JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 3 लोकतंत्र और विविधता

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 3 लोकतंत्र और विविधता

पाठसारांश

→ लोकतंत्र व पहचान की भूमिका

  • लोगों की विशिष्ट पहचान सिर्फ भाषा एवं क्षेत्र के आधार पर ही नहीं होती बल्कि कई बार लोग अपनी पहचान एवं दूसरों से अपने सम्बन्ध शारीरिक बनावट, वर्ग, धर्म, लिंग, जाति, कबीले आदि के आधार पर भी होते हैं।
  • लोकतन्त्र समस्त सामाजिक विभिन्नताओं, अन्तरों एवं असमानताओं के मध्य सामंजस्य बैठाकर उनका सर्वमान्य समाधान प्रदान करने की कोशिश करता है।
  • सन् 1968 ई. में मैक्सिको सिटी में हुए ओलंपिक खेलों में 200 मीटर की दौड़ में एफ्रो-अमेरिकी टॉमी स्मिथ व जॉन कार्लोस ने स्वर्ण व रजत पदक जीता था।
  • स्मिथ ने पदक वितरण समारोह में गले में एक काला मफलर जैसा परिधान पहना था जो अश्वेत लोगों के आत्म-गौरव का प्रतीक है। कार्लोस ने काले मनकों की एक माला पहनी थी। काले दस्ताने व बँधी हुई मुट्ठियाँ अश्वेत शक्ति का प्रतीक थीं।
  • अपने इन प्रतीक और तौर-तरीकों से उन्होंने अमेरिका में होने वाले रंगभेद के प्रति अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने का प्रयास किया।

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→ समानताएँ, असमानताएँ और विभाजन

  • सामाजिक विभाजन मुख्य रूप से जन्म पर आधारित होता है।
  • सभी प्रकार का सामाजिक विभाजन जन्म पर ही आधारित नहीं होता है। कुछ चीजों को हम अपनी पसन्द या चुनाव के आधार पर भी तय करते हैं; जैसे-पढ़ाई के विषय, पेशे, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियाँ आदि।
  • सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं।
  • यदि एक-सी सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना कठिन हो जाता है।
  • आज अधिकांश समाजों में कई तरह के विभाजन दिखाई देते हैं। देश का बड़ा या छोटा होना कोई खास मायने नहीं रखता है। यथा-भारत एक बड़ा देश है जिसमें अनेक समुदायों के लोग रहते हैं जबकि बेल्जियम एक छोटा देश है लेकिन वहाँ भी कई समुदायों के लोग रहते हैं।

→ सामाजिक विभाजन की राजनीति व आयाम

  • सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन बिन्दुओं पर निर्भर करता है- पहला बिन्दु लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना, दूसरा महत्त्वपूर्ण बिन्दु-किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं तथा तीसरा बिन्दु-सरकार का रुख।
  • लोकतन्त्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी हो सकता है।
  • जो लोग स्वयं को वंचित, उपेक्षित एवं भेदभाव का शिकार मानते हैं, उन्हें अन्याय से संघर्ष भी करना होता है। ऐसी लड़ाई प्रायः लोकतान्त्रिक रास्ता ही अपनाती है।
  • कई बार गैर-बराबरी एवं अन्याय के विरुद्ध होने वाला संघर्ष हिंसा का रास्ता भी अपना लेता है, लेकिन ऐसी समस्त गड़बड़ियों की पहचान करने एवं विविधता को समाहित करने का लोकतंत्र ही सबसे अच्छा तरीका है।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 3 लोकतंत्र और विविधता

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. एफ्रो: अमेरिकी-एफ्रो-अमेरिकन, अश्वेत अमेरिकी या अश्वेत शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयोग में लाया जाता है जिन्हें 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका में गुलाम बनाकर लाया गया था।

2. नागरिक अधिकार आन्दोलन: यह आन्दोलन संयुक्त राज्य अमेरिका में सन् 1954 ई. से 1968 ई. के मध्य चलाया गया था। इस आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य एफ्रो-अमेरिकी लोगों के विरुद्ध होने वाले नस्ल आधारित भेदभाव को समाप्त करना था।

3. पूर्णतः अहिंसक इस आन्दोलन का नेतृत्व मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने किया था। इन्होंने नस्ल के आधार पर
भेदभाव करने वाले कानूनों और व्यवहार को समाप्त करने की मांग उठाई, जो अन्त में सफल हुई।

4. अश्वेत शक्ति आन्दोलन: यह आन्दोलन 1966 ई. से 1975 ई. के मध्य चला। नस्ल के आधार पर भेदभाव के प्रति इस आन्दोलन का रवैया अधिक उग्र था, यह नस्लवाद को समाप्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेने का भी समर्थन करता था।

5. समरूप समाज: एक ऐसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक अथवा जातीय विभिन्नताएँ अधिक गहरी नहीं होती

6. नस्लवाद: लोगों के बीच जैविक अन्तर की सामाजिक धारणाओं में आधारित भेदभाव व पूर्वाग्रह दोनों की स्थिति।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 2 संघवाद

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 2 संघवाद

→ संघवाद

  • आधुनिक लोकतन्त्रों में सत्ता की साझेदारी का एक आम रूप है-शासन के विभिन्न स्तरों के मध्य सत्ता का ऊर्ध्वाधर विभाजन। इसे आमतौर पर संघवाद कहा जाता है।
  • बेल्जियम सरकार ने एकात्मक शासन के स्थान पर संघीय शासन प्रणाली को अपनाया।
  • श्रीलंका में व्यावहारिक रूप से अभी भी एकात्मक शासन व्यवस्था है।

→ संघवाद क्या है?

  • संघीय शासन व्यवस्था में समस्त शक्तियाँ केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य बँट जाती हैं।
  • एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन का एक ही स्तर होता है एवं शेष इकाइयाँ उसके नियन्त्रण में रहकर कार्य करती हैं।
  • संघीय शासन व्यवस्था में संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती, बल्कि दोनों स्तरों की सरकारों की सहमति आवश्यक होती है।
  • संघीय शासन व्यवस्था के दो प्रमुख उद्देश्य-देश की एकता की सुरक्षा करना व उसे बढ़ावा देना तथा क्षेत्रीय विविधताओं का पूर्ण सम्मान करना है।
  • आपसी भरोसा तथा साथ रहने पर सहमति आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पक्ष हैं।
  • संघीय शासन व्यवस्थाएँ दो तरीकों से गठित होती हैं:
    1. दो या दो से अधिक स्वतन्त्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करना। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड व ऑस्ट्रेलिया आदि।
    2. बड़े देश द्वारा अपनी आन्तरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा करना। जैसे भारत, बेल्जियम व स्पेन आदि।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 2 संघवाद

→ भारत में संघीय व्यवस्था

  • स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय संविधान ने भारत को राज्यों का संघ घोषित किया।
  • भारतीय संविधान में मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया गया था-संघ सरकार (केन्द्र सरकार) एवं राज्य सरकारें तत्पश्चात् नगरपालिकाओं और पंचायतों के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।
  • भारतीय संविधान में केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य कानूनी अधिकारों को तीन भागों में बाँटा गया है:
    1. संघ सची.
    2. राज्य सूची,
    3. समवर्ती सूची।
  • संघ सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को दिया गया है। संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार एवं मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित किये गये हैं।
  • राज्य सूची में वर्णित विषयों पर सिर्फ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है। इस सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, सिंचाई एवं कृषि जैसे प्रान्तीय एवं स्थानीय महत्व के विषय सम्मिलित हैं।
  • समवर्ती सूची के विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। लेकिन टकराव की स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। इस सूची के प्रमुख विषयों में शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना व उत्तराधिकार जैसे विषय सम्मिलित हैं।
  • हमारे संविधान के अनुसार शेष बचे विषय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
  • भारतीय संघ के सभी राज्यों को समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं। असम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम जैसे कुछ राज्यों को अपने विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों की वजह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं जो स्वदेशी लोगों, उनकी संस्कृति तथा सरकारी सेवाओं में अधिमान्य रोजगार के भूमि अधिकारों के संरक्षण के सम्बन्धों में पूर्णतः उपयोगी हैं।
  • चंडीगढ़, लक्षद्वीप तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जैसे इलाके केन्द्र शासित प्रदेश कहलाते हैं। इन्हें राज्यों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

→  संघीय व्यवस्था कैसे चलती है?

  • संवैधानिक प्रावधानों और कानूनों के क्रियान्वयन की देख-रेख के लिए न्यायपालिका का गठन किया गया है।
  • भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता का श्रेय यहाँ की लोकतान्त्रिक राजनीति के चरित्र को दिया जा सकता है।

→ भाषयी नीति

  • भारतीय संविधान में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया। हिन्दी को राजभाषा माना गया। यह लगभग 40 प्रतिशत भारतीयों की मातृभाषा है।
  • हमारे संविधान में हिन्दी के अतिरिक्त 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 2 संघवाद

→  केन्द्र-राज्य सम्बन्ध

  • 1990 के बाद देश के बहुत-से राज्यों में क्षेत्रीय दल उभर कर सामने आए तथा केन्द्र में गठबन्धन सरकार की शुरुआत
  • राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को 1 नवम्बर, 1956 ई. लागू किया गया था।
  • जब केन्द्र एवं राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को प्रदान की जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं।
  • स्व-शासन के लोकतान्त्रिक सिद्धान्त को वास्तविक बनाने का सबसे अच्छा तरीका स्थानीय सरकारों की स्थापना करना हैं।

→ भारत में विकेन्द्रीकरण

  • लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम 1992 ई. में उठाया गया जब संविधान में संशोधन करके लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के तीसरे स्तर, स्थानीय स्वशासन व्यवस्था को अधिक शक्तिशाली एवं प्रभावी बनाया गया।
  • स्थानीय शासन व्यवस्था, जो गाँवों के स्तर पर मौजूद रहती है, को ‘पंचायती राज’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • स्थानीय स्वशासन का ढाँचा जिला स्तर तक का है। स्वशासन, गाँवों व शहरों दोनों स्थानों में स्थापित किया गया है।
  • भारत में स्थानीय सरकारों की यह नयी व्यवस्था संसार में लोकतन्त्र का अब तक का सबसे बड़ा प्रयोग है।

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→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. अधिकार क्षेत्र: एक ऐसा क्षेत्र जिस पर किसी का कानूनी अधिकार हो। यह एक भौगोलिक क्षेत्र भी हो सकता है। अथवा इसके अन्तर्गत कुछ विषयों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।

2. गठबन्धन सरकार: एक से अधिक राजनीतिक दलों द्वारा साथ मिलकर बनायी गयी सरकार को गठबन्धन या मिली-जुली सरकार कहते हैं।

3. संघवाद: एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संविधान द्वारा शासन की शक्तियों का केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मध्य बँटवारा कर दिया जाता है।

4. एकात्मक शासन व्यवस्था: शासन प्रणाली का वह रूप जिसमें संविधान द्वारा शासन की समस्त शक्तियों का केन्द्रीय सरकार के हाथों में केन्द्रीयकरण कर दिया जाता है।

5. संघ सूची: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को होता है। संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार, मुद्रा आदि राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित हैं।

6. राज्य सूची: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्य सरकार को ही होता है। राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि एवं सिंचाई आदि प्रान्तीय एवं स्थानीय महत्त्व के विषय आते हैं।

7. समवर्ती सूची: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकार दोनों कानून बना सकते हैं। समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना एवं उत्तराधिकार आदि विषय सम्मिलित हैं।

8. बाकी बचे विषय: सत्ता के विभाजन में जिन मामलों को सम्मिलित नहीं किया जाता है, वह बाकी बचे विषय कहलाते हैं। हमारे संविधान के अनुसार बाकी बचे विषय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

9. केन्द्र-शासित प्रदेश: ऐसे क्षेत्र जो अपने छोटे आकार के कारण स्वतन्त्र राज्य नहीं बन सकते। ऐसे क्षेत्रों को राज्यों वाले अधिकार प्राप्त नहीं हैं। इन क्षेत्रों का शासन चलाने का विशेष अधिकार केन्द्र सरकार को प्राप्त है। ऐसे क्षेत्रों को केन्द्र-शासित प्रदेश कहते हैं; जैसे-चण्डीगढ़, लक्षद्वीप आदि।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

पाठ सारांश

→ लोकतांत्रिक व्यवस्था

  • लोकतान्त्रिक व्यवस्था में समस्त शक्ति किसी एक अंग तक सीमित नहीं होती। विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के मध्य पूरी समझ के साथ सत्ता को विकेन्द्रित कर देना लोकतान्त्रिक कामकाज के लिए अति आवश्यक है।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

→  बेल्जियम और श्रीलंका

  • बेल्जियम यूरोप महाद्वीप का एक छोटा-सा देश है। हमारे देश के हरियाणा राज्य से भी छोटे क्षेत्रफल वाले इस देश के समाज की जातीय बुनावट बहुत जटिल है।
  • बेल्जियम की आबादी का 59 प्रतिशत हिस्सा फ्लेमिश क्षेत्र में रहता है तथा डच बोलता है, 40 प्रतिशत लोग वेलोनिया क्षेत्र में रहते हैं तथा फ्रेंच बोलते हैं जबकि शेष एक प्रतिशत लोग जर्मन बोलते हैं।
  • डेनमार्क की राजधानी ब्रूसेल्स में रहने वाले लोगों में 80 प्रतिशत लोग फ्रेंच तथा 20 प्रतिशत लोग डच बोलते हैं।
  • बेल्जियम में अल्पसंख्यक फ्रेंच बोलने वाले लोग तुलनात्मक रूप से अधिक समृद्ध एवं ताकतवर रहे हैं।
  • फ्रेंच और डच भाषी लोगों के बीच 1950 व 1960 के दशक में तनाव उत्पन्न होने लगा, जिसका सर्वाधिक असर ब्रूसेल्स में दिखाई दिया।
  • श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो भारत के तमिलनाडु राज्य के दक्षिणी तट से कुछ किमी दूर स्थित है।
  • दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तरह श्रीलंका की जनसंख्या में भी कई जातीय समूह के लोग हैं। इस देश का सबसे प्रमुख जातीय समूह सिंहलियों का है।
  • श्रीलंका की कुल जनसंख्या में 74 प्रतिशत सिंहली, 18 प्रतिशत तमिल तथा 7 प्रतिशत ईसाई हैं।
  • सन् 1948 ई. में श्रीलंका एक स्वतन्त्र राष्ट्र बना। सन् 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके तहत तमिल के स्थान पर सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित किया गया, जिसका श्रीलंकाई तमिलों ने विरोध किया।
  • श्रीलंका में तमिलों की लगातार अनदेखी के चलते तमिल व सिंहली समुदायों के सम्बन्ध बिगड़ते चले गये और यह टकराव गृहयुद्ध में बदल गया। इस गृहयुद्ध का समापन सन् 2009 में हुआ।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

→  बेल्जियम की समझदारी

  • बेल्जियम के नेताओं ने क्षेत्रीय अन्तरों एवं सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार कर 1970 व 1993 के बीच संविधान में संशोधन किए ताकि कोई भी देशवासी अपने को पराया न समझे तथा सभी मिलजुल कर रह सकें।
  • बेल्जियम के नेताओं ने विभिन्न समुदाय एवं क्षेत्रों की भावनाओं का आदर करते हुए दोनों पक्षों को सत्ता में साझेदारी प्रदान की जबकि श्रीलंका में इसके विपरीत रास्ता अपनाया गया।

→  सत्ता की साझेदारी जरूरी

  • सत्ता के बँटवारे से विभिन्न सामाजिक समूहों के मध्य टकराव की समस्या कम हो जाती है।
  • सत्ता का बँटवारा लोकतान्त्रिक परम्पराओं के लिए भी उचित है।
  • एक अच्छे लोकतान्त्रिक शासन में समाज के विभिन्न समूहों एवं उनके विचारों को उचित सम्मान दिया जाता है तथा सार्वजनिक नीति तय करने में सभी की बातें सम्मिलित होती हैं।

→  सत्ता की साझेदारी के रूप

  • आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शासन के विभिन्न अंग; जैसे-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा रहता है। यह व्यवस्था ‘नियन्त्रण और सन्तुलन की व्यवस्था’ कहलाती है।
  • सत्ता का बँटवारा सरकार के मध्य भी देश, प्रान्त या क्षेत्रीय स्तर पर हो सकता है।
  • सत्ता का बँटवारा विभिन्न सामाजिक समूहों, भाषायी व धार्मिक समूहों के मध्य भी हो सकता है। इस व्यवस्था का एक अच्छा उदाहरण बेल्जियम में ‘सामुदायिक सरकार’ है।
  • सत्ता के बँटवारे का एक रूप हम विभिन्न प्रकार के दबाव समूह एवं आन्दोलनों द्वारा शासन को प्रभावित एवं नियन्त्रित करने के तरीके में भी देख सकते हैं।
  • लोकतन्त्र में व्यापारी, उद्योगपति, किसान एवं औद्योगिक मजदूर जैसे कई संगठित हित-समूह भी सक्रिय रहते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 1 सत्ता की साझेदारी

→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. जातीय या एथनीक: यह साझा संस्कृति पर आधारित सामाजिक विभाजन है। किसी भी जातीय समूह के सभी सदस्य मानते हैं कि उनकी उत्पत्ति समान पूर्वजों से हुई है तथा इसी कारण उनकी शारीरिक बनावट एवं संस्कृति एक जैसी है। यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे समूह के सदस्य किसी एक धर्म के मानने वाले हों अथवा उनकी राष्ट्रीयता एक हो।

2. सत्ता की साझेदारी: एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें समाज के सभी महत्वपूर्ण वर्गों को देश के शासन-संचालन में स्थायी साझेदारी प्राप्त होती है।

3. बहुसंख्यकवाद: यह मान्यता है कि अगर कोई समुदाय बहुसंख्यक है तो वह अपने मनचाहे ढंग से देश का शासन कर सकता है और इसके लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की जरूरत या इच्छाओं की अवहेलना कर सकता है।

4. गृहयुद्ध: किसी देश में सरकार विरोधी समूहों की हिंसक लड़ाई ऐसा रूप ले ले कि वह युद्ध-सा लगे तो उसे गृहयुद्ध कहते हैं।

5. युक्तिपरक: लाभ-हानि का सावधानीपूर्वक हिसाब लगाकर किया गया फैसला/पूरी तरह नैतिकता पर आधारित फैसला प्रायः इसके विपरीत होता है।

6. सामुदायिक सरकार: सामुदायिक सरकार में विभिन्न सामाजिक समूहों को अपने समुदाय से सम्बन्धित मसलों को सुलझाने के लिए सत्ता दी जाती है। ये समूह बिना किसी समुदाय को नीचा दिखाए आम जनता के लाभ के लिए मिलकर कार्य करते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ

पाठ सारांश

  • वस्तुओं एवं सेवाओं को आपूर्ति स्थानों से माँग स्थानों तक ले जाने हेतु परिवहन की आवश्यकता होती है।
  • उत्पाद को परिवहन द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाने वाले व्यक्तियों को व्यापारी कहा जाता है।
  • परिवहन को स्थल, जल एवं वायु परिवहन में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व, राष्ट्र व स्थानीय व्यापार हेतु पूर्व अपेक्षित साधनों में सघन व सक्षम परिवहन का जाल एवं संचार के साधन आवश्यक हैं।
  • भारत विश्व के सर्वाधिक सड़क जाल वाले देशों में से एक है। भारत में सड़कों की सक्षमता के आधार पर इन्हें छ: वर्गों-स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, जिला मार्ग, अन्य सड़कें एवं सीमांत सड़कों में विभाजित किया गया है।
  • स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग का प्रमुख उद्देश्य भारत के मेगासिटी के बीच की दूरी तथा परिवहन को कम करना है।
  • सन् 1960 में बनाया गया सीमा सड़क संगठन देश के सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण एवं उनकी देख-रेख करता है।
  • भारत में रेल परिवहन वस्तुओं एवं यात्रियों के परिवहन का एक प्रमुख साधन है।
  • भारतीय रेलवे देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों एवं कृषि के तीव्र गति से विकास के लिए उत्तरदायी है।
  • भारतीय रेल देश की सबसे बड़ी-सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था है। यह भारत को एकता के सूत्र में पिरोती है।
  • भारत में रेल परिवहन के वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में भू-आकृतिक, आर्थिक एवं प्रशासकीय कारक आदि प्रमुख हैं।
  • विशाल समतल भूमि, समान जनसंख्या घनत्व, सम्पन्न कृषि एवं प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के कारण भारत के उत्तरी मैदान में रेल परिवहन का सर्वाधिक विकास हुआ है।
  • पाइपलाइनें आधुनिक परिवहन का साधन हैं। इनसे कच्चा माल, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि का सस्ता एवं द्रुतगामी परिवहन होता है।
  • वर्तमान समय में प्रमुख तेल व गैस क्षेत्रों से शोधनशालाओं, माँग क्षेत्रों व कुछ उद्योगों एवं विद्युतगृहों तक पाइपलाइनों का जाल बिछाया जाता है।
  • जल परिवहन, परिवहन का सबसे सस्ता साधन है। यह मार्ग निर्माण एवं रख-रखाव आदि के झंझटों से मुक्त, भारी सामानों के लिए सर्वाधिक सरक्षित परिवहन है।
  • भारत में अंत:स्थलीय नौ संचालन जलमार्ग की लम्बाई 14,500 किमी है।
  • जल परिवहन को दो भागों में बाँटा गया है-आन्तरिक जल मार्ग एवं समुद्री जल मार्ग। आन्तरिक जल परिवहन के प्रमुख माध्यम नदियाँ एवं नहरी मार्ग हैं।
  • भारत की समुद्री तट रेखा 7,516.6 किमी. लम्बी है।
  • भारत में 12 प्रमुख एवं 200 मध्यम व छोटे बन्दरगाह हैं। ये देश का 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार संचालित करते हैं।
  • भारत के प्रमुख बन्दरगाहों में कांडला. मुम्बई, मार्मागाओ, न्यू मैंगलोर तृतीकोरन, विशाखापट्टनम, पाराद्वीप, हल्दिया आदि हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ 

  • कांडला एक ज्वारीय पत्तन है जिसे दीनदयाल पत्तन के नाम से भी जाना जाता है।
  • कोच्चि पत्तन एक लैगून के मुहाने पर स्थित एक प्राकृतिक पत्तन है।
  • चेन्नई भारत का प्राचीनतम कृत्रिम पत्तन है जबकि कोलकाता एक अंत: स्थलीय नदीय पत्तन है।
  • वायु परिवहन तीव्रगामी, आरामदायक एवं प्रतिष्ठित परिवहन का साधन है। इसके द्वारा अति दुर्गम स्थानों व लम्बे समुद्री रास्तों को सुगमता से पार किया जा सकता है।
  • भारत में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण एन 1953 में किया गया था। भारत में वायु परिवहन की सेवाएँ एयर इण्डिया, पल हंस हेलीकॉप्टर्स लिमिटेड तथा निजी एयर लाइनों द्वारा प्रदान की जाती है।
  • देश के प्रमुख संचार के साधनों में दूरदर्शन, रेडियो, समाचारपत्र समूह, प्रेस, सिनेमा एवं निजी दूरसंचार प्रमुख हैं।
  • भारत का डाक संचार तंत्र विश्व का वृहत्तम संचार तंत्र है।
  • बड़े शहरों एवं नगरों में डाक संचार में शीघ्रता हेतु छ: डाक मार्गों का निर्माण किया गया है। इन्हें राजधानी मार्ग. मेट्रो चैनल, ग्रीन चैनल, व्यापार चैनल, भारी चैनल एवं दस्तावेज चैनल के नाम से जाना जाता है।
  • हमारे देश में सर्वाधिक समाचार पत्र हिन्दी भाषा में प्रकाशित होते हैं।
  • विश्व में भारत ही सबसे अधिक फिल्में बनाता है। भारत में भारतीय व विदेशी सभी प्रकार की फिल्मों को प्रमाणित करने का अधिकार केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को है।
  • राज्यों एवं देशों में व्यक्तियों के मध्य वस्तुओं के आदान-प्रदान को व्यापार कहते हैं।
  • दो या दो से अधिक देशों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्री, हवाई व स्थलीय मार्गों द्वारा होता है। भारत में निर्यात होने वाली वस्तुओं में कृषि उत्पाद, खनिज व अयस्क, रत्न व जवाहरात, रसायन व सम्बन्धित उत्पाद. इंजीनियरिंग सामान व पेट्रोलियम उत्पाद आदि हैं।
  • भारत में आयातित वस्तुओं में पेट्रोलियम व पेट्रोलियम उत्पाद, मोती व बहुमूल्य रत्न, अकार्बनिक रसायन, कोयला, कोक, मशीनरी आदि प्रमुख हैं।
  • भारत में विदेशी पर्यटकों के आगमन में वृद्धि होने से देश को पर्याप्त विदेशी मुद्रा की प्राप्ति हुई है।
  • भारत में विदेशी पर्यटकों के लिए राजस्थान, गोवा, जम्मू और कश्मीर व दक्षिण भारत में मन्दिरों के नगर प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
  • भारत में विदेशी पर्यटक, विरासत पर्यटन, पारि-पर्यटन, रोमांचकारी पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन एवं व्यापारिक पर्यटन आदि के लिए आते हैं।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. परिवहन: यात्रियों एवं वस्तुओं का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन, परिवहन कहलाता है।

2. व्यापारी: जो व्यक्ति उत्पाद को परिवहन द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं, उन्हें व्यापारी कहते हैं।

3. संचार के साधन: वे साधन जो समाचारों व सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने में सहायक होते हैं, संचार के साधन कहलाते हैं।

4. पत्तन: बन्दरगाह का वह भाग जहाँ सामान जलयानों पर लादा व उतारा जाता है।

5. स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग: यह सड़कों का जाल है, जिसके द्वारा दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई व कोलकाता को आपस में जोड़ा गया है।

6. राष्ट्रीय राजमार्ग: वे महत्वपूर्ण सड़कें जो विभिन्न राज्यों की राजधानियों, प्रमुख औद्योगिक नगरों, बन्दरगाहों व दूरस्थ भागों को परस्पर जोड़ती हैं, राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाती हैं, जैसे-ग्रांड ट्रंक रोड।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ 

7. राज्य राजमार्ग: राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाली सड़कें राज्य राजमार्ग कहलाती हैं।

8. जिला मार्ग: विभिन्न प्रशासनिक केन्द्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाली सड़कें जिला मार्ग कहलाती हैं।

9. सीमांत सड़कें: देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बनायी गयी सामरिक महत्व की सड़कें सीमांत सड़कें कहलाती हैं।

10. मेगा सिटी: सामान्यतया ऐसे नगर जिनकी जनसंख्या दस लाख व्यक्ति से अधिक होती है, महानगर या मेगासिटी कहलाते हैं।

11. सड़क घनत्व: प्रति वर्ग किमी. क्षेत्र में सड़कों की औसत लम्बाई को सड़क घनत्व कहते हैं।

12. पाइपलाइन परिवहन: परिवहन का वह नवीनतम साधन जिसमें खनिज तेल और प्राकृतिक गैस को पाइपलाइनों के द्वारा उत्पादक क्षेत्रों से शोधनशालाओं एवं वहाँ से उपभोक्ता केन्द्रों तक पहुँचाया जाता है, पाइपलाइन परिवहन कहा जाता है।

13. ज्वारीय पत्तन: छिछले तट पर स्थित वह पत्तन जहाँ जलयान ज्वार के आने के साथ-साथ पहँचते हैं तथा जाने के लिए ज्वार के उतरने की प्रतीक्षा करते हैं अर्थात् ज्वार के आने व उतरने पर ही जलयानों का आना-जाना संभव होता है। ऐसे पत्तन ज्वारीय पत्तन कहलाते हैं। उदाहरण-कांडला, कोलकाता।

14. व्यापार सन्तुलन: एक देश के आयात व निर्यात के बीच के अन्तर को व्यापार सन्तुलन कहते हैं।

15. असंतुलित व्यापार: निर्यात की अपेक्षा अधिक आयात होना असंतुलित व्यापार कहलाता है।

16. अनुकूल व्यापार सन्तुलन: यदि किसी देश के निर्यात मूल्य, आयात मूल्य से अधिक हों तो उसे अनुकूल व्यापार सन्तुलन कहते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ 

17. पर्यटन: एक-दूसरे की संस्कृति को समझने व देखने, रमणीक स्थलों एवं प्राकृतिक मनोहारी भूदृश्यों की सैर को पर्यटन कहा जाता है।

18. आयात: जब एक देश दूसरे देश में बने पदार्थों को अपने देश में उपयोग हेतु मँगाता है, तो उसे आयात कहते हैं।

19. निर्यात: जब एक देश अपने यहाँ निर्मित उत्पादों को दूसरे देशों में विक्रय हेतु भेजता है, तो उसे निर्यात कहते हैं।

20. जनसंचार साधन: ये संचार के साधन हैं जिनके माध्यम से एक व्यक्ति अनेक व्यक्तियों के साथ, एक ही समय में विचारों का आदान-प्रदान करता है।

21. बारहमासी सड़कें: पक्की सड़कें, सीमेंट, कंकरीट व तारकोल द्वारा निर्मित सड़कें।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

पाठ सारांश

  • कच्ची सामग्री को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है। द्वितीयक आर्थिक क्रियाकलापों में कार्यरत व्यक्ति कच्चे पदार्थ को परिष्कृत वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं।
  • किसी भी देश की आर्थिक उन्नति का मापन उसके विनिर्माण उद्योगों के विकास से किया जाता है। विनिर्माण उद्योग कृषि के आधुनिकीकरण के साथ-साथ द्वितीयक एवं तृतीयक सेवाओं में रोजगार उपलब्ध कराकर कृषि पर निर्भरता को कम करते हैं।
  • कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे से पृथक्-पृथक् न होकर वरन् एक-दूसरे के सम्पूरक हैं।
  • पिछले दो दशकों से विनिर्माण उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 17 प्रतिशत का योगदान है।
  • वैश्वीकरण के दौर में हमारे देश के उद्योगों को अधिक प्रतिस्पर्धी एवं सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र का विकास करने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद् की स्थापना की। किसी भी उद्योग की स्थापना कच्चे माल, पूँजी, श्रम, शक्ति के संसाधन एवं बाजार आदि की उपलब्धता से प्रभावित होती है।
  • नगरीय केन्द्रों द्वारा प्रदत्त सुविधाओं से लाभान्वित कई बार अनेक उद्योग नगरों के आस-पास ही केन्द्रित हो जाते हैं, जिसे समूहन बचत के नाम से जाना जाता है। न्यूनतम उत्पादन लागत द्वारा किसी उद्योग की अवस्थिति का निर्धारण किया जाता है। कच्चे माल के स्रोतों के आधार पर उद्योगों को दो भागों अर्थात् कृषि एवं खनिज आधारित में बाँटा जा सकता है।
  • आधारभूत उद्योगों की श्रेणी में लोहा इस्पात, ताँबा प्रगलन एवं ऐल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग आदि आते हैं।
  • एक करोड़ रुपये से अधिक निवेश वाले उद्योग वृहत उद्योग की श्रेणी में आते हैं।
  • राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाए जाने वाले उद्योगों को संयुक्त उद्योगों की श्रेणी में रखा जाता है।
  • कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित उद्योगों में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशम, पटसन, चीनी एवं वनस्पति तेल आदि प्रमुख हैं।
  • वस्त्र उद्योग का औद्योगिक उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान होने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में विशेष महत्व है।
  • सूती वस्त्र उद्योग का सर्वाधिक केन्द्रीयकरण महाराष्ट्र, गुजरात एवं तमिलनाडु राज्यों में देखने को मिलता है।
  • भारत जापान को सूत का निर्यात करता है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, फ्रांस, पूर्वी यूरोपीय देश, नेपाल सिंगापुर, श्रीलंका और अफ्रीका भारत में बने सूती वस्त्र के अन्य आयातक देश हैं।
  • भारत पटसन एवं पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पादक तथा बांग्लादेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
  • भारत का अधिकांश पटसन (जूट) उद्योग पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर 98 किमी. लम्बी एवं 3 किमी चौड़ी एक सँकरी पट्टी में केन्द्रित है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, घाना, सऊदी अरब, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया पटसन के प्रमुख खरीददार देश है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

  • भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में द्वितीय स्थान है, लेकिन गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में प्रथम स्थान है।
  • अधिकांश चीनी मिलें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश राज्यों में स्थित हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में 60 प्रतिशत चीनी मिलें हैं।
  • खनिज एवं धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने वाले उद्योगों को खनिज आधारित उद्योग कहा जाता है।
  • लौह-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है। इस उद्योग की स्थापना मुख्यतया कच्चे माल की प्राप्ति स्थानों पर ही होती है।
  • वर्ष 2019 में भारत का विश्व में कच्चा इस्पात उत्पादकों में दूसरा एवं स्पंज लौह उत्पादन में प्रथम स्थान था।
  • वर्ष 2019 में भारत में प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति इस्पात खपत केवल 74.3 किलोग्राम थी जबकि इसी समय विश्व में प्रतिव्यक्ति औसत खपत 229.3 किलोग्राम थी।
  • चीन विश्व में इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक तथा सर्वाधिक खपत वाला देश है।
  • ऐल्यूमिनियम प्रगलन भारत में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। यहाँ ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर  प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु राज्यों में ऐल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र स्थापित किए गए हैं।
  • ऐल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्रों में बॉक्साइट का कच्चे पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • भारत में रसायन उद्योग की सकल घरेलू उत्पाद में भागीदारी लगभग 3 प्रतिशत है।
  • भारत में कार्बनिक एवं अकार्बनिक दोनों प्रकार के रसायन निर्मित किये जा रहे हैं।
  • उर्वरक उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक (विशेषतः यूरिया), फास्फेटिक उर्वरक (डी.ए.पी.) और अमोनियम फास्फेट तथा मिश्रित उर्वरक के उत्पादन क्षेत्रों के आस-पास केन्द्रित हैं।
  • भारत में होने वाले कुल उर्वरक उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत उत्पादन गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा केरल राज्यों में होता है।
  • भारत का पहल सीमेंट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में स्थापित किया गया था।
  • भारत में मोटरगाड़ी उद्योग का विकास दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, लखनऊ, कोलकाता, हैदराबाद, इंदौर, बंगलुरु एवं जमशेदपुर के आस-पास स्थित क्षेत्रों में हुआ है। बेंगलूरू को भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी’ के रूप में जाना जाता है।
  • भारत के इलेक्ट्रॉनिक सामान के प्रमुख उत्पादक केन्द्रों में मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता एवं लखनऊ आदि हैं।
  • उद्योगों से चार प्रकार का प्रदूषण होता है-वायु, जल, भूमि तथा ध्वनि।
  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट व परमाणु शक्ति उत्पादक कारखानों से कैंसर, जन्मजात विकार एवं अकाल प्रसव जैसी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  • भारत में राष्ट्रीय ताप विद्युत कॉरपोरेशन विद्युत प्रदान करने वाला प्रमुख निगम है। यह निगम प्राकृतिक पर्यावरण एवं संसाधन जैसे-खनिज तेल, जल, गैस एवं ईंधन संरक्षण नीति का प्रबल समर्थक है तथा इन्हें ध्यान में रखकर ही विद्युत संयंत्रों की स्थापना करता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. उद्योग: मानव तकनीक द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का रूप बदलकर उन्हें अधिक उपयोगी बनाने की क्रिया को उद्योग कहते हैं।

2. विनिर्माण: कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है।

3. विनिर्माण उद्योग: प्राथमिक उत्पादों का मशीनों की सहायता से रूप बदलकर इनसे अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को विनिर्माण उद्योग कहा जाता है।

4. समूहन बचत: नगरीय केन्द्रों द्वारा दी गयी सुविधाओं के कारण बहुत-से उद्योग नगर केन्द्रों के समीप ही केन्द्रित हो जाते हैं। इनको समूहन बचत कहा जाता है।

5. कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है, कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

6. खनिज आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है, खनिज आधारित उद्योग कहलाते

7. आधारभूत उद्योग: वे उद्योग जिनके उत्पादन अथवा कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर रहते हैं, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं।

8. उपभोक्ता उद्योग: वे उद्योग जो मुख्यतालोगों के उपयोग की वस्तुएँ बनाते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं।

9. वृहत उद्योग: वे उद्योग जिनमें निवेशित राशि एक करोड़ रुपये से अधिक है, वृहत उद्योग कहलाते हैं।

10. लघु उद्योग: वे उद्योग जिनमें निवेशित राशि एक करोड़ रुपये से कम है, लघु उद्योग कहलाते हैं।

11. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: वे उद्योग जिनका स्वामित्व एवं प्रबंधन केन्द्र अथवा राज्य सरकार के किसी संगठन के पास होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं।

12. निजी क्षेत्र के उद्योग: वे उद्योग जिनका स्वामित्व व प्रबन्धन कुछ व्यक्तियों, फर्म अथवा कम्पनी के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं।

13. संयुक्त उद्योग: वे उद्योग जो राज्य सरकार एवं निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं, संयुक्त उद्योग कहलाते हैं।

14. सहकारी उद्योग: वे उद्योग जिनका स्वामित्व एवं प्रबन्धन कच्चे माल के उत्पादकों, श्रमिकों अथवा दोनों के हाथों में होता है तथा उद्योग को चलाने के लिए सहकारी संस्था का गठन किया जाता है; सहकारी उद्योग कहलाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

15. भारी उद्योग: वे उद्योग जो भारी कच्चे माल का प्रयोग कर भारी तैयार माल का निर्माण करते हैं, भारी उद्योग कहलाते हैं।

16. हल्के उद्योग: वे उद्योग जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं, हल्के उद्योग कहलाते हैं।

17. प्रगलक: अयस्क से धातु अलग करने के लिए प्रयोग की गयी गलन भट्टियों को प्रगलक कहते हैं।

18. सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क-वे संस्थान जो सॉफ्टवेयर विशेषताओं को एकल विंडो सेवा एवं उच्च आँकड़े संचार की सुविधा प्रदान करते हैं, सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क कहलाते हैं।

19. पर्याबरण निम्नीकरण: पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आ जाना, पर्यावरण निम्नीकरण कहलाता है।

20. औद्योगिकी अपशिष्ट-उद्योगों से निकलने वाला कचरा अथवा बचे पदार्थ, औद्योगिक अपशिष्ट कहलाता है।

21. ग्रामीण कृषि पृष्ठ प्रदेश-वह क्षेत्र जिससे किसी उद्योग को कृषि से कच्चा माल प्राप्त होता है, ग्रामीण कृषि पृष्ठ प्रदेश कहलाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

पाठ सारांश

  • पृथ्वी की ऊपरी परत ‘भूपर्पटी’ विभिन्न प्रकार के खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है।
  • पृथ्वी के गर्भ में पाये जाने वाले खनिजों का विभिन्न विधियों से शोधन करके धातुएँ प्राप्त की जाती हैं।
  • मानव के लिए उपयोग में आने वाली लगभग समस्त वस्तुएँ खनिजों से प्राप्त होती हैं।
  • भोजन में भी हम खनिजों का उपयोग करते हैं, जैसे-आयरन आदि।
  • फ्लूराइड जो दाँतों को गलने से बचाता है, फ्लूओराइट नामक खनिज से प्राप्त होता है। टूथब्रश व पेस्ट की ट्यूब पेट्रोलियम से प्राप्त प्लास्टिक की बनी होती है।
  • भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है। इसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है।
  • भूगर्भ में खनिज अनेक रूपों में पाये जाते हैं। वर्तमान में लगभग 2,000 से अधिक खनिजों की पहचान हो चुकी है।
  • खनिजों का वर्गीकरण उनके विभिन्न रंग, कठोरता, चमक, घनत्व, विभिन्न क्रिस्टल आदि के आधार पर किया जाता है।
  • खनिजों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
    1. धात्विक खनिज,
    2. अधात्विक खनिज,
    3. ऊर्जा खनिज।
  • खनिज सामान्यतया अयस्कों में पाये जाते हैं। किसी भी खनिज में अन्य तत्वों के मिश्रण अथवा संचयन हेतु ‘अयस्क’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
  • आग्नेय व कायान्तरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में पाये जाते हैं। मुख्य धात्विक खनिज जैसे जस्ता, ताँबा, जिंक, सीसा आदि शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं। कोयला जैसे खनिज अवसादी चट्टानों में पाये जाते हैं।
  • सोना, चाँदी, टिन तथा प्लेटिनम जल द्वारा घर्षित नहीं होने वाले खनिज हैं।
  • महासागरों में मिलने वाले प्रमुख खनिजों में नमक, मैग्नीशियम, ब्रोमाइन, मैंगनीज आदि आते हैं।
  • भारत में खनिज असमान रूप से वितरित हैं। भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी एवं पूर्वी पार्यों पर गुजरात व असम की तलहटी चट्टानों में अधिकांश खनिज तेल के निक्षेप पाये जाते हैं।
  • उत्तरी भारत का विशाल जलोढ़ मैदान आर्थिक महत्व के खनिजों से लगभग विहीन है।
  • लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं।
  • लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है, जो किसी भी देश के विकास की रीढ़ होता है। भारत में उच्च किस्म का लौह अयस्क मैग्नेटाइट पाया जाता है। इसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है।
  • भारत की प्रमुख लौह अयस्क की पेटियों में,
    1. ओडिशा-झारखण्ड पेटी,
    2. दुर्ग-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी,
    3. महाराष्ट्र गोआ पेटी,
    4. बेलारी-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरु-तुमकूरू पेटी आदि प्रमुख हैं।
  • मैंगनीज़ का उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट आदि बनाने में किया जाता है। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा मैंगनीज़ उत्पादक राज्य है। वर्ष 2016-17 में यहाँ देश के 27 प्रतिशत मैंगनीज का उत्पादन हुआ।
  • बालाघाट (मध्य प्रदेश), सिंहभूमि (झारखण्ड) एवं खेतड़ी (राजस्थान) प्रमुख ताँबा उत्पादक क्षेत्र हैं। ताँबे का उपयोग बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रोनिक्स एवं रसायन उद्योग में किया जाता है।
  • भारत में बॉक्साइट के जमाव मुख्य रूप में अमरकंटक पठार, मैकाल की पहाड़ियों एवं बिलासपुर-कटनी के पठारी क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  • ओडिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है, जहाँ वर्ष 2016-17 में देश के 49 प्रतिशत बॉक्साइट का उत्पादन हुआ। यहाँ के प्रमुख बॉक्साइट निक्षेपों में कोरापुट जिले के पंचपतमाली निक्षेप हैं।
  • अभ्रक के निक्षेप छोटा नागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाये जाते हैं। बिहार-झारखण्ड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी इसके उत्पादन में अग्रणी है। इनके अतिरिक्त अभ्रक राजस्थान (अजमेर के आस-पास) व आन्ध्र प्रदेश (नेल्लोर अभ्रक पेटी) से भी प्राप्त होता है।
  • चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट एवं मैगनीशियम कार्बोनेट से निर्मित चट्टानों में पाया जाता है। यह खनिज सीमेन्ट उद्योग में काम आता है। राजस्थान सर्वाधिक चूना पत्थर उत्पादक राज्य है।
  • खनिज एक मूल्यवान सम्पत्ति हैं। यह सीमित एवं अनवीकरण योग्य हैं। अतः इनका संरक्षण किया जाना आवश्यक है।
  • ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों; जैसे-कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, थोरियम आदि से किया जाता है।
  • ऊर्जा प्राप्ति के परम्परागत साधनों में लकड़ी, कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, जल व तापीय विद्युत आदि हैं।
  • ऊर्जा प्राप्ति के गैर-परम्परागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भूतापीय, बायोगैस एवं परमाणु-ऊर्जा सम्मिलित किये जाते हैं।
  • भारत में कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। कोयले का निर्माण वनस्पति पदार्थों के लाखों वर्ष तक संपीडन से हुआ है।
  • भारत में कोयला गोंडवाना एवं टरशियरी काल की चट्टानों में प्राप्त होता है।
  • कोयले की प्रमुख किस्मों में ऐन्थेसाइट, बिटुमिनस, लिग्नाइट एवं पीट हैं। ऐन्थेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला होता है।
  • गोंडवाना कोयला का क्षेत्र, दामोदर घाटी, झरिया व बोकारो में स्थित है। टरशियरी कोयला क्षेत्रों में मेघालय, असम, ‘नागालैण्ड व अरुणाचल प्रदेश आदि हैं। गोदावरी, महानदी, सोन, वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाये जाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

  • भारत में खनिज तेल टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रेप में पाया जाता है।
  • मुम्बई हाई, गुजरात तथा असम भारत के प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं।
  • भारत के प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र मुम्बई हाई (महाराष्ट्र), अंकलेश्वर (गुजरात) एवं डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन (असम) आदि हैं।
  • प्राकृतिक गैस एक महत्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो खनिज तेल के साथ अथवा अलग पायी जाती है। कृष्णा-गोदावरी  नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गये हैं।
  • मुम्बई हाई तथा बसीन को पश्चिमी एवं उत्तरी भारत के उर्वरक, विद्युत तथा अन्य औद्योगिक क्षेत्रों से जोड़ने वाली हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HVJ) गैस पाइपलाइन की लम्बाई 1700 किमी है।
  • सीएनजी (संपीडित प्राकृतिक गैस) का उपयोग गाड़ियों में तरल ईंधन के रूप में किया जा रहा है।
  • भारत में विद्युत मुख्यत: दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है:
    1. प्रवाही जल से एवं
    2. कोयला, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस से।
  • यूरेनियम व थोरियम आदि परमाणु खनिजों का उपयोग परमाणु या आणविक ऊर्जा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  • भारत के उष्ण कटिबंधीय देश होने के कारण यहाँ सौर-ऊर्जा के विकास की विपुल सम्भावनाएँ हैं।
  • भारत के तमिलनाडु राज्य में नागरकोइल से मुदरई तक पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी अवस्थित है। नागरकोइल व जैसलमेर को देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग हेतु जाना जाता है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं एवं मानवजनित अपशिष्टों के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।
  • महासागरीय तरंगों का उपयोग भी विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपलब्ध हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. खनिज: खनिज प्राकृतिक रूप से उत्पन्न ऐसा तत्व है जिसकी अपनी भौतिक विशेषताएँ होती हैं तथा जिसकी बनावट को रासायनिक गुणों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।

2. अयस्क: जिन कच्ची धातुओं से खनिज प्राप्त किये जाते हैं, उन्हें अयस्क कहते हैं।

3. खनन: भूगर्भ से खनिजों को बाहर निकालने की आर्थिक प्रक्रिया को खनन कहते हैं।

4. संसाधन: मानव की आवश्यकता की पूर्ति में सहायक जैविक व अजैविक पदार्थों को संसाधन कहते हैं।

5. खनिज तेल: भूगर्भ से द्रव रूप में प्राप्त हाइड्रोकार्बन का एक मिश्रण, जिसे सामान्यतया पेट्रोलियम कहा जाता है अर्थात् बिना साफ किये गए तेल को खनिज तेल अथवा कच्चा तेल कहते हैं।

6. ऊर्जा खनिज: जिन खनिजों से ऊर्जा की प्राप्ति होती है, उन्हें ऊर्जा खनिज कहते हैं, जैसे- यूरेनियम, कोयला, थोरियम, खनिज तेल आदि।

7. लौह खनिज: ऐसे खनिज जिनमें लौह धातु के अंश होते हैं, लौह खनिज कहलाते हैं, जैसे-निकिल, मैंगनीज़, टंगस्टन आदि।

8. ऊर्जा संसाधन: वे जैविक एवं अजैविक पदार्थ जिनके उपयोग से शक्ति प्राप्त होती है, ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं।

9. अलौह खनिज: जिन खनिजों में लोहे के अंश नहीं होते हैं, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं, जैसे-ताँबा अयस्क, टिन, सोना, चाँदी आदि।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

10. धात्विक खनिज: वे खनिज जिनसे धातु प्राप्त होती है, धात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसे-लौह अयस्क, ताँबा, मैंगनीज़ आदि।

11. अधात्विक खनिज: वे खनिज जिनमें धातु नहीं होती है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसे-चूना पत्थर; डोलोमाइट, अभ्रक आदि।

12. ऐन्थेसाइट: यह सर्वोत्तम प्रकार का कोयला होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 प्रतिशत तक होती है।

13. बिटुमिनस: यह मध्यम किस्म का कोयला होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 50 से 80 प्रतिशत तक होती है।

14. लिग्नाइट: यह निम्न किस्म का कोयला होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत होती है। यह जलने पर धुआँ देता है।

15. पीट: यह कोयले का प्रारम्भिक रूप है। इसमें कार्बन का अंश 40 प्रतिशत से कम होता है।

16. बॉक्साइट: एक अयस्क जिससे ऐल्युमिनियम धातु प्राप्त होती है।

17. प्लेसर निक्षेप: पहाड़ियों के आधार अथवा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाये जाने वाले खनिज प्लेसर निक्षेप कहलाते हैं।

18. मैग्नेटाइट: यह सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क होता है। इसमें लौह की मात्रा 70 प्रतिशत तक मिलती है।”

19. हेमेटाइट: यह लौह अयस्क की एक किस्म है जिसमें धातु अंश 50 से 60 प्रतिशत तक होता है।

20. परम्परागत ऊर्जा संसाधन: परम्परागत ऊर्जा संसाधनों से तात्पर्य उन संसाधनों से है जिनका उपयोग प्राचीनकाल से मनुष्य करता आ रहा है तथा जो सीमित व समाप्त (जल-विद्युत को छोड़कर) हैं।

21. गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन-गैर: परम्परागत ऊर्जा संसाधनों से अभिप्राय ऐसे ऊर्जा संसाधनों से है जो आधुनिक वैज्ञानिक युग की देन हैं, जैसे-सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, अणुशक्ति व बायोगैस आदि।

22. बायोगैस: धरातल पर जैविक पदार्थों के अवसाद से प्राप्त गैस बायोगैस कहलाती है।

23. सी. एन. जी.: वाहनों को चलाने में प्रयुक्त होने वाली प्राकृतिक गैस सी. एन. जी. (काम्प्रेस्ड नेचुरल गैस) कहलाती है।

24. फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी: यह सौर-ऊर्जा के उपयोग की एक विधि है। इस विधि में सौर-ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित करके उपयोग किया जाता है।

25. भूतापीय ऊर्जा: पृथ्वी के उच्च भूगर्भीय ताप से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।

26. ज्वारीय ऊर्जा: समुद्री ज्वार व तरंगों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा कहलाती है।

27. पवन ऊर्जा: पवन चक्कियों के माध्यम से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं।

28. सतत् पोषणीय विकास: विनाशरहित विकास।

29. रैट होल खनन: जोवाई तथा चेरापूँजी क्षेत्र में कोयले का खनन जनजातीय परिवारों के सदस्यों द्वारा एक लम्बी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।

30. कर्दम: तरल अवस्था में खनिज का परिवर्तन कर्दम कहलाता है।

31. जल विद्युत: जल से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा जल विद्युत कहलाती है।

32. ताप विद्युत: कोयला, खनिज तेल व प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को ताप-विद्युत कहते हैं।

33. परमाणु-ऊर्जा: परमाणु खनिजों के उपयोग से प्राप्त ऊर्जा परमाणु ऊर्जा कहलाती है।
34. सौर-ऊर्जा: सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा (ताप) को सौर ऊर्जा कहते हैं।

35. शिराएँ: चट्टानों में पाए जाने वाली छोटी दरारों, जोड, भ्रंश व विदर जिनमें खनिजों का निर्माण होता है, शिराएँ कहलाती हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 4 कृष

पाठ सारांश

  • भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है।
  • कृषि के माध्यम से ही खाद्यान्न एवं उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पादित किया जाता है।
  • वर्तमान समय में भारत के विभिन्न भागों में कई प्रकार के कृषि तंत्र अपनाए गए हैं जिनमें प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि, गहन जीविका कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि आदि प्रमुख हैं।।
  • प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि, परम्परागत तकनीकों (जैसे-लकड़ी के हल, डाओं (duo) तथा खुदाई करने वाली छड़ी आदि) पर आधारित श्रम प्रधान कृषि पद्धति है। इसें ‘कर्तन दहन कृषि’ भी कहते हैं।
  • कर्तन दहन कृषि (स्थानान्तरित कृषि) जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी एवं पिछड़ी जातियों द्वारा की जाती है। इसमें वनों को जलाकर भूमि साफ करके, दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वराशक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़कर यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनाई जाती है।
  • देश के विभिन्न भागों में कर्तन दहन कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तरी-पूर्वी राज्यों-असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड आदि में इसे ‘झूम’ कहा जाता है। जबकि मणिपुर में इसे ‘पलामू’ तथा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले व अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ‘दीपा’ कहा जाता है।
  • गहन जीविका कृषि एक श्रम गहन खेती है जो भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में की जाती है।
  • रोपण कृषि वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है। इस कृषि में एक ही फसल की प्रधानता होती है।
  • भारत की रोपण फसलों में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला आदि प्रमुख हैं। हमारे देश में तीन शस्य ऋतुएँ हैं- रबी, खरीफ एवं जायद रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है व ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। मुख्य रबी फसलों में गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि हैं।
  • विभिन्न क्षेत्रों में खरीफ फसलें मानसून के आगमन के समय बोई जाती हैं व सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं।
  • खरीफ की प्रमुख फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, कपास, उड़द, जूट, मूंगफली, सोयाबीन आदि हैं।
  • असम, पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा (ओडिशा) में चावल की तीन फसलें-ऑस, अमन व बोरो बोई जाती हैं।
  • जायद में तरबूज, खरबूजा, खीरा, सब्जियाँ एवं चारे की फसलों की कृषि की जाती है। भारत में पैदा की जाने वाली प्रमुख फसलों में चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें, चाय, गन्ना, तिलहन, जूट आदि हैं।
  • हमारे देश में अधिकतर लोगों का खाद्यान्न चावल है।
  • भारत चीन के पश्चात् विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। चावल की कृषि के लिए उच्च तापमान (25°C से अधिक) एवं अधिक वर्षा (100 सेमी. से अधिक) की आवश्यकता होती है। भारत के उत्तरी-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों एवं डेल्टाई प्रदेशों में चावल उत्पादित किया जाता है।
  • गेहूँ, चावल के पश्चात् भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
  • गेहूँ उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों में उत्तर-पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान एवं दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश है।
  • भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा एवं रागी आदि हैं।
  • ज्वार, क्षेत्रफल तथा उत्पादन के हिसाब से हमारे देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा मध्य प्रदेश प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्य हैं।
  • बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य राजस्थान है, अन्य उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा आदि हैं।
  • महाराष्ट्र ज्वार का तथा कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
  • भारत में मक्का खाद्यान्न एवं चारा दोनों रूपों में प्रयोग होने वाली फसल है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि हैं।
  • सम्पूर्ण विश्व में भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। भारत में उत्पादित की जाने वाली दलहनी फसलों में अरहर, उड़द, मूंग, मसूर, मटर, चना आदि प्रमुख हैं।
  • भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक में दालें अधिक उत्पादित की जाती हैं।
  • गन्ना एक उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय फसल है जो अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बोयी जाती है।
  • ब्राजील के पश्चात् भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगांना, बिहार, पंजाब, हरियाणा आदि हैं।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है। यहाँ मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला. अलसी, सूरजमुखी आदि तिलहन फसलें उगायी जाती हैं।
  • चाय एक प्रमुख पेय पदार्थ की फसल है। भारत में प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्रों में असम, प. बंगाल में दार्जिलिंग व – जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु, केरल आदि हैं। भारत विश्व का अग्रणी चाय उत्पादक एवं निर्यातक देश है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

  • भारतीय कॉफी अपनी गुणवत्ता के लिए सम्पूर्ण विश्व में जानी जाती है। यहाँ पैदा होने वाली अरेबिका किस्म की कॉफी प्रारम्भ में यमन से लायी गयी थी।
  • भारत में कॉफी की कृषि नीलगिरि की पहाड़ियों के आसपास कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल में होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक फल एवं सब्जियों का उत्पादन भारत में होता है।
  • भारत में रबर केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह व मेघालय में गारो पहाड़ियों में उत्पादित किया जाता है।
  • कपास, जूट, सन तथा प्राकृतिक रेशम हमारे देश में उगायी जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलें हैं।
  • रेशम के कीड़ों के पालन को. ‘रेशम उत्पादन’ (सेरीकल्चर) कहते हैं।
  • भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा प्रमुख कपास उत्पादक देश है। भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, .मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि हैं।
  • जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है। भारत में यह पश्चिमी बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा व मेघालय आदि राज्यों में अधिक उत्पादित होता है।
  • स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्र में संस्थागत सुधार करने के लिए कृषि जोतों की चकबंदी व सहकारिता को प्राथमिकता दी गयी तथा जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया।
  • भारत सरकार ने 1960 और 1970 के दशकों में अनेक कृषि सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों में पैकेज टैक्नोलॉजी पर आधारित हरित क्रांति और श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) प्रमुख थे।
  • भारत में कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु हरित-क्रान्ति का प्रारम्भ किया गया है।
  • भारत सरकार ने किसानों के लाभ हेतु ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ (KCC) तथा व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS) भी शुरू की गई है।
  • भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता कृषि उत्पादन चिन्ता का एक प्रमुख विषय है।
  • वर्ष 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के अन्तर्गत भारतीय कृषकों को अनेक नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • वर्तमान में दोराहे पर खड़ी भारतीय कृषि को सक्षम तथा लाभदायक बनाने के लिए सीमांत तथा छोटे किसानों की स्थिति सुधारने का प्रयास करना होगा।
  • भारत के किसानों को शस्यावर्तन को अपनाते हुए खाद्यान्न फसलों की जगह नकदी फसलों को उगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. कृषि: भूमि की जुताई कर फसल उत्पन्न करने और पशुपालन कला को कृषि कहा जाता है।

2. प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि: भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम कृषि औजारों द्वारा परिवार अथवा समुदाय श्रम के सहयोग से की जाने वाली कृषि।

3. कर्तन दहन प्रणाली कृषि: इस प्रकार की कृषि में वनों को जलाकर भूमि साफ करके उस पर दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वरा-शक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़ यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनायी जाती है। इसे स्थानान्तरी कृषि के नाम से भी जाना जाता है।

4. झूम अथवा झमिंग कृषि: भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में की जाने वाली कर्तन दहन कृषि को झूम अथवा झमिंग कहते हैं।

5. गहन जीविका कृषि: श्रम प्रधान खेती जिसमें अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक खादों एवं सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।

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6. वाणिज्यिक कृषि: एक प्रकार की विकसित कृषि जिसमें अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।

7. रोपण कृषि: बड़े पैमाने पर की जाने वाली एक फसली कृषि जिसमें अत्यधिक पूँजी व श्रम का प्रयोग होता है। इससे प्राप्त सम्पूर्ण उत्पादन उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है।

8. शस्य प्रारूप: विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न कृषि फसलें उगाना शस्य प्रारूप कहलाता है।

9. रबी फसलें: ऐसी फसलें जिनको अक्टूबर से दिसम्बर माह तक बोया जाता है तथा अप्रैल से जून तक काटा जाता है, रबी फसलें कहलाती हैं; जैसे-गेहूँ, जौ आदि।

10. खरीफ फसलें: ऐसी फसलें जो मानसून के आगमन पर बोयी जाती हैं तथा सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं, खरीफ फसलें कहलाती हैं; जैसे-ज्वार, बाजरा आदि।

11. जायद फसलें: रबी एवं खरीफ फसलों के मध्य ग्रीष्म ऋतु में बोयी जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है।

12. मोटे अनाज: ज्वार, बाजरा व रागी को मोटे अनाज कहा जाता है।

13. फसलों का आवर्तन: किसी कृषि भूमि पर कुछ वर्षों के अन्तराल से फसलों को बदल-बदलकर बोने की पद्धति फसलों का आवर्तन अथवा फसल-चक्र कहलाता है।

14. रेशम उत्पादन: रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन कहलाता है।

15. सुनहरा रेशा: जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 4 कृषि 

16. बागवानी: सब्जी, फल एवं फूलों की गहन कृषि बागवानी कहलाती है।

17. भूदान: भूमि का दान करना।

18. ग्रामदान: गाँव का दान करना।

19. सार्वजनिक वितरण प्रणाली: जनता को उचित मूल्य पर जीवन उपयोगी वस्तुएँ उपलब्ध कराना।

20. समर्थन मूल्य: सरकार द्वारा निश्चित किसी फसल के उचित मूल्य को समर्थन मूल्य कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसान अपने उत्पाद को खुले बाजार में अथवा सरकारी एजेन्सियों को समर्थित मूल्य पर बेच सकते हैं।

21. वैश्वीकरण: एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय करना वैश्वीकरण कहलाता है।

22. कार्बनिक कृषि: कारखानों में निर्मित रसायनों जैसे उर्वरकों व कीटनाशकों के बिना की जाने वाली कृषि को कार्बनिक कृषि कहा जाता है।

23. हरित क्रान्ति: सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली फसलों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर कृषि उपजों का यथासम्भव अधिक उत्पादन प्राप्त करना हरित-क्रान्ति कहलाता है। इस क्रान्ति से गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि हुई है।

24. श्वेत क्रान्ति: दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हेतु चलाया गया कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से भी जाना जाता है।

25. रक्तहीन क्रान्ति: विनोबा भावे द्वारा संचालित किया गया भूदान-ग्रामदान आन्दोलन ‘रक्तहीन क्रान्ति’ कहलाता है।

26. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है उसे जलभृत अथवा जलभरा कहते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन

पाठ सारांश

  • हमारे धरातल के लगभग तीन-चौथाई भाग पर जल का विस्तार पाया जाता है। जिसमें प्रयोग में लाने योग्य अलवणीय जल का अनुपात बहुत कम है।
  • सतही अपवाह एवं भौमजल स्रोत से हमें अलवणीय जल की प्राप्ति होती है।
  • हमें प्राप्त होने वाले अलवणीय जल का लगातार नवीनीकरण एवं पुनर्भरण जलीय-चक्र द्वारा होता रहता है।
  • जल एक चक्रीय संसाधन है। यदि इसका उचित तरीके से उपयोग किया जाए तो इसकी कमी नहीं होगी।
  • जल के नवीकरण-योग्य संसाधन होने के बावजूद आज विश्व के अनेक देशों व क्षेत्रों में जल की कमी दिखाई देती है।
  • भारत में तीव्र गति से उद्योगों की बढ़ती संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
  • वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22 प्रतिशत भाग जल-विद्युत से प्राप्त किया जाता है।
  • यह एक चिंता का विषय है कि लोगों की आवश्यकता के लिए प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद यह घरेलू व औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों एवं कृति में प्रयुक्त किए जाने वाले उर्वरकों द्वारा प्रदूषित है। ऐसा जल मानव उपयोग के लिए खतरनाक है।
  • हमारे देश में प्राचीनकाल से ही सिंचाई के लिए पत्थरः मलबे से बाँध निर्माण, जलाशय अथवा झीलों के तटबन्ध व नहरों जैसी उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ बनायी गयी हैं।
  • हमारे देश में चन्द्रगुप्त मौर्य के.शासनकाल में बड़े पैमाने पर बाँध, झील व सिंचाई क्षेत्रों का निर्माण करवाया गया।
  • 11वीं सदी में बनवाई गई भोपाल झील अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक थी।
  • परम्परागत बाँध, नदियों तथा वर्षा जल को एकत्रित करने के पश्चात् उसे खेतों की सिंचाई हेतु उपलब्ध करवाते थे।
  • वर्तमान में बाँधों का उद्देश्य न केवल सिंचाई अपितु विद्युत उत्पादन, घरेलू व औद्योगिक उपयोग, जल आपूर्ति, बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन तथा मछली पालन इत्यादि भी है।
  • बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में भाखड़ा नांगल व हीराकुड परियोजना आदि प्रमुख हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू गर्व से बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहते थे।
  • बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एवं बड़े-बड़े बाँध नये सामाजिक आन्दोलनों, जैसे-नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं टिहरी बाँध आन्दोलन के कारण भी बन गये हैं। इन परियोजनाओं का विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों के अपने स्थान से बड़े पैमाने पर विस्थापन के कारण है।
  • नर्मदा बचाओ आन्दोलन एक गैर सरकारी संगठन (NGO) है। यह गुजरात में नर्मदा नदी. पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लामबंद करता है।
  • जल संरक्षण हेतु भारत के पहाड़ी व पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिमी हिमालय) जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए निर्मित की हैं।
  • राजस्थान में पीने का जल एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ एक प्रचलित तकनीक है।
  • शुष्क व अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं। राजस्थान के जैसलमेर जिले में ‘खादीन’ (खडीन) व अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • मेघालय राज्य में नदियों व झरनों के जल को बाँस से बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई की जाती है। यह लगभग 200 वर्ष पुरानी विधि है जो आज भी प्रचलित है।
  • तमिलनाडु भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ सम्पूर्ण राज्य में प्रत्येक घर में छत वर्षाजल संरक्षण ढाँचों का निर्माण अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उल्लंघन करने पर कानूनी कार्यवाही का भी प्रावधान है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. अलवणीय जल: नमकरहित अर्थात् मीठे जल को अलवणीय जल कहा जाता है।

2. भौमजल स्रोत: धरातल के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में अवस्थित जल, भौमजल कहलाता है।

3. सतही अपवाह: धरातल पर स्थित विभिन्न जलस्रोत-नदियाँ, झीलें, नहरें, या, विभिन्न जलाशय सतही अपवाह कहलाते

4. भूजल पुनर्भरण: वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने वाला पानी कई माध्यमों से मिट्टी में समाहित होकर भूमिगत जल स्तर तक पहुँचता है और भूजल स्तर की मात्रा में वृद्धि करता है। इसे ही हम भूजल पुनर्भरण कहते हैं।

5. जलीय चक्र: जल समुद्र, झील, तालाब, खेतों आदि से वाष्प बनकर उड़ता रहता है। जल-वाष्प हवा में संघनित होकर बादलों में बदल जाती है। यह संघनित जल-वाष्प पुनः वर्षा के रूप में धरती पर आ जाती है। धरती से जल पुनः सागरों आदि में पहुँचता है तथा पुनः जल का वाष्पीकरण होकर यही प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रकार जल एक चक्र के रूप में गतिशील रहता है। इसे ही जलीय चक्र कहते हैं।

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6. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है, उन्हें जलभृत (जलभरा) कहते हैं।

7. जल दुर्लभता: माँग की तुलना में जल की कमी को जल-दुर्लभता कहते हैं।

8. जल-संरक्षण: जल संरक्षण से आशय है जल का बचाव करना, जल को व्यर्थ नहीं बहाना, जल का दुरुपयोग नहीं करना और जल को जरूरत के समय के लिए बचाकर खना।

9. जल-प्रबन्धन: लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए पेयजल एवं कृषि फसलों की सिंचाई हेतु जल की भविष्य में आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए किये जाने वाले प्रयास जल-प्रबंधन कहलाते हैं।

10. पनिहारिन: सिर पर मटकों को रखकर जल लाने वाली महिलाएँ पनिहारिन कहलाती हैं।

11. अतिशोषण: अत्यधिक मात्रा में जल निकालने को अभिशोषण कहते हैं।

12. अपशिष्ट: उद्योगों से अपसारित होने वाले कूड़े-करकट को अपशिष्ट कहते हैं।

13. निम्नीकृत-संसाधनों की गुणवत्ता में कमी लाने को निम्नीकृत कहते हैं।

14. जलीय कृतियाँ-वे बाँध, जलाशय, झीलें, नहरें, कुएँ, बावड़ी आदि जिनमें वर्षा जल संग्रहीत किया जाता है, जलीय कृतियाँ कहलाती हैं।

15.. परिपाटी-परम्परा को ही परिपाटी कहते हैं।

16. जल-संसाधन-धरातल के ऊपर एवं भूगर्भ के आन्तरिक भागों में पाये जाने वाले समस्त जल-भण्डारों को जल संसाधन कहते हैं।

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17. बहुउद्देशीय नदी परियोजना-एक नदी घाटी परियोजना जो एक साथ कई उद्देश्यों; जैसे-सिंचाई, बाढ़-नियन्त्रण, जल व मृदा का संरक्षण, जल विद्युत, जल परिवहन, पर्यटन का विकास, मत्स्य पालन, कृषि एवं औद्योगिक विकास आदि की पूर्ति करती है, बहुउद्देशीय नदी परियोजना कहलाती है, जैसे-भाखड़ा- नांगल परियोजना, चम्बल घाटी परियोजना . आदि।

18. टाँका-वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए बनाया गया भूमिगत टैंक या कुऔं, टाँका कहलाता है।

19. सिंचाई-वर्षा की कमी या अभाव होने पर फसलों को कृत्रिम रूप से जल पिलाना सिंचाई कहलाता है।

20. जल-विद्युत-जल की गतिशील शक्ति का उपयोग कर तैयार की गई विद्युत को जल-विद्युत कहते हैं।

21. बाँस ड्रिप सिंचाई-बाँस की पाइप द्वारा बूंद-बूंद करके पेड़-पौधों की सिंचाई करना बाँस ड्रिप सिंचाई कहलाता है।

22. पालर पानी (Palar Pani)-पश्चिमी राजस्थान में वर्षा जल को पालर पानी भी कहां जाता है।

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23. वर्षा-जल संग्रहण-वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक वर्षा-जल संग्रहण कहलाती है। इसमें वर्षा-जल को रोकने एवं एकत्रित करने के लिए विशेष ढाँचों जैसे-कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल भूमिगत होने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

24. मृदा-पृथ्वी की ऊपरी सतह जो चट्टानों एवं ह्यूमस से बनती है, मृदा कहलाती है।

25. वन-वृक्षों से भरा हुआ विस्तृत क्षेत्र वन कहलाता है।

26. बाँध-बहते हुए जल को रोकने के लिए खड़ी की गई एक बाधा जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है; बाँध कहलाती है।

27. बाढ़-किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना बाढ़ कहलाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

पाठ सारांश

  • हमारा धरातल अत्यधिक जैव विविधताओं से भरा हुआ है।
  • धरातल पर मानव एवं अन्य जीव-जन्तु एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वनों की होती है क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर अन्य सभी जीव निर्भर करते हैं।
  • हमारे देश में समस्त विश्व की जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पायी जाती है। जैव विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है।
  • अनुमानतः भारत में 10 प्रतिशत वन्य वनस्पतियों एवं 20 प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
  • हमारे देश में वनों के अन्तर्गत लगभग 807276 वर्ग किमी. क्षेत्रफल है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56% भाग है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) ने पौधों और प्राणियों की जातियों को सामान्य जातियाँ, संकटग्रस्त जातियाँ, सुभेद्य जातियाँ, दुर्लभ जातियाँ, स्थानिक जातियाँ एवं लुप्त जातियाँ आदि श्रेणियों में विभाजित किया है।
  • भारत में वन विनाश उपनिवेश काल में रेलवे लाइनों का विस्तार, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी एवं खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुआ है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।
  • वन सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 1951 और 1980 के बीच लगभग 26,200 वर्ग किमी वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदला गया।
  • जनजाति क्षेत्रों में स्थानान्तरी (झूमिंग) कृषि से बहुत अधिक वनों का विनाश हुआ है।
  • भारत में नदी घाटी परियोजनाओं के निर्माण ने भी वन विनाश को प्रोत्साहित किया है। सन् 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5,000 वर्ग किमी से भी अधिक वन क्षेत्रों को नष्ट करना पड़ा है तथा यह प्रक्रिया अभी भी रुकी नहीं है।
  • अरुणाचल प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में मिलने वाला हिमालय यव (चीड़ की प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष) औषधि पौधा है जो संकट के कगार पर है।
  • भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले प्रमुख कारकों में वन्य जीवों के आवासों का विनाश, जंगली जानवरों का शिकार करना, पर्यावरण प्रदूषण एवं वनों में आग लगना आदि है।
  • भारत में वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम, 1972 को लागू किया गया है, जिसमें वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु अनेक प्रावधान हैं।
  • बाघों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर चलाया जा रहा है जो विश्व की प्रमुख वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है।
  • वन्य जीव अधिनियम 1980 व 1986 के अंतर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भंगों तथा एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया है।
  • राजकीय स्तर पर वनों को आरक्षित-वन, रक्षित-वन एवं अवर्गीकृत-वन में विभाजित किया गया है।
  • हिमालय क्षेत्र का प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन कई क्षेत्रों में वनों की कटाई को रोकने में सफल रहा है।
  • भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रमों की औपचारिक शुरुआत 1988 में ओडिशा राज्य द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास करने के साथ हुई थी।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. जैव-विविधता: पेड़-पौधों एवं प्राणि-जगत में जो विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ मिलती हैं, जैव-विविधता कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, जैव-विविधता वनस्पति व प्राणियों में पाए जाने वाले जातीय विभेद को प्रकट करती है।

2. वनस्पतिजात (Flora): वनस्पतिजात से तात्पर्य किसी विशेष क्षेत्र या समय के पादपों से है।

3. प्राणिजात: सभी प्रकार के पशु-पक्षी, जीवाणु, सूक्ष्म-जीवाणु व मनुष्य मिलकर प्राणिजात कहलाते हैं।

4. सामान्य जातियाँ: वन और वन्य-जीवों की ऐसी प्रजातियाँ जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, जैसे-चीड़, साल, पशु, कृंतक (रोडेंट्स)।

5. संकटग्रस्त जातियाँ: ऐसी जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, जैसे-काला हिरण, गैंडा, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, शेर की पूँछ वाला बंदर, मणिपुरी हिरण।

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6. सुभेद्य जातियाँ: ये वे प्रजातियाँ हैं, जिनकी संख्या लगातार घट रही हैं और जो शीघ्र ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में हैं। उदाहरण-नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डॉल्फिन आदि।

7. दुर्लभ जातियाँ-जीव: जन्तु व वनस्पति की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम रह गई है, दुर्लभ प्रजातियाँ कहलाती हैं।

8. स्थानिक जातियाँ: प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रजातियाँ स्थानिक – प्रजातियाँ कहलाती हैं, जैसे-अंडमानी चील, निकोबारी कबूतर, अरुणाचली मिथुन व अंडमानी जंगली सुअर आदि।

9. लुप्त जातियाँ: ये वे जातियाँ हैं जिनके रहने के आवासों में खोज करने पर वे अनुपस्थित पाई गई हैं, जैसे-एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।

10. वन-वह बड़ा भू: भाग जो वृक्षों और झाड़ियों से ढका होता है।

11. पारिस्थितिकी तन्त्र: मानव और दूसरे जीवधारी मिलकर एक जटिल तंत्र का निर्माण करते हैं, उसे पारिस्थितिकी तन्त्र कहा जाता है।

12. आरक्षित वन: ये वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए स्थायी रूप से सुरक्षित कर लिए गए हैं और इनमें पशुओं को चराने तथा खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती।

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13. रक्षित वन: ये वे वन हैं जिनमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है।

14. अवर्गीकृत वन: अन्य सभी प्रकार के वन व बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों एवं समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं। इनमें लकड़ी काटने व पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से कोई रोक नहीं होती है।

15. सामुदायिक वनीकरण: यह वन सुरक्षा हेतु लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा संचालित एक विशिष्ट कार्यक्रम

16. राष्ट्रीय उद्यान: ऐसे रक्षित क्षेत्र जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति और प्राकृतिक सुन्दरता को एक साथ सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे स्थानों की सुरक्षा को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है। इसकी सीमा में पशुचारण प्रतिबन्धि .त होता है। इसकी सीमा में किसी भी व्यक्ति को भूमि का अधिकार नहीं मिलता है।

17. वन्य जीव पशु विहार: ये वे रक्षित क्षेत्र हैं जहाँ कम सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अन्य गतिविधियों की अनुमति होती है। इसमें किसी भी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है।

18. प्रोजेक्ट टाइगर: देश में बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट को देखकर बाघों के संरक्षण के लिए सन् 1973 से संचालित विशेष बाघ परियोजना।

19. स्थानांतरी कृषि: यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। कृषि की इस पद्धति में वन के एक छोटे टुकड़े के पेड़ और झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार से कटी हुई वनस्पति को जला दिया जाता है और उससे प्राप्त हुई राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है। इस भूमि पर कुछ वर्षों तक कृषि की जाती है। भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाने पर किसी दूसरी जगह पर यही क्रिया पुनः दुहरायी जाती है। इसे ‘स्लैश और बर्न कृषि’ भी कहा जाता है। पूर्वोत्तर भारत में इसे झूमिंग (Jhuming) कृषि के नाम से जाना जाता है।

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