JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

पाठ सारांश

  • हमारे पर्यावरण में पाये जाने वाला ऐसा पदार्थ अथवा तत्व जिसमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता हो, संसाधन कहलाता है।
  • मानव स्वयं संसाधनों का एक महत्वपूर्ण भाग है। वह पर्यावरण में पाए जाने वाले पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित कर उनका उपयोग करता है।
  • संसाधनों को उनकी उत्पत्ति, समाप्यता, स्वामित्व एवं विकास के स्तर के आधार पर निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) उत्पत्ति के आधार पर:

  1. जैव संसाधन, (मनुष्य, वनस्पतिजात, प्राणीजात आदि),
  2. अजैव संसाधन (चट्टानें व धातुएँ आदि)।

(ब) समाप्यता के आधार पर:

  1. नवीकरण योग्य, (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन तथा वन्य जीवन आदि)
  2. अनवीकरण योग्य (खनिज व जीवाश्म ईंधन आदि)।

(स) स्वामित्व के आधार पर:

  1. व्यक्तिगत (भूमि, घर, बाग, चरागाह, तालाब व कुआँ आदि),
  2. सामुदायिक (चारण भूमि, श्मशान भूमि, खेल के मैदान व पिकनिक स्थल आदि),
  3. राष्ट्रीय (सड़कें, नहरें, रेल लाइनें, – खनिज पदार्थ, जल संसाधन आदि),
  4. अन्तर्राष्ट्रीय (तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी से परे खुले महासागरीय संसाधन आदि)।

(द) विकास के स्तर के आधार पर:

  1. संभावी, (राजस्थान व गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा की संभावना),
  2. विकसित (सर्वेक्षण के बाद उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण करने वाले संसाधन),
  3. भंडार (हाइड्रोजन ऊर्जा),
  4. संचित कोष (बाँधों में जल व वन आदि)

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  • संसाधन मानव के जीवनयापन के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए भी अति आवश्यक हैं।
  • मानव ने संसाधनों को प्रकृति की देन समझकर उनका अंधाधुंध उपयोग किया है जिससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जिनमें पर्यावरण-प्रदूषण, भूमि-निम्नीकरण, भूमंडलीय-तापन व ओजोन-परत का क्षय आदि प्रमुख हैं।
  • विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने के लिए जून, 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो नामक शहर में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी-सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 100 से भी अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।
  • संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए उनका उचित प्रकार से नियोजन आवश्यक है।
  • 1968 ई. में ‘क्लब ऑफ रोम’ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत की।
  • भारत में भूमि पर पर्वत, पठार, मैदान तथा द्वीप जैसी विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं।
  • भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी. है लेकिन वर्तमान में इसके 93 प्रतिशत भाग के ही भू-उपयोग सम्बन्धी आँकड़े उपलब्ध हैं।
  • भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1952 द्वारा निर्धारित वनों के तहत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वांछित है जो पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने हेतु जरूरी है।
  • भारत में संसाधनों के नियोजन के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किये जा रहे हैं।
  • एक लम्बे समय तक निरन्तर भूमि संरक्षण एवं प्रबन्ध की अवहेलना तथा निरन्तर भू-उपयोग के कारण भू-संसाधनों का निम्नीकरण हो रहा है जो एक गम्भीर समस्या है।
  • वनारोपण, चारागाहों का उचित प्रबंधन, पशुचारण नियंत्रण एवं खनन नियंत्रण आदि द्वारा भूमि निम्नीकरण की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
  • मनुष्य की समस्त प्रारम्भिक आवश्यकताओं का आधार मृदा संसाधन है। मृदा जैव और अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से बनती है। खनिज व जैव-पदार्थों का प्राकृतिक सम्मिश्रण है।
  • भारत में उच्चावच, भू-आकृतियाँ, जलवायु एवं वनस्पति की विविधता के कारण अनेक प्रकार की मृदाओं का विकास हुआ है जो निम्नलिखित हैं
  1. जलोढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लेटराइट मृदा
  4. लाल व पीली मृदा
  5. मरुस्थलीय मृदा
  6. वन मृदा।
  • जलोढ़ मृदा देश की सबसे महत्वपूर्ण मृदा है। यह बहुत उपजाऊ होती है।
  • काली मृदा कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
  • मृदा अपरदन, मृदा की सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। इससे मृदा की उर्वर-शक्ति का निरन्तर ह्रास होता रहता है।
  • मृदा के संरक्षण हेतु कई उपाय किये जा सकते हैं, जिनमें समोच्च रेखीय जुताई, पट्टीनुमा कृषि, सीढ़ीदार कृषि आदि प्रमुख हैं।
  •  पर्यावरण की पुनर्स्थापना के लिए लोगों द्वारा इसका प्रबन्धन आवश्यक है। सुखोमाजरी गाँव एवं झबुआ जिले में इस प्रकार का कार्य हुआ है। वहाँ के लोगों ने भूमि निम्नीकरण प्रक्रिया को समाप्त कर दिखाया है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. संसाधन: हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त दार्थ या तत्व जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयोग किये जाते हैं और जिनका उपयोग करने के लिए तकनीकी 7 उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य एवं सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं, संसाधन कहलाते हैं।

2. जैव संसाधन: वे संसाधन जिनका जैवमण्डल में एक निश्चित जीवन-चक्र होता है, जैव संसाधन (जैविक संसाध न) कहलाते हैं, जैसे-वनस्पति, मनुष्य, पशु-पक्षी, छोटे जीव, वन्य-प्राणी, मछली आदि।

3. अजैव संसाधन: वें संसाधन जिनमें एक निश्चित जीवन-क्रिया का अभाव होता है अर्थात् निर्जीव वस्तुओं से बने होते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी, कोयला, चट्टानें आदि।

4. नवीकरण योग्य संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनको भौतिक, रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। उन्हें पुनः पूर्ति योग्य संसाधन भी कहा जाता है, जैसे-सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, जल, वन, कृषि आदि।

5. अनवीकरण योग्य संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनको एक बार उपयोग में लेने के पश्चात् पुनः पूर्ति किया जाना सम्भव नहीं है, अनवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। ये संसाधन सीमित मात्रा में होते हैं, जैसे-कोयला, खनिज तेल, यूरेनियम, प्राकृतिक गैस आदि।

6. प्राकृतिक संसाधन: प्रकृति से प्राप्त विभिन्न पदार्थ या तत्व जिनका कोई मानवीय उपयोग होता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं, जैसे-सूर्य का प्रकाश, खनिज, धरातल, मिट्टी, जल, वायु व वनस्पति। ये संसाधन प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिए गए निःशुल्क उपहार हैं।

7. मानवीय संसाधन: मानव द्वारा विकसित किए गए संसाधन, मानवीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-भवन, गाँव, स्वास्थ्य, शिक्षा, मशीन, उद्योग, सड़क आदि।

8. संभावी संसाधन: किसी प्रदेश विशेष में वे समस्त विद्यमान संसाधन जिनका अब तक उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं।

9. विकसित संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है एवं उनके उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण किया जा चुका है, विकसित संसाधन कहे जाते हैं।

10. भंडार: हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त पदार्थ जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परन्तु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में पहुँच से बाहर हैं, भंडार में सम्मिलित किये जाते हैं।

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11. संचित कोष: भण्डार का वह हिस्सा जिसे तकनीकी ज्ञान की सहायता से उपयोग में लाया जा सकता हैं लेकिन जिसका प्रयोग अभी तक आरम्भ नहीं किया गया है, संचित-कोष कहलाता है।

12. पुनःचक्रीय संसाधन: ऐसे संसाधन जिनका उपयोग बार-बार किया जा सकता है, पुनः चक्रीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी आदि धातुएँ । इन धातुओं को बार-बार पिघलाकर विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है।

13. अचक्रीय संसाधन: ऐसे संसाधन जिनका उपयोग बार-बार नहीं किया जा सकता, अचक्रीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-जीवाश्म ईंधन, कोयला, खनिज-तेल, प्राकृतिक गैस आदि संसाधन एक बार प्रयोग कर लेने के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।

14. सतत् पोषणीय विकास: सतत् पोषणीय विकास पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए किया जाने वाला विकास है। इसमें वर्तमान विकास प्रक्रिया का निर्धारण भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

15. संसाधन नियोजन: संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए सर्वमान्य रणनीति को संसाधन नियोजन कहते हैं।

16. संसाधन संरक्षण: प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का अर्थ है-उनका नियोजित एवं विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना ताकि हमें अपने संसाधनों का एक लम्बे समय तक पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सके।

17. परती भूमि: वह भूमि जिस पर एक या अधिक ऋतुओं में कृषि नहीं की मई हो ताकि उसकी उर्वरता बढ़ सके, परती भूमि कहलाती है।

18. बंजर भूमि: भूमि का वह भाग जिसका कोई उपयोग नहीं होता है, बंजर भूमि कहलाती है।

19. शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र: एक कृषि वर्ष में कुल बोया गया क्षेत्र, शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र कहलाता

20. चारागाह: घास उत्पन्न करने वाली वह भूमि जिसका उपयोग पशुओं को चराने के लिए किया जाता है।

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21. सकल कृषित क्षेत्र: एक कृषि वर्ष में एक बार से अधिक बोए गए क्षेत्र को शुद्ध .(निवल) बोए गए क्षेत्र में जोड़ देना सकल कृषित क्षेत्र कहलाता है।

22. भूमि निम्नीकरण: मानवीय क्रिया-कलापों के कारण भूमि की गुणवत्ता का कम हो जाना भूमि निम्नीकरण कहलाता है।

23. रक्षक मेखला: फसलों के बीच में वृक्षों की कतारें लगाना रक्षक मेखला कहलाता है।

24. मृदा: पृथ्वी की भूपर्पटी की वह सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण से बनी होती है और पेड़-पौधों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।

25. बांगर: पुरानी जलोढ़ मृदा। इस प्रकार की मृदा में कंकर ग्रन्थियों की मात्रा अधिक होती है।

26. खादर: नवीन जलोढ़ मृदा। इस प्रकार की मृदा में बांगर मृदा की तुलना में अधिक बारीक कण पाये जाते हैं।

27. मृदा अपरदन: मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।

28. उत्खात: भूमि-ऐसी भूमि जो अवनलिकाओं के कारण कृषि योग्य नहीं रहती, उत्खात भूमि कहलाती है।

29. खड्ड-भूमि: चम्बल नदी के बेसिन में उत्खात भूमि को खड्ड-भूमि कहा जाता है।

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30. चादर अपरदन: जब बहते हुए जल के साथ विस्तृत क्षेत्र की मृदा की ऊपरी परत बह जाती है तो उसे चादर अपरदन कहते हैं।

31. अवनलिका अपरदन: जब बहता हुआ जल मृत्तिकायुक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है तो उन्हें अवनलिका अपरदन कहते हैं।

32. पवन अपरदन: पवन द्वारा मैदानी अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की क्रिया पवन अपरदन कहलाती है।

33. समोच्च जुताई: ढोल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने को समोच्च जुताई कहते हैं।

34. पट्टी कृषि: बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटकर उनके बीच में फसल उगाई जाती है तथा पट्टियों में घास उगायी जाती है जिससे पवन के वेग का प्रभाव फसलों पर नहीं पड़ता। इस प्रकार से की जाने वाली कृषि को पट्टी कृषि कहते हैं।

35. निक्षालन: निक्षालन मृदा अपरदन की एक प्रक्रिया है जिसमें मृदा के तत्व भारी वर्षा के कारण बह जाते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

→ मुद्रित का महत्व्

  • मुद्रित अर्थात् छपी हुई सामग्री के बिना विश्व की कल्पना करना हमारे लिए मुश्किल है।
  • छपाई अर्थात् मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई।
  • लगभग 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबों को छापा जाने लगा था।
  • एक लम्बे समय तक चीनी राजतन्त्र मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है।
  • जापान में सर्वप्रथम चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आस-पास छपाई की तकनीक को लाये थे।
  • 868 ई. में छपी ‘डायमंड सूत्र’ जापान की सबसे प्राचीन पुस्तक है।
  • 13वीं सदी के मध्य में, ‘त्रिपीटका कोरियाना’ वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में बौद्ध ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है जिसे लगभग 80,000 वुडब्लॉक्स पर उकेरा गया। 2007 में इन ग्रंथों को यूनेस्को ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में दर्ज किया गया।
  • 1753 ई. में एदो (टोक्यो) में जन्मे कितागावा उतामारो ने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक एक नयी चित्रशैली को जन्म दिया।

→ यूरोप में मुद्रण:

  • 11वीं शताब्दी में रेशम मार्ग से चीनी कागज यूरोप पहुँचा।
  • 1295 ई. में मार्कोपोलो (महान खोजी यात्री) चीन में लम्बे समय तक रहने के बाद अपने साथ वहाँ से वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक लेकर इटली वापस आया।
  • पुस्तकों की माँग बढ़ने के साथ-साथ यूरोप के पुस्तक विक्रेता समस्त विश्व में इनका निर्यात करने लगे।
  • गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का आविष्कार किया। यही जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना।
  • गुटेनबर्ग ने अपनी जैतून प्रेस से सर्वप्रथम बाईबिल छापी। इनके द्वारा निर्मित प्रेस को मुवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन के नाम से जाना गया।
  • 1450-1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखाने लग गए थे।
  • छापेखाने के आविष्कार से एक नये पाठक वर्ग का जन्म हुआ।
  • पुस्तकों तक पहुँच आसान हो जाने से पढ़ने की एक नयी संस्कृति का विकास हुआ।

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→  धार्मिक विवाद व मुद्रण

  • छापेखाने के आविष्कार से लोगों के विचारों के आदान-प्रदान का रास्ता खुला। अब लोग शासन के विचारों से असहमति व्यक्त करते हुए अपने विचारों को छापकर जनता में प्रचारित कर सकते थे।
  • प्रसिद्ध धर्म सुधारक मार्टिन लूथर किंग ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना की तथा पिच्चानवेस्थापनाओं का लेखन किया।
  • लूथर ने मुद्रण के विषय में कहा, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा।”

→  मुद्रण और प्रतिरोध

  • मुद्रित साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं से परिचित हुए।
  • 17वीं व 18वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई।
  • यूरोप में विभिन्न सम्प्रदायों के चर्चों ने गाँवों में विद्यालयों की स्थापना की तथा उनमें किसानों व कारीगरों को शिक्षा प्रदान की जाने लगी। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप में पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिनमें समसामयिक घटनाओं की सूचना के साथ-साथ मनोरंजन भी होता था।
  • 18वीं शताब्दी के मध्य तक लोगों को यह विश्वास हो चुका था कि पुस्तकों के माध्यम से प्रगति संभव है। किताबें ही निरंकुशवाद व आतंकी राजसत्ता से मुक्ति दिला सकती हैं। • 18वीं शताब्दी में फ्रांसीसी उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की, “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।”

→  मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति

  • कई इतिहासकारों का मत है कि फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण मुद्रण संस्कृति ने ही किया था।
  • 1780 ई. के दशक तक राजशाही और उसकी नैतिकता का मखौल उड़ाने वाले साहित्य का बहुत अधिक लेखन हो चुका था।
  • 19वीं सदी के अन्त में यूरोप में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता ने पाठ्य-पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया।
  • फ्रांस में मात्र बाल पुस्तकें छापने के लिए एक प्रेस अथवा मुद्रणालय स्थापित किया गया।
  • 19वीं शताब्दी में उपन्यास छपने शुरू हुए तो महिलाएँ उनकी अहम पाठक मानी गईं।
  • जेन ऑस्टिन, ब्रॉण्ट बहनें व जॉर्ज इलियट आदि प्रसिद्ध अग्रणी लेखिकाएँ थीं।

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→  तकनीकी परिष्कार व मुद्रण

  • 18वीं शताब्दी के आखिर तक प्रेस धातु से बनने लगे थे।
  • 17वीं सदी से ही किराए पर पुस्तकें देने वाले पुस्तकालय अस्तित्व में आ चुके थे।
  • 19वीं शताब्दी के मध्य तक न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया।
  • 19वीं सदी में ही पत्रिकाओं ने उपन्यासों को धारावाहिक के रूप में छापकर लिखने की एक विशेष शैली को जन्म दिया।

→  भारत का मुद्रण संसार

  • भारत में प्राचीन काल से ही संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की प्राचीन एवं समृद्ध परम्परा थी।
  • पाण्डुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनायी जाती थीं।
  • भारत में सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आया था।
  • कैथोलिक पुजारियों ने सर्वप्रथम 1579 ई. में कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक तथा 1713 ई. में मलयालम पुस्तक छापी।
  • ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 17वीं शताब्दी के अंत तक छापेखाने का आयात करना प्रारम्भ कर दिया।
  • जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 ई. में ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • 19वीं सदी में भारत में अलग-अलग समूह औपनिवेशिक समाज में हो रहे परिवर्तनों से जूझते हुए धर्म की अपने-अपने अनुसार व्याख्या प्रस्तुत कर रहे थे।

→  धार्मिक सुधार पर मुद्रण का प्रभाव

  • 16वीं शताब्दी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘तुलसीदास कृत रामचरितमानस’ का प्रथम मुद्रित संस्करण 1810 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।
  • 1870 ई. के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर व कार्टून प्रकाशित होने लगे।
  • भारत में महिलाओं की जिन्दगी व उनकी भावनाओं पर भी सामग्री का प्रकाशन होना प्रारम्भ हुआ।
  • हिन्दी भाषा में छपाई की शुरुआत 1870 ई. के दशक में हुई।

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→  महिलाएँ और मुद्रण तथा जनता

  • 20वीं शताब्दी के आरम्भ में महिलाओं के लिए मुद्रित तथा कभी-कभी उनके द्वारा सम्पादित पत्रिकाएँ लोकप्रिय हो गयीं।
  • 19वीं सदी में भारत में निर्धन वर्ग भी बाजार से पुस्तकें खरीदने की स्थिति में आ गया था।
  • 20वीं शताब्दी में भारत में सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे जिससे किताबों तक लोगों की पहुँच में वृद्धि हुई।
  • 1820 ई. के दशक में कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस की स्वतन्त्रता को नियन्त्रित करने वाले कुछ कानून पास किए तथा कम्पनी ने ब्रिटिश शासन का उत्सव मनाने वाले अखबारों के प्रकाशन को प्रोत्साहन देना प्रारम्भ किया।
  • 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति रवैया बदल गया तथा नाराज अंग्रेजों ने देसी प्रेस को बन्द करने की माँग की।
  • 1878 ई. में आयरिश प्रेस कानून की तरह वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट भारत में लागू किया गया।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियां व घटनाएं

तिथि चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तखी पर कागज को रगड़कर किताबें छपना प्रारम्भ हुआ।
1. सन् 594 ई. इस अवधि के दौरान चीनी बौद्ध प्रचारक छपाई की तकनीक लेकर जापान गये।
2. सन् 768-770 ई. जापान की सबसे पुरानी पुस्तक ‘डायमण्ड सूत्र’ का प्रकाशन। इस पुस्तक में पाठ के साथ-साथ काष्ठ पर चित्र खुदे थे।
3. सन् 868 ई. मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई वर्ष खोज करने के पश्चात् इटली वापस लौटा।
4. सन् 1295 ई. स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का आविष्कार किया। इस मशीन के द्वारा उन्होंने सर्वप्रथम बाईबिल पुस्तक छापी। इस मशीन को मूवेबल टाइप प्रिटिंग प्रेस भी कहा जाता था।
5. सन् 1448 ई. रोमन चर्च द्वारा प्रतिबन्ध्रित पुस्तकों की सूची रखना प्रारम्भ हुआ।
6. सन् 1558 ई. कैथोलिक पुजारियों ने कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक का प्रकाशन किया।
7. सन् 1579 ई. कैथोलिक पुजारियों ने प्रथम मलयालम पुस्तक का प्रकाशन किया।
8. सन् 1713 ई. एदो में कितागावा उतामारो का जंन्म। इन्होंने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक एक नयी चित्र शैली को जन्म दिया।
9. सन् 1753 ई. 1780 ई. के दशक तक राजशाही व उसकी नैंतिकता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का पर्याप्त लेखन हो चुका था।
10. सन् 1780 ई. जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा बंगाल गजट, नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया गया।
11. सन् 1810 ई. तुलसीदास कृत रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कलकत्ता से प्रकाशित।
12. सन् 1821 ई. राजा राममोहन राय द्वारा संवाद कौमुदी का प्रकाशन।
13. सन् 1857 ई. भारत में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम।
14. सन् 1867 ई. देवबन्द मिशनरी की स्थापना जिसने मुसलमान पाठकों को रोजमर्रा का जीवन जीने का तरीका एवं सिद्धान्त बताने वाले विभिन्न फतवे जारी किये।
15. सन् 1878 ई. भारत में आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर वर्नाक्यूलर एक्ट लागू किया गया।
16. सन् 1907 ई. ब्रिटिश सरकार द्वारा पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजा गया।
17. सन् 1908 ई. पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजने का अपने पत्र ‘केसरी’ में विरोध करने पर बाल गंगाधर तिलक को अंग्रेजी सरकार द्वारा कैद कर लिया गया।
18. सन् 1919 ई. रॉलेट एक्ट के अधीन कार्यरत षड्यन्त्र समिति ने विभिन्न समाचार-पत्रों के विरुद्ध जुर्माना आदि कार्यवाहियों को और अधिक कठोर बना दिया।
19. सन् 1920 ई. इ दशक में हॉलैण्ड-इंग्लैण्ड में लोकप्रिय पुस्तकों की एक सस्ती भृंखला-शिलिंग श्रृंखला के तहत छापी गई।
20. सन् 1930 ई. आर्थिक मन्दी के कारण प्रकाशकों में पुस्तकों की बिक्री गिरने का भय व्याप्त।
21. सन् 1938 ई. कानपुर के मिल मजदर काशीबाबा ने छोटे-बडे सवाल लिखकर और छापकर जातीय तथा वर्गीय शोषण के मध्य का रिश्ता समझाने का त्रयास किया।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. खुशनवीसी: सुलेखन। सुन्दर एवं कलात्मक लेखन कला को खुशनवीसी (सुलेखन) कहा जाता है।

2. वेलम: चर्मपत्र अथवा जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह को वेलम कहा जाता है।

3. गाथा गीत: लोकगीत का ऐतिहासिक आख्यान जिसे गाया या सुनाया जाता है।

4. कम्पोजीटर: छपाई के लिए इबारत कम्पोज करने वाला व्यक्ति कम्पोजीटर कहलाता है।

5. गैली: वह धात्विक फ्रेम जिसमें टाइप बिछाकर इबारत बनायी जाती थी।

6. शराबघर: वह स्थान जहाँ व्यक्ति शराब पीने, कुछ खाने व मित्रों से मिलने व विचार-विमर्श के लिए आते थे।

7. प्लाटेन: लेटर प्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप प्राप्त की जाती थी। पहले यह बोर्ड काठ का होता था, बाद में यह इस्पात का बनने लगा।

8. प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार: 16वीं शताब्दी में यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च में सुधार का आन्दोलन। इस आन्दोलन से कैथोलिक ईसाई मत के विरोध में कई धाराएँ निकलीं। मार्टिन लूथर किंग प्रोटेस्टेंट सुधारकों में से एक थे।

9. धर्म विरोधी: इन्सान अथवा विचार जो चर्च की मान्यताओं से असहमत हों। मध्य काल में चर्च विधर्मियों अथवा धर्म द्रोह के प्रति कठोर था। उसे लगता था कि लोगों की आस्था, उनके विश्वास पर मात्र उसका अधिकार है जहाँ उसकी बात ही अन्तिम है।

10. इन्कवीजीशन: इसे धर्म अदालत भी कहते हैं। विधर्मियों की पहचान करने एवं दण्ड देने वाली रोमन कैथोलिक संस्था।

11. पंचांग: सूर्य व चन्द्रमा की गति, ज्वार-भाटा के समय और लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने वाला वार्षिक प्रकाशन पंचांग कहलाता है।

12. सम्प्रदाय: किसी धर्म का एक उपसमूह सम्प्रदाय कहलाता है।

13. चेयबुक (गुटका): पॉकेट बुक के आकार की पुस्तकों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द। सामान्यतया इन्हें फेरीवाले बेचते थे। ये गुटका सोलहवीं सदी की मुद्रण क्रान्ति के समय से बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ।

14. उलेमा: इस्लामी कानून व शरियत के विद्वान।

15. निरंकुशवाद: शासन संचालन की एक ऐसी व्यवस्था जिसमें किसी एक व्यक्ति को सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त हो तथा उस पर न संवैधानिक पाबन्दी लगी हो और न ही कानूनी पाबन्दी।

16. फतवा: अनिश्चय अथवा असमंजस की स्थिति में इस्लामी कानून को जानने वाले विद्वान, सामान्यतया मुफ्ती के द्वारा की जाने वाली वैधानिक घोषणा।

17. बिब्लियोथीक ब्ल्यू: फ्रांस में छपने वाली सस्तो मूल्य को छोटी पुस्तकें। इनकी छपाई घटिया कागज पर होती थी तथा ये पुस्तकें नीली जिल्द में बँधी होतीगीं।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

→ औद्योगीकरण का सूत्रपात

  • सन् 1900 में म्यूजिक कंपनी ई.टी.पॉल द्वारा संगीत की एक किताब प्रकाशित की गई जिसकी जिल्द पर ‘नयी सदी के उदय’ (डॉन ऑफ द सेंचुरी) का ऐलान करने वाली तस्वीर दी गई।
  • विश्व स्तर पर विभिन प्रकार की तस्वीरें आधुनिक विश्व की विजय गाथा को प्रस्तुत करती हैं। इस गाथा में आधुनिक विश्व को तीव्र तकनीकी परिवर्तनों, आविष्कारों, मशीनों, कारखानों, रेलवे एवं वाष्पपोतों की दुनिया के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
  • 17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के व्यापारी गाँव में किसानों व कारीगरों को पैसे देकर उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। इस प्रकार की व्यवस्था से शहरों व गाँवों के मध्य एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हो गया।

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→ कारखानों का उदय

  • इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1730 ई. के दशक में कारखानों का खुलना प्रारम्भ हुआ।
  • कपास (कॉटन) नए युग का प्रथम प्रतीक थी।
  • 18वीं शताब्दी में रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल को रूपरेखा पेश की।
  • 19वीं शताब्दी के आरम्भ में कारखाने इंग्लैंड के भूदृश्य का अभिन्न अंग बने।

→ औद्योगिक परिवर्तन की बढ़ती रफ्तार

  • सूती उद्योग व कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग थे।
  • 1840 ई. के दशक में औद्योगीकरण के प्रथम चरण में कपास उद्योग सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। इसके पश्चात् लौह व इस्पात उद्योग इससे आगे निकल गये।
  • न्यूकॉमेन द्वारा बनाए गए भाप के इंजन में सुधार कर जेम्स वॉट गन् 1871 ई. में नए इंजन का पेटेंट करवाया। उसके दोस्त मैथ्यू बूल्टन ने इस मॉडल का उत्पादन किया।
  • महारानी विक्टोरिया के समय में ब्रिटेन में मानवीय श्रम की कोई कमी नहीं थी। अधिकांश उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किये जाते थे। उच्च वर्ग के लोगों (कुलीन व पूंजीपति वर्ग) द्वारा हाथों से बनी वस्तुओं को तरजीह देना इसका मुख्य कारण था।
  • जिन देशों में श्रमिकों की कमी होती थी वहाँ कारखानों के मालिक मशीनों का प्रयोग करते थे।
  • 1840 ई. के दशक के पश्चात् शहरों में निर्माण की गतिविधियों में तीव्र गति से वृद्धि होने से लोगों के लिए नये रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए।

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→ भारतीय वस्त्र उद्योग

  • उद्योगों में मशीनीकरण से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारत के रेशमी व सूती वस्त्रों का ही एकाधिकार रहता था।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित कर व्यापार पर एकाधिकार करना प्रारम्भ कर दिया।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने वस्तु व्यापार में सक्रिय व्यापारियों एवं दलालों को समाप्त करने एवं बुनकरों पर अत्यधिक प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित करने की कोशिश की।
  • कम्पनी ने वेतनभोगी कर्मचारियों (जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था) की नियुक्ति की जो बुनकरों पर निगरानी रखने, माल एकत्रित करने तथा कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने जैसे काम करते थे।
  • 19वीं सदी के प्रारम्भ में ब्रिटेन के वस्तु उत्पादों के निर्यात में अत्यधिक वृद्धि हुई।
  • भारत में मैनचेस्टर का कपड़ा आने से भारत के कपड़ा बुनकरों के समक्ष अपने जीवनयापन की समस्या उत्पन्न हो गई।
  • भारत में प्रथम वस्त्र कारखाना बम्बई (मुम्बई) में 1854 ई. में स्थापित हुआ था।
  • बंगाल में देश की प्रथम जूट मिल 1855 ई. में तथा 1862 ई. में दूसरी मिल शुरू हुई।
  • भारत के प्रारम्भिक उद्यमियों में द्वारकानाथ टैगोर, डिनशॉ पेटिट, जमशेद नुसरवानजी टाटा, सेठ हुकुमचन्द आदि थे।
  • जैसे-जैसे भारतीय व्यापार पर यूरोपीय औपनिवेशिक नियन्त्रण स्थापित होता चला गया वैसे-वैसे भारतीय व्यापारियों का व्यवसाय समाप्त होने लगा। भारत में कारखानों के विस्तार ने मजदूरों की माँग में वृद्धि कर दी।
  • नए मजदूरों की भर्ती के लिए उद्योगपति प्रायः एक जॉबर रखते थे जो मुख्यतः कोई पुराना व विश्वस्त कर्मचारी होता था।

→ औद्योगिक विकास का अनूठापन

  • भारत में कई यूरोपीय कम्पनियों ने ब्रिटिश सरकार से सस्ती कीमत पर जमीन लेकर चाय व कॉफी के बागानों की स्थापना की एवं खनन, नील व जूट व्यवसाय में धन का निवेश किया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् छोटे-छोटे उद्योगों की मात्रा में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा मैनचेस्टर को भारतीय बाजार में पुरानी हैसियत पुनः हासिल नहीं हो पायी।
  • बीसवीं सदी में हथकरघों पर बने कपड़े के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी।

→ विज्ञापन और बाजार

  • ब्रिटिश निर्माताओं ने विज्ञापनों के माध्यम से नये उपभोक्ता उत्पन्न किये।
  • औद्योगीकरण के प्रारम्भ से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार को फैलाने में एवं एक नयी उपभोक्ता संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  • मैनचेस्टर के उद्योगपति भारत में बेचने वाले कपड़ों के बण्डलों पर लेबल (जिस पर ‘मेड इन नचेस्टर’ लिखा होता था) लगाते थे। इससे खरीदारों को कम्पनी का नाम और उत्पादन के स्थान का पता चल जाता था। इसके अलावा लेबल वस्तुओं की गुणवत्ता का भी प्रतीक था।
  • 19वीं शताब्दी के अंत में निर्माताओं ने अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डरों को छपवाना शुरू किया जिन पर देवताओं की तस्वीर छपी होती थी।
  • भारतीय निर्माताओं के विज्ञापन स्वदेशी वस्तुओं के राष्ट्रवादी संदेश के वाहक बन गये थे।

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→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ |

तिथि घटनाएँ
1. 1730 ई. इंग्लैण्ड में सबसे पहले 1730 ई. के दशक में कारखाने खुले।
2. 1764 ई. जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा स्पिनिंग जेनी नामक कताई की मशीन का निर्माण किया गया।
3. 1772 ई. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अफसर हेनरी पतूलो ने भारतीय वस्त्रों की प्रशंसा की।
4. 1780 ई. बम्बई व कलकत्ता का व्यापारिक बन्दरगाहों के रूप में विकास प्रारम्भ हुआ।
5. 1840 है. इस दशक तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में कपास उद्योग ब्रिटेन का सबसे बड़ा उद्योग बना।
6. 1854 ई. बम्बई में प्रथम कपड़ा मिल की स्थापना हुई।
7. 1871 ह. जेम्स वॉट ने न्यूकॉमेन द्वारा बनाये गये भाप के इंजन में सुधार कर नये इंजन का पेटेंट करा लिया।
8. 1874 ई. मद्रास (वर्तमान चेन्नई)में प्रथम कताई एवं बुनाई मिल की स्थापना हुई।
9. 1900 ई. ई. टी. पॉल म्यूजिक कम्पनी द्वारा संगीत की एक पुस्तक का प्रकाशन, जिसके मुख पृष्ठ पर दर्शायी तस्वीर में ‘नई सदी के उदय’ की घोषणा की गयी थी।
10. 1901 ई. उद्योगपति जे. एन. टाटा ने जमशेदपुर में भारत का पहला लौह इस्पात संयन्त्र स्थापित किया।
11. 1917 ई. मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचन्द द्वारा कलकत्ता (कोलकाता) में पहली जूट मिल स्थापित की गयी।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. प्राच्य: भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश। सामान्यतया यह शब्द एशिया के लिए प्रयोग किया जाता है। पश्चिम के देशों की नजर में प्राच्य क्षेत्र पूर्व आधुनिक, पारस्परिक एवं रहस्यमय थे।

2. आदि: किसी वस्तु की प्रथम अथवा प्रारम्भिक अवस्था का संकेत।

3. स्टेपलर: ऐसा व्यक्ति जो देशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है अथवा छाँटता है।

4. कार्डिंग: वह प्रक्रिया जिसमें ऊन या कपास आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता है।

5. फुलर: ऐसा व्यक्ति जो फुल करता है अर्थात् चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है।

6. स्पिनिंग जेनी: जेम्स हरग्रीब्ज द्वारा सन् 1764 ई. में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी। इस मशीन के प्रयोग से श्रमिकों की माँग घट गयी। इस मशीन का एक ही पहिया घुमाने वाला एक श्रमिक अनेक तकलियों को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।

7. बुनकर: कपड़ों की बुनाई करने वाला व्यक्ति।

8. जॉबर: इसे अलग-अलग क्षेत्रों में मिस्त्री या सरदार भी कहा जाता था। यह उद्योगपतियों का पुराना व विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह कारखानों में काम करने के लिए अपने गाँव से लोगों को लाता था। बदले में वह उनसे धन व उपहार लेता था।

9. फ्लाई शटल: रस्सियों एवं पुलियों के माध्यम से चलने वाला एक यांत्रिक औजार, जिसका बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है। यह क्षैतिज धागे (ताना) को लम्बवत् धागे (बाना) में पिरो देती है। इसके आविष्कार से बुनकरों को बड़े करघे चलाना एवं चौड़े अरज का कपड़ा बनाने में बहुत मदद मिली।

10. आदि: औद्योगीकरण-औद्योगीकरण का प्रारम्भिक चरण जिसमें थोक उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए कारखानों में नहीं वरन् विकेन्द्रित इकाइयों में ले जाया जाता था।

11. कॉटेजर: यूरोप में अपने जीवनयापन के लिए साझा ज़मीनों से जलावन की लकड़ी, बोरियाँ, सब्जियाँ, भूसा और चारा आदि बीनकर काम चलाने वाले छोटे किसान।

12. गुमाश्ता: ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए नियुक्त वेतनभोगी कर्मचारी।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

→ ऐतिहासिक यात्राएँ व सिल्क मार्ग

  • प्राचीनकाल से ही यात्री, व्यापारी, पुजारी एवं तीर्थयात्री ज्ञान, आध्यात्मिक शान्ति के लिए अथवा उत्पीड़न/यातनापूर्ण जीवन से बचने के लिए दूर-दूर की यात्राओं पर जाते रहे हैं।
  • प्राचीनकाल में विश्व के दूरस्थ स्थित भागों के मध्य व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्पर्कों का सबसे जीवन्त उदाहरण सिल्क मार्गों के रूप में दिखाई देता है।
  • ‘सिल्क मार्ग’ नाम के इस मार्ग से पश्चिम को भेजे जाने वाले चीनी रेशम (सिल्क) के महत्त्व का पता चलता है।
  • सिल्क मार्ग एशिया के विशाल भू-भागों को एक-दूसरे से जोड़ने के साथ ही एशिया को यूरोप एवं उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना 

→ भोज्य पदार्थों की यात्रा

  • खाद्य-पदार्थों से हमें दूर देशों के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बहुत से उदाहरणों का पता चलता है। माना जाता है कि नूडल्स को यात्री चीन से पश्चिम में ले गये, जहाँ वे इसे स्पैघेत्ती कहते थे।
  • लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद आदि के बारे में भारतीय नहीं जानते थे। ये समस्त खाद्य पदार्थ अमेरिकी इण्डियनों से हमारे पास आये हैं।

→  विजय, बीमारी और व्यापार

  • 16वीं शताब्दी के मध्य तक पुर्तगाली एवं स्पेनिश सेनाओं की विजय का प्रारम्भ हो चुका था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना प्रारम्भ कर दिया था। चेचक जैसे कीटाणु स्पेनिश सैनिकों के सबसे शक्तिशाली हथियार थे जो उनके साथ अमेरिका पहुँचे।
  • यूरोप से आने वाली चेचक की बीमारी धीरे-धीरे सम्पूर्ण अमेरिका महाद्वीप में फैल गयी। यह बीमारी वहाँ भी पहुँच गई जहाँ यूरोपीय लोग पहुँचे ही नहीं थे तथा इसने समस्त समुदायों को समाप्त कर दिया।
  • 19वीं शताब्दी में यूरोप में निर्धनता एवं भूख का साम्राज्य हो जाने के कारण हजारों की संख्या में लोग भागकर अमेरिका जाने लगे।
  • 18वीं शताब्दी तक अमेरिका में अफ्रीका से पकड़कर लाये गये गुलामों को कार्य में लगाकर यूरोपीय बाजारों के लिए कपास व चीनी का उत्पादन किया जाने लगा था।चीन तथा भारत की 18वीं शताब्दी का मध्य गुजरने के बाद भी दुनिया के सबसे धनी देशों में गिनती होती थी।
  • 19वीं शताब्दी में समस्त विश्व तेज़ी से बदलने लगा। आर्थिक, राजनीतिक, तकनीकी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों ने सम्पूर्ण समाजों को परिवर्तित कर दिया।

→  विश्व अर्थव्यवस्था का उदय

  • 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में ब्रिटेन की आबादी के तेजी से बढ़ने से देश में भोजन की माँग भी बढ़ने लगी। फलस्वरूप कृषि उत्पाद महँगे हो गए।
  • बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर ब्रिटिश सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिन कानूनों के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उन्हें ‘कॉर्न लॉ’ कहा गया।
  • कॉर्न लॉ के निरस्त होने पर ब्रिटेन की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए विश्व के विभिन्न भागों से खाद्य पदार्थों का आयात होने लगा।
  • सन् 1890 ई. तक एक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था हमारे समक्ष आ चुकी थी।

→  तकनीक की भूमिका

  • 19वीं शताब्दी में आये विभिन्न परिवर्तनों में रेलवे, यात्रा के जहाज, टेलीग्राफ आदि की बहुत अधिक भूमिका रही।
  • पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गयी जिससे शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं को भी लम्बी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना 

→  उन्नीसवीं सदी के आखिर में उपनिवेशवाद

  • यूरोप के शक्तिशाली देशों ने सन 1885 में बर्लिन में हुई एक बैठक में अफ्रीका के नक्शे पर फुटटे (Scale) से लकीर खींचकर उसे आपस में बाँट लिया।
  • 19वीं शताब्दी के अन्त में उपनिवेशवाद में तीव्रगति से वृद्धि हुई। ब्रिटेन व फ्रांस के साथ-साथ बेल्जियम व जर्मनी नयी औपनिवेशिक ताकतों के रूप में सामने आये।
  • 1890 ई. के दशक के अन्तिम वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी एक औपनिवेशिक ताकत बन चुका था।

→  रिंडरपेस्ट का दौर

  • अफ्रीका में 1890 ई. के दशक में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी बहुतं तीव्र गति से फैली।
  • पशुओं में प्लेग की तरह फैलने वाली छूत की बीमारी से लोगों की आजीविका एवं स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
  • 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोपीय ताकतें विशाल भू-क्षेत्र एवं खनिज भण्डारों को देखकर अफ्रीका महाद्वीप की ओर आकर्षित हुईं।

→  अनुबंधित श्रमिक अथवा गिरमटिया मजदूर

  • 19वीं सदी में भारत व चीन से लाखों की संख्या में मजदूरों को बागानों, खदानों तथा सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था। इन श्रमिकों को विशेष प्रकार के अनुबन्ध के तहत ले जाया जाता था।
  • भारत में अनुबन्धित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह (त्रिनिदाद, गुयाना व सूरीनाम), मॉरीशस एवं फिजी आदि में ले जाया जाता था। इन मजदूरों को ‘गिरमिटिया मजदूर’ कहा जाता था।
  • यूरोपीय उपनिवेशकारों के पीछे-पीछे व्यापारी एवं महाजन भी अफ्रीका पहुँच गये और उन्होंने वहाँ अपना व्यापार प्रारम्भ कर दिया।

→  भारतीय व्यापार, उपनिवेशवाद व वैश्विक व्यवस्था

  • उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय बाजारों में ब्रिटिश औद्योगिक उत्पादों की बहुलता हो गयी। इसके अतिरिक्त भारत से ब्रिटेन एवं शेष विश्व को भेजे जाने वाले खाद्यान्न व कच्चे मालों के निर्यात में भी वृद्धि हुई।
  • भारत के साथ ब्रिटेन हमेशा ‘व्यापार अधिशेष’ की स्थिति में रहता था अर्थात् ब्रिटेन को आपसी व्यापार में हमेशा लाभ रहता था।

→  प्रथम विश्व युद्ध

  • प्रथम महायुद्ध मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया था लेकिन इसका प्रभाव समस्त विश्व पर देखा गया।
  • अगस्त 1914 में शुरू हुआ प्रथम विश्व युद्ध पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था जिसमें बड़ी मात्रा में मशीनगनों, टैंकों, हवाई जहाजों एवं रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया गया। इसमें 90 लाख से अधिक लोग मारे गए तथा 2 करोड़ घायल हुए।
  • प्रथम विश्व महायुद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में पहले जैसी एकाधिकार वाली स्थिति प्राप्त करना ब्रिटेन के लिए बहुत मुश्किल हो गया।

→  अमेरिकी अर्थव्यवस्था का बदलाव

  • महायुद्ध के बाद कुछ समय के लिए तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लगा लेकिन 1920 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था विकास के मार्ग पर चल पड़ी।
  • सन् 1920 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में वृहत् स्तर के उत्पादन का चलन प्रारम्भ हो गया था।
  • सन् 1923 में अमेरिका शेष विश्व की पूँजी का निर्यात पुनः करने लगा तथा वह दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता देश बन गया।
  • अमेरिका द्वारा आयात एवं पूँजी निर्यात ने यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं को भी संकट से उबरने में मदद की।

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→  वैश्विक महामंदी७

  • वैश्विक आर्थिक महामन्दी की शुरुआत 1929 ई. से हुई और यह संकट 1930 के दशक के मध्य तक बना रहा।
  • महामन्दी के दौरान विश्व के अधिकांश हिस्सों में उत्पादन, रोजगार, आय एवं व्यापार में बहुत अधिक गिरावट दर्ज की गई। महामन्दी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक प्रभावित किया। इससे आयात-निर्यात में कमी देखी गयी तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने लगी। इससे शहरी लोगों की बजाय किसानों और काश्तकारों का बहुत अधिक नुकसान हुआ।
  • युद्धोत्तर काल (द्वितीय विश्वयुद्ध के समय) में पुनर्निर्माण का कार्य अमेरिका एवं सोवियत संघ की देख-रेख में सम्पन्न
    हुआ।

→  ब्रेटन-वुड्स संस्थान

  • युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य औद्योगिक विश्व में आर्थिक निकटता एवं पूर्ण रोजगार बनाये रखा जाना था, इस हेतु जुलाई 1944 ई. में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी।
  • सदस्य देशों ने विदेश व्यापार में घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम. एफ.) की स्थापना की।
  • युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन का प्रबन्ध करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) का गठन किया। इसलिए आई.एम.एफ तथा विश्व बैंक को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटन वुड्स ट्विन (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तान) भी कहते हैं। इन दोनों संस्थानों ने 1947 में औपचारिक रूप से कार्य करना शुरू किया।
  • ब्रेटन वुड्स व्यवस्था से पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों एवं जापान के लिए व्यापार और आय में वृद्धि के एक युग का सूत्रपात हुआ।

→  अनौपनिवेशीकरण व स्वतंत्रता

  • द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भी विश्व का एक बड़ा भाग यूरोपीय औपनिवेशिक शासन के अधीन था।
  • अनौपनिवेशीकरण के कई वर्ष बीत जाने के पश्चात् भी अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं पर भूतपूर्व औपनिवेशिक शक्तियों का ही नियन्त्रण बना रहा।
  • पंचास व साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तीव्र प्रगति से कोई लाभ नहीं होने पर अधिकांश विकासशील देशों ने एक नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रभावी (New International Economic Order-NIEO) की माँग उठायी तथा समूह-77 (जी-77) के रूप में एकजुट हो गए।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ

तिथि घटनाएँ
1. 1840 ई. 1840 ई. के दशक के मध्य में किसी बीमारी के कारण आयरलैण्ड में आलू की फसल खराब हो गयी, जिससे लाखों लोग भुखमरी के कारण मौत के मुँह में चले गये।
2. 1870 ई. 1885 ई. 1870 ई. के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था।
3. 1890 ई. 1885 ई. में यूरोप के ताकतवर देशों की बर्लिन में एक बैठक हुई जिसमें अफ्रीका के मानचित्र पर सीधी लकीरें खींचकर उसको आपस में बाँट लिया गया था।
4. 1890 ई. 1890 ई. के दशक के अन्तिम वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी औपनिवेशिक शक्ति बन गया था।
5. 1914 ई. 1890 ई. के दशक में अफ्रीका में पशुओं की रिंडरपेस्ट नामक बीमारी फैली। प्रथम विश्वयुद्ध का प्रारम्भ।
6. 1920 ई. 1920 ई. के दशक में आयात एवं निर्यात क्षेत्र में आये उछाल से अमेरिकी सम्पन्नता का आधार पैदा हो चुका था।
7. 1929 ई. आर्थिक महामन्दी की शुरुआत।
8. 1944 ई. अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्व रोजगार बनाये रखने हेतु संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति।
9. 1947 ई. विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने औपचारिक रूप से कार्य करना प्रारम्भ किया।

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→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. कौड़ियाँ: प्राचीन काल में पैसे या मुद्रा के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएँ।

2. सिल्क रूट (रेशम माग): ये इस प्रकार के मार्ग थे जो न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने का कार्य करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से जोड़ते थे। ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही सामने आ चुके थे।

3. कॉर्न लॉ: जो कानून ब्रिटेन की सरकार को मक्का का आयात करने से प्रतिबन्धित करते थे, उन्हें प्रायः कॉर्न लॉ के नाम से जाना जाता था।

4. गिरमिटिया मजदूर: ऐसे अनुबन्धित बन्धुआ मजदूर जिन्हें मालिक एक निश्चित समयावधि के लिए काम करने की शर्त पर किसी भी नये देश में नियुक्त करते थे।

5. वीटो निषेधाधिकार: इस अधिकार के सहारे एक ही सदस्य की असहमति किसी भी प्रस्ताव के निरस्त करने का आधार बन जाती है।

6. आयात शुल्क: किसी भी दूसरे देश से आने वाली वस्तुओं पर वसूल किया जाने वाला शुल्क। यह कर या शुल्क उस जगह लिया जाता है जहाँ से वह वस्तु देश में आती है यानि सीमा पर, हवाई अड्डे पर अथवा बन्दरगाह पर।

7. विनिमय दर: इस व्यवस्था के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा के लिए विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं को परस्पर जोड़ा जाता है।

8. स्थिर विनिमय दर: जब विनिमय दर स्थिर होती हैं तथा उसमें आने वाले उतार-चढ़ावों को नियन्त्रित करने के लिए सरकारों को हस्तक्षेप करना पड़ता है तो उस विनिमय दर को स्थिर विनिमय दर कहा जाता है।

9. लचीली विनिमय दर: इसे परिवर्तनशील विनिमय दर भी कहते हैं। इस तरह की विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में विभिन्न मुद्राओं की माँग या आपूर्ति के आधार पर और सिद्धान्ततः सरकारों के हस्तक्षेप के बिना घटती-बढ़ती रहती है।

10. उदारीकरण: सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष अथवा भौतिक नियन्त्रणों से अर्थव्यवस्था की मुक्ति को उदारीकरण के नाम से जाना जाता है।

11. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: एक साथ अनेक देशों में व्यवसाय करने वाली कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहा जाता है। इन्हें बहुराष्ट्रीय निगम भी कहते हैं।

12. विश्व बैंक: यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जो अपने सदस्य राष्ट्रों को विकास के उद्देश्यों के लिए वित्तीय सहयोग प्रदान करती है।

13. असेम्बली लाइन उत्पादन: यह एक प्रकार की उत्पादन प्रक्रिया है जिसमें परिवर्तनीय भागों (पुर्जी) को जोड़कर वस्तु को अन्तिम रूप में तैयार किया जाता है।

14. वाणिज्य अधिशेष: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें निर्यातों का मूल्य आयातों से अधिक होता है।

15. वैश्वीकरण: वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ है-स्वयं की अर्थव्यवस्था को विश्व समुदाय के साथ जोड़ना वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है जिससे वस्तुओं और क्रेताओं, प्रौद्योगिक पूँजी तथा श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण को भूमण्डलीकरण के नाम से भी जाना जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शोषण का मूल कारण है
(क) बेरोजगारी
(ख) अशिक्षा
(ग) गरीबी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अशिक्षा

2. कोपरा (COPRA) क्या है?
(क) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम
(ख) उपभोक्ता आन्दोलन
(ग) उपभोक्ता दल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम

3. अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया, वह कानून है
(क) सूचना पाने का अधिकार
(ख) चुनने का अधिकार
(ग) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) सूचना पाने का अधिकार

4. 20 लाख से लेकर एक करोड़ तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों की शिकायतें किसमें प्रस्तुत की जा सकती हैं?
(क) जिलास्तरीय न्यायालय
(ख) राज्यस्तरीय न्यायालय
(ग) राष्ट्रीयस्तर की अदालतें
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) राज्यस्तरीय न्यायालय

5. एगमार्क किन वस्तुओं के लिए प्रामाणिक चिह्न है?
(क) उत्पादित सामान
(ख) स्वर्ण व चाँदी
(ग) खाद्य-पदार्थ
(घ) उत्पादित मशीन
उत्तर:
(ग) खाद्य-पदार्थ

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6. भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब मनाया जाता है?
(क) 24 सितम्बर
(ख) 24 दिसम्बर
(ग) 5 सितम्बर
(घ) 21 जून।।
उत्तर:
(क) 24 सितम्बर

रिक्त स्थानपूर्ति

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. ………….के रूप में हम वस्तुओं तथा सेवाओं को कम करते हैं।
उत्तर:
उपभोक्ता,

2. भारत में …………के दशक में व्यवस्थित उपभोक्ता आन्दोलन का उदय हुआ?
उत्तर:
1960,

3. भारत सरकार ने…………सूचना पाने का अधिकार लागू किया।
उत्तर:
अक्टूबर, 2005,

4. भारत से प्रतिवर्ष………..को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
उत्तर:
दिसम्बर

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ताओं की बाजार में भागीदारी कब होती है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं की बाजार में भागीदारी तब होती है जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं और सेवाओं को खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
उपभोक्ताओं का शोषण क्यों होता रहता है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं का शोषण इसलिए होता रहता है कि वे या तो अपने अधिकारों के बारे में जानते नहीं या जानते हैं तो वे उनका प्रयोग नहीं करते।

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प्रश्न 3.
अधिकारों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता को किसका निर्वहन करना आवश्यक है?
उत्तर:
अधिकारों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता को अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ किस कारण हुआ?
उत्तर:
उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
कोपरा (COPRA)।

प्रश्न 6.
‘सूचना का अधिकार’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार द्वारा निर्मित एक कानून जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएँ प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 7.
उपभोक्ता के किन्हीं दो अधिकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सुरक्षा का अधिकार,
  2. सूचना पाने का अधिकार ।

प्रश्न 8.
यदि व्यापारी द्वारा उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई गई है, तो किस उपभोक्ता अधिकार के अन्तर्गत वह नुकसान की भरपाई के लिए उपभोक्ता न्यायालय जा सकता है?
उत्तर;
सुरक्षा का अधिकार।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित की गई अदालतों के नाम लिखिए।
उत्तर;

  1. जिला स्तर की उपभोक्ता अदालत,
  2. राज्य स्तर की उपभोक्ता अदालत,
  3. राष्ट्र स्तर की उपभोक्ता अदालत।

प्रश्न 10.
बाजार से वस्तुएँ खरीदते समय उपभोक्ता को आई.एस.आई. या एगमार्क के शब्द चिह्न क्यों देखने चहिए?
उत्तर:
क्योंकि यह वस्तु की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं।

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प्रश्न 11.
विद्युत उपकरणों एवं खाद्य वस्तुओं पर अंकित शब्द चिह्न और प्रमाणकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विद्युत उपकरण ISI चिद्न। खाद्य वस्तुओं पर AGMARK चिह्न।

प्रश्न 12.
मान लीजिए कि आपको बिजली का सामान (उपकरण) खरीदना है, तो उस सामान पर गुणवत्ता के लिए आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखोगे ?
उत्तर:
विद्युत उपकरणों पर हम ISI चिह्न देखेंगे।

प्रश्न 13.
कल्पना कीजिए कि आपको यात्रा के ौरान पीने के लिए पानी की पैक बोतल खरीदनी पड़ी। इसकी गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त होने के लिए आप कौन-सा शब्द चिह्न (Logo) देखना चाहोगे ?
उत्तर:
पानी की बोतल पर हम AGMARK का चिह्न देखेंगे।

प्रश्न 14.
मान लीजिए कि आपके माता-पिता आपके साथ सोने के आभूषण खरीदना चाहते हैं, तो इसके लिए आप आभूषणों पर कौन-सा शब्द चिह्न (लोगो) देखना चाहोगे?
उत्तर:
हॉलमार्क।

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प्रश्न 15.
भारत में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि 1986 में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया था।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बाजार में हमारी भागीदारी कैसे होती है?
उत्तर:
बाजार में हमारी भागीदारी निम्न प्रकार से होती है

  1. बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है।
  2. वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादक के रूप में हम कृषि, उद्योग या सेवा में से किसी क्षेत्रक में कार्यरत हो सकते हैं।
  3. उपभोक्ता के रूप में हमारी भागीदारी तब होती है जब हम अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
चयन के अधिकार को संक्षेप में उदाहरण सहित बताइए।
अथवा
उपभोक्ता के ‘चुनने का अधिकार’ का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी भी उपभोक्ता को जो कि किसी सेवा को प्राप्त करता है, चाहे वह किसी भी आयु एवं लिंग का हो तथा किसी भी प्रकार की सेवा प्राप्त करता हो, उसको सेवा प्राप्त करते हुए हमेशा चयन का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि विक्रेता हमें कहता है कि एक दंत मंजन के साथ कुछ खरीदना पड़ेगा तो यह हमारे चयन के अधिकार का उल्लंघन होगा। अत: हम अपने ‘चयन (चुनने) के अधिकार’ का इस्तेमाल करते हुए केवल दंत मंजन ही खरीद सकते हैं।

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प्रश्न 3.
क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार को संक्षेप में बताइए।
अथवा
उपभोक्ताओं के लिए ‘क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार’ के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता को अनुचित व्यवसाय कार्यों एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार होता है। यदि उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचायी जाती है तो उसे हुई क्षति की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए एक सरल व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 4.
प्रतिनिधित्व के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हमें उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालयों में जाने का अधिकार है। हमारे हितों को उपयुक्त मंचों पर उचित महत्त्व मिलना चाहिए। यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में निरस्त कर दिया जाता है तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके पश्चात् राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है।

प्रश्न 5.
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति के समर्थन में कोई तीन तर्क दीजिए। उत्तर–भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति के समर्थन में प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं

  1. भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ उपभोक्ता निपटारे के लिए अलग अदालतें हैं।
  2. हमारे देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं जिसमें से 20-25 संगठन ऐसे हैं जो सुसंगठित एवं अच्छी कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं।
  3. भारत में उपभोक्ता ज्ञान धीरे-धीरे फैल रहा है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ता आंदोलन के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ को पारित करने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आंदोलन के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं

  1. उपभोक्ता आंदोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवहारों में सम्मिलित होते हैं।
  2. 1980 के दशक से पहले बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक जब तक उपभोक्ता एवं विशेष ब्रांड के उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो सामान्यत: वह उस ब्रांड उत्पाद को एवं उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था।
  3. यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते समय वह सावधानी बरते विक्रेता का कोई उत्तरदायित्व नहीं है।
  4. अनुचित व्यवसाय कार्यों, अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी एवं कालाबाजारी ने भी उपभोक्ता आन्दोलन को प्रोत्साहन प्रदान किया।

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प्रश्न 2.
उपभोक्ता आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं? समझाइए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में सम्मिलित होते थे। बाजार में उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह मान लिया गया था कि वस्तु या सेवा खरीदते समय सावधान रहना उपभोक्ता की जिम्मेदारी है।

सन् 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था के दिशा-निर्देश को अपनाया। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा हेतु उपयुक्त तरीके अपनाने हेतु राष्ट्रों के लिए एवं सेवा करने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर करने हेतु उपभोक्ता वकालत दलों के लिए एक हथियार था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह उपभोक्ता आन्दोलन का आधार बना।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता अधिकार के रूप में ‘सुरक्षा का अधिकार’ को उदाहरण सहित संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत सी वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करते हैं तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार प्राप्त होता है क्योंकि ये जीवन व सम्पत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा विनियमों एवं नियमों का पालन करें। ऐसी बहुत सी वस्तुएँ एवं सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से विशेष सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए प्रेशर कुकर में एक सेफ्टी वाल्व होता है जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना का कारण बन सकता है। सेफ्टी वाल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता को प्राप्त किन्हीं तीन अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 24 दिसम्बर, 1986 में पारित हुआ था। उपभोक्ता अधिकार उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं।

1. सुरक्षा का अधिकार- इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को ऐसे माल के क्रय:
विक्रय के विरुद्ध संरक्षण पाने का अधिकार प्रदान किया गया है, जो जीवन व सम्पत्ति के लिए हानिकारक हैं। उपभोक्ता को किसी भी वस्तु या सेवा के क्रय या उपभोग से बीमार होने, चोट लगने या किसी भी व्यक्ति के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से होने वाली हानि के विरुद्ध सुरक्षा पाने का अधिकार है।

2. सूचना पाने का अधिकार:
उपभोक्ता को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि उसे माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्यों के बारे में सूचना प्रदान की जाये। यदि ये सूचनाएँ माल के उत्पादक द्वारा नहीं लिखी गयी हैं तो उपभोक्ता इन सूचनाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखता है। आज सरकार द्वारा प्रदत्त विविध सेवाओं को उपयोगी बनाने के लिए सूचना पाने के अधिकार का दायरा बढ़ा दिया गया है। अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने एक नया कानून लागू किया जो RTI या सूचना पाने के अधिकार के नाम से जाना जाता है।

3. चुनाव का अधिकार:
इस अधिकार के तहत उपभोक्ता बाजार में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से किसी का भी चयन कर सकता है। वह किसी भी व्यवसायी द्वारा उत्पादित माल की किसी भी किस्म को अपनी इच्छा से पसन्द कर सकता है। …

4. क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार:
इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को व्यवसायी द्वारा किये जाने वाले प्रतिबन्धात्मक एवं अनुचित व्यवहार के कारण होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार दिया गया है।

5. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:
इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को वस्तुओं, सेवाओं एवं उनके उपयोग की विधि आदि के सम्बन्ध में जानकारी या शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होता है। यह अधिकार उपभोक्ताओं को जागरूक बने रहने के लिए ज्ञान तथा क्षमता प्रदान करने का अधिकार है।

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प्रश्न 5.
सूचना का अधिकार क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उपभोक्ताओं के लिए ‘सूचना पाने का अधिकार’ (आर.टी.आई.) के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता को खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है। इसके अन्तर्गत माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्यों आदि की सूचना सम्मिलित है। यदि ये सूचनाएँ माल के उत्पादक द्वारा नहीं लिखी गयी हैं तो उपभोक्ता इन सूचनाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखता है।

यह अधिकार उपभोक्ताओं को इसलिए दिया गया है ताकि विक्रेता द्वारा धोखा दिया जाने पर उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार ने सूचना पाने के अधिकार को एक कानून के रूप में लागू किया। यह अधिकार भारतीय नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यालयों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है। इसे RTI या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 6.
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार का आप किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं?
अथवा
उपभोक्ता अपने ‘क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार’ का उपयोग किस प्रकार कर सकते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उपभोक्ता को अनुचित व्यवसाय कार्यों एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार होता है। यदि उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचायी जाती हैं तो उसे हुई क्षति की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए एक सरल व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है। उदाहरण-रामप्रसाद ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए अपने गाँव एक मनीआर्डर भेजा।

उसकी पुत्री को जब इन पैसों की आवश्यकता थी, तब पैसे पोस्ट ऑफिस में जाकर मनीआर्डर के बारे में पूछताछ की लेकिन वहाँ से उसे कोई 10 सन्तोषप्रद जबाव नहीं मिला। तत्पश्चात् रामप्रसाद अपने जिले की उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराते हैं तथा आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं। उपभोक्ता अदालत ने निर्धारित तिथि को दोनों पक्षों के तर्क सुनकर रामप्रसाद के पक्ष में फैसला देते हैं तथा पोस्ट ऑफिस से मनीआर्डर की राशि मय ब्याज के रामप्रसाद को उपलब्ध करवाते हैं। इस प्रकार हम भी अनुचित व्यवसाय कार्यों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रश्न 7.
उपभोक्ता संरक्षण परिषद क्या है? ये उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु क्या-क्या सेवाएं प्रदान करते हैं?
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन ने विभिन्न ऐच्छिक संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया है। उन्हें सामान्य तथा उपभोक्ता अदालत अथवा उपभोक्ता संरक्षण परिषद के नाम से जाना जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण परिषद उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करती हैं

  1. ये उपभोक्ताओं को जानकारी देते हैं कि किस प्रकार उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज करायें।
  2. सामान्यतः ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
  3. वें जनता में उपभोक्ता के अधिकारों एवं कर्त्तव्य को प्रति उन्हें जागरूक करने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए स्थापित न्यायिक तंत्र को समझाइए।
अथवा
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र किस प्रकार स्थापित किया गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए कोपरा (उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986) के अन्तर्गत जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गई है। जिला स्तर के न्यायालय को जिला केन्द्र भी कहते हैं। यह 20 लाख तक दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करता है।

राज्य स्तरीय अदालत को राज्य आयोग भी कहते हैं। यह 20 लाख से 1 करोड़ तक के विवादों पर विचार करते हैं। राष्ट्रीय स्तर की अदालत को राष्ट्रीय आयोग भी कहते हैं। यह 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारियों से सम्बन्धित मुकदमों को देखती है। यदि कोई मुकदमा जिला केन्द्र से खारिज हो जाता है तो उपभोक्ता राज्य आयोग में तथा उसके बाद राष्ट्रीय आयोग में भी अपील कर सकता है।

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प्रश्न 9.
भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल क्यों होती जा रही है ? कारण दीजिए।
अथवा
भारत में उपभोक्ता शिकायतों की निवारण प्रक्रिया किस प्रकार जटिल, खर्चीली और समयसाध्य साबित हो रही है? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समयसाध्य साबित हो रही है।” इस समस्या के समाधान के लिए किन्हीं तीन कारकों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया किस प्रकार जटिल, खर्चीली और समय-साध्य हो रही है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया निम्न कारणों में जटिल होती जा रही है

  1. उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया खर्चीली एवं समयसाध्य साबित हो रही है।
  2. कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमे अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने एवं आगे बढ़ने आदि में बहुत अधिक समय लेते हैं।
  3. अधिकांश क्रेताओं को खरीददारी के समय विक्रेताओं द्वारा रसीद नहीं दी जाती। ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना, आसान नहीं होता। इसके अतिरिक्त बाजार में अधिकांश खरीदारियाँ छोटी फुटकर दुकानों से होती हैं।
  4. श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद विशेषकर असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार बाजार के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता है।
    पभोक

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी कारक कौन-कौन से हैं? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं

  1. भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म अनैतिक एवं अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
  2. देश में अत्यधिक खाद्य पदार्थों की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों में एवं तेलों में मिलावट के कारण से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म हुआ।
  3. 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बन्धित आलेखों एवं प्रदर्शनों के आयोजन का कार्य करने लगी थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ एवं राशन की दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर निगरानी रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाये।
  4. पिछले कुछ वर्षों से भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए हुआ कि. व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण के अनेक मामले लगातार हमारे समक्ष आते जा रहे हैं।
  5. उपभोक्ता आन्दोलन वृहत स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ एवं अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों एवं सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया जिसे उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के नाम से जाना जाता है। 24 दिसम्बर, 1986 को भारत की संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया जो कोपरा (COPRA) नाम से जाना जाता है।
  6. कोपरा के अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरों या एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 2.
क्या कोपरा (उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम) प्रभावकारी हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क कीजिए।
उत्तर:
हाँ, कोपरा प्रभावकारी है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  1. कोपरा (COPRA) अधिनियम ने केन्द्र और राज्य सरकारों में उपभोक्ता मामले के अलग विभागों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा की है।
  2. विज्ञापनों के माध्यम से सरकार नागरिकों को उपभोक्ता सुरक्षा सम्बन्धी कानूनी प्रक्रिया के बारे में अवगत कराती है, जिससे नागरिक कानूनों का प्रयोग कर सकें।
  3. जब हम विभिन्न वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते समय, उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे, तब हम अच्छे और बुरे में फर्क करने तथा श्रेष्ठ का चुनाव करने में सक्षम होंगे। कोपरा के माध्यम से इस प्रकार की जागरूकता का विकास हुआ है।
  4. एक जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए निपुणता और ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है। हम अपने अधिकारों के प्रति कैसे सजग रहें इसके लिए उपभोक्ता कानून बनाये गये हैं।
  5. कोपरा के माध्यम से विभिन्न उपभोक्ता अदालतों एवं मंचों का गठन किया गया है जिससे उपभोक्ता आसानी से एवं कम खर्च में न्याय प्राप्त कर सकते हैं।
  6. अब उपभोक्ता की तरफ से कोई उपभोक्ता संगठन भी उत्पाद की शिकायत करके क्षतिपूर्ति दिला सकता है।
  7. कोपरा के द्वारा अब उपभोक्ता वस्तु के खराब होने पर आसानी से क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रश्न 3.
उपभोक्ता का शोषण किस प्रकार किया जाता है? इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने क्या किया है?
उत्तर:
बाजार में उपभोक्ताओं का निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है

  1. विक्रेता प्रायः वस्तुओं की उचित ढंग से माप-तौल नहीं करते तथा माप-तौल में कमी करते हैं।
  2. कई अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते हैं।
  3. बाजार में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है।
  4. कई बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत या अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं।

उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा निर्मित 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act, COPRA) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपर्ति की व्यवस्था की गई है। उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता-विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में त्रिस्तरीय न्यायिक व्यवस्था है

जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता मंच (फोरम) की स्थापना की गयी है। यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है। इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए गए निवेश को क्या कहते हैं?
(क) उत्पादन
(ख) व्यय
(ग) वितरण
(घ) विदेशी निवेश
उत्तर:
(घ) विदेशी निवेश

2. कारगिल फूड्स किस देश की बहुराष्ट्रीय कम्पनी है?
(क) अमेरिका
(ख) भारत
(ग) फ्रांस
(घ) कनाडा
उत्तर:
(क) अमेरिका

3. विदेशी व्यापार किनके मध्य होता है?
(क) दो देशों के मध्य
(ख) दो नगरों के मध्य
(ग) दो गाँवों के मध्य
(घ) दो प्रदेशों के मध्य
उत्तर:
(क) दो देशों के मध्य

4. देशों के तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
(क) उदारीकरण
(ख) वैश्वीकरण
(ग) शहरीकरण
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) वैश्वीकरण

5. तत्काल इलेक्ट्रॉनिक डाक किसके द्वारा भेजी जा सकती है?
(क) डाकघर:
(ख) वायु परिवहन
(ग) बहुराष्ट्रीय निगम
(घ) इण्टरनेट
उत्तर:
(घ) इण्टरनेट

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6. एक ऐसा संगठन जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है
(क) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(ख) विश्व व्यापार संगठन
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) विश्व व्यापार संगठन

7. सर्वप्रथम विश्व व्यापार संगठन किसके द्वारा शुरू हुआ?
(क) विकसित देश
(ख) विकासशील देश
(ग) अल्प-विकसित देश
(घ) निर्धन देश
उत्तर:
(क) विकसित देश

8. वैश्वीकरण से सर्वाधिक लाभान्वित हुए हैं।
(क) ग्रामीण मजदूर
(ख) शहरी शिक्षित व्यक्ति
(ग) धनी वर्ग के उपभोक्ता
(घ) ये सभी.
उत्तर:
(ग) धनी वर्ग के उपभोक्ता

9. वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव में सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं
(क) वस्त्र निर्यातक
(ख) श्रमिक
(ग) धनिक वर्ग
(घ) बहुराष्ट्रीय कम्पनी
उत्तर:
(क) वस्त्र निर्यातक

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. परिसम्पत्तियों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा…………. कहलाती है।
उत्तर:
निवेश,

2. देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना …………. कहलाता है।
उत्तर:
वैश्वीकरण,

3. वैश्वीकरण से अनेक………….एवं श्रमिक प्रभावित हुए है।
उत्तर:
छोटे उत्पादक,

4. ……………… का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तौर-तरीकों के सरल बनाना है।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन।

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपेक्षाकृत नवीन परिघटना कौन-सी है?
उत्तर:
हमारे बाजारों में वस्तुओं के बहुव्यापी विकल्प अपेक्षाकृत नवीन परिघटना है।

प्रश्न 2.
बीसर्वीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन की क्या मुख्य विशेषता थी?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन देश की सीमाओं के अन्दर तक ही सीमित था।

प्रश्न 3.
भारत में आयात-निर्यात का क्या स्वरूप था?
उत्तर:
भारत से कच्चा माल तथा खाद्य पदार्थों का निर्यात होता था और तैयार वस्तुओं का आयात होता था।

प्रश्न 4.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है, बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहलाती है।

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प्रश्न 5.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किन प्रदेशों में अपने कार्यालय व उत्पादन के कारखाने स्थापित करती हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय व उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम व अन्य संसाधन मिल सकते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-सा देश सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है?
उत्तर:
चीन सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
निवेश क्या है?
अथवा
निवेश का अर्थ लिखिए।
अथवा
निवेश और विदेशी निवेश में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
निवेश-परिसम्पत्तियों; जैसे – भूमि, भवन, मशीन व अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की मुद्रा को निवेश कहते हैं। विदेशी निवेश-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किया गया निवेश विदेशी निवेश कहलाता है।

प्रश्न 8.
‘वैश्वीकरण’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका कौन निभा रहा है?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

प्रश्न 10.
व्यापार अवरोधक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशों से होने वाले आयात पर लगने वाले प्रतिबन्ध व्यापार अवरोधक कहलाते हैं।

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प्रश्न 11.
सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग किसलिए कर सकती हैं?
उत्तर:
सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती करने और देश में किस प्रकार की वस्तुएँ कितनी मात्रा में आयात होनी चाहिए, यह निर्णय करने के लिए कर सकती हैं।

प्रश्न 12.
उदारीकरण क्या है?
अथवा
उदारीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 13.
कोटा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या पर एक सीमा तय कर देती है, जिसे ‘कोटा’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के कितने देश सदस्य हैं?
उत्तर:
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के 164 देश सदस्य हैं।

प्रश्न 15.
किस देश में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोग उत्पादन एवं दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए सरकार से बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोग सरकार से बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 16.
किन लोगों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है?
उत्तर:
उत्पादकों एवं श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रश्न 17.
विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने किन कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति प्रदान की है?
उत्तर:
विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार ने श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति प्रदान की है।

प्रश्न 18.
विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए किन्हीं दो कदमों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना।
  2. सरकार द्वारा श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति देना।

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण ने किस क्षेत्र वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सृजन किया है?
उत्तर:
वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कम्पनियों विशेषकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सुजन किया है।

प्रश्न 20.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में अपने ग्राहक देखभाल केन्द्र क्यों स्थापित कर रही हैं?
उत्तर:
क्योंकि भारत में अंग्रेजी बोलने वाले शिक्षित युवक कम वेतन पर उपलब्ध हैं।

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प्रश्न 21.
वैश्वीकरण ने किस प्रकार छोटे उत्पादकों के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी की है?
उत्तर:
छोटे उत्पादकों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सस्ती दर पर वस्तुएँ उत्पादित कर रही हैं।

प्रश्न 22.
न्यायसंगत वैश्वीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसर प्रदान करेगा और यह सुर्निश्चित भी करेगा कि वैश्वीकरण से प्राप्त लाभ में सभी की हिस्सेदारी हो।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या आशय है? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से आशय-बहुराष्ट्रीय कम्पनी वह है जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है। विशेषताएँ

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनी उन देशों में अपने कार्यालय व उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती है, जहाँ उसे सस्ता श्रम व अन्य संसाधन मिल सकते हैं।
  2. उत्पादन लागत में कमी करने एवं अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ऐसा करती हैं।

प्रश्न 2.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किन स्थितियों में किसी देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ निम्नलिखित स्थितियों में किसी देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं

  1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं, जो बाजार के समीप हो।
  2. जहाँ कम लागत पर कुशल श्रम व अकुशल श्रम उपलब्ध हो।
  3. जहाँ उत्पादन के अन्य तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
  4. जहाँ सरकारी नीतियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अनुकूल हों।

प्रश्न 3.
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को क्या लाभ होता है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को क्या लाभ होते हैं?
अथवा
बहराष्ट्रीय कम्पनियों के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को दोहरा लाभ होता है, जो निम्नलिखित है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अतिरिक्त निवेश के लिए धन प्रदान कर सकती हैं; जैसे-तीव्र उत्पादन हेतु मशीन खरीदना।
  2. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ ला सकती हैं।

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प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के पश्चात भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर क्यों प्रतिबन्ध लगा रखा था?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबन्ध उत्पादकों को विदेशी दिर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए लगाया। सन् 1950 एवं 1960 के दशक में उद्योगों का उदय हो रहा था। इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती इसलिए भारत ने केवल अनिवार्य वस्तुओं; जैसे-मशीनरी, उर्वरक एवं पेट्रोलियम के आयातों की ही अनुमति दी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायक होता है? समझाइए।
अथवा
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं वाले बाज़ारों को एकीकृत करता है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार दूसरे देशों में बाज़ारों को सहूलियत देते हैं। परन्तु हर देश उन्हीं वस्तुओं का आयात करता है जिनका निर्माण वह अपने देश में नहीं करता या उनके देश में उनका उत्पादन कम है। इसी तरह निर्यात भी उन वस्तुओं का किया जाता है जो अपने देश में ज़रूरत से अधिक हों या दूसरे देशों के मुकाबले उनका उत्पादन सस्ते दामों पर अपने देश में किया जा रहा हो।

सामान्यतः विदेश व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। विभिन्न बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं । इस प्रकार विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या उनके एकीकरण में सहायक होता है।

उदाहरण के लिए भारत में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग उपकरणों का बहुतायत में उत्पादन होता है। विश्व के विभिन्न देशों में इन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, यदि वे इनकी माँग करते हैं। दूसरी तरफ भारत में खाद्य तेल, खनिज तेल व जीवन रक्षक दवाइयों की कमी भी है तो ये वस्तुएँ भारत में विभिन्न देशों से आयात की जाती हैं। इस प्रकार विदेश व्यापार से विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में सहायता मिलती है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की क्या भूमिका है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के किन्हीं तीन लाभों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के फलस्वरूप भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  2. देश में अनेक उद्योगों की स्थापना होने से देश का तीव्र औद्योगिक विकास हुआ है।
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादन में नवीन तकनीकों का प्रयोग करने से देश में नवीन तकनीकी का आगमन हुआ है।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश में अनेक उद्योगों की स्थापना कर रही हैं जिसमें लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है।
  5. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अच्छी गुणवत्तायुक्त वस्तुएँ उपलब्ध करायी जा रही हैं, इसके फलस्वरूप भारतीय उपभोक्ताओं के समक्ष अनेक विकल्प उपलब्ध हो गये हैं।

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प्रश्न 3.
“सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है।” उपयुक्त उदाहरण देकर कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को संक्षेप में बताइए।
अथवा
वैश्वीकरण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका को किन्हीं तीन आधारों पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार उत्प्रेरित किया है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। दूसरे शब्दों में, अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका निम्नलिखित है

  1. प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति वह कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया।
  2. परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार ने लम्बी दूरियों तक कम लागत पर वस्तुओं की तीव्रतम आपूर्ति को सम्भव बनाया है।
  3. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी अर्थात् दूरसंचार, कम्प्यूटर व इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का तीव्र विकास हुआ है। इन्होंने सम्पूर्ण विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क को आसान बना दिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटर का उपयोग किया जा रहा है।
  4. प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है।

प्रश्न 4.
उदाहरण देकर उन कारकों का वर्णन कीजिए जिन्होंने भारत में वैश्वीकरण को सम्भव बनाया है।
अथवा
वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वैश्वीकरण के लिए उत्तरदायी कारक

  1. प्रौद्योगिकी में तीव्र गति से हुई प्रगति।
  2. निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नीतियों का उदारीकरण
  3. विश्व व्यापार संगठन जैसे, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सहयोग।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी इकाइयाँ तथा कार्यालय भारत में स्थापित करना।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन क्या है ? क्या यह संगठन अपना कार्य ठीक ढंग से कर रहा है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य विभिन्न सदस्य देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार पर निगरानी करना, उसे प्रोत्साहित करना व उदार बनाना है। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित कानून बनाता है तथा यह भी देखता है कि इन कानूनों का पालन हो रहा है या नहीं।

यह संगठन ठीक से कार्य नहीं कर पा रहा है। यद्यपि विश्व व्यापार संगठन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सभी देशों को मुक्त व्यापार करने की अनुमति दे परन्तु व्यवहार में यह देखा गया है कि विकसित देश अनुचित रूप से व्यापार अवरोधकों का स । अभी तक ले रहे हैं वहीं दूसरी ओर संगठन के नियमों ने विकासशील देशों को व्यापार अवरोधक हटाने के लिए बाध्य कि है।

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प्रश्न 6.
वैश्वीकरण क्या है? भारत में इसके दो प्रभाव लिखिए।
अथवा
भारत में वैश्वीकरण के किन्हीं तीन प्रभावों को समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी एवं श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण के अन्तर्गत विदेशी व्यापार अवरोधक हटा लिये जाते हैं, जिससे पूँजी व श्रम का स्वतन्त्र रूप में आवागमन होता है, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, आयात-निर्यात में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त उत्पादन व उत्पादकता का स्तर बढ़ता है। वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव-वैश्वीकरण के भारत की अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं

  1. वैश्वीकरण में भारतीय उत्पादकों को वस्तुओं और सेवाओं के अनेक विकल्प मिले हैं तथा भारतीय उपभोक्ताओं को कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं की प्राप्ति होती है। उपभोक्ता को विश्व स्तर की वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध होती हैं।
  2. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है, जिससे देश में उत्पादन एवं रोजगार में वृद्धि
  3. उत्पादकों एवं श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के विभिन्न वर्गों पर कौन-कौन से नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
विभिन्न वर्गों पर वैश्वीकरण के निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं

  1. छोटे उद्योगों जैसे-बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक खिलौने, टायर, डेयरी उत्पाद एवं खाद्य तेल आदि को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण बहुत नुकसान झेलना पड़ा है।
  2. कई उद्योग बन्द हो गये जिसके अनेक श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं।
  3. वैश्वीकरण तथा प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन में बहुत परिवर्तन ला दिया है। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता आजकल श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि अब श्रमिकों का रोजगार सुनिश्चित एवं सुरक्षित नहीं रह गया है।
  4. नियोक्ता श्रम लागतों में निरन्तर कटौती कर रहे हैं, वे कम वेतन पर श्रमिकों से अधिक समय काम ले रहे हैं।
  5. वैश्वीकरण से धनिक एवं निर्धन वर्ग के मध्य अन्तर में और अधिक वृद्धि हुई है।

प्रश्न 8.
न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार क्या भूमिका निभा सकती है?
अथवा
न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कौन-कौन से उपाय करने चाहिए?
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण सभी के लिए लाभप्रद नहीं रहा है। शिक्षित, कुशल एवं सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है वहीं दूसरी ओर अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है। न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने हेतु सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1. सरकारी नीतियों से देश के धनी व प्रभावशील लोगों के साथ-साथ देश के सभी लोगों के हितों का संरक्षण करना चाहिए।
  2. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि श्रमिक कानूनों का उचित ढंग से क्रियान्वयन हो एवं श्रमिकों को उनके अधिकार मिलें।
  3. सरकार को छोटे उत्पादकों को कार्य निष्पादन में सुधार के लिए उस समय तक सहायता करनी चाहिए जब तक कि वे प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम न हो जाएँ।
  4. सरकार को विश्व व्यापार संगठन में कसित देशों के प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के लिए समान हित वाले अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर प्रयास कर पाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अन्य देशों में अपना उत्पादन किस प्रकार स्थापित तथा नियंत्रित करती हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या अभिप्राय है? आधुनिक अर्थव्यवस्था में उनकी कार्यप्रणाली समझाइए।
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या आशय है? उनकी कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हराष्ट्रीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वे कम्पनियाँ होती हैं जो एक से अधिक देशों में अपनी औद्योगिक इकाइयाँ व कार्यालय स्थापित करती हैं। ये कम्पनियाँ एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण व स्वामित्व रखती हैं। इन कम्पनियों में पूँजी निवेश अधिक होता है। इन कम्पनियों की इकाइयों का आकार विशाल होता है तथा उत्पादन की माँग व पूर्ति बड़े पैमाने पर होती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा दूसरे देशों में अपने उत्पादन पर नियंत्रण बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दूसरे देशों में अपने उत्पादन पर निम्न प्रकार से नियंत्रण स्थापित करती हैं
1. संयुक्त उत्पादन द्वारा:
कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कुछ देशों की स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनी को दोहरा लाभ प्राप्त होता है।

2. स्थानीय कम्पनियाँ खरीद कर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों को खरीदकर अपने उत्पादन का विस्तार करती हैं। अपार सम्पदा वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ यह आसानी से कर सकती हैं।

3. छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आर्डर देना:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एक अन्य तरीके से भी उत्पादन नियन्त्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल का सामान ऐसे उद्योग हैं जहाँ विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति की जाती है। ये कम्पनियाँ इन वस्तुओं को अपने ब्रांड नाम से उपभोक्ताओं को बेच देती

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प्रश्न 2.
वैश्वीकरण क्या है? भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण से होने वाले किन्हीं चार लाभों को समझाइए।
अथवा
वैश्वीकरण के किन्हीं पाँच प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के किन्हीं तीन लाभों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है जिससे वस्तुओं और सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी एवं श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके।

वैश्वीकरण के अन्तर्गत विदेशी व्यापार अवरोधक हटा लिये जाते हैं, जिससे पूँजी व श्रम का स्वतंत्र रूप से आवागमन होता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, आयात-निर्यात में वृद्धि होती है तथा उत्पादन व उत्पादकता का स्तर बढ़ता है। वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव-वैश्वीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्न सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं

  1. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत का विश्व के अन्य देशों के साथ सम्पर्क बढ़ा है तथा आर्थिक व राजनैतिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
  2. स्थानीय व विदेशी उत्पादकों के मध्य प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं विशेषकर शहरी क्षेत्र में रह रहे धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। वे अब अनेक वस्तुओं और सेवाओं की उत्कृष्टता, गुणवत्ता तथा कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं।
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने शहरी क्षेत्रों में सेलफोन, मोटरगाड़ियाँ, इलेक्ट्रोनिक उत्पादों, ठण्डे पेय पदार्थों, जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसे सेवाओं के निवेश में रुचि दिखाई है। जिससे शहरी क्षेत्रों में पढ़े-लिखे लोगों एवं कुशल श्रमिकों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कम्पनियों के लाभ में वृद्धि हुई है।
  5. वैश्वीकरण ने कुछ वृहत् भारतीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है।
  6. वैश्वीकरण सूचना प्रौद्योगिकी, आँकड़ा प्रविष्टि, लेखांकन, प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग आदि कई सेवाएँ प्रदान करने वाली कम्पनियों के लिए नए अवसर उत्पन्न किए हैं।
  7. वैश्वीकरण के फलस्वरूप देश के विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे भारतीय उत्पादकों को लाभ प्राप्त हुआ है।
  8. वैश्वीकरण से देश में नवीन प्रौद्योगिकी का आगमन हुआ है।
  9. वैश्वीकरण से देश में विदेशी पूँजी में वृद्धि हुई है, जिसके प्रभाव से उत्पादन व रोजगार में वृद्धि दर्ज की गयी है।
  10. वैश्वीकरण से देश में प्रतिस्पर्धा का वातावरण उत्पन्न हुआ है, जिसका लाभ उत्पादक व उपभोक्ता दोनों को ही प्राप्त हुआ है।

नीचे दिए गए स्रोतों को पढ़िए और उनके नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
स्रोत (क)-अन्तरदेशीय उत्पादन:
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अन्दर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लांघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जरिया था। यह बड़ी कम्पनियाँ थीं, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कहते हैं।

स्रोत (ख)-विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण:
सरल शब्दों में कहा जाए, तो विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।

स्रोत (ग)-भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव:
वैश्वीकरण और उत्पादों-स्थानीय एवं विदेशी दोनों के बीच वृहत्तर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामतः ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनन्द ले रहे हैं। उत्पादकों और श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एकसमान प्रभाव नहीं पड़ा है।

स्रोत (क)-अन्तरदेशीय उत्पादन:
(i) बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किस प्रकार संसार के देशों को जोड़ रही हैं?

स्रोत (ख)-विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण:
(ii) विदेशी व्यापार किस प्रकार देशों को जोड़ने का प्रमुख मार्ग है?

स्रोत (ग)-भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव:
(iii) वैश्वीकरण किस प्रकार उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है?
उत्तर:
1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं या स्थानीय कम्पनियों को खरीद लेती हैं तथा अपने उत्पाद का विस्तार करती हैं।

2. विदेशी व्यापार बाजारों को बाहर के बाजारों में पहुंचने के लिए उत्पादों का अवसर प्रदान करता है, जिससे बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं।

3. वैश्वीकरण निम्न प्रकार से उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है
(क) ज्यादा-से-ज्यादा वस्तुओं तथा सेवाओं का सृजन हुआ।
(ख) नई प्रौद्योगिकी तथा नए तरीकों का विकास हुआ।
(ग) वस्तुओं तथा सेवाओं के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ी है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

बहविकल्पीय

प्रश्न 1.
केन्द्रीय सरकार की ओर से निम्नलिखित में कौन करेंसी नोट जारी करता है?
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक
(ग) भारतीय वाणिज्यिक बैंक
(घ) यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक

2. बैंकों से सम्बंधित निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(क) बैंक जमा राशि का उपयोग लोगों की ऋण सम्बंधी माँगों को पूरा करने के लिए नहीं कर सकते
(ख) बैंक जमा राशि का उपयोग सरकार की आवश्यकताओं के लिए करते हैं।
(ग) बैंक जमा राशि रख लेते हैं और ऋण नहीं देते।
(घ) बैंक जमा राशि को लोगों की कर्जे सम्बन्धी माँगों को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं
उत्तर:
(घ) बैंक जमा राशि को लोगों की कर्जे सम्बन्धी माँगों को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं

3. ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की आवश्यकता मुख्यतः किसलिए होती है?
(क) आवास
(ख) फसल उगाने के लिए
(ग) विदेश यात्रा के लिए
(घ) पारिवारिक यात्रा के लिए
उत्तर:
(ख) फसल उगाने के लिए

4. कर्ज लेने के लिए कर्जदार निम्नलिखित में से किसका उपयोग गारण्टी देने के लिए करता है?
(क) साख
(ख) करेंसी नोट
(ग) चैक
(घ) समर्थक ऋणाधार
उत्तर:
(घ) समर्थक ऋणाधार

5. निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नज़र रखती है?
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) सैंट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) ग्रामीण बैंक
उत्तर:
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक

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6. स्वयं सहायता समूह का सम्बन्ध है
(क) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं
(ख) अमीर लोगों का समूह जो मिलकर काम करते हैं
(ग) एक औपचारिक ऋण क्षेत्रक
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं

7. “अगर गरीब लोगों को सही और उचित शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है, तो लाखों छोटे लोग अपनी लाखों छोटी-छोटी गतिविधियों के जरिए विकास का सबसे बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।” यह कथन किसका है?
(क) प्रो. मोहम्मद यूनुस
(ख) प्रो. अमर्त्य सेन
(ग) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
(घ) डॉ. मनमोहन सिंह।
उत्तर:
(क) प्रो. मोहम्मद यूनुस

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. …………प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय किया जाता है।
उत्तर:
वस्तु विनिमय,

2. भारतीय रिजर्व बैंक…………की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार,

3. बैंकों व सरकारी समितियों से लिया गया ऋण………. कहलाता है।
उत्तर:
औपचारिक क्षेत्रक ऋण,

4. साहूकार, मालिक या परिचित से लिया गया ऋण ………………कहलाता है।
उत्तर:
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वस्तुओं का लेन-देन बिना मुद्रा के प्रयोग से आपस में ही हो जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 2.
मुद्रा को परिभाषित कीजिए।
अथवा
मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:
मुद्रा से अभिप्राय उस वैधानिक वस्तु से है जिसका उपयोग सामान्यतः विनिमय माध्यम के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 3.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वस्तुओं के आदान-प्रदान की प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है।

प्रश्न 4.
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने व बेचने पर सहमति रखते हैं तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं।

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प्रश्न 5.
वस्तु विनिमय प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण क्या है?
उत्तर:
विनिमय प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण आवश्यकताओं का दोहरा संयोग है।

प्रश्न 6.
विनिमय का माध्यम क्या है?
उत्तर:
मुद्रा विनिमय का माध्यम है क्योंकि यह विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है।

प्रश्न 7.
विनिमय की प्रक्रिया में मुद्रा किस प्रकार माध्यम का काम करती है?
उत्तर:
मुद्रा के माध्यम से वस्तुएँ खरीदी व बेची जा सकती हैं।

प्रश्न 8.
आधुनिक मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
अथवा
मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है।

प्रश्न 9.
मुद्रा के सम्बन्ध में भारतीय कानून क्या है?
उत्तर:
भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं है।

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प्रश्न 10.
माँग जमा क्या है?
उत्तर:
जब बैंक खातों में जमा धन को ग्राहक द्वारा माँग के अनुसार निकाला जा सकता है तो उसे माँग जमा कहते हैं।

प्रश्न 11.
बैंक चेक क्या है?
उत्तर:
चेक एक ऐसा कागज है जो बैंक को कोई व्यक्ति अपने खाते से चेक पर लिख्रे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का धुगतान करने का आदेश देता है।

प्रश्न 12.
हम चेक क्यों जारी करते हैं?
उत्तर:
हम माँग जमाओं के विरुद्ध चेक जारी करते हैं जिससे बिना नकद का इस्तेमाल किए सीधा भुगतान करना सम्भव होता है।

प्रश्न 13.
माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
बैंक खातों में जमाधन को माँग करने पर निकाला जा सकता है। अतः इस माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है।

प्रश्न 14.
बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में क्यों रखते हैं?
उत्तर:
किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही वैंक से नगदी निकालने के लिए आते हैं। इन्हें नगदी देने के लिए बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास रखते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में बैंक जमा का कितना प्रतिशत हिस्सा’ नकद के रूप में अपने पास रखते हैं?
उत्तर:
भारत में बैंक जमा का 15 प्रतिशत हिस्सा नकद् रूप में अपने पास रखते हैं।

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प्रश्न 16.
बैंक शेष जमा राशि का कैसे उपयोग करते हैं?
उत्तर:
बैंक शेष जमा राशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग करते हैं।

प्रश्न 17.
बैंक के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. धन जमा करना
  2. ऋण देना।

प्रश्न 18.
बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत क्या है?
अथवा
बैंकों में जमा राशियाँ किस प्रकार बैंकों की आय का स्रोत बनती है?
उत्तर:
कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 19.
ऋण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
ॠण क्या है?
उत्तर:
ऋण से तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूका कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदल में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वायदा लेता है।

प्रश्न 20.
ऋण किस प्रकार एक महत्त्वपूर्ण एव सकारात्मक भूमिका निभाता है ?
उत्तर:
ऋण उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने, उत्पादन को समय पर पूरा करने एवं आय बढ़ाने मे सहायता करता है।

प्रश्न 21.
बैंकों के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का प्रमुख स्रोत कौन-सा है ?
उत्तर:
सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का एक प्रमुख स्रोत हैं।

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प्रश्न 22.
कृषक सहकारी समिति का क्या कार्य है?
उत्तर:
कृषक सहकारी समिति उपकरण खरीदने, खेती एवं व्यापार करने, मछली पालन करने, घर बनाने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ॠण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 23.
ॠणों को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है? नाम लिखो।
उत्तर:

  1. औपचारिक क्षेत्रक ॠण
  2. अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण।

प्रश्न 24.
औपचारिक क्षेत्रक ऋण के स्रोत क्या हैं?
अथवा
ऋण के औपचारिक स्रोत क्या हैं ?
उत्तर:

  1. बैंक
  2. सहकारी समितियौ।

प्रश्न 25.
ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नजर रखना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
ऋणों के समान वितरण और ब्याज दरों को निम्न रखने के लिए।

प्रश्न 26.
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण के स्रोत क्या हैं?
अथवा
साख (ऋण) के अनौपचारिक क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. साहूकार,
  2. व्यापारी,
  3. मालिक,
  4. रिश्तेदार,
  5. दोस्त आदि।

प्रश्न 27.
ऋण की ऊँची लागत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ऋण की ऊँची लागत का अर्थ है कि कर्जदार की आय का अधिकांश भाग ऋण कै ब्याज भुगतान में ही खर्च हो जाता है। इसलिए कर्जदारों के पास अपने लिए कम आय शेष रहती है।

प्रश्न 28.
कर्जदारों की अनौपचारिक स्रोतों पर से निर्भरता कम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
बैकों व सहकारी समितियों को अपनी गतिविधियाँ विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़्मनी चाहिए।

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प्रश्न 29.
एक स्वयं सहायता समूह में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
एक स्वयं सहायता समूह में 15-20 सदस्य होते हैं।

प्रश्न 30.
लोग स्वर्यं सहायता समूह से ऋण लेने के लिए प्राथमिकता देते हैं। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि इनकी ब्याज की दरें अनौपचारिक स्रोतों से कम होती हैं।

प्रश्न 31.
यदि स्वयं सहायता समूह नियमित रूप से बचत करता है तो वह किससे ऋण लेने योग्य हो जाता है?
उत्तर:
स्वयं सहायता समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है।

प्रश्न 32.
स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक से समूह के नाम से लिये गये ऋणों का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
भारत में मुद्रा के आधुनिक रूप कौन कौन से हैं? इसे विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
अथवा
आधुनिक मुद्रा को, जिसका अपना कोई उपयोग नहीं है, विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है? कारण ज्ञात कीजिए।
अथवा
“करेंसी’ का अर्थ स्पष्ट कीजिएस.
उत्तर:
भारत में मुद्रा का आधुनिक रूप करेंसी है जिसमें कागज के नोट व सिक्के सम्मिलित हैं। इसे विनिमय का माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है क्योंकि सरकार द्वारा इसे प्राधिकृत किया गया है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी को छापती है और वैधानिक विनिमय के माध्यम के रूप में इसे इस्तेमाल करने के लिए स्वीकार करती है। भारत में किसी भी सौदे एवं लेन-देन के लिए इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
मुद्रा के आधुनिक रूप एवं पार व्यरिक रूप में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मुद्रा के आधुनिक रूप एवं पारम्पक रूप में निम्नलिखित अन्तर हैं

  • मुद्रा का आधुनिक रूप:
    1. मुद्रा के आधुनिक रूप में करेंसी-कागज के नोट एवं सिक्के सम्मिलित किये जाते हैं।
    2. मुद्रा का यह रूप वर्तमान काल में प्रचलन में है।
    3. आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है।
  • मुद्रा का पारम्परिक रूप
    1. मुद्रा के प म्परिक रूप में सोना, चाँदी, ताँबा जैसी धातुओं को सम्मिलित किया जाता था।
    2. मुद्रा का यह रूप प्राचीनकाल में प्रचलन में था।
    3. इस मुद्रा का अपना इस्तेमाल होता था।

प्रश्न 3.
माँग जमा क्या है? माँग जमा की मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
माँग जमा:
बैंक खातों में वह जमा राशि जिसे माँग के अनुसार निकाला जा सके जमा कहलाती है। माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है क्योंकि:

  1. इसे विनिमय के माध्यम के रूप से प्रयोग किया जा सकता है।
  2. यह आसानी से सबको स्वीकार्य होती है।
  3. बिना नकद का प्रयोग किए इससे भगतान करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
‘माँग जमा में मुद्रा के अनिवार्य लक्षण मिलते हैं।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक खाते में वह जमा राशि जिसे माँग के अनुसार निकाला जा सके माँग जमा कहलाती है। माँग जमा में मुद्रा के निम्नलिखित अनिवार्य लक्षण मिलते हैं

  1. लोगों की मुद्रा बैंकों में सुरक्षित रहती है।
  2. लोगों को बैंक में जमा राशि पर ब्याज भी मिलती है।
  3. भुगतान नकद के बदले चेक के द्वारा भी किया जा सकता है। इसलिए बैंकों के द्वारा अपने खाताधारकों को चेक बुक जारी की जाती है।
  4. लोग अपनी इच्छानुसार बैंकों से की भी मुद्रा निकाल सकते हैं।

प्रश्न 5.
चेक क्या है? हम चेक क्यों और कैसे जारी करते हैं?
उत्तर:
चेक चेक एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष धनराशि का भुगतान करने का आदेश देता है। हम माँग जमाओं के विरुद्ध चेक जारी करते हैं, जिससे बिना नकद लेन-देन का प्रयोग किए सीधे भुगतान करना संभव होता है। चेक से भुगतान करने के लिए भुगतानकर्ता, जिसका किसी बैंक में खाता है, एक निश्चित राशि के लिए चेक काटता है।

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प्रश्न 6.
बैंकों की आवश्यकता हमें क्यों है? बैंक लोगों को किस प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं?
उत्तर:
बैंकों की आवश्यकता व सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।
  2. बैंक में जमा धन से लोगों को ब्याज प्राप्त होता है।
  3. बैंक बचत के लिए आवश्यक हैं।
  4. बैंक जमा राशि से लोगों की आवश्? कताओं को पूरा करने के लिए ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।
  5. माँग जमा के बदले चेक लिखने की सुविधा से बिना नकद का प्रयोग किए सीधा भुगतान किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की माँग क्यों होती है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य मांग फसल उगाने के लिए होती है। फसल उगाने में बीज, खाद, कीटनाशक दवाओं, पानी, विद्युत, कृषि उपकरणों की मरम्मत आदि पर बहुत खर्च होता है। इन आगतों को खरीदने एवं फसल की बिक्री होने के बीच कम से कम 3-4 महीने का अन्तरल होता है। अधिकांशतया किसान ऋतु के प्रारम्भ में फसल उगाने के लिए उधार लेते हैं और फसल तैयार होने के पश्चात् का देते हैं। उधार का भुगतान मुख्य रूप से फसल से प्राप्त आय पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
भारत में बैंकों एवं सहकारी सतियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ऋण सुविधाएँ क्यों प्रदान करनी चाहिए?
अथवा
बैंकों और सहकारी समितियों को अपनी ऋण देने की गतिविधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में बैंकों एवं सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ऋण सुविधाएँ निम्न कारणों से प्रदान करनी चाहिए

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकार, व्यापारी आदि ऊँची ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।
  2. साहूकार व व्यापारी आदि अपना पैसा वापस लेने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं।
  3. सस्ता कर्ज उत्पादन की लागत में कमी करता है तथा आय बढ़ाता है।
  4. ग्रामीण विकास के लिए सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज होना चाहिए।

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प्रश्न 9.
कर्ज जाल क्या है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एक स्थिति में ऋण आय बढ़ाने में सहायता करता है, जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले से बेहतर हो जाती है। दूसरी स्थिति में फसल बर्बाद होने के कारण ऋण व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेता है। कर्ज उतारने के लिए उसे जमीन का टुकड़ा बेचना पड़ता है जिससे उसकी स्थिति पहले की तुलना में बुरी हो जाती है। इस तरह ऋण कर्जदार को ऐसी परिस्थिति में धकेल देता है जहाँ से बाहर निकलना बहुत कष्टदायक होता है। इसे ही कर्ज जाल कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
खरीददारी मुद्रा के माध्यम से क्यों होती है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मुद्रा में लेन-देन क्यों किए जाते हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा मूल्य के मापन का कार्य करती है। मुद्रा के रूप में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का निर्धारण किया । जा सकता है। मुद्रा विनिमय का एक माध्यम है। यह आसानी से स्वीकार्य है। जिस व्यक्ति के पास मुद्रा होती है वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति भुगतान मुद्रा के रूप में लेना पसन्द करता है फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने के लिए करता है।

उदाहरण:
एक किसान बाजार में गेहूँ बेचना चाहता है और घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदना चाहता है। इसलिए किसान सबसे पहले गेहूँ के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा। इसके पश्चात् मुद्रा का प्रयोग घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के लिए करेगा।

प्रश्न 2.
“मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की आवश्यकता को समाप्त कर देती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
वस्तु विनिमय प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग वस्तु विनिमय प्रणाली में देखने को मिलता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय होता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मनुष्य ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ता है जो उसकी अतिरिक्त वस्तु लेकर उसे इच्छित वस्तु दे। उदाहरण के लिए, किसान गेहूँ बेचकर जूते खरीदना चाहता है तो उसे ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ना पड़ेगा जो उससे गेहूँ लेकर जूते दे दे।

यह एक कठिन कार्य है। इसकी तुलना में ऐसी अर्थव्यवस्था में जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत को समाप्त कर देती है। अब किसान के लिए जरूरी नहीं रह जाता कि वह ऐसे जूता निर्माता को ढूँढ़े जो न केवल उसका गेहूँ खरीदे बल्कि साथ-साथ उसको जूते में बेचे।

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प्रश्न 3.
“बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है, के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है, के बीच मध्यस्थता का कार्य निम्न प्रकार करते हैं

  1. बैंक उन लोगों से जमा राशि स्वीकार करते हैं जिनके पास अतिरिक्त धन होता है।
  2. बैंक जमाओं पर ब्याज का भी भुगतान करते हैं।
  3. बैंक अपने पास जमा धनराशि का एक छोटा भाग नकद के रूप में रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है।
  4. चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही नकद रुपया निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश भाग उन्हें ऋण देने के लिए प्रयोग में लेते हैं, जिन्हें धन की आवश्यकता होती है। इस तरह बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।

प्रश्न 4.
“बैंकों द्वारा मुद्रा निक्षेप स्वीकार करना उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  1. लोग अपनी अतिरिक्त मुद्रा को बैंकों में निक्षेप के रूप में सुरक्षित रखते हैं।
  2. लोग अतिरिक्त नकद को बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते हैं। बैंक जमा स्वीकार करते हैं और इस पर ब्याज़ भी देते हैं।
  3. लोगों को आवश्यकतानुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध करायी जाती है। चूँकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के जरिए निकाला जा सकता है, इसलिए इस जमा को ‘माँग जमा’ कहा जाता है।

प्रश्न 5.
जब कोई ऋण लेने वाला किसी महाजन अथवा साहूकार से कर्ज लेता है, तो उसके समक्ष आने वाली समस्याओं में से किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. हर ऋण समझौते के अंतर्गत ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जदार महाजन को मूल रकम के साथ वापस करता है। इसके अलावा, उधारदाता कोई समर्थक ऋणाधार (गिरवी रखने के लिए) की माँग कर सकता है।
  2. समर्थक ऋणाधार ऐसी सम्पत्ति है, जिसका मालिक कर्जदार है (जैसे कि भूमि, इमारत, गाड़ी, पशु बैंकों में पूँजी) और इसका इस्तेमाल वह उधारदाता को गारण्टी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।
  3. यदि कर्जदार ऋण का भुगतान नहीं कर पाता है तो ऋणदाता को ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।

प्रश्न 6.
सहकारी समितियाँ क्या होती हैं? संक्षेप में बताइए।
अथवा
सहकारी समितियों की कार्य-प्रणाली को बताइए।
अथवा
ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की गतिविधियाँ बढ़ाने हेतु कोई तीन सुझाव दीजिए
उत्तर:
वे लोग जो कुछ सामान्य उद्देश्यों पर एक साथ मिल-जुलकर कार्य करना चाहते हैं, एक समिति का गठन कर लेते हैं जिसे सहकारी समिति कहते हैं। यह लोगों का एक ऐच्छिक संगठन होता है जिसके अन्तर्गत वे अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। सहकारी समितियाँ पारस्परिक सहायता के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। लोग एक समूह के रूप में एकत्रित होकर अपने व्यक्तिगत संसाधनों को एकत्रित करते हैं तथा उनका सर्वोत्तम ढंग से उपयोग करते हैं और इससे प्राप्त सामूहिक लाभ को आपस में मिलजुलकर बाँट लेते हैं। सुझाव:

  1. बैंकों द्वारा सहकारी समितियों को सस्ती दर पर ऋण प्रदान करना।
  2. सहकारी समितियों द्वारा अपने सदस्यों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना।
  3. कृषकों पर किसी भी प्रकार की कोई अनुचित शर्त न लगाना ताकि सहकारी समिति के अधिकाधिक सदस्य बन सकें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आपके दृष्टिकोण से वस्तु विनिमय प्रणाली और मौद्रिक प्रणाली में कौन-सी प्रणाली श्रेष्ठ है और क्यों?
उत्तर:
मेरे दृष्टिकोण से दोनों प्रणालियों में से मौद्रिक प्रणाली श्रेष्ठ है क्योंकि जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय कोई भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए कर सकता है। हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसंद करता है, फिर उस मुद्रा का उपयोग अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए कर सकता है। एक जूता निर्माता का उदाहरण लेते हैं। वह बाज़ार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है।

जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगां फिर इस मुद्रा का इस्तेमाल गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। यदि जूता निर्माता बिना मुद्रा का इस्तेमाल किए जूते का सीधे गेहूँ से विनिमय करता है, तो उसे गेहूँ शास्त्र पैदा करने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ेगा, जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो बल्कि साथ में जूते भी खरीदना चाहता हो अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने व बेचने पर सहमत हों। विनिमय की दूसरी प्रणाली में समय एवं श्रम अधिक लगेगा जबकि मौद्रिक प्रणाली में समय एवं श्रम की बचत है। चूँकि मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, अतः वस्तु विनिमय की तुलना में मुद्रा विनिमय प्रणाली श्रेष्ठ है।

प्रश्न 2.
भारत में ‘करेंसी नोट’ कौन जारी करता है? बैंकों के तीन कार्य बताइए।
अथवा
भारत की अर्थव्यवस्था में बैंक किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“बैंक, देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।” कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं है। मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी में कागज के नोट एवं सिक्कों को सम्मिलित किया गया है। बैंक के कार्य अथवा भारत की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका
1. जमा राशि को स्वीकार करना:
बैंक जनता से जमा स्वीकार करते हैं। लोग अपनी नकदी को सुविधा के लिए बैंकों के बचत जमा खाता, सावधि जमा खाता, चालू खाता आदि में जमा कराते हैं। बैंक इन जमाओं पर ब्याज भी देता है। इस तरह लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।

2. ऋण प्रदान करना:
बैंक अपने पास जमा रकम का एक छोटा हिस्सा नकदं के रूप में रखते हैं। उदाहरण के लिए आजकल भारत में बैंक जमा धन का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा नकद में अपने पास रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है। चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही नगद राशि निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश हिस्सा ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।

3. पूँजी निर्माण:
बैंक लोगों की बचतों को संग्रह करते हैं तथा उसे अन्य उत्पादक क्रियाओं में निवेश करते हैं। इस प्रकार बैंक देश में पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं तथा आर्थिक विकास की दर को तीव्र करते हैं।

4. लॉकर सुविधाएँ:
बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं, जिसमें लोग अपनी मूल्यवान वस्तुओं एवं महत्त्वपूर्ण कागजातों को सुरक्षित रख सकते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 3.
उदाहरण सहित समझाइए कि किस प्रकार से बैंक ऋण उत्पादन में सकारात्मक भूमिका अदा करते हैं?
उत्तर:
हमारी दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं में व्यापक लेन-देन किसी-न-किसी रूप में ऋण द्वारा ही होता है। ऋण किसानों को अपनी फसल उगाने में मदद करता है। यह उद्यमियों के लिए व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना, समय पर उत्पादन को पूरा करने एवं उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने में सहायक होता है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है। ऋण देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में बैंकों द्वारा ऋण के अन्य स्रोतों के मुकाबले सस्ती दर पर अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान किया जाता है।

बैंक जमा रकम का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में रखकर शेष जमा राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण की बहुत अधिक माँग रहती है। बैंक जमा धनराशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं! लोग बैंकों से सस्ती दर पर ऋण प्राप्त कर उत्पादन कार्यों में लगाते हैं तथा अधिक लाभ प्राप्त करते हैं।

उदाहरण: सोहन का जूते बनाने का कारखाना है। उसके पास शहर के एक बड़े व्यापारी से 5000 जोड़ी जूतों की माँग आती है जिसे एक महीने के अन्दर पूरा करना है। उत्पादन के कार्य को समय पर पूर्ण करने के लिए सोहन को सिलाई व चिपकाने के काम के लिए अतिरिक्त मजदूर रखने की आवश्यकता है तथा उसे कच्चा माल भी खरीदना है। अतः सोहन को इस कार्य के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

वह बैंक की औपचारिकताओं को पूर्ण करके उससे ऋण ले लेता है। समय पर शहर के व्यापारी को जूते बनाकर दे देता है। इस प्रकार सोहन उत्पादन के लिए कार्यशील पूँजी की जरूरत को ऋण के द्वारा पूरा करता है। ऋण उसे उत्पादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को समय पर पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार सोहन बैंक ऋण द्वारा अपनी कमाई बढ़ा लेता है। इस प्रकार बैंक ऋण उत्पादन में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 4.
साख की दो विभिन्न स्थितियाँ बताइए एवं बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साख की स्थितियाँ प्रथम स्थिति:
एक स्थिति में ऋण (साख) आय बढ़ाने में सहयोग करता है, जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले से बेहतर हो जाती है।

द्वितीय स्थिति:
दूसरी स्थिति में फसल बर्बाद होने के कारण ऋण व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेता है। जहाँ से बाहर निकलना काफी कष्टदायक होता है। आमदनी में वृद्धि की बजाय कर्जदार की स्थिति पहले से बदतर हो जाती है। ऋण उपयोगी होगा या नहीं, यह परिस्थितियों के खतरों एवं हानि होने पर प्राप्त सहयोग की सम्भावना पर निर्भर करता है।

बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्ते: बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्ते निम्नलिखित हैं

  1. सर्वप्रथम ऋण लेने वाले व्यक्ति को यह प्रमाण-पत्र देना होगा कि यह देख लिया जाए कि उसे कितना ऋण दिया जाए, जिसे वह आसानी से उतार सके।
  2. यदि वह व्यक्ति कहीं नौकरी कर रहा हो तो उसे अपनी आय के विषय में ब्यौरा उपलब्ध कराना होगा।
  3. बैंक कर्जदार से समर्थक ऋणाधार की माँग कर सकता है, जिसमें भूमि, पशु, सम्पत्ति एवं बैंकों में जमा-पूँजी आदि सम्मिलित होती है।
  4. बैंक कर्जदार से किसी ऐसे व्यक्ति की गारंटी माँग सकता है जो उसके कर्ज न चुकाने पर रकम वापस कर सके।

प्रश्न 5.
शहरी गरीबों व अमीरों के ऋणों में औपचारिक साख के योगदान की तुलना कीजिए। औपचारिक क्षेत्र की ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:
गरीबों की तुलना में अमीर परिवारों को औपचारिक ऋणों का अधिक हिस्सा मिलता है क्योंकि अमीर परिवारों के पास ऋण लेने हेतु समर्थक ऋणाधार होता है तथा उन परिवारों की ऋण चुकाने की क्षमता भी अधिक होती है। जिस प्रकार से साहूकार, महाजन आदि गरीबों का शोषण करते हैं, जबकि औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्ज लिए जाने पर उनका शोषण नहीं किया जाता है।

गरीबों को उचित व कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार से अमीरों को ऋण उचित ब्याज दरों पर प्रदान कर औपचारिक संस्थाएँ, बहुत से उद्योगपतियों की उनकी विनियोग संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करती हैं। जिससे लोगों को रोजगार की प्राप्ति होती है तथा राष्ट्रीय उत्पादन व आय में भी वृद्धि होती है। औपचारिक क्षेत्र की ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु दो उपाय इस प्रकार से हैं

  1. औपचास्कि स्रोतों को गैर-उत्पादक उद्देश्यों के लिए भी ऋण प्रदान करना चाहिए ।
  2. औपचारिक स्रोतों को ऋण के दस्तावेज संबंधी प्रक्रिया सरल कर देनी चाहिए, जिससे कि सभी जरूरतमंद लोग जरूरत के समय जल्द से जल्द ऋण प्राप्त कर सकें।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 6.
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की कोई दो कमियाँ बताइए। इस सन्दर्भ में औपचारिक क्षेत्रक ऋण किस प्रकार बेहतर हैं?
उत्तर:
ऋण के स्रोत भारत में ऋण प्रदान करने वाले स्रोतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. औपचारिक ऋण स्रोत:
भारत में औपचारिक ऋण स्रोतों में व्यापारिक बैंक, सहकारी समितियाँ, ग्रामीण बैंक आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन स्रोतों द्वारा कम ब्याज दर पर लम्बे समय के लिए ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।

2. अनौपचारिक ऋण स्रोत:
भारत में बड़ी संख्या में ऋण अनौपचारिक स्रोतों द्वारा उपलब्ध करवाये जाते हैं। अनौपचारिक स्रोतों में साहूकार, महाजन, व्यापारियों, रिश्तेदारों एवं मित्रों को सम्मिलित किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश छोटे कृषक एवं मजदूर आज भी भारत के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।

  • अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की कमियाँ: अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं
    1. भारत में अनौपचारिक ऋण स्रोतों द्वारा ऊँची दर पर ऋण दिया जाता है।
    2. अनौपचारिक स्रोतों द्वारा अत्यन्त कठोर शर्तों पर ऋण दिया जाता है।
    3. ऋण न चुकाने की स्थिति में ऋणदाता, कृषकों का अनाज सस्ते में खरीद लेते हैं तथा कई बार उन्हें अपने खेतों अथवा घरों पर बिना परिश्रम के कार्य करवाते हैं।
  • औपचारिक क्षेत्रक ऋण निम्न प्रकार से बेहतर हैं:
    1. औपचारिक क्षेत्रक ऋण में ऋण के वे स्रोत सम्मिलित होते हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। इनमें बैंक व सहकारी समितियाँ प्रमुख हैं।
    2. भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज पर निगरानी रखता है।
    3. ऋण के औपचारिक स्रोतों द्वारा ऋण प्रदान किये जाने का उद्देश्य लाभ कमाने के साथ-साथ सामाजिक भी होता है।
    4. इन स्रोतों से कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाए जाते हैं।
    5. ऋण के औपचारिक स्रोत ऋण लेने वाले के समक्ष कोई अनुचित शर्त नहीं लगाते हैं।
    6. औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्जदारों का शोषण नहीं किया जाता है।

प्रश्न 7.
स्वयं सहायता समूह क्या हैं? स्वयं सहायता समूहों की कार्यविधि को विस्तार से बताइए।
अथवा:
स्वयं सहायता समूहों के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वयं सहायता समूह क्या है? ये किस प्रकार कार्य करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. हाल के वर्षों में लोगों ने गरीबों को उधार देने के कुछ नए तरीके अपनाने की कोशिश की है। इनमें से एक विचार ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करने एवं उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है।’
  2. एक विशेष सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ौसी 15-20 सदस्य होते हैं जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं।
  3. स्वयं सहायता समूहों का प्रमुख उद्देश्य गरीब लोगों की बचत पूँजी को एकत्रित करना होता है।
  4. प्रतिव्यक्ति बचत 25 रुपये से लेकर 100 रुपये या उससे अधिक भी हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है।
  5. स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं। यह साहूकार द्वारा लिये गये ब्याज से कम होता है।
  6. एक या दो वर्षों के पश्चात् अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है तो समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है।
  7. बैंकों द्वारा ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
  8. सदस्यों को छोटे-छोटे ऋण अपनी गिरवी भूमि को छुड़ाने हेतु, कार्यशील पूँजी की जरूरतों, जैसे-बीज, खाद, . बाँस व कपड़ा खरीदने के लिए, घर बनाने तथा सिलाई मशीन, हथकरघा व पंशु आदि खरीदने के लिए दिये जाते हैं।
  9. स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत बचत व ऋण गतिविधियों से सम्बन्धित निर्णय समूह के सदस्य स्वयं लेते हैं। समूह ही दिये जाने वाले ऋण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम, ब्याज-दर, वापस लौटाने की अवधि आदि के बारे में निर्णय करता है।
  10. स्वयं सहायता समूहों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें से अधिकांश समूह महिलाओं द्वारा संगठित किए गए हैं। ये समूह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने में मदद करते हैं। समूह की नियमित बैठकों के माध्यम से लोगों को एक मंच मिलता है, जहाँ वह विभिन्न प्रकार के सामाजिक विषयों; जैसे-स्वास्थ्य, पोषण व घरेलू हिंसा आदि पर आपस में चर्चा कर पाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→ भारत में राष्ट्रवाद का उदय

  • भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की घटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का परिणाम रही है।
  • 1914 ई. में प्रारम्भ हुए प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में एक नयी राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति उत्पन्न कर दी जिसके कारण रक्षा खर्च में बहुत अधिक वृद्धि हुई। सीमा शुल्क में वृद्धि के साथ आयकर की शुरुआत की गई।
  • 1918-19 ई तथा 1920-21ई. में देश के अनेक क्षेत्रों में फसल खराब होने के कारण खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई। इसी दौरान फ्लू की महामारी फैल गई। जनगणना 1921 के अनुसार दुर्भिक्ष तथा महामारी की वजह से 120-130 लाख मारे गए।

→  सत्याग्रह का विचार

  • महात्मा गांधी जनवरी, 1915 में दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापस आये थे। वहाँ उन्होंने सत्याग्रह का मार्ग अपनाकर वहाँ की नस्लभेदी सरकार से लोहा लिया।
  • गाँधीजी का विश्वास था कि अहिंसा समस्त भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकती है।
  • भारत आने के पश्चात् गाँधीजी ने अनेक स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया, जिनमें चंपारन 1916 ई., खेड़ा 1917 ई. एवं अहमदाबाद 1918 ई. आदि प्रमुख हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→  रॉलेट एक्ट

  • 1919 ई. में गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाया।
  • रॉलेट एक्ट के तहत सरकार राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने तथा राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बन्द रख सकती थी।
  • 13 अप्रैल, 1919 ई. को अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए।
  • सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने खिलाफत आन्दोलन के समर्थन तथा स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू करने पर अन्य नेताओं को राजी किया।

→  असहयोग आंदोलन

  • महात्मा गाँधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ (1909 ई.) में कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था तथा उनके सहयोग से ही चल पा रहा है। यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो शीघ्र ही ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज्य की स्थापना हो जाएगी।
  • दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौते के साथ असहयोग कार्यक्रम को मंजूरी दी गई।
  • असहयोग-खिलाफत आन्दोलन जनवरी, 1921 में प्रारम्भ हुआ। असहयोग-खिलाफत आन्दोलन की शुरुआत शहरी मध्यम वर्ग की भागीदारी के साथ हुई। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये तथा लोगों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।
  • असहयोग आन्दोलन शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैल गया। देश के विभिन्न भागों में संचालित किसानों व आदिवासियों के संघर्ष भी इस आन्दोलन में सम्मिलित हो गये।
  • अंग्रेजों के बागानों में कार्य करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत के बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी। जब उन्होंने असहयोग आन्दोलन के बारे में सुना तो हजारों मजदूरों ने अपने अधिकारियों की अवहेलना कर बागान छोड़ दिये और अपने घर को चल दिए।
  • गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर घटित घटना के विरोध में फरवरी, 1922 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लेने का फैसला किया।
  • वल्लभ भाई पटेल ने 1928 ई. में गुजरात के बारदोली में किसान आन्दोलन का सफल नेतृत्व किया। यह आन्दोलन भू-राजस्व में वृद्धि के खिलाफ था। इस आन्दोलन को ‘बारदोली सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारों से किया गया।
  • दिसम्बर, 1929 में पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाना तय किया गया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→  नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन:

  • देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गाँधी ने नमक को एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। 6 अप्रैल, 1930 को महात्मा गाँधी ने दांडी पहुँचकर वहाँ नमक बनाकर ब्रिटिश कानून को तोड़ा तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
  • 5 मार्च, 1931 को महात्मा गाँधी ने लॉर्ड इरविन के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए तथा लन्दन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति प्रदान की। •गाँवों में सम्पन्न कृषक समुदाय जैसे गुजरात के पटीदार व उत्तर प्रदेश के जाट सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सक्रिय थे।
  • औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में नागपुर के अतिरिक्त कहीं भी बहुत बड़ी संख्या में भाग नहीं लिया।
  • इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बड़े पैमाने पर भाग लिया।
  • महात्मा गाँधीजी ने घोषणा की कि छुआछूत को समाप्त किये बिना हम स्वराज की स्थापना नहीं कर सकते। उन्होंने अछूतों को हरिजन यानि ईश्वर की सन्तान बताया।
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने सन् 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया।
  • अंबेडकर ने गाँधीजी की बात मानकर सितंबर, 1932 में पूना पैक्ट पर दस्तखत किए।
  • भारत में सामूहिक अपनेपन की भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों के चलते उत्पन्न हुई थी।
  • राष्ट्रवाद को साकार करने में इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक, सभी ने अपना योगदान दिया था।
  • 1870 के दशक में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने मातृभूमि की स्तुति में ‘वन्देमातरम्’ गीत लिखा। यह गीत उनके उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में शामिल है।
  • स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा से अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की छवि को चित्रित किया।
  • जैसे-जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन आगे-बढ़ा। राष्ट्रवादी नेताओं ने लोगों को एकजुट करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए विभिन्न प्रकार के चिह्नों व प्रतीकों का प्रयोग किया।
  • अंग्रेज सरकार के विरुद्ध तीव्र गति से बढ़ता गुस्सा भारतीय समूहों एवं वर्गों के लिए स्वतन्त्रता का साझा संघर्ष बनता जा रहा था। औपनिवेशिक शासन से मुक्ति की चाह में लोगों को सामुहिक होने का आधार प्रदान किया था।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ

तिथि घटनाएँ
1. 1913 ई. 6 नवम्बर को महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत मजदूरों के अधिकारों को हनन करने वाले नस्लभेदी कानून के विरुद्ध सत्याग्रह किया।
2. 1915 ई. जनवरी माह में महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये।
3. 1916 ई. महात्मा गाँधी ने बिहार के चम्पारन क्षेत्र का दौरा किया।
4. 1918-19 ई. बाबा रामचन्द्र द्वारा उत्तर-प्रदेश के कृषकों को संगठित किया।
5. 1918 ई. महात्मा गाँधी सूती वस्त्र कारखानों के श्रमिकों के मध्य सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद पहुँचे।
6. 1919 ई. रॉलेट एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह चलाने का निश्चय किया। 13 अप्रैल को अमृतसर का जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ।
7. 1920 ई. सितम्बर माह में महात्मा गाँधी द्वारा कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में खिलाफत आन्दोलन के समर्थन एवं स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु अन्य नेताओं को सहमत किया।
8. 1921 ई. असहयोग आन्दोलन के लिए समर्थन जुटाने हेतु गाँधीजी व शौकत अली ने देशभर में यात्राएँ कीं। दिसम्बर माह में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति हेतु समझौता। भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस का गठन।
9. 1922 ई. जनवरी माह में असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ।
10. 1924 ई. फरवरी माह चौरी-चौरा कांड, महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लिया।
11. 1927 मई माह में अल्लूरी सीताराम राजू की गिरफ्तारी। दो वर्ष से चला आ रहा हथियारबन्द आदिवासी संघर्ष समाप्त।
12. 1928 भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ का गठन।
13. 1929 साइमन कमीशन भारत पहुँचा। सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन।
14. 1930 ई. अक्टूबर माह में वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा भारत के लिए डोमीनियन स्टेट्स की घोषणा। दिसम्बर माह में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग औपचारिक रूप से स्वीकार, 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाये जाने का निर्णय।
15. 1931 जनवरी माह में महात्मा गाँधी द्वारा 11 सूत्री माँगों के साथ वायसराय इरविन को पत्र लिखा गया। मार्च में गाँधीजी द्वारा दांडी में नमक कानून का उल्लंघन करके सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करना, डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित करना।
16. 1932 मार्च माहृ में गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वापस लिया जाना। 5 मार्च को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। दिसम्बर माह द्वितीय गोलमेज सम्मेलन। गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने महात्मा गाँधीजी लन्दन गये। सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुन: प्रारम्भ, सितम्बर माह में पूना समझौता हुआ।
17. 1942 14 जुलाई को अपनी कार्यकारिणी में कांग्रेस कार्य समिति में ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया। 8 अगस्त को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। महात्मा गाँधी ने प्रसिद्ध ‘करो या मरो’ का नारा दिया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  1. जबरन भर्ती: इस प्रक्रिया के अन्तर्गत अंग्रेज भारतीय लोगों को अपनी सेना में जबरदस्ती भर्ती कर लेते थे।
  2. पिकेटिंग: विरोध अथवा प्रदर्शन का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दुकान, कारखाना या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते है।
  3. बहिष्कार: किसी के साथ सम्पर्क रखने एवं जुड़ने से इंकार करना अथवा गतिविधियों में हिस्सेदारी, वस्तुओं की खरीद एवं प्रयोग से इन्कार करना। सामान्यतया यह विरोध प्रदर्शन का एक रूप होता है।
  4. सत्याग्रह: दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध गाँधीजी द्वारा प्रयोग किया गया एक अहिंसात्मक ढंग।
  5. गिरमिटिया मजदूर: औपनिवेशिक शासन के दौरान अधिक संख्या में लोगों को काम करने के लिए गयाना, फिजी, वेस्टइंडीज. आदि स्थानों पर ले जाया जाता था जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा। इन श्रमिकों को एक अनुबन्ध के तहत ले जाया जाता था, बाद में इसी समझौते के अन्तर्गत ये श्रमिक गिरमिट कहने लगे, जिससे आगे चलकर इन श्रमिकों को गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा।
  6. खिलाफत आन्दोलन: यह मोहम्मद अली एवं शौकत अली बन्धुओं द्वारा संचालित एक विरोध आन्दोलन था जो तुर्की के साथ युद्ध के पश्चात् किए गए अन्याय के विरुद्ध चलाया गया था।
  7. असहयोग आन्दोलन: जनवरी, 1921 ई. में महात्मा गाँधी जी द्वारा संचालित आन्दोलन। इस आन्दोलन का उद्देश्य पंजाब एवं तुर्की में हुए अन्याय का विरोध करना एवं स्वराज की प्राप्ति था।
  8. इंग्लैंड इमिग्रेशन एक्ट: अंग्रेज सरकार द्वारा लागू एक कानून जिसके तहत बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को बिना अनुमति बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाजत उन्हें कभी-कभी ही मिलती थी।
  9. पूना समझौता: सितम्बर, 1932 ई. में गाँधीजी एवं डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के मध्य हुआ एक समझौता जिसके अन्तर्गत दलित वर्गों को प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में सीटों का आरक्षण दिया गया।
  10. दांडी यात्रा: महात्मा गाँधी जी अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट दांडी तक पैदल यात्रा की थी तथा वहाँ नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

→ फ्रांसीसी क्रांति

  • फ्रांसीसी कलाकार फ्रेड्रिक सॉरयू ने सन् 1848 में चार चित्रों की एक श्रृंखला (विश्वव्यापी प्रजातांत्रिक और सामाजिक
    गणराज्यों का स्वप्न-राष्ट्रों के बीच संधि) बनाई। इनके कल्पनादर्श (युटोपिया) में विश्व के लोग अलग राष्ट्रों के समूहों में विभक्त हैं जिन्हें उनके कपड़ों एवं राष्ट्रीय पोशाकों से पहचाना जा सकता है।
  • 19 वीं सदी के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसी शक्ति के रूप में सामने आया जिसने यूरोप के राजनीतिक तथा मानसिक जगत में बड़े बदलाव किए जिनके परिणामस्वरूप अंततः यूरोप के बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्यों की जगह ‘राष्ट्र-राज्य’ का उदय हुआ।

→ यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

  • यूरोप में राष्ट्रवाद की प्रथम स्पष्ट अभिव्यक्ति सन् 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति के साथ हुई। इससे उत्पन्न हुए राजनीतिक
    तथा संवैधानिक परिवर्तनों से प्रभुसत्ता का हस्तांतरण राजतंत्र से निकलकर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हुआ।
  • फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने प्रारम्भ से ही ऐसे अनेक कदम उठाए जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की
    भावना उत्पन्न हो सकती थी।
  • इस्टेट जेनरल का नाम बदलकर नेशनल एसेबंली कर दिया गया तथा इसका चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा
    करवाया जाने लगा।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति, रियों का प्रमुख लक्ष्य यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराना था। नेपोलियन ने प्र में राजतंत्र को वापस लाकर प्रजातंत्र को समाप्त किया लेकिन उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक क्रान्तिकारी सिद्धान्तों को सम्मिलित किया।
  • सन् 1804 में नेपोलियन ने एक नागरिक संहिता का निर्माण किया, जिसे नेपोलियन संहिता के नाम से भी जाना जाता है। इसमें जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
  • नेपोलियन द्वारा निर्मित नागरिक संहिता में कानून के समक्ष समानता एवं सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित रखने की बात कही गयी थी। अठारहवीं शताब्दी के मध्य में पूर्वी व मध्य यूरोप निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन था। यहाँ रहने वाले लोग विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे। केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा ही इन समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व था। यूरोप महाद्वीप का सबसे शक्तिशाली वर्ग-कुलीन वर्ग था जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से भूमि का मालिक था।
  • जनसंख्या की दृष्टि से कुलीन वर्ग एक छोटा समूह था जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे।
  • मध्य एवं पश्चिमी यूरोप में औद्योगिक उत्पादन एवं व्यापार में वृद्धि होने से विभिन्न शहरों व वाणिज्यिक वर्गों का जन्म हुआ। इन वर्गों का अस्तित्व बाजार के लिए उत्पादन पर टिका था।

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→ उदारवादी राष्ट्रवाद

  • कुलीन वर्ग को प्राप्त विशेषाधिकारों की समाप्ति के पश्चात् शिक्षित एवं उदारवादी वर्गों के बीच ही राष्ट्रीय एकता के विचारों का अधिक प्रचार-प्रसार हुआ।
  • उदारवाद (Liberalism) शब्द लैटिन भाषा के मूल शब्द Liber से निकला है जिसका अर्थ है- आजाद।
  • यूरोप के नवीन मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का अर्थ था-लोगों के लिए स्वतन्त्रता एवं कानून के समक्ष सभी की
    समानता।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति के पश्चात् से ही उदारवाद निरंकुश शासक व पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति तथा संविधान एवं संसदीय प्रतिनिधि सरकार का समर्थक था।
  • आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाजारों की मुक्ति एवं पूँजी व वस्तुओं के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाये गये नियन्त्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था।

→  रूढ़िवाद का उदय व वियना संधि

  • सन् 1815 में नेपोलियन की पराजय के पश्चात् यूरोप की सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित थीं। रूढ़िवादियों का मत था कि राज्य व समाज द्वारा स्थापित की गयी पारम्परिक संस्थाओं जैसे- चर्च, सामाजिक भेदभाव, राजतन्त्र, सम्पत्ति एवं परिवार को बनाए रखना चाहिए।
  • नेपोलियन को पराजित करने वाली यूरोपीय शक्तियों-ब्रिटेन, रूस, प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के प्रतिनिधियों ने यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मुलाकात की। ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने इस सम्मेलन की मेजबानी की। इस सम्मेलन में सभी प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से सन् 1815 की वियना सन्धि तैयार की।
  • वियना सन्धि का उद्देश्य उन बहुत से बदलावों को समाप्त करना था जिन्हें नेपोलियाई युद्धों के दौरान किया गया था।
  • वियना सन्धि के तहत, फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान हटाए गये बूढे राजवंश को वापस शासन का अधिकार दिया गया।
  • फ्रांस को भविष्य में विस्तार करने से रोकने के लिए उसकी सीमाओं पर उत्तर में नीदरलैंड्स राज्य स्थापित किया गया तथा दक्षिण में पीडमॉण्ट में जेनोआ को सम्मिलित किया गया।
  • सन् 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं।
  • रूढ़िवादी व्यवस्था के आलोचक उदारवादी राष्ट्रवादी प्रेस की स्वतन्त्रता चाहते थे।

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→  क्रांतिकारी

  • सन् 1815 के पश्चात् यूरोप में अनेक उदारवादी-राष्ट्रवादी सरकारी दमन के भय से भूमिगत हो गये।
  • विभिन्न यूरोपीय देशों में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण एवं विचारों का प्रसार करने के लिए अनेक गुप्त संगठनों का निर्माण हुआ।
  • इटली का ज्युसेपी मेत्सिनी भी एक ऐसा क्रान्तिकारी था जो, कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य था।
  • मेत्सिनी ने 24 वर्ष की अवस्था में लिगुरिया में क्रांति करने के लिए बहिष्कृत होने के बाद ‘यंग इनी’ (मार्सेई में) तथा ‘यंग यूरोप’ (बर्न में) नामक दो अन्य भूमिगत संगठनों की स्थापना की।
  • मेत्सिनी राजतंत्र का घोर विरोध कर तथा प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने स्वप्न से रूढ़िवादियों ६ हराने में सफल रहा। उसे मैटरनिख ने ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ करार दिया।

→ क्रांतियों का युग व रूमावी कल्पनी और राष्ट्रीय भावना

  • जुलाई 1830 में फ्रांस में प्रथम विद्रोह हुआ जिसमें उदारवादी क्रांतिकारियों ने बूढे राजा को सत्ता से बेदखल कर दिया तथा लुई फिलिप की अध्यक्षता में एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया।
  • सन् 1832 में हुई कुस्तुनतुनिया की सन्धि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की।
  • राष्ट्रवाद के विचार के निर्माण में संस्कृति का बहुत अधिक योगदान रहा।
  • रूमानी कलाकारों एवं कवियों ने तर्क-वितर्क व विज्ञान के स्थान पर भावनाओं, अंतर्दृष्टि एवं रहस्यवादी भावनाओं पर – अधिक बल दिया।
  • जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड के अनुसार राष्ट्र की वास्तविक आत्मा लोकगीतों, जनकाव्य एवं लोकनृत्यों से प्रकट होती थी।
  • यूरोप में राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भाषा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

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→ भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह तथा उदारवादियों की क्रांति:

  • सन् 1830 के दशक में यूरोप में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिनमें तीव्र जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी में वृद्धि, वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि एवं निर्धनता प्रमुख थीं। सन् 1848 में खाने-पीने की सामग्री की कमी एवं अत्यधिक बेरोजगारी के कारण लोगों ने पेरिस की सड़कों पर आकर आन्दोलन कर दिया।
  • सन् 1848 में अनेक यूरोपीय देशों में किसान व मजदूर वर्ग ने गरीबी, बेरोजगारी व भुखमरी के कारण विद्रोह कर दिया।
    उसी समय शिक्षित मध्यम वर्ग ने भी राजा के विरुद्ध क्रान्ति कर दी।
  • उदारवादी मध्यम वर्ग ने राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग की जो संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता एवं संगठन निर्माण की
    स्वतन्त्रता जैसे संसदीय व्यवस्था के सिद्धान्तों पर आधारित थी।
  • 18 मई, 1848 को जर्मन क्षेत्रों में मतदान द्वारा सर्व-जर्मन नेशनल एसेम्बली का गठन किया गया, जिसमें 831 निर्वाचित प्रतिनिधि थे। इसे ‘फ्रैंकफर्ट संसद’ के नाम से जाना गया।
  • फ्रैंकफर्ट संसद में मध्यम वर्ग का प्रभाव अधिक था, जिसने मजदूर-कारीगर वर्ग की माँगों का विरोध किया। फलस्वरूप मध्यम वर्ग ने समर्थन खो दिया और संसद भंग हो गयी।
  • उदारवादी आंदोलन में महिलाओं को राजनैतिक अधिकार प्रदान करने का मुद्दा विवादास्पद था।
  • सन् 1848 में रूढ़िवादी ताकतों ने उदारवादी आन्दोलन को समाप्त कर दिया। लेकिन वे पुरानी व्यवस्था बहाल करने में नाकाम रहीं।

→ जर्मनी व इटली का एकीकरण

  • मध्य वर्ग के जर्मन राष्ट्रवादी लोगों के प्रयासों से जर्मनी व इटली एकीकृत होकर राष्ट्र-राज्य बने।
  • बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व किया। ऑस्ट्रिया, डेनमार्क व फ्रांस से सात वर्ष के दौरान तीन युद्धों में जीत के साथ प्रशा ने एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया।
  • जनवरी 1871 में वर्साय में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
  • जर्मनी की तरह इटली का भी राजनीतिक विखण्डन का एक लम्बा इतिहास रहा है।
  • उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में इटली सात राज्यों में विभाजित था। इनमें से मात्र एक सार्डिनिया पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था।
  • सन् 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इटली गणराज्य के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत की तथा ‘यंग इटली’ नामक गुप्त संगठन का गठन किया।
  • सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय के मंत्री प्रमुख कापूर ने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया।
  • सन् 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली राष्ट्र का राजा घोषित किया गया।

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→  ब्रिटेन का उदय

  1. ब्रिटेन में राष्ट्र राज्य का निर्माण अचानक न होकर एक लम्बी प्रक्रिया द्वारा हुआ।
  2. अठारहवीं शताब्दी से पहले विश्व में कोई ब्रिटेन नाम का राष्ट्र नहीं था। सन् 1688 में आंग्ल संसद ने राजतंत्र से सत्ता छीनकर एक राष्ट्र राज्य का निर्माण किया जिसके केन्द्र में इंग्लैण्ड था।
  3. सन् 1707 में इंग्लैण्ड और स्कॉटलैण्ड के बीच एक्ट ऑफ यूनियन नामक समझौते के तहत ‘यूनाइटेड किगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ।
  4. सन् 1801 में आयरलैण्ड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में सम्मिलित कर लिया गया। इस तरह नये ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण हुआ।

→  राष्ट्र दृश्य की कल्पना

  • 18 वीं एवं 19 वीं शताब्दी के कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके उसे मानव के रूप में चित्रित किया। उस समय राष्ट्र को महिला भेष में प्रस्तुत किया जाता था। इस काल में महिला की छवि राष्ट्र का प्रतीक (रूपक) बन गयी।
  • फ्रांसीसी गणराज्य में मारीआन की तस्वीर, जर्मनी में जर्मेनिया की तस्वीर इसी प्रकार की अभिव्यक्ति के प्रमुख उदाहरण

→  राष्ट्रवाद व साम्राज्य

  • सन् 1871 के पश्चात् यूरोप महाद्वीप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का प्रमुख स्रोत बाल्कन क्षेत्र था।
  • बाल्कन क्षेत्र में भौगोलिक एवं जातीय भिन्नता बहुत अधिक थी। इस क्षेत्र में आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया एवं मॉन्टिनिग्रो आदि सम्मिलित थे। आमतौर पर इस क्षेत्र के निवासियों को स्लाव कहा जाता था।
  • बाल्कन क्षेत्र का अधिकांश भाग ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था।
  • 19वीं शताब्दी में बाल्कन क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र ऑटोमन साम्राज्य के नियन्त्रण से निकलकर स्वतन्त्रता की घोषणा करने लगे।
  • साम्राज्यवाद से जुड़कर राष्ट्रवाद सन् 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। अंततः प्रथम विश्व युद्ध हआ।
  • यूरोपीय शक्तियों के अधीन विश्व के विभिन्न राष्ट्रों ने उनके साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध किया।
तिथि घटनाएँ
1. 1688 ई. आंग्ल (इंग्लैण्ड) की संसद ने राजतंत्र से शक्ति छीन ली एवं एक राष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ।
2. 1707 ई. इंग्लैण्ड एवं स्कॉटलैण्ड के मध्य एक्ट ऑफ यूनियन द्वारा ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन किया गया।
3. 1785 ई. जर्मनी के उदारवादी नेता जैकब ग्रिम का जन्म।
4. 1786 ई. जर्मनी के उदारवादी नेता विल्हेल्म ग्रिम का जन्म।
5. 1789 ई. फ्रांस की क्रान्ति।
6. 1797 ई. नेपोलियन का इटली पर आक्रमण, नेपोलियन के युद्धों की शुरुआत।
7. 1801 ई. आयरलैण्ड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में सम्मिलित किया गया।
8. 1804 ई. फ्रांस में नागरिक संहिता का निर्माण किया गया, जिसे नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना गया।
9. 1807 ई. इटली के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी ज्युसेपे मेत्सिनी का जन्म।
10. 1812 ई. ग्रीम्स बन्धु जैकब ग्रिम व विल्हेल्म ग्रिम की लोककथाओं की कहानियों का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ।
11. 1814-15 ई. नेपोलियन का पतन एवं वियना शांति संधि।
12. 1819 ई. लुइजे ऑटो पीटर्स का जन्म।
13. 1821 है. यूनानियों का स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ।
14. 1830 ई. फ्रांस की उुलाई क्रान्ति।
15. 1831 ई. रूस के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह।
16. 1832 है. कुस्तुनु निया की संधि ने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी।
17. 1834 ह. प्रशा की पहल पर एक शुल्क संघ, ‘जॉवेराइन’ की स्थापना जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य सम्मिलित थे।
18. 1848 ईई. फ्रांस में क्रान्ति, आर्थिक समस्याओं से परेशान कारीगरों, औद्योगिक मजदूरों एवं किसानों की बगावत, मध्यम वर्ग द्वारा संविधान तथा प्रतिनिध्यात्मक सरकार के गठन की माँग, जर्मन, इतालवी, पोलिश, चेक आदि के लोगों ने राष्ट्र राज्यों की माँग की।
19. 1859-1870 ई. इटली का एकीकरण।
20. 1861 ई. इमेनुएल द्वितीय एकीकृत इटली का राजा घोषित।
21. 1866-1871 ई. जर्मनी का एकीकरण।
22. जनवरी 1871 ई. वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
23. 1905 ई. हैब्सबर्ग एवं ऑटोमन साम्राज्यों में स्लाव राष्ट्रवाद की मजबूती।
24. 1914 ई प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. निरंकुशवाद:
एक ऐसी सरकार अथवा शासन व्यवस्था जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता। इतिहास में ऐसी राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार कहा जाता है जो अत्यधिक केन्द्रीकृत सैन्य बल पर निर्भर एवं दमनकारी सरकारें होती थीं।

2. कल्पनादर्श (युटोपिया): एक ऐसे समाज की कल्पना जो इतना अधिक आदर्श है कि उसका साकार होना लगभग असम्भव होता है।

3. जनमत संग्रह: एक प्रत्यक्ष मतदान जिसके माध्यम से एक क्षेत्र के समस्त लोगों को किसी प्रस्ताव को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करने के लिए पूछा जाता है।

4. राष्ट्र: समान नस्ल, भाषा, धर्म एवं क्षेत्र है, जिसे एक लम्बे प्रयासों, त्याग एवं निष्ठा के द्वारा प्राप्त किया है।
5. मताधिकार: मत (वोट) देने का अधिकार।

6. रूढ़िवाद: एक ऐसा राजनीतिक दर्शन जो परम्परा, स्थापित संस्थाओं व रीति-रिवाज़ों पर बल देता है एवं तीव्र परिवर्तन की अपेक्षा धीमे व श्रमिक विकास को प्राथमिकता देता है।

7. नारीवाद: महिला व पुरुष की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक समानता की सोच के आधार पर महिलाओं के अधिकारों व हितों के प्रति जागृति की विचारधारा।

8. विचारधारा: एक विशेष प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक दृष्टि को इंगित करने वाले विचारों का समूह।

9. नृजातीय: एक साझा नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान स्वीकार करता है।

10. राष्ट्रवाद: व्यक्तियों के द्वारा एकता की भावना को महसूस करना जो एक समान भाषा, इतिहास एवं साझी संस्कृति के भागीदार होते हैं।

11. उदारवाद: यूरोप में 19वीं शताब्दी में मध्यम वर्ग के लोगों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा प्रोत्साहित वह विचारधारा जिसमें उनको ही अधिक-से-अधिक राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में अवसर प्रदान हों तथा उनकी हिस्सेदारी को महत्व प्रदान किया जाये।

12. रूपक: जब किसी भी अमूर्त विचार; जैसे-लालच, ईर्ष्या, स्वतन्त्रता, मुक्ति आदि को किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। एक रूपकात्मक कहानी के दो अर्थ होते हैं- एक शाब्दिक अर्थ व एक प्रतीकात्मक अर्थ।

13. मारीआन: फ्रांस में राष्ट्रीय भावना के रूपक के रूप में दर्शायी गई एक नारी की छवि। यह ईसाइयों का लोकप्रिय नाम था। इसे सिक्कों और डाक-टिकटों पर दर्शाया गया था।

14. जर्मेनिया: जर्मन राष्ट्र की रूपक। इसे वीरता के प्रतीक ‘बलूत के वृक्ष के पत्तों का मुकुट’ पहने हुए दर्शाया गया है।

15. राष्ट्र का मानवीकरण: एक देश को इस प्रकार चित्रित करना कि वह कोई व्यक्ति हो।

16. हलेनिज्म: प्राचीन यूनानी संस्कृति।

17. क्रान्ति: अचानक होने वाली ऐसी कार्यवाही जो गैर-कानूनी तरीके अथवा शक्ति के द्वारा सरकार या शासन में परिवर्तन के लिए विद्रोह के रूप में प्रकट होती है।

18. जॉलवेराइन: प्रशा की पहल पर स्थापित एक शुल्क संघ।

19. रूमानीवाद: एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।

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