JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. भारत में सर्वाधिक लम्बा राष्ट्रीय मार्ग है-
(A) NH-1
(B) NH-7
(C) NH-5
(D) NH-3.
उत्तर:
(B) NH-7

2. उत्तर – दक्षिण गलियारा इन स्थानों को जोड़ता है-
(A) श्री नगर – कन्याकुमारी
(B) दिल्ली-चेन्नई
(C) जयपुर – सेलम
(D) पटना- कोच्ची
उत्तर:
(A) श्री नगर – कन्याकुमारी

3. भारत में पहली रेल कब चली ?
(A) 1833
(B) 1843
(C) 1853
(D) 1863
उत्तर:
(C) 1853

4. भारत में आन्तरिक जल मार्गों की लम्बाई है-
(A) 14000 कि०मी०
(B) 14200 कि०मी०
(C) 14300 कि०मी०
(D) 14500 कि०मी०
उत्तर:
(D) 14500 कि०मी०

5. संचार साधन किस तत्त्व को दूसरे स्थान तक नहीं भेजते ?
(A) विचार
(B) संदेश
(C) दर्शन
(D) दिल्ली – चेन्नई
उत्तर:
(D) दिल्ली – चेन्नई

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6. NH-1 किन नगरों को जोड़ता है ?
(A) दिल्ली-अमृतसर
(B) दिल्ली-कोलकाता
(C) दिल्ली – मुम्बई
(D) यात्रियों
उत्तर:
(A) दिल्ली-अमृतसर

7. भारत में राष्ट्रीय महामार्ग का सड़कों में प्रतिशत है-
(A) 1%
(B) 2%
(C) 3%
(D) 4%.
उत्तर:
(D) 4%.

8. स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्गों की लम्बाई है-
(A) 3846 कि०मी०
(B) 4846 कि०मी०
(C) 5846 कि०मी०
(D) 6846 कि०मी०
उत्तर:
(C) 5846 कि०मी०

9. भारत में सर्वाधिक सड़क घनत्व किस राज्य में है ?
(A) पंजाब
(B) केरल
(C) तमिलनाडु
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(B) केरल

10. भारत में कितने रेल मंडल हैं ?
(A) 9
(B) 12
(C) 14
(D) 16
उत्तर:
(D) 16

11. बड़े गेज़ की रेल पटरी की चौड़ाई है-
(A) 1.5 मीटर
(B) 1.6 मीटर
(C) 1.3 मीटर
(D) 1.8 मीटर
उत्तर:
(B) 1.6 मीटर

12. भारत में पहली पाइप लाइन कब बनी ?
(A) 1957
(B) 1958
(C) 1959
(D) 1960
उत्तर:
(C) 1959

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में सड़कों की कुल लम्बाई बताओ।
उत्तर:
-33 लाख कि०मी०।

प्रश्न 2.
पूर्व – पश्चिम गलियारे के दो अन्तिम स्टेशन बताओ।
उत्तर:
सिलचर तथा पोरबन्दर।

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प्रश्न 3.
भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन – सा है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग – 7 ( वाराणसी से कन्याकुमारी तक)।

प्रश्न 4.
भारत में सड़कों का राष्ट्रीय घनत्व कितना है ?
उत्तर:
प्रति 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्रफल में सड़कों की लम्बाई 75 कि०मी० है।

प्रश्न 5.
भारत में रेलमार्गों की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर:
62759 कि०मी०

प्रश्न 6.
भारत में नाव्य जलमार्गों की लम्बाई बताओ।
उत्तर:
14500 कि०मी०

प्रश्न 7.
भारत में कितने अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन हैं ?
उत्तर:
11.

प्रश्न 8.
भारत में एक प्रमुख गैस पाइप लाइन बताओ।
उत्तर:
HBJ गैस पाइप लाइन।

प्रश्न 9.
प्रसार भारती का गठन कब हुआ ?
उत्तर:
1997 में।

प्रश्न 10.
भारत में रेडियो प्रसारण कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1923 में।

प्रश्न 11.
परिवहन तन्त्र किन स्तरों पर अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है ?
उत्तर:
भूमण्डलीय, राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय स्तर।

प्रश्न 12.
संचार तन्त्र के तीन रूप बताओ।
उत्तर:

  1. भौतिक
  2. तार द्वारा
  3. वायु तरंगों द्वारा।

प्रश्न 13.
भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन-सा है?
उत्तर:
NH-7 जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक 2369 कि०मी० लम्बा

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प्रश्न 14.
भारत में पक्की सड़कों का सबसे अधिक घनत्व तथा सबसे कम घनत्व किन राज्यों में है?
उत्तर:
भारत में पक्की सड़कों का सबसे अधिक घनत्व केरल में – 387 कि०मी० प्रति 100 वर्ग कि०मी० और सबसे कम घनत्व जम्मू-कश्मीर में – 3.5 कि०मी० प्रति 100 वर्ग कि०मी० है।

प्रश्न 15.
भारत के तट रेखा की लम्बाई तथा समुद्री आर्थिक क्षेत्र कितना है ?
उत्तर:
तट रेखा 7516 कि०मी० लम्बी है तथा समुद्री क्षेत्र 20 लाख कि०मी० से अधिक समुद्री आर्थिक क्षेत्र है।

प्रश्न 16.
भारत में वायु परिवहन के दो मुख्य वर्ग बताओ।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तथा घरेलू परिवहन।

प्रश्न 17.
भारत में उत्तरी रेलवे क्षेत्र का प्रमुख कार्यालय बताओ।
उत्तर:
नई दिल्ली।

प्रश्न 18.
भारत के राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 1 के मार्ग का विस्तार बताओ।
उत्तर:
इलाहाबाद से हल्दिया तक।

प्रश्न 19.
भारत के उस वायु परिवहन सेवा का नाम लिखो जो सभी महाद्वीपों को जोड़ती है ?
उत्तर:
एयर इण्डिया।

प्रश्न 20.
भारत में किस वर्ग की सड़कें कुल सड़क मार्गों की 2% लम्बाई रखती है परन्तु देश के सड़क भार का 40% बोझा परिवहन करती हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सड़क मार्गों के क्या दोष हैं ?
उत्तर:

  1. सड़क मार्ग महंगे हैं।
  2. इनसे वायु प्रदूषण होता है।
  3. अधिक दूरी तक भारी वस्तुओं का परिवहन नहीं होता।
  4. दुर्घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

प्रश्न 2.
स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrangles) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ किन चार महानगरों को जोड़ता है ?
उत्तर:
यह एक सुपर महामार्ग है जो देहली-कोलकाता – मुम्बई तथा चेन्नई को आपस में जोड़ता है। इसमें 4 या 6 लेन वाले महामार्ग शामिल हैं। इसका आकार एक चतुर्भुज जैसा है।

प्रश्न 3.
चार राष्ट्रीय महामार्गों के नाम लिखो तथा इनके अन्तिम स्टेशन बताओ।
उत्तर:

  • शेरशाह सूरी मार्ग – राष्ट्रीय महामार्ग नं० 1 – देहली से अमृतसर तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 3 – आगरा से मुम्बई तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 7 – वाराणसी से कन्याकुमारी तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 2 – देहली से कोलकाता तक।

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प्रश्न 4.
दो राष्ट्रीय जल मार्ग बताओ।
उत्तर:
(i) राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 1 – इलाहाबाद से हल्दिया तक (गंगा नदी)
(ii) राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 2 – सदिया से दुबरी तक (ब्रह्मपुत्र नदी )

प्रश्न 5.
भारतीय रेल मार्ग पटरी की चौड़ाई के आधार पर कितने प्रकार की है ?
उत्तर:
भारत में धरातल की विभिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार के रेलमार्ग बनाए गए हैं। मैदानी भागों में चौड़ी पटरी वाले रेलमार्ग हैं, जबकि पहाड़ी भागों में तंग पटरी वाले रेलमार्ग हैं।
(i) चौड़ी पटरी (Broad gauge ) – 1.616 मीटर चौड़ाई
(ii) छोटी पटरी (Meter gauge) – 1 मीटर चौड़ाई
(iii) तंग पटरी (Narrow gauge) – 0.76 मीटर और
0.610 मीटर चौड़ाई
कुल लम्बाई – कुल ल० का %
46807 कि० मी० – (74.14%)
13290,, – (21.2%)
3124,, – (4.94%)
63221 – 100%

प्रश्न 6.
संचार तन्त्र के विभिन्न रूप बताओ।
उत्तर:
संचार का जाल एक स्थान से दूसरे स्थान को सूचनाएं भेजता या प्राप्त करता है। इसके तीन रूप हैं भौतिक जैसे डाक सेवाएं, तार द्वारा जैसे टेलीग्राम और टेलीफोन और वायु तरंगों द्वारा जैसे रेडियो और टेलीविजन। कुछ संचार तन्त्र परिवहन के सहयोग से कार्य करते हैं, जैसे डाक सेवाएं लेकिन कुछ संचार के साधन परिवहन तन्त्र से अलग स्वतन्त्र रूप में कार्य करते हैं; जैसे- रेडियो।

प्रश्न 7.
भारत में रेलमार्गों का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
(1) भारतीय रेलों का जाल एशिया में प्रथम लेकिन विश्व में चौथा सबसे बड़ा जाल है।
(2) यात्रियों और माल के परिवहन के लिए यह सस्ता साधन है।
(3) यह वस्तुओं के केन्द्रों से मांग के क्षेत्रों में वितरण को जैसे खाद्य पदार्थ, रेशों, कच्चे माल और तैयार माल को, करता है।
(4) रेल मार्गों की लम्बाई 62,759 कि०मी० है जिस पर 6867 स्टेशनों के मध्य प्रतिदिन 12670 गाड़ियां चलती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में राष्ट्रीय जलमार्गों के वितरण बताओ।
उत्तर:
देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, रख-रखाव और नियमन के लिए 1986 में भारतीय आन्तरिक जलमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया था। इस समय देश में तीन राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। 10 अन्य जलमार्गों को भी राष्ट्रीय जलमार्गों का दर्जा देने पर विचार किया जा रहा है। तीन राष्ट्रीय जलमार्ग ये हैं – राष्ट्रीय जलमार्ग – 1 : गंगा-भागीरथी- हुगली नदी तन्त्र का इलाहाबाद और हल्दिया के बीच का मार्ग ( 1620 कि०मी०); राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 : ब्रह्मपुत्र नदी का सदिया – धूबरी भाग ( 891 कि०मी०) और राष्ट्रीय जलमार्ग-3 : पश्चिम तट नहर का कोटापुरम में कोल्लम खण्ड तथा उद्योग मण्डल और चंपाकारा नहरें (205 कि०मी० )।

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प्रश्न 9.
परिवहन जाल का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव है ?
उत्तर:
परिवहन जाल की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने में रही है । हमारे देश में स्थानीय स्तरों पर उत्पादन की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्ट उत्पादों के लिए स्थानीय बाज़ार हैं। उत्पादन तथा साथ ही साथ उपभोग की ये विशिष्टताएं हमारे परिधानों, भोजन और कलाकृतियों में झलकती हैं। परिवहन जाल ने इन स्थानीय बाज़ारों को राष्ट्रीय बाज़ार के साथ जोड़ने का बहुत बड़ा काम किया है। इस एकीकरण का विस्तार और आगे अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार के साथ भी हुआ है 1

प्रश्न 10.
भारत में आकाशवाणी के विकास पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
आकाशवाणी – देश में रेडियो जनसंचार का सशक्त माध्यम है। भारत में सन् 1927 में रेडियो प्रसारण का प्रारम्भ हुआ। इसके लिए मुम्बई और कोलकाता में दो निजी ट्रांसमीटर लगाए गए थे। 1936 में इसे ऑल इण्डिया रेडियो ( ए०आई० आर०) नाम दिया गया। इसे आकाशवाणी भी कहते हैं । स्वतन्त्रता के समय छः रेडियो स्टेशन थे। इस समय आकाशवाणी के 208 स्टेशन तथा 327 प्रसारण केन्द्र हैं। ये स्टेशन और प्रसारण केन्द्र देश की 99 प्रतिशत जनसंख्या तथा देश के 90 प्रतिशत क्षेत्र को प्रसारण सेवाएं प्रदान करते हैं। निजी क्षेत्र में 100 एफ० एम० रेडियो स्टेशन स्थापित किए गए हैं। आकाशवाणी सूचना, शिक्षा और मनोरंजन से सम्बन्धित विविध प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित करता है। समाचार सेवा, विविध भारती, व्यावसायिक कार्यक्रम, राष्ट्रीय चैनल (1988) आदि प्रमुख सेवाएं हैं।

प्रश्न 11.
भारत में दूरदर्शन पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
दूरदर्शन – दूरदर्शन भारत का राष्ट्रीय टेलीविज़न है। यह संसार के सबसे बड़े क्षेत्रीय प्रसारण संगठनों में से एक है। इसने गांवों और नगरों दोनों में ही लोगों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को बदल दिया है । दूरदर्शन – 1 ( डी०डी०- 1 ) 1042 स्थल ट्रांसमीटरों के द्वारा देश की 87 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंचता है। यही नहीं 65 अतिरिक्त ट्रांसमीटर भी हैं, जो अन्य चैनलों को स्थानीय सहायता प्रदान करते हैं। दूरदर्शन का पहला कार्यक्रम 15 सितम्बर, 1959 को प्रसारित किया गया था। भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित पहला प्रयोग 1975-76 में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्स्पेरिमेंट (साइट) कार्यक्रम के अन्तर्गत किया गया था। देश में राष्ट्रीय कार्यक्रम और रंगीन टेलीविज़न की शुरुआत 1992 में ही हो सकी।

प्रश्न 12.
कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग बताओ।
उत्तर:
उपग्रह – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तंत्र में एक क्रान्ति आ गई है। रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह छोड़ा था। उपग्रहों, प्रेक्षपण यानों और सम्बन्धित स्थलीय प्रणालियों का विकास देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का अंग है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणालियों को दो वर्गों में रखा जा सकता है – भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) तथा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई० आर०एस० )। इन्सैट, दूरसंचार, मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रेक्षण और अन्य विविध आंकड़ों तथा कार्यक्रमों के लिए एक बहु-उद्देशीय उपग्रह प्रणाली है।

दूरदर्शन की तीन स्तरों वाली बुनियादी कार्यक्रम प्रसारण सेवाएं हैं –
(1) राष्ट्रीय
(2) प्रादेशिक और
(3) स्थानीय।

राष्ट्रीय दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रमों में समाचार, सामयिक विषय, विज्ञान, सांस्कृतिक पत्रिकाएं, वृत्तचित्र, संगीत, नृत्य नाटक, सीरियल और फीचर फिल्में शामिल होती हैं । यह स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिए भी शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित करता है। भारतीय सुदूर संवेदन (आई० आर० एस०) उपग्रह प्रणाली का प्रारम्भ मार्च, 1988 में हुआ जब पहला आई० आर०एस० – 1 ए अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। तब से लेकर अब तक दो शृंखलाओं के उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित किए जा चुके हैं। भारतीय सुदूर संवेदन एजेंसी हैदराबाद में स्थित है। यह आंकड़ों के अर्जन और इनके प्रसंस्करण की सुविधाएं प्रदान करती है। प्रकृति के संसाधनों के प्रबन्धन में ये बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

प्रश्न 13.
मुक्त आकाश नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मुक्त आकाश नीति (Open Sky Policy) – वायु परिवहन के केन्द्रों को विमान पत्तन कहा जाता है। वायु परिवहन किराया अपेक्षाकृत अधिक होता है । अतः इसका मुख्य रूप से यात्री परिवहन के लिए ही उपयोग किया जाता है। केवल हल्की और मूल्यवान वस्तुएं ही मालवाहक वायुयानों द्वारा भेजी जाती हैं । भारतीय निर्यातकों की सहायता करने के लिए तथा उनके निर्यात को और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए भारत सरकार ने व्यावसायिक माल के लिए ‘मुक्त आकाश की नीति” शुरू करने का निर्णय लिया है। इस नीति के अनुसार कोई भी विदेशी वायुयान कम्पनी या निर्यातकों का संघ माल ले जाने के लिए देश में मालवाहक जहाज़ ला सकते हैं।

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प्रश्न 14.
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
देश में 11 अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन तथा 112 घरेलू विमान पत्तन हैं। भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण इन विमान पत्तनों का प्रबन्ध करता है। इन विमान पत्तनों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है – अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन, प्रमुख राष्ट्रीय विमान पत्तन, मध्यम विमान पत्तन और लघु विमान पत्तन। अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन मुम्बई (सांताक्रूज और सहारा विमान पत्तन), दिल्ली ( इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन ), कोलकाता ( दमदम), चेन्नई (मीनेबक्कम् ), बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, पणजी, अमृतसर, गुवाहाटी और कोच्चि हैं। ये पत्तन अन्तर्राष्ट्रीय सेवाओं के साथ-साथ घरेलू सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में शेरसाह सूरी मार्ग का वर्णन करें।
उत्तर:
शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से लेकर बंगाल की सोनार घाटी तक सुदृढ़ एवं संघटित (समेकित ) रखने के लिए शाही राजमार्ग का निर्माण कराया था । कोलकाता से पेशावर तक जोड़ने वाले इसी मार्ग को ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रांड ट्रंक (जी० टी०) रोड के नाम से पुनः नामित किया गया था। वर्तमान में यह अमृतसर से कोलकाता के बीच विस्तृत है और इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है –
(क) राष्ट्रीय महामार्ग दिल्ली से अमृतसर तक और
(ख) राष्ट्रीय महामार्ग दिल्ली से कोलकाता तक।

प्रश्न 16.
भारत में कोंकण रेलवे का वर्णन करो।
उत्तर:
1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यह 760 कि० मी० लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है। इसे अभियांत्रिकी का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है। यह रेलमार्ग 146 नदियों व धाराओं तथा 2000 पुलों एवं 91 सुरंगों को पार करता है। इस मार्ग पर एशिया की सबसे लंबी 6.5 कि० मी० की सुरंग भी है। इस उद्यम में कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य भागीदार हैं।

प्रश्न 17.
भारत में वायु सेवाओं के दो प्रमुख प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में वायु सेवाएं दो प्रकार की हैं – अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू
(1) एयर इंडिया, यात्रियों और माल के परिवहन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वायु सेवाएं प्रदान करती है। इसके द्वारा चार प्रमुख विमान पत्तनों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता से 35 देशों के लिए विमान सेवाएं उपलब्ध हैं। सन् 2000-01 में एयर इंडिया के द्वारा 38.3 लाख यात्रियों ने यात्रा की। प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय वायु मार्ग ये हैं – दिल्ली – रोम – फ्रैंकफुर्ट, दिल्ली – मास्को, कोलकाता टोकियो, कोलकाता – पर्थ, मुम्बई – लन्दन – न्यूयार्क।

(2) इंडियन एयरलाइंस दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया के पड़ोसी देशों को भी वायु सेवाएं प्रदान करती है। इस समय दो निजी कम्पनियां नियमित घरेलू वायु सेवा प्रदान करती हैं। 38 निजी कम्पनियों के पास अनियमित एयर – टैक्सी चलाने के परमिट हैं। निजी वायु सेवा कम्पनियों की घरेलू वायु यातायात में इस समय 52.8 प्रतिशत की भागीदारी है। उदारीकरण की नीति के लागू होने के बाद वायु सेवा के क्षेत्र में निजी कम्पनियों की भागीदारी बहुत तेज़ी से बढ़ी है।

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प्रश्न 18.
अन्तः स्थलीय जलमार्ग के विकास के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदियों, नहरों और झीलें महत्त्वपूर्ण अन्तः स्थलीय जलमार्ग हैं। अन्तः स्थलीय जलमार्गों का विकास निम्नलिखित मार्गों पर निर्भर करता है-

  1. जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई – कई नदियों की नाव्यता बढ़ाने के लिए सुधार करके जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई को बढ़ाया गया है।
  2. जल प्रवाह की निरन्तरता – जल प्रवाह की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए बांधों तथा बराजों का निर्माण किया गया है।
  3. परिवहन प्रौद्योगिकी का प्रयोग – नदी में पानी की एक निश्चित गहराई को बनाए रखने के लिए उसकी तलहटी से सिल्ट एवं बालू निकालकर सफ़ाई करना।

प्रश्न 19.
दी गई तालिक का 1 तथा 2 स्थान पर उपयुक्त शब्द लिख कर पूरा करें तथा अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखें।
उत्तर:
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 2

प्रश्न 20.
भारतीय रेलों की तीन मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63229 कि० मी० है जो एशिया में सर्वाधिक है तथा विश्व में चौथे स्थान पर है।
  2. भारतीय रेलों की पटरी की चौड़ाई तीन गेज है-चौड़ी पटरी, मीटर पटरी तथा तंग पटरी।
  3. अधिकतर रेलमार्ग गंगा- सतलुज मैदान में पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
भारत में समुद्र परिवहन की किन्हीं छः विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) संसार के बड़े महामार्गों के जाल में से एक भारत में है।
(2) भारत में सड़कों की कुल लम्बाई 33 लाख कि०मी० है।
(3) सड़कें 85% यांत्री परिवहन तथा 70% भार परिवहन ढोती हैं।
(4) सड़कें नगरीय केन्द्रों के इर्द-गिर्द केन्द्रित हैं।
(5) ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें कम हैं।
(6) 5846 कि०मी० लम्बी स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई तथा मुम्बई को जोड़ता है।

प्रश्न 22.
भारत में सर्वाधिक प्रभावी और अधुनातन वैयक्तिक संचार प्रणाली कौन-से हैं ? इसकी किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी वैयक्तिक संचार तन्त्रों में इन्टरनेट सर्वाधिक प्रभावित एवं अधुनातन है।
विशेषताएं –
(1) इन साधन का नगरीय क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है।
(2) यह उपयोगकर्त्ता को ई मेल के माध्यम से ज्ञान एवं सूचना की दुनिया में सीधे पहुंच बनाने में सहायक होता है।
(3) यह ई कामर्स तथा मौद्रिक लेन-देन के लिए अधिकाधिक प्रयोग में लाया जा रहा है।
(4) यह आंकड़ों का विशाल केन्द्रीय भण्डारागार होता है।

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प्रश्न 23.
भारतीय रेल प्रणाली को सोलह मण्डलों में क्यों बांटा गया है ? पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी तथा दक्षिणी मंडलों के मुख्यालयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में रेल मण्डलों की रचना का उद्देश्य रेलों की कार्यक्षमता में वृद्धि करना है । भार तथा यात्री ढोने में सहायता मिलती है।

रेल मण्डल मुख्यालय
1. पूर्वी कोलकाता
2. पश्चिमी मुम्बई
3. उत्तरी नई दिल्ली
4. दक्षिणी चेन्नई

प्रश्न 24.
भारतीय रेलों की तीन मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63229 कि०मी० है जो एशिया में सर्वाधिक है तथा विश्व में चौथे स्थान पर है।
  2. भारतीय रेलों की पटरी की चौड़ाई तीन गेज है-चौड़ी पटरी, मीटर पटरी तथा तंग पटरी ।
  3. अधिकतर रेलमार्ग गंगा- सतलुज मैदान में पाए जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में सड़कों का वितरण समान नहीं है। स्पष्ट करो।
अथवा
भारत में सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक भिन्नता का वर्णन करो।
उत्तर:
देश में सड़कों का वितरण समान नहीं है। सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक अन्तर बहुत है। सड़कों के घनत्व का अर्थ है : प्रति 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सड़कों की लम्बाई। जम्मू और कश्मीर में सड़कों का घनत्व 10 कि०मी० है, जबकि केरल में 375 कि०मी०। सड़कों का राष्ट्रीय घनत्व 75 कि०मी० (1996-97) है। अधिक घनत्व वाले प्रदेश – लगभग सभी उत्तरी राज्यों और प्रमुख दक्षिणी राज्यों में सड़कों का घनत्व अधिक है। कम घनत्व वाले प्रदेश – यह हिमालयी प्रदेश, उत्तर-पूर्वी राज्यों, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कम है। भूमि का स्वरूप और आर्थिक विकास का स्तर, सड़कों के घनत्व के मुख्य निर्धारक हैं।

समतल मैदानी क्षेत्र में सड़कों का निर्माण आसान और सस्ता होता है, जबकि पहाड़ी और अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों में सड़कें बनाना महंगा और कठिन होता है। इसीलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व और गुणवत्ता दोनों ही ऊंचे होते हैं। दुर्गम भूमियां लगभग सड़क विहीन होती हैं। जनसंख्या के उच्च घनत्व से भी सड़कों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है।

पक्की सड़कों के घनत्व में और भी अधिक अन्तर पाया जाता है। देश के प्रति 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्र में औसतन 75.4 कि०मी० लम्बी सड़कें हैं। गोवा में पक्की सड़कों का घनत्व सबसे अधिक है (153.8 कि०मी०)। इसके विपरीत जम्मू और कश्मीर में सबसे कम घनत्व ( 10.5 कि०मी०) है। अरुणाचल प्रदेश में पक्की सड़कों का घनत्व कुछ अधिक अर्थात् 4.8 कि०मी० है। सड़कों के उच्चतर घनत्व वाले राज्यों में ही पक्की सड़कों का भी घनत्व अधिक है। असम और नागालैंड इसके अपवाद हैं। केरल में 387.2 कि० मी० घनत्व है।

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प्रश्न 2.
रेलमार्गों के प्रारूप को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों के विकास को निम्नलिखित कारकों ने प्रभावित किया है-
1. भौतिक कारक – भारत के समतल मैदानी भागों में रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है। जैसे उत्तरी मैदान में। परन्तु पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में रेलमार्ग कम हैं; जैसे- असम तथा हिमालय प्रदेश में।
2. आर्थिक कारक – बड़े-बड़े औद्योगिक, व्यापारिक नगरों तथा प्रमुख पत्तनों के समीप रेलमार्गों का अधिक विस्तार हुआ है परन्तु राजस्थान में कम आर्थिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।
3. राजनीतिक कारक – ब्रिटिश प्रशासन ने देश के संसाधनों के शोषण की नीति के कारण प्रमुख पत्तनों को देश के आन्तरिक भागों से रेलमार्गों द्वारा जोड़ दिया ।

प्रश्न 3.
हिमालय पर्वत के विभिन्न क्षेत्रों में रेलमार्गों का विकास कम क्यों है ?
उत्तर:
हिमालय प्रदेश में धरातलीय बाधाओं के कारण रेलमार्गों का विकास नहीं किया जा सका। कई प्रदेशों में सुरंगें बनाना तथा तेज़ धारा वाली नदियों पर पुल बनाना कठिन कार्य है । रेलमार्गों को केवल पद स्थली पर स्थित नगरों तक ले जाकर छोड़ देना पड़ा। जैसे पहले रेलमार्ग पठानकोट तक, परन्तु अब इसका विस्तार जम्मू तक है। जम्मू से उधमपुर, जवाहर सुरंग तथा कोजी कुण्ड से होकर कश्मीर घाटी तक रेल बनाने की योजना बनाई गई है। संकरे गेज़ द्वारा शिमला-कालका रेलमार्ग तथा सिलीगुड़ी – दार्जिलिंग रेलमार्ग बनाए गए हैं। इसलिए हिमालय क्षेत्र कटे-फटे भू- भाग पिछड़ी अर्थव्यवस्था तथा विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग कम हैं।

प्रश्न 4.
रेल तन्त्र में तीन गेज होने के कारण क्या कठिनाइयां हैं ?
उत्तर:
भारतीय रेल तन्त्र में चौड़े गेज, मीटर गेज तथा संकरे गेज के कारण कई कठिनाइयां उत्पन्न हो गई हैं। यात्रियों एवं माल के सुचारू परिवहन में यह बाधक है। एक गेज की रेल पटरी से दूसरी गेज की पटरी पर सामान चढ़ाने बहुत असुविधा होती है। सामान उतारने लादने की प्रक्रिया में समय नष्ट होता है तथा खर्च अधिक होता है।

वर्तमान रेल पटरियों को चौड़े गेज में बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसे Unigauge कहते हैं। पटरियों के तीन गेज यात्रियों एवं माल के सुचारु परिवहन में यह बाधक हैं। एक गेज की रेल पटरी से दूसरी गेज की पटरी पर स्थानान्तरण करने में बार-बार उतारने एवं लादने की क्रिया में समय लगता है तथा यह महंगा होता है। जल्दी नष्ट होने वाली वस्तुएं इस देरी के कारण खराब हो जाती हैं। यात्रियों की संख्या तथा ढोये जाने वाले माल की मात्रा में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। वर्तमान रेल पटरियां अधिक भार सहन नहीं कर सकतीं।

प्रश्न 5.
भारतीय सड़क मार्गों को विभिन्न प्रकारों में बांटो।
उत्तर:
भारत में 6 प्रकार के सड़क मार्ग हैं-
1. स्वर्ण चतुष्कोण परम राजमार्ग (Golden Quadrangle Super Highways ) – सरकार ने सड़कों के विकास की एक मुख्य परियोजना तैयार की है। इसके द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को 6 गलियों वाले परम राजमार्गों द्वारा जोड़ा जा रहा है। श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ने वाला उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा सिल्चर को पोरबन्दर से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम गलियारा इसके मुख्य अंग हैं।

2. राष्ट्रीय महामार्ग (National Highways) – जो देश के प्रमुख नगरों को मिलाते हैं। इनका निर्माण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग करता है। इनकी कुल लम्बाई 65769 कि० मी० है। इन सड़कों की लम्बाई देश की सड़कों की कुल लम्बाई का 2% भाग है परन्तु यातायात में इसकी भागीदारी 40% है।

3. राजकीय मार्ग (State Highways ) – जो राजधानियों को अन्य नगरों से मिलाते हैं। इनकी कुल लम्बाई 1,37,100 लाख कि० मी० है। इनका निर्माण राज्य सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है।

4. जिला सड़क मार्ग (District Roads ) – जो किसी राज्य के मुख्यालयों को अन्य नगरों से जोड़ती हैं। इनकी लम्बाई 6 लाख कि० मी० है।

5. ग्रामीण सड़कें (Village Roads) – जो ग्रामीण केन्द्रों को नगरों से मिलाती हैं। इनमें से लगभग आधी सड़कें पक्की हैं।

6. सीमावर्ती सड़कें ( Border Roads ) – सीमा सड़क संगठन 1960 में बनाया गया था। यह सामरिक महत्त्व की सड़कों का निर्माण करता है। इसके 30,028 कि०मी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया है तथा दुर्गम क्षेत्रों में आवागमन सुगम बनाया है।

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प्रश्न 6.
पंजाब में सड़कों की सर्वाधिक सघनता क्यों है ? इसके लिए उत्तरदायी पांच कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पंजाब में सड़कों की सर्वाधिक सघनता है। सड़कों की घनता 74 कि० मी० प्रति 100 कि०मी० है। इसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
(1) पंजाब एक साधारण ढलान वाला जलोढ़ मैदान है। इसलिए यहाँ सड़क निर्माण कार्य सुगम है।
(2) पंजाब एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए सड़क निर्माण आवश्यक है।
(3) पंजाब प्रदेश से गेहूँ, चावल आदि उत्पाद बाहर निर्यात किए जाते हैं जिसके लिए सड़क निर्माण आवश्यक है।
(4) पंजाब में लोगों के रहन-सहन का स्तर तथा प्रति व्यक्ति आय अधिक है। इसलिए कच्चे माल तथा तैयार माल के परिवहन के लिए सड़कों के निर्माण की आवश्यकता है।
(5) यात्री परिवहन अधिक है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों द्वारा ही यात्रा सम्भव है।

प्रश्न 7.
सीमान्त प्रदेशों में सड़क निर्माण की प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर:
सीमान्त प्रदेशों के सामरिक महत्त्व को देखते हुए सन् 1960 में ‘सीमा सड़क संगठन’ (Border Road Organisation) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य सीमान्त प्रदेशों में सुरक्षा प्रदान करने तथा आर्थिक विकास तेज़ करने के लिए सड़कों का निर्माण करना था । इस संगठन ने मनाली (हिमाचल प्रदेश) से लेह (कश्मीर) तक संसार की सबसे ऊंची सड़क का निर्माण किया है। यह सड़क औसत रूप से 4270 मीटर समुद्र तल से ऊंची है। इस संगठन ने भारत- चीन सीमा हिन्दुस्तान तिब्बत सीमा सड़क का भी निर्माण किया है। इस संगठन ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, असम, मेघालय, नागालैंड सीमान्त प्रदेशों में लगभग 40,450 कि० मी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया है तथा 35,577 कि० मी० सड़कों की देखभाल का कार्य किया है।

प्रश्न 8.
सड़क परिवहन के कौन-से गुण एवं अवगुण हैं ?
उत्तर:
छोटी दूरियों के लिए माल तथा यात्रियों के ढोने में सड़क परिवहन लाभदायक है। यह एक प्रकार से तन्त्र है जो ग्रामीण क्षेत्रों को नगरों से जोड़ता है। सड़क परिवहन से सामान ग्राहक के घर तक भेजा जा सकता है। यह एक विश्वसनीय परिवहन साधन है। कई दुर्गम क्षेत्रों में धरातलीय बाधाओं के कारण सड़कें बनाना कठिन है। सड़क परिवहन द्वारा अधिक भारी माल नहीं ढोया जा सकता। वर्षा ऋतु में सड़क परिवहन में कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

प्रश्न 9.
भारत में वायु परिवहन सेवाओं के प्रकार बताओ।
उत्तर:
भारत में वायु परिवहन के दो खण्ड हैं- आन्तरिक सेवाएं तथा अन्तर्देशीय सेवाएं। एयर इण्डिया संगठन विदेशी उड़ानों का प्रबन्ध करती है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एयर इण्डिया के केन्द्र बिन्दु हैं। इण्डियन एयर लाइन्स देश के भीतरी भागों तथा पड़ोसी देशों के साथ वायु सेवाओं का प्रबन्ध करती है। सन् 1981 से देश के भीतर दुर्गम भागों में वायुदूत एयर लाइन्स सेवाओं का भी प्रारम्भ किया गया है। 1985 में पवन हंस लिमिटेड की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों, वनाच्छादित तथा पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने हेतु हेलीकाप्टर सेवाएं उत्पन्न करवाने के लिए की गई।

अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International Airports)

भारत में निम्नलिखित अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं –
(1) इन्दिरा गांधी हवाई अड्डा – देहली ( पालम)
(2) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा – कोलकाता (डम डम)
(3) सहार हवाई अड्डा – मुम्बई ( सान्ता क्रूज़)
(4) मीनामबकम हवाई अड्डा – चेन्नई
(5) राजासांसी हवाई अड्डा-अमृतसर
(6) त्रिवनन्तपुरम हवाई अड्डा – तिरुवनन्तपुरम्।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय तथा राजकीय महामार्ग में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:
राष्ट्रीय तथा राजकीय महामार्ग में निम्नलिखित अन्तर हैं-

राष्ट्रीय महामार्ग (National Highways): राजकीय महामार्ग (State Highways)
(1) ये समस्त देश की प्रमुख सड़कें हैं। (1) ये विभिन्न राज्यों की मुख्य सड़कें हैं।
(2) ये महामार्ग प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक नगरों, राजधानियों तथा प्रमुख बन्दरगाहों को आपस में मिलाते हैं। (2) ये महामार्ग विभिन्न राज्यों की राजधानियों को राज्यों के प्रमुख नगरों व कार्यालय को मिलाते हैं।
(3) ये प्रायः केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए जाते हैं। (3) ये महामार्ग राज्य सरकारों के अधीन होते हैं।
(4) भारत में राष्ट्रीय महामार्गों की कुल लम्बाई 33,612 कि० मी० है। (4) भारत में राजकीय महामार्गों की लम्बाई 3,81,000 कि० मी० है।
(5) ये आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। (5) ये प्रशासकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
(6) अमृतसर – चण्डीगढ़ मार्ग एक राजकीय महामार्ग है। (6) शेरशाह सूरी मार्ग एक राष्ट्रीय महामार्ग है।

प्रश्न 11.
मीटर गेज तथा बड़े गेज वाले मार्ग में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:

मीटर गेज पटरी (Metre Gauge) चौड़ी पटरी(Broad Gauge )
(1) ये रेलमार्ग एक मीटर चौड़ी पटरी वाले मार्ग हैं। (1) ये रेल मार्ग 1.68 मीटर चौड़ी पटरी वाले मार्ग हैं।
(2) इनकी चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है। (2) इनकी चौड़ाई अधिक है।
(3) ये मार्ग यात्रियों तथा हल्के सामान को सम्भालने के लिए बनाए गए थे। (3) ये मार्ग अधिक भारी सामान तथा यात्रियों के परिवहन के योग्य हैं।
(4) ये मार्ग अधिकतर पहाड़ी भागों में स्थित हैं। (4) ये मार्ग अधिकतर मैदानी भागों में स्थित हैं।

प्रश्न 12.
परिवहन तथा संचार में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
लोगों तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के साधन को परिवहन कहते हैं। देश के आर्थिक विकास को गतिशीलता प्रदान करने के लिए परिवहन आवश्यक है। परिवहन साधनों में सड़कें, रेलें, जलमार्ग तथा वायु मार्ग शामिल हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचनाएं भेजने के साधनों को संचार साधन कहते हैं। देश की सामाजिक प्रगति के लिए संचार साधन आवश्यक है। डाक तार सेवाएं, टेलीफोन, टेलीविज़न आदि संचार साधन हैं।

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत संचार और जन संचार में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना भेजने के साधन को व्यक्तिगत संचार कहते हैं। जैसे – डाक सेवा आदि। कम्प्यूटर द्वारा सूचना को शीघ्र भेजा जा सकता है। जब जन साधारण तक संदेश या सूचनाएं भेजनी हों तो उसे जन संचार कहते हैं। जैसे रेडियो, टेलीविज़न आदि आकाशवाणी तथा दूरदर्शन भारत में दो प्रमुख जन संचार साधन हैं।

प्रश्न 14.
यातायात के साधन किसी देश की जीवन रेखाएं क्यों कही जाती हैं ?
उत्तर:
यातायात के साधन राष्ट्र रूपी शरीर की धमनियां हैं। किसी भी देश की आर्थिक व सामाजिक उन्नति यातायात के साधनों के विकास पर निर्भर है। देश के प्राकृतिक साधनों का पूरा लाभ उठाने के लिए इन साधनों का विकास आवश्यक है। परिवहन साधन व्यापार तथा उद्योगों की आधारशिला हैं। देश के दूर-दूर स्थित भागों को यातायात साधनों द्वारा मिलाकर एक राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का निर्माण होता है। इस प्रकार यातायात के साधन राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक होते हैं । विभिन्न प्रदेशों में मानव तथा पदार्थों की गतिशीलता यातायात के साधनों पर निर्भर करती है। जिस प्रकार शरीर में नाड़ियों द्वारा रक्त प्रवाह होता है, उसी प्रकार किसी देश में सड़कों, रेलमार्गों, जलमार्गों आदि द्वारा व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। इसलिए यातायात के साधनों को देश की जीवन रेखाएं कहा जाता है।

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प्रश्न 15.
भारत के किन-किन प्रदेशों में रेलमार्गों का विकास कम है और क्यों ?
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों का विकास राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित हुआ है। देश के कई भागों में रेलों का विकास कम है।
(1) हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में रेलों की कमी है। अधिक ऊंचाई के कारण रेलमार्ग बनाना कठिन है। इस दुर्गम प्रदेश में विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग बनाना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(2) राजस्थान के मरुस्थल में भी रेलमार्ग कम हैं।
(3) उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में घने जंगलों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(4) पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई, दलदली भागों में रेलमार्ग बनाना सम्भव नहीं है।
(5) असम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(6) दक्षिणी प्रायद्वीप में पहाड़ी तथा ऊँचे-नीचे धरातल के कारण कई बाधाएं हैं तथा रेलमार्ग कम हैं इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत को तीन भौतिक इकाइयों (पर्वत, पठार तथा मैदान) के स्वरूप देश में रेल यातायात का असमान वितरण है। मैदानी भागों में अधिक रेलमार्ग मिलते हैं जबकि पर्वतीय तथा पठारी भागों में कम। है।

प्रश्न 16.
भारत में भीतरी जलमार्गों का अधिक विकास क्यों नहीं हो पाया है ?
उत्तर:
देश में नदियों तथा नहरों के भीतरी जलमार्गों का कम विकास हुआ है। भारत में नदियों की लम्बाई अधिक परन्तु इनका पूरा उपयोग नहीं किया जाता है। इसके कई कारण हैं-
(1) भारत की अधिकांश नदियों में बाढ़ों के कारण वर्षा ऋतु में जहाज़ तथा नावें नहीं चलाई जा सकतीं।
(2) शुष्क ऋतु में पानी की कमी के कारण नदियों का प्रयोग जलमार्गों के रूप में नहीं होता।
(3) दक्षिणी भारत की नदियां तेज़ गति व ऊंचे-नीचे धरातल के कारण जल प्रपात बनाती हैं तथा जहाज़रानी के अयोग्य हैं।
(4) नदियों के मुहानों पर रेत के जमाव, छिछले डेल्टा के निर्माण के कारण बड़े-बड़े जहाज़ प्रयोग नहीं किए जा सकते।
(5) नदियों के तली पर अवसादों के जमाव के कारण गहराई कम हो जाती है। अधिकतर नदियों का जल सिंचाई के लिए प्रयोग कर लिया जाता है। इसलिए भारत में नदियों का भीतरी जलमार्गों के रूप में बहुत कम विकास हुआ।

प्रश्न 17.
भारत के तीन राष्ट्रीय जलमार्ग कौन-से हैं ? प्रत्येक राष्ट्रीय जलमार्ग की एक मुख्य विशेषता लिखिए ।
उत्तर:
राष्ट्रीय जलमार्ग-
(1) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1
(2) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 2
(3) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 3

विशेषताएं –
राष्ट्रीय जलमार्ग 1
(1) यह भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय जलमार्ग है।
( 2 ) इसका मुख्य विस्तार इलाहाबाद और हल्दिया के मध्य है। (गंगा – भागीरथी)
( 3 ) यह यन्त्रीकृत नौकाओं द्वारा पटना तक तथा साधारण नौकाओं द्वारा हरिद्वार तक नौकायान योग्य है।
( 4 ) यह 1620 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग है तथा सबसे लम्बा जलमार्ग है।

राष्ट्रीय जलमार्ग 2
(1) यह ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली का एक भाग है।
(2) यह सदिया से डिब्रूगढ़ तक विस्तृत है। (891 कि० मी०)
(3) इसका उपयोग भारत और बांग्लादेश साझेदारी से करते हैं। राष्ट्रीय जलमार्ग 3

(1) इस जलमार्ग में तीन नहरें शामिल हैं-
(क) चंपाकारा
(ख) उद्योग मंडल
(ग) पश्चिमी तट नहर।
(2) इस मार्ग की कुल लम्बाई 205 किलोमीटर है।
(3) इस जलमार्ग को कोट्टापुरम कोलम विस्तार के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 18.
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय महामार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग वे सड़क मार्ग हैं जो देश के प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक नगरों, राजधानियों तथा बन्दरगाहों को आपस में जोड़ते हैं। इनका निर्माण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (C. P. W. D.) करता है। देश में इन महामार्गों की कुल लम्बाई 38445 कि० मी० है। प्रमुख महामार्ग निम्नलिखित हैं-

(1) राष्ट्रीय महामार्ग नं०
1. (National Highway ) – यह महामार्ग अमृतसर तथा दिल्ली को आपस में जोड़ता है। इसे शेरशाह सूरी मार्ग या ग्रांड ट्रंक रोड (G. T. Road) भी कहते हैं।
(2) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 2. दिल्ली को कोलकाता से मिलाता है।
(3) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 3. आगरा व मुम्बई को मिलाता है।
(4) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 4. चेन्नई को मुम्बई से जोड़ता है।
(5) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 7 देश का सबसे लम्बा मार्ग है जो वाराणसी को कन्याकुमारी तक मिलाता है । इसकी कुल लम्बाई 2369 कि०मी० है।
(6) राष्ट्रीय महामार्ग नं0 5 चेन्नई – कोलकाता मार्ग है।
(7) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 6 मुम्बई से कोलकाता तक है ।
(8) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 17 मुम्बई – कन्याकुमारी मार्ग है।
(9) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 15 एक सीमान्त सड़क है जो कांधला से होकर पंजाब तक चली गई है।

प्रश्न 19.
भारत में स्वर्ण चतुष्कोण पर राजमार्ग का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वर्ण चतुष्कोण परम राजमार्ग – सरकार ने सड़कों के विकास की एक मुख्य परियोजना शुरू की है। इसके द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई – मुंबई और दिल्ली को छः गलियों वाले परम राजमार्गों द्वारा जोड़ा जा रहा है श्रीनगर ( जम्मू और कश्मीर) को कन्याकुमारी ( तमिलनाडु) से जोड़ने वाला उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा सिलचर (असम) को पोरबंदर (गुजरात) से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम गलियारा इसी परियोजना के अंग हैं। इन राजमार्गों पर बड़ी तेज़ी से काम चल रहा है तथा ये 2013 के अंत तक उपयोग के योग्य हो जाएंगे।
इन परम राजमार्गों के बन जाने से भारत के महानगरों के बीच समय – दूरी काफ़ी घट जाएगी (यात्रा में कम समय लगेगा)। इन राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण का दायित्व भारत के राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण का है।

प्रश्न 20.
“ भारत में सड़क यातायात रेल यातायात का प्रतियोगी नहीं है, वरन् यह उसका पूरक है।” इस कथन को पांच तर्क देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सड़कें तथा रेलमार्ग भारत में यातायात के प्रमुख साधन हैं। ये साधन एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक-दूसरे की सहायता करते हैं। रेलें भारी वस्तुओं को सस्ते दर पर लम्बी दूरियों तक होती हैं । परन्तु इन वस्तुओं को ट्रकों द्वारा रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाया जाता है। तैयार वस्तुओं को भी सड़क मार्गों द्वारा घरों तक भेजा जाता है। दुर्गम प्रदेशों में कम खर्च पर सड़कें बनाई जा सकती हैं। सड़कें तीव्रगामी साधन हैं। परन्तु रेलों की क्षमता अधिक होती है। रेलें भारत के कुल भार का 80% परिवहन करती हैं। बड़े-बड़े नगर रेलवे द्वारा जोड़े गए हैं। परन्तु ग्राम तथा छोटे नगर सड़कों द्वारा बड़े नगरों से जोड़े जाते हैं। सड़क मार्गों द्वारा कारखानों तक कच्चे माल तथा खनिज पदार्थ पहुंचाए जाते हैं। इस प्रकार दोनों साधनों के अपने-अपने गुण हैं, दोनों साधन ही देश के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य हैं। इसलिए सड़क यातायात रेल यातायात का पूरक है।

प्रश्न 21.
भारत के राज्य महामार्गों की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राज्य महामार्गों की विशेषताएं –
(1) इन महामार्गों की निर्माण एवं रखरखाव राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
(2) ये मार्ग राज्य की राजधानी से जिला मुख्यालयों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों को जोड़ते हैं।
(3) ये मार्ग राष्ट्रीय राज्य में ही बनाए जाते हैं।
(4) देश की कुल सड़कों की लम्बाई में राज्य महामार्गों का योगदान 4 प्रतिशत है तथा इनका प्रशासनिक महत्त्व है।

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प्रश्न 22.
पटरियों की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेलों के तीन वर्ग कौन-कौन से हैं ? प्रत्येक वर्ग की मुख्य विशेषता लिखिए।
उत्तर:
पटरियों की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेलों के तीन वर्ग निम्नलिखित हैं-
(क) बड़ी लाइन
(ख) मीटर लाइन
(ग) छोटी लाइन।

मुख्य विशेषताएं –
(क) बड़ी लाइन –
(1) रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर (1 मीटर से अधिक) होती है।
(2) बड़ी लाइन के मार्ग की कुल लम्बाई 46807 कि० मी० सबसे अधिक है।
(3) यह देश के कुल रेलमार्गों की लम्बाई का 74.14 प्रतिशत भाग है।

(ख) मीटर लाइन –
(1) रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती है।
(2) मीटर लाइन की कुल लम्बाई 13290 कि० मी० है।
(3) भारतीय रेल की कुल लम्बाई में इसकी लम्बाई केवल 21.02 प्रतिशत है।

(ग) संकरी लाइन
(1) इसमें दो पटरियों के बीच की दूरी केवल 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है। (1 मीटर से कम)।
(2) इसकी कुल लम्बाई 3124 कि० मी० है तथा पर्वतीय भाग में है।
(3) भारतीय रेल की कुल लम्बाई की छोटी लाइन का अनुपात मात्र 4.94 प्रतिशत भाग है।

प्रश्न 23.
‘भारत में सड़कों का घनत्व और गुणवत्ता अन्य क्षेत्रों की तुलना में, मैदानों में अधिक अच्छी है।’ इस कथन की उदाहरण सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी राज्यों में अधिकतर सड़कों का घनत्व उच्च है। हिमालयाई प्रदेशों में यह घनत्व निम्न है किसी प्रदेश के आर्थिक विकास के स्तर पर सड़क घनत्व निर्भर करता है । पंजाब तथा केरल राज्यों में सड़क घनत्व बहुत ऊँचा है (300 कि० मी० प्रति 100 वर्ग कि० मी०)। सड़कों का घनत्व तथा गुणवत्ता भू-भाग की प्रकृति पर निर्भर करता है। मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण आसान एवं सस्ता होता है जबकि पहाड़ी व पठारी क्षत्रों में यह कठिन तथा महंगा होता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों की गुणवत्ता अच्छी होती है। सड़कों का घनत्व बरसाती क्षेत्रों, वन क्षेत्र तथा दक्षिणी राज्यों में कम है।

प्रश्न 24.
भारत की उपग्रह प्रणाली की समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो वर्गों में बांटिए। प्रत्येक वर्ग की मुख्य विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तन्त्र में एक क्रान्ति आ गई है। रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह छोड़ा था। उपग्रहों, प्रक्षेपण यानों और सम्बन्धित स्थलीय प्रणालियों का विकास देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का अंग है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणालियों को दो वर्गों में रखा जा सकता है – भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) तथा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई० आर० एस० ) । इन्सैट दूरसंचार मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रेक्षण और अन्य विविध आंकड़ों तथा कार्यक्रमों के लिए एक बहु-उद्देशीय उपग्रह प्रणाली है।

प्रश्न 25.
भारत में रेलमार्गों के विकास में मुख्य भूमिका निभाने वाले मूल आधारित तीन कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों के विकास को निम्नलिखित कारकों ने मुख्य भूमिका निभाई-
1. भौतिक कारक – भारत के समतल मैदानी भागों में रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है। जैसे उत्तरी मैदान में। परन्तु पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में रेलमार्ग कम हैं, जैसे- असम तथा हिमालय प्रदेश में।

2. आर्थिक कारक – बड़े-बड़े औद्योगिक, व्यापारिक नगरों तथा प्रमुख पत्तनों के समीप रेलमार्गों का अधिक विस्तार हुआ है परन्तु राजस्थान में कम आर्थिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।

3. राजनीतिक कारक – ब्रिटिश प्रशासन ने देश के संसाधनों के शोषण की नीति के कारण प्रमुख पत्तनों को देश के आन्तरिक भागों से रेलमार्गों द्वारा जोड़ दिया।

प्रश्न 26.
भारत के भिन्न क्षेत्रों में रेलमार्गों का विकास समान रूप से नहीं हो पाया है। कौन-से ऐसे मूल्य आधारित कारक जिनके चलते ऐसा है ?
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों का विकास राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित हुआ है। इसके फलस्वरूप देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रेलों का विकास कम हुआ, जैसे कि –
(1) हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में रेलों की कमी है। अधिक ऊंचाई के कारण रेलमार्ग बनाना कठिन है। इस दुर्गम प्रदेश में विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग बनाना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(2) राजस्थान के मरुस्थल में भी रेलमार्ग कम हैं। क्योंकि यहाँ के रेतीले क्षेत्रों में पट्टी बिछाना आसान नहीं है।
(3) उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में घने जंगलों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(4) पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई, दलदली भागों में रेलमार्ग बनाना सम्भव नहीं है।
(5) असम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ों के कारण रेलमार्ग का विस्तार कम है।
(6) दक्षिणी प्रायद्वीप में पहाड़ी तथा ऊँचे-नीचे धरातल के कारण रेलमार्ग के निर्माण में बहुत बाधाएँ हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत को तीन भौतिक इकाइयों (पर्वत, पठार तथा मैदान) के स्वरूप देश में रेल यातायात का असमान वितरण है। मैदानी भागों में अधिक रेलमार्ग मिलते हैं जबकि पर्वतीय तथा पठारी भागों में कम।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 1

प्रश्न 27.
भारत के वायु परिवहन के क्षेत्र में ‘एयर इण्डिया’ तथा ‘इण्डियन’ के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में वायु परिवहन के दो खण्ड हैं- आन्तरिक सेवाएं तथा अन्तर्देशीय सेवाएं एयर इण्डिया संगठन विदेशी उड़ानों का प्रबन्ध करती है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एयर इण्डिया के केन्द्र बिन्दु हैं। इंण्डियन एयर लाइन्स देश के भीतरी भागों तथा पड़ोसी देशों के साथ वायु सेवाओं का प्रबन्ध करती है। सन् 1981 से देश के भीतर दुर्गम भागों में वायुदूत एयर लाइन्स सेवाओं का भी प्रारम्भ किया गया है। 1985 में पवन हंस लिमिटेड की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों, वनाच्छादित तथा पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने हेतु हेलीकाप्टर सेवाएं उत्पन्न करवाने के लिए की गई।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय रेलमार्गों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
रेलमार्गों का वितरण – रेलमार्गों के मानचित्र देखने से रेल – जाल की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट हो जाती हैं-
1. उत्तरी मैदान – भारत के उत्तरी मैदान में अमृतसर एवं हावड़ा के बीच रेल मार्गों का घना जाल विकसित हुआ है जिसमें मुगलसराय, लखनऊ, आगरा तथा पटना जैसे मुख्य रेल जंक्शन पाये जाते हैं। उत्तरी मैदान का सम्पूर्ण भाग रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है। इस मैदान में पूर्व-पश्चिम की दिशा में संबद्धता अधिक पाई जाती है जबकि उत्तर – दक्षिण की दिशा में यह उतनी सक्षम नहीं है। उदाहरण के लिए दिल्ली से कोलकाता के बीच की 1500 किलोमीटर की दूरी 17 घंटे में तय की जा सकती है। इसके विपरीत दिल्ली से देहरादून पहुँचने में 10 घंटे लगते हैं। जबकि दिल्ली एवं देहरादून के बीच की दूरी कोलकाता की अपेक्षा एक तिहाई भी नहीं है। इस मैदान में रेल – जाल का बहुत घनिष्ठ सह- सम्बन्ध इस के कृषि एवं औद्योगिक विकास के स्तर से है। दिल्ली तक केन्द्र बिन्दु है जहाँ से रेलमार्ग प्रत्येक दिशा में विकीर्ण होते हैं। दिल्ली को सभी पत्तन नगरों से अति शीघ्र (सुपरफास्ट) रेल गाड़ियों द्वारा जोड़ा गया है।

उत्तरी मैदान में रेलमार्गों के विकास के लिए कई अनुकूल दशाएं हैं।
(1) देश का सबसे लम्बा रेलमार्ग उत्तरी रेलवे इसी क्षेत्र में है जिसकी लम्बाई 10,977 किलोमीटर है।
(2) उत्तरी मैदान एक समतल सपाट मैदान है। यहां रेलमार्ग आसानी से बनाए जा सकते हैं। मीलों तक सीधे रेलमार्ग मिलते हैं।
(3) इस क्षेत्र में जनसंख्या बहुत घनी है, बड़े-बड़े नगर बसे हैं, जिनके कारण रेलमार्गों की घनता अधिक है।
(4) यहां औद्योगिक विकास के लिए कृषि पदार्थों के परिवहन के लिए रेलमार्गों की अधिक आवश्यकता है।
(5) कई आर्थिक तथा प्रशासनिक केन्द्रों को एक-दूसरे से मिलाने के लिए रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है।
(6) उत्तरी मैदान के सम्पन्न पृष्ठ प्रदेश को मुम्बई तथा कोलकाता की बन्दरगाहों से मिलाने के लिए रेलमार्गों का निर्माण आवश्यक है।

2. प्रायद्वीपीय पठार – प्रायद्वीपीय भाग, गुजरात तथा तमिलनाडु में अन्य भागों की तुलना में मध्यम सघन रेल – जाल पाया जाता है। सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय मैदान एक पहाड़ी भू-भाग है। जनसंख्या का संकेन्द्रण भी मध्यम है। अतः रेल – जाल भी मध्यम सघन है। मुख्य रेलमार्गों को इस प्रकार बिछाया गया है कि मुम्बई – चेन्नई, चेन्नई – कोचीन, चेन्नई-दिल्ली तथा चेन्नई – हैदराबाद के मध्य अधिक सक्षम रेल सेवा उपलब्ध है।

3. तटीय मैदान – पूर्वी तटीय प्रदेशों एवं पश्चिमी तटीय प्रदेशों के रेल- जाल से स्पष्ट भिन्नता देखने को मिलती है। पूर्वी तट के साथ-साथ कोलकाता एवं चेन्नई के बीच एक मुख्य रेलमार्ग बनाया गया है जबकि पश्चिमी तटीय मैदान में मुम्बई एवं कोचीन के मध्य सीधा रेलमार्ग कोंकण रेल मार्ग ( 837 कि०मी० लम्बा) है। पश्चिमी तटीय मैदान में घाट की पहाड़ियां तट के बहुत निकट हैं अतः तटीय मैदान संकरा है तथा समुद्र तट की ओर बढ़ी हुई पहाड़ियाँ रेलमार्ग में अवरोध पैदा करती हैं। इसके विपरीत पूर्वी तटीय मैदान अधिक चौड़ा है एवं पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ तट से दूर स्थित हैं।

4. विरल रेल जाल वाले क्षेत्र – देश में हिमालय पर्वत, पश्चिमी राजस्थान ब्रह्मपुत्र घाटी, पूर्वी पर्वतीय प्रदेश में रेल मार्ग कम हैं।
(क) हिमालय पर्वतीय क्षेत्र – इस क्षेत्रों में मुख्य हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र है। कटा-फटा भूभाग, पर्वतों एवं उपत्यकाओं का धरातल, पिछड़ी अर्थव्यवस्था एवं विरल जनसंख्या आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो रेल – जाल के विरल होने के लिए उत्तरदायी हैं।
(ख) पश्चिमी राजस्थान – पश्चिमी राजस्थान के शुष्क प्रदेश में केवल एक दो मीटर गेज के रेलमार्ग प्रविष्ट हो सके हैं।
(ग) ब्रह्मपुत्र घाटी – ब्रह्मपुत्र घाटी में दो समान्तर रेलमार्ग हैं परन्तु मेघालय पठार पर कोई रेलमार्ग नहीं बनाया जा सका है।
(घ) उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र – त्रिपुरा, मणिपुर, मिज़ोरम एवं नागालैण्ड में भी कोई रेलमार्ग नहीं है। पर्वतीय धरातल एवं घने वनों से आच्छादित भूमि ही रेलमार्गों के न होने के लिए उत्तरदायी है। इन क्षेत्रों में रेल मार्ग बनाने में बहुत बड़ी लागत आएगी। विरल जनसंख्या होने के कारण भी रेलमार्ग बनाने के कार्य को प्रोत्साहन नहीं मिला।

प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख आन्तरिक जलमार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
जब देश के भीतरी भागों झीलों, नदियों का प्रयोग परिवहन के लिए किया जाता है तो इन्हें आन्तरिक जलमार्ग (Inland Water-ways) कहा जाता है। किसी दिशा के प्रादेशिक व्यापार के लिए यह सबसे सस्ते तथा महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भारत में 3700 कि० मी० लम्बे नदी मार्गों पर तथा 4300 किलोमीटर लम्बी नहरों के मार्ग पर जल – यातायात के साधन प्रयोग किए जा सकते हैं। भारत में झीलों द्वारा बने जलमार्ग बहुत कम हैं।
(क) नदी परिवहन मार्ग –
(1) गंगा नदी में छोटे स्टीमर कोलकाता से पटना तक चल सकते हैं। नावें हरिद्वार तक चलाई जा सकती हैं। गंगा नदी- भागीरथी – हुगली नदी तन्त्र को राष्ट्रीय जलमार्ग – 1 कहा जाता है। यह इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 कि०मी० लम्बा है।
(2) ब्रह्मपुत्र नदी में, असम में सदिया – धूबरी, राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 ( 89 कि०मी०) में नौकाओं द्वारा जाया जा सकता है।
(3) राष्ट्रीय जलमार्ग – 3 पश्चिमी तट नहर को कोटापुरम से कोल्लम खण्ड तथा उद्योगमंडल व चम्पाकर नहरें ( 205 कि०मी०) बराक नदी, गोवा की मांडावी नदी और जुआरी नदी को भी आन्तरिक जलमार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(4) दक्षिणी भारत में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और महानदी नदियों के निचले भाग में नावें चलाई जा सकती हैं।
(ख) नहर परिवहन मार्ग – भारत में कई नहरों का जल-मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे तमिलनाडु में बकिंघम नहर तथा कंवेर जुआ नहर, गंगा की नहरें, केरल प्रदेश में लैगून झीलों द्वारा बने जल-मार्ग तथा गोदावरी डेल्टाई नहरों का जल मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 3.
भारत में प्रमुख पाइप लाइनों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. नहर कटिया – बारौनी पाइप लाइन – आयल इंडिया लिमिटेड कम्पनी ने असम के नहरकाटिया तेल क्षेत्र से बिहार की बरौनी तेल परिष्करणशाला तक नूनमती होकर सबसे पहली 1152 कि०मी० लम्बी पाइप लाइन सन् 1962-68 में बनाई थी।
2. हल्दिया – कानपुर पाइप लाइन – पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन के लिए 1966 में हल्दिया-बरौनी- कानपुर पाइप लाइन बिछाई गई थी। इसके बाद हल्दिया- मौरीग्राम – राजबन्ध पाइप लाइन बनी।
3. अंकलेश्वर- कोयली पाइप लाइन – अंकलेश्वर तेल क्षेत्र को कोयली परिष्करणशाला से जोड़ने वाली पहली पाइप लाइन सन् 1965 में बनाई गई। इसके बाद कलोल – साबरमती कच्चे तेल की पाइप लाइन, नवगांव – कलोल – कोयली पाइप लाइन और मुम्बई हाई – कोयली पाइप लाइन बिछाई गई ।
4. अहमदाबाद – कोयली पाइप लाइन – पैट्रोलियम उत्पादों के परिवहन के लिए अहमदाबाद को पाइप लाइन द्वारा कोयली से जोड़ा गया है।
5. अंकलेश्वर – बड़ोदरा पाइप लाइन – खंभात और धुवरन के मध्य अंकलेश्वर और उत्तरण तथा अंकलेश्वर और बडोदरा के मध्य गैस पाइप लाइनें भी बिछाई गई हैं । भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड देश में 4200 कि०मी० पाइप लाइनों का संचालन करता है तथा बिजली घरों को गैस की आपूर्ति करता है ।
6. HBJ गैस पाइप लाइन – 1750 कि०मी० लम्बी हजीरा – विजयपुर – जगदीशपुर गैस पाइप लाइन काफ़ी पहले बन चुकी है। अब इस पाइप लाइन का बीजापुर से उत्तर प्रदेश में दादरी तक विस्तार कर दिया गया है।
7. कांडला – दिल्ली पाइप लाइन – भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड आजकल रसोई गैस (एल०पी०जी० ) के परिवहन के लिए 1246 कि०मी० लम्बी पाइप लाइन गुजरात में कांडला – जामनगर से लेकर दिल्ली से होते हुए उत्तर प्रदेश में लोनी तक बना रहा है।
8. मथुरा – जालन्धर तेल पाइप लाइन
9. कांडला – भठिण्डा पाइप लाइन-

प्रश्न 4.
‘भारत में सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक एकीकरण को मज़बूत करने में त्रिविध परिवहन तन्त्र की विशेष भूमिका है’ प्रश्न में निहित चारों तत्त्वों का उदाहरण सहित विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवहन का एकीकरण कार्य ( Integrating Role of Transport ) – स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में परिवहन व्यवस्था के विकास के कई कार्य किए गए हैं। बीस वर्षीय नागपुर सड़क विकास योजना के अधीन सड़कों का विस्तार किया गया। औद्योगिक, व्यापारिक तथा पिछड़े हुए क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य को बढ़ावा दिया गया। इसी प्रकार रेलमार्गों के निर्माण की कई योजनाएं पूरी हो गई हैं। देश की आर्थिक व्यवस्था में भारी सामान को दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए रेलों तथा सड़कों को एक-दूसरे के पूरक बनाया गया है। प्रादेशिक विकास के लिए सभी प्रकार के परिवहन साधनों का संगठन किया गया।

देश में राजनीतिक तथा आर्थिक एकता के लिए यातायात के सभी साधनों को एक-दूसरे से पूरक एक संगठित परिवहन व्यवस्था बनाई गई है। यह साधन खाद्यान्नों, कच्चे माल, खनिज पदार्थों तथा तैयार माल को उत्पादन क्षेत्रों से खपत केन्द्रों तक पहुंचाते हैं। यातायात के इन साधनों के एकीकरण के प्रभाव से व्यापारी बाज़ारों का विकास हुआ है। देश के जल पोताश्रयों को आन्तरिक प्रदेशों से जोड़कर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ा गया है। इस प्रकार जलीय तथा स्थलीय यातायात के साधन मिलकर एक संगठित व्यवस्था बनाते हैं।

देश के दुर्गम तथा दूरस्थ भागों में वायु परिवहन के तीव्रगामी साधनों द्वारा कम समय में पहुंचा जा सकता है । यह साधन पूर्वी भागों के घने वनों, हिमालय के उच्च पर्वतीय प्रदेशों तथा राजस्थान के मरुस्थल को एक-दूसरे से मिलाकर राष्ट्रीय एकता का आभास कराते हैं। इसी प्रकार जलयान तथा वायुयान सेवाओं द्वारा अण्डमान द्वीप को देश के मुख्य भू-भाग से मिलाया गया है। पीरपंजाल पर्वत श्रेणी में जवाहर सुरंग के निर्माण से कश्मीर घाटी को भारत के अन्य भागों से मिलाया गया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में संतुलित विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी परिवहन साधनों का एकीकरण करके एक स्वस्थ, सुसंगठित परिवहन व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है ।

प्रश्न 5.
भारत में सड़क महामार्गों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में प्राचीनकाल से ही सड़कें महत्त्वपूर्ण रही हैं। शेरशाह सूरी ने राष्ट्रीय राजमार्ग, ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण किया । स्वाधीनता के पश्चात् 10 वर्षीय नागपुर योजना के अन्तर्गत सड़क मार्गों का विकास किया गया। भारत में अधिकतर पक्की सड़कें दक्षिणी भारत में हैं, क्योंकि यहां सड़कों को बनाने के लिए दक्षिणी पठार में पर्याप्त मात्रा में पत्थर मिल जाते हैं

भारतीय सड़कों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –
(1) भारत की कुल सड़कों की लम्बाई 33 लाख किलोमीटर है।
(2) देश में राष्ट्रीय महामार्गों की लम्बाई 57,700 किलोमीटर।
(3) प्रमुख महामार्ग मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, बंगलौर तथा श्रीनगर को मिलाते हैं।
(4) भारत में महामार्ग देश को पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में तिब्बत तथा चीन, पूर्व में बांग्ला देश और बर्मा (म्यानमार) को जोड़ते हैं।
(5) भारत में सीमा प्रदेशों में 30,028 कि० मी० लम्बी सड़कें बनाई गई हैं जिनमें मनाली से लेकर लेह तक सड़क मार्ग 4270 मीटर ऊंचा है।
(6) लगभग पच्चीस लाख मोटरगाड़ियां भारतीय सड़कों पर चलती हैं तथा प्रति वर्ष 1500 करोड़ रुपए की आय होती है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 3
Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of india extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line. The external boundaries and coastlines of India agree with the Recored Master copy certified by-the Survey of India.

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प्रश्न 6.
भारत में रेल मार्गों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय रेल मार्ग – परिवहन के साधनों में रेलों का महत्त्व सबसे अधिक है। 1853 ई० में भारत में प्रथम रेल लाइन 34 कि० मी० लम्बी बम्बई (मुम्बई) से थाना स्टेशन तक बनाई गई। भारतीय रेलवे की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) भारतीय रेल मार्ग 62,759 कि० मी० लम्बा है।
(2) यह एशिया में सबसे लम्बा रेल मार्ग है।
(3) विश्व में भारत का चौथा स्थान है।
(4) भारतीय रेलों में 18 लाख कर्मचारी काम करते हैं।
(5) प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियां लगभग 13 लाख कि० मी० दूरी चलती हैं तथा 6867 रेलवे स्टेशन हैं।
(6) प्रतिदिन लगभग 130 लाख यात्री यात्रा करते हैं तथा 13 लाख टन भार ढोया जाता है।
(7) भारतीय रेलों में 8000 करोड़ रुपए की पूंजी लगी हुई है तथा प्रतिवर्ष 21,000 करोड़ रुपए की आय होती है।
(8) भारतीय रेलों में 11,000 रेल इंजन, 38,000 सवारी डिब्बे तथा 4 लाख भार ढोने वाले डिब्बे हैं ।
(9) भारत में 80% सामान तथा 70% यात्री रेलों द्वारा ही ले जाए जाते हैं।
(10) भारतीय रेलों का अधिक विस्तार उत्तरी भारत के समतल मैदान में है।
(11) भारत में जम्मू – कश्मीर, पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर का पठार तथा थार के मरुस्थल में रेल मार्ग कम हैं।
(12) दक्षिणी भारत में पथरीली, ऊंची-नीची भूमि के कारण, छोटी-छोटी नदियों पर जगह-जगह पुल बनाने की असुविधा है।
(13) अब भारतीय रेलों पर 4259 डीज़ल इंजन तथा 2302 बिजली के इंजन 347 भाप इंजन चलते हैं।
(14) लगभग 13517 कि० मी० लम्बे रेल मार्ग पर विद्युत् गाड़ियां दौड़ती हैं।

भारत में रेल मार्ग तीन प्रकार के हैं –
(1) चौड़ी पटरी ( Broad Gauge ) – 1.676 मीटर चौड़ाई। (कुल लंबाई 44380 कि०मी० – 70.7%)
(2) छोटी पटरी (Metre Gauge ) – 1 मीटर चौड़ाई। ( कुल लंबाई 15013 कि०मी० – 23.9 %)
(3) तंग पटरी (Narrow Gauge ) – 0.76 मीटर और 0.610 मीटर चौड़ाई। (कुल लंबाई 3363 कि०मी० – 5.4%)
रेल क्षेत्र (Railway Zones) – भारत में 16 रेल क्षेत्र हैं। ये रेल तथा प्रमुख कार्यालय इस प्रकार हैं –

रेल क्षेत्र प्रमुख कार्यालय लम्बाई ( कि०मी०)
(1) उत्तर रेलवे नई दिल्ली 10977
(2) उत्तर-पूर्वी रेलवे गोरखपुर 5163
(3) उत्तर-पूर्वी सीमान्त रेलवे गोहाटी 3613
(4) मध्य रेलवे मुम्बई 6309
(5) दक्षिण रेलवे चेन्नई 6703
(6) दक्षिण मध्य रेलवे सिकन्द्राबाद 6932
(7) दक्षिण-पूर्वी रेलवे कोलकाता 704
(8) पश्चिमी रेलवे मुम्बई 10292
(9) पूर्वी रेलवे कोलकाता 4204
(10) मध्य-पूर्वी हाजीपुर
(11) पूर्वतटीय भुवनेश्वर
(12) उत्तर-मध्यवर्ती इलाहाबाद
(13) उत्तर-पश्चिमी जयपुर
(14) दक्षिण-पूर्व मध्यवर्ती बिलासपुर
(15) दक्षिण-पश्चिम हुबली
(16) पश्चिम-मध्य जबलपुर

JAC Class 10 Hindi रचना संवाद-लेखन

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JAC Board Class 10 Hindi Rachana संवाद-लेखन

दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली आपसी बातचीत को संवाद कहते हैं। संवादों के माध्यम से केवल शब्दों का ही आदान- प्रदान नहीं होता बल्कि उनका प्रयोग करने वालों के चेहरे पर तरह-तरह के हाव-भाव भी प्रकट होते हैं, जो संवादों में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्दों के आरोह-अवरोह को नाटकीय ढंग से स्वाभाविकता प्रदान करते हैं।

संवादों के बिना दो लोगों के बीच बातचीत गति नहीं पकड़ सकती। संवादहीनता की स्थिति तो जड़ अवस्था को जन्म देती है। सामान्य बातचीत, लड़ाई-झगड़ा, हँसी-मज़ाक, प्रेम-घृणा, वाद-विवाद आदि सभी संवादों के सहारे ही पूरे होते हैं। संवादों में अनेक गुण होने चाहिए ताकि उनसे दूसरों को मनचाहे ढंग से प्रभावित किया जा सके या उन पर वही प्रभाव डाला जा सके जो हम डालना चाहते हैं। संवादों में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

  • संवाद स्वाभाविक होने चाहिए।
  • उनकी भाषा अति सरल, सरस, भावपूर्ण और प्रवाहमयी होनी चाहिए।
  • उनमें जहाँ कहीं संभव हो वहाँ विराम चिह्नों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • उनकी लंबाई अधिक नहीं होनी चाहिए। छोटे संवाद स्वाभाविक और सहज होते हैं। लंबे संवाद भाषण का बोध कराते हैं।
  • भाषा में भावों के अनुरूप चुटीलापन, पैनापन, स्पष्टता और सहजता होनी चाहिए।
  • उनमें कही जाने वाली बात निश्चित रूप से स्पष्ट हो जानी चाहिए।

संवाद के कुछ उदाहरण – 

प्रश्न 1.
घर आए मेहमान और राकेश की बातचीत संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर :

  • राकेश – कौन है बाहर ?
  • मेहमान – मैं हूँ नीरज गुप्ता। मुझे श्रीवास्तव जी से मिलना है। क्या यहीं रहते हैं ?
  • राकेश – जी हाँ। वे यहीं रहते हैं। आप भीतर आइए। इस समय वे घर पर नहीं हैं।
  • मेहमान – आप कौन हैं? मैं आपको नहीं पहचानता। श्रीवास्तव जी मेरे सहयोगी हैं।
  • राकेश – मैं उनका बड़ा बेटा हूँ। बेंगलुरू रहता हूँ। छुट्टियों में घर आया था। इसलिए मैं भी आप को नहीं पहचानता।
  • मेहमान – क्या करते हो वहाँ ?
  • राकेश – वहाँ एक अस्पताल में डॉक्टर हूँ।
  • मेहमान – नहीं चलता हूँ। जब श्रीवास्तव जी आएँ तो कह देना नीरज गुप्ता आए थे।
  • राकेश – आप उनसे मोबाइल पर बात कर लीजिए।
  • मेहमान – उनका नंबर नहीं लग रहा, मैं दोपहर बाद फिर आ जाऊँगा। मुझे कुछ चर्चा करनी थी उनसे दफ़्तर की किसी समस्या के बारे में।
  • राकेश – ठीक है। जैसा आप उचित समझें।

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प्रश्न 2.
हिंदी की महत्ता को प्रकट करते हुए दो मित्रों की बातचीत लिखिए।
उत्तर :

  • कमल – यह ज्योत्सना तो हर समय अंग्रेज़ी में ही बात करती है। क्या इसे अपनी मातृभाषा नहीं आती ?
  • रजत – आती क्यों नहीं ! बस उसके मन में यही भावना छिपी है कि अंग्रेज़ी बोलने से दूसरों पर प्रभाव अधिक पड़ता है।
  • कमल – भाषा का संबंध अच्छे-बुरे भाव से नहीं होता। अपनी भाषा तो सबसे अच्छी होती है।
  • रजत – हाँ, अपनी भाषा सबसे अच्छी होती है। इसी से तो हमारी पहचान बनती है। मैंने उसे कई बार यह समझाया भी है।
  • कमल – अपनी-अपनी समझ है। हिंदी तो हमारे यहाँ सभी समझते हैं पर अंग्रेज़ी तो सबको समझ भी नहीं आती।
  • रजत – वैसे भी हम जितनी अच्छी तरह अपने भाव अपनी भाषा में व्यक्त कर सकते हैं वे दूसरी भाषा में नहीं कर सकते।
  • कमल – सारे संसार में तो लोग अपनी मातृभाषा का ही प्रयोग करना अच्छा मानते हैं पर हमारे देश में अभी भी कहीं-कहीं विदेशी मानसिकता हावी है।
  • रजत – विदेशी भाषाओं का ज्ञान तो होना चाहिए पर फिर भी महत्त्व तो अपनी मातृभाषा को ही देना चाहिए और फिर हिंदी तो वैज्ञानिक भाषा है।
  • कमल – हाँ, हम इसमें जैसा लिखते हैं वैसा ही बोलते हैं।

प्रश्न 3.
परीक्षा आरंभ होने से पहले मनस्वी और काम्या के बीच बातचीत को लिखिए।
उत्तर :

  • मनस्वी – मुझे तो बहुत डर लग रहा है। पता नहीं क्या होगा ?
  • काम्या – तुझे किस बात का डर है ? तू तो पढ़ाई-लिखाई में तेज़ है।
  • मनस्वी – वह अलग बात है। परीक्षा तो परीक्षा होती है – इससे तो बड़े-बड़े भी डरते हैं।
  • काम्या – क्या तूने सारे पाठ दोहरा लिए?
  • मनस्वी – नहीं। पिछले दो पाठ दोहराने रह गए। इस बार परीक्षा में एक भी छुट्टी नहीं मिली। इतना बड़ा सिलेबस था।
  • काम्या – मैं तो रात भर पढ़ती रही पर पूरा सिलेबस दोहरा ही नहीं पाई। जो पहले पढ़ा हुआ था उसी से काम चलाना पड़ेगा।
  • मनस्वी – विषय तो पूरी तरह आता है पर दोहराना तो आवश्यक होता है।
  • काम्या – यह बात तो ठीक है। पर अब हम कर क्या सकते हैं ?

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प्रश्न 4.
मनुज और गीतिका में हुई बातचीत में गाँव और नगर की तुलना संवाद रूप में कीजिए।
उत्तर :

  • मनुज – हमारा देश तो गाँवों का देश है। गाँवों से ही तो नगर बने हैं।
  • गीतिका – वह तो ठीक है पर, नगरों के कारण ही गाँवों के सुख हैं।
  • मनुज – नहीं। भौतिक सुख चाहे नगरों में अधिक हैं पर आपसी भाईचारा और सहयोग का भाव जो गाँवों में है वह नगरों में कहाँ है ?
  • गीतिका – ऐसी तो कोई बात नहीं।
  • मनुज – ऐसा ही है। हमारे नगरों में कोई अनजान व्यक्ति हमारे घर आ जाए तो हमारा व्यवहार उसके प्रति कैसा होता है ?
  • गीतिका n- हम उन्हें शक की दृष्टि से देखते हैं। कहीं वह चोर लुटेरा ही न हो।
  • मनुज – पर गाँवों में ऐसा नहीं है। लोग अनजानों को भी मेहमान मानने से डरते नहीं हैं। उन्हें उन पर भरोसा जल्दी हो जाता है।
  • गीतिका – यह अच्छा है।
  • मनुज – रिश्ते-नाते और भाइचारे का भाव तो गाँव में ही है।

प्रश्न 5.
मालविका और सागरिका में पेड़-पौधों की रक्षा से संबंधित बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर :

  • मालविका – कल वन महोत्सव है।
  • सागरिका – तो, कल क्या होगा ?
  • मालविका – हम तो मिलजुल कर अपने स्कूल में नए पौधे लगाएँगे और उनकी देखभाल करने की शपथ लेंगे।
  • सागरिका – उससे क्या लाभ? इतने पेड़-पौधे तो पहले से ही हैं।
  • मालविका – अरे नहीं। संसार भर में सबसे कम जंगल हमारे देश में बचे हैं और जनसंख्या की दृष्टि से हम संसार में दूसरे नंबर पर आ गए हैं।
  • सागरिका – इससे क्या होता है ?
  • मालविका – इसी से तो होता है। पेड़-पौधे वे संसाधन हैं जो हमें उपयोगी सामान ही नहीं देते, वे वर्षा भी लाने में सहायक होते हैं।
  • सागरिका – हाँ, जंगलों में जंगली जीव भी सुरक्षा पाते हैं। इनसे भूमि कटाव भी रुकता है। हवा भी शुद्ध होती है।
  • मालविका – तभी तो कह रही हूँ। हमें और अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए।
  • सागरिका – जो पेड़ लगे हैं उन्हें कटने से रोकना चाहिए। तभी तो हमारा देश हरा-भरा रह सकेगा।

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प्रश्न 6.
वृंदा और मानसी के बीच चिड़ियाघर को देखते समय की गई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर :

  • वृंदा (ऊपर की तरफ़ देखते हुए) – देख ऊपर, पेड़ पर चार लंगूर कैसे बैठे हैं।
  • मानसी – उनका मुँह कितना काला है और पूँछें कितनी लंबी-लंबी।
  • वृंदा – हाँ, उधर देख मोर अपने पंख फैलाकर कैसे नाच रहा है।
  • मानसी – बादल छाए हुए हैं न। पापा ने बताया था कि बादलों को देखकर मोर नाचते हैं। इनके पंख कितने सुंदर हैं। ये तो गोल-गोल घूम भी रहे हैं।
  • वृंदा – उधर देख, कितने बड़े-बड़े दो शेर हैं।
  • मानसी – चलो भागें यहाँ से। कहीं इन्होंने हमें देख लिया तो खा जाएँगे।
  • वृंदा – डर मत हमारे और इनके बीच गहरी खाई है और चारों तरफ़ जाल भी तो लगा है। ये हम तक नहीं पहुँच सकते।
  • मानसी – वह देख, हिरणों के कितने सुंदर झुंड हैं। उनकी आँखें देख, कितनी सुंदर हैं। हम भी एक हिरण घर में पालेंगे – पापा से कहेंगे कि हमें भी एक हिरण ला दें।
  • वृंदा- नहीं, जंगली जीवों को यहीं रहना चाहिए या जंगल में। इन्हें घर में रखना तो अपराध है।

प्रश्न 7.
छुट्टियों में किसी दर्शनीय स्थल को देखने की योजना पर अपने और अपने भाई के बीच हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखो।
उत्तर :

  • सानिया – अगले हफ़्ते से स्कूल में छुट्टियाँ हो जाएँगी। चल अब्बा-अम्मी से कहें कि कहीं बाहर चलें।
  • अज्जू – हाँ। हमें बाहर कहीं भी गए हुए दो साल हो गए हैं।
  • सानिया – उन्हें कहते हैं कि मसूरी ले चलें।
  • अज्जू – हाँ, वह बहुत सुंदर जगह है।
  • सानिया – तुझे कैसे पता ?
  • अज्जू – गुरुप्रीत कह रहा था। वह पिछले वर्ष छुट्टियों में गया था अपनी मम्मी-पापा के साथ।
  • सानिया – वहाँ तो गर्मियों में भी गर्मी नहीं होती। वह तो पर्वतों की रानी है।
  • अज्जू – वहाँ तो सब तरफ पहाड़ – ही पहाड़ हैं। वहाँ तो एक बड़ा और सुंदर प्राकृतिक झरना भी है।
  • सानिया – वह कैंप्टी फॉल है। बहुत ऊँचाई से पानी नीचे गिरता है।
  • अज्जू – तुझे कैसे पता ?
  • सानिया – मैंने एक मैग्जीन में पढ़ा था और उसकी फ़ोटो देखी थी।

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प्रश्न 8.
मनजीत और सिमरन में बार-बार बिजली जाने से उत्पन्न परेशानी को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर :

  • सिमरन – लो, बिजली तो फिर गई।
  • मनजीत – अब गई और पता नहीं कब आएगी ? इसने हर समय का मज़ाक बना दिया है।
  • सिमरन – पता नहीं, ये बिजली बोर्ड वाले करते क्या हैं ? बार-बार बिजली खराब क्यों हो जाती है ?
  • मनजीत – यह खराब नहीं हो जाती। इसे पीछे से बंद कर देते हैं। अलग-अलग समय में अलग-अलग क्षेत्रों को बिजली देते हैं।
  • सिमरन – क्यों ?
  • मनजीत – बिजली पैदा कम हो रही है और इसकी खपत बढ़ गई है। हर घर में तो कूलर और एयर कंडीशनर लगे हैं। वे दिन-रात चलते हैं।
  • सिमरन – तो सरकार को अधिक बिजली बनानी चाहिए। वह ऐसा क्यों नहीं करती ?
  • मनजीत – नए बिजली – घर बनाए जा रहे हैं पर उनकी भी कई तरह की समस्याएँ हैं।
  • सिमरन – समस्याएँ तो हैं पर सरकार को उनसे निपटना भी चाहिए।

प्रश्न 9.
नगर की टूटी-फूटी सड़कों से परेशान विनीता और पल्लवी के बीच बातचीत को लिखिए।
उत्तर :

  • विनीता – मैं तो कल बड़े ज़ोर से सड़क पर गिर गई थी। सारी टाँग छिल गई है।
  • पल्लवी – वह कैसे ? फिसल गई थी क्या ?
  • विनीता – नहीं। सारे नगर की सड़कों का हाल तो तुझे पता ही है। हमारी सड़कों पर चंद्रमा की सतह की तरह गड्ढे हैं। मेरी साइकिल
  • उछल गई और मैं गिर गई।
  • पल्लवी – सारी सड़कें ही खराब हैं। सरकार कुछ करती भी तो नहीं।
  • विनीता – अब बरसातें आने वाली हैं। इनमें पानी भर जाएगा और फिर वहाँ मच्छरों के अंडों की भरमार हो जाएगी।
  • पल्लवी – तभी तो पिछले साल कितना मलेरिया फैला था।
  • विनीता – पता नहीं रोज़ कितने लोग गिरते हैं इनके कारण।
  • पल्लवी – लोगों को कुछ करना चाहिए। यदि हम अपने आस-पास की सड़कों के गड्ढों में खुद मिट्टी भर दें तो …..।
  • विनीता – मिट्टी तो एक दिन में निकल जाएगी। इस काम में पैसा लगता है और वह सरकार के पास है।

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प्रश्न 10.
खाद्य-पदार्थों में होने वाली मिलावट के बारे में मित्र के साथ हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • मोहन – (सोहन को मुँह लटकाए देखकर) क्या हुआ? ये थैला लिए कहाँ चल दिए ?
  • सोहन – क्या बताऊँ ? चावल लाया था, वापस करने जा रहा
  • मोहन – क्यों ?
  • सोहन – माँ ने बताया, इनमें संगमरमर का चूरा मिला है।
  • मोहन – अरे ! आजकल खूब देखभाल कर खरीदा करो, हर चीज़ में मिलावट आ रही है।
  • सोहन – हाँ, ठीक तो है, पर सरकार कुछ क्यों नहीं करती ?
  • मोहन – उपभोक्ता फोरम में शिकायत करो तो सरकार भी कुछ करेगी।
  • सोहन – ठीक है, फिर ऐसा ही करता हूँ।

प्रश्न 11.
आजकल दूरदर्शन पर होने वाले किशोरों के लिए कार्यक्रमों में सुधार की आवश्यकता पर मित्र से हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • विजय – अरे, देव! इस समय इधर कैसे, दूरदर्शन पर तो विशेष किशोर सभा आ रही होगी, चलो देंखें।
  • देव – अरे, छोड़ो, उसमें क्या है, वही घिसे-पिटे उपदेशात्मक कार्यक्रम !
  • विजय – हाँ, अच्छा तो मुझे भी नहीं लगता पर क्या दूरदर्शन वाले किशोरों के लिए उनके ज्ञानवर्धन के कार्यक्रम नहीं दे सकता ?
  • देव – क्यों नहीं, अनेक कार्यक्रम हैं, जैसे देशभक्ति से संबंधित, महापुरूषों के जीवन की घटनाओं पर आधारित कार्यक्रम
  • विजय – किशोरों के सामान्य ज्ञान, स्वास्थ्य, खेल-कूद से संबंधित कार्यक्रम भी तो हो सकते हैं।
  • देव – हाँ, चलो आराम से बैठकर इस संबंध में दूरदर्शन के निदेशक को पत्र लिखते हैं।

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प्रश्न 12.
शहर में आए दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं से बचकर रहने के बारे में मित्र से हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • मानव – (कमल को लंगड़ा कर चलते देख) क्या हुआ कमल ?
  • कमल – कल सड़क पर गिर गया था, टांग दब गई है।
  • मानव – कैसे, क्या हुआ था ?
  • कमल – सड़क पर इतने गड्ढे हैं कि पता ही नहीं चलता कि सड़क कहाँ है, बस मेरी बाईक गड्ढे में फंस गई और मैं उछल कर जा गिरा।
  • मानव – ध्यान से चलाया कर, पर तेरा भी क्या दोष, सारी सड़कें ही खराब हैं और निर्माण विभाग सोया हुआ है।
  • कमल – मैं नगर निगम में पत्र लिखकर दे आया हूँ तो शायद सड़कों की मरम्मत हो जाए।
  • मानव – फिर भी हमें यातायात नियमों का पालन करते हुए तथा ध्यानपूर्वक वाहन चलाना चाहिए।
  • कमल – वाहन चलाते हुए पैदल चलने वालों को अपनी दिशा, ओवरटेक करना आदि भी सावधानी से करना चाहिए।
  • मानव – ठीक तो है, सावधानी हटी, तो दुर्घटना घटी।

प्रश्न 13.
आजकल स्कूली वाहनों द्वारा हो रही असावधानियों पर माँ-बेटे के बीच हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • माँ – रमन, आज देर कैसे हो गई?
  • रमन – माँ, बस खराब हो गई थी।
  • माँ – कैसे ? सुबह तो ठीक थी।
  • रमन – सामने से दूसरे स्कूल की बस ने हमारी बस को टक्कर मार दी थी, जिससे ब्रेक जाम हो गई थी।
  • माँ – अरे, क्या चोट तो नहीं लगी?
  • रमन – नहीं, हमारी बस के ड्राइवर ने सावधानी से हैंडब्रेक का प्रयोग किया और सभी बच्चे सुरक्षित रहे।
  • माँ – कई बस चालक तेज़ गति से बस चलाते हैं, जिससे दुर्घटना हो जाती है, ऐसे चालकों को नौकरी से निकाल देना चाहिए।
  • रमन – ठीक है, पर करेगा कौन?
  • माँ – तुम तेज़ चलते वाहनों का नंबर नोट कर लिया करो, मैं परिवहन विभाग को सूचित कर दूँगी कि इनका चालान किया जाए।

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प्रश्न 14.
गृहकार्य में शिथिलता देखकर पिता-पुत्र के बीच हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • पिता – मोहित, अपने विद्यालय की डायरी दिखाना।
  • मोहित – पता नहीं कहाँ रख दी !
  • पिता – मुझे तुम्हारे अध्यापक का फोन आया था कि तुम गृहकार्य ठीक से नहीं कर रहे।
  • मोहित – नहीं, ऐसा तो नहीं है।
  • पिता – इसलिए डायरी नहीं मिल रही।
  • मोहित – (डायरी लाकर दिखाता है) मिल गई है।
  • पिता – (डायरी देखकर) देखो, जगह-जगह अध्यापक की टिप्पणियाँ हैं।
  • मोहित – गलती हो गई, आगे से ऐसा नहीं होगा।

प्रश्न 15.
परीक्षा में आपकी शानदार उपलब्धियों पर आपके और पिताजी के बीच हुए संवाद को 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • कमल – पिताजी! मेरा परीक्षा परिणाम आ गया है।
  • पिता – अच्छा, कैसा रहा?
  • कमल – बहुत अच्छा, मुझे तीन विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त हुई है।
  • पिता – शाबाश! ये तो बहुत बड़ी उपलब्धि है। आगे क्या करना है?
  • कमल – मैं कॉमर्स विषयों के साथ स्नातक बनकर सी०ए० करना चाहता हूँ।
  • पिता – ठीक है, मैं तुम्हारी पूरी सहायता करूँगा, पर खूब मेहनत करनी होगी।
  • कमल – आप के आशीर्वाद से मैं और भी अच्छे परिणाम लाऊँगा।
  • पिता – ऐसा ही आत्मविश्वास बनाकर आगे बढ़ो।

JAC Class 10 Hindi रचना सूचना-लेखन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana सूचना-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana सूचना-लेखन

किसी संस्थान में सब के सूचनार्थ जारी किए गए वे आदेश जो संस्थान की दैनिक कार्यवाही के लिए आवश्यक होते हैं, नोटिस अथवा सूचना
कहलाते हैं। सूचना कम शब्दों में औपचारिक रूप से लिखी गई संक्षिप्त जानकारी होती है। सूचना लेखन के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं –

  • सबसे पहले संस्था का नाम या शीर्षक लिखिना चाहिए।
  • फिर सूचना जारी करने की दिनांक लिखिनी चाहिए।
  • फिर सूचना लेखन का उद्देश्य लिखिना चाहिए।
  • सूचना की भाषा संक्षिप्त, स्पष्ट तथा सरल होनी चाहिए।

प्रश्न 1.
महर्षि दयानंद विद्यालय दिनांक 15 मई से 1 जुलाई, 20… तक ग्रीष्मावकाश के लिए बंद रहेगा। इस आशय की सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
महर्षि दयानंद विद्यालय, जयपुर

दिनांक 10 मई, 20…..
सभी विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि ग्रीष्मावकाश के कारण विद्यालय 15 मई से 1 जुलाई, 20… तक बंद रहेगा। विद्यालय 2 जुलाई को प्रातः 8 बजे खुलेगा।
सर्वजीत कौर
प्राचार्य

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प्रश्न 2.
राजकीय विद्यालय, फरीदकोट के अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को अपनी छात्रवृत्ति महाविद्यालय के लेखापाल से प्राप्त करने की सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
राजकीय विद्यालय, फरीदकोट

दिनांक 10 अगस्त, 20….
अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की छात्रवृत्तियाँ पंजाब सरकार से प्राप्त हो गई हैं। वे विद्यालय के लेखापाल से खिड़की संख्या दो पर अपनी छात्रवृत्ति किसी भी कार्य दिवस में प्रातः 9 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक प्राप्त कर सकते हैं।
गोविंद सिंह बेदी
प्राचार्य

प्रश्न 3.
श्री हरबंस लाल भंडारी का पंद्रह वर्षीय लड़का घर से भाग गया है। उसकी तलाश के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
गुमशुदगी की सूचना

दिनांक 25 सितंबर, 20 ….

सबको सूचित जाता है कि मेरा पुत्र जिसका नाम संदीप कुमार है दिनांक 22 सितंबर से घर से लड़कर भाग गया है। उसकी उम्र पंद्रह वर्ष, कद 5′-2″, शरीर गठीला, चेहरा गोल तथा बाएँ गाल पर चोट का निशान है। उसने काली – सफ़ेद धारियों वाली कमीज़ तथा पैंट पहनी हुई है। उसका पता देने वाले अथवा घर तक पहुँचाने वाले को समुचित पुरस्कार दिया जाएगा। यदि संदीप स्वयं इस सूचना को पढ़ता है तो वह स्वयं घर चला आए। उसकी माँ बहुत बीमार है। उसे अब कोई कुछ नहीं कहेगा।
हरबंस लाल भंडारी
512, सदर बाज़ार,
फिरोज़पुर छावनी

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प्रश्न 4.
भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
भूकंप पीड़ितों के लिए आर्थिक सहायता

दिनांक 28 जनवरी, 20….
आम जनता को सूचित किया जाता है कि जो दानी महानुभाव / स्वयंसेवी संगठन और निजी तौर पर गुजरात के भूकंप पीड़ितों के लिए राहत कार्यों हेतु वित्तीय सहायता देने के इच्छुक हैं, वे ‘पंजाब चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड गुजरात’ के नाम चैक / ड्रॉफ्ट तैयार करवा के पंजाब सिविल सचिवालय, चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री के कार्यालय में डाक द्वारा या स्वयं दे सकते हैं।
जारीकर्ता
सूचना एवं लोक संपर्क, पंजाब

प्रश्न 5.
अपने विद्यालय में वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह मनाने के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
गुरु नानक देव कन्या विद्यालय, खन्ना

दिनांक 13 मार्च, 20….

विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह विद्यालय परिसर में शनिवार दिनांक 17 मार्च, 20…. को प्रातः 11.00 बजे मनाया जाएगा। मुख्य अतिथि शिक्षा आयुक्त श्रीमती सिमरण कौर होंगी। सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति अनिवार्य है।
समारोह के बाद जलपान की व्यवस्था है।
तृप्ता सचदेव
प्रधानाचार्या

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प्रश्न 6.
अपने विद्यालय में कवि सम्मेलन के आयोजन की सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
माता प्रकाश कौर कन्या उच्च विद्यालय, फिरोज़पुर

दिनांक 15 नवंबर, 20….

सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि मंगलवार दिनांक 19 नवंबर, 20…. को प्रातः 11.00 बजे विद्यालय परिसर में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है। इच्छुक विद्यार्थी प्रधानाचार्या कार्यालय में संपर्क करें।
सिमरन कौर
प्रधानाचार्या

प्रश्न 7.
अपने विद्यालय में वृक्षारोपण समारोह मनाने के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
भारतीय विद्या मंदिर, जयपुर

दिनांक 14 जुलाई, 20 ….
समस्त विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर में बुधवार, दिनांक 20 जुलाई, 20…. को प्रात: 10.00 बजे वृक्षारोपण समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस समारोह की अध्यक्षता प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० गोविंद खुराना करेंगे तथा विद्यालय प्रांगण में वृक्ष लगाए जाएँगे। सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति अनिवार्य है।
के०सी० भाटी
प्रधानाचार्य

JAC Class 10 Hindi रचना सूचना-लेखन

प्रश्न 8.
अपने विद्यालय में विज्ञान प्रदर्शनी के आयोजन की सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
दयाल सिंह पब्लिक स्कूल, गांधीनगर

दिनांक 12 फरवरी, 20….
सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि सोमवार, दिनांक 21 फरवरी, 20….. प्रात: 10.00 बजे विद्यालय परिसर में विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।
एस०के० मकवाना
प्रधानाचार्य
सूचना-लेखन

प्रश्न 9.
अपने विद्यालय में बाल दिवस मनाए जाने की सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
राजकीय उच्च विद्यालय, कानपुर

दिनांक 10 नवंबर, 20 ….

सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर में बुधवार, दिनांक 14 नवंबर, 20…. को प्रात: 10.00 बजे बाल दिसव मनाया जाएगा, जिसमें अनेक विद्वान अपने-अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। इस समारोह में सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।
समारोह के पश्चात जलपान का प्रबंध है।
आशीष वाजपेयी
प्राचार्य

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प्रश्न 10.
अपने विद्यालय में अध्यापक दिवस मनाने के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
आर्य कन्या विद्यालय, वाराणसी

दिनांक 01 सितंबर, 20 ….
सभी विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 05 सितंबर, 20…. को प्रातः 9.00 बजे विद्यालय प्रांगण में अध्यापक दिवस मनाया जाएगा। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अध्यापक श्री विकास शुक्ला करेंगे।
इस कार्यक्रम में सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।
देवेन्द्र मिश्रा
प्राचार्य

प्रश्न 11.
अपने विद्यालय में हिंदी दिवस मनाने के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
छबीलदास विद्यालय, गाजियाबाद

दिनांक 8 सितंबर, 20….
सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 14 सितंबर 20…. को प्रातः 10.00 बजे विद्यालय परिसर में हिंदी दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर हिंदी भाषण प्रतियोगिता का आयोजन होगा। विद्यार्थी अपने-अपने विचार प्रस्तुत करेंगे।
अशोक कुमार
हिंदी विभाग अध्यक्ष

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प्रश्न 12.
नवनिर्मित क्लीनिक के उद्घाटन के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
ननकाना क्लीनिक का उद्घाटन

दिनांक 10 दिसंबर, 20….
आप सभी को सूचित किया जाता है कि भगवान की असीम कृपा से अपने सुपुत्र डॉ० ओंकार ननकाना के नव-निर्मित औषधालय ‘ननकाना क्लीनिक’ के डॉ० जी०एस० सोढी द्वारा मुहूर्त के शुभ अवसर पर आशीर्वाद देने हेतु श्री किशन चंद्र ननकाना आपको दिनांक 21 दिसंबर 20…. को कार्यक्रमानुसार सादर आमंत्रित करते हैं।

र्कायिक्रम
हवन – 10.00 बजे प्रातः
जलपान 11.30 बजे प्रातः
स्थान: निकट पुलिस चौकी, राम नगर, फाजिल्का

दर्शनाभिलाषी
कैलाश चंद्र ननकाना

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प्रश्न 13.
खेल – कूद की पुरानी सामग्री की बेचने के लिए सूचना लिखिए।
उत्तर :

सूचना
डी०ए०वी० विद्यालय, दिल्ली

दिनांक 21 अगस्त, 20….
आप सभी को सूचित किया जाता कि खेल – कूद की बहुत सारी सामग्रियों को बेहद किफायती दामों पर बेचा जाने वाला है। सभी खेल उपकरण एवं सामग्री एकदम सही हालत में है। जो कोई भी इन्हें खरीदना चाहता है, वह इस महीने की दस तारीख को विद्यालय के हॉल में दोपहर एक बजे तक आ जाए। सामग्री की कीमत उसी समय देनी होगी।
अशोक मेहता
खेल, कप्तान

प्रश्न 14.
विद्यालय में रक्तदान शिविर आयोजित किया जाने वाला है, इस हेतु एक सूचना जारी कीजिए।
उत्तर :

सूचना
नवोदय विद्यालय, पटना

दिनांक 12 नवंबर, 20….
हमारे विद्यालय में दिनांक 20 नवंबर, 20…. को एक रक्तदान शिविर लगाया जा रहा है। शहर के उपायुक्त शिविर का उद्घाटन तथा अध्यक्षता करेंगे। रक्तदान करना मानवता के लिए सबसे बड़ा दान है। जो भी रक्तदान के लिए इच्छुक हों वे निश्चित तिथि पर विद्यालय के हॉल में आ जाएँ।
विवेक झा
प्रधानाचार्य

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प्रश्न 15.
विद्यालय में साहित्यिक क्लब के सचिव के रूप में ‘प्राचीर’ पत्रिका के लिए लेख, कविता, निबंध आदि विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत करने हेतु सूचना-पट के लिए एक सूचना लगभग 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

सूचना
टैगोर विद्या मंदिर, चेन्नई

दिनांक : 25 जुलाई, 20….
विद्यालय की पत्रिका ‘प्राचीर’ में प्रकाशनार्थ हेतु लेख, कविता, निबंध आदि विद्यार्थियों से आमंत्रित किए जाते हैं। इच्छुक विद्यार्थी अपनी रचनाएँ दिनांक 12 अगस्त तक साहित्यिक क्लब के सचिव को दे दें।
वी० – रमा
सचिव, साहित्यिक क्लब
आर०के० मेनन प्राचार्य

प्रश्न 16.
विद्यालय में छुट्टी के दिनों में भी प्रातः काल में योग की अभ्यास कक्षाएँ चलने की सूचना देते हुए इच्छुक विद्यार्थियों द्वारा अपना नाम देने हेतु सूचना पट्ट के लिए यह सूचना लगभग 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

सूचना
विवेकानंद विद्या मंदिर, नागपुर

दिनांक 15 जून, 20…..
समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय में छुट्टी के दिनों में भी प्रात: काल 6 बजे से 7 बजे तक योग की अभ्यास कक्षाएँ लगेंगी। इसमें भाग लेने के इच्छुक विद्यार्थी अपने नाम दिनांक 20 जून, 20… तक अपनी-अपनी कक्षा के अध्यापकों को दे दें।
देवेंद्र नाथ पुरोहित
प्राचार्य

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प्रश्न 17.
विद्यालय में आयोजित होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए एक सूचना लगभग 30 शब्दों में साहित्यिक क्लब के सचिव की ओर से विद्यालय सूचना पट के लिए लिखिए।
उत्तर :

सूचना
भारतीय विद्या मंदिर, जयपुर

दिनांक 15 सितंबर 20…….
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 19 सितंबर, 20….. को प्रात: 10.00 बजे विद्यालय के सभागार में साहित्यिक क्लब की ओर से ‘बाल मज़दूरी’ विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विद्यार्थी दिनांक 18-9-20 तक अपने नाम साहित्यिक कल्ब के सचिव को दे दें।
सुधा राजे
सचिव, साहित्यिक क्लब

प्रश्न 18.
विद्यालय में वृक्षारोपण समारोह के आयोजन के लिए आपको संयोजक बनाया गया है। पूरे विद्यालय की सहभागिता के लिए एक सूचना लगभग 30 शब्दों में तैयार कीजिए।
उत्तर :

सूचना
टैगोर विद्या मंदिर, नई दिल्ली

दिनांक : 15 जुलाई, 20…….

विद्यालय के समस्त विद्यार्थियों एवं अध्यापक गण को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर में दिनांक 21 जुलाई, 20को प्रात: 10.00 बजे वृक्षारोपण समारोह का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें सबकी सहभागिता अपेक्षित है। समारोह की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ० एस० के० भट्ट करेंगे।
संजीव चौधरी
संयोजक, पर्यावरण क्लब

JAC Class 10 Hindi रचना सूचना-लेखन

प्रश्न 19.
विद्यालय परिसर के बाहर अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक खाद्य वस्तुएँ बेची जाती हैं और विद्यार्थी उस ओर आकृष्ट होकर उन वस्तुओं को खरीदते हैं। विद्यालय के छात्र प्रमुख के रूप में इन चीजों से दूर रहने की सलाह देते हुए एक सूचना लगभग 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

सूचना
नवोदय विद्यालय, राजेंद्र नगर

दिनांक 12 जुलाई, 20……
समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर के बाहर ठेले वाले जो खाद्य-पदार्थ बेचते हैं, वे स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होते हैं। इसलिए कोई भी विद्यार्थी उन वस्तुओं को नहीं खरीदें तथा कुछ खाना ही हो तो विद्यालय की कैन्टीन से खरीदें।
प्रियांश शुक्ला
छात्र प्रमुख

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो –
1. किस प्रकार की कृषि को Slash and Burn कृषि कहते हैं ?
(A) आदि निर्वाह
(B) गहन निर्वाह
(C) रोपण
(D) व्यापारिक।
उत्तर:
(A) आदि निर्वाह

2. भारत का किस फ़सल के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है ?
(A) चाय
(B) कहवा
(C) चावल
(D) कपास।
उत्तर:
(C) चावल

3. भारत में कौन-सा राज्य ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक है ?
(A) पंजाब
(B) महाराष्ट्र
(C) कर्नाटक
(D) राजस्थान
उत्तर:
(B) महाराष्ट्र

4. किस फ़सल उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है ?
(A) पटसन
(B) कहवा
(C) चाय
(D) चावल
उत्तर:
(C) चाय

5. बाबा बूदन पहाड़ियों पर किस फ़सल की कृषि आरम्भ की गई ?
(A) चाय
(B) कहवा
(C) चावल
(D) कपास।
उत्तर:
(B) कहवा

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

6. ‘सोने का रेशा’ किसे कहते हैं ?
(A) कपास
(B) रेशम
(C) पटसन
(D) ऊन।
उत्तर:
(C) पटसन

7. निम्नलिखित में से कौन-सी रबी की फ़सल है ?
(A) चावल
(B) मोटा अनाज
(C) चना
(D) कपास।
उत्तर:
(C) चना

8. कौन-सी फ़सल दलहन फ़सल है ?
(A) दालें
(B) मोटा अनाज
(C) ज्वार
(D) तोरिया।
उत्तर:
(A) दालें

9. किसी फ़सल की सहायता के लिए कौन-सा मूल्य निर्धारित किया जाता है ?
(A) उच्चतम समर्थन मूल्य
(B) निम्नतम समर्थन मूल्य
(C) दरमियाना समर्थन मूल्य
(D) प्रभावशाली समर्थन मूल्य।
उत्तर:
(B) निम्नतम समर्थन मूल्य

10. कपास के लिए कितने दिन का पाला रहित मौसम चाहिए ?
(A) 100
(B) 150
(C) 200
(D) 250
उत्तर:
(C) 200

11. कौन – सा राज्य सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्य है ?
(A) पंजाब
(B) हरियाणा
(C) उत्तर प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर:
(C) उत्तर प्रदेश

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

12. भारत में कुल खाद्य उत्पादन कितना है ?
(A) 7 करोड़ टन
(B) 10 करोड़ टन
(C) 15 करोड़ टन
(D) 23 करोड़ टन।
उत्तर:
(D) 23 करोड़ टन।

13. किस ऋतु में खरीफ़ की फ़सलें बोई जाती हैं ?
(A) शीत
(B) ग्रीष्म
(C) बसन्त
(D) पतझड़।
उत्तर:
(A) शीत

14. भारत के निवल कृषि क्षेत्र हैं
(A) 77%
(B) 67%
(C) 45%
(D) 43%.
उत्तर:
(D) 43%.

15. भारत में खाद्य फ़सलों के अधीन क्षेत्र हैं
(A) 34%
(B) 44%
(C) 54%
(D) 64%
उत्तर:
(C) 54%

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में कितने प्रतिशत भाग पर कृषि होती है ?
उत्तर:
– 47%

प्रश्न 2.
भारत में परती भूमि कितने प्रतिशत है ?
उत्तर:
7.6%

प्रश्न 3.
भारत में औसत शस्य गहनता कितनी है ?
उत्तर:
135%

प्रश्न 4.
भारत में खाद्यान्न उत्पादन कितना है ?
उत्तर:
320 करोड़ टन।

प्रश्न 5.
भारत में चावल का कुल उत्पादन कितना है ?
उत्तर:
850 लाख टन।

प्रश्न 6.
भारत में गेहूँ का कुल उत्पादन कितना है ?
उत्तर:
-687 लाख टन।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 7.
भारत में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर उपज कितनी है ?
उत्तर:
2743 कि० ग्रा० प्रति हेक्टेयर।

प्रश्न 8.
भारत में दालों का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
1 करोड़ टन।

प्रश्न 9.
भारत में तिलहन का कुल उत्पादन कितना है ?
उत्तर:
1.89 करोड टन।

प्रश्न 10.
भारत में चाय की कुल उत्पादन कितना है ?
उत्तर:
8 लाख टन।

प्रश्न 11.
भारत में कितने प्रतिशत लोग जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं ?
उत्तर:
70 प्रतिशत।

प्रश्न 12.
परती भूमि क्या है ?
उत्तर:
वह भूमि जिसमें एक से पांच वर्ष तक कोई फ़सल न उगाई गई हो।

प्रश्न 13.
शुद्ध बोये गए क्षेत्र की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर:
दूसरा स्थान।

प्रश्न 14.
भारत में शस्य गहनता किस राज्य में सर्वाधिक है ?
उत्तर:
पंजाब – 189 प्रतिशत।

प्रश्न 15.
वे तीन उद्देश्य बताओ जिनके लिए भूमि का प्रयोग होता है ?
उत्तर:
उत्पादन, निवास तथा मनोरंजन।

प्रश्न 16.
उस सरकारी संस्था का नाम बताओ जो भौगोलिक क्षेत्रफल के आंकड़े प्रदान करती हैं ?
उत्तर:
सर्वे ऑफ इण्डिया

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प्रश्न 17.
किस भूमि को सांझा सम्पत्ति संसाधन कहते हैं ?
उत्तर:
ग्रामीण पंचायतों के अधिकार में भूमि।

प्रश्न 18.
भूमि को परती क्यों छोड़ा जाता है ?
उत्तर:
ताकि भूमि अपनी खोई हुई उर्वरता पुनः प्राप्त कर सके।

प्रश्न 19.
फ़सलों की गहनता ज्ञात करने का सूत्र बताओ।
उत्तर:
फ़सल गहनता =
कुल बोया गया क्षेत्र
शुद्ध बोया गया क्षेत्र
x 100

प्रश्न 20.
भारत में फ़सलों की मुख्य ऋतुएं बताओ।
उत्तर:
खरीफ़, रबी तथा जायद।

प्रश्न 21.
आर्द्रता के आधार पर दो प्रकार की कृषि बताओ।
उत्तर:
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि

प्रश्न 22.
पश्चिमी बंगाल में वर्ष में बोई जाने वाली चावल की तीन किस्में बताओ।
उत्तर:
ओस, अमन, बोरो।

प्रश्न 23.
भारत में बोये जाने वाले प्रमुख तिलहन बताओ।
उत्तर:
मूंगफली, तोरिया, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी।

प्रश्न 24.
पंजाब में लम्बे रेशे वाली कपास को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
नरमा।

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प्रश्न 25.
पश्चिम बंगाल में चाय के तीन उत्पादक क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार।

प्रश्न 26.
भारत में उत्पन्न किए जाने वाले कहवे के तीन प्रकार बताओ।
उत्तर:
अरेबिका, रोबस्टा, लाईबीरिका।

प्रश्न 27.
भारत तथा विश्व में भूमि – मानव अनुपात क्या है ?
उत्तर:
0.31 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति भारत में 0.59 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति विश्व में

प्रश्न 28.
भारत में कितने क्षेत्र में जल सिंचाई होती है ?
उत्तर:
204.6 लाख हेक्टेयर में

प्रश्न 29.
भारत में कितने क्षेत्र में लवणता तथा क्षारता के कारण भूमि व्यर्थ हुई है ?
उत्तर:
80 लाख हेक्टेयर।

प्रश्न 30.
बहुफ़सलीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर:
परती भूमि में कमी हुई रश्न

प्रश्न 31.
भारत की दो प्रमुख अनाजी फ़सलें बताओ। कोई दो राज्यों के नाम लिखो जो कि इन फ़सलों के प्रमुख उत्पादक हैं।
उत्तर:
गेहूँ तथा चावल प्रमुख अनाजी खाद्यान्न हैं।
प्रमुख उत्पादक –
(क) गेहूँ – उत्तर प्रदेश तथा पंजाब।
(ख) चावल – उत्तर प्रदेश तथा पंजाब।

प्रश्न 32.
भारत में कॉफ़ी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य
उत्तर:
कर्नाटक

प्रश्न 33.
भारत में कॉफी की किस किस्म का अधिक उत्पादन होता है ?
उत्तर:
अरेबिका कॉफी।

प्रश्न 34.
औस, अमन और बोरो किस खाद्य फ़सलों के नाम हैं ?
उत्तर:
चावल।

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प्रश्न 35.
भारत में शुष्क कृषि वाले प्रदेशों की एक फ़सल का नाम लिखो।
उत्तर:
बाजरा।

प्रश्न 36.
भारत में अधिकतम चावल पैदा करने वाला राज्य कौन-सा है ?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 37.
भारत में चाय का अधिकतम उत्पादन करने वाला राज्य कौन-सा है ?
उत्तर:
असम

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भौगोलिक क्षेत्र तथा रिपोर्टिंग क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
भूराजस्व विभाग भू-उपयोग सम्बन्धी अभिलेख रखता है। भू-उपयोग संवर्गों का योग कुल प्रतिवेदन (रिपोर्टिंग ) क्षेत्र के बराबर होता है जो कि भौगोलिक क्षेत्र से भिन्न है । भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग पर है । भूराजस्व तथा सर्वेक्षण विभाग दोनों में मूलभूत अन्तर यह है कि भू-राजस्व द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रफल पत्रों के अनुसार रिपोर्टिंग क्षेत्र पर आधारित है जो कि कम या अधिक हो सकता है। कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सर्वेक्षण पर आधारित है तथा यह स्थायी है।

प्रश्न 2.
वास्तविक वन क्षेत्र तथा वर्गीकृत वन क्षेत्रों में अन्तर बताओ।
उत्तर:
वास्तविक वन क्षेत्र वर्गीकृत वन क्षेत्र से भिन्न होता है। वर्गीकृत वन क्षेत्र का सरकार द्वारा सीमांकन किया जाता है जहां वन विकसित हो सकें। परन्तु वास्तविक वन क्षेत्र वह क्षेत्र है जो वास्तविक रूप से वनों से ढके हैं।

प्रश्न 3.
कृषि भूमि पर निरन्तर दबाव के कारण बताओ।
उत्तर:
यद्यपि समय के साथ, कृषि क्रियाकलापों का अर्थव्यवस्था में योगदान कम होता जाता है, भूमि पर कृषि क्रियाकलापों का दबाव कम नहीं होता। कृषि भूमि पर बढ़ते दबाव के कारण हैं –
(अ) प्रायः विकासशील देशों में कृषि पर निर्भर व्यक्तियों का अनुपात अपेक्षाकृत धीरे-धीरे घटता है जबकि कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान तीव्रता से कम होता है।
(ब) वह जनसंख्या में कृषि सेक्टर पर निर्भर होती है। प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है।

प्रश्न 4.
भू-उपयोग के कौन-से वर्गों के क्षेत्र में वृद्धि हुई है तथा क्यों ?
उत्तर:
तीन संवर्गों में वृद्धि व चार संवर्गों के अनुपात में कमी दर्ज की गई है। वन क्षेत्रों, गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि, वर्तमान परती भूमि आदि के अनुपात में वृद्धि हुई है। वृद्धि के निम्न कारण हो सकते हैं –

  1. ग़ैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त क्षेत्र में वृद्धि दर अधिकतम है। इसका कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती संरचना है, जिसकी निर्भरता औद्योगिक व सेवा सेक्टरों तथा अवसंरचना सम्बन्धी विस्तार पर उत्तरोतर बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त गांवों व शहरों में, बस्तियों के अन्तर्गत क्षेत्रफल में विस्तार से भी इसमें वृद्धि हुई है।
  2. देश में वन क्षेत्र में वृद्धि सीमांकन के कारण हुई न कि देश में वास्तविक वन आच्छादित क्षेत्र के कारण।
  3. वर्तमान परती क्षेत्र में वृद्धि वर्षा की अनियमितता तथा फ़सल – चक्र पर निर्भर है।

प्रश्न 5.
भू-उपयोग के किन वर्गों के क्षेत्र में कमी हुई है ?
उत्तर:
वे चार भू-उपयोग संवर्ग, जिनमें क्षेत्रीय अनुपात में गिरावट आई है – बंजर, व्यर्थ भूमि व कृषि योग्य व्यर्थ भूमि, चरागाहों तथा तरु फ़सलों के अन्तर्गत क्षेत्र तथा निवल बोया गया क्षेत्र।
कारण –

  1. समय के साथ जैसे – जैसे कृषि तथा गैर कृषि कार्यों हेतु भूमि पर दबाव बढ़ा, वैसे-वैसे व्यर्थ एवं कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में समयानुसार कमी इसकी साक्षी है।
  2. निवल बोए गए क्षेत्र में धीमी वृद्धि दर्ज की जाती रही है। निवल बोए गए क्षेत्र में न्यूनता का कारण ग़ैर-कृषि में प्रयुक्त भूमि के अनुपात का बढ़ना हो सकता है।
  3. चरागाह भूमि में कमी का कारण कृषि पर बढ़ता दबाव है।

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प्रश्न 6.
दक्षिणी भारत में फ़सलों की ऋतुओं में विशेष परिवर्तन नहीं होता। क्यों ?
उत्तर:
फ़सलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है यद्यपि इस प्रकार की पृथक् फ़सल ऋतुएं देश के दक्षिण भागों में नहीं पाई जातीं। यहां का अधिकतम तापमान वर्षभर किसी भी उष्ण कटिबन्धीय फ़सल की बुवाई में सहायक है, इसके लिए पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध होनी चाहिए। इसलिए देश के इस भाग में, जहां भी पर्याप्त मात्रा में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हैं, एक कृषि वर्ष में एक ही फ़सल तीन बार उगाई जा सकती है।

प्रश्न 7.
भारत में कृषि विकास के समर्थन में तीन कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।

  1. वर्ष 2001 में देश की लगभग 53 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी।
  2. भारत में कृषि की महत्ता इस तथ्य से आंकी जा सकती है कि देश के 57 प्रतिशत भू-भाग पर कृषि की जाती; जबकि विश्व में कुल भूमि पर केवल 12 प्रतिशत भू-भाग पर कृषि की जाती है।
  3. भारत का एक बड़ा भू-भाग कृषि के अन्तर्गत होने के बावजूद यहां भूमि पर दबाव अधिक है। यहां प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का अनुपात केवल 0.31 हेक्टेयर है जो विश्व औसत (0.59 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति) से लगभग आधा है। भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात्, अनेक कठिनाइयों के बावजूद कृषि में अत्यधिक प्रगति की है।

प्रश्न 8.
कृषि की परिभाषा दो। कृषि के लिए किन दशाओं की आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
भूमि से उपज प्राप्त करने की कला को कृषि कहते हैं। मिट्टी को जोतने, गोड़ने, फ़सलें उगाने तथा पशु पालने की कार्य-प्रणाली को कृषि कहते हैं। अंग्रेज़ी का ‘एग्रीकल्चर’ (Agriculture) शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘एगर’ (ager) अर्थात् भूमि तथा ‘कल्चरा’ (cultura) अर्थात् जुताई से मिलकर बना है। इस प्रकार कृषि का अर्थ है जुताई करना ( फसलें उगाना) और पशुओं का पालना।

कृषि के लिए आवश्यक दशाएं – हम सभी जानते हैं कि सारी भूमि कृषि के योग्य नहीं होती हैं। फ़सलें उगाने के लिए निम्नलिखित की आवश्यकता होती है –
भौतिक दशाएं – समतल भूमि, उपजाऊ मृदा, पर्याप्त वर्षा और अनुकूल तापमान।
मानवीय दशाएं – मनुष्य के द्वारा भूमि का उपयोग इन बातों पर भी निर्भर करता है – प्रौद्योगिकी, काश्तकारी की अवधि तथा उनका आकार, सरकारी नीतियां और अन्य अनेक अवसंरचनात्मक कारक।

प्रश्न 9.
भारत में बोया गया शुद्ध क्षेत्र कितना है ? इसका विश्व में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर:
1950-51 में बोया गया शुद्ध क्षेत्र 11.87 करोड़ हेक्टेयर था, जो बढ़कर 1998-99 में 14.26 करोड़ हेक्टेयर हो गया था। इस प्रकार देश के कुछ भौगोलिक क्षेत्र के 46.59 प्रतिशत भाग में आजकल खेती होती है, जबकि 1950-51 में यह 36.1 प्रतिशत था। लगभग 2.34 करोड़ हेक्टेयर भूमि परती है, जो कुल प्रतिवेदित क्षेत्र का 7.6 के प्रतिशत है। इस प्रकार भारत का आधे से अधिक क्षेत्र कृषि के अन्तर्गत है । यहां यह जानना प्रासंगिक होगा कि कुल भौगोलिक क्षेत्र के सन्दर्भ में भारत का संसार में सातवां स्थान है, लेकिन कृषि के अन्तर्गत भूमि के सन्दर्भ में इसका दूसरा स्थान है। प्रथम स्थान पर संयुक्त राज्य अमेरिका है, जो भूमि- क्षेत्र में भारत में ढाई गुना बड़ा।

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प्रश्न 10.
भारत में बोये गए शुद्ध क्षेत्रफल का उच्च अनुपात क्यों है ?
उत्तर:
कुल भौगोलिक क्षेत्र के अनुपात में बोया गया शुद्ध क्षेत्र सभी राज्यों में एक समान नहीं है। अरुणाचल प्रदेश में शुद्ध बोया गया क्षेत्र 3.2 प्रतिशत है, जबकि हरियाणा और पंजाब में यह 82.20 प्रतिशत है। सतलुज गंगा के जलोढ़ मैदान, गुजरात के मैदान, काठियावाड़ का पठार, महाराष्ट्र का पठार, पश्चिमी बंगाल का मैदान, अत्यधिक कृषि क्षेत्र हैं। कृषि क्षेत्र के इतने अधिक अनुपात के कारण ये हैं –

  1. सामान्य ढाल वाली भूमि
  2. उपजाऊ और आसानी से जुताई योग्य जलोढ़ और
  3. काली मृदा
  4. अनाज की कृषि के लिए अनुकूल जलवायु
  5. सिंचाई की उत्तम सुविधाएं तथा
  6. जनसंख्या के उच्च घनत्व का अत्यधिक दबाव।

पर्वतीय और सूखे क्षेत्रों का उच्चावच, जलवायु और मृदा और कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है, अतः इन क्षेत्रों में कृषि की व्यापकता कम है ।

प्रश्न 11.
पंजाब राज्य में सर्वाधिक शस्य गहनता के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
पंजाब राज्य में भारत में सर्वाधिक शस्य गहनता 189 प्रतिशत है। पंजाब राज्य में 94 प्रतिशत से अधिक फ़सलगत क्षेत्र सिंचित हैं। सिंचाई अधिक शस्य गहनता का प्रमुख निर्धारक है। मृदा की सुघट्यता तथा उर्वरता भाग शस्य गहनता को अधिक करती है। जनसंख्या का अधिक दबाव भी शस्य गहनता को प्रभावित करता है । आधुनिक अधिक उपज देने वाली फसलें भी शस्य गहनता को बढ़ावा देती हैं।

प्रश्न 12.
‘भारतीय कृषि आज भी वर्षाधीन है। व्याख्या करो
उत्तर:
भारतीय कृषि आज भी वर्षाधीन है। 14.28 करोड़ हेक्टेयर के फ़सलगत शुद्ध क्षेत्र ( 1996-97 ) में से केवल 5.51 करोड़ हेक्टेयर ( 38.5%) क्षेत्र तक ही सिंचित है। मोटे अनाज और ज्वार, बाजरा, दालें, तिलहन और कपास मुख्य वर्षा पोषित फ़सलें हैं। 75 से० मी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे वर्षापोषित कृषि कहते हैं

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प्रश्न 13.
वर्तमान समय में भारतीय कृषि की किन्हीं तीन आर्थिक समस्याओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:

  1. विपणन सुविधाओं की कमी या उचित ब्याज पर ऋण न मिलने के कारण किसान कृषि के विकास के लिए आवश्यक संसाधन नहीं जुटा पाता है ।
  2. कृषि में अधिक उपज देने वाले बीजों, उर्वरक के सीमित प्रयोग के कारण उत्पादकता निम्न है।
  3. भूमि पर जनसंख्या का दबाव दिन प्रति दिन बढ़ रहा है । परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति फ़सलगत भूमि में कमी हो रही है। यह भूमि 0.219 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति है। जोतों के छोटे होने के कारण निवेश की क्षमता भी कम है।

प्रश्न 14.
भारत में फ़सल प्रतिरूपों का वर्णन करो।
उत्तर:
फ़सल प्रतिरूप (Cropping Pattern) – सभी फ़सलों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है – खाद्य फ़सलें तथा ग़ैर-खाद्य फ़सलें । खाद्य फ़सलों का पुनः तीन उपवर्गों में विभाजन किया जा सकता है –

  1. अनाज और ज्वार बाजरा
  2. दालें और
  3. फल तथा सब्ज़ियां।

अनाज, ज्वार – बाजरा और दालों को सामूहिक रूप से खाद्यान्न भी कहते हैं। ग़ैर-खाद्य फ़सलों में तिलहन, रेशेदार फ़सलें, अनेक रोपण फ़सलें तथा चारे की फ़सलें प्रमुख हैं ।

प्रश्न 15.
भारत में कृषि उत्पादकता अभी भी कम क्यों है ? तीन प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में प्रति हेक्टेयर फ़सलों की उपज कम है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  1. अधिक उपज वाले बीजों का कम प्रयोग – केवल 16% कृषिकृत भूमि HYV बीजों के अधीन है।
  2. पुरानी कृषि विधियां – मृदा का उपजाऊपन निरन्तर कम हो रहा है। उर्वरकों का अधिक प्रयोग नहीं है। कीटनाशक तथा उत्तम बीजों का प्रयोग कम है।
  3. निम्न निवेश – किसान निर्धन है, पूंजी की कमी के कारण कृषि में अधिक निर्वेश नहीं है। जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण जोतों का आकार घट रहा है। जल सिंचाई का प्रयोग सीमित है। इसलिए उत्पादकता कम है।

प्रश्न 16.
भारत में हरित क्रान्ति की तीन प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. हरित क्रान्ति की सबसे अधिक उल्लेखनीय उपलब्धि खाद्यान्नों के उत्पादन में भारी वृद्धि है। खाद्यान्नों का उत्पादन 1965-66 में 7.2 करोड़ टन था जो 2010-11 में 23 करोड़ टन हो गया।
  2. घरेलू उत्पादन में वृद्धि के परिणामस्वरूप खाद्यान्नों का आयात घटते घटते अब बिल्कुल समाप्त हो गया है। 1965 में खाद्यान्नों का आयात 1.03 करोड़ टन था जो घटकर 1983-84 में 24 लाख टन रह गया तथा अब कोई आयात नहीं है।
  3. कृषिकृत क्षेत्र में तथा उपज प्रति हेक्टेयर में वृद्धि हुई है। अधिक उपज वाले बीजों के प्रयोग, जल सिंचाई तथा उर्वरक के प्रयोग में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 17.
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि की तीन-तीन विशेषताएं बताते हुए अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

  1. शुष्क कृषि उन प्रदेशों तक सीमित है जहां वार्षिक वर्षा 75 सें० मी० से कम है। जबकि आर्द्र कृषि (75 सें० मी० से अधिक) अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है ।
  2. शुष्क कृषि में आर्द्रता संरक्षण विधियां अपनाई जाती हैं जबकि आर्द्र कृषि क्षेत्रों में बाढ़ों तथा मृदा अपरदन की समस्याएं होती हैं ।
  3. शुष्क कृषि में कठोर फ़सलें तथा शुष्क वातावरण सहन करने वाली फ़सलें बोई जाती हैं जैसे रागी, बाजरा, मूंग आदि । परन्तु आर्द्र कृषि में चावल, पटसन, गन्ने की कृषि होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वामित्व के आधार पर भूमिका का वर्गीकरण करो। साझा सम्पत्ति संसाधनों की विशेषताएं बताओ। उन्हें प्राकृतिक संसाधन क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
भूमि के स्वामित्व के आधार पर इसे मोटे तौर पर दो वर्गों में बांटा जाता है।
(1) निजी भू-सम्पत्ति तथा
(2) साझा सम्पत्ति संसाधन।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

पहले वर्ग की भूमिका पर व्यक्तियों का निजी स्वामित्व अथवा कुछ व्यक्तियों का सम्मिलित निजी स्वामित्व होता है। दूसरे वर्ग की भूमियां सामुदायिक उपयोग हेतु राज्यों के स्वामित्व में होती हैं । साझा सम्पत्ति संसाधन – पशुओं के लिए चारा, घरेलू उपयोग हेतु ईंधन, लकड़ी तथा साथ ही अन्य वन उत्पाद जैसे – फल, रेशे, गिरी, औषधीय पौधे आदि उपलब्ध कराती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन छोटे कृषकों तथा अन्य आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के व्यक्तियों के जीवन-यापन में इन भूमियों का विशेष महत्त्व है; क्योंकि इनमें से अधिकतर भूमिहीन होने के कारण पशुपालन से प्राप्त आजीविका पर निर्भर हैं। महिलाओं के लिए भी इन भूमियों का विशेष महत्त्व है। क्योंकि ग्रामीण इलाकों में चारा व ईंधन लकड़ी के एकत्रीकरण की ज़िम्मेदारी उन्हीं की होती है । इन भूमियों में कमी से उन्हें चारे तथा ईंधन की तलाश में दूर तक भटकना पड़ता है।

साझा सम्पत्ति संसाधनों को सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन भी कहा जा सकता है, जहां सभी सदस्यों को इसके उपयोग का अधिकार होता है तथा किसी विशेष के सम्पत्ति अधिकार न होकर सभी सदस्यों के कुछ विशेष कर्त्तव्य भी हैं। सामुदायिक वन, चरागाहों, ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थान साझा सम्पत्ति संसाधन के ऐसे उदाहरण हैं जिसका उपयोग एक परिवार से बड़ी इकाई करती है तथा यही उसके प्रबन्धन के दायित्वों का निर्वहन करती हैं ।

प्रश्न 2.
भूमि संसाधनों का क्या महत्त्व है ? तीन तथ्य बताओ।
उत्तर:
भू-संसाधनों का महत्त्व उन लोगों के लिए अधिक है जिनकी आजीविका कृषि पर निर्भर है

  1. द्वितीयक व तृतीयक आर्थिक क्रियाओं की अपेक्षा कृषि पूर्णतया भूमि पर आधारित है। अन्य शब्दों में, कृषि उत्पादन में भूमि का योगदान अन्य सैक्टरों में इसके योगदान से अधिक है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनता प्रत्यक्ष रूप से वहां की ग़रीबी से सम्बन्धित है।
  2. भूमि की गुणवत्ता कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है जो अन्य कार्यों में नहीं है
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में भू-स्वामित्व का आर्थिक मूल्य के अतिरिक्त सामाजिक मूल्य भी है तथा प्राकृतिक आपदाओं या निजी विपत्ति में एक सुरक्षा की भांति है एवं समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाता है।

प्रश्न 3.
भारत में निवल बोए गए क्षेत्र में बढ़ोत्तरी की सम्भावनाएं सीमित हैं।’ व्याख्या करो कि किस प्रकार कृषि भूमि में वृद्धि की जा सकती है?
उत्तर:
समस्त कृषि भूमि संसाधनों का अनुमान – निवल बोया गया क्षेत्र तथा सभी प्रकार की परती भूमि और कृषि योग्य व्यर्थ भूमियों के योग से लगाया जा सकता है। तालिका 5.1 से यह निष्कर्ष निकालता है कि पिछले वर्षों में समस्त रिपोर्टिंग क्षेत्र से कृषि भूमि का प्रतिशत कम हुआ है । कृषि योग्य व्यर्थ भूमि संवर्ग में कमी के बावजूद कृषि योग्य भूमि में कमी आई है। भारत में निवल बोए गए क्षेत्र में बढ़ोत्तरी की संभावनाएं सीमित हैं । अतः भूमि बचत प्रौद्योगिकी विकसित करना आज अत्यन्त आवश्यक है।

यह प्रौद्योगिकी दो भागों में बांटी जा सकती हैं- पहली, वह जो प्रति इकाई भूमि में फ़सल विशेष की उत्पादकता बढ़ाएं तथा दूसरी, वह प्रौद्योगिकी जो एक कृषि में गहन भू-उपयोग से सभी फ़सलों का उत्पादन बढ़ाएं। दूसरी प्रौद्योगिकी का लाभ यह है कि इसमें सीमित भूमि से भी कुल उत्पादन बढ़ने के साथ श्रमिकों की मांग भी पर्याप्त रूप से बढ़ती है। भारत जैसे देश में भूमि की कमी तथा श्रम की अधिकता है, ऐसी स्थिति में फ़सल सघनता की आवश्यकता केवल भू-उपयोग हेतु वांछित है, अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी जैसी आर्थिक समस्या को भी कम करने के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 4.
भारत में विभिन्न फ़सलों की ऋतुओं का वर्णन करो। प्रत्येक ऋतु में बोई जाने वाली फ़सलें बताओ ।
उत्तर:
हमारे देश के उत्तरी व आन्तरिक भागों में तीन प्रमुख फ़सल ऋतुएं- खरीफ, रबी व ज़ायद के नाम से जानी जाती हैं।

  1. खरीफ़ की फ़सलें अधिकतर दक्षिण-पश्चिमी मानसून के साथ बोई जाती हैं जिसमें उष्ण कटिबन्धीय फ़सलें सम्मिलित हैं, जैसे- चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा व अरहर आदि।
  2. रबी की ऋतु अक्तूबर-नवम्बर में शरद ऋतु से प्रारम्भ होकर मार्च-अप्रैल में समाप्त होती है। इस समय कम तापमान शीतोष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय फ़सलों जैसे- गेहूं, चना तथा सरसों आदि फ़सलों की बुवाई में सहायक है।
  3. ज़ायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन, फ़सल ऋतु है, जो रबी की कटाई के बाद प्रारम्भ होता है। इस ऋतु में तरबूज, खीरा, ककड़ी, सब्ज़ियां व चारे की फ़सलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है।

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प्रश्न 5.
पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में वर्षा की कमी के बावजूद चावल की कृषि होती है। क्यों ?
उत्तर:
पंजाब व हरियाणा पारम्परिक रूप से चावल उत्पादक राज्य नहीं हैं। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत हरियाणा, पंजाब के सिंचित क्षेत्रों में चावल की कृषि 1970 से प्रारम्भ की गई। उत्तम किस्म के बीजों, अपेक्षाकृत अधिक खाद सिंचाई तथा कीटनाशकों का प्रयोग एवं शुष्क जलवायु के कारण फ़सलों में रोग प्रतिरोधता आदि कारक इस प्रदेश में चावल की अधिक पैदावार के उत्तरदायी हैं। इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उड़ीसा के वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में बहुत कम है।

प्रश्न 6.
रक्षित सिंचाई कृषि तथा उत्पादक सिंचाई कृषि में अन्तर बताओ।
उत्तर:
आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के आधार पर कृषि को सिंचित कृषि तथा वर्षा निर्भर ( बारानी ) कृषि में वर्गीकृत किया जाता है। सिंचित कृषि में भी सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर अन्तर पाया जाता है, जैसे- रक्षित सिंचाई कृषि तथा उत्पादक सिंचाई कृषि । रक्षित सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फ़सलों को नष्ट होने से बचाना है जिसका अभिप्राय यह है कि वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है। इस प्रकार की सिंचाई का उद्देश्य अधिकतम क्षेत्र को पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध कराना है। उत्पादक सिंचाई का उद्देश्य फ़सलों को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराकर उत्पादकता प्राप्त कराना है । उत्पादक सिंचाई में जल निवेश की मात्रा रक्षित सिंचाई की अपेक्षा अधिक होती है।

प्रश्न 7.
भारत में बोए जाने वाले प्रमुख तिलहन तथा उनके क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
खाद्य तेल निकालने के लिए तिलहन की खेती की जाती है। मालवा पठार, मराठवाड़ा, गुजरात, राजस्थान शुष्क भागों तथा आंध्र प्रदेश के तेलंगाना व रायलसीमा प्रदेश, भारत के प्रमुख तिलहन उत्पादक क्षेत्र हैं। देश के कुल शस्य क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत भाग पर तिलहन फसलें बोई जाती हैं। भारत की प्रमुख तिलहन फ़सलों में मूंगफली, तोरिया, सरसों, सोयाबीन तथा सूरजमुखी सम्मिलित हैं।

प्रश्न 8.
भारत में कृषि वृद्धि तथा प्रौद्योगिकी के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
पिछले पचास वर्षों में कृषि उत्पादन तथा प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है।
1. उत्पादन – बहुत-सी फ़सलों जैसे- चावल तथा गेहूँ के उत्पादन तथा पैदावार में प्रभावशाली वृद्धि हुई है तथा फ़सलों मुख्यतः गन्ना, तिलहन तथा कपास के उत्पादन में प्रशंसनीय वृद्धि हुई है। भारत को दालों, चाय, जूट तथा पशुधन, दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त है। यह चावल, गेहूँ, मूंगफली, गन्ना तथा सब्ज़ियों का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है।

2. जल सिंचाई – सिंचाई के प्रसार ने देश में कृषि उत्पादन बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इसने आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी जैसे बीजों की उत्तम किस्में, रासायनिक खादों, कीटनाशकों तथा मशीनरी के प्रयोग के लिए आधार प्रदान किया है। 1950-51 से वर्ष 2000-01 तक, कुल सिंचित क्षेत्र 208.5 लाख से बढ़कर 546.6 लाख हेक्टेयर हो गया।

3. प्रौद्योगिकी – देश के विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी का प्रसार तीव्रता से हुआ है। पिछले 40 वर्षों में रासायनिक उर्वरकों की खपत में भी 15 गुना वृद्धि हुई है। भारत में वर्ष 2001-02 में रासायनिक उर्वरकों की प्रति हेक्टेयर खपत 91 किलोग्राम थी, जो विश्व की औसत खपत ( 90 किलोग्राम) के समान थी परन्तु पंजाब तथा हरियाणा के सिंचित भागों में यह देश की औसत खपत से चार गुना अधिक है।

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प्रश्न 9.
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान (Agricultural) देश है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला ही नहीं बल्कि जीवन-यापन की एक विधि है। देश की कुल श्रमिक शक्ति का 70% भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है। देश के शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (Net national product) में 26 प्रतिशत का योगदान है। कृषि देश की लगभग 100 करोड़ जनसंख्या को भोजन प्रदान करती है। लगभग 20 करोड़ पशु कृषि से ही चारा प्राप्त करते हैं। कृषि नई महत्त्वपूर्ण उद्योगों जैसे सूती वस्त्र, पटसन, चीनी आदि को कच्चा माल प्रदान करती है। कई कृषि पदार्थ निर्यात करके लगभग 5000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त की जाती है जोकि देश के कुल निर्यात का लगभग 10% है।

प्रश्न 10.
भारतीय कृषि को कौन-से पर्यावरणीय कारक एक सशक्त आधार प्रदान करते हैं ?
उत्तर:
भारत में शताब्दियों से कृषि का विकास किया जा रहा है। यहां अनेक प्रकार की फ़सलों की कृषि की जाती है। भारत चावल, गेहूँ, पटसन, कपास, चाय, गन्ना आदि उपजों में विश्व में विशेष स्थान रखता है। निम्नलिखित भौगोलिक दशाएं कृषि को एक सशक्त आधार प्रदान करती हैं –

  1. विशाल भूमि क्षेत्र
  2. कृषिगत भूमि का उच्च प्रतिशत
  3. उपजाऊ मृदा
  4. लम्बा वर्द्धन काल (Long growing period)
  5. दीर्घ जलवायु परास (Wide climatic range)

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प्रश्न 11.
फ़सलों की गहनता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
फ़सलों की गहनता (Intensity of Cropping) से अभिप्राय यह है कि एक खेत में एक कृषि वर्ष में कितनी फ़सलें उगाई जाती हैं। यदि वर्ष में केवल एक फ़सल उगाई जाती है तो फ़सल का सूचकांक 100 है, यदि दो फ़सलें उगाई जाती हैं तो यह सूचकांक 200 होगा। अधिक फ़सल अधिक भूमि उपयोग की क्षमता प्रकट करती है।
शस्य गहनता को निम्नलिखित सूत्र की मदद से निकाला जा सकता है –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि - 1
पंजाब राज्य में शस्य गहनता 166 प्रतिशत, हरियाणा में 158 प्रतिशत, पश्चिमी बंगाल में 147 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश में 145 प्रतिशत है। उच्चतर शस्य गहनता वास्तव में कृषि के उच्चतर तीव्रीकरण को प्रदर्शित करती है।

प्रश्न 12.
शुष्क कृषि का क्या अर्थ है ?
अथवा
शुष्क कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
शुष्क कृषि (Dry Farming):
75 से० मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में या जल सिंचाई रहित प्रदेशों में शुष्क कृषि की जाती है। यह कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है, जहां नमी को देर तक रख सकने वाली मिट्टी हो या पानी को एकत्रित करने की सुविधा हो। वर्षा से पहले खेतों को जोत कर मिट्टी मुलायम कर देते हैं ताकि वर्षा का जल गहराई तक पहुंच सके। ऐसे प्रदेशों में वर्ष में एक ही फ़सल उगाई जाती है। प्रायः गेहूँ, कपास, चने तथा दालों की फ़सलें उगाई जाती हैं। भारत में राजस्थान, गुजरात तथा हरियाणा के कई क्षेत्रों में शुष्क खेती होती है।

प्रश्न 13.
परती भूमि से क्या अभिप्राय है ? परती भूमि की अवधि को किस प्रकार घटाया जा सकता है ?
उत्तर”
एक ही खेत पर लम्बे समय तक लगातार फ़सलें उत्पन्न करने से मृदा के पोषक तत्त्व समाप्त हो जाते हैं। मृदा की उपजाऊ शक्ति को पुनः स्थापित करने के लिए भूमि को एक मौसम या पूरे वर्ष बिना कृषि किये खाली छोड़ दिया जाता है। इस भूमि को परती भूमि (Fallow land) कहते हैं। इस प्राकृतिक क्रिया द्वारा मृदा का उपजाऊपन बढ़ जाता है। जब भूमि को एक मौसम के लिए खाली छोड़ा जाता है तो उसे चालू परती भूमि कहते हैं। एक वर्ष से अधिक समय वाली भूमि को प्राचीन परती भूमि कहते हैं। इस भूमि में उर्वरक के अधिक उपयोग से परती भूमि की अवधि को घटाया जा सकता है।

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प्रश्न 14.
शस्यावर्तन किसे कहते हैं ? शस्यावर्तन क्यों अपनाया जाता है ?
अथवा
उत्तर:
एक ही खेत में फ़सलों को बदल-बदल कर बोने की पद्धति को शस्यावर्तन (Crop Rotations) कहते हैं । उदाहरण के लिए एक खेत में अनाज की फ़सल के बाद दालें या तिलहन की फ़सल उपजाई जाती है। फ़सलों का चुनाव मिट्टी के उपजाऊपन तथा किसान की समझदारी पर निर्भर करता है। यदि किसी भूमि पर बार-बार एक ही फ़सल उगाई जाए तो मिट्टी के उपजाऊ तत्त्व कम हो जाते हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए शस्यावर्तन अपनाया जाता है। अनाज की फ़सल के बाद सामान्य फलियों की फ़सल बोई जाती है। यह फसल मृदा में नाइट्रोजन की कमी को पूरा कर देती है।

प्रश्न 15.
भारत की दो प्रमुख खाद्यान्न फ़सलों के नाम बताइए। इन दोनों फ़सलों की जलवायु तथा मृदा सम्बन्धी आवश्यकताओं में तीन असमानताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गेहूँ तथा चावल भारत की दो प्रमुख खाद्यान्न फ़सलें हैं। गेहूँ को शीत- आर्द्र उपज काल तथा पकते समय गर्म – शुष्क मौसम चाहिए। चावल की कृषि के लिए वर्ष भर गर्म-आर्द्र मौसम की आवश्यकता है। गेहूँ की कृषि के लिए दरमियानी वर्षा (50 से० मी०) तथा चावल की कृषि के लिए अधिक वर्षा (200 से० मी०) की आवश्यकता है। गेहूँ के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त है जबकि चावल की कृषि नदी घाटियों की जलोढ़ मिट्टी में की जाती है।

प्रश्न 16.
खरीफ़ और रबी फ़सलों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
रबी फसलें (Rabi Crops ):

  1. वर्षा ऋतु के पश्चात् शीतकाल में बोई जाने वाली फ़सलों को रबी की फ़सलें कहते हैं।
  2. गेहूँ, जौ, चना आदि रबी की फसलें हैं।
  3. ये फ़सलें ग्रीष्मकाल में पक कर तैयार होती हैं। शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में रबी की फ़सलें महत्त्वपूर्ण होती हैं।

खरीफ़ फ़सलें (Kharif Crops ):

  1. वर्षा ऋतु के आरम्भ में ग्रीष्म काल में बोई जाने वाली फ़सलों को खरीफ़ की फ़सलें कहते हैं।
  2. चावल, मक्का, कपास, तिलहन खरीफ़ की फ़सलें हैं।
  3. ये फ़सलें शीतकाल से पहले पक कर तैयार होती हैं। उष्ण जलवायु प्रदेशों में खरीफ़ की फ़सलें महत्त्वपूर्ण होती हैं।

प्रश्न 17.
गन्ने के लिए जलवायु की दशाएं दक्षिणी भारत में अधिक उत्तम हैं, फिर भी गन्ने का अधिक उत्पादन उत्तरी भारत में होता है। इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर:
गन्ना एक उष्ण कटिबन्धीय फ़सल है। इसकी उपज के लिए जलवायु की आदर्श दशाएं दक्षिणी भारत में मिलती हैं। इसकी अधिक उत्पादकता के सभी क्षेत्र 15° उत्तर अक्षांश के दक्षिण में मिलते हैं। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक है। यह उपज 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक है जबकि उत्तरी भारत में केवल 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
परन्तु गन्ने के कुल उत्पादन का 60% भाग उत्तरी भारत से प्राप्त होता है।

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यहां उपजाऊ मिट्टी जल- सिंचाई के अधिक विस्तार, गन्ने के बेचने की सुविधाओं के कारण उत्पादन अधिक है। यहां शुष्क शीत ऋतु सर्दियों में पाले के कारण गन्ने में रस की मात्रा कम होती है तथा प्रति हेक्टेयर उपज भी कम होती है । दक्षिणी भारत में उच्च तापमान, छोटी शुष्क ऋतु, पाला रहित जलवायु तथा लम्बे वर्धनकाल के कारण गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक है। परन्तु दक्षिणी भारत में उपजाऊ मिट्टी की कमी के कारण गन्ने का कृषीय क्षेत्रफल कम है तथा कुल उत्पादन उत्तरी भारत की तुलना में कम है।

प्रश्न 18.
हरित क्रान्ति की योजना भारत में सर्वत्र लागू क्यों नहीं की जा सकी है ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति वास्तव में खाद्यान्न क्रान्ति है। इसके परिणाम इतने आशाजनक नहीं रहे हैं जितनी कि आशा की जाती थी। खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य फ़सलों के क्षेत्र में अधिक उपज देने वाली किस्मों की कृषि को अपनाया गया है, जैसे कपास की नई किस्में गुजरात तथा तमिलनाडु में उगाई गई हैं। हरित क्रान्ति की योजना देश के चुने हुए क्षेत्रों में ही सफल रही है।

इसे देश के सभी भागों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि –

  1. बहुत-से भागों में जल – सिंचाई के साधन कम हैं ।
  2. उर्वरकों का उत्पादन, मांग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है ।
  3. नये कृषि साधनों पर अधिक खर्च करने के लिए पूंजी की कमी है।
  4. इस योजना से छोटे किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचा है।
  5. यह योजना केवल सीमित भागों में ही सफल रही है, जहां जल सिंचाई के पर्याप्त साधन थे । इस योजना में कृषि तथा लघु सिंचाई पर विशेष जोर नहीं दिया गया है।
  6. छोटे आकार के खेतों में कृषि यन्त्रों का प्रयोग सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता है।
  7. अधिक उपज प्राप्त करने वाली विधियां केवल कुछ ही फसलों के प्रयोग में लाई गई हैं।

प्रश्न 19.
भारत के किन प्रदेशों में फ़सलों की गहनता अधिक, सामान्य, कम है ?
उत्तर:
भारत में फ़सलों की गहनता वास्तविक बोये जाने वाले क्षेत्र पर निर्भर करती है। उपजाऊ भूमि, सिंचाई के पर्याप्त साधनों तथा उत्तम कृषि विधियों के कारण कई प्रदेशों में फ़सलों की गहनता अधिक है। सिंचाई साधनों की कमी, वर्षा की कमी, बाढ़ों की अधिकता के कारण कई क्षेत्रों में भूमि उपयोग बहुत कम है तथा फ़सलों की गहनता कम है।

फसलों की गहनता का प्रादेशिक वितरण इस प्रकार है –
1. अधिक गहनता वाले प्रदेश – फ़सलों की अधिक गहनता के क्षेत्र पूर्वी तटीय मैदान, पश्चिमी असम घाटी, त्रिपुरा तथा उत्तरी मैदान के अनेक भागों में मिलते हैं। यहां पर वर्षा 80-100 से० मी० होती है; भूमि उपजाऊ है तथा सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। प्रायः वर्ष में तीन-तीन फ़सलें उगाई जाती हैं।

2. सामान्य गहनता के प्रदेश – तमिलनाडु में ऊंचे तथा कर्नाटक के पठारी भाग, मध्यवर्ती भारत की पहाड़ियां, गंगा, सतलुज के मैदान में फ़सलों की सामान्य गहनता मिलती है। यह प्रायः दो फ़सली क्षेत्र है। इन भागों में सिंचाई के साधनों के विस्तार के कारण साल में दो फसलें प्राप्त की जाती हैं।

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3. कम गहनता वाले प्रदेश – भारत में दक्कन, राजस्थान के शुष्क प्रदेशों में पूर्वी हिमालय के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कश्मीर तथा हिमालय के ठण्डे प्रदेशों में फ़सलों की गहनता कम मिलती है। ठण्डे प्रदेशों में फ़सलों का उपज काल कम होता है तथा शुष्क प्रदेशों में वर्षा की कमी के कारण साल में केवल एक फ़सल ही प्राप्त की जाती है ।

प्रश्न 20.
कौन-से ऐसे कारक हैं जिनके चलते खरीफ़ और रबी फ़सलों में अन्तर स्पष्ट किया जा सके ?
उत्तर:

कारक रबी फसलें (Rabi crops): खरीफ़ फ़सलें (Kharif crops ):
बुआई का समय (1) वर्षा ऋतु के पश्चात् शीतकाल में बोई जाने वाली फ़सलों को रबी की फ़सलें कहते हैं। (1) वर्षा ऋतु के आरम्भ में ग्रीष्म काल में बोई जाने वाली फ़सलों को खरीफ़ की फ़सलें कहते हैं।
प्रमुख फ़सलें (2) गेहूं, जौं, चना आदि रबी की फसलें हैं। (2) चावल, मक्का, कपास, खरीफ़ की फ़सलें हैं। तिलहन
पकने का समय तथा संबंधित जलवायु (3) ये फ़सलें ग्रीष्मकाल में पक कर तैयार होती हैं। शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में रबी की फ़सलें महत्त्वपूर्ण होती हैं। (3) ये फ़सलें शीतकाल से पहले पक कर तैयार होती हैं। उष्ण जलवायु प्रदेशों में खरीफ़ की फ़सलें महत्त्व पूर्ण होती हैं।

प्रश्न 21.
हरित क्रान्ति की योजना भारत के चुनिंदा क्षेत्रों में ही मिल सकी। यह योजना भारत में सर्वत्र लागू क्यों नहीं की जा सकी ? इसके लिए मुख्य उत्तरदायित्व कौन-से मूल्य आधारित कारण हैं ?
उत्तर:
हरित – क्रान्ति वास्तव में खाद्यान्न क्रान्ति है। इसके परिणाम इतने आशा जनक नहीं रहे हैं जितनी कि आशा की जाती थी। खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य फ़सलों के क्षेत्र में अधिक उपज देने वाली किस्मों की कृषि को अपनाया गया है, जैसे कपास की नई किस्में गुजरात तथा तमिलनाडु में उगाई गई हैं। हरित क्रान्ति की योजना देश के चुने हुए क्षेत्रों में ही सफल रही है।

इसे देश के सभी भागों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि –

  1. सिंचाई साधनों की कमी : बहुत-से भागों में जल – सिंचाई के साधन कम हैं।
  2. अपर्याप्त मांग : उर्वरकों का उत्पादन, मांग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है।
  3. पूंजी का अभाव : नये कृषि साधनों पर अधिक खर्च करने के लिए पूंजी की कमी है। इसलिए इस योजना से छोटे किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचा है। यह योजना केवल सीमित भागों में ही सफल रही है, यहां जल सिंचाई के पर्याप्त साधन थे। इस योजना में कृषि तथा लघु सिंचाई पर विशेष जोर नहीं दिया गया है।
  4. छोटे आकार के खेतों में कृषि यन्त्रों का प्रयोग सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता है।
  5. अधिक उपज प्राप्त करने वाली विधियां केवल कुछ ही फसलों के प्रयोग में लाई गई हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत की मुख्य फ़सलों के नाम लिखो। इनके वितरण, उत्पादन तथा उपज की दशाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां लगभग 70% लोगों का प्रमुख धन्धा कृषि है। इसलिए भारत को कृषकों का देश कहा जाता है। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 42% भाग (लगभग 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि ) में कृषि की जाती है। देश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार अनेक प्रकार की महत्त्वपूर्ण फ़सलें उत्पन्न की जाती हैं। इनमें से खाद्य पदार्थ (Food Crops) सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। कुल बोई हुई भूमि का 80% भाग खाद्य पदार्थों के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत की फ़सलों को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जाता है-

  1. खाद्यान्न (Foodgrains) – चावल, गेहूँ, जौं, ज्वार, बाजरा, मक्की, चने, दालें इत्यादि।
  2. पेय पदार्थ (Beverage Crops ) – चाय तथा कहवा।
  3. रेशेदार पदार्थ (Fibre Crops ) – कपास तथा पटसन।
  4. तिलहन (Oil Seeds) – मूंगफली, तिल, सरसों, अलसी आदि।
  5. कच्चे माल (Raw Materials) – गन्ना, तम्बाकू, रबड़ आदि।

1. चावल (Rice):
महत्त्व – भारत में चावल की कृषि प्राचीन काल से हो रही है। भारत को चावल की जन्म भूमि माना जाता है। इसे ‘Gift of India’ भी कहते हैं। चावल भारत का मुख्य खाद्यान्न (Master Grain) है। भारत संसार का 22% चावल उत्पन्न करता है तथा यह संसार में दूसरे स्थान पर है। उपज की दशाएं – मुख्यतः चावल गर्म आर्द्र मानसूनी प्रदेशों की उपज है।
1. तापमान – चावल की कृषि के लिए ऊंचे तापमान (20°C) की आवश्यकता है। तेज़ वायु तथा बादल हानिकारक हैं।
2. वर्षा – चावल की कृषि के लिए वार्षिक वर्षा 200 सै०मी० से कम न हो। वर्षा की कमी के साथ-साथ चावल की कृषि भी कम होती जाती है।
3. जल सिंचाई – कम वर्षा वाले क्षेत्र में जल सिंचाई की सहायता से चावल की कृषि होती है। जैसे- पंजाब, हरियाणा में।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि - 2
4. मिट्टी – चावल के लिए चिकनी मिट्टी या दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसी कारण चावल नदी घाटियों, डेल्टाओं तथा तटीय मैदानों में अधिक होता है।
5. धरातल – चावल के लिए समतल भूमि की आवश्यकता है ताकि वर्षा व जल सिंचाई से प्राप्त जल खेतों में खड़ा रह सके। पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती की जाती है।
6. सस्ते मज़दूर – चावल की कृषि में सभी कार्य – जोतना, बोना, पौधे लगाना, फ़सल काटना, हाथ से करने पड़ते हैं । इसलिए घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते मज़दूरों की आवश्यकता होती है।उत्पादन – देश की 25% बोई हुई भूमि पर चावल की कृषि होती है। 450 लाख हेक्टेयर भूमि में 890 लाख मीट्रिक टन चावल उत्पन्न होता है । प्रति हेक्टयर उपज 1365 कि० ग्राम है।

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उपज के क्षेत्र (Areas of Cultivation ) – भारत में राजस्थान तथा दक्षिणी पठार के शुष्क भागों को छोड़कर सारे भारत में चावल की कृषि होती है। भारत में चावल की कृषि के लिए आदर्श शाएं पाई जाती हैं। भारत में चावल की कृषि वर्षा की मात्रा के अनुसार है।

  1. पश्चिमी बंगाल – यह राज्य भारत में सबसे अधिक चावल का उत्पादन करता है । इस राज्य की 80% भूमि पर चावल की कृषि होती है। सारा साल ऊंचे तापमान व अधिक वर्षा के कारण वर्ष में तीन फ़सलें अमन, ओस तथा बोरो होती हैं। शीतकाल में अमन की फ़सल मुख्य फ़सल है।
  2. तमिलनाडु – इस राज्य में वर्ष में दो फ़सलें होती हैं। यह राज्य चावल उत्पन्न करने में दूसरे स्थान पर है।
  3. आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा – पूर्वी तटीय मैदान तथा नदी डेल्टाओं में चावल की कृषि होती है।
  4. बिहार, उत्तर प्रदेश – भारत के उत्तरी मैदान में उपजाऊ क्षेत्रों में जल सिंचाई की सहायता से चावल का अधिक उत्पादन है।
  5. पंजाब, हरियाणा – इन राज्यों में प्रति हेक्टेयर उपज सबसे अधिक है। ये राज्य भारत में कमी वाले भागों को चावल
    भेजते हैं। इन्हें भारत का चावल का कटोरा कहते हैं।

2. गेहूँ (Wheat):
महत्त्व – भारत में प्राचीन काल में सिन्ध घाटी में गेहूँ की खेती के चिह्न मिले हैं। गेहूँ संसार का सर्वश्रेष्ठ तथा मुख्य खाद्य पदार्थ है। भारत संसार का 8% गेहूँ उत्पन्न करता है तथा इसका दूसरा स्थान उपज की दशाएं – गेहूँ शीतोष्ण कटिबन्ध का पौधा है। भारत में यह रबी की फ़सल है।

  1. तापमान – गेहूँ के बोते समय कम तापक्रम (15°C) तथा पकते समय ऊँचा तापक्रम (20°C) आवश्यक है।
  2. वर्षा – गेहूँ के लिए साधारण वर्षा (50 cm) चाहिए। शीतकाल में बोते समय साधारण वर्षा तथा पकते समय गर्म शुष्क मौसम ज़रूरी है। तेज़ हवाएं तथा बादल हानिकारक हैं। भारत में गेहूँ के लिए बोते समय आदर्श जलवायु मिलती है, परन्तु पकते समय कई असुविधाएं होती हैं।
  3. जल – सिंचाई – कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल – सिंचाई आवश्यक है, जैसे- पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में।
  4. मिट्टी – गेहूँ के लिए दोमट मिट्टी, चिकनी मिट्टी उत्तम है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद बहुत लाभदायक है।
    JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि - 3
  5. धरातल – गेहूँ के लिए समतल मैदानी भूमि चाहिए ताकि उस पर कृषि यन्त्र और जल – सिंचाई का प्रयोग किया जा सके।
  6. गेहूँ की कृषि के लिए कृषि यन्त्रों, उत्तम बीज व खाद के प्रयोग के प्रति एकड़ उपज में वृद्धि होती है।
  7. गेहूँ की कृषि के लिए सस्ते मज़दूर चाहिएं।

उत्पादन – पिछले कुछ सालों में हरित क्रान्ति के कारण देश में गेहूँ की पैदावार में वृद्धि हुई है। देश की 14% बोई हुई भूमि पर गेहूं की कृषि होती है। देश में लगभग 270 लाख हेक्टेयर भूमि पर 800 लाख टन गेहूँ उत्पन्न होता है। प्रति हेक्टेयर उपज 2618 कि० ग्राम है। उपज के क्षेत्र भारत में अधिक वर्षा रेतीली भूमि तथा मरुस्थलों को छोड़ कर उत्तरी भारत के सभी राज्यों में गेहूँ की कृषि होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत शीत के कारण गेहूँ नहीं होता।

1. उत्तर प्रदेश – यह राज्य भारत में सबसे अधिक गेहूँ उत्पन्न करता है। इस राज्य में गंगा-यमुना दोआब, तराई प्रदेश, गंगा – घाघरा दोआब प्रमुख क्षेत्र हैं । इस प्रदेश में नहरों द्वारा जल – सिंचाई तथा शीत काल की वर्षा की सुविधा है।
2. पंजाब – इसे भारत का अन्न भण्डार (Granary of India) कहते हैं। यहां उपजाऊ मिट्टी, शीत काल की वर्षा, जल – सिंचाई व खाद की सुविधाएं प्राप्त हैं । इस राज्य में मालवा का मैदान तथा दोआबा प्रमुख क्षेत्र हैं।
3. अन्य क्षेत्र –
(क) हरियाणा – हरियाणा में रोहतक – करनाल क्षेत्र।
(ख) मध्य प्रदेश में भोपाल – जबलपुर क्षेत्र
(ग) राजस्थान में गंगानगर क्षेत्र।
(घ) बिहार में तराई क्षेत्र।

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3. गन्ना ( Sugarcane)
महत्त्व – गन्ना भारत का मूल पौधा है। भारत में यह एक व्यापारिक फ़सल है। भारत में चीनी उद्योग गन्ने पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त गन्ने से कई पदार्थ जैसे कागज़ शीरा, खाद, मोम आदि भी तैयार किए जाते हैं।
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उपज की दशाएं – गन्ना उष्ण आर्द्र प्रदेशों की उपज है।
1. तापमान – गन्ने के लिए सारा साल उंचे तापक्रम ( 25°C) की आवश्यकता है। अति अधिक शीत तथा पाला फसल के लिए हानिकारक है।
2. वर्षा – गन्ने के लिए 100 से 200 सै०मी० वर्षा चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल – सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं। गन्ने के पकते समय शुष्क जलवायु उत्तम होती है तथा अधिक वर्षा से गन्ने का रस पतला पड़ जाता है।
3. मिट्टी – गन्ने के लिए शहरी उपजाऊ मिट्टी उपयोगी है। मिट्टी में चूना तथा फॉस्फोरस का अंश अधिक होना चाहिए। नदी घाटियों की कांप की मिट्टी गन्ने के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है।
4. सस्ते श्रमिक – गन्ने कृषि में अधिकतर कार्य से हाथ से किए जाते हैं, इसलिए सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है। भारत की स्थिति – भारत में गन्ने की कृषि के लिए आदर्श दशाएं दक्षिणी भारत में मिलती हैं। यहां ऊंचे तापक्रम एवं पर्याप्त वर्षा है। उत्तरी भारत में लम्बी शुष्क ऋतु व पाले के कारण अनुकूल दशाएं नहीं हैं।
फिर भी उपजाऊ मिट्टी व जल – सिंचाई के कारण भारत का 60% गन्ना उत्तरी मैदान में होता है। भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है।
उत्पादन – भारत में संसार में सबसे अधिक क्षेत्रफल पर गन्ने की कृषि होती है, परन्तु प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम है। संसार का 40% गन्ना क्षेत्र भारत में है, परन्तु उत्पादन केवल 10% है। देश में 33 लाख हेक्टेयर भूमि में 2900 लाख टन गन्ना उत्पन्न किया जाता है।

उपज के क्षेत्र (Areas of Cultivation ) – भारत का 60% गन्ना उत्तरी भारत में उत्पन्न किया जाता है।
1. उत्तर प्रदेश – यह राज्य भारत में सबसे अधिक गन्ना उत्पन्न करता है। यहां पर गन्ना उत्पन्न करने के तीन क्षेत्र हैं –
(क) दोआब क्षेत्र – रुड़की से मेरठ तक।
(ख) तराई क्षेत्र – बरेली, शाहजहांपुर।
(ग) पूर्वी क्षेत्र – गोरखपुर

गोरखपुर को भारत का जावा (Jave of India) – भी कहते हैं। यहां गन्ने की कृषि के लिए कई सुविधाएं हैं –

  1. 100-200 सै०मी० वर्षा
  2. उपजाऊ मिट्टी
  3. जल- सिंचाई के साधन
  4. चीनी मिलों का अधिक होना।

2. दक्षिणी भारत – दक्षिणी भारत में अनुकूल जलवायु तथा अधिक प्रति हेक्टेयर उपज के कारण गन्ने की कृषि महत्त्वपूर्ण हो रही है –
(क) आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा व गोदावरी डेल्टे
(ख) तमिलनाडु में कोयम्बटूर क्षेत्र।
(ग) महाराष्ट्र में गोदावरी घाटी का नासिक क्षेत्र।
(घ) कर्नाटक में कावेरी घाटी।

3. अन्य क्षेत्र

  • पंजाब में गुरदासपुर, जालन्धर क्षेत्र।
  • हरियाणा में रोहतक, गुड़गाँव क्षेत्र।
  •  बिहार में तराई का चम्पारण क्षेत्र।

4. चाय (Tea)
महत्त्व – चाय एक पेय पदार्थ है। भारत में चाय एक व्यापारिक फ़सल है जिसकी कृषि बागवानी कृषि के रूप में होती है। भारत संसार की 35% चाय उत्पन्न करता है तथा इसका पहला स्थान है भारत संसार में चाय निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है। देश में लगभग 700 चाय कम्पनियां हैं। देश में लगभग 12,000 चाय बागान हैं जिनमें 10 लाख मज़दूर काम करते हैं। उपज की दशाएं (Conditions of Growth) – चाय गर्म आर्द्र प्रदेशों का पौधा है।
1. तापमान – चाय के लिए सारा साल समान रूप से ऊंचे तापमान ( 25°C से 30°C) की आवश्यकता है। ऊंचे ताप के कारण वर्षभर पत्तियों की चुनाई हो सकती है, जैसे असम में।
2. वर्षा – चाय के लिए अधिक वर्षा (150 से०मी०) होनी चाहिए। वर्षा सारा साल समान रूप से हो। शुष्क मौसम (विशेषकर ग्रीष्मकाल ) चाय के लिए हानिकारक है। चाय के पौधों के लिए कुछ वृक्षों की छाया अच्छी होती है।
3. मिट्टी – चाय के उत्तम स्वाद के लिए गहरी मिट्टी चाहिए जिसमें पोटाश, लोहा तथा फॉस्फोरस का अधिक अंश हो।
4. धरातल — चाय की कृषि पहाड़ी ढलानों पर की जाती है ताकि पौधों की जड़ों में पानी इकट्ठा न हो। प्राय: 300 मीटर की ऊंचाई वाले प्रदेश उत्तम माने जाते हैं।
5. श्रम – चाय की पत्तियों को चुनने, सुखाने तथा डिब्बों में बन्द करने के लिए सस्ते मज़दूर चाहिएं। प्रायः स्त्रियों को इन कार्यों में लगाया जाता है।
6. प्रबन्ध – बाग़ान के अधिक विस्तार के कारण उचित प्रबन्ध व अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

उत्पादन – देश में 42 लाख हेक्टेयर भूमि पर 99 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है। देश में हरी चाय (Green Tea) तथा काली चाय (Black Tea) दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। विभिन्न राज्यों में चाय का उत्पादन इस प्रकार है –
उपज के क्षेत्र – भारतीय चाय का उत्पादन दक्षिणी भारत की अपेक्षा उत्तरी भारत में कहीं अधिक है। देश में चाय के क्षेत्र एक-दूसरे से दूर-दूर हैं।
1. असम – यह राज्य भारत में सबसे अधिक चाय उत्पन्न करता है। इस राज्य में ब्रह्मपुत्र घाटी तथा दुआर का प्रदेश चाय के प्रमुख क्षेत्र हैं। इस राज्य को कई सुविधाएं प्राप्त हैं –

  • मानसून जलवायु
  • अधिक वर्षा तथा ऊंचे तापमान
  • पहाड़ी ढलानें
  • उपजाऊ मिट्टी
  • योग्य प्रबन्ध।

2. पश्चिमी बंगाल – इस राज्य में दार्जिलिंग क्षेत्र की चाय अपने विशेष स्वाद (Special Flavour) के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां अधिक ऊंचाई, अधिक नमी व कम तापमान के कारण चाय धीरे-धीरे बढ़ती है। जलपाइगुड़ी भी प्रसिद्ध क्षेत्र है।
3. दक्षिणी भारत – दक्षिणी भारत में नीलगिरि की पहाड़ियां (Nilgiri), इलायची तथा अनामलाई की पहाड़ियों में चाय उत्पन्न की जाती है।
(क) तमिलनाडु में कोयम्बटूर तथा नीलगिरी क्षेत्र।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि - 5
(ख) केरल में मालाबार तट।
(ग) कर्नाटक में कुर्ग क्षेत्र।
(घ) महाराष्ट्र में रत्नागिरी क्षेत्र।

4. अन्य क्षेत्र –
(क) झारखण्ड में रांची का पठार
(ख) हिमाचल प्रदेश में पालमपुर का क्षेत्र।
(ग) उत्तराखण्ड में देहरादून का क्षेत्र
(घ) त्रिपुरा क्षेत्र।

व्यापार – भारत संसार में तीसरा बड़ा चाय ( 35%) निर्यातक देश है। देश के उत्पादन का लगभग 1/4 भाग विदेशों को निर्यात किया जाता है। इससे लगभग 1100 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यह निर्यात मुख्यतः इंग्लैण्ड, रूस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि 80 देशों को होता है। विदेशों में चाय के निर्यात को बढ़ाने तथा चाय के स्तर को उन्नत करने के लिए चाय बोर्ड (Tea Board) की स्थापना की गई है।

5. कपास (Cotton ):
महत्त्व – कपास एक रेशेदार पदार्थ है। देश की महत्त्वपूर्ण व्यापारिक फ़सल है। भारत में प्राचीनकाल से कपास की कृषि हो रही है । भारत में सूती वस्त्र उद्योग कपास पर निर्भर है। भारत संसार की 9% कपास उत्पन्न करता है तथा चौथे स्थान पर है। भारत में अधिकतर छोटे रेशे वाली कपास ( 22 किलोमीटर लम्बी ) उत्पन्न होती है।
उपज की दशाएं – कपास उष्ण प्रदेशों की उपज है तथा खरीफ़ की फ़सल है।

  • तापमान – कपास के लिए तेज़, चमकदार धूप तथा उच्च तापमान ( 25°C) की आवश्यकता है। पाला इसके लिए हानिकारक है। अतः इसे 200 दिन पाला रहित मौसम चाहिए।
  • वर्षा – कपास के लिए 50 से०मी० वर्षा चाहिए । चुनते समय शुष्क पाला रहित मौसम चाहिए । फ़सल पकते समय वर्षा न हो।
  • जल – सिंचाई – कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल – सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं, जैसे पंजाब में। इससे प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक होती है।
  • मिट्टी – कपास के लिए लावा की काली मिट्टी सबसे उचित है। लाल मिट्टी तथा नदियों की कांप की मिट्टी ( दोमट मिट्टी) में भी कपास की कृषि होती है।
  • सस्ता श्रम – कपास के लिए सस्ते मज़दूरों की आवश्यकता है। कपास चुनने के लिए स्त्रियों को लगाया जाता है।
  • धरातल – कपास की कृषि के लिए समतल मैदानी भाग अनुकूल होते हैं । साधारण ढाल वाले क्षेत्रों में पानी इकट्ठा नहीं होता।
    उत्पादन – भारत में 242 लाख हेक्टेयर भूमि पर 242 लाख गांठे कपास उत्पन्न की जाती है।

उपज के क्षेत्र – भारत में जलवायु तथा मिट्टी में विभिन्नता के कारण कपास के क्षेत्र बिखरे हुए हैं। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिणी भारत में अधिक कपास होती है-
1. काली मिट्टी का कपास क्षेत्र – काली मिट्टी का कपास क्षेत्र सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश राज्यों के भाग शामिल हैं। गुजरात राज्य भारत में सबसे अधिक कपास उत्पन्न करता है । इस राज्य के खानदेश व बरार क्षेत्रों में देशी कपास की कृषि होती है।
2. लाल मिट्टी का क्षेत्र – तमिलनाडु, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश राज्यों में लाल मिट्टी (Red Soil) क्षेत्र में लम्बे रेशे वाली कपास (कम्बोडियन) उत्पन्न होती है।
3. दरियाई मिट्टी का क्षेत्र-उत्तरी भारत में दरियाई मिट्टी के क्षेत्रों में लम्बे रेशे वाली अमरीकन कपास (नरमा) की कृषि होती है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान राज्य प्रमुख क्षेत्र हैं। पंजाब में जल – सिंचाई के कारण देश में सबसे अधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन है। भविष्य – भारत से छोटे रेशे वाली कपास का निर्यात होता है, परन्तु सूती वस्त्र उद्योग के लिए लम्बे रेशे वाली कपास आयात की जाती है। देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। लम्बे रेशे वाली कपास के क्षेत्र में वृद्धि की जा रही है । आशा है, कपास के उत्पादन में देश शीघ्र ही आत्मनिर्भर हो जाएगा।

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6. पटसन (Jute ):
महत्त्व – पटसन भारत का मूल पौधा है। पटसन एक महत्त्वपूर्ण उपयोगी तथा सस्ता रेशा है। इसे सोने का रेशा कहते हैं। इससे टाट, बोरे, पर्दे, गलीचे तथा दरियां आदि बनाई जाती हैं। व्यापार में महत्त्व के कारण इसे थोक व्यापार का खाकी कागज़ भी कहते हैं। भारत का पटसन उद्योग पटसन की कृषि पर निर्भर करता है।
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उपज की दशाएं – पटसन मानसून खण्ड में उष्ण आर्द्र प्रदेशों का पौधा है।
1. तापमान – पटसन के लिए सारा साल ऊंचे तापमान (27°C) की आवश्यकता है। पटसन खरीफ़ की फ़सल है।
2. वर्षा – पटसन के लिए अधिक वर्षा (150 से० मी०) की आवश्यकता पड़ती है। वर्षा सारा साल समान रूप से होती है।
3. मिट्टी – पटसन के लिए गहरी उपजाऊ मिट्टी उपयोगी है। नदियों में बाढ़ क्षेत्र, डेल्टा प्रदेश पटसन के लिए आदर्श क्षेत्र होते हैं यहां नदियों द्वारा हर वर्ष मिट्टी की नई परत बिछ जाती है। खाद का भी अधिक प्रयोग किया जाता है।
4. स्वच्छ जल – पटसन को काटकर धोने के लिए नदियों के साफ़ पानी की आवश्यकता होती है।
5. सस्ता श्रम – पटसन को काटने, धोने और छीलने के लिए सस्ते तथा कुशल मज़दूरों की आवश्यकता होती है।

उत्पादन – भारत संसार का 35% पटसन उत्पन्न करता है तथा दूसरे स्थान पर है। विभाजन के कारण पटसन क्षेत्र का अधिकांश भाग बांग्लादेश को प्राप्त हो गया है। भारत में 7 लाख हेक्टेयर भूमि पर 12 लाख टन पटसन उत्पन्न होती है।
उपज के क्षेत्र – देश के विभाजन के कारण पटसन क्षेत्र कम हो गया है, परन्तु नए क्षेत्रों में पटसन की कृषि से इस कमी को पूरा किया जा रहा है।
1. पश्चिमी बंगाल – यह राज्य भारत में सबसे अधिक पटसन (36 लाख गांठें ) उत्पन्न करता है। इस राज्य में कई सुविधाएं हैं

  • नदी घाटियां तथा गंगा डेल्टाई प्रदेश
  • अधिक वर्षा
  • ऊँचा तापमान
  • अनेक नदियां
  • सस्ते मज़दूर।

2. आसाम – आसाम में ब्रह्मपुत्र घाटी पटसन के लिए प्रसिद्ध है। इस राज्य में कामरूप तथा गोलपाड़ा जिले प्रसिद्ध हैं।
3. बिहार – इस राज्य के तराई प्रदेश में पटसन उत्पन्न होता है।
4. दक्षिणी भारत – दक्षिणी भारत में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टों में पटसन की कृषि होती है।

5. अन्य प्रदेश
(क) उत्तर प्रदेश में गोरखपुर क्षेत्र।
(ख) आन्ध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम क्षेत्र|
(ग) छत्तीसगढ़ में रायपुर क्षेत्र।
(घ) केरल में मालाबार तट।
(ङ) उत्तरी-पूर्वी भाग में मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर राज्य।

7. कहवा (Coffee):
कहवा (Coffee) कहवा भी चाय की तरह एक लोकप्रिय पेय पदार्थ है।
उपज की दशाएं – कहवा उष्ण कटिबन्ध के उष्ण- आर्द्र प्रदेशों का पौधा है। यह एक प्रकार के सदाबहार पौधे के फूलों (Berries) के बीजों (Beans) को सुखा कर पीसकर चूर्ण तैयार कर लिया जाता है।
1. तापमान (Temperature ) – कहवे के उत्पादन के लिए सारा साल ऊंचा तापमान ( औसत 22°C) होना चाहिए। पाला (Frost ) तथा तेज हवाएं (Strong winds) कहवे की कृषि के लिए हानिकारक होती हैं। इसलिए कहवे की कृषि सुरक्षित ढलानों (Protected hill-slopes) पर की जाती है।

2. वर्षा – कहवे के लिए 100 से 150 से०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा का वितरण वर्षभर समान रूप से हो। शुष्क ऋतु में जल सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं। फल पकते समय ठण्डे शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।

3. छायादार वृक्ष – सूर्य की सीधी व तेज़ किरणें कहवे के लिए हानिकारक होती हैं। इसलिए कहवे के बागों में केले तथा दूसरे छायादार फल उगाए जाते हैं। जो छाया के अतिरिक्त सहायक आय का भी साधन हैं।

4. मिट्टी – कहवे की कृषि के लिए गहरी, छिद्रदार उपजाऊ मिट्टी चाहिए जिसमें लोहा चूना तथा वनस्पति के अंश अधिक हों। लावा की मिट्टी तथा दोमट मिट्टी कहवे के लिए अनुकूल होती है।

5. धरातल – कहवे के बाग़ पठारों तथा ढलानों पर लगाए जाते हैं, ताकि पानी का अच्छा निकास हो। कहवे की कृषि 1000 मीटर तक ऊंचे प्रदेशों में की जाती है।

6. सस्ते श्रमिक – कहवे की कृषि के लिए सस्ते तथा अधिक मज़दूरों की आवश्यकता होती है। पेड़ों को छांटने, बीज तोड़ने तथा कहवा तैयार करने के लिए सभी कार्य हाथों से किए जाते हैं।

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7. बीमारियों की रोकथाम – कहवे के बाग़ में बीटल नामक कीड़े तथा कई बीमारियों के कारण भारत, श्रीलंका तथा इण्डोनेशिया में नष्ट हो गए हैं। इन बीमारियों की रोकथाम आवश्यक है।

उत्पादन – भारत में कहवे की कृषि एक मुस्लिम फ़कीर बाबा बूदन द्वारा लाए गए बीजों द्वारा आरम्भ की गई। भारत में कहवे का पहला बाग़ सन् 1830 में कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर क्षेत्र में लगाया गया। धीरे-धीरे कहवे की कृषि में विकास होता है। अब भारत में लगभग दो लाख हेक्टेयर भूमि पर दो लाख टन कहवे का उत्पादन होता है। देश में कहवे की खपत कम है। देश के कुल उत्पादन का 60% भाग विदेशों को निर्यात कर दिया जाता है। इस निर्यात से लगभग 1500 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यह निर्यात कोजीकोड (केरल) चेन्नईं तथा बंगलौर की बन्दरगाहों से किया जाता है।

उपज के क्षेत्र – भारत के कहवे के बाग़ दक्षिणी पठार की पर्वतीय ढलानों पर ही मिलते हैं। उत्तरी भारत में ठण्डी जलवायु के कारण कहवे की कृषि नहीं होती।
(क) कर्नाटक राज्य – यह राज्य भारत में सबसे अधिक कहवा उत्पन्न करता है। यहां पश्चिमी घाट तथा नीलगिरि की पहाड़ियों पर कहवे के बाग़ मिलते हैं। इस राज्य में शिमोगा, कादूर, हसन तथा कुर्ग क्षेत्र कहवे के लिए प्रसिद्ध हैं।
(ख) तमिलनाडु – इस राज्य में उत्तरी आरकाट से लेकर त्रिनेवली तक के क्षेत्र में कहवे के बाग़ मिलते हैं। यहां नीलगिरि तथा पलनी की पहाड़ियों की मिट्टी या जलवायु कहवे की कृषि के अनुकूल है।
(ग) केरल – केरल राज्य में इलायची की पहाड़ियों का क्षेत्र।
(घ) महाराष्ट्र में सातारा जिला।
(ङ) इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, असम, पश्चिमी बंगाल तथा अण्डेमान द्वीप में कहवे की कृषि के लिए यत्न किए जा रहे हैं ।

8. मोटे अनाज ( Millets):
(i) ज्वार (Jowar ) – खाद्यान्न में क्षेत्रफल की दृष्टि से ज्वार का तीसरा स्थान है। ज्वार 45 से०मी० से कम वर्षा वाले शुष्क और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इसकी वृद्धि के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है । यह सामान्यतः कम उपजाऊ मिट्टियों और अनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है । ज्वार रबी और खरीफ़ दोनों की ही फ़सल है। यह भारत के लगभग एक करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है। संकर बीजों की मदद से इसका उत्पादन सन् 2005-06 में 77 लाख टन हो गया था।

सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में ज्वार पैदा की जाती है। लेकिन इसका सबसे अधिक संकेन्द्रण भारी और मध्यम वर्ग की काली मिट्टियों वाले तथा 100 से० मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में है। ज्वार के सम्पूर्ण फ़सलगत क्षेत्र का आधा भाग महाराष्ट्र में है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तमिलनाडु और मध्य प्रदेश अन्य प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्य हैं।

(ii) बाजरा (Bajra ) – बाजरा हल्की मिट्टियों और शुष्क क्षेत्रों में पैदा किया जाता है। इसीलिए यह अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट और उथली काली मिट्टियों में खूब पैदा किया जाता है। बाजरे की खेती के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्र ये हैं- राजस्थान की मरुस्थली और अरावली की पहाड़ियां, दक्षिणी पश्चिमी हरियाणा, चंबल द्रोणी, दक्षिण पश्चिमी उत्तर प्रदेश, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तरी गुजरात, महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट के पवन विमुख ढाल। बाजरा वर्षापोषित खरीफ़ की फ़सल है। देश के कुल क्षेत्र के 76 लाख हेक्टेयर ( लगभग 5.0%) क्षेत्र में बाजरे की खेती की जाती है। कुल उत्पादन सन् 2005-06 में 104 लाख टन हो गया। राजस्थान देश का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक राज्य है। अन्य प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य ये हैं – उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा।

(iii) मक्का (Maize ) – देश के कुल फ़सलगत क्षेत्र के 3.6 प्रतिशत भाग में मक्का बोई जाती है। इसका कुल उत्पादन 1.2 करोड़ टन था। मक्का के क्षेत्रफल और उत्पादन दोनों में ही तेज़ी से वृद्धि हुई है। संकर जाति के उपज बढ़ाने वाले बीजों, उर्वरकों और सिंचाई के साधनों ने इसकी उत्पादकता बढ़ाने में सहायता की है। सन् 1951 और 2001 की अवधि में मक्का का उत्पादन दस गुना बढ़ गया है। मक्का की खेती सारे भारत में की जाती है। मक्का के उत्पादन में कर्नाटक का पहला स्थान है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश का स्थान है। मक्का के अन्य उत्पादक राज्य हैं – मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और हिमाचल प्रदेश

(iv) दालें (Pulses) – भारतीय भोजन में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। ये फलीदार फ़सलें हैं तथा ये अपनी जड़ों के द्वारा मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाकर उसकी उर्वरता में वृद्धि करती है। दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है। अतः ये शुष्क दशाओं में भी पनपती है। तुर, उड़द, मूंग और मोठ खरीफ़ की प्रमुख फ़सलें हैं तथा चना, मटर, तुर और मसूर रबी की फ़सलें हैं। दालों के अन्तर्गत क्षेत्रफल सन् 2000-01 में दो करोड़ हेक्टेयर हो गया। इसी अवधि में उनका उत्पादन भी बढ़कर 1.07 करोड़ टन हो गया।

(v) चना (Grams) – देश में दाल की प्रमुख फ़सल है। प्रमुख चना उत्पादक क्षेत्र ये हैं- मध्य प्रदेश का मालवा का पठार, राजस्थान का उत्तर पूर्वी भाग और दक्षिणी उत्तर प्रदेश। अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। उत्तर प्रदेश का चने के उत्पादन में दूसरा स्थान है। तुर दाल की महत्त्वपूर्ण फ़सल है। तुर के प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश हैं।

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प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ? कृषि उत्पादकता की वृद्धि में प्रयोग की जाने वाली विधियों का वर्णन करो । हरित क्रान्ति के प्रभावों का वर्णन करो ।
उत्तर:

हरित क्रान्ति (Green Revolution):
भारतीय कृषि एक परम्परागत कृषि संगठन है। कृषि क्षेत्र में एक मौलिक और मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता को देखते हुए एक नवीन कृषि प्रणाली को अपनाया गया है जिसे हरित क्रान्ति कहते हैं। हरित क्रान्ति वास्तव में एक खाद्यान्न क्रान्ति है जिससे सम्पूर्ण कृषि उत्पादन प्रक्रिया को एक नवीन मोड़ दे दिया है । हरित क्रान्ति भारतीय कृषि में आधुनिकीकरण की योजना भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।

परन्तु प्राचीन विधियों के कारण कृषि का विकास नहीं हो पाया है। भारत में घनी आबादी तथा निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों की कमी एक गम्भीर समस्या का रूप धारण कर रही है। इस कमी को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए एक सामूहिक तथा वैज्ञानिक योजना लागू की गई। हरित क्रान्ति के पीछे निहित उद्देश्य हैं कि भारतीय भूमि हरीतिमा हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं – हरित क्रान्ति में निम्नलिखित तकनीकी विधियों पर बल दिया गया है

1. उन्नत बीजों का प्रयोग [Use of High Yielding Varieites (HYV)] – कृषि अनुसंधान के परिणामस्वरूप अधिक उपज देने वाले बीजों का विकास किया गया है। कम समय में तैयार होने वाली किस्में विकसित की गई हैं जिनमें वर्ष में 2 से अधिक फ़सलें प्राप्त की जा सकती हैं। इससे बहुफसलीय प्रणाली को प्रोत्साहन मिला है। गेहूं की नई किस्में जैसे कल्याण, सोना आदि तथा चावल की नई किस्में जैसे ‘विजय’, ‘रत्ना’, ‘पद्मा’ आदि के प्रयोग से उपज में वृद्धि हुई है। अब चावल 300 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उत्तम बीजों की कृषि की जाती है ।

2. उर्वरकों का अधिक प्रयोग (Use of Fertilizers ) – हमारे देश में गोबर खाद की वार्षिक प्राप्ति लगभग 100 करोड़ टन है, परन्तु इसका 40% भाग ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस प्राकृतिक खाद की अपर्याप्तता के कारण उर्वरक के उत्पादन और प्रयोग पर अधिक बल दिया जा रहा है। भारत में प्रति हेक्टेयर भूमि में खाद का प्रयोग विदेशों की तुलना में बहुत कम है । उर्वरक के अधिक प्रयोग से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई है।

3. सिंचाई क्षेत्र में विस्तार (Increase in Irrigated Area ) – सिंचाई वर्षा अधिक की कमी को पूरा करती हैं तथा कृषि उपज बढ़ाने का साधन है। नहरों के अतिरिक्त सिंचाई की छोटी तथा बड़ी योजनाओं पर अधिक बल दिया गया है। नलकूपों का विस्तार किया गया है। इससे फसलों को गहनता तथा प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि हुई है।

4. नवीन कृषि यन्त्रों का प्रयोग (Use of New Agricultural Machinery ) – कृषि क्षेत्र में पुराने औज़ारों के स्थान पर आधुनिक मशीनों, यन्त्रों का प्रयोग बढ़ाया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में मुख्यतः ट्रैक्टर, कम्बाइन हारवेस्टर, पिकर, ड्रिल आदि उपकरण प्रयुक्त होते हैं। कृषि उपकरणों को लोकप्रिय, सुगम बनाने के लिए कई कृषि उद्योग निगम स्थापित किए गए हैं। यान्त्रिक कृषि से देश के कृषि आधारित उद्योगों के लिए पर्याप्त कच्चा माल भी उपलब्ध हो सकता है । इस प्रकार कृषि तथा उद्योग एक-दूसरे के पूरक हो गए हैं। यान्त्रिक कृषि से बहु- फ़सली कृषि प्रणाली (Multiple Cropping) का विकास हुआ है।

5. कीटनाशक औषधियों का प्रयोग ( Use of Pesticides ) – कीड़ों तथा बीमारियों से फ़सलों की सुरक्षा आवश्यक है । इसलिए कीटनाशक औषधियों का उत्पादन तथा वितरण कार्य एक सुनिश्चित ढंग से किया जा रहा हरित क्रान्ति के अधीन इनका प्रयोग बढ़ाया गया है।

6. भूमि सुधार (Land Reforms) – हरित क्रान्ति में नवीन विधियों के प्रयोग के साथ-साथ कृषि में भूमि सुधारों की ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। मूलभूत सुधारों के बिना नवीन कृषि टैक्नोलॉजी व्यर्थ सिद्ध होगी।

7. भू-संरक्षण कार्यक्रम (Soil Conservation ) – भूमि कटाव रोकने तथा भूमि की उर्वरता को बनाए रखने की दृष्टि से विभिन्न पग उठाए गए हैं। मरुस्थलों के विस्तार को रोकने, शुष्क कृषि प्रणाली के विस्तार के कार्य अपनाए जा रहे हैं। देश में लगभग 500 लाख एकड़ बेकार भूमि को कृषि योग्य बनाने व सुधारने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। ‘कल्लर’ (क्षारीय) भूमि तथा कन्दरायुक्त भूमि को कृषि योग्य बनाया जा रहा है। इस प्रकार जल प्लावन (Water Logging), क्षारीयता (Salination) तथा भू-क्षरण (Soil Erosion) के कार्यक्रम अपनाए गए हैं। मिट्टियों के सर्वेक्षण पर भी ध्यान दिया गया है।

8. गहन कृषि (Intensive Farming ) – कई राज्यों में भू-खण्डों के स्तर पर गहन कृषि तथा पैकेज प्रोग्राम आरम्भ किए गए। कालान्तर में इसे गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) में बदल दिया गया। इससे किसानों को कृषि में प्रयोग होने वाली सभी साधनों की सुविधा प्रदान की गई ताकि उत्पादन में वृद्धि हो सके।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

हरित क्रान्ति के प्रभाव (Effects of Green Revolution)
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि (Increase in Agricultural Production ) – हरित क्रान्ति एक महत्त्वपूर्ण कृषि योजना है जिसका मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाकर देश में खाद्यान्न की कमी को दूर करना है। देश के विभाजन के पश्चात् खाद्यान्नों की कमी हो गईं। सन् 1964-65 में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन केवल 9 करोड़ टन था। इस कमी को पूरा करने के लिए विदेशों से खाद्यान्न आयात किए जाते थे। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र को एक नया मोड़ दिया गया, जिसके कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। देश में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन लगभग 259 करोड़ टन हो गया।

वर्ष खाद्यान्न उत्पादन (करोड़ टन)
1966 67 7.4
1970-71 10.7
1977-78 11.0
1980-81 13.5
1984-85 15.0
1993-94 18.0
2011-2012 259

2. प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि (Increase in Yield per Hectare ) – हरित क्रान्ति वास्तव में खाद्यान्न क्रान्ति ही है। इसके लिए जल सिंचाई के साधनों में विस्तार किया गया। उर्वरकों का अधिक मात्रा में प्रयोग करके प्रति हेक्टेयर उपज को बढ़ाया गया। अधिक उपज देने वाली फ़सलों की कृषि पर ज़ोर दिया गया। चुने हुए क्षेत्रों में गेहूँ तथा चावल की नई विदेशी किस्मों का प्रयोग किया गया। गेहूँ की नई किस्में कल्याण, S-308, चावल की किस्में रत्ना, जया आदि का प्रयोग किया गया। पंजाब के लुधियाना क्षेत्र में गेहूँ का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 13 क्विंटल से बढ़कर 33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक जा पहुंचा है। गोदावरी डेल्टा में चावल प्रति हेक्टेयर उत्पादन, लगभग दुगुना हो गया है। इस प्रकार कृषि योग्य भूमि के विस्तार से नहीं अपितु प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ा कर ही खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि के लक्ष्य को पूरा किया गया है।
3. कृषि आधारित उद्योगों का बड़ी तेज़ी से विकास हुआ है।
4. यन्त्रीकरण तथा जल सिंचाई साधनों के प्रयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली तथा डीजल की खपत बढ़ी है।

त्रुटियां (Drawbacks) – हरित क्रान्ति वास्तव में खाद्यान्न क्रान्ति है। इसके परिणाम इतने आशा जनक नहीं रहे हैं, जितनी की आशा की जाती थी । खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य फ़सलों के क्षेत्र में अधिक उपज देने वाली किस्मों को अपनाया गया है। जैसे – कपास की नई किस्में गुजरात तथा तमिलनाडु में उगाई गई हैं । हरित क्रान्ति की योजना देश के चुने हुए क्षेत्रों में ही सफल रही है । इसे देश के सभी भागों में लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि –

  • बहुत से भागों में जल सिंचाई के साधन कम हैं।
  • उर्वरकों का उत्पादन मांग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है।
  • नए कृषि साधनों पर अधिक खर्च करने के लिए पूंजी की कमी है।
  • इस योजना से छोटे किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचा है।
  • यह योजना केवल सीमित भागों में ही सफल रही है। इस योजना में कृषि तथा लघु सिंचाई पर विशेष जोर नहीं दिया गया है।
  • छोटे आकार के खेतों में कृषि यन्त्रों का प्रयोग सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता है।
  • अधिक उपज प्राप्त करने वाली विधियां केवल कुछ ही फ़सलों के प्रयोग में लाई गई हैं।
  •  हरित – क्रान्ति द्वारा क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ गया है क्योंकि इसमें उपजाऊ क्षेत्रों पर ही ध्यान दिया गया है।
  • व्यापारिक फ़सलों के उत्पादन में भी वृद्धि की आवश्यकता है।

फिर भी यह कहा जा सकता है कि हरित क्रान्ति कृषि के ग्रामीण सर्वांगीण और बहुमुखी विकास की योजना है जो कृषि क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने में सहायक होगी।

प्रश्न 3.
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय कृषि की समस्याएं:
भारतीय कृषि की समस्याएं विभिन्न प्रकार की हैं। अधिकतर कृषि समस्याएं प्रादेशिक हैं तथापि कुछ समस्याएं सर्वव्यापी हैं जिसमें भौतिक बाधाओं से लेकर संस्थागत अवरोध शामिल हैं। यद्यपि कृषि के विकास के लिए बहुत अधिक प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन संसार के विकसित देशों की तुलना में हमारी कृषि की उत्पादकता अब भी कम है। इस परिस्थिति के लिए अनेक कारक संयुक्त रूप से ज़िम्मेदार हैं।
इनको चार वर्गों में बांटा गया है:

  1. पर्यावरणीय
  2. आर्थिक
  3. संस्थागत
  4. प्रौद्योगिकीय

1. अनियमित मानसून पर निर्भरता – सबसे गंभीर समस्या मानसून का अनिश्चित स्वरूप है। तापमान तो सारे साल ही ऊंचे रहते हैं। अतः यदि नियमित रूप में जल की पर्याप्त आपूर्ति होती रहे तो पूरे वर्ष फसलें पैदा की जा सकती हैं। लेकिन ऐसा संभव नहीं है क्योंकि देश के अधिकतर भागों में वर्षा केवल 3 या 4 महीनों में ही होती है। यही नहीं वर्षा की मात्रा तथा ॠतुनिष्ठ और प्रादेशिक वितरण अत्यधिक परिवर्तनशील है। इस परिस्थिति का कृषि के विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। भारत में कृषि क्षेत्र का केवल एक तिहाई भाग ही सिंचित है। शेष कृषि क्षेत्र में फ़सलों का उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से वर्षा पर निर्भर है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

जहां तक वर्षा का संबंध है, देश के अधिकतर भाग, उपार्द्र, अर्ध शुष्क और शुष्क हैं। इन क्षेत्रों में अक्सर सूखा पड़ता रहता है। राजस्थान तथा अन्य क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम तथा अत्यधिक अविश्वसनीय है। ये क्षेत्र सूखा व बाढ़ दोनों से प्रभावित हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा एक सामान्य परिघटना है लेकिन यहां यदा कदा बाढ़ भी आ जाती है। वर्ष 2006 में महाराष्ट्र, गुजरात तथा राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में आई आकस्मिक बाढ़ उदाहरण है। सूखा तथा बाढ़ भारतीय कृषि के जुड़वा संकट बने हुए हैं। सिंचाई की सुविधाओं के विकास और वर्षा जल संग्रहण के द्वारा इन प्रदेशों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।

2. निम्न उत्पादकता – अंतर्राष्ट्रीय स्तर की उपेक्षा भारत में फ़सलों की उत्पादकता कम है। भारत में अधिकतर फ़सलों जैसे- चावल, गेहूँ, कपास व तिलहन की प्रति हेक्टेयर पैदावार अमेरिका, रूस तथा जापान से कम है। भू संसाधनों पर अधिक दबाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर की तुलना में भारत में श्रम उत्पादकता भी बहुत कम है। देश के विस्तृत वर्षा निर्भर विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर मोटे अनाज, दालें तथा तिलहन की खेती की जाती है तथा यहाँ इनकी उत्पादकता बहुत कम है।

3. आर्थिक कारक – कृषि में निवेश जैसे अधिक उपज देने वाले बीज, उर्वरक आदि और परिवहन की सुविधाएं आर्थिक कारक हैं। विपणन सुविधाओं की कमी या उचित ब्याज पर ऋण का न मिलने के कारण किसान कृषि के विकास के लिए आवश्यक संसाधन नहीं जुटा पाता है। इसका परिणाम होता है-निम्न उत्पादकता। सच्चाई तो यह है कि भूमि पर जनसंख्या का दबाव दिनों-दिन बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति फसलगत भूमि में कमी हो रही है। 1921 में यह 0.444 हेक्टेयर, 1961 में 0.296 हेक्टेयर तथा और भी घटकर 1991 में 0.219 हेक्टेयर रह गई है। जोतों के छोटे होने के कारण निवेश की क्षमता भी कम है।

4. संस्थागत कारक – जनसंख्या के दबाव के कारण जोतों का उपविभाजन (पीढ़ियों के अनुसार बंटवारा) और छितराव हो रहा है। 1961-62 में कुल जोतों में से 52% जोतें सीमांत आकार में (दो हेक्टेयर से कम) और छोटी थीं। 1990-91 में कुल जोतों में छोटी जोतों का प्रतिशत बढ़कर 78 हो गया। इन छोटी जोतों में भी छोटे-छोटे खेत दूर दूर बिखरे हैं। जोतों का अनार्थिक होना (आर्थिक दृष्टि से अनुपयुक्त आकार) कृषि के आधुनिकीकरण की प्रमुख बाधा हैं। भूमि के स्वामित्व की व्यवस्था बड़े पैमाने पर निवेश के अनुकूल नहीं है, क्योंकि काश्तकारी की अवधि अनिश्चित बनी रहती है। अगली पीढ़ी में भूमि में बँटवारे से भू जोतों का पुनः विखण्डन हो गया है।

5. प्रौद्योगिकीय कारक – कृषि के तरीके पुराने और रूढ़िवादी / परम्परागत हैं। अधिकतर किसान आज भी लकड़ी का हल और बैलों का ही उपयोग करते हैं। मशीनीकरण बहुत सीमित है। उर्वरकों और अधिक उपज देने वाले बीजों का उपयोग भी सीमित है। फसलगत क्षेत्र के केवल एक तिहाई क्षेत्र के लिए ही सिंचाई की सुविधाएं जुटाई जा सकी हैं। इसका वितरण वर्षा की कमी और परिवर्तनशील के अनुरूप नहीं है। ये दशाएं कृषि की उत्पादकता और इसकी गहनता को निम्न स्तर पर बनाए हुए हैं।

6. भूमि सुधारों की कमी – भूमि के असमान वितरण के कारण भारतीय किसान लंबे समय से शोषित हैं । अंग्रेज़ी शासन के दौरान, तीन भूराजस्व प्रणालियों-महालवाड़ी, रैयतवाड़ी तथा ज़मींदारी में से ज़मींदारी प्रथा किसानों के लिए सबसे अधिक शोषणकारी रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, भूमि सुधारों को प्राथमिकता दी गई, लेकिन ये सुधार कमज़ोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण पूर्णतः फलीभूत नहीं हुए। अधिकतर राज्य सरकारों ने राजनीतिक रूप से शक्तिशाली ज़मींदारों के खिलाफ़ कठोर राजनीतिक निर्णय लेने में टालमटोल किया। भूमि सधारों के लागू न होने के परिणामस्वरूप कृषि योग्य भूमि का असमान वितरण जारी रहा जिससे कृषि विकास में बाधा रही है ।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 जल-संसाधन

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 जल-संसाधन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 जल-संसाधन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. पृथ्वी का लगभग कितने प्रतिशत भाग जल से ढका है ?
(A) 51%
(B) 61%
(C) 71%
(D) 81%
उत्तर:
(C) 71%

2. कुल जल संसाधनों में अलवणीय जल कितने प्रतिशत है ?
(A) 0.5
(B) 1.0
(C) 2.5
(D) 3.0
उत्तर:
(D) 3.0

3. भारत में विश्व के जल-संसाधनों का कितने प्रतिशत भाग है ?
(A) 1%
(B) 2%
(C) 3%
(D) 4%
उत्तर:
(D) 4%

4. देश के कुल उपयोगी जल संसाधन हैं
(A) 1122 घन कि० मी०
(B) 1222 घन कि० मी०
(C) 1322 घन कि० मी०
(D) 1422 घन कि० मी०।
उत्तर:
(A) 1122 घन कि० मी०

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5. भारत में धरातलीय जल का कितने % भाग उपयोग किया जा सकता है ? .
(A) 22%
(B) 25%
(C) 32%
(D) 35%.
उत्तर:
(C) 32%

6. बिहार राज्य में जल में किस तत्त्व का संकेन्द्रण बढ़ गया है ?
(A) नमक
(B) खारापन
(C) फलूओराइड
(D) संखिया।
उत्तर:
(D) संखिया।

7. भौम जल का कितने प्रतिशत कृषि में प्रयोग होता है ?
(A) 72%
(B) 82%
(C) 85%
(D) 92%.
उत्तर:
(D) 92%.

8. निम्नलिखित में से किस राज्य में भौम जल का अधिक उपयोग है ?
(A) पंजाब
(B) छत्तीसगढ़
(C) बिहार
(D) केरल।
उत्तर:
(A) पंजाब

9. पंजाब में निवल बोए गए क्षेत्र का कितने प्रतिशत भाग सिंचित है ?
(A) 65%
(B) 75%
(C) 80%
(D) 85%.
उत्तर:
(D) 85%.

10. नदी के किस भाग में जल की अच्छी गुणवत्ता होती है ?
(A) पहाड़ी
(B) मैदानी
(C) डेल्टा
(D) घाटी।
उत्तर:
(A) पहाड़ी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
जल अभाव तथा घटती आपूर्ति के तीन कारण बताओ।
उत्तर:
(i) बढ़ती मांग
(ii) अति उपयोग
(iii) प्रदूषण।

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प्रश्न 2.
धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत बताओ।
उत्तर:
नदियां, झीलें, तलैया और तालाब।

प्रश्न 3.
भारत में नदियों की संख्या कितनी है ? (1.6 कि० मी० से अधिक लम्बी)
उत्तर:
10360

प्रश्न 4.
भौम जल का अधिक उपयोग करने वाले तीन राज्य बताओ।
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु।।

प्रश्न 5.
जल सिंचाई के दो प्रभाव बताओ।
उत्तर:
बहुफ़सलीकरण से वृद्धि तथा उत्पादकता में वृद्धि।

प्रश्न 6.
महाराष्ट्र में भौम जल के अधिक उपयोग से किस तत्त्व का संकेन्द्रण बढ़ा है ?
उत्तर:
फ्लू ओराइड।

प्रश्न 7.
शद्ध जल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जब जल अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित हो।

प्रश्न 8.
जल संभर प्रबन्धन के अधीन कौन-से तीन कार्यक्रम चलाए गए हैं ?
उत्तर:
हरियाली, नीरू-मीरू, अरवारी पानी संसद्।

प्रश्न 9.
जल अधिनियम कब बनाया गया ?
उत्तर:
1974 में।

प्रश्न 10.
भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदी कौन-सी है ?
उत्तर:
दिल्ली और इटावा के बीच यमुना नदी।

प्रश्न 11.
जल संग्रहण कुण्ड को राजस्थान में क्या कहते हैं ?
उत्तर:
टांका।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय जल नीति के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर:’
सिंचाई के लिए जल तथा पेय जल प्रदान करना।

प्रश्न 13.
भारत में जल की गुणवत्ता के निम्नीकरण का मुख्य कारण बताओ।
उत्तर:
जल रसायन तथा प्रदूषण।

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प्रश्न 14.
विश्व के जल संसाधनों का कितने प्रतिशत भारत में उपलब्ध है ?
उत्तर:
4%.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जल का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
अलवणीय जल की उपलब्धता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है। इस दुर्लभ संसाधन के आबंटन और नियन्त्रण पर तनाव और लड़ाई-झगडे, सम्प्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गए हैं। विकास को सुनिश्चित करने के लिए जल का मूल्यांकन, कार्यक्षम उपयोग और संरक्षण आवश्यक हो गए हैं।

प्रश्न 2.
भारत में भौम जल संसाधनों का वर्णन करें।
उत्तर:
भौम जल संसाधन-देश में कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन कि० मी० है। कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन का लगभग 46 प्रतिशत गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में पाया जाता है। उत्तर-पश्चिमी प्रदेश और दक्षिणी भारत के कुछ भागों के नदी बेसिनों में भौम जल उपयोग अपेक्षाकृत अधिक है।

प्रश्न 3.
जल सिंचाई उपयोग से क्या लाभ है ?
उत्तर:
(1) सिंचाई की व्यवस्था बहुफ़सलीकरण को सम्भव बनाती है।
(2) ऐसा पाया गया है कि सिंचित भूमि की कृषि उत्पादकता असिंचित भूमि की अपेक्षा ज़्यादा होती है।
(3) फ़सलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों के लिए आर्द्रता आपूर्ति नियमित रूप से आवश्यक है जो केवल विकसित सिंचाई तन्त्र से ही सम्भव होती है।
(4) वास्तव में ऐसा इसलिए है कि देश में कृषि विकास की हरित क्रान्ति की रणनीति पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक सफल हुई है।

प्रश्न 4.
कुछ राज्यों में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग के दुष्परिणाम क्या हैं ?
उत्तर:
(1) इन राज्यों में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग से भौम जल स्तर नीचा हो गया है।
(2) वास्तव में, कुछ राज्यों, जैसे-राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लु ओराइड का संकेंद्रण बढ़ गया है।
(3) इस वजह से पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में संखिया के संकेंद्रण की वृद्धि हो गई है।

प्रश्न 5.
पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में पर्याप्त जल संसाधन है, परन्तु यहां भौम जल स्तर नीचे गिर रहा है। क्यों ?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निवल बोए गए क्षेत्र का 85 प्रतिशत भाग सिंचाई के अन्तर्गत है। इन राज्यों में गेहूँ और चावल मुख्य रूप से सिंचाई की सहायता से पैदा किए जाते हैं। निवल सिंचित क्षेत्र का 76.1 प्रतिशत पंजाब में और 51.3 प्रतिशत हरियाणा में, कुओं और नलकूपों द्वारा सिंचित है। इससे यह ज्ञात होता है कि ये राज्य अपने सम्भावित भौम जल के एक बड़े भाग का उपयोग करते हैं जिससे कि इन राज्यों में भौम जल में कमी आ जाती है। .

प्रश्न 6.
जल के गुणों का ह्रास क्यों होता है ? इसके प्रभाव बताओ।
उत्तर:
जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है। जल बाह्य पदार्थों, जैसे-सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों, औद्योगिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों से प्रदूषित होता है। इस प्रकार के पदार्थ जल के गुणों में कमी लाते हैं और इसे मानव उपयोग के योग्य नहीं रहने देते हैं। जब विषैले पदार्थ झीलों, सरिताओं, नदियों, समुद्रों और अन्य जलाशयों में प्रवेश करते हैं, वे जल में घुल जाते हैं अथवा जल में निलम्बित हो जाते हैं। इससे जल-प्रदूषण बढ़ता है और जल के गुणों में कमी आने से जलीय तन्त्र प्रभावित होते हैं। कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं और भौम जल को प्रदूषित करते हैं। देश में गंगा और यमुना, दो अत्यधिक प्रदूषित नदियां हैं।

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प्रश्न 7.
जल-संरक्षण क्यों आवश्यक है ? इसके उपाय बताओ।
उत्तर:
जल-संरक्षण और प्रबन्धन-अलवणीय जल की घटती हुई उपलब्धता और बढ़ती मांग से, सतत् पोषणीय विकास के लिए महत्त्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता बढ़ गई है। विलवणीकरण द्वारा सागर/महासागर से प्राप्त जल उपलब्धता, उसकी अधिक लागत के कारण नगण्य हो गई है।

भारत को जल-संरक्षण के लिए तुरन्त कदम उठाने हैं और प्रभावशाली नीतियां और कानून बनाने हैं और जल-संरक्षण हेतु प्रभावशाली उपाय अपनाने हैं। जल बचत तकनीकी और विधियों के विकास के अतिरिक्त, प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिएं। जल-संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुनः चक्रण और पुन: उपयोग और लम्बे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल का संयुक्त उपयोग बढ़ाना होगा।

प्रश्न 8.
भौम जल के भण्डारों को पुनः भरण की कम लागत वाली तकनीक बताओ।
उत्तर:
(i) छत के वर्षा जल का संग्रहण
(ii) खुदे हुए कुओं का पुनर्भरण
(ii) हैंड पम्पों का पुनर्भरण
(iv) रिसाव गड्ढों का निर्माण
(v) खेतों के चारों ओर बन्धिकाएं और रोक बांध बनना।

प्रश्न 9.
जल संभर विकास से क्या उद्देश्य प्राप्त किए जा सकते हैं ?
उत्तर:

  1. मृदा संरक्षण
  2. जल संरक्षण
  3. कृषि योग्य भूमि का संरक्षण
  4. उद्यान कृषि का विकास
  5. वानिकी और वन वर्धन का विकास
  6. पर्यावरण का संरक्षण
  7. कृषि उत्पादन में वृद्धि
  8. परितन्त्रीय ह्रास को रोकना।

प्रश्न 10.
वर्षा जल संग्रहण के उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण-यह भौम जल के पुनर्भरण को बढ़ाने की तकनीक है। इस तकनीक में स्थानीय रूप से वर्षा जल को एकत्र करके भूमि जल भण्डारों में संगृहीत करना शामिल है, जिससे स्थानीय घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। वर्षा जल संग्रहण के उद्देश्य ये हैं –

  • जल की निरन्तर जल मांग को पूरा करना
  • नालियों को रोकने वाले सतही जल प्रवाह को कम करना
  • सड़कों पर जल फैलाव को रोकना
  • भौम जल में वृद्धि करना तथा जल स्तर को ऊंचा उठाना
  • भौम जल प्रदूषण को रोकना
  • भौम जल की गुणवत्ता को सुधारना
  • मृदा अपरदन को कम करना
  • ग्रीष्म ऋतु और सूखे के समय जल की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करना।

प्रश्न 11.
जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जल अभाव संभवतः इसकी बढ़ती हुई मांग, अति उपयोग तथा प्रदूषण के कारण घटती आपूर्ति के आधार पर सबसे बड़ी चुनौती है। उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ो और निम्नलिखित के उत्तर दो –
(क) पृथ्वी का कितने प्रतिशत भाग जल से ढका है ?
उत्तर:
71 प्रतिशत।

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(ख) कुल जल में अलवणीय जल कितना है ?
उत्तर:
3 प्रतिशत।

(ग) भारत में कृषि क्षेत्र में सिंचाई किन कारणों के चलते आवश्यक है ?
उत्तर:
कृषि में, जल का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई के लिए होता है। भारत में सिंचाई निम्नलिखित तथ्यों के कारण आवश्यक है –
(1) देश में वर्षा के स्थानिक-सामयिक परिवर्तिता के कारण सिंचाई की आवश्यकता होती है।
(2) देश के अधिकांश भाग वर्षाविहीन और सुखाग्रस्त हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत और दक्कन का पठार इसके अन्तर्गत आते हैं।
(3) देश के अधिकांश भागों में शीत और ग्रीष्म ऋतुओं में न्यूनाधिक शुष्कता पाई जाती है। इसलिए शुष्क ऋतुओं में बिना सिंचाई के खेती करना कठिन होता है।

प्रश्न 12.
ऐसी कौन-सी आधारभूत मुख्य तकनीक हैं जिनके चलते भौम जल के भंडारों का पुन: संरक्षण कर सकते हैं ?
अथवा
भौम जल के भण्डारों को पुनः भरण की कम लागत वाली मुख्य तकनीक बताओ।
उत्तर:

  1. छत के वर्षा जल का संग्रहण
  2. खुदे हुए कुओं का पुनर्भरण
  3. हैंड पम्पों का पुनर्भरण
  4. रिसाव गड्ढों का निर्माण
  5. खेतों के चारों ओर बन्धिकाएं और रोक बांध बनाना।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के जल संसाधनों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत के जल संसाधन –

  1. भारत में विश्व के धरातलीय क्षेत्र का लगभग 2.45 प्रतिशत जल संसाधनों का 4 प्रतिशत उपलब्ध है, देश में विश्व जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत भाग पाया जाता है।
  2. देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जल की मात्रा लगभग 4,000 घन कि० मी० है।
  3. धरातलीय जल और पुनः पूर्तियोग भौम जल से 1,869 घन कि० मी० जल उपलब्ध है।
  4. इसमें से केवल 60 प्रतिशत जल का लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। (
  5. इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1,122 घन कि० मी० है।

प्रश्न 2.
भारत के भौम जल संसाधनों के उपयोग का वर्णन करो।
उत्तर:
(1) अधिक उपयोग वाले राज्य-पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है।
(2) कम उपयोग वाले राज्य-कुछ राज्य जैसे छत्तीसगढ़, उड़ीसा, केरल आदि अपने भौम जल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं।
(3) मध्यम उपयोग वाले राज्य-गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने भौम जल संसाधनों का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं। यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रहती है तो जल के मांग की आपूर्ति करने की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति विकास के लिए हानिकारक होगी और सामाजिक उथल-पुथल और विघटन का कारण हो सकती है।

प्रश्न 3.
भारत के लैगून और पश्च जल का वर्णन करते हुए इनका उपयोग बताओ।
उत्तर:
लैगून और पश्च जल-भारत की समुद्र तट रेखा विशाल है और कुछ राज्यों में समुद्र तट बहुत दंतुरित है। इसी कारण बहुत-सी लैगून और झीलें बन गई हैं। केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इन लैगूनों और झीलों में बड़े धरातलीय जल संसाधन हैं। यद्यपि सामान्यतः इन जलाशयों में खारा जल है, इसका उपयोग मछली पालन और चावल की कुछ निश्चित किस्मों, नारियल आदि की सिंचाई में किया जाता है।

प्रश्न 4.
भारत में जल के उपयोग के विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
जल की मांग और उपयोग –
1. कृषि क्षेत्र-पारम्परिक रूप से भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग कृषि पर निर्भर है। इसीलिए, पंचवर्षीय योजनाओं में, कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को एक अति उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई।

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2. बहु-उद्देशीय नदी घाटी योजनाएं-बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं जैसे-भाखड़ा नांगल, हीराकुड, दामोदर घाटी, नागार्जुन सागर, इन्दिरा गांधी नहर परियोजना आदि शुरू की गई है। वास्तव में, भारत की वर्तमान में जल की मांग, सिंचाई की आवश्यकताओं के लिए अधिक है। धरातलीय और भौम जल का सबसे अधिक उपयोग कृषि में होता है। इसमें धरातलीय जल का 89 प्रतिशत और भौम जल का 92 प्रतिशत जल उपयोग किया जाता है।

3. औद्योगिक सैक्टर-औद्योगिक सेक्टर में, सतह जल का केवल 2 प्रतिशत और भौम जल का 5 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जाता है।

4. घरेलू सैक्टर-घरेलू सैक्टर में धरातलीय जल का उपयोग भौम जल की तुलना में अधिक (9%) है। कुल जल उपयोग में कृषि सैक्टर का भाग दूसरे सैक्टरों से अधिक है। फिर भी, भविष्य में विकास के साथ-साथ देश में औद्योगिक और घरेलू सैक्टरों में जल का उपयोग बढ़ने की सम्भावना है।

प्रश्न 5.
भारत में कृषि क्षेत्र में सिंचाई क्यों आवश्यक है ? उदाहरण दो।
उत्तर:
कृषि में, जल का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई के लिए होता है।

  • देश में वर्षा के स्थानिक-सामयिक परिवर्तिता के कारण सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • देश के अधिकांश भाग वर्षाविहीन और सूखाग्रस्त हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत और दक्कन का पठार इसके अन्तर्गत आते हैं।
  • देश के अधिकांश भागों में शीत और ग्रीष्म ऋतुओं में न्यूनाधिक शुष्कता पाई जाती है। इसलिए शुष्क ऋतुओं में बिना सिंचाई के खेती करना कठिन होता है।
  • पर्याप्त मात्रा में वर्षा वाले क्षेत्र जैसे पश्चिम बंगाल और बिहार में भी मानसून के मौसम में अवर्षा अथवा इसकी असफलता सूखा जैसी स्थिति उत्पन्न कर देती है जो कृषि के लिए हानिकारक होती है।
  • कुछ फसलों के लिए जल की कमी सिंचाई को आवश्यक बनाती है। उदाहरण के लिए चावल, गन्ना, जूट आदि के लिए अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है जो केवल सिंचाई द्वारा सम्भव है।

प्रश्न 6.
जल के पुनःचक्र और पुन: उपयोग के उदाहरण दो।
उत्तर:
जल का पुनःचक्र और पुन: उपयोग-पुन:चक्र और पुन:उपयोग, दूसरे रास्ते हैं जिनके द्वारा अलवणीय जल की उपलब्धता को सुधारा जा सकता है। कम गुणवत्ता के जल का उपयोग, जैसे शोधित अपशिष्ट जल, उद्योगों के लिए एक आकर्षक विकल्प हैं और जिसका उपयोग शीतलन एवं अग्निशमन के लिए करके वे जल पर होने वाली लागत को कम कर सकते हैं।

इसी तरह नगरीय क्षेत्रों में स्नान और बर्तन धोने में प्रयुक्त जल को बागवानी के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। वाहनों को धोने के लिए प्रयुक्त जल का उपयोग भी बागवानी में किया जा सकता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाले जल का पीने के उद्देश्य के लिए संरक्षण होगा। वर्तमान में, पानी का पुनः चक्रण एक सीमित माप में किया गया है। फिर भी, पुनः चक्रण द्वारा पुनः पूर्तियोग्य जल की उपादेयता व्यापक है।

प्रश्न 7.
भारत में जल की दो समस्याएं कौन-सी हैं ? उपयक्त उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है। जल बाह्य पदार्थों, जैसे-सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों, औद्योगिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों से प्रदूषित होता है। इस प्रकार के पदार्थ जल के गुणों में कमी लाते हैं और इसे मानव उपयोग के योग्य नहीं रहने देते हैं। जब विषैले पदार्थ झीलों, सरिताओं, नदियों, समुद्रों और अन्य जलाशयों में प्रवेश करते हैं, वे जल में घुल जाते हैं अथवा जल में निलम्बित हो जाते हैं।

इससे जल-प्रदूषण बढ़ता है और जल के गुणों में कमी आने से जलीय तन्त्र प्रभावित होते हैं। कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुंच जाते हैं और भौम जल को प्रदूषित करते हैं। देश में गंगा और यमुना, दो अत्यधिक प्रदूषित नदियां हैं। जल-संरक्षण और प्रबन्धन-अलवणीय जल की घटती हुई उपलब्धता और बढ़ती मांग से, सतत् पोषणीय विकास के लिए महत्त्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता बढ़ गई है। विलवणीकरण द्वारा सागर/महासागर से प्राप्त जल उपलब्धता, उसकी अधिक लागत के कारण, नगण्य हो गई है।

भारत को जल-संरक्षण के लिए तुरन्त कदम उठाने हैं और प्रभावशाली नीतियां और कानून बनाने हैं और जल-संरक्षण हेतु प्रभावशाली उपाय अपनाने हैं। जल बचत तकनीकी और विधियों के विकास के अतिरिक्त, प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिएं। जल-संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुनः चक्रण और पुन: उपयोग और लम्बे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल का संयुक्त उपयोग बढ़ाना होगा।

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निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की मख्य विशेषताएं-राष्ट्रीय जल नीति 2002 जल आबंटन प्राथमिकताएं विस्तृत रूप में निम्नलिखित क्रम में निर्दिष्ट की गई हैं –

  1. पेयजल
  2. सिंचाई
  3. जलशक्ति
  4. नौकायान
  5. औद्योगिक और अन्य उपयोग।

इस नीति में जल व्यवस्था के लिए प्रगतिशील नए दृष्टिकोण निर्धारित किए गए हैं। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं –

  • सिंचाई और बहुउद्देशीय परियोजनाओं में पीने का जल घटक में सम्मिलित करना चाहिए जहां पेय जल के स्रोत का कोई विकल्प नहीं है।
  • पेय जल सभी मानव जाति और प्राणियों को उपलब्ध कराना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
  • भौम जल के शोषण को सीमित और नियमित करने के लिए उपाय करने चाहिए।
  • सतह और भौम जल दोनों की गुणवत्ता के लिए नियमित जांच होनी चाहिए। जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए एक चरणबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए।
  • जल के सभी विविध प्रयोगों में कार्यक्षमता सुधारनी चाहिए।
  • दुर्लभ संसाधन के रूप में, जल के लिए जागरूकता विकसित करनी चाहिए।
  • शिक्षा विनिमय. उपक्रमणों. प्रेरकों और अनक्रमणों द्वारा संरक्षण चेतना बढानी चाहिए।

प्रश्न 2.
वर्षा जल संग्रहण की विधियों तथा प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण-वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है। इसका उपयोग भूमिगत जलभृतों के पुनर्भरण के लिए भी किया जाता है। यह एक कम मूल्य और पारिस्थिति की अनुकूल विधि है जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूंद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है।

  • वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है।
  • भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है।
  • फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है।
  • मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है। यदि इसे जलभृतों के पुनर्भरण के लिए उपयोग किया जाता है तो तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल के प्रवेश को रोकता है।

विधियां – देश में विभिन्न समुदाय लम्बे समय से अनेक विधियों से वर्षा जल संग्रहण करते आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत वर्षा जल संग्रहण सतह संचयन जलाशयों, जैसे-झीलों, तालाबों, सिंचाई तालाबों आदि में किया जाता है। राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढांचे जिन्हें कुंड अथवा टांका (एक ढका हुआ भूमिगत टंकी) के नाम से जानी जाती है।

लाभ – बहुमूल्य जल संसाधन के संरक्षण के लिए वर्षा जल संग्रहण प्रविधि का उपयोग करने का क्षेत्र व्यापक है। इसे घर की छतों और खुले स्थानों में वर्षा जल द्वारा संग्रहण किया जा सकता है। वर्षा जल संग्रहण घरेलू उपयोग के लिए, भूमिगत जल पर समुदाय की निर्भरता कम करता है। इसके अतिरिक्त मांग-आपूर्ति अन्तर के लिए सेतु बन्धन के कार्य के अतिरिक्त इससे भौम जल निकालने में ऊर्जा की बचत होती है क्योंकि पुनर्भरण से भौम जल स्तर में वृद्धि हो जाती है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 6 जल-संसाधन

आजकल वर्षा जल संग्रहण विधि का देश के बहुत-से राज्यों में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है। वर्षा जल संग्रहण से मुख्य रूप से नगरीय क्षेत्रों को लाभ मिल सकता है क्योंकि जल की मांग, अधिकांश नगरों और शहरों में पहले ही आपूर्ति से आगे बढ़ चुकी है। उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त विशेषकर तटीय क्षेत्रों में पानी के विलवणीकरण और शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में खारे पानी की समस्या, नदियों को जोड़कर अधिक जल के क्षेत्रों से कम जल के क्षेत्रों में जल स्थानान्तरित करके भारत में जल समस्या को सुलझाने का महत्त्वपूर्ण उपाय है। फिर भी, वैयक्तिक उपभोक्ता, घरेलू और समुदायों के दृष्टिकोण से, सबसे बड़ी समस्या जल का मूल्य है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव बस्तियाँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव बस्तियाँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव बस्तियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. बस्तियों में लोगों के समूहन का आधार क्या है ?
(A) पोषण आधार
(B) जल आधार
(C) औद्योगिक आधार
(D) कृषि आधार।
उत्तर:
(A) पोषण आधार

2. ग्रामों में कौन-सी क्रिया प्रमुख होती है ?
(A) प्राथमिक
(C) तृतीयक
(B) द्वितीयक
(D) चतुर्थक
उत्तर:
(A) प्राथमिक

3. जलोढ़ मैदानों में किस प्रकार की बस्तियां मिलती हैं ?
(A) गुच्छित
(B) अर्द्ध-गुच्छित
(C) पल्लीकृत
(D) परिक्षिप्त
उत्तर:
(A) गुच्छित

4. गुजरात के मैदान तथा राजस्थान में किस प्रकार की बस्तियां मिलती हैं ?
(A) गुच्छित
(B) अर्द्ध-गुच्छित
(C) पल्लीकृत
(D) परिक्षिप्त।
उत्तर:
(B) अर्द्ध-गुच्छित

5. हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो नगर किस घाटी में स्थित थे ?
(A) गंगा
(B) नर्मदा
(C) सिन्धु
(D) ब्रह्मपुत्र
उत्तर:
(C) सिन्धु

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव बस्तियाँ

6. भारत में सर्वाधिक प्राचीन नगर है –
(A) हैदराबाद
(B) वाराणसी
(C) आगरा
(D) चेन्नई।
उत्तर:
(B) वाराणसी

7. कौन-सा नगर मध्यकालीन नगर है ?
(A) पाटलिपुत्र
(B) दिल्ली
(C) मुम्बई
(D) चण्डीगढ़
उत्तर:
(B) दिल्ली

8. कौन – सा नगर एक प्रशासनिक नगर है ?
(A) वाराणसी
(B) सूरत
(C) गांधी नगर
(D) रोहतक
उत्तर:
(C) गांधी नगर

9. भारत में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत है
(A) 18
(B) 20
(C) 25
(D) 28.
उत्तर:
(D) 28.

10. 20वीं शताब्दी में भारत में नगरीय जनसंख्या कितने गुणा बढ़ी है ?
(A) 5
(B) 7
(C) 11
(D) 15.
उत्तर:
(C) 11

11. मेगा नगर की जनसंख्या कितनी जनसंख्या से अधिक होती है ?
(A) 1 लाख
(B) 5 लाख
(C) 10 लाख
(D) 50 लाख
उत्तर:
(D) 50 लाख

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12. भारत में नगरों की संख्या है
(A) 4161
(B) 5161
(C) 6161
(D) 7161
उत्तर:
(B) 5161

13. भारत में एक लाख से अधिक जनसंख्या के नगर हैं
(A) 223
(B) 323
(C) 423
(D) 523
उत्तर:
(C) 423

14. भारत में दस लाख से अधिक जनसंख्या के नगर हैं
(A) 25
(B) 30
(C) 53
(D) 40
उत्तर:
(C) 53

15. मसूरी किस श्रेणी का नगर है ?
(A) शैक्षिक
(B) खनन
(C) पर्यटन
(D) औद्योगिक
उत्तर:
(C) पर्यटन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बस्ती किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विभिन्न आकार के घरों के समूह को बस्ती कहते हैं।

प्रश्न 2.
बस्ती की मूल प्रक्रिया क्या है ?
उत्तर:
लोगों का समूहन तथा संसाधनों का आधार

प्रश्न 3.
ग्रामीण बस्तियों की मुख्य क्रिया बताओ
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाएं

प्रश्न 4.
ग्रामीण व नगरीय बस्तियों में प्रकार्यात्मक सम्बन्ध का माध्यम बताओ।
उत्तर:
परिवहन – संचार

प्रश्न 5.
उत्तरी मैदान में किस प्रकार की बस्तियां मिलती हैं ?
उत्तर:
संहत

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प्रश्न 6.
भारत में किन प्रदेशों में संहत बस्तियां मिलती हैं ?
उत्तर:
उत्तर पूर्वी राज्य, बुन्देलखण्ड, नागालैण्ड, राजस्थान।

प्रश्न 7.
अर्द्ध-गुच्छित बस्तियां किन प्रदेशों में मिलती हैं ?
उत्तर:
गुजरात व राजस्थान।

प्रश्न 8.
पल्ली बस्तियों के स्थानिक नाम बताओ
उत्तर:
पान्ना, पाढ़ा, पाली, नगला, ढाँणी।

प्रश्न 9.
पल्ली बस्तियां किन प्रदेशों में मिलती हैं ?
उत्तर:
मध्य व निम्न गंगा मैदान, छत्तीसगढ़, हिमालय की निचली घाटियां।

प्रश्न 10.
परिक्षिप्त बस्तियों के प्रदेश बताओ
उत्तर:
मेघालय, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, केरल

प्रश्न 11.
भारत में नगरों का उदय कब हुआ ?
उत्तर:
प्रागैतिहासिक काल के सिन्धु घाटी सभ्यता में मोहनजोदड़ो का हड़प्पा नगर ।

प्रश्न 12.
भारत का सर्वाधिक प्राचीन नगर बताओ।
उत्तर:
वाराणसी।

प्रश्न 13.
भारत के तीन प्रमुख नोड नगर बताओ।
उत्तर:
मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता।

प्रश्न 14.
दिल्ली के निकट तीन अनुषंगी नगर बताओ।
उत्तर:
गाज़ियाबाद, रोहतक, गुड़गांव

प्रश्न 15.
भारत में छ: मैगा नगर बताओ
उत्तर:
मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, बंगलौर, हैदराबाद

प्रश्न 16.
भारत में प्रथम श्रेणी के नगरों की संख्या का आकार क्या है ?
उत्तर:
1,00,000 जनसंख्या तथा इससे अधिक ।

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प्रश्न 17.
प्रदेश के सबसे बड़े महानगर का नाम बताइए। 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या लिखिए
उत्तर:
उत्तर प्रदेश में कानपुर सबसे बड़ा महानगर है जिसकी जनसंख्या 2.69 मिलियन है।

प्रश्न 18.
भारत के किन्हीं तीन राज्यों के नाम बताइए, जिनमें से प्रत्येक में एक महानगर है। उन महानगरों के नाम भी लिखिए
उत्तर:
कर्नाटक – बंगलौर, राजस्थान – जयपुर, केरल – कोच्चि।

प्रश्न 19.
मध्य प्रदेश के सबसे बड़े महानगर का नाम बताइए। 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या कितनी थी ?
उत्तर:
इन्दौर मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा महानगर है। 2001 की जनसंख्या के अनुसार इसकी जनसंख्या 16.3 मिलियन है

प्रश्न 20.
भारतीय नगरों को तीन विभिन्न युगों में हुए उनके विकास के आधार पर वर्गीकृत कीजिए प्रत्येक युग से सम्बन्धित एक नगर का नाम बताइए।
उत्तर:
नगर इतिहासवेत्ता भारतीय नगरों को निम्नलिखित वर्गों में बांटते हैं –

  1. प्राचीन नगर : पाटलीपुत्र|
  2. मध्यकालीन नगर : आगरा।
  3. आधुनिक नगर : चण्डीगढ़।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नगर आर्थिक वृद्धि के नोड (Node) के रूप में कार्य करते हैं । व्याख्या करो ।
उत्तर:
नगर आर्थिक वृद्धि के नोड (node) के रूप में कार्य करते हैं और न केवल नगर निवासियों को बल्कि अपने पश्च भूमि की ग्रामीण बस्तियों को भी भोजन और कच्चे माल के बदले वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। नगरीय और ग्रामीण बस्तियों के बीच प्रकार्यात्मक सम्बन्ध परिवहन और संचार परिपथ के माध्यम से स्थापित होता है

प्रश्न 2.
ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में सामाजिक सम्बन्धों में अन्तर बताओ।
उत्तर:
ग्रामीण और नगयरीय बस्तियां सामाजिक सम्बन्धी अभिवृत्ति और दृष्टिकोण की दृष्टि से भी भिन्न होती हैं। ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं और इसलिए उनमें सामाजिक सम्बन्ध घनिष्ठ होते हैं। दूसरी ओर नगरीय क्षेत्रों में जीवन का ढंग जटिल और तीव्र होता है और सामाजिक सम्बन्ध औपचारिक होते हैं ।

प्रश्न 3.
ग्रामीण बस्तियों की स्थिति किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:
ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के अनेक कारक और दशाएं उत्तरदायी हैं । इनके अन्तर्गत भौतिक लक्षण – भू-भाग की प्रकृति, ऊंचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता, सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक सामाजिक संरचना, जाति और धर्म, सुरक्षा सम्बन्धी कारक – चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं ।

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प्रश्न 4.
ग्रामीण बस्तियों के मुख्य प्रकार बताओ ।
अथवा
भारत की ग्रामीण बस्तियों के चार मुख्य प्रकार लिखिए।
उत्तर:
बृहत् तौर पर भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है –

  • गुच्छित / संकुलित/आकेन्द्रित/समूहित/केन्द्रीय
  • अर्द्ध-गुच्छित अथवा विखण्डित
  • पल्लीकृत और
  • परिक्षिप्त अथवा एकाकी।

प्रश्न 5.
गुच्छित बस्तियों के विभिन्न आकार बताओ।
उत्तर:
संकुलित निर्मित क्षेत्र और इसकी मध्यवर्ती गलियां कुछ जाने-पहचाने प्रारूप अथवा ज्यामितीय आकृतियां प्रस्तुत करते हैं जैसे कि आयताकार, अरीय, रैखिक इत्यादि।

प्रश्न 6.
अर्द्ध-गुच्छित बस्तियों के बाहरी भाग में निम्न वर्ग के लोग क्यों रहते हैं ?
उत्तर:
गांव के केन्द्रीय भाग में शक्तिशाली ज़मींदार निवास करते हैं, निम्न कार्य करने वाले निम्न वर्ग के लोग बस्ती के बाहरी भाग में रहते हैं। इस प्रकार बस्ती का सामाजिक व जातीय विखण्डन होता है।

प्रश्न 7.
परिक्षिप्त बस्तियों का विकास क्यों होता है ?
उत्तर:
भारत में परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्ती प्रारूप सुदूर जंगलों में एकाकी झोंपड़ियों अथवा कुछ झोंपड़ियों की पल्ली अथवा छोटी पहाड़ियों की ढालों पर खेतों अथवा चरागाहों के रूप में दिखाई पड़ता है। बस्ती का चरम विक्षेपण प्रायः भू-भाग और निवास योग्य क्षेत्रों में भूमि संसाधन आधार की अत्यधिक विखण्डित प्रकृति के कारण होता है । मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल के अनेक भागों में बस्ती का यह प्रकार पाया जाता है।

प्रश्न 8.
मानव बस्ती का क्या अर्थ है ? इसका क्या आधार है ?
उत्तर:
मानव बस्ती का अर्थ है किसी भी प्रकार और आकार के घरों का समूह जिनमें मनुष्य रहते हैं। इस उद्देश्य के लिए लोग मकानों और अन्य इमारतों का निर्माण करते हैं और अपने आर्थिक पोषण – आधार के लिए कुछ क्षेत्र पर स्वामित्व रखते हैं। अतः बस्ती की प्रक्रिया में मूल रूप से लोगों के समूहन और उनके संसाधन आधार के रूप में क्षेत्र का आवंटन सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 9.
ग्रामीण बस्तियों तथा नगरीय बस्तियों में आधारभूत अन्तर क्या हैं ?
उत्तर:
ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में आधारभूत अन्तर निम्नलिखित हैं ग्रामीण बस्तियां अपने जीवन का पोषण अथवा आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति भूमि आधारित प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से करती हैं जबकि नगरीय बस्तियां एक ओर कच्चे माल के प्रक्रमण और तैयार माल के विनिर्माण तथा दूसरी ओर विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर करती हैं।

प्रश्न 10.
एक नगरीय संकुल का विकास कैसे होता है ?
उत्तर:
नगरीय संकुल हैं। एक नगरीय संकुल में निम्नलिखित तीन संयोजकों में से किसी एक का समावेश होता है – (क) एक नगर व उसका संलग्न नगरीय बहिर्बद्ध, (ख) बहिर्बुद्ध के सहित अथवा रहित दो अथवा अधिक संस्पर्शी नगर और (ग) एक अथवा अधिक संलग्न नगरों के बहिर्बुद्ध से युक्त एक संस्पर्शी प्रसार नगर का निर्माण । नगरीय बहिबद्ध के उदाहरण गांव अथवा शहर या नगर से संलग्न गांव की राजस्व सीमा में अवस्थित रेलवे कॉलोनियां, विश्वविद्यालय परिसर, पत्तन क्षेत्र, सैनिक छावनी इत्यादि हैं।

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प्रश्न 11.
बस्ती के विकास की प्रक्रिया बताओ।
उत्तर:
बस्ती – किसी स्थान या क्षेत्र में रहने के लिए एकत्र होने की प्रक्रिया को बस्ती कहते हैं। इस उद्देश्य के लिए कई कार्य करने होते हैं ।

  1. मकान या ढांचे खड़े किए जाते हैं।
  2. किसी क्षेत्र पर अपने आर्थिक भरण पोषण के लिए अधिकार किया जाता है।
  3. इस क्षेत्र में लोग समूह में रहते हैं। इस प्रकार किसी बस्ती का विकास होता है।

प्रश्न 12.
‘नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में पारस्परिक विनिमय प्रक्रिया होती है स्पष्ट करो।
उत्तर:
नगर वस्तुएं तथा सेवाएं पैदा करते हैं। वे इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों को भी प्रदान करते हैं। इसके बदले में नगर गांवों से कच्चा माल और खाद्य पदार्थ प्राप्त करते हैं। इस प्रकार संचार व परिवहन साधनों द्वारा यह पारस्परिक विनिमय की प्रक्रिया होती है।

प्रश्न 13.
‘ग्रामीण और नगरीय बस्तियों की जीवन शैली, व्यवहार तथा दृष्टिकोण में अंतर होता है स्पष्ट करो।
उत्तर:
ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं। इनमें सामाजिक सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ होते हैं। ये अपने काम धन्धे साधारण तकनीकों के द्वारा पूरा करते हैं। इनके जीवन की गति धीमी होती है। नगरीय क्षेत्रों में लोगों का जीवन जटिल व तेज होता है । सामाजिक सम्बन्ध औपचारिक और दिखावटी होते हैं। इनकी पारिस्थितिकी तथा प्रौद्योगिकी ग्रामीण क्षेत्रों से उन्नत होती है।

प्रश्न 14.
भारत में स्थित किन्हीं तीन वर्ग के नगरों की मुख्य विशेषताएं बताओ जो कि प्रकार्यत्मक आधार पर है।
उत्तर:
भारत में नगर अपने कार्यों के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटे जाते हैं –
प्रशासनिक नगर – इस नगर में राज्यों की राजधानियां शामिल होती हैं। यहां सरकारी दफ्तर, कचहरी तथा कई शहरों के मुख्य कार्यालय स्थित होते हैं। इसके उदाहरण दिल्ली, चण्डीगढ़ हैं।
प्रतिरक्षा नगर – इन नगरों में स्थल सेना, नौसेना तथा वायु सेना के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। यहां सैनिकों के लिए सड़कें बनाई जाती हैं। यहां सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है जैसे जोधपुर, जम्मू।
खनन केन्द्र – ये नगर खनिजों की प्राप्ति के पश्चात् बस जाते हैं। जैसे – कोयला क्षेत्र – रानीगंज आदि।

प्रश्न 15.
‘ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में आप कौन मूल्यों के आधार पर अंतर स्पष्ट कर सकते हो ? जीवन-शैली, व्यवहार तथा दृष्टिकोण के आधार पर इन दोनों में अंतर किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर:
जीवन – शैली, व्यवहार तथा दृष्टिकोण के आधार पर इन दोनों में अंतर किए जा सकते हैं ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं। इनमें सामाजिक सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ होते हैं। ये अपने काम-धन्धे साधारण तकनीकों के द्वारा पूरा करते हैं। इनके जीवन की गति धीमी होती है। नगरीय क्षेत्रों में लोगों का जीवन जटिल व तेज़ होता है। सामाजिक सम्बन्ध औपचारिक और दिखावटी होते हैं। इनकी पारिस्थितिकी तथा प्रौद्योगिकी ग्रामीण क्षेत्रों से उन्नत होती है।

प्रश्न 16.
बस्तियाँ आकार और प्रकार में भिन्न होती हैं। उनका परिसर एक पल्ली से लेकर महानगर तक होता है। आकार के साथ बस्तियों के अभिलक्षण और सामाजिक संरचना बदल जाती है और साथ ही बदल जाते हैं पारिस्थितिकी और प्रौद्योगिकी। बस्तियाँ छोटी और विरल रूप से लेकर बड़ी और संकुचित अवस्थित हो सकती हैं।
उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ो और निम्नलिखित के उत्तर दो –
(क) बस्तियों के दो प्रकार बताओ।
उत्तर:
ग्रामीण तथा नगरीय।

(ख) ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का मुख्य व्यवसाय बताओ।
उत्तर:
प्राथमिक क्रिया।

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(ग) ग्रामीण बस्तियों तथा नगरीय बस्तियों में आधारभूत अन्तर क्या हैं ?
उत्तर:
ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में आधारभूत अन्तर निम्नलिखित हैं –
ग्रामीण बस्तियां अपने जीवन का पोषण अथवा आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति भूमि आधारित प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से करती हैं जबकि नगरीय बस्तियां एक ओर कच्चे माल के प्रक्रमण और तैयार माल के विनिर्माण तथा दूसरी ओर विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर करती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘बस्तियां आकार और प्रकार में भिन्न होती हैं।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
बस्तियां आकार और प्रकार में भिन्न होती हैं। उनका परिसर एक पल्ली से लेकर महानगर तक होता है। आकार के साथ बस्तियों के आर्थिक अभिलक्षण और सामाजिक संरचना बदल जाती है और साथ ही बदल जाते हैं पारिस्थितिकी और प्रौद्योगिकी। बस्तियां छोटी और विरल रूप से लेकर बड़ी और संकुलित अवस्थित हो सकती हैं विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियां, जो कृषि अथवा अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं, गांव कहलाती हैं । दूसरी ओर कम, किन्तु बड़े अधिवास द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों में विशेषीकृत होते हैं जो इन्हें नगरीय बस्तियां कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारतीय नगरों की प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय नगर प्रमुख विशेषताएं – भारतीय नगरों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं
(1) अधिकतर कस्बे और नगर बड़े गांव के विस्तृत रूप हैं। इनकी गलियों में गांव का स्वरूप स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
(2) अपनी आदतों और व्यवहार में लोग अधिक ग्रामीण हैं जो उनके सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण, मकानों की बनावट और अन्य पक्षों में स्पष्ट दिखाई देता है ।
(3) अधिकतर नगरों में अनेक मलिन बस्तियां हैं। ये प्रवास के प्रतिकर्ष कारकों का परिणाम हैं। इसमें आर्थिक अवसरों का योगदान कम है।
(4) अनेक नगरों में पूर्व शासकों और प्राचीन प्रकार्यों के चिह्न स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।
(5) प्रकार्यात्मक पृथक्करण स्पष्ट तथा प्रारम्भिक है। भारतीय नगरों की पश्चिमी देशों के नगरों के साथ इस संदर्भ में कोई तुलना नहीं की जा सकती।
(6) जनसंख्या का सामाजिक पृथक्करण, जाति, धर्म, आय अथवा व्यवसाय के आधार पर किया जाता

प्रश्न 3.
जनसंख्या के आधार पर भारत के नगरों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
जनसंख्या के आधार पर कस्बों और नगरों के वर्ग- भारत के जनगणना विभाग ने नगरीय केन्द्रों को 6 वर्गों में विभाजित किया है। एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरीय केन्द्र को नगर तथा एक लाख से कम जनसंख्या वाले नगर को कस्बा कहा जाता है। 10 से 50 लाख तक की जनसंख्या वाले नगरों को महानगर तथा 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों को बृहत् नगर कहते हैं। अधिकतर महानगर और बृहत् नगर नगरीय संकुल हैं।

यह स्पष्ट है कि अधिकतर नगरीय जनसंख्या 423 नगरों में रहती है, जो कुल नगरों का मात्र 8.2 प्रतिशत है। इन नगरों में देश की कुल नगरीय जनसंख्या का 61.48 प्रतिशत भाग रहता है। 423 नगरों में से 35 महानगर या नगरीय संकुल हैं, जिनमें से प्रत्येक की जनसंख्या 10 लाख से अधिक है, इसीलिए इन्हें महानगर कहते हैं। इनमें से छः (मैगा ) बृहत् नगर हैं, जिनमें से प्रत्येक की जनसंख्या 50 लाख से अधिक है। इन बृहत् नगरों में कुल नगरीय जनसंख्या के पांचवें भाग से अधिक ( 21.0 प्रतिशत) लोग रहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में पाई जाने वाली ग्रामीण बस्तियों के प्रकार का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में कई प्रकार की ग्रामीण बस्तियां पाई जाती हैं। इनके आकार, आकृति तथा अभिन्यास में स्पष्ट भिन्नता मिलती है। मोटे तौर पर भारत में तीन प्रकार की ग्रामीण बस्तियां पाई जाती हैं –
1. केन्द्रीकृत बस्तियां ( गुच्छित बस्तियां ) – इन बस्तियों में संहत खण्ड पाए जाते हैं। घरों को दो कतारों की संकरी, तंग गलियां पृथक् करती हैं । इनका अभिन्यास प्रायः रैखिक, आयताकार तथा ‘L’ आकृति वाला होता है। घर पास-पास बने होते हैं। ये बस्तियां उपजाऊ मैदानों, शिवालिक घाटी तथा उत्तर पूर्वी राज्यों में मिलती हैं। ये बस्तियां राजस्थान, बुन्देल खण्ड, नागालैंड में पाई जाती हैं।

2. अर्द्ध – गुच्छित बस्तियां – इन बस्तियों में एक केन्द्र के चारों ओर छोटे आवास मुद्रिका के रूप में बिखरे होते हैं । प्रायः किसी बड़े संहत गांव के विखंडन के परिणामस्वरूप ये बस्तियां बनती हैं । प्रायः भू-स्वामी तथा प्रभावशाली लोग गांव के केन्द्रीय भाग में रहते हैं, जबकि समाज के निम्न वर्ग के लोग गांव के बाहरी भाग में रहते हैं। गुजरात के मैदान में ऐसी बस्तियां व्यापक रूप से पाई जाती हैं।

3. पुरवे वाली बस्तियां – कभी – कभी बस्ती एक-दूसरे से अलग इकाइयों के रूप में होती है तथा स्पष्ट दूरी पर होती है । देश के विभिन्न क्षेत्रों में इन्हें पल्ली, नंगला या ढाणी आदि स्थानीय नामों से जाना जाता है। गंगा के मध्यवर्ती और निचले मैदान, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटियों में प्रायः ऐसे गांव पाए जाते हैं । ये बस्तियां वनों में झोंपड़ियों के समूह के रूप में मिलती हैं। ऐसी बस्तियां छोटी पहाड़ी पर खेत या चरागाहों के निकट मिलती हैं । ये बस्तियां मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

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4. परिक्षिप्त बस्तियां – ये छोटे-छोटे हैमलेट आकार के बड़े क्षेत्र पर दूर-दूर बिखरे होते हैं। इन बस्तियों में केवल कुछ घर ही होते हैं । ये बस्तियां वनों में झोंपड़ियों के समूह के रूप में मिलती हैं। ऐसी बस्तियां छोटी पहाड़ी पर खेत या चरागाहों के निकट मिलती हैं । ये बस्तियां मेघालय, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 2.
ग्रामीण बस्तियों के प्रकार को निर्धारित करने वाले कारकों की विवेचना करो।
उत्तर:
भारत में ग्रामीण बस्तियों के आकार, आकृति, प्रकार आदि में स्पष्ट विभिन्नता दिखाई देती है। ग्रामीण बस्तियों के प्रकार निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करते हैं –
1. भौतिक कारक – बस्तियों के प्रकार प्रायः भौतिक कारकों द्वारा निर्धारित होते हैं। उच्चावच, ऊंचाई, अपवाह तन्त्र, भौम जल-स्तर तथा जलवायु एवं मृदा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शुष्क प्रदेशों में पानी की कमी के कारण प्रायः मकान तालाबों के चारों ओर बनाए जाते हैं। बस्तियां प्रायः संहित प्रकार की होती हैं।

2. सांस्कृतिक कारक – इनमें जन- जातीयता, सम्प्रदाय, जाति वर्ग बस्तियों के अभिन्यास पर प्रभाव डालते हैं। प्रायः गांव के मध्य में भू-स्वामियों के मकान होते हैं। इसके चारों ओर नौकरी – चाकरी करने वाली जातियों के मकान होते हैं। हरिजनों के मकान गांव की सीमा पार मुख्य बस्ती से दूर स्थित होते हैं। इस प्रकार का गांव कई सामाजिक इकाइयों में खण्डित हो जाता है।

3. ऐतिहासिक कारक – उत्तरी भारत के मैदानों में बाहरी आक्रमण होते रहे हैं। इन आक्रमणों से बचने के लिए प्रायः संहित बस्तियां पाई जाती हैं । लुटेरों से सुरक्षा पाने के लिए भी संहित बस्तियां बसाई जाती थीं।

प्रश्न 3.
नगर से क्या अभिप्राय है ? नगर इतिहास वेत्ताओं के अनुसार नगरों का वर्गीकरण तथा विकास बताओ।
उत्तर:
नगरों की परिभाषा – विभिन्न देशों में नगरों को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया जाता है। भारत में 2001 की जनगणना में दो प्रकार के नगरों की पहचान की है –
संवैधानिक नगर – वे सभी स्थान, जिनमें नगरपालिका या नगर निगम या केंटूनमैंट बोर्ड या नौटीफाइड टाऊन एरिया कमेटी हैं।
जनगणना नगर – वे सभी स्थान जो निम्नलिखित कसौटियों पर खरे उतरते हैं

  1. जिनकी जनसंख्या कम से कम 5000 हो,
  2. जिनकी 75 प्रतिशत कार्यशील पुरुष जनसंख्या ग़ैर कृषि कार्यों में लगी हो, और
  3. जिनकी जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० हो।

भारत में नगरों का विकास – भारत में प्रागैतिहासिक काल में नगर फलते-फूलते रहे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के समय भी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगरों का अस्तित्व था। 600 ईसा पूर्व नगरीकरण का दूसरा दौर प्रारम्भ हुआ। यह सिलसिला 18वीं शताब्दी में यूरोपवासियों के आने तक थोड़े उतार-चढ़ाव के साथ निरन्तर चलता रहा। नगर इतिहासवेत्ता भारतीय नगरों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत करते हैं –
(1) प्राचीन नगर
(2) मध्यकालीन नगर और
(3) आधुनिक नगर।

1. प्राचीन नगर – लगभग 45 नगरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। इनका अस्तित्व 2000 वर्षों से भी अधिक समय से है। इनमें से अधिकतर का विकास धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्रों के रूप में हुआ था। वाराणसी इनमें से एक महत्त्वपूर्ण नगर है। अयोध्या, प्रयाग (इलाहाबाद), पाटलिपुत्र (पटना), मथुरा और मदुरै कुछ प्राचीन नगरों के अन्य उदाहरण हैं।

2. मध्यकालीन नगर – लगभग 101 वर्तमान नगरों का विकास मध्य काल में हुआ, इनमें से अधिकतर नगर रियासतों और राज्यों के मुख्यालयों या राजधानियों के रूप में विकसित हुए। इनमें से अधिकतर दुर्गनगर हैं जो पहले से विद्यमान नगरों के खंडहरों से उभरे हैं। इनमें कुछ प्रसिद्ध नगर हैं – दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ, आगरा और नागपुर।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव बस्तियाँ

3. आधुनिक नगर – अंग्रेज़ों और अन्य यूरोपवासियों ने नगरीय परिदृश्य को बदल दिया। बाहरी शक्ति के रूप में इन्होंने पहले-पहल तटीय स्थानों पर अपने पैर जमाए थे। इन्होंने सबसे पहले कुछ व्यापारिक पत्तनों जैसे- सूरत, दमन, गोवा, पांडिचेरी आदि का विकास किया। बाद में अंग्रेज़ों ने तीन प्रमुख केन्द्रों – मुंबई (बम्बई), चेन्नई (मद्रास) और कोलकाता (कलकत्ता) से अपनी सत्ता को मज़बूत किया। उन्होंने इन नगरों का निर्माण अंग्रेज़ी स्थापत्य कला के अनुसार किया था। अंग्रेज़ों ने प्रत्यक्ष रूप से या बाह्य रूप से नियन्त्रण द्वारा देशी रियासतों पर अपना आधिपत्य बड़ी तेज़ी से स्थापित किया।

इसी दौरान उन्होंने प्रशासनिक केन्द्रों, पर्यटन स्थलों के रूप में पर्वतीय नगरों का विकास किया तथा पहले से विद्यमान नगरों में सिविल लाइंस, प्रशासनिक और छावनी क्षेत्र जोड़ दिए। भारत में आधुनिक उद्योगों पर आधारित नगरों का विकास भी 1850 के बाद ही हुआ । इस संदर्भ में जमशेदपुर का उल्लेख उदाहरण के रूप में किया जा सकता है। स्वतन्त्रता के बाद प्रशासनिक मुख्यालयों और औद्योगिक केन्द्रों के रूप में अनेक नगरों का उदय हुआ।

चण्डीगढ़, भुवनेश्वर, गांधीनगर, दिसपुर आदि प्रशासनिक मुख्यालय तथा दुर्गापुर, भिलाई, सिन्दरी, बरौनी, आदि औद्योगिक केन्द्रों के उदाहरण हैं। कुछ प्राचीन नगरों का महानगरों के चारों ओर उपनगरों के रूप में भी विकास हुआ है। दिल्ली के चारों ओर विकसित गाज़ियाबाद, नोएडा, रोहतक, गुड़गांव आदि ऐसे ही उपनगर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में विनिवेश के बढ़ने के साथ ही सारे देश में काफ़ी बड़ी संख्या में मध्यम और छोटे कस्बों का विकास हुआ है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 4 मानव बस्तियाँ - 1

स्मरणीय तथ्य (Points to Remember)
तालिका : भारत – वर्गानुसार शहरों और नगरों की संख्या एवं उनकी जनसंख्या, 2011

नगरीय संकुल / नगरों का नाम जनसंख्या (दस लाख में)
बृहत् मुंबई 18.41
दिल्ली 16.31
कोलकाता 14.11
चेन्नई 8.69
बंगलौर 8.49
हैदराबाद 7.74
अहमदाबाद 6.85
पुणे 5.04
सूरत 4.58
जयपुर 3.07
कानपुर 2.92
लखनऊ 2.90
पटना 2.49
गाजियाबाद 2.30
इंदौर 2.10
कोयंबटूर 2.15
कोच्चि 2.11
नागपुर 2.04
कोजीकोड 2.03
भोपाल 1.98
थ्रिस्सूर 1.95
वडोदरा 1.81
आगरा 1.74
विशाखापट्नम 1.73
मालापुरुम 1.61
तिरुवनंतपुरम 1.68
कन्नौज 1.64
लुधियाना 1.64
नासिक 1.56
विजयवाड़ा 1.44
मदुरई 1.43
वाराणसी 1.43
मेरठ 1.42
फरीदाबाद 1.40
राजकोट 1.39
जमशेदपुर 1.33
श्रीनगर 1.27
जबलपुर 1.26
आसनसोल 1.24
बसाई 1.22
इलाहाबाद 1.21
धनबाद 1.19
औरंगाबाद 1.15
अमृतसर 1.18
जोधपुर 1.13
रांची 1.12
रायपुर 1.12
कोल्लम 1.11
ग्वालियर 1.10
दुर्ग 1.06
चण्डीगढ़ 1.02
तिरुचिरापल्ली 1.02
कोटा 1.01

 

मानचित्र कौशल (Map Skill)

प्रश्न- भारत के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित दिखाओ।
उत्तर:
(1) सर्वाधिक ग्रामीण जनसंख्या प्रतिशत वाला राज्य – (हिमाचल प्रदेश)
(2) सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या प्रतिशत वाला राज्य। – (गोवा)
(3) भारत का सर्वाधिक प्राचीन नगर। – (वाराणसी)
(4) दिल्ली के गिर्द एक अनुषंगी नगर। – (गाज़ियाबाद)
(5) राज्य जहां सर्वाधिक मिलियन नगर हैं। – (उत्तर प्रदेश)
(6) भारत का सबसे बड़ा महानगर। – (मुम्बई)
(7) दक्षिणी भारत में तीन बृहत् संकुल। – (बंगलौर, हैदराबाद, चेन्नई)
(8) पूर्वी भारत में एक करोड़ से अधिक जनसंख्या वाला नगर। – (कोलकाता)
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JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

बह-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
(A) होल्मस
(B) वैगनर
(C) टेलर
(D) काण्ट।
उत्तर:
(B) वैगनर।

2. आरम्भ में सभी स्थल खण्ड एक बड़े भू-भाग के रूप में जुड़े थे जिसे कहते हैं
(A) गोंडवाना लैंड
(B) लारेशिया
(C) पेंजिया
(D) पेन्थालासा।
उत्तर:
(C) पेंजिया।

3. प्रशान्त महासागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित प्लेट को कहते हैं
(A) कोकोस प्लेट
(B) नाज़का प्लेट
(C) भारतीय प्लेट
(D) फिलीपाइन प्लेट।
उत्तर:
(B) नाज़का प्लेट।

4. वेगनर ने विस्थापन सिद्धान्त कब प्रस्तुत किया?
(A) 1911
(B) 1912
(C) 1913
(D) 1914
उत्तर:
(B) 1912

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5. गोंडवाना लैंड पेंजिया से कब अलग हुआ?
(A) 4.5 करोड़ वर्ष पूर्व
(B) 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व।
(C) 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व
(D) 7.5 करोड़ वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(B) 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व।

6. कौन-सा महाद्वीप गोंडवाना लैंड का भाग नहीं था?
(A) अफ्रीका
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) अंटार्कटिका
(D) एशिया।
उत्तर:
(D) एशिया।

7. जलोढ़ में स्वर्ण निक्षेप कहां मिले हैं?
(A) घाना तट
(B) ऑस्ट्रेलिया तट
(C) चिल्ली तट
(D) गियाना तट।
उत्तर:
(A) घाना तट।

8. मध्यवर्ती महासागरीय कटक किस महासागर में है?
(A) हिन्द महासागर
(B) प्रशान्त महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) अन्ध महासागर।
उत्तर:
(D) अन्ध महासागर।

9. किस स्तर पर भू-प्लेटें विपरीत दिशा में खिसकती हैं?
(A) अभिसरण क्षेत्र
(B) अपसरण क्षेत्र
(C) रूपान्तर क्षेत्र
(D) ज्वालामुखी क्षेत्र।
उत्तर:
(C) रूपान्तर क्षेत्र।

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10. संवहन धाराओं की संकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) वेगनर
(B) होम्स
(C) टेलर
(D) ट्रिवार्था।
उत्तर:
(B) होम्स।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
किसने और कब महाद्वीपीय संचलन सिद्धान्त प्रस्तुत किया?
उत्तर:
अल्फ्रेड वैगनर ने 1912 ई० में।

प्रश्न 2.
मूल महाद्वीप का क्या नाम था? यह कब बना?
उत्तर:
पेंजिया-काल्पनिक कल्प में 280 मिलियन वर्ष पूर्व।

प्रश्न 3.
पेंजिया से पृथक् होने वाले उत्तरी महाद्वीप का नाम लिखो।
उत्तर:
लारेशिया।

प्रश्न 4.
पेंजिया से पृथक् होने वाले दक्षिणी महाद्वीप का नाम लिखो।
उत्तर:
गोंडवानालैंड।

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प्रश्न 5.
गोंडवानालैंड में शामिल भू-खण्डों के नाम लिखो।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका।

प्रश्न 6.
अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका में स्वर्ण निक्षेप कहां पाये जाते हैं?
उत्तर:
घाना तथा ब्राज़ील में।

प्रश्न 7.
ध्रुवों के घूमने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न युगों में ध्रुवों की स्थिति का बदलना।

प्रश्न 8.
समुद्र के अधस्तल के विस्तारण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
महासागरीय द्रोणी का फैलना तथा चौड़ा होना।

प्रश्न 9.
प्लेटों के संचलन का क्या कारण है?
उत्तर:
तापीय संवहन क्रिया।

प्रश्न 10.
संवहन क्रिया सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1928 में आर्थर होम्स ने।

प्रश्न 11.
स्थलमण्डल पर कुल कितनी प्लेटें हैं?
उत्तर:
7.

प्रश्न 12.
सबसे बड़ी भू-प्लेट कौन-सी है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागरीय प्लेट।

प्रश्न 13.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट का आपसी टकराव।

प्रश्न 14.
पेंजिया शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:
सम्पूर्ण पृथ्वी।

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प्रश्न 15.
पैंथालासा शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:
जल ही जल।

प्रश्न 16.
प्लेट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था?
उत्तर:
टूजो विल्सन।

प्रश्न 17.
प्लेटों में गति का क्या कारण है?
उत्तर:
प्लेटों में गति का कारण तापीय संवहन क्रिया है।

प्रश्न 18.
‘टेक्टोनिकोज’ किस भाषा का शब्द है? इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ निर्माण है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पेंजिया किसे कहते हैं? इसकी उत्पत्ति कब हुई? इसमें मिलने वाले भू-खण्ड बताओ। पेंजिया के टूटने की क्रिया बताओ।
उत्तर:
विश्व के सभी भू-खण्ड पेंजिया नामक एक महा-महाद्वीपीय से विलग होकर बने हैं, यह बात अल्फ्रेड वैगनर ने 1912 में कही। पेंजिया नामक यह महाद्वीप 28 करोड़ वर्ष पूर्व, कार्बनी कल्प के अन्त में अस्तित्व में आया। मध्य जुरैसिक कल्प तक यानि 15 करोड़ वर्ष पूर्व, पेंजिया उत्तरी महाद्वीप लॉरेशिया तथा दक्षिणी महाद्वीप गोंडवानालैंड में विभक्त हो गया था।

लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व अर्थात् क्रिटेशस कल्प के अन्त में गोंडवानालैंड फिर से खंडित हुआ और इससे कई अन्य महाद्वीपों जैसे दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका की रचना हुई। भारत इससे टूटकर स्वतंत्र रूप से एक अलग पथ पर उत्तर-पूर्व की ओर अग्रसर हुआ।

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प्रश्न 2.
Jig-saw-fit से क्या अभिप्राय है? अन्ध-महासागर के दोनों तटों पर मिलने वाली समानताएं बताओ। इससे क्या निष्कर्ष निकलता है?
उत्तर:
Jig-saw- fit का अर्थ है कि अन्ध महासागर का पूर्वी तथा पश्चिमी तट किसी समय एक साथ जुड़े हुए थे। इन तटों पर कई समानताएं हैं।

  1. गिन्नी की खाड़ी ब्राज़ील के तट के साथ जोड़ी जा सकती है। अफ्रीका का पश्चिमी भाग खाड़ी मैक्सिको में जोड़ा जा सकता है। पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका का पूर्वी तट तथा ग्रीनलैंड अफ्रीका जोड़े जा सकते हैं।
  2. पूर्वी तट पर घाना में तथा पश्चिमी तट पर ब्राज़ील में अमेरिका स्वर्ण निक्षेप पाये जाते हैं।
  3. गोंडवानालैंड के सभी भू-खण्डों में हिमानी निक्षेप मिलते हैं। इन समानताओं से निष्कर्ष निकलता है कि ये महाद्वीप किसी प्राचीन भू-वैज्ञानिक काल में इकट्ठे थे।

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प्रश्न 3.
ध्रुवों के घूमने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ध्रुवों का घूमना (Polar Wandering):
पहले महाद्वीप पेंजिया के रूप में परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, इसका सबसे शक्तिशाली प्रमाण पुरा चुम्बकत्व से प्राप्त हुआ है। मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसाद में उपस्थित चुम्बकीय प्रवृत्ति वाले खनिज जैसे मैग्नेटाइट, हेमेटाइट, इल्मेनाइट और पाइरोटाइट इसी प्रवृत्ति के कारण उस समय के चुंबकीय क्षेत्र के समानान्तर एकत्र हो गए। यह गुण शैलों में स्थाई चुम्बकत्व के रूप में रह जाता है।

चुम्बकीय ध्रुव की स्थिति में कालिक परिवर्तन होता रहा है, जो शैलों में स्थाई चुम्बकत्व के रूप में अभिलेखित किया जाता है। वैज्ञानिक विधियों द्वारा पुराने शैलों में हुए ऐसे परिवर्तनों को जाना जा सकता है, जिनसे भूवैज्ञानिक काल में ध्रुवों की बदलती हुई स्थिति की जानकारी होती है। इसे ही ध्रुवों का घूमना कहते हैं। धूवों का घूमना यह स्पष्ट करता है कि महाद्वीपों का समय-समय पर संचलन होता रहा है और वे अपनी गति की दिशा भी बदलते रहे हैं।

प्रश्न 4.
अपसरण क्षेत्र तथा अभिसरण क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अपसरण क्षेत्र-ये वे सीभाएं हैं जहां प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं। भूगर्भ से मैग्मा बाहर आता है। ये महासागरीय कटकों के साथ-साथ देखा जाता है। इन सीमाओं के साथ ज्वालामुखी तथा भूकम्प मिलते हैं। इसका उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है जहां से अमेरिकी प्लेटें तथा यूरेशियम व अफ्रीकी प्लेटें अलग होती हैं। अभिसरण क्षेत्र-ये वे सीमाएं हैं जहां एक प्लेट का किनारा दूसरे के ऊपर चढ़ जाता है। इनसे गहरी खाइयों तथा वलित श्रेणियों की रचना होती है।

ज्वालामुखी तथा गहरे भूकम्प उत्पन्न होते हैं। रूपांतर सीमा-जहां न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही विनाश होता है, उसे रूपांतर सीमा कहते हैं। इसका कारण है कि इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं। रूपांतर भ्रंश (Transform faults) दो प्लेट को अलग करने वाले तल हैं जो सामान्यतः मध्य-महासागरीय कटकों से लंबवत स्थिति में पाए जाते हैं।

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प्रश्न 5.
समुद्र अधस्तल के विस्तारण का क्या महाद्वीपीय अर्थ है ?
उत्तर:
मध्यवर्ती महासागरीय कटक महासागर के अधस्तल पर स्थित दरारें हैं। इनसे लावा बाहर निकलता है। पिघला हुआ पदार्थ एक नये धरातल की रचना करता है। यह अधस्तल कटक से दूर फैलता है। इस प्रकार महासागरीय द्रोणी चौड़ी हो जाती है। इसे समुद्र अधस्तल मैंटल विस्तारण कहते हैं।
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प्रश्न 6.
महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटों का वर्णन करो।
उत्तर:
कुछ महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटें निम्नलिखित हैं

  1. कोकोस (Cocoas) प्लेट: यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  2. नाजका प्लेट (Nazca plate): यह दक्षिण अमेरिका व प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  3. अरेबियन प्लेट (Arabian plate): इसमें अधिकतर साऊदी अरब का भू-भाग सम्मिलित है।
  4. फिलिपाइन प्लेट (Philippine plate): यह एशिया महाद्वीप और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  5. कैरोलिन प्लेट (Caroline plate): यह न्यू गिनी के उत्तर में फिलिपियन वे इंडियन प्लेट के बीच स्थित है।
  6. फ्यूजी प्लेट (Fuji plate): यह ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त और इसकी क्रियाविधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
प्लेट विवर्तन की अवधारणा का वर्णन करें।
उत्तर:
भूमण्डलीय प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त के अनुसार स्थलमण्डल मध्यम दृढ़ प्लेटों में विभक्त है। ये प्लेटें निरन्तर संचलन कर रही हैं और उनकी गति-दिशा सापेक्ष है। प्लेटों के सीमान्त (Plate Boundaries): प्लेटों की सापेक्ष संचलन के आधार पर तीन विभिन्न प्रकार की प्लेट-सीमाएं या सीमान्त क्षेत्रों की रचना होती है:

  1. अपसरण अथवा विस्तारण क्षेत्र या सीमान्त
  2. अभिसरण क्षेत्र या सीमान्त; तथा
  3. विभंग क्षेत्र अथवा रूपान्तर भ्रंश।

1. अपसरण क्षेत्र (Zones of Divergence):
वे सीमाएं हैं, जहां प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं और पृथक्करण की इस प्रक्रिया में भूगर्भ से मैग्मा बाहर आता है। सामान्यतः ऐसा रैखिक महासागरी कटकों के साथ-साथ देखा जाता है, जहां नए महासागरीय अधस्तल के रूप में नवीन स्थलमण्डल का निर्माण हो रहा है। ऐसे सीमान्तों की विशिष्टता सक्रिय ज्वालामुखी उद्भव तथा उथले उद्गम केन्द्रों वाले भूकम्प हैं।

2. अभिसरण क्षेत्र (Zones of Convergence):
वे सीमाएं हैं, जहां एक प्लेट का किनारा दूसरे के ऊपर चढ जाता है, जिससे नीचे की प्लेट मैंटल में फिसल कर इसी में विलीन हो जाती है। इस प्रक्रिया को प्रविष्ठन (Subduction) कहते हैं। इन सीमाओं पर ज्वालामुखी उद्भव तथा उथले से गहरे उद्गम केन्द्रों वाले भूकम्पों की उत्पत्ति के अतिरिक्त गहरी महासागरीय खाइयों, द्रोणियों तथा वलित पर्वत श्रेणियों की रचना होती है।

3. रूपांतर (Transform faults):
भ्रंश पर न तो भूपर्पटी का निर्माण होता है और न विनाश। यहां स्थलमण्डलीय प्लेटें एक-दूसरे के विपरीत दिशा में साथ-साथ खिसकती हैं।

प्लेट संचलन के कारण (Causes of Plate Movement)
1. तापीय संवहन:
आर्थर होम्स ने 1928 में यह बताया कि अधोपर्पटी संवहन धाराएं तापीय संवहन की क्रियाविधि आरम्भ करती हैं, जो प्लेटों के संचलन के लिए प्रेरक बल के रूप में काम करता है।

2. उष्ण धाराएं:
उष्ण धाराएं ऊपर उठती हैं। जैसे ही वे भूपृष्ठ पर पहुंचती हैं, वे ठण्डी हो जाती हैं और नीचे की ओर चलने लगती हैं। इस प्रकार यह संवहनी संचलन भूपर्पटी प्लेटों को गतिशील कर देता है।

3. प्लेटों का तैरना:
संचलन के कारण स्थल मण्डल की प्लेटें, जो नीचे के अधिक गतिशील एस्थेनोस्फीयर पर तैर रही हैं, निरन्तर गति में रहती हैं।

4. ज्वालामुखी क्रिया:
अतीत में हुई ज्वालामुखी क्रिया के छोटे केन्द्र, जो बहुधा किसी सक्रिय प्लेट सीमा से दूर स्थलमण्डल पर स्थित हैं, संवहन धाराओं के प्रभाव का संकेत देते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के ये केन्द्र तप्त स्थल कहलाते हैं।

5. ज्वालामुखी:
डब्ल्यू० जैसन मॉर्गन ने 1971 में तप्त स्थल की परिकल्पना की। उनके अनुसार मैंटल में मैग्मा का स्रोत अपने स्थान पर स्थिर रहता है, जबकि इसके ऊपर स्थित स्थलमण्डलीय प्लेटें निरन्तर संचलित होती हैं। इस प्रकार किसी तप्त स्थल के ऊपर ज्वालामुखियों की रचना होती है, लेकिन वे उसके बाद मैग्मा-स्रोत से दूर खिसक जाते हैं और मृत हो जाते हैं। ये मृत ज्वालामुखी एक श्रृंखला की रचना करते हैं, जो प्लेट संचलन के अभिलेख हैं।

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प्लेट सीमाएं (Plate Boundaries):
प्लेट सीमाएं पृथ्वी के सर्वाधिक विशिष्ट संरचनात्मक लक्षण हैं। प्लेट सीमाओं की पहचान कठिन नहीं है। ये प्रमुख स्थलाकृतिक लक्षणों से चिन्हित हैं। स्थलमण्डल, सात मुख्य प्लेटों और अनेक छोटी उप-प्लेटों में विभक्त है। मुख्य प्लेटों की बहिर्रेखा नवीन पर्वत तंत्रों, महासागरीय कटकों तथा खाइयों से बनी है। ये प्लेटें निम्नलिखित हैं

  1. प्रशान्त प्लेट;
  2. यूरेशियन प्लेट;
  3. इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट;
  4. अफ्रीकन प्लेट;
  5. उत्तरी अमेरिकन प्लेट;
  6. दक्षिण अमेरिकन प्लेट;
  7. अंटार्कटिक प्लेट;

मुख्य विशेषताएं:

  1. इनमें से सर्वाधिक नवीन प्रशान्त प्लेट है जो लगभग पूरी तरह महासागरीय पटल से बनी है और भूपृष्ठ के 20 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है।
  2. कोई भी प्लेट केवल महाद्वीपीय पटल से निर्मित नहीं है। (3) प्लेटों की मोटाई में अन्तर महासागरों के नीचे 70 कि०मी० से लेकर महाद्वीपों के नीचे 150 कि०मी०
  3. तक है।
  4. प्लेट स्थाई लक्षण नहीं है। इनकी आकृति तथा आकार में अन्तर होता रहता है। वे प्लेटें जो महाद्वीपीय पटल से नहीं बनी हैं, प्रविष्ठन का शिकार हो सकती हैं।
  5. कोई भी प्लेट टूट सकती है अथवा अन्य प्लेट के साथ जुड़ सकती है। (6) प्रत्येक विवर्तनिक प्लेट दृढ़ है और एक इकाई के रूप में संचलन करती है।
  6. लगभग सभी विवर्तनिक क्रियाएं प्लेट सीमाओं पर होती हैं, यही कारण है कि भू-वैज्ञानिक तथा भूगोलवेत्ता प्लेट सीमाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं।

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प्रश्न 2.
भारतीय प्लेट की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय, प्लेट का संचलन (Movement of the Indian Plate):
इंडियन प्लेट में प्रायद्वीप भारत और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपीय भाग सम्मिलित हैं। हिमालय पर्वत श्रेणियों के साथ-साथ पाया जाने वाला प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone), इसकी उत्तरी सीमा निर्धारित करता है जो महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण (Continentcontinent convergence) के रूप में हैं। (अर्थात् दो महाद्वीप प्लेटों की सीमा है) यह पूर्व दिशा में म्यांमार के राकिन्योमा पर्वत से होते हुए एक चाप के रूप में जावा खाई तक फैला हुआ है। इसकी पूर्वी सीमा एक विस्तारित तल (Spreading site) है, जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्व में दक्षिणी पश्चिमी प्रशान्त महासागर में महासागरीय कटक के रूप में है।

इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर श्रेणियों का अनुसरण करती है। यह आगे मकरान तट के साथ-साथ होती हुई दक्षिण-पूर्वी चागोस द्वीप समूह (Chagos archipelago) के साथ-साथ लाल सागर द्रोणी (जो विस्तारण तल है) में जा मिलती है। भारतीय तथा आर्कटिक प्लेट की सीमा भी महासागरीय कटक से निर्धारित होती है। जो एक अपसारी सीमा (Divergent boundary) है और यह लगभग पूर्व-पश्चिम दिशा में होती हुई न्यूज़ीलैंड के दक्षिण में विस्तारित तल में मिल जाती है।

हिमालय पर्वत का उत्थान: भारत एक वृहत् द्वीप था, जो ऑस्ट्रेलियाई तट से दूर एक विशाल महासागर में स्थित था।

  1. लगभग 22.5 करोड़ वर्ष पहले तक टेथीस सागर इसे एशिया महाद्वीप से अलग करता था।
  2. ऐसा माना जाता है कि लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले, जब पैंजिया विभक्त हुआ तब भारत ने उत्तर दिशा की ओर खिसकना आरम्भ किया।
  3. लगभग 4 से 5 करोड़ वर्ष पहले भारत एशिया से टकराया व परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत का उत्थान हुआ।
  4. 7.1 करोड़ वर्ष पहले से आज तक की भारत की स्थिति आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पहले यह उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50″ दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। इन दो प्रमुख प्लेटों को टिथीस सागर अलग करता था और तिब्बतीय खंड, एशियाई स्थलखण्ड के करीब था।
  5. इंडियन प्लेट के एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना घटी-वह थी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण होना। ऐसा लगभग 6 करोड़ वर्ष पहले आरम्भ हुआ और एक लम्बे समय तक यह जारी रहा । याद रहे कि यह उपमहाद्वीप तब भी भूमध्यरेखा के निकट था।
  6.  लगभग 4 करोड़ वर्ष पहले और इसके पश्चात् हिमालय की उत्पत्ति आरम्भ हुई। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रक्रिया अभी भी जारी है और हिमालय की ऊँचाई अब भी बढ़ रही है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण  4

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran पद-परिचय Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran पद-परिचय

प्रश्न 1.
पद-परिचय से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
किसी वाक्य में आए संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा अव्यय आदि का अलग-अलग पूर्ण परिचय देना ‘पद-परिचय’ कहलाता है।

प्रश्न 2.
पद-परिचय में क्या-क्या बताना आवश्यक है?
उत्तर :
प्रत्येक पद-परिचय में निम्नलिखित तथ्यों का होना आवश्यक है –

  • संज्ञा – प्रकार, लिंग, वचन, कारक, संबंध।
  • सर्वनाम – प्रकार, लिंग, वाचक, कारक, संबंध।
  • विशेषण – प्रकार, विशेष्य, लिंग, वचन, संबंध।
  • क्रिया – प्रकार, वाच्य, अर्थ, काल, पुरुष, लिंग, वचन, प्रयोग।
  • क्रिया-विशेषण – प्रकार, विशेष्य, विकार, संबंध।
  • समुच्चयबोधक – प्रकार, अन्विति, शब्द, वाक्यांश अथवा वाक्य।
  • संबंधसूचक – प्रकार, विकार (हो तो) संबंध।
  • विस्मयादिबोधक – प्रकार, संबंध (हो तो)।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्य में आए शब्दों का पद-परिचय दीजिए –
ममता की मारी माता ने अपने घायल बच्चे को तुरंत उठा लिया।
उत्तर :

  • ममता की – भाववाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, संबंधकारक-इसका संबंध ‘मारी’ भूतकालिक कृदंत विशेषण से है।
  • मारी – भूतकालिक कृदंत विशेषण।
  • माता – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ता कारक, ‘उठा लिया’ क्रिया की कर्ता।
  • तुरंत – कालवाचक क्रिया-विशेषण, ‘उठा लिया’ क्रिया की विशेषता बताता है।
  • उठा लिया – सकर्मक क्रिया, सामान्य भूतकाल, कर्तृवाच्य, एकवचन, इसका स्त्रीलिंग कर्ता ‘माता’ है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित वाक्य के मोटे काले शब्दों का पद-परिचय दीजिए
(क) मैं गाय के दूध को पसंद करता हूँ।
(ख) पके आम बड़े मधुर होते हैं।
उत्तर :
(क) मैं पुरुषवाचक सर्वनाम, उत्तम पुरुष, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक, ‘पसंद करता हूँ’ क्रिया का कर्ता।
दूध को – जातिवाचक संज्ञा. एकवचन, पुल्लिंग, कर्म कारक, ‘करता हूँ’ क्रिया का कर्म।
करता हूँ – क्रिया, सकर्मक, सामान्य वर्तमान काल, कर्तृवाच्य, उत्तम पुरुष, एकवचन, इसका कर्म ‘मैं’ है।
(ख) पके – गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन इसका विशेष्य ‘आम’ है।
आम – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, बहुवचन, कर्ता कारक होते हैं’ क्रिया का कर्ता।
मधुर – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण ‘होते हैं’ क्रिया की विशेषता प्रकट करता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों का पद-परिचय दीजिए –
(क) आह! उपवन में सुंदर फूल खिले हैं।
(ख) परिश्रम के बिना धन प्राप्त नहीं होता।
उत्तर :
(क) आह! विस्मयादिबोधक, हर्षबोधक अव्यय।
उपवन में – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक ‘खिले हैं’ का स्थान।
सुंदर – विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन, इसका विशेष्य ‘फूल’ है।
खिले हैं – क्रिया, अकर्मक, वर्तमान काल, पुल्लिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, इसका कर्ता ‘फूल’ है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

(ख) परिश्रम – संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन ‘के बिना’ संबंधबोधक का संबंधी शब्द।
धन – संज्ञा, पुल्लिंग, कर्ता कारक, एकवचन, कर्मवाच्य वाक्य का कर्ता।
प्राप्त – ‘होता’ क्रिया का पूरक। नहीं-क्रिया-विशेषण रीतिवाचक, निषेधार्थक।
होता – हो धातु, क्रिया, अपूर्ण अकर्मक, सामान्य वर्तमान काल, पुल्लिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, कर्मवाच्य, कर्माणि प्रयोग। ‘प्राप्त’ इसका पूरक।

प्रश्न 6.
पद-परिचय दीजिए –
(क) अनुराग यहाँ दसवीं कक्षा में पढ़ता था।
(ख) हम बाग में गए पर वहाँ कोई आम न मिला।
(ग) शीत ऋतु में हिमालय का क्षेत्र पूर्णतया बर्फ से ढक जाता है और वहाँ जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
उत्तर :
(क) अनुराग-संज्ञा, व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक, ‘पढ़ता था’ क्रिया का कर्ता।
यहाँ – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण, ‘पढ़ता था’ क्रिया का स्थान निर्देश।
दसवीं – विशेषण, क्रमसूचक, संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, ‘कक्षा’ विशेष्य का विशेषण।
कक्षा में – संज्ञा, जातिवाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरण कारक।
पढ़ता था – अकर्मक क्रिया, पढ़ धातु, अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, भूतकाल, निश्चयार्थ, कर्तृवाच्य, कर्तरि प्रयोग, इसका कर्ता, ‘अनुराग’ है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

(ख) हम – पुरुषवाचक सर्वनाम, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, बहुवचन, कर्ता कारक, ‘गए’ क्रिया का कर्ता।
बाग में जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक।
गए – अकर्मक क्रिया, जा धातु, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, बहुवचन, भूतकाल निश्चयार्थ, कर्तृवाच्य, कर्तरि प्रयोग, ‘हम’ सर्वनाम इसका कर्ता है।
परंतु – व्याधिकरण, समुच्चयबोधक, दो वाक्यों को जोड़ता है।
वहाँ – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण।
कोई – संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, एकवचन, आम विशेष्य का विशेषण।
आम – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।
न – रीतिवाचक, क्रिया-विशेषण।
मिला – सकर्मक क्रिया, मिल धातु, अन्य पुरुष पुल्लिंग, एकवचन, भूतकाल, निश्चयार्थ, कर्तृवाच्य, कर्मणि प्रयोग (‘हमें’ कर्ता का लोप है) इस क्रिया का कर्म ‘आम’ है।

(ग) शीत – विशेषण, गुणवाचक, ऋतु संज्ञा का विशेषण।
ऋतु में – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरण कारक।
हिमालय का – व्यक्तिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, संबंध कारक।
क्षेत्र – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता, ‘ढक जाना’ क्रिया का कर्ता।
पूर्णतया – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण-‘ढक जाता है’ क्रिया पद की विशेषता प्रकट कर रहा है।
बर्फ से – जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, करण कारक।
ढक जाता है – अकर्मक क्रिया, पुल्लिंग, एकवचन, निश्चयार्थ, वर्तमान काल, कर्तृवाच्य कर्तरि प्रयोग, इसका कर्ता क्षेत्र है।
और – समानाधिकरण समुच्चयबोधक।
वहाँ – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण।
जन-जीवन – भाववाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक।
हो जाता है – क्रिया का कर्ता।
अस्त-व्यस्त – रीतिवाचक क्रिया विशेषण हो जाता है क्रिया का क्रिया-विशेषण।
हो जाता है – अकर्मक क्रिया, पुल्लिंग, एकवचन, निश्चयार्थ, वर्तमान काल, कर्तृवाच्य कर्तरि प्रयोग।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

प्रश्न 7.
निम्नलिखित वाक्यों में मोटे (काले) पदों का परिचय दीजिए –
1. वह विश्वास के योग्य नहीं है।
2. मैं उस छात्र को नहीं जानता।
3. वाह! बहत मनोरंजक कहानी है यह।
4. मैं अभी आया।
5. हिमालय संसार का सबसे ऊँचा पर्वत है।
6. किसी विद्वान से बातचीत करने से ज्ञान बढ़ता है।
7. मेरा भाई तीसरी कक्षा में पढ़ता है।
8. यह घडी मेरे छोटे भाई की है. इसलिए मैं इसे किसी को नहीं दे सकता।
9. दौड़कर जाओ और बाज़ार से कुछ ले आओ।
10. इंदिरा जी जहाँ-जहाँ भी गईं, सर्वत्र उनका स्वागत हुआ।
11. हम आज भी देश पर प्राण न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
12. राम ने श्याम को बुरी तरह मारा।
13. विद्वान लोग सदैव समय का सदुपयोग करते हैं।
14. रमेश यहाँ दसवीं कक्षा में पढ़ता था।
15. हम मुंबई गए पर कोई लाभ नहीं हुआ।
16. कल हमने ताजमहल देखा।
17. स्वतंत्रता दिवस पर हमने स्कूल में राष्ट्रीय-ध्वज फहराया।
18. जब मैं पहुँचा तो रमेश सो रहा था।
19. जल्दी चलो वरना गाड़ी छूट जाएगी।
20. लोग धीरे-धीरे उस सँकरे रास्ते से ताजमहल की ओर बढ़े।
उत्तर :
1. वह – सर्वनाम, पुरुषवाचक, अन्य पुरुष. एकवचन, पुल्लिंग या स्त्रीलिंग, कर्ता कारक है-क्रिया का कर्ता।

2. मैं – सर्वनाम, पुरुषवाचक, उत्तम पुरुष, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक, ‘जानता’ क्रिया का कर्ता।
उस – सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग, विशेष्य, छात्र।
छात्र – संज्ञा, जातिवाचक, एकवचन, पुल्लिंग, कर्म कारक, ‘जानता’ क्रिया का कर्म।

3. वाह! विस्मयादिबोधक अव्यय हर्षसूचक।
बहुत – प्रविशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग, मनोरंजक-विशेषण की विशेषता बताता है।
मनोरंजक – गुणवाचक विशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग, ‘कहानी’ संज्ञा की विशेषता बताता है।
कहानी – जातिवाचक, संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, ‘है’ क्रिया का ‘पूरक’।
है – अपूर्ण सकर्मक क्रिया, एकवचन, स्त्रीलिंग, कर्तृवाच्य, कर्तरि प्रयोग, सामान्य वर्तमान काल, अन्य पुरुष कर्ता –
‘कहानी’-कर्मपूरक-‘कहानी’।
यह – निश्चयवाचक सर्वनाम, एकवचन, ‘है’ क्रिया का ‘कर्ता’ पुल्लिंग या स्त्रीलिंग।

4. अभी – क्रिया-विशेषण, समयसूचक, ‘आया’ क्रिया की विशेषता बताता है।
आया – अकर्मक क्रिया, एकवचन, पुल्लिंग, कर्तृवाच्य, कर्तरि प्रयोग, निश्चयार्थ, भूतकाल (सामान्य) उत्तम पुरुष, कर्ता-‘मैं’।

5. हिमालय – संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक, ‘है’ क्रिया का कर्ता।
पर्वत – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म की भाँति प्रयुक्त, ‘है’ क्रिया का पूरक।

6. किसी सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग, विशेष्य-‘विद्वान’।
बढ़ता है – क्रिया, अकर्मक, एकवचन, पुल्लिंग, कर्तृवाच्य, वर्तमान काल, निश्चयार्थ, कर्तरि प्रयोग, अपूर्ण पक्ष, ‘ज्ञान’
कर्ता।

7. भाई – संज्ञा, जातिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक ‘पढ़ता है’-क्रिया का कर्ता।
तीसरी – विशेषण संख्यावाचक, एकवचन, स्त्रीलिंग, विशेष्य-‘कक्षा।
पढ़ता है – क्रिया, अकर्मक, एकवचन, कर्तृवाच्य, वर्तमान काल, निश्चयार्थ, कर्तरि प्रयोग, अपूर्ण पक्ष ‘भाई’-कर्ता।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

8. यह – सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग, विशेष्य-‘घड़ी।
छोटे – विशेषण, गुणवाचक, एकवचन, पुल्लिंग, भाई-विशेष्य।
इसलिए – समानाधिकरण समुच्चयबोधक ‘यह घड़ी मेरे भाई की है’ तथा ‘मैं इसे किसी को नहीं दे सकता’-इन दो
वाक्यों को जोड़ता है।

9. दौड़कर – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण, ‘आओ’-क्रिया की विशेषता बताता है।
बाज़ार से – संज्ञा, जातिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, अपादान कारक।
कुछ – अनिश्चयवाचक सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।

10. इंदिरा जी सर्वत्र – संज्ञा, व्यक्तिवाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ता कारक, ‘गईं’-क्रिया का कर्ता।
स्थानवाचक क्रिया-विशेषण, ‘स्वागत हुआ’-क्रिया की विशेषता बताता है।
उनका – सर्वनाम पुरुषवाचक, आदरार्थ बहुवचन, संबंध कारक, अन्य पुरुष कर्ता कारक।

11. हम – सर्वनाम पुरुषवाचक, बहुवचन, पुल्लिंग, उत्तम पुरुष, कर्ता कारक हो जाते हैं’-क्रिया का कर्ता।
देश पर – संज्ञा, जातिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक।

12. राम – संज्ञा जातिवाचक, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक ‘मारा’ क्रिया का कर्ता।
मारा – सकर्मक क्रिया, पुल्लिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, सामान्य भूतकाल, कर्तृवाच्य, निश्चयार्थ भावे प्रयोग, ‘राम’
कर्ता तथा ‘श्याम’-कर्म।

13. विद्वान – गुणवाचक विशेषण, बहुवचन, पुल्लिंग. विशेष्य-‘लोग।
करते हैं – सकर्मक क्रिया, बहुवचन, पुल्लिंग, अन्य पुरुष, वर्तमान काल, कर्तृवाच्य, निश्चयार्थ, कर्तरि प्रयोग, कर्ता ‘विद्वान’।

14. दसवीं – विशेषण संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, विशेष्य-‘कक्षा’।
कक्षा में – संज्ञा जातिवाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरण कारक।
पढ़ता था – क्रिया, अकर्मक, अन्य पुरुष, एकवचन, पुल्लिंग, भूतकाल, निश्चयार्थ, कर्तरि प्रयोग कर्तृवाच्य, कर्ता ‘रमेश’।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

15. मुंबई – व्यक्तिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्म कारक।
लाभ – संज्ञा, भाववाचक, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक, हुआ-क्रिया से संबंध।

16. कल – कालवाचक क्रिया-विशेषण ‘देखा’ क्रिया की विशेषता बताता है।
ताजमहल – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक। ‘देखा’ या स्त्रीलिंग, क्रिया का कर्म।

17. हमने – सर्वनाम पुरुषवाचक, बहुवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक ‘फहराया’-क्रिया का कर्ता।
फहराया – क्रिया सकर्मक, एकवचन, पुल्लिंग, सामान्य भूतकाल, निश्चयार्थ, कर्मणि, प्रयोग, पूर्णपक्ष, कर्तृवाच्य, ‘हमने’
कर्ता, राष्ट्रीय ध्वज-कर्म।

18. मैं – सर्वनाम, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक ‘पहुँचा’ क्रिया का कर्ता।
सो रहा था – क्रिया, अकर्मक, एकवचन, पुल्लिंग, भूतकाल, निश्चयार्थ, अपूर्ण पक्ष, कर्तरि प्रयोग, कर्तृवाच्य, ‘रमेश’-कर्ता।

19. जल्दी – क्रिया-विशेषण, समयसूचक, ‘चलो-क्रिया को विशेषता बताता है।
गाड़ी – जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, कर्म कारक, ‘छूट जाएगी’ क्रिया का कर्म (कर्ता तुम छिपा हुआ है)।

20. धीरे-धीरे – क्रिया-विशेषण, रीतिबोधक ‘बढ़े-क्रिया की विशेषता बताता है।
सँकरे – विशेषण गुणवाचक, एकवचन, पुल्लिंग, विशेष्य-.’रास्ते’।

अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर – 

प्रश्न :
निम्नलिखित वाक्यों में मोटे छपे शब्दों का पद-परिचय दीजिए
(क) भूषण वीर रस के कवि थे।
(ख) वह कल आएगा।
(ग) मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता हूँ।
(घ) वह अचानक दिखाई पड़ा।
(ङ) यह पुस्तक किसकी है?
उत्तर :
(क) भूषण – संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, क्रिया का कर्ता।

(ख) वह – सर्वनाम, पुरुषवाचक, अन्य पुरुष, एकवचन, कर्ता कारक, क्रिया का कर्ता।
आएगा – भूतकालिक क्रिया, सकर्मक, भविष्यतकालिक, कर्मवाचक।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

(ग) मैं – सर्वनाम, पुरुषवाचक, उत्तम पुरुष, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक।
दसवीं – विशेषण, संख्यावाचक, एकवचन, स्त्रीलिंग, विशेष्य-कक्षा।
पढ़ता हूँ – क्रिया, अकर्मक, पुल्लिंग, अन्य पुरुष, एकवचन, वर्तमान काल।

(घ) वह – सर्वनाम, पुरुषवाचक, उत्तम पुरुष, एकवचन, कर्ता कारक, क्रिया का कर्ता।
अचानक – क्रिया-विशेषण, रीतिवाचक।

(ङ) यह – सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग, विशेष्य-पुस्तक।
किसकी है – क्रिया, सकर्मक, वर्तमानकालिक, एकवचन, स्त्रीलिंग, प्रश्नवाचक।

पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर – 

1. निर्देशानुसार उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

(क) नवाब लखनवी अंदाज़ लेखक को प्रभावित न कर सका।
(i) विशेषण, सार्वनामिक, पुल्लिंग, एकवचन।
(ii) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iii) विशेषण, संख्यावाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iv) विशेषण, कालवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
उत्तर :
(ii) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।

(ख) उसने सुंदर झीलों को देखा।
(i) अकर्मक क्रिया, सामान्य भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन।
(ii) सकर्मक क्रिया, पूर्ण भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन।
(iii) सकर्मक क्रिया, सामान्य भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन।
(iv) प्रेरणार्थक क्रिया, अपूर्ण भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन।
उत्तर :
(iii) सकर्मक क्रिया, सामान्य भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन।

(ग) ‘उन्होंने खीरे को बड़ी नज़ाकत से बाहर फेंक दिया।’
(i) क्रियाविशेषण, कालवाचक, ‘फेंक दिया’ का विशेषण।
(ii) क्रियाविशेषण, परिमाणवाचक, ‘फेंक दिया’ का विशेषण
(iii) क्रियाविशेषण, स्थानवाचक, ‘फेंक दिया’ का विशेषण।
(iv) क्रियाविशेषण, रीतिवाचक, ‘फेंक दिया’ का विशेषण।
उत्तर :
(iv) क्रियाविशेषण, रीतिवाचक, ‘फेंक दिया’ का विशेषण।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

(घ) तू यहाँ क्यों बैठा है?
(i) सर्वनाम, पुरुषवाचक, ममयम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन।
(ii) सर्वनाम, निश्चयवाचक, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन।
(iii) सर्वनाम, संबंधवाचक, प्रथम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन।
(iv) सर्वनाम, प्रश्नवाचक, मध्यम पुरुष, पुल्लिंग, बहुवचन।
उत्तर :
(i) सर्वनाम, पुरुषवाचक, मध्यम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन।

(ङ) उसने उनके वैराग्यपूर्ण जीवन को नमन किया।
(i) विशेषण, परिमाणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(ii) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iii) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iv) विशेषण, संख्यावाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
उत्तर :
(iii) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।

2. निर्देशानुसार उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

(क) उन्होंने आस्था प्रकट की।
(i) संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(ii) संज्ञा, भाववाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iii) संज्ञा, भाववाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन।
(iv) संज्ञा, जातिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
उत्तर :
(iii) संज्ञा, भाववाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन!

(ख) वे पिता जी की स्मृति में सर्वदा डूब जाते।
(i) क्रियाविशेषण, कालवाचक, ‘डूब जाते’ का विशेषण।
(ii) क्रियाविशेषण, स्थानवाचक, ‘डूब जाते’ का विशेषण।
(iii) क्रियाविशेषण, रीतिवाचक, ‘डूब जाते’ का विशेषण।
(iv) क्रियाविशेषण, परिमाणवाचक. ‘डूब जाते’ का विशेषण।
उत्तर :
(i) क्रियाविशेषण, कालवाचक, ‘डूब जाते’ का विशेषण।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

(ग) जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
(i) सर्वनाम, प्रश्नवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(ii) सर्वनाम, संबंधवाचक, पुल्लिंग. एकवचन।
(iii) सर्वनाम, अनिश्चयवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iv) सर्वनाम, निजवाचक, पुल्लिग. एकवचन।
उत्तर :
(ii) सर्वनाम, संबंधवाचक. पुल्लिंग, एकवचन।

(घ) मैं रामायण पढ़ता हूँ।
(i) व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग।
(ii) जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग
(iii) व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग।
(iv) जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग।
उत्तर :
(iii) व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग।

(ङ) उसने विशाल किला देखा।
(i) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन!
(ii) विशेषण, परिमाणवाचक, स्त्रीलिंग एकवचन
(iii) विशेषण, संख्यावाचक, पुल्लिंग, एकवचन।
(iv) विशेषण. परिमाणवाचक स्त्रीलिंग, बहुवचन।
उत्तर :
(i) विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन।

बोर्ड की परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर – 

प्रश्न 1.
रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए –
मानव सभ्य तभी है जब वह युद्ध से शांति की ओर आगे बढ़े।
उत्तर :

  • मानव – संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग. एकवचन, कर्ता कारक, ‘है’ क्रिया का कर्ता।
  • सभ्य – विशेषण, गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, एकवचन, विशेष्य ‘मानव’
  • वह – सर्वनाम, पुरुषवाचक सर्वनाम, एकवचन, पुल्लिंग, ‘बढ़े’ क्रिया का कर्ता
  • बढ़े – क्रिया, अकर्मक क्रिया, पुल्लिंग, एकवचन

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

प्रश्न 2.
निम्नलिखित रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए –
मानव को इनसान बनाना अत्यन्त ही कठिन कार्य है लेकिन असंभव नहीं।
उत्तर :

  • मानव को – संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, कर्म कारक, पुल्लिंग, एकवचन।
  • कठिन – विशेषण, गुणवाचक विशेषण, विशेष्य ‘कार्य’, पुल्लिंग, एकवचन।
  • कार्य – संज्ञा, भाववाचक संज्ञा. कर्मकारक, पुल्लिंग, एकवचन।
  • लेकिन – अव्यय, समुच्यबोधक अव्यय, समानाधिकरण।

प्रश्न 3.
रेखांकित पदों का पद-परिचय लिखिए –
अपने गाँव की मिट्टी छूने के लिए मैं तरस गया।
उत्तर :

  • गाँव की – संज्ञा (जातिवाचक), पुल्लिंग, एकवचन, संबंध कारक।
  • मिट्टी – संज्ञा (जातिवाचक), स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्म कारक।
  • मैं – सर्वनाम (उत्तम पुरुषवाचक), पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक।
  • तरस गया – क्रिया (अकर्मक), पुल्लिंग, एकवचन, भूतकाल, ‘तरस’ मुख्य क्रिया, ‘गया’ रंजक क्रिया।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित पदों का पदपरिचय लिखिए –
(क) आज भी भारत में अनेक अभिमन्यु हैं।
(ख) प्रात:काल घूमने जाया करो ताकि स्वास्थ्य ठीक रहे।
(ग) पिता जी कल ही तीर्थ यात्रा पर गए।
(घ) अनुराग ने काला कोट पहना है।
उत्तर :
(क) अभिमन्यु – संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, कर्ता कारक, पुल्लिंग, एकवचन।
(ख) ताकि – अव्यव, समुच्चयबोधक अव्यय।
(ग) गए – क्रिया, अकर्मक क्रिया, भूतकाल, कर्तृवाच्य, एकवचन, पुल्लिंग।
(घ) काला – विशेषण, गुणवाचक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग, ‘कोट’-विशेष्य।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं चार रेखांकित पदों का पद-परिचय लिखिए…
(क) दादी जी प्रतिदिन समाचार पत्र पढ़ती हैं।
(ख) रोहन यहाँ नहीं आया था।
(ग) वे मुंबई जा चुके हैं।
(घ) परिश्रमी अंकिता अपना काम समय से पूरा कर लेती है।
(ङ) रवि रोज़ सवेरे दौड़ता है।
उत्तर :
(क) पढ़ती हैं – क्रिया, सकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, वर्तमान काल, एकवचन, स्त्रीलिंग।
(ख) यहाँ – क्रियाविशेषण, स्थानवाचक क्रियाविशेषण।
(ग) वे – सर्वनाम, अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम, कर्ता कारक, बहुवचन पुल्लिंग।
(घ) परिश्रमी – विशेषण, गुणवाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन।
(ङ) रवि – संज्ञा, व्यक्तिवाचक संज्ञा, कर्ता कारक, पुल्लिंग, एकवचन।

प्रश्न 6.
रेखांकित पदों में से किन्हीं चार पदों का पद-परिचय लिखिए –
नेताजी की उस मूर्ति पर टूटा चश्मा लगा था।
उत्तर :
(क) नेताजी की – संज्ञा, व्यक्तिवाचक संज्ञा, संबंध कारक, पुल्लिंग एकवचन।
(ख) उस – विशेषण, सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग।
(ग) मूर्ति पर – संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, अधिकरण कारक, स्त्रीलिंग एकवचन।
(घ) चश्मा – संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, कर्म कारक, एकवचन, पुल्लिंग।
(ङ) लगा था – क्रिया, अकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, भूतकाल, पुल्लिंग, एकवचन।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

प्रश्न 7.
मुझे देखते ही प्रतिष्ठित व्यक्ति अंबालाल जी ने गर्मजोशी से मेरा सम्मान किया।
उत्तर :
(क) मुझे – पुरुषवाचक सर्वनाम, उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम, कर्मवाचक, पुल्लिंग, स्त्रीलिंग।
(ख) देखते ही – क्रियाविशेषण, कालवाचक क्रियाविशेषण, सम्मान क्रिया, क्रिया का विशेषण।
(ग) प्रतिष्ठित – विशेषण, गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, एकवचन।
(घ) व्यक्ति – संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, कर्ता कारक, पुल्लिंग, एकवचन।
(ङ) अंबालाल जी ने – संज्ञा, व्यक्तिवाचक संज्ञा, कर्ता कारक, पुल्लिंग, एकवचन।

प्रश्न 8.
सुलोचना की नई फ़िल्म आई और वे चले फ़िल्म देखने।
उत्तर :
(क) सुलोचना की – संज्ञा, व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग, संबंध कारक।
(ख) नई – विशेषण, गुणवाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन।
(ग) और – अव्यय, समुच्चयबोधक अव्यय।
(घ) वे – पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुषवाचक, कर्ता कारक, पुल्लिंग, बहुवचन।
(ङ) चले – क्रिया, अकर्मक क्रिया, वर्तमान काल, पुल्लिंग, बहुवचन। \

1. इस वाक्य का वाच्य लिखिए-‘अशोक ने विश्व को शांति का संदेश दिया।’
(क) कर्मवाक्य
(ख) भाववाच्य
(ग) कर्तृवाच्य
(घ) करणवाच्य
उत्तर :
(ग) कर्तृवाच्य।

2. “हम इस खुले मैदान में दौड़ सकते हैं।’-उपर्युक्त वाक्य को भाववाच्य में बदलिए–
(क) हम दौड़ सकते हैं इस खुले मैदान में
(ख) हम इस खुले मैदान में दौड़ सकेंगे।
(ग) हमसे इस खुले मैदान में दौड़ा जाएगा।
(घ) हमसे इस खुले मैदान में दौड़ा जा सकता है।
उत्तर :
(घ) हमसे इस खुले मैदान में दौड़ा जा सकता है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण पद-परिचय

3. “सुमन जल्दी नहीं उठती।”-प्रस्तुत वाक्य को भाववाच्य में बदलिए
(क) सुमन जल्दी नहीं उठ पाती।
(ख) सुमन जल्दी से नहीं उठ सकेगी।
(ग) सुमन जल्दी नहीं उठ पाएगी।
(घ) सुमन से जल्दी नहीं उठा जाता।
उत्तर :
(घ) सुमन से जल्दी नहीं उठा जाता।

4. निम्नलिखित वाक्यों में से कर्तृवाच्य वाला वाक्य छाँटिए –
(क) अरविंद द्वारा कल पत्र लिखा जाएगा।
(ख) बच्चों द्वारा नमस्कार किया गया।
(ग) सरकार द्वारा लोक कलाकारों का सम्मान किया गया।
(घ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
उत्तर :
(घ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।

5. निम्नलिखित में से कौन-सा भाववाच्य का सही विकल्प नहीं है?
(क) मुझसे अब देखा नहीं जाता।
(ख) आइए चला जाए।
(ग) हमें धोखा दिया जा रहा है।
(घ) राधा से बोला नहीं जाता।
उत्तर :
(ग) हमें धोखा दिया जा रहा है।

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6. निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए –
(क) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। (कर्मवाच्य में बदलिए)
(ख) दर्द के कारण वह खड़ा ही नहीं हुआ। (भाववाच्य में बदलिए)
(ग) परीक्षा के बारे में अध्यापक द्वारा क्या कहा गया? (कर्तृवाच्य में बदलिए)
(घ) नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कहा कि खीरा लज़ीज होता है। (कर्मवाच्य में बदलिए)
उत्तर :
(क) नेताजी के द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(ख) दर्द के कारण उससे खड़ा ही नहीं हुआ जाता।
(ग) अध्यापक ने परीक्षा के बारे में क्या कहा?
(घ) नवाब साहब द्वारा हमारी ओर देखकर कहा गया कि खीरा लजीज होता है।

7. निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए –
(क) किसान के द्वारा खेत की जुताई की गई। (कर्तृवाच्य में बदलिए)
(ख) कितने कंबल बँटे? (कर्मवाच्य में बदलिए)
(ग) आओ, यहाँ बैठ सकते हैं? (भाववाच्य में बदलिए)
(घ) सैनिकों द्वारा देश की रखवाली की जाती है। (कर्तृवाच्य में बदलिए)
उत्तर :
(क) किसान ने खेत जोता।
(ख) कितने कंबल बाँटे गए?
(ग) आओ, यहाँ बैठा जाए।
(घ) सैनिक देश की रखवाली करते हैं।

8. निर्देशानुसार उत्तर लिखिए –
(क) विद्यार्थियों द्वारा परीक्षा दी गई। (कर्तृवाच्य में बदलिए)
(ख) मैं दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाऊँगी। (कर्मवाच्य में बदलिए)
(ग) हर्षिता पैदल चल नहीं सकती। (भाववाच्य में बदलिए)
(घ) तुमसे चुप नहीं रहा जाता। (कर्तृवाच्य में बदलिए)
उत्तर :
(क) विद्यार्थियों ने परीक्षा दी।
(ख) मेरे द्वारा दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाए जाएंगे।
(ग) हर्षिता से पैदल चला नहीं जाता।
(घ) तुम चुप नहीं रह सकते।

9. निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए –
(क) कैप्टन चश्मा बदल देता था। (कर्मवाच्य में)
(ख) इस दिन दालमंडी में शहनाई बजाई जाती थी। (कर्तृवाच्य में)
(ग) वे आज रात यहीं ठहरेंगे। (भाववाच्य में)
(घ) अब सोया नहीं जाता। (कर्तृवाच्य में)
उत्तर :
(क) कैप्टन द्वारा चश्मा बदल दिया जाता था।
(ख) इस दिन दालमंडी में शहनाई बजती थी।
(ग) उनके द्वारा आज रात यहीं ठहरा जाएगा।
(घ) मुझसे अब सोया नहीं जाता।

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10. निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए –
(क) पतोहू ने आग दी। (कर्मवाच्य में)
(ख) अब सोया नहीं जाता। (कर्तृवाच्य में)
(ग) वह खेलेगा। (भाववाच्य में)
उत्तर :
(क) पतोहू द्वारा आग दी गई।
(ख) अब नहीं सोया।
(ग) उससे खेला जाएगा।

11. निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए –
(क) अब गायक संगतकारों का आदर नहीं करते। (कर्मवाच्य में)
(ख) चिड़िया चोट के कारण उड़ नहीं पा रही थी। (भाववाच्य में)
उत्तर :
(क) अब गायकों द्वारा संगतकारों का आदर नहीं किया जाता।
(ख) चिड़िया द्वारा चोट के कारण उड़ा नहीं जा पा रहा था।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. निम्नलिखित में से पृथ्वी की संरचना का मुख्य स्त्रोत क्या है?
(A) भूकम्पीय तरंगें
(B) ज्वालामुखी
(C) पृथ्वी का तापमान
(D) पृथ्वी का घनत्व।
उत्तर:
भूकम्पीय तरंगें।

2. भू-पृष्ठ का घनत्व बताओ
(A) 17.2
(B) 5.68
(C) 2.75
(D) 5.53.
उत्तर:
(C) 2.75.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

3. पृथ्वी की अभ्यान्तर परत को क्या कहा जाता है?
(A) सियाल
(B) सीमा
(C) नाइफ
(D) मैंटल।
उत्तर:
(C) नाइफ।

4. अभ्यान्तर में अधिकतम घनत्व का मुख्य कारण क्या है?
(A) अधिक गहराई
(B) अधिक तापमान
(C) तरल पदार्थ
(D) निक्कल तथा लौह धातुएं।
उत्तर:
निक्कल तथा लौह धातुएं।

5. पृथ्वी के भीतरी भाग में तापमान की वृद्धि की औसत दर क्या है?
(A) 1°C प्रति कि०मी०
(B) 12°C प्रति कि० मी०
(C) 1°C प्रति 30 मीटर
(D) 10°C प्रति 100 मीटर।
उत्तर:
(C) 1°C प्रति 30 मीटर।

6. निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य पृथ्वी की आन्तरिक बनावट पर सर्वाधिक प्रकाश डालता है?
(A) गहरी खदानों का खोदा जाना
(B) कुओं का खोदा जाना
(C) भूकम्पीय तरंगें
(D) ज्वालामुखी उद्भेदन।
उत्तर:
(C) भूकम्पीय तरंगें।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

7. कौन-सी भूकम्पीय तरंगें पृथ्वी से 2900 किलोमीटर की गहराई के पश्चात् लुप्त हो जाती हैं?
(A) प्राथमिक
(B) गौण
(C) धरातलीय
(D) अनुदैर्ध्य।
उत्तर:
(B) गौण।

8. भूकम्पीय तरंगों को रेखांकित करने वाला यन्त्र
(A) थर्मोग्राफ
(B) सिस्मोग्राफ
(C) हाइग्रोग्राफ
(D) बैरोग्राफ।
उत्तर:
(B) सिस्मोग्राफ।

9. भूपर्पटी में विकसित थरथराहट को कहते हैं
(A) भूसंचरण
(B) पृथ्वी की गति
(C) भूकम्प
(D) पृथ्वी की कामुकता।
उत्तर:
(C) भूकम्प।

10. भूकम्पों के कारण समुद्रों में विकसित विशाल तरंगें होती हैं
(A) समुद्री तरंगें
(B) ज्वारीय तरंगें
(C) सुनामी तरंगें
(D) धरातलीय तरंगें।
उत्तर:
सुनामी तरंगें।

11. पृथ्वी की त्रिज्या कितनी है?
(A) 5370 कि०मी०
(B) 6370 कि०मी०
(C) 7370 कि०मी०
(D) 8370 कि०मी०।
उत्तर:
(B) 6370 कि०मी०।

12. दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खानें कितनी गहरी हैं?
(A) 3-4 कि०मी०
(B) 4-5 कि०मी०
(C) 5-6 कि०मी०
(D) 6-7 कि०मी०
उत्तर:
(A) 3-4 कि०मी०

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13. सबसे गहरा प्रवेधन कितना गहरा है?
(A) 10 कि०मी०
(B) 11 कि०मी०
(C) 12 कि०मी०
(D) 13 कि०मी०
उत्तर:
(C) 12 कि०मी०

14. प्राकृतिक भूकम्प किस भू-भाग में आते हैं?
(A) स्थल खण्ड
(B) मैंटल
(C) नाईफ्
(D) क्रोड ।
उत्तर:
(A) स्थल खण्ड

15.’P’ व ‘S’ तरंगों के छाया क्षेत्र का अधि केन्द्र से विस्तार है ।
(A) 105-145°
(B) 115-1550
(C) 125-165°
(D) 135-175°
उत्तर:
(A) 105-145°

16. भूकंप की तीव्रता का माप किस वैज्ञानिक के नाम पर है?
(A) कान्ट
(B) लाप्लेस
(C) मरकैली
(D) ऑटो शिमिड।
उत्तर:
(C) मरकैली

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगों के प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. प्राथमिक तरंगें
  2. माध्यमिक तरंगें
  3. धरातलीय तरंगें ।

प्रश्न 2.
धात्विक क्रोड के दो प्रमुख पदार्थ बताओ ।
उत्तर:
निकिल, लोहा

प्रश्न 3.
पृथ्वी की तीन परतों के नाम लिखो
उतर:
सियाल, सीमा, नाइफ

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प्रश्न 4.
पृथ्वी की संरचना की जानकारी के प्रत्यक्ष साधन बताओ ।
उत्तर:
खानें, कुएं, छिद्र

प्रश्न 5.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तापमान वृद्धि की औसत दर क्या है?
उत्तर:
1°C प्रति 32 मीटर।

प्रश्न 6.
पृथ्वी की संरचना की जानकारी प्रदान करने वाले परोक्ष साधन कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. दबाव
  3. परतों का घनत्व
  4. भूकम्पीय तरंगें
  5. उल्काएं।

प्रश्न 7.
भूकम्पीय तरंगों के अध्ययन करने वाले यन्त्र का क्या नाम है?
उत्तर:
सीस्मोग्राफ (Seismograph)।

प्रश्न 8. कितनी गहराई के पश्चात् ‘S’ तरंगें लुप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
2900km.

प्रश्न 9.
कौन-सी तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं?
उत्तर:
अनुप्रस्थ तरंगें।

प्रश्न 10.
किन प्रमाणों से पता चलता है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग का तापमान अधिक है?
उत्तर:

  1. ज्वालामुखी
  2. गर्म जल के झरने
  3. खानों से।

प्रश्न 11.
सियाल (Sial) किन दो शब्दों के संयोग से बना है?
उत्तर:
सियाल शब्द सिलिका तथा एल्यूमीनियम (Si+Al) के संयोग से बना है।

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प्रश्न 12.
सीमा (Sima) किन दो शब्दों के संयोग से बना है?
उत्तर:
सीमा शब्द सिलिका तथा मैग्नीशियम (Si+Mg) के संयोग से बना है।

प्रश्न 13.
निफे (Nife) शब्द किन दो शब्दों के संयोग से बना है?
उत्तर:
निफे शब्द निकिल तथा फैरस (Ni+Fe) के संयोग से बना है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी की केन्द्रीय परत को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अभ्यान्तर या क्रोड या गुरुमण्डल।

प्रश्न 15.
पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?
उत्तर:
5.53.

प्रश्न 16.
सबसे धीमी गति वाली तरंगें कौन-सी हैं?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें।

प्रश्न 17.
पृथ्वी के अभ्यान्तर का घनत्व कितना है?
उत्तर:
13.

प्रश्न 18.
अभ्यान्तर का घनत्व सबसे अधिक क्यों है?
उत्तर:
अभ्यान्तर में निकिल तथा लोहे के कारण।

प्रश्न 19.
Volcano ज्वाला शब्द यूनानी भाषा के किस शब्द से बना है?
उत्तर:
यूनानी शब्द ‘Vulan’ का अर्थ-पाताल देवता है।

प्रश्न 20.
पृथ्वी के अन्दर पिघले पदार्थ को क्या कहते हैं?
उत्तर:
मैग्मा।

प्रश्न 21.
जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल से बाहर आ जाता है तो उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
लावा।

प्रश्न 22.
ज्वालामुखी के तीन प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त ज्वालामुखी
  3. मृत ज्वालामुखी।

प्रश्न 23.
भारत में सक्रिय ज्वालामुखी का नाम बताएं।
उत्तर:
अण्डमान द्वीप के निकट बैरन द्वीप।

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प्रश्न 24.
ज्वालामुखी शंकु किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी के मुख से निकले पदार्थ मुख के आस-पास जमा हो जाते हैं। धीरे-धीरे ये शंकु का रूप धारण कर लेते हैं। इन्हें ज्वालामुखी शंकु कहते हैं।

प्रश्न 25.
क्रेटर किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी के केन्द्र में कटोरे के समान या कीपाकार गर्त को क्रेटर कहते हैं।

प्रश्न 26.
काल्डेरा किसे कहते हैं?
उत्तर:
विशाल क्रेटर को काल्डेरा कहते हैं।

प्रश्न 27.
भूकम्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी का अचानक हिलना।

प्रश्न 28.
भूकम्प आने के तीन कारण लिखो।
उत्तर:

  1. ज्वालामुखी विस्फोट
  2. विवर्तनिक कारण
  3. लचक शक्ति।

प्रश्न 29.
उद्गम केन्द्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के अन्दर जहां भूकम्प उत्पन्न होता है, उसे उद्गम केन्द्र कहते हैं।

प्रश्न 30.
अधिकेन्द्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूकम्प केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल पर स्थिर बिन्दु या स्थान को अधिकेन्द्र कहते हैं।

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प्रश्न 31.
आग का गोला (Ring of fire) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
परिप्रशान्त महासागरीय पेटी।

प्रश्न 32.
संसार की तीन प्रमुख ज्वालामुखी पेटियों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. प्रशांत महासागरीय पेटी
  2. अन्ध महासागरीय पेटी
  3. मध्य महाद्वीपीय पेटी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सियाल (Sial) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है। इसमें सिलिका तथा एल्यूमीनियम के अंश अधिक मात्रा में हैं। इन दोनों धातुओं के संयोग के कारण इस परत को सियाल (Sial = Silica + Aluminium) कहते हैं। इस परत की औसत गहराई 60 km. है। इस परत का घनत्व 2.75 है। इस परत से महाद्वीपों का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 2.
सीमा (Sima ) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सियाल से निचली परत को सीमा कहा जाता है। इस परत से सिलिका तथा मैग्नीशियम धातुएं अधिक मात्रा में मिलती हैं। इसलिए इस परत को सीमा (Sima = Silica + Magnesium) कहा जाता है। इस परत की मोटाई 2800 km है। इसका औसत घनत्व 4.75 है। महासागरीय तल इसी परत से बना हुआ है।

प्रश्न 3.
निफे (Nife) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह पृथ्वी की सबसे निचली तथा केन्द्रीय परत है। यह सबसे भारी परत है जिसका घनत्व 13 है। इसमें निकिल तथा फैरस (लोहा) धातुएं अधिक हैं। इसलिए इसे (Nife = Nickle + Ferrous) कहा जाता है। इस परत की मोटाई 3500 km. 1

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प्रश्न 4.
पृथ्वी की तीन मौलिक परतों के नाम, गहराई, विस्तार तथा घनत्व बताओ।
उत्तर:
पृथ्वी का निर्माण करने वाली तीन मूल परतें हैं जिनकी रचना भिन्न घनत्व वाले पदार्थों से हुई है

  1. भू-पृष्ठ (Crust),
  2. मैण्टल (Mantle, )
  3. क्रोड (Core)
परत क्षेत्र मोटाई कुल का \% घनत्व
(1) भू-पृष्ठ सियाल 60 कि॰ मी० 0.5 2.75
(2) मैण्टल सीमा 2840 कि॰ मी० 16.5 5.68
(3) क्रोड नाइफ 3500 कि॰ मी० 83.0 17.2

प्रश्न 5.
सिस्मोग्राफ किसे कहते हैं? इसका प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता है?
उत्तर:
सिस्मोग्राफ (Seismograph) एक यन्त्र है जिसके द्वारा भूकम्पीय तरंगें तथा तीव्रता मापी जाती है। इस यन्त्र में लगी एक सूई द्वारा ग्राफ पेपर पर भूकम्पीय तरंगों को रेखांकित किया जाता है। इस यन्त्र द्वारा भूकम्प का उद्गम (Focus), भूकम्पीय तरंगों की गति, मार्ग तथा तीव्रता का ज्ञान होता है।

प्रश्न 6.
भूकम्पीय तरंगों के मुख्य प्रकार बताओ। कौन-सी तरंगें धीमी गति वाली हैं तथा कौन-सी तरंगें तेज़ गति वाली हैं?

  1. प्राथमिक या अनुदैर्ध्य तरंगें।
  2. गौण या अनुप्रस्थ तरंगें
  3. धरातलीय या लम्बी तरंगें।

धरातलीय तरंगें सब से धीमी गति से चलती हैं। प्राथमिक तरंगें सब से तेज़ गति से चलती हैं।

प्रश्न 7.
गुरुत्वाकर्षण तथा चुम्बकीय क्षेत्र किस प्रकार भूकम्प सम्बन्धी सूचना देते हैं?
उत्तर:
अन्य अप्रत्यक्ष स्रोतों में गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र व भूकम्प सम्बन्धी क्रियाएं शामिल हैं। पृथ्वी के धरातल पर भी विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं होता है। यह (गुरुत्वाकर्षण बल) ध्रुवों पर अधिक एवं भूमध्यरेखा पर कम होता है। पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर कम और भूमध्य रेखा पर अधिक होता है । गुरुत्व का मान पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार भी बदलता है । पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण भी इस भिन्नता को प्रभावित करता है।

अलग-अलग स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता अनेक अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है। इस भिन्नता को गुरुत्व विसंगति (Gravity anomaly ) कहा जाता है गुरुत्व विसंगति हमें भूपर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है। चुम्बकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी में चुम्बकीय पदार्थ के वितरण की जानकारी देते हैं । भूकम्पीय गतिविधियां भी पृथ्वी की आन्तरिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है ।

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प्रश्न 8.
उल्काएं पृथ्वी की आन्तरिक बनावट के विषय में जानकारी देने में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर:
कभी-कभी जलते हुए पदार्थ आकाश से पृथ्वी की ओर गिरते दिखाई देते हैं। इन्हें उल्का (Meteorites) कहते हैं। यह सौर मण्डल का एक भाग है। इनके अध्ययन से पता चलता है कि इनके निर्माण में लोहा और निकिल की प्रधानता है। पृथ्वी की रचना उल्काओं से मिलती-जुलती है तथा पृथ्वी का आंतरिक क्रोड भी भारी पदार्थों (लोहा + निकिल ) से बना हुआ है।

प्रश्न 9.
गुरुमण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गुरुमण्डल (Barysphere):
पृथ्वी के केन्द्रीय भाग या आन्तरिक क्रोड को गुरुमण्डल कहते हैं। इसकी औसत गहराई 4980 से 6400 मी० है। यह अत्यधिक भारयुक्त खनिज पदार्थों से बना हुआ है। इसका औसत घनत्व 13 से अधिक है। इसमें लोहा तथा निकिल पदार्थों की अधिकता है। इस भाग को अभ्यान्तर (Core) भी कहा जाता है।

प्रश्न 10.
ज्वालामुखी किसे कहते हैं? ज्वालामुखी के विभिन्न भाग बताओ।
उत्तर:
ज्वालामुखी (Volcano):
ज्वालामुखी क्रिया एक अन्तर्जात क्रिया है जो भू-गर्भ से सम्बन्धित है। ज्वालामुखी धरातल पर एक गहरा प्राकृतिक छिद्र है जिससे भू-गर्भ से गर्म गैसें, लावा, तरल व ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं। सबसे पहले एक छिद्र की रचना होती है जिसे ज्वालामुखी (Volcano) कहते हैं। इस छिद्र से निकलने वाले लावा पदार्थों के चारों ओर फैलने तथा ठण्डा होकर ठोस होने से एक उच्च भूमि का निर्माण होता है जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। एक लम्बे समय में कई बार निकासन, शीतलन तथा ठोसीकरण की क्रिया से ज्वालामुखी का निर्माण होता है।

ज्वालामुखी के भाग (Parts of a Volcano):

  1. ज्वालामुखी निकास-एक छेद जिस से लावा का निष्कासन होता है ज्वालामुखी निकास कहलाता है।
  2. विवर-ज्वालामुखी विकास के चारों ओर एक तश्तरीनुमा गर्त को विवर कहते हैं।
  3. कैल्डेरा–विस्फोट से बने खड़ी दीवारों वाले कंड को कैलडेरा कहते हैं।

प्रश्न 11.
भूकम्पों के विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर भूकम्प निम्नलिखित प्रकार के हैं

  1. विवर्तनिक भूकम्प-सामान्यतः विवर्तनिक (Tectonic) भूकम्प ही अधिक आते हैं। ये भूकम्प भ्रंश तल के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण उत्पन्न होते हैं।
  2. ज्वालामुखी भूकम्प-एक विशिष्ट वर्ग के विवर्तनिक भूकम्प को ही ज्वालामुखीजन्य (Volcanic) भूकम्प समझा जाता है। ये भूकम्प अधिकांशतः सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं।
  3. नियात भूकम्प-खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यधिक खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है, जिससे हल्के झटके महसूस किये जाते हैं। इन्हें नियात (Collapse) भूकम्प कहा जाता है।
  4. विस्फोट भूकम्प-कभी-कभी परमाणु व रासायनिक विस्फोट से भी भूमि में कम्पन होती है। इस तरह के झटकों को विस्फोट (Explosion) भूकम्प कहते हैं।
  5. बांध जनित भूकम्प-जो भूकम्प बड़े बांध वाले क्षेत्रों में आते हैं, उन्हें बांध जनित (Reservoir induced) भूकम्प कहा जाता है।

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प्रश्न 12.
सुनामी किसे कहते हैं? इनके विनाशकारी प्रभाव की एक उदाहरण दो।
उत्तर:
सुनामी (Tsunami):
कई बार भूकम्प के कारण सागरीय लहरें बहुत ऊंची उठ जाती हैं। जापान में इन्हें सुनामी कहते हैं। ये तूफानी लहरें तटीय प्रदेशों में जान-माल की हानि करती हैं। सन् 1883 में क्राकटोआ विस्फोट से जो भूकम्प आया जिससे 15 मीटर ऊंची लहरें उठीं तथा पश्चिमी जावा में 36,000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। 26 दिसम्बर, 2004 को इण्डोनेशिया के निकट केन्द्रित भूकम्प से हिन्दमहासागर में 30 मीटर ऊंची सुनामी लहरों से लगभग 3 लाख व्यक्तियों की जानें गईं। इण्डोनेशिया, थाइलैंड, अण्डमान द्वीप, तमिलनाडु तट तथा श्रीलंका के तटीय भागों में प्रलय समान तबाही हुई।

प्रश्न 13.
दुर्बलता मण्डल क्या है?
उत्तर:
दुर्बलता मण्डल (Asthenosphere) ऊपरी मैंटल परत का एक भाग है। यह 650 कि० मी० गहरा है। यह परत ठोस तथा लचीले गुट रखती है। इस परत का अनुमान प्रसिद्ध भूकम्प वैज्ञानिक गुट्नबर्ग ने लगाया था। यहां भूकम्पीय लहरों की गति कम होती है। Asthenosphere का अर्थ है दुर्बलता।

प्रश्न 14.
पृथ्वी के धरातल का विन्यास किन प्रक्रियाओं का परिणाम है?
उत्तर:
पृथ्वी पर भू-आकृतियों का विकास बहिर्जात एवं अन्तर्जात क्रियाओं का परिणाम है। दोनों प्रक्रियाएं निरन्तर कार्य करती हैं तथा भू-आकृतियों को जन्म देती हैं।

प्रश्न 15.
पृथ्वी की संरचना की जानकारी के प्रत्यक्ष साधनों के नाम लिखो।
उत्तर:
पृथ्वी की संरचना की जानकारी के प्रत्यक्ष साधन निम्नलिखित है

  1. धरातलीय चट्टानें : धरातलीय चट्टानें सुगमता से प्राप्त होती हैं तथा इन से भू-गर्भ की जानकारी मिलती है।
  2. खनन क्षेत्र : दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खानों की गहराई 3-4 किलोमीटर तक है जहां तक जाना सम्भव है।
  3. विभिन्न परियोजनाएं : गहरे समुद्र में गहराई से पदार्थ प्राप्त करने की योजनाएं भी प्रत्यक्ष साधन हैं।
  4. ज्वालामुखी उद्गार : ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है तो पृथ्वी की संरचना की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 16.
उन दो वैज्ञानिक परियोजनाओं का वर्णन करो जिनसे पृथ्वी के भूगर्भ की जानकारी प्राप्त होगी।
उत्तर:
पृथ्वी के वैज्ञानिक ऐसी दो परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।

  1. गहरे समुद्र में प्रवेश परियोजना (Deep ocean drilling project).
  2. समन्नित महासागरीय परिवेधन परियोजना (Integrated ocean drilling project) आज तक सबसे गहरा प्रवेधक (Drill) आर्कटिक महासागर के कोला (Kola) क्षेत्र में 12km की गहराई तक किया गया है।

प्रश्न 17.
भूकम्प की माप किस पैमाने पर की जाती है?
उत्तर:
भूकम्पों की माप-भूकम्पीय घटनाओं का मापन भूकम्पीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकम्पीय तीव्रता की मापनी ‘रिक्टर स्केल’ (Richter scale) के नाम से जानी जाती है। भूकम्पीय तीव्रता भूकम्प के दौरान ऊर्जा विमोचन से सम्बन्धित है। इस मापनी के अनुसार भूकम्प की तीव्रता 0 से 10 तक होती है। तीव्रता गहनता (Intensity scale) ‘हानि की तीव्रता’ मापनी इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली (Mercalli) के नाम पर है। यह मापनी झटकों से हुई प्रत्यक्ष हानि द्वारा निर्धारित की गई है। इसका गहनता का विस्तार 1 से 12 तक है।

तुलनात्मक प्रश्न
(Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
अनुदैर्ध्य तथा अनुप्रस्थ तरंगों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal waves) अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse waves)
(1) इन तरंगों में कण आगे बढ़ने की दिशा में चलते हैं। (1) ये तरंगें दोलन की दिशा पर समकोण चलती हैं।
(2) इन्हें प्राथामिक तरंगें, ध्वनि तरंगें या P-waves कहा जाता है। (2) इन्हें द्वितीयक या S-waves भी कहा जाता है।
(3) इनकी गति कुछ तेज़ होती है। (3) इसकी गति धीमी होती है।
(4) ये तरल, गैस तथा ठोस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती हैं। (4) ये केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं।
अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal waves) अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse waves)

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प्रश्न 2.
भू-पृष्ठ तथा अभ्यान्तर में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

भू-पृष्ठ (Crust) अभ्यान्तर (Core)
(1) यह पृथ्वी की बाहरी परत है। (1) यह पृथ्वी की भीतरी परत है।
(2) यह सबसे हल्की परत है। (2) यह सब से भारी परत है।
(3) इस परत का औसत घनत्व $2.75$ है। (3) इस परत का औसत घनत्व $17.2$ है।
(4) यह पृथ्वी के $0.5 \%$ भाग को घेरे हुए है। (4) यह पृथ्वी के $83 \%$ भाग को घेरे हुए है।
(5) इसमें सिलिका तथा एल्यूमीनियम की अधिकता है। (5) इसमें निकल तथा लोहे की अधिकता है।

प्रश्न 3.
मैग्मा तथा लावा में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

मैग्मा (Magma) लावा (Lava)
(1) पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघले हुए गर्म घोल को मैग्मा कहते हैं। (1) जब उद्भेदन के कारण मैग्मा धरती के बाहर आकर ठण्डा तथा ठोस रूप धारण कर लेता है तो उसे लावा कहते हैं।
(2) इसमें जल व अन्य गैसें भी मिली होती हैं। (2) इसमें जल व गैसों के अंश नहीं होते।
(3) यह पृथ्वी के भीतरी भागों में ऊपरी मैंटल में उत्पन्न होता है। (Magma is hot Sticky molten material.) (3) यह पृथ्वी के धरातल पर वायुमण्डल के सम्पर्क से ठण्डा व ठोस होता है। (The Solidifed magma is called Lava.)

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का वर्णन करो। इसकी प्रत्येक पर्त का विवरण दो। अपने कथन के पक्ष में विवेकपूर्ण तर्क दो।
अथवा
पृथ्वी की भूपर्पटी, मैंटल व क्रोड का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Structure of the Earth):
पृथ्वी के भू-गर्भ के बारे में विद्वानों ने अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए हैं। कुछ विद्वानों ने पृथ्वी के भू-गर्भ को ठोस अवस्था माना है तो कुछ ने इसे गैसीय अथवा तरल अवस्था में माना है। भू-गर्भ की जानकारी प्राप्त करने के लिए मनुष्य के पास कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं है। भीतरी भाग में अत्यधिक तापमान एक बड़ी रुकावट है। पृथ्वी की सबसे गहरी खान केवल 4 km गहरी है। इसीलिए भू-गर्भ की जानकारी के सभी साधन अप्रत्यक्ष (Indirect ) हैं तथा केवल अनुमान ही हैं।

पृथ्वी की विभिन्न परतें (Different Layers of the Earth): वान्डर ग्राट (Vander Gracht) के अनुसार, पृथ्वी की आन्तरिक संरचना निम्नलिखित परतों में हुई है:
1. बाहरी सियाल परत ( Sial):
यह पृथ्वी की ऊपरी परत है। इस परत में सिलिका तथा एल्यूमीनियम का अंश अधिक है। यह सबसे हल्की परत है जिसका घनत्व 2.7 के बीच है। इस परत की औसत गहराई 45 कि० मी० तक है। इससे अधिकतर महाद्वीपों का निर्माण हुआ है। (Sial = Silica + Aluminium)

पृथ्वी की परतें (Layers of the Earth)

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2. बाहरी सिलिकेट परत:
भूपर्पटी की इस परत का विस्तार महासागरों के नीचे है। इसमें अधिकतर तलछटी चट्टानें तथा ग्रेनाइट का विस्तार है। इसकी गहराई 45 से 100 कि०मी० तक है। इसका घनत्व 2.75-2.90 तक है

3. आन्तरिक सिलिकेट परत:
सियाल से निचली परत को आन्तरिक सिलिकेट परत कहा जाता है। बाहरी तथा आन्तरिक परत के बीच के अन्तराल को कॉनरैड अन्तराल कहा जाता है। इस परत का घनत्व 3.10 से 4.75 तक है। इसकी गहराई 1700 कि० मी० तक है। इसमें सिलिकेट तथा मैग्नीशियम की अधिकता होती है।

4. सिलिकेट तथा मिश्रित धातु परत (Sima ):
सियाल के नीचे दूसरी मुख्य परत को सीमा कहा जाता है। इसमें सिलिका तथा मैग्नीशियम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। (Sima = Silica + Magnesium) इस परत की मोटाई 1700 कि० मी० से 2900 कि०मी० है तथा इसका घनत्व 4.75 से 5 तक है। सियाल तथा सीमा को पृथक् करने वाले अन्तराल को मोहरोविसिक अन्तराल कहते हैं। इसकी रचना बैसाल्ट चट्टानों से हुई है।

5. धात्विक नाभि (Nife ):
यह सबसे निचली केन्द्रीय तथा भारी परत है। इसमें निकिल तथा फैरस अधिक मात्रा में पाया जाता है (Nife = Nickle + Ferrous) । इस परत का घनत्व 4.75 से 11 तक है। इस परत की गहराई 2900-4980 कि०मी० है। इस परत को बाह्य धात्विक क्रोड भी कहा जाता है।
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6. धात्विक क्रोड (Core):
इस परत में भारी धातुओं की अधिकता है। इसलिए इसका घनत्व 13 से 17 तक है। इसकी गहराई 4980-6400 कि० मी० तक है। इस परत को गुरुमण्डल (Bary sphere) भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
भूकम्प किसे कहते हैं? यह कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:
भूकम्प (Earthquake):
भूपृष्ठ के किसी भी भाग के अचानक हिल जाने को भूकम्प कहते हैं। (An earthquake is a sudden movement on the crust of the earth.) इस प्रकार भूकम्प धरातल का कम्पन तथा दोलन है जिसके द्वारा चट्टानें ऊपर नीचे सरकती हैं। यह एक आकस्मिक एवं अस्थायी गति है। भूकम्प अपने केन्द्र से चारों ओर तरंगों के माध्यम से आगे बढ़ता है। भूकम्प के कारण – प्राचीन काल में लोग भूकम्प को भगवान् का कोप मानते थे, परन्तु वैज्ञानिकों के अनुसार भूकम्प के निम्नलिखित कारण हैं

  1. ज्वालामुखी उद्गार (Volcanic Eruption ): ज्वालामुखी विस्फोट में शक्ति होती है जिससे विस्फोट स्थान के समीपवर्ती क्षेत्र कांप उठते हैं। सन् 1883 में क्राकटोआ विस्फोट से दूर-दूर तक भूकम्प अनुभव किए गए।
  2. विवर्तनिक कारण (Tectonic Causes ): पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण धरातल पर चट्टानों में मोड़ तथा दरारें पड़ जाती हैं । दरारों के सहारे हलचल होती है और भूकम्प आते हैं।
  3. पृथ्वी का सिकुड़ना (Contraction of Earth): तापमान कम होने से पृथ्वी सिकुड़ती है तथा चट्टानों में हलचल के कारण भूकम्प आते हैं ।
  4. लचक शक्ति (Elasticity of Rocks): जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है।
  5. सामान्य कारण (General Causes ): पर्वतीय भागों में भूस्खलन कार्स्ट प्रदेशों में गुफ़ाओं की छतों के धंसने से, तूफानी लहरों के कारण तथा अणु बमों के विस्फोट से साधारण भूकम्प उत्पन्न होते हैं ।

प्रश्न 3.
ज्वालामुखी स्थलाकृति के मुख्य लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
ज्वालामुखी क्रिया (Vulcanicity ) वह क्रिया है जिससे गर्म पदार्थ धरातल के नीचे या बाहर प्रकट होते हैं। ज्वालामुखी पृथ्वी की भीतरी शक्तियों (Internal Forces) में से एक है। ज्वालामुखी के मुख से निकले पदार्थ मुख के आस-पास जमा हो जाते हैं। धीरे-धीरे ये शंकु (Cone) का रूप धारण कर लेते हैं। इन्हें ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cones) कहते हैं। ज्वालामुखी स्थल के रूप
1. क्रेटर (Crater):
ज्वालामुखी के छिद्र के ऊपर गर्त बन जाता है। यह कटोरे के समान या कीपाकार (Funnel Shaped) होता है। क्रेटर में जल भर जाने से झील की रचना होती है। जैसे U.S.A. की क्रेटर लेक (Crater Lake) तथा महाराष्ट्र की लोनार झील।

2. काल्डेरा (Caldera ): विशाल क्रेटर को काल्डेरा कहते हैं। तीव्र विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग उड़ जाता है या क्रेटर के धंस जाने से इसका विस्तार बढ़ जाता है। जापान का काल्डेरा इतना बड़ा है कि इसे “Volcano of a Hundred Villages” कहते हैं।
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3. राख शंकु (Ash Cone): यह कम ऊंचे शंकु होते हैं जिनकी रचना धूल तथा राख से होती है। इनके किनारे अवतल (Concave) ढाल वाले होते हैं। इसे सिंडर शंकु (Cinder Cone) भी कहते हैं।
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4. शील्ड शंकु (Shield Cones): इनका निर्माण पैठिक लावा (Basic Lava) से होता है। पैठिक लावा हल्का तथा पतला होता है। इसमें सिलिका की मात्रा कम होती है। यह लावा दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार लम्बे तथा कम ऊंचे शंकु का निर्माण होता है। जैसे हवाई द्वीप समूह के ज्वालामुखी शंकु।

5. गुम्बद शंकु (Lava Dome ): इनका निर्माण एसिड लावा से होता है। यह लावा काफ़ी गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है। इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। यह मुख के निकट ही जल्दी जम कर गुम्बद बन जाता है। इस प्रकार तीव्र ढाल वाले ऊंचे शंकु का निर्माण होता है। फ्रांस में पाई डी डोम (Puy de dome) 1500 मीटर ऊंचा है।
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6. लावा डॉट (Volcanic Plugs ):
जब शंकु पूरी तरह नष्ट हो जाता है तो नली व छिद्र ठोस लावा से भर जाते हैं। यह नली एक डॉट या प्लग की तरह दिखाई देती है। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में लैसेन चोटी (Lassen Peak)।
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7. मिश्रित शंकु (Composite Cones): ये सबसे बड़े व ऊंचे शंकुओं में गिने जाते हैं। इसका निर्माण लावा, राख तथा दूसरे पदार्थों के बारी-बारी जमा होने से होता है। यह जमाव समानान्तर
परतों में होता है। इटली का स्ट्रॉम्बोली (Stromboli) इसका मुख्य उदाहरण है जिसमें प्रति घण्टा के बाद उद्गार होता है। इसे रूम क्रेटर सागर का प्रकाश स्तम्भ (Light house of the Mediterranean) कहते हैं। जापान का फ्यूजीयामा पर्वत इसका सुन्दर उदाहरण है। ढलानों पर बनने वाले छोटे-छोटे शंकुओं को परजीवी शंकु (Parastic Cone) कहते हैं।
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8. बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र (Flood basalt provinces): ये ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जो बहुत दूर तक बह निकलता है। संसार के कुछ भाग हजारों वर्ग कि० मी० घने लावा प्रवाह से ढके हैं। इनमें लावा मैग्मा प्रवाह क्रमानुसार होता है और कुछ प्रवाह 50 मीटर से भी।

अधिक मोटे हो जाते हैं। कई बार अकेला प्रवाह सैंकड़ों कि० मी० दूर तक फैल जाता है। भारत का दक्कन ट्रैप, जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार पर ज्यादातर भाग पाया जाता है, वृहत् बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि आज की अपेक्षा, आरंभ में एक अधिक वृहत् क्षेत्र इस प्रवाह से ढका था।

9. मध्य-महासागरीय कटक ज्वालामुखी-इन ज्वालामुखियों का उद्गार महासागरों में होता है। मध्य महासागरीय कटक एक श्रृंखला है जो 70,000 कि० मी० से अधिक लंबी है और जो सभी महासागरीय बेसिनों में फैली है। इस कटक के मध्यवर्ती भाग में लगातार उद्गार होता रहता है। अगले अध्याय में हम इसे विस्तारपूर्वक पढ़ेंगे।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. मृदा का निर्माण किस क्रिया द्वारा होता है?
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) परिवहन
(D) निक्षेप।
उत्तर:
अपक्षय।

2. मृदा में संयोजन के लिए कौन-सी क्रिया शक्ति नहीं है?
(A) जल
(B) ऊर्जा
(C) पवन
(D) अपरदन।
उत्तर:
अपरदन।

3. मृदा के निर्माण के रूप से महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) जनक पदार्थ
(B) जलवायु
(C) जीव पदार्थ
(D) स्थलाकृति।
उत्तर:
जनक पदार्थ।

4. क्षारीय मृदा का निर्माण किन क्षेत्रों में होता है?
(A) अधिक वर्षा वाले
(B) कम वर्षा वाले
(C) मूसलाधार वर्षा
(D) मरुस्थल में।
उत्तर:
कम वर्षा वाले।

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5. सबसे ऊपरी मृदा स्तर है
(A) अ
(B) ब
(C) स
(D) ओ।
उत्तर:

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. कण
  2. ह्यूमस
  3. खनिज

प्रश्न 2.
मिट्टी में निर्माणकारी सक्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
जलवायु तथा जैव पदार्थ।

प्रश्न 3.
मिट्टी में निर्माणकारी निष्क्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
वनस्पति, मल पदार्थ, भू-आकृति ।

प्रश्न 4.
मिट्टी में पाए जाने वाले वनस्पति अंश को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ह्यूमस।

प्रश्न 5.
मिट्टी के किस संस्तर में ह्यूमस अधिक होता है?
उत्तर:
अ’ संस्तर में ।

प्रश्न 6.
संस्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिट्टी की क्षैतिज परतों को संस्तर कहते हैं।

प्रश्न 7.
मिट्टी के भौतिक गुण बताओ।
उत्तर:

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

प्रश्न 8.
अम्लीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा कम होती है

प्रश्न 9.
क्षारीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा अधिक होती है।

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प्रश्न 10.
अनावरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों को अपरदन द्वारा नंगा करना।

प्रश्न 11.
अनावरण में सहायक दो क्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपरदन तथा अपक्षरण।

प्रश्न 12.
पदार्थों के संचलन में कौन-से दो बल सहायक हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण तथा ढाल।

प्रश्न 13.
पृथ्वी के अन्दर से निकलने वाली ऊर्जा के स्रोत बताओ।
उत्तर:
रेडियोधर्मी क्रियाएँ, घर्षण ज्वारीय घर्षण, पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी उष्मा।

प्रश्न 14.
अनाच्छदन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहिर्जनिक क्रियाओं द्वारा धरातल पर निरावृत करना या आवरण हटाना।

प्रश्न 15.
अपक्षय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपक्षय से अभिप्राय मौसम एवं जलवायु द्वारा यान्त्रिक विखंडन एवं रासायनिक अपघटन की क्रियाएं शामिल हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा तथा इसमें मिले तत्त्व बताओ।
उत्तर:
मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। यह एक धरातलीय पदार्थ है जिसमें स्पष्ट परत पाई जाती है। मिट्टी का निर्माण चट्टानों के पूर्ण तथा वनस्पति के गले – सड़े अंश से बनता है। इसमें कई तत्त्व मिले होते हैं- कण-मिट्टी के कण बारीक होते हैं जो आधार चट्टानों से भौतिक व रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त होते हैं ह्यूमस – यह मिट्टी का उपजाऊ अंश है जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल – सड़ जाने से प्राप्त होता है । खनिज – चट्टानों के अपक्षरण से कई खनिज मिट्टी में मिल जाते हैं, जैसे- लोहा, चूना आदि।

प्रश्न 2.
मिट्टी के भौतिक गुण लिखो।
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में तीन भौतिक गुण होते हैं-

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

ये गुणमिट्टी की आधार चट्टानों पर निर्भर करते हैं। रंग से मिट्टी के निर्माण का ज्ञान होता है। गठन से मिट्टी के कणों का पता चलता है। मिट्टी की संरचना से कणों की व्यवस्था का पता चलता है।

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प्रश्न 3.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material): आधार चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा संगठन मूल पदार्थों के गुणों अनुसार होता है।

प्रश्न 4.
मिट्टी के महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
मिट्टी एक प्राकृतिक सम्पत्ति है। मानव जाति सारे विश्व में मिट्टी पर ही निवास करती है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएं आधारित हैं। मिट्टी कृषि का आधार है जो मानव को भोजन प्रदान करती है। पशुपालन, वन उद्योग मिट्टी पर आधारित हैं। प्राचीन सभ्यताएं नदी घाटियों में उपजाऊ मिट्टी के कारण ही पनप सकीं। मिट्टी मानवीय व्यवसाय का आधार है। जनसंख्या का घनत्व तथा वितरण मिट्टी के उपजाऊपन तथा उत्पादकता पर निर्भर करता है । मिट्टी का मानवीय सभ्यता पर सदैव महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहेगा।

प्रश्न 5.
ह्यूमस क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है? मिट्टी के निर्माण में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ह्यूमस (Humus ):
मिट्टी में पाये जाने वाले मृत जैव पदार्थ को ह्यूमस कहते हैं जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल-सड़ जाने से प्राप्त होता है। वृक्ष, झाड़ियां, घास जैसी वनस्पति तथा जीवाणु इसके निर्माण में सहायक होते हैं। ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु तथा जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। आर्द्र जलवायु में काफ़ी संख्या में जीवाणु होते हैं तथा वे ह्यूमस पर ही जिन्दा रहते हैं, परन्तु ठण्डी जलवायु में कम जीवाणुओं के कारण ह्यूमस मिट्टी में जमा रहता है। ह्यूमस मिट्टी निर्माण तथा मिट्टी के उपजाऊपन पर प्रभाव डालता है। ह्यमस जीवाणुओं को जीवन प्रदान करके उन्हें मिट्टी निर्माण में सहायक बनाता है। ह्यूमस के कारण धरातल तथा मिट्टी का रंग बदल जाता है। ह्यूमस खनिजों के अपक्षरण में सहायक है तथा मिट्टी निर्माण की क्रिया को तेज़ करता है।

प्रश्न 6.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है? मिट्टी के निर्माण में मूल पदार्थों का क्या योगदान है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material):
आधार चट्टानों के भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण से प्राप्त होने पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इस पदार्थ में विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं जो आधार शैलों की रचना करते हैं। मिट्टी निर्माण क्रिया में मूल पदार्थ एक निष्क्रिय (Passive ) घटक है। मूल पदार्थ खनिज ही मिट्टी के निर्माण, भौतिक तथा रासायनिक अपक्षरण पर प्रभाव डालते हैं।

मिट्टी का संघटन (texture) मूल पदार्थ पर ही निर्भर करता है। मूल पदार्थ अधिकतर तलछटी शैलों से ही प्राप्त होते हैं क्योंकि भू-पृष्ठ पर तलछटी शैलों का विस्तार अधिक है। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा अपक्षरण की दर मूल पदार्थों के गुणों के अनुसार होती है। नदी तल जलोढ़ों के अपक्षरण से ही जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 7.
मिट्टी के कौन-से कार्य हैं जिनके लिए संरक्षण की ज़रूरत है?
उत्तर:
मिट्टी एक सम्पदा या संसाधन है। मिट्टी के उपजाऊपन पर कृषि तथा उत्पादकता निर्भर करती है। मिट्टी के नष्ट होने से उत्पादकता कम हो जाती है। उपजाऊ मिट्टी ही देश को खाद्य पदार्थ तथा कच्चे औद्योगिक माल प्रदान करती है। इसलिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेश ही घनी जनसंख्या के प्रदेश होते हैं।

प्रश्न 8.
ध्रुवीय प्रदेशों में पाले द्वारा अपक्षरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पाला (Frost):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है । इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ (Scree) के रूप में जमा हो जाता है । हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है । चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

प्रश्न 9.
ऑक्सीकरण तथा कार्बोनेटीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(a) ऑक्सीकरण (Oxidation ): चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है।

(b) कार्बोनेटीकरण (Carbonation ): जल में विलय कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं। प्रश्न

प्रश्न 10.
आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय मिट्टी में ह्यूमस का अभाव क्यों होता है?
उत्तर:
ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु में जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। ह्यूमस ही जीवाणुओं को जिन्दा रखता है। आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु में जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है। वे इस प्रदेश की मिट्टी में काफी अधिक क्रियाशील होते हैं। ये जीवाणु मिट्टी में से ह्यूमस समाप्त कर देते हैं। इसी कारण इन आर्द्र- ऊष्ण प्रदेशों की मिट्टी में ह्यूमस का अभाव होता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 11.
पृथ्वी पर सम्भाव्यता किस प्रकार स्थिर रखी जा सकती है?
उत्तर:
भू-तल संवेदनशील है। मानव अपने निर्वाह के लिए इस पर निर्भर करता है तथा इसका व्यापक एवं सघन उपयोग करता है। अतः इसके सन्तुलन को बनाए रखते हुए तथा भविष्य के लिए इसकी सम्भाव्यता को कम किए बिना इसके प्रभावकारी उपयोग के लिए इसकी प्रकृति को समझना परमावश्यक है। लगभग सभी जीवों का धरातल के पर्यावरण के अनुवाह में योगदान होता है। मनुष्यों ने संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। हमें इनका उपयोग करना चाहिए, किन्तु भविष्य में जीवन निर्वाह के लिए इसकी पर्याप्त सम्भाव्यता को बचाये रखना चाहिए।

धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लम्बी अवधि (सैकड़ों-हज़ारों- वर्षों) में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरुपयोग एवं कुप्रयोग के कारण इसकी सम्भाव्यता (विभव) में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है। यदि उन प्रक्रियाओं, जिन्होंने धरातल को विभिन्न आकार दिया और अभी दे रही हैं, तथा उन पदार्थों की प्रकृति जिनसे यह निर्मित है, को समझ लिया जाए तो निश्चित रूप से मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव को कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

प्रश्न 12.
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं किन बलों पर निर्भर करती हैं?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं (Physical Weathering Processes): भौतिक या यान्त्रिक अपक्षय- प्रक्रियाएं कुछ अनुप्रयुक्त बलों (Forces) पर निर्भर करती हैं। ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. गुरुत्वाकर्षक बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव एवं अपरूपण प्रतिबल (Shear stress),
  2. तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण (Expansion) बल,
  3. शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियन्त्रित जल का दबाव। इनमें से कई बल धरातल एवं विभिन्न धरातल पदार्थों के अन्दर अनुप्रयुक्त होती हैं जिसका परिणाम शैलों का विभंग (Fracture ) होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने (Release) के कारण होता है। ये प्रक्रियाएं लघु एवं मंद होती हैं परन्तु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रान्ति (Fatigue) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुंचा सकती हैं।

प्रश्न 13.
रेगोलिथ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व की विविध दृश्य – भूमियों का निर्माण मुख्यतः शैलों पर अपक्षय की क्रिया से हुआ है। ‘शैल अपक्षय’ शब्दावली का प्रयोग, रासायनिक अपघटन तथा भौतिक विघटन को बताने के लिए किया जाता है। आधार – शैलों के ऊपर अदृढ़ पदार्थों की एक परत हो सकती है, इसे रेगोलिथ या आवरण- प्रस्तर कहते हैं। रेगोलिथ ऐसी शब्दावली है, जिसका प्रयोग मोटे तौर पर आधार – शैल के ऊपर बिखरे अपेक्षाकृत अदृढ़ अथवा कोमल पदार्थों के किसी भी परत के लिए किया जाता है। जब रेगोलिथ का निर्माण ठीक इसके नीचे स्थित आधार – शैलों के अपघटन तथा विघटन से होता है तब इसे अपशिष्ट रेगोलिथ कहते हैं। नदियों, हिमानियों, पवनों द्वारा परिवहित रेगोलिथ, जिसका निक्षेपण कहीं ओर कर दिया जाता है, परिवहित रेगोलिथ कहलाता है।

प्रश्न 14.
मृदा निर्माण के लिए उत्तरदायी कारकों और उनकी प्रक्रियाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मृदा निर्माण के कारक सभी मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं अपक्षय से जुड़ी हैं। लेकिन कई अन्य कारक अपक्षय के अंतिम उत्पाद को प्रभावित करते हैं। इनमें से पांच प्राथमिक कारक हैं। ये अकेले अथवा सम्मिलित रूप से विभिन्न प्रकार की मृदाओं के विकास के लिए उत्तरदायी हैं।

मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं (Processes of Soil Formation): मृदा निर्माण में अनेक प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं और किसी सीमा तक मृदा परिच्छेदिका को प्रभावित कर सकती हैं। ये प्रक्रियाएं हैं:

  1. अवक्षालन: यह मृत्तिका अथवा अन्य महीन कणों का यांत्रिक विधि से स्थान परिवर्तन है, जिसमें वे मृदा परिच्छेदिका में नीचे ले जाए जाते हैं।
  2. संपोहन: यह मृदा परिच्छेदिका के निचले संस्तरों में ऊपर से बहाकर लाए गए पदार्थों का संचयन है।
  3. केलूवियेशन: यह निक्षालन के समान पदार्थ का नीचे की ओर संचलन है, परन्तु जैविक संकुल यौगिकी के प्रभाव में।
  4. निक्षालन: इसमें घोल रूप में पदार्थों को किसी संस्तर से हटाकर नीचे की ओर ले जाना है।

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प्रश्न 15.
मृदा भौतिक, रासायनिक तथा जैविक क्रियाओं का परिणाम है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
मृदा अपक्षयित एवं अपरदित शैल पदार्थों तथा जैविक अवशेषों के संश्लिष्ट मिश्रण का उत्पाद है। अपक्षय द्वारा संगठित पदार्थ (शैल) असंगठित पदार्थ में बदल जाते हैं। पौधों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के अपघटन से जैविक रसायन (ह्यूमस) मुक्त होते हैं। असंगठित पदार्थों के साथ इनकी अंतः क्रियाएं विभिन्न प्रकार की मृदाओं का निर्माण करती हैं। इन परिवर्तनों में संयोजन, ह्रास, रूपांतरण तथा स्थान परिवर्तन शामिल हैं।

जल ( वर्षा, सिंचाई), जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण, सूर्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा, पवन और जल से प्राप्त अवसाद, लवण एवं जैविक अवशेष संयोजन कार्य करते हैं। ह्रास के कारण हैं: मृदा जल में घुलनशील रसायन, अपरदित छोटे आकार के टुकड़े, पौधों के कटने और चराए जाने से पोषक तत्त्वों को हटाया जाना, जल की हानि, कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन की क्षति तथा नाइट्रोजन की अनाइट्रीकरण से हुई हानि रूपांतरण का कारण अनेक रासायनिक एवं जैविक प्रतिक्रियाएं हैं, जो जैविक पदार्थों को अपघटित करती हैं।

जल तथा जीव मृदा में संचलन करके विभिन्न गहराइयों पर पदार्थों का स्थान परिवर्तन करते हैं। जैविक मृदा का निर्माण पौधों के अपशिष्टों के संचयन से होता है, जो छिछले एवं स्थिर जल के अल्प ऑक्सीजन वाले पर्यावरण द्वारा सुरक्षित रखे जाते हैं। भूपृष्ठ का वह पदार्थ मृदा नहीं है, जो वनस्पति – जीवन को पोषित नहीं करता है, जैसे- पथरीली या चट्टानी भूमि तथा ग्रेट साल्ट लेक का लवणमय धरातल।

प्रश्न 16.
भू-आकृतिक कारक तथा भू-आकृतिक प्रक्रिया में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रकृति के किसी भी बहिर्जनिक तत्त्व (जैसे- जल, हिम, वायु इत्यादि), जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण (Acquire) तथा परिवहन करने में सक्षम है, को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है। जब प्रकृति के ये तत्त्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील हो जाते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं तथा भू-आकृतिक कारक विशेषकर बहिर्जनिक, को यदि स्पष्ट रूप से अलग-अलग न कहा जाए तो इन्हें एक ही समझना होगा क्योंकि ये दोनों एक ही होते हैं।

एक प्रक्रिया एक बल होता है जो धरातल के पदार्थों के साथ अनुप्रयुक्त होने पर प्रभावी हो जाता है। एक कारक (Agent) एक गतिशील माध्यम (जैसे- प्रवाहित जल, हिमनदी, हवा, लहरें एवं धाराएं इत्यादि) है जो धरातल के पदार्थों को हटाता, ले जाता तथा निक्षेपित करता है। इस प्रकार प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमनदी, हवा, लहरों, धाराओं इत्यादि को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है।

प्रश्न 17.
पटल विरूपण से क्या अभिप्राय: है? इसमें कौन-सी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं?
उत्तर:
पटल विरूपण (Diastrophism ): सभी प्रक्रियाएं जो भू-पर्पटी को संचलित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं, पटल विरूपण के अन्तर्गत आती हैं। इनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं

  1. तीक्ष्ण वलयन के माध्यम से पर्वत निर्माण तथा भू-पर्पटी की लम्बी एवं संकीर्ण पट्टियों को प्रभावित करने वाली पर्वतनी (Orogenic) प्रक्रियाएं
  2. धरातल के बड़े भाग के उत्थापन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना सम्बन्धी (Epeirogenic) प्रक्रियाएं,
  3. अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न भूकम्प,
  4. पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका प्लेट विवर्तनिक/पर्वतनी (Orogeny) की प्रक्रिया में भू-पर्पटी वलयन के रूप में तीक्ष्णता से विकृत हो जाती है।

महाद्वीप रचना के कारण साधारण विकृति हो सकती है। पर्वतनी पर्वत निर्माण प्रक्रिया है, जबकि महाद्वीप रचना महाद्वीप निर्माण-प्रक्रिया है। पर्वतनी, महाद्वीप रचना (Epeirogeny), भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिक की प्रक्रियाओं से भू-पर्पटी में भ्रंश तथा विभंग हो सकता है। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापक्रम (PVT) में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तर प्रेरित होता है ।

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प्रश्न 18.
विघटन एवं अपघटन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विघटन – भौतिक प्रक्रिया में विघटन से चट्टानें टूटती हैं। अपघटन: रासायनिक क्रिया में अपघटन के कारण जब चट्टानों पर पानी पड़ता है तो चट्टानें नर्म पड़ने से कमज़ोर हो जाती हैं जिसके कारण ये टूटती हैं।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी तथा शैल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-

मिट्टी (Soil) शैल (Rock)
(1) चट्टानों के अपक्षय तथा जैविक पदार्थों से प्राप्त होने वाले टूटे-फूटे कणों की परत को मिट्टी कहते हैं। (1) शैल प्राकृतिक रूप से ठोस जैव एवं अजैव पदार्थ हैं जो भू-पृष्ठ का निर्माण करते हैं।
(2) मिट्टी के विभिन्न संस्तर होते हैं। (2) शैल के संस्तर नहीं होते।
(3) मिट्टी की गहराई 2-3 मीटर तक सीमित होती है। (3) पृथ्वी के भीतरी भागों तक शैलें पाई जाती हैं।
(4) मिट्टी चट्टानों की टूट-फूट से प्राप्त चूर्ण से बनती है। (4) शैल कई खानिज पदार्थों के मिलने से बनती है।
मिट्टी (Soil) शैल (Rock)

प्रश्न 2.
अपरदन तथा अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

अपरदन (Erosion) अपक्षय (Weathering)
(1) भू-तल पर खुरचने, कांट-छांट तथा मलबे को परिवहन करने के कार्य को अपरदन कहते हैं। (1) इसमें रासायनिक क्रियाओं द्वारा अपघटन से चट्टानें टूटफूट जाती हैं।
(2) अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है। (2) इससे चट्टानों का रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन नहीं होता है।
(3) अपरदन गतिशील कारकों द्वारा जैसे-जल, हिमनदी, वायु आदि से होता है। (3) इस अपक्षय के उदाहरण ऊष्ण प्रदेशों में मिलते हैं।
(4) अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। (4) रासायनिक अपक्षय में कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताओ।
उत्तर:

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
(1) इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानों के विघटन से चट्टानें चूर-चूर हो जाती हैं। (1) चट्टानों के अपघटन तथा विघटन के द्वारा अपने मूल स्थान पर तोड़-फोड़ करने की क्रिया को अपक्षय कहते हैं।
(2) इससे चट्टानों के खनिजों में कोई परिवर्तन नहीं होता। (2) अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है।
(3) यह अपक्षय शुष्क तथा शीत प्रदेशों में अधिक होता है । (3) अपक्षय सूर्यातप, पाला तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
(4) भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला, वर्षा तथा वायु हैं। (4) अपक्षय चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में सहायता करता है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अपक्षय किसे कहते हैं? अपक्षय कितने प्रकार से होता है? गर्म तथा ठण्डे प्रदेशों में होने वाले यांत्रिक अपक्षय की प्रक्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपक्षय (Weathering):
पृथ्वी की बाहरी स्थिर शक्तियों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर विखंडन तथा अपघटन की क्रिया को अपक्षरण कहते हैं। इसमें चट्टानों के टूटने, भरने तथा घुलने की क्रियाएं होती हैं। [“Weathering includes the breaking up of Rocks (disintegration and decomposition) by the elements of weather.”] अपक्षरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  1. चट्टानों की संरचना:  कोमल चट्टानें शीघ्र टूट जाती हैं परन्तु कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।
  2. भूमि का ढाल: तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में अपक्षरण अधिक होती है। चट्टानों का संगठन कमज़ोर हो जाता है।
  3. शैल सन्धि: सन्धियाँ शैलों में जल के घुलने तथा भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण में सहायक होती हैं।
  4. वनस्पति: वनस्पति के ढके धरातल सुरक्षित रहते हैं। परन्तु वनस्पति रहित प्रदेशों में अपक्षरण अधिक होता है।
  5. जलवायु: आर्द्र जलवायु में रासायनिक अपक्षरण तथा शुष्क जलवायु में यान्त्रिक अपक्षरण होता है।

अपक्षरण के रूप (Types of Weathering):
(i) भौतिक अपक्षरण (Physical Weathering): यान्त्रिक साधनों द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-टूट कर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को भौतिक अपक्षरण कहते हैं। इस अपक्षरण से चट्टानों का विघटन ( Disintegration) होता है।

1. सूर्यताप (Temperature ):
सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एक दम गर्म होकर फैलती हैं तथा त को तेज़ी से ठण्डी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने तथा सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें (Cracks) तथा सन्धियां (Joints) पड़ जाती हैं तथा चट्टानें टूटती हैं और चूर-चूर हो जाती हैं। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्यताप द्वारा अपक्षरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  1. मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक तथा शीघ्र अपक्षरण होता है।
  2. काले रंग की चट्टानों पर अधिक अपक्षरण होता है।
  3. पर्वतीय ढलानों तथा मरुस्थलों में अपक्षरण महत्त्वपूर्ण है ।

2. पाला (Frost ):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में जल भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं । यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ Scree के रूप में जमा हो जाता है। हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

3. वर्षा (Rainfall):
वर्षा का जल बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है तथा कई प्रभाव डालता है।
(a) मिट्टी कटाव (Soil Erosion ): ढलान भूमि पर नदी घाटियों से वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले जाता है तथा मिट्टी कटाव की समस्या उत्पन्न होती है।

(b) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land ): मूसलाधार वर्षा के कारण जल नालियां (Gullies) तथा खाइयां (Ravines) बनाकर बंजर व अस्त-व्यस्त धरातल बना देता है, जैसे- भारत में चम्बल घाटी में।

(c) मिट्टी के स्तम्भ ( Earth Pillars ): वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है परन्तु कठोर चट्टान एक टोपी (Cap) का कार्य करती है तथा मिट्टी के स्तम्भ खड़े रहते हैं। जैसे इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमालय के स्पीती (Spiti) प्रदेश में।

(d) भू- फिसलन (Land Slides): वर्षा का जल चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी कर देता है तथा चट्टानें ढलान की ओर फिसल जाती हैं। अधिक वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भू- फिसलन के कारण सड़कें रुक जाती हैं।

4. वायु (Wind):
हवा का अपक्षय मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों या वनस्पति रहित प्रदेशों में होता है। रेत से लदी वायु एक रेगमार (Sand paper) की भांति चट्टानों को चूर-चूर कर देती है।
(a) मरुस्थलों में से गुज़रने वाली रेलगाड़ियों को हर साल रंग (Paint) करना पड़ता है।
(b) टैलीग्राफ की तारें वायु के प्रहार से घिस जाती हैं।
(c) समुद्र तट की ओर साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं जैसे दानेदार शीशे (Frosted glass) हों।
(d) चट्टानों का आकार अद्भुत हो जाता है। जैसे राजस्थान में माऊंट आबू के निकट Toad Rock |

(ii) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering): ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों व रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली पड़ जाती हैं पर अलग-अलग नहीं होतीं। इसे अपघटन (Decomposition) कहते हैं। यह रासायनिक अपक्षय कई प्रकार से होता है।
1. ऑक्सीकरण (Oxidation):
चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है। ऑक्सीजन की कमी के कारण न्यूनीकरण (Reduction) की क्रिया आरम्भ हो जाती है। इस क्रिया से लोहे का लाल रंग हरे या आसमानी धूसर रंग में बदल जाता है।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation ):
जल में विलय कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं।

3. जलयोजन (Hydration):
हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें भीतर ही भीतर पिस कर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Kaolin) का जन्म इसी प्रकार फैल्सपार (Felspar) चट्टानों के अपघटन से हुआ है ।

4. घोलीकरण (Solution ):
पानी कई खनिजों को घुला देता है। यह खनिज घुल कर चट्टानों से बह जाते हैं। जैसे चूना मिट्टी में से घुल कर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटेराइट ( Laterite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

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प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के बृहत्-क्षरण (Mass Wasting) की व्याख्या करो।
उत्तर:
बृहत्-क्षरण (Mass Wasting ):
गुरुत्वाकर्षण बल निरन्तर मृदा, रेगोलिथ तथा आधार – शैलों पर क्रियाशील रहता है। जहां भी धरातल ढलुआ होता है, गुरुत्वाकर्षण बल ढाल से नीचे की ओर पृष्ठ के समानांतर संचलित होता है। प्रत्येक कण ढालों के साथ ऊपर से नीचे लुढ़कने या सरकने की प्रवृत्ति रखता है और ऐसा होता भी है, जब अनुढाल बल घर्षण अधिक हो जाता है। बृहत्-क्षरण के प्रकार (Types of Mass Wasting ): बृहत्-क्षरण के रूप प्रलयकारी अवसर्पण से लेकर जल-संतृप्त मृदा के मंद प्रवाह तक हो सकते हैं। इसके विभिन्न प्रकार हैं:

  1. शैलों का गिरना,
  2. लरज़ कर गिर पड़ना,
  3. स्खलन,
  4. प्रवाह।

1. मृदा सर्पण (Soil Crecp):
पर्वतीय ढालों का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने पर अक्सर इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि मृदा लंबे काल से पर्वत ढाल के सहारे अति मंद गति से नीचे की ओर निरन्तर संचलित हो रही है। इस घटना को मृदा सर्पण कहते हैं। यह अपरूपण का प्रभाव है, जो शैलों में अनगिनत संधि विभागों और संस्तरणों या विदलन पृष्ठों के साथ – साथ वितरित हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ  1

2. मृदा प्रवाह (Earth Flow):
आर्द्र जलवायु वाले पर्वतीय तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जल-संतृप्त मिश्रित मृदा तथा मृत्तिका खनिजों में धनी रेगोलिथ मृदा-प्रवाह का रूप लेते हैं। मृदा प्रवाह एक प्रकार का बृहत्-क्षरण है, जिसमें भूपदार्थ का आचरण सुघट्य ठोस जैसा होता है। वृक्ष विहीन टुंड्रा प्रदेश में मृदा प्रवाह का आर्कटिक प्रकार अंग्रेज़ी में सॉलीफ्लक्शन कहलाता है परन्तु हिन्दी में यह मृदा सर्पण ही कहलाता है।
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3. पंक प्रवाह (Mud Flow):
यदि खनिज पदार्थों के अनुपात में जल की मात्रा अधिक होती है, तो यह बृहत्-क्षरण पंक प्रवाह का रूप ले लेता है। यह नदी मार्गों में तेज़ी के साथ यात्रा करता है। पंक प्रवाह उच्च पर्वतों पर भी उत्पन्न होता है, जहां सर्दियों में एकत्र हिम पिघल कर मृत्तिका समृद्ध अपक्षयित शैल को उठा लेता है।

4. शैल स्खलन (Land Slide ):
सीधे शैल- भृगु के किनारे भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया शैल को अदृढ़ बना देती है। जब गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें नीचे लाता है, तो इसे शैलपात का नाम दिया जाता है। गिरते हुए शैल खंड टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं और ऐसी ढाल का निर्माण करते हैं, जिस पर अदृढ़ पदार्थ बिखरे पड़े रहते हैं, जिन्हें शैल मलबा जुड़े हुए खंडों का संचालन पात क्षेत्र स्तर का नीचे की ओर मुड़ना बाड़, स्मृति पत्थर और तार के स्तम्भों का झुकना टूटी हुई शेष दीवारें मृदा सर्पण क्षेत्र कगार स्खलन आधार शैल क्षेत्र पात कहते हैं। एक शैल खंड का अकेले धरातल पर नीचे लुढ़कना शैल स्खलन कहलाता है। जब कोई अकेला शैल खंड अपने क्षैतिज अक्ष पर पीछे की ओर सर्पिल होकर एक वक्र विभंग’ तल पर लुढ़कता है तो उसे अवसर्पण कहते हैं।
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JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. निम्नलिखित में से कौन-सी शैल आग्नेय शैल है?
(A) कोयला
(B) क्वार्ट्ज़
(C) बेसाल्ट
(D) संगमरमर।
उत्तर:
(C) बेसाल्ट।

2. संगमरमर किस प्रकार की शैल है?
(A) आग्नेय
(B) तलछटी
(C) परिवर्तित
(D) अवसादी।
उत्तर:
(C) परिवर्तित।

3. आग्नेय चट्टानों में निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता है?
(A) परतें
(B) कण
(C) तलछट
(D) रवे।
उत्तर:
(D) रवे।

4. निम्नलिखित में से कौन-सी रूपान्तरित चट्टान है?
(A) संगमरमर
(B) बेसाल्ट
(C) पीट
(D) बलुआ पत्थर।
उत्तर:
(A) संगमरमर।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

5. निम्नलिखित में से कौन-सी चट्टान संगमरमर का मूल रूप है?
(A) बेसाल्ट
(B) ग्रेनाइट
(C) चूने का पत्थर
(D) शैल।
उत्तर:
चूने का पत्थर।

6. भूपर्पटी का निर्माण करने वाले पदार्थों को कहते हैं
(A) चट्टानें
(B) खनिज
(C) धातुएं
(D) लावा।
उत्तर:
(A) चट्टानें।

7. भूपर्पटी के नीचे पाए जाने वाले अत्यन्त गर्म तथा पिघले हुए पदार्थ को कहते हैं
(A) लावा
(B) मैग्मा
(C) रायोलाइट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
मैग्मा।

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8. आग्नेय चट्टानों की रचना होती है
(A) अधिक दबाव से
(B) मैग्मा तथा लावा के ठोस बनने से
(C) टूटे हुए रवों के मिल जाने से
(D) नदियों के निक्षेप से।
उत्तर:
(B) मैग्मा तथा लावा के ठोस बनने से।

9. पहले से बनी चट्टानों के असंगठित तथा टूटे हुए रवों से बनती हैं
(A) अवसादी चट्टानें
(B) जैव चट्टानें
(C) आग्नेय चट्टानें
(D) रूपांतरित चट्टानें।
उत्तर:
अवसादी चट्टानें।

10. निम्नलिखित में से कौन-सी रूपान्तरित चट्टान है?
(A) ग्रेनाइट
(B) ग्रेफाइट
(C) ग्रिट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
ग्रेफाइट।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थलमण्डल में पाये जाने वाझले दो तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर:
सिलिकॉन तथा एल्यूमीनियम।

प्रश्न 2.
चट्टान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थलमण्डल के कठोर खनिज।

प्रश्न 3.
चट्टानों के रंग तथा कठोरता किन तत्त्वों पर निर्भर करते हैं?
उत्तर:
खनिजों की रचना।

प्रश्न 4.
चट्टानों से प्रभावित एक वस्तु का नाम लिखो।
उत्तर:
भू-आकार।

प्रश्न 5.
चट्टानों की तीन मुख्य किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. आग्नेय चट्टानें
  2. अवसादी या तलछटी चट्टानें
  3. रूपांतरित चट्टानें।

प्रश्न 6.
IGNEOUS शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह लेटिन शब्द Ignis से बना है। (अर्थ अग्नि है)।

प्रश्न 7.
लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से क्यों ठण्डा हो जाता है?
उत्तर:
वायुमण्डल के सम्पर्क में होने के कारण।

प्रश्न 8.
बाह्य आग्नेय चट्टान की एक उदाहरण दो।
उत्तर:
बसॉल्ट।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 9.
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों के दो प्रकार लिखो।
उत्तर:
बाह्य तथा भीतरी चट्टानें।

प्रश्न 10.
उत्पत्ति के आधार पर आग्नेय चट्टानें कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी चट्टानें तथा पातालीय चट्टानें।

प्रश्न 11.
पातालीय शब्द कहां से बना?
उत्तर:
यह शब्द (Pluto) से बना जिसका अर्थ पाताल देवता है।

प्रश्न 12.
बसॉल्ट में रवे क्यों नहीं होते?
उत्तर:
लावा के तेज़ी से ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 13.
पातालीय चट्टानों की एक उदाहरण दें।
उत्तर:
ग्रेनाइट।

प्रश्न 14, ग्रेनाइट में बड़े रवे क्यों होते हैं?
उत्तर:
मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 15.
Sedimentary शब्द किस शब्द से बना है?
उत्तर;
Sadimentum शब्द से, जिसका अर्थ है नीचे बैठना।

प्रश्न 16.
अवसादी चट्टानों के लिये निक्षेप करने वाले कार्यकर्ता बताओ।
उत्तर:
नदी, वायु, ग्लेशियर।

प्रश्न 17.
तलछट को कठोर बनाने में किस तत्त्व का योगदान है?
उत्तर:
सिलिका, कैल्साइट आदि संयोजक पदार्थ।

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प्रश्न 18.
बनावट के आधार पर अवसादी चट्टानों की तीन किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:

  1. यांत्रिक क्रिया द्वारा
  2. रासायनिक क्रिया द्वारा
  3. जैविक क्रिया द्वारा।

प्रश्न 19.
कार्बन प्रधान चट्टान की एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कोयला।

प्रश्न 20.
कोयले की विभिन्न किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:
पीट लिग्नाइट, बिटुमिनस तथा एंथ्रासाइट।

प्रश्न 21.
चूना प्रधान चट्टानों की दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चाक तथा चूने का पत्थर।

प्रश्न 22.
अवसादी चट्टानों में पाये जाने वाले दो फ़ॉसिल ईंधन बताएं।
उत्तर:
कोयला तथा पेट्रोलियम।

प्रश्न 23.
रासायनिक क्रिया द्वारा निर्मित दो चट्टानों के नाम लिखो।
उत्तर:
जिप्सम तथा चट्टानी नमक।

प्रश्न 24.
रूपांतरित शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
रूप में परिवर्तन।

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प्रश्न 25.
चट्टानें अपना रंग तथा रचना क्यों बदल लेती हैं?
उत्तर:
ताप तथा दबाव के कारण।

प्रश्न 26.
चट्टानें कितनी प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
तीन:

  1. अवसादी
  2. आग्नेय
  3. कायान्तरित।

प्रश्न 27.
पैंसिल का सिक्का किस चट्टान से बनता है?
उत्तर:
ग्रेफाइट।

प्रश्न 28.
किन चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें कहा जाता है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानें।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थल मण्डल किसे कहते हैं? स्थल मण्डल की कितनी गहराई तक चट्टानें पाई जाती हैं?
उत्तर:
स्थल मण्डल (Lithosphere) का अर्थ है चट्टानों का परिमण्डल। पृथ्वी की बाहरी ठोस पर्त को भूपर्पटी (Crust) कहते हैं। यह क्षेत्र चट्टानों का बना हुआ है। धरातल से लगभग 16 कि०मी० की गहराई तक स्थल मण्डल में चट्टानें पाई जाती हैं।

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प्रश्न 2.
शैल (Rock) की परिभाषा दो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं। (“Any natural, solid organic or inorganic material out of which the crust is formed is called a Rock.”) शैल ग्रेनाइट की भान्ति कठोर या पंक की भान्ति नरम भी हो सकती है। भू-पृष्ठ शैलों का बना हुआ है। शैल की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। कुछ शैल ऐसे भी हैं जिनमें एक ही प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। खनिज पदार्थों की विभिन्न मात्रा के कारण ही हर शैल की कोमलता या कठोरता, रंग-रूप, गुण व शक्ति अलग-अलग होती है।

प्रश्न 3.
खनिज की परिभाषा दें।
उत्तर:
शैलों की रचना पदार्थों के इकट्ठा होने से होती है। खनिज प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला एक अजैव तत्त्व (Inorganic element) या यौगिक (Compound) है। इसकी एक निश्चित रासायनिक रचना होती है। इसके संघटन में आण्विक संरचना पाई जाती है। इसके भौतिक गुण भी निश्चित होते हैं । अतः खनिज प्रकृति में पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ हैं। ये पदार्थ तत्त्व भी हो सकते हैं और यौगिक भी।

प्रश्न 4.
शैल निर्माणकारी खनिज किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर लगभग 2000 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं, परन्तु इनमें से केवल 12 खनिज ही मुख्य रूप से भू-पृष्ठ की शैलों का निर्माण करते हैं। इन खनिजों को शैल निर्माणकारी खनिज ( Rock forming Minerals) कहते हैं। इन खनिजों में सिलिकेट सब से महत्त्वपूर्ण एवं प्रधान होता है । इन शैलों में सबसे सामान्य खनिज क्वार्टज़ (Quartz) पाया जाता है।

प्रश्न 5.
खनिज कितने तत्त्वों से बनते हैं? मुख्य तत्त्व कौन-से हैं? सिलिका तथा चूने के कार्बोनेट में कौनतत्त्व हैं?
उत्तर:
सामान्य खनिज 8 मुख्य तत्त्वों (Elements) से बनते हैं। इनमें से सिलिकेट, कार्बोनेट, ऑक्साइड तत्त्वों की मात्रा अधिक है। भू-पटल के खनिजों में 87% खनिज सिलिकेट हैं । सिलिका में 2 तत्त्व हैं – सिलिकॉन तथा ऑक्सीजन । चूने के कार्बोनेट में 3 तत्त्व हैं – कैल्शियम, कार्बन, ऑक्सीजन ।

प्रश्न 6.
‘चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं ।’ व्याख्या करें।
उत्तर:
चट्टानें पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। इसमें पाये जाने वाले खनिज तथा इनसे बनी मिट्टी प्राकृतिक वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पतियों के अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति व समय के बारे में जानकारी देते हैं। इसलिये कहा जाता है, ” चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं तथा जीवावशेष उसके अक्षर हैं।” (“Rocks are the pages of Earth History and Fossils are the writing on it.”)

प्रश्न 7.
पृथ्वी की पर्पटी में कौन से प्रमुख तत्त्व हैं?
उत्तर:
पृथ्वी विभिन्न तत्त्वों से बनी हुई है। इनकी बाहरी परत पर ये तत्त्व ठोस रूप में और आंतरिक परत में ये गर्म एवं पिघली हुई अवस्था में पाये जाते हैं। पृथ्वी के सम्पूर्ण पर्पटी का लगभग 98 प्रतिशत भाग आठ तत्त्वों, जैसे ऑक्सीजन, सिलिकान, एल्यूमीनियम, लोहा, कैल्शियम, सोडियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम से बना है तथा शेष भाग टाइटेनियम, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, मैंगनीज, सल्फर, कार्बन, निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है।

सारणी पृथ्वी के पर्पटी के प्रमुख तत्त्व:

पदार्थ वज्रन के अनुसार $(\%)$
1. ऑक्सीजन 46.60
2. सिलिकन 27.72
3. एल्यूमीनियम 8.13
4. लौह 5.00
5. कैल्शियम 3.63
6. सोडियम 2.83
7. पोटैशियम 2.59
8. मैग्नीशियम 2.09
9. अन्य 1.41

प्रश्न 8.
धात्विक तथा अधात्विक खनिजों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
धात्विक खनिज-इनमें धातु तत्त्व होते हैं, तथा इनको तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
(क) बहुमूल्य धातु-स्वर्ण, चांदी, प्लैटिनम आदि।
(ख) लौह धातु-लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलायी जाने वाली अन्य धातुएं।
(ग) अलौहिक धातु-इनमें ताम्र, सीसा, जिंक, टिन, एल्यूमीनियम आदि धातु शामिल होते हैं।
अधात्विक खनिज-इनमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं। गंधक, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज हैं। सीमेंट अधात्विक खनिजों का मिश्रण है।

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प्रश्न 9.
रवों (Crystals) का निर्माण किस तत्त्व पर निर्भर करता है?
उत्तर:
पिघले हुए लावा के ठण्डा होने से रवों का निर्माण होता है । रवों का आकार छोटा या बड़ा हो सकता है। रवों का आकार मैग्मा के शीतलन (rate of cooling of magma) की क्रिया पर निर्भर करता है। धरातल पर शीघ्र ही ठण्डा होने के कारण धरातल पर बनने वाले रवों का आकार छोटा होता है। इनका गठन कांच जैसा होता है, जैसे बेसॉल्ट। मैग्मा के शीतलन की क्रमिक क्रिया से बड़े-बड़े रवों का निर्माण होता है। मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने से पातालीय चट्टानों में बड़े आकार के रवों या मोटे दोनों वाले गठन का निर्माण होता है, जैसे ग्रेनाइट।

प्रश्न 10.
दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) से क्या अभिप्राय है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में बसाल्ट चट्टानों से ढके हुये विशाल क्षेत्र को दक्कन ट्रैप कहते हैं। इस क्षेत्र का विस्तार लगभग 5,00,000 वर्ग कि०मी० है। इन चट्टानों के अपक्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण हुआ है जिसे ‘रेगर’ (Regur) मिट्टी कहते हैं। यह मिट्टी कपास की कृषि के लिये उत्तम है।

प्रश्न 11.
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टान क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानें पृथ्वी पर सबसे प्राचीन चट्टानें हैं। आरम्भ में पृथ्वी पर मूल पदार्थ मैग्मा (Magma) पिघली हुई अवस्था में था। इस मैग्मा के ठण्डा तथा ठोस होने से आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। इस प्रकार पृथ्वी पर सर्वप्रथम बनने के कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary rocks) कहा जाता है। इसके पश्चात् दूसरी चट्टानों का निर्माण आग्नेय चट्टानों से प्राप्त तलछट से हुआ।

प्रश्न 12.
तलछटी चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) सुरक्षित रहते हैं जबकि आग्नेय चट्टानों में नहीं। क्यों?
उत्तर:
जीवावशेष वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के बचे-खुचे भाग होते हैं। तलछटी चट्टानें परतों में पाई जाती हैं। इन परतों के बीच ये जीवावशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति के समय का ज्ञान देते हैं । आग्नेय चट्टानों में पर्ते नहीं पाई जातीं । आग्नेय चट्टानों के निर्माण में गर्म मैग्मा के कारण ये अवशेष झुलस जाते हैं तथा नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
खनिज संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
खनिज संसाधनों को पाँच प्रमुख निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है

  1. लौह धातु-खनिज जिसमें लोहे का अंश होता है। जैसे-लोहा अयस्क, निकल, कोबाल्ट आदि।
  2. अलौह धातु-खनिज जिसमें लौह अयस्क के अलावा धातुएं पाई जाती हैं। जैसे-तांबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट।
  3. बहुमूल्य खनिज-ऐसे खनिज जिनका आर्थिक मूल्य उच्च होता है। जैसे–सोना, चाँदी आदि।
  4. अधात्विक खनिज-यह वे खनिज हैं जिसमें धातुएं नहीं पाई जाती हैं। जैसे-अभ्रक, नमक, पोटाश, सल्फर आदि।
  5. ऊर्जा खनिज-ऐसे खनिज जो ऊर्जा उपलब्ध करवाते हैं। जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
खनिजों का आर्थिक महत्त्व बताओ।
उत्तर:
खनिज संसाधनों को चार प्रमुख वर्गों में बांटा जा सकता है आवश्यक संसाधन, ऊर्जा संसाधन, धातु संसाधन तथा औद्योगिक संसाधन इनमें से सर्वाधिक आधारभूत वर्ग, आवश्यक संसाधन वर्ग है, जिसमें मृदा तथा जल शामिल है। ऊर्जा संसाधन को जीवाश्मी ईंधन (कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयले, शैल तेल तथा तारकोल, बालू) तथा परमाणु ईंधन (यूरेनियम, थोरियम एवं भूतापीय ऊर्जा ) में विभक्त किया जा सकता है धात्विक संसाधनों में, संरचनात्मक धातुओं जैसे लोहा, एल्यूमीनियम एवं टिटैनियम से लेकर अलंकारी एवं औद्योगिक धातुएं जैसे- सोना, प्लैटिनम तथा सैलियम शामिल हैं।

औद्योगिक खनिजों में 30 से अधिक वस्तुएं (पण्य) सम्मिलित हैं जैसे- नमक, एस्बेस्टास तथा बालू खनिज निक्षेपों की दो भू-वैज्ञानिक विशेषताएं हैं जो आधुनिक सभ्यता के लिए चुनौती उपस्थित करती हैं। प्रथम लगभग सभी संसाधन नवीकरण योग्य नहीं हैं। भू-वैज्ञानिक क्रियाएं, जिनके द्वारा इनका निर्माण होता है, बहुत धीरे-धीरे काम करती हैं, जबकि इनके दोहन की दर इससे काफ़ी अधिक है। खनिज निक्षेपों को उनके उपभोग की दर के बराबर पैदा करने की हमारी योग्यता तथा क्षमता होने की कोई संभावना नहीं है। द्वितीय खनिज निक्षेपों की महत्ता स्थानबद्ध है। हम यह निर्धारित नहीं कर सकते कि कहां इनका दोहन किया जाए। प्रकृति हमारे लिए यह निर्णय उसी समय लेती है, जबकि इनका निक्षेपण होता है

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
आग्नेय चट्टानों तथा तलछटी चट्टानों में अन्तर बताओ
उत्तर:

आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks) तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
1. रूप-ये चट्टानें ढेरों (Bulks) में पाई जाती हैं। 1. ये चट्टानें परतों (Layers) में पाई जाती हैं।
2. कारण-इन चट्द्रानों में चपढे तल वाले रवे (Crystals) मिलते हैं। 2. इन चट्टानों में विभिन्न आकार के गोल कण (Particles) मिलते हैं।
3. रचना-ये चट्टानें लावा (Magma) के ठण्डा व ठोस होने से बनती हैं । 3. ये चट्टानें तलछट (Sediments) की परतों के निरन्तर जमाव से बनती हैं।
4. कठोरता-ये चट्यनें कठोर होती हैं। 4. ये चट्टानें नर्म होती हैं।
5. अवशेष-इनमें जीव-अवशेष (Fossils) नहीं पाए जाते । 5. इन चट्टानों में जीव अवशेष सुरक्षित रहते हैं।
6. निर्माण काल-सर्व-प्रथम बनने के कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं। 6. आग्नेय चट्टानों के क्षय के बाद में बनने के कारण इन्हें गौण चट्टानें (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
7. अपरदन-इन चट्टानों पर ॠतु प्रहार कम होता है। 7. ये चट्टानें ऋतु प्रहार से शीघ्र टूट जाती हैं।
8. खण्ड-इनमें जोड़ (Joints) पाए जाते हैं। 8. इनमें जोड़ नहीं पाए जाते।
9. आग्नेय चद्टानें अप्रवेशीय (Imprevious) होती हैं। 9. ये अधिकतर प्रवेशीय (Previous) होती हैं।