JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा 

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
1. हरित क्रांति का सर्वाधिक लाभ हुआ
(अ) राजस्थान व उत्तर प्रदेश में
(ब) पंजाब और हरियाणा में
(स) महाराष्ट्र और तमिलनाडु में
(द) पूरे देश में।
उत्तर:
(ब) पंजाब और हरियाणा में

2. निर्धनों में भी निर्धन लोगों के पास जो कार्ड होता है, वह है
(अ) बी. पी. एल. कार्ड
(ब) ए. पी. एल. कार्ड
(स) अन्त्योदय कार्ड
(द) उक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) अन्त्योदय कार्ड

3. काम के बदले अनाज योजना प्रारम्भ की गई थी
(अ) 1967-68 में
(ब) 1975-76 में
(स) 1977-78 में
(द) 1980-81 में।
उत्तर:
(स) 1977-78 में

4. अन्नपूर्णा योजना बनाई गई
(अ) बी. पी. एल. परिवारों के लिए
(ब) ए. पी. एल. परिवारों के लिए
(स) दीन वरिष्ठ नागरिकों के लिए
(द) उक्त सभी के लिए।
उत्तर:
(स) दीन वरिष्ठ नागरिकों के लिए

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्य उपलब्धता से क्या आशय है?
उत्तर:
खाद्य उपलब्धता का आशय सम्पूर्ण देश के खाद्यान्न उत्पादन, आयात और सरकारी अनाज भंडारों में एकत्रित पिछले वर्षों के स्टॉक से है।

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प्रश्न 2.
खाद्य सुरक्षा के तीन प्रमुख पहलू कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. खाद्य की उपलब्धता,
  2. खाद्य तक पहुँच,
  3. खरीदने की क्षमता।

प्रश्न 3.
बंगाल के अकाल से सबसे अधिक कौन लोग प्रभावित हुए?
उत्तर:
बंगाल के अकाल से खेतिहर मजदूर, मछुआरे, परिवहन कर्मी और अन्य अनियमित श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।

प्रश्न 4.
कुपोषण से सबसे अधिक कौन प्रभावित होता है?
उत्तर:
कुपोषण से सबसे अधिक महिलाएँ प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 5.
राशन कार्ड कितने प्रकार के होते हैं? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राशन कार्ड निम्नलिखित तीन प्रकार के होते

  1. निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए अंत्योदय
    कार्ड,
  2. निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए बी. पी. एल. कार्ड,
  3. अन्य शेष लोगों के लिए ए. पी. एल. कार्ड।

प्रश्न 6.
भारत की खाद्य सुरक्षा के दो प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं।
उत्तर:

  1. खाद्यान्नों का बफर स्टॉक,
  2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

प्रश्न 7.
सहायिकी से क्या आशय है?
उत्तर:
सहायिकी (सब्सिडी) सरकार द्वारा किया जाने वाला वह भुगतान है जो किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। इसके द्वारा घरेलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय के साथ उपभोक्ता कीमतों को कम करने के प्रयास किए जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्य सुरक्षा के विभिन्न आयामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खाद्य सुरक्षा के निम्नलिखित आयाम हैं:
(क) खाद्य उपलब्धता का अभिप्राय देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और अनाज भण्डारों में संचित पिछले वर्षों के स्टॉक के योग से है।

(ख) खाद्य पहुँच का अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को खाद्य की निर्बाध आपूर्ति होती रहे।

(ग) खाद्य सामर्थ्य का अर्थ है कि लोगों के पास आवश्यक पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।

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प्रश्न 2.
विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन 1995 में खाद्य सुरक्षा के सम्बन्ध में की गयी घोषणा क्या थी?
उत्तर:
विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन 1995 में यह घोषणा की गई कि, “वैयक्तिक, पारिवारिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा का अस्तित्व तभी है, जब सक्रिय और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए आहार सम्बन्धी जरूरतों और खाद्य पदार्थों को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य तक सभी लोगों की भौतिक एवं आर्थिक पहुँच सदैव हो।”

प्रश्न 3.
देश में कोई आपदा खाद्य सुरक्षा को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
देश में कोई प्राकृतिक आपदा से कुल उत्पादन में कमी आती है इस कमी से उस क्षेत्र में खाद्य-पदार्थों की कमी होती है और इस कमी के कारण कीमतों में वृद्धि होने से लोग उन्हें खरीद नहीं पाते। अगर यह आपदा विस्तृत क्षेत्र में आती है या लम्बे समय तक बनी रहती है तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो जाती है जिसके कारण अकाल की स्थितियाँ बनती

प्रश्न 4.
सरकार के इतने प्रयासों के बाद भी भूख के कारण किन-किन स्थानों पर लोगों की मृत्यु हुई?
उत्तर:
सरकार के सभी को खाद्य उपलब्ध कराने के भरसक प्रयासों के बाद भी देश के उड़ीसा में कालाहांडी तथा काशीपुर और राजस्थान के बारां तथा झारखंड के पलामू जिलों के सुदूरवर्ती स्थानों पर भूख के कारण लोगों की मृत्यु होने के समाचार मिले हैं।

प्रश्न 5.
भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के द्वारा ऐसी व्यवस्था करने का प्रयास किया गया है जिससे खाद्य एवं पोषण सम्बन्धी सुरक्षा सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराई जा सके ताकि सभी लोग गरिमामय जीवन निर्वाह कर सकें। इस अधिनियम के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीण तथा 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को योग्य परिवार के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन योग्य परिवारों को 5 कि. ग्रा. प्रति व्यक्ति प्रति माह अनाज उपलब्ध कराया जाता है जिसमें गेहूँ 2 रु. प्रति कि. ग्रा. तथा चावल 3 रु. प्रति कि. ग्रा. की दर पर दिया जाता है।

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प्रश्न 6.
अंत्योदय अन्न योजना को विस्तार से बताइए।
उत्तर:
अंत्योदय अन्न योजना का शुभारम्भ दिसम्बर-2000 में हुआ। इस योजना के अन्तर्गत ऐसे एक करोड़ लोगों की पहचान की गई जो कि लक्षित सार्वजनिक प्रणाली के अन्तर्गत निर्धनता रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे। इस योजना के लिए सम्बन्धित राज्यों के ग्रामीण विकास विभागों ने सर्वेक्षण के माध्यम से इन लोगों की पहचान की। इन चिह्नित परिवारों के लिए प्रतिमाह 25 किग्रा. गेहूँ 2 रु. प्रति किलो की आर्थिक सहायता पर प्रतिमाह उपलब्ध कराया जाने लगा।

साथ में 3 रु. प्रति कि.ग्रा. की दर पर चावल भी उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था की गई। गेहूँ की मात्रा को अप्रैल 2002 में 25 किग्रा. से बढ़ाकर 35 किग्रा. कर दिया गया। जून 2003 और अगस्त 2004 में इन परिवारों की संख्या में 50-50 लाख अतिरिक्त बी. पी. एल. परिवारों को और जोड़ दिया गया। वर्तमान में इस योजना के अन्तर्गत 2 करोड़ परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।

प्रश्न 7.
श्वेत क्रांति और हरित क्रांति में अन्तर बताइए।
उत्तर:

  1. श्वेत क्रांति का सम्बन्ध दुधारू पशुपालन पर निर्भर है जबकि हरित क्रांति का सम्बन्ध खाद्यान्नों के उत्पादन पर निर्भर है।
  2. श्वेत क्रांति के माध्यम से समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को दूध और दूध से बनी वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है जबकि हरित क्रांति के माध्यम से देश के प्रत्येक नागरिक की खाद्यान्न सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास किये जाते हैं।

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प्रश्न 8.
क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना भारत का लक्ष्य रहा है?
उत्तर:
हाँ, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना भारत का लक्ष्य रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय नीति-निर्माताओं ने खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के सभी उपाय किए। भारत में कृषि में एक नयी रणनीति अपनाई, जिसकी परिणति हरित क्रांति में हुई, विशेषकर गेहूँ और चावल के उत्पादन में। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने जुलाई, 1968 में ‘गेहूँ क्रांति’ शीर्षक से एक विशेष डाक टिकट जारी कर कृषि के क्षेत्रक में हरित क्रांति की प्रभावशाली प्रगति को आधिकारिक रूप से दर्ज किया।

गेहूँ की सफलता के बाद चावल के क्षेत्र में भी सफलता मिली है। परन्तु अनाज की उपज में वृद्धि समानुपातिक नहीं थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक वृद्धि जो कि क्रमश: 44.01 और 30.21 करोड़ टन 2015-16 में है। वर्ष 2015-16 में कुल अनाजों का उत्पादन 252.22 करोड़ टन था। गेहूँ के उत्पादन में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई जो कि क्रमश: 26.87 और 17.69 करोड़ टन 2015-16 में है। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई जो 15.75 एवं 12.51 करोड़ टन क्रमश: 2015-16 में है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है? किन आधारों पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आलोचना की जाती है?
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली-भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के निर्धन वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी. डी. एम.) कहते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आलोचना-सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आलोचनाएँ निम्नलिखित आधारों पर की जाती है

  1. एक ओर तो भारतीय खाद्य निगम (एफ. सी. आई.) के गोदाम एवं अन्न भण्डार खाद्यान्नों से भरे पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर देश के कुछ भागों में भुखमरी के उदाहरण पाये जाते हैं।
  2. भारतीय खाद्य निगम में गेहूँ और चावल का भण्डार बफर स्टॉक प्रतिमानों से लगातार ऊँचा बना रहा है। सन् 2014 में गेहूँ और चावल का भण्डार 65.2 करोड़ टन था। अनाजों के बफर स्टॉक का ऊँचा स्तर बर्बादी और अनाज की गुणवत्ता में ह्रास के अतिरिक्त उच्च रखरखाव लागत के लिए भी जिम्मेदार है।
  3. न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि ने विशेषकर खाद्यान्नों के अधिशेष वाले राज्यों के किसानों को अपनी भूमि पर मोटे अनाजों की खेती समाप्त कर चावल और गेहूँ उपजाने के लिए प्रेरित किया है, जबकि मोटा अनाज गरीबों का मुख्य भोजन है। चावल की खेती के लिए सघन सिंचाई से पर्यावरण और जल स्तर में गिरावट भी आयी है।
  4. मध्य प्रदेश में गरीबों के उपभोग के गेहूँ और चावल का केवल पाँच प्रतिशत भाग राशन की दुकानों से पूरा किया जाता है, जबकि उत्तर प्रदेश में व बिहार में यह प्रतिशत और भी कम है। इस प्रकार गरीबों को अपनी खाद्यान्न सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिए राशन की दुकानों की अपेक्षा बाजारों पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है।
  5. सार्वजनिक वितरण प्रणाली डीलर (राशन डीलर) अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को खुले बाजार में बेचने, घटिया अनाज बेचने एवं अनियमित तरीके से दुकान खोलने जैसे कदाचार करते हैं।
  6. राशन वितरण व्यवस्था में कमियाँ होने के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली का पूर्ण रूपेण लाभ समाज के निर्धन वर्ग को नहीं मिल पा रहा है।

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