JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे सम्बन्धित है?
(A) ज्वार
(C) धाराएं
(B) तरंग
(D) ऊपर में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) ज्वार।

2. निम्नलिखित में से कौन-सी गर्म धारा नहीं है?
(A) खाड़ी की धारा
(B) केलीफ़ोर्निया की धारा
(C) मोज़म्बीक धारा
(D) उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा।
उत्तर:
(B) केलीफ़ोर्निया की धारा।

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3. कालाहारी मरुस्थल के पश्चिम में बहने वाली धारा कौन-सी है?
(A) कनारी
(B) बेंगुएला
(C) इरमिंजर
(D) गल्फ स्ट्रीम।
उत्तर:
(B) बेंगुएला।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:
प्रश्न 1.
महासागरीय धाराएं क्या हैं?
उत्तर:
महासागरीय धारा जल की एक राशि का एक नि चत दिशा में लम्बी दूरी तक सामान्य संचलन है। सागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।

प्रश्न 1.
तरंग का वेग कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
संचलन करती हुई तरंग का वेग निम्न विधि से निश्चित किया जा सकता है
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 1
दो क्रमिक शृंगों अथवा गर्तों के मध्य की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं। किसी निश्चित बिन्दू से ये निकलने वाले दो क्रमिक तरंगों के बीच के समय को तरंग आवर्त काल कहते हैं।

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प्रश्न 2.
ठण्डी एवं गर्म महासागरीय धाराओं में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
महासागरीय धाराएं सामान्यतः दो प्रकार की होती हैं-गर्म धाराएं तथा ठण्डी धाराएं। गर्म धाराएं ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के निम्न अक्षांशों से शीतोष्ण कटिबन्धीय तथा उप ध्रुवीय क्षेत्रों के उच्च अक्षांशों की ओर प्रवाहित होती हैं। ठण्डी धाराएं उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहती हैं।

प्रश्न 3.
महासागरीय धारा का वेग कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
जल के धरातल के ऊपर से बहती हुई हवा, उसके तल पर कर्षण बल का प्रयोग करती है, जिससे धरातलीय जल स्तर गतिमान हो उठता है। कर्षण बल से धाराओं की उत्पत्ति होती है। कर्षण बल तथा पवनों के वेग से धाराओं की वेग का पता चलता है।

प्रश्न 4.
यदि महासागरीय धाराएं न होती तो विश्व का क्या हुआ होता?
उत्तर:
महासागरीय धाराओं के अभाव से विश्व की जलवायु, व्यापार तथा समुद्री जीवों पर बहुत प्रभाव पड़ता। यूरोप की जलवायु सुहावनी न होती। शीतोष्ण कटिबन्ध में वर्षा कम होती। महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर मरुस्थल न होते। यूरोप का तट व्यापार के लिए वर्ष भर खुला न रहता। कई प्रदेशों में मत्स्य क्षेत्रों का विकास न होता।

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प्रश्न 2.
जल धाराएं तापमान को कैसे प्रभावित करती है? उत्तर पश्चिमी यूरोप के तटीय क्षेत्रों में तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
समुद्री धाराओं के प्रभाव (Effects of Ocean Currents): समुद्री धाराएं आसपास के क्षेत्रों में मानव जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है।

जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)
जलवायु (Climate): जिन तटों पर गर्म या ठण्डी धाराएं चलती हैं वहां की जलवायु क्रमश: गर्म या ठण्डी हो जाती है।
तापक्रम (Temperature): धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या शीत ले जाती हैं। गर्म धारा के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापक्रम ऊंचा हो जाता है तथा जलवायु कम हो जाती है। ठण्डी धारा के कारण शीतकाल में तापक्रम बहुत नीचा हो जाता है तथा जलवायु विषम व कठोर हो जाती है।
उदाहरण (Examples):

  1. लैब्रेडोर (Labrador) की ठण्डी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट तथा क्यूराइल (Kurile) की ठण्डी धारा के प्रभाव से साइबेरिया का पूर्वी तट शीतकाल में बर्फ से जमा रहता है।
  2. खाड़ी की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूह तथा नार्वे के तटीय भागों का तापक्रम ऊंचा रहता है और जल शीतकाल में भी नहीं जमता। जलवायु सुहावनी तथा सम रहती है।

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प्रश्न 3.
तरंगों तथा धाराओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:

तरंगें धाराएं
(1) तरंगों का आकार जल की गहराई पर निर्भर करता है। (1) धाराएं जल की विशाल राशियां होती हैं।
(2) ये बनती तथा बिगड़ती रहती हैं एवं अस्थायी होती हैं। (2) धाराएं स्थाई होती हैं तथा एक ही दिशा में गतिमान होती हैं।
(3) तरंगें जल की ऊपरी सतह पर चलती हैं। (3) धाराओं का प्रभाव अधिक गहराई तक होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरीय जल-धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं? इनके स्वभाव और उत्पत्ति को निर्धारित करने वाले कारक बताओ।
उत्तर:
समुद्री धाराएं (Ocean Currents)-सागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर एक विशेष दिशा में जल के लगातार प्रवाह को समुद्री धारा कहते हैं। (“Regular movement of water from one part of the ocean to another is called an ocean current.”) समुद्री धाराओं में जल नदियों की भांति आगे बढ़ता है। इनके किनारे स्थिर जल वाले होते हैं। इन्हें समुद्री नदियां भी कहते हैं। (“An ocean current is like a river in the ocean.”) धाराओं के उत्पन्न होने के कारण (Causes)-समुद्री धाराओं के उत्पन्न होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

1. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds):
वायु अपनी अपार शक्ति के कारण जल को गति प्रदान करती है। धरातल पर चलने वाली पवनें (Planetary Winds) लगातार एक ही दिशा में चलने के कारण धाराओं को जन्म देती हैं। संसार की मुख्य धाराएं स्थायी पवनों की दिशा के अनुसार चलती हैं। (Ocean currents are wind determined.) मौसमी पवनें (Seasonal Winds) भी धाराओं की दिशा व उत्पत्ति में लायक होती हैं।
उदाहरण (Examples):

  1. व्यापारिक पवनें (Trade winds): द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराएं (Equatorial Currents) पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं।
  2. पश्चिमी पवनों (Westerlies): के प्रभाव से खाड़ी की धारा (Gulf Stream) तथा कयूरोसिवो (Kuroshio) धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

2. तापक्रम में भिन्नता (Difference in Temperature):
गर्म जल हल्का होकर फैलता है तथा उसकी ऊँचाई बढ़ जाती है। ठण्डा जल भारी होने के कारण नीचे बैठ जाता है। कम ताप के कारण ठंडा जल सिकुड़ कर भारी हो जाता है। इस प्रकार समुद्र जल की सतह समान नहीं रहती तथा धाराएं चलती हैं।

3. खारेपन में भिन्नता (Difference in Salinity):
अधिक खारा जल भारी होने के कारण, तल के नीचे की ओर बहता है। कम खारा जल हल्का होने के कारण तल पर ही बहता है।
उदाहरण (Examples):

  1. रूम सागर से अधिक खारे जल की धारा तल के नीचे अन्ध महासागर की ओर बहती है।
  2. बाल्टिक सागर (Baltic Sea) से कम खारे जल की धारा तल पर उत्तरी सागर (North Sea) की ओर बहती है।

4. वाष्पीकरण तथा वर्षा की मात्रा (Evaporation and Rainfall):
अधिक वाष्पीकरण से जल भारी तथा अधिक खारा हो जाता है और तल नीचा हो जाता है परन्तु वर्षा अधिक होने से जल हल्का हो जाता है और उसका तल ऊंचा हो जाता है। इस प्रकार ऊंचे तल से नीचे तल की ओर धाराएं चलती हैं।

5. पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation):
फैरल के सिद्धान्त (Ferral’s Law) के अनुसार धाराएं उत्तरी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं। पृथ्वी की गति के कारण धाराओं का प्रवाह गोलाकार बन जाता है। उदाहरण (Examples): धाराओं का चक्कर उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा के अनुकूल (Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anticlockwise) चलता है।

6. तटों के आकार (Shape of Coasts):
तटों के आकार धाराओं के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर देते हैं। समुद्र जल तटों से टकराकर धाराओं के रूप में बहने लगता है। धाराएं तट के सहारे मुड़ जाती हैं। यदि स्थल प्रदेश न होते तो पृथ्वी के गिर्द एक.महान् भूमध्य रेखीय धारा (Great Equatorial Current) चलती है। उदाहरण (Examples): ब्राज़ील (Brazil) के नुकीले तट पर केप सेन-रॉक अन्तरीप (Cape San Roque) से टकराकर भूमध्य रेखीय धारा ब्राजील की धारा के रूप में बहती है।

7. ऋतु परिवर्तन (Seasons):
मौसम के अनुसार हवाओं की दिशा में परिवर्तन होने के कारण धाराओं की दिशा भी बदल जाती है। हिन्द महासागर में ग्रीष्म ऋतु में (S.W. Monsoon Drift) तथा शीत ऋतु में (N.E. Monsoon Drift) बहती है।

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महासागरीय जल संचलन JAC Class 11 Geography Notes

→ महासागरीय जल की गतियां (Movements of Ocean Water): महासागरीय जल सदा गतिशील रहता है। इसकी तीन गतियां हैं

  • तरंगें
  • धाराएं
  • ज्वार-भाटा।

→ महासागरीय जल का तापमान (Temperature in Oceans): महासागरीय जल का तापमान गहराई के साथ घटता रहता है। औसत रूप से भू-मध्य रेखा पर वार्षिक तापमान 26°C तथा ध्रुवीय प्रदेशों में 0°C रहता
है। तैरते हुए हिमखण्डों को हिम शैल कहते हैं, जो अधिकतर ग्रीन लैंड के निकट पाये जाते हैं।

→ महासागरों में लवणता (Salinity in Oceans): समुद्र जल में पाये जाने वाले समस्त लवणों के योग को समुद्र की लवणता कहते हैं। औसत लवणता 35 प्रति हजार ग्राम है। सबसे अधिक लवणता कर्क रेखा तथा मकर । रेखा के निकट 37 प्रति हजार ग्राम है। वैन झील में 330 तथा मृत सागर में 238 लवणता है।

→ महासागरीय धाराएं (Ocean Currents): महासागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर एक विशेष दिशा में जल के लगातार प्रवाह को सागरीय धारा कहते हैं। यह प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती हैं। गर्म धाराएं भू-मध्य रेखा से ध्रुवों की ओर तथा ठण्डी धाराएं ध्रुवों से भू-मध्य रेखा की ओर चलती हैं।

→ अन्ध महासागर की धाराएं (Currents of Atlantic Ocean): उत्तरी अन्धमहासागर में धाराएं घड़ी की सूइयों की दिशा में चक्र पूरा करती हैं परन्तु दक्षिणी अन्ध महासागर में घड़ी की सूइयों की विपरीत दिशा में | चक्र पूरा करती हैं। खाड़ी की गर्म धारा पश्चिमी यूरोप की जलवायु को सुहावना बनाती है। इसे यूरोप की जीवन रेखा भी कहते हैं। अधिकतर मरुस्थल ठण्डी धाराओं वाले तटों पर स्थित हैं।

→ प्रशान्त महासागर की धाराएं (Currents of Pacific Ocean): एशिया के तट पर क्यूराइल तथा क्यूरोशिया धारा बहती है। दक्षिणी अमेरिका के तट पर पेरू की ठण्डी धारा के कारण अटाकामा मरुस्थल | स्थित है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. मृदा का निर्माण किस क्रिया द्वारा होता है?
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) परिवहन
(D) निक्षेप।
उत्तर:
अपक्षय।

2. मृदा में संयोजन के लिए कौन-सी क्रिया शक्ति नहीं है?
(A) जल
(B) ऊर्जा
(C) पवन
(D) अपरदन।
उत्तर:
अपरदन।

3. मृदा के निर्माण के रूप से महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) जनक पदार्थ
(B) जलवायु
(C) जीव पदार्थ
(D) स्थलाकृति।
उत्तर:
जनक पदार्थ।

4. क्षारीय मृदा का निर्माण किन क्षेत्रों में होता है?
(A) अधिक वर्षा वाले
(B) कम वर्षा वाले
(C) मूसलाधार वर्षा
(D) मरुस्थल में।
उत्तर:
कम वर्षा वाले।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

5. सबसे ऊपरी मृदा स्तर है
(A) अ
(B) ब
(C) स
(D) ओ।
उत्तर:

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. कण
  2. ह्यूमस
  3. खनिज

प्रश्न 2.
मिट्टी में निर्माणकारी सक्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
जलवायु तथा जैव पदार्थ।

प्रश्न 3.
मिट्टी में निर्माणकारी निष्क्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
वनस्पति, मल पदार्थ, भू-आकृति ।

प्रश्न 4.
मिट्टी में पाए जाने वाले वनस्पति अंश को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ह्यूमस।

प्रश्न 5.
मिट्टी के किस संस्तर में ह्यूमस अधिक होता है?
उत्तर:
अ’ संस्तर में ।

प्रश्न 6.
संस्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिट्टी की क्षैतिज परतों को संस्तर कहते हैं।

प्रश्न 7.
मिट्टी के भौतिक गुण बताओ।
उत्तर:

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

प्रश्न 8.
अम्लीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा कम होती है

प्रश्न 9.
क्षारीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा अधिक होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 10.
अनावरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों को अपरदन द्वारा नंगा करना।

प्रश्न 11.
अनावरण में सहायक दो क्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपरदन तथा अपक्षरण।

प्रश्न 12.
पदार्थों के संचलन में कौन-से दो बल सहायक हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण तथा ढाल।

प्रश्न 13.
पृथ्वी के अन्दर से निकलने वाली ऊर्जा के स्रोत बताओ।
उत्तर:
रेडियोधर्मी क्रियाएँ, घर्षण ज्वारीय घर्षण, पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी उष्मा।

प्रश्न 14.
अनाच्छदन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहिर्जनिक क्रियाओं द्वारा धरातल पर निरावृत करना या आवरण हटाना।

प्रश्न 15.
अपक्षय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपक्षय से अभिप्राय मौसम एवं जलवायु द्वारा यान्त्रिक विखंडन एवं रासायनिक अपघटन की क्रियाएं शामिल हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा तथा इसमें मिले तत्त्व बताओ।
उत्तर:
मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। यह एक धरातलीय पदार्थ है जिसमें स्पष्ट परत पाई जाती है। मिट्टी का निर्माण चट्टानों के पूर्ण तथा वनस्पति के गले – सड़े अंश से बनता है। इसमें कई तत्त्व मिले होते हैं- कण-मिट्टी के कण बारीक होते हैं जो आधार चट्टानों से भौतिक व रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त होते हैं ह्यूमस – यह मिट्टी का उपजाऊ अंश है जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल – सड़ जाने से प्राप्त होता है । खनिज – चट्टानों के अपक्षरण से कई खनिज मिट्टी में मिल जाते हैं, जैसे- लोहा, चूना आदि।

प्रश्न 2.
मिट्टी के भौतिक गुण लिखो।
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में तीन भौतिक गुण होते हैं-

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

ये गुणमिट्टी की आधार चट्टानों पर निर्भर करते हैं। रंग से मिट्टी के निर्माण का ज्ञान होता है। गठन से मिट्टी के कणों का पता चलता है। मिट्टी की संरचना से कणों की व्यवस्था का पता चलता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 3.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material): आधार चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा संगठन मूल पदार्थों के गुणों अनुसार होता है।

प्रश्न 4.
मिट्टी के महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
मिट्टी एक प्राकृतिक सम्पत्ति है। मानव जाति सारे विश्व में मिट्टी पर ही निवास करती है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएं आधारित हैं। मिट्टी कृषि का आधार है जो मानव को भोजन प्रदान करती है। पशुपालन, वन उद्योग मिट्टी पर आधारित हैं। प्राचीन सभ्यताएं नदी घाटियों में उपजाऊ मिट्टी के कारण ही पनप सकीं। मिट्टी मानवीय व्यवसाय का आधार है। जनसंख्या का घनत्व तथा वितरण मिट्टी के उपजाऊपन तथा उत्पादकता पर निर्भर करता है । मिट्टी का मानवीय सभ्यता पर सदैव महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहेगा।

प्रश्न 5.
ह्यूमस क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है? मिट्टी के निर्माण में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ह्यूमस (Humus ):
मिट्टी में पाये जाने वाले मृत जैव पदार्थ को ह्यूमस कहते हैं जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल-सड़ जाने से प्राप्त होता है। वृक्ष, झाड़ियां, घास जैसी वनस्पति तथा जीवाणु इसके निर्माण में सहायक होते हैं। ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु तथा जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। आर्द्र जलवायु में काफ़ी संख्या में जीवाणु होते हैं तथा वे ह्यूमस पर ही जिन्दा रहते हैं, परन्तु ठण्डी जलवायु में कम जीवाणुओं के कारण ह्यूमस मिट्टी में जमा रहता है। ह्यूमस मिट्टी निर्माण तथा मिट्टी के उपजाऊपन पर प्रभाव डालता है। ह्यमस जीवाणुओं को जीवन प्रदान करके उन्हें मिट्टी निर्माण में सहायक बनाता है। ह्यूमस के कारण धरातल तथा मिट्टी का रंग बदल जाता है। ह्यूमस खनिजों के अपक्षरण में सहायक है तथा मिट्टी निर्माण की क्रिया को तेज़ करता है।

प्रश्न 6.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है? मिट्टी के निर्माण में मूल पदार्थों का क्या योगदान है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material):
आधार चट्टानों के भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण से प्राप्त होने पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इस पदार्थ में विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं जो आधार शैलों की रचना करते हैं। मिट्टी निर्माण क्रिया में मूल पदार्थ एक निष्क्रिय (Passive ) घटक है। मूल पदार्थ खनिज ही मिट्टी के निर्माण, भौतिक तथा रासायनिक अपक्षरण पर प्रभाव डालते हैं।

मिट्टी का संघटन (texture) मूल पदार्थ पर ही निर्भर करता है। मूल पदार्थ अधिकतर तलछटी शैलों से ही प्राप्त होते हैं क्योंकि भू-पृष्ठ पर तलछटी शैलों का विस्तार अधिक है। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा अपक्षरण की दर मूल पदार्थों के गुणों के अनुसार होती है। नदी तल जलोढ़ों के अपक्षरण से ही जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 7.
मिट्टी के कौन-से कार्य हैं जिनके लिए संरक्षण की ज़रूरत है?
उत्तर:
मिट्टी एक सम्पदा या संसाधन है। मिट्टी के उपजाऊपन पर कृषि तथा उत्पादकता निर्भर करती है। मिट्टी के नष्ट होने से उत्पादकता कम हो जाती है। उपजाऊ मिट्टी ही देश को खाद्य पदार्थ तथा कच्चे औद्योगिक माल प्रदान करती है। इसलिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेश ही घनी जनसंख्या के प्रदेश होते हैं।

प्रश्न 8.
ध्रुवीय प्रदेशों में पाले द्वारा अपक्षरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पाला (Frost):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है । इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ (Scree) के रूप में जमा हो जाता है । हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है । चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

प्रश्न 9.
ऑक्सीकरण तथा कार्बोनेटीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(a) ऑक्सीकरण (Oxidation ): चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है।

(b) कार्बोनेटीकरण (Carbonation ): जल में विलय कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं। प्रश्न

प्रश्न 10.
आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय मिट्टी में ह्यूमस का अभाव क्यों होता है?
उत्तर:
ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु में जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। ह्यूमस ही जीवाणुओं को जिन्दा रखता है। आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु में जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है। वे इस प्रदेश की मिट्टी में काफी अधिक क्रियाशील होते हैं। ये जीवाणु मिट्टी में से ह्यूमस समाप्त कर देते हैं। इसी कारण इन आर्द्र- ऊष्ण प्रदेशों की मिट्टी में ह्यूमस का अभाव होता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 11.
पृथ्वी पर सम्भाव्यता किस प्रकार स्थिर रखी जा सकती है?
उत्तर:
भू-तल संवेदनशील है। मानव अपने निर्वाह के लिए इस पर निर्भर करता है तथा इसका व्यापक एवं सघन उपयोग करता है। अतः इसके सन्तुलन को बनाए रखते हुए तथा भविष्य के लिए इसकी सम्भाव्यता को कम किए बिना इसके प्रभावकारी उपयोग के लिए इसकी प्रकृति को समझना परमावश्यक है। लगभग सभी जीवों का धरातल के पर्यावरण के अनुवाह में योगदान होता है। मनुष्यों ने संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। हमें इनका उपयोग करना चाहिए, किन्तु भविष्य में जीवन निर्वाह के लिए इसकी पर्याप्त सम्भाव्यता को बचाये रखना चाहिए।

धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लम्बी अवधि (सैकड़ों-हज़ारों- वर्षों) में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरुपयोग एवं कुप्रयोग के कारण इसकी सम्भाव्यता (विभव) में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है। यदि उन प्रक्रियाओं, जिन्होंने धरातल को विभिन्न आकार दिया और अभी दे रही हैं, तथा उन पदार्थों की प्रकृति जिनसे यह निर्मित है, को समझ लिया जाए तो निश्चित रूप से मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव को कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

प्रश्न 12.
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं किन बलों पर निर्भर करती हैं?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं (Physical Weathering Processes): भौतिक या यान्त्रिक अपक्षय- प्रक्रियाएं कुछ अनुप्रयुक्त बलों (Forces) पर निर्भर करती हैं। ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. गुरुत्वाकर्षक बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव एवं अपरूपण प्रतिबल (Shear stress),
  2. तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण (Expansion) बल,
  3. शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियन्त्रित जल का दबाव। इनमें से कई बल धरातल एवं विभिन्न धरातल पदार्थों के अन्दर अनुप्रयुक्त होती हैं जिसका परिणाम शैलों का विभंग (Fracture ) होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने (Release) के कारण होता है। ये प्रक्रियाएं लघु एवं मंद होती हैं परन्तु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रान्ति (Fatigue) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुंचा सकती हैं।

प्रश्न 13.
रेगोलिथ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व की विविध दृश्य – भूमियों का निर्माण मुख्यतः शैलों पर अपक्षय की क्रिया से हुआ है। ‘शैल अपक्षय’ शब्दावली का प्रयोग, रासायनिक अपघटन तथा भौतिक विघटन को बताने के लिए किया जाता है। आधार – शैलों के ऊपर अदृढ़ पदार्थों की एक परत हो सकती है, इसे रेगोलिथ या आवरण- प्रस्तर कहते हैं। रेगोलिथ ऐसी शब्दावली है, जिसका प्रयोग मोटे तौर पर आधार – शैल के ऊपर बिखरे अपेक्षाकृत अदृढ़ अथवा कोमल पदार्थों के किसी भी परत के लिए किया जाता है। जब रेगोलिथ का निर्माण ठीक इसके नीचे स्थित आधार – शैलों के अपघटन तथा विघटन से होता है तब इसे अपशिष्ट रेगोलिथ कहते हैं। नदियों, हिमानियों, पवनों द्वारा परिवहित रेगोलिथ, जिसका निक्षेपण कहीं ओर कर दिया जाता है, परिवहित रेगोलिथ कहलाता है।

प्रश्न 14.
मृदा निर्माण के लिए उत्तरदायी कारकों और उनकी प्रक्रियाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मृदा निर्माण के कारक सभी मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं अपक्षय से जुड़ी हैं। लेकिन कई अन्य कारक अपक्षय के अंतिम उत्पाद को प्रभावित करते हैं। इनमें से पांच प्राथमिक कारक हैं। ये अकेले अथवा सम्मिलित रूप से विभिन्न प्रकार की मृदाओं के विकास के लिए उत्तरदायी हैं।

मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं (Processes of Soil Formation): मृदा निर्माण में अनेक प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं और किसी सीमा तक मृदा परिच्छेदिका को प्रभावित कर सकती हैं। ये प्रक्रियाएं हैं:

  1. अवक्षालन: यह मृत्तिका अथवा अन्य महीन कणों का यांत्रिक विधि से स्थान परिवर्तन है, जिसमें वे मृदा परिच्छेदिका में नीचे ले जाए जाते हैं।
  2. संपोहन: यह मृदा परिच्छेदिका के निचले संस्तरों में ऊपर से बहाकर लाए गए पदार्थों का संचयन है।
  3. केलूवियेशन: यह निक्षालन के समान पदार्थ का नीचे की ओर संचलन है, परन्तु जैविक संकुल यौगिकी के प्रभाव में।
  4. निक्षालन: इसमें घोल रूप में पदार्थों को किसी संस्तर से हटाकर नीचे की ओर ले जाना है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 15.
मृदा भौतिक, रासायनिक तथा जैविक क्रियाओं का परिणाम है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
मृदा अपक्षयित एवं अपरदित शैल पदार्थों तथा जैविक अवशेषों के संश्लिष्ट मिश्रण का उत्पाद है। अपक्षय द्वारा संगठित पदार्थ (शैल) असंगठित पदार्थ में बदल जाते हैं। पौधों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के अपघटन से जैविक रसायन (ह्यूमस) मुक्त होते हैं। असंगठित पदार्थों के साथ इनकी अंतः क्रियाएं विभिन्न प्रकार की मृदाओं का निर्माण करती हैं। इन परिवर्तनों में संयोजन, ह्रास, रूपांतरण तथा स्थान परिवर्तन शामिल हैं।

जल ( वर्षा, सिंचाई), जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण, सूर्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा, पवन और जल से प्राप्त अवसाद, लवण एवं जैविक अवशेष संयोजन कार्य करते हैं। ह्रास के कारण हैं: मृदा जल में घुलनशील रसायन, अपरदित छोटे आकार के टुकड़े, पौधों के कटने और चराए जाने से पोषक तत्त्वों को हटाया जाना, जल की हानि, कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन की क्षति तथा नाइट्रोजन की अनाइट्रीकरण से हुई हानि रूपांतरण का कारण अनेक रासायनिक एवं जैविक प्रतिक्रियाएं हैं, जो जैविक पदार्थों को अपघटित करती हैं।

जल तथा जीव मृदा में संचलन करके विभिन्न गहराइयों पर पदार्थों का स्थान परिवर्तन करते हैं। जैविक मृदा का निर्माण पौधों के अपशिष्टों के संचयन से होता है, जो छिछले एवं स्थिर जल के अल्प ऑक्सीजन वाले पर्यावरण द्वारा सुरक्षित रखे जाते हैं। भूपृष्ठ का वह पदार्थ मृदा नहीं है, जो वनस्पति – जीवन को पोषित नहीं करता है, जैसे- पथरीली या चट्टानी भूमि तथा ग्रेट साल्ट लेक का लवणमय धरातल।

प्रश्न 16.
भू-आकृतिक कारक तथा भू-आकृतिक प्रक्रिया में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रकृति के किसी भी बहिर्जनिक तत्त्व (जैसे- जल, हिम, वायु इत्यादि), जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण (Acquire) तथा परिवहन करने में सक्षम है, को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है। जब प्रकृति के ये तत्त्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील हो जाते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं तथा भू-आकृतिक कारक विशेषकर बहिर्जनिक, को यदि स्पष्ट रूप से अलग-अलग न कहा जाए तो इन्हें एक ही समझना होगा क्योंकि ये दोनों एक ही होते हैं।

एक प्रक्रिया एक बल होता है जो धरातल के पदार्थों के साथ अनुप्रयुक्त होने पर प्रभावी हो जाता है। एक कारक (Agent) एक गतिशील माध्यम (जैसे- प्रवाहित जल, हिमनदी, हवा, लहरें एवं धाराएं इत्यादि) है जो धरातल के पदार्थों को हटाता, ले जाता तथा निक्षेपित करता है। इस प्रकार प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमनदी, हवा, लहरों, धाराओं इत्यादि को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है।

प्रश्न 17.
पटल विरूपण से क्या अभिप्राय: है? इसमें कौन-सी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं?
उत्तर:
पटल विरूपण (Diastrophism ): सभी प्रक्रियाएं जो भू-पर्पटी को संचलित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं, पटल विरूपण के अन्तर्गत आती हैं। इनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं

  1. तीक्ष्ण वलयन के माध्यम से पर्वत निर्माण तथा भू-पर्पटी की लम्बी एवं संकीर्ण पट्टियों को प्रभावित करने वाली पर्वतनी (Orogenic) प्रक्रियाएं
  2. धरातल के बड़े भाग के उत्थापन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना सम्बन्धी (Epeirogenic) प्रक्रियाएं,
  3. अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न भूकम्प,
  4. पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका प्लेट विवर्तनिक/पर्वतनी (Orogeny) की प्रक्रिया में भू-पर्पटी वलयन के रूप में तीक्ष्णता से विकृत हो जाती है।

महाद्वीप रचना के कारण साधारण विकृति हो सकती है। पर्वतनी पर्वत निर्माण प्रक्रिया है, जबकि महाद्वीप रचना महाद्वीप निर्माण-प्रक्रिया है। पर्वतनी, महाद्वीप रचना (Epeirogeny), भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिक की प्रक्रियाओं से भू-पर्पटी में भ्रंश तथा विभंग हो सकता है। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापक्रम (PVT) में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तर प्रेरित होता है ।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 18.
विघटन एवं अपघटन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विघटन – भौतिक प्रक्रिया में विघटन से चट्टानें टूटती हैं। अपघटन: रासायनिक क्रिया में अपघटन के कारण जब चट्टानों पर पानी पड़ता है तो चट्टानें नर्म पड़ने से कमज़ोर हो जाती हैं जिसके कारण ये टूटती हैं।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी तथा शैल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-

मिट्टी (Soil) शैल (Rock)
(1) चट्टानों के अपक्षय तथा जैविक पदार्थों से प्राप्त होने वाले टूटे-फूटे कणों की परत को मिट्टी कहते हैं। (1) शैल प्राकृतिक रूप से ठोस जैव एवं अजैव पदार्थ हैं जो भू-पृष्ठ का निर्माण करते हैं।
(2) मिट्टी के विभिन्न संस्तर होते हैं। (2) शैल के संस्तर नहीं होते।
(3) मिट्टी की गहराई 2-3 मीटर तक सीमित होती है। (3) पृथ्वी के भीतरी भागों तक शैलें पाई जाती हैं।
(4) मिट्टी चट्टानों की टूट-फूट से प्राप्त चूर्ण से बनती है। (4) शैल कई खानिज पदार्थों के मिलने से बनती है।
मिट्टी (Soil) शैल (Rock)

प्रश्न 2.
अपरदन तथा अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

अपरदन (Erosion) अपक्षय (Weathering)
(1) भू-तल पर खुरचने, कांट-छांट तथा मलबे को परिवहन करने के कार्य को अपरदन कहते हैं। (1) इसमें रासायनिक क्रियाओं द्वारा अपघटन से चट्टानें टूटफूट जाती हैं।
(2) अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है। (2) इससे चट्टानों का रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन नहीं होता है।
(3) अपरदन गतिशील कारकों द्वारा जैसे-जल, हिमनदी, वायु आदि से होता है। (3) इस अपक्षय के उदाहरण ऊष्ण प्रदेशों में मिलते हैं।
(4) अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। (4) रासायनिक अपक्षय में कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताओ।
उत्तर:

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
(1) इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानों के विघटन से चट्टानें चूर-चूर हो जाती हैं। (1) चट्टानों के अपघटन तथा विघटन के द्वारा अपने मूल स्थान पर तोड़-फोड़ करने की क्रिया को अपक्षय कहते हैं।
(2) इससे चट्टानों के खनिजों में कोई परिवर्तन नहीं होता। (2) अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है।
(3) यह अपक्षय शुष्क तथा शीत प्रदेशों में अधिक होता है । (3) अपक्षय सूर्यातप, पाला तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
(4) भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला, वर्षा तथा वायु हैं। (4) अपक्षय चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में सहायता करता है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अपक्षय किसे कहते हैं? अपक्षय कितने प्रकार से होता है? गर्म तथा ठण्डे प्रदेशों में होने वाले यांत्रिक अपक्षय की प्रक्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपक्षय (Weathering):
पृथ्वी की बाहरी स्थिर शक्तियों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर विखंडन तथा अपघटन की क्रिया को अपक्षरण कहते हैं। इसमें चट्टानों के टूटने, भरने तथा घुलने की क्रियाएं होती हैं। [“Weathering includes the breaking up of Rocks (disintegration and decomposition) by the elements of weather.”] अपक्षरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  1. चट्टानों की संरचना:  कोमल चट्टानें शीघ्र टूट जाती हैं परन्तु कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।
  2. भूमि का ढाल: तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में अपक्षरण अधिक होती है। चट्टानों का संगठन कमज़ोर हो जाता है।
  3. शैल सन्धि: सन्धियाँ शैलों में जल के घुलने तथा भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण में सहायक होती हैं।
  4. वनस्पति: वनस्पति के ढके धरातल सुरक्षित रहते हैं। परन्तु वनस्पति रहित प्रदेशों में अपक्षरण अधिक होता है।
  5. जलवायु: आर्द्र जलवायु में रासायनिक अपक्षरण तथा शुष्क जलवायु में यान्त्रिक अपक्षरण होता है।

अपक्षरण के रूप (Types of Weathering):
(i) भौतिक अपक्षरण (Physical Weathering): यान्त्रिक साधनों द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-टूट कर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को भौतिक अपक्षरण कहते हैं। इस अपक्षरण से चट्टानों का विघटन ( Disintegration) होता है।

1. सूर्यताप (Temperature ):
सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एक दम गर्म होकर फैलती हैं तथा त को तेज़ी से ठण्डी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने तथा सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें (Cracks) तथा सन्धियां (Joints) पड़ जाती हैं तथा चट्टानें टूटती हैं और चूर-चूर हो जाती हैं। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्यताप द्वारा अपक्षरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  1. मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक तथा शीघ्र अपक्षरण होता है।
  2. काले रंग की चट्टानों पर अधिक अपक्षरण होता है।
  3. पर्वतीय ढलानों तथा मरुस्थलों में अपक्षरण महत्त्वपूर्ण है ।

2. पाला (Frost ):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में जल भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं । यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ Scree के रूप में जमा हो जाता है। हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

3. वर्षा (Rainfall):
वर्षा का जल बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है तथा कई प्रभाव डालता है।
(a) मिट्टी कटाव (Soil Erosion ): ढलान भूमि पर नदी घाटियों से वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले जाता है तथा मिट्टी कटाव की समस्या उत्पन्न होती है।

(b) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land ): मूसलाधार वर्षा के कारण जल नालियां (Gullies) तथा खाइयां (Ravines) बनाकर बंजर व अस्त-व्यस्त धरातल बना देता है, जैसे- भारत में चम्बल घाटी में।

(c) मिट्टी के स्तम्भ ( Earth Pillars ): वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है परन्तु कठोर चट्टान एक टोपी (Cap) का कार्य करती है तथा मिट्टी के स्तम्भ खड़े रहते हैं। जैसे इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमालय के स्पीती (Spiti) प्रदेश में।

(d) भू- फिसलन (Land Slides): वर्षा का जल चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी कर देता है तथा चट्टानें ढलान की ओर फिसल जाती हैं। अधिक वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भू- फिसलन के कारण सड़कें रुक जाती हैं।

4. वायु (Wind):
हवा का अपक्षय मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों या वनस्पति रहित प्रदेशों में होता है। रेत से लदी वायु एक रेगमार (Sand paper) की भांति चट्टानों को चूर-चूर कर देती है।
(a) मरुस्थलों में से गुज़रने वाली रेलगाड़ियों को हर साल रंग (Paint) करना पड़ता है।
(b) टैलीग्राफ की तारें वायु के प्रहार से घिस जाती हैं।
(c) समुद्र तट की ओर साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं जैसे दानेदार शीशे (Frosted glass) हों।
(d) चट्टानों का आकार अद्भुत हो जाता है। जैसे राजस्थान में माऊंट आबू के निकट Toad Rock |

(ii) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering): ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों व रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली पड़ जाती हैं पर अलग-अलग नहीं होतीं। इसे अपघटन (Decomposition) कहते हैं। यह रासायनिक अपक्षय कई प्रकार से होता है।
1. ऑक्सीकरण (Oxidation):
चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है। ऑक्सीजन की कमी के कारण न्यूनीकरण (Reduction) की क्रिया आरम्भ हो जाती है। इस क्रिया से लोहे का लाल रंग हरे या आसमानी धूसर रंग में बदल जाता है।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation ):
जल में विलय कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं।

3. जलयोजन (Hydration):
हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें भीतर ही भीतर पिस कर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Kaolin) का जन्म इसी प्रकार फैल्सपार (Felspar) चट्टानों के अपघटन से हुआ है ।

4. घोलीकरण (Solution ):
पानी कई खनिजों को घुला देता है। यह खनिज घुल कर चट्टानों से बह जाते हैं। जैसे चूना मिट्टी में से घुल कर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटेराइट ( Laterite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

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प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के बृहत्-क्षरण (Mass Wasting) की व्याख्या करो।
उत्तर:
बृहत्-क्षरण (Mass Wasting ):
गुरुत्वाकर्षण बल निरन्तर मृदा, रेगोलिथ तथा आधार – शैलों पर क्रियाशील रहता है। जहां भी धरातल ढलुआ होता है, गुरुत्वाकर्षण बल ढाल से नीचे की ओर पृष्ठ के समानांतर संचलित होता है। प्रत्येक कण ढालों के साथ ऊपर से नीचे लुढ़कने या सरकने की प्रवृत्ति रखता है और ऐसा होता भी है, जब अनुढाल बल घर्षण अधिक हो जाता है। बृहत्-क्षरण के प्रकार (Types of Mass Wasting ): बृहत्-क्षरण के रूप प्रलयकारी अवसर्पण से लेकर जल-संतृप्त मृदा के मंद प्रवाह तक हो सकते हैं। इसके विभिन्न प्रकार हैं:

  1. शैलों का गिरना,
  2. लरज़ कर गिर पड़ना,
  3. स्खलन,
  4. प्रवाह।

1. मृदा सर्पण (Soil Crecp):
पर्वतीय ढालों का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने पर अक्सर इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि मृदा लंबे काल से पर्वत ढाल के सहारे अति मंद गति से नीचे की ओर निरन्तर संचलित हो रही है। इस घटना को मृदा सर्पण कहते हैं। यह अपरूपण का प्रभाव है, जो शैलों में अनगिनत संधि विभागों और संस्तरणों या विदलन पृष्ठों के साथ – साथ वितरित हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ  1

2. मृदा प्रवाह (Earth Flow):
आर्द्र जलवायु वाले पर्वतीय तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जल-संतृप्त मिश्रित मृदा तथा मृत्तिका खनिजों में धनी रेगोलिथ मृदा-प्रवाह का रूप लेते हैं। मृदा प्रवाह एक प्रकार का बृहत्-क्षरण है, जिसमें भूपदार्थ का आचरण सुघट्य ठोस जैसा होता है। वृक्ष विहीन टुंड्रा प्रदेश में मृदा प्रवाह का आर्कटिक प्रकार अंग्रेज़ी में सॉलीफ्लक्शन कहलाता है परन्तु हिन्दी में यह मृदा सर्पण ही कहलाता है।
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3. पंक प्रवाह (Mud Flow):
यदि खनिज पदार्थों के अनुपात में जल की मात्रा अधिक होती है, तो यह बृहत्-क्षरण पंक प्रवाह का रूप ले लेता है। यह नदी मार्गों में तेज़ी के साथ यात्रा करता है। पंक प्रवाह उच्च पर्वतों पर भी उत्पन्न होता है, जहां सर्दियों में एकत्र हिम पिघल कर मृत्तिका समृद्ध अपक्षयित शैल को उठा लेता है।

4. शैल स्खलन (Land Slide ):
सीधे शैल- भृगु के किनारे भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया शैल को अदृढ़ बना देती है। जब गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें नीचे लाता है, तो इसे शैलपात का नाम दिया जाता है। गिरते हुए शैल खंड टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं और ऐसी ढाल का निर्माण करते हैं, जिस पर अदृढ़ पदार्थ बिखरे पड़े रहते हैं, जिन्हें शैल मलबा जुड़े हुए खंडों का संचालन पात क्षेत्र स्तर का नीचे की ओर मुड़ना बाड़, स्मृति पत्थर और तार के स्तम्भों का झुकना टूटी हुई शेष दीवारें मृदा सर्पण क्षेत्र कगार स्खलन आधार शैल क्षेत्र पात कहते हैं। एक शैल खंड का अकेले धरातल पर नीचे लुढ़कना शैल स्खलन कहलाता है। जब कोई अकेला शैल खंड अपने क्षैतिज अक्ष पर पीछे की ओर सर्पिल होकर एक वक्र विभंग’ तल पर लुढ़कता है तो उसे अवसर्पण कहते हैं।
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JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. निम्नलिखित में से कौन-सी शैल आग्नेय शैल है?
(A) कोयला
(B) क्वार्ट्ज़
(C) बेसाल्ट
(D) संगमरमर।
उत्तर:
(C) बेसाल्ट।

2. संगमरमर किस प्रकार की शैल है?
(A) आग्नेय
(B) तलछटी
(C) परिवर्तित
(D) अवसादी।
उत्तर:
(C) परिवर्तित।

3. आग्नेय चट्टानों में निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता है?
(A) परतें
(B) कण
(C) तलछट
(D) रवे।
उत्तर:
(D) रवे।

4. निम्नलिखित में से कौन-सी रूपान्तरित चट्टान है?
(A) संगमरमर
(B) बेसाल्ट
(C) पीट
(D) बलुआ पत्थर।
उत्तर:
(A) संगमरमर।

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5. निम्नलिखित में से कौन-सी चट्टान संगमरमर का मूल रूप है?
(A) बेसाल्ट
(B) ग्रेनाइट
(C) चूने का पत्थर
(D) शैल।
उत्तर:
चूने का पत्थर।

6. भूपर्पटी का निर्माण करने वाले पदार्थों को कहते हैं
(A) चट्टानें
(B) खनिज
(C) धातुएं
(D) लावा।
उत्तर:
(A) चट्टानें।

7. भूपर्पटी के नीचे पाए जाने वाले अत्यन्त गर्म तथा पिघले हुए पदार्थ को कहते हैं
(A) लावा
(B) मैग्मा
(C) रायोलाइट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
मैग्मा।

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8. आग्नेय चट्टानों की रचना होती है
(A) अधिक दबाव से
(B) मैग्मा तथा लावा के ठोस बनने से
(C) टूटे हुए रवों के मिल जाने से
(D) नदियों के निक्षेप से।
उत्तर:
(B) मैग्मा तथा लावा के ठोस बनने से।

9. पहले से बनी चट्टानों के असंगठित तथा टूटे हुए रवों से बनती हैं
(A) अवसादी चट्टानें
(B) जैव चट्टानें
(C) आग्नेय चट्टानें
(D) रूपांतरित चट्टानें।
उत्तर:
अवसादी चट्टानें।

10. निम्नलिखित में से कौन-सी रूपान्तरित चट्टान है?
(A) ग्रेनाइट
(B) ग्रेफाइट
(C) ग्रिट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
ग्रेफाइट।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थलमण्डल में पाये जाने वाझले दो तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर:
सिलिकॉन तथा एल्यूमीनियम।

प्रश्न 2.
चट्टान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थलमण्डल के कठोर खनिज।

प्रश्न 3.
चट्टानों के रंग तथा कठोरता किन तत्त्वों पर निर्भर करते हैं?
उत्तर:
खनिजों की रचना।

प्रश्न 4.
चट्टानों से प्रभावित एक वस्तु का नाम लिखो।
उत्तर:
भू-आकार।

प्रश्न 5.
चट्टानों की तीन मुख्य किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. आग्नेय चट्टानें
  2. अवसादी या तलछटी चट्टानें
  3. रूपांतरित चट्टानें।

प्रश्न 6.
IGNEOUS शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह लेटिन शब्द Ignis से बना है। (अर्थ अग्नि है)।

प्रश्न 7.
लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से क्यों ठण्डा हो जाता है?
उत्तर:
वायुमण्डल के सम्पर्क में होने के कारण।

प्रश्न 8.
बाह्य आग्नेय चट्टान की एक उदाहरण दो।
उत्तर:
बसॉल्ट।

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प्रश्न 9.
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों के दो प्रकार लिखो।
उत्तर:
बाह्य तथा भीतरी चट्टानें।

प्रश्न 10.
उत्पत्ति के आधार पर आग्नेय चट्टानें कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी चट्टानें तथा पातालीय चट्टानें।

प्रश्न 11.
पातालीय शब्द कहां से बना?
उत्तर:
यह शब्द (Pluto) से बना जिसका अर्थ पाताल देवता है।

प्रश्न 12.
बसॉल्ट में रवे क्यों नहीं होते?
उत्तर:
लावा के तेज़ी से ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 13.
पातालीय चट्टानों की एक उदाहरण दें।
उत्तर:
ग्रेनाइट।

प्रश्न 14, ग्रेनाइट में बड़े रवे क्यों होते हैं?
उत्तर:
मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 15.
Sedimentary शब्द किस शब्द से बना है?
उत्तर;
Sadimentum शब्द से, जिसका अर्थ है नीचे बैठना।

प्रश्न 16.
अवसादी चट्टानों के लिये निक्षेप करने वाले कार्यकर्ता बताओ।
उत्तर:
नदी, वायु, ग्लेशियर।

प्रश्न 17.
तलछट को कठोर बनाने में किस तत्त्व का योगदान है?
उत्तर:
सिलिका, कैल्साइट आदि संयोजक पदार्थ।

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प्रश्न 18.
बनावट के आधार पर अवसादी चट्टानों की तीन किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:

  1. यांत्रिक क्रिया द्वारा
  2. रासायनिक क्रिया द्वारा
  3. जैविक क्रिया द्वारा।

प्रश्न 19.
कार्बन प्रधान चट्टान की एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कोयला।

प्रश्न 20.
कोयले की विभिन्न किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:
पीट लिग्नाइट, बिटुमिनस तथा एंथ्रासाइट।

प्रश्न 21.
चूना प्रधान चट्टानों की दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चाक तथा चूने का पत्थर।

प्रश्न 22.
अवसादी चट्टानों में पाये जाने वाले दो फ़ॉसिल ईंधन बताएं।
उत्तर:
कोयला तथा पेट्रोलियम।

प्रश्न 23.
रासायनिक क्रिया द्वारा निर्मित दो चट्टानों के नाम लिखो।
उत्तर:
जिप्सम तथा चट्टानी नमक।

प्रश्न 24.
रूपांतरित शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
रूप में परिवर्तन।

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प्रश्न 25.
चट्टानें अपना रंग तथा रचना क्यों बदल लेती हैं?
उत्तर:
ताप तथा दबाव के कारण।

प्रश्न 26.
चट्टानें कितनी प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
तीन:

  1. अवसादी
  2. आग्नेय
  3. कायान्तरित।

प्रश्न 27.
पैंसिल का सिक्का किस चट्टान से बनता है?
उत्तर:
ग्रेफाइट।

प्रश्न 28.
किन चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें कहा जाता है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानें।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थल मण्डल किसे कहते हैं? स्थल मण्डल की कितनी गहराई तक चट्टानें पाई जाती हैं?
उत्तर:
स्थल मण्डल (Lithosphere) का अर्थ है चट्टानों का परिमण्डल। पृथ्वी की बाहरी ठोस पर्त को भूपर्पटी (Crust) कहते हैं। यह क्षेत्र चट्टानों का बना हुआ है। धरातल से लगभग 16 कि०मी० की गहराई तक स्थल मण्डल में चट्टानें पाई जाती हैं।

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प्रश्न 2.
शैल (Rock) की परिभाषा दो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं। (“Any natural, solid organic or inorganic material out of which the crust is formed is called a Rock.”) शैल ग्रेनाइट की भान्ति कठोर या पंक की भान्ति नरम भी हो सकती है। भू-पृष्ठ शैलों का बना हुआ है। शैल की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। कुछ शैल ऐसे भी हैं जिनमें एक ही प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। खनिज पदार्थों की विभिन्न मात्रा के कारण ही हर शैल की कोमलता या कठोरता, रंग-रूप, गुण व शक्ति अलग-अलग होती है।

प्रश्न 3.
खनिज की परिभाषा दें।
उत्तर:
शैलों की रचना पदार्थों के इकट्ठा होने से होती है। खनिज प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला एक अजैव तत्त्व (Inorganic element) या यौगिक (Compound) है। इसकी एक निश्चित रासायनिक रचना होती है। इसके संघटन में आण्विक संरचना पाई जाती है। इसके भौतिक गुण भी निश्चित होते हैं । अतः खनिज प्रकृति में पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ हैं। ये पदार्थ तत्त्व भी हो सकते हैं और यौगिक भी।

प्रश्न 4.
शैल निर्माणकारी खनिज किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर लगभग 2000 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं, परन्तु इनमें से केवल 12 खनिज ही मुख्य रूप से भू-पृष्ठ की शैलों का निर्माण करते हैं। इन खनिजों को शैल निर्माणकारी खनिज ( Rock forming Minerals) कहते हैं। इन खनिजों में सिलिकेट सब से महत्त्वपूर्ण एवं प्रधान होता है । इन शैलों में सबसे सामान्य खनिज क्वार्टज़ (Quartz) पाया जाता है।

प्रश्न 5.
खनिज कितने तत्त्वों से बनते हैं? मुख्य तत्त्व कौन-से हैं? सिलिका तथा चूने के कार्बोनेट में कौनतत्त्व हैं?
उत्तर:
सामान्य खनिज 8 मुख्य तत्त्वों (Elements) से बनते हैं। इनमें से सिलिकेट, कार्बोनेट, ऑक्साइड तत्त्वों की मात्रा अधिक है। भू-पटल के खनिजों में 87% खनिज सिलिकेट हैं । सिलिका में 2 तत्त्व हैं – सिलिकॉन तथा ऑक्सीजन । चूने के कार्बोनेट में 3 तत्त्व हैं – कैल्शियम, कार्बन, ऑक्सीजन ।

प्रश्न 6.
‘चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं ।’ व्याख्या करें।
उत्तर:
चट्टानें पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। इसमें पाये जाने वाले खनिज तथा इनसे बनी मिट्टी प्राकृतिक वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पतियों के अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति व समय के बारे में जानकारी देते हैं। इसलिये कहा जाता है, ” चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं तथा जीवावशेष उसके अक्षर हैं।” (“Rocks are the pages of Earth History and Fossils are the writing on it.”)

प्रश्न 7.
पृथ्वी की पर्पटी में कौन से प्रमुख तत्त्व हैं?
उत्तर:
पृथ्वी विभिन्न तत्त्वों से बनी हुई है। इनकी बाहरी परत पर ये तत्त्व ठोस रूप में और आंतरिक परत में ये गर्म एवं पिघली हुई अवस्था में पाये जाते हैं। पृथ्वी के सम्पूर्ण पर्पटी का लगभग 98 प्रतिशत भाग आठ तत्त्वों, जैसे ऑक्सीजन, सिलिकान, एल्यूमीनियम, लोहा, कैल्शियम, सोडियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम से बना है तथा शेष भाग टाइटेनियम, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, मैंगनीज, सल्फर, कार्बन, निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है।

सारणी पृथ्वी के पर्पटी के प्रमुख तत्त्व:

पदार्थ वज्रन के अनुसार $(\%)$
1. ऑक्सीजन 46.60
2. सिलिकन 27.72
3. एल्यूमीनियम 8.13
4. लौह 5.00
5. कैल्शियम 3.63
6. सोडियम 2.83
7. पोटैशियम 2.59
8. मैग्नीशियम 2.09
9. अन्य 1.41

प्रश्न 8.
धात्विक तथा अधात्विक खनिजों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
धात्विक खनिज-इनमें धातु तत्त्व होते हैं, तथा इनको तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
(क) बहुमूल्य धातु-स्वर्ण, चांदी, प्लैटिनम आदि।
(ख) लौह धातु-लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलायी जाने वाली अन्य धातुएं।
(ग) अलौहिक धातु-इनमें ताम्र, सीसा, जिंक, टिन, एल्यूमीनियम आदि धातु शामिल होते हैं।
अधात्विक खनिज-इनमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं। गंधक, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज हैं। सीमेंट अधात्विक खनिजों का मिश्रण है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 9.
रवों (Crystals) का निर्माण किस तत्त्व पर निर्भर करता है?
उत्तर:
पिघले हुए लावा के ठण्डा होने से रवों का निर्माण होता है । रवों का आकार छोटा या बड़ा हो सकता है। रवों का आकार मैग्मा के शीतलन (rate of cooling of magma) की क्रिया पर निर्भर करता है। धरातल पर शीघ्र ही ठण्डा होने के कारण धरातल पर बनने वाले रवों का आकार छोटा होता है। इनका गठन कांच जैसा होता है, जैसे बेसॉल्ट। मैग्मा के शीतलन की क्रमिक क्रिया से बड़े-बड़े रवों का निर्माण होता है। मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने से पातालीय चट्टानों में बड़े आकार के रवों या मोटे दोनों वाले गठन का निर्माण होता है, जैसे ग्रेनाइट।

प्रश्न 10.
दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) से क्या अभिप्राय है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में बसाल्ट चट्टानों से ढके हुये विशाल क्षेत्र को दक्कन ट्रैप कहते हैं। इस क्षेत्र का विस्तार लगभग 5,00,000 वर्ग कि०मी० है। इन चट्टानों के अपक्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण हुआ है जिसे ‘रेगर’ (Regur) मिट्टी कहते हैं। यह मिट्टी कपास की कृषि के लिये उत्तम है।

प्रश्न 11.
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टान क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानें पृथ्वी पर सबसे प्राचीन चट्टानें हैं। आरम्भ में पृथ्वी पर मूल पदार्थ मैग्मा (Magma) पिघली हुई अवस्था में था। इस मैग्मा के ठण्डा तथा ठोस होने से आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। इस प्रकार पृथ्वी पर सर्वप्रथम बनने के कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary rocks) कहा जाता है। इसके पश्चात् दूसरी चट्टानों का निर्माण आग्नेय चट्टानों से प्राप्त तलछट से हुआ।

प्रश्न 12.
तलछटी चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) सुरक्षित रहते हैं जबकि आग्नेय चट्टानों में नहीं। क्यों?
उत्तर:
जीवावशेष वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के बचे-खुचे भाग होते हैं। तलछटी चट्टानें परतों में पाई जाती हैं। इन परतों के बीच ये जीवावशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति के समय का ज्ञान देते हैं । आग्नेय चट्टानों में पर्ते नहीं पाई जातीं । आग्नेय चट्टानों के निर्माण में गर्म मैग्मा के कारण ये अवशेष झुलस जाते हैं तथा नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
खनिज संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
खनिज संसाधनों को पाँच प्रमुख निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है

  1. लौह धातु-खनिज जिसमें लोहे का अंश होता है। जैसे-लोहा अयस्क, निकल, कोबाल्ट आदि।
  2. अलौह धातु-खनिज जिसमें लौह अयस्क के अलावा धातुएं पाई जाती हैं। जैसे-तांबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट।
  3. बहुमूल्य खनिज-ऐसे खनिज जिनका आर्थिक मूल्य उच्च होता है। जैसे–सोना, चाँदी आदि।
  4. अधात्विक खनिज-यह वे खनिज हैं जिसमें धातुएं नहीं पाई जाती हैं। जैसे-अभ्रक, नमक, पोटाश, सल्फर आदि।
  5. ऊर्जा खनिज-ऐसे खनिज जो ऊर्जा उपलब्ध करवाते हैं। जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
खनिजों का आर्थिक महत्त्व बताओ।
उत्तर:
खनिज संसाधनों को चार प्रमुख वर्गों में बांटा जा सकता है आवश्यक संसाधन, ऊर्जा संसाधन, धातु संसाधन तथा औद्योगिक संसाधन इनमें से सर्वाधिक आधारभूत वर्ग, आवश्यक संसाधन वर्ग है, जिसमें मृदा तथा जल शामिल है। ऊर्जा संसाधन को जीवाश्मी ईंधन (कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयले, शैल तेल तथा तारकोल, बालू) तथा परमाणु ईंधन (यूरेनियम, थोरियम एवं भूतापीय ऊर्जा ) में विभक्त किया जा सकता है धात्विक संसाधनों में, संरचनात्मक धातुओं जैसे लोहा, एल्यूमीनियम एवं टिटैनियम से लेकर अलंकारी एवं औद्योगिक धातुएं जैसे- सोना, प्लैटिनम तथा सैलियम शामिल हैं।

औद्योगिक खनिजों में 30 से अधिक वस्तुएं (पण्य) सम्मिलित हैं जैसे- नमक, एस्बेस्टास तथा बालू खनिज निक्षेपों की दो भू-वैज्ञानिक विशेषताएं हैं जो आधुनिक सभ्यता के लिए चुनौती उपस्थित करती हैं। प्रथम लगभग सभी संसाधन नवीकरण योग्य नहीं हैं। भू-वैज्ञानिक क्रियाएं, जिनके द्वारा इनका निर्माण होता है, बहुत धीरे-धीरे काम करती हैं, जबकि इनके दोहन की दर इससे काफ़ी अधिक है। खनिज निक्षेपों को उनके उपभोग की दर के बराबर पैदा करने की हमारी योग्यता तथा क्षमता होने की कोई संभावना नहीं है। द्वितीय खनिज निक्षेपों की महत्ता स्थानबद्ध है। हम यह निर्धारित नहीं कर सकते कि कहां इनका दोहन किया जाए। प्रकृति हमारे लिए यह निर्णय उसी समय लेती है, जबकि इनका निक्षेपण होता है

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
आग्नेय चट्टानों तथा तलछटी चट्टानों में अन्तर बताओ
उत्तर:

आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks) तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
1. रूप-ये चट्टानें ढेरों (Bulks) में पाई जाती हैं। 1. ये चट्टानें परतों (Layers) में पाई जाती हैं।
2. कारण-इन चट्द्रानों में चपढे तल वाले रवे (Crystals) मिलते हैं। 2. इन चट्टानों में विभिन्न आकार के गोल कण (Particles) मिलते हैं।
3. रचना-ये चट्टानें लावा (Magma) के ठण्डा व ठोस होने से बनती हैं । 3. ये चट्टानें तलछट (Sediments) की परतों के निरन्तर जमाव से बनती हैं।
4. कठोरता-ये चट्यनें कठोर होती हैं। 4. ये चट्टानें नर्म होती हैं।
5. अवशेष-इनमें जीव-अवशेष (Fossils) नहीं पाए जाते । 5. इन चट्टानों में जीव अवशेष सुरक्षित रहते हैं।
6. निर्माण काल-सर्व-प्रथम बनने के कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं। 6. आग्नेय चट्टानों के क्षय के बाद में बनने के कारण इन्हें गौण चट्टानें (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
7. अपरदन-इन चट्टानों पर ॠतु प्रहार कम होता है। 7. ये चट्टानें ऋतु प्रहार से शीघ्र टूट जाती हैं।
8. खण्ड-इनमें जोड़ (Joints) पाए जाते हैं। 8. इनमें जोड़ नहीं पाए जाते।
9. आग्नेय चद्टानें अप्रवेशीय (Imprevious) होती हैं। 9. ये अधिकतर प्रवेशीय (Previous) होती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. इनमें से किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?
(A) बिहार
(B) पश्चिम बंगाल
(C) असम
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(A) बिहार।

2. उत्तराखंड के किस जिले में मालपा भू-स्खलन आपदा घटित हुई थी?
(A) बागेश्वर
(B) चंपावत
(C) अल्मोड़ा
(D) पिथोरागढ़।
उत्तर:
(D) पिथोरागढ़।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

3. इनमें से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
(A) असम
(B) पश्चिम बंगाल
(C) केरल
(D) तमिलनाडु।
उत्तर:
(D) तमिलनाडु।

4. इनमें से किस नदी में मजौली तटीय द्वीप स्थित है?
(A) गंगा
(B) ब्रह्मपुत्र
(C) गोदावरी
(D) सिन्धु।
उत्तर:
(B) ब्रह्मपुत्र।

5. बर्फानी तूफ़ान किस तरह की प्राकृतिक आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) जलीय
(C) भौमिकी
(D) जीव मण्डलीय।
उत्तर:
(A) वायुमण्डलीय।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर:
प्रायः संकट और आपदा दोनों शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे की जगह कर लेते हैं। संकट में प्रायः धन-जन या दोनों के नुकसान की सम्भावना होती है। जब यह घटना तीव्रता से होती है तथा बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि होती है तो इसे आपदा कहते हैं।

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प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी सात राज्यों में तथा हिमालय पर्वत के साथ भूकम्प अधिक आते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि इण्डियन प्लेट प्रति वर्ष एक सें० मी० की गति से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। इसलिए इण्डियन प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट के टकराव के कारण हिमालय पर्वत की चाप के साथ-साथ भूकम्प अधिक आते हैं।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय तूफ़ान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियां अनुकूल हैं?
उत्तर:

  1. उष्ण-आर्द्र वायु का उपलब्ध होना।
  2. कोरियोलिस बल का तीव्र होना।
  3. क्षोभ मण्डल में अस्थिरता।
  4. मज़बूत ऊर्ध्वाधर वायु की अनुपस्थिति।

प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़ पश्चिमी भारत की बाढ़ से अलग क्यों होती है?
उत्तर:
पूर्वी भारत में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहां जल नदियों की क्षमता से अधिक मात्रा में बहता है तथा बाढ़ के रूप में फैल जाता है। पश्चिमी भारत में वर्षा की अचानक तथा अधिक तीव्रता के कारण कई क्षेत्र जल मग्न हो जाते हैं।

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प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
इन क्षेत्रों में वर्षा की अनिश्चितता अधिक है। वर्षा की परिवर्तिता 40% से अधिक है। इसलिए बार-बार लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दोप्रश्न 1.
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा के निवारण के कुछ उपाय बताए।
अथवा
भारत के विभिन्न भू-स्खलन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन-भू-स्खलन द्वारा चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरता है। भू-स्खलन मुख्य रूप से स्थानीय कारणों से उत्पन्न होते हैं। इसलिए भू-स्खलन के बारे में आंकड़े एकत्र करना और इसकी सम्भावना का अनुमान लगाना न सिर्फ मुश्किल अपितु काफ़ी महंगा पड़ता है। प्रमुख क्षेत्र-इसके घटने को प्रभावित करने वाले कारकों, जैसे- भूविज्ञान, भूआकृतिक कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानव क्रियाकलापों के आधार पर भारत को विभिन्न भू-स्खलन क्षेत्रों में बांटा गया है।

1. अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र: ज्यादा अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएं, अंडमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र, जिसमें सड़क और बांध निर्माण इत्यादि आते हैं, अत्यधिक भू-स्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में रखे जाते हैं।

2. अधिक सुभेद्यता क्षेत्र: हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर-पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं।

3. मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र: पार हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्पिती, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं, जहां कभी-कभी भू-स्खलन होता है। इसके अलावा झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खाद्यानों और भूमि धंसने से भू-स्खलन होता रहता है।

4. अन्य क्षेत्र: भारत के अन्य क्षेत्र विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग जिले को छोड़कर), असम (कार्बी अनलोंग को छोड़कर) और दक्षिण प्रांतों के तटीय क्षेत्र भू-स्खलन युक्त हैं।
निवारण-भू-स्खलन से निपटने के उपाय अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होने चाहिएं।

  1. अधिक भू-स्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बांध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  2. इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियन्त्रण होना चाहिए।
  3. सकारात्मक कार्य जैसे-बृहत स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा और जल बहाव को कम करने के लिए बांध का निर्माण भू-स्खलन के उपायों के पूरक हैं।
  4. स्थानान्तरी कृषि वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इनके निवारण उपाय बताएं।
उत्तर:
सूखा ऐसी स्थिति है जब लम्बे समय तक कम वर्षा, अधिक वाष्पीकरण के कारण भूतल पर जल की कमी हो जाए। भारत में सूखां ग्रस्त क्षेत्र-भारतीय कृषि काफ़ी हद तक मानसून वर्षा पर निर्भर करती रही है। भारतीय जलवायु तन्त्र में सूखा और बाढ़ महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19 प्रतिशत भाग और जनसंख्या का 12 प्रतिशत हिस्सा हर वर्ष सूखे से प्रभावित होता है।

देश का लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र सूखे से प्रभावित हो सकता है जिससे 5 करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं। यह प्रायः देखा गया है कि जब देश के कुछ भागों में बाढ़ कहर ढा रही होती है, उसी समय दूसरे भाग सूखे से जूझ रहे होते हैं। यह मानसून में परिवर्तनशीलता और इसके व्यवहार में अनिश्चितता का परिणाम है। सूखे का प्रभाव भारत में बहुत व्यापक है, परन्तु कुछ क्षेत्र जहां ये बार-बार पड़ते हैं और जहां उनका असर अधिक है सूखे की तीव्रता के आधार पर अग्रलिखित क्षेत्रों में बांटा गया है

1. अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
राजस्थान में ज्यादातर भाग, विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित है। इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं, जहां 90 मिलीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।

2. अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
इसमें राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के ज्यादातर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आन्ध्र प्रदेश के अंदरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड का दक्षिणी भाग और उड़ीसा का आन्तरिक भाग शामिल है।

3. मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र:
इस वर्ग में राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के बचे हुए जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार तथा कर्नाटक पठार शामिल हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
आपदाओं की उत्पत्ति का सम्बन्ध मानव क्रियाकलापों से भी है। कुछ मानवीय गतिविधियां तो सीधे रूप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं। भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, सी०एफ०सी० (क्लोरोफ्लोरो कार्बन) गैसें वायुमण्डल में छोड़ना तथा ग्रीन हाऊस गैसें, ध्वनि, वायु, जल तथा मिट्टी सम्बन्धी पर्यावरण प्रदूषण आदि आपदाएं इसके उदाहरण हैं। कुछ मानवीय गतिविधियां परोक्ष रूप से भी आपदाओं को बढ़ावा देती हैं। वनों को काटने की वजह से भू-स्खलन और बाढ़, भंगुर ज़मीन पर निर्माण कार्य और अवैज्ञानिक भूमि उपयोग कुछ उदाहरण हैं।

यह सर्वमान्य है कि पिछले कुछ सालों से मानवकृत आपदाओं की संख्या और परिणाम, दोनों में ही वृद्धि हुई है और कई स्तर पर ऐसी घटनाओं से बचने के भरसक प्रयत्न किए जा रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान की स्थापना, 1993 में रियो डि जनेरो, ब्राजील में भू- शिखर सम्मेलन (Earth Summit) और मई, 1994 में यॉकोहामा, जापान में आपदा प्रबन्ध पर विश्व संगोष्ठी आदि, विभिन्न स्तरों पर इस दिशा में उठाए जाने वाले ठोस कदम हैं।
प्रत्येक आपदा, अपने नियन्त्रणकारी सामाजिक-पर्यावरणीय घटकों, सामाजिक अनुक्रिया, जो यह उत्पन्न करते हैं तथा जिस ढंग से प्रत्येक सामाजिक वर्ग इससे निपटता है, अद्वितीय होती है।

मानव पारिस्थितिक तन्त्र के साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करता था। इसलिए इन आपदाओं से नुकसान कम होता था। तकनीकी विकास ने मानव को, पर्यावरण को प्रभावित करने की बहुत क्षमता प्रदान कर दी है। परिणामतः मनुष्य ने आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों में गहन क्रियाकलाप शुरू कर दिया है और इस प्रकार आपदाओं की सुभेद्यता को बढ़ा दिया है। अधिकांश नदियों के बाढ़-मैदानों में भू-उपयोग तथा भूमि की कीमतों के कारण तथा तटों पर बड़े नगरों एवं बन्दरगाहों, जैसे मुम्बई तथा चेन्नई आदि के विकास ने इन क्षेत्रों को चक्रवातों, प्रभंजनों तथा सुनामी आदि के लिए सुभेद्य बना दिया है। पिछले 60 वर्षों में 12 गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं से विभिन्न देशों में मरने वालों की संख्या बहुत अधिक हैं।

 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ   JAC Class 11 Geography Notes

→ अस्थिर पृथ्वी (Unstable Earth): भू-तल स्थिर नहीं है। आंतरिक तथा बाहरी शक्तियां भू-तल पर परिवर्तन लाती रहती हैं। भारत में प्रतिवर्ष एक बड़ी संख्या में लोग प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो जाते हैं।

→ प्राकृतिक आपदाएं (Natural Hazards): भारतीय प्रमुख आपदाएं भूकम्प, बाढ़े, सूखा तथा भू-स्खलन हैं।

→ भारत की स्थिति (India’s Position ): भारत विश्व में प्रमुख दस देशों में से एक है जो प्राकृतिक | आपदाओं से प्रभावित होते हैं। यहां प्रति वर्ष छ: करोड़ लोग इन आपदाओं से प्रभावित होते हैं।

→ भूकम्प (Earthquakes ): भारत का लगभग 54% भाग भूकम्प से प्रभावित होता है। कच्छ प्रदेश, हिमालय पर्वत, उत्तरर-पूर्वी भाग तथा अण्डमान द्वीप भूकम्प क्षेत्र में शामिल हैं। गत दो शताब्दियों में भारत में 27 बड़े-बड़े भूकम्प आये हैं। भूकम्प से बचाव के लिए विशेष प्रकार के ढांचों का निर्माण करना चाहिए। कच्छ प्रदेश में, भुज में 26 जनवरी, 2001 को विनाशकारी भूकम्प से 30 हज़ार (30,000) व्यक्तियों की जानें गईं। दो करोड़ लोग प्रभावित हुए। 50% मकानों को हानि पहुंची तथा 50 हज़ार करोड़ की सम्पत्ति नष्ट हुई।

→ बाढ़ तथा सूखा (Floods and Droughts ): भारत में मानसून तथा अनिष्टता के कारण सूखा तथा बाढ़े आती हैं जो कृषि को हानि पहुंचाती हैं। दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल (कुल का 16%) सूखाग्रस्त तथा चार करोड़ हेक्टेयर (कुल का 12%) क्षेत्रफल बाढ़ग्रस्त है।

→ भू-स्खलन (Landslides ): भूमि के किसी जलभृत भाग के अचानक फिसल कर नीचे गिरने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। भू-स्खलन भारी वर्षा, भूकम्प के कारण होते हैं। ये प्राय: सड़क मार्गों में अवरोध पैदा करते हैं ।

JAC Class 11 Geography Important Questions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Geography Important Questions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Geography Important Questions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Geography Important Questions: भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Jharkhand Board Class 11th Geography Important Questions: भारत : भौतिक पर्यावरण

JAC Board Class 11th Geography Important Questions in English Medium

JAC Board Class 11th Geography Important Questions: Fundamentals of Physical Geography

  • Chapter 1 Geography as a Discipline Important Questions
  • Chapter 2 The Origin and Evolution of the Earth Important Questions
  • Chapter 3 Interior of the Earth Important Questions
  • Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents Important Questions
  • Chapter 5 Minerals and Rocks Important Questions
  • Chapter 6 Geomorphic Processes Important Questions
  • Chapter 7 Landforms and their Evolution Important Questions
  • Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere Important Questions
  • Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature Important Questions
  • Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems Important Questions
  • Chapter 11 Water in the Atmosphere Important Questions
  • Chapter 12 World Climate and Climate Change Important Questions
  • Chapter 13 Water (Oceans) Important Questions
  • Chapter 14 Movements of Ocean Water Important Questions
  • Chapter 15 Life on the Earth Important Questions
  • Chapter 16 Biodiversity and Conservation Important Questions

JAC Board Class 11th Geography Important Questions: India Physical Environment

  • Chapter 1 India – Location Important Questions
  • Chapter 2 Structure and Physiography Important Questions
  • Chapter 3 Drainage System Important Questions
  • Chapter 4 Climate Important Questions
  • Chapter 5 Natural Vegetation Important Questions
  • Chapter 6 Soils Important Questions
  • Chapter 7 Natural Hazards and Disasters Important Questions

JAC Class 11 Geography Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Geography Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Geography Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Geography Part 1 Fundamentals of Physical Geography (भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत भाग-1)

Jharkhand Board Class 11th Geography Part 2 India Physical Environment (भारत : भौतिक पर्यावरण भाग-2)

JAC Board Class 11th Geography Solutions in English Medium

JAC Board Class 11th Geography Part 1 Fundamentals of Physical Geography

  • Chapter 1 Geography as a Discipline
  • Chapter 2 The Origin and Evolution of the Earth
  • Chapter 3 Interior of the Earth
  • Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents
  • Chapter 5 Minerals and Rocks
  • Chapter 6 Geomorphic Processes
  • Chapter 7 Landforms and their Evolution
  • Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere
  • Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature
  • Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems
  • Chapter 11 Water in the Atmosphere
  • Chapter 12 World Climate and Climate Change
  • Chapter 13 Water (Oceans)
  • Chapter 14 Movements of Ocean Water
  • Chapter 15 Life on the Earth
  • Chapter 16 Biodiversity and Conservation

JAC Board Class 11th Geography Part 2 India Physical Environment

  • Chapter 1 India – Location
  • Chapter 2 Structure and Physiography
  • Chapter 3 Drainage System
  • Chapter 4 Climate
  • Chapter 5 Natural Vegetation
  • Chapter 6 Soils
  • Chapter 7 Natural Hazards and Disasters

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. ‘लाँग वाक टू फ्रीडम’ किस व्यक्ति की आत्मकथा का शीर्षक है।
(अ) महात्मा गांधी
(ब) नेल्सन मण्डेला
(स) जवाहर लाल नेहरू
(द) ऑग सान सू की
उत्तर:
(ब) नेल्सन मण्डेला

2. ‘फ्रीडम फ्राम फीयर’ पुस्तक की रचयिता है।
(अ) आँग सान सू की
(ब) श्रीमती विजया लक्ष्मी पंडित
(स) सुलमान रुश्दी
(द) ऑग सान सू की
उत्तर:
(अ) आँग सान सू की

3. ” मेरे लिए वास्तविक मुक्ति भय से मुक्ति है ।” यह कथन है।
(अ) जे. एस. मिल का
(ब) लॉक का
(स) नेल्सन मण्डेला का
(द) दीपा मेहता
उत्तर:
(द) दीपा मेहता

4. नकारात्मक स्वतंत्रता से आशय है।
(अ) ऐसी स्थितियों का होना जिसमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें
(ब) व्यक्ति की रचनाशीलता और क्षमताओं के विकास को बढ़ावा देना
(स) युक्तियुक्ति प्रतिबन्धों से युक्त स्वतंत्रता
(द) व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव
उत्तर:
(द) व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

5. जॉन स्टुअर्ट मिल की पुस्तक का नाम है।
(अ) लाँग वॉक टू फ्रीडम
(स) ऑन लिबर्टी
(ब) फ्रीडम फार फीयर
(द) द सेटानिक वर्सेस
उत्तर:
(स) ऑन लिबर्टी

6. निम्न में से जो पुस्तक समाज के कुछ हिस्सों में विरोध के बाद प्रतिबंधित कर दी गई, वह थी।
(अ) ऑन लिबर्टी
(ब) लाँग वाक टू फ्रीडम
(स) द सेटानिक वर्सेस
(द) फ्रीडम फार फीयर
उत्तर:
(स) द सेटानिक वर्सेस

7. ” राज्य को जहाँ तक संभव हो, व्यक्ति के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।” उक्त कथन है।
(अ) लास्की का
(ब) मिल का
(स) सीले का
(द) मार्क्स का
उत्तर:
(ब) मिल का

8. निम्नांकित में से जान स्टुअर्ट मिल का राजनीतिक सिद्धान्त था
(अ) लाभ का सिद्धान्त
(ब) हानि का सिद्धान्त
(स) उपर्युक्त दोनों
(द) आदर्शवादियों द्वारा
उत्तर:
(स) उपर्युक्त दोनों

9. प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा संबंधित है।
(अ) लास्की से
(ब) मार्क्स से
(स) रूसो से
(द) महात्मा गाँधी से
उत्तर:
(स) रूसो से

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

10. आर्थिक स्वतंत्रता पर सर्वाधिक जोर दिया गया था
(अ) व्यक्तिवादियों द्वारा
(ब) मार्क्सवादियों द्वारा
(स) उदारवादियों द्वारा
(द) आदर्शवादियों द्वारा
उत्तर:
(अ) व्यक्तिवादियों द्वारा

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. ……………….. के अनुसार गरिमापूर्ण मानवीय जीवन जीने के लिए जरूरी है कि हम भय पर विजय पाएं।
उत्तर:
आंग सान सू की

2. ……………….. बाहरी प्रतिबंधों का अभाव तथा ऐसी परिस्थितियों का होना है, जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें।
उत्तर:
स्वतंत्रता

3. ………………… मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।
उत्तर:
स्वराज्य

4. मिल ने ‘स्वसंबद्ध’ और ………………… कार्यों में अन्तर बताया है
उत्तर:
परसंबद्ध

5. स्वतंत्रता हमारे ” ………………….चुनने के सामर्थ्य और क्षमताओं में छुपी होती है।
उत्तर:
विकल्प

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये-

1. व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है।
उत्तर:
असत्य

2. स्वतंत्रता वह स्थिति है, जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सकें।
उत्तर:
सत्य

3. हमें कुछ प्रतिबंधों की तो जरूरत है, अन्यथा समाज अव्यवस्था के गर्त में पहुँच जाएगा।
उत्तर:
सत्य

4. स्वतंत्रता पर सामाजिक असमानता से जनित प्रतिबंधों को दूर करने की जरूरत नहीं है।
उत्तर:
असत्य

5. स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने से रोक सकता है जो किसी अन्य को हानि पहुँचाता हो।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. जॉन स्टुअर्ट मिल (अ) हिंद स्वराज्य
2. महात्मा गाँधी (ब) फ्रीडम फ्राम फीयर
3. ऑग सान सू की (स) लाँग वाक टू फ्रीडम
4. नेल्सन मंडेला (द) द सेटानिक वर्सेस
5. सलमान रुश्दी (य) ऑन लिबर्टी

उत्तर:

1. जॉन स्टुअर्ट मिल (य) ऑन लिबर्टी
2. महात्मा गाँधी (अ) हिंद स्वराज्य
3. ऑग सान सू की (ब) फ्रीडम फ्राम फीयर
4. नेल्सन मंडेला (स) लाँग वाक टू फ्रीडम
5. सलमान रुश्दी (द) द सेटानिक वर्सेस

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता की नकारात्मक परिभाषा लिखिये।
अथवा
नकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता का क्या आशय है?
उत्तर:
नकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता ‘व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव’ है।

प्रश्न 2.
सकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता से क्या आशय है?
उत्तर:
सकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता ऐसी स्थितियों के होने से है जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
स्वतंत्रता का शाब्दिक अर्थ है- बन्धनों का अभाव।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 4.
हमें स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धों की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने तथा एक समूह के विचारों को दूसरे समूह पर आरोपित किए बिना आपसी अंतरों पर चर्चा हो सकने की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों की आवश्यकता है।

प्रश्न 5.
जॉन स्टुअर्ट मिल ने व्यक्ति के कार्यों को कितने भागों में बाँटा है? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
मिल ने व्यक्ति के कार्यों को दो भागों:

  1. स्व-सम्बद्ध कार्य
  2. पर सम्बद्ध कार्य में बाँटा है।

प्रश्न 6.
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष से जुड़े किन्हीं दो व्यक्तियों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. नेल्सन मण्डेला और
  2. ऑग सान सू की।

प्रश्न 7.
ऑग सान सू की किस देश की हैं? और उन्हें संघर्ष की प्रेरणा कहाँ से प्राप्त हुई?
उत्तर:
ऑग सान सू की म्यांमार की हैं और गाँधीजी के अहिंसा के विचारों से उन्हें संघर्ष की प्रेरणा मिली।

प्रश्न 8.
ऑग सान सू की कां एक मुख्य विचार बताइए।
उत्तर:
आँग सान सू की के अनुसार गरिमापूर्ण मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है कि हम भय पर विजय पाएं।

प्रश्न 9.
स्व-सम्बद्ध कार्य कौनसे हैं?
उत्तर:
स्व-सम्बद्ध कार्य वे हैं जिनके प्रभाव केवल इन कार्यों को करने वाले व्यक्ति पर पड़ते हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 10.
पर-सम्बद्ध कार्य कौनसे हैं?
उत्तर:
पर-सम्बद्ध कार्य वे हैं जिनका प्रभाव कर्ता के साथ-साथ अन्य लोगों पर भी पड़ता है।

प्रश्न 11.
भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतंत्रता की समानार्थी अवधारणा क्या है?
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतंत्रता की समानार्थी अवधारणा है स्वराज।

प्रश्न 12.
लोकमान्य तिलक ने ‘स्वराज्य’ के बारे में क्या कहा था?
उत्तर:
लोकमान्य तिलक ने कहा था कि ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!’

प्रश्न 13.
एक स्वतंत्र समाज कौनसा होता है?
उत्तर:
एक स्वतंत्र समाज वह होता है जिसमें व्यक्ति अपने हित संवर्धन न्यूनतम प्रतिबंधों के बीच करने में स्वतंत्र

प्रश्न 14.
स्वतंत्रता को बहुमूल्य क्यों माना जाता है?
उत्तर:
स्वतंत्रता को बहुमूल्य इसलिए माना जाता है क्योंकि इससे व्यक्ति अपने विवेक और निर्णय की शक्ति का प्रयोग कर पाते हैं।

प्रश्न 15.
किन्हीं दो प्रतिबंधित नाटकों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. द लास्ट टेम्पटेशन आफ क्राइस्ट
  2. रामायण रिटोल्ड

प्रश्न 16.
द सेटानिक वर्सेस पुस्तक के लेखक का नाम लिखिये।
उत्तर:
सलमान रुश्दी।

प्रश्न 17.
‘ऑन लिबर्टी’ पुस्तक की रचना किसने की थी?
उत्तर:
जान स्टुअर्ट मिल।

प्रश्न 18.
नेल्सन मंडेला ने किस देश की आजादी के लिए संघर्ष किया?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका।

प्रश्न 19.
मंडेला ने किसके लिए संघर्ष किया था?
उत्तर:
मंडेला ने श्वेत और अश्वेत दोनों लोगों के लिए संघर्ष किया था।

प्रश्न 20.
जॉन स्टुअर्ट मिल ने किन दो कार्यों में अन्तर बताया था?
उत्तर:
स्व-संबद्ध और पर संबद्ध कार्यों में।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 21.
‘मानव स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन वह प्रत्येक जगह जंजीरों से जकड़ा हुआ है ।” उक्त विचार किस विद्वान से संबंधित हैं ?
उत्तर:
जीन जैक्स रूसो से।

प्रश्न 22.
जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार स्वतंत्रता का अधिकार किस आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है?
उत्तर:
मिल के अनुसार, स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने से रोक सकता है जो किसी अन्य को गंभीर हानि पहुँचाता हो। अर्थात् स्वतंत्रता का अधिकार ‘हानि सिद्धान्त’ के आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है।

प्रश्न 23.
मिल के अनुसार छोटी-मोटी हानि के लिए व्यक्ति के विरुद्ध कौन-सी कार्यवाही करनी चाहिए?
उत्तर:
मिल के अनुसार छोटी-मोटी हानि के लिए व्यक्ति के विरुद्ध केवल सामाजिक असहमति दर्शानी चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लोगों की किस आकांक्षा को दिखाता है?
उत्तर:
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लोगों की इस आकांक्षा को दिखाता है कि वे अपने जीवन और नियति का नियंत्रण स्वयं करें तथा उनका अपनी इच्छाओं और गतिविधियों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अवसर बना रहे ।

प्रश्न 2.
व्यक्ति की स्वतंत्रता की कुछ सीमाएँ क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
व्यक्ति की स्वतंत्रताओं की कुछ सीमाएँ इसलिए आवश्यक हैं कि

  1. ये सीमाएँ हमें असुरक्षा से मुक्त करती हैं।
  2. ये सीमाएँ ऐसी स्थितियाँ प्रदान करती हैं, जिनमें हम अपना विकास कर सकें।

प्रश्न 3.
मंडेला व उनके साथियों के लिए ‘लाँग वॉक टू फ्रीडम’ क्या था?
उत्तर:
मंडेला व उनके साथियों के लिए दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के अन्यायपूर्ण प्रतिबन्धों और स्वतंत्रता के रास्ते की बाधाओं को दूर करने का संघर्ष ‘लाँग वाक टू फ्रीडम’ था।

प्रश्न 4.
नकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता का क्या आशय है?
अथवा
स्वतंत्रता का नकारात्मक दृष्टिकोण किन विचारों पर आधारित है?
उत्तर:
स्वतंत्रता का नकारात्मक दृष्टिकोण अग्र विचारों पर आधारित है।

  1. स्वतंत्रता का अभिप्राय है प्रतिबन्धों का अभाव।
  2. व्यक्ति पर राज्य का कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
  3. वह सरकार सर्वोत्तम है जो कम-से- -कम शासन करे।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 5.
सकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता का क्या आशय है?
उत्तर:
सकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता का आशय है-ऐसी स्थितियों का होना जिनमें सभी लोग अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें। इस अर्थ में स्वतंत्रता व्यक्ति की रचनाशीलता, संवेदनशीलता और क्षमताओं के भरपूर विकास को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 6.
संक्षेप में बताइये कि क्या पूर्ण स्वतंत्रता संभव है?
उत्तर:
पूर्ण स्वतंत्रता संभव नहीं है क्योंकि पूर्ण स्वतंत्रता से आशय है कि व्यक्ति के कार्यों पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध न हो, वह मनमाना व्यवहार कर सके। ऐसा करने पर अराजकता की स्थिति पैदा हो जायेगी और स्वतंत्रता नष्ट हो जायेगी।

प्रश्न 7.
हमें स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धों की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:

  1. हमें सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धों की आवश्यकता है।
  2. हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए भी कानूनी संरक्षण हेतु प्रतिबन्धों की आवश्यकता है।

प्रश्न 8.
हानि का सिद्धांन्त क्या है?
उत्तर:
सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।” यही मिल का हानि का सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार, स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने से रोक सकता है, जो किसी अन्य को हानि पहुँचाता हो। लेकिन प्रतिबंध लगाने के लिए आवश्यक है कि किसी को होने वाली हानि गंभीर हो।

प्रश्न 9.
” स्वतंत्रता व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि यदि किसी व्यक्ति पर बाहरी नियंत्रण या दबाव न हो और वह बिना किसी पर निर्भर हुए निर्णय ले सके तथा स्वायत्त तरीके से व्यवहार कर सके, तो वह व्यक्ति स्वतंत्र माना जा सकता है । इस कथन का व्यावहारिक अर्थ है। उन सामाजिक प्रतिबन्धों का कम-से-कम होना जो हमारी स्वतंत्रतापूर्वक चयन की क्षमता पर रोक-टोक लगाते हैं

प्रश्न 10.
” स्वतंत्रता ऐसी स्थितियों का होना है जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें ।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि स्वतंत्र होने के लिए समाज को उन बातों को विस्तार देना चाहिए, जिससे व्यक्ति, समूह, समुदाय राष्ट्र अपने भाग्य, दिशा और स्वरूप का निर्धारण करने में समर्थ हो सकें । अतः स्वतंत्रता वहं स्थिति है जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का भरपूर विकास कर सकें।

प्रश्न 11.
व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धों के स्रोतों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
प्रतिबन्धों के स्रोत:

  1. व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध प्रभुत्व और बाहरी नियंत्रण से लग सकते हैं। ये प्रतिबंध बलपूर्वक या सरकार द्वारा ऐसे कानून की मदद से लगाए जा सकते हैं, जो शासकों की ताकत का प्रतिनिधित्व करें।
  2. स्वतंत्रता पर प्रतिबंध सामाजिक असमानता के कारण भी हो सकते हैं जैसा कि जाति व्यवस्था में होता है।
  3. समाज में अत्यधिक आर्थिक असमानता के कारण भी स्वतंत्रता पर अंकुश लग सकते हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय स्वतंत्रता से क्या आशय है?
उत्तर:
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ है। स्वराज्य की प्राप्ति। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के अन्तर्गत प्रत्येक राष्ट्र का यह अधिकार है कि वह स्वतंत्रतापूर्वक अपनी नीतियों का निर्धारण कर सके तथा उन्हें लागू कर सके। परतंत्र देशों द्वारा अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता की मांग करना राष्ट्रीय स्वतंत्रता है। 20वीं शताब्दी में अफ्रीका व एशिया के बहुत से देशों ने अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त की।

प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष की दो प्रमुख विशेषताएँ ये हैं।

  1. सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक उचित प्रतिबन्धों को स्वीकार करते हैं लेकिन वे अनुचित प्रतिबंधों के विरोधी हैं।
  2. सकारात्मक स्वतंत्रता का सम्बन्ध समाज की सम्पूर्ण दशाओं से है, न कि केवल कुछ क्षेत्र से।

प्रश्न 14.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से यह आशय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों को दूसरों या समाज के समक्ष व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अन्तर्गत भाषण देने तथा लेखन द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है।

प्रश्न 15.
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में कोई दो अन्तर लिखिये।
उत्तर:

  1. स्वतन्त्रता की नकारात्मक अवधारणा स्वतंत्रता को बाहरी नियंत्रणों के अभाव के रूप में देखती है जबकि सकारात्मक अवधारणा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के अवसरों के विस्तार के रूप में देखती है।
  2. नकारात्मक स्वतंत्रता में राज्य का व्यक्ति पर बहुत सीमित नियंत्रण होता है जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता में राज्य व्यक्ति के कल्याण के लिए उसके सभी क्षेत्रों में हस्तक्षेप कर सकता है।

प्रश्न 16.
नेल्सन मंडेला की आत्मकथा ‘लॉंग वाक टू फ्रीडम’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
लॉंग वाक टू फ्रीडम (स्वतंत्रता के लिए लम्बी यात्रा): इस पुस्तक में मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के खिलाफ अपने व्यक्तिगत संघर्ष, गोरे लोगों के शासन की अलगाववादी नीतियों के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध और दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के खिलाफ अपने व्यक्तिगत संघर्ष, गोरे लोगों के शासन की अलगाववादी नीतियों के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध और दक्षिण अफ्रीका के काले लोगों द्वारा झेले गए अपमान, कठिनाइयों और पुलिस अत्याचार का वर्णन किया गया है।

इन अलगाववादी नीतियों में एक शहर में घेराबंदी किए जाने और देश में मुक्त आवागमन पर रोक लगाने से लेकर विवाह करने में मुक्त चयन तक पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। सामूहिक रूप से इन सभी प्रतिबन्धों को नस्ल के आधार पर भेदभाव करने वाली रंगभेदी सरकार ने जबरदस्ती लागू किया था। मंडेला और उनके साथियों के लिए इन्हीं अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों और स्वतंत्रता के रास्ते की बाधाओं को दूर करने का संघर्ष ‘लॉंग वाक टू फ्रीडम’ था। मंडेला का यह संघर्ष काले और अन्य लोगों के साथ-साथ श्वेत लोगों के लिए भी था।

प्रश्न 17.
स्वतंत्रता की अवधारणा के नकारात्मक व सकारात्मक पक्ष को स्पष्ट कीजिये। स्वतंत्रता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
उत्तर:
स्वतंत्रता की अवधारणा: स्वतंत्रता बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव और ऐसी स्थितियों का होना है, जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें। स्वतंत्रता की इस अवधारणा के दो पक्ष हैं।

  1. नकारात्मक पक्ष और
  2. सकारात्मक पक्ष। यथा

1. स्वतंत्रता का नकारात्मक पक्ष:
स्वतंत्रता का नकारात्मक पक्ष यह है कि ‘व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है।’ इसका अभिप्राय यह है कि यदि किसी व्यक्ति पर बाहरी नियंत्रण या दबाव न हो और वह बिना किसी पर निर्भर हुए निर्णय ले सके तथा स्वायत्त तरीके से व्यवहार कर सके, तो वह व्यक्ति स्वतंत्र माना जा सकता है। लेकिन समाज में रहने वाला कोई भी व्यक्ति हर किस्म की सीमा और प्रतिबन्धों की पूर्ण अनुपस्थिति की आशा नहीं कर सकता। इसलिए यहाँ स्वतंत्र होने का अर्थ उन सामाजिक प्रतिबन्धों का कम से कम होना है, जो हमारी स्वतंत्रतापूर्वक चयन करने की क्षमता पर रोक-टोक लगाए।

2. स्वतंत्रता का सकारात्मक पक्ष:
स्वतंत्रता का सकारात्मक पक्ष यह है कि ऐसी स्थितियों का होना जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें। इसका अभिप्राय यह है कि स्वतंत्र होने के लिए समाज को उन बातों का विस्तार देना चाहिए जिससे व्यक्ति, समूह, समुदाय या राष्ट्र अपने भाग्य की दिशा और स्वरूप निर्धारण करने में समर्थ हो सके। इस अर्थ में स्वतंत्रता व्यक्ति की रचनाशीलता, संवेदनशीलता और क्षमताओं के भरपूर विकास को बढ़ावा देती है। प्रायः स्वतंत्रता के ये दोनों पक्ष साथ-साथ चलते हैं और एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 18.
स्वतंत्रता के मार्ग में आने वाले बाधक तत्वों को लिखिये।
उत्तर:
स्वतंत्रता के मार्ग में आने वाले प्रमुख बाधक तत्व अग्रलिखित हैं।

  1. प्रभुत्व तथा बाहरी नियंत्रण: व्यक्ति की स्वतंत्रता के मार्ग में आने वाला प्रमुख बाधक तत्व है। प्रभुत्व तथा बाहरी नियंत्रण। ये बलपूर्वक या सरकार द्वारा ऐसे कानून की मदद से लगाये जा सकते हैं जो शासकों की ताकतों का प्रतिनिधित्व करें। ऐसे कानून उपनिवेशवादी शासकों ने या दक्षिणी अफ्रीका में रंगभेद की व्यवस्था ने लगाये।
  2. सामाजिक असमानता: स्वतंत्रता के मार्ग में आने वाला बाधक तत्व सामाजिक असमानता भी हो सकती है। जैसा कि जाति-व्यवस्था में होता है।
  3. आर्थिक असमानता: समाज में अत्यधिक आर्थिक असमानता के कारण भी स्वतंत्रता पर अंकुश लग सकते

प्रश्न 19.
स्वतन्त्रता का अर्थ बताते हुए उसकी एक परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
स्वतंत्रता का अर्थ है। बाहरी प्रतिबंधों का अभाव और ऐसी स्थितियों का होना जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें। अतः स्वतंत्रता का आशय ऐसी स्थितियों के होने से है जिनमें व्यक्ति न्यूनतम सामाजिक अवरोधों के साथ अपनी संभावनाओं का विकास कर सके। लास्की के शब्दों में, “स्वतंत्रता का तात्पर्य उस वातावरण को बनाए रखना है जिससे व्यक्ति को अपने जीवन में सर्वोत्तम विकास करने की सुविधा प्राप्त हो। ”

प्रश्न 20.
भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतंत्रता की समानार्थी विचारधारा क्या है? उसका विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
स्वराज:भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतंत्रता की समानार्थी अवधारणा स्वराज है। स्वराज का अर्थ ‘स्व’ का शासन भी हो सकता है और ‘स्व’ के ऊपर शासन भी हो सकता है। यथा

1. स्व का शासन:
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के संदर्भ में स्वराज ‘स्व के शासन’ के लिए राजनीतिक और संवैधानिक स्तर पर स्वतंत्रता की माँग है और सामाजिक तथा सामूहिक स्तर पर यह एक मूल्य है। इसीलिए स्वराज स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण नारा बन गया। इसने ही तिलक को इस महत्त्वपूर्ण कथन ‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’ के लिए प्रेरित किया।

2. स्व के ऊपर शासन:
स्वराज का आशय ‘अपने ऊपर अपना राज’ भी है। स्वराज की यही समझ गांधी के ‘हिंद स्वराज’ में प्रकट हुई है। उनके अनुसार ‘जब हम स्वयं पर शासन करना सीखते हैं, तभी स्वराज है।’ इस प्रकार स्वराज केवल स्वतंत्रता नहीं है; बल्कि ऐसी संस्थाओं से मुक्ति भी है, जो मनुष्य को उसकी मनुष्यता से वंचित करती है। अतः स्वराज में मानव को यंत्रवत बनाने वाली संस्थाओं से मुक्ति पाने के साथ आत्मसम्मान, दायित्वबोध और आत्मसाक्षात्कार को पाना भी है।

प्रश्न 21.
स्वतंत्रता के बारे में नेताजी सुभाषचन्द्र के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के बारे में नेताजी सुभाषचन्द्र के विचार नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का कहना है कि स्वतंत्रता से मेरा आशय ऐसी सर्वांगीण स्वतंत्रता से है – जो व्यक्ति और समाज की हो, अमीर और गरीब की हो, स्त्रियों और पुरुषों की हो तथा सभी लोगों और सभी वर्गों की हो। इस स्वतंत्रता का मतलब न केवल राजनीतिक परतंत्रता से मुक्ति होगा बल्कि सम्पत्ति का समान बंटवारा, जातिगत अवरोधों और सामाजिक असमानताओं का अंत तथा साम्प्रदायिकता और धार्मिक असहिष्णुता का सर्वनाश भी होगा।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 22.
स्वतंत्रता का ‘हानि सिद्धान्त’ क्या है? इसकी व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
हानि सिद्धान्त जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के सम्बन्ध में जिस मुद्दे को बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से उठाया है, उसे राजनीतिक सिद्धान्त के विमर्श में ‘हानि सिद्धान्त’ कहा जाता है। ‘हानि – सिद्धान्त’ यह है कि किसी के कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का इकलौता लक्ष्य आत्म-रक्षा है। सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।

मिल का कहना है कि व्यक्ति के स्व-सम्बद्ध कार्यों और निर्णयों के मामले में राज्य या बाहरी सत्ता को कोई हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं हैं। इसके विपरीत उसके ‘पर-सम्बद्ध कार्यों’ में, जो दूसरों पर प्रभाव डालते हैं, या जिनसे बाकी लोगों को कुछ हानि हो सकती है, बाहरी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। दूसरे शब्दों में मिल का कहना है। कि स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने से रोक सकता है, जो किसी अन्य को हानि पहुँचाता हो।

लेकिन प्रतिबंध लगाने के लिए जरूरी है कि किसी को होने वाली हानि गंभीर हो। छोटी-मोटी हानि के लिए मिल कानून की ताकत की जगह केवल सामाजिक रूप से अमान्य करने का सुझाव देता है। मिल का कहना है कि छोटी-मोटी हानि के लिए समाज को स्वतंत्रता की रक्षा के लिए थोड़ी असुविधा सहनी चाहिए। इसके साथ ही साथ गंभीर हानि को रोकने के लिए लगाए जाने वाले प्रतिबंध इतने कड़े नहीं होने चाहिए कि स्वतंत्रता ही नष्ट हो जाए।

प्रश्न 23.
” अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत या भ्रामक लग रहे हैं ।” इस कथन को दृष्टि में रखते हुए अपने विचार प्रकट कीजिये।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बुनियादी मूल्य है। उसे बनाये रखने के लिए समाज को कुछ असुविधाओं को सहन करने के लिए तैयार रहना चाहिए। मिल ने लिखा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत या भ्रामक लग रहे हों। इस कथन के पक्ष में मिल ने निम्नलिखित कारण दिये हैं।

  1. कोई भी विचार पूरी तरह से गलत नहीं होता। जो हमें गलत लगता है उसमें भी सच्चाई का तत्व होता है, अगर हम इसे प्रतिबंधित कर देंगे तो इसमें छुपे सच्चाई के अंश को भी खो देंगे।
  2. सत्य विरोधी विचारों के टकराव से पैदा होता है। जो विचार आज गलत प्रतीत होता है, वह सही तरह के विचारों के उदय में बहुमूल्य हो सकता है।
  3. विचारों के संघर्ष का हर समय में सतत महत्व रहा है।
  4. हम इस बात को लेकर भी निश्चिन्त नहीं हो सकते कि जिसे हम सत्य समझते हैं, वही सत्य है।

प्रश्न 24.
एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में उदारवाद की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उदारवाद
1. उदारवाद एक सहिष्णु विचारधारा है:
एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में उदारवाद को सहनशीलता के मूल्य के साथ जोड़ कर देखा जाता है। उदारवादी चाहे किसी व्यक्ति से असहमत हों, तब भी वे उसके विचार और विश्वास रखने और व्यक्त करने के अधिकार का पक्ष लेते हैं। लेकिन उदारवाद सहिष्णुता के कहीं अधिक है।

2. इसमें केन्द्र:
बिन्दु व्यक्ति है-उदारवाद में व्यक्ति केन्द्र बिन्दु है। उदारवाद के लिए समाज, समुदाय जैसी इकाइयों का अपने आप में कोई महत्त्व नहीं है। उनके लिए इन इकाइयों का महत्त्व तभी है, जब व्यक्ति इन्हें महत्त्व दे। उदाहरण के लिए उदारवादी कहेंगे कि किसी से विवाह करने का निर्णय व्यक्ति को लेना चाहिए, न कि परिवार, जाति या समुदाय को।

3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता को वरीयता: उदारवादी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समानता जैसे अन्य मूल्यों से अधिक वरीयता देते हैं। वे आमतौर पर राजनीतिक सत्ता को भी संदेह की नजर से देखते हैं।

4. मुक्त बाजार, राज्य की न्यूनतम भूमिका तथा कल्याणकारी राज्य की भूमिका के समर्थक:
ऐतिहासिक रूप से उदारवाद ने मुक्त बाजार और राज्य की न्यूनतम भूमिका का पक्ष लिया है। वर्तमान में वे कल्याणकारी राज्य की भूमिका को भी स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने वाले उपायों की जरूरत है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में जॉन स्टुअर्ट मिल के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मिल के विचार जॉन स्टुअर्ट मिल का तर्क है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा ‘अहस्तक्षेप के लघुत्तम क्षेत्र’ से जुड़ा हुआ। इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बुनियादी मूल्य है। इस स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए समाज को कुछ असुविधाओं को सहन करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

जॉन स्टुअर्ट मिल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं किये जाने के प्रबलतम समर्थक रहे हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की परिस्थितियों में गलत या भ्रामक लगते हैं। अपने पक्ष के समर्थन में उन्होंने अग्रलिखित चार तर्क प्रस्तुत किए हैं।

1. प्रत्येक विचार में सत्य का अंश:
मिल का कहना है कि कोई भी विचार पूरी तरह से गलत नहीं होता। जो हमें गलत लगता है उसमें भी सत्य का अंश होता है। अगर हम गलत लगने वाले विचार को प्रतिबंधित कर देंगे तो इसमें छुपे सच्चाई के अंश को भी खो देंगे।

2. सत्य विरोधी विचारों के टकराव से पैदा होता है:
मिल का दूसरा तर्क यह है कि सत्य स्वयं में उत्पन्न नहीं होता। यह विरोधी विचारों के टकराव से पैदा होता है। इस तरह जो विचार आज हमें गलत प्रतीत होता है, वह सही तरह के विचारों के उदय में सहायक हो सकता है।

3. विचारों के संघर्ष का सतत महत्त्व है:
मिल का तीसरा तर्क यह है कि विचारों का संघर्ष केवल अतीत में ही मूल्यवान नहीं था, इसका हर समय में सतत महत्त्व है। सत्य के बारे में खतरा यह रहता है कि वह एक विचारहीन और रूढ़ उक्ति में बदल जाता है। जब हम इसे विरोधी विचार के सामने रखते हैं तभी इसी विचार का विश्वसनीय होना सिद्ध होता है।

4. सत्य के बारे में निश्चित नहीं कहा जा सकता:
मिल का तर्क है कि हम इस बात को लेकर भी निश्चिन्त नहीं हो सकते कि जिसे हम सत्य समझते हैं, वही सत्य है, कई बार जिन विचारों को किसी समय पूरे समाज ने गलत समझा और दबाया था, बाद में सत्य पाए गए। कुछ समाज ऐसे विचारों का दमन करते हैं, जो आज उन्हें स्वीकार्य नहीं हैं, लेकिन ये विचार भविष्य में मूल्यवान हो सकते हैं। दमनकारी समाज ऐसे संभावनाशील ज्ञान के लाभों से वंचित रह जाते हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 2.
क्या कुछ समूहों के विरोध करने पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना उचित है? किस प्रकार के प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर औचित्यपूर्ण कहे जायेंगे और किस प्रकार के नहीं?
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध: अनेक बार किसी पुस्तक, नाटक, फिल्म या किसी शोध पत्रिका के लेख पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती है। क्या इस मांग को अल्पकालीन समस्या समाधान के रूप में देखते हुए पूरा करना न्यायोचित है? वर्तमान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में यह प्रश्न विवाद का मुद्दा बना हुआ है। यथा-

1. जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे विचारक का मत है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा ‘अहस्तक्षेप के लघुत्तम क्षेत्र’ से जुड़ा हुआ है। इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। चाहे अभिव्यक्त विचारों से हम सहमत हों या असहमत। वाल्तेयर का यह कथन भी इसी बात का समर्थन करता है कि “तुम जो कहते हो मैं उसका समर्थन नहीं करता, लेकिन मैं मरते दम तक तुम्हारे कहने के अधिकार का बचाव करूँगा।” स्पष्ट है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बुनियादी मूल्य है, समाज को कुछ असुविधाएँ सहन करके भी इसकी स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहिए और इसे सीमित (प्रतिबंधित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

2. अन्य समूहों द्वारा विरोध के बाद किसी पुस्तक, नाटक, फिल्म या किसी शोध – पत्रिका के लेख को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। इस तरह के प्रतिबन्ध आसान लेकिन अल्पकालीन समाधान तो हैं; क्योंकि ये तात्कालिक माँग को पूरा कर देते हैं। लेकिन ये प्रतिबंध समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दूरगामी संभावनाओं की दृष्टि से बहुत खतरनाक हैं, क्योंकि जब हम एक बार प्रतिबंध लगाने लगते हैं, तब प्रतिबंध लगाने की आदत विकसित हो जाती है।

3. जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध किसी संगठित सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता या राज्य की शक्ति के बल पर लगाए जाते हैं तब ये हमारी स्वतंत्रता की कटौती इस प्रकार करते हैं कि उनके खिलाफ लड़ना मुश्किल हो जाता है। लेकिन ये प्रतिबंध औचित्यपूर्ण नहीं कहे जा सकते।

4. यदि हम स्वेच्छापूर्वक या अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पाने के लिए कुछ प्रतिबन्धों को स्वीकार करते हैं, तो हमारी स्वतंत्रता सीमित नहीं होती है। अगर हमें किन्हीं स्थितियों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है तब हम नहीं कह सकते कि हमारी स्वतंत्रता की कटौती की जा रही है। स्पष्ट है कि बाध्यतामूलक प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाना औचित्यपूर्ण नहीं कहे जा सकते।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में राजनीति के सम्बन्ध में कौनसा कथन उपयुक्त है।
(अ) राजनीति एक अवांछनीय गतिविधि है।
(ब) राजनीति वही है जो राजनेता करते हैं
(स) राजनीति दांवपेंच, कुचक्र और घोटालों से संबंधित नीति है।
(द) राजनीति सामाजिक विकास के उद्देश्य से जनता की परस्पर वार्ता व सामूहिक गतिविधि में भाग लेने की स्थिति है।
उत्तर:
(द) राजनीति सामाजिक विकास के उद्देश्य से जनता की परस्पर वार्ता व सामूहिक गतिविधि में भाग लेने की स्थिति है।

2. महात्मा गांधी की पुस्तक का नाम है।
(अ) हिंद स्वराज
(ब) लेवियाथन
(स) रिपब्लिक
(द) पॉलिटिक्स
अथवा
निम्नलिखित में से हिन्द-स्वराज के लेखक हैं।
(अ) महात्मा गांधी
(ब) पण्डित नेहरू
(स) सरदार पटेल
(द) डॉ. अम्बेडकर
उत्तर:
(अ) हिंद स्वराज

3. आधुनिक काल में सबसे पहले किस विचारक ने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता है।
(अ) हॉब्स
(ब) लॉक
(स) रूसो
(द) जे. एस. मिल
उत्तर:
(स) रूसो

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

4. ‘द रिपब्लिक’ पुस्तक का लेखक है।
(अ) सुकरात
(ब) प्लेटो
(स) सेफलस
(द) ग्लाकॉन
अथवा
प्लेटो ने निम्न में से कौनसी पुस्तक की रचना की थी ?
(अ) पॉलिटिक्स
(ब) द रिपब्लिक
(स) प्रिंस
(द) दास कैपीटल
उत्तर:
(ब) प्लेटो

5. निम्नलिखित में से कौनसा कथन समानता शब्द से सरोकार नहीं रखता है।
(अ) समानता का अर्थ सभी के लिए समान अवसर होता है।
(ब) समानता में किसी न किसी प्रकार की निष्पक्षता का होना आवश्यक है।
(स) अक्षमता के शिकार व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान भी समानता का एक अंग है।
(द) व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव समानता है।
उत्तर:
(द) व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव समानता है।

6. राजनीतिक सिद्धान्त के अन्तर्गत विवेचित किया जाता है।
(अ) राजनीतिक विचारधाराओं को
(स) राजनीतिक संकल्पनाओं को
(ब) राजनीतिक समस्याओं को
(द) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी को

7. “राजनीति ने हमें साँप की कुण्डली की तरह जकड़ रखा है।” यह कथन है।
(अ) सुकरात का
(स) महात्मा गाँधी का
(ब) कार्ल मार्क्स का
(द) डॉ. भीमराव अम्बेडकर का
उत्तर:
(स) महात्मा गाँधी का

8. हमारी आर्थिक, विदेशी तथा शिक्षा नीतियों का निर्धारण किया जाता है।
(अ) सरकार द्वारा
(ब) परिवार द्वारा
(स) विद्यालय द्वारा
(द) समाज द्वारा
उत्तर:
(अ) सरकार द्वारा

9. ‘समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है, जितनी कि स्वतंत्रता।” यह कथन है।
(अ) रूसो का
(ब) कार्ल मार्क्स का
(स) हॉब्स का
(द) महात्मा गाँधी का
उत्तर:
(ब) कार्ल मार्क्स का

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

10. राजनीति के अन्तर्गत लिया जाता है।
(अ) सामाजिक घटनाओं को
(ब) धार्मिक घटनाओं को
(स) पारिवारिक घटनाओं को
(द) राजनीतिक घटनाओं को
उत्तर:

11. इण्टरनेट का प्रयोग करने वाले को कहा जाता है।
(अ) नेटिजन
(ब) नैटीकैल
(स) सिटीजन
(द) हैरिजन
उत्तर:
(अ) नेटिजन

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. एक अकुशल और भ्रष्ट सरकार लोगों के जीवन और सुरक्षा को भी ……………….. में डाल सकती है।
उत्तर:
संकट

2. अगर सरकार साक्षरता और रोजगार बढ़ाने की नीतियाँ बनाती है तो हमें अच्छे स्कूल में जाने और बेहतर …………….. पाने के अवसर मिल सकते हैं।
उत्तर:
रोजगार

3. भारतीय संविधान में ………………….. राजनीतिक क्षेत्र में समान अधिकारों के रूप में बनी है, लेकिन यह आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में उसी तरह नहीं है।
उत्तर:
समानता

4. जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम आजादी और आजादी पर संभावित खतरों के नए-नए ……………………. की खोज कर रहे हैं।
उत्तर:
आयामों

5. परिस्थितियों के मद्देनजर संविधान में दिए गए …………………. की निरंतर पुनर्व्याख्या की जा रही है।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. समानता जैसे शब्दों का सरोकार किसी वस्तु के बजाय अन्य मनुष्यों के साथ हमारे संबंधों से होता है।
उत्तर:
सत्य

2. राजनीति किसी भी तरीके से निजी स्वार्थ साधने की कला है।
उत्तर:
असत्य

3. राजनीति एक अवांछनीय गतिविधि है, जिससे हमें अलग रहना चाहिए और पीछा छुड़ाना चाहिए।
उत्तर:
असत्य

4. राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं।
उत्तर:
सत्य

5. राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों व नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. ‘राजतंत्र और लोकतंत्र में कौनसा तंत्र बेहतर है’ की विवेचना की। (अ) रूसो
2. ‘स्वतंत्रता मानव का मौलिक अधिकार है’ को सबसे पहले सिद्ध किया। (ब) गाँधीजी
3. हिन्द – स्वराज। (स) डॉ. अम्बेडकर
4. अनुसूचित जातियों को विशेष संरक्षण मिलना चाहिए। (द) मार्क्स
5. ‘समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है, जितनी कि स्वतंत्रता’। (य) अरस्तू

उत्तर:

1. ‘राजतंत्र और लोकतंत्र में कौनसा तंत्र बेहतर है’ की विवेचना की। (य) अरस्तू
2. ‘स्वतंत्रता मानव का मौलिक अधिकार है’ को सबसे पहले सिद्ध किया। (अ) रूसो
3. हिन्द – स्वराज। (ब) गाँधीजी
4. अनुसूचित जातियों को विशेष संरक्षण मिलना चाहिए। (स) डॉ. अम्बेडकर
5. ‘समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है, जितनी कि स्वतंत्रता’। (द) मार्क्स


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पॉलिटिक्स’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अरस्तू।

प्रश्न 2.
गाँधीजी की राजनीतिक पुस्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
हिन्द-स्वराज।

प्रश्न 3.
प्लेटो की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
द रिपब्लिक।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

प्रश्न 4.
राजनीति का सकारात्मक रूप क्या है?
उत्तर:
राजनीति का सकारात्मक रूप जनसेवा तथा समाज में सुधारों के कार्य करना है।

प्रश्न 5.
राजनीति का नकारात्मक रूप क्या है?
उत्तर:
राजनीति का नकारात्मक रूप दांव-पेंचों द्वारा अपनी जरूरतों एवं महत्त्वाकांक्षाओं को पूरी करना है।

प्रश्न 6.
राजनीति से जुड़े लोग किस प्रकार के दांव-पेंच चलाते हैं?
उत्तर:
राजनीति के दांव-पेंचों में दल-बदल, झूठे वायदे तथा बढ़-चढ़कर दावे करना आदि आते हैं।

प्रश्न 7.
आधुनिक लेखकों ने राजनीति को किस रूप में देखा है?
उत्तर:
आधुनिक लेखकों ने राजनीति को शक्ति के लिए संघर्ष के रूप में देखा है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक सिद्धान्त किस तरह के मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है।

प्रश्न 9.
गांधीजी ने स्वराज शब्द की व्याख्या किस पुस्तक में की थी?
उत्तर:
‘हिन्द-स्वराज’ नामक पुस्तक में।

प्रश्न 10.
अस्पृश्यता या छुआछूत का अन्त भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में है?
उत्तर:
अनुच्छेद 17 में।

प्रश्न 11.
इन्टरनेट का प्रयोग करने वाले को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नेटिजन।

प्रश्न 12.
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्कसंगत ढंग से सोचने और सामयिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आंकने का प्रशिक्षण देना है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

प्रश्न 13.
राजनीति को एक प्रकार की जनसेवा बताने वाले कौनसे लोग हैं?
उत्तर:
राजनेता, चुनाव लड़ने वाले तथा राजनीतिक पदाधिकारी लोग।

प्रश्न 14.
सरकार की नीतियाँ लोगों की कैसे सहायता कर सकती हैं?
उत्तर:
सरकारें आर्थिक, विदेश और शिक्षा नीतियों के माध्यम से लोगों के जीवन को उन्नत करने में सहायता कर सकती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य किन दो मामलों में अद्वितीय है?
उत्तर:

  1. मनुष्य के पास विवेक होता है और अपनी गतिविधियों में उसे व्यक्त करने की योग्यता होती है। वह अपने अंतरतम की भावनाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त कर सकता है।
  2. उसके पास भाषा का प्रयोग तथा एक-दूसरे से संवाद करने की भी क्षमता होती है।

प्रश्न 2.
राजनीतिक सिद्धान्त किस तरह के प्रश्नों की पड़ताल करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त कुछ खास बुनियादी प्रश्नों की पड़ताल करता है, जैसे- समाज को कैसे संगठित होना चाहिए? क्या कानून हमारी स्वतंत्रता को सीमित करता है? राजसत्ता की अपने नागरिकों के प्रति क्या देनदारी है? हमें सरकार की जरूरत क्यों है? सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप कौनसा है? नागरिक के रूप में एक-दूसरे के प्रति हमारी क्या देनदारी होती है? आदि।

प्रश्न 3.
राजनीतिक सिद्धान्त कैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है। यह इनके और अन्य संबद्ध अवधारणाओं के अर्थ और महत्त्व की व्याख्या करता है। इन अवधारणाओं की मौजूदा परिभाषाओं को स्पष्ट करता है।

प्रश्न 4.
हमारा सामना राजनीति की किन परस्पर विरोधी छवियों से होता है?
उत्तर:
हमारा सामना राजनीति की अनेक परस्पर विरोधी छवियों से होता है, जैसे

  1. राजनेताओं की राय में राजनीति एक प्रकार की जनसेवा है।
  2. कुछ अन्य लोगों की राय में राजनीति दांवपेंच और कुचक्रों भरी नीति है।
  3. कुछ अन्य लोगों की राय में जो राजनेता करते हैं, वही राजनीति है।

प्रश्न 5.
हम किस तरह से एक बेहतर दुनिया रचने की आकांक्षा करते हैं?
उत्तर:
हम संस्थाएँ बनाकर, अपनी मांगों के लिए प्रचार अभियान चलाकर, सरकार की नीतियों का विरोध करके, वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श आदि के द्वारा मौजूदा अव्यवस्था और पतन के तर्कसंगत कारण तलाशते हैं और एक बेहतर दुनिया रचने की आकांक्षा करते हैं।

प्रश्न 6.
राजनीति का जन्म किस तथ्य से होता है?
उत्तर:
राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे व हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं? इस सम्बन्ध में परस्पर वार्ताएँ करके निर्णय लेना। एक तरह से इन वार्ताओं से जनता और सरकार दोनों जुड़ी होती हैं।

प्रश्न 7.
राजनीतिक सिद्धान्त क्यों प्रासंगिक है? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त इसलिए प्रासंगिक है; क्योंकि इसकी अवधारणाओं से संबंधित मुद्दे वर्तमान सामाजिक जीवन में अनेक मामलों में उठते हैं और इन मुद्दों की निरन्तर वृद्धि हो रही है। दूसरे, जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम आजादी और आजादी पर संभावित खतरों के नए-नए आयामों की खोज कर रहे हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

प्रश्न 8.
राजनीति क्या है? संक्षेप में समझाओ।
उत्तर:
राजनीति: जब जनता सामाजिक विकास को बढ़ावा देने और सामान्य समस्याओं के समाधान हेतु परस्पर वार्ता करती है और सामूहिक गतिविधियों तथा सरकार के कार्यों में भाग लेती है तथा विभिन्न प्रकार के संघर्षों से सरकार के निर्णयों को प्रभावित करती है तो इसे राजनीति कहते हैं।

प्रश्न 9.
राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं? संक्षेप में लिखिये।
अथवा
राजनीतिक सिद्धान्त में पढ़े जाने वाले किन्हीं दो तत्वों का उल्लेख करो।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त की विषय-सामग्री:

  1. राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।
  2. यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता’ जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है।
  3. यह कानून का राज, अधिकारों का बंटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जाँच करता है।
  4. राजनीतिक सिद्धान्तकार हमारे वर्तमान राजनीतिक अनुभवों की छानबीन भी करते हैं और भावी रुझानों तथा संभावनाओं को भी चिन्हित करते हैं ।

प्रश्न 10.
राजनीतिक सिद्धान्तकारों को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तकारों को रोजमर्रा के विचारों से उलझना पड़ता है, संभावित अर्थों पर विचार-विमर्श करना पड़ता है और नीतिगत विकल्पों को सूत्रबद्ध करना पड़ता है। स्वतंत्रता, समानता, नागरिकता, अधिकार, विकास, न्याय, राष्ट्रवाद तथा धर्मनिरपेक्षता आदि अवधारणाओं पर विचार-विमर्श के दौरान उन्हें विवादकर्ताओं से उलझन भी पड़ता है।

प्रश्न 11.
एक छात्र के लिए राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
एक छात्र के रूप में हम राजनेता, नीति बनाने वाले नौकरशाह, राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ाने वाले अध्यापक में से किसी एक पेशे को चुन सकते हैं। इसलिए परोक्ष रूप से यह अभी भी हमारे लिए प्रासंगिक है। दूसरे, एक नागरिक के रूप में दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए भी हमारे लिए राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन प्रासंगिक है। तीसरे, राजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय या समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं।

प्रश्न 12.
” कितना नियमन न्यायोचित है और किसको नियमन करना चाहिए – सरकार को या स्वतंत्र नियामकों को?” कथन के संदर्भ में राजनीतिक सिद्धान्त की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पर संभावित खतरों के नये-नये आयामों की खोज कर रहे हैं। जैसे – वैश्विक संचार तकनीक दुनियाभर में आदिवासी संस्कृति या जंगल की सुरक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का परस्पर तालमेल करना आसान बना रही है; लेकिन दूसरी तरफ इसने आतंकवादियों और अपराधियों को भी अपना नेटवर्क कायम करने की क्षमता दी है। इसी प्रकार भविष्य में इन्टरनेट द्वारा व्यापार में बढ़ोतरी तय है। इसका अर्थ है कि वस्तुओं अथवा सेवाओं की खरीद के लिए हम अपने बारे में सूचना ऑन लाइन दें, उसकी सुरक्षा हो।

यद्यपि इन्टरनेट का प्रयोग करने वाले नेटिजन सरकारी नियंत्रण नहीं चाहते, लेकिन वे भी वैयक्तिक सुरक्षा और गोपनीयता को बनाए रखने के लिए किसी न किसी प्रकार का नियमन जरूरी मानते हैं। इसलिए वर्तमान में यह प्रश्न उठता है कि इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों को कितनी स्वतंत्रता दी जाये, ताकि वे उसका सदुपयोग कर सकें और कितना नियमन न्यायोचित है, ताकि उसका दुरुपयोग न हो सके। और यह नियमन करने वाली संस्था कौन होनी चाहिए— सरकार या कोई अन्य स्वतंत्र संस्था? राजनीतिक सिद्धान्त इन प्रश्नों के संभावित उत्तरों को देने में हमारी बहुत सहायता कर सकता है। इसीलिए आज इसकी प्रासंगिकता बहुत अधिक है।

प्रश्न 13.
राजनीतिक सिद्धान्तों को व्यवहार में कैसे उतारा जा सकता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारना: राजनीतिक अवधारणाओं के अर्थ को राजनीतिक सिद्धान्तकार यह देखते हुए स्पष्ट करते हैं कि आम भाषा में इसे कैसे समझा और बरता जाता है। वे विविध अर्थों और रायों पर विचार-विमर्श और उनकी जांच-पड़ताल भी सुव्यवस्थित तरीके से करते हैं। जैसे- समानता की अवधारणा के सम्बन्ध में, अवसर की समानता कब पर्याप्त है? कब लोगों को विशेष बरताव की आवश्यकता होती है? ऐसा विशेष बरताव कब तक और किस हद तक किया जाना चाहिए?

ऐसे अनेक प्रश्नों की ओर वे मुखातिब होते हैं। ये मुद्दे बिल्कुल व्यावहारिक हैं। वे शिक्षा और रोजगार के बारे में सार्वजनिक नीतियाँ तय करने में मार्गदर्शन करते हैं। धर्मनिरपेक्षता समानता की ही तरह अन्य अवधारणाओं, जैसे स्वतंत्रता, नागरिकता, अधिकार, न्याय, विकास, आदि के मामलों में भी राजनीतिक सिद्धान्तकार रोजमर्रा के विचारों में उलझता है, संभावित अर्थों पर विचार-विमर्श कर नीतिगत विकल्पों को सूत्रबद्ध कर उन्हें व्यावहारिक बनाता है।

प्रश्न 14.
राजनीतिक सिद्धान्त की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये । उत्तर – राजनीतिक सिद्धान्त की आवश्यकताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन राजनीति करने वाले राजनेताओं, नीति बनाने वाले नौकरशाहों तथा राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ाने वाले अध्यापकों, संविधान और कानूनों की व्याख्या करने वाले वकील, जंज तथा उन कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के लिए अति आवश्यक है, जो शोषण का पर्दाफाश करते हैं और नये अधिकारों की माँग करते हैं।
  2. राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए उन राजनीतिक विचारों और संस्थाओं की बुनियादी जानकारी हमारे लिए मददगार होती है, जो हमारी दुनिया को आकार देते हैं।
  3. राजनीतिक सिद्धान्त हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचारों और भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है तथा इसके अध्ययन से हमारे विचारों और भावनाओं में उदारता आती है।
  4. राजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय तथा समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं, ताकि हम अपने विचारों को परिष्कृत कर सकें और सार्वजनिक हित में सुविज्ञ तरीके से तर्क-वितर्क कर सकें।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

प्रश्न 15.
क्या विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए?
उत्तर:
विद्यार्थियों को न सिर्फ राजनीति के विषय में जानकारी ही होनी चाहिए बल्कि उन्हें इसमें सक्रिय रूप से भाग भी लेना चाहिए क्योंकि।

  1. हमारा समाज लोकतंत्र की भावना में अटूट आस्था रखता है तथा वर्तमान विद्यार्थी ही कल के समाज के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे।
  2. इन्हीं नागरिकों में से हमें अपने राजनीतिज्ञों एवं प्रतिनिधियों का चयन करना है, जिन्हें राजनीतिक सिद्धान्तों का पर्याप्त ज्ञान सैद्धान्तिक और व्यावहारिक रूप से होना चाहिए।
  3. यदि विद्यार्थी राजनीतिक गतिविधियों एवं क्रियाकलापों से अवगत नहीं होंगे तो देश के उचित सूत्रधार नहीं बन पायेंगे। इसलिए विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेकर राजनीतिक ज्ञान का व्यवहार में सही प्रयोग करना सीखना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं? इनकी प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त: राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है। राजनीतिक सिद्धान्त की विषय-सामग्री राजनीतिक सिद्धान्त में हम निम्न बातों का अध्ययन करते हैं।

  1. यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है।
  2. यह कानून का राज, अधिकारों का बँटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जांच करता है। यह इस काम को विभिन्न विचारकों द्वारा इन अवधारणाओं के बचाव में विकसित युक्तियों की जांच-पड़ताल के ये करता है।
  3. राजनीतिक सिद्धान्तकार हमारे ताजा राजनीतिक अनुभवों की छानबीन भी करते हैं और भावी रुझानों तथा संभावनाओं को चिन्हित करते हैं।

राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता: राजनीतिक सिद्धान्तों की उपयोगिता या इनके अध्ययन की प्रासंगिकता का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1 .स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र से संबंधित मुद्दों में वृद्धि:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र जैसी धारणाओं के अर्थ स्पष्ट करता है। वर्तमान में भी स्वतंत्रता, समानता तथा लोकतंत्र से संबंधित मुद्दे सामाजिक जीवन के अनेक मामलों में उठते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रफ्तार से उनकी बढ़ोतरी हो रही है। उदाहरण के लिए राजनीतिक क्षेत्र में समानता समान अधिकारों के रूप में है, लेकिन यह आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में उसी तरह नहीं है।

लोगों के पास समान राजनीतिक अधिकार हो सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि समाज में उनके साथ जाति या गरीबी के कारण अभी भी भेदभाव होता है। संभव है कि कुछ लोगों को समाज में विशेषाधिकार प्राप्त हों, वहीं कुछ दूसरे बुनियादी आवश्यकताओं तक से वंचित हों। कुछ लोग अपना मनचाहा लक्ष्य पाने में सक्षम हैं, जबकि कई लोग भविष्य में अच्छा रोजगार पाने के लिए जरूरी स्कूली पढ़ाई के लिए भी ‘अक्षम हैं। इनके लिए स्वतंत्रता अभी भी दूर का सपना है। इस दृष्टि से राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन अब भी प्रासंगिक बना हुआ है।

2. नित नई व्याख्याओं की दृष्टि से प्रासंगिकता:
यद्यपि हमारे संविधान में स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, तथापि हमें हरदम नई व्याख्याओं का सामना करना पड़ता है। नई परिस्थितियों के मद्देनजर संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की निरंतर पुनर्व्याख्या की जा रही है। जैसे ‘आजीविका के अधिकार’ को ‘जीवन के अधिकार’ में शामिल करने के लिए अदालतों द्वारा उसकी पुनर्व्याख्या की गई है। सूचना के अधिकार की गारंटी एक नए कानून द्वारा की गई है। इस प्रकार समाज बार-बार चुनौतियों का सामना करता है। इस क्रम में नई व्याख्याएँ पैदा होती हैं। समय के साथ संवैधानिक मूल अधिकारों में संशोधन भी हुए हैं और इनका विस्तार भी। अतः राजनैतिक अवधारणाओं की नई व्याख्याओं को समझने के लिए राजनैतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता बनी हुई है।

3. स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के संभावित खतरों के नये आयामों से जुड़े प्रश्नों के उत्तरों के लिए प्रासंगिक:
जैसे-जैसे हमारा विश्व परिवर्तित हो रहा है, हम स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पर संभावित खतरों के नए-नए आयामों की खोज कर रहे हैं। जैसे वैश्विक संचार तकनीक विश्व भर में आदिवासी संस्कृति या जंगल की सुरक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक-दूसरे से तालमेल करना आसान बना रही है। पर इसने आतंकवादियों और अपराधियों को भी अपना नेटवर्क कायम करने की क्षमता दी है। इसी प्रकार, भविष्य में इंटरनेट द्वारा व्यापार में वृद्धि निश्चित है।

इसका अर्थ है कि वस्तुओं अथवा सेवाओं की खरीद के लिए हम अपने बारे में जो सूचना ऑन लाइन दें, उसकी सुरक्षा हो। इसलिए, यद्यपि नेटिजन सरकारी नियंत्रण नहीं चाहते तथापि वे भी वैयक्तिक सुरक्षा और गोपनीयता बनाए रखने के लिए किसी-न-किसी प्रकार का नियमन जरूरी मानते हैं। लेकिन कितना नियमन न्यायोचित है और किसको नियमन करना चाहिए? राजनीतिक सिद्धान्त में इन प्रश्नों के संभावित उत्तरों के सिलसिले में हमारे सीखने के लिए बहुत कुछ है और इसीलिए यह बेहद प्रासंगिक है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. बताएँ कि निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकार वैयक्तिक स्वतंत्रता का अंश है।
(क) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
(ख) धर्म की स्वतंत्रता
(ग) अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
(घ) सार्वजनिक स्थलों पर बराबरी की पहुँच
उत्तर:
(क) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

2. बताएँ कि निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकार वैयक्तिक स्वतंत्रता का अंश नहीं है।
(क) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
(ख) अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
(ग) मनमानी गिरफ्तारी के विरुद्ध स्वतंत्रता
(घ) अंतरात्मा का अधिकार से किसके द्वारा हुआ है।
उत्तर:
(ख) अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

3. भारत के संविधान का अंगीकार निम्नलिखित में
(क) ब्रिटिश ताज के द्वारा
(ख) ब्रिटिश संसद के द्वारा
(ग) भारत के वायसराय के द्वारा
(घ) भारत के लोगों के द्वारा
उत्तर:
(घ) भारत के लोगों के द्वारा

4. संविधान के दर्शन का सर्वोत्तम सार-संक्षेप है।
(क) संविधान के मूल अधिकारों में
(ख) संविधान के नीति-निर्देशक तत्त्वों में
(ग) संविधान की प्रस्तावना में
(घ) संविधान के मूल कर्त्तव्यों में
उत्तर:
(ग) संविधान की प्रस्तावना में

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5. निम्नलिखित में से कौनसा कथन असत्य है।
(क) भारत में अदालतों और सरकारों के बीच संविधान की अनेक व्याख्याओं पर असहमति है।
(ख) केन्द्र और प्रादेशिक सरकारों के बीच मत – भिन्नता है।
(ग) राजनीतिक दल संविधान की विविध व्याख्याओं के आधार पर पूरे जोर-शोर से लड़ते हैं।
(घ) आम नागरिक संविधान के अंतर्निहित दर्शन में विश्वास नहीं करते हैं।
उत्तर:
(घ) आम नागरिक संविधान के अंतर्निहित दर्शन में विश्वास नहीं करते हैं।

6. निम्नलिखित में कौनसी भारतीय संविधान की सीमा नहीं है–
(क) भारतीय संविधान ने ‘असमतोल संघवाद’ जैसी अवधारणा को अपनाया है।
(ख) भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत है।
(ग) भारतीय संविधान में लिंगगत न्याय के कुछ महत्त्वपूर्ण मसलों विशेषकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।
(घ) कुछ बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व वाले खंड में डाल दिया गया है।
उत्तर:
(क) भारतीय संविधान ने ‘असमतोल संघवाद’ जैसी अवधारणा को अपनाया है।

7. निम्नलिखित में कौनसा कथन भारतीय संविधान की आलोचना से सम्बन्धित है।
(क) भारत के संविधान में अचल और लचीले संविधान दोनों की विशेषताओं का मिश्रण है
(ख) संविधान में भारतीय जनता की राष्ट्रीय पहचान पर निरंतर जोर दिया गया है।
(ग) भारतीय संविधान निर्मात्री सभा में सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी है
(घ) भारत का संविधान एक धर्म – निरेपक्ष संविधान है।
उत्तर:
(ग) भारतीय संविधान निर्मात्री सभा में सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी है

8. निम्नलिखित में से कौनसा कथन भारतीय संविधान की आलोचना से सम्बन्धित नहीं है।
(क) भारत का संविधान अस्त-व्यस्त है।
(ख) भारत का संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है।
(ग) भारत का संविधान प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं है।
(घ) भारत का संविधान एक विदेशी दस्तावेज है।
उत्तर:
(ख) भारत का संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है।

9. भारतीय संविधान की प्रक्रियात्मक उपलब्धि है।
(क) सर्वानुमति से फैसले लेने के प्रति संविधान सभा की दृढ़ता।
(ख) सार्वभौमिक मताधिकार के प्रति वचनबद्धता
(ग) धर्मनिरपेक्ष संविधान
(घ) व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता
उत्तर:
(क) सर्वानुमति से फैसले लेने के प्रति संविधान सभा की दृढ़ता।

10. शांति का संविधान कहा जाता है।
(क) भारत के संविधान को
(ग) फ्रांस के पंचम गणतंत्र को
(ख) अमेरिका के संविधान को
(घ) जापान के संविधान को
उत्तर:
(घ) जापान के संविधान को

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. सन् 1947 के जापानी संविधान को बोलचाल में…………………… संविधान कहा जाता है।
उत्तर:
शांति

2. संविधान को अंगीकार करने का एक बड़ा कारण है- सत्ता को ……………………… होने से रोकना।
उत्तर:
निरंकुश

3. संविधान हमें गहरे सामाजिक बदलाव के लिए शांतिपूर्ण …………………….. साधन भी प्रदान करता है।
उत्तर:
लोकतांत्रिक

4. संविधान, कमजोर लोगों को उनका वाजिब ……………………… सामुदायिक रूप में हासिल करने की ताकत देता है।
उत्तर:
हक

5. भारत का संविधान स्वतंत्रता, …………………. लोकतंत्र, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध है।
उत्तर:
समानता

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान का अभिन्न अंग है।
उत्तर:
सत्य
2. भारतीय संविधान शास्त्रीय उदारवाद से इस अर्थ में अलग है कि यह सामाजिक न्याय से जुड़ा है
उत्तर:
सत्य

3. भारतीय संविधान ने समुदायों को मान्यता न देकर सामुदायिक प्रतिद्वन्द्विता को समाप्त किया है
उत्तर:
असत्य

4. धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ भारत में पारस्परिक निषेध है।
उत्तर:
असत्य

5. सार्वभौम मताधिकार का विचार भारतीय राष्ट्रवाद के बीज विचारों में एक है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. शांति संविधान (क) राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत
2. भारतीय संविधान की सीमा (ख) सार्वभौमिक मताधिकार
3. भारतीय राष्ट्रवाद का बीज विचार (ग) राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी
4. मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट (घ) जापान का संविधान
5. भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशेषता (ङ) सन् 1928

उत्तर:

1. शांति संविधान (घ) जापान का संविधान
2. भारतीय संविधान की सीमा (क) राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत
3. भारतीय राष्ट्रवाद का बीज विचार (ख) सार्वभौमिक मताधिकार
4. मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट (ङ) सन् 1928
5. भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशेषता (ग) राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान में अन्तर्निहित दर्शन को समझना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
संविधान में अन्तर्निहित नैतिक तत्त्व को जानने और उसके दावे के मूल्यांकन तथा शासन-व्यवस्था के मूल- मूल्यों की अलग-अलग व्याख्याओं को एक कसौटी पर जांच कर सकने के लिए संविधान में अन्तर्निहित दर्शन को समझना जरूरी है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की किन्हीं दो मूलभूत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की दो मूलभूत विशेषताएँ ये हैं।

  1. व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध संविधान।
  2. सामाजिक न्याय से जुड़ा संविधान।

प्रश्न 3.
संविधान के प्रति राजनैतिक दर्शन के नजरिये से हमारा क्या आशय है?
उत्तर:
इसमें तीन बातें शामिल हैं।

  1. संविधान की अवधारणाओं की व्याख्या,
  2. अवधारणाओं की इन व्याख्याओं से मेल खाती समाज व शासन व्यवस्था की तस्वीर तथा
  3. शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में अलग-अलग व्याख्याओं की जांच की एक कसौटी का होना।

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प्रश्न 4.
संविधान के प्रति राजनैतिक दर्शन का नजरिया अपनाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
संविधान के अन्तर्निहित नैतिक तत्त्व को जानने और उसके दावे के मूल्यांकन के लिए संविधान के प्रति राजनैतिक दर्शन का नजरिया अपनाने की जरूरत है।

प्रश्न 5.
एक अच्छे संविधान की क्या आवश्यकता है? कोई दो कारण लिखिये।
उत्तर:

  1. एक अच्छे संविधान की आवश्यकता का सबसे बड़ा कारण है। सत्ता को निरंकुश होने से रोकना।
  2. इसका दूसरा कारण यह है कि संविधान हमें गहरे सामाजिक बदलाव के लिए शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक साधन भी प्रदान करता है।

प्रश्न 6.
एक राजनीति के विद्यार्थी के लिए संविधान निर्माताओं के सरोकार और मंशा को जानना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
जब संवैधानिक व्यवहार को चुनौती मिले, खतरा मंडराये या उपेक्षा हो तब इन व्यवहारों के मूल्य और अर्थ को समझने के लिए संविधान निर्माताओं के सरोकार और मंशा को जानना जरूरी है।

प्रश्न 7.
भारत के संविधान का राजनीतिक दर्शन क्या है?
उत्तर:
भारत के संविधान का राजनीतिक दर्शन स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्धता का है।

प्रश्न 8.
भारत का संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। इसमें निहित किन्हीं तीन स्वतंत्रताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  2. मनमानी गिरफ्तारी के विरुद्ध स्वतंत्रता
  3. अंतरात्मा का अधिकार।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान का उदारवाद शास्त्रीय उदारवाद से किन दो बातों में भिन्न है?
उत्तर:
शास्त्रीय उदारवाद सामाजिक न्याय और सामुदायिक जीवन मूल्यों के ऊपर हमेशा व्यक्ति को तरजीह देता है, जबकि भारतीय संविधान के उदारवाद सामाजिक न्याय और सामुदायिक जीवन मूल्यों को व्यक्ति के ऊपर तरजीह देता है।

प्रश्न 10.
हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। इसका कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान।

प्रश्न 11.
समाज के विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी का रिश्ता कायम करने तथा उन्हें उदार बनाने के लिए पश्चिमी राष्ट्रों के संविधानों में क्या किया गया है?
उत्तर:
समाज के विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी का रिश्ता कायम करने तथा उन्हें उदार बनाने के लिए पश्चिमी राष्ट्रों के संविधानों ने इन समुदायों को मान्यता न देकर किया है।

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प्रश्न 12.
भारतीय संविधान में समुदायों के बीच बराबरी के रिश्ते को बढ़ावा देने के लिए क्या रास्ता अपनाया है? उत्तर- भारतीय संविधान ने समुदाय आधारित अधिकारों को मान्यता देकर इनके बीच बराबरी के रिश्ते को बढ़ावा दिया है, जैसे- धार्मिक समुदाय का अपनी शिक्षा संस्था स्थापित करने और चलाने का अधिकार।

प्रश्न 13.
मुख्य धारा की पश्चिमी धारणा में धर्मनिरपेक्षता को किस रूप में देखा गया है?
उत्तर:
मुख्य धारा की पश्चिमी धारणा में व्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्ति की नागरिकता से संबंधित अधिकारों की रक्षा के लिए धर्मनिरपेक्षता को धर्म और राज्य के पारस्परिक निषेध के रूप में देखा गया है।

प्रश्न 14.
धर्म और राज्य के पारस्परिक निषेध से क्या आशय है?
उत्तर:
धर्म और राज्य के ‘पारस्परिक निषेध’ शब्द का आशय है– धर्म और राज्य दोनों एक-दूसरे के क्षेत्र से अलग रहेंगे, एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

प्रश्न 15.
भारतीय संविधान में दी गई धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता का मॉडल पश्चिमी मॉडल से निम्न दो रूपों में भिन्न है।

  1. भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता न होकर व्यक्ति और समुदाय दोनों की धार्मिक स्वतंत्रता से है।
  2. भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ पारस्परिक निषेध नहीं बल्कि राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान की कोई दो केन्द्रीय विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  1. भारतीय संविधान ने उदारवादी व्यक्तिवाद को एक नया रूप देकर उसे विकसित किया है।
  2. इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक न्याय के सिद्धान्त को भी स्वीकार किया है।

प्रश्न 17.
अनुच्छेद 371 को जगह देकर भारतीय संविधान ने किस प्रकार के संघवाद की अवधारणा को अपनाया
उत्तर:
अनुच्छेद 371 को जगह देकर भारतीय संविधान ने ‘असमतोल संघवाद’ जैसी अवधारणा को अपनाया प्रश्न 18. भारतीय संविधान की दो प्रक्रियागत उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की दो प्रक्रियागत उपलब्धियाँ ये हैं।

  1. संविधान निर्माण में स्वार्थों के स्थान पर तर्कबुद्धि पर बल दिया गया है।
  2. महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय सर्वानुमति से लिए गए हैं।

प्रश्न 19.
भारतीय संविधान की कोई दो आलोचनाएँ लिखिये।
उत्तर:

  1. भारतीय संविधान के निर्माण में जनता का प्रतिनिधित्व नहीं हो सका है।
  2. यह संविधान एक विदेशी दस्तावेज है।

प्रश्न 20.
भारतीय संविधान की कोई दो सीमाएँ बताइये।
उत्तर:

  1. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत है।
  2. इसमें कुछ बुनियादी आर्थिक-सामाजिक अधिकारों को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व वाले खंड में डाल दिया गया है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में प्रस्तुत ‘ अवसर और प्रतिष्ठा की समानता’ से क्या आशय है?
उत्तर:
अवसर और प्रतिष्ठा की समानता: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए ‘प्रतिष्ठा की समानता’ शब्द से आशय है कि भारत के सभी नागरिकों के साथ बिना किसी प्रतिष्ठा के भेदभाव के समाज में समान व्यवहार किया जायेगा। सभी नागरिक भारतीय समाज में समान हैं तथा सब पर कानून समान रूप से लागू होंगे। अवसर की समानता का आशय है कि सभी नागरिकों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर प्राप्त होंगे। धर्म, जाति, वंश, लिंग, रंग तथा सम्पत्ति के आधार पर इसमें कोई भेद नहीं किया जायेगा।

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प्रश्न 2.
” औपनिवेशिक दासता में रहे लोगों के लिए संविधान राजनीतिक आत्मनिर्णय का उद्घोष और इसका पहला वास्तविक अनुभव है।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संविधान राजनीतिक आत्मनिर्णय का उद्घोष है। औपनिवेशिक दासता में रह रहे लोगों के लिए संविधान सभा की मांग पूर्ण आत्मनिर्णय की सामूहिक मांग का प्रतिरूप है क्योंकि सिर्फ औपनिवेशिक देश की जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से बनी संविधान सभा को ही बिना बाहरी हस्तक्षेप के उस देश का संविधान बनाने का अधिकार है। संविधान पहला वास्तविक अनुभव संविधान सभा सिर्फ जनप्रतिनिधियों अथवा योग्य वकीलों का जमावड़ा भर नहीं है बल्कि यह स्वयं में औपनिवेशिक राष्ट्र द्वारा अपने बनाए नए आवरण को पहनने की तैयारी भी है।

प्रश्न 3.
संविधान के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संविधान के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. संविधान शासन व्यवस्था के बुनियादी नियम प्रदान करता है।
  2. यह राज्य को निरंकुश बनने से रोकता है।
  3. संविधान हमें गहरे सामाजिक बदलाव के लिए शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक साधन भी प्रदान करता है।
  4. औपनिवेशिक दासता में रह रहे लोगों के लिए संविधान राजनीतिक आत्मनिर्णय का उद्घोष है तथा इसका पहला वास्तविक अनुभव भी।
  5. संविधान कमजोर लोगों को उनका वाजिब हक सामुदायिक रूप में हासिल करने की ताकत देता है।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान का राजनीतिक दर्शन क्या है?
उत्तर:
भारतीय संविधान का राजनीतिक दर्शन: भारतीय संविधान उदारवादी, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, संघवादी, सामुदायिक जीवन-मूल्यों का हामी, धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों तथा अधिकार – वंचित वर्गों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील तथा एक सर्व सामान्य राष्ट्रीय पहचान बनाने को प्रतिबद्ध संविधान है। संक्षेप में, यह संविधान स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय तथा एक न एक किस्म की राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरे, संविधान का जोर इस बात पर है कि उसके दर्शन पर शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाये।

प्रश्न 5.
भारतीय संघवाद की ‘असमतोल संघवाद’ की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असमतोल संघवाद: ‘असमतोल संघवाद’ से आशय है कि भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों की कानूनी हैसियत और विशेषाधिकार में महत्त्वपूर्ण अन्तर है। यहाँ कुछ इकाइयों की विशेष जरूरतों को ध्यान में रखते हुए संविधान की रचना में इन्हें विशेष दर्जा दिया गया है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 371 के अन्तर्गत पूर्वोत्तर भारत के अनेक राज्यों को विशेष प्रावधानों का लाभ दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुसार विभिन्न प्रदेशों के साथ इस असमान बर्ताव में कोई बुराई नहीं है।

प्रश्न 6.
” भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी है। ” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ पारस्परिक: निषेध नहीं बल्कि राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी है। इसका आशय यह है कि राज्य सभी धर्मों से समान दूरी रखेगा लेकिन स्वतंत्रता, समता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए वह किसी धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकता है या वह किसी धार्मिक सम्प्रदाय को इस हेतु सहयोग कर सकता है।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारतीय संविधान की विशेषताएँ – भारतीय संविधान की अनेक विशेषताएँ हैं जिनमें से चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. व्यक्ति की स्वतंत्रता:
भारत का संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अन्तर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मनमानी गिरफ्तारी के प्रति स्वतंत्रता तथा अन्य वैयक्तिक स्वतंत्रताएँ, जैसे- अन्तरात्मा का अधिकार आदि प्रदान किये गए भारतीय संविधान की यह विशेषता मजबूत उदारवादी नींव पर प्रतिष्ठित है।

2. सामाजिक न्याय तथा सामुदायिक जीवन:
मूल्यों का पक्षधर: भारत का संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। साथ ही भारतीय संविधान का उदारवाद सामुदायिक जीवन-मूल्यों का पक्षधर है । इसमें समुदाय आधारित अधिकारों को मान्यता दी गई है।

3. धर्मनिरपेक्षता:
भारतीय संविधान निर्माताओं ने पश्चिम की ‘पारस्परिक निषेध’ धर्मनिरपेक्ष अवधारणा की वैकल्पिक धारणा का विकास किया है। क्योंकि भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति और समुदाय दोनों की धार्मिक स्वतंत्रता से है, न कि केवल व्यक्ति की निजी धार्मिक स्वतंत्रता का । दूसरे, भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ पारस्परिक निषेध नहीं बल्कि राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी है।

4. सार्वभौम मताधिकार: भारतीय संविधान में सार्वभौम मताधिकार को अपनाया गया है। सार्वभौम मताधिकार का विचार भारतीय राष्ट्रवाद के बीज विचारों में एक है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की सीमाएँ: भारतीय संविधान की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. केन्द्रीकृत राष्ट्रीय एकता की धारणा: भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत है।
  2. लिंगगत न्याय की उपेक्षा: भारतीय संविधान में लिंगगत न्याय के कुछ महत्त्वपूर्ण मसलों खासकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया। इसमें परिवार की सम्पत्ति के बंटवारे में पुत्र और पुत्री के बीच असमान अधिकार दिये गये हैं।
  3. सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को नीति-निर्देशक तत्त्वों का हिस्सा बनाना भारत जैसे विकासशील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति-निर्देशक खंड में डालकर उपेक्षित कर दिया है क्योंकि इन अधिकारों को लागू करने के लिए नागरिक न्यायालय में वाद दायर नहीं कर सकते।

प्रश्न 9.
प्रस्तावना में दिये गये भारतीय संविधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्य: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. न्याय: सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय।
  2. स्वतंत्रता विचार: अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म एवं पूजा की स्वतंत्रता।
  3. समानता: प्रतिष्ठा और अवसर की समानता।
  4. बंधुता: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बंधुता।

प्रश्न 10.
भारत के संविधान की प्रस्तावना में दिये गये ‘हम भारत के लोग’ शब्द से क्या आशय है?
उत्तर:
हम भारत के लोग;
प्रस्तावना के ‘हम भारत के लोग शब्द से यह अभिप्राय है कि भारत के संविधान को महान व्यक्तियों के एक एक समूह ने नहीं प्रदान किया है, बल्कि इसकी रचना और इसका अंगीकार ‘हम भारत के लोग’ के द्वारा हुआ है। इस तरह जनता स्वयं अपनी नियति की नियंता है और लोकतंत्र का एक साधन है जिसके सहारे लोग अपने वर्तमान और भविष्य को आंकार देते हैं । आज प्रस्तावना के इस उद्घोष को पचास साल से ज्यादा हो चुके हैं। अनेक व्याख्याओं, असहमतियों, मत – विभिन्नताओं के चलते हुए भी पिछले पचास वर्षों से हर कोई संविधान के इस अन्तर्निहित दर्शन में विश्वास रखते हुए चलता आया है, वह यह है कि यह संविधान हम सब भारतवासियों का और भारतवासियों के लिए है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान के दर्शन का क्या आशय है? इसको समझना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
संविधान के दर्शन से आशय: कानून और नैतिक मूल्य के बीच गहरा संबंध है। संविधान कानूनों का एक ऐसा दस्तावेज है जिसके पीछे नैतिक दृष्टि काम कर रही है। संविधान के कानूनों में निहित यही नैतिक व राजनैतिक दृष्टि संविधान का राजनैतिक दर्शन है। इसमें निम्नलिखित तीन बातें शामिल हैं-

1. अवधारणाएँ: संविधान कुछ अवधारणाओं के आधार पर बना है। इन अवधारणाओं की व्याख्या हमारे लिए आवश्यक है। कुछ प्रमुख अवधारणाएँ ये हैं। अधिकार, नागरिकता, अल्पसंख्यक, लोकतंत्र आदि।

2. आदर्श: संविधान का निर्माण जिन आदर्शों की नींव पर हुआ है, उन आदर्शों पर हमारी गहरी पकड़ होनी चाहिए अर्थात् हमारे सामने एक ऐसे समाज और शासन व्यवस्था की तस्वीर साफ-साफ होनी चाहिए जो संविधान की मूल अवधारणाओं की हमारी व्याख्या से मेल खाती हो।

3. संविधान सभा की बहसों में निहित तर्क:
भारतीय संविधान को संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धान्तिक रूप से हम यह बता सकें कि ये आदर्श कहां तक और क्यों ठीक हैं तथा आगे उनमें कौनसे सुधार किये जा सकते हैं। किसी मूल्य को यदि हम संविधान की बुनियाद बताते हैं, तो हमारे लिए यह बताना जरूरी हो जाता है कि यह मूल्य सही और सुसंगत क्यों है? संविधान निर्माताओं ने जब भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में किसी खास मूल्य-समूह को अपनाया तो ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि उनके पास इस मूल्य समूह के जायज ठहराने के लिए कुछ तर्क मौजूद थे।

ये तर्क भी संविधान के अन्तर्निहित दर्शन से संबंधित हैं। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान के अन्तर्निहित दर्शन के अन्तर्गत मुख्यतः संविधान की अवधारणाओं की व्याख्या, संविधान के आदर्श तथा इन आदर्शों का औचित्य ठहराने के लिए संविधान सभा में दिये गए तर्क आते हैं।

संविधान के अन्तर्निहित दर्शन को समझना आवश्यक है संविधान के अन्तर्निहित दर्शन को जानने और उसके दावे के मूल्यांकन के लिए संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन का दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है ताकि हम अपनी शासन व्यवस्था के बुनियादी मूल्यों की अलग-अलग व्याख्याओं को एक कसौटी पर जांच सकें। दूसरे शब्दों में संविधान की शासन व्यवस्था के बुनियादी मूल्यों की अलग-अलग व्याख्याओं को एक कसौटी पर जांचने के लिए संविधान के अन्तर्निहित दर्शन को समझना आवश्यक है।

आदर्शों को मिलने वाली चुनौतियाँ व विविध व्याख्याएँ; आज संविधान के बहुत से आदर्शों को अनेक रूप में चुनौती मिल रही है। यथा

  • इन आदर्शों पर बार-बार न्यायालयों में तर्क-वितर्क होते हैं। विधायिका, राजनीतिक दल, मीडिया, स्कूल तथा विश्वविद्यालयों में इन पर विचार-विमर्श होता है, बहस चलती है और इन पर सवाल उठाये जाते हैं।
  • इन आदर्शों की व्याख्या अलग-अलग ढंग से की जाती है और कभी-कभी अल्पकालिक क्षुद्र स्वार्थी के लिए इनके साथ चालबाजी भी की जाती है।
  • परीक्षा की आवश्यकता: उपर्युक्त कारणों से इस बात की परीक्षा की आवश्यकता होती है कि।
    1. संविधान के आदर्शों और अन्य हलकों में इन आदर्शों की अभिव्यक्ति के बीच कहीं कोई गंभीर खाई तो नहीं
    2. विभिन्न संस्थाओं द्वारा इन आदर्शों की की जाने वाली अलग-अलग व्याख्याओं की तुलना की जाये। अलग- अलग व्याख्याओं के कारण इन व्याख्याओं के बीच विरोध पैदा होता है। यहां यह जांचने की जरूरत आ पड़ती है कि कौनसी व्याख्या सही है। इस जांच-परख में संविधान के दर्शन का प्रयोग एक कसौटी के रूप में किया जाना चाहिए। अतः स्पष्ट है कि शासन-व्यवस्था के बुनियादी मूल्यों की अलग-अलग व्याख्याओं को जांचने के लिए एक कसौटी के रूप में संविधान के दर्शन को जानना अति आवश्यक।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताएँ क्या हैं?
अथवा
भारतीय संविधान की केन्द्रीय विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथव
भारतीय संविधान की आधारभूत महत्त्व की उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताएँ
अथवा
भारतीय संविधान की आधारभूत महत्त्व की उपलब्धियाँ: भारतीय संविधान की मूलभूत या केन्द्रीय विशेषताओं तथा उसकी आधारभूत महत्त्व की उपलब्धियों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. लोकतंत्र:
भारतीय संविधान के दर्शन का प्रमुख आधारभूत तत्त्व लोकतंत्र है। भारतीय जनता लोकतंत्र को बहुत अधिक महत्त्व देती है। यही कारण है कि यहाँ राजनैतिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में लोकतंत्र को अपनाया गया है। संविधान न केवल राजनैतिक लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध है, बल्कि उसमें नीति-निर्देशक तत्त्वों के माध्यम से सामाजिक- आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की रूपरेखा व नीतियाँ भी प्रस्तुत की गई हैं। संविधान में लोकतांत्रिक राजनैतिक संस्थाओं के गठन के प्रावधान किये गये हैं।

संघीय संसद, राज्यों की विधायिकाओं का गठन जनता के निर्वाचन द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए किया जाता है तथा सरकारों को इन जन-प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। इस प्रकार संविधान में लोकतंत्र को अपनाने के पीछे यही दर्शन रहा है कि समस्त निर्णय जो जनता को प्रभावित कर सकते हैं, जनता द्वारा लिये जाने चाहिए और ये निर्णय केवल बहुमत के आधार पर ही नहीं बल्कि जनमत तथा लोगों की बड़ी संख्या की स्वतंत्र सहमति पर आधारित होने चाहिए। इस प्रकार लोकतंत्र भारतीय संविधान के दर्शन का आधारभूत तत्त्व है।

2. समानता:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता भी संविधान के दर्शन का आधारभूत तत्त्व है। संविधान में कहा गया है कि सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं तथा सभी को कानून का समान संरक्षण मिलेगा। राज्य जाति, रंग, लिंग, प्रजाति और सम्पत्ति के आधार पर कोई भेदभावपूर्ण कानून नहीं बनायेगा। लेकिन सामाजिक रूप से शोषित और वंचित लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाने तथा जीवन के प्रत्येक पक्ष में समानता लाने के लिए ऐसे वर्गों के लिए संविधान में कुछ विशेष प्रावधान किये गये हैं। ये विशेष प्रावधान भेदभाव को बढ़ावा नहीं देते हैं बल्कि ये व्यवहार में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता को स्थापित करने के सकारात्मक कदम हैं ।

3. व्यक्ति की स्वतंत्रता:
संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। यह प्रतिबद्धता लगभग एक सदी तक निरंतर चली बौद्धिक और राजनैतिक गतिविधियों का परिणाम है। 19वीं सदी के प्रारंभ में भी राममोहन राय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की काट-छांट का विरोध किया था तथा इस बात पर बल दिया कि राज्य के लिए यह जरूरी है कि वह अभिव्यक्ति की असीमित आजादी प्रदान करे। पूरे ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय प्रेस की आजादी की मांग निरन्तर उठाते रहे। इसीलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान का अभिन्न अंग है।

इसी तरह, मनमानी गिरफ्तारी के विरुद्ध नागरिकों को स्वतंत्रता दी गई है। इसके अतिरिक्त अन्य वैयक्तिक स्वतंत्रताएँ जैसे- अंतरात्मा का अधिकार, आदि इसमें प्रदान की गई हैं। ये व्यक्तिगत स्वतंत्रताएँ उदारवादी लोकतांत्रिक विचारधारा का अभिन्न अंग हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान मजबूत उदारवादी नींव पर खड़ा है। यही कारण है कि संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों में व्यक्ति की स्वतंत्रताओं को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।

4. सामाजिक न्याय:
भारतीय संविधान योरोपीय शास्त्रीय परम्परा में उदारवादी नहीं है । शास्त्रीय उदारवाद जहाँ सामाजिक न्याय और सामाजिक मूल्यों के ऊपर हमेशा व्यक्ति को महत्त्व देता है, वहाँ भारत के संविधान का उदारवाद में व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक न्याय और सामाजिक मूल्यों को भी महत्त्व दिया गया है। भारतीय संविधान का उदारवाद शास्त्रीय उदारवाद से दो मायनों में अलग है।

  • भारत का संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।
  • संविधान के विशेष प्रावधानों के कारण ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विधायिका में सीटों का आरक्षण तथा सरकारी नौकरियों में इन वर्गों को आरक्षण देना संभव हो सका है।

5. समुदाय आधारित अधिकारों तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान:
भारतीय संविधान का उदारवाद सामुदायिक जीवन-मूल्यों का पक्षधर है। भारतीय संविधान समुदायों के बीच बराबरी के रिश्ते को बढ़ावा देता है। भारतीय सामुदायिक जीवन-मूल्यों को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं। इसके साथ ही भारत में अनेक सांस्कृतिक समुदाय हैं। यहाँ बहुत से भाषायी और धार्मिक समुदाय हैं। संविधान में समुदाय आधारित अधिकारों को मान्यता दी गई है। ऐसे ही अधिकारोंमें एक है। धार्मिक समुदाय का अपनी शिक्षा संस्था स्थापित करने और चलाने का अधिकार। सरकार ऐसी संस्थाओं को धन दे सकती है। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान धर्म को सिर्फ व्यक्ति का निजी मामला नहीं मानता।

6. धर्मनिरपेक्षता:
भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष संविधान है। पश्चिमी विचारधारा में धर्मनिरपेक्षता को धर्म और राज्य के पारस्परिक निषेध के रूप में देखा गया है। इसका आशय यह है कि राज्य को न तो किसी धर्म की कोई मदद करनी चाहिए और न उसके कार्यों में हस्तक्षेप करना चाहिए। उसे धर्म से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखनी चाहिए। व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह आवश्यक है। राज्य को व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए चाहे उस व्यक्ति का धर्म कोई भी हो। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा से दो रूपों में भिन्न है।

  • भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति और समुदाय दोनों की धार्मिक स्वतंत्रता से है। इसीलिए भारतीय संविधान सभी धार्मिक समुदायों को अपने शिक्षा संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार प्रदान करता है।
  • भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ राज्य की धर्म से सिद्धान्तगत दूरी है, न कि पारस्परिक निषेध राज्य समाज में व्यक्ति की स्वतंत्रता, समता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए अवसर के अनुकूल धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकता है; वह धार्मिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा संस्थान को धन भी दे सकता है।

7. सार्वभौम मताधिकार:
भारतीय संविधान सार्वभौम मताधिकार के प्रति वचनबद्ध है। भारतीय राष्ट्रवाद की धारणा में हमेशा एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की बात विद्यमान रही है जो समाज के प्रत्येक सदस्य की इच्छा पर आधारित है। सार्वभौम मताधिकार का विचार भारतीय राष्ट्रवाद के बीज विचारों में एक है।

8. संघवाद:
भारतीय संविधान की एक अन्य विशेषता संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना करना है। संविधान में संघात्मक व्यवस्था के प्रावधानों जैसे—संविधान की सर्वोच्चता, शक्तियों का केन्द्र तथा राज्यों की सरकारों के मध्य बँटवारा, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि के साथ-साथ एक मजबूत केन्द्रीय सरकार के निर्माण की बात मानी गई है। एक तरफ तो संघवाद का झुकाव केन्द्र सरकार की मजबूती की ओर है दूसरी तरफ भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों की कानूनी हैसियत और विशेषाधिकार में महत्त्वपूर्ण अन्तर है।

इस प्रकार भारतीय संघवाद संवैधानिक रूप से असमतोल है। पूर्वोत्तर से संबंधित अनुच्छेद 371 को जगह देकर भारतीय संविधान ने असमतोल संघवाद जैसी अवधारणा को अपनाया। लेकिन भारतीय संविधान के अनुसार विभिन्न प्रदेशों के साथ इस असमान व्यवहार में कोई बुराई नहीं है।

9. राष्ट्रीय पहचान:
संविधान में समस्त भारतीय जनता की एक राष्ट्रीय पहचान पर निरंतर जोर दिया गया है। हमारी एक राष्ट्रीय पहचान का भाषा या धर्म के आधार पर बनी अलग- अलग पहचानों से कोई विरोध नहीं है । भारतीय संविधान में इन दो पहचानों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। फिर भी, किन्हीं विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय पहचान को वरीयता प्रदान की गई है।

10. स्वतंत्र न्यायपालिका:
भारत के संविधान में स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। निष्पक्ष न्याय, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा, संघ सरकार – राज्य सरकार व राज्य सरकारों के मध्य उत्पन्न विवादों को इसके माध्यम से दूर करने का प्रयास किया जाता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान की क्या आलोचनाएँ की गई हैं? इसकी प्रमुख सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की आलोचना: भारतीय संविधान की कई आलोचनाएँ की गई हैं, इनमें से तीन प्रमुख आलोचनाएँ अग्रलिखित हैं।
1. भारतीय संविधान अस्त-व्यस्त: भारतीय संविधान की पहली आलोचना यह की जाती है कि यह संविधान अस्त- व्यस्त या ढीला-ढाला है। इसके पीछे यह धारणा काम करती है कि किसी देश का संविधान एक कसे हुए दस्तावेज के रूप में मौजूद होना चाहिए। लेकिन यह बात संयुक्त राज्य अमरीका जैसे देश के लिए भी सच नहीं है, जहां संविधान एक कसे हुए दस्तावेज के रूप में है। वास्तविकता यह है कि किसी देश का संविधान एक दस्तावेज तो होता ही है, लेकिन इसमें संवैधानिक हैसियत के अन्य दस्तावेजों को भी शामिल किया जाता है।

इससे यह संभव है कि कुछ महत्त्वपूर्ण संवैधानिक वक्तव्य व से नियम उस कसे हुए दस्तावेज से बाहर मिलें जिसे संविधान कहा जाता है। भारत में संवैधानिक हैसियत के ऐसे बहुत वक्तव्यों, ब्यौरों और कायदों को एक ही दस्तावेज के अन्दर समेट लिया गया है। जैस चुनाव आयोग और लोक सेवा आयोग सम्बन्धी प्रावधान भी भारत के संविधान के अंग हैं। इसलिए यह अमेरिका के संविधान की तरह एक कसा हुआ संविधान नहीं बन पाया है।

2. भारतीय संविधान निर्मात्री सभा समस्त जनता की प्रतिनिधि नहीं थी: भारतीय संविधान की दूसरी आलोचना संविधान सभा के प्रतिनिधित्व को लेकर की जाती है कि संविधान सभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित नहीं थे, वे प्रान्तों की विधानसभाओं द्वारा निर्वाचित थे। साथ ही संविधान सभा के सदस्य सीमित मताधिकार से चुने गये थे, न कि सार्वभौमिक मताधिकार से। इस दृष्टि से देखें तो स्पष्ट है कि हमारे संविधान में समस्त जनता का प्रतिनिधित्व नहीं हो सका है। लेकिन यदि प्रतिनिधित्व के दूसरे पक्ष ‘राय’ के आधार पर इस आलोचना का विश्लेषण करें तो हमारे संविधान में गैर- नुमाइंदगी नहीं दिखाई देती है।

क्योंकि संविधान सभा में लगभग हर किस्म की राय रखी गई। संविधान सभा की बहसों में बहुत से मुद्दे उठाये गए और बड़े पैमाने पर राय रखी गई । सदस्यों ने अपने व्यक्तिगत और सामाजिक सरोकार पर आधारित मसले ही नहीं बल्कि समाज के विभिन्न तबकों के सरोकारों और हितों पर आधारित मसले भी उठाये। अतः राय की दृष्टि से उक्त आलोचना भी पूर्णत: सही नहीं है। क्योंकि संविधान निर्माण के बाद हुए पहले आम चुनाव में संविधान सभा के सभी सदस्य निर्वाचित हुए।

3. यह संविधान भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है। भारतीय संविधान की एक अन्य आलोचना यह की जाती है कि यह एक विदेशी दस्तावेज है। इसका हर अनुच्छेद पश्चिमी संविधानों की नकल है और भारतीय जनता के सांस्कृतिक भावबोध से इसका मेल नहीं बैठता। संविधान सभा के भी बहुत से सदस्यों ने यह बात उठायी थी। लेकिन यह आलोचना भ्रामक है क्योंकि:

(i) अनेक भारतीयों ने चिंतन के आधुनिक तरीके को आत्मसात कर लिया है। इन लोगों के लिए पश्चिमीकरण अपनी परंपरा के विरोध का एक तरीका था। राममोहन राय ने इस प्रवृत्ति की शुरुआत की थी और आज भी यह प्रवृत्ति दलितों द्वारा जारी है।

(ii) जब पश्चिमी आधुनिकता का स्थानीय सांस्कृतिक व्यवस्था से टकराव हुआ तो एक किस्म की संकर संस्कृति उत्पन्न हुई। यह संकर-संस्कृति पश्चिमी आधुनिकता से कुछ लेने और कुछ छोड़ने की रचनात्मक प्रक्रिया का परिणाम थी। ऐसी प्रक्रिया को न तो पश्चिमी आधुनिकता में ढूंढा जा सकता है और न ही देशी परम्परा में। पश्चिमी आधुनिकता और देशी सांस्कृतिक व्यवस्था के संयोग से उत्पन्न इस बहुमुखी परिघटना में वैकल्पिक आधुनिकता का चरित्र है। इस तरह, जब हम अपना संविधान बना रहे थे तो हमारे मन में परंपरागत भारतीय और पश्चिमी मूल्यों के स्वस्थ मेल का भाव था । अतः यह संविधान सचेत चयन और अनुकूलन का परिणाम है, न कि नकल का।

भारतीय संविधान की सीमाएँ: भारतीय संविधान की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीकृत है।
  2. इसमें लिंगगत न्याय के कुछ महत्त्वपूर्ण मसलों विशेषकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।
  3. यह बात स्पष्ट नहीं है कि एक गरीब और विकासशील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति-निर्देशक तत्व वाले खंड में क्यों डाल दिया गया है। लेकिन संविधान की ये सीमाएँ इतनी गंभीर नहीं हैं कि ये संविधान के दर्शन के लिए ही खतरा पैदा कर दें।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. मंगोल यायावर थे –
(अ) चीन के
(ब) रूस के
(स) मध्य एशिया के स्टेपी क्षेत्र के
(द) सीरिया के।
उत्तर:
(स) मध्य एशिया के स्टेपी क्षेत्र के

2. मंगोलों को व्यापार के लिए किस देश के स्थायी निवासियों के पास जाना पड़ता था –
(अ) ईरान
(ब) तूरान
(स) भारत
(द) चीन।
उत्तर:
(द) चीन।

3. चंगेजखान का प्रारम्भिक नाम था –
(अ) जमूका
(ब) नेमन
(स) तेमुजिन
(द) अब्दुल्ला खान।
उत्तर:
(स) तेमुजिन

4. चंगेज खाँ की मृत्यु हुई-
(अ) 1226 ई.
(ब) 1227 ई.
(स) 1326 ई.
(द) 1327 ई.।
उत्तर:
(ब) 1227 ई.

5. कृषकों और नगरों के रक्षक के रूप में कौन प्रसिद्ध था?
(अ) चंगेजखान
(ब) चघताई
(स) ओगोदेई
(द) कुबलई खान।
उत्तर:
(द) कुबलई खान।

6. किस मंगोल शासक ने अपने सेनापतियों को आदेश दिया था कि वे किसानों को न लूटें और उनकी रक्षा करें?
(अ) चंगेज खान
(ब) कुबलई खान
(स) गजन खान
(द) जोची।
उत्तर:
(स) गजन खान

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7. चंगेजखान की विधि-संहिता कहलाता है –
(अ) उलुस
(ब) तामा
(स) किरिलताई
(द) यास।
उत्तर:
(द) यास।

8. चंगेज खान के तीसरे पुत्र ओगोदेई ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठित की –
(अ) चीन में
(ब) कराकोरम में
(स) ईरान में
(द) अफगानिस्तान में।
उत्तर:
(ब) कराकोरम में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. कुछ मंगोल पशुपालक थे और कुछ ………………
2. मंगोलों के स्टेपी क्षेत्रों में कोई …………… नहीं उभर पाया।
3. समय – समय पर प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मंगोल समुदायों में ……………. होता था।
4. चंगेज खां उन विभिन्न जनजातीय समूहों को जो उसके महासंघ के सदस्य थे, की पहचान को योजनाबद्ध रूप से …………… को कृत-संकल्प था।
5. चंगेज खां ने प्राचीन जनजातीय समूहों को …………….. कर उनके सदस्यों को नवीन सैनिक इकाइयों में विभक्त कर दिया।
उत्तर:
1. शिकारी संग्राहक
2. नगर
3. संघर्ष
4. मिटाने
5. विभाजित।

निम्न में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये –

1. चंगेज खां के चार पुत्रों के अधीन नयी सैनिक टुकड़ियों को आंडा कहा जाता था।
2. चंगेज खां के कर्त्तव्यनिष्ठ अनुयायियों के समूह को नोयान कहा जाता था।
3. आंडा ने निम्न श्रेणी के कर्त्तव्यनिष्ठ अनुयायी को ‘स्वतंत्र व्यक्ति’ कहा जाता था।
4. चंगेज खां ने अपने नव – विजित लोगों पर शासन करने का उत्तरदायित्व चार पुत्रों को सौंपा। इससे उलूस का गठन हुआ।
5. परिवार के सदस्यों में राज्य की भागीदारी का बोध किरिलताई में होता था।
उत्तर:
1. असत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य
5. सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. कुरिलताई (क) चंगेज खां के चार पुत्रों के अधीन नई सैनिक टुकड़ियां
2. नोयान (ख) चंगेज खां के कर्त्तव्यनिष्ठ अनुयायी
3. आंडा (ग) ऐसा क्षेत्र जिसकी दूरस्थ सीमा निर्धारित नहीं थी।
4. उलूस (घ) सुरक्षित यात्रा हेतु यात्रियों को जारी किए गए पास।
5. जेरेज (च) मंगोल कबीले के सरदारों की एक सभा

उत्तर:

1. कुरिलताई (च) मंगोल कबीले के सरदारों की एक सभां
2. नोयान (क) चंगेज खां के चार पुत्रों के अधीन नई सैनिक टुकड़ियाँ
3. आंडा (ख) चंगेज खां के कर्त्तव्यनिष्ठ अनुयायी
4. उलूस (ग) ऐसा क्षेत्र जिसकी दूरस्थ सीमा निर्धारित नहीं थीं।
5. जेरेज (घ) सुरक्षित यात्रा हेतु यात्रियों को जारी किए गए पास।

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस मंगोल शासक ने फ्रांस के शासक लुई नौवें को चेतावनी दी थी ?
उत्तर:
चंगेजखान के पौत्र मोन्के ने।

प्रश्न 2.
बाटू कौन था ?
उत्तर:
बाटू चंगेज खान का पौत्र था ?

प्रश्न 3.
मंगोल साम्राज्य का संस्थापक कौन था?
उत्तर:
चंगेज खाँ।

प्रश्न 4.
चंगेज खाँ का जन्म कब हुआ था और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
1162 ई. के आस-पास, आधुनिक मंगोलिया में।

प्रश्न 5.
चंगेज खां का प्रारम्भिक नाम क्या था ?
उत्तर:
मुजिन।

प्रश्न 6.
मंगोलों का महानायक किसे घोषित किया गया और किसके द्वारा घोषित किया गया ?
उत्तर:
(1) चंगेज खान को
(2) मंगोल सरदारों की सभा कुरिलताई द्वारा।

प्रश्न 7.
निशापुर में कत्ले-आम का आदेश किसने दिया?
उत्तर:
चंगेज खान ने।

प्रश्न 8.
‘उलुस’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘उलुस’ शब्द का मूल अर्थ निश्चित भू-भाग नहीं था।

प्रश्न 9.
चंगेजखाँ के तीसरे और चौथे पुत्रों को शासन करने के लिए कौन से प्रदेश प्राप्त हुए?
उत्तर:
चंगेजखाँ के तीसरे पुत्र ओगोदेई को कराकोरम तथा चौथे पुत्र तोलोए को मंगोलिया प्राप्त हुआ।

प्रश्न 10.
गजन खान कौन था ?
उत्तर:
गजन खान चंगेज खाँ के सबसे छोटे पुत्र तोलुई का वंशज था।

प्रश्न 11.
यायावर कौन थे ?
उत्तर:
यायावर घुमक्कड़ लोग थे जो अनेक परिवारों के समूह में संगठित होते थे।

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प्रश्न 12.
चीन की महान दीवार क्यों बनवाई गई थी ?
उत्तर:
मंगोलों के आक्रमणों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए।.

प्रश्न 13.
मंगोलों के प्रमुख नेता का नाम लिखिए।
उत्तर:
चंगेज खान।

प्रश्न 14.
चंगेज खान का सैन्य संगठन किस पद्धति पर आधारित था ?
उत्तर:
स्टेपी क्षेत्र की पुरानी दशमलव पद्धति पर।

प्रश्न 15.
चीनी शासकों द्वारा मंगोलों के आक्रमणों से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए किए गए दो उपायों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) किलेबन्दी करना
(2) चीन की महान दीवार का निर्माण करवाना।

प्रश्न 16.
चीन की विशाल दीवार के निर्माण का कार्य कब से प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से।

प्रश्न 17.
मंगोलिया में चंगेज खाँ की छवि का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मंगोलों के लिए चंगेज खाँ एक आराध्य व्यक्ति था।

प्रश्न 18.
यास या यसाक से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
यास्क का अर्थ था-विधि, आज्ञप्ति व आदेश। यह चंगेज खाँ की विधि-संहिता थी। यसाक का सम्बन्ध प्रशासनिक विनियमों से है जैसे आखेट, सैन्य और डाक प्रणाली का संगठन।

प्रश्न 19.
चंगेज खाँ ने बुखारा पर कब विजय प्राप्त की ?
उत्तर:
1220 ई. में।

प्रश्न 20.
चंगेज खाँ का कौनसा पोता किसानों और नगरों का रक्षक था ?
उत्तर:
कुबलई खान।

प्रश्न 21.
‘बर्बर’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘बर्बर’ शब्द यूनानी भाषा के ‘बारबरोस’ शब्द से उत्पन्न हुआ है जिसका तात्पर्य गैर-यूनानी लोगों से है। ये लोग क्रूर एवं निर्दयी होते थे।

प्रश्न 22.
मंगोल शासक मोन्के ने फ्रांस के शासक लुई नौवें को क्या चेतावनी दी थी ?
उत्तर:
“स्वर्ग में केवल एक शाश्वत आकाश है और पृथ्वी का केवल एक अधिपति चंगेज खान है। अतः वह मंगोलों पर आक्रमण न करे।”

प्रश्न 23.
बाटू की दो सैनिक उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) उसने अपने 1236-1241 के अभियानों में रूस की भूमि को मास्को तक रौंद डाला।
(2) उसने पोलैण्ड, हंगरी तथा आस्ट्रिया पर विजय प्राप्त की।

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प्रश्न 24.
चंगेजखान ने 1220 में बुखारा को जीत कर वहाँ के व्यापारियों को क्या चेतावनी दी थी ?
उत्तर:
चंगेजखान ने बुखारा के व्यापारियों से कहा था कि “तुमने अनेक पाप किए हैं। ईश्वर ने मुझे तुम्हें दण्ड देने के लिए तुम्हारे पास भेजा है। ”

प्रश्न 25.
मंगोल कौन थे ?
उत्तर:
मंगोल विविध जन-समुदाय का एक निकाय था । ये लोग पूर्व के तातार, खितान तथा मंचू लोगों से सम्बन्धित थे।

प्रश्न 26.
मंगोलों का निवास स्थान क्या था ?
उत्तर:
मंगोल मध्य एशिया के स्टेपी क्षेत्र में रहते थे, जो कि आज के आधुनिक मंगोलिया राज्य का भू-भाग है।

प्रश्न 27.
मंगोलों ने कृषि कार्य को क्यों नहीं अपनाया?
उत्तर:
चारण क्षेत्र में वर्ष की सीमित अवधियों में ही कृषि करना सम्भव था इसलिए मंगोलों ने कृषि कार्य को नहीं अपनाया।

प्रश्न 28.
मंगोल प्रदेशों में नगर विकसित क्यों नहीं हो पाए ?
उत्तर:
मंगोलों ने कृषि कार्य नहीं अपनाया। पशुपालकों और शिकारी संग्राहकों की अर्थव्यवस्था भी घनी आबादी वाले क्षेत्रों का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं थी।

प्रश्न 29.
मंगोल परिवारों के समूह परिसंघ का निर्माण क्यों करते थे?
उत्तर:
मंगोल परिवारों के समूह आक्रमण करने तथा अपनी रक्षा करने के लिए शक्तिशाली कुलों से मिलकर परिसंघ बनाते थे।

प्रश्न 30.
चंगेज खान द्वारा बनाये गए परिसंघ की तुलना किसके परिसंघ से की गई है ?
उत्तर:
चंगेज खान द्वारा बनाया गया परिसंघ पाँचवीं शताब्दी के अट्टीला द्वारा बनाए गए परिसंघ के बराबर था।

प्रश्न 31.
चंगेज खान द्वारा स्थापित राजनीतिक व्यवस्था के स्थायी होने का क्या कारण था ?
उत्तर:
यह व्यवस्था चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शस्त्रों से सुसज्जित विशाल सेनाओं का मुकाबला करने में सक्षम थी।

प्रश्न 32.
मंगोलों को व्यापार और वस्तु-विनिमय के लिए किस देश के लोगों के पास जाना पड़ता था और क्यों?
उत्तर:
स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों को व्यापार और वस्तु विनिमय के लिए चीन के लोगों के पास जाना पड़ता था।

प्रश्न 33.
चीन के साथ किन वस्तुओं का व्यापार किया जाता था?
उत्तर:
मंगोल कबीले खेती से प्राप्त उत्पादों तथा लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे तथा घोड़े, फर और स्टेपी में पकड़े गए शिकार का विनिमय करते थे

प्रश्न 34.
वाणिज्यिक क्रिया-कलापों में मंगोलों को चीनियों के साथ तनाव का सामना क्यों करना पड़ता था ?
उत्तर:
क्योंकि मंगोल और चीनी दोनों ही अधिक लाभ प्राप्त करने की होड़ में निडरतापूर्वक सैनिक कार्यवाही कर बैठते थे।

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प्रश्न 35.
चंगेज खान कौन था ?
उत्तर:
चंगेज खान मंगोलों का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।

प्रश्न 36.
चंगेज खान स्टेपी क्षेत्र की राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में क्यों उभरा और कंब ?
उत्तर:
1206 में चंगेज खान अपने शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी जमूका तथा नेमन लोगों को निर्णायक रूप से पराजित करने के बाद सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा।

प्रश्न 37.
1206 में अपने प्रतिद्वन्द्वियों को पराजित करने के कारण तेमुजिन को किन उपाधियों से विभूषित किया गया?
उत्तर:
तेमुजिन को ‘चंगेज खान’, ‘समुद्री खान’ या ‘सार्वभौम शासक’ की उपाधियों से विभूषित किया गया और उसे मंगोलों का महानायक घोषित किया गया।

प्रश्न 38.
चंगेज खान की चीन – विजय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1209 में चंगेज खान ने चीन के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों के सी – सिआ लोगों को पराजित किया और 1215 में पेकिंग नगर को खूब लूटा

प्रश्न 39.
1219 और 1221 तक चंगेज खान के सैनिक अभियानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1219 और 1221 तक चंगेज खान ने अपने सैनिक अभियान किये और ओट्रार, बुखारा, समरकन्द, बल्ख, गंज, मर्व, निशापुर तथा हेरात पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 40.
चंगेज खान ने निशापुर में कत्ले-आम का आदेश क्यों दिया?
उत्तर:
निशापुर में घेरा डालने के दौरान एक मंगोल राजकुमार की हत्या कर दिये जाने के कारण ।

प्रश्न 41.
निशापुर नगर को ध्वस्त किये जाने के चंगेज खान के आदेश का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
चंगेज खान ने आदेश दिया कि “नगर को इस तरह विध्वंस किया जाए कि सम्पूर्ण नगर में हल चलाया जा सके। ”

प्रश्न 42.
चंगेज खान किसका पीछा करता हुआ सिन्ध प्रदेश तक पहुँच गया था और क्यों ?
उत्तर:
ख्वारिज्म के शासक मोहम्मद के पुत्र जलालखाँ का पीछा करते हुए चंगेजखाँ सिन्ध नदी के तट तक पहुँचा।

प्रश्न 43.
किन कारणों से चंगेज खान ने सिन्धु नदी के तट पर उत्तरी भारत तथा असम मार्ग से मंगोलिया वापस लौटने का विचार बदल दिया ?
उत्तर:
(1) भारत में गर्मी असहनीय थी।
(2) प्राकृतिक आवास की कठिनाइयाँ थीं।
(3) चंगेज खान के शमन निमितज्ञ ने अशुभ संकेत दिए थे।

प्रश्न 44.
अपने शत्रुओं के विरुद्ध चंगेज खान को प्राप्त हुई सैनिक सफलताओं के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) मंगोलों और तुर्कों के घुड़सवारी कौशल ने चंगेज खान की सेना को गतिशीलता प्रदान की थी।
(2) मंगोल सैनिक कुशल तीरंदाज थे।

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प्रश्न 45.
चंगेज खान की मृत्यु के बाद मंगोल साम्राज्य को किन दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर:
(1) पहला चरण 1236-1242 तक।
(2) दूसरा चरण 1255-1300 तक।

प्रश्न 46.
1260 के दशक के बाद मंगोलों की राजनीति में नई राजनीतिक प्रवृत्तियों के उदय होने के क्या संकेत थे?
उत्तर:
(1) मंगोलों को हंगरी के स्टेपी- क्षेत्र से पीछे हटना पड़ा।
(2) मंगोलों को मिस्र की सेनाओं ने पराजित कर दिया था।

प्रश्न 47.
पश्चिम में मंगोलों का विस्तार क्यों रुक गया था ? दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) मंगोलों को मिस्र की सेना के हाथों पराजित होना पड़ा।
(2) मंगोलों के तोलूई परिवार की चीन के प्रति रुचि निरन्तर बढ़ रही थी।.

प्रश्न 48.
मंगोलों को मिस्र की सेना के हाथों क्यों पराजित होना पड़ा ?
उत्तर:
मंगोलों ने मिस्र की सेना का मुकाबला करने के लिए एक छोटी और अपर्याप्त सेना भेजी थी।

प्रश्न 49.
चंगेजखान के सैनिक संगठन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चंगेजखान ने स्टेपी क्षेत्र की पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार अपनी सेना का गठन किया जो दस, सौ, हजार और दस हजार सैनिकों की इकाई में विभाजित थी।

प्रश्न 50.
नवीन सैनिक टुकड़ियाँ किसके अधीन थीं? उन्हें क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
नवीन सैनिक टुकड़ियाँ चंगेज खान के चार पुत्रों के अधीन थीं और विशेष रूप से चयनित कप्तानों के अधीन कार्य करती थीं। इन्हें ‘नोयान’ कहा जाता था।

प्रश्न 51.
उलुस का गठन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
चंगेज खान ने अपने नव-विजित प्रदेशों पर शासन करने का भार अपने चार पुत्रों को सौंप दिया। इससे उलुस का गठन हुआ।

प्रश्न 52.
चंगेज खान के पुत्रों को शासन करने के लिए कौन-कौनसे प्रदेश प्राप्त हुए? दो का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) चंगेज खान के सबसे ज्येष्ठ पुत्र जोची को रूसी स्टेपी प्रदेश तथा
(2) उसके दूसरे पुत्र चघताई को तूरान का स्टेपी- प्रदेश तथा पामीर के पहाड़ का उत्तरी क्षेत्र प्राप्त हुआ।

प्रश्न 53.
चंगेज खान की हरकारा पद्धति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
चंगेज खान ने एक चुस्त हरकारा पद्धति अपना रखी थी जिससे राज्य के दूरदराज के स्थानों में परस्पर सम्पर्क रखा जाता था।

प्रश्न 54.
‘कुकुर कर’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चंगेज खान की हरकारा पद्धति की संचार पद्धति की व्यवस्था करने के लिए मंगोल अपने पशुओं का दसवाँ भाग प्रदान करते थे। इसे ‘कुबकुर कर’ कहते थे।

प्रश्न 55.
हरकारा पद्धति मंगोल शासकों के लिए किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हुई ?
उत्तर:
हरकारा पद्धति से मंगोल शासकों को अपने विस्तृत महाद्वीपीय साम्राज्य के सुदूर स्थानों में होने वाली घटनाओं की जानकारी मिलती रहती थी।

प्रश्न 56.
विजित लोगों को अपने नवीन यायावर शासकों से कोई लगाव नहीं था। इसके दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) मंगोलों द्वारा किये गए आक्रमणों के फलस्वरूप नव- – विजित क्षेत्रों में अनेक नगर नष्ट कर दिए गए थे।
(2) कृषि भूमि को भारी हानि हुई थी।

प्रश्न 57.
यायावर शासकों के विरुद्ध ईरान में असन्तोष क्यों था ?
उत्तर:
यायावर शासकों के निरन्तर आक्रमणों के फलस्वरूप ईरान में अस्थिरता उत्पन्न हुई जिससे वहाँ नहरों की नियमित रूप से मरम्मत नहीं करवाई जा सकी।

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प्रश्न 58.
मंगोलों के सैनिक अभियानों में विराम आने से व्यापार की उन्नति क्यों हुई ?
उत्तर:
मंगोलों के सैनिक अभियानों में विराम आने और शान्ति स्थापित होने से यूरोप और चीन के व्यापारिक सम्बन्ध घनिष्ठ हो गए।

प्रश्न 59.
मंगोलों ने अपने साम्राज्य में यात्रियों की सुरक्षित यात्रा के लिए क्या व्यवस्था की थी ?
उत्तर:
मंगोल अपने साम्राज्य में सुरक्षित यात्रा के लिए यात्रियों को पास देते थे। इस सुविधा के लिए यात्री ‘बाज’ नाम कर देते थे।

प्रश्न 60.
उन दो मंगोल शासकों के नाम लिखिए जिन्होंने कृषकों की भलाई एवं रक्षा करने पर बल दिया था।
उत्तर:
(1) चंगेजखान का पौत्र कुबलई ख़ान
(2) चंगेजखान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई का वंशज गजेन खान।

प्रश्न 61.
गजन खान ने कृषकों के बारे में अपने मंगोल – तुर्की यायावर सेनापतियों को क्या आदेश दिया था ?
उत्तर:
गजन खान ने अपने सेनापतियों को आदेश दिया था कि वे कृषकों का अपमान न करें और उनसे अनाज तथा बीज न छीनें।

प्रश्न 62.
मंगोलों द्वारा विजित राज्यों से नागरिक प्रशासकों को अपने यहाँ भर्ती करने से क्या लाभ हुए?
उत्तर:
इन नागरिक प्रशासकों ने दूरस्थ राज्यों को संगठित करने में सहायता दी और इनके प्रभाव से मंगोलों की लूटमार की घटनाओं में कमी आई।

प्रश्न 63.
मंगोलों की सामाजिक स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
मंगोलों का समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में बंटा हुआ था। धनी परिवार विशाल होते थे तथा उनके पास अधिक पशु और चारण भूमि होती थी।

प्रश्न 64.
चंगेज खान की दो उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) चंगेज खान ने स्थापना की। मंगोलों को संगठित किया।
(2) उसने एक शानदार पारमहाद्वीपीय साम्राज्य की

प्रश्न 65.
मंगोलों पर सबसे बहुमूल्य शोध कार्य किस देश के विद्वानों ने किया ?
उत्तर:
मंगोलों पर सबसे बहुमूल्य शोध कार्य अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में रूस के विद्वानों ने किया।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यायावर साम्राज्य से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यायावर साम्राज्य – यायावर साम्राज्य की अवधारणा विरोधात्मक प्रतीत होती है। यह तर्क दिया जा सकता है कि यायावर लोग मूलतः घुमक्कड़ होते हैं तथा ये सापेक्षिक तौर पर एक अविभेदित आर्थिक जीवन और प्रारंभिक राजनीतिक संगठन के साथ परिवारों के समूहों में संगठित होते हैं। दूसरी ओर, साम्राज्य शब्द भौतिक अवस्थितियों को दर्शाता है। साम्राज्य ने जटिल सामाजिक-आर्थिक ढाँचे में स्थिरता प्रदान करने की और एक सुपरिष्कृत प्रशासनिक व्यवस्था के द्वारा एक व्यापक भू-भागीय प्रदेश में सुचारु रूप से शासन प्रदान किया गया। यहाँ यायावर साम्राज्य से आशय मध्य एशिया के मगोल यायावर लोगों द्वारा 13वीं तथा 14वीं शताब्दी में चंगेज खां के नेतृत्व में स्थापित पारद्वीपीय साम्राज्य से है।

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प्रश्न 2.
‘बर्बर’ शब्द की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
‘बर्बर’ शब्द यूनानी भाषा के ‘बारबरोस’ शब्द से उत्पन्न हुआ है। जिसका तात्पर्य गैर-यूनानी लोगों से है जिनकी भाषा यूनानियों को बेतरतीब शोर ‘बर-बर’ के समान लगती थी। यूनानी पुस्तकों में बर्बरों को बच्चों की भाँति प्रदर्शित किया गया है जो अच्छी तरह से बोलने या सोचने में असमर्थ, कायर, विलासी, क्रूर, आलसी, लालची, स्त्री- लोलुप तथा स्व-शासन का संचालन करने में असमर्थ थे। यह रूढ़िगत धारणाएँ रोमवासियों को प्राप्त हुईं। रोमवासियों ने बर्बर शब्द का प्रयोग, जर्मन जनजातियों गाल और हूण जैसे लोगों के लिए किया। चीनियों ने स्टेपी क्षेत्र के बर्बरों के लिए दूसरे शब्दों का प्रयोग किया, परन्तु उनमें से किसी भी शब्द के सकारात्मक अर्थ नहीं थे।

प्रश्न 3.
“चंगेजख़ान की राजनैतिक दूरदर्शिता मध्य- एशिया के स्टेपी- प्रदेश मंगोल जातियों का एक महासंघ मात्र बनाने से कहीं अधिक दूरगामी थी। ” स्पष्ट कीजिए। उसके वंशजों ने चंगेजखान के स्वप्न को कैसे साकार किया?
उत्तर:
चंगेजखान का विश्वास था कि उसे ईश्वर से विश्व पर शासन करने का आदेश मिला था। यद्यपि उसका अपना जीवन मंगोल जातियों पर अधिकार करने तथा साम्राज्य से लगे हुए क्षेत्र जैसे उत्तरी चीन, तूरान, अफगानिस्तान, पूर्वी ईरान, रूसी स्टेपी प्रदेशों के विरुद्ध सैनिक अभियानों का संचालन करने में व्यतीत हुआ, फिर भी उसके वंशजों ने इस क्षेत्र से आगे बढ़कर चंगेज खान के स्वप्न को पूरा किया एवं विश्व के सबसे विशाल साम्राज्य की स्थापना की। चंगेजखान की महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के उद्देश्य से उसके एक दूसरे पौत्र बाटू ने 1236-1241 की अवधि में सैनिक अभियान करते हुए रूस की भूमि को मास्को तक रौंद डाला और पोलैण्ड, हंगरी पर विजय प्राप्त करता हुआ वियना तक पहुँच गया। चीन के अधिकांश भाग, मध्य-पूर्व एशिया तथा यूरोप यह मानने लगे कि चंगेजखान की विश्व पर विजय ‘ईश्वर का क्रोध’ है और यह कयामत के दिन की शुरुआत है।

प्रश्न 4.
1220 में चंगेजखान की बुखारा – विजय का फारसी इतिहासकार जुवैनी ने क्या विवरण प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
परवर्ती तेरहवीं शताब्दी के ईरान के मंगोल शासकों के एक फारसी इतिहासकार जुनैनी ने 1220 ई. में चंगेज खाँ की बुखारा – विजय का वृत्तान्त दिया है। उसने लिखा है कि बुखारा नगर की विजय के बाद चंगेजखान उत्सव मैदान में गया और वहाँ पर एकत्रित धनी व्यापारियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि, ” अरे लोगो ! तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम लोगों ने अनेक पाप किए हैं और तुम में से जो अधिक सम्पन्न लोग हैं, उन्होंने सबसे अधिक पाप किए हैं।

यदि तुम मुझसे पूछो कि इसका मेरे पास क्या प्रमाण है, तो इसके लिए मैं कहूँगा कि मैं ईश्वर का दण्ड हूँ । यदि तुमने पाप न किए होते, तो ईश्वर ने मुझे दण्ड हेतु तुम्हारे पास न भेजा होता।” जुवैनी के अनुसार बुखारा पर अधिकार होने के बाद कोई व्यक्ति खुरासान भाग गया था। जब वहाँ के लोगों ने उस व्यक्ति से बुखारा नगर के भाग्य के विषय में पूछा तो उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “वे (मंगोल) नगर में आए, दीवारों को ध्वस्त कर दिया, जला दिया, लोगों की हत्या की, उन्हें लूटा और चल दिए।”

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प्रश्न 5.
मंगोल कौन थे?
उत्तर:
मंगोल – मंगोल विविध जनसमुदाय का एक निकाय था। ये लोग पूर्व में तातार, खितान और मंचू लोगों से और पश्चिम में तुर्की कबीलों से भाषागत समानता के कारण परस्पर सम्बद्ध थे। कुछ मंगोल पशुपालक थे और कुछ शिकारी संग्राहक थे। ये लोग यायावर लोग थे। उनका यायावरीकरण मध्य एशिया की चारण भूमि (स्टेपीज) में हुआ और शिकारी- संग्राहक लोग पशुपालकों के आवास क्षेत्र के उत्तर में साइबेरियायी वनों में रहते थे।

प्रश्न 6.
मंगोल कबीलों की मुख्य विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
मंगोल कबीलों की मुख्य विशेषताएँ –
(i) मंगोल कबीले नृजातीय और भाषायी संबंधों के कारण परस्पर. जुड़े हुए थे। परन्तु उपलब्ध आर्थिक संसाधनों के अभाव के कारण उनका समाज अनेक पितृवंशीय वंशों में विभाजित था।
(ii) मंगोल कबीलों में धनी परिवार विशाल होते थे। उनके पास अधिक संख्या में पशु और चारण भूमि होती थी। स्थानीय राजनीति में उनका दबदबा था। इसलिए उनके अनेक अनुयायी होते थे।
(iii) समय-समय पर आने वाली आपदाओं- भीषण शीत ऋतु या वर्षा का न होना आदि-के कारण इन्हें. चरागाहों की खोज में भटकाना पड़ता था। इस दौरान उनमें संघर्ष होता था और वे पशुधन प्राप्त करने हेतु लूटपाट भी करते थे।
(iv) प्रायः परिवारों के समूह आक्रमण करने और अपनी रक्षा करने हेतु अधिक शक्तिशाली और सम्पन्न कुलों से मित्रता कर लेते थे और परिसंघ बना लेते थे।
(v) मंगोल कबीलों में कुछ पशुपालक थे और कुछ शिकारी-संग्राहक। इन्होंने कृषि कार्य नहीं अपनाया था।

प्रश्न 7.
मंगोल परिसंघ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मंगोल परिसंघ – मंगोलों ने अपने परिसंघ बना लिए थे। प्रायः ये परिसंघ बहुत छोटे तथा अल्पकालिक होते थे। चंगेज खान ने मंगोल तथा तुर्की कबीलों को मिलाकर एक परिसंघ बनाया था जो पाँचवीं शताब्दी के अट्टीला द्वारा बनाए गए परिसंघ के बराबर था। अट्टीला द्वारा बनाए गए परिसंघ के विपरीत चंगेजखान की राजनीतिक व्यवस्था बहुत अधिक स्थायी रही और चंगेजखान की मृत्यु के बाद भी यह व्यवस्था बनी रही। यह परिसंघ व्यवस्था इतनी सुदृढ़ और स्थायी थी कि यह चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शस्त्रों से सुसज्जित विशाल सेनाओं का मुकाबला करने में सक्षम थी। मंगोलों ने इन क्षेत्रों में नियन्त्रण स्थापित किया तथा जटिल कृषि अर्थव्यवस्थाओं एवं नगरीय आवासों वाले स्थानबद्ध समाजों का कुशलतापूर्वक प्रशासन किया। मंगोलों के अपने सामाजिक अनुभव तथा रहन-सहन के तरीके इनसे बिल्कुल ही अलग थे।

प्रश्न 8.
मंगोलों के काल में स्टेपी क्षेत्रों में कोई नगर क्यों नहीं स्थापित हो पाया?
उत्तर:
मंगोल विविध प्रकार के लोगों का जनसमुदाय था। ये लोग मूलतः घुमक्कड़ थे। मंगोलों में कुछ लोग पशुपालक थे, तो कुछ लोग शिकारी-संग्राहक थे। इन्होंने कृषि व्यवस्था को नहीं अपनाया था। इनकी पशुपालन और शिकार – संग्राहक अर्थव्यवस्थाएँ भी घनी आबादी के भरण-पोषण में असमर्थ थीं। यही कारण था कि उनके काल में कोई भी नगर स्थापित नहीं हो सका।

प्रश्न 9.
मंगोलों के चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मंगोलों के चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध-स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों को व्यापार एवं वस्तु-विनिमय के लिए चीन के लोगों के पास जाना पड़ता था । यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभदायक थी। मंगोल खेती से प्राप्त उत्पादों तथा लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोड़े, फर और शिकार का विनिमय करते थे।

व्यापारिक गतिविधियों के कारण दोनों पक्षों में तनावपूर्ण वातावरण बना रहता था, क्योंकि दोनों पक्ष अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से एक-दूसरे के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही कर बैठते थे। व्यापार करते समय मंगोल, चीनी लोगों को व्यापार में उत्तम शर्तें रखने के लिए विवश कर देते थे। कभी-कभी ये लोग व्यापारिक सम्बन्धों की परवाह न करते हुए केवल लूटपाट करने लगते थे। मंगोल लूटपाट कर संघर्ष – क्षेत्र से दूर भाग जाते थे जिससे उन्हें बहुत कम हानि होती थी।

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प्रश्न 10.
चंगेजखान की सैनिक सफलताओं के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) मंगोलों और तुर्कों के घुड़सवारी कौशल ने चंगेजखान की सेना को गति प्रदान की थी।
(2) घोड़े पर सवार होकर मंगोल सैनिकों की तीरन्दाजी का कौशल अद्भुत था। उनकी इस तीरन्दाजी ने उनकी सैनिक गति को बहुत तेज़ कर दिया था।
(3) स्टेपी- क्षेत्र के घुड़सवार सदैव फुर्तीले रहते थे तथा बड़ी तीव्र गति से यात्रा करते थे।
(4) मंगोलों को अपने आसपास के क्षेत्रों तथा मौसम की जानकारी हो गई थी । इसने उन्हें सफल सैनिक अभियान करने की क्षमता प्रदान की क्योंकि मंगोल अपने अभियान शीत ऋतु में प्रारंभ करते थे। वे शत्रु के शिविरों और नगरों में प्रवेश करने के लिए बर्फ से जमी हुई नदियों का प्रयोग राजमार्गों की तरह करते थे।
(5) चंगेज खान को पता था कि घेराबंदी – यंत्र और नेफ्था बमबारी के अभाव में प्राचीरों से आरक्षित किलों पर विजय प्राप्त करना दुष्कर था। अतः उसने अपनी सैन्य टुकड़ियों को इनके प्रयोग में कुशल बनाया।
(6) चंगेजखान के इन्जीनियरों ने उसके शत्रुओं के विरुद्ध अभियानों में प्रयोग के लिए हल्के चल-उपस्करों का निर्माण किया। ये चल – उपस्कर शत्रुओं के लिए घातक सिद्ध हुए।

प्रश्न 11.
‘उलुस’ से क्या तात्पर्य है? उलुस का गठन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
उलुस से तात्पर्य – उलुस शब्द का मूल अर्थ निश्चित भू-भाग नहीं था। इस भू-भाग में परिवर्तन होता रहता था। चंगेजखान अभी भी निरन्तर विजय प्राप्त करने तथा साम्राज्य का अधिक से अधिक विस्तार करने के लिए प्रयत्नशील था। इस साम्राज्य की सीमाएँ अत्यन्त परिवर्तनशील थीं।
चार उलुस – चंगेजखान ने अपने नव – विजित लोगों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चार पुत्रों को सौंप दिया। इससे ‘उलुस’ का गठन हुआ। ये चार उलुस थे-
(1) चंगेजखान के सबसे बड़े पुत्र जोची को रूसी स्टेपी- प्रदेश प्राप्त हुआ। परन्तु उसकी दूरस्थ सीमा अर्थात् उलुस निर्धारित नहीं थी।
(2) चंगेजखान के दूसरे पुत्र चघताई को तूरान का स्टेपी- क्षेत्र तथा पामीर के पहाड़ का उत्तरी क्षेत्र प्राप्त हुआ था।
(3) चंगेजखान ने संकेत दिया था कि उसका तीसरा पुत्र ओगोदेई उसका उत्तराधिकारी होगा और उसे ‘महान खान’ की उपाधि प्रदान की जाएगी। ओगोदेई ने अपने राज्याभिषेक के बाद अपनी राजधानी कराकोरम में स्थापित की था।
(4) चंगेजखान के सबसे छोटे पुत्र तोलोए ने अपनी पैतृक भूमि मंगोलिया को प्राप्त किया।
चंगेजखान चाहता था कि उसके पुत्र परस्पर मिलजुल कर साम्राज्य का शासन करें। अतः उसने राजकुमारों के लिए अलग-अलग सैनिक टुकड़ियाँ नियुक्त कर दीं जो प्रत्येक उलुस में तैनात रहती थीं।

प्रश्न 12.
चंगेजखान की हरकारा पद्धति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चंगेजखान की हरकारा पद्धति – चंगेजखान ने एक फुर्तीली हरकारा पद्धति (संचार पद्धति) अपना रखी थी जिससे राज्य के दूर-दूर के स्थानों में परस्पर सम्पर्क बना रहता था। हरकारा पद्धति के सफल संचालन के लिए अपेक्षित दूरी पर सैनिक चौकियाँ स्थापित की गई थीं। इन चौकियों में स्वस्थ और शक्तिशाली घोड़े तथा घुड़सवार सन्देशवाहक नियुक्त रहते थे। इस संचार पद्धति के संचालन के लिए मंगोल यायावर अपने पशु-समूहों से घोड़े अथवा अन्य पशुओं का दसवाँ भाग देते थे। इसे ‘कुबकुर कर’ कहते थे। यायांवर लोग इस कर को अपनी इच्छा से देते थे जिससे उन्हें अनेक लाभ मिलते थे। चंगेजखान की मृत्यु के बाद इस हरकारा पद्धति में और भी सुधार किये गए। इस संचार पद्धति से महान खानों को अपने विस्तृत महाद्वीपीय साम्राज्य के सुदूर स्थानों में होने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त हो जाती थी।

प्रश्न 13.
विजित लोगों को अपने नवीन यायावर शासकों से लगाव क्यों नहीं था? इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
विजित लोगों का अपने नवीन यायावर शासकों से लगाव न होना – विजित लोगों को अपने नवीन मंगोल यायावर शासकों से कोई लगाव नहीं था। इसके निम्नलिखित कारण थे –
(1) मंगोलों ने विजित क्षेत्रों में लूटमार तथा विध्वंस की नीति अपनाई थी।
(2) तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए युद्धों में अनेक नगर नष्ट कर दिए थे।
(3) कृषि भूमि को काफी हानि हुई, फसलें नष्ट हो गईं।
(4) व्यापार चौपट हो गया तथा शिल्प उद्योगों को प्रबल आघात पहुँचा।
(5) इन युद्धों में हजारों लोग मारे गये और इससे भी अधिक लोग दास बना लिए गए।
इस प्रकार मंगोलों की लूटमार तथा विध्वंस की नीति से संभ्रान्त लोगों से लेकर कृषक वर्ग तक समस्त लोगों को भारी कष्टों का सामना करना पड़ा।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

परिणाम –
(1) मंगोलों के निरन्तर धावों तथा लूटमार की नीति से राज्य में अस्थिरता फैल गई। इस अस्थिरता से ईरान के शुष्क पठार में भूमिगत नहरों का मरम्मत का कार्य नियमित रूप से न हो सका।
(2) नहरों की मरम्मत न होने से मरुस्थल फैलने लगा जिससे बहुत बड़ा पारिस्थितिक विनाश हुआ।

प्रश्न 14.
तेरहवीं शताब्दी में मंगोल साम्राज्य में यायावरों और स्थानबद्ध समुदायों में संघर्ष कम होने से क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
तेरहवीं शताब्दी में मंगोल साम्राज्य में यायावरों और स्थानबद्ध समुदायों में संघर्ष कम होते गए। इससे कृषि को प्रोत्साहन मिला। उदाहरण के लिए, 1230 ई. के दशक में जब मंगोलों ने उत्तरी चीन के चिन वंश के विरुद्ध युद्ध में विजय प्राप्त की, तो मंगोल नेताओं के एक क्रुद्ध वर्ग ने यह विचार प्रकट किया कि समस्त कृषकों का वध कर दिया जा तथा उनकी कृषि भूमि को चरागाह में बदल दिया जाए । परन्तु 1270 के दशक के आते-आते शुंग वंश को पराजित करने के बाद दक्षिण चीन को मंगोल – साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। इस अवसर पर चंगेजखान का पौत्र कुबलई खान कृषकों और नगरों के रक्षक के रूप में प्रकट हुआ। चंगेज़खान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई के वंशज गज़नखान ने अपने परिवार के सदस्यों और अन्य सेनापतियों को आदेश दिया था कि वे कृषकों को न लूटें। एक बार अपने भाषण के दौरान उसने कहा था कि कृषकों को सताने और लूटने से राज्य में स्थायित्व और समृद्धि नहीं आती। मंगोलों के इस नवीन दृष्टिकोण से कृषि की उन्नति को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 15.
मंगोल वंश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मंगोल वंश-चंगेजखान के अनेक बच्चे थे। उनकी पटरानी बोरेत ने चार पुत्रों को जन्म दिया जिन्होंने उनके वंश को आगे बढ़ाया।
(1) उनके ज्येष्ठ पुत्र जोची के परिवार में कोई भी शूरवीर (प्रसिद्ध खान) उत्पन्न नहीं हुआ, परन्तु उस परिवार के पास अपार शक्ति थी।
(2) गोमुक की मृत्यु के बाद जोची के पुत्र बातू ने ओगोदेई के वंश को समर्थन देने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप शक्ति तोलुई परिवार के हाथों में आ गई जिससे मोन्के और कुबलई के लिए सत्ता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

प्रश्न 16.
अपने यायावर सेनापतियों को गजन खान द्वारा दिए गए भाषण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गजनखान का भाषण – गजनखान (1295-1304) चंगेजखान के सबसे छोटे पुत्र तोलुई का वंश था। उसने अपने मंगोल-तुर्की यायावर सेनापतियों के सामने निम्न भाषण दिया “मैं फारस के कृषक वर्ग के पक्ष में नहीं हूँ। यदि उन सबको लूटने का कोई उद्देश्य है, तो ऐसा करने के लिए मेरे से अधिक शक्तिशाली और कोई नहीं है। चलो हम सब मिलकर उन्हें लूटते हैं। परन्तु यदि आप निश्चित रूप से भविष्य में अपने भोजन के लिए अनाज और भोज्य सामग्री इकट्ठा करना चाहते हैं, तो मुझे आपके साथ कठोर होना पड़ेगा। आपको तर्क और बुद्धि से काम लेना सिखाना पड़ेगा। यदि आप कृषकों का अपमान करेंगे, उनसे उनके बैल और अनाज के बीज छीन लेंगे और उनकी फसलों को कुचल डालेंगे, तो आप भविष्य में क्या करेंगे? एक आज्ञाकारी कृषक वर्ग तथा एक विद्रोही कृषक वर्ग में अन्तर समझना आवश्यक है। ”

प्रश्न 17.
मंगोलों के विजित राज्यों से भर्ती किए गए नागरिक प्रशासकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चंगेजखान के शासन काल से ही मंगोलों ने विजित राज्यों से नागरिक प्रशासकों को अपने यहाँ भर्ती करना शुरू कर दिया था। इन प्रशासकों की भूमिका इस प्रकार रही –
(i) इन्होंने दूरस्थ राज्यों को संगठित करने में सहायता की।
(ii) इन नागरिक प्रशासकों के प्रभाव से खानाबदोश लोगों की स्थानबद्ध क्षेत्र में की जाने वाली लूटमार में भी कमी आई।
(iii) इनमें से कुछ प्रशासक काफी प्रभावशाली थे और अपने प्रभाव का उपयोग मंगोल खानों पर भी करते रहते थे । उदाहरण के लिए, 1230 के दौरान चीनी मन्त्री ये-लू – चुत्साई ने ओगोदेई की लूटमार की प्रवृत्ति को बदल दिया था। जुवैनी परिवार ने भी ईरान में तेरहवीं शताब्दी में और उसके अन्त में इसी प्रकार की भूमिका निभाई थी। ईरान के वजीर रशीदुद्दीन ने मंगोल – शासक गजनखान के लिए वह भाषण लिखा था जो उसने अपने मंगोल सेनापतियों के सामने दिया था । इस भाषण में गजनखान ने कृषक वर्ग को सताने की बजाय, उनकी रक्षा करने की सलाह दी थी।

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प्रश्न 18.
13वीं सदी में चंगेजखान के वंशज पृथक्-पृथक् वंश समूहों में किस प्रकार बँट गए?
उत्तर:
तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक भाइयों द्वारा पिता के धन को मिल-बाँट कर उपयोग करने की बजाय व्यक्तिगत राजवंश बनाने की भावना प्रबल हो गई। प्रत्येक राजवंश अपने ‘उलुस’ (अधिकृत क्षेत्र) का स्वामी हो गया । यह कुछ अंशों तक उत्तराधिकार के लिए संघर्ष का परिणाम था जिसमें चंगेजखान के वंशजों के बीच ‘महान’ पद के लिए तथा श्रेष्ठ चरागाही भूमि प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्द्धा होती थी। चीन और ईरान दोनों पर शासन करने के लिए आए तोलुई के वंशजों ने युआन तथा इल- खानी वंशों की स्थापना की। जोची ने ‘सुनहरा गिरोह’ का गठन किया और रूस के स्टेपी क्षेत्रों पर शासन किया। चघताई के उत्तराधिकारियों ने तूरान के स्टेपी- क्षेत्रों पर राज किया। इसे आजकल तुर्किस्तान कहा जाता है।

प्रश्न 19.
चंगेज खाँ के वंशजों का धीरे-धीरे अलग होकर पृथक्-पृथक् वंश-समूहों में बँट जाना किस बात का प्रतीक था ?
उत्तर:
चंगेज खान के वंशजों का धीरे-धीरे अलग होकर पृथक्-पृथक् वंश – समूहों में बँट जाने का मतलब था कि उनका अपने पिछले परिवार से जुड़ी स्मृतियों और परम्पराओं के सामंजस्य में परिवर्तन आना। यह सब एक कुल के सदस्यों में परस्पर होड़ के परिणामस्वरूप हुआ था। यह सब चीन और ईरान पर उनके प्रभुत्व का तथा उनके परिवार के सदस्यों द्वारा विद्वानों को अपने दरबार में संरक्षण देने का परिणाम था। अतीत से अलग होने का कारण यह था कि चंगेज खान के वंशज महान खानों की अपेक्षा अपने गुणों का प्रदर्शन करना चाहते थे।

इल-खानी ईरान में तेरहवीं शताब्दी के अन्त में फारसी इतिहासवृत्त में महान खानों द्वारा की गईं रक्तरंजित हत्याओं का विस्तृत विवरण मिलता है। इसमें मृतकों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है। चंगेज खान के वंशजों को उत्तराधिकार में जो कुछ मिला, वह महत्त्वपूर्ण था परन्तु उनके सामने एक समस्या यह थी कि एक स्थानबद्ध समाज में अपनी धाक किस प्रकार स्थापित की जाए। इस बदली हुई परिस्थिति में वे वीरता का वह चित्र प्रस्तुत नहीं कर सकते थे, जैसा चंगेजखान ने किया था।

प्रश्न 20.
‘नोयान’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
चंगेज खान एक महान योद्धा एवं कुशल सेनापति था। उसकी सेना पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी जो दस सौ हजार और लगभग दस हजार सैनिकों की इक़ाई में विभाजित थी। चंगेजखान ने इस पद्धति को समाप्त करके मंगोलों को नई सैनिक इकाइयों में बाँट दिया। इन नई सैनिक टुकड़ियों को, जो उसके चार पुत्रों के अधीन थीं और विशेष रूप से चयनित कप्तानों के अधीन कार्य करती थी, ‘नोयान’ कहा जाता था। इस नई व्यवस्था में चंगेज खाँ के अनुयायियों का वह समूह भी सम्मिलित था, जिन्होंने संकटपूर्ण परिस्थितियों में भी निष्ठापूर्वक चंगेज खाँ का साथ दिया था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगोलों के इतिहास की जानकारी के विभिन्न स्रोतों की विवेचना कीजिए।
अथवा
मंगोलों पर हुए शोध कार्यों का विवरण दीजिए।
उत्तर-
मंगोलों के इतिहास की जानकारी के स्रोत –
मंगोलों ने प्रायः अपना कोई साहित्य नहीं रचा। इसीलिए मंगोलों के बारे में इतिवृत्तों, यात्रा-वृत्तान्तों तथा नगरीय साहित्यकारों के दस्तावेजों से जानकारी मिलती है। इन लेखकों की मंगोल – यायावरों के जीवन सम्बन्धी सूचनाएँ अपर्याप्त, दोषपूर्ण और पक्षपातपूर्ण हैं। मंगोलों की साम्राज्यिक उपलब्धियों से प्रभावित होकर कुछ विद्वानों ने अपने अनुभवों के यात्रावृत्तान्त लिखे।

कुछ मंगोल शासकों के राज्याश्रय में यद्यपि इन लोगों को मंगोल रीति-रिवाजों का ज्ञान नहीं था, फिर भी इनमें से अनेक विद्वानों ने मंगोलों के विषय में सहानुभूतिपरक विवरण लिखा। कुछ ने उनकी प्रशस्तियाँ भी लिखीं। इन्होंने ऐसे विवरणों का खण्डन किया जिनमें मंगोलों को स्टेपी- क्षेत्र का लुटेरा कहा गया था। अतः मंगोलों का इतिहास हमें ऐसे तथ्य उपलब्ध कराता है जिससे यह प्रकट होता है कि मंगोल यायावरों को आदिम बर्बर के रूप में प्रस्तुत करना न्यायसंगत नहीं है।

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मंगोलों पर शोध कार्य – मंगोलों पर सबसे बहुमूल्य शोध कार्य अठारहवीं तथा उन्नीसवीं शताब्दी में रूसी विद्वानों ने उस काल में किया जब रूस के शासक मध्य एशियाई क्षेत्रों में अपनी शक्ति को सुदृढ़ कर रहे थे। ये शोधकार्य प्रायः सर्वेक्षण-टिप्पणियों के रूप में मिलते हैं जिन्हें यात्रियों, सैनिकों, व्यापारियों तथा पुराविदों ने तैयार किया था । मार्क्सवादी इतिहास-लेखन ने चंगेजखान तथा उभरते हुए मंगोल – साम्राज्य को मानव विकास की उस संक्रमण व्यवस्था के अन्तर्गत रखा जिसमें जनजातीय उत्पादन प्रणाली से सामन्ती उत्पादन प्रणाली की ओर परिवर्तन हो रहा था।

मंगोल भाषाओं और उनके समाज और संस्कृति पर वोरिस याकोवालेवित्र व्लाडिमीरस्टाव नामक विद्वान ने उच्च कोटि का शोध कार्य किया है। रूस के एक अन्य विद्वान वैसिली व्लाडिमिरोविच बारटोल्ड ने चंगेजखान और उसके वंशजों के अधीन मंगोलों का जीवन और उनकी उपलब्धियों का सकारात्मक और सहानुभूतिपरक विवरण प्रस्तुत किया । यद्यपि रूसी सरकार ने उसकी रचनाओं के प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगा दिया, परन्तु 1960 के दशक में उदारवादी ख्रुश्चेव युग के दौरान और उसके बाद ही उसकी रचनाओं को 9 खण्डों में प्रकाशित किया गया।

शोध के स्रोतों की अनेक भाषाओं में रचना – जो शोध के स्रोत विद्वानों को उपलब्ध हैं, वे अनेक भाषाओं में रचे गए हैं। इनमें सबसे निर्णायक स्रोत चीनी, मंगोली, फारसी और अरबी भाषा में उपलब्ध हैं, परन्तु महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ हमें इतालवी, लातिनी, फ्रांसीसी तथा रूसी भाषा में मिलती हैं। चंगेजखान के विषय में सबसे प्राचीन विवरण मंगकोल-उन-न्यूतोबिअन (मंगोलों के गोपनीय इतिहास), मंगोल और चीनी भाषा में मिलते हैं, परन्तु ये एक-दूसरे से अलग हैं। इसी प्रकार मार्कोपोलो द्वारा मंगोल राजदरबार का यात्रा – वृत्तान्त इतालवी तथा लातिनी भाषा में उपलब्ध है, परन्तु एक-दूसरे से मेल नहीं खाते।

प्रश्न 2.
मंगोलों और मध्य एशिया के यायावरों के चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। इसके चीन पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
मंगोलों और मध्य एशिया के यायावरों के चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्टेपी-क्षेत्र में वर्ष में थोड़े समय के लिए ही कृषि करना सम्भव था। इसलिए मंगोल यायावरों ने कृषि कार्य को नहीं अपनाया। स्टेपी-क्षेत्र में संसाधनों की कमी थी। अतः मंगोलों और मध्य एशिया के यायावरों को अपने पड़ोसी देश चीन के साथ व्यापार करना पड़ता था। यायावर कबीले चीन से कृषि उत्पाद तथा लोहे के उपकरण लाते थे तथा घोड़े, फर और स्टेपी- क्षेत्र में पकड़े गए शिकार (पशु) चीनियों को देते थे। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभदायक थी। परन्तु वाणिज्यिक गतिविधियों में उन्हें प्रायः तनाव का सामना भी करना पड़ता था। इसका कारण यह था कि दोनों पक्ष अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से एक-दूसरे के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही कर बैठते थे।

चीन पर प्रभाव – जब मंगोल कबीलों के लोग साथ मिलकर व्यापार करते थे, तो वे अपने चीनी पड़ोसियों को व्यापार में उत्तम शर्तें रखने के लिए विवश कर देते थे। कभी-कभी ये लोग व्यापारिक सम्बन्धों की परवाह न करते हुए केवल लूटपाट करने लगते थे। मंगोलों का जीवन अस्त-व्यस्त होने पर ही इन सम्बन्धों में परिवर्तन होता था । ऐसी स्थिति में चीनी लोग स्टेपी क्षेत्र में अपने प्रभाव का प्रयोग बड़े आत्मविश्वास के साथ करते थे। इन सीमावर्ती झड़पों से चीन के स्थायी समाज कमजोर पड़ने लगे। मंगोलों ने कृषि को अस्त-व्यस्त कर दिया और नगरों को खूब लूटा।

दूसरी ओर मंगोल यायावर लूटपाट कर दूर भाग जाते थे, जिससे उन्हें बहुत कम हानि होती थी। दीर्घकाल तक चीनियों को इन मंगोल यायावरों से विभिन्न शासन कालों में बहुत अधिक हानि उठानी पड़ी। अतः आठवीं शताब्दी ई. पूर्व से ही अपनी प्रजा की रक्षा के लिए चीन के शासकों ने किलेबन्दी करना शुरू कर दिया था। तीसरी शताब्दी ई. पूर्व से इन किलाबन्दियों का एकीकरण करके ‘चीन की महान दीवार’ का निर्माण किया गया। उत्तरी चीन के किसानों पर यायावरों द्वारा निरन्तर किये गए आक्रमणों और उनसे उत्पन्न आतंक एवं अस्थिरता का यह एक ठोस प्रमाण है।

प्रश्न 3.
चंगेजखान के जीवन-वृत्त तथा उसकी विजयों का वर्णन कीजिए।
अथवा
चंगेजखान की सैनिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
(1) चंगेजखान का जीवन-वृत्त – चंगेजखान का जन्म लगभग 1162 ई. में आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका प्रारम्भिक नाम तेमुजिन था। उसके पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था। उसके पिता की अल्पायु में ही हत्या कर दी गई थी। अतः उसकी माता ओलुन-इके ने तेमुजिन तथा उसके सगे और सौतेले भाइयों का पालन-पोषण बड़ी कठिनाई से किया था। 1170 के दशक में तेमुजिन का अपहरण कर उसे दास बना लिया गया और उसकी पत्नी बोरटे का भी विवाह के बाद अपहरण कर लिया गया। अतः उसे अपनी धर्म पत्नी को मुक्त कराने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी।

(2) मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना – विपत्ति के इन वर्षों में भी वह अनेक मित्र बनाने में सफल रहा। नवयुवक बोघूरचू उसका पहला मित्र था जो हमेशा एक विश्वस्त साथी के रूप में उसके साथ रहा। उसका सगा भाई जमूका भी उसका एक अन्य विश्वसनीय मित्र था।

(3) प्रतिद्वन्द्वियों का दमन करना – तेमुजिन का सगा भाई जमूका कालान्तर में उसका शत्रु बन गया। 1180 तथा 1190 के दशकों में तेमुजिन ने ओंग खान की सहायता से अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी जमूका को पराजित कर दिया। इसके बाद मुजिन ने अपने पिता के हत्यारे शक्तिशाली तातार कैराईट तथा ओंगखान के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया । 1206 ई. में उसने शक्तिशाली जेमूका तथा नेमन लोगों को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया।

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(4) कुरिलताई द्वारा चंगेजखान को मान्यता प्रदान करना – 1206 ई. में अपने शक्तिशाली शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बाद स्टेपी- क्षेत्र की राजनीति में तेमुजिन सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में प्रकट हुआ । उसकी इस प्रतिष्ठा को मंगोल कबीले के सरदारों की एक सभा ‘कुरिलताई’ में मान्यता दी गई। इस सभा में तेमुजिन को ‘चंगेजखान’, ‘समुद्री खान’ या ‘सार्वभौम शासक’ की उपाधि से विभूषित किया गया और ‘मंगोलों का महानायक’ घोषित किया गया।

(5) चंगेजखान की सैनिक उपलब्धियाँ – 1206 में कुरिलताई से मान्यता प्राप्त करने से पूर्व चंगेजखान ने मंगोलों की एक शक्तिशाली एवं अनुशासित सेना का गठन किया। उसने सर्वप्रथम चीन पर विजय प्राप्त करने का निश्चय किया। उसकी प्रमुख विजयें निम्नलिखित थीं –
(1) चीन – विजय –
(1) 1209 ई. में चंगेजखान ने सी – सिआ लोगों को पराजित किया।
(2) 1213 ई. में मंगोलों ने चीन की महान दीवार का अतिक्रमण किया।
(3) 1215 ई. में मंगोलों ने पेकिंग नगर को खूब लूटा। चंगेजखान अपने सैनिक अभियानों की सफलता से पूर्णतया सन्तुष्ट था । इसलिए उस क्षेत्र के सैनिक मामले अपने अधीनस्थ अधिकारियों की देखरेख में छोड़कर 1216 में मंगोलिया स्थित अपनी मातृभूमि में लौट आया।
(4) 1218 ई. में मंगोलों ने कराखिता जाति को पराजित कर दिया जो चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित तियेन- शान की पहाड़ियों को नियन्त्रित करती थी । अब मंगोलों का साम्राज्य अमूदरिया, तूरान और ख्वारिज्म राज्यों तक विस्तृत हो गया।
(2) अन्य विजयें – चंगेजखान ने अपने सैनिक अभियान जारी रखे। उसने 1219 -1221 ई. तक के अभियानों में बड़े-बड़े नगरों- ओट्रार, बुखारा, समरकन्द, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर तथा हेरात ने मंगोल सेनाओं के सामने आत्म-समर्पण कर दिया। जिन नगरों ने मंगोल सेनाओं का प्रतिरोध किया, उनका विध्वंस कर दिया गया । निशापुर के घेरे के दौरान जब एक मंगोल राजकुमार की हत्या कर दी गई, तो चंगेजखान ने निशापुर के लोगों का कत्ले-आम करवा दिया। चंगेजखान ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि – ” नगर का इस तरह विध्वंस किया जाए कि सम्पूर्ण नगर में हल चलाया जा सके। ऐसा संहार किया जाए कि नगर के समस्त बिल्ली और कुत्तों को भी जीवित न रहने दिया जाए।” मध्यकालीन इतिहासकारों के अनुसार निशापुर पर अधिकार करने में 17,47,000 लोगों का वध कर दिया गया था।

(3) ख्वारिज्म पर आक्रमण – चंगेजखान ने ख्वारिज्म पर भी आक्रमण किया। मंगोल सेनाएँ ख्वारिज्म के सुल्तान मोहम्मद का पीछा करती हुई अजरबैजान तक आ पहुँचीं। उन्होंने क्रीमिया में रूसी सेनाओं को पराजित कर दिया और कैस्पियन सागर को घेर लिया। सेना की एक अन्य टुकड़ी ने सुल्तान मोहम्मद के पुत्र जलालुद्दीन का अफगानिस्तान तथा सिन्ध तक पीछा किया। सिन्धु नदी के तट पर चंगेजखान ने उत्तरी भारत तथा असम मार्ग होते हुए वापस मंगोलिया लौटने का विचार किया। परन्तु भीषण गर्मी, प्राकृतिक आवास की कठिनाइयों तथा कुछ अशुभ संकेतों ने उसे अपने विचार बदलने पर विवश कर दिया। चंगेजखान की मृत्यु – चंगेजखान को अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्धों में व्यतीत करना पड़ा। अन्त में 1227 ई. में उसका देहान्त हो गया। उसकी सैनिक उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक थीं।

प्रश्न 4.
चंगेजखान के बाद मंगोल साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चंगेजखान के बाद मंगोल साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति
चंगेजखान के बाद मंगोल साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति की विवेचना निम्नानुसार है –
(1) मंगोल साम्राज्य का दो चरणों में विभाजन – चंगेजखान की मृत्यु के पश्चात् मंगोल साम्राज्य को दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है –
(i) पहला चरण – पहला चरण 1236-1242 ई. तक था जिसके दौरान रूस के स्टेपी- क्षेत्र, बुलधार, कीव, पोलैण्ड तथा हंगरी में भारी सफलता प्राप्त की गई।
(ii) दूसरा चरण – दूसरा चरण 1255-1300 ई. तक था। इसमें मंगोलों ने समस्त चीन, ईरान, इराक तथा सीरिया पर विजय प्राप्त की।

(2) नवीन राजनीतिक प्रवृत्तियों का उदय – 1230 के बाद के दशकों में मंगोलों को महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त हुईं परन्तु उनके लिए 1260 के दशक के बाद पश्चिम के सैन्य अभियानों के प्रारम्भिक आवेग को जारी रखना सम्भव नहीं रहा। यद्यपि वियना तथा उससे परे पश्चिमी यूरोप एवं मिस्र पर मंगोलों का आधिपत्य बना रहा, परन्तु उनके हंगरी के स्टेपी- क्षेत्र से पीछे हट जाने तथा मिस्र की सेनाओं के हाथों पराजित होने से नई राजनीतिक प्रवृत्तियों के उदय होने के संकेत मिलते हैं।

(3) राजनीतिक प्रवृत्ति के दो पहलू – इस प्रवृत्ति के दो पहलू थे – पहला था – मंगोल परिवार में उत्तराधिकार को लेकर आन्तरिक राजनीति थी। इसमें जोची और ओगोदेई के उत्तराधिकारी महान् खान के राज्य पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए संगठित हो गए। अब वे यूरोप में अभियान करने की अपेक्षा अपने हितों की रक्षा करना अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे।

दूसरी स्थिति तब उत्पन्न हुई जब चंगेजखान के वंश की तोलूयिद शाखा के उत्तराधिकारियों ने जोची और ओगोदेई वंशों को कमजोर कर दिया। चंगेजखान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई के वंशज मोंके के राज्याभिषेक के बाद 1250 ई. के दशक में ईरान में सैनिक अभियान किए गए। परन्तु 1260 के दशक में तोलूई के वंशज चीन में अपना प्रभाव बढ़ाने लगे। इसलिए उस समय सैनिकों और रसद – सामग्रियों को मंगोल साम्राज्य के मुख्य भागों की ओर भेज दिया गया।

परिणामस्वरूप मिस्र की सेना का सामना करने के लिए मंगोलों ने एक छोटी-सी सैनिक टुकड़ी भेज दी। इस स्थिति में मंगोलों को पराजय का सामना करना पड़ा मिस्र में मंगोलों की पराजय तथा तोलूई परिवार की चीन में निरन्तर बढ़ती हुई रुचि के कारण मंगोलों का पश्चिम की ओर विस्तार रुक गया। इसी दौरान रूस और चीन की सीमा पर जोची तथा तोलूई वंशों के आन्तरिक झगड़ों ने जोची वंशजों का ध्यान उनके सम्भावित यूरोपीय अभियानों से हटा दिया।

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(4) चीन में मंगोलों के अभियानों का जारी रहना – यद्यपि पश्चिम में मंगोलों का विस्तार रुक गया, परन्तु इसके बावजूद मंगोलों ने चीन में अपने अभियान जारी रखे । वस्तुतः उन्होंने चीन को एकीकृत किया।

प्रश्न 5.
चंगेजखान के सैनिक संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चंगेजखान का सैनिक संगठन चंगेज खान के सैनिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) विशाल विषमजातीय सेना का गठन – मंगोलों और अन्य अनेक यायावर समाजों में प्रत्येक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति के लिए शस्त्र धारण करना अनिवार्य था। आवश्यकता पड़ने पर इन्हीं लोगों से सशस्त्र सेना का गठन किया जाता था। विभिन्न मंगोल जनजातियों के एकीकरण तथा उसके विभिन्न लोगों के विरुद्ध अभियानों से चंगेजखान की सेना में नये सदस्य सम्मिलित हुए। इससे मंगोल सेना जो पहले काफी छोटी थी, अब एक विशाल विषमजातीय संगठन में बदल गई। इस सेना में मंगोलों की सत्ता को स्वेच्छा से स्वीकार करने वाले तुर्की मूल के उइगर समुदाय के लोग भी शामिल थे। इसके अतिरिक्त इस सेना में केराइट जैसे पराजित लोग भी शामिल थे जिन्हें अपनी पुरानी शत्रुता के बावजूद महासंघ में सम्मिलित कर लिया गया था।

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(2) दशमलव पद्धति पर सेना का गठन- चंगेजखान की सेना स्टेपी- क्षेत्रों की पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी जो दस, सौ, हजार और ( अनुमानित) दस हजार सैनिकों की इकाई में विभाजित थी । पुरानी पद्धति में कुल, कबीले और सैनिक दशमलव इकाइयाँ एकसाथ अस्तित्व में थीं। चंगेजखान ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। उसने प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नवीन सैनिक इकाइयों में विभक्त कर दिया।

(3) कठोर अनुशासन – चंगेजखान अनुशासन पर विशेष जोर देता था। जो सैनिक अपने अधिकारी से अनुमति लिए बिना बाहर जाने की चेष्टा करता था, उसे कठोर दण्ड दिया जाता था।

(4) सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई – सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई लगभग दस हजार सैनिकों (तुमन) की थी, जिसमें अनेक कबीलों और कुलों के सैनिक सम्मिलित थे।

(5) नवीन सैनिक टुकड़ियाँ – नवीन सैनिक टुकड़ियाँ चंगेजखान के चार पुत्रों के अधीन थीं तथा विशेष रूप से चयनित कप्तानों के अधीन कार्य करती थीं। ये सैनिक टुकड़ियाँ ‘नोयान’ कहलाती थीं । इस नई व्यवस्था में चंगेजखान के अनुयायियों का वह समूह भी शामिल था, जिन्होंने संकटपूर्ण तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निष्ठापूर्वक चंगेजखान का साथ दिया था। चंगेजखान ने सार्वजनिक रूप से अनेक ऐसे व्यक्तियों को आंडा (सगा भाई) कहकर सम्मानित किया था। आंडा से निम्न श्रेणी के अनेक स्वतन्त्र व्यक्ति थे, जिन्हें चंगेजखान ने अपने विशेष नौकर के पद पर रखा। नौकर का पद इन लोगों तथा इनके स्वामी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध का प्रतीक था। इस नए वर्गीकरण से पुराने सरदारों के अधिकार सुरक्षित नहीं रहे। दूसरी ओर एक नवीन अभिजात वर्ग उभरकर सामने आया जिसने अपनी प्रतिष्ठा मंगोलों के महानायक के साथ स्थापित कर ली।

प्रश्न 6.
‘यास’ से क्या अभिप्राय है? यास ने मंगोलों की पहचान और विशिष्टता की रक्षा में क्या योगदान दिया?
उत्तर:
‘यास’ से अभिप्राय-अपने प्रारम्भिक स्वरूप में ‘यास’ को ‘यसाक’ लिखा जाता था जिसका अर्थ या विधि, आज्ञप्ति व आदेश। यसाक का सम्बन्ध प्रशासनिक विनियमों से है, जैसे आखेट, सैन्य और डाक प्रणाली का संगठन तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक, मंगोलों ने ‘यास’ शब्द का प्रयोग अधिक सामान्य रूप में करना शुरू कर दिया। – चंगेजखान की विधि – संहिता इससे तात्पर्य था अपनी पहचान और विशिष्टता की रक्षा का उपाय – तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक मंगोल एक संगठित जन- समूह के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने एक ऐसे विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसे विश्व में पहले नहीं देखा गया था।

मंगोलों ने अत्यन्त जटिल शहरी समाजों पर शासन किया जिनके अपने- अपने इतिहास, संस्कृतियाँ और नियम थे। यद्यपि मंगोलों का अपने साम्राज्य के क्षेत्रों पर राजनैतिक प्रभुत्व रहा, फिर भी संख्या की दृष्टि से वे अल्पसंख्यक ही थे। उनके लिए अपनी पहचान और विशिष्टता की रक्षा का एकमात्र उपाय उस पवित्र नियम के अधिकार के दावे के द्वारा हो सकता था, जो उन्हें अपने पूर्वजों से प्राप्त हुआ था। वास्तव में यास मंगोल जनजाति की ही प्रथागत परम्पराओं का एक संकलन था, परन्तु उसे चंगेजखान की विधि – संहिता घोषित कर मंगोलों ने भी मूसा और सुलेमान की भाँति अपने को एक स्मृतिकार के होने का दावा किया जिसकी प्रामाणिक संहिता प्रजा पर लागू की जा सकती थी।

यास का योगदान-यास मंगोलों को समान आस्था रखने वालों के आधार पर एकजुट करने में सफल हुआ। उसने चंगेजखान तथा उनके वंशजों से मंगोलों की निकटता को स्वीकार किया। यद्यपि मंगोलों ने भी स्थान – बद्ध जीवन-प्रणाली के कुछ तत्त्वों को अपना लिया था, फिर भी यास ने उनको अपनी कबीलाई पहचान बनाए रखने तथा अपने नियमों को उन पराजित लोगों पर लागू करने का साहस प्रदान किया। यास एक बहुत ही शक्तिशाली विचारधारा थी। सम्भव है कि चंगेजखान ने इस प्रकार की विधि-संहिता की कोई योजना पहले से न बनाई हो, परन्तु यह निश्चित रूप से उसकी कल्पना – शक्ति से प्रेरित था, जिसने विश्वव्यापी मंगोल साम्राज्य की संरचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
चंगेजखान और मंगोलों का विश्व इतिहास में स्थान निर्धारित कीजिए।
अथवा
चंगेजखान और मंगोलों की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
चंगेजखान और मंगोलों का विश्व इतिहास में स्थान (चंगेजखान तथा मंगोलों की उपलब्धियाँ) – आज हमारे सामने चंगेजखान एक ऐसे व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आता है जो महान विजेता, नगरों को ध्वस्त करने वाला, लूटमार करने वाला और हजारों लोगों की हत्या करने वाला था । इसलिए तेरहवीं शताब्दी के चीन, ईरान और पूर्वी यूरोप के नगरवासी, स्टेपी- क्षेत्रों के मंगोलों को क्रोध, भय और घृणा की दृष्टि से देखते थे। इसके बावजूद चंगेजखान की उपलब्धियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

उसकी तथा मंगोलों की उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –
(1) मंगोलों के लिए चंगेज़खान अब तक का सबसे महान शासक था। उसने मंगोलों को संगठित किया, दीर्घकाल से चली आ रही कबीलाई लड़ाइयों और चीनियों द्वारा शोषण से मुक्ति दिलाई।

(2) उसने मंगोलों को शक्तिशाली, गौरवशाली और समृद्ध बनाया।

(3) उसने एक विशाल एवं शानदार पारमहाद्वीपीय मंगोल साम्राज्य की स्थापना की।

(4) उसने व्यापार के मार्गों तथा बाजारों को पुनर्स्थापित किया जिनसे वेनिस के मार्कोपोलो की भाँति दूर के यात्री आकृष्ट हुए।

(5) चंगेजखान और मंगोलों ने अपने राज्य में विविध मतों और आस्था वाले लोगों को सम्मिलित किया।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

(6) यद्यपि मंगोल शासक स्वयं भी विभिन्न धर्मों तथा आस्थाओं से सम्बन्ध रखने वाले थे अर्थात् वे शमन, बौद्ध, ईसाई और इस्लाम से सम्बन्ध रखने वाले थे, परन्तु उन्होंने सार्वजनिक नीतियों पर अपने वैयक्तिक मत थोपने का प्रयास नहीं किया।

(7) मंगोल शासकों ने सब जातियों तथा धर्मों के लोगों को अपने यहाँ प्रशासकों तथा सैनिकों के पद पर नियुक्त किया।

(8) मंगोलों का शासन बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु- धार्मिक था। यह तत्कालीन युग में एक असामान्य बात थी। मंगोल अपने बाद में आने वाली शासन-प्रणालियों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत कर सके। यह उनकी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

(9) यद्यपि मंगोल अनेक समुदायों में विभाजित थे, फिर भी वे एक परिसंघ बनाने में सफल रहे। प्रायः ये परिसंघ बहुत छोटे तथा अल्पकालिक होते थे। चंगेजखान ने मंगोल तथा तुर्की कबीलों को मिला कर एक परिसंघ बनाया था जो पाँचवीं शताब्दी के अट्टीला द्वारा बनाए गए परिसंघ के बराबर था। अट्टीला द्वारा बनाए गए परिसंघ के विपरीत चंगेज खान की राजनीतिक व्यवस्था बहुत अधिक स्थायी रही और चंगेज खाँ की मृत्यु के बाद भी यह व्यवस्था बनी रही। यह परिसंघ व्यवस्था इतनी सुदृढ़ और स्थायी थी कि यह चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शस्त्रों से सुसज्जित विशाल सेनाओं का मुकाबला करने में सक्षम थी।

(10) आज दशकों के रूसी नियन्त्रण के बाद, मंगोलिया एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। उसने चंगेजखान को एक महान राष्ट्र नायक के रूप में लिया है जिसका सार्वजनिक रूप से सम्मान किया जाता है और जिसकी उपलब्धियों का वर्णन गर्व के साथ किया जाता है।

(11) मंगोलिया के इतिहास में इस निर्णायक समय पर चंगेजखान एक बार फिर मंगोलों के लिए एक आराध्य व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है, जो महान अतीत की यादों को जागृत कर राष्ट्र की पहचान बनाने की दिशा में शक्ति प्रदान करेगा।

मंहत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ

तिथि घटना
लगभग 1167 तेमुजिन का जन्म
1160 और 1170 दासता और संघर्ष के वर्ष
के दशक 1180 और 90 सन्धि सम्बन्धों का काल
के दशक 1203-1227 विस्तार और विजय
1206 तेमुजिन को चंगेजखान यानी मंगोलों का ‘सार्वभौम शासक’ घोषित किया गया।
1227 चंगेजखान की मृत्यु।
1227-1241 चंगेजखान के पुत्र ओगोदेई का शासन-काल।
1227-1260 तीन महान खानों का शासन और मंगोल-एकता की स्थापना।
1236-1242 बाटू के अधीन रूस, हंगरी, पोलैण्ड और आस्ट्रिया पर आक्रमण। बाटू चंगेजखान के सबसे बड़े पुत्र जोची का पुत्र था।
1246-1249 ओगोदेई के पुत्र गुयूक का काल।
1251-1260 मोंके, चंगेजखान के पौत्र और तुलू के पुत्र का काल।
1253-1255 मोंके के अधीन ईरान और चीन में पुनः आक्रमण।
1257-1267 बाटू के पुत्र बर्के का राज्य-काल। सुनहरा गिरोह का नेस्टोरियन ईसाई-धर्म से इस्लाम धर्म की ओर पुनः प्रवृत्त होना। 1350 के दशक में उनका इस्लाम में निश्चयात्मक रूप से धर्मांतरण हुआ। इल-खान के विरुद्ध गोल्डन होर्ड और मिस्र देश की मैत्री का प्रारम्भ।
1258 बगदाद पर अधिकार और अब्बासी खिलाफत का अन्त। मोंके के छोटे भाई हुलेगु के अधीन ईरान में इल-खानी राज्य की स्थापना। जोचिद और इल-खान के बीच संघर्ष की शुरुआत।
1260 पेकिंग में ‘महान खान’ के रूप में कुबलई खान का राज्यारोहण। चंगेजखान के उत्तराधिकारियों में संघर्ष। मंगोल-राज्य का अनेक स्वतन्त्र भागों में अनेक वंशों में विभाजन-तोलुई, चघताई और जोची (ओगोदेई का वंश पराजित हो गया और तोलूयिद में मिल गए।)

तोलूयिद : चीन का यूआन वंश और ईरान का इल-खानी राज्य।

चघताई : उत्तरी तूरान के स्टेपी-क्षेत्र और तुर्किस्तान में रूसी स्टेपी-क्षेत्र में जोचिद वंश थे। उन्हें पर्यवेक्षक ‘गोल्डनहोर्ड’ के नाम से वर्णन करते थे।

1295-1304 ईरान में इल-खानी शासक गजन खान का शासन काल। उसके बौद्ध-धर्म से इस्लाम में धर्मान्तरण के बाद धीरे-धीरे अन्य इल-खानी सरदारों का भी धर्मान्तरण होने लगा।
1368 चीन में यू-आन राजवंश का अन्त।
1370-1405 तैमूर का शासन। बरलास तुर्क होते हुए उसने चघताई वंश के आधार पर अपने को चंगेजखान का वंशज बताया। उसने स्टेपी-साम्राज्य की स्थापना की। टोलू राज्य चघताई और जोची राज्यों के कुछ हिस्सों (चीन को छोड़कर). को सम्मिलित करते हुए उसने स्टेपी-क्षेत्र में एक साम्राज्य का गठन किया। उसने अपने को ‘गुरेगेन’, ‘शाही-दामाद’ की उपाधि से विभूषित किया और चंगेजखान के कुल की एक राजकुमारी से विवाह किया।
1495-1530 जहीरूद्दीन बाबर जो तैमूर और चंगेजखान का वंशज था, फरगना और समरकन्द के तैमूरी क्षेत्र का उत्तराधिकारी बना। वहाँ से खदेड़ा गया। काबुल पर अधिकार किया और 1526 में दिल्ली और आगरा पर अधिकार स्थापित किया। उसने भारत में मुगल-साम्राज्य की नींव रखी।
1500 जोची के कनिष्ठ पुत्र शिबान का दंशज शयबानी खान द्वारा तूरान पर आधिपत्य। तूरान में शयबानी सत्ता (शयबानियों को उज़्बेग भी कहा जाता था जिनके नाम से ही वर्तमान उज्बेकिस्तान का नाम पड़ा) को सुदृढ़ किया और इस क्षेत्र से बाबर तथा तैमूर के वंशजों को खदेड़ दिया।
1759 चीन के मंचुओं ने मंगोलिया पर विजय प्राप्त कर ली।
1921 मंगोलिया का गणराज्य।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई. Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. मुस्लिम कैलेंडर (हिजरी) की शुरुआत हुई-
(अ) 612 ई.
(ब) 642 ई.
(स) 632 ई.
(द) 622 ई.।
उत्तर:
(द) 622 ई.।

2. पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद प्रथम खलीफा बने-
(अ) हुसैन
(ब) अली
(स) अबू बकर
(द) अब्बास।
उत्तर:
(स) अबू बकर

3. उमय्यद वंश की स्थापना की थी –
(अ) अबू बकर
(ब) उथमान
(स) अली
(द) मुआविया।
उत्तर:
(द) मुआविया।

4. उमय्यद वंश की समाप्ति के बाद किस वंश की स्थापना हुई?
(अ) सुन्नी
(ब) अब्बासी
(स) फातिमी
(द) गजनवी।
उत्तर:
(ब) अब्बासी

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5. प्रथम धर्म-युद्ध लड़ा गया –
(अ) 1095 ई. में
(ब) 1195 ई. में
(स) 995 ई. में
(द) 1098-99 ई. में।
उत्तर:
(द) 1098-99 ई. में।

6. कुरान शरीफ कितने अध्यायों में विभाजित है –
(अ) 140
(ब) 120
(स) 114
(द) 214
उत्तर:
(स) 114

7. अब्द-अल-लतीफ कौन थे?
(अ) बगदाद के सम्राट
(ब) बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान
(स) प्रसिद्ध सूफी सन्त
(द) अन्तिम खलीफा।
उत्तर:
(ब) बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान

8. ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ (अल़-कानून फिल तिब) का रचयिता था-
(अ) मसूद
(ब) टालेमी
(स) अब्द-अल-लतीफ
(द) इबसिना।
उत्तर:
(द) इबसिना।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला ………………. मक्का में रहता था और उसका वहाँ के मुख्य धर्मस्थल पर नियंत्रण था।
2. जो लोग पैगम्बर मुहम्मद के धर्म-सिद्धान्त को स्वीकार कर लेते थे, उन्हें ………………. कहा जाता था।
3. जिस वर्ष पैगम्बर मुहम्मद का आगमन ……………….. में हुआ उस वर्ष से हिजरी सन् की शुरुआत हुई।
4. पैगम्बर मुहम्मद के देहान्त के बाद उनकी सत्ता ………………. को अंतरित कर दी गई।
5. ………………. ने 661 ई. में अपने आपको अगला खलीफा घोषित कर उमय्यद वंश की स्थापना की।
उत्तर:
1. कुरैश
2. मुसलमान
3. मदीना
4. उम्मा
5. मुआविया

निम्न में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये –

1. पहले खलीफा अली ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
2. पहले उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया।
3. अरब, तुर्किस्तान के मध्य एशियायी घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे।
4. गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पनितिन ( 961 ई.) द्वारा की गई थी।
5. प्रथम धर्मयुद्ध (1098-1099 ई.) में अरब सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक और जेरूसलम पर कब्जा कर लिया।
उत्तर:
1. असत्य
2 . सत्य
3 . असत्य
4 . सत्य
5 . असत्य

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निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. बेदुइन (अ) खुदा का संदेशवाहक
2. कुरैश (ब) पैगम्बर मुहम्मद का संदेशवाहक
3. रसूल (स) पैगम्बर मुहम्मद का कबीला
4. जिबरील (द) पहला उमय्यद खलीफा
5. मुआविया (य) खानाबदोश अरबी कबीले

उत्तर:

1. बेदुइन (य) खानाबदोश अरबी कबीले
2. कुरैश (स) पैगम्बर मुहम्मद का कबीला
3. रसूल (अ) खुदा का संदेशवाहक
4. जिबरील (ब) पैगम्बर मुहम्मद का संदेशवाहक
5. मुआविया (द) पहला उमय्यद खलीफा

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कबीले का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
कबीले रक्त सम्बन्धों पर संगठित समाज होते हैं।

प्रश्न 2.
इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद साहब।

प्रश्न 3.
पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का सन्देशवाहक ( रसूल ) कब घोषित किया ?
उत्तर:
612 ई. के आस-पास।

प्रश्न 4.
कुरान शब्द किससे बना है ?
उत्तर:
इकरा (पाठ करो) से।

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प्रश्न 5.
इस्लामी ब्रह्माण्ड विज्ञान में सृष्टि जीवन के तीन बौद्धिक रूपों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • दूत
  • इन्सान तथा
  • जिन्न।

प्रश्न 6.
पैगम्बर मुहम्मद के धर्म – सिद्धान्त को स्वीकार करने वाले लोग क्या कहलाये ?
उत्तर:
मुसलमान।

प्रश्न 7.
प्रथम चार खलीफाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • अबूबकर
  • उमर
  • उथमान
  • अली।

प्रश्न 8.
इस्लाम का किन दो सम्प्रदायों में विभाजन हुआ?
उत्तर:
(1) सुन्नी तथा
(2) शिया।

प्रश्न 9.
अली के बाद कौन खलीफा बना और कब बना?
उत्तर:
661 ई. में अली के बाद मुआविया खलीफा बना।

प्रश्न 10.
चट्टान के गुम्बद (डोम ऑफ रॉक) का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर:
उमय्यद वंश के शासक अब्द-अल-मलिक ने।

प्रश्न 11.
अब्बासी कौन थे ?
उत्तर:
अब्बासी पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे।

प्रश्न 12.
अब्बासी वंश की सत्ता को समाप्त कर किस वंश ने अपनी सत्ता स्थापित की और कब ?
उत्तर:
945 ई. में ईरान के बुवाही शिया वंश ने।

प्रश्न 13.
फातिमी राजवंश के लोग कौन थे ?
उत्तर:
ये लोग पैगम्बर साहब की पुत्री फातिमा के वंशज थे।

प्रश्न 14.
निशापुर को किसने अपनी राजधानी बनाया था ?
उत्तर:
सल्जुक तुर्कों ने।

प्रश्न 15.
तुगरिल बेग कौन था ?
उत्तर:
तुगरिल बेग सल्जुक तुर्कों का प्रसिद्ध नेता था।

प्रश्न 16.
धर्म – युद्ध कब हुए?
उत्तर:
धर्म – युद्ध 1095 और 1291 ई. के बीच हुए।

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प्रश्न 17.
धर्म – युद्ध किन – किनके बीच हुए ?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों और मुसलमानों के बीच

प्रश्न 18.
ईसाइयों तथा मुसलमानों में प्रथम धर्म – युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1098-99 ई. में।

प्रश्न 19.
जजिया कर क्या था ?
उत्तर:
गैर-मुसलमानों से लिया जाने वाला कर जजिया कर कहलाता था।

प्रश्न 20.
इस्लामी राज्य में जिन चार नई फसलों की खेती की गई, उनके नाम लिखो।
उत्तर:

  • कपास
  • संतरा
  • केला
  • तरबूजा।

प्रश्न 21.
इस्लामी राज्य के चार फौजी शहरों के नाम लिखिए –
उत्तर:

  • कुफा (इराक)
  • बसरा (इराक)
  • फुस्तात (मिस्र)
  • काहिरा (मिस्र)।

प्रश्न 22.
आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों में कानून की चार शाखाएँ कौनसी थीं?
उत्तर:

  • मलिकी
  • हनफी
  • शफोई
  • हनबली।

प्रश्न 23.
कुरान शरीफ कितने अध्यायों (सूराओं) में विभाजित है ? यह किस भाषा में रचित है ?
उत्तर:
(1) 114 अध्यायों (सूराओं) में
(2) अरबी भाषा में।

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प्रश्न 24.
सूफी मत के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) संसार का त्याग करना
(2) केवल खुदा पर भरोसा करना।

प्रश्न 25.
रुबाई से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रुबाई चार पंक्तियों वाला छन्द होता है।

प्रश्न 26.
‘शाहनामा’ का रचयिता कौन था ?
उत्तर:
फिरदौसी।

प्रश्न 27.
इस्लामी जगत के पाठकों की नैतिक शिक्षा और उनके मनोरंजन के लिए चार पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • कलीला व दिमना
  • अलसिकन्दर
  • सिन्दबाद
  • एक हजार एक रातें।

प्रश्न 28.
मध्यकालीन मुस्लिम समाज की तस्वीर किस ग्रन्थ में मिलती है ?
उत्तर:
एक हजार एक रातें में।

प्रश्न 29.
‘तहकीक मा लिल-हिंद’ (भारत का इतिहास) नामक पुस्तक का रचयिता कौन था ?
उत्तर:
अल्बरुनी।

प्रश्न 30.
इस्लामी जगत की मस्जिदों का बुनियादी नमूना क्या था ?
उत्तर:
मेहराब, गुम्बद, मीनार और खुला आंगन।

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प्रश्न 31.
उमय्यदों द्वारा नखलिस्तानों में बनाये गए ‘मरुस्थली महलों’ का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) फिलिस्तीन में खिरबत – उल – मफजर महल
(2) जार्डन में कुसाईर अमरा महल।

प्रश्न 32.
इस्लामी धार्मिक कला में कला के किन दो रूपों को बढ़ावा मिला ?
उत्तर:
(1) खुशनवीसी (सुन्दर लिखने की कला)
(2) अरबेस्क (ज्यामितीय तथा वनस्पतीय डिजाइन )।

प्रश्न 33.
622 ई. में हज़रत मुहम्मद साहब द्वारा मक्का से मदीना की ओर प्रस्थान से कौनसे संवत् की शुरुआत
उत्तर:
हिजरी सन् की।

प्रश्न 34.
हिजरी वर्ष सौर वर्ष से कितने दिन कम होता है ?
उत्तर:
11 दिन।

प्रश्न 35.
इस्लामी क्षेत्रों के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इतिवृत्त अथवा तवारीख और अर्द्ध – ऐतिहासिक कृतियाँ, जैसे जीवन चरित, पैगम्बर साहब के कथनों और कृत्यों के अभिलेख, कुरान की टीकाएँ।

प्रश्न 36.
अधिकतर ऐतिहासिक और अर्द्ध – ऐतिहासिक रचनाएँ किस भाषा में हैं? इनमें सर्वोत्तम रचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अधिकतर ऐतिहासिक और अर्द्ध – ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं।
(2) इनमें सर्वोत्तम रचना ‘तबरी की तारीख’ है।

प्रश्न 37.
इतिवृत्तों के अतिरिक्त किन स्रोतों से इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ?
उत्तर:
कानूनी पुस्तकों, भूगोल, यात्रा – वृत्तान्त और साहित्यिक रचनाओं से इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 38.
दस्तावेजी साक्ष्य इतिहास-लेखन के लिए सर्वाधिक बहुमूल्य क्यों हैं ?
उत्तर:
दस्तावेजी साक्ष्य इतिहास-लेखन के लिए सर्वाधिक बहुमूल्य हैं क्योंकि इनमें पूर्व चिन्तन कर घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख नहीं होता ।

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प्रश्न 39.
इग्नाज गोल्डजिहर कौन था?-
उत्तर:
इग्नाज गोल्जजिहर हंगरी का एक यहूदी था, जिसने जर्मन भाषा में इस्लामी कानून और धर्म – विज्ञान के बारे में नई राह दिखाने वाली पुस्तकें लिखीं।

प्रश्न 40.
अरबी कबीलों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे । प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 41.
बेदूइन कौन थे ?
उत्तर:
बेदूइन खानाबदोश होते थे, जो खजूर आदि खाद्य तथा अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान के सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।

प्रश्न 42.
पैगम्बर मुहम्मद कौन थे? वे किस कबीले से सम्बन्धित थे?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद सौदागर थे और मक्का में रहने वाले कुरैश कबीले से सम्बन्धित थे। वे इस्लाम धर्म के संस्थापक थे।

प्रश्न 43.
इस्लाम का मूल क्या था ?
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद ने एक ईश्वर अर्थात् अल्लाह की पूजा करने का और आस्तिकों के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार किया। यह इस्लाम का मूल था।

प्रश्न 44.
‘काबा’ से क्या अभिप्राय है? काबा के बारे में संक्षेप में बताइये।
अथवा
उत्तर:
मक्का के मुख्य धर्म-स्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे ‘काबा’ कहा जाता था। इसमें बुत रखे

प्रश्न 45.
‘काबा’ की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
‘काबा’ को एक ऐसा पवित्र स्थान (हरम) माना जाता था, जहाँ हिंसा वर्जित थी तथा सभी दर्शनार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी।

प्रश्न 46.
मक्का का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मक्का यमन और सीरिया के बीच के व्यापारी मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था। यह अरबों का एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र था।

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प्रश्न 47.
जिबरील कौन था?
उत्तर:
जिबरील एक महादूत था जो पैगम्बर मुहम्मद के लिए सन्देश लाया करता था।

प्रश्न 48.
पैगम्बर मुहम्मद की तीन शिक्षाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मदं की तीन शिक्षाएँ थीं –

  • केवल अल्लाह की ही आराधना करना
  • नैतिक सिद्धान्त जैसे खैरात बाँटना तथा
  • चोरी न करना।

प्रश्न 49.
पैगम्बर मुहम्मद ने अपना क्या उद्देश्य बताया ?
उत्तर:
आस्तिकों (उम्मा) के एक ऐसे समाज की स्थापना करना, जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के द्वारा आपस में जुड़े हुए हों।

प्रश्न 50.
पैगम्बर मुहम्मद को मक्का के लोगों के विरोध का सामना क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
लोग मक्का के देवी-देवताओं के ठुकराए जाने से नाराज थे और वे नये धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा तथा समृद्धि के लिए खतरा समझते थे।

प्रश्न 51.
‘हिजरा’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पैगम्बर मुहम्मद की मक्का से मदीना जाने की यात्रा क्या कहलाती है ?
उत्तर:
मक्का के लोगों के विरोध के कारण 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद को मक्का छोड़कर मदीना के लिए प्रस्थान करना पड़ा। इस यात्रा को ‘हिजरा’ कहते हैं।

प्रश्न 52.
मुस्लिम कैलेण्डर या हिजरी सन् की शुरुआत कब हुई ?
उत्तर:
जिस वर्ष पैगम्बर मुहम्मद मदीना पहुँचे, उसी वर्ष से मुस्लिम कैलेण्डर या हिजरी सन् की शुरुआत हुई।

प्रश्न 53.
पैगम्बर मुहम्मद ने किन तरीकों से मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की ? दो का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) पैगम्बर मुहम्मद ने मुसलमानों के समुदाय को आन्तरिक रूप से सुदृढ़ बनाया।
(2) उन्हें बाहरी खतरों से सुरक्षा प्रदान की।

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प्रश्न 54.
खिलाफत की संस्था का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
उत्तराधिकार के किसी निश्चित नियम के अभाव में इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई जिसके फलस्वरूप खिलाफत संस्था का निर्माण हुआ।

प्रश्न 55.
खिलाफत के दो प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
(1) कबीलों पर नियन्त्रण स्थापित करना, जिनसे मिलकर उम्मा का गठन हुआ था।
(2) राज्य के लिए संसाधन जुटाना।

प्रश्न 56.
प्रथम दो खलीफाओं की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) प्रथम खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
(2) द्वितीय खलीफा ने ‘उम्मा की सत्ता का विस्तार किया।

प्रश्न 57.
बाइजेन्टाइन तथा ससानी साम्राज्यों के विरुद्ध अभियानों में अरबों की सफलता के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) अरबों की उत्तम सामरिक नीति
(2) अरबों में धार्मिक जोश,
(3) विरोधियों की कमजोरियाँ।

प्रश्न 58.
इस्लाम का दो सम्प्रदायों में विभाजन क्यों हुआ ?
उत्तर:
खलीफा अली द्वारा मक्का के अभिजात वर्ग के लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े जाने के पश्चात् इस्लाम दो सम्प्रदायों में विभाजित हो गया।

प्रश्न 59.
उमय्यद वंश की स्थापना किसने की और कब की ? इस वंश ने कब तक शासन किया?
उत्तर:

  • 661 ई. में मुआविया ने उमय्यद वंश की स्थापना की।
  • उमय्यद वंश ने 750 ई. तक शासन किया।

प्रश्न 60.
अब्द-अल-मलिक ने अरब और इस्लाम दोनों पहचानों को सुदृढ़ बनाने के लिए क्या उपाय किये ?
उत्तर:
(1) अब्द अल मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।
(2) उसने इस्लामी सिक्के जारी किये जिन पर अरबी भाषा में लिखा होता था।

प्रश्न 61.
चट्टान का गुम्बद (डोम ऑफ रॉक) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह इस्लामी वास्तुकला का पहला बड़ा नमूना है। यह जेरुस्लम नगर की मुस्लिम संस्कृति का प्रतीक था।

प्रश्न 62.
‘अब्बासी क्रान्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
750 ई. में उमय्यद वंश का स्थान अब्बासियों ने ले लिया। इस घटना को ‘अब्बासी क्रान्ति’ कहते हैं।

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प्रश्न 63.
अब्बासियों ने किस प्रकार सत्ता प्राप्त की ?
उत्तर:
उन्होंने लोगों को यह वचन दिया कि पैगम्बर के परिवार का कोई मसीहा उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्त करायेगा ।

प्रश्न 64.
अब्बासियों ने उमय्यद वंश के किस अन्तिम खलीफा को पराजित कर सत्ता प्राप्त की?
उत्तर:
अब्बासियों की सेना का नेतृत्व एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने किया तथा अन्तिम उमय्यद खलीफा मारवान को ज़ब नदी पर हुई लड़ाई में पराजित किया ।

प्रश्न 65.
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) दूर के प्रान्तों पर बग़दाद का नियन्त्रण कम हो गया था।
(2) सेना और नौकरशाही में अरब – समर्थक और ईरान समर्थक गुटों में आपस में झगड़ा हो गया था।

प्रश्न 66.
बुवाही वंश के शासकों की दो उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
(1) बुवाही वंश के शासकों ने बगदाद पर अधिकार कर लिया।
(2) उन्होंने विभिन्न उपाधियाँ धारण कीं, जिनमें ‘शहंशाह’ भी शामिल थी।

प्रश्न 67.
फातिमी राजवंश के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
फातिमी राजवंश का सम्बन्ध इस्माइली सम्प्रदाय इस्माइली से था तथा ये लोग अपने आप को पैगम्बर साहब की पुत्री फातिमा का वंशज मानते थे।

प्रश्न 68.
फातिमी खिलाफत की दो उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 969 ई. में फातिमी लोगों ने मिस्र पर विजय प्राप्त की।
(2) उन्होंने शिया कवियों और विद्वानों को आश्रय प्रदान किया।

प्रश्न 69.
तुर्क लोग कौन थे ?
उत्तर:
तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे। वे कुशल घुड़सवार और वीर योद्धा थे।

प्रश्न 70.
गजनी सल्तनत की स्थापना किसने और कब की थी और उसे किसने सुदृढ़ किया?
उत्तर:
गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पतिगिन ने 961 ई. में की थी और उसे महमूद गजनवी ने सुदृढ़ किया था।

प्रश्न 71.
गजनवी वंश के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
गजनवी वंश एक सैनिक वंश था जिसके पास तुर्कों और भारतीयों जैसी व्यावसायिक सेना थी । उसकी सत्ता और शक्ति का केन्द्र खुरासान और अफगानिस्तान थे।

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प्रश्न 72.
सल्जुक तुर्क कौन थे ?
उत्तर:
सल्जुक तुर्क समानियों और काराखानियों की सेनाओं में सैनिकों के रूप में तूरान में पहुँच गए। तुगरिल तथा छागरी बेग इनके प्रसिद्ध नेता थे।

प्रश्न 73.
सल्जुक तुर्कों की दो उपलब्धियाँ बताइये।
उत्तर:
(1) 1037 में सल्जुकों ने खुरासान पर विजय प्राप्त की और
(2) निशापुर को अपनी प्रथम राजधानी बनाया। 1055 में उन्होंने बगदाद पर भी अधिकार कर लिया।

प्रश्न 74.
निशापुर किसलिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
निशापुर सल्जुक तुर्कों की राजधानी थी। यह शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण फारसी – इस्लामी केन्द्र था। यह प्रसिद्ध विद्वान उमर खय्याम का जन्म स्थान भी था।

प्रश्न 75.
तुगरिल बेग की दो उपलब्धियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) तुगरिल बेग के नेतृत्व में सल्जुक तुर्कों ने गजनी को जीत लिया और
( 2) 1055 में बगदाद पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 76.
धर्म – युद्ध से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1095 और 1291 के बीच पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने मुसलमानों से अपने पवित्र धर्म – स्थान को मुक्त कराने के लिए अनेक युद्ध लड़े। जिन्हें धर्म- युद्ध कहा जाता है

प्रश्न 77.
धर्म- युद्धों के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) मुसलमानों ने ईसाइयों के पवित्र स्थान जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया था।
(2) ईसाइयों और मुसलमानों के बीच शत्रुता विद्यमान थी ।

प्रश्न 78.
‘ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन’ क्या था ?
उत्तर:
इस आन्दोलन ने सामन्ती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को ईसाई जगत से हटा कर ईश्वर के शत्रुओं की ओर मोड़ दिया था।

प्रश्न 79.
प्रथम धर्म – युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इस युद्ध में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक तथा जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 80.
‘आउटरैमर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
प्रथम धर्म – युद्ध के दौरान ईसाइयों ने सीरिया – फिलिस्तीन के क्षेत्र में जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन्हें ‘आउटरैमर’ कहा जाता था।

प्रश्न 81.
दूसरा धर्म – युद्ध कब हुआ ? इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
जब तुर्कों ने 1144 में एडेस्सा पर अधिकार कर लिया, तो पोप ने एक दूसरे धर्म – युद्ध के लिए अपील की। परिणामस्वरूप 1145-49 में द्वितीय धर्म – युद्ध शुरू हो गये।

प्रश्न 82.
तीसरा धर्म – युद्ध कब हुआ ? इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
जब मुसलमानों ने जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया, तो 1189 ई. में तीसरे धर्म – युद्ध का सूत्रपात हुआ।

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प्रश्न 83.
धर्म – युद्धों के ईसाई – मुस्लिम सम्बन्धों पर क्या स्थायी प्रभाव हुए?
उत्तर:
(1) मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनाना शुरू कर दिया।
(2) पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारी समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।

प्रश्न 84.
फ्रैंक कौन थे ?
उत्तर:
फ्रैंक धर्म- युद्धों में विजय पाने वाले पश्चिमी देशों के नागरिक थे। ये सीरिया तथा फिलिस्तीन में बस गए

प्रश्न 85.
‘खराज’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अरबों द्वारा जोती गई भूमि पर ‘खराज’ कर लगता था जो खेती की स्थिति के अनुसार उसके आधे से लेकर उसके पाँचवें हिस्से के बराबर होता था।

प्रश्न 86.
इस्लामी राज्य में नये शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ?:
उत्तर:
इस्लामी राज्य में नये शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों को बसाना था, जो स्थानीय प्रशासन की रीढ़ थे।

प्रश्न 87.
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान क्या था ?
उत्तर:
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार सम्बन्ध के श्रेष्ठ तरीकों का विकास किया।

प्रश्न 88.
इस्लामी राज्य में साख-पत्रों तथा हुण्डियों का किस प्रकार उपयोग किया जाता था ?
उत्तर:
साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग व्यापारियों, साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अन्तरित करने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 89.
वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारी वर्ग को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारी वर्ग को हर स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई तथा इससे उनकी यात्राएँ भी अधिक सुरक्षित हो गईं।

प्रश्न 90.
‘मुज़र्बा’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘मुज़र्बा’ जैसे औपचारिक व्यापारिक प्रबन्धों में निष्क्रिय साझेदार अपनी पूँजी देश-विदेश में जाने वाले सक्रिय सौदागरों को सौंप देते थे।

प्रश्न 91.
कुरान शरीफ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मुस्लिम परम्पराओं के अनुसार कुरान शरीफ उन सन्देशों का संग्रह है, 610 और 632 के बीच की अवधि में दिए थे।

प्रश्न 92.
सूफ़ी कौन थे ? जो खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद को
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का समूह ‘सूफी’ कहलाता था। ये लोग तपश्चर्या और रहस्यवाद के द्वारा खुदा का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।

प्रश्न 93.
सूफी मत के सर्वेश्वरवाद से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक होने का विचार है। इससे अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाना चाहिए।

प्रश्न 94.
अब्द-अल-लतीफ कौन थे ?
उत्तर:
अब्द-अल-लतीफ बारहवीं शताब्दी के बगदाद के कानून और चिकित्सा के विषयों के विद्वान थे।

प्रश्न 95.
अब्द-अल-लतीफ के अनुसार एक आदर्श विद्यार्थी को किन दो शिक्षाओं को ग्रहण करना चाहिए?
उत्तर:
(1) प्रत्येक विषय के ज्ञान के लिए अध्यापकों का ही सहारा लेना चाहिए।
(2) अपने अध्यापकों का आदर करना चाहिए।

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प्रश्न 96.
इब्नसिना के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इब्नसिना (980-1037) एक प्रसिद्ध चिकित्सक तथा दार्शनिक था । उसने ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ नामक पुस्तक की रचना की थी ।

प्रश्न 97.
‘अदब’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘अदब’ का अर्थ है – साहित्यिक और सांस्कृतिक परिष्कार । अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य और गद्य शामिल थे।

प्रश्न 98.
नई फारसी कविता क्या थी? इसका जनक कौन था ?
उत्तर:
(1) नई फारसी कविता में छोटे गीत-काव्य (गज़ल) और चतुष्पदी ( रुबाई) जैसे नये रूप शामिल थे । (2) नई फारसी कविता का जनक रुदकी था ।

प्रश्न 99.
उमर खय्याम कौन था ?
उत्तर:
उमर खय्याम एक प्रसिद्ध कवि, खगोल वैज्ञानिक तथा गणितज्ञ था। उसने रुबाई को अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया था।

प्रश्न 100.
‘शाहनामा’ की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) शाहनामा में 50,000 पद हैं। यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
(2) इसमें प्रारम्भ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का चित्रण है।

प्रश्न 101.
मस्जिद के आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था, जहाँ पर एक फव्वारा अथवा जलाशय होता था और यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता था।

प्रश्न 102.
मस्जिद के बड़े कमरे की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) दीवार में एक मेहराब होती है।
(2) एक मंच होता है जहाँ से शुक्रवार को दोपहर की नमाज के समय प्रवचन दिए जाते हैं।

प्रश्न 103.
हदीथ की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर:
हदीथ में पैगम्बर मुहम्मद साहब के कथनों और कृत्यों के अभिलेख हैं।

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प्रश्न 104.
‘कलीला व दिमना’ किस भारतीय ग्रन्थ का अरबी अनुवाद है ?
उत्तर:
‘पंचतन्त्र’ का।

प्रश्न 105.
657 ई. में हुई ‘ऊँट की लड़ाई’ में अली ने किसे पराजित किया?
उत्तर:
657 ई. में हुई ‘ऊँट की लड़ाई’ में अली ने मुहम्मद की पत्नी आयशा की सेना को पराजित किया।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अरब में इस्लाम के उदय के पूर्व अरबों की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अरब में इस्लाम के उदय के पूर्व अरबों की स्थिति –
(1) इस्लाम धर्म के उदय के पूर्व अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था। उसका चुनाव कुछ हद तक पारिवारिक सम्बन्धों के आधार किया जाता था, परन्तु वह अधिकतर व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता और उदारता के आधार पर चुना जाता था। कबीले रक्त सम्बन्धों पर संगठित समाज होते थे।
(2) प्रत्येक कबीले के अपने स्वयं के देवी-देवता होते थे, जो बुतों के रूप में मस्जिदों में पूजे जाते थे
(3) बहुत से अरब कबीले खानाबदोश होते थे। ये लोग खजूर आदि खाद्य तथा अपने ऊँटों के लिए चारे कीतलाश में रेगिस्तान में सूखे – क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।
(4) कुछ कबीले शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लगे थे।

प्रश्न 2.
कबीले से क्या अभिप्राय है? कबीले की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कबीले रक्त-सम्बन्धों पर संगठित समाज होते थे। अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे। गैर- अरब व्यक्ति कबीलों के प्रमुखों के संरक्षण में सदस्य बन जाते थे। लेकिन इनके साथ अरब व्यक्तियों (मुसलमानों) द्वारा समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। गैर – रिश्तेदार वंशों का तैयार किए गए वंश – -क्रम के आधार पर इस आशा के साथ विलय होता था कि नया कबीला शक्तिशाली होगा।

प्रश्न 3.
ब्रददू या बेदूइन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बहुत से अरब कबीले खानाबदोश होते थे, जो बद्दू या बेदूइन कहलाते थे। ये लोग ऊँट पशुचारी थे। ये लोग खाद्य और ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान में सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों (नखलिस्तान) की ओर भ्रमण रहते थे। खजूर इन लोगों का प्रमुख भोजन था और इसे प्राप्त करने के लिए हरे-भरे क्षेत्रों (नखलिस्तान) की तलाश में रहते थे। कुछ लोग शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लग गए थे।

प्रश्न 4.
पैगम्बर मुहम्मद के प्रादुर्भाव के पूर्व मक्का के धार्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
काबा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘मक्का का धार्मिक महत्त्व – पैगम्बर मुहम्मद साहब के प्रादुर्भाव के पूर्व मक्का अरबों का एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र था। पैगम्बर मुहम्मद का कबीला कुरैश भी मक्का में रहता था जिसका वहाँ के मुख्य धर्म-स्थल पर नियन्त्रण था। इस धर्म-स्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे ‘काबा’ के नाम से पुकारा जाता था। इसमें बुत रखे हुए थे। मक्का के बाहर के कबीले भी काबा को पवित्र मानते थे। वे इसमें बुत रखते थे और प्रतिवर्ष इस स्थान की धार्मिक यात्रा (हज) करते थे।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

मक्का, यमन और सीरिया के बीच के व्यापारी मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था, जिससे शहर का महत्त्व और बढ़ गया था। काबा को एक ऐसा पवित्र स्थान माना जाता था, जहाँ हिंसा का निषेध था और सभी दर्शनार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी। तीर्थयात्रा और व्यापार ने खानाबदोश तथा बसे हुए कबीलों को एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने तथा अपने विश्वासों और रीति-रिवाजों को आपस में बाँटने का अवसर दिया। बहुदेववादी अरब लोगों को अल्लाह की धारणा के बारे में अस्पष्ट-सी ही जानकारी थी, परन्तु उनका मूर्तियों तथा इबादतगाहों के साथ लगाव सीधा और सुदृढ़ था।

प्रश्न 5.
जिबरील के बारे आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जिबरील – जिबरील एक महादूत थे जो पैगम्बर मुहम्मद साहब के लिए सन्देश लाया करते थे। यह माना जाता है कि जो शब्द उन्होंने सबसे पहले बोला, वह इकरा था। इकरा का अर्थ है – बयान करो। कुरान शब्द इकरा से बना है। इस्लामी ब्रह्माण्ड विज्ञान में दूतों को सृष्टि- जीवन के तीन बौद्धिक रूपों में से एक माना जाता है।

अन्य दो रूप हैं –
(1) इन्सान और
(2) जिन्न।

प्रश्न 6.
इस्लाम धर्म के सुदृढ़ीकरण और उसके प्रचार-प्रसार के लिए पैगम्बर मुहम्मद साहब के द्वारा किये गए कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस्लाम धर्म के सुदृढ़ीकरण और उसके प्रचार-प्रसार के लिए पैगम्बर मुहम्मद साहब के कार्य –
(1) मदीना में राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना – पैगम्बर मुहम्मद साहब ने मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की, जिसने उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की और इसके साथ-साथ शहर में चल रही कलह को सुलझाया।

(2) उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में बदलना – उन्होंने उम्मा को एक बड़े समुदाय के में बदल दिया गया ताकि मदीना के बहुदेववादियों तथा यहूदियों को पैगम्बर मुहम्मद के राजनीतिक नेतृत्व के अन्तर्गत लाया जा सके।

(3) कर्मकाण्डों और नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि एवं सुधार करना – पैगम्बर मुहम्मद साहब ने कर्मकाण्डों जैसे उपवास आदि और नैतिक सिद्धान्तों में वृद्धि तथा सुधार करके इस्लाम धर्म को अपने अनुयायियों के लिए सुदृढ़ बनाया।

(4) मक्का पर अधिकार – पैगम्बर मुहम्मद ने मक्का पर भी अधिकार कर लिया । इसके परिणामस्वरूप एक धार्मिक प्रचारक तथा राजनीतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद साहब की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई।

(5) अनेक कबीलों द्वारा इस्लाम धर्म ग्रहण करना – पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षाओं और उपलब्धियों से प्रभावित होकर बहुत से कबीलों ने अधिकांशतः बद्दुओं ने, इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लिया और उस समाज में शामिल हो गए।

(6) प्रशासनिक राजधानी एवं धार्मिक केन्द्र की स्थापना – शीघ्र ही पैगम्बर मुहम्मद द्वारा संरचित गठजोड़ का प्रसार सम्पूर्ण अरब देश में हो गया । मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी तथा मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया।

प्रश्न 7.
खिलाफत की संस्था का निर्माण किस प्रकार हुआ ? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
खिलाफत की संस्था का निर्माण- सन् 632 में पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था। अतः उनकी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इससे मुसलमानों में गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए। सबसे बड़ा नव-परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ। इसमें समुदाय का नेता अर्थात् अमीर अल-मोमिनिन पैगम्बर का प्रतिनिधि (खलीफा) बन गया। पहले चार खलीफाओं ( 632-661 ई.) ने पैगम्बर के साथ अपने गहरे और निकटतम सम्बन्धों के आधार पर अपनी शक्तियों तथा अधिकारों का औचित्य स्थापित किया।
खिलाफत के उद्देश्य –
(1) उम्मा के कबीलों पर नियन्त्रण स्थापित करना।
(2) राज्य के लिए संसाधन जुटाना।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

प्रश्न 8.
खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य का विस्तार –
(1) प्रथम खलीफा – पैगम्बर मुहम्मद के देहावसान के बाद बहुल से कबीले इस्लामी राज्य से टूट कर अलग हो गए। कुछ कबीलों ने स्वयं अपने समाजों की स्थापना हेतु अपने स्वयं के पैगम्बर बना लिए थे। इस स्थिति में प्रथम खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।

(2) द्वितीय खलीफा – दूसरे खलीफा उमर और उसके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेन्टाइन समुदाय और पूर्व में ‘ससानी साम्राज्य के विरुद्ध अभियान किये। तीन सफल अभियानों (637-642 ई.) में अरबों ने सीरिया, इराक ईरान और मिस्र पर अधिकार कर लिया।

(3) तृतीय खलीफा -तृतीय खलीफा, उथमान (644-656) ने अपना नियन्त्रण मध्य एशिया तक बढ़ाने के लिए और अभियान चलाए। इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के एक दशक के अन्दर अरब-इस्लामी राज्य ने नील और आक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व एवं नियन्त्रण स्थापित कर लिये।

प्रश्न 9.
विजित प्रान्तों में खलीफाओं द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढाँचे का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विजित प्रान्तों में खलीफाओं द्वारा नया प्रशासनिक ढाँचा स्थापित किया गया। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं-
(1) नये प्रशासनिक ढाँचे के अध्यक्ष गवर्नर (अमीर) तथा कबीलों के मुखिया (अशरफ) थे।
(2) केन्द्रीय राजकोष के दो प्रमुख स्रोत थे –

  • मुसलमानों द्वारा अदा किये जाने वाले कर तथा
  • सैनिक अभियानों. द्वारा मिलने वाली लूट में से प्राप्त हिस्सा।

(3) खलीफा के सैनिक रेगिस्तान के किनारों पर बसे शहरों जैसे कुफा तथा बसरा में शिविरों में रहते थे ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास स्थलों के निकट तथा खलीफा की कमान के अन्तर्गत बने रहें।

(4) शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में हिस्सा मिलता था और मासिक अदायगियाँ प्राप्त होती थीं।

(5) गैर – मुस्लिम लोगों को खराज और जजिया नामक कर देने पड़ते थे । इन करों के अदा करने पर ही उनका सम्पत्ति का तथा धार्मिक कार्यों को सम्पन्न करने का अधिकार बना रहता था।

(6) यहूदी और ईसाई मुस्लिम- – राज्य के संरक्षित लोग (धिम्मीस) घोषित किये गए और अपने सामुदायिक कार्यों को करने के लिए उन्हें काफी अधिक स्वायत्तता दी गई थी।

प्रश्न 10.
तृतीय खलीफा उथमान की हत्या के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तृतीय खलीफा उथमान की हत्या के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-
(1) अरब कबीले राजनैतिक विस्तार तथा एकीकरण का कार्य सरलता से नहीं कर पाये। इस्लामी राज्य के विस्तार से तथा संसाधनों और पदों के वितरण के सम्बन्ध में उत्पन्न हुए झगड़ों से उम्मा की एकता खतरे में पड़ गई।

(2) प्रारम्भिक इस्लामी राज्य के शासन में मक्का के कुरैश लोगों का ही बोलबाला था। तृतीय खलीफा उथमान (644- 656 ) भी एक कुरैश था। उसने सत्ता पर अधिक नियन्त्रण प्राप्त करने के लिए प्रशासन में अपने ही व्यक्ति नियुक्त कर दिए। ‘परिणामस्वरूप अन्य कबीलों में असन्तोष उत्पन्न हुआ और वे उथमान का विरोध करने लगे।

(3) तृतीय खलीफा उथमान की नीतियों से इराक तथा मिस्र में तो पहले से ही विरोध था। अब मदीना में भी विरोध उत्पन्न हो जाने से 656 ई. में उथमान की हत्या कर दी गई।

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प्रश्न 11.
चतुर्थ खलीफा अली के शासन काल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
चतुर्थ खलीफा अली के शासन काल की प्रमुख घटनाएँ – चतुर्थ खलीफा अली के शासन काल की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित थीं-
(1) 656 में अली को चतुर्थ खलीफा नियुक्त किया गया। उसने मक्का के अभिजात – तन्त्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। इसके फलस्वरूप मुसलमानों में कटुता और बढ़ गई। अली के समर्थकों और शत्रुओं ने बाद में इस्लाम के दो मुख्य सम्प्रदाय शिया और सुन्नी बना लिए।

(2) अली ने अपनी सत्ता कुफा में स्थापित कर ली। उसने पैगम्बर मुहम्मद की पत्नी आयशा के नेतृत्व में लड़ने वाली सेना को 657 ई. में ‘ऊँट की लड़ाई’ में पराजित कर दिया। लेकिन, वह उथमान (तृतीय खलीफा) के नातेदार और सीरिया के गवर्नर मुआविया के नेतृत्व वाले गुट का दमन नहीं कर सका।

(3) अली को सिफ्फिन (उत्तरी मेसोपोटामिया ) में दूसरा युद्ध लड़ना पड़ा जो सन्धि के रूप में समाप्त हुआ। इसके परिणामस्वरूप उसके अनुयायी दो गुटों में बँट गए, कुछ उसके वफादार बने रहे, जबकि अन्य लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया और वे खरजी कहलाने लगे।

(4) इसके शीघ्र बाद, कुफा में एक खरजी ने एक मस्जिद में अली की हत्या कर दी।

प्रश्न 12.
अब्द-अल-मलिक द्वारा सिक्कों में क्या सुधार किए गए ?
उत्तर:
(1) अब्द-अल-मलिक के पहले जो सिक्के चल रहे थे, वे रोमन और ईरानी अनुकृतियाँ थे जिन पर सलीब और अग्नि – वेदी के चिह्न बने होते थे और यूनानी तथा पहलवी भाषा में लेख अंकित होते थे। अब्द अल-मलिक ने इन चिह्नों को हटवा दिया और सिक्कों पर अरबी भाषा में लेख अंकित कर दिया।
(2) अब्द-अल-मलिक द्वारा सिक्कों में किए गए सुधार उसके राज्य – वित्त के पुनर्गठन से जुड़े हुए थे।
(3) अब्द-अल-मलिक की सिक्के ढालने की प्रक्रिया इतनी सफल थी कि उसके सिक्कों के प्रारूप व वजन के अनुसार ही कई शताब्दियों तक सिक्के ढाले जाते रहे।

प्रश्न 13.
उमय्यद खलीफा शब्द अल-मलिक द्वारा अपनायी गयी नीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शब्द अल-मलिक द्वारा अपनायी गयी नीतियाँ –
(1) शब्द अल-मलिक और उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया जाता रहा।
(2) शब्द अल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा के रूप में अपनाया।
(3) उसने सिक्कों से रोमन तथा ईरानी चिन्हों को हटाकर उन पर अरबी भाषा में लिखा गया। इस प्रकार उसने इस्लामी सिक्कों को जारी किया।
(4) उसने जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक बनवाकर अरब-इस्लामी पहचान को विकसित किया।

प्रश्न 14.
उमय्यदों के किन राजनैतिक उपायों से उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हुआ?
उत्तर:
उमय्यदों ने ऐसे बहुत से राजनैतिक उपाय किए जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हो गया –
(1) प्रथम उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया।
(2) उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों और प्रशासनिक संस्थाओं को अपना लिया।
(3) उसने वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा भी प्रारंभ की और प्रमुख मुसलमानों को मना लिया कि वे उसके पुत्रों को उसका वारिस स्वीकार करें।
(4) बाद वाले खलीफाओं ने भी ये नवीन परिवर्तन अपना लिए।
इन राजनैतिक परिवर्तनों के फलस्वरूप उमय्यद राज्य एक साम्राज्यीय शक्ति बन गया। वह सीधे इस्लाम पर आधारित न होकर शासन – कला और सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था तथा इस्लाम उसे वैधता प्रदान करता रहा।

प्रश्न 15.
सन् 950 से 1200 तक की अवधि में इस्लामी समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सन् 950 से 1200 तक की अवधि में इस्लामी समाज किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था अथवा किसी संस्कृति की एकल भाषा अरबी से नहीं, बल्कि सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों से एकजुट बना रहा। इस एकता को बनाए रखने के लिए राज्य और समाज को अलग माना गया। इसके अतिरिक्त इस्लामी उच्च संस्कृति की भाषा के रूप में फारसी का विकास किया गया। इस एकता के निर्माण में विद्वानों, कलाकारों, व्यापारियों आदि ने भी योगदान दिया। विद्वान, कलाकार, व्यापारी आदि इस्लामी राज्य में घूमते रहते थे । इससे लोगों में विचारों तथा तौर-तरीकों का आदान-प्रदान होता रहता था । इसके फलस्वरूप अनेक लोग इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेते थे। परिणामस्वरूप मुसलमानों की जनसंख्या आगे चलकर बहुत अधिक बढ़ गई। इस्लाम ने एक अलग धर्म तथा सांस्कृतिक प्रणाली के रूप में अपनी पहचान बना ली।

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प्रश्न 16.
दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत का उदय हुआ। तुर्क, तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे जिन्होंने धीरे-धीरे इस्लाम धर्म अपना लिया था। तुर्क कुशल घुड़सवार तथा वीर योद्धा थे। वे गुलामों और सैनिकों के रूप में अब्बासी, समानी तथा बुवाही शासकों के अधीन कार्य करने लगे। 961 ई. में अल्पतिगिन ने गजनी सल्तनत की स्थापना की। गजनी सल्तनत को मजबूत बनाने में महमूद गजनवी (998-1030 ई.) ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

गजनवी वंश एक सैनिक वंश था जिसके पास तुर्कों और भारतीयों जैसी पेशेवर सेना थी । उनकी सत्ता और शक्ति का केन्द्र खुरासान ओर अफगानिस्तान था। इसलिए उनके लिए अब्बासी प्रतिद्वन्द्वी नहीं थे, बल्कि उनकी वैधता के स्रोत थे। महमूद गजनवी जानता था कि वह एक गुलाम का पुत्र था और इस कारण वह खलीफा से सुल्तान की उपाधि प्राप्त करने के लिए लालायित था। दूसरी और खलीफा भी गजनवी जो सुन्नी था, को समर्थन देने के लिए सहमत हो गया था।

प्रश्न 17.
सलजुक तुर्कों द्वारा तुर्क – साम्राज्य के विस्तार के लिए किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सलजुक तुर्क समानियों और काराखानियों की सेनाओं में सैनिकों के रूप में तूरान में प्रविष्ट हो गए। उन्होंने बाद में दो भाइयों तुगरिल और छागरी बेग के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह का रूप धारण कर लिया। महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद सलजुक तुर्कों ने 1037 ई. में खुरासान पर अधिकार कर लिया और निशापुर को अपनी राजधानी बनाया। कुछ समय बाद उन्होंने 1055 में बगदाद को पुनः सुन्नी शासन के अधीन कर दिया।

खलीफा अल- कायम ने तुगरिल बेग को सुल्तान की उपाधि प्रदान की जिसके फलस्वरूप धार्मिक सत्ता राजनीतिक सत्ता से अलग हो गई। दोनों सलजुक भाइयों ने इकट्ठे मिलकर शासन का संचालन किया। इसके बाद उनका भतीजा अल्प अरसलन गद्दी पर बैठा। उसके शासन काल में सलजुक साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया ( आधुनिक तुर्की) तक हो गया।

प्रश्न 18.
इस्लामी राज्य में कृषि की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में कृषि की स्थिति – अरबों द्वारा नए जीते गए क्षेत्रों में बसे हुए लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। इस्लामी राज्य ने इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। जमीन के स्वामी बड़े और छोटे किसान थे। कहीं-कहीं राज्य का स्वामित्व भी था। इराक और ईरान में जमीन काफी बड़ी इकाइयों में बँटी हुई थी, जिसकी खेती कृषकों द्वारा की जाती थी। ससानी और इस्लामी कालों में भूमि के स्वामी राज्य की ओर से कर इकट्ठा करते थे।

उन प्रदेशों में, जो पशुचारण की अवस्था से आगे बढ़ कर स्थिर कृषि व्यवस्था तक पहुँच गए थे, जमीन गाँव की सांझी सम्पत्ति थी। जो भूमि- सम्पत्तियाँ इस्लामी विजय के पश्चात् स्वामियों द्वारा छोड़ दी गई थीं, उन्हें राज्य ने अपने हाथ में ले लिया था । इसे साम्राज्य के विशिष्ट वर्ग के मुसलमानों को दे दी गई थी, विशेष रूप से खलीफा के परिवार के सदस्यों को।

प्रश्न 19.
इस्लामी राज्य में कृषि भूमि के नियन्त्रण एवं भू-राजस्व व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में कृषि भूमि का सर्वोपरि नियन्त्रण राज्य के हाथों में था। राज्य अपनी अधिकांश आय भू- राजस्व से प्राप्त करता था । अरबों द्वारा जीती गई भूमि पर जो मालिकों के हाथों में रहती थी, कर (खराज ) लगता था। खराज खेती की स्थिति के अनुसार उपज के आधे हिस्से से लेकर उसके पाँचवें हिस्से के बराबर होता था । जिस भूमि पर मुसलमानों का स्वामित्व था अथवा जिसमें उनके द्वारा खेती की जाती थी, उस पर उपज के दसवें हिस्से के बराबर कर लगता था।

जब गैर-मुसलमान कम कर देने के उद्देश्य से मुसलमान बनने लगे, तो उससे राज्य की आय कम हो गई। इस पर खलीफाओं ने पहले तो धर्मान्तरण को निरुत्साहित किया और बाद में कराधान की एकसमान नीति अपनाई। दसवीं शताब्दी से राज्य ने अधिकारियों को उनका वेतन भूमियों के राजस्व से देना शुरू किया। इसे ‘इक्का’ कहा जाता था, जिसका अर्थ है- ‘राजस्व का हिस्सा’।

प्रश्न 20.
इस्लामी राज्य में खेती में समृद्धि राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ कैसे आई? इस सम्बन्ध में राज्य द्वारा क्या उपाय किये गए ?
उत्तर:
इस्लामी राज्य में खेती में समृद्धि – इस्लामी राज्य में खेती में समृद्धि राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ आई। इस सम्बन्ध में राज्य ने निम्नलिखित उपाय किये–
(1) नीलघाटी सहित अनेक क्षेत्रों में राज्य ने सिंचाई प्रणालियों का विकास किया। राज्य ने अनेक बाँधों तथा नहरों का निर्माण करवाया और अनेक कुएँ खुदवाये।
(2) अपनी भूमि पर पहली बार खेती करने वाले कृषकों को कर में छूट दी गई।
(3) खेती – योग्य भूमि का विस्तार किया गया। इन उपायों के परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हुई।
(4) कुछ नई फसलों, जैसे कपास, संतरा, केला, तरबूज, पालक और बैंगन की खेती की गई और इन फसलों का यूरोप को निर्यात किया गया।

प्रश्न 21.
“मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया।” विवेचना कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग किस प्रकार किया जाता था ?
उत्तर:
साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग – मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया। व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए साख-पत्रों ( सक्क) तथा हुण्डियों (बिल ऑफ एक्सचेंज – सुफतजा ) का उपयोग किया जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को प्रत्येक स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई और इससे उनकी यात्राएँ पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गईं। खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चारणों को इनाम देने के लिए साख-पत्रों (सक्क) का प्रयोग करते थे।

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प्रश्न 22.
उलमा कौन थे? उनके क्या कार्य थे?
उत्तर:
उलमा इस्लाम के धार्मिक विद्वान थे। वे कुरान से प्राप्त ज्ञान (इल्म) और पैगम्बर के आदर्श व्यवहार (सुन्ना) का मार्गदर्शन करते थे। मध्यकाल में उलमा अपना समय कुरान पर टीका (तफसीर) लिखने और पैगम्बर मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध (हदीथ) करने में लगाते थे। कुछ उलेमाओं ने कर्मकाण्डों (इबादत) के द्वारा ईश्वर के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने और सामाजिक कार्यों (मुआमलात) के द्वारा अन्य व्यक्तियों के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने के लिए कानून अथवा शरीआ तैयार करने का काम किया। इस्लामी कानून तैयार करने के लिए विधिवेत्ताओं ने तर्क और अनुमान (कियास) का प्रयोग भी किया। आठवीं तथा नौवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ (मजहब) बन गईं। ये शाखाएँ थीं –

  • मलिकी
  • हनफी
  • शफीई
  • हनबली।

प्रश्न 23.
‘कुरान शरीफ’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कुरान शरीफ- अरबी भाषा में रचित कुरान शरीफ 114 अध्यायों (सूराओं) में विभाजित है। मुस्लिम परम्परा के अनुसार, कुरान उन सन्देशों (रहस्योद्घाटन) का संग्रह है, जो खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद साहब को 610 तथा 632 के बीच की अवधि में पहले मक्का में और फिर मदीना में दिए थे। इन रहस्योद्घाटनों को संकलित करने का कार्य 650 में पूरा किया गया था। वर्तमान में जो सबसे प्राचीन सम्पूर्ण कुरान उपलब्ध है, वह नौवीं शताब्दी की है। कुरान शरीफ मुसलमानों का पवित्र ग्रन्थ है। कुरान शरीफ के अध्याय 31, पद 27 में कहा गया है कि “यदि संसार के सभी पेड़ कलम होते और समुद्र स्याही होते और इस तरह सात समुद्र स्याही की पूर्ति करने के लिए होते, तो भी लिखते-लिखते अल्लाह के शब्द समाप्त न होते। ”

प्रश्न 24.
प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत सामग्री के रूप में कुरान के उपयोग ने कौनसी समस्याएँ प्रस्तुत की हैं?
अथवा
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में उलमा वर्ग कुरान पर टीकाएँ लिखने के लिए क्यों प्रेरित हुआ?
उत्तर:
(1) कुरान एक धर्म-ग्रन्थ है- पहली समस्या यह है कि कुरान शरीफ एक धर्म-ग्रन्थ है। यह एक ऐसा मूल पाठ है, जिसमें धार्मिक सत्ता निहित है। प्रायः मुसलमान यह मानते हैं कि खुदा की वाणी (कलाम अल्लाह) होने के कारण कुरान को शब्दश: समझा जाना चाहिए। परन्तु बुद्धिवादी धर्म विज्ञानी अधिक उदार विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने कुरान की व्याख्या अधिक उदारता से की। 833 ई. में अब्बासी खलीफा अल – मामून मत लागू किया कि कुरान खुदा की वाणी की बजाय उसकी रचना है।

(2) कुरान प्रायः रूपकों में बात करता है – दूसरी समस्या यह है कि कुरान प्रायः रूपकों में बात करता है। ओल्ड टेस्टामेन्ट के विपरीत, यह घटनाओं का वर्णन नहीं करता, बल्कि केवल उनका उल्लेख करता है। इसलिए मध्यकाल के मुस्लिम विद्वानों को पैगम्बर मुहम्मद के वचनों के अभिलेखों (हदीथ) की सहायता से कई टीकाएँ लिखनी पड़ी थीं। कुरान को पढ़ने-समझने के लिए कई हदीथ लिखे गए।

प्रश्न 25.
सूफियों के धार्मिक सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
अथवा
‘सूफीवाद’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मध्यकालीन इस्लाम में सूफियों के धार्मिक विचार बताइये।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक समूह बन गया था, जिन्हें सूफी कहा जाता है। उनके धार्मिक सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –
(1) सूफी लोग तपश्चर्या (रहबनिया) तथा रहस्यवाद के द्वारा खुदा का अधिक गहन और अधिक वैयक्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।

(2) सूफियों की भौतिक पदार्थों तथा सांसारिक सुखों में रुचि नहीं थी। ये लोग संसार का त्याग करना चाहते थे और केवल खुदा पर भरोसा करते थे

(3) सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक होने का विचार है जिसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाना चाहिए।

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(4) सूफीवाद के अनुसार ईश्वर से मिलना, ईश्वर के साथ तीव्र प्रेम (इश्क) के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। इस इश्क का उपदेश एक महिला सन्त बसरा की राबिया द्वारा अपनी शायरी में दिया गया था। ईरानी सूफी बयाजिद बिस्तामी प्रथम व्यक्ति था जिसने अपने आप को खुदा में लीन या फना करने का उपदेश दिया था।

(5) सूफी लोग आनन्द उत्पन्न करने तथा प्रेम और भावावेश को तीव्र करने के लिए संगीत समारोहों (सभा) का उपयोग करते हैं।

(6) सूफीवाद का द्वार सबके लिए खुला है

प्रश्न 26.
इब्नसिना के साहित्यिक योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नसिना (980-1037 ई.) एक प्रसिद्ध चिकित्सक और दार्शनिक था । वह इस बात को नहीं मानता था कि कयामत के दिन व्यक्ति पुनः जीवित हो जाता है। उन्होंने ‘चिकित्सा के सिद्धान्त’ (अल-कानून फिलतिब) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी, जो दस लाख शब्दों वाली पाण्डुलिपि थी। इस पुस्तक में तत्कालीन औषधशास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख है। इसमें इब्नसिना द्वारा अस्पतालों में किये गए प्रयोगों तथा अनुभवों की जानकारी भी दी गई है।

इस पुस्तक में आहार – विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। इसमें यह बताया गया है कि जलवायु और पर्यावरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ रोगों के संक्रामक स्वरूप की जानकारी भी दी गई है । इस पुस्तक का महत्त्व इस बात से प्रकट हो जाता है कि इस पुस्तक का उपयोग यूरोप में एक पाठ्यपुस्तक के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 27.
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में भाषा और साहित्य के विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में श्रेष्ठ भाषा और सृजनात्मक कल्पना को व्यक्ति के सर्वाधिक प्रशंसनीय गुणों में शामिल किया जाता था । ये गुण किसी भी व्यक्ति की विचार – अभिव्यक्ति को अदब के स्तर तक ऊँचा उठा देते थे। इस्लाम – पूर्व काल की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना संबोधन गीत ( कसीदा ) था।

अब्बासी – काल के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए संबोधन गीत नामक विधा का विकास किया। फारसी मूल के कवियों ने अरबी कविता में नये प्राण फूँके । फारसी मूल के एक कवि अबुनुवास ने इस्लाम द्वारा वर्जित आनन्द मनाने के उद्देश्य से शराब और पुरुष – प्रेम जैसे नये विषयों पर श्रेष्ठ कविताओं की रचना की । सूफियों ने रहस्यवादी प्रेम की सुरा द्वारा उत्पन्न मस्ती का गुणगान किया।

प्रश्न 28.
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में नई फारसी के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में अरबों की ईरान- विजय के बाद नई फारसी का पर्याप्त विकास हुआ। इसमें अरबी शब्दों की संख्या बहुत अधिक थी । खुरासानी और तूरानी राज्यों की स्थापना से नई फारसी सांस्कृतिक ऊँचाइयों पर पहुँच गई। समानी राज दरबार के कवि रुदकी को नई फारसी कविता का जनक माना जाता था।

इस कविता में छोटे गीत-काव्य (गज़ल) तथा चतुष्पदी ( रुबाई) जैसे नये रूप शामिल थे। रुबाई चार पंक्तियों वाला छन्द होता है। इसका प्रयोग प्रियतम अथवा प्रेयसी के सौन्दर्य का वर्णन करने, संरक्षक की प्रशंसा करने अथवा दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए किया जाता है। उमर खय्याम ने रुबाई को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया उमर खय्याम ( 1048-1131 ई.) एक प्रसिद्ध कवि, खगोल वैज्ञानिक तथा गणितज्ञ था।

प्रश्न 29. गजनी साम्राज्य में हुए फारसी साहित्य के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
फारसी भाषा के विकास में फिरदौसी के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गजनी फारसी साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया था। गजनी के शासक विद्या – प्रेमी थे। उन्होंने अनेक विद्वानों, कवियों तथा कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया। गजनी के शासक महमूद गजनवी के दरबार में अनेक कवि और विद्वान आश्रित थे। उसके शासन काल में अनेक काव्य-संग्रहों (दीवानों) तथा महाकाव्यों (मथनवी) की रचना की गई। महमूद गजनवी के दरबार के विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध फिरदौसी थे।

फिरदौसी ने ‘शाहनामा’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी । इसे पूरा करने में 30 वर्ष लगे थे । इस ग्रन्थ में 50,000 पद हैं और यह इस्लामी साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। शाहनामा परम्पराओं और आख्यानों का संग्रह है। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय आख्यान रुस्तम का है। ‘शाहनामा’ में प्रारम्भ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का वर्णन काव्यात्मक शैली में किया गया है।

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प्रश्न 30.
बगदाद के पुस्तक-विक्रेता इब्ननदीम की पुस्तक-सूची का उल्लेख कीजिए। इन पुस्तकों की विषय-वस्तु क्या थी?
उत्तर:
बगदाद के पुस्तक विक्रेता इब्ननदीम की पुस्तक सूची (किताब अल – फिहरिस्त ) में ऐसी अनेक पुस्तकों का उल्लेख है, जो पाठकों की नैतिक शिक्षा और उनके मनोरंजन के लिए लिखी गई थीं। इनमें सबसे प्राचीन पुस्तक ‘कलीला व दिमना’ (दो गीदड़ों के नाम, जो पुस्तक के मुख्य पात्र थे ) है। यह जानवरों की कहानियों का संग्रह है।

यह पुस्तक ‘पंचतन्त्र’ के पहलवी संस्करण का अरबी अनुवाद है। सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय रचनाएँ वीरों – साहसियों की कहानियाँ हैं जैसे अल- सिकन्दर तथा सिन्दबाद और दुःखी प्रेमियों जैसे कायस की कहानियाँ। ‘एक हजार एक रातें’ कहानियों का एक अन्य संग्रह है। इन कहानियों में विभिन्न प्रकार के मनुष्यों- उदार, मूर्ख, भोले-भाले और धूर्त मनुष्यों का चित्रण किया गया है। इनको शिक्षा प्रदान करने तथा मनोरंजन के लिए सुनाया जाता है। बसरा के जहीज ने ‘किताब-अल-बुखाला’ (कंजूसों की पुस्तक) नामक पुस्तक लिखी जिसमें कंजूसों के बारे में अनेक कहानियाँ हैं।

प्रश्न 31.
इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के किन दो रूपों को बढ़ावा मिला?
उत्तर:
इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के निम्नलिखित दो रूपों को बढ़ावा मिला –
(1) खुशनवीसी
(2) अरबेस्क। इमारतों को सुसज्जित करने के लिए प्रायः धार्मिक उद्धरणों का छोटे और बड़े शिलालेखों में उपयोग किया जाता था। कुरान शरीफ की आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों की पाण्डुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सर्वोत्तम रूप में सुरक्षित रखा गया है। ‘किताब – अल-अघानी’ (गीत पुस्तक), ‘कलीला व दिमना’, ‘हरिरी की मकामात’ जैसी साहित्यिक रचनाओं को लघु चित्रों से सुसज्जित किया गया था। इसके अतिरिक्त पुस्तक का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए चित्रावली की अनेक प्रकार की तकनीकें शुरू की गई थीं। इमारतों तथा पुस्तकों के चित्रण में उद्यान की कल्पना पर आधारित पौधों और फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था।

प्रश्न 32.
कई शताब्दियों तक दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद के रूप में विख्यात अल-मुतव्वकिल मस्जिद का रेखांकन कीजिये।
उत्तर:
‘अल-मुतव्वकिल’ मस्जिद दूसरी अब्बासी राजधानी समारा में स्थित थी। इसका निर्माण 850 ई. में किया गया था। यह एक विशाल मस्जिद थी। इसकी ईंटों की बनी हुई मीनार 50 मीटर ऊँची है। मेसोपोटामिया की वास्तुकला की परम्पराओं से प्रेरित यह कई शताब्दियों तक विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद थी।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
इस्लामी राज्य के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य के इतिहास की जानकारी के स्रोत प्रमुख इस्लामी राज्य के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का विवेचन निम्नानुसार है –

1. इतिवृत्त अथवा तवारीख-इस्लामी राज्य के सन् 600 से 1200 तक के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों में इतिवृत्त अथवा तवारीख तथा अर्द्ध- ऐतिहासिक रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इनमें जीवन-चरित, के पैगम्बर मुहम्मद कथनों और कार्यों के अभिलेख (हदीथ) तथा कुरान के बारे में टीकाएँ सम्मिलित हैं। इन कृतियों का निर्माण प्रत्यक्षदर्शी वृत्तान्तों से किया गया था।

प्रत्येक सूचना की प्रामाणिकता की जाँच एक आलोचनात्मक विधि से की जाती थी जिसमें सूचना भेजने की श्रृंखला की जानकारी प्राप्त की जाती थी और वर्णन करने वाले की विश्वसनीयता का पता लगाया जाता था। मध्यकालीन मुस्लिम लेखकों ने सूचना का चयन करने तथा अपने सूचना देने वालों के अभिप्राय को समझने में अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक सतर्कता दिखाई है। उनका वर्णन अधिक सुनियोजित तथा विश्लेषणात्मक है।

2. प्रमुख ऐतिहासिक और अर्द्ध- ऐतिहासिक रचनाएँ – अधिकतर ऐतिहासिक और अर्द्ध- ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं। इनमें सर्वश्रेष्ठ रचना ‘तबरी की तारीख’ है। इसका 38 खण्डों में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। फारसी भाषा में लिखित इतिवृत्तों में ईरान और मध्य एशिया के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। ईसाई इतिवृत्तों से प्रारम्भिक इस्लाम के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।

3. दस्तावेजी साक्ष्य – दस्तावेजी साक्ष्य इस्लामी राज्य के इतिहास के निर्माण के लिए सर्वाधिक उपयोगी हैं क्योंकि इनमें पूर्व चिन्तन कर घटनाओं और व्यक्तियों का वर्णन नहीं होता है। दस्तावेजी साहित्य में सरकारी आदेश अथवा निजी पत्राचार सम्मिलित हैं। दस्तावेजी साक्ष्य यूनानी और अरबी पैपाइरस तथा गेनिजा अभिलेखों से प्राप्त होता है।

4. पुरातत्वीय और अन्य साक्ष्य – पुरातत्वीय (उजड़े महलों में की गई खुदाई), मुद्राशास्त्रीय (सिक्कों के अध्ययन) और पुरालेखीय (शिलालेखों का अध्ययन), साक्ष्य आर्थिक इतिहास, कला इतिहास, नामों और तवारीखों के प्रमाणीकरण के लिए बड़े उपयोगी हैं।

5. पाश्चात्य विद्वानों द्वारा इतिहास लेखन – सही अर्थों में इस्लाम के इतिहास ग्रन्थ लिखे जाने का कार्य उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी तथा नीदरलैण्ड के विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों द्वारा किया गया। कुछ ईसाई पादरियों ने भी इस्लाम के इतिहास से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थ लिखे। प्राच्यविद् नामक विद्वान अरबी और फारसी के ज्ञान के लिए तथा मूल ग्रन्थों के आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध है।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

इग्नाज गोल्डजिहर नामक यहूदी ने जर्मन भाषा में इस्लामी कानून और धर्म – विज्ञान के बारे में पुस्तकें लिखीं। इस्लाम के बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने अधिकतर प्राच्यविदों के तरीकों का ही अनुसरण किया है। उन्होंने नये विषयों को सम्मिलित कर इस्लाम के इतिहास के क्षेत्रों का विस्तार किया है और अर्थशास्त्र, मानव-विज्ञान और सांख्यिकी जैसे सम्बद्ध विषयों का प्रयोग करके प्राच्य अध्ययन के अनेक पहलुओं को स्पष्ट किया है।

प्रश्न 2.
पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था। वे कुरैश कबीले से सम्बन्धित थे तथा भाषा और संस्कृति की दृष्टि से अरबी थे। उन्होंने खदीजा नामक एक विधवा स्त्री से विवाह किया था। खुदा का सन्देशवाहक घोषित करना – सन् 612 के आसपास पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आप को खुदा का सन्देशवाहक घोषित किया। उन्होंने यह प्रचार किया कि अल्लाह एक है तथा केवल अल्लाह की ही इबादत ( आराधना) की जानी चाहिए। मक्का के निवासियों द्वारा पैगम्बर मुहम्मद का विरोध – पैगम्बर मुहम्मद ने धार्मिक पाखण्डों तथा अन्धविश्वासों का विरोध किया।

मक्का के व्यापारियों तथा पुजारियों को पैगम्बर मुहम्मद के विचार पसन्द नहीं आए क्योंकि वे अपने आप को व्यापार तथा धर्म के लाभों से वंचित अनुभव करते थे । अतः मक्का के धनी लोगों ने पैगम्बर मुहम्मद का विरोध करना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें देवी-देवताओं की उपेक्षा किया जाना बुरा लगा था तथा उन्होंने नये इस्लाम धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा तथा समृद्धि के लिए खतरा समझा था।

मक्का छोड़कर मदीना जाना – पैगम्बर मुहम्मद के विरोधियों ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। अतः विवश होकर 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद साहब को मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा। पैगम्बर मुहम्मद की इस यात्रा को ‘हिजरा’ कहते हैं। सन् 622 से मुस्लिम कलैण्डर अर्थात् हिजरी सन् की शुरुआत हुई। मदीना पहुँचने पर मुहम्मद साहब का भव्य स्वागत किया गया। मदीना में पैगम्बर मुहम्मद ने इस्लाम का प्रचार किया।

पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था स्थापित की, जिसने उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की। इसके साथ-साथ उन्होंने शहर में चल रही कलह को सुलझाया। अब उम्मा को एक बड़े राजनैतिक समुदाय में बदला गया। इसमें मदीना के बहुदेववादियों तथा यहूदियों को पैगम्बर मुहम्मद के नेतृत्व में लाया गया। मक्का पर विजय – पैगम्बर मुहम्मद ने मक्का परं आक्रमण किया। मक्कावासियों की पराजय हुई और उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। मक्का इस्लाम का तीर्थ-स्थान तथा धार्मिक केन्द्र बन गया।

इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार – मक्का पर अधिकार कर लेने के बाद एक धार्मिक प्रचारक और राजनैतिक नेता के रूप में पैगम्बर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई। पैगम्बर मुहम्मद ने कर्मकाण्डों जैसे उपवास आदि और नैतिक सिद्धान्तों को बढ़ाकर और उनमें सुधार करके इस्लाम धर्म को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया।

उन्होंने अब समुदाय की सदस्यता के लिए धर्मान्तरण को एकमात्र कसौटी माना। पैगम्बर मुहम्मद की उपलब्धियों से प्रभावित होकर हजारों अरब लोगों ने इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लिया। शीघ्र ही इस्लाम धर्म का प्रसार सम्पूर्ण अरब देश में हो गया। मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी और मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया। काबा से बुतों को हटा दिया गया। 632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय तक लगभग सम्पूर्ण अरब देश ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था।

प्रश्न 3.
पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिये।
उत्तर- पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएँ (इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्त) पैगम्बर मुहम्मद साहब की प्रमुख शिक्षाएँ मुसलमानों के पवित्र ग्रन्थ ‘कुरान शरीफ’ में संकलित हैं । इनका वर्णन निम्नानुसार है –
(1) एक अल्लाह की उपासना – पैगम्बर मुहम्मद के अनुसार केवल एक अल्लाह की ही उपासना की जानी चाहिए।
(2) इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्त – प्रत्येक मुसलमान को इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्तों का पालना करना चाहिए –

  • अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है और मुहम्मद साहब उसके पैगम्बर हैं।
  • उसे प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
  • उसे रमज़ान के महीने में रोज़े रखने चाहिए।
  • उसे अपनी आय का 40वाँ भाग गरीबों को दान में देना चाहिए।
  • उसे जीवन में एक बार हज के लिए मक्का की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

(3) नैतिक गुणों पर बल – मुसलमानों को झूठ नहीं बोलना चाहिए। उन्हें चोरी नहीं करनी चाहिए। उन्हें खैरात बाँटना चाहिए।
(4) सामाजिक समानता – पैगम्बर मुहम्मद साहब के अनुसार सब मुसलमान समान हैं और भाई-भाई हैं।
(5) मूर्ति – पूजा का विरोध – पैगम्बर मुहम्मद ने मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया। उन्होंने मूर्ति-पूजा को इस्लाम धर्म के विरुद्ध बतलाया।
(6) कर्मवाद तथा परलोक में विश्वास – पैगम्बर मुहम्मद साहब के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कयामत के दिन सभी प्राणी अल्लाह के सामने लाए जाते हैं, जहाँ उनके कर्मों के अनुसार न्याय होता है।
(7) आत्मा की अमरता में विश्वास – इस्लाम धर्म के अनुसार आत्मा अजर तथा अमर है। शरीर नश्वर है, परन्तु आत्मा अमर है।
(8) आस्तिकों के समाज की स्थापना – पैगम्बर मुहम्मद ने आस्तिकों (उम्मा) के ऐसे समाज की स्थापना पर बल दिया, जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के द्वारा आपस में जुड़े हों।

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प्रश्न 4.
प्रथम चार खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रथम चार खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य का विस्ता प्रथम चार खलीफाओं के शासन काल में इस्लामी राज्य के विस्तार की विवेचना निम्नानुसार है –
(1) प्रथम खलीफा – प्रथम खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया।
(2) द्वितीय खलीफा – द्वितीय खलीफा उमर ने उम्मा की सत्ता का विस्तार करने का निश्चय किया।

खलीफा जानता था कि उम्मा को व्यापार और करों से होने वाली साधारण आमदनी के बल पर नहीं चलाया जा सकता। इसके लिए बहुत बड़ी धन – राशि की जरूरत पड़ेगी। यह धन-सम्पत्ति सैनिक अभियानों के द्वारा प्राप्त की जा सकती थी। अतः खलीफा तथा उसके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेन्टाइन साम्राज्य तथा पूर्व में ससानी साम्राज्य के विरुद्ध सैनिक अभियानों की योजना बनाई। अरबों के समय इन साम्राज्यों की शक्ति धार्मिक संघर्षों तथा अभिजात वर्गों के विद्रोहों . के कारण क्षीण हो चुकी थी । इस कारण युद्धों और सन्धियों के माध्यम से इन साम्राज्यों को अपने अधीन लाना सरल हो गया था। अतः तीन सफल अभियानों (637-642 ई.) में अरबों ने सीरिया, इराक, ईरान तथा मिस्र पर अधिकार कर लिया। सामरिक नीति, धार्मिक जोश तथा विरोधियों की दुर्बलताओं के कारण अरबों की विजय हुई

(3) तृतीय खलीफा – तृतीय खलीफा उथमान ( 644-656 ई.) ने अपना नियन्त्रण मध्य एशिया तक बढ़ाने के लिए और अभियान चलाए। इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु के एक दशक के अन्दर अरब-इस्लामी राज्य ने नील तथा ऑक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व तथा नियन्त्रण स्थापित कर लिया। ये प्रदेश आज तक मुस्लिम शासन के अन्तर्गत हैं। लेकिन उसने अपने शासन में मक्का के कुरैश समुदाय के लोगों को भर दिया। इससे इराक, मिस्र तथा मदीना में विरोध उत्पन्न हो जाने के परिणामस्वरूप 656 ई. में उथमान की हत्या कर दी गई।

(4) चतुर्थ खलीफा – चतुर्थ खलीफा अली ने मक्का के अभिजात तन्त्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े, जिनसे मुसलमानों में दरार और गहरी हो गई । अली ने मुहम्मद की पत्नी आयशा की सेना को ‘ऊँट की लड़ाई’ में पराजित कर दिया परन्तु वह उथमान के नातेदार तथा सीरिया के गवर्नर मुआविया के नेतृत्व वाले गुट का दमन नहीं कर सका। अली ने सिफ्फिन में दूसरा युद्ध लड़ा, जो सन्धि के रूप में समाप्त हुआ। 661 में अली की हत्या कर दी गई।

प्रश्न 5.
उमय्यद वंश के खलीफाओं की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
अथना
अब्द-अल-मलिक तथा उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया जाता रहा ।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश के खलीफाओं की उपलब्धियाँ –
661 ई. में मुआविया ने अपने आप को खलीफा घोषित कर दिया तथा उसने उमय्यद वंश की स्थापना की, जो 750 ई. तक चलता रहा। उमय्यद वंश के खलीफाओं की उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –
(1) उमय्यदों ने ऐसे अनेक राजनीतिक उपाय किये, जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व मजबूत हो गया।

(2) प्रथम उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया और फिर बाइजेन्टाइन साम्राज्य की राजदरबारी प्रथाओं और प्रशासनिक संस्थाओं को अपना लिया।

(3) मुआविया ने वंशगत उत्तराधिकार की परम्परा भी शुरू की और प्रमुख मुसलमानों को इस बात पर राजी कर ‘लिया कि वे उसके पुत्र को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार करें। उसके पश्चात् आने वाले खलीफाओं ने भी इस नीति का अनुसरण किया, जिसके परिणामस्वरूप उमय्यद वंश के खलीफा 90 वर्ष तक और अब्बासी खलीफा दो शताब्दियों तक सत्ता में बने रहे।

(4) उमय्यद – राज्य अब एक साम्राज्यिक शक्ति बन चुका था। अब यह राज्य सीधे इस्लाम पर आधारित नहीं था। अब यह शासन – कला तथा सीरियाई सैनिकों की वफादारी के बल पर चल रहा था।

(5) प्रशासन में ईसाई सलाहकार तथा जरतुश्त लिपिक और अधिकारी भी सम्मिलित थें। इसके बावजूद इस्लाम उमय्यद शासन को वैधता प्रदान करता रहा। उमय्यद सदैव एकता के लिए प्रयत्नशील रहे तथा विद्रोहों का इस्लाम के नाम पर दमन करते रहे।

(6) उमय्यदों ने अपनी अरबी सामाजिक पहचान बनाए रखी। अब्द-अल-मलिक और उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर दृढ़तापूर्वक बल दिया जाता रहा।

यथा –
(i) अब्द-अल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।

(ii) अब्द-अल-मलिक ने इस्लामी सिक्के जारी किये। इस्लामी राज्य में जो सोने के दीनार तथा चाँदी के दिरहम चल रहे थे, वे रोमन तथा ईरान सिक्कों की नकल थे। इन सिक्कों पर सलीब और अग्नि-वेदी के चिन्ह बने होते थे। अब्द-अल-मलिक ने इन चिन्हों को हटवा दिया और सिक्कों पर अरबी भाषा में लिखा गया।

(iii) अब्द-अल-मलिक ने जेरुस्लम में डोम ऑफ रॉक का निर्माण करवाकर अरब-इस्लामी पहचान के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ‘डोम ऑफ रॉक’ इस्लामी वास्तुकला का पहला उत्कृष्ट नमूना है। जेरुस्लम नगर की मुस्लिम संस्कृति के प्रतीक के रूप में इस इमारत का निर्माण किया गया। पैगम्बर मुहम्मद साहब की स्वर्ग की ओर की रात्रि- (मिराज) से यह इमारत जुड़ गई। यह इसका रहस्यमय महत्त्व है।

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प्रश्न 6.
अब्बासी क्रान्ति के लिए कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं?
अथवा
अब्बासी क्रान्ति के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अब्बासी क्रान्ति – उमय्यद वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केन्द्रीकरण के लिए भारी मूल्य चुकाना पड़ा। ‘दवा’ नामक एक सुसंगठित आन्दोलन ने उमय्यद वंश की सत्ता को नष्ट कर दिया। 750 में उमय्यद वंश के स्थान पर अब्बासियों की सत्ता स्थापित हुई। अब्बासियों ने उमय्यद – शासन को दुष्ट बताया और यह दावा किया कि वे पैगम्बर मुहम्मद साहब के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे।

अब्बासी क्रान्ति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ अब्बासी क्रान्ति के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –
(1) खुरासान के अरब नागरिकों में असन्तोष – अब्बासियों का विद्रोह पूर्वी ईरान में स्थित खुरासान में हुआ। खुरासान में अरब – ईरानियों की मिली-जुली आबादी थी। खुरासान में अरब सैनिक अधिकांशतः इराक से आए थे। ये लोग सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे। खुरासान के अरब नागरिक उमय्यद शासन से इसलिए घृणा करते थे कि उमय्यद शासकों ने करों में छूट देने तथा विशेषाधिकार देने के जो वचन दिए थे, वे पूरे नहीं किये थे।

(2) ईरानी मुसलमानों में असन्तोष-खुरासान के ईरानी मुसलमानों को अपनी जातीय चेतना से ग्रस्त अरबों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था। अतः वे भी उमय्यदों से नाराज थे तथा उनकी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किसी भी अभियान में सम्मिलित होने के इच्छुक थे।

अब्बासी क्रान्ति की सफलता – अब्बासी पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे। अब्बासियों ने विभिन्न समूहों का समर्थन प्राप्त कर लिया। उन्होंने लोगों को यह आश्वासन दिया कि पैगम्बर मुहम्मद के परिवार का कोई मसीहा (महदी) उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्ति दिलाएगा। इस प्रकार उन्होंने शासन-सत्ता प्राप्त करने के अपने प्रयत्न को वैध ठहराया। अब्बासियों की सेना का नेतृत्व एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने किया। उसने अन्तिम उमय्यदं खलीफा मारवान को जब नदी पर हुई लड़ाई में पराजित कर दिया। इस प्रकार उमय्यद वंश के स्थान पर अब्बासी वंश की सत्ता स्थापित हुई। इस घटना को ‘अब्बासी क्रान्ति’ कहते हैं।

‘अब्बासी क्रान्ति’ का महत्त्व –
(1) अब्बासी क्रान्ति से केवल वंश का ही परिवर्तन नहीं हुआ, बल्कि इस्लाम के राजनीतिक ढाँचे और उसकी संस्कृति में भी परिवर्तन आए।
(2) अब्बासी क्रान्ति के अन्तर्गत अरबों के प्रभाव में कमी आई, जबकि ईरानी संस्कृति के महत्त्व में वृद्धि हुई।
(3) अब्बासियों ने अपनी राजधानी बगदाद में स्थापित की।
(4) अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अब्बासी शासन में सेना और नौकरशाही का पुनर्गठन गैर- कबीलाई आधार पर किया गया।
(5) अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति और कार्यों को सुदृढ़ बनाया और इस्लामी संस्थाओं तथा विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
(6) अब्बासियों ने उमय्यदों की उत्कृष्ट शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परम्पराओं को बनाए रखा।

प्रश्न 7.
खिलाफत के विघटन पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
खिलाफत का विघटन – अब्बासी राज्य नौवीं शताब्दी से कमजोर होता गया और अब्बासियों की सत्ता सीमित होती गई।
अब्बासी राज्य की कमजोरी के कारण – अब्बासी राज्य की कमजोरी के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) अब्बासी राज्य की कमजोरी का एक कारण यह था कि दूर के प्रान्तों पर उनका नियन्त्रण कम हो गया था।
(2) सेना और नौकरशाही में अरब – समर्थक और ईरान समर्थक गुटों में आपस में झगड़ा हो गया था।
(3) सन् 810 में खलीफा हारुन- अल रशीद के पुत्रों, अमीन और मामुन के समर्थकों के बीच गृह-युद्ध छिड़ गया जिससे गुटबन्दी और अधिक गहरी हो गई और तुर्की गुलाम अधिकारियों का एक नया शक्ति – गुट बन गया। शियाओं और सुन्नियों में सत्ता प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई थी।
(4) अनेक नए छोटे राजवंश स्थापित हो गए। खुरासान और ट्रांसोक्सियाना अर्थात् तूरान अथवा ऑक्सस के पार वाले क्षेत्रों में ताहिरी तथा समानी वंश और मिस्र तथा सीरिया में तुलुनी वंश स्थापित हुए। अब्बासियों की सत्ता शीघ्र ही मध्य इराक तथा पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई।
(5) सन् 945 में ईरान के कैस्पियन क्षेत्र में बुवाही नामक शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अब्बासियों की सत्ता समाप्त हो गई। बुवाही शासकों ने अनेक उपाधियाँ धारण कीं जिनमें ‘शहंशाह’ (राजाओं का राजा) नामक उपाधि भी शामिल थी। परन्तु उन्होंने ‘खलीफा’ की पदवी धारण नहीं की।

उन्होंने अब्बासी खलीफा को अपनी सुन्नी प्रजा के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा। इस प्रकार खिलाफत का विघटन हो गया। फातिमी खिलाफत की स्थापना -बुवाही शासकों द्वारा खिलाफत को समाप्त न करने का निर्णय चतुराईपूर्ण था, क्योंकि फातिमी नामक एक अन्य शिया राजवंश इस्लामी जगत पर शासन करना चाहता था।

फातिमी का सम्बन्ध शिया सम्प्रदाय के एक उप-सम्प्रदाय इस्माइली से था और वे अपने आप को पैगम्बर की पुत्री फातिमा का वंशज मानते थे। इस आधार पर वे दावा करते थे कि वे इस्लाम के एकमात्र न्याय संगत शासक हैं। उन्होंने 969 ई. में मिस्र पर विजय प्राप्त की और फातिमी खिलाफत की स्थापना की। उन्होंने मिस्र की पुरानी राजधानी फुस्तात के स्थान पर काहिरा को राजधानी बनाया। दोनों प्रतिस्पर्द्धा राजवंशों ने शिया प्रशासकों, कवियों और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

प्रश्न 8.
धर्म-युद्ध से क्या अभिप्राय है? धर्म – युद्धों के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- धर्म – युद्ध – 1095 से 1291 ई. के बीच यूरोपीय ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच अनेक युद्ध लड़े गए। इन युद्धों को ‘ धर्म – युद्ध’ के नाम से पुकारा जाता है।
धर्म- युद्धों के कारण
धर्म- युद्धों के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) मुसलमानों द्वारा जेरुस्लम पर अधिकार करना – 638 में अरबों ने जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया था। जेरुस्लम ईसाइयों का पवित्र स्थान था। ईसाई लोग जेरुस्लम को ईसा के क्रूसारोपण तथा पुनरुज्जीवन के स्थान के रूप में हमेशा याद करते थे। अतः ईसाई लोग जेरुस्लम पर पुनः अधिकार करने के लिए लालायित थे।

(2) मुसलमानों के प्रति शत्रुता – ग्यारहवीं शताब्दी में ईसाइयों की मुसलमानों के प्रति शत्रुता और अधिक स्पष्ट हो गई। इस समय तक नार्मनों, हंगरीवासियों तथा अनेक स्लाव लोगों को ईसाई बना लिया गया था। अब केवल मुसलमान मुख्य शत्रु रह गए थे।

(3) पश्चिमी यूरोप के सामाजिक और आर्थिक संगठनों में परिवर्तन – ग्यारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के सामाजिक और आर्थिक संगठनों में भी परिवर्तन हो गया था जिससे ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच शत्रुता और अधिक बढ़ गई।

(4) ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन – पादरी और योद्धा वर्ग के लोग राजनीतिक स्थिरता तथा आर्थिक विकास के लिए प्रयत्नशील थे। ‘ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन’ ने सामन्ती राज्यों के बीच सैनिक मुठभेड़ की सम्भावनाओं और लूटमार की प्रवृत्तियों को समाप्त कर दिया था। अब ईश्वरीय शान्ति आन्दोलन ने सामन्ती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को ईसाई – जगत से हटाकर ईश्वर के शत्रुओं अर्थात् मुसलमानों की ओर मोड़ दिया था। इसके फलस्वरूप ईसाइयों और मुसलमानों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। ईसाइयों के लिए यह संघर्ष न केवल उचित, बल्कि प्रशंसनीय समझा जाने लगा।

(5) सलजुक-साम्राज्य का विघटन – 1092 ई. में बगदाद के सलजुक सुल्तान मलिक शाह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य का विघटन हो गया। इसके परिणामस्वरूप बाइजेन्टाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम को एशिया माइनर तथा उत्तरी सीरिया पर पुनः आधिपत्य स्थापित करने का अवसर मिल गया।

पोप अबर्न द्वितीय भी ईसाई धर्म के पुनरुत्थान के लिए लालायित था। अतः 1095 में पोप अर्बन द्वितीय ने बाइजेन्टाइन-सम्राट के साथ मिलकर ‘पवित्र भूमि’ (होली लैण्ड) को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध के लिए आह्वान किया। उपर्युक्त कारणों में 1095 तथा 1291 के बीच पश्चिमी यूरोपीय ईसाइयों तथा मुसलमानों में अनेक युद्ध लड़े गए जिन्हें ‘धर्म-युद्ध’ के नाम से पुकारा जाता है।

प्रश्न 9.
धर्म – युद्धों की घटनाओं का वर्णन कीजिए। इन धर्म- युद्धों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
धर्म – युद्धों की घटनाएँ 1095 से 1291 ई. के बीच ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच अनेक धर्म – युद्ध लड़े गए। इनका वर्णन निम्नानुसार –
(1) प्रथम धर्म – युद्ध (1098-99 ई.)-ईसाइयों और मुसलमानों के बीच प्रथम धर्म – युद्ध 1098-99 ई. में शुरू हुआ। इस युद्ध में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक और जेरुस्लम पर अधिकार कर लिया जेरुस्लम में मुसलमानों और यहूदियों की बड़ी संख्या में निर्ममतापूर्ण हत्याएँ की गईं। शीघ्र ही ईसाइयों ने सीरिया- फिलिस्तीन के क्षेत्र में धर्म- युद्ध द्वारा जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से ‘आउटरैमर’ कहा जाता था। बाद के धर्म – युद्ध आउटरैमर की रक्षा तथा विस्तार के लिए किए गए।

(2) द्वितीय धर्म – युद्ध (1145-1149 ई.)-ईसाइयों द्वारा स्थापित ‘आउटरैमर क्षेत्र’ कुछ समय तक भली- भांति स्थापित रहा। परन्तु जब 1144 ई. में तुर्कों ने एड्रेस्सा पर अधिकार कर लिया तो पोप ने ईसाई राजाओं तथा सामन्तों से एक अन्य धर्म – युद्ध (1145-1149 ई.) के लिए अपील की। पोप की अपील पर एक जर्मन तथा फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा और घर लौटना पड़ा। इसके पश्चात् ‘आउटरैमर’ की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गई। अब ईसाइयों में धर्म- युद्धों के प्रति जोश समाप्त हो गया तथा ईसाई शासकों ने विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करना और नये-नये प्रदेशों के लिए लड़ाई करना शुरू कर दिया।

इस युद्ध के दौरान सलाह अल-दीन ने एक मिस्री – सीरियाई साम्राज्य स्थापित किया और ईसाइयों के विरुद्ध धर्म – युद्ध शुरू कर दिया। 1187 ई. में उसने ईसाइयों को पराजित कर दिया। उसने प्रथम धर्म – -युद्ध . के लगभग एक शताब्दी बाद, जेरुस्लम पर पुनः अधिकार कर लिया। सलाह अल-दीन ने ईसाइयों के प्रति दयामय व्यवहार किया । यद्यपि उसने ‘दि चर्च ऑफ दि होली सेपलकर’ नामक गिरजाघर की देखभाल का काम ईसाइयों को सौंप दिया था, परन्तु अनेक गिरजाघरों को मस्जिदों में बदल दिया गया और जेरुस्लम एक बार फिर मुस्लिम शहर बन गया।

(3) तृतीय धर्म – युद्ध (1189 ई.) – जेरुस्लम शहर के छिन जाने से ईसाइयों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ और इसके फलस्वरूप 1189 ई. में तृतीय धर्म- युद्ध छिड़ गया । परन्तु धर्म- युद्ध करने वाले फिलिस्तीन में कुछ तटवर्ती शहरों और ईसाई तीर्थयात्रियों के लिए जेरुस्लम में मुक्त रूप से प्रवेश के सिवाय और कुछ प्राप्त नहीं कर सके । अन्ततः मिस्र के शासकों तथा मामलूकों ने 1291 में धर्म-युद्ध करने वाले सभी ईसाइयों को सम्पूर्ण फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया। धीरे-धीरे यूरोप की इस्लाम में सैनिक दिलचस्पी समाप्त हो गई और उसका ध्यान अपने आन्तरिक राजनैतिक और सांस्कृतिक विकास की ओर केन्द्रित हो गया।
धर्म- युद्धों के प्रभाव – धर्म – युद्धों ने ईसाई – मुस्लिम सम्बन्धों के निम्नलिखित दो पहलुओं पर स्थायी प्रभाव छोड़ा –

(1) मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनाना शुरू किया जो लड़ाइयों की कड़वी यादों और मिली-जुली आबादी वाले इलाकों में सुरक्षा की जरूरतों का परिणाम था।

(2) मुस्लिम सत्ता की पुनर्स्थापना के पश्चात् भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।

प्रश्न 10.
इस्लामी राज्य में शहरों के विकास तथा शहरी विशेषताओं पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
इस्लामी राज्य में शहरीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में शहरों का विकास – इस्लामी राज्य में शहरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई जिसके फलस्वरूप इस्लामी सभ्यता का विकास हुआ। अनेक नये शहरों की स्थापना की गई जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों को बसाना था। ये स्थानीय प्रशासन की रीढ़ थे। इस श्रेणी के फौजी शहरों में इराक में कुफा तथा बसरा और मिस्र में फुस्तात तथा काहिरा थे। इन शहरों के अतिरिक्त बगदाद, इस्फहान, दमिश्क तथा समरकन्द आदि कुछ पुराने शहर थे जिन्हें नया जीवन मिल गया था।

बगदाद अब्बासी खलीफाओं की राजधानी थी तथा अपनी स्थापना के बाद आधी शताब्दी के अन्दर बगदाद की आबादी बढ़ कर लगभग दस लाख तक पहुँच गई थी। खाद्यान्नों तथा शहरी विनिर्माताओं के लिए कपास और चीनी के उत्पादन में वृद्धि की गई जिससे इन शहरों के आकार और इनकी आबादी में वृद्धि हुई। इस प्रकार इस्लामी राज्य में शहरों का एक विशाल जाल विकसित हो गया। एक शहर दूसरे शहर से जुड़ गया जिससे परस्पर सम्पर्क तथा व्यापार वाणिज्य में वृद्धि हुई।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई.

शहरों की विशेषताएँ – शहर की विशेषताओं को दो भागों में विभाजित किया गया है-
(अ) शहर के आंतरिक क्षेत्र की विशेषताएँ और
(ब) शहर के बाह्य क्षेत्र की विशेषताएँ।

यथा –
(अ) शहर के आंतरिक क्षेत्र की विशेषताएँ – शहर के आंतरिक क्षेत्र की विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –
(1) दो भवन समूह-शहर के केन्द्र में दो भवन – समूह होते थे, जहाँ से सांस्कृतिक तथा आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता था।

  • मस्जिद – दो भवन – समूहों में एक मस्जिद (मस्जिद अल- जामी) होती थी। इसमें सामूहिक नमाज पढ़ी जाती थी। यह मस्जिद इतनी बड़ी होती थी कि दूर से दिखाई देती थी
  • केन्द्रीय मण्डी (सुक ) – दूसरा भवन – समूह केन्द्रीय मण्डी (सुक) होता था। इसमें दुकानों की पंक्तियाँ, व्यापारियों के आवास (फंदुक) और सर्राफ का कार्यालय होता था। इसमें प्रशासकों, विद्वानों और व्यापारियों के लिए घर होते थे, जो केन्द्र के निकट बने होते थे।

(2) आंतरिक क्षेत्र का बाहरी घेरा – सामान्य नागरिकों तथा सैनिकों के रहने के क्वार्टर बाहरी घेरे में होते थे। प्रत्येक इकाई की अपनी मस्जिद, गिरजाघर अथवा सिनेगोग, (यहूदी प्रार्थना – घर), छोटी मण्डी, सार्वजनिक स्नान-घर (हमाम) और एक महत्त्वपूर्ण सभा स्थल होता था।
(ब) शहर के बाह्य क्षेत्र की विशेषताएँ –

  • शहर के बाहरी क्षेत्रों में शहरी गरीबों के मकान, हरी सब्जियों और फलों के बाजार, काफिलों के ठिकाने, चमड़ा साफ करने या रंगने की दुकानें और कसाई की दुकानें होती थीं।
  • शहर की चारदीवारी के बाहर कब्रिस्तान और सरायें होते थे। सराय में लोग उस समय आराम कर सकते थे, जब शहर के दरवाजे बन्द कर दिये जाते थे। सभी शहरों के मानचित्र एक जैसे नहीं होते थे। इस मानचित्र में परिदृश्य, राजनीतिक परम्पराओं और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर परिवर्तन किये जा सकते थे।

प्रश्न 11.
इस्लामी राज्य में व्यापार-वाणिज्य के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस्लामी राज्य में व्यापार वाणिज्य का विकास राजनीतिक एकीकरण और खाद्य पदार्थों और विलास – वस्तुओं की शहरी मांग ने विनिमय के दायरे का विस्तार कर दिया था । भूगोल ने मुस्लिम साम्राज्य की सहायता की, जो हिन्द महासागर और भूमध्य सागर के व्यापारिक क्षेत्रों के बीच फैल गया। पाँच शताब्दियों तक अरब और ईरानी व्यापारियों का चीन, भारत तथा यूरोप के बीच के समुद्री व्यापार पर. एकाधिकार रहा।

(1) व्यापार – मार्ग – यह व्यापार दो मुख्य मार्गों – लाल सागर तथा फारस की खाड़ी से होता था। लम्बी दूरी के व्यापार के लिए मसालों, कपड़ों, चीनी मिट्टी की वस्तुओं तथा बारूद को भारत और चीन से लाल सागर के पत्तनों (अदन और एधाब तक) और फारस की खाड़ी के पत्तनों (सिराफ तथा बसरा) तक जहाजों द्वारा लाया जाता था । यहाँ से माल को जमीन पर ऊँटों के काफिलों द्वारा बगदाद, दमिश्क और एलेप्पो के भण्डार-‍ -गृहों तक स्थानीय खपत हेतु अथवा आगे भेजने हेतु ले जाया जाता था । हज की यात्रा के समय मक्का के रास्ते से गुजरने वाले काफिले बड़े हो जाते थे।

इन व्यापारिक मार्गों के भूमध्य सागर के सिरे पर सिकन्दरिया के पत्तन से यूरोप को किए जाने वाले निर्यात को यहूदी व्यापारियों द्वारा नियन्त्रित किया जाता था। उनमें से कुछ भारत से सीधे व्यापार करते थे। चौथी शताब्दी से व्यापार एवं शक्ति केन्द्र के रूप में काहिरा के उभरने के कारण तथा इटली के व्यापारिक शहरों से पूर्वी माल की बढ़ती हुई माँग के कारण लाल सागर के मार्ग ने अधिक महत्त्व प्राप्त कर लिया।

पूर्वी सिरे का जहाँ तक सम्बन्ध है, ईरानी व्यापारी मध्य एशियाई और चीनी वस्तुएँ लाने के लिए बगदाद से बुखारा और समरकन्द (तूरान) होते हुए रेशम मार्ग से चीन जाते थे। तूरान भी वाणिज्यिक तन्त्र में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था। यह तन्त्र फर और स्लाव गुलामों के व्यापार के लिए उत्तर में रूस तथा स्केंडीनेविया तक फैला हुआ था । इन बाजारों में तुर्क गुलाम (दास और दासियाँ) भी खलीफाओं तथा सुल्तानों के दरबारों के लिए खरीदे जाते थे।

(2) सिक्के – राजकोषीय प्रणाली (राज्य की आय और व्यय) और बाजार के लेन-देन ने इस्लामी राज्यों में धन का महत्त्व बढ़ा दिया था। इस्लामी राज्यों में सोने, चाँदी तथा ताँबे (फुलस) के सिक्के बनाए जाते थे। वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य चुकाने के लिए प्राय: ये सिक्के सर्राफों द्वारा सीलबन्द किए गए थैलों में भेजे जाते थे। सोना अफ्रीका (सूडान) से तथा चाँदी मध्य एशिया से आती थी।

बहुमूल्य धातुएँ तथा सिक्के यूरोप से भी आते थे। पूर्वी व्यापार की वस्तुओं को खरीदने के लिए यूरोप इन सिक्कों की अदायगी करता था । धन की बढ़ती हुई माँग ने लोगों को अपने संचित भण्डारों तथा निरर्थक पड़ी सम्पत्ति का उपयोग करने के लिए बाध्य कर दिया। उधार का कारोबार भी मुद्राओं के साथ जुड़ गया जिससे वाणिज्य गतिशील हो गया।

(3) साख-पत्रों तथा हुण्डियों का उपयोग – मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के उत्तम तरीकों को विकसित किया। व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए साख-पत्रों (सक्क) तथा हुण्डियों (बिल ऑफ एक्सचेंज – सुफतजा ) का उपयोग किया जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को प्रत्येक स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई और इससे उनकी यात्राएँ पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गईं। खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चारणों को इनाम देने के लिए साख-पत्रों (सक्क) का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 12.
कागज और गेनिजा अभिलेख इतिहास-लेखन में किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हुए?
उत्तर:
(1) कागज की इतिहास-लेखन में उपयोगिता – कागज के आविष्कार के पश्चात् इस्लामी जगत में लिखित रचनाओं का व्यापक रूप से प्रसार होने लगा। कागज का आविष्कार चीनियों ने किया था, जहाँ कागज बनाने की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया था। 751 ई. में समरकन्द के मुसलमान प्रशासक ने 20 हजार चीनी आक्रमणकारियों को बन्दी बना लिया, जिनमें से कुछ कागज बनाने में अत्यन्त निपुण थे।

अतः अगले सौ वर्षों के लिए, समरकन्द का कागज निर्यात की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु बन गया। समरकन्द के अतिरिक्त अन्य मुस्लिम राज्यों में भी कागज का निर्माण किया जाने लगा। धीरे-धीरे कागज की माँग बढ़ती गई । प्रसिद्ध विद्वान और चिकित्सक अब्द-अल-लतीफ ने लिखा है कि मिस्र के किसानों ने ममियों के ऊपर लपेटे गए लिनन से बने हुए आवरण प्राप्त करने के लिए कब्रों को बुरी तरह लूटा था, ताकि वे लिनन से बने हुए इन आवरणों को कागज के कारखानों को बेच सकें।

(2) गेनिजा अभिलेखों की इतिहास-लेखन में उपयोगिता – जब कागज बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो गया, तो सभी प्रकार के वाणिज्यिक और निजी दस्तावेजों को लिखना भी सुविधाजनक हो गया। 1896 में फुस्तात ( पुराना काहिरा) में बेन एजरा के यहूदी प्रार्थना – भवन के एक सीलबन्द कमरे (गेनिजा ) में मध्यकालीन यहूदी दस्तावेजों का एक विशाल संग्रह प्राप्त हुआ। गेनिजा में लगभग ढाई लाख पाण्डुलिपियाँ तथा उनके टुकड़े थे, जिनमें कई आठवीं शताब्दी मध्यकाल की भी थीं।

अधिकांश सामग्री दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक की थी अर्थात् फातिमी, अयूबी तथा प्रारम्भिक मामलुक काल की थी। निजा अभिलेखों में व्यापारियों, परिवार के सदस्यों और मित्रों के बीच लिखे गए पत्र, संविदा, बिक्री – दस्तावेज आदि शामिल थे। अधिकतर दस्तावेज यहूदी – अरबी भाषा में लिखे गए थे, जो हिब्रू अक्षरों में लिखी जाने वाली अरबी भाषा का ही रूप था, जिसका उपयोग सम्पूर्ण मध्यकालीन भूमध्यसागरीय क्षेत्र में यहूदी समुदायों द्वारा सामान्यतया किया जाता था।

गेनिजा दस्तावेज निजी और आर्थिक अनुभवों से भरे हुए हैं और वे भूमध्यसागरीय और इस्लामी संस्कृति की आन्तरिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं । इन दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि मध्यकालीन इस्लामी जगत के व्यापारियों के व्यापारिक कौशल तथा वाणिज्यिक तकनीकें उनके यूरोपीय प्रतिद्वन्द्वियों की तुलना में बहुत अधिक उन्नत थीं । गेटिन निजा अभिलेखों का प्रयोग करते हुए ‘भूमध्य सागर का इतिहास’ कई संग्रहों में लिखा। गेनिजा के एक पत्र से प्रेरित होकर अमिताभ घोष ने अपनी पुस्तक ‘इन एन एंटीक लैण्ड’ में एक भारतीय गुलाम की कहानी का वर्णन किया है।

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प्रश्न 13.
बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान अब्द-अल-लतीफ द्वारा बताए गए आदर्श विद्यार्थी के गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदर्श विद्यार्थी के गुण बगदाद के कानून और चिकित्सा के विद्वान अब्द-अल-लतीफ द्वारा बताए गए आदर्श विद्यार्थी के गुणों का वर्णन निम्नानुसार है –

(1) ज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्यापकों का सहारा लेना- अब्द-अल-लतीफ के अनुसार एक आदर्श विद्यार्थी को बिना किसी की सहायता के, केवल पुस्तकों से ही विज्ञान न सीखना चाहिए, चाहे उसको समझने की अपनी योग्यता पर विश्वास हो। उसे प्रत्येक विषय के लिए, जिसका ज्ञान वह प्राप्त करना चाहता हो, अध्यापकों का सहारा लेना चाहिए। यदि उसके अध्यापकों का ज्ञान सीमित हो, तो जो कुछ वह दे सकता है, उसे प्राप्त कर लेना चाहिए। जब तक उसको उससे अधिक योग्य अध्यापक न मिल जाए उसे अपने अध्यापक का आदर और सम्मान करना चाहिए।

(2) पुस्तक को कण्ठस्थ करना – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार आदर्श विद्यार्थी जब कोई पुस्तक पढ़े, तो उसे कण्ठस्थ करने और उसके अर्थ पर पूर्ण अधिकार कर लेना चाहिए। पुस्तक खोने की अवस्था में पुस्तक कण्ठस्थ होने पर उसे कुछ भी हानि नहीं होगी।

(3) इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करना – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार आदर्श विद्यार्थी को इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। उसे जीवनियों तथा राष्ट्रों के अनुभवों का अध्ययन करना चाहिए।

(4) पैगम्बर की जीवनी का अध्ययन करना – अब्द-अल-लतीफ का कहना है कि आदर्श विद्यार्थी को अपना आचरण प्रारम्भिक मुसलमानों के आचरण के अनुरूप बनाना चाहिए। इसलिए, उसे पैगम्बर मुहम्मद साहब की जीवनी का अध्ययन करना चाहिए तथा उनके पद चिन्हों पर चलना चाहिए।

(5) अपने स्वभाव पर अविश्वास करना – आदर्श विद्यार्थी को अपने स्वभाव के बारे में अच्छी राय रखने की बजाय, उस पर बार-बार अविश्वास करना चाहिए। उसे अपना ध्यान विद्वान लोगों और उनकी रचनाओं पर लगाना चाहिए। उसे बहुत सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए और कभी भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

(6) अल्लाह का गुणगान करना – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार जब आदर्श व्यक्ति ने अपना अध्ययन तथा चिन्तन-मनन पूरा कर लिया हो, तो अपनी जीभ को अल्लाह का नाम लेने के कार्य में व्यस्त रखना चाहिए और अल्लाह का गुणगान करना चाहिए।

(7) ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता – अब्द-अल-लतीफ के अनुसार ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता, वह अपने पीछे अपनी सुगन्ध छोड़ जाता है, जो उसके मालिक का पता बता देती है। ज्ञान प्रकाश और कान्ति की किरण ज्ञानी पर चमकती रहती है और उसकी ओर संकेत करती रहती है।

प्रश्न 14.
मध्यकालीन इस्लामी राज्य में साहित्य के क्षेत्र में हुई उन्नति का वर्णन कीजिए।
अथवा
“नौवीं शताब्दी से अदब के दायरे का विस्तार किया गया और उसमें जीवनियों, आचार-संहिताओं, राजकुमारों की शासन कला की शिक्षा देने वाली पुस्तकों और सबसे ऊपर इतिहास और भूगोल को शामिल किया गया। ” विवेचना कीजिए –
उत्तर:
अदब से आशय – अदब का अर्थ है – साहित्यिक और सांस्कृतिक परिष्कार। अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य और गद्य दोनों शामिल थे। इस्लाम पूर्व काल की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा, ‘कसीदा’ थी जिसे अब्बासी काल के कवियों ने विकसित किया था। फारस के मूल कवियों ने अरबी कविता का पुनः आविष्कार किया। समानी राजदरबार के कवि रुदकी ने गजल, रुबाई जैसे नए रूप शामिल किए। उमर खय्याम ने रुबाई को उच्चता प्रदान की। गजनी के महमूद के काल में काव्यसंग्रहों और महाकाव्यों की रचना हुई। इस काल में फिरदौसी ने ‘शाहनामा’ की रचना की। इसके अतिरिक्त अनेक किस्से-कहानियों की रचनाएँ भी हुईं।

अदब के दायरे का विस्तार –
(1) इतिहास का अध्ययन – इस्लामी राज्य में नौवीं शताब्दी में अदब के दायरे का विस्तार हुआ और अनेक जीवनियों, आचार-संहिताओं, शासन कला से सम्बन्धित पुस्तकों, ऐतिहासिक ग्रन्थों आदि की रचना की गई। शिक्षित मुस्लिम समाजों में इतिहास लिखने की परम्परा स्थापित थी। विद्यार्थी, विद्वान तथा सुशिक्षित लोग इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करते थे। इतिहास शासकों तथा अधिकारियों के लिए किसी वंश की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने वाले कार्यों तथा उपलब्धियों का विवरण तथा प्रशासन की तकनीकों के उदाहरण प्रस्तुत करता था।

बालाधुरी कृत ‘अनसब अल – अशरफ’ (सामन्तों की वंशावलियाँ) तथा ताबरी कृत तारीख ‘अल- मुलुक’ (पैगम्बरों और राजाओं का इतिहास ) इतिहास के दो प्रमुख ग्रन्थ थे, जिनमें सम्पूर्ण मानव – इतिहास का वर्णन किया गया है। इनमें इस्लामी काल केन्द्र – बिन्दु है। स्थानीय इतिहास लेखन की परम्परा का विकास खिलाफत के विघटन के पश्चात् हुआ। इस्लामी राज्यों की एकता तथा विविधता की खोज के लिए फारसी में वंशों, नगरों और प्रदेशों के सम्बन्ध में अनेक पुस्तकें लिखी गईं।

(2) भूगोल और यात्रा – वृत्तान्त – भूगोल और यात्रावृत्तान्त (रिहला) अदब की एक विशेष विधा थे। इनमें यूनानी, ईरानी तथा भारतीय पुस्तकों के ज्ञान और व्यापारियों तथा यात्रियों के विचार और कथन शामिल थे। गणितीय भूगोल में संसार को भूमध्य रेखा के समानान्तर हमारे तीन महाद्वीपों के अनुरूप, सात प्रकार की जलवायु में विभाजित किया गया। प्रत्येक शहर की यथार्थ स्थिति का वर्णन खगोल वैज्ञानिक तरीके से किया गया।

मुकदसी ने अपने ग्रन्थ ‘अहसान – अल- तकसीम’ अथवा ‘सर्वोत्तम विभाजन’ में विश्व के सभी देशों के लोगों का तुलनात्मक अध्ययन किया है और विदेशों के बारे में वांछित जिज्ञासाओं को शान्त करने का प्रयास किया है। मसूदी ने अपनी पुस्तक ‘मुरुज अल – धाहाब’ में विश्व की संस्कृतियों की व्यापक विविधता दिखाने के लिए भूगोल और सामान्य इतिहास को मिला दिया था। अल्बरुनी ने ‘तहकीक मा लिल – हिंद’ ( भारत का इतिहास ) नामक पुस्तक लिखी जिसमें 11वीं शताब्दी के एक मुस्लिम लेखक का इस्लाम की दुनिया से बाहर देखने और यह जानकारी प्राप्त करने का सबसे बड़ा प्रयास था कि एक अन्य सांस्कृतिक परम्परा में क्या चीज बहुमूल्य है।

प्रश्न 15.
मध्यकालीन इस्लामी वास्तुकला की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘मध्यकालीन इस्लामी राज्य में वास्तुकला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। इस काल में अनेक मस्जिदों, राजमहलों, मकबरों आदि का निर्माण किया गया। मध्यकालीन इस्लामी वास्तुकला की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नानुसार है –
(1) मस्जिद – धार्मिक इमारतें इस्लामी जगत् की सबसे बड़ी बाहरी प्रतीक थीं। स्पेन से लेकर मध्य एशिया तक फैली मस्जिदों, इबादतगाहों और मकबरों का आधारभूत नमूना एक जैसा था। इसकी विशेषताएँ थीं-मेहराबें, गुम्बद, मीनार और खुले सहन। ये इमारतें मुसलमानों की आध्यात्मिक और व्यावहारिक आवश्यकताओं को प्रकट करती थीं

(i) इस्लाम की पहली शताब्दी में मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्प का रूप (खम्भों के सहारे वाली छत ) धारण कर लिया था। मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था। इस प्रांगण में एक फव्वारा अथवा जलाशय बनाया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता था, जिसमें प्रार्थना करने वाले लोगों और प्रार्थना ( नमाज) का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति (इमाम) के लिए काफी स्थान होता था।

(ii) बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं- दीवार में एक मेहराब जो मक्का (काबा) की दिशा का संकेत देती थी तथा एक मंच (मिम्बर) जहाँ से शुक्रवार की दोपहर की नमाज के समय प्रवचन दिए जाते थे। इमारत में एक मीनार जुड़ी होती थी जिसका उपयोग नियत समय पर नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए किया जाता था। मीनार नए धर्म के अस्तित्व का प्रतीक थी। शहरों और गाँवों में लोग समय का अनुमान पाँच दैनिक नमाजों की सहायता से लगाते थे । वर्तमान समय में भी मस्जिद की ये विशेषताएँ दिखाई देती हैं।

(iii) केन्द्रीय प्रांगण (इवान) के चारों ओर बनी इमारतों के निर्माण का स्वरूप न केवल मस्जिदों और मकबरों में बल्कि सरायों, अस्पतालों और महलों में भी पाया जाता था।

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(2) महल –
(i) उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थलीय महल’ बनाए। इनमें फिलिस्तीन में ‘खिरबत अल-मफजर’ और जोर्डन में ‘कुसाईर अमरा’ उल्लेखनीय थे। ये महल ऐश्वर्यपूर्ण निवास-स्थानों और शिकार तथा मनोरंजन के लिए विश्रामस्थलों के रूप में काम आते थे। महलों को चित्रों, प्रतिमाओं तथा पच्चीकारी से सजाया जाता था।

(ii) अब्बासियों ने समरा में बागों और बहते हुए पानी के बीच एक नया शाही शहर बनाया जिसका उल्लेख खलीफा हारुन-अल- रशीद से जुड़ी कहानियों और आख्यानों में मिलता है।

(iii) अब्बासियों ने बगदाद में तथा फातिमियों ने काहिरा में विशाल महल बनवाये, परन्तु अब इनका अस्तित्व नहीं –

(3) कला के दो रूपों को बढ़ावा मिलना- इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के दो रूपों को बढ़ावा मिला-खुशनवीसी (सुन्दर लिखने की कला) तथा अरेबस्क (ज्यामितीय तथा वनस्पतीय डिजाइन)। इमारतों को सुसज्जित करने हेतु प्रायः धार्मिक उद्धरणों का शिलालेखों में उपयोग किया जाता था। कुरान की आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों की पाण्डुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सुरक्षित रखा गया है। ‘किताब-अल- अधानी’ (गीत-पुस्तक), ‘कलीला व दिमना’, ‘हरिरी की मकामात’ जैसी साहित्यिक रचनाओं को लघु चित्रों से सजाया गया था। इसके अतिरिक्त पुस्तकों के सौन्दर्य में वृद्धि हेतु चित्रावली की अनेक तकनीकें शुरू की गई थीं। इमारतों और पुस्तकों के चित्रण में पौधों और फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था।