JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

JAC Class 9th Economics पालमपुर गाँव की कहानी InText Questions and Answers 

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या-  3

प्रश्न 1.
सारणी 1.1 में 10 लाख ( मिलीयन) हेक्टेयर की इकाइयों में भारत में कृषि क्षेत्र को दिखाया गया है। सारणी के नीचे दिए गए आरेख में इसे चित्रित करें।आरेख क्या दिखाता है ? कक्षा में चर्चा करें।

वर्षजुताई क्षेत्र ( मिलीयन हेक्टेयर)
1950 – 51129
1999 – 91157
2000 – 01156
2010 – 11 (p)156
2011 – 12 (p)156
2012 – 13 (p)157
2013 – 14 (p)156
2014 – 15 (p)155

(P)-अनंतिम गणना स्त्रोत-पॉकेट बुक ऑफ एग्रीकल्चरल स्टैटिस्टिक्स 2017, आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय, कृषि निगम और किसानों के कल्याण विभाग पाठ्य पुस्तक अर्थशास्त्र पेज नं. 4
JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी 1
उत्तर:
उपर्युक्त सारणी व आरेख का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि जब तक हमारे पास भूमि उपलब्ध है तब तक कृषि क्षेत्र में वृद्धि की जा सकती है जैसा कि सारणी से स्पष्ट है कि सन् 1950-51 जुताई क्षेत्र 129 मिलीयन हेक्टेयर था जो 1990-91 के आते-आते बढ़कर 157 मिलीयन हेक्टेयर हो गया लेकिन इसके बाद 2014-15 तक कोई वृद्धि नहीं हुई। यह कम हुआ या फिर स्थिर बना हुआ है।

प्रश्न 2.
क्या सिंचाई के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है? क्यों?
उत्तर:
हाँ, सिंचाई के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि भूमि सीमित है जिसे चाहकर भी नहीं बढ़ाया जा सकता, लेकिन सिंचित क्षेत्र में वृद्धि की जा सकती है ताकि जिस क्षेत्र में केवल वर्ष में एक फसल पैदा की जाती है वहाँ सिंचाई के द्वारा वर्ष में दो या तीन फसलें पैदा करके कृषि उत्पादन में वृद्धि की जा सके। जिससे कि तीव्रगति से बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्यानों की आपूर्ति की हो सके।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 4

प्रश्न 3.
आप पालमपुर में पैदा की जाने वाली फसलों के बारे में पढ़ चुके हैं। अपने क्षेत्र में पैदा की जाने वाली फसलों की सूचना के आधार पर निम्न सारणी को भरिए नोट-सभी विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र के किसानों से फसलों के बारे में सारणी में चाही गयी सूचनाओं के बारे में चर्चा करें और इस सारणी को भरकर अध्यापक जी से जाँच कराएँ।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 5

प्रश्न 4.
बहुविधि फसल प्रणाली और खेती की आधुनिक विधियों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
बहुविधि फसल प्रणाली और खेती की आधुनिक विधियों में निम्नलिखित अन्तर हैबहुविधि फसल प्रणाली खेती की आधुनिक विधियाँ

बहुविधि फसल प्रणालीखेती की आधुनिक विधियाँ
1. इसके अन्तर्गत एक ही भूमि पर वर्षभर में एक से अधिक फसलें पैदा की जाती हैं, जैसे-खरीफ में मक्का, ज्वार, बाजरा; रबी में गेहूँ, जौ; जायद में तरबूजा, खरबूजा, ककड़ी आदि।1. इसके अन्तर्गत एक ही फसल से अधिक मात्रा में अनाज पैदा होता है।
2. इस प्रणाली में खेती की परम्परागत या आधुनिक किसी भी विधि का प्रयोग हो सकता है।2. यह उन्नत बीजों वाली खेती की आधुनिक विधि है जिसमें आधुनिक कृषि यंत्र, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाइयाँ एवं अधिक पानी का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 5.
सारणी 1.2 में भारत में हरित क्रान्ति के बाद गेहूँ और दालों के उत्पादन को करोड़ टन इकाइयों में दर्शाया गया है। इसे एक आरेख बनाकर दिखाइए। क्या हरित क्रान्ति दोनों ही फसलों के लिए समान रही?

सारणी 1.2 : दालों तथा गेहूँ का उत्पादन

वर्षदाल का उत्पादनगेहूँ का उत्पादन
1965 – 661010
1970  – 711224
1980 – 811136
1990 – 911455
2000 – 011170
2010 – 111887
2012 – 131894
2013 – 141996
2014 – 151787
2015 – 161794
2016 – 172399
2017 – 182497


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जहाँ हरित क्रान्ति से पूर्व देश में दालों व गेहूँ का उत्पादन समान था। लेकिन हरित क्रान्ति के पश्चात् दालों के उत्पादन में कभी वृद्धि तो कभी कमी का पता लगता है। परन्तु गेहूँ के उत्पादन में लगातार साल-दर-साल वृद्धि दृष्टिगोचर होती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हरित क्रान्ति गेहूँ उत्पादकता में वृद्धि करने में सफल रही है।

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प्रश्न 6.
आधुनिक कृषि विधियों को अपनाने वाले किसान के लिए आवश्यक कार्यशील पूँजी क्या है?
उत्तर:
आधुनिक कृषि विधियों को अपनाने वाले किसानों के लिए उत्पादन के दौरान भुगतान करने एवं जरूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी आवश्यकता पड़ती है, जैसे-बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाइयाँ आदि। कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।

प्रश्न 7.
पहले की तुलना में कृषि की आधुनिक विधियों के लिए किसानों को अधिक नकद (पैसे )की जरूरत पड़ती है। क्यों?
उत्तर:
पहले की तुलना में कृषि में आधुनिक विधियों को अपनाने के लिए किसान को अधिक नकद (पैसे) की आवश्यकता होती है, क्योंकि पारम्परिक कृषि पद्धति में न तो नए बीज, न ही खाद और न कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता पड़ती थी। उक्त सभी वस्तुएँ उसे परिवार से ही प्राप्त हो जाती थीं, जैसे-बीज वह बचाकर रखता था; गोबर या दूसरी प्राकृतिक खादों का प्रयोग करता था लेकिन कृषि की आधुनिक विधियों में उसे सभी वस्तुएँ, जैसे-एच.वाई.वी.

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 7

प्रश्न 8.
किसानों के इतने अधिक परिवार भूमि के इतने छोटे प्लॉटों पर क्यों खेती करते हैं?
उत्तर:
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भूमि का आकार तो नहीं बढ़ता लेकिन किसानों के परिवार बढ़ जाते हैं, जिसके कारण भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार व्यक्ति विशेष की भूमि उसके बेटों, फिर बेटों के बेटों में बँटती जाती है। फलस्वरूप, भूमि के छोटे-छोटे खेत बनते जाते हैं। जैसे पालमपुर गाँव की कहानी में 1960 में कृषक गोविन्द के पास 2.25 हेक्टेयर भूमि थी जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके तीन पुत्रों में बँट गई। अब प्रत्येक के पास केवल 0.75 हेक्टेयर भूमि ही रह गई।

प्रश्न 9.
आरेख 1.1 में भारत में किसानों और उनके द्वारा खेती में प्रयुक्त भूमि का वितरण दिया गया है। इसकी कक्षा में चर्चा करें।
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चित्र-कृषि क्षेत्र और कृषकों का वितरण उत्तर-संलग्न वृत आरेख से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं

  1. भारत में 85% छोटे किसान हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है और वह कुल कृषि योग्य भूमि के 44.6% भाग पर खेती करते हैं।
  2. दूसरी ओर भारत में कुल कृषकों की संख्या का मात्र 15% मझोले और बड़े कृषक हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि है। वे सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र के 55.4% भाग पर खेती करते हैं।

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प्रश्न 10.
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पालमपुर में कृषि भूमि का वितरण असमान है? क्या भारत में भी ऐसी ही स्थिति है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हाँ, हम इस बात से सहमत हैं कि पालमपुर में कृषि भूमि का वितरण असमान है क्योंकि पालमपुर में कुल 450 परिवार हैं जिनमें से 150 परिवार ऐसे हैं जिनके पास कृषि भूमि नहीं है तथा 240 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम कृषि योग्य भूमि है। इसके अतिरिक्त इस गाँव के 60 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि है।

इनमें से कुछ परिवारों के पास तो 10 हेक्टेयर या उससे भी अधिक भूमि है। भारत में भी ऐसी ही स्थिति है। भारत में छोटे किसानों की संख्या कुल किसानों की संख्या का 85% है जिनके पास कुल कृषि योग्य भूमि का केवल 44.6% भूमि है जबकि 15% किसानों के पास कुल कृषि योग्यभूमि का 55.4% है।

पाठ्य पुस्तक पृष्ठ संख्या- 9

प्रश्न 11.
डाला तथा रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?
उत्तर:
डाला और रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब हैं क्योंकि एक तो ये भूमिहीन श्रमिक हैं तथा दूसरे इन्हें सम्पूर्ण वर्ष कार्य भी नहीं मिलता है। ऐसे लोग हमेशा मजदूरी की तलाश में रहते हैं। गाँवों में काम करने वाले लोगों की ज्यादा संख्या तथा काम की कमी के कारण न्यूनतम मजदूरी 300 रु. से भी कम 160 रु. में काम करने को सहमत हो जाते

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 11

प्रश्न 12.
(वैकल्पिक अभ्यास) हम तीन किसानों के उदाहरण लेते हैं। प्रत्येक ने अपने खेतों में गेहूँ बोया है, यद्यपि उनका उत्पादन भिन्न-भिन्न हैं ( देखिए स्तम्भ 2, ‘दूसरा किसान’)। प्रत्येक किसान के परिवार द्वारा गेहूँ का उपभोग समान है ( देखिए स्तम्भ 3, ‘तीसरा किसान’)। इस वर्ष के समस्त अधिशेष गेहूँ का उपयोग अगले वर्ष के उत्पादन के लिए पूँजी के रूप में किया जाता है। यह भी मान लीजिए कि उत्पादन, इसमें प्रयुक्त होने वाली पूँजी का दो गुना होता है। सारणियों को पूरा करें
उत्तर:
नोट-सारणियों को गहरी काली स्याही से पूर्णतः भरा गया है।
पहला किसान

उत्पादनउपभोगअधिशेष-उत्पादन
उपभोग
अगले वर्ष के लिए
पूँजी
 वर्ष 1100406060
 वर्ष 2120408080
 वर्ष 316040120120

दूसरा किसान

उत्पादनउपभोगअधिशेष-उत्पादन
उपभोग
अगले वर्ष के लिए
पूँजी
वर्ष 180404040
वर्ष 280404040
वर्ष 380404040

तीसरा किसान

उत्पादनउपभोगअधिशेष-उत्पादन
उपभोग
अगले वर्ष के लिए
पूँजी
वर्ष 160402020
वर्ष 2404000
वर्ष 3040

प्रश्न 13.
तीनों किसानों के गेहूँ के तीनों वर्षों के उत्पादन की तुलना कीजिए।
उत्तर:
तीनों किसानों के गेहूँ के तीन वर्षों के उत्पादन की तुलना करने पर हम पाते हैं कि प्रथम किसान के गेहूँ के उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। दूसरे किसान के उत्पादन में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हो रहा है, जबकि तीसरे किसान का गेहूँ का उत्पादन निरन्तर घट रहा है।

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प्रश्न 14.
तीसरे वर्ष, तीसरे किसान के साथ क्या हुआ? क्या वह उत्पादन जारी रख सकता है? उत्पादन जारी रखने के लिए उसे क्या करना होगा?
उत्तर:
तीसरे वर्ष तीसरा किसान उत्पादन नहीं कर पाया। हाँ, तीसरा किसान, उत्पादन जारी रख सकता है, लेकिन उत्पादन जारी रखने के लिए उसे ऋण के रूप में पूँजी की व्यवस्था स्थानीय साहूकार, जमींदार या अन्य किसी सरकारी या अर्द्ध सरकारी संस्था से करनी होगी।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 12

प्रश्न 15.
मिश्रीलाल को गुड़ बनाने की उत्पादन इकाई लगाने में कितनी पूँजी की जरूरत पड़ी?
उत्तर:
मिश्रीलाल को गुड़ बनाने की उत्पादन इकाई लगाने में गन्ना पेरने की बिजली से चलने वाली मशीन खरीदने तथा दूसरे किसानों से गन्ना खरीदने के लिए लगभग 25,000 रु. की पूँजी की जरूरत पड़ी होगी।

प्रश्न 16.
इस कार्य में श्रम कौन उपलब्ध कराता है?
उत्तर:
इस कार्य में श्रम प्रायः परिवार के सदस्य ही उपलब्ध कराते हैं।

प्रश्न 17.
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि मिश्रीलाल क्यों अपना लाभ नहीं बढ़ा पा रहा है?
उत्तर:
मिश्रीलाल अपना लाभ नहीं बढ़ा पा रहा है क्योंकि हो सकता है कि वह उत्पादन के लिए नवीन तकनीक नहीं अपनाने के कारण अच्छी गुणवत्ता का गुड़ उत्पादित नहीं कर पा रहा हो तथा कम पूँजी के कारण उत्पादित गुड़ की मात्रा कम होने की वजह से अपना उत्पादन बड़े व्यापारियों के बेचने के स्थान पर आस-पास के छोटे व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर हो। हमारी समझ में तो यही दो कारण हो सकते हैं जो मिश्रीलाल के लाभ-वृद्धि में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

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प्रश्न 18.
क्या आप ऐसे कारणों के बारे में सोच सकते हैं जिनसे उसे हानि भी हो सकती है?
उत्तर:
बिजली से चलने वाली मशीन के खराब हो जाने पर, गन्ना न मिलने पर अथवा गुड़ की कीमतें घट जाने पर उसे हानि भी हो सकती है।

प्रश्न 19.
मिश्रीलाल अपना गुड़ गाँव में न बेचकर शाहपुर के व्यापारियों को क्यों बेचता है?
उत्तर:
मिश्रीलाल अपना गुड़ शाहपुर के व्यापारियों को इसलिए बेचता है क्योंकि उसके गाँव में गुड़ की माँग कम

प्रश्न 20.
करीम की पूँजी और श्रम किस रूप से मिश्रीलाल की पूँजी और श्रम से भिन्न है?
उत्तर:
करीम मानसिक श्रम करा रहा है जबकि मिश्रीलाल शारीरिक श्रम कर रहा है। करीम ने कम्प्यूटर केन्द्र चलाने के लिए एक बार अधिक पूँजी लगाई है लेकिन मिश्रीलाल पूँजी से मशीन लगाता है तथा गन्ना खरीदता है एवं गुड़ बनाकर बेचकर जो पैसे आते हैं उनसे फिर गन्ना खरीदता है। इस प्रकार लाभ कमाता है।

प्रश्न 21.
इससे पहले किसी और ने कम्प्यूटर केन्द्र क्यों नहीं शुरू किया? सम्भावित कारणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
करीम से पहले पालमपुर ग्राम में किसी और ने कम्प्यूटर केन्द्र इसलिए शुरू नहीं किया होगा कि इससे पहले गाँव के छात्र कॉलेज नहीं जाते होंगे और शहर की कम्प्यूटर कक्षाओं में भी नहीं जाते होंगे। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि इससे पहले पालमपुर में कोई प्रशिक्षित कम्प्यूटर सिखाने वाला नहीं होगा।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 13

प्रश्न 22.
किशोर की स्थायी पँजी क्या है?
उत्तर:
किशोर की स्थायी पूँजी के रूप में उसके द्वारा खरीदी गयी भैंस और भैंसागाड़ी हैं।

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प्रश्न 23.
क्या आप सोच सकते हैं कि उसकी कार्यशील पूँजी कितनी होगी?
उत्तर:
किशोर की कार्यशील पूँजी के अन्तर्गत केवल भैंस के लिए चारा, चुनी, अनाज हेतु लगभग एक-डेढ़ हजार और भैंसागाड़ी हेतु भी लगभग दो-ढाई हजार रुपये। इस प्रकार कुल मिलाकर किशोर के पास तीन-चार हजार रुपये की कार्यशील पूँजी होगी।

प्रश्न 24.
किशोर कितनी उत्पादन क्रियाओं में लगा हुआ है?
उत्तर:
किशोर कृषि उत्पादन के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन और परिवहन सेवाओं में भी लगा हुआ है।

प्रश्न 25.
क्या आप कह सकते हैं कि किशोर को पालमपुर की अच्छी सड़कों से लाभ हआ है?
उत्तर:
हाँ, हम कह सकते हैं कि किशोर को पालमपुर की अच्छी सड़कों से लाभ हुआ है।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 15

प्रश्न 1.
आधुनिक या परम्परागत या मिश्रित-खेती की इन विधियों में से किसान किसका प्रयोग करते हैं? एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हमारे क्षेत्र के अधिकांश किसान खेती की मिश्रित विधियों का प्रयोग करते हैं। वे अपने खेतों को हल-बैल से जोतते हैं। सिंचाई मुख्यतः नलकूप और फव्वारा पद्धति से करते हैं। वे अपने खेतों में गाय-भैंस के गोबर की खाद एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। यहाँ कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है। फसल की कटाई परम्परागत विधियों से की जाती है।

प्रश्न 2.
सिंचाई के क्या स्त्रोत हैं?
उत्तर:
सिंचाई के प्रमुख साधन वर्षा के अलावा नहर, नलकूप आदि हैं।

प्रश्न 3.
कृषि भूमि के कितने भाग में सिंचाई होती है? (बहुत कम/लगभग आधी/अधिकांश/समस्त)
उत्तर:
वर्तमान में कृषि भूमि के लगभग आधे क्षेत्र में ही सिंचाई के साधन उपलब्ध होने के कारण सिंचाई की व्यवस्था हो पाती है। शेष भूमि पर साधनों की अनुपलब्धता के कारण वर्षा पर ही कृषि निर्भर है।

प्रश्न 4.
किसान अपने लिए आवश्यक आगत कहाँ से प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
किसान अपने लिए आवश्यक आगत अर्थात् कार्यशील पूँजी की व्यवस्था स्थानीय साहूकार, लाला या जमींदार से करते हैं। कुछ शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने से भारतीय कृषकों में चेतना उत्पन्न हुई है और अब वे विभिन्न सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत सरकारी संस्थानों से भी अपनी आवश्यक आगत की व्यवस्था करने लगे हैं। सरकार द्वारा ग्रीन कार्ड की व्यवस्था से किसानों को बैंकों के द्वारा आसानी से फसली ऋण उपलब्ध होने लगा है।

JAC Class 9th Economics पालमपुर गाँव की कहानी Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से सम्बन्धित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका को भरिए
उत्तर:
(क) अवस्थिति क्षेत्र: पालमपुर, रायगंज से तीन किमी. की दूरी पर सड़क से जुड़ा हुआ गाँव है।
(ख) गाँव का कुल क्षेत्र-226 हेक्टेयर।
(ग) भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में) कृषि भूमि

कृषि भूमिभूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है
(निवास स्थानों, सड़कों तालाबों, चारागाहों आदि का क्षेत्र)
सिंचितअसिंचित
200 हेक्टेयर26 हेक्टेयर

(घ) सुविधाएँ

शैक्षिकदो प्राथमिक विद्यालय व एक हाईस्कूल है।
चिकित्साएक राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र व एक निजी औषधालय है।
बाजाररायगंज और शाहपुर के बाजार।
बिजली पूर्तिअधिकांश घरों में उपलब्ध।
संचारउपलबध नहीं।
निकटतमशाहपुर।
कस्बादो प्राथमिक विद्यालय व एक हाईस्कूल है।

प्रश्न 2.
खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसे अधिक आगतों की आवश्यकता होती है जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है। क्या आप सहमत हैं ?
उत्तर:
हम इस बात से पूर्णतः सहमत हैं क्योंकि खेती की आधुनिक विधियों में उन्नतशील बीज, रासायनिक खाद (उर्वरक), कीटनाशक, खरपतवारनाशक आदि उद्योगों (फैक्ट्रियों) में विनिर्मित किए जाते हैं तथा सिंचाई में काम आने वाले पम्पसैट, जुताई के काम आने वाला ट्रैक्टर तथा उपजों से खाद्यान्न व दूसरे उत्पाद प्राप्त करने के लिए जो भी यन्त्र काम आते हैं, सभी किसी न किसी उद्योग में विनिर्मित होते हैं।

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प्रश्न 3.
पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस प्रकार मदद की?
उत्तर:
पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की बहुत अधिक मदद की। वर्तमान में पालमपुर में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जो कि असिंचित क्षेत्र के अन्तर्गत आता हो। बिजली के प्रसार से न केवल सम्पूर्ण क्षेत्र सिंचित है, बल्कि बहुत कम समय में एक बड़े क्षेत्र की सिंचाई आसानी से पूर्ण हो जाती है।

प्रश्न 4.
क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है? क्यों?
उत्तर:
सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि देश की बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती खाद्यान्न की माँग को पूरा करने के लिए आवश्यक भी है। क्योंकि जितना ज्यादा सिंचित क्षेत्र उपलब्ध होगा, हम उतना ही अधिक कृषि उत्पादन कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
पालमपुर के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की एक सारणी बनाइए।
उत्तर:
पालमपुर के कुल 450 परिवारों में भूमि का वितरण इस प्रकार हैक्र. सं. परिवारों की संख्या

प्रश्न 6.
पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी, न्यूनतम मजदूरी से कम क्यों है?
उत्तर:
पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी, न्यूनतम मजदूरी से भी कम है क्योंकि पालमपुर में लगभग आधे परिवार ऐसे हैं जो या तो भूमिहीन हैं या बहुत छोटे क्षेत्र पर कृषि कार्य करते हैं। ये लोग हमेशा ही कोई न कोई कार्य ढूँढ़ते रहते हैं। पालमपुर में काम करने वाले ज्यादा तथा काम कम है। इस कारण वे सरकार द्वारा निर्धारित 300 रु. दैनिक मजदूरी से भी कम 160 रु. दैनिक मजदूरी पर काम करने को तैयार हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिए।खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगे मजदूरों में से किसी को चनें। उन्हें कितनी मजदूरी मिलती है? क्या उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु-रूप में? क्या उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है? क्या वे कर्ज में हैं?
उत्तर:
मैंने अपने क्षेत्र के दो श्रमिकों ‘रामसिंह’ और ‘भगवत’ से बात की- ये दोनों खेतिहर श्रमिक हैं। इन्हें 100 रु. दैनिक मजदूरी के रूप में मिलते हैं। इन्हें मजदूरी के रूप में नकद पैसा ही मिलता है न कि वस्तु रूप में। इनको नियमित रूप से कार्य नहीं मिल पाता है और ये आस-पास के गाँवों या छोटे कस्बों में भी काम तलाशते रहते हैं। काम पर्याप्त न मिल पाने की वजह से ये दोनों कर्ज में हैं।

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प्रश्न 8.
एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन से तरीके हैं ? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग तरीकों में बहुविधि फसल प्रणाली और आधुनिक फसल प्रणालियाँ हैं। बहुविधि फसल प्रणाली के अन्तर्गत किसान सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर एक वर्ष में एक फसल के स्थान पर दो या तीन फसलें प्राप्त करके उत्पादन में वृद्धि का प्रयास करता है, जैसे खरीफ के मौसम में ज्वार, बाजरा, मक्का; रबी के मौसम में गेहूँ, चना, मटर एवं जायद के मौसम में तरबूजा, खरबूजा, ककड़ी आदि उगाए जाते हैं।

जबकि आधुनिक फसल प्रणाली के अन्तर्गत किसान सिंचाई के लिए नलकूपों, एच.वाई.वी. बीजों, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन में बढ़ोत्तरी करने लगे हैं। कृषि में हुए इन आधुनिक प्रयोगों का ही परिणाम है कि अब हमें अपनी भूख मिटाने के लिए किसी दूसरे देश का मुँह ताकने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ तक कि हरित क्रान्ति को लोग गेहूँ की क्रान्ति भी कहने लग गए हैं।

प्रश्न 9.
एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर:
एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान को अपनी भूमि के समस्त कार्यों के साथ-साथ दूसरे बड़े किसानों की भूमि में खेतिहर मजदूर के रूप में मजदूरी करने की विवशता है और जब खेतों में काम नहीं होता तब वे आस-पास के गाँवों, कस्बों में काम तलाश कर उस पर लग जाते हैं ताकि उनके परिवार का भरण-पोषण होता रहे। कई बार इतना करने के बाद भी ये किसान कर्ज में डूब जाते हैं।

प्रश्न 10.
मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं ? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर:
मझोले और बड़े किसान परिवार के उपभोग हेतु कुछ उपज रख लेने के बाद अधिशेष गेहूँ को बाजार में बेचकर पूँजी प्राप्त कर लेते हैं। ये छोटे किसानों से इसलिए भिन्न हैं क्योंकि छोटे किसान के पास बहुत कम उत्पादन होता है। इस उत्पादन से उनकी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति भी बहुत मुश्किल से होती है। अधिशेष के बारे में ये छोटे किसान सोच भी नहीं पाते हैं। अतः इनके पास कृषि उत्पादन से किसी प्रकार की पूँजी एकत्रित नहीं होती है।

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प्रश्न 11.
सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?
उत्तर:
सविता को तेजपाल सिंह से चार महीने के लिए 24% वार्षिक की ब्याज दर पर कर्ज मिला है। साथ में सविता को फसल कटाई के समय में 35 रु. प्रतिदिन की मजदूरी पर उसके खेत में काम करने का वचन भी देना पड़ा है। यदि सविता को कम ब्याज दर पर बैंक से कर्ज मिल जाता तो सविता को अधिक ब्याज व कम मजदूरी में व्यस्त दिनों में काम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

प्रश्न 12.
अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 40-50 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त (वैकल्पिक )रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
हम यहाँ पर पालमपुर ग्राम में हुए परिवर्तनों की वैकल्पिक रिपोर्ट लिख रहे हैं। (विद्यार्थियों से आग्रह है कि वे अपने-अपने क्षेत्र की इसी प्रकार रिपोर्ट बनाकर विषयाध्यापक जी से जाँच कराएँ।) हमें पालमपुर में कुछ बुजुर्ग कृषकों से बात करने पर ज्ञात हुआ कि आज से लगभग 40-50 वर्ष पहले सिंचाई वर्तमान की भाँति नलकूपों से नहीं होती थी बल्कि कुछ कच्चे और कुछ पक्के कुओं पर परम्परागत सिंचाई के साधनों जैसे-चरस, रहट, ढेकुली आदि से बहुत परिश्रम करके फसलों की सिंचाई की जाती थी।

इसी प्रकार कृषि उत्पादन हेतु खेतों को हल और बैलों के माध्यम से पाटा फेर कर, जोत कर तैयार किया जाता था। उसके बाद घर के सदस्य बीज बोते थे वह भी पिछली फसल का अधिशेष होता था। खाद भी वर्तमान की जैसी नहीं थी, गोबर की प्राकृतिक खाद दी जाती थी। फसल तैयार होने पर हाथों से कटाई करके बैलों के माध्यम से उपज को प्राप्त किया जाता था। सब कुछ जानने के बाद निष्कर्ष यह निकला कि पुराने समय में कृषि कार्य में मानवीय श्रम की अधिकता थी जबकि वर्तमान समय में यांत्रिक श्रम अधिक काम आता है।

प्रश्न 13.
आपके क्षेत्र में कौन से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त सूची बनाइए।
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में निम्नलिखित गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं

  1. डेयरी कार्य।
  2. गुड़ बनाने का कार्य।
  3. वस्तु विनिमय से सम्बन्धित कार्य।
  4. कम्प्यूटर केन्द्र खोलकर प्रशिक्षण का कार्य।
  5. परिवहन सेवाएँ उपलब्ध कराने के कार्य।
  6. मिट्टी के बर्तन बनाने सम्बन्धी कार्य।
  7. बान, रस्सी, ढकोले आदि विनिर्माण सम्बन्धी कार्य।

नोट: उक्त सारणी में ज्यादातर पालमपुर ग्राम में होने वाले गैर-कृषि कार्यों को लिया गया है विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने क्षेत्रीय कार्यों की सूची बनायें।

JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

प्रश्न 14.
गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारम्भ करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:
गाँव में आज भी लगभग 25% लोग ऐसे हैं जो गैर-कृषि कार्यों में लगे रहते हैं चाहे इन कार्यों से इनके परिवार का भरण-पोषण हो या न हो। अगर गाँव के लोगों को गैर-कृषि कार्यों की आधुनिक माँग के अनुरूप करने के लिए प्रशिक्षित किया जाये तो इन लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाया जा सकता है। अतः लोगों में जागरूकता पैदा करके शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए उन्हें तैयार किया जाये और वर्तमान माँग के अनुरूप कुटीर उद्योग-धन्धों की शुरुआत करने के लिये लोगों को तैयार किया जाये।

अगर किसी कार्य में पूँजी की आवश्यकता पड़े तो हमें ग्रामीण या व्यापारिक बैंकों से ऋण दिलाने की व्यवस्था भी करनी होगी, तभी गाँवों की स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है। इन कुटीर उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति के स्रोतों व निर्मित माल के उपयुक्त बाजारों की जानकारी भी उस प्रशिक्षण का हिस्सा होना आवश्यक है ताकि ग्रामीण परिवेश के लोगों को यह विश्वास हो सके कि हम इस प्रशिक्षण के बाद अपने उद्योग को आसानी से चला पायेंगे।

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