JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

JAC Class 9th Geography भारत-आकार वे स्थिति  InText Questions and Answers 

प्रश्न 1.
82°30 पूर्व देशान्तर को भारत की मानक याम्योत्तर क्यों माना गया है?
उत्तर:
सम्पूर्ण देश में एक ही समय को स्वीकार करने के लिए भारत में 82°30′ पूर्व देशान्तर रेखा को मानक याम्योत्तर रेखा माना गया है। यह रेखा भारत के लगभग मध्य से होकर गुजरती है। इसके अतिरिक्त दूसरा कारण 75° पूर्व देशान्तर से 90° पूर्व देशान्तर का अन्तर्राष्ट्रीय समय क्षेत्र भारत के मध्य में पड़ता है। अत: 75° पूर्व एवं 90° पूर्व देशान्तरों के बीच की संख्या 82°30′ पूर्व देशान्तर होती है। अत: इसी देशान्तर रेखा को भारत की मानक याम्यात्तर रेखा निर्धारित किया गया है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

प्रश्न 2.
कन्याकुमारी और कश्मीर में दिन-रात की अवधि में अन्तर क्यों है?
उत्तर:
कन्याकुमारी भूमध्य रेखा के समीप एवं कश्मीर भूमध्य रेखा से दूर स्थित है। भूमध्य रेखा के समीप दिन और रात की अवधि लगभग समान रहती है। कश्मीर भूमध्य रेखा से बहुत दूर स्थित है अत: दोनों स्थानों की दिन-रात की अवधि में लगभग 5 घण्टे का अन्तर रहता है।

प्रश्न 3.
पश्चिमी और पूर्वी तटों पर केन्द्र-शासित क्षेत्रों की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:

  • पश्चिमी तट पर स्थित केन्द्र-शासित प्रदेश:
    1. दादरा नगर हवेली और दमन-दीव,
    2. लक्षद्वीप समूह।
  • पूर्वी तट पर स्थित केन्द्र-शासित क्षेत्र:
    1. पाण्डिचेरी (पुडुचेरी),
    2. अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 4.
क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा एवं सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य राजस्थान एवं सबसे छोटा राज्य गोवा है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

प्रश्न 5.
कौन से राज्य अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तथा समुद्र तट को स्पर्श नहीं करते हैं?
उत्तर:
हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड राज्य अन्तर्राष्ट्रीय सीमा एवं समुद्र तट को स्पर्श नहीं करते

प्रश्न 6.
1. पाकिस्तान,
2. चीन,
3. म्यांमार, और
4. बांग्लादेश की सीमाओं को छूने वाले राज्यों को चार वर्गों में विभाजित कीजिए।
उदाहरणार्थ: उन राज्यों को एक वर्ग में रखिए, जिनकी सीमाएँ पाकिस्तान से मिलती हैं। इसी तरह अन्य शेष वर्ग बनाइए।
उत्तर:

  1. पाकिस्तान की सीमा को छूने वाले राज्य: राजस्थान, गुजरात, पंजाब एवं जम्मू और कश्मीर।
  2. चीन की सीमा को छूने वाले राज्य: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश।
  3. म्यांमार की सीमा को छूने वाले राज्य: नागालैण्ड, असम, मणिपुर, मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश।
  4. बांग्लादेश की सीमा को छूने वाले राज्य: पश्चिमी बंगाल, मेघालय, त्रिपुरा, असम और मिजोरम।

‘क्या आप जानते हैं” से सम्बन्धित प्रश्न

प्रश्न 1.
सन् 2004 से पूर्व भारतीय संघ राज्य का सबसे दक्षिणी बिन्दु कौन-सा था?
उत्तर:
सन् 2004 से पूर्व भारतीय संघ राज्य का सबसे दक्षिणी बिन्दु ‘इन्दिरा बिन्दु’ था जो अब सुनामी लहरों के कारण समुद्र में डूब चुका है।

प्रश्न 2.
सन् 1869 में स्वेज नहर के खुलने से भारत और यूरोप के बीच की दूरी कितने किमी कम हो गई।
उत्तर:
7,000 किमी।

प्रश्न 3.
सन् 1947 से पूर्व भारत में कितने प्रकार के राज्य थे?
उत्तर:
दो प्रकार के-प्रान्त और रियासत।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

प्रश्न 4.
सन् 1947 से पूर्व प्रान्त और रियासतों की शासन व्यवस्था कैसे चली थी?
उत्तर:
प्रान्तों में वायसराय द्वारा नियुक्त अंग्रेज अधिकारी शासन करते थे तथा रियासतों का शासन स्थानीय शासकों द्वारा पैतृकता के आधार पर अंग्रेजी शासकों की प्रभुत्ता मानकर स्वायत्तता से किया जाता था।

JAC Class 9th Geography  भारत-आकार वे स्थिति Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित घार उत्तरों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए:
1. कर्क रेखा किस राज्य से नहीं गुजरती है?
(क) राजस्थान
(ख) उड़ीसा
(ग) छत्तीसगढ़
(घ) त्रिपुरा।
उत्तर:
(ख) उड़ीसा।

2. भारत का सबसे पूर्वी देशान्तर कौन-सा है?
(क) 97°25′ पू.
(ख) 77°6′ पू.
(ग) 68°7′ पू.
(घ) 82°32′ पू.।
उत्तर:
(क) 97°25′ पू.।

3. उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल और सिक्किम की सीमाएँ किस देश को छूती हैं?
(क) चीन
(ख) भूटान
(ग) नेपाल
(घ) म्यांमार।
उत्तर:
(ग) नेपाल।

4. ग्रीष्मावकाश में आप यदि कावारत्ती जाना चाहते हैं तो किस केन्द्र-शासित क्षेत्र में जाएँगे?
(क) पुडुचेरी
(ख) लक्षद्वीप
(ग) अण्डमान और निकोबार
(घ) दीव और दमन।
उत्तर:
(ख) लक्षद्वीप।

5. मेरे मित्र एक ऐसे देश के निवासी हैं जिस देश की सीमा भारत के साथ नहीं लगती है। आप बताइए, वह कौन-सा देश है?
(क) भूटान
(ख) ताजिकिस्तान
(ग) बांग्लादेश
(घ) नेपाल।
उत्तर:
(ख) ताजिकिस्तान।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए
1. अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह के नाम बताइए।दक्षिण में कौन-कौन से द्वीपीय देश हमारे पड़ोसी हैं?
उत्तर:
अरब सागर में लक्षद्वीप समूह एवं बंगाल की खाड़ी में अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं। दक्षिण में हमारे पड़ोसी द्वीपीय देश श्रीलंका और मालदीव हैं।

2. उन देशों के नाम बताइए जो क्षेत्रफल में भारत से बड़े हैं ?
उत्तर:
क्षेत्रफल में भारत से बड़े देश:

  1. रूस,
  2. कनाडा,
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका,
  4. चीन,
  5. ब्राजील,
  6. ऑस्ट्रेलिया हैं।

3. हमारे उत्तर पश्चिमी,उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी पड़ोसी देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
हमारे उत्तर पश्चिमी पड़ोसी देश-पाकिस्तान, अफगानिस्तान। उत्तरी पड़ौसी देश-चीन, नेपाल, भूटान। उत्तरी पूर्वी पड़ौसी देश-बांग्लादेश, म्यांमार।

4. भारत में किन-किन राज्यों से कर्क रेखा गुजरती है, उनके नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के निम्नलिखित 8 राज्यों से कर्क रेखा गुजरती है

  1. गुजरात,
  2. राजस्थान,
  3. मध्य प्रदेश,
  4. छत्तीसगढ़,
  5. झारखण्ड,
  6. पश्चिमी बंगाल,
  7. त्रिपुरा,
  8. मिजोरम।

प्रश्न 3.
सूर्योदय अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में गुजरात के पश्चिमी भाग की अपेक्षा 2 घण्टे पहले क्यों होता है, जबकि दोनों राज्यों में घड़ी एक ही समय दर्शाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का देशान्तरीय विस्तार 6807′ पूर्व से लेकर 97°25′ पूर्व तक है अर्थात् सर्वाधिक पूर्वी और पश्चिमी बिन्दुओं का अन्तर लगभग 30° का है। पृथ्वी अपने अक्ष पर एक बार घूर्णन करने में (360°) 24 घण्टे का समय लेती है। इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी से 1° देशान्तर पार करने में 4 मिनट का समय लगता है अत: 30° देशान्तरों को पार करने में कुल मिनट अर्थात् 2 घण्टे लगते हैं।

पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए अरुणाचल प्रदेश में जो कि 97°25′ पूर्व पर स्थित है, सूर्य पहले दिखता है, जबकि गुजरात में, जो कि 68°07′ पूर्व पर स्थित है, सूर्य दो घण्टे बाद दिखता है। दोनों राज्यों में घड़ी एक ही समय दर्शाती हैं क्योंकि भारतीय मानक समय 82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा से मिर्धारित किया जाता है। इस देशान्तर का स्थानीय समय सम्पूर्ण भारत का मानक समय माना जाता है जिससे सम्पूर्ण भारत का समय एक समान रहता है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

प्रश्न 4.
हिन्द महासागर में भारत की केन्द्रीय स्थिति से इसे किस प्रकार लाभ प्राप्त हआ है?
उत्तर:
हिन्द महासागर में भारत की केन्द्रीय स्थिति से इसे निम्नलिखित रूप में लाभ प्राप्त हुआ है
1. हिन्द महासागर में भारत की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमारे देश के अतिरिक्त संसार के किसी भी देश की इतनी लम्बी तट रेखा इस समुद्र के साथ नहीं है। इससे पश्चिम एशिया, अफ्रीका एवं यूरोप आदि के साथ समुद्री व्यापार सम्भव हुआ है।

2. स्वेज नहर के खुलने से भूमध्य सागर को हिन्द महासागर से जोड़ दिया गया है। इससे दक्षिण यूरोप और उत्तरी अफ्रीका भी हिन्द महासागर के प्रभाव क्षेत्र में आ गये हैं।

3. भारत ने अपनी केन्द्रीय स्थिति के कारण ही प्राचीन समय में अपने पड़ौसी देशों से मधुर व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित किए हैं।

मानचित्र कौशल:  निम्नलिखित की मानचित्र की सहायता से पहचान कीजिए:
1. अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह।
2. भारतीय उपमहाद्वीप किन देशों से मिलकर बनता है?
3. कर्क रेखा कौन-कौन से राज्यों से गुजरती है?
4. भारत के मुख्य भू-भाग का दक्षिणी शीर्ष बिन्दु।
5. भारत का सबसे उत्तरी अक्षांश।
6. अंशों में भारत के मुख्य भू-भाग का दक्षिणी अक्षांश।
7. भारत का सबसे पूर्वी और पश्चिमी देशान्तर।
8. सबसे लम्बी तट रेखा वाला राज्य।
9. भारत और श्रीलंका को अलग करने वाली जल सन्धि।
10. भारत के केन्द्र-शासित क्षेत्र।
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति 1
उत्तर:

  1. संकेत: अरब सागर में लक्षद्वीप और बंगाल की खाड़ी में अण्डमान निकोबार द्वीप समूह।
  2. भारतीय उपमहाद्वीप भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका से मिलकर बना है।
  3. कर्क रेखा गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों से होकर गुजरती है।
  4. कन्याकुमारी,
  5. 37°6′,
  6. 8°4,
  7. भारत का सबसे पूर्वी देशान्तर 97°25′, पश्चिमी देशान्तर 68°7’।
  8. गुजरात।
  9. पाक जलसन्धि।
  10. भारत के केन्द्र- शासित क्षेत्र:
    • 1. अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह,
    • 2. चण्डीगढ़,
    • 3. दिल्ली,
    • 4. दमन-दीव और दादरा-नागर हवेली,
    • 5. पुडुचेरी (पाण्डिचेरी),
    • 6. लक्षद्वीप,
    • 7. जम्मू और कश्मीर
    • 8. लद्दाख।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. अपने राज्य का विस्तार अक्षांश और देशान्तर में ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
किसी भी राज्य या स्थान का अक्षांश और देशान्तर रेखाओं का विस्तार जानने के लिए मानचित्र पर उस स्थान की सही जानकारी मालूम होनी चाहिए। प्रत्येक मानचित्र पर अक्षांश और देशान्तर की डिग्रियाँ (अंश) लिखे रहते हैं। अपने राज्य के अक्षांश को जानने के लिए उत्तर दक्षिण दिशा में एवं देशान्तर को जानने के लिए पूर्व-पश्चिम दिशा में भारत के मानचित्र पर समान्तर रेखाएँ खींचिए।

इनमें से कोई रेखा निश्चित रूप से आपके राज्य को स्पर्श करते हुए निकलेगी। जो रेखा उत्तर-दक्षिण दिशा में आपके राज्य को स्पर्श करे उसका मूल्य (अंश) ज्ञात कर लें। इसी प्रकार जो रेखा पूर्व-पश्चिम दिशा में आपके राज्य को स्पर्श करे उसका मूल्य (अंश) ज्ञात कर लें। यही मूल्य (अंश) आपके राज्य के अक्षांश एवं देशान्तर होंगे।

1. राजस्थान राज्य का अक्षांशीय विस्तार 23°3′ उत्तरी अक्षांश से 30°12′ उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 69°30′ पूर्वी देशान्तर से 78°17′ पूर्वी देशान्तर तक है।

2. मध्य प्रदेश का अक्षांशीय विस्तार 21°6 उत्तरी अक्षांश से 26°30′ उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 74° पूर्वी देशान्तर से 81°48′ पूर्वी देशान्तर तक है।

3. बिहार राज्य का अक्षांशीय विस्तार 21°28′ उत्तरी अक्षांश से 26°30 उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 80°15′ पूर्वी देशान्तर से 7817′ पूर्वी देशान्तर तक है।

4. छत्तीसगढ़ राज्य का अक्षांशीय विस्तार 17°46′ से 24°6′ उत्तरी अक्षांश से एवं देशान्तरीय विस्तार 80°15′ पूर्वी देशान्तर से 7817′ पूर्वी देशान्तर तक है।

5. उत्तराखण्ड राज्य का अक्षांशीय विस्तार 28°43′ से 31°27′ उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 69°30′ पूर्वी देशान्तर से 78°17′ पूर्वी देशान्तर तक है।

6. झारखण्ड राज्य का अक्षांशीय विस्तार 23°3′ उत्तरी अक्षांश से 30°12′ उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 69°30′ पूर्वी देशान्तर से 78°17′ पूर्वी देशान्तर तक है।

7. हरियाणा राज्य का अक्षांशीय विस्तार 23°3′ उत्तरी अक्षांश से 30°12′ उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 69°30′ पूर्वी देशान्तर से 78°17′ पूर्वी देशान्तर तक है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

प्रश्न 2.
‘रेशम मार्ग’ के बारे में सूचना एकत्र कीजिए। यह भी ज्ञात कीजिए कि किन नई विकास योजनाओं द्वारा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में आवागमन के मार्ग विकसित किये गये हैं?
उत्तर:
रेशम मार्ग भारत, चीन, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों के मध्य पर्वतीय दरों से होकर जाने वाला प्राचीन मार्ग था। इस मार्ग के द्वारा व्यापारी चीन निर्मित रेशमी कपड़ा, रेशम एवं अन्य सामग्री याकों एवं खच्चरों की सहायता से भारत तथा अन्य देशों को पहुँचाया करते थे।

भारत से गर्म मसाले, रबड़, तम्बाकू, ऊनी वस्त्र, सूती वस्त्र एवं अन्य वस्तुएँ इसी मार्ग से उत्तरी पश्चिमी चीन, पश्चिमी एवं मध्य पूर्वी एशिया के देशों को भेजी जाती थीं। नई विकास योजनाओं द्वारा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में आवागमन का विकास-प्राचीन काल में उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में मानव के लिए एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने में बहुत अधिक बाधाएँ थीं।

वर्तमान समय में नई विकास योजनाओं के माध्यम से पर्वतों को काटकर आवागमन के नये मार्गों को विकसित किया गया है। वायु परिवहन के साधनों का भी तीव्र गति से पर्वतीय क्षेत्रों में विकास होने से दुर्गम क्षेत्रों में भी लोगों को आसानी से पहुँचाया एवं संकटपूर्ण परिस्थितियों में पाल उनको वहाँ से निकाला भी जा सकता है।

आज अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सड़क मार्गों का जाल बन गया है। कहीं-कहीं रेलमार्गों का भी विकास किया गया है। उच्च पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के अधिक विकास हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इस प्रकार नई-नई विकास योजनाओं द्वारा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों का विकास किया जा रहा है।

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

JAC Class 9th History आधुनिक विश्व में चरवाहे  InText Questions and Answers

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश:
पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर अग्र प्रकार से हैं

क्रियाकलाप (पृष्ठ सख्या-101)

प्रश्न 1.
इन स्रोतों के आधार पर संक्षेप में बताइए कि चरवाहा परिवारों के औरत-मर्द क्या-क्या काम करते थे?
उत्तर:
चरवाहा परिवारों के महिला-पुरुष द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्नलिखित थे

  1. पुरुष मुख्य रूप से मवेशियों को चराने का कार्य करते थे एवं इसके लिए वे कई सप्ताहों तक अपने घरों से दूर रहते थे।
  2. महिलाएँ प्रतिदिन सुबह अपने सिर पर टोकरी और कंधे पर हँडिया लटकाकर बाजार जाती थीं। इन टोकरियों एवं हाँड़ियों में दैनिक खान-पान की चीजें, जैसे दूध, मक्खन, घी आदि होते थे। इन्हें बेचकर वे अपने घर के लिए आवश्यक सामग्री खरीदती थीं।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

प्रश्न 2.
आपकी राय में चरवाहे जंगलों के आस-पास ही क्यों रहते हैं?
उत्तर:
चरवाहों के जंगलों के आस-पास निवास करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. जंगल के आस-पास छोटे-छोटे गाँवों में रहते हुए चरवाहे जंगल की जमीन पर कृषि-कार्य करते हैं।
  2. चरवाहे जंगलों में अपने मवेशियों को चरा लेते हैं।
  3. चरवाहे जंगलों से अनेक ऐसी वस्तुएँ प्राप्त करते हैं जिनको शहरों में बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-104)

प्रश्न 1.
मान लीजिए कि जंगलों में जानवरों को चराने पर रोक लगा दी गई है। इस बात पर निम्नलिखित की दृष्टि से टिप्पणी कीजिए
1. एक वन अधिकारी
2. एक चरवाहा।
उत्तर:
एक वन अधिकारी की दृष्टि से टिप्पणी-चरवाहे जंगलों एवं जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचाते हैं। वे पर्यावरण का ध्यान रखे बिना ही अपनी अधिक से अधिक आमदनी करने के लिए जंगलों का अव्यवस्थित विदोहन करते हैं। अतः इन्हें जंगलों में प्रवेश नहीं देना चाहिए। एक चरवाहा की दृष्टि से टिप्पणी-जंगली लकड़ी, फूल-फल, पत्ते, मसाले आदि सभी मानव के उपयोग के लिए ही हैं।

हम सभी लोग जंगल के आस-पास के गाँवों में ही रहते हैं तथा जंगल की रखवाली भी करते हैं। यही हमारी आजीविका का साधन हैं तथा हमारे पशुओं को भी यहीं से चारा मिलता है। जंगल के बिना हमारे पशु एवं हम जीवित नहीं रह पायेंगे अत: हमें जंगलों में अपने पशु चराने की अनुमति मिलनी ही चाहिए।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-105)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आप 19वीं सदी के आखिरी सालों यानी सन् 1890 ई. के आस-पास रह रहे हैं। आप घुमंतू चरवाहों या कारीगरों के एक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। आपको पता चला है कि सरकार ने आपके समुदाय को अपराधी समुदाय घोषित कर दिया है।
1. संक्षेप में बताइए कि यह जानकर आपको कैसा महसूस होता और आप क्या करते?
उत्तर:
यह बहुत स्वाभाविक है कि मुझे बुरा लगता क्योंकि किसी समुदाय को अपराधी घोषित कर देना वह भी सिर्फ इस कारण से कि एक घुमंतू समुदाय है, बहुत ही गलत है। ऐसी स्थिति में, मैं सरकार से अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील करता।

2. स्थानीय कलेक्टर को चिट्ठी लिखकर बताइए कि आपकी नज़र में यह कानून किस तरह अन्यायपूर्ण है और इससे आपकी जिन्दगी पर क्या असर पड़ेंगे?
उत्तर:
सेवा में, श्रीमान् कलेक्टर महोदय जैसलमेर विषय-राइका समुदाय को अपराधी समुदाय घोषित करने के सन्दर्भ में। महोदय, विषयानुसार निवेदन है कि आपकी सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत् हमारे राइका समुदाय को अपराधी घोषित कर दिया है। यह एक अनुचित कार्यवाही है क्योंकि बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ घुमंतू होने के आधार पर हमारे समुदाय को अपराधी जनजाति घोषित किया गया है। समाज में आगे भी आने वाली पीढ़ियों को सिर्फ इसी आधार पर अपराधी बुलाया जायेगा जो कि घोर अन्याय होगा।

इतना ही नहीं इस अधिनियम के लागू हो जाने पर हमें एक अधिसूचित क्षेत्र की सीमा के अन्दर अपनी जीवन-यापन सम्बन्धी गतिविधियाँ करनी पड़ेगी। इससे बाहर जाने के लिए हमें सरकार से पूर्वानुमति लेनी होगी। पुलिस हमेशा हम पर कड़ी नजर रखेगी। यह बार-बार हमें अपने अपराधी होने का अहसास दिलायेगा। अतः इस तरह का अधिनियम हमारे जीवन पर व्यापक प्रभाव डालेगा एवं हमारी स्वतन्त्रता पूर्णरूपेण बाधित हो जायेगी। अतः इस अधिनियम को निरस्त करने की सरकार से सिफारिश करने की कृपा करें। दिनांक: प्रार्थी जगपत राइका जैसलमेर

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-116)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि यह सन् 1950 ई. का समय है और आप 60 वर्षीय राइका पशुपालक हैं। आप अपनी पोती को बता रहे हैं कि आजादी के बाद से आपके जीवन में क्या बदलाव आए हैं? आप उसे क्या बताएँगे?
उत्तर:
हमारी जीवन-शैली में स्वतन्त्रता के पश्चात् अनेक तरह के बदलाव आए हैं। पहले हमारे पास बहुत बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ होते थे किन्तु अब चरागाहों की कमी के कारण हमें इनकी संख्या में कमी लानी पड़ी है। हममें से कुछ लोग पुराने चरागाहों पर प्रतिबन्ध के कारण नये चरागाहों की खोज कर रहे हैं, जो कि एक कठिन कार्य है। भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन से आज हम पहले की तरह सिन्ध क्षेत्र में जाकर सिन्धु नदी के किनारे के मैदानों में अपने पशुओं को नहीं चरा सकते।

भारत एवं पाकिस्तान के बीच नई राजनीतिक सीमाओं ने हमारी गतिविधियों पर एक तरह से रोक लगा दी है। आजकल हमारे समुदाय के कुछ लोग हरियाणा की ओर जाने लगे हैं। वहाँ फसल कटने के बाद खेतों में उग आया घास पशुओं को चराने के काम आता है। हमारे समुदाय के कुछ लोग अपनी परम्परागत घुमंतू जीवन-शैली को छोड़ कर एक ही जगह स्थाई रूप से बसने लगे हैं और मैंने भी ऐसा ही किया। अब हम अपनी जमीन पर मेहनत करेंगे एवं फसल उगाएँगे और अपने परिवार का खूब अच्छे ढंग से पालन- पोषण करेंगे।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

प्रश्न 2.
मान लीजिए कि आपको एक प्रसिद्ध पत्रिका ने उपनिवेशवाद से पहले अफ्रीका में मासाइयों की स्थिति के बारे में एक लेख लिखने के लिए कहा है। वह लेख लिखिए और उसे एक सुन्दर शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
मासाइयों का जीवन मासाई नाम ‘मा’ शब्द से निकला है। मा-साई का अर्थ होता है-‘मेरे लोग’। परम्परागत रूप से मासाई घुमंतू और चरवाहा समुदाय के लोग होते हैं जो अपनी आजीविका के लिए दूध एवं मॉस पर आश्रित रहते हैं। ये गाय-बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ एवं गधे पालते हैं।

ये दूध, माँस, पशुओं की खाल एवं ऊन बेचते हैं। मासाई पशुपालक मूल रूप से पूर्वी अफ्रीका के निवासी हैं। मासाई क्षेत्र उत्तरी कीनिया से लेकर तंज़ानिया के घास के मैदानों तक फैला हुआ है। ऊँचे तापमान और कम वर्षा के कारण यहाँ शुष्क, धूल भरे और बेहद गर्म हालात रहते हैं।

JAC Class 9th History आधुनिक विश्व में चरवाहे Textbook Questions and Answers  

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?
उत्तर:
सूखे से चरवाही समूहों का जीवन प्रायः प्रभावित होता है। जब वर्षा नहीं होती है, चरागाह सूख जाते हैं तो पशुओं के लिए भूखे मरने की स्थिति आ जाती है। यही कारण है कि घुमंतू जनजातियों को, जो चरावाही से अपनी जीविका प्राप्त करते हैं पशुओं के लिए चरागाहों एवं पानी की खोज में एक जगह से दूसरी जगह तक घूमते रहने की आवश्यकता पड़ती है।

घुमंतू समुदायों को कई बार अपने पशुओं को कठोर जलवायु से बचाने के लिए भी स्थान परिवर्तन करना पड़ता है। इस घुमंतू जीवन के कारण उन्हें जीवित रहने तथा संकट से बचने का अवसर प्राप्त होता है। घुमंतू समुदायों के निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को लाभ

  1. घुमंतू समुदायों की निरन्तर गतिशीलता के कारण प्राकृतिक वनस्पति को फिर से वृद्धि करने का अवसर प्राप्त होता है। फलस्वरूप, वनस्पति संरक्षण के कारण पर्यावरण सन्तुलन बना रहता है।
  2. उनके मवेशियों को हरा-भरा नया चारा प्राप्त होता है।
  3. घुमंतू समुदायों के लगातार स्थान-परिवर्तन से भूमि की उर्वरा-शक्ति बनी रहती है क्योंकि उनके पशु जिन खेतों में चरते हैं, उन खेतों को उनसे गोबर के रूप में खाद भी मिलती है।
  4. घुमंतू समुदायों के लगातार स्थान-परिवर्तन से क्षेत्र विशेष का अधिक दोहन नहीं होता है।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा
(क) परती भूमि नियमावली,
(ख) वन अधिनियम,
(ग) अपराधी जनजाति अधिनियम,
(घ) चराई कर।
उत्तर:
(क) परती भूमि नियमावली:
औपनिवेशिक सरकार चरागाह भूमि क्षेत्र को ‘बेकार’ भूमि मानती थी। उनके अनुसार चरागाह भूमि से न तो लगान मिलता था और न ही उत्पादन। इसी बात को ध्यान में रखते हुए औपनिवेशिक सरकार ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में ‘परती भूमि के विकास के लिए नियम बनाए।

इस नियम के द्वारा बहुत-सी चरागाह भूमि को कृषि के अन्तर्गत लाया गया। औपनिवेशिक सरकार ने ऐसी भूमियों को गाँव के मुखियाओं को सौंप दिया जिससे वे उनमें खेती का कार्य करायें जिसके परिणामस्वरूप चरागाह क्षेत्र कम हो गए और चरवाहों के लिए अपने पशुओं को चराने की समस्या उत्पन्न हो गई।

(ख) वन अधिनियम:
औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1878 ई. में वन अधिनियम लागू किया गया। इसके द्वारा सरकार ने ऐसे कई जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। चरवाहे इन वनों का प्रयोग अपने पशुओं को चराने के लिए नहीं कर सकते थे। उनकी किसी भी गतिविधि के लिए इन वनों में पाबन्दी लगा दी गयी। जिन वनों में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति थी, उन वनों में भी उनकी गतिविधियों पर नियन्त्रण रखा जाता था।

उन्हें उन वनों में प्रवेश के लिए अनुमति पत्र लेना पड़ता था। जंगल में उनके प्रवेश और वापसी की तारीख पहले से तय होती थी तथा वह जंगल में बहुत ही कम दिन बिता सकते थे। यदि वे निश्चित दिनों से अधिक समय तक वन में रहते थे, तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था। इस प्रकार इन वन अधिनियमों ने चरवाहों के लिए आजीविका की गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने में कठिनाई उत्पन्न कर दी। अब उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी।

(ग) अपराधी जनजाति अधिनियम:
औपनिवेशिक सरकार घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखती थी। औपनिवेशिक शासकों का मानना था कि जो लोग गाँव-गाँव जाकर वस्तुएँ बेचते हैं तथा वे चरवाहे जो ऋतु परिवर्तन के साथ अपना स्थान बदल लेते हैं, वे अपराधी हैं। इसलिए 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने ‘अपराधी जनजाति अधिनियम’ पारित किया। इस कानून के तहत् दस्तकारों, व्यापारियों एवं चरवाहों के अनेक समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रखा गया।

उन्हें कुदरती एवं जन्मजात अपराधी घोषित किया गया। इस कानून के द्वारा ऐसे सभी समुदायों (दस्तकारों, व्यापारियों एवं चरवाहों) को एक निश्चित गाँव में ही रहना पड़ता था। वे बिना अनुमति पत्र (परमिट) के अपना स्थान नहीं बदल सकते थे। ग्रामीण पुलिस उन पर लगातार निगरानी रखती थी।

(घ) चराई कर:
औपनिवेशिक सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में देश के अधिकांश चरवाही क्षेत्रों में ‘चराई कर’ लागू कर दिया, यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था। प्रति पशु कर की दर तेजी से बढ़ती चली गई एवं कर वसूली की व्यवस्था दिन- प्रतिदिन मजबूत होती गई। 1850 से 1880 के दशकों के मध्य कर वसूली का काम ठेकेदारों के माध्यम से किया जाता था परन्तु बाद में सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू कर दिया।

प्रत्येक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी किया जाता था। किसी भी चरागाह में प्रवेश करने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले कर जमा कराना पड़ता था। इस प्रकार चरवाहों का शोषण होने लगा जिससे बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। परिणामस्वरूप, चरवाहों को अपनी आजीविका की पूर्ति करना मुश्किल हो गया।

प्रश्न 3.
मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ। उत्तर-मासाई समुदाय को निम्नलिखित कारणों से अपने चरागाह छोड़ने पड़े
1. साम्राज्यवादी प्रसार:
औपनिवेशिक काल से पहले मासाई समुदाय के पास उत्तरी कीनिया से लेकर तंज़ानिया के स्टेपीज तक का क्षेत्र था, परन्तु साम्राज्यवादी प्रसार के कारण सन् 1885 में मासाईलैण्ड को ब्रिटिश कीनिया एवं जर्मन तंज़ानिया के बीच विभाजित कर दिया गया।

इसके बाद श्वेत बस्तियों ने उत्तम चरागाह भूमि पर अधिकार कर लिया और मासाइयों को दक्षिण कीनिया एवं उत्तरी तंज़ानिया के छोटे क्षेत्रों की ओर खदेड़ दिया गया। इस प्रकार मासाइयों की लगभग 60 प्रतिशत भूमि ले ली गई। वे एक शुष्क प्रदेश तक ही सीमित रह गए, जहाँ निम्न श्रेणी के घटिया चरागाह थे।

2. कृषि का विस्तार:
19वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटिश उपनिवेशी सरकार ने पूर्वी अफ्रीका के स्थानीय किसानों को खेती का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया। जैसे ही कृषि आरम्भ हुई, चरागाह कृषि भूमि में बदलते गए। मासाई लोगों के चरागाहों पर स्थानीय किसानों ने अपना अधिकार कर लिया और वे असहाय हो गए।

3. शिकार हेतु आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना:
चरागाहों का एक बहुत बड़ा क्षेत्र शिकार के लिए आरक्षित कर दिया गया था। इनमें कीनिया के मासाई मारा, साम्बुरू नेशनल पार्क एवं तंज़ानिया का सेरेंगेटी पार्क प्रमुख थे। मासाई लोग इन पार्कों में न तो पशु चरा सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे। परिणामस्वरूप, चराई क्षेत्रों के छिन जाने से पशुओं के लिए चारा जुटाने की समस्या गम्भीर हो गई।

4. चरागाहों की गुणवत्ता में कमी:
मासाई लोगों को आरक्षित वनों में घुसने की मनाही कर दी गई। अब ऐसे आरक्षित चरागाहों से मासाई न लकड़ी काट सकते थे और न ही अपने पशुओं को चरा सकते थे। अत: मासाई लोगों के पास छोटा क्षेत्र होने से उसमें निरन्तर चराई से चरागाह की गुणवत्ता प्रभावित हुई।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

प्रश्न 4.
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीका चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर:
भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों में निम्नलिखित दो परिवर्तन समान रूप से मौजूद थे

  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों की विभिन्न नीतियों ने भारतीय चरवाहों तथा मासाई गड़रियों दोनों को अपने-अपने चरागाहों से बेदखल कर दिया। फलस्वरूप मासाई तथा भारतीय चरवाहों की चरागाह भूमि निरन्तर कम होती गई।
  2. दोनों ही देशों में सरकारों ने विभिन्न वन अधिनियम पारित किए। इन अधिनियमों के द्वारा कुछ वन क्षेत्रों में चरवाहों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई और कुछ में उनकी गतिविधियों को सीमित कर दिया गया।

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

JAC Class 9th History वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश-पाठ्य:
पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-81)

प्रश्न 1.
एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1,760 से 2,000 तक स्लीपरों की जरूरत थी। यदि 3 मीटर लम्बी बड़ी लाइन की पटरी बिछाने के लिए एक औसत कद के पेड़ से 3-5 स्लीपर बन सकते हैं तो हिसाब लगाकर देखें कि एक मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए कितने पेड़ काटने होंगे?
उत्तर:
1 मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए आवश्यक स्लीपरों की औसत संख्या = \(\frac{1760+2000}{2}\) =1880
1 पेड़ से बनाये जा सकने वाले स्लीपरों की औसत संख्या =\(\frac{3+5}{2}\)
1 मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या = \(\frac{1880}{4}\) = 470

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-83)

प्रश्न 1.
यदि 1862 ई. में भारत सरकार की बागडोर आपके हाथ में होती और आप पर इतने व्यापक पैमाने पर रेलों के लिए स्लीपर और ईंधन आपूर्ति की जिम्मेदारी होती तो आप इसके लिए कौन-कौन से कदम उठाते?
उत्तर:
यदि 1862 ई. में भारत सरकार की बागडोर मेरे हाथ में होती और मुझ पर इतने व्यापक पैमाने पर रेलों के स्लीपर और ईंधन आपूर्ति की जिम्मेदारी होती तो मैं निम्नलिखित कदम उठाता

  1. ईंधन तथा स्लीपरों के लिए रेलवे को लकड़ी की आपूर्ति तो की जाती, किन्तु अवन्यीकरण की कीमत पर कदापि नहीं।
  2. विभिन्न वैकल्पिक संसाधनों, जैसे-लोहे अथवा पत्थरों के स्लीपर का उपयोग किया जाता। ईंधन की आपूर्ति के लिए कोयले का उपयोग किया जाता।
  3. जितनी मात्रा में पेड़ों की कटाई आवश्यक होती उतने ही नवीन पेड़ भी लगाये जाते।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-86)

प्रश्न 1.
वन-प्रदेशों में रहने वाले बच्चे पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियों के नाम बता सकते हैं। आप पेड़-पौधों की कितनी प्रजातियों के नाम जानते हैं ?
उत्तर:
फलदार पेड़-आम, अमरूद, नींबू, जामुन, केले आदि। औषधि वाले-तुलसी, नीम आदि। काँटेदार-बबूल, बेर आदि।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-96)

प्रश्न 1.
जहाँ आप रहते हैं क्या वहाँ के जंगली इलाकों में कोई बदलाव आए हैं? ये बदलाव क्या हैं और क्यों हुए हैं?
उत्तर:
हाँ, हमारे यहाँ के जंगली इलाकों में कई बदलाव दिखाई देते हैं। ये बदलाव निम्नलिखित हैं

  1. इन वन क्षेत्रों में बड़े जंगली जानवरों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
  2. इन क्षेत्रों में वृक्षों की संख्या बढ़ गयी है।
  3. वन क्षेत्रों में जगह-जगह पर वन सुरक्षा अधिकारियों द्वारा चैक पोस्ट स्थापित कर दिए गए हैं।
  4. वन क्षेत्रों में प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया गया है।
  5. हाथी दाँत एवं जंगली बिल्लियों की खालों के अवैध व्यापार को रोका गया है तथा इन जानवरों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
  6. वन क्षेत्रों से होकर बहने वाली नदियों को साफ कर दिया गया है।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

प्रश्न 2.
एक औपनिवेशिक वनपाल और एक आदिवासी के बीच जंगल में शिकार करने के मसले पर होने वाली बातचीत के संवाद लिखें।
उत्तर:

  1. औपनिवेशिक वनपाल: तुम कौन हो? यहाँ वन में क्या कर रहे हो?
  2. आदिवासी: श्रीमान् जी, मैं एक आदिवासी हूँ। मैं यहाँ नजदीक के गाँव में रहता हूँ। यहाँ वन में कन्द-मूल, फल एकत्रित करने एवं खरगोश का शिकार करने आया हूँ।
  3. औपनिवेशिक वनपाल: क्या तुम नहीं जानते कि वन में शिकार करना प्रतिबन्धित है?
  4. आदिवासी: लेकिन श्रीमान् जी, मेरे बच्चे पिछले पाँच दिनों से भूखे हैं, मैं उनकी भोजन की जरूरत पूरी करने के लिए यहाँ आया हूँ।
  5. औपनिवेशिक वनपाल: मैं ये सब नहीं जानता। मैं बस इतना जानता हूँ कि वन में शिकार करना गैर-कानूनी है। यह एक कानूनन अपराध है, इसकी तुम्हें सजा अवश्य मिलेगी।
  6. आदिवासी: लेकिन श्रीमान् यह वन तो हम आदिवासियों का ही है। इसी से तो हमारी रोजी-रोटी चलती है। अगर हमें शिकार करने से रोका गया तो हमारा क्या होगा? हमारा परिवार तो भूखा ही मर जाएगा।
  7. औपनिवेशिक वनपाल: देखो, तुम मुझसे बहस कर रहे हो। इसकी तुम्हें भारी कीमत चुकानी पर है।
  8. आदिवासी: श्रीमान् जी, प्राचीन समय से ही हम यहाँ रहते आये हैं। हम जंगलों पर ही निर्भर हैं। कृपया हमें शिकार करने दीजिए। हम आपको भी शिकार में से हिस्सा दे देंगे।
  9. औपनिवेशिक वनपाल: नहीं। कदापि नहीं, चुप रहो! हमें अपने वन संरक्षण अधिकारी को तुम्हारी रिपोर्ट करनी ही पड़ेगी। चलो मेरे साथ चलो।

[औपनिवेशिक वनपाल आदिवासी को पकड़कर अपने साथ लेकर चला जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सामान्य परिस्थिति में हथकड़ी नहीं लगेगी]

JAC Class 9th History वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया
1. झूम खेती करने वालों को।
2. घुमंतू और चरवाहा समुदायों को।
3. लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों को।
4. बागान मालिकों को।
5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन में आये परिवर्तनों ने विभिन्न समूहों को निम्नलिखित प्रकार प्रभावित किया
1. झूम खेती करने वालों पर प्रभाव:
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन की नीति में परिवर्तन का झूम खेती करने वालों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। खेती की इस पद्धति पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने के कारण उन्हें कोई दूसरा व्यवसाय अपनाना पड़ा तथा उनके स्वतन्त्र जीवनयापन की प्राचीन व्यवस्था चरमरा गई। विभिन्न क्षेत्रों में उनका शोषण होने लगा। साथ ही नई नीति ने एक तरह से उन्हें बंधुआ मजदूर बना दिया।

2. घुमंतू और चरवाहा समुदायों पर प्रभाव:
वन प्रबन्धन की नई नीति के तहत् घुमंतू और चरवाहा समुदायों को सुरक्षित वनों में अपनी गतिविधियाँ चलाने से रोक दिया गया। फलत: उनकी रोजी-रोटी प्रभावित हुई। वनोत्पादों के व्यापार को रोके जाने से इन समुदायों के लिए आय के स्रोत बन्द हो गये तथा इनका जीवनयापन कठिन हो गया।

3. लकड़ी और वन:
उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों पर प्रभाव-वन प्रबन्धन की नीति के तहत् इन कम्पनियों को लकड़ी एवं वनोत्पाद का व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया गया। इस समूह के लोगों को इस नीति का सर्वाधिक लाभ पहुँचा। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपने तथा सरकार के लिए विशाल -मात्रा में वनों के दोहन एवं आदिवासियों के शोषण द्वारा धन एकत्र किया।

4. बागान मालिकों पर प्रभाव:
वन प्रबन्धन की नई नीति से बागान मालिकों को अपने व्यवसाय से बहुत अधिक लाभ हुआ। अवन्यीकरण के पश्चात् चाय, कॉफी, रबर आदि के नये-नये बागानों का विकास किया गया। इन बागानों में भूमिहीन आदिवासियों से मुफ्त काम करवाया जाता था। चूँकि इन उत्पादों का निर्यात होता था अतः सरकार एवं कम्पनियों दोनों को बहुत अधिक लाभ हुआ।

5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों पर प्रभाव:
हालांकि वन प्रबन्धन की नई नीति में जंगलों में शिकार करना प्रतिबन्धित कर दिया गया था किन्तु इसमें भेदभाव बरता गया। राजा-महाराजा एवं ब्रिटिश अधिकारी इन नियमों के निर्माण के बावजूद शिकार करते रहे। उनके साथ सरकार की मौन सहमति थी। चूँकि बड़े जंगली जानवरों को वे आदिम, असभ्य तथा बर्बर समुदाय का सूचक मानते थे अत: भारत को सभ्य बनाने के नाम पर इन जानवरों का शिकार चलता रहा।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

प्रश्न 2.
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर:
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के सुदूर दक्षिण में स्थित बस्तर एक जिला है, जबकि जावा, इण्डोनेशिया देश में स्थित एक द्वीप है। भारत अंग्रेजों का एवं इण्डोनेशिया डचों का उपनिवेश रहा है। औपनिवेशिक काल में बस्तर तथा जावा दोनों में वन प्रबन्धन में निम्नलिखित समानताएँ थीं

  1. रेलवे तथा जहाज निर्माण के लिए अत्यधिक संख्या में पेड़ों की कटाई की गई।
  2. दोनों ही स्थानों पर शिकार को प्रतिबन्धित कर दिया गया।
  3. घुमंतू तथा चरवाहे समुदायों को वनों में प्रवेश करने से रोका गया।
  4. वनवासी समुदायों द्वारा पेड़ों की कटाई का विरोध करने पर उन्हें प्रताड़ित किया गया।
  5. वनोत्पाद से सम्बन्धित स्थानीय लोगों द्वारा किये जाने वाले व्यापार को रोका गया।
  6. वन भूमि को ग्रामीण, सुरक्षित तथा संरक्षित वनों में वर्गीकरण कर दिया गया।
  7. वनवासी समुदायों को जंगल में स्थित अपने घरों में रहने के लिए या तो किराया देने के लिए अथवा बेगारी के लिए मजबूर किया गया।
  8. वनों की कटाई तथा बगीचों के विकास के लिए यूरोपीय फर्मों को लाइसेंस प्रदान किये गये।
  9. दोनों ही स्थानों पर औपनिवेशिक वन प्रबन्धन का उद्देश्य सरकारी सत्ता को लाभ पहुँचाना तथा स्थानीय वनों में या आस-पास रहने वालों का शोषण करना था।
  10. इन नीतियों के निर्माण में दोनों ही स्थानों पर स्थानीय लोगों को शामिल नहीं किया गया, बल्कि यूरोपीय विशेषज्ञों ने इन नीतियों का अपने हितों के लिए निर्माण किया।

प्रश्न 3.
सन् 1880 ई.से सन् 1920 ई.के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ
रेलवे, जहाज निर्माण, कृषि-विस्तार, व्यावसायिक खेती, चाय-कॉफी के बागान, आदिवासी और किसान।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में विभिन्न कारकों की भूमिका निम्नलिखित थी
1. रेलवे:
औपनिवेशिक शासकों को रेलवे के विस्तार के लिए स्लीपरों की आवश्यकता थी जो कठोर लकड़ी के बनाए जाते थे। एक मील रेलवे लाइन बिछाने के लिए 1,760 से लेकर 2,000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। सन् 1946 ई. तक लगभग 7,65,000 किलोमीटर रेलवे लाइनें भारत के विभिन्न भागों में बिछाई गई हैं जिससे लाखों की संख्या में वृक्ष, रेलवे की भेंट चढ़ गए। रेल-इंजनों में भी लकड़ी का कोयला जलने से वनों को भारी क्षति हुई।

2. जहाज निर्माण:
ब्रिटेन में 19वीं सदी की शुरुआत तक बलूत (ओक) के वन समाप्त होने लगे थे। इसकी वजह से शाही नौसेना हेतु बनाये जाने वाले जहाजों के लिए मजबूत लकड़ी की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। अत: भारत में मजबूत लकड़ी प्राप्त करने के लिए टीक (सागौन) और साल के वृक्ष लगाये जाने लगे। अन्य सभी प्रकार के वृक्षों को साफ कर दिया गया। भारत से बड़े पैमाने पर लकड़ी इंग्लैण्ड भेजी जाने लगी अत: भारतीय उपमहाद्वीप के वनों से आच्छादित भू-भाग में तेजी से कमी आ गई।

3. कृषि-विस्तार:
सन् 1600 ई. में भारत का लगभग 1/6 भू-भाग कृषि के अधीन था, परन्तु जनसंख्या वृद्धि के साध-साथ खाद्यान्नों की माँग बढ़ने लगी अत: किसान कृषि-क्षेत्र का विस्तार करने लगे। इसके लिए वनों को साफ करके नए खेत बनाए जाने लगे इसके अतिरिक्त खानाबदोशों और चरवाहों के क्रियाकलापों पर प्रतिबन्धों ने भी इन लोगों को कृषि अपनाने के लिए विवश किया। अत: सन् 1880-1920 ई. के मध्य कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर का विस्तार हुआ अत: वन तीव्रता से समाप्त होने लगे।

4. व्यावसायिक खेती:
व्यावसायिक खेती भी वन-क्षेत्रों की कमी के लिए उत्तरदायी थी। किसानों ने कृषि के व्यवसायीकरण के पश्चात् बाजार में बेचने के लिए फसलों का उत्पादन करना आरम्भ कर दिया जिससे उन्हें अधिक-सेअधिक लाभ प्राप्त हो सके। देश के विस्तृत वन क्षेत्रों से वनों को साफ किया गया और वहाँ चाय एवं कॉफी की खेती की गई।

5. चाय:
कॉफी के बागान-यूरोप में चाय-कॉफी की बहुत अधिक माँग थी। औपनिवेशिक सरकार ने वनों पर नियन्त्रण स्थापित करके बड़ी सस्ती दरों पर यूरोपीय लोगों को बड़े क्षेत्र दे दिए। इन क्षेत्रों से वनों को साफ किया गया तथा चाय एवं कॉफी के बागान स्थापित कर दिए गए।

6. आदिवासी और किसान:
आदिवासी एवं स्थानीय किसान भी वन क्षेत्रों में कमी के लिए उत्तरदायी हैं। व्यावसायिक कृषि के लिए वनों को साफ किया गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ईंधन के लिए पेड़ों को काटा जिससे वनों का अत्यधिक विनाश हुआ।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

प्रश्न 4.
युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर:
युद्धों से जंगल (वन) प्रभावित होते हैं क्योंकि

  1. विरोधी सेना सबसे पहले भोजन संसाधन और छिपने की जगहों को नष्ट करना चाहती है। इन दोनों की आपूर्ति में वन काफी सहायक होते हैं।
  2. थल सेना एवं वायु सेना की दृश्यता स्पष्ट करने के लिए भी जंगलों को जला दिया जाता है, क्योंकि वे एक अवरोध के रूप में काम करते हैं।
  3. युद्धरत सेना को तुरन्त रास्ता उपलब्ध करवाने के लिए वनों को काटकर रास्ता सुगम किया जाता है।
  4. युद्ध के समय विभिन्न सरकारें लकड़ी के विशाल भण्डारों एवं आरा मिलों को स्वयं भी जला डालती हैं जिससे ये संसाधन शत्रु के हाथ न लग पाएँ।
  5. आधुनिक समय में आक्रमण से बचने के लिए सेनाएँ तथा युद्ध सामग्री को घने वनों में छिपा देती हैं ताकि उन पर कोई हमला न कर सके। शत्रु विरोधी सैनिकों एवं उनकी युद्ध सामग्री पर कब्जा करने के लिए वनों को निशाना बनाते हैं।
  6. युद्ध में व्यस्त हो जाने पर बहुत से देशों का ध्यान वनों का सुव्यवस्थित ढंग से विकास करने के कार्यों से हट जाता है और परिणामस्वरूप बहुत से वन लापरवाही का शिकार हो जाते हैं।

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

JAC Class 9th History नात्सीवाद और हिटलर का उदय InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश: पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-61)

प्रश्न 1.
इनसे हिटलर के साम्राज्यवादी मंसूबों के बारे में आपको क्या पता चलता है ?
उत्तर:

  1. स्रोत क और ख को पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हिटलर एक बहुत भयानक साम्राज्यवादी लक्ष्य को लेकर चल रहा था।
  2. वह अपने देश की सीमा को विस्तार देना चाहता था।
  3. हिटलर का मानना था कि एक विशाल तथा जागृत राष्ट्र अपनी जनसंख्या के आकार के अनुसार नये क्षेत्र के अधिग्रहण का रास्ता स्वयं ही चुन लेता है।
  4. हिटलर की इच्छा जर्मनी को एक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित करने की थी। इसीलिए वह असन्तुष्ट था कि उसके देश का भौगोलिक क्षेत्रफल मात्र पाँच सौ वर्ग किमी. था जबकि कई दूसरे देशों का क्षेत्रफल महाद्वीपों के बराबर था।

प्रश्न 2.
आपकी राय में इन विचारों पर महात्मा गाँधी हिटलर से क्या कहते?
उत्तर;
मेरी राय में इन विचारों पर महात्मा गाँधी हिटलर को हिंसा रोकने की सलाह देते, क्योंकि उनका मानना था कि हिंसा ही हिंसा को जन्म देती है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-63)

प्रश्न 1.
आपके लिए नागरिकता का क्या मतलब है? अध्याय 1 एवं 3 को देखें और 200 शब्दों में बताएँ कि फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सीवाद ने नागरिकता को किस तरह परिभाषित किया?
उत्तर:
नागरिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति का अपने इच्छित देश अथवा जन्म के देश में रहने के अधिकार से है। फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सीवाद के नागरिकता के सम्बन्ध में विचार-फ्रांसीसी क्रान्ति तथा नात्सीवाद दोनों ने अलग-अलग तरीकों तथा दृष्टिकोणों से नागरिकता को परिभाषित करने की कोशिश की। फ्रांसीसी क्रान्ति-फ्रांसीसी क्रान्ति का आधार यह था कि सभी मानव जन्म से समान एवं स्वतन्त्र हैं तथा उनके अधिकार भी समान हैं।

स्वतन्त्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा तथा शोषण का विरोध, ये नागरिक के प्रारम्भिक अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करने तथा अपने इच्छित स्थान पर बस जाने के लिए स्वतन्त्र है। किसी भी लोकतान्त्रिक तथा समाजवादी समाज में कानून का शासन होना चाहिए, जिसके ऊपर कोई नहीं होता। नात्सीवाद-नात्सियों ने नागरिकता को प्रजातीय विभेद के दृष्टिकोण से परिभाषित किया।

यही कारण है कि उन्होंने यहूदियों को जर्मन नागरिक मानने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार करते हुए उन्हें जर्मनी से बाहर निकाल दिया। कालान्तर में उन्हें जर्मनी से बाहर पोलैण्ड एवं पूर्वी यूरोप में भागकर बसना पड़ा। हिटलर के शासन काल में यहूदियों को सबसे निचले पायदान पर रखा जाता था उन पर अत्याचार अर्थदण्ड आदि के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास किया जाता था तथा जर्मन आर्यों को श्रेष्ठ माना जाता था। यह विचार फ्रांसीसी क्रान्ति के आधारभूत विचार स्वतंत्रता एवं समानता के विपरीत थे।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 2.
नात्सी जर्मनी में ‘अवांछितों’ के लिए न्यूरेम्बर्ग कानूनों का क्या मतलब था? उन्हें इस बात का अहसास कराने के लिए कि वह अवांछित हैं अन्य कौन-कौन से कानूनी कदम उठाए गए?
उत्तर:
न्यूरेम्बर्ग नियम के अनुसार नागरिक के रूप में रह रहे योग्यों के बीच अयोग्यों को रहने का कोई अधिकार नहीं था।

  • सन् 1935 ई. में निर्मित नागरिकता सम्बन्धी न्यूरेम्बर्ग नियम निम्नलिखित थे:
    1. केवल जर्मन अथवा उससे सम्बन्धित रक्त वाले व्यक्ति ही आगे से जर्मन नागरिक होंगे, जिन्हें जर्मन साम्राज्य की सुरक्षा प्राप्त होगी।
    2. यहूदियों तथा जर्मनों के बीच विवाह सम्बन्ध पर प्रतिबन्ध लागू किया गया।
    3. यहूदियों को राष्ट्र ध्वज फहराने से प्रतिबन्धित किया गया।
  • अन्य कानूनी कदमों में शामिल थे:
    1. यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार।
    2. यहूदियों का सरकारी नौकरियों से निष्कासन।
    3. यहूदियों की सम्पत्ति को जब्त करना एवं उसकी बिक्री करना।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-66)

प्रश्न 1.
अगर आप ऐसी किसी कक्षा में होते तो यहूदियों के प्रति आपका रवैया कैसा होता?
उत्तर:
अगर मैं ऐसी किसी कक्षा में बैठा होता तो, नात्सियों द्वारा यहूदियों के प्रति किये जाने वाले व्यवहार के कारण मुझे उनके प्रति सहानुभूति होती। मेरा हृदय यहूदियों के प्रति दयाभाव से भर जाता, साथ ही नात्सी सरकार के प्रति उतनी ही घृणा पैदा होती।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 2.
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जान-पहचान वाले अन्य समुदायों के बारे में क्या सोचते हैं? उन्होंने इस तरह की छवियाँ कहाँ से हासिल की हैं?
उत्तर:
हाँ, हमने अपने चारों तरफ फैले अपनी जान-पहचान वाले अन्य समुदायों के बारे में प्रचलित रूढिबद्ध धारणाओं के बारे में सोचा है। ऐसी अधिकतर छवियाँ किसी खास समुदाय, उसके नेताओं, उनमें प्रचलित परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों से विकसित होती हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-67)

प्रश्न 1.
चित्र 23, 24 और 27 को देखिए। कल्पना कीजिए कि आप नात्सी जर्मनी में रहने वाले यहूदी या पोलिश मूल के व्यक्ति हैं। आप सितम्बर सन् 1941 ई. में जी रहे हैं और अभी-अभी कानून बनाया गया है सामाजिक विज्ञान कक्षा-9 कि यहूदियों को डेविड का तमगा पहनकर रहना होगा। ऐसी परिस्थिति में अपने जीवन के एक दिन का ब्यौरा लिखिए।
उत्तर:
मैं बर्लिन की सड़कों एवं गलियों में भटक रहा हूँ। मुझे बहुत तेज भूख एवं प्यास लग रही है। मेरी आँखें बालकोनी में खड़ी किसी सज्जन जर्मन महिला को खोज रही हैं जो मुझे एक रोटी दे सके। परन्तु आह ! मेरी यह खोज है कि समाप्त ही नहीं हो रही। शीघ्र ही मुझे कुछ लड़कों के पीछे भागती एक भीड़ की आवाज सुनाई देती है। भीड़ में सम्मिलित लोग मुझे भी शामिल होने के लिए कह रहे थे।

सभी के शरीर पर डेविड का तमगा लगा हुआ है। जैसे ही मैंने महसूस किया कि वे भी मेरी तरह यहूदी हैं तो मैं भी उनके साथ भागने लगा किन्तु वाह रे मेरा भाग्य ! अन्त में उनके साथ मुझे भी पकड़ लिया गया तथा कंसन्ट्रेशन कैंप में डाल दिया गया। हमारे सभी कपड़े उतार लिए गए तथा हमें बेरहमी से मारा-पीटा गया। ठीक अर्धरात्रि में हमें गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दिया गया।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-69)

प्रश्न 1.
अगर आप:
1. यहूदी औरत या
2. गैर-यहूदी जर्मन औरत होतीं तो हिटलर के विचारों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देती?
उत्तर:
1. यहदी औरत: यदि मैं यहदी औरत होती तो मैं जनता के बीच जाकर हिटलर के विचारों की आलोचना करती। मैं अपने घर तक सुरक्षित रास्ता, जीविकोपार्जन के समान अवसर एवं भेदभाव रहित जीवन की माँग का समर्थन करती।

2. गैर-यहूदी जर्मन औरत: यदि मैं एक गैर-यहूदी जर्मन औरत होती तो मैं खुशी-खुशी रहती, अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने एवं समाज में प्रतिष्ठा पाने की कोशिश करती तथा हिटलर के विचारों की प्रशंसा करती।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 2.
आपके विचार से इस पोस्टर (चित्र 28) में क्या दिखाने की कोशिश की जा रही है?
उत्तर:
इस पोस्टर के द्वारा यहूदी लोगों के प्रति नफरत का भाव जगाने की कोशिश की जा रही है। इस पोस्टर के अनुसार यहूदी पैसों के भूखे यानी हर तरह से पैसा कमाने वाले हैं और उस पैसे को इकट्टा करके अपनी तिजोरियों को भरना चाहते हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-70)

प्रश्न 1.
इनसे नात्सी प्रचार के बारे में हमें क्या पता चलता है? आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए नात्सी क्या प्रयास कर रहे हैं?
उत्तर:
चित्र 29-30 से हमें नात्सी प्रचार के बारे में यह पता चलता है कि नात्सी किसानों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था और विश्व यहूदीवाद का भय दिखाकर अपने पक्ष में करना चाहते हैं। आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए नात्सी हिटलर को एक अग्रिम मोर्चे का सिपाही बता रहे हैं तथा इन वर्गों को बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर उनका समर्थन प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-71)

प्रश्न 1.
एर्ना क्रॉत्स ने ये क्यों कहा-‘कम से कम मुझे तो यही लगता था’ ? आप उनकी राय को किस तरह देखते हैं?
उत्तर:
एर्ना क्रॉत्स, लॉरेंस रीस को सन् 1930 ई. के दशक के अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में बता रही थीं। उनके अनुसार अब लोगों को उम्मीद नजर आ रही है। लोगों का वेतन बढ़ा है। जर्मनी का पुन: नये सिरे से विकास होगा। अब अच्छा दौर प्रारम्भ होने वाला है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-74)

प्रश्न 1.
एक पन्ने में जर्मनी का इतिहास लिखें:
1. नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से।
2. यातना गृह से जिन्दा बच निकले एक यहूदी की नजर से।
3. नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से।
उत्तर:
1. जर्मनी का इतिहास (नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से):
नात्सी जर्मनी की परिस्थितियाँ विशेषकर स्कूली बच्चों के लिए बहुत ही कष्टप्रद थीं। स्कूली बच्चों को तीन वर्ष की अवस्था से ही नात्सी विचारधाराओं की शिक्षा की शुरुआत कर दी जाती थी। उन्हें उस आयु में एक छोटा-सा झंडा लहराना पड़ता था जबकि उसके बारे में उनकी कोई सोच भी विकसित नहीं हुई होती थी।

10 वर्ष का होने पर बच्चों को नात्सी युवा संगठन ‘युंगफोक’ में दाखिल करा दिया जाता था। उसके बाद 14 वर्ष की उम्र में सभी बच्चों को नात्सियों के युवा संगठन हिटलर यूथ की सदस्यता तथा 18 वर्ष की उम्र में श्रम सेना में सम्मिलित होना पड़ता था। इसके बाद उन्हें सेना में काम करना पड़ता था और किसी नात्सी संगठन की सहायता लेनी पड़ती थी। इस तरह उनकी पूरी जिन्दगी ही थोपे गये विकृत विचारों के अनुसार गुजरती थी।

स्कूली बच्चों को उनके यहूदी मित्रों से अलग कर एक निश्चित दूरी पर बिठाया जाता था। उन्हें ऐसी पुस्तकें पढ़ाई जाती थीं जो नात्सी विचारों के प्रसार के लिए तैयार की गई थीं। नात्सियों ने खेल को भी अपनी विचारधारा से दूर नहीं रखा। उस पर भी अपने विचार थोपे। बच्चों को खेल के रूप में मुक्केबाजी का चुनाव करने के लिए बाध्य किया जाता था।

2. जaर्मनी का इतिहास (यातना गृह से जिन्दा बध निकले एक यहूदी की नजर से):
जर्मनी नात्सियों को यहूदियों पर किये गये अत्याचार के लिए सदैव याद किया जाएगा। यह जर्मन इतिहास का एक काला अध्याय है। समस्त यूरोप के यहूदी मकानों, यातना गृह और घेटो बस्तियों के रहने वाले यहूदियों को मालगाड़ियों में भर-भरकर मौत के कारखानों ‘कंसन्ट्रेशन कैम्पों (यातना गृहों)’ में डाल दिया जाता था जहाँ उन्हें घोर यातनाएँ दी जाती थीं।

आज भी मुझे वहाँ के दृश्यों को याद कर डर लगने लगता है। वहाँ मैं जिन्दा रहते हुए भी सैकड़ों बार मरा हूँ। बहुत दिनों तक विभिन्न तरह के अत्याचार के बाद यहदियों को गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। कंसन्ट्रेशन कैम्प से बाहर के यहूदियों की स्थिति भी दयनीय थी। उन्हें समाज में घोर अपमान सहना पड़ता था। अपनी पहचान प्रदर्शित करने के लिए उन्हें डेविड का पीला सितारा युक्त वस्त्र पहनने पड़ते थे एवं उनके घरों पर विशेष चिह्न छाप दिया जाता था।

किसी भी तरह के सन्देह की स्थिति अथवा कानून के मामली उल्लंघन पर उन्हें कसन्ट्रेशन कैम्प भेज दिया जाता था, जहाँ अत्याचार का एक नया दौर शुरू होता था जिसकी अन्तिम परिणति मौत के रूप में होती थी। हमारी आँखों के सामने हजारों-लाखों यहदियों को गैस चैम्बरों में दम घोट कर मारा गया।

3. जर्मनी का इतिहास (नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से):
जर्मनी में नात्सी शासन प्रचार के खोखले एवं कमजोर पैरों पर टिका हुआ था। युद्ध द्वारा नये क्षेत्रों के हड़पने की नीति से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं था। यह कभी भी देश में एक लम्बी शान्ति तथा समृद्धि का दौर नहीं ला सकती थी। हालांकि, मैं राष्ट्रवाद जैसे विचारों का समर्थक है, किन्तु नात्सी लोग इसका जो अर्थ लगाते थे तथा जिन साधनों तथा नीतियों के उपयोग द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे, उससे बिल्कुल भी सहमत नहीं हुआ जा सकता है।

जर्मन राष्ट्रवाद की प्राप्ति के लिए, पहले से अल्प धन की मात्रा को सेना या सैन्य उपकरणों पर खर्च करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। महिलाओं तथा बच्चों के प्रति नात्सियों की नीति पूर्णतः असंगत थी। जर्मन बच्चों को उनके नैसर्गिक व्यक्तित्व के विकास से दूर हटाकर उन पर नात्सी विचारधारा को थोपना और नात्सी विचारों को सही ठहराने के लिए नस्ल विज्ञान के नाम से एक नया विषय पाठ्यक्रम में चलाना।

यहूदियों से नफरत करना एवं हिटलर की पूजा करना उनके साथ घोर अन्याय था। महिलाओं पर अव्यावहारिक आचार संहिताओं का थोपा जाना उनकी स्वतन्त्रता को खत्म करने जैसा था। एक प्रकार से नात्सी लोगों ने असभ्यता के सभी लक्षणों के प्रचार द्वारा जर्मन जनता को भ्रष्ट करने का असफल प्रयास किया जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप हेलमुट हैं। स्कूल में आपके बहुत सारे यहूदी दोस्त हैं। आपका मानना है कि यहूदी खराब नहीं होते। ऐसे में आप अपने पिता से क्या कहेंगे? इस बारे में एक पैराग्राफ लिखें।
उत्तर:
प्रिय पिताजी, मेरे कई यहूदी दोस्त हैं। हमारे विद्यालय में यहूदियों से नफरत करना सिखाया जा रहा है। नात्सियों द्वारा यहूदी बच्चों को विद्यालय से निकाला जा रहा है तथा उन्हें गैस चैम्बरों में मरने के लिए ले जाया जा रहा है। आखिर यहूदियों ने कौन-सा ऐसा पाप किया है जिसके लिए निर्दयतापूर्वक उनकी हत्या की जा रही है? यदि हममें से कोई हत्यारा है तथा नात्सी शासन का समर्थक है तो उनको लेकर मैं लज्जित हूँ।

वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों यहूदियों को गैर-कानूनी रूप से मारा जा रहा है? क्या वे हमारी तरह इंसान नहीं हैं? क्या उनमें वही सारी भावनाएँ नहीं हैं जो हममें हैं? आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि मुझे कोई गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दे तो आप पर क्या गुजरेगी? उनकी सिर्फ यही गलती है कि वे यहूदी हैं, तो क्या यहूदी होना गुनाह है? यदि हाँ, तो जो ईसाई कर रहे हैं उस गुनाह की क्या सजा होनी चाहिए। नात्सियों के द्वारा किया जा रहा यह अत्याचार प्रभु ईसा मसीह कभी भी माफ नहीं करेंगे।

JAC Class 9th History और हिटलर का उदय Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
वाइमर गणराज्य के सामने निम्नलिखित समस्याएँ थीं

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में पराजय के पश्चात् जर्मनी पर विजयी देशों ने बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं।
  2. इसे वर्साय की अपमानजनक सन्धि पर हस्ताक्षर करने पड़े।
  3. इसे मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में भारी धन-राशि देनी पड़ी।
  4. देश में मुद्रास्फीति के कारण कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी थी। वाइमर सरकार मूल्य-वृद्धि को रोकने में पूर्णत: असफल रही।
  5. देश में बेरोजगारी बढ़ गई थी तथा उद्योग एवं व्यापार पिछड़ गए थे।
  6. मित्र-राष्ट्रों ने जर्मनी को कमजोर करने के लिए उसकी सेना को भंग कर दिया।
  7. युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने जर्मनी को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ-साथ मित्र-राष्ट्रों को हुए नुकसान के लिए भी उत्तरदायी ठहराया।
  8. वाइमर गणराज्य की स्थापना के साथ ही स्पार्टकिस्ट लीग अपनी क्रांतिकारी विद्रोह की योजनाओं को अंजाम देने लगी।

प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि सन् 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त पराजित होने पर विजयी देशों ने बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं । जर्मनी के लिए वर्साय की सन्धि बड़ी अपमानजनक थी। इसकी कठोरता के कारण जर्मनी में नात्सीवाद का उत्थान हुआ। इसके नेता हिटलर ने वर्साय संधि-पत्र की अपमानजनक शर्तों की धीरे-धीरे अवहेलना करनी प्रारम्भ कर दी। वह उपनिवेशवाद, सैन्यवाद एवं विस्तारवाद में विश्वास करता था। जर्मनी में निम्न कारकों ने नात्सीवाद की लोकप्रियता बढ़ाने में योगदान दिया

1. जर्मनी में राजनीतिक अस्थिरता:
हिटलर के उत्थान से पूर्व जर्मनी पर वाइमर गणराज्य का शासन था। इसके शासनकाल में देश में बेरोजगारी एवं कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई, इससे सेना में भी असन्तोष फैल गया। हिटलर ने ऐसी स्थिति का पूरा-पूरा लाभ उठाया। उसने जर्मनी की जनता को विश्वास दिलाया कि वह राष्ट्र का खोया हुआ सम्मान पुनः वापस लाएगा। जर्मनी की सभी समस्याओं का समाधान करके वह उसे विश्व की नई महाशक्ति बनाएगा।

2. जर्मन जनता का प्रजातन्त्र में अविश्वास:
जर्मनी के लोगों का स्वभाव से ही प्रजातन्त्र में विश्वास नहीं था। प्रजातन्त्र उनकी सभ्यता एवं परम्पराओं के विरुद्ध था। वे पार्लियामेंट्री संस्थाओं एवं उसके क्रिया-कलापों को समझने में असमर्थ थे। अत: जर्मनी में वाइमर संविधान बड़े प्रतिकूल वातावरण में लागू हुआ, जिसका सफल होना भी सम्भव नहीं था। अत: वहाँ के लोगों की मनोवृत्ति नात्सी दल के विकास और हिटलर के अधिनायक बनने में सहायक सिद्ध हुई।

3. आर्थिक संकट:
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को गहरे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में जर्मनी को अपार जन एवं धन की हानि उठानी पड़ी। इसके शहर एवं कस्बे, व्यापार एवं वाणिज्य, कारखानों एवं उद्योगों को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया था। सन् 1929 ई. की आर्थिक मन्दी ने जर्मनी की आर्थिक स्थिति पर और भी बुरा प्रभाव डाला। जर्मनी की गणतन्त्रीय सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में पूर्ण रूप से असफल रही।

4. नात्सियों ने यहूदियों के प्रति घृणा:
भावना का प्रचार स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों से ही करना प्रारम्भ कर दिया। पाठ्यक्रम परिवर्तित कर दिया गया। स्कूलों से यहूदी शिक्षकों को निकाल दिया गया अत: जर्मनी की नई पीढ़ी में यहूदियों के प्रति घृणा एवं द्वेष के भाव पहले से ही भर दिए गए।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 5.
नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रान्ति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें। फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ।
उत्तर:
नात्सी समाज में औरतों की भूमिका-नात्सी समाज में महिलाओं को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें आर्य संस्कृति का संवाहक माना जाता था। दुनिया के सभी प्रजातान्त्रिक देशों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे, लेकिन नात्सी जर्मनी में महिला का महत्व सिर्फ “आर्य सन्तान की माँ” के रूप में था।

महिलाओं को आर्य नस्ल की शुद्धता को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था और दबाव बनाया जाता था कि वह यहूदी पुरुष के साथ किसी प्रकार का प्रेम सम्बन्ध स्थापित न करे। अनेक सन्तानों को जन्म देने वाली माँ को विशेष पुरस्कार दिया जाता था। निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली ‘आर्य’ औरतों की सार्वजनिक रूप से निन्दा की जाती थी और उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था।

फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच तुलना:
1. नात्सी समाज में औरतों को पुरुषों के समान दर्जा नहीं दिया जाता था, जबकि फ्रांसीसी समाज में स्त्री-पुरुष को समान समझा जाता था। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे।

2. नात्सी समाज में महिलाएँ स्वतन्त्र नहीं थीं उनका काम केवल घर-परिवार की देखभाल और बच्चों को जन्म देना था। इसके विपरीत फ्रांसीसी समाज में महिलाओं को बराबर का साझीदार माना जाता सकती थीं।

3. नात्सी महिलाओं को अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार नहीं था। महिलाओं के लिए निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली महिलाओं को सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाता था। उन्हें न केवल जेल की सजा दी जाती थी अपितु अनेक तरह के नागरिक सम्मान एवं उनके पति एवं परिवार भी छीन लिए जाते थे। इसके विपरीत फ्रांसीसी महिलाएं अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतन्त्र थीं। महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार प्रदान किया गया। महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं।

प्रश्न 6.
नासियों ने जनता पर पूरा नियन्त्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?
उत्तर:
नात्सी सरकार ने जनता पर सम्पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए
1. स्कूली बच्चों का विचार परिवर्तन:
नात्सी सरकार ने अपनी विचारधारा पर आधारित नए पाठ्यक्रम के अनुरूप पुस्तके तैयार करवाई। नस्ल विज्ञान को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया। उनसे कहा जाता था कि वे यहूदियों से पूणा करें तथा हिटलर की पूजा करें।

2. पुवाओं का विचार परिवर्तन:
बाल्यावस्था से ही नात्सी सरकार ने बच्चों के मन-मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गये उन्हें वैचारिक प्रशिक्षण द्वारा नात्सीवाद की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया।

3. लड़कियों का विधार परिवर्तन:
लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी कि उन्हें अच्छी माँ बनना था तथा शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देकर उनका लालन-पालन करना था।

4. खेल गतिविधियाँ:
उन सभी खेल गतिविधियों विशेषकर मुक्केबाजी को प्रोत्साहित किया गया जो बच्चों में हिंसा तथा आक्रामकता की भावना उत्पन्न करती थीं।

5. आर्यों के आर्थिक हितों की रक्षा:
आर्य प्रजाति के लोगों के लिए आर्थिक अवसरों की पर्याप्त उपलब्धता थी। उन्हें रोजगार दिया जाता था, उनके व्यापार को सुरक्षा दी जाती थी तथा सरकार की तरफ से उन्हें हर सम्भव सहायता दी जाती थी।

6. महिलाओं के बीच भेदभाव:
महिलाओं के बीच उनके बच्चों के आधार पर भेदभाव किया जाता था। एक अनुपयुक्त बच्चे की माँ होने पर महिलाओं को दण्डित किया जाता था तथा जेल में कैद कर दिया जाता था, किन्तु बच्चे के शुद्ध आर्य प्रजाति का होने पर महिलाओं को सम्मानित किया जाता था।

7. नात्सी विचारधारा का प्रचार:
जनता पर पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने में नात्सियों द्वारा विशेष पूर्व नियोजित प्रचार का सर्वाधिक योगदान था। नाजियों ने शासन के लिए समर्थन पाने तथा अपनी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने के लिए दृश्य चित्रों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, नारों तथा इश्तहारी पर्चों द्वारा प्रचार किया। पोस्टरों में समाजवादियों एवं

8. नात्सियों:
ने जनसंख्या के विभिन्न हिस्से को अपील करने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने इस आधार पर उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया कि केवल नात्सी ही उनकी हर समस्या का हल ढूँढ़ सकते थे।

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

JAC Class 9th History यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु निर्देश: पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-28 )

प्रश्न 1.
मान लीजिए कि निजी सम्पत्ति को खत्म करने और उसकी जगह सामूहिक स्वामित्व की व्यवस्था लागू करने के सवाल पर आपके इलाके में बैठक बुलाई गई है। निम्नलिखित व्यक्तियों के रूप में उस बैठक में आप जो भाषण देंगे, वह लिखें एक गरीब खेतिहर मजदूर, एक मंझोला भू-स्वामी, एक गृह-स्वामी
उत्तर:
एक गरीब खेतिहर मजदूर: प्यारे साथियों, प्रकृति अपने संसाधनों को उपलब्ध कराने में किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। फिर क्यों किसी के पास जीवन-यापन के अधिक साधन मौजूद हैं, और किसी के पास बहुत कम ? सम्पत्ति कठिन परिश्रम का ही परिणाम है।

यह श्रम खेतों में काम करने वाले गरीब मजदूरों द्वारा ही किया जाता है किन्तु उन्हें, उन्हीं के द्वारा उत्पन्न लाभ में हिस्सा नहीं दिया जाता। लाभ पूरी तरह खेतों के मालिकों को ही प्राप्त होता है, जो अपने उत्तराधिकार के कारण ही भूमि के स्वामी होते हैं। इसीलिए निजी सम्पत्ति का बहिष्कार होना चाहिए तथा सम्पत्ति के सामूहिक स्वामित्व की शुरुआत की जानी चाहिए।

यही गरीब खेतिहर मजदूर के हित में है। एक मझोला भू-स्वामी-प्रिय मित्रों, समाजवाद का विचार तो अच्छा है, किन्तु निजी सम्पत्ति को पूर्ण रूप से समाप्त करना किसी भी दृष्टिकोण से व्यावहारिक नहीं है। इससे फसलों का उत्पादन कम हो जायेगा। कोई भी व्यक्ति तभी अधिक परिश्रम करता है

जब सम्भावित उत्पादन से उसको अधिक लाभ मिलना हो परन्तु जिस कार्य से उसे अधिक लाभ दूसरी क्रान्ति से लोग अचम्भे और दहशत में डूब गये, क्योंकि यह क्रान्ति-हिंसा, लूटपाट, करों के बोझ और तानाशाही सत्ता की स्थापना के साथ आयी।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-47 )

प्रश्न 1.
शौकत उस्मानी और रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए उद्धरणों की तुलना कीजिए। उन्हें स्रोत ग, घ और च के साथ मिलाकर पढ़िए और बताइए कि
1. भारतीयों को सोवियत संघ में सबसे प्रभावशाली बात क्या दिखाई दी?
उत्तर:
शौकत उस्मानी ने अपनी पुस्तक ‘हिस्टॉरिक ट्रिप्स ऑफ ए रिवोल्यूशनरी’ में उस समानता की प्रशंसा की जो. रूसी क्रान्ति अपने साथ लाई थी। उन्होंने कहा कि वे असली समानता की भूमि में आ गए हैं। उनका मत था कि यहाँ निर्धनता के बावजूद लोग खुश और सन्तुष्ट थे।

लोगों को आपस में मिलने-जुलने से रोकने के लिए धर्म की कोई दीवार नहीं थी।
रबीन्द्रनाथ टैगोर रूसी क्रान्ति के परिणामों से प्रभावित थे। उनका कहना था कि अभिजात वर्ग का कोई सदस्य निर्धनों एवं मजदूरों का शोषण नहीं कर सकता था। अब कोई अंधकार में नहीं था, जो लोग अभी तक डरे हुए थे अब सामने आने लगे हैं।

2. ये लेखक किस चीज को नहीं देख पाए ?
उत्तर:
दोनों लेखक यह देख पाने में असफल रहे कि बोल्शेविक पार्टी ने किस प्रकार सत्ता हथियाई और समाजवाद के नाम पर देश पर राज किया। यह न तो न्यायपूर्ण था और न ही स्थायी, इसलिए अन्त में इसकी हार हुई।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-48)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि एक मजदूर के तौर पर आपने सन् 1905 ई. की हड़ताल में हिस्सा लिया हैं और उसके लिए अदालत में आप पर मुकदमा चलाया जा रहा है। मुकदमे के दौरान अपने बचाव में आप क्या कहेंगे? अपना वक्तव्य तैयार कीजिए और कक्षा में वही भाषण दीजिए।
उत्तर:
हजर मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मैंने 85 दिनों से भरपेट खाना नहीं खाया था। पिछले एक वर्ष से मेरे पास सिर्फ एक जोड़ी वस्त्र हैं। भुखमरी के कारण मेरी पत्नी और बच्चों की मेरी आँखों के सामने मृत्यु हो गई। हुजूर, मैं जानना चाहूँगा कि जब किसी व्यक्ति की परिस्थितियाँ और मनोदशा इस प्रकार की हों, तो राज्य उससे क्या अपेक्षा करता है ? हुजूर अब न्याय करना आपके हाथ में है।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अखबारों के लिए 24 अक्टूबर, सन् 1917 ई. के विद्रोह के बारे में शीर्षक सहित एक छोटी-सी खबर तैयार कीजिए “फ्रांस के एक रूढ़िवादी अखबार के लिए, ब्रिटेन के एक रैडिकल अखबार के लिए, रूस के एक बोल्शेविक अखबार के लिए।
उत्तर:
1. फ्रांस के एक रूढ़िवादी अखबार के लिए:
बोल्शेविक विद्रोह का दमन-प्रात: ही सैनिकों ने दो बोल्शेविक इमारतों पर कब्जा कर लिया, जहाँ से वे समाचार-पत्र छापते थे। सेना ने टेलीफोन और टेलीग्राफ विभागों पर भी नियन्त्रण कर लिया एवं ‘विन्टर पैलेस’ की सुरक्षा का प्रबन्ध किया।

2. ब्रिटेन के एक रैडिकल अखबार के लिए:
बोल्शेविक विद्रोह अनुमोदित-शहर पूरी तरह से क्रान्तिकारियों के नियन्त्रण में है। मन्त्रियों ने आत्म- समर्पण कर दिया है। पेत्रोग्राद सोवियत ने बोल्शेविक विद्रोह का अनुमोदन कर दिया है।

3. रूस के एक बोल्शेविक अखबार के लिए बोल्शेविक युद्ध में विजयी हए:
पार्टी ने विन्टर पैलेस के साथ-साथ अनेक महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों पर भी अपना कब्जा कर लिया है। हम, रूस के नागरिक एवं बोल्शेविक पार्टी के सदस्य अन्ततः सत्ता के केन्द्र में आ गए हैं और उस क्षेत्र का नाम है मॉस्को-पेत्रोग्राद क्षेत्र।

प्रश्न 3.
मान लीजिए कि सामूहिकीकरण हो चुका है और आप रूस के एक मँझोले गेहूँ उत्पादक किसान हैं। आप सामूहिकीकरण के बारे में अपनी आपत्तियाँ व्यक्त करते हुए स्तालिन को एक पत्र लिखना चाहते हैं। अपनी जीवन परिस्थितियों के बारे में आप क्या लिखेंगे? आपकी राय में ऐसे किसान का पत्र पाकर स्तालिन की क्या प्रतिक्रिया होती?
उत्तर:
स्तालिन
मास्को

नाम-मिखाइल
पता-न्यू स्ट्रीट, मैग्नीटोगोर्क

महोदय,
मैं एक मध्यम दर्जे का गेहूँ-उत्पादक किसान हूँ। मैं कड़ी मेहनत से खेत में फसल उगाता हूँ। मैं अपनी भूमि से अच्छा उत्पादन किया करता हूँ। मेरे परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद मैं थोड़ी फसल बेच भी लेता हूँ। इसीलिए, कृपया मुझे मेरी भूमि पर स्वयं कृषि करने की अनुमति प्रदान कर इसे सामूहिकीकरण से मुक्त करने की कृपा करें।
सधन्यवाद।

प्रार्थी
मिखाइल

स्तालिन की प्रतिक्रिया:

द्वारा : स्तालिन
मास्को

मिखाइल
पता-न्यू स्ट्रीट, मेग्नीटोगोर्क
प्रिय मिखाइल,
मुझे आपका पत्र मिला। आप आज्ञाकारी हैं एवं सही रास्ते पर चल रहे हैं। परन्तु आपको यह पता नहीं है कि सामूहिकीकरण में सम्मिलित होने से आपके उत्पादन और आमदनी, दोनों में वृद्धि होगी क्योंकि यह कृषि की वैज्ञानिक विधियों पर आधारित है। हम आपकी भूमि छीन नहीं रहे, वरन् आप अपनी भूमि को अन्य लोगों की भूमि के साथ मिलाकर एकता एवं प्रगति का द्वार खोल रहे हैं। इसीलिए आपको राजकीय निर्देशों का पालन करना ही चाहिए। बाद में आपको स्वयं ही अपने निर्णय पर गर्व होगा।
सधन्यवाद

आपका शुभचिन्तक,
स्तालिन

JAC Class 9th History यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात सन् 1905 ई. से पहले कैसे थे?
उत्तर:
सन् 1905 ई. की रूस की क्रान्ति से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा अत्यन्त खराब थी, जिसका विवरण अग्रलिखित है
1. रूस की सामाजिक दशा:
सन् 1861 ई. से पूर्व रूस में सामन्तवाद का बोलबाला था। सामन्त लोग किसानों से बेगार लेकर अपनी जमीनों पर खेती करवाते थे। इन किसानों को सामन्तों के अनेक अत्याचारों का सामना करना पड़ता था। रूस में कुछ छोटे किसान भी थे, जिनकी आर्थिक दशा दयनीय थी।

सन् 1905 ई. की रूसी क्रान्ति से पूर्व समाज में तीन वर्ग थे पहला वर्ग सामन्तों एवं कुलीनों का था, जिसमें बड़े-बड़े सामन्त, जारशाही के सदस्य, उच्च पदाधिकारी आदि सम्मिलित थे।

मध्यम वर्ग का उदय औद्योगीकरण के फलस्वरूप हुआ था, जिसमें लेखक, विचारक, डॉक्टर, वकील तथा व्यापारी आदि लोग शामिल थे। तीसरा वर्ग किसानों तथा मजदूरों का था, इस वर्ग के सदस्यों की दशा अत्यन्त खराब थी। कुलीन और मध्यम वर्ग के लोग इन्हें हीन और घृणा की दृष्टि से देखते थे। पादरी वर्ग भी अनेक प्रकार से जनसाधारण वर्ग के लोगों का शोषण करता था।

2. रूस की आर्थिक दशा:
औद्योगीकरण से पूर्व रूसी लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। रूस में किसानों की दशा बहुत दयनीय थी। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे और उन्हें कृषि की नवीन तकनीकों का ज्ञान नहीं था। धन के अभाव के कारण वे आधुनिक कृषि-यन्त्रों को खरीद पाने में असमर्थ थे।

उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी भर-पेट भोजन नहीं मिलता था, क्योंकि उनकी उपज का अधिकांश भाग सामन्त हड़प जाते थे। जार की निरंकुश सरकार ने श्रमिकों, मजदूरों तथा किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। अत: सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार और सैनिकों के अत्याचारों ने स्थिति को दिन-प्रतिदिन गम्भीर बनाना आरम्भ कर दिया।

3. राजनीतिक दशा:
रूस का जार निकोलस द्वितीय बड़ा निरंकुश और राजा के दैवी अधिकारों का समर्थक था। उसने रूसी जनता की उदारवादी भावनाओं को कुचलने के लिए बड़ी कठोर नीति अपनाई। उसने सम्पूर्ण देश में पुलिस तथा गुप्तचरों का जाल बिछा दिया था। गैर-रूसियों को रूसी बनाने की प्रक्रिया भी जारी थी।

रूस में भाषण, लेखन तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर कठोर प्रतिबन्ध लगे हुए थे। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रूस की जारशाही की निरंकुशता के कारण सर्वत्र असन्तोष व्याप्त था। इसी समय रूस-जापान युद्ध में रूसी सेनाओं को भारी पराजय उठानी पड़ी। इस पराजय ने रूसी जनता के असन्तोष को चरम सीमा पर पहुँचा दिया और वह देश से जारशाही को मिटाने के लिए तत्पर हो गई।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

प्रश्न 2.
सन् 1917 ई. से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर:
सन् 1917 ई. से पूर्व रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के अन्य देशों के मुकाबले निम्नलिखित स्तरों पर भिन्न थी

  1. रूस की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका की पूर्ति कृषि सम्बन्धी कार्यों से करती थी, जनसंख्या का यह प्रतिशत यूरोप के अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक था।
  2. रूसी किसानों की जोतें अन्य देशों के यूरोपीय किसानों की तुलना में छोटी थीं।
  3. रूसी किसान नवाबों एवं सामंतों का कोई आदर नहीं करते थे वे प्रायः लगान देने से इन्कार कर देते थे। जमींदारों के अत्याचारी स्वभाव के कारण उनसे घृणा करते थे। इसके विपरीत फ्रांस में किसान अपने सामन्तों के प्रति वफादार थे। सन् 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रान्ति के समय वे अपने सामन्तों के लिए लड़े थे।
  4. रूस में पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा महिला श्रमिकों को बहुत कम वेतन दिया जाता था। इसके अतिरिक्त बच्चों से भी 10 से 15 घण्टों तक काम लिया जाता था।
  5. रूस का किसान वर्ग, यूरोप के किसान वर्ग से भिन्न था। वे एक समय-अवधि के लिए अपनी जोतों को एकत्र कर लेते थे। उनके परिवारों की आवश्यकतानुसार उनकी ‘कम्यून’ इसका बँटवारा करती थी।
  6. यूरोप के अनेक प्रमुख देशों में औद्योगिक क्रान्ति आ चुकी थी, वहाँ कारखाने स्थानीय लोगों के हाथ में होने से श्रमिकों का अधिक शोषण नहीं होता था। परन्तु रूस में अधिकांश कारखाने विदेशी पूँजी से स्थापित हुए थे, जो रूसी श्रमिकों का शोषण करने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करते थे।

प्रश्न 3.
सन् 1917 ई. में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर:
सन् 1917 ई. में रूस से जारशाही को समाप्त करने के लिए अग्रलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं
1. रूस का जार निकोलस द्वितीय बड़ा निरंकुश और राजा के दैवी अधिकारों का समर्थक था। उसने रूसी जनता की उदारवादी भावनाओं को कुचलने के लिए कठोर नीति अपनाई। जारशाही की दमनकारी नीति के कारण रूस की जनता में भीषण असन्तोष व्याप्त हो गया था।

2. रूस का ऑर्थोडॉक्स चर्च जार की निरंकुशता का पोषक था। चर्च का पादरी जार की निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारी सत्ता का समर्थक था। चर्च का अनुचित प्रभाव जनता के कष्टों का एक मुख्य कारण था।

3. सन् 1905 ई. की क्रान्ति का रूसी जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा। जबकि जार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद ड्यूमा के निर्माण की घोषणा की, परन्तु उसने उसे कार्य करने की आज्ञा प्रदान नहीं की। उसने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया, क्योंकि जार किसी भी तरह की जवाबदेही या अपनी सत्ता पर किसी तरह का अंकुश नहीं चाहता था।

4. जार ने रूस को प्रथम विश्व युद्ध में धकेल दिया। सन् 1917 ई. तक लगभग 70 लाख लोग मारे जा चुके थे। युद्ध के समय उत्पादन में कमी हो गई, जिसने रूस में आर्थिक संकट को जन्म दिया।

5. बड़ी मात्रा में सैनिकों के लिए खाद्य सामग्री की आपूर्ति बनाये रखने के कारण रूस में मजदूरों के क्षेत्रों में खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गयी जो क्रान्ति का तात्कालिक कारण बन गयी।

6. जार ने प्रथम विश्व युद्ध में रूसी सेना की शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों तथा श्रमिकों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया जिससे लोगों में असन्तोष की भावना बढ़ी। 27 फरवरी, सन् 1917 ई. को मजदूर वर्ग रोटी, वेतन, काम के घण्टों में कमी की मांग करते हुए तथा लोकतान्त्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते हुए सड़कों पर जमा हो गये। हड़ताली मजदूरों के साथ सैनिक एवं अन्य लोग भी मिल गये। राजधानी पेत्रोग्राद पर भी क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

प्रश्न 4.
दो सूचियाँ बनाइए : एक सूची में फरवरी क्रान्ति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रान्ति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
उत्तर:
फरवरी क्रान्ति की प्रमुख घटनाएँ एवं प्रभाव निम्नलिखित हैं फरवरी क्रान्ति की मुख्य घटनाएँ:

  1. सन् 1917 ई. के शीतकाल में राजधानी पेत्रोग्राद की हालत अत्यन्त खराब थी। फरवरी माह में मजदूरों ने खाद्य पदार्थों के अभाव को बुरी तरह महसूस किया।
  2. संसदीय प्रतिनिधि चाहते थे कि निर्वाचित सरकार बची रहे, इसलिए वह जार निकोलस द्वितीय द्वारा ड्यूमा को भंग करने के लिए किये जा रहे प्रयासों का विरोध कर रहे थे।
  3. 22 फरवरी, सन् 1917 ई. को नेवा नदी के दाएँ तट पर स्थित एक कारखाने में तालाबन्दी घोषित कर दी गई।
  4. 23 फरवरी, सन् 1917 ई. को नेवा नदी के दाएँ तट पर स्थित एक कारखाने के मजदूरों के समर्थन में पचास फैक्ट्रियों के मजदूरों ने भी हड़ताल की घोषणा कर दी।
  5. 25 फरवरी, सन् 1917 ई. को सरकार द्वारा ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया गया।
  6. 26 फरवरी, सन् 1917 ई. को श्रमिक बहुत बड़ी संख्या में बाएँ तट के क्षेत्र में एकत्र हो गए।
  7. 27 फरवरी, सन् 1917 ई. को प्रदर्शनकारियों ने पुलिस मुख्यालय पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया।
  8. 2 मार्च, सन् 1917 ई. को जार ने राजगद्दी छोड़ दी। इस प्रकार राजवंश का अन्त हो गया।

फरवरी क्रान्ति के प्रभाव:

  1. फरवरी, सन् 1917 ई. की क्रान्ति के बाद राजवंश का अन्त हो गया। सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए अन्तरिम सरकार का गठन किया।
  2. अन्तरिम सरकार ने देश का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का चुनाव करवाने का निर्णय लिया।
  3. अप्रैल, सन् 1917 ई. में बोल्शेविकों के निर्वासित नेता ब्लादिमीर लेनिन रूस लौट आए। लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक सन् 1914 ई. से ही युद्ध का विरोध कर रहे थे। लेनिन ने कहा कि युद्ध समाप्त किया जाए, सभी जमीन किसानों को दे दी जाए एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।
  4. गर्मियों में मजदूर आन्दोलन तीव्र हो गया, श्रम संगठनों की संख्या बढ़ने लगी, सेना में सिपाहियों की समितियाँ गठित कर दी गईं।
  5. अन्तरिम सरकार की शक्ति कमजोर होने लगी तथा बोल्शेविकों का प्रभाव तीव्र गति से बढ़ने लगा जिससे सरकार ने असन्तोष को दबाने के लिए सख्त कदम उठाने प्रारम्भ कर दिए।

अक्टूबर क्रत्ति की मुख्य घटनाएं:

  1. जैसे-जैसे अन्तरिम सरकार और बोल्शेविकों के बीच संघर्ष बढ़ता गया, लेनिन को अन्तरिम सरकार द्वारा तानाशाही थोप देने की आशंका दिखाई देने लगी। सितम्बर सन् 1917 ई. में लेनिन ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह हेतु चर्चा शुरू कर दी।
  2. 16 अक्टूबर, सन् 1917 ई. को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर सत्ता पर कब्जा करने के लिए तैयार कर लिया।
  3. सत्ता पर कब्जा करने के लिए लियॉन ट्रॉटस्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक ब्रान्तिकारी समिति का गठन किया गया। योजना को लागू करने के लिए दिन की कोई जानकारी नहीं दी गई।
  4. 24 अक्टूबर, सन् 1917 ई. को विद्रोह की शुरुआत हुई। संकट की आशंका को देखते.हुए प्रधानमन्त्री केरेंस्की ने शहर छोड़ दिया और सेना को बुला लिया। प्रात:काल में ही सरकार के वफादार सैनिकों ने दो बोल्शेविक अखबारों के दफ्तरों पर कब्जा कर लिया।
  5. सरकारी सेना और बोल्शेविक सेनानियों के बीच भीषण युद्ध हुआ। माह दिसम्बर, सन् 1917 ई. तक बोल्शेविकों ने मास्को के पेत्रोग्राद क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

अक्टूबर क्रान्ति के प्रभाव:

  1. बोल्शेविक निजी सम्पत्ति की व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ थे। इसलिए नवम्बर, सन् 1917 ई. तक समस्त उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
  2. भूमि को सामाजिक सम्पत्ति घोषित कर दिया गया तथा किसानों को सामन्तों की जमीनों पर कब्जा करने की खुली छूट दे दी गई।
  3. शहरों में बोल्शेविकों ने मकान-मालिकों के लिए उनके परिवार की आवश्यकताओं के अनुसार पर्याप्त जगह छोड़कर उनके बड़े मकानों के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए जिससे बेघरबार या जरूरत मन्द लोगों को रहने की जगह दी जा सके।
  4. बोल्शेविकों ने कुलीन वर्ग द्वारा पुरानी पदवियों के प्रयोग पर रोक लगा दी।
  5. बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

प्रश्न 5.
बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रान्ति के फौरन बाद कौन-कौन से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर:
बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रान्ति के बाद निम्नलिखित परिवर्तन किए
1. निजी सम्पत्ति का अधिकार समाप्त:
बोल्शेविकों ने निजी सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया इसके परिणामस्वरूप भूमि को सामाजिक सम्पत्ति घोषित कर दिया गया। सामन्तों की बड़ी-बड़ी जमीनों को किसानों में बाँट दिया गया इससे जोत छोटे-छोटे हिस्सों में बँट गयीं। इसके अतिरिक्त बड़े-बड़े मकानों के मालिकों के पास आवश्यकतानुसार मकान छोड़कर शेष मकान एवं खाली स्थान को बेघर एवं जरूरतमंद लोगों को दे दिया गया।

2. राष्ट्रीयकरण:
बोल्शेविकों ने अधिकांश उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीकरण कर दिया। इसके परिणामस्वरूप मजदूरों के शोषण में कमी आयी तथा वे पूरी लगन से मेहनत करने लगे।

3.  उद्योगों का नियंत्रण:
उद्योगों का नियन्त्रण निजी हाथों से छीनकर राष्ट्रीयकरण करने के पश्चात् मजदूर, सोवियतों और श्रमिक संघों को दे दिया गया।

4. पार्टी का नाम बदलना:
बोल्शेविकों ने अपनी पार्टी का नाम बदलकर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया।

5. पदवियों की समाप्ति:
पूर्व में कुलीन वर्ग को दी गयी पदवियों के प्रयोग एवं प्रभाव को समाप्त कर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

6. वर्दी बदलना:
बदलाव को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने के उद्देश्य से बोल्शेविकों ने सेना और अफसरों की वर्दियों को बदल दिया।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

प्रश्न 6.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए
1. कुलक,
2. ड्यूमा,
3. सन् 1900 ई. से सन् 1930 ई. के बीच महिला कामगार,
4. उदारवादी,
5. स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर:
1. कुलक:
रूस में सम्पन्न किसानों को ‘कुलक’ कहा जाता था। स्तालिन के समय में आधुनिक खेत विकसित करने और उन पर मशीनों की सहायता से औद्योगिक खेती करने के लिए यह आवश्यक समझा गया कि सम्पूर्ण रूस में ‘कुलकों को समाप्त कर दिया जाए।

2. ड्यूमा:
ड्यूमा रूस की निर्वाचित परामर्शदाता संसद थी। इसका गठन सन् 1905 ई. की क्रान्ति के बाद जार द्वारा हुआ। परन्तु इसे जार द्वारा बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि जार अपनी सत्ता पर किसी भी तरह का अंकुश तथा किसी तरह की जवाबदेही नहीं चाहता था।

3. सन् 1900 ई.से सन् 1930 ई. के बीच महिला कामगार:
रूस के कारखानों में महिला कामगारों की संख्या भी पर्याप्त थी, उन्हें पुरुषों से कम मजदूरी मिलती थी। उन्होंने सन् 1905 ई. एवं सन् 1917 ई. की क्रान्ति एवं उसमें होने वाली हड़तालों में सक्रिय भाग लिया। 22 फरवरी, सन् 1917 ई. को उन्होंने श्रमिकों की सबसे बड़ी हड़ताल का नेतृत्व किया। रूस के इतिहास में महिला श्रमिक अपने साथी पुरुष श्रमिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रही।

4. उदारवादी:
उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जो सभी धर्मों को सहजता से स्वीकार कर सके। उन्होंने अनियन्त्रित वंशानुगत शासकों का विरोध किया। वे सरकार के समक्ष व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। वे व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना चाहते थे, उन्होंने समूह प्रतिनिधित्व लोकतन्त्र का पक्ष लिया। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतन्त्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार में उनका विश्वास नहीं था। उनका विचार था कि सम्पत्ति प्राप्त लोगों को मुख्यत: मत देने का अधिकार होना चाहिए।

5. स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम:
सन् 1927-1928 ई. के आस-पास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट उत्पन्न हो गया, उस समय किसानों के पास छोटे खेत थे। आधुनिक खेत विकसित करने एवं खेती का आधुनिकीकरण करने के लिए स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम आरम्भ हुआ।

सन् 1929 ई. से स्तालिन की पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों ‘कोलखोज’ में काम करने का आदेश जारी कर दिया। अधिकांश जमीन और साजो-सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए। सामूहिक खेती करने के लिए बड़ी भूमि अर्जित करना ही स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम कहलाया

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

→ बाजार व उपभोक्ता

  • बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है।
  • उपभोक्ता के रूप में हम बाजार से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करते हैं।
  • बाजार में उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा हेतु नियमों व विनियमों की आवश्यकता होती है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

→ उपभोक्ता आन्दोलन

  • विश्व में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई।
  • भारत में उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म अनैतिक व अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
  • हमारे देश में 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म हुआ।
  • 24 दिसम्बर, 1986 को भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का निर्माण किया गया। यह अधिनियम ‘COPRA’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • उपभोक्ताओं को वस्तुओं के बाजारीकरण तथा सेवाओं की प्राप्ति के विरुद्ध सुरक्षित रहने का अधिकार होता है क्योंकि ये जीवन एवं सम्पत्ति के लिए खतरनाक होते हैं।

→ सूचना का अधिकार अधिनियम

  • उपभोक्ता जिन वस्तुओं व सेवाओं को बाजार से खरीदता है उनके बारे में उसे सूचना पाने का अधिकार है।
  • अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार ने देश में सूचना पाने के अधिकार को लागू किया जिसे RTI एक्ट कहा जाता है।
  • उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है।
  • भारत में उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु उपभोक्ता अदालतों का गठन किया गया है।
  • उपभोक्ता अदालतें उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करती हैं।
  • उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता विवादों के निवारण हेतु जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गयी है।
  • भारत में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
  • भारत में उपभोक्ता ज्ञान का धीरे-धीरे प्रसार हो रहा है। उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी से ही उपभोक्ता प्रभावी भूमिका का निर्वाह कर सकता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. उपभोक्ता: किसी वस्तु या सेवा का बाजार से क्रय कर उपभोग करने वाले व्यक्ति को उपभोक्ता कहते हैं।

2. उपभोक्ता शोषण: उपभोक्ता शोषण का अर्थ उन क्रियाओं अथवा व्यवहारों से होता है जिनके माध्यम से उत्पादक या विक्रेता किसी उपभोक्ता से वस्तु या सेवा की अधिक कीमत लेता है अथवा घटिया स्तर की वस्तु देता है।

3. उपभोक्ता इंटरनेशनल: एक गैर सरकारी संस्था जो सम्पूर्ण विश्व में उपभोक्ता समूहों की एजेंसियों का प्रतिनिधित्व करता है।

4. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986: भारत सरकार द्वारा सन् 1986 में उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा हेतु – निर्मित एक कानून।

5. भारतीय मानक ब्यूरो: मानक वस्तुओं के लिए आई.एस.आई. (ISI) चिह्न जारी करने वाली संस्था।

6. हॉलमार्क: जब उपभोक्ता स्वर्ण आभूषण खरीदता है तो उस पर लगा हॉलमार्क प्रमाणन चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो हॉलमार्क प्रमाणन प्रदान करता है।

7. आर.टी.आई. राइट टू इनफॉर्मेशन (सूचना पाने का अधिकार)।

8. उपभोक्ता अदालतें: ये वे अदालतें हैं जिनकी स्थापना उपभोक्ता सुरक्षा कानून, 1986 के तहत राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर की गयी है ताकि उपभोक्ताओं को बेईमान उत्पादकों अथवा विक्रेताओं द्वारा की जाने वाली ठगी से बचाया जा सके और उनकी शिकायतों को सरल, तीव्र एवं कम खर्च में दूर किया जा सके।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

→ अन्तरदेशीय उत्पादन

  • पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बाजार पूर्णतः परिवर्तित हो गया है। अब हमारे उपभोक्ताओं के समक्ष वस्तुओं एवं सेवाओं के विस्तृत विकल्प उपलब्ध हैं।
  • बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्य रूप से देश की सीमाओं के भीतर तक ही सीमित था।
  • भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चे माल का विदेशों को निर्यात होता था तथा तैयार माल का आयात होता था।

→  बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ

  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उद्भव के पश्चात् व्यापार विश्व स्तर पर होने लगा।
  • सामान्यतः बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उन्हीं स्थानों पर अपने कारखाने स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें विभिन्न सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, जैसे- बाजार की समीपता, सस्ते श्रम की उपलब्धता आदि।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का विश्व स्तर पर उत्पादन करने के परिणामस्वरूप उत्पादन प्रक्रिया क्रमशः जटिल ढंग से संगठित हुई है।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा कोई भी निवेश लाभ अर्जित करने की दृष्टि से ही किया जाता है।
  • सामान्यत: बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विश्व के विभिन्न देशों में स्थानीय कम्पनियों को खरीदकर उत्पादन का प्रसार करती हैं।
  • अमेरिकी कम्पनी फोर्ड मोटर्स विश्व के 26 देशों में प्रसार के साथ विश्व की सबसे बड़ी मोटरगाड़ी निर्माता कम्पनी है। सन् 1995 में भारत आने वाली फोर्ड मोटर्स ने 1700 करोड़ रुपए का निवेश चेन्नई के समीप एक विशाल संयंत्र की स्थापना की। यह संयंत्र महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा (भारत में जीपों व ट्रकों की प्रमुख निर्माता कम्पनी) के सहयोग से  पित
    किया।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

→  विदेशी व्यापार

  • बहुत लम्बे समय से विदेश व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने या एकीकरण करने का एक माध्यम रहा है।
  • विदेश व्यापार अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है।
  • विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजार को जोड़ने या एकीकरण करने में एक सहायक का कार्य करता है।
  • अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के क्रियाकलापों में वस्तुओं एवं सेवाओं का वृहत स्तर पर व्यापार सम्मिलित होता है।

→  वैश्वीकरण

  • विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध तथा तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को ही वैश्वीकरण कहा जाता है।
  • आज विश्व के विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश एवं प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। लोगों का आवागमन भी विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का एक माध्यम है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने वाला मुख्य कारक प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति है। इससे लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्रतर आपूर्ति कम लागत पर सम्भव हुई है।
  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास से भी विश्व स्तर पर व्यापार में वृद्धि हुई है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

→  विदेशी व्यापार व विदेशी निवेश का उदारीकरण

  • आयात पर कर, व्यापार अवरोधक का एक उदाहरण हैं क्योंकि यह कुछ प्रतिबन्ध लगाता है।
  • भारत सरकार द्वारा सन् 1991 से विदेश व्यापार व विदेशी निवेश पर से अधिकांश अवरोधों को हटा दिया गया है।
  • सरकार द्वारा अवरोधों या प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है।
  • विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तौर-तरीकों को सरल बनाना है। यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित नियमों को निर्धारित करता है।
  • भारत सरकार व राज्य सरकारें विदेशी निवेश को आकर्षित करने हेतु अनेक कदम उठा रही हैं।
  • वैश्वीकरण से सभी उपभोक्ता, कुशल, शिक्षित एवं धंनी उत्पादक ही लाभान्वित हुए हैं परन्तु बढ़ती हुई प्रतियोगिता से अनेक छोटे उत्पादक एवं श्रमिक प्रभावित हुए हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण टाटा मोटर्स, इंफोसिस (आईटी), रैनबैक्सी (दवाइयाँ), एशियन पेंट्स (पेंट) तथा सुंदरम फास्नर्स (नट व बोल्ट) जैसी कुछ भारतीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरी हैं।
  • न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसरों का सृजन करेगा एवं यह भी सुनिश्चित करेगा कि वैश्वीकरण के लाभों में सभी की बेहतर हिस्सेदारी हो।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है।

2. निवेश: परिसम्पतियों, जैसे-भूमि, भवन, मशीन व अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं।

3. विदेशी निवेश: बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किया गया निवेश विदेशी निवेश कहलाता है।

4. विदेशी व्यापार: दो या दो से अधिक देशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान विदेशी व्यापार कहलाता है।

5. वैश्वीकरण: अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है।

6. व्यापार: अवरोधक विदेशों से होने वाले आयात पर लगने वाले प्रतिबन्ध।

7. उदारीकरण: सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया।

8. कोटा: सरकार द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं की संख्या को सीमित करना ‘कोटा’ कहलाता है।

9. विश्व व्यापार संगठन: अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित नियमों को निर्धारित करने वाला अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ मुद्रा विनिमय माध्यम के रूप में

  • हमारे दैनिक जीवन में मुद्रा का बहुत अधिक प्रयोग होता है। मुद्रा के माध्यम से ही वस्तुएँ खरीदी क बेची जाती हैं।
  • जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने और बेचने पर सहमति र त्रते हैं तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनमय किया जाता है।
  • मुद्रा, विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है इसलिए इसे रनिमय का माध्यम कहा जाता है।
  • मुद्रा वह चीज है जो लेन-देन में विनिमय का माध्यम बन सकती है। सिक्कों के प्रचलन में आने से पहले विभिन्न प्रकार की चीजों को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था; जैसे-अनाज पशु, सोना, चाँदी तथा ताँबे के सिक्के आदि।
  • मुद्रा के कई आधुनिक रूप हैं जिनमें करेंसी, कागज के नोट और सिके प्रमुख हैं।
  • मुद्रा को देश की सरकार प्राधिकृत करती है इसलिए इसे विनिमय का माध्यम स्वीकार किया जाता है।
  • हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है।

→ बैंक की भूमिका

  • बैंक लोगों से जमा स्वीकार करते हैं एवं उस पर ब्याज भी प्रदान कर हैं।
  • बैंक खातों में जमा धन को माँग के द्वारा निकाला जा सकता है, इस कारण इस जमा को माँग जमा कहते हैं।
  • चेक एक ऐसा कागज का टुकड़ा है जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।
  • चेक को भी आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा समझा जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ बैंक ऋण

  • बैंक अपने यहाँ जमा नगद राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।
  • बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे अधिक ब्याज ऋण पर लेते हैं।
  • जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज और कर्जदारों से लिए गए ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में साख की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए होती है।

→ ऋण की शर्ते

  • प्रत्येक ऋण समझौते में ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जः महाजन को मूल रकम के साथ अदा करता है।
  • ब्याज दर, समर्थक ऋणाधार, जरूरी कागजात तथा भुगतान के तरीकों को सम्मिलित रूप से ऋण की शर्त कहते हैं। ये शर्ते उधारदाता तथा कर्जदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों में अतिरिक्त सस्ते ऋण का एक अन्य स्रोत सहकारी समितियाँ हैं जो अपने सदस्यों को ऋण प्रदान करती हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ भारत में औपचारिक क्षेत्रक में साख

  • विभिन्न प्रकार के ऋणों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
  • औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण। औपचारिक क्षेत्रक ऋण में बैंकों व सहकारी समितियों से लिए गए ऋणों को सम्मिलित किया जाता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार व दोस्त आदि से लिए गए ऋण आते हैं।
  • हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नियन्त्रण रखता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है। फलस्वरूप कर्जदार का शोषण होता है।
  • ऋण की ऊँची लागत का अर्थ है-कर्जदार की आय का ज्यादातर हिस्सा ऋण की अदायगी में खर्च होना।
  • देश के विकास के लिए सस्ता तथा सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज (ऋण) अति आवश्यक है।
  • वर्तमान समय में धनिक वर्ग ही औपचारिक स्रोतों से ऋण प्राप्त करते हैं जबकि निर्धन वर्ग को अनौपचारिक स्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
  • स्वयं सहायता समूह कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में सहायता करते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. मुद्रा: मुद्रा से अभिप्राय उस वैधानिक वस्तु से है, जिसका उपयोग सामान्यतः विनिमय माध्यम के रूप में किया जाता है।

2. विनिमय: दो पक्षों के बीच होने वाले वस्तुओं व सेवाओं के लेन-देन को विनिमय कहते हैं।

3. वस्तु विनिमय: जब चीजों का लेन-देन बिना मुद्रा के प्रयोग से आपस में ही हो जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहते हैं।

4. मुद्रा विनिमय: जब वस्तुओं का लेन-देन मुद्रा के माध्यम से होता है तो उसे मुद्रा विनिमय कहते हैं।

5. करेंसी: मुद्रा का आधुनिक रूप-कागज के नोट व सिक्के।

6. माँग जमा: जब बैंक खातों में जमा धन को ग्राहक द्वारा माँग अनुसार निकाला जाता है तो इसे माँग जमा कहते हैं।

7. चेक: यह एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।

8. व्यावसायिक बैंक: वह संस्था जो कि मुद्रा की प्राप्ति एवं ग्राहकों की माँग पर उसका भुगतान करता है।

9. ऋण: ऋण या उधार का तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूकार कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वायदा लेता है।

10. पूँजी: उत्पादन का एक प्रमुख साधन, जिसके अन्तर्गत मुद्रा तथा वस्तुओं का भंडार आता है और जिसका प्रयोग उत्पादन हेतु होता है।

11. सहकारी समितियाँ: यह लोगों का एक ऐच्छिक संगठन होता है जिसमें वे अपने आर्थिक हितों की पूर्ति हेतु एक साथ मिलकर काम करते हैं।

12. समर्थक ऋणाधार: समर्थक ऋणाधार वह सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार है (जैसे-भूमि, मकान, गाड़ी, पशु व बैंकों में पूँजी आदि) तथा इसका इस्तेमाल वह ऋणदाता को गारण्टी के रूप में करता है जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।

13. बैंक जमा राशि बैंक कुल जमा का एक छोटा: सा हिस्सा जमाकर्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने पास रखते हैं। कुल जमा का वह हिस्सा जो बैंक अपने पास नकद के रूप में रखते हैं, बैंक जमा राशि कहलाती है।

14. विनिमय प्रणाली वस्तुओं के आदान: प्रदान की प्रणाली को विनिमय प्रणाली कहते हैं।

15. कृषक सहकारी समिति: वह सहकारी समिति जो कृषि उपकरण खरीदने, खेती, कृषि व्यापार करने, मछली पकड़ने, – घर बनाने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ऋण उपलब्ध कराती है।

16. निक्षेप जमा करना। बैंक में राशि जमा करना।

17. आर. बी. आई: भारतीय रिजर्व बैंक 1 अप्रैल, 1935 को स्थापित भारत का केन्द्रीय बैंक। यह देश में करेन्सी नोटों का निर्गमन करता है।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ आर्थिक कार्यों के क्षेत्रक

  • जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो उसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कपास की खेती, डेयरी उत्पाद (दूध) आदि।
  • प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है, क्योंकि हम अधिकतर प्राकृतिक उत्पाद कृषि, डेयरी, मत्स्यन तथा वनों से प्राप्त करते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है, जैसे-कपास के पौधों से प्राप्त रेशे का प्रयोग सूत कातना एवं कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी व गुड़ बनाना आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से संबद्ध है, इसी कारण यह औद्योगिक क्षेत्रक भी कहलाता है।
  • तृतीयक क्षेत्रक उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्रकों से भिन्न है। इस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं वरन् वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। उदाहरण- परिवहन, संचार, बैंक सेवाएँ, भण्डारण, व्यापार आदि।
  • तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अति आवश्यक सेवाएँ भी हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं, जैसे-शिक्षक, वकील, डॉक्टर, धोबी, नाई, मोची आदि।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ आर्थिक क्षेत्रकों की तुलना

  • प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विभिन्न उत्पादन कार्यों से बहुत अधिक मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है तथा अनेक लोग इस कार्य में संलग्न हैं। मध्यवर्ती वस्तुओं का उपयोग अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्माण में किया जाता है। इन वस्तुओं का मूल्य अन्तिम वस्तुओं के मूल्य में पहले से ही शामिल होता है।
  • किसी वर्ष विशेष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य उस वर्ष में क्षेत्रक के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है।
  • सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों का योगफल होता है जो किसी देश के अन्दर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है।

→ क्षेत्रकों में परिवर्तन

  • भारत के पिछले चालीस वर्षों के आँकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में सबसे अधिक योगदान तृतीयक क्षेत्रक से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का है जबकि रोजगार अधिकांशतः प्राथमिक क्षेत्रक में मिलता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है। इसका प्रकाशन केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है।
  • उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक) का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। सेवा क्षेत्रक की सभी सेवाओं में समान दर से संवृद्धि नहीं हो पा रही है।
  • द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
  • हमारे देश में आधे से अधिक श्रमिक प्राथमिक क्षेत्रक (मुख्यतः कृषि क्षेत्र) में कार्यरत हैं।
  • कृषि क्षेत्र का जी.डी.पी. में योगदान लगभग एक-छठा भाग है जबकि शेष द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक का योगदान है।
  • कषि क्षेत्रक के श्रमिकों में अल्प बेरोजगारी देखने को मिलती है अर्थात् कृषि क्षेत्र से कुछ लोगों को हटा देने पर भी उत्पादन
  • प्रभावित नहीं होगा। अल्प बेरोजगारी को प्रच्छन बेरोजगारी भी कहते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ रोजगार का सृजन

  • नीति (योजना) आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अकेले शिक्षा क्षेत्र में लगभग 20 लाख रोजगारों का
  • सृजन किया जा सकता है।
  • हमारे देश में कार्य का अधिकार लागू करने के लिए एक कानून बनाया गया है जिसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है।
  • आर्थिक कार्यों को विभाजित करने का एक अन्य तरीका संगठित एवं असंगठित के रूप में क्षेत्रकों का विभाजन है।
  • संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान सम्मिलित हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  • असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ, जो अधिकाशंतः राजकीय नियन्त्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इन कार्यों में रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती तथा रोजगार की सुरक्षा भी नहीं है।
  • सन् 1990 से हमारे देश में यह देखा गया है कि संगठित क्षेत्रक के अत्यधिक श्रमिक अपना रोजगार खोते जा रहे हैं। ये लोग असंगठित क्षेत्रक में कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हैं। अतः असंगठित क्षेत्रक में रोजगार बढ़ाने की आवश्यकता के अतिरिक्त श्रमिकों को संरक्षण एवं सहायता की भी आवश्यकता है।
  • भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार छोटे तथा सीमान्त किसानों की श्रेणी में आते हैं।
  • हमारे देश में बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ी जातियों से हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ स्वामित्व आधारित क्षेत्रक:

  • स्वामित्व के आधार पर क्षेत्रक को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक में बाँटा जा सकता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व रहता है एवं सरकार ही समस्त सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • निजी क्षेत्रक में परिसम्पतियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति अथवा कम्पनी के हाथों में होती है।
  • भारत सरकार किसानों से उचित मूल्य पर गेहूँ तथा चावल आदि खरीदती है। इसे अपने गोदामों में भण्डारित करती है तथा राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेचती है।
  • अधिकांश आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार पर होती है जिस पर व्यय करना सरकार की अनिवार्यता होती है।
  • सरकार को सुरक्षित पेयजल, निर्धनों के लिए आवासीय सुविधाएँ, भोजन व पोषण जैसे मानव विकास के पक्षों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कृषि, खनन, मत्स्य पालन, डेयरी, शिकार आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इससे उत्पन्न प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण-कपास से कपड़ा, गन्ने से चीनी एवं लौह अयस्क से इस्पात बनाना आदि ।

3. तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इसके अन्तर्गत सभी सेवाओं वाले व्यवसाय सम्मिलित हैं। उदाहरण-परिवहन, संचार, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन आदि ।

4. सूचना प्रौद्योगिकी:
सूचना प्रौद्योगिकी किसी इलेक्ट्रानिक विधि से सूचना भेजने, प्राप्त करने एवं संग्रहित करने की एक पद्धति है। जिसमें कम्प्यूटर, डाटाबेस एवं मॉडम का उपयोग किया जाता है। इसमें सूचनाओं का तीव्रगति से त्रुटिरहित एवं कुशलतापूर्वक सम्पादन होता है।

5. सकल घरेलू उत्पाद:
किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (स. घ. उ. अथवा जी. डी. पी.) कहलाता है।

6. बेरोजगारी:
जब प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक व सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता तो ऐसे व्यक्ति बेरोजगार एवं ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है।

7. छिपी हुई बेरोजगारी:
जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे रहते हैं तो उसे छिपी हुई अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी कहा जाता है। यदि इन लोगों को वहाँ से स्थानान्तरित कर दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसे अल्प बेरोजगारी भी कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

8. मध्यवर्ती वस्तुएँ:
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे उत्पादित वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग उत्पादक कच्चे माल के रूप में उत्पादन की प्रक्रिया में करता है अथवा उन्हें फिर से बेचने के लिए खरीदा जाता है।

9. अन्तिम वस्तुएँ:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग अन्तिम उपभोग अथवा पूँजी निर्माण में होता है, इन्हें फिर से नहीं बेचा जाता है।

10. बुनियादी सेवाएँ:
किसी भी देश में अनेक सेवाओं; जैसे-अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, न्यायालय, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कम्पनी आदि की आवश्यकता होती है, इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है।

11. संगठित क्षेत्रक: संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। काम सुनिश्चित होता है और सरकारी नियमों व विनियमों का पालन किया जाता है।

12. असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों से जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं होता।

13. सार्वजनिक क्षेत्रक: सार्वजनिक क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्धन व नियन्त्रण होता है।

14. निजी क्षेत्रक: निजी क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इसके अन्तर्गत उपक्रमों का प्रबन्ध उपक्रम के स्वामी द्वारा ही किया जाता है।

15. खुली बेरोजगारी: जब देश की श्रम शक्ति रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं कर पाती है तो इस स्थिति में इसे खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी देश के औद्योगिक क्षेत्रों में पायी जाती है।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास

→ विकास की धारणा

  • विकास अथवा प्रगति की धारणा प्राचीन काल से ही हमारे साथ है।
  • प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आकांक्षाएँ व इच्छाएँ होती हैं कि वह क्या करना चाहता है और अपना जीवन कैसे जीना चाहता है।
  • विभिन्न श्रेणी के व्यक्तियों के विकास के लक्ष्य भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे एक भूमिहीन ग्रामीण मजदूर विकास के लक्ष्य के अन्तर्गत अपने लिए काम करने के अधिक दिन एवं पर्याप्त मजदूरी चाहता है, स्थानीय विद्यालय उनके बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान करे, कोई सामाजिक भेदभाव न हो एवं गाँव में उनका समुदाय चुनाव लड़कर नेता बन सके आदि मानकर
    चलता है।

→ आय व लक्ष्य

  • लोगों के लिए विकास के लक्ष्यों की भिन्नता के कारण एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो। यहाँ तक कि वह दूसरे के लिए विनाशकारी भी हो सकता है।
  • विभिन्न लोगों की इच्छाएँ एवं आकांक्षाएँ अलग-अलग होती हैं। वे ऐसी चीजें चाहते हैं जो उनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हों अर्थात् वे चीजें जो उनकी इच्छाओं तथा आकांक्षाओं को पूरा कर सकें। इन इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति ही विकास के लक्ष्य हैं। ये लक्ष्य दो प्रकार के हैं आर्थिक लक्ष्य एवं गैर-आर्थिक लक्ष्य ।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास 

→ राष्ट्रीय विकास

  • लोग विकास के लिए मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं जो बेहतर आय के साथ-साथ जीवन में अन्य महत्त्वपूर्ण चीजों के बारे में भी होते हैं।
  • विश्व के विभिन्न देशों की तुलना करने का प्रमुख आधार उनकी आय होती है।
  • राष्ट्रीय आय विकास का एक महत्त्वपूर्ण मापदण्ड है जिन देशों की राष्ट्रीय आय अधिक होती है उन्हें कम आय वाले देशों से अधिक विकसित समझा जाता है। यह बात इस मान्यता पर आधारित है कि अधिक आय का अर्थ मानवीय आवश्यकताओं की सभी वस्तुओं का उपलब्ध होना है।
  • दोनों देशों की तुलना करने के लिए राष्ट्रीय आय एक उपयुक्त माप नहीं है क्योंकि विभिन्न देशों में जनसंख्या अलग-अलग होती है। अतः इससे हमें यह ज्ञात नहीं होता है कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है।
  • दो देशों के मध्य तुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय को एक अच्छा आधार माना जाता है। औसत आय को प्रतिव्यक्ति आय भी कहा जाता है। देश की कुल आय में कुल जनसंख्या से भाग देकर प्रतिव्यक्ति आय ज्ञात कर ली जाती है।
  • विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसारं देशों के विकास के आधार पर वर्गीकरण करते समय प्रतिव्यक्ति आय मापदण्ड का प्रयोग किया गया है।
  • सन् 2017 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 12.056 प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश कहा गया है तथा जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 995 प्रतिवर्ष या उससे कम है, ऐसे देशों को निम्न आय वाला देश कहा गया है । इस दृष्टि से भारत मध्य आय वर्ग वाले देशों की श्रेणी में आता है क्योंकि सन् 2017 में भारत की प्रतिव्यक्ति आय ‘US डॉलर 1820 प्रतिवर्ष थी।

→ आय व अन्य मापदण्ड

  • दो या दो से अधिक देशों अथवा राज्यों के मध्य प्रतिव्यक्ति आय के अतिरिक्त तुलना के अन्य प्रमुख आधारों में शिशु-मृत्यु दर, साक्षरता दर, निवल उपस्थिति अनुपात, मानव विकास सूचकांक एवं उपलब्ध सुविधाएँ शामिल हैं।
  • यह जरूरी नहीं है कि जेब में रखा रुपया वे सब वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीद सके, जिनकी आपको एक अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरत हो सकती है।
  • जीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण चीजों के लिए सबसे अच्छा तथा सस्ता तरीका इन चीजों व सेवाओं को सामूहिक रूप से उपलब्ध कराना है।
  • स्वास्थ्य तथा शिक्षा की मौलिक सुविधाओं के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के कारण केरल में शिशु मृत्यु दर कम है।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देशों की तुलना लोगों के । शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर करती है।
  • विकास की धारणीयता तुलनात्मक स्तर पर ज्ञान का नया क्षेत्र है जिसमें वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, दार्शनिक तथा अन्य सामाजिक वैज्ञानिक संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. विकास: विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ निर्धनता, असमानता, अशिक्षा एवं बीमारी में कमी भी हो अर्थात् लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार हो एवं उनका जीवन स्तर ऊँचा हो।

2. राष्ट्रीय विकास: किसी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विकास।

3. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: ये वे कम्पनियाँ हैं जिनका एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व होता है।

4. आर्थिक विकास: आर्थिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है जिसके द्वारा राष्ट्रीय आय एवं प्रतिव्यक्ति आय में दीर्घकालीन और निरन्तर वृद्धि होती है।

5. औसत आय: किसी देश की राष्ट्रीय आय को उसकी कुल जनसंख्या से भाग देने से प्राप्त राशि होती है। इसे प्रति व्यक्ति आय भी कहते हैं।

6. अर्थव्यवस्था: उन विभिन्न प्रणालियों और संगठनों का समूह जो लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।

7. मानव विकास: यह लोगों की इच्छाओं और उनके जीवन-स्तर में वृद्धि लाने की एक प्रक्रिया है ताकि वे एक उद्देश्यपूर्ण एवं सक्रिय जीवन जी सकें।

8. विश्व बैंक: सन् 1944 में स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय बैंक। इस बैंक का उद्देश्य निर्धन, साधनहीन एवं विकासशील देशों को वित्त व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है।

9. राष्ट्रीय आय: किसी समयावधि में एक अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं में कुल प्रवाह का मौद्रिक मूल्य।

10. विकसित देश: उच्चतम प्रतिव्यक्ति आय एवं उच्च जीवन स्तर की विशेषता वाले देश।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास 

11. निम्न आय वाला देश: वे देश जिनकी प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 995 प्रतिवर्ष या उससे कम है, निम्न आय वाले . देश कहलाते हैं।

12. शिशु मृत्यु दर: किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात।

13. साक्षरता दर: 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात।

14. निवल उपस्थिति अनुपात: किसी आयु विशेष के विद्यालय जाने वाले कुल बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के मध्य अनुपात।

15. यू. एन. डी. पी.: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, जो विश्व के विभिन्न देशों की विभिन्न दशाओं का अध्ययन कर उनकी मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित करता है।

16. मानव विकास रिपोर्ट: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा विभिन्न देशों के शिक्षा, स्वास्थ्य व आय आदि की दशा … के आधार पर प्रकाशित किया जाने वाला वार्षिक प्रतिवेदन।

17. एच. डी. आई.: मानव विकास सूचकांक। यह विश्व के देशों में विकास स्तर को समझने व तुलना करने में सहायक होता है।

18. विकास की धारणीयता: विकास का जो स्तर हमने प्राप्त किया है, वह भावी पीढ़ी के लिए भी बना रहे। .

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

  • समकालीन विश्व में लोकतंत्र शासन का एक प्रमुख रूप है।
  • सम्पूर्ण विश्व के एक-चौथाई भाग में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है।
    विश्व के एक-चौथाई भागों में लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती है।
  • विश्व की अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के समक्ष अपना विस्तार करना एक चुनौती है।
  • प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था के समक्ष लोकतंत्र को मजबूत करने की एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • राजनीतिक सुधारों का कार्य मुख्य रूप से राजनीतिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल, आन्दोलन एवं राजनीतिक रूप से सतर्क नागरिकों के द्वारा ही किया जा सकता है।
  • लोगों को जागरूक, जानकार एवं लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने के लिए सूचना का अधिकार एक महत्त्वपूर्ण कानून है जो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है।
  • लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों का चुनाव स्वयं करते हैं।
  • चुनाव में लोगों को वर्तमान शासकों को बदलने एवं अपनी पसंद बताने का पर्याप्त अवसर और विकल्प मिलना चाहिए।
  • सरकारों और सामाजिक समूहों के मध्य सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है।
  • अच्छे लोकतंत्र की कोई बनी-बनाई परिभाषा नहीं है। अच्छा लोकतंत्र वही है जैसे उसे हम सोचते तथा बनाने की आकांक्षा रखते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. चुनौती: हम आमतौर पर उन्हीं मुश्किलों को चुनौती कहते हैं जो महत्त्वपूर्ण तो हैं लेकिन जिन पर जीत भी हासिल की जा सकती है। यदि किसी मुश्किल के भीतर ऐसी संभावना है कि उस मुश्किल से छुटकारा मिल सके तो उसे हम चुनौती कहते हैं।

2. लोकतंत्र की चुनौतियाँ: एक देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुनिश्चित बनाने के लिए आने वाली विभिन्न समस्याएँ लोकतंत्र की चुनौतियाँ कहलाती हैं।

3. राजनीतिक सुधार: लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव राजनीतिक सुधार या लोकतांत्रिक सुधार कहलाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes