JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए।
1. महासागरों में लवणता की मात्रा को प्रभावित करने वाला अधिक महत्त्वपूर्ण कारक कौन-सा है?
(A) धाराएं
(B) प्रचलित पवनें
(C) वाष्पीकरण की मात्रा
(D) जल का मिश्रण।
उत्तर;
(C) वाष्पीकरण की मात्रा।

2. संसार में औसत सागरीय लवणता कितनी है?
(A) 35 प्रति हज़ार ग्राम
(B) 210 प्रति हजार ग्राम
(C) 16 प्रति हजार ग्राम
(D) 112 प्रति हज़ार ग्राम।
उत्तर:
(A) 35 प्रति हजार ग्राम।

3. निम्नलिखित में से किस सागर में सबसे अधिक लवणता पाई जाती है?
(A) लाल सागर
(B) बाल्टिक सागर
(C) मृत सागर
(D) रूम सागर।
उत्तर:
(C) मृत सागर।

4. निम्नलिखित में से प्रशान्त महासागर में चलने वाली धारा कौन-सी है?
(A) मडगास्कर धारा
(B) खाड़ी की धारा
(C) क्यूरोसिवो धारा
(D) लैब्रेडार धारा।
उत्तर:
(C) क्यूरोसिवो धारा।

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5. महासागरीय जल की लवणता मुख्यतः निर्भर करती है:
(A) वाष्पीकरण की मात्रा पर
(B) मीठे जल की आपूर्ति पर
(C) महासागरीय जल के परस्पर मिश्रण पर
(D) वाष्पीकरण की मात्रा और मीठे जल की आपूर्ति के बीच अन्तर पर ।
उत्तर:
(A) वाष्पीकरण की मात्रा पर।

6. कलासागर में लवणता का मध्यमान है:
(A) 170 प्रति हज़ार
(B) 18 प्रति हज़ार
(C) 40 प्रति हज़ार
(D) 330 प्रति हज़ार।
उत्तर:
(B) 18 प्रति हज़ार।

7. विषुवतीय क्षेत्र में सामान्यतः लवणता कम होती है, क्योंकि यहां
(A) वाष्पीकरण अधिक होता है।
(B) वर्षा अधिक होती है
(C) बड़ी-बड़ी नदियां आकर गिरती हैं।
(D) वाष्पीकरण की मात्रा की तुलना में मीठे जल की आपूर्ति अधिक होती है।
उत्तर;
(A) वाष्पीकरण अधिक होता है।

8. महासागरीय धाराओं का प्रमुख कारण है:
(A) पवन की क्रिया
(B) महासागरीय जल के घनत्व में अन्तर
(C) पृथ्वी का घूर्णन
(D) स्थलखण्डों की रुकावट ।
उत्तर:
(A) पवन की क्रिया।

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9. तटीय भागों में टूटती हुई तरंगों को क्या कहते हैं?
(A) स्वेल
(B) सी
(C) सर्फ
(D) बैकवाश।
उत्तर:
(C) सर्फ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरीय जल के तापन की मुख्य क्रियाएं बताओ।
उत्तर:
विकिरण तथा संवहन।

प्रश्न 2.
ज्वार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:  लघु ज्वार, बृहत् ज्वार।

प्रश्न 3.
महासागरों में लवणता के स्रोत बताओ।
उत्तर: नदियां, लहरें , ज्वालामुखी , रासायनिक क्रियाएं।

प्रश्न 4.
सागरीय जल के प्रमुख लवण बताओ।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड
  2. मैग्नेशियम क्लोराइड
  3. मैग्नेशियम सल्फेट
  4. कैल्शियम सल्फेट
  5. पोटाशियम सल्फेट।

प्रश्न 5.
महासागरीय जल की तीन गतियां बताओ।
उत्तर: तरंगें , धाराएं,  ज्वार-भाटा।

प्रश्न 6.
तरंग के दो भाग बताओ
उत्तर:
शीर्ष तथा गर्त।

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प्रश्न 7.
तरंगों के तीन मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:  सर्फ, स्वैश, अधः प्रवाह

प्रश्न 8.
बृहत् ज्वार कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन

प्रश्न 9.
लघु ज्वार कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
कृष्ण तथा शुक्ल अष्टमी के दिन।

प्रश्न 10.
भूमध्य रेखा 40° तथा 60° अक्षांश पर महासागरीय जल का तापमान कितना होता है?
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखा – 26°C
  2. 40°C अक्षांश – 14°C
  3. 60°C अक्षांश -1°C

प्रश्न 11.
प्लावी हिमशैल (Icebergs) के दो स्रोत बताओ।
उत्तर:
अलास्का तथा ग्रीनलैंड

प्रश्न 12.
घिरे हुए तीन सागरों के नाम तथा लवणता लिखो।
उत्तर:

  1. ग्रेट साल्ट झील – 220 प्रति हज़ार
  2. मृत सागर – 240 प्रति हज़ार
  3. वान झील – 330 प्रति हज़ार

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प्रश्न 13.
अन्ध महासागर में सबसे महत्त्वपूर्ण गर्म धारा कौन-सी है?
उत्तर:
खाड़ी की धारा

प्रश्न 14.
जापान के पूर्वी तट पर कौन- सी गर्म धारा बहती है?
उत्तर:
क्यूरोशियो।

प्रश्न 15.
ज्वार-भाटा के उत्पन्न होने के मुख्य कारण लिखो।
उत्तर:
चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति।

प्रश्न 16.
महासागरों में मिलने वाले दो प्रमुख लवण तथा उनकी मात्रा लिखो।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड = 77.7%,
  2. मैग्नेशियम क्लोराइड = 10.9%

प्रश्न 17.
भूमध्य रेखा के समीप महासागरीय लवणता कम क्यों होती है?
उत्तर:
अधिक वर्षा के कारण

प्रश्न 18.
काला सागर में लवणता क्यों कम है?
उत्तर:
अनेक नदियों से स्वच्छ जल की प्राप्ति।

प्रश्न 19.
लाल नागर में अधिक लवणता के दो कारण लिखो।
उत्तर:
नदियों का अभाव तथा अधिक वाष्पीकरण।

प्रश्न 20.
‘सर्फ’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
तटीय क्षेत्रों में टूटती हुई तरंग को सर्फ कहते हैं

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प्रश्न 21.
ज्वार की ऊंचाई सर्वाधिक कहां होती है?
उत्तर:
फंडी की खाड़ी (नोवास्कोशिया) 15 से 18 मीटर।

प्रश्न 22.
न्यू फाउंडलैंड के निकट कोहरा क्यों उत्पन्न होता है?
उत्तर:
लैब्रोडोर की ठण्डी धारा तथा खाड़ी की गर्म धारा के मिलने से।

प्रश्न 23.
प्रशान्त महासागर की दो ठण्डी धाराओं के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. पेरू की धारा,
  2. कैलीफोर्निया की धारा।

प्रश्न 24.
महासागरों में औसत लवणता कितनी है?
उत्तर:
35 प्रति हज़ार ग्राम।

प्रश्न 25.
कालाहारी मरुस्थल के पश्चिमी तट पर कौन-सी धारा बहती है?
उत्तर:
बेंगुएला धारा।

प्रश्न 26.
दो ज्वारों के बीच कितने समय का अन्तर होता है?
उत्तर:
12 घण्टे 26 मिनट।

प्रश्न 27.
दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर दक्षिण की ओर कौन-सी धारा बहती है?
उत्तर;
हम्बोल्ट ठण्डी धारा।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरीय जल धाराओं की सामान्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. जलधाराएं निरन्तर एक निश्चित दिशा में प्रवाह करती हैं।
  2. निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराओं को गर्म जल- – धाराएं कहते हैं।
  3. उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराओं को ठण्डी जल- धाराएं कहते हैं।
  4. उत्तरी गोलार्द्ध की जल- धाराएं अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध की जल- धाराएं अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं।
  5. निम्न अक्षांशों में पूर्वी तटों पर गर्म जल – धाराएं तथा पश्चिमी तटों पर ठण्डी जल- धाराएं बहती हैं।
  6. उच्च अक्षांशों में पश्चिमी तटों पर गर्म जल – धाराएं और पूर्वी तटों पर ठण्डी जल-धाराएं बहती हैं।

प्रश्न 2.
प्लावी हिम- शैल किसे कहते हैं? इनके स्रोत बताओ।
उत्तर:
प्लावी हिम शैल (Icebergs):
तैरते हुए हिमखण्डों के बहुत बड़े पिण्डों को प्लावी हिम शैल कहते हैं। ये हिमखण्डों से टूट कर महासागर में अलग तैरते हैं। इनका 1/10 भाग ही जलस्तर के ऊपर दिखाई देता है। उत्तरी अन्धमहासागर में इनकी अधिक संख्या है। ये अधिकतर ग्रीनलैण्ड की हिमानियों से उत्पन्न होते हैं। अलास्का तथा अंटार्कटिका हिम चादर से भी हिमशैल टूटते हैं। ये नौका संचालन के लिए खतरनाक हैं तथा कई दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।

प्रश्न 3.
साउथैम्पन ( इंग्लैण्ड) के तट पर प्रतिदिन चार बार ज्वार क्यों आते हैं?
उत्तर:
सामान्यतः ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं । परन्तु साउथैम्पन (इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट) पर ज्वार प्रतिदिन चार बार आते हैं। यह प्रदेश इंग्लिश चैनल द्वारा उत्तरी सागर तथा अन्धमहासागर को जोड़ता है। दो बार ज्वार अन्धमहासागर की ओर से आते हैं तथा दो बार ज्वार उत्तरी सागर की ओर से आते हैं।

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प्रश्न 4.
हुगली नदी में नौका संचालन के लिए ज्वार भाटा का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
ऊंचे ज्वार आने पर नदियों के मुहाने पर जल अधिक गहरा हो जाता है। इस प्रकार बड़े-बड़े जलयान नदी में कई मील भीतर तक प्रवेश कर जाते हैं। कोलकाता हुगली नदी के किनारे समुद्रतट से 120 कि० मी० दूर स्थित है, परन्तु हुगली नदी में आने-जाने वाले ज्वार के कारण ही जलयान कोलकाता तक पहुँच पाते हैं।

प्रश्न 5.
ज्वारीय भित्ति किसे कहते हैं? इसके क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
ज्वारीय भित्ति (Tidal Bare ):
नदियों के मुहाने पर पानी की ऊंची, खड़ी दीवार को ज्वारीय भित्ति कहते हैं। जब ज्वार उठता है तो पानी की एक धारा नदी घाटी में प्रवेश करती है। यह लहर नदी के जल को विपरीत दिशा में बहाने का प्रयत्न करती है। ज्वारीय लहर की ऊंचाई बढ़ जाती है तथा पानी का बहाव उलट जाता है। हुगली नदी में ज्वारीय भित्ति के कारण छोटी नावों को बहुत हानि पहुंचती है।

प्रश्न 6.
दीर्घ ज्वार तथा लघु ज्वार का अन्तर बताओ।
उत्तर:
दीर्घ ज्वार (Spring Tide ):
सबसे अधिक ऊंचे ज्वार को दीर्घ ज्वार कहते हैं। यह स्थिति अमावस (New moon) तथा पूर्णमासी (Full moon) के दिन होती है।
कारण:
इस स्थिति में सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीध में होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की संयुक्त आकर्षण शक्ति बढ़ जाने से ज्वार शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य तथा चन्द्रमा के कारण ज्वार उत्पन्न हो जाते हैं। (Spring tide is the sum of Solar and Lunar tides.) इन दिनों ज्वार अधिकतम ऊंचा तथा भाटा से कम नीचा होता है । दीर्घ ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% अधिक ऊंचा होता है।
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लघु ज्वार (Neap tide ): अमावस के सात दिन पश्चात् या पूर्णमासी के सात दिन पश्चात् ज्वार की ऊंचाई अन्य दिनों की अपेक्षा नीची रह जाती है। इसे लघु ज्वार कहते हैं।
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इस स्थिति को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं। जब आधा चांद (Half moon) होता है।

कारण:
इस स्थिति में सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी से समकोण स्थिति ( At Right Angles) पर होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति विपरीत दिशाओं में कार्य करती हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा के ज्वार तथा भाटा एक-दूसरे को घटाते हैं। (Neap tide is the difference of solar and Lunar tides.) इन दिनों उच्च ज्वार कम ऊंचा तथा भाटा कम नीचा होता है। लघु ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% कम ऊंचा होता है।

प्रश्न 7.
ज्वार प्रतिदिन 50 मिनट विलम्ब से क्यों आते हैं
उत्तर:
ज्वार भाटा का नियम (Law of Tides ):
किसी स्थान पर ज्वार भाटा नित्य एक ही समय पर नहीं आता। कारण (Causes) चन्द्रमा पृथ्वी के इर्द-गिर्द 29 दिन में पूरा चक्कर लगाता है। चन्द्रमा पृथ्वी के चक्कर का 29वां भाग हर रोज़ आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चन्द्रमा के सामने दोबारा आने में 24 घण्टे से कुछ अधिक ही समय लगता है।
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दूसरे शब्दों में प्रत्येक 24 घण्टों के पश्चात् चन्द्रमा अपनी पहली स्थिति से लगभग 13° (360/29 = 12.5°) आगे चला जाता है, इसलिए किसी स्थान को चन्द्रमा के ठीक सामने आने में 12.5 x 4= 50 मिनट अधिक लग जाते हैं। क्योंकि दिन में दो बार ज्वार आता है इसलिए प्रतिदिन ज्वार 25 मिनट देर के अन्तर से अनुभव किया जाता है। पूरे 12 घण्टे के बाद पानी का चढ़ाव देखने में नहीं आता, परन्तु ज्वार 12 घण्टे 25 मिनट बाद आता है। 6 घण्टे 13 मिनट तक जल चढ़ाव पर रहता है और उसके पश्चात् 6 घण्टे 13 मिनट तक जल उतरता रहता है। ज्वार के उतार-चढ़ाव का यह क्रम बराबर चलता रहता है।

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प्रश्न 8.
ज्वार भाटा के लाभ तथा हानियों का वर्णन करो।
उत्तर:

  • ज्वार भाटा के लाभ (Advantages):
    1. ज्वार-भाय समुद्री तटों को स्वच्छ रखते हैं। ये उतार के समय कूड़ा-कर्कट तथा कीचड़ को साथ बहाकर ले जाते हैं।
    2. ज्वार-भाटा की हलचल के कारण समुद्री जल जमने नहीं पाता।
    3. ज्वार के समय नदियों के मुहानों पर जल की गहराई बहुत बढ़ जाती है। जिससे बड़े – बड़े जहाज़ सेंट लारेंस, हुगली, हडसन नदी में प्रवेश कर सकते हैं। ज्वार भाटे के समय को प्रकट करने के लिए टाइम टेबल बनाए जाते हैं।
    4. ज्वार-भाटा के लौटते हुए जल से जल-विद्युत् उत्पन्न की जाती है। इस शक्ति का उपयोग करने के लिए फ्रांस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रयत्न किए गए हैं।
    5. ज्वार-भाटा के कारण बहुत-सी सीपियां, कौड़ियां आदि वस्तुएं तट पर जमा हो जाती हैं। कई समुद्री जीव तटों पर पकड़े जाते हैं।
    6.  ज्वार-भाटा बन्दरगाहों की अयोग्यता को दूर करते हैं तथा आदर्श बन्दरगाहों को जन्म देते हैं। कम गहरे बन्दरगाहों में बड़े-बड़े जहाज़ ज्वार के साथ प्रवेश कर जाते हैं तथा भाटा के साथ वापस लौट आते हैं, जैसे- कोलकाता, कराची, लन्दन।
    7.  ज्वार-भाटय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल, सुगम तथा निरन्तर रखते हैं।
  • हानियां (Disadvantages):
    1. ज्वार-भाटा से कभी – कभी जलयानों को हानि पहुंचती है। छोटे-छोटे जहाज़ व नावें डूब जाती हैं।
    2. इससे बन्दरगाहों के समीप रेत जम जाने से जहाज़ों के आने-जाने में रुकावट होती है।
    3. ज्वार-भाटा द्वारा मिट्टी के बहाव के कारण डेल्टा नहीं बनते।
    4. मछली पकड़ने के काम में रुकावट होती है।
    5. ज्वार का पानी जमा होने से तट पर दलदल बन जाती है।

प्रश्न 9.
पवन निर्मित तरंगों के विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
तरंगें (Waves): पवन के सम्पर्क से सागरीय जल की आगे पीछे, ऊपर-नीचे की गति से तरंगें उत्पन्न होती हैं। पवन द्वारा तरंगें तीन प्रकार की होती हैं-
‘सी’ (Sea), स्वेल (Swell), (iii) सर्फ (Surf)। विभिन्न दिशाओं तथा गतियों से उत्पन्न तरंगों को ‘सी’ कहते हैं। जब यह तरंगें एक नियमित रूप से एक निश्चित गति तथा दिशा से आगे बढ़ती हैं तो इसे स्वेल कहते हैं। समुद्र तट पर शोर करती, टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहते हैं जब यह तरंगें समुद्र तट पर वेग से दौड़ती हैं तो इन्हें ‘स्वाश’ (Swash) कहते हैं। समुद्र की ओर वापस लौटती हुई तरंगों को बैक वाश (Back wash) कहते हैं।

प्रश्न 10.
न्यूफाउंडलैंड के निकट कोहरे का निर्माण क्यों होता है?
उत्तर:
न्यूफाउंडलैंड के निकट पूर्वी तट पर लैब्रेडोर की ठण्डी धारा बहती है। दक्षिण की ओर से खाड़ी को गर्म धारा यहां आकर मिलती है। इन दो विभिन्न तापमान वाली धाराओं के संगम से यहां कोहरे का निर्माण होता है। ठण्डी वायु के जलकण सूर्य की किरणों का मार्ग रोक कर कोहरा उत्पन्न कर देते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
किसी देश की जलवायु तथा व्यापार पर समुद्री धाराओं के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
समुद्री धाराओं के प्रभाव (Effects of Ocean Currents): समुद्री धाराएं आसपास के क्षेत्रों में मानव जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है।
(क) जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)
1. जलवायु (Climate) – जिन तटों पर गर्म या ठण्डी धाराएं चलती हैं वहां की जलवायु क्रमशः गर्म या ठण्डी हो जाती है।
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2. तापक्रम (Temperature):
धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या शीत ले जाती हैं। गर्म धारा के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापक्रम ऊंचा हो जाता है तथा जलवायु कम हो जाती है। ठण्डी धारा के कारण शीतकाल में तापक्रम बहुत नीचा हो जाता है तथा जलवायु विषम व कठोर हो जाती है।
उदाहरण (Examples):

  1. लैब्रेडोर (Labrador) की ठण्डी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट तथा क्यूराइल (Kurile) की ठण्डी धारा के प्रभाव से साइबेरिया का पूर्वी तट शीतकाल में बर्फ से जमा रहता है
  2. खाड़ी की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीपसमूह तथा नार्वे के तटीय भागों का तापक्रम ऊंचा रहता है और जल शीतकाल में भी नहीं जमता जलवायु सुहावनी तथा सम रहती है।

3. वर्षा (Rainfall):
गर्म धाराओं के समीप के प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है, परन्तु ठण्डी धाराओं के समीप के प्रदेशों में कम वर्षा होती है। गर्म धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनों में नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है परन्तु ठण्डी धाराओं के सम्पर्क में आकर पवनें ठण्डी हो जाती हैं और अधिक नमी धारण नहीं कर सकतीं। उदाहरण (Examples):

  1. उत्तर: पश्चिम यूरोप में खाड़ी की धारा के कारण तथा जापान के पूर्वी तट पर क्यूरोसियो की गर्म धारा के कारण अधिक वर्षा होती है।
  2. संसार के प्रमुख मरुस्थलों के पश्चिमी तटों के समीप ठण्डी धाराएं बहती हैं, जैसे- सहारा तट पर कनेरी धारा, कालाहारी तट पर बेंगुएला धारा, ऐटेकामा तट पर पीरू की धारा ।

4. धुन्ध की उत्पत्ति (Fog ):
गर्म व ठण्डी धाराओं के मिलने पर धुन्ध व कोहरा उत्पन्न हो जाता है। गर्म धारा के ऊपर की वायु ठण्डी हो जाती है। उसके जल-कण सूर्य की किरणों का मार्ग रोक कर कोहरा उत्पन्न कर देते हैं। उदाहरण (Example) – खाड़ी की गर्म धारा लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के ऊपर की वायु के मिलने से न्यूफाउंडलैंड (New foundland) के निकट धुन्ध उत्पन्न हो जाती है।

5. तूफानी चक्रवात (Cyclones):
गर्म व ठण्डी धाराओं के मिलने से गर्म वायु बड़े वेग से ऊपर उठती है तथा तीव्र तूफानी चक्रवात को जन्म देती है।

(ख) व्यापार पर प्रभाव (Effect on Trade):
1. बन्दरगाहों का खुला रहना (Open Sea-ports):
ठण्डे प्रदेशों में गर्म धाराओं के प्रभावों से सर्दियों में भी बर्फ़ नहीं जमती तो बन्दरगाह व्यापार के लिए वर्ष भर खुले रहते हैं, परन्तु ठण्डी धारा के समीप का तट महीनों बर्फ से जमा रहता है। ठण्डी धाराएं व्यापार में बाधक हो जाती हैं।
उदाहरण (Example ):

  1. खाड़ी की धारा के कारण नार्वे तथा ब्रिटिश द्वीपसमूह के बन्दरगाह सारा वर्ष खुले रहते हैं परन्तु हालैंड तथा स्वीडन के बन्दरगाह समुद्र का जल जम जाने से शीतकाल में बन्द रहते हैं।
  2. लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के कारण पूर्वी कैनेडा व सैंट लारेंस (St. Lawrence Valley) के बन्दरगाह तथा क्यूराइल की ठण्डी धारा के कारण व्लाडीवास्टक (Vladivostok) के बन्दरगाह शीतकाल में जम जाते हैं।

2. समुद्री मार्ग (Ocean Routes ):
धाराएं जल मार्गों का निर्धारण करती हैं। ठण्डे सागरों से ठण्डी धाराओं के साथ बहकर आने वाली हिमशिलाएं (Icebergs) जहाज़ों को बहुत हानि पहुंचाती हैं। इनसे मार्ग बचाकर समुद्री मार्ग निर्धारित किए जाते हैं।

3. जहाज़ों की गति पर प्रभाव (Effect on the Velocity of the Ships):
प्राचीन काल में धाराओं का बादबानी जहाज़ों की गति पर प्रभाव पड़ता था धाराओं के अनुकूल दिशा में चलने से उनकी गति बढ़ जाती थी परन्तु विपरीत दिशा में चलने से उनकी चाल मन्द पड़ जाती थी। आजकल भाप से चलने वाले जहाजों (Steam Ships) की गति पर धाराओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

4. समुद्र जल की स्वच्छता (Purity of Sea Water ):
धाराओं के कारण समुद्र जल गतिशील, शुद्ध तथा स्वच्छ रहता है। धाराएं तट पर जमा पदार्थ दूर बहाकर ले जाती हैं तथा समुद्र तट उथले होने से बचे रहते हैं।

5. दुर्घटनाएं (Accidents):
कोहरे व धुन्ध के कारण दृश्यता (Visibility) कम हो जाती है। प्रायः जहाज़ों के डूबने तथा हिम शिलाओं से टकराने की दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

(ग) समुद्री जीवों पर प्रभाव (Effect on Marine Life)
1. समुद्री जीवों का भोजन (Plankton ):
धाराएं समुद्री जीवन का प्राण हैं। ये अपने साथ बहुत गली – सड़ी वस्तुएं (Plankton) बहाकर लाती हैं। ये पदार्थ मछलियों के भोजन का आधार हैं।

2. मछलियों का वितरण (Distribution of Fish ):
मछलियां धाराओं के साथ बहती हैं। ठण्डे समुद्रों से आने वाली ठण्डी धाराओं के साथ उत्तम मछलियों के झुण्ड के झुण्ड गर्म-गर्म समुद्रों में चले आते हैं

उदाहरण (Example):
गर्म व ठण्डी धाराओं के मिलने के कारण जापान तट तथा न्यूफाउंडलैंड के किट ग्रांड बैंक (Grand Bank) मछली उद्योग के प्रसिद्ध केन्द्र बन गए हैं।

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प्रश्न 2.
तरंगों की उत्पत्ति तथा विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
तरंगें (Waves):
तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं, जल नहीं, जो कि महासागरीय सतह के आर-पार गति करते हैं। तरंगों में जलकण छोटे वृत्ताकार रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। सतह जल की गति महासागरों के गहरे तल के स्थिर जल को कदाचित् ही प्रभावित करती है। जैसे ही एक तरंग महासागरीय तट पर पहुँचती है इसकी गति कम हो जाती है। ऐसा गत्यात्मक जल के मध्य आपस में घर्षण होने के कारण होता है तथा जब जल की गहराई तरंग के तरंगदैर्ध्य के आधे से कम होती है तब तरंग टूट जाते हैं। बड़ी तरंगें खुले महासागरों में पायी जाती हैं।

तरंगें जैसे ही आगे की ओर बढ़ती हैं बड़ी होती जाती हैं तथा वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं। अधिकतर तरंगें वायु जल की विपरीत दिशा में गतिमान से होती हैं। जब दो नॉट या उससे कम वाली समीर शांत जल पर बहती है, तब छोटी-छोटी उर्मिकाएँ (Ripples) बनती हैं तथा वायु की गति बढ़ने के साथ ही इनका आकार बढ़ता जाता है, जब तक इनके टूटने से सफेद बुलबुले नहीं बन जाते तट के पास पहुँचने, टूटने तथा (सफेद बुलबुलों में सर्फ की भाँति घुलने से पहले तरंगें हज़ारों कि० मी० की यात्रा करती हैं ।)

तरंग का आकार:
एक तरंग का आकार एवं आकृति उसकी उत्पत्ति को दर्शाता है। युवा तरंगें अपेक्षाकृत ढाल वाली होती हैं तथा सम्भवतः स्थानीय वायु के कारण बनी होती हैं। कम एवं नियमित गति वाली तरंगों की उत्पत्ति दूरस्थ स्थानों पर होती है, सम्भवतः दूसरे गोलार्द्ध में तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता वायु की तीव्रता के द्वारा लगाया जाता है, यानि यह कितने समय तक प्रभावी है तथा उस क्षेत्र के ऊपर कितने समय से एक ही दिशा में प्रवाहमान है?

तरंगें गति करती हैं, क्योंकि वायु जल को प्रवाहित करती है जबकि गुरुत्वाकर्षण तरंगों के शिखरों को नीचे की ओर खींचती है। गिरता हुआ जल पहले वाले गर्त को ऊपर की ओर धकेलता है एवं तरंगें नयी स्थिति में गति करती हैं। तरंगों के नीचे जल की गति वृत्ताकार होती है। यह इंगित करता है कि आती हुई तरंग पर वस्तुओं का वहन आगे तथा ऊपर की ओर होता है एवं लौटती हुई तरंग पर नीचे तथा पीछे की ओर।

तरंगों की विशेषताएँ:

  1. तरंग शिखर एवं गर्त (Wave crest and trough ): एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिंदुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
  2. तरंग की ऊँचाई (Wave height): यह एक तरंग के गर्त के अधः स्थल से शिखर के ऊपरी भाग तक की उर्ध्वाधर दूरी है।
  3. तरंग आयाम (Amplitude) : यह तरंग की ऊँचाई का आधा होता है।
  4. तरंग काल (Wave Period): तरंग काल एक निश्चित बिन्दु से गुज़रने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्तों के बीच का समयान्तराल है।
  5. तरंगदैर्ध्य (Wavelength ): यह दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी है।
  6. तरंग गति (Wave speed): जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते हैं तथा इसे नॉट में मापा जाता है।
  7.  तरंग आवृत्ति: यह एक सेकेंड के समयान्तराल में दिए गए बिन्दु से गुज़रने वाली तरंगों की संख्या है।

प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
ज्वार-भाटा के प्रकार ज्वार-भाटा की आवृत्ति, दिशा गति में स्थानीय व सामयिक भिन्नता पाई जाती है। ज्वारभाटाओं को उनकी बारम्बारता एक दिन में या 24 घंटे में या उनकी ऊँचाई के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा (Tides based on frequency)
1. अर्द्ध- दैनिक ज्वार ( Semi- diurnal):
यह सबसे सामान्य ज्वारीय प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक दिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। दो लगातार उच्च एवं निम्न ज्वार लगभग समान ऊँचाई के होते हैं।

2. दैनिक ज्वार (Diurnal tide ):
इसमें प्रतिदिन केवल एक उच्च एवं एक निम्न ज्वार होता है। उच्च एवं निम्न ज्वारों की ऊँचाई समान होती है।

3. मिश्रित ज्वार (Mixed tide ):
ऐसे ज्वार-भाटा जिनकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहा जाता है। ये ज्वार-भाटा सामान्यतः उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट एवं प्रशान्त महासागर के बहुत से द्वीप समूहों पर उत्पन्न होती हैं।

4. सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वारभाटा (Spring tides ):
उच्च ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।

5. वृहत् ज्वार (Spring tides ):
पृथ्वी के सन्दर्भ में सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति ज्वार की ऊँचाई को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वारीय उभार अधिकतम होगा। इनको वृहत् ज्वार- भाटा कहा जाता है तथा ऐसा महीने में दो बार होता है- पूर्णिमा के समय तथा दूसरा अमावस्या के समय।

6. निम्न ज्वार (Neap tides ):
सामान्यतः वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार के बीच सात दिन का अन्तर होता है। इस समय चन्द्रमा एवं सूर्य एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं तथा सूर्य एवं चन्द्रमा के गुरुत्व बल एक-दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हैं। चन्द्रमा का आकर्षण सूर्य के दोगुने से अधिक होते हुए भी, यह बल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के समक्ष धूमिल हो जाता है। चन्द्रमा का आकर्षण अधिक इसीलिए है क्योंकि वह पृथ्वी के अधिक निकट है।

JAC Class 10 Hindi रचना विज्ञापन लेखन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana विज्ञापन लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana विज्ञापन लेखन

आधुनिक युग विज्ञापन का युग है। अब किसी भी व्यापार की सफलता बहुत बड़ी सीमा तक विज्ञापन की सफलता पर आधारित है। यह एक सशक्त और प्रभावशाली कला है। पत्र-पत्रिका, रेडियो, टेलीविज्ञन, सिनेमा आदि विज्ञापनों की भरमार से घिरे दिखाई देते हैं। सभी प्रकार की पत्रिकाओं में विज्ञापनों से भरे हुए पृष्ठ दिखाई देते हैं। जन-संचार के माध्यमों से विविध विज्ञापन दिखाए जाते हैं। व्यापारी अधिक-सेअधिक लाभ प्राप्त करने के लिए एक से बढ़कर एक आकर्षक और लुभावने विज्ञापन प्रकाशित कराता है या रेडियो-दुरदर्शन पर प्रस्तुत कराता है। पोस्टर, होडिंग आदि के माध्यम से विज्ञापन विश्व-स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त कर लेते हैं।

विज्ञापन का अर्थ एवं उद्देश्य –

सामान्य रूप से विज्ञापन का अर्थ ‘विशेष सूचना या जानकारी’ देना है। यह जानकारी उत्पादक उपभोक्ता को देता है। वह उत्पादित वस्तु के रूप, गुण, उपादेयता, मूल्य आदि की पूरी सूचना आकर्षक ढंग से प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता में उस वस्तु को खरीदने की इच्छा जात्रत हो उठती है। व्यापारिक क्षेत्र में विज्ञापन के मुख्य रूप से तीन उद्देश्य हैं-माँग उत्पन्न करना (to produce demand), माँग बनाए रखना (to maintain demand) तथा माँग की वृद्धि करना (to increase demand) । उत्पादक को लाभ पहुँचाना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की सहायता करना तथा उत्पादक और उपभोक्ता के बीच मधुर संबंधों को स्थापित करना भी विज्ञापन के उद्देश्य हैं। ये व्यवसाय को सर्वांगमुखी बनाते हैं। वास्तव में हमारा आज का सारा जीवन ही विश्रापनमय हो चुका है। विज्ञापन केवल उत्पादन की वृद्धि में ही सहायता नहीं देते, बल्कि प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ाकर मूल्यों को स्थिरता भी प्रदान करते हैं। इसका महत्त्व बहुआयामी होता है और इससे स्वस्थ प्रतियोगिता को बल मिलता है । बैंकों तथा बीमा कंपनियों के विज्ञापनों से मनुष्य के जीवन-स्तर में भी सुधार होता है।

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व्यापारिक विज्ञापन के माध्यम –

विभिन्न दृश्य एवं श्रव्य माध्यम उत्पादित वस्तु के रूप, गुण, मूल्य आदि से संबंधित जानकारी अपने सम्मानित ग्राहक को देते हैं। माध्यम का चुनाव अत्यंत आवश्यक है क्योंकि सही या गलत माध्यम के चुनाव से विज्ञापन सफल या असफल हो सकता है। प्राय: माध्यम तीन प्रकार के स्वीकार किए जाते हैं-

1. पत्र-पत्रिकाएँ
2. बाह्य विज्ञापन-इनमें पोस्टर, होडिंग, पंफलेट आदि आते हैं।
3. अन्य साधन-रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि इसमें रखे जा सकते हैं।
मोटे रूप से इनका वर्गीकरण दृश्य और श्रव्य माध्यमों में भी किया जा सकता है।

पत्र-पत्रिकाएँ अन्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय तथा जन-सुलभ माध्यम हैं। इनका प्रचार विश्वव्यापी है। इसालए किसा एक स्थान का वस्तु का प्रचार पूरे विश्व में संभव हो सकता है। दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक पत्र-पत्रिकाएँ हर भाषा में उपलब्ध हो जाती हैं। सरकारी और ग़ैर-सरकारी स्तर पर छपी सभी पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन अनिवार्य रूप से छपे रहते हैं क्योंकि इनसे प्राप्त आय के द्वारा पत्रिका का प्रकाशन सरलता से किया जा सकता है। सुंदर बहुरंगी चित्रों, स्पष्ट अक्षरों और रोचक विवरणों से विज्ञापन को सँवारा जाता है। इस माध्यम की परिसीमा यह है कि इसका स्वरूप केवल पढ़ी-लिखी जनता ही जान पाती है।

बाहय विज्ञापनों का प्रदर्शन सार्वजनिक स्थानों पर किया जाता है। सुंदर-रंगीन एवं आकर्षक चित्रों से सजे विज्ञापनों को सड़कों, चौराहों आदि पर कहीं भी देखा जा सकता है। यद्यपि यह माध्यम महँगा है पर फिर भी इसका प्रचलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। दीवारों पर लेखन, इश्तहार, छोटे-बड़े प्रपत्र एवं पंफलेट इसी माध्यम के अंतर्गत आते हैं, जो बहुत महँगे भी नहीं हैं।

आधुनिक युग में रेडियो-ट्रांजिस्टर जहाँ श्रव्य माध्यम के अंतर्गत आते हैं तो टेलीविजन, सिनेमा श्रव्य-दृश्य माध्यम के अंतर्गत आते हैं। नर-नारी तथा वाद्यों की मिली-जुली आवाज़ दूर से ही संभावित उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण रखती हैं। छोटी-छोटी विज्ञापन फिल्मों की आजकल भरमार है। कार्टूनों तथा अभिनेताओं के माध्यम से ग्राहक को अपनी ओर आकृष्ट करने में ये पूर्ण रूप से सक्षम हैं। डालडा, बाटा शूज़, लिबर्टी शूज़, लिम्का, कैम्पा कोला, लक्स साबुन, लाइफबॉय, चिप्स, कैडबरीज चॉकलेट आदि उत्पादकों के विज्ञापन सभी माध्यमों के द्वारा ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

कभी-कभी व्यापारी विभिन्न प्रतियोगिताओं, मूल्यों में कमी, कूपन द्वारा लॉटरी आदि योजनाओं से भी ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते हैं और इन सब का प्रचार विज्ञापनों के माध्यम से ही किया जाता है।

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व्यापारिक विज्ञापन और हिंदी –

विज्ञापन की भाषा सदा वही होनी चाहिए जिस क्षेत्र में उसका प्रचार किया जा रहा हो। विज्ञापन के लिए भाषा का प्रयोग विशेष प्रकार से किया जाता है। हिंदी राष्ट्रभाषा है। इसलिए विज्ञापनों में अधिकता से इसका प्रयोग अनिवार्य है। भाषा का प्रयोग इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि निम्नलिखित तत्व मुखर हो उठें-
1. आकर्षक तत्व (Attention Value)
2. श्रव्यता एवं सुपाठ्यता (Readability \& Listenability)
3. स्मरणीयता (Memorability)
4. विक्रय की शक्ति (Selling Power)
हिंदी के विज्ञापनों में ये सभी गुण अनिवार्य रूप से विद्यमान हैं। चित्र, रंग, शीर्षक तथा नारों के माध्यम से इन्हें अधिक प्रभावशाली बनाने के नित्य नए प्रयास किए जाते हैं। विभिन्न प्रकार की वाक्य संरचना तथा शब्दों के अनूठे प्रयोग से इन्हें सँवारा-निखारा गया है, जिससे इनकी प्रभाव प्रवणता में वृद्धि हुई है। जैसे-

(क) काव्यमय भाषा के प्रयोग से –
(I) साफ़ ताज़ा साँस, मज़बूत स्वस्थ दाँत (कोलगेट टूथ पेस्ट)
(II) आयोडैक्स मलिए, काम पर चलिए (आयोडैक्स)
(III) फैैशन निखर-निखर उठा है (बॉम्बे डाइंग)
(IV) ये लम्हे ये पल-छिन, कितने मीठे हर दिन (कैडबरीज़ चॉकलेट)

(ख) विस्मयादि बोधक चिह्नों के प्रयोग से –
(I) नया! प्रेस्टीज
(II) वाह ! ताज
(III) नई! डबल डिटर्जेट

(ग) शीर्ष पंक्तियों के प्रयोग से –
(I) रंग-रूप में आज भी वही बालपन (पियर्स साबुन)
(II) तकलीफ़ से आराम (पचनोल)
(III) सहयोग के लिए धन्यवाद (जीवन बीमा निगम)

(घ) ‘और’ के प्रयोग से –
(I) और नैसकैफ़े अब नए पैक में
(II) और इसके निर्माता हैं डिपी

(ङ) ‘क्योंकि’, ‘सिर्फ ‘ के प्रयोग से –
(I) क्योंकि यह अधिक ताकत देता है (ग्लूकोज डी)
(II) सिर्फ़ मारगो ही (मारगो साबुन)
(III) क्यों न हो, मैं डाबर का लाल दंत मंजन इस्तेमाल करता हूँ।

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(च) विभिन्न भाषाओं के शब्दों के उचित प्रयोग से –
(I) सुपर रिन की चमकार ज्यादा सफ़ेद
(II) खूबसूरत रंग और दिलकश डिजाइन
(III) रोबिन ब्लू प्राकृतिक एवं मनोरम शुभ्रता के लिए
(IV) मज़ेदार भोजन का राज

(छ) ग्राहक को सुझाव देने के लिए –
(I) लक्स शुद्ध और सौम्य है
(II) क्लियरसिल मुहाँसों को खोलती है, उन्हें साफ़ करती है, दूर करती है
(III) हार्लिक्स ज्यादा शक्ति देता है

(ज) ‘लीजिए’, ‘माँगिए’, ‘दीजिए’ के प्रयोग से
(I) सेरिडोन लीजिए
(II) सदा वुडबर्ड ग्राइपवाटर ही माँगिए
(III) छह देना, सारे घर के बदल डालूँगा (सिलवेनिया लक्ष्मण बल्ब)

अब व्यापारिक विज्ञापनों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं –

विज्ञापन 1. सर्व शिक्षा अभियान के तहत ‘वयस्क साक्षरता मिशन 2020’

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विज्ञापन 2. सिलाई मशीन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 3. नहाने के साबुन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 4. ‘रोशनी’ मोमबत्ती बनाने वाली कंपनी के लिए

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विज्ञापन 5. रुचि हिमालयन चाय का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 6. अर्पण शुद्ध घी का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 7. सपना नारियल तेल का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 8. सारिका साड़ियों का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 9. बच्चों की कॉमिक्स का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 10. रेफ्रिज़रेटर का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 11. आग बुझाने के यंत्र का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 12. पर्यावरण विभाग की ओर से जल-संरक्षण का आग्रह करते हुए एक विज्ञापन लगभग शब्दों में तैयार कीजिए।

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विज्ञापन 13. किसी ठंडे पेय पदार्थ का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 14. साइकिल का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 15. कमीज़ का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 16. सीमेंट का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 17. वाशिंग मशीन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 18. प्रेशर कुकर व प्रेशर पैन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 19. टूथ ब्रश का विज्ञापन लिखिए।

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(ख) डिस्प्ले विज्ञापन :

प्रश्न 1.
प्रशांत इलेक्ट्रॉॅनिक्स ने बाज़ार में रंगीन टेलीविज़न का एक नया मॉडल पेश किया है। उसका एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 2.
महावीर स्टेडियम, हिसार में लगने वाले एक व्यापारिक मेले के प्रचारार्थ एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 3.
नगर में आयोजित होने वाली भारत की सांस्कृतिक एकता प्रदर्शनी को देखने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 4.
देश की जनता को ‘मतदान अधिकार’ के प्रति जागरूक करने के लिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त कार्यालय की ओर से लगभग 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 5.
रचना कॉपी और रजिस्टर की मशहूरी के लिए लगभग शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 6.
बच्चों की पत्रिका मिशिका के होली विशेषांक के प्रचारार्थ एक डिस्प्ले विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 7.
कल्पना साड़ियों की वार्षिक सेल के प्रचार के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 8.
भुवन की आवासीय योजना के अंतर्गत बने-बनाए मकानों के विक्रय के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 9.
आयकर विभाग की ओर से समय पर आयकर जमा कराने हेतु एक विज्ञापन का प्रारूप तैयार कीजिए।
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प्रश्न 10.
आपके क्षेत्र में विराट हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। उसके विषय में जानकारी देने के लिए लगभग 25-30 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 11.
आपके नगर में मिठाई की एक दुकान खुली है। इसके प्रचार के लिए एक विज्ञापन लगभग 25-50 शब्दों में तैयार कीजिए।
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JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से कौन-सा भाग महासागरीय तल का सबसे अधिक क्षेत्र घेरता है?
(A) महाद्वीपीय निमग्न तट
(B) महाद्वीपीय ढाल
(C) महासागरीय मैदान
(D) गर्त।
उत्तर:
(C) महासागरीय मैदान।

2. पृथ्वी पर जलमण्डल का विस्तार लगभग कितना है?
(A)-36 करोड़ वर्ग कि०मी०
(B) 105 करोड़ वर्ग कि०मी०
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०
(D) 500 लाख वर्ग कि०मी०।
उत्तर:
(A) 36 करोड़ वर्ग कि०मी०।

3. महाद्वीपीय निमग्न तट की औसत गहराई कितनी है?
(A) 100 फैदम
(C) 300 मीटर
(B) 500 फुट
(D) 400 मीटर
उत्तर:
(A) 100 फैदम।

4. महाद्वीपीय निमग्न तट का विस्तार किस महासागर में सबसे अधिक है?
(A) अन्ध महासागर
(B) प्रशान्त महासागर
(C) हिन्द महासागर
(D) हिम महासागर।
उत्तर:
(A) अन्ध महासागर।

5. संसार में सबसे गहरा महासागरीय गर्त है
(A) प्यूरिटो रिको
(B) मेरियाना
(C) सुण्डा
(D) ऊटाकाया।
उत्तर:
(B) मेरियाना।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

6. निम्नलिखित में से कौन-सी खाई प्रशान्त महासागर में स्थित नहीं है?
(A) अल्यूशियन खाई
(B) प्यूरिटो रिको खाई
(C) मिंडानाओ खाई
(D) मेरियाना खाई।
उत्तर:
(B) प्यूरिटो रिको खाई।

7. निम्नलिखित में से कौन-सा सागर अन्ध महासागर का सीमान्त सागर नहीं है?
(A) तसमान सागर
(B) उत्तरी सागर
(C) कैरेबियन सागर
(D) बाल्टिक सागर।
उत्तर:
(A) तसमान सागर।

8. एल्बेट्रोस पठार कौन-से महासागर या महाद्वीप में स्थित है:
(A) हिन्द महासागर
(B) प्रशान्त महासागर
(C) अफ्रीका महाद्वीप
(D) एशिया महाद्वीप
उत्तर:
(B) प्रशान्त महासागर

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरों के ताप प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
उत्तर:

  1. सौर विकिरण।
  2. समुद्र के रेडियो एक्टिव पदार्थ।
  3. जलवाष्प की ऊष्मा।
  4. वायुमण्डल द्वारा संवहन क्रिया।
  5. रासायनिक पदार्थों द्वारा उत्पन्न ताप।

प्रश्न 2.
सागरीय जल के तापमान का वार्षिक अन्तर किन घटकों पर निर्भर होता है?
उत्तर:

  1. विभिन्न गहराइयों पर तापमान में विभिन्नता है।
  2. ताप चालन का प्रभाव।
  3. संवहनी धाराओं का प्रभाव।
  4. जलराशियों का पार्श्व विस्थापन।

प्रश्न 3.
महासागरों में लवण का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
सागरों में नमक की विशाल मात्रा पाई जाती है। यदि सागरों के समस्त लवण को समतल धरातल पर फैला दिया जाए तो इसकी 150 मीटर मोटी पर्त बन जाएगी। समुद्र की लवणता का मुख्य स्रोत नदियां हैं जो घुले हुए पदार्थ के रूप में लवण समुद्र तट तक पहुँचाती हैं। पवनें तथा लहरें ज्वालामुखी समुद्री जल की लवणता में वृद्धि करते हैं । परन्तु इस लवणता का मुख्य स्रोत समुद्र स्वयं ही है जहां प्रारम्भ से ही लवण पदार्थ विद्यमान हैं।

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प्रश्न 4.
महासागरों के क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर तापमान वितरण को कौन-से कारक नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
महासागरों के जल का तापमान निम्नलिखित कारकों द्वारा नियन्त्रित होता है:

  1. सूर्यातप की तीव्रता और अवधि।
  2. जल का खारापन, घनत्व तथा वाष्पीकरण।
  3. ऊष्ण तथा शीत वायु धाराओं का बहना।
  4. जल मग्न कटकों की स्थिति।
  5. समुद्र की स्थिति और आकार।

प्रश्न 5.
समुद्री जल में पाए जाने वाले पांच प्रसिद्ध लवण तथा उनकी मात्रा बताओ।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड – 77.7 प्रतिशत
  2. मैग्नीशियम क्लोराइड – 10.9 प्रतिशत
  3. मैग्नेशियम सल्फेट – 4.7 प्रतिशत
  4. कैल्शियम सल्फेट – 3.6 प्रतिशत
  5. पोटेशियम सल्फेट – 2.5 प्रतिशत

प्रश्न 6.
महासागरीय जल की लवणता किन तत्त्वों पर प्रभाव डालती है?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. घनत्व
  3. सूर्यातप का अवशोषण
  4. वाष्पीकरण
  5. आर्द्रता
  6. मछलियों के जीवन

प्रश्न 7.
महासागरीय जल की लवणता के विभिन्न स्त्रोत बताओ।
उत्तर:

  1. नदियां
  2. महासागरीय लहरें
  3. ज्वालामुखी
  4. रासायनिक क्रियाएं
  5. महासागरों में पहले ही लवण का होना।

प्रश्न 8.
भूमध्यरेखा के निकट महासागरों में लवणता कम क्यों है?
उत्तर:

  1. सारा साल भारी वर्षा (200 सें० मी० से अधिक )
  2. सारा साल उच्च सापेक्षिक आर्द्रता (80%)
  3. मेघाच्छनन आकाश
  4. डोलड्रम क्षेत्र शांत वायु
  5. अमेजन तथा जायरे जैसी बड़ी-बड़ी नदियों के स्वच्छन्द जल के कारण।

प्रश्न 9.
घिरे हुए तीन सागरों के नाम तथा लवणता बताओ।
उत्तर:

  1. ग्रेट साल्ट झील (संयुक्त राज्य) – 220 लवणता प्रति हज़ार
  2. मृत सागर ( जार्डन) – 240 लवणता प्रति हज़ार
  3. वान झील (तुर्की) – 330 लवणता प्रति हज़ार।

प्रश्न 10.
ज्वारीय ऊर्जा किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वार-भाटा महासागरों में ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। ज्वार भाटे के समय जल के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने से ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। ज्वार भाटे की गति से जैनरेटर चलाने का कार्य किया जा सकता है। सोवियत संघ, जापान तथा फ्रांस में ज्वारीय शक्ति उत्पन्न की जाती है।

प्रश्न 11.
भू-तापीय ऊर्जा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी के भूगर्भ में गर्म जल तथा ज्वालामुखियों द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं। गर्म पानी के झरने तथा गीजर इसके प्रमुख स्रोत हैं। भू-तापीय ऊर्जा न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य तथा मैक्सिको में उत्पन्न की जाती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 12.
रचना के आधार पर महाद्वीपीय मग्न तट के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
तीन प्रकार: नदियों से निर्मित, हिमानीकृत, प्रवाल भित्ति निर्मित।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions )

प्रश्न 1.
महासागरीय तली को कितने मुख्य विभागों में बांटा जाता है?
उत्तर:
महासागरीय तली को चार मुख्य विभागों में बांटा जाता है:

  1. महाद्वीपीय मग्न तट (Continental shelf)
  2. महाद्वीपीय ढाल (Continental slope )
  3. महासागरीय मैदान (Deep sea plain )
  4. महासागरीय गर्त (Ocean deeps)।

प्रश्न 2.
महासागरीय नितलों पर पाए जाने वाली सबसे अधिक सामान्य आकृतियों के नाम लिखो।
उत्तर:
महासागरीय तली पर महाद्वीपीय मग्न तट, महाद्वीपीय ढाल, महासागरीय मैदान तथा गर्त के अतिरिक्त निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं

  1. उद्रेख (Ridges)
  2. पहाड़ियाँ (Hills)
  3. टीले (Sea mounts)
  4. खाइयां (Trenches)
  5. palm fufaui (Coral reefs) |
  6. निमग्न द्वीप (Guyots)
  7. कैनियन ( Canyons)

प्रश्न 3.
महासागरीय खाइयों तथा गर्तों को विवर्तनिक उत्पत्ति वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
महासागरों में लम्बे, गहरे तथा संकरे खड्ड को महासागरीय गर्त कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति भूतल पर दरारें पड़ने तथा मोड़ पड़ने की हलचल के कारण हुई है। ये अधिकतर उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां भूकम्प आते हैं तथा ज्वालामुखी स्थित हों। ये अधिकतर वलित पर्वतों तथा द्वीपीय चापों के समानान्तर स्थित होते हैं। इसलिए इनका सम्बन्ध भूगर्भिक हलचलों से है।

प्रश्न 4.
महाद्वीपीय मग्नतट किसे कहते हैं?
उत्तर:
महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf):
यह महाद्वीपों के चारों ओर मंद ढाल वाला जलमग्न धरातल है। वास्तव में यह महाद्वीपीय खंड का ही जलमग्न किनारा है जो 150 से 200 मीटर तक गहरा होता है।

प्रश्न 5.
महासागरीय नितल की गहराई कैसे मापी जाती है?
उत्तर:
महासागरीय नितल की गहराई गम्भीरता मापी यन्त्र (Sonic Depth Recorder) से मापी जाती है। इस यन्त्र से ध्वनि तरंगें (Sound waves) महासागरीय नितल से प्रति ध्वनि (Echo) के रूप में वापस आती हैं। इनकी गति व समय से गहराई ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 6.
संसार में सबसे गहरा स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
संसार में सबसे गहरा स्थान प्रशांत महासागर में गुआम द्वीपमाला के समीप मेरिआना गर्त (Mariana Trench) है। इसकी गहराई 11022 मीटर है। यदि एवरेस्ट पर्वत को इस गर्त में डुबो दिया जाए तो इसकी चोटी समुद्री जल सतह से 2 कि०मी० नीचे रहेगी।

प्रश्न 7.
हिन्द महासागर को आधा महासागर क्यों कहते हैं?
उत्तर:
अन्ध महासागर तथा प्रशान्त महासागर उत्तर-दक्षिण दोनों ओर खुले हैं। ये भूमध्य रेखा के दोनों ओर समान रूप से फैले हुए हैं। परन्तु हिन्द महासागर उत्तर की ओर बन्द है। एशिया महाद्वीप इस के विस्तार को रोकता है। एक प्रकार से इसका विस्तार अधिकतर दक्षिण की ओर ही है। इसलिए इसे आधा महासागर कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 8.
जलमण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी के तल के जल से डूबे हुए भाग को जल मण्डल (Hydrosphere) कहते हैं। यह धरालत पर लगभग 361,059,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं जो पृथ्वी के धरातल के कुल क्षेत्र का 71% भाग है। उत्तरी गोलार्द्ध का 61% भाग तथा दक्षिणी गोलार्द्ध का 81% भाग महासागरों से घिरा हुआ है। उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का विस्तार अधिक है इसलिए इसे (Water Hemisphere) भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
प्रति ध्रुवीय स्थिति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
धरती पर जल और स्थल का वितरण प्रति ध्रुवीय (Antipodal) है। महाद्वीप और महासागर एक-दूसरे के विपरीत स्थित हैं। यह संयोजन इस प्रकार है कि जल और स्थल एक-दूसरे से एक व्यास के विपरीत कोनों पर (Diametrically Opposite) स्थित हैं, जैसे आर्कटिक महासागर अण्टार्कटिक महाद्वीप के विपरीत स्थित है। यूरोप तथा अफ्रीका प्रशान्त महासागर के विपरीत स्थित हैं। उत्तरी अमेरिका हिन्द महासागर के विपरीत स्थित है।

प्रश्न 10.
गम्भीर समुद्री उद्रेख (Submarine Ridge) किसे कहते हैं?
उत्तर:
महासागरीय तल पर ऊंचे उठे हुए भागों को गम्भीर उद्रेख कहते हैं। यह प्रायः 60 हज़ार किलोमीटर लम्बे और 100 किलोमीटर चौड़े हो सकते हैं। इनकी विश्वव्यापी स्थिति किसी भूमण्डलीय हलचल का संकेत देती है । प्रायः यह महासागरों के मध्य में या धरती पर पाई जाती है। इनकी रचना के कई कारण हैं:

  1. दरारों के साथ बॅसाल्ट का फैलना।
  2. संवाहिक धाराओं द्वारा भूपटल का ऊंचा उठना तथा नीचे धंसना।

प्रश्न 11.
अन्त: समुद्री कैनियन की विशेषताओं एवं निर्माण को स्पष्ट करें।
उत्तर:
महासागरीय निमग्न तट तथा ढाल पर तंग, गहरी तथा ‘V’ आकार की घाटियों को कैनियन कहा जाता है। ये घाटियां विश्व के सभी तटों पर नदियों के मुहानों पर पाई जाती हैं। जैसे- हडसन, सिन्ध, गंगा, कांगो नदी । यह कैनियन नदी द्वारा अपरदन तथा सागरीय अपरदन से बनी है।

कैनियनों के प्रकार (Types of Canyons) ये घाटियां मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं:

  1. वे कैनियन जो छोटे, गार्ज के रूप में महाद्वीपीय मग्न तट से शुरू होकर ढाल पर काफ़ी गहराई तक विस्तृत होते हैं। जैसे न्यू इंग्लैण्ड तट पर ओशनोग्राफर ( oceanographer) कैनियन।
  2. वे कैनियन जो नदियों के मुहानों से शुरू होकर केवल मग्न तट तक ही पाए जाते हैं। जैसे – मिसीसिपी तथा सिन्धु नदी के कैनियन। हडसन कैनियन।
  3. वे कैनियन जो तट व ढाल पर काफ़ी कटे-फटे होते हैं, जैसे- दक्षिणी कैलीफोर्निया के तट पर बेरिंग केनियन तथा जेम चुंग कैनियन।

प्रश्न 12.
मनुष्य के लिए महासागरों के महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
महासागरों का महत्त्व – महासागर कई प्रकार से, प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से मनुष्य के लिए उपयोगी हैं।

  1. महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं।
  2. समुद्री धाराएं तापमान और आर्द्रता के वितरण को प्रभावित करती हैं।
  3. महासागर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य पदार्थों का सुलभ तथा अनन्त भण्डार हैं।
  4. महासागर संसार के भोजन का 10% भाग मछलियों द्वारा प्रदान करते हैं।
  5. महासागरों में अनेक समुद्री जन्तु, तेल, चमड़ा, सरे आदि उपयोगी वस्तुएं प्राप्त होती हैं।
  6. महासागरों में कम गहरे भागों में खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस के भण्डार प्राप्त हुए हैं।
  7. महासागर में अनेक उपयोगी खनिजों के भण्डार हैं। जैसे – मैंगनीज़, मोनोजाइट, लोहा, टिन, सोना आदि।
  8. महासागरों में ज्वार-भाटे की तरंगों से ज्वारीय शक्ति उत्पन्न की जाती है।
  9. महासागर यातायात तथा परिवहन के सब से महत्त्वपूर्ण, सस्ते तथा प्राकृतिक साधन हैं।
  10. महासागरों से आवश्यक लाभ प्राप्त करने के लिए इन्हें प्रदूषण से मुक्त रखना आवश्यक है ।

प्रश्न 13.
मानव के लिए महासागरों के विभिन्न प्रत्यक्ष और परोक्ष उपयोग क्या-क्या हैं?
उत्तर:

  • प्रत्यक्ष उपयोग
    1. महासागर मछली जैसे खाद्य पदार्थ का असीमित भण्डार हैं।
    2. महासागर खनिजों का भण्डार हैं।
    3. महासागर यातायात तथा परिवहन मार्ग हैं।
  • अप्रत्यक्ष उपयोग
    1. महासागर जलवायु को नियन्त्रित करते हैं।
    2. महासागर ज्वारीय ऊर्जा तथा भूतापीय ऊर्जा के भण्डार हैं।

प्रश्न 14.
महासागरों को पृथ्वी पर जलवायु के महान् नियन्त्रक क्यों कहते हैं?
अथवा
महासागर जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालने के कारण प्रमुख नियन्त्रक कहे जाते हैं।

  1. महासागर धरातल पर तापमान तथा आर्द्रता पर प्रभाव डालते हैं।
  2. महासागर सौर ऊर्जा को संचय करते हैं
  3. महासागरों में ऊर्जा के अवशोषण और निष्कर्षण की विशाल क्षमता है।
  4. समुद्र तट पर तापांतर बहुत कम होता है।
  5. महासागरीय धाराएं तटीय क्षेत्रों के तापमान को सम करने में मदद करती हैं।

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प्रश्न 15.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए महासागर कैसे वरदान सिद्ध हुए हैं?
उत्तर:
महासागर यातायात तथा परिवहन के सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक साधन हैं। महासागर सबसे सस्ता यातायात साधन हैं। महासागरों में कोई सड़कों या मार्गों का निर्माण नहीं होता । महासागर सभी महाद्वीपों को आपस में जोड़कर एक अन्तर्राष्ट्रीय मार्ग की रचना करते हैं।

प्रश्न 16.
महाद्वीपीय मग्न तट तथा महाद्वीपीय ढाल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

महाद्वीपीय मग्न तट (Continental Shelf) महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope)
(1) महाद्वीपों के चारों ओर जल-मग्न चबूतरों को महाद्वीपीय मग्न तट कहते हैं। (1) महाद्वीपीय मग्न तट से महासागरों की ओर के ढाल को महाद्वीपीय ढाल कहते हैं।
(2) इसकी औसत गहराई 200 मीटर (100 फैदम) होती है। (2) इसकी औसत गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर तक होती है।
(3) समस्त महासागरों के $7.5$ प्रतिशत भाग पर इसका विस्तार है। (3) समस्त महासागरों के $8.5$ प्रतिशत भाग पर इसका विस्तार है।
(4) इसका औसत ढाल 10 से कम है। (4) इसका औसत ढाल 2° से 5° है।
(5) मछली क्षेत्रों तथा पेट्रोलियम के कारण इसका आर्थिक महत्त्व है। (5) इस पर कई समुद्री कैनियन स्थित हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरों की तली के उच्चावच के सामान्य लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
महासागरों की गहराई तथा उच्चावच में काफ़ी विभिन्नता है जिसे उच्चता दर्शी वक्र (Hypsographic Curve) से दिखाया जाता है। बनावट तथा गहराई के अनुसार सागरीय तल को चार भागों में बांटा जाता है
1. महाद्वीपीय मग्न तट (Continental Shelf): महाद्वीपों के चारों ओर सागरीय तट का वह भाग जो 150 से 200 मीटर तक गहरा होता है, महाद्वीपीय चबूतरा कहलाता है। वास्तव में यह महाद्वीप का ही भाग होता है जो जलमग्न होता है। विस्तार समस्त महासागरों के 7.5 प्रतिशत भाग ( 260 लाख वर्ग किलोमीटर) पर महाद्वीपीय मग्न तट का विस्तार है। इसका सबसे अधिक विस्तार अन्धमहासागर ( 13.3%) है। इसकी औसत चौड़ाई 70 किलोमीटर तथा गहराई 72 फैदम होती है। आर्कटिक सागर के तट पर इसका विस्तार 1000 कि० मी० से भी अधिक है। पर्वत श्रेणियों वाले तटों पर संकरे महाद्वीपीय मग्न तट पाए जाते हैं। इस तट का औसत ढाल 1° कोण होता है। भारत के पूर्वी तट पर चौड़ा मग्न तट मिलता है।

मग्न तटों की उत्पत्ति – मग्न तटों के निर्माण सम्बन्धी विचार इस प्रकार हैं:

  1. कुछ विद्वानों के अनुसार मग्न तट वास्तव में स्थल का बढ़ा हुआ रूप है। समुद्र तल के ऊपर उठने से या स्थल भाग के नीचे धंस जाने से मग्न तट की रचना होती है।
  2. सागरीय अपरदन से इन चबूतरों का निर्माण होता है।
  3. नदियों, लहरों, वायु आदि द्वारा तलछट के निक्षेप से मग्न तट चबूतरों (Submarine Terrace) का निर्माण होता है।

महत्त्व:
महाद्वीपीय मग्न तट मनुष्य के लिए काफ़ी उपयोगी हैं। इन प्रदेशों में मछलियों के भण्डार हैं। यहां तेल व गैस उत्पादन होता है। यहां बजरी व बालू के विशाल भण्डार पाए जाते हैं। यहां समुद्री जीवों तथा वनस्पति की अधिकता होती है।

2. महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope ):
महाद्वीपीय मग्न तट के बाहर का ढाल जो महासागर की ओर तीव्र गति से नीचे उतरता है, महाद्वीपीय ढाल कहलाता है। वास्तव में महाद्वीप ढाल के किनारे पर ही समाप्त होते हैं। इसकी गहराई 3660 मीटर तक है। इसका कुल विस्तार 8.5% क्षेत्र (310 लाख वर्ग कि० मी०) पर है । इसका सब से अधिक विस्तार अन्धमहासागर में 12.4% क्षेत्र पर है। इसकी ढाल का औसत कोण 4° है, परन्तु स्पेन के निकट यह कोण 36° है। यह ढाल वास्तव में गहरे समुद्रों तथा महाद्वीपों के स्तर को पृथक् करती है। जहां महाद्वीपीय ढाल का अन्त होता है, वहां मन्द ढाल को महाद्वीपीय उत्थान कहते हैं।
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3. महासागरीय मैदान (Deep Sea plain ):
महाद्वीपीय ढाल के पश्चात् समुद्र में चौड़े तथा समतल क्षेत्र को महासागरीय मैदान कहते हैं। इसकी औसत गहराई 3000 से 6000 मीटर तक है। कुल महासागरों में इसका लगभग 40% विस्तार है। इसका सबसे अधिक विस्तार प्रशान्त महासागर में 80.3% है। इसे नितल मैदान (Abyssal plain) भी कहते हैं। इन मैदानों का ढाल 1/100 से भी कम होता है। इन मैदानों पर कई भू-आकृतियां पाई जाती हैं, जैसे – समुद्री उद्रेख (Ridges ) द्वीप, समुद्री टीले (Sea mounts), निमग्न द्वीप (Guyots) आदि। इन मैदानों पर स्थलज तथा उथले जल से उत्पन्न तलछट पाए जाते हैं। नितल मैदान पर जलमग्न कटक पाए जाते हैं जो महासागरों के मध्य क्षेत्र में हैं। इन कटकों की लम्बाई 75000 कि० मी० है। ये मन्द ढाल वाले चौड़े पठार के समान हैं।

4. महासागरीय गर्त (Ocean Deeps):
ये समुद्र तल पर गहरे गड्ढे होते हैं। इनका विस्तार बहुत कम होता है। कुल महासागरों के 7% भाग में महासागरीय गर्त पाए जाते हैं। लम्बे चौड़े खड्ड को गर्त (Trough) कहते हैं जबकि लम्बे, गहरे तथा संकरे खड्ड को खाई (Trench) कहा जाता है। इनकी औसत गहराई 5500 मीटर है। संसार में 57 प्रसिद्ध गड्ढे हैं जिनमें अन्धमहासागर में 19, प्रशान्त महासागर में 32 तथा हिन्द महासागर में 6 हैं। संसार में सब से अधिक गहरा गर्त (Mariana Trench) प्रशान्त महासागर में है जिसकी गहराई 11022 मीटर है। इन गर्तों की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

(क) ये महासागरों के किनारों पर पाये जाते हैं।
(ख) ये भूकम्पीय तथा ज्वालामुखी क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं।
(ग) ये गर्त द्वीपीय चापों के सहारे मिलते हैं।

5. अन्य विशेष आकृतियां:
महासागरों में उच्चावच में विविधता के कारण कई भू-आकृतियां, जैसे- द्वीप (Islands), उद्रेख (Ridge), अटोल (Attol), समुद्री कैनियन (Canyon ) भी पाई जाती हैं।

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प्रश्न 2.
महासागरों में मिलने वाले छुद्र उच्चावच्च के लक्षण बताओ।
उत्तर:
छुद्र उच्चावच्च के लक्षण (Minor Relief Features): ऊपर दिए गए महासागरीय सतह के बड़े उच्चावच्चों के अतिरिक्त कुछ छोटी लेकिन महत्त्वपूर्ण आकृतियां महासागरों के विभिन्न भागों में बहुतायत पायी जाती हैं।

1. मध्य महासागरीय कटक (Mid Oceanic Ridge ):
एक मध्य महासागरीय कटक पर्वतों के दो श्रृंखलाओं का बना होता है, जिसके बीच बहुत बड़ा गड्ढा होता है। इन पर्वत श्रृंखलाओं के शिखर की ऊंचाई 2,500 मीटर तक हो सकती है तथा इनमें से कुछ समुद्र की सतह तक भी पहुंच सकती हैं, उदाहरण के लिए, आईसलैंड, जो कि मध्य अटलांटिक कटक का एक भाग है।

2. समुद्री पर्वत (Sea Mount ):
यह नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है, जो कि समुद्री सतह से ऊपर की ओर उठा होता है, किंतु महासागरों के ऊपरी स्तर तक नहीं पहुंच पाता है। समुद्री पर्वत ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3,000 से 4,500 मीटर लम्बे हो सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, इम्पेरर समुद्री पर्वत, जो कि प्रशान्त महासागर में हवाई द्वीपसमूहों का विस्तार है।

3. अंत: समुद्री दरे (कैनियन) (Canyons ):
कोलोरैडो नदी के ग्रैंड कैनियन की तरह ये गहरी घाटियां होती हैं। ये कभी-कभी महादेशीय छज्जों एवं महादेशीय ढालों को एक तरफ से दूसरे तरफ काटते हुए पाए जाते हैं जो कि प्रायः बड़ी नदियों के मुहाने से विस्तृत होते हैं। विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण दर्रा हडसन दर्रा है।

4. निमग्न द्वीप (Guyots):
यह चपटे शिखर वाला समुद्री पर्वत है। ये लगातार हो रहे अवतलन के प्रमाणों को दर्शाते हैं, जिसके कारण धीरे-धीरे इन डूबे हुए पर्वतों का शिकर चपटा होता जाता है। प्रशान्त महासागर में अनुमानतः 10,000 से अधिक समुद्री पर्वत एवं निमग्न द्वीप उपस्थित हैं।

5. प्रवाल द्वीप (Atoll ):
ये कटिबन्धीय महासागरों में पाए जाने वाले छोटे आकार के द्वीप हैं, न जहां एक गड्ढे को चारों तरफ से मूंगे की चट्टानें रहती हैं। ये समुद्र के एक भाग हो सकते हैं या कभी-कभी ये साफ, खारे या बहुत अधिक जल को चारों तरफ से रहते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न सागरों में लवणता की मात्रा को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
समुद्र का जल सदा खारा होता है। सागरीय जल में औसत लवणता 35 प्रति हज़ार है। परन्तु भिन्न-भिन्न सागरों में लवणता की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। खारेपन की भिन्नता निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है

1. स्वच्छ जल की पूर्ति ( Supply of Fresh Water ):
स्वच्छ जल की अधिकता से सागरीय जल में लवणता कम हो जाती है। भूमध्य रेखीय खण्ड में अधिक वर्षा से सागरीय जल में कम लवणता पाई जाती है। बड़ी-बड़ी नदियों के मुहानों के निकट लवणता कम होती है। ध्रुवीय प्रदेशों में हिम के पिघलने से स्वच्छ जल प्राप्त होता रहता है जिससे लवणता कम हो जाती है।

2. वाष्पीकरण की मात्रा तथा गति (Rapidity and Amount of Evaporation ):
अधिक तापक्रम, वायु की तीव्र गति तथा शुष्कता के कारण वाष्पीकरण की क्रिया अधिक होती है जिससे सागरीय जल में लवणता बढ़ जाती है। इसी कारण कर्क रेखा तथा मकर रेखा के आस-पास लवणता अधिक होती है।

3. सागरीय जल की मिश्रण क्रिया – सागरीय जल, ज्वार भाटा, लहरों तथा धाराओं के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहता रहता है, जल के इस मिश्रण से स्थानिक रूप में लवणता बढ़ जाती है या कम हो जाती है।

4. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds):
गर्म तथा शुष्क पवनों के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है। उच्च वायु दबाव पेटियों में नीचे उतरती पवनों के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है जो लवणता में वृद्धि कर देता है।

5. धारायें (Currents):
धाराएं खुले सागरों में एक भाग से दूसरे भाग तक जल ले जाती हैं। गर्म धाराएं लवणता को बढ़ा देती हैं तथा ठण्डी धाराएं लवणता को कम करती हैं। इस प्रकार महासागरों में तापमान, घनत्व तथा लवणता में सम्बन्ध है। तापमान तथा घनत्व में परिवर्तन से लवणता में परिवर्तन होता है।

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प्रश्न 4.
महासागरों में तापमान के वितरण को नियन्त्रित करने वाले घटकों का वर्णन करो।
उत्तर:
सागरीय जल ताप का एक उत्तम संचालक है। इसी कारण जल, स्थल की अपेक्षा देर से गर्म होता है तथा देर से ठण्डा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक समान नहीं होता। सागरीय जल के तापमान का वितरण निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करता है:

1. भूमध्य रेखा से दूरी:
सागरीय जल की ऊपरी सतह का तापमान अक्षांश के साथ हटता रहता है। भूमध्य रेखा पर यह तापमान 27° C के लगभग रहता है। 40° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 14° C पाया जाता है तथा 70° अक्षांश पर 5°C। शून्य डिग्री सेल्सियस समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के गिर्द वृत्त बनाती है। प्रति 1° अक्षांश पर 0.5°C तापमान घटता है।

2. प्रचलित पवनें:
स्थायी पवनें समुद्र जल की ऊपरी परत को हटाती रहती हैं तथा नीचे से ठण्डा जल आ जाता है। इस उत्स्रवण (Up welling of Water) की क्रिया से तापमान कम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र से स्थल की ओर आने वाली पवनें गर्म जल इकट्ठा कर के तापमान को बढ़ा देती हैं।

3. महासागरीय धाराएं:
महासागरीय धाराएं तापमान में समानता लाने का प्रयत्न करती हैं। गर्म धाराएं ठण्डे प्रदेशों में तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण गल्फस्ट्रीम के कारण ही पश्चिमी यूरोप में तापमान 5° C से अधिक रहता है। इसके विपरीत ठण्डी धाराएं तापमान को ओर भी कम कर देती हैं, ठण्डी लेब्रेडोर धारा के कारण न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट तापमान 2° C से कम होता है।

4. लवण में भिन्नता:
अधिक लवण वाले जल का तापमान ऊंचा होता है क्योंकि वह अधिक गर्मी ग्रहण कर सकता है।

5. स्थल खण्डों की स्थिति:
उष्ण कटिबन्ध में स्थल के घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है परन्तु शीत कटिबन्ध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई:
समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान कम होता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15° C से घट कर 2° C रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से घट कर 1.6° C रह जाता है

7. अंत: समुद्री रोधिकाएं (Submarine Ridges):
कम गहरे भागों में पानी के नीचे रोधिकाएं तापमान में अन्तर डालती हैं।

प्रश्न 5.
सागरीय जल की लवणता से क्या अभिप्राय है? संसार के विभिन्न सागरों में लवणता का वितरण बताइये।
उत्तर:
समुद्र जल में पाये जाने वाले समस्त लवणों का योग समुद्र की लवणता कहलाता है। समस्त घुले हुए लवण एक निश्चित अनुपात में पाये जाते हैं परन्तु विभिन्न स्थानों पर विभिन्न मात्रा में मिलते हैं। महासागरीय लवणता उस अनुपात को कहते हैं जो घुले हुए लवणों की मात्रा और समुद्र जल की मात्रा में होता है। इस लवणता को प्रति हज़ार भागों में प्रकट किया जाता है। समुद्र जल की औसत लवणता प्रति हज़ार ग्राम जल में पैंतीस ग्राम लवण पदार्थ है तथा इसे 35 प्रति हज़ार लिखा जाता है। लवणता का वितरण: कई भौगोलिक तत्त्वों के कारण विभिन्न सागरों में लवणता की मात्रा में अन्तर पाया जाता है।

(क) खुले महासागरों में लवणता (Salinity in Open Seas)
1. भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्र (Near the Equator):
इन सागरों में औसत लवणता कम (लगभग 34 प्रति हज़ार ) होती है। ( 33% से 37% ) कारण:

  • अधिक वर्षा
  • अधिक मेघाच्छादन
  • अमेजन तथा कांगो जैसी बड़ी-बड़ी नदियों से विशाल स्वच्छ जल की प्राप्ति।

2. कर्क व मकर रेखा के निकट (Near the Tropics): यहां पर लवणता की मात्रा सबसे अधिक (36 प्रति हज़ार ) पाई जाती है।
कारण:

  1. अधिक वाष्पीकरण
  2. स्वच्छ आकार तथा शुष्क वायु
  3. कम वर्षा
  4. बड़ी नदियों का अभाव। गर्म – शुष्क प्रदेशों में यह 70% है।

3. ध्रुवीय क्षेत्र (Polar Areas): इन क्षेत्रों में लवणता की मात्रा 20 से 30 प्रति हज़ार होती है।
कारण:

  1. कम ताप के कारण वाष्पीकरण का कम होना।
  2. पश्चिमी पवनों द्वारा अधिक वर्षा का होना।
  3. बर्फ़ के पिघलने से स्वच्छ जल की प्राप्ति। आर्कटिक महासागर में यह 0-30% है। उत्तरी सागर में गर्म धारा के कारण अधिक है।

(ख) घिरे हुए समुद्रों में लवणता (Salinity in Enclosed Seas):

इन सागरों में लवणता की मात्रा में काफ़ी अन्तर पाया जाता है, जैसे:

  1. भूमध्य सागर में जिब्रालटर के समीप खारेपन की मात्रा 37 प्रति हज़ार से 39 प्रति हज़ार है। अधिक लवणता शुष्क – ग्रीष्म ऋतु, अधिक वाष्पीकरण तथा नदियों के अभाव के कारण है।
  2. लाल सागर 40 प्रति हज़ार, खाड़ी स्वेज 41 प्रति हज़ार, खाड़ी फारस में 38 प्रति हज़ार लवणता की मात्रा पाई जाती है।
  3. काला सागर में 18 प्रति हज़ार तथा एजोव सागर में 17 प्रति हज़ार लवणता पाई जाती है। बाल्टिक सागर में केवल 11 प्रति हज़ार लवणता पाई जाती है। यहां वाष्पीकरण कम है। बड़ी-बड़ी नदियों से स्वच्छ जल प्राप्त होता है हिम के पिघलने से भी अधिक जल की प्राप्ति होती है।

( ग ) झीलें तथा आन्तरिक सागर (Lake and Inland Seas ):
झीलों तथा आन्तरिक सागरों में लवणता की मात्रा इनमें गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण तथा स्थिति के कारण भिन्न- भिन्न होती है। झीलों में नदियों के गिरने से स्वच्छ जल अधिक हो जाता है तथा लवणता कम होती है। नदियों की कमी वाष्पीकरण अधिक होता है तथा लवणता अधिक होती है। कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में लवणता 14 प्रति हज़ार है परन्तु दक्षिणी भाग में लवणता 170 प्रति हज़ार है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में लवणता 220 प्रति हज़ार है । जार्डन में मृत सागर (Dead Sea) में लवणता 240 प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में लवणता 330 प्रति हज़ार है। यहां अधिक लवणता अधिक वाष्पीकरण तथा नदियों की कमी के कारण है।

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प्रश्न 6.
महासागरों के महत्त्व का वर्णन करते हुए स्पष्ट करो कि महासागर भविष्य के भण्डार हैं।
उत्तर:
महासागरों का महत्त्व (Importance of Oceans):
महासागरों का प्रभाव तटीय प्रदेश के लोगों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। परन्तु परोक्ष रूप से महासागर मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी हैं, महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं, सागरीय धाराएं तापमान तथा आर्द्रता के वितरण को प्रभावित करती हैं। महासागरों में ज्वार-भाटे की तरंगों से ज्वरीय शक्ति उत्पन्न की जा सकती है। महासागर यातायात तथा परिवहन के सबसे महत्त्वपूर्ण, सस्ते तथा प्राकृतिक साधन हैं। महासागर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य पदार्थों के स्रोत हैं।

इसलिए इन्हें ‘ भविष्य का भण्डार’ (Future Store-house) भी कहा जाता है।
1. महासागर तथा खाद्य संसाधन (Oceans and Food Resources ):
आदि मानव अपने भोजन की पूर्ति के लिए महासागरों पर निर्भर करता था आज भी महासागर खाद्य पदार्थों के अनन्त भण्डार हैं। संसार के अनेक क्षेत्रों में मानव भोजन के लिए मछली पर निर्भर है। मछली भोजन के कुल प्रोटीन का 10% भाग प्रदान करती है। पश्चिमी यूरोप, उत्तर-पूर्वी अमेरिका, जापान आदि देशों में मछली क्षेत्रों का आधुनिक स्तर पर विकास हुआ है। कई प्रकार के शैवालों से भी खाद्य पदार्थ प्राप्त होते हैं। निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन प्रदान करने का सब से महत्त्वपूर्ण साधन भविष्य में महासागरों के मछली क्षेत्र ही होंगे।

2. महासागर तथा उपयोगी पदार्थ ( Oceans and Useful Materials):
महासागरों से अनेक उपयोगी पदार्थ मिलते हैं जो वनस्पति तथा जीवों से प्राप्त होते हैं। अनेक समुद्री जन्तु, तेल, रोएं, चमड़ा, सरेस, पशुओं के लिए चारे की वस्तुएं प्रदान करते हैं। कुछ समुद्री पौधों तथा जन्तुओं का प्रयोग दवाइयों के बनाने में भी किया जाता है। इस प्रकार महासागरों से अनेक पदार्थ सुलभ हैं। भविष्य में मानव को कई पदार्थों के लिए महासागरों पर आश्रित रहना पड़ेगा।

3. महासागर तथा खनिज संसाधन (Oceans and Mineral Resources):
महासागर अनेक उपयोगी धात्विक तथा अधात्विक खनिजों के भण्डार हैं। ये खनिज घोल तथा निलम्बित कणों के रूप में मिलते हैं। समुद्रों के खारे जल में नमक सब से महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। अन्य पदार्थों में मैंगनीज, गंधक, ब्रोमीन, जिर्कन, मोनोजाइट, सोना, लोहा, बालू, बजरी महत्त्वपूर्ण हैं। महासागरों में कुछ खनिज पदार्थों का पुनः निर्माण होता रहता है जो भविष्य में मानव के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।

4. महासागर तथा खनिज तेल (Oceans and Petroleum ):
आधुनिक समय में महासागरों से खनिज तेल का प्राप्त होना सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। खनिज तेल मुख्यतः कम गहरे निमग्न चबूतरों में पाया जाता है। एक अनुमान के अनुसार संसार के खनिज तेल के भण्डार का 20% भाग महासागरीय नितल पर है। इस समय 75 से अधिक देशों में तट से दूर कम गहरे भागों में (Offshore Areas) में तेल निकाला जा रहा है। इन क्षेत्रों से प्राकृतिक गैस के भी भण्डार प्राप्त हुए हैं। ‘बम्बई हाई’ (Bombay High) भी ऐसा ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो सागरीय तट से 150 किलोमीटर दूर स्थित है। अनुमान है कि तेल के भण्डार उत्तरी सागर, मैक्सिको की खाड़ी, वेन्जुएला तट तथा हिन्द महासागर में मौजूद हैं। भविष्य में खनिज तेल के भण्डार अधिक-से-अधिक 50 वर्षों तक पर्याप्त होंगे। अधिक खपत के कारण ये समाप्त हो जाएंगे। भविष्य में मानव को खनिज तेल के लिए महासागरों में खोज करनी पड़ेगी।

5. महासागर तथा ऊर्जा (Oceans and Energy):
आधुनिक खोज द्वारा महासागरीय जल से ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न साधन खोज निकाले गए हैं। ज्वार भाटे के जल से ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Power) प्राप्त की जाती है । सोवियत रूस, जापान तथा फ्रांस में ज्वारीय शक्ति उत्पन्न करने के कुछ केन्द्र हैं। महासागरों के ज्वालामुखियों के क्षेत्रों में भू- तापीय ऊर्जा (Geo-thermal Energy ) प्राप्त की जा रही है। बैल्जियम तथा क्यूबा में महासागरीय जल में तापांतर की सहायता से ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इस प्रकार भविष्य में ऊर्जा संकट उत्पन्न होने से महासागर ऊर्जा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होंगे।

6. महासागर तथा परिवहन साधन (Oceans and Means of Transportation ):
महासागर यातायात के प्राचीनतम, सबसे सस्ते तथा प्राकृतिक साधन हैं। संसार का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बहुत हद तक समुद्री मार्गों पर निर्भर करता है। भविष्य में खनिज तेल व कोयले की कमी के समय मानव को महासागरीय परिवहन पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जाइरे बेसिन में किस प्रकार की जलवायु मिलती है?
(A) मानसूनी
(B) रूम सागरीय
(C) भूमध्य रेखीय
(D) ध्रुवीय।
उत्तर;
(C) भूमध्य रेखीय।

2. शीत ऋतु की वर्षा वाला खण्ड कौन-सा है?
(A) भूमध्य रेखीय
(B) रूमं सागरीय।
(C) मानसून
(D) टुण्ड्रा।
उत्तर:
(B) रूमं सागरीय।

3. यदि वाष्पीकरण वर्षा से कम हो तो जलवायु कैसी होती है ?
(A) शुष्क
(B) आर्द्र
(C) शीत
(D) उष्ण।
उत्तर:
(B) आर्द्र

4. वाष्पोत्सर्जन में कौन-सी क्रिया होती है?
(A) महासागरों से वाष्पीकरण
(B) पेड़-पौधों से वाष्पीकरण
(C) जल वाष्प का सघनन
(D) धूल-कणों पर जल वाष्प का जमना।
उत्तर:
(B) पेड़-पौधों से वाष्पीकरण।

5. H शब्द किस प्रकार के प्रदेशों की जलवायु प्रकट करता है?
(A) भूमध्य रेखीय
(B) भूमध्य सागरीय
(C) उच्च भूमियां
(D) मानसून
उत्तर:
(C) उच्च भूमियां।

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6. निम्नलिखित में से कौन-सा मौसम तथा जलवायु का तत्त्व नहीं है?
(A) तापमान
(B) आर्द्रता
(C) दृश्यता
(D) वृष्टि।
उत्तर:
(C) दृश्यता।

7. ऊष्ण ऋतु से पूर्णतः रहित ध्रुवीय जलवायु को कोपेन ने दर्शाया है:
(A) A अक्षर द्वारा
(C) D अक्षर द्वारा
(B) B अक्षर द्वारा
(D) E अक्षर द्वारा।
उत्तर:
(D) E अक्षर द्वारा।

8. निम्नलिखित में से कौन-से जलवायु प्रकार की प्रमुख विशेषताएं ऊंचा तापमान, ऊंची सापेक्षिक आर्द्रता, सारा वर्ष होने वाली अधिक वर्षा और कम वार्षिक तापान्तर है?
(A) विषुवतीय जलवायु
(B) सवाना जलवायु
(C) मानसून जलवायु
(D) चीन तुल्य जलवायु।
उत्तर:
(A) विषुवतीय जलवायु।

9. भूमध्य सागरीय जलवायु की विशेषता है:
(A) वर्ष भर वर्षा
(B) मुख्यतः शीत ऋतु में वर्षा
(C) मुख्यतः ग्रीष्म ऋतु में वर्षा
(D) 10 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा।
उत्तर:
(B) मुख्यत: शीत ऋतु में वर्षा।

10. कौन-सी जलवायु में वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक होता है?
(A) सवाना जलवायु
(B) उष्ण मरुस्थलीय जलवायु
(C) स्टेपी जलवायु
(D) उच्च पर्वतीय जलवायु।
उत्तर:
(B) उष्ण मरुस्थलीय जलवायु।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अमेज़न बेसिन में किस प्रकार की जलवायु मिलती है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय जलवायु।

प्रश्न 2.
शीत ऋतु की वर्षा वाला खण्ड कौन-सा है?
उत्तर:
भूमध्यसागरीय।

प्रश्न 3.
A शब्द किस प्रकार की जलवायु का प्रतीक है?
उत्तर:
आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।

प्रश्न 4.
दो उष्ण मरुस्थलों के नाम लिखो।
उत्तर:
सहारा तथा थार।

प्रश्न 5.
आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु की सीमा कौन – सी समताप रेखा निर्धारित करती है?
उत्तर:
20°C समताप रेखा।

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प्रश्न 6.
उष्ण कटिबन्ध में कौन-सी तीन प्रकार की जलवायु मिलती है?
उत्तर:

  1. विषुवतीय रेखीय
  2. सवाना
  3. मानसूनी जलवायु।

प्रश्न 7.
शुष्क जलवायु के दो प्रकार बताओ।
उत्तर:
अर्ध-मरुस्थलीय, स्टेपी।

प्रश्न 8.
शुष्क मरुस्थल किन अक्षांशों के निकट मिलते हैं?
उत्तर:
कर्क रेखा तथा मकर रेखा।

प्रश्न 9.
भूमध्य सागरीय जलवायु खण्ड में शीत ऋतु की वर्षा का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
वायुदाब पेटियों का खिसकना।

प्रश्न 10.
टैगा जलवायु में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
कोणधारी वन।

प्रश्न 11.
ध्रुवीय जलवायु में उष्णतम मास का तापमान कितना होता है?
उत्तर:
10°C से कम।

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प्रश्न 12.
टैगा जलवायु खण्ड में न्यूनतम ताप कहां मापा गया है?
उत्तर:
वर्खोयांस्क ( 50°C)।

प्रश्न 13.
भारत किस प्रकार की जलवायु वाला देश है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जलवायु विज्ञान की परिभाषा दो।
उत्तर:
जलवायु विज्ञान (Climatology ):
पृथ्वी के चारों ओर वायु का एक विस्तृत आवरण फैला हुआ है। इन वायुमण्डलीय अवस्थाओं ( तापमान, वायुदाब, पवनें, आर्द्रता) का अध्ययन करने वाले शास्त्र को जलवायु विज्ञान कहते हैं। इनमें केवल वायुमण्डलीय क्रियाओं का ही नहीं अपितु जलवायु के विभिन्न तत्त्वों एवं नियन्त्रणों का अध्ययन भी किया जाता है।

प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के जलवायविक वर्गीकरण के मुख्य आधारों के नाम लिखो।
उत्तर:
संसार की मुख्य जलवायु वर्गीकृत प्रकारों की पहचान इन तत्त्वों के आधार पर की जाती है

  1. तापमान (Temperature)
  2. वर्षा (Rainfall)
  3. वाष्पीकरण (Evaporation)
  4. वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration)
  5. जल सन्तुलन (Water Balance)।

प्रश्न 3.
तीन प्रसिद्ध जलवायविक वर्गीकरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संसार में दो प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए तथा इन्हीं के नाम पर प्रसिद्ध वर्गीकरण निम्नलिखित हैं

  1. थार्नवेट वर्गीकरण (Thornthwaite Classification)
  2. कोपेन वर्गीकरण (Koppen Classification)
  3. ट्रिवार्था का वर्गीकरण

प्रश्न 4.
वृष्टि की एक निश्चित मात्रा आर्द्र और शुष्क जलवायु विभाजक सीमा क्यों नहीं होती?
उत्तर:
केवल वर्षा की मात्रा के आधार पर ही आर्द्र और शुष्क जलवायु की सीमा निर्धारित नहीं होती है। औसत वार्षिक वर्षा के साथ-साथ वर्षा का मौसमी वितरण देखा जाता है। तापमान तथा वाष्पीकरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये चारों कारक मिलकर किसी प्रदेश की शुष्क या आर्द्र जलवायु निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 5.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में किस प्रकार के जलवायु आंकड़े प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. वर्षा
  3. वर्षा तथा तापमान का वनस्पति से सम्बन्ध।

प्रश्न 6.
किस प्रकार की जलवायु में वार्षिक तापान्तर कम-से-कम होता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय खण्ड में वार्षिक तापान्तर सबसे कम होता है। ये प्रायः 5° सैंटीग्रेड से कम होता है। इस खण्ड में वर्ष भर समान रूप से वर्षा होती है तथा मेघ छाये रहते हैं, उच्च तापमान मिलते हैं तथा दिन-रात सदा समान होते हैं परिणामस्वरूप वार्षिक तापान्तर कम होता है।

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प्रश्न 7.
ग्रीष्मकाल में 10° C समताप रेखा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
टुण्ड्रा खण्ड में सबसे अधिक गर्म मास का तापमान 10° C से कम रहता है। ग्रीष्म ऋतु बहुत छोटी होती है तथा उपज काल भी बहुत छोटा होता है। यह समताप रेखा ध्रुवों की ओर वृक्षों की सीमा निर्धारित करती है। (limit of tree growth) 10° C से कम तापमान के कारण टुण्ड्रा खण्ड में वृक्ष नहीं होते।

प्रश्न 8.
पश्चिमी यूरोपीय जलवायु उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका में केवल पतली समुद्र तटीय पट्टियों में ही क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका में पश्चिमी यूरोपीय खण्ड एक तंग पट्टी के रूप में चिल्ली तथा कनाडा में मिलता है। निरन्तर ऊंचे रॉकीज तथा एण्डीज पर्वतों की रोक के कारण इस खण्ड का विस्तार सीमित है।

प्रश्न 9.
निम्न अक्षांशीय मरुस्थलीय जलवायु की तुलना स्टेपी जलवायु से करो।
उत्तर:

मरुस्थलीय जलवायु स्टेपी जलवायु
(1) मरुस्थलीय जलवायु 20 30 अक्षांशों के पश्चिमी भागों में मिलती है। (1) स्टेपी जलवायु 30 45 अक्षांशों में महाद्वीपों के अन्दरूनी भागों में पाई जाती है।
(2) इस जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 38 रहता है। (2) इस जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 20 रहता है।
(3) वार्षिक वर्षा 20 से० मी० से कम होती है। (3) औसत वार्षिक वर्षा 30 से० मी॰ से अधिक रहती है।
(4) प्राकृतिक वनस्पति का अभाव होता है। केवल कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। (4) यहां छोटी हरी घास मिलती है जिस पर पशु पालन होता है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
कोपेन द्वारा जलवायु वर्गीकरण की पद्धति का वर्णन करो तथा प्रत्येक जलवायु प्रकार का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति ब्लादिमीर कोपेन द्वारा विकसित की गई जलवायु के वर्गीकरण की आनुभाविक पद्धति का सबसे व्यापक उपयोग किया जाता है। कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध की पहचान की। उन्होंने तापमान तथा वर्षण के कुछ निश्चित मानों का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया और इन मानों का उपयोग जलवायु के वर्गीकरण के लिए किया । वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आँकड़ों पर आधारित यह एक आनुभाविक पद्धति है।

उन्होंने जलवायु के समूहों एवं प्रकारों को पहचान करने के लिए बड़े तथा छोटे अक्षरों के प्रयोग का आरंभ किया। सन् 1918 में विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय और प्रचलित है। कोपेन ने पाँच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किए जिनमें से चार तापमान पर और एक घर्षण पर आधारित है बड़े अक्षरों का प्रयोग
बड़े अक्षर A, C, D तथा E आर्द्र जलवायुओं को तथा B अक्षर शुष्क जलवायुओं को निरूपित करता है।

सारणी : कोपेन के अनुसार जलवायु समूह

समूह लक्षण
A. उष्णकटिबंधीय सभी महीनों का औसत तापमान 18° सेल्सियस से अधिक-आर्द्र जलवायु।
B. शुष्क जलवायु औसत वार्षिक वर्षा (से॰मी०) औसत वार्षिक तापमान (° सेल्सियस) के दुगुने से कम।
C. कोष्ण शीतोष्ण सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान 3° सेल्सियस से अधिक किन्तु 18° सेल्सियस से कम मध्य अक्षांशीय जलवायु।
D. शीतल हिम-वन वर्ष के सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान. शून्य डिग्री तापमान से 3° नीचे।
E. शीत सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस से कम।
H. उच्चभूमि ऊँचाई के कारण सर्द।

छोटे अक्षरों का प्रयोग
जलवायु समूहों को तापक्रम एवं वर्षा की मौसमी विशेषताओं के आधार पर कई उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है जिसको छोटे अक्षरों द्वारा अभिहित किया गया है। शुष्कता वाले मौसमों को छोटे अक्षरों f, m, w और s द्वारा इंगित किया गया है। इसमेंfशुष्क मौसम के न होने को, m मानसून जलवायु को, w शुष्क शीत ऋतु को और s शुष्क ग्रीष्म ऋतु को इंगित करता है। छोटे अक्षर a, b, c तथा d तापमान की उग्रता वाले भाग को दर्शाते हैं। B समूह की जलवायुओं को उपविभाजित करते हुए स्टैपी अथवा अर्ध-शुष्क के लिए S तथा मरुस्थल के लिए W जैसे बड़े अक्षरों का प्रयोग किया गया है।

समूह प्रकार कुट अक्षर लक्षण
(A) उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु उष्णकटिबंधीय आर्द्र Af कोई शुष्क ऋतु नहीं।
उष्णकटिबंधीय मानसून Am मानसून, लघु शुष्क ॠतु
उष्पकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क Aw जाड़े की शुष्क ऋतु
(B) शुष्क जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय स्टैपी BSh निम्न अक्षांशीय अर्द्ध शुष्क एवं शुष्क
उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थल BWh निम्न अक्षांशीय शुष्क
मध्य अक्षांशीय स्टैपी BSk मध्य अक्षांशीय अर्ध शुष्क अथवा शुष्क
मध्य अक्षांशीय मरुस्थल BWk मध्य अक्षांशीय शुष्क
(C) कोष्ण शीतोष्ण (मध्य अक्षांशीय जलवायु) आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय Cfa मध्य अक्षांशीय अर्द्ध शुष्क अथवा शुष्क
भूमध्य सागरीय Csa शुष्क गर्म ग्रीष्म
समुद्री पश्चिमी तटीय Cfb एवं CFc कोई शुष्क ऋतु नहीं, कोष्ण तथा शीतल ग्रीष्म
(D) शीतल हिम-वन जलवायु आर्द्र महाद्वीपीय Df कोई शुष्क ऋतु नहीं, भीषण जाड़ा
उप-उत्तर ध्रुवीय DW जाड़ा शुष्क तथा अत्यंत भीषण
(E) शीत जलवायु टुंड्रा Et सही अर्थों में कोई ग्रीष्म नहीं
ध्रुवीय हिमटोपी Ef सदैव हिमाच्छादित हिम
(F) उच्चभूमि उच्च भूमि H हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 2.
जलवायु परिवर्तन से क्या अभिप्राय है? कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन
जिस प्रकार की जलवायु का अनुभव हम अब कर रहे हैं वह थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव के साथ विगत 10 हज़ार वर्षों से अनुभव की जा रही है। अपने प्रादुर्भाव से ही पृथ्वी ने जलवायु में अनेक परिवर्तन देखे हैं। भूगर्भिक अभिलेखों से हिमयुगों और अंतर – हिमयुगों में क्रमशः परिवर्तन की प्रक्रिया परिलक्षित होती है। भू-आकृतिक लक्षण, विशेषतः ऊँचाइयों तथा उच्च अक्षांशों में हिमनदियों के आगे बढ़ने व पीछे हटने के शेष चिह्न प्रदर्शित करते हैं। हिमानी निर्मित झीलों में अवसादों का निक्षेपण उष्ण एवं शीत युगों के होने को उजागर करता है। वृक्षों के तनों में पाए जाने वाले वलय भी आर्द्र एवं शुष्क युगों की उपस्थिति का संकेत देते हैं । ऐतिहासिक अभिलेख भी जलवायु की अनिश्चितता का वर्णन करते हैं। ये सभी साक्ष्य इंगित करते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक एवं सतत प्रक्रिया है।

भारत में जलवायु
भारत में भी आर्द्र एवं शुष्क युग आते-जाते रहे हैं। पुरातत्व खोजें दर्शाती हैं कि ईसा से लगभग 8,000 वर्ष पूर्व राजस्थान मरुस्थल की जलवायु आर्द्र एवं शीतल थी। ईसा से 3,000 से 1,700 वर्ष पूर्व यहाँ वर्षा अधिक होती थी लगभग 2,000 से 1,700 वर्ष ईसा पूर्व यह क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति का केन्द्र था। शुष्क दशाएँ तभी से गहन हुई हैं। लगभग 50 करोड़ से 30 करोड़ वर्ष पहले भू-वैज्ञानिक काल के कूम्ब्रियन, आर्डोविसियन तथा सिल्युरिसन युगों में पृथ्वी गर्म थी। प्लीस्टोसीन युगांतर के दौरान हिमयुग और अंतर हिमयुग अवधियां रही हैं। अंतिम प्रमुख हिमयुग आज से 18,000 वर्ष पूर्व था। वर्तमान अंतर हिमयुग 10,000 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।

अभिनव पूर्व काल में जलवायु:
सभी कालों में जलवायु परिवर्तन होते रहे हैं। पिछली शताब्दी के 90 के दशक में चरम मौसमी घटनाएँ घटित हुई हैं। 1990 के दशक में शताब्दी का सबसे गर्म तापमान और विश्व में सबसे भयंकर बाढ़ों को दर्ज किया है। सहारा मरुस्थल के दक्षिण में स्थित साहेल प्रदेश में 1967 से 1977 के दौरान आया विनाशकारी सूखा ऐसा ही एक परिवर्तन था। 1930 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका के वृहत मैदान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, जिसे ‘धूल का कटोरा’ कहा जाता है, भीषण सूखा पड़ा।

फसलों की उपज अथवा फसलों के विनाश, बाढ़ों तथा लोगों के प्रवास संबंधी ऐतिहासिक अभिलेख परिवर्तनशील जलवायु के प्रभावों के बारे में बताते हैं। यूरोप अनेकों बार उष्ण, आर्द्र, शीत एवं शुष्क युगों से गुज़रा है। इनमें से महत्त्वपूर्ण प्रसंग 10वीं और 11वीं शताब्दी की उष्ण एवं शुष्क दशाओं का है, जिनमें बाइकिंग कबीले ग्रीनलैंड में जा बसे थे। यूरोप ने सन् 1550 से सन् 1850 के दौरान लघु हिम युग का अनुभव किया है। 1885 से 1940 तक विश्व के तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति पाई गई है । 1940 के बाद तापमान में वृद्धि की दर है ।

जलवायु परिवर्तन के कारण: जलवायु परिवर्तन के अनेक कारण हैं। इन्हें खगोलीय और पार्थिव कारणों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

  1. खगोलीय कारणों का सम्बन्ध सौर कलंकों की गतिविधियों से उत्पन्न सौर्थिक निर्गत ऊर्जा में परिवर्तन से है। सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं, जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं । कुछ मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार सौर कलंकों की संख्या बढ़ने पर मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफानों की संख्या बढ़ जाती है। सौर कलंकों की संख्या घटने से उष्ण एवं शुष्क दशाएँ उत्पन्न होती हैं यद्यपि ये खोजे आँकड़ों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
  2. एक अन्य खगोलीय सिद्धांत ‘मिलैंकोविच दोलन’ है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के कक्षीय लक्षणों में बदलाव के चक्रों, पृथ्वी की डगमगाहट तथा पृथ्वी के अक्षीय झुकाव में परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगाता है । ये सभी कारक सूर्य से प्राप्त होने वाले सूर्यातप में परिवर्तन ला देते हैं जिसका प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।
  3. ज्वालामुखी क्रिया जलवायु परिवर्तन का एक अन्य कारण है। ज्वालामुखी उद्भेदन वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ऐरोसोल फेंक देता है। ये ऐरोसोल लंबे समय तक वायुमंडल में विद्यमान रहते हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाले सौर्यिक विकिरण को कम कर देते हैं । हाल ही में हुए पिनाटोबा तथा एल सियोल ज्वालामुखी उद्भेदनों के बाद पृथ्वी का औसत तापमान कुछ हद तक गिर गया था
  4. जलवायु पर पड़ने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मानवोद्भवी कारण वायुमंडल में ग्रीन हाऊस गैसों का बढ़ता सांद्रण है। इससे भूमंडलीय तापन हो सकता है।

भूमंडलीय तापन
ग्रीन हाऊस गैसों की उपस्थिति के कारण वायुमंडल एक हरित गृह की भांति व्यवहार करता है। वायुमंडल प्रवेशी सौर विकिरण का पोषण भी करता है किन्तु पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर उत्सर्जित होने वाली अधिकतम दीर्घ तरंगों को अवशोषित कर लेता है। वे गैसें जो विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करती हैं, हरित गृह गैसें कहलाती हैं। वायुमंडल का तापन करने वाली प्रक्रियाओं को सामूहिक रूप से ‘हरित गृह प्रभाव’ (Green house effect) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भूमण्डलीय ऊष्मन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय ऊष्मन (Global Warming): भूमण्डलीय ऊष्मन का अर्थ है पृथ्वी के औसत तापमान में वायुमण्डल को गर्म करने के साधन वायुमण्डलीय गैसों के परमाणु एवं अणु ग्रीन हाउस गैसों विशेषकर जल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा मेथैन द्वारा सूर्य प्रकाश का अवशोषण तथा पश्च विकिरण करते हैं। महासागरों से होने वाले वाष्पन से वायुमण्डल में जल का संकेंद्रण नियंत्रित होता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड ज्वालामुखी क्रिया द्वारा लाया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड की उतनी ही मात्रा वर्षण द्वारा हटा दी जाती है और महासागरों में कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में जमा कर दी जाती है। मेथैन, जो कार्बन डाइऑक्साइड से बीस गुना अधिक प्रभावी है, लकड़ी में बैक्टीरिया के उपापचय तथा घास चरने वाले पशुओं द्वारा उत्पन्न की जाती है। मेथैन का बड़ी शीघ्रता से कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में ऑक्सीकरण होता है।

मानवीय क्रियाओं का प्रभाव:
मानवीय क्रियाओं, जैसे जीवाश्मी तेल को जलाने तथा विभिन्न कृषीय क्रियाओं द्वारा मेथैन एवं कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में जमा की जा रही है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा संपूर्ण विश्व की जलवायु को बदलने में मुख्य भूमिका अदा करती है। यह गैस सूर्यातप के लिए पारदर्शी है, लेकिन बाहर जाने वाले दीर्घ तरंगी पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर लेती है। अवशोषित पार्थिव विकिरण भूपृष्ठ पर वापस विकिरित कर दिया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कोई भी उल्लेखनीय परिवर्तन वायुमण्डल के निचले स्तर के तापमान में परिवर्तन लाएगा।

तीव्र औद्योगीकरण तथा कृषि और परिवहन क्षेत्रों में हुई तकनीकी क्रांति के फलस्वरूप वायुमण्डल में बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड, मेथैन तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें पहुंचाई जाती हैं। इनमें से कुछ गैस वनस्पति द्वारा उपभोग कर ली जाती हैं तथा कुछ भाग महासागरों में घुल जाता है। फिर भी लगभग 50 प्रतिशत भाग वायुमण्डल में बच जाता है।

  1. पिछले 100 वर्षों में, मेथैन का संकेंद्रण दुगुने से अधिक बढ़ गया है, (7.0 × 10-7 से 15.5 × 10-7 तक)।
  2. कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 20 प्रतिशत से अधिक (2.90 × 10-4 से 3.49 × 10-4 तक) हो गई है।
  3. 1880-1890 में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग 290 भाग प्रति दस लाख थी, जो बढ़ कर 1980 में 315 भाग प्रति दस लाख, 1990 में 340 भाग प्रति दस लाख और 2000 से 400 भाग प्रति दस लाख हो गई है।
  4. इसका अर्थ यह हुआ कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बढ़कर 1950 तक 9 प्रतिशत तथा 1990 तक लगभग 17 प्रतिशत अधिक हो गया है। गत दशक में इसकी वृद्धि की दर और भी बढ़ गई है

औद्योगीकरण का प्रभाव:
अनेकों जलवायविक प्राचलों में से तापमान नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। नगरीय क्षेत्रों की तापीय विशेषताएं समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से काफ़ी भिन्न हैं। गत 50 वर्षों के तापमान आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारत में शीत ऋतु में तापमान में 0.7° से. तथा ग्रीष्म ऋतु में 1.4° से० बढ़ जाता है।

कृषि का प्रभाव:
मानव जलवायु परिवर्तन का एक इंजन समझा जाता है। उदाहरणार्थ चावल उत्पादन करने वाले किसान, कोयला खनिक, डेयरी में लगे लोग तथा स्थानांतरी कृषक भी भूमंडलीय ऊष्मन में अपना-अपना योगदान देते हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार विश्व में चावल का उत्पादन 20 प्रतिशत मेथैन तथा कोयला खनन 6 प्रतिशत मेथैन वायुमंडल में जोड़ता है। स्थानांतरी खेती के फलस्वरूप होने वाले वनों के कटाव से 20 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में जमा कर दी जाती है। इसी प्रकार औद्योगीकरण द्वारा 25 प्रतिशत क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस वायुमंडल के ऐरोसॉल में जोड़ दी जाती है। फलस्वरूप भूमंडलीय तापमान वृद्धि लगभग 1.5° से० है।

वायुमंडलीय ऊष्मन के प्रभाव समुद्र तल के जल का ऊपर उठना:
आज इस बात के लिए काफ़ी चिंता जताई जा रही है कि कार्बन डाइऑक्साइड तथा मेथेन गैस की वायुमंडल में निरंतर वृद्धि से तापमान इस सीमा तक बढ़ जाएगा कि इससे ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिक महाद्वीप में बर्फ पिघलना आरंभ हो जाएगा। फलत: समुद्र तल ऊपर उठेगा जिससे तटीय भाग तथा द्वीप डूब जाएंगे। इससे वाष्पन एवं वर्षा के प्रतिरूपों में परिवर्तन आएगा, पौधों की नई-नई बीमारियां तथा नाशक जीवों की समस्याएं खड़ी होंगी और अंटार्कटिका के ऊपर स्थित ओजोन छिद्र बड़ा हो जाएगा।

अतीत में हुए जलवायविक परिवर्तनों की भरोसेमंद तस्वीर प्राप्त करने के उद्देश्य से अनेक देशों में विशेषकर अंटार्कटिक तथा ग्रीनलैंड की हिम टोपियों में पिछले 1,00,000 वर्षों के दौरान बर्फ़ में फंसी गैसों का विश्लेषण करने के लिए बर्फ कोरिंग कार्यक्रम को लिया गया है। इसके परिणाम बड़े रोचक निकले हैं और भूमंडलीय ऊष्मन की घटना से आगे बढ़कर पृथ्वी के अभिनव इतिहास की झलक दिखाते हैं। पृथ्वी के इतिहास के पिछले 10,000 वर्षों में जलवायु की प्रवृत्ति उसके पहले के वर्षों की तुलना में विशेष रूप से स्थिर रही है। ग्रीनलैंड के बर्फ़-कोर में ऑक्सीजन समस्थानिक अभिलेखों के अध्ययन से यह पता चलता है कि उत्तरी गोलार्द्ध में शीतलन प्रवृत्ति 1725 से 1920 तक चली। इनका संबंध ज्वालामुखी राख के निष्कासन से रहा, जो दो या तीन दशकों के नियमित अंतराल पर होता रहा लेकिन 1945 के बाद किसी प्रमुख ज्वालामुखी विस्फोट तथा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड संकेंद्रण की मात्रा में वृद्धि के बिना ही भूमंडलीय तापमान में वृद्धि से ऊष्मन शुरू हुआ है।

भविष्य: वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी है कि 2020 तक समस्त विश्व में पिछले 1,000 वर्षों की तुलना में तापमान अधिक होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा भूमंडलीय तापमान को बढ़ाने का कार्य करेगी।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. कौन-सा औद्योगिक अवस्थापना का एक कारण नहीं है?
(क) बाज़ार
(ग) जनसंख्या घनत्व
(ख) पूँजी
(घ) ऊर्जा।
उत्तर;
(ग) जनसंख्या घनत्व।

2. भारत में सबसे पहले स्थापित की गई लौह-इस्पात कम्पनी निम्नलिखित में से कौन-सी है?
(क) भारतीय लौह एवं इस्पात कम्पनी (आई० आई० एस० सी० ओ०)
(ख) टाटा लौह एवं इस्पात कम्पनी (टी० आई० एस० सी० ओ०)
(ग) विश्वेश्वरैया लौह तथा इस्पात कारखाना
(घ) मैसूर लोहा तथा इस्पात कारखाना।
उत्तर:
(क) भारतीय लौह एवं इस्पात कम्पनी।

3. मुम्बई में सबसे पहला सूती वस्त्र कारखाना स्थापित किया गया, क्योंकि
(क) मुम्बई एक पत्तन है।
(ख) यह कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है
(ग) मुम्बई एक वित्तीय केन्द्र था
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

4. हुगली औद्योगिक प्रदेश का केन्द्र है
(क) कोलकाता-हावड़ा
(ग) कोलकाता-मेदनीपुर
(ख) कोलकाता रिशरा
(घ) कोलकाता-कोन नगर।
उत्तर;
(क) कोलकाता-हावड़ा।

5. निम्नलिखित में से कौन-सा चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है?
(क) महाराष्ट्र
(ग) पंजाब
(ख) उत्तर प्रदेश
(घ) तमिलनाडु।
उत्तर;
(ख) उत्तर प्रदेश।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है। ऐसा क्यों?
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगीकरण की नींव है। यह उद्योग कई उद्योगों का आधारभूत सामान प्रदान करता है। यह आधुनिक मशीनों, परिवहन तथा यन्त्रों का आधार है। इसे आधारभूत उद्योग तथा उद्योगों की कुंजी भी कहा जाता है।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 2.
सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइए। वे किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टर हैं-हथकरघा सेक्टर तथा विद्युत् करघा सेक्टर। हथकरघा सेक्टर स्थानिक श्रम तथा कच्चे माल पर निर्भर करता है। उसका उत्पादन भी सीमित है। विद्युत् करघा सेक्टर में कपड़ा मशीनों द्वारा उत्पादित किया जाता है। यह सेक्टर देश के कुल उत्पादन का 50% भाग उत्पादन करता है।

प्रश्न 3.
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है?
उत्तर:
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है, क्योंकि गन्ने को खेत से काटने के 24 घण्टे के अन्दर ही पेरा जाए तो अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है। शुष्क ऋतु में गन्ने को खेत में खड़ा नहीं रखा जा सकता। इसे काट कर मिलों तक भेजा जाता है। इसलिए मिलें केवल उस मौसम में ही कार्य करती है, जब गन्ने को काटा जाता है।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 4.
पेट्रो रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा माल क्या है? इस उद्योग के कुछ उत्पादों के नाम बताइए।
उत्तर:
पेट्रो रासायनिक उद्योग के लिए खनिज तेल ही कच्चा माल है। इसलिए यह उद्योग तेल-शोधन शालाओं के निकट ही लगाया जाता है। इसके उत्पाद चार उप-वर्गों में बांटे जाते हैं। पालीमा, कृत्रिम रेशे, इलैस्टोमर्स, पृष्ठ संक्रियक।

प्रश्न 5.
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?
उत्तर;
सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति ने देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है। इसने आर्थिक और सामाजिक रूपान्तरण के लिए कई सम्भावनाएं उत्पन्न कर दी हैं। सॉफ़्टवेयर उद्योग भारत में सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाला उद्योग है। लगभग 78,230 करोड़ रुपए का सामान निर्यात किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
स्वदेशी आंदोलन के सूती वस्त्र उद्योग को किस प्रकार विशेष प्रोत्साहित किया?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुम्बई और अहमदाबाद में पहली मिल की स्थापना के पश्चात् सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विस्तार हआ। मिलों की संख्या आकस्मिक रूप से बढ़ गई। स्वदेशी आन्दोलन ने उद्योग को प्रमुख रूप से प्रोत्साहित किया क्योंकि ब्रिटेन के बने सामानों का बहिष्कार कर बदले में भारतीय सामानों को उपयोग में लाने का आह्वान किया गया।

1921 के बाद रेलमार्गों के विकास के साथ हो दूसरे सूती वस्त्र केन्द्रों का तेजी से विस्तार हुआ। दक्षिणी भारत में, कोयंबटूर, मदुरई और बंगलौर में मिलों की स्थापना की गई। मध्य भारत में नागपुर, इन्दौर के अतिरिक्त शोलापुर और वडोदरा सूती वस्त्र केन्द्र बन गए। कानपुर में स्थानिक निवेश के आधार पर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई। पत्तन की सुविधा के कारण कोलकाता में भी मिलें स्थापित की गईं।

जल-विद्युत् शक्ति के विकास से कपास उत्पादक क्षेत्रों से दूर सूती वस्त्र मिलों की अवस्थिति में भी सहयोग मिला। तमिलनाडु में इस उद्योग के तेजी से विकास का कारण मिलों के लिए प्रचुर मात्रा में जल-विद्युत् शक्ति की उपलब्धता है। उज्जैन, भड़ौच, आगरा, हाथरस, कोयम्बटूर और तिरुनेलवेली आदि केन्द्रों में, कम श्रम लागत के कारण कपास उत्पादक क्षेत्रों से उनके दूर होते हुए भी उद्योगों की स्थापना की गई।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 2.
आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से क्या समझते हैं? इन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार सहायता की है?
उत्तर:
भारत में नई उद्योगीकरण नीति के अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्र में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई है। नई औद्योगिक नीति की घोषणा 1991 में की गई। इस नीति के मुख्य उद्देश्य थे-अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना, इसमें विकृति अथवा कमियों को दूर करना, उत्पादकता और लाभकारी रोज़गार में स्वपोषित वृद्धि को बनाए रखना और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्राप्त करना।

इस नीति के अन्तर्गत किए गए उपाय हैं:

  1. औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था का समापन,
  2. विदेशी तकनीकी का नि:शुल्क प्रवेश,
  3. विदेशी निवेश नीति,
  4. पूँजी बाज़ार में अभिगम्यता,
  5. खुला व्यापार,
  6. प्रावस्थबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उन्मूलन,
  7. औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण। नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैंउदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण।

उदारीकरण (Liberalisation):
उदारीकरण से अभिप्राय है कि उद्योगों पर से प्रतिबन्ध हटाए जाएं या कम किए जाएं। नई नीति के अनुसार 9 महत्त्वपूर्ण उद्योगों को छोड़ कर शेष सभी उद्योगों पर लाइसेंस प्रणाली समाप्त कर दी गई है। इसमें उद्योग उद्यमी अपनी इच्छा से उद्योग लगा सकते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारतीय उद्योग स्पर्धा प्राप्त कर सकते हैं।

निजीकरण (Privatisation):
निजीकरण से अभिप्राय है कि सरकार द्वारा लगाए गए उद्योगों को निजी क्षेत्र में स्थापित किया जाए। इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम होगा।

वैश्वीकरण (Globalisation):
वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ समायोजन किया जाए। इसके अधीन आयात पर प्रतिबन्ध तथा आयात शुल्क में कमी की गई है।

8 निर्माण उद्योग JAC Class 12 Geography Notes

→ अध्याय के मुख्य तथ्य निर्माण उद्योग (Manufacturing): इस क्रिया में जिसमें कच्चे माल को मशीनों की सहायता से रूप बदल कर अधिक उपयोगी बनाया जाता है।

→ उद्योगों के प्रकार (Types of Industries):

  • भारी उद्योग तथा हल्के उद्योग।
  • बड़े पैमाने तथा छोटे पैमाने के उद्योग।
  • कुटीर उद्योग तथा मिल उद्योग।
  • सार्वजनिक तथा निजी उद्योग।
  • कृषि आधारित तथा खनिज आधारित उद्योग।

→ उद्योगों का स्थानीयकरण (Location of Industries): उद्योगों का स्थानीयकरण निम्नलिखित भौगोलिक कारकों पर निर्भर करता है

  • कच्चे माल की निकटता,
  • शक्ति के साधन,
  • यातायात के साधन,
  • कुशल श्रमिक,
  • जलवायु,
  • बाज़ार।

→ पहला इस्पात कारखाना (Steel plant): भारत में पहला इस्पात यन्त्र 1907 में जमशेदपुर में स्थापित किया गया।

→ भारत का मानचेस्टर (Manchester of India): अहमदाबाद को सूती वस्त्र उद्योग के कारण भारत का मानचेस्टर कहा जाता है।

→ उर्वरक उद्योग (Fertilizer): सिन्द्री उर्वरक कारखाना एशिया में सबसे बड़ा कारखाना है।

→ भारत औद्योगिक आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर है।

JAC Class 12 History Important Questions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 12th History Important Questions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 12th History Important Questions in Hindi Medium

JAC Board Class 12th History Important Questions in English Medium

  • Chapter 1 Bricks, Beads and Bones: The Harappan Civilisation Important Questions
  • Chapter 2 Kings, Farmers and Towns: Early States and Economies Important Questions
  • Chapter 3 Kinship, Caste and Class: Early Societies Important Questions
  • Chapter 4 Thinkers, Beliefs and Buildings: Cultural Developments Important Questions
  • Chapter 5 Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society Important Questions
  • Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions: Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Important Questions
  • Chapter 7 An Imperial Capital: Vijayanagara Important Questions
  • Chapter 8 Peasants, Zamindars and the State: Agrarian Society and the Mughal Empire Important Questions
  • Chapter 9 Kings and Chronicles: The Mughal Courts Important Questions
  • Chapter 10 Colonialism and the Countryside: Exploring Official Archives Important Questions
  • Chapter 11 Rebels and the Raj: 1857 Revolt and its Representations Important Questions
  • Chapter 12 Colonial Cities: Urbanisation, Planning and Architecture Important Questions
  • Chapter 13 Mahatma Gandhi and The Nationalist Movement: Civil Disobedience and Beyond Important Questions
  • Chapter 14 Understanding Partition: Politics, Memories, Experiences Important Questions
  • Chapter 15 Framing the Constitution: The Beginning of a New Era Important Questions

JAC Class 12 History Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 12th History Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 12th History Solutions in Hindi Medium

JAC Board Class 12th History Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Bricks, Beads and Bones: The Harappan Civilisation
  • Chapter 2 Kings, Farmers and Towns: Early States and Economies
  • Chapter 3 Kinship, Caste and Class: Early Societies
  • Chapter 4 Thinkers, Beliefs and Buildings: Cultural Developments
  • Chapter 5 Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society
  • Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions: Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts
  • Chapter 7 An Imperial Capital: Vijayanagara
  • Chapter 8 Peasants, Zamindars and the State: Agrarian Society and the Mughal Empire
  • Chapter 9 Kings and Chronicles: The Mughal Courts
  • Chapter 10 Colonialism and the Countryside: Exploring Official Archives
  • Chapter 11 Rebels and the Raj: 1857 Revolt and its Representations
  • Chapter 12 Colonial Cities: Urbanisation, Planning and Architecture
  • Chapter 13 Mahatma Gandhi and The Nationalist Movement: Civil Disobedience and Beyond
  • Chapter 14 Understanding Partition: Politics, Memories, Experiences
  • Chapter 15 Framing the Constitution: The Beginning of a New Era

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रमुख तेल क्षेत्र स्थित हैं?
(क) असम
(ग) राजस्थान
(ख) बिहार
(घ) तमिलनाडु।
उत्तर:
(क) असम।

2. निम्नलिखित में से किस स्थान पर पहला परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित किया गया था?
(क) कलपक्कम
(ग) राणाप्रताप सागर
(ख) नरोरा
(घ) तारापुर।
उत्तर:
(घ) तारापुर।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

3. निम्नलिखित में कौन-सा खनिज ‘भूरा हीरा’ के नाम से जाना जाता है?
(क) लौह
(ग) मैंगनीज़
(ख) लिगनाइट
(घ) अभ्रक।
उत्तर:
(ख)लिगनाइट।

4. निम्नलिखित में कौन-सा ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है?
(क) जल
(ग) ताप
(ख) सौर
(घ) पवन।
उत्तर;
वाप।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
भारत में अभ्रक के वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में अभ्रक मुख्तया झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश व राजस्थान में पाया जाता है। इसके पश्चात् तमिलनाडु, पं. बंगाल और मध्य प्रदेश भी आते हैं।

  1. झारखण्ड में उच्च गुणवत्ता वाला अभ्रक निचले हज़ारीबाग पठार की 150 कि० मी० लम्बी व 22 कि० मी० चौड़ी पट्टी में जाता है।
  2. आन्ध्र प्रदेश में, नेल्लोर जिले में सर्वोत्तम प्रकार के अभ्रक का उत्पादन किया जाता है।
  3. राजस्थान में अभ्रक की पट्टी लगभग 320 कि० मी० लम्बाई में जयपुर से भीलवाड़ा और उदयपुर के आसपास विस्तृत है।
  4. कर्नाटक के मैसूर व हासन जिले।
  5. तमिलनाडु के कोयम्बटूर, तिरूचिरापल्ली, मदुरई तथा कन्याकुमारी ज़िले।
  6. महाराष्ट्र के रत्नागिरी तथा पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया एवं बाकुरा ज़िलों में भी अभ्रक के निक्षेप पाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
नाभिकीय ऊर्जा क्या है? भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
भारत में अणु-शक्ति उत्पन्न करने के लिए 1948 में अण-शक्ति आयोग स्थापित किया गया। देश में चार परमाणु बिजली घर हैं। अणु शक्ति यूरोनियम तथा थोरियम खनिजों के विघटन से उत्पन्न की जाती है।

  1. तारापुर (महाराष्ट्र में)
  2. राणा प्रताप सागर (राजस्थान में कोटा के समीप
  3. कल्पक्कम (चेन्नई के निकट)
  4. नरोरा (उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर के निकट)। ककरपारा (गुजरात) तथा कैगा (कर्नाटक) में अणु केन्द्र योजना स्तर पर ही है।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 3.
अलौह धातुओं के नाम बताएं। उनके स्थानिक वितरण की विवेचना करें।
उत्तर:
(i) तांबा तथा बॉक्साइड प्रमुख अलौह धातुएँ हैं बॉक्साइट:

  1. उड़ीसा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। कालाहांडी तथा संभलपुर अग्रणी उत्पादन हैं। दो अन्य क्षेत्र जो अपने उत्पादन को बढ़ा रहे हैं वे बोलनगीर तथा कोरापुट हैं।
  2. झारखण्ड में लोहारडागा जिले की पैटलैंड्स में इसके समृद्ध निक्षेप हैं। गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  3. गुजरात के भावनगर और जामनगर में इसके प्रमुख निक्षेप हैं।
  4. छत्तीसगढ़ में बॉक्साइट निक्षेप अमरकंटक के पठार में पाए जाते हैं।
  5. मध्य प्रदेश में कटनी, जबलपुर तथा बालाघाट में बॉक्साइट के महत्त्वपूर्ण निक्षेप हैं।
  6. महाराष्ट्र में कोलाबा, थाणे, रत्नागिरी, सतारा, पुणे तथा कोल्हापुर महत्त्वपूर्ण उत्पादक हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु तथा गोआ बॉक्साइट के गौण उत्पादक हैं।

(ii) तांबा-देश के तांबे के कुल भण्डार 54 करोड़ टन हैं। मुख्य रूप से ये भण्डार झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान में हैं। तांबे का उत्पादन 31 लाख टन है। मध्य प्रदेश में मलंजखण्ड-बालाघाट, राजस्थान में झुनझुनु, अलवर, खेतड़ी, झारखण्ड में सिंहभूम प्रमुख उत्पादक हैं।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 4.
ऊर्जा के अपारम्परिक स्रोत कौन-से हैं?
उत्तर:
कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत हैं जबकि सौर ऊर्जा, पवन, भूतापीय, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा अपरम्परागत ऊर्जा स्रोत हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न। (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
भारत के पेट्रोलियम संसाधनों पर विस्तृत टिप्पणी लिखें।
उत्तर:

भारत में खनिज तेल की खोज
(Exploration of Oil in India)

भारत में सबसे पहला कुआं असम में नहोर पोंग नामक स्थान पर सन् 1857 में खोदा गया। यह कुआं 36 मीटर गहरा था। सन् 1893 में असम में डिगबोई तेल शोधनशाला स्थापित की गई। स्वतन्त्रता से पहले केवल असम राज्य से ही तेल प्राप्त होता था। सन् 1955 में तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग (Natural Gas Commission) की स्थापना हुई। इस आयोग द्वारा देश के भीतरी तथा तटवर्ती क्षेत्रों में तेल की खोज का कार्य किया जाता है।

तेल के भण्डार (Oil Reserves):
भारत में तेल के भण्डार टरशरी युग की तलछटी चट्टानों में मिलते हैं। भारत में 10 लाख वर्ग कि० मी० क्षेत्र में तेल मिलने की आशा है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 17 अरब टन तेल के भण्डार हैं। ये भण्डार असम, बम्बई हाई तथा गुजरात में स्थित हैं। देश में तेल की बढ़ती खपत को देखते हुए हम कह सकते हैं ये भण्डार अधिक देर तक नहीं चलेंगे। इसलिए तेल के नये क्षेत्रों की खोज तथा संरक्षण आवश्यक है।

भारत में मुख्य तेल-क्षेत्र (Major oil fields in India):
1. असम-असम राज्य में उत्तर-पूर्वी भाग में लखीमपुर जिले में पाया जाता है। यह भारत का सबसे प्राचीन तेल क्षेत्र है। इस राज्य में निम्नलिखित तेल क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं

  • डिगबोई क्षेत्र (Digboi oil field): यह असम प्रदेश में भारत का सबसे प्राचीन तथा अधिक तेल वाला क्षेत्र है। यहां सन् 1882 में तेल का उत्पादन आरम्भ हुआ। 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 3 तेलकूप हैं-डिगबोई, बापापुंग तथा हुंसापुंग। इस क्षेत्र में भारत का 30 % खनिज तेल प्राप्त होता है।
  • सुरमा घाटी (Surma Valley): इस क्षेत्र में बदरपुर, मसीमपुर पथरिया नामक कूपों में घटिया किस्म का तेल थोड़ी मात्रा में पैदा किया जाता है।
  • नाहरकटिया क्षेत्र (Naharkatiya oil fields): असम में यह एक नवीन तेल क्षेत्र है जिसमें नहरकटिया, लकवा प्रमुख तेलकूप हैं।
  • हुगरीजन-मोरान तेल क्षेत्र (Hugrijan-Moran oil fields)
  • शिव सागर तेल क्षेत्र (Sibsagar oil fields)

2. गुजरात तेल क्षेत्र (Gujarat oil fields):
कैम्बे तथा कच्छ की खाड़ी के निकट अंकलेश्वर, लयुनेज, कलोल नामक स्थान पर तेल का उत्पादन आरम्भ हो गया है। इस क्षेत्र से प्रति वर्ष 30 लाख टन तेल प्राप्त होता है। इस राज्य में तेल क्षेत्र बड़ौदा, सूरत, मेहसना ज़िलों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मेहसना, ढोल्का, नवगाम, सानन्द आदि कई स्थानों पर तेल मिला है। यहां से तेल ट्राम्बे तथा कोयली के तेल शोधन कारखानों को भी भेजा जाता है।

3. अपतटीय तेल क्षेत्र (Off shore oil fields):
भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट (Continental shelf) के 200 मीटर गहरे पानी में लगभग 4 लाख वर्ग कि० मी० क्षेत्र में तेल मिलने की सम्भावना है।

(i) बम्बई हाई क्षेत्र (Bombay High Fields) (खाड़ी कच्छ के कम गहरे समुद्री भाग (Off Shore region) में भी तेल मिल गया है। यहां बम्बई हाई क्षेत्र में 19 फरवरी, 1974 को ‘सागर सम्राट्’ नामक जहाज़ द्वारा की गई खुदाई से (Bombay High) के क्षेत्र में तेल मिला है।

(ii) इस क्षेत्र से 21 मई, 1976 से तेल निकलना आरम्भ हो गया। यहां से प्रतिवर्ष 150 लाख टन तेल निकालने का लक्ष्य है। यह क्षेत्र बम्बई (मुम्बई) के उत्तर-पश्चिमी में 176 कि० मी० दूरी पर स्थित है।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 2.
भारत में जल विद्युत् पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर:

जल विद्युत्
(Hydel Power)

आधुनिक युग में कृषि तथा उद्योगों में विद्युत् शक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कोयला तथा खनिज शीघ्र ही समाप्त हो जाने वाले साधन हैं। परन्तु विद्युत् शक्ति एक असमाप्य साधन है। विद्युत् शक्ति मुख्यतः तीन प्रकार से प्राप्त होती है-जल विद्युत्, ताप विद्युत्, परमाणु विद्युत्। भारत में जल विद्युत् शक्ति का मुख्य स्रोत है। पहला विद्युत् गृह कर्नाटक में शिव समुद्रम् नामक स्थान पर स्थापित किया गया था। स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में कई विद्युत् ग्रिड स्थापित किए गये हैं।

भौगोलिक कारक (Geographical Factors): जल विद्युत् का उत्पादन निम्नलिखित भौगोलिक कारकों पर निर्भर करता है

  1. ऊंची नीची भूमि (Uneven-Relief): जल विद्युत् के विकास के लिए ऊंची-नीची तथा ढालू भूमि होनी चाहिए।
  2. अधिक वर्षा (Abundant Rainfall): जल विद्युत् के लिए सारा वर्ष निरन्तर जल की मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए।
  3. विशाल नदियों तथा जल-प्रपातों का होना (Water falls and huge rivers): नदियों में जल की मात्रा अधिक होनी चाहिए ताकि वर्ष भर समान रूप से जल प्राप्त हो सके।
  4. मार्ग में झीलों का होना (Presence of Lakes): नदी मार्ग में झीलें अनुकूल होती हैं। यह रेत के कणों को रोककर मशीनों को हानि से बचाती हैं।

आर्थिक कारक (Economic factors)
(क) बाजार की समीपता
(ख) अधिक मांग का होना
(ग) पूंजी का होना

भारत की स्थिति: भारत में जल-विद्युत् उत्पादन की सभी दशाएं सामान्य रूप से अनुकूल हैं। देश में वर्ष-पर्यन्त बहने वाली नदियां हैं। पठारी धरातल और प्राकृतिक झरने मिलते हैं। बांध निर्माण के लिए श्रमिक, तकनीकी ज्ञान उपलब्ध है। जल-विद्युत् के पश्चात् जल का सिंचाई में प्रयोग किया जाता है। परन्तु देश में वर्षा का वितरण मौसमी, अनिश्चित तथा दोषपूर्ण है। इसलिए बांध बनाकर कृत्रिम झीलों से बिजली घरों को जल प्रदान किया जाता है।

जल विद्युत् का उत्पादन भारत में आवश्यक है क्योंकि देश में कोयले तथा तेल के भण्डार पर्याप्त नहीं हैं। उद्योगों के विकेन्द्रीकरण के लिए जल-विद्युत् का उत्पादन आवश्यक है। एक अनुमान के अनुसार देश में कुल जल राशि में लगभग 90,000 M.W. शक्ति प्राप्त करने की क्षमता है। भारत में प्रति वर्ष 322 Billion KWH शक्ति उत्पन्न की जाती है।

भारत में जल-विद्युत् उत्पादन
(Hydel Power in India):

भारत में जल विद्युत् का उत्पादन दक्षिणी पठार पर अधिक है। यहां कोयले की कमी है। कई भागों में जल प्रपात पाए जाते हैं। औद्योगिक विकास के कारण मांग भी अधिक है।
(i) कर्नाटक:
इस राज्य को विद्युत् उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त है। इस राज्य की मुख्य योजनाएं निम्नलिखित हैं

  1. महात्मा गांधी जल विद्युत् केन्द्र
  2. शिव समुद्रम जल-विद्युत् केन्द्र
  3. शिमसा परियोजना
  4. शराबती जल-विद्युत् केन्द्र

(ii) तमिलनाडु:
इस राज्य की मुख्य जल-विद्युत् योजनाएं निम्नलिखित हैं

  1. कावेरी नदी पर मैटूर योजना।
  2. पायकारा नदी पर पायकारा योजना।
  3. ताम्र परनी नदी पर पापनसाम योजना।
  4. पेरियार योजना तथा कुण्डा परियोजना।

(iii) महाराष्ट्र:

  1. टाटा जल विद्युत् योजना
  2. कोयना योजना
  3. ककरपारा योजना

(iv) उत्तर प्रदेश:
इस राज्य में ऊपरी गंगा नहर पर गंगा विद्युत् संगठन क्रम बनाया गया है। इस नहर पर 12 स्थानों पर जल प्रपात बनते हैं। इन सभी केन्द्रों से लगभग 23,800 किलोवाट विद्युत् उत्पन्न की जाती है।

(v) पंजाब:
पंजाब राज्य में भाखड़ा नंगल योजना तथा ब्यास योजना मुख्य जल-विद्युत् योजनाएं हैं।

  1. भाखड़ा नंगल परियोजना
  2. ब्यास परियोजना
  3. थीन योजना-रावी नदी पर।

(iv) अन्य प्रदेश:
1. हिमाचल प्रदेश:
इस राज्य की प्रमुख विद्युत् योजना मण्डी योजना है। ब्यास नदी की सहायक नदी उहल का जल 609 मीटर ऊंचाई से गिराकर जोगिन्दर नगर नामक स्थान पर जल-विद्युत् पर जल-विद्युत् उत्पन्न की जाती है। चमेरा योजना तथा बैरा सियोल योजना अन्य योजनाएं हैं।

2. जम्मू-कश्मीर:
जम्मू-कश्मीर में जेहलम नदी बारामूला विद्युत् तथा लिद्र नदी पर पहलगांव योजना महत्त्वपूर्ण है।

खनिज तथा ऊर्जा संसाधन JAC Class 12 Geography Notes

→ खनिज संसाधन (Mineral Resources): भारत खनिज पदार्थों में लगभग आत्मनिर्भर है।

→ खनिज भण्डार (Mineral Reserves): भारत में खनिजों के पर्याप्त भण्डार मिलते हैं।

→ खनिजों की संख्या (Number of Minerals): भारत में लगभग 100 खनिज पाए जाते हैं।

→ खनिजों का मूल्य (Value of Minerals): भारत में निकाले गए खनिजों का मूल्य 4.80 अरब रुपए है।

→ खनिजों का वितरण (Distribution of Minerals): भारत में अधिकतर खनिज दामोदर घाटी में पाए जाते हैं।

→ खनिज पेटियां (Mineral Belts): भारत में तीन खनिज पेटियां हैं-उत्तरी पूर्वी पठार, दक्षिण-पश्चिमी पठार, उत्तर-पश्चिमी प्रदेश।

→ ऊर्जा संसाधन (Energy Resources): भारत में कोयला, खनिज तेल, जलविद्युत् गैस तथा अणुशक्ति प्रमुख ऊर्जा संसाधन हैं।

→ अपारम्परिक ऊर्जा के स्रोत (Non-Conventional Sources of Energy): भारत में सौर ऊर्जा, पवन शक्ति, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा प्रमुख स्रोत हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. वायुमण्डल का 99 प्रतिशत भाग कौन-सी गैसों द्वारा बना है?
(A) नाइट्रोजन व ऑक्सीजन
(B) हाइड्रोजन व ऑक्सीजन
(C) ऑक्सीजन व आर्गन
(D) नाइट्रोजन व हाइड्रोजन।
उत्तर:
नाइट्रोजन व ऑक्सीजन

2. वायुमण्डल की सबसे निचली परत को कहते हैं
(A) मध्यमण्डल
(B) आयनमण्डल
(C) क्षोभमण्डल
(D) बाह्यमण्डल।
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

3. प्रकाश की क्या गति है?
(A) 3 लाख कि० मी० प्रति सैं०
(B) 5000 कि० मी० प्रति सैं०
(C) 10 कि० मी० प्रति सैं०
(D) 100 कि० मी० प्रति सैं।
उत्तर:
(A) 3 लाख कि० मी० प्रति सैं।

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4. वायुमण्डल का 99% द्रव्यमान कितनी ऊंचाई तक है?
(A) 12 कि० मी०
(B) 22 कि० मी०
(C) 32 कि० मी०
(D) 42 कि० मी०।
उत्तर:
32 कि० मी०।

5. कितनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन गैस नगण्य हो जाती है?
(A) 100 कि० मी०
(B) 110 कि० मी०
(C) 120 कि० मी०
(D) 130 कि० मी०।
उत्तर:
120 कि० मी०।

6. कार्बन डाइऑक्साइड गैस कितनी ऊंचाई तक सीमित है?
(A) 70 कि० मी०
(B) 80 कि० मी०
(C) 90 कि० मी०
(D) 100 कि० मी०।
उत्तर:
90 कि० मी०।

7. वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा कितनी % है?
(A) 15.95%
(B) 17.95%
(C) 20.95%
(D) 25.95%।
उत्तर:
(C) 20.95%।

8. वायुमण्डल में नाइट्रोजन गैस की मात्रा कितनी है?
(A) 72.08%
(B) 74.08%
(C) 76.08%
(D) 78.08%।
उत्तर:
(D) 78.08%।

9. मानव जीवन के लिए आवश्यक है-
(A) नाइट्रोजन
(B) ऑक्सीजन
(C) आर्गन
(D) ओज़ोन।
उत्तर:
(D) ओज़ो।

10. पौधों के लिए आवश्यक गैस है-
(A) कार्बन डाइऑक्साइड
(B) ऑक्सीजन।
(C) नाइट्रोजन
(D) आर्गन।
उत्तर:
(A) कार्बन डाइऑक्साइड।

11. कौन-सी गैस सौर विकिरण को सोख लेती है?
(A) ऑक्सीजन
(B) आर्गन
(C) ओज़ोन
(D) कार्बन डाइऑक्साइड।
उत्तर:
(D) कार्बन डाइऑक्साइड।

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12. कौन-सी गैस ग्रीन हाऊस गैस है?
(A) कार्बन डाइ ऑक्साइड
(B) ओज़ोन
(C) ऑक्सीजन
(D) नाइट्रोजन।
उत्तर:
(A) कार्बन डाइऑक्साइड।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
धरती के गिर्द गैसों का आवरण।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल की लगभग कितनी ऊंचाई है?
उत्तर:
1000 किलोमीटर से अधिक।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल में मुख्य दो गैसें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन।

प्रश्न 4.
वायुमण्डल में नाइट्रोजन गैस कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
78%.

प्रश्न 5.
वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
21%

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प्रश्न 6.
वायुमण्डल पृथ्वी के साथ क्यों सटा रहता है?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के कारण।

प्रश्न 7.
वायुमण्डल क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
इसके कारण पृथ्वी पर जीवन मौजूद है।

प्रश्न 8.
वायुमण्डल की सबसे निचली परत को क्या नाम दिया गया है?
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 9.
वायुमण्डल की ऊपरी परत में पाई जाने वाली दो गैसों के नाम लिखो।

उत्तर:
आर्गन, हीलियम।

प्रश्न 10.
ओज़ोन गैस किन किरणों को सोख लेती है?
उत्तर:
सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें।

प्रश्न 11.
वायुमण्डल की कौन-सी परत मौसम की रचना करती है?
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 12.
तापमान की सामान्य घटन दर क्या है?
उत्तर:
165 मीटर के लिये 1°C.

प्रश्न 13.
किस परत पर वायुमण्डलीय विघ्न पाए जाते हैं?
उत्तर:
क्षोभमण्डल में।

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प्रश्न 14.
किस परत पर स्थिर तापमान रहता है?
उत्तर:
समताप मण्डल।

प्रश्न 15.
वायुमण्डल की किस परत को समताप मण्डल कहा जाता है?
उत्तर;
सट्रेटोस्फीयर ( तापमान की स्थिरता होने के कारण)।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डल का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमण्डल मानवीय जीवन पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है।

  1. ऑक्सीजन गैस पृथ्वी पर मानवीय जीवन का आधार है।
  2. कार्बन डाइऑक्साइड वनस्पति जीवन का आधार है।
  3. वायुमण्डल सूर्यातप को जज़ब करके एक Glass House का काम करता है।
  4. वायुमण्डल का जलवाष्प वर्षा का मुख्य साधन है।
  5. वायुमण्डल फसलों, मौसम, जलवायु तथा वायुमार्गों पर प्रभाव डालता है।

प्रश्न 2.
आयनमण्डल पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
यह धरातल के ऊपर वायुमण्डल का चौथा संस्तर है। इसकी ऊंचाई 80 से 400 कि० मी० के मध्य है। इस मण्डल में तापमान फिर से ऊंचाई के साथ बढ़ता है। यहां की हवा विद्युत् आवेशित होती है। रेडियो तरंगें इसी मण्डल से परिवर्तित
हो कर पुनः पृथ्वी पर लौट जाती हैं। यह परत रेडियो प्रसारण में उपयोगी है।

प्रश्न 3.
क्षोभमण्डल सीमा (Tropopause) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊंचाई के साथ-साथ तापमान में एक असमान दर से परिवर्तन होता है।

  1. 15 कि० मी० तक तापमान धीमी गति से कम होता है।
  2. 80 कि० मी० तक तापमान स्थिर रहता है।
  3. 80 कि० मी० से ऊपर तापमान में वृद्धि होने लगती है।

इस ऊंचाई के पश्चात् अर्थात् क्षोभमण्डल से ऊपर समताप मण्डल का भाग आरम्भ होता है। समताप मण्डल तथा क्षोभमण्डल को अलग करने वाले संक्रमण क्षेत्र को क्षोभमण्डल सीमा कहते हैं।

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प्रश्न 4.
कार्बन डाइऑक्साइड गैस का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड अन्तरिक्ष विज्ञान की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी है। यह सौर विकिरण के एक अंश को सोख लेती है तथा इसके कुछ भाग को पृथ्वी की सतह की ओर प्रतिबिम्बित कर देती है। यह ग्रीन हाऊस प्रभाव के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। दूसरी गैसों का आयतन स्थिर है, जबकि पिछले कुछ दशकों में मुख्यतः जीवाश्म ईंधन को जलाये जाने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के आयतन में लगातार वृद्धि हो रही है। इसने हवा के ताप को भी बढ़ा दिया है।

प्रश्न 5.
वायुमण्डल में धूल कणों का वितरण बताओ।
उत्तर:
धूलकण वायुमण्डल में छोटे-छोटे कणों को भी रखने की क्षमता होती है। ये छोटे कण विभिन्न स्रोतों जैसे – समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएं की कालिमा, राख, पराग, धूल तथा तारे के टूटे हुए कण से निकलते हैं। धूलकण प्रायः वायुमण्डल के निचले भाग में मौजूद होते हैं, फिर भी संवहनीय वायु प्रवाह इन्हें काफ़ी ऊंचाई तक ले जा सकता है। धूलकणों का सबसे अधिक जमाव उपोष्ण और शीतोष्ण प्रदेशों में सूखी हवा के कारण होता है, जो विषुवत् रेखीय और ध्रुवीय प्रदेशों की तुलना में यहां अधिक मात्रा में होती है। धूल और नमक के कण द्रवग्राही केन्द्र की तरह कार्य करते हैं जिसके चारों ओर जलवाष्प संघनित होकर मेघों का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल में धूल-कणों (Dust Particles) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमण्डल में धूल-कण निचले भागों में पाए जाते हैं। वायुमण्डल में धूल-कणों का कई प्रकार से विशेष महत्त्व है।

  1. धूल-कण सौर ताप का कुछ भाग सोख लेते हैं तथा कुछ भाग का परावर्तन हो जाता है। ताप सोख लेने के कारण वायुमण्डल का तापक्रम अधिक हो जाता है।
  2. धूल-कण आर्द्रताग्राही नाभि के रूप में काम करते हैं। इनके चारों ओर जलवाष्प का संघनन होता है जिससे वर्षा, कोहरा, बादल बनते हैं। धूल-कणों के अभाव के कारण वर्षा नहीं हो सकती
  3. धूल-कणों के कारण वायुमण्डल की दर्शन क्षमता (Visibility) कम होती है तथा धुंधलापन छा जाता है। धूल-कणों के संयोग से कई रंग-बिरंगे दृश्य सूर्य उदय, सूर्य अस्त तथा इन्द्र धनुष दृश्य बनते हैं।

प्रश्न 7.
ओज़ोन परत पर एक नोट लिखो ओजोन परत के घटने के क्या कारण हैं? इससे क्या हानि है?
उत्तर:
ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन गैस की एक मोटी परत मिलती है। यह परत पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है। परन्तु कार्बन तथा रसायनों के अधिक प्रयोग के कारण यह परत कम हो रही है। अणु शक्ति के परीक्षणों से भी यह परत घट गई है। 1980 में अण्टार्कटिका महाद्वीप के ऊपर इस परत में एक सुराख देखा गया है। इस सुराख के कारण पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंच सकती हैं। इन किरणों से मनुष्य अन्धे हो जाते हैं तथा शरीर झुलस जाता है

प्रश्न 8.
जलवाष्प का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
जलवाष्प (Water Vapours ): वायुमण्डल में लगभग 4% मात्रा में जलवाष्प पाया जाता है। ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है। कुछ जलवाष्प का लगभग आधा हिस्सा दो हज़ार मीटर ऊंचाई के नीचे ही पाया जाता है। जलवाष्प तापमान पर भी निर्भर करता है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है। पृथ्वी पर वृष्टि तथा संघनन का मुख्य स्रोत जलवाष्प ही है। सूर्यतप को सोख कर जलवाष्प तापमान का नियन्त्रण करता है

प्रश्न 9.
क्षोभ सीमा की ऊँचाई भूमध्य रेखा पर अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
क्षोभ सीमा की ऊंचाई में विभिन्नता पाई जाती है। ध्रुवों पर यह 8 कि० मी० है। भूमध्य रेखा पर सबसे अधिक सूर्याताप प्राप्त होता है। इसके परिणामस्वरूप संवहन धाराएं चलती हैं। ये धाराएं अधिक ऊंचाई तक ताप पहुंचा देती हैं। इससे क्षोभमण्डल का विस्तार बढ़ जाता है तथा ऊंचाई अधिक हो जाती है।

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प्रश्न 10.
वायुमण्डल कैसे पृथ्वी से जुड़ा रहता है?
उत्तर:
वायुमण्डल का अधिकतर भाग भू-पृष्ठ से केवल 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक सीमित है। इसे सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है। यह पृथ्वी का एक अंग नहीं है। परन्तु पृथ्वी से जुड़ा हुआ है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति द्वारा वायुमण्डल पृथ्वी से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 11.
वायुमण्डल के मुख्य संघटकों के नाम बताओ
उत्तर:
वायुमण्डल के प्रमुख संघटक तीन हैं:

  1. गैसें
  2. धूलकण
  3. जलवाष्प।

प्रश्न 12.
वायुमण्डल की मुख्य परतों के नाम बताओ ।
उत्तर:
वायुमण्डल की संरचना परतदार है। इसमें पांच मुख्य परतें पाई जाती हैं-

  1. क्षोभमण्डल (Troposphere)
  2. समताप मण्डल (Stratosphere)
  3. आयन मण्डल (Ionosphere)
  4. बाह्यमण्डल (Exosphere)
  5. चुम्बक मण्डल (Magnetosphere)। (मध्यमण्डल)

प्रश्न 13.
वायुमण्डल की परतों में क्षोभमण्डल को अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:

  1. इस मण्डल में जीवन उपयोगी गैस ऑक्सीजन मिलती है।
  2. इस मण्डल में प्रति 165 मी० की ऊँचाई पर 1°C तापमान गिर जाता है।
  3. ऋतु, मौसम सम्बन्धी सभी घटनायें, जैसे बादल, वर्षा, भूकम्प आदि जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, इसी परत में घटित होती हैं।
  4. इस मण्डल में अस्थिर वायु के कारण विक्षोभ तथा आँधी तूफान आते रहते हैं।
  5. क्षोभमण्डल के मध्य अक्षांशीय क्षेत्र में चक्रवात उत्पन्न होते हैं।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
क्षोभमण्डल तथा समताप मण्डल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

क्षोभमण्डल (Troposphere) समताप मण्डल (Stratosphere)
(1) यह वायुमण्डल की सब से निचली परत है। (2) क्षोभमण्डल की ऊंचाई ध्रुवों पर 8 कि० मी० तथा भूमध्य रेखा पर 20 कि० मी० होती है। (1) यह धरातल से ऊपर वायुमण्डल की दूसरी परत है। (2) समताप मण्डल की ऊंचाई 16 कि० मी० से लेकर 72 कि० मी० तक होती है ।
(3) इस परत में तापमान 1°C प्रति 165 मीटर की दर से कम होता है। (3) इस परत में तापमान लगभग समान रहते हैं ।
(4) इस परत में संवाहिक धाराएं, मेघ तथा धूल कण पाए जाते हैं। (4) इस परत में संवाहिक धाराओं, मेघ तथा धूल का अभाव होता है ।
(5) इस मण्डल में ऋतु परिवर्तन सम्बन्धी घटनाएं होती रहती हैं। (5) यह मण्डल एक शान्त मण्डल है ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
विभिन्न क्षेत्रों में वायुमण्डल का महत्त्व बताओ ।
उत्तर:
वायुमण्डल निम्नलिखित क्षेत्रों में कई प्रकार से महत्त्वपूर्ण है

  1. जीवन का आधार: पृथ्वी पर मानव जीवन का आधार वायुमण्डल ही है। सौर मण्डल में केवल पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर वायुमण्डल विद्यमान है। ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन गैसें मानव तथा वनस्पति जीवन का आधार हैं।
  2. ऊष्मा सन्तुलन: वायुमण्डल एक ग्रीन हाऊस (Green House) की भान्ति कार्य करता है। इस प्रभाव से पृथ्वी का तापमान औसत रूप से 17°C रहता है। वायुमण्डल के बिना बहुत अधिक तापमान पर जीवन असम्भव होता
  3. हानिकारक विकिरण: ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख कर पृथ्वी पर मानव की सुरक्षा करती है।
  4. रेडियो तरंगें: आयनमण्डल रेडियो तरंगों को पृथ्वी पर लौटा कर रेडियो प्रसारण में सहायता करता है।
  5. मौसम: वायुमण्डल की विभिन्न घटनाएं जैसे वाष्पीकरण, वर्षा, पवनें आदि मानव जीवन पर प्रभाव डालती हैं।
  6. उल्काओं से सुरक्षा: सौर मण्डल से पृथ्वी की ओर गिरने वाली उल्काएं वायुमण्डल में जल कर नष्ट हो जाती हैं।
  7. वायु: परिवहन वायुमण्डल वायुयानों की उड़ानों पर प्रभाव डालता है। जैट वायुयान समताप मण्डल में उड़ान भर सकते हैं।

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प्रश्न 2.
उदाहरण के साथ किसी स्थान की जलवायु तथा मौसम में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
तापक्रम, दबाव हवाएं, नमी, मेघ और वर्षा ये मौसम के प्रधान तत्त्व (Elements of Weather) हैं। वायु मण्डल की इन दशाओं का अध्ययन ही जलवायु या मौसम है।

मौसम (Weather):
मौसम शब्द का अर्थ है ” किसी स्थान पर किसी विशेष या निश्चित समय में वायुमण्डल की दशाओं, तापक्रम, दबाव, हवाओं, नमी, मेघ और वर्षा के कुल जोड़ का अध्ययन करना” (“Weather is the condition of atmosphere at any given moment.” ) इसीलिए मौसम मानचित्रों (Weather Maps ) पर दिन व समय अवश्य लिखे जाते हैं। मौसम प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रति मास बदलता रहता है।

एक ही स्थान पर कभी मौसम गर्म (Hot), कभी उमस वाला (Sultry), कभी आर्द्र (Wet) हो सकता है। इंग्लैण्ड में दिन-प्रतिदिन के मौसम में इतनी विभिन्नता है कि कहा जाता है, “Britain has no climate, only weather.” इस प्रकार वायुमण्डल की बदलती हुई अवस्थाओं को मौसम कहा जाता है। आकाशवाणी से मौसम की स्थितियों का प्रसारण भी होता है। भारतीय मौसम विज्ञान मौसम मानचित्र प्रकाशित करता है।

जलवायु (Climate):
किसी स्थान की जलवायु उस स्थान पर एक लम्बे समय की वायुमण्डल की दशाओं के कुल जोड़ का अध्ययन होती है। यह एक लम्बे समय का औसत मौसम होती है। (“Climate is the average weather of a place over a long period.”) जलवायु तथा मौसम में भिन्नता समय पर निर्भर होती है। मौसम का सम्बन्ध थोड़े समय से है जबकि जलवायु का सम्बन्ध एक लम्बे समय से है। मिस्र में हर रोज़ एक जैसा मौसम होने के कारण जलवायु तथा मौसम में कोई अन्तर नहीं है।

इसलिए कहा जाता है, “Egypt has no weather, only climate ” इस प्रकार किसी स्थान पर कम-से-कम पिछले 35 वर्षों के मौसम की औसत दशाओं को उस स्थान की जलवायु कहते हैं। भारतीय जलवायु के अध्ययन के आधार आंकड़ों का सम्बन्ध पिछले 100 वर्षों से है। उदाहरण: देहली में किसी विशेष दिन अधिक वर्षा हो तो हम कहते हैं कि आज मौसम आर्द्र है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि देहली की जलवायु आर्द्र है। देहली में ग्रीष्मकाल में अधिक वर्षा होती है तथा जलवायु मानसूनी है।

JAC Board Solutions Class 12 in Hindi & English Jharkhand Board

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JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना

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अर्थग्रहण करना :

हम सब मानव सामाजिक प्राणी हैं। हम बोल- सुनकर अपने भावों का आदान-प्रदान करते हैं। लिखकर तथा संकेतों से भी हम स्वयं को अभिव्यक्त कर सकते हैं पर सुनने-बोलने से हमारी अभिव्यक्ति अधिक सहजता और सरलता से होती है। हमारे दैनिक जीवन में बोलने-सुनने से हो आपसी व्यवहार अधिक होता है।

सुनना एक कला है। हम सब इसके महत्त्व को समझते हैं। ईश्वर ने इसीलिए तो हमें दो कान दिए हैं। एक छोटा बच्चा बोलना बाद में सीखता है पर सुनना और समझना पहले आरंभ करता है। वास्तव में हम सुनने से ही तो बोलना सीखते हैं। तभी तो जन्म से बहरे लोग प्रायः गूँगे भी होते हैं। सुनना किसी के द्वारा बोले गए शब्दों का कानों में जाना मात्र नहीं है। उसका वास्तविक अर्थ उनका तात्पर्य समझना है; उसे मन-मस्तिष्क में बिठाना है और उसके अनुसार जीवन में अपनी प्रतिक्रियाओं को प्रकट करना है। किसी की बात को सुनकर उसे बाहर निकाल देना किसी भी प्रकार से सार्थक नहीं हो सकता। यदि किसी के द्वारा कही गई किसी बात का अनुपालन हमें बाद में करना हो तो उसे लिखकर अपने पास रख लेना अधिक अच्छा रहता है। ऐसा करने से प्रत्येक बात हमारे ध्यान में बनी रहती है।

सुनने से संबंधित प्रश्नों का स्वरूप :

आपके अध्यापक/अध्यापिका आपको कोई गद्य या पद्य सुनाएँगे और उस पर आधारित प्रश्न आप से पूछेंगे। आपको उन प्रश्नों के उत्तर सुने गए गद्य या पद्य के आधार पर देने होंगे। जिन प्रश्नों को आप से पूछा जाएगा उससे संबंधित प्रश्न पत्र आपको कुछ सुनाने से पहले दिया जाएगा। ये प्रश्न व्याकरण, रिक्त स्थान पूर्ति, शब्द – अर्थ, नाम, निष्कर्ष आदि से संबंधित हो सकते हैं। अध्यापक/अध्यापिका आपको गद्य या पद्य केवल एक ही बार सुनाएँगे। आपको स्मरण के आधार पर उत्तर देने होंगे। प्रत्येक प्रश्न-पत्र में दस प्रश्न होंगे।

JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना

उदाहरण –

1. आपको परीक्षक एक अनुच्छेद सुनाएँगे। उसे ध्यानपूर्वक सुनिए और अनुच्छेद पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। अनुच्छेद दोबारा नहीं पढ़ा जाएगा।
दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के आसपास स्थित ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं। यहाँ से कुछ दूर एक गोलाकार दुर्ग है, जिसे सर्कुलर फोर्ट कहा जाता है। यह सागर के किनारे बना हुआ है। यहाँ समुद्र की लहरें शांत गति से बहती हैं। कुछ किलोमीटर पर कानुमलायन मंदिर, नागराज मंदिर, पद्मनाभपुरम मंदिर भी देखने योग्य हैं।
कन्याकुमारी के छोटे से खोकेनुमा बाज़ारों में ताड़पत्तों और नारियल से निर्मित हस्तशिल्प की वस्तुएँ तथा सागर से प्राप्त शंख और सीप की मालाएँ और दूसरी वस्तुएँ पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती हैं। यहाँ तीनों समुद्रों से अलग-अलग रंग की रेत निकलती है। यह रेत इन बाज़ारों में प्लास्टिक की छोटी-छोटी थैलियों में बिक्री के लिए मिल जाती है, जिसे पर्यटक खरीदना नहीं भूलते। कन्याकुमारी में ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। विवेकानंद शिला स्मारक समिति ने विवेकानंदपुरम आश्रम का निर्माण किया है, जहाँ यात्रियों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था है। यहीं एक ऐसा स्थान है जहाँ उत्तर भारत के यात्रियों को अपने घर जैसा खाना प्राप्त हो जाता है।
कन्याकुमारी यद्यपि तमिलनाडु प्रदेश में है लेकिन यहाँ पहुँचने और लौटने का रास्ता केरल प्रदेश की राजधानी त्रिवेंद्रम से है। केरल को भारत का हरियाला जादू कहा जाता है क्योंकि इस प्रदेश में चारों ओर हरियाली ही हरियाली नज़र आती है। इसलिए कन्याकुमारी से यदि टैक्सी या निजी कार अथवा बस द्वारा त्रिवेंद्रम लौटा जाए तो यात्रा का पूरा मार्ग हरियाली की सुखद छाया को ओढ़कर चलता है। इसी रास्ते पर हाथियों की सुरक्षित

वनस्थली और अरब सागर तट पर स्थित कोवलम बीच भी दर्शनीय है। कोवलम सागर तट पर सागर – स्नान की सुखद अनुभूति प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आकर स्नान करते हैं और नारियल का मीठा पेय पीकर परम तुष्टि भाव से यात्रा की परिपूर्णता का आनंद लाभ करते हैं।

प्रश्न :
1. इसमें किसकी सुंदरता का वर्णन किया गया है ?
2. गोलाकार दुर्ग का नाम क्या है ?
3. बाज़ारों में बिकने वाली हस्तशिल्प की वस्तुएँ बनी होती हैं-
(क) रेशम की (ख) ताड़ – पत्तों की (ग) पत्थर की (घ) चीनी – मिट्टी की
4. यहाँ कितने समुद्रों की रंग-बिरंगी रेत मिलती है ?
5. विवेकानंद शिक्षा स्मारक समिति ने किस आश्रम का निर्माण किया है ?
6. आश्रम में किन यात्रियों को घर जैसा खाना प्राप्त होता है ?
7. कन्याकुमारी किस राज्य में है ?
8. कन्याकुमारी पहुँचने और लौटने का रास्ता किस राज्य से है ?
9. अरब सागर का कौन-सा तट दर्शनीय है ?
10. यात्री यहाँ क्या पीना पसंद करते हैं ?
उत्तर :
1. कन्याकुमारी की सुंदरता का वर्णन।
2. सर्कुलर फोर्ट।
3. (ख) ताड़पत्तों की।
4. तीन समुद्रों की रंग-बिरंगी रेत।
विवेकानंदपुरम आश्रम का निर्माण।
6. उत्तर भारत के यात्रियों को।
7. तमिलनाडु प्रदेश में।
8. केरल राज्य से।
9. कोवलम बीच
10. नारियल का मीठा पेय।

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2. अनुच्छेद को ध्यानपूर्वक सुनकर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अनुच्छेद में खोजकर लिखिए।
सर्कस अब घाटे का सौदा हो चुका है। अब जहाँ कहीं भी सर्कस लगाया जाता है सर्कस मालिक को चार गुना दाम पर ज़मीन, बिजली तथा अन्य सुविधाएँ प्राप्त हो पाती हैं। इसके अतिरिक्त पुलिस और प्रशासन का रवैया भी प्रायः असहयोगात्मक ही रहता है। ‘इंडियन सर्कस फेडरेशन’ का मानना है कि सर्कस के लिए सबसे बड़ी समस्या उसे लगाने वाले मैदान की है। एक दशक पहले तक शहरों में खाली भूखंड आसानी से मिल जाते थे।

अब वहाँ व्यावसायिक कॉम्पलेक्स बन गए हैं। अधिकांश शहरों में आबादी से काफ़ी दूर ही जगह मिल पाती है। इससे काफ़ी कम दर्शक ‘शो’ देखने आते हैं। कई सर्कस मालिक अब सर्कस को समाप्त होती कला मानने लगे हैं, जिसे सरकार और समाज हर कोई मरते देखकर भी खामोश है। पिछले कुछ वर्षों में जैमिनी, भारत, ओरिएंटल और प्रभात सर्कस को बंद होना पड़ा। कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने केरल में ‘जमुना स्टिर सेंटर’ की स्थापना की है। ताकि इस व्यवसाय में आने वाले बच्चों के प्रशिक्षण की व्यवस्था हो सके। सर्कस उस्ताद चुन्नी बाबू कहते हैं कि सर्कस संकट के दौर से गुजर रहा है। अगर सरकार ने इसकी मदद नहीं की तो जिन हज़ारों लोगों को इसके माध्यम से दो जून की रोटी मिल रही है, वह भी बंद हो जाएगी।

सर्कस के कलाकारों का ‘शो’ के दौरान अधिकांश खाली सीटें देखकर मनोबल टूट गया है। जब कभी सीटें भरी होती हैं, खेल दिखाने में मज़ा आ जाता है। सर्कस का एक प्रमुख हिस्सा है- जोकर। आमतौर पर बिना किसी काम का लगने वाला कद-काठी में छोटा-सा इनसान जो किसी काम का नहीं लगता सर्कस की ‘रिंग’ में अपनी अजीब हरकतों से किसी को भी हँसा देता है। तीन घंटे के ‘शो’ में दर्शकों को हँसाते रहने का आकर्षण ही कलाकारों को बाँधे रखता है।

प्रश्न :
1. सर्कस अब आर्थिक दृष्टि से कैसा सौदा है ?
2. सर्कस मालिकों को सुविधाएँ अब किस दाम पर प्राप्त हो पाती हैं ?
3. सर्कस के प्रति पुलिस और प्रशासन का रवैया रहता है –
(क) सहयोगात्मक
(ख) असहयोगात्मक
(ग) उदासीन
(घ) नृशंस
4. खाली भूखंडों पर अब क्या बन गए हैं ?
5. सर्कस को समाप्त होता देखकर कौन-कौन खामोश हैं ?
6. पिछले वर्षों में कौन-कौन सी सर्कसें बंद हुई हैं ?
7. बच्चों को सर्कस हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था किसने की है ?
8. किसने कहा है कि सर्कस संकट के दौर से गुजर रहा है ?
9. सर्कस के कलाकारों का मनोबल क्यों टूट रहा है ?
10. रिंग में अपनी हरकतों से कौन हँसाता है ?
उत्तर :
1. घाटे का सौदा।
2. चार गुना दाम पर
3. (ख) असहयोगात्मक।
4. व्यावसायिक कॉम्पलेक्स।
5. जनता और सरकार।
6. जैमिनी, भारत, ओरिएंटल और प्रभात सर्कसें
7. केरल में ‘जमुना स्टिर सेंटर’ ने।
8. उस्ताद चुन्नी बाबू ने।
9. अधिकांश शो में खाली सीटों को देखकर।
10. अपनी हरकतों से जोकर हँसाता है।

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भाषण –

3. भाषण को ध्यानपूर्वक सुनकर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर भाषण के आधार पर दीजिए –
युगों से गुरु का स्थान भारतीय समाज में अत्यंत ऊँचा माना जाता रहा है। भक्ति का साधन कृपा है और गुरुकृपा के बिना उसकी प्राप्ति नहीं होती। नारायण तीर्थ ने प्राचीन आचार्यों के आधार पर भक्ति के जो तेईस अंग गिनाए हैं उनमें गुरु को भक्ति का प्रथम अंग माना गया है। रामचरित मानस में गुरु शंकर रूपी हैं; हरि का नर रूप है; यही नहीं भगवान राम से भी बढ़कर है। विधाता के रुष्ट हो जाने पर गुरु रक्षा कर लेता है किंतु गुरु के रुष्ट हो जाने पर कोई ऐसा साधन नहीं बचता जो रक्षा का आधार बन सकता हो। गुरु की इस गरिमा का कारण यह है कि वही जीव के मोह-अंधकार को दूर करता है और उसे ज्ञान प्रदान करता है। गुरु की शरण में जाकर उससे शिक्षा प्राप्त करना ही ज्ञान की प्राप्ति करना है –

श्री गुरु पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ॥

तुलसी के राम ने शबरी को उपदेश देते समय गुरु सेवा को राम कृपा का स्वतंत्र और अमोघ साधन माना है।
प्राचीन साहित्य में गुरु का स्वरूप और उसके कार्यक्षेत्र समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहे हैं पर उसका विवेक, ज्ञान, दूरदर्शिता और निष्ठा बदलती हुई दिखाई नहीं देती। देवताओं के गुरु बृहस्पति यदि देवताओं के हित और कल्याण के विषय में कार्य करते रहे तो दानवों के गुरु शुक्राचार्य दानवों की मानसिकता के आधार पर सोचते – विचारते रहे। वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्र ने यदि श्री राम को शिक्षित किया तो संदीपन गुरु ने श्रीकृष्ण को ज्ञान ही नहीं दिया अपितु सहज-सरल जीवन जीने का भी पाठ पढ़ाया।

द्रोणाचार्य ने कौरवों – पांडवों को अस्त्र-शस्त्र चलाने के अभ्यास के साथ-साथ धर्म और नीति का भी ज्ञान दिया था। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को शिक्षित कर देश के इतिहास को ही बदल दिया था। यदि सिकंदर के गुरु अरस्तु ने उसे सारे विश्व को जीतने के लिए उकसाया था तो चाणक्य ने अपने शिष्य को धर्म और देश की रक्षा करना सिखाकर उसके कमजोर इरादों को मिट्टी में मिला दिया था। गुरु कुम्हार की तरह कार्य करता हुआ शिष्य रूपी कच्ची मिट्टी को मनचाहा आकार प्रदान कर देता है।

यह ठीक है कि हर माँ अपने बच्चे की पहली गुरु होती है। वह उसे जीवन के साथ-साथ अच्छे संस्कार देती है पर किसी भी छोटे बच्चे के मन पर अपने अध्यापक का जैसा गहरा प्रभाव पड़ता है, वैसा किसी अन्य व्यक्ति का नहीं पड़ता। वह उसे अपना आदर्श मानने लगता है और उसी का अनुकरण करने का प्रयत्न करता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि वह वास्तव में ही आदर्श जीवन जीने का प्रयत्न करे।

अध्यापक ही ऐसा केंद्रबिंदु है जहाँ से बौद्धिक परंपराएँ तथा तकनीकी कुशलता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संचारित होती हैं। वह सभ्यता के दीप को प्रज्वलित रखने में योगदान प्रदान करता है। वह केवल व्यक्ति का ही मार्गदर्शन नहीं करता बल्कि सारे राष्ट्र के भाग्य का निर्माण करता है। इसलिए उसे समाज के प्रति अपने विशिष्ट कर्तव्य को भली-भाँति पहचानना चाहिए। अध्यापक का जितना महत्त्व है, उतने ही व्यापक उसके व्यापक कार्य हैं। शिक्षण, गठन, निरीक्षण, परीक्षण, मार्गदर्शन, मूल्यांकन और सुधारात्मक कार्यों के साथ-साथ उसे विद्यार्थियों, अभिभावकों और समुदाय से अनुकूल संबंध स्थापित करने पड़ते हैं।

कोई भी अध्यापक अपने छात्र – छात्राओं में लोकप्रिय तभी हो सकता है जब उसमें उचित जीवन शक्ति विद्यमान हो। मार-पीट, डाँट-डपट का विद्यार्थियों के कोमल मन पर सदा ही विपरीत प्रभाव पड़ता है। छात्रों के भावात्मक विकास के लिए अध्यापक का संवेगात्मक संतुलन बहुत आवश्यक होता है। उसमें सामाजिक चातुर्य, उत्तम निर्णय की क्षमता, जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, परिस्थितियों का सामना करने का साहस और व्यावसायिक निष्ठा निश्चित रूप से होनी चाहिए।

कोई भी व्यक्ति विषय के ज्ञान के अभाव में शिक्षक नहीं हो सकता। प्रायः माना जाता है कि एक अयोग्य चिकित्सक मरीज के शारीरिक हित के लिए खतरनाक है परंतु एक अयोग्य शिक्षक राष्ट्र के लिए इससे भी अधिक घातक है क्योंकि वह न केवल अपने छात्रों के मस्तिष्क को विकृत बनाता तथा हानि पहुँचाता है बल्कि उनके विकास को अवरुद्ध भी करता है तथा उनकी आत्मा को विकृत कर देता है।

अध्यापक में नेतृत्व की क्षमता होना आवश्यक है पर उसे जिस प्रकार के नेतृत्व की क्षमता की आवश्यकता है वह अन्य प्रकार के नेतृत्व से भिन्न है। उसका नेतृत्व उसके चरित्र, शक्ति, प्रभावशीलता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर निर्भर है। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि अति दृढ़ व्यक्तित्व नेतृत्व के लिए उसी प्रकार की अयोग्यता है जिस प्रकार का निर्बल व्यक्तित्व व्यर्थ होता है। उसका मानसिक रूप से सुसज्जित होना आवश्यक है।

एक समय था जब अध्यापक राज्याश्रम में पलते थे और गुरुकुलों में विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते थे। इस भौतिकतावादी युग में शिक्षा का व्यावसायीकरण हो चुका है पर फिर भी अध्यापक को किसी भी अवस्था में शिक्षा के प्रति अपनी निष्ठा को नहीं त्यागना चाहिए और उसे जीवन-मूल्यों को बनाकर रखना चाहिए। व्यावसायीकरण के कारण अध्यापकों छात्रों के संबंधों में परिवर्तन आया है जो समाज के समुचित विकास के लिए अच्छा नहीं है। अध्यापक को विद्यार्थियों की भावनाओं को मानवीय रूप प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।

यदि वह स्वयं जलता हुआ दीप नहीं है तो वह दूसरों में ज्ञान के प्रकाश को प्रसारित करने में सदैव असमर्थ रहेगा। समाज के विकास के लिए आदर्श अध्यापक अति आवश्यक है। उनके अभाव में सभ्यता और संस्कृति की कल्पना करना भी अत्यंत कठिन है।

प्रश्न :
1. भारतीय समाज में गुरु का स्थान कब से अति ऊँचा माना जाता रहा है ?
2. नारायण तीर्थ ने भक्ति के तेईस अंगों में गुरु को भक्ति का कौन-सा अंग माना है ?
(क) पहला
(ग) चौदहवाँ
(ख) दसवाँ
(घ) बीसवाँ
3. तुलसी ने राम कृपा का स्वतंत्र और अमोघ साधन किसे माना है ?
4. देवताओं के गुरु कौन थे ?
5. सिकंदर को विश्व-विजय के लिए किसने उकसाया था ?
6. सारे राष्ट्र के भाग्य का निर्माण कौन करता है ?
7. छात्रों के विकास के लिए अध्यापकों में किसकी अति आवश्यकता होती है ?
8. अध्यापक का नेतृत्व किन विशेषताओं पर निर्भर करता है ?
9. गुरुकुलों में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्ति के लिए क्या दिया करते थे ?
10. भौतिकतावादी युग में शिक्षा का क्या हो गया है ?
उत्तर :
1. युगों से।
2. (क) पहला।
3. गुरु की शरण में जाकर उससे शिक्षा प्राप्त करने को।
4. बृहस्पति।
5. सिकंदर के गुरु अरस्तु ने।
6. अध्यापक।
7. संवेगात्मक संतुलन की।
8. अध्यापक के चरित्र, शक्ति और प्रभावशीलता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर।
9. विद्यार्थी निःशुल्क शिक्षा प्राप्त किया करते थे।
10. व्यावसायीकरण

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वार्तालाप / संवाद –

4. नीचे दिए गए वार्तालाप को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(वार्तालाप) :
राम्या – मुझे जल्दी से मम्मी को बताना है कि मेरा परीक्षा परिणाम आज शाम तक आ जाएगा।
शर्मिष्ठा – तो बता दे। देर क्यों कर रही है ?
राम्या – मेरा मोबाइल तो घर पर ही रह गया है। क्या करूँ ?
शर्मिष्ठा – करना क्या है ? मेरा मोबाइल ले और मम्मी से बात कर ले।
राम्या – हाँ, यह तो है। कितना सुख हो गया है मोबाइल का अब।
शर्मिष्ठा – अरे, इसने सारी दुनिया को गाँव बनाकर रख दिया है।
राम्या – क्या मतलब ?
शर्मिष्ठा – मतलब यह है कि अब पल भर में संसार के किसी भी कोने में किसी से भी बात कर लो। लगता है कि हर कोई बिलकुल पास है। ऐसा तो गाँवों में ही होता था।
राम्या – मोबाइल लोगों के पास पहुँचा भी बहुत तेज़ी से है
शर्मिष्ठा – कभी सोचा भी नहीं था कि मोबाइल इतनी तेज़ी से लोगों की जेब में अपना स्थान बनाएगा।
राम्या – बहुत लाभ हैं इसके
शर्मिष्ठा – लाभ तो हैं तभी तो हर अमीर-गरीब के पास दिखाई देने लगा है यह।
राम्या – अब तो यह मज़दूरों और रिक्शा चलाने वालों के पास भी दिखाई देता है
शर्मिष्ठा – उनके लिए यह और भी ज़रूरी है। वे छोटे शहरों और गाँवों से काम करने बड़े शहरों में आते हैं। मोबाइल से वे अपने घर से सदा जुड़े रहते हैं।
राम्या – नुकसान भी तो हैं इसके
शर्मिष्ठा – वे क्या हैं? मेरे विचार से तो मोबाइल का कोई नुकसान नहीं है।
राम्या – इससे अपराध बढ़े हैं। बच्चे भी क्लास में इसे लेकर बैठे रहते हैं। उनका ध्यान पढ़ाई की ओर कम और मोबाइल पर अधिक रहता है। शर्मिष्ठा – हाँ, आतंकवादी तो इससे विस्फोट तक करने लगे हैं।
राम्या – ओह ! फिर तो बड़ा खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
शर्मिष्ठा – जेलों में भी अपराधी छिप-छिप कर इनका प्रयोग करते हुए पकड़े जा चुके हैं।
राम्या – अरे, हर अच्छाई में बुराई तो सदा ही छिपी रहती है। वह इसमें भी है।
शर्मिष्ठा – वह तो है। अच्छा यह ले मोबाइल और कर ले बात

प्रश्न :
1. वार्तालाप किस-किस के बीच हुआ ?
2. किसने किससे मोबाइल पर बात करनी थी ?
3. मोबाइल ने दुनिया को बना दिया है-
(क) नगर
(ख) कस्बा
(ग) गाँव
(घ) महानगर
4. मोबाइल की पहुँच किस-किस के पास हो चुकी है ?
5. अपराधों की वृद्धि में किसने सहायता दी है ?
6. क्लास में बच्चे मोबाइल से क्या करते रहते हैं ?
7. आतंकवादी मोबाइल का प्रयोग किस कार्य के लिए करने लगे हैं ?
8. अपराधी छिप-छिप कर कहाँ से मोबाइल का प्रयोग करने लगे हैं ?
9. सदा अच्छाई में क्या छिपी रहती है ?
10. किसने मम्मी से बात करने के लिए अपना मोबाइल दिया ?
उत्तर :
1. राम्या और शर्मिष्ठा के बीच।
2. राम्या को अपनी मम्मी से बात करनी थी।
3. (ग) गाँव।
4. हर गरीब-अमीर के पास।
5. मोबाइल के प्रयोग ने।
6. एस०एम०एस० करते रहते हैं।
7. विस्फोट करने में।
8. जेलों से।
9. बुराई।
10. शर्मिष्ठा ने।

JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना

कविता –

5. कविता को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना 1

प्रश्न :
1. कवि ने पगली को कहाँ देखा था ?
2. नाक को ढके बिना कहाँ से नहीं गुजरा जा सकता था ?
(क) गंदी नाली के पास से
(ग) गंदे कपड़ों के पास से
(ख) कूड़े के ढेर के पास से
(घ) सड़े हुए फलों के पास से
3. कवि ने किस महीने में पगली को देखा था ?
4. पगली का शरीर किससे ढका हुआ था ?
5. पगली क्यों चिल्ला रही थी ?
6. पगली की वाणी थी –
(क) कोमल
(ख) कटु-कर्कश
(ग) सहज
(घ) शांत
7. पगली का रूप आकार क्या था ?
8. ‘दैव की मारी’ से तात्पर्य है –
(क) किस्मत की मारी
(ख) भूख की मारी
(ग) रिश्तेदारों की सताई हुई
(घ) गरीबी की मारी
9. कवि ने पगली के पागलपन का कारण किसे माना है ?
10. कवि का स्वर कैसा है ?
उत्तर :
1. कॉलेज के निकट, कच्ची सड़क के पास।
2. (क) गंदी नाली के पास से।
3. पौष के महीने में।
4. गंदे काले चिथड़ों से।
5. पगली पागलपन के कारण चिल्ला रही थी। उसके अवचेतन मन में पागल हो जाने के दुखदायी कारण छिपे हुए थे।
6. (ख) कटु-कर्कश।
7. वह कुबड़ी काली थी।
8. (क) किस्मत की मारी।
9. कवि ने किसी एक को पगली के पागलपन का कारण नहीं बताया। उसने अनेक संभावनाएँ प्रकट की हैं।
10. मानवतावादी।