JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. 1952 के चुनावों में कुल मतदाताओं में केवल साक्षर मतदाताओं का प्रतिशत था
(क) 35 प्रतिशत
(ख) 25 प्रतिशत
(ग) 15 प्रतिशत
(घ) 75 प्रतिशत
उत्तर:
(ग) 15 प्रतिशत

2. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक थे
(क) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(ख) आचार्य नरेन्द्र देव
(ग) ए.वी. वर्धन
(घ) कु. मायावती
उत्तर:
(ख) आचार्य नरेन्द्र देव

3. 1948 में भारत के गवर्नर जनरल पद की शपथ किसने ली-
(क) लार्ड लिटन
(ख) लार्ड माउंटबेटन
(ग) लार्ड रिपन
(घ) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
उत्तर:
(घ) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

4. भारत का संविधान तैयार हुआ-
(क) 26 जनवरी, 1950
(ख) 26 नवम्बर, 1949
(ग) 15 अगस्त, 1947
(घ) 30 जनवरी, 1948
उत्तर:
(ख) 26 नवम्बर, 1949

5. भारत में दलितों का मसीहा किसे कहा जाता है?
(क) राजा राममोहन राय
(ख) दयानन्द सरस्वती
(ग) बी. आर. अम्बेडकर
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(ग) बी. आर. अम्बेडकर

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

6. स्वतन्त्र पार्टी का गठन किया-
(क) सी. राजगोपालाचारी
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(ग) पं. दीनदयाल उपाध्याय
(घ) रफी अहमद किदवई
उत्तर:
(क) सी. राजगोपालाचारी

7. भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे-
(क) मोरारजी देसाई
(ख) मीनू मसानी
(ग) अटल बिहारी वाजपेयी
(घ) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
उत्तर:
(घ) श्यामा प्रसाद मुखर्जी

8. भारत के संविधान पर हस्ताक्षर हुए-
(क) 15 अगस्त, 1947
(ख) 30 जनवरी, 1948
(ग) 24 जनवरी, 1950
(घ) 26 नवम्बर, 1949
उत्तर:
(ग) 24 जनवरी, 1950

9. भारत के पहले चुनाव आयुक्त बने
(क) सुकुमार सेन
(ख) सी. राजगोपालाचारी
(ग) ए. के. गोपालन
(घ) पी.सी. जोशी
उत्तर:

10. स्वतंत्र भारत में बने पहले मंत्रिमंडल में शिक्षामंत्री
(क) कामराज नाडार
(ख) जगजीवन राम
(ग) पी. डी. टंडन
(घ) मौलाना अबुल कलाम आजाद
उत्तर:
(क) कामराज नाडार

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

11. स्वतंत्र भारत में पहला आम चुनाव कब हुआ?
(क) 1951
(ख) 1952
(ग) 1953
(घ) 1949
उत्तर:
(ख) 1952

12. स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री थे-
(क) राजकुमारी अमृतकौर
(ख) पी.सी.
(ग) सुकुमार सेन
(घ) जगजीवन राम
उत्तर:
(क) राजकुमारी अमृतकौर

13. 1959 में कांग्रेस सरकार ने संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया?
(क) अनुच्छेद 370
(ख) अनुच्छेद 354
(ग) अनुच्छेद 356
(घ) अनुच्छेद 352
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 356

14. काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन कब हुआ था?
(क) 1934
(ख) 1955
(ग) 1948
(घ) 1942
उत्तर:
(क) 1934

15. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के संस्थापक कौन थे?
(क) कामराज नाडार
(ख) पी. सी. जोशी
(ग) मोरारजी देसाई
(घ) भीमराव अंबेडकर
उत्तर:
(घ) भीमराव अंबेडकर

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पीआरआई के शासन को ………………………… कहा जाता है।
उत्तर:
परिपूर्ण तानाशाही

2. ………………………… स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में संचार मंत्री थे।
उत्तर:
रफी अहमद किदवई

3. सिंहासन मूलतः ………………………… भाषा में बनाई गई थी।
उत्तर:
मराठी

4. ए. के. गोपालन, ……………………. राज्य के प्रमुख कम्युनिस्ट नेता थे।
उत्तर:
केरल

5. पार्टी के अंदर मौजूद विभिन्न समूह ……………………. कहे जाते हैं।
उत्तर:
गुट

6. ………………….. 1942 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे।
उत्तर:
दीन दयाल उपाध्याय

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समग्र मानवतावाद सिद्धान्त के प्रणेता का नाम लिखिए दीनदयाल उपाध्याय।

प्रश्न 2.
भारत में एक दल प्रधानता के युग में किस दल को सबसे अधिक प्रभावशाली माना गया?
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।

प्रश्न 3.
भारत में एक दल की प्रधानता का युग कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
1977।

प्रश्न 4.
एक दल प्रधानता का युग किस वर्ष से शुरू हुआ था?
उत्तर:
सन् 1952 के प्रथम आम चुनावों से।

प्रश्न 5.
1977 के लोकसभा चुनावों में किस पार्टी को सत्ता प्राप्त हुई?
उत्तर:
जनता पार्टी को।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 6.
प्रथम तीन आम चुनावों में किस राजनीतिक दल को नेतृत्व प्रदान किया गया?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी।

प्रश्न 7.
प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को 489 सीटों में से 364 सीटें प्राप्त हुईं।

प्रश्न 8.
“एकदल व्यवस्था से अधिक ठीक-ठीक भारतीय दलीय व्यवस्था को एक दल प्रधानता कहना उचित होगा।” किसने कहा था?
उत्तर:
रजनी कोठारी ने।

प्रश्न 9.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष हुई?
उत्तर:
सन् 1885 में।

प्रश्न 10.
भारत में समाजवादी दल का गठन कब हुआ?
उत्तर:
भारत में समाजवादी दल का गठन 1934 में हुआ।

प्रश्न 11.
प्रथम चुनाव आयुक्त कौन बना?
उत्तर:
सुकुमार सेन।

प्रश्न 12.
भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय थे।
उत्तर:
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी।

प्रश्न 13.
भारतीय जनसंघ की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1951 में।

प्रश्न 14.
भारत में निर्वाचन आयोग का गठन कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1950 में।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 15.
भारत का संविधान कब से अमल में आया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 से अमल में आया।

प्रश्न 16.
भारत में तीसरे आम चुनाव कब हुए? लिखिये।
उत्तर:
सन् 1962 में।

प्रश्न 17.
पहले तीन आम चुनावों में लोकसभा में दूसरे स्थान पर रहने वाली ( सबसे बड़ी पार्टी) का नाम
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।

प्रश्न 18.
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक थे।
उत्तर:
आचार्य नरेन्द्र देव।

प्रश्न 19.
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।

प्रश्न 20.
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी।

प्रश्न 21.
1957 में कांग्रेस पार्टी किस राज्य में पराजित हुई?
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 22.
किस विद्वान ने कांग्रेस की तुलना सराय से की है?
उत्तर:
डॉ. अम्बेडकर ने।

प्रश्न 23.
स्वतंत्रता के बाद भारत में एक पार्टी के प्रभुत्व का दौर क्यों रहा था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत में कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसका संगठन पूरे देश में गांव-गांव तक फैला हुआ था। इसीलिए एकदलीय प्रभुत्व का दौर रहा।

प्रश्न 24.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
भारत में बहुदलीय प्रणाली है और राजनीतिक दल विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 25.
प्रथम तीन आम चुनावों में कांग्रेस को कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
प्रथम आम चुनाव में 364, दूसरे आम चुनाव में 371 और तीसरे आम चुनाव में 361 सीटें प्राप्त हुईं।

प्रश्न 26.
किन दो राज्यों में कांग्रेस 1952-67 के दौरान सत्ता में नहीं थी?
उत्तर:
कांग्रेस 1952-67 के दौरान केरल एवं जम्मू-कश्मीर में सत्ता में नहीं थी।

प्रश्न 27.
स्वतंन्त्र पार्टी कब अस्तित्व में आई और इसका नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना 1959 में की गई और इस पार्टी का नेतृत्व सी. राजगोपालाचारी, ए. एम. मुंशी, एन. जी. रंगा आदि ने किय ।

प्रश्न 28.
उत्तरी राज्यों जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब के दो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नाम बताइए।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल नेशनल कान्फ्रेंस है, जबकि पंजाब का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल अकाली दल है।

प्रश्न 29.
किस दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल शुरू किया?
उत्तर:
सन् 1990

प्रश्न 30.
किस पत्रिका ने यह लिखा था कि जवाहर लाल नेहरू ” अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछताएँगे कि भारत में सार्वभौम मताधिकार असफल रहा।”
उत्तर:
ऑर्गनाइजर।

प्रश्न 31.
कांग्रेस दल किस सन् में राष्ट्रीय चरित्र वाले जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया?
उत्तर:
कांग्रेस दल 1905 से 1918 तक के काल में राष्ट्रीय चरित्र वाले एक जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया।

प्रश्न 32.
राष्ट्रीय मंच पर किस नेता के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई।
उत्तर:
राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन ने कांग्रेस पार्टी को एक आंदोलन में बदल दिया।

प्रश्न 33.
प्रथम आम चुनावों के समय कितने राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दल विद्यमान थे?
उत्तर:
प्रथम आम चुनावों में 14 राष्ट्रीय स्तर एवं 52 राज्य स्तर के दल विद्यमान थे।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 34.
भारत में किस चुनाव प्रणाली को अपनाया गया है?
उत्तर:
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर ‘सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले की जीत’ प्रणाली को अपनाया गया है।

प्रश्न 35.
भारत में 1967 के आम चुनावों में कौन-कौन से राज्यों में कांग्रेस को बहुमत मिला?
उत्तर:
भारत में 1967 के आम चुनावों में जम्मू-कश्मीर, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मैसूर (कर्नाटक), आंध्रप्रदेश तथा असम राज्यों में बहुमत मिला।

प्रश्न 36.
जनसंघ ने किस विचार पर जोर दिया?
उत्तर:
जनसंघ ने ‘एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र’ के विचार पर जोर दिया।

प्रश्न 37.
समाजवादी पार्टी किन-किन पार्टियों में विभाजित हुई?
उत्तर:
समाजवादी पार्टी ‘किसान मजदूर प्रजा पार्टी’, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में विभाजित हुई।

प्रश्न 38.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में पं. नेहरू, सरदार पटेल, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, डॉ. अम्बेडकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा सी. राजगोपालाचारी शामिल थे।

प्रश्न 39.
विश्व के किन्हीं चार ऐसे देशों के नाम लिखिए जो अपनी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध हैं।
उत्तर:
ये देश हैं। इंग्लैण्ड , भारत, अमेरिका, फ्रांस।

प्रश्न 40
भारतीय संविधान का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण 26 नवम्बर, 1949 को हुआ।

प्रश्न 41.
संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 42.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेताओं में ए. के. गोपालन, नम्बूदरीपाद, एस. ए. डांगे, अजय घोष तथा जी. सी. जोशी शामिल थे।

प्रश्न 43.
जनसंघ पार्टी के तीन नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और बलराज मधोक

प्रश्न 44.
एक पार्टी के लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध किन्हीं चार राष्ट्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
ये राष्ट्र हैं। भूतपूर्व सोवियत संघ, चीन, क्यूबा, सीरिया।

प्रश्न 45.
तानाशाही और सैन्य आधिपत्य वाले किन्हीं चार राष्ट्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ये राष्ट्र हैं। म्यांमार, बेलारूस, इंरीट्रिया, अधिकांश समय पाकिस्तान भी ऐसी सरकारों के अधीन रहा।

प्रश्न 46.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन कब हुआ?
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन 1964 में सी. पी. एम. या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और सी.पी.आई. अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में हुआ।

प्रश्न 47.
रूस की बोल्शेविक क्रान्ति कब हुई?
उत्तर:
रूस में बोल्शेविक क्रान्ति अक्टूबर सन् 1917 में हुई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 48.
भारत में अनुच्छेद 356 का तथाकथित दुरुपयोग सर्वप्रथम कब हुआ?
उत्तर:
केन्द्र की कांग्रेस सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 का प्रथम दुरुपयोग 1959 में केरल की वैधानिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त करके किया गया।

प्रश्न 49.
स्वतंत्र पार्टी किस वजह के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थी?
उत्तर:
स्वतंत्र पार्टी आर्थिक मसलों पर अपनी खास किस्म की पक्षधरता के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थ ।

प्रश्न 50.
1952 के चुनाव में वोट हासिल करने के लिहाज से कौन सी पार्टी दूसरे नंबर पर रही?
उत्तर:
सोशलिस्ट पार्टी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. भारत में बहुदलीय व्यवस्था है और राजनीतिक दल विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  2. भारतीय दलीय व्यवस्था में राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों का भी अस्तित्व है।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उपनिवेशवाद वह विचारधारा जिससे प्रेरित होकर प्राय: एक शक्तिशाली राष्ट्र अन्य राष्ट्र या किसी राष्ट्र विशेष के किसी भाग पर अपना वर्चस्व स्थापित कर, उसके आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों का शोषण अपने हित के लिए करता है उसे उपनिवेशवाद कहते हैं।

प्रश्न 3.
आपके मतानुसार ‘एकल पार्टी प्रभुत्व’ से क्या अभिप्राय है? भारत में इस स्थिति का कालखण्ड बताइये।
उत्तर:
एकल पार्टी प्रभुत्व ‘एकल पार्टी प्रभुत्व’ से आशय है। राजनीतिक व्यवस्था पर अन्य दलों के होते हुए भी किसी एक दल का वर्चस्व स्थापित होना। भारत में 1952 से लेकर 1967 तक कांग्रेस दल का प्रभुत्व रहा।

प्रश्न 4.
प्रथम तीन आम चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के कारणों को इंगित कीजिए।
अथवा
भारत के पहले तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के दो कारण बताइये।
अथवा
आपके मतानुसार आजादी के बाद 20 वर्षों तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व के क्या कारण रहे? किन्हीं दो को बताइये।
अथवा
भारत में लम्बे समय तक कांग्रेस के दलीय प्रभुत्व के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रथम तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण थे।

  1. राष्ट्रीय संघर्ष में कांग्रेसी नेताओं का जनता में अधिक लोकप्रिय होना।
  2. कांग्रेस के पास ही राष्ट्र के कोने-कोने व ग्रामीण स्तर तक संगठन होना तथा
  3. पंडित नेहरू का करिश्माई व्यक्तित्व का होना।

प्रश्न 5.
मतदान के किन्हीं दो तरीकों का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. मतपत्र के द्वारा मतदान: मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह अंकित होता है। मतदाता को मतपत्र पर अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम पर मोहर लगानी होती है।
  2. ई. वी. एम. द्वारा मतदान: ई.वी.एम. मशीन में मतदाता को अपनी पसंद के नाम के आगे की बटन दबानी होती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 6.
काँग्रेस पार्टी के प्रभुत्व ने पहले तीन चुनावों में भारत में लोकतंत्र स्थापित करने में किस प्रकार मदद की?
उत्तर:
पहला आम चुनाव एक गरीब और अनपढ़ देश में लोकतंत्र की पहली परीक्षा थी। उस समय तक लोकतंत्र केवल समृद्ध देशों में मौजूद था। उस समय तक यूरोप के कई देशों ने महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं दिया था। इस संदर्भ में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ भारत का प्रयोग एक साहसिक और जोखिम भरा कदम था। 1952 में भारत का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। अब यह तर्क दे पाना संभव नहीं रहा कि गरीबी या शिक्षा की कमी की स्थितियों में लोकतांत्रिक चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। यह साबित हुआ कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र का अभ्यास किया जा सकता है। अगले दो आम चुनावों ने भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया।

प्रश्न 7.
” सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ भारत का प्रयोग बहुत साहसिक और जोखिम भरा दिखाई दिया।” बयान को सही ठहराते हुए तर्क दीजिए।
उत्तर:
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ भारत का प्रयोग बहुत साहसिक और जोखिम भरा दिखाई दिया। इसके तर्क निम्न हैं।

  1. देश के विशाल आकार और जनसंख्या ने इन चुनावों को असामान्य बना दिया।
  2. 1952 का चुनाव भारत जैसे गरीब और अनपढ़ देश के लिए एक बड़ी परीक्षा थी।
  3. इसके पहले लोकतंत्र मुख्यतया यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे विकासशील देशों में हुआ करता था जहाँ की जनसंख्या साक्षर थी।

प्रश्न 8.
दल-बदल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दल-बदल का साधारण अर्थ एक दल से दूसरे दल में सम्मिलित होना है। इसमें निम्नलिखित स्थितियाँ सम्मिलित हैं।

  1. किसी विधायक का किसी दल के टिकट पर निर्वाचित होकर उसे छोड़ देना और अन्य किसी दल में शामिल हो जाना।
  2. मौलिक सिद्धान्तों पर विधायक का अपनी पार्टी की नीति के विरुद्ध योगदान करना।
  3. किसी दल को छोड़ने के बाद विधायक का निर्दलीय रहना।

प्रश्न 9.
1952 के चुनाव ने यह साबित कर दिया कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1952 में देश के अधिकांश हिस्सों में मतदान हुआ। लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर उत्साहपूर्वक भाग लिया। कुल मतदाताओं में से आधे से अधिक ने मतदान के दिन अपना मत डाला। चुनावों के परिणाम घोषित हुए तो हारने वाले उम्मीदवारों ने भी इस परिणाम को निष्पक्ष बताया। सार्वभौम मताधिकार के इस प्रयोग ने आलोचकों का मुँह बंद कर दिया। अत: हर जगह यह बात मानी जाने लगी कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया।

प्रश्न 10.
भारत के किन्हीं दो ऐसे क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए जो किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े हुए हैं।
उत्तर:

  1. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK): द्रविड़ मुनेत्र कड़गम तमिलनाडु में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है।
  2. बीजू जनता दल – बीजू जनता दल उड़ीसा में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है।

प्रश्न 11.
भारतीय जनसंघ की दो विचारधाराएँ बताइये।
उत्तर:

  1. भारतीय जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया।
  2. जनसंघ का विचार था कि भारतीय संस्कृति और परम्परा के आधार पर भारत आधुनिक, प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।

प्रश्न 12.
आलोचक ऐसा क्यों सोचते थे कि भारत में चुनाव सफलतापूर्वक नहीं कराए जा सकेंगे? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कराये जा सकने के सम्बन्ध में आलोचकों के तर्क ये थे।

  1. भारत क्षेत्रफल तथा जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा देश है तथा शुरू से ही नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान कर दिया गया है। इतने बड़े निर्वाचक मण्डल के लिए व्यवस्था करना बहुत कठिन होगा।
  2. भारत के अधिकांश मतदाता अशिक्षित थे। वे स्वतंत्र व समझदारी से मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे, इस पर उन्हें संदेह था।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 13.
आचार्य नरेन्द्र देव कौन थे?
उत्तर:
आचार्य नरेन्द्र देव प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी एवं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक थे। वे बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध विद्वान् थे तथा किसान आन्दोलन के सक्रिय नेता थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नेतृत्व किया।

प्रश्न 14.
डॉ. अम्बेडकर ने कांग्रेस पार्टी को एक सराय की संज्ञा क्यों दी?
उत्तर:
डॉ. अम्बेडकर ने कांग्रेस पार्टी को एक सराय कहा क्योंकि कांग्रेस पार्टी के द्वार समाज के सभी लोगों के लिए खुले हुए थे। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार कांग्रेस पार्टी के द्वार मित्रों, दुश्मनों, चालाक व्यक्तियों, मूर्खों तथा यहाँ तक कि सम्प्रदायवादियों के लिए भी खुले हुए
थे।

प्रश्न 15.
हमारे देश की चुनाव प्रणाली के कारण काँग्रेस पार्टी की जीत को अलग से बढ़ावा मिला। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारे देश की चुनाव:
प्रणाली में ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ के तरीके को अपनाया गया है। इस ‘प्रणाली के अनुसार अगर कोई पार्टी बाकियों की अपेक्षा थोड़े ज्यादा वोट हासिल करती है तो दूसरी पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात की ‘ तुलना में उसे कहीं ज्यादा सीटें हासिल होती हैं। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी की जीत का आँकड़ा और दायरा हमारी चुनाव – प्रणाली के कारण बढ़ा-चढ़ा दिखता है ।

उदाहरण: 1952 में कांग्रेस पार्टी को कुल वोटों में से मात्र 45 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे लेकिन कांग्रेस को 74 फीसदी सीटें हासिल हुईं। सोशलिस्ट पार्टी वोट हासिल करने के लिहाज से दूसरे नंबर पर रही। उसे 1952 के चुनाव में पूरे देश में कुल 10 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन यह पार्टी 3 प्रतिशत सीटें भी नहीं जीत पायी।

प्रश्न 16.
साझा सरकारों के हुए परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दुष्परिणाम निम्न हैं।

  1. विभाजन व विघटन की प्रवृत्ति
  2. वसरवादिता की प्रवृत्ति
  3. उत्तरदायित्व की प्रवृत्ति
  4. राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में अनिश्चितता और अस्पष्टता।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 17.
निर्दलियों की बढ़ती संख्या एक चुनौती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनाव में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने की स्थिति में निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। ये निर्दलीय उम्मीदवार भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। यह भारतीय दलीय व्यवस्था के हित में नहीं है।

प्रश्न 18.
भारत ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है जो एक पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा हो। संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है जो एक पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा हो। दुनिया के बाकी देशों को ‘देखने पर हमें एक पार्टी के प्रभुत्व के बहुत से उदाहरण मिलेंगे। हालाँकि बाकी मुल्कों में एक पार्टी के प्रभुत्व और भारत में ‘एक पार्टी के प्रभुत्व के बीच एक अंतर है। बाकी के देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ है।
उदाहरण

  1. कुछ देशों जैसे चीन, क्यूबा और सीरिया के संविधान में सिर्फ एक ही पार्टी को देश के शासन की अनुमति दी गई है।
  2. कुछ अन्य देशों जैसे म्यांमार, बेलारूस और इरीट्रिया में एक पार्टी का प्रभुत्व कानूनी और सैन्य उपायों के चलते कायम हुआ है।
  3. अब से कुछ साल पहले तक मैक्सिको, दक्षिण कोरिया और ताईवान भी एक पार्टी के प्रभुत्व वाले देश थे।

प्रश्न 19.
भीमराव रामजी अंबेडकर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आपका पूरा नाम बाबा साहब भीमराव रामजी अंबेडकर है। आप जाति विरोधी आंदोलन के नेता और दलितों को न्याय दिलाने के लिए हुए संघर्ष के अगुआ थे। आपने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। बाद में शिड्यूल्ड कास्टस् फेडरेशन की स्थापना की। आप रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के गठन के योजनाकार रहे हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान वायसराय की काउंसिल में सदस्य रहे हैं। आप संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। भारत की आजादी के बाद नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में मंत्री की भूमिका अदा की। आपने हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर अपनी असहमति जताते हुए 1951 में इस्तीफा दे दिया। आपने 1956 में हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया

प्रश्न 20.
सी. राजगोपालाचारी के व्यक्तित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
सी. राजगोपालाचारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे संविधान सभा के सदस्य थे तथा भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने वे केंन्द्र सरकार में मंत्री तथा मद्रास के मुख्यमंत्री भी रहे। 1959 में उन्होंने स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना की। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 21.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे। वे हिन्दू महासभा के महत्त्वपूर्ण नेता तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। वे कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरुद्ध थे। कश्मीर नीति पर जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा 1953 में हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 22.
विपक्षी दल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जो दल सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों की कमियों को उजागर कर उनकी आलोचना करे उसे विपक्षी दल कहा जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर 1967 तक भारत में संगठित विरोधी दल का अभाव था, परन्तु वर्तमान में संगठित विरोधी दल पाया जाता है।

प्रश्न 23.
भारत की किन्हीं तीन राष्ट्रीय पार्टियों के नाम व चुनाव चिह्न बताइए।
उत्तर:
पार्टी का नाम – चुनाव चिह्न

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस – हाथ
  2. भारतीय जनता पार्टी – कमल का फूल
  3. बहुजन समाज पार्टी – हाथी

प्रश्न 24.
भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती को समझाइये।
उत्तर:
भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती: भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती निम्न कारणों से थी।
1. विभिन्न धार्मिक राजनीतिक समूहों में एकता स्थापित करना: भारतीय नेताओं के समक्ष लोकतन्त्र की स्थापना हेतु विभिन्न धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों में पारस्परिक एकता की भावना को विकसित करने की चुनौती थी।

2. निष्पक्ष चुनावों की व्यवस्था करना: भारत के विस्तृत आकार को देखते हुए निष्पक्ष चुनावों की व्यवस्था करना भी एक गम्भीर चुनौती थी। चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन करना, मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की सूची बनाना भी आवश्यक था। मतदाताओं में केवल 15 प्रतिशत ही साक्षर थे। 1952 के चुनाव में 50 प्रतिशत मतदाताओं ने मत डाला। चुनाव निष्पक्ष हुए। इस प्रकार भारत लोकतन्त्र स्थापित करने में सफल रहा।

प्रश्न 25.
प्रारम्भ से ही कांग्रेस पार्टी का भारतीय राजनीति में केन्द्रीय स्थान रहा है । क्यों?
उत्तर:
कांग्रेस भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल रहा है। भारतीय राजनीति के केन्द्र में यह दो दृष्टिकोणों से प्रमुख -प्रथम, अनेक दल तथा गुट कांग्रेस के केन्द्र से विकसित हुए हैं और इसके इर्द-गिर्द अपनी नीतियों तथा अपनी गुटीय रणनीतियों को विकसित किया तथा द्वितीय, भारतीय राजनीति के वैचारिक वर्णक्रम के केन्द्र का अभियोग करते हुए यह एक ऐसे केन्द्रीय दल के रूप में स्थित रहा है, जिसके दोनों ओर अन्य दल तथा गुट नजर आते रहे हैं। भारत में स्वतंत्रता के बाद से केवल एक केन्द्रीय दल उपस्थित रहा है और वह है कांग्रेस पार्टी। लेकिन वर्तमान समय में दलीय व्यवस्था के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आया है जिसमें बहुदलीय व्यवस्था और क्षेत्रीय दलों के विकास ने एकदलीय प्रभुत्व की स्थिति को कमजोर बना दिया है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 26.
प्रथम तीन आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मजबूत स्थिति के पीछे उत्तरदायी कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कांग्रेस की प्रधानता के लिए उत्तरदायी कारण- प्रथम तीन आम चुनावों में कांग्रेस की मजबूत स्थिति के पीछे निम्नलिखित कारण जिम्मेदार रहे हैं।

  1. कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय आंदोलन के वारिस के रूप में देखा गया। आजादी के आंदोलन के अग्रणी नेताओं ने अब कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े।
  2. कांग्रेस ही ऐसा दल था जिसके पास राष्ट्र के कोने-कोने व ग्रामीण स्तर तक फैला हुआ एवं संगठित संगठन था।
  3. कांग्रेस एक ऐसा संगठन था जो अपने आपको स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सकने में समर्थ था।
  4. कांग्रेस पहले से ही एक सुसंगठित पार्टी थी। बाकी दल अभी अपनी रणनीति सोच ही रहे होते थे कि कांग्रेस अपना अभियान शुरू कर देती इस प्रकार कांग्रेस को ‘अव्वल और इकलौता’ होने का फायदा मिला।
  5. पण्डित नेहरू का करिश्माई व्यक्तित्व भी कांग्रेस के प्रभुत्व को बनाने में सफल रहा।

प्रश्न 27.
पहले तीन आम चुनावों में काँग्रेस के प्रभुत्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पहले तीन आम चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व का वर्णन निम्न कथनों द्वारा किया जा सकता है।

  1. 1952 के चुनाव में कॉंग्रेस 489 सीटों में से 364 सीटों पर विजयी रही।
  2. 16 सीटों के साथ कम्युनिस्ट पार्टी दूसरे स्थान पर रही।
  3. लोकसभा के चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की।
  4. त्रावणकोर-कोचीन, मद्रास और उड़ीसा को छोड़कर सभी राज्यों में कांग्रेस ने अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की। आखिरकार इन तीनों राज्यों में भी काँग्रेस की ही सरकार बनी। इस तरह राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर पूरे देश में काँग्रेस पार्टी का शासन कायम हुआ।
  5. 1957 और 1962 में क्रमशः दूसरा और तीसरा चुनाव हुआ। इस चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पुरानी स्थिति कायम रखी, उसका दशांश भी कोई विपक्षी पार्टी नहीं जीत सकी।

प्रश्न 28.
शक्तिशाली विपक्ष पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
आठवीं लोकसभा चुनावों तक 1969-70 तथा 1977-79 के काल को छोड़कर भारतीय राजनीति में सामान्यतः विपक्ष कमजोर तथा विभाजित ही रहा, लेकिन 9वीं लोकसभा चुनाव से लेकर 16वीं लोकसभा के चुनावों में संसद तथा भारतीय राजनीति में शक्तिशाली विपक्ष रहा है। 1990 ई. में कांग्रेस (इ) शक्तिशाली विपक्ष की स्थिति में थी, जिसे लोकसभा में 193 स्थान और राज्यसभा में लगभग बहुमत प्राप्त था। 10वीं व 11वीं लोकसभा में भी कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल की स्थिति प्राप्त रही जबकि 14वीं व 15वीं लोकसभा में भाजपा को मुख्य विपक्षी दल की स्थिति प्राप्त रही। 16वीं लोकसभा में कांग्रेस व दूसरे क्षेत्रीय दल, शक्तिशाली विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। इस काल में राज्य स्तर पर भी अधिकांश राज्यों में विपक्ष पर्याप्त शक्तिशाली रहा है।

प्रश्न 29.
भारत में राजनीतिक दलों द्वारा अपने कार्यों का निर्वहन करने में आने वाली तीन कठिनाइयों को बताइये।
उत्तर:
राजनीतिक दलों की समस्याएँ: भारत में राजनीतिक दलों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं।

  1. दलीय व्यवस्था में अस्थिरता: भारतीय दलीय व्यवस्था निरन्तर बिखराव और विभाजन का शिकार रही है। सत्ता प्राप्ति की लालसा ने राजनीतिक दलों को अवसरवादी बना दिया है जिससे यह संकट उत्पन्न हुआ है।
  2. राजनीतिक दलों में गुटीय राजनीति: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में तीव्र आन्तरिक गुटबन्दी विद्यमान है। इन दलों में छोटे-छोटे गुट पाये जाते हैं।
  3. दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव है और वे घोर अनुशासनहीनता से पीड़ित हैं। भारत में अधिकांश राजनीतिक दल नेतृत्व की मनमानी प्रवृत्ति और सदस्यों की अनुशासनहीनता से पीड़ित है।

प्रश्न 30.
राजनीतिक दलों के प्रमुख तत्त्वों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
राजनीतिक दलों के प्रमुख तत्त्व: किसी भी राजनीतिक दल के निर्माण के लिए निम्न तत्त्वों का होना आवश्यक है।

  1. संगठन: संगठन से तात्पर्य है। कि दल ने अपने कुछ लिखित एवं अलिखित नियम, उपनियम, कार्यालय, पदाधिकारी आदि होने चाहिए। ये दल के सदस्यों को अनुशासित रखते हैं।
  2. मूलभूत सिद्धान्तों में एकता: सिद्धान्तों की एकता ही दल को ठोस आधार प्रदान करती है। सैद्धान्तिक एकता के अभाव में दल की जड़ें हिल जायेंगी।
  3. संवैधानिक साधनों का प्रयोग: राजनीतिक दलों को जाति, धर्म, सम्प्रदाय या वर्ग हित की अपेक्षा राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि हेतु प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 31.
1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 2004 के आम चुनाव तक मतदान के तरीके में क्या बदलाव आये हैं?
उत्तर:
1952 से लेकर 2004 के आम चुनाव तक मतदान के तरीकों में निम्न प्रकार बदलाव आये हैं।

  1. 1952 के पहले आम चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार के नाम व चुनाव चिह्न की एक मतपेटी रखी गयी थी। हर मतदाता को एक खाली मत पत्र दिया गया जिसे उसने अपने पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डाला। शुरूआती दो चुनावों के बाद यह तरीका बदल दिया गया।
  2. बाद के चुनावों में मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम व चुनाव चिह्न अंकित किया गया। मतदाता को मतपत्र में अपने पसंद के उम्मीदवार के आगे मुहर लगानी होती थी।
  3. सन् 1990 के दशक के अन्त में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग शुरू कर दिया। इसमें मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के सामने दिये गये बटन को दबा देता है।

प्रश्न 32.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई तीन कमियाँ लिखिए जो सरकारों की अस्थिरता के लिए उत्तरदायी हैं।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की कमियाँ – भारतीय दलीय व्यवस्था की निम्नलिखित कमियाँ या समस्याएँ सरकार की अस्थिरता के लिए उत्तरदायी हैं।

  1. राजनीतिक दल-बदल: भारतीय राजनीतिक दलों में वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव तीव्र आन्तरिक गुटबन्दी और गहरी सत्ता लिप्सा ने दलीय व्यवस्था में राजनीति दल-बदल को जन्म दिया है जिसने राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया।
  2. नेतृत्व संकट: भारत में राजनीतिक दलों के समक्ष नेतृत्व का संकट भी है। नेतृत्व का बौना कद दल को एकजुट रखने में असमर्थ रहता है।
  3. वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव: विचारधारा पर आधारित दलों जैसे मार्क्सवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल, भाजपा आदि ने भी घोर अवसरवादी राजनीति का परिचय देते हुए येन-केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने के लिए अपने सिद्धान्तों को तिलांजलि दी है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 33.
भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व राजनीतिक दलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व भारत के राजनीतिक दल इस प्रकार थे।

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में राजनीतिक दलों का जन्म विदेशी साम्राज्य के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन कोचलाने के लिए हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में हुई थी। वास्तव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उस समय न केवल एक राजनीतिक दल था, बल्कि एक ऐसा मंच था जिसमें हर विचारधारा के लोग शामिल थे, जिनका उद्देश्य छोटे-छोटे सुधार करना था। गई।
  2. मुस्लिम लीग: 1906 में मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की
  3. भारतीय साम्यवादी दल: 1924 में साम्यवादी दल की स्थापना एम.एन. रॉय ने की।
  4. भारतीय समाजवादी पार्टी1934 में आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण एवं राममनोहर लोहिया ने भारतीय समाजवादी पार्टी की स्थापना की।

प्रश्न 34.
भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख कार्यक्रमों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भाजपा के प्रमुख कार्यक्रम: भाजपा की जो नीतियाँ, सिद्धान्त एवं कार्यक्रम हैं, वे अपने पूर्ववर्ती जनसंघ की नीतियों, सिद्धान्तों एवं कार्यक्रमों से समानता रखते हैं। जनसंघ गाँधीवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता, लोकतन्त्र, न्याय एवं समानता के आदर्शों पर टिका हुआ था। राष्ट्रीय एकता के सन्दर्भ में इसका नारा था कि अनुच्छेद 370 को समाप्त कर कश्मीर का पूर्णत: भारत में विलय हो तथा वह एक सामान्य राज्य का दर्जा प्राप्त करे।

राष्ट्रीय सुरक्षा के सन्दर्भ में यह कठोर रुख अपनाने का समर्थक था। यह एक ऐसा दल था जो भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को पूर्ण रूप से अपनाये हुए था। परन्तु ज्यों ही जनसंघ भाजपा में परिवर्तित हुआ त्यों ही अपने मूलभूत सिद्धान्तों से धीरे-धीरे दूर होता चला गया।

प्रश्न 35.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रम: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है।

  1. स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य स्वतन्त्रता प्राप्ति था, उस समय कांग्रेस एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि राष्ट्रीय आन्दोलन भी था। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान इसके आदर्श थे। संसदीय लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद।
  2. स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त कांग्रेस 30 वर्षों तक सत्तारूढ़ रही। इन तीस वर्षों में कांग्रेस ने अस्पृश्यता उन्मूलन, दलितों का उत्थान, जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल, सार्वजनिक उद्यमों की स्थापना के कार्यक्रम अपनाये।
  3. वर्तमान में कांग्रेस पार्टी अपने समाजवादी सिद्धान्तों से काफी दूर हो चुकी है। चुनाव घोषणा पत्रों के माध्यम से कांग्रेस आर्थिक सुधार, प्रगति, विकास तथा प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार का वचन देती है और उदारवादी अर्थव्यवस्था को अपनाए हुए है।

प्रश्न 36.
भारत में क्षेत्रीय दलों की प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। क्षेत्रीय दल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
उत्तर:
भारत में क्षेत्रीय दलों की प्रकृति- भारत में क्षेत्रीय दलों की प्रकृति को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. जाति, धर्म, क्षेत्र या समुदाय पर आधारित क्षेत्रीय दल: भारत के कुछ क्षेत्रीय दल या तो किसी जाति विशेष पर आधारित हैं या धर्म – विशेष पर या क्षेत्र विशेष पर या किसी समुदाय विशेष पर आधारित हैं।
  2. राष्ट्रीय दलों से निकले क्षेत्रीय दल: कुछ क्षेत्रीय दल वे हैं जो किसी समस्या विशेष या नेतृत्व के प्रश्न को लेकर राष्ट्रीय दलों विशेषकर कांग्रेस आदि से अलग हुए हैं, जैसे- केरल कांग्रेस, बंगला कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, तमिल मनीला कांग्रेस आदि।
  3. विचारधारा पर आधारित क्षेत्रीय दल: भारत में कुछ राजनीतिक दल विचारधारा पर आधारित हैं, जैसे फारवर्ड ब्लॉक, किसान मजदूर पार्टी आदि।

प्रश्न 37.
आजादी के बाद भारत में अनेक पार्टियों ने मुक्त और निष्पक्ष चुनाव में एक-दूसरे से स्पर्धा की फिर भी काँग्रेस पार्टी ही विजयी होती गई। क्यों?
उत्तर:
काँग्रेस पार्टी की इस असाधारण सफलता की जड़ें स्वाधीनता संग्राम की विरासत में है। कांग्रेस पार्टी को जनता ने तथा सभी ने आंदोलन के वारिस के रूप में देखा। आजादी के आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले कई नेता अब काँग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। काँग्रेस शुरू से ही एक सुसंगठित पार्टी थी। चुनाव के दौरान जब तक बाकी के दल चुनावी रणनीति सोच रहे होते थे तब तक कांग्रेस अपना चुनावी अभियान शुरू कर चुकी होती थी। अनेक पार्टियों का गठन स्वतंत्रता के समय के आस-पास अथवा उसके बाद में हुआ।

जबकि काँग्रेस पार्टी आजादी के वक्त तक देश में चारों ओर फैल चुकी थी। इस पार्टी के संगठन का नेटवर्क स्थानीय स्तर तक पहुँच चुका था। कांग्रेस पार्टी की सबसे खास बात यह थी कि यह आजादी के आंदोलन की अग्रणी थी और इसकी प्रकृति सबको साथ लेकर चलने की थी। इसी कारण आजादी के बाद भारत में अनेक पार्टियों ने मुक्त और निष्पक्ष चुनाव में एक-दूसरे से स्पर्धा की फिर भी काँग्रेस पार्टी हर बार विजयी होती गई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 38.
कॉंग्रेस पार्टी के जन्म से लेकर अब तक इस पार्टी में क्या बदलाव आया है? संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शुरू-शुरू में काँग्रेस में अंग्रेजीदाँ, अगड़ी जाति, उच्च मध्यवर्ग और शहरी अभिजन का वर्चस्व था। परंतु जब भी कॉंग्रेस ने सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलन चलाए उसका सामाजिक आधार बढ़ा। काँग्रेस ने परस्पर विरोधी हितों के कई समूहों को एक साथ जोड़ा। समय के साथ-साथ काँग्रेस में किसान और उद्योगपति, गाँव और शहर के रहने वाले, मालिक और मजदूर और उच्च, मध्य एवं निम्न वर्ग सभी जातियों को जगह मिली।

धीरे-धीरे काँग्रेस का नेतृवर्ग विस्तृत हुआ। इसका नेतृवर्ग अब उच्च वर्ग या जाति के पेशेवर लोगों तक ही सीमित नहीं रहा। इसमें खेती-किसानी की बुनियाद वाले तथा गाँव- गिरान की तरफ रुझान रखने वाले नेता भी उभरे। आजादी के समय तक काँग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल धारण कर चुकी थी और वर्ग, जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य हितों के आधार पर इस सामाजिक गठबंधन से भारत की विविधता की नुमाइंदगी हो रही थी।

प्रश्न 39.
किस वजह से काँग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक- व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ?
उत्तर:
काँग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था। उस समय यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित – समूह भर थी। लेकिन 20वीं सदी में इस पार्टी ने जन आंदोलन का रूप ले लिया । इस वजह से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ।

प्रश्न 40.
ए. के. गोपालन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ए. के. गोपालन केरल के कम्युनिस्ट नेता थे। आपके राजनीतिक जीवन की शुरुआत काँग्रेस कार्यकर्ता के रूप में हुई। परंतु 1939 में आपने कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खुद को जोड़ा। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के पश्चात् आप कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) में शामिल हुए और इस पार्टी की मजबूती के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। आपको सांसद के रूप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई।

प्रश्न 41.
कॉंग्रेस पार्टी में गुटों की मौजूदगी की प्रणाली शासक दल के भीतर संतुलन साधने के औजार की तरह काम करती थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काँग्रेस पार्टी की अधिकतर प्रांतीय इकाइयाँ विभिन्न गुटों को मिलाकर बनी थीं। ये गुट अलग-अलग विचारधाराओं वाले थे और इस कारण काँग्रेस एक भारी-भरकम मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आती थी। दूसरी पार्टियाँ अक्सर काँग्रेसी गुटों को प्रभावित करने का कार्य करती रहती थीं। इस प्रकार बाकी पार्टियाँ हाशिए पर रहकर ही नीतियों और फैसलों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर पाती थीं। ये पार्टियाँ सत्ता के वास्तविक इस्तेमाल से कोसों दूर थीं। शासक दल का कोई विकल्प नहीं था। इसके बावजूद विपक्षी पार्टियाँ लगातार काँग्रेस की आलोचना करती थीं, उस पर दबाव डालती थीं और इस क्रम में उसे प्रभावित करती थीं। इस प्रकार गुटों की मौजूदगी की यह प्रणाली शासक दल के भीतर संतुलन साधने के औजार की तरह काम करती थी । इस तरह राजनीतिक होड़ काँग्रेस के भीतर ही चलती थी।

प्रश्न 42.
1950 के दशक में विपक्षी दलों की मौजूदगी ने भारतीय शासन- व्यवस्था के लोकतांत्रिक चरित्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1950 के दशक में विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में मात्र कहने भर को प्रतिनिधित्व मिल पाया फिर भी इन दलों ने भारतीय शासनव्यवस्था के लोकतांत्रिक चरित्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कथन की पुष्टि निम्न तथ्यों से की जा सकती है।

  1. इन दलों ने काँग्रेस पार्टी की नीतियों और व्यवहारों की सुचिन्तित आलोचना की। इन आलोचनाओं में सिद्धांतों का बल होता था। बदला।
  2. विपक्षी दलों ने शासक दल पर अंकुश रखा और इन दलों के कारण काँग्रेस पार्टी के भीतर शक्ति-संतुलन
  3. इन दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवंत रखा। ऐसा करके इन दलों ने व्यवस्थाजन्य रोष को लोकतंत्र-विरोधी बनने से रोका।
  4. इन दलों ने ऐसे नेता तैयार किए जिन्होंने आगे के समय में हमारे देश की तस्वीर को संवारने में अहम भूमिका निभाई।

प्रश्न 43.
आजादी के बाद काफी समय तक भारत देश में लोकतांत्रिक राजनीति का पहला दौर एकदम अनूठा था। इस कथन के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
शुरुआती सालों में काँग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच पारस्परिक सम्मान का गहरा भाव था। स्वतंत्रता की घोषणा के बाद अंतरिम सरकार ने देश का शासन सँभाला था। इसके मंत्रिमंडल में डॉ. अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल थे। नेहरू सोशलिस्ट पार्टी के प्रति काफी लगाव रखते थे। इसलिए उन्होंने जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेताओं को सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था।

अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से इस प्रकार की नजदीकी उसके प्रति सम्मान का भाव दलगत प्रतिस्पर्धा के तेज़ होने के बाद लगातार कम होता गया। राष्ट्रीय आंदोलन का चरित्र समावेशी था। इस तरह हम यह कह सकते हैं कि आजादी के बाद लंबे समय तक अपने देश में लोकतांत्रिक राजनीति का पहला दौर अनूठा था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय राजनीति में 1952 से 1966 के युग को ‘एक दल के प्रभुत्व का दौर’ कहकर पुकारा गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिये जिन्होंने इस प्रभुत्व को बनाए रखने में सहायता की।
अथवा
प्रथम तीन आम चुनावों के सन्दर्भ में एक दल की प्रधानता का वर्णन कीजिए तथा इस प्रधानता के कारकों को स्पष्ट कीजिये। संजीव पास बुक्स
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनैतिक परिदृश्य में कांग्रेस का वर्चस्व लगातार तीन दशकों तक कायम रहा। यह निम्न प्रथम तीन आम चुनावों के परिणामों से स्पष्ट होता है।

  1. प्रथम तीन चुनावों में संसद की 494 सीटों में से कांग्रेस ने 1952 में 364, 1957 में 371 तथा 1962 में 361 सीटें जीतीं।
  2. इस काल में केरल और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष सभी राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें बनीं। उपर्युक्त चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि 1952 से 1966 तक भारत में ‘एक दलीय प्रभुत्व’ की स्थिति  ही।

भारत में एक दल की प्रधानता के कारण: भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. कांग्रेस पार्टी को सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व प्राप्त था: कांग्रेस पार्टी में देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था। कांग्रेस पार्टी उदारवादी, उग्रवादी, दक्षिणपंथी, साम्यवादी तथा मध्यमार्गी नेताओं का एक महान मंच था।
  2. कांग्रेस का चमत्कारिक नेतृत्व: कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई और लोकप्रिय नेता थे।
  3. राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत: कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रता संग्राम के वारिस के रूप में देखा गया। स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक अग्रणी नेता अब कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे।
  4. गुटों में तालमेल और सहनशीलता: कांग्रेस गठबंधनी स्वभाव के कारण विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी। इससे कांग्रेस एक भारी-भरकम मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आती थी। इस सन्दर्भ में दूसरी पार्टियाँ कांग्रेस का विकल्पं प्रस्तुत नहीं कर पायीं।

प्रश्न 2.
कांग्रेस पार्टी की विचारधारा एवं कार्यक्रमों की विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों व सिद्धान्तों पर एक आलोचनात्मक नोट लिखिए।
उत्तर:
भारतीय कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की प्रमुख नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।
I. राजनीतिक कार्यक्रम।

  1. कांग्रेस लोकतन्त्र तथा राष्ट्र की एकता व अखण्डता में विश्वास करती है
  2. यह पार्टी राजनीतिक भ्रष्टाचार व राजनीतिक अपराधीकरण का विरोध करती है।
  3. यह लोकपाल की नियुक्ति का समर्थन करती है।
  4. यह आतंकवादियों तथा अन्य राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष करने के संकल्प पर बल देती है।
  5. यह विदेश नीति के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्षता तथा पंचशील अन्तर्राष्ट्रीय शांति के सिद्धान्तों का समर्थन करती है। आर्थिक तथा सामाजिक कार्यक्रम-
  6. यह लोगों को आत्म-निर्भर बनाने तथा भारत जैसे गरीब देश को सम्पन्नता की ओर ले जाने; गरीबी को दूर करने, बेरोजगारी को मिटाने के प्रति वचनबद्ध है।
  7. यह आर्थिक सुधारों की गति को तीव्र करने, घरेलू उत्पादों में वृद्धि करने, कृषि की पैदावार में वृद्धि करने तथा कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देने पर बल देती है।
  8. यह आवासीय योजनाओं का विस्तार करने तथा गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध कराने, दलितों, आदिवासियों तथा महिला कल्याण, बाल-कल्याण, पर विशेष
  9. योजनाओं एवं कार्यक्रमों पर बल, देती है।
  10. यह संचार के साधनों के तीव्र विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं के विस्तार पर बल देती है । इस प्रकार ये कुछ नीतियाँ व कार्यक्रम हैं जिनको लेकर यह पार्टी चुनावों में भाग लेती है।

प्रश्न 3.
भारतीय साम्यवादी दल की नीतियों एवं कार्यक्रमों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारतीय साम्यवादी दल की नीतियाँ एवं कार्यक्रम: भारतीय साम्यवादी दल की नीतियाँ एवं कार्यक्रमों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(क) राजनीतिक कार्यक्रम- पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम एवं नीतियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता, साम्प्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है।
  2. पार्टी केन्द्र- द- राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन करके राज्यों को आर्थिक शक्तियाँ देने के पक्ष में है।
  3. पार्टी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल विधेयक का समर्थन करती है।
  4. पार्टी अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा चुनाव प्रणाली में व्यापक सुधार करने, अनुच्छेद 356 को समाप्त किये जाने के पक्ष में है।
  5. पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती के पक्ष में है।

(ख) आर्थिक कार्यक्रम: भारतीय साम्यवादी दल के आर्थिक कार्यक्रम एवं नीतियाँ निम्न हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोका जाए। दूर संचार, बिजली आदि की नीतियों को बदला जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चुस्त-दुरुस्त किया जाए।
  2. मौजूदा औद्योगिक नीति को बदला जाए। अन्धाधुन्ध उदारीकरण की नीतियों को बदला जाए जो देश की सम्प्रभुता को कमजोर कर रही हैं।
  3. बजट का 50 प्रतिशत कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन आदि के विकास के लिए आवण्टित किया जाए और सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था की जाए।

(ग) सामाजिक कार्यक्रम: भारतीय साम्यवादी दल की सामाजिक नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।

  1. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाए।
  2. लोगों के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की नीतियों को ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ावा दिया जाए।
  3. शिक्षा तथा जन साक्षरता का प्रसार किया जाए।
  4. काम के अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया जाए।
  5. स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की जाए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 4.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाने के प्रतिकूल कौन-कौनसी चुनौतियाँ थीं? विस्तारपूर्वक लिखिये।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में लोकतान्त्रिक प्रणाली अपनाने के प्रतिकूल परिस्थितियाँ: स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में लोकतान्त्रिक प्रणाली को अपनाने के प्रतिकूल निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ थीं।

  • सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष आम चुनाव कराना: भारत के आकार को देखते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष आम चुनाव कराना अत्यन्त कठिन मामला था क्योंकि:
    1. चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन आवश्यक था,
    2. मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की मतदाता सूची बनाना आवश्यक था। ये दोनों ही काम उस समय अत्यन्त कठिन और समय लेने वाले।
  • निरक्षरता और गरीबी उस वक्त देश के मतदाताओं में महज 15 फीसदी ही साक्षर थे। मतदाताओं की बड़ी संख्या गरीब और अनपढ़ लोगों की थी और ऐसे माहौल में चुनाव लोकतंत्र के लिए परीक्षा की कठिन घड़ी था।
  • जातिवाद, क्षेत्रवाद तथा साम्प्रदायिकता: स्वतंत्रता के समय देश में जातिवाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदारिकता, राजाओं के प्रति भक्ति आदि तत्त्व प्रबल थे, जो निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव में बाधक बने हुए थे। मतदाताओं के अशिक्षित और गरीब होने से उन पर इन तत्त्वों के प्रभाव की पूरी गुंजाइश थी। देश में अनेक दलों, जैसे हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग आदि ने साम्प्रदायिक आधार अपना लिया था। साम्प्रदायिक आधार पर ये मतदाताओं को प्रभावित कर रहे थे। ऐसे में लोकतंत्र की सफलता में ये बाधक हो रहे थे।

प्रश्न 5.
1950 के दशक में भारत में विपक्षी पार्टियों की भूमिका की विवेचना कीजिय।
उत्तर:
1950 के दशक में लोकसभा में विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व: 1950 के दशक में भारत में अनेक राजनैतिक दल थे। यद्यपि कांग्रेस का प्रभुत्व था, तथापि अनेक राजनैतिक दलों ने चुनावों में अपने संजीव पास बुक्स उम्मीदवार उतारे थे। ये दल थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी आदि।

इस दशक में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसे 16 लोकसभा सीटें मिलीं जबकि जनसंघ को तीन चार सीटें ही मिलीं। अन्य दलों को भी कोई खास कामयाबी नहीं मिली। विपक्ष की भूमिका 1950 के दशक में भारत में यद्यपि विपक्षी दलों को लोकसभा या विधानसभा में कहने भर का प्रतिनिधित्व मिला तथापि उसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। यथा

  1. कांग्रेस की नीतियों की सैद्धान्तिक आलोचना विपक्षी दलों ने कांग्रेस पार्टी की नीतियों और व्यवहारों की सकारात्मक आलोचना की जिसमें सिद्धान्तों का बल होता था।
  2. शासक दल पर अंकुश लगाना इस काल में विपक्षी दलों ने उसकी नीतियों की सैद्धान्तिक आलोचना करके शासक दल पर अंकुश रखा।
  3. राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवित रखना इन दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवित रखा।
  4. कांग्रेस तथा विपक्षी नेताओं के बीच परस्पर सम्मान भाव इस दौर में कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच परस्पर सम्मान का गहरा भाव रहा। लेकिन 60 के दशक में यह सम्मान भाव लगातार कम होता गया।

प्रश्न 6.
मतदान के बदलते तरीके पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
इन दिनों चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मशीन का उपयोग किया जाता है। इसके माध्यम से मतदाता उम्मीदवारों के बारे में अपनी पसंद जाहिर करते हैं। परंतु शुरू-शुरू में ऐसी मशीनों का उपयोग नहीं किया जाता था। पहले के चुनावों में प्रत्येक चुनाव केन्द्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी जाती थी और उस मतपेटी पर उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अंकित रहता था। प्रत्येक मतदाता को एक खाली मतपत्र दिया जाता था और उस पर वह अपने पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डाल देता।

इस काम में स्टील के बक्सों का इस्तेमाल होता था। हर एक मतपेटी में भीतर और बाहर की तरफ संबंधित उम्मीदवार का चिह्न अंकित होता था। मतपेटी के बाहर किसी एक तरफ उम्मीदवार का नाम उर्दू, हिन्दी और पंजाबी भाषा में लिखा हुआ होता था। इसके साथ-साथ चुनाव क्षेत्र, चुनाव केन्द्र और मतदान केन्द्र की संख्या भी दर्ज होती थी। उम्मीदवार के आंकिक ब्यौरे वाला एक कागजी मुहरबंद पीठासीन पदाधिकारी के दस्तखत के साथ मतपेटी में लगाया जाता था। तत्पश्चात् मतपेटी के ढक्कन को तार के सहारे बाँधा जाता था और इसी जगह मुहरबंद लगाया जाता था।

यह सारा काम चुनाव की नियत तारीख के एक दिन पहले हो जाता था। चुनाव चिह्न और बाकी ब्यौरों को दर्ज करने के लिए मतपेटी को पहले सरेस कागज या ईंट के टुकड़े से रगड़ा जाता था। यह काम बहुत लंबा चलता था। शुरुआती दो चुनाव के बाद यह तरीका बदल दिया गया। अब मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न अंकित किया जाने लगा। मतदाता को इस मतपत्र पर अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगानी होती थी । यह तरीका अगले चालीस सालों तक चलन में रहा। सन् 1990 के दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल शुरू किया और 2004 तक पूरे देश में ईवीएम का उपयोग शुरू हुआ।

प्रश्न 7.
सोशलिस्ट पार्टी के जन्म, विकास, विचारधारा, उपलब्धियाँ और प्रमुख नेताओं को ध्यान में रखकर उस पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
सोशलिस्ट पार्टी की जड़ों को आजादी से पहले के उस वक्त में ढूँढ़ा जा सकता है जब भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस जनआंदोलन चला रही थी। काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन काँग्रेस के भीतर 1934 में युवा नेताओं की टोली ने किया था। ये नेता कांग्रेस को ज्यादा-से-ज्यादा परिवर्तनकारी और समतावादी बनाना चाहते थे। 1948 में काँग्रेस ने अपने संविधान में परिवर्तन किया। यह परिवर्तन इसलिए किया गया था ताकि काँग्रेस के सदस्य दोहरी सदस्यता न धारण कर सकें। इस वजह से काँग्रेस के समाजवादियों को मजबूरन 1948 में अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी बनानी पड़ी। परंतु सोशलिस्ट पार्टी चुनावों में कुछ खास कामयाबी प्राप्त नहीं कर सकी।

इस कारण पार्टी के समर्थकों को बड़ी निराशा हुई। हालाँकि सोशलिस्ट पार्टी की मौजूदगी हिन्दुस्तान के अधिकतर राज्यों में थी लेकिन पार्टी को चुनावों में छिटपुट सफलता ही मिली। समाजवादी लोकतांत्रिक समाजवाद की विचारधारा में विश्वास करते थे और इस आधार पर वे काँग्रेस तथा साम्यवादी दोनों से अलग थे। वे काँग्रेस की आलोचना करते थे। क्योंकि काँग्रेस पूँजीपतियों और जमींदारों का पक्ष लेती थी तथा मजदूरों और किसानों की उपेक्षा करती थी। समाजवादियों को 1955 में दुविधा की स्थिति का सामना करना पड़ा क्योंकि काँग्रेस ने घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की रचना है। ऐसे में समाजवादियों के लिए खुद को काँग्रेस का कारगर विकल्प बनाकर पेश करना मुश्किल हो गया।

सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हुए और कुछ मामलों में बहुधा मेल भी हुआ । इस प्रक्रिया में कई समाजवादी दल बने। इन दलों में किसान मजदूर प्रजा पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नाम लिया जा सकता है। जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, आचार्य नरेन्द्र देव, राममनोहर लोहिया और एस. एम. जोशी समाजवादी दलों के नेताओं में प्रमुख थे। मौजूदा हिन्दुस्तान के कई दलों जैसे समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) और जनता दल (सेक्युलर) पर सोशलिस्ट पार्टी की छाप देखी जा सकती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 8.
इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी का मैक्सिको में लगभग साठ सालों तक शासन रहा। स्पेनिश में इसे पीआरआई कहा जाता है। इस पार्टी की स्थापना 1929 में हुई थी। तब इसे नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी कहा जाता था। इस पार्टी को मैक्सिकन क्रांति की विरासत हासिल थी। मुख्यतः पीआरआई में राजनेता और सैनिक नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों समेत कई किस्म के हितों का संगठन था।

समय बीतने के साथ पीआरआई के संस्थापक प्लूटार्को इलियास कैलस ने इसके संगठन पर कब्जा जमा लिया और इसके बाद नियमित रूप से होने वाले चुनावों में हर बार पीआरआई ही विजयी होती रही। बाकी पार्टियाँ बस नाम की थीं ताकि शासक दल को वैधता मिलती रहे। चुनाव के नियम इस तरह तय किए गए कि पीआरआई की जीत हर बार पक्की हो सके। पीआरआई के शासन को ‘परिपूर्ण तानाशाही’ कहा जाता है। आखिरकार सन् 2000 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में यह पार्टी हारी। मैक्सिको अब एक पार्टी के दबदबे वाला देश नहीं रहा। बहरहाल, अपने दबदबे के दौर में पीआरआई ने जो दाँव-पेंच अपनाए थे उनका लोकतंत्र की सेहत पर बड़ा खराब असर पड़ा है।

प्रश्न 9.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया पर लेख लिखिए।
उत्तर:
1920 के दशक के शुरुआती सालों में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी – समूह उभरे। ये रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे और देश की समस्याओं के समाधान के लिए साम्यवाद की राह अपनाने की तरफदारी कर रहे थे। काँग्रेस से साम्यवादी 1941 के दिसंबर में अलग हुए। इस समय साम्यवादियों ने नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ रहे ब्रिटेन को समर्थन देने का फैसला किया। दूसरी गैर – काँग्रेस पार्टियों के विपरीत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के पास आजादी के समय एक सुचारू पार्टी मशीनरी और समर्पित कॉडर मौजूद थे।

बहरहाल, आजादी हासिल होने पर इस पार्टी के भीतर कई स्वर उभरे। आजादी के तुरंत बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विचार था कि 1947 में सत्ता का जो हस्तांतरण हुआ वह सच्ची आजादी नहीं थी। इस विचार के साथ पार्टी ने तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया। साम्यवादी अपनी बात के पक्ष में जनता का समर्थन हासिल नहीं कर सके और इन्हें सशस्त्र सेनाओं द्वारा दबा दिया गया। फलस्वरूप इन्हें अपने पक्ष को लेकर पुनर्विचार करना पड़ा। 1951 में साम्यवादी पार्टी ने हिंसक क्रांति का रास्ता छोड़ दिया और आने वाले आम चुनावों में भाग लेने का फैसला किया।

पहले आम चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 16 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी। इस दल को ज्यादातर समर्थन आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और केरल में मिला। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेताओं में ए. के. गोपालन, एस. ए. डांगे, ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद, पी. सी. जोशी, अजय घोष और पी. सुंदरैया के नाम लिए जाते हैं। चीन और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक अंतर आने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में बड़ी टूट का शिकार हुई। सोवियत संघ की विचारधारा को सही मानने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे जबकि इसके विरोध में राय रखने वालों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) नाम से अलग दल बनाया। ये दोनों दल आज तक कायम हैं

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 10.
भारतीय जनसंघ पार्टी पर विस्तारपूर्वक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक-अध्यक्ष थे। इस दल की जड़ें आजादी के पहले के समय से सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिन्दू महासभा में खोजी जा सकती हैं। जनसंघ अपनी विचारधारा और कार्यक्रमों के कारण बाकी दलों से भिन्न है। जनसंघ ने ‘एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र’ के विचार पर जोर दिया। इसका मानना था कि देश भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर आधुनिक, प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।

जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके ‘अखंड भारत’ बनाने की बात पर जोर दिया। अंग्रेजी को हटाकर हिन्दी को राजभाषा बनाने के आंदोलन में यह पार्टी अग्रणी थी। इसने धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियायत देने की बात का विरोध किया। चीन द्वारा 1964 में आण्विक परीक्षण करने पर जनसंघ ने लगातार इस बात की पैरोकारी की कि भारत भी अपने आण्विक हथियार तैयार करे। 1950 के दशक में जनसंघ चुनावी राजनीति के हाशिए पर रहा।

इस पार्टी को 1952 के चुनाव में लोकसभा की तीन सीटों पर सफलता मिली और 1957 के आम चुनावों में इसने लोकसभा की 4 सीटें जीतीं। शुरुआती सालों में इस ‘पार्टी को हिन्दी भाषी राज्यों मसलन राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों में समर्थन मिला। जनसंघ के नेताओं में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और बलराज मधोक के नाम शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी की जड़ें इसी जनसंघ में हैं।

प्रश्न 11.
स्वतंत्र पार्टी पर विस्तारपूर्वक लेख लिखि।
उत्तर:
काँग्रेस के नागपुर अधिवेशन में जमीन की हदबंदी, खाद्यान्न के व्यापार, सरकारी अधिग्रहण और सहकारी खेती का प्रस्ताव पास हुआ था। इसी के बाद 1959 के अगस्त में स्वतंत्र पार्टी अस्तित्व में आई। इस पार्टी का नेतृत्व सी. राजगोपालाचारी, के. एम. मुंशी, एन. जी. रंगा और मीनू मसानी जैसे पुराने काँग्रेस नेता कर रहे थे। यह पार्टी आर्थिक मसलों पर अपनी खास किस्म की पक्षधरता के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थी स्वतंत्र पार्टी चाहती थी कि सरकार अर्थव्यवस्था में कम हस्तक्षेप करे इसका मानना था कि समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिए आ सकती है।

स्वतंत्र पार्टी अर्थव्यवस्था में विकास के नजरिए से किए जा रहे राजकीय हस्तक्षेप, केन्द्रीकृत नियोजन, राष्ट्रीयकरण और अर्थव्यवस्था के भीतर सार्वजनिक क्षेत्र की मौजूदगी को आलोचना की निगाह से देखती थी। यह पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हित को ध्यान में रखकर किए जा रहे कराधान के भी खिलाफ थी। इस दल ने निजी क्षेत्र को खुली छूट देने की तरफदारी की। स्वतंत्र पार्टी कृषि में जमीन की हदबंदी, सहकारी खेती और खाद्यान्न के व्यापार पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ थी। इस दल ने गुटनिरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ से मित्रता के रिश्ते को कायम रखने को भी गलत माना। इसने संयुक्त राज्य अमरीका से मित्रता के रिश्ते बनाने की वकालत की।

अनेक क्षेत्रीय पार्टियों और हितों के साथ मेल करने के कारण स्वतंत्र पार्टी देश के विभिन्न हिस्सों में ताकतवर हुई। स्वतंत्र पार्टी की तरफ जमींदार और राजा-महाराजा आकर्षित हुए। भूमि सुधार के कानूनों से इनकी मिल्कियत और हैसियत को खतरा मँडरा रहा था और इससे बचने के लिए इन लोगों ने स्वतंत्र पार्टी का दामन थामा। उद्योगपति और व्यवसायी वर्ग के लोग राष्ट्रीयकरण और लाइसेंस नीति के खिलाफ थे। इन लोगों ने भी स्वतंत्र पार्टी का समर्थन किया। इस पार्टी का सामाजिक आधार बड़ा संकुचित था और इसके पास पार्टी सदस्य के रूप में समर्पित कॉडर की कमी थी। इस वजह से यह पार्टी अपना मजबूत सांगठनिक नेटवर्क खड़ा नहीं कर पाई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल था।
(क) 1951-1956
(ख) 1952-1957
(ग) 1955-1960
(घ) 1947-1952
उत्तर:
(क) 1951-1956

2. स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में किस आर्थिक प्रणाली को अपनाया गया?
(क) पूँजीवादी
(ख) मिश्रित
(ग) समाजवादी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) मिश्रित

3. योजना आयोग की स्थापना कब की गई?
(क) 1950
(ख) 1952
(ग) 1960
(घ) 1962
उत्तर:
(क) 1950

4. हरित क्रान्ति के दौरान किस फसल का सर्वाधिक उत्पादन हुआ?
(क) गेहूँ
(ख) बाजरा
(ग) सोयाबीन
(घ) चावल
उत्तर:
(क) गेहूँ

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

5. लौह-अयस्क का विशाल भंडार था।
(क) उड़ीसा
(ख) पंजाब
(ग) केरल
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) उड़ीसा

6. प्रथम पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक बल किस पर दिया गया।
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) पर्यटन
(घ) संचार
उत्तर:
(क) कृषि

7. भारत में नियोजन प्रक्रिया की प्रेरणा किस देश से ली गई।
(क) सोवियत संघ
(ख) चीन
(ग) जापान
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(क) सोवियत संघ

8. दूसरी पंचवर्षीय योजना कब शुरू हुई?
(क) 1951
(ख) 1956
(ग) 1966
(घ) 1957
उत्तर:
(ख) 1956

9. चौथी पंचवर्षीय योजना कब से शुरू होनी थी?
(क) 1961
(ख) 1966
(ग) 1967
(घ) 1962
उत्तर:
(ख) 1966

10. पहली योजना का मूलमंत्र क्या था?
(क) संरचनात्मक बदलाव
(ख) प्रौद्योगिकी
(ग) धीरज
(घ) कृषि
उत्तर:
(ग) धीरज

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

संजीव पास बुक्सं
1. …………………….. ‘से उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं।
उत्तर:
वामपंथ

2. ……………………… पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।
उत्तर:
दूसरी

3. पहली पंचवर्षीय योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से ……………………….बदलाव करने की थी।
उत्तर:
संरचनात्मक

4. केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना उसे …………………… कहा जाता है।
उत्तर:
केरल मॉडल

5. इकॉनोमी ऑफ परमानेंस के लेखक ……………………….. हैं।
उत्तर:
जे.सी. कुमारप्पा

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र भारत के समक्ष विकास के कौन-कौनसे दो मॉडल थे?
उत्तर:
पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल।

प्रश्न 2.
योजना आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
मार्च, 1950 में।

प्रश्न 3.
1944 में उद्योगपतियों ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया जिसे किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बॉम्बे प्लान।

प्रश्न 4.
वामपंथ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वामपंथ से उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं और इन तबकों को फायदा पहुँचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।

प्रश्न 5.
भारत सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर किस नई संस्था की स्थापना की?
उत्तर:
नीति आयोग।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 6.
दूसरी पंचवर्षीय योजना में मुख्यतः किस बात पर जोर दिया गया?
उत्तर:
औद्योगिक विकास पर।

प्रश्न 7.
दक्षिणपंथ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दक्षिणपंथ से उन लोगों को इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलंक अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही प्रगति हो सकती है।

प्रश्न 8.
” विकासशील देशों को सार्वजनिक उद्यमों का सहारा लेना ही पड़ता है, क्योंकि इनके सहयोग के बिना अर्थव्यवस्था गतिशील हो ही नहीं सकती ।” यह कथन किसका है? हुआ ?
उत्तर:
यह कथन प्रो. हैन्सन का है।

प्रश्न 9.
भारत में अर्थव्यवस्था के कौनसे स्वरूप को स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 10.
‘मिल्कमैन ऑफ इण्डिया’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वर्गीज कुरियन को।

प्रश्न 11.
नियोजित विकास क्या है?
उत्तर:
नियोजित विकास, विकास की एक प्रक्रिया है।

प्रश्न 12.
पश्चिमी मुल्कों में किस वजह से पुरानी सामाजिक संरचना टूटी और पूँजीवाद तथा उदारवाद का उदय
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

प्रश्न 13.
आधुनिकीकरण किसका पर्यायवाची माना जाता था?
उत्तर:
संवृद्धि, भौतिक प्रगति और वैज्ञानिक तर्कबुद्धि।

प्रश्न 14.
1969 में केन्द्र सरकार ने कितने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया?
उत्तर:
14 बैंकों का।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 15.
नियोजन की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।

प्रश्न 16.
भारत में नियोजन के दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  1. देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना।
  2. क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना।

प्रश्न 17.
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य आर्थिक पूँजी का निर्माण करना, आधारभूत उद्योगों का विकास करना तथा आर्थिक समानता की स्थापना करना है।

प्रश्न 18.
सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा निर्यात में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा बीमार कारखानों की पुर्नस्थापना होती है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कमियाँ बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों में अनुशासनहीनता, कार्यकुशलता में कमी तथा उत्तरदायित्व की कमी पायी जाती है।

प्रश्न 20.
भारत में हरित क्रान्ति की क्या आवश्यकता थी?
उत्तर:
देश में कृषिगत विकास करने तथा खाद्यान्नों का अधिकाधिक उत्पादन करके इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु हरित क्रान्ति की आवश्यकता पड़ी।

प्रश्न 21.
हरित क्रान्ति के मुख्य उद्देश्य कौन – कौनसे हैं?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के प्रमुख तत्त्व हैं। कृषि का निरन्तर विस्तार करना, दोहरी फसल का उद्देश्य तथा अच्छे बीजों का प्रयोग करना।

प्रश्न 22.
हरित क्रांति का एक नकारात्मक प्रभाव बताएं।
उत्तर:
हरित क्रांति के प्रभावस्वरूप धनाढ्य वर्गों ने गरीब व भूमिहीन किसानों का शोषण व दमन किया। परिणामतः नक्सलवादी आंदोलन को बल मिला।

प्रश्न 23.
हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम लिखिये
उत्तर:

  1. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई।
  2. झोले वर्ग के किसानों का उभार हुआ।

प्रश्न 24.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।

प्रश्न 25.
दूसरी पंचवर्षीय योजना में किसके विकास पर जोर दिया गया?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 26.
बाम्बे प्लान क्या है?
उत्तर:
1944 में भारतीय उद्योगपतियों का एक समूह बॉम्बे में एकत्र हुआ। इस बैठक में इन उद्योगपतियों ने नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ही बाम्बे प्लान के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 27.
भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।

प्रश्न 28.
हरित क्रान्ति का किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के कारण किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। वे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अब किसानों को साथ लेकर चलते हैं ।

प्रश्न 29.
जे. सी. कुमारप्पा का असली नाम क्या था?
उत्तर:
जे. सी. कॉर्नेलियस।

प्रश्न 30.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि सुधार से आशय है भूमि के स्वामित्व का पुनर्वितरण करना।

प्रश्न 31.
आपकी दृष्टि में अंग्रेजी शासन समाप्त होने पर भूमि सुधार का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास कौनसा किया गया था?
उत्तर:
जमींदारी प्रथा को समाप्त करना।

प्रश्न 32.
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब किया गया?
उत्तर:
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण जुलाई, 1969 में किया गया।

प्रश्न 33.
भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु क्या-क्या प्रयास किये गये?
उत्तर:
भारत में कृषि सुधार हेतु उन्नत बीजों का प्रयोग किया, भूमि सुधार किए गए तथा सिंचाई के साधनों की उचित व्यवस्था की गई।

प्रश्न 34.
HYV बीजों का प्रयोग किन राज्यों में किया गया ? इसका क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
HYV (High Yeilding Variety) बीजों का प्रयोग तमिलनाडु, पंजाब एवं आन्ध्रप्रदेश में किया गया तथा इससे गेहूँ की पैदावार अच्छी हुई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 35.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय तथा समाजवाद लागू करना था।

प्रश्न 36.
उड़ीसा के आदिवासियों ने लोहा – इस्पात उद्योग की स्थापना का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
उड़ीसा के आदिवासियों को इस बात का डर था कि यदि लोहा – इस्पात के उद्योग की स्थापना होती है, तो वे बेरोजगार हो जायेंगे तथा उन्हें विस्थापित होना पड़ेगा।

प्रश्न 37.
चौधरी चरण सिंह ने काँग्रेस पार्टी से अलग होकर कौन-सी पार्टी बनाई?
उत्तर:
भारतीय लोकदल।

प्रश्न 38.
जमींदारी उन्मूलन से होने वाले दो लाभ बताइये।
उत्तर:

  1. कृषकों का शोषण होना बन्द हो गया।
  2. कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।

प्रश्न 39.
केरल मॉडल में नव लोकतंत्रात्मक पहल नाम का अभियान कैसे चलाया गया था?
उत्तर:
इस अभियान में लोगों को स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के माध्यम से विकास की गतिविधियों में सीधे शामिल करने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 40.
योजना आयोग के सदस्य के रूप में आप भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र पर बल देते?
उत्तर:
योजना आयोग के सदस्य के रूप में मैं भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर बल देता।

प्रश्न 41.
ऑपरेशन फ्लड से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1970 में ऑपरेशन फ्लड के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसमें सहकारी दूध- उत्पादकों को उत्पादन और वितरण के राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है। यह कार्यों को क्रमबद्ध रूप से सम्पादित करने की एक मानसिक पूर्व प्रवृत्ति है, यह कार्य करने से पहले सोचना है तथा अनुमानों के स्थान पर तथ्यों को ध्यान में रखकर काम करना है।

प्रश्न 2.
पर्यावरणविदों के विरोध के क्या कारण थे? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र सरकार उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों देना चाहती थी?
उत्तर:
उड़ीसा में इस्पात प्लांट लगाये जाने से पर्यावरणविदों को इस बात का भय था कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को लगता था कि उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।

प्रश्न 3.
विकास सम्बन्धी निर्णय लेने से पूर्व सरकार को क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं? लोकतन्त्र में किन-किन विशेषज्ञों की सलाह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है?
उत्तर:

  1. सरकार को विकास सम्बन्धी योजना के बारे में निर्णय लेने से पूर्व एक सामाजिक समूह के हितों को दूसरे सामाजिक समूह के हितों की तथा वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ी के हितों की तुलना में तोला जाता है।
  2. लोकतन्त्र में विकास सम्बन्धी निर्णयों के सम्बन्ध में विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए, लेकिन अन्तिम निर्णय जनप्रतिनिधियों द्वारा ही लिया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
1940 और 1950 के दशक में नियोजन के पक्ष में दुनियाभर में हवा क्यों बह रही थी?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के पुननिर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था क्योंकि यूरोप, जापान और जर्मनी ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद नियोजन से अपनी अर्थव्यवस्था पुनः खड़ी कर ली थी। सोवियत संघ ने भारी कठिनाई के बीच नियोजन के द्वारा शानदार आर्थिक प्रगति की थी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 5.
योजना आयोग के संगठन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना 15 मार्च, 1950 को की गई। इसमें एक अध्यक्ष ( प्रधानमन्त्री), एक उपाध्यक्ष, तीन अशंकालीन सदस्य:

  1. केन्द्रीय गृह मन्त्री
  2. केन्द्रीय रक्षामन्त्री
  3. केन्द्रीय वित्तमन्त्री तथा तीन पूर्वकालिक सदस्य होते थे।

प्रश्न 6.
नियोजन के प्रमुख तीन तत्त्व बताइये।
उत्तर:
नियोजन के तीन तत्त्व ये हैं।

  1. उपलब्ध साधनों का सही आकलन
  2. इन साधनों के आर्थिक उपयोग हेतु एक योजना
  3. सभी साधनों का अनुकूलतम प्रयोग।

प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत पिछड़ी हुई थी। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी। अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का इतना बुरी तरह दोहन किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब हो गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन, अर्द्धसामन्ती तथा असन्तुलित अर्थव्यवस्था थी।

प्रश्न 8.
उन कारणों का वर्णन कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने उड़ीसा में इस्पात उद्योग स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा।
उत्तर:
इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महत्त्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था । उड़ीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा। उसने अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के इस्पात – निर्माताओं के साथ सहमति – पत्र पर हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 9.
सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रों का निर्माण एवं विस्तार से आशय है। भारी उद्योगों, कोयले तथा तेल की खोज तथा परमाणु ऊर्जा के विकास, अन्य महत्त्वपूर्ण उद्योगों के निर्माण एवं विस्तार का उत्तरदायित्व केन्द्रीय सरकार के पास होना तथा इसके लिए वित्तीय तथा मानव शक्ति संसाधन का प्रबन्ध सरकार द्वारा करना।

प्रश्न 10.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कोई दो समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की समस्याएँ हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में लालफीताशाही और नौकरशाही का बोलबाला है, जिस कारण से सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता निजी क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम है।
  2. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख समस्या प्रबन्ध व्यवस्था का कुशल न होना है।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार की समस्त आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियाँ शामिल की जाती हैं।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र आर्थिक असमानताओं को कम करके आर्थिक समानता की स्थापना का प्रयास करता है।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय नियन्त्रण होता है। इसमें एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 12.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की उत्पत्ति के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर:

  1. राज्य ने जनता के कल्याण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना की।
  2. बहु-उद्देश्यीय परियोजनाएँ सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत ही स्थापित की जा सकती हैं।
  3. समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को अपनाना अतिआवश्यक है।
  4. क्षेत्रीय आर्थिक असमानता सार्वजनिक क्षेत्र के उदय का महत्त्वपूर्ण कारण है।

प्रश्न 13.
दक्षिणपंथी विचारधारा क्या है?
उत्तर:
दक्षिणपंथी विचारधारा: इस विचारधारा में उन लोगों या दलों को सम्मिलित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है अर्थात् सरकार को अर्थव्यवस्था में गैरजरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए भूतपूर्व स्वतन्त्र पार्टी तथा वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को (विशेषकर 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद) दक्षिण पंथ की राजनीतिक पार्टियाँ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
वामपंथी विचारधारा क्या है?
उत्तर:
वामपंथी विचारधारा प्रायः वामपंथी विचारधारा में उन लोगों व राजनीतिक दलों को सम्मिलित किया जाता है जो साम्यवादी या समाजवादी, माओवादी, लेनिनवादी, नक्सलवादी, प्रजा समाजवादी, फॉरवर्ड ब्लॉक आदि दल स्वयं को इसी विचारधारा के पक्षधर एवं उस पर चलने के लिए कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनाते हैं। प्राय: ये गरीब एवं पिछड़े सामाजिक ‘समूह की तरफदारी करते हैं। वे इन्हीं वर्गों को लाभ पहुँचाने वाली सरकारी नीति का समर्थन करते हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 15.
पी. सी. महालनोबिस कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। इन्होंने सन् 1931 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी। वे दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार थे तथा तीव्र औद्योगीकरण तथा सार्वजनिक क्षेत्र की सक्रिय भूमिका के समर्थक थे ।

प्रश्न 16.
जे. पी. कुमारप्पा कौन थे?
उत्तर:
जे. पी. कुमारप्पा का जन्म 1892 में हुआ। इनका असली नाम जे. सी. कार्नेलियस था। इन्होंने अमेरिका में अर्थशास्त्र एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट की शिक्षा प्राप्त की। ये महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। आजादी के बाद उन्होंने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने का प्रयास किया। उनकी कृति ‘इकानॉमी ऑफ परमानैंस’ को बड़ी ख्याति मिली। योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी उनको ख्याति प्राप्त हुई।

प्रश्न 17.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हरित क्रान्ति: हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि की नई नीति अपनाने के कारण हुई है। जे. जी. हारर के अनुसार, ” हरित क्रान्ति शब्द 1968 में होने वाले उन आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।”

प्रश्न 18.
भारत में नियोजन की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
भारत में नियोजित विकास के कारणों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजन की आवश्यकता मुख्यतः अग्रलिखित कारणों से अनुभव की जाती है।

  1. नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  2. नियोजन द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की स्थापना की जा सकती है।
  3. देश में व्याप्त आर्थिक असंतुलन को समाप्त करने तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने व लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से नियोजन का अत्यधिक महत्त्व समझा गया।
  4. आर्थिक नियोजन का महत्त्व इस दृष्टि से भी था कि समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए।
  5. साधनों के उचित प्रयोग, वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग तथा राष्ट्रीय पूँजी का सही मात्रा में सदुपयोग की दृष्टि से भी नियोजन की अत्यधिक आवश्यकता थी ।

प्रश्न 19.
भारत में नियोजन के महत्त्व एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजन का महत्त्व एवं उपयोगिता – भारत में नियोजन के महत्त्व के सम्बन्ध में अग्रलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. नियोजन के अन्तर्गत आर्थिक विकास का दायित्व राज्य ग्रहण कर लेता है तथा एक सामूहिक गतिविधि के रूप में योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास का प्रारम्भ तथा उसका निर्देशन करता है।
  2. आधुनिक लोककल्याणकारी राज्य में आर्थिक संसाधनों के समानतापूर्ण वितरण में नियोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  3. नियोजन खुले बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में अस्थिरता की सम्भावनाओं को दूर करने में सहायक है।
  4. विदेशी व्यापार की दृष्टि से भी नियोजन उपयोगी है। नियोजन से विदेशी व्यापार को अपने देश के हितों की शर्तों पर किया जा सकता है।
  5. प्रभावी नियोजन द्वारा अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।

प्रश्न 20.
भारत में योजना आयोग की स्थापना किस प्रकार हुई? इसके कार्यों के दायरे का उल्लेख कीजिये।
अथवा
योजना आयोग के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना: योजना आयोग की स्थापना सन् 1950 में भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के द्वारा की। योजना आयोग एक सलाहकारी भूमिका निभाता रहा है। योजना आयोग के कार्य-योजना आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. देश के भौतिक संसाधनों और जनशक्ति का अनुमान लगाना तथा उन संसाधनों की वृद्धि की संभावनाओं का पता लगाना।
  2. देश के संसाधनों के सन्तुलित उपयोग के लिए प्रभावकारी योजना बनाना।
  3. योजना की क्रियान्विति के चरणों का निर्धारण तथा उनके लिए संसाधनों का नियमन करना।
  4. आर्थिक विकास में आने वाली बाधाओं की ओर संकेत करना तथा योजना की सफल क्रियान्विति के लिए उपयुक्त परिस्थिति निर्धारित करना।
  5. योजना की चरणवार प्रगति का अवलोकन करना तथा इस बारे में आवश्यक उपायों की सिफारिश करना।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय विकास परिषद् की रचना तथा उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय विकास परिषद् का संगठन: राष्ट्रीय विकास परिषद् के सदस्यों के रूप में निम्नलिखित व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है।
    1. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष होता है।
    2. योजना आयोग के सभी सदस्य।
    3. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का मुख्यमंत्री या उनका प्रतिनिधि।
  • परिषद् की बैठकों में उन मन्त्रियों को भी बुलाया जाता है, जिनके विभागों के सम्बन्ध में विचार किया जाना है। राष्ट्रीय विकास परिषद् के उद्देश्य
    1. योजना के समर्थन में राष्ट्र के साधनों तथा प्रयत्नों का उपयोग करना और उन्हें शक्तिशाली बनाना।
    2. सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सामान्य आर्थिक नीतियों की उन्नति करना।
    3. देश के सभी भागों का सन्तुलित विकास सुनिश्चित करना।

प्रश्न 22.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य बताइये।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के कार्य: राष्ट्रीय विकास परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
  2. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों सम्बन्धी विषयों पर विचार करना।
  3. राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना।
  4. राष्ट्रीय योजना के निर्माण के लिए तथा इसके साधनों के निर्धारण के लिए पथ-प्रदर्शक सूत्र निश्चित करना।
  5. योजना आयोग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय योजना पर विचार करना।
  6. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक तथा आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना।
  7. समय समय पर योजना के कार्यों की समीक्षा करना तथा राष्ट्रीय योजना में प्रतिपादित उद्देश्यों तथा कार्य लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करना।

प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति की आवश्यकता- 1960 के मध्य भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस काल में चीन तथा पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध, सूखा तथा अकाल, विदेशी मुद्रा संकट तथा खाद्यान्न के भारी संकट का सामना करना पड़ा। खाद्य संकट के कारण सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा। इन सबने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन परिस्थितियों से बाहर निकला जाए।

अतः भारतीय नीति-निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में कृषिगत पैदावार बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था।

प्रश्न 24.
“भारत में स्वतंत्रता से पूर्व ही नियोजन के पक्ष में कुछ उद्योगपति आ गए थे।” इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि भारत 1947 में आजाद हुआ था परंतु नियोजन के पक्ष में दो या ढाई वर्ष पूर्व ही बातें चलने लगी थीं। 1944 में उद्योगपतियों का एक तबका एकत्र हुआ इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ की संज्ञा दी गई। ‘बॉम्बे प्लान’ की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। इस तरह दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों की इच्छा थी कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चले। इस कारण भारत के स्वतंत्र होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने। भारत अपने विकास के लिए कौन सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा यह फैसला करने में इस संस्था ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा ।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 25.
प्रथम पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य – प्रथम पंचवर्षीय योजना के निम्न उद्देश्य हैं।

  1. प्रथम योजना का सर्वप्रथम उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप देश में जो आर्थिक अव्यवस्था तथा असन्तुलन पैदा हो चुका था उसको ठीक करना था।
  2. दूसरा उद्देश्य देश में सर्वांगीण सन्तुलित विकास प्रारम्भ करना था।
  3. तीसरा उद्देश्य उत्पादन क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासम्भव कम करना था।
  4. प्रथम योजना का एक उद्देश्य मुद्रास्फीति के दबाव को भी कम करना था।
  5. यातायात के साधनों में वृद्धि करना।
  6. बड़े पैमाने पर सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था पर भी जोर दिया गया था।
  7. राज्यों में कुशल प्रशासकीय मशीनरी की व्यवस्था करना भी इस योजना का मुख्य उद्देश्य था।

प्रश्न 26.
नियोजित विकास के शुरुआती दौर का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर का मूल्यांकन निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

  1. भारत के आगामी आर्थिक विकास की बुनियाद इसी दौर में पड़ी।
  2. भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुईं। इसमें सिंचाई और बिजली  उत्पादन के लिए शुरू की गई। भाखड़ा नांगल और हीराकुंड जैसी विशाल बाँध परियोजनाएँ शामिल हैं।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग जैसे इस्पात संयंत्र, तेल शोधक कारखाने, विनिर्माता इकाइयाँ, रक्षा उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू हुए।
  4. इस दौर में परिवहन और संचार के आधारभूत ढाँचे में भी काफी वृद्धि हुई।

प्रश्न 27.
नियोजित विकास के शुरुआती दौर के समय भूमि सुधार के लिए किए गए प्रयास का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर में भूमि सुधार के गंभीर प्रयास हुए। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण और सफल प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। यह प्रथा अंग्रेजी शासन के समय से चली आ रही थी। इस प्रथा को समाप्त करने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इससे राजनीति पर दबदबा कायम रखने की जमींदारों की क्षमता भी घटी। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करने के प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके।

इस बात के लिए भी कानून बनाया गया कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी भूमि अपने नाम पर रख सकता है। हालाँकि यह कानून सफल नहीं हो पाया। काश्तकारों के लिए भी कानून बना कि जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। परंतु इस कानून पर शायद ही अमल हुआ।

प्रश्न 28.
पंचवर्षीय योजनाओं के चार प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य: पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. आर्थिक संवृद्धि: आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय निरंतर सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि है। लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए आर्थिक संवृद्धि (अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना) आवश्यक है।
  2. आधुनिकीकरण: उत्पादन में नई तकनीक का प्रयोग तथा सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन को आधुनिकीकरण कहते हैं। अतः आधुनिकीकरण लाना पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य है।
  3. आत्मनिर्भरता: आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं के आयात से बचना है जिनका उत्पादन देश के अन्दर किया जाता है। पंचवर्षीय योजनाओं में इसी उद्देश्य को पूर्ण करने का प्रयास किया गया है।
  4. न्याय या समानता: सम्पत्ति व आय की विषमता को कम कर प्रत्येक के लिए आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करना भी पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है।

प्रश्न 29.
हरित क्रांति के विषय में कौन-कौनसी आशंकाएँ थीं? क्या यह आशंकाएँ सच निकलीं?
उत्तर:
सामान्यतः हरित क्रान्ति के विषय में दो भ्रान्तियाँ थीं।

  1. हरित क्रान्ति से अमीरों तथा गरीबों में विषमता बढ़ जायेगी क्योंकि बड़े जमींदार ही इच्छित अनुदानों का क्रय कर सकेंगे और उन्हें ही हरित क्रांति का लाभ मिलेगा और वे और अधिक धनी हो जायेंगे। निर्धनों को हरित क्रान्ति से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा।
  2. उन्नत बीज वाली फसलों पर जीव-जन्तु आक्रमण करेंगे। दोनों भ्रांतियाँ सच नहीं हुईं क्योंकि सरकार ने छोटे किसानों को निम्न ब्याज दर पर ऋणों की व्यवस्था की और रासायनिक खादों पर आर्थिक सहायता दी ताकि वे उन्नत बीज तथा रासायनिक खाद सरलता से खरीद सकें और उनका उपयोग कर सके। जीव-जन्तुओं के आक्रमणों को भारत सरकार द्वारा स्थापित अनुसंधान संस्थाओं की सेवाओं द्वारा कम कर दिया गया।

प्रश्न 30.
मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ तथा विशेषताएँ बताइये
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ भारत ने विकास के लिए पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल दोनों ही मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया और अपने देश में उन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया । इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ।

  1. इसमें खेती, किसानी, व्यापार और उद्योगों का एक बड़ा भाग निजी क्षेत्र के हाथों में रहा।
  2. राज्य ने अपने हाथ में भारी उद्योग रखे और उसने आधारभूत ढाँचा प्रदान किया।
  3. राज्य ने व्यापार का नियमन किया तथा कृषि क्षेत्र में कुछ बड़े हस्तक्षेप किये।

प्रश्न 31.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की क्या-क्या आलोचनाएँ की गईं?
उत्तर:
भारत में अपनाये गये विकास के मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों खेमों ने आलोचनाएँ कीं। यथा

  1. योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है और न ही निजी क्षेत्र के बढ़वार के लिए कोई उपाय किया गया है।
  2. विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निहित स्वार्थों को खड़ा किया है और इन न्यस्त हितों ने निवेश के लिए लाइसेंस तथा परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी की राह में रोड़े अटकाए हैं।
  3. सरकार ने अपने नियंत्रण में जरूरत से ज्यादा चीजें रखीं। इससे भ्रष्टाचार और अकुशलता बढ़ी है।
  4. सरकार ने केवल उन्हीं क्षेत्रों में हस्तक्षेप किया जहाँ निजी क्षेत्र जाने को तैयार नहीं थे । इस तरह सरकार ने निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की।

प्रश्न 32.
योजना आयोग का गठन किन कारणों से किया गया था? क्या वह अपने गठन के उद्देश्य में सफल रहा?
उत्तर:
योजना आयोग का गठन:

  • भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च, 1950 को किया गया। इसका गठन निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया था।
    1. पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना,
    2. गरीबी का उन्मूलन करना,
    3. सामाजिक समानता की स्थापना करना,
    4. उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग करना,
    5. संतुलित क्षेत्रीय विकास करना तथा
    6. राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना। लेकिन योजना आयोग अपने गठन के उद्देश्यों में पूर्णतः सफल नहीं हुआ है।
  • वह अपने उद्देश्यों में आंशिक रूप से भी सफल हुआ है क्योंकि:
    1. बेरोजगारी की समस्या अभी भी बनी हुई है।
    2. देश में गरीबी विद्यमान है।
    3. गरीब और गरीब हुआ है तथा अमीर और अमीर बना है। अतः सामाजिक असमानता कम होने के स्थान पर बढ़ी है।
    4. देश में क्षेत्रीय विकास संतुलित न होकर असंतुलित हुआ है।

प्रश्न 33.
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हेतु सरकार द्वारा क्या प्रयास किये गये?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हेतु निम्नलिखित प्रयास किये गये।

  1. जमींदारी प्रथा की समाप्ति: भूमि सुधार सम्बन्धी सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। जमींदारी प्रथा को समाप्त करने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे कृषि में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
  2. चकबन्दी: जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक-साथ करने के प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके।
  3. जोत की अधिकतम सीमा का निर्धारण: भूमि सुधार हेतु इस बात के कानून बनाए गए कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी भूमि अपने पास रख सकता है। लेकिन जिनके पास सीमा से अधिक जमीन थी, उन्होंने इन कानून से बचने के रास्ते खोज लिये।
  4. बटाईदार/ किरायेदार काश्तकार को सुरक्षा: जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें भी ज्यादा कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई, लेकिन इस पर शायद ही कहीं अमल हुआ।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 34.
उड़ीसा में किसका भंडार है? इससे संबंधित उद्योग लगाने पर आदिवासी, पर्यावरणविदों तथा केन्द्र सरकार को किस बात का भय था?
उत्तर:
उड़ीसा में लौह-अयस्क का भंडार है। लौह-अयस्क के ज्यादातर भंडार उड़ीसा के सर्वाधिक अविकसित. इलाकों में है। खासकर इस राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में। आदिवासियों को डर है अगर यहाँ उद्योग लग गए तो उन्हें अपने घर से बार-बार विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी। पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को भय है कि यदि उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।

प्रश्न 35.
योजना आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
योजना आयोग संविधान द्वारा स्थापित आयोग है, जो दूसरे निकायों से भिन्न है। योजना आयोग की स्थापना मार्च, 1950 में, भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिए की। यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मंत्रिमंडल उन्हें मंजूर करे।

प्रश्न 36.
आर्थिक नीति किसी समाज की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का अंग होती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर के समय भूमि सुधार के लिए कुछ नियम-कायदे बनाए गए। परंतु कृषि की बेहतरी और खेतिहर जनता की भलाई से जुड़ी इन नीतियों को ठीक और कारगर तरीके से अमल में ला पाना इतना आसान नहीं था। यह तभी संभव था जब ग्रामीण भूमिहीन जनता लामबंद हो परन्तु भू-स्वामी बहुत ताकतवर थे। इनका राजनीतिक रसूख भी होता था। इस वजह से भूमि सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या कानून बनने पर मात्र कागज की शोभा बढ़ाते रहे। इस प्रकार हमें यह पता चलता है कि आर्थिक नीति किसी समाज की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का अंग होती है।

प्रश्न 37.
श्वेत क्रांति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुजरात एक ‘आणंद’ नामक शहर है। सहकारी दूध उत्पादन का आंदोलन अमूल इसी शहर में कायम है। इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े हैं। ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के लिहाज से ‘अमूल’ अपने आप में एक अनूठा और कारगर मॉडल है। इसी मॉडल के विस्तार को श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 38.
‘ऑपरेशन फ्लड’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था। इसके अंतर्गत सहकारी दूध: उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। हालाँकि यह कार्यक्रम मात्र डेयरी – कार्यक्रम नहीं था। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम को विकास के एक माध्यम के रूप में अपनाया गया था ताकि ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों, उनकी आमदनी बढ़े और गरीबी दूर हो। इन कार्यक्रमों के कारण सहकारी दूध उत्पादकों की सदस्य संख्या लगातार बढ़ रही है। सदस्यों में महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। महिला सहकारी डेयरी के जमातों में भी इजाफा हुआ है।

प्रश्न 39.
हरित क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।
    1. हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ।
    2. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई।
    3. हरित क्रांति के कारण देश में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ और देश के अनेक हिस्सों में ये प्रभावशाली बनकर उभरे।
  • हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।
    1. समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ।
    2. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के लिहाज से पिछड़ गए।
    3. गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन का अर्थ बताइये तथा उसके उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।
अथवा
नियोजन से आप क्या समझते हैं? भारत में नियोजन के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय योजना आयोग ने नियोजन को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “नियोजन साधनों के संगठन की एक विधि है जिसके माध्यम से साधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। ” नियोजन के उद्देश्य
कराना। भारत में नियोजन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. पूर्ण रोजगार: भारत में बेरोजगारी की समस्या को दूर कर लोगों को पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध
  2. गरीबी का उन्मूलन: निर्धनता निवारण हेतु व्यक्ति की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति व जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराना।
  3. सामाजिक समानता की स्थापना करना: धन के समान वितरण द्वारा सामाजिक समानता की स्थापना करना।
  4. उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग: सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित करना।
  5. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास: विकास सम्बन्धी क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर कर सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करना।
  6. राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी करना: राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना।
  7. सामाजिक उद्देश्य: वर्ग रहित समाज की स्थापना करना।

इस प्रकार नियोजन आधुनिक युग की नूतन प्रवृत्ति है। इसके अभाव में राष्ट्र सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
भारत में नियोजन के विकास का प्रारम्भ किस प्रकार हुआ है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. भारत में नियोजन के विकास का प्रारम्भ: भारत में नियोजन के प्रारम्भ का विवेचन मोटे रूप से निम्नलिखित दो बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है। स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में नियोजन व विकास-

  1. भारत में पहली बार नियोजित विकास का विचार श्री एम. विश्वेश्वरैया ने सन् 1934 में अपनी पुस्तक ‘भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था’ में प्रतिपादित किया।
  2. सन् 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत में नियोजन व विकास के संदर्भ में एक समिति गठित की। इस समिति ने अनेक प्रस्तावों की रूपरेखा तैयार की।
  3. सन् 1944 में देश के प्रमुख उद्योगपतियों ने देश के आर्थिक विकास के लिए बम्बई योजना नामक एक योजना तैयार की तथा श्री एम. एन. राय ने भी एक दस वर्षीय योजना ‘जनता योजना’ तैयार की।
  4. अगस्त, 1944 में तत्कालीन भारत सरकार ने भारत के पुनर्निर्माण हेतु एक दीर्घावधि की तथा एक अल्पावधि की दो योजनाएँ तैयार कीं।
  5. सन् 1946 में गठित एक आयोग ने भारत के विकास के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक योजना आयोग के गठन का सुझाव दिया।

II. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में नियोजन व विकास तथा योजना आयोग की स्थापना: स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 15 मार्च, 1950 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग का गठन किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 3.
पहले दो दशकों में भारत के नेताओं ने कौनसी रणनीति अपनाई और उन्होंने ऐसा क्यों किया? विकास की रणनीति
उत्तर:
भारत के योजना आयोग ने विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। इस योजना के अनुसार केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया। एक हिस्सा गैर योजना व्यय का था। इसके अन्तर्गत सालाना आधार पर दैनंदिन मदों पर खर्च करना था। दूसरा हिस्सा योजना- व्यय का था। योजना में तय की गई प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे पांच साल की अवधि में व्यय करना था।

  • प्रथम पंचवर्षीय योजना:
    1. इस योजना में ज्यादा जोर कृषि – क्षेत्र पर था। इसके अंतर्गत बांध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। क्योंकि विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी।
    2. इस योजना में भूमि सुधार पर भी जोर दिया गया।
    3. योजनाकारों का बुनियादी लक्ष्य राष्ट्रीय आय के स्तर को ऊँचा करने का था। यह तभी संभव था जब लोगों की बचत हो। इसलिए बचत को बढ़ावा देने की कोशिश की गई।
  • द्वितीय पंचवर्षीय योजना:
    1. इस योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया क्योंकि तेज गति से संरचनात्मक बदलाव का लक्ष्य रखा गया था।
    2. बिजली, रेलवे, इस्पात, मशीनरी, संचार आदि उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ाया गया।
    3. सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया।

प्रश्न 4.
भारत में प्रारंभिक विकास की रणनीतियों पर उठे किन्हीं दो मुद्दों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
प्रारंभिक दौर के विकास में जो रणनीतियाँ अपनाई गईं उन पर अनेक मुद्दे उठे उनमें से दो प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित थे।

  • कृषि बनाम उद्योग: इस संबंध में मुख्य मुद्दा यह उठा कि भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किसमें ज्यादा संसाधन लगाये जाने चाहिए। यथा-
    1. कुछ लोगों का कहना था कि दूसरी योजना में उद्योगों पर ज्यादा जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँची। इसलिए उन्होंने ग्रामीण औद्योगीकरण तथा कृषि पर बल दिया।
    2. कुछ का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किये बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता।
  • (2) निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र – भारत द्वारा विकास के लिये अपनायी गयी मिश्रित अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में निजी व सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी ये मुद्दे उठे।
    1. योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है और न ही निजी क्षेत्र के बढ़वार के लिए कोई उपाय किया गया है।
    2. विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निहित स्वार्थों के हितों के निवेश के लिए लाइसेंस तथा परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी की राह में रोड़े अटकाए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अकुशलता भी बढ़ी है।
    3. सरकार ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र की उपेक्षा की है तथा निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की है।

प्रश्न 5. भारत
में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका एवं महत्त्व का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका एवं महत्त्व: भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका व इसके महत्त्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. समाजवादी समाज की स्थापना: आर्थिक असमानता को कम करके समाजवादी समाज की स्थापना के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम महत्त्वपूर्ण हैं ।
  2. सन्तुलित आर्थिक विकास में सहायक: सार्वजनिक उद्यम पिछड़े क्षेत्रों के तीव्र विकास करने व पिछड़े तथा सम्पन्न राज्यों के बीच खाई को पाटने में सहायक हैं।
  3. सामरिक (सुरक्षा) उद्योगों के लिए महत्त्वपूर्ण: नागरिकों की सुरक्षा हेतु विश्वसनीय हथियारों का निर्माण निजी क्षेत्र को न सौंपकर सार्वजनिक क्षेत्र को सौंपना अधिक उपयोगी है।
  4. लोककल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कुछ मूलभूत जन उपयोगी सेवाएँ, जैसे पानी, बिजली, परिवहन, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा तथा कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र ही उपयोगी है।
  5. अर्थव्यवस्था पर नियन्त्रण: अर्थव्यवस्था को उतार-चढ़ावों से बचाने के लिए तथा इसको नियमित रखने के लिए सरकारी नियन्त्रण आवश्यक है।
  6.  विदेशी सहायता: विदेशी सहायता की प्राप्ति के लिए भी सार्वजनिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
  7. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा: सार्वजनिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का जनहित में विवेकपूर्ण ढंग से विदोहन संभव होता है
  8. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना: ये उद्योग बेरोजगारी को दूर करने में सहायता प्रदान करते हैं।
  9. निर्यात को प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र देश के निर्यात को बढ़ाने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ. है।
  10. सहायक उद्योगों का विकास: सार्वजनिक क्षेत्र ने सहायक उद्योगों के विकास में सहायता प्रदान की है।

प्रश्न 6.
देश की स्वतंत्रता के पश्चात् विकास के स्वरूप में और इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के बारे में किस सीमा तक टकराव था? क्या यह टकराव आज भी जारी है विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ। आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए जिससे सामाजिक समूह का हित सधे। इनमें से कोई भी फैसला बाकी फैसलों से मुँह फेरकर नहीं लिया जा सकता था। सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक मॉडल या विजन से बँधे हुए थे। लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक-सामाजिक न्याय दोनों ही हैं। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी, उद्योगपति और किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

सरकार को इस मसले में प्रमुख भूमिका निभानी थी। यद्यपि आर्थिक संवृद्धि हो और सामाजिक न्याय मिले इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन सी भूमिका निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजना बनाएं? क्या सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?

इनमें से प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी है। जो फैसले लिए गए उनके राजनीतिक परिणाम सामने आए। इनमें से अधिकतर मसलों पर राजनीतिक रूप से कोई फैसला लेना ही था और इसके लिए राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करना जरूरी था, साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करनी थी।

प्रश्न 7.
भारत में विकास की प्रारंभिक रणनीति की मुख्य उपलब्धियाँ क्या रहीं और इसकी सीमाएँ क्या थीं? विकास की रणनीति की उपलब्धियाँ नियोजित विकास की प्रारंभिक रणनीतियों की अग्र प्रमुख उपलब्धियाँ रहीं।
उत्तर:

  • आर्थिक विकास की नींव की स्थापना- विकास के इस दौर में भारत के आगामी आर्थिक विकास की नींव पड़ी। यथा
    1. भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुईं।
    2. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग, जैसे- इस्पात संयंत्र, तेल शोधक कारखाने, विनिर्माता इकाइयाँ, रक्षा- उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू हुए।
    3. इस दौर में परिवहन और संचार के आधारभूत ढाँचे में भी काफी इजाफा हुआ।
  • भूमि सुधार: इस अवधि में जमींदारी प्रथा की समाप्ति, चकबन्दी, अधिकतम भूमि सीमा का निर्धारण आदि भूमि सुधार के गंभीर प्रयास किये गये।
  • हरित क्रांति: सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनायी इसके अन्तर्गत समृद्ध तथा सिंचाई सुविधा क्षेत्र के किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराये तथा उनकी उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया। इसे हरित क्रांति कहा गया। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई तथा मझोले दर्जे के किसानों का उभार हुआ।

प्रारंभिक रणनीति की सीमाएँ: विकास की इस प्रारंभिक रणनीति की निम्नलिखित सीमाएँ रहीं।

  1. भूमि सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या उनका उचित क्रियान्वयन नहीं हो सका।
  2. हरित क्रांति के दौर में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ और गरीब किसानों बड़े भूस्वामियों के बीच का अन्तर बढ़ा।
  3. इससे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र ही समृद्ध हुए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 8.
हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों की परीक्षा कीजिए।
अथवा
हरित क्रांति क्या है? हरित क्रान्ति के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू बताइये।
अथवा
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? हरित क्रान्ति के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं? इसकी सफलता के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ- हरित क्रांति से अभिप्राय कृषिगत उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करने से है। इसके तीन तत्त्व थे।

  1. कृषि का निरन्तर विस्तार
  2. दोहरी फसल लेना तथा
  3. अच्छे बीजों का तथा आधुनिक कृषि पद्धति का प्रयोग।

हरित क्रान्ति के सकारात्मक प्रभाव
अथवा
हरित क्रान्ति की सफलता के विभिन्न पक्ष

  • भारत में हरित क्रान्ति के सकारात्मक परिणाम सामने आये, जो इस प्रकार हैं।
    1. उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई: हरित क्रान्ति के प्रभावस्वरूप कृषिगत उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई जिससे भारत गेहूँ आयात करने के स्थान पर निर्यात करने की स्थिति में आ गया।
    2. औद्योगिक विकास को बढ़ावा: इससे औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा मिला क्योंकि अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों के लिए उद्योग लगाए गए।
    3. बुनियादी ढाँचे का विकास: हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में बुनियादी ढाँचे में उत्साहजनक विकास देखने को मिला।
    4. जलविद्युत शक्ति को बढ़ावा: बाँधों द्वारा संचित किए गये पानी का जलविद्युत शक्ति के उत्पादन में प्रयोग किया गया।
    5. किसानों में संगठनात्मक एकता जागृत हुई- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारतीय किसानों में संगठनात्मक एकता जागृत हुई तथा किसानों में राजनैतिक चेतना आई।
  • हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव।
    1. हरित क्रांति ने निर्धन और छोटे किसानों तथा धनी जमीदारों के बीच की खाई को बहुत गहरा कर दिया।
    2. इससे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि से समृद्ध हो गये जबकि शेष इलाकों में कृषि पिछड़ी रही।

प्रश्न 9.
खाद्य संकट के बारे में विस्तारपूर्वकं लिखिए।
उत्तर:
1960 के दशक में कृषि की दशा बद से बदतर होती गई। 1940 और 1950 के दशक में ही खाद्यान्न के उत्पादन की वृद्धि दर, जनसंख्या की वृद्धि दर से जैसे-तैसे अपने को ऊपर रख पाई थी। 1965 से 1967 के बीच देश अनेक हिस्सों में सूखा पड़ा। इसी समय में भारत ने दो युद्धों का सामना किया और उसे विदेशी मुद्रा के संकट को भी झेलना पड़ा। इन सारी बातों के कारण खाद्यान्न की भारी कमी हो गई।

देश के अनेक भागों में अकाल जैसी स्थिति आन पड़ी। बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे ज्यादा विकराल था। यहाँ स्थिति लगभग अकाल जैसी हो गई थी। बिहार के सभी जिलों में खाद्यान्न का अभाव बड़े पैमाने पर था। इस राज्य के 9 जिलों में अनाज की पैदावार सामान्य स्थिति की तुलना में आधी से भी कम थी।

इनमें से पाँच जिले अपनी सामान्य पैदावार की तुलना में महज एक-तिहाई ही अनाज उपजा रहे थे। खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला और इसने गंभीर रूप धारण किया। 1967 में बिहार की मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34 प्रतिशत बढ़ गई थी। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न की कीमतें भी बढ़ीं। अपेक्षाकृत समृद्ध पंजाब की तुलना में गेहूँ और चावल बिहार में दो गुने अथवा उससे भी ज्यादा दामों में बिक रहे थे। सरकार ने उस वक्त ‘ज़ोनिंग’ या ‘इलाकाबंदी’ की नीति अपना रखी थी। इसी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार बंद था।

इस नीति के कारण उस वक्त बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी मात्रा में गिरावट आई। ऐसी दशा में समाज के सबसे गरीब तबके पर सबसे ज्यादा असर पड़ा। खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा और विदेशी मदद भी स्वीकार करनी पड़ी। अब योजनाकारों के सामने पहली प्राथमिकता यह थी कि किसी भी तरह खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर बने। पूरी योजना-प्रक्रिया और इससे जुड़ी आशा तथा गर्वबोध को इन बातों से धक्का लगा।

प्रश्न 10.
हरित क्रांति की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसके परिणाम लिखिए ।
उत्तर- खाद्यान्न संकट के कारण देश पर बाहरी दबाव पड़ने की आशंका बढ़ गई थी। भारत विदेशी खाद्य सहायता पर निर्भर होने लगा था, खासकर संयुक्त राज्य अमरीका के। संयुक्त राज्य अमरीका ने इसकी एवज में भारत पर अपनी आर्थिक नीतियों को बदलने के लिए दबाव डाला। सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे, सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की रणनीति अपनाई। परंतु कुछ समय पश्चात् इस नीति को छोड़ दिया गया।

सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद थी और जहाँ किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि जो पहले से ही सक्षम है वह कम समय में उत्पादन की रफ्तार को बढ़ाने में सहायक होंगे। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात का भी आश्वासन दिया कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदा जाएगा। यही परिघटना ‘हरित क्रांति’ के नाम से जानी गई।

हरित क्रांति के परिणाम: इस प्रक्रिया में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को अधिक फायदा हुआ। हरि क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई। यद्यपि इसके कारण समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे इलाकों के किसान समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़ गए।

हरि क्रांति के कारण गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई। हरित क्रांति की वजह से कृषि में मध्यम दर्जे के किसानों का उभार हुआ । इन्हें बदलावों का फायदा हुआ था और ये देश के अनेक हिस्सों में ताकतवर बनकर उभरे

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

बहुच्चयनात्मक प्रश्न

1. भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप है।
(क) एकदलीय
(ख) द्विदलीय
(ग) बहुदलीय
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) बहुदलीय

2. निर्बल व अस्थिर शासन जिस प्रणाली का दोष है, वह है।
(क) एकदल की तानाशाही
(ख) द्विदलीय प्रणाली
(ग) बहुदलीय प्रणाली
(घ) दलविहीन प्रणाली
उत्तर:
(ग) बहुदलीय प्रणाली

3. जनता पार्टी का उदय कब हुआ?
(क) 1980
(ख) 1998
(ग) 1999
(घ) 1977
उत्तर:
(घ) 1977

4. निम्न में कौनसा दल अखिल भारतीय दल है?
(क) तेलुगूदेशम
(ख) कांग्रेस
(ग) समाजवादी पार्टी
(घ) राष्ट्रीय जनता दल।
उत्तर:
(ख) कांग्रेस

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

5. निम्न में से किस राज्य में क्षेत्रीय दल प्रभावी है।
(क) तमिलनाडु
(ख) उत्तरप्रदेश
(ग) राजस्थान
(घ) मध्यप्रदेश
उत्तर:
(क) तमिलनाडु

6. निम्न में दक्षिण भारत की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी कौनसी है?
(क) डी. एम. के.
(ख) राष्ट्रीय जनता दल
(ग) इनैलो
(घ) नेशनल कांफ्रेंस
उत्तर:
(क) डी. एम. के.

7. 1980 के दशक के आखिर के सालों में देश की राष्ट्रीय राजनीति में किस मुद्दे का उदय हुआ?
(क) काँग्रेस प्रणाली
(ख) अन्य पिछड़ा वर्ग
(ग) मंडल मुद्दे
(घ) राष्ट्रीय मोर्चा
उत्तर:
(ग) मंडल मुद्दे

8. राजीव गाँधी की हत्या कब हुई थी?
(क) 1983
(ख) 1990
(ग) 1985
(घ) 1991
उत्तर:
(घ) 1991

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

9. राजीव गाँधी की मृत्यु के पश्चात् प्रधानमंत्री किसको चुना गया?
(क) संजय गाँधी
(ख) नरसिम्हा राव
(ग) गुलजारी लाल नंदा
(घ) मोरारजी देसाई
उत्तर:
(ख) नरसिम्हा राव

10. बामसेफ का गठन हुआ-
(क) 1978
(ख) 1980
(ग) 1991
(घ) 1989
उत्तर:
(क) 1978

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. 1978 में ………….. का गठन हुआ।
उत्तर:
बामसेफ

2. बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक ……………. थे।
उत्तर:
कांशीराम

3. मुस्लिम महिला अधिनियम ………………में पास किया गया।
उत्तर:
1986

4. अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का प्रस्ताव …………….. मुद्दे में किया गया था।
उत्तर:
मंडल

5. बाबरी मस्जिद के विवादित ढाँचे को विध्वंस करने की घटना ………………… के दिसंबर महीने में घटी।
उत्तर:
1992

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में गठबन्धन की राजनीति की शुरुआत कौनसे दशक में शुरू हुई?
उत्तर:
1990 के दशक में।

प्रश्न 2.
जनता दल का गठन कब किया गया?
उत्तर:
सन् 1988 में।

प्रश्न 3.
राजग का गठन हुआ
उत्तर:
1999 में।

प्रश्न 4.
संप्रग सरकार का गठन कब हुआ?
उत्तर:
2004 में।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 5.
सन् 1989 की प्रमुख राजनैतिक घटना क्या थी?
उत्तर:
कांग्रेस की हार।

प्रश्न 6.
किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हो ऐसी संसद को कहते हैं।
उत्तर:
त्रिशंकु संसद।

प्रश्न 7.
2004 के लोकसभा चुनावों में किस गठबन्धन की सरकार बनी?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन।

प्रश्न 8.
भारत में सन् 2009 में किस गठबंधन की सरकार केंन्द्र में दोबारा बनी थी?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की।

प्रश्न 9.
संयुक्त मोर्चा की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1996 में।

प्रश्न 10.
मण्डल आयोग की सिफारिशों को कब लागू किया गया?
उत्तर:
1990 में।

प्रश्न 11.
1989 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटों पर विजय मिली?
उत्तर:
1989 के चुनाव में काँग्रेस पार्टी को 197 सीटों पर विजय मिली थी।

प्रश्न 12.
कौनसा क्षेत्रीय दल है जो राष्ट्रभाषा हिन्दी का विरोध और राज्यों की स्वायत्तता का हिमायती है?
उत्तर:
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी.एम.के.)।

प्रश्न 13.
भारत में राजनीतिक दलों को मान्यता देने वाली संस्था का नाम बताइये।
उत्तर:
निर्वाचन आयोग।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 14.
भारतीय दलीय व्यवस्था का वह कौनसा स्वरूप है जो राजनीतिक अस्थायित्व और अवसरवादिता को जन्म देता है?
उत्तर:
राजनीतिक दल-बदल।

प्रश्न 15.
राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के प्रमुख बाधक तत्त्व क्या हैं?
उत्तर:
विचारधाराओं की विभिन्नता।

प्रश्न 16.
भारतीय दलीय व्यवस्था की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: बहुदलीय व्यवस्था, शासन सत्ता को मर्यादित करना।

प्रश्न 17.
राजनीतिक दलों के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
,राजनीतिक चेतना का प्रसार, शासन सत्ता को मर्यादित करना।

प्रश्न 18.
क्षेत्रीय दल किसे कहते हैं?
उत्तर:
क्षेत्रीय दल वे दल कहलाते हैं जिनका संगठन एवं प्रभाव क्षेत्र प्रायः केवल एक राज्य या प्रदेश तक सीमित होता है।

प्रश्न 19.
वर्तमान दलीय व्यवस्था की उभरती हुई दो प्रवृत्तियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. जाति आधारित दलों का गठन
  2. राजनीतिक अपराधीकरण।

प्रश्न 20.
भारतीय दलीय व्यवस्था के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  1. साम्प्रदायिकता तथा क्षेत्रवाद की प्रबलता।
  2. नैतिकता का अभाव।

प्रश्न 21.
राजनीतिक दलों के दो आवश्यक तत्त्व बताइये।
उत्तर:
संगठन, सामान्य सिद्धान्तों में एकता।

प्रश्न 22.
किन्हीं चार क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. डी. एम. के.
  2. ए. डी. एम. के.
  3. अकाली दल
  4. तेलगूदेशम।

प्रश्न 23.
किस चुनाव के बाद लोकसभा में किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला?
उत्तर:
1989 के लोकसभा चुनावों के बाद किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ।

प्रश्न 24.
1989 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में जनता दल ने किसके नेतृत्व में सरकार बनाई?
उत्तर:
1989 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में जनता दल ने वी. पी. सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई।

प्रश्न 25.
1989 से 2004 के चुनावों तक लोकसभा में किस पार्टी के स्थान बढ़ते रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी के।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 26.
लोकतान्त्रिक सरकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक सरकार वह सरकार होती है जिसमें सत्ता के बारे में अन्तिम निर्णय जनता द्वारा लिया जाता है।

प्रश्न 27.
संयुक्त मोर्चा की एक विशेषता लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त मोर्चा का गठन कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए किया गया।

प्रश्न 28.
मंडल मुद्दा से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
अन्य पिछड़ा वर्ग को मिले आरक्षण के समर्थक और विरोधियों के बीच चले विवाद को मंडल मुद्दा कहा गया।

प्रश्न 29.
भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से समर्थन वापस कब लिया?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से 23 अक्टूबर, 1990 को समर्थन वापस लिया।

प्रश्न 30.
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धन युग के उदय का कोई एक कारण लिखें।
उत्तर:
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धनवादी युग के उदय का महत्त्वपूर्ण कारण क्षेत्रीय दलों में वृद्धि है।

प्रश्न 31.
गठबन्धन की राजनीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति का अर्थ कई दलों द्वारा सरकार का निर्माण करने से लिया जाता है।

प्रश्न 32.
गठबन्धनवादी राजनीति की प्रमुख समस्या क्या है?
उत्तर:
गठबन्धनवादी राजनीति की प्रमुख समस्या है। इसमें क्षेत्रीय पार्टियाँ राजनीतिक सौदेबाजी तथा अवसरवादिता की राजनीति करती हैं।

प्रश्न 33.
बाबरी मस्जिद कब गिराई गई, उस समय केन्द्र में किस पार्टी की सरकार थी?
उत्तर:
बाबरी मस्जिद 6 दिसम्बर, 1992 को गिराई गई, उस समय केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी तथा पी. वी. नरसिम्हा राव प्रधानमन्त्री थे।

प्रश्न 34.
2014 के लोकसभा चुनावों में किस दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ है?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी को।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 35.
वैचारिक प्रतिबद्धता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैचारिक प्रतिबद्धता: वैचारिक प्रतिबद्धता से अभिप्राय है। राजनीतिक दलों का आर्थिक तथा राजनीतिक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध होना।

प्रश्न 36.
चुनावों में क्षेत्रीय दलों की शक्ति में वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले तीन राजनैतिक परिणाम बताइये।
उत्तर:
चुनावों में क्षेत्रीय दलों की शक्ति में वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले तीन राजनैतिक परिणाम हैं।

  1. राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि
  2. क्षेत्रवाद को बढ़ावा
  3. मिली-जुली राजनीति का प्रारंभ।

प्रश्न 37.
भारत के किन्हीं तीन क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय दल हैं।

  1. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी.एम.के.)।
  2. अखिल भातीय अन्ना द्रविड़ मुनैत्र कड़गम (ए. आई. अन्ना डी. एम. के.) तथा।
  3. तेलगूदेशम।

प्रश्न 38.
भारत के दो राष्ट्रीय दलों के नाम लिखिये।
उत्तर:
राष्ट्रीय दल हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी।

प्रश्न 39.
भारत में दलीय व्यवस्था की कोई तीन समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की तीन समस्याएँ ये हैं।

  1. दलों की सरकार
  2. दलों में वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव
  3. दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव।

प्रश्न 40.
निम्न को सुमेलित कीजिए:
(i) राष्ट्रीय मोर्चा – कांग्रेस व क्षेत्रीय दल
(ii) संयुक्त मोर्चा – भाजपा व क्षेत्रीय दल
(iii) राजग – कांग्रेस व राष्ट्रीय मोर्चा
(iv) संप्रग – जनता दल व क्षेत्रीय दल
उत्तर:
(i) राष्ट्रीय मोर्चा – जनता दल व क्षेत्रीय दल
(ii) संयुक्त मोर्चा – कांग्रेस व राष्ट्रीय मोर्चा
(iii) राजग – भाजपा व क्षेत्रीय दल
(iv) संप्रग – कांग्रेस व क्षेत्रीय दल

प्रश्न 41.
राजीव गाँधी की हत्या के जिम्मेदार कौन थे?
उत्तर:
राजीव गाँधी की हत्या के जिम्मेदार लिट्टे से जुड़े श्रीलंकाई तमिल थे

प्रश्न 42.
अन्य पिछड़ा वर्ग को और क्या बोल कर संकेत किया जाता है?
उत्तर:
अदर बैकवर्ड क्लासेज।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 43.
मंडल आयोग को आधिकारिक रूप से क्या कहा गया?
उत्तर:
मंडल आयोग को आधिकारिक रूप से दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग कहा गया।

प्रश्न 44.
बामसेफ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन।

प्रश्न 45.
हिन्दुत्व अथवा हिंदूपन शब्द को किसने गढ़ा था?
उत्तर:
हिन्दुत्व अथवा हिंदूपन शब्द को वी. डी. सावरकर ने गढ़ा था।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस वर्ष भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और इसके प्रथम अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना सन् 1980 में हुई। पहले यह जनता पार्टी का घटक थी लेकिन दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर जनता पार्टी से मतभेद हो गया और पूर्व जनसंघ अलग हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के प्रथम अध्यक्ष थे।

प्रश्न 2.
राजनीतिक दल-बदल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कोई जनप्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न को लेकर चुनाव लड़े और चुनाव जीतने के बाद इस दल को छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाए, तो इसे राजनीतिक दल-बदल कहते हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 3.
संयुक्त मोर्चा सरकार की प्रमुख विशेषता बताइये।
उत्तर:
संयुक्त मोर्चा सरकार 1 जून, 1996 में देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी। इस सरकार की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि केन्द्र में बनी सरकार क्षेत्रीय पार्टियों के समर्थन पर टिकी हुई थी और भारतीय राजव्यवस्था के इतिहास में पहली बार भारतीय साम्यवादी दल केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में शामिल हुआ।

प्रश्न 4.
1989 में भारत में गठबन्धन सरकार की आवश्यकता क्यों पड़ी? एक उदाहरण दें।
उत्तर:
1989 में भारत में गठबन्धन सरकार की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि लोकसभा के चुनाव में त्रिशंकु लोकसभा का गठन हुआ था। किसी भी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ और यह समय की आवश्यकता थी।

प्रश्न 5.
गठबंधन सरकार का क्या अर्थ है? गठबंधन सरकार सबसे पहले केन्द्र में कब बनी?
उत्तर:
गठबंधन सरकार: विभिन्न दल एक गठबंधन बनाकर जब एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार का गठन करते हैं तो उसे गठबंधन सरकार कहा जाता है। केन्द्र में पहली गठबंधन सरकार सन् 1989 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में बनी थी।

प्रश्न 6.
पोखरण नाभिकीय परीक्षण कब किए गये और उस समय किस दल की सरकार थी?
उत्तर:
पोखरण में पहली बार 1974 में नाभिकीय परीक्षण किये गये। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। इन्दिरा गांधी प्रधानमन्त्री थीं। पोखरण – II नाभिकीय परीक्षण 11 मई और 13 मई, 1999 में किए गए, उस समय राजग की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे।

प्रश्न 7.
1988 का वर्ष भारतीय राजनीति में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
1988 का वर्ष भारतीय राजनीति में विशेष स्थान रखता है क्योंकि इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर एक नए राजनीतिक दल – जनता दल का निर्माण हुआ था। वी. पी. सिंह को जनता दल का सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था।

प्रश्न 8.
क्या क्षेत्रीय दल आवश्यक हैं? अपने उत्तर के पक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत में क्षेत्रीय दल आवश्यक हैं, क्योंकि।

  1. भारत एक विशाल देश है जिसमें विभिन्न भाषाओं, धर्मों तथा जातियों के लोग रहते हैं। अनेक क्षेत्रीय दलों का निर्माण जाति, धर्म एवं भाषा के आधार पर हुआ है।
  2. भारत में विभिन्न क्षेत्रों की अपनी समस्याएँ तथा आवश्यकताएँ हैं। इनके हितों की पूर्ति के लिए विभिन्न क्षेत्रीय दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

प्रश्न 9.
भारत में गठबन्धन सरकारों के निर्माण के दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. 1989 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का आधिपत्य समाप्त हो गया और कांग्रेस के विरुद्ध अनेक राजनीतिक दल आये जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।
  2. क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण भी एक राष्ट्रीय दल को लोकसभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया, जिससे गठबन्धन की राजनीति शुरू हुई।

प्रश्न 10.
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग): संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण मई, 2004 में कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों ने किया। इस दल की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को बनाया गया तथा कांग्रेस के नेता डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया गया जिन्होंने 2004 और 2009 में अपनी सरकार बनाई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 11.
कांग्रेस प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की स्थापना 1885 में हुई। उसके कई वर्षों बाद तक भी कांग्रेस स्वयं में एक गठबन्धन पार्टी के रूप में कार्य करती रही क्योंकि इसमें कई धर्मों, जातियों, भाषाओं तथा क्षेत्रों के लोग शामिल थे। इसे ही कांग्रेस प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 12.
मंडल मुद्दा क्या था?
उत्तर: मंडल मुद्दा – सन् 1990 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए यह प्रावधान किया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जायेगा। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के समर्थक और विरोधियों के बीच एक विवाद चला। इस विवाद को ही मंडल मुद्दा कहा गया।

प्रश्न 13.
अयोध्या में विवादित ढाँचे को कब गिराया गया था? राज्य सरकार को कैसे दंडित किया गया?
उत्तर:
6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढाँचे को गिराया गया था। इसके दंड स्वरूप प्रथमतः उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार को बर्खास्त किया गया। दूसरे, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायालय के अवमानना के विरोध में मुकदमा दर्ज किया गया। तीसरे, जिन-जिन राज्यों में भाजपा सरकारें थीं उन्हें बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।

प्रश्न 14.
वी. पी. मंडल पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वी.पी. मंडल का जन्म 1918 में हुआ था। ये 1967-1970 तथा 1977 – 1979 में बिहार से सांसद चुने गए। इन्होंने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्षता की। इस आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश समाजवादी नेता बने। 1968 में ये डेढ़ माह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1977 में ये जनता पार्टी में शामिल हुए।

प्रश्न 15.
मिली-जुली सरकारों के दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दुष्परिणाम निम्न हैं।

  1. विभाजन व विघटन की प्रवृत्ति
  2. अवसरवादिता की प्रवृत्ति
  3. उत्तरदायित्व की प्रवृत्ति
  4. राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में अनिश्चितता और अस्पष्टता।

प्रश्न 16.
निर्दलीय उम्मीदवार की वर्तमान समय में बढ़ती संख्या एक चुनौती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह निर्दलीय उम्मीदवार भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। यह भारतीय दलीय व्यवस्था के हित में नहीं है।

प्रश्न 17.
राजनीतिक अपराधीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनीतिक दलों द्वारा अपराध जगत के माफिया सरदारों को चुनावों में उम्मीदवार बनाकर धन-बल, बल के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँचाया जाना राजनीतिक अपराधीकरण कहलाता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 18.
स्पष्ट जनादेश और खण्डित जनादेश में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्पष्ट जनादेश का अभिप्राय है। किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा के चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिलना और खण्डित जनादेश का अभिप्राय है। लोकसभा के चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलना।

प्रश्न 19.
बहुदलीय प्रणाली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बहुदलीय व्यवस्था: बहुदलीय व्यवस्था से अभिप्राय है। लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में अनेक राजनीतिक दल विद्यमान होना जैसे आज लोकसभा में 50 से भी अधिक राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 20.
भारत की नई आर्थिक नीति कब शुरू की गई थी? इसका मुख्य वास्तुकार कौन था?
उत्तर:
भारत की नई आर्थिक नीति को 1991 में संरचना समायोजन कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किया गया था।

  1. भारत की नई आर्थिक नीति का शुभारंभ तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने किया था।
  2. आर्थिक परिवर्तन पहली बार 1991 में दिखाई दिए और मौलिक रूप से उस दिशा को बदल दिया जो भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से उदारीकृत और खुली अर्थव्यवस्था के लिए अपनायी थी।

प्रश्न 21.
शाहबानो मामला क्या था? इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी रुख क्यों अपनाया?
उत्तर:
शाहबानो मामला: शाहबानो मामला एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो का है। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में एक अर्जी दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। पुरातनपंथी मुसलमानों ने अदालत के इस फैसले को अपने ‘पर्सनल लॉ’ में हस्तक्षेप माना । कुछ मुस्लिम नेताओं की माँग पर सरकार ने मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 पास किया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया गया।

प्रश्न 12.
मंडल मुद्दा क्या था?
उत्तर:
मंडल मुद्दा: सन् 1990 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए यह प्रावधान किया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जायेगा। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के समर्थक और विरोधियों के बीच एक विवाद चला। इस विवाद को ही मंडल मुद्दा कहा गया।

प्रश्न 13.
अयोध्या में विवादित ढाँचे को कब गिराया गया था? राज्य सरकार को कैसे दंडित किया गया?
उत्तर:
6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढाँचे को गिराया गया था। इसके दंड स्वरूप प्रथमतः उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार को बर्खास्त किया गया। दूसरे, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायालय के अवमानना के विरोध में मुकदमा दर्ज किया गया। तीसरे, जिन-जिन राज्यों में भाजपा सरकारें थीं उन्हें बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 14.
वी. पी. मंडल पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वी.पी. मंडल का जन्म 1918 में हुआ था। ये 1967-1970 तथा 1977 – 1979 में बिहार से सांसद चुने गए। इन्होंने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्षता की। इस आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश समाजवादी नेता बने। 1968 में ये डेढ़ माह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1977 में ये जनता पार्टी में शामिल हुए।

प्रश्न 15.
मिली-जुली सरकारों के दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दुष्परिणाम निम्न हैं।

  1. विभाजन व विघटन की प्रवृत्ति
  2. अवसरवादिता की प्रवृत्ति
  3. उत्तरदायित्व की प्रवृत्ति
  4. राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में अनिश्चितता और अस्पष्टता।

प्रश्न 16.
निर्दलीय उम्मीदवार की वर्तमान समय में बढ़ती संख्या एक चुनौती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह निर्दलीय उम्मीदवार भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। यह भारतीय दलीय व्यवस्था के हित में नहीं है।

प्रश्न 17.
राजनीतिक अपराधीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनीतिक दलों द्वारा अपराध जगत के माफिया सरदारों को चुनावों में उम्मीदवार बनाकर धन-बल, बल के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँचाया जाना राजनीतिक अपराधीकरण कहलाता है।

प्रश्न 18.
स्पष्ट जनादेश और खण्डित जनादेश में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्पष्ट जनादेश का अभिप्राय है। किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा के चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिलना और खण्डित जनादेश का अभिप्राय है। लोकसभा के चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलना।

प्रश्न 19.
बहुदलीय प्रणाली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बहुदलीय व्यवस्था: बहुदलीय व्यवस्था से अभिप्राय है। लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में अनेक राजनीतिक दल विद्यमान होना जैसे आज लोकसभा में 50 से भी अधिक राजनीतिक दल हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 20.
भारत की नई आर्थिक नीति कब शुरू की गई थी? इसका मुख्य वास्तुकार कौन था?
उत्तर:
भारत की नई आर्थिक नीति को 1991 में संरचना समायोजन कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किया गया था।

  1. भारत की नई आर्थिक नीति का शुभारंभ तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने किया था।
  2. आर्थिक परिवर्तन पहली बार 1991 में दिखाई दिए और मौलिक रूप से उस दिशा को बदल दिया जो भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से उदारीकृत और खुली अर्थव्यवस्था के लिए अपनायी थी।

प्रश्न 21.
शाहबानो मामला क्या था? इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी रुख क्यों अपनाया?
उत्तर:
शाहबानो मामला: शाहबानो मामला एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो का है। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में एक अर्जी दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। पुरातनपंथी मुसलमानों ने अदालत के इस फैसले को अपने ‘पर्सनल लॉ’ में हस्तक्षेप माना।

कुछ मुस्लिम नेताओं की माँग पर सरकार ने मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 पास किया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया गया। भाजपा ने कांग्रेस सरकार के इस कदम की आलोचना की और इसे अल्पसंख्यक समुदाय को दी गई अनावश्यक रियायत तथा तुष्टिकरण करार दिया।

प्रश्न 22.
भारत में वामपंथी एवं दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों का उल्लेख कीजिए तथा उनकी विचारधारा में कोई दो अन्तर लिखिये।
उत्तर:
प्रमुख वामपंथी तथा दक्षिण पंथी राजनैतिक दल: भारत में वामपंथी विचारधारा के पोषक दल हैं। सीपीएम, सीपीआई, रिपब्लिक पार्टी, फारवर्ड ब्लाक एवं समाजवादी पार्टी, जबकि दक्षिणपंथी विचारधारा का पोषक दल भारतीय जनता पार्टी है। वामपंथी तथा दक्षिणपंथी राजनैतिक दलों की विचारधारा में अन्तर:

  1. वामपंथी दल धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक- आर्थिक न्याय, राष्ट्रीयकरण आदि का समर्थन करते हैं, जबकि दक्षिणपंथी दल भारतीय संस्कृति, प्रबल राष्ट्रवाद, उदारीकरण, भूमंडलीकरण की नीतियों का समर्थन करते हैं।
  2. वामपंथी दल सार्वजनिक क्षेत्र के समर्थक हैं जबकि दक्षिणपंथी दल निजी क्षेत्र के समर्थक हैं ।

प्रश्न 23.
राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र के अभाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव है। यथा – प्रथमतः 1997 तक अधिकांश राजनीतिक दलों में लम्बे समय से संगठनात्मक चुनाव नहीं हुए। 1997 में चुनाव आयोग के निर्देश पर ही ये चुनाव हो सके। दूसरे, भारतीय राजनीतिक दलों का निर्माण किन्हीं प्रक्रियाओं, मर्यादाओं, सिद्धान्तों या कानूनों के आधार पर नहीं होता है। तीसरे, भारतीय राजनीतिक दलों के आय-व्यय का कोई लेखा-जोखा सदस्यों के सामने प्रस्तुत नहीं किया जाता।

प्रश्न 24.
भारत की बहुदलीय व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बहुदलीय व्यवस्था: भारत में बहुदलीय व्यवस्था है अर्थात् लोकसभा में अनेक राजनैतिक दलों के सदस्य हैं। वर्तमान में लोकसभा में कुल मिलाकर 50 से भी अधिक राजनैतिक दल हैं। कुछ राजनैतिक दल राष्ट्रीय या अखिल भारतीय राजनैतिक दल हैं तो कुछ राज्य स्तरीय तथा क्षेत्रीय दल हैं। 1989 तक भारत की बहुदलीय व्यवस्था में एक राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रधानता की स्थिति बनी रही, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त हो गया और वर्तमान में किसी एक राजनैतिक दल का वर्चस्व नहीं है। यद्यपि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है तथापि अनेक क्षेत्रीय दलों को भी अपने राज्यों में अच्छी सफलता मिली है।

प्रश्न 25.
जनता दल का निर्माण किन कारणों से हुआ? इसके मुख्य घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जनता दल: जनता दल का निर्माण 1988 में हुआ। 1987 में कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी का त्याग करके जनमोर्चा का निर्माण किया। इसके साथ ही अनेक नेता एक ऐसे नये राजनीतिक दल का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, जो कांग्रेस का विकल्प बन सके। 26 जुलाई, 1988 को चार विपक्षी दलों जनता पार्टी, लोकदल, कांग्रेस (स) और जनमोर्चा के विलय से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई। इस नये दल का नाम समाजवादी जनता दल रखा गया। 11 अक्टूबर, 1988 को बैंगलोर में समाजवादी जनता दल का नाम बदलकर जनता दल कर दिया गया। श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जनता दल का प्रधान मनोनीत किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 26.
जनता दल के कार्यक्रमों एवं नीतियों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जनता दल के कार्यक्रम एवं नीतियाँ – जनता दल के प्रमुख कार्यक्रम एवं नीतियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. जनता दल का लोकतन्त्र में दृढ़ विश्वास है और उत्तरदायी प्रशासनिक व्यवस्था को अपनाने के पक्ष में है।
  2. जनता दल ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सात सूत्रीय कार्यक्रम अपनाने की बात कही है।
  3.  पार्टी राजनीति में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल की नियुक्ति के पक्ष में है।
  4. पार्टी पंचायती राज संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता देने के पक्ष में है।
  5. जनता दल महिलाओं को संसद और राज्य विधानमण्डलों में 33 प्रतिशत और सरकारी, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के पक्ष में है।

प्रश्न 27.
1990 के पश्चात् भारत में राजनीतिक दलों के कौनसे गठबंधन उभरे? इस परिवर्तन के किन्हीं दो परिणामों को उजागर कीजिये।
उत्तर:

  • 1990 के पश्चात् भारत में केन्द्र में राजनीतिक दलों के तीन गठबंधन उभरे
    1. 1996 और 1997 में देवेगोड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार बनी जिसे कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया।
    2. 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपानीत राजग की गठबंधन सरकार बनी।
    3. 2004 तथा 2009 में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का गठन हुआ।
    4. 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपानीत राजग की सरकार बनी।
  • गठबंधन राजनीति के परिणाम इस प्रकार रहे।
    1. गठबंधन की राजनीति के परिणामस्वरूप पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे को सभी दलों ने स्वीकार कर लिया।
    2. गठबंधन की राजनीति के परिणामस्वरूप केन्द्रीय शासन में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ा।

प्रश्न 28.
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धनवादी युग के उदय के किन्हीं चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धनवादी राजनीति के उदय के कारण – भारत में गठबन्धनवादी राजनीति के उदय के कारण निम्नलिखित हैं।

  1. कांग्रेसी प्रभुत्व का अन्त: 1989 के बाद कांग्रेस पार्टी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।
  2. क्षेत्रीय दलों की संख्या में वृद्धि: क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण किसी भी एक राष्ट्रीय दल को लोक सभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया। इससे राजनीतिक दल गठबन्धन बनाने लगे हैं।
  3. दलबदल -दल-बदल के कारण सरकारों का अनेक बार पतन हुआ और जो नई सरकारें बनीं वे भी गठबन्धन करके बनीं।
  4. क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा: प्रायः केन्द्र में बनी राष्ट्रीय दलों की सरकारों ने क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा की है। इससे क्षेत्रीय स्तर के दलों ने मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार गठबन्धनकारी दौर की शुरुआत की।

प्रश्न 29.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के उदय का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन;
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (NDA) का निर्माण मई, 1999 में भारतीय जनता पार्टी एवं इसके सहयोगी दलों ने किया। इस गठबन्धन में अधिकतर वे दल ही सम्मिलित थे जो बारहवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के गठबन्धन में सम्मिलित थे। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में पेश किया। इस गठबन्धन ने 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में 297 सीटों पर विजय प्राप्त की तथा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई, परन्तु 2004 में 14वीं और 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनावों में इस गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा। 2014 के लोकसभा चुनावों में पुन: इस गठबन्धन ने विजय प्राप्त की और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान में राजग की ही सरकार है।

प्रश्न 30.
1989 के बाद कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित प्रदर्शन का क्या रुझान रहा? उत्तर-1989 के बाद कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचन प्रदर्शन का रुझान इस प्रकार रहा-
1. कांग्रेस:
1989 के बाद कांग्रेस के निर्वाचन प्रदर्शन में गिरावट आई है तथा प्रत्येक चुनाव में कांग्रेस के वोट एवं सीटें कम होती चली गईं तथा जो पार्टी 1960 एवं 70 के दशक में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त कर लेती थी वह अपने दम पर इतनी सीट भी नहीं जीत पाती कि वह अपनी सरकार बना ले। 2004 के 14वीं और 2009 के 15वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् कांग्रेस अन्य दलों के सहयोग से केन्द्र में सरकार बनाने में सफल रही है, लेकिन 2014 के 16वीं लोकसभा चुनावों में उसे केवल 44 सीटें ही प्राप्त हुई हैं।

2. भारतीय जनता पार्टी:
1989 के बाद भारतीय जनता पार्टी की वोट एवं सीटें बढ़ती गईं तथा भारतीय राजनीति में इसने महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया तथा 1998, 1999 तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और इसने केन्द्र में सरकार बनाई।

प्रश्न 31.
यह कहना कहाँ तक उचित है कि भारत में कुछ सहमति बनाने में गठबंधन सरकार ने सहायता की है?
उत्तर:
गठबंधन सरकार की सहमति बनाने में भूमिका:

  1. नयी आर्थिक नीति पर सहमति: अधिकतर दलों का मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
  2. पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति: गठबंधन सरकारों में शामिल राजनीतिक दलों में यह सहमति बनी है कि पिछड़ी जातियों को शिक्षा तथा रोजगार में आरक्षण दिया जाए।
  3. केन्द्रीय शासन में प्रान्तीय दलों की भूमिका की स्वीकृति: गठबंधन सरकारों में प्रान्तीय दल केन्द्रीय सरकार में साझेदार बन रहे हैं। अब प्रान्तीय और केन्द्रीय दलों का भेद कम हो रहा है।
  4. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर-गठबंधन सरकार में एक साझा कार्यक्रम होता है और इस कार्यक्रम की क्रियान्विति पर अधिक जोर दिया जाता है। विचारधारा का तत्त्व इस सरकार में गौण हो गया है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 32.
कांशीराम के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कांशीराम का जन्म 1934 में हुआ था। ये बहुजन समाज के सशक्तीकरण के प्रतिपादक और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक थे। इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिए केन्द्र सरकार की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। इन्होंने डीएस-4 की स्थापना की। ये एक कुशाग्र रणनीतिकार थे। इनके अनुसार राजनीतिक सत्ता, सामाजिक समानता का आधार है। ये उत्तर भारत के राज्यों में दलित राजनीति के संगठनकर्ता की भूमिका निभा चुके हैं।

प्रश्न 33.
गठबन्धन की राजनीति के उदय का हमारे लोकतंत्र पर क्या असर पड़ा है?
अथवा
भारत में गठबन्धन की राजनीति के प्रभाव समझाइये।
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति के लोकतन्त्र पर प्रभाव: भारत में गठबन्धन की राजनीति का भारतीय लोकतंत्र पर निम्न प्रमुख प्रभाव पड़े-

  1. एकदलीय प्रभुत्व की समाप्ति: गठबन्धन की राजनीति से भारतीय लोकतंत्र में कांग्रेस के दबदबे की समाप्ति हुई और बहुदलीय प्रणाली का युग शुरू हुआ।
  2. क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव: क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबन्धन सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। अब प्रान्तीय दल केन्द्रीय सरकार में साझेदार बन रहे हैं तथा उनका दृष्टिकोण व्यापक हुआ है।
  3. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर-गठबंधन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारागत की जगह सत्ता में हिस्सेदारी पर जोर दे रहे हैं।
  4. जन-आंदोलन और संगठन विकास के नये रूप-गठबंधन की राजनीति में जन-आंदोलन और संगठन विकास के नये रूप सामने आ रहे हैं। ये रूप गरीबी, विस्थापन, न्यूनतम मजदूरी, भ्रष्टाचार विरोध, आजीविका और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों पर जन-आंदोलन के जरिये राजनीति में उभर रहे हैं।

प्रश्न 34.
भारतीय जनता पार्टी के उदय पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी: भारतीय जनता पार्टी का उदय 1980 में जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता के मुद्दे को लेकर असहमति के कारण हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने बहुमत से फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और सांसद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दैनिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता। परन्तु बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी तथा नाना जी देशमुख ने इस निर्णय का विरोध किया।

5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। 6 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व विदेशमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का गठन किया गया।

प्रश्न 35.
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की नीतियों एवं कार्यक्रमों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) के नीति एवं कार्यक्रम-संप्रग की प्रमुख नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।

  1. सामाजिक सद्भावना को बनाए रखना और उसमें वृद्धि करना।
  2. आने वाले दशकों में आर्थिक विकास की दर 7% से 8% के मध्य बनाए रखना ताकि रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।
  3. कृषकों, कृषि श्रमिकों व विशेष तौर पर असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के कल्याण में वृद्धि करना और उनके परिवार के भविष्य को विश्वसनीय व सुरक्षित बनाना
  4. स्त्रियों को राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और कानूनी पक्ष से सुदृढ़ करना।
  5. अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ी जातियों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को पूर्ण अवसर की समानता, विशेषकर शिक्षा तथा रोजगार के क्षेत्र में दी जाए।

प्रश्न 36.
भारत के राजनीतिक मानचित्र में लोकसभा चुनाव, 2004 में निम्नांकित को दर्शाइये।
1. ऐसे दो राज्य जहाँ राजग को संप्रग से अधिक सीटें मिलीं।
2. ऐसे दो राज्य जहाँ संप्रग को राजग से अधिक सीटें मिलीं।
उत्तर:
(नोट- मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नों में प्रश्न संख्या 5 का उत्तर देखें।)

प्रश्न 37.
गठबन्धन की राजनीति पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
गठबन्धन सरकार की शुरुआत केन्द्रीय स्तर पर 1977 में हुई जब केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। इसी दौरान केन्द्र स्तर पर काँग्रेस का एकाधिकार समाप्त हो चुका था। आगे चलकर भारत में कई गठबन्धन की सरकारें बनीं। 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009 तथा 2014 के चुनावों में गठबंधन की सरकार बनी। 1999 में भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन का निर्माण किया तो 2004 में काँग्रेस ने सत्ता प्राप्ति के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का निर्माण किया।

प्रश्न 38.
बामसेफ पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बामसेफ का गठन 1978 में हुआ। इसका पूरा नाम बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन है। यह सरकारी कर्मचारियों का कोई साधारण – सा ट्रेड यूनियन नहीं था। इस संगठन ने ‘बहुजन’ अर्थात् अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की।

प्रश्न 39.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राज्य सरकार का क्या हुआ?
उत्तर:

  1. भाजपा की राज्य सरकार बर्खास्त कर दी गई थी।
  2. इसके साथ ही, अन्य राज्य जहाँ भाजपा सत्ता में थी, उन्हें भी राष्ट्रपति शासन के तहत रखा गया था।
  3. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज किया गया था।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 40.
‘हिन्दुत्व’ अथवा ‘हिंदूपन’ शब्द को परिभाषित करते हुए वी.डी. सावरकर का क्या आशय था?
उत्तर:
‘हिन्दुत्व’ अथवा ‘हिन्दूपन’ शब्द को वी. डी. सावरकर ने गढ़ा था और इसको परिभाषित करते हुए उन्होंने इसे भारतीय राष्ट्र की बुनियाद बताया। उनके कहने का आशय यह था कि भारत राष्ट्र का नागरिक वही हो सकता है, जो भारतभूमि को न सिर्फ ‘पितृभूमि’ बल्कि अपनी ‘पुण्यभूमि’ भी स्वीकार करें। हिन्दुत्व के समर्थकों का तर्क है कि मजबूत राष्ट्र सिर्फ एकीकृत राष्ट्रीय संस्कृति की बुनियाद पर ही बनाया जा सकता है।

प्रश्न 41.
भारत में गठबंधन राजनीति का।
उत्तर:
भारत में गठबंधन का युग 1989 के लंबा दौर कब और क्यों शुरू हुआ?
चुनावों के बाद देखा जा सकता है। काँग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन उसने एक भी बार बहुमत हासिल नहीं किया, इसलिए उसने विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाई। इसके कारण राष्ट्रीय मोर्चा (जनता दल और अन्य क्षेत्रीय दलों का गठबंधन) अस्तित्व में आया। इसको बीजेपी और लेफ्ट फ्रंट का समर्थन मिला। बीजेपी और लेफ्ट फ्रंट सरकार में शामिल नहीं हुए लेकिन उन्होंने बाहर से अपना समर्थन दिया। गठबंधन के दौर में कई प्रधानमंत्री बने और उनमें से कुछ के पास छोटी अवधि के लिए कार्यालय था।

प्रश्न 42.
मंडल आयोग को लागू करने का समाज और राजनीति पर क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार द्वारा लिया गया। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीति को सुगठित रूप देने में मदद मिली। नौकरी में आरक्षण के सवाल पर बहस हुई और इनसे’अन्य पिछड़ा वर्ग अपनी पहचान लेकर सजग हुआ। जो इस तबके को लामबंद करना चाहते थे उनका फायदा हुआ। इस दौर में अनेक पार्टियाँ आगे आयीं, जिन्होंने रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग को बेहतर अवसर उपलब्ध कराने की माँग की। इन दलों ने सत्ता में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ की हिस्सेदारी का सवाल भी उठाया।

प्रश्न 43.
मंडल आयोग का गठन क्यों किया गया था?
उत्तर:
मंडल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके बताने के लिए किया गया था। आयोग से यह भी अपेक्षा की गई थी कि वह इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाएगा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 44.
बसपा पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1978 में दलितों के राजनीतिक संगठन बामसेफ का उदय हुआ । इस संगठन ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की। इसी का परवर्ती विकास ‘दलित-शोषित समाज संघर्ष समिति’ है, जिससे बाद के समय में बहुजन समाज पार्टी का उदय हुआ। इस पार्टी की अगुवाई कांशीराम ने की। यह पार्टी अपने शुरुआती दौर में एक छोटी पार्टी थी और इसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दलित मतदाताओं का समर्थन हासिल था, लेकिन 1989 और 1991 के चुनावों में इस पार्टी को उत्तर प्रदेश में सफलता मिली। आजाद भारत में यह पहला मौका था, जब कोई राजनीतिक दल मुख्यतया दलित मतदाताओं के समर्थन के बूते ऐसी राजनीतिक सफलता हासिल कर पाया था। इस पार्टी का समर्थन सबसे ज्यादा दलित मतदाता करते हैं।

प्रश्न 45.
इंदिरा साहनी केस के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1990 के अगस्त में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों में से एक को लागू करने का फैसला लिया। यह सिफारिश केन्द्रीय सरकार और उसके उपक्रमों की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के संबंध में थी। सरकार के फैसले से उत्तर भारत के कई शहरों में हिंसक विरोध का स्वर उमड़ा। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई और यह प्रकरण ‘इंदिरा साहनी केस’ के नाम से जाना जाता है। क्योंकि सरकार के फैसले के खिलाफ अदालत में जिन लोगों ने अर्जी दायर की थी, उनमें एक नाम इंदिरा साहनी का भी था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में क्षेत्रीय दलों का महत्त्व क्यों बढ़ता जा रहा है?
अथवा
भारत में राज्य स्तरीय (क्षेत्रीय) पार्टियों की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका: भारत में अनेक राजनैतिक दल क्षेत्रीय आधार पर गठित हैं। ऐसे दलों में द्रमुक, अन्ना द्रमुक, अकाली दल मुस्लिम लीग, नेशनल कांफ्रेंन्स, असम गण परिषद्, सिक्किम संग्राम परिषद्, तेलगूदेशम, तमिल मनीला कांग्रेस, नगालैण्ड लोकतान्त्रिक दल, मणिपुर पीपुल्स पार्टी – सपा, बीजद, राष्ट्रीय लोकदल, एकीकृत जनता दल, राजद आदि प्रमुख हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में यह दल प्रभावी हैं और राष्ट्रीय दलों का कुछ राज्यों को छोड़कर शेष में प्रभाव नगण्य है।

1989 से 2009 तक के चुनावों में किसी भी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाने के कारण भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का महत्त्व बढ़ गया। जहाँ-जहाँ क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं, वहाँ-वहाँ राष्ट्रीय दल, विशेषकर कांग्रेस और भाजपा उखड़ गये हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि लोकसभा में राजनैतिक दल चार समूहों में विभाजित हो गए।

  1. भाजपा और उसके क्षेत्रीय सहयोगी दल
  2. कांग्रेस और उसके सहयोगी दल
  3. वामपंथी दल और उसके सहयोगी क्षेत्रीय दल
  4. तीनों मोर्चों से तटस्थ क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दल (सपा तथा बसपा आदि)।

इस प्रकार अब सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय दलों के साथ गठबन्धन करना तथा सरकार निर्माण में तथा सत्ता की भागीदारी में उनको शामिल करना संसद में आवश्यक बहुमत प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो गया है।

प्रश्न 2.
1980 के दशक के आखिर के सालों में आए उन बदलावों का उल्लेख कीजिये, जिनका हमारी भावी राजनीति पर गहरा असर पड़ा।
उत्तर:
1980 के दशक के आखिर के सालों में देश में ऐसे पांच बदलाव आए, जिनका हमारी आगे की राजनीति पर गहरा असर पड़ा। यथा।

  1. 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार: 1989 के इस चुनाव में कांग्रेस लोकसभा की 197 सीटें ही जीत की और केन्द्र में भी एकदलीय प्रभुत्व की स्थिति समाप्त हो गई।
  2. मंडल मुद्दे का उदय: 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की नयी सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया जिसमें प्रावधान किया गया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को 27% आरक्षण दिया जायेगा। इसके बाद की देश की राजनीति में पिछड़ी जातियों के आरक्षण का यह मुद्दा, जिसे ‘मंडल मुद्दा’ कहा गया, छाया रहा।
  3. नये आर्थिक सुधार की नीतियाँ: इस दौर में विभिन्न सरकारों ने आर्थिक सुधार की नीतियाँ अपनायीं। इसकी शुरुआत राजीव गाँधी की सरकार के समय हुई। बाद की सभी सरकारों ने इस नयी आर्थिक नीति पर अमल जारी रखा।
  4. अयोध्या के विवादित ढाँचे का बिध्वंस: 1992 में अयोध्या के विवादित ढाँचे को ध्वस्त करने की घटना ने राजनीति में कई परिवर्तनों को जन्म दिया। इन बदलावों का संबंध भाजपा के उदय और हिंदुत्वं की राजनीति से है।
  5. राजीव गाँधी की हत्या; मई, 1991 में राजीव गाँधी की हत्या के परिणामस्वरूप कांग्रेस के प्रति चुनावों में सहानुभूति लहर ने कांग्रेस को लाभ पहुँचाया तथा केन्द्र में कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ हुई।

प्रश्न 3.
भारत में मिली-जुली या गठबन्धन सरकारों की राजनीति की व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में मिली-जुली या गठबन्धन की राजनीति मिली-जुली सरकार का साधारण अर्थ है। कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। मिली-जुली सरकार का निर्माण प्रायः उस स्थिति में किया जाता है। जब किसी एक दल को चुनावों के बाद स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हुआ हो। तब दो या दो से अधिक दल मिलकर संयुक्त सरकार का निर्माण करते हैं। इन मिली-जुली सरकारों की राजनीति की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं। जिनका वर्णन निम्नलिखित है।

  1. समझौतावादी कार्यक्रम: ऐसी सरकारों का राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम समझौतावादी होता है, जिसमें कि प्रत्येक दल की बातों को व कार्यक्रम को ध्यान में रखा जाता है।
  2. सर्वसम्मत नेता: मिली-जुली सरकार के निर्माण से पूर्व यद्यपि सभी दल मिलकर अपने नेता का चुनाव करते हैं, नेता का चुनाव प्रायः सर्वसम्मति के आधार पर किया जाता है तथापि घटक दलों के नेता व उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जाता। इसके कारण सरकार में एकता बनी रहती है।
  3. सर्वसम्मत निर्णय: मिली-जुली सरकार में शामिल घटक दल किसी भी राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय समस्या का हल सर्वसम्मति से करते हैं।
  4. मिल-जुलकर कार्य करना: मिली-जुली सरकार में शामिल सभी घटक दल मिल-जुलकर कार्य करते हैं। एक दल द्वारा किया गया गलत कार्य सभी दलों द्वारा किया गया गलत कार्य समझा जाएगा, इसलिए सभी दल मिल-जुल कर कार्य करते हैं।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की नीतियों एवं कार्यक्रमों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन: अप्रैल, 1999 में वाजपेयी की सरकार मात्र 13 दिन की अवधि में ही गिर जाने के बाद मई, 1999 में 24 राजनीतिक दलों ने मिलकर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) के नाम से एक गठबन्धन बनाया। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में पेश किया। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की नीतियाँ एवं कार्यक्रम – राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की प्रमुख नीतियाँ व कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।

  1. लोकपाल; घोषणा पत्र में वायदा किया गया कि प्रधानमन्त्री समेत सभी व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिए लोकपाल विधेयक पारित किया जाएगा।
  2. आर्थिक उदारीकरण-: देश में आर्थिक उदारीकरण की नीति को जारी रखा जायेगा।
  3. निर्धनता: घोषणा पत्र में निर्धनता के निवारण पर बल दिया गया।
  4. आम सहमति से शासन: घोषणा पत्र में सभी प्रमुख मुद्दों पर विपक्ष के साथ मिलकर आम सहमति से शासन चलाने की बात कही गयी।
  5. नए राज्य: छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड तथा झारखण्ड नए राज्य बनाए गए।
  6. प्रसार भारती: प्रसार भारती अधिनियम की समीक्षा की जाएगी। इसके साथ भारतीय हितों के संरक्षण के लिए व्यापक प्रसारण विधेयक पारित किया जाएगा।
  7. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को विभिन्न सामाजिक- आर्थिक क्षेत्रों में विकास कार्यक्रम के साथ जोड़ने के प्रयास किए जाएंगे।
  8. राष्ट्रीय सुरक्षा: गठबन्धन ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि महत्त्व देने का वायदा किया।
  9. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पड़ौसी व मित्र राष्ट्रों के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता लाई जाएगी तथा सार्क और आसियान की तरह क्षेत्रीय और समूहीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 5.
वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था की उभरती प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की उभरती प्रवृत्तियाँ वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था की उभरती हुई प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. एक दल से साझा सरकारों की ओर: 1989 के बाद के लोकसभा के चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला परिणामतः साझा सरकारें अस्तित्व में आईं।
  2. क्षेत्रीय दलों का बढ़ता वर्चस्व: वर्तमान राजनीतिक दलीय स्थिति में सत्ता की जोड़-तोड़ में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ी है।
  3. निर्दलीय सदस्यों की बढ़ती भूमिका: किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में निर्दलीय उम्मीदवारों की भी भूमिका बढ़ जाती है।
  4. दलीय प्रणाली का सत्ता केन्द्रित स्वरूप: वर्तमान समय में राजनीतिक दलों का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना रह गया है तथा उनके लिए विचारधाराएँ, समस्याएँ गौण हो गई हैं।
  5. भाषावाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद का प्रभाव: सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दल भाषा, जाति एवं सम्प्रदायों का भी सहारा लेते हैं।
  6. दलों में आन्तरिक गुटबन्दी: भारत के सभी राजनीतिक दल आन्तरिक गुटबन्दी की समस्या से पीड़ित हैं।
  7. राजनीतिक अपराधीकरण: प्रायः सभी राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनावों में खड़ा किया जा रहा है जो धन-बल व भुज-बल के आधार पर मत प्राप्त करते हैं।
  8. दल की कथनी व करनी में अन्तर: पिछले कुछ वर्षों में भारतं में दलों की कथनी व करनी में अन्तर अपने भीषणतम रूप में उभरा है।
  9. केन्द्र व राज्य में टकराहट:  केन्द्र व राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं जिससे केन्द्र व राज्यों के मध्य विभिन्न राजनीतिक मुद्दों को लेकर टकराहट की स्थिति बनी रहती है।

प्रश्न 6.
भारतीय दलीय व्यवस्था की प्रमुख समस्याओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की: समस्याएँ भारतीय दलीय व्यवस्था की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं।

  1. दलों की संख्या में वृद्धि: भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। राजनीतिक दलों की इस प्रकार की भरमार ने अस्थिर राजनैतिक स्थिति के साथ-साथ अन्य समस्याओं को भी जन्म दिया है।
  2. वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव: भारतीय राजनीतिक दलों में वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव है। वैचारिक प्रतिबद्धता से रहित इन दलों का मुख्य उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना होता है।
  3. दलीय व्यवस्था में अस्थायित्व: भारतीय राजनीतिक दल निरन्तर बिखराव और विभाजन के शिकार हैं। इस कारण इन दलों में तथा भारतीय दलीय व्यवस्था में स्थायित्व का अभाव है।
  4. दलों में आन्तरिक लोकतंत्र का अभाव: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है और वे घोर अनुशासनहीनता से पीड़ित हैं।
  5. राजनीतिक दलों में गुटीय राजनीति: लगभग सभी राजनीतिक दल तीव्र आंतरिक गुटबन्दी की समस्या से पीड़ित हैं।
  6. सत्ता के लिए संविधानेतर और विघटनकारी प्रवृत्तियों को अपनाना: राजनीतिक दलों ने पिछले दशक की राजनीति में बहुत अधिक मात्रा में संविधानेतर और विघटनकारी प्रवृत्तियों को अपना लिया है।
  7. नेतृत्व का संकट: भारत में वर्तमान में राजनीतिक दलों के समक्ष नेतृत्व का संकट भी बना हुआ है। अधिकांश राजनीतिक दलों के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है, जिसका अपना ऊँचा राजनैतिक कद हो।

प्रश्न 7.
” भारतीय राजनीतिक दलों में अत्यधिक प्रतियोगिता एवं विरोध होने के बावजूद भी कई विषयों में सर्वसहमति है।” इस कथन के संदर्भ में सर्व- सहमति के बिन्दुओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि ” भारतीय राजनीतिक दलों में अत्यधिक प्रतियोगिता एवं विरोध होने के बावजूद भी कई विषयों में सर्वसहमति है।” यथा।

  1. संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास; भारत का प्रत्येक राजनीतिक दल भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास रखता हैं तथा विभिन्न मुद्दों का संवैधानिक दायरे के अन्तर्गत ही हल चाहता है।
  2. राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता बनाये रखना: भारत के सभी राजनीतिक दल देश की एकता व अखण्डता को बनाये रखने पर सहमत हैं।
  3. मौलिक अधिकार एवं स्वतन्त्रताओं की रक्षा: भारत के सभी राजनीतिक दल लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के प्रति एकमत रहते हैं।
  4. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के राजनीतिक तथा सामाजिक दावे की स्वीकृति: आज सभी राजनीतिक दल शिक्षा और रोजगार में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के लिए सीटों के आरक्षण के पक्ष में हैं।
  5. नई आर्थिक नीतियों पर सहमति: ज्यादातर राजनीतिक दल नई आर्थिक नीतियों के पक्ष में हैं। इनका मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
  6. राष्ट्र के शासन में प्रान्तीय दलों की भूमिका की स्वीकृति -गठबंधन सरकारों में प्रान्तीय दल केन्द्रीय सरकार में साझेदार बन रहे हैं।
  7. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर- अब राजनीतिक दलों में विचारधारा के स्थान पर सत्ता प्राप्ति तथा कार्यसिद्धि पर सहमति बनती जा रही है।

प्रश्न 8.
मंडल आयोग पर विस्तार में लेख लिखिए।
उत्तर:
1977-79 की जनता पार्टी की सरकार के समय उत्तर भारत में पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से आवाज उठाई गई। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर इस दिशा में अग्रणी थे। उनकी सरकार ने बिहार में ‘ओबीसी’ को आरक्षण देने के लिए एक नीति लागू की। इसके बाद केन्द्र सरकार ने 1978 में एक आयोग बैठाया। इस आयोग को पिछड़ा वर्ग की स्थिति को सुधारने के उपाय बताने का काम दिया गया। इसी कारण आधिकारिक रूप से इस आयोग को ‘दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग’ कहा गया। इस आयोग को इसके अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के नाम पर ‘मंडल कमीशन’ कहा गया।

मंडल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके बताने के लिए किया गया था। आयोग से यह भी अपेक्षा की गई थी कि वह इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाएगा। आयोग ने 1980 में अपनी सिफारिशें पेश कीं। आयोग का मशविरा था कि पिछड़ा वर्ग को पिछड़ी जाति के अर्थ में स्वीकार किया जाए, क्योंकि अनुसूचित जातियों से इतर ऐसी अनेक जातियाँ हैं, जिन्हें वर्ण व्यवस्था में ‘नीच’ समझा जाता है।

आयोग ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि इन पिछड़ी जातियों की शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में बड़ी कम मौजूदगी है। इस वजह से आयोग ने इन समूहों के लिए शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की सिफारिश की। मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कई और समाधान सुझाए जिनमें भूमि सुधार भी एक था।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 9.
अयोध्या विवाद के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
बाबरी विवाद पर फैजाबाद जिला न्यायालय द्वारा फरवरी, 1986 में एक फैसला सुनाया गया। इस अदालत ने फैसला सुनाया था कि बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खोल दिया जाना चाहिए ताकि हिन्दू यहाँ पूजा कर सकें संजीव पास बुक्स क्योंकि वे इस जगह को पवित्र मानते हैं। अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को लेकर दशकों से विवाद चला आ रहा था। बाबरी मस्जिद 16वीं सदी में बनी थी। कुछ हिन्दुओं के मतानुसार यह मस्जिद एक राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।

इस विवाद ने अदालती मुकदमे का रूप ले लिया और मुकदमा कई दशकों तक जारी रहा। 1940 के दशक के आखिरी सालों में मस्जिद में ताला लगा दिया गया क्योंकि मामला अदालत में था। जैसे ही बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खुला वैसे ही दोनों पक्षों में लामबंदी होने लगी। अनेक हिन्दू और मुस्लिम संगठन इस मसले पर अपने-अपने समुदाय को लामबंद करने की कोशिश में जुट गए। भाजपा ने इसे अपना बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया।

प्रश्न 10.
कड़े मुकाबले और कई संघर्षों के बावजूद अधिकतर दलों के बीच सहमति उभरती सी दिखती है। इस कथन की पुष्टि के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. नयी आर्थिक नीति पर सहमति: कई समूह नयी आर्थिक नीति के खिलाफ हैं, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल इन नीतियों के पक्ष में हैं। इन दलों का मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत, विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
  2. पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति: राजनीतिक दलों ने पहचान लिया है कि पिछड़ी जातियों के सामाजिक और राजनीतिक दावे को स्वीकार करने की जरूरत है। इस कारण आज सभी राजनीतिक दल शिक्षा और रोजगार में पिछड़ी जातियों के लिए सीटों के आरक्षण के पक्ष में हैं। राजनीतिक दल यह भी सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं कि ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को सत्ता में समुचित हिस्सेदारी मिले।
  3. देश के शासन में प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति: प्रांतीय दल और राष्ट्रीय दल का भेद लगातार कम होते जा रहा है। प्रांतीय दल केन्द्रीय सरकार में साझीदार बन रहे हैं और इन दलों ने पिछले बीस सालों में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  4. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर और विचारधारागत सहमति के बगैर राजनीतिक गठजोड़: गठबंधन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारागत अंतर की जगह सत्ता में हिस्सेदारी की बातों पर जोर दे रहे हैं। उदाहरण: अनेक दल भाजपा की ‘हिन्दुत्व’ की विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन ये दल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल हुए और सरकार बनाई, जो पाँच सालों तक चली।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. विविधता के सवाल पर भारत ने कौन-सा दृष्टिकोण अपनाया?
(क) लोकतांत्रिक
(ख) राजनीतिक
(ग) सामाजिक
(घ) सांस्कृतिक
उत्तर:
(क) लोकतांत्रिक

2. इन्दिरा गाँधी की हत्या कब हुई थी?
(क) 24 जून, 1982
(ख) 25 अगस्त, 1974
(ग) 31 अक्टूबर, 1983
(घ) 31 अक्टूबर, 1984
उत्तर:
(घ) 31 अक्टूबर, 1984

3. किस राज्य में असम गण परिषद् सक्रिय है?
(क) गुजरात
(ख) तमिलनाडु
(ग) पंजाब
(घ) असम
उत्तर:
(घ) असम

4. द्रविड़ आंदोलन के प्रणेता कौन थे-
(क) हामिद अंसारी
(ख) लाल डेंगा
(ग) ई.वी. रामास्वामी नायकर
(घ) शेख मोहम्मद अब्दुल्ला
उत्तर:
(ग) ई.वी. रामास्वामी नायकर

5. पंजाब और हरियाणा राज्य बने
(क) 1950
(ख) 1966
(ग) 1965
(घ) 1947
उत्तर:
(ख) 1966

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

6. जम्मू और कश्मीर को संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत विशेष दर्जा दिया गया था?
(क) अनुच्छेद 370
(ख) अनुच्छेद 371
(ग) अनुच्छेद 375
उत्तर:
(क) अनुच्छेद 370

7. डी. एम. के. किस राज्य में सक्रिय है?
(क) तमिलनाडु
(ख) आन्ध्रप्रदेश
(ग) पंजाब
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) तमिलनाडु

8. नेशनल कान्फ्रेंस किस राज्य में सक्रिय है?
(क) जम्मू-कश्मीर
(ख) राजस्थान
(ग) पंजाब
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(क) जम्मू-कश्मीर

9. शेख अब्दुल्ला के निधन के पश्चात् नेशनल कॉन्फेरेंस का नेतृत्व किसके पास गया?
(क) उमर अब्दुल्ला
(ख) गुलाम मोहम्मद सादिक
(ग) फारूक अब्दुल्ला
(घ) महबूबा मुफ्ती
उत्तर:
(ग) फारूक अब्दुल्ला

10. जम्मू और कश्मीर राज्य को पुनर्गठित करके किन दो केन्द्र शासित प्रदेशों का गठन किया?
और कश्मीर
(क) लेह और लद्दाख
(ख) जम्मू
(ग) जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख
(घ) लद्दाख और कश्मीर
उत्तर:
(ग) जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में 1920 के दशक में …………………. दल का गठन किया गया।
उत्तर:
अकाली

2. ………………… को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया।
उत्तर:
5 अगस्त, 2019

3. भारत सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ ………………. में चलाया गया।
उत्तर:
जून, 1984

4. पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत से जोड़ने वाली राहदारी ………………….. किलोमीटर लंबी है।
उत्तर:
22

5. नागालैंड को राज्य का दर्जा …………………में दिया गया।
उत्तर:
1963

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय भू-भाग में किस क्षेत्र को सात बहनों का भाग कहा जाता है?
उत्तर:
पूर्वोत्तर के सात राज्यों को।

प्रश्न 2.
भारत और पाकिस्तान के मध्य विवाद का मुख्य मुद्दा क्या रहा है?
उत्तर:
कश्मीर मुद्दा।

प्रश्न 3.
1947 से पहले जम्मू-कश्मीर का शासक कौन था ?
उत्तर:
हरि सिंह।

प्रश्न 4.
नेशनल कांफ्रेंस ने किसके नेतृत्व में आन्दोलन चलाया?
उत्तर:
शेख अब्दुल्ला।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 5.
ई. वी. रामास्वामी नायकर किस नाम से प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
पेरियार।

प्रश्न 6.
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी ताकतों का बोलबाला कब से शुरू हुआ?
उत्तर:
1989 से।

प्रश्न 7.
धारा 370 किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर।

प्रश्न 8.
धारा 370 को समाप्त करने के पक्ष में कौनसी पार्टी रही है?
उत्तर;
भारतीय जनता पार्टी।

प्रश्न 9.
दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन किसे माना जाता है?
उत्तर:
द्रविड़ आन्दोलन।

प्रश्न 10.
1984 में स्वर्ण मन्दिर में हुई सैनिक कार्यवाही को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
ऑपरेशन ब्लू स्टार।

प्रश्न 11.
असम को बाँटकर किन प्रदेशों को बनाया गया?
उत्तर:
मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 12.
लाल डेंगा किस दल के नेता थे?
उत्तर:
मीजो नेशनल फ्रंट|

प्रश्न 13.
सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव कब हुआ?
उत्तर:
1974 में।

प्रश्न 14.
अंगमी जापू फिजो किसकी आजादी के आन्दोलन के नेता थे?
उत्तर:
नगालैण्ड|

प्रश्न 15.
असम आन्दोलन आसू ( AASU) का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
ऑल असम स्टूडेन्ट यूनियन।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 16.
पूर्वोत्तर के किन राज्यों को सात बहनों के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:

  1. असम
  2. नगालैंड
  3. मेघालय,
  4. मिजोरम,
  5. अरुणाचल प्रदेश,
  6. त्रिपुरा और
  7. मणिपुर।

प्रश्न 17.
जम्मू-कश्मीर में कौनसे तीन राजनीतिक क्षेत्र शामिल हैं?
उत्तर:
जम्मू, कश्मीर और लद्दाख।

प्रश्न 18.
नेशनल कांफ्रेन्स किस राज्य में सक्रिय क्षेत्रीय दल है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर।

प्रश्न 19.
अकाली दल और जनसंघ ने किस वर्ष पंजाब में गठबन्धन सरकार का निर्माण किया?
उत्तर:
1967 में।

प्रश्न 20.
पूर्वोत्तर भारत के किन्हीं दो पड़ौसी देशों के नाम बताइए।
उत्तर: म्यांमार, चीन।

प्रश्न 21.
क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाला कोई एक कारण बतायें।
उत्तर:
क्षेत्र का असन्तुलित आर्थिक विकास।

प्रश्न 22.
ऑपरेशन ब्लू स्टार कब और किसके द्वारा चलाया गया?
उत्तर:
ऑपरेशन ब्लू स्टार 1984 में इंदिरा गाँधी द्वारा चलाया गया।

प्रश्न 23.
क्षेत्रीय आकांक्षाओं का एक आधारभूत सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतान्त्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 24.
अकाली दल किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
अकाली दल पंजाब से सम्बन्धित है।

प्रश्न 25.
किन्हीं दो क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:  नेशनल कान्फ्रेंस, डी. एम. के.।.

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 26.
1979 से 1985 तक चला असम आन्दोलन किसके विरुद्ध चला?
उत्तर:
यह आन्दोलन विदेशियों के विरुद्ध चला।

प्रश्न 27.
गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल से कब स्वतन्त्र हुए?
उत्तर:
दिसम्बर, 1961 में गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल से स्वतन्त्र हुए।

प्रश्न 28.
सिक्किम विधानसभा के लिए प्रथम लोकतान्त्रिक चुनाव कब हुए?
उत्तर:
सिक्किम विधानसभा के लिए प्रथम लोकतान्त्रिक चुनाव 1974 में हुए।

प्रश्न 29.
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव कब पास किया गया और इसका सम्बन्ध किसके साथ है?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव 1973 में पास किया गया और इसका सम्बन्ध राज्यों की स्वायत्तता से है।

प्रश्न 30.
पंजाब में किस दल ने पंजाबी सूबा के लिए आन्दोलन चलाया?
उत्तर:
पंजाब में अकाली दल ने पंजाबी सूबा के लिए आन्दोलन चलाया।

प्रश्न 31.
जम्मू-कश्मीर के उग्रवादियों की सहायता कौनसा देश कर रहा था?
उत्तर:
कश्मीर के उग्रवादियों को पाकिस्तान भौतिक और सैन्य सहायता दे रहा था।

प्रश्न 32.
अनुच्छेद 370 किस राज्य को अन्य राज्यों के मुकाबले में अधिक स्वायत्तता देता है?
उत्तर:
अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता दी गई है।

प्रश्न 33.
विविधता की चुनौती से निपटने के लिए क्या किया गया?
उत्तर:
विविधता की चुनौती से निपटने के लिए देश की अंदरूनी सीमा रेखाओं का पुनर्निर्धारण किया गया।

प्रश्न 34.
भारत में किस दशक को स्वायत्तता की माँग के दशक के रूप में देखा जाता है?
उत्तर:
भारत में 1980 के दशक को स्वायत्तता की माँग के दशक के रूप में देखा जाता है।

प्रश्न 35.
डी.एम. के. ने किस भाषा का विरोध किया?
उत्तर:
डी. एम. के. ने हिन्दी भाषा का विरोध किया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 36.
क्षेत्रवाद को रोकने के कोई दो उपाय बताइये।
उत्तर:
क्षेत्रवाद को रोकने के दो उपाय हैं।

  1. राष्ट्रीय नीति का निर्धारण करना तथा
  2. सांस्कृतिक एकीकरण के लिए प्रयास करना।

प्रश्न 37.
भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग करते हुए जनआंदोलन कहाँ चले?
उत्तर:
आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात।

प्रश्न 38.
जम्मू और कश्मीर किन तीन सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों को मिलाकर बना है?
उत्तर:
जम्मू, कश्मीर और लद्दाख।

प्रश्न 39.
द्रविड़ आंदोलन का लोकप्रिय नारा क्या था?
उत्तर:
‘उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन – दिन घटता जाए’।

प्रश्न 40.
डी. एम. के. के संस्थापक कौन थे?
उत्तर”:
सी. अन्नादुरै।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्षेत्रवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
क्षेत्रवाद: क्षेत्रवाद से अभिप्राय किसी भी देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो औद्योगिक, सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जागृत है। क्षेत्रवाद केन्द्रीयकरण के विरुद्ध क्षेत्रीय इकाइयों को अधिक शक्ति व स्वायत्तता प्रदान करने के पक्ष में है।

प्रश्न 2.
क्षेत्रवाद के उदय के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
क्षेत्रवाद के उदय के कारण – क्षेत्रवाद के उदय के कारण हैं।

  1. भाषावाद: भारत में सदैव ही अनेक भाषाएँ बोलने वालों ने कई बार अलग-अलग राज्य के निर्माण के लिए व्यापक आन्दोलन किया।
  2. जातिवाद: जिन क्षेत्रों में किसी एक जाति की प्रधानता रही है, वहीं पर क्षेत्रवाद का उग्र रूप देखने को मिलता है।

प्रश्न 3.
क्षेत्रवादी आन्दोलन से हमें क्या सबक मिलता है?
उत्तर:
क्षेत्रीय आन्दोलन से हमें

  1. यह सबक मिलता है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोक राजनीति का अभिन्न अंग हैं तथा
  2. लोकतान्त्रिक वार्ता करके क्षेत्रीय आकांक्षाओं का हल निकालना चाहिए।

प्रश्न 4.
क्षेत्र पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
क्षेत्र-क्षेत्र उस भू-भाग को कहते हैं जिसके निवासी सामान्य भाषा, धर्म, परम्पराएँ, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विकास आदि की दृष्टि से भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हों। यह भूभाग सीमावर्ती राज्य, राज्य का एक या अधिक भाग भी हो सकते हैं। भारतीय संदर्भ में प्रान्तों तथा संघीय प्रदेश को क्षेत्र कहा जाता है।

प्रश्न 5.
अलगाववाद का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलगाववाद: अलगाववाद से अभिप्राय एक राज्य से कुछ क्षेत्र को अलग-अलग करके स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की माँग है। अर्थात् सम्पूर्ण इकाई से अलग अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखने की माँग अलगाववाद है। अलगाववाद का उदय उस समय होता है जब क्षेत्रवाद की भावना उग्र रूप धारण कर लेती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 6.
भारत में अलगाववाद के दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
अलगाववाद के उदाहरण- भारत में अलगाववाद के उदाहरण हैं।

  1. 1960 में डी. एम. के. तथा अन्य तमिल दलों ने तमिलनाडु को भारत से अलग करवाने का आन्दोलन किया।
  2. असम के मिजो हिल के लिए जिले के लोगों ने भारत से अलग होने की माँग की और इस मांग को पूरा करवाने के लिए उन्होंने मिजो फ्रंट की स्थापना की।

प्रश्न 7.
अलगाववाद के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  1. राजनीतिक कारण: अलगाववाद की भावना को भड़काने में राजनीतिक दलों की संकीर्ण मनोवृत्ति को प्रमुख कारण माना जा सकता है।
  2. आर्थिक पिछड़ापन: असमान आर्थिक विकास और पिछड़ापन भी अलगाववाद को बढ़ावा देता है। पिछड़े क्षेत्रों में पृथकतावाद की भावना जन्म लेती है।

प्रश्न 8.
भारत और पाकिस्तान का मसला सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने 21 अप्रैल, 1948 के प्रस्ताव में किन तीन चरणों वाली प्रक्रिया की अनुशंसा की?
उत्तर:
पाकिस्तान ने कश्मीर राज्य के बड़े हिस्से पर नियंत्रण जारी रखा इसलिए इस मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाया गया। 21 अप्रेल, 1948 के अपने प्रस्ताव में निम्न तीन चरणों वाली प्रक्रिया की अनुशंसा की

  1. पाकिस्तान को अपने वे सारे नागरिक वापस बुलाने थे जो कश्मीर में घुस गए थे।
  2. भारत को धीरे-धीरे अपनी फौज कम करनी थी ताकि कानून व्यवस्था बनी रहे।
  3. स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जनमत संग्रह कराया जाए।

प्रश्न 9.
भारत में क्षेत्रीय दलों के विकास के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. भारत एक विशाल देश है। इसकी बनावट में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। भौगोलिक विभिन्नता के कारण अलग-अलग क्षेत्रीय दल भी पाये जाते हैं।
  2. राजनीतिक दलों की महत्त्वाकांक्षी प्रवृत्ति व अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए क्षेत्रीय भावनाओं को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 10.
रामास्वामी नायकर ( अथवा पेरियार ) के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उत्तर:
रामास्वामी नायकर का जन्म सन् 1879 में हुआ। वे पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे जाति विरोधी आंदोलन और द्रविड़ संस्कृति और पहचान के पुनः संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने दक्षिण में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया तथा द्रविड़ कषगम नामक संस्था स्थापित की।

प्रश्न 11.
डी. एम. के. दल पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
डी. एम. के. – डी. एम. के. तमिलनाडु का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। वर्तमान समय में इस दल के अध्यक्ष करुणानिधि हैं। इस दल की स्थापना 1949 में चेन्नई में श्री सी. एम. अन्नादुराय ने की। डी. एम. के. का पूरा नाम द्रविड़ – मुनेत्र कषगम है। इसमें द्रविड़ शब्द द्रविड़ जाति का प्रतीक है, मुनेत्र का अर्थ है प्रगतिशीलता और कषगम का अर्थ है- संगठन।

प्रश्न 12.
तेलगूदेशम् पार्टी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
तेलगूदेशम् पार्टी: तेलगूदेशम् पार्टी आन्ध्रप्रदेश का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडू हैं। इस दल की स्थापना 1982 में फिल्म अभिनेता एन. टी. रामाराव ने की। तेलगूदेशम् पार्टी की स्थापना कांग्रेस शासन की प्रतिक्रियास्वरूप हुई। तेलगूदेशम विकेन्द्रित संघवाद का समर्थक है।

प्रश्न 13.
अन्ना डी. एम. के. पार्टी के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अन्ना डी. एम. के. – अन्ना डी. एम. के. पार्टी भी तमिलनाडु का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। इस दल की वर्तमान अध्यक्ष सुश्री जयललिता हैं। इस दल की स्थापना रामचन्द्रन ने 1972 में की। यह दल हिन्दी भाषा को दक्षिण के राज्यों पर थोपने के विरुद्ध है। यह दल द्विभाषा फार्मूला का समर्थन करता है।

प्रश्न 14.
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिखों तथा देश पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के निम्न प्रभाव पड़े चलाया।

  1. इसके प्रभावस्वरूप अकाली दल ने पंजाब और पड़ौसी राज्यों के मध्य पानी के बँटवारे के मुद्दे पर आंदोलन
  2. इसके प्रभावस्वरूप स्वायत्त सिख पहचान की बात उठी।
  3. इसके प्रभावस्वरूप ही चरमपंथी सिखों ने भारत से अलग होकर खालिस्तान की माँग की।

प्रश्न 15.
1980 में अकाली दल की प्रमुख मांगों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. चण्डीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया जाए।
  2. दूसरे राज्यों के पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में मिलाया जाए।
  3. पंजाब का औद्योगिक विकास किया जाए।
  4. भाखड़ा नांगल योजना पंजाब के नियन्त्रणाधीन हो।
  5. देश के सभी गुरुद्वारे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी के प्रबन्ध में हों।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 16.
ऑपरेशन ब्लू स्टार से क्या आशय है?
उत्तर:
ऑपरेशन ब्लू स्टार: 1980 के दशक में पंजाब में सन्त भिण्डरावाले ने स्वर्ण मन्दिर को अपने कब्जे में लेकर वहाँ पर अस्त्र-शस्त्र एकत्र करना शुरू कर दिये जिसके कारण श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सरकार को भिण्डरावाले के विरुद्ध ऑपरेशन ब्लू स्टार के अन्तर्गत कार्यवाही करनी पड़ी। सरकार ने स्वर्ण मन्दिर में सेना भेजकर उसे भिण्डरावाला से मुक्त करवाया।

प्रश्न 17.
1985 के पंजाब समझौते के किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण पक्षों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. एक सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्यवाही के दौरान आन्दोलन में मारे गये लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ-साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जायेगा।
  2. दिल्ली में नवम्बर में हुए दंगों की जाँच कर रहे रंगनाथ मिश्र आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाकर उसमें बोकारो और में उपद्रवों की जांच को भी शामिल किया जायेगा।

प्रश्न 18.
सिख विरोधी दंगे कब और क्यों हुए?
उत्तर:
सिख विरोधी दंगे 1984 में हुए। यह दंगे 31 अक्टूबर, 1984 में श्रीमती गांधी की हत्या के विरोध में हुए जिसमें 2000 से अधिक सिख स्त्री-पुरुष व बच्चे मारे गये। इन दंगों से देश की एकता व अखण्डता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया। इसलिए राजीव गांधी ने पंजाब में शान्ति बनाये रखने के लिए अकाली नेताओं से समझौता किया जिसे पंजाब समझौता कहा जाता है।

प्रश्न 19.
नेशनल कान्फ्रेंस के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नेशनल कान्फ्रेंस: नेशनल कान्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला हैं। इस दल की स्थापना 1920 में हुई। नेशनल कान्फ्रेंस धारा 370 को बनाये रखने के पक्ष में है। तथा जम्मू-कश्मीर को और अधिक स्वायत्तता देने के पक्ष में है। इस पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को स्थायी माना है।

प्रश्न 20.
1980 के दशक में पंजाब एवं असम संकट में एक समानता एवं एक असमानता बताइए।
उत्तर:

  1. समानता: 1980 के दशक में पंजाब एवं असम में होने वाले दोनों संकट क्षेत्रीय स्तर के थे।
  2. असमानता: पंजाब संकट केवल एक धर्म एवं समुदाय से सम्बन्धित था, जबकि असम संकट अलग धर्मों एवं समुदायों से सम्बन्धित था।

प्रश्न 21.
क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती है। समझाइये|
उत्तर:
संकीर्ण क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बन जाता है। क्षेत्रवाद के फलस्वरूप विभिन्न क्षेत्र के लोग कभी प्रादेशिक भाषा, कभी राजनीतिक स्वशासन, कभी क्षेत्रीय स्वार्थ को लेकर पृथक् राज्य की माँग करने लगते हैं, जो राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती होती है।

प्रश्न 22.
नये राज्यों के निर्माण के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
नये राज्यों के निर्माण के पक्ष में तर्क।

  1. पिछड़े क्षेत्रों का विकास तीव्र गति से होने लगता है।
  2. लोगों की शासन में सहभागिता बढ़ती है।
  3. राजनीतिक चेतना का विकास होता है।
  4. केन्द्रीय शासन के प्रशासनिक दबाव से मुक्ति मिल जाती है।
  5. नये राज्यों का गठन राष्ट्रविरोधी गतिविधि नहीं है।

प्रश्न 23.
नये राज्यों के निर्माण के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
नये राज्यों के निर्माण के विपक्ष में तर्क।

  1. नये राज्यों की माँग विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष तथा तनाब पैदा करती है।
  2. पिछड़े क्षेत्रों का विकास नये राज्यों के गठन मात्र से सम्भव नहीं है।
  3. नये राज्यों के गठन से अनावश्यक प्रशासनिक तन्त्र में वृद्धि होती है।
  4. नये राज्यों के गठन से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिलता है।

प्रश्न 24.
द्रविड आन्दोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए द्रविड़ आन्दोलन।
उत्तर:
द्रविड आन्दोलन की बागडोर तमिल समाज सुधारक ई.वी. रामा स्वामी नायकर ‘पेरियार’ के हाथों में थी। इस आन्दोलन से एक राजनीतिक संगठन ‘द्रविड – कषगम’ का सूत्रपात हुआ। यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व तथा हिन्दी का विरोध करता था तथा उत्तरी भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था। प्रारम्भ में द्रविड आन्दोलन समग्र दक्षिण भारतीय सन्दर्भ में अपनी बात रखता था लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों से समर्थन न मिलने के कारण धीरे-धीरे तमिलनाडु तक ही सिमट कर रह गया। बाद में द्रविड कषगम दो धड़ों में बँट गया और आन्दोलन की समूची राजनीतिक विरासत द्रविड मुनेत्र कषगम के पाले में केन्द्रित हो गयी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 25.
क्षेत्रवाद क्या है? यह भारत की राज्य व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
क्षेत्रवाद: क्षेत्रवाद का अर्थ किसी ऐसे छोटे से क्षेत्र से है जो भाषायी धार्मिक, भौगोलिक, सामाजिक अथवा ऐसे ही अन्य कारक के आधार पर अपने पृथक् अस्तित्व के लिए प्रयत्नशील है। इस प्रकार क्षेत्रवाद से अभिप्राय है राज्य की तुलना में किसी क्षेत्र विशेष से लगाव| क्षेत्रवाद के प्रभाव: भारत की राज्य व्यवस्था को क्षेत्रवाद निम्न प्रकार से प्रभावित करता है।

  1. क्षेत्रवाद के आधार पर राज्य केन्द्र सरकार से सौदेबाजी करते हैं।
  2. क्षेत्रवाद ने कुछ हद तक भारतीय राजनीति में हिंसक गतिविधियों को उभारा है।
  3. चुनावों के समय क्षेत्रवाद के आधार पर राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चुनाव करते हैं और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काकर वोट प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं।
  4. मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय मन्त्रिमण्डल में प्रायः सभी मुख्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को लिया जाता है।

प्रश्न 26. भारत में क्षेत्रवाद के उदय के चार कारण बताइये।
उत्तर:
क्षेत्रवाद के कारण: क्षेत्रवाद के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. आर्थिक असन्तुलन:क्षेत्र विशेष के लोगों की यह धारणा है कि पिछड़ेपन के कारण उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है तथा उनके आर्थिक विकास की उपेक्षा की जा रही है, यह भावना भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देती है।
  2. भाषागत विभिन्नताएँ: भारत में भाषा के आधार पर अनेक राज्यों का निर्माण हुआ है।
  3. राज्यों के आकार में असमानता: राज्यों का विशाल आकार भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है।
  4. प्रशासनिक कारण: प्रशासनिक कारणों से भी विभिन्न राज्यों की प्रगति में अन्तर रहा है, पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा भी राज्यों का समान विकास नहीं हुआ। यह अन्तर भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 27.
संविधान की धारा 370 क्या है? इस प्रावधान का विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर:
संविधान की धारा 370: कश्मीर को संविधान में धारा 370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया है। धारा 370 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता दी गई है। राज्य का अपना संविधान है। धारा 370 का विरोध: धारा 370 का विरोध लोगों का एक समूह इस आधार पर कर रहा है कि जम्मू-कश्मीर राज्य को धारा 370 के अन्तर्गत विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ नहीं जुड़ पाया है। अतः धारा 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर राज्य को भी अन्य राज्यों के समान होना चाहिए।

प्रश्न 28.
क्षेत्रीय असन्तुलन से आप क्या समझते हैं? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर इसके प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन: क्षेत्रीय असन्तुलन का अर्थ यह है कि भारत के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों का विकास एक जैसा नहीं है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के विकास स्तर और लोगों के जीवन स्तर में पाये जाने वाले अन्तर को क्षेत्रीय असन्तुलन का नाम दिया जाता है। क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रभाव: क्षेत्रीय असन्तुलन भारतीय लोकतन्त्र पर मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रभाव डाल रहा

  1. पिछड़े क्षेत्रों में असन्तुष्टता की भावना बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
  2. क्षेत्रीय असन्तुलन से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिला है।
  3. क्षेत्रीय असन्तुलन ने अनेक क्षेत्रीय दलों को जन्म दिया है।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन से पृथकतावाद तथा आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 29.
भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण: भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं।

  1. भौगोलिक विषमताओं ने क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा किया है। परिस्थितियों के कारण भारत में एक ओर राजस्थान जैसा मरुस्थल है। जो कम उपजाऊ है तो दूसरी ओर पंजाब जैसे उपजाऊ क्षेत्र हैं।
  2. भाषा की विभिन्नता ने क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा दिया है।
  3. ब्रिटिश सरकार ने कुछ क्षेत्रों का विकास किया और कुछ का नहीं किया, जिससे क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हुआ।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन का एक महत्त्वपूर्ण कारण नेताओं की अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास पर अधिक बल देने की प्रवृत्ति भी है।

प्रश्न 30.
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के उपाय: क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रयास किए जाएँ। पिछड़े क्षेत्रों में विशेषकर बिजली, यातायात व संचार के साधनों का विकास किया जाए।
  2. पिछड़े लोगों व जन-जातियों के विकास के लिए विशेष कदम उठाए जाएँ।
  3. जो प्रशासनिक अधिकारी आदिवासी क्षेत्रों में नियुक्त किए जाएँ उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाए और उन्हीं को नियुक्त किया जाए जो इन क्षेत्रों के बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान भी रखते हों।
  4. केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में सभी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।

प्रश्न 31.
क्षेत्रीय असन्तुलन क्षेत्रवाद का जनक है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
क्षेत्रीय असन्तुलन भारत में क्षेत्रवाद का प्रमुख कारण है। समझाइये
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन क्षेत्रवाद के जनक के रूप में – क्षेत्रीय असन्तुलन से अभिप्राय विभिन्न क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दरों, स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता, औद्योगीकरण का स्तर आदि के आधार पर अन्तर पाया जाना है। भारत में विभिन्न राज्यों के बीच बड़े पैमाने पर असन्तुलन पाया जाता है। क्षेत्रीय असन्तुलन ने भारत में निम्न रूप में क्षेत्रवाद को पैदा किया है।

  1. क्षेत्रीय विभिन्नताओं एवं असन्तुलन के कारण क्षेत्रीय भेदभाव को बढ़ावा मिला है।
  2. भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण क्षेत्रवादी भावनाओं को बल मिला है। इसके कारण कई क्षेत्रों ने पृथक् राज्य की मांग की है।
  3. क्षेत्रीय असन्तुलन ने क्षेत्रवादी हिंसा, आन्दोलनों व तोड़-फोड़ को बढ़ावा दिया है।
  4. अनेक क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण ही बने हैं जो अब क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।

प्रश्न 32.
भारत में दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद की भूमिका- भारत में दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद एक सीमा तक भारत के विकास में गति प्रदान करता है। क्षेत्रवादी नेतृत्व सत्ता में रहकर अपने राज्यों के विकास के लिए विशेष प्रयत्न करता है। तमिलनाडु, पंजाब व हरियाणा इसके प्रमाण हैं।
  2. दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद अनेक बार पूर्ण या पृथक् राज्य की मांग के रूप में उभरता है। इसके कारण अनेक आन्दोलन हुए और अनेक पृथक् राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि का जन्म हुआ।
  3. दबाव की प्रक्रिया की भूमिका में क्षेत्रवाद का एक अन्य रूप अन्तर्राज्यीय नदी विवादों के रूप में सामने आया है। कावेरी, रावी, व्यास नदियों का पानी आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 33.
” क्षेत्रवाद का अभिप्राय पृथकतावाद नहीं है ।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
क्षेत्रवाद क्षेत्रीय असन्तुलन का परिणाम है। क्षेत्रीय हितों के संरक्षण हेतु यह लोकतंत्र की प्राणवायु है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में काफी समय से अनेक क्षेत्रवादी आंदोलन चल रहे हैं। ये आंदोलन अपने क्षेत्र को भारतीय संघ में एक अलग राज्य की माँग करते हैं। झारखण्ड, छत्तीसगढ़ के क्षेत्रवादी आंदोलन इसी तरह के थे। क्षेत्रवादी आंदोलन अपने क्षेत्र में आर्थिक विकास की गति को तेज करना चाहते हैं तथा अपनी सांस्कृतिक भाषायी पहचान भी बनाए रखना चाहते हैं। इस प्रकार क्षेत्रवाद का अभिप्राय पृथकतावाद नहीं है।

प्रश्न 34.
लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत ने विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को अपनाया। लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति है और लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र-विरोधी नहीं मानता। लोकतांत्रिक राजनीति में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा अथवा किसी खास क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइंदगी करें। इस तरह लोकतांत्रिक राजनीति की प्रक्रिया में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ और बलवती होती हैं। लोकतांत्रिक राजनीति का एक अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाएगा और उन्हें इसमें भागीदारी दी जाएगी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 35.
जम्मू और कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों के बारे में बताइए।
उत्तर:
जम्मू और कश्मीर तीन सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से बना हुआ है।

  1. जम्मू: इस क्षेत्र में छोटी पहाड़ियाँ और मैदानी भाग हैं। इसमें मुख्य रूप से हिन्दू रहते हैं। मुसलमान, सिख और अन्य मतों के लोग भी रहते हैं।
  2. कश्मीर: यह क्षेत्र मुख्य रूप से कश्मीर घाटी है। यहाँ रहने वाले अधिकतर कश्मीरी मुसलमान हैं और शेष हिन्दू, सिख, बौद्ध तथा अन्य हैं।
  3. लद्दाख: यह पहाड़ी क्षेत्र है। इसकी जनसंख्या बहुत कम है, जिसमें बराबर संख्या में बौद्ध और मुसलमान रहते हैं।

प्रश्न 36.
कश्मीरियत से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जम्मू और कश्मीर एक राजसी रियासत थी। यहाँ हिन्दू राजा हरिसिंह का शासन था। हरिसिंह भारत या पाकिस्तान में न शामिल होकर अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहते थे। पाकिस्तानी नेताओं के अनुसार कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है क्योंकि वहाँ अधिकांश आबादी मुसलमान थी। परंतु उस रियासत के लोगों ने इसे इस तरह नहीं देखा उन्होंने सोचा कि सबसे पहले वे कश्मीरी हैं। क्षेत्रीय अभिलाषा का यह मुद्दा कश्मीरियत कहलाता है।

प्रश्न 37.
पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंजाब समझौता: पंजाब समझौते के महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्न हैं।

  1. मारे गये निरपराध व्यक्तियों के लिए मुआवजा: एक सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्यवाही में आन्दोलन में मारे गये लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जायेगा।
  2. सेना में भर्ती: देश के सभी नागरिकों को सेना में भर्ती का अधिकार होगा और चयन के लिए केवल योग्यता ही आधार होगा।
  3. नवम्बर दंगों की जाँच: दिल्ली में नवम्बर में हुए दंगों की जांच कर रहे रंगनाथ मिश्र आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाकर उसमें बोकारो और कानपुर में हुए उपद्रवों की जाँच को शामिल किया जायेगा।
  4. सेना से निकाले हुए व्यक्तियों का पुनर्वास – सेना से निकाले हुए व्यक्तियों को पुनर्वास और उन्हें लाभकारी रोजगार दिलाने के प्रयास किये जायेंगे।

प्रश्न 38.
असम समझौता क्या था और इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
असम समझौता: 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और आसू के बीच एक समझौता हुआ जिसमें यह तय किया गया कि जो लोग बांग्लादेश युद्ध के दौरान या उसके बाद के वर्षों में असम आए हैं, उनकी पहचान की जाएगी और . उन्हें वापस भेजा जायेगा। समझौते के परिणाम: समझौते के निम्न प्रमुख परिणाम निकले

  1. समझौते के बाद ‘आसू’ और असम-गण-संग्राम परिषद् ने साथ मिलकर ‘असम-गण- क्षेत्रीय राजनीतिक दल बनाया।
  2. असम गण परिषद् 1985 में इस वायदे के साथ सत्ता में आया कि विदेशी लोगों की समस्या का समाधान कर लिया जायेगा।
  3. असम समझौते से प्रदेश में शान्ति कायम हुई तथा प्रदेश की राजनीति का चेहरा बदल गया।

प्रश्न 39.
शेख अब्दुल्ला के जीवन के कुछ प्रमुख पहलुओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शेख अब्दुल्ला:
शेख अब्दुल्ला का जन्म 1905 में हुआ। वे भारतीय स्वतन्त्रता से पूर्व ही जम्मू एवं कश्मीर के नेता के रूप में उभरे। वे जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता दिलाने के साथ-साथ वहाँ धर्मनिरपेक्षता की स्थापना के समर्थक थे। उन्होंने राजशाही के विरुद्ध राज्य में जन-आन्दोलन का नेतृत्व किया। वे धर्मनिरपेक्षता के आधार पर जीवन भर पाकिस्तान का विरोध करते रहे। वे नेशनल कान्फ्रेंस के संगठनकर्ता और प्रमुख नेता थे।

वे भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय के उपरान्त जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री (1947 में) बने। उनके मन्त्रिमण्डल को भारत सरकार की कांग्रेस सरकार ने 1953 में बर्खास्त कर दिया था तभी से 1968 तक उन्हें कारावास में ही रखा। 1974 में इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार से समझौता हुआ। वे राज्य के मुख्यमन्त्री पद पर आरूढ़ हुए। 1982 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 40.
लालडेंगा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लालडेंगा-लालडेंगा का जन्म 1937 में हुआ। वे मिजो नेशनल फ्रंट के संस्थापक और सबसे ख्याति प्राप्त नेता थे। 1959 में मिजोरम में पड़े भयंकर अकाल और उस समय की असम सरकार द्वारा उस समय के अकाल की समस्या के समाधान में विफल होने के कारण वे देश-विद्रोही बन गए। वे अनेक वर्षों तक भारत के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करते रहे। यह संघर्ष लगभग बीस वर्षों तक चला। वे पाकिस्तान में एक राज्य शरणार्थी के रूप में रहते हुए भी भारत विरोधी गतिविधियाँ चलाते रहे।

अंत में वे प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के बुलाने पर स्वदेश लौटे और 1986 में राजीव गाँधी के साथ उन्होंने सुलह की और दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये और मिजोरम को नया राज्य बनाया गया। लालडेंगा नवनिर्मित मिजोरम के मुख्यमन्त्री बने। 1990 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 41.
राजीव गाँधी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
राजीव गाँधी फिरोज गाँधी और इन्दिरा गाँधी के पुत्र थे। उनका जन्म 1944 में हुआ। 1980 के बाद वे देश की सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। अपनी माँ इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद वे राष्ट्रव्यापी सहानुभूति के वातावरण में भारी बहुमत से 1984 में देश के प्रधानमंत्री बने और 1989 के बीच वह प्रधानमंत्री पद पर रहे। उन्होंने पंजाब में आतंकवाद के विरुद्ध उदारपंथी नीतियों के समर्थक लोंगोवाल से समझौता किया।

उन्हें मिजो विद्रोहियों और असम के छात्र संघों में समझौता करने में सफलता मिली। राजीव देश में उदारवाद या खुली अर्थव्यवस्था एवं कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के प्रणेता थे। श्रीलंका नक्सलीय समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजा। संभवत: ऐसा माना जाता है कि श्रीलंका के विद्रोही तमिल संगठन (एल.टी.टी.ई.) ने आत्मघाती हमले द्वारा 1991 में उनकी हत्या कर दी।

प्रश्न 42.
गोवा को संघ शासित प्रदेश तथा पूर्ण राज्य का दर्जा किस प्रकार प्राप्त हुआ? संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा: 1961 में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराने के बाद महाराष्ट्रवादी पार्टी ने गोवा को महाराष्ट्र में मिलाने की माँग रखी जबकि यूनाइटेड गोअन पार्टी ने गोवा को स्वतन्त्र या पृथक् राज्य बनाने की माँग की। फलतः 1967 की जनवरी में केन्द्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। इसमें गोवा के लोगों से पूछा गया कि आप लोग महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं अथवा अलग बने रहना चाहते हैं। भारत में यही एकमात्र अवसर था जब किसी मसले पर सरकार ने जनमत की इच्छा को जानने के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रक्रिया अपनायी थी। अधिकतर लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डाला। इस तरह गोवा संघ शासित प्रदेश बना रहा। अन्ततः 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।

प्रश्न 43.
1980 के दशक में उत्पन्न पंजाब और असम संकट के बीच एक समानता और एक अन्तर बताइये।
उत्तर:
पंजाब व असम संकट के बीच समानता: 1980 के दशक में पंजाब और असम दोनों में भाषा के आधार पर नवीन राज्य गठन की माँग उठाई गई। इसके तहत पंजाबी और हिन्दी भाषा के आधार पर पंजाब का तीन राज्यों- पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में विभाजन हुआ। इसी प्रकार असम भी क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर क्रमशः नगालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम और असम सात राज्यों में विभाजित हुआ। पंजाब व असम के विभाजन के बीच अन्तर: पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की मांग पूर्णत: भाषा पर आधारित थी जबकि असम से पृथक् हुए राज्यों का आधार भाषा के साथ-साथ संस्कृति और क्षेत्रीय परिवेश भी थे।

प्रश्न 44.
भारत में पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय आकांक्षा स्वायत्तता की माँग रही है ।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में पूर्वोत्तर में स्वायत्तता की माँग भारत में पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय आकांक्षा स्वायत्तता की माँग रही है। स्वतंत्रता के समय मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर पूर्वोत्तर का सारा हिस्सा असम कहलाता था। इस क्षेत्र के गैर असमी लोगों को जब लगा कि असम सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस क्षेत्र से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। 1970 के दशक में पूरे राज्य में असमी भाषा लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए।

इन्होंने ‘आल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस’ का गठन किया और माँग की कि असम से अलग जनजातीय राज्य बनाये जाएं। अन्ततः केन्द्र सरकार ने असम को बाँट कर मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश बनाया तथा त्रिपुरा और मणिपुर को भी राज्य का दर्जा दिया करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद् के अन्तर्गत स्वायत्तता दी गई तथा बोड़ो जनजाति को स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 45.
मास्टर तारा सिंह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मास्टर तारा सिंह: मास्टर तारा सिंह 1885 में जन्मे। वे युवा अवस्था में ही प्रमुख सिख धार्मिक एवं राजनैतिक नेता के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर सके। वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी (एस.पी.डी.) के शुरुआती नेताओं में से एक थे। उन्हें इतिहास में अकाली आन्दोलन के सबसे महान नेता के रूप में याद किया जाता है। वे देश की स्वतन्त्रता आन्दोलन के समर्थक, ब्रिटिश सत्ता के विरोधी थे लेकिन उन्होंने केवल मुसलमानों के साथ समझौते की कांग्रेस
नीति का डटकर विरोध किया। वे देश की आजादी के बाद अलग पंजाबी राज्य के निर्माण के समर्थक रहे। 1967 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 46.
कश्मीर का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए अपनी तरफ से कबायली घुसपैठिए भेजे। इसने महाराजा को भारतीय सैनिक सहायता लेने के लिए बाध्य किया। भारत ने सैनिक सहायता दी और कश्मीर घाटी से. घुसपैठियों को वापस खदेड़ दिया, परंतु भारत ने सहायता देने से पहले महाराजा से विलय प्रपत्र पर हस्ताक्षर करवा लिये। इस प्रकार कश्मीर का भारत में विलय हुआ।

प्रश्न 47.
भारत सरकार ने सन् 2000 में कौनसे तीन नये राज्यों का गठन किया? इनके गठन का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। नये राज्यों के निर्माण के दो उद्देश्य बताइये|
अथवा
उत्तर:
नये राज्यों के निर्माण के उद्देश्य: भारत सरकार ने सन् 2000 में उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), झारखण्ड और छत्तीसगढ़ नामक तीन नये राज्यों का गठन किया। इन राज्यों के गठन के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं।
1. ऐतिहासिक कारण: स्वतन्त्र भारत में विभिन्न देशी रियासतों और प्रान्तों को मिलाकर राज्यों का पुनर्गठन किया गया था। लेकिन कुछ रियासतों को यह महसूस होता था कि यदि उनका पृथक् अस्तित्व रहता तो वे न केवल अपनी मौलिक संस्कृति तथा क्षेत्रीय विशिष्टता को बनाये रखते बल्कि सीमित क्षेत्र होने के कारण उनका विकास भी बेहतर और तीव्र गति से सम्भव हो पाता।

2. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ: स्थानीय नेताओं और राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जनता को उज्ज्वल भविष्य के नाम पर पृथक् राज्य निर्माण के लिए भड़काया।

प्रश्न 48.
भारत में सिक्किम का विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारत में सिक्किम का विलय: स्वतंत्रता के समय सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन उसकी रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था और वहाँ के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थीं। लेकिन सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को संभाल नहीं सके। वहाँ की नेपाली मूल की जनता में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेवचा भूटिया के छोटे से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। 1975 में अप्रैल में भारत के साथ सिक्किम के पूर्ण विलय का एक प्रस्ताव सिक्किम विधानसभा ने पारित किया। इस प्रस्ताव के बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें जनता ने प्रस्ताव के पक्ष में मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तुरन्त मान लिया तथा सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया।

प्रश्न 49.
भारत में मणिपुर के विलय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मणिपुर का विलय: वर्तमान में पूर्वोत्तर क्षेत्र में सात राज्य हैं। असम, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर। इन सात राज्यों को ‘सात बहनें’ कहा जाता है। 1947 के भारत विभाजन से पूर्वोत्तर के इलाके भारत के शेष भागों से एकदम अलग-थलग पड़ गये। अलग-थलग पड़ जाने के कारण इस इलाके में विकास नहीं हो सका। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय मणिपुर भी ब्रिटिश शासन के अधीन था। 15 अक्टूबर, 1949 को भारतीय संघ में भाग ‘ग’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ। इसके बाद 1963 में केन्द्र शासित प्रदेश अधिनियम के अन्तर्गत विधानसभा गठित की गयी। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 50.
संत हरचंद सिंह लोंगोवाल का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
हरचंद सिंह का जन्म 1932 में हुआ था। ये सिखों के धार्मिक एवं राजनीतिक नेता थे। इन्होंने छठे दशक के दौरान राजनीतिक जीवन की शुरुआत अकाली नेता के रूप में की। 1980 में अकाली दल के अध्यक्ष बने। इन्होंने अकालियों की प्रमुख माँगों को लेकर प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से समझौता किया। 1985 में एक अज्ञात युवक ने इनकी हत्या कर दी।

प्रश्न 51.
अंगमी जापू फिजो कौन थे? संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर:
अंगमी जापू फिजो का जन्म 1904 में हुआ था। वे पूर्वोत्तर भारत में नागालैंड की आजादी के आंदोलन के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे नागा नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष बने। उन्होंने नागालैंड को भारत से अलग देश बनाने के लिए भारत सरकार के विरुद्ध अनेक वर्षों तक सशस्त्र संघर्ष चलाया। वे भूमिगत हो गए और पाकिस्तान में शरण ली अपने जीवन के अंतिम तीन वर्ष ब्रिटेन में गुजारें। 1990 में इनका निधन हो गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 52.
1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में किस प्रकार शांति आई? इसके अच्छे परिणाम क्या थे?
उत्तर:
यद्यपि 1992 में पंजाब राज्य में आम चुनाव हुए लेकिन गुस्से में आई जनता ने मतदान में सहयोग नहीं दिया। महज 24 फीसदी मतदाता वोट डालने आए। हालाँकि उग्रवाद को सुरक्षा बलों ने दबा दिया था परंतु पंजाब के लोगों ने, चाहे वे सिख हों या हिन्दू, इस क्रम में अनेक कष्ट और यातनाएँ सहीं। 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति बहाल हुई। इसके पश्चात् 1997 में अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को बड़ी विजय मिली। उग्रवाद के खात्मे के बाद के दौर में यह पंजाब का पहला चुनाव था। राज्य में एक बार फिर आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के सवाल प्रमुख हो उठे। हालांकि धार्मिक पहचान यहाँ की जनता के लिए लगातार प्रमुख बनी हुई है लेकिन राजनीति अब धर्मनिरपेक्षता की राह पर चल पड़ी है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्किम का भारत में विलय किस प्रकार हुआ? विस्तार में लिखिए।
उत्तर:
आजादी के समय सिक्किम को भारत की ‘शरणागति’ प्राप्त थी। इसका मतलब यह था कि सिक्किम भारत का अंग नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि सिक्किम के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थी। यह व्यवस्था टिक नहीं पायी क्योंकि सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को संभाल नहीं सके। यहाँ की आबादी में एक बड़ा हिस्सा नेपालियों का था। नेपाल मूल की जनता के मन में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेपचा-भूटिया के एक छोटे से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। चोग्याल विरोधी दोनों समुदायों के नेताओं ने भारत सरकार से मदद माँगी और भारत सरकार का समर्थन हासिल किया।

सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम काँग्रेस को जीत मिली। यह पार्टी भारत में सिक्किम विलय की पक्षधर थी। सिक्किम विधानसभा ने पहले भारत के सह-प्रान्त बनने की कोशिश की और 1975 के अप्रैल में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सिक्किम विलय की बात कही गई थी। इसके बाद तुरंत सिक्किम में जनमत-संग्रह कराया गया और जनमत संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा की बात तुरंत मान ली और इस प्रकार सिक्किम, भारत का 22वाँ राज्य बना।

प्रश्न 2.
भारत में नए राज्यों के निर्माण सम्बन्धी दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नए राज्यों के निर्माण सम्बन्धी दृष्टिकोण भारत में नए राज्यों के निर्माण की माँग के प्रमुख कारण व दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं।
1. आर्थिक असन्तुलन एवं विषमताएँ: स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की विकास योजनाओं तथा कार्यक्रमों का लाभ सभी राज्यों को समान रूप से नहीं मिल पाया। परिणामस्वरूप क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़ गये। उन्होंने नए राज्यों की माँग प्रारम्भ कर दी। विदर्भ, तेलंगाना, उत्तराखण्ड आदि राज्य इसी के अन्तर्गत आते हैं।

2. भाषायी और सांस्कृतिक कारण: भारत भाषायी तथा सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। अतः स्वतन्त्रता के बाद इसी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग उठने लगी और इसी आधार पर आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा. आदि राज्यों का गठन हुआ।

3. ऐतिहासिक कारण: स्वतन्त्र भारत में किसी राज्य में विलीन हुई कुछ रियासतों को यह महसूस होता था कि उनका अलग अस्तित्व रहता तो वे अपनी मौलिक संस्कृति और क्षेत्रीय विशिष्टता को बनाये रखतीं।

4. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ: कुछ स्थानीय नेताओं तथा राजनीतिक दलों ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए स्थानीय जनता को पृथक् राज्य निर्माण के लिए भड़काया। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, नगा राष्ट्रीय मोर्चा, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट इसी श्रेणी में आते हैं।

5. विशिष्ट क्षेत्रीय मुद्दे: उत्तराखण्ड राज्य की माँग पहाड़ी क्षेत्र के विकास के सन्दर्भ में तथा झारखण्ड और छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण की माँग आदिवासी बहुल क्षेत्र के विकास के सन्दर्भ में उठी।

प्रश्न 3.
पुर्तगाल से गोवा मुक्ति का संक्षेप में विवरण दीजिए।
अथवा
गोवा का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
1974 में भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का खात्मा हो गया था लेकिन पुर्तगाल ने गोवा, दमन और दीव से अपना शासन हटाने से इनकार कर दिया। यह क्षेत्र सोलहवीं सदी से ही औपनिवेशिक शासन में था। अपने लंबे शासनकाल में पुर्तगाल ने गोवा की जनता का दमन किया था। उसने यहाँ के लोगों को नागरिक के अधिकार से वंचित रखा और जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराया। आजादी के बाद भारत सरकार ने बड़े धैर्यपूर्वक पुर्तगाल को गोवा से शासन हटाने के लिए रजामंद करने का प्रयत्न किया। गोवा में आजादी के लिए मजबूत जन आंदोलन चला। इस आंदोलन को महाराष्ट्र के समाजवादी सत्याग्रहियों का साथ मिला।

दिसंबर, 1961 में भारत सरकार ने गोवा में अपनी सेना भेज दी। दो दिन की कार्यवाही में भारतीय सेना ने गोवा मुक्त करा लिया। जल्दी ही एक और समस्या उठ खड़ी हुई। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नेतृत्व में एक तबके ने माँग रखी कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि यह मराठी भाषी क्षेत्र है। परंतु बहुत से गोवावासी गोवानी पहचान और संस्कृति की स्वतंत्र अहमियत बनाए रखना चाहते थे। कोंकणी भाषा के लिए भी इनके मन में आग्रह था। इस तबके का नेतृत्व यूनाइटेड गोअन पार्टी ने किया। 1967 के जनवरी में केन्द्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। अधिकतर लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डाला। इस तरह गोवा संघ शासित प्रदेश बना रहा। अंततः 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।

प्रश्न 4.
संक्षेप में स्वतंत्र भारत के समक्ष 1947 से 1991 के मध्य तनाव के दायरे के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तनाव के दायरे निम्नलिखित हैं।

  1. आजादी के तुरंत बाद ही हमारे देश को विभाजन, विस्थापन, देसी रियासतों के विलय और राज्यों के पुनर्गठन जैसे कठिन मसलों का सामना करना पड़ा। देश और विदेश के अनेक पर्यवेक्षकों का अनुमान था कि भारत एकीकृत राष्ट्र के रूप में ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएगा।
  2. आजादी के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर का मसला सामने आया। यह मद्दा सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का नहीं था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था।
  3. पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मसले पर सहमति नहीं थी। पहले नागालैंड में और फिर मिजोरम में भारत से अलग होने की माँग उठी । दक्षिण भारत में भी द्रविड़ आंदोलन से जुड़े कुछ समूहों ने अलग राष्ट्र की बात उठायी थी।
  4. अलगाव के इन आंदोलनों के अतिरिक्त देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग करते हुए जन आंदोलन चले। मौजूदा आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात ऐसे ही आंदोलनों वाले राज्य हैं। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों खासकर तमिलनाडु में हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ विरोध आंदोलन चला।
  5. 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध से पंजाबी भाषी लोगों ने अलग राज्य बनाने की आवाज उठानी शुरू कर दी। उनकी माँग आखिरकार मान ली गई और 1966 में पंजाब और हरियाणा नाम से राज्य बनाए गए। बाद में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन हुआ। विविधता की चुनौती से निपटने के लिए देश की अंदरूनी सीमा रेखाओं का पुनर्निर्धारण किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 5.
भारत के उत्तर पूर्वी भाग में बढ़ती राजनीतिक हिंसा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में बढ़ती राजनीतिक हिंसा: भारत के उत्तर-1 – पूर्वी भाग में बढ़ती राजनीतिक हिंसा के मूल में निम्नलिखित तीन मुद्दे प्रमुख रहे हैं। यथा
1. स्वायत्तता की माँग:
स्वतंत्रता के समय मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर पूर्वोत्तर का सारा हिस्सा असम कहलाता था। इस क्षेत्र के गैर- असमी लोगों को जब लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस इलाके से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। 1970 के दशक में पूरे राज्य में असमी भाषा लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। इन्होंने ‘आल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस’ का गठन किया और माँग की कि असम से अलग एक जनजातीय राज्य बनाया जाये। संजीव पास बुक्स अन्ततः केन्द्र सरकार ने असम को बाँटकर मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश बनाया तथा त्रिपुरा और मणिपुर को भी राज्य का दर्जा दिया गया।

2. अलगाववादी आंदोलन:
पूर्वोत्तर के कुछ समूहों ने सिद्धान्तगत तैयारी के साथ अलग देश बनाने की माँग भी की। 1966 में लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट ने आजादी की माँग करते हुए सशस्त्र अभियान शुरू किया और भारतीय सेना और मिजो विद्रोहियों के बीच दो दशक तक लड़ाई चली। अन्ततः 1986 में राजीव गाँधी और लालडेंगा के बीच शांति समझौता हुआ।

3. बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन:
बांग्लादेश से बहुत सी मुस्लिम आबादी असम में आकर बसी। इससे असमी लोगों के मन में यह भावना घर कर गई कि इन विदेशी लोगों को पहचान कर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय जनता अल्पसंख्यक हो जायेगी।
1979 में ‘आसू’ नामक छात्र संगठन ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया जिसे पूरे असम का समर्थन मिला। आंदोलन के दौरान हिंसक और त्रासद घटनाएँ भी हुईं। अन्ततः 1985 में सरकार के साथ एक समझौता हुआ और हिंसक आन्दोलन समाप्त हुआ।

प्रश्न 6.
जम्मू-कश्मीर की 1948 से 1986 के मध्य राजनीति से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का विवरण लिखिए।
उत्तर:

  1. जम्मू-कश्मीर में 1948 के उपरांत तथा 1952 तक की राजनीति: प्रधानमंत्री बनने के बाद, शेख अब्दुल्ला ने भूमि सुधार और अन्य नीतियाँ शुरू कीं जिनसे सामान्य जन को लाभ पहुँचा। हालाँकि कश्मीर के दर्जे पर उनकी स्थिति के विषय में उनके और केन्द्र सरकार के बीच मतभेद बढ़ता गया।
  2. शेख अब्दुल्ला की बर्खास्तगी एवं चुनाव: 1953 में शेख अब्दुल्ला को बर्खास्त कर दिया गया और कई वर्षों तक कैद रखा गया। शेख अब्दुल्ला के बाद जो नेता सत्तासीन हुए उनको उतना लोकप्रिय समर्थन नहीं मिला और वह राज्य में शासन नहीं चला पाए जिसका मुख्य कारण केन्द्र का समर्थन था। विभिन्न चुनावों में अनाचार और हेरफेर संबंधी गंभीर आरोप थे।
  3. जम्मू-कश्मीर में 1953 से 1977 तक की राजनीतिक घटनाएँ
    • 1953 से 1974 के बीच की अवधध में कांग्रेस पार्टी मे राज्य की नीतियों पर प्रभाव डाला। विभाजित हो चुकी नेशनल कांफ्रेंस काँग्रेस के समर्थन से राज्य में कुछ समय तक सत्तासीन रही लेकिन बाद में वह काँग्रेस में मिल गई। इस तरह राज्य की सत्ता सीधे काँग्रेस के नियंत्रण में आ गई। इसी बीच शेख अब्दुल्ला और भारत सरकार के बीच समझौते की कोशिश जारी रही।
    • 1965 में जम्मू और कश्मीर के संविधान में परिवर्तन करके राज्य के प्रधानमंत्री का पदनाम बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया। इसके अनुसार, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के गुलाम मोहम्मद सादिक राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।
    • 1974 में इंदिरा गाँधी का शेख अब्दुल्ला के साथ समझौता हुआ और वे राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस को फिर से खड़ा किया और 1977 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से जीत हासिल की।
  4. जम्मू-कश्मीर फारूख अब्दुल्ला के प्रथम कार्यकाल में (1982-1986): सन् 1982 में शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के पश्चात् नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व की कमान उनके पुत्र फारूख अब्दुल्ला ने संभाली और मुख्यमंत्री बने। परंतु कुछ ही समय बाद उन्हें पदच्युत कर दिया गया और नेशनल कांफ्रेंस से अलग हुआ एक गुट अल्प अवधि के लिए सत्ता में आया । केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप से फारूख अब्दुल्ला की सरकार को हटाने पर कश्मीर में नाराजगी की भावना पैदा हुई। 1986 में नेशनल कांफ्रेंस ने केन्द्र में सत्तासीन पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया।

प्रश्न 7.
भारत के कुछ भागों में व्याप्त अलगाववादी आंदोलन से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
उत्तर:
1980 के बाद के दौर में भारत के कुछ भागों में व्याप्त अलगाववादी आन्दोलन से हम अग्रलिखित सबक सीख सकते हैं।

  1. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। अतः भारत को क्षेत्रीय आकांक्षाओं से निपटने की तैयारी लगातार रखनी होगी।
  2. क्षेत्रीय आकांक्षाओं के लिए लोकतांत्रिक बातचीत का रास्ता ही उचित है – क्षेत्रीय आकांक्षाओं को दबाने की जगह उनके साथ लोकतांत्रिक बातचीत का तरीका अपनाना सबसे अच्छा होता है। उदाहरण के लिए पंजाब के उग्रवाद, पूर्वोत्तर के अलगाववादी आन्दोलन तथा कश्मीर समस्या पर बातचीत के जरिये सरकार ने क्षेत्रीय आंदोलनों के साथ समझौता किया। इससे सौहार्द का माहौल बना और कई क्षेत्रों में तनाव कम हुआ।
  3. साझेदारी के महत्त्व को समझना: केवल लोकतांत्रिक ढाँचा खड़ा कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के दलों और समूहों को केन्द्रीय राजव्यवस्था में हिस्सेदारी बनाना भी जरूरी है। यदि राष्ट्रीय स्तर के निर्णयों में क्षेत्रों को वजन नहीं दिया गया तो उनमें अन्याय और अलगाव का बोध पनपेगा।
  4. आर्थिक विकास की प्रक्रिया में पिछड़ेपन को प्राथमिकता दें: भारत में आर्थिक विकास की प्रक्रिया का एक तथ्य क्षेत्रीय असंतुलन भी है। ऐसे में पिछड़े इलाकों को लगता है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। ऐसी स्थिति में यह प्रयास किया जाना चाहिए कि पिछड़े इलाकों को लगे कि उनके पिछड़ेपन को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जा रहा है।

प्रश्न 8.
उत्तर-पूर्वी राज्यों की चुनौतियों एवं उसकी अनुक्रियाओं पर एक नोट लिखिए।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी राज्यों की चुनौतियाँ भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सात राज्यों (असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नगालैण्ड, मिजोरम एवं त्रिपुरा) से मिलकर बनता है। इन सात राज्यों को सात बहनें भी कहकर पुकारा जाता है। इन राज्यों की चुनौतियों तथा उनकी अनुक्रियाओं को निम्न प्रकार वर्णित किया गया है।

  1. नगालैण्ड: नगालैण्ड की जनसंख्या लगभग 20 लाख है। नगालैण्ड में अनेक जातियाँ एवं कबीले पाये जाते हैं। इसमें यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, नंगा नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी तथा नगा नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल जैसे राजनीतिक दल पाये जाते हैं। ये दल अलगाववादियों से सम्बन्धित हैं।
  2. मिजोरम: मिजोरम राज्य की जनसंख्या लगभग 10 लाख है। मिजोरम के मुख्य क्षेत्रीय दल पीपुल्स कान्फ्रेंस तथा मिजो यूनियन पार्टी, मिजोरम में एक अलगाववादी संगठन मिजो नेशनल फ्रंट भी है, जो हिंसक कार्यवाहियों में संलग्न रहता है।
  3. त्रिपुरा: त्रिपुरा की जनसंख्या लगभग 32 लाख है। त्रिपुरा में चार जिले हैं। यहाँ पर छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं। इनमें त्रिपुरा उपजाति युवा समिति तथा त्रिपुरा जन मुक्ति संगठन सेना प्रमुख हैं।
  4. मणिपुर: मणिपुर की जनसंख्या लगभग 32 लाख है। इसमें मणिपुर हिल यूनियन, कूरी नेशनल एसेम्बली तथा मणिपुर जन मुक्ति सेना जैसे क्षेत्रीय दल हैं। अन्तिम दल अलगाववादी दल है।
  5. मेघालय: मेघालय की जनसंख्या लगभग 24 लाख है। मेघालय के कुछ क्षेत्रीय दल ऑल पार्टी हिल लीडर्स कान्फ्रेंस तथा हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी हैं।
  6. असम: असम की जनसंख्या 2 करोड़ 70 लाख से भी अधिक है। असम में उल्फा नामक एक उग्रवादी एवं अलगाववादी संगठन पाया जाता है।

प्रश्न 9.
द्रविड़ आन्दोलन पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
द्रविड़ आन्दोलन: द्रविड़ आन्दोलन भारत के क्षेत्रीय आन्दोलनों में एक शक्तिशाली आन्दोलन था। देश की राजनीति में यह आन्दोलन क्षेत्रीय भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था। द्रविड़ आन्दोलन को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता

  1. आन्दोलन का स्वरूप: सर्वप्रथम इस आन्दोलन के नेतृत्व में एक हिस्से की आकांक्षा एक स्वतन्त्र द्रविड़ राज्य बनाने की थी, परन्तु आन्दोलन ने कभी सशस्त्र संघर्ष का मार्ग नहीं अपनाया। अन्य दक्षिणी राज्यों का समर्थन न मिलने के कारण यह आन्दोलन तमिलनाडु तक ही सीमित रहा।
  2. नेतृत्व के साधन: द्रविड़ आन्दोलन का नेतृत्व तमिल सुधारक नेता ई. वी. रामास्वामी नायकर के हाथों में था।
  3. आन्दोलन का संगठन: द्रविड़ आन्दोलन की प्रक्रिया से एक राजनैतिक संगठन द्रविड़ कषगम का सूत्रपात हुआ। यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व की खिलाफत (विरोध) करता था। उत्तरी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था।
  4. डी. एम. के. की सफलताएँ: 1965 के हिन्दी विरोधी आन्दोलन की सफलता ने डी.एम. के. को जनता के बीच और भी लोकप्रिय बना दिया। 1967 के विधानसभा चुनावों में उसे सफलता मिली।
  5. डी.एम.के. का विभाजन एवं कालान्तर की राजनीतिक घटनाएँ: सी. अन्नादुरै की मृत्यु के बाद डी.एम.के. दल के दो टुकड़े हो गये। इसमें एक दल मूल नाम डी.एम. के. को लेकर आगे चला जबकि दूसरा दल खुद को ऑल इण्डिया अन्नाद्रमुक कहने लगा। तमिलनाडु की राजनीति में ये दोनों दल चार दशकों से दबदबा बनाए हुए हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 10.
भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन का वर्णन कीजिये। भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन
उत्तर:
भारतीय राजनीति में अलगाववादी आन्दोलन का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. अलगाववाद से आशय: अलगाववाद से अभिप्राय एक राज्य से कुछ क्षेत्र को अलग करके स्वतंत्र राज्य की स्थापना की माँग है अर्थात् सम्पूर्ण इकाई से अलग अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने की माँग अलगाववाद है। अलगाववाद का उदय उस समय होता है, जब क्षेत्रवाद की भावना उग्र रूप धारण कर लेती है।

2. भारत में हुए प्रमुख अलगाववादी आंदोलन: भारत में प्रमुख अलगाववादी आंदोलन निम्नलिखित रहे

  • जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन: स्वतंत्रता के तुरन्त बाद जम्मू-कश्मीर का मामला सामने आया। यह सिर्फ भारत – पाकिस्तान के मध्य संघर्ष का मामला नहीं था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में पुनः अलगाववादी राजनीति ने सिर उठाया। अलगाववादियों का एक वर्ग कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाना चाहता था जो न तो भारत का हिस्सा हो और न पाक का। केन्द्र ने विभिन्न अलगाववादी समूहों से बातचीत शुरू कर दी है। अलग राष्ट्र की माँग की जगह अब अलगाववादी समूह अपनी बातचीत में भारत संघ के साथ कश्मीर के रिश्ते को पुनर्परिभाषित करने पर जोर दे रहे हैं।
  • पूर्वोत्तर में अलगाववादी आंदोलन: पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मुद्दे पर सहमति नहीं थी। पहले नागालैंड में और फिर मिजोरम में भारत से अलग होने की माँग करते हुए जोरदार आंदोलन चले। भारत के पूर्वोत्तर के राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा में इस प्रकार की मागें उठती रहती हैं।
  • द्रविड़ आंदोलन: दक्षिण भारत में द्रविड़ आंदोलन से जुड़े कुछ समूहों ने एक समय अलग राष्ट्र की बात उठायी थी। लेकिन कुछ समय बाद ही दक्षिणी राज्यों का यह आंदोलन समाप्त हो गया ।

3. लगाववादी आंदोलन के कारण: भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित

  • राजनीतिक कारण: भारतीय राजनीति में अलगाववादी भावना को भड़काने में राजनीतिक दलों की संकीर्ण मनोवृत्ति प्रमुख कारण रही है। पूर्वोत्तर के अलगाववादी आंदोलन के पीछे उनकी क्षेत्रीय आकांक्षा रही है।
  • आर्थिक पिछड़ापन: असमान आर्थिक विकास और पिछड़ापन भी अलगाववाद को बढ़ावा देता है। पिछड़े क्षेत्रों में पृथकतावाद की भावना जन्म लेती है।

4. भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन में सबक- भारतीय राजनीति को अलगाववादी आंदोलनों से निम्न शिक्षाएँ मिली हैं।

  • क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। भारत सरकार को इनसे निपटने की तैयारी लगातार रखनी होगी।
  • क्षेत्रीय आकांक्षाओं के लिए लोकतांत्रिक बातचीत का रास्ता ही उचित है।
  • विभिन्न क्षेत्रीय दलों को केन्द्रीय राजनीति का हिस्सा बनाना भी आवश्यक है।
  • आर्थिक विकास में पिछड़े राज्यों को प्राथमिकता दी जाये।

प्रश्न 11.
जम्मू और कश्मीर में 2002 और इससे आगे की राजनीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

  1. 2002 में जम्मू और कश्मीर राज्य में चुनाव हुए जिसमें नेशनल कांफ्रेंस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कॉंग्रेस की मिली-जुली सरकार आ गई। मुफ्ती मोहम्मद पहले तीन वर्ष सरकार के मुखिया बनें और बाद में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के गुलामनबी आजाद मुखिया बने। परंतु 2008 में राष्ट्रपति शासन लगने के कारण वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
  2. अगला चुनाव नवंबर: दिसंबर के 2008 में हुआ। एक और मिली-जुली सरकार 2009 में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सत्ता में आई। परन्तु, राज्य को लगातार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस द्वारा पैदा की गई गड़बड़ियों का सामना करना पड़ा।
  3. 2014 में, राज्य में फिर चुनाव हुए, जिसमें पिछले 25 वर्षों में सबसे अधिक मतदान हुआ। परिणामस्वरूप पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन वाली सरकार सत्ता में आई। मुफ्ती मोहम्मद सईद के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती
    अप्रैल, 2016 में राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनी। महबूबा मुफ्ती के कार्यकाल में बाहरी और भीतरी तनाव बढ़ाने वाली बड़ी आतंकवादी घटनाएँ हुईं।
  4. जून, 2018 में बीजेपी द्वारा मुफ्ती सरकार को दिया समर्थन वापस लेने पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया और राज्य को पुनर्गठित कर दो केन्द्र शासित प्रदेश – जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख बना दिए गए।

प्रश्न 12.
1980 के बाद के दौर में भारत की राजनीति तनावों के घेरे में रही और समाज के विभिन्न तबकों की माँगों में पटरी बैठा पाने की लोकतांत्रिक राजनीति की क्षमता की परीक्षा हुई। इन उदाहरणों से क्या सबक मिलता है?
उत्तर:

  1. पहला और बुनियादी सबक यह है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। क्षेत्रीय मुद्दे की अभिव्यक्ति कोई असामान्य अथवा लोकतांत्रिक राजनीति के व्याकरण से बाहर की घटना नहीं है। भारत एक बड़ा लोकतंत्र है और यहां विभिन्नताएँ भी बड़े पैमाने पर हैं। अतः भारत को क्षेत्रीय आकांक्षाओं से निपटने की तैयारी लगातार रखनी होगी।
  2. दूसरा सबक यह है कि क्षेत्रीय आकांक्षाओं को दबाने की जगह उनके साथ लोकतांत्रिक बातचीत का तरीका अपनाना सबसे अच्छा होता है।
  3. तीसरा सबक है सत्ता की साझेदारी के महत्त्व को समझना। सिर्फ लोकतांत्रिक ढाँचा खड़ा कर लेना ही काफी नहीं होता बल्कि इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के दलों और समूहों को केन्द्रीय राजव्यवस्था में हिस्सेदार बनाना भी जरूरी है।
  4. चौथा सबक यह है कि आर्थिक विकास के ऐतबार से विभिन्न इलाकों के बीच असमानता हुई तो पिछड़े क्षेत्रों को लगेगा कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। भारत में आर्थिक विकास प्रक्रिया का एक तथ्य क्षेत्रीय असंतुलन भी है। ऐसे में स्वाभाविक है कि पिछड़े प्रदेशों अथवा कुछ प्रदेशों के पिछड़े इलाकों को लगे कि उनके पिछड़ेपन को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए।
  5. सबसे आखिरी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन मामलों से हमें अपने संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि का पता चलता है। वे विभिन्नताओं को लेकर अत्यंत सजग थे। हमारे संविधान के प्रावधान इस बात के साक्ष्य हैं। संविधान की छठी अनुसूची में विभिन्न जनजातियों को अपने आचार-व्यवहार और पारंपरिक नियमों को संरक्षित रखने की पूर्ण स्वायत्तता दी गई है। पूर्वोत्तर की कुछ जटिल राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने में ये प्रावधान बड़े निर्णायक साबित हुए।

JAC Class 12 Political Science Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 12th Political Science Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 12th Political Science Part 1 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-1)

Jharkhand Board Class 12th Political Science Part 2 Politics in India since Independence (स्वतंत्र भारत में राजनीति भाग-2)

JAC Board Class 12th Political Science Solutions in English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Part 1 Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era
  • Chapter 2 The End of Bipolarity
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power
  • Chapter 5 Contemporary South Asia
  • Chapter 6 International Organisations
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources
  • Chapter 9 Globalisation

JAC Board Class 12th Political Science Part 2 Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance
  • Chapter 3 Politics of Planned Development
  • Chapter 4 India’s External Relations
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements
  • Chapter 8 Regional Aspirations
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics

JAC Class 12 Political Science Important Questions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 12th Political Science Important Questions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 12th Political Science Important Questions: समकालीन विश्व राजनीति

Jharkhand Board Class 12th Political Science Important Questions: स्वतंत्र भारत में राजनीति

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions in English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions: Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era Important Questions
  • Chapter 2 The End of Bipolarity Important Questions
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics Important Questions
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power Important Questions
  • Chapter 5 Contemporary South Asia Important Questions
  • Chapter 6 International Organisations Important Questions
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World Important Questions
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources Important Questions
  • Chapter 9 Globalisation Important Questions

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions: Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building Important Questions
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance Important Questions
  • Chapter 3 Politics of Planned Development Important Questions
  • Chapter 4 India’s External Relations Important Questions
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System Important Questions
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order Important Questions
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements Important Questions
  • Chapter 8 Regional Aspirations Important Questions
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics Important Questions

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. इस्तमरारी बन्दोबस्त सबसे पहले लागू किया गया –
(क) बंगाल में
(ख) मद्रास में
(ग) बम्बई में
(घ) उत्तरप्रदेश में
उत्तर:
(क) बंगाल में

2. इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया –
(क) 1794 में
(ख) 1792 में
(ग) 1793 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1792 में

3. ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किया जाता था–
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए
(ख) ताल्लुकदारों के लिए
(ग) जोतदारों के लिए
(प) रैयतदारों के लिए
उत्तर:
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए

4. बर्दवान में जमींदारी की नीलामी की गई थी, वर्ष
(क) 1798 में
(ख) 1797 में
(ग) 1897 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1797 में

5. बंगाल में किस गवर्नर जनरल ने इस्तमरारी बन्दोवस्त लागू किया.
(क) लार्ड डलहौजी ने
(ख) विलियम बैंटिक ने
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने
(घ) लार्ड एलिनवरो ने
उत्तर:
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

6. रैयत शब्द का प्रयोग अंग्रेजों ने किया –
(क) किसानों के लिए
(ख) जमींदारों के लिए
(ग) ताल्लुकदारों के लिए
(घ) राजाओं के लिए
उत्तर:
(क) किसानों के लिए

7. धनी किसानों के लिए जिस शब्द का प्रयोग होता था, वह था –
(क) फौजदार
(ख) जोतदार
(ग) ताल्लुकदार
(घ) फरमाबरदार
उत्तर:
(ख) जोतदार

8. जमींदार द्वारा राजस्व वसूलने वाला अधिकारी कहलाता थ –
(क) दामुला
(ख) अमला
(ग) आमूला
(घ) अमली
उत्तर:
(ख) अमला

9. घोर आर्थिक मंदी जिस सन् में आई, वह था –
(क) 1950
(ख) 1929
(ग) 1930
(घ) 1932
उत्तर:
(ख) 1929

10. बाहरी लोग को संथाल लोग क्या कहते थे?
(क) परदेशी
(ख) अंग्रेजी बाबू
(ग) दिकू
(घ) इनमें
उत्तर:
(ग) दिकू

11. संथालों का नेतृत्व किसने किया?
(क) सोदी
(ख) कान्हू
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों

12. बुकानन कौन था?
(क) ब्रिटिश एजेन्ट
(ग) यात्री
(ख) अंग्रेज अधिकारी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ब्रिटिश एजेन्ट

13. अमेरिका में गृह युद्ध कब आरम्भ हुआ?
(क) 1760 में
(ग) 1840 में
(ख) 1761 में
(घ) 1861 में
उत्तर:
(घ) 1861 में

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

14. रेलों का युग प्रारम्भ होने से पहले कौनसा कस्बा दक्कन से आने वाली कपास के लिए संग्रह केन्द्र था ?
(क) मिर्जापुर
(ग) मद्रास
(ख) बम्बई
(घ) जयपुर
उत्तर:
(क) मिर्जापुर

15. दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई –
(क) 1870 में
(ख) 1875 में
(ग) 1878 में
(घ) 1980 में
उत्तर:
(ग) 1878 में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. ………………. “शब्द का प्रयोग अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था।
2. इस्तमरारी बंदोबस्त ……………… ने राजस्व की राशि निश्चित करने के लिए लागू की थी।
3. अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ……………… ब्रिटिश सेना का कमाण्डर था।
4. 1793 में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करते समय वहाँ का …………… कार्नवालिस था
5. …………… शब्द का प्रयोग अंग्रेजों के विवरणों में किसानों के लिए किया जाता था।
6. …………… का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास लाठी या डंडा हो।
उत्तर:
1 राजा
2. ईस्ट इण्डिया कम्पनी
3. कार्नवालिस
4. गवर्नर जनरल
5. रैयत
6. लाठियाल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त कब लागू हुआ?
उत्तर:
सन् 1793

प्रश्न 2.
अंग्रेजी विवरणों के अनुसार ‘रैयत’ शब्द का प्रयोग किनके लिए किया जाता था ?
उत्तर:
किसानों के लिए।

प्रश्न 3.
राजस्व इकट्ठा करने के समय जमींदार का जो अधिकारी गाँव में आता था, उसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
अमला।

प्रश्न 4.
बंगाल के धनी किसानों के वर्ग को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 5.
जोतदारों की जमीन का काफी बड़ा भाग किनके द्वारा जोता जाता था ?
उत्तर:
बटाईदारों द्वारा

प्रश्न 6.
जब राजस्व का भुगतान न किये जाने पर जमींदार की जमींदारी को नीलाम किया जाता था तो प्रायः उन जमीनों को कौन खरीद लेते थे?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 7.
1930 के दशक में अंततः जमींदारों का भट्ठा क्यों बैठ गया?
उत्तर:
1930 के दशक की घोर मंदी के कारण।

प्रश्न 8.
पहाड़िया जीवन का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
कुदाल।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 9.
संथालों की शक्ति का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
हल

प्रश्न 10.
पहाड़िया लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
म खेती।

प्रश्न 11.
संधाल लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
स्थायी खेती।

प्रश्न 12.
1875 में पुणे के सूपा गाँव में हुआ किसानों का आन्दोलन किनके विरोध में था?
उत्तर:
साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरोध

प्रश्न 13.
साहूकार कौन होता था?
उत्तर:
साहूकार पैसा उधार देता था और व्यापार भी करता था।

प्रश्न 14.
दक्षिण के गाँवों में रैयतों ने किस सन् में बगावत की?
उत्तर:
सन् 1875 में।

प्रश्न 15.
इस्तमरारी बन्दोबस्त किन-किन के मध्य लागू किया गया ?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के जमींदारों के मध्य ।

प्रश्न 16.
1857 के गदर में बंगाल के किस राजा ने अंग्रेजों की मदद की थी ?
उत्तर:
बंगाल के बर्दवान के राजा मेहताबचन्द ने।

प्रश्न 17.
1930 की आर्थिक मंदी का जमींदारों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
इसके फलस्वरूप जमींदारों की दशा दयनीय हो गई।

प्रश्न 18.
रेलों का युग शुरू होने से पहले कपास का परिवहन कैसे होता था?
उत्तर:
नौकाओं, बैलगाड़ियों तथा जानवरों के द्वारा।

प्रश्न 19.
भारत में सर्वप्रथम औपनिवेशिक शासन कहाँ स्थापित हुआ?
उत्तर:
बंगाल में।

प्रश्न 20.
गाँवों में किनकी शक्ति जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी?
उत्तर:
जोतदारों की।

प्रश्न 21.
बंगाल के किस क्षेत्र में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे?
उत्तर:
उत्तरी बंगाल में।

प्रश्न 22.
बंगाल में जोतदार किन अन्य नामों से पुकारे जाते थे?
उत्तर:
‘हवलदार’, ‘गांटीदार’ तथा ‘मंडल’ के नामों

प्रश्न 23.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई थी?
उत्तर:
1813 ई. में ।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले संथालों का नेता कौन था?
उत्तर:
सिधू मांझी ।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 25.
संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कब किया?
उत्तर:
1855-56 में।

प्रश्न 26.
मैनचेस्टर काटन कम्पनी कब और कहाँ स्थापित की गई ?
उत्तर:
1859 ई. में इंग्लैण्ड में

प्रश्न 27.
रेलों के विकास से पूर्व दक्कन से आने वाली कपास के लिए कौनसा शहर संग्रह केन्द्र था?
उत्तर:
मिर्जापुर।

प्रश्न 28.
ऋणदाता लोग देहात के किस प्रथागत मानक का उल्लंघन कर किसानों का शोषण कर रहे थे?
उत्तर;
ऋणदाता मूलधन से अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 29.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई ?
उत्तर:
सन् 1878 ई. में।

प्रश्न 30.
रेग्यूलेटिंग एक्ट कब पारित किया गया ?
उत्तर:
1773 ई. में ।

प्रश्न 31.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल की दीवानी कब प्राप्त की?
उत्तर:
सन् 1765 ई. में

प्रश्न 32.
रेग्यूलेटिंग एक्ट क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यकलापों को विनियमित करने वाला अधिनियम।

प्रश्न 33.
सन् 1862 तक ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था, उसका कितना भाग अकेले भारत से जाता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 34.
अमेरिका में गृह युद्ध का सूत्रपात कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1861 ई. में ।

प्रश्न 35.
जोतदारों की स्थिति क्या थी? वे जमींदारों से किस प्रकार प्रभावशाली होते थे?
उत्तर:
जोतदार बंगाल के धनी किसान थे। उनका ग्रामवासियों पर नियन्त्रण था और वे रैयत को अपने पक्ष में रखते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 36.
गाँवों में जोतदार के शक्तिशाली होने के कारण लिखिए।
अथवा
गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक क्यों थी ? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) जोतदार गाँवों में ही रहते थे, ग्रामवासियों पर नियंत्रण रखते थे।
(2) वे रैयत को अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।

प्रश्न 37.
जोतदार जमींदारों का किस प्रकार प्रतिरोध करते थे? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) जोतदार जमींदारों द्वारा गाँव की लगान बढ़ाने का विरोध करते थे
(2) वे जमींदार को राजस्व भुगतान में देरी करा देते थे।

प्रश्न 38.
पाँचवीं रिपोर्ट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी।

प्रश्न 39.
जमींदार किस प्रकार अपनी जमींदारियाँ बचा लेते थे? दो उदाहरण दीजिये ।
उत्तर:
(1) फर्जी बिक्री द्वारा
(2) अपनी जमींदारियों का कुछ हिस्सा महिलाओं को प्रदान करके।

प्रश्न 40.
1832 ई. तक किस भूमि को संथालों की भूमि के रूप में सीमांकित किया गया?
उत्तर:
दामिन-इ-कोह के रूप में सीमांकित भूमि को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 41.
दक्कन दंगा रिपोर्ट क्या थी ? इसके अनुसार रैयत विद्रोह का क्या कारण था ?
उत्तर:
दक्कन दंगा रिपोर्ट दक्कन के दंगों से सम्बन्धित रिपोर्ट थी रैयत विद्रोह का कारण ऋणदाताओं, साहूकारों न्पों की शोषण नीति थी।

प्रश्न 42.
झूम खेती किस बात पर निर्भर करती थी?
उत्तर:
झुम खेती नई जमीनें खोजने और भूमि की से प्राकृतिक उर्वरता का उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करती थी।

प्रश्न 43.
इस्तमरारी बन्दोबस्त कब एवं किस क्षेत्र में न्य लागू किया गया ?
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 में बंगाल में लागू किया गया।

प्रश्न 44.
कुदाल और हल किन लोगों के जीवन का प्रतीक माना जाता था?
उत्तर:
कुदाल’ पहाड़िया लोगों के जीवन का तथा ‘हल’ संथालों के जीवन का प्रतीक माना जाता था।

प्रश्न 45.
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास न का आयात कहाँ से किया जाता था?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास के समस्त आयात का 75% अमेरिका से किया जाता था।

प्रश्न 46.
रैयतवाड़ी क्या थी? इसे कहाँ लागू किया गया?
अथवा
बम्बई दक्कन में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई राजस्व प्रणाली का नाम बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी राजस्व की प्रणाली थी, जो कम्पनी सरकार तथा रैयत (किसानों) के बीच बम्बई दक्कन में लागू की गई थी।

प्रश्न 47.
दक्कन में किसानों का विद्रोह कब व कहाँ से शुरू हुआ?
उत्तर:
दक्कन में किसानों का विद्रोह 1875 में (आधुनिक पुणे जिले में) से शुरू हुआ।

प्रश्न 48.
‘दामिन-इ-कोह’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1832 में संथालों को स्थाई रूप से बसाने के लिए ‘दामिन-इ-कोह’ नामक एक भू-भाग निश्चित किया गया।

प्रश्न 49.
बुकानन कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत आया तथा 1794 से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 50.
पहाड़िया लोग कौन थे? वे अपना निर्वाह कैसे करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग राजमहल की पहाड़ियों में रहते थे तथा जंगलों की उपज से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 51.
संथाल कौन थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में बसे हुए थे। वे हलों द्वारा स्थायी कृषि करते थे।

प्रश्न 52.
संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये गए विद्रोह के कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संथालों को विद्रोह पर क्यों उतरना पड़ा? दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने संथालों की भूमि पर भारी कर लगा दिया।
(2) साहूकार लोग बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा रहे

प्रश्न 53.
1875 में साहूकारों के विरुद्ध रैयत द्वारा विद्रोह करने के अन्तर्गत किए गए दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत ने साहूकारों के बहीखाते जला दिए और ऋणबंध नष्ट कर दिये। (2) उन्होंने साहूकारों की अनाज की दुकानें लूट लीं।

प्रश्न 54.
रैयतवाड़ी प्रणाली की एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली के राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी।

प्रश्न 55.
बम्बई दक्कन में अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों के विद्रोह के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) किसानों से बहुत अधिक राजस्व वसूल किया जाता था
(2) उन्हें ब्याज की ऊँची दरों पर साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था।

प्रश्न 56.
ब्रिटिश काल में दक्कन में दंगा होने का मुख्य कारण बताइये।
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे।

प्रश्न 57.
किन दो कारणों से भारतीय दस्तकार बेकार हो गए?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन से तैयार माल मंगाना और कच्चा माल ब्रिटेन भेजना
(2) कपास के उत्पादन में कमी।

प्रश्न 58.
किन दो कारणों से भारतीय किसान दरिद्र हो गए?
उत्तर:
(1) किसानों पर भारी भूमि कर लगाना
(2) साहूकारों, व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण

प्रश्न 59.
अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न भागों में भू- राजस्व सम्बन्धी कौन-कौन सी तीन प्रणालियाँ प्रचलित क?
उत्तर:
(1) इस्तमरारी बन्दोबस्त
(2) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त
(3) महलवाड़ी बन्दोबस्त।

प्रश्न 60.
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को किस क्षेत्र में बसने की अनुमति प्रदान की थी?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को राजमहल की तलहटी में बसने की अनुमति प्रदान की थी।

प्रश्न 61.
जमीन के किस क्षेत्र को संथालों की भूमि घोषित किया गया?
उत्तर:
‘दामिन-इ-कोह’ को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 62.
पहाड़िया लोगों का क्या व्यवसाय था ?
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे।

प्रश्न 63.
संथाल लोग कौनसी फसलें उगाते थे?
उत्तर:
संथाल लोग चावल, कपास, सरसों, तम्बाकू आदि की फसलें उगाते थे।

प्रश्न 64.
1875 में रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह करने के दो कारणों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) ऋणदाता वर्ग अत्यन्त संवेदनहीन हो गया था।
(2) ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे।

प्रश्न 65.
ऋणदाता लोग गांवों में प्रचलित मानकों और रूढ़ि-रिवाजों का किस प्रकार उल्लंघन कर रहे थे ?
उत्तर:
ऋणदाता लोग रैयत से मूलधन से भी अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 66.
साहूकार रैयत को ऋण देने से क्यों इन्कार कर रहे थे? दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) भारतीय कपास की मांग घटती जा रही थी
(2) कपास की कीमतों में गिरावट आ रही थी।

प्रश्न 67.
पहाड़िया और संधाल लोग किन उपकरणों से खेती करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग कुदाल से तथा संथाल लोग हल से खेती करते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 68.
संथाल लोगों का बंगाल में कब आगमन हुआ?
उत्तर:
संथाल लोगों का 1780 के दशक में बंगाल में आगमन हुआ।

प्रश्न 69.
संथाल लोग अंग्रेजों को आदर्श निवासी क्यों लगे ?
उत्तर:
क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने तथा भूमि को पूरी शक्ति के साथ जोतने में कोई संकोच नहीं था।

प्रश्न 70.
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल तथा धोखेबाज क्यों समझते थे?
उत्तर:
(1) ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करते थे।
(2) वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे।

प्रश्न 71.
रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध अंग्रेजों को दिए गए प्रार्थना-पत्र में उल्लिखित दो शिकायतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत द्वारा कड़ी शर्तों पर बंधपत्र लिखना
(2) साहूकारों द्वारा रैयत की उपज ले जाना और बदले में रसीद न देना।

प्रश्न 72.
पहाड़ी लोग कौन थे?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले लोग पहाड़ी कहलाते थे। वे जंगल की उपन से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 73.
प्राय: ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता था?
उत्तर:
शक्तिशाली जमींदारों के लिए।

प्रश्न 74.
रैयत व शिकमी रैयत में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
रैयत जमींदारों के लिए जमीन जोतते थे एवं कुछ जमीन अन्य रैयतों को लगाने पर दे देते थे जिन्हें शिकमी रैयत कहा जाता था।

प्रश्न 75.
अमेरिका में गृहयुद्ध के समय ब्रिटेन को भारत से कपास का कितना निर्यात होता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 76.
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक यानी सम्बन्ध हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया।

प्रश्न 77.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ किसके द्वारा तैयार की गई थी?
उत्तर:
प्रवर समिति।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“संथालों और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और अपनी कुदाल से जमीन खुरच कर दालें तथा ज्वार बाजरा उगाते थे। दूसरी ओर संथाल लोग जंगलों को साफ करके हलों से जमीन जोतते थे तथा चावल, कपास आदि की खेती करते थे। इससे पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों में पीछे हटना पड़ा। एक ओर कुदाल पहाड़िया लोगों के जीवन का प्रतीक था, तो दूसरी ओर हल संथालों के जीवन का प्रतीक था और दोनों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।

प्रश्न 2.
‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ क्या था?
अथवा
स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1793 ई. में बंगाल के गवर्नर जनरल ने बंगाल में ‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ लागू किया। इस बन्दोवस्त के अन्तर्गत ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को चुकानी पड़ती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे, उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी जमींदारियां नीलाम कर दी जाती थीं। यह बन्दोबस्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा जमींदारों के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
फ्रांसिस बुकानन के बारे में आप क्या जानते हँ?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक (सर्जन) भी रहा। कलकता में उसने एक चिड़ियाघर की ‘स्थापना की जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर के नाम से मशहूर हुआ। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

प्रश्न 4.
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने पहाड़िया लोगों से शान्ति स्थापना हेतु कौनसी नीति अपनाई?
उत्तर:
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने शान्ति स्थापना हेतु पहाड़िया मुखियाओं के साथ एक समझौता किया, जिसमें मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया जाना था तथा बदले में मुखियाओं को अपने लोगों के चाल-चलन को ठीक रखने की जिम्मेदारी लेनी थी। उनसे यह भी आशा की गई थी कि वे अपनी बस्तियों में व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने लोगों को अनुशासन में रखेंगे। परन्तु बहुत से मुखियाओं ने भत्ता लेने से मना दिया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 5.
बुकानन द्वारा वर्णित गंजुरिया पहाड़ की यात्रा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बुकानन के अनुसार गंजुरिया में अभी जुताई की गई है जिससे पता चलता है कि इसे कितने शानदार इलाके में बदला जा सकता है इसकी सुन्दरता और समृद्धि विश्व के किसी भी क्षेत्र जैसी विकसित की जा सकती है। यहाँ की जमीन अलबत्ता चट्टानी है लेकिन बहुत ही ज्यादा बढ़िया है। उसने उतनी बढ़िया सरसों और तम्बाकू कहीं नहीं देखी। संथालों ने वहाँ कृषि क्षेत्र की सीमा काफी बढ़ा ली थी, वे यहाँ 1800 के आसपास आये थे।

प्रश्न 6.
संथालों के बारे में बुकानन के विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुकानन ने संथालों के क्षेत्र में भ्रमण किया और उनके बारे में ये विचार व्यक्त किये कि ” नयी जमीनें साफ करने में वे बहुत होशियार होते हैं, लेकिन नीचता से रहते हैं। उनकी झोंपड़ियों में कोई बाड़ नहीं होती और दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी लकड़ियों की बनी होती हैं जिन पर भीतर की ओर लेप ( पलस्तर) लगा होता है। झोंपड़ियाँ छोटी और मैली-कुचैली होती हैं, उनकी छत सपाट होती है, उनमें उभार बहुत कम होता है।”

प्रश्न 7.
कड़वा के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने क्या लिखा?
उत्तर:
कडुया के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने लिखा कि, “लगभग एक मील चलने के बाद मैं एक शिलाफलक पर आ गया, जिसका कोई यह एक छोटा दानेदार ग्रेनाइट है जिसमें लाल-लाल फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज और काला अबरक लगा है …… । वहाँ से आधा मील से अधिक की दूरी पर मैं एक अन्य चट्टान पर आया वह भी स्तरहीन थी और उसमें बारीक दानों वाला ग्रेनाइट था जिसमें पीला सा फेल्डस्पार, सफेद-सा क्वार्ट्ज और काला अबरक था।”

प्रश्न 8.
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –
(1) कभी-कभी खराब फसल होने पर किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(2) उपज की नीची कीमतों के कारण भी किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(3) कभी-कभी किसान जानबूझकर स्वयं भी भुगतान में देरी कर देते थे।

प्रश्न 9.
एक राजस्व सम्पदा क्या थी? सूर्यास्त विधि क्या थी?
उत्तर:
ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में एक जमींदार के नीचे अनेक गाँव होते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनुसार एक जमींदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलकर एक राजस्व सम्पदा का रूप ले लेते थे। जमींदारों को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक निश्चित तारीख को सूर्यास्त तक राजस्व जमा कराना अनिवार्य था। राजस्व जमा न होने की दशा में उसकी जमींदारी नीलाम की जा सकती थी। इसे ही सूर्यास्त विधि कहा जाता था।

प्रश्न 10.
1832 के दशक में किसानों को ऋण क्यों लेने पड़े?
उत्तर:
1832 के दशक के पश्चात् कृषि उत्पादों में तेजी से गिरावट आयी जिससे किसानों की आय में और भी तेजी से गिरावट आ गयी। इसके अतिरिक्त 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्र अकाल की चपेट में आ गये जिससे जन-धन की भारी हानि हुई किसानों के पास इस संकट का सामना करने के लिए खाद्यान्न नहीं था। राजस्व की बकाया राशियाँ बढ़ती गयीं परिणामस्वरूप किसानों को ऋण लेने पड़े।

प्रश्न 11.
वनों की कटाई और स्थायी कृषि के बारे बुकानन के विचार लिखिए।
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के एक गाँव से गुजरते हुए बुकानन ने लिखा, “इस प्रदेश का दृश्य बहुत बढ़िया है। यहाँ खेती विशेष रूप से, घुमावदार संकरी घाटियों में धान की फसल, बिखरे हुए पेड़ों के साथ साफ की गई जमीन और चट्टानी पहाड़ियाँ सभी अपने आप में पूर्ण हैं, कमी है तो बस इस क्षेत्र में प्रगति की और विस्तृत तथा उन्नत खेती की, जिनके लिए यह प्रदेश अत्यन्त संवेदनशील है। यहाँ टसर और लाख के लिए बागान लगाए जा सकते हैं।”

प्रश्न 12.
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने अपने पत्र में आयुक्त को क्या लिखित सूचना दी?
उत्तर:
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा कि, “शनिवार 15 मई को सूपा आने पर मुझे इस उपद्रव का पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जला दिया गया लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़ दिया गया और उनमें घुसकर वहाँ के सारे सामान को आग लगा दी गई। खाते पत्र बाँड, अनाज, देहाती कपड़ा सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहाँ राख के ढेर अब भी देखे जा सकते हैं।”

प्रश्न 13.
भाड़ा-पत्र क्या था ?
उत्तर:
जब किसान ऋणदाता का कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता था तो उसके पास अपना सर्वस्व जमीन, गाड़ियाँ, पशुधन देने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं था; लेकिन जीवनयापन हेतु खेती करना जरूरी था इसलिए उसने ऋणदाता से जमीन, पशु या गाड़ी फिर किराये पर ले ली; इसके लिए उसे एक भाड़ा पत्र ( किरायानामा) लिखना पड़ता था, जिसमें साफ तौर पर यह लिखा होता था कि ये पशु और गाड़ियाँ उसकी अपनी नहीं हैं।

प्रश्न 14.
इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए राजकीय प्रतिवेदनों के प्रयोग में क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी न चाहिए?
उत्तर:
राजकीय प्रतिवेदन सरकार की दृष्टि से तैयार किये जाते हैं जो पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होते हैं अतः इन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। इनका प्रयोग करने में से पहले समाचार पत्रों, गैर-राजकीय वृत्तान्तों, वैधानिक र अभिलेखों एवं मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता का सत्यापन करना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
बर्दवान के राजा की सम्पदा क्यों नीलाम की गई?
उत्तर:
1797 में बर्दवान के राजा की कई सम्पदाएँ नीलाम की गई। बर्दवान के राजा पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व की बड़ी रकम बकाया हो गई थी इसलिए उसकी सम्पदा नीलाम की गई खरीददारों में जिसने सबसे ऊँची बोली लगाई, उसको जमींदारी बेच दी गई। लेकिन यह खरीददारी फर्जी थी क्योंकि बोली लगाने वालों में 95% लोग राजा के एजेन्ट ही थे वैसे जमींदारी खुले तौर पर बेच दी गई थी लेकिन उन जमींदारियों का नियन्त्रण राजा के हाथ में ही रहा।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 16.
सरकारी राजस्व जमा करने में जमींदारों के समक्ष कौन-कौनसी समस्याएँ आ रही थीं?
उत्तर:
1. राजस्व की माँग बहुत ऊँची थी।
2. यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें बहुत नीची थीं जिससे किसानों के लिए लगान चुकाना मुश्किल था।
3. राजस्व असमान था। फसल चाहे अच्छी हो या खराब, राजस्व का सही समय पर भुगतान करना जरूरी था।
4. यदि राजस्व निश्चित तिथि की शाम तक जमा नहीं हो पाता था तो जमींदारी नीलाम की जा सकती थी।

प्रश्न 17.
जमींदारों पर नियन्त्रण रखने के लिए कम्पनी सरकार ने क्या नीति अपनाई थी?
उत्तर:
1. जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
2. सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों को कम्पनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर की देखरेख में रख दिया गया।
3. जमींदारों से स्थानीय न्याय और स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
4. जमींदार के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया। कलेक्टर के कार्यालय की शक्ति बढ़ गई।

प्रश्न 18.
जमींदार अपनी जमींदारी में राजस्व कैसे वसूल करता था?
उत्तर:
एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे। कम्पनी सारे गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी। उसके बाद जमींदार यह निर्धारित करता था कि उसे किन-किन गाँवों से कितना-कितना राजस्व वसूल करना है। राजस्व वसूल करने के लिए उसने अमला नामक एक अधिकारी नियुक्त कर रखा था। फिर जमींदार निर्धारित राजस्व को कम्पनी सरकार के खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 19.
गाँवों से राजस्व वसूलने में जमींदार को क्या-क्या कठिनाइयाँ आती थीं?
उत्तर:
1. किसानों की आमदनी कम होने के कारण लगान वसूलने में कठिनाई आती थी।
2. फसल खराब होने पर राजस्व वसूली में परेशानी आती थी।
3. फसल की कीमतें नीची थीं।
4. किसान जान-बूझकर भी लगान जमा कराने में देरी करते थे।
5. जमींदार बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था, मगर न्यायिक प्रक्रिया लम्बी होने से उसे उस मुकदमे से राजस्व वसूली में कोई लाभ नहीं मिल पाता था।

प्रश्न 20.
बुकानन के अनुसार दिनाजपुर के जोतदार किस प्रकार जमींदारों का प्रतिरोध करते थे?
उत्तर:
बुकानन के अनुसार जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनों को जोतते थे। वे बहुत हठीले और जिद्दी थे वे राजस्व के रूप में थोड़ी सी राशि देते थे और हर किस्त में कुछ-न- कुछ बकाया रकम रह जाती थी। जमींदारों द्वारा उन्हें कचहरी में बुलाये जाने पर वे उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी धाना या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते थे और अपने अपमानित किये जाने की शिकायत करते थे वे रैयत को जमींदारों को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे।

प्रश्न 21.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसमें किसके बारे में बताया गया था?
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिनमें से एक रिपोर्ट पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती थी। इस रिपोर्ट में भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन और क्रियाकलापों का वर्णन था। इस रिपोर्ट में जमींदारों और रैयतों (किसानों) की अर्जियाँ तथा अलग-अलग जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल तथा मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखी हुई टिप्पणियाँ शामिल थीं।

प्रश्न 22.
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के दोषों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के निम्न दोष थे –
(1) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अनेक खरीददार होते थे और ऊंची बोली लगाने वाले को बेच दी जाती थी नीलामी में अधिकतर बिक्री फर्जी होती थी।
(2) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अधिकांश खरीददार जमींदारों के ही नौकर या एजेंट होते थे जो जमींदार की ओर से नीलामी में भाग लेते थे। इस प्रकार जमींदारी की जमीनें खुले तौर पर बेच दी जाती थीं पर उनकी जमींदारी का नियन्त्रण उन्हीं के हाथों में रहता था।

प्रश्न 23.
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदार अपने क्षेत्र से राजस्व वसूली किस प्रकार करते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व वसूली हेतु जमींदारों को क्षेत्र दे रखे थे। एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे जिनकी संख्या 400 तक होती थी ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक जमींदारी के समस्त गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी राजस्व वसूल करने के लिए जमींदार एक अधिकारी नियुक्त करते थे। यही अधिकारी प्रत्येक गाँव से राजस्व वसूल करके जमींदार को देते थे तत्पश्चात् जमींदार एकत्रित राशि को कम्पनी सरकार के आदेशानुसार उसके खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 24.
ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन में ऐसे अन्य व्यापारिक समूह थे, जो भारत तथा चीन के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध करते थे। ये समूह चाहते थे कि जिस शाही फरमान द्वारा कम्पनी को यह एकाधिकार मिला था, उसे रद्द किया जाये ब्रिटेन के उद्योगपति व निजी व्यापारी भी भारत से व्यापार करना चाहते थे।

(2) कई राजनीतिक समूहों का भी यह कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का लाभ केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 25.
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा क्या कार्यवाही की गई?
उत्तर:
(1) कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अनेक अधिनियम पारित किये गये।
(2) कम्पनी को बाध्य किया गया कि वह भारत प्रशासन के विषय में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट भेजा करे।
(3) कम्पनी के कामकाज की जाँच करने के लिए कई समितियाँ नियुक्त की गयीं। एक प्रवर समिति द्वारा पाँचवीं रिपोर्ट तैयार की गई।

प्रश्न 26.
पहाड़ी लोगों को पहाड़िया क्यों कहा जाता था? इनके जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
अथवा
पहाड़िया लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पहाड़ी लोग पश्चिमी बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों एवं उसके आसपास के क्षेत्र में निवास करते थे, इसलिए इन्हें पहाड़िया कहा जाता था। इनकी आजीविका जंगल की उपज पर आधारित थी। ये जंगलों से महुआ के फूल, रेशम के कोये तथा राल और काठकोयले के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे। वे जंगलों में झाड़ियों व घास- फूस को आग लगाकर जमीन साफ कर ‘झूम’ खेती करते थे तथा कुदाल से जमीन खुरचकर दालें तथा ज्वार- बाजरा उगाते थे।

प्रश्न 27.
कार्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था क्यों लागू की?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर चार्ल्स कॉर्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था 1793 ई. में लागू की थी। उस समय बंगाल की कृषि की स्थिति अच्छी नहीं थी सरकार को प्रतिवर्ष भूमि के ठेके देने पड़ते थे अतः कार्नवालिस ने दीर्घ अध्ययन के उपरान्त बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था लागू कर दी। इस व्यवस्था के अनुसार ठेकेदार ही भूमि के स्वामी होते थे तथा वे कम्पनी को निश्चित कर देते थे। इससे कम्पनी की आय निश्चित हो गयी।

प्रश्न 28.
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे –
(1) कम्पनी की आय निश्चित बनाने में आसानी हुई।
(2) जमींदार ही स्थायी रूप से भूमि का स्वामी मान लिया गया अतः उसने अपनी भूमि उपजाऊ बनाने का प्रयास किया।
(3) कम्पनी के कर्मचारियों की संख्या सीमित हो गयी तथा राजस्व वसूलने के लिए अधिक धन तथा बल की आवश्यकता नहीं रही।
(4) इस्तमरारी बन्दोबस्त का सबसे बड़ा लाभ बंगाल के जमींदारों को हुआ। अब उन्हें सरकार को किसी प्रकार को भेंट नहीं देनी पड़ती थी।

प्रश्न 29.
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम अग्रलिखित हैं –
(1) आरम्भ में अनेक जमींदार किसानों से लगान नहीं वसूल सके, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जमींदारी बिक गयी।
(2) भूमि की माप तथा भू-राजस्व का निर्धारण सही ढंग से नहीं हो पाया था।
(3) आशाओं के विपरीत जमींदारों ने अपनी जमीन के सुधार पर कोई ध्यान नहीं दिया।

प्रश्न 30.
‘झूम’ खेती से आप क्या समझते हैं तथा यह किसके द्वारा की जाती थी?
उत्तर:
‘झूम’ खेती पहाड़िया लोगों द्वारा की जाती थी। ये लोग जंगल की झाड़ियाँ काटकर और घास-फूस में आग लगाकर जमीन साफ करके खेती करते थे। ये लोग कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरचकर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें तथा ज्वार, बाजरा उत्पन्न कर लेते थे। कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे।

प्रश्न 31.
पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण क्यों किये जाते थे?
उत्तर:
(1) पहाड़िया लोगों द्वारा ये आक्रमण अधिकतर अपने आप को अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किये जाते थे।
(2) पहाड़िया लोग इन आक्रमणों के माध्यम से मैदानों में बसे हुए लोगों के सामने अपनी सत्ता का प्रदर्शन करना चाहते थे।
(3) ऐसे आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए भी किये जाते थे, मैदानों में रहने वाले जमींदारों को पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देना पड़ता था।

प्रश्न 32.
ब्रिटिश सरकार पहाड़िया लोगों का दमन क्यों कर देना चाहती थी?
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने जंगलों की कटाई-सफाई के काम को प्रोत्साहन दिया और जमींदारों तथा जोतदारों ने परती भूमि को धान के खेतों में बदल दिया।
(2) अंग्रेजों ने स्थायी कृषि के विस्तार पर बल दिया क्योंकि उससे राजस्व के स्रोतों में वृद्धि हो सकती थी तथा नियत के लिए फसल पैदा हो सकती थी ।
(3) अंग्रेज जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर तथा उपद्रवी मानते थे।

प्रश्न 33.
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली क्यों लागू की गई ?
उत्तर:
(1) 1810 के बाद उपज की कीमतों में वृद्धि होने से बंगाल के जमींदारों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई, लेकिन कम्पनी की आमदनी में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के अनुसार कम्पनी बढ़ी हुई आमदनी में अपना दावा नहीं कर सकती थी।

(2) अपने वित्तीय साधनों में बढ़ोतरी की इच्छा से कम्पनी ने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार किया, इसलिए उन्नीसवीं शताब्दी में कम्पनी शासन में शामिल किये गये प्रदेशों में नए राजस्व बन्दोबस्त किए गए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 34.
“रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में एक नई राजस्व प्रणाली लागू की गई, जिसे ‘रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ कहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत (किसान) के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर तीस वर्ष के बाद जमीनों का फिर से सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

प्रश्न 35.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी नई राजस्व नीति से क्या अपेक्षाएँ थीं?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी राजस्व नीति से निम्न अपेक्षाएँ थीं –
(1) कम्पनी को यह आशा थी कि इस नीति से उन समस्याओं का समाधान हो जाएगा जो बंगाल की विजय के समय से ही उनके समक्ष उपस्थित हो रही थीं।
(2) अधिकारियों को यह अपेक्षा थी कि इससे छोटे किसानों एवं धनी भू-स्वामियों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न हो जाएगा जिनके पास कृषि में सुधार करने के लिए पूँजी तथा उद्यम दोनों होंगे।
(3) कम्पनी को यह आशा थी कि ब्रिटिश शासन से पालन-पोषण एवं प्रोत्साहन प्राप्त कर यह वर्ग कम्पनी के प्रति स्वामि भक्त बना रहेगा।

प्रश्न 36.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के कारण लिखिए।
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के निम्नलिखित कारण हैं-
राजस्व की प्रारम्भिक माँगें बहुत ऊँची थी, ऐसा इसलिए किया गया कि आगे कृषि की कीमतों में वृद्धि होने पर राजस्व नहीं बढ़ाया जा सकता। इस हानि को पूरा करने के लिए ऊंची दरें रखी गयी इसका यह कारण बताया गया कि जैसे ही कृषि का उत्पादन बढ़ेगा वैसे ही जमींदारों का बोझ कम हो जाएगा। राजस्व असमान था फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का भुगतान सही समय पर करना जरूरी था इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ में जमींदारों की शक्ति को रैयत से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी जमींदारी का प्रबन्धन करने तक ही सीमित कर दिया था।

प्रश्न 37.
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में लागू किए गए रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
(1) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के अन्तर्गत माँगा गया राजस्य बहुत अधिक था। परिणामस्वरूप बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नए क्षेत्रों में चले गए।
(2) राजस्व अधिकारी किसानों से कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे। राजस्व न देने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं और सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना किया जाता था।
(3) 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिसके परिणामस्वरूप दक्कन में आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में
चला गया।

प्रश्न 38.
1820 के दशक में लागू किये गये राजस्व के बारे में 1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने क्या अनुभव किया? लिखिए।
उत्तर:
1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने 1820 में लागू किये गये राजस्व के बारे में यह अनुभव किया कि –
(1) सभी जगह किसान कर्ज के बोझ से दबे हैं।
(2) 1820 के दशक में लागू किए गए राजस्व सम्बन्धी बन्दोबस्त कठोरतापूर्ण थे।
(3) राजस्व की माँग बहुत ज्यादा थी
(4) राजस्व संकलन की व्यवस्था कठोर एवं लचकहीन थी
(5) इसके बाद उन्होंने राजस्व सम्बन्धी माँग कुछ हल्की की जिससे कृषि को प्रोत्साहन मिल सके।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 39.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता कपास की आपूर्ति हेतु वैकल्पिक स्रोत क्यों और कैसे खोज रहे थे?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कच्चे माल के रूप में आयात की जाने वाली समस्त कपास का तीन- चौथाई भाग अमेरिका से आता था। अमेरिकी कपास पर निर्भरता के कारण ब्रिटेन के वस्त्र निर्माता अधिक परेशान थे। वे सोचते थे कि यदि कभी यह स्रोत बन्द हो गया तो हमें कपास कहाँ से मिलेगी ? अतः वे कपास के अन्य स्रोतों की खोज में जुटे। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना की गई तथा 1859 में मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी की स्थापना की गई।

प्रश्न 40.
1865 में अमेरिकी गृह युद्ध की समाप्ति का महाराष्ट्र के निर्यात व्यापारियों तथा साहूकारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध समाप्त होने पर वहाँ कपास का उत्पादन पुनः होने से भारतीय कपास की माँग घटने लगी। इस पर महाराष्ट्र के निर्यातकों और साहूकारों ने दीर्घावधि ऋण देने से किसानों को मना कर दिया। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की मांग पटती जा रही है तथा कपास की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। अब उन्हें यह अनुभव होने लगा था कि अब किसानों में उनका ऋण चुकाने की क्षमता नहीं रही है।

प्रश्न 41.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता भारत से कपास का आयात क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माताओं ने भारत को एक ऐसा देश समझा जो अमेरिकी कपास के आयात का स्थान ले सकता था और अमेरिका कपास की आपूर्ति बन्द – होने पर लंकाशायर की कपास की माँग पूरी कर सकता था भारत की भूमि तथा जलवायु दोनों ही कपास की खेती के लिए अनुकूल थीं तथा यहाँ सस्तां श्रम भी उपलब्ध था। 1861 में जब अमेरिका से आने वाली कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई, तो भारत से कपास का आयात करने का निश्चय किया गया।

प्रश्न 42.
संथालों को ‘अगुआ बाशिंदे’ किसलिए कहा गया?
उत्तर:
सन् 1800 के लगभग संथाल राजमहल की पहाड़ियों के निचले हिस्से में जंगलों को साफ कर स्थायी नी रूप से बस गये। एक ओर पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं थे और न उपद्रवी व्यवहार कर रहे थे, दूसरी ओर संथाल अंग्रेजों को न्छ अगुआ बाशिन्दे प्रतीत हुए क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई संकोच नहीं था और वे भूमि को पूरी शक्ति की लगा कर जोतते थे।

प्रश्न 43.
ब्रिटिश कलाकार विलियम होजेज के ल्ल बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर:
विलियम होजेज एक ब्रिटिश कलाकार था पर जिसने कैप्टन कुक के साथ प्रशान्त महासागर की यात्रा की। न क्लीवलैंड के निमन्त्रण पर होजेज 1782 ई. में उसके साथ या जंगल भू-सम्पदाओं के भ्रमण पर गया था। वहाँ होजेज न्य ने ऐसी तस्वीरें बनाई जो ताम्रपट्टी में अम्ल की सहायता र्ति से चित्र के रूप में कटाई करके छापी जाती हैं जिन्हें एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था। उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों’ को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये। इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बड़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 47.
” पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों की छाँह में आराम करते थे। वे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे।

प्रश्न 48.
पहाड़ियों के प्रति अंग्रेजों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
अंग्रेज पहाड़ियों को असभ्य, बर्बर, उपद्रवी तथा क्रूर समझते थे और उन पर शासन करना एक कठिन कार्य मानते थे इसलिए उन्होंने यह विचार किया कि जंगलों का सफाया करके, वहाँ स्थायी कृषि की स्थापना की जाए तथा जंगली लोगों को पालतू एवं सभ्य बनाया जाए। अत: अंग्रेजों ने पहाड़िया लोगों को खेती का व्यवसाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 49.
पहाड़िया लोग संथाल लोगों को अपना शत्रु क्यों मानते थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल के जंगलों को नष्ट करते हुए, इमारती लकड़ी को काटते हुए, जमीन जोतते हुए और चावल तथा कपास का उत्पादन करते हुए राजमहल की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में बस गए। उन्होंने निचली पहाड़ियों पर अधिकार कर लिया। इससे पहाड़िया लोगों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया और उन्होंने संथालों का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 50.
अंग्रेजों ने राजमहल की पहाड़ियों में संथालों को बसाने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
अंग्रेज संचालों को आदर्श निवासी मानते थे क्योंकि वे जंगलों को नष्ट करने के समर्थक थे तथा जमीन को पूरी शक्ति लगाकर जोतते थे अतः उन्होंने 1832 तक राजमहल के एक काफी बड़े क्षेत्र को ‘दामिन-इ-कोह’ के रूप में सीमांकित कर दिया और इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया। अतः यहाँ संथाल बड़ी संख्या में बस गए और कई प्रकार की वाणिज्यिक खेती करने लगे तथा व्यापारियों साहूकारों के साथ लेन-देन करने लगे।

प्रश्न 51.
संथालों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) संथालों को यह ज्ञात हो गया कि उन्होंने जिस भूमि पर खेती करना शुरू किया था, वह उनके हाथों से निकलती जा रही थी
(2) संथालों ने जिस जमीन पर खेती शुरू की थी, उस पर सरकार ने भारी कर लगा दिया था
(3) साहूकारों ने बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा दिया था और कर्ज अदा न किए जाने पर संथालों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे
(4) जमींदार लोग दामिन क्षेत्र पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।

प्रश्न 52.
बम्बई दक्कन में किसानों के विद्रोह के कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) अम्बई (मुम्बई) में लागू की गई रैयतवाड़ी प्रणाली के अन्तर्गत किसानों से माँगा गया राजस्व बहुत अधिक था। राजस्व अदा न करने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं।
(2) कालान्तर में साहूकारों ने ऋण देना बन्द कर दिया।
(3) ऋणदाता संवेदनहीन थे तथा ब्याज मूलधन से भी अधिक वसूल करते थे।
(4) ऋणदाता ऋण चुकायी गई राशि की रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर देते थे और किसानों की उपज को नीची कीमतों पर लेते थे।

प्रश्न 53.
1861 में अमेरिका में छिड़ने वाले गृहयुद्ध का भारतीय किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1861 में अमेरिका में गृह बुद्ध छिड़ने पर अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई। इस स्थिति में दक्कन के गाँवों के रैयतों (किसानों) को विपुल धनराशि ऋण के रूप में मिलने लगी। परन्तु इस अवसर पर केवल धनी किसानों को लाभ हुआ तथा अधिकांश किसान ऋण के भार से दब गए। व्यापारियों और साहूकारों ने ऋण देने से इन्कार कर दिया। दूसरी ओर राजस्व की माँग बढ़ा दी गई। ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करने लगे और कानून की अवहेलना करने लगे।

प्रश्न 54.
रैयत ऋणदाता को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझने लगे थे?
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे और रैयत से हर तीसरे वर्ष एक नया बंधपत्र भरवाते थे। वे किसानों की फसलों को नीची कीमतों पर ले लेते थे तथा अवसर पाकर किसानों की धन सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेते थे। भिन्न-भिन्न प्रकार के दस्तावेजों और बंधपत्रों से किसान असंतुष्ट थे।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
“गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी और जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँवों में जोतदारों की सुदृढ़ स्थिति अठारहवीं शताब्दी के अन्त में बंगाल के गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी तथा जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।
(1) बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी- जोतदार गाँवों में रहते थे तथा वे बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी थे। ये धन-सम्पन्न किसान थे। इन जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े रकों पर अधिकार कर रखा था। ये रकबे (क्षेत्र) कभी- कभी तो कई हजार एकड़ में फैले होते थे। स्थानीय व्यापारियों और साहूकारों के व्यवसाय पर भी उनका नियंत्रण था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के दरिद्र किसानों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते थे। उनकी जमीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था। ये बटाईदार स्वयं अपने हल-बैल लाकर खेती करते थे और फसल के बाद उपज का आधा हिस्सा जोतदारों को दे देते थे।

(2) गाँवों में जोतदारों की शक्ति-गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी। जोतदार गाँवों में ही रहते थे तथा गाँवों में रहने वाले किसानों पर उनका सीधा नियंत्रण था। जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वे घोर प्रतिरोध करते थे तथा लगान वसूली में बाधा डालते थे जो रैयत उन पर निर्भर रहते थे, उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे तथा जमींदार के राजस्व के भुगतान में जानबूझ कर देरी करा देते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

(3) जोतदारों द्वारा जमींदारी को खरीदना राजस्व अदा न करने पर जब जमींदारी नीलाम होती थी, तो प्रायः जोतदार ही उन जमीनों को खरीद लेते थे।

(4) उत्तरी बंगाल में जोतदारों का सबसे अधिक शक्तिशाली होना- उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे। कुछ स्थानों पर जोतदारों को ‘हवलदार’ कहा जाता था और कुछ अन्य स्थानों पर वे ‘गांटीदार’ म अथवा ‘मंडल’ कहलाते थे। जोतदारों के उदय होने के २ फलस्वरूप जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना अनिवार्य था।

(5) रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काना-जोतदार अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये दे देते थे और लगभग हर किस्त में कुछ न कुछ बकाया राशि रह जाती थी। जमींदार की रकम के कारण यदि अधिकारी उन्हें न्यायालय में बुलाते थे, तो वे तुरन्त उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी थाना अथवा मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच क जाते थे तथा जमींदार के कारिन्दों द्वारा उन्हें अपमानित किए जाने की बात कहते थे। जोतदार रैयत को राजस्व न देने के लिए भी भड़काते रहते थे।

प्रश्न 2.
पहाड़िया लोग कौन थे? ब्रिटिश सरकार की उनका दमन करने के लिए क्यों प्रयत्नशील थी?
अथवा
पहाड़िया लोग कौन थे? बाहरी लोगों के आगमन पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों का परिचय –
(1) झूम खेती करना – पहाड़िया लोग जंगल ‍ शाड़ियों को काटकर और पास फेंस को जलाकर जमीन साफ करते थे। ये लोग अपने भोजन के लिए अनेक प्रका की दालें तथा ज्वार बाजरा उगा लेते थे।

(2) जंगलों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करना- पहाड़िया लोग खाने के लिए जंगलों से महुआ के फूल इकट्ठे करते थे तथा बेचने के लिए रेशम के कोया और राला तथा काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे पेड़ों के नीचे उगे हुए घास-फूंस पशुओं के लिए चरागा का काम देती थी।

(3) पहाड़ियों के जीवन का जंगल से घनिष्ठ रूपा से जुड़ना पहाड़िया लोग शिकारियों, झूम खेती करने बालों, खाद्य पदार्थ इकट्ठा करने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में अपना जीवन निर्वाह करते थे। उनका जीवन जंगल से मनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के नीचे अपनी झोंपड़ियों में रहते थे तथा आम के वृक्षों की छाँह में विश्राम करते थे।

(4) पहाड़िया लोगों के मुखिया पहाड़िया लोगों के मुखिया अपने समूह में एकता बनाए रखते थे तथा आपसी लड़ाई-झगड़ों को निपटा देते थे। अन्य जनजातियों तथा मैदानी लोगों के साथ लड़ाई छिड़ने पर वे अपनी जन- जाति का नेतृत्व करते थे।

(5) मैदानी भागों पर आक्रमण करना पहाड़िया लोग मैदानी भागों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण करते थे ये आक्रमण प्रायः अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे। इन आक्रमणों के माध्यम से वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी करना चाहते थे।

(6) अंग्रेजों द्वारा पहाड़िया लोगों का दमन करना- अंग्रेज लोग जंगलों की कटाई-सफाई कर स्थायी कृषि का विस्तार करना चाहते थे वे जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर, क्रूर तथा उपद्रवी मानते थे। 1770 के दशक में अंग्रेजों ने पहाड़ियों का क्रूरतापूर्वक दमन किया। इसके बाद पहाड़िया लोग पहाड़ों के भीतरी भागों में चले गए। बाद में संथालों ने उन्हें पराजित कर दिया और उन्हें पहाड़ियों के भीतर चले जाने के लिए बाध्य कर दिया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय के विस्तार को अग्र बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
(1) 18वीं शताब्दी में बंगाल में उदित होने वाले धनी किसानों को जोतदार कहा गया। इन्होंने गाँवों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।
(2) 19वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों तक आते- आते जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त कर लिए थे जो 1000 एकड़ में फैले हुए थे।
(3) जोतदारों का गाँवों के स्थानीय व्यापार एवं साहूकारों के कारोबार पर भी नियन्त्रण था। वे अपने क्षेत्र के निर्धन किसानों पर भी अपनी शक्ति का अधिक प्रयोग करते थे।
(4) जोतदारों की भूमि का एक बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो स्वयं अपना हल लाते थे, खेतों में मेहनत करते थे एवं फसल उत्पन्न होने के पश्चात् उपज का आधा भाग जोतदारों को प्रदान करते थे।
(5) गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक प्रभावशाली थी। जमींदार शहर में रहते थे जबकि जोतदार गाँवों में रहा करते थे फलस्वरूप जोतदारों का गाँव के अधिकांश निर्धन लोगों पर सीधा नियन्त्रण रहता था।
(6) जोतदारों का जमींदारों से संघर्ष चलता रहता था। इसके निम्न कारण हैं-
(i) जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने पर जोतदार विरोध करते थे।
(ii) जोतदार जमींदार के अधिकारियों को अपना कर्तव्य पालन करने से रोकते थे।
(iii) जो लोग जोतदारों पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।
(iv) जोतदार जमींदारों को परेशान करने की नीयत से किसानों द्वारा जमींदारों को दिए जाने वाले राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते थे।
(v) जब जमींदारों की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीन को खरीद लेते थे जो जमींदारों को अच्छा नहीं लगता था।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बंगाल में जोतदार शक्तिशाली बनकर उभरे। उनके उदय से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था।

प्रश्न 4.
संथाल विद्रोह कब व क्यों हुआ? इस पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
अथवा
संथाल कौन थे? उनके विद्रोह के कारणों का विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
संथालों का परिचय
(1) संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में बसना संथाल लोग 1800 के आस-पास राजमहल की पहाड़ियों में बस गए थे ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में बसकर स्थायी खेती करने के लिए राजी कर लिया। इस प्रकार 1800 के आसपास संचाल जंगलों को साफ कर इमारती लकड़ी को काटते हुए पहाड़ियों की तलहटी में जमीन साफ कर धान और कपास की स्थायी कृषि करने लगे। इन्होंने पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों के भीतरी भाग में जाने के लिए मजबूर कर दिया।

(2) दामिन-इ-कोह का निर्माण सन् 1832 के आसपास ब्रिटिश कम्पनी ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो ‘दामिन-इ-कोह’ कहलाया। इसे संथाल भूमि घोषित कर दिया गया।

(3) संथालों की संख्या वृद्धि – दामिन-इ-कोह के सीमांकन के बाद संथालों की बस्तियाँ तेजी से बढ़ीं। सन् 1838 में गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 तक 1,473 गाँवों में बदल गई और जनसंख्या जो पहले 3,000 थी, बढ़कर 82,000 से भी अधिक हो गई। खेती का विस्तार होने से कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल विद्रोह कब और क्यों? सन् 1855-56 में संथालों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सिधू मांझी उनका नेता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

इस विद्रोह के प्रमुख कारण अग्रलिखित थे –
(1) कम्पनी सरकार द्वारा भारी कर लगाना- कम्पनी सरकार ने प्रारम्भ में संथालों को जो भूमि दी थी, उस पर कोई राजस्व नहीं था; लेकिन जैसे ही संथालों ने कृषि में विकास किया, कम्पनी सरकार ने उन पर भारी कर लगा दिया।
(2) ऊँची ब्याज दर साहूकारों द्वारा ऊँची दर पर ब्याज लगाया गया तथा कर्ज अदा न कर पाने पर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया गया।
(3) जमींदारों का अपने नियंत्रण का दावा- जिस जमीन को साफ कर संथाल लोग खेती कर रहे थे, उस पर अब जमींदारों ने अपने नियंत्रण का दावा करना शुरू कर दिया ।
(4) संथालों की मानसिकता में बदलाव — संथालों ने 1850 के दशक तक यह महसूस किया कि उनका अधिकार जमीन पर से खत्म होता जा रहा है। उन्हें अपने *लिए एक ऐसे आदर्श संसार का निर्माण करना है, जहाँ उनका अपना शासन हो जमींदारों, साहूकारों और औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है।

प्रश्न 5.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों द्वारा किस प्रकार प्रतिरोध किया गया?
अथवा
ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों ने कौन- कौनसी नई रणनीतियाँ बनाकर प्रतिरोध किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों की स्थिति उभर रही श्री लेकिन जमींदारों की सत्ता पूर्णतः समाप्त नहीं हुई थी। राजस्व की अत्यधिक मांग और अपनी भू-सम्पदा को ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नीलाम करने की समस्या से निपटने के लिए जमींदारों ने कुछ रणनीतियाँ बनाई –
(1) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण – ईस्ट इण्डिया कम्पनी महिलाओं के हिस्सों की नीलामी नहीं करती थी इसलिए जमींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भागों को अपने परिवार की स्वियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे।

(2) नकली नीलामी जमींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर कम्पनी के अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व का भुगतान नहीं करते थे जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ जाती थी। जब भू-सम्पदा का हिस्सा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के व्यक्ति ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची बोली लगाकर सम्पत्ति को खरीद लेते थे।

(3) अन्य तरीके जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचने के साथ- साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि कम्पनी के किसी अधिकारी की जिद के कारण किसी जमींदार की भू-सम्पदा को किसी बाहर का व्यक्ति खरीद लेता था तो उसे कब्जा प्राप्त नहीं हो पाता था कभी-कभी पुराने किसान नये जमींदार को लोगों की जमीन में घुसने नहीं देते थे।
परिणाम- 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गई। इसलिए जो जमींदार 1790 ई. के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो
गए, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को लचीला बनाने के फलस्वरूप गाँवों पर जमींदारों की पकड़ और मजबूत हो गयी। परन्तु 1930 की मंदी के कारण जमींदारों को नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली।

प्रश्न 6.
1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त क्यों लागू किया गया? इसके किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करने के कारण 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किये जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाना- 1810 के बाद कृषि के मूल्य बढ़ गए, जिससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी में वृद्धि हुई। परन्तु इस्तमरारी बन्दोबस्त के कारण ब्रिटिश सरकार इस बढ़ी हुई आय में अपने हिस्से का कोई दावा नहीं कर सकती थी। अतः उसने अपने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए नवीन राजस्व प्रणालियाँ लागू करने का निश्चय कर लिया।

(2) डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित होना- ब्रिटिश अधिकारी इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित थे रिकार्डों के विचारों के अनुसार भू-स्वामी को उस समय लागू ‘ औसत लगानों को प्राप्त करने का ही अधिकार होना चाहिए। ब्रिटिश अधिकारियों ने महसूस किया कि बंगाल में जमींदार लोग किराया जीवियों के रूप में बदल गए थे क्योंकि उन्होंने अपनी जमीनें पट्टे पर दे दीं और किराये की आमदनी पर निर्भर रहने लगे। इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों ने एक नवीन राजस्व प्रणाली अपनाने का निश्चय किया।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करना 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किया गया। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था। रैयत की राजस्व अदा करने की क्षमता का आकलन कर लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप में उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर 30 वर्ष के बाद जमीनों का पुन: सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर प्रभाव रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(1) राजस्व का अधिक होना सरकार की राजस्व की माँग इतनी अधिक थी कि बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नये क्षेत्रों में चले गए।
(2) ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा कठोरतापूर्वक लगान वसूल करना इस स्थिति में भी ब्रिटिश अधिकारी कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे और राजस्व न देने वाले किसानों की फसलों को जब्त कर लेते थे तथा सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना ठोक देते थे।
(3) भीषण अकाल- 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिससे दक्कन की आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में चला गया।
(4) ऋणदाताओं से ऋण लेना किसानों को अपने जीवन निर्वाह के लिए ऋणदाताओं से रुपया उधार लेना पड़ा। कर्ज बढ़ता गया, उधार की राशियाँ बकाया रहती गई और ऋणदाताओं पर किसानों की निर्भरता बढ़ती गई।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 7.
फ्रांसिस बुकानन कौन था? इसके दिए गए विवरण का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 ई. तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह भारत के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक भी रहा। कलकत्ता में रहने के दौरान उसने कलकत्ता में एक चिड़ियाघर की स्थापना की, जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसके अनुसार राजस्व की वृद्धि हेतु जंगलों को कृषि भूमि में बदलना अनिवार्य था। 1815 में वह बीमार होने के पश्चात् वह इंग्लैण्ड वापस चले गए। फ्रांसिस बुकानन द्वारा दिया गया विवरण बुकानन की यात्राएं व सर्वेक्षण ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए विकास और प्रगति का आधार थे।

इनके विवरण को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है –
(1) बुकानन द्वारा दिया गया विवरण संथालों के बारे में, राजमहल के पहाड़िया लोगों के बारे में और अनेक अन्य बातों के विषय में विस्तृत जानकारी का स्रोत है। परन्तु उसके विवरण को पूर्णतया मान्य भी नहीं किया जा सकता था क्योंकि वह कम्पनी का कर्मचारी था।

(2) फ्रांसिस बुकानन ने विशाल वनों से परिदृश्यों और वहाँ से सरकार को सम्भवतः राजस्व देने वाले स्रोतों का सर्वेक्षण किया, खोज यात्राएँ आयोजित कीं और जानकारी इकट्ठी करने के लिए कम्पनी के माध्यम से भू-वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं, वनस्पति वैज्ञानिकों, चिकित्सकों का सहयोग व सेवाओं का उपयोग किया।

(3) बुकानन अन्वेषण शक्ति रखने वाला असाधारण शक्ति का व्यक्ति था। उसने वाणिज्यिक दृष्टिकोण से मूल्यवान पत्थरों और खनिजों का प्रयास किया। उसने नमक बनाने और कच्चा लोहा निकालने की स्थानीय पद्धति का निरीक्षण भी किया।

(4) किसी भू-दृश्य का वर्णन करते हुए उसने उस भूमि को और उपजाऊ बनाने का अथवा वहाँ कौनसी फसलें बोयी जा सकती हैं इत्यादि का भी विवरण दिया है।

(5) प्रगति के सम्बन्ध में बुकानन का आकलन आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा द्वारा निर्धारित होता था। वह वनवासियों की जीवनशैली का आलोचक था।

प्रश्न 8.
दक्कन विद्रोह के कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान भारत के विभिन्न प्रान्तों के किसानों ने साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरुद्ध अनेक विद्रोह किए। ऐसा ही एक विद्रोह सन् 1875 में किसानों द्वारा दक्कन में किया गया, जिसे दक्कन विद्रोह कहा जाता है। यह विद्रोह पूना तथा अहमदनगर एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में फैला था।
दक्कन विद्रोह के कारण किसानों द्वारा दक्कन में विद्रोह करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. कम्पनी द्वारा राजस्व बढ़ाना- दक्कन में 1820 के दशक में रैयतवाड़ी नामक नयी राजस्व व्यवस्था लागू की गई और इसमें राजस्व की माँग ऊंची रखी गई। कम्पनी द्वारा 30 वर्ष पश्चात् अगले बन्दोबस्त में राजस्व 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। किसान इस बढ़े हुए राजस्व को चुकाने की स्थिति में नहीं थे।

2. राजस्व की जबरन वसूली – जिला कलेक्टर अपनी कार्यकुशलता प्रदर्शित करने हेतु राजस्व की जबरन वसूली करते थे। फसल खराब होने पर भी कोई छूट नहीं मिलती थी।

3. कीमतों में गिरावट 1832 के बाद कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई। परिणामस्वरूप किसानों की आय में और गिरावट आई। 1832-34 के अकाल ने उनकी रही-सही कमर तोड़ दी।

4. साहूकारों की मनमानी ब्याज दर – राजस्व चुकाने तथा अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसानों को ऋणदाताओं पर निर्भर रहना पड़ता था। साहूकार तथा ऋणदाता मूलधन पर मनमाना ब्याज लगाते थे तथा किसान से खाली कागज पर अंगूठा लगवाते थे ।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

5. ऋण के स्रोत का सूख जाना – 1865 में अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद वहाँ कपास का उत्पादन पुनः चालू हो गया और ब्रिटेन में भारतीय कपास की माँग में गिरावट आती चली गई। इससे कपास की कीमतों में गिरावट आ गई। व्यापारी और साहूकारों ने किसानों से अपने पुराने ऋण वापस माँगना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ सरकार ने राजस्व की माँग बढ़ा दी। फलतः रैयत पर दोहरा दबाव पड़ा जिसे पूरा करने के लिए वह ऋणदाताओं की शरण में गये, लेकिन इस बार उन्होंने ऋण देने से इनकार कर दिया।

6. अन्याय का अनुभव – ऋणदाता द्वारा ऋण देने से इनकार किये जाने पर रैयत समुदाय को बहुत गुस्सा आया। वे इस बात से नाराज थे कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है। तरह-तरह के दस्तावेज और बंधपत्र इस नयी अत्याचारपूर्ण प्रणाली के प्रतीक बन गये थे। इन सब कारणों से दक्कन की रैयत ने ऋणदाताओं, व्यापारियों व साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

विद्रोह का स्वरूप – दक्कन का यह आन्दोलन पूना जिले के सूपा नामक स्थान से जो कि एक विपणन केन्द्र था, से 12 मई, 1875 को प्रारम्भ हुआ। आसपास गाँवों के किसानों ने एकत्र होकर साहूकारों से उनके बहीखातों और ऋणबन्ध पत्रों की माँग करते हुए हमला कर दिया। बहीखाते जला दिए गये, अनाज लूट लिया गया और साहूकारों के घरों में आग लगा दी गई।

प्रश्न 9.
दक्कन विद्रोह के परिणामों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
दक्कन विद्रोह के परिणाम दक्कन विद्रोह के परिणाम विद्रोह के दमन और दक्कन दंगा आयोग की स्थापना के रूप में हुए यथा –
(1) विद्रोह का दमन जब विद्रोह तेजी से फैलने लगा तो ब्रिटिश अधिकारियों की आँखों के सामने 1857 गदर का दृश्य नाचने लगा। विद्रोही किसानों के गाँवों में पुलिस थाने स्थापित किए गए शीघ्र ही सेना भी बुला ली गई। विद्रोहियों को गिरफ्तार करके उन्हें दंडित भी किया गया, लेकिन विद्रोह को दबाने में कई महीने लग गये। (2) दक्कन दंगा आयोग व उसकी रिपोर्ट दंगा फैलने पर प्रारम्भ में बम्बई की सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया लेकिन भारत सरकार के दबाव पड़ने पर उसने दंगे के कारणों की छानबीन करने हेतु एक जाँच आयोग की स्थापना की जिसने पीड़ित जिलों में जाँच-पड़ताल करवाई, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए तथा जिला कलेक्टरों की रिपोटों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट 1878 में ब्रिटिश संसद में पेश की। जाँच आयोग को यह निर्देश था कि वह यह पता लगाए कि क्या सरकारी राजस्व की माँग विद्रोह का कारण थी? आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विद्रोह का कारण साहूकारों और ऋणदाताओं के प्रति किसानों का क्रोध था। सरकारी राजस्व की माँग इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी। लेकिन यह रिपोर्ट एकपक्षीय थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार कभी भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, जबकि राजस्व की भारी माँग के कारण ही किसानों को साहूकारों से ऋण उनकी शर्तों पर लेना पड़ा।

प्रश्न 10.
रैयत (किसान) ऋणदाताओं के प्रति किन कारणों से क्रुद्ध थी? सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझ रही थी? इस पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जब भारतीय कपास की माँग ब्रिटेन में कम हो गई तब ऋणदाताओं ने किसानों को ऋण देने से मना कर दिया। उन्हें यह लगने लगा कि अब किसानों में ऋण चुकाने की क्षमता नहीं है।
(1) अन्याय का अनुभव-जब ऋणदाताओं ने ऋण देने से मना किया तो किसानों में उसके प्रति बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ, उन्हें इस बात का दुःख नहीं था कि वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं अपितु इस बात का दुःख था कि साहूकार इतना संवेदनहीन कैसे हो गया है कि उनकी हालत पर दया भी नहीं कर रहा है। साहूकारों ने देहात के प्रथागत मानकों का उल्लंघन करना प्रारम्भ कर दिया। जो मानक किसान और साहूकार के सम्बन्धों को विनियमित करते थे, साहूकार उन्हें तोड़ रहा था।

(2) साहूकारों द्वारा खातों में धोखाधड़ी-साहूकारों द्वारा किसानों के साथ धोखाधड़ी की जाने लगी। किसानों से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लिए जाते थे या अंगूठा लगवा लिया जाता था, पर किसान को यह पता नहीं चल पाता था कि ये किस पर हस्ताक्षर कर रहे हैं या अंगूठा लगा रहे हैं अतः किसान को ऋणदाता की मनमानी का शिकार होना पड़ता था।

(3) परिसीमन कानून और ऋणदाता की चालाकी=रैयत द्वारा साहूकारों की शिकायतें मिलने पर 1859 में अंग्रेजों ने एक परिसीमन कानून पारित किया, जिसके अनुसार ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र केवल तीन वर्षों के लिए ही मान्य होगा। इसका उद्देश्य व्याज को संचित होने से रोकना था।

(4) किसान की मजबूरी यह जानते हुए कि उनके साथ धोखा या अन्याय हो रहा है फिर भी किसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साहूकारों के चंगुल में फँसने को मजबूर था, क्योंकि किसान को ऋण चाहिये था और वह बिना दस्तावेज भरे मिलता नहीं था। समय के साथ, किसान यह समझने लगे कि उनके जीवन में जो दुःख तकलीफ है, वह सब बंधपत्रों और दस्तावेजों की इस नयी व्यवस्था के कारण ही है। उन्हें उन खण्डों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता जो ऋणदाता बंधपत्रों में लिख देते थे। इस तरह रैयत साहूकारों द्वारा की गई चालबाजियों के कारण उनसे क्रुद्ध थी और अन्ततः उसने 1875 में इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठायी और दक्कन में दंगा शुरू हुआ।

प्रश्न 11.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसके बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। उसी रिपोर्ट का एक भाग पाँचवीं रिपोर्ट कहलाया। यह भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में 1002 पृष्ठ थे तथा इसके परिशिष्ट के रूप में 800 से अधिक पृष्ठ थे। पाँचवीं रिपोर्ट की पृष्ठभूमि पाँचवीं रिपोर्ट के निर्माण की पृष्ठभूमि को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –

1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एकाधिकार का विरोध- जब कम्पनी ने प्लासी के युद्ध (1757 ई.) के बाद बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की, तभी से इंग्लैण्ड में उसके क्रियाकलापों पर बारीकी से नजर रखी जा रही थी। ब्रिटेन में ऐसे बहुत से व्यापारिक समूह थे जो कम्पनी के भारत और चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार का विरोध कर रहे थे। उनकी माँग थी कि उस फरमान को रद्द किया जाए, जिसके अन्तर्गत कम्पनी को एकाधिकार दिया गया था। कई राजनीतिक समूहों का कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का फायदा केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

2. कम्पनी कुशासन पर बहस ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचनाओं पर ब्रिटिश संसद में गरमागरम बहस छिड़ गई और कम्पनी के अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण तथा लोभ- लालच की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार पत्रों में खूब उछाला गया।

3. ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम-ब्रिटेन की संसद ने भारत में कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में कई अधिनियम पारित किए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

4. समितियों की नियुक्ति-कम्पनी के प्रशासन की जाँच के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई समितियाँ नियुक्त की गई, जो जाँच उपरान्त अपनी रिपोर्ट भेजती थीं ऐसी ही एक प्रवर समिति द्वारा कम्पनी प्रशासन पर तैयार रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में भेजी गई जो पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती है। पाँचवीं रिपोर्ट के गुण-पाँचवीं रिपोर्ट में उपलब्ध साक्ष्य बहुमूल्य हैं। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ग्रामीण बंगाल में क्या हुआ, इसके बारे में हमारी अवधारणा लगभग डेढ़ शताब्दी तक इस पाँचवीं रिपोर्ट के आधार पर ही बनती सुधरती रही।

पाँचवीं रिपोर्ट का दोषपाँचवीं रिपोर्ट में परम्परागत जमींदारी के पतन का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया और जिस पैमाने पर जमींदार लोग अपनी जमीनें खोते जा रहे थे, उसके बारे में भी बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है। जब जमींदारियाँ नीलाम होती थीं तो जमींदार नए-नए हथकण्डे अपनाकर अपनी जमींदारी बचा लेते थे और बहुत कम मामलों में विस्थापित होते थे।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. भारत में नई आर्थिक नीति शुरू हुई।
(अ) 1990 में
(ब) 1991 में
(स) 1992 में
(द) 1993 में
उत्तर:
(ब) 1991 में

2. एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण का प्रवाह है।
(अ) विश्व के एक हिस्से से विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना
(ब) पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर जाना
(स) वस्तुओं का कई-कई देशों में पहुँचना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

3. निम्न में से कौनसा वैश्वीकरण का कारण नहीं है।
(अ) किसी देश की पारंपरिक वेशभूषा
(ब) प्रौद्योगिकी
(स) विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव
(द) संचार के साधनों की तरक्की
उत्तर:
(अ) किसी देश की पारंपरिक वेशभूषा

4. वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है।
(अ) कानून-व्यवस्था के सम्बन्ध में
(ब) राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्बन्ध में
(स) नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटाने के सम्बन्ध में
(द) आर्थिक कार्यों के सम्बन्ध में
उत्तर:
(स) नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटाने के सम्बन्ध में

5. वैश्वीकरण के कारण जिस सीमा तक वस्तुओं का प्रवाह बढ़ा है उस सीमा तक प्रवाह नहीं बढ़ा है।
(अ) पूँजी का
(ब) व्यापार का
(स) लोगों की आवाजाही का
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) लोगों की आवाजाही का

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

6. आर्थिक वैश्वीकरण का दुष्परिणाम है।
(अ) व्यापार में वृद्धि
(ब) पूँजी के प्रवाह में वृद्धि
(स) जनमत के विभाजन में वृद्धि
(द) विचारों के प्रवाह में वृद्धि
उत्तर:
(स) जनमत के विभाजन में वृद्धि

7. भारत में नई आर्थिक नीति के संचालक हैं।
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह
(ब) यशवन्त सिन्हा
(स) वी. पी. सिंह
(द) इन्दिरा गांधी
उत्तर:
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह

8. टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच किसकी क्रांति कर दिखाई है?
(अ) विचार की
(ब) संचार की
(स) पूँजी की
(द) वस्तु की
उत्तर:
(ब) संचार की

9. वैश्वीकरण के किस प्रभाव ने पूरे विश्व के जनमत को गहराई से बाँट दिया है?
(अ) आर्थिक
(ब) सामाजिक
(स) राजनीतिक
(द) व्यावहारिक
उत्तर:
(अ) आर्थिक

10. वैश्वीकरण के किस प्रभाव को देखते हुए इस बात का भय है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृति को खतरा पहुँचाएगी?
(अ) राजनीतिक
(ब) आर्थिक
(स) सांस्थानिक
(द) सांस्कृतिक
उत्तर:
(द) सांस्कृतिक

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1…………………….. वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क है कि इससे समृद्धि बढ़ती है।
उत्तर:
आर्थिक

2. कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व का ……………………. कहा है।
उत्तर:
पुनः उपनिवेशीकरण

3. वैश्वीकरण एक ………………………….. धारणा है।
उत्तर:
बहुआयामी

4. वैश्वीकरण से हर संस्कृति अलग और विशिष्ट हो रही है, इस प्रक्रिया को ……………….. कहते हैं।
उत्तर:
सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण

5. औपनिवेशिक दौर में भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का ……………………….. तथा बने-बनाये सामानों का ………………… देश था।
उत्तर:
निर्यातक, आयातक

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण का बुनियादी अर्थ क्या है?
उत्तर:
वैश्वीकरण का बुनियादी अर्थ है – विचार, पूँजी, वस्तु और सेवाओं का विश्वव्यापी प्रवाह।

प्रश्न 2.
वर्ल्ड सोशल फोरम (W.S.F.) क्या है?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम वैश्वीकरण का विरोध करने वाले पर्यावरणविदों, मजदूरों, युवकों और महिला कार्यकर्ताओं का एक विश्वव्यापी मंच है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की नीति में अभी भी सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन कौन-सा है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी।

प्रश्न 4.
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ की पहली बैठक कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम की पहली बैठक 2001 में ब्राजील में हुई।

प्रश्न 5.
वर्ल्ड सोशल फोरम की चौथी बैठक कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम की चौथी बैठक 2004 में मुम्बई में हुई।

प्रश्न 6.
जनार्दन काल सेंटर में काम करते हुए हजारों किलोमीटर दूर बसे अपने ग्राहकों से बात करता है, यह वैश्वीकरण का कौनसा पक्ष है?
उत्तर:
इसमें जनार्दन सेवाओं के वैश्वीकरण में हिस्सेदारी कर रहा है।

प्रश्न 7.
कोमिन्टर्न का सम्बन्ध किस एशियाई देश से था?
उत्तर:
कोमिन्टर्न का सम्बन्ध साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के शिकार हुए चीन से था।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के विभिन्न प्रवाहों की निरंतरता से क्या पैदा हुआ है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के विभिन्न प्रवाहों की निरन्तरता से ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव पैदा हुआ है।

प्रश्न 9.
राष्ट्रवाद की आधारशिला किस प्रौद्योगिकी ने रखी?
उत्तर:
छपाई (मुद्रण) की तकनीक ने।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 10.
किन आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार क्रांति कर दिखाई है?
उत्तर:
टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने।

प्रश्न 11.
विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी किसके कारण संभव हुई है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की के कारण।

प्रश्न 12.
कोई ऐसी दो घटनाओं के नाम लिखिये जो राष्ट्रीय सीमाओं का जोर नहीं मानतीं।
उत्तर:

  1. बर्ड फ्लू
  2. सुनामी किसी एक राष्ट्र की हदों में सिमटे नहीं रहते।

प्रश्न 13.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में विश्व में कल्याणकारी राज्य की धारणा की जगह किस धारणा ने ले ली है?
उत्तर:
न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा ने।

प्रश्न 14.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के तहत राज्य अब किन कामों तक ही अपने को सीमित रखता है?
उत्तर:
राज्य अब कानून और व्यवस्था को बनाए रखने तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करने तक ही अपने को. सीमित रखता है।

प्रश्न 15.
भूमंडलीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यातायात और संचार के साधनों ने दुनिया के देशों को एक-दूसरे से जोड़कर विश्व ग्राम में बदल दिया है। इसी को भूमंडलीकरण कहते हैं।

प्रश्न 16.
वैश्वीकरण के दौर में अब आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक कौन है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के दौर में अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 17.
वैश्वीकरण के जिम्मेदार कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के जिम्मेदार दो कारण ये हैं।

  1. प्रौद्योगिकी में तरक्की
  2. विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव।

प्रश्न 18.
वैश्वीकरण के कारण किस क्षेत्र में राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है?
उत्तर:
अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बूते अब राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए किस भय को बल मिला है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी ।

प्रश्न 20.
विश्व – संस्कृति के नाम पर क्या हो रहा है?
उत्तर:
विश्व – संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है।

प्रश्न 21.
वैश्वीकरण का एक सकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण का एक सकारात्मक प्रभाव यह है कि इससे हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है।

प्रश्न 22.
औपनिवेशिक दौर में भारत किस प्रकार का देश था?
उत्तर:
पनिवेशिक दौर में भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाए सामानों का आयातक देश था।

प्रश्न 23.
स्वतंत्रता के बाद भारत ने आर्थिक दृष्टि से कौनसी नीति अपनाई?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत ने संरक्षणवाद की नीति अपनाई।

प्रश्न 24.
संरक्षणवाद की नीति क्या है?
उत्तर;
संरक्षणवाद की नीति वैश्वीकरण का विरोध करती है तथा देशी उद्योगों एवं वस्तुओं को प्रतिस्पर्द्धा से बचाने हेतु चुंगी तथा तटकर का पक्ष लेती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 25.
मैक्डोनाल्डीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
मैक्डोनाल्डीकरण का तात्पर्य है कि संसार की विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने आप को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं।

प्रश्न 26.
साम्राज्यवाद से क्या आशय है?
उत्तर:
जब कोई देश अपनी सीमा से बाहर के क्षेत्र के लोगों के आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन पर अपना आधिपत्य स्थापित कर ले, उसे साम्राज्यवाद कहते हैं।

प्रश्न 27.
‘संरक्षणवाद’ की नीति से भारत को क्या दिक्कतें पैदा हुईं।
उत्तर:
संरक्षणवाद की नीति के कारण प्रथमतः भारत स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास के क्षेत्र में ध्यान नहीं दे पाया। दूसरे, भारत की आर्थिक वृद्धि दर धीमी रही।

प्रश्न 28.
1991 में भारत ने आर्थिक सुधारों की योजना क्यों शुरू की?
उत्तर:

  1. वित्तीय संकट से उबरने तथा
  2. आर्थिक वृद्धि की ऊँची दर हासिल करने के लिए 1991 में भारत आर्थिक सुधारों की योजना शुरू की।

प्रश्न 29.
आर्थिक सुधारों की योजना की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  1. इसके अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर से आयात प्रतिबंध हटाये गए।
  2. व्यापार और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 30.
वामपंथी आलोचक वैश्वीकरण के विरोध में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
वामपंथी आलोचकों का कहना है कि वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनी और निर्धनों के बीच की खाई को और बढ़ायेगा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 31.
दक्षिणपंथी आलोचक वैश्वीकरण के विरोध में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
दक्षिणपंथी आलोचकों का कहना है कि इससे राज्य कमजोर हो रहा है; परम्परागत संस्कृति की हानि होगी।

प्रश्न 32. वैश्वीकरण के विरोधी आंदोलनों का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
वैश्वीकरण विरोधी बहुत से आंदोलन वैश्वीकरण के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण के साम्राज्यवादी समर्थक कार्यक्रम के विरोधी हैंहोगी ।

प्रश्न 33.
1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन क्यों हुए?
उत्तर:
ये विरोध-प्रदर्शन आर्थिक रूप से ताकतवर देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों के अपनाने के विरोधमें हुए।

प्रश्न 34.
सिएटल (1999) के विरोध प्रदर्शनकारियों का क्या तर्क था?
उत्तर:
सिएटल (1999) के विरोध प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि उदीयमान वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया है।

प्रश्न 35.
नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच कौनसा है?
उत्तर:
नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ (WSF) है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 36.
वर्ल्ड सोशल फोरम’ में कौन लोग सम्मिलित हैं?
उत्तर:
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट -उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 37.
भारत में वैश्वीकरण का विरोध करने वाले किन्हीं दो क्षेत्रों का नाम बताइये।
उत्तर:

  1. वामपंथी राजनैतिक दल
  2. इन्डियन सोशल फोरम
  3. औद्योगिक श्रमिक और किसान संगठन।

प्रश्न 38.
भारत में दक्षिणपंथी खेमों से वैश्वीकरण का विरोध किस संदर्भ में किया जा रहा है?
उत्तर:
भारत में दक्षिणपंथी खेमा वैश्वीकरण के विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है।

प्रश्न 39.
बहुराष्ट्रीय निगम से क्या आशय है?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय निगम वह कम्पनी है जो एक से अधिक देशों में अपनी आर्थिक व व्यापारिक गतिविधियाँ चलाती है।

प्रश्न 40.
सांस्कृतिक समरूपता से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक समरूपता का आशय हैथोपना। विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति को विकासशील देशों में थोपना।

प्रश्न 41.
सामाजिक सुरक्षा कवच से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को वैश्वीकरण के प्रभाव से बचाने का सांस्थानिक उपाय को सामाजिक सुरक्षा कवच कहा गया है।

प्रश्न 42.
बहुराष्ट्रीय निगम से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
वह कंपनियाँ जो एक से अधिक दिशाओं में आर्थिक गतिविधियाँ चलाती हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 43.
क्या साम्राज्यवाद ही वैश्वीकरण है?
उत्तर:
नहीं, साम्राज्यवाद में एक देश अपनी सीमा के बाहर के देश पर आर्थिक और राजनीतिक कब्जा करता है जबकि वैश्वीकरण में इस प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।

प्रश्न 44.
कल और आज के वैश्वीकरण में आप क्या अंतर देखते हैं?
उत्तर:
पहले दो देशों के बीच वस्तु तथा कच्चे माल का आवागमन होता था और आज के युग में व्यक्ति, विचार, पूँजी, तकनीक तथा कच्चे माल का आवागमन होता है। वस्तु,

प्रश्न 45.
दो महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष
  2. विश्व व्यापार संगठन।

प्रश्न 46.
वैश्वीकरण के लिए अपरिहार्य कारक क्या है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी

प्रश्न 47.
भारत वैश्वीकरण को किन तरीकों से प्रभावित कर रहा है? कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. भारत विदेशी भूमि पर भारतीय संस्कृति तथा रीति-रिवाजों को बढ़ावा दे रहा है।
  2. भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम ने विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया है।

प्रश्न 48.
आर्थिक वैश्वीकरण का सरकारों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मेदारियों से अपना हाथ पीछे कर रही हैं।

प्रश्न 49.
वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का वैश्वीकरण के संदर्भ में क्या कहना है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का कहना है कि वैश्वीकरण ने चुनौतियाँ पेश की हैं और लोगों को इसका सामना सजग और सचेत रूप में करना चाहिए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 50.
सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप हर संस्कृति अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ क्या है?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम (WSF) – नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ है। इस मंच के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के विरोध में वामपंथी क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण के विरोध में वामपंथी आलोचकों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी ( तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

प्रश्न 3.
दक्षिणपंथी आलोचक वैश्वीकरण के विरोध में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचकों को

  1. राजनीतिक अर्थों में राज्य के कमजोर होने की चिंता है।
  2. आर्थिक क्षेत्र में वे चाहते हैं कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और संरक्षणवाद का दौर फिर कायम हो और
  3. सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि इससे परंपरागत संस्कृति की हानि होग ।

प्रश्न 4.
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण को परिभाषित कीजिए।
अथवा
सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण की प्रक्रिया से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण:
वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं। इसका आशय यह है कि सांस्कृतिक मेलजोल का प्रभाव एकतरफा नहीं होता है, बल्कि दुतरफा होता है।

प्रश्न 5.
विश्व सामाजिक मंच एक मुक्त आकाश का द्योतक है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण में विश्व सामाजिक मंच एक मुक्त आकाश के समान होगा। जिस प्रकार मुक्त आकाश सम्पूर्ण पक्षियों के लिए खुला होता है, ठीक उसी प्रकार विश्व को एक सामाजिक मंच मान लिया जाये तो सभी जगह उदारीकरण की अर्थव्यवस्था आ जायेगी जो सभी के लिए खुली होगी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 6.
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये कि वैश्वीकरण में परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है।
उत्तर:
बाहरी संस्कृति के प्रभावों से कभी-कभी परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है। उदाहरण के लिए, नीली जीन्स भी हथकरघा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है। जीन्स के ऊपर कुर्ता पहने अमरीकियों को देखना अब संभव है।

प्रश्न 7.
स्पष्ट कीजिये कि कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है।
उत्तर:
कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है। उदाहरण के लिए बर्गर, मसाला- डोसा का विकल्प नहीं है, इसलिए बर्गर से मसाला डोसा को कोई खतरा नहीं है। इससे इतना मात्र हुआ है कि हमारे भोजन की पसंद में एक और चीज शामिल हो गयी ह ।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में लोगों की आवाजाही वस्तुओं और पूँजी के प्रवाह के समान क्यों नहीं बढ़ी है?
उत्तर:
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में लोगों की आवाजाही वस्तुओं और पूँजी के प्रवाह के समान नहीं बढ़ी है। क्योंकि विकसित देश अपनी वीजा नीति के जरिये अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को अभेद्य बनाए रखते हैं ताकि दूसरे देशों के नागरिक आकर कहीं उनके नागरिकों के नौकरी-धंधे न हथिया लें।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. वैश्वीकरण के कारण वित्तीय क्रियाकलापों में तेजी आती है।
  2. वैश्वीकरण में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का प्रादुर्भाव होता है।
  3. वैश्वीकरण में बहुराष्ट्रीय निगमों का अधिक विकास होता है।
  4. वैश्वीकरण में भौगोलिक और राजनैतिक गतिरोध कम हो जाता है।

प्रश्न 10.
जनार्दन के एक काल सेंटर में काम करने तथा विदेशी ग्राहकों को सेवा प्रदान करने, रामधारी का अपनी बेटी के लिए चीनी – साइकिल खरीदने तथा सारिका के नौकरी करने में वैश्वीकरण के कौन-कौनसे पहलू दिखते हैं?
उत्तर:
उक्त तीनों उदाहरणों में वैश्वीकरण का कोई न कोई पहलू दिखता है। यथा।

  1. जनार्दन सेवाओं में वैश्वीकरण में हिस्सेदारी कर रहा है.
  2. रामधारी जन्मदिन के लिए चीनी – साइकिल के रूप में जो उपहार खरीद रहा है उससे हमें विश्व के एक भाग से दूसरे भाग में वस्तुओं की आवाजाही का पता लगता है।
  3. सारिका के सामने जीवन-मूल्यों के बीच दुविधा की स्थिति है। यह दुविधा अन्ततः उन अवसरों के कारण पैदा हुई है जो उसके परिवार की महिलाओं कों पहले उपलब्ध नहीं थे, लेकिन आज वे एक सच्चाई हैं और जिन्हें व्यापक स्वीकृति मिल रही है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजि।
अथवा
वैश्वीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण की अवधारणा – एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात है। प्रवाह प्रवाह कई तरह के हो सकते हैं, जैसे- विचार – प्रवाह, पूँजी – प्रवाह, वस्तु – प्रवाह, व्यापार – प्रवाह, आवाजाही का प्रवाह आदि। विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना विचार प्रवाह है। पूँजी का एक से ज्यादा देशों में जाना पूँजी प्रवाह है; वस्तुओं का कई देशों में पहुँचना वस्तु प्रवाह है और उनका व्यापार तथा बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की आवाजाही क्रमशः व्यापार प्रवाह तथा लोगों की आवाजाही का प्रवाह है। इन सब प्रवाहों की निरन्तरता से ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव पैदा हुआ है और फिर यह जुड़ाव निरन्तर बना रहता है। इस सबका मिला-जुला रूप ही वैश्वीकरण की अवधारणा है।

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है क्योंकि इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव हैं। यथा।

  1. आर्थिक आयाम: वैश्वीकरण के कारण व्यापार में खुलापन आता है, व्यापार में वृद्धि होती है, पूँजी निवेश बढ़ता है, वस्तुओं तथा सेवाओं की आवाजाही एक देश से दूसरे देश में बढ़ती है।
  2. राजनैतिक आयाम: वैश्वीकरण के कारण दुनिया में लोककल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई है और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा ने ले ली है।
  3. सांस्कृतिक आयाम: वैश्वीकरण से हमारी पसंद-नापसंद का निर्धारण होता है। हम जो कुछ खाते-पीते- पहनते हैं अथवा सोचते हैं। सब पर इसका असर नजर आता है। अतः स्पष्ट है कि वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है।

प्रश्न 13.
आपकी राय में वैश्वीकरण के क्या कारण हैं? किन्हीं चार की विवेचना कीजिये।
अथवा
वैश्वीकरण के चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के कारकों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
हमारी राय में वैश्वीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैंअथवा

  1. प्रौद्योगिकी और वैश्वीकरण: विचार, पूंजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की के कारण संभव हुई है। इसी प्रकार हमारे सोचने के तरीके पर भी प्रौद्योगिकी का प्रभाव पड़ा है।
  2. विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव: विश्व के विभिन्न भागों के लोग अब इस बात को लेकर सजग हैं कि विश्व के एक भाग में घटने वाली घटना का प्रभाव विश्व के दूसरे भाग में भी पड़ेगा। इससे वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला।
  3. आर्थिक प्रवाह में तीव्रता: न्यूनतम हस्तक्षेप की राज्य की अवधारणा, पूँजीवादी व्यवस्था के वर्चस्व तथा बहुराष्ट्रीय निगमों की बढ़ती भूमिका ने वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है।
  4. साम्यवादी गुट का पतन: साम्यवादी गुट के पतन के बाद पूँजीवाद का वर्चस्व स्थापित हुआ जिसने वैश्वीकरण को गति दी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 14.
वैश्वीकरण ने विश्व की राज व्यवस्थाओं को प्रभावित किया है।
अथवा
आपके मतानुसार कोई चार प्रभावों की विवेचना कीजिए। वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव क्या हैं?
अथवा
वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभावों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया, राज्य की क्षमता में कमी- वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता यानी सरकारों को जो करना है, उसे करने की ताकत में कमी आती है। यथा

(अ) पूरी दुनिया ने वैश्वीकरण के दौर में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को त्याग कर न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की अवधारणा को अपना लिया है।

(ब) वैश्वीकरण के चलते राज्य अब आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का ही निर्धारण करता है।

(स) बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका बढ़ी है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आयी है। राज्य की ताकत में वृद्धि – कुछ मायनों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में वृद्धि हुई है।

(द) अब राज्यों के हाथ में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं।

प्रश्न 15.
आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया से क्या आशय है?
उत्तर:
र्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया – आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया से आशय है। विश्व में वस्तुओं, पूँजी, श्रम तथा विचारों के प्रवाह का व्यापक होना।

  1. वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार का इजाफा हुआ है क्योंकि आयात प्रतिबंधों को कम किया गया है।
  2. वैश्वीकरण के चलते दुनियाभर में पूँजी की आवाजाही पर अब अपेक्षाकृत कम प्रतिबंध हैं इसलिए विदेशी निवेश बढ़ रहा है।
  3. वैश्वीकरण के चलते अब विचारों के सामने राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रवाह अबाध हो उठा है। इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है।
  4. वैश्वीकरण के चलते एक देश से दूसरे देश में लोगों की आवाजाही भी बढ़ी है। एक देश के लोग अब दूसरे देश में जाकर नौकरी कर रहे हैं।

प्रश्न 16.
आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में तर्क दीजिये।
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में तर्क-आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में निम्न प्रमुख तर्क दिये जाते हैं।

  1. जनमत का विभाजन: आर्थिक वैश्वीकरण के कारण पूरे विश्व में जनमत बड़ी गहराई से बंट गया है।
  2. सरकारों द्वारा सामाजिक न्याय की उपेक्षा- आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मेदारियों से अपना हाथ खींच रही हैं और इससे सामाजिक न्याय से सरोकार रखने वाले लोग चिंतित हैं क्योंकि इससे नौकरी और जनकल्याण के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बदहाल हो जायेंगे।
  3. विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण: आर्थिक वैश्वीकरण विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण है।
  4. गरीब देशों के लिए अहितकर: वैश्वीकरण से गरीब देशों के गरीब लोग आर्थिक रूप से बर्बादी की कगार पर पहुँच जाएंगे।

प्रश्न 17.
आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में तीन तर्क दीजिये।
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में तर्क-आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में अग्रलिखित तर्क दिये जाते संजीव पास बुक्स

  1. समृद्धि का बढ़ना: आर्थिक वैश्वीकरण से समृद्धि बढ़ती है और खुलेपन के कारण ज्यादा से ज्यादा जनसंख्या की खुशहाली बढ़ती है।
  2. व्यापार में वृद्धि: आर्थिक वैश्वीकरण से व्यापार में वृद्धि होती है। इससे पूरी दुनिया को फायदा होता है।
  3. पारस्परिक जुड़ाव का बढ़ना: आर्थिक वैश्वीकरण से लोगों में पारस्परिक जुड़ाव बढ़ रहा है। पारस्परिक निर्भरता की रफ्तार अब तेज हो चली है। वैश्वीकरण के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न भागों में सरकार, व्यवसाय तथा लोगों के बीच जुड़ाव बढ़ रहा है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 18.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया किस रूप में विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी?
उत्तर:
वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लेकर आता है। सांस्कृतिक समरूपता में विश्व संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति को लादा जा रहा है। राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। यही कारण है कि बर्गर या नीली जीन्स की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता अमरीकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है। विभिन्न संस्कृतियाँ वैश्वीकरण की सांस्कृतिक समरूपता के तहत अब अपने को प्रभुत्वशाली अमरीकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे – धीरे खत्म हो रही है और यह समूची मानवता के लिए भी खतरनाक है।

प्रश्न 19.
आपके अनुसार क्या भविष्य में वैश्वीकरण जारी रहेगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, वैश्वीकरण भविष्य में भी जारी रहेगा। इसके निम्न कारक हैं।

  1. प्रत्येक व्यक्ति तथा देश एक दूसरे पर निर्भर है।
  2. कोई भी व्यक्ति स्वयं अपनी आवश्यकता को पूरी नहीं कर सकता है।
  3. क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण और आपसी निर्भरता के कारण।
  4. भविष्य में विश्व सहयोग बढेगा तथा विकसित देश दूसरे देशों के शोषण के बजाय सहयोग करेंगे।

प्रश्न 20.
वैश्वीकरण की दिशा में भारत द्वारा उठाये गये किन्हीं चार कदमों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत के वैश्वीकरण की दिशा में बढ़ते कदम: भारत ने वैश्वीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाये हैं।

  1. उद्योग नीति में सुधार: सन् 1991 से भारत सरकार ने नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत कुछ उद्योगों को छोड़कर सभी उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कर दिया है।
  2. विदेशी निवेश को बढ़ावा: भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के अवसरों का पता लगाने के प्रयास तेज करने पर बल दिया गया है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में 51 प्रतिशत तक विदेशी पूँजी निवेश को तथा अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  3. विदेशी प्रौद्योगिकी समझौते: भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से विदेशों से प्रौद्योगिकी समझौते करने पर विशेष बल दिया है।
  4. विनिमय दर: 1992-93 से भारतीय रुपये को विदेशी मुद्रा में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 21.
वैश्वीकरण के प्रतिरोध के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण का प्रतिरोध क्यों हो रहा है? प्रमुख कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का प्रतिरोध निम्न कारणों से हो रहा है।

  1. वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी और गरीबों को और ज्यादा गरीब बनाती है।
  2. राजनीतिक अर्थ में वैश्वीकरण में राज्य के कमजोर होने की चिंता है। इससे गरीबों के हितों की रक्षा करने की राज्य की क्षमता में कमी आती है।
  3. सांस्कृतिक स्तर पर परम्परागत संस्कृति की हानि हो रही है। लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर-तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।
  4. यह साम्राज्यवाद का नया रूप है। इसके चलते विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
  5. वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुँचता है। इससे तृतीय विश्व के देशों में गरीबी व आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 22.
वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्यों की बदलती भूमिका का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्यों की भूमिका में परिवर्तन आया है। यथा।

  1. वैश्वीकरण के कारण राज्यों की आत्मनिर्भरता की नीतियाँ समाप्त होती जा रही हैं; क्योंकि वर्तमान वैश्वीकरण के युग में कोई भी विकासशील देश आत्मनिर्भर नहीं हो सकता।
  2. वैश्वीकरण के युग में पूँजी निवेश के कारण विकासशील देशों ने भी अपने बाजार विश्व के लिए खोल दिये हैं।
  3. वैश्वीकरण के कारण अंब प्रत्येक देश आर्थिक नीति को बनाते समय विश्व में होने वाले आर्थिक घटनाक्रम तथा विश्व संगठनों जैसे विश्व बैंक व विश्व व्यापार संगठन के प्रभाव में रहता है।
  4. राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली निजीकरण की नीतियाँ, कर्मचारियों की छंटनी, सरकारी अनुदानों में कमी तथा कृषि से संबंधित नीतियों पर वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

प्रश्न 23.
भारतीय राजनीति का दक्षिणपंथी खेमा वैश्वीकरण का विरोध क्यों कर रहा है?
उत्तर:
भारतीय राजनीति का दक्षिणपंथी खेमा वैश्वीकरण का विरोध कर रहा है क्योंकि इस खेमे के अनुसार केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी.वी. चैनलों के कारण स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएँ वैलेन्टाइन डे मना रहे हैं तथा पश्चिमी पोशाकों की तरफ उनकी अभिरूची बढ़ रही है।

प्रश्न 24.
1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक में क्या घटनाएँ हुई थीं?
उत्तर:
1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री – स्तरीय बैठक में वैश्वीकरण के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। ये विरोध आर्थिक रूप से ताकतवर देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों के अपनाने के विरोध में ये प्रदर्शन हुए थे। विरोधियों के अनुसार उदीयमान वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया था।

प्रश्न 25.
आजादी हासिल करने के बाद भारत ने क्या फैसला किया? इन फैसलों की वजह से कौनसी दिक्कतें पैदा हुई?
उत्तर:
औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी नीति के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक देश था तथा बने बनाए सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद ब्रिटेन के साथ अपने अनुभवों से सबक लेते हुए भारत ने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनाया जाए तथा दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजों का बनाना सीख सकें। इस ‘संरक्षणवाद’ से कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुईं। कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 26.
क्या हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक आयाम है?
उत्तर:
नहीं, वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक आयाम नहीं है बल्कि यह राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों वाली बहुआयामी अवधारणा है। वैश्वीकरण विचारों, पूँजी, वस्तुओं और लोगों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया है।

प्रश्न 27.
” वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है।” कथन के पक्ष में अपना तर्क दीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ अन्य देशों के साथ अन्योन्याश्रितता के आधार पर अर्थव्यवस्था के एकीकरण से है। यह राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति वाली अवधारणा है तथा इसमें विचारों, पूँजीगत वस्तुओं और लोगों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया होती है।

प्रश्न 28.
एक उग्रवादी समूह ने एक बयान जारी किया जिसमें कॉलेज की छात्राओं को पश्चिमी कपड़े पहने की धमकी दी गई थी। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
यह कथन वैश्वीकरण की सांस्कृतिक निहितार्थों को दर्शाता है, जो कि समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के सिकुड़ने का नेतृत्व करने के लिए पश्चिमी संस्कृति को थोपने के बारे में एक रक्षा समूह के डर के रूप में है।

प्रश्न 29.
भारत पर वैश्वीकरण के प्रभावों के विषय में दो भिन्न विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत पर वैश्वीकरण के प्रभावों पर दो विचार निम्न है।

  1. वैश्वीकरण अपनाने से भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
  2. वैश्वीकरण के बारे में इसके आलोचकों का विचार है कि भारत द्वारा वैश्वीकरण की योजनाएँ लागू करने से देश के श्रम बाजार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और बेरोजगारी बढ़ेगी।

प्रश्न 30.
यह कहना कहाँ तक सही है कि वैश्वीकरण राज्य की सम्प्रभुता का हनन करता है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऊपर दिया गया कथन सही है क्योंकि वैश्वीकरण से राज्य की संप्रभुता प्रभावित होना हैं। राज्यों को वैश्विक मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करना होता है। उदाहरण के लिए वैश्विक बाजार की भूमिका में वृद्धि, समुन्नत प्रौद्योगिकी, पर्यावरण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानून कुछ हद तक राज्यों की संप्रभुता को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 31.
नव-उपनिवेशवाद क्या है?
उत्तर:
समय तथा युग के साथ-साथ उपनिवेशवाद का रूप भी बदल गया है। नव उपनिवेशवाद परंपरागत उपनिवेशवाद का एक नया रूप है। ‘नव उपनिवेशवाद’ का लक्ष्य सैनिक तथा राजनीतिक प्रभुत्व के स्थान पर आर्थिक प्रभुत्व की स्थापना करना है। एक समृद्ध तथा शक्तिशाली देश, कमजोर देश को आर्थिक सहायता देकर उस देश की नीतियाँ तथा राजनीतिक गतिविधियों पर नियंत्रण करता है और उन नीतियों तथा गतिविधियों को अपने लाभ की ओर प्रभावकारी बनाता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 32.
कल और आज के वैश्वीकरण में अंतर के कुछ तर्क दीजिए।
उत्तर:
कल और आज के वैश्वीकरण में बहुत अंतर है। इसको हम निम्न तर्क द्वारा देख सकते हैं।

  1. आज न केवल वस्तुएँ बल्कि लोग भी बड़ी संख्या में एक देश से दूसरे देश में जा रहे हैं।
  2. पहले पूर्व के देशों को ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रमुखता प्राप्त थी किन्तु आज विपरीत स्थिति है। पश्चिम की वस्तुओं को भी उतना ही सम्मान मिलता है।
  3. कई कंपनियाँ विकासशील देशों के उत्पाद पर अपना लेबल लगाकर पूरे विश्व बाजार में विकसित देशों के उत्पाद के रूप में बेच रही है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण को परिभाषित कीजिये इसके अंग तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ एवं परिभाषा; वैश्वीकरण विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की वैश्विक आवाजाही से जुड़ी वह परिघटना है, जिसमें इन प्रवाहों का धरातल सम्पूर्ण विश्व है और इन प्रवाहों की गति तीव्र तथा निरन्तरता लिए हुए है जो अन्ततः ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव पैदा कर रही है। गाय ब्रायंबंटी के शब्दों में, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाजार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या के देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूँजी तथा विचारों के गतिशील होने से ही संबंधित नहीं है बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।

  • वैश्वीकरण के अंग- विद्वानों के मतानुसार वैश्वीकरण के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं।
    1. व्यापार या वस्तुओं का विभिन्न देशों में निर्बाध प्रवाह,
    2. विभिन्न देशों में पूँजी का स्वतन्त्र प्रवाह,
    3. तकनीक तथा विचार का बेरोकटोक प्रवाह तथा
    4. विभिन्न देशों में श्रम प्रवाह।
  • वैश्वीकरण के लिए निर्देशक सिद्धान्त: वैश्वीकरण के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
    1. राजकोषीय अनुशासन।
    2. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को खुला रखना।
    3. संस्थागत एवं रचनात्मक सुधार।
    4. बाजार की शक्तियों द्वारा आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं को निर्धारित करना।
    5. निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना।
    6. व्यापार का उदारीकरण करना।
    7. कर प्रणाली में सुधार करना।
    8. पारदर्शिता लाना।
    9. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के निर्देशों का पालन करना।
    10. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग।

प्रश्न 2.
“वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है। “इस कथन की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा के रूप में: वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है; इसके राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आयाम हैं। यथा।

  • वैश्वीकरण का राजनैतिक आयाम: वैश्वीकरण के प्रमुख राजनीतिक आयाम इस प्रकार हैं।
    1. वैश्वीकरण के कारण राज्य अब मुख्य कार्यों, जैसे: कानून-व्यवस्था तथा नागरिक सुरक्षा तक ही अपने को सीमित रखता है। इससे आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में राज्य की शक्तियाँ कम हुई हैं।
    2. वैश्वीकरण के चलते अब राज्यों के हाथों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं। इससे राज्य की क्षमता बढ़ी है।
  • वैश्वीकरण का आर्थिक आयाम: आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया में दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हो जाता है। इसके चलते दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई है, पूँजी के निवेश की बाधाएँ हटी हैं, विचारों का प्रवाह अबाध हुआ है।
  • वैश्वीकरण के सांस्कृतिक आयाम: वैश्वीकरण में राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती हैं और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। इससे विश्व की सांस्कृतिक धरोहरें खत्म हो रही हैं। दूसरी तरफ, हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ रहा है, और प्रभुत्वशाली संस्कृति के सांस्कृतिक प्रभावों के अन्तर्गत ही परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना स्थानीय संस्कृति का परिष्कार भी हो रहा है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के कारण तथा इसके राजनैतिक प्रभावों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण: वैश्वीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
1. प्रौद्योगिकी: प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण ही विचार, पूंजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही में आसानी हुई है।
2. विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव: विश्वव्यापी प्रवाहों की निरन्तरता से लोगों में विश्वव्यापी पारस्परिक पैदा हुआ और इस जुड़ाव ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया है।
वैश्वीकरण के राजनैतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के राजनैतिक प्रभाव का विवेचन निम्नलिखित तीन बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • वैश्वीकरण ने कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति को कमजोर किया है- यथा-
    1. वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में अब राज्य कुछेक मुख्य कामों, जैसे कानून व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना आदि तक ही अपने को सीमित रखता है।
    2. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण राज्य की जगह अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है।
    3. बहुराष्ट्रीय निगमों का बढ़ता प्रभाव: वैश्वीकरण के चलते पूरे विश्व में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका बढ़ी है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आती हैं।
  • कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति पर वैश्वीकरण का कोई प्रभाव नहीं राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को वैश्वीकरण से कोई चुनौती नहीं मिली है।
  • वैश्वीकरण ने राज्य की शक्ति में वृद्धि भी की है। वैश्वीकरण के फलस्वरूप अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकता है। इस सूचना के दम पर राज्य ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव पर एक निबंध लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव निम्नलिखित हैं।

I. वैश्वीकरण के नकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव:
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी; क्योंकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लाता है जिसमें विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है। इस कारण विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। इससे पूरे विश्व में विभिन्न संस्कृतियों की समृद्ध धरोहर धीरे धीरे खत्म होती जा रही है। यह स्थिति समूची मानवता के लिए खतरनाक है।

II. वैश्वीकरण के सकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव- वैश्वीकरण के कुछ सकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव भी पड़े हैं। जैसे
1. बाहरी संस्कृति के प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है; जैसे—बर्गर के साथ-साथ मसाला- डोसा भी अब हमारे खाने में शामिल हो गया है।
2. इसके प्रभावस्वरूप कभी-कभी संस्कृति का परिष्कार भी होता है, जैसे- नीली जीन्स के साथ खादी का कुर्ता पहनना।
3. वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। प्रश्न 5. वैश्वीकरण के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिये।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के पक्ष में तर्कवैश्वीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये गये हैं।
    1. वैश्वीकरण से लोगों में विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव बढ़ा है।
    2. वैश्वीकरण के कारण पूँजी की गतिशीलता बढ़ी है। इससे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा है तथा विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।
    3. वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा विकासशील देशों को उन्नत तकनीक का लाभ मिल सकता है।
    4. वैश्वीकरण ने विश्वव्यापी सूचना क्रांति को जन्म दिया है। इससे सामाजिक गतिशीलता बढ़ी है।
    5. वैश्वीकरण के कारण रोजगार की गतिशीलता में भारी वृद्धि हुई है।
  • वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क: वैश्वीकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं।
    1. वैश्वीकरण की व्यवस्था धनिकों को ज्यादा धनी और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है। इससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है तथा तीसरी दुनिया के देशों में गरीबी बढ़ती जा रही है।
    2. वैश्वीकरण से राज्य की गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है।
    3. वैश्वीकरण से परम्परागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर- तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।
    4. वैश्वीकरण के चलते विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
    5. वैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रभुतासम्पन्न राष्ट्रों द्वारा विकासशील देशों के बाजारों को हस्तगत करने के लिए कमजोर राष्ट्रों पर जबरन थोपी जा रही है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन: वैश्वीकरण की पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। वैश्वीकरण के विरोध में आंदोलन किये जा रहे हैं। वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलनों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. किसी खास कार्यक्रम का विरोध:
वैश्वीकरण – विरोधी बहुत से आन्दोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं हैं; बल्कि वे वैश्वीकरण के किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं।

2. बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन:
वैश्वीकरण के प्रति विरोध के प्रदर्शन मुख्यतः आर्थिक रूप से ताकतवर देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों के अपनाने के विरोध में हुए थे। उनका तर्क था कि उदीयमान वैश्विक आर्थिक- व्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया है।

3. वर्ल्ड सोशल फोरम (WSF ):
नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्व व्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ (WSF) है। इस मंच के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं ।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 7.
भारत सरकार द्वारा वैश्वीकरण की दिशा में क्या-क्या कदम उठाये गये हैं तथा उसके क्या प्रभाव पड़े हैं? समझाइये
उत्तर:

  • भारत द्वारा वैश्वीकरण की दिशा में उठाये गये कदम सन् 1991 के बाद से आर्थिक सुधारों को अपनाते हुए भारत ने वैश्वीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाये हैं।
    1. 1990 के दशक में उदारीकरण वैश्वीकरण की नीति के तहत औद्योगिक लाइसेंस युग को समाप्त कर दिया गया, सार्वजनिक क्षेत्र में कटौती की गई, व्यापारिक गतिविधियों पर सरकार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया तथा निजीकरण सम्बन्धी कार्यक्रमों की पहल की गई।
    2. 1990 के दशक के दौरान ही विभिन्न क्षेत्रों पर आयात बाधायें हटायी गईं। इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी शामिल थे।
    3. भारतीय शुल्क दरों में तेजी से कमी की गई। भारत में वैश्वीकरण के सकारात्मक परिणाम
  • वैश्वीकरण के भारत में निम्नलिखित सकारात्मक परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं।
    1. वैश्वीकरण को अपनाने से भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दर तथा विकास दर में तेजी से वृद्धि हुई है।
    2. उदारीकरण के बाद GDP विकास में जो उछाल आया, उसने भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार ला दिया।
    3. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप भारत में गरीबी में जीवन-यापन कर रहे लोगों का अनुपात धीरे-धीरे घट रहा है। भारत में वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव
  • आर्थिक सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछेक प्रतिकूल प्रभाव भी डाले हैं, यथा।
    1. वैश्वीकरण के कारण कृषि में सब्सिडी को कम किये जाने से अनाज की कीमतों में वृद्धि हुई है तथा कृषि क्षेत्र में आधारिक संरचना में कमी आई है।
    2. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय बाजार को धीरे-धीरे हड़प रही हैं।
    3. अपनी विनिवेश नीति के तहत सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने से सरकार को बहुत नुकसान उठाना पड़

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव क्या हैं?
उत्तर:
भारत में भी वैश्वीकरण का प्रतिरोध हुआ है और कई आंदोलन हुए हैं। सामाजिक आंदोलनों के द्वारा हमें आस-पड़ोस की दुनिया और समाज को समझने में सहायता मिलती है। इस आंदोलनों के माध्यम से हम अपनी समस्याओं का हल तलाश सकते हैं। भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई माध्यमों द्वारा हो रहा है।

  1. वामपंथी राजनीतिक दलों ने आर्थिक वैश्वीकरण के खिलाफ आवाज उठाई है तो दूसरी तरफ मानवाधिकार- कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता इंडियन सोशल फोरम के मंचों के माध्यम से नव-उदारवादी वैश्वीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
  2. औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है।
  3. कुछ औषधीय वनस्पतियों जैसे ‘नीम’ को अमरीकी और यूरोपीय कंपनी ने पेटेन्ट कराने का प्रयास किया इसका भी कड़ा विरोध हुआ है।
  4. वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिण पंथी खेमा भी कर रहा है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जैसे- केवल नेटवर्क के द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी.वी. चैनलों से लेकर वैलेन्टाईन- डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ी अभिरुचि का विरोध भी शामिल है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की व्याख्या कीजिए। वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान रहा है?
उत्तर:
अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण मौलिक रूप से प्रवाह से संबंधित है। ये प्रवाह कई तरह के हो सकते हैं। दुनिया के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले विचार, दो या दो से अधिक स्थानों के बीच पूँजी का टकराव, सीमाओं के पार होने वाली वस्तुओं और दुनिया के विभिन्न भागों में बेहतर आजीविका की तलाश में घूम रहे लोग ‘विश्वव्यापी अन्तर्सम्बन्ध’ एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो इन निरंतर प्रवाह के परिणामस्वरूप बना और टिका हुआ है। जबकि वैश्वीकरण का कोई एक कारण नहीं है अपितु प्रौद्योगिकी इसका एक अपरिहार्य वजह है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाल के वर्षों में टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के आविष्कार ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संचार में क्रांति लाई है। जब शुरू में मुद्रण हुआ तो यह राष्ट्रवाद के निर्माण का आधार बना। इसलिए आज हमें यह भी उम्मीद करनी चाहिए कि प्रौद्योगिकी हमारे व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि हमारे सामाजिक जीवन के बारे में सोचती है। दुनिया के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में अधिक आसानीपूर्वक आने जाने के लिए विचारों, पूँजी, वस्तुओं और लोगों की क्षमता को तकनीकी विकास द्वारा बड़े पैमाने पर संभव बनाया गया है। इन प्रवाहों की गति भिन्न हो सकती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आलोचक कैसे देखते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण ने कुछ सकारात्मक आलोचनाओं को भी इसके सकारात्मक प्रभावों के बावजूद आमंत्रित किया है। इसके महत्त्वपूर्ण तर्कों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है।
1. आर्थिक:
(अ) विदेशी लेनदारों को शक्तिशाली बनाने के लिए बड़े पैमाने पर उपभोग के सामान पर सब्सिडी में कमी।
(ब) इसने अमीर और गरीब राष्ट्रों के बीच असमानता बढ़ा दी है, अमीर राष्ट्र और अधिक अमीर और गरीब राष्ट्र और अधिक गरीब हुए हैं।
(स) राज्यों ने भी विकसित और विकासशील राष्ट्रों के बीच असमानताएँ पैदा की हैं।

2. राजनीतिक:
(अ) राज्य के कल्याण कार्यों को कम कर दिया गया है।
(ब) राज्यों की संप्रभुता प्रभावित हुई है ।
(स) राज्य अपने लिए निर्णय लेने में कमजोर हुए हैं।

3. सांस्कृतिक:
(अ) लोग अपने पुराने मूल्यों और परंपराओं को खो रहे हैं।
(ब) दुनिया कम शक्तिशाली समाज पर अपना प्रभुत्व जमा रही है।
(स) यह संपूर्ण विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सिकोड़ता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व 

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. शीत युद्ध का अंत हुआ
(अ) 1991 में
(ब) 1891
(स) 2001 में
(द) 2010 में
उत्तर:
(अ) 1991 में

2. प्रथम खाड़ी युद्ध का सम्बन्ध था
(अ) सोवियत संघ और अमेरिका के अफगानिस्तान विवाद से
(ब) ईरान और इराक के संघर्ष से
(स) अरब-इजरायल संघर्ष से
(द) अमेरिका द्वारा अपने लगभग 34 देशों की सेनाओं के साथ इराक पर हमले से।
उत्तर:
(द) अमेरिका द्वारा अपने लगभग 34 देशों की सेनाओं के साथ इराक पर हमले से।

3. न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों का हमला हुआ था
(अ) 11 सितम्बर, 2001
(स) 11 दिसम्बर, 2001
(ब) 11 सितम्बर, 2003
(द) 11 नवम्बर, 2001
उत्तर:
(अ) 11 सितम्बर, 2001

4. एकध्रुवीय शक्ति के रूप में अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत हुई
(अ) 1991 से।
(स) 2006 से।
(ब). 1993 से।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) 1991 से।

5. वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उभरती प्रवृत्ति है।
(अ) एकल ध्रुवीय विश्व व्यवस्था
(ब) निःशस्त्रीकरण
(स) सैनिक गठबंधन
(द) शीत युद्ध में तीव्रता
उत्तर:
(अ) एकल ध्रुवीय विश्व व्यवस्था

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

6. ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच का सम्बन्ध है।
(अ) तालिबान और अलकायदा के खिलाफ
(ब) पाकिस्तान के खिलाफ
(स) अफगानिस्तान के खिलाफ
(द) सूडान पर मिसाइल से हमला
उत्तर:
(द) सूडान पर मिसाइल से हमला

7. ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म का सम्बन्ध है।
(अ) अमरीका के खिलाफ देशों का समूह
(ब) सोवियत संघ के खिलाफ देशों का समूह
(स) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन
(द) भारत व पड़ौसी देशों के गठबंधन
उत्तर:
(स) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन

8. अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के रूप में चलाई मुहिम का नाम दिया-
(अ) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम
(स) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम
(ब) ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म
(द) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच
उत्तर:
(अ) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. …………………………. के अगस्त में इराकने कुवैत पर हमला किया और उस पर कब्जा जमा लिया।
उत्तर:
1990,

2. अमरीका रक्षा विभाग का मुख्यालय …………………………….. में है।
उत्तर:
पेंटागन,

3. ……………………… में जापानियों ने …………………………… पर हमला किया था।
उत्तर:
1941, पर्ल हार्बर,

4. विश्व की अर्थव्यवस्था में अमरीका की ……………………………. प्रतिशत की हिस्सेदारी है। में की गई थी।
उत्तर:
21

5. विश्व के पहले ‘बिजनेस स्कूल’ की स्थापना सन् ………………………………. में की गई थी।
उत्तर:
1881

6. शीतयुद्ध के बाद अधिकतर मामलों में यू. ए. एन. द्वारा चुप्पी साध लेना एक नाटकीय फैसला था जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने ………………………….. की संज्ञा दी।
उत्तर:
नई विश्व व्यवस्था

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कब हुआ?
उत्तर:
11 सितम्बर, 2001 को।

प्रश्न 2.
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत किस प्रकार के नियम तय किये गये?
उत्तर:
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत वैश्विक व्यापार के नियम तय किये गये।

प्रश्न 3.
विश्व का पहला बिजनेस स्कूल कहाँ खोला गया?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑव पेंसिलवेनिया में वाहर्टन स्कूल के नाम से सन् 1881 में विश्व का पहला स्कूल खोला गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 4.
नागरिक परमाणु समझौता किन देशों के मध्य हुआ?
उत्तर:
भारत और अमरीका के बीच हाल ही में नागरिक परमाणु समझौता हुआ।

प्रश्न 5.
फरवरी, 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान हटती इराकी सेना पर अमरीकी विमानों द्वारा जानबूझकर सड़क पर किये गये हमले को विद्वानों ने क्या कहकर आलोचना की है?
उत्तर:
अनेक विद्वानों और पर्यवेक्षकों ने इस हमले को ‘युद्ध अपराध’ की संज्ञा दी है।

प्रश्न 6.
20 मार्च, 2003 को अमरीका ने इराक पर किस कूट नाम से सैन्य हमला किया?
उत्तर:
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से।

प्रश्न 7.
‘हाइवे ऑव डैथ’ (मृत्यु का राजपथ ) किस सड़क को कहा गया है?
उत्तर:
कुवैत और बसरा के बीच की सड़क को।

प्रश्न 8.
सन् 1990 में किस देश ने कुवैत पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिला लिया था?
उत्तर:
इराक ने।

प्रश्न 9.
तालिबान किस देश से संबंधित है?
उत्तर:
अफगानिस्तान से

प्रश्न 10.
आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में अमेरिका ने कौन सा अभियान चलाया?
अथवा
आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका ने कौन-सा अभियान चलाया?
उत्तर:
ऑपरेशन एण्डयूरिंग फ्रीडम।

प्रश्न 11.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केन्द्र हो तो इसे किस शब्द के इस्तेमाल से वर्णित करना ज्यादा उचित होगा?
उत्तर:
वर्चस्व ( हेगेमनी) शब्द के इस्तेमाल से।

प्रश्न 12.
प्रथम खाड़ी युद्ध को किस ऑपरेशन के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
प्रथम खाड़ी युद्ध को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 13.
समकालीन विश्व राजनीति में ‘9/11’ का प्रयोग किस घटना के लिए किया जाता है?
उत्तर:
समकालीन विश्व राजनीति में ‘ 9/11’ का प्रयोग अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों के लिए किया जाता

प्रश्न 14.
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के आक्रमण में लगभग कितने लोग मारे गये थे।
उत्तर:
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर 9/11 के आक्रमण में लगभग तीन हजार लोग मारे गये।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 15.
अमेरिकन वर्चस्व के तीन क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
सैन्य क्षेत्र , आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक क्षेत्र।

प्रश्न 16.
विश्व व्यवस्था के एकध्रुवीय होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
शीत युद्ध की समाप्ति, सोवियत संघ का विघटन।

प्रश्न 17.
आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को किन देशों से चुनौती मिल रही है?
उत्तर:
आर्थिक क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका को जापान, चीन एवं भारत से कड़ी चुनौती मिल रही है।

प्रश्न 18.
वर्चस्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व का अर्थ शक्ति का केवल एक ही केन्द्र का होना है।

प्रश्न 19.
विश्व राजनीति में अमरीकी वर्चस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व में राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक व सांस्कृतिक मामलों में अमरीकी दबदबा ही अमरीकी वर्चस्व है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 20.
इराक पर अमेरिकी आक्रमण के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  1. इराक के तेल भण्डारों पर कब्ज़ा करना
  2. इराक में अपनी पसंद की सरकार का निर्माण करना।

प्रश्न 21.
विश्व में अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
सोवियत संघ के 1991 में विघटन के बाद से विश्व में अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत हुई।

प्रश्न 22.
भारत-अमेरिका के मध्य परस्पर सम्बन्धों को दर्शाने वाले दो तथ्यों को लिखें।
उत्तर:

  1. दोनों देश लोकतंत्र के समर्थक हैं।
  2. दोनों ही अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरोधी हैं।

प्रश्न 23.
कश्मीर तथा मानवाधिकार हनन के मुद्दों को लेकर अमरीका भारत पर दबाव क्यों डालता रहा है?
उत्तर:
इसके पीछे अमरीका का एकमात्र लक्ष्य परमाणु अप्रसार संधि तथा व्यापक परमाणु परीक्षण संधि पर भारत के हस्ताक्षर करवाना है।

प्रश्न 24.
सी. टी. बी. टी. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
सी. टी. बी. टी. का पूरा नाम है। व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty)।

प्रश्न 25.
‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ क्या है?
उत्तर:
अमरीका के नेतृत्व में 1991 में कुवैत को मुक्त कराने हेतु इराक के विरुद्ध छेड़ा गया सैनिक अभियान ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ कहलाता है।

प्रश्न 26.
‘ऑपरेशन इन्फाइनाइट रीच’ किस अमेरिकन राष्ट्रपति के आदेश से किया गया था?
उत्तर:
राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के आदेश से।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 27.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ क्या है?
उत्तर:
20 मार्च, 2003 को अमरीका के इराक के विरुद्ध युद्ध को ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ कहा जाता है।

प्रश्न 28.
अफगानिस्तान किन देशों के मध्य बफर राज्य है?
उत्तर:
अफगानिस्तान रूस से पृथक् हुए मध्य एशियाई राष्ट्रों, ईरान तथा भारत-पाक के मध्य बफर राज्य है।

प्रश्न 29.
अफगानिस्तान में 1979 का रूसी हस्तक्षेप ‘प्रमुखता अधिकार’ पर आधारित था। यह प्रमुखता अधिकार क्या है?
उत्तर:
प्रमुखता अधिकार किसी महाशक्ति का किसी छोटे देश में अपने हितों की रक्षा हेतु हस्तक्षेप का अधिकार है।

प्रश्न 30.
अमरीका की ढांचागत ताकत का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
अमरीका की ढांचागत ताकत का एक मानक उदाहरण एमबीए (मास्टर ऑव बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) की अकादमिक डिग्री है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक- ध्रुवीयता किसे कहते हैं?
एक – ध्रुवीय विश्व- व्यवस्था से क्या आशय है?
अथवा
उत्तर:
विश्व की राजनीति में जब किसी एक ही महाशक्ति का वर्चस्व हो और अधिकांश अन्तर्राष्ट्रीय निर्णय उसकी इच्छानुसार ही लिये जाएं, तो उसे एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहते हैं। वर्तमान में अमेरिका का विश्व – व्यवस्था में वर्चस्व स्थापित है।

प्रश्न 2.
एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका अपना प्रभाव किस प्रकार जमा रहा है?
उत्तर:
एक – ध्रुवीय विश्व में अमेरिका निम्न प्रकार अपना प्रभाव जमा रहा है-

  1. अमेरिका अधिकांश देशों में आर्थिक हस्तक्षेप कर रहा है।
  2. अमेरिका दूसरे देशों में सैनिक हस्तक्षेप भी कर रहा है।
  3. यह संयुक्त राष्ट्र संघ की भी अवहेलना कर रहा है।

प्रश्न 3.
सांस्कृतिक वर्चस्व से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक वर्चस्व का आशय है। सामाजिक, राजनैतिक विशेषकर विचारधारा के धरातल पर किसी वर्ग का दबदबा स्थापित होना सांस्कृतिक वर्चस्व में रजामंदी से बात मनवाई जाती है, न कि दबाव से।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 4.
ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ क्या था?
अथवा
उत्तर:
9/11 की घटना के पश्चात् आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में अमरीका ने ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ चलाया। यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य निशाना अल-कायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया गया।

प्रश्न 5.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के पीछे अमरीका का असली मकसद क्या था?
उत्तर:
19 मार्च, 2003 को ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर अमेरिकी नेतृत्व में किये गये सैनिक हमले के पीछे असली मकसद था। इराक के तेल- भंडार पर नियंत्रण करना तथा इराक में अमरीका की मनपसंद सरकार कायम करना।

प्रश्न 6.
अमरीका के मौजूदा वर्चस्व का प्रमुख आधार क्या है?
उत्तर:
अमरीका के मौजूदा वर्चस्व का प्रमुख आधार उसकी बढ़ी चढ़ी तथा बेजोड़ सैन्य शक्ति है। कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति की तुलना में उसके पासंग के बराबर भी नहीं है। इसके सैन्य प्रभुत्व का आधार सैन्य व्यय के साथ- साथ उसकी गुणात्मक बढ़त है।

प्रश्न 7.
अमरीका की आर्थिक प्रबलता किस बात से जुड़ी हुई है?
उत्तर:
अमरीका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढांचागत ताकत अर्थात् वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत से जुड़ी हुई है। अमरीका द्वारा कायम की गयी ब्रेटनवुड प्रणाली आज भी विश्व की अर्थव्यवस्था की मूल संरचना का काम कर रही है।

प्रश्न 8.
‘ बैंडवैगन’ रणनीति से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी देश को सबसे ताकतवर देश के विरुद्ध रणनीति बनाने के स्थान पर उसके वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाने की रणनीति को ही ‘बैंडवैगन’ अथवा ‘जैसी बहे बयार पीठ तैसी कीजै’ की रणनीति कहते हैं।

प्रश्न 9.
‘अपने को छुपा लें’ नीति से क्या आशय है?
उत्तर:
अपने को छुपा लें’ का अर्थ होता है। दबदबे वाले देश से यथासंभव दूर-दूर रहना चीन, रूस और यूरोपीय संघ सभी एक न एक तरीके से अपने को अमरीकी निगाह में चढ़ने से बचा रहे हैं। इस तरह अमरीका के बेवजह या बेपनाह क्रोध की चपेट में आने से ये देश अपने को बचाते हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 10.
अमरीकी वर्चस्व के सामने आई किन्हीं दो चुनौतियों को संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व के समक्ष आतंकवादियों ने निम्न दो चुनौतियाँ प्रस्तुत कीं-

  1. अलकायदा द्वारा नैरोबी, केन्या तथा दारेसलाम (तंजानिया) स्थित अमरीकी दूतावास पर वर्ष 1998 में बम वर्षा की गई।
  2. तालिबानी आतंकवादियों ने अमेरिकी विमानों का अपहरण कर न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर के साथ उन्हें टकराकर भारी नुकसान पहुँचाया।

प्रश्न 11.
संयुक्त राज्य अमेरिका के संदर्भ में 9/11 का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
11 सितम्बर, 2011 को आतंकवादियों द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला किया गया। इस घटना के बाद अमरीका एवं पश्चिमी देश आतंकवाद पर अधिक ध्यान देने लगे तथा अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान छेड़ दिया ।

प्रश्न 12.
नई विश्व व्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
समकालीन विश्व में नई विश्व व्यवस्था से यह आशय है कि वर्तमान में सोवियत संघ के विखण्डन के बाद विश्व में द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था समाप्त हो गई है और उसके स्थान पर विश्व में एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कायम हुई है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एक सबसे शक्तिशाली ताकत के रूप में उभरा है।

प्रश्न 13.
समकालीन नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत कब से और क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
समकालीन नई विश्व व्यवस्था में अमरीका के वर्चस्व की शुरुआत उस समय हुई, जब सन् 1991 से एक महाशक्ति के रूप में सोवियत संघ अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य से ओझल हो गया । सोवियत संघ के पतन के बाद आज विश्व में केवल अमरीका ही महाशक्ति है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 14.
खाड़ी युद्ध को अमेरिकी सैन्य अभियान ही क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
यद्यपि खाड़ी युद्ध में इराक के विरुद्ध बहुराष्ट्रीय सेना ने मिलकर आक्रमण किया, तथापि इस युद्ध को काफी हद तक अमरीकी सैन्य अभियान ही कहा जाता है क्योंकि इसके प्रमुख एक अमरीकी जनरल नार्मन स्वार्जकाव थे और मिली-जुली सेना में 75 प्रतिशत सैनिक अमरीका के ही थे।

प्रश्न 15.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ पर टिप्पणी लिखिये|
अथवा
अमेरिका द्वारा 2003 में इराक पर किये गये आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
उत्तर:
ऑपरेशन इराकी फ्रीडम: 19 मार्च, 2003 को अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर सैन्य हमला किया। अमेरिकी अगुवाई वाले आकांक्षियों के गठबंधन में 40 से अधिक देश शामिल हुए। कुछ ही दिनों में सद्दाम हुसैन की सरकार का पतन हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी।

प्रश्न 16.
‘बैंड- वेगन’ रणनीति क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ बैंड वेगन’ की रणनीति:
सबसे ताकतवर देश के विरुद्ध जाने के बजाय उसके वर्चस्व – तंत्र में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाने की रणनीति को ही ‘ बैंड वेगन’ की रणनीति कहा जाता है। इसका आशय यह है कि ” जैसी बहे बयार, पीठ तैसी कीजे।” उदाहरण के लिए – आर्थिक वृद्धि दर को ऊंचा करने के लिए व्यापार को बढ़ाना, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और निवेश जरूरी है और अमरीका के साथ मिलकर काम करने से इसमें आसानी होगी, न कि उसका विरोध करने से। अतः वर्चस्वजनित अवसरों से लाभ उठाने की रणनीति ही बैंड वेगन की रणनीति है।

प्रश्न 17.
इराक द्वारा कुवैत पर अधिकार जमा लेने के बाद अमेरिका के इराक के विरुद्ध कार्यवाही करने के पीछे क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
सद्दाम हुसैन के विरुद्ध कार्यवाही करने के पीछे अमरीका के सामने निम्नलिखित लक्ष्य थे-

  1. पश्चिमी एशिया के देशों से तेल की आपूर्ति को होने वाले खतरे का निवारण करना।
  2. इजरायल की सुरक्षा को आंच न आने देना।
  3. सद्दाम हुसैन के परमाणु अस्त्रों व कारखानों को नष्ट करना।
  4. समूचे खाड़ी क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखना।
  5. इराक की विस्तारवादी सोच पर प्रतिबंध लगाना।
  6. इराक को पश्चिम एशिया के राजनीतिक मानचित्र में परिवर्तन के अवसर न देना।
  7. विश्व की एकमात्र सर्वोच्च शक्ति के रूप में अमरीका की छवि तथा अमरीकी नेतृत्व की विश्वसनीयता को बनाए रखना।

प्रश्न 18.
खाड़ी युद्ध ( प्रथम ) से अमेरिका को क्या लाभ हुए?
उत्तर:
खाड़ी युद्ध (प्रथम) से अमेरिका को निम्न लाभ हुए-

  1. इस युद्ध के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्व में वर्चस्व व दबदबा कायम हुआ। अब उसे ही विश्व की एकमात्र महाशक्ति माना जाने लगा क्योंकि इस युद्ध में साम्यवादी चीन, रूस, गुट निरपेक्ष आंदोलन कुछ भी नहीं कर पाया।
  2. खाड़ी के इस तेल उत्पादक क्षेत्र पर संयुक्त राज्य अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हो गया। उसने उसके अर्थिक आधार को मजबूती प्रदान की।
  3. इस युद्ध के बाद अमेरिका ने इराक के तेल निर्यात की बहुत बड़ी राशि क्षतिपूर्ति के रूप में वसूल कर ली।
  4. इस युद्ध में अमरीका ने जितना खर्च किया उससे ज्यादा रकम उसे जर्मनी, जापान व सऊदी अरब जैसे देशों से मिली थी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 19.
‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच – 1998 में केन्या और तंजानिया के अमरीकी दूतावासों पर आतंकवादी . आक्रमण हुए। एक अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अलकायदा को इन दूतावासों पर आक्रमण के लिए जिम्मेवार माना गया। परिणामतः इस बमबारी के कुछ दिनों बाद क्लिंटन प्रशासन ने आतंकवाद की समाप्ति के नाम पर एक नया अभियान शुरू किया जिसे ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ का नाम दिया। इस अभियान के अन्तर्गत अमेरिका ने किसी की परवाह किये बिना सूडान और अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर क्रूज मिसाइलों से हमले किये। इस अभियान की संयुक्त राष्ट्र संघ से भी अनुमति नहीं ली गई। विश्व में अमरीकी वर्चस्व का यह एक उदाहरण है कि वह जब चाहे जिस देश में चाहे अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की परवाह किए बिना क्रूज मिसाइलों से हमला किया जा सकता है।

प्रश्न 20.
अलकायदा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
अलकायदा- अलकायदा एक आतंकवादी संगठन है जो धार्मिक और राजनीतिक आतंक के माध्यम से धार्मिक वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। यह इस्लामी राज का समर्थक तथा पोषक है। इसकी जड़ें अफगानिस्तान में हैं। आधुनिक हथियारों से सुसज्जित इसके कार्यकर्ता किसी की जान लेना या अपनी जान देना एक खेल समझते हैं। इस प्रकार अलकायदा अतिवादी इस्लामी विचारधारा से प्रभावित एक आतंकवादी संगठन है। आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के रूप में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ नामक सैन्य अभियान चलाया, उसका मुख्य लक्ष्य अलकायदा को बनाया गया क्योंकि 9/11 के अमेरिका के आतंकवादी हमले का सन्देह अमेरिका को अलकायदा पर ही था।

प्रश्न 21.
एक ध्रुवीय व्यवस्था के कोई तीन लाभ लिखिये।
उत्तर:
एकध्रुवीय व्यवस्था के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. शांतिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना: वर्तमान विश्व में एकध्रुवीय व्यवस्था का प्रमुख लाभ यह है कि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांतिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना होती है।
  2. तकनीकी और वैज्ञानिक विकास: एकध्रुवीय विश्व में शीत युद्ध की संभावना कम होने के कारण तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा मिला है।
  3. जनता के जीवन स्तर में सुधार: इससे विश्वस्तर पर जनता के जीवन स्तर में बहुत सुधार आया है। एक ध्रुवीय विश्व में उदारवाद, वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 22.
इतिहास हमें वर्चस्व के विषय में क्या सिखाता है? संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
वर्चस्व का इतिहास – इतिहास हमें वर्चस्व के विषय में निम्न बातें सिखाता है।

  • वर्चस्व बदलता रहता है-शक्ति संतुलन की दृष्टि से देखें तो वर्चस्व की स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में एक असामान्य घटना है। हर देश को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती हैं। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में वे किसी एक देश को इतना ताकतवर नहीं बनने देते कि वह शेष देशों के लिए भयंकर खतरा बन जाए। वर्तमान में अमरीकी वर्चस्व के स्थापित होने के बाद उसके संतुलनकारी शक्तियों पर विचार-मंथन चल रहा है। शक्ति सन्तुलन की राजनीति वर्चस्वशील देश की ताकत को आने वाले समय में कम कर देती है।
  • फ्रांस और ब्रिटेन का वर्चस्व – इतिहास में अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में वर्चस्व की स्थिति दो बार आयी है।
    1. यूरोप की राजनीति के संदर्भ में सन् 1660 से 1713 तक फ्रांस का वर्चस्व था।
    2. सन् 1860 से 1910 तक ब्रिटेन का वर्चस्व समुद्री व्यापार के बल पर कायम रहा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 23.
अमरीकी वर्चस्व को दर्शाने वाली शक्ति के चार रूपों का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व को दर्शाने वाले चार रूप निम्नलिखित हैं-

  1. सैन्य शक्ति के रूप में: अमरीकी वर्चस्व का मुख्य आधार उसकी बढ़ी चढ़ी सैन्य शक्ति है। वर्तमान में यह सैन्य शक्ति अपने आप में सम्पूर्ण तथा बेजोड़ है।
  2. ढांचागत शक्ति के रूप में: आज अमरीका के आर्थिक कार्य व नीतियाँ पूरे विश्व में अपनी धाक जमाए हुए हैं। अभी महासागरों पर उसकी उपस्थिति देखी जा सकती है। हमें विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुएँ मुहैया कराने में अमरीकी वर्चस्व की झलक दिखाई देती है। अमरीकी वर्चस्व को बढ़ाने में व्यावसायिक शिक्षा ने भी अहम भूमिका अदा की है।
  3. सांस्कृतिक शक्ति के रूप में अमरीका अपनी भाषा, साहित्य, फिल्मों, जीवन प्रणाली व शैली को किसी न किसी तरह से बढ़ावा देता रहता है। वह अन्य देशों को इसे अपनाने को प्रेरित करता रहता है।
  4. आर्थिक वर्चस्व: अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं के बाजार में अमेरिका का वर्चस्व बना हुआ है।

प्रश्न 24.
आपके मतानुसार एक स्वतन्त्र देश स्वयं को ‘वर्चस्व’ के प्रभाव से कैसे बचा सकता है? कोई चार सुझाव दीजिए। वर्चस्व पर नियंत्रण कैसे पाया जा सकता है?
अथवा
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक स्वतन्त्र देश वर्चस्व के प्रभाव से निम्नलिखित तरीकों से बच सकता है।

  1. सामाजिक आंदोलनों एवं जनमत निर्माण के द्वारा वर्चस्व पर नियंत्रण पाया जा सकता है
  2. गैर-सरकारी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास द्वारा भी वर्चस्व पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
  3. वर्चस्व के प्रति विरोध द्वारा भी वर्चस्व को नियंत्रित किया जा सकता है।
  4. वर्चस्व द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों का विरोध न करके भी वर्चस्व पर नियंत्रण पाया जा सकता।

प्रश्न 25.
अमरीकी आर्थिक वर्चस्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। है।
उत्तर:
अमरीकी आर्थिक वर्चस्व: अमरीकी आर्थिक वर्चस्व से अभिप्राय यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वह सर्वाधिक शक्ति – सम्पन्न है। यथा।

  1. वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमरीका के नियम-कानून लागू किये जाते हैं
  2. विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन तथा इण्टरनेट इत्यादि पर अमेरिका का वर्चस्व बना हुआ है।
  3. खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार का आधार समुद्री व्यापार है और अमेरिका का समुद्र पर वर्चस्व स्थापित है। अमरीका अपनी नौसेना के बल पर समुद्री व्यापार के मार्गों पर आने-जाने के नियम निर्धारित करता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग को अबाधित करता है। अमेरिकी नौसेना की उपस्थिति विश्व के समस्त महासागरों में है।

प्रश्न 26.
सैन्य शक्ति के रूप में अमरीकी वर्चस्व के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सैन्य शक्ति के रूप में अमरीका के वर्चस्व की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
अथवा
अमेरिकी वर्चस्व की सैन्य शक्ति के रूप में व्याख्या कीजिए।
अथवा
सैन्य शक्ति में अमरीकी वर्चस्व पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सैन्य शक्ति में अमरीकी वर्चस्व: समकालीन विश्व राजनीति में अमरीका सम्पूर्ण भू-मंडल में एक प्रमुख सैन्य शक्ति है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. आज अमरीका की सैन्य क्षमता विश्व के अन्य देशों की तुलना में बेजोड़ है । सैन्य मामलों में क्रांति और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उसकी प्रमुखता है।
  2. अमरीकी सैन्य क्षमता आज इसलिए भी सर्वोच्च है क्योंकि आज वह विश्व जनमत की परवाह किये बिना विश्व के किसी कोने पर निशाना साध सकता है। आज वह अपनी सेना को अपने घर में रखकर भी अपने दुश्मन को उसके घर में ही बरबाद कर सकता है।
  3. अमरीका का रक्षा बजट विश्व के 12 अन्य शक्तिशाली देशों के कुल सैन्य व्यय से अधिक है।
  4. अमरीका की सैन्य शक्ति, सैन्य शक्ति में गुणात्मक बढ़त भी लिए हुए है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 27.
अमरीका तथा विश्व के प्रमुख देशों के रक्षा बजट को दर्शाइये।
उत्तर:
अमरीका तथा विश्व के

देश रक्षा व्यय (अरब डालर में)
सं. रा. अमेरिका 602.8
रूस 76.7
चीन 150.5
इटली 22.9
सऊदी अरब 61.2
भारत 46.0
फ्रांस
ब्रिटेन 52.5
जापान 48.6
जर्मनी 41.7
दक्षिण कोरिया 35.7
आस्ट्रेलिया 29.4

उक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि अमेरिका रक्षा बजट की दृष्टि से अपने अधिकांश प्रतिद्वन्द्वियों की तुलना में अधिक सृदृढ़ स्थिति में है

प्रश्न 28.
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व को समझाइये
उत्तर:
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व – ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

  1. वैश्विक अर्थव्यवस्था: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी इच्छा व नीतियाँ थोपने की स्थिति को वर्चस्व की स्थिति कह सकते हैं। आज अमरीका के आर्थिक कार्य व नीतियाँ पूरे विश्व में अपनी धाक जमाए हुए हैं। सभी महासागरों पर आज अमरीकी उपस्थिति अनुभव की जा सकती है। इंटरनेट अमरीकी सैन्य योजना शोध का ही परिणाम है।
  2. सार्वजनिक वस्तुएँ: हमें विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया कराने में अमरीकी वर्चस्व की झलक दिखती है।
  3. शैक्षणिक प्रभाव: अमरीकी वर्चस्व को बढ़ाने में व्यावसायिक शिक्षा ने भी अहम भूमिका अदा की है। एम. बी. ए. जैसे शैक्षणिक पाठ्यक्रमों ने अमरीकी प्रभाव को बढ़ाया है।

प्रश्न 29.
स्पष्ट कीजिये कि अमरीकी आर्थिक प्रबलता उसकी ढाँचागत शक्ति से अलग नहीं है।
उत्तर:
अमरीका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढाँचागत ताकत यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत से जुड़ी हुई है। यथा

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रेटनवुड प्रणाली कायम हुई थी। अमरीका द्वारा कायम यह प्रणाली आज भी विश्व की अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना का काम कर रही है।
  2. विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन अमरीकी वर्चस्व का ही परिणाम है।
  3. अमरीका की ढाँचागत ताकत का एक मानक उदाहरण एमबीए की अकादमिक डिग्री है। एमबीए के शुरुआती पाठ्यक्रम 1900 में आरंभ हुए जबकि अमरीका के बाहर इसकी शुरुआत सन् 1950 में ही जाकर हो सकी। आज दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसमें एमबीए को प्रतिष्ठित अकादमिक दर्जा हासिल न हो।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 30.
अमेरिकी वर्चस्व की दो प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
अमेरिकी वर्चस्व की दो प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं।

  1. अमरीका की संस्थागत बुनावट:
    यहाँ शासन के तीनों अंगों के बीच शक्ति का बँटवारा है और यही संस्थागत ‘बुनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बेलगाम इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का काम करती है।
  2. अन्दरूनी चुनौती:
    अमरीकी वर्चस्व की अन्दरूनी चुनौती के मूल में अमरीकी समाज है जो अपनी प्रकृति में उन्मुक्त है। अमरीकी राजनीतिक संस्कृति में शासन के उद्देश्य और तरीके को लेकर गहरे संदेह का भाव भरा है। अमरीका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।

प्रश्न 31.
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत-अमरीकी सम्बन्धों में परिवर्तन लाने वाली स्थितियों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
सोवियत संघ की समाप्ति के बाद अमरीकी नीति-निर्धारकों ने भारत-अमरीकी संबंधों की सुधार की तरफ ध्यान दिया निम्न दो घटनाओं ने अमरीकी विदेश नीति को इस दिशा में प्रेरित किया
1. सोवियत संघ के बिखराव से कुछ ही महीने पहले भारत ने आर्थिक उदारीकरण का सूत्रपात किया आर्थिक खुलेपन के कारण विदेशी व्यापारी समुदाय के लिए विशाल मध्यम वर्ग वाले भारतीय बाजार का आकर्षण काफी बढ़ गया।

2. शीत युद्ध के बाद अमरीकी विदेश नीति में आर्थिक मुद्दों पर अधिक बल दिया तथा ऐसे भारत के साथ गहरे व्यापारिक सम्बन्ध बनाने के प्रयास किये गये तथा 1995 में दोनों देशों के बीच 11 व्यापारिक समझौते किए गए। उसके बाद भारत व अमरीका के आर्थिक सम्बन्धों में और अधिक निकटता आने लगी।

प्रश्न 32.
अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ‘नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा किसे कहते हैं?
उत्तर:
1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से उस पर कब्जा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनायिक कोशिशें जब नाकाम रहीं तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए ल-प्रयोग की अनुमति दे दी। शीतयुद्ध के दौरान ज्यादातर मामलों में चुप्पी साध लेने वाले संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिहाज से यह एक नाटकीय फैसला था। अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसे ‘नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा दी।

प्रश्न 33.
‘नाइन इलेवन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
11 सितम्बर, 2001 के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अरहरणकर्ताओं ने उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमरीकी व्यावसायिक विमानों पर कब्जा कर लिया। अपहरणकर्ता इन विमानों को अमरीका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गए। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अर्लिंगटन स्थित ‘पेंटागन’ से टकराया। ‘पेंटागन’ में अमरीकी रक्षा विभाग का मुख्यालय है। चौथे विमान को अमरीकी कांग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन वह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘नाइन इलेवन’ कहा जाता है।

प्रश्न 34.
‘इराक पर अमरीकी हमले से अमरीका की कुछ कमजोरियाँ उजागर हुई हैं।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इराक पर अमरीकी हमले से अमरीका की कुछ कमजोरियाँ उजागर हुई हैं। अमरीका इराक की जनता को अपने नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के आगे झुका पाने में सफल नहीं हुआ है। अमरीका की इस कमजोरी को हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से समझ सकते हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि साम्राज्यवादी शक्तियों ने सैन्य बल का प्रयोग महज चार लक्ष्यों जीतने, अपरोध करने, दंड देने ओर कानून व्यवस्था बहाल रखने के लिए किया है। इराक के उदाहरण से प्रकट है कि अमरीका की विजय क्षमता विकट है। इसी तरह अपरूद्ध करने और दंड देने की भी उसकी क्षमता स्वतः सिद्ध है। अमरीकी सैन्य क्षमता की कमजोरी सिर्फ एक बात में जाहिर हुई है। वह अपने अधिकृत भू-भाग में कानून व्यवस्था नहीं बहाल कर पाया है

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 35.
हाल के सालों में भारत-अमरीकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं। तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाल के सालों में भारत-अमरीकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं। इन बातों का संबंध प्रौद्योगिकी और अमरीका में बसे अनिवासी भारतीयों से है। ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हुई हैं। इस बात को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से समझ सकते हैं।

  1. सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमरीका को जाता है।
  2. बोईंग के 35 प्रतिशत तकनीकी कर्मचारी भारतीय मूल के हैं।
  3. 3 लाख भारतीय ‘सिलिकन वैली’ में काम करते हैं।
  4. उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कंपनियों की शुरुआत अमरीका में बसे भारतीयों ने की है।

प्रश्न 36.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सार्वजनिक वस्तु का सबसे बढ़िया उदाहरण समुद्री व्यापार मार्ग है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सार्वजनिक वस्तु का सबसे बढ़िया उदाहरण समुद्री व्यापार मार्ग है। जिनका इस्तेमाल व्यापारिक जहाज करते हैं। खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार समुद्री व्यापार मार्गों के खुलेपन के बिना संभव नहीं । दबदबे वाला देश अपनी नौसेना की ताकत से समुद्री व्यापार मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करता है और अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र में अबाध आवाजाही को सुनिश्चित करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश नौसेना का जोर घट गया। अब यह भूमिका अमरीकी नौसेना निभाती है जिसकी उपस्थिति दुनिया के लगभग सभी महासागरों में है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अफगानिस्तान युद्ध एवं खाड़ी युद्धों के संदर्भ में एक ध्रुवीय विश्व (अमेरिका) के विकास की व्याख्या करें।
एक – ध्रुवीय विश्व (अमेरिका) का विकास
सोवियत संघ के पतन के बाद हुई निम्नलिखित घटनाओं से एक ध्रुवीय विश्व में अमरीका के विकास की व्याख्या की जा सकती है;

1. प्रथम खाड़ी युद्ध: अमेरिका ने कुवैत को स्वतंत्र कराने के सैनिक अभियान में लगभग 75 प्रतिशत सैनिक अमेरिका के थे और अमेरिका ही इस युद्ध को निर्देशित एवं नियंत्रित कर रहा था। विश्व इतिहास में यह दूसरी बार हुआ कि जब सुरक्षा परिषद् ने किसी देश के खिलाफ सैनिक कार्यवाही की अनुमति दी हो।

2. सूडान एवं अफगानिस्तान पर अमेरिकन प्रक्षेपास्त्र हमला: अमेरिका ने सूडान एवं अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना तथा विश्व जनमत की परवाह किये बिना अल-कायदा के ठिकानों पर क्रूज प्रक्षेपास्त्रों से हमला किया।

3. 9/11 की घटना और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध: 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका में आतंकवादी हमले के विरोध में अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध चलाए ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ नामक विश्वव्यापी युद्ध अभियान में शक के आधार पर किसी के खिलाफ भी कार्यवाही की गयी। इस अभियान के तहत अमरीकी सरकार ने अनेक स्वतंत्र राष्ट्रों में गिरफ्तारियाँ कीं और जिन देशों में गिरफ्तारियाँ की गई थीं, उन देशों की सरकारों से पूछना अमरीका ने जरूरी नहीं समझा।

4. द्वितीय खाड़ी युद्ध: खाड़ी युद्ध द्वितीय में अमेरिका ने विश्व जनमत, संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विश्व के अन्य देशों की परवाह किये बिना इराक पर मार्च, 2003 को उसके तेल भण्डारों पर कब्जा करने तथा इराक में अपने समर्थन वाली सरकार के गठन के उद्देश्य से आक्रमण कर दिया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 2.
अमेरिका के अधिक से अधिक शक्तिशाली होने एवं विश्व के एक ध्रुवीय होने के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
अमेरिका के शक्तिशाली होने
एवं
विश्व के एक ध्रुवीय होने के कारण
अमेरिका के अधिक से अधिक शक्तिशाली होने एवं विश्व के एक ध्रुवीय होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. शीत युद्ध की समाप्ति: सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति ने विश्व को एक ध्रुवीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  2. रूस की कमजोर स्थिति: सोवियत संघ के पतन के बाद रूस अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण सोवियत संघ जैसी प्रभावशाली स्थिति प्राप्त नहीं कर सका है
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका का बढ़ता प्रभाव: सोवियत संघ के पतन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की उपेक्षा करके अमेरिका अब विश्व राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने लगा है।
  4. गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता में कमी आना:शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका पर अंकुश लगाने वाला गुटनिरपेक्ष आंदोलन कमजोर पड़ गया है, जिससे अमेरिका उत्तरोत्तर शक्तिशाली होता चला गया।
  5. उदारवादी विचारधारा का विस्तार: शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सोवियत संघ से विघटित हुए सभी समाजवादी देशों ने लोकतांत्रिक उदारवादी चोगा धारण कर लिया है। इस प्रकार अब समूचे विश्व में उस उदारवादी राजनीतिक विचारधारा का बोलबाला हो गया। इससे विश्व राजनीति में अमेरिका का प्रभाव और बढ़ता गया तथा विश्व एक ध्रुवीय बन गया।
  6. शीत युद्ध के बाद अमेरिका के वर्चस्ववादी प्रयास – शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने भी अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए ऐसे अनेक वर्चस्ववादी प्रयास किये जिसके चलते एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का स्वरूप एकदम स्पष्ट हो गया और विश्व – राजनीति में अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हो गया।

प्रश्न 3.
विश्व राजनीति में अमेरिकी सैन्य शक्ति वर्चस्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
सैनिक शक्ति के रूप में अमरीकी वर्चस्व को समझाइये।
उत्तर:
सैनिक शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व सैनिक शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व को अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. बेजोड़ तथा अनूठी सैन्य शक्ति: अमेरिका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी बढ़ी चढ़ी सैन्य शक्ति है। आज अमेरिका की सैन्य शक्ति अपने आप में अनूठी है और बाकी देशों की तुलना में बेजोड़ है क्योंकि आज अमेरिका अपनी सैन्य क्षमता के बल पर पूरे विश्व में कहीं भी निशाना साध सकता है।
  2. सैन्य व्यय: आज कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति की तुलना में उसके पासंग के बराबर भी नहीं है। अमरीका के नीचे के कुल 12 ताकतवर देश एक साथ मिलकर अपनी सैन्य क्षमता के लिए जितना व्यय करते हैं, उससे कहीं ज्यादा अपनी सैन्य क्षमता के लिए अकेले अमरीका करता है।
  3. सैनिक दृष्टि से गुणात्मक बढ़त: अमेरिका आज सैन्य प्रौद्योगिकी के मामले में इतना आगे है कि किसी और देश के लिए इस मामले में उसकी बराबरी कर पाना संभव नहीं है।
  4. जन-मनोबल को झुकाने में पूर्ण समर्थ नहीं: इराक के उदाहरण से प्रकट हुआ है कि अमेरिका की विजय- क्षमता विकट है। उसकी अपराध करने और दंड देने की क्षमता भी स्वतः सिद्ध है, लेकिन जन – मनोबल को झुकाकर कानून व्यवस्था बहाल कर पाने की उसकी क्षमता पर सवालिया निशान उभरे हैं।

प्रश्न 4.
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमेरिकन वर्चस्व पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमेरिकी वर्चस्व: ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमेरिकन वर्चस्व को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट कर सकते हैं।

  1. वैश्विक अर्थव्यवस्था की अच्छी समझ: ढांचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व का सम्बन्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था की एक खास समझ से है। अमेरिका के पास अपने मतलब की चीजों के बनाए रखने हेतु व्यवस्था कायम करने के लिए नियमों व तरीकों को लागू करने की क्षमता व इच्छा दोनों हैं।
  2. विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया करने में प्रभावी भूमिका: विश्वव्यापी ढाँचागत शक्ति के वर्चस्व की झलक हमें विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं, जैसे स्वच्छ वायु, सड़क, समुद्री व्यापार मार्ग आदि को उपलब्ध कराने की अमेरिकी भूमिका में दिखाई देती है।
  3. समुद्री व्यापार मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करना: आज अमेरिका अपनी नौ सेना की ताकत से समुद्री व्यापार मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करता है और अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र में अबाध आवाजाही को सुनिश्चित करता है।
  4. इंटरनेट पर अमरीकी वर्चस्व: इंटरनेट अमेरिकी सैन्य अनुसंधान परियोजना का परिणाम है। आज भी इंटरनेट उपग्रहों के एक वैश्विक तंत्र पर निर्भर है और इनमें से अधिकांश उपग्रह अमेरिका के हैं।
  5. वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण अमरीकी हिस्सेदारी: अमेरिका वैश्विक अर्थव्यवस्था के हर भाग, हर क्षेत्र तथा प्रौद्योगिकी के हर क्षेत्र में विद्यमान है।
  6. वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत: दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रेटनवुड प्रणाली कायम हुई थी। अमेरिका द्वारा कायम यह प्रणाली आज भी विश्व की अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना का काम कर रही है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 5.
अमेरिकी सांस्कृतिक वर्चस्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
सांस्कृतिक अर्थ में अमेरिकन वर्चस्व की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व से आशय सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व का सम्बन्ध ‘सहमति गढ़ने’ की ताकत से है। कोई प्रभुत्वशाली वर्ग या देश अपने असर में रहने वालों को इस तरह सहमत कर सकता है कि वे भी दुनिया को उसी नजरिये से देखने लगें जिसमें प्रभुत्वशाली वर्ग या देश देखता है। इससे प्रभुत्वशाली देश की बढ़त और उसका वर्चस्व कायम होता है।

सांस्कृतिक अर्थ में अमरीकी वर्चस्व:
आज विश्व में अमेरिका की सांस्कृतिक मौजूदगी भी इसका एक कारण है। आज अच्छे जीवन और व्यक्तिगत सफलता के बारे में जो धारणाएँ पूरे विश्व में प्रचलित हैं; दुनिया के अधिकांश लोगों और समाजों के जो सपने हैं। – वे सब 20वीं सदी के अमरीका में प्रचलित व्यवहार के ही प्रतिबिंब हैं। अमरीकी संस्कृति बड़ी लुभावनी है और इसी कारण सबसे ताकतवर है।

वर्चस्व का यह सांस्कृतिक पहलू है जहाँ जोर-जबर्दस्ती से नहीं बल्कि रजामंदी से बात मनवायी जाती है। समय गुजरने के साथ हम इसके अत्यधिक अभ्यस्त हो गये हैं। उदाहरण के लिए सोवियत संघ की एक पूरी पीढ़ी के लिए नीली जीन्स ‘अच्छे जीवन’ की आकांक्षाओं का प्रतीक बन गयी थी – एक ऐसा ‘अच्छा जीवन’ जो सोवियत संघ में उपलब्ध नहीं था।

प्रश्न 6.
वर्तमान में ‘अमेरिका और भारत के सम्बन्ध’ विषय पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
अमेरिका के भारत से सम्बन्ध वर्तमान में अमेरिका और भारत के सम्बन्धों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  1. अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर समान दृष्टिकोण: वर्तमान में भारत और अमरीका के अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरोध में समान दृष्टिकोण के कारण दोनों देशों में नजदीकी आई है।
  2. लोकतांत्रिक: उदारवादी राजनीतिक व्यवस्था: दोनों देशों में विद्यमान उदारवादी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के कारण भी सम्बन्धों में निकटता आई है।
  3. व्यापारिक सहयोग: वर्तमान में अमरीका को भारत एक बड़े बाजार के रूप में दिखाई देता है और भारत को विदेशी पूँजी के निवेश की आवश्यकता है। अमरीकी कम्पनियाँ अपने उत्पादों को भारत के बाजार में बेचने को उत्सुक हैं। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच विभिन्न व्यापारिक समझौते इस काल में हुए हैं।
  4. असैन्य नाभिकीय सहयोग: अमरीका ने भारत के साथ 2 मार्च, 2006 को ‘असैन्य नाभिकीय समझौता या परमाणु ऊर्जा समझौता’ किया है।

यह समझौता अमेरिका की विदेश नीति को भारतोन्मुखी बनाता है। एक शक्तिशाली भारत के माध्यम से वह दक्षिण एशिया क्षेत्र में अपने हितों को सुरक्षित करना चाहता है। भारत का बड़ा बाजार, भारत की बौद्धिक सम्पदा, विज्ञान तथा तकनीकी श्रेष्ठता तथा उसकी आकर्षक भू-राजनैतिक स्थिति के कारण अमरीका भारत से मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को 21वीं सदी के लिए आवश्यक मान रहा है।

प्रश्न 7.
अमरीका से निर्वाह करने हेतु भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का समुचित मेल तैयार करना होगा। किन्हीं तीन संभावित रणनीतियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत को अमरीका के साथ किस तरह का संबंध रखना चाहिए यह तय कर पाना कोई आसान काम नहीं है। अत: भारत में तीन संभावित रणनीतियों पर बहस चल रही है। यथा
1. भारत के जो विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को सैन्य शक्ति के संदर्भ में देखते: समझते हैं, वे भारत और अमरीका की बढ़ती हुई नजदीकी से भयभीत हैं। इन विद्वानों के अनुसार भारत को वाशिंगटन से अपना अलगाव बनाए रखना चाहिए तथा अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने पर लगाना चाहिए।

2. कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत और अमरीका के हितों में बढ़ता हुआ हेलमेल, भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर है। ये विद्वान ऐसी रणनीति अपनाने की तरफदारी करते हैं जिससे भारत अमरीकी वर्चस्व का फायदा उठाए वे चाहते हैं कि दोनों के आपसी हितों का मेल हो तथा भारत अपने लिए सबसे बढ़िया विकल्प ढूँढ़ सके इन विद्वानों के अनुसार अमरीका के विरोध की रणनीति व्यर्थ साबित होगी और आगे चलकर इससे भारत को नुकसान होगा।

3. कुछ विद्वानों के मतानुसार भारत को अपनी अगुआई में विकासशील देशों का गठबंधन बनाना चाहिए। समय के साथ यह गठबंधन ताकतवर होगा जिससे अमरीकी वर्चस्व के प्रतिकार में सहायक होगा। अतः अमरीका से निर्वाह करने के लिए भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का समुचित मेल तैयार करना होगा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 8.
भारत-अमरीकी परमाणु समझौते का भारत के संदर्भ में मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
2 मार्च 2006 को नई दिल्ली में भारत और अमरीका के बीच ‘भारत-अमरीका असैन्य नाभिकीय सहयोग’ समझौता हुआ। भारत के संदर्भ में इस परमाणु समझौते का मूल्यांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है। (अ) भारत के लिए परमाणु समझौते की उपयोगिता भारत के संदर्भ में परमाणु समझौते के पक्ष में निम्न प्रमुख तर्क दिये गये हैं।

  1. भारत के आर्थिक विकास के लिए यह समझौता उपयोगी है क्योंकि भारत इस समझौते के तहत परमाणु ऊर्जा प्राप्त कर सकेगा।
  2. इस समझौते से भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र का दर्जा भी प्राप्त हुआ है।
  3. यह समझौता इस बात का परिचायक है कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक शक्ति के रूप में उभर रहा है।
  4. इस समझौते से भारत के परमाणु संयंत्रों को संवर्द्धित यूरेनियम की प्राप्ति हो जायेगी।

(ब) परमाणु समझौते के विपक्ष (विरोध) में तर्क: भारत के संदर्भ में भारत:अमरीका परमाणु समझौते की निम्न प्रमुख आलोचनाएँ की गई हैं:

  1. यह समझौता भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र का दर्जा प्रदान नहीं करता है।
  2. भारत के परमाणु कार्यक्रम व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह समझौता खतरा साबित हो सकता है।
  3. परमाणु ऊर्जा न तो सस्ती है, न स्वच्छ है और न सुरक्षित है।

प्रश्न 9.
अमेरिकी वर्चस्व से कैसे निपटा जा सकता है?
उत्तर:
वर्तमान में बढ़ते अमेरिकी वर्चस्व से निपटने के लिए विद्वानों ने निम्नलिखित रास्ते प्रस्तुत किये हैं।
1. वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का लाभ उठाया जाए – बढ़ते अमरीकी वर्चस्व से निपटने के लिए उसके विरुद्ध जाने के बजाय उसके वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाना कहीं अधिक उचित रणनीति है। इसे ‘बैंडवैगन’ अथवा ‘जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी दीजै’ की रणनीति कहते हैं।

2. वर्चस्व वाले देश से दूर रहना- देशों के सामने दूसरा विकल्प यह है कि वे वर्चस्व वाले देश से यथासंभव दूर-दूर रहें। चीन, रूस और यूरोपीय संघ सभी एक तरीके से अपने को अमेरिकी निगाह में चढ़ने से बचा रहे हैं।

3. राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार करने के लिए आगे आएँगी – कुछ लोग मानते हैं कि राज्येतर संस्थाएँ अमेरिकी वर्चस्व के प्रतिकार के लिए आगे आएँगी अमेरिकी वर्चस्व को आर्थिक और सांस्कृतिक धरातल पर चुनौती मिलेगी। यह चुनौती स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक आन्दोलन और जनमत के आपसी मेल से प्रस्तुत होगी मीडिया का एक तबका, बुद्धिजीवी, कलाकार और लेखक आदि अमरीकी वर्चस्व के प्रतिरोध के लिए आगे आएँगे ये राज्येतर संस्थाएँ विश्वव्यापी नेटवर्क बना सकती हैं जिसमें अमेरिकी नागरिक भी शामिल होंगे और साथ मिलकर अमेरिकी नीतियों की आलोचना तथा प्रतिरोध किया जा सकेगा।

प्रश्न 10.
9/11 के बाद अमेरिकी विदेश नीति में क्या परिवर्तन आए और इसका विश्व राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
9/11 की घटना: 11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर एक आतंकवादी हमला हुआ इस आतंकवादी हमले के कारण अकेले अमरीका में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में भय का माहौल उत्पन्न हो गया। आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध की अमरीकी मुहिम – ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम – अमरीका पर हुए इस आतंकवादी हमले की प्रतिक्रिया में अमरीका ने आतंकवादियों के खिलाफ कई देशों में मुहिम चलायी, उसे आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में जाना गया यह एक ऐसा अभियान था, जिसमें शक के आधार पर किसी के खिलाफ भी कार्यवाही की जा सकती थी।

अमरीका पर 9/11 के आक्रमण के लिए मुख्य रूप से अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को उत्तरदायी ठहराया गया। अमरीकी वर्चस्व या दादागिरी का विकास- आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ के तहत अमरीका की विदेश नीति में यह परिवर्तन आया कि अमेरिका ने अब न केवल ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की अवहेलना या उपेक्षा की, बल्कि देशों की ‘संप्रभुता’ की भी उपेक्षा की। यथा

  1. ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ के तहत शक के आधार पर अमरीकी सरकार ने अनेक स्वतंत्र राष्ट्रों में गिरफ्तारियाँ कीं और जिन देशों में गिरफ्तारियाँ की गई थीं, उन देशों की सरकारों से पूछना भी जरूरी नहीं समझा।
  2. विभिन्न देशों से गिरफ्तार लोगों को अलग देशों के खुफिया जेलखानों में बंद कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों को भी इन बंदियों से मिलने तक नहीं दिया गया।
  3. विश्व का कोई भी देश अब अमरीकी दादागिरी को रोकने की स्थिति में नहीं रहा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 11.
सोवियत संघ के विघटन के बाद उभरी अफगानिस्तान की समस्या पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
अफगानिस्तान संकट
1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। ऐसे में सोवियत संघ के सहारे अफगानिस्तान में शासन चलाने वाले शासक मोहम्मद नजीबुल्ला को सत्ताविहीन कर दिया गया। इस्लामिक जिहाद काउंसिल का गठन-अफगानिस्तान में शासन सम्बन्धी विभिन्न धड़ों की एकता के लिए 1992 में ‘इस्लामिक जिहाद काउन्सिल’ का गठन किया गया। अनेक प्रयासों के बावजूद यह शांति स्थापित करने में सफल रही। अफगानिस्तान में तालिबान संकट – 1995 में अमेरिका और पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान ने उत्तरी तथा मध्य अफगानिस्तान के प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। तालिबान को अमरीका तथा पाकिस्तान ने सशस्त्र इस्लामवादी बनाया था।

अमेरिका का तालिबान पर आक्रमण: 1999 में तालिबान अमरीका विरोधी संगठन के रूप में उभरा। अमेरिका ने तालिबान को चेतावनी दी कि वह अलकायदा को किसी प्रकार का सहयोग न करे, लेकिन अमरीका द्वारा दी गई सलाह व चेतावनी पर तालिबान ने कोई ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप 7 अक्टूबर, 2001 को अमरीका व उसके सहयोगी देशों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया तथा अफगानिस्तान में तालिबान शासन का पतन हो गया।

वैकल्पिक सरकार का गठन: अब अफगानिस्तान में वैकल्पिक सरकार के गठन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और 22 दिसम्बर, 2001 को हामिद करजई के नेतृत्व में अफगानिस्तान में सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से हुआ। नई सरकार के सत्तासीन होने के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय सेना वहाँ तैनात कर दी गई।

प्रश्न 12.
‘खाड़ी युद्ध और अमरीकी हस्तक्षेप’ पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
खाड़ी युद्ध की पृष्ठभूमि: 2-अगस्त, 1990 को इराक ने कुवैत पर आक्रमण कर उस पर अपना कब्जा कर लिया। इराक के शासक सद्दाम हुसैन ने यह घोषणा की कि वह कुवैत को किसी भी स्थिति में खाली नहीं करेगा। इराक की हठधर्मिता तथा इराक के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अमरीकी कार्यवाही – अमरीका ने इराक के विरुद्ध सीधी कार्यवाही न करके संयुक्त राष्ट्र संघ को माध्यम बनाया तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रायः सभी सदस्यों इराकी आक्रमण की निंदा की, उसके खिलाफ कठोर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये तथा यह प्रस्ताव पारित किया कि यदि इराक 15 जनवरी, 1991 तक कुवैत से नहीं हटता है तो उसके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही की जा सकती है।

खाड़ी युद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा इराक को दी गई समय-सीमा तक इराक ने कुवैत को खाली नहीं किया और बहुराष्ट्रीय सेना ने 17 जनवरी, 1991 को इराक पर आक्रमण कर दिया और देखते ही देखते इराक की सेनाएँ धराशायी हो गईं और कुवैत मुक्त हो गया। युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भी इराक के खिलाफ लगाए प्रतिबंध जारी रहे ताकि इराक फिर से शस्त्रास्त्रों से लैस नहीं हो सके। खाड़ी युद्ध के निम्न प्रमुख प्रभाव हुए- खाड़ी युद्ध का प्रभाव

  1. खाड़ी युद्ध में अमरीकी सफलता के कारण विश्व में अमरीका का वर्चस्व कायम हुआ। उसे ही विश्व की एकमात्र महाशक्ति माना जाने लगा।
  2. खाड़ी के इस अमूल्य तेल उत्पादक क्षेत्र पर अमरीका का वर्चस्व स्थापित हो गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 13.
नई विश्व व्यवस्था क्या है? नई विश्व व्यवस्था में अमरीकी वर्चस्व का एहसास किन घटनाओं के बाद हो पाया?
उत्तर:
नई विश्व व्यवस्था:
सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में एकध्रुवीय नई विश्व व्यवस्था कायम हुई है जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एक सबसे शक्तिशाली ताकत के रूप में उभर गया है। सम्पूर्ण भूमण्डल में यह सैन्य व आर्थिक रूप से शक्तिशाली है। इसके अतिरिक्त सैन्य प्रौद्योगिकी तथा अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं में इसका नेतृत्व है। अमरीकी वर्चस्व का एहसास – नई विश्व व्यवस्था में अमरीकी वर्चस्व का एहसास अग्र घटनाओं के बाद हो पाया।
1. प्रथम खाड़ी युद्ध”:
1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला कर उस पर कब्जा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की राजनयिक कोशिशों के असफल हो जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने इराक पर बल प्रयोग की अनुमति दे दी। अमरीका के नेतृत्व में 34 देशों की फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इराक को कुवैत से हटने को मजबूर होना पड़ा। इस युद्ध में अमरीका ने लाभ कमाया।

2. यूगोस्लाविया पर नाटो की बमबारी: 1999 में यूगोस्लाविया पर अमरीकी नेतृत्व में नाटो ने दो माह तक बमबारी की। यूगोस्लाविया की सरकार गिर गयी और कोसाबो (यूगोस्लाविया के एक प्रान्त) पर नाटो की सेना काबिज हो गयी।

3. सूडान और अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर बमबारी: 1999 में केन्या और तंजानिया में अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र की परवाह किये बिना सूडान और अफगानिस्तान के अलकायदा ठिकानों पर मिसाइलों से हमले किये।

4. आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी कार्यवाही:  9/11 की घटना के बाद अमेरिका ने अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान को निशाना बनाते हुए आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध छेड़ दिया।

5. इराक पर आक्रमण: 19 मार्च, 2003 को संयुक्त राष्ट्र को धत्ता बताते हुए इराक के तेल भंडारों पर नियंत्रण करने तथा इराक में मनपसन्द सरकार बनाने हेतु इराक पर आक्रमण कर दिया तथा उस पर नियंत्रण कर लिया।

प्रश्न 14.
अमेरिका के इराक आक्रमण के कारणों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
अमेरिका के इराक आक्रमण के कारण 19. मार्च, 2003 को अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर सैन्य हमला किया। अमरीकी अगुवाई वाले ‘आकांक्षियों के महाजोट’ में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी। अमेरिका के इराक आक्रमण के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
1. इराक को सामूहिक संहार के हथियारों को बनाने से रोकना: अमेरिका ने इराक पर आक्रमण करने के पीछे यह कारण बताया कि इराक को सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए इराक पर यह हमला किया। लेकिन इराक में सामूहिक संहार के हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले। इससे स्पष्ट होता है कि इराक पर अमेरिका के हमले के पीछे यह कारण नहीं था।

2. इराक के तेल भंडार पर नियंत्रण करना: इराक पर अमेरिकी हमले का प्रमुख कारण था। इराक के तेल भंडारों पर अमेरिकी नियंत्रण स्थापित करना। इस हमले के पश्चात् खाड़ी के इस तेल उत्पादक देश पर अमरीकी वर्चस्व स्थापित हो गया।

3. इराक में कठपुतली सरकार कायम करना: इराक पर अमेरिकी आक्रमण का एक अन्य प्रमुख कारण था। इराक में अमरीका की मनपसंद सरकार कायम करना। सद्दाम हुसैन के रहते अमरीका वहाँ अपनी कठपुतली सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाया था। इस कारण उसका प्रमुख उद्देश्य था। इराक से सद्दाम हुसैन की सत्ता को समाप्त करना और इस उद्देश्य की पूर्ति उस पर आक्रमण कर तथा उसे समाप्त करके ही हो सकती थी।

4. अमरीकी राजनैतिक वर्चस्व का स्थापित करना: इराक पर अमरीकी आक्रमण का एक अन्य कारण था। इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता समाप्त कर, इराक पर अपना अधिकार जमाकर, विश्व में अपने वर्चस्व को स्थापित करना तथा यह दिखाना कि अब विश्व में उसका प्रतिरोध कोई भी शक्ति नहीं कर सकती।

प्रश्न 15.
इतिहास हमें वर्चस्व के बारे में क्या सिखाता है?
उत्तर:
शक्ति-संतुलन के तर्क को देखते हुए वर्चस्व की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एक असामान्य परिघटना है। इसका कारण बड़ा सीधा-सादा है। विश्व – सरकार जैसी कोई चीज नहीं होती और ऐसे में हर देश को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है। कभी-कभी अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में उसे यह भी सुनिश्चित करना होता है कि कम से कम उसका वजूद बना रहे। इस कारण, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में विभिन्न देश शक्ति संतुलन को लेकर बड़े सतर्क होते हैं और आमतौर पर वे किसी एक देश को इतना ताकतवर नहीं बनने देते कि बाकी के देशों के लिए भयंकर खतरा बन जाए।

सौ साल बीत चुके हैं। इस दौरान सिर्फ दो अवसर आए जब किसी एक देश ने अंतर्राष्ट्रीय फलक पर वही प्रबलता प्राप्त की जो आज अमरीका को हासिल है। यूरोप की राजनीति के संदर्भ में 1660 से 1713 तक फ्रांस का दबदबा था और यह वर्चस्व का पहला उदाहरण है। ब्रिटेन का वर्चस्व और समुद्री व्यापार के बूते कायम हुआ उसका साम्राज्य 1860 से 1910 तक बना रहा। यह वर्चस्व का दूसरा उदाहरण है। वर्चस्व अपने चरमोत्कर्ष के समय अजेय जान पड़ता है लेकिन यह हमेशा के लिए कायम नहीं रहता इसके ठीक विपरीत शक्ति-संतुलन की राजनीति वर्चस्वशील देश की ताकत को आने वाले समय में कम कर देती है।

1660 में लुई 14वें के शासनकाल में फ्रांस अपराजेय था लेकिन 1713 तक इंग्लैण्ड, हैवसबर्ग, आस्ट्रिया और रूस फ्रांस की ताकत को चुनौती देने लगे। 1860 में विक्टोरियाई शासन का सूर्य अपने पूरे चरम पर था और ब्रिटिश साम्राज्य हमेशा के लिए सुरक्षित लगता था। 1910 तक यह स्पष्ट हो गया कि जर्मनी, जापान और अमरीका ब्रिटेन की ताकत को ललकारने के लिए उठ खड़े हुए हैं। अब से 20 साल बाद एक और महाशक्ति या कहें कि शक्तिशाली देशों का गठबंधन उठ खड़ा हो सकता है क्योंकि तुलनात्मक रूप से देखें तो अमरीका की ताकत कमजोर पड़ रही है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. सोवियत संघ का विघटन हुआ
(अ) 1990 में
(स) 1992 में
(ब) 1991 में
(द) 1993 में।
उत्तर:
(ब) 1991 में

2. पूँजीवादी दुनिया और साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी
अथवा
शीत युद्ध का सबसे बड़ा प्रतीक थी-
(अ) बर्लिन की दीवार का खड़ा किया जाना।
(ब) बर्लिन की दीवार का गिराया जाना।
(स) हिटलर के नेतृत्व में नाजी पार्टी का उत्थान।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) बर्लिन की दीवार का खड़ा किया जाना।

3. बर्लिन की दीवार बनाई गई थी
(अ) 1961 में
(ब) 1951 में
(स) 1971 में
(द) 1981 में।
उत्तर:
(अ) 1961 में

4. पूर्वी जर्मनी के लोगों ने बर्लिन की दीवार गिरायी-
(अ) 1946 में
(ब) 1991 में
(स) 1989 में
(द) 1961 में।
उत्तर:
(स) 1989 में

5. सोवियत संघ के विघटन के लिए किस नेता को जिम्मेदार माना गया
(अ) निकिता ख्रुश्चेव
(स) बोरिस येल्तसिन
(ब) स्टालिन
(द) मिखाइल गोर्बाचेव।
उत्तर:
(द) मिखाइल गोर्बाचेव।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

6. सोवियत संघ के विभाजन के बाद विश्व पटल पर कितने नए देशों का उद्भव हुआ
(अ) 11
(ब) 9
(स) 10
(द) 15
उत्तर:
(द) 15

7. साम्यवादी गुट के विघटन का प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव पड़ा
(अ) द्वि- ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय
(ब) बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय
(स) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय

8. वर्तमान विश्व में कौनसा देश एकमात्र महाशक्ति है-
(अ) रूस
(ब) चीन
(स) अमेरिका
(द) फ्रांस।
उत्तर:
(स) अमेरिका

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1964 से 1982 तक ………………… सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे।
उत्तर:
लियोनेड ब्रेझनेव

2. …………………… द्वारा समाजवादी सोवियत संघ की व्यवस्था को सुधारने की चाह और प्रयास उसके विघटन का कारण बने।
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव

3. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ का राष्ट्राध्यक्ष ……………………… था।
उत्तर:
जोजेफ स्टालिन

4. …………………… पूरी दुनिया में साम्यवाद के प्रेरणास्रोत थे।
उत्तर:
व्लादिमीर लेनिन

5. रूस ने भारत के अन्तरिक्ष उद्योग में जरूरत के वक्त ………………………..देकर मदद की।
उत्तर:
क्रायोजेनिक रॉकेट

6. 2001 के भारत-रूस सामरिक समझौते के अंग के रूप में भारत और रूस के बीच …………………….. पर हस्ताक्षर हुए।
उत्तर:
6.80

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बर्लिन की दीवार किसका प्रतीक थी ?
उत्तर:
बर्लिन की दीवार पूँजीवादी दुनिया और साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी।

प्रश्न 2.
समाजवादी सोवियत गणराज्य कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया।

प्रश्न 3.
बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक ब्लादिमीर लेनिन थे।

प्रश्न 4.
1917 की रूसी क्रांति के नायक कौन थे?
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन।

प्रश्न 5.
विश्व में सर्वप्रथम कब और कहाँ साम्यवादी पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनावों के आधार पर बनी?
उत्तर:
अक्टूबर, 1917 में, सोवियत संघ में।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 6.
सोवियत प्रणाली के अनुसार राज्य की प्रमुख प्राथमिकता क्या थी?
उत्तर:
सोवियत प्रणाली के अनुसार राज्य की प्रमुख प्राथमिकता देश के समस्त संसाधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व वाले साम्यवादी शासन की स्थापना थी।

प्रश्न 7.
सोवियत संघ के नेतृत्व में बने पूर्वी यूरोप के देशों के सैनिक गठबंधन का नाम लिखिये।
उत्तर:
वारसा पैक्ट।

प्रश्न 8.
लेनिन के उत्तराधिकारी कौन थे?
उत्तर:
जोजेफ स्टालिन।

प्रश्न 9.
पश्चिम के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का सुझाव रखने वाले सोवियत संघ के नेता कौन थे?
उत्तर:
निकिता ख्रुश्चेव।

प्रश्न 10.
शीतयुद्ध काल में हुए किन्हीं दो संघर्षों (युद्धों) का उल्लेख कीजिए, जिनमें अमेरिका ने निर्णायक भूमिका निभाई।
उत्तर:

  1. बर्लिन संकट
  2. क्यूबा संकट।

प्रश्न 11.
मिखाइल गोर्बाचेव ने आर्थिक और राजनैतिक सुधार हेतु किन दो नीतियों को अपनाया?
उत्तर:

  1. पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और
  2. ग्लासनोस्त ( खुलेपन) की नीतियों को।

प्रश्न 12.
सोवियत संघ कितने गणराज्यों से मिलकर बना था?
उत्तर:
15 गणराज्यों से।

प्रश्न 13.
सोवियत संघ का अन्त ( विघटन) कब हुआ?
उत्तर:
25 दिसम्बर, 1991 को।

प्रश्न 14.
सोवियत संघ के विघटन के समय राष्ट्रपति कौन था?
अथवा
सोवियत संघ का अन्तिम राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव।

प्रश्न 15.
गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति किस वर्ष बने?
उत्तर:
1985 में।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 16.
समाजवादी सोवियत गणराज्य कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया।

प्रश्न 17.
1917 की रूसी क्रान्ति क्यों हुई थी?
उत्तर:
1917 की रूसी क्रान्ति पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी तथा समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी।

प्रश्न 18.
सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी क्या थी?
उत्तर:
सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।

प्रश्न 19.
सोवियत राजनीतिक प्रणाली किस विचारधारा पर आधारित थी?
उत्तर:
सोवियत राजनीतिक प्रणाली साम्यवादी विचारधारा पर आधारित थी।

प्रश्न 20.
दूसरी दुनिया किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पूर्वी यूरोप के जो देश समाजवादी खेमे में शामिल हुए थे, उनको दूसरी दुनिया कहा जाता है।

प्रश्न 21.
सोवियत संघ के किन क्षेत्रों की जनता उपेक्षित और दमित महसूस करती थी और क्यों?
उत्तर:
रूस गणराज्य के अतिरिक्त सोवियत संघ के अन्य क्षेत्रों की जनता प्रायः उपेक्षित और दमित महसूस करती

प्रश्न 22.
गोर्बाचेव ने सोवियत संघ में सुधार हेतु क्या प्रयत्न किये?
उत्तर:
गोर्बाचेव ने देश के अन्दर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतन्त्रीकरण की नीति चलायी।

प्रश्न 23.
गोर्बाचेव के सुधारों का विरोध किन नेताओं ने किया?
उत्तर:
कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने गोर्बाचेव की सुधार नीतियों का विरोध किया।

प्रश्न 24.
रूस के पहले चुने हुए राष्ट्रपति कौन थे?
उत्तर:
बोरिस येल्तसिन।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 25.
‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता क्या थी?
उत्तर:
शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा।

प्रश्न 26.
सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण क्या रहा?
उत्तर:
सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाओं की अन्दरूनी कमजोरी सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण रही।

प्रश्न 27.
बाल्टिक गणराज्य में कौन-कौनसे राष्ट्र आते हैं?
उत्तर:
बाल्टिक गणराज्य के अन्तर्गत एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया आते हैं।

प्रश्न 28.
सोवियत संघ के विघटन का अन्तिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण क्या रहा?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन का अन्तिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण रहा बाल्टिक गणराज्यों, उक्रेन, जार्जिया और रूस जैसे विभिन्न गणराज्यों में राष्ट्रीयता और सम्प्रभुता का उभार।

प्रश्न 29.
सोवियत संघ के विघटन के कोई दो परिणाम लिखिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप

  1. शीत युद्ध का दौर समाप्त हो गया।
  2. एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय हुआ।

प्रश्न 30.
शीत युद्ध की समाप्ति के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. दूसरी दुनिया (सोवियत संघ खेमे ) का पतन तथा
  2. एकध्रुवीय विश्व का उदय शीत युद्ध की समाप्ति का प्रभाव था।

प्रश्न 31.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् रूस ने किस तरह की अर्थव्यवस्था को अपनाया?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् रूस ने उदारवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया।

प्रश्न 32.
सोवियत संघ के विघटन के बाद अधिकांश गणराज्यों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवित होने का क्या कारण था?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के बाद अधिकांश गणराज्यों की अर्थव्यवस्था खनिज तेल, प्राकृतिक गैस के निर्यात से पुनर्जीवित हुई। मिले ?

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 33.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् भारत को रूस के साथ मित्रता बनाए रखने से कौन से दो लाभ
उत्तर:

  1. भारत को रूस से आधुनिकतम सैनिक सामान मिलते रहे।
  2. विघटित हुए नवीन गणराज्यों के साथ भारत अपने व्यापारिक सम्बन्ध कायम रख पाया।

प्रश्न 34.
सोवियत संघ के विघटन के समय किन दो गणराज्यों में हिंसक अलगाववादी आंदोलन हुए?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के समय दो पूर्व गणराज्यों

  1. चेचन्या तथा
  2. दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन हुए लादना।

प्रश्न 35.
शॉक थैरेपी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर;
शॉक थैरेपी से आशय है। धीरे-धीरे परिवर्तन न करके एकदम आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयत्नों को

प्रश्न 36.
शॉक थैरेपी का कोई एक परिणाम बताइए।
अथवा
‘शॉक थैरेपी’ के परिणामस्वरूप सोवियत खेमे का प्रत्येक राज्य किस अर्थतन्त्र में समाहित हुआ?
उत्तर:
शॉक थैरेपी के परिणामस्वरूप सोवियंत खेमे का प्रत्येक राज्य पूँजीवादी अर्थतन्त्र में समाहित हुआ।

प्रश्न 37.
सोवियत प्रणाली की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  2. अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।

प्रश्न 38.
सोवियत प्रणाली के दो गुण बताइये।
उत्तर:

  1. सरकार बुनियादी जरूरत की चीजें रियायती दर पर उपलब्ध कराती थी।
  2. बेरोजगारी नहीं थी।

प्रश्न 39.
सोवियत प्रणाली में आये किन्हीं दो दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।
  2. यह प्रणाली सत्तावादी हो गई तथा नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।

प्रश्न 40.
1991 में सोवियत संघ के कौनसे गणराज्यों ने अपने लिये स्वतन्त्रता की माँग नहीं की?
उत्तर:
मध्य एशियाई गणराज्यों ने सोवियत संघ से अपने लिए स्वतन्त्रता की माँग नहीं की।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 41.
सोवियत संघ पर हथियारों की होड़ से क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
हथियारों की होड़ के कारण सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे (मसलन- परिवहन, मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया।

प्रश्न 42.
सोवियत संघ से सबसे पहले और कब, किस गणराज्य ने स्वतन्त्रता की घोषणा की?
उत्तर:
मार्च, 1990 में लिथुआनिया ने सबसे पहले सोवियत संघ से स्वतन्त्रता की घोषणा की।

प्रश्न 43.
पूर्व सोवियत संघ से स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों ने किस संगठन का निर्माण किया?
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ से स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों ने ‘स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल’ संगठन का निर्माण किया।

प्रश्न 44.
सोवियत संघ के इतिहास की सबसे बड़ी ‘गराज सेल’ कौन सी थी?
अथवा
सोवियत संघ की ‘गराज सेल’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को अनाप-शनाप कीमतों पर निजी कम्पनियों को बेचने को उसके इतिहास की सबसे बड़ी ‘गराज सेल’ कहा गया।

प्रश्न 45.
मध्य एशियाई गणराज्यों में किस संसाधन का विशाल भंडार है?
उत्तर:
मध्य एशियाई गणराज्यों में हाइड्रोकार्बनिक (पेट्रोलियम) संसाधनों का विशाल भंडार है।

प्रश्न 46.
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने किस तरह की अर्थव्यवस्था को अपनाया?
उत्तर:
उदारवादी अर्थव्यवस्था को।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 47.
ताजिकिस्तान में हुआ गृह-युद्ध कितने वर्ष तक चलता रहा?
उत्तर:
ताजिकिस्तान में हुआ गृह-युद्ध 1991 से 2001 तक दस वर्षों तक चलता रहा।

प्रश्न 48.
पूर्व सोवियत संघ में कितने गणराज्य तथा स्वायत्तशासी गणराज्य सम्मिलित थे?
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ में 15 गणराज्य तथा 20 स्वायत्त गणराज्य और 18 स्वायत्तशासी गणराज्य सम्मिलित थे।

प्रश्न 49.
ब्लादिमीर लेनिन कौन थे?
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन रूस में बोल्शेविक पार्टी के संस्थापक, 1917 की रूसी क्रांति के नायक तथा सोवियत संघ के संस्थापक अध्यक्ष थे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बर्लिन की दीवार का निर्माण एवं विध्वंस किस प्रकार की ऐतिहासिक घटना कहलाती है?
उत्तर:
शीत युद्ध के उत्कर्ष के चरम दौर में सन् 1961 में बर्लिन की दीवार खड़ी की गई। यह दीवार शीत युद्ध का प्रतीक रही। सन् 1989 में पूर्वी जर्मनी की आम जनता ने इसे गिरा दिया। यह दोनों जर्मनी के एकीकरण, साम्यवादी खेमे की समाप्ति तथा शीत युद्ध की समाप्ति की शुरूआत थी ।

प्रश्न 2.
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में गतिरोध क्यों आया?
उत्तर:
सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश भाग परमाणु हथियारों के विकास, सैन्य साजो-सामान के निर्माण तथा पूर्वी यूरोप के देशों के विकास पर लगाया इसलिए इसकी राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ आंतरिक रूप से कमजोर हो गईं। फलतः इसकी अर्थव्यवस्था में गतिरोध आ गया।

प्रश्न 3.
द्वि- ध्रुवीयता से आप क्या समझते हैं? युद्ध के पश्चात्
उत्तर:
द्विध्रुवीयता से आशय है विश्व का दो गुटों में बंटा होना द्वितीय विश्व विश्व पूँजीवादी तथा साम्यवादी दो गुटों में बंट गया पूँजीवादी गुट का नेता अमरीका तथा साम्यवादी गुट का नेता सोवियत संघ था।

प्रश्न 4.
द्वि- ध्रुवीय विश्व के पतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व सोवियत संघ और अमेरिका के दो गुटों में विभाजित हो गया था। इसलिए इसे द्विध्रुवीय विश्व कहा जाता था। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के पतन होने से दूसरे ध्रुव (गुट) का पतन हो गया। इसी को द्वि- ध्रुवीय विश्व का पतन कहा जाता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 5.
शॉक थेरेपी से क्या आशय है?
उत्तर:
शॉक थेरेपी से आशय है कि धीरे-धीरें परिवर्तन न करके एकदम आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयत्नों को लादना रूसी गणराज्य में शॉक थैरेपी के अन्तर्गत तुरत-फुरत निजी स्वामित्व, मुक्त व्यापार, वित्तीय खुलापन तथा मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता पर बल दिया गया

प्रश्न 6.
आपकी राय में शॉक थेरेपी का रूस की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा? ‘शॉक थेरेपी’ से क्या हानि हुई ?
अथवा
उत्तर:

  1. शॉक थेरेपी से रूस में पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गयी;
  2. इससे इस क्षेत्र की जनता को बर्बादी की मार झेलनी पड़ी;
  3. इससे रूस का औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया।

प्रश्न 7.
आपकी राय में सोवियत संघ के विघटन के दो मुख्य कारण क्या थे?
अथवा
सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:

  1. सोवियत संघ के विघटन का पहला कारण उसकी राजनीतिक आर्थिक संस्थाओं की अंदरूनी कमजोरी था।
  2. सोवियत संघ के विघटन का दूसरा और सर्वाधिक तात्कालिक कारण था – विभिन्न गणराज्यों – बाल्टिक गणराज्य, उक्रेन, रूस तथा जार्जिया आदि में राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार।

प्रश्न 8.
सोवियत संघ में आम जनता कम्युनिस्ट पार्टी तथा राजनीतिक व्यवस्था तथा शासकों से अलग- थलग क्यों पड़ गयी थी?
उत्तर:
सोवियत संघ में 90 के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रह गयी थी। गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार, शासकों की अक्षमता, खुलापन लाने की अनिच्छा तथा सत्ता के केंन्द्रीकृत होने आदि बातों के कारण आम जनता शासन व शासकों से अलग-थलग पड़ गयी थी।

प्रश्न 9.
सोवियत संघ के विघटन के कोई दो परिणाम स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सोवियत संघ के पतन के परिणाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप शीतयुद्ध के दौर का संघर्ष समाप्त हो गया।
  2. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप एकध्रुवीय विश्व का उदय हुआ।
  3. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप अनेक नये देशों को स्वतंत्र पहचान मिली।

प्रश्न 10.
भारत-रूस सम्बन्धों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत-रूस सम्बन्धों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है।
  2. भारत और रूस दोनों देशों के आपसी सम्बन्ध इन देशों की जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं।
  3. दोनों देशों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 11.
सोवियत प्रणाली का पूर्वी यूरोप या दूसरी दुनिया पर क्या प्रारम्भिक प्रभाव पड़ा था?
उत्तर:
दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गये थे। सोवियत सेना ने उन्हें फासीवादी ताकतों के चंगुल से मुक्त कराया था। इन सभी देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया।

प्रश्न 12.
जोजेफ स्टालिन का सोवियत संघ के एक महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में संक्षिप्त परिचय दीजिए
उत्तर:
जोजेफ स्टालिन – जोजेफ स्टालिन लेनिन के बाद सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता और राष्ट्राध्यक्ष बने उन्होंने सोवियत संघ का 1924 से 1953 तक नेतृत्व किया। उनके काल में सोवियत संघ में औद्योगीकरण को बढ़ावा मिला तथा खेती का बलपूर्वक सामूहिकीकरण किया गया। उन्हीं के काल में शीतयुद्ध का प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 13.
निकिता ख्रुश्चेव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
निकिता ख्रुश्चेव निकिता ख्रुश्चेव स्टालिन के बाद सन् 1953 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने और 1964 तक वे इस पद पर बने रहे। उन्होंने पश्चिम के साथ ‘शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व’ का सुझाव रखा तथा हंगरी के जन- विद्रोह का दमन किया।

प्रश्न 14.
लिओनिद ब्रेझनेव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लिओनिद ब्रेझनेव लिओनिद ब्रेझनेव सन् 1964 से 1982 तक सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे थे। उन्होंने एशिया की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सुझाव दिया था। वे सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सम्बन्ध सुधारने तथा पारस्परिक तनाव में कमी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे।

प्रश्न 15.
मिखाइल गोर्बाचेव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के अन्तिम राष्ट्रपति (1985 से 1991 तक) थे। उन्होंने सोवियत संघ में पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और ग्लासनोस्त ( खुलेपन) के आर्थिक और राजनैतिक सुधार शुरू किये। उन्होंने शीतयुद्ध समाप्त किया।

प्रश्न 16.
बोरिस येल्तसिन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
बोरिस येल्तसिन सोवियत संघ के विघटन के बाद बोरिस येल्तसिन रूस के प्रथम चुने हुए राष्ट्रपति बने । इस पद पर उन्होंने 1991 से 1999 तक कार्य किया। सन् 1991 में सोवियत संघ के शासन के विरुद्ध उठे विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने सोवियत संघ के विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 17.
चेकोस्लोवाकिया के विघटन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
सोवियत संघ के साम्यवादी गठबंधन से मुक्त होकर लोकतंत्रीय आंदोलन में चेकोस्लोवाकिया में राष्ट्रवादी ज्वार उठा और चेकोस्लोवाकिया शांतिपूर्ण ढंग से चेक और स्लोवाकिया नामक दो देशों में विभाजित हो गया। चेकोस्लोवाकिया इन्हीं दो राष्ट्रीयताओं से मिलकर बना था।

प्रश्न 18.
यूगोस्लाविया का विघटन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
यूगोस्लाविया में गहन जातीय संघर्ष हुआ और सन् 1991 में यूगोस्लाविया कई प्रान्तों में विभाजित हो गया। यूगोस्लाविया में शामिल बोस्निया हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया ।

प्रश्न 19.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् स्वतंत्र हुए 15 गणराज्यों के नाम लिखिये।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् स्वतंत्र हुए 15 गणराज्य ये हैं।
रूसी संघ, कजाकिस्तान, एस्टोनिया, लताविया, लिथुआनिया, बेलारूस, उक्रेन, माल्दोवा, आर्मेनिया, जार्जिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान,  उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान।

प्रश्न 20.
शीत युद्ध के दौरान भारत व सोवियत संघ के बीच आर्थिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान भारत व सोवियत संघ के बीच आर्थिक सम्बन्ध घनिष्ठ थे। यथा

  1. सोवियत संघ ने भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को ऐसे वक्त में आर्थिक और तकनीकी मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था।
  2. भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब उसने रुपये में भारत के साथ व्यापार किया।

प्रश्न 21.
सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असन्तोष यूरोपीय और अपेक्षाकृत समृद्ध गणराज्यों में सबसे प्रबल क्यों रहा?
उत्तर:
सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असन्तोष यूरोपीय और अपेक्षाकृत समृद्ध गणराज्यों रूस, उक्रेन, जार्जिया और बाल्टिक क्षेत्र में सबसे प्रबल रहा क्योंकि-

  1. यहाँ के आम लोग अपने को मध्य एशियाई गणराज्यों के लोगों से अलग-थलग महसूस कर रहे थे।
  2. यहाँ के लोगों में यह भाव घर कर गया था कि ज्यादा पिछड़े इलाकों को सोवियत संघ में शामिल रखने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

प्रश्न 22.
सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण क्या रहा तथा इसके पीछे निहित कारणों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन का अन्तिम और तात्कालिक कारण था राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार। सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्य सोवियत संघ से स्वतन्त्र होकर अपना पृथक् सम्प्रभु राज्य के निर्माण करने को आन्दोलनरत हुए। राष्ट्रीयता और सम्प्रभुता के ज्वार के उठने के अनेक कारण बताये जाते हैं-

  1. सोवियत संघ के आकार, विविधता तथा उसकी बढ़ती हुई आन्तरिक समस्याओं ने लोगों को इस ओर सोचने को प्रेरित किया।
  2. गोर्बाचेव के सुधारों ने राष्ट्रवादियों के असन्तोष को इस सीमा तक भड़काया कि उस पर शासकों का नियन्त्रण नहीं रहा ।
  3. यूरोपीय तथा बाल्टिक गणराज्यों में यह भाव घर कर गया था कि ज्यादा पिछड़े इलाकों को सोवियत संघ में शामिल रखने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 23.
सोवियत प्रणाली क्या थी?
अथवा
सोवियत प्रणाली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू.एस.एस.आर.) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया। सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ ये थीं

  1. सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। इसमें किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नहीं थी।
  2. सोवियत आर्थिक प्रणाली योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी, सम्पत्ति पर राज्य का स्वामित्व व नियन्त्रण था।
  3. सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी।
  4. उसके पास विशाल ऊर्जा संसाधन था, घरेलू उपभोक्ता उद्योग भी बहुत उन्नत था । सरकार ने अपने सभी नागरिकों के लिए न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित कर दिया था । बेरोजगारी नहीं थी ।

प्रश्न 24.
सोवियत संघ के विघटन में गोर्बाचेव की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन में गोर्बाचेव की भूमिका – सोवियत संघ के विघटन का एक प्रमुख कारण गोर्बाचेव की सुधारवादी नीतियाँ भी रही थीं। गोर्बाचेव ने देश में स्वतंत्रता, समानता, राष्ट्रीयता और भ्रातृत्व व एकता के वातावरण को तैयार किए बिना ही पुनर्गठन (पेरेस्त्रोइका) व खुलापन ( ग्लासनोस्त) जैसी नीतियों को लागू कर दिया। परिणामस्वरूप सोवियत संघ के कुछ राष्ट्रों को संघ से अलग होने के निर्णय को मान्यता देनी पड़ी। तत्पश्चात् एक के बाद एक सभी गणराज्य : स्वतंत्र होते चले गये और देखते ही देखते सोवियत संघ का विघटन हो गया।

प्रश्न 25.
सोवियत प्रणाली की किन्हीं चार कमियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सोवियत प्रणाली के प्रमुख दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सोवियत प्रणाली में निम्नलिखित प्रमुख दोषों ने अपनी पैठ बना ली थी, जिसके कारण सोवियत अर्थव्यवस्था ठहर गयी थी। यथा

  1. सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया। यह प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।
  2. सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था।
  3. संघ के 15 गणराज्यों में रूस का हर मामले में प्रभुत्व था । अन्य गणराज्यों की जनता अक्सर उपेक्षित और दमित महसूस करती थी।
  4. उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के मामले में सोवियत संघ पश्चिम के देशों से बहुत पीछे रह गया था। इससे हर तरह की उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई थी।

प्रश्न 26.
स्पष्ट कीजिए कि पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष व संघर्ष की आशंका से ग्रस्त रहे हैं।
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्षों से ग्रस्त रहे हैं। यथा

  1. रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले।
  2. ताजिकिस्तान दस वर्षों तक अर्थात् 2001 तक गृहयुद्धों की चपेट में रहा।
  3. अजरबैजान का एक प्रान्त नगरनो कराबाख है। यहाँ के कुछ स्थानीय अर्मेनियाई अलग होकर आर्मेनिया से मिलना चाहते हैं।
  4. जार्जिया में दो प्रान्त स्वतन्त्रता चाहते हैं और गृहयुद्ध लड़ रहे हैं।
  5. युक्रेन, किरगिझस्तान तथा जार्जिया में मौजूदा शासन को उखाड़ फेंकने के लिए आन्दोलन चल रहे हैं।
  6. कई देश और प्रान्त नदी – जल के प्रश्न पर आपस में भिड़े हुए हैं।

प्रश्न 27.
मध्य एशियाई गणराज्यों में बाहरी ताकतों की बढ़ती दखल की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोलियम संसाधनों का विशाल भण्डार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा का अखाड़ा भी बन गया है। यथा

  1. यह क्षेत्र रूस, चीन और अफगानिस्तान से सटा है और पश्चिम एशिया के नजदीक है।
  2. अमरीका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है।
  3. रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती ‘विदेश’ मानता है और उसका मानना है कि इन राज्यों को रूस के प्रभाव में रहना चाहिए।
  4. खनिज तेल जैसे संसाधन की मौजूदगी के कारण चीन के हित भी इस क्षेत्र से जुड़े हैं और चीनियों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में आकर व्यापार करना शुरू कर दिया है।

प्रश्न 28.
मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली में सुधार क्यों लाना चाहते थे?
अथवा
किन कारणों ने गोर्बाचेव को सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य किया?
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली में निम्नलिखित कारणों की वजह से सुधार लाना चाहते थे-

  1. सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पश्चिमी देशों की तुलना में काफी पिछड़ गई थी; अर्थव्यवस्था में गतिरोध पैदा होने की वजह से देश में उपभोक्ता वस्तुओं की भारी कमी उत्पन्न हो रही थी। सोवियत संघ को उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पाश्चात्य देशों की बराबरी करने के लिए गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली में सुधार लाना चाहते थे।
  2. सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य समाजवादी शासन से ऊब गये थे और वे विद्रोह करने पर आमादा हो गये थे।
  3. गोर्बाचेव ने पश्चिम के देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने तथा सोवियत संघ को लोकतांत्रिक रूप देने के लिए वहां सुधार करने का फैसला किया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 29.
द्वि- ध्रुवीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में दो महाशक्तियाँ उभर कर आयीं। ये थीं-

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका और
  2. सोवियत संघ। दोनों ने अपने प्रभाव क्षेत्र में विस्तार करने के लिए प्रयास किये; इससे उनके मध्य शीत युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस शीत युद्ध ने यूरोप को अमेरिकी खेमे और साम्यवादी खेमे में बाँट दिया। सन्धियों व प्रतिसन्धियों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में विश्व को परस्पर दो विरोधी खेमों में बाँट दिया, जिसमें प्रत्येक का नेतृत्व एक महाशक्ति द्वारा किया जा रहा था । इसी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को द्वि- ध्रुवीकरण कहा गया।

प्रश्न 30.
“भारत का उज्बेकिस्तान से मजबूत सांस्कृतिक संबंध है इसका उदाहरण यह है कि इस देश में हिन्दुस्तानी फिल्मों की धूम रहती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उज्बेकिस्तान तथा भारत में अच्छे तथा मजबूत सांस्कृतिक संबंध है। इसका प्रमाण हमें फिल्मों द्वारा मिलता है। सोवियत संघ को विघटित हुए सात साल बीत गए लेकिन हिन्दी फिल्मों के लिए उज्बेक लोगों में वही ललक मौजूद है। हिन्दुस्तान में कोई नई फिल्म रिलीज होने के चंद हफ्तों के भीतर इसकी पाइरेटेड कॉपियाँ उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में बिकने के लिए उपलब्ध हो जाती है । उज्बेक लोग मध्य एशियाई हैं, वे एशिया के अंग हैं। उनकी एक साझी संस्कृति है। यहाँ अधिकांश लोग – हिन्दी गा लेते हैं। अर्थ चाहे न मालूम हो लेकिन उसका उच्चारण सही होता है और वे संगीत भी पकड़ लेते हैं। भारतीय फिल्मों और उनके ‘हीरो’ के लिए उज्बेकी लोगों की दीवानगी उज्बेकिस्तानवासी अनेक भारतीयों को आश्चर्यजनक जान पड़ती है।

प्रश्न 31.
द्वि- ध्रुवीय विश्व के पतन के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
द्विध्रुवीय विश्व के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. अमेरिकी गुट में फूट – द्वि- ध्रुवीय विश्व के पतन का एक प्रमुख कारण अमेरिकी गुट में फूट पड़ना था। फ्रांस जैसा देश अमेरिका पर अविश्वास करने लगा था।
  2. सोवियत गुट में फूट – सोवियत गुट से पूर्वी यूरोपीय देशों तथा चीन का अलग होना सोवियत खेमे को कमजोर कर गया।
  3. सोवियत संघ का पतन – द्विध्रुवीय विश्व के पतन का अन्तिम प्रभावी कारण सोवियत संघ का पतन रहा।
  4. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन – गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने अधिकांश विकासशील देशों को दोनों गुटों से अलग रखने में सफलता पायी। इससे द्विध्रुवीय विश्व को झटका लगा।

प्रश्न 32.
सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था की दूसरी दुनिया के विघटन के परिणाम विश्व राजनीति के लिहाज से गंभीर रहे – स्पष्ट कीजिये।
अथवा
सोवियत संघ तथा पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था के विघटन के विश्व राजनीति में क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था तथा सोवियत संघ के विघटन के परिणाम विश्व राजनीति के लिहाज से गंभीर रहे। इसके निम्न परिणाम रहे

  1. दूसरी दुनिया के पतन का एक परिणाम शीत युद्ध के दौर के संघर्ष की समाप्ति में हुआ। शीत युद्ध के समाप्त होने से हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गई और एक नई शांति की संभावना का जन्म हुआ।
  2. दूसरी दुनिया के पतन से विश्व राजनीति में शक्ति-संबंध बदल गए और इस कारण विचारों और संस्थाओं के आपेक्षिक प्रभाव में भी बदलाव आया।
  3. सोवियत संघ के पतन के बाद अमरीका अकेली महाशक्ति बन कर उभरा और एक- ध्रुवीय विश्व राजनीति सामने आयी।
  4. सोवियत खेमे के अन्त से अनेक नये देशों का उदय हुआ। इन देशों ने रूस के साथ अपने मजबूत रिश्ते को जारी रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्ध बढ़ाये।

प्रश्न 33.
मान लीजिए सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तथा विश्व 1980 के मध्य की तरह द्वि- ध्रुवीय होता, तो यह अन्तिम दो दशकों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता? इस प्रकार के विश्व के तीन क्षेत्रों या प्रभाव तथा विकास का वर्णन करें, जो नहीं हुआ होता?
उत्तर:
1991 में यदि सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ होता तो ये अन्तिम दोनों दशक भी शीत युद्ध की राजनीति से प्रभावित रहते और विश्व में निम्नलिखित प्रभाव होते-

  1. एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था की स्थापना नहीं होती – यदि सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ होता तो विश्व राजनीति में एक ही महाशक्ति अमरीका का यह वर्चस्व नहीं होता।
  2. अफगानिस्तान तथा इराक देशों की स्थिति में परिवर्तन- यदि सोवियत संघ का पतन न हुआ होता तो अफगानिस्तान और इराक में सोवियत संघ अमेरिका का विरोध करता और युद्ध का विरोध करता।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति में परिवर्तन – यदि सोवियत संघ का पतन नहीं होता तो संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका की मनमानी नहीं चलती और संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रभावशीलता समाप्त नहीं होती।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 34.
रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। बहुध्रुवीय विश्व से इन दोनों देशों का आशय यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर कई शक्तियाँ मौजूद हों, सुरक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी हो (यानी किसी भी देश पर हमला हो तो सभी देश उसे अपने लिए खतरा माने और साथ मिलकर कार्रवाई करें ); क्षेत्रीयताओं का ज्यादा जगह मिले; अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों का समाधान बातचीत के द्वारा हो; हर देश की स्वतन्त्रता विदेश नीति हो और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं द्वारा फैसले किए जाएँ तथा इन संस्थाओं को मजबूत, लोकतांत्रिक और शक्तिसंपन्न बनाया जाए।

प्रश्न 35.
शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के राजनीतिक संबंध पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के रूख को समर्थन दिया । सोवियत संघ ने भारत के संघर्ष के गाढ़े दिनों, खासकर सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण स्पष्ट कीजिए । सोवियत संघ के विघटन के कारण
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
1. राजनीतिक:
आर्थिक संस्थाओं की अंदरूनी कमजोरी- सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अंदरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकीं। कई सालों तक उसकी अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध रही इससे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी कमी हो गई और सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी राज व्यवस्था को शक की नजर से देखने लगा, उस पर खुले आम सवाल खड़े करने शुरू किये।

2. लोगों को अपने पिछड़ेपन की पहचान होना:
जब पश्चिमी देशों की प्रगति और अपने पिछड़ेपन के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी तो इससे सोवियत संघ के लोगों को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।

3. प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से गतिरुद्धता:
सोवियत संघ की प्रशासनिक गतिरुद्धता, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह न रह जाना, भारी भ्रष्टाचार, शासन में ज्यादा खुलापन लाने की अनिच्छा तथा सत्ता का केन्द्रीकृत रूप आदि के कारण सरकार का जनाधार खिसकता चला गया।

4. गोर्बाचेव के समर्थन की समाप्ति:
जनता का एक तबका सुधारों की धीमी गति के कारण गोर्बाचेव से नाराज हो गया, तो सुविधाभोगी वर्ग उसके सुधारों की तीव्र गति से नाराज हो गया। इस प्रकार सुधारों के कारण गोर्बाचेव का समर्थन चारों तरफ से समाप्त हो गया।
(5) राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता का ज्वार – बाल्टिक गणराज्य, उक्रेन, जार्जिया जैसे गणराज्यों में राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
सोवियत प्रणाली से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोवियत प्रणाली का अर्थ समाजवादी सोवियत गणराज्य 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया। उसने समाजवाद के आदर्शों एवं समतामूलक समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज को समानता के सिद्धान्त पर रचने की जो कोशिश की, उसे ही सोवियत प्रणाली कहा गया। इसमें राज्य और पार्टी की संस्था को प्राथमिक महत्त्व दिया गया। इसकी धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी। विशेषताएँ – सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. समाजवादी खेमे की स्थापना: दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को सोवियत प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया। इस खेमे का नेता समाजवादी सोवियत गणराज्य था।
  2. राज्य का स्वामित्व तथा नियंत्रण:  सोवियत प्रणाली में सम्पत्ति का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था तथा भूमि और अन्य उत्पादक संपदाओं पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था।
  3. सत्तावादी प्रणाली: सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया और यह प्रणाली सत्तावादी हो गयी। लोगों को लोकतंत्र तथा अभिव्यक्ति की आजादी नहीं थी।
  4. कम्युनिस्ट पार्टी का शासन:  सोवियत प्रणाली में एक दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था और इस दल का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था।
  5. रूसी गणराज्य का प्रभुत्व: हालांकि सोवियत संघ के नक्शे में रूस, संघ के 15 गणराज्यों में से एक था लेकिन वास्तव में रूस का हर मामले में प्रभुत्व था।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 3.
सोवियत संघ के विघटन के कारणों व परिणामों का वर्णन करें।
अथवा
सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ? इस विघटन के परिणाम बताइए।
अथवा
सोवियत संघ के विघटन ( पतन) के उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिए । सोवियत संघ के पतन के उत्तरदायी कारक
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन या पतन के प्रमुख उत्तरदायी कारक निम्नलिखित थे-

  1. सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अपनी आन्तरिक कमजोरियों के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकीं।
  2. सोवियत संघ ने अपने संसाधन परमाणु हथियार, सैन्य साजो-सामान तथा पूर्वी यूरोप के अन्य पिछलग्गू देशों के विकास पर भी खर्च किए ताकि वे सोवियत नियन्त्रण में बने रहें इससे सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना और सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
  3. सोवियत संघ के पिछड़ेपन की पहचान से वहां के लोगों को राजनीतिक – मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।
  4. कम्युनिस्ट पार्टी जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं रह गयी थी।
  5. गोर्बाचेव ने देश में स्वतन्त्रता, समानता और राष्ट्रीयता व भ्रातृत्व व एकता के वातावरण को तैयार किए बिना ही पुनर्गठन (पेरेस्त्रोइका) व खुलापन ( ग्लासनोस्त) जैसी महत्त्वपूर्ण नीतियों को लागू कर दिया था

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम – विश्व राजनीति पर सोवियत संघ के विघटन के गम्भीर परिणाम रहे हैं 1

  1. सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप शीत युद्ध समाप्त हो गया तथा हथियारों की दौड़ भी समाप्त हो गई।
  2. अब संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन गया तथा विश्व पर उसका वर्चस्व स्थापित हो गया।
  3. अब पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था बन गई तथा तृतीय विश्व में साम्यवादी विचारधारा का प्रचार- प्रसार रुक गया।
  4. सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप विश्व में 15 स्वतन्त्र और सम्प्रभु राज्यों की संख्या में बढ़ोतरी हुई।
  5. तृतीय विश्व को अब नए उपनिवेशवाद के खतरे का सामना करना पड़ रहा है तथा मध्य-पूर्व के तेल भण्डारों पर अमरीका ने अपना एकछत्र प्रभुत्व स्थापित कर लिया है।

प्रश्न 4.
मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा किये गये सुधारों से सोवियत संघ का विघटन किस प्रकार हुआ? समझाइये गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव 1980 के दशक के मध्य में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पद पर आसीन हुए। इस समय सोवियत संघ आर्थिक, प्रशासनिक तथा राजनीतिक रूप से गतिरुद्ध हो चुका था। गोर्बाचेव ने अर्थव्यवस्था को सुधारने, पश्चिम की बराबरी पर लाने और प्रशासनिक ढांचे में ढील देने के लिए सुधारों को लागू किया। लेकिन इन सुधारों से सोवियत संघ का विघटन हो गया। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित रहे

  1. लोगों की आकांक्षाओं पर ज्वार उमड़ना: जब गोर्बाचेव ने सुधारों को लागू किया और अर्थव्यवस्था में ढील दी तो लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का ऐसा ज्वार उमड़ा कि उस पर काबू पाना असंभव हो गया।
  2. राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता की इच्छा का उभार: सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्यों में राष्ट्रवादी भावना और संप्रभुता का उभार उठा। राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।
  3. राष्ट्रवादियों का असंतुष्ट होना- कुछ लोगों का मत है कि गोर्बाचेव के सुधारों ने राष्ट्रवादियों के असंतोष को इस सीमा तक भड़काया कि उस पर शासकों का नियंत्रण नहीं रहा।

प्रश्न 5.
शीत युद्ध के दौरान भारत तथा सोवियत संघ सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शीत युद्ध के दौरान पूर्ववर्ती सोवियत संघ के साथ भारत के सम्बन्धों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत और सोवियत संघ सम्बन्ध
शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के सम्बन्ध बहुआयामी थे। यथा-
1. आर्थिक सम्बन्ध:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा साझीदार था। इस व्यापार का सालाना कारोबार दो हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुँच गया था। सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापार किया।

2. राजनीतिक सम्बन्ध:
सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के दृष्टिकोण को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत को सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान सहायता की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।

3. भारत:
सोवियत सैन्य सम्बन्ध – शीत युद्ध काल में सैनिक साजो-सामान के आयात व उत्पादन के मामले में भारत सोवियत संघ पर काफी निर्भर रहा सोवियत संघ ने भारत को सैनिक सामान के सम्बन्ध में पूर्ण मदद की। उसने भारत के साथ ऐसे कई समझौते किये जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार कर सका।

4. भारत:
सोवियत सांस्कृतिक सम्बन्ध – प्रारम्भ से ही भारत व सोवियत संघ का यह प्रयत्न रहा है कि आर्थिक व सामरिक परिप्रेक्ष्य में सम्बन्धों को सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जामा पहनाया जाए। यही कारण है कि हिन्दी फिल्म तथा भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में काफी लोकप्रिय रहीं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 6.
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत-रूस तथा पूर्व साम्यवादी गणराज्य के सम्बन्धों का विवरण दीजिये।
उत्तर:
भारत और रूस सम्बन्ध शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत-रूस सम्बन्धों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  • दोनों देशों की जनता की अपेक्षाओं में समानता: भारत-रूस के आपसी सम्बन्ध इन देशों की जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। हम वहाँ हिन्दी फिल्मों के गीत बजते सुन सकते हैं। भारत यहाँ के जनमानस का एक अंग है।
  • बहुध्रुवीय विश्व पर दोनों देशों का समान दृष्टिकोण: रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। बहुध्रुवीय विश्व से इन दोनों का आशय यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर कई शक्तियाँ विद्यमान हों; सुरक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी की व्यवस्था हो; क्षेत्रीयताओं को ज्यादा जगह मिले; अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों का समाधान बातचीत के द्वारा हो, हर देश की स्वतंत्र विदेश नीति हो और संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं द्वारा फैसले किये जाएं तथा इन संस्थओं को मजबूत, लोकतांत्रिक और शक्ति – सम्पन्न बनाया जाये।
  • विभिन्न मुद्दों व विषयों में परस्पर सहयोग:
    1. कश्मीर समस्या, ऊर्जा – आपूर्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के दृष्टिकोणों में समानता रही है।
    2. भारतीय सेनाओं को अधिकांश सैनिक साजो-सामान रूस से प्राप्त होते हैं तथा भारत रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार है।
    3. रूस ने तेल के संकट के समय हमेशा भारत की मदद की है तथा रूस के लिए भारत तेल के आयातक देशों में एक प्रमुख देश है।

भारत और पूर्व – साम्यवादी गणराज्यों के साथ सम्बन्ध: भारत कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान गणराज्यों के साथ पारस्परिक सहयोग की परम्परागत नीति का पालन कर रहा है। इन गणराज्यों के साथ सहयोग के अन्तर्गत तेल वाले इलाकों में साझेदारी और निवेश करना भी शामिल है।

प्रश्न 7.
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस की विश्व परिदृश्य पर भूमिका का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस की विश्व राजनीति में भूमिका सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस की विश्व परिदृश्य में भूमिका का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • रूस तथा राष्ट्रकुल: सोवियत संघ के सभी गणराज्यों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में सोवियत संघ का स्थान रूसी गणराज्य को दिये जाने की सिफारिश की।
  • रूस तथा विश्व के अन्य राष्ट्रों से सम्बन्ध:  सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के अमरीका व विश्व के अन्य प्रमुख राष्ट्रों के बीच सम्बन्धों को निम्न प्रकार रेखांकित किया जा सकता है।
    1. रूस संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।
    2. रूस ने अब अमरीका व यूरोपीय देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक सम्बन्ध स्थापित किये हैं।
    3. परस्पर एक-दूसरे के देशों की यात्राओं व समझौतों के द्वारा रूस चीन की निकटता बढ़ी है।
    4. रूस और जापान के सम्बन्धों में भी निकटता आयी है।

इस प्रकार विभिन्न प्रमुख देशों से संबंध सुधार कर रूस पुनः विश्व राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

3. विश्व राजनीति में गौण भूमिका:
रूस (सोवियत संघ के विघटन के बाद) वर्तमान में एक महाशक्ति नहीं रहा है, यद्यपि उसके पास अणु-परमाणु अस्त्रों-प्रक्षेपास्त्रों का भण्डार है लेकिन आर्थिक दृष्टि से उसकी अर्थव्यवस्था जर्जर है। वर्तमान में दूसरे देशों की भूमि पर उनकी उपस्थिति घट गई है। अब वह घटनाओं को अपनी इच्छानुसार मोड़ नहीं दे सकता। इसी तरह अब वह अपने पुराने मित्रों की सहायता करने में सक्षम नहीं रहा है। सुरक्षा परिषद् में अब वह अमेरिका का विरोध कर सकने की स्थिति में नहीं रह गया है।

प्रश्न 8.
सोवियत खेमे के विघटन के घटना चक्र पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
सोवियत खेमे के विघटन का घटना चक्र सोवियत संघ नीति साम्यवादी गुट के विघटन की प्रक्रिया को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. मार्च, 1985 में गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। उन्होंने सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला प्रारम्भ कर दी।
  2. 1988 में लिथुआनिया में आजादी के लिए आन्दोलन शुरू हुए। यह आंदोलन एस्टोनिया और लताविया में भी फैला।
  3. अक्टूबर, 1989 में सोवियत संघ ने घोषणा कर दिया कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र है। नवंबर में बर्लिन की दीवार गिरी।
  4. फरवरी, 1990 में गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की शुरुआत की। सोवियत सत्ता पर कम्युनिस्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।
  5. जून, 1990 में रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।
  6. मार्च, 1990 में लिथुआनिया स्वतंत्रता की घेषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।
  7. जून, 1991 में येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा दे दिया और रूस के राष्ट्रपति बने।
  8. अगस्त, 1991 में कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया।
  9. एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया तीनों बाल्टिक गणराज्य सितंबर, 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।
  10. दिसंबर, 1991 में रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करने का फैसला किया और स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान ओर उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल में शामिल हुए। जार्जिया 1993 में राष्ट्रकुल का सदस्य बना। संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।
  11. 25 दिसंबर, 1991 में गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया। इस प्रकार सोवियत संघ का अंत हो गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी का अर्थ बताते हुए इसके परिणाम बताइये।
अथवा
शॉक थेरेपी क्या है? शॉक थेरेपी के परिणाम बताइये।
अथवा
शॉक थेरेपी से क्या अभिप्राय है? उत्तर साम्यवादी सत्ताओं पर इसके परिणामों का आकलन कीजिए।
उत्तर:
शॉक थेरेपी से आशय शॉक थेरेपी का आशय है कि धीरे-धीरे परिवर्तन न करके एकदम आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयत्नों को लादना । रूसी गणराज्य में इसके तहत तुरत-फुरत निजी स्वामित्व, मुक्त व्यापार, वित्तीय खुलापन · तथा मुद्रा परिवर्तनीयता पर बल दिया गया। ‘शॉक थेरेपी’ के परिणाम 1990 में अपनायी गयी ‘शॉक थेरेपी’ के निम्नलिखित प्रमुख परिणाम निकले

  1. अर्थव्यवस्था का तहस-नहस होना: शॉक थेरेपी से सोवियत संघ के पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को बेचा गया। यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ।
  2. रूसी मुद्रा ( रूबल ) में गिरावट: शॉक थेरेपी के कारण ‘रूबल’ को भारी गिरावट का सामना करना पड़ा। इस गिरावट के कारण मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लोगों ने जो पूँजी जमा कर रखी थी, वह धीरे-धीरे समाप्त हो गई और लोग कंगाल हो गये।
  3. खाद्यान्न सुरक्षा की समाप्ति: ‘शॉक थेरेपी’ के परिणामस्वरूप सामूहिक खेती प्रणाली समाप्त हो चुकी थी। अब लोगों की खाद्यान्न सुरक्षा व्यवस्था भी समाप्त हो गयी।
  4. समाज कल्याण की समाजवादी व्यवस्था का खात्मा: शॉक थेरेपी के परिणामस्वरूप रूस तथा अन्य राज्यों में गरीबी का दौर बढ़ता ही चला गया तथा वहाँ अमीरी और गरीबी के बीच विभाजन रेखा बढ़ती चली गई।
  5. लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण को प्राथमिकता नहीं-‘शॉक थेरेपी’ के अन्तर्गत लोकतान्त्रिक संस्थाओं का निर्माण हड़बड़ी में किया गया। फलस्वरूप संसद अपेक्षाकृत कमजोर संस्था रह गयी।

प्रश्न 10.
सोवियत संघ से स्वतन्त्र हुए गणराज्यों में हुए आन्तरिक संघर्ष और तनाव पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन से 15 प्रभुतासम्पन्न राज्यों का जन्म हुआ सोवियत संघ का मुख्य उत्तरदायित्व रूस गणराज्य ने संभाला, क्योंकि सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्यों में संघर्ष और तनाव की स्थिति थी। यथा
1. आंदोलन, तनाव तथा संघर्ष की स्थितियाँ: केन्द्रीय एशिया के अधिकांश राज्य सोवियत संघ से विघटन के पश्चात् अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। चेचन्या, दागिस्तान, ताजिकिस्तान तथा अजरबैजान आदि देशों में हिंसा की वारदातों के कारण गृह-युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। ये देश जातीय और धार्मिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। ताजिकिस्तान, उक्रेन, किरगिझस्तान तथा जार्जिया में शासन से जनता नाराज है और उसको उखाड़ फेंकने के लिए अनेक आन्दोलन चल रहे हैं।

2. नदी जल के सवाल पर संघर्ष – कई देश और प्रान्त नदी जल के सवाल पर परस्पर भिड़े हुए हैं।

3. विदेशी शक्तियों की इस क्षेत्र में रुचि बढ़ना – मध्य एशियाई गणराज्यों में पैट्रोलियम संसाधनों का विशाल भण्डार होने से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन चला है। फलतः अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है। रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती ‘विदेश’ मानता है और उसका मानना है कि इन राज्यों को रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। चीन के हित भी इस क्षेत्र से जुड़े हैं और चीनियों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में आकर व्यापार करना शुरू कर दिया है।

प्रश्न 11.
यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तो एक ध्रुवीय विश्व में हुए कौन-कौन से आर्थिक विकास नहीं होते?
उत्तर:
यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं होता तो अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में पिछले दो दशकों में हुए निम्नलिखित आर्थिक परिवर्तन या विकास नहीं होते-
1. अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण शुरू नहीं होता:
द्विध्रुवीय विश्व की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ में अमरीकी वर्चस्व स्थापित नहीं होता और व्यापार संगठन पर भी उसका वर्चस्व स्थापित नहीं हो पाता ऐसी स्थिति में अमेरिका विकासशील देशों को उदारीकरण की नीति अपनाने के लिए मजबूर नहीं कर पाता तथा इन देशों में व्यापार नियंत्रण, कोटा प्रणाली और लाइसेंस नीति चलती रहती तो मुक्त व्यापार जैसी स्थितियाँ नहीं आतीं।

2. वैश्विक स्तर पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का वर्चस्व नहीं होता:
यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था सीमा का अतिक्रमण करने वाली छलांग नहीं लगा पाती क्योंकि साम्यवादी अर्थव्यवस्था उसके मार्ग को अवरुद्ध कर देती और न ही संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संगठन अनेक देशों से शक्तिपूर्वक अपनी बात मनवा पाते। अमेरिका ने इन अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के द्वारा ही अपने. वर्चस्व का विस्तार किया है।

3. पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश शॉक थेरेपी के दौर से नहीं गुजरते:
सोवियत संघ के विघटन के बाद सोवियत संघ के सभी स्वतंत्र गणराज्यों तथा पूर्वी यूरोप के देशों को शॉक थेरेपी के दौर से गुजरना पड़ा तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग निजी क्षेत्र की कम्पनियों को औने-पौने कीमत पर बेच दिये गये। यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तो ये देश शॉक थेरेपी के दौर से नहीं गुजरते।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

बहुचयनात्मक प्रश्न 

1. द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत दो महाशक्तियाँ उभर कर सामने आयी थीं-
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ
(ब) सोवियत संघ और ब्रिटेन
(द) सोवियत संघ और चीन
उत्तर:
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ

2. क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट किस वर्ष उत्पन्न हुआ था ?
(अ) 1967
(ब) 1971
(स)1975
(द) 1962
उत्तर:
(द) 1962

3. बर्लिन दीवार कब खड़ी की गई थी?
(अ) 1961
(बं) 1962
(स) 1960
(द) 1971
उत्तर:
(अ) 1961

4. उत्तर एटलांटिक संधि-संगठन की स्थापना की गई थी-
(अ) 1962 में
(ब) 1967 में
(स) 1949 में
(द) 1953 में
उत्तर:
(स) 1949 में

5. वारसा संधि कब हुई ?
(अ) 1965 में
(ब) 1955 में
(स) 1957 में
(द) 1954 में
उत्तर:
(ब) 1955 में

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

6. तीसरी दुनिया से अभिप्राय है-
(अ) अज्ञात और शोषित देशों का समूह
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह
(स) सोवियत गुट के देशों का समूह
(द) अमेरिकी गुट के देशों का समूह
उत्तर:
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह

7. द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रमुख
(अ) एकध्रुवीय विश्व राजनीति
(ब) द्वि-ध्रुवीय राजनीति
(स) बहुध्रुवीय राजनीति
(द) अमेरिकी गुट विशेषता है
उत्तर:
(ब) द्वि-ध्रुवीय राजनीति

8. गुटनिरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन हुआ था।
(अ) नई दिल्ली में
(ब) द्वि- ध्रुवीय राजनीति
(स) अफ्रीका में
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं

9. वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन में कितने सदस्य हैं। के देशों का समूह
(अ) 115
(ब) 116
(स) 117
(द) 120
उत्तर:
(द) 120

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. प्रथम विश्व युद्ध ………………….. से………………….. के बीच हुआ था।
उत्तर:
1914, 1918

2. शीतयुद्ध ……………….. और ……………….. तथा इनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव और संघर्ष की श्रृंखला
उत्तर:
अमरिका, सोवियत संघ

3. धुरी – राष्ट्रों की अगुआई जर्मनी, ………………….. और जापान के हाथ में थी।
उत्तर:
इटली

4. …………………. विश्व युद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।
उत्तर:
द्वितीय

5. जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम का गुप्तनाम …………………. तथा ……………………. थी।
उत्तर:
लिटिल ब्वॉय, फैटमैन

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नाटो का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
नाटो का पूरा नाम है। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन)।

प्रश्न 2.
‘वारसा संधि’ की स्थापना का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर:
‘वारसा संधि’ की स्थापना का मुख्य कारण नाटो के देशों का मुकाबला करना था।

प्रश्न 3.
भारत के पहले प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे।

प्रश्न 4.
यूगोस्लाविया में एकता कायम करने वाले नेता कौन थे?
उत्तर:
जोसेफ ब्रॉज टीटो।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक वामे एनक्रूमा थे।

प्रश्न 6.
शीतयुद्ध का चरम बिन्दु क्या था?
उत्तर:
क्यूबा मिसाइल संकट।

प्रश्न 7.
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की जानकारी संयुक्त राज्य अमेरिका को कितने समय बाद लगी?
उत्तर:
तीन सप्ताह बाद।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के काल के तीन पश्चिमी या अमेरिकी गठबंधनों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो )।
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन ( सेन्टो)।
  3. केन्द्रीय संधि संगठन (सीटो )।

प्रश्न 9.
मार्शल योजना क्या थी?
उत्तर:
शीतयुद्ध काल में अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन हेतु जो आर्थिक सहायता की, वह मार्शल योजना के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 10.
परमाणु अप्रसार संधि कब हुई?
उत्तर;
परमाणु अप्रसार संधि 1 जुलाई, 1968 को हुई।

प्रश्न 11.
शीतयुद्ध का सम्बन्ध किन दो गुटों से था?
उत्तर:
शीत युद्ध का सम्बन्ध जिन दो गुटों से था, वे थे

  1. अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी गुट और
  2.  सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट।

प्रश्न 12.
शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच
1. 1950-53
2. 1962 में हुई किन्हीं दो मुठभेड़ों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. 1950-53 कोरिया संकट
  2. 1962 में बर्लिन और कांगो मुठभेड़।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 13.
नाटो में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिय।
उत्तर:

  1. अमेरिका
  2.  ब्रिटेन
  3. फ्रांस
  4. इटली।

प्रश्न 14.
शीत युद्ध के युग में एक पूर्वी गठबंधन और तीन पश्चिमी गठबंधनों के नाम लिखिये।
उत्तर:
पूर्वी गठबंधन – वारसा पैक्ट, पश्चिमी गठबंधन

  1. नाटो,
  2. सीएटो और
  3. सैण्टो।

प्रश्न 15.
वारसा पैक्ट में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. सोवियत संघ
  2. पोलैण्ड
  3. पूर्वी जर्मनी
  4. हंगरी।

प्रश्न 16.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के किन्हीं चार अग्रणी देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत
  2. इण्डोनेशिया
  3. मिस्र
  4. यूगोस्लाविया।

प्रश्न 17.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के कोई दो नकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:

  1. दो विरोधी गुटों का निर्माण।
  2. शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्धा का जारी रहना।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 18.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के कोई दो सकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म
  2. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन।

प्रश्न 19.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता थे

  1. जवाहरलाल नेहरू
  2. मार्शल टीटो
  3. कर्नल नासिर और
  4. डॉ. सुकर्णो।

प्रश्न 20.
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को कब घुटने टेकने पड़े?
उत्तर:
सन् 1945 में अमेरिका ने जब जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये तो जापान को घुटने टेकने पड़े।

प्रश्न 21.
शीत युद्ध में पश्चिमी गठबंधन की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
शीत युद्ध काल में पश्चिमी गठबंधन उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का समर्थक था।

प्रश्न 22.
सोवियत गठबंधन की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
सोवियत संघ गुट की वैचारिक प्रतिबद्धता समाजवाद और साम्यवाद के लिए थी।

प्रश्न 23.
पारमाणविक हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों द्वारा किये गये किन्हीं दो समझौतों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि
  2. परमाणु अप्रसार संधि।

प्रश्न 24.
1960 में दो महाशक्तियों द्वारा किये गए किन्हीं दो समझौतों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  1. परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि
  2. परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि।

प्रश्न 25.
पृथकतावाद से क्या आशय है?
उत्तर:
पृथकतावाद का अर्थ होता है। अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना।

प्रश्न 26.
गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद से कैसे अलग है?
उत्तर:
पृथकतावाद अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखने से है जबकि गुट निरपेक्षता में शांति और स्थिरता के लिए मध्यस्थता की सक्रिय भूमिका निभाना है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 27.
अल्प विकसित देश किन्हें कहा गया था?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को अल्प विकसित देश कहा गया था।

प्रश्न 28.
अल्प विकसित देशों के सामने मुख्य चुनौती क्या थी?
उत्तर:
अल्पं विकसित देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी।

प्रश्न 29.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में शीत युद्ध के दौर में भारत ने क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
भारत ने एक तरफ तो अपने को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा तो दूसरी तरफ अन्य नव स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमों में जाने से रोका।

प्रश्न 30.
भारत ‘नाटो’ अथवा ‘सीटो’ का सदस्य क्यों नहीं बना?
उत्तर:
भारत ‘नाटो’ अथवा ‘सीटो’ का सदस्य इसलिए नहीं बना क्योंकि भारत गुटनिरपेक्षता की नीति में विश्वास रखता है।

प्रश्न 31.
शीत युद्ध किनके बीच और किस रूप में जारी रहा?
उत्तर:
शीत युद्ध सोवियत संघ और अमेरिका तथा इनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वन्द्विता, तनाव और संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा।

प्रश्न 32.
द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की अगुवाई कौन-से देश कर रहे थे?
उत्तर:
अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और फ्रांस।

प्रश्न 33.
शीतयुद्ध के काल में पूर्वी गठबंधन का अगुआ कौन था तथा इस गुट की प्रतिबद्धता किसके लिए थी?
उत्तर:
शीतयुद्ध के काल में पूर्वी गठबंधन का अगुआ सोवियत संघ था तथा इस गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद के लिए थी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 34.
अमरीका ने जापान के किन दो शहरों पर परमाणु बम गिराया?
उत्तर:
हिरोशिमा तथा नागासाकी।

प्रश्न 35.
द्वितीय विश्व युद्ध कब से कब तक हुआ था?
उत्तर:
1939 से 1945।

प्रश्न 36.
वारसा संधि से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 37.
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन को पश्चिमी गठबंधन भी कहा जाता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देश अमरीका में शामिल हुए।

प्रश्न 38.
भारत ने सोवियत संध के साथ आपसी मित्रता की संधि पर कब हस्ताक्षर किय ?
उत्तर:
1971 में।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध का क्या अर्थ है?
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?
अथवा
उत्तर:
शीत युद्ध वह अवस्था है जब दो या दो से अधिक देशों के मध्य तनावपूर्ण वातावरण हो, लेकिन वास्तव में कोई युद्ध न हो। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वाद-विवाद, रेडियो प्रसारणों तथा सैनिक शक्ति के प्रसार द्वारा लड़े गये स्नायु युद्ध को शीत युद्ध कहा जाता है।

प्रश्न 2.
अपरोध का तर्क किसे कहा गया?
उत्तर:
अगर कोई शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जायेंगे। इसी को अपरोध का तर्क कहा गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 3.
सीमित परमाणु परीक्षण संधि के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सीमित परमाणु परीक्षण संधि – वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गई।

प्रश्न 4.
शीत युद्ध के दायरे से क्या आशय है?
उत्तर:
शीत युद्ध के दायरे से यह आशय है कि ऐसे क्षेत्र जहाँ विरोधी खेमों में बँटे देशों के बीच संकट के अवसर आए, युद्ध हुए या इनके होने की संभावना बनी, लेकिन बातें एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ीं।

प्रश्न 5.
तटस्थता से क्या आशय है?
उत्तर:
तटस्थता का अर्थ है – मुख्य रूप से युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना ऐसे देश युद्ध में न तो शामिल होते हैं और न ही युद्ध के सही-गलत होने के बारे में अपनी कोई राय देते हैं।

प्रश्न 6.
शीत युद्ध की कोई दो सैनिक विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
शीत युद्ध की दो सैनिक विशेषताएँ ये थीं:

  1. सैन्य गठबंधनों का निर्माण करना तथा इनमें अधिक से अधिक देशों को शामिल करना।
  2. शस्त्रीकरण करना तथा परमाणु मिसाइलों को बनाना तथा उन्हें युद्ध के महत्त्व के ठिकानों पर स्थापित करना।

प्रश्न 7.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आलोचना के दो आधारों को स्पष्ट कीजिये किन्हीं दो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आलोचना के दो आधार निम्नलिखित हैं-

  1. सिद्धान्तहीनता: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धान्तहीन रही है।
  2. अस्थिरता की नीति: भारत की गुटनिरपक्षता की नीति में अस्थिरता रही है।

प्रश्न 8.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने दो-ध्रुवीयता को कैसे चुनौती दी थी?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने

  1. एशिया, अफ्रीका व लातिनी अमरीका के नव स्वतंत्र देशों को गुटों से अलग रखने का तीसरा विकल्प देकर तथा
  2. शांति व स्थिरता के लिए दोनों गुटों में मध्यस्थता द्वारा दो – ध्रुवीयता को चुनौती दी थी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 9.
शीत युद्ध में विचारधारा के स्तर पर क्या लड़ाई थी?
उत्तर:
शीत युद्ध में विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौनसा है? अमरीकी गुट जहाँ उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था, वहाँ सोवियत संघ गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद और साम्यवाद के लिए थी।

प्रश्न 10.
किस घटना के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हुआ?
उत्तर:
अगस्त, 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े। इन बमों के गिराने के बाद ही दूसरे विश्व युद्ध का अन्त हुआ।

प्रश्न 11.
मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
1947 से 1952 तक जारी की गई अमरीकी मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों को अपने पुनर्निर्माण हेतु अमरीका की आर्थिक सहायता प्राप्त हुई।

प्रश्न 12.
शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच हुई किन्हीं चार मुठभेड़ों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के बीच निम्न मुठभेड़ें हुईं-

  1. 1950-53 का कोरिया युद्ध तथा कोरिया का दो भागों में विभक्त होना।
  2. 1954 का फ्रांस एवं वियतनाम का युद्ध जिसमें फ्रांसीसी सेना की हार हुई।
  3. बर्लिन की दीवार का निर्माण।
  4.  क्यूबा मिसाइल संकट (1962 )

प्रश्न 13.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
(i) जवाहरलाल नेहरू मिस्र
(ii) जोसेफ ब्रॉज टीटो
(iii) गमाल अब्दुल नासिर
(iv) सुकर्णो
उत्तर:
(i) जवाहरलाल नेहरू – मिस्र
(ii) जोसेफ ब्राज टीटो – इण्डोनेशिया
(iii) गमाल अब्दुल नासिर – भारत
(iv) सुकर्णो – यूगोस्लाविया

प्रश्न 14.
महाशक्तियों के बीच गहन प्रतिद्वन्द्विता होने के बावजूद शीत युद्ध रक्तरंजित युद्ध का रूप क्यों नहीं ले सका?
उत्तर:
शीत युद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें विजेता कौन है यह तय करना भी असंभव होगा इसलिए कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता था।

प्रश्न 15.
“शीत युद्ध में परस्पर प्रतिद्वन्द्वी गुटों में शामिल देशों से अपेक्षा थी कि वे तर्कसंगत और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करेंगे।” यहाँ तर्कसंगत और जिम्मेदारी भरे व्यवहार से क्या आशय है?
उत्तर:
यहाँ तर्कसंगत भरे व्यवहार से आशय है कि आपसी युद्ध में जोखिम है। पारस्परिक अपरोध की स्थिति में युद्ध लड़ना दोनों के लिए विध्वंसक साबित होगा। इस संदर्भ में जिम्मेदारी का अर्थ है- संयम से काम लेना और तीसरे विश्व युद्ध के जोखिम से बचना। बताइये।

प्रश्न 16.
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने क्यों आकर्षित किया? कोई दो कारण
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने निम्न कारणों से आकर्षित किया

  1. महाशक्तियाँ इन देशों में अपने सैनिक अड्डे बनाकर दुश्मन के देशों की जासूसी कर सकती थीं।
  2. छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे। इससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 17.
शीत युद्ध के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण कैसे होता था?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ- हानि के गणित से होता था।

  1. दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं।
  2. छोटे देशों ने सुरक्षा, हथियार और आर्थिक मदद की दृष्टि से गठबंधन किया।

प्रश्न 18.
उत्तर – एटलांटिक संधि संगठन (नाटो) कब बना तथा इसमें कितने देश शामिल थे?
उत्तर:
नाटो (NATO) : अप्रैल, 1949 में अमेरिका के नेतृत्व में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना हुई जिसमें 12 देश शामिल थे। ये देश थे: संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड, डेनमार्क, नार्वे , फिनलैंड,

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 19.
वारसा संधि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नाटो के जवाब में सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों के गठबंधन ने सन् 1955 में ‘वारसा संधि’ की। इसमें ये देश सम्मिलित हुए – सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया इसका मुख्य काम था – ‘नाटो’ में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना।

प्रश्न 20.
शीतयुद्ध के कारण बताएँ।
उत्तर:
शीत युद्ध के कारण – शीत युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. अमेरिका और सोवियत संघ के महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले में खड़े होना शीत युद्ध का कारण बना।
  2. विचारधाराओं के विरोध ने भी शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
  3. अपरोध के तर्क ने प्रत्यक्ष तीसरे युद्ध को रोक दिया। फलतः शीतयुद्ध का विकास हुआ।

प्रश्न 21.
शीतयुद्ध के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें। उत्तर – शीतयुद्ध के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित थे-

  1. विश्व का दो गुटों में विभाजन: शीतयुद्ध के कारण अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में विश्व दो खेमों में विभाजित हो गया। एक खेमा पूँजीवादी गुट कहलाया और दूसरा साम्यवादी गुट कहलाया।
  2. सैनिक गठबन्धनों की राजनीति: शीतयुद्ध के कारण सैनिक गठबंधनों की राजनीति प्रारंभ हुई।
  3. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति: शीतयुद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उत्पत्ति हुई एशिया- अफ्रीका के नव-स्वतंत्र राष्ट्रों ने दोनों गुटों से अपने को अलग रखने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बनाया।
  4. शस्त्रीकरण को बढ़ावा: शीत युद्ध के प्रभावस्वरूप शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला। दोनों गुट खतरनाक शस्त्रों का संग्रह करने लगे।

प्रश्न 22.
शीत युद्ध की तीव्रता में कमी लाने वाले कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निम्न कारणों से शीतयुद्ध की तीव्रता में कमी आयी-
1. अपरोध का तर्क:
अपरोध ( रोक और सन्तुलन ) के तर्क ने शीत युद्ध में संयम बरतने के लिए दोनों गुटों को मजबूर कर दिया । अपरोध का तर्क यह है कि जब दोनों ही विरोधी पक्षों के पास समान शक्ति तथा परस्पर नुकसान पहुँचाने की क्षमता होती है तो कोई भी युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता।

2. गठबंधन में भेद आना:
सोवियत संघ के साम्यवादी गठबंधन में भेद पैदा होने की स्थिति ने भी शीत युद्ध की तीव्रता को कम किया। साम्यवादी चीन की 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ से अनबन हो गयी।

3. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भी नव-स्वतंत्र राष्ट्रों को दो ध्रुवीय विश्व की गुटबाजी से अलग रहने का मौका दिया।

प्रश्न 23.
शीत युद्ध के काल में ‘अपरोध’ की स्थिति ने युद्ध तो रोका लेकिन यह दोनों महाशक्तियों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को नहीं रोक सकी। क्यों? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अपरोध की स्थिति शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों की प्रतिद्वन्द्विता को निम्न कारणों से नहीं रोक सकी-

  1. दोनों ही गुटों के पास परमाणु बमों का भारी भण्डारण था। दोनों एक- दूसरे से निरंतर सशंकित थ। इसलिए प्रतिस्पर्द्धा बनी रही, यद्यपि सम्पूर्ण विनाश के भय ने युद्ध को रोक दिया।
  2. दोनों महाशक्तियों की पृथक्-पृथक् विचारधाराएँ थीं। दोनों में विचारधारागत प्रतिद्वन्द्विता जारी रही क्योंकि उनमें कोई समझौता संभव नहीं था।
  3. दोनों महाशक्तियाँ औद्योगीकरण के चरम विकास की अवस्था में थीं और उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल विश्व के अल्पविकसित देशों से ही प्राप्त हो सकता था। इसलिए सैनिक गठबंधनों के द्वारा इन क्षेत्रों में दोनों अपने- अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए छीना-झपटी कर रहे थे।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 24.
महाशक्तियों ने ‘अस्त्र- नियंत्रण’ संधियाँ करने की आवश्यकता क्यों समझी?
उत्तर:
यद्यपि महाशक्तियों ने यह समझ लिया था कि परमाणु युद्ध को हर हालत में टालना जरूरी है। इसी समझ के कारण दोनों महाशक्तियों ने संयम बरता और शीत युद्ध एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की तरफ खिसकता रहा; तथापि दोनों के बी प्रतिद्वन्द्विता जारी थी। इस प्रतिद्वन्द्विता के चलते रहने से दोनों ही महाशक्तियाँ यह समझ रही थीं कि संयम के बावजूद गलत अनुमान या मंशा को समझने की भूल या किसी परमाणु दुर्घटना या किसी मानवीय त्रुटि के कारण युद्ध हो सकता है! इस बात को समझते हुए दोनों ही महाशक्तियों ने कुछेक परमाणविक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग करने का फैसला किया और अस्त्र नियंत्रण संधियों द्वारा हथियारों की दौड़ पर लगाम लगाई और उसमें स्थायी संतुलन लाया है।

प्रश्न 25.
1947 से 1950 के बीच शीतयुद्ध के विकास का वर्णन करें।
उत्तर:
1947 से 1950 के बीच शीतयुद्ध का विकास:

  1. मार्शल योजना (1947): अमेरिका ने यूरोप में रूसी प्रभाव को रोकने की दृष्टि से 1947 में पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण हेतु मार्शल योजना बनायी।
  2. बर्लिन की नाकेबन्दी: सोवियत संघ ने 1948 में बर्लिन कीं नाकेबंदी कर शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
  3. नाटो की स्थापना: 4 अप्रैल, 1949 को अमेरिकी गुट ने नाटो की स्थापना कर शीत युद्ध को बढ़ावा
  4. कोरिया संकट: 1950 में उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया के बीच हुए युद्ध ने भी शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 26.
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्यूबा का मिसाइल संकट 1962 में सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने अमरीका के तट पर स्थित एक द्वीपीय देश क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे के रूप में बदलने हेतु वहाँ परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दो गुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था। क्यूबा में मिसाइलों की तैनाती की जानकारी अमरीका को तीन हफ्ते बाद लगी।

इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाय। इस चेतावनी से लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा संकट के रूप में जाना गया। लेकिन सोवियत संघ के जहाजों के वापसी का रुख कर लेने से यह संकट टल गया।

प्रश्न 27.
1960 के दशक को खतरनाक दशक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
निम्न घटनाओं के कारण 1960 का दशक खतरनाक दशक कहा जाता है-

  1. कांगो संकट: 1960 के दशक के प्रारंभ में ही कांगो सहित अनेक स्थानों पर प्रत्यक्ष रूप से मुठभेड़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
  2. क्यूबा संकट: 1961 में क्यूबा में अमरीका द्वारा प्रायोजित ‘बे ऑफ पिग्स’ आक्रमण और 1962 में ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ ने शीतयुद्ध को चरम पर पहुँचा दिया।
  3. अन्य: सन् 1965 में डोमिनिकन रिपब्लिक में अमेरिकी हस्तक्षेप और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में सोवियत संघ के हस्तक्षेप से तनाव बढ़ा।

प्रश्न 28.
गुटनिरपेक्षता क्या है? क्या गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय तटस्थता है?.
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ- गुटनिरपेक्षता का अर्थ है कि महाशक्तियों के किसी भी गुट में शामिल न होना तथा इन गुटों के सैनिक गठबंधनों व संधियों से अलग रहना तथा गुटों से अलग रहते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना तथा विश्व राजनीति में भाग लेना। गुटनिरपेक्षता तटस्थता नहीं है – गुट निरपेक्षता तटस्थता की नीति नहीं है।

तटस्थता का अभिप्राय है युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। ऐसे देश न तो युद्ध में संलग्न होते हैं और न ही युद्ध के सही-गलत के बारे में अपना कोई पक्ष रखते हैं। लेकिन गुटनिरपेक्षता युद्ध को टालने तथा युद्ध के अन्त का प्रयास करने की नीति है।

प्रश्न 29.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की पाँच विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की विशेषताएँ-

  1. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने की नीति है।
  2. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति एक स्वतंत्र नीति है तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता हेतु अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय सहयोग देने की नीति है
  3. भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  4. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति नव-स्वतंत्र देशों के गुटों में शामिल होने से रोकने की नीति है।
  5. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति अल्पविकसित देशों को आपसी सहयोग तथा आर्थिक विकास पर बल देती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 30.
भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कोई चार कारण बताओ। भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई?
अथवा
उत्तर-भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीय हित की दृष्टि से भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए अपनाई ताकि वह स्वतंत्र रूप से ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सके जिनसे उसका हित सधता हो; न कि महाशक्तियों और खेमे के देशों का।
  2. दोनों महाशक्तियों से सहयोग लेने हेतु भारत ने दोनों महाशक्तियों से सम्बन्ध व मित्रता स्थापित करते हुए दोनों से सहयोग लेने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी।
  3. स्वतंत्र नीति-निर्धारण हेतु भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतंत्र नीति का निर्धारण कर सके।
  4. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए – भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

प्रश्न 31.
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये|
उत्तर:
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन;
सन् 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन बेलग्रेड में हुआ। इसी को बेलग्रेड शिखर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। यह सम्मेलन कम-से-कम निम्न तीन बातों की परिणति था

  1. भारत, यूगोस्लाविया, मिस्र, इण्डोनेशिया और घाना इन पाँच देशों के बीच सहयोग।
  2. शीत युद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते दायरे।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर बहुत से नव-स्वतंत्र अफ्रीकी देशों का नाटकीय उदय।

बेलग्रेड शिखर सम्मेलन में 25 सदस्य देश शामिल हुए। सम्मेलन में स्वीकार किये गये घोषणा-पत्र में कहा गया कि विकासशील राष्ट्र बिना किसी भय व बाधा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास को प्रेरित करें।

प्रश्न 32.
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता ‘साल्ट प्रथम’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (साल्ट ) प्रथम सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (साल्ट) का प्रथम चरण सन् 1969 के नवम्बर में प्रारंभ हुआ सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमरीका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई, 1972 को निम्नलिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए

  1. परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (ए वी एम ट्रीटी) – इस संधि के अन्तर्गत दोनों ही राष्ट्रों ने हवाई सुरक्षा एवं सामरिक प्रक्षेपास्त्र सुरक्षा को छोड़कर सामरिक युद्ध कौशल के प्रक्षेपास्त्रों व प्रणालियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  2. सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता हुआ जो 3 अक्टूबर, 1972 से प्रभावी हुआ।

प्रश्न 33.
” गुटनिरपेक्ष आंदोलन वैश्विक सम्बन्धों में खतरनाक दुश्मनी के युग में एक संस्थात्मक आशावादी अनुक्रिया के रूप में सामने आया। इसका मुख्य सिद्धान्त यह था कि जो महाशक्ति नहीं है या जिनके सदस्यों की किसी भी गुट में शामिल होने की अपनी कोई इच्छा नहीं थी। हमारे नेताओं ने किसी गुट में शामिल होने से मना करके तटस्थ रहना स्वीकार किया, इस तरह उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। ” ऊपर लिखित अनुच्छेद को पढ़ें एवं निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
(क) अनुच्छेद में संकेत दिए गए वैश्विक दुश्मनी का नाम लिखें।
(ख) दो महाशक्तियों का नाम लिखें, जिनका आपस में तनाव था।
(ग) भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल होने के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
(क) इस पैरे में वैश्विक दुश्मनी का अर्थ अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध से है।

(ख) अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच तनाव था।

(ग) भारत निम्नलिखित कारणों से गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल हुआ-
(i) भारत गुटों की राजनीति से अलग रहना चाहता था।
(ii) भारत दोनों शक्ति गुटों से लाभ प्राप्त करना चाहता था।

प्रश्न 34.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन को अनवरत जारी रखना द्वि-ध्रुवीय विश्व में एक चुनौती भरा काम था। क्यों? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शीत युद्ध काल के द्विध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को चलाये रखना एक चुनौती भरा काम था, क्योंकि:

  1. विश्व की दोनों महाशक्तियाँ नवस्वतंत्रता प्राप्त तीसरे विश्व के अल्पविकसित देशों को लालच देकर, दबाव डालकर तथा समझौते कर अपने-अपने गुट में मिलाने का प्रयास कर रही थीं।
  2. शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों द्वारा अनेक देशों पर हमले किये गये थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में गुट- निरपेक्ष आंदोलन को निरन्तर जारी रखना स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
  3. पाँच सदस्य देशों ने मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन का सफर शुरू किया था जिसकी संख्या बढ़ते हुए 120 तक हो गई है। शीतयुद्ध काल में अपने समर्थक देशों की इतनी संख्या बनाना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

प्रश्न 35.
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से अभिप्राय है। ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जिसमें नवोदित विकासशील राष्ट्रों का राष्ट्रीय विकास पूँजीवादी राष्ट्रों की इच्छा पर निर्भर न रहे। विश्व आर्थिक व्यवस्था का संचालन एक-दूसरे की संप्रभुता का समादर, अहस्तक्षेप एवं कच्चे माल व उत्पादन राष्ट्र का पूर्ण अधिकार आदि सिद्धान्तों पर आधारित हो। नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के मूल सिद्धान्त हैं।

  1. अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो, जिनका दोहन पश्चिम में विकसित देश करते हैं।
  2. अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक हो।
  3. पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो।
  4. अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़े।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 36.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य लिखिये।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के उद्देश्य – नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित

  1. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार हेतु प्रस्तावित की गई थी।
  2. इसमें अल्पविकसित देशों को उनके उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होने का उद्देश्य रखा गया है जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
  3. इसमें अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी।
  4. इसमें पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी।
  5. अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।
  6. विकसित देश विकासशील देशों में पूँजी का निवेश करेंगे, उन्हें न्यूनतम ब्याज की शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जायेगा तथा उनके पुनर्भुगतान की शर्तें भी लचीली होंगी।

प्रश्न 37.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थन में दो तर्क दीजिये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थन में तर्क-

  1. गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सका जिनसे उसका हित सता था न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  2. इसके कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि एक महाशक्ति उसके खिलाफ हो जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के नजदीक आने की कोशिश करे। अगर भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही धौंस जमा सकता था।

प्रश्न 38.
दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ-हानि के गणित से होता था। महाशक्तियों के बीच की तनातनी का मुख्य अखाड़ा यूरोप बना। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि अपने गुट में शामिल करने के लिए महाशक्तियों ने बल प्रयोग किया। सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। इस क्षेत्र के देशों में सोवियत संघ की सेना की व्यापक उपस्थिति ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपना प्रभाव जमाया कि यूरोप का पूरा पूर्वी हिस्सा सोवियत संघ के दबदबे में रहे। पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया तथा पश्चिम एशिया में अमरीका ने गठबंधन का तरीका अपनाया। इन गठबंधनों को दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन (SEATO) और केन्द्रीय संधि संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 39.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सटीक परिभाषा कर पाना मुश्किल है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समय के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई। 2019 में अजरबेजान में हुए 18वें सम्मेलन में 120 सदस्य देश और 17 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए। जैसे-जैसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में बढ़ता गया वैसे-वैसे इसमें विभिन्न राजनीतिक प्रणाली और अलग-अलग हितों के देश शामिल होते गए। इससे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मूल स्वरूप में बदलाव आया इसी कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सटीक परिभाषा कर पाना मुश्किल है।

प्रश्न 40.
गुटनिरपेक्षता के आंदोलन की बदलती प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समय बीतने के साथ गुटनिरपेक्षता की प्रकृति भी बदली तथा इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। बेलग्रेड में हुए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं थे। सन् 1970 के दशक के मध्य तक आर्थिक मुद्दे प्रमुख हो उठे। इसके परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया। सन् 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध तक नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को बनाये चलाये रखने के प्रयास मंद पड़ गए।

प्रश्न 41.
” अमरीका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराना एक राजनीतिक खेल था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अगस्त, 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए और तब जापान को आत्मसमर्पण करना पड़ा इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति हो गई। यद्यपि अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है। अमरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था। वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत है। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि अमरीका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराना एक राजनीतिक खेल था।

प्रश्न 42.
हथियारों की होड़ पर लगाम लगाने हेतु महाशक्तियों द्वारा किए गए प्रयत्नों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दोनों महाशक्तियों को इस बात का अंदाजा था कि परमाणु युद्ध दोनों के लिए विनाशकारी होगा। इस कारण, अमेरिका और सोवियत संघ ने कुछेक परमाण्विक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने हेतु आपस में सहयोग का फैसला किया। अतः दोनों ने ‘अस्त्र – नियन्त्रण’ का फैसला किया। इस प्रयास की शुरुआत 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुई और एक ही दशक के भीतर दोनों पक्षों ने तीन अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। ये समझौते थे– परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि, परमाणु अप्रसार सन्धि और परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन सन्धि तत्पश्चात् महाशक्तियों ने ‘अस्त्र परिसीमन के लिए वार्ताओं के कई दौरे किए और हथियारों पर अंकुश रखने के लिए अनेक सन्धियाँ कीं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? यह संकट कैसे टला ? क्यूबा का मिसाइल संकट
उत्तर:
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु मिसाइलें तैनात करना: सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने अमरीका के तट पर स्थित एक छोटे से द्वीपीय देश क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ के रूप में बदलने हेतु 1962 में क्यूबा परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं।

अमरीका का नजदीकी निशाने की सीमा में आना: मिसाइलों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। अब सोवियत संघ पहले की तुलना में अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था।

अमरीका की प्रतिक्रिया तथा सोवियत संघ को संयम भरी चेतावनी: क्यूबा में इन परमाणु मिसाइलों की तैनाती की जानकारी अमरीका को तीन हफ्ते बाद लगी। इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाये। अमरीका की इस चेतावनी से ऐसा लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में जाना गया।

सोवियत संघ का संयम भरा कदम और संकट की समाप्ति: अमरीका की गंभीर चेतावनी को देखते हुए सोवियत संघ ने संयम से काम लिया और युद्ध को टालने का फैसला किया। सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापसी का रुख कर लिया। इस प्रकार क्यूबा मिसाइल संकट टल गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 2.
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं? अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर इसके प्रभाव का परीक्षण कीजिये । उत्तर- शीत युद्ध का अर्थ – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लेकर 1990 तक विश्व राजनीति में दो महाशक्तियों- अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में उदारवादी पूँजीवादी गुट तथा साम्यवादी समाजवादी गुट के बीच जो शक्ति व प्रभाव विस्तार की प्रतिद्वन्द्विता चलती रही, उसे शीत युद्ध का नाम दिया गया। दोनों के बीच यह वाद-विवादों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो प्रसारणों तथा भाषणों से लड़ा जाने वाला युद्ध; शस्त्रों की होड़ को बढ़ाने वाली एक सैनिक प्रवृत्ति तथा दो भिन्न विचारधाराओं का युद्ध था। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध का प्रभाव: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े। यथा
(अ) नकारात्मक प्रभाव:

  1. शीत युद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भय और सन्देह के वातावरण को निरन्तर बनाए रखा।
  2. इसने सैनिक गठबन्धनों को जन्म दिया; सैनिक अड्डों की स्थापना की, शस्त्रों की दौड़ तेज की और विनाशकारी शस्त्रों के निर्माण को बढ़ावा दिया।
  3. इसने विश्व में दो विरोधी गुटों को जन्म दिया।
  4. इसके कारण सम्पूर्ण विश्व पर परमाणु युद्ध का भय छाया रहा।
  5. शीत युद्ध ने निःशस्त्रीकरण के प्रयासों को अप्रभावी बना दिया।

(ब) सकारात्मक प्रभाव-

  1. शीत युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म तथा विकास हुआ।
  2. इसकी भयावहता के कारण शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन मिला।
  3. इसके कारण आणविक शक्ति के क्षेत्र में तकनीकी और प्राविधिक विकास को प्रोत्साहन मिला।
  4. इसने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 3.
शीतयुद्ध के उदय के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
शीत
युद्ध
शीत युद्ध के उदय के कारण के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:

  1. परस्पर सन्देह एवं भय: दोनों गुटों के बीच शीत युद्ध के प्रारंभ होने का प्रमुख कारण परस्पर संदेह, अविश्वास तथा डर का व्याप्त होना था।
  2. विरोधी विचारधारा: दोनों महाशक्तियों के अनुयायी देश परस्पर विरोधी विचारधारा वाले देश थे। विश्व में. दोनों ही अपना-अपना प्रभाव – क्षेत्र बढ़ाने में लगे थे।
  3. अणु बम का रहस्य सोवियत संघ से छिपाना: अमरीका ने अणु बम बनाने का रहस्य सोवियत संघ से छुपाया। जापान पर जब उसने अणु बम गिरा कर द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त किया तो सोवियत संघ ने इसे अपने विरुद्ध भी समझा। इससे दोनों महाशक्तियों के बीच दरार पड़ गयी।
  4. अमेरिका और सोवियत संघ का एक-दूसरे का प्रतिद्वन्द्वी बनना: अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीत युद्ध का कारण बना।
  5. अपरोध का तर्क: शीत युद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसे अपरोध का तर्क कहा गया।

प्रश्न 4.
शीत युद्धकालीन द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
शीत युद्धकालीन द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियाँ – शीत युद्ध के दौरान विश्व दो प्रमुख गुटों में बँट गया एक गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था और दूसरे गुट का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। लेकिन शीत युद्ध के दौरान ही द्विध्रुवीय विश्व को चुनौतियाँ मिलना शुरू हो गयी थीं। ये चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं-
1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
शीत युद्ध के दौरान द्विध्रुवीय विश्व को सबसे बड़ी चुनौती गुटनिरपेक्ष आंदोलन से मिली। गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अल्पविकसित तथा विकासशील नव-स्वतंत्र देशों को दोनों गुटों से अलग रहने का तीसरा विकल्प दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देशों ने स्वतंत्र विदेश नीति अपनायी; शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वन्द्वी गुटों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका निभायी।

2. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था ने भी द्विध्रुवीय विश्व को चुनौती दी। मई, 1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के छठे विशेष अधिवेशन में महासभा ने पुरानी विश्व अर्थव्यवस्था को समाप्त करके एक नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए विशेष कार्यक्रम बनाया; गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने भी इसकी स्थापना के लिए दबाव बनाया।

3. साम्यवादी गठबंधन में दरार पड़ना:
साम्यवादी चीन की 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ से अनबन हो गई। 1971 में अमरीका ने चीन के नजदीक आने के प्रयास किये इस प्रकार साम्यवादी गठबंधन में दरार पड़ने से भी द्विध्रुवीय विश्व को चुनौती मिली।

प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति एवं सिद्धान्तों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ- गुटनिरपेक्षता का अर्थ है। दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहना। यह महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने तथा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाते हुए विश्व राजनीति में शांति और स्थिरतां के लिए सक्रिय रहने का आंदोलन है। अतः गुटनिरपेक्षता का अर्थ है – किसी भी देश को प्रत्येक मुद्दे पर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हित एवं विश्व शांति के आधार पर गुटों से अलग रहते हुए स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाने की स्वतन्त्रता।

गुटनिरपेक्षता की प्रकृति एवं सिद्धान्त; गुटनिरपेक्षता की प्रकृति को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

  1. गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद नहीं: पृथकतावाद का अर्थ होता है कि अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना। जबकि गुटनिरपेक्षता की नीति विश्व के मामलों में सक्रिय रहने की नीति है।
  2. गुटनिरपेक्ष तटस्थता नहीं है: तटस्थता का अर्थ होता है। मुख्य रूप से युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। जबकि गुटनिरपेक्ष देश युद्ध में शामिल हुए हैं। इन देशों ने दूसरे देशों के बीच युद्ध को होने से टालने के लिए काम किया है और हो रहे युद्ध के अंत के लिए प्रयास भी किये हैं।
  3. विश्व शांति की चिन्ता: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रमुख चिंता विश्व में शांति स्थापित करना है।
  4. आर्थिक सहायता लेना: गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल देश अपने आर्थिक विकास के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं, ताकि वे अपना आर्थिक विकास कर आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो सकें।
  5. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना: गुटनिरपेक्ष देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की धारणा का समर्थन किया और इसकी स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में दबाव बनाया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 6.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेता कौन थे? गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका बताइये
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की जड़ में यूगोस्लाविया के जोसेफ ब्रॉज टीटो, भारत के जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर प्रमुख थे। इंडोनेशिया के सुकर्णो और घाना के वामे एनक्रूमा ने इनका जोरदार समर्थन किया। ये पांच नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कहलाये।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक – भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य रहा है। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की नीति का प्तिपादन किया।
  2. स्वयं को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा – शीत युद्ध के दौर में भारत ने सजग और सचेत रूप से अपने को दोनों महाशक्तियों की खेमेबन्दी से दूर रखा।
  3. नव – स्वतंत्र देशों को आंदोलन में आने की ओर प्रेरित किया- भारत ने नव-स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमे में जाने का पुरजोर विरोध किया तथा उनके समक्ष तीसरा विकल्प प्रस्तुत करके उन्हें गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सदस्य बनने को प्रेरित किया।
  4. विश्व शांति और स्थिरता के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को सक्रिय रखना – भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय हस्तक्षेप की नीति अपनाने पर बल दिया।
  5. वैचारिक एवं संगठनात्मक ढाँचे का निर्धारण- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के वैचारिक एवं संगठनात्मक ढाँचे के निर्धारण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  6. समन्वयकारी भूमिका – भारत ने समन्वयकारी भूमिका निभाते हुए सदस्यों के बीच उठे विवादास्पद मुद्दों को टालने या स्थगित करने पर बल देकर आंदोलन को विभाजित होने से बचाया।

प्रश्न 7.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचना:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है। भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के लाभ गुटनिरपेक्षता की नीति ने निम्न क्षेत्रों में भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया है।

  1. राष्ट्रीय हित के अनुरूप फैसले: गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले और पक्ष ले सका जिनसे उसका हित सधता था, न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में अपने महत्त्व को बनाए रखने में सफल: गुटनिरपेक्ष नीति अपनाने के कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि अगर भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है, तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत सरकार को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही धौंस जमा सकता था।

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की निम्नलिखित कारणों से आलोचना की गई है।
1. सिद्धान्तविहीन नीति:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धान्तविहीन है। कहा जाता है कि भारत के अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के नाम पर अक्सर महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर कोई सुनिश्चित पक्ष लेने से बचता रहा।

2. अस्थिर नीति: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति में अस्थिरता रही है और कई बार तो भारत की स्थिति विरोधाभासी रही।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 8.
शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों द्वारा निःशस्त्रीकरण की दिशा में किये गये प्रयासों का उल्लेख कीजिये
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण के प्रयास: शीत युद्ध काल में दोनों पक्षों ने निःशस्त्रीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख प्रयास किये
1. सीमित परमाणु परीक्षण संधि (एलटीबीटी):
1963, वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गयी।

2. परमाणु अप्रसार संधि, 1967: यह संधि केवल पांच परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों को ही एटमी हथियार रखने की अनुमति देती है और शेष सभी देशों को ऐसे हथियार हासिल करने से रोकती है। यह संधि 5 मार्च, 1970 से प्रभावी हुई। इस संधि को 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया है।

3. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता – I ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स – साल्ट – I) सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता का पहला चरण सन् 1969 के नवम्बर में आरंभ हुआ सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई, 1972 को निम्नलिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए-
(क) परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (एबीएम ट्रीटी)।
(ख) सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता। ये अक्टूबर, 1972 से प्रभावी

4. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता – II ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स – सॉल्ट – II ) यह संधि अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव के बीच 18 जून, 1979 को हुआ था। इस संधि का उद्देश्य सामरिक रूप से घातक हथियारों पर प्रतिबंध लगाना था।

5. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि – I: अमरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (सीनियर) और सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने 31 जुलाई, 1991 को घातक हथियारों के परिसीमन और उनकी संख्या में कमी लाने से संबंधित संधि पर हस्ताक्षर किए।

6. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि – II: सामरिक रूप से घातक हथियारों को सीमित करने और उनकी संख्या में कमी करने हेतु इस संधि पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और अमरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर) ने मास्को में 3 जनवरी, 1993 को हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 9.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? इसके बुनियादी सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से आशय – नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में जिन बातों पर जोर दिया गया है, वे हैं। विकासशील देशों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना; साधनों को विकसित देशों से विकासशील देशों में भेजना अल्प विकसित देशों का अपने उन प्राकृतिक साधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो, जिनका दोहन पश्चिमी विकसित देश करते हैं; अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक हो तथा पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो। नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद तथा नव उपनिवेशवाद व नव-साम्राज्यवाद को उनके सभी रूपों में समाप्त करना चाहती है। यह न्याय तथा समानता पर आधारित, लोकतंत्र के सिद्धान्त पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था है।

नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धान्त: नवीन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धान्त इस प्रकार हैं-

  1. खनिज पदार्थों और समस्त प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों पर उसी राष्ट्र की संप्रभुता की स्थापना करना।
  2. कच्चे माल और तैयार माल की कीमतों में ज्यादा अन्तर न होना।
  3. विकसित देशों के साथ व्यापार की वरीयता का विस्तार करना।
  4. विकासशील देशों द्वारा उत्पादित औद्योगिक माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना।
  5. विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों के मध्य तकनीकी विकास की खाई को पाटना।
  6. विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना।
  7. बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों पर समुचित नियंत्रण लगाना।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 10.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गये प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गये प्रयास 70 के दशक में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रयास हुए हैं।

1. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर ‘अंकटाड’ तथा ‘यू.एन.आई.डी. ओ. के माध्यम से अनेक प्रयत्न किये गये:
(अ) अंकटाड के स्तर पर 1964 से लेकर कई सम्मेलन हुए जिनका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संप्रभुता सम्पन्न, समानता तथा सहयोग के आधार पर पुनर्गठित करना रहा है जिससे इसको न्याय पर आधारित बनाया जा सके। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार एवं विकास से संबंधित सम्मेलन वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया ताकि अल्प विकसित देशों के अपने समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो सके, वे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपना माल बेच सकें। कम लागत से उन्हें प्रौद्योगिकी मिल सके आदि।

(ब) यू.एन.आई.डी.ओ. के माध्यम से विकासशील देशों में औद्योगीकरण की गति को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया हैं

2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन के स्तर पर: 1970 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया । इन देशों की पहल के क्रियान्वयन के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा का छठा अधिवेशन बुलाया गया जिसने ‘नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था’ स्थापित करने की घोषणा की।

3. विकासशील राष्ट्रों के स्तर पर: 1982 में दिल्ली में हुए विकासशील देशों के सम्मेलन में इनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए आह्वान किया गया और नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में सहयोग हेतु आठ सूत्री कार्यक्रम रखा गया। इसमें संरक्षणवाद की समाप्ति पर भी बल दिया गया।

प्रश्न 11.
‘अपरोध’ का तर्क किसे कहा गया है? विस्तार में समझाइये।
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। विश्वयुद्ध की समाप्ति के कारण कुछ भी हो परंतु इसका परिणामस्वरूप वैश्विक राजनीति के मंच पर दो महाशक्तियों का उदय हो गया। जर्मनी और जापान हार चुके थे और यूरोप तथा शेष विश्व विध्वंस की मार झेल रहे थे। अब अमरीका और सोवियत संघ विश्व की सबसे बड़ी शक्ति थे। इनके पास इतनी क्षमता थी कि विश्व की किसी भी घटना को प्रभावित कर सके। अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना। शीतयुद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी काम कर रही थी कि परमाणु बम होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बूते की बात नहीं।

जब दोनों महाशक्तियों के पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार हों कि वे एक-दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सके तो ऐसे में दोनों के बीच रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है। उकसावे के बावजूद कोई भी पक्ष युद्ध का जोखिम मोल लेना नहीं चाहेंगा क्योंकि युद्ध से राजनीतिक फायदा चाहे किसी को भी हो, लेकिन इससे होने वाले विध्वंस को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता। परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें से विजेता कौन है – यह तय करना भी मुश्किल होगा। यदि कोई अपने शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जाएँगे। इसे ‘अपरोध’ का तर्क कहा गया है।