JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

JAC Class 10 Hindi स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
अथवा
महावीर प्रसाद द्विवेदी स्त्री शिक्षा का पुरजोर समर्थन करते हैं। उनके तर्कों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पढ़े-लिखे, सभ्य और स्वयं को सुसंस्कृत विचारों के समझने वाले लोग स्त्रियों की शिक्षा को समाज का अहित मानते हैं। उन लोगों ने अपने पास से कुछ कुतर्क दिए, जिन्हें द्विवेदी जी ने अपने सशक्त विचारों से काट दिया। द्विवेदी जी के अनुसार प्राचीन भारत में स्त्रियों के अनपढ़ होने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, परंतु उनके पढ़े-लिखे होने के कई प्रमाण मिलते हैं।

उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत थी, तो नाटकों में भी स्त्रियों और अन्य पात्रों से प्राकृत तथा संस्कृत बुलवाई जाती थी। इसका यह अर्थ नहीं है कि उस समय स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं। हमारा प्राचीन साहित्य प्राकृत भाषा में ही है। उसे लिखने वाले अवश्य अनपढ़ होने चाहिए। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अधिकतर ग्रंथ प्राकृत भाषा में है, जो हमें उस समय के समाज से परिचित करवाते हैं। बुद्ध भगवान के सभी उपदेश प्राकृत भाषा में हैं। बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक प्राकृत भाषा में है।

जिस तरह आज हम बाँग्ला, हिंदी, उड़िया आदि भाषाओं का प्रयोग बोलने तथा पढ़ने-लिखने में करते हैं, उसी तरह उस समय के लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करते थे। यदि प्राकृत भाषा का प्रयोग करने से कोई अनपढ़ कहलाता है, तो आज के समय में सब पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ होते। वाल्मीकि जी की : रामायण में तो बंदर तक संस्कृत बोलते थे, तो स्त्रियों के लिए कौन-सी भाषा उचित हो सकती है? यह बात स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वाले स्वयं सोच सकते हैं।

ऋषि अत्रि की पत्नी, गार्गी तथा मंडन मिश्र की पत्नी ने अपने समय के बड़े प्रकांड आचार्यों को शास्त्रार्थ में मात दी थी, तो क्या वे पढ़ी-लिखी नहीं थीं? लेखक के अनुसार पुराने समय में उड़ने वाले विमानों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, परंतु किसी भी शास्त्र में उनके निर्माण की विधि नहीं मिलती; इससे क्या स्त्री-शिक्षा विरोधी उस समय विमान न होने से इन्कार कर सकते हैं? यदि शास्त्रों में स्त्री-शिक्षा का अलग से प्रबंध का कोई वर्णन नहीं मिलता, तो हम यह नहीं मान सकते हैं कि उस समय स्त्री-शिक्षा नहीं थी। उस समय स्त्रियों को पुरुषों के समान सभी अधिकार प्राप्त थे। इस प्रकार द्विवेदी जी अपने विचारों से स्त्री-शिक्षा के विरोधियों को उत्तर देते हैं।

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प्रश्न 2.
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कवादियों का यह कहना उचित नहीं है कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है। शकुंतला द्वारा अपने सम्मान की रक्षा के लिए कुछ कहना यदि अनर्थ है, तो यह उचित नहीं है। यदि पढ़ी-लिखी स्त्रियों का अपने सम्मान की रक्षा के लिए किया गया कार्य या विचार अनर्थ है, तो पुरुषों द्वारा किया गया अनर्थ भी उनकी पढ़ाई-लिखाई के कारण है। समाज को गलत मार्ग पर ले जाने का कार्य पुरुष ही करते हैं। डाके डालना, चोरी करना, घूस लेना, बुरे काम करना आदि पुरुष-बुद्धि की ही उपज है।

इसलिए सभी स्कूल-कॉलेज बंद कर देने चाहिए, जिससे पुरुष भी अनर्थ करने की शिक्षा न ले सकें। लेखक ने शकुंतला के दुष्यंत को कहे कटु वाक्यों को एक स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए प्रयुक्त किए गए वाक्य बताया है। सीता जी ने भी अपने परित्याग के समय राम जी पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वह अपनी शुद्धता अग्नि में कूदकर सिद्ध कर चुकी थी। अब वह तो लोगों के कहने पर राम जी ने उनका परित्याग करके अपने कुल के नाम पर कलंक लगाया है। सीता जी का राम जी पर यह आरोप क्या उन्हें अशिक्षित सिद्ध करता है? वह महाविदुषी थी।

एक स्त्री का अपने सम्मान की रक्षा के लिए बोलना उचित है। यह पढ़-लिख कर अनर्थ करना नहीं है। अनर्थ पढ़ाईलिखाई की नहीं अपितु हमारी सोच की उपज है। स्त्रियों की पढ़ाई-लिखाई से समाज और घर में अनर्थ नहीं होता। पढ़ाई-लिखाई से स्त्रियों को अच्छे-बुरे का ज्ञान होता है और वे समाज की उन्नति में सहायक सिद्ध होती है।

प्रश्न 3.
दविवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है-जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर :
द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए निबंध में कई स्थानों पर व्यंग्य का सहारा लिया है। वे कहते हैं कि नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत भाषा बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। इसके संदर्भ में उन्होंने कहा कि ‘वाल्मीकि रामायण के तो बंदर तक संस्कृत बोलते हैं। बंदर संस्कृत बोल सकते थे, स्त्रियाँ न बोल सकती थीं।’ यदि उस समय के जानवर तक संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे, तो स्त्रियाँ कैसे अनपढ़ हो सकती हैं? वे भी आम भाषा में संस्कृत ही बोलती होंगी।

जब हम उस समय उड़ने वाले जहाजों के वर्णन पर विश्वास करते हैं, तो इस बात पर विश्वास क्यों नहीं करते हैं कि उस समय स्त्री-शिक्षा दी जाती थी यदि उस समय की स्त्री-शिक्षा पर विश्वास नहीं है, तो ‘दिखाए, जहाज़ बनाने की नियमबद्ध प्रणाली के दर्शक ग्रंथ !’ स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थ करना है। पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ समाज और घर दोनों का नाश कर देंगी, इसलिए उनकी पढ़ाई उचित नहीं है। ऐसे पुरुषों के लिए द्विवेदी जी लिखते हैं स्त्री-शिक्षा पर अपना विरोध प्रकट कर लोग देश के गौरव को बढ़ा नहीं कम कर रहे हैं।

उनके अनुसार पढ़ना-लिखना पुरुषों के लिए उचित है, लेकिन स्त्री के लिए इस विषय में सोचना भी विष के समान है। ‘स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूट !’ अपने सम्मान की रक्षा के लिए स्त्री द्वारा पुरुष को यदि कटु वाक्य बोल भी दिए गए हों, तो यह अनर्थ नहीं है; सभी को अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार शकुंतला द्वारा दुष्यंत के कार्य का विरोध करना कटु वाक्य थे।

यह उसकी पढ़ाई-लिखाई का परिणाम है, तो क्या वह यह कहती”आर्य पुत्र, शाबाश ! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं।” इस प्रकार निबंध में द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के विरोधी की बात काटने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है, जिससे उनकी बात सशक्त ढंग से दूसरों पर अपना प्रभाव छोड़ती है।

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प्रश्न 4.
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अनपढ़ होने का सबूत है-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है। उस समय आम बोलचाल और पढ़ने-लिखने की भाषा प्राकृत थी। जिस प्रकार आज हम हिंदी, बाँग्ला, मराठी आदि भाषाओं का प्रयोग बोलने, पढ़ने व लिखने के लिए करके स्वयं को पढ़ा-लिखा, सुसभ्य और सुसंस्कृत बताते हैं; उसी प्रकार प्राचीन समय में प्राकृत भाषा का विशेष महत्व था। हमारा प्राचीन साहित्य स्पष्ट प्राकृत भाषा में है और उसी साहित्य से हमें तत्कालीन समाज का वर्णन मिलता है। इसलिए हम प्राकृत भाषा में बोलने वाली स्त्रियों को अनपढ़ नहीं कह सकते।

प्रश्न 5.
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
लेखक का यह कथन स्वीकार करने योग्य है कि हमें परंपरा के उन्हीं पक्षों को अपनाना चाहिए, जो स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ाते हों। मनुष्य का जीवन अकेले नहीं चल सकता। उसकी जीवन-यात्रा स्त्री-पुरुष के सहयोग से ही चलती है। यदि जीवनरूपी गाड़ी का एक पहिया मज़बूत और दूसरा कमज़ोर होगा, तो गाड़ी ठीक से नहीं चल पाएगी। इसलिए दोनों को ही जीवनरूपी गाड़ी को सुचारु रूप से चलाने के लिए समान रूप से योग्य बनना चाहिए।

यह तभी संभव हो सकता है, जब दोनों को शिक्षा, खान-पान, मान-सम्मान के समान अवसर प्रदान किए जाए। घरों में लड़के के जन्म पर खुशियाँ और लड़की के जन्म पर मातम नहीं मनाना चाहिए। लड़की की भ्रूण-हत्या बंद होनी चाहिए। संसार में जैसे लड़के के आने का स्वागत होता है, वैसे ही लड़की के जन्म पर भी होना चाहिए। जब तक हम लड़की-लड़के के भेद को समाप्त करके दोनों को समान रूप से नहीं अपनाते, भविष्य में उनकी जीवन गाड़ी भी ठीक से नहीं चल सकती। इसलिए हमें अपनी उन्हीं परंपराओं को अपनाना चाहिए, जिनमें स्त्री-पुरुष की समानता की प्रतिष्ठा हो।

प्रश्न 6.
तब की शिक्षा-प्रणाली और अब की शिक्षा-प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर :
पुराने ज़माने में लोग स्त्रियों को शिक्षा देने के विरोधी थे। वे स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होना मानते थे। धीरे-धीरे लोगों ने शिक्षा का महत्व समझा और स्त्रियों को भी पढ़ाने लगे। स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा के नाम पर परंपरागत रूप से पढ़ाए जाने वाले विषय ही पढ़ाए जाते थे। अब शिक्षा-प्रणाली में व्यापक परिवर्तन आ गया है। विद्यार्थियों को परंपरागत शिक्षा के साथ-साथ रोज़गारोन्मुख विषय भी पढ़ाए जाते हैं, जिससे वे अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद स्वयं को किसी व्यवसाय अथवा कार्य में लगाकर आजीविका अर्जित कर सकें। स्त्रियाँ भी पढ़-लिखकर कुशल गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के साथ ही समाज एवं देश के लिए अनेक उपयोगी कार्य भी कर रही हैं।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे ?
उत्तर :
महावीरप्रसाद दविवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है। दविवेदी जी के अनुसार प्राचीन समय की अपेक्षा आधुनिक समय में स्त्री-शिक्षा का अधिक महत्व है। द्विवेदी जी का समय समाज में नई चेतना जागृत करने का था। उस समय के समाज में स्त्रियों को पढ़ाना अपराध समझा जाता था। पढ़ी-लिखी स्त्रियों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। दकियानूसी विचारों वाले लोगों ने स्त्री-शिक्षा के विरोध में व्यर्थ की दलीलें बना रखी थीं।

द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के महत्व को समझा और उसका प्रचार-प्रसार करने के लिए लेखों का सहारा लिया। उनका मानना था कि शिक्षा ही देश का उचित विकास कर सकती है। स्त्रियों के उत्थान से देश का उत्थान निश्चित है। शिक्षित नारी स्वयं का भला तो करती है साथ में अपने परिवार, समाज और देश का भी भला करती है। नारी की क्षमता और प्रतिभा के उचित उपयोग के लिए उसे शिक्षित करना आवश्यक है।

द्विवेदी जी की स्त्री-शिक्षा के प्रति यह सोच आज के समय में वरदान सिद्ध हो रही है। आधुनिक समय में शिक्षा का बहुत महत्व है। इसके बिना मानव-जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज के समय में लड़कों और लड़कियों के लिए शिक्षा अनिवार्य है। घर, समाज और देश के विकास के लिए नारी का आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। इसलिए आज हर क्षेत्र में लड़कियाँ लड़कों से आगे निकल रही हैं। हर क्षेत्र में लड़कियों की सफलता का श्रेय उन लोगों को है, जिन्होंने स्त्री-शिक्षा के लिए लंबा संघर्ष किया। उन लोगों ने आने वाले समय में स्त्री-शिक्षा के महत्व को समझा तथा स्त्री-शिक्षा विरोधियों की विचारधारा का डटकर मुकाबला किया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

प्रश्न 8.
द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली हिंदी हैं, जिसमें उन्होंने ‘प्रगल्भ, पीयूष, कटु, उद्धत, सहधर्मचारिणी, पांडित्य, दुर्वाक्य’ जैसे तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ ‘मुमानियत, हरगिज़, गंवार, अपढ़, बम, सबूत, तिस, लवलैटर’ जैसे विदेशी, देशज तथा तद्भव शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। ‘छक्के छुड़ाना’ जैसे मुहावरों के प्रयोग ने भापा में सजीवता ला दी है। लेखक की शैली वर्णन प्रधान, भावपूर्ण एवं व्याख्यात्मक होते हुए भी व्यंग्य प्रधान है; जैसे -‘अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटों पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रहमवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे ! गज़ब ! इससे भयंकर बात क्या हो सकेगी। यहृ सब दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने ही का कुफल है। समझे। इस प्रकार लेखक ने अत्यंत सहज तथा रोचक भाषा-शैली का प्रयोग करते हुए अपने विषय का प्रतिपादन किया है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों –
चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल
उत्तर :
(क) चाल – रमा का चाल-चलन ठीक नहीं है।
चाल – हिरण तेज़ चाल से दौड़ता हैं।
(ख) दल – टिइ्डी-दल ने गेहूँ की तैयार फसल खराब कर दी।
दल – सभी राजनीतिक दल चुनाव में सक्रिय हैं।
(ग) पत्र – आज श्याम का पत्र आया है।
पत्र – प्राचीन समय में लोग पत्र पर लिखा करते थे।
(घ) हरा – शुभम ने पराग को कुश्ती में हरा दिया।
हरा – झंडे में हरा रंग देश में हरियाली का प्रतीक है।
(ङ) पर – तितली के पर पीले रंग के हैं।
पर – कल पर कभी काम नहीं छोड़ना चाहिए।
(च) फल – आज दसर्वं कक्षा का परीक्षा-फल आएगा।
फल – स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन फल का सेवन करना चाहिए।
(छ) कुल – आजकल लड़कियाँ लड़कों से अधिक अपने कुल का नाम रोशन कर रही हैं।
कुल – राम ने नर्बी परीक्षा में कुल कितने अंक प्राप्त किए ?

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
अपनी दादी, नानी और माँ से बातचीत कीजिए और (स्त्री-शिक्षा संबंधी) उस समय की स्थितियों का पता लगाइए और अपनी स्थितियों से तुलना करते हुए निबंध लिखिए। चाहें तो उसके साथ तसर्वरं भी चिपकाइए।
उत्तर :
‘शिक्षा’ से अभिप्राय सीखना है। मनुष्य जीवनभर कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। इसी सीखने के अंतर्गत पढ़ाई-लिखाई भी आती है। पढ़ाई-लिखाई के बिना मानव का जीवन पशु के समान होता है। इसलिए पढ़ाई-लिखाई का मानव के जीवन में बहुत महत्व है। प्राचीन समय में पढ़ाई-लिखाई का संबंध लड़कों तक सीमित माना जाता था, उसमें लड़कियों को नहीं के बराबर स्थान दिया जाता था। लड़कियों को इतनी शिक्षा दी जाती थी, जिससे वे केवल धर्म का पालन करना सीख सकें। अधिक शिक्षा लड़कियों के लिए अभिशाप समझी जाती थी।

लड़कियों को बचपन से ही घर सँभालने की शिक्षा दी जाती थी। उन्हें समझा दिया जाता था कि उनका कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी तक सीमित है, इसलिए उनके लिए अधिक शिक्षा महत्व नर्हीं रखती। उस समय लड़कियों के लिए अलग से पाठशालाएँ भी नहीं होती थीं। उस समय यदि किसी परिवार में शिक्षा के महत्व को समझकर लड़कियों को पढ़ा-लिखा दिया जाता था, तो उस परिवार की लड़कियों को अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता था। पढ़ाई-लिखाई लड़कियों को बिगाड़ने का साधन समझा जाता था।

लेकिन आज परिस्थितियाँ कुछ और हैं। आज के समय में लड़कों के समान लड़कियों के लिए भी पढ़ाई-लिखाई अनिवार्य है। आज के समय में लड़कियों को पढ़ाना उन्हें बिगाड़ने का साधन नहीं माना जाता अपितु उन्हें पढ़ाकर उनका भविष्य सुरक्षित किया जाता है। आधुनिक युग में लड़कियाँ हर क्षेत्र में लड़कों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल रही हैं। सरकार, समाज और घर-परिवार में सभी लोग शिक्षा के महत्व को समझ गए हैं। शिक्षा ही देश की उन्नति में सहायक हैं। जब देश की नारी शिक्षित होगी, तभी हर घर शिक्षित होगा और वह देश के विकास में अपना सहयोग देगा।

लड़कियों को पढ़ाने के लिए सरकार ने भी कई तरह की योजनाएँ आरंभ की हैं। कई क्षेत्रों में लड़कियों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। शहरों और गाँवों में लड़कियों के लिए अलग से पाठशालाएँ व कॉलेज खुले हुए हैं। आज की लड़कियाँ हर क्षेत्र में अपने पाँव जमा चुकी हैं। उन्होंने अपनी क्षमता को साबित किया है। आज की नारी अबला नहीं सबला है।

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प्रश्न 2.
लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार और समाज में जागरूकता आए-इसके लिए आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर :
अभी भी कई स्थानों पर लड़कियों की शिक्षा को अनिवार्य नहीं माना जाता। आज भी कई परिवारों में लड़कियों की शिक्षा को लड़कों की अपेक्षा कम महत्व दिया जाता है। उन्हें घर पर एक बोझ के रूप में देखा जाता है, जिसे माँ-बाप उसकी शादी करके उतारना चाहते हैं। ऐसे लोगों को लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए जगह-जगह नुक्कड़ नाटक होने चाहिए। नुक्कड़ नाटकों में लड़कियों के लिए शिक्षा क्यों अनिवार्य है, दिखाना चाहिए।

लड़कियों और लड़कों में कोई अंतर नहीं होता, लोगों में इस सोच को बढ़ावा देना चाहिए। लड़कियाँ माँ-बाप पर बोझ नहीं होती अपितु पढ़-लिखकर वे अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारियों का बोझ हल्का करती हैं। यदि लड़कियाँ पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर हो जाए, तो दहेज जैसी कुप्रथा स्वयं ही दूर हो जाएँगी। पढ़-लिखकर लड़कियों में अच्छे-बुरे की समझ आ जाती है। वे समाज में फैली हर कुरीति का डटकर सामना कर सकती हैं तथा माता-पिता का नाम रोशन कर सकती हैं। परिवार, समाज तथा देश की उन्नति में लड़कियाँ लड़कों से अधिक सहायक होती हैं। शिक्षित लड़कियाँ ही परिवार और समाज को शिक्षित बनाती हैं और उन्हें देश की प्रगति में सहायक होने के लिए प्रेरित करती हैं।

प्रश्न 3.
स्त्री-शिक्षा पर एक पोस्टर तैयार कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी इन कार्यों को अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

प्रश्न 4.
स्त्री-शिक्षा पर एक नुक्कड़ नाटक तैयार कर उसे प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी इन कार्यों को अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

यह भी जानें –

भवभूति – संस्कृत के प्रधान नाटककार हैं। इनके तीन प्रसिद्ध ग्रंथ वीररचित, उत्तररामचरित और मालतीमाधव हैं। भवभूति करुण रस के प्रमुख लेखक थे।
विश्ववरा – अत्रिगोत्र की स्त्री। ये ऋगवेद के पाँचवें मंडल 28वें सूक्त की एक में से छठी ऋक् की ऋषि थीं।
शीला – कौरिडन्य मुनि की पत्नी का नाम।
थेरीगाथा – बौद्ध भिक्षुणियों की पद्य रचना इसमें संकलित है।
अनुसूया – अत्रि मुनि की पत्नी और दक्ष प्रजापति की कन्या।
गार्गी – वैदिक समय की एक पंडिता ऋषिपुत्री। इनके पिता का नाम गर्ग मुनि था। मिथिला के जनकराज की सभा में इन्होंने पंडितों के सामने याज्ञवल्क्य के साथ वेदांत शास्त्र विषय पर शास्त्रार्थ किया था।
गाथा सप्तशती – प्राकृत भाषा का ग्रंथ जिसे हाल द्वारा रचित माना जाता है।
कुमारपाल चरित्र – एक ऐतिहासिक ग्रंथ है जिसे वीं शताब्दी के अंत में अज्ञातनामा कवि ने अनहल के राजा कुमारपाल के लिए लिखा था। इसमें ब्रह्मा से लेकर राजा कुमारपाल तक बौद्ध राजाओं की वंशावली का वर्णन है।
त्रिपिटक ग्रंथ – गौतम बुद्ध ने भिक्षु-भिक्षुणियों को अपने सारे उपदेश मौखिक दिए थे। उन आदेशों को उनके शिष्यों ने कंठस्थ कर लिया था और बाद में उन्हें त्रिपिटक के रूप में लेखबद्ध किया गया। वे तीन त्रिपिटक हैं-सुत या सूत्र पिटक, विनय पिटक और अभिधम पिटक।
शाक्य मुनि – शक्यवंशीय होने के कारण गौतम बुद्ध को शाक्य मुनि भी कहा जाता है।
नाट्यशास्त्र – भरतमुनि रचित काव्यशास्त्र संबंधी संस्कृत के इस ग्रंथ में मुख्यतः रूपक (नाटक) का शास्त्रीय विवेचन किया गया है। इसकी रचना 300 ईसा पूर्व मानी जाती है।
कालिदास – संस्कृत के महान कवियों में कालिदास की गणना की जाती है। उन्होंने कुमारसंभव, रघुवंश (महाकाव्य), ऋतु संहार, मेघदूत (खंडकाव्य), विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र और अभिज्ञान शाकुंतलम् (नाटक) की रचना की।

आज़ादी के आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ी पंडिता रमाबाई ने स्त्रियों की शिक्षा एवं उनके शोषण के विरुद्ध जो आवाज़ उठाई उसकी एक झलक यहाँ प्रस्तुत है। आप ऐसे अन्य लोगों के योगदान के बारे में पढ़िए और मित्रों से चर्चा कीजिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पाँचवाँ अधिवेशन 1889 में मुंबई में आयोजित हुआ था। खचाखच भरे हॉल में देशभर के नेता एकत्र हुए थे। एक सुंदर युवती अधिवेशन को संबोधित करने के लिए उठी। उसकी आँखों में तेज़ और उसके कांतिमय चेहरे पर प्रतिभा झलक रही थी। इससे पहले कांग्रेस अधिवेशनों में ऐसा दृश्य देखने में नहीं आया था।

हॉल में लाउडस्पीकर न थे। पीछे बैठे हुए लोग उस युवती की आवाज़ नहीं सुन पा रहे थे। वे आगे की ओर बढ़ने लगे। यह देखकर युवती ने कहा, “भाइयो, मुझे क्षमा कीजिए। मेरी आवाज़ आप तक नहीं पहुंच पा रही है। लेकिन इस पर मुझे आश्चर्य नहीं है। क्या आपने शताब्दियों तक कभी किसी महिला की आवाज़ सुनने की कोशिश की? क्या आपने उसे इतनी शक्ति प्रदान की कि वह अपनी आवाज़ को आप तक पहुँचने योग्य बना सके?”

प्रतिनिधियों के पास इन प्रश्नों के उत्तर न थे। इस साहसी युवती को अभी और बहुत कुछ कहना था। उसका नाम पंडिता रमाबाई था। उस दिन तक स्त्रियों ने कांग्रेस के अधिवेशनों में शायद ही कभी भाग लिया हो। पंडिता रमाबाई के प्रयास से 1889 के उस अधिवेशन में 9 महिला प्रतिनिधि सम्मिलित हुई थीं। वे एक मूक प्रतिनिधि नहीं बन सकती थीं। विधवाओं को सिर मुंडवाए जाने की प्रथा के विरोध में रखे गए प्रस्ताव पर उन्होंने एक ज़ोरदार भाषण दिया।

“आप पुरुष लोग ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधित्व की माँग कर रहे हैं जिससे कि आप भारतीय जनता की राय वहाँ पर अभिव्यक्त कर सकें। इस पांडाल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चीख-चिल्ला रहे हैं, तब आप अपने परिवारों में वैसी ही स्वतंत्रता महिलाओं को क्यों नहीं देते? आप किसी महिला को उसके विधवा होते ही कुरूप और दूसरे पर निर्भर होने के लिए क्यों विवश करते हैं? क्या कोई विधुर भी वैसा करता है? उसे अपनी इच्छा के अनुसार जीने की स्वतंत्रता है। तब स्त्रियों को वैसी स्वतंत्रता क्यों नहीं मिलती?”

निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पंडिता रमाबाई ने भारत में नारी-मुक्ति आंदोलन की नींव डाली।
वे बचपन से ही अन्याय सहन नहीं कर पाती थीं। एक दिन उन्होंने नौ वर्ष की एक छोटी-सी लड़की को उसके पति के शव के साथ भस्म किए जाने से बचाने की चेष्टा की। “यदि स्त्री के लिए भस्म होकर सती बनना अनिवार्य है तो क्या पुरुष भी पत्नी की मृत्यु के बाद सता होते हैं?” रौबपूर्वक पूछे गए इस प्रश्न का उस लड़की की माँ के पास कोई उत्तर न था। उसने केवल इतना कहा कि “यह पुरुषों की दुनिया है।

कानून वे ही बनाते हैं, स्त्रियों को तो उनका पालन भर करना होता है।” रमाबाई ने पलटकर पूछा, “स्त्रियाँ ऐसे कानूनों को सहन क्यों करती हैं? मैं जब बड़ी हो जाऊँगी तो ऐसे कानूनों के विरुद्ध संघर्ष करूँगी।” सचमुच उन्होंने पुरुषों द्वारा महिलाओं के प्रत्येक प्रकार के शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया।

JAC Class 10 Hindi स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपने दल में क्या-क्या तर्क देते हैं ? दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने स्त्री-शिक्षा के विरोध में निम्नलिखित तर्क दिए हैं –
(क) प्राचीन काल में संस्कृत-कवियों ने नाटकों में स्त्रियों से अनपढ़ों की भाषा में बातें करवाई हैं। इससे पता चलता है कि उस समय स्त्रियों को पढ़ाने का चलन नहीं था।
(ख) स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है।
(ग) स्त्रियों को पढ़ाना समय बर्बाद करना है।
(घ) शकुंतला का दुष्यंत को भला-बुरा कहना उसकी पढ़ाई-लिखाई का दोष था।

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प्रश्न 2.
लेखक नाटकों में स्त्रियों की भाषा प्राकृत होने को उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं मानता। इसके लिए वह क्या तर्क देता है ?
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार प्राचीन काल में स्त्रियों से नाटक में अनपढ़ों की भाषा का प्रयोग करवाया जाता था। द्विवेदी जी के अनुसार नाटकों में प्राकृत भाषा बोलना अनपढ़ता का प्रमाण नहीं है। उस समय आम बोलचाल में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया : जाता था। संस्कृत भाषा का चलन तो कुछ लोगों तक ही सीमित था। इसलिए आचार्यों ने नाट्यशास्त्रों से संबंधित नियम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा होगा कि कुछ चुने लोगों को छोड़कर अन्यों से उस समय की प्रचलित प्राकृत भाषा में संवाद बोलने के लिए कहा जाए। इससे स्त्रियों की अनपढ़ता सिद्ध नहीं होती।

प्रश्न 3.
प्राचीन समय में प्राकृत भाषा का चलन था। इसके लिए द्विवेदी जी ने क्या प्रमाण दिया है?
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने प्राकृत भाषा को अनपढ़ों की भाषा कहा है। द्विवेदी जी के अनुसार उस समय की बोलचाल और पढ़ाई-लिखाई की भाषा प्राकृत थी। उस समय में प्राकृत भाषा के चलन का प्रमाण बौद्ध-ग्रंथों और जैन-ग्रंथों से मिलता है। दोनों धर्मों के हज़ारों ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं। बुद्ध भगवान ने अपने उपदेश उस समय की प्रचलित प्राकृत भाषा में दिए हैं। बौद्धों के सबसे बड़े ग्रंथ त्रिपिटक की रचना भी प्राकृत भाषा में की गई है। इसका एकमात्र कारण यह था कि उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत थी। इससे सिद्ध होता है कि प्राकृत अनपढ़ों की भाषा नहीं है।

प्रश्न 4.
द्विवेदी जी ने प्राकृत भाषा की तुलना आज की कौन-सी भाषा से की है और क्यों?
उत्तर :
द्विवेदी जी ने प्राकृत भाषा की तुलना आज अत्यधिक बोले जाने वाली भाषा हिंदी से की है। स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने प्राचीन समय में बोली जाने वाली प्राकृत भाषा को अनपढ़ों और गँवारों की भाषा बताया है। लेकिन द्विवेदी जी के अनुसार प्राकृत भाषा उस समय की आम बोलचाल की भाषा थी, इसलिए प्राकृत बोलना और पढ़ना-लिखना अनपढ़ता का कारण नहीं है।

उस समय के प्रसिद्ध ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए थे; जैसे-गाथा-सप्तशती, सेतुबंध, महाकाव्य, कुमारपाल चरित आदि। यदि इन ग्रंथों को लिखने वाले अनपढ़ और गँवार हैं, तो आज के समय में हिंदी के प्रसिद्ध से प्रसिद्ध संपादकों को अनपढ़ और गँवार कहा जा सकता है। हिंदी इस समय की आम बोलचाल की भाषा है। जिस तरह हम लोग हिंदी, बाँग्ला आदि भाषाओं को पढ़कर विद्वान बन सकते हैं, उसी तरह प्राचीन समय में शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री आदि प्राकृत भाषाओं को पढ़-लिखकर कोई भी सभ्य, शिक्षित और पंडित बन सकते थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

प्रश्न 5.
लेखक ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए कौन-कौन सी प्रसिद्ध विदुषी स्त्री का वर्णन किया है?
उत्तर :
लेखक ने स्त्री-शिक्षा विरोधियों की व्यर्थ दलीलों को निराधार सिद्ध करते हुए लिखा है कि प्राचीन समय में भी स्त्रियों को पढ़ाया लिखाया जाता था। यह बात सही है कि उनके लिए अलग से विश्वविद्यालय नहीं थे, परंतु यह कहना सही नहीं है कि प्राचीन समय में स्त्रियों को शिक्षित नहीं किया जाता था। वेदों को हिंदू ईश्वर-कृत रचना मानते हैं; ईश्वर ने भी वेदों की रचना और दर्शन का निर्माण स्त्रियों से करवाया है। शीला और विज्जा जैसी विदुषी स्त्रियों को बड़े-बड़े पुरुष-कवियों ने सम्मानित किया था।

उनकी कविता के नमूने शाग्र्धर-पद्धति में देखे जा सकते हैं। अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर कई घंटे लगातार उपदेश दे सकती थी। गार्गी ने बड़े-बड़े वेद पढ़नेपढ़ाने वालों को अपने पांडित्य से हरा दिया था। मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को अपने ज्ञान से पराजित कर दिया था। बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के अंतर्गत थेरीगाथा में स्त्रियों द्वारा रचित सैकड़ों पद्य-रचनाएँ हैं। इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि प्राचीन समय में स्त्रियों को शिक्षित करने का नियम नहीं था, अपितु उस समय स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 6.
वर्तमान में स्त्रियों का पढ़ना क्यों ज़रूरी माना गया है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक के अनुसार यह मान भी लिया जाए कि प्राचीन समय में स्त्रियों को पढ़ाने का चलन नहीं था, तो उस समय स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता इतनी अधिक नहीं होगी। परंतु आधुनिक समय में स्त्री-शिक्षा का महत्व बहुत अधिक है। आधुनिक युग भौतिकवादी युग है। इस युग में अनपढ़ता देश के विकास में बाधा उत्पन्न करती है। यदि नारी शिक्षित होगी, तो वह अपने परिवार के सदस्यों को शिक्षित करने का प्रयत्न करेगी और उन्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान करवाकर एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करेगी। परिवार शिक्षित होगा तो समाज में भी नई विचारधारा का विकास होगा, जिससे देश का विकास होगा। इसलिए लेखक ने प्राचीन समय की अपेक्षा आधुनिक समय में स्त्रियों के लिए शिक्षा को अनिवार्य कहा है।

प्रश्न 7.
द्विवेदी जी का निबंध क्या संदेश देता है ?
उत्तर :
द्विवेदी जी ने अपने निबंध के माध्यम से स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वालों पर कड़ा प्रहार किया है। स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार लड़कियों को पढ़ाना अनर्थ करना है। परंतु द्विवेदी जी ने आज के समय की आवश्यकता को समझते हुए स्त्री-शिक्षा पर बल दिया है। उनके अनुसार स्त्रियों को शिक्षित करने से ही समाज और देश का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।

शिक्षा से व्यक्ति बिगड़ता नहीं है अपितु उसे अच्छे-बुरे की समझ आ जाती है। इस देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में दोष हैं; इसलिए उस शिक्षा प्रणाली को सुधारने की आवश्यकता है, जिसमें लड़कियों के लिए विशेष रूप से शिक्षा का प्रबंध हो। लड़कियों को पढ़ाने से कई प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। लड़कियों को पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देनी चाहिए।

लड़कियों के आत्मनिर्भर होने पर दहेज जैसी कुप्रथा का अंत हो जाएगा। द्विवेदी जी का निबंध यह भी संदेश देता है कि परंपराओं का पालन पुराने नियमों के अनुसार नहीं करना चाहिए; जहाँ आवश्यकता हो, वहाँ अपने विवेक से निर्णय लेना चाहिए। जो बात वर्तमान समय के लिए उपयोगी है, उसे मान लेना चाहिए और समाज के स्वरूप को बिगाड़ने वाली परंपराओं का त्यागकर देना चाहिए।

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प्रश्न 8.
आचार्यों ने नाट्यशास्त्र संबंधी क्या नियम बनाए थे?
उत्तर :
जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाए थे, उस समय सर्वसाधरण की भाषा संस्कृत नहीं थी। चुने हुए लोग ही संस्कृत बोलते थे। इसलिए उन्होंने उनकी भाषा संस्कृत और स्त्रियों व अन्य लोगों की भाषा प्राकृत रखने का नियम बनाया।

प्रश्न 9.
आजकल के संपादकों को किस तर्क से अनपढ़ कहा जा सकता है?
उत्तर :
हिंदी, बाँग्ला आदि भाषाओं को प्राकृत के अंतर्गत रखा जाता है। आजकल संपादक इन्हीं भाषाओं में अपना कार्य करते हैं। इसलिए यदि प्राकृत अनपढ़ों की भाषा मानी जाती है, तो आजकल के सभी संपादक; जो इन भाषाओं में लिखते-पढ़ते हैं; अनपढ़ हैं।

प्रश्न 10.
व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का क्या महत्व है ?
उत्तर :
व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का अत्यधिक महत्व है। शिक्षा व्यक्ति को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। वह मानव को कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर ले जाती है। शिक्षा मानव को अच्छा नागरिक बनाने में सहायक सिद्ध होती है। शिक्षा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास करती है।

प्रश्न 11.
पुराने समय में लोग स्त्रियों को अनपढ़ क्यों रखना चाहते थे?
उत्तर :
पुराना समाज पुरुष प्रधान समाज था। उसे इस बात का सदैव खतरा बना रहता था कि कहीं स्त्रियों के पढ़े-लिखे होने पर उन्हें अपना अस्तित्व ही न खोना पड़े। अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए वे स्त्रियों को न तो पढ़ाने के पक्ष में थे और न ही स्वयं इस बात का समर्थन करते थे कि स्त्रियों को पढ़ाया जाए।

प्रश्न 12.
अनर्थ का क्या कारण है ? पाठ के अनुसार इसे कौन करता है?
उत्तर :
अनर्थ का कारण दुराचार और पापाचार है। अनर्थ करने वाले अनपढ़ तथा पढ़े-लिखे-दोनों तरह के हो सकते हैं। यह उनकी मानसिकता तथा संस्कार पर निर्भर करता है कि वह जनमानस के समक्ष कैसा तथा किस प्रकार का व्यवहार करते हैं।

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प्रश्न 13.
आज बदलते समय के साथ स्त्री-शिक्षा अनिवार्य क्यों है?
उत्तर :
आज बदलते समय के साथ स्त्री-शिक्षा इसलिए अनिवार्य है, क्योंकि आज नारी पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रही है। आज नारी अशिक्षित या दासी न होकर हमारी सहभागिनी है। अत: एक नारी को शिक्षित कर हम पूरे एक कुल को शिक्षित कर सकते हैं, क्योंकि जब माँ शिक्षित होगी तो उसकी संतान भी शिक्षित होगी।

प्रश्न 14.
द्विवेदी जी की भाषा-शैली का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली हिंदी है, जिसमें तत्सम शब्दों की प्रधानता है। इनकी शैली वर्णन प्रधान तथा भावपूर्ण है। ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के विरोधियों को तर्कयुक्त जवाब दिया है। लेखक ने अपने इस निबंध में तत्सम प्रधान भाषा का अधिक प्रयोग किया है।

प्रश्न 15.
पाठ में वर्णित किन नारी पात्रों के प्रति लेखक ने अपनी सहानुभूति प्रकट की है?
उत्तर :
लेखक ने पाठ में वर्णित शकुंतला तथा सीता की पीड़ा को अत्यंत सहज भाव से समझा है। लेखक शुरू से ही अन्याय एवं अत्याचार का विरोधी रहा है, इसलिए उसने संघर्षशील स्त्रियों का पुरजोर समर्थन किया है। पुरातन पंथियों की बातों को दरकिनार करते हुए स्त्री-शिक्षा अनिवार्य हो-लेखक ने इस बात पर बल दिया है। उसके अनुसार शकुंतला तथा सीता दोनों पर उनके पतियों द्वारा अत्याचार किया गया, इसलिए वे सहानुभूति की हकदार हैं। अतः उनके प्रति सहानुभूति प्रकट होना स्वाभाविक है।

प्रश्न 16.
लेखक के मतानुसार परम्पराएँ क्या होती हैं?
अथवा
परम्पराएँ विकास के मार्ग में अवरोधक हों तो उन्हें तोड़ना ही चाहिए। ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
लेखक के मतानुसार परम्पराएँ मानव द्वारा बनाई गई वे बेड़ियाँ हैं, जिनमें वह अपनी सुविधानुसार लोगों को जकड़ने का प्रयास करता है। प्राचीन समय में परम्परा का हवाला देकर नारी को चारदीवारी में कैद करके रखा जाता था। उसकी आजादी को परम्परा की जंजीरों से जकड़ा जाता था। परम्परा के नाम पर उस पर सैकड़ों आदेश तथा नियम लाद दिए जाते थे। आज भी समाज में पुरुष प्रधानता है, जिसके कारण आज भी परम्परा के नाम पर नारी पर निर्दयता तथा अत्याचार जारी हैं। जब भी परंपराएँ विकास के मार्ग में अवरोधक बन जाए तो उन्हें अवश्य तोड़ देना चाहिए।

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प्रश्न 17.
लेखक का स्त्री-शिक्षा के संबंध में क्या विचार है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार स्त्री-शिक्षा को अनिवार्य कर देना चाहिए क्योंकि एक शिक्षित नारी एक अच्छे समाज का निर्माण करती है; समाज की नींव को सुदृढ़ करती है। वह अपनी शिक्षा के बल पर देश, समाज एवं राज्य को एक अच्छा नागरिक एवं समाज सुधारक दे सकती है। माँ ही अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देकर उसके जीवन को बेहतर बना सकती है। इसलिए नारी का शिक्षित होना आवश्यक है।

प्रश्न 18.
‘प्राकृत केवल अपढ़ों की नहीं अपितु सुशिक्षितों की भी भाषा थी’-महावीर प्रसाद द्विवेदी ने यह क्यों कहा?
उत्तर :
पढ़े-लिखे-सभ्य और स्वयं को सुसंस्कृत विचारों के समझने वाले लोग स्त्रियों की शिक्षा को समाज का अहित मानते हैं। उन लोगों ने अपने पास से कुछ कुतर्क दिए जिन्हें द्विवेदी जी ने अपने सशक्त विचारों से काट दिया। द्विवेदी जी के अनुसार प्राचीन भारत में स्त्रियों के अनपढ़ होने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, परंतु उनके पढ़े-लिखे होने के कई प्रमाण मिलते हैं। उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत थी, तो नाटकों में भी स्त्रियों व अन्य पात्रों से प्राकृत तथा संस्कृत बुलवाई जाती थी। इसका यह अर्थ नहीं है कि उस समय स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं।

हमारा प्राचीन साहित्य प्राकृत भाषा में है। उसे लिखने वाले अवश्य अनपढ़ होने चाहिए। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अधिकतर ग्रंथ प्राकृत भाषा में है, जो हमें उस समय के समाज से परिचित करवाते हैं। बुद्ध भगवान के सभी उपदेश प्राकृत भाषा में है। बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक प्राकृत भाषा में है। जिस तरह आज हम बांग्ला, हिंदी, उड़िया आदि भाषाओं का प्रयोग बोलने तथा पढ़ने-लिखने में करते हैं, उसी तरह उस समय के लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 19.
‘स्त्रियाँ शैक्षिक दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं रही है’ – इसके लिए महावीर प्रसाद द्विवेदी ने क्या उदाहरण दिए हैं ? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
यदि प्राकृत भाषा का प्रयोग करने से कोई अनपढ़ कहलाए तो आज के समय में सब पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ होते। तो स्त्रियों के लिए कौन सी भाषा उचित हो सकती है। यह बात स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वाले स्वयं सोच सकते हैं। ऋषि आत्रि की पत्नी, गार्गी मंडन मिश्र की पत्नी ने अपने समय के बड़े प्रकांड आचार्य को शास्त्रार्थ में मात दी थी तो क्या वे पढ़ी-लिखी नहीं थी?

लेखक के अनुसार पुराने समय में उड़ने वाले जहाजों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है परंतु किसी भी शास्त्र में उनके निर्माण की विधि नहीं मिलती इससे क्या स्त्रीशिक्षा विरोधी उस समय जहाज़ न होने से इन्कार कर सकते हैं। यदि शास्त्रों में स्त्री-शिक्षा का अलग से प्रबंध का कोई वर्णन नहीं मिलता तो हम यह नहीं मान सकते हैं कि उस समय स्त्री-शिक्षा नहीं थी। उस समय स्त्रियों को पुरुषों के समान सभी अधिकार प्राप्त थे। इस प्रकार द्विवेदी जी अपने विचारों से स्त्री-शिक्षा विरोधियों का उत्तर देते हैं।

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प्रश्न 20.
‘महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी खुली सोच और दूरदर्शिता का परिचायक है’, कैसे?
उत्तर :
महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है। द्विवेदी जी के अनुसार प्राचीन समय की अपेक्षा आधुनिक समय में स्त्री-शिक्षा का अधिक महत्व है। द्विवेदी जी का समय समाज में नई चेतना जागृत करने का था। उस समय के समाज में स्त्रियों को पढ़ाना अपराध समझा जाता था। पढ़ी-लिखी स्त्रियों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। दकियानूसी विचारों वाले लोगों ने स्त्री-शिक्षा के विरोध में व्यर्थ की दलीलें बना रखी थीं।

द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के महत्व को समझा और उसका प्रचार-प्रसार करने के लिए लेखों का सहारा लिया। उनका मानना था कि शिक्षा ही देश का उचित विकास कर सकती है। स्त्रियों के उत्थान से देश का उत्थान निश्चित है। शिक्षित नारी स्वयं का भला तो करती है साथ में अपने परिवार, समाज और देश का भी भला करती है। नारी की क्षमता और प्रतिभा के उचित उपयोग के लिए उसे शिक्षित करना आवश्यक है। द्विवेदी जी की स्त्री-शिक्षा के प्रति यह सोच आज के समय में वरदान सिद्ध हो रही है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बड़े शोक की बात है, आजकल भी ऐसे लोग-विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते
हैं। और, लोग भी ऐसे-वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग-ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलिजों में भी शिक्षा पाई है, जो धर्म-शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्व समझाना है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. लेखक के अनुसार शोक की बात क्या है?
3. ‘गृह-सुख के नाश’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
4. लेखक ने ‘ऐसे-वैसे’ किन लोगों को कहा है?
5. लेखक ने किन-किन के पेशों की ओर संकेत किया है और क्यों?
उत्तर :
1. पाठ-‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’, लेखक-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

2. लेखक के अनुसार शोक की बात यह है कि आधुनिक युग में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो स्वयं तो पढ़े-लिखे हैं परंतु स्त्रियों कोपढ़ाना-लिखाना नहीं चाहते। ऐसे लोगों का विचार है कि स्त्रियाँ पढ़-लिखकर बिगड़ जाती हैं और परिवार के सुख का नाश कर देती हैं।

3. ‘गृह-सुख के नाश’ से लेखक का आशय है-‘घर के काम-काज में रुचि न लेना, परिवार की देखभाल न करना, किसी का आदर-सम्मान न करना, सबको अपने से हीन समझना, हर बात में अपनी टाँग अड़ाना तथा किसी की बात न सुनना’। इससे सारे घर की शांति भंग हो जाती है तथा गृह-सुख का नाश हो जाता है।

4. लेखक ने ‘ऐसे-वैसे’ उन लोगों को कहा है, जो स्वयं सुशिक्षित हैं; बड़े-बड़े स्कूलों-कॉलेजों में पढ़े हैं, परंतु स्त्रियों को पढ़ाने-लिखाने के विरुद्ध हैं। स्वयं पढ़ने-लिखने का लाभ उठाकर भी स्त्रियों को अनपढ़ ही रहने देना चाहते हैं।

5. इन पंक्तियों में लेखक ने अध्यापकों, उपदेशकों, समाज सुधारकों, धर्माचार्यों आदि के पेशों की ओर संकेत किया है। अध्यापक अशिक्षितों को शिक्षित करता है; समाज-सेवक समाज को सुमार्ग पर चलने का उपदेश देता है तथा धर्माचार्य धर्म का मर्म समझाता है। ये सब इतने सुयोग्य होते हुए भी स्त्री-शिक्षा के विरुद्ध हैं। इसलिए लेखक इन पर व्यंग्य करते हुए पूछता है कि इतने योग्य होते हुए भी वे स्त्री-शिक्षा का विरोध क्यों कर रहे हैं?

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2. इसका क्या सबूत है कि उस ज़माने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थी? सबूत तो प्राकृत के चलन के ही मिलते हैं। प्राकृत यदि उस समय की प्रचलित भाषा न होती तो बौद्धों तथा जैनों के हजारों ग्रंथ उसमें क्या लिखे जाते, और भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत ही में क्यों धर्मोपदेश देते? बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ रचना प्राकृत में किए जाने का एक मात्र कारण यही है कि उस ज़माने में प्राकृत ही सर्वसाधारण की भाषा थी। अतएव प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिह्न नहीं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखक किस ज़माने की बात कर रहा है और क्यों?
2. बौद्धों के ग्रंथ का क्या नाम है ? इस ग्रंथ की रचना किस भाषा में हुई है?
3. बौद्धों के ग्रंथ की रचना जिस समय में की गई थी, उस समय सर्वसाधारण की भाषा कौन-सी थी?
4. लोकभाषा में रचना करने का क्या कारण होता है?
उत्तर :
1. लेखक भवभूति और कालिदास के ज़माने की बात कर रहा है, क्योंकि उस ज़माने में नाटक संस्कृत में लिखे जाते थे। परंतु इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि उस जमाने में शिक्षित-वर्ग केवल संस्कृत ही बोलता था। इसलिए इन नाटकों में यदि स्त्री-वर्ग प्राकृत बोलता है, तो उन पर अनपढ़ होने का आक्षेप नहीं लगाया जा सकता।

2. बौद्धों के ग्रंथ का नाम त्रिपिटक है। इस ग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा में हुई थी।

3. बौद्धों के ग्रंथ त्रिपिटक की रचना प्राकृत भाषा में की गई थी, क्योंकि उस समय सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा प्राकृत थी। अधिक से-अधिक लोगों तक अपने ग्रंथ का प्रचार-प्रसार करने के लिए इसे प्राकृत भाषा में लिखा गया था।

4. लोकभाषा अथवा जनसाधारण द्वारा दैनिक व्यवहार में लाई जाने वाली भाषा में रचना करने का सर्वाधिक लाभ यह होता है कि वह रचना जनसाधारण की समझ में आसानी से आ जाती है और लोकप्रिय बन जाती है। इससे रचना और रचनाकार को लोकप्रियता एवं सम्मान मिलता है।

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3. इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी! यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं। यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने का ही कुफल है। समझे। स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का छूट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने किसे बहुत भयंकर बताया है और क्यों?
2. ‘कालकूट’ और ‘पीयूष का बूट’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
3. क्या स्त्रियों को अनपढ़ रखकर देश का गौरव बढ़ाया जा सकता है? स्पष्ट कीजिए।
4. पुराने लोग स्त्रियों को अनपढ़ क्यों रखना चाहते थे?
उत्तर :
1. लेखक ने इस बात को व्यंग्यात्मक रूप से भयंकर बताया है कि प्राचीनकाल में पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े विद्वानों को भी पराजित कर देती थीं। उनका ऐसा करना आज भी लोगों को स्त्रियों द्वारा किया गया अपराध लगता है।

2. ‘कालकूट’ का शाब्दिक अर्थ ‘भयंकर विष’ होता है। यहाँ इस शब्द का प्रयोग स्त्री शिक्षा के संदर्भ में किया गया है। ‘पीयुष का घुट’ का अर्थ अमृत पीने से है। इस शब्द का प्रयोग पुरुष शिक्षा के संदर्भ में किया गया है। अभिप्राय यह है कि कई विद्वान शिक्षा को नारी के लिए विष समान तथा पुरुषों के लिए अमृत समान मानते हैं।

3. स्त्रियों को अनपढ़ रखकर देश का गौरव नहीं बढ़ाया जा सकता। स्त्री परिवार का आधार होती है। यदि वह अनपढ़ होगी, तो परिवार का उचित ढंग से पालन-पोषण नहीं कर सकती। पढ़ी-लिखी स्त्री अपने घर-परिवार को सुचारु रूप से चला सकती है तथा अपनी संतान को अच्छा नागरिक बना सकती है। इसलिए स्त्रियों का पढ़ा-लिखा होना अत्यंत आवश्यक है।

4. पुराने ज़माने में लोग स्त्रियों को इसलिए पढ़ाते-लिखाते नहीं थे, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों के पढ़े-लिखे होने पर अपना अस्तित्व ही न खो दे। पुरुष अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए ही स्त्रियों को पढ़ने-लिखने नहीं देते थे। वे उसे अपनी दासी बनाकर रखना चाहते थे, सहधर्मचारिणी नहीं।

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4. स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना, घूस लेना-ये सब यदि पढ़ने-लिखने ही का परिणाम हो तो सारे कॉलिज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जानी चाहिए। परंतु विक्षिप्तों, बातव्यथितों और ग्रहग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने स्त्रियों के द्वारा किए गए किस अनर्थ की चर्चा की है? अपने विचार में क्या यह अनर्थ है?
2. पुरुष पढ़-लिखकर भी क्या कुकर्म करता है? क्या यह उसकी पढ़ाई का दोष है?
3. लेखक ने शिक्षित स्त्रियों को अनर्थ का कारण मानने वालों को क्या और क्यों कहा है?
4. व्यक्ति को शिक्षा किस मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है?
उत्तर :
1. लेखक ने पढ़ी-लिखी स्त्रियों द्वारा अपनी विद्वता से बड़े-बड़े विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित करने तथा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करने की चर्चा की है। इसे पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों द्वारा किया गया अनर्थ मानता है और उन्हें अनपढ़ बनाए रखना चाहता है। वास्तव में यह अनर्थ नहीं है। यह पुरुष समाज द्वारा स्त्रियों पर बलात थोपा जाने वाला अनर्थ है।

2. पुरुष पढ़-लिखकर भी चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि कुकर्म करता है, जो उसकी पढ़ाई-लिखाई का दोष नहीं होता। वह ये सब बुरे कार्य अपनी संगति अथवा संस्कारों के कारण करता है। इसलिए पढ़ाई-लिखाई को कुकर्मों को प्रेरित करने वाली नहीं मानना चाहिए।

3. लेखक ने शिक्षित स्त्रियों को अनर्थ का कारण मानने वाले पुरुषों को पागल, पूर्वाग्रहों से ग्रस्त, अंधविश्वासी आदि कहा है। ये लोग अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए स्त्रियों को अनपढ़ ही बनाए रखना चाहते हैं। ये लोग नहीं चाहते कि स्त्रियाँ अपना भला-बुरा सोचें तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें।

4. व्यक्ति को शिक्षा सदा सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। वह मनुष्य को कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर चलाती है। शिक्षा से ही व्यक्ति की सोचने-समझने तथा निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है। शिक्षा उसे अच्छा नागरिक बनाती है। इसलिए शिक्षा को अनर्थ का कारण नहीं मानना चाहिए।

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5. पढने-लिखने में स्वयं कोई बात ऐसी नहीं जिससे अनर्थ हो सके। अनर्थ का बीज उसमें हरगिज़ नहीं। अनर्थ पुरुषों से भी होते हैं। अनपढ़ों और पढ़े-लिखों, दोनों से। अनर्थ, दुराचार और पापाचार के कारण और ही होते हैं और वे व्यक्ति-विशेष का चाल-चलन देखकर जाने भी जा सकते हैं। अतएव स्त्रियों को अवश्य पढ़ाना चाहिए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पढ़ना-लिखना स्वयं में कैसा है?
2. अनर्थ का बीज किस में होता है?
3. व्यक्ति-विशेष का चाल-चलन देखकर क्या जाना जा सकता है?
4. लेखक का स्त्री-शिक्षा के संबंध में क्या विचार है?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार पढ़ने-लिखने में स्वयं ऐसी कोई बात नहीं है कि जिस से किसी प्रकार का अनर्थ हो सके। पढ़ना-लिखना स्वयं में मनुष्य को शिक्षित बना कर सद्मार्ग पर चलना सिखाता है। पढ़-लिख कर मनुष्य अपना जीवन सफल बना सकता है। वह दूसरों का भी मार्ग दर्शक बन सकता है।

2. अनर्थ का बीज व्यक्ति के अपने चरित्र में होता है। उस का स्वभाव, संगति और संस्कार उसे अनर्थ करने के लिए प्रेरित करते हैं। बुरी संगत, बुरे संस्कार और उदंड स्वभाव उसे सदा अनर्थकारी कार्यों की ओर ही प्रेरित करेगा। इसके लिए पढ़ा-लिखा अथवा अनपढ़ होना आवश्यक नहीं है। किसी भी व्यक्ति में अनर्थ के बीज पनप सकते हैं।

3. व्यक्ति-विशेष का चाल-चलन, स्वभाव, रहन-सहन आदि देख कर ही उसके संबंध में अनुमान लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति कैसा होगा? यदि व्यक्ति सरल, सहज, निर्भीक, उत्साही, परिश्रमी, सफ़ाई पसंद, सत्यनिष्ठ है तो हम कहते हैं कि वह व्यक्ति बहुत अच्छा है। इसके विपरीत चोरी-डकैती करने वाला, झूठा, आलसी, गंदगी पसंद व्यक्ति हमें बुरा अथवा अनर्थकारी ही लगेगा।

4. लेखक का स्त्री-शिक्षा के संबंध में यह विचार है कि स्त्रियों को अवश्य ही पढ़ाना चाहिए। पढ़ी-लिखी स्त्री स्वयं को, अपने परिवार, समाज और देश को अच्छे नागरिक दे सकती है। वह अपनी संतान में अच्छे संस्कार पैदा कर सकती है। उस की शिक्षा-पद्धति उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। वह पढ़-लिखकर गृह-सुख का नाश करने वाली न होकर गृह को स्वर्ग बनाने वाली बन सकती है क्योंकि स्त्री को गृहलक्ष्मी भी कहते हैं।

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य में निबंधकार एवं आलोचक के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म सन् 1864 ई० में उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के दौलतपुर नामक ग्राम में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। संस्कृत के अतिरिक्त इन्होंने अपने गाँव की पाठशाला में उर्दू का अध्ययन भी किया। अंग्रेजी के अध्ययन के लिए इन्हें रायबरेली, उन्नाव और फतेहपुर भेजा गया। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली।

शीघ्र ही द्विवेदी जी ने अनुभव किया कि विदेशी सरकार की नौकरी से स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है। अतः इन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। द्विवेदी जी की अध्ययन के प्रति अत्यधिक रुचि थी। इन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अध्ययन और लेखन का कार्य जारी रखा। अपने अध्यवसाय से वे उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी, बाँग्ला, गुजराती आदि भाषाओं के विद्वान बन गए। द्विवेदी जी ने अपने युग के लेखकों एवं कवियों का मार्गदर्शन किया।

इसलिए इनका युग द्विवेदी युग के नाम से प्रसिद्ध है। ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन कार्य सँभालना द्विवेदी जी के जीवन की प्रमुख घटना है। इस पत्रिका के माध्यम से इन्होंने हिंदी साहित्य के विकास एवं प्रचार में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया। द्विवेदी जी ने अनेक विषयों पर निबंधों की रचना की। सन् 1938 ई० में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – द्विवेदी जी ने मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त संस्कृत, बाँग्ला एवं अंग्रेजी की पुस्तकों का अनुवाद भी किया है। द्विवेदी जी ने साहित्यिक तथा साहित्येत्तर दोनों प्रकार के विषयों पर निबंध लिखे हैं। रसज्ञ रंजन, साहित्य सीकर, अद्भुत अलाप, साहित्य-संदर्भ इनके निबंध-संग्रह हैं। ‘संपत्तिशास्त्र’ इनकी अर्थशास्त्र से संबंधित, ‘महिला मोद’ महिलाओं के लिए उपयोगी तथा ‘आध्यात्मिकी’ दर्शन शास्त्र से संबंधित रचना है। इनकी काव्य रचना ‘द्विवेदी काव्यमाला’ है। इनका संपूर्ण साहित्य ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली’ के पंद्रह खंडों में उपलब्ध है।

भाषा-शैली-द्विवेदी जी की भाषा हिंदी का शुद्ध खड़ी बोली है, जिसमें तत्सम शब्दों की प्रधानता रहती है। इनकी शैली वर्णन प्रधान, भावपूर्ण तथा व्याख्यात्मक होती है। ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के विरोधियों को मुँह तोड़ जवाब दिया है। लेखक ने इस पाठ में तत्सम प्रधान भाषा का अधिक प्रयोग किया है। जैसे-‘कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्व समझाना।’

लेखक ने अन्यत्र भी ऐसे ही शब्दों का प्रयोग किया है; जैसे-कटु, सेतुबंध, द्वीपांतरों, प्रगल्भ, पीयूष, सहधर्मचारिणी, उद्धत, अनर्थकर आदि कहीं-कहीं देशज, विदेशी व तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है; जैसेहरगिज़, गंवार, अपढ़, खुद, बम, लंबा, चौड़ा, सबूत, तिस आदि। लेखक ने विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्त्री-शिक्षा और स्त्री की विद्वता का समर्थन किया है। जैसे – ‘अत्रि की पत्नी, पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटों पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे।’ लेखक ने यत्र-तत्र सटीक मुहावरों और सूक्तियों का भी प्रयोग किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

पाठ का सार :

‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ निबंध के लेखक ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ हैं। लेखक का यह निबंध उन लोगों की चेतना जागृत। करने के लिए था, जो स्त्री-शिक्षा को व्यर्थ मानते थे। उन लोगों के अनुसार शिक्षित स्त्री समाज के विघटन का कारण बनती है। इस निबंध में परंपरा का जो हिस्सा सड़-गल चुका है, उसे बेकार मानकर छोड़ देने की बात कही गई है और यही इस निबंध की विशेषता है। लेखक के समय कुछ ऐसे पढ़े-लिखे लोग भी थे, जो स्त्री-शिक्षा को घर और समाज-दोनों के लिए हानिकारक मानते थे। इन लोगों का काम समाज में बुराइयों और अनीतियों को समाप्त करना था।

स्त्री-शिक्षा के विरोध में ये लोग अपने कुछ तर्क प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुसार प्राचीन भारत में संस्कृत कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्रियाँ गँवार भाषा का प्रयोग करती थीं, क्योंकि उस समय भी स्त्रियों को पढ़ाने का चलन नहीं था। कम पढ़ी-लिखी शकुंतला ने दुष्यंत से ऐसे कटु वचन बोले कि अपना सत्यानाश कर लिया। यह उसके पढ़े-लिखे होने का फल था। उस समय स्त्रियों को पढ़ाना समय बर्बाद करना समझा जाता था।

लेखक ने वह कहता है कि व्यर्थ की बातों का उत्तर दिया है। इन नाटकों में, स्त्रियों का संस्कृत न बोलना उनका अनपढ़ होना सिद्ध नहीं करता। वाल्मीकि की रामायण में जब बंदर संस्कृत बोल सकते हैं, तो उस समय स्त्रियाँ संस्कृत क्यों नहीं बोल सकती थीं? ऋषि-पत्नियों की भाषा तो गँवारों जैसी नहीं हो सकती। कालिदास और भवभूति के समय तो आम लोग भी संस्कृत भाषा बोलते थे। इस बात का कोई स्पष्ट सबूत नहीं हैं कि उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत नहीं थी।

प्राकृत भाषा में बात करना अनपढ़ होना नहीं था। प्राकृत उस समय की प्रचलित भाषा थी, इसका प्रमाण बौद्धों और जैनों के हज़ारों ग्रंथों से मिलता है। भगवान बुद्ध के सभी उपदेश प्राकृत भाषा में मिलते हैं। बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा ग्रंथ त्रिपिटक प्राकृत भाषा में है। इसलिए प्राकृत बोलना और लिखना अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत भाषा में हैं।

यदि इन्हें लिखने वाले अनपढ़ थे, तो आज के सभी अख़बार संपादक अनपढ़ हैं। वे अपनी-अपनी प्रचलित भाषा में अखबार छापते हैं। जिस तरह हम बाँग्ला, मराठी, हिंदी आदि बोल, पढ़ और लिखकर स्वयं को विद्वान समझते हैं उसी तरह उस समय पाली, मगधी, महाराष्ट्री, शोरसैनी आदि भाषाएँ पढ़कर वे लोग सभ्य और शिक्षित हो सकते थे। जिस भाषा का चलन होता है, वही बोली जाती है और उसी भाषा में साहित्य मिलता है। उस समय के आचार्यों के नाट्य संबंधी नियमों के आधार पर पढ़े-लिखे होने का ज्ञान नहीं हो सकता।

जब ये नियम बने थे, उस समय संस्कृत सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा नहीं थी। इसलिए नाटकों में कुछ लोगों से संस्कृत तथा स्त्रियों और अन्यों से प्राकृत भाषा का प्रयोग करवाया गया। उस समय स्त्रियों के लिए विद्यालय थे या नहीं, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है; परंतु इसके आधार पर हम स्त्रियों को अनपढ़ और असभ्य नहीं मान सकते। कहा जाता है कि उस समय विमान होते थे, जिससे एक-दूसरे द्वीपांतारों से द्वीपांतरों तक जाया जा सकता था।

परंतु हमारे शास्त्रों में इसके बनाने की विधि कहीं नहीं दी गई है। इससे उस समय जहाज़ होने की बात से इंकार तो नहीं करते अपितु गर्व ही करते हैं। फिर यह कहाँ का न्याय है कि उस समय की स्त्रियों को शास्त्रों के आधार पर मूर्ख, असभ्य और अनपढ़ बता दिया जाए। हिंदू लोग वेदों की रचना को ईश्वरकृत रचना मानते हैं। ईश्वर ने भी मंत्रों की रचना स्त्रियों से करवाई है। प्राचीन भारत में ऐसी कई स्त्रियाँ हुई हैं, जिन्होंने बड़ेबड़े पुरुषों से शास्त्रार्थ किया और उनके हाथों सम्मानित हुई हैं, बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक में सैकड़ों स्त्रियों की पद्य रचना लिखी हुई है।

उन स्त्रियों को सभी प्रकार के काम करने की इजाजत थी, तो उन्हें पढ़ने-लिखने से क्यों रोका जाता? स्त्री-शिक्षा के विरोधियों की ऐसी बातें समझ में नहीं आतीं। अत्रि की पत्नी, मंडन मिश्र की पत्नी, गार्गी आदि जैसी विदुषी नारियों ने अपने पांडित्य से उस समय के बड़े-बड़े आचार्य को भी मात दे दी थी। तो क्या उन स्त्रियों को कुछ बुरा परिणाम भुगतना पड़ा? ये सब उन लोगों की गढ़ी हुई कहानियाँ हैं, जो स्त्रियों को अपने से आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते।

जिनका अहंकार स्त्री को दबाकर रखने से संतुष्ट होता है, वे स्त्री को अपनी बराबरी का अधिकार कैसे दे सकते हैं? यदि उनकी बात मान भी ली जाए, तो पुराने समय में स्त्रियों को पढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती थी; परंतु आज बदलते समय के साथ स्त्री-शिक्षा अनिवार्य है। जब हम लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए कई पुराने रीति-रिवाजों को तोड़ दिया है, तो इस पद्धति को हम क्यों नहीं तोड़ सकते? यदि उन लोगों को पुराने समय में स्त्रियों के पढ़े-लिखे होने का प्रमाण चाहिए तो श्रीमद्भागवत, दशमस्कंध में रुक्मिणी द्वारा कृष्ण को लिखा पत्र बड़ी विद्वता भरा है।

क्या यह उसके पढ़े-लिखे होने का प्रमाण नहीं है? वे लोग भागवत की बात से इंकार नहीं कर सकते। स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार यदि स्त्रियों को पढ़ाने से कुछ बुरा घटित होता है, तो पुरुषों के पढ़ने से तो उससे भी बुरा घटित होता है। समाज में होने वाले सभी बुरे कार्य पढ़े-लिखे पुरुषों की देन है, तो क्या , पाठशालाएँ, कॉलेज आदि बंद कर देने चाहिए? शकुंतला का दुष्यंत का अपमान करना स्वाभाविक बात थी। एक पुरुष स्त्री से शादी करके उसे भूल जाए और उसका त्याग कर दे, तो वह स्त्री चुप नहीं बैठेगी।

वह अपने विरुद्ध किए अन्याय का विरोध करेगी; यह कोई गलत बात नहीं थी। सीता जी तो शकुंतला से अधिक पवित्र मानी जाती हैं। उन्होंने भी अपने परित्याग के समय राम जी पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने सबके सामने अग्नि में कूद कर अपनी पवित्रता का प्रमाण दिया था, फिर लोगों की बातें सुनकर उसे क्यों छोड़ दिया गया। यह राम जी के कुल पर कलंक लगाने वाली बात है। सीता जी तो शास्त्रों का ज्ञान रखने वाली थी, फिर उन्होंने अपने विरुद्ध हुए अन्याय का विरोध अनपढ़ों की भाँति क्यों किया? यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है, जब मनुष्य अपने विरुद्ध हुए अन्याय के विरोध में आवाज़ उठाता है।

पढ़ने-लिखने से समाज में कोई भी अनर्थ नहीं होता। अनर्थ करने वाले अनपढ़ और पढ़े-लिखे-दोनों तरह के हो सकते हैं। अनर्थ का कारण दुराचार और पापाचार है। स्त्रियाँ अच्छे-बुरे का ज्ञान कर सकें, उसके लिए स्त्रियों को पढ़ाना आवश्यक है। जो लोग स्त्रियों को पढ़ने-लिखने से रोकते हैं, उन्हें दंड दिया जाना चाहिए। स्त्रियों को अनपढ़ रखना समाज की उन्नति में रुकावट डालता है। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ बहुत विस्तृत है। उसमें सीखने योग्य सभी कार्य समाहित हैं, तो पढ़ना-लिखना भी उसी के अंतर्गत आता है।

यदि वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के कारण लड़कियों को पढ़ने-लिखने से रोका जाए, तो यह ठीक नहीं है। इससे तो अच्छा है कि शिक्षा-प्रणाली में सुधार लाया जाए। लड़कों की भी शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं है, फिर स्कूल-कॉलेज क्यों बंद नहीं किए। दोहरे मापदंडों से समाज का हित नहीं हो सकता। यदि विचार करना है, तो स्त्री-शिक्षा के नियमों पर विचार करना चाहिए। उन्हें कहाँ पढ़ाना चाहिए, कितनी शिक्षा देनी चाहिए, किससे शिक्षा दिलानी चाहिए आदि। परंतु यह कहना कि स्त्री-शिक्षा में दोष है, यह पुरुषों के अहंकार को सिद्ध करता है। अहंकार को बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा लेना उचित नहीं है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

कठिन शब्दों के अर्थ :

उपेक्षा – ध्यान न देना। प्राकृत – एक प्राचीन भाषा। वेदांतवादिनी – वेदांत दर्शन पर बोलने वाली। दर्शक ग्रंथ – जानकारी देने वाली या दिखाने वाली पुस्तकें। तत्कालीन – उस समय का। तर्कशास्त्रज्ञता – तर्कशास्त्र को जानने वाला। न्यायशीलता – न्याय के अनुसार आचरण करना। कुतर्क – अनुचित तर्क। खंडन – दूसरे के मत का युक्तिपूर्वक निराकरण। प्रगल्भ – प्रतिभावान। नामोल्लेख – नाम का उल्लेख करना। आदृत – आदर या सम्मान पाया, सम्मानित। विज्ञ – समझदार, विद्वान। ब्रह्मवादी – वेद पढ़ने-पढ़ाने वाला। दुराचार – निंदनीय आचरण। सहधर्मचारिणी – पत्नी। कालकूट – ज़हर। कुकल – बुरा परिणाम। पीयूष – अमृत।

दृष्टांत – उदाहरण, मिसाल। अल्पज्ञ – थोड़ा जानने वाला। प्राक्कालीन – पुरानी। व्यभिचार – पाप। विक्षिप्त – पागल। व्यापक – विस्तृत। बात व्यथित – बातों से दुखी होने वाले। ग्रह ग्रस्त – पाप ग्रह से प्रभावित। किंचित् – थोड़ा। दुराचार – बुरा आचरण। दुर्वाक्य – निंदा करने वाला वाक्य या बात। परित्यक्त – पूरे तौर पर छोड़ा हुआ। अभिमान – अहंकार, घमंड। मिथ्यावाद – झूठी बात। कलंकारोपण – दोष मढ़ना, दोषी ठहराना।

मिथ्या – झूठ। निर्भर्त्सना – तिरस्कार, निंदा। नीतिज्ञ – नीति जानने वाला। हरगिज़ – किसी हालत में। विद्यमान – उपस्थित। शोक – दुख। कुमार्गगामी – बुरी राह पर चलने वाले। सुमार्गगामी – अच्छी राह पर चलने वाला। कटु – कड़वा। अधार्मिक – धर्म से संबंध न रखने वाला। धर्म तत्व – धर्म का सार। दलीलें – तर्क । सुशिक्षित – पढ़े-लिखे। अनर्थ – बुरा, अर्थहीन । अपढ़ों – अनपढ़ों। कुलीन – सभ्य। मुमानियत – रोक, मनाही । बट्टा लगाना – कलंक लगाना। अभिज्ञता – जानकारी, ज्ञान। अपकार – अहित।

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability Important Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Important Questions Chapter 15 Probability

Question 1.
A card is drawn from a well-shuffled deck of 52 cards. Find the probability of getting
(i) A king.
(ii) A heart.
(iii) A seven of heart.
(iv) A jack, queen or a king.
(v) A two of heart or a two of diamond.
(vi) A face card.
(vii) A black card.
(viii) Neither a heart nor a king,
(ix) Neither an ace nor a king.
Solution :
Total number of outcomes = 52
(i) A king
No. of kings = 4
P(A) = \(\frac{4}{52}=\frac{1}{13}\)

(ii) A heart, P(A) = \(\frac{13}{52}=\frac{1}{4}\)

(iii) A seven of heart P(A) = \(\frac{1}{52}\)

(iv) A jack, queen or a king,
P(A) = \(\frac{12}{52}=\frac{3}{13}\)

(v) A two of heat or a two of diamond,
P(A) = \(\frac{2}{52}=\frac{1}{26}\)

(vi) A face card, P(A) = \(\frac{12}{52}=\frac{3}{13}\)

(vii) A black card, P(A) = \(\frac{26}{52}=\frac{1}{2}\)

(viii) Neither a heart nor a king (13 heart + 4 king, but 1 common)
P(A) = 1 – \(\frac{16}{52}=\frac{52-16}{52}=\frac{36}{52}=\frac{9}{13}\)

(ix) Neither an ace nor a king,
P(A) = \(\frac{44}{52}=\frac{11}{13}\)
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability - 1

Question 2.
Two coins are tossed simultaneously. Find the probability of getting
(i) two heads
(ii) at least one head
(iii) no head
Solution :
On tossing two coins simultaneously, all the possible outcomes are HH, HT, TH, TT.
(i) The probability of getting two heads
= P (HH)
= No. of outcomes of two heads / Total no. of possible outcomes
= \(\frac {1}{4}\)

(ii) The probability of getting at least one head
= No. of favourable outcomes / Total no. of outcomes
= \(\frac {3}{4}\)

(iii) The probability of getting no head
P(TT) = \(\frac {1}{4}\)

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability

Question 3.
A bag contains 5 red balls, 8 white balls, 4 green balls and 7 black balls. If one ball is drawn at random, find the probability that it is
(i) Black
(ii) Not red
(iii) Green
Solution :
Number of red balls in the bag = 5.
Number of white balls in the bag = 8.
Number of green balls in the bag = 4.
Number of black balls in the bag = 7.
∴ Total number of balls in the bag = 5 + 8 + 4 + 7 = 24.
Drawing balls randomly are equally likely outcomes.
∴ Total number of possible outcomes = 24.
Now,
(i) There are 7 black balls, hence the number of such favourable outcomes = 7
∴ Probability of drawing a black ball
= No. of favourable outcomes / Total no. of possible outcomes
= \(\frac {7}{24}\)

(ii) There are 5 red balls, hence the number of such favourable outcomes = 5.
∴ Probability of drawing a red ball
= No. of favourable outcomes / Total no. of possible outcomes
= \(\frac {5}{24}\)
∴ Probability of drawing not a red ball = P(Not red ball) = 1 – \(\frac{5}{24}=\frac{19}{24}\)

(iii) There are 4 green balls.
∴ Number of such favourable outcomes = 4
Probability of drawing a green ball = No. of favourable outcomes / Total no. of possible outcomes
= \(\frac{4}{24}=\frac{1}{6}\)

Question 4.
A card is drawn from a well-shuffled deck of playing cards. Find the probability of drawing
(i) a face card
(ii) a red face card
Solution :
Random drawing of cards ensures equally likely outcomes
(i) Number of face cards (King, Queen and jack of each suits) = 4 x 3 = 12.
Total number of cards in deck = 52.
∴ Total number of possible outcomes = 52.
P (drawing a face card) = \(\frac{12}{52}=\frac{3}{13}\)

(ii) Number of red face cards = 2 × 3 = 6.
Number of favourable outcomes of drawing red face card = 6.
P(drawing of red face card) = \(\frac{6}{52}=\frac{3}{26}\)

Multiple Choice Questions

Question 1.
3 Coins are tossed simultaneously. The probability of getting at least 2 heads is
(a) \(\frac {3}{10}\)
(b) \(\frac {3}{4}\)
(c) \(\frac {3}{8}\)
(d) \(\frac {1}{2}\)
Solution :
(c) \(\frac {3}{8}\)

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability

Question 2.
Two cards are drawn successively with replacement from a pack of 52 cards. The probability of getting two aces is
(a) \(\frac {1}{169}\)
(b) \(\frac {1}{221}\)
(c) \(\frac {1}{265}\)
(d) \(\frac {1}{663}\)
Solution :
(b) \(\frac {1}{221}\)

Question 3.
In a single throw of two dice, the probability of getting a sum of more than 7 is
(a) \(\frac {7}{36}\)
(b) \(\frac {7}{12}\)
(c) \(\frac {5}{12}\)
(d) \(\frac {5}{36}\)
Solution :
(c) \(\frac {5}{12}\)

Question 4.
Two cards are drawn at random from a pack of 52 cards. The probability that both are the cards of spade is
(a) \(\frac {1}{26}\)
(b) \(\frac {1}{4}\)
(c) \(\frac {1}{17}\)
(d) None of these
Solution :
(c) \(\frac {1}{17}\)

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability

Question 5.
Two dice are thrown together. The probability that sum of the two numbers will be a multiple of 4 is
(a) \(\frac {1}{9}\)
(b) \(\frac {1}{3}\)
(c) \(\frac {1}{4}\)
(d) \(\frac {5}{9}\)
Solution :
(c) \(\frac {1}{4}\)

Question 6.
If the three coins are simultaneously tossed compute the probability of 2 heads coming up.
(a) \(\frac {3}{8}\)
(b) \(\frac {1}{4}\)
(c) \(\frac {5}{8}\)
(d) \(\frac {3}{4}\)
Solution :
(a) \(\frac {3}{8}\)

Question 7.
A coin is tossed successively three times. The probability of getting one head or two heads is:
(a) \(\frac {2}{3}\)
(b) \(\frac {3}{4}\)
(c) \(\frac {4}{9}\)
(d) \(\frac {1}{9}\)
Solution :
(b) \(\frac {3}{4}\)

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 15 Probability

Question 8.
One card is drawn from a pack of 52 cards. What is the probability that the drawn card is either red or king:
(a) \(\frac {15}{26}\)
(b) \(\frac {1}{2}\)
(c) \(\frac {7}{13}\)
(d) \(\frac {17}{32}\)
Solution :
(c) \(\frac {7}{13}\)

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

JAC Class 10 Hindi एक कहानी यह भी Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
लेखिका के व्यक्तित्व पर उसके पिताजी और अध्यापक शीला अग्रवाल का विशेष प्रभाव पड़ा। उसके पिताजी ने उन्हें घर में होने वाली राजनीतिक सभाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। वह उनके साथ बैठकर सबके विचार सुनती है। उसके पिता साहित्य प्रेमी थे, इसलिए वह उनके पास रखी किताबें पढ़ती थी। लेखिका के पिता विचारशील व्यक्ति थे; लेखिका पर अनेक विचारों का विशेष प्रभाव पड़ा।

लेखिका जब कॉलेज गई, तो वहाँ पर हिंदी की अध्यापिका शीला अग्रवाल ने उसका साहित्य से वास्तविक परिचय करवाया। घर की राजनीतिक सभाओं से निकालकर देश की असली स्थिति से उसका परिचय करवाया। अध्यापिका शीला अग्रवाल के विचारों ने उसमें नया जोश और उत्साह भर दिया था, जिसने लेखिका को अपने विचारों को दूसरों के सामने व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 2.
इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है ?
उत्तर :
लेखिका के पिता रसोई को ‘भटियारखाना’ कहते थे। उनके अनुसार रसोई वह भट्टी है, जिसमें औरतों की क्षमता और प्रतिभा झोंक दी जाती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

प्रश्न 3.
वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर :
लेखिका जिस कॉलेज में पढ़ती थी, पिताजी के नाम उस कॉलेज के प्रिंसिपल का पत्र आया था। उसमें पिता जी से पूछा था कि लेखिका पर अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की जाए? इसके लिए पिताजी को कॉलेज बुलाया गया था। उस पत्र को पढ़कर पिताजी आग लेखिका ने उनके नाम पर दाग लगा दिया है। वे लेखिका पर उबलते हुए कॉलेज पहँचे। उनके जाने के बाद लेखिका पड़ोस में जाकर बैठ गई, जिससे वह लौटने पर पिता के क्रोध से बच सके। परंतु जब वे कॉलेज से लौटे, तो बहुत प्रसन्न थे; चेहरा गर्व से चमक रहा था।

वे घर आकर बोले कि कॉलेज की लड़कियों पर उसका बहुत रौब है। पूरा कॉलेज तीन लड़कियों के इशारे पर खाली हो जाता है। प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना असंभव हो रहा है। पिताजी को उस पर गर्व है क्योंकि वह देश की पुकार के समय देश के साथ चल रही है, इसलिए उसे रोकना असंभव है। यह सब सुनकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ था, न ही अपने कानों पर; परंतु यह वास्तविकता थी।

प्रश्न 4.
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका के पिता दोहरे व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। वे आधुनिकता के समर्थक थे। वे औरतों को केवल रसोई तक सीमित नहीं देखना चाहते थे। उनके अनुसार औरतों को अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग घर के बाहर देश की स्थिति सुधारने के लिए करना चाहिए। इससे यश, प्रतिष्ठा और सम्मान सबकुछ मिलता है। लेकिन जहाँ वे आधुनिक विचारों के समर्थक थे, वहीं दकियानूसी विचारों के भी थे।

उन्हें अपनी इज्जत प्यारी थी। जहाँ वे औरतों को रसोई से बाहर देखना चाहते थे, वहीं उन्हें यह भी बर्दाश्त नहीं होता था कि वह लड़कों के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में कदम-से-कदम मिलाकर चलें। वे औरतों की स्वतंत्रता को घर की चारदीवारी से दूर नहीं देखना चाहते थे, परंतु लेखिका के लिए पिताजी की दी हुई आज़ादी के दायरे में चलना कठिन था। इसलिए उसकी अपने पिता से वैचारिक टकराहट थी।

प्रश्न 5.
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उनमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर :
सन 1946-47 वह समय भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का समय था। उस समय किसी के लिए भी घर में चप बैठना असंभव था: चारों ओर प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस, भाषणबाजी हो रही थी। हर युवा, बच्चा और बूढ़ा अपनी क्षमता के अनुसार देश की स्वाधीनता में अपना योगदान दे रहा था। लेखिका के पिता ने घर में होने वाली राजनीतिक सभाओं में उसे अपने साथ बैठाकर देश की स्थिति से अवगत करवाया था।

उसमें देश की स्थिति को समझने तथा जोश के साथ कार्य करने का उन्माद उसमें उनकी अध्यापिका शीला अग्रवाल ने अपने विचारों से भरा। अध्यापिका शीला अग्रवाल के उचित मार्गदर्शन से मन्नू जी ने अपनी योग्यता के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन में योगदान दिया। प्रभात-फेरियाँ निकालना, हड़तालें करवाना, कॉलेज में क्लासें बंद करवाना, छात्रों को इकट्ठा करके जुलूस के रूप में सड़कों पर निकलना, भाषणबाजी करना आदि कार्य उस समय मन्नू भंडारी ने किए। उस समय उनकी रगों में आज़ादी का लावा बह रहा था। उस लावे ने उसके अंदर के भय को समाप्त कर दिया था। इस तरह उस समय मन्नू भंडारी ने स्वाधीनता आंदोलन में बढ़ चढ़कर अपना योगदान दिया।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
लेखिका ने बना लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले, किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लडकियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
लेखिका ने अपने भाइयों के साथ बचपन में लड़कों वाले खेल खेले थे, परंतु लड़की होने के कारण उसका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। परंतु आज लड़कियों के लिए स्थिति बदल गई है। उन्हें लड़कों के समान अधिकार और आगे बढ़ने के अवसर प्रदान किए जाते हैं। आज उन्हें घर से बाहर अपनी क्षमता दिखाने का पूरा अवसर दिया जाता है। लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाया जाता है।

उन्हें अपनी और दूसरों की रक्षा के उपाय सिखाए जाते हैं। माता-पिता और समाज द्वारा लड़कियों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भरपूर सहयोग दिया जाता है। आधुनिक समय में लड़कियाँ हर क्षेत्र में लड़कों के बराबर हैं। अब आज का समाज भी जागरूक हो गया है। इसलिए अब लड़कियों और लड़कों के क्षेत्र में कोई भी अंतर नहीं किया जाता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

प्रश्न 7.
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। आस-पड़ोस मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करने में सहायक होता है, परंतु बड़े शहरों में रहने वाले लोग प्राय: ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रहते हैं। उन्हें आस-पड़ोस की महत्ता का पता नहीं होता। जिस तरह एक बच्चे का लालन-पालन और विकास अपने माता-पिता व दादा-दादी बिना अच्छी तरह से नहीं हो सकता है, उसी तरह उसके पास के लोग बच्चे को एक सुरक्षित समाज की नींव प्रदान करते हैं। उसे अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हैं। आस-पड़ोस जहाँ बच्चोंलोग उनके साथ अ पहायक हाता ह वहा हम जीना पसंद करते हैं, इसलिए वे एकाकीपन, मानसिक अशांति, असुरक्षा आदि का शिकार हो जाते हैं। इसलिए मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है।

प्रश्न 8.
लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर :
लेखिका ने ‘सुनीता’, ‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘त्यागपत्र’, ‘चित्रलेखा’ उपन्यासों के अतिरिक्त शरत, प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा के अनेक उपन्यास पढ़े थे। विद्यार्थी इन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय से प्राप्त करके पढ़ें।

प्रश्न 9.
आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर :
यहाँ एक दिन का अनुभव और डायरी का नमूना दिया जा रहा है। अन्य दिनों की डायरी विद्यार्थी स्वयं लिखें।
दिनांक …………….
आज कॉलेज में मेरा पहला दिन था। कॉलेज में होने वाली रैगिंग से घबराते हुए तथा अनजाने भय से काँपते हुए मैं कॉलेज पहुँची। कॉलेज के प्रवेश द्वार पर लड़के-लड़कियों की भीड़ से होकर अपनी कक्षा में पहुँची, तो देखा कि कमरा खाली है। पीछे बरामदे में खड़ी हुई लड़कियों ने मुझे बुलाया और मेरा नाम आदि पूछा। धीरे-धीरे हिम्मत करके मैं उनके सभी प्रश्नों के उत्तर देती गई, तो वे ठहाका मार कर हँस पड़ीं। मैं उन्हें सीनियर समझ कर डर रही थी, पर वे तो मेरी ही कक्षा की छात्राएँ थीं। फिर तो मैं भी उनमें मिल गई और कॉलेज का पहला दिन कैंटीन में व्यतीत किया।
दिनांक ……………..
आज सुबह पापा ने जल्दी से मुझे उठाया और कहा, “बाहर देखो! बारिश हो रही है; ओले गिर रहे हैं। बहुत ठंड पड़ रही है।” मैं जल्दी से उठा और पापा से कहा, “दीदी को भी उठाओ।” फिर हमने देखा कि हमारे घर के सामने वाले मैदान में हरी-हरी घास पर सफ़ेद-सफ़ेद ओले गिर रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने चमेली के फूल गिरा रखे हैं। बहुत अच्छा लग रहा था। ओले पड़ रहे थे; बारिश हो रही थी; चिड़िया दुबक रही थी; कौए परेशान थे; पेड़ काँप रहे थे; बिजली चमक रही थी; बादल डरा रहे थे।

एक चिड़िया हमारी खिड़की पर डरी हुई बहुत देर तक बैठी रही। फिर उड़ गई। अभी तक कोई बच्चा खेलने नहीं निकला। इसलिए मैं आज जल्दी डायरी लिख रहा हूँ। सुबह के दस बजे हैं। मैं अपना सीरियल देखने जा रहा हूँ। आज मेरा न्यू इंक पेन और पेंसिल बॉक्स आया। आज दोपहर को धूप निकलेगी, तो हम खेलने निकलेगी। आजकल हम लोग मिट्टी के गोले बना कर सुखा देते हैं, फिर हम उनके ऊपर पेंटिंग करते हैं; उसके बाद फिर उनसे खेलते हैं।

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भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 10.
इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ –
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिताजी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थ-थ करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।।
उत्तर :
(क) ईर्ष्यालु व्यक्ति सदा किसी-न-किसी की लू उतारने में लगे रहते हैं।
(ख) दीपक किसी का भला क्या करेगा, उसका तो आग लगाने का काम है।
(ग) रमेश की चोरी की आदत से सभी उसके खानदान पर थू-थू कर रहे हैं।
(घ) मोहन ने सुरेश को गाली दी, तो उसने आग-बबूला होकर मोहन को भी भला-बुरा कहा।

पाठेतर सक्रियता –

1. इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।

2. लेखिका के बचपन के खेलों में लंगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं उन पर चर्चा कीजिए।

3. स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 1.
अजमेर से पहले लेखिका का परिवार कहाँ रहता था? उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर :
अजमेर से पहले लेखिका का परिवार इंदौर में रहता था और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। नगर में लेखिका के पिता जी की बड़ी प्रतिष्ठा और सम्मान था। वे कांग्रेस के साथ-साथ समाज-सुधार के कामों से भी जुड़े हुए थे। आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण वे बहुत दरियादिल थे। अपनी दरियादिली के कारण वे लोगों में प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 2.
क्या लेखिका की माँ लेखिका का आदर्श बन पाई थी?
अथवा
‘मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा थी-फिर भी लेखिका के लिए आदर्श न बन सकी।’ क्यों?
उत्तर :
लेखिका की माँ एक अनपढ़ घरेलू महिला थी। उनमें धैर्य और सहनशक्ति अधिक थी। उनके सभी काम पति और बच्चों के इर्द-गिर्द घूमते थे। वे हर समय सबकी सेवा में तत्पर रहती थी, जैसे उन सबका काम करते रहना ही उनका फर्ज था। इस तरह उनका कार्यक्षेत्र घर और रसोईघर तक सीमित था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी किसी से अपने लिए कुछ नहीं माँगा था। उन्होंने दूसरों को अपने पास से सदैव दिया ही था। माँ का त्याग और सहनशीलता लेखिका का आदर्श कभी नहीं बन पाया था।

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प्रश्न 3.
‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लेखिका के पिता का संक्षिप्त में परिचय दीजिए।
उत्तर :
लेखिका के पिता जी को इंदौर में बहुत बड़ा आर्थिक झटका लगा था, जिसके कारण वे लोग अजमेर आ गए। यहाँ उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब होती चली गई थी। उन्होंने आरंभ से अच्छे दिन देखे थे। उनकी नगर में प्रतिष्ठा और सम्मान था। वे स्वभाव से कोमल और संवेदनशील थे, परंतु बिगड़ती आर्थिक स्थिति ने उनके स्वभाव को भी बदल दिया। वे ज्यादा महत्वाकांक्षी और अहंवादी हो गए थे।

वे अपने बच्चों को अपनी परेशानियों में भागीदार नहीं बनाना चाहते थे। वे दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। यश, सम्मान की चाह उन्हें आधुनिक विचारों का समर्थक बनाती थी। वे औरतों के स्वतंत्र व्यक्तित्व के पक्ष में थे। वे देश-निर्माण में औरतों की भूमिका को उचित मानते थे। लेकिन दूसरी ओर वे शक्की और दकियानूसी विचारों के व्यक्ति थे। छोटी-छोटी बातों से उन्हें अपनी इज्जत पर दाग लगने का डर रहता था।

लेखिका का देश की स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना उन्हें यश दिलाने का मार्ग लगता था, परंतु यह सब उन्हें एक सीमित दायरे में अच्छा लगता था। इन्हीं विचारों के कारण लेखिका और उनके मध्य सदैव वैचारिक टकराहट रहती थी। लेखिका के पिता के चरित्र से ऐसा लगता है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व को आर्थिक स्थिति बहुत प्रभावित करती है।

प्रश्न 4.
‘यह भी एक कहानी’ पाठ के आधार पर ‘मन्नू भंडारी’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘यह कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लेखिका के पिता जी के सकारात्मक और नकारात्मक गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘यह भी एक कहानी’ मन्नू भंडारी की आत्मकथ्य है। इसमें उन्होंने अपने उन पहलुओं का वर्णन किया है, जिनकी छाप उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। लेखिका का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया गया है –
1. परिचय – लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था, जबकि अजमेर में उसका बचपन बीता था। वह पाँच भाई बहन थे। लेखिका सबसे छोटी थी। लेखिका का रंग काला था। वह शरीर से बेहद दुबली-पतली थी। लेखिका की माताजी घरेलू महिला थी, जबकि पिताजी समाज सुधारक थे।

2. शिक्षा – उस समय लेखिका दसवीं की पढ़ाई समाप्त करके कॉलेज में पढ़ रही थी। उसकी शिक्षा पर उसके पिता और अध्यापिका शीला अग्रवाल का बहुत प्रभाव था।

3. साहित्य में रुचि – लेखिका की साहित्य में रुचि थी। वह अपने पिता के कमरे में से किताबें लेकर पढ़ती थी। किताबों का चुनाव कैसे किया जाता है, यह उन्हें पता नहीं था। कॉलेज में हिंदी की अध्यापिका शीला अग्रवाल ने उसका साहित्य से वास्तविक परिचय करवाया। किताबों का चुनाव करना, उन्हें समझना और अपने विचार व्यक्त करना-यह सब कार्य उसकी अध्यापिका ने उसे सिखाएँ, जिससे उसकी साहित्य में रुचि बढ़ती गई।

4. वैचारिक मतभेद – लेखिका का अपने पिता से वैचारिक मतभेद था। उसे अपने पिताजी के विचार समझ में नहीं आते थे। एक ओर वे लेखिका को घर में चल रही राजनीतिक सभाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे, दूसरी ओर जब वह आंदोलनों में भाग लेती थी तो पिता जी को अपनी इज्ज़त समाप्त होती दिखाई देती थी। वह अपने पिता के दोहरे व्यक्तित्व से परेशान थी।

5. नेतृत्व के गुण – लेखिका जब कॉलेज में पढ़ने गई, तो वहाँ उसकी अध्यापिका शीला अग्रवाल ने उसके व्यक्तित्व को सही दिशा दिखाई। उसके अंदर की क्षमता और प्रतिभा को उभारने में सहायता की, जिससे उसमें नेतृत्व की भावना आई। उस समय देश की स्थिति बादलों में बैठकर पढ़ाई करने की नहीं थी, अपितु देश की स्वतंत्रता में अपना योगदान देने की थी। उसके एक इशारे पर लड़कियाँ कक्षा छोड़कर बाहर आ जाती थीं। वह लड़कों के साथ मिलकर हड़ताले करवाना, दुकानें बंद करवाना, लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने का कार्य करती थी।

6. प्रभावशाली वक्ता – लेखिका एक प्रभावशाली वक्ता थी। अजमेर में चौपड़ बाजार में पूरा शहर देशभक्ति के रंग में रंगा हुआ: था। वहाँ भाषणबाजी हो रही थी। लेखिका ने भी आगे बढ़कर जोरदार भाषण दिया। वहाँ उपस्थित डॉ० अंबालाल ने घर आकर पिताजी को व्यक्तिगत रूप से उसके भाषण के लिए बधाई दी। – इस तरह लेखिका के जीवन को सही दिशा में ले जाने में अध्यापिका शीला अग्रवाल और पिताजी का योगदान रहा। पिता जी ने – उसकी प्रतिभा और क्षमता को रसोई के कार्यों में नष्ट नहीं होने दिया। वैचारिक मतभेदों के उपरांत भी वे उसके जीवन-निर्माण में सहायक रहे हैं।

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प्रश्न 5.
‘एक कहानी यह भी’ किस प्रकार की रचना है?
उत्तर :
‘एक कहानी यह भी’ एक आत्मकथ्य है। इस रचना में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपने जीवन की उन घटनाओं का वर्णन किया है, जो उन्हें लेखिका बनाने में सहायक सिद्ध हुई हैं। इस रचना में छोटे शहर की युवा होती लड़की की कहानी है, जिसका आजादी की लड़ाई में उत्साह, संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीका देखते ही बनता था।

प्रश्न 6.
अजमेर आने से पहले लेखिका और उसका परिवार कहाँ रहता था?
उत्तर :
अजमेर आने से पूर्व लेखिका और उसका सारा परिवार इंदौर में रहता था। इंदौर में लेखिका के पिता का बहुत मान-सम्मान और प्रतिष्ठा थी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ स्वयं को जोड़ा हुआ था तथा उसी के साथ मिलकर समाज-सुधार का कार्य करते थे।

प्रश्न 7.
लेखिका के पिता इंदौर से अजमेर क्यों आए?
उत्तर :
लेखिका के पिता एक साफ़ दिल के व्यक्ति थे। परिवार, समाज तथा देश में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। वे समाज-सुधार के कार्यों में सदैव संलग्न रहते थे, लेकिन एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण उन्हें इंदौर से अजमेर आना पड़ा। यह आर्थिक झटका इतना बड़ा था कि वे पूरी कोशिश के बाद भी इससे उभर नहीं पाए।

प्रश्न 8.
इंदौर से अजमेर आकर लेखिका के पिता ने अपनी आर्थिक स्थिति को कैसे सुधारा?
उत्तर :
आर्थिक झटके से न उभर पाने के कारण जब लेखिका के पिता परिवार सहित अजमेर आ गए, तो उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए अपने हौंसले से अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश के अधूरे काम को अकेले ही आगे बढ़ाना शुरू किया। यह अपनी तरह का पहला और अकेला शब्दकोश था। इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, लेकिन उन्हें आवश्यकतानुसार अर्थ नहीं मिल पाया।

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प्रश्न 9.
लेखिका की बहन सुशीला के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
लेखिका की बहन सुशीला लेखिका से दो वर्ष बड़ी थी। वह गोरे रंग की थी। उसके पिता को गोरा रंग पसंद था, इसलिए लेखिका की तुलना में सुशीला को पिता का प्यार अधिक मिलता था। सुशीला बचपन से ही स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट तथा हँसमुख स्वभाव की थी। पिताजी हर बात में लेखिका की तुलना सुशीला से करते थे।

प्रश्न 10.
‘पड़ोस-कल्चर’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
‘पड़ोस कल्चर’ वह विधान है, जो हमें सुरक्षा तथा अपनत्व का भाव प्रदान करता है। सारा पड़ोस हमें अपने घर के समान लगता है। हम अधिकार से एक-दूसरे के घरों में जाते हैं। हम अपने साथ रहने वाले सभी पड़ोसियों को अपने जीवन का अंग मानते हैं। यह सब ‘पड़ोस कल्चर’ है।

प्रश्न 11.
लेखिका के अनुसार ‘पड़ोस कल्चर’ न होने के क्या दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं?
उत्तर :
लेखिका के मतानुसार ‘पड़ोस कल्चर’ न होने पर अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा दुष्परिणाम एकांकी जीवन का है, जो मानव को जीवनपर्यंत सताता है। दूसरा दुष्परिणाम असुरक्षा, संकुचित सोच तथा स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ समझने के भाव का उदय होना है। यह पड़ोस कल्चर समाप्त कर हमारे जीवन को दुष्परिणामों के चक्रव्यूह में फँसाता है।

प्रश्न 12.
लेखिका के अनुसार परम्पराएँ क्या हैं?
उत्तर :
लेखिका के अनुसार परम्पराएँ हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा है, जो हमें भूतकाल से जोड़कर रखता निर्भर करता है कि परम्परा अच्छी है या बुरी। लोगों की अभिव्यक्ति तथा उनके मन के भाव ही परम्परा के अच्छे-बुरे होने का संकेत देते हैं। व्यक्ति के मन में कुंठा तथा क्रोध का आना परम्परा में जकड़े रहने के कारण ही होता है। इसलिए यह मान लेना चाहिए कि – परंपरा के लिए व्यक्ति न होकर व्यक्ति की सुविधानुसार परंपरा होनी चाहिए।

प्रश्न 13.
मन में उपजी हीन ग्रंथि अर्थात हीन भावना परिणाम होता है ?
उत्तर :
मन में जब कोई हीन भावना जन्म ले लेती है, तो उसके दुष्परिणाम सामने आने लगते हैं। ऐसी ही हीन भावना लेखिका के मन में उपज आई, जिसके कारण मिलने वाली समस्त उपलब्धियाँ उसे तुच्छ लगने लगी। वह सदैव स्वयं को छोटा उसे लगने लगा कि वास्तव में वह किसी योग्य नहीं है। उसका जीवन व्यर्थ है, जिसका होना न होना एक ही बात है।

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प्रश्न 14.
लेखिका को साहित्य से जोड़ने का श्रेय किसे जाता है?
उत्तर :
लेखिका को साहित्य से जोड़ने का श्रेय उसकी हिंदी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल को जाता है, जिन्होंने लेखिका का रुझान हिंदी की तरफ बढ़ाया। लेखिका के साहित्य के दायरे को बढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने उसे घर की चारदीवारी से खींचकर बाह्य जगत में लाकर खड़ा कर दिया।

प्रश्न 15.
लेखिका ने ऐसा क्यों कहा कि कॉलेज के दिन ‘मूल्यों के मंचन के दिन थे ?
उत्तर :
कॉलेज जाने से पूर्व लेखिका दुनिया परिवार, पड़ोस तथा मोहल्ले तक ही सीमित थी। लेकिन जब यह दायरा पार करके उसने कॉलेज में प्रेमचंद, अज्ञेय, जैनेन्द्र, यशपाल, भगवती चरण वर्मा आदि के लेखों एवं रचनाओं को पढ़ा, तो उसे लगा जैसे उसके नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन होना चाहिए। इसलिए लेखिका ने कहा कि वे दिन मूल्यों के मंचन के दिन थे।

प्रश्न 16.
मन्नू भंडारी के पिता की कौन-कौन सी विशेषताएँ अनुकरणीय हैं ?
उत्तर :
मन्नू भण्डारी के पिता स्त्री शिक्षा के समर्थक थे। राजनीति में वे महिलाओं की भागीदारी के पक्षधर थे। वे अपनी पुत्री को भी राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे। वे रसोई को भटियारा खाना कहते थे। मन्न भण्डारी के पिता के उक्त सभी विचार एवं भाव अनुकरणीय है।

प्रश्न 17.
‘मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा थी- फिर भी लेखिका के लिए आदर्श न बन सकी।’ क्यों?
उत्तर :
लेखिका की माँ एक अनपढ़ घेरलू महिला थी। उनमें धैर्य और सहनशक्ति अधिक थी। उनके सभी काम पति और बच्चों के इर्द-गिर्द घूमते थे। वे हर समय सबकी सेवा में तत्पर रहती थी, जैसे उन सबका काम करते रहना ही उनका फर्ज़ था। इस तरह उनका कार्य क्षेत्र घर और रसोईघर तक सीमित था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी किसी से अपने लिए कुछ नहीं माँगा था। उन्होंने दूसरों को अपने पास से सदैव दिया ही था। माँ का त्याग और सहनशीलता लेखिका का आदर्श कभी नहीं बन पाया था।

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प्रश्न 18.
मन्नू भंडारी की ऐसी कौन-सी खुशी थी जो 15 अगस्त, 1947 की खुशी में समाकर रह गई ?
उत्तर :
मई 1947 में अध्यापक शीला अग्रवाल को कॉलेज से निकाल दिया गया था। उन पर यह आरोप था कि वे कॉलेज की लड़कियों में अनुशासनहीनता फैला रही थी। लेखिका के साथ दो और लडकियों को ‘थर्ड इयर’ में दाखिला नहीं दिया गया। कॉलेज में इस बात को लेकर खूब शोर-शराबा हुआ। जीत लड़कियों की हुई. परंतु इस जीत की खुशी से भी ज्यादा एक और खुशी प्रतीक्षा में थी। वह उस शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उस समय भारत 15 अगस्त, सन 1947 को आजाद हुआ था।

पिठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, पर अर्थ नहीं और शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चल जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती-थरथराती रहती थीं। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूंदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

(क) मनु भंडारी के पिता किस कारण शक्की बन गए?
(i) प्रतिष्ठा न रहने के कारण
(ii) आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण
(iii) कमजोरी के कारण
(iv) अपनों से विश्वासघात मिलने के कारण
उत्तर :
(iv) अपनों से विश्वासघात मिलने के कारण

(ख) मनु भंडारी के पिता की आदतें कैसी थी?
(i) कृपण वाली
(ii) नवाबी
(iii) गरीबों वाली
(iv) संकुचित
उत्तर :
(ii) नवाबी

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(ग) किस स्थिति ने मनु भंडारी के पिता के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया?
(i) आर्थिक स्थिति ने
(ii) सामाजिक स्थिति ने
(iii) शारीरिक स्थिति ने
(iv) मानसिक स्थिति ने
उत्तर :
(i) आर्थिक स्थिति ने

(घ) मनु भंडारी के पिता ने किस कारण अपने बच्चों को अपनी आर्थिक विवशता का भागीदार नहीं बनाया?
(i) अपनी मज़बूरी के कारण
(ii) अपनी चिंता के कारण
(iii) अपने अहं के कारण
(iv) अपनी प्रतिष्ठा के कारण
उत्तर :
(iii) अपने अहं के कारण

(ङ) मनु भंडारी की माता क्या हमेशा काँपती-थरथराती रहती थी?
(i) अपने पति के क्रोध के कारण
(ii) अपने पति की आर्थिक स्थिति के कारण
(iii) अपने पति के अहं के कारण
(iv) अपने पति के हठ के कारण
उत्तर :
(i) अपने पति के क्रोध के कारण

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) लेखिका के अनुसार फ्लैट-कल्चर ने हमें कैसा बना दिया है?
(i) आत्मीय
(ii) उदार
(iii) संकुचित
(iv) सुरक्षित
उत्तर :
(iii) संकुचित

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(ख) लेखिका के पिता अपनी झंझलाहट किस पर उतारते थे?
(i) अपने बेटे पर
(i) अपनी बेटी पर
(iii) अपने आप पर
(iv) अपनी पत्नी पर
उत्तर :
(iv) अपनी पत्नी पर

(ग) लेखिका ने पिता के व्यवहार का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
(i) वह उदार हो गई
(ii) वह लेखिका बन गई
(iii) वह हीनभावना से ग्रसित हो गई
(iv) वह स्वावलंबी हो गई
उत्तर :
(iii) वह हीनभावना से ग्रसित हो गई

(घ) मनु भंडारी ने अपने लेख में किन दिनों का वर्णन किया है?
(i) प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम का
(ii) स्वतंत्रता आंदोलनों का
(iii) स्वतंत्रता के बाद का
(iv) भारत-चीन युद्ध के दिनों का
उत्तर :
(ii) स्वतंत्रता आंदोलनों का

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, पर अर्थ नहीं और शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कैंपाती-थरथराती रहती थीं। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूंदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मन्नू भंडारी के पिता की गिरती आर्थिक स्थिति का उन पर क्या प्रभाव पड़ा?
2. पहले इंदौर में उनकी आर्थिक स्थिति कैसी रही होगी?
3. मन्नू के पिता का स्वभाव शक्की क्यों हो गया था?
उत्तर :
1. गिरती आर्थिक स्थिति ने लेखिका के पिता के सभी सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। इसके कारण वे शक्की और क्रोधी हो गए।
2. अनुच्छेद में लेखिका ने अपने पिता के लिए नवाबी आदतें तथा शीर्ष में रहने की बात का उल्लेख किया है। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि उनके पिता इंदौर में एक धनी परिवार से संबंधित रहे होंगे, जहाँ समाज में उनका भरपूर मान-सम्मान होगा।
3. मन्नू के पिता आँख मूंदकर किसी पर भी विश्वास कर लेते थे। लेकिन जब उन्हें अपनों से ही विश्वासघात मिला, तो उसके बाद वे शक्की हो गए।

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2. पर यह पितृ-गाथा मैं इसलिए नहीं गा रही कि मुझे उनका गौरव-गान करना है, बल्कि मैं तो यह देखना चाहती हूँ कि उनके व्यक्तित्व की कौन-सी खूबी और खामियाँ मेरे व्यक्तित्व के ताने-बाने में गुंथी हुई हैं या कि अनजाने-अनचाहे किए उनके व्यवहार ने मेरे भीतर किन ग्रंथियों को जन्म दे दिया। मैं काली हूँ। बचपन में दुबली और मरियल भी थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखिका अपने पिता के संबंध में क्यों बता रही है?
2. लेखिका के पिता में क्या खूबियाँ थीं?
3. लेखिका के पिता की खामियों का वर्णन कीजिए।
4. लेखिका पर पिता के व्यक्तित्व का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
1. लेखिका अपने पिता के संबंध में इसलिए बता रही है, ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि उनके व्यक्तित्व के किन-किन गुण-अवगुणों की झलक उसके व्यक्तित्व में आ गई है अथवा वह उनसे किन-किन रूपों में प्रभावित हुई है।

2. लेखिका के पिता बहुत विद्वान व्यक्ति थे। वे सदा पढ़ने-लिखने में व्यस्त रहते थे। समाज में उन्हें अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। वे समाज-सुधार तथा देश को स्वतंत्र करवाने वाले कांग्रेस के आंदोलनों से भी जुड़े हुए थे। शिक्षा के प्रसार में वे बहुत रुचि रखते थे। अपने घर में आठ-दस विद्यार्थियों को रखकर पढ़ाते थे, जिनमें से कई बाद में ऊँचे पदों पर लग गए।

3. लेखिका के पिता बहुत क्रोधी तथा अहंवादी व्यक्ति थे। उनकी आदतें नवाबों जैसी थी। आर्थिक तंगी होते हुए भी उनके अहं में किसी प्रकार की कमी नहीं आई थी। वे अपने परिवार से भी अपनी आर्थिक विवशताओं की चर्चा नहीं करते थे। इसी आर्थिक स्थिति से छुटकारा न पा सकने पर वे अपनी सारी झुंझलाहट लेखिका की माँ पर उतारते थे।

4. लेखिका को ऐसा प्रतीत होता है कि पिता के व्यक्तित्व ने उसे हीनभावना से ग्रसित कर दिया है, क्योंकि उसके पिता उसकी उपेक्षा करते थे। पिता के शक्की स्वभाव का भी लेखिका पर प्रभाव है। इसी कारण वह अपनी उचित प्रशंसा को भी सहज रूप से ग्रहण नहीं कर पाती।

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3. उस ज़माने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं, इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आज तो मुझे बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस होता है कि अपनी जिंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर’ से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. ‘घर की दीवारों का पूरे मोहल्ले तक फैलना’ से क्या आशय है?
2. वर्तमान फ्लैट-कल्चर में हम असुरक्षित कैसे हैं?
3. परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर’ क्या था?
4. लेखिका नेफ्लैटों में रहने वालों के जीवन को संकुचित और असहाय क्यों कहा है?
उत्तर :
1. लेखिका के इस कथन का आशय यह है कि उसके बचपन के दिनों में घर केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं होता था बल्कि सारा मोहल्ला ही घर जैसा होता था। सभी में आत्मीयता का भाव होता था। अपने घर के समान कोई भी किसी के भी घर में आ-जा सकता था।
सबको सबसे स्नेह, ममता और दुलार मिलता था।

2. वर्तमान ‘फ्लैट-कल्चर’ में हम बहुत अधिक असुरक्षित हो गए हैं। हमारे आस-पास, ऊपर-नीचे के फ्लैटों में रहने वालों की अपनी एक अलग दुनिया होती है तथा किसी को भी यह पता नहीं होता कि उनके आस-पास अथवा ऊपर-नीचे कौन रहता है? इस कारण चोरी, डकैती, हत्या आदि के अनेक कार्य हो जाते हैं और दूसरे फ्लैट में रहने वाले को इस सबका पता भी चलता। परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर’ में पड़ोसी को अपने आस-पास रहने वालों के सुख-दुख का पता रहता था। सभी एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तैयार रहते थे। सबमें परस्पर अपनत्व का भाव रहता था। कोई भी अपने आप को असहाय, बेसहारा, असुरक्षित अथवा संकुचित महसूस नहीं करता था।

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4. फ्लैटों में रहने वाले व्यक्ति केवल अपने फ्लैट तक ही सीमित रहते हैं। उनका अपने आस-पास अथवा ऊपर-नीचे रहने वालों से कोई लेना-देना नहीं होता। अपने तक सीमित रहने के कारण उनका जीवन संकुचित हो जाता है। ऐसे में सुख-दुख में उनकी कोई सहायता करने भी नहीं आता, जिससे वे स्वयं को असहाय अनुभव करते हैं।

आए दिन विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के जमावड़े होते थे और जमकर बहसें होती थीं। बहस करना पिता जी का प्रिय शगल था। चाय-पानी या नाश्ता देने जाती तो पिता जी मुझे भी बैठने को कहते। वे चाहते थे कि मैं भी वहीं बैठू, सुनूँ और जानूँ कि देश में चारों ओर क्या कुछ हो रहा है। देश में हो भी तो कितना कुछ रहा था। सन् 1942 के आंदोलन के बाद से तो सारा देश जैसे खौल रहा था, लेकिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों की नीतियाँ उनके आपसी विरोध या मतभेदों की तो मुझे दूर-दूर तक कोई समझ नहीं थी। हाँ, क्रांतिकारियों और देशभक्त शहीदों के रोमानी आकर्षण, उनकी कुर्बानियों से ज़रूर मन आक्रांत रहता था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने को क्यों कहते थे?
2. घर के ऐसे वातावरण का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?
3. देश में उस समय क्या-कुछ हो रहा था?
उत्तर :
1. लेखिका के पिता चाहते थे कि उनकी बेटी देश की तत्कालीन परिस्थिति व राजनैतिक हलचल के बारे में जाने। इसलिए वे लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने के लिए कहते थे।
2. पिता के कहने पर लेखिका घर में होने वाली बहसों में सम्मिलित होती थी। यद्यपि उसे राजनैतिक पार्टियों की नीतियों, उनके आपसी विरोध या मतभेदों की समझ नहीं थी, तथापि क्रांतिकारियों और देशभक्तों के आकर्षण व कुर्बानियों से उसका मन आक्रांत रहता था।
3. उस समय देश स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत था। चारों ओर आंदोलन, जुलूस व विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे। सन 1942 के आंदोलन के बाद पूरा देश ही स्वतंत्रता की मांग करने लगा था।

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5. प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस, भाषण हर शहर का चरित्र था और पूरे दमखम और जोश-खरोश के साथ इन सबसे जुड़ना हर युवा का उन्माद। मैं भी युवा थी और शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने रगों में बहते खून को लावे में बदल दिया था। स्थिति यह हुई कि एक बवंडर शहर में मचा हुआ था और एक घर में। पिता जी की आजादी की सीमा यहीं तक थी कि उनकी उपस्थिति में घर में आए लोगों के बीच उठू-बैलूं, जानूँ-समझें। हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हड़तालें करवाती, लड़कों के साथ शहर की सड़कें नापती लड़की को अपनी सारी आधुनिकता के बावजूद बर्दाश्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था तो किसी की दी हुई आज़ादी के दायरे में चलना मेरे लिए। जब रगों में लहू की जगह लावा बहता हो तो सारे निषेध, सारी वर्जनाएँ और सारा भय कैसे ध्वस्त हो जाता है, यह तभी जाना।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. लेखिका किन दिनों का वर्णन कर रही है? उन दिनों देश का वातावरण कैसा था?
2. शीला अग्रवाल कौन थी? उसने लेखिका को कैसे प्रभावित किया?
3. घर और शहर में कैसे बवंडर मचे हुए थे?
4. लेखिका के पिता क्या चाहते थे?
5. इन दिनों लेखिका की मानसिक दशा कैसी थी?
उत्तर :
1. लेखिका सन 1946-47 के स्वतंत्रता आंदोलनों के दिनों का वर्णन कर रही है। उन दिनों देश को आजाद करवाने के लिए सर्वत्र प्रभात फेरियाँ, जुलूस आदि निकाले जा रहे थे। युवा वर्ग भी इन आंदोलनों में अधिक-से-अधिक संख्या में भाग ले रहा था। सब तरफ़ आज़ादी प्राप्त करने का जोश था।

2. शीला अग्रवाल लेखिका के विद्यालय में हिंदी की प्राध्यापिका थीं। वह लेखिका को हिंदी साहित्य के साथ-साथ देश की तत्कालीन स्थितियों से परिचित करवाती थीं। उनकी प्रेरणा से लेखिका शरत्, प्रेमचंद, अज्ञेय, जैनेंद्र, यशपाल, भगवती चरण वर्मा आदि का साहित्य पढ़कर उनसे विभिन्न विषयों पर चर्चा करके अपनी चिंतन-शक्ति में वृद्धि करती थी।

3. लेखिका के घर में उसके पिता ने बवंडर मचाया हुआ था। वे लेखिका को घर की सीमा में रहकर घर में आए लोगों के विचारों को सुनने के लिए कहते थे। वे यह नहीं चाहते थे कि उनकी लड़की शहर भर में लड़कों के साथ नारे लगवाती हुई हड़ताल करवाए। शहर में देश को आजाद करवाने वाले प्रभात-फेरियाँ, जुलूस आदि निकाल कर बवंडर मचाए हुए थे।

4. लेखिका के पिता चाहते थे कि वह घर में रहे तथा उनसे जो लोग मिलने आते हैं, उनकी बातों को सुने। वे यह नहीं चाहते थे कि उनकी लड़की स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग ले तथा लड़कों के साथ शहर में नारे लगाते हुए हड़ताल करवाए।

5. उन दिनों लेखिका की मानसिक स्थिति अत्यंत तनावग्रस्त थी। वह पिता के कहने के अनुसार घर में कैद नहीं रह सकती थी। अपनी प्राध्यापिका के विचारों को सुन-सुनकर तथा देश में आजादी के लिए बलिदान देने वाले युवाओं को देखकर उसका भी रक्त खौल उठता था और वह भी इन आंदोलनों में भाग लेने लग जाती थी। उसे इन्हीं दिनों यह अनुभव हुआ कि जब खून गर्म होता है, तो न कोई भय रह जाता है और न ही कोई बंधन रास्ता रोक सकता है।

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6. कहाँ तो जाते समय पिता जी मुँह दिखाने से घबरा रहे थे और कहाँ बड़े गर्व से कहकर आए कि यह तो पूरे देश की पुकार है…..इस पर ।
कोई कैसे रोक लगा सकता है भला? बेहद गद्गद स्वर में पिता जी यह सब सुनाते रहे और मैं अवाक। मुझे न अपनी आँखों पर विश्वास हो रहा था, न अपने कानों पर। पर यह हकीकत थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखिका के पिता जी मुँह दिखाने से क्यों घबरा रहे थे?
2. लेखिका के पिता को किस बात पर गर्व हुआ?
3. लेखिका अवाक क्यों थी?
4. लेखिका के अनुसार हकीकत क्या थी?
उत्तर :
1. लेखिका के कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता को पत्र लिखा था कि वे आकर उससे मिलें और आकर बताएँ कि उनकी बेटी कॉलेज में जो नियमों के विरुद्ध कार्य कर रही है, उन गतिविधियों के कारण उस पर अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों न की जाए? यह पत्र पढ़कर लेखिका के पिता आग-बबूला हो गए थे और उन्हें लग रहा था कि यह लड़की उन्हें कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी। इसलिए वेमुँह दिखाने से घबरा रहे थे।

2. लेखिका के पिता लेखिका के विरुद्ध उसकी प्रिंसिपल की शिकायत से घबरा रहे थे, पर जब उन्हें प्रिंसिपल से मिलकर यह पता चला कि उनकी लड़की के एक इशारे पर लड़कियाँ कक्षाएँ छोड़कर स्वाधीनता संग्राम के आंदोलनों में कूद पड़ती हैं, तो उनका सिर गर्व से ऊँचा हो गया।

3. लेखिका अवाक इसलिए रह गई थी क्योंकि जब प्रिंसिपल का पत्र मिला था तो उसके पिता उसके आचरण को लेकर आग-बबूला हो रहे थे, परंतु प्रिंसिपल से मिलकर आने के बाद वे उसके कार्य से स्वयं को सम्मानित अनुभव कर रहे थे। वे उसे डाँटने के स्थान पर उसके प्रशंसक बन गए थे।

4. लेखिका को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि प्रिंसिपल से मिलकर आने के बाद उसके पिता उसे डाँट नहीं रहे, बल्कि उसके किए गए कार्य को उचित ही मान रहे हैं। यह एक हकीकत ही थी कि उसके पिता ने उसे सही माना और प्रिंसिपल की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया।

एक कहानी यह भी Summary in Hindi

लेखिका-परिचय :

जीवन-श्रीमती मन्नू भंडारी आधुनिक युग की प्रसिद्ध कथाकार हैं। इनका जन्म 3 अप्रैल, 1931 ई० को भानपुरा (मध्य प्रदेश) में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अजमेर में हुई। इन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम०ए० किया। कुछ समय तक कोलकाता में अध्यापन कार्य करने के बाद वे मिरांडा हाउस दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका के पद पर नियुक्त हुईं। यहीं कार्यरत रहकर इन्होंने अवकाश ग्रहण किया। इनकी कुछ कहानियों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।

कुछ पर फ़िल्में भी बनी हैं। इन्हें हिंदी अकादमी के शिखर सम्मान, भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी तथा उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। रचनाएँ-मन्नू भंडारी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं कहानी संग्रह-मैं हार गई, एक प्लेट सैलाब, यही सच है, त्रिशंकु। उपन्यास-आपका बंटी, महाभोज। भाषा-शैली-मन्नू भंडारी की कहानियों में सामाजिक तत्व की प्रधानता है। इन्होंने अपनी कहानियों में नारी जीवन की विडंबना तथा व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

नारी होने के कारण इनकी नारी हृदय तक पहुँच बड़ी सहज रही है। यही कारण है कि इन्हें मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखने में विशेष सफलता प्राप्त हुई। वे घटना तत्व को अनावश्यक विस्तार न देकर पात्र विशेष पर अपनी दृष्टि केंद्रित रखती हैं। सामाजिक विसंगतियों को भी इन्होंने सफलतापूर्वक उभारा है। एक कहानी यह भी’ मन्नू भंडारी का आत्मकथ्य है, जिसमें इन्होंने अपने सोलहवें-सत्रहवें वर्ष में भारत की आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी को रेखांकित किया है। इसके साथ तत्कालीन समाज में स्त्रियों के प्रति इसके दृष्टिकोण को भी स्पष्ट किया गया है।

लेखिका ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करते हुए सहज, सरल तथा व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है, जिसमें विस्फारित, भग्नावशेषों, प्रतिष्ठा, तत्पर, सदैव जैसे तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ हाशिए, ओहदों, तुक्का, फ़र्ज, माँजा, सूतना, मैट्रिक, शगल, आलम, समथिंग, मिस्ड जैसे विदेशी तथा देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है। कहीं-कहीं भावात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं; जैसे–’समय का प्रवाह भले ही हमें दूसरी दिशाओं में बहाकर ले जाए….स्थितियों का दबाव भले ही हमारा रूप बदल दे, हमें पूरी तरह उससे मुक्त तो नहीं कर सकता!’ समग्र रूप से इनकी भाषा-शैली सहज तथा बोधगम्य है।

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पाठ का सार :

‘एक कहानी यह भी’ एक आत्मकथ्य है। इसकी लेखिका मन्नू भंडारी हैं। इसमें उन्होंने अपने जीवन की उन घटनाओं का वर्णन किया है जो उन्हें लेखिका बनाने में सहायक हुई हैं। इस पाठ में छोटे शहर की युवा होती लड़की की कहानी है जिसका आजादी की लड़ाई में उत्साह, संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीका देखते ही बनता था। लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था, परंतु उसका बचपन अजमेर ब्रह्मपुरी मोहल्ले में गुजरा था। उनका घर दो मंजिला था।

नीचे पूरा परिवार रहता था; ऊपर की मंजिल पर पिताजी का साम्राज्य था। अजमेर से पहले वे लोग इंदौर में रहते थे। इंदौर में उनका परिवार प्रतिष्ठित परिवारों में से एक था। वे शिक्षा को केवल उपदेश की तरह नहीं लेते थे। कमजोर छात्रों को घर लाकर भी पढ़ाया करते थे। उनके पढ़ाए छात्र आज ऊँचे ओहदों पर लगे हुए थे। पिता दरियादिल, कोमल स्वभाव, संवेदनशील होने के साथ-साथ क्रोधी और अहंवादी थे। एक बहुत बड़े आर्थिक झटके ने उन्हें अंदर तक हिला दिया था। वे इंदौर छोड़कर अजमेर आ गए थे। यहाँ उन्होंने अंग्रेजी हिंदी शब्दकोष तैयार किया।

यह अपनी तरह का पहला शब्दकोश था, जिसने उन्हें प्रसिद्धि तो बहुत दी परंतु धन नहीं। कमजोर आर्थिक स्थिति ने उनके सकारात्मक पहलुओं को दबा दिया था। वे अपनी गिरती आर्थिक स्थिति में अपने बच्चों को भागीदार नहीं बनाना चाहते थे। आरंभ से अच्छा देखने वाले पिताजी के लिए वे दिन बड़े कष्टदायक थे। इससे उनका स्वभाव क्रोधी हो गया था। उनके क्रोध का भाजन सदैव माँ बनती थी। जब से उन्होंने अपने लोगों से धोखा खाया था, उनका स्वभाव शक्की हो गया था। वे हर किसी को शक की नज़रों से देखते थे।

लेखिका अपने पिताजी को याद करके यह देखना चाहती है कि उसमें पिताजी के कितने गुण और अवगुण आए हैं। उनके व्यवहार ने सदैव लेखिका को हीनता का शिकार बनाया है। लेखिका का रंग काला था; शरीर से भी वह दुबली-पतली थी, परंतु उसके पिताजी को गोरा रंग पसंद था। उससे बड़ी बहन सुशीला गोरे रंग की थी, इसलिए वह पिताजी की चहेती थी। पिताजी हर बात पर उसकी तुलना सुशीला से करते थे, जिससे उसमें हीन भावना घर कर गई।

वह हीन भावना उसमें से आज तक नहीं निकली थी। आज भी वह किसी के सामने खुलकर : अपनी तारीफ़ सुन नहीं पाती। लेखिका को यह सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं होता कि उन्होंने लेखिका के रूप में इतनी उपलब्धियाँ । प्राप्त की हैं। लेखिका पर अपने पिता का पूरा प्रभाव था। उसे अपने व्यवहार में कहीं-न-कहीं अपने पिता का व्यवहार दिखाई देता था। दोनों के विचार सदैव आपस में टकराते रहे थे। समय मनुष्य को अवश्य बदलता है, परंतु कुछ जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि वे अपने स्थान से ! नहीं हिलतीं।

लेखिका की माँ पिता से विपरीत स्वभाव की थी। वे हर समय सबकी सेवा में तैयार रहती थीं। पिताजी की हर कमजोरी माँ पर निकलती थी। वे हर बात को अपना कर्तव्य मानकर पूरा करती थीं। लेखिका और उसके दूसरे भाई-बहनों का माँ से विशेष लगाव था, परंतु लेखिका की माँ उसका आदर्श कभी नहीं बन पाई। लेखिका पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। उसकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी। लेखिका को उसकी शादी की धुंधली-सी याद हैं। घर के आँगन में उसका खेल में साथ उसकी बहन सुशीला ने दिया।

दोनों बचपन के वे सभी खेल खेलती थीं, जो सभी बच्चे खेलते हैं। दोनों अपने भाइयों के साथ लड़कों वाले खेल भी खेलती थीं, परंतु उनके खेल का दायरा घर का आँगन था। लड़के कहीं भी आ-जा सकते है। थे। उस समय घरों का आँगन अपने घर तक सीमित नहीं था। वे पूरे मोहल्ले के घरों के आँगन तक आ-जा सकती थी। उस समय मोहल्ले के सभी घर एक-दूसरे के परिवारों का हिस्सा होते थे। लेखिका को आज की फ्लैट वाली जिंदगी असहाय लगती है। उसे लगता दर्जनों कहानियों के पात्र उसी मोहल्ले के हैं, जहाँ उसने अपना बचपन और यौवन व्यतीत किया था।

उस मोहल्ले के लोगों की छाप उसके मन पर इतनी गहरी थी कि वह किसी को भी अपनी कहानी या उपन्यास का पात्र बना लेती थी और उसे पता ही नहीं चलता था। उस समय : के समाज में शादी के लिए लड़की की योग्यता सोलह वर्ष आयु तथा मैट्रिक तक शिक्षा समझी जाती थी। उसकी बहन सुशीला की शादी सन 1944 में हो गई थी। उसके दोनों बड़े भाई पढ़ाई के लिए बाहर चले गए थे। सबके चले जाने के पश्चात लेखिका को अपने व्यक्तित्व का अहसास हुआ। उसके पिताजी ने उसे घर के कार्यों के लिए कभी प्रेरित नहीं किया।

उन्होंने सदा उसे राजनीतिक सभाओं में अपने साथ बैठाया। वे चाहते थे कि उसे देश की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। उस समय देश में बहुत कुछ घट रहा था। चारों तरफ आजादी की लहर दौड़ रही थी। लेखिका की आयु काफ़ी कम थी; फिर भी उसे क्रांतिकारियों, देशभक्तों और शहीदों की कुर्बानियाँ रोमांचित कर देती थीं। दसवीं कक्षा तक लेखिका को जो भी साहित्य मिलता, उसे पढ़ लेती थी। परंतु जैसे ही वह दसवीं पास करके कॉलेज में ‘फ़र्स्ट ईयर’ में गई, वहाँ हिंदी की अध्यापिका शीला अग्रवाल ने साहित्य से उसका वास्तविक परिचय करवाया।

वे स्वयं उसके लिए किताबें चुनतीं और उसे पढ़ने को देती थीं। उन विषयों पर शीला अग्रवाल लेखिका से लंबी बहस करती थी। इससे उनके साहित्य का दायरा बढ़ा। लेखिका ने उस समय के सभी बड़े-बड़े लेखकों के साहित्यों को पढ़कर समझना आरंभ कर दिया था। अध्यापिका शीला अग्रवाल की संगति ने उसका परिचय मात्र साहित्य से ही नहीं अपितु घर से बाहर की दुनिया से भी करवाया। पिताजी के साथ आरंभ से ही वह राजनीतिक सभाओं में हिस्सा लेती थी, परंतु उन्होंने उसे सक्रिय राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

उस समय सन 1946-47 में देश का वातावरण इस प्रकार का था कि कोई भी व्यक्ति अपने घर में चुप रहकर नहीं बैठ सकता था। शीला अग्रवाल की बातों ने उसकी रगों में जोश भर दिया था। वह देश की स्वतंत्रता के लिए लड़कों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने लगी, परंतु उसके पिताजी को ये बातें अच्छी नहीं लगती थीं। वे दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे आधुनिकता के समर्थक होते हुए भी दकियानूसी विचारों के थे। एक ओर तो वे मन्नू को घर में हो रही राजनीतिक सभाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते, वहीं दूसरी ओर उन्हें उसका घर से बाहर की राजनीतिक उथल-पुथल में भाग लेना अच्छा नहीं लगता था। यहीं पर दोनों पिता-बेटी के विचारों में टकराहट होने लगी थी। दोनों के मध्य विचारों की टकराहट राजेंद्र से शादी होने तक चलती रही थी।

लेखिका के पिताजी की सबसे बड़ी कमज़ोरी यश की चाहत थी। उनके अनुसार कुछ ऐसे काम करने चाहिए, जिससे समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान हो। उनकी इसी चाहत ने लेखिका को उनके क्रोध का भाजन बनने से बचाया था। एक बार पिताजी के नाम कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया। उन्होंने उन्हें उसके बारे में बातचीत करने के लिए बुलाया था। पिताजी को बहुत क्रोध आया, परंतु जब वे कॉलेज से लौटे तो बहुत खुश थे।

उन्होंने बताया कि उसका कॉलेज में बहुत दबदबा है; सारा कॉलेज उसके एक इशारे पर खाली हो जाता है। वे तीन लड़कियाँ हैं, जिन्होंने कॉलेज चलाना मुश्किल कर रखा था। पिताजी को प्रिंसिपल की बातें सुनकर गर्व हुआ कि उनके घर में भी एक ऐसा नेता है, जो सभी को एक आवाज़ में अपने साथ चलने के लिए प्रेरित कर सकता है। पिताजी के मुँह से अपने लिए प्रशंसा सुनकर उसे अपने कानों और आँखों पर विश्वास नहीं हुआ था। ऐसी ही एक घटना और थी। उन दिनों आज़ाद हिंद फौज का मुकदमा चल रहा था। सभी स्कूल कॉलेजों में हड़ताल चल रही थी। सारा युवा वर्ग अजमेर के मुख्य बाजार के चौराहे पर एकत्रित हुआ।

वहाँ सभी ने अपने विचार रखे। लेखिका ने भी उपस्थित भीड़ के सामने अपने विचार रखे। उसके विचार सुनकर उसके पिताजी के मित्र ने आकर पिताजी को उसके बारे में उल्टी सीधी बातें कह दी, जिसे सुनकर वे आग-बबूला हो गए। वे सारा दिन माँ को कुछ-न-कुछ बोलते रहे। रात के समय जब वह घर लौटी, तो उसके पिता के पास उनके एक अभिन्न मित्र अंबालाल जी बैठे थे। डॉ० अंबालाल जी ने मन्नू को देखते ही उसकी प्रशंसा करनी आरंभ कर दी। वे पिताजी से बोले कि उन्होंने मन्नू का भाषण न सुनकर अच्छा नहीं किया। मन्नू ने बड़ा ही अच्छा और ज़ोरदार भाषण दिया। पिताजी यह सब सुनकर बहुत प्रसन्न हुए।

उनके चेहरे पर गर्व के भाव थे। बाद में उसे उसकी माँ ने दोपहर में पिताजी के क्रोध वाली बात बताई, तो उसकी साँस में साँस आई। लेखिका आज अपने अतीत में देखती है, तो उसे यह समझ नहीं आता कि क्या वास्तव में उसका भाषण ज़ोरदार था या फिर उस समय के समाज में किसी लड़की द्वारा उपस्थित भीड़ के सामने नि:संकोच से धुआँधार बोलना ही सब पर अपना प्रभाव छोड़ गया था। परंतु लेखिका के पिताजी कई प्रकार के अंतर्विरोधों में जी रहे थे। वे आधुनिकता और पुराने विचारों-दोनों के समर्थक थे।

उनके यही विचार कई प्रकार के विचारों के विरोध का कारण बनते थे। मई 1947 को अध्यापक शीला अग्रवाल को कॉलेज से निकाल दिया गया था। उन पर यह आरोप। था कि वे कॉलेज की लड़कियों में अनुशासनहीनता फैला रही थी। लेखिका के साथ दो और लड़कियों को ‘थर्ड इयर’ में दाखिला नहीं दिया गया। कॉलेज में इस बात को लेकर खूब शोर-शराबा हुआ। जीत लड़कियों की हुई, परंतु इस जीत की खुशी से भी ज्यादा एक और खुशी प्रतीक्षा में थी। वह उस शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उस समय भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

कठिन शब्दों के अर्थ :

प्रतिष्ठा – इज्जत, मान-मर्यादा। ओहदा – पदवी। भग्नावशेषों – खंडहर, टूटे-फूटे हिस्से। विस्फारित – फैला हुआ। हाशिए – एक किनारे पर। यातना – कष्ट। विश्वासघात – धोखा। खूबी – गुण। खामियाँ – कमियाँ। अचेतन – जड़, निर्जीव। पर्त – तह। तुक्का – बिना विचार के निशाना लगाना। व्यथा – पीड़ा, दुख। प्रतिच्छाया – परछाईं। निहायत – बिल्कुल। सहिष्णुता – सहनशीलता। माँजा – पतंग उड़ाने वाला धागा। शगल – शौक। आक्रांत – दुखी, कष्टग्रस्त। दुर्बलता – कमज़ोरी। वर्चस्व – दबदबा। निषिद्ध – वर्जित, जिस पर रोक लगाई गई हो।

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics Important Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 1.
The marks obtained by 40 students of class IX in a mathematics test are given below:
18, 55, 68, 79, 85, 43, 29, 68, 54, 73, 47, 35, 72, 64, 95, 44, 50, 77, 64, 35, 79, 52, 45, 54, 70, 83, 62, 64, 72, 92, 84, 76, 63, 43, 54, 38, 73, 68, 52, 54.
Prepare a frequency distribution table with class size of 10 marks.
Solution :
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics - 1

Question 2.
Below are the marks obtained by 30 students of a class in Maths test out of 100. Make a frequency distribution table for this data with class interval of size 10 and draw a histogram to represent the data. 55, 61, 46, 100, 75, 90, 77, 60, 48, 58, 64, 59, 60, 78, 55, 88, 60, 37, 58, 84, 62, 44, 52, 50, 56, 95, 67, 70, 39, 68.
Solution :
Marks obtained by 30 students are 55, 61, 46, 100, 75, 90, 77, 60, 48, 58, 64, 59, 60, 78, 55, 88, 60, 37, 58, 84, 62, 44, 52, 50, 56, 95, 67, 70, 39, 68.
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics - 2

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 3.
Find the mean of the factors of 24.
Solution :
Various factors of 24 = 1, 2, 3, 4, 6, 8, 12 and 24.
Mean,
\(\bar{x}\) = Sum of all observations / Total number of observations
= \(\frac{1+2+3+4+6+8+12+24}{8}\)
= \(\frac{60}{8}=\frac{15}{2}\) = 7.5

Question 4.
Find the range of the given data: 25.7, 16.3, 2.8, 21.7, 24.3, 22.7 and 24.9
Solution :
Range of the data = Highest value – Lowest value = 25.7 – 2.8 = 22.9

Multiple Choice Questions

Question 1.
The median of following series 520, 20, 340, 190, 35, 800, 1210, 50, 80 is
(a) 1210
(b) 520
(c) 190
(d) 35
Solution :
(c) 190

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 2.
If the arithmetic mean of 5, 7, 9, x is 9 then the value of x is
(a) 11
(b) 15
(c) 18
(d) 16
Solution :
(b) 15

Question 3.
The mode of the distribution 3, 5, 7, 4, 2, 1, 4, 3, 4 is
(a) 7
(b) 4
(c) 3
(d) 1
Solution :
(b) 4

Question 4.
If the mean and median of a set of numbers are 8.9 and 9 respectively, then the mode will be
(a) 7.2
(b) 8.2
(c) 9.2
(d) 10.2
Solution :
(c) 9.2

Question 5.
A student got marks in 5 subjects in a monthly test is given below: 2, 3, 4, 5, 6. In these obtained marks, 4 is the
(a) Mean and median
(b) Median but no mean
(c) Mean but no median
(d) Mode
Solution :
(a) Mean and median

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 6.
Find the mode from the following table:

Marks obtained 3 1 23 33 43
Frequency (f) 7 11 15 8 3

(a) 13
(b) 43
(c) 33
(d) 23
Solution :
(d) 23

Question 7.
If the class intervals in a frequency distribution are (72 – 73.9), (74 – 75.9), (76 – 77.9), (78 – 79.9) etc., the mid-point of the class (74 – 75.9) is
(a) 74.50
(b) 74.90
(c) 74.95
(d) 75.00
Solution :
(c) 74.95

Question 8.
Which one of the following is not correct –
(a) Statistics is liable to be misused.
(b) The data collected by the investigator to be used by himself are called primary data.
(c) Statistical laws are exact.
(d) Statistics do not take into account of individual cases.
Solution :
(c) Statistical laws are exact.

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 9.
If the first five elements of a sequence are replaced by (xi + 5), where i = 1, 2, 3, … 5 and the next five elements are replaced by (xi – 5), where, i = 6; ….. 10 then the mean will change by
(a) 25
(b) 10
(c) 5
(d) 0
Solution :
(d) 0

Question 10.
The following numbers are given: 61, 62, 63, 61, 63, 64, 64, 60, 65, 63, 64, 65, 66, 64. The difference between their median and mean is
(a) 0.4
(b) 0.3
(c) 0.2
(d) 0.1
Solution :
(b) 0.3

Question 11.
The value of \(\sum_{i=i}^n\) (xi – \(\bar{x}\)) where \(\bar{x}\) is the arithmetic mean of xi is
(a) 1
(b) n x
(c) 0
(d) None of these
Solution :
(c) 0

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 12.
The average of 15 numbers is 18. The average of first 8 is 19 and that of last 8 is 17, then the 8th number is
(a) 15
(b) 16
(c) 18
(d) 20
Solution :
(c) 18

Question 13.
In an examination, 10 students scored the following marks in Mathematics: 35, 19, 28, 32, 63, 02, 47, 31, 13, 98. Its range is
(a) 96
(b) 02
(c) 98
(d) 50
Direction: questions 14 is based on the histogram given in the adjacent figure.
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics - 3
Solution :
(a) 96

Question 14.
The percentage of students in science faculty in 1990-91 is:
(a) 26.9 %
(b) 27.8 %
(c) 14.81 %
(d) 30.2 %
Solution :
(c) 14.81 %

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 15.
For the scores 8, 6, 10, 12, 1, 5, 6 and 6, the arithmetic mean is
(a) 6.85
(b) 6.75
(c) 6.95
(d) 7
Direction: Each question from 16 to 18 is based on the histogram given in the adjacent figure.
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics - 4
Solution :
(b) 6.75

Question 16.
What is the number of workers earning ₹ 300 to 350?
(a) 50
(b) 40
(c) 45
(d) 130
Solution :
(a) 50

Question 17.
In which class interval of wages there is the least number of workers?
(a) 400 – 450
(b) 350 – 400
(c) 250 – 300
(d) 200 – 250
Solution :
(d) 200 – 250

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 14 Statistics

Question 18.
What is the upper limit of the class interval 200-250?
(a) 200
(b) 250
(c) 225
(d) None of these
Solution :
(b) 250

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Important Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 1.
Three equal cubes are placed adjacently in a row. Find the ratio of the total surface area of the new cuboid to that of the sum of the surface areas of three cubes.
Solution :
Let the side of each of the three equal cubes be a cm.
Then, surface area of one cube = 6a2 cm2
∴ Sum of the surface areas of three cubes = 3 × 6a2 = 18 cm2
For new cuboid
length (l) = 3a cm
breadth (b) = a cm
height (h) = a cm
∴ Total surface area of the new cuboid = 2(l × b + b × h + h × l)
= 2[3a × a + a × a + a × 3a]
= 2[3a2 + a2 + 3a2] = 14a2 cm2
∴ Required ratio
= Total surface area of the new cuboid / Sum of the surface areas of three cubes
= \(=\frac{14 \mathrm{a}^2}{18 \mathrm{a}^2}\) = \(\frac {7}{9}\)
= 7 : 9

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 2.
A classroom is 7 m long, 6.5 m wide and 4 m high. It has one door 3 m × 1.4 m and three windows each measuring 2 m × 1 m. The interior walls are to be colour-washed. The contractor charges ₹ 15 per sq. m. Find the cost of colour washing.
Solution :
l = 7 m, b = 6.5 m and h = 4 m
∴ Area of the walls of the room including door and windows = 2(l + b)h
= 2(7 + 6.5) 4 = 108 m2
Area of door = 3 × 1.4 = 4.2 m
Area of one window = 2 × 1 = 2 m2
∴ Area of 3 windows = 3 × 2 = 6 m2
∴ Area of the walls of the room to be colour washed = 108 – (4.2 + 6)
= 108 – 10.2 = 97.8 m
∴ Cost of colour washing at the rate of ₹ 15 per square metre = ₹ 97.8 × 15 = ₹ 1467

Question 3.
A cylindrical vessel, without lid, has to be tin coated including both of its sides. If the radius of its base is \(\frac {1}{2}\) m and its height is 1.4 m, calculate the cost of tincoating at the rate of ₹ 50 per 1000 cm2 (Use π = 3.14)
Solution :
Radius of the base (r) = \(\frac {1}{2}\)m
= \(\frac {1}{2}\) × 100 cm = 50 cm
Height (h) = 1.4 m = 1.4 × 100 cm
= 140 cm.
Surface area to be tin-coated
= 2 (2πh + πr2)
= 2[2 × 3.14 × 50 × 140 + 3.14 × (50)2]
= 2 [43960 + 7850]
= 2(51810)
= 103620 cm2
∴ Cost of tin-coating at the rate of ₹ 50 per 1000 cm2
= \(\frac {50}{1000}\) × 103620 = ₹ 5181.

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 4.
The diameter of a roller 120 cm long is 84 cm. If its takes 500 complete revolutions to level a playground, determine the cost of levelling it at the rate of ₹ 25 per square metre. (Use π = \(\frac {22}{7}\))
Solution :
diameter of roller = 84 cm
∴ r = \(\frac {84}{2}\) cm = 42 cm
h = 120 cm
Area of the playground levelled in one complete revolution = 2πrh
= 2 × \(\frac {22}{7}\) × 42 × 120 = 31680 cm2
∴ Area of the playground
= 31680 × 500cm2 = \(\frac{31680 \times 500}{100 \times 100}\)m2
= 1584 m2
∴ Cost of levelinga at the rate of ₹ 25 per square metre = ₹ 1584 × 25 = ₹ 39600.

Question 5.
How many metres of cloth of 1.1 m width will be required to make a conicaltent whose vertical height is 12 m and base radius is 16 m? Find also the cost of the cloth used at the rate of ₹ 14 per metre.
Solution :
h = 12 m, r = 16 m
∴ l = \(\sqrt{\mathrm{r}^2+\mathrm{h}^2}\)
= \(\sqrt{(16)^2+(12)^2}=\sqrt{256+144}\)
= \(\sqrt{400}\) = 20 m
∴ Curved surface area = πrl
= \(\frac {22}{7}\) × 16 × 20 = \(\frac {7040}{7}\)m2
Width of cloth = 1.1 m
∴ Length of cloth
= \(\frac{7040 / 7}{1.1}=\frac{70400}{77}=\frac{6400}{7}\) m
∴ Cost of the cloth used at the rate of ₹ 14 per metre
= ₹ \(\frac {6400}{7}\) × 14 = ₹ 12800

Question 6.
The surface area of a sphere of radius 5 cm is five times the area of the curved surface of cone of radius 4 cm. Find the height of the cone.
Solution :
Surface area of cone of radius 4 cm = π(4)lcm2 where, l cm is the slant height of the cone.
Surface area of sphere of radius 5 cm = π(5)2
According to the question,
4π (5)2 = 5[π(4)l]
⇒ l = 5 cm
⇒ \(\sqrt{\mathrm{r}^2+\mathrm{h}^2}\) = 5
⇒ r2 + h2 = 25
⇒ (4)2 + h2 = 25
⇒ 16 + h2 = 25
⇒ h2 = 9
⇒ h = 3
Hence, the height of the cone is 3 cm.

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 7.
The dimensions of a cinema hall are 100 m, 50 m and 18 m. How many persons can sit in the hall, if each required 150 m3 of air?
Solution :
l = 100 m, b = 50 m, h = 18 m
∴ Volume of the cinema hall = lbh
= 100 × 50 × 18 = 90000 m3
Volume occupied by 1 person = 150 m3
∴ Number of persons who can sit in the hall
= Volume of the hall / Volume occupied by 1 person
= \(\frac {90000}{150}\) = 600
Hence, 600 persons can sit in the hall.

Question 8.
The outer measurements of a closed wooden box are 42 cm, 30 cm and 27 cm. If the box is made of 1 cm thick wood, determine the capacity of the box.
Solution :
Outer dimensions :
l = 42 cm, b = 30 cm, h = 27 cm
Thickness of wood = 1 cm
Inner dimensions :
l = 42 – (1 + 1) = 40 cm
b = 30 – (1 + 1) = 28 cm
h = 27 – (1 + 1) = 25 cm
∴ Capacity of the box = l × b × h = 40 × 28 × 25 = 28000 cm3.

Question 9.
If v is the volume of a cuboid of dimensions a, b and c and s is its surface area, then prove that:
\(\frac{1}{v}=\frac{2}{s}\left(\frac{1}{a}+\frac{1}{b}+\frac{1}{c}\right)\)
Solution :
L.H.S. = \(\frac {1}{v}\) = \(\frac {1}{abc}\)
R.H.S. = \(\frac{2}{s}\left(\frac{1}{a}+\frac{1}{b}+\frac{1}{c}\right)\)
= \(\frac{2}{2(a b+b c+c a)}\) (\(\frac{b c+c a+a b}{a b c}\))
= \(\frac {1}{abc}\) ……………(ii)
From (i) and (ii), we have,
\(\frac{1}{v}=\frac{2}{s}\left(\frac{1}{a}+\frac{1}{b}+\frac{1}{c}\right)\)

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 10.
The ratio of the volumes of the two cones is 4 : 5 and the ratio of the radii of their bases is 2 : 3. Find the ratio of their vertical heights.
Solution :
Let the radii of bases, vertically heights and volumes of the two cones be r1, h1, v1 and r2, y2, v2 respectively.
According to the question,
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes - 1
Hence the ratio of their vertical heights is 9 : 5.

Question 11.
If h, c and v be the height, curved surface and volume of a cone, show that
3πvh3 – c2h2 + 9v2 = 0.
Solution :
Let the radius of the base and slant height of the cone be r and l respectively. Then;
C = curved surface area = πrl
= πr\(\sqrt{\mathrm{r}^2+\mathrm{h}^2}\) ………..(i)
v = volume = \(\frac {1}{3}\)πr2h ………..(ii)
∴ 3πvh3 – c2h2 + 9v2
= 3πh3(\(\frac {1}{3}\)πr²h) – π²r²(r² + h²)h² + 9(\(\frac {1}{3}\)πr²h)²
[Using (i) and (ii)]
= π²r²h4 – π²r4h4 – π²r²h4 – π²r²h2
= 0.
Hence Proved.

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 12.
How many balls, each of radius 1 cm, can be made from a solid sphere of lead of radius 8 cm?
Solution :
Volume of the spherical ball of radius 8 cm
= \(\frac {4}{3}\)π × 83cm3
Also, volume of each smaller spherical ball of radius 1 cm
= \(\frac {4}{3}\)π × 13cm3
Let n be the number of smaller balls that can be made. Then, the volume of the larger ball is equal to the sum of all the volumes of n smaller balls.
Hence, \(\frac {4}{3}\)π × n = \(\frac {4}{3}\)π × 83
⇒ n = 83 = 512
Hence, the required number of balls = 512.

Question 13.
By melting a solid cylindrical metal, a few conical materials are to be made. If three times the radius of the cone is equal to twice the radius of the cylinder and the ratio of the height of the cylinder and the height of the cone is 4 : 3, find the number of cones which can be made.
Solution :
Let R be the radius and H be the height of the cylinder and let r and h be the radius and height of the cone respectively. Then,
3r = 2R
And, H : h = 4 : 3 …………..(i)
\(\frac{\mathrm{H}}{\mathrm{h}}=\frac{4}{3}\)
⇒ 3H = 4h …………..(ii)
Let n be the required number of cones which can be made from the materials of the cylinder. Then, the volume of the cylinder will be equal to the sum of the volumes of n cones. Hence, we have
πR2H = \(\frac {n}{3}\)πr2h
3R2H = nr2h
n = \(\frac{3 R^2 H}{r^2 h}=\frac{3 \times \frac{9 r^2}{4} \times \frac{4 h}{3}}{r^2 h}\) = 9
[From (i) and (ii), R = \(\frac {3r}{2}\) and H = \(\frac {4h}{3}\)]
Hence, the required number of cones is 9.

Question 14.
Water flows at the rate of 10 m per minute through a cylindrical pipe having its diameter as 5 mm. How much time will it take to fill a conical vessel whose diameter of the base is 40 cm and depth 24 cm?
Solution :
Diameter of the pipe = 5 mm
= \(\frac {5}{10}\)cm = \(\frac {1}{2}\)cm
∴ Radius of the pipe = \(\frac{1}{2} \times \frac{1}{2}\) cm
= \(\frac {1}{4}\)cm.
In 1 minute, the length of the water column in the cylindrical pipe = 10 m = 1000 cm.
∴ Volume of water that flows out of the pipe in 1 minute
= π × \(\frac {1}{4}\) × \(\frac {1}{4}\) × 1000 cm3
Also, volume of the cone
= \(\frac {1}{3}\) × π × 20 × 20 × 24 cm3.
Hence, the time needed to fill up this conical vessel
= \(\frac{\frac{1}{3} \pi \times 20 \times 20 \times 24}{\pi \times \frac{1}{4} \times \frac{1}{4} \times 1000}\) minutes
= (\(\frac{20 \times 20 \times 24}{3} \times \frac{4 \times 4}{1000}\))minutes
= \(\frac {256}{5}\) minutes
= 51.2 minutes.
Hence, the required time is 51.2 minutes.

Multiple Choice Questions

Question 1.
The height of a conical tent at the centre is 5 m. The distance of any point on its circular base from the top of the tent is 13 m. The area of the slant surface is:
(a) 144 π sq. m
(b) 130 π sq.m
(c) 156 π sq.m
(d) 169 π sq.m
Solution :
(c) 156 π sq.m

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 2.
A rectangular sheet of paper 22 cm long and 12 cm broad can be curved to form the lateral surface of a right circular cylinder in two ways. Taking π = \(\frac {22}{7}\), the difference between the volumes of the two cylinders thus formed is :
(a) 200 cm3
(b) 210 cm3
(c) 250 cm3
(d) 252 cm3
Solution :
(b) 210 cm3

Question 3.
The percentage increase in the surface area of a cube when each side is increased two times the original length
(a) 225
(b) 200
(c) 175
(d) 300
Solution :
(d) 300

Question 4.
A cord in the form of a square enclose the area ‘S’ cm. If the same cord is bent into the form of a circle, then the area of the circle is
(a) \(\frac{\pi \mathrm{S}^2}{4}\)
(b) 4πS2
(c) \(\frac{4 \mathrm{~S}^2}{\pi}\)
(d) \(\frac {4S}{π}\)
Solution :
(c) \(\frac{4 \mathrm{~S}^2}{\pi}\)

Question 5.
If ‘l’, ‘B’ and ‘h’ of a cuboids are increased, decreased and increased by 1%, 3% and 2% respectively, then the volume of the cuboid
(a) increases
(b) decreases
(c) increases or decreases depending on original dimensions
(d) can’t be calculated with given data
Solution :
(b) decreases

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 6.
The radius and height of a cone are each increased by 20%, then the volume of the cone is increased by (a) 20%
(b) 40%
(c) 60%
(d) 72.8%
Solution :
(d) 72.8%

Question 7.
There is a cylinder circumscribing the hemisphere such that their bases are common. The ratio of their volumes is
(a) 1 : 3
(b) 1 : 2
(c) 2 : 3
(d) 3 : 4
Solution :
(d) 3 : 4

Question 8.
Consider a hollow cylinder of inner radius r and thickness of wall t and length l. The volume of the above cylinder is given by
(a) 2πl(r2 – l2)
(b) 2πrlt(\(\frac {t}{2r}\) + l)
(c) 2πl(r2 + l2)
(d) 2πrl(r + l)
Solution :
(b) 2πrlt(\(\frac {t}{2r}\) + l)

Question 9.
A cone and a cylinder have the same base area. They also have the same curved surface area. If the height of the cylinder is 3 m, then the slant height of the cone (in m) is
(a) 3 m
(b) 4 m
(c) 6 m
(d) 7 m
Solution :
(c) 6 m

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Question 10.
A sphere of radius 3 cm is dropped into a cylindrical vessel of radius 4 cm. If the sphere is submerged completely, then the height (in cm) to which the water rises, is
(a) 2.35 cm
(b) 2.30 cm
(c) 2.25 cm
(d) 2.15 cm
Solution :
(c) 2.25 cm

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

JAC Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर :
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी, क्योंकि वे हर उत्सव एवं संस्कार पर बड़े भाई और धर्मगुरु की तरह शुभाषीश देते थे। उनकी उपस्थिति में प्रत्येक कार्य शांति और सरलता से संपन्न होता था। लेखक के बच्चे के मुँह में अन्न का पहला दाना फ़ादर बुल्के ने डाला था। उस क्षण उनकी नीली आँखों में जो ममता और प्यार तैर रहा था, उससे लेखक को फ़ादर बुल्के की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगी।

प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है ?
उत्तर :
लेखक ने फ़ादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया है। फ़ादर बुल्के बेल्जियम के रेम्सचैपल के रहने वाले थे। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत आने का फैसला किया। भारत में उन्होंने भारतीय संस्कृति को जाना और समझा। मसीही धर्म से संबंध रखते हुए भी उन्होंने हिंदी में शोध किया। शोध का विषय था-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’। इससे उनके भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव का पता चलता है। लेखक कहता है कि जब तक रामकथा है, उस समय तक इस विदेशी भारतीय साधु को रामकथा के लिए याद किया जाएगा। इस आधार पर कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के विदेशी होते हुए भी भारतीय थे। उन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। उन्होंने हिंदी में प्रयाग विश्वविद्यालय से शोध किया। फ़ादर बुल्के ने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिंदी में ‘नीलपंछी’ नाम से रूपांतर किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मसीही धर्म की धार्मिक पुस्तक ‘बाइबिल’ का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश तैयार किया।

उनके शोध ‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ के कुछ अध्याय ‘परिमल’ में पढ़े गए थे। उन्होंने ‘परिमल’ में भी कार्य किया। वे सदैव हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए चिंतित रहते थे। इसके लिए वे प्रत्येक मंच पर आवाज़ उठाते थे। उन्हें उन लोगों पर झुंझलाहट होती थी, जो हिंदी जानते हुए भी हिंदी का प्रयोग नहीं करते थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के का हिंदी के प्रति विशेष लगाव और प्रेम था।

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
फ़ादर कामिल बुल्के एक ऐसा नाम है, जो विदेशी होते हुए भी भारतीय है। उन्होंने अपने जीवन के 73 वर्षों में से 47 वर्ष भारत को दिए। उन 47 वर्षों में उन्होंने भारत के प्रति, हिंदी के प्रति और यहाँ के साहित्य के प्रति विशेष निष्ठा दिखाई। उनका व्यक्तित्व दूसरों को तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। उन्होंने सदैव सबके लिए एक बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य बड़ी शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका व्यक्तित्व संयम धारण किए हुए था।

किसी ने भी उन्हें कभी क्रोध में नहीं देखा था। वे सबके साथ प्यार व ममता से मिलते थे। जिससे एक बार मिलते थे, उससे रिश्ता बना लेते थे, फिर वे संबंध कभी नहीं तोड़ते थे। फ़ादर अपने से संबंधित सभी लोगों के घर, परिवार और उनकी दुख-तकलीफों की जानकारी रखते थे। दुख के समय उनके मुख से निकले दो शब्द जीवन में नया जोश भर देते थे। फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व वास्तव में देवदार की छाया के समान था। उनसे रिश्ता जोड़ने के बाद बड़े भाई के अपनत्व, ममता, प्यार और आशीर्वाद की कभी कमी नहीं होती थी।

प्रश्न 5.
लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व सबसे अलग था। उनके मन में सबके लिए अपनापन था। सबके साथ होते हुए भी वे अपने व्यवहार, अपनत्व व वात्सल्य के कारण अलग दिखाई देते थे। वे सबके साथ एक-सा व्यवहार करते थे। उनका मन करुणामय था। वे सभी जान-पहचान वालों के दुख-सुख की पूरी जानकारी रखते थे। हर किसी के दुख में दुखी होना तथा सुख में खुशी अनुभव करना उनका स्वभाव था। जब वे दिल्ली आते थे, तो समय न होने पर भी लेखक की खोज खबर लेकर वापस जाते थे। जिससे रिश्ता बना लिया, अपनी तरफ़ से उसे पूरी तरह निभाते थे। उनके व्यक्तित्व की यही बातें उन्हें ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ बनाती थीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

प्रश्न 6.
फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के अपनी वेशभूषा और संकल्प से संन्यासी थे, परंतु वे मन से संन्यासी नहीं थे। संन्यासी सबके होते हैं; वे किसी से विशेष संबंध बनाकर नहीं रखते। परंतु फ़ादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। वर्षों बाद मिलने पर भी उनसे अपनत्व की महक अनुभव की जा सकती थी। जब वे दिल्ली जाते थे, तो अपने जानने वाले को अवश्य मिलकर आते थे। ऐसा कोई संन्यासी नहीं करता। इसलिए वे परंपरागत संन्यासी की छवि से अलग प्रतीत होते थे।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति में लेखक फ़ादर बुल्के को याद कर रहा है। उनके अंतिम संस्कार में जितने लोग भी शामिल हुए थे, उन सभी की आँखें रो रही थीं। यदि लेखक अब उन लोगों को गिनने लगे, तो उस क्षण को याद करके उसकी अपनी आँखों में से आँसुओं की अविरल धारा बहने लगेगी। वह उस क्षण को स्मरण नहीं कर पाएगा और सबकुछ उसे धुंधला-सा प्रतीत होगा।

(ख) लेखक के फ़ादर बुल्के से अंतरंग संबंध थे। फ़ादर बुल्के से मिलना और उनसे बात करना लेखक को अच्छा लगता था। फ़ादर ने उसके हर दुख-सुख में उसका साथ निभाया था। इसलिए लेखक को लगता है कि फ़ादर बुल्के को याद करना उनके लिए एकांत में उदास शांत संगीत सुनने जैसा है, जो अशांत मन को शांति प्रदान करता है। फ़ादर ने सदैव उनके अशांत मन को शांति प्रदान की थी।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर :
फादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल नामक शहर में हुआ था। जब वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, तब उनके मन में संन्यासी बनने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत आने का मन बनाया। उनके मन में यह बात इसलिए उठी होगी, क्योंकि भारत को साधु-संतों का देश कहा जाता है। भारत आध्यात्मिकता का केंद्र है। उन्हें लगा होगा कि भारत में ही उन्हें सच्चे अर्थों में आत्मा का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

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प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि रेम्सचैपल’-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ। अभिव्यक्त होती हैं ? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं ?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था, परंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि के लिए भारत को चना। उन्होंने अपनी आयु का अधिकांश भाग भारत में बिताया था। उन्हें भारत, भारत की भाषा हिंदी तथा यहाँ के लोगों से बहुत प्यार था; परंतु वे अपनी जन्मभूमि रेम्सचैपल को कभी भूल नहीं पाए। रेम्सचैपल शहर उनके मन के एक कोने में बसा हुआ था। वे अपनी जन्मभूमि से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। जिस मिट्टी में पलकर वे बड़े हुए थे, उसकी महक वे अपने अंदर अनुभव करते थे।

इसलिए लेखक के यह पूछने पर कि कैसी है आपकी जन्मभूमि? फ़ादर बुल्के ने तत्परता से जबाव दिया कि उनकी जन्मभूमि बहुत सुंदर है। यह उत्तर उनकी आत्मा की आवाज़ थी। हमें अपनी जन्मभूमि प्राणों से बढ़कर प्रिय है। जन्मभूमि में ही मनुष्य का उचित विकास होता है। उसकी आत्मा में अपनी जन्मभूमि की मिट्टी की महक होती है। जन्मभूमि से मनुष्य का रिश्ता उसके जन्म से शुरू होकर उसके मरणोपरांत तक रहता है। जन्मभूमि ही हमें हमारी पहचान, संस्कृति तथा सभ्यता से अवगत करवाती है। हमें अपनी जन्मभूमि के लिए कृतज्ञ होना चाहिए और उसकी रक्षा और सम्मान पर कभी आँच नहीं आने देनी चाहिए।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 10.
‘मेरा देश भारत’ विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्र मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है। जिस भूमि के अन्न-जल से यह शरीर बनता एवं पुष्ट होता है, उसके प्रति अनायास ही स्नेह एवं श्रद्धा उमड़ती है। जो व्यक्ति अपने राष्ट्र की सुरक्षा एवं उसके प्रति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, वह कृतघ्न है। उसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं। उसका जीवन पशु के सदृश बन जाता है। रेगिस्तान में वास करने वाला व्यक्ति ग्रीष्म की भयंकरता के बीच जी लेता है, लेकिन अपनी मातृभूमि के प्रति दिव्य प्रेम संजोए रहता है।

शीत प्रदेश में वास करने वाला व्यक्ति काँप-काँप कर जी लेता है, लेकिन जब उसके देश पर कोई संकट आता है तो वह अपनी जन्मभूमि पर प्राण न्योछावर कर देता है। ‘यह मेरा देश है’ कथन में कितनी मधुरता है। इसमें जो कुछ है, वह सब मेरा है। जो व्यक्ति ऐसी भावना से रहित है, उसके लिए ठीक ही कहा गया है –

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है।

मेरा महान देश भारत सब देशों का मुकुट है। इसका अतीत स्वर्णिम रहा है। एक समय था, जब इसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। प्रकृति ने इसे अपने अपार वैभव, शक्ति एवं सौंदर्य से विभूषित किया है। इसके आकाश के नीचे मानवीय प्रतिभा ने अपने सर्वोत्तम वरदानों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया है। इस देश के चिंतकों ने गूढतम प्रश्न की तह में पहुँचने का सफल प्रयास किया है। मेरा देश अति प्राचीन है। इसे सिंधु देश, आर्यावर्त, हिंदुस्तान भी कहते हैं। इसके उत्तर में ऊँचा हिमालय पर्वत इसके मुकुट के समान है। उसके पार तिब्बत तथा चीन हैं। दक्षिण में समुद्र इसके पाँव धोता है। श्रीलंका द्वीप वहाँ समीप ही है।

उसका इतिहास भी भारत से संबद्ध है। पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार देश हैं। पश्चिम में पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईरान देश हैं। प्राचीन समय में तथा आज से दो हज़ार वर्ष पहले सम्राट अशोक के राज्यकाल में और उसके बाद भी गांधार (अफ़गानिस्तान) भारत का ही प्रांत था। कुछ सौ वर्षों पहले तक बाँग्लादेश, ब्रह्मदेश व पाकिस्तान भारत के ही अंग थे। इस देश पर अंग्रेजों ने आक्रमण करके यहाँ पर विदेशी राज्य स्थापित किया और इसे खूब लूटा। पर अब वे दुख भरे दिन बीत चुके हैं। हमारे देश के वीरों, सैनिकों, देशभक्तों और क्रांतिकारियों के त्याग व बलिदान से 15 अगस्त 1947 ई० को भारत स्वतंत्र होकर दिनों-दिन उन्नत और शक्तिशाली होता जा रहा है।

26 जनवरी, 1950 से भारत में नया संविधान लागू हुआ और यह ‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ बन गया। अनेक ज्वारभाटों का सामना करते हुए भी इसका सांस्कृतिक गौरव अक्षुण्ण रहा है। यहाँ गंगा, यमुना, सरयू, नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी, सोन, सतलुज, व्यास, रावी आदि पवित्र नदियाँ बहती हैं, जो इस देश को सींचकर हरा-भरा करती हैं। इनमें स्नान कर देशवासी पुण्य लाभ उठाते हैं। यहाँ बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर-ये छह ऋतुएँ क्रमशः आती हैं। इस देश में अनेक तरह की जलवायु है।

भाँति-भाँति के फल-फूल, वनस्पतियाँ, अन्न आदि यहाँ उत्पन्न होते हैं। इस देश को देखकर हृदय गदगद हो जाता है। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। यह एक विशाल देश है। इस समय इसकी जनसंख्या लगभग एक सौ पच्चीस करोड़ से अधिक हो गई है, जो संसार में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। यहाँ हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि मतों के लोग परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, बाँग्ला, तमिल, तेलुगू आदि अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं।

दिल्ली इसकी राजधानी है। वहीं संसद भी है, जिसके लोकसभा और राज्यसभा दो अंग हैं। मेरे देश के प्रमुख राष्ट्रपति’ कहलाते हैं। एक उपराष्ट्रपति भी होता है। देश का शासन प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल चलाता है। इस देश में विभिन्न राज्य या प्रदेश हैं, जहाँ विधानसभाएँ हैं। वहाँ मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल द्वारा शासन होता है। यह धर्मनिरपेक्ष देश है। यहाँ बड़े धर्मात्मा, तपस्वी, त्यागी, परोपकारी, वीर, बलिदानी महापुरुष हुए हैं। यहाँ की स्त्रियाँ पतिव्रता, सती, साध्वी, वीरता और साहस की पुतलियाँ हैं।

उन्होंने कई बार जौहर व्रत किए हैं। वे योग्य और दृढ़ शासक भी हो चुकी हैं और आज भी हैं। यहाँ के ध्रुव, प्रहलाद, लव-कुश, अभिमन्यु, हकीकतराय आदि बालकों ने अपने ऊँचे जीवनादर्शों से इस देश का नाम उज्ज्वल किया है। मेरा देश गौरवशाली है। इसका इतिहास सोने के अक्षरों में लिखा हुआ है। यह स्वर्ग के समान सभी सुखों को प्रदान करने में समर्थ है। मैं इस पर तन-मन-धन न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता हूँ। मुझे अपने देश पर और अपने भारतीय होने पर गर्व है।

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प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गरमी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
3719, रेलवे रोड
अंबाला
15 मई, 20 ……
प्रिय मित्र हडसन एंड्री
सस्नेह नमस्कार।
आशा है कि आप सब सकुशल होंगे। आपके पत्र से ज्ञात हुआ कि आपका विद्यालय ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो चुका है। हमारा विद्यालय भी 28 मई को ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो रहा है। इस बार छुट्टियों में हम पिताजी के साथ शिमला जा रहे हैं। लगभग 20 दिन तक हम शिमला में रहेंगे। वहाँ मेरे मामाजी भी रहते हैं। अतः वहाँ रहने में पूरी सुविधा रहेगी। हमने शिमला के आस पास सभी दर्शनीय स्थान देखने का निर्णय किया है। मेरे मामाजी के बड़े सुपुत्र वहाँ अंग्रेज़ी के अध्यापक हैं। उनकी सहायता एवं मार्ग दर्शन से मैं अपने अंग्रेजी के स्तर को भी बढ़ा सकूँगा।

प्रिय मित्र, यदि आप भी हमारे साथ शिमला चलें तो यात्रा का आनंद आ जाएगा। आप किसी प्रकार का संकोच न करें। मेरे माता-पिताजी भी आपको देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। आप शीघ्र ही अपने कार्यक्रम के बारे में सूचित करें। हमारा विचार जून के प्रथम सप्ताह में जाने का है। शिमला से लौटने के बाद जम्मू-कश्मीर जाने का विचार है, जहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। जम्मू के पास कटरा में वैष्णो देवी का मंदिर मेरे आकर्षण का केंद्र है। मुझे अभी तक इस सुंदर भवन को देखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। आशा है कि इस बार यह जिज्ञासा भी शांत हो जाएगी। आप अपने कार्यक्रम से शीघ्र ही सूचित करें।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से सादर नमस्कार कहें।
आपका मित्र,
विजय कुमार

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोधक छाँटकर अलग लिखिए –
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद
(ख) माँ ने बचपन से ही घोषित कर दिया था कि लड़का हथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर :
(क) और (ख) कि (ग) तो (घ) जो (ङ) लेकिन।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फ़ादर बुल्के का अंग्रेज़ी-हिंदी कोश’ उनकी एक महत्वपूर्ण देन है। इस कोश को देखिए-समझिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

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प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुई हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी, लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर :
भगिनी निवेदिता, मदर टेरेसा, एनी बेसेंट ऐसी ही विभूतियाँ थीं। इनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी, लेकिन कर्मभूमि के रूप में इन्होंने भारत को ही चुना था।

प्रश्न 3.
कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर :
हरगोविंद खुराना, लक्ष्मी मित्तल, हिंदुजा भाई इसी प्रकार के व्यक्ति हैं।

प्रश्न 4.
एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक युग भौतिकवाद का युग है। प्रत्येक मनुष्य कम समय में बहत अधिक प्राप्त कर लेना चाहता है। भारत में रहकर वह अपनी प्रतिभा और क्षमता को व्यर्थ गँवाना नहीं चाहता। उसे अनुभव होता है कि उसे अपनी क्षमता और प्रतिभा का उतना मूल्य नहीं मिल पा रहा, जितना उसे मिलना चाहिए। इसलिए वह सबकुछ प्राप्त कर लेने की चाह में पश्चिमी चकाचौंध में खो जाता है। वहाँ की चकाचौंध में भारतीय मूल्य और संस्कृति खो जाती है। मनुष्य वहाँ के रीति-रिवाजों में जीने लग जाता है। उसे देश, परिवार किसी से प्रेम नहीं रहता। उसका प्रेम स्वयं की उन्नति तक सीमित हो जाता है। वह सबकी भावनाओं के साथ खेलता है। आज इसके कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। आज की पीढ़ी को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो उन्हें पश्चिमी चकाचौंध से दूर रहने का सही मार्ग दिखाए।

यह भी जानें –

परिमल – निराला के प्रसिद्ध काव्य संकलन से प्रेरणा लेते हुए 10 दिसंबर 1944 को प्रयाग विश्वविद्यालय के साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले कुछ उत्साही युवक मित्रों द्वारा परिमल समूह की स्थापना की गई। ‘परिमल’ द्वारा अखिल भारतीय स्तर की गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं जिनमें कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक आदि पर खुली आलोचना और उन्मुक्त बहस की जाती। परिमल का कार्यक्षेत्र इलाहाबाद था। जौनपुर, मुंबई, मथुरा, पटना, कटनी में भी इसकी शाखाएँ रहीं। परिमल ने इलाहाबाद में साहित्य-चिंतन के प्रति नए दृष्टिकोण का न केवल निर्माण किया बल्कि शहर के वातावरण को एक साहित्यिक संस्कार देने का प्रयास भी किया।

फ़ादर कामिल बुल्के (1909-1982)
शिक्षा-एम०ए०, पीएच-डी० (हिंदी)
प्रमुख कृतियाँ – रामकथा : उत्पत्ति और विकास, रामकथा और तुलसीदास, मानस-कौमुदी, ईसा-जीवन और दर्शन, अंग्रेज़ी-हिंदी कोश, (1974 में पदमभूषण से सम्मानित)।

JAC Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। उन्होंने यह पाठ फ़ादर बुल्के की स्मृतियों को याद करते हुए लिखा है। फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण करना सरल नहीं है, परंतु लेखक की स्मृतियों के आधार पर फ़ादर का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया गया है –
1. परिचय – फ़ादर का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था। उनके परिवार में माता-पिता, दो भाई और एक बहन थी। इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में उनमें संन्यासी बनने की इच्छा जागृत हुई। वे संन्यासी बनकर भारत आ गए और इस तरह उनकी कर्मभूमि भारत बनी।

2. व्यक्तित्व – फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व हर किसी के हृदय में अपनी छाप छोड़ता था। उनका रंग गोरा था। उनकी दाढ़ी भूरी थी, जिसमें सफ़ेदी की झलक भी दिखाई देती थी। उनकी आँखें नीली थीं। उनके चेहरे पर तेज़ था। उनका व्यक्तित्व उन्हें भीड़ – में अलग पहचान देता था।

3. शिक्षा – रेम्सचैपल शहर में जब उन्होंने संन्यास लिया उस समय वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे। भारत आकर उन्होंने कोलकाता से बी०ए०, इलाहाबाद से एम० ए० और प्रयाग विश्वविद्यालय से हिंदी में शोधकार्य किया। शोध का विषय था – ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’।

4. अध्यापन कार्य – फादर बुल्के सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष थे। वहाँ उन्होंने अपना अंग्रेजी-हिंदी कोश लिखा, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने बाइबिल का भी अनुवाद किया।

5. शांत स्वभाव-फ़ादर बुल्के शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें कभी भी किसी ने क्रोध में नहीं देखा था। उनका शांत स्वभाव हर किसी को प्रभावित करता था।

6. ओजस्वी वाणी-फ़ादर बुल्के की वाणी ओजस्वी थी। उनके मुख से निकले दो सांत्वना के शब्द अँधेरे जीवन में रोशनी ला देते थे। उनके विचार ऐसे होते थे, जिन्हें कोई काट नहीं सकता था।

7. बड़े भाई की भूमिका में-फ़ादर बुल्के प्रत्येक व्यक्ति के लिए बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका वात्सल्य सबके लिए देवदार पेड़ की छाया के समान था। ‘परिमल’ में काम करते समय वहाँ का वातावरण एक परिवार की तरह था, जिसके बड़े सदस्य फ़ादर थे। वे बड़े भाई की तरह सबको सुझाव और राय देते थे।

8. मिलनसार-फ़ादर बुल्के मिलनसार व्यक्ति थे। वे जिससे एक बार रिश्ता बना लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। जब भी वे दिल्ली जाते, तो सबसे मिलकर आते थे; चाहे वह मिलना दो मिनट का होता था।

9. हिंदी भाषा के प्रति प्यार-फ़ादर बुल्के एक विदेशी होते हुए भी बहुत अपने थे। उनके अपनेपन का कारण था-उनका भारत, भारत की संस्कृति और भारतीय भाषा हिंदी से विशेष प्यार। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे और इसके लिए प्रयासरत भी रहते थे। उनकी हिंदी भाषा के प्रति चिंता प्रत्येक मंच पर स्पष्ट देखी जा सकती थी। उन्हें उस समय बहुत झुंझलाहट होती थी, जब हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा करते थे। उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों से विशेष प्रेम था।

10. कष्टदायी मृत्यु-फ़ादर बुल्के शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। वे दूसरों के दुख से जल्दी दुखी हो जाते थे। जिन्होंने सदैव अपने स्वभाव से मिठास बाँटी थी, उसी की मृत्यु ज़हरबाद से हुई थी। उन्हें अंतिम समय में बहुत यातना सहन करनी पड़ी थी। उन्होंने अपने जीवन के सैंतालीस साल भारत में बिताए थे। मृत्यु के समय उनकी आयु तिहत्तर वर्ष थी। 18 अगस्त 1982 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हुई।

फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। इसलिए लेखक का उनको याद करना एक उदास शांत संगीत सुनने जैसा था।

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प्रश्न 2.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ हमें क्या संदेश देता है?
उत्तर :
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ एक संस्मरण है। इसके माध्यम से लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ फादर बुल्के को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। फ़ादर बुल्के का जीवन हम भारतवासियों के लिए एक प्रेरणा है। फ़ादर बुल्के विदेशी होते हुए भी भारत, भारत की भाषा और संस्कृति से बहुत गहरे जुड़े हुए थे। उन्होंने स्वयं को सदैव एक भारतीय कहा था। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत प्रयास किए था।

हम लोगों को फ़ादर बुल्के के जीवन से यह संदेश लेना चाहिए कि जब एक विदेशी अनजान देश, अनजान लोगों और अनजान भाषा को अपना बना सकता है तो हम अपने देश, अपने लोगों और अपनी भाषा को अपना क्यों नहीं बना सकते? हमें अपने भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। अपने देश और उसकी राष्ट्रभाषा हिंदी के सम्मान की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।

प्रश्न 3.
लेखक को ‘परिमल’ के दिन क्यों याद आते थे?
अथवा
‘परिमल’ के बारे में आप क्या जानते हैं? इस संदर्भ में लेखक को फ़ादर कामिल बुल्के क्यों याद आते हैं?
उत्तर :
‘परिमल’ में काम करने वाले सभी लोग पारिवारिक रिश्ते में बंधे हुए लगते थे, जिसके बड़े सदस्य फ़ादर बुल्के थे। फ़ादर बुल्के परिमल की सभी गतिविधियों में भाग लेते थे। वे उनकी सभाओं में गंभीर बहस करते थे। उनकी रचनाओं पर खुले दिल से अपनी राय और सुझाव देते थे। लेखक को सदैव वे बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। इसलिए लेखक को परिमल के दिन याद आ रहे थे। परिमल उनका शोधग्रंथ भी पढ़ा गया था। परिमल में उन्होंने अनेक कार्य किए थे जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

प्रश्न 4.
फ़ादर बुल्के के परिवार के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का भरा-पूरा परिवार था। परिवार में दो भाई, एक बहन, माँ और पिता थे। फ़ादर बुल्के के पिता व्यवसायी थे। एक भाई पादरी था और दूसरा भाई कहीं काम करता था। उनकी बहन सख्त और जिद्दी स्वभाव की थी। उसकी शादी बहुत देर से हुई थी। उन्हें अपनी माँ से विशेष लगाव था। प्रायः वे अपनी माँ की यादों में डूब जाते थे। उनका अपने पिता और भाइयों से विशेष लगाव नहीं था। भारत आने के बाद फ़ादर दो या तीन बार ही बेल्जियम गए थे।

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प्रश्न 5.
फ़ादर बुल्के ने भारत में आकर कहाँ-कहाँ से शिक्षा प्राप्त की?
उत्तर :
फ़ादर रेम्सचैपल से संन्यासी बनकर भारत आए थे। उन्होंने दो साल तक ‘जिसेट संघ’ में रहकर पादरियों से धर्माचार की पढ़ाई की। ‘बाद में वे 9-10 सालों तक दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। उन्होंने कोलकाता से बी० ए० और इलाहाबाद से एम० ए० की पढ़ाई की। प्रयाग में डॉ० धीरेंद्र वर्मा हिंदी के विभागाध्यक्ष थे। वहीं पर फ़ादर ने अपना शोध-कार्य पूरा किया। उनके शोध का विषय था-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’। इस तरह उन्होंने भारत आकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

प्रश्न 6.
भारत से अपने लगाव के बारे में फ़ादर बुल्के क्या कहते थे?
उत्तर :
भारत से फ़ादर का स्वाभाविक लगाव था। अपने मन में आए संन्यासी के भाव को ईश्वर की इच्छा मानकर उन्होंने भारत आने का निर्णय किया। जब फ़ादर से पूछा गया कि वे भारत ही क्यों आए, तब उन्होंने कहा कि वे भारत के प्रति लगाव रखते हैं तथा अपने इसी लगाव के कारण वे भारत चले आए।

प्रश्न 7.
क्या फ़ादर बुल्के के जीवन का अनुकरण किया जा सकता है ?
उत्तर :
हाँ, फ़ादर बुल्के के जीवन का अनुकरण किया जा सकता है। वे मानव के रूप में एक दिव्य ज्योति थे, जो दूसरों को प्रकाश देने का काम करते थे। मानव सेवा उनका परम लक्ष्य था। मानव-समाज की भलाई के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। इसलिए उनके जीवन एवं व्यक्तित्व का अनुकरण करना अपने आप में एक उत्तम कार्य है।

प्रश्न 8.
लेखक किसकी याद में नतमस्तक था?
उत्तर :
लेखक फ़ादर कामिल बुल्के की याद में नतमस्तक था, जो एक ज्योति के समान प्रकाशमान थे। लेखक फ़ादर की ममता, उनके हृदय में व्याप्त करुणा तथा उनकी तपस्या का अत्यधिक सम्मान करता था। इसी कारण उसका सिर फ़ादर की याद में झुका हुआ था।

प्रश्न 9.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ किस प्रकार की विधा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है। लेखक ने इस संस्मरण में अपने अतीत के पलों को उकेरा है। उन्होंने फ़ादर बुल्के तथा उनसे जुड़ी यादों का उल्लेख किया है। उनके प्रति अपने लगाव तथा प्रेम को उजागर किया है। उन्होंने बड़े ही भावपूर्ण स्वर में कहा है कि ‘फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।’

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प्रश्न 10.
फ़ादर की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
उत्तर :
फ़ादर का जन्म बेल्जियम के रैम्सचैपल नामक शहर में हुआ था। उनकी मृत्यु 18 अगस्त, 1982 को भारत में हुई थी। उनकी मृत्यु का कारण ज़हरबाद था।

प्रश्न 11.
हिंदी साहित्य में फ़ादर बुल्के का क्या योगदान था?
अथवा
फ़ादर बुल्के ने भारत में रहते हुए हिंदी के उत्थान के लिए क्या कार्य किए?
उत्तर :
फ़ादर बल्के हिंदी प्रेमी थे। हिंदी भाषा से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। इसी उन्होंने अपना शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्याल के हिंदी विभाग से पूरा किया था। उनका सेंट जेवियर्स कॉलेज रॉची में हिंदी और संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष का कार्य भार संभालना उनके हिंदी-प्रेमी होने का पुख्ता प्रमाण है। उन्होंने पवित्र ग्रंथ बाइबिल का हिंदी में अनुवाद भी किया था।

पठित गद्याश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिविरिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और फ़ादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों।

(क) परिमल से आप क्या समझते हैं?
(i) एक सामाजिक संस्था का नाम है।
(ii) एक काव्य-रचना
(iii) एक नाटक मंडली का नाम है
(iv) साहित्यिक संस्था का नाम है
उत्तर :
(iv) साहित्यिक संस्था का नाम है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

(ख) फ़ादर को याद करना कैसा है?
(i) खारे पानी के समान
(ii) एक उदास संगीत को सुनने के समान
(iii) नदी के जल स्नान करने के समान
(iv) समुद्र के जल पीने के समान
उत्तर :
(ii) एक उदास संगीत को सुनने के समान

(ग) किनको देखना करुणा के जल में स्नान करने के समान है?
(i) लेखक को
(ii) फ़ादर बुल्के को
(iii) पुरोहित को
(iv) बड़े भाई को
उत्तर :
(ii) फ़ादर बुल्के को

(घ) फ़ादर बुल्के की बातें क्या करने की प्रेरणा देती थी?
(i) परोपकार की
(ii) स्वच्छ रखने की
(ii) कर्म करने की
(iv) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(iii) कर्म करने की

(ङ) घर के उत्सवों में फ़ादर की क्या भूमिका रहती थी?
(i) बड़े भाई की
(ii) बड़े भाई और पुरोहित की
(iii) पुरोहित की
(iv) मुखिया की
उत्तर :
(ii) बड़े भाई और पुरोहित की

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) फ़ादर बुल्के किस भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे?
(i) उर्दू
(ii) अंग्रेजी
(iii) संस्कृत
(iv) हिंदी
उत्तर :
(iv) हिंदी

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

(ख) फ़ादर ने ‘जिसेट संघ’ में दो वर्ष किस विषय की पढ़ाई की?
(i) इंजीनियरिंग की
(ii) डॉक्टर की
(iii) धर्माचार की
(iv) शिक्षण की
उत्तर :
(iii) धर्माचार की

(ग) फ़ादर की उपस्थिति किस वृक्ष की छाया के समान प्रतीत होती थी?
(i) पीपल की
(ii) देवदार की
(iii) कीकर की
(iv) बरगद की
उत्तर :
(ii) देवदार की

(घ) फ़ादर कामिल बुल्के अकसर किसकी यादों में खो जाते थे?
(i) पत्नी की
(ii) बहन की
(iii) माँ की
(iv) पुत्री की
उत्तर :
(ii) माँ की

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(ङ) फ़ादर ने किसके प्रसिद्ध नाटक का रूपांतर हिंदी में किया?
(i) नीला पंछी
(ii) ब्लूबर्ड
(iii) मातरलिंक
(iv) लहरों के राजहंस
उत्तर :
(iii) मातरलिंक

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. फ़ादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे ? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था। वह देह की इस यातना की परीक्षा की उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दें?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘फ़ादर’ शब्द से किस व्यक्ति की ओर संकेत किया गया है और उनकी मृत्यु कैसे हुई ?
3. लोगों के प्रति फ़ादर का व्यवहार कैसा था?
4. ईश्वर के प्रति फ़ादर के क्या विचार थे ?
5. ‘उम्र की आखिरी देहरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इन शब्दों का क्यों प्रयोग किया है?
उत्तर :
1. पाठ-मानवीय करुणा की दिव्य चमक, लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
2. बेल्जियम से भारत में राम-कथा पर शोध करने आए डॉ० कामिल बुल्के को ‘फ़ादर’ कहा गया है। उनकी मृत्यु गैंग्रीन से हुई थी। गैंग्रीन एक प्रकार का फोडा होता है, जिसका ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
3. फ़ादर कामिल बुल्के का लोगों के प्रति अत्यंत प्रेमपूर्ण तथा मधुर व्यवहार था। वे सबसे खुले दिल से मिलते थे। उनके मन में सबके प्रति ममता तथा अपनत्व का भाव भरा था। वे सबको सुखी देखना चाहते थे।
4. फ़ादर कामिल बुल्के की ईश्वर पर अटूट आस्था थी। वे उस परमात्मा की ही इच्छा को ही सबकुछ मानकर अपने सभी कार्य करते थे। वे परमात्मा के दिए हुए सुख-दुखों को उसकी देन मानकर स्वीकार करते थे।
5. ‘उम्र की आखिरी देहरी’ से तात्पर्य बुढ़ापे से है। लेखक ने यहाँ इन शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा है कि जब फ़ादर बुल्के सारा जीवन लोगों की भलाई करते रहे, तो उन्हें बुढ़ापे में ईश्वर ने इतनी कष्टप्रद भयंकर बीमारी उनकी कौन-सी परीक्षा लेने के लिए दी थी?

फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मज़ाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक के अनुसार फ़ादर को याद करना कैसा और क्यों है?
2. लेखक के अनुसार फ़ादर को देखना और सुनना कैसा था?
3. ‘परिमल’ क्या था? वहाँ कैसी चर्चाएँ होती थीं?
4. घर के उत्सवों में फ़ादर का क्या योगदान रहता था?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार फ़ादर कामिल बुल्के को याद करना ऐसा है, जैसे हम खामोश बैठकर उदास शांत संगीत सुन रहे हों। उन्हें स्मरण करने से उदासी घेर लेती है, परंतु उनके शांत स्वरूप का ध्यान आते ही मनोरम संगीत के स्वर गूंजने लग जाते हैं।

2. लेखक के अनुसार फ़ादर बुल्के को देखने मात्र से ऐसा लगता था, जैसे उन्हें हम किसी पवित्र सरोवर के उज्ज्वल जल में स्नान करके पवित्र हो गए हों। उनसे बातचीत करना तथा उनकी बातें सुनना कर्म करने की प्रेरणा भर देता था।

3. ‘परिमल’ एक साहित्यिक संस्था थी। इसमें समय-समय पर साहित्यिक विचार गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं, जिनमें तत्कालीन साहित्य की विभिन्न विधाओं पर चर्चा होती थी। इन गोष्ठियाँ में नए-पुराने सभी साहित्यकार अपने-अपने विचार व्यक्त करते थे।

4. घर के उत्सवों में फ़ादर बुल्के सबके साथ मिल-जुलकर उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। वे एक बड़े भाई के समान अथवा एक पारिवारिक पुरोहित के समान सबको आशीर्वाद देते थे। उनके इस व्यवहार से सभी पुलकित हो उठते थे।

3. फ़ादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन में संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गरमी, सरदी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है?

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. फ़ादर बुल्के को ‘संकल्प से संन्यासी’ कहने से लेखक का क्या अभिप्राय है?
2. रिश्तों के संबंध में फ़ादर बुल्के के क्या विचार थे ?
3. लेखक ने किस गंध के महसूस होने की बात कही है?
4. ‘यह कौन संन्यासी करता है?’ इस कथन से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर :
1. लेखक के इस कथन का अभिप्राय है कि फ़ादर बुल्के ने दृढ़ निश्चयपूर्वक संन्यास लिया था। उन्होंने किसी के कहने अथवा दबाव में आकर संन्यास नहीं लिया था। किसी लालच के वशीभूत होकर अथवा कर्म-क्षेत्र से पलायन करने के लिए भी उन्होंने संन्यास नहीं लिया था। उन्होंने स्वेच्छा से संन्यास लिया था।

2. एक संन्यासी होते हुए भी फ़ादर बुल्के रिश्तों की गरिमा समझते थे। तथा रिश्तों को निभाना जानते थे। जिसके साथ उनका कोई संबंध बन जाता था, उसे वे अंतकाल तक निभाते थे। वे रिश्ते जोड़कर तोड़ते नहीं थे।

3. लेखक कहता है कि यदि फ़ादर बुल्के से कई वर्षों बाद मुलाकात होती थी, तो भी वे बड़ी प्रगाढ़ता से मिलते थे। उनके साथ जो रिश्ते थे, उसकी गहराई की सुगंध उस मिलन से महसूस होती थी। उनका अपनापन रिश्तों को और भी अधिक मज़बूती देता था।

4. लेखक बताता है कि फ़ादर बुल्के जब कभी दिल्ली आते थे, तो वे अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर उससे मिलने अवश्य आते थे। इस प्रकार मिलने में चाहे उन्हें गरमी अथवा सरदी का सामना करना पड़ता, वे इसकी भी चिंता नहीं करते थे। उनकी इसी स्वभावगत विशेषता के कारण लेखक को कहना पड़ा कि मिलने के लिए ऐसा प्रयास कोई भी संन्यासी नहीं करता है।

4. उनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच में इसकी तकलीफ़ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते। बस इसी एक सवाल पर उन्हें झुंझलाते देखा है और हिंदी वालों द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा पर दुख करते उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुख-तकलीफ़ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दुख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. फ़ादर कामिल बुल्के को किसकी और क्यों चिंता रहती थी? इसे वे कैसे व्यक्त करते थे?
2. फ़ादर बुल्के झुंझलाते क्यों थे? उन्हें क्या दुख था?
3. लेखक ने यहाँ फ़ादर बुल्के के किस स्वभाव की विशेषता का वर्णन किया है?
4. फ़ादर बुल्के के सांत्वना भरे शब्द कैसे होते थे?
उत्तर :
1. फ़ादर बुल्के को इस बात की चिंता रहती थी कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं मिल रहा है। हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने के लिए वे जहाँ कहीं भी वक्तव्य देते थे, अपनी इस चिंता को व्यक्त करते थे तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन करने के पक्ष में उचित तर्क देते थे।

2. फ़ादर बुल्के इसी प्रश्न पर झुंझलाते थे कि हिंदी को अपने ही देश में उचित स्थान नहीं मिल पा रहा। उन्हें इस बात पर बहुत दुख था कि स्वयं हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा कर रहे हैं। हिंदी वालों द्वारा हिंदी का अनादर तथा अनदेखी करने पर वे बहुत दुखी हो जाते थे।

3. इन पंक्तियों में लेखक ने फ़ादर बुल्के के स्वभाव का उल्लेख करते हुए कहा है कि वे जब भी किसी से मिलते थे, तो एक आत्मीय के रूप में उस व्यक्ति से उसके घर-परिवार, उसके सुख-दुख आदि के बारे में पूछते थे।

4. यदि कोई दुखी व्यक्ति फ़ादर बुल्के को अपनी दुखभरी कहानी सुनाता था, तो फ़ादर उस व्यक्ति को इस प्रकार से सांत्वना देते थे कि उस व्यक्ति को लगता था मानो उसके सभी कष्ट व दुख दूर हो गए हों। लेखक को लगता है कि फ़ादर ने किसी के दुख को दूर करने वाले सांत्वना के इन शब्दों को गहरी तपस्या से ही प्राप्त किया था।

5. इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘छायादार फल-फूल, गंध से भरा’ क्यों कहा है ?
2. लेखक के लिए फ़ादर की स्मृति कैसी और क्यों है?
3. लेखक ने फ़ादर को कैसे श्रद्धांजलि दी?
4. लेखक के लिए फ़ादर बुल्के क्या थे?
उत्तर :
1. लेखक ने फ़ादर बुल्के के स्वभाव में सबके प्रति ममता, स्नेह, दया, करुणा आदि गुणों को देखकर कहा है कि वे एक ऐसे विशाल वृक्ष के समान थे जो सबको अपनी छाया, फल-फूल और सुगंध प्रदान करता रहता है; परंतु स्वयं कुछ नहीं लेता। फ़ादर सबको अपना स्नेह बाँटते रहे।

2. लेखक के लिए फ़ादर बुल्के की स्मृति पवित्र भावनाओं से युक्त है। जैसे किसी यज्ञ की पवित्र अग्नि की तपस सदा अनुभव की जा सकती है, उसी प्रकार से लेखक के मन में भी फ़ादर की पुनीत स्मृति आजीवन बनी रहेगी। उनकी मानवीय करुणा ने लेखक के मन में यह भावना जागृत की है।

3. लेखक ने अपने इस आलेख ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ के माध्यम से फ़ादर को श्रद्धांजलि दी है। लेखक उनकी पवित्र एवं करुणामय जीवन-पद्धति से प्रभावित रहा है।

4. लेखक के लिए फ़ादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा की दिव्य चमक के समान थे। वे लेखक के लिए बड़े भाई के समान मार्गदर्शक, आशीर्वाददाता तथा शुभचिंतक थे। लेखक को उन जैसा हिंदी-प्रेमी, संन्यासी होते हुए भी संबंधों को गरिमा प्रदान करने वाला, सबके सुख-दुख का साथी अन्य कोई नहीं दिखाई देता था।

मानवीय करुणा की दिव्या चमक Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-नई कविता के सशक्त कवि तथा प्रतिभावान साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन 1927 ई० हुआ था। सन 1949 ई० में इन्होंने इलाहाबाद से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने कुछ वर्ष तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में काम किया। इन्होंने ‘दिनमान’ में उपसंपादक तथा बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ में संपादक के रूप में कार्य किया था। इन्हें ‘टियों पर टंगे लोग’ कविता-संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सन 1983 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कविता-संग्रह – काठ की घंटियाँ, खूटियों पर टँगे लोग, जंगल का दर्द, कुआनो नदी।
उपन्यास – पागल कुत्तों का मसीहा, सोया हुआ जल।
कहानी संग्रह – लड़ाई।
नाटक – बकरी।
लेख-संग्रह – चरचे और चरखे।
बाल-साहित्य-लाख की नाक, बतूता का जूता, भौं-भौं, खौं-खौँ।

भाषा-शैली – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा-शैली अत्यंत सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने कहीं भी असाधारण अथवा कलिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया है। मानवीय करुणा की दिव्य चमक इनका फ़ादर कामिल बुल्के से संबंधित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने उनसे संबंधित कुछ अंतरंग प्रसंगों को उजागर किया है। फ़ादर की मृत्यु पर लेखक का यह कथन इसी ओर संकेत करता है-‘फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरे के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों?’ लेखक ने वात्सल्य, यातना, आकृति, साक्षी, वृत्त जैसे तत्सम शब्दों के साथ ही महसूस, ज़हर, छोर, सँकरी, कब्र जैसे विदेशी तथा देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है। लेखक ने भावपूर्ण शैली में फ़ादर को स्मरण करते हुए लिखा है-‘फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था।’ लेखक ने फ़ादर से संबंधित अपनी स्मृतियों को अत्यंत सहज रूप से प्रस्तुत किया है।

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पाठ का सार :

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। यह पाठ एक संस्मरण है। लेखक ने इस पाठ में फ़ादर कामिल बुल्के से संबंधित स्मृतियों का वर्णन किया है। फादर बुल्के ने अपनी जन्मभूमि रैम्सचैपल (बेल्जियम) को छोड़कर भारत को अपनी कार्यभूमि बनाया। उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों से विशेष लगाव था। फ़ादर की मृत्यु जहरबाद से हुई थी। उनके साथ ऐसा होना ईश्वर का अन्याय था। इसका कारण यह था कि वे सारी उम्र दूसरों को अमृत सी मिठास देते रहे थे।

उनका व्यक्तित्व ही नहीं अपितु स्वभाव भी साधुओं जैसा था। लेखक उन्हें पैंतीस सालों से जानता था। वे जहाँ भी रहे, अपने प्रियजनों पर ममता लुटाते रहे। फ़ादर को याद करना, देखना और सुनना-ये सबकुछ लेखक के मन में अजीब शांत-सी हलचल मचा देते थे। उसे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं, जब वह उनके साथ काम करता था। फादर बड़े भाई की भूमिका में सदैव सहायता के लिए तत्पर रहते थे। उनका वात्सल्य सबके लिए देवदार पेड़ की छाया के समान था। लेखक को यह समझ में नहीं आता कि वह फ़ादर की बात कहाँ से शुरू करे।

फ़ादर जब भी मिलते थे, जोश में होते थे। उनमें प्यार और ममता कूट-कूटकर भरी हुई थी। किसी ने भी कभी उन्हें क्रोध में नहीं देखा था। फ़ादर बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, जब वे संन्यासी होकर भारत आ गए। उनका पूरा परिवार बेल्जियम के रैम्सचैपल में रहता था। भारत में रहते हुए वे अपनी जन्मभूमि रैम्सचैपल और अपनी माँ को प्रायः याद करते थे। वे अपने विषय में बताते थे कि उनकी माँ ने उनके बचपन में ही घोषणा कर दी थी कि यह लड़का हाथ से निकल गया है और उन्होंने अपनी माँ की बात पूरी कर दी। वे संन्यासी बनकर भारत के गिरजाघर में आ गए।

आरंभ के दो साल उन्होंने धर्माचार की पढ़ाई की। इसके बाद 9-10 साल तक दार्जिलिंग में पढ़ाई की। कलकत्ता से उन्होंने बी० ए० तथा इलाहाबाद से एम०ए० किया था। वर्ष 1950 में उन्होंने अपना शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से पूरा किया था। उनके शोधकार्य का विषय-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ था। उन्होंने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिंदी में ‘नीलपंछी’ नाम से रूपांतर किया। वे सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिंदी और संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे। यहाँ रहकर उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया। उन्होंने बाइबिल का हिंदी में अनुवाद भी किया। राँची में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था।

फादर बुल्के मन से नहीं अपितु संकल्प से संन्यासी थे। वे जिससे एक बार रिश्ता जोड़ लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। दिल्ली आकर कभी वे बिना मिले नहीं जाते थे। मिलने के लिए सभी प्रकार की तकलीफों को सहन कर लेते थे। ऐसा कोई भी संन्यासी नहीं करता था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। वे हर सभा में हिंदी को सर्वोच्च भाषा बनाने की बात करते थे। वे उन लोगों पर झुंझलाते थे, जो हिंदी भाषा वाले होते हुए भी हिंदी की उपेक्षा करते थे। उनका स्वभाव सभी लोगों की दुख-तकलीफों में उनका साथ देता था। उनके मुँह से निकले सांत्वना के दो बोल जीवन में रोशनी भर देते थे।

लेखक की जब पत्नी और पुत्र की मृत्यु हुई, उस समय फ़ादर ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “हर मौत दिखाती है जीवन को नई राह।” लेखक को फ़ादर की बीमारी का पता नहीं चला। वह उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली पहुंचा था। वे चिरशांति की अवस्था में लेटे थे। उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1982 को हुई। उन्हें कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में ले जाया गया। उनके ताबूत के साथ रघुवंश जी, जैनेंद्र कुमार, डॉ० सत्य प्रकाश, अजित कुमार, डॉ० निर्मला जैन, विजयेंद्र स्नातक और रघुवंश जी का बेटा आदि थे। साथ में मसीही समुदाय के लोग तथा पादरीगण थे।

सभी दुखी और उदास थे। उनका अंतिम संस्कार मसीही विधि से हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में रोने वालों की कमी नहीं थी। इस तरह एक छायादार व फल-फूल गंध से भरा वृक्ष हम सबसे अलग हो गया। उनकी स्मृति जीवन भर यज्ञ की पवित्र अग्नि की आँच की तरह सबके मन में बनी रहेगी। लेखक उनकी पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धा से नतमस्तक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

कठिन शब्दों के अर्थ :

देह – शरीर। यातना – कष्ट। परीक्षा – इम्तिहान। आकृति – आकार। साक्षी – गवाह। महसूस – अनुभव। निर्मल – साफ़, स्वच्छ। संकल्प – निश्चय। उत्सव – त्योहार, शुभ अवसर। आशीष – आशीर्वाद। वात्सल्य – ममता, प्यार। स्मृति – यादें। डूब जाना – खो जाना। सांत्वना – सहानुभूति। छोर – किनारा। वृत्त – घेरा। आवेश – जोश, उत्साह। जहरबाद – गैंग्रीन, एक तरह का ज़हरीला और कष्ट साध्य फोड़ा। आस्था – विश्वास, श्रद्धा। देहरी – दहलीज़। सँकरी – तंग। पादरी – ईसाई धर्म का पुरोहित या आचार्य। आतुर – अधीर, उत्सुक। निर्लिप्त – आसक्ति रहित, जो लिप्त न हो। आवेश – जोश, उत्साह। लबालब – भरा हुआ। गंध – महक। धर्माचार – धर्म का पालन या आचरण। रूपांतर – किसी वस्तु का बदला हुआ रूप। अकाट्य – जो कट न सके, जो बात काटी न जा सके। विरल – कम मिलने वाली। ताबूत – शव या मुरदा ले जाने वाला संदूक या बक्सा। करील – झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कँटीला और बिना पत्ते का पौधा। गैरिक वसन – साधुओं द्वारा धारण किए जाने वाले गेरुए वस्त्र। श्रद्धानत – प्रेम और भक्तियुक्त पूज्यभाव।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 15 Probability

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 15 Probability

Probability:
Theory of probability deals with measurement of uncertainty of the occurrence of some event or incident in terms of percentage or ratio.
→ Sample Space: Set of all possible outcomes.
→ Trial: Trial is an action which results in one of several outcomes.
→ An experiment: An experiment is any kind the of activity such as throwing a die, tossing a coin, drawing a card. The different possibilities which can occur during an experiment. e.g. on throwing a dice, 1 dot, 2 dots, 3 dots, 4 dots, 5 dots, 6 dots can occur.
→ An event: Getting a ‘six’ in a throw of dice, getting a head, in a toss of a coin.
→ A random experiment: is an experiement that can be repeated numerous times under the same conditions.
→ Equally likely outcomes: The outcomes of a sample space are called equally likely if all of them have same chance of occurring.
→ Probability of an event A: Written as P(A) in a random experiment and is defined as –
P(A) = \(\frac{\text { Number of outcomes in favour of A }}{\text { Total number of possible outcomes }}\)

Important Properties:
(i) 0 ≤ P(A) ≤ 1
(ii) P (not happening of A) + P (happening of A) = 1
or, P(\(\bar{A}\)) + P(A) = 1
∴ P(\(\bar{A}\)) = 1 – P(A)
Probability of the happening of A = \(\frac{\text { Number of favourable outcomes }}{\text { Total number of possible outcomes }}\)
= \(\frac{\mathrm{m}}{\mathrm{m}+\mathrm{n}}\)
Probability of not happening of A (failing of A) = \(\frac{\mathrm{n}}{\mathrm{m}+\mathrm{n}}\)
where event A can happen in m ways and fail in n ways. All these ways being equally likely to occur.

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 15 Probability

Problems of Die:
A die is thrown once. The probability of
→ Getting an even number in the throwing of a die: the total number of outcomes is 6. Let A be the event of getting an even number then there are three even numbers 2, 4, 6.
∴ Number of favourable outcomes = 3.
P(A) = \(\frac{\text { Number of favourable outcomes }}{\text { Total number of possible outcomes }}\)
= \(\frac{3}{6}=\frac{1}{2}\)

→ Getting an odd number: Total no. of outcomes = 6,
favourable outcomes = 3 i.e. {1, 3, 5}
∴ P(A) = \(\frac{3}{6}=\frac{1}{2}\)
→ Getting a natural number P(A) = \(\frac{6}{6}\) = 1
→ Getting a number which is multiple of 2 and 3 = \(\frac{1}{6}\)
→ Getting a number ≥3 i.e. {3, 4, 5, 6},
P(A) = \(\frac{4}{6}\) = \(\frac{2}{3}\)
→ Getting a number 5 or 6, P(A) = \(\frac{2}{6}\) = \(\frac{1}{3}\)
→ Getting a number ≤5 i.e. {1, 2, 3, 4, 5},
P(A) = \(\frac{5}{6}\)

Problems Concerning Drawing a Card:

  • A pack of 52 cards
  • Face cards (King, Queen, Jack)

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ?
उत्तर :
लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया, तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए, जैसे उन्हें लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था, जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसलिए वे परेशान हो गए। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखने लगे। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर :
नवाब साहब ने बहुत नज़ाकत और सलीके से खीरा काटकर, उस पर नमक-मिर्च लगाया। फिर उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाने सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्य वस्तु खाने में शर्म अनुभव करते थे।

लेखक को डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसलिए उन्होंने खीरे को केवल सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब साहब के ऐसा करने से लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे थे। वे दिखावा पसंद इनसान थे। इसी स्वभाव के कारण उन्होंने लेखक को देखकर खीरा खाना अपना अपमान समझा।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
हम लेखक के इन विचारों से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है; क्योंकि प्रत्येक कहानी के पीछे कोई-न-कोई घटना, विचार अथवा पात्र अवश्य होता है। उदाहरण के लिए लेखक की इस कहानी ‘लखनवी-अंदाज़’ को ही ले सकते हैं, जिसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने के लिए सारा ताना-बाना बुना है। इसमें लेखक के इसी विचार की प्रमुखता है। घटना के रूप में रेलयात्रा तथा पात्र के रूप में लखनवी नवाब आ जाते हैं और कहानी बन जाती है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी बन सकती है। प्रत्येक कहानी में इन सबका होना बहुत आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
उत्तर
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? हम इस निबंध को ‘अकड़-नवाब’ नाम देना चाहते हैं, क्योंकि इस पाठ के नवाब साहब अपना सारा काम अकड़ कर करते हैं। वे किसी सहयात्री से बातचीत नहीं करते। खीरे को ऐसे काटते हैं, जैसे कोई विशेष वस्तु हो। ‘खीरा आम आदमी के खाने की वस्तु है’-यह याद आते ही वे उसे खाने के स्थान पर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं।

उनकी ये सभी हरकतें इस पाठ को ‘अकड़ नवाब’ शीर्षक देने के लिए बिलकुल सही हैं। इसके अतिरिक्त लेखक ने इस निबंध का नाम ‘लखनवी अंदाज़’ रखा है, जो लखनऊ के नवाबों के जिंदगी जीने के अंदाज़ का वर्णन करता है। लखनवी अंदाज़’ के अतिरिक्त इस निबंध का नाम ‘नवाब की सनक’ हो सकता है। इस निबंध में लेखक ने एक नवाब की सनक का वर्णन किया है।

नवाब एकांत में तो आम कार्य कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के सामने आम कार्य करते समय उन्हें शर्म महसूस होती है। इसके लिए वे आम कार्य को भी खास बनाने का बेतुका प्रयत्न करते हैं। इस निबंध के अनुसार नवाब खीरे को बड़ी नज़ाकत और सलीके से खाने के लिए तैयार करता है। लेकिन नवाब उन खीरों को लेखक के सामने नहीं खाना चाहता, इसलिए केवल से कर ही खीरे को खिड़की से बाहर फेंक देता है। यह कार्य केवल सनकी लोग ही कर सकते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है? इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
(ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं ?
उत्तर :
(क) नवाब साहब ने पहले खीरों को धोया और फिर तौलिए से उन खीरों को पोंछा। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरे के सिरे काटे और उन्हें अच्छी तरह से गोदा। उसके बाद खीरों को बहुत सावधानी से छीलकर फाँकों को तौलिए पर बड़े अच्छे ढंग से सजा दिया। नवाब साहब के पास खीरा बेचने वालों के पास से ली गई नमक-मिर्च-जीरा की पुड़िया थी। नवाब साहब ने तौलिए पर रखे खीरों की फांकों पर जीरा-नमक-मिर्च छिड़का। उन खीरों की फाँकों को देखने मात्र से ही मुँह में पानी आने लगा था। इस तरह नवाब साहब ने बड़े नज़ाकत और सलीके से खीरा खाने की तैयारी की।

(ख) हम गाजर, टमाटर, मूली आदि चीजों को खाना पसंद करते हैं। इन चीजों को पहले धोकर पोंछ लेते हैं। फिर उन्हें चाकू से साफ़ करके पतली-पतली फाँकें कर लेते हैं। इसके बाद उन पर नमक और मसाला लगाकर खाने के लिए तैयार कर लेते हैं। खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों बारे में पढ़ा-सुना होगा।

किसी एक के बारे में लिखिए। उत्तर नवाब साहब द्वारा खीरे को खाने के लिए तैयार करना और फिर उसे केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देना इसे नवाबी सनक कहा जा सकता है। इसी प्रकार हमने नवाबों की कई सनकों के बारे में सुना है। दो नवाब रेलवे स्टेशन पर गाड़ी पकड़ने के लिए जाते हैं। दोनों का एक ही डिब्बे के सामने आमना-सामना हो जाता है।

नवाबों में शिष्टाचार का बहुत महत्व होता है। इसी शिष्टाचार के कारण दोनों नवाब एक-दूसरे को डिब्बे में पहले जाने की बात करते हैं। गाड़ी चलने को तैयार हो जाती है, परंतु उन दोनों में से कोई डिब्बे में पहले चढ़ने की पहल नहीं करता। उनकी शिष्टाचार की सनक ने उनकी गाड़ी निकाल दी, परंतु दोनों अपनी जगह से टस-से-मस नहीं हुए।

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प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख करें।
उत्तर :
कभी-कभी किसी सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। उसकी सनक दूसरों को सुधरने के लिए मजबूर कर देती है। जैसे किसी को हर काम समय पर करने की आदत होती है। वह अपना सारा काम घड़ी की सुई के अनुसार करता है। आरंभ में उसकी इस आदत से लोग परेशान होते हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों को समय पर काम करने की आदत हो जाती है। इससे उनमें अनुशासन की भावना आ जाती है।

किसी-किसी व्यक्ति को सफ़ाई बहुत पसंद होती है। यदि उसके आस-पास का वातावरण बिखरा रहता है, तो वह चुपचाप सभी का काम करता रहता है; वह किसी से कुछ नहीं कहता। लोग उसको सफ़ाई-पसंद सनकी कहते हैं, परंतु वह फिर भी बिखरे हुए और गंदे सामान को साफ़ करके उचित स्थान पर रखता रहता है। उसकी इस आदत से लोगों में शर्मिंदगी का एहसास होता है और धीरे-धीरे वे भी अपनी आदतें सुधारने में लग जाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए –
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर :
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) कल्पना करना – अकर्मक क्रिया
(घ) खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) सिर काटे, झाग निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – अकर्मक क्रिया
(छ) लेट गए – अकर्मक क्रिया,
(ज) निकालना – सकर्मक क्रिया

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब-अर्ज’…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
‘नमस्ते’, ‘आइए’, ‘बैठिए’, ‘कृपया कुछ लीजिए’, ‘धन्यवाद’, ‘क्षमा करना’, ‘कृपया यह काम कर दें’ आदि कुछ शिष्टाचार सूचक कथन हैं।

प्रश्न 2.
‘खीरा…मेदे पर बोझ डाल देता है; क्या वास्तव में खीरा अपच करता है। किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर :
वास्तव में खीरा अपच खाद्य पदार्थ नहीं है; यह गरमियों में शीतलता प्रदान करता है परंतु इसका अधिक मात्रा में उपयोग करना नुकसान देता है। खाद्य पदार्थों का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है; जैसे-मौसम, व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, खाद्य पदार्थ के प्रति लगाव आदि। सरदी के मौसम में ठंडी वस्तुओं का कम प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

सबसे अधिक प्रभाव बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है। ऐसे ही गरमियों में गरमाहट देने वाली वस्तु का प्रयोग कम किया जाता है, क्योंकि वे शरीर के तापमान को बढ़ा देती हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सरदी में हम गर्म वस्तुओं तथा गरमी में ठंडी वस्तुओं का प्रयोग अधिक करते हैं। बरसात के दिनों में ऐसी वस्तुओं के प्रयोग से बचा जाता है, जो बद-बादी होती हैं।

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प्रश्न 3.
खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं, जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा करें।
उत्तर :
हमारे क्षेत्र में खाद्य पदार्थों से संबंधित बहुत-सी मान्यताएँ प्रचलित हैं। गरमियों में लू से बचने के लिए हम नींबू पानी, आम पन्ना, की लस्सी तथा बेल के शरबत का प्रयोग करते हैं। सरदियों में ठंड से बचने के लिए गुड़-शक्कर, मूंगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

प्रश्न 4.
पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढ़कर पढ़िए और संभव हो तो फ़िल्म भी देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस पाठ के माध्यम से बताना चाहता है कि बिना पात्रों, घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन-शैली का वर्णन किया है। लेखक को रेलगाड़ी के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। नवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है, लेकिन लेखक के सामने खीरा खाने में उसे संकोच होता है।

इसलिए अपने नवाबी अंदाज़ में लज़ीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है। नवाब के इस व्यवहार से लगता है कि वे आम लोगों जैसे कार्य एकांत में करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं किसी के देख लेने से उनकी शान में फर्क न आ जाए। आज का समाज भी ऐसी ही दिखावा पसंद संस्कृति का आदी हो गया है।

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प्रश्न 2.
लेखक ने नवाब की असुविधा और संकोच के लिए क्या अनुमान लगाया ?
उत्तर :
लेखक जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए बैठे थे। उनके सामने दो खीरे रखे थे। लेखक को देखकर उन्हें असुविधा और संकोच हो रहा था। लेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखे। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में उन्हे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उनके लिए असुविधा और संकोच का कारण बन रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक को खीरे खाने से इनकार करने पर अफ़सोस क्यों हो रहा था?
उत्तर :
नवाब साहब ने साधारण से खीरों को इस तरह से सँवारा कि वे खास हो गए थे। खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया, परंतु वह पहले ही खीरा खाने से इनकार कर चुका था। अब उसे अपना आत्म-सम्मान बचाना था। इसलिए नवाब साहब के दोबारा पूछने पर लेखक ने मेदा (आमाशय) कमज़ोर होने का बहाना बनाया।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरा खाने का कौन-सा रईसी तरीका अपनाया? इससे लेखक के ज्ञान-चक्षु कैसे खुले?
उत्तर :
नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण-सा खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खीरे को किसी कीमती वस्तु की तरह तैयार किया। उस लजीज खीरे को देखकर लेखक के मुँह में पानी आ गया। इसके बाद नवाब साहब खीरे की फाँक को उठाया और नाक तक ले जाकर सूंघा। खीरे की महक से उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने उस पानी को गटका और खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।

इस तरह उन्होंने सारा खीरा बाहर फेंक दिया और लेखक को गर्व से देखा। उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे वे लेखक से कह रहे हों कि नवाबों के खीरा खाने का यह खानदानी रईसी तरीका है। यह तरीका देखकर लेखक सोचने लगा कि बिना खीरा खाए, केवल सूंघकर उसकी महक और स्वाद की कल्पना से तृप्ति का डकार आ सकता है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से ‘नई कहानी’ क्यों नहीं बन सकती। इसी सोच ने लेखक के ज्ञान-चक्षु खोल दिए।

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प्रश्न 5.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज’ पाठ व्यंग्य प्रधान है। इस पाठ का मूल उद्देश्य यह दर्शाना है कि बिना पात्र, विचार, घटना के कहानी नहीं लिखी जा सकती है। साथ ही लेखक ने उन लोगों पर करारा व्यंग्य भी किया है, जो दिखावे तथा बनावटीपन में विश्वास रखते हैं।

प्रश्न 6.
नवाब साहब को देखते ही लेखक उसके प्रति व्यंग्य से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
लेखक के मन में पहले से ही नवाबों के प्रति व्यंग्य की धारणा बनी हुई थी कि वे अपनी आन-बान-शान को अत्यधिक महत्व देते हैं। वे खाने-पीने के बहुत शौकीन होते हैं। वे औरों के समक्ष स्वयं को सदाचारी तथा शिष्ट बनाकर प्रस्तुत करते हैं। उसे नवाब द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कार्य उसे मात्र दिखावा लग रहा था, इसलिए लेखक नवाब साहब के प्रति व्यंग्य से भर जाता है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर यशपाल की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यशपाल ने अपनी रचना में सहज स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लेखक ने उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है।

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प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज़’ किस प्रकार की रचना है?
अथवा
‘लखनवी अंदाज’ को रोचक कहानी बनाने वाली कोई दो बातें लिखिए।
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज़’ पतनशील सामंती-वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करके नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध रखता है। आज के समाज में दिखावटी संस्कृति को देखा जा सकता है।

पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। नवाब साहब ने करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्जी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के ख्याल से अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

(क) लखनऊ स्टेशन पर विक्रेता किसका इस्तेमाल का तरीका जानते हैं?
(i) सेब
(ii) खीरा
(iii) ककड़ी
(iv) पपीता
उत्तर :
(ii) खीरा

(ख) खीरे किसके पास थे?
(i) ट्रेन में बैठे ग्राहक के
(ii) यात्री लेखक के
(iii) नवाब साहब के
(iv) भिखारी के
उत्तर :
(iii) नवाब साहब के

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(ग) खीरा विक्रेता खीरे के साथ और क्या हाजिर करता था?
(i) काला नमक
(ii) चूरन
(iii) नींबू
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च
उत्तर :
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च

(घ) लेखक कनखियों से देखकर किसके बारे में सोच रहे थे?
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में
(ii) खीरे विक्रेता के बारे में
(iii) खीरे के स्वाद के बारे में
(iv) नवाब साहब की पोशाक के बारे में
उत्तर :
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में

(ङ) नवाब साहब की भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से क्या स्पष्ट था?
(i) खीरे को काटकर फेंकना चाहते थे।
(ii) खीरों को केवल सूंघना चाहते थे।
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।
(iv) लेखक को भी खीरे का स्वाद बताना चाहते थे।
उत्तर :
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(i) निम्न वर्ग पर
(ii) उच्च वर्ग पर
(iii) सफ़ेदपोश नेताओं पर
(iv) पतनशील सामंती वर्ग
उत्तर :
(iv) पतनशील सामंती वर्ग

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(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या करने की है?
(i) सोने की
(ii) कल्पना करने की
(iii) फल काटने की
(iv) रोने की धोने की
उत्तर :
(ii) कल्पना करने की

(ग) लखनऊ के खीरे की क्या विशेषता थी?
(i) लजीज
(ii) देसी
(iii) बासी
(iv) कषैला
उत्तर :
(i) लजीज

(घ) लेखक ने खीरे को क्या माना है?
(i) बहुमूल्य फल
(ii) अपदार्थ वस्तु
(iii) सुपाच्य वस्तु
(iv) स्वादिष्ट सब्जी
उत्तर :
(ii) अपदार्थ वस्तु

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ से क्या आशय है ?
3. लेखक ट्रेन की कौन-सी क्लास में यात्रा कर रहा था और क्यों?
4. ‘ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी।’ इस पंक्ति से लेखक ट्रेन की किस स्थिति की ओर संकेत कर रहा था?
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक किस क्लास में यात्रा करने की राय दे रहा था? उस क्लास में यात्रा करने से क्या हानि थी?
उत्तर :
1. पाठ-लखनवी अंदाज, लेखक-यशपाल।
2. जो साधारण ट्रेन प्रमुख नगर के आस-पास के क्षेत्रों में जाती है, उस ट्रेन को ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ कहते हैं। प्रमुख नगर में आस … पास से आने-जाने वाले दैनिक यात्री तथा अन्य लोग इस ट्रेन का लाभ उठाते हैं।
3. लेखक ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा था। द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में भीड़ नहीं होती तथा आराम से यात्रा की जा सकती थी। इसमें बैठने के लिए खिड़की के पास स्थान मिल जाता था, जिससे बाहर के दृश्य भी देखे जा सकते थे। लेखक एकांत में किसी कहानी का प्लाट भी सोचना चाहता था।
4. ट्रेन के इस वर्णन से लेखक संकेत कर रहा है कि ट्रेन में पुराने जमाने का भाप का इंजन लगा हुआ था, जो ट्रेन को चलाने से पहले फंकार-सी मारता था। यह फूंकार उसमें से भाप निकलने के कारण होती थी।
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करने की सलाह दे रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करने की – मुख्य हानि यह थी कि इसके लिए पैसे अधिक खर्च करने पड़ते थे।

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2. गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक जब प्लेटफार्म प ट्रेन की क्या स्थिति थी? लेखक ने क्या किया?
2. लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या हुआ?
3. लेखक ने डिब्बे में किसे और किस स्थिति में देखा?
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में क्या सोचा?
उत्तर :
1. लेखक जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो ट्रेन चल पड़ी थी। लेखक ने चलती हुई ट्रेन में सेकंड क्लास का एक छोटा-सा डिब्बा देखा। वह उस डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़ गया।
2. लेखक का अनुमान था कि जिस डिब्बे में वह चढ़ रहा है, वह खाली है। किंतु उसके अनुमान के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ था।
3. लेखक ने डिब्बे की एक बर्थ पर लखनवी नवाब जैसे एक भद्र पुरुष को पालथी मारकर बैठे हुए देखा। उन सज्जन के सामने तौलिए पर दो ताज़े और मुलायम खीरे रखे हुए थे।
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में सोचा कि उसके डिब्बे में अचानक कूद आने से उन सज्जन की एकांत साधना में विघ्न पड़ गया है। उसे लगा कि शायद ये सज्जन भी उसकी तरह ही किसी कहानी की रूप-रेखा बनाने में डूबे हुए हों अथवा उन्हें उसके द्वारा यह देखे जाने पर संकोच हो रहा हो कि वे खीरे जैसी मामूली वस्तु खा रहे हैं।

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3. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफ़र करता देखे।… अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफ़ेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. लेखक की पुरानी आदत क्या थी और क्यों?
2. लेखक किस बात का अनुमान करने लगा?
3. लेखक के अनुसार नवाब साहब सेकंड क्लास में सफ़र क्यों कर रहे थे ?
4. नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
उत्तर :
1. लेखक की पुरानी आदत थी कि वह जब अकेला अथवा खाली होता था, तो अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करने लग जाता था। वह एक लेखक था, इसलिए कल्पना के आधार पर अपनी रचनाएँ करता था। खाली समय में इन्हीं कल्पनाओं में डूबा रहता था कि अब क्या नया लिखा जाए।

2. लेखक नवाब साहब के संकोच और असुविधा के कारण का अनुमान करने लगा। वह सोचने लगा कि नवाब साहब अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। अधिक किराया खर्च न करना पड़े, इसलिए कुछ बचत करने के विचार से उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा। अब उन्हें यह अच्छा नहीं लग रहा होगा कि शहर का कोई दूसरा सज्जन उन्हें इस प्रकार द्वितीय श्रेणी में यात्रा करते हुए देखे।

3. लेखक का विचार था कि एकांत में यात्रा करने के उद्देश्य से नवाब साहब ने सेकंड क्लास में यात्रा करना उचित समझा होगा। इसके अतिरिक्त प्रथम श्रेणी में किराया भी अधिक लगता है। सेकंड क्लास में एकांत भी मिल जाएगा और किराए की भी बचत हो जाएगी।

4. लेखक के विचार में नवाब साहब ने अकेले में सफ़र काटने के लिए खीरे खरीद लिए होंगे। अब वे खीरे इसलिए नहीं खा रहे थे, क्योंकि उन्हें लेखक के सामने खीरे जैसी मामूली वस्तु खाने में संकोच हो रहा था।

4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बार फेंकते गए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. ‘सतृष्ण आँखों’ से देखने का क्या तात्पर्य है ? यहाँ कौन ऐसा कर रहा था?
2. नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास क्यों लिया?
3. नवाब साहब ने खीरे की फाँक का क्या किया?
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद कैसे लिया?
उत्तर :
1. जिन आँखों में किसी चीज़ को पाने की चाह होती है, उन्हें ‘सतृष्ण आँखें’ कहते हैं। यहाँ नवाब साहब कटे हुए खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खा लेने की इच्छा से देख रहे थे, परंतु वे इन्हें खा नहीं सकते थे।
2. नवाब साहब खिड़की के बाहर देखकर लंबी साँस इसलिए ले रहे थे, क्योंकि वे चाहकर भी खीरा खा नहीं पा रहे थे।
3. नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की फाँकों में से एक फाँक उठाई और उसे अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद उन्होंने उस फाँक को सँघा। उन्हें इससे इतना आनंद आया कि उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया और पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। इसके बाद उन्होंने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खाकर नहीं, बल्कि उन फाँकों को सूंघकर लिया। सूंघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक देते थे।

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5. नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों- यह है खानदानी रईसों का तरीका! नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
2. नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया?
3. लेखक को नवाब साहब की किस बात पर अपना सिर झुकाना पड़ा?
4. लेखक किस बात पर विचार कर रहा था?
5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया ?
6. नवाब साहब का खीरा खाने का ढंग किस तरह अलग था?
7. नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?
8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए क्या किया है?
उत्तर :
1. नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर उन्होंने खीरों को खिड़की के बाहर धोया और उन्हें तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिर काटा और उन्हें गोदकर उनका झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीलकर वे उनकी फाँकों को तौलिए पर सजाते गए और उन पर जीरा मिला नमक व लाल मिर्च छिड़क दी।

2. नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा। फाँक को सूंघने से मिले आनंद से उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया, जिसे वे गटक गए। इसके बाद उन्होंने वह फाँक खिड़की से बाहर फेंक दी। ऐसा ही उन्होंने खीरे की अन्य फाँकों के साथ किया। नवाब साहब ने इस प्रकार से खीरे का इस्तेमाल किया।

3. लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के इस्तेमाल की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा कि किस प्रकार से अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता और कोमलता प्रदर्शित करते हुए नवाब साहब ने खीरे का मात्र सूंघकर आनंद लिया था।

4. लेखक विचार कर रहा था कि जिस प्रकार से नवाब साहब ने मात्र सूंघकर खीरे का आनंद लिया है, क्या इससे पेट की संतुष्टि हो सकती है?

5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताया कि खीरा होता तो स्वादिष्ट है, परंतु आसानी से पचता नहीं है। इसके सेवन से आमाशय पर बोझ पड़ता है, इसलिए वे खीरा नहीं खाते हैं।

6. नवाब साहब ने बड़े ही सलीके से कटे हुए तथा नमक-मिर्च लगे खीरे की फाँकों को उठाया, उसे सूंघा तथा खाने की बजाय उसे एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंक दिया। तत्पश्चात वे ऐसा दर्शाने लगे जैसे खीरा खाने से उनका पेट भर गया हो।

7. नवाब साहब रसास्वादन के माध्यम से तृप्त होने के विचित्र तरीके से अपनी अमीरी को प्रकट करना चाहते थे।

8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को सूंघा तथा एक-एक करके बाहर फेंकते रहे तथा खीरा न खाने का कारण यह बताया कि वह आमाशय पर बोझ डालता है।

लखनवी अंदाज़ भगत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – हिंदी के यशस्वी उपन्यासकार, कहानी लेखक एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 1903 ई० में जाब के फ़िरोज़पुर छावनी में हआ था। इनके पिताजी हीरालाल हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के भुंपल गाँव के निवासी थे, जहाँ वे छोटी-सी दुकान चलाते थे। इनकी माता प्रेमा देवी एक अनाथालय में अध्यापिका थीं। माता स्वयं को शाम चौरासी के मंत्रियों की वंशज मानती थीं। संभवतः यही कारण है कि प्रेमा देवी नौकरी करके अलग रहने लगी थीं। पति की मृत्यु के पश्चात उनका कांगड़ा आना जाना प्रायः समाप्त हो गया था।

यशपाल की प्रारंभिक शिक्षा कांगड़ा में हुई थी। माता उन्हें दयानंद सरस्वती का सच्चा सिपाही बनाना चाहती थी, इसलिए इन्हें पढ़ने के लिए गुरुकुल कांगड़ी में भेजा गया। लेकिन अस्वस्थता के कारण इन्हें गुरुकुल कांगड़ी छोड़ना पड़ा। इसके बाद इन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी० ए० किया। यहीं पर रहते हुए यशपाल क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में इन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

इन्होंने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ काम किया और अनेक बार जेल भी गए। चंद्रशेखर के बलिदान के पश्चात यशपाल ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के कमांडर-इन-चीफ बने और अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वर्ष 1936 के पश्चात इनकी रुचि साम्यवादी विचारधारा में बढ़ी और इन्होंने लखनऊ से ‘विप्लव’ नामक पत्रिका निकालना प्रारंभ किया।

साम्यवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए यशपाल ने निरंतर संघर्ष किया। यशपाल की शादी जेल में ही हुई थी। इन्होंने अनेक बार विदेशों में भ्रमण किया और अपने संस्मरण लिखे। ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’, ‘राह बीती’ तथा ‘स्वार्गोद्यान बिन साँप’ इनके यात्रा वर्णन हैं। दिसंबर 1952 में इन्होंने वियाना में हुए विश्व शांति कांग्रेस में भाग लिया था। सन 1976 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ – यशपाल मुख्यतः उपन्यासकार हैं। अमिता’, ‘दिव्या’, ‘झूठा सच’, ‘देशद्रोही’, ‘दादा कामरेड’ तथा ‘मेरी तेरी उसकी बात’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। इन्होंने दो सौ से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। इनके प्रमुख कहानी-संग्रह ‘ज्ञान-दान’, ‘तर्क का तूफ़ान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘फूलों का कुर्ता’ आदि हैं। इनके निबंध ‘विप्लव’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। इनके प्रसिद्ध निबंध संग्रह हैं-‘बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है’, ‘देखा सोचा-समझा’, ‘मार्क्सवाद’, ‘गांधीवाद की शव परीक्षा’, ‘राम राज्य की कथा’, ‘चक्कर क्लब’, ‘बात-बात में बात’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘जग का मुजरा’ आदि।

भाषा-शैली – यशपाल ने अपनी रचनाओं में सहज एवं स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लखनवी अंदाज़’ इनकी पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है।

भाषा उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की है; जैसे – ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थीं।’ अन्यत्र भी इन्होंने सेकंड क्लास, सफ़ेदपोश, किफ़ायत, गुमान, मेदा, तसलीम, नफ़ासत, नज़ाकत, एवस्ट्रेक्ट, सकील जैसे विदेशी शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। कहीं-कहीं उदर, तृप्ति, प्लावित, स्फुरण जैसे तत्सम शब्द भी दिखाई दे जाते हैं।

इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है; जैसे-नवाब साहब की यह स्थिति – ‘नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया।’ लेखक ने अपनी सहज भाषा-शैली में रचना को रोचक बना दिया है।

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पाठ का सार :

‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक सिद्ध करना चाहता है कि बिना पात्रों व कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती, परंतु एक स्वतंत्र रचना का निरूपण किया जा सकता है। इसमें लेखक ने नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध नहीं रखता। आज के समाज में इस दिखावटी संस्कृति को सहज देखा जा सकता है। लेखक एकांत में नई कहानी पर सोच-विचार करना चाहता था। इसलिए सेकंड क्लास का किराया ज्यादा होते हुए भी उसी का टिकट लिया।

सेकंड क्लास में कोई नहीं बैठता था। गाड़ी छटने वाली थी, इसलिए वह दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ गया। जिस डिब्बे को वह खाली समझ रहा था, वहाँ पहले से ही नवाबी नस्ल के एक सज्जन पुरुष विराजमान थे। लेखक का उस डिब्बे में आना उन सज्जन को अच्छा नहीं लगा। नवाब के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे थे। नवाब ने लेखक से बातचीत करना पसंद नहीं किया।

लेखक नवाब के बारे में अनुमान लगाने लगा कि उसे उसका आना क्यों अच्छा नहीं लगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। लेखक ने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने दोनों खीरों को धोया; तौलिए से पोंछकर चाकू से दोनों सिरों को काटकर खीरे का झाग निकाला। वे खीरे को बड़े सलीके और नजाकत से संवार रहे थे। उन्होंने खीरों पर नमक-मिर्च लगाया। नवाब साहब का मुंह देखकर ऐसा लग रहा था कि खीरे की फांक देखकर। उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट देखकर खीरा खाने का लेखक का मन हो रहा था, परंतु वह पहले इनकार कर चुका था।

इसलिए नवाब के दोबारा पूछने पर आत्मसम्मान के कारण उन्होंने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने खीरे की फाँक उठाई, फाँक को होंठों तक ले गए। उसे सूंघा। खीरे के स्वाद के कारण मुँह में पानी भर गया था। परंतु नवाब। साहब ने फाँक को सँघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। नवाब साहब ने सभी फांकों को बारी-बारी से सूघा और खिड़की से बाहर फेंका दिया। बाद में नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और गर्व से लेखक की ओर देखा।

ऐसा लग रहा था, जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का ढंग है। लेखक यह सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब कहते हैं कि खीरा खाने में तो अच्छा लगता है, परंतु अपच होने के कारण मैदे पर भारी पड़ता है। लेखक को लगता है कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है, तो बिना घटना-पात्रों और विचार के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती?

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कठिन शब्दों के अर्थ :

मुफस्सिल – केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान। सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति, सज्जन पुरुष। किफ़ायत – मितव्यता। आदाब अर्ज़ – अभिवादन करना। गुमान – भ्रम। एहतियात – सावधानी। बुरक देना – छिड़क देना। स्फुरण – फड़कना, हिलना। प्लावित – पानी भर जाना। पनियाती – रसीली। मेदा – आमाशय। तसलीम – सम्मान में। खम – झुकाना। तहज़ीब – शिष्टता। लज़ीज – मजेदार, स्वादिष्ट। नफ़ासत – स्वच्छता। नज़ाकत – कोमलता। गौर करना – विचार करना। नफ़ीस – बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट – सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो। सकील – आसानी से न पचने वाला। उदर – पेट। तृप्ति – संतुष्टि। इस्तेमाल – प्रयोग। रईस – अमीर। सुगंध – खुशबू, महक। पैसेंजर – यात्री। नस्ल – जाति। ठाली बैठना – खाली बैठना।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics

Introduction:
The branch of science known as Statistics has been used in India from ancient times. Statistics deals with collection of numerical facts ie, data, their classification and tabulation and their interpretation. In statistics we shall try to study, in detail about collection, classification and tabulation of such data.
→ Importance of Data: Expressing facts with the helps of data is of great importance in our day-to-day life. For example, instead of saying that India has a large population it is more appropriate to say that the population of India, based on the census of 2001 is more than one billion.

→ Collection of Data: On the basis of methods of collection, data can be divided into two categories:
(i) Primary data: Data which are collected for the first time by the statistical investigator or with help of his workers is called primary data. For example if an investigator wants to study the condition of the workers working in a factory then for this he collects some data like their monthly income, expenditure, number of brothers, sisters, etc.

(ii) Secondary data: Data already collected by a person or a society and may be available in published or unpublished form is known as secondary data. Secondary should be carefully used. Such data is generally obtained from the following two sources.

  • Published sources
  • Unpublished sources

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics

→ Classification of Data: When the data is compiled the same form and order in which it is collected, it is known as Raw Data. It is also called Crude Data. For example, the marks obtained by 20 students of class X in English out of 10 marks are as follow:
7. 4, 9, 5, 8, 9, 6, 7, 9, 2, 0 3, 7, 6, 2, 1, 9, 8, 3, 8
(i) Geographical basis: Here, the data is classified on the basis of place or region. For example, the production of food grains of different states is shown in the following table:

S. No. State Production (in Tons)
1 Andhra Pradesh 9690
2 Bihar 8074
3 Haryana 10065
4 Punjab 17065
5 Uttar Pradesh 28095

(ii) Chronological classification data’s classification is based on hour, day, week, month or year, then it is called chronological classification. For example, the population of India in different years is shown in following table:

S.No Year Production (in Crores)
1 1951 46.1
2 1961 53.9
3 1971 61.8
4 1981 68.5
5 1991 88.4
6 2001 100.01

(iii) Qualitative basis: When the data is classified into different groups on the basis of their descriptive qualities and properties such a classification is known as descriptive or qualitative classification. Since the attributes cannot be measured directly they are counted on the basis of presence or absence of qualities. For example intelligence, literacy, unemployment, honesty etc. The following table shows classification on the basis of sex and employment.

Population (in lacs)
Gender →
Position of Employment
Male Female
Employed 16.2 13.7
Unemployed 26.4 24.8
Total 42.6 38.5

(iv) Quantitative basis: If facts are such that they can be measured physically e.g, marks obtained, height, weight, age, income, expenditure etc, such facts are known as variable values. If such facts are kept into classes then it is called classification according to quantitative or class intervals.

Marks obtained 10 – 20 20 – 30 30 – 40 40 – 50
No. of students 7 9 15 6

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Definitions:
→ Variate: The numerical quantity whose value varies is called a variate, generally a variate is represented by x. There are two types of variate.
(i) Discrete variate: Its magnitude is fixed. For example, the number of teachers in different branches of a institute are 30, 35, 40 etc.
(ii) Continuous variate: Its magnitude is not fixed. It is expressed in groups like 10 – 20, 20 – 30, … etc.
→ Range: The difference between the maximum and the minimum values of the variable x is called range.
→ Class frequency: in each class, the number of times a data is repeated is known as its class frequency.
→ Class limits: The lowest and the highest value of the class are known as lower and upper limits respectively of that class.
→ Classmark: The average of the lower and the upper limits of a class is called the mid value or the class mark of that class. It is generally denoted by x.
If x is the mid value and his the class size, then the class limits are \(\left(x-\frac{h}{2}, x+\frac{h}{2}\right)\).

Example:
The mid values of a distribution are 54, 64, 74, 84 and 94. Find the class size and class limits.
Solution:
The class size is the difference of two consecutive class marks, therefore class size (h) = 64 – 54 = 10.
Here the mid values are given and the class size is 10. So, class limits are:
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics 1
Therefore, class limits are 49 – 59, 59 – 69, 69 – 79, 79 – 89, and 89 – 99.

Frequency Distribution:
The marks scored by 30 students of IX class of a school in the first test of Mathematics out of 50 marks are as follows:
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics 2
The number of times a mark is repeated is called its frequency. It is denoted by f.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics 3
Above type of frequency distribution is called ungrouped frequency distribution. Although this representation of data is shorter than representation of raw data, but from the angle of comparison and analysis it is quite bit. So to reduce the frequency distribution, it can be classified into groups in following ways and it is called grouped frequency distribution.

Class Frequency
1 – 10 8
11 – 20 2
21 – 30 12
31 – 40 5
41 – 50 3

(a) Kinds of Frequency Distribution: Statistical methods like comparison, decision taken etc. depends on frequency distribution. Frequency distribution are of three types.
(i) Individual frequency distribution: Here each item or original price of unit is written separately. In this category, frequency of each variable is one.

Example:
Total marks obtained by 10 students in a class.

Marks obtained S. No.
46 1
18 2
79 3
12 4
97 5
80 6
5 7
27 8
67 9
54 10

(ii) Discrete frequency distribution: When number of terms is large and variable are discrete, i.e., variate can accept some particular values only under finite limits and is repeated then it is called discrete frequency distribution. For example, the wages of employees and their numbers is shown in following table.

Monthly wages No. of employees
4000 10
6000 8
8000 5
11000 7
20000 2
25000 1

The above table shows ungrouped frequency distribution and same facts can be written in grouped frequency as follows:

Monthly wages No. of employees
0 – 10,000 23
11,000 – 20,000 9
21,000 – 30,000 1

Note: If variable is repeated in individual distribution then it can be converted into discrete frequency distribution.
(iii) Continuous frequency distribution:
When number of terms is large and variate is continuous, i.e. variate can accept all values under finite limits and they are repeated then it is called continuous frequency distribution. For example age of students in a school is shown in the following table:

Age (in years) Class No. of students
Less than 5 years 0 – 51 72
Between 5 and 10 years 5 – 10 103
Between 10 and 15 years 10 – 15 50
Between 15 and 20 years 15 – 20 25

Classes can be made mainly by two methods:
(i) Exclusive series: In this method upper limit of the previous class and lower limit of the next class is same. In this method the value of upper limit in a class is not considered in the same class, it is considered in the next class.

(ii) Inclusive series: In this method value of upper and lower limit are both contained in same class. In this method the upper limit of class and lower limit of next class are not same. Some time the value is not a whole number, it is a fraction or in decimals and lies in between the two intervals then in such situation the class interval can be constructed as follows:

A B
Class Frequency Class Frequency
0 – 9 4 0 – 9.5 4
10 – 19 7 9.5 – 19.5 7
20 – 29 6 19.5 – 29.5 6
30 – 39 3 29.5 – 39.5 3
40 – 49 3 39.5 – 49.5 3

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Cumulative Frequency:
→ Discrete frequency distribution:
From the table of discrete frequency distribution, it can be identified that number of employees whose monthly income is 4000 or how many employees of monthly income 11000 are there. But if we want to know how many employees whose monthly income is upto 11000, then we should add 10, 8, 5 and 7 i.e., number of employees whose monthly income is upto 11000 is 10 + 8 + 5 + 7 = 30. Here we add all previous frequency and get cumulative frequency. It will be more clear from the following table:

Income Frequency (f) Cumulative frequency (cf) Explanation
4000 10 10 10 = 10
6000 8 18 10 + 8
8000 5 23 18 + 5
11000 7 30 23 + 7
20000 2 32 30 + 2
25000 1 33 32 + 1

→ Continuous frequency distribution: In (a) part, we obtained cumulative frequency for discrete series. Similarly, cumulative frequency table can be made from continuous frequency distribution also.
For example, for table:

Monthly income No. of employees Cumulative Explanation
Variate (x) Frequency (F) Frequency (cf)
0 – 5 72 72 72 = 72
5 – 10 103 175 72 + 103 = 175
10 – 15 50 225 175 + 50 = 225
15 – 20 25 250 225 + 25 = 250

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Graphical Representation Of Data:
(i) Bar graphs
(ii) Histograms
(iii) Frequency polygons
(iv) Frequency curves
(v) Cumulative frequency curves or Ogives
(vi) Pie Diagrams

(i) Bar Graphs. A bar graph is a graph that present categorical data with rectangular bars with heights or lengths proportional to the values that they represent.

Example:
A family with monthly income of ₹ 20,000 had planned the following expenditure per month under various heads: Draw bar graph for the data giyen below:

Monthly income No. of employees Cumulative Explanation
Variate (x) Frequency (F) Frequency (cf)
0 – 5 72 72 72 = 72
5 – 10 103 175 72 + 103 = 175
10 – 15 50 225 175 + 50 = 225
15 – 20 25 250 225 + 25 = 250

Solution:
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To draw a bar graph, class intervals are marked along x-axis on a suitable scale. Frequencies are marked along y-axis on a suitable scale, such that the areas of drawn rectangles are proportional to corresponding frequencies.

(ii) Histogram: Histogram is rectangular representation of grouped and continuous frequency distribution in which class intervals are taken as base and height of rectangles are proportional to corresponding frequencies.

Now we shall study construction of histo grams related with four different kinds of frequency distributions.

  • When frequency distribution is grouped and continuous and class intervals are also equal.
  • When frequency distribution is grouped and continuous but class interval are not equal.
  • When frequency distribution is grouped but not continuous.
  • When frequency distribution is ungrouped and middle points of the distribution are given.

Now we try to make the above facts clear with some examples.

Example:
Draw a histogram of the following frequency distribution.

Class (Age in year) 0 – 5 5 – 10 10 – 15 15 – 20
No. of students 72 103 50 25

Solution:
Here frequency distribution is grouped and continuous and class intervals are also equal. So mark the class intervals on the x-axis i.e., age in year (scale 1 cm = 5 year). Mark frequency i.e., number of students (scale 1 cm = 25 students) on the y-axis.
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Example:
The weekly wages of workers of a factory are given in the following table. Draw histogram for it.

Weekly wages 1000 – 2000 2000 – 2500 2500 – 3000 3000 – 5000 5000 – 5500
No. of worker 26 30 20 16 1

Solution:
Here frequency distribution is grouped and continuous but class intervals are not same. Under such circumstances the following method is used to find heights of rectangle so that heights are proportional to frequencies the least.
(i) Write the least class size (h), here h = 500.
(ii) Redefine the frequencies of classes by using following formula.
Redefined frequency of class = \(\frac{\mathrm{h}}{\text { class size }}\) × frequency of class interval.
So, here the redefined frequency table is obtained as follows:

Weekly wages (in Rs.) No. of workers Redefined frequency of workers
1000 – 2000 26 500/1000 × 26 = 13
2000 – 2500 30 500/500 × 30 = 30
2500 – 3000 20 500/500 × 20 = 20
3000 – 5000 16 500/2000 × 16 = 4
5000 – 5500 1 500/500 × 1 = 1

Now mark class interval on x-axis (scale 1 cm = 500) and no of workers on y-axis (scale 1 cm = 5). On the basis of redefined frequency distribution, construct rectangles A, B, C, D and E.
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This is the required histogram of the given frequency distribution.

(a) Difference between Bar Graph and Histogram

  • In histogram there is no gap in between consecutive rectangles as in bar graph.
  • The width of the bar is significant in histogram. In bar graph, width is not important at all.
  • In histogram the areas of rectangles are proportional to the frequency, however if the class size of the classes are equal then heights of the rectangle are proportional to the frequencies.

(iii) Frequency polygon: A frequency polygon is also a form of a graphical representation of frequency distribution Frequency polygon can be constructed in two ways:

  • With the help of histogram.
  • Without the help of histogram.

Following procedure is useful to draw a frequency polygon with the help of histogram.

  • Construct the histogram for the given frequency distribution.
  • Find the middle point of each upper horizontal line of the rectangle.
  • Join these middle points of the successive rectangles by straight lines.
  • Join the middle point of the initial rectangle with the middle point of the previous expected class interval on the x-axis.
  • Join the middle point of the last rectangle with the middle point of the next expected class interval on the x-axis.

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Example:
For the following frequency distribution, draw a histogram and construct a frequency polygon with it.

Class 20 – 30 30 – 40 40 – 50 50 – 60 60 – 70
Frequency 8 12 17 9 4

Solution:
The given frequency distribution is grouped and continuous, so we construct a histogram by the method given earlier Join the middle points P, Q, R, S, T of upper horizontal line of each rectangles A, B, C, D, E by straight lines.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics 7

Example:
Draw a frequency polygon of the following frequency distribution table.

Marks obtained Frequency (No. of students)
0 – 10 8
10 – 20 10
20 – 30 6
30 – 40 7
40 – 50 9
50 – 60 8
60 – 70 8
70 – 80 6
80 – 90 3
90 – 100 4

Solution:
Given frequency distribution is grouped and continuous. So we construct a histogram by using earlier method. Join the middle points P, Q, R, S, T, U, V, W, X, Y of upper horizontal lines of each rectangle A, B, C, D, E, F, G, H, I, J by straight line in successions.
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Example:
Draw a frequency polygon of the following frequency distribution.

Age (in years) Frequency
0 – 10 15
10 – 20 12
20 – 30 10
30 – 40 4
40 – 50 10
50 – 60 4

Solution:
Here frequency distribution is grouped and continuous so here we obtain following table on the basis of class.

Age (in years) Classmark Frequency
0 – 10 5 15
10 – 20 15 12
20 – 30 25 10
30 – 40 35 4
40 – 50 45 10
50 – 60 55 14

Now taking suitable scale on graph mark the points (5, 15), (15, 12), (25, 10) (35, 4), (45, 11), (55, 14).
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JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 Statistics

Measures Of Central Tendency:
The commonly used measure of central tendency are:
(a) Mean,
(b) Median,
(c) Mode

(a) Mean: The mean of a number of observations is the sum of the values of all the observations divided by the total number of observations. It is denoted by the symbol \(\overline{\mathrm{x}}\), read as x bar.
(i) Properties of mean:
→ If a constant real number ‘a’ is added to each of the observations, then new mean will be \(\overline{\mathrm{x}}\) + a.
→ If a constant real number ‘a’ is subtracted from each of the observations, then new mean will be \(\overline{\mathrm{x}}\) – a.
→ If a constant real number ‘a’ is multiplied with each of the observations, then new mean will be \(\overline{\mathrm{x}}\).
→ If each of the observation is divided by a constant no ‘a’ then new mean will be \(\frac{\overline{\mathrm{x}}}{\mathrm{a}}\).

(ii) Mean of ungrouped data: If x1, x2, x3, ….., xn are n values (or observations) then A.M. (Arithmetic mean) is
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i.e. product of mean and no. of items gives sum of observations.

Example:
Find the mean of the factors of 10.
Solution:
Factors of 10 are 1, 2, 5 and 10.
\(\overline{\mathrm{x}}\) = \(\frac{1+2+5+10}{4}=\frac{18}{4}\) = 4.5

Example:
If the mean of 6, 4, 7, P and 10 is 8, find P.
Solution:
8 = \(\frac{6+4+7+P+10}{5}\)
⇒ P = 13

(iii) Method for Mean of ungrouped frequency distribution:

xi fi fixi
x1 f1 f1x1
x2 f2 f2x2
x3 f3 f3x3
· · ·
· · ·
xn fn fnxn
Σfi Σfixi

Then, mean \(\overline{\mathrm{x}}\) = \(\frac{\sum \mathrm{f}_{\mathrm{i}} \mathrm{x}_{\mathrm{i}}}{\sum \mathrm{f}_{\mathrm{i}}}\)

(iv) Method for Mean of grouped frequency distribution:
Example:
Direct Method: For finding mean

Marks No. of students (fi) Mid values (xi) fixi
10 – 20 6 15 9
20 – 30 8 25 200
30 – 40 13 35 455
40 – 50 7 45 315
50 – 60 3 55 165
60 – 70 2 65 130
70 – 80 1 75 75
Σfi = 40 Σfixi = 1430

\(\overline{\mathrm{x}}\) = \(\frac{\sum f_i x_i}{\sum f_i}=\frac{1430}{40}\) = 35.75

(v) Combined Mean:
\(\overline{\mathrm{x}}\) = \(\frac{\mathrm{n}_1 \overline{\mathrm{x}}_1+\mathrm{n}_2 \overline{\mathrm{x}}_2+\ldots \ldots .}{\mathrm{n}_1+\mathrm{n}_2+\ldots \ldots}\)

(vi) Uses of Arithmetic Mean

  • It is used for calculating average marks obtained by a student.
  • It is extensively used in practical statistics.
  • It is used to obtain estimates.
  • It is used by businessmen to find out profit per unit article, output per machine, average monthly income and expenditure etc.

(b) Median: Median of a distribution is the value of the variable which divides the distribution into two equal parts.
(i) Median of ungrouped data:

  • Arrange the data in ascending or descending order.
    Count the no. of observations (Let there be ‘n’ observations)
    If n is odd then median = value of \(\left(\frac{\mathrm{n}+1}{2}\right)^{\mathrm{th}}\) observation.
    If n is even then median = value of mean of \(\left(\frac{n}{2}\right)^{\text {th }}\) observation and \(\left(\frac{\mathrm{n}}{2}+1\right)^{\mathrm{th}}\) observation.

Example:
Find the median of the following values:
37, 31, 42, 43, 16, 25, 39, 45, 32
Solution:
Arranging the data in ascending order, we have
25, 31, 32, 37, 39, 42, 43, 45, 46
Here the number of observations, n
= 9 (odd)
∴ Median
= Value of \(\left(\frac{9+1}{2}\right)^{\text {th }}\) observation
= Value of 5th observation = 39.

Example:
The median of the observation 11, 12, 14, 18, x + 2, x + 4, 30, 32, 35, 41 arranged in ascending order is 24. Find the value of x.
Solution:
Here, the number of observations, n = 10.
Since n is even, therefore
Median
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(ii) Uses of Median:
(A) Median is the only average to be used while dealing with qualitative data which cannot be measured quantitatively but can be arranged in ascending or descending order of magnitude.
(B) It is used for determining the typical value in problems concerning wages, distribution of wealth etc.

(c) Mode:
(i) Mode of ungrouped data (By inspection only): Arrange the data in an array and then count the frequencies of each variate. The variate having maximum frequency is the mode.

Example: Find the mode of the following array of an individual series of scores 7, 10, 12, 12, 12, 11, 13, 13, 17.

Number 7 10 11 12 13 17
Frequency 1 1 1 3 2 1

∴ Mode is 12
(ii) Uses of Mode: Mode is the average to be used to find the ideal size, e.g., in business forecasting, in manufacture of ready-made garments, shoes etc.

Empirical Relation Between Mode, Median And Mean:
Mode = 3 Median – 2 Mean
Range:
The range is the difference between the highest and lowest scores of a distribution. It is the simplest measure of dispersion. It gives a rough idea of dispersion. This measure is useful for ungrouped data.
(a) Coefficient of the Range:
If R and h are the lowest and highest scores in a distribution then the coefficient of the Range = \(\frac{\mathrm{h}-\mathrm{R}}{\mathrm{h}+\mathrm{R}}\)

Example: Find the range of the following distribution: 1, 3, 4, 7, 9, 10, 12, 13, 14, 16 and 19.
Solution:
R = 1, h = 19
∴ Range = h – R = 19 – 1 = 18.

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula Important Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula

Question 1.
The area of a triangle is 30 cm2. Find the base if the altitude exceeds the base by 7 cm.
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula - 1
Solution :
Let base BC = x cm
Then altitude = (x + 7) cm
Area of ΔABC = \(\frac {1}{2}\) × base × height
⇒ 30 = \(\frac {1}{2}\)(x)(x + 7)
⇒ 60 = x2 + 7x
⇒ x2 + 7x – 60 = 0
⇒ x2 + 12x – 5x – 60 = 0
⇒ x(x + 12) – 5(x + 12) = 0
⇒ (x – 5)(x + 12) = 0
⇒ x = 5 or x = -12+
⇒ x = 5 [∵ x ≠ -12]
∴ Base (x) = 5 cm and
Altitude = x + 7 = 5 + 7 = 12 cm.

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula

Question 2.
The cost of turfing a triangular field at the rate of ₹ 45 per 100 m2 is ₹ 900. Find the height, if double the base of the triangle is 5 times the height.
Solution :
Let the height of triangular field be h metres.
It is given that 2 × (base) = 5 × (Height)
∴ Base = \(\frac {5}{2}\) h
Area = \(\frac {1}{2}\) × Base × Height
Area = \(\frac {1}{2}\) × \(\frac {5}{2}\)h × h = \(\frac {5}{4}\)h2m2 …………(i)
∴ Cost of turfing the field is ₹ 45 per 100m2
∴ Area = Total cost / Rate per sq.m
= \(\frac{900}{45 / 100}=\frac{90000}{45}\)
= 2000 m2 …………(ii)
From (i) and (ii), we get
\(\frac {5}{4}\)h2 = 2000
⇒ 5h2 = 8000
⇒ h2 = 1600
⇒ h = 40 m
∴ Height of the triangular field is 40 m.

Question 3.
From a point in the interior of an equilateral triangle, perpendicular drawn to the three sides are 8 cm, 10 cm and 11 cm respectively. Find the area of the triangle.
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula - 2
Solution :
Let each side of the equilateral ΔABC = x cm,
From an interior point O, OD, OE and OF perpendiculars be drawn to BC, AC and AB respectively.
It is given that OD = 11 cm, OE = 8 cm and OF = 10 cm.
Join OA, OB and OC.
Area of ΔABC = Area of ΔOBC + Area of ΔOCA + Area of ΔOAB
= \(\frac {1}{2}\) × 11 + \(\frac {1}{2}\) × 8 + \(\frac {1}{2}\) × 10 = \(\frac {29}{2}\) × cm2
But, area of an equilateral triangle, whose each side is x = \(\frac{\sqrt{3}}{4}\) x2cm2
Therefore,
\(\frac{\sqrt{3}}{4}\) x2 = \(\frac {29}{2}\)x
∴ x = \(\frac{4 \times 29}{2 \times \sqrt{3}}=\frac{58}{\sqrt{3}}\) cm
∴ Area of ΔABC
= \(\frac{29}{2} \times \frac{58}{\sqrt{3}}\) cm2 = \(\frac{\sqrt{841}}{1.73}\)cm2
∴ Area of ΔABC = 486.1 cm2

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula

Question 4.
The difference between the sides at right angles in a right-angled triangle is 14 cm. The area of the triangle is 120 cm2. Calculate the perimeter of the triangle.
Solution :
Let the sides containing the right angle be x cm and (x – 14) cm.
Then, its area = [\(\frac {1}{2}\).x. (x – 14)] cm2
But, area = 120 cm2 [Given]
∴ \(\frac {1}{2}\)x (x – 14) = 120
⇒ x2 – 14x – 240 = 0
⇒ x2 – 24x + 10x – 240 = 0
⇒ x(x – 24) + 10 (x – 24) = 0
⇒ (x – 24) (x + 10) = 0
⇒ x = 24 [Neglecting x = -10]
∴ One side = 24 cm,
other side = (24 – 14) cm = 10 cm
Hypotenuse
= \(\sqrt{(24)^2+(10)^2}\) cm
= \(\sqrt{576+100}\) cm
= \(\sqrt{676}\) cm = 26 cm.
∴ Perimeter of the triangle
= (24 + 10 + 26) cm = 60 cm.

Question 5.
Find the percentage increase in the area of a triangle if its each side is doubled.
Solution :
Let a, b, c be the sides of the given triangle and s be its semi-perimeter
∴ s = \(\frac {1}{2}\)(a + b + c) …………(i)
The sides of the new triangle are 2a, 2b and 2c. Let s’ be its semi-perimeter.
∴ s’ = (2a + 2b + 2c)
= a + b + c = 2s [Using (i)]
Let Δ = Area of given triangle
Δ = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\) …….(ii)
And, Δ’ = Area of new triangle
Δ’ = \(\sqrt{s^{\prime}\left(s^{\prime}-2 a\right)\left(s^{\prime}-2 b\right)\left(s^{\prime}-2 c\right)}\)
= \(\sqrt{2 s(2 s-2 a)(2 s-2 b)(2 s-2 c)}\)
= \(\sqrt{16 s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
Δ’ = 4Δ
∴ Increase in the area of the triangle
= Δ’ – Δ = 4Δ – Δ = 3Δ
∴ % increase in area = (\(\frac {3Δ}{Δ}\) × 100)%
= 300%

Multiple Choice Questions

Question 1.
The area of the field ABGFEA is:
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula - 3
(a) 7225 m2
(b) 7230 m2
(c) 7235 m2
(d) 7240 m2
Solution :
(a) 7225 m2

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula

Question 2.
Area of shaded portion as shown in the figure is:
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula - 4
(a) 12 m2
(b) 13 m2
(c) 14 m2
(d) 15 m2
Solution :
(a) 12 m2

Question 3.
The lengths of four sides and a diagonal of the given quadrilateral are indicated in the diagram. If A denotes the area of quadrilateral in cm2, then A is
JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula - 5
(a) 12\(\sqrt{6}\) sq. unit
(b) 6 sq. unit
(c) 6\(\sqrt{6}\) sq. unit
(d) \(\sqrt{6}\) sq. unit
Solution :
(a) 12\(\sqrt{6}\) sq. unit

Question 4.
If the sides of a triangle are doubled, then its area:
(a) Remains the same
(b) Becomes doubled
(c) Becomes three times
(d) Becomes four times
Solution :
(d) Becomes four times

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 12 Heron’s Formula

Question 5.
Inside a triangular garden there is a flower bed in the form of a similar triangle. Around the flower bed runs a uniform path of such a width that the side of the garden are double of the corresponding sides of the flower bed. The areas of the path and the flower bed are in the ratio:
(a) 1 : 1
(b) 1 : 2
(c) 1 : 3
(d) 3 : 1
Solution :
(d) 3 : 1

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles

Polygonal Region
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles 1
Polygon region can be expressed as the union of a finite number of triangular regions in a plane such that if two of these intersect, their intersection is either a point or a line segment. It is the shaded portion including its sides as shown in the figure.

Parallelogram
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles 2
(a) Base and Altitude of a Parallelogram:
→ Base: Any side of parallelogram can be called its base.
→ Altitude: The perpendicular to the base from the opposite side is called the altitude of the parallelogram corresponding to the given base.
In the given Figure
→ DL is the altitude of ||gm ABCD corresponding to the base AB.
→ DM is the altitude of ||gm ABCD, corresponding to the base BC.

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles

Theorem 1.
A diagonal of parallelogram divides it into two triangles of equal area.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles 3
Proof:
Given: A parallelogram ABCD whose one of the diagonals is BD.
To prove: ar(ΔABD) = ar(ΔCDB).
Proof: In ΔABD and ΔCDB;
AB = DC [Opp sides of a ||gm]
AD = BC [Opp. sides of a ||gm]
BD = BD [Common side]
∴ ΔΑΒD ≅ ΔCDB [By SSS]
ar(ΔABD) = ar (ΔCDB) [Areas of two congruent triangles are equal]
Hence, proved.

Theorem 2.
Parallelograms on the same base or equal base and between the same parallels are equal in area.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles 4
Proof:
Given: Two Parallelograms ABCD and ABEF are on the same base AB and between the same parallels AB and FC.
To Prove: ar(||gm ABCD) = ar(||gm ABEF)
Proof: In ΔADF and ΔBCE, we have
AD = BC [Opposite sides of a ||gm]
and AF = BE [Opposite sides of a ||gm]
AD || BC (Opposite sides of a parallelogram)
⇒ ∠ADF = ∠BCE (Alternate interior angles)
∴ ΔADF ≅ ΔBCE [By AAS]
∴ ar(ΔADF) = ar(ΔBCE) …..(i)
[Congruent triangles have equal area]
∴ ar (||gm ABCD) = ar(ABED) + ar(ΔBCE)
= ar (ABED) + ar(ΔADF) [Using (1)]
= ar(||gm ABEF).
Hence, ar(||gm ABCD) = ar(||gm ABEF).
Hence, proved.

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles

Theorem 3.
The area of parallelogram is the product of its base and the corresponding altitude.
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles 5
Proof:
Given: A ||gm ABCD in which AB is the base and AL is the corresponding height.
To prove: Area (||gm ABCD) = AB × AL.
Construction: Draw BM ⊥ DC so that rectangle ABML is formed.
Proof: ||gm ABCD and rectangle ABML are on the same base AB and between the same parallel lines AB and LC.
∴ ar(||gm ABCD) = ar(rectangle ABML)
= AB × AL
∴ area of a ||gm = base × height.
Hence, proved.

Area Of A Triangle
Theorem 4.
Two triangles on the same base (or equal bases) and between the same parallels are equal in area.
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Proof:
Given: Two triangles ABC and PCB on the same base BC and between the same parallel lines BC and AP.
To prove: ar(ΔABC) = ar(ΔPBC)
Construction: Through B, draw BD || CA intersecting PA produced in D and through C, draw CQ || BP, intersecting line AP produced in Q.
Proof: We have, BD || CA (By construction) And, BC || DA [Given]
∴ Quad. BCAD is a parallelogram.
Similarly, Quad. BCQP is a parallelogram.
Now, parallelogram BOQP and BCAD are on the same base BC, and between the same parallels.
∴ ar (||gm BCQP) = ar (||gm BCAD)….(i)
We know that the diagonals of a parallelogram divides it into two triangles of equal area.
∴ ar(ΔPBC) = \(\frac{1}{2}\)(||gm BCQP) …..(ii)
And ar (ΔABC) = \(\frac{1}{2}\)(||gm BCAD)….(iii)
Now, ar (||gm BCQP) = ar(||gm BCAD) [From (i)]
\(\frac{1}{2}\)ar(||gm BCAD) = \(\frac{1}{2}\)ar(||gm BCQP)
Hence, \(\frac{1}{2}\)ar(ABC) = ar(APBC) (Using (ii) and (iii) Hence, proved.

Theorem 5.
The area of a trapezium is half the product of its height and the sum of the parallel sides.
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Proof:
Given: Trapezium ABCD in which AB || DC, AL ⊥ DC, CN ⊥ AB and AL = CN = h (say). AB = a, DC = b.
To prove: ar(trap. ABCD) = \(\frac{1}{2}\)h × (a + b).
Construction: Join AC.
Proof: AC is a diagonal of quad. ABCD.
∴ ar(trap. ABCD) = ar(ΔABC) + ar(ΔACD)
= \(\frac{1}{2}\)h × a+\(\frac{1}{2}\)h × b= \(\frac{1}{2}\)h(a + b).
Hence, proved.

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles

Theorem 6.
Triangles having equal areas and having one side of the triangle equal to corresponding side of the other, have their corresponding altitudes equal.
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Proof:
Given: Two triangles ABC and PQR such that
(i) ar(ΔABC) = ar(ΔPQR) and
(ii) AB = PQ.
CN and RT and the altitudes corresponding to AB and PQ respectively of the two triangles.
To prove: CN = RT.
Proof: In ΔABC, CN is the altitude corresponding to the side AB
ar(ΔABC) = \(\frac{1}{2}\)AB × CN ……(i)
Similarly, ar(ΔPQR) = \(\frac{1}{2}\)PQ × RT ……(ii)
Since, ar(ΔABC) = ar(ΔPQR) [Given]
∴ \(\frac{1}{2}\)AB × CN = PQ × RT
Also, AB = PQ [Given]
∴ CN = RT Hence, proved.