद्योगीकरण के फलस्वरूप इंग्लैंड में कच्चे माल की आपूर्ति उपनिवेशों से होने लगी।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 5.
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

(1) निर्धन वर्ग की स्त्रियों द्वारा कारखानों में काम करना – पुरुषों को कारखानों में साधारण मजदूरी मिलती थी जिससे अकेले घर का खर्च नहीं चल सकता था। अतः परिवार का खर्चा चलाने के लिए निर्धन वर्ग की स्त्रियों को भी कारखानों में काम करना पड़ा। कारखानों में उन्हें निरन्तर कई घन्टों तक कठोर अनुशासन में रहते हुए काम करना पड़ता था।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

उद्योगपति, पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों और बच्चों को अपने कारखानों में भर्ती करना अधिक पसन्द करते थे क्योंकि उनकी मजदूरी कम होती थी तथा वे कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शान्तिपूर्वक अपना काम करते थे। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर और यार्कशायर नगरों के सूती कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था। रेशम, फीते बनाने और बुनने के उद्योग-धन्धों में और बर्मिंघम के धातु उद्योगों में स्त्रियों को ही अधिकतर नौकरियाँ दी जाती थीं।

(2) स्त्रियों की दयनीय स्थिति-कारखानों में काम करने वाली स्त्रियों की स्थिति बड़ी दयनीय थी। पुरुष मजदूरों की तुलना में उन्हें कम वेतन दिया जाता था। पुरुष मजदूरों को प्रति सप्ताह 25 शिलिंग मज़दूरी दी जाती थी, परन्तु स्त्रियों को केवल 7 शिलिंग मजदूरी ही दी जाती थी। साधारण-सी गलती करने पर स्त्रियों को दण्डित किया जाता संजीव पास बुक्स था। उन्हें कारखानों में गन्दे वातावरण में काम करना पड़ता था। प्रायः उनके बच्चे पैदा होते ही मर जाते थे या शैशवावस्था में ही मर जाते थे। उन्हें विवश होकर शहर की घिनौनी एवं गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता था। उनका पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। मिश्रित परिवार टूट गए और एकल परिवार बन गए। अब उनका पारिवारिक जीवन नीरस हो गया।

(3) मध्यम वर्ग व धनी वर्ग की स्त्रियों पर प्रभाव – मध्यम वर्ग एवं धनी वर्ग की स्त्रियाँ औद्योगिक क्रान्ति से लाभान्वित हुईं। उनके रहन-सहन, खान-पान, वस्त्रादि में परिवर्तन आ गया । अब उन्हें रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन आदि के रूप में मनोरंजन के नये साधन प्राप्त हुए। अब उनका जीवन-स्तर काफी उन्नत हो गया। अब वे विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगीं तथा सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करने लगी। अब घूमने और भ्रमण करने के लिए उन्हें मोटर गाड़ियों, रेलों, वायुयानों आदि की सुविधा भी उपलब्ध हो गई थी।

प्रश्न 6.
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? तुलनात्मक विवेचना कीजिए
उत्तर:
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जन-जीवन पर प्रभाव –

(अ) औद्योगिक एवं साम्राज्यवादी देशों के जीवन पर प्रभाव – रेल मार्ग परिवहन का सबसे अधिक सुविधाजनक साधन था। रेलवे के आ जाने से शक्तिशाली, औद्योगिक तथा साम्राज्यवादी देश बड़े लाभान्वित हुए। इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि अनेक देशों का कायाकल्प हो गया। रेलों के विकास के कारण इन देशों के व्यापार-वाणिज्य और उद्योग-धन्धों का विकास अत्यधिक हुआ। राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई। इन देशों ने कच्चा माल प्राप्त करने तथा अपना तैयार माल बेचने के लिए अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

परिणामस्वरूप ये अपना तैयार माल उपनिवेशों में भेजकर भारी मुनाफा कमाने लगे। रेलवे मार्ग से सामान का आयात-निर्यात करना अधिक सुगम व सस्ता था, इसलिए विदेशी माल अन्य यूरोपीय देशों से सस्ता पड़ता था। इससे ब्रिटिश उद्योगपतियों का खूब लाभ हुआ और औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। अतः रेलवे के आ जाने से इन देशों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गई। इन देशों के लोगों का जीवन- स्तर उन्नत हो गया और उन्हें सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएँ आसानी से मिलने लगीं।

(ब) अफ्रीका व एशिया महाद्वीप के देशों पर प्रभाव – इसके विपरीत जिन देशों में रेलों का विकास नहीं किया गया, वे देश आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ गए। अफ्रीका, एशिया आदि महाद्वीपों के अनेक देशों में रेलों का आगमन नहीं हुआ। परिणामस्वरूप वे वाणिज्य – व्यापार एवं उद्योगों के क्षेत्र में उन्नति नहीं कर सके। औद्योगिक एवं साम्राज्यवादी देश उनका आर्थिक शोषण करते रहे। इसके परिणामस्वरूप वहाँ गरीबी तथा बेरोजगारी में वृद्धि हुई। वे अपने जीवन-स्तर को उन्नत बनाने में असफल रहे और अनेक प्रकार की रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों के शिकार हो गए।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

औद्योगिक क्रांति JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. औद्योगिक क्रान्ति – ब्रिटेन में, 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। ब्रिटेन में औद्योगिक विकास का यह चरण नयी मशीनों एवं तकनीकियों से गहराई से जुड़ा है।
2. इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात – इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ।

इसके कारण थे –

  1. इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ थी।
  2. मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में होने लगा था।
  3. इंग्लैण्ड में कृषि क्रान्ति सम्पन्न हो चुकी थी।
  4. नगरों का विकास हो गया था तथा नगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई थी।
  5. लन्दन व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया था।
  6. इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था।
  7. प्रौद्योगिक परिवर्तनों की श्रृंखला।
  8. नवीन परिवहन तन्त्र का विकास।

3. कोयले एवं लोहे के क्षेत्र में परिवर्तन –

  • 1709 में अब्राहम डर्बी ने धमनभट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया गया।
  • हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया।
  • 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल बनाया।
  • ब्रिटेन ने लौह उद्योग में 1800 से 1830 के दौरान अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।

4. कपास की कताई और बुनाई – 18वीं सदी में कपास की कताई व बुनाई के क्षेत्र में हुए निम्न प्रमुख आविष्कारों से कताई-बुनाई का कार्य कताईगरों और बुनकरों से हटकर कारखानों में चला गया –

  • 1733 में जॉन के ने फ्लाइंग शटल लूम (उड़न तुरी करघे) का आविष्कार किया।
  • 1765 में जेम्स हारग्रीव्ज ने स्पिन्निंग जैनी नामक मशीन का आविष्कार किया।
  • 1769 में रिचर्ड आर्क राइट ने वाटर फ्रेम नामक मशीन बनाई।
  • 1779 में सैम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया।
  • 1787 में एडमंड कार्ट राइट ने पॉवर लूम का आविष्कार किया।

5. भाप की शक्ति – 1712 में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का इंजन बनाया। 1769 में जेम्स वाट ने भाप के इंजन का आविष्कार किया। अब भाप का इंजन एक साधारण पंप की बजाय एक प्रमुख चालक (मूवर) के रूप में काम देने लगा, जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

6. नहरें-प्रारंभ में नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए बनाई गईं क्योंकि इनमें कम समय व कम खर्च होता था। 1761 में जेम्स ब्रिंडली ने इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल’ बनाई। 1760 से 1790 की अवधि में नहरें बनाने की 25 नई परियोजनाएं शुरू की गईं।

7. रेलें –
(1) 1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया। 1814 में जार्ज स्टीफेन्सन ने एक रेल इंजन बनाया जिसे ‘ब्लुचर’ कहा जाता था।
(2) रेलवे के आविष्कार के साथ औद्योगीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया ने दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया। 1830 से 1850 के बीच ब्रिटेन में रेल मार्ग कुल मिलाकर दो चरणों में लगभग 6000 मील लम्बा हो गया।

8. परिवर्तित जीवन-

  • औद्योगीकरण से ब्रिटिश पूँजी निवेशकों को भारी लाभ हुआ। उनकी पूँजी कई गुना बढ़ी।
  • धन में, माल, आय, सेवाओं, ज्ञान और उत्पादन कुशलता के रूप में वृद्धि हुई।
  • लेकिन इससे गरीब लोगों को भारी खामियाजा उठाना पड़ा।

9. मजदूर –

  • जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई।
  • बाहर से आकर बसे लोगों को नगरों में कारखानों के आस-पास भीड़-भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा।
  • नये औद्योगिक नगरों में गाँवों से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे।
  • मौतें अधिकतर हैजा, आन्त्रशोथ, क्षय-रोग आदि बीमारियों से होती थीं।

10. औरतें, बच्चे और औद्योगीकरण –

  • मजदूरी मामूली होने के कारण, स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर तथा यार्कशायर नगरों के सूती वस्त्र उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था।
  • बच्चों से कई-कई घण्टों तक काम लिया जाता था। कई बार बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे या उनके हाथ कुचल जाते थे।
  • कोयले की खानों में भी छोटे बच्चों को ‘ट्रैपर’ का काम करना पड़ता था।
  • स्त्रियों को औद्योगिक काम की वजह से विवश होकर शहर की गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था।

11. विरोध आन्दोलन –
(1) इंग्लैण्ड में कारखानों में काम करने की कठोर परिस्थितियों के विरुद्ध राजनीतिक विरोध बढ़ता गया और श्रम-जीवी लोग मताधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने लगे। परन्तु, सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए लोगों से विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार ही छीन लिया।

(2) सरकार की दमनकारी नीति के बावजूद श्रमिक लोगों ने आन्दोलन जारी रखा। 1790 के दशक में सम्पूर्ण देश में खाद्य (ब्रेड) के लिए दंगे होने लगे। उन्होंने ब्रेड के भण्डारों पर अधिकार कर लिया और उन्हें काफी कम मूल्य में बेचा जाने लगा।

(3) कपड़ा उद्योगों में मशीनों के प्रचलन से हजारों की संख्या में हथकरघा बुनकर बेरोजगार हो गए।

(4) हताश होकर सूती कपड़ों के बुनकरों ने लंकाशायर में पावरलूमों को नष्ट कर दिया।

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(5) जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म नामक एक अन्य आन्दोलन चलाया गया। लुडिज्म के अनुयायी मशीनों की तोड़-फोड़ में ही विश्वास नहीं करते थे, बल्कि न्यूनतम मजदूरी, नारी एवं बाल श्रम पर नियन्त्रण, बेरोजगार लोगों के लिए काम और मजदूर संघ बनाने के अधिकारों की भी माँग करते थे।

12. कानूनों के द्वारा सुधार –

(1) 1819 में सरकार ने कुछ कानून बनाए जिनके अन्तर्गत 9 वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से कारखानों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(2) 9 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों में काम करने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई।

(3) 1833 में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई, बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिये गए और कुछ फैक्ट्री निरीक्षकों की व्यवस्था कर दी गई। 1847 में एक अन्य विधेयक पारित किया गया जिसके अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

औद्योगिक क्रांति के विषय में तर्क-वितर्क –

  • दरअसल औद्योगीकरण की प्रक्रिया इतनी धीमी गति से रही कि इसे क्रांति कहना ठीक नहीं होगा।
  • ब्रिटेन में औद्योगिक विकास 18145 से पहले की अपेक्षा उसके बाद अधिक तेजी से हुआ। इसका कारण औद्योगीकरण के साथ – साथ युद्ध भी रहे।
  • इस काल में हुआ रूपान्तरण केवल आर्थिक व औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि इसका विस्तार समाज के सर्वहारा वर्ग तथा बुर्जुआ वर्ग तक रहा। इसलिए इस क्रांति को केवल औद्योगिक नहीं कहा जा सकता।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में पौधों की कितनी जातियां हैं?
(A) 42,000
(B) 45,000
(C) 47,000
(D) 50,000.
उत्तर:
(C) 47,000.

2. डैल्टा प्रदेशों में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
(A) कोणधारी
(B) मानसून
(C) कंटीली झाड़ियां
(D) मैंग्रोव।
उत्तर:
(D) मैंग्रोव।

3. हिमालय पर्वत की कौन-सी ढलान पर घने वन हैं?
(A) उत्तरी
(B) पूर्वी
(C) पश्चिमी
(D) दक्षिणी।
उत्तर:
(D) दक्षिणी।

4. ऊष्ण कटिबन्ध में तापमान किस मात्रा से कम नहीं होता?
(A) 35°C
(B) 30°C
(C) 28°C
(D) 18°C.
उत्तर:
(D) 18°C.

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5. किस राज्य में वनों के अधीन क्षेत्र सबसे अधिक है?
(A) मानसून
(B) मेघालय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) बिहार।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।

6. सिनकोना वृक्ष किस वनस्पति से सम्बन्धित हैं?
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(B) मानसून
(C) ज्वारीय
(D) टुंड्रा
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित

7. किन वनों में हाथी अधिक पाए जाते हैं?
(A) मानसून
(B) पतझड़ीय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) शुष्क।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।

8. देवदार वृक्ष किस ऊंचाई पर मिलते हैं?
(A) 500-1000 मीटर
(B) 1000-1500 मीटर
(C) 1500-3000 मीटर
(D) 3000-4000 मीटर।
उत्तर:
(C) 1500-3000 मीटर|

9. कौन – सी जाति खानाबदोश है?
(A) पिग्मी
(C) मसाई
(B) बकरवाल
(D) रैड इण्डियन
उत्तर:
(B) बकरवाल।

10. रायल बंगाल टाइगर कहां मिलता है?
(A) महानदी डेल्टा
(B) कावेरी डेल्टा
(C) सुन्दर वन
(D) कृष्णा डैल्टा।
उत्तर:
(C) सुन्दर वन।

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11. गिर वन किसके लिए प्रसिद्ध है?
(A) चूहों के लिए
(B) गधों
(C) ऊंट
(D) शेर
उत्तर:
(D) शेर।

12. इनमें से कौन – सा पक्षी आश्रय स्थल है?
(A) कान्हासिली
(C) कावल
(B) भरतपुर
(D) शिवपुरी।
उत्तर:
(B) भरतपुर।

13. पहला जैव- आरक्षित क्षेत्र कहां स्थगित किया गया?
(A) नीलगिरी
(B) सिमलीपाल
(C) नाकरेक
(D) पंचमड़ी।
उत्तर:
(A) नीलगिरी।

14. रबड़ का सम्बन्ध किस प्रकार की वनस्पति से है?
(A) टुण्ड्रा
(B) हिमालय
(C) मैंग्रोव
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।
उत्तर:
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।

15. सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(A) 100 सें० मी०
(B) 70 सें० मी०
(C) 50 सें० मी०
(D) 50 सें०मी० से कम वर्षा
उत्तर:
(A) 100 सें० मी०।

16. सिमलीपाल जीव मण्डल निचय कौन-से राज्य में स्थित है
(A) पंजाब
(C) उड़ीसा
(B) दिल्ली
(D) पश्चिम बंगाल
उत्तर:
(C) उड़ीसा

17. भारत के कौन-से जीव मण्डल निचय विश्व के जीव मण्डल निचयों में लिए गए हैं?
(A) मानस
(B) मन्नार की खाड़ी
(C) दिहांग – दिबांग
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(D) नन्दा देवी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत का कुल कितना भौगोलिक क्षेत्र वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
22%.

प्रश्न 2.
भारत का कुल कितना क्षेत्र (हेक्टेयर में ) वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
750 लाख हेक्टेयर।

प्रश्न 3.
लकड़ी के दो प्रयोग लिखो।
उत्तर:
(i) इमारत निर्माण के लिये
(ii) ईंधन के लिये लकड़ी।

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प्रश्न 4.
लकड़ी का एक औद्योगिक प्रयोग लिखो।
उत्तर:
खेलों का सामान बनाना, रेयॉन उद्यो।

प्रश्न 5.
बाँस तथा वन के घास के दो उपयोग लिखो।
उत्तर:

  1. कागज़ बनाने के लिये
  2. कृत्रिम रेशा।

प्रश्न 6.
वनों से प्राप्त तीन उत्पादों के नाम लिखो।
उत्तर:
रबड़, गोंद तथा चमड़ा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 7.
उन दो भौगोलिक तत्त्वों के नाम लिखो जो वनों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:

  1. वर्षा की मात्रा
  2. ऊंचाई

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान लिखो
उत्तर:

  1. 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा
  2. 25° – 27°C.

प्रश्न 9.
पतझड़ीय मानसून वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर:
150-200 सेंटीमीटर।

प्रश्न 10.
उस राज्य का नाम बताओ जहां उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 11.
भारत के एक प्रदेश का नाम बताओ जहां काँटे तथा झाड़ियों के वन पाये जाते हैं।
उत्तर;
थार मरुस्थल।

प्रश्न 12.
हिन्द महासागर में द्वीपों के समूह बताएं जहां उष्ण कटिबन्धीय वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
अण्डमान-निकोबार द्वीप।

प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले तीन महत्त्वपूर्ण पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
रोज़वुड, गुर्जन, आबनूस।

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प्रश्न 14.
मानसून वनों को पतझड़ीय वन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि ये गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं।

प्रश्न 15.
उन तीन राज्यों के नाम बताएं जहां मानसून वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड।

प्रश्न 16.
मध्य प्रदेश के एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर:
सागवान।

प्रश्न 17.
भारत के दो राज्य बतायें जहां देवदार के वृक्ष मिलते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश

प्रश्न 18.
काँटेदार वन के दो पेड़ों के नाम बतायें।
उत्तर:
खैर तथा खजूरी।

प्रश्न 19.
बबूल के वृक्ष से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
गोंद तथा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 20.
ज्वारीय वन में गुंझलदार जड़ों का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह कीचड़ में वृक्षों का संरक्षण करती हैं।

प्रश्न 21.
भारत का वन अनुसंधान केन्द्र कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून में।

प्रश्न 22.
ज्वारीय वन में पाये जाने वाले दो पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
सुन्दरी, गुर्जन।

प्रश्न 23.
वैज्ञानिक नियम पर वनों के अन्तर्गत कुल कितना क्षेत्र होना चाहिये?
उत्तर:
33%.

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प्रश्न 24.
कोणधारी वन के तीन वृक्षों के नाम लिखो।
उत्तर:
पाइन, देवदार, सिल्वर फ़र्र।

प्रश्न 25.
3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
एल्पाइन चरागाह।

प्रश्न 26.
उन दो राज्यों के नाम लिखो जहां देवदार पाये जाते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 27.
मयरो बोलान वृक्ष का उपयोग बताओ।
उत्तर:
रंगने वाले पदार्थ प्रदान करना

प्रस्न 28.
ज्वारीय वातावरण में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
मैंग्रोव वन।

प्रश्न 29.
भारत में आर्थिक पक्ष से कौन-सा वनस्पति क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
पतझड़ीय वन।

प्रश्न 30.
अंग्रेज़ों ने उत्तर-पूर्वी भारत में वनों को क्यों साफ़ किया?
उत्तर:
चाय, कहवा व रबड़ के बागान लगाने के लिए।

प्रश्न 31.
चिनार की लकड़ी का क्या प्रयोग है?
उत्तर:
हस्तशिल्प के लिए।

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प्रश्न 32.
हिमालय की अधिक ऊंचाई पर ऋतु- प्रवास करने वाली तीन जातियां बताओ।
उत्तर:
गुज्जर, बकरवाल, भुटिया।

प्रश्न 33.
नीलगिरी पहाड़ियों पर कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शोलावन (शीत-उष्ण कटिबन्धीय वन)।

प्रश्न 34.
वन आवरण क्षेक्षों को चार वर्गों में बांटो।
उत्तर:

प्रदेश वन आवरण का \%
1. अधिक वन संकेन्द्रण क्षेत्र >40
2. मध्यम वन संकेन्द्रण क्षेत्र 20-40
3. कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र 10-20
4. अति कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र <10

प्रश्न 35.
राष्ट्रीय वन नीति में किस उद्देश्य पर अधिक बल है?
उत्तर:
सतत पोषणीय वन का प्रबन्ध।

प्रश्न 36.
सामाजिक वानिकी को किन तीन वर्गों में बांटा गया है?
उत्तर:

  1. शहरी वानिकी
  2. ग्रामीण वानिकी
  3. फार्मवानिकी।

प्रश्न 37.
किन चार जीव मण्डल निचयों को द्वारा मान्यता प्राप्त है?
उत्तर:

  1. नीलगिरी
  2. नन्दा देवी
  3. सुन्दर वन
  4. मन्नार की खाड़ी।

प्रश्न 38.
वनों का जीवन और पर्यावरण के साथ जटिल संबंध है। उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ो तथा निम्नलिखित के उत्तर दो
(क) नई वन नीति का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
सतत् पोषणीय वन प्रबंध।

(ख) वन संरक्षण की एक विधि बताओ।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी।

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प्रश्न 39.
किन मूल्यों को आधार बनाकर हम यह कह सकते हैं कि वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:

  1. बढ़ती हुई जनसंख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव।
  2. वनों की अत्यधिक कटाई के वातावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव।

प्रश्न 40.
राष्ट्रीय वन नीति कब लागू हुई?
उत्तर:
सन् 1988.

प्रश्न 41.
बाघ परियोजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
सन् 1973.

प्रश्न 42.
नन्दा देवी जीवमण्डल किस राज्य में है?
उत्तर:
उत्तराखंड|

प्रश्न 43.
भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
उत्तर:
-18

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में वनों के क्षेत्र के कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
किसी प्रदेश के कुल क्षेत्र के कम-से-कम 1/3 भाग में वनों का विस्तार होना चाहिए ताकि उस प्रदेश में पारिस्थितिक स्वास्थ्य कायम रखा जा सके। भारत में कई कारणों से वन सम्पत्ति का कम विस्तार है।

  1. वनों के विशाल क्षेत्र की कटाई
  2. स्थानान्तरित कृषि की प्रथा
  3. अत्यधिक मृदा अपरदन
  4. चरागाहों की अत्यधिक चराई
  5. लकड़ी एवं ईंधन के लिए वृक्षों की कटाई
  6. मानवीय हस्तक्षेप

प्रश्न 2.
वन सम्पदा के संरक्षण के लिए क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेज़ी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है।

प्रश्न 3.
भारत में विभिन्न प्रकार के घासों का वर्णन करो।
उत्तर:
घासें बारहमासी घासों की 60 प्रजातियां हैं। इनसे मिलकर ही हमारा पारितन्त्र बना है, जो हमारे पशुधन के जीवन का आधार है। वास्तविक चरागाह और घास भूमियां लगभग 12.04 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तीर्ण हैं। चराई के लिए अन्य भूमि, वृक्ष – फसलों और उद्यानों, बंजर भूमि तथा परती भूमि के रूप में हैं। जिनका क्षेत्रफल क्रमश: 37 लाख हेक्टेयर, 15 लाख हेक्टेयर और 23.3 लाख हेक्टेयर है। वनों के अपकर्ष (डिग्रेडेशन) और विनाश के परिणामस्वरूप ही चरागाह और घास भूमियां विकसित हुई हैं। कालान्तर में चरागाह सवाना में बदल जाते हैं। हिमालय की अधिक ऊंचाइयों वाले उप – अल्पाइन और अल्पाइन क्षेत्रों में वास्तविक चरागाह पाए जाते हैं। भारत में घास के तीन पृथक् आवरण हैं। उष्ण कटिंबधीय – यह मैदानों में पाया जाता है। उपोष्ण कटिबंधीय तथा शीतोष्ण कटिबंधीय घास भूमियां मुख्य रूप से हिमालय की पर्वत में ही पाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वनों का संरक्षण – मनुष्यों और पशुओं की बढ़ती हुई संख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव पड़ा है। जो क्षेत्र कभी वनों के ढके थे, आज अर्द्ध-मरुस्थल बन गए हैं। राजस्थान में भी कभी वन थे पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए वन अनिवार्य हैं। मानव का अस्तित्व और विकास पारिस्थितिक सन्तुलन पर निर्भर है। सन्तुलित पारितन्त्र और स्वस्थ पर्यावरण के लिए भारत के कम-से-कम एक तिहाई भाग पर वन होने चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश के एक चौथाई भाग पर भी वन नहीं हैं। इसीलिए वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबन्धन के लिए एक नीति की आवश्यकता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 5.
भारत की वन नीति के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति, वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।

  1. इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू-भाग को वनों के अन्तर्गत लाना था संसार के कुल भू-भाग का 27 प्रतिशत तथा भारत का लगभग 19 प्रतिशत भू-भाग वनों से ढका है।
  2. वन नीति में आगे कहा गया है कि पर्यावरण की स्थिरता कायम रखने का प्रयत्न किया जाएगा तथा जहां पारितन्त्र का सन्तुलन बिगड़ गया है, वहां पुनः वनारोपण किया जाएगा।
  3. आनुवंशिक संसाधनों की जैव विविधता को देश की प्राकृतिक विरासत कहा जाता है। इस विरासत का संरक्षण, वन नीति का अन्य उद्देश्य है।
  4. इस नीति में मृदा अपरदन, मरुभूमि के विस्तार तथा सूखे पर नियन्त्रण का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
  5. इस नीति में जलाशयों में गाद के जमाव को रोकने के लिए बाढ़ नियन्त्रण का भी प्रावधान है।
  6. नीति के और भी उद्देश्य हैं जैसे: अपरदित और अनुत्पादक भूमि पर सामाजिक वानिकी और वनरोपण द्वारा वनावरण में अभिवृद्धि, वनों की उत्पादकता बढ़ाना, ग्रामीण और जन- जातीय जनसंख्या के लिए इमारती लकड़ी, जलावन, चारा और भोजन जुटाना
  7. यही नहीं इस नीति में महिलाओं को शामिल करके, व्यापक जनान्दोलन द्वारा वर्तमान वनों पर दबाव कम करने के लिए भी बल दिया गया है।

प्रश्न 6.
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनों की दो मुख्य विशेषताएं बताइए ये भी बताइए कि ये मुख्यतः किन प्रदेशों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन – ये वन उष्ण कटिबन्धीय वनों के समान सदाबहार घने वन होते हैं। उष्ण- आर्द्र जलवायु के कारण ये वन तेज़ी से बढ़ते हैं तथा अधिक ऊंचे होते हैं। भारत में पाए जाने वाले ये वन कुछ खुले तथा दूर-दूर पाए जाते हैं। इन वनों में कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं जिनके शिखर पर छाता जैसा आकार बन जाता है। भारत में ये वन पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में (केरल तथा कर्नाटक) पाए जाते हैं। ये वन शिलांग पठार के पर्वतीय प्रदेश में पाए जाते हैं। महोगनी, खजूर, बांस मुख्य वृक्ष हैं। अर्द्ध- सदाबहार वन – ये वन पश्चिमी घाट तथा उत्तर-पूर्वी भारत में कम वर्षा के क्षेत्रों में मिलते हैं। ये मानसूनी पतझड़ीय वन हैं।

प्रश्न 7.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन कहां पाए जाते हैं? ऐसे वनों की वनस्पति भूमध्यरेखीय वनों से किस प्रकार समान है तथा किस एक प्रकार से असमान है?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शिलांग पठार, असम प्रदेश तथा पश्चिमी घाट पर पाए जाते हैं। ये वन भूमध्य रेखीय वनों से मिलते-जुलते हैं क्योंकि ये कठोर लकड़ी के वन हैं तथा ये अधिक आर्द्र क्षेत्रों में मिलते हैं जहां 200 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। ये वन भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति घने नहीं हैं, परन्तु ये वन अधिक खुले – खुले मिलते हैं तथा इनका उपयोग आसान हो जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक वानिकी पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी (Social Forestry):

  1. 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले-पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था इसका अर्थ है ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।
  2. नेक राज्य सरकारों ने सामाजिक वानिकी के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए हैं। अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं।
  3. सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैं: कृषि वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना; वन – भूखण्ड (वुडलाट्स) वन विभागों द्वारा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों के किनारे, नहर के तटों तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण; सामुदायिक वन – भूखण्ड लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी’ के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।
  4. सामाजिक वानिकी योजनाएं असफल हो गईं, क्योंकि इसमें उन निर्धन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया, जिन्हें इससे अधिकतर फायदा होना था यह योजना पुरुषोन्मुख हो गई। यही नहीं, यह कार्यक्रम लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया।
  5. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के द्वारा उत्पादित लकड़ी ग्रामीण भारत के ग़रीबों को न मिलकर, नगरों और कारखानों में पहुंचने लगी है। इससे गांवों में रोज़गार के अवसर घटे हैं और अन्न- उत्पादन करने वाली भूमि पर पेड़ लग गए हैं। इससे अनिवासी भू-स्वामित्व को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 9.
कौन-सी वनस्पति जाति बंगाल का आतंक मानी जाती है और क्यों?
उत्तर:
कुछ विदेशज वनस्पति जाति के कारण कई प्रदेशों में समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। भारत में वनस्पति का 40% भाग विदेशज है। ये पौधे चीनी-तिब्बती, अफ्रीका तथा इण्डो- मलेशियाई क्षेत्र से लाए गए हैं। जलहायसिंथ पौधा भारत में बाग के सजावट के पौधे के रूप में लाया गया था। इस पौधे के फैल जाने के कारण पश्चिमी बंगाल में जलमार्गों, नदियों, तालाबों तथा नालों के मुंह बड़े पैमाने पर बन्द हो गए हैं। इस पौधे के हानिकारक प्रभावों के कारण इसे “बंगाल का आतंक” (Terror of Bengal) भी कहा जाता है।

प्रश्न 10.
“हमारी अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है।” इस कथन की व्याख्या करो यह कथन काफ़ी हद तक सही है कि भारत में अधिकांश ‘प्राकृतिक’ वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इस देश में मानवीय निवास के कारण प्राकृतिक वनस्पति का अधिकतर भाग नष्ट हो गया है या परिवर्तित हो गया है अधिकांश वनस्पति अपनी कोटि तथा गुणों के उच्च स्तर के अनुसार नहीं है। केवल हिमालय प्रदेश के कुछ अगम्य क्षेत्रों में एवं थार मरुस्थल के कुछ भागों को छोड़ कर अन्य प्रदेशों में प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इन प्रदेशों की वनस्पति स्थानिक जलवायु तथा मिट्टी के अनुसार पनपती है तथा इसे प्राकृतिक कहा जा सकता है1

प्रश्न 11.
भारत में मुख्य वनस्पतियों के प्रकार को प्रभावित करने वाले भौगोलिक घटकों के नाम बताइए तथा उनके एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। वनस्पति की प्रकार, सघनता आदि वातावरण में कई तत्त्वों पर निर्भर है। भारत में वनस्पति विभाजन के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं मानसूनी वन, शीतोष्ण वन, घास के मैदान आदि वनस्पति प्रकार पाए जाते हैं।

इन वनस्पति को निम्नलिखित भौगोलिक घटक प्रभावित करते हैं

  1. वर्षा की मात्रा
  2. धूप
  3. ताप की मात्रा
  4. मिट्टी की प्रकृति।

जलवायुविक घटक अन्य स्थानिक तत्त्वों के साथ मिल कर एक-दूसरे पर विशेष प्रभाव डालते हैं। अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण असम तथा पश्चिमी घाट पर ऊष्मा कटिबन्धीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है। परन्तु मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। कई भागों में मौसमी वर्षा के कारण पतझड़ीय वनस्पति पाई जाती है। उष्ण जलवायु के कारण अधिकतर चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष पाए जाते हैं, परन्तु हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में कम तापमान के कारण कोणधारी वन तथा अल्पला घास पाई जाती है। स्थानीय मिट्टी के प्रभाव से नदी के डेल्टाई क्षेत्रों में ज्वारीय वन या मैंग्रोव पाई जाती है। इसी प्रकार बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बबूल के वृक्ष मिलते हैं।

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प्रश्न 12.
“हिमालय क्षेत्रों में ऊंचाई के क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेशों तक का अनुक्रम पाया जाता है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रम के अनुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में अन्तर पड़ता है। इस अन्तर के प्रभाव से वनस्पति में एक क्रमिक अन्तर पाया जाता है। धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

  1. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन: हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। यहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।
  2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन: 2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं । इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं।
  3. शंकुधारी वन: दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
  4. अल्पाइन चरागाहें: 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 13.
कृषि वानिकी तथा फ़ार्म वानिकी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
कृषि वानिकी का अर्थ है कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फ़सलें एक साथ लगाना वानिकी और खेती साथ-साथ करना जिसे – चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और फलों का उत्पादन एक साथ किया जाए। समुदाय वानिकी में सार्वजनिक भूमि जैसे – गांव – चरागाह, मन्दिर – भूमि, सड़कों के दोनों ओर नहर किनारे, रेल पट्टी के साथ पटरी और विद्यालयों में पेड़ लगाना शामिल है। इसका उद्देश्य पूरे समुदाय को लाभ पहुंचाना है। इस योजना का एक उद्देश्य भूमिविहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़ना तथा इससे उन्हें वे लाभ पहुंचाना जो केवल भूस्वामियों को ही प्राप्त होते हैं

फार्म वानिकी: फार्म वानिकी के अन्तर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते हैं। वन विभाग, इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है। इस योजना के तहत कई तरह की भूमि, जैसे- खेतों की मेड़ें, चरागाह, घासस्थल, घर के पास पड़ी खाली ज़मीन और पशुओं के बाड़ों में भी पेड़ लगाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
वन्य प्राणी संरक्षण के लिए टाईगर प्रोजैक्ट तथा एलीफैन्ट प्रोजैक्ट का वर्णन करो।
उत्तर:
यूनेस्को के ‘मानव और जीवमण्डल योजना’ (Man and Biosphere Programme) के तहत भारत सरकार ने वनस्पति ज्ञात और प्राणी जात के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। देश के 92 नैशनल पार्क, 492 वन्य प्राणी अभयवन 1.57 करोड़ हैक्टेयर भूमि पर फैले हैं। प्रोजैक्ट टाइगर (1973) और प्रोजैक्ट एलीफेंट (1992) जैसी विशेष योजनाएं इन जातियों के संरक्षण और उनके आवास के बचाव के लिए चलाई जा रही हैं। इनमें से प्रोजैक्ट टाइगर 1973 से चलाई जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है, जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें।

इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा जिसका लोगों को शिक्षा और मनोरंजन के रूप में फायदा होगा। शुरू में यह योजना नौ बाघ निचयों (आरक्षित क्षेत्रों) में शुरू की गई थी और ये 16,339 वर्ग किलोमीटर पर फैली थी। अब यह योजना 27 बाघ निचयों में चल रही है और इनका क्षेत्रफल 37,761 वर्ग किलोमीटर है और 17 राज्यों में व्याप्त है । देश में बाघों की संख्या 1972 में 1,827 से बढ़कर 2001-02 में 3,642 हो गई। यह योजना मुख्य रूप से बाघ केन्द्रित है, परन्तु फिर भी पारिस्थितिक तन्त्र की स्थिरता पर जोर दिया जाता है। बाघों की संख्या का स्तर तभी ऊंचा रह सकता है जब पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न पोषण स्तरों और इसकी भोजन कड़ी को बनाए रखा जाए।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के विभिन्न प्रकार के वनों के भौगोलिक वितरण तथा आर्थिक महत्त्व का वर्णन करो
उत्तर:
भारत की वन सम्पदा (Forest Wealth of India ):
प्राचीन समय में भारत के एक बड़े भाग पर वनों का विस्तार था, परन्तु अब बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इस समय देश में 747 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर वनों का विस्तार है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 22.7% भाग है। भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र लगभग 0.1 हेक्टेयर है जो कि बहुत कम है। भौगोलिक दृष्टि से मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र हैं। भारतीय वनों का वर्गीकरण – भारत में वनों का वितरण वर्षा, तापमान तथा ऊंचाई के अनुसार है। भारत में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं।

1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक, वर्षा 200 सें०मी० से अधिक तथा औसत तापमान 24°C है। इन वनों का विस्तार अग्रलिखित प्रदेशों में है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 1

Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of India extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line.

  1. पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी तटीय मैदान
  2. अण्डमान द्वीप समूह
  3. उत्तर-पूर्व में हिमालय पर्वत की ढलानों पर।

अधिक वर्षा तथा ऊंचे तापमान के कारण ये वन बहुत घने होते हैं। ये सदाबहार वन हैं तथा भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति कठोर लकड़ी के वन हैं। वृक्षों की ऊंचाई 30 से 60 मीटर तक है। इन वनों में रबड़, महोगनी, आबनूस, लौह- काष्ठ, ताड़ तथा चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। इन वृक्षों की लकड़ी फर्नीचर, रेल के स्लीपर, जलपोत निर्माण, नावें बनाने में प्रयोग की जाती है।

2. पतझड़ीय मानसूनी वन (Monsoon Deciduous Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 सें० मी० से 200 सें० मी० तक होती है। इन वनों में वृक्ष ग्रीष्मकाल में अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ीय वन कहते हैं। ये वन निम्नलिखित प्रदेशों में मिलते हैं।

  1. तराई प्रदेश
  2. डेल्टाई प्रदेश
  3. पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलान
  4. प्रायद्वीप का पूर्वी भाग मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु।

ये वन अधिक घने नहीं होते। इनमें वृक्ष कम ऊंचे होते हैं। ये वृक्ष लगभग 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इन वृक्षों को सुगमतापूर्वक काटा जा सकता है। कई भागों में कृषि के लिए इन वनों को साफ कर दिया गया है।

आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में साल, सागौन, चन्दन, रोज़वुड, आम, महुआ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। साल वृक्ष की लकड़ी रेल के स्लीपर तथा डिब्बे बनाने के काम आती है। सागौन की लकड़ी बहुत मज़बूत होती है। इसका प्रयोग इमारती लकड़ी तथा फर्नीचर में किया जाता है। इन वृक्षों पर लाख, बीड़ी, चमड़ा रंगने तथा कागज़ बनाने के उद्योग आधारित हैं।

3. शुष्क वन (Dry Forests ):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 50 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होती है। ये वन निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं।

  1. पूर्वी राजस्थान
  2. दक्षिणी हरियाणा
  3. दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश
  4. कर्नाटक पठार

ये वृक्ष वर्षा की कमी के कारण अधिक ऊंचे नहीं होते। इन वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा छाल मोटी होती है। ये वृक्ष अधिक गहराई से पानी प्राप्त करते हैं तथा वाष्पीकरण को रोकते हैं।
आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में शीशम, बबूल, कीकर, हल्दू आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ये कठोर तथा टिकाऊ लकड़ी के वृक्ष होते हैं। इनका उपयोग कृषि यन्त्र, फर्नीचर, लकड़ी का कोयला, बैलगाड़ियां बनाने में किया जाता है।

4. डेल्टाई वन (Deltaic Forests): ये वन डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन्हें ज्वारीय वन (Tidal Forests) भी कहते मैं। मैनग्रोव वृक्ष के कारण इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove Forests) भी कहते हैं। ये वन निम्नलिखित डेल्टाई क्षेत्रों में मिलते हैं।

  1. गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुन्दर वन)
  2. महानदी, कृष्ण, गोदावरी डेल्टा
  3. दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्र ये वन प्रायः दलदली होते हैं।

गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष मिलने के कारण इसे ‘सुन्दर वन’ कहते हैं। आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ) इन वनों में नारियल, मैंग्रोव ताड़, सुन्दरी आदि वृक्ष मिलते हैं। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इनका प्रयोग ईंधन, इमारती लकड़ी, नावें बनाने तथा माचिस उद्योग में किया जाता है।

5. पर्वतीय वन (Mountain Forests ):
ये वन हिमालय प्रदेश की दक्षिणी ढलानों पर कश्मीर से लेकर असम तक पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में वर्षा की मात्रा अधिक है। वहां सदाबहार तथा चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की अधिकता के कारण कोणधारी वन पाए जाते हैं। इस प्रकार पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी हिमालय के वनों में काफ़ी अन्तर मिलता है। हिमालय प्रदेश में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रमानुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में भी अन्तर पड़ता है । धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन:
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। वहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। वहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।

2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन:
2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। चीड़ के वृक्ष से बिरोज़ा तथा तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है। इसकी हल्की लकड़ी से चाय की पेटियां बनाई जाती हैं।

3. शंकुधारी वन:
दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी रेल के स्लीपर, पुल डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सिवर फर का प्रयोग कागज़ की लुग्दी, पैकिंग का सामान तथा दियासलाई बनाने में किया जाता है।

4. अल्पाइन चरागाहें:
3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत में वास्तविक वनावरण का वितरण बताओ।
उत्तर;
वनक्षेत्र की भांति वनावरण में भी बहुत अन्तर है। जम्मू और कश्मीर में वास्तविक वनावरण एक प्रतिशत है, जबकि अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह की 92 प्रतिशत भूमि पर वास्तविक वनावरण है। परिशिष्ट में दी गई सारणी से स्पष्ट है कि 9 ऐसे राज्य हैं जहां कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग से अधिक पर वनावरण है। एक तिहाई वनावरण पारितन्त्र का सन्तुलन बनाए रखने के लिए मानक आवश्यकता है। चार राज्य ऐसे हैं जहां वन का प्रतिशत आदर्श स्थिति जैसा ही है।

अन्य राज्यों में वनों की स्थिति असंतोषजनक या संकटपूर्ण है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि तीन नवीन राज्यों उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रत्येक के कुल क्षेत्रफल के 40 प्रतिशत भाग पर वन हैं। इन राज्यों के पृथक् आँकड़े न मिलने के कारण इन्हें इनके पूर्व राज्यों में ही सम्मिलित किया गया है।
वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है।

  1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश
  2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
  3. कम वनावरण वाले प्रदेश
  4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश।

1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश:
इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में शामिल हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह और मिज़ोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नागर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 और 80 के बीच है।

2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश:
इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्र 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं ।

3. कम वनावरण वाले प्रदेश:
यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप- प्रदेश हैं : एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप- – प्रदेश उत्तरी भारत में हैं। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।

4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश:
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जाता है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केन्द्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में हैं। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन हैं।

प्रश्न 3.
भारत में राष्ट्रीय उद्यान तथा जीव आरक्षित क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
आज भारत में 104 राष्ट्रीय उद्यान और 543 वन्य जीव अभयारण्य हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल क्रमशः 40,60,000 हेक्टेयर तथा 1,15,40,000 हेक्टेयर है। दोनों का कुल क्षेत्रफल 1,56,00,000 हेक्टेयर होता है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.74 प्रतिशत है। भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विवरण मानचित्र 2 में दिया गया है। सन् 1973 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने कुछ देशों में मनुष्य और जैव मण्डल पर एक कार्यक्रम शुरू किया था।

इसी के परिणामस्वरूप इनके अतिरिक्त 18 जीव आरक्षित क्षेत्र भी बनाए गए हैं। इनका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 43 लाख हेक्टेयर है। इनका कुछ क्षेत्र सुरक्षित क्षेत्र में भी शामिल हो गया। कुछ आरक्षित क्षेत्र इस प्रकार है- नीलगिरि (तमिलनाडु), नोक्रेक (मेघालय), नामदफा (अरुणाचल प्रदेश), नंदा देवी (उत्तराखंड), ग्रेट निकोबार तथा मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु)। विगत कुछ वर्षों में सुरक्षित क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सन् 1990 में भारत ने 1977 विश्व दाय (हैरिटेज) समझौते का अनुसमर्थन कर दिया है। इस समझौते के अनुसार श्रेष्ठ सार्वभौम महत्त्व के चार प्राकृतिक स्थलों को चिह्नित किया गया है।

1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
यह असम के नागाँव और गोलाघाट जिलों में मिकिर पहाड़ियों की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट के साथ विस्तृत है। काजीरंगा ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ क्षेत्र के मैदानों में स्थित है। इस नदी आवास में ऊंची व सघन घास वाली घास भूमियां हैं। इनके बीच-बीच में खुले वन हैं। यहाँ एक-दूसरे से जुड़ी नदियां तथा छोटी-छोटी अनेक झीलें हैं। इसका तीन चौथाई या इससे भी अधिक क्षेत्र प्रतिवर्ष ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के पानी में डूब जाता है। लैंडसैट के 1986 के आंकड़ों के अनुसार इस के 41 प्रतिशत भाग में ऊंची घास, 11 प्रतिशत में छोटी घास, 29 प्रतिशत में खुले वन, 4 प्रतिशत में दल – दल, 8 प्रतिशत में नदियां और जलाशय तथा शेष 7 प्रतिशत में अन्य लक्षण हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य जन्तु एक सींग वाला गैंडा तथा हाथी हैं।

2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान:
यह राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में अलवणजल की दल-दल है, जो सिन्धु गंगा के मैदान का भाग है। जुलाई से लेकर सितम्बर के मानसूनी वर्षा के महीनों में यह क्षेत्र एक से लेकर 2 मीटर की गहराई तक पानी से भर जाता है। अक्तूबर से जनवरी तक जहां जल स्तर धीरे-धीरे घटने लगता है तथा फरवरी के महीने में भूमि सूखने लगती है। जून के महीनों में कुछ गड्ढों में ही पानी रह जाता है। यहां का पर्यावरण अंशत: मानव-निर्मित है। छोटे-छोटे बांधों से पूरे क्षेत्र को 10 भागों में विभाजित कर लिया गया है। जल स्तर के नियंत्रण के लिए प्रत्येक भाग में जल कपाटों की व्यवस्था है।

3. सुन्दर वन जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह पश्चिम बंगाल में भारत की दो बड़ी नदियां गंगा और ब्रह्मपुत्र के दलदली डेल्टाई क्षेत्र में स्थित है। यह मैंग्रोव वनों, दल- दलों और वनाच्छादित द्वीपों के एक विशाल क्षेत्र में फैला है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,300 वर्ग कि०मी० है। यहां लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर (बाघ) निवास करते हैं। इस वन का कुछ भाग बांग्लादेश में हैं। ऐसा अनुमान है कि इस प्रदेश के बाघों की संयुक्त संख्या लगभग 400 हो सकती है। बाघों ने अपने आप को खारी और अलवणजल के अनुकूल बना लिया है। इस जीव आरक्षित क्षेत्र के बाघ अच्छे तैराक हैं।

4. नन्दा देवी जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह जीव आरक्षित क्षेत्र ऋषि गंगा के जल-ग्रहण क्षेत्र में स्थित है। यह धौलीगंगा की पूर्वी सहायक है। धौलीगंगा जोशी मठ के पास अलकनंदा में मिल जाती है। यह हिमनदीय द्रोणी का विस्तृत क्षेत्र है। उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली पहाड़ियों की समान्तर शृंखलाओं द्वारा यह क्षेत्र विभाजित है। यहां 6,400 मी० से ऊंची लगभग एक दर्जन चोटियां हैं। इनमें दूनागिरि (7,066 मी०), चंगबंग (6,864 मी०) तथा नन्दा देवी पूर्व (7,434 मी०) उल्लेखनीय हैं। हिमालय की आन्तरिक घाटी होने के कारण नन्दा देवी द्रोणी में सामान्य शुष्क दशाएं पाई जाती हैं। मानसून की अवधि को छोड़कर वार्षिक वर्षण का औसत कम रहता है। चारों ओर छाई धुंध और मानसून की ऋतु में कम ऊंचाई वाले बादलों के कारण मृदा आर्द्र बनी रहती है। वर्ष के 6 महीनों तक यह द्रोणी हिम से ढकी रहती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 3

प्रश्न 4.
जीव मण्डल निचय क्या है? भारत में इनके विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर:
जीव मण्डल निचय – जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) के मानव और जीव मण्डल प्रोग्राम (MAB) के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है। जीव मण्डल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं।
भारत में 18 जीव मण्डल निचय हैं इनमें से 4 जीव मण्डल निचय

  1. नीलगिरी;
  2. नन्दा देवी;
  3. सुन्दर वन;
  4. मन्नार की खाड़ी को।

यूनेस्को द्वारा जीव मण्डल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं।
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