JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

JAC Class 9th Sanskrit भ्रान्तो बालः Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए-)
(क) कः तन्द्रालुः भवति? (आलसी कौन होता है?)
उत्तरम् :
बालः। (बालक।)

(ख) बालक कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्? (बालक ने कहाँ. भ्रमण करते भौरे को देखा?)
उत्तरम् :
पुष्पोद्यानम्। (फुलवाड़ी में।)

(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अभवन्? (कौन मधु संग्रह करने में व्यस्त था?)
उत्तरम् :
मधुकरः (भौंरा)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

(घ) चटकः कया तृणशलाकादिकम् आददाति? (चिड़ा किससे तिनका लेता है?)
उत्तरम् :
चञ्च्वा । (चोंच से।)

(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति? (चिड़ा किसकी डाल पर घोंसला बनाता है?)
उत्तरम् :
वद्रुमस्य। (बड़ के पेड़ पर।)

(च) बालकः कीदशं श्वानं पश्यति? (बालक कैसे कत्ते को देखता है?)
उत्तरम् :
पलायमानम्। (भागते हुए।)

(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यटसि? (कुत्ता कैसे दिन में घूमता है?)
उत्तरम् :
निदाघदिवसे। (ग्रीष्म के दिन में।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत्? (बालक कब खेलने के लिए निकल गया?)
उत्तरम् :
बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। (बालक पाठशाला जाने के समय में खेलने के लिए निकल गया।)

(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा अभवन्? (बालक के मित्र किसलिए जल्दी में थे?)
उत्तरम् :
बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः। (बालक के मित्र विद्यालय जाने के लिए जल्दी में थे।)

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(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान्? (भौरे ने बालक के बुलावे को किस कारण से नहीं माना?)
उत्तरम् :
मधुकरः मधुसंग्रहव्यग्रः आसीत् अत: स: बालकस्य आह्वानं न अमन्यत। (भौंरा मधुसंग्रह में व्यस्त था इसलिए उसने बालक के बुलावे को नहीं माना।)

(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्? (बालक ने किस प्रकार के चटक (चिड़े) को देखा?)
उत्तरम् :
बालकः चञ्च्वा तृणशलाकादिकमाददानं चटकम् अपश्यत्। (बालक ने चोंच में तिनकों, सींक आदि को ग्रहण करते हुए एक चटक (चिड़े) को देखा।)

(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्? (बालक ने चटक (चिड़े) को खेलने के लिए किस प्रकार का लोभ दिया?)
उत्तरम् :
बालकः चटकाय क्रीडनार्थं ‘स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि,’ इति लोभं दत्तवान् । (बालक ने चटक (चिड़े) के लिए खेलने के लिए ‘तुम्हें स्वादिष्ट भोजन के कौर दूंगा,’ यह लोभ दिया।)

(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्? (दु:खी बालक ने कुत्ते से क्या कहा?)
उत्तरम् :
खिन्नः बालकः श्वानम् अकथयत् – “रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? आश्रयस्वेदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् इति।” (दुःखी बालक ने कुत्ते से कहा-अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? पेड़ की जड़ में शीतल छाया वाला यह आश्रय ले लो।)

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(छ) भग्नमनोरथ: बालः किम् अचिन्तयत्? (टूटी इच्छाओं वाले बालक ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
विनितमनोरथः बालः अचिन्तयत्-“कथमस्मिन् जगति प्रत्येकः स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति? अथ स्वोचितमहमपि करोमि।” (टूटी इच्छाओं वाले बालक ने सोचा-“इस संसार में प्रत्येक अपने-अपने कार्य में कैसे संलग्न है? इसके बाद मैं भी अपने लिए उचित कार्य करूँगा।”)

3. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(निम्नलिखित श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए-)
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षा नियोगकरणान मया भ्रष्टव्यमीषदपि।।
उत्तरम् :
हिन्दी भावार्थ-कत्ता बालक से कहता है कि जो गहस्वामी मद्ये पत्र जैसा प्रेम करता है तथा मे है, उसके घर की रक्षा करने के कार्य में मैं थोड़ा भी भ्रष्ट नहीं हो सकता अर्थात मैं अपने स्वामी के घर को छोड़कर तुम्हारे साथ इस पेड़ की छाया में बैठकर नहीं खेल सकता।

4. ‘भ्रान्तो बालः’ इति कथायाः सारांशं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(भ्रान्तो बाल:’ इस कथा का सारांश हिन्दी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए-)

कथा का सारांश – एक बालक का मन पढ़ने में नहीं लगता था, अतः वह विद्यालय जाते समय अपने साथियों की दृष्टि से बचकर किसी बगीचे में प्रवेश कर गया। वहाँ उसने अपने साथियों के विषय में सोचा कि ये तो पुस्तकों के दास अथवा किताबी कीड़े हैं। वहाँ विद्यालय में अध्यापकों का क्रोधित चेहरा देखना पड़ेगा। अतः मैं यहाँ जीव-जन्तुओं को अपना मित्र बनाकर खेलँगा। बगीचे में उसने भौरे से अपने साथ खेलने के लिए कहा तो उसने यह कहकर खेलने से मना कर दिया कि मैं अपने मधु-संग्रह के कार्य में व्यस्त हूँ। फिर उसने घोंसला बनाने के लिए चोंच में तिनका लेकर जाते चटक (चिड़े) से अपने साथ खेलने के लिए कहा, किन्तु उसने भी अपने घोंसला बनाने के कार्य को छोड़कर खेलने से मना कर दिया।

इसके बाद बालक ने तेजी से भागते हुए कुत्ते को अपने साथ खेलने के लिए आमन्त्रित किया, किन्तु कुत्ते ने यह कहकर खेलने से मना कर दिया कि मैं अपने स्वामी के घर की रखवाली में कोई लापरवाही नहीं कर सकता।

इस प्रकार बालक ने जब देखा कि संसार का प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कार्य में संलग्न है, केवल एक मैं ही अपना समय व्यर्थ गँवा रहा हूँ तो उसने सोचा कि मुझे भी आलस्य त्यागकर अपने कार्य में लग जाना चाहिए। यह बात मन में आते ही वह शीघ्र ही विद्यालय पहुँच गया। अभ्यास करते हुए पढ़कर बालक ने विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति प्राप्त की।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

5. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (मोटे छपे पदों को आधार बनाकर प्रश्न निर्माण कीजिए-)

(क) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि।
प्रश्न: – कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि?
(ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्।
प्रश्न: – चटकः कस्मिन् व्यग्रः आसीत्?
(ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति।
प्रश्न: – कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति?
(घ) स महती वैदुर्षी लब्धवान्।
प्रश्न: – स कां लब्धवान् ?
(ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति।
प्रश्न: – कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति?

6. “एतेभ्य: नमः’ इति उदाहरणमनुसृत्य ‘नमः’ इत्यस्य योगे चतुर्थी विभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
(‘एतेभ्यः नमः’-इस उदाहरण के अनुसार ‘नमः’ के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके पाँच वाक्य बनाइये।)
उत्तरम् :
1. गुरवे नमः
2. विष्णवे नमः
3. रामाय नमः
4. हरये नमः
5. सर्वेभ्य: नमः।

7. (अ) ‘क’ स्तम्भे समस्तपदानि ‘ख’ स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथासमक्षं लिखत-(‘क’ स्तम्भ में । समस्तपद और ‘ख’ स्तम्भ में उनके विग्रह दिये हुए हैं। उन्हें उचित प्रकार से एक-दूसरे के सामने लिखिए-)

‘क’ स्तम्भः ‘ख’ स्तम्भः
(क) दृष्टिपथम् 1. पुष्पाणाम् उद्यानम्
(ख) पुस्तकदासाः 2. विद्यायाः व्यसनी
(ग) विद्याव्यसनी 3. दृष्टेः पन्थाः
(घ) पुष्पोद्यानम् 4. पुस्तकानां दासाः

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भः ‘ख’ स्तम्भः
(क) दृष्टिपथम् 3. दृष्टेः पन्थाः
(ख) पुस्तकदासाः 4. पुस्तकानां दासाः
(ग) विद्याव्यसनी 2. विद्यायाः व्यसनी
(घ) पुष्पोद्यानम् 1. पुष्पाणाम् उद्यानम्

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

(आ) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम्। विशेषणपदं विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत- (नीचे लिखे पदों के जोड़ों में एक विशेष्य पद है और दूसरा विशेषण पद। विशेषण पद और विशेष्य पद को अलग-अलग करके लिखिए-)

विशेषणम् विशेष्यम्
(क) खिन्नः बाल: ……….. ……….
(ख) पलायमानं श्वानम् ………. …………..
(ग) प्रीतः बालकः ……… ……….
(घ) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ………. ……….
(ङ) त्वरमाणाः वयस्याः ………… …………
उत्तरम् :
विशेषणम् विशेष्यम्
(क) खिन्नः बालः
(ख) पलायमानं श्वानम्
(स) पलायमानं श्वानम्
(ग) प्रीतः बालकः
(घ) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि
(ङ) त्वरमाणाः वयस्याः

JAC Class 9th Sanskrit भ्रान्तो बालः Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
बालेन सह किं कर्तुं कोऽपि न उपलभ्यमान आसीत्? (बालक के साथ क्या करने के लिए कोई भी उपलब्ध नहीं था?)
उत्तरम् :
बालेन सह क्रीडाभिः कालं यापयितुं कोऽपि प्राप्तः न आसीत्। (बालक के साथ खेलने में समय व्यतीत करने के लिए कोई भी मिला नहीं था।)

प्रश्न: 2.
मित्राणां दृष्टिपथं परिहरन् बालः किम् अकरोत् ? (मित्रों की दृष्टि से बचते हुए बालक ने क्या किया?)
उत्तरम् :
मित्राणां दृष्टिपथं परिहरन् बालः एकम् उद्यानम् अगच्छत्। (मित्रों की दृष्टि से बचते हुए बालक एक बाग में गया।)

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प्रश्न: 3.
बालकस्य मतेन तस्य सहपाठिनः कीदृशाः आसन्? (बालक के मतानुसार उसके सहपाठी किस प्रकार के थे?)
उत्तरम् :
बालकस्य मतेन तस्य सहपाठिनः वराकाः पुस्तकदासाः आसन्। (बालक के मत में उसके सहपाठी बेचारे पुस्तकों के दास थे।)

प्रश्न: 4.
मधुकरः किम् अगायत् ? (भौरे ने क्या गाया?)
उत्तरम् :
करः अगायत-वयं हि मधुसंग्रहव्यग्राः। (भौरे ने गाया-हम सब निश्चय ही मधसंग्रह में व्यस्त हैं।)

प्रश्न: 5.
बालः चटकं किं त्यक्तुं कथयति? (बालक चटक पक्षी से क्या त्यागने के लिए कहता है?)
उत्तरम् :
बालः चटकं शुष्कं तृणं त्यक्तुं कथयति। (बालक चटक पक्षी से सूखे तिनके को त्यागने को कहता है।)

प्रश्नः 6.
बालः परिक्रम्य कम् अपश्यत्? (बालक ने घूमकर किसे देखा?)
उत्तरम् : बालः परिक्रम्य गच्छन्तं श्वानम् अपश्यत्। (बालक ने घूमकर जाते हुए कुत्ते को देखा।)

प्रश्न: 7.
बालः क्रीडासहायकं कं पश्यति? (बालक खेलने में सहायक किसे देखता है?)
उत्तरम् :
बालः क्रीडासहायकं श्वानं पश्यति। (बालक खेलने में सहायक कुत्ते को देखता है।)

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प्रश्नः 8.
कोऽपि किं न सहते? (कोई भी क्या नहीं सहता है?)
उत्तरम् :
कोऽपि वृथा कालक्षेपं न सहते। (कोई भी व्यर्थ समय व्यतीत करना नहीं सहता है।)

प्रश्न: 9.
बालः कदा महतीं वैदुषी, प्रथां, सम्पदं च लेभे? (बालक ने कब महान् विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति को प्राप्त किया?)
उत्तरम् :
विद्याव्यसनी भूत्वा बाल: महती वैदुर्षी, प्रथां, सम्पदं च लेभे। (विद्याव्यसनी होकर बालक ने महान् विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति को प्राप्त किया।)

प्रश्न: 10.
भ्रान्त बालेन सह अन्ये वयस्याः कस्मात् क्रीडितुम् उपलभ्यमानाः न आसन्? (भ्रान्त बालक के साथ मित्र किसलिए खेलने के लिए उपलब्ध नहीं थे?).
उत्तरम् :
यतः ते सर्वेऽपि पूर्व दिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालय गणनाय त्वरमाणाः अभवन्। (क्योंकि वे सभी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए तत्पर थे।)

प्रश्न: 11.
तंद्रालुः बालकः किमनुभवन् उद्यानं प्राविशत्? (आलसी बालक क्या अनुभव करता हुआ बाग में प्रविष्ट हुआ?)
उत्तरम् :
लज्जामनुभवन् तंद्रालुः बालः उद्यानं प्राविशत्। (लज्जा अनुभव करता हुआ बालक बाग में प्रविष्ट हो गया।)

प्रश्न: 12.
‘विरमन्तु एते बराक दुस्तकदासाः’ इति केन उक्तम्? (‘इन्हें रहने दो ये तो बेचारे किताबों के गुलाम हैं।’ यह किसने कहा?)
उत्तरम् :
तन्द्रालु बालकेन उक्तम्। (आलसी बालक ने कहा।)

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प्रश्न: 13.
निष्कुट वासिनः के सन्ति? (निष्कुटवासी कौन हैं?)
उत्तरम् :
खगाः निष्कुट वासिनः सन्ति। (पक्षी निष्कुट वासी हैं।)

प्रश्न: 14.
तन्द्रालुः बालः कीदृशं चटकम् अपश्यत्? (आलसी बालक ने कैसी चिड़िया को देखा?)
उत्तरम् :
तन्द्रालुः बालक: चञ्चच्चा तृणशलाको दिकम् आददानम् चटकं अपश्यत्। (आलसी बालक ने चोंच में तिनकादि लाते हुए चिड़ा को देखा।)

प्रश्न: 15.
चटकस्य नीडं कुत्र आसीत्? (चिड़ा का घोंसला कहाँ था?)
उत्तरम् :
चटकस्य नीडं वद्रुमस्य शाखायाम् आसीत्। (चिड़े का घोंसला बड़वृक्ष की शाखा पर था।)

रेखांकित पदानि आधुत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
बालः पाठशालागमन बेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्। (बच्चा पाठशाला जाने के समय में खेलने चला गया।)
उत्तरम् :
बालः कदा क्रीडितुम् अगच्छत् ? (बालक कब खेलने चला गया?)

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प्रश्न: 2.
न वयस्येषु उपलब्धः आसीत् (मित्रों में कोई उपलब्ध नहीं था?)
उत्तरम् :
केषु न उपलब्धः आसीत् ? (किनमें उपलब्ध नहीं था?)

प्रश्न: 3.
सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरम् आह्वयत्। (उसने बाग में जाते भौरे का आह्वान किया।)
उत्तरम् :
सः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् आह्वयत् ? (उसने कहाँ जाते हुए भौरे को बुलाया?)

प्रश्न: 4.
क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। (क्रुद्ध शिक्षक का मुख नहीं देखना चाहता।)
उत्तरम् :
कस्य मुखं नैव द्रष्टुं इच्छामि? (किसका मुँह नहीं देखना चाहता?)

प्रश्न: 5.
निष्कुटवासिनः मम वयस्याः। (कोटवासी मेरे मित्र है।)
उत्तरम् :
के मम वयस्या:? (मेरे मित्र कौन हैं ?)

प्रश्न: 6.
पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा क्रीडितुम् आह्वयत्। (फुलवाड़ी में जाते भौरे को देखकर खेलने को बुलाया।)
उत्तरम् :
कीदृशं मधुकरं दृष्ट्वा क्रीडितुम् आह्वयत्? (कैसे भौरे को खेलने के लिये बुलाया?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न: 7.
पक्षिणो मनुष्येण नोपगच्छन्ति। (पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते।)
उत्तरम् :
पक्षिणं केषु नोपगच्छन्ति ? (पक्षी कहाँ नहीं जाते?)

प्रश्न: 8.
सः पुत्रप्रीत्या पालयति। (वह पुत्र-प्रेम से पालता है।)
उत्तरम् :
सः कथम् पालयति? (वह कैसे पालता है?)

प्रश्न: 9.
निषिद्धः सः बालो भग्नमनोरथं अभवत्। (रोका हुआ वह बालक निराश हो गया।)
उत्तरम् :
निषिद्ध सः बालः कीदृशोऽभवत्? (अस्वीकृत बालक कैसा हो गया?)

प्रश्न: 10.
सः त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्। (वह शीघ्र पाठशाला को चला गया।)
उत्तरम् :
सः त्वरितं कुत्र अगच्छत् ? (वह शीघ्र कहाँ चला गया?)

कया-क्रम संयोजनम

अधोलिखितवाक्यानि पठित्वा कथाक्रमसंयोजनं कुरुत-(निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर कथाक्रम संयोजन कीजिए-)

  1. मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि।
  2. वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा इति।
  3. अथ स पुष्पोद्याने वजन्तं मधुकरम् अपश्यत्।
  4. भूयो द्रक्ष्यामि क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखम्।
  5. कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्।
  6. अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि।
  7. बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम।
  8. तन्द्रालुः बालो एकाकी किमपि उद्यानं प्रविवेश।

उत्तरम् :

  1. बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम।
  2. कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्।
  3. तन्द्रालुर्बालो एकाकी किमपि उद्यानं प्रविवेश।
  4. अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि।
  5. भूयो द्रक्ष्यामि क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखम्।
  6. अथ स पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्।
  7. वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा इति।
  8. मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

परियोजनाकार्यम्

(क) एकस्मिन् स्फोरकपत्रे (Chart-paper) एकस्य उद्यानस्य चित्रं निर्माय संकलय्य वा पञ्चवाक्येषु तस्य वर्णनं कुरुत।
(एक चार्ट पेपर पर एक बगीचे का चित्र बनाकर अथवा संकलित करके पाँच वाक्यों में उसका वर्णन कीजिए।)
उत्तरम् :
छात्र स्वयं करें।

(ख) ‘परिश्रमस्य महत्त्वम’ इति विषये हिन्दीभाषया आङग्लभाषया वा पञ्चवाक्यानि लिखत।
उत्तरम् :
(‘परिश्रम का महत्त्व’ इस विषय पर हिन्दी भाषा या अंग्रेजी भाषा में पाँच वाक्य लिखो-)

1. इस संसार में सभी परिश्रम का महत्त्व स्वीकार करते हैं।
2. परिश्रमी व्यक्ति अपने परिश्रम से अपने लक्ष्य की पूर्ति कर लेता है।
3. परिश्रम से असम्भव कार्य भी सम्भव बनाये जा सकते हैं।
4. परिश्रम के बिना संसार में सुखमय जीवन असम्भव है।
5. परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।

भाषिक विस्तारः

1. यस्य च भावेन भावलक्षणम्-जहाँ एक क्रिया के होने से दूसरी क्रिया के होने का ज्ञान हो तो पहली क्रिया के कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है। इसे ‘सति सप्तमी’ या ‘भावे सप्तमी’ भी कहते हैं।
यथा – उदिते सवितरि कमलं विकसति।
गर्जति मेघे मयूरः अनृत्यत्।
नृत्यति शिवे नृत्यन्ति शिवगणाः।
हठमाचरति बाले भ्रमरः अगायत् ।
उदिते नैषेधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

2. अन्य पदार्थ प्रधानो बहुव्रीहिः-जिस समास में पूर्व और उत्तर पदों से भिन्न किसी अन्य पद के अर्थ का प्राधान्य होता है वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
यथा – पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः (विष्णुः)।
नीलकण्ठः – नीलं कण्ठं यस्य सः (शिवः)।
अनुचिन्तितपूर्वदिनपाठाः – अनुचिन्तिताः पूर्वदिनस्य पाठा: यैः ते।
विनितमनोरथ: – विनितः मनोरथः यस्य सः।
दत्तदृष्टि: – दत्ता दृष्टिः येन सः।

भ्रान्तो बालः Summary and Translation in Hindi

पाठ का सारांश – प्रस्तुत पाठ ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से सम्पादित कर ग्रहण किया गया है। इस कथा में एक ऐसे बालक का चित्रण है, जिसका मन अध्ययन की अपेक्षा खेल-कूद में लगा रहता है। वह विद्यालय न जाकर खेलने के उद्देश्य से बगीचे में प्रवेश करता है, लेकिन खेलने के लिए उसे एक साथी की आवश्यकता होती है। अत: वह अपने साथ खेलने के लिए भौरे को बुलाता है, भौंरा कहता है कि मैं फूलों के रस को इकट्ठा कर रहा हूँ, मैं नहीं आ सकता। इस प्रकार बालक पुनः प्रयास करता है और चिड़िया को स्वादिष्ट भोजन देने का वायदा करते हुए खेलने के लिए बुलाता है।

लेकिन वह भी अपने कार्य को महत्त्व देती है। दुःखी बालक कुत्ते को बुलाता है, कुत्ता भी अपने मालिक के घर की निगरानी करने के कार्य को महत्त्व देता है और अपना कार्य करने के लिए तेजी से भाग जाता है। इस प्रकार सबके मना करने पर तथा सारे प्राणियों को अपने काम में लगा देखकर तथा स्वयं को अपना समय व्यर्थ में गँवाते हुए देखकर बालक अत्यन्त दुःखी होता है और स्वयं भी विद्याध्ययन में अपना समय व्यतीत करने का निश्चय करता है। वह अपने विद्यालय वापस चला जाता है, इस प्रकार वह बालक विद्याध्ययन कर महान् विद्वान् बनकर प्रसिद्धि और सम्पत्ति प्राप्त करता है।

[मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंग हिन्दी अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत व्यारव्याः अवबोधन कार्यम च]

1. भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्। किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतः ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन्। तन्द्रालुः बाल: लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्।।
सः अचिन्तयत् – “विरमन्तु एते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूयः क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। एते निष्कुटवासिनः प्राणिन एव मम वयस्याः सन्तु इति।
अथ सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारं आह्वयत्। तथापि, सः मधुकरः अस्य बालस्य वान तिरस्कृतवान्। ततो भूयो भूयः हठमाचरति बाले सः मधुकरः अगायत् – “वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा” इति।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

शब्दार्थ: – भ्रान्तः = पथभ्रष्टः (भ्रमित), कश्चन = कोऽपि (कोई), बालः = बालकः (बालक), पाठशालागमनवेलायाम् = विद्यालयगमनसमये (विद्यालय जाने के समय), क्रीडितुम् = खेलितुम् (खेलने के लिए), अगच्छत् = गतः (गया), किन्तु = परञ्च (लेकिन), तेन = अमुना (उसके), सह = सार्धं (साथ), केलिभिः = क्रीडाभिः (खेलों द्वारा), कालं क्षेप्तुम् = समयं यापयितुम् (समय बिताने के लिए), कोऽपि = कश्चन अपि (कोई भी), न = मा (नहीं), वयस्येषु = मित्रेषु (मित्रों में), उपलभ्यमानः = प्राप्तमानः (उपलब्ध हुआ), आसीत् = अवर्तत (था), यतः = (क्योंकि), ते = अमी (वे), सर्वेऽपि = समस्ताः अपि (सभी), पूर्वदिनपाठान् = पूर्वदिवसस्य अध्यायान् (पहले दिन के पाठों को),

स्मृत्वा = स्मरणं कृत्वा (स्मरण करके), विद्यालयगमनाय = पाठशालां गन्तुम् (विद्यालय जाने के लिए), त्वरंमाणाः = त्वरां कुर्वन्तः (शीघ्रता कर रहे), अभवन् = आसन् (थे), तन्द्रालुः = अलसः (आलसी), बालः = बालकः (बालक), लज्जया = शर्म से, तेषाम् = अमीषाम् (उनकी), दृष्टिपथम् = दृष्टिम् (निगाह से), अपि = भी, परिहरन् = दूरीकुर्वन् (दूर रहता हुआ, बचता हुआ), एकाकी = एक एव (अकेला ही), किमपि =.कस्मिन् (किसी), उद्यानम् = उपवनम् (बगीचे में), प्राविशत् = प्रवेशम् अकरोत् (प्रवेश कर गया), सः = असौ (वह, उसने), अचिन्तयत् = चिन्तितवान् (सोचा), विरमन्तु = तिष्ठन्तु (रहने दो), एते = इमे (ये), वराकाः = दीनाः, दयापात्राणि (बेचारे, दया के पात्र),

पुस्तकदासाः = पुस्तकानां किंकराः (पुस्तकों के गुलाम/दास.), अहम् = मैं, तु = तो (फिर), आत्मानम् = स्वकीयं (अपना), विनोदयिष्यामि = मनोविनोदं करिष्यामि (मनोरंजन करूँगा), सम्प्रति विद्यालय गत्वा = अधुन पाठशालां प्राप्य, भूयः = पुनः (फिर), क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य = कुपितस्य गुरोः (क्रुद्ध गुरु के), मुखम् = आस्यं (मुख को), द्रष्टुं = दर्शनं (देखना), नैव इच्छामि = नावलोकितुम् इहे (देखना नहीं चाहता), निष्कुटवासिनः = वृक्षकोटरनिवासिनः (वृक्ष के कोटरों में रहने वाले), एव = ही, प्राणिनः = जीवजन्तवः (प्राणी), मम = मे (मेरे),

वयस्याः = मित्राणि (मित्र), सन्तु = भवन्तु (हों), अथ = एतदनन्तरम् (इसके बाद), सः = असौ (वह), पुष्पोद्यानम् = पुष्पोपवनम् (फूलों के बगीचे में), व्रजन्तम् = भ्रमणं कुर्वन्तं (घूमते हुए), मधुकरम् = भ्रमरम् (भौरे को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), तम् = अमुम् (उसे), क्रीडितुम् = केलिनिमित्तम् (खेलने के निमित्त), द्वित्रिवारम् आह्वयत् = द्विः त्तिः वारं आमन्त्रयत् (दो-तीन बार बुलाया/आमन्त्रित किया), तथापि = (फिर भी),

सः = असौ (वह) (उस भौरे ने), मधुकरः = भ्रमरः (भौरे), अस्य = (इस), बालस्य = बालकस्य (बालक के), आह्वान = आमन्त्रणम् (बुलावे को), तिरस्कृतवान् = अमन्यत (नहीं माना) ततोः = तदानीं (तब), भूयो भूयः = पुनः-पुनः (बार बार), हठमाचरति = आग्रहपूर्वकं व्यवहारं कुर्वति सति (हठ करने पर), बाले = बालके (बालक के), सः मधुकरः अगायत् = असौ भ्रमरः अगायत् (उसने गाया), वयम् = हम सब, हि = निश्चयेन (निश्चय ही), मधुसंग्रहव्यग्राः = पुष्परससंकलने तत्पराः (पुष्पों के रस के संग्रह में लगे हए हैं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में एक ऐसे बालक का वर्णन है जो विद्यालय जाने के समय में खेलने के लिए निकल गया। उस (बालक) ने खेलने के लिये भौरे को बुलाया। भौरे ने खेल के बजाय काम को महत्त्वपूर्ण माना। यह यहाँ वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद – भ्रमित हुआ कोई बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए निकल गया। किन्तु उसके साथ खेल द्वारा समय बिताने के लिए मित्रों में कोई भी उपलब्ध न था; क्योंकि वे सभी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए शीघ्रता कर रहे थे। आलसी बालक लज्जा (शर्म) से उनकी निगाह (दृष्टि) से भी बचता हुआ अकेला ही किसी बगीचे में प्रवेश कर गया। उसने सोचा कि ये बेचारे पुस्तकों के दास बने रहें।

मैं तो अपना मनोरंजन करूँगा। (यदि विद्यालय जाऊँगा तो) निश्चय ही फिर क्रुद्ध गुरु के मुख को देखूगा। वृक्ष की कोटरों में रहने वाले ये प्राणी ही मेरे मित्र होवें। इसके बाद उसने फूलों के बगीचे में घूमते हुए भौरे को देखकर उसे खेलने के लिए आमन्त्रित किया। उस (भौरे) ने उसके दो-तीन (बार के) आमन्त्रण को भी नहीं माना। तब बालक के बार-बार हठ करने पर उस भौरे ने गाया-हम सब निश्चय ही मधुसंग्रह में व्यस्त हैं। संस्कत-व्याख्याः

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थात् ग्रहीतोऽस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत- प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।)

प्रसंग: – प्रस्तुतगद्यांशे एकस्य एतादृशबालकस्य वर्णनमस्ति यः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। सः (बालकः) भ्रमरं क्रीडनाय आह्वयत्। भ्रमरः क्रीडनस्य अपेक्षा कार्य महत्त्वपूर्णम् अमन्यत । इदमत्र वर्णितम्। (प्रस्तुत गद्यांश में एक ऐसे बालक का वर्णन है जो पाठशाला जाने के समय खेलने निकल गया। वह बालक भौरे को खेलने के लिए बुलाता है। भौरा खेलने की अपेक्षा कार्य को महत्वपूर्ण मानता है।)

व्याख्याः – पथभ्रष्टः कोऽपि बालकः विद्यालयगमनसमये खेलितुं निष्क्रान्तः। परन्तु अमुना सार्धं क्रीडाभिः समयं यापयितुं मित्रेषु कश्चन अपि प्राप्तमान मा अवर्तत; यतः अमी समस्ताः अपि पूर्वदिवसस्य अध्यायान् स्मरणं कृत्वा पाठशाला गन्तुं त्वरां कुर्वन्तः आसन्। अलस: बालकः लज्जया अमीषां दृष्टिम् अपि दूरी कुर्वन् एक एव कस्मिन् उपवने प्रवेशम् अकरोत्। असौ अचिन्तयत् यत् इमे दीनाः पुस्तकानां किंकराः तिष्ठन्तु।

अहं भूयः स्वकीयस्य चित्तविनोदं करिष्यामि। (विद्यालयं चेद् गमिष्यामि तर्हि) ननु पुनः कुपितस्य गुरोः आस्यम् ईक्षिष्ये। वृक्षकोटरनिवासिनः इमे जीवजन्तवः एव मे मित्राणि भवन्तु। तदनन्तरम् असौ पुष्पोपवने भ्रमणं कुर्वन्तं भ्रमरम् अवलोक्य अमुं केलिनिमित्तम् आमन्त्रयत्। असौ (भ्रमरः) द्विः त्रिः अस्य आह्वानमेव मा अंगीकृतवान्। तदानी बालके पुनः पुनः आग्रहपूर्वकं व्यवहारं कुर्वति सति असौ भ्रमरः अगायत्-वयं निश्चयेन पुष्परससंकलने।

(राह से भटका कोई बालक विद्यालय जाते समय खेलने निकल गया परन्तु इसके साथ खेल में समय व्यतीत करने के लिए मित्रों में से कोई नहीं मिला क्योंकि वे सभी पहले दिन के पढ़े हुए को याद कर के पाठशाला जाने के लिए जल्दी कर रहे थे। आलसी बालक शर्म से इनसे निगाह बचाते हुए किसी एक उपवन में प्रवेश कर गया। वह सोचने लगा कि ये गरीब (बेचारे) किताबों के गुलाम रहें। मैं तो अपना मनोविनोद करूँगा। विद्यालय जाऊँगा तो निश्चित नाराज शिक्षक का मुँह देखंगा।

पेड़ के खोखले (कोटर) में निवास करने वाले ये जीव-जन्तु ही मेरे मित्र हों। इसके बाद वह फूलबगिया में भ्रमण करते हुए भौरे को देखकर उसे खेलने के लिए आमन्त्रित किया। उस भौरे ने उसके दो-तीन बार के आह्वान को स्वीकार नहीं किया। तब बालक के आग्रहपूर्वक व्यवहार करने पर वह भौंरा गाने लगा। हम निश्चित ही फूलों का रस संग्रह करने में रत हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) भ्रान्तः बाल: मधुकरं कुत्र अपश्यत्? (भ्रान्त बालक ने भौरे को कहाँ देखा?)
(ख) भ्रान्तः बालः क्रीडितुं कदा अगच्छत् ? (भ्रान्त बालक खेलने कब गया?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) निषिद्धेषु बालकेषु भ्रान्तबालः किम् अकथयत्? (बालकों के मना करने पर भ्रान्त बालक ने क्या कहा?)
(ख) मधुकरः भ्रान्तबालाय किम कथयत्? (भौरे ने भ्रान्त बालक से क्या कहा?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘भ्रान्त-बालः’ अत्र विशेषण विशेष्य लिखत। (भ्रान्तः बाल:’ यहाँ विशेषण विशेष्य पद लिखिए।)
(ख) ‘मित्रेषु’ इति पदस्य गद्यांशे समानार्थी पदं अन्विष्य। (‘मित्रेषु’ पद का गद्यांश में समानार्थी पद ढूँढ़ो।)
उत्तराणि-
(1) (क) पुष्पोद्याने (फुलवाड़ी में)।
(ख) पाठशालागमनवेलायाम् (स्कूल जाने के समय)।

(2) (क) सः अचिन्तयत्-‘विरमन्तु ऐते वराकाः पुस्तकादासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। (उसने सोचा ना ये गरीब (बिचारे) पुस्तकों के गुलाम रहें, मैं तो अपना मनोविनोद करूँगा।)
(ख) मधुकर: अकथयत्-“वयं तु मधुसंग्रहे व्यग्राः स्मः। (भौरे ने कहा- हम तो शहद संग्रह करने में व्यस्त हैं।)

(3) (क) विशेषणम्-भ्रान्तः, विशेष्यम् च-बालः।
(ख) वयस्येषु (मित्रों में)।

2. तदा स बालः ‘अलं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टि: चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्, अवदत् च-“अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः। एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि” इति। स तु “मया वटदुमस्य शाखायां नीड कार्यम्” इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्।

तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितम् विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्। प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत् खरे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व। अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। कुक्कुरः प्रत्यवदत् –

यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि।। इति।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

शब्दार्थाः – तदा = तस्मिन् काले, तदानीं (तब), सः = असौ (उस), बालः = बालकः (बालक ने), अलम् = कृतम् [बस (मना करने के अर्थ में], अनेन = एतेन (इससे), मिथ्यागवितेन कीटेन = व्यर्थाहङ्कारयुक्तेन कीटकेन (झूठे गर्वयुक्त कीट से), इति = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), विचिन्त्य = विचार्य (सोचकर), अन्यत्रः = अन्यं स्थानं प्रति (दूसरी ओर), पश्यन् (देखते हए), चञ्च्वा = चञ्चपटेन (चोंच से), तणशलाकादिकम् = नालान् इषिकादीन (तिनकों, सींक आदि को), आददानम् = गृह्णन्तम् (ग्रहण करते हुए को), एकं चटकं = एकं खगम (एकपक्षी को), अपश्यत् = ऐक्षत (देखा),

अवदत् च = अकथयत् (और बोला), अयि = (अरे), चटकपोत! = खग! (पक्षी/चिड़े!), मानुषस्य = मानवस्य (मनुष्य के), मम = मे (मेरे), मित्रम् = वयस्यः (मित्र), भविष्यसि = होगे, बनोगे, एहि = आगच्छ (आओ), क्रीडावः = खेलावः (खेलें), एतत् शुष्कम् = इदं नीरसम् (इस सूखे), तृणम् = नालं (तिनके को), त्यज = उत्सृज (छेड़ो), स्वादूनि = स्वादिष्टानि (स्वादयुक्त), भक्ष्यकवलानि = भक्षणीयग्रासाः (खाने के लिए उपयुक्त कौर),

ते = तुभ्यम् (तुम्हारे लिए), दास्यामि = दूँगा, इति = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), स = असौ (वह), तु = तो, वटदूमशाखायाम् = वटवृक्षस्य शाखायां (बरगद के पेड़ की शाखा पर), नीडः = कुशालयः (घोंसला), कार्यम् = कर्तव्य रचितव्य (बनाना है), इत्युक्त्वा = एवं कथयित्वा (ऐसा कहकर), स्वकर्मव्यग्रोः = स्वकीये कार्ये संलग्नः (अपने काम में व्यस्त), अभवत् = अजायत (हो गया), तदा = तदानी (तब), खिन्नोः = दुःखितः (दुःखी), बालकः = बालः (बालक ने), एते = इमे (ये),

पक्षिणोः = खगाः (पक्षी), मानुषेषु = मानवेषु (मनुष्यों के), नोषगच्छन्ति = न उपगच्छन्ति (पास नहीं जाते हैं), तद् = तो, अन्वेषयामि = अन्वेषणं करोमि (खोजता हूँ), अपरम् = अन्यं (दूसरा), मानुषोचितम् = मानवेभ्यः उचितं (मनुष्यों के लिए उचित), विनोदयितारम् = मनोरञ्जनकारिणम् (मनोरंजन करने वाला), विचिन्त्य = चिन्तविला (सोचकर), पलायमानम् = धावमानं/धावन्तम् (भागते हुए), कमपि = किसी, श्वानम् = कुक्कुरं (कुत्ते को),

अवलोकयत् = अपश्यत् (देखा), प्रीतो = प्रसन्नः (प्रसन्न), बालः = बालकः (बालक ने), तम् = अमुम् (उसको), इत्थम् = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), समबोधयत् = संबोधितम् अकरोत् (सम्बोधित किया), रे = भो (अरे), मनुषाणाम् = मानवानां (मनुष्यों के), मित्र! = वयस्य! (मित्र!), किम् = केन हेतुना (क्यों), पर्यटसि = भ्रमणं करोषि (घूम रहे हो), अस्मिन् = इह (इस), निदाघदिवसे = ग्रीष्मदिवसे (गर्मी के दिन में), इदम् = एतत् (यह), प्रच्छायशीतलम् = शीतलछायायुक्तम् (शीतल छाया वाला),

तरुमूलम् = वृक्षस्य अधः (पेड़ की जड़ में), आश्रयस्व = आश्रयं लभस्व (आश्रय लो), अहमपि = मैं भी, क्रीडासहायम् = क्रीडा सहायं (खेलने में सहायक), त्वामेवानुरूपं = तब योग्यम् (तुम्हारे उपयुक्त/समान), पश्यामीति = ऐसा देखता हूँ, कुक्कुरः = श्वानः (कुत्ता ने), प्रत्यवदत् = प्रत्युत्तरेण अवदत् (उत्तर दिया),यो = जो, माम् = मुझे, पुत्रप्रीत्या = पुत्रवत् प्रेम्णा (पुत्र के समान प्रेम से), पोषयति = पालयति (पालता है), स्वामिनो = प्रभोः (स्वामी के), गृहे = गेहे (घर में), तस्य = अमुष्य (उस), रक्षानियोगकरणान्न = सुरक्षाकार्यवशात् न (रक्षा के कार्य में लगे होने से नहीं), मया = मुझे, भ्रष्टव्यमीषदपि = अल्पमात्रम् अपि पतितव्यम् (थोड़ा-सा भी हटना चाहिए)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।

प्रसंग – इस गद्यांश में यह वर्णन है कि खेलने के लिए इच्छुक बालक ने एक चटक (चिड़े) और कुत्ते को बुलाया किन्तु खेलने के लिए उन दोनों ने ही अपने काम को अधिक महत्त्वपूर्ण माना।

हिन्दी-अनुवाद – तब उस बालक ने ‘इस झूठे गर्वयुक्त कीट से बस (इस झूठे गर्वयुक्त कीट को छोड़ो)’, इस प्रकार (सोचकर) दूसरी ओर देखते हुए एक चटक चिड़े को चोंच से तिनकों, सींक आदि को ग्रहण करते हए देखा और बोला-“अरे चटक चिड़े! मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ खेलें। इस सूखे तिनके को छोड़ो मैं तुम्हें स्वादयुक्त खाने के लिए उपयुक्त कौर दूँगा।” वह तो ‘बरगद के पेड़ की शाखा पर घोंसला बनाना है, तो कार्य से जाता हूँ’ इस प्रकार कहकर अपने काम में व्यस्त हो गया।

तब दुःखी बालक ने सोचा-ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते हैं। तब मनुष्य के लिए उचित मनोरंजन करने वाला दूसरा साथी खोजता हूँ। इस प्रकार घूमकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। प्रसन्न बालक ने उसे इस प्रकार सम्बोधित किया- अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? वृक्ष की जड़ में शीतल छाया वाला यह आश्रय ले लो। मैं भी खेलने में सहायक तुम्हारे ही समान किसी को खोज रहा हूँ। कुत्ता ने उत्तर दिया-जो मुझे पुत्र के समान प्यार से पालता है, उस स्वामी के घर में रक्षा करने के कार्य से मुझे थोड़ा-सा भी नहीं हटना चाहिए।

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संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थात् गृहीतोऽस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत- प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।)

प्रसंग: – अस्मिन् गद्यांशे वर्णनमस्ति यत् क्रीडनाय इच्छुक: बालकः एकं चटकं कुक्कुरं च क्रीडनाय आह्वयत् परं तौ द्वावपि स्वकर्तव्यम् अधिकमहत्त्वपूर्णम् अमन्यताम्। (इस गद्यांश में वर्णित है कि खेलने के लिए इच्छुक बालक एक गौरैया और मुर्गे से खेलने का आग्रह करता है, परन्तु दोनों अपने कर्त्तव्य को महत्वपूर्ण मानते हैं।)

व्याख्या: – तदानीम् असौ बालकः ‘अलम् एतेन व्यर्थाहङ्कारयुक्तेन कीटेन’ अनेन प्रकारेण अन्यं स्थानं पश्यन् एकं चटकं चञ्चुपुटेन नालान् इषिकादीन् च गृह्णन्तम् अपश्यत् अवदत् च-भो चटक! खग! मे मानवस्य वयस्यः भविष्यति। आगच्छ खेलावः, उत्सृज एतत् नीरसं नालं, स्वादिष्टाः भक्षणीयग्रासाः तुभ्यं दास्यामि। असौ तु चटकः कुशालयः कर्तव्यः वटवृक्षस्य शाखायाम्, अतः गच्छामि कार्येण इति कथयित्वा स्वकीये कार्ये संलग्नः अभवत्। तदानीं दुःखितः बाल: अचिन्तयत् यत् इमे खगाः मानवान् न उपगच्छन्ति अत: अन्वेषणं करोमि अन्यस्य मानवोचितमनोरञ्जनकारिणः, तदा सः भ्रमणं कृत्वा धावमानं कमपि कुक्कुरम् अपश्यत्।

प्रसन्नः असौ बालकः तं कुक्कुरम् अनेन प्रकारेण सम्बोधितवान्-भो मानवानां वयस्य! केन हेतुना भ्रमणं करोषि इह ग्रीष्मदिवसे? वृक्षस्य मूले शीतलछायायुक्तम् एतत् आश्रयं लभस्व। अहमपि खेलने सहायकं त्वामेव योग्यं पश्यामि। श्वानः प्रत्युत्तरेण एवम् अवदत्-यः मां पुत्रवत् प्रेम्णा पालयति, तस्य स्वामिनः गेहे सुरक्षाकार्यात् मया अल्पमात्रमपि न पतितव्यम्। (तब वह बालक ‘इस मिथ्या घमंड करने वाले कीड़े (भौरे) को रहने दो’ इस प्रकार एक अन्य स्थान देखता हुआ एक चटक को तिनका, सींक आदि चोंच में लिए हुए देखा और बोला-अरे चिड़ा, पक्षी, मुझ मानव के मित्र बनोगे। आओ खेलें, छोड़ो यह नीरस तिनका, स्वादिष्ट खाने योग्य तुम्हें दूँगा। वह चिड़ा तो ‘घोंसला बनाने को बड़ के पेड़ की शाखा पर चला गया। ऐसा कहकर अपने कार्य में संलग्न हो गया।

तभी दुःखी बालक ने सोचा कि ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते हैं, अतः किसी अन्य मनोविनोद करने वाले को ढूँढ़ता हूँ। तब उसने घूमकर दौड़ते हुए एक कुत्ते को देखा। प्रसन्न हुआ वह बालक कुत्ते को इस प्रकार सम्बोधित करने लगा-अरे मनुष्यों के मित्र! यहाँ गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? पेड़ की जड़ से शीतल छाया युक्त यह आश्रय पाओ। मैं भी खेलने में तुम्हीं को सहायक देख रहा हूँ। कुत्ता उत्तर में इस प्रकार बोला-“जो मुझको बेटे की तरह प्रेम से पालता है उस स्वामी के घर में सुरक्षा कार्य (रखवाली) से मुझे किंचित भी पतित नहीं होना चाहिए।”)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) भ्रान्त बाल: चटकाय कस्य प्रलोभनं ददाति? (भ्रान्त बालक गौरैया को क्या प्रलोभन देता है?)
(ख) भ्रान्त बालकः कीदृशं श्वानम् अपश्यत्? (भ्रान्त बालक ने कैसे कुत्ते को देखा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कुक्कुरः भ्रान्तबालाय किमुदतरत्? (कुत्ते ने भ्रान्त बालक को क्या उत्तर दिया?)
(ख) खिन्नोबालः खगानां विषये किं चिन्तयति? (खिन्न बालक पक्षियों के विषय में क्या सोचता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रसन्नः’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् चिनुत। (‘प्रसन्नः’ पद का विलोम पद गद्यांश से चुनिए।)
(ख) ‘प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत्’ इति वाक्ये ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञाशब्दस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(‘प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत्’ वाक्य में ‘तम्’ सर्वनाम पद किसके लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) भक्ष्य कवलानि (खाद्य-कौर)।
(ख) पलायमानम् (भागते हुए)।

(2) (क) अहं तु स्वामिनः गृहे रक्षानियोग कारणात् न गन्तुं शक्नोमि। (मैं तो स्वामी के घर पर रक्षा कार्य के कारण नहीं जा सकता।)
(ख) खिन्नोबाल: खगानां विषये चिन्तयति यत् एते पक्षिण: मानुषेषु नोपगच्छन्ति। (खिन्न बालक पक्षियों के विषय में सोचता है कि ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते।)

(3) (क) ‘खिन्नः’ (दुखी)।
(ख) कुक्कुरम् (कुत्ते को)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

3. सर्वेः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्-‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येक स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यै. मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।
ततः प्रभति स विद्याव्यसनी भत्वा महती वैदषी प्रथां सम्पदं च अलभत।

शब्दार्थाः – सर्वैः = समस्तैः (सबके द्वारा), एवम् = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), निषिद्धः = अस्वीकृतः (मना किया गया), स बालो = असौ बालकः (वह बालक), भग्नमनोरथः सन् = खण्डितकामः भूत्वा (टूटी इच्छाओं वाला होकर), कथमस्मिन् = केन प्रकारेण एतस्मिन् (किस प्रकार इस), जगति = संसारे (संसार में), प्रत्येकम् = प्रत्येक, स्व-स्वकार्ये = स्वकीये कार्ये (अपने कार्य में), निमग्नो भवति = संलग्नः वर्तते (लगा हुआ है/संलग्न है), न = मा (नहीं), कोऽपि = कश्चन अपि (कोई भी), मामिव = मेरे जैसा, वृथा = व्यर्थम् (बेकार, व्यर्थ),

कालक्षेपम् = समयस्य यापनम् (समय का बिताना), सहते = सहनं करोति (सहन करता है), नमः = नमस्कारः (नमस्कार है), एतेभ्यः = एभ्यः (इन सबके लिए), यैः = (जिन्होंने), मे = मम (मेरी), तन्द्रालुतायाम् = आलस्ये (आलस्यता में), कुत्सा = घृणा (अरुचि), समापादिता = उत्पन्ना (उत्पन्न कर दी है), अथ = एतदनन्तरं (इसके पश्चात्), स्वोचितम् अहमपि = स्वकीयस्य कृते उचितम् अहमपि (अपने लिए उचित कार्य को मैं भी),

करोमि = करता हूँ, करूँगा, इति विचार्य = एवं विचारं कृत्वा (इस प्रकार विचार करके), त्वरितम् = शीघ्रम् (शीघ्र), पाठशालाम् = विद्यालयम् (विद्यालय को), अगच्छत् = प्राप्तः (पहुँचा), ततः प्रभृति = तस्मात् समयात् (तब से लेकर), स = असौ (उसने), विद्याव्यसनी = अध्ययनरतः (विद्या में रत रहने वाला), भूत्वा = होकर, महतीं = महान्, वैदुषीम् = विद्वत्तां (विद्वत्ता को), प्रथाम् = प्रसिद्धिं (प्रसिद्धि को), सम्पदम् = सम्पत्तिं (सम्पत्ति को), च = और, अलभत = प्राप्तम् अकरोत् (प्राप्त किया)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बाल.’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।

प्रसंग – यह गद्यांश वर्णन करता है कि बालक जीवन में कार्य का महत्त्व जानकर विद्या अध्ययन के कार्य में व्यस्त हो गया और उसने महान् प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।

हिन्दी-अनुवाद – सबके द्वारा इस प्रकार मना किया गया वह बालक टूटी इच्छाओं वाला होकर ‘कैसे इस संसार में प्रत्येक (प्राणी) अपने-अपने काम में लगा हुआ है। मेरे समान कोई भी अपने समय को व्यर्थ व्यतीत करना सहन नहीं . करता। इन सबको नमस्कार है, जिन्होंने आलस्यता में मेरी घृणा उत्पन्न कर दी है। इसके पश्चात् मैं भी अपने लिए उचित कार्य करूँगा। इस प्रकार विचार कर (वह) शीघ्र पाठशाला पहुँचा। तब से लेकर उसने विद्या अध्ययन में रत रहने वाला होकर महान् विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति को प्राप्त किया। संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थात् गृहीतोऽस्ति। (प्रस्तुत पाठ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रसंग: – गद्यांशोऽयं वर्णयति यत् बालकः जीवने महत्त्वं ज्ञात्वा अध्ययनरतः अभूत् स च महती प्रसिद्धि प्राप्नोत्। (यह गद्यांश वर्णन करता है कि बालक जीवन में कर्म का महत्त्व जानकर अध्ययनरत हो गया तथा महती प्रसिद्धि को प्राप्त किया।)

व्याख्या: – समस्तैः अनेन प्रकारेण अस्वीकृतः स बालकः खण्डितकामः भूत्वा ‘केन प्रकारेण एतस्मिन् संसारे प्रत्येकः स्वकीये कार्ये संलग्नः वर्तते। न कश्चनपि अहमिव व्यर्थं समयस्य यापनं सहते। एभ्यः नमस्कारः यैः मम आलस्ये घृणा उत्पन्ना। एतदनन्तरम् अहमपि स्वकीस्य कृते उचितं करिष्यामि।’ एवं विचारं कृत्वा स शीघ्रमेव विद्यालयं प्राप्तः। तस्मात् समयात् प्रभृतिः असौ अध्ययनरतः भूत्वा महती विद्वत्ता, प्रसिद्धिं, सम्पत्तिं च प्राप्नोत्।

(सभी के द्वारा इस प्रकार अस्वीकार किया हुआ वह बालक टूटी कामनाओं वाला (निराश हुआ)-“किस प्रकार इस संसार में प्रत्येक (प्राणी) अपने-अपने कार्य में लगा हुआ है। कोई भी मेरी तरह व्यर्थ समय बरबाद करने को सहन नहीं करता। इनको प्रणाम, जिन्होंने मेरे आलस्य में घृणा की। इसके बाद मैं भी अपने लिए उचित करूँगा।” इस प्रकार विचार कर वह शीघ्र ही विद्यालय पहुँचा। इसलिए समय से पहले ही उसने अध्ययन में रत होकर अत्यधिक विद्वत्ता, प्रसिद्धि और समृद्धि को प्राप्त किया।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सर्वैः निषिद्धः बालः कीदृशोऽभवत् ? (सबके द्वारा मना किया हुआ बालक कैसा हो गया?)
(ख) अन्ते विचार्य बालः कुत्र गतः? (अन्त में विचार कर बालक कहाँ गया?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सर्वैः निषिद्धः बालः किम् अचिन्तयत्? (सबके द्वारा मना किया गया बालक क्या सोचने लगा?)
(ख) सर्वेषां शिक्षा श्रुत्वा बालकः कीदृशोऽभवत्? (सबकी सीख पाकर बालक कैसा हो गया?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रत्येकम्’ पदस्य समास विग्रहं कुरुत। (प्रत्येकम् पद का समास-विग्रह कीजिए।)
(ख) ‘बालः भग्नमनोरथः’ इत्यनयो पदयोः विशेषण पदं लिखत। (‘बाल: भग्नमनोरथः’ इनमें विशेषण पद लिखिये।)
उत्तराणि-
(1) (क) भग्नमनोरथः (जिसका मनोरथ टूट गया हो)।
(ख) पाठशालाम् (विद्यालय को)।

(2) (क) सोऽचिन्तयत्-“कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथायाकालक्षेपं सहते। (उसने सोचा-‘क्या इस संसार में सभी अपने-अपने कार्य में डूबे हुए (व्यस्त) हैं, मेरी तरह कोई व्यर्थ समय व्यतीत नहीं करता है?)
(ख) सर्वेषां शिक्षा श्रुत्वा सः विद्याव्यसनी भूत्वा महती वैदुर्षी प्रथां सम्पदं च अलभत। (सभी की सीख सुन कर उसने विद्यार्थी होकर महान विद्वत्ता प्राप्त कर सम्पत्ति प्राप्त की।)

(3) (क) एकम् एकम् (अव्ययीभाव)।
(ख) भग्नमनोरथः (निराश हुआ)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

JAC Class 9th Sanskrit सूक्तिमौक्तिकम् Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) वित्ततः क्षीणः कीदृशः भवति? (धन से क्षीण कैसा होता है?)
उत्तरम् :
अक्षीणः (क्षय रहित)।

(ख) कस्य प्रतिकूलानि कार्याणि परेषां न समाचरेत्? (किसके प्रतिकूल कार्य दूसरों के साथ न करें?)
उत्तरम् :
आत्मनः (अपने)।

(ग) कुत्र दरिद्रता न भवेत् ? (कहाँ दरिद्रता नहीं होनी चाहिए?)
उत्तरम् :
मधुर वचने (मीठा बोलने में।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

(घ) वृक्षाः स्वयं कानि न खादन्ति? (वृक्ष स्वयं क्या नहीं खाते?)
उत्तरम् :
फलानि। (फलों को)

(ङ) का पुरा लध्वी भवति? (पहले छोटी क्या होती है?)
उत्तरम् :
सज्जनानां मैत्री (सज्जनों की दोस्ती)।

प्रश्न 2.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) यलेन किं रक्षेत् वित्तं वृत्तं वा? (प्रयत्नपूर्वक किसकी रक्षा करनी चाहिए वित्त की या वृत्त की?)
उत्तरम् :
यत्नेन वृत्तं रक्षेत्। (प्रयत्नपूर्वक आचरण/ चरित्र की रक्षा करनी चाहिए।)

(ख) अस्माभिः (किं न समाचरेतोकीदृशम् आचरणं न कर्तव्यम्? (हमें कैसा आचरण नहीं करना चाहिए?) ।
उत्तरम् :
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (जैसा हमें अपने लिए पसन्द न हो, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।)

(ग) जन्तवः केन तुष्यन्ति? (प्राणी किस से सन्तुष्ट होते हैं?)
उत्तरम :
जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तष्यन्ति। (प्राणी प्रिय वचन बोलने से सन्तष्ट होते हैं।)

(घ) सज्जनानां मैत्री कीदृशी भवति? (सज्जनों की मित्रता किस प्रकार की होती है?)
उत्तरम् :
सज्जनानां मैत्री दिनस्य परार्द्धस्य छायेव पुरा लध्वी पश्चात् च वृद्धिमती भवति।
(सज्जनों की मित्रता दिन के मध्याहन की (दोपहर के बाद) छाया के समान पहले छोटी और बाद में बढ़ने वाली होती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

(ङ) सरोवराणां हानिः कदा भवति? (सरोवरों की हानि कब होती है?)
उत्तरम् :
यदा मरालैः सह सरोवराणां विप्रयोगः भवति तदा सरोवराणां हानिः भवति।
(जब हंसों के साथ सरोवरों का वियोग होता है, तब सरोवरों की हानि होती है।)

प्रश्न 3.
‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि, तानि यथोचितं योजयत
(‘क’ स्तम्भ में विशेषण और ‘ख’ स्तम्भ में विशेष्य दिये गये हैं, उनको यथोचित मिलाइये-)

‘क’ स्तम्भः ‘ख’ स्तम्भः
(क) आस्वाद्यतोयाः 1. खलानां मैत्री
(ख) गुणयुक्तः 2. सज्जनानां मैत्री
(ग) दिनस्य पूर्वार्द्धभिन्ना 3. नद्यः
(घ) दिनस्य परार्द्धभिन्ना 4. दरिद्रः

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भः ‘ख’ स्तम्भः
(क) आस्वाद्यतोयाः 3. नद्यः
(ख) गुणयुक्तः 4. दरिद्रः
(ग) दिनस्य पूर्वार्द्धभिन्ना 1. खलानां मैत्री
(घ) दिनस्य परार्द्धभिन्ना 2. सज्जनानां मैत्री

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न 4.
अधोलिखितयोः श्लोकद्वयोः आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(निम्नलिखित दोनों श्लोकों का आशय हिन्दी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए-)
(क) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥
उत्तरम् :
हिन्दी-आशय – दुर्जनों और सज्जनों की मित्रता पूर्वार्द्ध और परार्द्ध में दिन की छाया के समान भिन्न होती है। जिस प्रकार मध्याह्न से पहले छाया आरम्भ में बड़ी होती है और बाद में क्रमशः कम होती जाती है, उसी प्रकार दुर्जनों की मित्रता आरम्भ में प्रगाढ़ होती है और फिर शनैः-शनैः कम होकर समाप्त हो जाती है। मध्याह्न के समय छाया सबसे कम अर्थात् नहीं के बराबर होती है, इसके पश्चात् वह क्रमशः वृद्धि को प्राप्त होती है और सायंकाल को उसकी लम्बाई. अनन्त होती है। इसी प्रकार सज्जनों की मित्रता मध्याह्न के पश्चात् की छाया के समान आरम्भ में कम और बाद में क्रमशः प्रगाढ़ होती जाती है। उनकी यह मित्रता अनन्त अर्थात् कभी न समाप्त होने वाली होती है।

(ख) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥
उत्तरम् :
हिन्दी-आशय – इस संसार में जितने भी प्राणी हैं, चाहे वे पशु-पक्षी हों अथवा मानव, सभी मधुर वचनों को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट होते हैं। अत: व्यक्ति को सदैव ही प्रिय अर्थात् मधुर वचनों का प्रयोग करना चाहिए। भला वैसे वचन बोलने में भी क्या कंजूसी, जिनसे सारा संसार सन्तुष्ट होता है। अर्थात् व्यक्ति को कटु वचनों के स्थान पर सदैव मधुर वचनों का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि मधुर वचनों का प्रयोग करने से उसके मान-सम्मान और यश में वृद्धि होती है, हानि किसी प्रकार की नहीं होती। फिर ऐसे वचन बोलने में कंजूसी करना तो मूर्खता ही है।

प्रश्न 5.
अधोलिखितपदेभ्यः भिन्न प्रकृतिकं पदं चित्वा लिखत – (निम्नलिखित पदों में से भिन्न प्रकृति के पद चुनकर लिखिए-)
(क) वक्तव्यम्, कर्त्तव्यम्, सर्वस्वम्, हन्तव्यम्।
(ख) यत्नेन, वचने, प्रियवाक्यप्रदानेन, मरालेन।
(ग) श्रूयताम्, अवधार्यताम्, धनवताम्, क्षम्यताम्।
(घ) जन्तवः, नद्यः, विभूतयः, परितः।
उत्तरम् :
(क) सर्वस्वम्
(ख) वचने
(ग) धनवताम्
(घ) परितः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न 6.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(मोटे छपे पदों को आधार बनाकर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) वृत्ततः क्षीणः हतः भवति।
(ख) धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा अवधार्यताम्।
(ग) वृक्षाः फलं न खादन्ति।
(घ) खलानां मैत्री आरम्भगुर्वी भवति।
उत्तरम् :
प्रश्न:-कस्मात् क्षीणः हतः भवति?
प्रश्न:-किं श्रुत्वा अवधार्यताम्?
प्रश्न:-के फलं न खादन्ति?
प्रश्न:-केषां मैत्री आरम्भगुर्वी भवति?

प्रश्न 7.
अधोलिखितानि वाक्यानि लोट्लकारे परिवर्तयत –
(निम्नलिखित वाक्यों को लोट्लकार में परिवर्तित कीजिए-)
यथा-स: पाठं पठति।               सः पाठं पठतु।
(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति। – ……………..
(ख) स: सदैव प्रियवाक्यं वदति। – ……………..
(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि। – ……………..
(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति। – ……………..
(ङ) अहं परोपकाराय कार्यं करोमि। – ……………..
उत्तरम् :
(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्तु।
(ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदतु।
(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचर।
(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्तु।
(ङ) अहं परोपकाराय कार्य करवाणि।

JAC Class 9th Sanskrit सूक्तिमौक्तिकम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
वित्तस्य प्रवृत्तिः का अस्ति? (धन की प्रवृत्ति क्या है?)
उत्तरम् :
वित्तस्य प्रवृत्तिः अस्ति यत् इदम् एति च याति च। (धन की प्रवृत्ति है कि यह आता है और चला जाता है।)

प्रश्न: 2.
वित्ततः क्षीणः मनुष्यः कथं भवति? (धन के क्षीण होने पर मनुष्य कैसा होता है?)
उत्तरम् :
वित्ततः क्षीणः मनुष्यः अक्षीणः भवति। (धन के क्षीण होने पर मनुष्य अक्षीण होता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न: 3.
वृत्ततः क्षीणः मनुष्यः कथं भवति? (चरित्र/आचरण के क्षीण होने पर मनुष्य कैसा होता है?)
उत्तरम् :
वृत्ततः क्षीणः मनुष्यः हतो हतः। (चरित्र/आचरण के क्षीण होने पर मनुष्य मरा हुआ है।)

प्रश्न: 4.
वृत्तं कथं संरक्षेत्? (चरित्र/आचरण की कैसे रक्षा करनी चाहिए?)
उत्तरम् :
वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्। (चरित्र/आचरण की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए।)

प्रश्नः 5.
किंकत्वा किम अवधार्यताम? (क्या करके क्या धारण करना चाहिए?)
उत्तरम् :
धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा तम् अवधार्यताम्। (धर्म अर्थात् कर्त्तव्य के सार को सुनकर उसे धारण करना चाहिए।)

प्रश्नः 6.
प्रियवाक्यप्रदानेन किं भवति? (प्रिय वचन बोलने से क्या होता है?)
उत्तरम् :
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे जन्तवः तुष्यन्ति ।(प्रिय वचन बोलने से सभी प्राणी सन्तुष्ट होते हैं।)

प्रश्न: 7.
कस्मिन् विषये दरिद्रता न कर्तव्या? (किस विषय में कंजूसी नहीं करनी चाहिए?)
उत्तरम् :
प्रियवचने दरिद्रता न कर्तव्या। (प्रिय वचनों में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न: 8.
नद्यः किं न कुर्वन्ति? (नदियाँ क्या नहीं करती हैं ?)
उत्तरम् :
नद्यः स्वयमेव अम्भः न पिबन्ति। (नदियाँ स्वयं ही (अपने) जल को नहीं पीती हैं।)

प्रश्न: 9.
वृक्षाः किं न कुर्वन्ति? (वृक्ष क्या नहीं करते हैं ?)
उत्तरम् :
वृक्षाः स्वयं फलानि न खादन्ति। (वृक्ष स्वयं (अपने) फलों को नहीं खाते हैं।)

प्रश्नः 10.
सस्यं खलु के न अदन्ति? (अन्न को निश्चय ही कौन नहीं खाते हैं ?)
उत्तरम् :
सस्यं खलु वारिवाहाः न अदन्ति। (अन्न को निश्चय ही मेघ नहीं खाते हैं।)

प्रश्न: 11.
केषां विभूतयः परोपकाराय भवन्ति? (किनकी सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं?)
उत्तरम् :
सतां विभूतयः परोपकाराय भवन्ति। (सज्जनों की सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न: 12.
पुरुषैः सदा किमर्थं प्रयत्नः कर्तव्यः? (पुरुषों को सदा किसलिए प्रयत्न करना चाहिए?)
उत्तरम् :
पुरुषैः सदा गुणेषु एव प्रयत्नः कर्तव्यः। (पुरुषों को सदैव गुणों को धारण करने में प्रयत्न करना चाहिए।)

प्रश्न: 13.
कः अगुणैः ईश्वरैः समः न? (कौन गुणहीन धनवानों के समान नहीं है?)
उत्तरम् :
गुणयुक्तः दरिद्रः अपि अगुणैः ईश्वरैः समः न। (गुणयुक्त निर्धन भी गुणहीन धनवानों के बराबर नहीं होता, अपितु गुणहीन धनवानों से श्रेष्ठ होता है।)

प्रश्न: 14.
खलानां मैत्री कीदृशी भवति? (दुर्जनों की मित्रता कैसी होती है?)
उत्तरम् :
खलानां मैत्री आरम्भगुर्वी पश्चात् च क्रमेण क्षयिणी भवति। (दुर्जनों की मित्रता प्रारम्भ में बढ़ने वाली और बाद में क्रमशः कम होने वाली होती है।)

प्रश्न: 15.
अत्र महीमण्डलमण्डनोपकरणाः के कथिताः? (यहाँ पर पृथ्वी की शोभा बढ़ाने वाले किन्हें कहा गया है?)
उत्तरम् :
अत्र महीमण्डलमण्डनोपकरणाः हंसाः कथिताः। (यहाँ पृथ्वी की शोभा बढ़ाने वाले हंसों को कहा गया है।)

प्रश्न: 16.
गुणाः कदा गुणाः भवन्ति? (गुण कब गुण होते हैं?)
उत्तरम् :
गुणाः यदा गुणेषु निवसन्ति तदा गुणाः भवन्ति। (गुण जब गुणी पुरुष में रहते हैं तब गुण होते हैं।)

प्रश्न: 17.
गुणाः कदा दोषाः भवन्ति? (गुण कब दोष हो जाते हैं?)
उत्तरम् :
गुणाः निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। (गुण निर्गुणी पुरुष में पहुँचकर दोष हो जाते हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

स्थूलाक्षराणि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित अक्षर वाले शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
वृत्तं यत्नेन रक्षेत। (वृत्त की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए।)
उत्तरम् :
किम् यत्नेन रक्षेत्? (यत्नपूर्वक किसकी रक्षा करनी चाहिए।)

प्रश्न: 2.
अक्षीणो वित्ततः क्षीणः। (धन से क्षीण अक्षीण होता है।)
उत्तरम् :
कस्मात् क्षीणः अक्षीणः? (किससे क्षीण अक्षीण है?)

प्रश्न: 3.
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (अपने प्रतिकूल दूसरों के साथ आचरण नहीं करना चाहिए।)
उत्तरम् :
परेषां कानि न समाचरेत् ? (दूसरों के साथ क्या आचरण नहीं करना चाहिए?)

प्रश्न: 4.
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। (प्रिय वाणी बोलने से सभी प्राणी सन्तुष्ट हो जाते हैं।)
उत्तरम् :
केन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः? (सभी प्राणी किससे सन्तुष्ट होते हैं?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्नः 5.
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाभ्यः। (नदियाँ स्वयं पानी नहीं पीती।)
उत्तरम् :
काः स्वयमेव अम्भः न पिबन्ति। (कौन स्वयं पानी नहीं पीर्ती?)

प्रश्नः 6.
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः। (वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते हैं।)
उत्तरम् :
वृक्षाः स्वयं कानि न खादन्ति? (वृक्ष स्वयं क्या नहीं खाते हैं? )

प्रश्नः 7.
नादन्ति सस्यं वारिवाहा। (बादल फसल नहीं खाते।)
उत्तरम् :
वारिवाहाः किम् न अदन्ति ? (बादल क्या न खाते हैं?)

प्रश्न: 8.
परोपकाराय सतां विभूतयः। (सज्जनों का वैभव परोपकार के लिए होता है।)
उत्तरम् :
सतां विभूतयः कस्मै भवति? (सज्जनों का वैभव किसके लिए होता है?)

प्रश्न: 9.
गुणेषु एव कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा। (पुरुषों को सदा गुणों में ही प्रयत्नशील होना चाहिए।)
उत्तरम् :
पुरुषे सदा केषु एव प्रयत्नः कर्त्तव्यः? (पुरुषों को किनमें प्रयत्न करना चाहिए?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्नः 10.
निर्गुणं प्राप्य गुणाः दोषा भवन्ति। (गुणहीन को प्राप्त कर गुण दोष हो जाते हैं।)
उत्तरम् :
कम् प्राप्य गुणाः दोषा भवन्ति? (किसको प्राप्त कर गुण दोष हो जाते हैं ?)

परियोजनाकार्यम्

(क) परोपकारविषयकं श्लोकद्वयम् अन्विष्य स्मृत्वा च कक्षायां सस्वरं पठ।
(परोपकार सम्बन्धी दो श्लोक ढूँढ़कर और याद करके कक्षा में स्वर सहित पढ़िए।)
उत्तरम् :
(1) अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्॥

हिन्दी-आशय – अठारह पुराणों में व्यास जी के दो वचन (ही) हैं। दूसरों की भलाई पुण्य के लिये और दूसरों को पीड़ा पाप के लिए है।

(2) परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्॥

हिन्दी-आशय – वृक्ष दूसरों की भलाई के लिए फल देते हैं, नदियाँ दूसरों की भलाई के लिए बहती हैं। गायें दूसरों की भलाई के लिए दूध देती हैं, यह शरीर (भी) दूसरों की भलाई के लिए (ही) है।

(ख) नद्याः एकं सुन्दरं चित्रं निर्माय संकलय्य वा वर्णयत यत् तस्याः तीरे मनुष्याः, पशवः खगाश्च निर्विघ्नं जलं पिबन्ति।
(नदी का एक सुन्दर चित्र बनाकर अथवा संकलन करके वर्णन कीजिए कि उसके किनारे पर मनुष्य, पशु और पक्षी निर्विघ्न जल पीते हैं।)
उत्तर :
छात्र स्वयं करें।

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भावविस्तारः

(क) आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।
खारे समुद्र में मिलने पर स्वादिष्ट जल वाली नदियों का जल अपेय (खारा) हो जाता है। इसी भावसाम्य के आधार पर कहा गया है कि “संसर्गजाः दोषगुणाः भवन्ति।” अर्थात् संगति से (ही) दोष और गुण उत्पन्न होते हैं। ।

(ख) छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्।
दुष्ट व्यक्ति मित्रता करता है और सज्जन व्यक्ति भी मित्रता करता है। परन्तु दोनों की मैत्री, दिन के पूर्वार्द्ध एवं परार्द्ध की छाया की भाँति भिन्न-भिन्न होती है। वास्तव में दुष्ट व्यक्ति की मैत्री के लिए श्लोक का प्रथम चरण “आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण” (प्रारम्भ में बढ़ने वाली और बाद में कम होने वाली) कहा गया है तथा सज्जन की मैत्री के लिए द्वितीय चरण ‘लध्वीपुरा वृद्धिमती च पश्चात्’ (पहले लघु रूप वाली और बाद में बढ़ी हुई रूप वाली)कहा गया है।

भाषिकविस्तारः

1. वित्ततः – वित्त शब्द से तसिल प्रत्यय किया गया है। पंचमी विभक्ति के अर्थ में लगने वाले तसिल प्रत्यय का तः (तस् = तः) ही शेष रहता है। उदाहरणार्थ – सागर + तसिल = सागरतः, प्रयाग + तसिल = प्रयागतः, देहली + तसिल = देहलीतः आदि । इसी प्रकार वृत्ततः शब्द में भी तसिल प्रत्यय लगा करके वृत्ततः शब्द बनाया गया है।
समाचरेत् – सम् + आङ् (आङ्-आ) + चर् + विधिलिङ् + प्रथम पुरुष + एकवचन।
तुष्यन्ति – तुष् + लट्लकार + प्रथमपुरुष + बहुवचन।
संरक्षेत् – सम् + रक्ष् + विधिलिङ् + प्रथमपुरुष + एकवचन।
हतः – हन् + क्त प्रत्यय (पुल्लिङ्ग प्र. वि. ए. व.)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

2. उपसर्ग – क्रिया के पूर्व जुड़ने वाले प्र, परा आदि शब्दों को उपसर्ग कहा जाता है। इन उपसर्गों के जुड़ने से क्रिया के अर्थ में परिवर्तन आ जाता है।
जैसे – ‘ह’ धातु से उपसर्गों का योग होने पर निम्नलिखित रूप बनते हैं –
प्र + हृ = प्रहरति, प्रहार (हमला करना)
वि + है = विहरति, विहार (भ्रमण करना)
उप + ह = उपहरति, उपहार (भेंट देना) .
सम् + ह = संहरति, संहार (मारना)

3. शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करने के लिए स्त्री प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इन प्रत्ययों में टाप व डीप मुख्य हैं। ‘टाप्’ में से ट् और प् का लोप होन पर ‘आ’ शेष रहता है। ‘डीप’ में से ङ् और प् का लोप होने पर ‘ई’ शेष रहती है।
जैसे – बाल + टाप् (आ) = बाला
अध्यापक + टाप् (आ) = अध्यापिका
लघु + ङीप् (ई) = लघ्वी
गुरु + ङीप् (ई) = गुर्वी।
साधु + ङीप् (ई) = साध्वी।

सूक्तिमौक्तिकम् Summary and Translation in Hindi

पाठका सारांश – संस्कृत-साहित्य के नीति-ग्रन्थों में सारगर्भित और अत्यन्त सरल रूप में नैतिक शिक्षायें दी जाती रही। हैं, जिससे मनुष्य अपने जीवन में उन शिक्षाओं पर अमल करते हुए अपने जीवन को सफल और समृद्ध बना सकता है। ऐसे ही मनोहारी और दुर्लभ वचन सुभाषित रूप में यहाँ संकलित हैं। पहले सुभाषित में सदाचार की महत्ता बताते हुए। कहा गया है कि हमें अपने आचरण को पवित्र बनाये रखना चाहिए।

धन तो आता है और चला जाता है, धन के क्षीण होने पर कुछ भी क्षीण नहीं होता लेकिन आचरण के नष्ट हो जाने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। दूसरे सुभाषित में कहा गया है कि स्वयं के प्रतिकूल आचरण को दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए। तीसरे सुभाषित में प्रिय वचन बोलने के महत्त्व को दर्शाया गया है।

चौथे सुभाषित में परोपकार करना सज्जनों का स्वभाव होता है, बताया। गया है। पाँचवें सुभाषित में सद्गुणों को ग्रहण करने का उपदेश दिया गया है। छठे सुभाषित में दुर्जनों और सज्जनों की मित्रता में भिन्नता बतायी गई है। सातवें और आठवें सुभाषितों में उत्तम पुरुष के सम्पर्क से होने वाली शोभा की प्रशंसा तथा सत्संग की महिमा का वर्णन किया है।

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1. वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः॥

शब्दार्थाः – वृत्तम् = आचरणम् (आचरण, चरित्र), यत्नेन = प्रयत्नपूर्वकं (प्रयत्नपूर्वक), संरक्षेत् = रक्षा कर्तव्या (रक्षा करनी चाहिए), वित्तम् = धनम् (धन/ ऐश्वर्य), एति = आगच्छति (आता है), च = और, याति = गच्छति (चला जाता है), वित्ततः = धनस्य (धन के), क्षीणः = नष्टे (नष्ट होने पर), अक्षीणः = न क्षीणः (नष्ट न हुआ), तु = तो, वृत्ततः = आचरणस्य (आचरण के / चरित्र के), क्षीणः = नष्टे (नष्ट होने पर), हतो हतः = पूर्णरूपेण क्षीणः (पूरी तरह नष्ट हुए के समान/मरे हुए के समान होता है)।

अन्वयः – वृत्तम् यत्नेन संरक्षेत् वित्तम् एति च याति च। वित्ततः क्षीण: अक्षीणः वृत्ततः तु क्षीणः हतः हतः। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘मनुस्मृति’ से संकलित किया गया है।

प्रसंग – प्रस्तुत सुभाषित में सदाचार की महत्ता को बताया गया है। हिन्दी-अनुवाद – (मनुष्य को) आचरण की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए (धन की नहीं क्योंकि) धन तो आता है और चला जाता है। धन के नष्ट हो जाने पर (मानव का) कुछ भी नष्ट नहीं होता है, लेकिन चरित्र के नष्ट हो जाने पर (मानव) मरे हुए के समान होता है अर्थात् उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ:-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य’ ‘सूक्तमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकोऽयं मनुस्मृति तः सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक मनुस्मृति से संकलित है।)
प्रसङ्गः – श्लोकेऽस्मिन् नीतिकारः सदाचारस्य महत्वं वर्णयन् कथयति। (इस श्लोक में नीतिकार सदाचार का महत्व वर्णन करते हुए कहता है।)

व्याख्याः -सदाचरणं स्वस्य चरित्रं वा तु प्रयासपूर्वकं रक्षणीयम् न च वित्तं धनं वा। यतः धनं तु आगच्छति गच्छति वा।
अतः धने क्षीणे तु अक्षय एव परञ्च नष्टे चरित्रे तु मानव: नश्यति एव। (सदाचार अथवा अपने चरित्र की तो प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, वित्त अथवा धन की नहीं, क्योंकि धन तो आता है जाता है अत: धन क्षीण होने पर भी अक्षय ही है, परन्तु चरित्र के नष्ट होने पर तो मान ही नष्ट हो जाता है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कं यत्नेन संरक्षेत्? (किसकी यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए?)
(ख) कस्मात् क्षीणः मानवः हतः? (किससे क्षीण हुआ मानव मारा जाता है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) वित्तं कीदृशं भवति? (वित्त कैसा होता है?).
(ख) वित्तवृत्तयोः को भेदः? (वित्त और वृत्त में क्या अन्तर है?)

प्रश्न 3. यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘आगच्छति’ इति क्रियापदस्य स्थानेऽत्रं श्लोके किं पदं प्रयुक्तम्?
‘आगच्छति’ क्रियापद के स्थान पर श्लोक में क्या. शब्द प्रयोग किया है?)
(ख) कः मनुष्यः हतः? (कौन व्यक्ति मारा जाता है?)
उत्तराणि-
(1) (क) वृत्तम् (आचरणम्)।
(ख) वृत्ततः। (आचरण)।

(2) (क) वित्तः तु एति याति च। (धन तो आता है जाता है।)
(ख) अक्षीणे वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतोहतः। (धन के नष्ट होने पर कुछ भी नष्ट नहीं होता परन्तु वृत्त के
क्षीण होने पर मरे हुए के समान होता है।)

(3) (क) एति (आता है)।
(ख) क्षीणवृत्तः (जिसका आचरण क्षीण हो गया हो)।

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2. श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥

शब्दार्था: – श्रूयताम् = आकर्ण्य (सुनो), धर्मसर्वस्वम् = कर्तव्यसारम् (धर्म के सार को), च = (और), श्रुत्वा = आकर्ण्य (सुनकर), एव = निश्चयेन (ही), अवधार्यताम् = धारणं कुरु (धारण करो), आत्मनः = स्वस्य (अपने), प्रतिकूलानि = विपरीतानि (अनुकूल नहीं है जो), परेषाम् = अन्येषां (दूसरों के साथ), न = मा (नहीं), समाचरेत् = व्यवहारं कर्तव्यम् (व्यवहार करना चाहिए)।

अन्वयः – धर्मसर्वस्वम् श्रूयताम् च एव अवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘विदुरनीति’ से संकलित किया गया है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में जो स्वयं को पसन्द न हो, ऐसा आचरण दूसरों के साथ न करने की सलाह दी गई है।

हिन्दी-अनुवाद – धर्म अर्थात् कर्तव्य के सार को सुनो और सुनकर (उसे व्यवहार में) धारण करना चाहिए। अपने विपरीत (अर्थात् जो आचरण या व्यवहार व्यक्ति को स्वयं के प्रति पसन्द न हो ऐसा आचरण) दूसरों के साथ व्यवहार में नहीं लाना चाहिए। आशय यह है कि व्यक्ति जिस कार्य अथवा आचरण को अपने लिए ठीक नहीं समझता, उसे वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं च …. विदुर नीति ग्रन्थात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक विदुर नीति ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् नीतिकारः विदुरः कथयति यत् यदाचरणं स्वस्य प्रतिकूलो भवति तन्न अन्येभ्यः सह आचरणीयम्।
निश्चितमेव धरणीय पुस्तकच याश्चादी स्वस्थ

(इस श्लोक में नीतिज्ञ विदुर कहता है कि जो आचरण अपने अनुकूल न हो उसका दूसरे के साथ आचरण नहीं करना चाहिए।)

व्याख्या: – सर्वेषां धर्माणां कर्त्तव्यानाम् च सम्यक् रूपेण आकर्ण्य निश्चितमेव धारणीयम् परञ्च यत् कार्यं स्वस्य प्रतिकूलं भवति तस्य अन्येभ्यः सह व्यवहारं न कर्त्तव्यम्। (सभी धर्मों और कर्तव्यों को अच्छी तरह सुनकर निश्चित ही धारण करना चाहिए, परन्तु जो कार्य स्वयं के प्रतिकूल होता है। वह दूसरों के साथ व्यवहार नहीं करना चाहिए।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-),
(क) किं श्रूयताम् अवधार्यं च? (क्या सुनना और समझना चाहिए?)
(ख) गुत्वा कि करणीयम्? (धर्म-सर्वस्व को सुनकर क्या करना चाहिए?)

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) परेषां कानि न समाचरेत् ? (किनका आचरण नहीं करना चाहिए?)
(ख) किम् अवधार्यम् ? (क्या धारण करना चाहिए?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अनुकूलानि’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत्।
(‘अनुकूलानि’ पद का विलोम पद श्लोक से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘आकर्ण्य’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘आकर्ण्य’ पद का समानार्थी पद श्लोक से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) धर्म सर्वस्वम् (धर्म का सार)।
(ख) अवधारणीय (धारण करना चाहिए)।

(2) (क) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (अपने अनुकूल न हो उसको दूसरे के साथ व्यवहार नहीं करना चाहिए।)
(ख) श्रुतं धर्म सर्वस्वम् अवधार्य। (सुने धर्म के सार को धारण करना चाहिए।)

(3) (क) प्रतिकूलानि (विरुद्ध)।
(ख) श्रुत्वा (सुनकर)।

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3. प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥

शब्दार्थाः – प्रियवाक्यप्रदानेन = स्नेहयुक्तेन भाषणेन (प्रिय वाक्य (वचन) बोलने से), सर्वे = समस्ताः (सभी), जन्तवः = प्राणिनः (प्राणी), तुष्यन्ति = सन्तुष्टाः भवन्ति (सन्तुष्ट होते हैं), तस्मात् = अतः (इसलिए), तदेव = असौ एव (वह ही, वैसे ही), वक्तव्यम् = भणितव्यं (बोलना चाहिए), वचने का दरिद्रता = कथने का दारिद्रयं (बोलने में क्या दरिद्रता अर्थात् कंजूसी)।

अन्वयः – प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे जन्तवः तुष्यन्ति। तस्मात् तदेव वक्तव्यम्, वचने का दरिद्रता।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘चाणक्यनीतिः’ से संकलित किया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में प्रियवचन बोलने का उपदेश दिया गया है।
हिन्दी-अनुवाद – प्रिय वाक्य (वचन) बोलने से सभी प्राणी सन्तुष्ट होते हैं अतः (व्यक्ति को) वैसे ही वचन बोलने चाहिए। वचनों में (बोलने में) क्या दरिद्रता अर्थात् मीठा बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं चाणक्य नीतिः ग्रन्थात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक चाणक्य नीति ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् नीतिकारः चाणक्यः उपदिशति यत् मानवेन सदैव मधुरा वाणी एव प्रयोज्या। (इस श्लोक में नीतिकार चाणक्य उपदेश देता है कि मनुष्य को सदैव मधुर वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए।)

व्याख्या: – स्नेहयुक्त मधुरवाण्या प्राणिनः सन्तुष्टा भवन्ति अनेनैव कारणेन सैव मधुरा वाणी वचनीयम्। यतः कथने किं दारिद्रयम् ? (स्नेह युक्त मधुर वाणी से सभी प्राणी सन्तुष्ट होते हैं। अतः डी अर्थात् मधुर वाणी ही बोलनी चाहिए क्योंकि कहने में क्या गरीबी आती है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) जन्तवः केन तुष्यन्ति ? (प्राणी किससे सन्तुष्ट होते हैं?)
(ख) अतः किं वक्तव्यम्? (अत: क्या बोलना चाहिए?)

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सर्वे जन्तवः केन तुष्यन्ति ? (सभी जन्तु किससे सन्तुष्ट होते हैं ?)
(ख) प्रियवाक्यस्य का विशेषता? (प्रिय वचनों की क्या विशेषता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्राणिनः’ इति पदस्य समानार्थी पदं श्लोकात् लिखत। (‘प्राणिनः’ पद का समानार्थी पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘तस्मात् तदेव वक्तव्यम्’ अत्र ‘तदेव’ सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्।। – (तस्मात् तदेव वक्तव्यम्’ यहाँ तदेव’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग किया है?)
उत्तराणि :
(1) (क) प्रियवाक्येन (प्रिय वचनों से)।
(ख) प्रिय वाक्यम् (मधुर वचन)।

(2) (क) सर्वे जन्तवः प्रियवाक्य प्रदानेन तुष्यन्ति। (सभी जन्तु प्रियवचन बोलने से सन्तुष्ट होते हैं।)
(ख) प्रियवाक्य वचने न कापि दरिद्रता। (प्रियवचन में कोई दरिद्रता नहीं होती।)

(3) (क) जन्तवः (जीव)।
(ख) प्रियवाक्यम् (मधुरवचन)।

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4. पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खल वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभूतयः ॥

शब्दार्था: – नद्यः = सरितः (नदियाँ), स्वयमेव = आत्मना एव (स्वयं ही), अम्भः = जलम् (जल), न = मा (नहीं), पिबन्ति = पानं कुर्वन्ति (पीती हैं), वृक्षाः = तरवः (वृक्ष), स्वयम् = आत्मना (स्वयं), न फलानि = फलों को, न खादन्ति = न भक्ष्यन्ति (नहीं खाते हैं), वारिवाहाः = मेघाः (जलवहन करने वाले बादल), सस्यम् = अन्नम् (अन्न को, फसल को), खलु = निश्चयेन (निश्चित ही), न = मा (नहीं), अदन्ति = खादन्ति (खाते हैं), सताम् = सज्जनानां (सज्जनों की), विभूतयः = समृद्धिः (सम्पत्तियाँ), परोपकाराय = परेषाम् उपकाराय (परोपकार के लिए/ दूसरों के उपकार के लिए), भवन्ति = वर्तन्ते (होती हैं)।

अन्वयः – नद्यः स्वयमेव अम्भः न पिबन्ति, वृक्षाः (च) स्वयम् फलानि न खादन्ति । वारिवाहाः सस्यम् खलु न अदन्ति सताम् विभूतयः परोपकाराय। हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह “सुभाषितरत्नभाण्डागारम्’ से सकलित किया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में सज्जनों का स्वभाव परोपकार करना ही होता है, बताया गया है।
हिन्दी-अनुवाद – नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीती हैं (और) वृक्ष स्वयं (अपने) फलों को नहीं खाते हैं। मेघ (बादल) (अपने द्वारा उगाये गए) अन्नों को नहीं खाते हैं। निश्चय ही सज्जनों की सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं।

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संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ:-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं ‘सुभाषितरत्न-भांडागारम्’ इति ग्रन्थात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक ‘सुभाषित-रत्नभांडागारम्’ ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् कवि कथयति यत् ‘परेषामुपकारं करणीयम्’ इत्येव सज्जनानां स्वभावः भवति। (इस श्लोक में कवि कहता है कि ‘परोपकार करना चाहिए’ यह सज्जनों का स्वभाव ही होता है।)
व्याख्या: – सरितः आत्मनः जलं न पानं कुर्वन्ति। तरवः अपि आत्मनः फलानि न अदति भक्षयन्ति वा। वारिदाः (मेघाः) निश्चितमेव अन्नं न खादन्ति। (अनेन स्पष्ट) यत् सज्जनानां समृद्धिः परेषाम् उपकाराय एव भवति। (नदियाँ अपना जल नहीं पीती हैं, वृक्ष अपने फल नहीं खाते हैं, मेघ निश्चित ही अन्न नहीं खाते हैं। उससे स्पष्ट है कि सज्जनों की समृद्धि दूसरों के उपकार के लिए ही होती है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) स्वाम्भः का: न पिबन्ति? (अपना पानी कौन नहीं पीती हैं।)
(ख) वृक्षाः किं न खादन्ति ? (वृक्ष क्या नहीं खाते?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सतां विभूतयः कस्मै भवन्ति? (सज्जनों का वैभव किसलिए होता है?)
(ख) वारिवाहाः किं न खादन्ति? (बादल क्या नहीं खाते?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘खादन्ति’ इति क्रियापदस्य स्थाने श्लोके किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘खादन्ति’ क्रियापद के स्थान पर श्लोक में किस पद का प्रयोग किया गया है?)
(ख) ‘पिबन्ति’ पदे मूल धातुं लिखत। (‘पिबन्ति’ पद में मूल धातु लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) नद्यः (नदियाँ)।
(ख) सस्यम् (फसल को)।

(2) (क) सतां विभूतयः परोपकाराय भवन्ति। (सज्जनों का वैभव परोपकार के लिए होता है।)
(ख) वारिवाहा सस्यं नादन्ति। (बादल फसल नहीं खाते।)

(3) (क) अदन्ति (खाते हैं)।
(ख) पा (पीना)।

5. गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः॥

शब्दार्थाः – पुरुषैः = मानवैः (पुरुषों/ मानवों के द्वारा), सदा = सर्वदा (हमेशा/ सदैव), गुणेषु एव = सद्गुणेषु एव (गुणों को धारण करने में ही, प्रयत्नः = प्रयत्न, कर्तव्यः = करणीयः (करना चाहिए), गुणयुक्तः = गुणसम्पन्नः (गुणों से युक्त), दरिद्रः अपि = धनहीनोऽपि (निर्धन व्यक्ति भी), अगुणैः = गुणों से हीन, ईश्वरैः = श्रीयुक्तैः (ऐश्वर्यवानों से/ ६ नवानों से), समः = तुल्यः अस्ति (समान/बराबर है)।

अन्वयः – पुरुषैः सदा गुणेषु एव प्रयत्नः कर्तव्यः हि गुणयुक्तः दरिद्रः अपि न अगुणैः ईश्वरैः समः।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘मृच्छकटिकम्’
से संकलित किया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में गुणों की महिमा को बताते हुए कहा गया है कि गुणवान् व्यक्ति निर्धन होते हुए भी गुणहीन धनवान् से श्रेष्ठ होता है।
हिन्दी-अनुवाद – मनुष्यों को सदैव ही गुणों को धारण करने में प्रयत्नशील रहना चाहिए क्योंकि संसार में गुणों से युक्त निर्धन व्यक्ति भी गुणों से हीन धनवान् के बराबर नहीं होता अपितु उससे श्रेष्ठ होता है। अर्थात् गुणों से युक्त निर्धन व्यक्ति गुणहीन धनवान् से श्रेष्ठ होता है।

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संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं महाकवि शूद्रक-विरचितात् ‘मृच्छकटिकम्’ नाटकात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक मूलतः महाकवि शूद्रक विरचितं ‘मृच्छकटिक’ नामक नाटक-ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् गुणानां महिमा वर्णिता। अत एव गुणवान् मानवः निर्धनोऽपि सन् निर्गुणात् धनवतः श्रेष्ठतर; भवति। (इस श्लोक में गुणों की महिमा वर्णित है। अतएव गुणवान् मानव निर्धन होते हुए भी निर्गुण (गुणहीन) धनवान से अच्छा होता है।)

व्याख्याः – मानवै सदैव सद्गुणेषु एव प्रयत्नं (प्रयासं) करणीयम् (यतः) गुण सम्पन्नः धनहीनोऽपि सन् गुणहीनेन् समः (तुल्या) एव भवति। (मानव को सदैव अच्छे गुणों में ही प्रयत्नशील होना चाहिए क्योंकि गुण सम्पन्न धनहीन व्यक्ति भी गुणहीन धनवान के समान होता है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) केषु प्रयत्नः कर्त्तव्यः? (किनमें प्रयत्न करना चाहिए?)
(ख) गुणयुक्त दरिद्रस्य गुणहीन धनिकस्य च मध्ये कः श्रेष्ठः? (गुणयुक्त दरिद्र से गुणहीन धनी में कौन श्रेष्ठ है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) पुरुषैः सदैव केषु प्रयत्न: करणीयः? (पुरुषों द्वारा किसमें प्रयत्न किया जाना चाहिए?)
(ख) को मनुष्यः श्रेष्ठतरः? (कौन व्यक्ति अधिक अच्छा है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘करणीयः’ इति क्रियापदस्य पर्यायवाचिपदं श्लोकात् चित्वा लिखत्।
(‘करणीयः’ क्रिया का समानार्थी पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘विषमः’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘विषमः’ पद का विलोम श्लोक से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) गुणेषु (गुणों में)।
(ख) गुणयुक्त दरिद्रः (गुणी गरीब)।

(2) (क) पुरुषैः सदैव गुणेषु एव प्रयत्नः करणीयः। (मनुष्यों को सदा गुण अर्जित करने में प्रयत्न करना चाहिए।)
(ख) गुणयुक्तोऽपि निर्धनः श्रेष्ठः भवति। (गुणों से युक्त भी गरीब व्यक्ति श्रेष्ठ होता है।)

(3) (क) कर्त्तव्यः (करना चाहिए)।
(ख) समः (समान)।

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6. आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना छायेव मैत्री ख़लसज्जनानाम्॥

शब्दार्थाः – आरम्भगुर्वी = आदौ दीर्घा (आरम्भ में लम्बी), क्रमेण = क्रमशः (लगातार, धीरे-धीरे), क्षयिणी = क्षयशीला (घटने वाली), पुरा = प्रारम्भे (पहले), च = और, लध्वी = अल्पा (कम), पश्चात् = अनन्तरम् (पश्चात्), वृद्धिमती = वृद्धिं प्राप्ता (लम्बी होती हुई /लम्बी हुई), दिनस्य = दिवसस्य (दिन के), पूर्वार्द्ध = दोपहर के पहले, परार्द्ध = दोपहर के बाद, भिन्ना = इतरा (अलग होती है), छाया = छाया, इव = समा (समान), खलानाम् = दुष्टानां (दुष्टों की), सज्जनानाम् = सताम् (सज्जनों की), मैत्री = सख्यं (मित्रता)।

अन्वयः – आरम्भगुर्वी क्रमेण क्षयिणी पुरा च लघ्वी पश्चात् (च) वृद्धिमती दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना छाया इव खलसज्जनानाम् मैत्री (भवति)।

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘नीतिशतकम्’ से संकलित किया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में दुष्टों और सज्जनों की मित्रता की भिन्नता का वर्णन किया गया है।
हिन्दी-अनुवाद – दुष्टों की मित्रता दोपहर से पहले की छाया के समान प्रारम्भ में लम्बी लेकिन लगातार घटने वाली तथा सज्जनों की मित्रता दोपहर के बाद की छाया के समान पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयन् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं भर्तृहरेः नीतिशतकम् ग्रन्थात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक भर्तृहरि के नीतिशतकम् ग्रन्थ से संकलित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् कविः सज्जनानां दुर्जनानां च मित्रतायाः तुलनां करोति। यतः सज्जनानां मैत्री स्थायी दुर्जनानां च अस्थायी भवति। (इस श्लोक में कवि सज्जनों और दुर्जनों की मित्रता की तुलना की है। क्योंकि सज्जनों की मित्रता स्थायी और दुर्जनों की अस्थायी होती है।)

व्याख्या: – दुर्जनानां मित्रता आदौ तु पूर्वाह्न छाया इव दीर्घा भवति परञ्च क्रमशः क्षयशीला भवति (यावत्) सज्जनां (सतां) मित्रता आदौ अपराह्न छाया इव अल्पी भवति (परञ्च) मध्याह्नोपरान्त तु यदि प्राप्नोति। (दुर्जनों की मित्रता आरम्भ में दोपहर-पूर्व की छाया के समान बड़ी होती है परन्तु क्रमशः घटती है जबकि सज्ज की मित्रता आरम्भ में दोपहर बाद की छाया के समान थोड़ी होती है तथा मध्याह्न के बाद वृद्धि को प्राप्त होती है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) केषां मैत्री आरम्भगुर्वी क्रमेण क्षयिणी भवति?
(किनकी दोस्ती आरम्भ में बड़ी तथा क्रमशः क्षीण होने वाली होती है?)
(ख) दिनस्य उत्तरार्द्धभि केषां मैत्री भवति? (उत्तरार्ध के समान किनकी मित्रता होती है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) खलानां मैत्री कीदृशी भवति? (दुष्टों की दोस्ती कैसी होती है?)
(ख) सज्जनानां मैत्री कीदृशीं भवति? (सज्जनों की दोस्ती कैसी होती है?)

प्रश्न 3. यथानिर्देशम् उत्तरत्- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘लध्वी’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् अन्विष्य लिखत्।
(‘लघ्वी’ पद का विलोम श्लोक से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘सौहार्द’ इति पदस्य समानार्थी पदं श्लोकात् चित्वा लिखत्।
(‘सौहार्द’ पद का समानार्थी पद श्लोक से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) खलानाम् (दुर्जनों की)।
(ख) सज्जनानाम् (सज्जनों की)।

(2) (क) खलानां मैत्री आरम्भगुर्वी क्रमेण च क्षीण भवति। (दुष्टों की दोस्ती आरम्भ में बड़ी तथा क्रमशः क्षीण होने वाली होती है।)
(ख) सज्जनानां मैत्री पुरा लघ्वी पश्चात् च वृद्धिमती भवति। (सज्जनों की दोस्ती पहले कम (छोटी) तथा
बाद में बढ़ने वाली होती है।)

(3) (क) गुर्वी (बड़ी अधिक)।
(ख) मैत्री (मित्रता)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

7. यत्रापि कुत्रापि गता भवेयुहंसा महीमण्डलमण्डनाय।
हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैः सह विप्रयोगः॥

शब्दार्थाः – हंसाः = मरालाः (हंस), महीमण्डलमण्डनाय = भूमि सज्जीकर्तुम् (पृथ्वी को सुशोभित करने के लिए), यत्रापि कुत्रापि = यदपि स्थानम् (जहाँ कहीं भी), गताः भवेयुः = गच्छेयुः (जायें), हि = निश्चयेन (निश्चय ही), हानिः तु = हानिः तु (हानि तो), तेषाम् = उनकी, सरोवराणाम् = जलाशयानाम् (सरोवरों की), येषाम् = जिनका, मरालैः सह = हंसैः सह (हंसों के साथ), विप्रयोगः = वियोगः (वियोग, अलग होना)।

अन्वयः-हंसा महीमण्डलमण्डनाय यत्रापि कुत्रापि गताः भवेयुः। हि येषाम् सरोवराणाम् हानिः तु येषाम् मरालैः सह विप्रयोगः (अस्ति)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘भामिनी विलास’ से संकलित किया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में सत्संग की महिमा का वर्णन किया गया है।
हिन्दी-अनुवाद – हंस पृथ्वी की शोभा बढ़ाने के लिए जहाँ भी चले गये हों (किसी की कोई हानि नहीं होती) अर्थात् हंस जहाँ कहीं भी जाते हैं उसी भूमि की शोभा बढ़ाते हैं। हानि तो उन सरोवरों की होती है, जिनका हंसों के साथ वियोग होता है।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं मूलतः पण्डितराज जगन्नाथ विरचितात् ‘भामिनी विलासात्’ सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक मूलतः पण्डितराज जगन्नाथ द्वारा रचित भामिनी विलास से संकलित है।)
प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् कविः सत्संगस्य महिमानं वर्णयति। सः कथयति। (इस श्लोक में कवि सत्संग की महिमा का वर्णन करता है। वह कहता है।)
व्याख्या: – मरालाः यत् स्थानमपि यान्ति (गच्छेयुः) ते निश्चप्रचमेव भूमि एव भवन्ति। हानिः तु तेषां जलाशयानां भवति येषाम् हंसैः संह वियोगः भवति। (हंस जिस स्थान पर भी जाते हैं वे निश्चय ही पृथ्वी की शोभा बढ़ाने के लिए गये। हैं। हानि तो उन जलाशयों की होती है जिनका हंसों से वियोग (बिछुड़ना) होता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) हंसाः किं कुर्वन्ति ? (हंस क्या करते हैं?)
(ख) हंसेषु गतेषु केषां हानिः भवति? (हंसों के चले जाने पर किनकी हानि होती है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) हंसाः किं कुर्वन्ति? (हंस क्या करते हैं?) ।
(ख) सरोवरस्य हानिः कदा भवति? (सरोवर की हानि कब होती है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘हंसैः’ इति पदस्य समानार्थी पदं श्लोकात् चित्वा लिखत। (‘हंस’ पद का समानार्थी पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘लाभः’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं श्लोकात् लिखत। (‘लाभ:’ पद का विलोम श्लोक से चुनकर लिखो।)
उत्तराणि :
(1) (क) महीमण्डल मण्डनाम्। (पृथ्वीमंडल को शोभित करने के लिए।)।
(ख) सरोवराणाम् (सरोवरों की)।

(2) (क) हंसाः पृथिव्याः मण्डनं कुर्वन्ति। (हंस पृथ्वी का मंडन करते हैं।)
(ख) सरोवरस्य हानिः हंसानां विप्रयोगे भवति। (सरोवर की हानि हंसों के वियोग (बिछुड़ने) से होती है।)

(3) (क) मरालैः।
(ख) हानिः (नुकसान)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

8. गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥

शब्दार्थाः-गुणाः = श्रेष्ठलक्षणानि (सद्गुण), गुणज्ञेषु = गुणग्राहकेषु (गुणियों में) (रहकर ही), गुणाः = श्रेष्ठलक्षणानि (गुण), भवन्ति = वर्तन्ते (होते हैं), ते = अमी (वे) (गुण), निर्गणम = मुर्ख (गुणहीन को), प्राप्य = प्राप्तं कृत्वा (प्राप्त करके), भवन्ति = वर्तन्ते (होते हैं), दोषाः = विकाराः (दोष), आस्वाद्यतोयाः = स्वादुजलसम्पन्नाः (स्वादयुक्त जल वाली), प्रवहन्ति = वहन्ति (बहती हैं), नद्यः = सरितः (नदियाँ), समुद्रमासाद्य = सागरं प्राप्य (समुद्र में मिलने पर/ समुद्र को प्राप्त करके), भवन्ति = वर्तन्ते (होती हैं), अपेयाः = न पेयाः/न पानयोग्याः (न पीने योग्य)।

अन्वयः – गुणाः गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। नद्यः आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति। समुद्रम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ से अवतरित है। यह ‘हितोपदेशः’ से संकलित किया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में संगति के प्रभाव का वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद – गुण गुणियों में (रहकर) गुण होते हैं, निर्गुणों (बुरे लोगों) को प्राप्त कर वे दोष हो जाते हैं। स्वादयुक्त जल वाली नदियों का जल तभी तक पीने योग्य होता है जब तक वे बहती रहती हैं। समुद्र को प्राप्त करके उनका जल अपेय हो जाता है। अर्थात् जब तक स्वादयुक्त जलवाली नदियाँ बहती रहती हैं, वे पीने योग्य रहती हैं। किन्तु जब वही नदी निर्गुण समुद्र के खारे जल में मिल जाती है तो वह (खारी होने के कारण) पीने योग्य नहीं रह जाती। आशय यह है कि संगति का बड़ा प्रभाव पड़ता है। संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ इति पाठात् उद्धृत। श्लोकोऽयं नारायण पण्डित विरचितात् ग्रन्थात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक नारायण पण्डित द्वारा रचित हितोपदेश कथाग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् कविः नारायणपण्डितः सङ्गतेः प्रभावं वर्णयति। (इस श्लोक में कवि नारायण पंडित संगति के प्रभाव का वर्णन करता है।)

व्याख्या: – सद्गुणाः तु गुणग्राहकेषु श्रेष्ठ लक्षणानि एव वर्तन्ते अमी एव गुणाः मूर्ख प्राप्य विकाराः इति वर्तन्ते। यथा सरितः सदैव स्वादिष्टं जलं वहन्ति परञ्च तदैव सागरं प्राप्य न पान योग्यम् एव भवति। (सद्गुण तो गुणग्राहकों में श्रेष्ठ लक्षण ही होते हैं, ये ही गुण मूर्ख को प्राप्त कर विकार बन जाते हैं। जैसे नदियाँ सदैव स्वादिष्ट जल बहाती हैं परन्तु वही जल समुद्र में पहुँचकर न पीने योग्य हो जाता है।)

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) गुणाः कुत्र गुणा एव भवन्ति? (गुण कहाँ गुण ही रहते हैं ?)
(ख) गुणाः कदा दोषाः भवन्ति? (गुण कब दोष हो जाते हैं?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) नद्यः तोयाः कदा अपेयाः भवन्ति? (नदी का पानी कब न पीने योग्य हो जाता है?)
(ख) श्लोकेऽस्मिन् मानवाय का शिक्षा प्रदत्ता? (इस श्लोक में मानव के लिए क्या शिक्षा दी गई है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘पेयाः’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत्।
(‘पेयाः’ इस पद का विलोम पद श्लोक से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘ते निर्गुणं प्राप्य’ अत्र ते इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(ते ‘निर्गुणं प्राप्य’ यहाँ ‘ते’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग किया गया है।)
उत्तराणि :
(1) (क) गुणज्ञेषु (गुणों के जानकारों)।
(ख) निर्गुणेषु (गुणहीनों में)।

(2) (क) नद्यः तोयाः समुद्रं प्राप्य अपेयाः भवन्ति। (नदी का जल समुद्र को पाकर न पीने योग्य हो जाता है।)
(ख) श्लोकेऽस्मिन् संगत्याः प्रभावं दर्शितम्। (इस श्लोक में संगति का प्रभाव बताया गया है।)

(3) (क) ‘अपेयाः’ (न पीने योग्य)।
(ख) निर्गुणंप्राप्य (गुणहीन को पाकर)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः

JAC Class 9th Sanskrit कल्पतरुः Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः अस्ति? (जीमूतवाहन किसका पुत्र है?)
उत्तरम् :
जीमूतकेतोः (जीमूतकेतु का)।

(ख) संसारेऽस्मिन् कः अनश्वरः भवति? (इस संसार में अनश्वर कौन है?)
उत्तरम् :
परोपकारः (परोपकार)।

(ग) जीमूतवाहनः परोपकारैकफलसिद्धये कम् आराधयति?
(जीमूतवाहन परोपकार की एकमात्र फलसिद्धि के लिए किसकी आराधना करता है?)
उत्तरम् :
कल्पवृक्षपादपम्। (कल्पवृक्ष के पौधे की)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

(घ) जीमूतवाहनस्य सर्वभूतानुकम्पया सर्वत्र किं प्रथितम्?
(जीमूतवाहन की सभी प्राणियों की अनुकम्पा से किसकी वृद्धि हुई ?)
उत्तरम् :
यशः। (यश की)।

(ङ) कल्पतरुः भुवि कानि अवर्ष?
(कल्पतरु ने पृथ्वी पर क्या बरसाया?)
उत्तरम् :
वसूनि। (धन)।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं कुत्र विभाति स्म? (कञ्चनपुर नामक नगर कहाँ सुशोभित था?)
उत्तरम् :
हिमवतः नगेन्द्रस्य सानोरुपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति स्म। (पर्वतराज हिमालय के शिखर के ऊपर कंचनपुर नामक नगर सुशोभित था।)

(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत्? (जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्। (जीमूतवाहन महान् दानवीर तथा सभी प्राणियों पर दया करने वाला था।)

(ग) कल्पतरो: वैशिष्ट्यमाकर्ण्य जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत्? (कल्पवृक्ष की विशेषता को सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः अचिन्तयत् यत् अहम् एतत्कल्पतरोः स्वकामनां मनोरथमभीष्टं साधयामि। (जीमतवाहन ने सोचा कि मैं इस कल्पवक्ष से अपनी कामना सिद्ध करता हैं।)

(घ) हितैषिण: मन्त्रिण: जीमूतवाहनं किम् उक्तवन्तः? (हितैषी मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
“युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति अकथयत्। (“हे युवराज! जो यह सारी कामनाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष तुम्हारे बाग में खड़ा है, वह तुम्हारे लिए सदा पूज्य है। इसके अनुकूल होने पर इन्द्र भी हमें कोई बाधा नहीं पहुँचा सकता है।” इस प्रकार से कहा।)

(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन कल्पतरु के समीप जाकर क्या बोला?)
उत्तरम् :
“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव” इति। (देव! आपने हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएं पूरी की तो मेरी भी एक कामना पूरी कर दीजिए, जिस प्रकार मैं पृथ्वी को दरिद्रततारहित देखें, ऐसा कर दीजिए।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

3. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानि कस्मै प्रयुक्तानि? (निम्नलिखित वाक्यों में मोटे पद किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं ?)
(क) तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरंम्। (उसकी चोटी के ऊपर कञ्चनपुर नामक नगर सुशोभित था)
उत्तरम् :
हिमवते नगेन्द्राय प्रयुक्तम्। (पर्वतराज हिमालय के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(ख) राजा सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्? (राजा ने युवावस्था को प्राप्त हुए उसे युवराज के पद पर अभिषिक्त कर दिया।)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनाय प्रयुक्तम्। (जीमूतवाहन के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(ग) अयं तव सदा पूज्यः। (यह तुम्हारा सदा पूजनीय है।)
उत्तरम् :
कल्पवृक्षाय प्रयुक्तम्। (कल्पवृक्ष के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(घ) तात ! त्वं तु जानासि यत् धनं वीचिवच्चञ्चलम्। (हे पिताजी, तुम तो जानते हो कि धन जल की तरंग के समान चंचल है।)
उत्तरम् :
जीमूतकेतवे प्रयुक्तम्। (जीमूतकेतु के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

4. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत –
(निम्नलिखित पदों के पर्यायपद पाठ से चुनकर लिखिए-)
(क) पर्वतः – …………..
(ख) भूपतिः – …………..
(ग) इन्द्रः – …………..
(घ) धनम् – ………….
(ङ) इच्छितम् – ………….
(च) समीपम् – …………..
(छ) धरित्रीम् – …………
(ज) कल्याणम् – …………..
(झ) वाणी – ………..
(ब) वृक्षः – …………
उत्तर :
(क) नगेन्द्रः
(ख) राजा
(ग) शक्रः
(घ) अर्थः, वसूनि
(ङ) अभीष्टम्
(च) अन्तिकम्
(छ) पृथ्वीम्
(ज) हितम्
(झ) वाक्
(ज) तरुः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

5. ‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि। तानि समचितं योजयत
(‘क’ स्तम्भ में विशेषण और ‘ख’ स्तम्भ में विशेष्य दिये हुए हैं। उन्हें ठीक से मिलाइये-)

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतः परोपकारः
दानवीरः मन्त्रिभिः
हितैषिभिः जीमूतवाहनः
वीचिवच्चञ्चलम् कल्पतरुः
अनश्वरः धनम्

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतः कल्पतरुः
दानवीरः जीमूतवाहनः
हितैषिभिः मन्त्रिभिः
वीचिवच्चञ्चलम् धनम्
अनश्वरः परोपकारः

6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (मोटे छपे पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) तरोः कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत्।
(ख) स: कल्पतरवे न्यवेदयत्।
(ग) धनवृष्ट्या कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्।
(घ) कल्पतरुः पृथिव्यां धनानि अवर्षत्।
(ङ) जीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्।
उत्तरम् :
प्रश्न: – कस्य कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत् ?
प्रश्न: – सः कस्मै न्यवेदयत् ?
प्रश्न: – कथं कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत् ?
प्रश्न: – कल्पतरुः कुत्र धनानि अवर्षत् ?
प्रश्न: – कथं जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्?

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

7. (क) “स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्दस्य योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। इत्यनेन नियमेन अत्र चतुर्थी विभक्तिः प्रयुक्ता। एवमेव (कोष्ठकगतेषु पदेषु) चतुर्थी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(“स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। इस नियम से यहाँ चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। इसी प्रकार (कोष्ठक में दिये शब्दों में) चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को पूर्ण कीजिए
(i) स्वस्ति ………… (राजा)
(ii) स्वस्ति ………… (प्रजा)
(ii) स्वस्ति ………… (छात्र)
(iv) स्वस्ति …………… (सर्वजन)
उत्तरम् :
(i) राज्ञे
(ii) प्रजाभ्यः
(iii) छात्राय
(iv) सर्वजनेभ्यः

(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत (कोष्ठक में दिये शब्दों में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को पूर्ण कीजिए-)
(i) तस्य ……… उद्याने कल्पतरुः आसीत्। (गृह)
(ii) सः ………… अन्तिकम् अगच्छत्। (पितृ)
(iii) …………. सर्वत्र यशः प्रथितम्। (जीमूतवाहन)
(iv) अयं ………. तरुः ? (किम्)
उत्तर :
(i) गृहस्य
(ii) पितुः
(iii) जीमूतवाहनस्य
(iv) कस्य।

JAC Class 9th Sanskrit कल्पतरुः Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
सर्वरत्नभूमिः कः अस्ति ? (सभी रत्नों का उत्पत्ति स्थान क्या है?)
उत्तरम् :
हिमवान् नाम नगेन्द्रः सर्वरत्नभूमिः अस्ति। (पर्वतराज हिमालय सभी रत्नों का उत्पत्तिस्थान है।)

प्रश्नः 2.
कल्पतरुः कुत्र स्थितः? (कल्पवृक्ष कहाँ स्थित था?)
उत्तरम् :
कल्पतरुः जीमूतकेतोः गृहोद्याने स्थितः। (कल्पतरु जीमूतकेतु के घर के बगीचे में स्थित था।)

प्रश्न: 3.
जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्। (जीमूतवाहन दानवीर और समस्त जीवों पर दया करने वाला था।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 4.
जीमूतवाहनः कल्पवृक्षविषये कैः उक्तः? (जीमूतवाहन से कल्पवृक्ष के बारे में किन्होंने कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पवृक्षविषये हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः। (जीमूतवाहन से कल्पवृक्ष के विषय में हितैषी पिता के मन्त्रियों ने कहा।)

प्रश्न: 5.
मन्त्रिभिः जीमूतवाहनः किम् उक्तः ? (मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
मन्त्रिभिः जीमूतवाहन: उक्तः यत् योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति, स तव सदा पूज्यः।
(मन्त्रियों ने जीमतवाहन से कहा कि जो यह समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला कल्पवक्ष आपके बगीचे में है, वह तुम्हारा हमेशापूजनीय है।)

प्रश्न: 6.
जीमूतवाहनस्य पूर्वैः पुरुषैः कीदृशं फलं नासादितम्?
(जीमूतवाहन के पूर्वजों ने किस प्रकार का फल प्राप्त नहीं किया?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य पूर्वैः पुरुषैः परोपकारस्य फलं न आसादितम्। (जीमूतवाहन के पूर्वजों के द्वारा परोपकार का फल प्राप्त नहीं किया गया।)

प्रश्न: 7.
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर क्या कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-यत् देव ! यथा पृथ्वीमदरिद्रां पश्यामि तथा करोतु। (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर कहा कि हे देव! जिससे पृथ्वी को दरिद्रता से रहित देखू, वैसा ही कीजिए।)

प्रश्न: 8.
तस्मात् कल्पवृक्षात् का वाक् उद्भूत्? (उस कल्पवृक्ष से क्या वाणी उत्पन्न हुई?)
उत्तरम् :
तस्मात् कल्पवृक्षात् “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् उद्भूत्। (उस कल्पवृक्ष से “तुम्हारे द्वारा त्यागा गया यह मैं जाता हूँ” इस प्रकार की वाणी उत्पन्न हुई।)

प्रश्न: 9.
कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य किम् अकरोत्? (कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर क्या किया?)
उत्तरम :
कल्पवृक्षः दिवं समुत्पत्य पृथिव्यां तथा वसूनि अवर्षत् यथा कोऽपि दुर्गतः न आसीत्। (कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर भूमि पर उस प्रकार से धन की वर्षा की जिससे कोई भी पीड़ित/निर्धन नहीं रहा।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 10.
‘कल्पतरुः’ इति कथा कस्मात् ग्रन्थात् गृहीता? (‘कल्पतरुः’ कहानी किस ग्रन्थ से ली गई है?)
उत्तरम् :
‘कल्पतरुः’ इति कथा ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ इति ग्रन्थात् गृहीता। (‘कल्पतरुः’ कथा ‘वेतालपंचविंशतिः’ कथा ग्रन्थ से ली गई है।)

प्रश्न: 11.
कल्पतरुः’ इति कथायां केषां निरूपणं वर्तते। (‘कल्पतरुः’ कथा में किनका निरूपण किया गया है?)
उत्तरम् :
‘कल्पतरुः’ कथायां जीवनमूल्यानां निरूपणं वर्तते। (‘कल्पतरुः’ कथा में जीवन-मूल्यों का निरूपण किया है।)

प्रश्न: 12.
जीमूतकेतुः केषां नृपः अभवत्? (जीमूतकेतु किनका राजा हुआ?)
उत्तरम् :
जीमूतकेतु विद्याधराणां राजा आसीत्। (जीमूतवाहन विद्याधरों का राजा था।)

प्रश्न: 13.
जीमूतवाहनः कस्य अंशात् सम्भवः आसीत्? (जीमूतवाहन किसके अंश से पैदा हुआ था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः बोधिसत्वस्य अंशात् सम्भवः आसीत्। (जीमूतवाहन बोधिसत्व के अंश से पैदा हुआ था।)

प्रश्न: 14.
जीमूतवाहनस्य अभीष्टं किमासीत्? (जीमूतवाहन की इच्छा क्या थी?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य अभीष्टं आसीत् यत् सः पृथिवीं अदरिद्रां पश्येत्। (जीमूतवाहन का अभीष्ट था कि वह धरती को दीनतारहित देखे।)

प्रश्न: 15.
जीमूतवाहनस्य प्रार्थनां श्रुत्वा कल्पतरुः किमवदत्? (जीमूतवाहन की प्रार्थना सुनकर कल्पतरु ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
कल्पतरुः अवदत् यत्-‘त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि। (कल्पतरु ने कहा- तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 16.
कल्पतरुः उत्प्लुत्य कुत्र अगच्छत्? (कल्पवृक्ष उड़कर कहाँ चला गया?)
उत्तरम् :
कल्पतरु समुत्लुत्य दिवम् अगच्छत्। (कल्पवृक्ष उड़कर आकाश में चला गया।)

प्रश्न: 17:
जीमूतवाहनः कस्मै वरं याचते? (जीमूतवाहन किसके लिए वर माँगता है?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः सांसारिक प्राणिनां दुःखानि अपाकरणाय वरं याचते। (जीमूतवाहन सांसारित पाणिनों के दुःखों को दूर करने के लिए वर माँगता है।)

प्रश्न: 18.
लोकभोग्या भौतिक पदार्थाः कीदृशाः सन्ति?
(लोक के भोगने योग्य भौतिक पदार्थ केसे हैं?)
उत्तरम् : लोकभोग्या भौतिक पदार्थाः जलतरंगवद् अनित्याः सन्ति।
(लोक द्वारा भोग्य भौतिक पदार्थ जल की लहरों की तरह नश्वर हैं।)

रेखांकितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
जीमूतकेतुः कल्पवृक्षम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्तम्।
(जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया।).
उत्तरम् :
जीमूतकेतुः कम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्तम् ?
(जीमूतकेतु ने किसकी आराधना करके जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया?)

प्रश्न: 2.
जीमूतवाहनः दानवीरः आसीत्। (जीमूतवाहन दानवीर था।)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)

प्रश्न: 3.
कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। (कंजूसों द्वारा कुछ धन माँगा गया।)
उत्तरम् :
कैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थितः। (किनके द्वारा कुछ धन माँगा गया?)

प्रश्न: 4.
सः पितुः अन्तिकं गतः। (वह पिता के पास गया।)
उत्तरम् :
सः कुत्र गतः? (वह कहाँ गया?)

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प्रश्न: 5.
सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत। (आराम से बैठे हुए पिता से एकान्त में पूछा।)
उत्तरम् :
कीदृशम् पितरम् एकान्ते न्यवेदयत? (कैसे पिताजी से एकांत में निवेदन किया?)

प्रश्न: 6.
सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। (सभी धन लहर की तरह चञ्चल है।)
उत्तरम् :
किं वीचिवत् चञ्चलम्? (लहरों की तरह क्या चंचल है।)

प्रश्नः 7.
परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः। (परोपकार ही इस संसार में अनश्वर है।)
उत्तरम् :
क एव अस्मिन् संसारे अनश्वर:? (कौन ही इस संसार में अनश्वर है?)

प्रश्न: 8.
कल्पतरुः भुवि वसूनि अवर्षत्। (कल्पतरु ने धरती पर धन बरसाया।)
उत्तरम् :
कल्पतरुः कुत्र वसूनि अवर्षत्। (कल्पतरु ने कहाँ धन बरसाया?)

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प्रश्न: 9.
जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पयां सर्वत्र यश प्रथितम्। (जीमूतवाहन की सब प्राणियों पर दया होने से सब जगह यश फैल गया।) .
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य कथं सर्वत्र यश प्रथितम्। (जीमूतवाहन का कैसे सब जगह यश फैल गया।)

प्रश्न: 10.
वाक् तस्मात् तरोः उद्भूत्। (वाणी उस वृक्ष से पैदा हुई।)
उत्तरम् :
वाक् कुतः उद्भूत? (वाणी कहाँ से पैदा हुई?)

कथाक्रम संयोजनम् अधोलिखितवाक्यानि पठित्वा कथाक्रमसंयोजनम् कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर कथा-क्रम संयोजन कीजिए-)

  1. योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः।
  2. यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहन: कदाचित् हितैषिभिः पितमन्त्रिभिः उक्तः।
  3. तस्य गहोद्याने कलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
  4. अस्मिन अनुकले स्थि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।
  5. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः।
  6. स कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
  7. जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
  8. कञ्चनपुरे नगरे जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।

उत्तरम् :

  1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः।
  2. कञ्चनपुरे नगरे जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।
  3. तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
  4. स कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
  5. जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
  6. यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहनः कदाचित् हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः।
  7. योऽयं सर्वकामदः कल्पतरु: तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः।
  8. अस्मिन् अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।

योग्यताविस्तारः

(क) ग्रन्थ परिचय –
‘वेतालपञ्चविंशतिका’ पच्चीस कथाओं का संग्रह है। इस नाम की दो रचनाएँ पाई जाती हैं। एक शिवदास (13वीं शताब्दी) द्वारा लिखित ग्रन्थ है जिसमें गद्य और पद्य दोनों विधाओं का प्रयोग किया गया है। दूसरी जम्भलदत्त की रचना है, जो केवल गद्यमयी है। इस कथा में कहा गया है कि राजा विक्रम को प्रतिवर्ष कोई तान्त्रिक सोने का एक फल देता है। उसी तांत्रिक के कहने पर राजा विक्रम श्मशान से शव लाता है। जिस पर सवार होकर एक वेताल मार्ग में राजा के मनोरंजन के लिए कथा सुनाता है।

कथा सुनते समय राजा को मौन रहने का निर्देश देता है। कहानी के अन्त में वेताल राजा से कहानी पर आधारित एक प्रश्न पूछता है। राजा उसका सही उत्तर देता है। शर्त के अनुसार वेताल पुनः श्मशान पहुँच जाता है। इस तरह पच्चीस बार ऐसी ही घटनाओं की आवृत्ति होती है और वेताल राजा को एक-एक करके पच्चीस कथाएँ सुनाता है। ये कथाएँ अत्यन्त रोचक, भावप्रधान और विवेक की परीक्षा लेने वाली हैं।

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(ख) क्त, क्तवतु प्रयोग :
क्त – इस प्रत्यय का प्रयोग सामान्यतः कर्मवाच्य में होता है।
क्तवतु – इस प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य में होता है।
क्त प्रत्ययः –

  • जीमूतवाहनः हितैषिभिः मन्त्रिभिः उक्तः।
  • कृपणैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थितः।
  • त्वया अस्मत्कामाः पूरिताः।
  • तस्य यशः प्रथितम् (कर्तृवाच्य में क्त)

क्तवतु प्रत्ययः –

  • सः पुत्रं यौवराज्यपदेऽभिषिक्तवान्।
  • एतदाकर्ण्य जीमूतवाहनः चिन्तितवान्।
  • स सुखासीनं पितरं निवेदितवान्।
  • जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उक्तवान्।

(ग) लोक कल्याण-कामना-विषयक कतिपय श्लोक – (लोगों की कल्याण की कामना सम्बन्धी कुछ श्लोक-)

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।

हिन्दी-आशय – सभी सुख पाने वाले होवें, सभी स्वस्थ होवें। सभी कल्याण देखें, कोई भी दुःख पाने वाला नहीं होना चाहिए।)

सर्वस्तरतु दुर्गाणि, सर्वे भद्राणि पश्यतु ।
सर्वः कामानवाप्नोतु, सर्वः सर्वत्र नन्दतु।।

हिन्दी-आशय – सभी कठिनाइयों से पार होवें, सभी कल्याण देखें। सभी कामनाओं को प्राप्त करें, सभी सब जगह आनन्दित होवें।)

न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग न पुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामातिनाशनम्।।

हिन्दी-आशय – न तो मैं राज्य की कामना करता हूँ न स्वर्ग की, न पुनर् जन्म की। दुःख से पीड़ित प्राणियों के दु:ख के नाश की (मैं) कामना करता हूँ।)

कल्पतरुः Summary and Translation in Hindi

पाठ का सारांश – प्रस्तुत पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः नामक कथा-संग्रह से लिया गया है, जिसमें मनोरंजक एवं आश्चर्यजनक घटनाओं के माध्यम से जीवन-मूल्यों का निरूपण किया गया है। इस कथा में हिमालय पर्वत के शिखर पर बसे कंचनपुर नामक नगर के राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन, जो कल्पवृक्ष की कृपा से उत्पन्न हुआ था, की उदारता का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि परोपकार ही सर्वोत्कृष्ट एवं चिरस्थाई तत्त्व है।

मन्त्रियों की सलाह के अनुसार एवं अपने पुत्र जीमूतवाहन के गुणों पर प्रसन्न होकर राजा जीमूतकेतु युवावस्था में स्थित अपने पुत्र का युवराज पद पर अभिषेक कर देता है। मन्त्रिगण उसे कुलक्रम से प्राप्त घर के उद्यान में स्थित कल्पवृक्ष की साधना करने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह वृक्ष समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला है। बहुत सोच-विचार करने के बाद युवराज जीमूतवाहन अपने पिता के पास जाता है और कहता है कि इस संसार में सब कुछ पानी की तरंगों के समान नष्ट होने वाला है।

केवल परोपकार ही अमर यश प्रदान करने वाला है। अत: मैं परोपकार करने के लिए कल्पवृक्ष की साधना करूँगा। पिता के ‘ऐसा ही करो’ आदेश देने पर वह कल्पवृक्ष के पास गया और वृक्ष से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। प्रार्थना सुनकर कल्पवृक्ष ने स्वर्ग में उड़कर वहाँ से पृथ्वी पर इतना धन बरसाया कि सबकी निर्धनता दूर हो गयी। इस प्रकार सभी प्राणियों पर दया करने वाले जीमूतवाहन का यश हर जगह फैल गया।
[मूलपाठः,शब्दार्याः,सप्रसंग हिन्दी अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत व्यारव्याः अवबोधन कार्यम् च]

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानोः उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।. स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्। सः जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्। कदाचित् हितैषिणः पितमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमतवाहनं उक्तवन्त:- “युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।

शब्दार्था: – अस्ति = वर्तते (है), हिमवान् = हिमालयः (हिमालय), नाम = अभिधानं (नामक), सर्वरत्नभूमिः = सर्वेषां रत्नानाम् उत्पत्तिस्थानम् (समस्त रत्नों का उत्पत्ति स्थान/खान), नगेन्द्रः = पर्वतराजः (पर्वतराज/पर्वतों का राजा), तस्य = अमुष्य (उसका/उसकी),सानोः = शिखरस्य (चोटी के/शिखर के), उपरि = ऊर्ध्वं (ऊपर), विभाति = शोभते (सुशोभित है), कञ्चनपुरं नाम नगरम् = कञ्चनपुरम् अभिधानं पुरम् (कञ्चनपुर नामक नगर), तत्र = तस्मिन् स्थाने (वहाँ), जीमूतकेतुः इति = जीमूतकेतुरिति (जीमूतकेतु नामक), श्रीमान् = श्रीयुतः (धनवान्),

विद्याधरपतिः = विद्याधराणां पतिः (विद्याधरों का स्वामी, विद्याधरपति), वसति स्म = वासम् अकरोत् (निवास करता था/रहता था), तस्य = अमुष्य (उसके), गृहोद्याने = गृहस्य उपवने (घर के बगीचे में), कुलक्रमागतः = कुलक्रमाद् आगतः (कुल परम्परा से प्राप्त), कल्पतरुः = कल्पवृक्षः (कल्पवृक्ष), स्थितः = विद्यमानः (स्थित था), स राजा जीमूतकेतुः = उस राजा जीमूतकेतु ने, तं कल्पतरुम् = तस्य कल्पवृक्षस्य (उस कल्पवृक्ष की), आराध्य = आराधनां कृत्वा (आराधना करके), तत्प्रसादात् = तस्य अनुग्रहेण (उसकी कृपा से), च = अपि (और), बोधिसत्वांशसम्भवम् = बोधिसत्वस्य अंशात् उत्पन्नम् (बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न), जीमूतवाहनं नाम = जीमूतवाहनं नामधेयं (जीमूतवाहन नाम का),

पुत्रम् = सुतं (पुत्र), प्राप्नोत् = अधिगतम् अकरोत् (प्राप्त किया), स महान् दानवीरः = स अत्यंतः दानशीलः (वह महान् दानवीर), सर्वभूतानुकम्पी च = सर्वेषु प्राणिषु दयावान् च (और सब प्राणियों पर दया करने वाला), अभवत् = अवर्तत (हुआ), तस्य गुणैः = अमुष्य श्रेष्ठ लक्षणैः (उसके गुणों से), प्रसन्नः = तुष्टः (प्रसन्न), स्वसचिवैः = स्वकीयैः अमात्यैः (अपने मंत्रियों से), च = और, प्रेरितः = प्रोत्साहितः (प्रेरित/प्रोत्साहित), राजा = नृपः (राजा ने), कालेन = समयेन (समय से), सम्प्राप्तयौवनम् = युवावस्थायां स्थितं (युवावस्था को प्राप्त), तम् = अमुम् (उसकी/उसको), यौवराज्ये = युवराजपदे (युवराज पद पर),

अभिषिक्तवान् = अभिषिक्तम् अकरोत् (अभिषेक कर दिया), कदाचित् = कस्मिंश्चित् काले (कभी, किसी समय), हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः = पितुः हितचिन्तकैः सचिवैः (पिता के कल्याण की कामना करने वाले मन्त्रियों ने), यौवराज्ये = युवराजपदे (युवराज के पद पर), स्थितंः = विद्यमानः (स्थित), तं जीमूतवाहनः = उस जीमूतवाहन से, उक्तवन्तः = अकथयन् (कहा), युवराज! = राजकुमार! (युवराज!), योऽयम् = यः अयम् (जो यह), सर्वकामदः = सर्वासां कामनानां प्रदाता (समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला), कल्पतरुः = कल्पवृक्षः (कल्पवृक्ष),

तवोद्याने = भवतः उपवने (आपके बगीचे में), तिष्ठति = वर्तते (है), स तव सदा पूज्यः = स भवता सर्वदा पूजनीयः (वह आपके द्वारा हमेशा पूजनीय है), अस्मिन् = एतस्मिन् (इसके), अनुकले स्थिते = अनुकूलस्थितौ वर्तमाने (अनुकूल स्थिति में रहने पर), शक्रोऽपि = इन्द्रोऽपि (इन्द्र भी), अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात् = नास्मान् बाधितुं शक्नोति (हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन के युवराज पद पर अभिषेक तथा कल्पवृक्ष के महत्त्व का वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनवाद – हिमालय नाम का समस्त रत्नों का उत्पत्तिस्थान पर्वतराज है। उसकी चोटी के ऊपर कंचनपर नामक नगर सुशोभित है। वहाँ जीमूतकेतु नामक अत्यन्त धनवान् विद्याधरपति रहता था। उसके घर के बगीचे में कुल परम्परा से प्राप्त कल्पवृक्ष स्थित था। उस राजा जीमूतकेतु ने उस कल्पवृक्ष की आराधना करके और उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र प्राप्त किया। वह महान् दानवीर और समस्त प्राणियों पर दया करने वाला हुआ। उसके गुणों से प्रसन्न और अपने मंत्रियों से प्रेरित राजा ने समय से युवावस्था को प्राप्त उसका युवराज पद पर अभिषेक कर दिया। युवराज पद पर स्थित उस जीमूतवाहन से पिता के कल्याण की कामना करने वाले मन्त्रियों ने किसी समय कहा-“हे युवराज ! जो यह समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष आपके बगीचे में है, वह आपके द्वारा हमेशा पूजनीय है। इसके अनुकूल स्थिति में रहने पर इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं “वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रहात् संकलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘वेताल पञ्चविंशतिः’ कथा-ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशे नृपस्य जीमूतकेतोः पुत्रस्य जीमूतवाहनस्य युवराजपदे अभिषेक: कल्पवृक्षस्य महत्त्वं च वर्णितम् अस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश में राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन के युवराज पद पर अभिषेक तथा कल्पवृक्ष का महत्व वर्णित

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व्याख्या: – हिमालय इति अभिधानस्य सर्वेषां रत्लानां उत्पत्तिस्थानं पर्वतराजः अस्ति। अमुष्य शिखरस्य ऊर्ध्वं कञ्चनपुरम् अभिधानं पुरं शोभते। तस्मिन् स्थाने जीमूतकेतुः इति श्रीयुतः विद्याधरपतिः वासम् अकरोत्। अमुष्य गृहस्य उपवने कुलक्रमाद् आगतः कल्पवृक्षः विद्यमानः आसीत्। स राजा जीमूतकेतुः तस्य कल्पवृक्षस्य आराधनां कृत्वा तस्य अनुग्रहेण बोधिसत्वस्य अंशात् उत्पन्नं जीमूतवाहननामधेयं सुतम् अधिगतम् अकरोत्। स अत्यन्तं दानवीरः सर्वेषु प्राणिषु च दयावान् अवर्तत।

अमुष्य श्रेष्ठलक्षणैः तुष्टः स्वकीयैः अमात्यैः च प्रोत्साहितः नृपः युवावस्थायां स्थितम् अमुं युवराजपदे अभिषिक्तम् अकरोत्। युवराजपदे विद्यमानम् अमुं जीमूतवाहनं कस्मिंश्चित् काले हितचिन्तकाः पितृसचिवाः अकथयन्-“राजकुमार! यः एष . सर्वासां कामनानां प्रदाता कल्पवृक्षः भवतः उपवने वर्तते, स भवता सर्वदा पूजनीयः। एतस्मिन् अनुकूलस्थितौ वर्तमाने इन्द्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नोति।”

(हिमालय नामक सभी रत्नों की खान पर्वतों का राजा है। इसकी चोटी पर कंचनपुर नाम का नगर शोभा देता है। उस स्थान पर जीमूतकेतु लक्ष्मी व शोभा से युक्त, विद्याधरों का स्वामी निवास करता था। इसके घर के बाग में कुल क्रम से चला आया कल्पवृक्ष विद्यमान था। यह राजा जीमूतकेतु उस कल्पवृक्ष की आराधना करके उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया।

वह अत्यधिक दान करने वाला और सभी प्राणियों पर दया करने वाला था। इसके उत्तम लक्षणों से सन्तुष्ट और अपने मन्त्रियों द्वारा प्रोत्साहित राजा ने जबानी में रहते हुए ही इसको युवराज पद पर अभिषिक्त कर दिया। युवराज पद पर आसीन इस जीमूतवाहन से किसी समय हित सोचने वाले पिता के मन्त्रियों ने कल्पतरु: ₹59 कहा-“राजकुमार, यह जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष आपके बाग में है, वह आप द्वारा सदैव पूजा के योग्य है। इस अनुकूल स्थिति में रहते हुए इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता है।”)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) हिमवान् नगेन्द्रः किमुक्तः? (हिमवान् पर्वत क्या कहा गया है?)
(ख) जीमूतकेतुः कः आसीत् ? (जीमूत केतु कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य किं प्राप्नोत्? (जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके क्या प्राप्त किया?).
(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रतिकूले’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘प्रतिकूले’ पद का विलोमपद गद्यांश से चुनकर लिखिये।)
(ख) ‘जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः’ उक्तवन्तः क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् लिखत।
(‘जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः’ ‘उक्तवन्तः’ क्रियापद का कर्त्ता गद्यांश से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) सर्वरत्न भूमिः (सभी रत्नों की खान) ।
(ख) विद्याधरपतिः (विद्याधरों का स्वामी)।

(2) (क) जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्। (जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया।)
(ख) जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी चासीत् ? (जीमूतवाहन महान दानवीर तथा सभी प्राणियों पर कृपा करने वाला था।)

(3) (क) अनुकूले (अनुरूप) ।
(ख) हितैषिणः पितृमन्त्रिणः (हितैषी पिता के मन्त्री)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

2. एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत् – “अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्- “तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एकः परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभिः ईदृशः कल्पतरुः किमर्थं रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानीं कुत्र गताः? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमः . कल्पपादपम् आराधयामि।

शब्दार्थाः – एतत् आकर्ण्य = एतत् निशम्य (यह सुनकर), जीमूतवाहनः = (जीमूतवाहन), अचिन्तयत् = मनसि विचारम् अकरोत् (मन में विचार किया), अहो = अये (अरे), ईदृशम् अमरपादपम् = एतत्प्रकारम् अमरवृक्षं (इस प्रकार के अमर वृक्ष को), प्राप्यापि = प्राप्तं कृत्वा अपि. (प्राप्त करके भी), पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं = अस्माकं पूर्वजाः (हमारे पूर्वजों ने), तादृशम् = तस्य प्रकारस्य (उस प्रकार का), फलम् = फल, किमपि = किञ्चिदपि (कोई भी), ना प्राप्तम् = न आसादितम् (प्राप्त नहीं किया), किन्तु = परञ्च (किन्तु), केवलम् = मात्र (केवल), कैश्चिदेव= कुछ ही,

कृपणैः = कदर्यैः (कंजूसों द्वारा), कश्चिदपि = कतिचित अपि (कुछ भी), अर्थः = धनम् (धन), अथितः = याचितः (माँगा गया), तदहम् = तदानीं अहम् (तब मैं), अस्मात् = एतस्मात् (इस वृक्ष से), अभीष्टम् = अभिलषितं (इच्छा को), साधयामि = पूर्ण करिष्यामि (पूर्ण करूँगा), एवम् आलोच्य = अनया रीत्या विचार्य (इस प्रकार से विचार कर), सः = असौ (वह), पितुः अन्तिकम् = पितुः समीपम् (पिता के पास), आगच्छत् = प्रस्थितः (आया), आगत्य = आगम्य (आकर), च = और, सुखमासीनम् = सुखपूर्वकम् उपविष्टं (सुख से बैठे हुए), पितरम् = जनकं (पिता से),

एकान्ते = निर्जनस्थाने (एकान्त में), न्यवेदयत् = निवेदनम् अकरोत् (निवेदन किया), तात! = हे जनक! (पिताजी), त्वम् = (तुम), तु = (तो), जानासि = बोधयसि (जानते हो), एव = अवश्यं (ही), यदस्मिन् = एतस्मिन् (कि इस), संसारसागरे = समुद्रभूते संसारे (संसार सागर में), आशरीरम् = आजीवनम् (आजीवन), इदम् = एतत् (यह), सर्वम् = समस्तम् (समस्त), धनम् = अर्थः (धन), वीचिवत् = तरङ्गवत् (तरंग की तरह), चञ्चलम् = अस्थिरं भवति (अस्थिर रहता है), एकः परोपकार एव = केवलं. परहितम् एव (एक परोपकार ही), अस्मिन् संसारे = एतस्मिन् जगति (इस संसार में),

अनश्वरः = अविनाशी (नष्ट न होने वाला), योः = यत् (जो), युगान्तपर्यन्तम् = युगान्तं यावत् (युगों तक), यशः = कीर्तिम् (यश/कीर्ति को), प्रसूते = जनयति (उत्पन्न करता है), तत् = तदानी (तब), अस्माभिः ईदृशः = अस्माभिः एतत् प्रकारस्य (हमारे द्वारा इस प्रकार के), कल्पतरुः = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष की), किमर्थम् = केन कारणेन (क्यों), रक्ष्यते = रक्षा क्रियते (रक्षा की जाती है), यैश्च = यैः च (और जिन्होंने), पूर्वैरयम् = पुरा अस्य (पहले इसकी),

मम मम इति = मदीय-मदीय अनेन प्रकारेण (मेरा-मेरा इस प्रकार), आग्रहेण = तत्परतापूर्वकम् (तत्परतापूर्वक/आग्रहपूर्वक), रक्षितः = रक्षा कृता (रक्षा की थी), ते = अमी (वे), इदानीम् = अधुना (इस समय), कुत्र = कं स्थानं (कहाँ), गताः = प्रस्थिताः (गये), तेषां कस्यायम् = अमीषाम् कस्य एषः (उनमें से यह किसका है), अस्य = एतस्य (इसके), वा = किंवा (अथवा), के ते = के अमी (वे कौन हैं), तस्मात् = अमुष्मात् कारणात् (इस कारण से), परोपकारैकफलसिद्धये = एकमात्र परहितस्य फल-प्राप्त्यर्थं (मात्र परोपकार के फल की प्राप्ति के लिए), त्वदाज्ञया = भवतः स्वीकृत्या (आपकी आज्ञा से), इमम् = अस्य (इस), कल्पपादपम् = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष की), आराधयामि = आराधनां करिष्यामि (आराधना करूँगा)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’… ‘कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष से धन-प्राप्ति की कामना न करके परोपकार की कामना की गयी है एवं परोपकार की महिमा का यहाँ वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद – यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया -“अरे आश्चर्य की बात है! इस प्रकार के अमर वृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने उस प्रकार का कोई भी फल प्राप्त नहीं किया किन्तु केवल किन्हीं कंजूसों द्वारा कुछ धन ही माँगा गया। तब मैं इस (वृक्ष) से मन की इच्छा को पूरी करूँगा।” इस प्रकार विचारकर वह पिता के पास आया और आकर सुख से बैठे हुए पिता से (उसने) एकान्त में निवेदन किया-“पिताजी ! आप तो जानते ही हैं कि इस संसार सागर में आजीवन यह समस्त धन तरंग की तरह अस्थिर रहता है। एक परोपकार ही इस संसार में अनश्वर (नष्ट न होने वाला) है जो युगों तक यश (कीर्ति) उत्पन्न करता रहता है। तब हम इस प्रकार के कल्पवृक्ष की क्यों रक्षा करते हैं और जिन्होंने पहले इसकी ‘मेरा-मेरा’ इस प्रकार आग्रहपूर्वक रक्षा की थी, वे इस समय कहाँ गये? उनमें से यह किसका है अथवा वे इसके कौन हैं ? इस (कारण) से एकमात्र परोपकार के फल की प्राप्ति के लिए आपकी आज्ञा से इस कल्पवृक्ष की आराधना करूँगा।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं वेतालपञ्चविंशतिः कथा-संग्रहात् संकलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रह से संकलित है।) . प्रसङ्गः-प्रस्तुतगद्यांशे जीमूतवाहनेन कल्पवृक्षात् धनप्राप्तेः कामनां न कृत्वा परोपकारस्य कामना क्रियते परोपकारस्य महिमा च अत्र वर्णितः। (प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष से धन-प्राप्ति की कामना न करके परोपकार की कामना की गयी है और परोपकार का यहाँ महत्व वर्णित है।)

व्याख्या: – एतत् निशम्य जीमूतवाहनः मनसि विचारम् अकरोत्-अये! विस्मयः अस्ति, एतत् प्रकारम् अमरवृक्षं प्राप्तं कृत्वा अपि अस्माकं पूर्वजाः तस्य प्रकारस्य किञ्चिदपि फलं न प्राप्तम् अकुर्वन् । परञ्च मात्र कैश्चित् एव कदर्यैः कतिचित् केवलं धनं याचितम्। तदानीं अहम् एतस्मात् (वृक्षात्) मनसा अभिलषितं पूर्णं करिष्यामि। अनया रीत्या विचार्य असौ . जनकस्य समीपं प्रस्थितः। आगम्य च सुखपूर्वकम् उपविष्टं जनकं (सः) निर्जनस्थाने निवेदनम् अकरोत्-हे जनक ! त्वं तु बोधयसि एवं यत् समुद्रभूते एतस्मिन् संसारे आजीवनम् एतत् समस्तम् अर्थम् तरङ्गवत् अस्थिरं भवति। केवलं परहितम् एव एतस्मिन् जगति अविनाशी अस्ति यत् युगान्तं यावत् कीर्तिं जनयति। तदानीम् अस्माभिः एतद् प्रकारस्य कल्पवृक्षस्य केन . कारणेन रक्षा क्रियते। यैः च पुरा अस्य मदीय-मदीय अनेन प्रकारेण तत्परतापूर्वक रक्षा कृता, अमी अधुना कं स्थानं प्रस्थिताः।। अमीषां कस्य एषः एतस्य वा के अमी। अमुष्मात् कारणात् एकमात्र परहितस्य फलप्राप्त्यर्थं भवतः स्वीकृत्या अस्य । कल्पवृक्षस्य आराधनां करिष्यामि।

(यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया- अरे आश्चर्य है, इस प्रकार के कल्पवृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने इस प्रकार का कोई फल प्राप्त नहीं किया परन्तु मात्र कुछ लोगों (कंजूसों) द्वारा कुछ थोड़ा सा धन माँगा गया तो अब मैं इस वृक्ष से मन की अभिलाषाएँ पूरा करूँगा। इस प्रकार विचार कर वह पिताजी के पास गया और आकर सुखपूर्वक बैठे पिताजी से उसने एकान्त में निवेदन किया- ‘हे पिताजी! आप तो जानते हैं कि समुद्र की लहरों के समान इस संसार में यह जीवन, यह धन भी लहरों की तरह चलायमान होता है।

केवल परोपकार ही इस संसार में नाश न होने वाला है जो युग-युग तक कीर्ति पैदा करता है। तब हमारे द्वारा इस प्रकार के कल्पवृक्ष की किस कारण से रक्षा की जाती है? और जिन लोगों ने . पहले मेरा-मेरा इस प्रकार से तत्परतापूर्वक रक्षा की गई, अब किस स्थान पर पहुँच गये? उनमें से यह किसका है अथवा इसके कौन हैं? इस कारण से एकमात्र परोपकार फलप्राप्ति के लिए आपकी स्वीकृति से इस कल्पवृक्ष की आराधना करूँगा।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अमरपादपम्’ अत्र कस्मै प्रयुक्तम्? (‘अमरपादपम्’ पद का प्रयोग किसके लिए किया है?)
(ख) जीमूतवाहनः कल्पतरोः किं साधयितुम् इच्छति? (जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से क्या,साधना चाहता है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मन्त्रिणां परामर्श श्रुत्वा जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत् ?
(मन्त्रियों की सलाह सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
(ख) अस्मिन् संसारे आशरीरं धनं कीदृशं स्मृतम्?
(इस संसार में शरीर-सहित यह धन कैसा कहा गया है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘समीपम्’ इति पदस्य पर्यायवाचे पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘समीपम्’ पद का समानार्थी शब्द गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘नश्वरः’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘नश्वरः’ पद का विलोमार्थक शब्द गद्यांश से चुनकर लिखिए।) ।
उत्तराणि-
(1) (क) कल्पतरुम् (कल्पवृक्ष को)।
(ख) अभीष्टम् (इच्छित को)।

(2) (क) अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्?
(अरे इस अमर पौधे को प्राप्त करके भी हमारे पुरखों ने ऐसा कोई फल प्राप्त नहीं किया?) ।
(ख) अस्मिन् संसारे आशरीरं धनं वीचिवत् चञ्चलम्।
(इस संसार में शरीर सहित धन लहरों की तरह चञ्चल होता है।)

(3) (क) अन्तिकम् (समीप)।
(ख) अनश्वरः (जिसका नाश न हो)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

3. अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच – “देव! त्वया अस्मत्यूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैक कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव” इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्।
क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

शब्दार्था: – अथ = तदनन्तरम् (इसके पश्चात्), पित्रा = जनकेन (पिता से), तथा इति = यथा इच्छसि इति (वैसी), अभ्यनुज्ञातः = अनुमतः (अनुमति पाया हुआ), स जीमूतवाहनः = असौ जीमूतवाहनः (वह जीमूतवाहन), कल्पतरुम् = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष के), उपगम्य = समीपं गत्वा (पास जाकर), उवाच = अवदत् (बोला), देव! = भो देव! (हे देव!), त्वया = भवता (आपके द्वारा), अस्मत् पूर्वेषाम् = अस्माकं पूर्वजानां (हमारे पूर्वजों की), अभीष्टाः = वाञ्छिताः (इच्छित), कामाः = कामनाः (कामनाएँ), पूरिताः = पूर्णाः कृताः (पूर्ण की गई हैं), तत् = तदानीम् (तब), मम = मदीय (मेरी),

एकम् = एक, कामम् = कामनाम् (कामना), पूरय = पूर्णं कुरु (पूर्ण कीजिए), यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार से), पृथ्वीम् = भूमिं (पृथ्वी को), अदरिद्राम् = दरिद्रहीनाम् (दरिद्रता से रहित), पश्यामि = ईक्षे (देखू), तथा = तद्वत् एव (वैसा ही), करोतु = कीजिए, देव! = भो देव! (हे देव!), एवंवादिनि = यावदेव एवम् अवदत् (इस प्रकार कहने पर), जीमूतवाहने = जीमूतवाहनेन (जीमूतवाहन के द्वारा), त्यक्तस्त्वया = युष्माभिः त्यक्तः (तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ), एषोऽहं = एषः अहं (यह मैं), यातोऽस्मि = गच्छामि (जाता हूँ), इति वाक = एवंविधा वाणी (इस प्रकार की वाणी),

तस्मात् = उस, तरोरुद्भूत् = वृक्षात् उत्पन्ना अभवत् (वृक्ष से उत्पन्न हुई), क्षणेन = क्षणमात्रे (क्षणभर में), स कल्पतरुः = असौ कल्पवृक्षः (उस कल्पवृक्ष ने), दिवम् = स्वर्गम् (स्वर्ग को), समुत्पत्य = उड्डीय (उड़कर), भुवि = पृथिव्यां (पृथ्वी पर), तथा = तेन प्रकारेण (उस प्रकार से), वसूनि = धनस्य (धन की), अवर्षत् = वृष्टिम् अकरोत् (वर्षा की), यथा = येन (जिससे), न = मा (नहीं), कोऽपि = कश्चन (कोई भी), दुर्गतः = दुर्गतिम् आपन्नः (पीड़ित/निर्धन), आसीत् = अभवत् (रहा था), ततः = तदनन्तरं (इसके पश्चात्), तस्य जीमूतवाहनस्य = अमुष्य जीमूतवाहनस्य (उस जीमूतवाहन का), सर्वः = समनः (समस्त), जीवानुकम्पया = जीवेषु कृपया (जीवों पर दया करने से), सर्वत्र = समस्तस्थानेषु (सब जगह), यशः = कीर्तिः (यश/कीर्ति), प्रथितम् = प्रसिद्धा अभवत् (प्रसिद्ध हो गयी।)

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से सम्पूर्ण भूमि के जीवों को सुखी करने के लिए प्रार्थना करता है।

हिन्दी-अनुवाद – इसके पश्चात् पिता से वैसी अनुमति प्राप्त किया हुआ वह जीमूतवाहन कल्पवृक्ष के पास जाकर बोला-“देव ! आपके द्वारा हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएँ पूर्ण की गयी हैं, तब मेरी (भी) एक कामना पूर्ण कीजिये। जिस प्रकार से पृथ्वी को दरिद्रता से रहित देखू, देव! वैसा ही कीजिए।” जीमूतवाहन के ऐसा कहने पर “तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ” इस प्रकार की वाणी उस वृक्ष से उत्पन्न हुई। और क्षणभर में उस कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर पृथ्वी पर उस प्रकार से धन की वर्षा की, जिससे कोई भी पीड़ित/ निर्धन नहीं (रहा) था। इसके पश्चात् उस जीमूतवाहन का समस्त जीवों पर दया करने से सर्वत्र (सब जगह) कीर्ति (यश) प्रसिद्ध हो गयी।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रहात् सङ्कलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशे जीमूतवाहनः कल्पवृक्षं समस्तपृथिव्याः जीवान् सुखीकरणाय प्रार्थयति। (प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से सम्पूर्ण भूमि के जीवों को सुखी करने के लिए प्रार्थना करता है।)

व्याख्या – तदनन्तरम् जनकेन यथा इच्छसि इति अनुमतः असौ जीमूतवाहनः कल्पवृक्षस्य समीपं गत्वा अवदत्-“भो देव! भवता अस्माकं पूर्वजानां वाञ्छिताः कामनाः पूर्णाः कृताः, इदानीं मदीय एकां कामना पूर्णां कुरु। येन प्रकारेण भूमि दरिद्रहीनाम् ईक्षे, भो देव! एवं कुरु।” यावदेव जीमूतवाहनः एवम् अवदत् तावदेव तस्मात् वृक्षात् एवं वाणी उत्पन्ना अभवत् यत् त्वया त्यक्तः एषः अहं गच्छामि। क्षणमात्रे च असौ कल्पवृक्षः स्वर्गम् उड्डीय पृथिव्यां तेन प्रकारेण धनस्य वृष्टिम् अकरोत् येन मा कश्चन दुर्गतिम् आपन्नः अभवत्। तदनन्तरम् अमुष्य जीमूतवाहनस्य समग्रजीवेषु कृपया समस्तस्थानेषु कीर्तिः प्रसिद्धा अभवत्।

(इसके पश्चात् पिताजी ने- ‘जैसा तुम चाहते हो” इस प्रकार आज्ञा प्राप्त किया हुआ वह जीमूवाहन कल्पवृक्ष के समीप गया और बोला- हे देव! आपके द्वारा हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएँ पूरी की गईं, अब मेरी एक कामना पूरी करो। जिस प्रकार से पृथ्वी गरीबी रहित देखू, हे देव! ऐसा करो।’ जैसे ही जीमूतवाहन ने ऐसा बोला वैसे ही उस वृक्ष से वाणी (आवाज) आई कि तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ। क्षण मात्र में ही वह कल्पवृक्ष स्वर्ग को उड़कर पृथ्वी पर इस प्रकार से धन की वर्षा की जिससे कोई भी पीड़ित और निर्धन न रहे। उसके पश्चात् इस जीमूतवाहन की सभी प्राणियों पर दया के कारण कीर्ति प्रसिद्ध हो गई।)

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्पतरुः भुवि किम् अवर्षत् ? (कल्पवृक्ष ने धरती पर किसकी वर्षा की?)
(ख) जीमूतवाहनस्य केन कारणेम यशप्रथितम्? (जीमूतवाहन का यश किस कारण से फैला?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्पतरो: का वाक उदभत? (कल्पवक्ष से क्या वाणी निकली?)
(ख) किं फलस्य सिद्धये जीमूतवाहन पित्रोः आज्ञामयाचत् ?
(किस फल की सिद्धि के लिए जीमूतवाहन ने पिता से आज्ञा माँगी?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘पृथिव्याम्’ इति पदस्यस्थाने गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘पृथिव्याम्’ पद के लिए गद्यांश में किम् पद का प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘अभीष्टाः कामाः’ एतयो पदयोः किं विशेष्यपदम् ?
(‘अभीष्टाः कामाः’ इन पदों में विशेषण कौनसा है?)
उत्तराणि :
(1) (क) वसूनि (धन)।
(ख) सर्वजीवानुकम्पया (सभी जीवों पर दया करने के कारण)।

(2) (क) त्यक्तः त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि। (तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ, यह मैं जा रहा हूँ।)
(ख) परोपकारैकफलसिद्धये जीमूतवाहन पित्रोः आज्ञामयाचत्। (एकमात्र परोपकार फल सिद्धि हेतु जीमूतवाहन ने पिता से आज्ञा माँगी।)

(3) (क) भुवि (धरती पर)।
(ख) कामाः (कामनाएँ)।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Page-195

Question 1.
Construct a triangle ABC in which BC = 7 cm, ∠B = 75° and AB + AC = 13 cm.
Answer:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 1
Steps of Construction:
Step 1: A line segment BC of 7 cm is drawn.
Step 2: At point B, an angle ∠XBC is constructed such that it is equal to 75°.
Step 3: A line segment BD =13 cm is cut on BX (which is equal to AB + AC).
Step 4: DC is joined.
Step 5: Draw perpendicular bisector of CD which meets BD at A.
Step 6: Join AC.
Thus, ∆ABC is the required triangle.

Question 2.
Construct a triangle ABC in which BC = 8 cm, ∠B = 45° and AB – AC = 3.5 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1: A line segment BC = 8 cm is drawn and at point B, make an angle of 45° i.e. ∠XBC.
Step 2: Cut the line segment BD = 3.5 cm (equal to AB – AC) on ray BX.
Step 3: Join DC and draw the
perpendicular bisector PQ of CD.
Step 4: Let it intersect BX at point A. Join AC.
Thus, ∆ABC is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Question 3.
Construct a triangle PQR in which QR = 6 cm, ∠Q = 60° and PR – PQ = 2 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1: A line segment QR = 6 cm is drawn.
Step 2: A ray QY is constructed making an angle of 60° with QR and YQ is produced backwards to form a line YY’.
Step 3: Cut off a line segment QS = 2 cm from QY’. RS is joined.
Step 4: Draw perpendicular bisector of RS intersecting QY at a point P. PR is joined. Thus, ∆PQR is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 3

Question 4.
Construct a triangle XYZ in which ∠Y = 30°, ∠Z = 90° and XY + YZ + ZX = 11 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1: A line segment PQ = il cm is drawn. (XY + YZ + ZX =11 cm)
Step 2: An angle, ZRPQ = 30° is constructed at point P and an angle ZSQP = 90° at point Q.
Step 3: ZRPQ and ZSQP are bisected. The bisectors of these angles intersect each other at point X.
Step 4: Perpendicular bisectors TU of PX and WV of QX are constructed.
Step 5: Let TU intersect PQ at Y and WV intersect PQ at Z. XY and XZ are joined.
Thus, ∆XYZ is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 4

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Question 5.
Construct a right triangle whose base is 12 cm and sum of its hypotenuse and other side is 18 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1 : A line segment BC = 12 cm is drawn.
Step 2: ZCBY = 90° is constructed.
Step 3: Cut off a line segment BD = 18 cm from BY. CD is joined.
Step 4: Perpendicular bisector of CD is constructed intersecting BD at A. AC is joined.
Thus, ∆ABC is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 5

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana घटनाक्रमस्य संयोजनम्

घटनाक्रमस्य संयोजनम् घटना

संस्कृतकथासाहित्यमतीव समृद्धम् अस्ति। अत्र नैकानां नीतिकथानां महान् संग्रहो वर्तते। तासु काश्चित्-प्रसिद्धाः कथाः अत्र क्रमरहितवाक्येषु अतिसंक्षिप्ततया लिखिताः। तानि कथा-वाक्यानि क्रमेण योजयित्वा कथाक्रमसंयोजनस्य पाठ्यक्रमानुरोधात् रचनात्मक-कौशल-विकासाय अभ्यासः करणीयः।

(संस्कृत कथा साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। यहाँ एक ही नहीं, नीति कथाओं का महान संग्रह है, उनमें कुछ प्रसिद्ध कथा यहाँ क्रमरहित वाक्यों में अत्यन्त संक्षिप्त रूप से लिखी हुई हैं। उनको कथा वाक्यक्रम में जोड़कर कथाक्रम संयोजन का पाठ्यक्रम अनुरोध से रचनात्मक कौशल विकास के लिए अभ्यास करना चाहिए।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

1. क्रमरहितवाक्येषु कथा

1. घटे जलम् अल्पम् आसीत्।
2. तस्य मस्तिष्के एकः विचार: समागतः।
3. एकः पिपासितः काकः आसीत्।
4. सः पाषाणखण्डानि घटे अक्षिपत्, जलं च उपरि आगतम्।
5. सः वने एकं घटम् अपश्यत्।
6. जलं पीत्वा काकः ततः अगच्छत्।

कथाक्रमस्य-संयोजनम्

1. एकः पिपासितः काकः आसीत्। (एक कौआ प्यासा था।)
2. सः वने एकं घटम् अपश्यत्। (उसने वन में एक घड़ा देखा।)
3. घटे जलम् अल्पम् आसीत्। (घड़े में पानी थोड़ा था।)
4. तस्य मस्तिष्के एकः विचार: समागतः। (उसके मस्तिष्क में एक विचार आया।)
5. स: पाषाणखण्डानि घटे अक्षिपत्, जलं च उपरि आगतम्। (उसने पत्थरों के टुकड़ों को घड़े में फेंका और पानी ऊपर आ गया।)
6. जलं पीत्वा काकः ततः अगच्छत्। (पानी पीकर कौआ वहाँ से चला गया।)

2. क्रमरहितकथावाक्यानि

1. मूषकः परिश्रमेण जालम् अकृन्तत्।
2. एकदा सः जाले बद्धः।
3. सिंहः जालात्-मुक्तः भूत्वा मूषकं प्रशंसन् गतवान्।
4. एकस्मिन् वने एकः सिंहः वसति स्म।
5. सः सम्पूर्ण प्रयासम् अकरोत् परं बन्धनात् न मुक्तः।
6. तदा तस्य स्वरं श्रुत्वा एकः मूषकः तत्र आगच्छत्।

कथाक्रमस्य-संयोजनम

1. एकस्मिन् वने एकः सिंहः वसति स्म। (एक वन में एक शेर रहता था।)
2. एकदा सः जाले बद्धः। (एक दिन वह जाल में बँध गया।)
3. सः सम्पूर्ण प्रयासम् अकरोत् परं बन्धनात् न मुक्तः (उसने पूरा प्रयास किया, लेकिन बंधन से मुक्त नहीं हुआ।)
4. तदा तस्य स्वरं श्रुत्वा एक मूषकः तत्र आगच्छत्। (तब उसकी आवाज सुनकर एक चूहा वहाँ आया।)
5. मूषकः परिश्रमेण जालम् अकृन्तत्। (चूहे ने परिश्रम से जाल काट दिया।)
6. सिंहः जालात् मुक्तः भूत्वा मूषकं प्रशंसन् गतवान्। (शेर जाल से छूटकर चूहे की प्रशंसा करता हुआ चला गया।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

3. क्रमरहितकथावाक्यानि

1. तदा तस्य मुखस्थ रोटिका अपि जले पतति।
2. एकदा कश्चित् कुक्कुरः एका रोटिकां प्राप्नोत्।
3. तदाः सः नदीजले स्वप्रतिबिम्बम् अपश्यत्।
4. सः कुक्कुरः रोटिकां प्राप्तुं तेन सह युद्धार्थं मुखम् उद्घाटयति।
5. सः रोटिकां मुखे गृहीत्वा गच्छन् आसीत्।
6. स्वप्रतिबिम्बम् अन्यं कुक्कुरं मत्वा सः तस्य रोटिकां प्राप्तुम् अचिन्तयत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकदा कश्चित् कुक्कुरः एकां रोटिकां प्राप्नोत्। (एक दिन कोई कुत्ता एक रोटी को प्राप्त कर लेता है।)
2. सः रोटिकां मुखे गृहीत्वा गच्छन् आसीत्। (वह रोटी को मुँह में लेकर जा रहा था।)
3. तदा सः नदीजले स्वप्रतिबिम्बम् अपश्यत्। (तब वह नदी के जल में अपनी परछाँई देखता है।)
4. स्वप्रतिबिम्बम् अन्यं कुक्कुरं मत्वा सः तस्य रोटिकां प्राप्तुम् अचिन्तयत्। (अपनी परछाँई को दूसरा कुत्ता मानकर उसने उसकी रोटी को प्राप्त करने के लिए सोचा।)
5. सः कुक्कुरः रोटिकां प्राप्तुं तेन सह युद्धार्थं मुखम् उद्घाटयति। (वह कुत्ता रोटी प्राप्त करने के लिए उसके साथ युद्ध के लिए मुँह खोलता है।)
6. तदा तस्य मुखस्था रोटिका अपि जले पतति। (तब उसकी मुँह में स्थित रोटी भी पानी में गिर जाती है।)

4. क्रमरहितकथावाक्यानि

1. एकः बुभुक्षितः शृगालः भोजनार्थं वने इतस्ततः भ्रमति स्म।
2. लतायां बहूनि पक्वानि द्राक्षाफलानि आसन्।
3. परं तथापि द्राक्षाफलानि न प्राप्नोत्।
4. एकस्मिन् स्थाने सः द्राक्षालतां पश्यति।
5. “एतानि द्राक्षाफलानि अम्लानि” इति उक्त्वा कुपितः शृगाल ततः गतः।
6. तानि खादितुं सः नैकवारं प्रयासम् अकरोत्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकः बुभुक्षितः शृगालः भोजनार्थं वने इतस्ततः भ्रमति स्म। (एक भूखा गीदड़ भोजन के लिए वन में इधर-उधर घूमता था।)
2. एकस्मिन् स्थाने सः द्राक्षालतां पश्यति। (एक स्थान पर वह अंगूर की बेल को देखता है।)
3. लतायां बहूनि पक्वानि द्राक्षाफलानि आसन्। (लता पर बहुत पके हुए अंगूर फल थे।)
4. तानि खादितुं सः नैकवारं प्रयासम् अकरोत्। (उनको खाने के लिए उसने अनेक बार प्रयास किया।)
5. परं तथापि द्राक्षाफलानि न प्राप्नोत्। (लेकिन फिर भी द्राक्षाफल नहीं प्राप्त किये।)
6. ‘तानि द्राक्षाफलानि अम्लानि’ इति उक्त्वा कुपितः शृगालः ततः गतः। (ये अंगूर खट्टे हैं, ऐसा कहकर क्रोधित हो गीदड़ वहाँ से चला गया।)

5. क्रमरहितकथावाक्यानि

1. सः प्रतिदिनं बहून् पशून हत्वा खादति स्म।
2. एकदा यदा शशकस्य क्रमः आगतः, तस्य विलम्बागमनेन सिंहः कुपितः जातः।
3. सिंह जले स्वप्रतिबिम्बं दृष्ट्वा तस्मिन् कूपे अकूर्दत्।
4. कस्मिंश्चित् वने एकः सिंहः वसति स्म।
5. तदा सर्वे पशवः विचारं कृत्वा प्रतिदिनं सिंहस्य पार्वे भोजनार्थम् एकं पशुंप्रेषयितुं निश्चितवन्तः।
6. तदा चतुरः शशकः सिंहं कूपस्य समीपम् अनयत्।
7. अतः लोके प्रसिद्ध ‘बुद्धिर्यस्य बलं तस्य’ इति।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. कस्मिंश्चित् वने एकः सिंह वसति स्म। (किसी वन में एक सिंह रहता था।)
2. सः प्रतिदिनं बहून पशून् हत्वा खादति स्म। (वह प्रत्येक दिन बहुत पशुओं को मारकर खाता था।)
3. तदा सर्वे पशवः विचारं कृत्वा प्रतिदिनं सिंहस्य पार्वे भोजनार्थम् एकं पशुं प्रेषयितुं निश्चितवन्तः। (तब सभी पशुओं ने विचार करके प्रतिदिन सिंह के पास में भोजन के लिए एक पशु भेजने के लिए निश्चित किया।)
4. एकदा यदा शशकस्य क्रमः आगतः, तस्य विलम्बागमनेन सिंहः कुपितः जातः। (एक दिन जब खरगोश का नम्बर आया, उसके देरी के आने से सिंह नाराज हो गया।)
5. तदा चतुरः शशकः सिंह कूपस्य समीपम् अनयत्। (तब चतुर खरगोश सिंह को कुएँ के पास ले गया।)
6. सिंहः जले स्वप्रतिबिम्बं दृष्ट्वा तस्मिन् कूपे अकूर्दत्। (सिंह पानी में परछाँई देखकर उस कुएँ में कूद गया।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

6. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. एकदा वने सिंह पाशबद्ध अभवत्।
2. मूषिका पाशं छित्वा सिंह मुक्तम् अकरोत्।
3. गृहीतवान् मूषिका अवदत्-श्रीमन्। अपराधं क्षमस्व मां मुञ्चतु। अहं ते उपकारं करिष्यामि।
4. शयानस्य सिंहस्य उपरि मूषिका अभ्रमत् तेन कारणने सिंहः जागृतः।
5. दयार्द्रः सिंहः हसन् एव ताम् अत्यजत्।
6. एकस्मिन् वने एका मूषिका एक सिंहश्च निवसतः स्म।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकस्मिन् वने एका मूषिका एकः सिंहश्च निवसतः स्म। (एक वन में एक चूहिया और सिंह रहते थे।)
2. शयानस्य सिंहस्य उपरि मूषिका अभ्रमत् तेन कारणेन सिंह जागृतः। (सोते सिंह के ऊपर चूहिया घूमने लगी जिसके कारण सिंह जाग गया।)
3. गृहीतवान् मूषिका अवदत श्रीमन् अपराधं क्षमस्व मां मुञ्चतु। अहं ते उपकारं करिष्यामि। (पकड़ी हुई चुहिया बोली- श्रीमान् जी अपराध क्षमा करें, मुझे छोड़ दें। मैं तुम्हारा उपकार करूँगी।)
4. दयार्द्रः सिंहः हसन् एव ताम् अत्यजत्। (दयायुक्त सिंह ने हँसते हुए उसको छोड़ दिया।)
5. एकदा वने सिंह पाशबद्ध अभवत्। (एक दिन वन में शेर जाल में फंस गया।)
6. मूषिका पाशं छित्वा सिंह मुक्तम् अकरोत्। (चूहिया ने जाल काटकर सिंह को मुक्त कर दिया।)

7. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. पूर्णे घटे तं नागदन्ते अवलम्ब्य तस्य अद्यः खट्वां निधाय बद्धदृष्टि अवलोकयति स्म।
2. कस्मिंश्चित् नगरे एक कृपणः ब्राह्मण: भिक्षाटने सक्तून् प्राप्नोति, किञ्चित् खादति शेषान् घटे स्थापयति।
3. सः चिन्तयति दुर्भिक्षकाले यत् एतद् विक्रीय अज्ञाद्वयं क्रेष्यामि।
4. उत्तरोत्तरं व्यापारं कृत्वा धनम् अर्जित्वा विवाहं करिष्यामि।
5. एवं चिन्तयन् असौ पादेन घटम् अताडयत् येन भग्नः घटः अपतत्।
6. क्रुद्धः अहं पत्नी पादेन ताडयिष्यामि।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. कस्मिंश्चित् नगरे एकः कृपणः ब्राह्मण भिक्षाटने सक्तून् प्राप्नोति, किञ्चित् खादति शेषान् घटे स्थापयति। (किसी नगर में एक कंजूस ब्राह्मण भिक्षा में सत्तू प्राप्त करता है, कुछ खा लेता है, शेष को घड़े में रख देता है।)
2. पूर्णे घटे तं नागदन्ते अवलम्ब्य तस्य अधः खट्वां निधाय बद्ध दृष्टिः अवलोकयति स्म। (घड़ा पूरा होने पर खूटी से लटकाकर उसके नीचे खाट डालकर टकटकी लगाये देखता था।)
3. स: चिन्तयति यत् दुर्भिक्षकाले एतद् विक्रीय अजा द्वयं क्रेष्यामि। (वह सोचता है कि अकाल में इसे बेचकर दो बकरियाँ खरीदूंगा।)
4. उत्तरोत्तरं व्यापारं कृत्वा धनम् अर्जित्वा विवाहं करिष्यामि। (उत्तरोत्तर व्यापार करके धन अर्जित करूँगा और विवाह करूँगा।)
5. क्रुद्धः अहं पत्नी पादेन ताडयिष्यामि। (नाराज हुआ मैं पत्नी को लात मारूंगा।)
6. एवं चिन्तयन् असौ पादेन घटम् अताडयत् येन भग्न: घटः अपतत। (ऐसा सोचते हुए उसने पैर से घड़े में लात मारी जिससे टूटा हुआ घड़ा नीचे गिर गया।)

8. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. कृषक: अति लुब्धः आसीत्।
2. तस्य कुक्कुटेषु एका कुक्कटी नित्यमेकं स्वर्णाण्डं प्रसूते स्म।
3. एकस्मिन् ग्रामे एकः कृषकः प्रतिवसति स्म।
4. सा एकदा एव सर्वाणि अण्डानि ग्रहीतुमैच्छत्। तस्य उदरं व्यदारयत्।
5. कृषक: महददुःखमनुभवन् सपश्चात्तापम् अवदत्-‘अति लोभो न कर्तव्यः।’
6. परञ्च नासीत् तत्र एकमपि अण्डम्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकस्मिन् ग्रामे एकः कृषकः प्रतिवसति स्म। (एक गाँव में एक किसान रहता था।)
2. तस्य कुक्कुटेषु एका कुक्कुटी नित्यमेकं स्वर्णाण्डं प्रसूते स्म। (उसके मुर्गों में एक मुर्गी नित्य एक सोने का अण्डा देती थी।)
3. कृषक: अति लुब्धः आसीत्। (किसान बहुत लोभी था।)
4. सः एकदा एव सर्वाणि अण्डानि ग्रहीतुमैच्छत् तस्या उदरं व्यदारयत्। (वह एक दिन में ही सारे अण्डे प्राप्त करना चाहता था उसका पेट फाड़ डाला।)
5. परञ्च नासीत् तत्र एकमपि अण्डम्। (परन्तु वहाँ एक भी अण्डा नहीं था।)
6. कृषक: महददुःखमनुभवन् सपश्चात्तापम् अवदत् “अतिलोभो न कर्तव्यः।” (किसान बहुत दुःख का अनुभव करता हुआ पश्चात्ताप के साथ बोला – “अधिक लोभ नहीं करना चाहिए”।)

9. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. मार्गे एक गजः तां दृष्ट्वा अकथयत् – “रे पिपीलिके! मार्गात् दूरी भव नो चेत् अहं त्वां मर्दयिष्यामि।”
2. एकदा सैव पिपीलिका गजस्य शुण्डाग्रं प्राविशत् तम् अदशत् च।
3. पिपीलिका अवदत् “अहं सैव पिपीलिका यां त्वं तुच्छजीवं मन्यसे। संसारे कोऽपि न तुच्छ न च उच्चः।”
4. अतीव पीडित: गजः क्रन्दन्ति – “न जाने क: जीवः मम प्राणान् हर्तुम् इच्छति।”
5. एकदा एका पिपीलिका गच्छति स्म।
6. पिपीलिका कथयति “भो गजः मां तुच्छे मत्वा कथं मर्दयसि?”

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकदा एका पिपीलिका गच्छति स्म। (एक बार एक चींटी जा रही थी।)
2. मार्गे एकः गजः तां दृष्ट्वा अकथयत् – “रे पिपीलके! मार्गात दूरी भव नो चेत् अहं त्वां मर्दयिष्यामि।” (मार्ग में एक हाथी ने उसे देखकर कहा – अरे चींटी रास्ते से दूर हो जा, नहीं तो मैं तुम्हें कुचल दूँगा।)
3. पिपीलिका कथयति – “भो गजः मां तुच्छे मत्वा कथं मर्दयसि? (चींटी कहती है- अरे हाथी, मुझे तुच्छ मानकर कैसे मर्दन करता है?)
4. एकदा सैव पिपीलिका गजस्य शुण्डाग्रं प्राविशत् तम् अदशत् च। (एक दिन वह चींटी हाथी की सँड़ में घुस गयी और उसे काट लिया।)
5. अतीव पीडित: गजः क्रन्दति – “न जाने कः जीवः मम प्राणान् हर्तुम् इच्छति। (अत्यन्त पीड़ित हाथी कहता है – “न जाने कौन जीव मेरे प्राण हरण करना चाहता है?”)
6. पिपीलिका अवदत् – “अहं सैव पिपीलिका यां त्वं तुच्छ जीवं मन्यसे। संसारे कोऽपि न तुच्छ न च उच्चः।” (चींटी बोली- मैं वही चींटी हूँ जिसको तू तुच्छ जीव मानता है। संसार में कोई तुच्छ या उच्च नहीं होता।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

10. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. हस्तपादं स्थिरं भूत्वा अतिष्ठत्।।
2. कथमपि पुनः मिलित्वा विचारम् अकुर्वन्-“भुक्तस्य अन्नस्य पाचनं तु उदरमेव करोति अस्मभ्यम् शक्तिं च ददाति।
3. एवं चिन्तयित्वा सर्वाणि अङ्गानि कार्यम् अत्यजन्।
4. शनैः शनैः सर्वाणि अङ्गानि शिथिलानि अभवन्।
5. एकदा शरीरस्य सर्वाणि इन्द्रियाणि अचिन्तयन्”वयं सर्वे प्रतिदिनं परिश्रमं कुर्मः। एतद् उदरं सर्वं स्वीकरोति, स्वयं किमपि कार्यं न करोति।
6. अद्य प्रभृति वयम् अपि कार्य न करिष्यामः।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकदा शरीरस्य सर्वाणि इन्द्रियाणि अचिन्तयन्- “वयं सर्वे प्रतिदिनं परिश्रमं कुर्मः एतद् उदरं सर्वं स्वीकरोति, स्वयं किमपि कार्यं न करोति।” (एक दिन शरीर की सभी इन्द्रियाँ सोचने लगीं – “हम सब प्रतिदिन परिश्रम करते हैं। यह पेट सबको स्वीकार करता है, स्वयं कुछ काम नहीं करता है।”)
2. अद्य प्रभृति वयम् अपि कार्यं न करिष्यामः। (आज से हम भी काम नहीं करेंगे।)
3. एवं चिन्तयित्वा सर्वाणि अङ्गानि कार्यम् अत्यजन्। (ऐसा सोचकर सभी अङ्गों ने कार्य त्याग दिया।)
4. हस्तपादं स्थिरं भूत्वा अतिष्ठत्। (हाथ-पैर स्थिर होकर ठहर गए।)
5. शनैः शनैः सर्वाणि अङ्गानि शिथिलानि अभवन्। (धीरे-धीरे सभी अंग शिथिल हो गए।)
6. कथमपि पुनः मिलित्वा विचारम् अकुर्वन्-“भुक्तस्य अन्नस्य पाचनं तु उदरमेव करोति, अस्मभ्यम् शक्तिं च ददाति। (जैसे-तैसे फिर मिलकर विचार किया – “खाए हुए अन्न का पाचन तो पेट ही करता है और यही हमारे लिए शक्ति प्रदान करता है।)

11. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. तदा नृपः विक्रमादित्यः नदी प्रविश्य पुत्रेण सहितं वृद्धम् अति प्रवाहात् आकृष्य तटम् आनीतवान्।
2. तदानीम् एव एकः वृद्धः स्वपुत्रेण सह नद्याः प्रवाहेण प्रवाहितः सः त्राहिमाम् इति आकारितवान् किन्तु तत्र उपस्थित-नगरजनाः सविस्मयं तं वृद्ध पश्यन्ति।
3. परिभ्रमन् सः एकं नगरं प्राप्तवान्।
4. एकदा राजा विक्रमादित्य योगिवेशं धृत्वा राज्यपर्यटनं कर्तुम् अगच्छत्।
5. तत्र नगरवासिनः पुराणकथां श्रृण्वन्ति स्म।
6. तस्य चीत्कारं श्रुत्वाऽपि तयोः प्राणरक्षां कोऽपि न करोति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकदा राजा विक्रमादित्यः योगिवेशं धृत्वा राज्य पर्यटनं कर्तुम् अगच्छत्। (एक बार राजा विक्रमादित्य योगी का वेश धारण करके राज्य का पर्यटन करने के लिए गये।)
2. परिभ्रमन् सः एकं नगरम् प्राप्तवान्। (घूमते हुए वे एक नगर में पहुँचे।)
3. तत्र नगरवासिनः पुराण कथां श्रृण्वन्ति स्म। (वहाँ नगरवासी पुराण-कथा सुन रहे थे।)
4. तदानीम् एव एकः वृद्धः स्वपुत्रेण सह नद्याः प्रवाहेण प्रवाहितः सः त्राहिमाम् इति आकारितवान् किन्तु तत्र उपस्थित-नगर जनाः सविस्मयं तं वृद्धं पश्यन्ति। (उसी समय एक वृद्ध अपने पुत्र के साथ नदी के प्रवाह में बह गया, ‘मुझे बचाओ’ इस प्रकार चिल्लाने लगा परन्तु वहाँ उपस्थित नगर के लोग उसे आश्चर्य से देखते रहे।)
5. तस्य चीत्कारं श्रुत्वाऽपि तयोः प्राणरक्षां कोऽपि न करोति। (उसकी चीत्कार सुनकर भी उन दोनों के प्राणों की रक्षा नहीं की।)
6. तदा नृपः विक्रमादित्यः नदी प्रविष्य पुत्रेण सह वृद्धं अतिप्रवाहात् आकृष्य तटम् आनीतवान्। (तब राजा विक्रमादित्य नदी में प्रवेश करके पुत्र सहित उस वृद्ध को महाप्रवाह से खींचकर किनारे पर लाये।)

12. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. द्वौ जनौ मकरात् भीतौ जले पतितौ।
2. सा तयोः रक्षणम् अकरोत्।
3. एकदा एका बालिका पित्रा सह नदी मार्गेण नौकया मेलकं द्रष्टुं नगरं प्रतिगच्छति स्म।
4. सा अचिन्तयत्- तयौः जनयोः रक्षणं कथं करणीयम्?
5. सा साहसी बालिका लक्ष्मीबाई आसीत्।
6. सा जले अकर्दत तयोः च जनयोः हस्तौ गृहीत्वा नौकां प्रति आनयत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकदा एका बालिका पित्रा सह नदी मार्गेण नौकया मेलकं द्रष्टुं नगरं प्रतिगच्छति स्म। (एक दिन एक बालिका पिता के साथ नदी मार्ग से नौका द्वारा मेला देखने नगर की ओर गई।)
2. द्वौ जनौ मकरात् भीतौ जले पतितौ। (दो व्यक्ति मकर से डरे हुए जल में गिर गये।)
3. सा अचिन्तयत्- “तयौः जनयौः रक्षणं करणीयम्।” (उसने सोचा- उन दोनों मनुष्यों की रक्षा करनी चाहिए।)
4. सा जले अकूर्दत तयोः जनयोः हस्तौ गृहीत्वा नौकां प्रति आनयत्। (वह जल में कूद गई उन दोनों मनुष्यों का हाथ पकड़कर नाव की ओर लायी।)
5. सा तयोः रक्षणम् अकरोत्। (उसने उन दोनों की रक्षा की।)
6. सा साहसी बालिका लक्ष्मीबाई आसीत्। (वह बहादुर लड़की लक्ष्मीबाई थी।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

13. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. अतः सः वानरः खगानां नीडानि वृक्षात् अधः अपातयत्।
2. खगाः शीतेन कम्पमानं वानरम् अवदन्- “भो वानर ! त्वं कष्टं अनुभवसि। तत् कथं गृहस्य निर्माणं न करोति? .
3. वानरः एतत् वचनं श्रुत्वा अचिन्तयत्- अहो एते क्षुद्राः खगाः मां निन्दन्ति।
4. खगानां नीडः सह तेषाम् अण्डानि अपि नष्टानि।
5. एकदा महती वष्टिः अभवत। सः वानर: जलेन अतीव आर्द्रः कम्पित: च अभवत।
6. कस्मिन् वृक्षतले कश्चित् वानरः निवसति स्म।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. कस्मिन् वृक्षतले कश्चित् वानरः निवसति स्म। (किसी वृक्ष के नीचे एक बन्दर रहता था।)
2. एकदा महती वृष्टिः अभवत्। सः वानरः जलेन अतीव आर्द्रः कम्पित च अभवत्। (एक बार बहुत जोर से वर्षा हुई। वर्षा के जल से वह बन्दर बहुत भीग गया और काँपने लगा।)
3. खगाः शीतने कम्पमानं वानरम् अवदन्-भो वानर! त्वम् कष्टं अनुभवसि। तत् कथं गृहस्य निर्माणं न करोषि?। (पक्षियों ने ठण्ड से काँपते हुए उस बन्दर से कहा- “हे वानर! तुम कष्ट का अनुभव कर रहे हो। अपना घर क्यों नहीं बना लेते?”)
4. वानरः एतत् वचनं श्रुत्वा अचिन्तयत्- “अहो! एते क्षुद्राः खगाः मां निन्दन्ति।” (बन्दर ने उन पक्षियों के इस प्रकार वचन सुनकर सोचा- “अरे ये क्षुद्र पक्षी मेरी निन्दा करते हैं।”)
5. अतः सः वानरः खगाना नीडानि वृक्षात् अधः अपातयत्।। (अतः उस बन्दरों ने पक्षियों के घोंसले वृक्ष से नीचे गिरा दिये।)
6. खगानां नीडैः सह तेषाम् अण्डानि अपि नष्टानि। (पक्षियों के घोंसले गिर जाने से उनके अण्डे भी नष्ट हो गये।)

14. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. एकदा एकः काकः एका रोटिकाम् आनयत्।
2. काकः आत्मनः प्रशंसा श्रुत्वा प्रशन्नः अभवत्।
3. लोमशा तां नीत्वा ततः अगच्छत्।
4. लोमशा तं दृष्ट्वा केनापि उपायेन रोटिकां गृहीतुम् ऐच्छत्।
5. सा सगर्वोऽयं काकः यावत् गायति तावत् विवृतात् मुखात् रोटिका भूमौ अपतत्।
6. सा वृक्षस्य अधः अतिष्ठत् काकं च अवदत्-तात् ! मया श्रुतं त्वम् मधुरं गायसि।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

कथाक्रमस्य संयोजनम्।

1. एकदा एकः काकः एकां रोटिकाम आनयत। (एक दिन एक कौआ एक रोटी लाया।)
2. लोमशा तं दृष्ट्वा केनापि उपायेन रोटिकां गृहीतुम् ऐच्छत्। (लोमड़ी ने उसे देखकर किसी भी उपाय से रोटी को लेना चाहा।)
3. सा वृक्षस्य अधः अतिष्ठत् काकं च अवदत्- ‘तात् मया श्रुतं त्वम् अति मधुरं गायसि।’ (वह वृक्ष के नीचे बैठ गई और कौए से बोली- ‘तात् मैंने सुना है तुम बहुत मीठा गाते हो।’
4. काकः आत्मनः प्रशंसां श्रुत्वा प्रशन्नः अभवत्। (कौआ अपनी प्रशंसा सुनकर प्रसन्न हो गया।)
5. सगर्वोऽयं काकः यावत् गायति तावत् विवृतात् मुखात रोटिका भूमौ अपतत्। (गर्व के साथ कौए ने गाने के लिए जैसे ही मुख खोला, वैसे ही रोटी जमीन पर गिर गई।)
6. लोमशा तां नीत्वा ततः अगच्छत्। (लोमड़ी उसे लेकर वहाँ से चली गई।)

15. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. तत्र वायस-दम्पतिः सुखेन निवसति स्म।
2. सः तयोः नवजातानि अपत्यानि अखादत्।
3. मित्रेण शृगालेन परामृष्टः काकः तं स्वर्णहारं सर्पस्य बिले अक्षिपत्। बिले हारं दृष्ट्वा तं चौरं मत्वा बिलं च खनित्वा ते सर्पम् अघ्नन्।
4. एकिस्मन् निर्जने वने एकः वटवृक्षः आसीत्।
5. तस्य वृक्षस्य अधस्तात् एव एकस्मिन् बिले कृष्णसर्पः आसीत्।
6. एकदा काकः श्रृगालेन परामृष्ट: महाराज्ञाः रत्नजटितं स्वर्णहारम् अपहृत्य आनयत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकस्मिन् निर्जने वने एक: वटवृक्षः आसीत्। (एक निर्जन वन में एक बरगद का पेड़ था।)
2. तत्र वायस-दम्पतिः सुखेन निवसति स्म। (वहाँ काक-दम्पति सुख से रहते थे।)
3. तस्य वृक्षस्य अधस्तात् एव एकस्मिन् बिले कृष्णसर्पः आसीत्। (उस वृक्ष के नीचे ही एक बिल में काला सर्प था।)
4. सः तयोः नवजातानि अपत्यानि अखादत्। (वह काक-दम्पति के नवजात बच्चों को खा जाता था।)
5. एकदा काकः शृगालेन परामृष्टः महाराज्ञाः रत्नजटितं स्वर्णहारम् अपहृत्य आनयत्। (एक दिन कौआ गीदड़ के परामर्श से महारानी का रत्नजटित सोने का हार चुराकर लाया।)
6. मित्रेण शृगालेन परामृष्टः काकः तं स्वर्णहारं सर्पस्य बिले अक्षिपत्। बिले हारं दृष्ट्वा तं चौरं मत्वा बिलं च खनित्वा ते सर्पम् अघ्नन्। (मित्र गीदड़ के परामर्श से कौए ने उस हार को सर्प के बिल पर फेंक दिया। बिल पर हार देखकर उसको चोर समझकर और बिल खोदकर उन्होंने सर्प को मार दिया।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

16. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. रत्नाकरः विस्मितः अभवत्, सः कम्पित पदाभ्यां सप्तर्षीणां चरणेषु अपतत्।
2. सः दस्युः सर्वान् परिवारजनान् अपृच्छत् ? ते सर्वे उत्तरम् अददुः”य: घोरतमं पापम् करिष्यति। सः एव अधं फलं प्राप्स्यति।
3. इदम् निन्दितं कर्म येषां कृते करोषि तान् पृच्छ किं तेऽपि दस्यु कर्मणः पापफलं लप्सयन्ते?
4. ऋषयः तम् अपृच्छन्-“कः त्वम्?” सः अवदत् अहं रत्नाकरः नाम दस्युः अस्मि।
5. एकं घोरतमं स्वरं तेषां कर्णेषु- “तिष्ठतु ! युष्माकं सर्वाणि वस्तूनि मह्यम् यच्छ।
6. एकदा सप्तर्षयः सघन वनम् अगच्छन्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकदा सप्तर्षयः सघनवनम् अगच्छन्। (एक बार सप्त ऋषि घने जंगल में जा रहे थे।)
2. एकं घोरतमं स्वरं तेषाम् कर्णेषु अपतत्- तिष्ठतु युष्माकं सर्वाणि वस्तूनि मह्यं यच्छ। (एक भयंकर शब्द उनके कानों में पड़ा-रुको अपनी सभी वस्तुएँ मुझे दे दो।)
3. ऋषयः तम् अपृच्छत् कः त्वम्? सः अवदत् अहं रत्नाकरः नाम दस्युः अस्मि। (ऋषियों ने उससे पूछा- तुम कौन हो? वह बोला- मैं रत्नाकर नाम का डाकू हूँ।)
4. इदं निन्दितं कर्म येषां कृते करोषि तान पृच्छ किं तेऽपि दस्युकर्मणः पापफलं लप्सयन्ते? (यह निन्दित काम जिनके लिए करते हो उन्हें पूछो कि क्या वे भी डाकू के कार्य करने से प्राप्त होने वाले पाप को भोगेंगे।)
5. सः दस्यु सर्वान् परिवारजनान् अपृच्छत्। ते सर्वे उत्तरम् अददुः- यः घोरतमं पापं करिष्यति, सः एव अधं फलं प्राप्स्यति। (उस डाकू ने सभी परिवारीजनों से पूछा। उन सभी ने उत्तर दिया जो घोर पाप करेगा, वही नीच फल भोगेगा।)
6. रत्नाकारः विस्मितः अभवत्, सः कम्पित पदाभ्यां सप्तर्षीणां चरणेषु अपतत्। (रत्नाकर विस्मित हो गया, वह काँपते पैरों से ऋषियों के चरणों में गिर पड़ा।)

17. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. वानराः सागरे सेतु निर्माणम् अकुर्वन्।
2. तस्य चत्वारः पुत्राः आसन्-रामः, लक्ष्मणः, भरत, शत्रुघ्नः च।
3. राम-रावण: युद्धः अभवत्; युद्धे रावणः हतः।
4. तत्र रावण: सीतां कपटेन अहरत्।
5. पितुः आज्ञया राज्यं त्यक्त्वा रामः वनम् अगच्छत्।
6. प्राचीन काले दशरथः नृपः राज्यम् अकरोत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. प्राचीन काले दशरथः नृपः राज्यम् अकरोत्। (प्राचीनकाल में राजा दशरथ राज्य करते थे।)
2. तस्य चत्वारः पुत्राः आसन्- रामः, लक्ष्मणः, भरतः शत्रुघ्न च। (उनके चार पुत्र थे- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न।)
3. पितुः आज्ञया राज्यं त्यक्त्वा रामः वनम् अगच्छत्। (पिता की आज्ञा से राम राज्य त्यागकर वन को गये।)
4. तत्र रावणः सीतां कपटेन अहरत्। (वहाँ रावण ने कपट से सीता को हरण कर लिया।)
5. वानराः सागरे सेतुनिर्माण: अकुर्वन्। (वानरों ने समुद्र पर सेतु निर्माण किया।)
6. राम-रावणः युद्धः अभवत्, युद्धे रावणः हतः। (राम-रावण का युद्ध हुआ, युद्ध में रावण मारा गया।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

18. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. एकदा सः नृपस्य धर्म परीक्षितुम् अचिन्तयत्।
2. इन्द्रः श्येनः अग्निः च कपोत: भूत्वा भक्ष्य भक्षक रूपेण उभौ तत्र आगच्छताम्।
3. ततः नृपः स्वशरीरात् मांसम् उत्कृत्य श्येनाय अयच्छत्।
4. प्राचीनकाले शिवि: नाम धर्मपरायणः शरणागतरक्षकः नृपः अभवत्।
5. कपोतः नृपं प्रार्थयते- “प्रभो श्येन: मां खादितुम् इच्छति।
6. श्येन अवदत् यदि अहं इमं न खादिष्यामि तर्हि निश्चयमेव मरिष्यामि।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. प्राचीनकाले शिवि: नाम धर्मपरायणः शरणागतरक्षकः नृपः अभवत्। (प्राचीनकाल में शिव नाम के धर्मपरायण, शरणागत रक्षक राजा हुए।)
2. एकदा सः नृपस्य धर्म परीक्षितुम् अचिन्तयत्। (एक बार उसने राजा के धर्म की परीक्षा करने के लिए सोचा।)
3. इन्द्रः श्येन: अग्निः च कपोतः भूत्वा भक्ष्यभक्षकरूपेण उभौ तत्र आगच्छताम्। (इन्द्र बाज और अग्नि कबूतर बनकर भक्ष्य और भक्षक रूप में दोनों वहाँ आये।)
4. कपोतः नृपं प्रार्थयते-प्रभो! श्येनः मां खादितुम् इच्छति। (कबूतर ने राजा से विनती की, प्रभु! बाज मुझे खाना चाहता है।)
5. श्येन अवदत् यदि अहं इमं न खादिष्यामि तर्हि निश्चयमेव मरिष्यामि। (बाज बोला- यदि मैं इसे नहीं खाऊँगा तो निश्चय ही मर जाऊँगा।)
6. ततः नृपः स्वशरीरात् मांसम् उत्कृत्य श्येनाय अयच्छत्। (तब राजा ने अपने शरीर से मांस काटकर बाज को दे दिया।)

19. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. सः जलं पातुं स्नातुं च प्रतिदिनम् सरितः तटम् अगच्छत्।
2. एकदा सौचिकस्य पुत्रः गजस्य करे सूचिकाम् अभिनत्।
3. क्रुद्धः सन् गजः सरितः तटम् अगच्छत्। तत्र स्नात्वा जलं च पीत्वा स्वकरे पङ्किलं जलम् आनयत्।
4. तदा सौचिकस्य पुत्रः आत्मग्लानिम् अनुभूय अति खिन्नः अभवत्।
5. सौचिकस्य आपणे स्यूतेषु वस्त्रेषु असिंचत्।
6. एक गजः आसीत्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकः गजः आसीत्। (एक हाथी था।)
2. सः जलं पातुं स्नातु च प्रतिदिनं सरितः तटम् अगच्छत्। (वह जल पीने और नहाने के लिए रोजाना नदी के तट (किनारा) पर जाता था।)
3. एकदा सौचिकस्य पुत्रः गजस्य करे सूचिकाम् अभिनत्। (एक बार दर्जी के पुत्र ने हाथी की सैंड में सुई चुभा दी।)
4. क्रुद्धः सन् गजः सरितः तटम् अगच्छत्। तत्र स्नात्वा जलं च पीत्वा स्वकरे पङ्किलं जलम् आनयत्। (उससे क्रोधित होकर हाथी नदी के तट पर गया। वहाँ नहाकर और जल पीकर अपनी सँड़ में कीचड़ युक्त जल ले आया।)
5. सौचिकस्य आपणे स्यूतेषु वस्त्रेषु असिंचत्। (दर्जी की दुकान में सिले हुए वस्त्रों पर छिड़क दिया।)
6. तदा सौचिकस्य पुत्रः आत्मग्लानिम् अनुभूय अतिखिन्नः अभवत्। (तब दर्जी का पुत्र आत्मग्लानि का अनुभव कर बहुत दुःखी हुआ।)

20. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. सा प्रतिदिन बहून मूषकान् अभक्षत्।
2. सभायां मूषकाः इयं निर्णयम् अकुर्वन् यत् यदि विडाल्या: ग्रीवायां घण्टिकाबन्धनं भविष्यति तदा तस्या नादं श्रुत्वा वयं स्वबिलं गमिष्यामः।
3. तदानीम् एव विडाली आगता। तां दृष्ट्वैव सर्वे मूषकाः स्वबिलं पलायिताः।
4. कस्मिंश्चित् ग्रामे एका विडाली अवसत्।
5. एवं स्वविनाशं दृष्ट्वा मूषकाः स्वप्राणरक्षार्थम् एकां सभा आयोजितवन्तः।
6. एवं श्रुत्वा तेषु मूषकेषु एकः वृद्धः मूषकः किञ्चित् विचारयन् तान् अपृच्छत्- ‘कः तस्याः ग्रीवयां घण्टिकाबन्धनं करिष्यति?’

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. कस्मिंश्चित् ग्रामे एक विडाली अवसत्। (किसी गाँव में एक बिल्ली रहती थी।)
2. सा प्रतिदिनं बहून मूषकान् अभक्षत्। (वह रोजाना बहुत चूहों को खाती थी।)
3. एवं स्वविनाशं दृष्ट्वा मूषकाः स्वप्राणरक्षार्थम् एकां सभाम् आयोजितवन्तः। (इस प्रकार अपने विनाश को देखकर चूहों ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए एक सभा का आयोजन किया।)
4. सभायां मूषका: इयं निर्णयम् अकुर्वन् यत् यदि विडाल्या: ग्रीवायां घण्टिकाबन्धनं भविष्यति तदा तस्या नादं श्रुत्वा वयं स्वबिलं गमिष्यामः। (सभा में चूहों ने यह निर्णय किया कि यदि बिल्ली के गले में घण्टी बँध जायेगी तो हम सब उसकी आवाज सुनकर अपने बिल में चले जायेंगे।)
5. एवं श्रुत्वा तेषु मूषकेषु एकः वृद्धः मूषकः किञ्चित् विचारयन् तान् अपृच्छत्- कः तस्याः ग्रीवायां घण्टिकाबन्धनं करिष्यति? (यह सुनकर उन चूहों में से एक बूढ़े चूहे ने कुछ सोचते हुए उन सबसे पूछा- उस बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधेगा?)
6. तदानीम् एव विडाली आगता। तां दृष्ट्वैव सर्वे मूषकाः स्वबिलं पलायिताः। (तभी बिल्ली आ गयी। उसे देखते ही सब चूहे अपने-अपने बिल में भाग गये।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

21. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. स च विभव क्षयाद्देशान्तरं गन्तुमिच्छति।
2. आसीद् कश्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः।
3. तां च कस्यचिद् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः।
4. तस्य च गृहे लोहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुलासीत्।
5. स आह-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैक्षिता” इति।
6. ततः सुचिरं ….. कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरमागत्य तं श्रेष्ठिनमुवाच-“भो श्रेष्ठिन् ! दीयतां मे सा निक्षेप तुला।”

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. आसीद् कश्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः।
2. स च विभव क्षयाद्देशान्तरं गन्तुमिच्छति।
3. तस्य च गृहे लोहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुलासीत्।
4. तां च कस्यचिद् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः।
5. ततः सुचिरं ….. कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरमागत्य तं श्रेष्ठिनमुवाच – “भो श्रेष्ठिन् ! दीयतां मे सा
निक्षेपतुला।”

22. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. औषधं खादित्वा पुत्रः नीरोग अभवत्।
2. एकस्मिन् ग्रामे एका माता निवसति स्म।
3. माता स्वपुत्रं माधवं चिकित्सालयं नीतवती।
4. तस्याः माधवः नामकः पुत्रः आसीत्।
5. चिकित्सकः माधवाय औषधं दत्तवान्।
6. एकदा माधवः ज्वरपीडितः अभवत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. एकस्मिन् ग्रामे एका माता निवसति स्म।
2. तस्याः माधवः नामकः पुत्र आसीत्।
3. एकदा माधवः ज्वरपीडितः अभवत्।
4. माता स्वपुत्रं माधवं चिकित्सालयं नीतवती।
5. चिकित्सक : माधवाय औषधं दत्तवान्।
6. औषधं खादित्वा पुत्रः नीरोग अभवत्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

23. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. परं सः पूर्णशांतिं नालभत्।
2. अन्ततः एकस्मिन् वटवृक्षात् मूले सः महाबोधम् अलभत्।
3. महात्मा बुद्धः एकस्यां रात्रौ गृहं त्यक्त्वा निर्गतः।
4. तदारभ्य सः बुद्धनाम्ना प्रख्यातः अभवत्।
5. स इतस्ततः वने अभ्रमत्।।
6. एकदा सः पञ्चमित्रैः सह षड्वर्षपर्यन्तम् अतपत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

1. महात्मा बद्धः एकस्यां रात्रौ गहं त्यक्त्वा निर्गतः
2. स इतस्ततः वने अभ्रमत्।
3. एकदा सः पञ्चमित्रैः सह षड्वर्षपर्यन्तम् अतपत्।
4. परं सः पूर्णशांतिं नालभत्।
5. अन्ततः एकस्मिन् वटवृक्षात् मूले सः महाबोधम् अलभत्।
6. तदारभ्य सः बुद्धनाम्ना प्रख्यातः अभवत्।

24. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. श्रेष्ठिपुत्रः शक्तिकुमारः चिन्तामापन्नः तत्कथं गुणवद् विन्देयं कलत्रम्।
2. अस्ति द्रविडेषु काञ्ची नाम नगरी।
3. कामपि लक्षणवर्ती कन्यां विलोक्य स पृच्छति-भद्रे ! शक्नोषि किमनेन शालिप्रस्थेन गुणवदन्नम् अस्मान् भोजयितुम् ? 4. पेयोपहारपूर्वं भोजनं घृतसहितोदनं व्यञ्जनं च तस्मै दत्तवती।
5. ततो व्यंजनादिकं च तया सम्पादितम्।।
6. भुक्ते तु तस्मिन् तयास्य शयनव्यवस्थापि कृता।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

अस्ति द्रविडेषु काञ्ची नाम नगरी। श्रेष्ठिपुत्रः शक्तिकुमारः चिन्तामापन्नः तत्कथं गुणवद् विन्देयं कलत्रम्। कामपि लक्षणवर्ती कन्यां विलोक्य स पृच्छति-भद्रे ! शक्नोषि किमनेन शालिप्रस्थेन गुणवदन्नम् अस्मान् भोजयितुम् ? ततो व्यंजनादिकं च तया सम्पादितम्। पेयोपहारपूर्वं भोजनं घृतसहितोदनं व्यञ्जनं च तस्मै दत्तवती। भुक्ते तु तस्मिन् तयास्य शयनव्यवस्थापि कृता।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

25. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।
2. शृगाल ! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्। यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्।
3. स्वामिन् ! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्।
4. व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रः भयाकुलचित्तो नष्टः।
5. अस्ति देउलाख्यो ग्रामः, तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसतिस्म। तस्य भार्या बुद्धिमती पितुर्गहं प्रति चलिता।
6. मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

अस्ति देउलाख्यो ग्रामः, तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसतिस्म। तस्य भार्या बुद्धिमती पितुर्गहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्र ददर्श। व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रः भयाकुलचित्तो नष्टः। स्वामिन् ! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। शृगाल ! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्। यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।

26. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. मन्ये भवदीयस्य प्रश्नत्रयस्य समाधानमस्य जनस्य परिवर्तितमानसस्य सेवयैव जातम्।
2. अधुना भवतो व्यवहारेण कोपो मे गलितः।
3. मया केनापि कारणेन क्रोधाविष्टेन राजैव हन्तव्य आसीत्।
4. कश्चित् शस्त्राहतः श्रमक्लान्तः पुरुषः आश्रममागतः।
5. कश्चिद् राजा जिज्ञासायाः समाधानाय मुनेः पार्श्वमगच्छत्। राजा मुनिं प्रश्नत्रयमपृच्छत्।
6. कतिपयैरेव दिवसैः आगन्तुको मुनेः राज्ञश्चोपचारेण स्वस्थो जातः।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

उत्तर-कश्चिद् राजा जिज्ञासायाः समाधानाय मुनेः पार्श्वमगच्छत्। राजा मुनिं प्रश्नत्रयमपृच्छत्। कश्चित् शस्त्राहतः श्रमक्लान्तः पुरुषः आश्रममागतः। कतिपयैरेव दिवसैः आगन्तुको मुनेः राज्ञश्चोपचारेण स्वस्थो जातः। मया केनापि कारणेन क्रोधाविष्टेन राजैव हन्तव्य आसीत्। अधुना भवतो व्यवहारेण कोपो मे गलितः। मन्ये भवदीयस्य प्रश्नत्रयस्य समाधानमस्य जनस्य परिवर्तितमानसस्य सेवयैव जातम्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना घटनाक्रमस्य संयोजनम्

27. क्रमरहित कथावाक्यानि

1. तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्।
2. कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्।
3. न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्।
4. तेन स्वपुत्रं एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः।
5. तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः।
6. पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्।

कथाक्रमस्य संयोजनम्

उत्तर – कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्। तेन स्वपुत्रं एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः। पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्। तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः। तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्। न्यायाधीश: आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना अनुवाद कार्यम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana अनुवाद कार्यम्

हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद :

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय कर्ता, कर्म, क्रिया तथा अन्य शब्दों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कर्ता जिस पुरुष या वचन में हो, उसी के अनुरूप पुरुष, वचन तथा काल के अनुसार क्रिया का प्रयोग करना चाहिए। हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए –

1. कारक

संज्ञा और सर्वनाम के वे रूप जो वाक्य में आये अन्य शब्दों के साथ उनके सम्बन्ध को बताते हैं, ‘कारक’ कहलाते हैं। मुख्य रूप से कारक छः प्रकार के होते हैं, किन्तु ‘सम्बन्ध’ और ‘सम्बोधन’ सहित ये आठ प्रकार के होते हैं। संस्कृत में इन्हें ‘विभक्ति’ भी कहते हैं। इन विभक्तियों के चिह्न प्रकार हैं –

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 1

नोट – जिस शब्द के आगे जो चिह्न लगा हो, उसके अनुसार विभक्ति का प्रयोग करते हैं। जैसे – राम ने यहाँ पर राम के आगे ‘ने’ चिह्न है। अतः राम शब्द में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग करते हुए ‘रामः’ लिखा जायेगा।
‘रावण को’ यहाँ पर रावण के आगे ‘को’ यह द्वितीया विभक्ति का चिह्न है। अतः ‘रावण’ शब्द में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग करके ‘रावणम्’ लिखा जायेगा।

‘बाण के द्वारा’ यहाँ पर बाण शब्द के बाद के द्वारा’ यह तृतीया का चिह्न लगा है। अतः ‘बाणेन’ का प्रयोग किया जायेगा। इसी प्रकार अन्य विभक्तियों के प्रयोग के विषय में समझना चाहिए।

यह बात विशेष ध्यान रखने की है कि जिस पुरुष तथा वचन का कर्ता होगा, उसी पुरुष तथा वचन की क्रिया भी प्रयोग की जायेगी। जैसे –
‘पठामि’ इस वाक्य में कर्ता, ‘अहम्’ उत्तम पुरुष तथा एकवचन है तो क्रिया भी उत्तम पुरुष, एकवचन की है। अतः ‘पठामि’ का प्रयोग किया गया है।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

2. पुरुष

पुरुष तीन होते हैं, जो निम्न हैं –

(अ) प्रथम पुरुष – जिस व्यक्ति के विषय में बात की जाय, उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। इसे अन्य पुरुष भी कहते हैं। जैसे-सः = वह। तौ = वे दोनों। ते = वे सब। रामः = राम। बालकः = बालक। कः = कौन। भवान् = आप (पुं.)। भवती = आप (स्त्री.)।
(ब) मध्यम पुरुष – जिस व्यक्ति से बात की जाती है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे- त
अहम् = मैं। आवाम् = हम दोनों। वयम् = हम सब।

3. वचन

संस्कृत में तीन वचन माने गये हैं –
(अ) एकवचन – जो केवल एक व्यक्ति अथवा एक वस्तु का बोध कराये, उसे एकवचन कहते हैं। एकवचन के कर्ता के साथ एकवचन की क्रिया का प्रयोग किया जाता है। जैसे…’अहं गच्छामि’ इस वाक्य में एकवचन कर्ता, ‘अहम्’ तथा एकवचन की क्रिया ‘गच्छामि’ का प्रयोग किया गया है।
(ब) द्विवचन – दो व्यक्ति अथवा वस्तुओं का बोध कराने के लिए द्विवचन का प्रयोग होता है। जैसे – ‘आवाम्’ तथा क्रिया ‘पठावः’ दोनों ही द्विवचन में प्रयुक्त हैं।।
(स) बहुवचन – तीन या तीन से अधिक व्यक्ति अथवा वस्तुओं का बोध कराने के लिये बहुवचन का प्रयोग कियां जाता है। जैसे – ‘वयम् पठामः’ इस वाक्य में अनेक का बोध होता है। अतः कर्ता ‘वयम्’ तथा क्रिया ‘पठामः’ दोनों ही बहुवचन में प्रयुक्त हैं।

4. लिंग

संस्कृत में लिंग तीन होते हैं –
(अ) पुल्लिंग – जो शब्द पुरुष -जाति का बोध कराता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे ‘रामः काशी गच्छति’ (राम काशी जाता है) में ‘राम’ पुल्लिंग है।
(ब) स्त्रीलिंग – जो शब्द स्त्री-जाति का बोध कराये, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे—गीता गृहं गच्छति’ (गीता घर जाती है।) इस वाक्य में ‘गीता’ स्त्रीलिंग है।
(स) नपुंसकलिंग – जो शब्द नपुंसकत्व (न स्त्री, न पुरुष) का बोध कराये, उसे नपुंसक-लिंग कहते हैं। जैसे धनम्, वनम्, फलम्, पुस्तकम, ज्ञानम्, दधि, मधु आदि।

5. धान

क्रिया अपने, मूल रूप में धातु कही जाती है। जैसे – गम् = जाना, हस् = हँसना। कृ = करना, पृच्छ् = पूछना। ‘भ्वादयो धातवः’ सूत्र के अनुसार क्रियावाची – ‘भू’, ‘गम्’, ‘पठ्’ आदि की धातु संज्ञा होती है।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

6. लकार

लकार – ये क्रिया की विभिन्न अवस्थाओं तथा कालों (भूत, भविष्य, वर्तमान) का बोध कराते हैं। लकार दस हैं, इनमें पाँच प्रमुख लकारों का विवरण निम्नवत् है :

(क) लट् लकार (वर्तमान काल) – इस काल में कोई भी कार्य प्रचलित अवस्था में ही रहता है। कार्य की समाप्ति नहीं होती। वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। इस काल में वाक्य के अन्त में ‘ता है’, ‘ती है’, ‘ते हैं’ का प्रयोग होता है जैसे राम पुस्तक पढ़ता है।
(रामः पुस्तकं पठति।) बालक हँसता है।
(बालकः हसति।) हम गेंद से खेलते हैं।
(वयं कन्दुकेन क्रीडामः।) छात्र दौड़ते हैं।
(छात्राः धावन्ति।) गीता घर जाती है। (गीता गृहं गच्छति।)

(ख) लङ् लकार (भूतकाल) – जिसमें कार्य की समाप्ति हो जाती है, उसे भूतकाल कहते हैं। भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग होता है। जैसे –
राम गाँव गया। (रामः ग्रामम् अगच्छत्।)
मैंने रामायण पढ़ी। (अहम् रामायणम् अपठम्।)
मोहन वाराणसी गया। (मोहनः वाराणीसम् अगच्छत्।)
राम राजा हुए। (रामः राजा अभवत्।)
उसने यह कार्य किया। (सः इदं कार्यम् अकरोत्।)

(ग) लट् लकार (भविष्यत् काल) – इसमें कार्य आगे आने वाले समय में होता है। इस काल के सूचक वर्ण गा, गी, गे आते हैं। जैसे –
राम आयेगा। (रामः आगमिष्यति।)
मोहन वाराणसी जायेगा। (मोहन: वाराणसी गमिष्यति।)
वह पुस्तक पढ़ेगा। (सः पुस्तकं पठिष्यति।)
रमा जल पियेगी। (रमा जलं पास्यति।)

(घ) लोट् लकार (आज्ञार्थक) – इसमें आज्ञा या अनुमति का बोध होता है। आशीर्वाद आदि के अर्थ में भी इस लकार का प्रयोग होता है। जैसे –
वह विद्यालय जाये। (सः विद्यालयं गच्छतु।)
तुम घर जाओ। (त्वं गृहं गच्छ।)
तुम चिरंजीवी होओ। (त्वं चिरंजीवी भव।)
राम पुस्तक पढ़े। (रामः पुस्तकं पठतु।)
जल्दी आओ। (शीघ्रम् आगच्छ।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

(ङ) विधिलिङ् लकार’चाहिए’ के अर्थ में इस लकार का प्रयोग किया जाता है। इससे निमन्त्रण, आमन्त्रण तथा सम्भावना आदि का भी बोध होता है। जैसे –
उसे वहाँ जाना चाहिए। (सः तत्र गच्छेत्।)
तुम्हें अपना पाठ पढ़ना चाहिए। (त्वं स्वपाठं पठेः।)
मुझे वहाँ जाना चाहिए। (अहं तत्र गच्छेयम्।)
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय सर्वप्रथम कर्ता को खोजना चाहिए। कर्ता जिस पुरुष एवं वचन का हो, उसी पुरुष एवं वचन की क्रिया भी प्रयोग करनी चाहिए।
कर्ता कार्य करने वाले को कर्ता कहते हैं। जैसे – ‘देवदत्तः पुस्तकं पठति’ यहाँ पर पढ़ने का काम करने वाला देवदत्त है। अतः देवदत्त कर्ता है।
कर्म-कर्ता जिस काम को करे वह कर्म है। जैसे – ‘भक्तः हरि भजति’ में भजन रूपी कार्य करने वाला भक्त है। वह हरि को भजता है। अतः हरि कर्म है।
क्रिया-जिससे किसी कार्य का करना या होना प्रकट हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-जाना, पढ़ना, हँसना, खेलना आदि क्रियाएँ हैं।
निम्न तालिका से पुरुष एवं वचनों के 3-3 प्रकारों का ज्ञान भलीभाँति सम्भव है –

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 2

इस प्रकार स्पष्ट है कि कर्ता के इन प्रारूपों के अनुसार प्रत्येक लकार में तीनों पुरुषों एवं तीनों वचनों के लिए क्रिया के भी ‘नौ’ ही रूप होते हैं। अब निम्नतालिका से कर्ता एवं क्रिया के समन्वय को समझिये –

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 3

नोट – संज्ञा शब्दों को प्रथम पुरुष मानकर उनके साथ क्रियाओं का प्रयोग करना चाहिए। निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा कर्ता के अनुरूप क्रिया-पदों का प्रयोग करना सीखें –

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 4

नोट – भवान् एवं भवती को प्रथम पुरुष मानकर इनके साथ प्रथम पुरुष की ही क्रिया का प्रयोग करना चाहिए।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

सर्वनामों का तीनों लिंगों में प्रयोग

संज्ञा के बदले में या संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये जाने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। जैसे—अहम् = मैं। त्वम् = तुम। अयम् = यह। कः = कौन। यः = जो। सा = वह। तत् = वह। सः = वह आदि। केवल ‘अपने और तुम्हारे’ बोधक ‘अस्मद् और ‘युष्मद्’ सर्वनामों का प्रयोग तीनों लिंगों में एक रूप ही रहता है, शेष का पृथक् रूप रहता है।

प्रथम पुरुष तद् सर्वनाम (वह-वे) का प्रयोग

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 5

जब कर्ता प्रथम पुरुष का हो तो क्रिया भी प्रथम पुरुष की ही प्रयोग की जाती है। जैसे –

वह जल पीता है। सः जलं पिबति।
वे दोनों हँसते हैं। तौ हसतः।
वे सब लिखते हैं। ते लिखन्ति।

स्त्रीलिंग प्रथम पुरुष में –

वह पढ़ती है। सा पठति।
वे दोनों जाती हैं। ते गच्छतः।
वे सब हँसती हैं। ताः हसन्ति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

नपुंसकलिंग प्रथम पुरुष में –

वह घर है। तद् गृहम् अस्ति।
वे दोनों पुस्तकें हैं। ते पुस्तके स्तः।
वे सब फल हैं। तानि फलानि सन्ति।

विद्यार्थी इस श्लोक को कण्ठस्थ करें :

उत्तमाः पुरुषाः ज्ञेयाः – अहम् आवाम् वयम् सदा।
मध्यमाः त्वम् युवाम् यूयम्, अन्ये तु प्रथमाः स्मृताः।।

अर्थात् अहम्, आवाम्, वयम् – उत्तम पुरुषः; त्वम्, युवाम्, यूयम् – मध्यम पुरुष; (शेष) अन्य सभी सदा प्रथम पुरुष जानने चाहिए।

उदाहरण – लट् लकार (वर्तमान काल) (गम् धातु = जाना) का प्रयोग

प्रथम पुरुष –

1. सः गच्छति। वह जाता है।
2. तौ गच्छतः। वे दोनों जाते हैं।
3. ते गच्छन्ति। वे सब जाते हैं।

मध्यम पुरुष –

4. त्वं गच्छसि। तुम जाते हो।
5. युवां गच्छथः। तुम दोनों जाते हो।
6. यूयं गच्छथ। तुम सब जाते हो।

उत्तम पुरुष –

7. अहं गच्छामि मैं जाता हूँ।
8. आवां गच्छावः। हम दोनों जाते हैं।
9. वयं गच्छामः। हम सब जाते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

उपर्युक्त उदाहरणों में ‘प्रथम पुरुष’ के कर्ता-पद क्रमशः ‘सः, तौ, ते’ दिये गये हैं। इनके स्थान पर किसी भी संज्ञा-सर्वनाम के रूप रखे जा सकते हैं। जैसे-गोविन्दः गच्छति, बालकौ गच्छतः, मयूराः नृत्यन्ति ।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 6

नट् – लकार (वर्तमान काल) की क्रिया में ‘स्म’ लगाकर लङ् लकार (भूतकाल) में अनुवाद किया जा सकता है। प्रायः वाक्य के अन्त में यदि ‘था’ लगा रहता है, तभी इसका प्रयोग करते हैं। जैसे –

1. वन में सिंह रहता था। वने सिंहः निवसति स्म।
2. बालक खेलता था। बालकः क्रीडति स्म।

उदाहरण – लुट् लकार (भविष्यत् काल) (लिख धातु = लिखना) का प्रयोग

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 7

उदाहरण – लोट् लकार (आज्ञार्थक) (कथ् धातु = कहना)

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 8

उदाहरण – विधिलिङ् लकार (प्रेरणार्थक-चाहिए के अर्थ में)

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 9

उत्तम पुरुष –

अहं तिष्ठेयम् मुझे ठहरना चाहिए।
आवां तिष्ठेव हम दोनों को ठहरना चाहिए।
वयं तिष्ठेम। हम सबको ठहरना चाहिए।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

नोट – विधिलिङ् लकार में कर्ता में कर्म कारक जैसा चिह्न लगा रहता है। जैसे-उसे, उन दोनों को, तुमको आदि। किन्तु ये कार्य के करने वाले (कर्ता) हैं। अतः इनमें प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) का ही प्रयोग किया जाता है।
निर्देश – अधोलिखितवाक्यानां संस्कृतेऽनुवादो विधेयः

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम् 10

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. मोहन दौड़ता है।
2. बालक पढ़ता है।
3. राधा भोजन पकाती है।
4. छात्र देखता है।
5. गीदड़ आता है।
6. वह प्रश्न पूछता है।
उत्तरम :
1. मोहनः धावति।
2. बालकः पठति।
3. राधा भोजनं पचति।
4. छात्रः पश्यति।
5. शृगालः आगच्छति।
6. सः प्रश्नं पृच्छति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 2.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. बन्दर फल खाता है।
2. दो बच्चे पढ़ते हैं।
3. वे सब दौड़ते हैं।
4. बालक चित्र देखते हैं।
5. माता जी कहानी कहती हैं।
6. मोहन और सोहन पत्र लिखते हैं।
उत्तरम :
1. कपिः फलं भक्षयति।
2. शिशू पठतः।
3. ते धावन्ति।
4. बालकाः चित्रं पश्यन्ति।
5. जननी कथां कथयति।
6. मोहनः सोहनः च पत्रं लिखतः।

प्रश्न 3.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. दो छात्र क्या देखते हैं?
2. दो बालक पाठ पढ़ते हैं।
3. सिंह वन में दौड़ता है।
4. हाथी गाँव को जाता है।
5. सीता वन को जाती है।
6. राम और श्याम हँसते हैं।
उत्तरम :
1. छात्रौ किं पश्यतः?
2. बालकौ पाठं पठतः।
3. सिंहः वने धावति।
4. गजः ग्रामं गच्छति।
5. सीता वनं गच्छति।
6. रामः श्यामः च हसतः।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 4.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. बालक पाठ याद करता है।
2. किसान बकरी ले जाता है।
3. तुम पाठ पढ़ते हो।
4. तुम क्या देखते हो?
5. तुम कब जाते हो?
6. तुम दोनों चित्र देते हो।
उत्तरम :
1. बालकः पाठं स्मरति।
2. कृषक: अजां नयति।
3. त्वं पाठं स्मरसि।
4. त्वं किं पश्यसि?
5. त्वं कदा गच्छसि?
6. युवां चित्रं यच्छथः।

प्रश्न 5.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णा वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. तुम दोनों पत्र लिखते हो।
2. तुम सब यहाँ आते हो।
3. तुम सब प्रातः दौड़ते हो।
4. तुम दोनों फल खाते हो।
5. तुम यहाँ आते हो।
6. तुम सब कहाँ जाते हो?
उत्तरम :
1. युवां पत्रं लिखथः।
2. यूयं अत्र आगच्छथ।
3. यूयं प्रातः धावथ।
4. युवां फलं भक्षयथः।
5. त्वम् अत्र आगच्छसि।
6. यूयं कुत्र गच्छथ?

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 6.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृत अनुवादं कुरुत –
1. तुम दोनों पाठ याद करते हो।
2. तुम क्या पीते हो?
3. मैं दूध पीता हूँ।
4. हम दोनों कहाँ जाते हैं?
5. हम सब कहानी कहते हैं।
6. मैं मयूर देखता हूँ।
उत्तरम :
1. युवां पाठं स्मरथः।
2. त्वं किं पिबसि?
3. अहं दुग्धं पिबामि।
4. आवां कुत्र गच्छावः?
5. वयं कथां कथयामः।
6. अहं मयूरं पश्यामि।

प्रश्न 7.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णा वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. हम दोनों जल पीते हैं।
2. हम सब खेल के मैदान को जाते हैं।
3. मैं क्या खाता हूँ?
4. हम दोनों क्या पकाती हैं?
5. हम सब प्रश्न पूछती हैं।
6. हम दोनों क्या लिखती हैं?
उत्तरम :
1. आवां जलं पिबावः।
2. वयं क्रीडाक्षेत्रं गच्छामः।
3. अहं किं भक्षयामि?
4. आवां किं पचावः?
5. वयं प्रश्नं पृच्छामः।
6. आवां किं लिखावः?

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 8.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. हम दोनों क्यों हँसती हैं?
2. मैं कब पुस्तकें लाती हूँ?
3. मोहन प्रातः व्यायाम करता है।
4. राधा खाना पकाती है।
5. राम कक्षा में पढ़ता है।
6. रमेश मेरा मित्र है।
उत्तरम :
1. आवां किमर्थं हसाव:?
2. अहं कदा पुस्तकानि आनयामि?
3. मोहनः प्रातः व्यायाम करोति।
4. राधा भोजनं पचति।
5. रामः कक्षायां पठति।
6. रमेशः मम मित्रम् अस्ति।

प्रश्न 9.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. यह मेरा घर है।
2. वह एक शिक्षक है।
3. वह सिनेमा देखता है।
4. घोड़ा घास खाता है।
5. वे फल चाहते हैं।
6. तुम सब धन चुराते हो।
उत्तरम :
1. एतत् मम गृहम् अस्ति।
2. सः एकः शिक्षकः अस्ति।
3. सः चलचित्रं पश्यति।
4. अश्वः घासं भक्षयति।
5. ते फलम् इच्छन्ति।
6. यूयं धनं चोरयथ।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. नदी में जल है।
2. विद्यालय में अध्यापक हैं।
3. वह गाँव को गया।
4. ब्राह्मण घर गया।
5. उसने स्नान किया।
6. राम और मोहन पढ़े।
उत्तरम :
1. नद्यां जलम् अस्ति।
2. विद्यालये अध्यापकाः सन्ति।
3. सः ग्रामम् अगच्छत्।
4. विप्रः गृहम् अगच्छत्।
5. सः स्नानम् अकरोत्।
6. रामः मोहनः च अपठताम्।

प्रश्न 11.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. वे दोनों बाग को गये।
2. सीता पानी लायी।
3. लड़की ने खाना खाया।
4. क्या तुम्हारा भाई यहाँ आया?
5. तुम लोग कहाँ गये?
6. सीता ने एक पत्र लिखा।
उत्तरम :
1. तौ उद्यानम् अगच्छताम्।
2. सीता जलम् आनयत्।
3. बालिका भोजनम् अभक्षयत्।
4. किं तव सहोदरः अत्र आगच्छत् ?
5. यूयं कुत्र अगच्छथ?
6. सीता एक पत्रम् अलिखत्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 12.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णा वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. राजा ने रक्षा की।
2. वह प्रसन्न हुआ।
3. उसका मित्र आया।
4. कृष्ण ने अर्जुन से कहा।
5. मुनि ने तप किया।
6. शिशु भयभीत था।
उत्तरम :
1. नृपः अरक्षत्।
2. सः प्रसन्नः अभवत्।
3. तस्य मित्रम् आगच्छत्।
4. कृष्णः अर्जुनम् अकथयत्।
5. मुनिः तपः अकरोत्।
6. शिशुः भयभीतः आसीत्।

प्रश्न 13.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णा वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत-.
1. मैंने चोरों को देखा।
2. राम ने सदा सत्य बोला।
3. सेवक ने अपना कार्य किया।
4. धनिक ने धन दिया।
5. अध्यापक क्रुद्ध हुआ।
6. तुमने कल क्या किया?
उत्तरम :
1. अहं चौरान् अपश्यम्।
2. रामः सदा सत्यम् अवदत्।
3. सेवकः स्वकार्यम् अकरोत्।
4. धनिकः धनम् अयच्छत्।
5. अध्यापकः क्रुद्धः अभवत्।
6. त्वं ह्यः किम् अकरो:?

प्रश्न 14.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णा वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. हमने झूठ नहीं बोला।
2. पिता ने पुत्र को पीटा।
3. ब्रह्मदत्त जावेगा।
4. मोहनश्याम पत्र लिखेगा।
5. लड़के पाठ पढ़ेंगे।
6. तुम पाठ याद करोगे।
उत्तरम :
1. वयम् असत्यं न अवदाम।
2. जनकः पुत्रम् अताडयत्।
3. ब्रह्मदत्त: गमिष्यति।
4. मोहनश्यामः पत्रं लेखिष्यति।
5. बालकाः पाठं पष्ठियन्ति।
6. त्वं पाठं स्मरिष्यसि।

JAC Class 10 Sanskrit रचना अनुवाद कार्यम्

प्रश्न 15.
अधोलिखितेषु षड्सु वाक्येषु केषाञ्चन चतुर्णा वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत –
1. सीता वन को जावेगी।
2. वे सब चित्र देखेंगे।
3. प्रमिला खाना पकायेगी।
4. तुम दोनों दूध पियोगे।
5. छात्र खेल के मैदान में दौड़ेंगे।
6. मैं क्या करूँगा?
उत्तरम :
1. सीता वनं गमिष्यति।
2. ते चित्रं द्रक्ष्यन्ति।
3. प्रमिला भोजनं पक्ष्यति।
2. युवां दुग्धं पास्यथः।
5. छात्राः क्रीडाक्षेत्रे धाविष्यन्ति।
6. अहं किं करिष्यामि?

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

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Question 1.
In Fig, E is any point on median AD of a ∆ABC. Show that ar(∆ABE) = ar(∆ACE).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 1
Answer:
Given, AD is median of ∆ABC. Thus, it will divide ∆ABC into two triangles of equal area.
∴ ar(ABD) = ar(ACD) …(i)
Also, ED is the median of ∆EBC.
∴ ar(EBD) = ar(ECD) ,..(ii)
Subtracting (ii) from (i),
ar(ABD) – ar(EBD) = ar(ACD) – ar(ECD)
⇒ ar(ABE) = ar(ACE)

Question 2.
In a triangle ABC, E is the mid-point of median AD. Show that ar(BED) = \(\frac{1}{4}\) ar(ABC).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 2
Answer:
In ΔABD, E is a mid-point of AD
⇒ BE is the median
⇒ ar (BED) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABD) ……….(i)
[as median divides triangle into two triangles of equal area]
Also, in ΔABC, AD is the median
⇒ ar (ABD) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABC) ……….(ii)
From (i) and (ii), we get
ar (BED) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABD)
= \(\frac{1}{2}\) [\(\frac{1}{2}\) ar (ABC)]
= \(\frac{1}{4}\) ar (ABC)
Therefore, ar (BED) = \(\frac{1}{4}\) ar (ABC)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Question 3.
Show that the diagonals of a parallelogram divide it into four triangles of equal area.
Answer:
O is the mid-point of AC and BD. (diagonals of parallelogram bisect each other)
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 3
In ΔABC, BO is the median.
∴ ar(AOB) = ar(BOC) ……….(i)
Also, in ΔBCD, CO is the median.
∴ ar(BOC) = ar(COD) ………(ii)
In ΔACD, OD is the median.
∴ ar(AOD) = ar(COD) …(iii)
In ΔABD, AO is the median.
∴ ar(AOD) = ar(AOB) …(iv)
From equations (i), (ii), (iii) and (iv),
ar(BOC) = ar(COD) = ar(AOD) = ar(AOB)
So, the diagonals of a parallelogram divide it into four triangles of equal area.

Question 4.
In Fig, ABC and ABD are two triangles on the same base AB. If line segment CD is bisected by AB at O, show that: ar(ABC) = ar(ABD).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 4
Answer:
In ΔADC,
AO is the median. (CD is bisected by AB at O)
∴ ar(AOC) = ar(AOD) ………(i)
Also, in ABCD, BO is the median. (CD is bisected by AB at O)
∴ ar(BOC) = ar(BOD) ………(ii)
Adding (i) and (ii) we get,
ar(AOC) + ar(BOC) = ar(AOD) + ar(BOD)
∴ ar(ABC) = ar(ABD)

Page-163

Question 5.
D, E and F are respectively the mid-points of the sides BC, CA and AB of a ∆ABC. Show that
(i) BDEF is a parallelogram
(ii) ar(ΔDEF) = \(\frac{1}{4}\) ar(ABC)
(iii) ar(BDEF) = \(\frac{1}{2}\) ar(ABC)
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 5
Answer:
(i) In ΔABC,
EF || BC and EF = \(\frac{1}{2}\) BC (by mid-point theorem)
⇒ EF || BD and EF = \(\frac{1}{2}\) BC
Also, BD = \(\frac{1}{2}\) BC (D is the mid-point)
So, BD = EF and EF || BD
Thus, a pair of opposite sides are equal in length and parallel to each other.
∴ BDEF is a parallelogram.

(ii) Similarly, DCEF and AFDE are parallelograms, (as in (i) part)
Diagonal of a parallelogram divides it into two triangles of equal area.
∴ ar(∆BFD) = ar(∆DEF) (For parallelogram BDEF) ………..(i)
Also, ar(∆CDE) = ar(∆DEF) (For parallelogram DCEF) ……..(ii)
ar(∆AFE) = ar(∆DEF) (For parallelogram AFDE) ………….(iii)
From (i), (ii) and (iii)
ar(∆BFD) = ar(∆AFE) = ar(∆CDE) = ar(∆DEF)
⇒ ar(∆BFD) + ar(∆AFE) + ar(∆CDE) + ar(∆DEF) = ar(∆ABC)
⇒ 4 ar(∆DEF) = ar(∆ABC)
⇒ ar(DEF) = \(\frac{1}{4}\) ar(ABC)

(iii) Area (parallelogram BDEF) = ar(∆DEF) + ar(∆BDF)
⇒ ar(parallelogram BDEF) = ar(∆DEF) + ar(∆DEF) [∵ ar (DEF) = ar (BDF)]
⇒ ar(parallelogram BDEF) = 2 × ar(∆DEF)
⇒ ar(parallelogram BDEF) = 2 × \(\frac{1}{2}\) ar(∆ABC) [From (ii) part]
⇒ ar(parallelogram BDEF) = \(\frac{1}{2}\) ar(∆ABC)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Question 6.
In Fig, diagonals AC and BD of quadrilateral ABCD intersect at O such that OB = OD. If AB = CD, then show that:
(i) ar(DOC) = ar(AOB)
(ii) ar(DCB) = ar(ACB)
(iii) DA || CB or ABCD is a parallelogram.
[Hint: From D and B, draw perpendiculars to AC.]
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 6
Answer:
Given: OB = OD and AB = CD
Construction: DE ⊥ AC and BF ⊥ AC are drawn.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 7
Proof:
(i) In ∆DOE and ∆BOF,
∠DEO = ∠BFO (Perpendiculars)
∠DOE = ∠BOF (Vertically opposite angles)
OD = OB (Given)
Therefore, ∆DOE ≅ ∆BOF (by ∆AS congruence criterion)
Thus, DE = BF (By CPCT) ……….(i)

Also, ar(∆DOE) = ar(∆BOF) (Congruent triangles have equal area) ……….(ii)
Now, in ∆DEC and ∆BFA,
∠DEC = ∠BFA (Perpendiculars)
CD = AB (Given)
DE = BF (From (i))
Therefore, ∆DEC ≅ ∆BFA (by RHS congruence criterion)
Thus, ar(∆DEC) = ar(∆BFA) (Congruent triangles have equal area) ………(iii)
Adding (ii) and (iii),
ar(ADOE) + ar(ADEC) = ar(ABOF) + ar(ABFA)
⇒ ar(DOC) = ar(AOB)

(ii) ar(∆DOC) = ar(∆AOB)
(Adding ar(∆BOC) on both sides)
⇒ ar(∆DOC) + ar(∆DOC) = ar(∆AOB) + ar(∆BOC)
⇒ ar(∆DCB) = ar(∆ACD)

(iii) ar(∆DCB) = ar(∆ACB)
If two triangles are having same base and equal areas, these will be between same parallels
⇒ AB || CD ………..(iv)
So, AB = CD and AB || CD
For quadrilateral ABCD, a pair of opposite sides is equal and parallel.
Therefore, ABCD is parallelogram.

Question 7.
D and E are points on sides AB and AC respectively of ∆ABC such that ar(DBC) = ar(EBC). Prove that DE || BC.
Answer:
ADBC and AEBC are on the same base BC and also having equal areas. Therefore, they will lie between the same parallel lines.
Thus, DE || BC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 8

Question 8.
XY is a line parallel to side BC of a triangle ABC. If BE || AC and CF || AB meet XY at E and F respectively, show that: ar(∆ABE) = ar(∆ACF)
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 9
Answer:
Given: XY || BC, BE || AC and CF || AB
To show: ar(∆ABE) = ar(∆ACF)
Proof: EY || BC (XY||BC) ……..(i)
Also, BE || CY (BE || AC) ……….(ii)
From (i) and (ii),
BEYC is a parallelogram. (Both the pairs of opposite sides are parallel.)
Similarly, BXFC is a parallelogram.
Parallelograms on the same base BC and between the same parallels EF and BC.
⇒ ar(BEYC) = ar(BXFC) (Parallelograms on the same base BC and between the same parallels EF and BC) … (iii)
Also, ∆AEB and parallelogram BEYC are on the same base BE and between the same parallels BE and AC.
⇒ ar(∆AEB) = j ar(BEYC) …(iv)
Similarly, ∆ACF and parallelogram BXFC on the same base CF and between the same parallels CF and AB.
⇒ ar(A ACF) = \(\frac{1}{2}\) ar(BXFC) …(v)
From (iii), (iv) and (v),
ar(∆AEB) = ar(∆ACF)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Question 9.
The side AB of a parallelogram ABCD is produced to any point P. A line through A and parallel to CP meets CB produced at Q and then parallelogram PBQR is completed (see Fig.). Show that: ar(ABCD) = ar(PBQR).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 10
[Hint: Join AC and PQ. Now compare ar(ACQ) and ar(APQ).]
Answer:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 11
AC and PQ are joined.
ar(∆ACQ) = ar(∆APQ) (On the same base AQ and between the same parallel lines AQ and CP)
⇒ ar(∆ACQ) – ar(∆ABQ) = ar(∆APQ) – ar(∆ABQ)
⇒ ar(∆ABC) = ar(∆QBP) …(i)
AC and QP are diagonals of ABCD and PBQR respectively.
Thus,
ar(ABC) = \(\frac{1}{2}\) ar(ABCD) …(ii)
ar(QBP) = \(\frac{1}{2}\) ar(PBQR) …(iii)
From (i), (ii) and (iii),
\(\frac{1}{2}\)ar(ABCD) = \(\frac{1}{2}\) ar(PBQR)
⇒ ar(ABCD) = ar(PBQR)

Question 10.
Diagonals AC and BD of a trapezium ABCD with AB || DC intersect each other at O. Prove that ar(AOD) = ar(BOC).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 12
Answer:
∆DAC and ∆DBC lie on the same base DC and between the same parallels AB and CD.
∴ ar(∆DAC) = ar(∆DBC)
⇒ ar(∆DAC) – ar(∆DOC) = ar(∆DBC) – ar(∆DOC)
⇒ ar(∆AOD) = ar(∆BOC)

Question 11.
In Fig, ABCDE is a pentagon. A line through B parallel to AC meets DC produced at F. Show that
(i) ar(ACB) = ar(ACF)
(ii) ar(AEDF) = ar(ABCDE)
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 13
Answer:
(i) ∆ACB and ∆ACF lie on the same base AC and between the same parallels AC and BF.
∴ ar(∆ACB) = ar(∆ACF)

(ii) ar(∆ACB) = ar(∆ACF)
⇒ ar(∆ACB) + ar(∆ACDE) = ar(∆ACF) + ar(∆ACDE)
⇒ ar(ABCDE) = ar(∆AEDF)

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Question 12.
A villager Itwaari has a plot of land of the shape of a quadrilateral. The Gram . Panchayat of the village decided to take over some portion of his plot from one of the corners to construct a Health Centre. Itwaari agrees to the above proposal with the condition that he should be given equal amount of land in lieu of his land adjoining his plot so as to form a triangular plot. Explain how this proposal will be implemented.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 14
Answer:
Let ABCD be the plot of the land of the shape of a quadrilateral.
Construction:
Diagonal BD is joined. AE is drawn parallel to BD. BE is joined which intersects AD at O. ABCE is the shape of the original field and ∆AOB is the area for constructing health centre. Also, ADEO land joined to the plot.
To prove: ar(∆DEO) = ar(∆AOB)
Proof: ∆DEB and ∆DAB lie on the same base BD and between the same parallel lines BD and AE.
ar(∆DEB) = ar(∆DAB)
⇒ ar(∆DEB) – ar(∆DOB) = ar(∆DAB) – ar(∆DOB)
⇒ ar(∆DEO) = ar(∆AOB)

Question 13.
ABCD is a trapezium with AB || DC. A line parallel to AC intersects AB at X and BC at Y. Prove that ar(ADX) = ar(ACY). [Hint: Join CX.]
Answer:
Given: ABCD is a trapezium with AB || DC and XY || AC
To Prove: ar(ADX) = ar(ACY)
Construction: CX is joined.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 15
Proof: ar(∆ADX) = ar(∆AXC) …(i)
(On the same base AX and between the same parallels AB and CD)
Also, ar(A AXC) = ar(A ACY) …(ii)
(On the same base AC and between the same parallels XY and AC.)
From (i) and (ii), ar(∆ADX) = ar(∆ACY)

Question 14.
In Fig, AP || BQ || CR. Prove that: ar(AQC) = ar(PBR).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 16
Answer:
Given: AP || BQ || CR
To Prove: ar(AQC) = ar(PBR)
Proof: ar(∆AQB) = ar(APBQ) …(i)
(On the same base BQ and between the same parallels AP and BQ.)
Also, ar(ABQC) = ar(ABQR) …(ii)
(On the same base BQ and between the same parallels BQ and CR.)
Adding (i) and (ii),
ar(∆AQB) + ar(ABQC)
= ar(APBQ) + ar(ABQR)
⇒ ar(A AQC) = ar(A PBR)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Question 15.
Diagonals AC and BD of a quadrilateral ABCD intersect at O in such a way that ar(AOD) = ar(BOC). Prove that ABCD is a trapezium.
Answer:
Given: ar(∆AOD) = ar(ABOC)
To Prove: ABCD is a trapezium.
Proof: ar(∆AOD) = ar(ABOC) (Given)
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 17
= ar(ABOC) + ar(∆AOB)
⇒ ar(∆ADB) = ar(∆ACB)
Areas of ∆ADB and ∆ACB are equal. Therefore, they must lie between the same parallel lines.
Thus, AB || CD
Therefore, ABCD is a trapezium.

Question 16.
In Fig, ar(DRC) = ar(DPC) and ar(BDP) = ar(ARC). Show that both the quadrilaterals ABCD and DCPR are trapeziums.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 - 18
Answer:
Given: ar(DRC) = ar(DPC) and ar(BDP) = ar(ARC)
To Prove: ABCD and DCPR are trapeziums.
Proof: ar (BDP) = ar (ARC) …(i) (Given)
ar (DPC) = ar (DRC) …(ii) (Given)
On subtracting (ii) from (i), we get
ar (BDP) – ar (DPC) = ar (ARC) – ar (DRC)
⇒ ar (BCD) = ar (ACD)
Therefore, they must lie between the same parallel lines.
Thus, AB || CD
Therefore, ABCD is a trapezium, also, ar(DRC) = ar(DPC).
Therefore, they must lie between the same parallel lines.
Thus, DC || PR
Therefore, DCPR is a trapezium.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3

Page-176

Question 1.
Draw different pairs of circles. How many points does each pair have in common? What is the maximum number of common points?
Answer:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3 - 1
So, maximum number of common points = 2

Question 2.
Suppose you are given a circle. Give a construction to find its centre.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3 - 2
Answer:
Steps of construction:
Step I: A circle is drawn.
Step II: Two chords AB and CD are drawn.
Step III: Perpendicular bisector of the chords AB and CD are drawn.
Step IV: Let these two perpendicular bisectors meet at a point. The point of intersection of these two perpendicular bisectors is the centre of the circle.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3

Question 3.
If two circles intersect at two points, prove that their centres lie on the perpendicular bisector of the common chord.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.3 - 3
Answer:
Given: Two circles which intersect each other at P and Q.
To prove: 00′ is perpendicular bisector of PQ.
Proof: In ∆POO’ and ∆QOO’,
OP = OQ (Radii)
OO’ = 00′ (Common)
O’P = O’Q (Radii)
∆POO’ ≅ ∆QOO’
(SSS congruence criterion)
Thus,
∠POO’ = ∠QOO’ (CPCT) …(i)
In ∆POR and ∆QOR,
OP = OQ (Radii)
∠POR = ∠QOR (from i)
OR = OR (Common)
∴ ∆POR ≅ ∆QOR
(SAS congruence criterion)
Thus, PR = PQ (CPCT)
And, ∠PRO = ∠QRO (CPCT)
Also, ∠PRO + ∠QRO = 180° (Linear pair)
⇒ ∠PRO = ∠QRO = \(\frac{180°}{2}\) = 90°
Hence, OO’ is perpendicular bisector of PQ.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.2

Page-173

Question 1.
Recall that two circles are congruent if they have the same radii. Prove that equal chords of congruent circles subtend equal angles at their centres.
Answer:
Given: AB = CD (Equal chords)
To prove: ∠AOB = ∠CO’D
Proof: In AAOB and ACO’D,
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.2 - 1
OA = O’C
OB = O’D
AB = CD
∴ ∆AOB ∆CO’D
(SSS congruence criterion)
Thus, ∠AOB ≅ ∠CO’D by CPCT.
i.e. Equal chords of congruent circles subtend equal angles at their centres.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.1

Question 2.
Prove that if chords of congruent circles subtend equal angles at their centres, then the chords are equal.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.2 - 2
Answer:
Given: ∠AOB = ∠CO’D (Equal angles)
To prove: AB = CD
Proof: In ∆AOB and ∆CO’D,
OA = O’C (Radii)
∠AOB = ∠CO’D (Given)
OB = O’D (Radii)
∴ ∆AOB ≅ ∆CO’D
(SAS congruence criterion)
Thus, AB = CD by CPCT.
If chords of congruent circles subtend equal angles at their centres, then the chords are equal.

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

निर्देश – संवाद-लेखन का उद्देश्य विद्यार्थियों को संस्कृत में सम्भाषण क्षमता को प्रेरित करना एवं मूल्यांकन करना है। ताकि विद्यार्थी संस्कृत के माध्यम से वार्तालाप करने में सक्षम हो सकें और अपने भावों को संस्कृत में व्यक्त कर सकें। वार्तालाप पूर्णरूपेण संस्कृत में ही लिखा जाएगा तथा उत्तर भी संस्कृत में ही अपेक्षित है अर्थात् वार्तालाप को संस्कृत में ही लिखना है। यहाँ उत्तर में वाक्यों का हिन्दी अर्थ दिया गया है। वह केवल समझने के लिए है, उत्तर-पुस्तिका में नहीं लिखना है।

संवाद अथवा वार्तालाप दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य होता है। इसकी दो प्रमुख शैलियाँ हैं – (i) प्रश्नात्मक संवाद (ii) आदेशात्मक संवाद। संवाद में उत्तर सदैव ही प्रश्नानुसार होने चाहिए। जिस शैली और वाच्य में प्रश्न पूछा गया हो, उसी शैली और वाच्य में उत्तर दिया जाना चाहिए। संवाद में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रश्नोत्तर निर्माण का अच्छा अभ्यास होना चाहिए। साथ ही परस्पर सम्भाषण का अभ्यास भी करना चाहिए। इस प्रश्न को अच्छी तरह हल करने के लिए विद्यार्थियों को निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए –
1. पूरे संवाद को ध्यान से पढ़ना चाहिए।
2. प्रथम प्रश्न का उत्तर लिखने से पहले दूसरे प्रश्न को अवश्य पढ़ लेना चाहिए, क्योंकि संवाद में प्रश्नों के उत्तर प्रायः अगले प्रश्न के अन्दर ही मिल जाते हैं।
3. उत्तर देते समय वाक्य को लम्बा नहीं रखना चाहिए।
4. उत्तर प्रश्न के अनुसार ही होना चाहिए अर्थात् अपेक्षित उत्तर ही होना चाहिए।
5. संवाद-लेखन में लिंग-वचन का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है।
6. यदि संवाद बड़े और छोटे व्यक्ति के मध्य हों तो छोटे व्यक्ति का संवाद आज्ञात्मक नहीं होना चाहिए।
7. वार्तालाप के काल का ध्यान भी रखना आवश्यक है।
8. मञ्जूषा में दिए गये शब्दों के चयन के समय कर्ता-क्रिया, संज्ञा-सर्वनाम तथा विशेषण-विशेष्य आदि के समुचित समन्वय को भी ध्यान में अवश्य रखना चाहिए।
9. मंजूषा के शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़कर ही प्रयोग करना चाहिए।
10. आदेशात्मक-संवाद में उत्तर प्रायः वर्तमान काल या भूतकाल में होते हैं, अतः तदनुसार ही उत्तर देना चाहिए।

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

1. मञ्जूषातः उपयुक्तपदानि गृहीत्वा अध्ययनविषये पितापुत्रयोः संवादं पूरयतु
मञ्जूषा – अध्यापकः, विषये, गणिते, व्यवस्थां, स्थानान्तरणम्, अध्ययनं, समीचीनं, काठिन्यम्।
पिता – रमेश! तव ……………कथं प्रचलति?
रमेशः – हे पितः! अध्ययनं तु…………….प्रचलति।
पिता – कोऽपि विषयः एतादृशः अस्ति यस्मिन् त्वं …………… अनुभवसि?
रमेशः – आम्! …………. मम स्थितिः सम्यक् नास्ति। यतोहि अस्माकं विद्यालये इदानीं गणितस्य ………… नास्ति।
पिता – त्वं पूर्वं तु माम् अस्मिन् ……………… न उक्तवान् !
रमेशः – पूर्वं तु अध्यापक-महोदयः आसीत् परं एकमासात् पूर्वमेव तस्य …………….अन्यत्र अभवत्।
पिता – अस्तु। अहं तव कृते गृहे एव गणिताध्यापकस्य ……………. करिष्यामि।
रमेशः – धन्यवादाः।
उदाहरणार्थ – समाधानम्: –
पिता – रमेश! तव अध्ययनं कथं प्रचलति? (रमेश! तेरा अध्ययन (पढ़ाई) कैसा चल रहा है ?)
रमेशः – हे पितः! अध्ययनं तु समीचीनं प्रचलति। (पिताजी! अध्ययन तो ठीक चल रहा है।)
पिता – कोऽपि विषयः एतादृशः अस्ति यस्मिन् त्वं काठिन्यम् अनुभवसि? (कोई भी विषय ऐसा है, जिसमें तुम्हें कठिनाई अनुभव हो रही हो?)
रमेशः – आम्! गणिते मम स्थितिः सम्यक् नास्ति। यतोहि अस्माकं विद्यालये इदानीं गणितस्य अध्यापकः नास्ति। (हाँ! गणित में मेरी स्थिति ठीक नहीं है। क्योंकि हमारे विद्यालय में इस समय गणित का अध्यापक नहीं है।)
पिता – त्वं पर्वं तमाम अस्मिन विषये न उक्तवान ! (तुमने पहले तो मुझसे इस विषय के बारे में नहीं कहा।)
रमेशः – पूर्वं तु अध्यापक-महोदयः आसीत् परं एकमासात् पूर्वमेव तस्य स्थानान्तरणम् अन्यत्र अभवत्। (पहले तो अध्यापक महोदय थे, लेकिन एक महीने पूर्व ही उनका स्थानान्तरण दूसरी जगह हो गया।)
पिता – अस्तु। अहं तव कृते गृहे एव गणिताध्यापकस्य व्यवस्थां करिष्यामि। (हो! मैं तुम्हारे लिए घर पर ही गणित अध्यापक की व्यवस्था करूँगा।)
रमेशः – धन्यवादाः। (धन्यवाद।)

2. मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः ‘जयपुरभ्रमणम्’ इति विषये मित्रयोः परस्परं वार्तालापं पूरयतु।
मञ्जूषा – मित्रैः, जयपुरं, कार्यक्रमः, दर्शनीयम्, यात्रानुभवविषये, द्रक्ष्यामः
विनोदः – अंकित ! श्वः भवान् कुत्र गमिष्यति?
अंकितः – अहं ……………..गमिष्यामि।
विनोदः – तत्र किमपि कार्यं वर्तते? अथवा …… एवं गच्छति?
अंकितः – कार्यं नास्ति, अहं तु …………….. सह भ्रमणार्थं गच्छामि।
विनोदः – जयपुरे कुत्र-कुत्र भ्रमणस्य …………….. अस्ति?
अंकितः – वयं तत्र आमेर-दुर्ग, जयगढ़दर्ग, गोविन्ददेव-मन्दिरं च ……….
विनोदः – तत्र नाहरगढ़-दुर्गमपि पश्यतु। तदपि …………….. अस्ति।
अंकितः – यदि समयः अवशिष्टः भविष्यति तर्हि निश्चयेन तत्र गमिष्यामः।
विनोदः – बाढू मित्र ! नमस्ते! इदानीम् अहं गच्छामि। सोमवासरे आवां पुनः मिलिष्यावः। तदा वार्तालापं करिष्यावः।
उत्तरम् :
विनोदः – अंकित! श्वः भवान् कुत्र गमिष्यति? (अंकित कल आप कहाँ जाओगे?)
अंकितः – अहं जयपुरं गमिष्यामि। (मैं जयपुर जाऊँगा।)
विनोदः – तत्र किमपि कार्यं वर्तते? अथवा भ्रमणार्थम् एव गच्छति? (वहाँ कोई भी कार्य है अथवा घूमने के लिए ही जाना है।)
अंकितः – कार्यं नास्ति, अहं तु मित्रैः सह भ्रमणार्थं गच्छामि। (कार्य नहीं है, मैं तो मित्रों के साथ घूमने के लिए जाता हूँ।)
विनोदः – जयपुरे कुत्र-कुत्र भ्रमणस्य कार्यक्रमः अस्ति? (जयपुर में कहाँ-कहाँ घूमने का कार्यक्रम है?)
अंकित: – वयं तत्र आमेर-दुर्गं, जयगढ़दुर्ग, गोविन्ददेव-मन्दिरं च द्रक्ष्यामः।
(हम सब वहाँ आमेर किला, जयगढ़ किला और गोविन्द मन्दिर देखेंगे।)
विनोदः – तत्र नाहरगढ़-दुर्गमपि पश्यतु। तदपि दर्शनीयम् अस्ति। (वहाँ नाहरगढ़ किला भी देखो, वह भी देखने योग्य है।)
अंकित: – यदि समयः अवशिष्टः भविष्यति तर्हि निश्चयेन तत्र गमिष्यामः।
(यदि समय शेष रहेगा तो निश्चित रूप से वहाँ जायेंगे।)
विनोदः – बाढ़ मित्र ! नमस्ते! इदानीम् अहं गच्छामि। सोमवासरे आवां पुनः मिलिष्यावः। तदा यात्रानुभवविषये वार्तालापं करिष्यावः। (ठीक ! मित्र नमस्ते। इस समय मैं जाता हूँ। सोमवार को हम दोनों फिर मिलेंगे। तब यात्रा विषय के बारे में बातचीत करेंगे।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

3. मञ्जूषायाः उपयुक्तपदानि गृहीत्वा गुरुशिष्ययोः मध्ये क्रीडायाः विषये संवादं पूरयत।
[मञ्जूषाः अध्ययनम्, क्रीडने बहुलाभम्, आवश्यकता, अधुना, करोषि, क्रीडाङ्गणे, क्रीडायै]
अध्यापकः – प्रवीण! त्वम् अत्र किं ………….. ?
प्रवीणः – हे गुरो! अहम् ………….. किमपि न करोमि।
अध्यापकः – तर्हि गच्छ। तव मित्राणि तत्र ………….. क्रीडन्ति, तैः सह क्रीड।
प्रवीणः – मम………….. रुचिः नास्ति। अतः अहं न क्रीडामि।
अध्यापकः – स्वस्थशरीरस्य स्वस्थमनसः च कृते क्रीडायाः अस्माकं जीवने महती…………..भवति।
प्रवीणः – यदि अहं क्रीडायां ध्यानं दास्यामि तर्हि मम ………….. बाधितं भविष्यति।
अध्यापकः – एतद् समीचीनं नास्ति। क्रीडायै स्वल्पसमयम् एव प्रयच्छ। अल्पसमयः अपि शरीराय………… प्रदास्यति।
प्रवीणः – बाढ़म् श्रीमन् ! इतः आरभ्य अहं कञ्चित् समयं ………….. अपि दास्यामि।
उत्तरम् :
अध्यापकः – प्रवीण! त्वम् अत्र किं करोषि ? (प्रवीण! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?)
प्रवीणः – हे गुरो! अहम् अधुना किमपि न करोमि। (हे गुरु ! मैं अब कुछ भी नहीं कर रह)
अध्यापकः – तर्हि गच्छ। तव मित्राणि तत्र क्रीडाङ्गणे क्रीडन्ति, तैः सह क्रीड। (तो जाओ! तुम्हारे मित्र वहाँ खेल के मैदान में खेल रहे हैं। उनके साथ खेलो।)
प्रवीणः – मम क्रीडते रुचिः नास्ति। अतः अहं न क्रीडामि। (मेरी खेलने में रुचि नहीं है। इसलिए मैं नहीं खेलता हूँ।)
अध्यापकः – स्वस्थशरीरस्य स्वस्थमनसः च कृते क्रीडायाः अस्माकं जीवनं महती आवश्यकता भवति। (स्वस्थ शरीर का स्वस्थ मन और खेल का हमारे जीवन के लिए बहुत महत्व है।)
प्रवीणः – यदि अहं क्रीडायां ध्यानं दास्यामि तर्हि मम अध्ययनं बाधितं भविष्यति। (यदि मैं खेल में ध्यान दूंगा, तो मेरी पढ़ाई (अध्ययन) में बाधा होगी।)
अध्यापकः – एतद् समीचीनं नास्ति। क्रीडायै स्वल्पसमयम् एव प्रयच्छ। अल्पसमयः अपि शरीरस्य बहुलाभम् प्रदास्यति। (यह ठीक नहीं है। खेलने के लिए थोड़ा समय ही दो। थोड़ा समय भी शरीर को बहुत लाभ देगा।)
प्रवीणः – बाढ़म् श्रीमान् ! इतः आरभ्य अहं कञ्चित् समयं क्रीडायै अपि दास्यामि। (श्रीमान् जी ठीक है! अब प्रारम्भ करके मैं कुछ समय खेलने के लिए भी दूंगा।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

4. मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया मातापुत्रयोः मध्ये वार्तालापं पूरयतु।
मञ्जूषाः – वस्तूनि, आपणं, सायंकाले, विद्यालयस्य, मातुलः, भोजनं, त्वं
माता – राघव! ……………किं करोषि?
राघवः – अहं मम …………… गृहकार्यं करोमि।
माता – पुत्र! गृहकार्यानन्तरम् …………… गत्वा ततः दुग्धं शाकफलानि च आनय।
राघवः – अहं …………… पुस्तकं क्रेतुम् आपणं गमिष्यामि तदा दुग्धं शाकफलानि च आनेष्यामि।
माता – सायंकाले न, त्वं तु पूर्वमेव गत्वा आनय।
राघवः – शीघ्रं किमर्थम्?
माता – अद्य तव …………… आगमिष्यति, अतः …………….. समयात् पूर्वमेव पक्ष्यामि।
राघवः – मातुल: आगमिष्यति चेत् अहम् इदानीम् एव गत्वा …………… क्रीत्वा आगच्छामि।
उत्तरम् :
माता – राघव! त्वं किं करोषि? (राघव! तुम क्या कर रहे हो?)
राघवः – अहं मम विद्यालयस्य गृहकार्यं करोमि। (मैं अपने विद्यालय का गृहकार्य कर रहा हूँ।)
माता – पुत्र! गृहकार्यानन्तरम् आपणं गत्वा ततः दुग्धं शाकफलानि च आनय। (पुत्र! गृहकार्य के बाद बाजार जाकर वहाँ से दूध, सब्जी और फल ले आओ।)
राघवः – अहं सायंकाले पुस्तकं क्रेतुम् आपणं गमिष्यामि तदा दुग्धं शाकफलानि च आनेष्यामि। (मैं सायं के समय पुस्तक खरीदने बाजार जाऊँगा, तब दूध, सब्जी और फल ले आऊँगा।)
माता – सायंकाले न, त्वं तु पूर्वमेव गत्वा आनय। (सायं के समय नहीं, तुम तो पहले ही जाकर लाओ।)
राघवः – शीघ्रं किमर्थम? (जल्दी किसलिए?)
माता – अद्य तव मातुलः आगमिष्यति, अतः भोजनं समयात् पूर्वमेव पक्ष्यामि। (आज तुम्हारे मामा आयेंगे, इसलिए खाना समय से पहले पकाऊँगी।)
राघवः – मातुल: आगमिष्यति चेत् अहम् इदानीम् एव गत्वा वस्तूनि क्रीत्वा आगच्छामि। (मामाजी आयेंगे ठीक, मैं इस समय ही जाकर वस्तुएँ खरीदकर आता हूँ।)

5. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित पद चुनकर अधोलिखित संवाद पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – गातुम्, इच्छन्ति, वयं, महोदये, परन्तु, यदि, शोभनम्, आवश्यकता।
अध्यापिका – बालाः ! किं भवन्तः किञ्चित् प्रष्टुम्: (i) ……………. ?
बालाः – महोदये ! (ii) ……………… तु गातुम् इच्छामः।
अध्यापिका – गातुम इच्छन्ति ! (ii) ……………….. अहं त (iv) ………………. न समर्था।
बालाः – (v) ……………….. ! वयं गास्यामः समूहगानम्। (vi) ……………. भवती अपि।
अध्यापिका – (vii) ……………… ! अहम् अपि गास्यामि। गीतं किम् अस्ति ? किं वाद्ययन्त्राणाम् अपि (viii) ……………… अस्ति।
बालाः – वाद्ययन्त्राणि यदि सन्ति, शोभनम्। अन्यथा एतानि विना एव गास्यामः। गीतं तु ‘पोङ्गल’ इति उत्सवेन सम्बद्धम् अस्ति।
अध्यापिका – एवं ! तदा गायामः।
बालाः – (सस्वरं गायन्ति)
उत्तरम् :
अध्यापिका – बालाः ! किं भवन्तः किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छन्ति ? (बच्चो ! क्या आप कुछ पूछना चाहती हैं ?)
बालाः – महोदये ! वयं तु गातुम् इच्छामः। (महोदया ! हम तो गाना चाहती हैं।)
अध्यापिका – गातुम् इच्छन्ति ! परन्तु अहं तु गातुम् न समर्था। – (गाना चाहती हैं ! लेकिन मैं तो गाने में समर्थ नहीं हूँ।)
बालाः – महोदये ! वयं गास्यामः समूहगानम्। यदि भवती अपि। (महोदया ! हम गायेंगे समूहगान। यदि आप भी।)
अध्यापिका – शोभनम् ! अहम् अपि गास्यामि। गीतं किम् अस्ति ? किं वाद्ययन्त्राणाम् अपि आवश्यकता अस्ति ? (अच्छा ! मैं भी गाऊँगी। गीत क्या है ? क्या वाद्य यन्त्रों की भी आवश्यकता है ?)
बालाः – वाद्ययन्त्राणि यदि सन्ति, शोभनम्। अन्यथा एतानि विना एव गास्यामः। गीतं तु ‘पोङ्गलः’ इति उत्सवेन सम्बद्धम् अस्ति। (वाद्ययन्त्र (बाजे) यदि हैं तो अच्छा है। अन्यथा इनके बिना ही गायेंगे (सही)। गीत तो ‘पोंगल’ उत्सव से सम्बद्ध है।)
अध्यापिका – एवम् ! तदा गायामः। (यह बात है ! तो गाते हैं।)
बालाः – (सस्वरं गायन्ति) (सस्वर गाते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

6. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित पद चुनकर निम्नलिखित संवाद पूरा करो।)
मञ्जूषा – अवश्यमेव, आचारः, पाठशालाम्, एका, पञ्चदश, स्नेहशीलः, तव, अध्येतुम्, पाठशालायाम्, गच्छसि।
कृष्णः – त्वं कुत्र (i) ………………..?
राधा – अहम् (ii) ………………. गच्छामि।
कृष्णः – (iii) ………….” पाठशालायां कति शिक्षकाः ?
राधा – मम पाठशालायाम् (iv) “………….. शिक्षकाः।
कृष्णः – तव (v) ………. शिक्षिका न अस्ति ?
राधा – (vi) …………….. शिक्षिका अस्ति।
कृष्णः – शिक्षकाणां (vii) ………………. कीदृशः अस्ति ?
राधा – (viii) …………….. ।
उत्तरम् :
कृष्णः – त्वं कुत्र गच्छसि ? (तुम कहाँ जा रही हो ?)
राधा – अहं पाठशालां गच्छामि। (मैं पाठशाला जा रही हूँ।)
कृष्णः – तव पाठशालायां कति शिक्षकाः ? (तुम्हारी पाठशाला में कितने शिक्षक हैं ?)
राधा – मम पाठशालायां पञ्चदश शिक्षकाः। (मेरी पाठशाला में पन्द्रह शिक्षक हैं।)
कृष्णः – तव पाठशालायां शिक्षिका न अस्ति ? (तुम्हारी पाठशाला में शिक्षिका नहीं है ?)
एका शिक्षिका अस्ति। (एक शिक्षिका है।)
कृष्णः – शिक्षकाणां आचारः कीदृशः अस्ति ? (शिक्षकों का व्यवहार कैसा है ?)
राधा – स्नेहशीलः। (प्रेमपूर्णः)

7. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं सख्योः संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्न दो सखियों के संवाद को पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – वाता, भोजनं, चिकित्सकः, इच्छामि, सेवार्थं, गृहे, चिकित्सालये, व्याकुला, श्रोष्यति, तत्र।
रमा – प्रिय सखि लते ! किमर्थं (i) ……………. असि ?
लता – मम पिता अतीव रुग्णः। राजकीय (ii)……………. प्रवेशितः।
रमा – एवम्! ? किं तव माता (iii) ……………. नास्ति?
लता – मम माता अपि (iv)……………. चिकित्सालयं गता।
रमा – तर्हि त्वं मया सह चल। मम गृहे (v) ……………. कुरु।
लता – भोजनं न (vi)…………….। रमाणु मम पिता अपि तस्मिन्नेव चिकित्सालये (vii) ………….. अस्ति।
लता – (अहं चिकित्सालये तेन सह (viii) ………………… करिष्यामि।
उत्तरम् :
रमा – प्रिय सखि लते ! किमर्थं व्याकुला असि ? (प्यारी सखी लता, किसलिए व्याकुल है ?)
लता – मम पिता अतीव रुग्णः। राजकीय चिकित्सालये प्रवेशितः। (मेरे पिताजी बहुत बीमार हैं। सरकारी अस्पताल में भर्ती कराए हैं।)
रमा – एवम् ! किं तव माता गृहे नास्ति ? (क्या तुम्हारी माँ घर पर नहीं है ?)
लता – मम माता अपि सेवार्थं चिकित्सालयं गता। (मेरी माताजी भी सेवा के लिए अस्पताल गईं।)
रमा – तर्हि त्वं मया सह चल। मम गृहे भोजनं कुरु। (तो तुम मेरे साथ चलो। मेरे घर पर भोजन करो।)
लता – भोजनं न इच्छामि। (भोजन की इच्छा नहीं है।)
रमा – शृणु मम पिता अपि तस्मिन्नेव चिकित्सालये चिकित्सकः अस्ति। (सुन, मेरे पिताजी भी उसी अस्पताल में डॉक्टर हैं।)
लता – अहं चिकित्सालये तेन सह वार्ता करिष्यामि। (मैं अस्पताल में उनसे बात करूँगी।)

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8. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं ‘नागरिकनाविकयोः संवादं’ पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्नलिखित ‘नागरिक-नाविक संवाद’ की पूर्ति कीजिए।)
मञ्जूषा – तारकानि, नौका, नक्षत्र-विद्याम्, त्रिचतुर्थांशः, चतुर्थांशः, गणना, जीवनस्य, उदरं, सम्पूर्णमेव, तरणम्।
नागरिकः – भोः नाविक ! (i) ………….. जानासि ?
नाविकः – नहि नहि अहं तु प्रतिदिनं (ii) ………….. दृष्ट्वा नमामि।
नागरिकः – (हसन्) भो मूर्ख ! तव जीवनस्य (iii) ……………. नष्टः। गणितं पठितवान् किम् ?
नाविकः – (iv) ……………. जानामि न तु गणितम्।
नागरिकः – अरे तव (v) ……………. अर्धं व्यर्थः गतः। वृक्षविज्ञानं जानासि ?
नाविकः – न जानामि। कथमपि (vi)…………….. चालयामि (vii)…………….. च पालयामि।
नागरिकः – हा हन्त! तव जीवनस्य (viii) ……………. व्यर्थः गतः।।
नाविकः – श्रीमान् वायु प्रकोपः उत्पन्नः। अहं तु कुर्दित्वा तरामि। किं त्वं तरणं जानासि ?
उत्तरम् :
नागरिकः – भो नाविक! नक्षत्रविद्यां जानासि ? (अरे नाविक ! क्या तुम नक्षत्र विद्या को जानते हो ?)
नाविकः – नहि नहि अहं तु प्रतिदिनं तारकानि दृष्ट्वा नमामि। (नहीं नहीं मैं तो नित्य तारों को देखकर नमस्कार करता हूँ।)
नागरिकः – (हसन्) भो मूर्ख ! तव जीवनस्य चतुर्थांश: नष्टः। गणितं पठितवान् किम् ?
(हँसकर) अरे मूर्ख तेरे जीवन का चौथाई भाग नष्ट हो गया। क्या गणित पढ़ा है?]
नाविकः – गणनां जानामि न तु गणितम्। (गिनती तो जानता हूँ गणित नहीं।)
नागरिकः – अरे तव जीवनस्य अर्धंः व्यर्थः गतः। वृक्षविज्ञानं जानासि ? (अरे तेरे जीवन का आधा बेकार गया वृक्ष विज्ञान जानते हो?)
नाविकः – न जानामि। कथमपि नौकां चालयामि उदरं च पालयामि। (नहीं जानता ! जैसे तैसे नौका चलाता हूँ और पेट पालता हूँ।)
नागरिकः – हा हन्त ! तव जीवनस्य त्रिचतुर्थांशः व्यर्थः गतः। (अरे खेद है ! तेरे जीवन का तीन-चौथाई भाग व्यर्थ गया।)
नाविकः – श्रीमान्, वायु प्रकोपः उत्पन्नः। अहं तु कूर्दयित्वा तरामि। किं त्वं तरणं जानासि ? (श्रीमान् तूफान आ गया है। मैं तो कूद कर तैर जाता हूँ। क्या तुम तैरना जानते हो ?)

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9. निम्नलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषाः अस्माभिः, नावगच्छामि, हीरकं, तेन, उपहारः, प्रत्यागताः कर्त्तव्यं, कर्त्तव्यबोधः, मूल्यवान्, तदर्थम्।]
गौरवः – निधे ! मम पितृमहोदयाः ह्यः विदेशात् (i) …………….।
निधिः – शोभनम् ! ततः (ii) ………….. किम् आनीतम् ?
गौरवः – एकः अतीव मूल्यवान् (iii) …………….।
निधिः – किमपि स्वर्णं (iv) ……………. वा ?
गौरवः – नहि ततोऽपि अधिकं मूल्यवान् (v) …………….
निधिः – कर्तव्यबोधः इति ? किम् (vi) …………….।
गौरवः – एष बोधः यत् (vii) ……………. देशनिन्दां त्यक्त्वा तदर्थं (viii) ………… पालनीयम्।
निधिः – सत्यम्। वय सत्यम्। वयं भारतीयाः केवलं निन्दामः।
उत्तरम् :
गौरवः – निधे ! मम पितृमहोदयाः ह्यः विदेशात् प्रत्यागताः। (निधि, मेरे पिताजी कल ‘विदेश से लौट आये।)
निधिः – शोभनम् ! ततः तेन किम् आनीतम् ? (अच्छा, वहाँ से वे क्या लाये ?)
गौरवः – एकः अतीव मूल्यवान् उपहारः। (एक बेशकीमती उपहार।)
निधिः – किमपि स्वर्णं हीरकं वा ? (क्या कोई सोना या हीरा ?)
गौरवः – नहि, ततोऽपि अधिकं मूल्यवान् कर्त्तव्यबोधः। (नहीं, उससे भी अधिक कीमती ‘कर्त्तव्यबोध’।
निधिः – कर्त्तव्यबोधः इति किम् ? नावगच्छामि। (कर्त्तव्यबोध क्या है ? नहीं जानता।)
गौरवः – एष बोधः यत् अस्माभिः देशनिन्दां त्यक्त्वा तदर्थं कर्त्तव्यं पालनीयम्। (यह बोध कि हमें देश की निन्दा त्यागकर उसके लिए कर्त्तव्य-पालन करना चाहिए।)
निधिः – सत्यम्, वयं भारतीयाः केवलं निन्दामः। (सच, हम भारतीय केवल निन्दा करते हैं।)

10. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं ‘मातापत्रयोः संवादं पुरयत।।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्नलिखित ‘माता और पुत्र के संवाद’ की पूर्ति कीजिए।)
[मञ्जूषा – धनं, शर्करां, विना, पीतवान्, अम्ब, द्विदलं च, करोषि, दुग्धं, प्रक्षालयामि, आनयामि।]
माता – कनक ! किं (i) ………… त्वम् ?
कनक – पाठं पठामि (ii)…………….।
माता – दुग्धं पीतवान् ?
कनक – (iii) ……………. नैव पीतम्।
माता – तर्हि दुग्धं (iv) ……………….. आपणं गच्छसि किम् ?
कनक – अम्ब ! किम् (v) ……………. ततः ?
माता – आपणं गत्वा लवणं (vi)……………. तण्डुलान् गुडं (vii)…….. आनय। कनक तर्हि शीघ्रं (viii) ……………. स्यूतं च ददातु अम्ब !
उत्तरम् :
माता – कनक! किं करोषि त्वम् ? (कनक! तुम क्या कर रहे हो ?)
कनक – पाठं पठामि अम्ब ! (माँ! पाठ पढ़ रहा हूँ।)
माता – दुग्धं पीतवान् ? (दूध पिया?)
कनक – दुग्धं नैव पीतम्। (दूध नहीं पिया।)
माता – तर्हि दुग्धं पीत्वा आपणं गच्छसि किम् ? (तो दूध पीकर बाजार जा रहे हो क्या ?)
कनक – अम्ब ! किम् आनयामि ततः? (माँ! वहाँ से क्या लाऊँ ?)
माता – आपणं गत्वा लवणं, शर्करां, तण्डुलान्, गुडं, द्विदलं च आनय। (बाजार जाकर नमक, चीनी, चावल, गुड़ और दाल ले आओ।)
कनक – तर्हि शीघ्रं धनं स्यूतं च ददातु, अम्ब ! (तो जल्दी ही धन और थैला दे दो माँ।)

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11. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में प्रदत्त पदों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – अद्य, प्रदर्शनी, भवत्याः, अनुजः, कलानिकेतने, जानामि, सौभाग्यम्, करिष्यामः, एकाकी, स्वागतम्।]
प्रभा – शोभने ! कुत्र गच्छसि ?
शोभना – चित्र (i)……………. द्रष्टुम् (ii)…………….।
प्रभा – (iii) ……………. कलानिकेतनस्य प्राङ्गणे चित्र प्रदर्शनी प्रदर्शिता।
शोभना – अहं (iv)…………….। अद्य अहमपि (v)……………. गृहम् आगमिष्यामि। प्रभा मम (vi) …………….। भवत्याः स्वागतम्। किम् एकाकी एव आगमिष्यसि ?
शोभना – न न ! मम माता (vii) ……………. च अपि भविष्यतः।।
प्रभा – एवम्। प्रथमं मम गृहम् आगच्छतु। ततः मिलित्वा चलिष्यामः।
शोभना – एवमेव (viii) …………….। उत्तरम् प्रभा – शोभने! कुत्र गच्छसि ? (शोभना, कहाँ जा रही हो ?)
शोभना – चित्रप्रदर्शनी द्रष्टुं कलाकेन्द्रे। (चित्र प्रदर्शनी देखने कला केन्द्र में 1)
प्रभा – अद्य कलानिकेतनस्य प्राङ्गणे चित्रप्रदर्शनी प्रदर्शिता। (आज कलानिकेतन के प्राङ्गण में चित्र प्रदर्शनी दिखाई गई।)
शोभना – अहं जानामि। अद्य अहमपि भवत्याः गृहम् आगमिष्यामि। (मैं जानती हूँ। आज मैं भी आपके घर आऊँगी।)
प्रभा – मम सौभाग्यम्। भवत्याः स्वागतम्। किम् एकाकी एव आगमिष्यसि। (मेरा सौभाग्य। आपका स्वागत। क्या अकेली ही आओगी ?)
शोभना – न, न ! मम माता अनुजः च अपि भविष्यतः। (न, न ! मेरी माताजी और छोटा भाई भी (दोनों) होंगे।)
प्रभा – एवम्। प्रथमं मम गृहम् आगच्छतु। ततः मिलित्वा चलिष्यामः। (ऐसा है। पहले मेरे घर आओ। वहाँ से मिलकर चलेंगे।)
शोभना – एवमेव करिष्यामः। (ऐसा ही करेंगे।)

12. मजूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखित गौरवसौरभयोः संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्दों को चुनकर निम्न गौरव और सौरभ दोनों के संवाद को पूरा कीजिए।)
मम्जूषा – त्वया, भविष्यति, उत्सवः, अवश्यमेव, विद्यालयम्, बालकाः, करिष्यसि, किम्, पितृजनाः, मङ्गलाचरणम्।।
गौरवः – किं त्वं श्वः (i) ………….. गमिष्यसि ?
सौरभः – मम विद्यालये श्वः (ii) ……….. अस्ति। अत: (iii) ………. अहं विद्यालयं गमिष्यामि।
गौरवः – किम् अन्येऽपि (iv)……………. आगमिष्यन्ति ?
सौरभः – न केवलं बालकाः अपितु तेषां (v) ………… अपि आगमिष्यन्ति।
गौरवः – त्वम् उत्सवे किं किं (vi) …………….।
सौरभः – अहं (vii) ……………. पठिष्यामि।
गौरवः – (viii)……………. तत्र क्रीडाः अपि भविष्यन्ति ?
सौरभः – आम्। तत्र अनेकाः क्रीडाः भविष्यन्ति।
उत्तरम् :
गौरवः – किं त्वं श्वः विद्यालयं गमिष्यसि ? (क्या तुम कल स्कूल जाओगे ?)
सौरभः – मम विद्यालये श्वः उत्सवः अस्ति। अतः अवश्यमेव अहं विद्यालयं गमिष्यामि। (मेरे विद्यालय में कल उत्सव है। अतः अवश्य ही मैं विद्यालय को जाऊँगा।)
गौरवः – किम् अन्येऽपि बालकाः आगमिष्यन्ति ? (क्या अन्य बालक भी आयेंगे ?)
सौरभः – न केवलं बालकाः अपितु तेषां पितृजनाः अपि आगमिष्यन्ति। (न केवल बालक अपितु उनके पितृजन भी आयेंगे।)
गौरवः – त्वम् उत्सवे किं किं करिष्यसि ? (तुम उत्सव में क्या-क्या करोगे ?)
सौरभः – अहं मङ्गलाचरणं पठिष्यामि। (मैं मंगलाचरण पढूँगा।)
गौरवः – किं तत्र क्रीडाः अपि भविष्यन्ति ? (क्या वहाँ खेलकद होंगे ?)
सौरभः – आम्, तत्र अनेकाः क्रीडाः भविष्यन्ति। (हाँ, वहाँ अनेक खेल होंगे।)

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13. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं ‘मातापुत्रयोः संवादं’ पूरयत।
(मंजूषा से उचितं शब्द चुनकर निम्नलिखित ‘माता और पुत्र दोनों के संवाद’ को पूरा कीजिए।)
[मञ्जूषा – नैव, दीपावली, स्वयमेव, रचयसि, तिमिराच्छन्नं, सन्ध्यासमयः, तान् अत्रानय, दीपकाः, स्वस्ति।]
पुत्रः – मातः किं त्वमद्य पक्वान्नं मिष्ठान्नं च (i) …………….?
माता – पुत्र किं त्वं न जानासि यत् अद्य (ii) ……………. उत्सवः अस्ति ?
पुत्रः – (ii) ……………. तु। कथय, दीपमालिकायाः उत्सवः कीदृशः भवति ?
माता – अस्तु, त्वं (iv)……………. ज्ञास्यसि। अधुना (v) ……………. सञ्जातः नभः च (vi) ……………. अस्ति।
पुत्रः – ततः किम् ?
माता – गृहे (vii) ………… सन्ति। त्वं तान् (viii) ………..। अहं तान् प्रज्वालयामि।
पुत्रः – यदाज्ञापयति माता।
माता – स्वस्ति अस्तु ते।
उत्तरम् :
पुत्रः – मातः किं त्वम् अद्य पक्वान्नं मिष्ठान्नं च रचयसि ? (माताजी क्या तुम आज पकवान और मिष्ठान्न बना रही हो ?)
माता – पुत्र किं त्वं न जानासि यत् अद्य दीपावली उत्सवः अस्ति ? (बेटा क्या तुम नहीं जानते कि आज दीपावली उत्सव है ?)
पुत्र – नैव तु। कथय, दीपमालिकायाः उत्सवः कीदृशः भवति ? (नहीं तौ। कहो, दीपावली का उत्सव कैसा होता है ?)
माता – अस्तु, त्वं स्वयमेव ज्ञास्यसि। अधुनां सन्ध्यासमयः सम्जातः नभः च तिमिराच्छन्नं अस्ति। (खैर, तुम स्वयं ही जान जाओगे। अब संध्या समय हो गया और आकाश अंधेरै से टक गया है।)
पुत्रः – ततः किम् ? (तब क्या ?)
माता – गृहे दीपकाः सन्ति। त्वं तान् अत्र आनय। अहं तान् प्रज्वालयामि। (घर में दीपक है। तुम उन्हें यहाँ ले आओ। मैं उन्हें जलाती हूँ।)
पुत्रः – यथाज्ञापयति माता। (जो आज्ञा माँ)
माता – स्वस्ति अस्तु ते। (तेरा कल्याण हो।)

14. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिये गए शब्दों की सहायता से पूर्ण करके पुनः लिखिए।)
[धनेशः नीरेशः च विद्यालयस्य अल्पाहारगृहे उपविष्टौ, दशवर्षीयः रामेश्वरः आगम्य चायपात्राणि स्थापयति।]
(धनेश और नीरेश विद्यालय के अल्पाहारगृह में बैठे हुए थे। दसवर्षीय रामेश्वर आकर चाय-पात्रों को रखता है।)
मञ्जूषा – सफलतां, अवश्यम्, इच्छामि, पटनातः, सप्ताहः, दिवङ्गता, त्यक्त्वा, करवाणि, पठितुं, दुष्टैः, भवता।
धनेशः – अरे ! कदा प्रभृति अत्र कार्यं करोषि ? पूर्वं तु न अवलोकितः।
रामेश्वरः – (i) ……………….. एव जातः।
धनेशः – एवं सप्ताहः अभवत्। कुतः आगतः त्वम् ?
रामेश्वरः – (ii) ………………।
धनेशः – त्वं मध्ये एव पठनं (iii) ……………… कथं पटनातः इह आगतः ?
रामेश्वरः – किं (iv) ……………… ? मम अभागिनो जनकः पूर्वं (v) ……………… हतः। अधुना मम माता अपि (vi) ……………..। अनाथः अहं कथं निहिं कुर्याम् ?
धनेशः – किं त्वं (vii) ……….. नेच्छसि ?
रामेश्वरः – (viii) ……………… परं विद्या नास्ति मम भाग्ये।
उत्तरम् :
धनेशः – अरे ! कदा प्रभृति अत्र कार्यं करोषि ? पूर्वं तु न अवलोकितः। (अरे ! कब से यहाँ कार्य कर रहे हो ? पहले तो नहीं देखा।)
रामेश्वरः – सप्ताहः एव जातः। (सप्ताह ही हुआ है।)
धनेशः – एवं सप्ताहः अभवत्। कुतः आगतः त्वम् ? (इस प्रकार एक सप्ताह हो गया। कहाँ से आये हो तुम ?)
रामेश्वरः – पटनातः (पटना से)।
धनेशः – त्वं मध्ये एव पठनं त्यक्त्वा कथं पटनातः इह आगतः ? (तुम बीच में ही पढ़ाई छोड़कर क्यों पटना से यहाँ आ गये ?)
रामेश्वरः – किं करवाणि ? मम अभागिनो जनकः पूर्व दुष्टैः हतः। अधुना मम माता अपि दिवंगता। अनाथः अहं कथं निहिं कुर्याम् ? (क्या करूँ ? मुझ अभागे के पिताजी पहले दुष्टों द्वारा मार दिये गये। अब मेरी माताजी भी दिवंगत हो गयीं। मैं अनाथ कैसे निर्वाह करूँ ?)
धनेशः – किं त्वं पठितुं नेच्छसि ? (क्या तू पढ़ना नहीं चाहता ?)
रामेश्वरः – अवश्यम् इच्छामि, परं विद्या नास्ति मम भाग्ये। (अवश्य चाहता हूँ, परन्तु विद्या मेरे भाग्य में नहीं है।)

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15. मञ्जूषातः चितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित पदों को चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा करो।)
[मञ्जूषा – कृषकाः, तदा, प्रष्टुम्, आम्, भानुः, जानीमः, यदा, नृत्यन्ति, कदा, महोदये !]
अध्यापिका – वसन्त ! किं त्वं किञ्चित् (i) …………….. इच्छसि ?
वसन्तः – (ii) ………….. महोदये ! अहं प्रष्टुम् इच्छामि यत् कोकिलः कदा गायति ?
अध्यापिका – कोकिलः (iii) ……………… गायति (iv) …………… वसन्तागमनं भवति। सुमेधे ! कथय तमः (v) ……………… नश्यति ?
सुमेधा – (vi) ……………… ! यदा (vii) ……………… उदयति, तमः तदा नश्यति।
अध्यापिका – अति शोभनम्। मयूराः कदा (viii) ……………… ?
भास्करः – अहं वदामि। यदा मेघाः गर्जन्ति तदा।
अध्यापिका – शोभनम् ! कथयत, कृषका: कदा नृत्यन्ति ?
सर्वेः – वयं जानीमः। यदा वृष्टिः भवति, कृषकाः नृत्यन्ति।
उत्तरम् :
अध्यापिका – वसन्त ! किं त्वं किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छसि ? (वसन्त ! क्या तुम कुछ पूछना चाहते हो ?)
वसन्तः – आम् महोदये ! अहं प्रष्टुम् इच्छामि यत् कोकिलाः कदा गायति ? (हाँ महोदया ! मैं पूछना चाहता हूँ कि कोयल कब गाती है ?)
अध्यापिका – कोकिलाः यदा गायति, तदा वसन्तागमनं भवति। सुमेधे ! कथय, तमः कदा नश्यति ? (कोयल जब गाती है, तब वसन्त का आगमन होता है। सुमेधा ! कहो, अँधेरा कब नष्ट होता है ?)
सुमेधा – महोदये ! यदा भानुः उदयति, तमः तदा नश्यति। (महोदया ! जब सूर्य उदय होता है, तब अँधेरा नष्ट होता है।)
अध्यापिका – अति शोभनम्। मयूराः कदा नृत्यन्ति ? (बहुत अच्छा। मोर कब नाचते हैं ?)
भास्करः – अहं वदामि। यदा मेघाः गर्जन्ति तदा। (मैं बताता हूँ। जब मेघ गर्जते हैं तब।)
अध्यापिका – शोभनम् ! कथयत, कृषकाः कदा नृत्यन्ति ? (सुन्दर, कहो किसान कब नाचते हैं ?)
सर्वे – वयं जानीमः। यदा वृष्टिः भवति, कृषकाः नृत्यन्ति। (हम जानते हैं। जब वर्षा होती है, किसान नाचते हैं।)

16. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा करें।)
मञ्जूषा – शोभनम्, अगच्छः, छात्राणाम्, ज्ञातम्, अकरोत्, अनिवार्यः, अहम्, अस्तु, प्रार्थनाम्, पुनः परीक्षाम्।।
स्वातिः – सखि ! किं त्वं ह्यः विद्यालयं (i) ……………… ?
शोणम् – स्वाते ! (ii) ……………… तु ह्यः भ्रातुः विवाहम् अगच्छम्।.
स्वातिः – किन अजानाः त्वं यत् संस्कृताध्यापिका ह्यः (iii) ……………… लघुपरीक्षाम् (iv) ……………..।
शोणम् – मया (v) ……………… आसीत्, परं भ्रातुः विवाहः अपि (vi) ……………… आसीत्।।
स्वातिः – (vii) ……………. त्वं श्वः अवश्यम् अध्यापिकां क्षमा याचस्व (viii) ……………. च कुरु यत् सा पुनः परीक्षां नयतु।
शोणम् – शोभनम् इदं मया अवश्यं कर्त्तव्यम्।
उत्तरम् :
स्वातिः – सखि ! किं त्वं ह्यः विद्यालयं अगच्छ: ? (सखि ! क्या तुम कल विद्यालय गयी थीं ?)
शोणम् – स्वाते ! अहं तु ह्यः भ्रातुः विवाहे अगच्छम्। (स्वाति ! मैं तो कल भाई के विवाह में गयी थी।)
स्वातिः – किं न अजानाः त्वं यत् संस्कृताध्यापिका ह्यः छात्राणाम् लघुपरीक्षाम् अकरोत्। (क्या तुम नहीं जानतीं कि संस्कृत अध्यापिका ने कल छात्राओं की लघु परीक्षा की।)
शोणम् – मया ज्ञातम् आसीत्, परं भ्रातुः विवाहः अपि अनिवार्यः आसीत्। (मुझे ज्ञात था, परन्तु भाई का विवाह भी अनिवार्य था।)
स्वातिः – अस्तु, त्वं श्वः अवश्यम् अध्यापिकां क्षमा याचस्व प्रार्थनां च कुरु यत् सा पुनः परीक्षां नयतु। (खैर, तुम कल अवश्य अध्यापिका से क्षमा माँग लो और प्रार्थना करो कि वह पुनः परीक्षा ले लें।)
शोणम् – शोभनम्, इदं मया अवश्यं कर्त्तव्यम्। (सुन्दर, यह मुझे अवश्य करना चाहिए।)

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17. मञ्जूषातः पदानि विचित्य अधोलिखितं संवादं पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(मंजूषा से शब्दों को चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – बान्धवेभ्यः, दीपावली, नवीनानि, शाटिकाम्, वितरिष्यामः, लक्ष्मीपूजनम्, गत्वा, मिष्टान्नम्, क्रीत्वा, दास्यसि।
सुखदा – सखि, किं जानासि, अद्य कः उत्सवः अस्ति ?
नम्रता – अद्य (i) ……………… अस्ति। सुखदा तदा तु अद्य वयं (ii) ……………… वस्त्राणि धारयामः।
नम्रता – मम माता अपि नवीनां (iii) ……………… धारयिष्यन्ति। सुखदा अहं पित्रा सह विपणिं (iv) ……………… क्रीडनकानि (v) ……… च क्रेष्यामि।
नम्रता – त्वं मिष्टान्नं (vi) ……………… किं करिष्यसि ?
सुखदा – वयं मिष्टान्न परिवाराय (vii) ……………य दास्यामः।
नम्रता – किं मित्रेभ्यः किञ्चित् न (viii) ……………… ?
उत्तरम् :
सुखदा – सखि, किं जानासि, अद्य कः उत्सवः अस्ति ? (सखि ! जानती हो, आज क्या त्योहार है ?)
नम्रता – अद्य दीपावली अस्ति। (आज दीपावली है।)
सुखदा – तदा तु अद्य वयं नवीनानि वस्त्राणि धारयामः। (तब तो आज हम नये वस्त्र पहनते हैं।)
नम्रता – मम माता अपि नवीनां शाटिकां धारयिष्यति। (मेरी माताजी भी नयी साड़ी पहनेंगी।)
सुखदा – अहं पित्रा सह विपणिं गत्वा क्रीडनकानि मिष्टान्नं च क्रेष्यामि। (मैं पिताजी के साथ बाजार जाकर खिलौने और मिठाई खरीदूँगी।)
नम्रता – त्वं मिष्टान्नं क्रीत्वा किं करिष्यसि ? (तुम मिठाई खरीदकर क्या करोगी?)
सुखदा – वयं मिष्टान्न परिवाराय बान्धवेभ्यः च दास्यामः। (हम मिठाई परिवार के लिए और बान्धवों को देंगे।)
नम्रता – किं मित्रेभ्यः किञ्चित् न दास्यसि ? (क्या मित्रों के लिए कुछ नहीं दोगी ?)

18. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषा प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वां पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिए गए पदों की सहायता से पूरा करके पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – प्राणरक्षा, उपायः, बृहदाकारः शुष्कं, गमिष्यामः, त्वम्, व्याकुलाः, बकः, शनैः शनैः, आपदि। |
बकः – अयि भो मण्डूकाः ! शृणुत। अस्य जलाशयस्य जलं शीघ्रमेव (i) ……………. भविष्यति।
मण्डूकाधिपतिः – हा हन्त ! कथम् अस्माकं (ii) ……………… भविष्यति ?
बकः – इदानीं भवतः प्राणरक्षार्थम् एक एव (iii) ………………।
मण्डूकाधिपतिः – शीघ्रं कथय। अस्माकं प्राणा: (iv) ……………… भवन्ति।
बकः – अत्र समीपे एव एकः (v) …………. जलाशयः। तस्य जलं कदापि न शुष्यति। तत्र गन्तव्यम्।
मण्डूकाधिपतिः – भो मित्र ! कथं वयं तत्र (vi) ………………।
बकः – मित्रस्य कर्त्तव्यं (vii) ……………… मित्ररक्षा। अतः अहम् एव युष्मान् तत्र नेष्यामिः।
मण्डूकाधिपतिः – ननु सत्यं किम्। वयं तु बहवः (viii) ……………… एक एव।
उत्तरम् :
बकः – अयि भो मण्डूकाः ! शृणुत। अस्य जलाशयस्य जलं शीघ्रमेव शुष्कं भविष्यति। (अरे मेढको ! सुनो। इस तालाब का पानी शीघ्र ही सूख जाएगा।)
मण्डूकाधिपतिः – हा हन्त ! कथम् अस्माकं प्राणरक्षा भविष्यति ? (अरे खेद है ! हमारे प्राणों की रक्षा कैसे होगी ?)
बकः – इदानीं भवतः प्राणरक्षार्थम् एक एव उपायः। (अब आपकी प्राण-रक्षा के लिए एक ही उपाय है।)
मण्डूकाधिपतिः – शीघ्रं कथय। अस्माकं प्राणाः व्याकुलाः भवन्ति। (जल्दी कहो। हमारे प्राण व्याकुल हो रहे हैं।)
बकः -अत्र समीपे एव एकः बृहदाकारः जलाशयः। तस्य जलं कदापि न शुष्यति। तत्र गन्तव्यम्। (यहाँ समीप ही एक विशाल जलाशय है। उसका जल कभी नहीं सूखता। वहाँ जाना चाहिए।)
मण्डूकाधिपतिः – भो मित्र ! कथं वयं तत्र गमिष्यामः ? (हे मित्र ? हम वहाँ कैसे जाएँगे?)
बकः – मित्रस्य कर्त्तव्यम् आपदि मित्ररक्षा। अत: अहमेव युष्मान् तत्र नेष्यामि। (मित्र का कर्तव्य है- आपत्ति में मित्र की रक्षा। अतः मैं ही तुम्हें वहाँ ले जाऊँगा।)
मण्डूकाधिपति – ननु सत्यं किम् ? वयं तु बहवः त्वम् एक एव। (अरे सच क्या ? हम तो बहुत हैं और तुम एक ही हो।)

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19. निम्नलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिए गए पदों की सहायता से पूरा करके पुनः उत्तर-पुसि लिखें।)
मञ्जूषा – मूर्खाणां, कार्याणि, अनुभवात्, परस्य, आत्मनः, महान्, बुद्धिमान्, शिक्षते, मूर्खः, मूर्खतमः।।
राघवः – भो रमणीक ! भवान् कथम् ईदृशः (i) ………………….. जातः ?
रमणीकः – (ii) ………………….. कृपया एव।
राघवः – भोः कथं मूर्खाणां कृपया भयान् (iii) ………………….. जात: ?
रमणीकः – आम् ! अहं मूर्खः कृतानि (iv) ………………….. अपश्यं तानि अत्यजत्।
राघवः. – एवम्। परेषाम् (v) ………………….. शिक्षां गृहीत्वा भवान् बुद्धिमान् जातः किम् ?
रमणीकः – सत्यम् ! यः परेषां अनुभवात् (vi) ………………….. सः एव बुद्धिमान्।
राघवः – कः तावत् (vii) ………………….. ?
रमणीकः – यः (viii) ………………….. अनुभवात् न शिक्षते, पुनः आमूलात् प्रयत्नं करोति।
उत्तरम् :
राघवः – भो रमणीक ! भवान् कथम् ईदृशः महान् जातः ? (अरे रमणीक ! आप कैसे ऐसे महान् हो गये ?)
रमणीकः – मूर्खाणां कृपया एव। (मूों की कृपा से ही।)
राघवः – भोः ! कथं मूर्खाणां कृपया भवान् बुद्धिमान् जातः। (अरे ! मूों की कृपा से आप कैसे बुद्धिमान् हो गये।)
रमणीकः – आम्। अहं मूर्खः कृतानि कार्याणि अपश्यं तानि अत्यजत्। (हाँ ! मैंने मों द्वारा किये गये कार्यों को देखा, उन्हें त्याग दिया।)
राघवः – एवम्। परेषाम् अनुभवात् शिक्षां गृहीत्वा भवान् बुद्धिमान् जातः किम् ? (यह बात है/ऐसा। आप दूसरों के अनुभव से सीख ग्रहण करके बुद्धिमान् हुए हो क्या ?)
रमणीकः – सत्यम्। यः परेषाम् अनुभवात् शिक्षते सः एव बुद्धिमान्। (सच ! जो दूसरों के अनुभव से सीखता है वह ही बुद्धिमान् है।)
राघवः – कः तावत् मूर्खः ? (तो मूर्ख कौन है ?)
रमणीकः – यः परस्य अनुभवात् न शिक्षते, पुनः आमूलात् प्रयत्नं करोति। (जो दूसरे के अनुभव से नहीं शिक्षा लेता है और आरम्भ से प्रयत्न करता है।)

20. निम्नलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मञ्जूषा में दिये हुए पदों की सहायता से पूर्ण करके पुनः लिखिए।)
मञ्जूषा – कासरोगी, सत्यम्, कासति, कुक्कुराः, चौराणां, गुणाः, दधिसेवनम्, गुणः, सम्यक्, तत्कथम्।
रुग्णः – भो वैद्य ! औषधं यच्छ, परन्तु अहं (i) …………………… न त्यक्ष्यामि।
वैद्यः – चिन्ता मा अस्तु। दधिसेवने बहवः (ii) …………………..।
रुग्णः – किं (iii) ………………….. इदम् ? के च ते गुणाः ?
वैद्यः – (iv) ………….. ……… यदि दधि सेवते, तस्य गृहं चौरा: न प्रविशन्ति।
रुग्णः – दधिसेवनेन सह (v) ………………….. कः सम्बन्धः ?
वैद्यः – दधिसेवी कासरोगी सर्वां रात्रिं (vi) …………….. एव, जागर्ति कुतः चौरभयम्।
रुग्णः – कस्तावत् अन्यः (vii) ………………….. ?
वैद्यः – (viii) ………………….. त न दशान्त। …………… तं न दशन्ति।
उत्तरम् :
रुग्णः – भो वैद्य ! औषधं यच्छ, परन्तु अहं दधिसेवनं न त्यक्ष्यामि। (अरे वैद्य जी ! दवाई दीजिये, परन्तु मैं दही खाना नहीं छोडूंगा।)
वैद्यः – चिन्ता मा अस्तु। दधिसेवने बहवः गुणाः। (चिन्ता मत करो। दही सेवन करने में बहुत से गुण हैं।)
रुग्णः – किं सत्यम् इदम् ? के च ते गुणाः ? (क्या यह सच है ? वे गुण कौन से हैं ?)
वैद्यः – कासरोगी यदि दधि सेवते, तस्य गृहं चौरा: न प्रविशन्ति। (खाँसी का रोगी यदि दही सेवन करता है तो उसके घर में चोर नहीं प्रवेश करते।)
रुग्णः – दधिसेवनेन सह चौराणां कः सम्बन्धः ? (दही के सेवन के साथ चोरों का क्या सम्बन्ध है ?)
वैद्यः – दधिसेवी कासरोगी सर्वां रात्रि कासति एव, जाई कुतः चौरभयम्। (दही-सेवन करने वाला खाँसी का रोगी सारी रात खाँसता है, जागता है, फिर चोर का डर कहाँ से।)
रुग्णः – कस्तावत् अन्यः गुणः ? (तो और कौन-सा गुण है ?)
वैद्यः – कुक्कुराः तं न दशन्ति। (कुत्ते उसको नहीं खाते।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

21. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मञ्जूषा से उचित पद चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – शोभनम्, गच्छामि, ह्यः, जनकः, पीडितः, प्रतिश्यायेन, अधुना, इदानीम्, मुग्धे !, श्वः।
ईशा – त्वं (i) ……… ……… विद्यालयं कथं न अगच्छः ?
मुग्धा – ह्यः मम (ii) ………………….. अस्वस्थः आसीत्।
ईशा – तव जनक: केन रोगेण (iii) ………………….. आसीत् ?
मुग्धा – सः (iv) ………………….. पीडितः आसीत्।
ईशा – (v) ………………….. सः स्वस्थः अस्ति न वा ?
मुग्धा – (vi) …………………. सः स्वस्थः अस्ति।
ईशा – (vii) ………. ……. किं त्वं श्व: विद्यालयम् आगमिष्यसि ?
मुग्धा – अहम् (viii) ………………….. अवश्यं विद्यालयम् आगमिष्यामि।
उत्तरम् :
ईशा – त्वं ह्यः विद्यालयं कथं न अगच्छः ? (तू कल विद्यालय क्यों नहीं गयी ?)
मुग्धा – ह्यः मम जनकः अस्वस्थः आसीत्। (कल मेरे पिताजी बीमार थे।)
ईशा – तव जनकः केन रोगेण पीडितः आसीत् ? (तुम्हारे पिताजी किस रोग से पीड़ित थे ?)
मुग्धा – सः प्रतिश्यायेन पीडितः आसीत्। (वे प्रतिश्याय (सर्दी-जुकाम) से पीड़ित थे।)
ईशा – इदानीं सः स्वस्थः अस्ति न वा ? (अब वे स्वस्थ हैं या नहीं ?)
मुग्धा – अधुना सः स्वस्थः अस्ति। (अब वे स्वस्थ हैं।)
ईशा – मुग्धे ! किं त्वं श्वः विद्यालयम् आगमिष्यसि ? (मुग्धे ! क्या तुम कल विद्यालय आओगी ?)
मुग्धा – अहम् श्वः अवश्यं विद्यालयम् आगमिष्यामि। (कल मैं अवश्य विद्यालय आऊँगी।)

22. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा द्वयोः सख्योः संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्दों को चुनकर दो सखियों के वार्तालाप को पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – स्थानान्तरणवशात्, कक्षायाम्, तव, विद्यालयात्, वससि, आगता, अहं, नवमकक्षा।।
मेघाः – स्वागतं ते अस्यां (i) …………………..।
सुधाः – धन्यवादाः।
मेघाः – प्रियसखि ! किं (ii) ………………….. नाम ?
सुधाः – मम नाम सुधा अस्ति। मेघाः -सुधे ! कस्मात् (iii) ………………….. आगता अस्मि ?
सुधाः – अहं जयपुरनगरस्य केन्द्रीय विद्यालयात् आगता अस्मि।
मेघाः – अहमपि (iv) ………………….. पर्यन्तं तत्रैव अपठम्। पितु (iv) ………………….. अत्र आगता।
सुधाः – अहमपि अननैव कारणेन अत्र (vi) ………….।
मेघाः – अधुना त्वं कुत्र (vii) ………………….. ?
सुधाः – अधुना (viii) …………. जवाहरनगरे वसामि।
उत्तरम् :
मेघाः – स्वागतं ते अस्यां कक्षायाम्। (तुम्हारा इस कक्षा में स्वागत है।)
सुधाः – धन्यवादाः। (धन्यवाद)
मेघाः – प्रिय सखि ! किं तव नाम ? (प्रिय सखी ! तुम्हारा क्या नाम है ?)
सुधाः – मम नाम सुधा अस्ति। (मेरा नाम सुधा है।)।
मेघाः – सुधे ! कस्मात् विद्यालयात् आगता अस्मि ? (सुधा ! किस विद्यालय से आई हो ?)
सुधाः – अहं जयपुरनगरस्य केन्द्रीय विद्यालयात् आगता अस्मि। (मैं जयपुर नगर के केन्द्रीय विद्यालय से आई हूँ।)
मेघाः – अहमपि नवमकक्षा पर्यन्त तत्रैव अपठम्। पितुः स्थानान्तरणवशात् अत्र आगता। (मैं भी नवीं कक्षा तक वहाँ ही पढ़ी। पिताजी के स्थानान्तरण के कारण यहाँ आई।)
सुधाः – अहमपि अनेनैव कारणेन अत्र आगता। (मैं भी इसी कारण से यहाँ आई हूँ।)
मेघाः – अधुना त्वं कुत्र वससि ? (अब तुम कहाँ रहती हो ?)
सुधाः – अधुना अहम् जवाहरनगरे वसामि। (अब मैं जवाहरनगर में रहती हूँ)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

23. मञ्जूषातः चितानि पदानि गृहीत्वा ‘मित्र संभाषणम्’ इति विषय रिक्तस्थानानि पूरयित्वा लिखत –
(मंजूषा से उचित पदों को लेकर ‘मित्र संभाषण’ इस विषय पर रिक्त स्थान को पूरा करके लिखिए।)
[मञ्जूषा – विद्यालयम्, भवतः, गोविन्दः, कुतः, आगच्छामि, अहम्, सप्तवादने, पठति। ]
(i) ………………. नाम किम् ?
(ii) मम नाम …………………..।
(iii) भवान् ………………….. आगच्छति ?
(iv) अहं गृहतः ……………….।
(v) भवान् कदा ………………….. गच्छति।
(vi) अहं प्रातः ………………….. विद्यालयं गच्छामि।
(vii) विद्यालये किं किं………………..।
(viii) ………….. गणितं, विज्ञानं, संस्कृतमित्यादिविषयान् पठामि।।
उत्तरम् :
(i) भवतः नाम किम् ? (आपका नाम क्या है ?)
(ii) मम नाम गोविन्दः। (मेरा नाम गोविन्द है।)
(iii) भवान् कुतः आगच्छति ? (आप कहाँ से आए हो?)
(iv) अहं गृहतः आगच्छामि। (मैं घर से आ रहा हूँ।)
(v) भवान् कदा विद्यालयम् गच्छति। (आप कब विद्यालय जाते हो?)
(vi) अहं प्रातः सप्तवादने विद्यालयं गच्छामि। (मैं प्रातः सात बजे विद्यालय को जाता हूँ।)
(vii) विद्यालये किं किं पठति। (विद्यालय में क्या-क्या पढ़ते हो ?)
(viii) अहं गणितं, विज्ञानं, संस्कृतमित्यादिविषयान् पठामि।
(मैं गणित, विज्ञान, संस्कृत आदि विषयों को पढ़ता हूँ।)

24. मञ्जूषातः उचितानि पदानि गृहीत्वा ‘धूम्रपान निवारणाय’ इति विषये गुरुशिष्ययोः संवादं पूरयत –
(मंजूषा से उचित पदों को लेकर ‘धूम्रपान निवारणाय’ इस विषय पर गुरु-शिष्य के संवाद को पूरा करो।)
मञ्जूषा – गन्तुम्, अस्य, तुभ्यं, धूम्रपानं, स्वास्थ्य, प्रेरणीया, मया, दुर्व्यसनस्य।
सोहनः – गुरुवर ! अहं पश्यामि विद्यालये केचन छात्रा ………………… कुर्वन्ति।
गुरुः – वत्स ! धूम्रपानं ……………… विनाशकमस्ति।
सोहनः – गुरुवर ! कोऽस्य ………………….. निवारणोपायः।
गुरुः – पुत्र ! जन-जागतिरेवे ………………. दुर्व्यसनस्य निवारणोपायः।
सोहनः – गुरुवर ! ……… किं करणीयम् ?
गुरुः – त्वया छात्राः ………… यत् अस्माभिः धूम्रपान न करणीयम्।
सोहनः – गुरुवर ! ………… किं करणीयम्।
गुरुः – वत्स ! महत्वपूर्ण विषयोपरि वार्ता कर्तुं ………… धन्यवादं ददामि।
उत्तरम् :
सोहनः – गुरुवर ! अहं पश्यामि विद्यालये केचन छात्रा धूम्रपानं कुर्वन्ति। (गुरुजी ! मैं विद्यालय के कुछ छात्रों को धूम्रपान करते देखता हूँ।)
गुरुः – वत्स ! धूम्रपानं स्वास्थ्य विनाशकमस्ति। (बेटा ! धूम्रपान स्वास्थ्य का विनाश करने वाला है।)
सोहनः – गुरुवर ! कोऽस्य दुर्व्यसनस्य निवारणोपायः। (गुरुजी ! कोई इस दुर्व्यसन को दूर करने का उपाय है।)
गुरुः – पुत्र ! जन-जागतिरेव अस्य दुर्व्यसनस्य निवारणोपायः। (पुत्र! जन-जाग्रति ही इसके निवारण का उपाय है।)
सोहनः – गुरुवर ! मया किं करणीयम् ? (गुरुवर ! मुझे क्या करना चाहिए ?)
गुरुः – त्वया छात्राः प्रेरणीयाः यत् अस्माभिः धूम्रपानं न करणीयम्। (तुम छात्रों को प्रेरणा दी कि उन्हें धूम्रपान नहीं करना चाहिए।)
सोहनः – गुरुवर। एवमेव करोमि। अधुना अहं गन्तम् इच्छामि। (गुरुजी! ऐसा ही करता हूँ। अब मैं जाना चाहता हूँ।)
गुतः – वत्स ! महत्वपूर्ण विषयोपरि वातां कर्तुं तुभ्यं धन्यवादं ददामि। (बेटे ! महत्वपूर्ण विषय पर वार्तालाप करने के लिए तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

25. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिये हुए पदों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
मञ्जूषा – मैट्रोयानेन, अगच्छ:, आवाम्, विद्यालयः, चलिष्यामि, अवश्यमेव, दृष्ट्या, तस्मिन्।
रमा – लतिके ! तव (i) ………………….. दिल्ली नगरस्य छविः अद्यत्वे केन प्रतीयते ?
लतिका – मम विचारे तु (ii) …………………..।
रमा – किं त्वं कदापि तस्मिन् (iii) ………………….. ?
लतिका – अनेकशः (iv) ………………….. तु तेनैव प्रतिदिनं मया गम्यते।
रमा – लतिके ! अहम् अपि त्वया सह (v) ………………….. यात्रां कर्तुमिच्छामि।
लतिका – सखि ! द्वितीये शनिवासरे अवकाशे (vi) ………………….. तेन प्रगतिक्षेत्रे गमिष्यामः।
रमा – अहम् अपि (vii) …………………..।
लतिका – आम, त्वां तत्र (viii) ………………….. नेष्यामि।
उत्तरम् :
रमा – लतिके ! तव दृष्ट्या दिल्लीनगरस्य छविः अद्यत्वे केन प्रतीयते ? (लतिका ! तेरी दृष्टि से दिल्ली नगर की छवि आज किससे प्रतीत होती है ?)
लतिका – मम विचारे तु मैट्रोयानेन। (मेरे विचार से तो मैट्रोयान से।)
रमा – किं त्वं कदापि तस्मिन् अगच्छः ? (क्या तुम कभी उसमें गयी हो ?)
लतिका – अनेकशः, विद्यालयः तु तेनैव प्रतिदिनं मया गम्यते। (अनेक बार, विद्यालय तो उसी के द्वारा रोजाना मेरे द्वारा जाया जाता है।)
रमा – लतिके ! अहम् अपि त्वया सह तस्मिन् यात्रां कर्तुमिच्छामि। (लतिका ! मैं भी तेरे साथ उसमें यात्रा करना चाहती हूँ।)
लतिका – सखि ! द्वितीये शनिवासरे अवकाशे आवां तेन प्रगतिक्षेत्रे गमिष्यावः। (सखि ! दूसरे शनिवार के अवकाश में हम दोनों उस प्रगति क्षेत्र में जाएँगी।)
रमा – अहम् अपि चलिष्यामि। (मैं भी चलूँगी।)
लतिका – आम्, त्वां तत्र अवश्यमेव नेष्यामि। (हाँ, तुम्हें वहाँ अवश्य ही ले चलूँगी।)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.1

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.1

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Question 1.
Fill in the blanks:
(i) The centre of a circle lies in …………….. of the circle. (exterior/ interior)
(ii) A point, whose distance from the centre of a circle is greater than its radius lies in …………. of the circle, (exterior/ interior)
(iii) The longest chord of a circle is a …………. of the circle.
(iv) An arc is a ………… when its ends are the ends of a diameter.
(v) Segment of a circle is the region between an arc and …………… of the circle.
(vi) A circle divides the plane, on which it lies, in …………….. parts.
Answer:
(i) The centre of a circle lies in interior of the circle.
(ii) A point, whose distance from the centre of a circle is greater than its radius lies in exterior of the circle.
(iii) The longest chord of a circle is a diameter of the circle.
(iv) An arc is a semicircle when its ends are the ends of a diameter.
(v) Segment of a circle is the region between an arc and chord of the circle.
(vi) A circle divides the plane, on which it lies, in three parts.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.1

Question 2.
Write True or False: Give reasons for your answers.
(i) Line segment joining the centre to any point on the circle is a radius of the circle.
(ii) A circle has only finite number of equal chords.
(iii) If a circle is divided into three equal arcs, each is a major arc.
(iv) A chord of a circle, which is twice as long as its radius, is a diameter of the circle.
(v) Sector is the region between the chord and its corresponding arc.
(vi) A circle is a plane figure.
Answer:
(i) True.
All the line segments from the centre to the circle are of equal length.

(ii) False.
We can draw infinite number of equal chords.

(iii) False.
We get major and minor arcs for unequal arcs. So, for equal arcs on circle we can’t say it is major arc or minor arc.

(iv) True.
A chord which is twice as long as radius must pass through the centre of the circle and is diameter of the circle.

(v) False.
Sector is the region between the arc and the two radii of the circle.

(vi) True.
A circle can be drawn on the plane.