JAC Class 11 Political Science Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Political Science Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Political Science Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Political Science Part 1 Indian Constitution at Work (भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार भाग-1)

Jharkhand Board Class 11th Political Science Part 2 Political Theory (राजनीतिक-सिद्धान्त भाग-2)

JAC Board Class 11th Political Science Solutions in English Medium

JAC Board Class 11th Political Science Part 1 Indian Constitution at Work

  • Chapter 1 Constitution: Why and How?
  • Chapter 2 Rights in the Indian Constitution
  • Chapter 3 Election and Representation
  • Chapter 4 Executive
  • Chapter 5 Legislature
  • Chapter 6 Judiciary
  • Chapter 7 Federalism
  • Chapter 8 Local Governments
  • Chapter 9 Constitution as a Living Document
  • Chapter 10 The Philosophy of the Constitution

JAC Board Class 11th Political Science Part 2 Political Theory

  • Chapter 1 Political Theory: An Introduction
  • Chapter 2 Freedom
  • Chapter 3 Equality
  • Chapter 4 Social Justice
  • Chapter 5 Rights
  • Chapter 6 Citizenship
  • Chapter 7 Nationalism
  • Chapter 8 Secularism
  • Chapter 9 Peace
  • Chapter 10 Development

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board Class 11 Political Science भारतीय संविधान में अधिकार InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कौन-कौनसे मौलिक अधिकार प्रदान करता है?
उत्तर:
1978 में किये गये 44वें संविधान संशोधन के बाद से भारतीय संविधान निम्नलिखित छः मौलिक अधिकार प्रदान करता है।

  1. समता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
  5. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 2.
मूल अधिकारों को कैसे सुरक्षित किया जाता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में सूचीबद्ध मूल अधिकार वाद योग्य हैं। कोई व्यक्ति, निजी संगठन या सरकार के कार्यों से किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है या उन पर सरकार द्वारा अनुचित प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो वह व्यक्ति ऐसे कार्य के विरुद्ध वाद दायर कर सकता है। न्यायालय सरकार के ऐसे कार्य को अवैध घोषित कर सकती है या सरकार को आदेश व निर्देश दे सकती है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की क्या भूमिका रही है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यथा

  1. न्यायपालिका ने जब-जब उसके समक्ष मूल अधिकारों के अतिक्रमण के वाद नागरिकों के द्वारा दायर किये गये, न्यायपालिका ने तब-तब उनकी व्याख्या कर मूल अधिकारों के अतिक्रमण को रोका है।
  2. विधायिका या न्यायपालिका के किसी कार्य या निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है या उन पर अनुचित प्रतिबन्ध लगाया गया है तो न्यायपालिका ने उस कार्य या प्रतिबन्ध को अवैध घोषित कर मूल अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की है।

प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में अन्तर: मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, लेकिन राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  2. नीति-निर्देशक तत्त्व राज्य से सम्बन्धित हैं, जबकि मौलिक अधिकार नागरिकों से सम्बन्धित हैं।
  3. जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  4. मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, जबकि नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं।

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प्रश्न 5.
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तब क्या होता? यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले इंजीनियर होते तो क्या होता? क्या उनके साथ भी अधिकारों का इसी तरह से हनन होता?
उत्तर:
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तो वह अपने संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए न्यायालय में स्वस्थ होने के बाद ही जेल से मुक्त होने के लिये चुनौती देता और न्यायालय के निर्णय के अनुसार ही जेल की सजा काटता।
यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले इंजीनियर होते तो वह उनका शोषण करने में सक्षम नहीं होता और उनके साथ अधिकारों का इस तरह से हनन नहीं होता।

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प्रश्न 6.
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की तुलना दक्षिण अफ्रीका के संविधान में दिये गये अधिकारों के घोषणा-पत्र से करें। उन अधिकारों की एक सूची बनायें जो।
(क) दोनों संविधानों में पाये जाते हों।
(ख) दक्षिण अफ्रीका में हों पर भारत में नहीं।
(ग) दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिये गये हों पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं?
उत्तर:
(क) भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों के संविधानों में पाये जाने वाले अधिकार निम्नलिखित हैं।

  1. निजता का अधिकार अर्थात् स्वतन्त्रता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार।
  2. श्रम सम्बन्धी समुचित व्यवहार का अधिकार अर्थात् रोजगार में अवसर की समानता, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा कोई भी पेशा चुनने व व्यापार करने की स्वतन्त्रता।
  3. सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषायी समुदायों का अधिकार ( धार्मिक स्वतन्त्रता तथा शिक्षा और संस्कृति सम्बन्धी अधिकार)।

(ख) वे अधिकार जो दक्षिण अफ्रीका में हैं, लेकिन भारत के संविधान में नहीं हैं, ये हैं।

  1. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार
  2. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  3. बाल अधिकार
  4. बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार
  5. सूचना प्राप्त करने का अधिकार।

(ग) वे अधिकार जो दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिये गये हों, पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं, ये हैं।

  1. समुचित आवास का अधिकार
  2. गरिमा का अधिकार।

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार में उपर्युक्त दोनों अधिकारों को निहित माना है।

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प्रश्न 7.
आप एक न्यायाधीश हैं। आपको उड़ीसा के पुरी जिले के दलित समुदाय के एक सदस्य- हादिबन्धु – से एक पोस्टकार्ड मिलता है। उसमें लिखा है कि उसके समुदाय के पुरुषों ने उस प्रथा का पालन करने से इन्कार कर दिया जिसके अनुसार उन्हें उच्च जातियों के विवाहोत्सव में दूल्हे और सभी मेहमानों के पैर धोने पड़ते थे। इसके बदले उस समुदाय की चार महिलाओं को पीटा गया और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया गया। पोस्टकार्ड लिखने वाले के अनुसार, “हमारे बच्चे शिक्षित हैं और वे उच्च जातियों के पुरुषों के पैर धोने, विवाह में भोज के बाद जूठन हटाने और बर्तन मांजने का परम्परागत काम करने को तैयार नहीं हैं। यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही हैं, आपको निर्णय करना है कि क्या इस घटना में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है? आप इसमें सरकार को क्या करने का आदेश देंगे?
उत्तर:
यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही है। एक न्यायाधीश होने के नाते मैं एक निर्णय करूँगा कि इस घटना में ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ तथा कोई भी पेशा चुनने तथा व्यापार करने की स्वतन्त्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। अपने देश में करोड़ों लोग गरीब, दलित-शोषित और वंचित हैं या लोगों द्वारा उनका शोषण बेगार या बन्धुआ मजदूरी के रूप में किया जाता रहा है। ऐसे शोषणों पर संविधान प्रतिबन्ध लगाता है। इसे अपराध घोषित कर दिया गया है और यह शोषण कानून द्वारा दण्डनीय है।

अतः शोषण का विरोध करने पर उस समुदाय की चार महिलाओं को जिन व्यक्तियों ने निर्वस्त्र करके घुमाया, उन्हें मैं कानून सम्मत दण्ड निर्धारित करूँगा तथा सरकार को यह आदेश दूँगा कि समाज में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करें कि सभी लोग बिना किसी बाधा के स्वतन्त्रतापूर्वक अपने व्यवसाय का चुनाव कर सकें। जो व्यक्ति, समुदाय, संगठन इसमें बाधा डालता है, उसे रोके तथा दण्डित करे।

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प्रश्न 8.
कुछ ऐसे मामले भी हो सकते हैं जिनमें कानून एक आदमी की जिन्दगी ले सकता है? यह तो अजीब बात है। क्या आपको कोई ऐसा मामला याद आता है?
उत्तर:
कानून किसी भी आदमी की जिन्दगी नहीं ले सकता क्योंकि भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता के अधिकारों के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।’ किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना उसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अभिप्राय यह है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताये गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किये जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसन्दीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है।

इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घण्टे के अन्दर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे। मजिस्ट्रेट ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं। इस अधिकार के द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन को मनमाने ढंग से समाप्त करने के विरुद्ध गारण्टी मिलती है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी अन्तर्निहित माना है।

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प्रश्न 9.
क्या आप मानते हैं कि निम्न परिस्थितियाँ स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग करती हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।
(क) शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।
(ख) दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मनाही है । मन्दिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।
(ग) सैकड़ों आदिवासियों ने अपने परम्परागत अस्त्र तीर-कमान और कुल्हाड़ी के साथ सड़क जाम कर रखा है। ये माँग कर रहे हैं कि एक उद्योग के लिए अधिग्रहित खाली जमीन उन्हें लौटाई जाये।
(घ) किसी जाति की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गई कि जाति से बाहर विवाह करने के लिए एक नव दंपति को क्या दंड दिया जाए।
उत्तर:
(क) ‘शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।’ यह परिस्थिति स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती क्योंकि इसमें शान्तिपूर्वक ढंग से स्वतन्त्रता के अधिकार का उपयोग किया जा रहा है जिसका उद्देश्य साम्प्रदायिक दंगे फैलाना नहीं, बल्कि शान्तिमय वातावरण की स्थापना करना है।

(ख) ‘दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मनाही है। मन्दिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।’ यह परिस्थिति भी स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती क्योंकि समता के मूल अधिकार के अन्तर्गत सार्वजनिक स्थलों, जैसे दुकान, होटल, मनोरंजन स्थल, कुआँ, स्नान घाट और पूजा-स्थलों में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव वर्जित करता है। अतः दलितों को मन्दिर प्रवेश की मनाही इस मूल अधिकार का उल्लंघन है। इस मूल अधिकार के प्रयोग के लिए मन्दिर में जबरदस्ती प्रवेश का आयोजन करना अनुचित नहीं है। यह स्थिति भी स्वतन्त्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं करती है। मन्दिर में जबरन प्रवेश का आयोजन किसी के स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन नहीं कर रहा है, बल्कि समता के अधिकार को व्यावहारिक बना रहा है।

(ग) आदिवासियों द्वारा अस्त्र-शस्त्र आदि के साथ एकत्रित होना बिना अस्त्र-शस्त्र के शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने के स्वतन्त्रता के अधिकार का अतिक्रमण है। अस्त्र-शस्त्र के साथ एकत्रित होने व सभा करने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध आवश्यक है।

(घ) जाति के बाहर विवाह करने के लिए एक नवदम्पति को दण्ड देने के लिए बुलाई गई जाति की पंचायत की बैठक स्वतन्त्रता के किसी अधिकार का अतिक्रमण नहीं है, बल्कि ‘विवाह कानून’ का उल्लंघन है। जाति की पंचायत को ऐसा दण्ड देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। फिर भी यदि वह दण्ड देने की कार्यवाही करती है तो उसे सामान्य कानून की प्रक्रिया के तहत रोका जा सकता है।

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प्रश्न 10.
मैं अपने मुहल्ले में तो अल्पसंख्यक हूँ पर शहर में बहुसंख्यक भाषा के हिसाब से तो अल्पसंख्यक हूँ लेकिन धर्म के लिहाज से मैं बहुसंख्यक हूँ। क्या हम सभी अल्पसंख्यक नहीं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वे किसी अन्य समूह से छोटा है। इस प्रकार किसी समुदाय को केवल धर्म के आधार पर ही नहीं बल्कि भाषा और संस्कृति के आधार पर भी अल्पसंख्यक माना जाता है। हम सभी अल्पसंख्यक नहीं हैं। चूँकि आप बहुसंख्यक धर्म वाले समुदाय के सदस्य हैं, लेकिन इस क्षेत्र की भाषा आपकी मातृभाषा नहीं है । इसलिए भाषा की दृष्टि से आप अल्पसंख्यक हैं।

दूसरे जिस क्षेत्र में आप निवास कर रहे हैं, उस क्षेत्र के बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय से भिन्न जो दूसरे धार्मिक समुदाय के लोग निवास करते हैं, चाहे वे बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य है, अल्पसंख्यक कहलायेंगे। तीसरे, उस क्षेत्र में ऐसे लोग जो बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय और बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य हैं, वे अल्पसंख्यक नहीं कहलायेंगे।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

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प्रश्न 11.
ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। इनमें से 5 प्रतिशत लोगों के पास रात में सोने की जगह भी नहीं है। इनमें सैकड़ों बूढ़े और बीमार बेघर लोगों की जाड़े में शीतलहर से मृत्यु हो जाती है। उन्हें ‘निवास प्रमाण-पत्र’ न दे पाने के कारण रार्शन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र नहीं मिल पाते। इसके अभाव में उन्हें जरूरतमंद मरीज के रूप में सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती। इनमें एक बड़ी संख्या में लोग दिहाड़ी मजदूर हैं जिन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है। वे मजदूरी की तलाश में देश के विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं। आप इन तथ्यों के आधार पर ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’ के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भेजें। आपकी याचिका में निम्न दो बातों का उल्लेख होना चाहिए।
(क) इन बेघर लोगों के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है?
(ख) आप सर्वोच्च न्यायालय से किस प्रकार का आदेश देने की प्रार्थना करेंगे?
उत्तर:
सेवा में,

श्रीमान मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय, भारत

महोदय,
निवेदन है कि ” ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। …………….-वे मजदूरी की तलाश में विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं।”
(क) महोदय, उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि इन लोगों के ‘जीवन जीने’ के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि आपके न्यायालय द्वारा पूर्व में दिये गए एक निर्णय के अनुसार, इस अधिकार में शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार अन्तर्निहित है। इस प्रकार न्यायालय ने माना है कि जीवन के अधिकार का अर्थ है कि व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई जिन्दा नहीं रह सकता।

(ख) उपर्युक्त उद्धरण में दिये गए तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग आवास और मजदूरी के अभाव में सर्दी की शीतलहर में मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। सरकार इन लोगों के ‘गरिमापूर्ण जीवन जीने’ के अधिकार की ओर उदासीन है। अतः आप देश की सरकार को ऐसा आदेश या निर्देश दें कि ये लोग गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उपभोग कर सकें और भविष्य में ऐसे लोगों के बेघर होने तथा शोषण व बिना आजीविका के कारण शीतलहर में मृत्यु न हो सके।

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प्रश्न 12.
मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच सम्बन्धों पर उठे विवाद के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण था: मूल संविधान में सम्पत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण को मौलिक अधिकार दिया गया था। लेकिन संविधान में स्पष्ट कहा गया था कि सरकार लोक-कल्याण के लिए सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाये जिससे सम्पत्ति के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा। मौलिक अधिकारों और नीति- निर्देशक तत्त्वों के मध्य विवाद के केन्द्र में यही अधिकार था। आखिरकार 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को ‘संविधान के मूल ढाँचे’ का तत्त्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान का संशोधन करके इसे प्रतिबन्धित करने का अधिकार है। 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया और संविधान के अनुच्छेद 300 ( क ) के अन्तर्गत उसे एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया। आपकी राय में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से क्या फर्क पड़ता है?
उत्तर:
मेरी राय में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से यह फर्क पड़ता है कि अब सरकार कोई कानून बनाकर लोक-कल्याण के लिए जब किसी सम्पत्ति का अधिग्रहण करेगी तो उसका मालिक सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के हनन के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। अब उसे सम्पत्ति के सामान्य कानून के अन्तर्गत ही न्यायालय में वाद दायर करना होगा।

दूसरे, सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के होने पर सरकार को उसके लोकहित में अधिग्रहण करने पर उसके बाजार मूल्य की राशि का मुआवजा देना पड़ता था, अब सरकार कोई भी राशि उसके एवज में कानून के अन्तर्गत निर्धारित कर सकती है। तीसरे, सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के कारण ही नीति-निर्देशक तत्त्व और मूल अधिकारों के मध्य विवाद पैदा हुए। अब ऐसा कोई विवाद पैदा नहीं होगा।

पृष्ठ 48

प्रश्न 13.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों के घोषणा पत्र और भारतीय संविधान में दिए नीति- निर्देशक तत्त्वों को पढ़ें। दोनों सूचियों में आपको कौनसी बातें एकसमान लगती हैं?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों को घोषणा-पत्र और भारतीय संविधान में दिये नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूचियों में निम्नलिखित बातें एकसमान लगती है।

  1. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण
  2. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा
  3. बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार।

प्रश्न 14.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में क्यों रखा? उत्तर-दक्षिण अफ्रीका का संविधान तब बनाया तथा लागू किया गया जब रंगभेद वाली सरकार के हटने के बाद दक्षिण अफ्रीका गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था। ऐसी स्थिति में नस्ल, लिंग, गर्भधारण, वैवाहिक स्थिति, जातीय या सामाजिक मूल, रंग, आयु, अपंगता, धर्म, अन्तरात्मा, आस्था, संस्कृति, भाषा और जन्म के आधार पर भेदभाव वर्जित करने के लिए नागरिकों को व्यापक अधिकार देना आवश्यक था। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में रखा।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत।
(क) अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
(ख) अधिकार-पत्र व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
(ग) विश्व के हर देश में अधिकार – पत्र होता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार
(ख) कानून द्वारा नागरिक को प्रदत्त समस्त अधिकार
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है। नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को दण्डित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था।
(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।
(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
(घ) आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम से विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है। पदोन्नति दी गई, लेकिन उन्हीं की साथी महिला सहकर्मियों को जिनका वजन बढ़ गया था, दण्डित किया गया। इस दशा में समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन हो रहा है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 16

  1. के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर की समानता होगी। अनुच्छेद 16
  2. के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, निवास के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा। लेकिन उपर्युक्त घटना में लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) ‘एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।’ इस स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का उपयोग हो रहा है। अनुच्छेद 19(i) के अनुसार सभी नागरिकों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।

(ग) ‘एक बड़े बांध के कारण विस्थापित लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
इस स्थिति में अनुच्छेद 19(ii) के नागरिकों को प्रदत्त शान्तिपूर्ण सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता का उपयोग हो रहा है।

(घ) ‘आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम से विद्यालय चलाती है।’
इस स्थिति में अल्पसंख्यकों के अधिकार का उपभोग हो रहा है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। इसी के आधार पर आन्ध्र सोसायटी आन्ध्र प्रदेश के बाहर तेलगू भाषा के विद्यालय चलाती है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे उस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।
(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।
(ग) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
(घ) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढ़ेंगे।
उत्तर:
उपर्युक्त चारों कथनों में (ग) ‘भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।’ यही सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है।

प्रश्न 5.
इनमें कौन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाना।
(ग) 9 बजे रात के बाद लाऊड स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(घ) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना: शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय में अपने एक निर्णय में इस बात को स्वीकार किया है कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना ‘बेगार’ या ‘बंधुआ मजदूरी’ जैसा है और नागरिकों को प्राप्त ‘शोषण के विरुद्ध’ मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना: इस उदाहरण में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है क्योंकि पुस्तक किसी एक व्यक्ति के या समूह के विचारों की अभिव्यक्ति है।

(ग) एवं

(घ) में किसी भी मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्त्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की जरूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाय। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताइए।
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। यदि मूल अधिकारों को समाप्त कर दिया जायेगा तो समानता, स्वतन्त्रता और शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति में अराजकता आ जायेगी। राजनैतिक स्वतन्त्रता और समानता के अभाव में आर्थिक समानता की स्थापना बाध्यकारी ढंग से करने पर नौकरशाही का बोलबाला हो जायेगा और वह निरंकुश हो जायेगी।

परिणामतः गरीब कार्यकर्त्ता को नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को लागू किये जाने का काम नहीं मिल पायेंगा। दूसरे, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों को बाध्यकारी बनाना संभव नहीं है। यदि इन सिद्धान्तों को बाध्यकारी बना दिया जाये तो उसके लिए व्यापक संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी जो कि एक दुष्कर कार्य है।

प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं, उन्हें अब भी मजबूरन यही काम करना पड़ रहा है। जो लोग अधिकार- पद पर बैठे हैं वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
उत्तर:
इस उदाहरण से अग्रलिखित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
1. स्वतन्त्रता का अधिकार:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतन्त्रता है। उक्त रिपोर्टों से यह पता चलता है कि आजीविका या पेशा चुनने की स्वतन्त्रता नहीं दी जा रही है । अतः उनके स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है।

2. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार:
उपर्युक्त रिपोर्टों में दी गई स्थिति में झाडू देने वाली जातियों के व्यक्तियों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का भी उल्लंघन हुआ है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 29 में यह स्पष्ट कहा गया है कि राज्य द्वारा घोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के भी आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा।

3. समानता का अधिकार:
उपरोक्त घटना में समानता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है। समानता के अधिकार के अनुसार भारत के राज्य-क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान समझा जायेगा। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। लेकिन उपरोक्त घटना में जाति के आधार पर भेदभाव किया गया है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भुखमरी की स्थिति की तरफ खींचा भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था। शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(क) इस मामले में कौन-कौनसे अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ख) क्या ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त उदाहरण के अन्तर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार तथा जीवन का अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार परस्पर जुड़े हुए हैं। भूख से मरने के कारण ‘जीवन के अधिकार’ का उल्लंघन हुआ। गोदामों में पाँच करोड़ टन अनाज होते हुए भी सरकार ने वितरण व्यवस्था ठीक नहीं की और मानव अधिकार समूह द्वारा न्यायालय से यह प्रार्थना की गई कि सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के आदेश दे। इस प्रकार इसमें संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है।

(ख) ये अधिकार यद्यपि अलग-अलग मूल अधिकार हैं तथापि ये इस मामले में ‘जीवन के अधिकार’ के भाग हैं।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धृत सोमनाथ लाहिडी द्वारा संविधान सभा में दिये गये वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि ‘हाँ’ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि ‘नहीं’ तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिडी द्वारा संविधान सभा में दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है: “मैं समझता हूँ कि इनमें से अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है। आप देखेंगे कि काफी कम अधिकार दिये गये हैं और प्रत्येक अधिकार के बाद एक उपबन्ध जोड़ा गया है। लगभग प्रत्येक अनुच्छेद के बाद एक उपबन्ध है जो उस अधिकार को पूरी तरह से वापस ले लेता है। मौलिक अधिकारों की हमारी क्या अवधारणा होनी चाहिए? हम उस प्रत्येक अधिकार को संविधान में पाना चाहते हैं जो हमारी जनता चाहती हैं। ” मैं इस कथन से सहमत हूँ क्योंकि।

1. हमारे संविधान में मौलिक अधिकार कम दिये गये हैं। बहुत-सी ऐसी बातों को छोड़ दिया गया है जो मौलिक अधिकारों में शामिल होनी चाहिए थीं। जैसे काम करने का अधिकार, निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, आवास का अधिकार, सूचना प्राप्त करने का अधिकार आदि।

2. प्रत्येक मौलिक अधिकार के साथ अनेक प्रतिबन्ध लगा दिये गए हैं जिससे यह समझना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को मौलिक अधिकारों से क्या मिला है। भारतीय संविधान इस प्रकार एक हाथ से नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है और दूसरे हाथ से वह उनसे उन मौलिक अधिकारों को छीन लेता है।

3. प्रत्येक मौलिक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाने से यह स्पष्ट होता है कि ये अधिकार पुलिस के सिपाही के दृष्टिकोण से दिये गये हैं। हरिविष्णु कामथ ने भी संविधान सभा में कहा था कि “इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।” इसी प्रकार सरदार हुकुमसिंह ने कहा था कि “यदि हम इन स्वतन्त्रताओं को व्यवस्थापिका की इच्छा पर ही छोड़ देते हैं जो कि एक राजनीतिक दल के अलावा कुछ नहीं है, तो इन स्वतन्त्रताओं के अस्तित्व में भी सन्देह हो जायेगा ।” उदाहरण के लिए ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ पर कानून व्यवस्था, शान्ति और नैतिकता के आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। प्रशासन इस शक्ति का आसानी से दुरुपयोग कर सकता है।

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प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौनसा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
44वें संविधान द्वारा 1979 में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल देने के पश्चात् भारतीय संविधान में नागरिकों को छः मूल अधिकार दिये गये हैं। ये हैं।

  1. समता का अधिकार,
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार,
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
  5. शिक्षा तथा सम्पत्ति का अधिकार और
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार। यद्यपि ये सभी अधिकार महत्त्वपूर्ण हैं, तथापि इनमें ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार या उल्लंघनकर्त्ता को आदेश या निर्देश दे सकते हैं। ये न्यायालय इस हेतु बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, अधिकार पृच्छा या उत्प्रेषण लेख जारी कर सकते हैं। यह मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में दिये अन्य मौलिक अधिकारों से निम्नलिखित कारणों से अधिक महत्त्वपूर्ण है-

  1. संवैधानिक उपचार के मौलिक अधिकार के माध्यम से ही न्यायालय ऐसे मामलों में त्वरित कार्यवाही करता है ताकि एक क्षण के लिए भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो सके।
  2. संवैधानिक उपचार के मौलिक अधिकार के माध्यम से ही मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सकता है तथा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा की जा सकती है। डॉ. अम्बेडकर ने इसीलिए इस अधिकार को ‘संविधान का हृदय’ और ‘आत्मा’ की संज्ञा दी है। इस अधिकार के बिना सभी मूलकार अव्यावहारिक हो जायेंगे।

भारतीय संविधान में अधिकार JAC Class 11 Political Science Notes

→ परिचय: भारत के संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है; उसमें प्रत्येक मौलिक अधिकार के प्रयोग की सीमा का भी उल्लेख है।

→ अधिकारों का घोषणा-पत्र: अधिकतर लोकतान्त्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया जाता है। संविधान द्वारा प्रदान किये गये और संरक्षित अधिकारों की ऐसी सूची को ‘अधिकारों का घोषणा- पत्र’ कहते हैं। अधिकारों का घोषणा-पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध काम करने से रोकता है और उसका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है। संविधान नागरिकों के अधिकारों को अन्य व्यक्ति या नागरिकों, निजी संगठन तथा सरकार की विभिन्न संस्थाओं से संरक्षित करता है।

→ भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार।

  • मौलिक अधिकार से आशय – संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें सुरक्षा देनी थी और इन अधिकारों को मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गई है। उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाये गये हैं। वे इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि संविधान स्वयं यह सुनिश्चित करता है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके।
  • मौलिक अधिकार अन्य अधिकारों से भिन्न हैं।
    • कानूनी अधिकारों की सुरक्षा हेतु जहाँ साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है, वहाँ मौलिक अधिकारों की गारण्टी व सुरक्षा संविधान स्वयं करता है।
    • सामान्ये अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है, लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान संशोधन आवश्यक है।
    • सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है।
    • मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार नहीं हैं। सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर ‘औचित्यपूर्ण’ प्रतिबन्ध लगा सकती है।

→ भारतीय संविधान में प्रदत्त प्रमुख मौलिक अधिकार; भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित प्रमुख मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। समता का अधिकार: समता के अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • कानून के समक्ष समानता
  • कानून का समान संरक्षण
  • धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध दुकानों, होटलों, कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों आदि में प्रवेश की समानता
  • रोजगार में अवसर की समानता
  • उपाधियों का अन्त
  • छुआछूत की समाप्ति।

→ स्वतन्त्रता का अधिकार:
(क) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इस अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित स्वतन्त्रताओं का समावेश किया गया है।

  • भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
  • शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतन्त्रता,
  • संगठित होने की स्वतन्त्रता,
  • भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता,
  • भारत के किसी भी हिस्से में बसने और रहने की स्वतन्त्रता,
  • कोई भी पेशा चुनने, व्यापार करने की स्वतन्त्रता,

(ख) अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण;
(ग) जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार;
(घ) शिक्षा का अधिकार तथा
(ङ) अभियुक्तों और सजा पांए लोगों के अधिकार।

→ शोषण के विरुद्ध अधिकार: इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • मानव के दुर्व्यापार और बंधुआ मजदूरी पर रोक,
  • 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों को जोखिम वाले कामों में मजदूरी कराने पर रोक। बाल-श्रम को अवैध बनाकर और शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाकर शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार को और अर्थपूर्ण बनाया गया है।

→ धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार: सके अन्तर्गत इन बातों का समावेश किया गया है।

  • आस्था और प्रार्थना की आजादी,
  • धार्मिक मामलों के प्रबन्धन,
  •  किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता,
  • कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता,
  • सभी धर्मों की समानता।

→ सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार: इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें समाहित हैं।

  1. अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
  2. अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार।

→ संवैधानिक उपचारों का अधिकार: इसके तहत मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय में जाने का अधिकार आता है। न्यायालय बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध आदेश, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख के माध्यम से मूल अधिकारों की रक्षा करता है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व: नीति-निर्देशक तत्त्व से आशय संविधान के भाग चार में नीतियों की एक निर्देशक सूची रखी गयी है। निर्देशों की इस सूची को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व कहते हैं। नीति-निर्देशक तत्त्व ‘वाद  योग्य’ नहीं हैं। नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में तीन प्रमुख बातें हैं।

  • वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
  • वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।
  • वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए।

समय-समय पर सरकार ने कुछ नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास किया है।

→  नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्य: राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्य ये हैं।

  • लोगों का कल्याण; सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय।
  • जीवन स्तर ऊँचा उठाना; संसाधनों का समान वितरण।
  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देना।

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→ प्रमुख नीतियाँ:

  • समान नागरिक संहिता,
  • मद्यपान निषेध,
  • घरेलू उद्योगों को बढ़ावा,
  • उपयोगी पशुओं को मारने पर रोक,
  • ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहन।

→ ऐसे अधिकार जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता:

  • पर्याप्त जीवन-यापन,
  • महिलाओं और पुरुषों को समान काम की समान मजदूरी,
  • आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  • काम का अधिकार तथा
  • छः वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा।

→ नीति-निर्देशक तत्त्वों और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध: मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। यथा

  • जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  • मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, पर नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं। लेकिन कभी-कभी जब सरकार नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा सकते हैं।

→ नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य: 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों की एक सूची का समावेश किया गया है जिसमें कुल 10 कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया है। लेकिन इन्हें लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है।

→ प्रमुख कर्त्तव्यु: संविधान में वर्णित नागरिकों के प्रमुख कर्त्तव्य हैं। संविधान का पालन करना, देश की रक्षा करना, सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना तथा पर्यावरण की रक्षा करना। संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे?

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे? Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे?

Jharkhand Board Class 11 Political Science संविधान – क्यों और कैसे? InText Questions and Answers

पृष्ठ 1

प्रश्न 1.
संविधान किस्से कहते हैं? या संविधान क्या है?
उत्तर:
संविधान एक लिखित या अलिखित दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है जिसमें राज्य सम्बन्धी प्रावधान यह बताते हैं कि राज्य का गठन कै से होगा और वह किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।

प्रश्न 2.
संविधान समाज को क्या देता है?
उत्तर:
संविधान समाज में तालमेल बिठाता है।, सरकार का निर्माण करता है, सरकार की सीमाएँ बताता है तथा समाज की आकांक्षाओं और लक्ष् यों को बताता है। यथा

  1. संविधान समाज में तालमेल बिठाता है: संविधान समाज में तालमेल बिठाता है। यह समाज में बुनियादी नियमों को प्रस्तुत कर रता है तथा उन्हें लागू कराता है ताकि समाज के सदस्यों में न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे।
  2. यह शक्ति का वित रण स्पष्ट करता है: यह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है तथा यह स्पष्ट करता है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी तथा सरकार कैसे निर्मित होगी।
  3. सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ: संविधान सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की सीमाएँ तय करता है । इसी सन्दर्भ में वह नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  4. समाज की आकांक्षाएँ और लक्ष्य: संविधान सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करता है जिससे वह समाज की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके।

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प्रश्न 3.
संविधान समाज में शक्ति का बंटवारा कैसे करता है?
उत्तर:
संविधान समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है। संविधान यह तय करता है कि कानून कौन बनायेगा। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि अधिकतर कानून संसद और राज्य विधानमण्डल बनायेंगे। संसद और राज्य विधानमण्डलों को कानून निर्माण का अधिकार संविधान प्रदान करता है। इसी प्रकार संविधान सरकार की अन्य संस्थाओं को भी शक्ति जैसे कार्यपालिका को कानूनों के क्रियान्वयन और न्यायपालिका को कानूनों को लागू करने की शक्ति प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
भारत का संविधान कैसे बनाया गया?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 मास 18 दिन की अवधि में 166 दिनों तक बैठकें कर 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया। संविधान सभा की संविधान निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार रही

  1. सार्वजनिक हित: संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श कर निर्णय लिया।
  2. सार्वजनिक विवेकयुक्त कार्यविधि: विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियाँ थीं। प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गयी । प्रायः प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिये गये।
  3. राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत को मूर्त रूप देना: संविधान सभा ने उन सिद्धान्तों को मूर्त रूप आकार दिया जो उसके सदस्यों ने राष्ट्रीय आन्दोलन से विरासत में प्राप्त किये थे। इन सिद्धान्तों का सारांश नेहरू द्वारा 1946 में प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में मिलता है। इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संप्रभुता को संस्थागत रूप दिया गया।
  4. संस्थागत व्यवस्थाएँ: संविधान सभा ने सरकार को जनकल्याण तथा लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध रखने हेतु शासन . के तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन – किया। परिणामस्वरूप संविधान सभा ने संसदीय व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया।
  5. विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों को ग्रहण करना: संविधान सभा ने शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों व संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारतीय समस्याओं व परिस्थितियों के अनुरूप ढालकर अपना बना लिया।

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प्रश्न 5.
(ख) संविधान कितना प्रभावी है?
उत्तर:
संविधान कितना प्रभावी है? इस बात का निर्धारण इस बात के निर्धारण से किया जाता है कि कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया? किसने संविधान बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी?
यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाये जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान कम प्रभावी या निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद आंदोलन के लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है, ऐसा संविधान प्रभावशाली होता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि जिस संविधान निर्मात्री सभा के सदस्यों में जितनी अधिक लोकप्रियता, जनहित की भावना और समाज के सभी वर्गों को साथ ले चलने की क्षमता होगी संविधान उतना ही अधिक प्रभावी होगा। विश्व के सर्वाधिक सफल व प्रभावी संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया है।

(ग) क्या संविधान न्यायपूर्ण है?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण संविधान, संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है। एक न्यायपूर्ण संविधान वह है जो लोगों को यह विश्वास दिला सके कि वह बुनियादी न्याय को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त ढाँचा उपलब्ध कराता है।

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पृष्ठ 10.

प्रश्न 6.
नीचे भारतीय और अन्य संविधानों के कुछ प्रावधान दिये गये हैं। बताएँ कि इनमें प्रत्येक प्रावधान का क्या कार्य है?
(क) सरकार किसी भी नागरिक को किसी धर्म का पालन करने या न करने की आज्ञा नहीं दे सकती।
(ख) सरकार को आय और सम्पत्ति की असमानताएँ कम करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
(ग) राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को नियुक्त करने की शक्ति है।
(घ) संविधान वह सर्वोच्च कानून है जिसका सभी को पालन करना पड़ता है।
(ङ) भारतीय नागरिकता किसी खास नस्ल, जाति या धर्म तक सीमित नहीं है।
उत्तर:
(क) सरकार की शक्ति पर सीमा
(ख) समाज की आकांक्षा व लक्ष्य
(ग) निर्णय लेने की शक्ति की विशिष्टता
(घ) संविधान बुनियादी तालमेल बिठाता है।
(ङ) राष्ट्र की बुनियादी पहचान (राष्ट्रीय पहचान)।

पृष्ठ 11

प्रश्न 7.
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे क्या करते हैं?
उत्तर:
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे संविधान के प्रावधानों का आदर नहीं करते। ऐसे संविधान को जनता से निष्ठा मिलनी बंद हो जाती है।

प्रश्न 8.
ऐसे लोगों का क्या होता है जिनका संविधान केवल कागज पर ही होता है?
उत्तर:
ऐसे लोगों को बुनियादी न्याय प्राप्त करने का ढाँचा उपलब्ध नहीं हो पाता।

पृष्ठ 16

प्रश्न 9.
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो क्या होता? क्या वह उस संविधान सभा से भिन्न होती जो बनाई गई?
उत्तर:
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो भी संविधान सभा का रूप यही होता क्योंकि इस संविधान सभा में राष्ट्र के सभी प्रमुख नेता तथा समाज के सभी वर्गों के नेता व प्रबुद्ध लोग सम्मिलित थे। इसका प्रमाण यह है कि संविधान निर्माण के बाद हुए प्रथम आम चुनाव में संविधान सभा के लगभग सभी सदस्य निर्वाचित हो गये थे।

पृष्ठ 19

प्रश्न 10.
यदि हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती तो क्या होता? हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता तो क्या होता? क्या तब बनाया गया संविधान हमारे वर्तमान संविधान से भिन्न होता?
उत्तर:
चाहे हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती, चाहे हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता; यदि स्वतंत्रता के समय विभाजन की परिस्थितियाँ इसी तरह की होतीं, तो हमारा संविधान वर्तमान संविधान से भिन्न नहीं होता क्योंकि हमारे संविधान निर्माता, उनकी लोकप्रियता तथा सार्वजनिक हित की दृष्टि यही होती।

पृष्ठ 21

प्रश्न 11.
क्या यह संविधान उधार का था?
उत्तर:
नहीं, भारत का संविधान उधार का नहीं था । इसमें दूसरे संविधानों के जिन प्रावधानों को ग्रहण किया गया था, उन्हें देश की समस्याओं व परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित कर अपनाया गया था।

प्रश्न 12.
हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो?
उत्तर:
विश्व इतिहास के इस पड़ाव पर बनाये गये संविधान में पूर्णतः नवीन ढांचे को नहीं अपनाया जा सकता। संविधान में यदि कुछ नया हो सकता है तो वह यह है कि उसमें उधार लिए गए प्रावधानों में कुछ ऐसे परिवर्तन किये जाएं जो असफलताओं को दूर कर देश की आवश्यकताओं के अनुरूप बन सकें। भारत के संविधान निर्माताओं ने यह बखूबी किया है।

Jharkhand Board Class 11 Political Science संविधान – क्यों और कैसे? Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें कौनसा संविधान का कार्य नहीं है?
(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारंटी देता है।
(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन करता है।
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आयें।
(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।
उत्तर:
(ग) यह सुनिश्चित करता हैं कि सत्ता में अच्छे लोग आयें.

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की एक बेहतर दलील है कि संविधान की प्रामाणिकता संसद से ज्यादा है?
(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।
(ख) संविधान के निर्माता संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौनसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(घ) संसद, संविधान का संशोधन नहीं कर सकती।
उत्तर:
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौनसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।

प्रश्न 3.
बतायें कि संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या लत?
(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
(ख) संविधान सिर्फ लोकतांत्रिक देशों में होता है और उसकी जरूरत ऐसेही देशों में होती है।
(ग) संविधान एक कानूनी दस्तावेज है और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका नेई सरोकार नहीं।
(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य।

प्रश्न 4.
बतायें कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित नुमान सही हैं या नहीं? अपने उत्तर का कारण बतायें।
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निश्चन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्यंके उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा गरे देशों से लिया गया है।
उत्तर:
(क) यद्यपि यह बात सत्य है कि संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे, तथापि उसे अधिक से अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने का प्रयास शि गया था। विभाजन के बाद संविधान सभा में कांग्रेस का वर्चस्व था। लेकिन कांग्रेस स्वयं विविधताओं से भरी हुई ऐसी पार्टी थी जिसमें लगभग सभी विचारधाराओं की नुमाइंदगी थी। इसमें सभी धर्म के सदस्यों को समुचित प्रनिधित्व दिया गया था। इसके अतिरिक्त संविधान सभा में अनुसूचित वर्गों के भी 26 सदस्य थे। अतः यह कह गलत होगा कि संविधान सभा भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं करती थी।

(ख) यह बात भी असत्य है कि संविधान सभा के सदस्यों के बीच संविधकी बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी इसलिए संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं संविधान सभा के बड़े नेताओं के विचार हर बात पर एक-दूसरे के समान थे। डॉ. अम्बेडकर कांग्रेस और गांधी के कटु आलोचक थे। पटेल और नेहरू अनेक मुद्दों पर एक-दूसरे से असहम्। वास्तव में संविधान का केवल एक ही प्रावधान ऐसा है जो बिना किसी वाद-विवाद के पारित हुआ। यह प्रावधान भौमिक मताधिकार का था। इसके अतिरिक्त प्रत्येक विषय पर गंभीर विचार-विमर्श और वाद-विवाद हुए।

(ग) यह कहना गलत है कि संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि का अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है। वास्तव में हमारे संविधान निर्माताओं ने अन्य देशों की संवैधानिक पाओं से कुछ ग्रहण करने में परहेज नहीं किया। उन्होंने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ सीखने में संकनेहीं किया। परन्तु उन प्रावधानों व परम्पराओं को ग्रहण करने में कोरी अनुकरण की मानसिकता नहीं थी, बल्कि ने संविधान के प्रत्येक प्रावधान को भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप ग्रहण किया और उन्हें अपना बनाग।

भारत का संविधान एक विशाल तथा जटिल दस्तावेज है। इसकी मौलिकता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा ता। संजीव पास बुक्स की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण कर दिया जाता है जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक सीमा कहलाती है।

नागरिकों को सामान्यतः कुछ मौलिक स्वतंत्रताओं का अधिकार है, जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, अंतर्रात्मा की आवाज पर काम करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि। व्यवहार में इन अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का उल्लेख भी करता है जिसमें इन अधिकारों को वापिस लिया जा सकता है।

II. नागरिकों के अधिकारविहीन संविधान की संभावना-संसार का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ, तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं और वे नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधायें प्रदान की जाती हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे?

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें।
(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। उनके लिए जनता के मन में आदर था।
(ख) संविधान ने शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है।
उत्तर:
(क) संविधान का निर्माण उस संविधान सभा ने किया जो विश्वसनीय नेताओं से बनी थी क्योंकि

  1. इन सभी नेताओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था। वे राष्ट्रीय आन्दोलन के लोकप्रिय नेता थे।
  2. संविधान निर्माण के सदस्य भारतीय समाज के सभी अंगों, वर्गों, जातियों; समुदायों और धर्मों के प्रतिनिधि सदस्य थे। भारतीय जनता के मन में उनके प्रति आदर था क्योंकि राष्ट्रीय आन्दोलन में उठने वाली सभी मांगों को संविधान बनाते समय उन्होंने ध्यान में रखा तथा उन्होंने पूरे देश व समाज के हित को ध्यान में रखकर ही विचार-विमर्श किया।

(ख) संविधान ने शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया कि उसमें उलट-फेर मुश्किल है। कोई समूह संविधान को नष्ट नहीं कर सकता है। किसी एक संस्था का सारी शक्तियों पर एकाधिकार नहीं है। संविधान ने शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि में बांट दिया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेंगी। अवरोध और संतुलन का भारतीय संविधान में कुशल प्रयोग किया गया है।

(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है। संविधान न्यायपूर्ण है। भारत के संविधान में न्याय के बुनियादी सिद्धान्तों का विशेष ध्यान दिया गया है। भारतीय संविधान सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करता है जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके और जिन्हें कानून की मदद से लागू किया जा सके। हमारे संविधान में प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक तत्व सरकार वयस्क मताधिकार तथा आरक्षण के प्रावधान आदि के द्वारा लोगों की आशा और आकांक्षाओं को पूरा करने की अपेक्षा की गई है।

प्रश्न 6.
किसी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो तो क्या होगा?
उत्तर:
I. संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों के निर्धारण की आवश्यकता – किसी भी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि

  1. जब कोई एक समूह या संस्था अपनी शक्तियों को बढ़ा लेती है तो वह पूरे संविधान को नष्ट कर सकती है। इस समस्या से बचने के लिए यह आवश्यक है कि संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का निर्धारण साफ-साफ इस तरह से किया जाये कि कोई भी संस्था या समूह संविधान को नष्ट न कर सके।
  2. संविधान की रूपरेखा इस प्रकार से तैयार की जाये कि कोई एक संस्था एकाधिकार प्राप्त न कर सके। ऐसा करने के लिए शक्तियों का विभाजन विभिन्न संस्थाओं में किया जाये। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में समान स्तर पर शक्तियों का वितरण कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य तथा कुछ स्वतन्त्र संवैधानिक निकायों जैसे निर्वाचन आयोग आदि में किया गया है।
  3. इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यदि कोई संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में इसी उद्देश्य से अवरोध व संतुलन के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

II. निर्धारण के अभाव में क्या होगा: यदि संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण नहीं होगा तो कोई एक संस्था या सरकार का कोई अंग अपनी शक्तियों को बढ़ाकर दूसरी संस्थाओं की शक्तियों का अतिक्रमण कर लेगा और इस प्रकार सरकार की समस्त शक्तियों पर एकाधिकार कर संविधान को नष्ट कर सकता है। ऐसा होने पर सरकार निरंकुश हो जायेगी और नागरिकों की स्वतंत्रता नष्ट हो जायेगी।

प्रश्न 7.
शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए क्यों जरूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे?
उत्तर:
I. शासकों की सीमा के निर्धारण की आवश्यकता: संविधान का एक प्रमुख कार्य यह भी है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की कोई सीमा तय करे। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। यदि संविधान द्वारा शासकों पर ऐसी सीमाएँ निर्धारित नहीं की जाती हैं तो सरकार निरंकुश होकर नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन कर सकती है और शासन की शक्ति पर एकाधिकार कर संविधान को ही नष्ट कर सकती है। इसलिए नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा हेतु संविधान सरकार की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण कर दिया जाता है जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती।

नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक सीमा कहलाती है। नागरिकों को सामान्यतः कुछ मौलिक स्वतंत्रताओं का अधिकार है, जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, अंतर्रात्मा की आवाज पर काम करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि । व्यवहार में इन अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का उल्लेख भी करता है जिसमें इन अधिकारों को वापिस लिया जा सकता है।

II. नागरिकों के अधिकारविहीन संविधान की संभावना-संसार का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ, तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं और वे नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधायें प्रदान की जाती हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे?

प्रश्न 8.
जब जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असंभव था, जो अमेरिकी सेना को पसंद न हो क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है ? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर:
संविधान वह लिखित दस्तावेज होता है जिसमें राज्य के विषय में कई प्रावधान होते हैं जो यह बताते हैं कि राज्य किन सिद्धान्तों का पालन करेगा। राज्य की सरकार किस विचारधारा पर आधारित नियमों एवं सिद्धान्तों के द्वारा शासन चलायेगी। जब किसी राज्य पर दूसरे राज्य का आधिपत्य हो जाता है तो उस राज्य के संविधान में शासकों की इच्छाओं के विपरीत कोई प्रावधान नहीं रखे जा सकते। अतः यह स्वाभाविक ही है कि जब जापान का संविधान बना उस समय जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था।

अतः यह स्वाभाविक ही है कि संविधान में कोई ऐसा प्रावधान नहीं रखा गया जो अमेरिकी सेना को पसन्द न हो। अतः जापान के उस संविधान में अमेरिकी शासकों के हितों का विशेष ध्यान रखा जाना स्वाभाविक था। भारत का संविधान बनाते समय कोई ऐसी बात नहीं थी। भारत में जब संविधान बना उस समय भारत एक स्वतंत्र तथा संप्रभु राष्ट्र था। भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से गठित संविधान सभा ने बनाया था। इसमें देश के राष्ट्रीय आंदोलन के लगभग सभी नेता सम्मिलित थे तथा समाज के सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व था।

इसलिए भारत के संविधान में प्रत्येक प्रावधान भारत के राष्ट्रीय हित तथा सार्वजनिक हित तथा लोकतंत्रात्मक को ध्यान में रखकर बनाया गया। संविधान का अंतिम प्रारूप उस समय की राष्ट्रीय व्यापक आम सहमति को व्यक्त करता है। स्पष्ट है कि भारतीय संविधान के निर्माण का अनुभव जापान के संविधान के निर्माण से अलग था। जापान का संविधान एक थोपा गया संविधान था, जबकि भारत का संविधान निर्वाचित जन प्रतिनिधियों द्वारा जनहित में निर्मित किया गया था।

प्रश्न 9.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा: ” संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बतायें कि मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करूँ?” अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?
उत्तर:
यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता।
1. भारतीय संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है। इसमें प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में एक संतुलन रखा गया है। भारतीय संविधान कठोरता और लचीलेपन दोनों का मिश्रण है। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को तो संसद साधारण बहुमत से संशोधित कर सकती है और कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए उसे 2/3 बहुमत की आवश्यकता होती है तथा कुछ विषयों की संशोधन प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है।

जिसमें संशोधन के लिए संसद के 2/3 बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का अनुमोदन आवश्यक है। इस संतुलन के कारण 50 वर्षों के बाद भी भारतीय संविधान बीते युग की बात नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा सकता है। इसमें दिसम्बर 2017 तक तक 101 संशोधन किये जा चुके हैं।

2. भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधान इस प्रकार के हैं जो कभी भी पुराने नहीं पड़ सकते। संविधान का मूल ढांचा सदैव ही एक जैसा रहेगा उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

3. इस संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया जिसमें भारत के सभी घटकों, सभी धर्मों, सभी विचारधाराओं तथा जातियों व वर्गों का प्रतिनिधित्व था। ये सभी प्रतिनिधि राष्ट्रीय आन्दोलन के लोकप्रिय नेता, अनुभवी तथा जनहित से प्रेरित थे। अतः संविधान को काफी विचार-विमर्श के बाद लोकतंत्र तथा जनहित की दृष्टि से निर्मित किया गया तथा भावी परिस्थितियों के अनुरूप ढलने के लिए विशेष प्रावधान में किये गये हैं। अतः भारतीय संविधान पुराना दस्तावेज न होकर एक जीवन्त दस्तावेज है जिसमें भारत की परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार ढलने की क्षमता है।

प्रश्न 10.
संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने अलग-अलग पक्ष लिए।
(क) हरबंस: भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ख) नेहा: संविधान में स्वतंत्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत वादा है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(ग) नाजिमा: संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया। क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं? यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बतायें।
उत्तर:
मैं, हरबंस के इस कथन से सहमत हूँ कि भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान करने में सफ़ल भारतीय संविधान में सभी वर्गों के कल्याण एवं उनकी आवश्यताओं को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने संविधान में लोकतंत्रीय शासन को स्थापित किया गया है। यथा

  1. संविधान में जहाँ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान कर प्रतिनिध्यात्मक शासन की स्थापना की गयी है।
  2. शासन की शक्तियों को समान स्तर पर सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है ताकि कोई भी अंग निरंकुश न बन सके। उदाहरण के लिए संसद ने जब संविधान संशोधन के माध्यम से निरंकुश शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश की तो न्यायपालिका ने ‘मूल ढांचे की अवधारणा’ के माध्यम से संसद के इस अतिक्रमण को रोका है। इस प्रकार संविधान में नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था के द्वारा शासन की शक्ति को मर्यादित किया गया है।
  3. संविधान में नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान कर नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा की गयी है।
  4. भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष और प्रजातंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है। यह भी बताया गया है कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करना है जिससे भारतीय नागरिक अपने को स्वतंत्र महसूस करें।
  5. यद्यपि भारतीय संविधान अभी अपने समानता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया है। इसका प्रमुख कारण संविधान की असफलता नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता के समय मिली यहाँ की विषम परिस्थितियाँ रही हैं, इन परिस्थितियों से जूझते हुए संविधान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ रहा है।

संविधान – क्यों और कैसे? JAC Class 11 Political Science Notes

(अ) हमें संविधान की क्या आवश्यकता है?

→ संविधान तालमेल बिठाता है- प्रत्येक समाज ( बड़े समूह) की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, उसके सदस्यों में अनेक भिन्नताएँ जैसे- धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी भिन्नताएँ होती हैं । लेकिन अपनी भिन्नताओं के बावजूद इसके सदस्यों को एक साथ रहना है तथा वे अनेक रूपों में परस्पर आश्रित। ऐसे समूह को शांतिपूर्वक साथ रहने के लिए कुछ बुनियादी नियमों के बारे में सहमत होना आवश्यक है।

अतः किसी भी समूह को सार्वजनिक रूप से मान्यता प्राप्त कुछ बुनियादी नियमों की आवश्यकता होती है जिसे समूह के सभी सदस्य जानते हों, ताकि आपस में एक न्यूनतम समन्वय बना रहे। जब इन नियमों को न्यायालय द्वारा लागू किया जाता है तो सभी लोग इन नियमों का पालन करते हैं। इस आवश्यकता की पूर्ति संविधान करता है। संविधान के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

→ संविधान का पहला काम यह है कि वह बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह उपलब्ध कराये जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे।

→ निर्णय निर्माण शक्ति की विशिष्टताएँ: संविधान कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धान्तों का समूह है जिसके आधार पर राज्य का निर्माण और शासन होता है। वह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है तथा यह तय करता है कि कानून कौन बनायेगा। वह सत्ता जिसे कानूनों को बनाने का अधिकार है, उसे इस अधिकार को देने का काम संविधान करता है। अतः संविधान सरकार निर्मात्री सत्ता है। दूसरे शब्दों में, संविधान का दूसरा काम यह स्पष्ट करना है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी? संविधान यह भी तय करता है कि सरकार कैसे निर्मित होगी।

→ सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ: संविधान का तीसरा काम यह है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। सरकार की शक्तियों को सीमित करने का सबसे सरल तरीका यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्पष्ट कर दिया जाये और कोई भी सरकार कभी भी उनका उल्लंघन न कर सके। व्यवहार में, इन अधिकारों को राष्ट्री य आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का भी उल्लेख करता है जिनमें इन अधिकारों को वापस लिया जा सकता है या सीमित किया जा सकता है।

→ समाज की आकांक्षाएँ और लक्ष्य: संविधान का चौथा कार्य यह है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जिससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करता है जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके और जिन्हें कानून की मदद से लागू भी किया जा सके। राज्य के नीति निर्देशक तत्व सरकार से लोगों की कुछ आकांक्षाएँ पूरी करने की अपेक्षा करते हैं।

→ राष्ट्र की बुनियादी पहचान: संविधान किसी समाज की बुनियादी पहचान होता है। प्रथमतः, इसके माध्यम से ही किसी समाज की एक सामूहिक इकाई के रूप में पहचान होती है। इसके तहत कोई समाज कुछ बुनियादी नियमों और सिद्धान्तों पर सहमत होकर अपनी मूलभूत राजनीतिक पहचान बनाता है। दूसरे, संवैधानिक नियम समाज को एक ऐसी विशाल ढांचा प्रदान करते हैं जिसके अन्तर्गत उसके सदस्य अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं, संजीव पास बुक्स लक्ष्य और स्वतन्त्रताओं का प्रयोग करते हैं।

अतः संविधान हमें नैतिक पहचान देता है। तीसरा, अनेक बुनियादी राजनैतिक और नैतिक नियम विश्व के सभी प्रकार के संविधानों में स्वीकार किये गये हैं। अधिकतर संविधान कुछ मूलभूत अधिकारों की रक्षा करते हैं; लोकतांत्रिक सरकारों का निर्माण करते हैं। चौथा, विभिन्न राष्ट्रों में देश की केन्द्रीय सरकार और विभिन्न क्षेत्रों के बीच के संबंधों को लेकर भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ होती हैं। यह सम्बन्ध उस देश की राष्ट्रीय पहचान बनाता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे?

→  (ब) संविधान की सत्ता: संविधान की सत्ता के सम्बन्ध निम्नलिखित प्रश्न उभरते हैं।

→ संविधान क्या है ? संविधान एक लिखित या अलिखित दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है जिसमें राज्य सम्बन्धी प्रावधान यह बताते हैं कि राज्य का गठन कैसे होगा और वह किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।

→ संविधान को प्रचलन में लाने का तरीका कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया, किसने संविधान बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी? यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाये जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है।

तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है, ऐसा संविधान प्रभावशाली होता है। विश्व के सर्वाधिक सफल संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया। अतः संविधान बनाने वालों का प्रभाव भी एक हद तक संविधान की सफलता की संभावना सुनिश्चित करता है।

→ संविधान के मौलिक प्रावधान: एक सफल संविधान की यह विशेषता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है। कोई भी संविधान खुद न्याय के आदर्श स्वरूप की स्थापना नहीं करता बल्कि उसे लोगों को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह बुनियादी न्याय को प्राप्त करने के लिए ढाँचा उपलब्ध कराता है। कोई संविधान अपने सभी नागरिकों की स्वतंत्रता और समानता की जितनी अधिक सुरक्षा करता है, उसकी सफलता की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।

→  (स) संस्थाओं की संतुलित रूपरेखा:
संविधान की रूपरेखा बनाने की एक कारगर विधि यह सुनिश्चित करना है कि किसी एक संस्था की सारी शक्तियों पर एकाधिकार न हो। ऐसा करने के लिए शक्ति को कई संस्थाओं में बांट दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि, में बांट देता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेंगी।

अवरोध और संतुलन के कुशल प्रयोग ने भारतीय संविधान की सफलता सुनिश्चित की है। संस्थाओं की रूपरेखा बनाने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसमें बाध्यकारी मूल्य, नियम और प्रक्रियाओं के साथ अपनी कार्यप्रणाली में लचीलापन का संतुलन होना चाहिए जिससे वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढाल सके। सफल संविधान प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में एक संतुलन रखते हैं।

→  (द) भारतीय संविधान कैसे बना?:
औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने संविधान को बनाया जिसे अविभाजित भारत ने ‘कैबिनेट मिशन’ की योजना के अनुसार भारत में निर्वाचित किया गया था। इसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त, 1947 को विभाजित भारत की संविधान सभा के रूप में इसकी पुनः बैठक हुई। विभाजन के बाद संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 2299 रह गई। इनमें से 26 नवम्बर, 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थे। इन्होंने ही संविधान को अंतिम रूप से पारित व इस पर हस्ताक्षर किये। इस प्रकार संविधान सभा ने 9 दिसम्बर, 1946 से संविधान निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जिसे 26 नवम्बर, 1949 को पूर्ण किया।

→ संविधान सभा का स्वरूप: भारत की संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1935 में स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ जिसमें 292 सदस्य ब्रिटिश प्रान्तों से और 93 सीटें देशी रियासतों से आवंटित होनी थीं। प्रत्येक प्रान्त की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों मुसलमान, सिक्ख और सामान्य की सीटों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया।

इस प्रकार हमारी संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे, पर उसे अधिकाधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने के प्रयास किये गये। सभी धर्म के सदस्यों को तथा अनुसूचित वर्ग के सदस्यों को उसमें स्थान दिया गया । संविधान सभा में यद्यपि 82% सीटें कांग्रेस दल से सम्बद्ध थीं, लेकिन कांग्रेस दल स्वयं भी विविधताओं से भरा था।

→ संविधान सभा के कामकाज की शैली: संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श किया। सदस्यों में हुए मतभेद वैध सैद्धान्तिक आधारों पर होते थे। संविधान सभा में लगभग उन सभी विषयों पर गहन चर्चा हुई जो आधुनिक राज्य की बुनियाद हैं। संविधान सभा में केवल एक प्रावधान सार्वभौमिक मताधिकार के अधिकार का प्रावधान – बिना किसी वाद-विवाद के ही पारित हुआ था।

→ संविधान सभा की कार्य विधि: संविधान सभा की सामान्य कार्यविधि में भी सार्वजनिक विवेक का महत्व स्पष्ट दिखाई देता था। विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियाँ थीं। प्राय: पं. नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और डॉ. अंबेडकर इन कमेटियों की अध्यक्षता करते थे जिनके विचार हर बात पर एक-दूसरे के समान नहीं थे, फिर भी सबने एक साथ मिलकर काम किया। प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गई। प्राय: प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिए गये।

→ राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत: संविधान सभा केवल उन सिद्धान्तों को मूर्त रूप और आकार दे रही थी जो उसने राष्ट्रीय आन्दोलन से विरासत में प्राप्त किये थे। इस सिद्धान्तों का सारांश नेहरू द्वास 1946 में प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में मिलता है। इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संप्रभुता को संस्थागत स्वरूप दिया गया था।

→ संस्थागत व्यवस्थाएँ: संविधान को प्रभावी बनाने का तीसरा कारक यह है कि सरकार की सभी संस्थाओं को संतुलित ढंग से व्यवस्थित किया जाये। मूल सिद्धान्त यह रखा गया कि सरकार लोकतांत्रिक रहे, और जन कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो। संविधान सभा ने शासन के तीनों अंगों के बीच समुचित सन्तुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन किया। संविधान सभा ने संसदीय शासन व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया।

शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने में हमारे संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से सीखने में कोई संकोच नहीं किया। अतः उन्होंने विभिन्न देशों से अनेक प्रावधानों को लिया, संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारत की समस्याओं और परिस्थितियों के अनुकूल ढालकर अपना बना लिया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ 

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. भारत कब स्वतन्त्र हुआ………………………..
(क) सन् 1945 की 14 अगस्त को।
(ख) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को।
(ग) सन् 1946 के 15 अगस्त की मध्यरात्रि को।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को।

2. विभाजन के समय भारत में कुल रजवाड़ों की संख्या कितनी थी?
(क) 565
(ख) 570
(ग) 580
(घ) 562
उत्तर:
(क) 565

3. द्विराष्ट्र सिद्धान्त की बात जिस राजनीतिक दल ने सर्वप्रथम की थी, वह था।
(क) भारतीय जनता पार्टी
(ख) मुस्लिम लीग
(ग) कांग्रेस
(घ) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर:
(ख) मुस्लिम लीग

4. राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई?
(क) सन् 1953
(ख) सन् 1954
(ग) सन् 1955
(घ) सन् 1956
उत्तर:
(क) सन् 1953

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5. देशी रियासतों के एकीकरण में किस भारतीय नेता की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) सरदार पटेल
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(ग) सरदार पटेल

6. भारत का संविधान कब लागू किया गया
(क) 15 अगस्त, 1947
(ख) 26 जनवरी, 1950
(ग) 14 अगस्त, 1947
(घ) 30 जनवरी, 1947
उत्तर:
(ख) 26 जनवरी, 1950

7. खान अब्दुल गफ्फार खान को किस नाम से जाना जाता है
(क) महात्मा गाँधी
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना
(ग) सीमान्त गाँधी
(घ) मौलाना
उत्तर:
(ग) सीमान्त गाँधी

8. बांग्लादेश का निर्माण किस वर्ष हुआ
(क) 1971
(ख) 1975
(ग) 1977
(घ) 1978
उत्तर:
(क) 1971

9. पूर्वी पाकिस्तान को वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है
(क) बांग्लादेश
(ख) म्यांमार
(ग) भूटान
(घ) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(क) बांग्लादेश

10. प्रसिद्ध फिल्म ‘गर्म हवा’ जिस वर्ष बनी, वह था-
(क)1971
(ख) 1965
(ग) 1947
(घ) 1973
उत्तर:
(घ) 1973

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11. 1960 में विभाजित होने से पहले बॉम्बे राज्य में कौनसी दो भाषाएँ बोली जाती थीं?
(क) पंजाबी और मराठी
(ख) गुजराती और पंजाबी
(ग) मराठी और पंजाबी
(घ) मराठी और गुजराती
उत्तर:
(घ) मराठी और गुजराती

12. ‘नोआखली’ अब जिस देश में है, वह है
(क) बांग्लादेश
(ख) पाकिस्तान
(ग) भारत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) बांग्लादेश

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. स्वतंत्र भारत की जनता को जवाहरलाल नेहरू ने एक विशेष सत्र को संबोधित किया। उनका यह प्रसिद्ध भाषण …………………… के नाम से जाना गया।
उत्तर:
ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी

2. सन् ………………….. का साल अभूतपूर्व हिंसा और विस्थापन की त्रासदी का साल था।
उत्तर:
1947

3. संविधान में ………………………… अधिकारों की गारंटी दी गई है और हर नागरिक को ………………. का अधिकार दिया गया है।
उत्तर:
मौलिक, मतदान

4. भारत ने संसदीय शासन पर आधारित ……………………………लोकतंत्र को अपनाया।
उत्तर:
प्रतिनिधित्वमूलक

5.. रजवाड़ों के शासक ………………… पर हस्ताक्षर करके भारतीय संघ में शामिल होते थे।
उत्तर:
इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन

6. स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ………………………थे।
उत्तर:
वल्लभभाई पटेल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1947 में भारत के विभाजन के पीछे कौन – सा सिद्धान्त था?
उत्तर:
द्वि- राष्ट्र सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
भारत में राष्ट्र निर्माण के मार्ग की किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ हैं।

  1. लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कायम रखना
  2. राष्ट्र का विकास करना ताकि समस्त समाज का भला हो।

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण के लिए किन तत्वों का होना अनिवार्य है?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के लिए भाषायी एकता, सामान्य संस्कृति तथा भौगोलिक एकता जैसे तत्वों का होना आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
मेघालय का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
मेघालय राज्य का निर्माण सन् 1972 में किया गया।.

प्रश्न 5.
भारत में राष्ट्र-निर्माण के मार्ग में बाधक तत्त्व कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
भारत में राष्ट्र-निर्माण के मार्ग में बाधक तत्त्वों में निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 6.
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे।

प्रश्न 7.
देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित दो राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित दो राज्य थे— पंजाब और बंगाल।

प्रश्न 8.
भारत विभाजन के समय धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर विभाजित हुए दो प्रान्तों के नाम बताइये।
अथवा
भारत के विभाजन में किन दो प्रान्तों का भी बँटवारा किया गया ?
उत्तर:

  1. पंजाब
  2. बंगाल- दोनों प्रान्तों का भी बँटवारा भारत के विभाजन के समय किया गया।

प्रश्न 9.
आजादी के तुरंत बाद सबसे प्रमुख चुनौती क्या थी?
उत्तर:
राष्ट्र – निर्माण।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले गुजरात और हरियाणा किन मूल राज्यों के अंग थे?
उत्तर:
गुजरात बम्बई राज्य का भाग था जबकि हरियाणा पंजाब का अंग था।

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प्रश्न 11.
उन मूल राज्यों के नाम लिखिये जिनसे निम्नलिखित राज्यों को पृथक् किया गया।
(अ) मेघालय
(ब) गुजरात।
उत्तर:
(अ) असम राज्य
(ब) बम्बई प्रेसीडेंसी।

प्रश्न 12.
सन् 2000 में जिन तीन नए राज्यों का निर्माण किया गया, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सन् 2000 में निम्न तीन राज्य बने:  झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)।

प्रश्न 13.
विभाजन के पश्चात् कौन-कौनसे राज्यों ने भारत और पाकिस्तान दोनों में शामिल होने से मना कर दिया?
उत्तर:
विभाजन के पश्चात् हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों ने भारत तथा पाकिस्तान दोनों में से किसी भी राज्य में शामिल होने से मना कर दिया।

प्रश्न 14.
पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के उस नेता का नाम लिखिये जो द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त का विरोधी था।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खां।

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प्रश्न 15.
भारत के प्रथम गृहमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

प्रश्न 16.
ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने भारत विभाजन की घोषणा कब की?
उत्तर:
ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने 3 जून, 1947 को विभाजन योजना की घोषणा की।

प्रश्न 17.
रियासतों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रियासतों पर उन राजाओं का शासन था जिन्होंने अंग्रेजों के वर्चस्व के तहत अपने आंतरिक मामलों पर नियंत्रण का कोई रूप नियोजित किया था।

प्रश्न 18.
भारत के किस राज्य में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर सर्वप्रथम चुनाव हुए थे?
उत्तर:
मणिपुर में।

प्रश्न 19.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब लागू किया गया ?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम सन् 1956 में लागू किया गया।

प्रश्न 20.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर कितने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई।

प्रश्न 21.
भाषा के आधार पर सर्वप्रथम कब और किस राज्य का निर्माण किया गया?
उत्तर:
दिसम्बर, 1952 में सर्वप्रथम भाषा के आधार पर आंध्रप्रदेश राज्य का निर्माण हुआ।

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प्रश्न 22.
स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को संविधान सभा में जो भाषण दिया, वह किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का वह भाषण ‘भाग्यवधु से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 23.
‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ प्रसिद्ध भाषण किस प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया?
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के द्वारा।

प्रश्न 24.
राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट का आधार क्या था?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट भाषाई पहलुओं को प्रतिबिंबित करने के लिए भाषा के आधार पर राज्यों की सीमाओं के वितरण पर आधारित थी।

प्रश्न 25.
सन् 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन करके कौन-कौनसे दो राज्यों का निर्माण किया गया?
उत्तर:
सन् 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन करके महाराष्ट्र और गुजरात नामक दो राज्यों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 26.
राज्य पुनर्गठन आयोग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिफारिश क्या है?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिफारिश भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन है।

प्रश्न 27.
किन चार देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय अन्यों की तुलना में अधिक कठिन साबित हुआ?
उत्तर:

  1. हैदराबाद
  2. जम्मू एवं कश्मीर
  3. जूनागढ़
  4. मणिपुर।

प्रश्न 28.
अलगाववाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब एक समुदाय या सम्प्रदाय संकीर्ण भावना से ग्रस्त होकर अलग एवं स्वतन्त्र राज्य बनाने की मांग करे तो उसे अलगाववाद कहा जाता है

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प्रश्न 29.
राज्य पुनर्गठन से क्या अभिप्राय है? यह कब किया गया?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन का अर्थ है कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुनः गठन करना। भारत में राज्यों का पुनर्गठन 1956 में किया गया।

प्रश्न 30.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा किन दो चुनौतियों का सामना किया जा रहा था?
उत्तर:

  1. शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या।
  2. राज्यों के पुनर्गठन की समस्या।

प्रश्न 31. भारत में वर्तमान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की स्थिति बताइये।
उत्तर:
भारत में वर्तमान में 28 राज्य और 9 केन्द्रशासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 32.
राज्यों के पुनर्गठन के लिए भाषा आधार होगा। यह प्रस्ताव कांग्रेस के किस सत्र में माना गया?
उत्तर:
सन् 1920 में कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन।

प्रश्न 33.
मद्रास प्रांत के तेलुगुवासी इलाकों को अलग करके नया राज्य बनाने की माँग किस आंदोलन द्वारा की गयी थी?
उत्तर:
विशाल आंध्र आंदोलन|

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प्रश्न 34.
महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन किस सन् में हुआ?
उत्तर:
महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन सन् 1960 में हुआ।

प्रश्न 35.
मुस्लिम लीग का गठन क्यों हुआ था?
उत्तर:
मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रूप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। प्रश्न 36, भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के समय वित्तीय संपदा के साथ-साथ किन चीजों का बँटवारा हुआ ? उत्तर-वित्तीय संपदा के साथ-साथ टेबल, कुर्सी, टाईपराइटर और पुलिस के वाद्ययंत्रों तक का बँटवारा हुआ था।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने मुख्य चुनौतियाँ कौन-कौनसी थीं?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने निम्नलिखित मुख्य चुनौतियाँ थीं

  1. भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखना।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करना।
  3. सभी वर्गों का समान विकास करना।

प्रश्न 2.
“भारत को किसी अन्य देश के बजाय बहुत कठिन परिस्थितियों में स्वतंत्रता मिली।” कथन को सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
भारत को स्वतंत्रता बहुत कठिन परिस्थितियों में मिली:

  1. भारत की स्वतंत्रता भारत के बँटवारे के साथ आई।
  2. वर्ष 1947 अभूतपूर्व हिंसा और आघात का वर्ष बन गया।
  3. फिर भी हमारे नेताओं ने क्षेत्रीय विविधताओं को भी समायोजित करके इन सभी चुनौतियों का सराहनीय तरीके से सामना किया।

प्रश्न 3.
क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि के उस छोटे से टुकड़े को रहने वाले लोगों में एकता की भावना है। यह सामाजिक जीवन के कारण उत्पन्न होती है। क्षेत्र कहा जाता है जो किसी बड़े संगठित क्षेत्र का एक भाग है और जिसमें भावना सामान्य भाषा, सामान्य धर्म, भौगोलिक समीपता, आर्थिक और

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प्रश्न 4.
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का क्या आधार तय किया गया था?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया था कि जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे क्षेत्र पाकिस्तान के भू-भाग होंगे तथा शेष भाग ‘भारत’ कहलायेगा।

प्रश्न 5.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् रजवाड़ों के विलय का क्या आधार निश्चित किया गया था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद रजवाड़ों को भी कानूनी रूप से स्वतंत्र होना था। ब्रिटिश शासन ने यह दृष्टिकोण दिया कि रजवाड़े अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या वे चाहें तो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था, न कि वहाँ की जनता को।

प्रश्न 6.
भारत में हरियाणा राज्य का पुनर्गठन कब हुआ ? इसकी प्रमुख समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
1 नवम्बर, 1966 को पंजाब से हिन्दी भाषी क्षेत्र को पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों का निर्माण हुआ। पंजाब और हरियाणा में भाषा के आधार पर अब भी विवाद बना हुआ है। पंजाब हरियाणा के पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब को हस्तान्तरित करने की माँग करता है, जबकि हरियाणा पंजाब के हिन्दी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा को देने की माँग करता है ।

प्रश्न 7.
पोट्टी श्रीरामुलु कौन थे?
उत्तर:
पोट्टी श्रीरामुलु गाँधीवादी विचारों से प्रभावित कार्यकर्ता थे। इन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए सरकारी पद को त्याग दिया। 19 अक्टूबर, 1952 को वह आन्ध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य निर्माण की माँग को लेकर अनशन पर बैठे। 15 दिसम्बर, 1952 को अनशन के दौरान ही वह मृत्यु को प्राप्त हो गये।

प्रश्न 8.
संक्षेप में देश विभाजन से हुई जन-हानि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक अनुमान के अनुसार विभाजन के फलस्वरूप 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा। विभाजन की हिंसा में लगभग पाँच से दस लाख लोगों ने अपनी जान गँवाई । अनेक लोगों के अंग-भंग कर दिए गए। उनके बच्चे अनाथ हो गये।

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय आंदोलन के नेता एक पंथ निरपेक्ष राज्य के पक्षधर क्यों थे?
उत्तर:
राष्ट्रीय आंदोलन के नेता एक पंथनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर थे क्योंकि वे जानते थे कि बहुधर्मावलम्बी देश भारत में किसी धर्म विशेष को संरक्षण देना भारत की एकता के लिए बाधक बनेगा तथा इससे विविध धर्मावलम्बियों के मूल अधिकारों का हनन होगा।

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प्रश्न 10.
अमृता प्रीतम कौन थी?
उत्तर:
अमृता प्रीतम पंजाबी भाषा की प्रमुख कवयित्री और कथाकार, साहित्य उपलब्धियों के लिए साहित्य अकादमी, पद्मश्री और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महिला थी। राष्ट्र विभाजन के बाद वह दिल्ली में ही स्थायी रूप से बस गई। उन्होंने जीवन के अन्तिम समय पंजाब की साहित्यिक पत्रिका ‘नागमणि’ का सम्पादन किया।

प्रश्न 11.
फैज अहमद फैज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध मानवतावादी तथा क्रांतिकारी कवि फैज अहमद फैज़ का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में ) हुआ। वह विभाजन के बाद पाकिस्तान में ही रहे। वामपंथी रुझान के कारण उनका पाकिस्तानी शासन से हमेशा टकराव बना रहा। उन्होंने लम्बा समय कारावास में बिताया । नक्से फिरयादी, दस्त-ए-सबा तथा जिंदानामा उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं।

प्रश्न 12.
क्षेत्रीय संस्कृति तथा क्षेत्रीय असन्तुलन के आधार पर किन राज्यों का निर्माण किया गया है?
उत्तर:
अनेक उपक्षेत्रों ने अलग क्षेत्रीय संस्कृति अथवा विकास के मामले में क्षेत्रीय असन्तुलन का मुद्दा उठाकर अलग राज्य बनाने की माँग की। ऐसे तीन राज्य झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल ( अब उत्तराखंड) सन् 2000 में बने तथा तेलंगाना 2014 में बना।

प्रश्न 13.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:
1. द्वि- राष्ट्र सिद्धान्त
2. मुस्लिम लीग।
उत्तर:

  1. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त: द्विराष्ट्र सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नामक दो कौमों का है।
  2. मुस्लिम लीग: स्वतंत्रता से पूर्व मुस्लिम लीग मुसलमानों का राजनैतिक दल था। विभाजन से पूर्व इसने द्विराष्ट्र सिद्धान्त के तहत मुसलमानों के लिए पाकिस्तान की माँग की और अन्ततः भारत का विभाजन हुआ।

प्रश्न 14.
भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य कैसे बना?
उत्तर:
यद्यपि भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद 1951 में भारत की कुल आबादी में 12 प्रतिशत मुसलमान थे। इसके अतिरिक्त अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बी भी थे। भारत सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के पक्षधर थे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे जिस धर्म को माने, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर ही होना चाहिए। धर्म को नागरिकता की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके इस धर्मनिरपेक्ष आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। इस प्रकार भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना।

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प्रश्न 15.
विभाजन के समय पाकिस्तान को दो भागों-पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में क्यों बांटा गया?
उत्तर:
भारत के विभाजन का यह आधार तय किया गया कि ब्रिटिश इण्डिया के जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे। अविभाजित भारत में ऐसे दो इलाके थे। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में। इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में ये दो इलाके शामिल होंगे। ये पूर्वी पाकिस्तान तथा पश्चिमी पाकिस्तान कहलाये। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दो इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाये। इसलिए पाकिस्तान को दो भागों में बाँटा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय संघ में जूनागढ़ को शामिल करने की घटना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक रियासत थी। जूनागढ़ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। जबकि भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था। जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ के शासक के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी अन्ततः दिसम्बर, 1947 में करवाये गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 99 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।

प्रश्न 17.
हैदराबाद को भारत में किस प्रकार सम्मिलित किया?
उत्तर:
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय:
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के पश्चात् हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया परन्तु हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण तथा यहाँ की जनसंख्या का हिन्दू बहुसंख्यक होने के कारण भारत में विलय आवश्यक था। तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल को आशंका थी कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। सरदार पटेल तथा लार्ड माउंटबेटन के निजाम को समझाने के प्रयासों की विफलता के बाद भारत ने सैनिक कार्यवाही करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

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प्रश्न 18.
‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस रात संविधान सभा के एक विशेष सत्र को संबोधित किया था। उनका यह प्रसिद्ध भाषण ‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ के नाम से जाना गया।

प्रश्न 19.
भारत में देसी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में देशी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। उनके अथक प्रयास के फलस्वरूप सभी रजवाड़ों का भारत में विलय तो हुआ और साथ ही हैदराबाद के निजाम तथा जूनागढ़ के नवाब के साथ सरदार पटेल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किन्तु उन्होंने उन दिक्कतों के बारे में सोचे बिना इन दोनों रियासतों को भारत का अभिन्न अंग बना दिया।

प्रश्न 20.
देशी राज्यों (रजवाड़ों) के भारत संघ में विलय के संदर्भ में तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
देशी राज्यों के भारत संघ में विलय सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

  1. अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे।
  2. इस संदर्भ में भारत सरकार का रुख लचीला था और वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी, जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ। भारत सरकार ने विभिन्नताओं को सम्मान देने और
  3. विभिन्न क्षेत्रों की माँगों को संतुष्ट करने के लिये यह रुख अपनाया था।
  4. विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी। ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखंडता एकता का प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो उठा था।

प्रश्न 21.
सीमान्त गाँधी कौन थे? उनके द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के बारे में दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमान्त गाँधी कहा जाता है। वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (पेशावर के मूलतः निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वे कांग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के समर्थक थे। सच्चे गाँधीवादी, अहिंसा व शान्ति के समर्थक होने के कारण उनको ‘सीमान्त गाँधी’ कहा जाता था। वे द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के एकदम विरोधी थे। संयोग से उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

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प्रश्न 22.
रजवाड़ों के संदर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रजवाड़ों का सहमति – पत्र – आजादी के तुरन्त पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के समाप्त होने के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से आजाद हो जाएँगे और उसके राजा या शासक अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकते हैं या अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रख सकते। शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के सहमति – पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। इस सहमति – पत्र को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमते हैं।

प्रश्न 23.
संक्षेप में राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्माण की पृष्ठभूमि, कार्य तथा इससे जुड़े एक्ट का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग:
भारत में आंध्रप्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों की भाषायी आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामलों पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियमं पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए।

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प्रश्न 24.
मोहम्मद अली जिन्ना कौन थे? उनके बारे में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मोहम्मद अली जिन्ना:
मोहम्मद अली जिन्ना आधुनिक पाकिस्तान के जनक थे। वे स्वराज्य संघर्ष के कुछ प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी में रहे। बाद में वे मुस्लिम लीग में शामिल हो गये। वे देश विभाजन के साथ-साथ अपने जीवन के सबसे बड़े राजनीतिक उद्देश्य पाकिस्तान निर्माण की प्राप्ति को समीप देखकर साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने के पक्ष में बातें भी करने लगे। जिन्ना ने अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक समुदायों में पारस्परिक एकता के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। पाकिस्तान की संविधान सभा में अध्यक्षीय भाषण में आपने कहा कि पाकिस्तान में आप अपने मंदिर या मस्जिद में जाने या किसी भी अन्य पूजास्थल पर जाने के लिये आजाद हैं। आपके धर्म, आपकी जाति या विश्वास से राज्य का कुछ लेना-देना नहीं है।

प्रश्न 25.
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से उपजी समस्या को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की समस्या – भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से कई राज्यों के लोग सन्तुष्ट नहीं थे, क्योंकि कई राज्यों में रहते लोग, अपनी भाषा के आधार पर अलग राज्य की स्थापना चाहते थे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गम्भीर आंदोलन आरम्भ कर दिए और सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े। उदाहरणार्थ- 1960 में बम्बई राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में, 1966 में पंजाब राज्य को हरियाणा और पंजाब दो राज्यों में बांटना पड़ा था।

इसी प्रकार 1963 में नागालैण्ड और 1972 में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा राज्य की स्थापना करनी पड़ी तथा 1987 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम राज्य वजूद में आए। 2014 में तेलंगाना राज्य वजूद में आया। वर्तमान समय में विदर्भ, मैथली, बोडो, डोगरालैण्ड, गोरखा व कच्छ आदि राज्यों की माँग भाषा के आधार पर ही की जा रही है।

प्रश्न 26.
भारतीय राजनीति पर भाषा के प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति पर भाषा के प्रभाव – भाषा ने राजनीति को अग्र प्रकार से प्रभावित किया

  1. राष्ट्रीय एकता को खतरा: भारत को बहुभाषी होने के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। यद्यपि हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा माना गया है लेकिन दक्षिण के राज्यों तथा उत्तर के राज्यों में मुख्य विवाद का कारण भाषा ही है।
  2. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन: राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के आधार पर भारत को 14 राज्यों तथा 6 संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया। लेकिन इसके बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ और भाषा के आधार पर राज्यों की माँग की समस्या वर्तमान में भी बनी हुई है।
  3. सीमा विवाद: भाषा के कारण अनेक राज्यों में सीमा विवाद उत्पन्न हुए हैं और आज भी अनेक राज्यों के बीच यह विवाद चल रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 27.
स्वतंत्र भारत को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान किन तीन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
स्वतंत्र भारत को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान निम्न तीन चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

  1. राष्ट्र निर्माण की चुनौती:
    स्वतंत्रता के समय भारत अलग-अलग राज्यों में विभाजित था। इसलिए पहली चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की थी जिसमें भारतीय समाज में सारी विविधताओं के लिए जगह हो। इस कार्य को पूरा करने का काम सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया। इस कार्य को अलग-अलग चरणों में पूरा करने के लिए उन्होंने राजनीति तथा कूटनीति दोनों का प्रयोग किया।
  2. लोकतंत्र कायम करना:
    भारत ने सरकार के संसदीय स्वरूप के आधार पर प्रतिनिधि लोकतंत्र का गठन किया और राष्ट्र में इन लोकतांत्रिक प्रथाओं को विकसित करना एक बड़ी चुनौती थी।
  3. समाज का विकास और कल्याण सुनिश्चित करना:
    भारतीय राजनीति ने राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत लोक-कल्याण के उन लक्ष्यों को स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीति को जरूर पूरा करना चाहिए ।

प्रश्न 28.
“कल हम अंग्रेजी की गुलामी से आजाद हो जायेंगे लेकिन आधी रात को भारत का बँटवारा होगा इसलिए कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन होगा और गम का भी।” गाँधीजी के उपर्युक्त कथन के अनुसार कल का दिन हमारे लिए क्यों खुशी एवं गम दोनों का होगा? उत्तर- गाँधीजी के अनुसार यह दिन खुशी एवं गम का इसलिए होगा क्योंकि 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को लगभग 12 बजे से भारत में लम्बे समय से चला आ रहा ब्रिटिश राज का अन्त हो जायेगा तथा लोग स्वतन्त्रता के वातावरण में जीवन व्यतीत करेंगे। इसलिए 15 अगस्त, 1947 का दिन सभी भारतवासियों के लिए खुशी का दिन होगा । लेकिन उसी दिन गम को भी सहन करना होगा क्योंकि देश का दो स्वतन्त्र राष्ट्रों भारत एवं पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो जायेगा।

प्रश्न 29.
हमें बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की इन जटिलताओं को दूर करने की भावना चाहिए। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदायों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं। अगर मुसलमान पठान, पंजाबी, शिया और सुन्नी आदि समुदायों में बँटे हैं तो हिन्दू भी ब्राह्मण, वैष्णव, खत्री तथा बंगाली, मद्रासी आदि समुदायों। पाकिस्तान में आप आजाद हैं। जिन्ना साहब के उपर्युक्त कथन को समझाइये।
उत्तर:
पाकिस्तान की मुस्लिम लीग की माँग जब लगभग समीप दिखाई दी तो जिन्ना साहब ने पंथ निरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव उत्पन्न करने के लिए अपने भाव व्यक्त किये। उनके विचारानुसार पाकिस्तान में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की जटिलताओं को दूर करने की भावना से काम करना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदायों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं।

जैसे कि अगर हम पाकिस्तान के बहुसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों की बात करते हैं तो हमें मानना पड़ेगा कि उनमें कुछ लोग पठान हैं तो कुछ लोग पंजाबी, कुछ लोग शिया तो कुछ सुन्नी इत्यादि भी हैं अर्थात् बहुसंख्यक भी ‘स्थल’ पर विभाजित हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दू समाज यदि अल्पसंख्यक हैं तो वे भी कई जातियों या वर्णों में विभाजित हैं, जैसे—ब्राह्मण, वैश्य, खत्री, बंगाली, मद्रासी आदि। पाकिस्तान में सभी लोग स्वतन्त्र हैं। वे अपने या अन्य पूजा स्थलों पर जाने के लिए स्वतन्त्र हैं।

प्रश्न 30.
महात्मा गाँधी की शहादत (बलिदान) से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा गाँधी की शहादत (बलिदान) से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. महात्मा गाँधी की नीति एवं कार्यों से तत्कालीन समय के अतिवादी हिन्दू एवं मुसलमान दोनों अप्रसन्न थे। दोनों समुदायों के अतिवादी गाँधीजी पर दोष मंढ रहे थे।
  2. हिन्दू-मुस्लिम एकता के अनेक अडिग प्रयासों से अतिवादी हिन्दू महात्मा गाँधी से इतने नाराज थे कि उन्होंने अनेक बार गाँधीजी को जान से मारने का प्रयास किया।
  3. गाँधीजी ने प्रार्थना सभा में हर किसी से मिलना जारी रखा। आखिरकार 30 जनवरी, 1948 के दिन एक हिन्दू अतिवादी नाथूराम विनायक गोडसे ने गोली मारकर गाँधीजी की हत्या कर दी।
  4. गाँधीजी की मौत का देश के साम्प्रदायिक माहौल पर जादुई असर हुआ । विभाजन से जुड़ा क्रोध और हिंसा अचानक मंद पड़ गये। भारत सरकार ने साम्प्रदायिक संगठनों की मुश्कें कस दीं और साम्प्रदायिक राजनीति का जोश लोगों में घटने लगा।

प्रश्न 31.
“हम भारत के इतिहास के एक यादगार मुकाम पर खड़े हैं। साथ मिलकर चलें तो देश को हम महानता की नयी बुलंदियों तक पहुँचा सकते हैं, जबकि एकता के अभाव में हम अप्रत्याशित विपदाओं के घेरे में होंगे। मैं उम्मीद करता हूँ कि भारत की रियासतें इस बात को पूरी तरह समझेंगी कि अगर हमने सहयोग नहीं किया और सर्व-सामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो अराजकता और अव्यवस्था हममें से सबको चाहे कोई छोटा हो या बड़ा घेर लेंगी और हमें बर्बादी की तरफ ले जाएँगी सरदार पटेल के उपर्युक्त कथन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन में सरदार पटेल ने देश की अनेकानेक रियासतों के शासकों को सम्बोधित कर एक पत्र के माध्यम से (1947) बताया कि हम सभी देशवासी अपने भारत के इतिहास के स्मरणीय क्षण पर खड़े हैं। यदि हम सभी देशवासी साथ-साथ मिलकर चलें तो निःसन्देह देश को महानता की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं। बकि एकता के अभाव में हम अप्रत्याशित संकट से घिर जायेंगे। सरदार पटेल ने आशा प्रकट की कि देशी रियासतें इस बात को पूरी तरह समझेंगी कि यदि हमने परस्पर सहयोग नहीं किया और जनसामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो देश में अराजकता और अव्यवस्था हम सभी को घेर लेंगी और हमें बर्बादी की ओर ले जायेंगी। एकता में बल है, पारस्परिक फूट में बर्बादी है।

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प्रश्न 32.
भारत विभाजन से संबंधित किन्हीं दो परिणामों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
14-15 अगस्त, 1947 को भारत का विभाजन हुआ तथा भारत व पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में आए। इस विभाजन के दो परिणाम निम्नलिखित हैं।

  1. आबादी का स्थानान्तरण: विभाजन से बड़े पैमाने पर एक जगह की अल्पसंख्यक आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था।
  2. हिंसक अलगाववाद: विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बंटवारा नहीं हुआ बल्कि दो समुदायों, जो अब तक पड़ौसियों की तरह रहते थे, में हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा।

प्रश्न 33.
भारत की स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष आई किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष आई दो प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं।

  1. राष्ट्रीय एकता की चुनौती: स्वतंत्र भारत के सामने तात्कालिक चुनौती विविधता से भरे भारत में एकता की स्थापना करती थी। इस समय भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती प्रमुख थी क्योंकि अनेक रियासतें अपने को स्वतंत्र रखना चाह रही थीं तो अनेक पाकिस्तान में मिलने की इच्छा बता रही थीं।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की चुनौती: स्वतंत्र भारत के समक्ष दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की थी। यद्यपि भारतीय संविधान में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की थी, नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारण्टी दी गई थी, वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया था, तथापि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार को प्रचलन में लाने की चुनौती बनी हुई थी।

प्रश्न 34.
जवाहर लाल नेहरू ने भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों के संदर्भ में 15 अक्टूबर, 1947 को मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में क्या लिखा था?
उत्तर:
मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में नेहरूजी ने लिखा था कि- “भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यदि वे चाहें तब भी यहाँ से कहीं और नहीं जा सकते। यह एक बुनियादी तथ्य है और इस पर कोई अँगुली नहीं उठाई जा सकती। पाकिस्तान चाहे जितना उकसावा दे या वहाँ के गैर-मुस्लिमों को अपमान और भय के चाहे जितने भी घूँट पीने पड़ें, हमें अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और शालीनता के साथ पेश आना है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हमें उन्हें नागरिक के अधिकार देने होंगे और उनकी रक्षा करनी होगी। अगर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं होते तो यह एक नासूर बन जाएगा जो पूरी राज व्यवस्था में जहर फैलाएगा और शायद उसको तबाह भी कर दे।”

प्रश्न 35.
पाकिस्तान के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की माँग क्यों मान ली?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ की बात कही और इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ इन दो कौमों का देश था और इसीलिए मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की। काँग्रेस ने इस सिद्धांत का विरोध किया। सन् 1940 के दशक में राजनीतिक मोर्चे पर कई बदलाव आए, काँग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा तथा ब्रिटिश- शासन की भूमिका जैसी कई बातों का जोर रहा । फलस्वरूप पाकिस्तान की माँग मान ली गई ।

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प्रश्न 36.
विभाजन के परिणाम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सन् 1947 के विभाजन पर एक जगह की आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। यह स्थानांतरण मानव-इतिहास के अब तक सबसे बड़े स्थानांतरणों में से एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मारा। लोग अपना घर – बार छोड़ने पर मजबूर हुए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग गए और उन्होंने शरणार्थी शिविर में पनाह ली। सीमा के दोनों ओर हजारों की तादाद में औरतों को अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई मामलों में यह भी हुआ कि खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला । बहुत से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गए। लाखों की संख्या में लोग बेघर हो गए।

प्रश्न 37.
भारत के नेताओं ने नागरिकता की कसौटी धर्म को नहीं बनाया । इस कथन को सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रूप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। इसी प्रकार कुछ भारतीय संगठनों ने भी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिन्दुओं को लामबंद करने की कोशिश की। लेकिन भारत की कौमी सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के पक्षधर थे चाहे नागरिक किसी भी धर्म का हो। वे भारत को ऐसे राष्ट्र के रूप में नहीं देखना चाहते थे जहाँ किसी एक धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्मावलंबियों के ऊपर वरीयता दी जाए अथवा किसी एक धर्म के विश्वासियों के मुकाबले बाकियों को हीन समझा जाता हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे किसी भी धर्म का हो, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर होना चाहिए। हमारे नेतागण धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श के हिमायती थे।

प्रश्न 38.
अंग्रेजी – राज का नजरिया यह था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। यह अपने आप में गंभीर समस्या थी। उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।
उत्तर:
आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश-प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से आजाद हो जाएँगे। अंग्रेजी राज के अनुसार रजवाड़े अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिल सकते हैं या स्वतंत्र रह सकते हैं । यह अपने आप में गंभीर समस्या थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था। उदाहरण के लिए – त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की। अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने भी ऐसी ही घोषणा की। कुछ शासक जैसे कि भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे । अतः रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गई कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान कई छोटे- छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला था।

प्रश्न 39.
देशी रजवाड़ों की चर्चा से कौन-सी तीन बातें सामने आती हैं?
उत्तर:
देशी रजवाड़ों की चर्चा से निम्न तीन बातें सामने आती हैं।

  1. अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे संजीव पास बुक्स
  2. भारत सरकार का रुख लचीला था और वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ।
  3. विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखंडता एकता का सवाल सबसे अहम था।

प्रश्न 40.
यदि आजाद भारत को प्रांतों में बाँटने का आधार भाषा को बनाया गया तो अव्यवस्था फैल सकती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आजादी और बँटवारे के बाद स्थितियाँ बदलीं भारत के नेताओं को यह आभास हो गया था कि अगर भाषा के आधार पर प्रांत बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है तथा देश के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है। भाषावार राज्यों के गठन से दूसरी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से ध्यान भटक सकता।

प्रश्न 41.
आंध्रप्रदेश राज्य का गठन क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
भारत के आज़ाद होने पर भारतीय नेताओं ने भाषा के आधार पर प्रांत बनाने का फैसला स्थगित कर दिया। केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दी। पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश शामिल थे। विशाल आंध्र आंदोलन ने माँग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगुवासी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्रप्रदेश बनाया जाए। इस आंदोलन को लोगों का सहयोग मिला।

कांग्रेस के नेता और दिग्गज गाँधीवादी, पोट्टी श्रीरामुलु, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। फलस्वरूप आंध्रप्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुईं। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। मद्रास में अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।

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प्रश्न 42.
भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक समय हो गया। अर्थात् हम यह कह सकते हैं क़ि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। क्योंकि राजनीति और सत्ता में भागीदारी का रास्ता अब एक छोटे-से अंग्रेजी भाषी अभिजात तबके के लिए ही नहीं बल्कि बाकियों के लिए भी खुल चुका था। भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत इससे देश नहीं टूटा। इसके विपरीत देश की एकता . और ज्यादा मजबूत हुई। सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धांत को स्वीकृति मिली।

प्रश्न 43.
भारत देश के लोकतांत्रिक होने का वृहत्तर अर्थ है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब हम यह कहते हैं कि भारत ने लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया है तो इसका मतलब मात्र यह नहीं है कि भारत में लोकतांत्रिक संविधान पर अमल होता है अथवा भारत में चुनाव करवाए जाते हैं। भारत के लोकतांत्रिक होने का वृहत्तर अर्थ है । लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था विभिन्नताओं को पहचानना और उन्हें स्वीकार करना। इसके साथ ही यह भी मानकर चलना कि विभिन्नताओं में आपसी विरोध भी हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में लोकतंत्र की धारणा विचारों और जीवन-पद्धतियों की बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई थी ।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयाँ: भारत के विभाजन में आने वाली प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित थीं।

1. मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना: भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। ऐसा कोई तरीका न था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाये।

2. प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना: मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो, ऐसा भी नहीं था। विशेषकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त जिसके नेता खान अब्दुल गफ्फार खां थे, जो द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे।

3. पंजाब और बंगाल के बँटवारे की समस्या: तीसरी कठिनाई यह थी कि ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। इन प्रान्तों का बंटवारा किस प्रकार किया जाये। 14-15 अगस्त मध्य रात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था।

4. अल्पसंख्यकों की समस्या: सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। ये लोग एक तरह से सांसत में थे। जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी भरा था। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अक्सर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। इस प्रकार विभाजन में सिर्फ संपदा, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि इसमें दोनों समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार भी हुए।

प्रश्न 2.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का हल किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का हल निम्न प्रकार किया गया।

  • मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना: भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा पूर्व में। अतः यह निर्णय किया गया कि पाकिस्तान के दो इलाके होंगे
    1. पूर्वी पाकिस्तान और
    2. पश्चिमी पाकिस्तान।
  • प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना: जो मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था, जैसे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त। उसकी आवाज की अनदेखी कर उसे पाकिस्तान में मिलाया गया।
  • पंजाब व बंगाल के बंटवारे की समस्या: इस सम्बन्ध में यह फैसला किया गया कि इन दोनों प्रान्तों का बंटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा तथा इसमें जिले अथवा तहसील को आधार माना जायेगा। लेकिन यह फैसला देर से होने के कारण दोनों प्रान्तों के बंटवारे में जान-माल की भारी हानि हुई।
  • अल्पसंख्यकों की समस्या: हर हाल में अल्पसंख्यकों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा। दोनों तरफ शरणार्थी शिविर लगाये गये और फिर उन्हें बसाया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
1947 में भारत के विभाजन के क्या परिणाम हुए?
अथवा
‘भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक था । ‘ विभाजन के परिणामों का उल्लेख उपर्युक्त तथ्य के प्रकाश में कीजिये।
उत्तर:
भारत-विभाजन के परिणाम: 14 – 15 अगस्त, 1947 को ‘ब्रिटिश इंडिया’ का दो राष्ट्रों में विभाजन हो गया। ये राष्ट्र हैं। भारत और पाकिस्तान भारत और पाकिस्तान के विभाजन के निम्न प्रमुख परिणाम सामने आये-

  1. आबादी का स्थानान्तरण: इसके कारण बड़े पैमाने पर एक जगह की अल्पसंख्यक आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी से भरा था।
  2. घर बार छोड़ने की मजबूरी: विभाजन के परिणामस्वरूप दोनों तरफ के 80 लाख अल्पसंख्यक लोगों को अस्थाई तौर पर शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। वहाँ का स्थानीय प्रशासन इन लोगों के साथ रुखाई का बरताव कर रहा था।
  3. महिलाओं तथा बच्चों के साथ अत्याचार हुए- सीमा के दोनों ओर हजारों की तादाद में अल्पसंख्यक औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरन शादी करनी पड़ी और अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। बहुत से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गये।
  4. हिंसक अलगाव: इस विभाजन में दो समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार हुए। विभाजन की हिंसा में लगभग 5 से 10 लाख लोग मारे गये।
  5. भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा: विभाजन में वित्तीय संपदा, परिसम्पत्तियों, सरकारी काम-काज में आने वाले फर्नीचर, मशीनरी तथा सरकारी व रेलवे के कर्मचारियों का बँटवारा हुआ। साथ ही साथ टेबल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्य यंत्रों तक का बंटवारा हुआ था। अतः स्पष्ट है कि भारत तथा पाकिस्तान का विभाजन दर्दनाक तथा त्रासदी से भरा था।

प्रश्न 4.
देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत में देशी राज्यों (रजवाड़ों) के विलय पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
देशी राज्यों या रजवाड़ों के विलय की समस्या:
स्वतंत्रता के तुरन्त पहले ब्रिटिश शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से स्वतंत्र हो जायेंगे तथा ये रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया है। यह एक गंभीर समस्या थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था। राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का समाधान सरदार पटेल के नेतृत्व में देशी रियासतों के विलय की समस्या का समाधान निम्न प्रकार तीन चरणों में किया गया

  1. प्रथम चरण: एकीकरण प्रथम चरण में अधिकांश देशी रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में स्वेच्छा से अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये, जिसे ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत है।
  2. द्वितीय चरण- अधिमिलन: मणिपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।
  3. तृतीय चरण: प्रजातन्त्रीकरण: इस चरण में देशी राज्यों के प्रान्तों में भी संसदीय प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की स्थापना की गई। इस प्रकार इनमें प्रजातन्त्रीकरण की समस्या को हल किया गया।

प्रश्न 5.
विभाजन की विरासतों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत विभाजन के साथ भारत को जो समस्याएँ विरासत में मिलीं उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत को विभाजन के साथ मिली समस्याएँ: भारत विभाजन के साथ भारत को जो समस्याएँ विरासत में मिलीं उन्हें विभाजन की विरासत कहा जाता है। यह समस्याएँ निम्नलिखित हैं।
1. शरणार्थियों की समस्या:
भारत के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान छोड़कर भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या लाखों में थी। अतः सरकार के सामने इन लोगों के पुनर्वास की कठिन समस्या सामने आयी। भारत सरकार को न केवल इन शरणार्थी लोगों को भारत में रहने के लिए घरों की व्यवस्था करनी थी, बल्कि उन्हें मनोवैज्ञानिक आधार पर यह समझाना भी था कि यहाँ उन्हें सुरक्षित रूप से जीवन व्यतीत करने की व्यवस्था भी की जाएगी। पं. नेहरू ने इस समस्या के समाधान हेतु पुनर्वास मन्त्रालय बनाया, शरणार्थियों के लिए जगह- जगह शिविर लगाये,
उन्हें बसाया तथा मुआवजे के रूप में यथायोग्य जमीन-जायदाद दी तथा उन्हें भारत का नागरिक बनाया।

2. कश्मीर समस्या:
भारत के विभाजन के समय देशी रियासत कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को एक स्वतन्त्र राज्य बनाने का निर्णय लिया। परन्तु पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। फलतः आक्रमणकारियों में अधिकांशतः पाकिस्तानी सैनिक थे। इस आक्रमण से कश्मीर के अस्तित्व को खतरा हो गया।

3. कश्मीर के राजा हरिसिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के घोषणा: पत्र पर हस्ताक्षर कर भारत से सहायता माँगी पं. नेहरू और सरदार पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर भेजा, इसके साथ भारत ने पाकिस्तान से यह आग्रह किया कि वह कश्मीर में अपनी सैनिक गतिविधियाँ बन्द करे। परन्तु पाकिस्तान ने इससे इन्कार कर दिया। कश्मीर की समस्या पर कोई सर्वमान्य हल निकल सके, इस हेतु पं. नेहरू इसे संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये परन्तु कश्मीर की समस्या का अब तक भी कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल पाया है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 6.
स्वतंत्रता के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को समझाते हुए राज्यों का पुनर्गठन समझाइए।
अथवा
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कब और क्यों हुआ? इसकी मुख्य सिफारिश क्या थी?
अथवा
राज्य पुनर्गठन आयोग का क्या कार्य था? इसकी प्रमुख सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन: भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग के जोर पकड़ने पर केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। राज्य पुनर्गठन आयोग का कार्य: राज्य पुनर्गठन आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मसले पर गौर करना था। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश ।

राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह सिफारिश की कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए इस आयोग की सिफारिश के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ जिसके आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र: शासित प्रदेश बनाये गये। सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण: भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के निम्न परिणाम निकले हैं।

  1. एक लोकतांत्रिक कदम: भाषा के आधार पर नये राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया।
  2. सीमांकन का समरूप आधार: भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला।
  3. एकता को बल: भाषावार पुनर्गठन से देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई।
  4. विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति

प्रश्न 7.
भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में कई गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई राज्यों के लोग अपनी भाषा के आधार पर नये राज्यों की माँग करने लगे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गंभीर आंदोलन आरंभ कर दिए गए और भारत सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े। सन् 1960 में बंबई (मुम्बई) राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में और 1966 में पंजाब राज्य को हरियाणा और पंजाब दो राज्यों में बाँटना पड़ा।

इसी प्रकार, 1963 में नगालैण्ड और 1972 में मेघालय राज्य की स्थापना करनी पड़ी। इसी वर्ष मणिपुर, त्रिपुरा भी अलग राज्य बने तथा अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम 1987 में वजूद में आए। नवम्बर, 2000 में तीन राज्यों उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के गठन तथा 2014 में तेलंगाना के गठन के बावजूद भाषा के आधार पर जम्मू-कश्मीर में डोगरालैंड, पश्चिमी बंगाल में गोरखा राज्य, गुजरात में कच्छ राज्य, मध्य प्रदेश में विदर्भ राज्य की मांग भाषा के आधार पर ही की जा रही है।

भाषायी क्षेत्रवाद की यह भावना देश की राजनीतिक और क्षेत्रीय एकता के लिए निरंतर ख़तरा बन रही है। यदि शुद्ध भाषात्मक एकरूपता के आधार पर भारतीय संघ का गठन किया जाए तो हमारा देश इतने अधिक राज्यों में बँट जाएगा कि भारत के लिए एक राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व कायम रखना असंभव हो सकता है।

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौनसी थीं? व्याख्या करें।
अथवा
स्वतंत्रता के समय, भारत के समक्ष आई किन्हीं तीन चुनौतियों की विस्तार से व्याख्या कीजिये। स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष आई चुनौतियाँ
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष निम्नलिखित तीन तरह की चुनौतियाँ थीं-
1. राष्ट्र निर्माण की चुनौती:
स्वतंत्रता के तुरन्त बाद राष्ट्र-निर्माण की चुनौती प्रमुख थी। यहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों, भाषाओं और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते थे, इनमें एकता कायम करने की एक चुनौती थी। क्योंकि हर क्षेत्रीय व उप-क्षेत्रीय पहचान को कायम रखते हुए देश की एकता व अखण्डता को कायम रखना था। दूसरे, देशी राज्यों को भारत संघ में विलीन करने की भी एक विकट समस्या थी। इस तरह स्वतंत्रता के बाद तात्कालिक प्रश्न राष्ट्र निर्माण की चुनौतीका था।

2. लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करना:
देश के सामने दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी। स्वतन्त्रता के बाद भारत ने संसदीय प्रतिनिध्यात्मक लोकतान्त्रिक मॉडल को अपनाया। लेकिन अब देश के सामने यह चुनौती थी कि संविधान पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवहार की व्यवस्थाएँ चलन में आएं ताकि लोकतंत्र कायम रह सके। दूसरी चुनौती यह थी कि एक ऐसे समतामूलक समाज का विकास किया जाये जिसमें सभी वर्गों का भला हो सके।

3. आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारित करना:
स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष तीसरी प्रमुख चुनौती आर्थिक विकास हेतु नीतियों का निर्धारण करना था। अतः देश के सामने नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अनुरूप आर्थिक विकास करने और गरीबी को खत्म करने के लिए कारगर नीतियों का निर्धारण करने की चुनौती थी।

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प्रश्न 9.
स्वतंत्रता के बाद भारत के एकीकरण को समझाइए स्वतंत्रता के बाद भारत का एकीकरण
उत्तर:
संजीव पास बुक्स: स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष एकीकरण की प्रमुख चुनौती थी। यह चुनौती तीन रूपों में हमारे देश के नेताओं के समक्ष आई। यथा।
1. विभाजन:
विस्थापन और पुनर्वास तथा धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना – परिणामतः स्वतन्त्रता के बाद दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों को अपने-अपने घरों को छोड़कर स्थानान्तरण के लिए मजबूर होना पड़ा। यह स्थानान्तरण त्रासदी भरा रहा। दूसरे, विभाजित भारत में अब भी 12% मुसलमान भारत में रह गये थे। इसके अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बी भी यहाँ रह रहे थे। इस समस्या का निपटारा भारतीय शासकों ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाकर किया तथा संविधान में सभी नागरिकों को समान दर्जा देकर देश के एकीकरण का प्रथम चरण पूरा किया गया।

2. रजवाड़ों का विलय:
स्वतंत्रता के बाद रजवाड़ों का स्वतंत्र होना अपने आप में एक गहरी समस्या थी । इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था। लेकिन शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद भारत की सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गये। हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर तथा मणिपुर की रियासतों का विलय सरदार पटेल की सूझबूझ, जनता के दबाव तथा भारतीय सेना के माध्यम से किया जा सका।

4. राज्यों का पुनर्गठन:
भारतीय प्रान्तों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती को हल करने हेतु 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया और 1956 में इसकी सिफारिशों के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए। इससे देश में विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली और देश की एकता भी सुदृढ़ हुई।

प्रश्न 10.
राज्यों के पुनर्गठन के मसले ने देश में अलगाववाद की भावना को कैसे पनपाया? भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन की सफलताओं का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आजादी के बाद के शुरुआती सालों में एक बड़ी चिंता यह थी कि अलग राज्य बनाने की माँग से देश की एकता पर आँच आएगी। आशंका थी कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना पनपेगी और नवनिर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा। जनता के दबाव में आखिरकार केन्द्रीय नेतृत्व ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का मन बनाया।

आशंका यह थी कि अगर हर इलाके के क्षेत्रीय और भाषाई दावे को मान लिया गया तो बँटवारें और अलगाववाद के खतरे में कमी आएगी। इसके अलावा क्षेत्रीय माँगों को मानना और भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना ‘एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में भी देखा गया। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आन्दोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है।

राजनीति और सत्ता में हिस्सेदारी का रास्ता अब एक सीमित अंग्रेजी अभिजात वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि बाकियों के लिए भी खुल चुका है। भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन ‘के लिए एक समरूप आधार भी मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत इससे देश नहीं टूटा। इसके विपरीत देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई। सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली।

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पृष्ठ 56

प्रश्न 1.
क्या भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है? भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट क्यों हैं?
उत्तर:
भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का हिस्सा है। भारत आसियान देशों क पड़ोसी देश है, इसलिए भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के काफी निकट हैं।

पृष्ठ 57

प्रश्न 2.
आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) के सदस्य कौन हैं?
उत्तर:
कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैण्ड, वियतनाम इत्यादि।

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पृष्ठ 58

प्रश्न 5.
आसियान क्यों सफल रहा और दक्षेस (सार्क) क्यों नहीं? क्या इसलिए कि उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा देश नहीं है?
उत्तर:
आसियान इसलिए सफल रहा क्योंकि इसके सदस्य देशों ने टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अख्तियार करते हुए निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में सफलता पायी है। इसने आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार किया है तथा इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में सहयोग किया है। दक्षेस (सार्क) इसलिए सफल नहीं रहा क्योंकि इसके सदस्य देश बातचीत के माध्यम से टकराव को टालकर एक साझा बाजार स्थापित करने में असफल रहे हैं और निवेश, श्रम तथा सेवाओं के मामलों में इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र नहीं बना सके हैं।

पृष्ठ 60

प्रश्न 6.
कार्टून में (पृष्ठ संख्या 60 ) साइकिल का प्रयोग आज के चीन के दोहरेपन को इंगित करने के लिए किया गया है। यह दोहरापन क्या है? क्या हम इसे अन्तर्विरोध कह सकते हैं?
उत्तर:
चीन विश्व में सर्वाधिक साइकिल प्रयोग करने वाला देश है। इस कार्टून में साइकिल का प्रयोग दोहरापन दर्शाता है क्योंकि एक तरफ तो चीन साम्यवादी विचारधारा वाले देशों का नेता होने की बात करता है, जबकि दूसरी ओर अपनी अर्थव्यवस्था में डालर अर्थात् पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को आमंत्रित कर रहा है। कार्टून में दोनों पहियों में अगला पहिया जहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है, वहीं पीछे का पहिया पूँजीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यह एक प्रकार का विचारधारागत अन्तर्विरोध है।

पृष्ठ 61

प्रश्न 7.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में भारत का दौरा किया। 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन गए थे । इन दौरों में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनके बारे में पता करें।
उत्तर:
अप्रैल, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी चीन यात्रा पर गए यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर वार्ता हुई इसके अतिरिक्त सीमा विवाद को शीघ्रता से निपटाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की, द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी दोनों पक्षों में सहमति हुई। अक्टूबर, 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आये। शी जिनपिंग ने तमिलनाडु के महाबलीपुरम में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक वार्ता में भाग लिया। इसके अतिरिक्त बीजा नियमों में शिथिलता देने, सीमाविवाद को शीघ्र सुलझाने, कैलाश मानसरोवर के लिए नाथूला से नया रास्ता खोलने, आतंकवाद को रोकने, इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए चीन को आमंत्रित करने, दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाने, रेलवे का आधुनिकीकरण करने, अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग करने जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 1.
तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें-
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।
उत्तर:
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना (1957)
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना (1967)
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना (1992)
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश (2001 )।

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प्रश्न 2.
‘ASEAN way’ या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षा नीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।
उत्तर:
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।

प्रश्न 3.
इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई?
(क) चीन
(ख) दक्षिण कोरिया
(ग) जापान
(घ) अमरीका।
उत्तर:
(क) चीन।

प्रश्न 4.
खाली स्थान भरें-
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच ……… और ……….. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में ………… और ……… करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ……………. के साथ दोतरफा संबंध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ) ………….. योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।
उत्तर;
(क) अरुणाचल, लद्दाख
(ख) आसियान के देशों की सुरक्षा, विदेश नीतियों में तालमेल
(ग) अमेरिका
(घ) मार्शल
(ङ) सुरक्षा समुदाय।

प्रश्न 5.
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर;
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य हैं-

  1. अपने-अपने इलाके (क्षेत्र) में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों और कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान ढूंढ़ना।
  2. अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करना।
  3. अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में काम करना।
  4. बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करना।

प्रश्न 6.
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?
उत्तर:
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर सकारात्मक असर पड़ता है। यथा-

  1. इसके कारण उस क्षेत्र के देशों की कई समस्यायें, धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज तथा भाषाएँ समान होती हैं, जिससे क्षेत्रीय संगठन के निर्माण में मदद मिलती है।
  2. इसके कारण क्षेत्र विशेष के देशों में क्षेत्रीय संगठन बनाने की भावना विकसित होती है और इस भावना के विकास के साथ पारस्परिक संघर्ष और युद्ध का स्थान, पारस्परिक सहयोग और शांति ले लेती है।
  3. क्षेत्रीय निकटता और भौगोलिक एकता मेल-मिलाप के साथ आर्थिक सहयोग तथा अन्तर्देशीय व्यापार को बढ़ावा देती है।
  4. भौगोलिक निकटता के कारण उस क्षेत्र विशेष के राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था कर सकते
  5. एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्गों और रेल सेवाओं से आसानी से जुड़ सकते हैं।

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प्रश्न 7.
‘आसियान- विजन 2020′ की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं? उत्तर–‘आसियान-विजन 2020’ की मुख्य-मुख्य बातें ये हैं-

  1. आसियान-विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।
  2. आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा हल निकालने की नीति पर बल दिया गया है। इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।
  3. आसियान – विजन 2020 के तहत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय तथा एक आसियान सामाजिक तथा सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गई है।
  4. आसियान अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और गैर- क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श को महत्त्व देगा।

प्रश्न 8.
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएँ।
उत्तर:
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभ- 2003 में आसियान ने तीन मुख्य स्तंभ बताये हैं। ये हैं

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय,
  2. आसियान आर्थिक समुदाय और
  3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक समुदाय।

आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों के उद्देश्य-आसियान समुदाय के तीनों मुख्य स्तंभों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय – यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाकर उन्हें बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास करता है।
  2. आसियान आर्थिक समुदाय – आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारता है।
  3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय – इसका मुख्य उद्देश्य आसियान क्षेत्र का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना है। इस हेतु यह सदस्य देशों में संवाद और परामर्श के लिए रास्ता तैयार करता है।

प्रश्न 9.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?
उत्तर:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था और आज की अर्थव्यवस्था में अन्तर आज की चीनी अर्थव्यवस्था, उसकी नियंत्रित अर्थव्यवस्था से भिन्नता लिए हुए है। दोनों के अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम खुले द्वार की अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योगों पर राज्य का नियंत्रण था। विदेशी बाजारों से तकनीक और सामान खरीदने पर प्रतिबंध था। इसमें विदेशी व्यापार न के बराबर था, प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी तथा औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ पा रहा था। चीन ने 1970 के बाद अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनीतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण पर बल दिया तथा विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के ‘निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त करने पर बल दिया गया।

(2) राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम निजीकरण की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि तथा उद्यमों पर राज्य का नियंत्रण था। लेकिन चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था निजीकरण लिये हुए बाजारमूलक अर्थव्यवस्था है।

(3) रोजगार तथा सामाजिक कल्याण सम्बन्धी अन्तर:
चीन की राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था में सभी नागरिकों को ‘रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया। लेकिन वर्तमान चीन की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का लाभ सभी नागरिकों को नहीं मिल रहा है।

(4) विदेशी निवेश सम्बन्धी अन्तर;
चीन की नियन्त्रित अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश नगण्य रहा जबकि वर्तमान अर्थव्यवस्था में वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए आकर्षक देश बनकर उभरा है।

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प्रश्न 10.
किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
उत्तर:
यूरोपीय देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् आपसी बातचीत, सहयोग एवं परस्पर विश्वासों के आधार पर अपनी परेशानियों को दूर किया। यथा यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें – 1945 के बाद यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित थीं:

  1. 1945 तक यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएँ बर्बाद हो गयी थीं।
  2. 1945 तक यूरोपीय देशों की वे मान्यताएँ और व्यवस्थाएँ ध्वस्त हो गईं जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।
  3. यूरोप के देशों में प्राचीन समय से ही दुश्मनियाँ चली आ रही थीं।

समस्याओं का निवारण- यूरोप के देशों ने अपनी समस्याओं का निवारण निम्न प्रकार से किया:

  1. शीत युद्ध से सहायता – 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीत युद्ध से भी मदद मिली।
  2. मार्शल योजना से अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन – अमरीका से यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद मिली। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है।
  3. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था – अमेरिका ने नाटो के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया।

यूरोपीय संघ की स्थापना के प्रमुख कदम-

  1. यूरोपीय परिषद् का गठन – 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुआ।
  2. अर्थव्यवस्था के पारस्परिक एकीकरण की प्रक्रिया – यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपियन इकॉनोमिक कम्युनिटी का गठन व यूरोपीय संसद का गठन हुआ तथा 1992 में मॉस्ट्रिस्ट संधि के द्वारा यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
  3. यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य के रूप में- अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। यद्यपि यूरोपीय संघ का कोई संविधान नहीं बन सका है, तथापि इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है।

प्रश्न 11.
यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन के रूप में यूरोपीय संघ को निम्न तत्त्व एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन सिद्ध करते हैं:

  1. समान राजनैतिक रूप-यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों का एक ऐसा राजनैतिक संगठन है जिसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस तथा मुद्रा है। इससे साझी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में मदद मिली है।
  2. सहयोग की नीति – यूरोपीय संघ ने सहयोग की नीति अपनाते हुए यूरोप के देशों में परस्पर सहयोग को बढ़ावा दिया है। इससे इसका प्रभाव बढ़ा है।
  3. यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2005 में यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। विश्व व्यापार संगठन के अन्दर भी यह एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में कार्य करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं, बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के देशों पर भी है।
  4. राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश
    •  ब्रिटेन और
    •  फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।
  5. सैनिक तथा तकनीकी प्रभाव – यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। इसके दो देशों – ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान तथा संचार प्रौद्योगिकी के मामले में यूरोपीय संघ का विश्व में द्वितीय स्थान है।

प्रश्न 12.
चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि चीन और भारत में मौजूदा विश्व – व्यवस्था को चुनौती देने की क्षमता है। इसके समर्थन में अग्र तर्क दिये जा सकते हैं: संजीव पास बुक्स

  1. चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली, साधन- सम्पन्न देश हैं। दोनों में परस्पर सुदृढ़ मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है।
  2. चीन और भारत दोनों ही विशाल जनसंख्या वाले देश हैं। इतना विशाल जनमानस अमेरिका के निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। दोनों देश पश्चिमी व अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।
  3. भारत और चीन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं। तेजी से आर्थिक विकास करके ये आर्थिक क्षेत्र में एकध्रुवीय विश्व को चुनौती दे सकते हैं।
  4. दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति कर एकध्रुवीय विश्व को चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं।
  5. दोनों देश विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमेरिकी एकाधिकार की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर सकते हैं।
  6. दोनों देश बहुउद्देश्यीय योजनाओं में, यातायात के साधनों के विकास में, जल-विद्युत निर्माण क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और आदान-प्रदान की नीतियाँ अपनाकर अपने को शीघ्र महाशक्ति की श्रेणी में ला सकते हैं।

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प्रश्न 13.
मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व शांति और समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आर्थिक संगठन आवश्यक है। प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्योंकि-

  1. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धन्धों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा मिलता है।
  2. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर होगी।
  3. क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण से जब रोजगार बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, यातायात आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
  4. सभी देश चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले तथा अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात हो। यह तभी संभव हो सकता है कि सभी पड़ोसी देशों में शांति तथा सहयोग की भावना हो और यह भावना क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के माध्यम से पैदा होती है। इस प्रकार क्षेत्रीय संगठन समृद्धि और शांति लाते हैं।

प्रश्न 14.
भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच विवाद के मुद्दे – भारत और चीन के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।

  1. सीमा विवाद – दोनों देशों के बीच सीमा विवाद 1962 से चला आ रहा है
  2. मैकमोहन रेखा – मैकमोहन रेखा, जो भारत तथा चीन के क्षेत्र की सीमा निश्चित करती है कि सम्बन्ध में दोनों देशों में मतभेद है।
  3. अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश सम्बन्धी मुद्दा – अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र के सम्बन्ध में दोनों देशों के बीच विवाद चला आ रहा है।
  4. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का मुद्दा – तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर एक परेशानी का कारण रही है।
  5. चीन का पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करना – चीन ने सदैव पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति की है, जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता है।

वृहत्तर सहयोग हेतु मतभेदों को निपटाने के लिए सुझाव: वृहत्तर सहयोग के लिए भारत-चीन मतभेदों को निपटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. दोनों देशों की सरकारें, नेतागण, जनसंचार माध्यम पारस्परिक बातचीत के द्वारा हर विवाद का समाधान निकाल सकते हैं
  2. दोनों देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यथासंभव समान दृष्टिकोण अपना कर और परस्पर सहयोग कर इन्हें निपटाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
  3. दोनों देश पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाली समस्याओं के समाधान में सहयोग दे सकते हैं।
  4. दोनों देशों के प्रमुख नेता समय-समय पर एक-दूसरे के देशों की यात्राएँ करें तथा अपने विचारों का अदानप्रदान करें जिससे दोनों देशों में सद्भाव और मित्रता स्थापित हो।
  5. भारत और चीन के पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा दिया जाये।

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→ परिचय:
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद द्वि-ध्रुवीयता का अन्त हो गया । आज विश्व में स्वतंत्र देशों ने मिलकर अनेक असैनिक संगठन, जैसे—यूरोपीय संघ और आसियान आदि, खड़े किए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों का आर्थिक विकास करना है। इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके अतिरिक्त विश्व में चीन के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ते कदमों ने भी विश्व राजनीति में नाटकीय प्रभाव डाला है। चीन की आर्थिक व्यवस्था में बढ़ोतरी व यूरोपियन संघ तथा आसियान जैसे संगठनों के द्वारा आर्थिक क्षेत्र में जो प्रयास किये गये हैं, उनसे ऐसा लगने लगा है कि आज विश्व में अमरीका के अलावा सत्ता के अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।

→ यूरोपीय संघ
लम्बे समय से यूरोपीय नेताओं का यह स्वप्न रहा था कि यूरोपीय राज्यों का एक संघ या साझी राजनीतिक- आर्थिक व्यवस्था बनाई जाए। विश्व युद्धों ने इस स्वप्न को आवश्यकता में बदल दिया।

→ यूरोपीय संघ का उद्भव:

  • मार्शल योजना के तहत 1948 ई. में ‘यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन ‘ की स्थापना की गई। इसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार व आर्थिक मामलों में परस्पर मदद शुरू की।
  • 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई।
  • यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी, परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ यूरोपियन पार्लियामेंट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया।

सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। एक लम्बे समय बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। अन्य देशों से संबंधों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है। यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2016 में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 17000 अरब डालर से ज्यादा था जो अमरीका के लगभग है।

विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमरीका सें तीन गुनी ज्यादा है। यह विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के अंदर एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में काम करता है। यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय देश के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। यूरोपीय संघ के दो देशों- ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है। अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है।

यूरोपीय एकता के महत्त्वपूर्ण पड़ाव
→ अप्रैल, 1951: पश्चिमी यूरोप के छह देशों – फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने पेरिस संधि पर दस्तखत करके यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन (Euratom) किया ।

→ मार्च 1957: संजीव पास बुक्स इन्हीं छह देशों ने रोम की सन्धि के माध्यम से यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) और यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय ( Euratom) का गठन किया।

→ जनवरी, 1973: डेनमार्क, आयरलैंड और ब्रिटेन ने भी यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1979: यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव।

→ जनवरी, 1981: यूनान ( ग्रीस) ने यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1985: शांगेन संधि ने यूरोपीय समुदाय के देशों के बीच सीमा नियंत्रण समाप्त किया

→ जनवरी, 1986: स्पेन ओर पुर्तगाल भी यूरोपीय समुदाय में शामिल हुए।

→ अक्टूबर, 1990: जर्मनी का एकीकरण।

→ फरवरी, 1992: यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर दस्तखत।

→ जनवरी, 1993: एकीकृत बाजार का गठन।

→ जनवरी, 2002: नई मुद्रा यूरो को 12 सदस्य देशों ने अपनाया।

→ मई, 2004: साइप्रस, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हगरी, लताविया, लिथुआनिया, माल्टा, पोलैंड, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया भी यूरोपीय संघ में शामिल।

→ जनवरी, 2007: बुल्गारिया और रोमानिया यूरोपीय संघ में शामिल स्लोवेनिया ने यूरो को अपनाया।

→ दिसम्बर, 2009: लिस्बन संधि लागू हुई।

→ 2012: यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार।

→ 2013: क्रोएशिया यूरोपीय संध का 28वाँ सदस्य बना।

→ 2016: ब्रिटेन में जनमत संग्रह, 51.9 प्रतिशत मतदाताओं ने फैसला किया कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो जाए।

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→ दक्षिण – पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) (Association of South-East Asian Nations)
गठन: आसियान का गठन 1967 को हुआ इसके 5 संस्थापक सदस्य देश – इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, फिलीपींस और सिंगापुर हैं। बाद के वर्षों में ब्रुनेई दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी इसके सदस्य बने। इस प्रकार वर्तमान में इसके दस सदस्य देश हैं। उद्देश्य – इसके उद्देश्य हैं

  • क्षेत्र में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विकास को बढ़ावा देना;
  • क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करना;
  • साझे हितों, प्रशिक्षण, शोध-सुविधाओं, कृषि, व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कायम करना;
  • समान उद्देश्यों व लक्ष्यों वाले दूसरे क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ लाभप्रद व निकटतम संबंध कायम करना।

→ भूमिका व उपलब्धियाँ-

  • आसियान आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक उन्नयन, सांस्कृतिक विकास और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा है।
  • आसियान ने आर्थिक सहयोग के उद्देश्य को भी सही रूप में पूरा किया है। मुक्त व्यापार क्षेत्र का गठन, आसियान आर्थिक समुदाय के गठन पर बल, चीन व कोरिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता इसकी उपलब्धियाँ हैं।
  • आसियान ने सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
  • पूर्वी एशिया के देशों के बीच आसियान एक सेतु का कार्य कर रहा है।
  • यह टकराव के स्थान पर बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अपनाए हुए है।
  • यह भारत तथा चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने की ओर प्रयासरत है।

→ चीनी अर्थव्यवस्था का उत्थान
1978 के बाद चीन की आर्थिक सफलता को देखकर इसको एक महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन सबसे आगे है। क्षेत्रफल की दृष्टि से चीन का विश्व में चौथा स्थान है। विश्व में चीन की थल सेना सबसे: जुलाई, 2013 को क्रोएशिया द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण करने से यूरोपीय संघ के सदस्यों की कुल संख्या 28 हो गई है। बड़ी है। आज इसकी प्रति व्यक्ति जी एन पी विश्व में दूसरे स्थान पर है। आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे जयादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है। 1949 में माओ के नेतृतव में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिकी सोवियत मॉडल पर आधारित थी।

इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकालकर सरकारी नियंत्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। इस मॉडल में चीन ने अभूतपूर्व स्तर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्था खड़ा करने का आधार बनाने के लिए सारे संसाधनों का इस्तेमाल किया। सभी नागरिकों को रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया, स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के मामले में चीन सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया।

चीनी नेतृत्व ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। चीन ने ‘शॉक थेरेपी’ पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला 1982 में खेती का ओर 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया व्यापार संबंधी अवरोधों को सिर्फ ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ के लिए ही हटाया गया जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SE2) के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुडाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था को एक मनचाहा रूप देने की है।

चीन की आर्थिकी में तो नाटकीय सुधार हुआ है लेकिन वहाँ बेरोजगारी बढ़ी है। वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। हालाँकि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है। 1977 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है। लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

चीन के साथ भारत के सम्बन्ध
→ सकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  • भारत और चीन के राजनीतिक सम्बन्ध उतार-चढ़ावों के बाद वर्तमान में सौहार्दपूर्ण हो रहे हैं।
  • भारत व चीन ने व्यापारिक तथा आर्थिक क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1999 से दोनों के बीच व्यापार 30 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है।
  • दोनों ने चिकित्सा विज्ञान, बैंकिंग क्षेत्र, ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की सहमति जतायी है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों के मध्य सहयोगी सम्बन्ध बढ़ रहे हैं

→ नकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच सीमा विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है।
  • तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर परेशानी का कारण रही है।
  • चीन का सैन्य आधुनिकीकरण भी भारतीय चिंता का विषय है।
  • चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता व नाभिकीय सहायता भारत के लिए एक सिरदर्द है।
  • भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण व संवेदनशील आर्थिक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की भागीदारी का बढ़ना भारतीय चिंता का विषय है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

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JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत InText Questions and Answers.

पृष्ठ 24

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 24 पर दिये गये मानचित्र में स्वतंत्र मध्य एशियाई देशों को चिह्नित करें।
उत्तर;
स्वतंत्र मध्य एशियाई देश ये हैं-

  1. उज्बेकिस्तान
  2. ताजिकिस्तान
  3. कजाकिस्तान
  4. किरगिझस्तान
  5. तुर्कमेनिस्तान।

प्रश्न 2.
मैंने किसी को कहते हुए सुना है कि, “सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। ” क्या यह संभव है?
उत्तर:
यह सही है कि सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। यद्यपि सोवियत संघ समाजवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक तथा उसका प्रतीक था, लेकिन वह समाजवाद के एक रूप का प्रतीक था। समाजवाद के अनेक रूप हैं और समाजवादी विचारधारा के उन रूपों को अभी भी विश्व के अनेक देशों ने अपना रखा है। दूसरे, समाजवाद एक विचारधारा है जिसमें देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार विकास होता रहा है और अब भी हो रहा है। इसलिए सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है।

पृष्ठ 28

प्रश्न 1.
सोवियत और अमरीकी दोनों खेमों के शीत युद्ध के दौर के पाँच-पाँच देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौर के सोवियत और अमरीकी खेमों के 5-5 देशों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • अमरीकी खेमे के देश:
    1. संयुक्त राज्य अमेरिका
    2. इंग्लैंड
    3. फ्रांस
    4. पश्चिमी जर्मनी
    5. इटली।
  • सोवियत खेमे के देश:
    1. सोवियत संघ
    2. पूर्वी जर्मनी
    3. पोलैंड
    4. रोमानिया
    5. हंगरी।

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प्रश्न 1.
सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व / नियन्त्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियन्त्रण राज्य करता था।
उत्तर:
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ।
(क) अफगान – संकट
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(ख) बर्लिन – दीवार का गिरना
(घ) रूसी क्रान्ति।
उत्तर:
(क) रूसी क्रान्ति, (1917)
(ख) अफगान संकट, (1979)
(ग) बर्लिन – दीवार का गिरना (1989)
(घ) सोवियत संघ का विघटन, (1991)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौनसा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अन्त
(ख) स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल ( सी आई एस ) का जन्म
(ग) विश्व – व्यवस्था के शक्ति सन्तुलन में बदलाव
(घ) मध्य-पूर्व में संकट
उत्तर:
(घ) मध्य-पूर्व में संकट

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(2) शॉक थेरेपी (ख) सैन्य समझौता
(3) रूस (ग) सुधारों की शुरुआत
(4) बोरिस येल्तसिन (घ) आर्थिक मॉडल
(5) वारसॉ (ङ) रूस के राष्ट्रपति

उत्तर:

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (ग) सुधारों की शुरुआत
(2) शॉक थेरेपी (घ) आर्थिक मॉडल
(3) रूस (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(4) बोरिस येल्तसिन (ङ) रूस के राष्ट्रपति
(5) वारसॉ (ख) सैन्य समझौता

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली”…………”की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन” …………था।
(ग) ………… पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) …………. ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) …………. का गिरना शीतयुद्ध के अन्त का प्रतीक था।
उत्तर:
(क) समाजवाद
(ख) वारसॉ पैक्ट
(ग) कम्युनिस्ट
(घ) मिखाइल गोर्बाचेव
(ङ) बर्लिन की दीवार।

प्रश्न 6.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।
उत्तर:

  1. सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी जबकि पूँजीवादी देशों में मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया गया था।
  2. सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित थी जबकि अमेरिका ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया था।
  3. सोवियत अर्थव्यवस्था में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं तथा वितरण व्यवस्था पर राज्य का ही स्वामित्व और नियन्त्रण था जबकि पूँजीवादी देशों में निजीकरण को अपनाया गया था।

प्रश्न 7.
किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?
उत्तर:
गोर्बाचेव द्वारा सोवियत संघ में सुधार के कारण
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य हुए-
(1) अर्थव्यवस्था का गतिरुद्ध हो जाना:
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कई सालों तक गतिरुद्ध हुई। इससे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी कमी हो गयी थी। लोगों का जीवन कठिन हो गया था। गोर्बाचेव ने जनता से अर्थव्यवस्था के गतिरोध को दूर करने का वायदा किया था। अतः वह सुधार लाने के लिए बाध्य हुआ।

(2) पश्चिम के देशों की तुलना में पिछड़ जाना:
सोवियत संघ हथियारों के निर्माण की होड़ में प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे (मसलन परिवहन, ऊर्जा) के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत पिछड़ गया था। पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। अपने पिछड़ेपन की पहचान से लोगों को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ को पश्चिम की बराबरी पर लाने का वायदा किया था । इसलिए वह सुधार लाने को बाध्य हुआ।

(3) प्रशासनिक ढाँचे की त्रुटियाँ;
सोवियत संघ के गतिरुद्ध प्रशासन, नौकरशाही में भारी भ्रष्टाचार और सत्ता के केन्द्रीकृत होने आदि के कारण आम जनता शासन से अलग-थलग पड़ गयी थी। गोर्बाचेव ने जनता को विश्वास में लेने के लिए प्रशासनिक ढाँचे में ढील देने का वायदा किया था। अतः गोर्बाचेव प्रशासनिक ढाँचे में सुधार लाने के लिए बाध्य हो गए थे।

प्रश्न 8.
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
सोविय संघ के विघटन के भारत पर प्रभाव
सोवियत संघ के विघटन से भारत जैसे देशों के लिए निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. सोवियत संघ भारत का एक सच्चा व महान् मित्र रहा था। भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए सोवियत संघ से भारी मात्रा में आर्थिक, सैनिक व तकनीकी सहायता प्राप्त होती थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद अब भारत की अपने आर्थिक विकास के लिए अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भरता बढ़ गयी; जिन्होंने भारत पर आर्थिक सहायता के द्वारा दबाव की कूटनीति थोपी।
  2. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप शीतयुद्ध समाप्त हो गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष में कमी आई। इससे हथियारों की तेज दौड़ में कमी आई। भारत जैसे देशों के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की सम्भावना दिखाई दी तथा वे अपने विकास की तरफ अधिक ध्यान देने को उन्मुख हुए।
  3. सोवियत संघ के पतन के बाद भारत जैसे राष्ट्रों के लिए अमेरिका या अन्य किसी राष्ट्र से नजदीकी सम्बन्ध बनाने के लिए किसी गुट में शामिल होने की बाध्यता नहीं रही।
  4. भारत जैसे देशों में लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली व महत्त्वपूर्ण मानने लगे। परिणामस्वरूप मिश्रित अर्थव्यवस्था को छोड़कर भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां अपना ली गईं।
  5. सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के साथ मजबूती के रिश्ते बनाने की ओर रुख किया।

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?
उत्तर:
साम्यवादी के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को ‘शॉक थेरेपी’ कहा गया । भूतपूर्व ‘दूसरी दुनिया’ के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनता अलग-अलग रही परंतु इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे।

हर देश को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना था। ‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक ‘फार्म’ को निजी ‘फार्म’ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई।

‘शॉक थेरेपी’ से इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रूझान बुनियादीतौर पर बदल गए। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई। अंततः इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह पर प्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी मुल्कों से जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया।

साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के ‘शॉक थेरेपी’ के तरीके को सबसे बेहतर तरीका नहीं कहा जा सकता। अधिक बेहतर उपाय यह होता कि इन देशों में पूँजीवादी सुधार तुरन्त किये जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किये जाते। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लाद देने से सोवियत खेमे में अनेक नकारात्मक प्रभाव पड़े, जैसे- इससे इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस-नहस हो गई; इससे जनता को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा; समाज में गरीबी – अमीरी का भेद बढ़ा तथा जल्दबाजी में लोकतंत्रीकरण का काम भी सही ढंग से नहीं हो पाया।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें -” दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर:
उक्त कथन के विपक्ष में तर्क-दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भी भारत को अपनी विदेश नीति बदलने की आवश्यकता नहीं है। रूस को छोड़कर अमेरिका से ज्यादा दोस्ती भारत के लिए निम्न तथ्यों के आलोक में उचित नहीं कही जा सकती करता है।

  1. अमेरिका भारत के महत्त्व को कम करने के लिए पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध खड़ा करता आ रहा है
  2. अमेरिका भारत की स्वतन्त्र विदेश नीति को प्रभावित करके अपना पिछलग्गू बनाना चाहता है।
  3. अमेरिका भारत को शक्तिशाली रूप में देखना पसन्द नहीं करता है। इस हेतु वह भारत के प्रयासों का विरोध
  4. चीन-अमेरिकी – पाक धुरी भी भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में कटुता का कारण बनती रही है।
  5. आतंकवाद की समस्या से निपटने में भी अमेरिका दोहरी नीति अपनाये हुए है।

उक्त कथन के पक्ष में तर्क- उक्त कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:

  1. सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अब विश्व में अमेरिका ही सुपर शक्ति है, इसलिए अब भारत को अमरीका के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए।
  2. भारत और अमरीका दोनों ही देशों में लोकतंत्र है, दोनों ने ही आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई हुई है। अतः भारत को अमरीका के साथ सम्बन्ध बढ़ाने की नीति अपनानी चाहिए।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को समय-समय पर विभिन्न प्रकार की सहायता की है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण की नीति अपनाने से भारत को अमरीका से सम्बन्ध बढ़ाने चाहिए।
  4. भारत और अमरीका दोनों ही आतंकवाद विरोधी देश हैं।

दो ध्रुवीयता का अंत JAC Class 12 Political Science Notes

→ सोवियत प्रणाली:

  • समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया।
  • सोवियत प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  • वियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।
  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गए। इन सभी देशों की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली में ढाला गया । इन्हें ही
  • समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया । इनका नेता सोवियत संघ था। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा।
  • अमरीका को छोड़कर शेष विश्व की तुलना में सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा विकसित थी।
  • लेकिन, सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।

यह प्रणाली सत्तावादी होती गयी और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया। सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था जिसका सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था तथा यह दल जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं था। सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में रूसी गणराज्य का हर मामले में वर्चस्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता उपेक्षित और दमित महसूस करती थी। हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर अमरीका को बराबर टक्कर दी लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

वह प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया। यह अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप से उसकी अर्थव्यवस्था और कमजोर हुई। उपभोक्ता वस्तु की कमी हो गयी। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में यह व्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी।

→ गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन:
1980 के दशक के मध्य में गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। उसने पश्चिम के देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने और वहाँ सुधार करने का फैसला किया। इस फैसले की अकल्पनीय परिणतियाँ हुईं

  • पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें जनता के दबाव में एक के बाद एक गिर गईं। वहाँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई।
  •  देश के अन्दर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतन्त्रीकरण का जहाँ साम्यवादी दल के नेताओं द्वारा विरोध किया गया, वहीं जनता और तेजी से सुधार चाहती थी। परिणामतः 1991 में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्यों रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। इन्होंने पूँजीवाद और लोकतन्त्र को अपना आधार बनाया। इन्होंने स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल का गठन किया। बाकी गणराज्यों को राष्ट्रकुल का संस्थापक सदस्य बनाया गया।
  • रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली। सोवियत संघ के अन्तर्राष्ट्रीय करार और सन्धियों को निभाने की जिम्मेदारी रूस को सौंपी गयी। इस प्रकार सोवियत संघ का पतन हुआ।

सोवियत संघ के विघटन का घटना चक्र:
→ मार्च, 1985: मिसाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की।

→ 1988: लिथुआनिया में आजादी के लिए आंदोलन शुरू एस्टोनिया और लताविया में भी फैला ।

→ अक्टूबर, 1989: सोवियत संघ ने घोषणा की कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। नवम्बर में बर्लिन की दीवार गिर।

→ फरवरी, 1990: शुरुआत गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की सोवियत सत्ता पर कम्युनिष्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।

→ जून, 1990: रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।

→ मार्च, 1990: लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।

→ जून, 1991: येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा रूस के राष्ट्रपति बने।

→ अगस्त, 1991: कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया।

→  सितम्बर, 1991: एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया बाल्टिक गणराज्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।

→ दिस0म्बर, 1991: रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करके स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल का हिस्सा बने। 1993 में जार्जिया राष्ट्रकुल का सदस्य बना संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।

→ 25 दिसंबर, 1991: गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया सोवियत संघ का अंत

→  सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ?

  • सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएं अन्दरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाएँ पूरा नहीं कर सकीं। यही सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण रहा।
  • परमाणु हथियार, सैन्य साजो-सामान तथा पूर्वी यूरोप के पिछलग्गू देशों के विकास पर हुए खर्चों से सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना, सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
  • पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ की जनता को यह जानकारी मिली कि सोवियत संघ पश्चिमी देशों से काफी पीछे है। इससे जनता को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक धक्का लगा।
  • गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह न होना, खुलापन का अभाव तथा केन्द्रीकृत सत्ता के कारण जनता शासन से अलग-थलग पड़ चुकी थी। सरकार का जनाधार
  • खिसक गया था।
  • गोर्बाचेव ने जब सुधारों को लागू किया तो आकांक्षाओं- अपेक्षाओं का जनता का जो ज्वार उमड़ा, शासक उसका सामना नहीं कर सका। जहाँ आम जनता और तीव्र सुधार चाहती थी, वहाँ सत्ताधारी वर्ग इस बात से असन्तुष्ट था कि गोर्बाचेव सुधारों में बहुत जल्दबाजी दिखा रहे हैं। फलतः गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा।
  • रूस, बाल्टिक गणराज्यों, उक्रेन तथा जार्जिया में राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

विघटन की परिणतियाँ:
→  सोवियत संघ के विघटन से प्रमुख परिणाम ये निकले:

  • शीत युद्ध के दौर की समाप्ति हुई।
  • अमेरिका विश्व में अकेला महाशक्ति बन बैठा। इस प्रकार एकध्रुवीय विश्व का उदय हुआ।
  •  उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभरा।
  •  सोवियत संघ से अलग होकर अनेक नये देशों का उदय हुआ।

साम्यवादी शासन के बाद ‘शॉक थेरेपी’:
→  साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतान्त्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। यथा-

  • निजी स्वामित्व को मान्यता: राज्य की सम्पदा का निजीकरण और पूँजीवादी ढाँचे को तुरन्त अपनाने पर बल दिया गया।
  • मुक्त व्यापार: मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना जरूरी माना गया।
  • पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाना: पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति पर बल दिया गया।
  • पश्चिमी देशों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध की स्थापना: सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबन्धनों को समाप्त कर प्रत्येक देश को सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया।

→  शॉक थेरेपी के परिणाम:

  • ‘शॉक थेरेपी’ से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। पूरा राज्य नियन्त्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया। 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी कम्पनियों को बेचा गया।
  • रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आयी। मुद्रास्फीति इतनी बढ़ गई कि लोगों की जमा पूँजी जाती रही।
  • पुराने व्यापारिक ढाँचे के स्थान पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था स्थापित नहीं हो पायी।
  • खाद्यान्न सुरक्षा व्यवस्था, समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया। इससे अमीर-गरीब की खाई और बढ़ गयी
  • लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण के कार्य को प्राथमिकता के साथ नहीं किया गया। फलतः संसद एक कमजोर संस्था रह गयी। न्यायिक संस्कृति और न्यायपालिका की स्वतन्त्रता स्थापित नहीं हो पायी।
  • अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन का आधार बना – खनिज तेल, प्राकृतिक गैस और धातु।

→  संघर्ष और तनाव:

  • अनेक गणराज्यों में गृहयुद्ध और बगावत हुई।
  • इन देशों में बाहरी ताकतों की दखल बढ़ी।
  • अनेक में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले।
  • मध्य एशियाई गणराज्य पेट्रोलियम के विशाल तेल भण्डारों के कारण बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा का अखाड़ा बन गये अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है और रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती विदेश मानता है और उसका मानना है कि इन्हें रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। चीनियों ने भी सीमावर्ती क्षेत्र में आकर व्यापार शुरू कर दिया है।

→  पूर्व – साम्यवादी देश और भारत:
भारत के सम्बन्ध रूस के साथ गहरे हैं। भारत-रूस सम्बन्धों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है। ये सम्बन्ध जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। भारत को रूस के साथ अपने सम्बन्धों के कारण अनेक मसलों में फायदे हुए हैं, जैसे कश्मीर समस्या, ऊर्जा आपूर्ति, चीन के साथ सम्बन्धों में सन्तुलन लाना आदि रूस का भारत से लाभ यह है कि भारत उसके हथियारों का एक बड़ा खरीददार देश है। रूस ने तेल के संकट की घड़ी में भारत की हमेशा मदद की। रूस भारत की परमाणविक योजना के लिए महत्त्वपूर्ण है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में पौधों की कितनी जातियां हैं?
(A) 42,000
(B) 45,000
(C) 47,000
(D) 50,000.
उत्तर:
(C) 47,000.

2. डैल्टा प्रदेशों में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
(A) कोणधारी
(B) मानसून
(C) कंटीली झाड़ियां
(D) मैंग्रोव।
उत्तर:
(D) मैंग्रोव।

3. हिमालय पर्वत की कौन-सी ढलान पर घने वन हैं?
(A) उत्तरी
(B) पूर्वी
(C) पश्चिमी
(D) दक्षिणी।
उत्तर:
(D) दक्षिणी।

4. ऊष्ण कटिबन्ध में तापमान किस मात्रा से कम नहीं होता?
(A) 35°C
(B) 30°C
(C) 28°C
(D) 18°C.
उत्तर:
(D) 18°C.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

5. किस राज्य में वनों के अधीन क्षेत्र सबसे अधिक है?
(A) मानसून
(B) मेघालय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) बिहार।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।

6. सिनकोना वृक्ष किस वनस्पति से सम्बन्धित हैं?
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(B) मानसून
(C) ज्वारीय
(D) टुंड्रा
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित

7. किन वनों में हाथी अधिक पाए जाते हैं?
(A) मानसून
(B) पतझड़ीय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) शुष्क।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।

8. देवदार वृक्ष किस ऊंचाई पर मिलते हैं?
(A) 500-1000 मीटर
(B) 1000-1500 मीटर
(C) 1500-3000 मीटर
(D) 3000-4000 मीटर।
उत्तर:
(C) 1500-3000 मीटर|

9. कौन – सी जाति खानाबदोश है?
(A) पिग्मी
(C) मसाई
(B) बकरवाल
(D) रैड इण्डियन
उत्तर:
(B) बकरवाल।

10. रायल बंगाल टाइगर कहां मिलता है?
(A) महानदी डेल्टा
(B) कावेरी डेल्टा
(C) सुन्दर वन
(D) कृष्णा डैल्टा।
उत्तर:
(C) सुन्दर वन।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

11. गिर वन किसके लिए प्रसिद्ध है?
(A) चूहों के लिए
(B) गधों
(C) ऊंट
(D) शेर
उत्तर:
(D) शेर।

12. इनमें से कौन – सा पक्षी आश्रय स्थल है?
(A) कान्हासिली
(C) कावल
(B) भरतपुर
(D) शिवपुरी।
उत्तर:
(B) भरतपुर।

13. पहला जैव- आरक्षित क्षेत्र कहां स्थगित किया गया?
(A) नीलगिरी
(B) सिमलीपाल
(C) नाकरेक
(D) पंचमड़ी।
उत्तर:
(A) नीलगिरी।

14. रबड़ का सम्बन्ध किस प्रकार की वनस्पति से है?
(A) टुण्ड्रा
(B) हिमालय
(C) मैंग्रोव
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।
उत्तर:
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।

15. सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(A) 100 सें० मी०
(B) 70 सें० मी०
(C) 50 सें० मी०
(D) 50 सें०मी० से कम वर्षा
उत्तर:
(A) 100 सें० मी०।

16. सिमलीपाल जीव मण्डल निचय कौन-से राज्य में स्थित है
(A) पंजाब
(C) उड़ीसा
(B) दिल्ली
(D) पश्चिम बंगाल
उत्तर:
(C) उड़ीसा

17. भारत के कौन-से जीव मण्डल निचय विश्व के जीव मण्डल निचयों में लिए गए हैं?
(A) मानस
(B) मन्नार की खाड़ी
(C) दिहांग – दिबांग
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(D) नन्दा देवी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत का कुल कितना भौगोलिक क्षेत्र वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
22%.

प्रश्न 2.
भारत का कुल कितना क्षेत्र (हेक्टेयर में ) वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
750 लाख हेक्टेयर।

प्रश्न 3.
लकड़ी के दो प्रयोग लिखो।
उत्तर:
(i) इमारत निर्माण के लिये
(ii) ईंधन के लिये लकड़ी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
लकड़ी का एक औद्योगिक प्रयोग लिखो।
उत्तर:
खेलों का सामान बनाना, रेयॉन उद्यो।

प्रश्न 5.
बाँस तथा वन के घास के दो उपयोग लिखो।
उत्तर:

  1. कागज़ बनाने के लिये
  2. कृत्रिम रेशा।

प्रश्न 6.
वनों से प्राप्त तीन उत्पादों के नाम लिखो।
उत्तर:
रबड़, गोंद तथा चमड़ा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 7.
उन दो भौगोलिक तत्त्वों के नाम लिखो जो वनों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:

  1. वर्षा की मात्रा
  2. ऊंचाई

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान लिखो
उत्तर:

  1. 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा
  2. 25° – 27°C.

प्रश्न 9.
पतझड़ीय मानसून वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर:
150-200 सेंटीमीटर।

प्रश्न 10.
उस राज्य का नाम बताओ जहां उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 11.
भारत के एक प्रदेश का नाम बताओ जहां काँटे तथा झाड़ियों के वन पाये जाते हैं।
उत्तर;
थार मरुस्थल।

प्रश्न 12.
हिन्द महासागर में द्वीपों के समूह बताएं जहां उष्ण कटिबन्धीय वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
अण्डमान-निकोबार द्वीप।

प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले तीन महत्त्वपूर्ण पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
रोज़वुड, गुर्जन, आबनूस।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 14.
मानसून वनों को पतझड़ीय वन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि ये गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं।

प्रश्न 15.
उन तीन राज्यों के नाम बताएं जहां मानसून वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड।

प्रश्न 16.
मध्य प्रदेश के एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर:
सागवान।

प्रश्न 17.
भारत के दो राज्य बतायें जहां देवदार के वृक्ष मिलते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश

प्रश्न 18.
काँटेदार वन के दो पेड़ों के नाम बतायें।
उत्तर:
खैर तथा खजूरी।

प्रश्न 19.
बबूल के वृक्ष से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
गोंद तथा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 20.
ज्वारीय वन में गुंझलदार जड़ों का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह कीचड़ में वृक्षों का संरक्षण करती हैं।

प्रश्न 21.
भारत का वन अनुसंधान केन्द्र कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून में।

प्रश्न 22.
ज्वारीय वन में पाये जाने वाले दो पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
सुन्दरी, गुर्जन।

प्रश्न 23.
वैज्ञानिक नियम पर वनों के अन्तर्गत कुल कितना क्षेत्र होना चाहिये?
उत्तर:
33%.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 24.
कोणधारी वन के तीन वृक्षों के नाम लिखो।
उत्तर:
पाइन, देवदार, सिल्वर फ़र्र।

प्रश्न 25.
3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
एल्पाइन चरागाह।

प्रश्न 26.
उन दो राज्यों के नाम लिखो जहां देवदार पाये जाते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 27.
मयरो बोलान वृक्ष का उपयोग बताओ।
उत्तर:
रंगने वाले पदार्थ प्रदान करना

प्रस्न 28.
ज्वारीय वातावरण में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
मैंग्रोव वन।

प्रश्न 29.
भारत में आर्थिक पक्ष से कौन-सा वनस्पति क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
पतझड़ीय वन।

प्रश्न 30.
अंग्रेज़ों ने उत्तर-पूर्वी भारत में वनों को क्यों साफ़ किया?
उत्तर:
चाय, कहवा व रबड़ के बागान लगाने के लिए।

प्रश्न 31.
चिनार की लकड़ी का क्या प्रयोग है?
उत्तर:
हस्तशिल्प के लिए।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 32.
हिमालय की अधिक ऊंचाई पर ऋतु- प्रवास करने वाली तीन जातियां बताओ।
उत्तर:
गुज्जर, बकरवाल, भुटिया।

प्रश्न 33.
नीलगिरी पहाड़ियों पर कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शोलावन (शीत-उष्ण कटिबन्धीय वन)।

प्रश्न 34.
वन आवरण क्षेक्षों को चार वर्गों में बांटो।
उत्तर:

प्रदेश वन आवरण का \%
1. अधिक वन संकेन्द्रण क्षेत्र >40
2. मध्यम वन संकेन्द्रण क्षेत्र 20-40
3. कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र 10-20
4. अति कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र <10

प्रश्न 35.
राष्ट्रीय वन नीति में किस उद्देश्य पर अधिक बल है?
उत्तर:
सतत पोषणीय वन का प्रबन्ध।

प्रश्न 36.
सामाजिक वानिकी को किन तीन वर्गों में बांटा गया है?
उत्तर:

  1. शहरी वानिकी
  2. ग्रामीण वानिकी
  3. फार्मवानिकी।

प्रश्न 37.
किन चार जीव मण्डल निचयों को द्वारा मान्यता प्राप्त है?
उत्तर:

  1. नीलगिरी
  2. नन्दा देवी
  3. सुन्दर वन
  4. मन्नार की खाड़ी।

प्रश्न 38.
वनों का जीवन और पर्यावरण के साथ जटिल संबंध है। उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ो तथा निम्नलिखित के उत्तर दो
(क) नई वन नीति का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
सतत् पोषणीय वन प्रबंध।

(ख) वन संरक्षण की एक विधि बताओ।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी।

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प्रश्न 39.
किन मूल्यों को आधार बनाकर हम यह कह सकते हैं कि वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:

  1. बढ़ती हुई जनसंख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव।
  2. वनों की अत्यधिक कटाई के वातावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव।

प्रश्न 40.
राष्ट्रीय वन नीति कब लागू हुई?
उत्तर:
सन् 1988.

प्रश्न 41.
बाघ परियोजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
सन् 1973.

प्रश्न 42.
नन्दा देवी जीवमण्डल किस राज्य में है?
उत्तर:
उत्तराखंड|

प्रश्न 43.
भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
उत्तर:
-18

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में वनों के क्षेत्र के कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
किसी प्रदेश के कुल क्षेत्र के कम-से-कम 1/3 भाग में वनों का विस्तार होना चाहिए ताकि उस प्रदेश में पारिस्थितिक स्वास्थ्य कायम रखा जा सके। भारत में कई कारणों से वन सम्पत्ति का कम विस्तार है।

  1. वनों के विशाल क्षेत्र की कटाई
  2. स्थानान्तरित कृषि की प्रथा
  3. अत्यधिक मृदा अपरदन
  4. चरागाहों की अत्यधिक चराई
  5. लकड़ी एवं ईंधन के लिए वृक्षों की कटाई
  6. मानवीय हस्तक्षेप

प्रश्न 2.
वन सम्पदा के संरक्षण के लिए क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेज़ी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है।

प्रश्न 3.
भारत में विभिन्न प्रकार के घासों का वर्णन करो।
उत्तर:
घासें बारहमासी घासों की 60 प्रजातियां हैं। इनसे मिलकर ही हमारा पारितन्त्र बना है, जो हमारे पशुधन के जीवन का आधार है। वास्तविक चरागाह और घास भूमियां लगभग 12.04 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तीर्ण हैं। चराई के लिए अन्य भूमि, वृक्ष – फसलों और उद्यानों, बंजर भूमि तथा परती भूमि के रूप में हैं। जिनका क्षेत्रफल क्रमश: 37 लाख हेक्टेयर, 15 लाख हेक्टेयर और 23.3 लाख हेक्टेयर है। वनों के अपकर्ष (डिग्रेडेशन) और विनाश के परिणामस्वरूप ही चरागाह और घास भूमियां विकसित हुई हैं। कालान्तर में चरागाह सवाना में बदल जाते हैं। हिमालय की अधिक ऊंचाइयों वाले उप – अल्पाइन और अल्पाइन क्षेत्रों में वास्तविक चरागाह पाए जाते हैं। भारत में घास के तीन पृथक् आवरण हैं। उष्ण कटिंबधीय – यह मैदानों में पाया जाता है। उपोष्ण कटिबंधीय तथा शीतोष्ण कटिबंधीय घास भूमियां मुख्य रूप से हिमालय की पर्वत में ही पाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वनों का संरक्षण – मनुष्यों और पशुओं की बढ़ती हुई संख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव पड़ा है। जो क्षेत्र कभी वनों के ढके थे, आज अर्द्ध-मरुस्थल बन गए हैं। राजस्थान में भी कभी वन थे पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए वन अनिवार्य हैं। मानव का अस्तित्व और विकास पारिस्थितिक सन्तुलन पर निर्भर है। सन्तुलित पारितन्त्र और स्वस्थ पर्यावरण के लिए भारत के कम-से-कम एक तिहाई भाग पर वन होने चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश के एक चौथाई भाग पर भी वन नहीं हैं। इसीलिए वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबन्धन के लिए एक नीति की आवश्यकता है।

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प्रश्न 5.
भारत की वन नीति के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति, वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।

  1. इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू-भाग को वनों के अन्तर्गत लाना था संसार के कुल भू-भाग का 27 प्रतिशत तथा भारत का लगभग 19 प्रतिशत भू-भाग वनों से ढका है।
  2. वन नीति में आगे कहा गया है कि पर्यावरण की स्थिरता कायम रखने का प्रयत्न किया जाएगा तथा जहां पारितन्त्र का सन्तुलन बिगड़ गया है, वहां पुनः वनारोपण किया जाएगा।
  3. आनुवंशिक संसाधनों की जैव विविधता को देश की प्राकृतिक विरासत कहा जाता है। इस विरासत का संरक्षण, वन नीति का अन्य उद्देश्य है।
  4. इस नीति में मृदा अपरदन, मरुभूमि के विस्तार तथा सूखे पर नियन्त्रण का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
  5. इस नीति में जलाशयों में गाद के जमाव को रोकने के लिए बाढ़ नियन्त्रण का भी प्रावधान है।
  6. नीति के और भी उद्देश्य हैं जैसे: अपरदित और अनुत्पादक भूमि पर सामाजिक वानिकी और वनरोपण द्वारा वनावरण में अभिवृद्धि, वनों की उत्पादकता बढ़ाना, ग्रामीण और जन- जातीय जनसंख्या के लिए इमारती लकड़ी, जलावन, चारा और भोजन जुटाना
  7. यही नहीं इस नीति में महिलाओं को शामिल करके, व्यापक जनान्दोलन द्वारा वर्तमान वनों पर दबाव कम करने के लिए भी बल दिया गया है।

प्रश्न 6.
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनों की दो मुख्य विशेषताएं बताइए ये भी बताइए कि ये मुख्यतः किन प्रदेशों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन – ये वन उष्ण कटिबन्धीय वनों के समान सदाबहार घने वन होते हैं। उष्ण- आर्द्र जलवायु के कारण ये वन तेज़ी से बढ़ते हैं तथा अधिक ऊंचे होते हैं। भारत में पाए जाने वाले ये वन कुछ खुले तथा दूर-दूर पाए जाते हैं। इन वनों में कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं जिनके शिखर पर छाता जैसा आकार बन जाता है। भारत में ये वन पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में (केरल तथा कर्नाटक) पाए जाते हैं। ये वन शिलांग पठार के पर्वतीय प्रदेश में पाए जाते हैं। महोगनी, खजूर, बांस मुख्य वृक्ष हैं। अर्द्ध- सदाबहार वन – ये वन पश्चिमी घाट तथा उत्तर-पूर्वी भारत में कम वर्षा के क्षेत्रों में मिलते हैं। ये मानसूनी पतझड़ीय वन हैं।

प्रश्न 7.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन कहां पाए जाते हैं? ऐसे वनों की वनस्पति भूमध्यरेखीय वनों से किस प्रकार समान है तथा किस एक प्रकार से असमान है?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शिलांग पठार, असम प्रदेश तथा पश्चिमी घाट पर पाए जाते हैं। ये वन भूमध्य रेखीय वनों से मिलते-जुलते हैं क्योंकि ये कठोर लकड़ी के वन हैं तथा ये अधिक आर्द्र क्षेत्रों में मिलते हैं जहां 200 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। ये वन भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति घने नहीं हैं, परन्तु ये वन अधिक खुले – खुले मिलते हैं तथा इनका उपयोग आसान हो जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक वानिकी पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी (Social Forestry):

  1. 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले-पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था इसका अर्थ है ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।
  2. नेक राज्य सरकारों ने सामाजिक वानिकी के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए हैं। अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं।
  3. सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैं: कृषि वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना; वन – भूखण्ड (वुडलाट्स) वन विभागों द्वारा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों के किनारे, नहर के तटों तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण; सामुदायिक वन – भूखण्ड लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी’ के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।
  4. सामाजिक वानिकी योजनाएं असफल हो गईं, क्योंकि इसमें उन निर्धन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया, जिन्हें इससे अधिकतर फायदा होना था यह योजना पुरुषोन्मुख हो गई। यही नहीं, यह कार्यक्रम लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया।
  5. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के द्वारा उत्पादित लकड़ी ग्रामीण भारत के ग़रीबों को न मिलकर, नगरों और कारखानों में पहुंचने लगी है। इससे गांवों में रोज़गार के अवसर घटे हैं और अन्न- उत्पादन करने वाली भूमि पर पेड़ लग गए हैं। इससे अनिवासी भू-स्वामित्व को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 9.
कौन-सी वनस्पति जाति बंगाल का आतंक मानी जाती है और क्यों?
उत्तर:
कुछ विदेशज वनस्पति जाति के कारण कई प्रदेशों में समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। भारत में वनस्पति का 40% भाग विदेशज है। ये पौधे चीनी-तिब्बती, अफ्रीका तथा इण्डो- मलेशियाई क्षेत्र से लाए गए हैं। जलहायसिंथ पौधा भारत में बाग के सजावट के पौधे के रूप में लाया गया था। इस पौधे के फैल जाने के कारण पश्चिमी बंगाल में जलमार्गों, नदियों, तालाबों तथा नालों के मुंह बड़े पैमाने पर बन्द हो गए हैं। इस पौधे के हानिकारक प्रभावों के कारण इसे “बंगाल का आतंक” (Terror of Bengal) भी कहा जाता है।

प्रश्न 10.
“हमारी अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है।” इस कथन की व्याख्या करो यह कथन काफ़ी हद तक सही है कि भारत में अधिकांश ‘प्राकृतिक’ वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इस देश में मानवीय निवास के कारण प्राकृतिक वनस्पति का अधिकतर भाग नष्ट हो गया है या परिवर्तित हो गया है अधिकांश वनस्पति अपनी कोटि तथा गुणों के उच्च स्तर के अनुसार नहीं है। केवल हिमालय प्रदेश के कुछ अगम्य क्षेत्रों में एवं थार मरुस्थल के कुछ भागों को छोड़ कर अन्य प्रदेशों में प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इन प्रदेशों की वनस्पति स्थानिक जलवायु तथा मिट्टी के अनुसार पनपती है तथा इसे प्राकृतिक कहा जा सकता है1

प्रश्न 11.
भारत में मुख्य वनस्पतियों के प्रकार को प्रभावित करने वाले भौगोलिक घटकों के नाम बताइए तथा उनके एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। वनस्पति की प्रकार, सघनता आदि वातावरण में कई तत्त्वों पर निर्भर है। भारत में वनस्पति विभाजन के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं मानसूनी वन, शीतोष्ण वन, घास के मैदान आदि वनस्पति प्रकार पाए जाते हैं।

इन वनस्पति को निम्नलिखित भौगोलिक घटक प्रभावित करते हैं

  1. वर्षा की मात्रा
  2. धूप
  3. ताप की मात्रा
  4. मिट्टी की प्रकृति।

जलवायुविक घटक अन्य स्थानिक तत्त्वों के साथ मिल कर एक-दूसरे पर विशेष प्रभाव डालते हैं। अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण असम तथा पश्चिमी घाट पर ऊष्मा कटिबन्धीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है। परन्तु मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। कई भागों में मौसमी वर्षा के कारण पतझड़ीय वनस्पति पाई जाती है। उष्ण जलवायु के कारण अधिकतर चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष पाए जाते हैं, परन्तु हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में कम तापमान के कारण कोणधारी वन तथा अल्पला घास पाई जाती है। स्थानीय मिट्टी के प्रभाव से नदी के डेल्टाई क्षेत्रों में ज्वारीय वन या मैंग्रोव पाई जाती है। इसी प्रकार बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बबूल के वृक्ष मिलते हैं।

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प्रश्न 12.
“हिमालय क्षेत्रों में ऊंचाई के क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेशों तक का अनुक्रम पाया जाता है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रम के अनुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में अन्तर पड़ता है। इस अन्तर के प्रभाव से वनस्पति में एक क्रमिक अन्तर पाया जाता है। धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

  1. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन: हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। यहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।
  2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन: 2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं । इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं।
  3. शंकुधारी वन: दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
  4. अल्पाइन चरागाहें: 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 13.
कृषि वानिकी तथा फ़ार्म वानिकी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
कृषि वानिकी का अर्थ है कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फ़सलें एक साथ लगाना वानिकी और खेती साथ-साथ करना जिसे – चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और फलों का उत्पादन एक साथ किया जाए। समुदाय वानिकी में सार्वजनिक भूमि जैसे – गांव – चरागाह, मन्दिर – भूमि, सड़कों के दोनों ओर नहर किनारे, रेल पट्टी के साथ पटरी और विद्यालयों में पेड़ लगाना शामिल है। इसका उद्देश्य पूरे समुदाय को लाभ पहुंचाना है। इस योजना का एक उद्देश्य भूमिविहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़ना तथा इससे उन्हें वे लाभ पहुंचाना जो केवल भूस्वामियों को ही प्राप्त होते हैं

फार्म वानिकी: फार्म वानिकी के अन्तर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते हैं। वन विभाग, इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है। इस योजना के तहत कई तरह की भूमि, जैसे- खेतों की मेड़ें, चरागाह, घासस्थल, घर के पास पड़ी खाली ज़मीन और पशुओं के बाड़ों में भी पेड़ लगाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
वन्य प्राणी संरक्षण के लिए टाईगर प्रोजैक्ट तथा एलीफैन्ट प्रोजैक्ट का वर्णन करो।
उत्तर:
यूनेस्को के ‘मानव और जीवमण्डल योजना’ (Man and Biosphere Programme) के तहत भारत सरकार ने वनस्पति ज्ञात और प्राणी जात के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। देश के 92 नैशनल पार्क, 492 वन्य प्राणी अभयवन 1.57 करोड़ हैक्टेयर भूमि पर फैले हैं। प्रोजैक्ट टाइगर (1973) और प्रोजैक्ट एलीफेंट (1992) जैसी विशेष योजनाएं इन जातियों के संरक्षण और उनके आवास के बचाव के लिए चलाई जा रही हैं। इनमें से प्रोजैक्ट टाइगर 1973 से चलाई जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है, जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें।

इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा जिसका लोगों को शिक्षा और मनोरंजन के रूप में फायदा होगा। शुरू में यह योजना नौ बाघ निचयों (आरक्षित क्षेत्रों) में शुरू की गई थी और ये 16,339 वर्ग किलोमीटर पर फैली थी। अब यह योजना 27 बाघ निचयों में चल रही है और इनका क्षेत्रफल 37,761 वर्ग किलोमीटर है और 17 राज्यों में व्याप्त है । देश में बाघों की संख्या 1972 में 1,827 से बढ़कर 2001-02 में 3,642 हो गई। यह योजना मुख्य रूप से बाघ केन्द्रित है, परन्तु फिर भी पारिस्थितिक तन्त्र की स्थिरता पर जोर दिया जाता है। बाघों की संख्या का स्तर तभी ऊंचा रह सकता है जब पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न पोषण स्तरों और इसकी भोजन कड़ी को बनाए रखा जाए।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के विभिन्न प्रकार के वनों के भौगोलिक वितरण तथा आर्थिक महत्त्व का वर्णन करो
उत्तर:
भारत की वन सम्पदा (Forest Wealth of India ):
प्राचीन समय में भारत के एक बड़े भाग पर वनों का विस्तार था, परन्तु अब बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इस समय देश में 747 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर वनों का विस्तार है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 22.7% भाग है। भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र लगभग 0.1 हेक्टेयर है जो कि बहुत कम है। भौगोलिक दृष्टि से मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र हैं। भारतीय वनों का वर्गीकरण – भारत में वनों का वितरण वर्षा, तापमान तथा ऊंचाई के अनुसार है। भारत में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं।

1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक, वर्षा 200 सें०मी० से अधिक तथा औसत तापमान 24°C है। इन वनों का विस्तार अग्रलिखित प्रदेशों में है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 1

Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of India extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line.

  1. पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी तटीय मैदान
  2. अण्डमान द्वीप समूह
  3. उत्तर-पूर्व में हिमालय पर्वत की ढलानों पर।

अधिक वर्षा तथा ऊंचे तापमान के कारण ये वन बहुत घने होते हैं। ये सदाबहार वन हैं तथा भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति कठोर लकड़ी के वन हैं। वृक्षों की ऊंचाई 30 से 60 मीटर तक है। इन वनों में रबड़, महोगनी, आबनूस, लौह- काष्ठ, ताड़ तथा चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। इन वृक्षों की लकड़ी फर्नीचर, रेल के स्लीपर, जलपोत निर्माण, नावें बनाने में प्रयोग की जाती है।

2. पतझड़ीय मानसूनी वन (Monsoon Deciduous Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 सें० मी० से 200 सें० मी० तक होती है। इन वनों में वृक्ष ग्रीष्मकाल में अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ीय वन कहते हैं। ये वन निम्नलिखित प्रदेशों में मिलते हैं।

  1. तराई प्रदेश
  2. डेल्टाई प्रदेश
  3. पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलान
  4. प्रायद्वीप का पूर्वी भाग मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु।

ये वन अधिक घने नहीं होते। इनमें वृक्ष कम ऊंचे होते हैं। ये वृक्ष लगभग 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इन वृक्षों को सुगमतापूर्वक काटा जा सकता है। कई भागों में कृषि के लिए इन वनों को साफ कर दिया गया है।

आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में साल, सागौन, चन्दन, रोज़वुड, आम, महुआ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। साल वृक्ष की लकड़ी रेल के स्लीपर तथा डिब्बे बनाने के काम आती है। सागौन की लकड़ी बहुत मज़बूत होती है। इसका प्रयोग इमारती लकड़ी तथा फर्नीचर में किया जाता है। इन वृक्षों पर लाख, बीड़ी, चमड़ा रंगने तथा कागज़ बनाने के उद्योग आधारित हैं।

3. शुष्क वन (Dry Forests ):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 50 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होती है। ये वन निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं।

  1. पूर्वी राजस्थान
  2. दक्षिणी हरियाणा
  3. दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश
  4. कर्नाटक पठार

ये वृक्ष वर्षा की कमी के कारण अधिक ऊंचे नहीं होते। इन वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा छाल मोटी होती है। ये वृक्ष अधिक गहराई से पानी प्राप्त करते हैं तथा वाष्पीकरण को रोकते हैं।
आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में शीशम, बबूल, कीकर, हल्दू आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ये कठोर तथा टिकाऊ लकड़ी के वृक्ष होते हैं। इनका उपयोग कृषि यन्त्र, फर्नीचर, लकड़ी का कोयला, बैलगाड़ियां बनाने में किया जाता है।

4. डेल्टाई वन (Deltaic Forests): ये वन डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन्हें ज्वारीय वन (Tidal Forests) भी कहते मैं। मैनग्रोव वृक्ष के कारण इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove Forests) भी कहते हैं। ये वन निम्नलिखित डेल्टाई क्षेत्रों में मिलते हैं।

  1. गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुन्दर वन)
  2. महानदी, कृष्ण, गोदावरी डेल्टा
  3. दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्र ये वन प्रायः दलदली होते हैं।

गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष मिलने के कारण इसे ‘सुन्दर वन’ कहते हैं। आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ) इन वनों में नारियल, मैंग्रोव ताड़, सुन्दरी आदि वृक्ष मिलते हैं। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इनका प्रयोग ईंधन, इमारती लकड़ी, नावें बनाने तथा माचिस उद्योग में किया जाता है।

5. पर्वतीय वन (Mountain Forests ):
ये वन हिमालय प्रदेश की दक्षिणी ढलानों पर कश्मीर से लेकर असम तक पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में वर्षा की मात्रा अधिक है। वहां सदाबहार तथा चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की अधिकता के कारण कोणधारी वन पाए जाते हैं। इस प्रकार पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी हिमालय के वनों में काफ़ी अन्तर मिलता है। हिमालय प्रदेश में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रमानुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में भी अन्तर पड़ता है । धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन:
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। वहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। वहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।

2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन:
2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। चीड़ के वृक्ष से बिरोज़ा तथा तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है। इसकी हल्की लकड़ी से चाय की पेटियां बनाई जाती हैं।

3. शंकुधारी वन:
दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी रेल के स्लीपर, पुल डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सिवर फर का प्रयोग कागज़ की लुग्दी, पैकिंग का सामान तथा दियासलाई बनाने में किया जाता है।

4. अल्पाइन चरागाहें:
3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत में वास्तविक वनावरण का वितरण बताओ।
उत्तर;
वनक्षेत्र की भांति वनावरण में भी बहुत अन्तर है। जम्मू और कश्मीर में वास्तविक वनावरण एक प्रतिशत है, जबकि अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह की 92 प्रतिशत भूमि पर वास्तविक वनावरण है। परिशिष्ट में दी गई सारणी से स्पष्ट है कि 9 ऐसे राज्य हैं जहां कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग से अधिक पर वनावरण है। एक तिहाई वनावरण पारितन्त्र का सन्तुलन बनाए रखने के लिए मानक आवश्यकता है। चार राज्य ऐसे हैं जहां वन का प्रतिशत आदर्श स्थिति जैसा ही है।

अन्य राज्यों में वनों की स्थिति असंतोषजनक या संकटपूर्ण है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि तीन नवीन राज्यों उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रत्येक के कुल क्षेत्रफल के 40 प्रतिशत भाग पर वन हैं। इन राज्यों के पृथक् आँकड़े न मिलने के कारण इन्हें इनके पूर्व राज्यों में ही सम्मिलित किया गया है।
वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है।

  1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश
  2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
  3. कम वनावरण वाले प्रदेश
  4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश।

1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश:
इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में शामिल हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह और मिज़ोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नागर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 और 80 के बीच है।

2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश:
इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्र 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं ।

3. कम वनावरण वाले प्रदेश:
यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप- प्रदेश हैं : एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप- – प्रदेश उत्तरी भारत में हैं। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।

4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश:
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जाता है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केन्द्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में हैं। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन हैं।

प्रश्न 3.
भारत में राष्ट्रीय उद्यान तथा जीव आरक्षित क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
आज भारत में 104 राष्ट्रीय उद्यान और 543 वन्य जीव अभयारण्य हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल क्रमशः 40,60,000 हेक्टेयर तथा 1,15,40,000 हेक्टेयर है। दोनों का कुल क्षेत्रफल 1,56,00,000 हेक्टेयर होता है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.74 प्रतिशत है। भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विवरण मानचित्र 2 में दिया गया है। सन् 1973 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने कुछ देशों में मनुष्य और जैव मण्डल पर एक कार्यक्रम शुरू किया था।

इसी के परिणामस्वरूप इनके अतिरिक्त 18 जीव आरक्षित क्षेत्र भी बनाए गए हैं। इनका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 43 लाख हेक्टेयर है। इनका कुछ क्षेत्र सुरक्षित क्षेत्र में भी शामिल हो गया। कुछ आरक्षित क्षेत्र इस प्रकार है- नीलगिरि (तमिलनाडु), नोक्रेक (मेघालय), नामदफा (अरुणाचल प्रदेश), नंदा देवी (उत्तराखंड), ग्रेट निकोबार तथा मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु)। विगत कुछ वर्षों में सुरक्षित क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सन् 1990 में भारत ने 1977 विश्व दाय (हैरिटेज) समझौते का अनुसमर्थन कर दिया है। इस समझौते के अनुसार श्रेष्ठ सार्वभौम महत्त्व के चार प्राकृतिक स्थलों को चिह्नित किया गया है।

1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
यह असम के नागाँव और गोलाघाट जिलों में मिकिर पहाड़ियों की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट के साथ विस्तृत है। काजीरंगा ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ क्षेत्र के मैदानों में स्थित है। इस नदी आवास में ऊंची व सघन घास वाली घास भूमियां हैं। इनके बीच-बीच में खुले वन हैं। यहाँ एक-दूसरे से जुड़ी नदियां तथा छोटी-छोटी अनेक झीलें हैं। इसका तीन चौथाई या इससे भी अधिक क्षेत्र प्रतिवर्ष ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के पानी में डूब जाता है। लैंडसैट के 1986 के आंकड़ों के अनुसार इस के 41 प्रतिशत भाग में ऊंची घास, 11 प्रतिशत में छोटी घास, 29 प्रतिशत में खुले वन, 4 प्रतिशत में दल – दल, 8 प्रतिशत में नदियां और जलाशय तथा शेष 7 प्रतिशत में अन्य लक्षण हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य जन्तु एक सींग वाला गैंडा तथा हाथी हैं।

2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान:
यह राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में अलवणजल की दल-दल है, जो सिन्धु गंगा के मैदान का भाग है। जुलाई से लेकर सितम्बर के मानसूनी वर्षा के महीनों में यह क्षेत्र एक से लेकर 2 मीटर की गहराई तक पानी से भर जाता है। अक्तूबर से जनवरी तक जहां जल स्तर धीरे-धीरे घटने लगता है तथा फरवरी के महीने में भूमि सूखने लगती है। जून के महीनों में कुछ गड्ढों में ही पानी रह जाता है। यहां का पर्यावरण अंशत: मानव-निर्मित है। छोटे-छोटे बांधों से पूरे क्षेत्र को 10 भागों में विभाजित कर लिया गया है। जल स्तर के नियंत्रण के लिए प्रत्येक भाग में जल कपाटों की व्यवस्था है।

3. सुन्दर वन जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह पश्चिम बंगाल में भारत की दो बड़ी नदियां गंगा और ब्रह्मपुत्र के दलदली डेल्टाई क्षेत्र में स्थित है। यह मैंग्रोव वनों, दल- दलों और वनाच्छादित द्वीपों के एक विशाल क्षेत्र में फैला है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,300 वर्ग कि०मी० है। यहां लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर (बाघ) निवास करते हैं। इस वन का कुछ भाग बांग्लादेश में हैं। ऐसा अनुमान है कि इस प्रदेश के बाघों की संयुक्त संख्या लगभग 400 हो सकती है। बाघों ने अपने आप को खारी और अलवणजल के अनुकूल बना लिया है। इस जीव आरक्षित क्षेत्र के बाघ अच्छे तैराक हैं।

4. नन्दा देवी जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह जीव आरक्षित क्षेत्र ऋषि गंगा के जल-ग्रहण क्षेत्र में स्थित है। यह धौलीगंगा की पूर्वी सहायक है। धौलीगंगा जोशी मठ के पास अलकनंदा में मिल जाती है। यह हिमनदीय द्रोणी का विस्तृत क्षेत्र है। उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली पहाड़ियों की समान्तर शृंखलाओं द्वारा यह क्षेत्र विभाजित है। यहां 6,400 मी० से ऊंची लगभग एक दर्जन चोटियां हैं। इनमें दूनागिरि (7,066 मी०), चंगबंग (6,864 मी०) तथा नन्दा देवी पूर्व (7,434 मी०) उल्लेखनीय हैं। हिमालय की आन्तरिक घाटी होने के कारण नन्दा देवी द्रोणी में सामान्य शुष्क दशाएं पाई जाती हैं। मानसून की अवधि को छोड़कर वार्षिक वर्षण का औसत कम रहता है। चारों ओर छाई धुंध और मानसून की ऋतु में कम ऊंचाई वाले बादलों के कारण मृदा आर्द्र बनी रहती है। वर्ष के 6 महीनों तक यह द्रोणी हिम से ढकी रहती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 3

प्रश्न 4.
जीव मण्डल निचय क्या है? भारत में इनके विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर:
जीव मण्डल निचय – जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) के मानव और जीव मण्डल प्रोग्राम (MAB) के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है। जीव मण्डल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं।
भारत में 18 जीव मण्डल निचय हैं इनमें से 4 जीव मण्डल निचय

  1. नीलगिरी;
  2. नन्दा देवी;
  3. सुन्दर वन;
  4. मन्नार की खाड़ी को।

यूनेस्को द्वारा जीव मण्डल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 3

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )
प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में सबसे ठण्डा स्थान कौन-सा है?
(A) श्रीनगर
(B) शिमला
(C) द्रास
(D) शिलांग
उत्तर:
(C) द्रास।

2. भारत में सबसे गर्म स्थान कौन-सा है?
(A) नागपुर
(B) बंगलुरु
(C) बाड़मेर
(D) कानपुर
उत्तर:
(C) बाड़मेरर।

3. ग्रीष्मकालीन मानसून की दिशा कौन-सी है?
(A) दक्षिण-पश्चिम
(B) उत्तर-पूर्व
(C) दक्षिण-पूर्व
(D) उत्तर-पश्चिम
उत्तर:
(A) दक्षिण-पश्चिम

4. काल बैसाखी किस राज्य से सम्बन्धित है?
(A) केरल
(C) तमिलनाडु
(B) असम
(D) पंजाब
उत्तर:
(A) पेरू

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

5. एलनीनो किस देश के तट पर प्रवाहित है?
(A) पेरू
(B) दक्षिण अफ्रीका
(C) आस्ट्रेलिया
(D) यूरोप
उत्तर:
(C) बाड़मेर।

6. उत्तर – पश्चिम भारत में शीतकाल में कौन-सी वर्षा होती है?
(A) संवाहिक
(C) चक्रवातीय
(B) पर्वतीय
(D) पूर्व – मानसून
उत्तर;
(C) चक्रवातीय।

7. शीतकालीन चक्रवातीय वर्षा किस फसल की उपज के लिए लाभदायक है?
(A) चावल
(B) मक्का
(C) गेहूं
(D) कपास
उत्तर:
(C) गेहूं।

8. कर्नाटक राज्य में पूर्व- मानसून वर्षा को कहते हैं
(A) चक्रवातीय
(B) काल बैसाखी
(C) लू
(D) आम की बौछार
उत्तर:
(D) आम की बौछार।

9. किस स्थान पर अधिकतर वर्षा हिमपात में होती है?
(A) अमृतसर
(B) शिमला
(C) लेह
(D) कोलकाता
उत्तर:
(C) लेह

10. किस राज्य में लू चलती है?
(A) मध्यप्रदेश
(B) तमिलनाडु
(C) पंजाब
(C) गुजरात
उत्तर:
(C) पंजाब।

11. कौन-सा क्षेत्र वर्षा छाया क्षेत्र है?
(A) दक्कन पठार
(B) असम
(C) गुजरात
(D) केरल
उत्तर:
(A) दक्कन पठार।

12. उत्तर-पश्चिमी भारत से कब मानसून पवनें पीछे हटती हैं?
(A) जनवरी में
(B) अगस्त में
(C) अक्तूबर में
(D) अप्रैल में
उत्तर:
(C) अक्तूबर में।

13. भारत में मानसून पवनों की अवधि है
(A) 61 दिन
(B) 90 दिन
(C) 120 दिन
(D) 150 दिन
उत्तर:
(C) 120 दिन

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14. जाड़े के आरम्भ में तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा किस कारण होती है?
(A) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(C) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून
(D) स्थानीय वायु परिसरण।
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में किस प्रकार का जलवायु मिलता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 2.
भारत के मध्य से कौन-से अक्षांश की अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 3.
कर्क रेखा द्वारा निर्मित दो जलवायु क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 4.
भारत में सबसे गर्म स्थान का नाम बताएं।
उत्तर:
राजस्थान में बाड़मेर (50° C)।

प्रश्न 5.
भारत में सबसे अधिक ठण्डे स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
द्रास (कारगिल) 45°C 1

प्रश्न 6.
भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
चिरापूंजी के निकट मासिनराम – 1080 सेंटीमीटर वर्षा

प्रश्न 7.
उस राज्य का नाम लिखो जहां सबसे कम तापमान अन्तर होता है।
उत्तर:
केरल

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 8.
भारत में सम जलवायु वाले तटीय राज्य का नाम लिखो।
उत्तर:
तमिलनाडु

प्रश्न 9.
देश के आन्तरिक भाग के एक राज्य का नाम लिखो जहां महाद्वीपीय जलवायु है।
उत्तर:
पंजाब।

प्रश्न 10.
उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा का क्या कारण है?
उत्तर;
उत्तर-पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात)।

प्रश्न 11.
भारत के दक्षिण पूर्व तट पर सर्दियों में होने वाली वर्षा का कारण लिखें।
उत्तर:
उत्तर- पूर्व मानसून।

प्रश्न 12.
मानसून शब्द कहां से बना?
उत्तर:
अरबी भाषा का शब्द – मौसिम।

प्रश्न 13.
किस प्रकार की पवनें मानसून होती हैं?
उत्तर:
मौसमी पवनें।

प्रश्न 14.
गर्मियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर – पूर्व

प्रश्न 15.
सर्दियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर;
उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम।

प्रश्न 16.
ऊपरी वायुमण्डल की वायुराशि बताओ जो भारत में मानसून पवनें लाती है।
उत्तर:
जैट प्रवाह

प्रश्न 17.
उस राज्य का नाम बतायें जो सबसे पहले दक्षिण-पश्चिम मानसून प्राप्त करता है।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 18.
एक राज्य बताओ जहां से मानसून पवनें सबसे पहले लौटती हैं।
उत्तर:
पंजाब

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प्रश्न 19.
मानसून वर्षा पर निर्भर रहने वाली दो खरीफ़ फसलों के नाम लिखो।
उत्तर: चावल और मक्का।

प्रश्न 20.
भारत में चार वर्षा वाले महीने लिखो।
उत्तर:
जून से सितम्बर।

प्रश्न 21.
200 cm से अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
पश्चिमी तट, उत्तर पूर्व पहाड़ी क्षेत्र।

प्रश्न 22.
नार्वेस्टर तथा काल बैसाखी कहां चलते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल तथा असम

प्रश्न 23.
पूर्व – मानसून पवनों की वर्षा का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
Mango Showers.

प्रश्न 24.
किन प्रदेशों में शीतकाल में रात को पाला पड़ता है?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 25.
लू से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गर्मियों में गर्म धूल भरी चलने वाली पवनें।

प्रश्न 26.
उस क्षेत्र का नाम बताओ जो दोनों ऋतुओं में वर्षा प्राप्त करता है।
उत्तर:
तमिलनाडु।

प्रश्न 27.
जलवायु से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी स्थान पर लम्बे समय का औसत मौसम

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 28.
मानसून प्रस्फोट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम मानसून का अचानक पहुंचना।

प्रश्न 29.
अक्तूबर गर्मी से क्या भाव है?
उत्तर;
अधिक आर्द्रता तथा गर्मी के कारण अक्तूबर का घुटन भरा मौसम।

प्रश्न 30.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों द्वारा किन तटीय प्रदेशों में प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा

प्रश्न 31.
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु की क्या मुख्य विशेषता है?
उत्तर:
गर्म आर्द्र गर्मियां तथा ठण्डी शुष्क सर्दियां।

प्रश्न 32.
उन पवनों का नाम बताओ जो ग्रीष्म ऋतु में चलती हैं।
उत्तर:
समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली दक्षिण पश्चिम मानसून।

प्रश्न 33.
भारतीय जलवायु में विशाल विविधता क्यों है?
उत्तर:
विशाल आकार के कारण।

प्रश्न 34.
देश के किस भाग में ‘लू’ चलती है?
उत्तर:
उत्तरी मैदान।

प्रश्न 35.
उन दो शाखाओं के नाम बतायें जिनमें दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें विभाजित होती हैं।
उत्तर:

  1. बंगाल की खाड़ी शाखा
  2. अरब सागर शाखा।

प्रश्न 36.
उन पवनों का नाम बताओ जो तमिलनाडु में वर्षा प्रदान करती हैं।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून।

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प्रश्न 37.
वृष्टि छाया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों की विमुख ढलान।

प्रश्न 38.
वृष्टि छाया क्षेत्र का एक नाम बतायें।
उत्तर:
दक्कन पठार

प्रश्न 39.
किस पर्वत के कारण दक्कन पठार वृष्टि छाया है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

प्रश्न 40.
प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतर कुएं क्यों सूख जाते हैं तथा नदियां छोटे मार्ग में क्यों सिकुड़ जाती हैं?
उत्तर:
अधिक गर्मी होने के कारण

प्रश्न 41.
पठार तथा पहाड़ियां गर्मियों में ठण्डे क्यों होते है ?
उत्तर:
अधिक ऊंचाई होने के कारण।

प्रश्न 42.
सम में कौन-सी फसल गर्मियों की वर्षा से लाभ प्राप्त करती है?
उत्तर:
चाय

प्रश्न 43.
Mango Showers किन फसलों के लिये लाभदायक है?
उत्तर:
चाय तथा कहवा

प्रश्न 44.
भारत में जून सबसे अधिक गर्म महीना होता है जुलाई नहीं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि जुलाई महीने में भारी वर्षा होने के कारण तापमान 10°C तक कम हो जाता है।

प्रश्न 45.
कौन – सा तटीय मैदान दक्षिण पश्चिम मानसून से अधिकतर वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 46.
पूर्व मानसून से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानसून का समय से पहले आने के कारण कुछ स्थानीय पवनें पूर्व – मानसून वर्षा करती हैं।

प्रश्न 47.
बाड़मेर (राजस्थान) में दिन का उच्चतम तापमान कितना है?
उत्तर:
50°C.

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प्रश्न 48.
कारगिल (कश्मीर) में दिसम्बर मास में रात का तापमान कितना है?
उत्तर:
40°C.

प्रश्न 49.
मासिनराम (मेघालय) में वार्षिक वर्षा कितनी है?
उत्तर:
1080 सें०मी०।

प्रश्न 50.
भारत के किस भाग में शीतकाल में उच्च वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर- पश्चिमी भारत।

प्रश्न 51.
भारत में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
मासिनराम (मेघालय)।

प्रश्न 52.
जेट प्रवाह की फरवरी मास में स्थिति बताओ।
उत्तर:
25°N अक्षांश।

प्रश्न 53.
भारत में जुलाई मास में किस भाग में न्यून वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत|

प्रश्न 54.
उत्तरी भारत से कब मानसून पवनें लौटती हैं?
उत्तर:
सितम्बर मास में।

प्रश्न 55.
भारत के किस भाग में पश्चिमी विक्षोभ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत।

प्रश्न 56.
भारत के किस भाग में शीतकाल में लौटती मानसून पवनें वर्षा करती हैं?
उत्तर:
कोरोमण्डल तट पर।

प्रश्न 57.
इलाहाबाद नगर के समीप कौन-सी सम-वर्षा रेखा स्थित है?
उत्तर:
100 सेंमी०।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 58.
राजस्थान में वर्षा की परिवर्तनशीलता का गुणांक क्या है?
उत्तर:
50-80 प्रतिशत।

प्रश्न 59.
लू भारत में कब चलती है?
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु में (मई-जून)।

प्रश्न 60.
भारत के किन राज्यों में ‘आम्र वर्षा’ होती है?
उत्तर:
केरल, कर्नाटक एवं गोआ।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ है मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना मानसून व्यवस्था के अनुसार पवनें या मौसमी पवनें (Seasonal winds) चलती हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती है। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं।

  1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानसून पवनें, कम वायु दाब क्षेत्र तथा उच्च वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
  3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में उष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा होना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान मासिनराम ( Mawsynram) है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1080 सें० मी० है। यह स्थान मेघालय में खासी पहाड़ियों की दक्षिणी ढाल कर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मासिनराम में वर्षा की मात्रा 1080 सें०मी० है।

प्रश्न 4.
भारतीय मानसून की तीन प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय मानसून व्यवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. वायु दिशा में परिवर्तन ( मौसम के अनुसार )।
  2. मानसून पवनों का अनिश्चित तथा संदिग्ध होना।
  3. मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायु की व्यापक एकता।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 5.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किस भाग में वे जाड़े की ऋतु में वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
वायु मण्डलों की स्थायी दाब पेटियों में कई प्रकार के विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी विक्षोभ भी एक प्रकार के निम्न दाब केन्द्र (चक्रवात) हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं ये चक्रवात पश्चिमी जेट प्रवाह (Jet Stream) के कारण पूर्व की ओर ईरान, पाकिस्तान तथा भारत की ओर आते हैं। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में जाड़े की ऋतु में ये चक्रवात क्रियाशील होते हैं। इन चक्रवातों के कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में वर्षा होती है । यह वर्षा रबी की फसल (Winter Crop) विशेषकर गेहूं के लिए बहुत लाभदायक होती है। औसत वर्षा 20 सें० मी० से 50 सें० मी० तक होती है

प्रश्न 6.
लू (Loo) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लू एक स्थानीय हवा है। यह ग्रीष्मकाल में उत्तरी भारत के कई भागों में दिन के समय चलती है। यह एक प्रबल, गर्म, धूल भरी हवा है जिसके कारण प्रायः तापमान 40°C से अधिक रहता है। लू की गर्मी असहनीय होती है जिससे प्रायः लोग इस से बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 7.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसून पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। यहां ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Monsoon Burst) कहा जाता है क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े ज़ोर की वर्षा होती है । जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो।

प्रश्न 8.
मानसूनी वर्षा की तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मानसूनी वर्षा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  1. मौसमी वर्षा
  2. अनिश्चित वर्षा
  3. वर्षा का असमान वितरण
  4. वर्षा का लगातार न होना
  5. तट से दूर क्षेत्रों में कम वर्षा होना।

प्रश्न 9.
भारत में कितनी ऋतुएं होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर कोई अन्तर मिलता है? अगर हां तो क्यों?
उत्तर:
भारत के मौसम को ऋतुवत् ढांचे के अनुसार चार ऋतुओं में बांटा जाता है।

  1. शीत ऋतु – दिसम्बर से फरवरी तक
  2. ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक
  3. वर्षा ऋतु – मध्य जून से मध्य सितम्बर तक
  4. शरद् ऋतु – मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक।

इन ऋतुओं की अवधि में प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की ऋतुओं की अवधि में अन्तर पाया जाता है। दक्षिणी भारत में कोई स्पष्ट शीत ऋतु ही नहीं होती। तटीय भागों में कोई ऋतु परिवर्तन नहीं होता दक्षिण भारत में सदैव ग्रीष्म ऋतु रहती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां सारा साल ग्रीष्म ऋतु रहती है, परन्तु उत्तरी भारत शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां स्पष्ट रूप से दो ऋतुएं हैं – ग्रीष्म तथा शीत ऋतु।

प्रश्न 10.
जेट प्रवाह क्या है? समझाइए।
उत्तर:
मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण ‘जेट प्रवाह’ भी माना है। ऊपरी वायुमण्डल में लगभग तीन किलोमीटर की ऊंचाई तक तीव्रगामी धाराएं चलती हैं जिन्हें जेट प्रवाह (Jet Stream) कहा जाता है। ये जेट प्रवाह 20° S, 40°N अक्षांशों के मध्य नियमित रूप से चलता है। हिमालय पर्वत के अवरोध के कारण ये प्रवाह दो भागों में बंट जाते हैं – उत्तरी जेट प्रवाह तथा दक्षिणी जेट प्रवाह दक्षिणी प्रवाह भारत की जलवायु को प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
पश्चिमी जेट प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोभ को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने में मदद करते हैं?
उत्तर:
जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा भारत में हिमालय पर्वत के दक्षिणी तथा पूर्वी भागों में बहती है। जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा की स्थिति 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। जेट प्रवाह की यह शाखा भारत में शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायता करती है। पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट निम्न दाब तन्त्र में ये विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। ये जेट प्रवाह के साथ-साथ ईरान तथा पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आ जाते हैं। जेट प्रवाह के प्रभाव से उत्तर-पश्चिमी भारत में शीतकाल में औसत रूप से चार-पांच चक्रवात पहुंचते हैं जो इस भाग में वर्षा करते हैं।

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प्रश्न 12.
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबन्ध (I. I. C. Z.) क्या है?
उत्तर:
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबंध ( I. T. C. Z. ):
भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति उष्ण कटिबन्ध के बीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण की ओर सरक जाती है। यह भूमध्य रेखीय निम्न दाब द्रोणी दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 13.
कौन-कौन से कारण भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण को नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। भारत मुख्य रूप से मानसून खण्ड में स्थित होने के कारण गर्म देश है, परन्तु कई कारकों के प्रभाव से विभिन्न प्रदेशों में तापमान वितरण में विविधता पाई जाती है। ये कारक निम्नलिखित हैं

  1. अक्षांश या भूमध्य रेखा से दूरी
  2. धरातल का प्रभाव
  3. पर्वतों की स्थिति
  4. सागर से दूरी
  5. प्रचलित पवनें
  6. चक्रवातों का प्रभाव।

प्रश्न 14.
भारत के अत्यधिक ठण्डे भाग कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा हिमालय पर्वतीय प्रदेश में अधिक ठण्डे तापक्रम पाए जाते हैं। कश्मीर में कारगिल नामक स्थान पर तापक्रम न्यूनतम – 40°C तक पहुंच जाता है। इन प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डे तापक्रम होने का मुख्य कारण यह है कि ये प्रदेश सागर तल से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं। इन पर्वतीय प्रदेशों में शीतकाल में हिमपात होता है तथा तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है।

प्रश्न 15.
भारत के अत्यधिक गर्म भाग कौन-कौन से हैं और उसके कारण क्या हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक तापमान राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं। यहां ग्रीष्म ऋतु में बाड़मेर क्षेत्र में दिन का तापमान 48°C से 50°C तक पहुंच जाता है। इस प्रदेश में उच्च तापमान मिलने का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है । यह प्रदेश देश के भीतरी भागों में स्थित है। यहां सागर का समकारी प्रभाव नहीं पड़ता । ग्रीष्म काल लू के कारण भी तापमान बढ़ जाता है। रेतीली मिट्टी तथा वायु में नमी की कमी के कारण भी तापमान ऊंचे रहते हैं।

प्रश्न 16.
उन चार महीनों के नाम बताइए जिन में भारत में अधिकतम वर्षा होती है।
उत्तर:
भारत में मौसमी वर्षा के कारण अधिकतर वर्षा ग्रीष्म काल में चार महीनों में होती है। इसे वर्षा ऋतु कहा जाता है। अधिकतम वर्षा जून-जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर के महीनों में ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों द्वारा होती है।

प्रश्न 17.
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति किन दो तत्त्वों पर आधारित है?
उत्तर”:
कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

प्रश्न 18.
भारत में अधिकतम एवं निम्नतम वर्षा प्राप्त करने वाले भाग कौन-कौन-से हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
अधिकतम वर्षा वाले भाग- भारत में निम्नलिखित प्रदेशों में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है

  1. उत्तर-पूर्वी हिमालयी प्रदेश ( गारो – खासी पहाड़ियां )।
  2. पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट।

कारण:
ये प्रदेश पर्वतीय प्रदेश हैं तथा मानसून पवनों के सम्मुख स्थित हैं। उत्तर- र-पूर्वी हिमालय प्रदेश में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की सम्मुख ढाल पर अरब सागर की मानसून शाखा अत्यधिक वर्षा करती है।
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निम्नतम वर्षा वाले भाग: भारत के निम्नलिखित भागों में 20 सें० मी० से कम वर्षा होती है

  1. पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल ( बाड़मेर क्षेत्र),
  2. कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र,
  3. प्रायद्वीप में दक्षिण पठार

कारण: राजस्थान में अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए पश्चिमी राजस्थान शुष्क क्षेत्र रह जाता है। प्रायद्वीपीय पठार पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण शुष्क रहता है। इसी प्रकार लद्दाख हिमालय की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

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प्रश्न 19.
भारतीय मानसून पर एल-नीनो का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
एल-नीनो और भारतीय मानसून:
एल-नीनो एक जटिल मौसम तन्त्र है। यह हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएं आती हैं। महासागरीय और वायुमण्डलीय तन्त्र इसमें शामिल होते हैं। पूर्वी प्रशान्त महासागर में यह पेरू के तट के निकट कोष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है। भारत में मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए एल-नीनो का उपयोग होता है। सन् 1990-91 में एल-नीनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था । इसके कारण देश के अधिकतर भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों तक की देरी हो गई थी।

प्रश्न 20.
कोपेन द्वारा जलवायु के प्रकारों के लिए अक्षरों का संकेत किस प्रकार प्रयोग किया गया?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के प्रकारों को निर्धारित करने के लिए अक्षरों का संकेत के रूप में प्रयोग किया जैसा कि ऊपर दिया गया है। प्रत्येक प्रकार को उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है। इस विभाजन में तापमान और वर्षा के वितरण में मौसमी भिन्नताओं को आधार बनाया गया है। उसने अंग्रेज़ी के बड़े अक्षर S को अर्द्ध मरुस्थल के लिए और W को मरुस्थल लिए प्रयोग किया। इसी तरह उप-विभागों को परिभाषित करने के लिए अंग्रेज़ी के निम्नलिखित छोटे अक्षरों का उपयोग किया है जैसे – f (पर्याप्त वर्षण), m ( शुष्क मानसून होते हुए भी वर्षा वन) w (शुष्क शीत ऋतु ), h (शुष्क और गरम ), c (चार महीनों से कम अवधि में औसत तापमान 10° से अधिक) और g (गंगा का मैदान)।

प्रश्न 21.
भारत में गरमी की लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत के कुछ भागों में मार्च से लेकर जुलाई के महीनों की अवधि में असाधारण रूप से गरम मौसम के दौर आते हैं। ये दौर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की ओर खिसकते रहते हैं। इन्हें गरमी की लहर कहते हैं। गरमी की लहर से प्रभावित इन प्रदेशों के तापमान सामान्य से 6° से अधिक रहते हैं । सामान्य से 8° से या इससे अधिक तापमान के बढ़ जाने पर चलने वाली गरमी की लहर की प्रचंड (severe) माना जाता है। इसे उत्तर भारत में ‘लू’ कहते हैं।

प्रचंड गरमी की लहर की अवधि जब बढ़ जाती है तब किसानों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं। बड़ी संख्या में मनुष्य और पशु मौत के मुंह में चले जाते हैं। दक्षिण के केरल और तमिलनाडु राज्यों तथा पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर देश के लगभग सभी भागों में गरमी की लहर आती है। उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तर-प्रदेश में सबसे अधिक गरमी की लहरें आती हैं। साल में कम-से-कम गरमी की एक लहर तो आती ही है।

प्रश्न 22.
भारत में शीत लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
उत्तर पश्चिम भारत में नवम्बर से लेकर अप्रैल तक ठंडी और शुष्क हवाएं चलती हैं। जब न्यूनतम तापमान सामान्य से 6° से नीचे चला जाता है, तब इसे शीत लहर कहते हैं। जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ठिठुराने वाली शीत लहर चलती है। जम्मू और कश्मीर में औसतन साल में कम-से-कम चार शीत लहर तो आती हैं। इसके विपरीत गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश में साल में एक शीत लहर आती है। ठिठुराने वाली शीत लहरों की आवृत्ति पूर्व और दक्षिण की ओर घट जाती है। दक्षिणी राज्यों में सामान्य शीत लहर नहीं चलती।

प्रश्न 23.
भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेशों में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक न्यूनतम तथा कच्छ और गुजरात में अधिक क्यों हैं?
उत्तर:
भारतीय वर्षा की मुख्य विशेषता इसमें वर्ष-दर- वर्ष होने वाली परिवर्तिता है। एक ही स्थान पर किसी वर्ष वर्षा अधिक होती है तो किसी वर्ष बहुत कम इस प्रकार वास्तविक वर्षा की मात्रा औसत वार्षिक वर्षा से कम या अधिक हो जाती है। वार्षिक वर्षा की इस परिवर्तनशीलता को वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall) कहते हैं। यह परिवर्तिता निम्नलिखित फार्मूले से निकाली जाती है
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इस मूल्य को विचरण गुणांक ( Co-efficient of Variation ) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश में यह विचरण गुणांक 15% से कम है। यहां सागर से समीपता के कारण मानसून पवनों का प्रभाव प्रत्येक वर्ष एक समान रहता है तथा वर्षा की मात्रा में विशेष परिवर्तन नहीं होता। कच्छ तथा गुजरात में विचरण गुणांक 50% से 80% तक पाया जाता है। यहां मानसून पवनें बहुत ही अनिश्चित होती हैं। इन पवनों को रोकने के लिए ऊंचे पर्वतों का अभाव है। इसलिए वर्षा की मात्रा में अधिक उतार-चढ़ाव होता रहता है।

प्रश्न 24.
राजस्थान का पश्चिमी भाग क्यों शुष्क है?
अथवा
‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में राजस्थान का पश्चिमी भाग लगभग शुष्क रहता है’ इस कथन के पक्ष में तीन महत्त्वपूर्ण कारण दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान का पश्चिमी भाग एक मरुस्थल है। यहां वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम है। राजस्थान में अरावली पर्वत दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें इस प्रदेश तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। ये पवनें नमी समाप्त होने के कारण वर्षा नहीं करतीं। यह प्रदेश हिमालय पर्वत से अधिक दूर है। इसलिए यहां वर्षा का अभाव है।

प्रश्न 25.
मासिनराम संसार में सर्वाधिक वर्षा क्यों प्राप्त करता है?
उत्तर:
मासिनराम खासी पहाड़ियों (Meghalaya) की दक्षिणी ढलान पर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1187 सेंटीमीटर है तथा यह स्थान संसार में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां धरातल की आकृति कीपनुमा (Funnel Shape) बन जाती है। खाड़ी बंगाल से आने वाली मानसून पवनें इन पहाड़ियों में फंस कर भारी वर्षा करती हैं। ये पवनें इन पहाड़ियों से बाहर निकलने का प्रयत्न करती हैं परन्तु बाहर नहीं निकल पातीं। इस प्रकार ये पवनें फिर ऊपर उठती हैं तथा फिर वर्षा करती हैं। सन् 1861 में यहां 2262 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा रिकार्ड की गई।

प्रश्न 26.
तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकांश वर्षा जाड़े में क्यों होती है?
उत्तर:
तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। यहां शीतकाल की उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अपेक्षा अधिक वर्षा करती हैं। ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया (Rain Shadow) में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करती हैं। शीतकाल में लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल को पार करके नमी ग्रहण कर लेती हैं। ये पवनें पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकरा कर वर्षा करती हैं। इस प्रकार शीतकाल में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है, परन्तु ग्रीष्मकाल में वृष्टि छाया में होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

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प्रश्न 27.
भारत में उत्तर-पश्चिमी मैदान में शीत ऋतु में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
भारत में उत्तर- पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुंचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर इस वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है।

प्रश्न 28.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की एक परिघटना इसकी क्रम भंग ( वर्षा की अवधि के मध्य शुष्क मौसम के क्षण ) की प्रवृत्ति क्यों है?
उत्तर:
भारत में अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है। इन पवनों द्वारा वर्षा निरन्तर न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस काल में एक लम्बा शुष्क मौसम (Dry Spell) आ जाता है। इससे इन पवनों द्वारा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है। इसका मुख्य कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Depressions) हैं जो खाड़ी बंगाल या अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात मानसून वर्षा की मात्रा को अधिक करते हैं। परन्तु इन चक्रवातों के अनियमित प्रवाह के कारण कई बार एक लम्बा शुष्क समय आ जाता है जिससे फसलों को क्षति पहुंचती है।

प्रश्न 29.
” जैसलमेर की वार्षिक वर्षा शायद ही कभी 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है।” कारण बताओ।
उत्तर;
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह प्रदेश अरब सागर की मानसून पवनों के प्रभाव में है। ये पवनें अरावली पर्वत के समानान्तर चलती हुई पश्चिम से होकर आगे बढ़ जाती हैं जिससे यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें यहां तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। यह प्रदेश पर्वतीय भाग से भी बहुत दूर है। इसलिए यह प्रदेश वर्षा ऋतु में शुष्क रहता है जबकि सारे भारत में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 12 सेंटीमीटर से भी कम है। इसके विपरीत गारो, खासी पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि गारो पहाड़ियों में एक दिन की वर्षा जैसलमेर की दस साल की वर्षा से अधिक होती है।

प्रश्न 30.
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव (Global warming):
प्राचीन काल में जलवायु में परिवर्तन हुआ है इसमें आज भी परिवर्तन हो रहे हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन के अनेक ऐतिहासिक और भू-वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं। इस परिवर्तन के लिए अनेक प्राकृतिक एवं मानवकृत कारक उत्तरदायी हैं। ऐसा कहा जाता है कि भू-मण्डलीय तापन के प्रभाव से ध्रुवीय व हिम की चादरें और पर्वतीय हिमानियां पिघल जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप समुद्रों में जल की मात्रा बढ़ जाएगी। आजकल संसार के तापमान में काफ़ी वृद्धि हो रही है। मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि चिन्ता का प्रमुख कारण है।

जीवाश्म ईंधनों के जलने से वायुमण्डल में इस गैस की मात्रा क्रमशः बढ़ रही है। कुछ अन्य गैसें जैसे मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओज़ोन और नाइट्रस ऑक्साइड, वायुमण्डल में अल्प मात्रा में विद्यमान हैं। इन्हें तथा कार्बन डाइऑक्साइड को हरितगृह गैसें कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में अन्य चार गैसें दीर्घ तरंगी विकिरण का ज्यादा अच्छी तरह से अवशोषण करती हैं। इसीलिए हरित गृह प्रभाव को बढ़ाने में उनका अधिक योगदान है। इन्हीं के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

विगत 150 वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत वार्षिक तापमान बढ़ा है। ऐसा अनुमान है कि सन् 2100 में भू-मण्डलीय तापमान में लगभग 2° सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। तापमान की इस वृद्धि से कई अन्य परिवर्तन भी होंगे। इनमें से एक है गरमी के कारण हिमानियों और समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र तल का ऊंचा होना प्रचलित पूर्वानुमान के अनुसार औसत समुद्र तल 21वीं शताब्दी के अन्त तक 48 से०मी० ऊंचा हो जाएगा। इसके कारण प्राकृतिक बाढ़ों की संख्या बढ़ जाएगी। जलवायु परिवर्तन के कीटजन्य मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ जाएंगी।

साथ ही वर्तमान जलवायु सीमाएं भी बदल जाएंगी, जिसके कारण कुछ भाग अधिक जलसिक्त (Wet) और कुछ अधिक शुष्क हो जाएंगे। कृषीय प्रतिरूपों के स्थान बदल जाएंगे। जनसंख्या और पारितन्त्र में भी परिवर्तन होंगे। यदि आज का समुद्र तल 50 से०मी० ऊंचा हो जाए, तो भारत के तटवर्ती जल निम्न हो जाएंगे।

प्रश्न 31.
भारतीय मानसून की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसून की प्रवृत्ति के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इसके आगमन के समय और निवर्तन (समाप्त) होने के समय में प्रत्येक वर्ष परिवर्तन होता रहता है, कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि की समस्या उत्पन्न होती है जो बाढ़ और सूखे का भी कारण है। मानसूनी वर्षा का रुक-रुक कर होना भी एक समस्या है। अर्थात् मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। इसमें एक अंतराल पाया जाता है, कभी जून में औसत वर्षा अच्छी होती है, लेकिन जुलाई-अगस्त सूखा पड़ जाता है। स्पष्टतः मानसून की प्रकृति में अस्थिरता पाई जाती है और मानसूनी वर्षा परिवर्तनशील है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और देश की कृषि अर्थव्यवस्था में इसका महत्त्व बताइए
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएं (Characteristics of Indian Rainfall):
1. मानसूनी वर्षा (Dependence on Monsoons ): भारत की वर्षा का लगभग 85% भाग ग्रीष्म काल की मानसून पवनों द्वारा होता है। यह वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर तक प्राप्त होती है जिसे वर्षा – काल कहते हैं।

2. अनिश्चितता (Uncertainty ): भारत में मानसून वर्षा समय के अनुसार एकदम अनिश्चित है। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी देर से आरम्भ होती हैं जिससे नदियों में बाढ़ें आ जाती हैं या फसलें सूखे से नष्ट हो जाती हैं। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को बड़ी हानि होती है।

3. असमान वितरण (Unequal Distribution ): भारत में वर्षा का प्रादेशिक वितरण असमान है। कई भागों में अत्यधिक वर्षा होती है जबकि कई प्रदेशों में कम वर्षा के कारण अकाल पड़ जाते हैं। देश के 10% भाग में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है जबकि 25% भाग में 75 से० मी० से भी कम।

4. मूसलाधार वर्षा (Heavy Rains): मानसून वर्षा प्रायः मूसलाधार होती है। इसलिए कहा जाता है, “It pours, it never rains in India. ” मूसलाधार वर्षा से भूमि कटाव तथा नदियों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall): भारत में मानसून पवनें ऊंचे पर्वतों से टकरा कर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु पर्वतों के विमुख ढाल वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रहने के कारण शुष्क रह जाते हैं।

6. अन्तरालता (No Continuity ): कभी – कभी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस शुष्क समय (Dry Spells) के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।

7. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): भारत की 85% वर्षा केवल चार महीनों के वर्षा काल में होती है । वर्ष का शेष भाग शुष्क रहता है। जिससे कृषि के लिए जल सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। साल में वर्षा के दिन बहुत कम होते हैं।

8. संदिग्ध वर्षा (Variable Rainfall ): भारत के कई क्षेत्रों की वर्षा संदिग्ध है। यह आवश्यक नहीं कि वर्षा हो या न हो। ऐसे प्रदेशों में अकाल पड़ जाते हैं। देश के भीतरी भागों में वर्षा विश्वासजनक नहीं होती।

भारतीय कृषि – व्यवस्था में मानसून वर्षा का महत्त्व (Significance of Monsoons in Agricultural System):
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर करती है। कृषि की सफलता मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। मानसून पवनें जब समय पर उचित मात्रा में वर्षा करती हैं तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है। मानसून की असफलता के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज की कमी अनुभव होती है । मानसून पवनों के समय से पूर्व आरम्भ होने से या देर से आरम्भ होने से भी कृषि को हानि पहुंचती है। कई बार नदियों में बढ़ें आ जाती हैं जिससे फसलों की बुआई ठीक समय पर नहीं हो पाती।

वर्षा के ठीक वितरण के कारण भी वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार कृषि तथा मानसून पवनों में गहरा सम्बन्ध है । जल सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण भारतीय कृषि को मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर करना पड़ता है। कृषि पर ही भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कृषि ही किसानों की आय का एकमात्र साधन है। मानसून के असफल होने की दशा में सारे देश की आर्थिक व्यवस्था नष्ट- भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर तथा कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए कहा जाता है कि भारतीय बजट मानसून पवनों पर जुआ है। (Indian budget is a gamble on monsoon.)

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
भारत की जलवायु किन-किन तत्त्वों पर निर्भर है?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। “यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है।” (‘“There is great diversity of climate in India. ” ) एक कथन के अनुसार, “विश्व की लगभग समस्त जलवायु भारत में मिलती है। ” कहीं समुद्र के निकट सम जलवायु है तो कहीं भीतरी भागों में कठोर जलवायु है। कहीं अधिक वर्षा है तो कहीं बहुत कम। परन्तु भारत, मुख्य रूप से मानसून खण्ड (Monsoon Region) में स्थित होने के कारण, एक गर्म देश है। निम्नलिखित तत्त्व भारत की जलवायु पर प्रभाव डालते हैं

1. मानसून पवनें (Monsoons ):
भारत की जलवायु मूलतः मानसूनी जलवायु है। यह जलवायु विभिन्न मौसमों में प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती है। शीत काल की मानसून पवनें स्थल की ओर से आती हैं तथा शुष्क और ठण्डी होती हैं, परन्तु गीष्मकाल की मानसून पवनें समुद्र की ओर से आने के कारण भारी वर्षा करती हैं। इन्हीं पवनों के आधार पर भारत में विभिन्न मौसम बनते हैं।

2. देश का विस्तार (Extent ):
देश के विस्तार का विशेष प्रभाव तापक्रम पर पड़ता है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर जाती है। देश का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। इसलिए उत्तरी भाग में शीतकाल तथा ग्रीष्म काल दोनों ऋतुएं होती हैं, परन्तु दक्षिणी भाग सारा वर्ष गर्म रहता है। दक्षिणी भाग में कोई शीत ऋतु नहीं होती।

3. भूमध्य रेखा से समीपता (Nearness to Equator ):
भारत का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के बहुत निकट है, इसलिए सारा वर्ष ऊंचे तापक्रम मिलते हैं। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) भारत के मध्य में से गुज़रती है। इसलिए इसे एक गर्म देश माना जाता है।

4. हिमालय पर्वत की स्थिति (Location and Direction of the Himalayas ):
हिमालय पर्वत की स्थिति का भारत की जलवायु पर भारी प्रभाव पड़ता है। (“The Himalayas act as a climatic barrier. ” ) यह पर्वत मध्य एशिया से आने वाली बर्फीली पवनों को रोकता है और उत्तरी भारत को शीत लहर से बचाता है। हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है तथा खाड़ी बंगाल से उठने वाली मानसून पवनें इसे पार नहीं कर पातीं जिससे उत्तरी भारत में घनघोर वर्षा करती हैं। यदि हिमालय पर्वत न होता तो उत्तरी भारत एक मरुस्थल होता।

5. हिन्द महासागर से सम्बन्ध (Situation of India with respect to Indian Ocean ): भारत की स्थिति हिन्द महासागर के उत्तर में है। ग्रीष्म काल में हिन्द महासागर पर अधिक वायु दबाव होने के कारण ही मानसून पवनें चलती हैं। खाड़ी बंगाल, तमिलनाडु राज्य में शीतकाल की वर्षा का कारण बनता है। इसी खाड़ी से ग्रीष्म काल में चक्रवात (Depressions) चलते हैं जो भारी वर्षा करते हैं।

6. चक्रवात (Cyclones): भारत की जलवायु पर चक्रवात का विशेष प्रभाव पड़ता है। शीतकाल में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में रूम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा वर्षा होती है। अप्रैल तथा अक्तूबर महीने में खाड़ी बंगाल से चलने वाले चक्रवात भी काफ़ी वर्षा करते हैं।

7. धरातल का प्रभाव (Effects of Relief):
भारत की जलवायु पर धरातल का गहरा प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी घाट तथा असम में अधिक वर्षा होती है क्योंकि ये भाग पर्वतों के सम्मुख ढाल पर है, परन्तु दक्षिणी पठार विमुख ढाल पर होने के कारण वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रह जाता है जिससे शुष्क रह जाता है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें रोक नहीं पाता जिससे राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भारत के धरातल का यहां के तापक्रम, वायु तथा वर्षा पर स्पष्ट नियन्त्रण है । पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम है जबकि मैदानी भाग में अधिक तापक्रम पाए जाते हैं। आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा का जनवरी का तापमान 16°C है जबकि दार्जिलिंग का केवल 4°C है।

8. समुद्र से दूरी (Distance from Sea ):
भारत के तटीय भागों में सम जलवायु मिलता है। जैसे – मुम्बई में जनवरी का तापमान 24°C है तथा जुलाई का तापमान 27°C है। इलाहाबाद समुद्र से बहुत दूर है, वहां जनवरी का तापमान 16°C तथा जुलाई का तापमान 30° C है। इसलिए दक्षिणी भारत तीन ओर समुद्र से घिरा होने के कारण ग्रीष्म में कम गर्मी तथा शीत ऋतु में कम सर्दी पड़ती है।

प्रश्न 3.
“व्यापक जलवायविक एकता के होते हुए भी भारत की जलवायु में प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं।” इस कथन की पुष्टि उपयुक्त उदाहरण देते हुए कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है। परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। यह मानसून व्यवस्था दक्षिण – पूर्वी एशिया के मानसूनी देशों से भारत को जोड़ती है। इस प्रकार मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान, वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। विभिन्न प्रदेशों की जलवायु के अलग-अलग प्रादेशिक स्वरूप मिलते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर कई कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं। जैसे- स्थिति, समुद्र से दूरी, भूमध्य रेखा से दूरी, उच्चावच आदि। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसूनी जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु को व्यापक एकता पाई जाती है।

प्रादेशिक अन्तरं मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।
1. राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर तथा चुरू जिले में ग्रीष्म काल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सैंटीग्रेड के निकट रहता है।

2. दक्षिणी भारत में सारा साल ऊंचे तापमान मिलते हैं तथा कोई शीत ऋतु नहीं होती। उत्तर-पश्चिमी भाग में शीतकाल में तापमान हिमांक से नीचे चले जाते हैं। तटीय भागों में सारा साल समान रूप से दरमियाने तापमान पाए जाते हैं।

3. दिसम्बर मास में द्रास, लेह एवं कारगिल में तापमान – 45°C तक पहुंच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में तापमान + 28°C रहता है।

4. इसी प्रकार औसत वार्षिक वर्षा में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर मासिनराम में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है। जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है। गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है।

5. एक ओर असम, बंगाल तथा पूर्वी तट पर चक्रवातों के कारण भारी वर्षा होती है तो दूसरी ओर दक्षिण तथा पश्चिमी तट शुष्क रहता है।

6. कई भागों में मानसून वर्षा जून के पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागों में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है। अधिकांश भागों में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है तो पश्चिमी भागों में शीतकाल में वर्षा होती है। ग्रीष्म काल में उत्तरी भारत में लू चल रही होती है परन्तु दक्षिणी भारत के तटीय भागों में सुहावनी जलवायु होती है।

7. तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तःस्थ स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहर चल रही होती है तो दक्षिणी भारत में काफ़ी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय मौसम रचना तन्त्र का वर्णन जेट प्रवाह के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मौसम रचना तन्त्र – मानसून क्रियाविधि निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  1. वायु दाब ( Pressure) का वितरण।
  2. पवनों (Winds) का धरातलीय वितरण।
  3. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation)।
  4. विभिन्न वायु राशियों का प्रवाह।
  5. पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात) (Cyclones)।
  6. जेट प्रवाह (Jet Stream)।

1. वायु दाब तथा पवनों का वितरण (Distribution of Atmospheric Pressure and Winds):
शीत ऋतु में भारतीय मौसम मध्य एशिया तथा पश्चिमी एशिया में स्थित उच्च वायु दाब द्वारा प्रभावित होता है। इस उच्च दा केन्द्र से प्रायद्वीप की ओर शुष्क पवनें चलती हैं। भारतीय मैदान के उत्तर पश्चिमी भाग में से शुष्क हवाएं महसूस की जाती हैं। मध्य गंगा घाटी तक सम्पूर्ण उत्तर – पश्चिमी भारत उत्तर – पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है। ग्रीष्म काल के आरम्भ में सूर्य के उत्तरायण के समय में वायुदाब तथा पवनों के परिसंचरण में परिवर्तन आरम्भ हो जाता है।

उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाता है। भूमध्य रेखीय निम्न दाब भी उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। इस के प्रभावाधीन दक्षिणी गोलार्द्ध से व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार करके निम्न वायु दाब की ओर बढ़ती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं। ये पवनें भारत में ग्रीष्म काल में वर्षा करती हैं।

2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation ):
वायुदाब तथा पवनें धरातलीय स्तर पर परिवर्तन लाते हैं। परन्तु भारतीय मौसम में ऊपरी वायु परिसंचरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण है। ऊपरी वायु में जेट प्रवाह भारत में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायक हैं। ये जेट प्रवाह भारत के मौसम रचना तन्त्र को प्रभावित करता है।

3. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances ):
भारत में शीतकाल में निम्न वायुदाब केन्द्रों का विस्तार होता है। ये अवदाब या विक्षोभ भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये ईरान, पाकिस्तान से होते हुए भारत में जनवरी-फरवरी में वर्षा करते हैं।

4. जेट प्रवाह (Jet Stream ):
जेट प्रवाह धरातल के लगभग 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली एक ऊपरी वायु- धारा है। यह वायु-धारा क्षोभ मण्डल के ऊपरी वायु भाग में बहती है। यह वायु धारा पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया के ऊपर बहने वाली पश्चिमी पवनों की एक शाखा है। यह शाखा हिमालय पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व दिशा बहती है। इस वायु -धारा की स्थिति फरवरी में 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। यह जेट प्रवाह भारतीय मौसम रचना तन्त्र पर कई प्रकार से प्रभाव डालती है।
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  1. इस जेट प्रवाह के कारण उत्तरी भारत में शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी पवनें चलती हैं।
  2. इस वायु -धारा के साथ-साथ पश्चिम की ओर से भारतीय उपमहाद्वीप में शीतकालीन चक्रवात आते हैं। ये चक्रवात भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात शीतकाल में हल्की-हल्की वर्षा करते हैं।
  3. जुलाई में जेट प्रवाह भारतीय प्रदेशों से लौट चुका होता है। इसका स्थान भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध ले लेता है, जो भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सरक जाता है। इसे अन्तर- उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (I.T.C.Z.) कहा जाता है।
  4. इस निम्न दाब के कारण भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें, वास्तव में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों का उत्तर की ओर विस्तार ही है।
  5. हिमालय तथा तिब्बत के उच्च स्थलों के ग्रीष्म काल में गर्म होने तथा विकिरण के कारण भारत में पूर्वी जेट प्रवाह के रूप में एक वायु धारा बहती है। यह पूर्वी जेट प्रवाह उष्ण कटिबन्धीय गर्तों को भारत की ओर लाने में सहायक है। ये गर्त दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 5.
कोपेन (Koeppen) द्वारा भारत के विभाजित जलवायु प्रदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत मुख्य रूप से एक मानसूनी प्रदेश है। इस विशाल देश में जलवायु की भिन्नता तथा कई प्रादेशिक अन्तरों का होना स्वाभाविक है। देश में मानसूनी जलवायु के कई उप-प्रकार देखे जा सकते हैं। इनके आधार पर भारत को विभिन्न जलवायु विभागों में बांटा जा सकता है। कोपेन का जलवायु वर्गीकरण – जर्मनी के प्रसिद्ध जीव-विज्ञानवेत्ता कोपेन द्वारा संसार को जलवायु विभागों में बांटा गया है। इस विभाजन में मासिक तापमान और वर्षा के औसत मूल्यों के विश्लेषण के आधार पर जलवायु के पांच मुख्य प्रकार माने गए हैं। इस जलवायु प्रदेशों के वर्गों को अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों A, B, C, D तथा E द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन वर्गों के उप प्रकार छोटे अक्षरों द्वारा दिखाए गए हैं। संसार को निम्नलिखित पांच जलवायु वर्गों में बांटा गया है।

(A) उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
(B) शुष्क जलवायु।
(C) गर्म जलवायु।
(D) हिम जलवाय।
(E) बर्फीली जलवायु।

कोपेन द्वारा तैयार किए गए जलवायु मानचित्र में भारत को निम्नलिखित जलवायु विभागों में बांटा गया है:

  1. लघु-शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Amw): इस प्रकार की जलवायु भारत के पश्चिमी तट पर गोआ के दक्षिण में पाई जाती है। यहां ग्रीष्म ऋतु में अधिक वर्षा होती है तथा शुष्क ऋतु बहुत छोटी होती है।
  2. अधिक गर्मी की अवधि में शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (AS): इस प्रकार की जलवायु कोरोमण्डल तट पर तमिलनाडु राज्य में मिलती है। वहां ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है तथा शीत ऋतु में वर्षा होती है।
  3. उष्ण कटिबन्धीय सवाना प्रकार की जलवायु (AW): यह जलवायु प्रायद्वीपीय पठार के अधिकतर भागों में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु शुष्क होती है।
  4. आर्द्र शुष्क स्टैपी जलवायु (Bshw): यह जलवायु राजस्थान तथा हरियाणा के मरुस्थलीय भागों में पाई जाती है।
  5. उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु (Bwhw): यह जलवायु राजस्थान के थार मरुस्थल में बहुत ही कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
  6. शुष्क शीत ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Cwg): यह जलवायु भारत के उत्तरी मैदान में पाई जाती है। यहां अधिकतर वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है।
  7. लघु ग्रीष्म के साथ शीतल आर्द्र शीत वाली जलवायु (Dfc): यह जलवायु भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु ठण्डी, आर्द्र तथा ग्रीष्म ऋतु छोटी होती है।
  8. ध्रुवीय प्रकार (E): यह जलवायु कश्मीर तथा उसकी निकटवर्ती मालाओं में पाई जाती है। यहां वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

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प्रश्न 6.
भारत में वार्षिक वर्षा के वितरण के बारे में बताइए यह देश के उच्चावच से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा का वितरण जलवायु तथा कृषि व्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। भारत में वार्षिक वर्षा का औसत 110 सें० मी० है। परन्तु धरातलीय विभिन्नताओं के कारण इस वितरण में प्रादेशिक अन्तर जाते हैं। वार्षिक वर्षा का स्थानिक तथा मौसमी वितरण असमान है। वार्षिक वर्षा की मात्रा के आधार पर भारत के प्रमुख वर्षा विभाग क्रमशः इस प्रकार हैं

(i) अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Heavy Rain):
ये वे क्षेत्र हैं जिन में वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है। ये क्षेत्र हैं – मेघालय, असम, अरुणाचल, पश्चिमी बंगाल का उत्तरी भाग, हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानें, पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानें।

(ii) मध्य वर्षा वाले क्षेत्र ( Areas of Moderate Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं- पश्चिमी बंगाल का दक्षिणी भाग, उड़ीसा, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश का पूर्वी, एवं उत्तरी भाग, दक्षिणी हिमाचल के पर्वत, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानें तथा तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र। इन क्षेत्रों में वर्षा की वार्षिक मात्रा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच है।

(iii) साधारण वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Average Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं-उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग, हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर, राजस्थान के पूर्वी भाग, गुजरात तथा दक्षिणी पठार।

(iv) अति न्यून वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Scanty Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जहां वार्षिक वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। ये क्षेत्र हैं-कश्मीर से लद्दाख, दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान में विस्तृत थार मरुस्थल तथा गुजरात में कच्छ का रन।
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उच्चावच का वर्षा पर प्रभाव – वार्षिक वर्षा के वितरण से स्पष्ट है कि धरातलीय दिशाओं का वर्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में पर्वतीय उच्च प्रदेशों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। जैसे पश्चिमी घाट, गारो, खासी की पहाड़ियां तथा हिमालयी क्षेत्र मैदानी प्रदेशों में कम वर्षा होती है। इसलिए उत्तरी मैदान से दक्षिण की ओर वर्षा कम होती जाती है। जल से भरी मानसून पवनें मार्ग में पड़ने वाले पर्वतों की सम्मुख ढाल पर अधिक वर्षा करती हैं, जबकि इन पर्वतों के विमुख वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहते हैं।

इसी कारण गारो खासी पहाड़ियों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 1000 सेंटीमीटर है, परन्तु ब्रह्मपुत्र घाटी तथा शिलांग पठार में यह मात्रा घट कर 200 सेंटीमीटर रह जाती है पश्चिमी घाट के अग्र भाग में मालाबार तट पर वर्षा की मात्रा 300 सें० मी० है। परन्तु पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में पठार पर यह मात्रा केवल 60 सें० मी० है। राजस्थान में अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता तथा ये प्रदेश शुष्क हैं।
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प्रश्न 7.
मानसून पवनों से क्या अभिप्राय है? ये किस प्रकार उत्पन्न होती हैं? शीतकाल तथा ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों का वर्णन करो।
उत्तर:
परिभाषा (Definition ) :
मानसून वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ” मौसिम” से बना है। इसका सर्वाधिक प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था। मानसून पवनें वे मौसमी पवनें हैं जिनकी दिशा 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल
मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती है। ये पवनें ग्रीष्म काल के के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

कारण (Causes): मानसून पवनें वास्तव में एक बड़े पैमाने पर स्थल समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल तथा स्थल के गर्म व ठण्डा होने में विभिन्नता (Differences in the cooling and heating of Land and Water ) है। जल और स्थल असमान रूप से गर्म और ठण्डे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायुदाब में भी अन्तर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा पलट जाती है।

स्थल भाग जल की अपेक्षा जल्दी गर्म तथा जल्दी ठण्डा होता है। दिन के समय समुद्र के निकट स्थल पर कम दबाव (Low Pressure) तथा समुद्र पर उच्च वायु दबाव (High Pressure) होता है। परिणामस्वरूप, समुद्र से स्थल की ओर जल समीर (Sea Breeze) चलती है, परन्तु रात में दिशा विपरीत हो जाती है तथा स्थल से समुद्र की ओर स्थल – समीर (Land Breeze) चलती है। इस प्रकार प्रत्येक दिन वायु में दिशा बदलती रहती है। परन्तु मानसून पवनों की दिशा मौसम के अनुसार बदलती रहती है। ये पवनें तट के समीप के प्रदेशों में नहीं परन्तु एक पूरे महाद्वीप पर चलती हैं इसलिए मानसून पवनों को स्थल- समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) का एक बड़े पैमाने का दूसरा रूप कह सकते हैं।

मानसून की उत्पत्ति के लिए आवश्यक दशाएं (Necessary Conditions ): मानसून पवनों की उत्पत्ति के लिए ये दशाएं आवश्यक हैं।

  1. एक विशाल महाद्वीप का होना।
  2. एक विशाल महासागर का होना।
  3. स्थल तथा जल भागों के तापमान में काफ़ी अन्तर होना चाहिए।
  4. एक लम्बी तट – रेखा।

मानसूनी क्षेत्र (Areas):
मानसूनी पवनें उष्ण कटिबन्ध से चलती हैं। परन्तु एशिया में ये पवनें 60° उत्तरी अक्षांश तक चलती हैं। इसलिए मानसूनी क्षेत्र दो भागों में बंटे हुए हैं। हिमालय पर्वत इन्हें पृथक् करता है।

1. पूर्वी एशियाई मानसून (East Asia Monsoons ): हिन्द – चीन (Indo-China), चीन तथा जापान क्षेत्र।
2. भारतीय मानसून (India Monsoons ): भारत, पाकिस्तान, बंगला देश तथा म्यांमार क्षेत्र, आस्ट्रेलिया का उत्तरी भाग।

ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें (Summer Monsoons ): मौनसून पवनों के उत्पन्न होने तथा इनके प्रभाव को एक ही वाक्य में कहा जा सकता है, “The chain of events is from temperature through pressure and winds to rainfall.”
अथवा
Temp.-Pressure – Winds — Rainfall.
इन मानसूनी पवनों की तीन विशेषताएं हैं

  1. मौसम के साथ दिशा परिवर्तन।
  2. मौसम के साथ वायु दबाव केन्द्रों का उल्ट जाना।
  3. ग्रीष्मकाल में वर्षा।

तापक्रम की विभिन्नता के कारण वायुभार में अन्तर पड़ता है तथा अधिक वायु भार से कम वायु भार की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसलिए भारत, चीन तथा मध्य एशिया के मैदान गर्म हो जाते हैं । इन स्थल भागों में वायु दबाव केन्द्र (Low Pressure Centres) स्थापित हो जाते हैं। अतः हिन्द महासागर तथा प्रशान्त महासागर से भारत तथा चीन की ओर समुद्र से स्थल की ओर पवनें (Sea to Land winds) चलती हैं।

भारत में इन्हें दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसून (South-West Summer Monsoons) कहते हैं। चीन में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्वी होती है। भारत में ये पवनें मूसलाधार वर्षा करती हैं जिसे ” मानसून का फटना” (Burst of Monsoon) भी कहा जाता है। भारत में यह वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कृषि इसी वर्षा पर आधारित है। इसलिए ” भारतीय बजट को मानसून का जुआ” (“Indian budget is a gamble of monsoon”) कहा जाता है।

शीतकालीन मानसून पवनें (Winter Monsoons ):
शीतकाल में मानसून पवनों की उत्पत्ति स्थल भागों पर होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध के स्थल भाग आस-पास के सागरों की अपेक्षा ठण्डे हो जाते हैं। मध्य एशिया तथा भारत में राजस्थान प्रदेश में उच्च वायु दबाव हो जाता है। इसलिए इन स्थल भागों से समुद्र की ओर पवनें (Land to Sea Winds) चलती हैं। ये पवनें शुष्क तथा ठण्डी होती हैं। भारत में इन्हें उत्तरी-पूर्वी शीतकालीन मानसून (North East Winter Monsoons) कहते हैं। ये पवनें खाड़ी बंगाल को पार करने के पश्चात् तमिलनाडु प्रदेश में वर्षा करती हैं। भूमध्य रेखा पार करने के पश्चात् आस्ट्रेलिया के तटीय भागों में भी इन्हीं पवनों से वर्षा होती है।

फ्लॉन की विचारधारा (Flohn’s Concept ): मानसून पवनों के तापीय उत्पत्ति में निम्नलिखित त्रुटियां पाई जाती

  1. ग्रीष्मकाल में मानसून वर्षा निरन्तर तथा समान नहीं होती यह वर्षा किसी और तत्त्व जैसे चक्रवात पर निर्भर करती है।
  2. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्र इतने अधिक शक्तिशाली नहीं होते कि मौसम के अनुसार पवनों की दिशा उल्ट हो जाए।
  3. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्रों की उत्पत्ति केवल तापीय नहीं है।
  4. दैनिक ऋतु मानचित्रों पर ग्रीष्म ऋतु में अनेक तीव्र चक्रवात दिखाए जाते हैं।
  5. यह विचार है कि मानसून किसी मूल पवन व्यवस्था पर आरोपित है।

इन त्रुटियों को देखते हुए फ्लॉन नामक विद्वान् ने तापीय विचारधारा का खण्डन किया और एक नई विचारधारा को जन्म दिया। इसके अनुसार व्यापारिक पवनों के अभिसरण के कारण डोलड्रम के क्षेत्र के दोनों ओर एक सीमान्त उत्पन्न हो जाता है जिसे अन्तर – उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (Inter Tropical Convergence) कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में यह अभिसरण क्षेत्र सूर्य की स्थिति के साथ-साथ उत्तर की ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें तथा पश्चिमी भूमध्य रेखीय पवनें उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। इस अभिसरण क्षेत्र में चक्रवात् उत्पन्न हो जाते हैं जो भारी वर्षा करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण-पश्चिम व्यापारिक पवनें तथा चक्रवात ही मानसून पवनों की उत्पत्ति का आधार हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

बहुविकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. प्लीस्टो सिन युग कब हुआ था
(A) 10 लाख वर्ष पूर्व
(B) 15 लाख वर्ष पूर्व
(C) 20 लाख वर्ष पूर्व
(D) 25 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(C) 20 लाख वर्ष पूर्व।

2. विश्व में कितने % पौधे विलोपन की कगार पर है
(A) 5%
(B) 6%
(C) 7%
(D) 8%.
उत्तर:
(D) 8%.

3. प्रोजैक्ट टाईगर कब शुरू किया गया
(A) 1970
(B) 1971
(C) 1972
(D) 1973.
उत्तर:
(D) 1973.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

4. पृथ्वी शिखर कब हुआ-
(A) 1990
(B) 1991
(C) 1992
(D) 1993.
उत्तर:
(C) 1992.

5. महा विवधता केन्द्र किस क्षेत्र में है
(A) उष्ण कटिबन्धीय
(B) शीत-उष्ण कटिबन्धीय
(C) शीत
(D) शुष्क।
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय।

6. WWF (World Wide Fund) का मुख्यालय कहाँ है?
(A) न्यूयार्क
(B) लंदन
(C) पेरिस
(D) स्विटजरलैंड|
उत्तर:
(D) स्विटजरलैंड

7. WWF (World Wide Fund) की स्थापना कब की गई?
(A) 1950
(B) 1961
(C) 1954
(D) 1962.
उत्तर:
(D) 1962.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव के लिये पौधे किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
पौधे मनुष्य को कई प्रकार की फसलें, प्रोटीन देते हैं यह जनसंख्या के पोषण के लिये एक प्राकृतिक साधन हैं।

प्रश्न 2.
मानव के लिये जन्तुओं के महत्त्व का संक्षिप्त का वर्णन करो।
उत्तर:
मानव के आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के पदार्थ मिलते हैं। इतिहास के प्रारम्भिक काल में मानव पशु पालन पर निर्भर था। असंख्य पशु प्राकृतिक वनस्पति खा कर मांस तथा डेयरी पदार्थ प्रदान करते हैं, जिससे मानव जनसंख्या का पोषण होता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 3.
जैव विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैविक विविधता का अस्तित्व तीन विभिन्न स्तरों पर निम्नलिखित हैं-

  1. प्रजातीय विविधता ( Species Diversity): जो आकृतिक शरीर क्रियात्मक तथा आनुवंशिक लक्षणों द्वारा प्रतिबिम्बित होती है।
  2. आनुवांशिक विविधता (Genetic Diversity ): जो प्रजाति के भीतर आनुवंशिक या अन्य परिवर्तनों से युक्त होती है।
  3. पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity): विविधता, जो विभिन्न जैव भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख आदि द्वारा प्रतिबिम्बित होती है । इस पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित रखना एक महान् चुनौती है।

प्रश्न 4.
जैविक विविधता का संरक्षण क्या है?
उत्तर:
जैविक विविधता का संरक्षण एक ऐसी योजना है जिसका लक्ष्य विकास की निरंतरता को बनाये रखना है। विभिन्न प्रजातियों को कायम रखने के लिये, विकसित करने तथा उनके जीवन कोष को बनाये रखना जो भविष्य में लाभदायक हो।

प्रश्न 5.
जैव विविधता क्या है?
उत्तर:
जैव विविधता दो शब्दों के मेल से बना है (Bio) बायो का अर्थ है जीव तथा (Diversity) का अर्थ है विविधता। साधारण शब्दों में, किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव विविधता कहते हैं।

प्रश्न 6.
जैव विविधता का इतिहास बताओ। किस कटिबन्ध में जैव विविधता अधिक है?
उत्तर;
आज जो जैव विविधता हम देखते हैं, वह 25 से 35 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। मानव जीवन के प्रारम्भ होने से पहले, पृथ्वी पर जैव विविधता किसी भी अन्य काल से अधिक थी। मानव के आने से जैव विविधता में तेज़ी से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति का आवश्यकता से अधिक उपभोग होने के कारण, वह लुप्त होने लगी। अनुमान के अनुसार, संसार में कुल प्रजातियों की संख्या 20 लाख से 10 करोड़ तक, लेकिन एक करोड़ ही इसका सही अनुमान है। नयी प्रजातियों की खोज लगातार जारी है और उनमें से अधिकांश का वर्गीकरण भी नहीं हुआ है। (एक अनुमान के अनुसार दक्षिण अमेरिका की ताज़े पानी की लगभग 40 प्रतिशत मछलियों का वर्गीकरण नहीं हुआ।) उष्ण कटिबन्धीय वनों में जैव-विविधता की अधिकता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 7.
हॉट-स्पॉट ( Hot Spot ) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है उन्हें हॉट-स्पॉट कहते हैं। यहां प्रजातियों की संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 8.
पारितन्त्र में प्रजातियों की भूमिका बताओ।
उत्तर:

  1. जीव व प्रजातियां ऊर्जा ग्रहण करती हैं।
  2. ये कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं।
  3. ये जल व पोषण चक्र बनाने में सहायक हैं।
  4. वायुमण्डलीय गैसों को स्थिर करती है।

प्रश्न 9.
विदेशज प्रजातियों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वे प्रजातियां जो स्थानीय आवास की मूल प्रजातियाँ नहीं हैं, लेकिन उस ढंग से स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियां कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रजाति का विलुप्त होना क्या है?
उत्तर:
प्रजाति का विलुप्त होने का तात्पर्य है कि उस प्रजाति का अन्तिम सदस्य भी मर चुका है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जैव विविधता के क्या कारण हैं?
उत्तर:
जैव विविधता का आधार अपक्षयण है। सौर ऊर्जा और जल ही अपक्षयण में विविधता और जैव विविधता का मुख्य कारण है। वे क्षेत्र जहां ऊर्जा व जल की उपलब्धता अधिक है, वहीं पर जैव विविधता भी व्यापक स्तर पर है

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प्रश्न 2.
जैव विविधता सतत् विकास का तन्त्र है? स्पष्ट करो।
उत्तर:
जैव विविधता सजीव सम्पदा है यह विकास के लाखों वर्षों के ऐतिहासिक घटनाओं का परिणाम है। प्रजातियों के दृष्टिकोण से और अकेले जीवधारी के दृष्टिकोण से जैव-विविधता सतत् विकास का तन्त्र है। पृथ्वी पर किसी प्रजाति की औसत अर्ध आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। ऐसा भी माना जाता है कि लगभग 99 प्रतिशत प्रजातियाँ, जो कभी पृथ्वी पर रहती थीं, आज लुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जैव विविधता एक जैसी नहीं है। जैव-विविधता उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में अधिक होती है। जैसे-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता तो कम होती जाती है, लेकिन जीवधारियों की संख्या अधिक होती जाती है।

प्रश्न 3.
पौधों और जीवों को संरक्षण के आधार पर विभिन्न प्रजातियों में बांटो
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवों की प्रजातियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है।
1. संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered species):
इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN ) विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में (Red list) रेड लिस्ट नाम से सूचना प्रकाशित करता है।

2. कमज़ोर प्रजातियाँ (Vulnerable species):
इसमें वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यधिक कम होने के कारण, इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है।

3. दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare species):
संसार में इन प्रजातियों की संख्या बहुत कम है। ये प्रजातियाँ कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़े क्षेत्र में बिखरी हुई हैं।

प्रश्न 4.
जैव विविधता की हानि के चार कारण बताओ।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदाएँ
  2. टनाशक
  3. विदेशज प्रजातियां
  4. अवैध शिकार।

प्रश्न 5
प्रजातियों के संरक्षण के दो पहलू बता ।
उत्तर:

  1. मानव को पर्यावरण मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2. विकास के लिए सतत् पोषणीय गतिविधियाँ अपनाई जाएं।
  3. स्थानीय समुदायों की इसमें भागीदारी हो।

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प्रश्न 6.
महाविविधता केन्द्र से क्या अभिप्राय है? विश्व के महत्त्वपूर्ण महाविविधता केन्द्र बताओ।
उत्तर:
जिन देशों में उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में अधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें महाविविधता केन्द्र कहते हैं। विश्व में 12 ऐसे देश हैं – मेक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडार, पेरू, ब्राज़ील, ज़ायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा ऑस्ट्रेलिया।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
जैविक विवधता के ह्रास से क्या अभिप्राय है? इसके क्या कारण हैं?
उत्तर:
जैविक विविधता का ह्रास (Loss of Biodiversity) जैविक विविधता का स्तर जैविक विविधता का अस्तित्व तीन विभिन्न स्तरों पर निम्नलिखित है:

  1. प्रजातीय विविधता जो आकृतिक, शरीर क्रियात्मक तथा आनुवंशिक लक्षणों द्वारा प्रतिबिंबित होती है।
  2. आनुवंशिक विविधता, जो प्रजाति के भीतर आनुवंशिक या अन्य परिवर्तनों से युक्त होती है तथा
  3. पारिस्थितिक तंत्र विविधता, जो विभिन्न जैव – भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख आदि द्वारा प्रतिबिंबित होती है। इन पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित रखना एक महान् चुनौती है।

मानवीय प्रभाव:
मनुष्य ने पृथ्वी के जैविक स्टॉक के प्रकार और वितरण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। पृथ्वी के जैविक प्रतिरूप पर बढ़ता हुआ मानव प्रभाव, बढ़ती जनसंख्या और उनकी बढ़ती भोजन एवं स्थान की आवश्यकता का परिणाम है। संसाधनों के लिए मानव माँगों के कारण कुछ प्रजातियाँ समाप्त हो गईं तथा कुछ बची रहीं। आरंभिक मानव एक शिकारी तथा संग्रहणकर्त्ता था । हम उन्हें पुरातन कह सकते हैं, पर पारिस्थितिक दृष्टिकोण से वे पिछड़े हुए नहीं थे। उनकी जीवन शैली उस समय के ज्ञान एवं तकनीक के अनुसार प्रकृति के साथ सफल अनुकूलन था।

प्रजातियों का विलोपन:
भूवैज्ञानिक काल में (प्लीस्टोसीन, लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व) स्तनधारियों के लोप होने का प्रधान कारण जलवायविक अवनति के साथ आदि मानवों द्वारा ज़रूरत से अधिक पशुओं को मारना था । महाप्राणिजात विलोपन की यह घटना अभी समाप्त नहीं हुई है । आजकल यह पृथ्वी के समुद्री पर्यावरण तक पहुँच गई है। यह उस तकनीक का परिणाम है, जिसने मानव के प्रभाव को विश्व के महासागरों की गहराइयों तक पहुँचा दिया है । आधुनिक युग का विलोपन किसी एक पशु समूह जैसे महाप्राणिजात पर ही केंद्रित नहीं है, वरन् इसने विभिन्न प्रकार के पशुओं, विशेषकर पक्षियों, मछलियों तथा, सरीसृपों आदि को भी प्रभावित किया है। तकनीकी नवीनीकरण तथा सामाजिक-आर्थिक कारकों ने आधुनिक युग के इस विलोपन को और तेज़ किया है।

कृषि यंत्रीकरण तथा औद्योगीकरण का प्रभाव:
विलोपन की स्थिति में, पालतू पौधों एवं पशुओं पर आधारित एक नया भोजन स्रोत अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो गया खेती के यांत्रिकरण तथा औद्योगीकरण ने भारी मात्रा में अनाज के अधिशेष को बढ़ावा दिया है। लेकिन इस अधिशेष अनाज को पैदा करने के दौरान भूमि में मानवकृत परिवर्तनों की श्रृंखला ने प्राकृतिक समुदायों तथा मृदा के प्रतिरूपों में बाधाएँ उत्पन्न कर दी हैं। बदले में इन परिवर्तनों से निकटवर्ती तथा दूरस्थ दोनों समुदायों में गिरावट आई है। अलवणीय जल तंत्र विशेष रूप से महान् परिवर्तनों से गुजरे हैं। खेती ने समुद्री पर्यावरण के जीवों को भी प्रभावित किया है।

  • निम्नलिखित प्रभाव स्पष्ट हैं:
    1. औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के इस युग में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण अधिकाधिक भूमि पर से जंगलों को साफ करके उन्हें कृषि के अंतर्गत लाया गया है।
    2. अधिक क्षेत्रों में मृदा की जुताई अधिक फसलें पैदा करने के लिए की गई है।
    3. मकान, सड़कें, पार्क तथा अन्य क्रियाओं के लिए अधिकाधिक भूमि का उपयोग किया गया है।
    4. इससे संसाधनों का संचलन शहरों की ओर हुआ है।
    5. मृदा की हानि, पोषकों का संचलन और अविषालु पदार्थों द्वारा पर्यावरण का प्रदूषण वास्तव में ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग तथा अबाधित उत्पादन के लक्षण हैं।
    6. मानव द्वारा प्रकृति का अनुचित उपयोग बिखरे हुए तथा अधूरे तंत्रों को जन्म देता है। इनका वायु, जल, मृदा तथा पृथ्वी के जैविक संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • नवीन समस्याएं:
    1. इस समय विश्व के 2 प्रतिशत ज्ञात पशु तथा 8 प्रतिशत ज्ञात पौधे विलोपन के कगार पर खड़े हैं। वास्तव में प्रत्येक औद्योगिक क्रिया जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
    2. वर्षा अम्लीय हो गई है।
    3. सिंचाई, अपरदन तथा पीड़नाशी एवं उर्वरकों के प्रवाह से जुताई खेती एक समस्या बन गई है।
    4. परिवर्तित जल प्रवाह और अविषालु पदार्थों के अधिप्लावन से शहरी क्षेत्र एवं महामार्ग एक समस्या बन गए हैं।
    5. खनन क्रिया द्वारा खनन अपशिष्टों के अपवाह तथा जल प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण यह भी एक समस्या हो गई है।
    6. औद्योगिक तथा शहरी मल – व्यवस्था में खतरनाक पदार्थ होते हैं जिससे यूट्रोफिकेशन होता है। ये सभी अलवणीय जल तंत्रों की गुणवत्ता को कम कर देते हैं।

भविष्य:
गत लाखों वर्षों में जीवन एक अत्यधिक संघटित ढाँचे के रूप में उभर कर आया है। जीवन प्रतिस्कंदी है, पर इसे स्थान की आवश्यकता होती है। जब पौधों, पशुओं या मृदा के प्रतिरूप का कोई भाग, विनष्ट हो जाता है, तो जीवन के संपूर्ण ढाँचे का ह्रास होता है। वांछनीय दशा ऐसा विश्व है जहाँ प्रमुख संसाधनों की कमी होने के स्थान पर इनकी पुनः प्राप्ति हो तथा जहाँ प्रजातियों को लोप होने के जगह उनकी निरंतरता बनी रहे। भविष्य में जीवन के प्रतिरूपों की संवृद्धि के उद्देश्यों से किए जाने वाले ऐसे सांस्कृतिक समायोजन मानव के अपने हाथ में हैं। भविष्य में आने वाली पीढ़ी हमारे युग की बुद्धिमानी ( या इसकी कमी) का मूल्यांकन जैविक विविधता को बनाए रखने तथा इससे पृथ्वी पर जीवन की गुणवत्ता कायम रखने में हमारे प्रयासों की सफलता या असफलता के आधार पर करेगी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
जैव विविधता का विभिन्न स्तरों पर वर्णन करो।
उत्तर:
जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है

  1. आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity)
  2. प्रजातीय विविधता ( Species diversity) तथा
  3. पारितन्त्रीय विविधता (Ecosystem diversity)।

1. आनुवंशिक जैव विविधता (Genetic biodiversity ):
जीवन निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवांशिक जैव-विविधता है। समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। मानव आनुवंशिक रूप से ‘होमोसेपियन’ (Homosapiens) प्रजाति से सम्बन्धित है जिससे कद, रंग और अलग दिखावट जैसे शारीरिक लक्षणों में काफ़ी भिन्नता है। इसका कारण आनुवंशिक विविधता है विभिन्न प्रजातियों के विकास के फलने-फूलने के लिए आनुवंशिक विविधता अत्यधिक अनिवार्य है।

2. प्रजातीय विविधता ( Species diversity ):
यह प्रजातियों की अनेकरूपता को बताती है। यह किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से सम्बन्धित है। प्रजातियों की विविधता, उनकी समृद्धि, प्रकार तथा बहुलता से आँकी जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या अधिक होती है और कुछ में कम जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के हॉट स्पॉट (Hot spots) कहते हैं।

3. पारितन्त्रीय विविधता (Ecosystem diversity ):
आपने पिछले अध्याय में पारितन्त्रों के प्रकारों में व्यापक भिन्नता और प्रत्येक प्रकार के पारितन्त्रों में होने वाली पारितन्त्रीय प्रक्रियाएं तथा आवास स्थानों की भिन्नता ही पारितन्त्रीय विविधता बनाते हैं। पारितन्त्रीय विविधता का परिसीमन करना मुश्किल और जटिल है, क्योंकि समुदायों (प्रजातियों का समूह) और पारितन्त्र की सीमाएं निश्चित नहीं हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न- दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में प्राकृतिक चक्र में ऊर्जा का प्रमुख साधन लौ-सा है?
(A) कार्बन
(B) वनस्पति
(C) सौर विकिरण
(D) वातावरण।
उत्तर;
(C) सौर विकिरण।

2. पौधों द्वारा प्रकाश ऊर्जा को उपयोग करने की क्रिया को क्या कहते हैं?
(A) अपघटन
(B) विघटन
(C) प्रकाश संश्लेषण
(D) विकिरण।
उत्तर:
(A) प्रकाश संश्लेषण।

3. निम्नलिखित में से कौन-सा तत्त्व पोषक हैं जो जैव मण्डल में मिलता है?
(A) नाइट्रोजन
(B) जल
(C) वनस्पति
(D) वायु।
उत्तर:
(A) नाइट्रोजन।

4. जो जीव अन्य जीवों पर भोजन के लिए निर्भर रहते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(A) उत्पादक
(B) उपभोक्ता
(C) मासाहारी
(D) शाकाहारी।
उत्तर:
(B) उपभोक्ता।

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5. शंकुधारी वनों को कहते हैं-
(A) सेल्वा
(B) टैगा।
(C) सवाना
(D) स्टैप
उत्तर:
(B) टैगा

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जैव मण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जैव मण्डल से तात्पर्य पृथ्वी के उस भाग से है जहां सभी प्रकार के जीवन पाये जाते हैं। जैव मण्डल के क्षेत्र में सभी जीवित प्राणियों, मनुष्य, वनस्पति एवं जीवों की क्रियाएं सम्मिलित हैं।

प्रश्न 2.
जैव मण्डल क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
इस क्षेत्र में सभी प्रकार के जीवन सम्भव हैं। पेड़-पौधे, जीव-जन्तु इसी वातावरण में ही पनप सकते हैं, इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 3.
जीवों (Organisms) के मुख्य दो प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. वनस्पति जगत् (Plant kingdom)
  2. प्राणी जगत् (Animal kingdom)

प्रश्न 4.
‘आदिम मानव’ (होमोसेपियन) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी पर मिलने वाले सर्वप्रथम मानव को आदिम मानव कहा जाता है।

प्रश्न 5.
पारिस्थितिकी (Ecology) की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
पर्यावरण तथा जीवों के बीच पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।

प्रश्न 6.
पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) के घटकों (Components) के दो वर्ग बताओ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र के दो मुख्य वर्ग हैं

  1. जैव (Organic)
  2. अजैव (Inorganic)।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक चक्रों को कौन चलाता है?
उत्तर:
सौर विकिरण ऊर्जा।

प्रश्न 8.
सभी जीवों के निर्माण में कौन-से तीन महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:

  1. कार्बन
  2. हाइड्रोजन
  3. ऑक्सीजन।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मानव जाति के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए।

प्रश्न 10.
प्राकृतिक चक्र में ऊर्जा का प्रमुख साधन क्या है?
उत्तर:
सौर विकिरण (Solar Radiation )।

प्रश्न 11.
जीवों के तीन मुख्य वर्ग।
उत्तर::

  1. शाकाहारी (Herbivores)
  2. मांसाहारी (Carnivores)
  3. सर्वाहारी (Omnivores)।

प्रश्न 12.
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की परिभाषा दो।
उत्तर:
पौधों द्वारा प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को कार्बोहाइड्रेट में बदलने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

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प्रश्न 13.
अपघटक (Decomposers) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपघटक वे सूक्ष्म जीव तथा जीवाणु हैं जो अवशेषों या गले-सड़े जैसे पदार्थों को अपना भोजन बनाते हैं।

प्रश्न 14.
पर्यावरण के जैव और अजैव अंगों में अन्तर बताओ।
उत्तर:
जैव अंग – पर्यावरण में पेड़, पौधे और प्राणी जैव अंग कहलाते हैं। जैव मण्डल के पोषक तत्त्व ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन तथा खनिज पदार्थ हैं। अजैव अंग – पर्यावरण में मिट्टी, वायु, जल, खनिज, चट्टानें अजैव अंग हैं। जैवीय अंग, विघटन के पश्चात् अजैव अंग बन जाते हैं।

प्रश्न 15.
पृथ्वी पर जीवन कहां-कहां पाया जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन लगभग हर जगह पाया जाता है। जीवधारी भूमध्यरेखा से ध्रुवों तक समुद्री तल से हवा में कई किलोमीटर तक, सूखी घाटियों में, बर्फीले जल में, जलमग्न भागों में, व हज़ारों मीटर गहरे धरातल के भूमिगत जल तक में पाए जाते हैं।

प्रश्न 16.
एक प्रमुख परितन्त्र का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वन एक प्रमुख परितन्त्र है।

प्रश्न 17.
जैवण्डल शब्द किसने सर्वप्रथम दिया?
उत्तर:
एडवर्ड सुवेस।

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प्रश्न 18.
‘पारिस्थितिक तन्त्र’ को सर्वप्रथम किसने दिया?
उत्तर:
ए० जी० टांसले।

प्रश्न 19.
‘उपभोक्ताओं के तीन मुख्य वर्ग बताइए।
उत्तर:

  1. शाकाहारी
  2.  मांसाहारी
  3. (iii) सर्वाहारी।

प्रश्न 20.
बायोम किसे कहते हैं?
उत्तर:
विशेष परिस्थितियों में जन्तुओं व पादपों के आपसी सम्बन्धों के कुल योग को बायोम कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तन्त्र (Eco System) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रकृति के विभिन्न संघटक जीवन तथा विकास के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। स्थलाकृतियां, वनस्पति तथा जीव-जन्तु एक-दूसरे से मिल कर एक वातावरण का निर्माण करते हैं जिसे पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं। यह वातावरण पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायक होता है जो जीवों के विकास में सहायता करता है। इस प्रकार स्थलाकृतियों, वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं में एक चक्र पाया जाता है जिससे हमें प्रकृति के जैविक पहलू को समझने में सहायता मिली है।

प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी सन्तुलन (Ecological Balance) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी पर विभिन्न भौगोलिक संघटकों में एक जीवन चक्र (Life Cycle) होता है। पहले वे उत्पन्न होते हैं, विकसित होकर प्रौढ़ावस्था (Maturity) में पहुंचते हैं तथा फिर समाप्त हो जाते हैं। यह चक्र एक लम्बे समय में समाप्त हो जाता है। जीव-जन्तु, वनस्पति पौधे आदि विकसित होकर एक अन्तिम चरण (Final Stage) में पहुंच जाते हैं। इस अवस्था में सभी जीवों की जल, भोजन, वायु आदि आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। जैव संख्या तथा वातावरण के बीच एक सन्तुलन स्थापित हो जाता है। इस अवस्था को पारिस्थितिकी सन्तुलन कहते हैं। इस अवस्था के पश्चात् इन संघटकों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

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प्रश्न 3.
जैव मण्डल (Biosphere) का वातावरण में क्या स्थान है?
उत्तर:
जैव मण्डल प्राकृतिक वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इसमें सभी जीवित प्राणियों, मनुष्य, वनस्पति एवं जीवों की क्रियाएं सम्मिलित हैं। (Bios-phere is the realm of all living forms.) यह क्षेत्र पृथ्वी को जीवन आधार प्रदान करता है । वातावरण के अन्य क्षेत्र जीव रूपों को उत्पन्न व क्रियाशील होने में सहायक होते हैं। जैव मण्डल का विस्तार महासागरों की अधिकतम गहराई से लेकर वायुमण्डल की ऊपरी परतों तक है। मानव इस जैव मण्डल में वातावरण की समग्रता लाने में क्रियाशील रहता है। मानव पृथ्वी की सम्पदाओं का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग और संरक्षण कर सकता है। इसलिए जैव मण्डल सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है।

प्रश्न 4.
ऑक्सीजन चक्र का वर्णन करें।
उत्तर:
ऑक्सीजन चक्र (The oxygen cycle ):
प्रकाश संश्लेषण क्रिया का प्रमुख सह परिणाम (By product) ऑक्सीजन है। यह कार्बोहाइड्रेट्स के ऑक्सीकरण में सम्मिलित है जिससे ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड व जल विमुक्त होते हैं। ऑक्सीजन चक्र बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। बहुत से रासायनिक तत्त्वों और सम्मिश्रणों में ऑक्सीजन पाई जाती है। यह नाइट्रोजन के साथ मिलकर नाइट्रेट बनाती है तथा बहुत से अन्य खनिजों व तत्त्वों से मिलकर कई तरह के ऑक्साइड बनाती है जैसे – आयरन ऑक्साइड, एल्यूमिनियम ऑक्साइड आदि सूर्यप्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, जल अणुओं (H2O) के विघटन में ऑक्सीजन उत्पन्न होती है और पौधों की वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के दौरान भी यह वायुमण्डल में पहुंचती हैं।

प्रश्न 5.
वायुमण्डल के नाइट्रोजन का भौमीकरण कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
नाइट्रोजन चक्र (The Nitrogen Cycle):
वायुमण्डल की संरचना का प्रमुख घटक नाइट्रोजन वायुमण्डलीय गैसों का 79 प्रतिशत भाग है। विभिन्न कार्बनिक यौगिक जैसे- एमिनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन व वर्णक (Pigment) आदि में यह एक महत्त्वपूर्ण घटक है। वायु में स्वतन्त्र रूप से पाई जाने वाली नाइट्रोजन को अधिकांश जीव प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं) केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के जीव जैसे- कुछ मृदा जीवाणु व ब्लू ग्रीन एलगी (Blue green algae) ही इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। सामान्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती है। नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक (Biological) है, अर्थात् जीव ही ग्रहण कर सकते हैं। स्वतन्त्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व सम्बन्धित पौधों की जड़ें व रन्ध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमण्डल में पहुँचती है।

वायुमण्डल में भी बिजली चमकने (Lightening) व कोसमिक रेडियेशन (Cosmic radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है, महासागरों में कुछ समुद्री जीव भी इसका यौगिकीकरण करते हैं। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन के इस तरह यौगिक रूप में उपलब्ध होने पर हरे पौधे में इसका स्वांगीकरण (Nitrogen assimilation) होता है । शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका (नाइट्रोजन) कुछ भाग उनमें चला जाता है। फिर मृत पौधों व जानवरों के नाइट्रोजनी अपशिष्ट (Excretion of nitrogenous wastes) मिट्टी, में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन – यौगिकीकरण हो जाता है। कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट को पुनः स्वतन्त्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी नाइट्रीकरण (De-nitrification) कहा जाता है। ( इस तरह नाइट्रोजन चक्र चलता रहता है)

प्रश्न 6.
कार्बन चक्र का वर्णन करें।
उत्तर:
कार्बन चक्र (The carbon cycle ):
सभी जीवधारियों में कार्बन पाया जाता है। यह सभी कार्बनिक – यौगिक का मूल तत्त्व हैं। जैवमण्डल में असंख्य कार्बन यौगिक के रूप में जीवों में विद्यमान हैं। कार्बन चक्र कार्बन डाइऑक्साइड का परिवर्तित रूप है। यह परिवर्तन पौधों में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के यौगिकीकरण द्वारा आरम्भ होता है। इस प्रक्रिया से कार्बोहाइड्रेट्स व ग्लूकोस बनता है, जो कार्बनिक यौगिक जैसे- स्टार्च, सेल्यूलोस, सरकोज़ (surcose) के रूप में पौधों में संचित हो जाता है। कार्बोहाइड्रेट्स का कुछ भाग सीधे पौधों की जैविक क्रियाओं में प्रयोग हो जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान विघटन से पौधों के पत्तों व जड़ों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड गैस मुक्त होती है, शेष कार्बोहाइड्रेट्स, जो पौधों की जैविक क्रियाओं में प्रयुक्त नहीं होते, वे पौधों के उत्तकों में संचित हो जाते हैं। ये पौधे या तो शाकाहारियों के भोजन बनते हैं, अन्यथा सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटित हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
खनिज चक्र का वर्णन करें।
उत्तर:
खनिज चक्र (Mineral cycles ):
जैव मण्डल में मुख्य भू- रासायनिक तत्त्वों- कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और हाइड्रोजन के अतिरिक्त पौधों व प्राणी जीवन के लिए अत्यधिक महत्त्व के बहुत से अन्य खनिज मिलते हैं। जीवधारियों के लिए आवश्यक ये खनिज पदार्थ प्राथमिक तौर पर अकार्बनिक रूप में मिलते हैं, जैसे- फॉस्फोरस, सल्फर, कैल्शियम और पोटाशियम प्रायः ये घुलनशील लवणों के रूप में मिट्टी में या झील में अथवा नदियों व समुद्री जल में पाए जाते हैं। जब घुलनशील लवण जल चक्र में सम्मिलित हो जाते हैं, तब ये अपक्षय प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी की पर्पटी पर और फिर बाद में समुद्र तक पहुँच जाते हैं। अन्य लवण तलछट के रूप में धरातल पर पहुँचते हैं और फिर अपक्षय से चक्र में शामिल हो जाते हैं। सभी जीवधारी अपने पर्यावरण में घुलनशील अवस्था में उपस्थित खनिज लवणों से ही अपनी खनिजों की आवश्यकता को पूरा करते हैं। कुछ अन्य जन्तु पौधों व प्राणियों के भक्षण से इन खनिजों को प्राप्त करते हैं। जीवधारियों की मृत्यु के बाद ये खनिज अपघटित व प्रवाहित होकर मिट्टी व जल में मिल जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 8.
पारितन्त्र से क्या अभिप्राय है? पारितन्त्र के प्रमुख प्रकार बताओ।
उत्तर:
पारितन्त्र के प्रकार (Types of Ecosystems) – प्रमुख पारितन्त्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं।

1. स्थलीय (Terrestrial) पारितन्त्र 2. जलीय (Aquatic) पारितन्त्र स्थलीय पारितन्त्र को पुनः बायोम (Biomes) में विभक्त किया जा सकता है। बायोम, पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है, जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विभिन्न बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय सम्बन्धी तत्त्व करते हैं। अतः विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्तःसम्बन्धों के कुल योग को ‘बायोम’ कहते हैं। इसमें वर्षा, तापमान, आर्द्रता व मिट्टी सम्बन्धी अवयव भी शामिल हैं।

संसार के कुछ प्रमुख पारितन्त्र : वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल और टुण्ड्रा (Tundra) पारितन्त्र हैं। जलीय पारितन्त्र को समुद्री पारितन्त्र व ताज़े जल के पारितन्त्र में बाँटा जाता है। समुद्री पारितन्त्र में महासागरीय, तटीय ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति (Coral reef), पारितन्त्र सम्मिलित हैं। ताज़े जल के पारितन्त्र में झीलें, तालाब, सरिताएँ, कच्छ व दलदल (Marshes and bogs) शामिल हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Question)

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तन्त्र पर मानव के प्रभाव की विवेचना करो।
उत्तर:
मनुष्य वातावरण का एक अभिन्न अंग है। जैव मण्डल के असंख्यक जीवों में मानव का भी एक रूप है। मनुष्य अपने वातावरण को अपने ज्ञान व तकनीकी की मदद से प्रभावित करता है । मानव ने अनेक प्राणियों को पालतू बनाया है, अनेक पौधों की कृषि की है ताकि उनका अधिक-से-अधिक उपयोग हो सके। मनुष्य ने पौधों व वस्तुओं में परिवर्तन करके नई जातियों की खोज की है जिनसे मूल आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। कुछ जातियां सदा के लिए विलुप्त हो गई हैं। नई जातियों का विकास क्रम निरन्तर चल रहा है।

मानव ने जैवमण्डल के संसाधनों का उपयोग करने का प्रयत्न किया है, परन्तु इस प्रयत्न से पारिस्थितिक तन्त्र में एक असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। कई पौधे और जीव-जन्तु दूर-दूर नये प्रदेशों में पहुंचा दिए गए हैं। ये बड़ी तीव्र गति से संख्या में बढ़ते जा रहे हैं। इनके प्रभाव से वातावरण में बदलाव आया है। मानवीय क्रियाओं के हस्तक्षेप से भी कई क्षेत्रों में वातावरण या पारिस्थितिक तन्त्र में परिवर्तन हुआ है। कई क्षेत्रों में वनों की कटाई से वन्य प्राणियों के जीवन में परिवर्तन हुआ है। इससे मिट्टी कटाव की समस्या उत्पन्न हुई है।

अधिक कृषि, अत्यधिक पशु चारण तथा स्थानान्तरी कृषि से मिट्टी कटाव में वृद्धि हुई है। शुष्क प्रदेशों में जल सिंचाई से मिट्टी में रेह की समस्या उत्पन्न हुई है तथा कई रोग उत्पन्न हो गए हैं। इस प्रकार भूमि, वायु तथा जल में इतना प्रदूषण हो गया है कि ये मनुष्य के प्रयोग के अयोग्य बन गए हैं। पिछले कुछ सालों से पर्यावरण के प्रदूषण तथा वायु, जल तथा भोजन में रसायनों की अधिक मात्रा ने मानवीय स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाला है। मानवीय हस्तक्षेप ने प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता पर प्रभाव डाला है। प्राकृतिक साधनों का तीव्र गति से प्रयोग किया जा रहा है।

आने वाले वर्षों में इन संसाधनों की कमी हो जाएगी। हो सकता है कि इतनी लापरवाही से प्रयोग के कारण यह संसाधन इस सीमा तक नष्ट हो जाएं कि निकट भविष्य में वे मानव जाति के लिए उपलब्ध न हों। उदाहरण के लिए शिकार से वन्य प्राणियों की कई जातियां विलुप्त हो गई हैं । खनिज तेल के साधन भी अधिक देर तक नहीं चलेंगे। आधुनिक संसार में पर्यावरण की अधिकतर समस्याओं का जन्मदाता स्वयं मानव है अतः उसका समाधान भी उसके द्वारा भी हो सकता है। मानव को भौतिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करके जीना पड़ेगा ताकि जैव मण्डल में पारिस्थितिक सन्तुलन को बिना बिगाड़े संसाधनों का उपयोग किया जा सके।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए।
1. महासागरों में लवणता की मात्रा को प्रभावित करने वाला अधिक महत्त्वपूर्ण कारक कौन-सा है?
(A) धाराएं
(B) प्रचलित पवनें
(C) वाष्पीकरण की मात्रा
(D) जल का मिश्रण।
उत्तर;
(C) वाष्पीकरण की मात्रा।

2. संसार में औसत सागरीय लवणता कितनी है?
(A) 35 प्रति हज़ार ग्राम
(B) 210 प्रति हजार ग्राम
(C) 16 प्रति हजार ग्राम
(D) 112 प्रति हज़ार ग्राम।
उत्तर:
(A) 35 प्रति हजार ग्राम।

3. निम्नलिखित में से किस सागर में सबसे अधिक लवणता पाई जाती है?
(A) लाल सागर
(B) बाल्टिक सागर
(C) मृत सागर
(D) रूम सागर।
उत्तर:
(C) मृत सागर।

4. निम्नलिखित में से प्रशान्त महासागर में चलने वाली धारा कौन-सी है?
(A) मडगास्कर धारा
(B) खाड़ी की धारा
(C) क्यूरोसिवो धारा
(D) लैब्रेडार धारा।
उत्तर:
(C) क्यूरोसिवो धारा।

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5. महासागरीय जल की लवणता मुख्यतः निर्भर करती है:
(A) वाष्पीकरण की मात्रा पर
(B) मीठे जल की आपूर्ति पर
(C) महासागरीय जल के परस्पर मिश्रण पर
(D) वाष्पीकरण की मात्रा और मीठे जल की आपूर्ति के बीच अन्तर पर ।
उत्तर:
(A) वाष्पीकरण की मात्रा पर।

6. कलासागर में लवणता का मध्यमान है:
(A) 170 प्रति हज़ार
(B) 18 प्रति हज़ार
(C) 40 प्रति हज़ार
(D) 330 प्रति हज़ार।
उत्तर:
(B) 18 प्रति हज़ार।

7. विषुवतीय क्षेत्र में सामान्यतः लवणता कम होती है, क्योंकि यहां
(A) वाष्पीकरण अधिक होता है।
(B) वर्षा अधिक होती है
(C) बड़ी-बड़ी नदियां आकर गिरती हैं।
(D) वाष्पीकरण की मात्रा की तुलना में मीठे जल की आपूर्ति अधिक होती है।
उत्तर;
(A) वाष्पीकरण अधिक होता है।

8. महासागरीय धाराओं का प्रमुख कारण है:
(A) पवन की क्रिया
(B) महासागरीय जल के घनत्व में अन्तर
(C) पृथ्वी का घूर्णन
(D) स्थलखण्डों की रुकावट ।
उत्तर:
(A) पवन की क्रिया।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

9. तटीय भागों में टूटती हुई तरंगों को क्या कहते हैं?
(A) स्वेल
(B) सी
(C) सर्फ
(D) बैकवाश।
उत्तर:
(C) सर्फ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरीय जल के तापन की मुख्य क्रियाएं बताओ।
उत्तर:
विकिरण तथा संवहन।

प्रश्न 2.
ज्वार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:  लघु ज्वार, बृहत् ज्वार।

प्रश्न 3.
महासागरों में लवणता के स्रोत बताओ।
उत्तर: नदियां, लहरें , ज्वालामुखी , रासायनिक क्रियाएं।

प्रश्न 4.
सागरीय जल के प्रमुख लवण बताओ।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड
  2. मैग्नेशियम क्लोराइड
  3. मैग्नेशियम सल्फेट
  4. कैल्शियम सल्फेट
  5. पोटाशियम सल्फेट।

प्रश्न 5.
महासागरीय जल की तीन गतियां बताओ।
उत्तर: तरंगें , धाराएं,  ज्वार-भाटा।

प्रश्न 6.
तरंग के दो भाग बताओ
उत्तर:
शीर्ष तथा गर्त।

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प्रश्न 7.
तरंगों के तीन मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:  सर्फ, स्वैश, अधः प्रवाह

प्रश्न 8.
बृहत् ज्वार कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन

प्रश्न 9.
लघु ज्वार कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
कृष्ण तथा शुक्ल अष्टमी के दिन।

प्रश्न 10.
भूमध्य रेखा 40° तथा 60° अक्षांश पर महासागरीय जल का तापमान कितना होता है?
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखा – 26°C
  2. 40°C अक्षांश – 14°C
  3. 60°C अक्षांश -1°C

प्रश्न 11.
प्लावी हिमशैल (Icebergs) के दो स्रोत बताओ।
उत्तर:
अलास्का तथा ग्रीनलैंड

प्रश्न 12.
घिरे हुए तीन सागरों के नाम तथा लवणता लिखो।
उत्तर:

  1. ग्रेट साल्ट झील – 220 प्रति हज़ार
  2. मृत सागर – 240 प्रति हज़ार
  3. वान झील – 330 प्रति हज़ार

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 13.
अन्ध महासागर में सबसे महत्त्वपूर्ण गर्म धारा कौन-सी है?
उत्तर:
खाड़ी की धारा

प्रश्न 14.
जापान के पूर्वी तट पर कौन- सी गर्म धारा बहती है?
उत्तर:
क्यूरोशियो।

प्रश्न 15.
ज्वार-भाटा के उत्पन्न होने के मुख्य कारण लिखो।
उत्तर:
चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति।

प्रश्न 16.
महासागरों में मिलने वाले दो प्रमुख लवण तथा उनकी मात्रा लिखो।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड = 77.7%,
  2. मैग्नेशियम क्लोराइड = 10.9%

प्रश्न 17.
भूमध्य रेखा के समीप महासागरीय लवणता कम क्यों होती है?
उत्तर:
अधिक वर्षा के कारण

प्रश्न 18.
काला सागर में लवणता क्यों कम है?
उत्तर:
अनेक नदियों से स्वच्छ जल की प्राप्ति।

प्रश्न 19.
लाल नागर में अधिक लवणता के दो कारण लिखो।
उत्तर:
नदियों का अभाव तथा अधिक वाष्पीकरण।

प्रश्न 20.
‘सर्फ’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
तटीय क्षेत्रों में टूटती हुई तरंग को सर्फ कहते हैं

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प्रश्न 21.
ज्वार की ऊंचाई सर्वाधिक कहां होती है?
उत्तर:
फंडी की खाड़ी (नोवास्कोशिया) 15 से 18 मीटर।

प्रश्न 22.
न्यू फाउंडलैंड के निकट कोहरा क्यों उत्पन्न होता है?
उत्तर:
लैब्रोडोर की ठण्डी धारा तथा खाड़ी की गर्म धारा के मिलने से।

प्रश्न 23.
प्रशान्त महासागर की दो ठण्डी धाराओं के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. पेरू की धारा,
  2. कैलीफोर्निया की धारा।

प्रश्न 24.
महासागरों में औसत लवणता कितनी है?
उत्तर:
35 प्रति हज़ार ग्राम।

प्रश्न 25.
कालाहारी मरुस्थल के पश्चिमी तट पर कौन-सी धारा बहती है?
उत्तर:
बेंगुएला धारा।

प्रश्न 26.
दो ज्वारों के बीच कितने समय का अन्तर होता है?
उत्तर:
12 घण्टे 26 मिनट।

प्रश्न 27.
दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर दक्षिण की ओर कौन-सी धारा बहती है?
उत्तर;
हम्बोल्ट ठण्डी धारा।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरीय जल धाराओं की सामान्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. जलधाराएं निरन्तर एक निश्चित दिशा में प्रवाह करती हैं।
  2. निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराओं को गर्म जल- – धाराएं कहते हैं।
  3. उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराओं को ठण्डी जल- धाराएं कहते हैं।
  4. उत्तरी गोलार्द्ध की जल- धाराएं अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध की जल- धाराएं अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं।
  5. निम्न अक्षांशों में पूर्वी तटों पर गर्म जल – धाराएं तथा पश्चिमी तटों पर ठण्डी जल- धाराएं बहती हैं।
  6. उच्च अक्षांशों में पश्चिमी तटों पर गर्म जल – धाराएं और पूर्वी तटों पर ठण्डी जल-धाराएं बहती हैं।

प्रश्न 2.
प्लावी हिम- शैल किसे कहते हैं? इनके स्रोत बताओ।
उत्तर:
प्लावी हिम शैल (Icebergs):
तैरते हुए हिमखण्डों के बहुत बड़े पिण्डों को प्लावी हिम शैल कहते हैं। ये हिमखण्डों से टूट कर महासागर में अलग तैरते हैं। इनका 1/10 भाग ही जलस्तर के ऊपर दिखाई देता है। उत्तरी अन्धमहासागर में इनकी अधिक संख्या है। ये अधिकतर ग्रीनलैण्ड की हिमानियों से उत्पन्न होते हैं। अलास्का तथा अंटार्कटिका हिम चादर से भी हिमशैल टूटते हैं। ये नौका संचालन के लिए खतरनाक हैं तथा कई दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।

प्रश्न 3.
साउथैम्पन ( इंग्लैण्ड) के तट पर प्रतिदिन चार बार ज्वार क्यों आते हैं?
उत्तर:
सामान्यतः ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं । परन्तु साउथैम्पन (इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट) पर ज्वार प्रतिदिन चार बार आते हैं। यह प्रदेश इंग्लिश चैनल द्वारा उत्तरी सागर तथा अन्धमहासागर को जोड़ता है। दो बार ज्वार अन्धमहासागर की ओर से आते हैं तथा दो बार ज्वार उत्तरी सागर की ओर से आते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 4.
हुगली नदी में नौका संचालन के लिए ज्वार भाटा का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
ऊंचे ज्वार आने पर नदियों के मुहाने पर जल अधिक गहरा हो जाता है। इस प्रकार बड़े-बड़े जलयान नदी में कई मील भीतर तक प्रवेश कर जाते हैं। कोलकाता हुगली नदी के किनारे समुद्रतट से 120 कि० मी० दूर स्थित है, परन्तु हुगली नदी में आने-जाने वाले ज्वार के कारण ही जलयान कोलकाता तक पहुँच पाते हैं।

प्रश्न 5.
ज्वारीय भित्ति किसे कहते हैं? इसके क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
ज्वारीय भित्ति (Tidal Bare ):
नदियों के मुहाने पर पानी की ऊंची, खड़ी दीवार को ज्वारीय भित्ति कहते हैं। जब ज्वार उठता है तो पानी की एक धारा नदी घाटी में प्रवेश करती है। यह लहर नदी के जल को विपरीत दिशा में बहाने का प्रयत्न करती है। ज्वारीय लहर की ऊंचाई बढ़ जाती है तथा पानी का बहाव उलट जाता है। हुगली नदी में ज्वारीय भित्ति के कारण छोटी नावों को बहुत हानि पहुंचती है।

प्रश्न 6.
दीर्घ ज्वार तथा लघु ज्वार का अन्तर बताओ।
उत्तर:
दीर्घ ज्वार (Spring Tide ):
सबसे अधिक ऊंचे ज्वार को दीर्घ ज्वार कहते हैं। यह स्थिति अमावस (New moon) तथा पूर्णमासी (Full moon) के दिन होती है।
कारण:
इस स्थिति में सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीध में होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की संयुक्त आकर्षण शक्ति बढ़ जाने से ज्वार शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य तथा चन्द्रमा के कारण ज्वार उत्पन्न हो जाते हैं। (Spring tide is the sum of Solar and Lunar tides.) इन दिनों ज्वार अधिकतम ऊंचा तथा भाटा से कम नीचा होता है । दीर्घ ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% अधिक ऊंचा होता है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 1
लघु ज्वार (Neap tide ): अमावस के सात दिन पश्चात् या पूर्णमासी के सात दिन पश्चात् ज्वार की ऊंचाई अन्य दिनों की अपेक्षा नीची रह जाती है। इसे लघु ज्वार कहते हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 2
इस स्थिति को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं। जब आधा चांद (Half moon) होता है।

कारण:
इस स्थिति में सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी से समकोण स्थिति ( At Right Angles) पर होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति विपरीत दिशाओं में कार्य करती हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा के ज्वार तथा भाटा एक-दूसरे को घटाते हैं। (Neap tide is the difference of solar and Lunar tides.) इन दिनों उच्च ज्वार कम ऊंचा तथा भाटा कम नीचा होता है। लघु ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% कम ऊंचा होता है।

प्रश्न 7.
ज्वार प्रतिदिन 50 मिनट विलम्ब से क्यों आते हैं
उत्तर:
ज्वार भाटा का नियम (Law of Tides ):
किसी स्थान पर ज्वार भाटा नित्य एक ही समय पर नहीं आता। कारण (Causes) चन्द्रमा पृथ्वी के इर्द-गिर्द 29 दिन में पूरा चक्कर लगाता है। चन्द्रमा पृथ्वी के चक्कर का 29वां भाग हर रोज़ आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चन्द्रमा के सामने दोबारा आने में 24 घण्टे से कुछ अधिक ही समय लगता है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 3
दूसरे शब्दों में प्रत्येक 24 घण्टों के पश्चात् चन्द्रमा अपनी पहली स्थिति से लगभग 13° (360/29 = 12.5°) आगे चला जाता है, इसलिए किसी स्थान को चन्द्रमा के ठीक सामने आने में 12.5 x 4= 50 मिनट अधिक लग जाते हैं। क्योंकि दिन में दो बार ज्वार आता है इसलिए प्रतिदिन ज्वार 25 मिनट देर के अन्तर से अनुभव किया जाता है। पूरे 12 घण्टे के बाद पानी का चढ़ाव देखने में नहीं आता, परन्तु ज्वार 12 घण्टे 25 मिनट बाद आता है। 6 घण्टे 13 मिनट तक जल चढ़ाव पर रहता है और उसके पश्चात् 6 घण्टे 13 मिनट तक जल उतरता रहता है। ज्वार के उतार-चढ़ाव का यह क्रम बराबर चलता रहता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 8.
ज्वार भाटा के लाभ तथा हानियों का वर्णन करो।
उत्तर:

  • ज्वार भाटा के लाभ (Advantages):
    1. ज्वार-भाय समुद्री तटों को स्वच्छ रखते हैं। ये उतार के समय कूड़ा-कर्कट तथा कीचड़ को साथ बहाकर ले जाते हैं।
    2. ज्वार-भाटा की हलचल के कारण समुद्री जल जमने नहीं पाता।
    3. ज्वार के समय नदियों के मुहानों पर जल की गहराई बहुत बढ़ जाती है। जिससे बड़े – बड़े जहाज़ सेंट लारेंस, हुगली, हडसन नदी में प्रवेश कर सकते हैं। ज्वार भाटे के समय को प्रकट करने के लिए टाइम टेबल बनाए जाते हैं।
    4. ज्वार-भाटा के लौटते हुए जल से जल-विद्युत् उत्पन्न की जाती है। इस शक्ति का उपयोग करने के लिए फ्रांस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रयत्न किए गए हैं।
    5. ज्वार-भाटा के कारण बहुत-सी सीपियां, कौड़ियां आदि वस्तुएं तट पर जमा हो जाती हैं। कई समुद्री जीव तटों पर पकड़े जाते हैं।
    6.  ज्वार-भाटा बन्दरगाहों की अयोग्यता को दूर करते हैं तथा आदर्श बन्दरगाहों को जन्म देते हैं। कम गहरे बन्दरगाहों में बड़े-बड़े जहाज़ ज्वार के साथ प्रवेश कर जाते हैं तथा भाटा के साथ वापस लौट आते हैं, जैसे- कोलकाता, कराची, लन्दन।
    7.  ज्वार-भाटय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल, सुगम तथा निरन्तर रखते हैं।
  • हानियां (Disadvantages):
    1. ज्वार-भाटा से कभी – कभी जलयानों को हानि पहुंचती है। छोटे-छोटे जहाज़ व नावें डूब जाती हैं।
    2. इससे बन्दरगाहों के समीप रेत जम जाने से जहाज़ों के आने-जाने में रुकावट होती है।
    3. ज्वार-भाटा द्वारा मिट्टी के बहाव के कारण डेल्टा नहीं बनते।
    4. मछली पकड़ने के काम में रुकावट होती है।
    5. ज्वार का पानी जमा होने से तट पर दलदल बन जाती है।

प्रश्न 9.
पवन निर्मित तरंगों के विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
तरंगें (Waves): पवन के सम्पर्क से सागरीय जल की आगे पीछे, ऊपर-नीचे की गति से तरंगें उत्पन्न होती हैं। पवन द्वारा तरंगें तीन प्रकार की होती हैं-
‘सी’ (Sea), स्वेल (Swell), (iii) सर्फ (Surf)। विभिन्न दिशाओं तथा गतियों से उत्पन्न तरंगों को ‘सी’ कहते हैं। जब यह तरंगें एक नियमित रूप से एक निश्चित गति तथा दिशा से आगे बढ़ती हैं तो इसे स्वेल कहते हैं। समुद्र तट पर शोर करती, टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहते हैं जब यह तरंगें समुद्र तट पर वेग से दौड़ती हैं तो इन्हें ‘स्वाश’ (Swash) कहते हैं। समुद्र की ओर वापस लौटती हुई तरंगों को बैक वाश (Back wash) कहते हैं।

प्रश्न 10.
न्यूफाउंडलैंड के निकट कोहरे का निर्माण क्यों होता है?
उत्तर:
न्यूफाउंडलैंड के निकट पूर्वी तट पर लैब्रेडोर की ठण्डी धारा बहती है। दक्षिण की ओर से खाड़ी को गर्म धारा यहां आकर मिलती है। इन दो विभिन्न तापमान वाली धाराओं के संगम से यहां कोहरे का निर्माण होता है। ठण्डी वायु के जलकण सूर्य की किरणों का मार्ग रोक कर कोहरा उत्पन्न कर देते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
किसी देश की जलवायु तथा व्यापार पर समुद्री धाराओं के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
समुद्री धाराओं के प्रभाव (Effects of Ocean Currents): समुद्री धाराएं आसपास के क्षेत्रों में मानव जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है।
(क) जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)
1. जलवायु (Climate) – जिन तटों पर गर्म या ठण्डी धाराएं चलती हैं वहां की जलवायु क्रमशः गर्म या ठण्डी हो जाती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 4

2. तापक्रम (Temperature):
धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या शीत ले जाती हैं। गर्म धारा के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापक्रम ऊंचा हो जाता है तथा जलवायु कम हो जाती है। ठण्डी धारा के कारण शीतकाल में तापक्रम बहुत नीचा हो जाता है तथा जलवायु विषम व कठोर हो जाती है।
उदाहरण (Examples):

  1. लैब्रेडोर (Labrador) की ठण्डी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट तथा क्यूराइल (Kurile) की ठण्डी धारा के प्रभाव से साइबेरिया का पूर्वी तट शीतकाल में बर्फ से जमा रहता है
  2. खाड़ी की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीपसमूह तथा नार्वे के तटीय भागों का तापक्रम ऊंचा रहता है और जल शीतकाल में भी नहीं जमता जलवायु सुहावनी तथा सम रहती है।

3. वर्षा (Rainfall):
गर्म धाराओं के समीप के प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है, परन्तु ठण्डी धाराओं के समीप के प्रदेशों में कम वर्षा होती है। गर्म धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनों में नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है परन्तु ठण्डी धाराओं के सम्पर्क में आकर पवनें ठण्डी हो जाती हैं और अधिक नमी धारण नहीं कर सकतीं। उदाहरण (Examples):

  1. उत्तर: पश्चिम यूरोप में खाड़ी की धारा के कारण तथा जापान के पूर्वी तट पर क्यूरोसियो की गर्म धारा के कारण अधिक वर्षा होती है।
  2. संसार के प्रमुख मरुस्थलों के पश्चिमी तटों के समीप ठण्डी धाराएं बहती हैं, जैसे- सहारा तट पर कनेरी धारा, कालाहारी तट पर बेंगुएला धारा, ऐटेकामा तट पर पीरू की धारा ।

4. धुन्ध की उत्पत्ति (Fog ):
गर्म व ठण्डी धाराओं के मिलने पर धुन्ध व कोहरा उत्पन्न हो जाता है। गर्म धारा के ऊपर की वायु ठण्डी हो जाती है। उसके जल-कण सूर्य की किरणों का मार्ग रोक कर कोहरा उत्पन्न कर देते हैं। उदाहरण (Example) – खाड़ी की गर्म धारा लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के ऊपर की वायु के मिलने से न्यूफाउंडलैंड (New foundland) के निकट धुन्ध उत्पन्न हो जाती है।

5. तूफानी चक्रवात (Cyclones):
गर्म व ठण्डी धाराओं के मिलने से गर्म वायु बड़े वेग से ऊपर उठती है तथा तीव्र तूफानी चक्रवात को जन्म देती है।

(ख) व्यापार पर प्रभाव (Effect on Trade):
1. बन्दरगाहों का खुला रहना (Open Sea-ports):
ठण्डे प्रदेशों में गर्म धाराओं के प्रभावों से सर्दियों में भी बर्फ़ नहीं जमती तो बन्दरगाह व्यापार के लिए वर्ष भर खुले रहते हैं, परन्तु ठण्डी धारा के समीप का तट महीनों बर्फ से जमा रहता है। ठण्डी धाराएं व्यापार में बाधक हो जाती हैं।
उदाहरण (Example ):

  1. खाड़ी की धारा के कारण नार्वे तथा ब्रिटिश द्वीपसमूह के बन्दरगाह सारा वर्ष खुले रहते हैं परन्तु हालैंड तथा स्वीडन के बन्दरगाह समुद्र का जल जम जाने से शीतकाल में बन्द रहते हैं।
  2. लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के कारण पूर्वी कैनेडा व सैंट लारेंस (St. Lawrence Valley) के बन्दरगाह तथा क्यूराइल की ठण्डी धारा के कारण व्लाडीवास्टक (Vladivostok) के बन्दरगाह शीतकाल में जम जाते हैं।

2. समुद्री मार्ग (Ocean Routes ):
धाराएं जल मार्गों का निर्धारण करती हैं। ठण्डे सागरों से ठण्डी धाराओं के साथ बहकर आने वाली हिमशिलाएं (Icebergs) जहाज़ों को बहुत हानि पहुंचाती हैं। इनसे मार्ग बचाकर समुद्री मार्ग निर्धारित किए जाते हैं।

3. जहाज़ों की गति पर प्रभाव (Effect on the Velocity of the Ships):
प्राचीन काल में धाराओं का बादबानी जहाज़ों की गति पर प्रभाव पड़ता था धाराओं के अनुकूल दिशा में चलने से उनकी गति बढ़ जाती थी परन्तु विपरीत दिशा में चलने से उनकी चाल मन्द पड़ जाती थी। आजकल भाप से चलने वाले जहाजों (Steam Ships) की गति पर धाराओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

4. समुद्र जल की स्वच्छता (Purity of Sea Water ):
धाराओं के कारण समुद्र जल गतिशील, शुद्ध तथा स्वच्छ रहता है। धाराएं तट पर जमा पदार्थ दूर बहाकर ले जाती हैं तथा समुद्र तट उथले होने से बचे रहते हैं।

5. दुर्घटनाएं (Accidents):
कोहरे व धुन्ध के कारण दृश्यता (Visibility) कम हो जाती है। प्रायः जहाज़ों के डूबने तथा हिम शिलाओं से टकराने की दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

(ग) समुद्री जीवों पर प्रभाव (Effect on Marine Life)
1. समुद्री जीवों का भोजन (Plankton ):
धाराएं समुद्री जीवन का प्राण हैं। ये अपने साथ बहुत गली – सड़ी वस्तुएं (Plankton) बहाकर लाती हैं। ये पदार्थ मछलियों के भोजन का आधार हैं।

2. मछलियों का वितरण (Distribution of Fish ):
मछलियां धाराओं के साथ बहती हैं। ठण्डे समुद्रों से आने वाली ठण्डी धाराओं के साथ उत्तम मछलियों के झुण्ड के झुण्ड गर्म-गर्म समुद्रों में चले आते हैं

उदाहरण (Example):
गर्म व ठण्डी धाराओं के मिलने के कारण जापान तट तथा न्यूफाउंडलैंड के किट ग्रांड बैंक (Grand Bank) मछली उद्योग के प्रसिद्ध केन्द्र बन गए हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 2.
तरंगों की उत्पत्ति तथा विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
तरंगें (Waves):
तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं, जल नहीं, जो कि महासागरीय सतह के आर-पार गति करते हैं। तरंगों में जलकण छोटे वृत्ताकार रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। सतह जल की गति महासागरों के गहरे तल के स्थिर जल को कदाचित् ही प्रभावित करती है। जैसे ही एक तरंग महासागरीय तट पर पहुँचती है इसकी गति कम हो जाती है। ऐसा गत्यात्मक जल के मध्य आपस में घर्षण होने के कारण होता है तथा जब जल की गहराई तरंग के तरंगदैर्ध्य के आधे से कम होती है तब तरंग टूट जाते हैं। बड़ी तरंगें खुले महासागरों में पायी जाती हैं।

तरंगें जैसे ही आगे की ओर बढ़ती हैं बड़ी होती जाती हैं तथा वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं। अधिकतर तरंगें वायु जल की विपरीत दिशा में गतिमान से होती हैं। जब दो नॉट या उससे कम वाली समीर शांत जल पर बहती है, तब छोटी-छोटी उर्मिकाएँ (Ripples) बनती हैं तथा वायु की गति बढ़ने के साथ ही इनका आकार बढ़ता जाता है, जब तक इनके टूटने से सफेद बुलबुले नहीं बन जाते तट के पास पहुँचने, टूटने तथा (सफेद बुलबुलों में सर्फ की भाँति घुलने से पहले तरंगें हज़ारों कि० मी० की यात्रा करती हैं ।)

तरंग का आकार:
एक तरंग का आकार एवं आकृति उसकी उत्पत्ति को दर्शाता है। युवा तरंगें अपेक्षाकृत ढाल वाली होती हैं तथा सम्भवतः स्थानीय वायु के कारण बनी होती हैं। कम एवं नियमित गति वाली तरंगों की उत्पत्ति दूरस्थ स्थानों पर होती है, सम्भवतः दूसरे गोलार्द्ध में तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता वायु की तीव्रता के द्वारा लगाया जाता है, यानि यह कितने समय तक प्रभावी है तथा उस क्षेत्र के ऊपर कितने समय से एक ही दिशा में प्रवाहमान है?

तरंगें गति करती हैं, क्योंकि वायु जल को प्रवाहित करती है जबकि गुरुत्वाकर्षण तरंगों के शिखरों को नीचे की ओर खींचती है। गिरता हुआ जल पहले वाले गर्त को ऊपर की ओर धकेलता है एवं तरंगें नयी स्थिति में गति करती हैं। तरंगों के नीचे जल की गति वृत्ताकार होती है। यह इंगित करता है कि आती हुई तरंग पर वस्तुओं का वहन आगे तथा ऊपर की ओर होता है एवं लौटती हुई तरंग पर नीचे तथा पीछे की ओर।

तरंगों की विशेषताएँ:

  1. तरंग शिखर एवं गर्त (Wave crest and trough ): एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिंदुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
  2. तरंग की ऊँचाई (Wave height): यह एक तरंग के गर्त के अधः स्थल से शिखर के ऊपरी भाग तक की उर्ध्वाधर दूरी है।
  3. तरंग आयाम (Amplitude) : यह तरंग की ऊँचाई का आधा होता है।
  4. तरंग काल (Wave Period): तरंग काल एक निश्चित बिन्दु से गुज़रने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्तों के बीच का समयान्तराल है।
  5. तरंगदैर्ध्य (Wavelength ): यह दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी है।
  6. तरंग गति (Wave speed): जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते हैं तथा इसे नॉट में मापा जाता है।
  7.  तरंग आवृत्ति: यह एक सेकेंड के समयान्तराल में दिए गए बिन्दु से गुज़रने वाली तरंगों की संख्या है।

प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
ज्वार-भाटा के प्रकार ज्वार-भाटा की आवृत्ति, दिशा गति में स्थानीय व सामयिक भिन्नता पाई जाती है। ज्वारभाटाओं को उनकी बारम्बारता एक दिन में या 24 घंटे में या उनकी ऊँचाई के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा (Tides based on frequency)
1. अर्द्ध- दैनिक ज्वार ( Semi- diurnal):
यह सबसे सामान्य ज्वारीय प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक दिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। दो लगातार उच्च एवं निम्न ज्वार लगभग समान ऊँचाई के होते हैं।

2. दैनिक ज्वार (Diurnal tide ):
इसमें प्रतिदिन केवल एक उच्च एवं एक निम्न ज्वार होता है। उच्च एवं निम्न ज्वारों की ऊँचाई समान होती है।

3. मिश्रित ज्वार (Mixed tide ):
ऐसे ज्वार-भाटा जिनकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहा जाता है। ये ज्वार-भाटा सामान्यतः उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट एवं प्रशान्त महासागर के बहुत से द्वीप समूहों पर उत्पन्न होती हैं।

4. सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वारभाटा (Spring tides ):
उच्च ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।

5. वृहत् ज्वार (Spring tides ):
पृथ्वी के सन्दर्भ में सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति ज्वार की ऊँचाई को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वारीय उभार अधिकतम होगा। इनको वृहत् ज्वार- भाटा कहा जाता है तथा ऐसा महीने में दो बार होता है- पूर्णिमा के समय तथा दूसरा अमावस्या के समय।

6. निम्न ज्वार (Neap tides ):
सामान्यतः वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार के बीच सात दिन का अन्तर होता है। इस समय चन्द्रमा एवं सूर्य एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं तथा सूर्य एवं चन्द्रमा के गुरुत्व बल एक-दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हैं। चन्द्रमा का आकर्षण सूर्य के दोगुने से अधिक होते हुए भी, यह बल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के समक्ष धूमिल हो जाता है। चन्द्रमा का आकर्षण अधिक इसीलिए है क्योंकि वह पृथ्वी के अधिक निकट है।