JAC Board Class 10th Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
JAC Class 10th Economics भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्प का प्रयोग कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) सेवा क्षेत्रक में रोजगार में उत्पादन के समान अनुपात में वृद्धि ……..। (हुई है/नहीं हुई है)
(ख) ……. क्षेत्रक के श्रमिक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते हैं। (तृतीयक/कृषि)
(ग) ……. क्षेत्रक के अधिकांश श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है। (संगठित/असंगठित)
(घ) भारत में ……. अनुपात में श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम कर रहे हैं। (बड़े/छोटे)
(ङ) कपास एक ……. उत्पाद है और कपड़ा एक …… उत्पाद है। (प्राकृतिक/विनिर्मित)
(च) प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ …… हैं। (स्वतन्त्र/परस्पर निर्भर)
उत्तर:
(क) नहीं हुई है,
(ख) तृतीयक,
(ग) संगठित,
(घ) बड़े,
(ङ) प्राकृतिक, विनिर्मित,
(च) परस्पर निर्भर।
प्रश्न 2.
सही उत्तर का चयन करें
(अ) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक …………के आधार पर विभाजित हैं।
(क) रोजगार की शर्तों
(ख) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(घ) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या
उत्तर:
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(ब) एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन ……. क्षेत्रक की गतिविधि है।
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) सूचना प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(क) प्राथमिक
(स) किसी वर्ष में उत्पादित ……… के मूल्य के कुल योगफल को स. घ. उ. कहते हैं।
(क) सभी वस्तुओं और सेवाओं ……
(ख) सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं
(घ) सभी मध्यवर्ती एवं अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
उत्तर:
(ख) सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
(द) स. घ. उ. के पदों में वर्ष 2013 – 14 में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी ……… प्रतिशत है।
(क) 20 से 30
(ख) 30 से 40
(ग) 50 से 60
(घ) 60 से 70
उत्तर:
(घ) 60 से 70
प्रश्न 3.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए
कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ |
कुछ सम्भावित उपाय। |
1. असिंचित भूमि |
(अ) कृषि-आधारित मिलों की स्थापना |
2. फसलों का कम मूल्य |
(ब) सहकारी विपणन समितियाँ |
3. कर्ज भार |
(स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली |
4. मंदी काल में रोजगार का अभाव |
(द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण |
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना अनाज बेचने की विवशता |
(य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलब्ध कराना |
उत्तर:
कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ |
कुछ सम्भावित उपाय। |
1. असिंचित भूमि |
(द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण |
2. फसलों का कम मूल्य |
(स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली |
3. कर्ज भार |
(य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलब्ध कराना |
4. मंदी काल में रोजगार का अभाव |
(अ) कृषि-आधारित मिलों की स्थापना |
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना अनाज बेचने की विवशता |
(ब) सहकारी विपणन समितियाँ |
प्रश्न 4.
विषम की पहचान करें और बताइए क्यों?
(क) पर्यटन-निर्देशक, धोबी, दर्जी, कुम्हार
(ख) शिक्षक, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, वकील
(ग) डाकिया, मोची, सैनिक, पुलिस कांस्टेबल
(घ) एम. टी. एन. एल., भारतीय रेल, एयर इण्डिया, जेट एयरवेज, ऑल इण्डिया रेडियो।
उत्तर:
(क) पर्यटन निर्देशक क्योंकि यह तृतीयक क्षेत्रक का है।
(ख) सब्जी विक्रेता क्योंकि इसे नियमित रोजगार प्राप्त नहीं होता है।
(ग) मोची क्योंकि यह असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है।
(घ) जेट एयरवेज क्योंकि यह निजी क्षेत्रक का उपक्रम है जबकि अन्य राजकीय क्षेत्र के उपक्रम हैं।
प्रश्न 5.
एक शोध छात्र ने सूरत शहर में काम करने वाले लोगों से मिलकर निम्न आँकड़े जुटाए
कार्य स्थान |
रोजगार की प्रकृति |
श्रमिकों का प्रतिशत |
1. सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों और कारखानों में |
संगठित |
15 |
2. औपचारिक अधिकार-पत्र सहित बाजारों में अपनी दुकान, कार्यालय और क्लीनिक |
|
15 |
3. सड़कों पर काम करते लोग, निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक |
|
20 |
4. छोटी कार्यशालाओं में काम करते लोग, जो प्रायः सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं |
|
|
तालिका को पूरा कीजिए। इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की प्रतिशतता क्या है?
उत्तर:
कार्य स्थान |
रोजगार की प्रकृति |
श्रमिकों का प्रतिशत |
सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों और कारखानों में |
संगठित |
15 |
औपचारिक अधिकार-पत्र सहित बाजारों में अपनी दुकान, कार्यालय और क्लीनिक |
असंगठित |
15 |
सड़कों पर काम करते लोग, निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक |
असंगठित |
20 |
छोटी कार्यशालाओं में काम करते लोग, जो प्रायः सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं। |
असंगठित |
50 |
सूरत शहर में असंगठित क्षेत्रक में 85% श्रमिक कार्यरत हैं।
प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है? व्याख्या कीजिए कि कैसे?
उत्तर:
1. हाँ, हम मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है। क्षेत्रों पर आधारित अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण यह प्रदर्शित करता है कि आर्थिक क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं। प्राथमिक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जो प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर आधारित होती हैं; जैसे: कृषि, डेयरी, मत्स्य, वनारोपण आदि।
2. द्वितीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जिसमें प्राकृतिक या प्राथमिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है; जैसे-कपास से कपड़ों का निर्माण।
3. तृतीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे गतिविधियों सम्मिलित होती हैं जो प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं; जैसे-परिवहन, बीमा, बैंकिंग आदि। यह वर्गीकरण अत्यधिक उपयोगी है क्योंकि इसके द्वारा हमें विकास के साथ-साथ व्यावसायिक स्थिति के बारे में भी ज्ञान प्राप्त होता है। इसके द्वारा हमें निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है।
- आर्थिक क्रियाओं का स्पष्ट विभाजन,
- सकल घरेलू उत्पादन में विभिन्न क्षेत्रकों का योगदान,
- विभिन्न क्षेत्रकों में कार्यरत श्रमिकों की संख्या,
- विभिन्न क्षेत्रकों में उपलब्ध रोजगार का वितरण,
- विभिन्न क्षेत्रकों का राष्ट्रीय आय में योगदान।
प्रश्न 7.
इस अध्याय में आए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) पर ही क्यों केन्द्रित करना चाहिए? क्या अन्य वाद पदों का परीक्षण किया जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर:
इस अध्याय में आर्थिक गतिविधियों को विभिन्न क्षेत्रकों में बाँटा गया है; जैसे-प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक, संगठित व असंगठित क्षेत्रक तथा निजी व सार्वजनिक क्षेत्रक। रोजगार बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह गरीबी जैसी अनेक आर्थिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। वहीं दूसरी तरफ सकल घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय आय में प्रत्येक क्षेत्र के योगदान को ज्ञात करने में मदद करता है।
हमें अपनी वर्तमान तथा भविष्य की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) पर केन्द्रित होना चाहिए क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो सकता है। अर्थव्यवस्था का विकास न होने की स्थिति में रोजगारों में वृद्धि नहीं होगी। बेरोजगारी व अल्प रोजगार की भयावह समस्या उत्पन्न होगी जो देश के लिए अनेक समस्याओं की जड़ होगी।
प्रश्न 8.
जीविका के लिए काम करने वाले अपने आस-पास के वयस्कों के सभी कार्यों की लम्बी सूची बनाइए। उन्हें आप किस तरीके से वर्गीकृत कर सकते हैं? अपने चयन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मेरे आस-पास रहने वाले लोग विभिन्न प्रकार के कार्य करते हैं। इनकी सूची निम्नलिखित है
- कृषि कार्य, पशुपालन, लकड़ी काटना, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, वनों से कन्द-मूल-फल संग्रह करना आदि।
- विभिन्न वस्त्र मिलों में कार्य करना, कपड़ा बुनना, चीनी, गुड़ व खाण्डसारी उद्योग में काम करना, फर्नीचर उद्योग में काम करना। रेलवे, जहाजरानी एवं इंजीनियरिंग उद्योग में काम करना आदि।
- विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत लोग, जैसे-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, क्लर्क, सिपाही, टेलीफोन ऑपरेटर, बैंकिंग व बीमा कम्पनियों में कार्यरत लोग, व्यावसायिक परिवहन व संचार सेवाओं में काम करना।
- दैनिक मजदूरी पर कार्य करने वाले लोग।
- घरेलू नौकर।
उपरोक्त कार्यों में संलग्न लोगों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है
- प्राथमिक क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग
- द्वितीयक क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग
- तृतीयक क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग।
- में संगठित क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग तथा असंगठित क्षेत्रक में कार्य करने वाले लोग।
प्रश्न 9.
तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से कैसे भिन्न है? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
अथवा
“तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ, प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती हैं।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
तृतीयक क्षेत्रक किस प्रकार प्राथमिक और द्वितीय क्षेत्रों के विकास में सहायता करता है? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक परिवहन, संचार, बीमा, बैंकिंग, भण्डारण व व्यापार आदि से सम्बन्धित सेवाएँ प्रदान करता है। तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। तृतीयक क्षेत्रक अन्य दो क्षेत्रकों से भिन्न है। इसका कारण है कि अन्य दो क्षेत्रक (प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक) वस्तुएँ उत्पादित करते हैं जबकि यह क्षेत्रक अपने आप कोई वस्तु उत्पादित नहीं करता है बल्कि इस क्षेत्रक में सम्मिलित क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में माध्यम होती हैं अर्थात् ये प्राथमिक क्रियाएँ उत्पादन प्रक्रिया में मदद करती हैं।
उदाहरण के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रैक्टर, ट्रकों एवं रेलगाड़ी द्वारा परिवहन करने की जरूरत पड़ती है। इन वस्तुओं को कभी-कभी गोदाम या शीतगृह में भण्डारण की भी आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन एवं व्यापार में सुविधा के लिए कई लोगों से टेलीफोन से भी बातें करनी होती हैं या पत्राचार करना पड़ता है एवं कभी-कभी बैंक से पैसा भी उधार लेना पड़ता है। इस प्रकार परिवहन, भण्डारण, संचार एवं बैंकिंग प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में सहायक होते हैं। अतः स्पष्ट है कि तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ, प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती हैं।
प्रश्न 10.
प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रच्छन्न बेरोजगारी या छिपी हुई बेरोजगारी के अन्तर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तव में बेरोजगार होते हैं। इस व्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं। यदि उन्हें इस व्यवस्था से हटाकर किसी अन्य व्यवस्था में स्थानान्तरित कर दिया जाए तो भी उत्पादन प्रभावित नहीं हो, तो यह स्थिति प्रच्छन्न बेरोजगारी की स्थिति कही जायेगी।
इस प्रकार प्रच्छन्न बेरोजगारी से आशय किसी विशेष आर्थिक क्रिया में उत्पादन हेतु आवश्यकता से अधिक मात्रा में श्रमिकों के लगे होने से है।
1. शहरी क्षेत्रों के उदाहरण:
प्रच्छन्न बेरोजगारी शहरी क्षेत्रों में प्रायः छोटी फुटकर दुकानों एवं छोटे व्यवसायों में लगे परिवारों की स्थिति से भी मापी जाती है। एक शहरी क्षेत्र की एक दुकान में जिसमें केवल दो लोगों की आवश्यकता है, यदि मालिक व 3 नौकर कार्य करते हैं। इसमें 2 नौकर प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार हैं क्योंकि इनकी दुकान में आवश्यकता ही नहीं है।
2. ग्रामीण क्षेत्रों के उदाहरण:
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रच्छन्न बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। उदाहरण के लिए, किसी किसान के पास 3 हेक्टेयर का एक छोटा-सा खेत है जिसमें कार्य करने के लिए दो लोग पर्याप्त हैं परन्तु उस किसान के परिवार के सभी सात सदस्य इस खेत में लगे रहते हैं। यदि इस कार्य से 5 लोगों को हटा लिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं आएगी। इस तरह 5 लोग प्रच्छन्न बेरोजगार की श्रेणी में आएंगे क्योंकि उनकी खेत में आवश्यकता ही नहीं है।
प्रश्न 11.
खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्नं बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।
उत्तर:
खली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच निम्नलिखित विभेद (अन्तर) हैं
खुली बेरोजगारी |
प्रच्छन्न बेरोजगारी |
1. इसके अन्तर्गत एक श्रमिक काम करने के लिए तैयार होता है, परन्तु उसे काम नहीं मिलता। |
1. इसके अन्तर्गत श्रमिक काम करता है परन्तु यदि उसे इस काम से हटा दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् कोई कमी नहीं आती है। |
2. यह स्थाई प्रकृति की होती है। |
2. यह अस्थाई प्रकृति की होती है। |
3. इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः देश के औद्योगिक |
3. इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पाई जाती क्षेत्रों में पायी जाती है। |
4. यह बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन खेतिहर |
4. यह बेरोजगारी शहरी क्षेत्रों में छोटी-छोटी दुकानों एवं मजदूरों में भी पाई जाती है। छोटे व्यवसायों में लगे परिवारों में भी पाई जाती है। |
प्रश्न 12.
“भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।” क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
नहीं, मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है। वास्तव में वर्ष 1973-74 और 2013-14 के बीच चालीस वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्ष 2013-14 में भारत में प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित करते हुए सी. क्षेत्रक सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभरा है। तृतीयक क्षेत्रक का योगदान निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट
1. भारत सरकार की नई आर्थिक नीति से देश में तृतीयक क्षेत्रक का तेजी से विस्तार हुआ है। देश में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, शिक्षा, आवास एवं स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि हुई है, बैंकिंग, परिवहन व संचार के विस्तार पर बल दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अनेक नवीन सेवाएँ; जैसे-इंटरनेट कैफे, ए. टी. एम. बूथ, कॉल सेन्टर, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि में कार्यरत लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
2. सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान लगातार बढ़ रहा है। अब तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक की बजाय भारत में सर्वाधिक उत्पादक क्षेत्रक बन गया है। सन् 1973-74 में सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा लगभग 48 प्रतिशत था जो 2013-14 में बढ़कर लगभग 67 प्रतिशत हो गया है। यद्यपि 1973-74 से 2013-14 के मध्य के 40 वर्षों में तीनों क्षेत्रों के उत्पादन में वृद्धि हुई परन्तु तृतीयक क्षेत्रक में यह वृद्धि सर्वाधिक रही है।
3. रोजगार में तृतीयक क्षेत्रक का प्रतिशत भी तीव्र गति से बढ़ा है। सन् 1977-78 में इसका योगदान 18 प्रतिशत था जो सन् 2017-18 में बढ़कर 31 प्रतिशत हो गया। यद्यपि रोजगार की दृष्टि से तृतीयक क्षेत्रक का प्रतिशत योगदान बहुत अधिक नहीं है, परन्तु इसमें वृद्धि दर्ज की गयी है।
4. तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं; जैसे-परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंक सेवाएँ एवं व्यापार तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के उदाहरण हैं। ये गतिविधियाँ वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का सृजन करती हैं। अतः कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
प्रश्न 13.
“भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।”ये लोग कौन हैं?
उत्तर:
भारत में सेवा क्षेत्रक को दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करते हैं। ये लोग हैं-
1. प्रथम वर्ग में वे लोग आते हैं जिनकी सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। यह सहायता प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों ही क्षेत्रकों को प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए-परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंकिंग, व्यापार आदि क्षेत्रकों में नियोजित लोग।
2. दूसरे वर्ग में कुछ ऐसे सेवा प्रदाता आते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करते। उदाहरण के लिए-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, धोबी, मोची, नाई आदि। वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ; जैसे-इन्टरनेट कैफे, ए. टी. एम. बूथ, कॉलसेन्टर, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं, जो इसी वर्ग में सम्मिलित
प्रश्न 14.
“असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस विचार से सहमत हूँ कि असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:
- इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण के लिए बनाये गये सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन नहीं होता है।
- असंगठित क्षेत्रक में बहुत कम वेतन/मजदूरी दी जाती है और वह भी नियमित रूप से नहीं दी जाती है।
- इस क्षेत्रक में मजदूर सामान्यतः अशिक्षित, अनभिज्ञ व असंगठित होते हैं, इसलिए वे नियोक्ता से मोल-भाव कर अच्छी मजदूरी सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
- इस क्षेत्रक में अतिरिक्त समय में काम तो लिया जाता है परन्तु अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता है।
- इस क्षेत्रक में सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
- इस क्षेत्रक में रोजगार सुरक्षा भी नहीं होती है। नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है।
- इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कुछ मौसमों में जब काम नहीं होता है, तो कुछ लोगों को काम से छुट्टी दे दी जाती है। बहुत से लोग नियोक्ता की पसन्द पर निर्भर होते हैं।
प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में वर्गीकृत की जाती हैं
1. संगठित क्षेत्रक:
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियत होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं एवं उन्हें राजकीय नियमों व विनियमों का अनुपालन करना होता है। इन नियमों व विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम की निश्चित न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया गया है।
यह क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं क्रियाविधि होती है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत रोजगार सुरक्षित होता है, काम के घण्टे निश्चित होते हैं, अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त वेतन मिलता है। कर्मचारियों को कार्य के दौरान एवं सेवानिवृति के पश्चात् भी अनेक सुविधाएँ मिलती हैं।
2. असंगठित क्षेत्रक:
असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ सम्मिलित होती हैं जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं। यद्यपि इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। ये अनियमित एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है।
प्रश्न 16.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना करें।
उत्तर:
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से है
संगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ |
असंगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ |
1. इस क्षेत्रक के उद्योगों एवं प्रतिष्ठानों को सरकार द्वारा |
1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत दुकानों व प्रतिष्ठानों को सरकार पंजीकृत कराना अवश्यक होता है। से पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है। |
2. यह क्षेत्रक सरकारी नियमों व उपनियमों के अधीन कार्य करता है। ये नियम व विनियम सभी नियोक्ताओं कर्मचारियों व श्रमिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। |
2. इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका , अनुपालन नहीं किया जाता है। |
3. इस क्षेत्रक में काम करने की अवधि व काम के घण्टे नहीं होते हैं। |
3. इस क्षेत्रक में काम करने की अवधि व घण्टे निश्चित निश्चित होते हैं। |
4. इस क्षेत्रक में कार्य करने वाले कर्मचारियों, श्रमिकों को मासिक वेतन प्राप्त होता है। |
4. इस क्षेत्रक में काम करने वाले कर्मचारी/श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं। |
5. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारी मासिक वेतन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के भत्ते, समर्पित अवकाश का भुगतान, प्रोविडेंट फंड, वार्षिक वेतन वृद्धि आदि सुविधाएँ प्रा: करते हैं। |
5. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत श्रमिकों को दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई अन्य भत्ता नहीं मिलता है। |
6. इस क्षेत्रक के न्तर्गत कर्मचारियों/ श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है। |
6. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों/ श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है। |
7. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों/श्रमिकों को नियोक्ता द्वारा एक नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें काम की सभी शर्ते एवं दशाएँ वर्णित होती हैं। |
7. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों/श्रमिकों को कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है। |
8. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्यस्थल पर स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य एवं कार्य का सुरक्षित वातावरण आदि सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। |
8. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को इस प्रकार की सुविधाओं का लगभग अभाव देखने को मिलता है। |
9. इस क्षेत्रक में श्रम संघ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः श्रमिकों का शोषण नहीं होता है। |
9. इस क्षेत्रक में श्रम संघों के अभाव के कारण श्रमिकों का अत्यधिक शोषण होता है। |
प्रश्न 17.
मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) 2005 (MNREGA, 2005) के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को काम का अधिकार’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भारत की केन्द्र सरकार ने वर्ष 2005 में भारत के चयनित 200 जिलों (अब 625 जिलों) के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘काम का अधिकार’ लागू करने के लिए एक कानून बनाया है। इस कानून को महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम, 2005 कहते हैं। इस कानून को बनाने का उद्देश्य उन लोगों को जो कार्य करने योग्य हैं तथाः जिन्हें कार्य की आवश्यकता है, सरकार द्वारा एक वर्ष में 100 दिनों का रोजगार का आश्वासन देना है।
यदि सरकार इस उद्देश्य की प्राप्ति में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगार भत्ता देगी। अतः इसे ‘काम का अधिकार’ अधिनियम भी कहते हैं। इस कानून को वर्तमान में देश के समस्त जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कर दिया गया है तथा इसका नाम बदलकर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत इस तरह के कार्यों को वरीयता दी गयी है जिनमें भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
प्रश्न 18.
अपने क्षेत्र से उदाहरण लेकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना तथा वैषम्य कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना तथा वैषम्य निम्नांकित प्रकार से है
सार्वजनिक क्षेत्रक |
निजी क्षेत्रक |
1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत अधिकांश परिसम्पत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराती है; जैसे-डाकघर, भारतीय रेलवे आकाशवाणी, इण्डियन एयरलाइन्स आदि। |
1. इस क्षेत्रक में परिसम्पत्तियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है; जैसे-मित्तल पब्लिकेशन्स, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड आदि। |
2. सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में करना होता है। |
2. निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का उद्देश्य लाभ अर्जित वृद्धि करना होता है। |
3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी समस्त निर्णय सरकार द्वारा निर्धारित नीति के तहत लिये जाते हैं। |
3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय निजी स्वामियों अथवा प्रबन्धकों द्वारा लिए जाते हैं। |
4. सरकार समाज के लिए आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं में बहुत अधिक राशि का व्यय करती है। जैसे-सड़क पुल, नहर, बन्दरगाह आदि का निर्माण करना। |
4. निजी क्षेत्रक अपने लाभ के उद्देश्य के कारण बहुत अधिक राशि व्यय करने वाली परियोजनाओं में निवेश नहीं करता |
5. कई प्रकार की गतिविधियों को पूरा करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है; जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत आदि। इसलिए सरकार बड़ी संख्या में विद्यालय,महाविद्यालय, अस्पताल, विद्युत परियोजनाएँ आदि चलाती है। |
5. निजी क्षेत्रक का ऐसा किसी प्रका। कोई दायित्व नहीं होता है। यदि वह ऐसी सेवाएँ प्रदान करता है तो इसके लिए वह राशि वसूलता है। उदाहरण के लिए, हमारे क्षेत्र में निजी पब्लिक स्कूल, सरकारी स्कूल की तुलना में बहुत अधिक फीस लेते हैं। |
वैषम्य:
1. कुछ गतिविधियाँ ऐसी हैं, जिन्हें सरकारी समर्थन की जरूरत पड़ती है; जैसे-उत्पादन-मूल्य पर बिजली की बिक्री से बहुत से उद्योगों में वस्तुओं की उत्पादन लागत में वृद्धि हो सकती है। जिससे अनेक इकाइयाँ बंद हो सकती हैं। यहाँ सरकार लागत का कुछ अंश वहन कर सकती है।
2. इसी प्रकार, भारत सरकार किसानों से उचित मूल्य पर गेहूँ और चावल खरीदकर गोदामों में भण्डारण कर, राशन-दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर बेचती है।
प्रश्न 19.
अपने क्षेत्र से एक-एक उदाहरण देकर निम्न तालिका को पूरा कीजिए और चर्चा कीजिए।
|
सुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन |
कुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन |
सार्वजनिक क्षेत्रक |
|
|
निजी क्षेत्रक |
|
|
उत्तर:
|
सुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन |
कुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन |
निजी क्षेत्रक |
पंजाब नेशनल बैंक, भरतपुर राज |
स्थान राज्य पथ परिवहन निगम आगार-भरतपुर |
सार्वजनिक क्षेत्रक |
सेण्ट सोफिया विद्यालय, मथुरा |
साहिल मिष्ठान भण्डार, मथुरा |
नोट विद्यार्थी अपने क्षेत्र का उदाहरण ले सकते हैं।
प्रश्न 20.
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दीजिए और व्याख्या कीजिए कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के उदाहरण निम्नलिखित हैं
- भारतीय रेलवे
- डाकघर
- भारत संचार निगम लिमिटेड
- भारतीय जीवन बीमा निगम
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
- प्रसार भारती,
- भारतीय खाद्य निगम।
ऐसी अनेक वस्तुएँ व सेवाएँ होती हैं जिनकी समाज में सभी सदस्यों को आवश्यकता होती है। सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह उनकी उचित कीमतों पर आपूर्ति बनाये रखे। निजी क्षेत्रक लाभ प्रेरणा से निर्देशित होता है। अतः वह इन सेवाओं की उचित कीमत पर आपूर्ति नहीं कर पाता है।
इसके अतिरिक्त उन क्षेत्रों में विशाल निवेश की जरूरत होती है जो निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होता है। ऐसे प्रमुख क्षेत्रों में सड़क, पुल, रेलवे, बाँध आदि का निर्माण है। इन पर किये जाने वाले भारी व्यय को सरकार स्वयं वहन करती है एवं जनसामान्य के लिए इन सुविधाओं को सुनिश्चित करती है। इन सब कारणों से सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन किया जाता है।
प्रश्न 21.
व्याख्या कीजिए कि किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक निम्नलिखित प्रकार से योगदान करता है
- देश के सुदृढ़ औद्योगिक आधार के निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है,
- सार्वजनिक क्षेत्रक के विस्तार से रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि होती है,
- सार्वजनिक क्षेत्रक अधिक पूँजी निवेश द्वारा पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करने में सहायक है,
- सार्वजनिक क्षेत्रक विकास के लिए वित्तीय संसाधन जुटाता है,
- यह क्षेत्रक सस्ती दर पर आसानी से वस्तुओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है,
- यह सन्तुलित प्रादेशिक विकास को प्रोत्साहित करता है,
- यह आधारभूत संरचनाओं के निर्माण एवं विस्तार द्वारा तीव्र आर्थिक विकास को प्रेरित करता है,
- यह अर्थव्यवस्था पर निजी एकाधिकार को नियन्त्रित करता है,
- यह लघु व कुटीर स्तरीय उद्योगों को प्रोत्साहित करता है,
- यह आय व सम्पत्ति की समानता लाता है,
- देश के कुछ सार्वजनिक उद्यम विदेशी आयातों पर हमारी निर्भरता को कम करने में सहायक रहे हैं।
प्रश्न 22.
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को निम्नलिखित मुद्दों पर संरक्षण की आवश्यकता है-मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निःसन्देह असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को मजदूरी, सुरक्षा व स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर संरक्षण की आवश्यकता है।
1. मजदूरी:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी दी जाती है। उनका प्रायः शोषण किया जाता है। उन्हें दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई भत्ता नहीं दिया जाता है। न ही उनको वार्षिक वेतन वृद्धि दी जाती है। इसके समाधान हेतु राज्य व केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के समान मजदूरी दी जानी चाहिए एवं मजदूरी के अतिरिक्त उन्हें अन्य भत्ते; जैसेपरिवहन, शिक्षा, चिकित्सा एवं आवास भी दिये जाने चाहिए। उनकी मजदूरी में वार्षिक वेतन वृद्धि भी की जानी चाहिए।
2. सुरक्षा:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को रोजगार की सुरक्षा नहीं होती है, उन्हें अकारण किसी भी समय काम छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। इस क्षेत्रक में श्रमिक सामान्यतः ईंट, खदान, पटाखे जैसे अति जोखिम भरे उद्योगों में काम करते हैं इसलिए उन्हें सुरक्षा की अति आवश्यकता होती है। सभी श्रमिकों को रोजगार की सुरक्षा होनी चाहिए। कोई भी नियोक्ता उन्हें मनमाने रूप से नौकरी से बाहर न कर सके।
नौकरी से निकालने की प्रक्रिया नियमानुसार होनी चाहिए तथा श्रमिकों को इसके लिए उचित क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए। कारखानों के अन्दर काम करते समय अथवा काम पर आते और काम समाप्त करके घर लौटते समय होने वाली किसी भी दुर्घटना के लिए उन्हें क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए जैसा कि राज्य एवं केन्द्र सरकार करती है।
3. स्वास्थ्य:
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिक कम मजदूरी की प्राप्ति के कारण पौष्टिक भोजन नहीं ले पाते हैं परिणामस्वरूप उनकी स्वास्थ्य स्थिति बहुत कमजोर होती है। अतः उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है। इस हेतु सभी श्रमिकों व कर्मचारियों को सेवाकाल के दौरान एवं सेवानिवृत्ति के पश्चात् स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए; जैसे-शिक्षकों, डॉक्टरों, लिपिकों आदि की सेवा सुविधाएँ, चिकित्सा सुविधाएँ आदि।
प्रश्न 23.
अहमदाबाद में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि नगर के 15,00,000 श्रमिकों में से 11,00,000 श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम करते थे। वर्ष 1997-98 में नगर की कुल आय 600 करोड़ थी। इसमें से 320 करोड़ रुपये संगठित क्षेत्रक से प्राप्त होती थी। इस आँकड़े को तालिका में प्रदर्शित कीजिए। नगर में और अधिक रोजगार सृजन के लिए किन तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए।
उत्तर:
तालिका: 1997-98 में अहमदाबाद में संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में आय एवं रोजगार
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक |
श्रमिकों की संख्या |
आय (करोड़ रुपये में) |
संगठित |
4,00,000 |
320 |
असंगठित |
11,00,000 |
280 |
कुल |
15,00,000 |
600 |
उपरोक्त तालिका से प्रदर्शित होता है कि अधिकांश श्रमिक (11,00,000) असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं, जिनके द्वारा अर्जित आय केवल 280 करोड़ रुपये है। जबकि 4,00,000 श्रमिक संगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं, जिनके द्वारा 320 करोड़ रुपये आय के रूप में प्राप्त किये जाते हैं जो कि असंगठित क्षेत्रक की आय से अधिक है। नगर में और अधिक रोजगार सृजन के लिए निम्नलिखित तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए:
- सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के अतिरिक्त कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए,
- सरकार को कम ब्याज दरों के साथ-साथ आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए जिससे लोग अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर सकें,
- उत्पादन के क्षेत्र में पूँजी गहन तकनीकों के स्थान पर श्रम गहन तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए इससे निश्चय ही रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होंगे,
- प्रत्येक क्षेत्र में निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सड़क, पुल, सम्पर्क मार्ग, विद्यालय भवन, आवासीय बस्तियों के निर्माण, व्यावसायिक भवनों के निर्माण एवं अस्पताल निर्माण आदि. पर निवेश किया जाना चाहिए,
- तृतीयक क्षेत्रक का पर्याप्त मात्रा में विकास किया जाना चाहिए। बैंक, बीमा, डाकघर, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य, चिकित्सा, शैक्षणिक सेवाएँ एवं सार्वजनिक पार्क, बाजार व मनोरंजन केन्द्र आदि की पर्याप्त मात्रा में स्थापना की जानी चाहिए।
प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका में तीन क्षेत्रकों का सकल घरेलू उत्पाद (स. घ. उ.) रुपए (करोड़) में दिया गया
वर्ष |
प्राथमिक |
द्वितीयक |
तृतीयक |
2000 |
52,000 |
48,500 |
1,33,500 |
2013 |
8,00,500. |
10,74,000 |
38,68,000 |
(क) वर्ष 2000 एवं 2013 के लिए स. घ. उ. में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी की गणना कीजिए।
(ख) इन आँकड़ों को अध्याय में दिए आलेख-2 के समान एक दण्ड-आलेख के रूप में प्रदर्शित कीजिए।
(ग) दण्ड-आलेख से हम क्या निष्कर्ष प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
(क) अग्र तालिका वर्ष 2000 एवं 2013 के लिए स. घ. उ. में तीनों की हिस्सेदारी को दर्शाती है
वर्ष |
जी. डी. पी. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी (प्रतिशत में) |
जी. डी. पी में द्वितीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी (प्रतिशत में) |
2000 |
22.22 |
20.73 |
2013 |
13.94 |
18.70 |
- वर्ष 2000 में क्षेत्रकों की स. घ. उ. में हिस्सेदारी
तीनों क्षेत्रकों की स. घ. उ. में कुल हिस्सेदारी = (52,000 + 48,500 + 1,33,500)
= 2,34,000
प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{52,000}{2,34,000}\) × 100
= 22.22%
द्वितीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{48,500}{2,34,000} \) × 100
= 20.73%
ततीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{1,33,500}{2,34,000}\) × 100
= 57.05%
2. वर्ष 2013 में क्षेत्रकों की स. घ. उ. में हिस्सेदारी
तीनों क्षेत्रकों की स. घ. उ. में कुल हिस्सेदारी = (8,00,500 + 10,74,000 + 38,68,000)
= रु. 57,42,500 करोड़
प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \( \frac{8,00,500}{57,42,500}\) × 100
= 13.94%
द्वितीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{10,74,900}{57,42,500}\) × 100
= 18.70%
तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी = \(\frac{38,68,000}{57,42,500}\) × 100
= 67.36%
(ख) दण्ड आरेख द्वारा प्रदर्शन
(ग) दण्ड आरेख से हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं.
1. सन् 2000 में स. घ. उ. में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान सबसे अधिक था, प्राथमिक क्षेत्रक का दूसरा स्थान था जबकि द्वितीयक क्षेत्रक का योगदान सबसे कम था।
2. सन् 2013 में स्थितियों में परिवर्तन हुआ। इस वर्ष स. घ. उ. में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान सर्वाधिक था, द्वितीय स्थान द्वितीयक क्षेत्रक का था जबकि प्राथमिक क्षेत्रक का योगदान सबसे कम था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि स. घ. उ. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी बहुत कम व द्वितीयक क्षेत्रक की कम हुई है जबकि इसमें तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।
पाठगत एवं क्रियाकलाप आधारित प्रश्न
आओ-जन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 21)
प्रश्न 1.
विभिन्न क्षेत्रकों की परस्पर-निर्भरता दिखाते हुए तालिका 2.1 को भरें।
उत्तर:
तालिका 2.1 आर्थिक गतिविधियों के उदाहरण
उदाहरण |
यह क्या प्रदर्शित करता है? |
1. कल्पना करें कि यदि किसान किसी चीनी मिल को गन्ना बेचने से इंकार कर दे, तो क्या होगा। मिल बंद हो जायेगी। |
1. यह द्वितीयक या औद्योगिक क्षेत्रक का उदाहरण है, जो प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर है। |
2. कल्पना करें कि यदि कम्पनियाँ भारतीय बाज़ार से कपास नहीं खरीदतीं और अन्य देशों से कपास आयात करने का निर्णय करती हैं, तो कपास की खेती का क्या होगा ? भारत में कपास है। की खेती कम लाभकारी रह जाएगी और यदि किसान शीघ्रता से अन्य फसलों की ओर उन्मुख नहीं होते हैं, तो वे दिवालिया भी हो सकते हैं तथा कपास की कीमत गिर जायेग |
2. यह क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्रक का उदाहरण है। यह क्षेत्र पूर्ण रूप से द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को प्रदर्शित करता है। |
3. किसान ट्रैक्टर, पम्पसेट, बिजली, कीटनाशक और उर्वरक जैसी अनेक वस्तुएँ खरीदते हैं। कल्पना करें कि यदि उर्वरकों और पम्पसेटों की कीमत बढ़ जाती है, तो क्या होगा ? खेती पर लागत बढ़ जायेगी और किसानों का लाभ कम हो जायेगा। |
3. यह प्राथमिक क्षेत्रक की द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को दर्शाता है। |
4. औद्योगिक और सेवा क्षेत्रक में काम करने वाले लोगों को भोजन की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि यदि ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी है और ग्रामीण क्षेत्रों से सब्जियाँ, दूध इत्यादि ले जाने से इंकार कर दिया, तो क्या होगा ? शहरी क्षेत्रों में भोजन की कमी हो जाएगी और किसान अपने उत्पाद बेचने में असमर्थ हो जायेंगे। |
4. यह सभी क्षेत्रकों की एक-दूसरे पर निर्भरता को दर्शाता है। |
प्रश्न 2.
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों के अंतर की व्याख्या करें।
उत्तर:
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में निम्नलिखित अन्तर हैं
1. प्राथमिक क्षेत्रक:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण: गेहूँ की खेती, मछली पालन, वनोपज इकट्ठा करना, खानों से खनिजों का उत्खनन, लकड़ी काटना, पशुपालन आदि।
2. द्वितीयक क्षेत्रक:
इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जिनमें प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण: फर्नीचर उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, लोहा व इस्पात उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि।
3. तृतीयक क्षेत्रक:
इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। इसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। उदाहरण: अध्यापक, डॉक्टर, वकील, रेलवे, दूरसंचार व दुकानदार, व्यापार शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवसायों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजित करें:
दर्जी, पुजारी, कुम्हार, टोकरी बुनकर, कूरियर पहुँचाने वाला, मधुमक्खी पालक, फूल की खेती करने वाला, दियासलाई कारखाना में श्रमिक, अंतरिक्ष यात्री, दूध विक्रेता, महाजन,
कॉल सेंटर का कर्मचारी, मछुआरा, माली।
उत्तर:
व्यवसायों की इस सूची को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों में निम्नलिखित रूप से विभाजित किया जा सकता है
- प्राथमिक क्षेत्रक फूलों की खेती करने वाला, मछुआरा, माली, मधुमक्खी पालक।
- द्वितीयक क्षेत्रक: दियासलाई कारखाना में श्रमिक, कुम्हार, टोकरी बुनकर, दर्जी।
- तृतीयक क्षेत्रक: दूध विक्रेता, पुजारी, कूरियर पहुँचाने वाला, महाजन, अंतरिक्ष यात्री, कॉल सेंटर का कर्मचारी।
प्रश्न 4.
विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी क्या है ? क्या आप मानते हैं कि यह विभाजन उपयुक्त है? चर्चा करें।
उत्तर:
विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी उनके शैक्षिक स्तर, आयु वर्ग, मानसिक विकास आदि के स्तर पर निर्भर है। कक्षा एक से सातवीं तक के बच्चों को कनिष्ठ तथा आठवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा के बच्चों को वरिष्ठ कहा जाता है। हाँ, मैं यह मानता हूँ कि यह एक उपयुक्त वर्गीकरण है क्योंकि वरिष्ठ तथा कनिष्ठ विद्यार्थियों का शैक्षिक स्तर, आयुवर्ग एवं मानसिक विकास का स्तर भिन्न-भिन्न होता है।
(पृष्ठ संख्या 23)
प्रश्न 1.
विकसित देशों का इतिहास क्षेत्रकों में हुए परिवर्तन के सम्बन्ध में क्या संकेत करता है ?
उत्तर:
अधिकांश विकसित देशों के इतिहास के माध्यम से यह संकेत मिलता है कि विकास की प्राथमिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक ही आर्थिक सक्रियता का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक रहा है। जैसे-जैसे कृषि की विधियों में परिवर्तन हुआ, कृषि क्षेत्रक पहले की अपेक्षा अधिक अनाज उत्पादित करने लगा। धीरे धीरे यह क्षेत्रक समृद्ध होने लगा। प्रारम्भ में अधिकांश लोग इसी क्षेत्रक में कार्यरत थे। धीरे-धीरे विनिर्माण की नई विधियाँ आईं तो कारखानों की स्थापना और विस्तार होने लगा।
अधिकांश लोग अब कारखानों में काम करने लगे लोग कारखानों में सस्ती दरों पर उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करने लगे। इस प्रकार धीरेधीरे कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ गया। विगत 100 वर्षों में विकसित देशों में द्वितीयक क्षेत्रक से तृतीयक क्षेत्रक की ओर पुनः बदलाव हुआ है। अब सेवा क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। अधिकांश श्रमजीवी लोग सेवा क्षेत्रक में ही नियोजित हैं। विकसित देशों में यही सामान्य लक्षण देखा गया है।
प्रश्न 2.
अव्यवस्थित वाक्यांश से स. घ. उ. की गणना हेतु महत्त्वपूर्ण पहलुओं को व्यवस्थित एवं सही करें। उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना करने के लिए हम उनकी संख्याओं को जोड़ देते हैं। हम विगत पाँच वर्षों में उत्पादित सभी वस्तुओं की गणना करते हैं। चूँकि हमें किसी चीज़ को छोड़ना नहीं चाहिए इसलिए हम इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते हैं।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्यांश का व्यवस्थित एवं सही क्रम निम्न प्रकार से होगा
- उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना करने के लिए हम उनकी संख्याओं को जोड़ देते हैं।
- चूँकि हमें किसी चीज को छोड़ना नहीं चाहिए इसलिए हम इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते
- हम विगत पाँच वर्षों में उत्पादित सभी वस्तुओं की गणना करते हैं।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 24)
आरेख का अवलोकन करते हुए निम्नलिखित का उत्तर दें आलेख-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक द्वारा स. घ. उ.
प्रश्न 1. 1
973 – 74 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर:
सन् 1973 – 74 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक था।
प्रश्न 2.
2013 – 14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर:
सन् 2013 – 14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्रक था।
प्रश्न 3.
क्या आप बता सकते हैं कि चालीस वर्षों में किस क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई ?
उत्तर:
पिछले चालीस वर्षों में तृतीयक क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई।
प्रश्न 4.
2013 – 14 में भारत का जी.डी.पी. क्या है?
उत्तर:
सन् 2013 – 14 में भारत का जी.डी.पी. 5,70,000 करोड़ रुपये है।
प्रश्न 5.
सन् 1973 – 74 और 2013 – 14 के बीच तुलना क्या प्रदर्शित करती है? इससे आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? विचार करें।
उत्तर:
सन् 1973 – 74 और 2013 – 14 के बीच तुलना यह प्रदर्शित करती है कि भारत में तीनों क्षेत्रकों में उत्पादन बढ़ा है परन्तु तीनों क्षेत्रकों में से सबसे अधिक उत्पादन तृतीयक क्षेत्रक में ही बढ़ा है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत में तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक से आगे तीव्र गति से बढ़ते हुए सबसे बड़े क्षेत्रक के रूप में उभर रहा है।
(पृष्ठ संख्या 27)
प्रश्न 1.
आरेख 2 और 3 में दिए गए आँकड़ों का प्रयोग कर सारणी की पूर्ति करें और नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दें
तालिका 2.2. : स. घ. उ. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
|
1973-74 |
1977-78 |
2013-14 |
2017-18 |
स. घ. उ. में हिस्सेदारी |
|
|
|
|
रोजगार में हिस्सेदारी |
|
|
|
|
40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में आप क्या परिवर्तन देखते हैं?
उत्तर:
तालिका 2.2 स. घ. उ. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
|
1973-74 |
1977-78 |
2013-14 |
2017-18 |
स. घ. उ. में हिस्सेदारी |
40% |
|
13% |
|
रोजगार में हिस्सेदारी |
|
71% |
|
44% |
मैंने 40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में निम्नलिखित परिवर्तन देखे हैं:
- इस अवधि में स.घ.उ. में प्राथमिक क्षेत्रक का हिस्सा 40% से घटकर 13% हो गया है। इसका अर्थ है कि द्वितीयक क्षेत्रक व तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी बढ़ी है।
- रोजगार के क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी घट गई है। यह 71% से घटकर 44% तक आ गया है। इसका अर्थ है कि द्वितीयक क्षेत्रक एवं तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी बढ़ गई है।
प्रश्न 2.
सही उत्तर का चयन करेंअल्प बेरोजगारी तब होती है जब लोग
(अ) काम करना नहीं चाहते हैं।
(ब) सुस्त ढंग से काम कर रहे हैं।
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
(द) उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
उत्तर:
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
प्रश्न 3.
विकसित देशों में देखे गए लक्षण की भारत में हुए परिवर्तनों से तुलना करें और वैषम्य बताएँ। भारत में क्षेत्रकों के बीच किस प्रकार के परिवर्तन वांछित थे, जो नहीं हुए ?
उत्तर:
भारत में विकासात्मक परिवर्तनों की विकसित देशों के साथ तुल एवं विषमता अग्रलिखित सारणी से अधिक स्पष्ट हो सकती है
तुलना
विकसित देश |
भारत |
1. विकसित देशों में विकास की प्रारम्भिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक उत्पादन एवं रोजगार दोनों दृष्टि से आर्थिक क्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था। |
1. भारत में विकास की प्राथमिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था। |
2. अर्थव्यवस्था में विकास के साथ-साथ धीरे-धीरे द्वितीयक क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। |
2. भारत में द्वितीयक क्षेत्रक अभी तक न तो उत्पादन और न ही रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक हुआ है। |
3. देश में विकास के उच्चतर स्तरों पर विकसित देशों में स. घ. उ. और रोजगार में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक) की हिस्सेदारी सबसे अधिक होती है। |
3. भारत में स. घ. उ. में तृतीयक क्षेत्र (सेवा क्षेत्रक) की हिस्सेदारी बढ़ी है, जो अन्य दोनों क्षेत्रकों से अधिक है परन्तु रोजगार की दृष्टि से अभी भी सर्वाधिक कार्यशील व्यक्ति प्राथमिक क्षेत्रक में ही नियोजित हैं। |
वैषम्य:
1. यह वांछित था कि अर्थव्यवस्था के विकास के साथ द्वितीयक क्षेत्रक, प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित कर स. घ. उ. की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक बन जायेगा परन्तु ऐसा भारत में नहीं हुआ है। यहाँ तृतीयक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक से आगे बढ़ गया।
2. यह भी वांछित था कि विकास के साथ-साथ रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम होगी तथा द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रकों की हिस्सेदारी बढ़कर क्रमशः सर्वाधिक हो जाएगी परन्तु भारत में ऐसा भी नहीं हुआ। आज भी प्राथमिक क्षेत्रक सबसे बड़ा नियोक्ता है। द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
प्रश्न 4.
हमें अल्प बेरोजगारी के सम्बन्ध में क्यों विचार करना चाहिए?
उत्तर:
अल्प बेरोजगारी वह स्थिति है जब लोग नियोजित दिखाई देते हैं परन्तु वास्तव में अल्प बेरोजगार होते हैं। इस स्थिति में आवश्यकता से अधिक लोग एक ही काम में लगे रहते हैं। यदि उन लोगों को उस काम से हटा दिया जाये तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस स्थिति को छुपी हुई अथवा प्रच्छन्न जगारी भी कहते हैं। भारत में अपेक्षा थी कि भारत में तीनों ही क्षेत्रकों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और धीरे-धीरे बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी परन्तु ऐसा नहीं हो सका। आशानुरूप द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक का न तो विकास हुआ और न ही रोजगार के समुचित अवसर सृजित हो सके हैं।
यह एक गम्भीर चिन्ता का विषय है कि भारत में लाखों लोग अल्प बेरोजगार हैं। यह स्थिति सामान्यतः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त अल्प बेरोजगारी दूसरे क्षेत्रकों में भी हो सकती है; जैसे-शहरों में सेवा क्षेत्रक में कार्यरत अनियमित श्रमिक। यदि ये लोग अन्य किसी स्थान पर काम कर रहे होते तो उनके द्वारा अर्जित आय से उनकी कुल पारिवारिक आय में वृद्धि होती। इस प्रकार कहा जा सकता है कि हमें अल्प बेरोजगारी के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए क्योंकि यह जनसंख्या की आय अर्जित करने की क्षमता कम करती है जिससे निम्न जीवन स्तर एवं निर्धनता जन्म लेती है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 28)
प्रश्न 1.
आपके विचार से आपके क्षेत्र में किस समूह के लोग बेरोजगार अथवा अल्प बेरोजगार हैं, क्या आप कुछ उपाय सुझा सकते हैं, जिन पर अमल किया जा सके?
उत्तर:
- हमारे विचार से हमारे क्षेत्र में निम्न समूहों के लोग बेरोजगार अथवा अल्प बेरोजगार हैं
- खेतिहर श्रमिक परिवार,
- छोटे किसान परिवार,
- अनुसूचित जनजाति के लोग,
- अनुसूचित जाति के लोग,
- पिछड़ी जाति के लोग,
- पेंटर, बढ़ई, फेरीवाला, मरम्मत का कार्य करने वाले लोग, मकानों के निर्माण पर कार्य करने वाले लोग, सड़कों पर ठेला खींचने वाले लोग, कबाड़ उठाने वाले लोग, सिर पर. बोझा ढोने वाले लोग आदि जैसे अनियमित मजदूर।
- इनके लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए जा सकते हैं
- रोजगार सृजन कार्यक्रमों को लागू किया जाना,
- सिंचाई के लिए नये बाँधों का निर्माण अथवा नहर खोदा जाना ताकि कृषि क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर सृजित
- हो सकें,
- सरकार द्वारा अर्द्धग्रामीण क्षेत्रों में उन उद्योगों और सेवाओं को बढ़ावा देना जिनमें अधिक से अधिक लोग नियोजित हो सकें,
- बेरोजगारों व अल्प बेरोजगारों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना ताकि वे अपने छोटे-मोटे व्यवसाय प्रारम्भ कर सकें,
- सरकार को परिवहन और फसलों के भण्डारण पर अथवा ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर निवेश करना चाहिए। इस कार्य से किसानों, परिवहन और व्यापार सेवाओं में लगे लोगों को भी रोजगार प्राप्त हो सकता है।
आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 29)
प्रश्न 1.
आपके विचार से म. गाँ. रा. ग्रा. रो. गा. अ. को काम का अधिकार’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
म. गाँ. रा. ग्रा. रो. गा. अ. को ‘काम का अधिकार’ इसलिए कहा गया है क्योंकि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 प्रतिवर्ष ग्रामीण क्षेत्र के उन सभी लोगों को, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, को 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित कराता है। यदि किसी आवेदक को 15 दिन के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो वह दैनिक रोजगार भत्ता प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप ग्राम के प्रधान हैं और इस हैसियत से कुछ ऐसे क्रियाकलापों का सुझाव दीजिए जिसे आप मानते हैं कि उससे लोगों की आय में वृद्धि होगी और उसे इस अधिनियम के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए। चर्चा करें।
उत्तर:
ग्राम प्रधान की हैसियत से मेरे अनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाकलापों को सम्मिलित किया जाना चाहिए, जिससे कि लोगों की आय में वृद्धि होगी
- ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे कि कृषि श्रमिक वर्षभर रोजगार प्राप्त कर सकें। इसके अतिरिक्त बेहतर सड़कों से किसानों को अपने उत्पाद नजदीकी बाजार में ले जाने में सहायता मिलेगी,
- सिंचाई हेतु नये बाँधों, कुओं अथवा नहरों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे कि कृषि क्षेत्र में रोजगार का सृजन होगा,
- गाँव में ही उन उद्योगों व सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिए जहाँ बहुत अधिक लोग नियोजित किये जा सकें तथा. इस कार्य हेतु उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए,
- ग्रामीणों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि वे खेती की आधुनिकतम विधियों को अपना सकें।
प्रश्न 3.
यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं तो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर:
यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं तो रोजगार और आय में निम्न प्रकार से वृद्धि होगी
1. सिंचाई सविधाएँ भारत में वर्षा की अपर्याप्तता व अनिश्चितता रहती है। अत: वर्षा की अपर्याप्तता वं अनिश्चितता वाले क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाएँ वर्ष में एक से अधिक फसल उत्पन्न करने में सहायक होंगी। कृषि भूमि पर . जितनी अधिक फसल उगायी जायेंगी रोजगार व आय में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। इस प्रकार सिंचाई कृषि उत्पादन, रोजगार एवं आय में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।
2. विपणन सुविधाएं विपणन सुविधाओं की सहायता से एक किसान फसल उगाकर उसे सरलता से बेच सकता है। इस क्रिया से न केवल किसान बल्कि अन्य लोगों के लिए भी रोजगार उत्पन्न होगा। फसल को बेचने के लिए परिवहन की भी आवश्यकता पड़ेगी, जिससे परिवहनकर्ता के लिए भी रोजगार उत्पन्न होगा। इसके अतिरिक्त फसल बाजार में पहुँचने पर इसका विक्रय होगा जिससे व्यापार के साथ-साथ रोजगार उत्पन्न होने से उनकी आय में भी वृद्धि होगी। – भण्डारण सुविधा से किसानों को अच्छी कीमत पर अपनी उपज बेचने का अवसर प्राप्त होगा।
प्रश्न 4.
शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि लघु व कुटीर उद्योगों का विकास करके, शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुखी बनाकर, व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष बल, ऋण, प्रशिक्षण व विपणन जैसी सुविधाएँ प्रदान कर, परिवहन व संचार के साधनों का विकास करके भी स्वरोजगार को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 30)
प्रश्न 1.
क्या आप कान्ता और कमल के रोजगार की परिस्थितियों में अन्तर देखते हैं?
उत्तर:
हाँ, कान्ता और कमल के रोजगार की परिस्थितियों में अन्तर दिखाई देता है जो निम्नलिखित है
- कान्ता को केवल 8 घण्टे काम करना पड़ता है जबकि कमल को 12.30 घण्टे काम करना पड़ता है।
- कान्ता को नियमित रूप से प्रत्येक माह के अन्त में अपना वेतन मिल जाता है जबकि कमल को जिस दिन वह काम करता है उस दिन की ही मजदूरी मिलती है।
- कान्ता को वेतन के अतिरिक्त भविष्य निधि, चिकित्सकीय और अन्य भत्ते मिलते हैं जबकि कमल को मजदूरी के अतिरिक्त अन्य कोई भत्ता नहीं मिलता है।
- कान्ता को रविवार के दिन का सवेतन अवकाश मिलता है जबकि कमल को कोई छुट्टी या सवेतन अवकाश नहीं मिलता है।
- कान्ता को नौकरी प्रारम्भ करते समय एक नियुक्ति पत्र दिया गया था जबकि कमल को ऐसा कोई औपचारिक पत्र नहीं दिया गया।
आओ इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 31)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित उदाहरणों को देखें। इनमें से कौन असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं?
1. विद्यालय में पढ़ाता एक शिक्षक
2. बाजार में अपनी पीठ पर सीमेन्ट की बोरी ढोता हआ एक श्रमिक
3. अपने खेत की सिंचाई करता एक किसान
4. एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक
5. एक बड़े कारखाने में काम करने जाता एक कारखाना श्रमिक
6. अपने घर में काम करता एक करघा बुनकर।
उत्तर:
1. असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ इस प्रकार से हैं
2. बाजार में अपनी पीठ पर सीमेन्ट की बोरी ढोता हुआ श्रमिक।
3. अपने खेत की सिंचाई करता हुआ एक श्रमिक।
4. एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक।
5. एक बड़े कारखाने में काम करने जाता एक कारखाना श्रमिक।
6. अपने घर में काम करता एक करघा बुनकर।
प्रश्न 2.
संगठित क्षेत्रक में नियमित काम करने वाले एक व्यक्ति और असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले किसी दूसरे व्यक्ति से बात करें। सभी पहलुओं पर उनकी कार्य-स्थितियों की तुलना करें।
उत्तर:
मैंने अपने पड़ौसी श्री रामविलास शर्मा से बात की; जो सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। यह एक संगठित क्षेत्र है। असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत दैनिक मज़दूरी पर भवन निर्माण के कार्य में कार्यरत श्रमिक श्री मोतीलाल वर्मा से भी बात की। इन दोनों से हुए वार्तालाप के आधार पर हम उनकी कार्य-स्थितियों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं
रामविलास शर्मा की कार्य-स्थितियाँ |
मोतीलाल वर्मा की कार्य-स्थितियाँ |
1. इनके काम के घंटे निश्चित हैं तथा यदि वह अन्य कार्य करते हैं तो उसका उन्हें अतिरिक्त भुगतान किया जाता है। |
1. इनके काम के घंटे निश्चित नहीं हैं। यदि वह अधिक घण्टे कार्य करते हैं तो उसका उन्हें अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जाता है। |
2. रामविलास शर्मा को माह के अंतिम कार्य दिवस को मासिक वेतन मिल जाता है। |
2. मोतीलाल वर्मा को दैनिक मजदूरी प्राप्त होती है। जिस दिन वह काम पर नहीं जाता है, उस दिन के लिए उसे कोई भुगतान नहीं मिलता है। |
3. इन्हें मासिक वेतन के अतिरिक्त भविष्य निधि चिकित्सा भत्ता, छुट्टी का भुगतान, पेंशन एवं अन्य भत्ते आदि मिलते हैं। |
3. इन्हें मज़दूरी के अतिरिक्त किसी प्रकार का भत्ता नहीं मिलता है। |
4. इन्हें रविवार के दिन सवेतन अवकाश मिलता है। |
4. इन्हें कोई छुट्टी या सवेतन अवकाश नहीं मिलता है। |
5. इन्हें नौकरी आरम्भ करते समय एक नियुक्ति पत्र दिया गया था। |
5. इन्हें नियोक्ता द्वारा ऐसा कोई औपचारिक पत्र नहीं दिया गया। |
प्रश्न 3.
असंगठित और संगठित क्षेत्रक के बीच आप विभेद कैसे करेंगे ? अपने शब्दों में व्याख्या करें।
अथवा
असंगठित एवं संगठित क्षेत्रक में अन्तर स्पष्ट करें।
अथवा
संगठित और असंगठित क्षेत्र की सेवा शर्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असंगठित और संगठित क्षेत्रक के बीच निम्नलिखित भेद हैं
अंतर का आधार |
असंगठित क्षेत्रक |
संगठित क्षेत्रक |
1. अर्थ |
असंगठित क्षेत्रक से आशय उन छोटी-मोटी और बिखरी इकाइयों से है, जो अधिकांशत: राजकीय नियन्त्रण से बाहर होती हैं। |
संगठित क्षेत्रक से तात्पर्य उस उद्यम या कार्य के स्थान से है, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। |
2. नियम और विनियम |
इस क्षेत्रंक के नियम और विनियम होते है लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता। |
इस क्षेत्रक में सरकारी नियमों व विनियमों व पालन करना होता है। |
3. रोजगार की शर्ते |
इस क्षेत्रंक के नियम और विनियम होते है लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता। |
वेतन श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं। |
4. कार्य की प्रकृति |
रोजगार की शर्ते अनियमित होती हैं। |
रोजगार की शर्ते नियमित होती हैं। |
5. वेतन |
इसमें कार्य अनियमित होता है एवं श्रमिक को बिना किसी कारण किसी भी समय काम छोड़ने को कहा जा सकता है। |
इसमें कार्य नियमित होता है एवं श्रमिक को बिना किसी कारण काम से नहीं निकाला जा सकता है। |
6. कार्य अवधि |
श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते है। |
कर्मचारी व श्रमिक नियमित रूप से मासिक वेतन प्राप्त करते हैं। |
7. अन्य परिलाभ |
यहाँ काम के घंटे निश्चित नहीं होते हैं। साथ ही काम के अतिरिक्त घंटों के लिए भगतान की कोई व्यवस्था नहीं है। |
लोग निश्चित घंटे ही काम करते हैं। यदि वे अधिक घंटे काम करते हैं तो इसके लिए नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त भुगतान किया जाता है। |
8. कार्य स्थितियाँ |
दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त अन्य किसी लाभ का कोई प्रावधान नहीं है। |
वेतन के अतिरिक्त कर्मचारी अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं; जैसे-भविष्य निधि, ‘चिकित्सकीय भत्ते, छुट्टी का भुगतान, पेंशन आदि। |
प्रश्न 4.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रक में भारत के सभी श्रमिकों की अनुमानित संख्या नीचे दी गई सारणी में दी गई है। सारणी को सावधानी से पढ़ें। विलुप्त आँकड़ों की पूर्ति करें और प्रश्नों का उत्तर दें।
सारणी-विभिन्न क्षेत्रकों में श्रमिकों को संख्या (दस लाख में)
क्षेत्रक |
संगठित |
असंगठित |
कुल |
प्राथमिक |
1 |
– |
232 |
द्वितीयक |
41 |
74 |
115 |
तृतीयक |
40 |
88 |
172 |
कुल |
82 |
– |
– |
कुल प्रतिशत में |
– |
– |
100% |
1. असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लोगों का प्रतिशत क्या है?
2. क्या आप सहमत हैं कि कृषि असंगठित क्षेत्रक की गतिविधि है? क्यों?
3. यदि हम सम्पूर्ण देश पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि भारत में ……… % श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग ……… % श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोज़गार उपलब्ध है।
उत्तर:
सारणी में विलुप्त आँकड़ों की पूर्ति
क्षेत्रक |
संगठित |
असंगठित |
कुल |
प्राथमिक |
1 |
231 |
232 |
द्वितीयक |
41 |
74 |
115 |
तृतीयक |
40 |
88 |
128 |
कुल |
82 |
393 |
475 |
कुल प्रतिशत में |
17.26% |
82.74% |
100% |
1. असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत = \(\frac{231}{393}\) × 100 = 58.78% है।
2. हाँ, मैं सहमत हूँ कि कृषि असंगठित क्षेत्रक की गतिविधि है क्योंकि कृषि कार्य में लगे हुए किसानों या भूमिहीन कृषकों अथवा श्रमिकों के काम के घण्टे सुनिश्चित नहीं हैं। उन्हें रोज़गार की सुरक्षा प्राप्त नहीं है। उन्हें निश्चित मजदूरी अथवा वेतन नहीं मिलता है। इसके अतिरिक्त उनकी आय निम्न व अनियमित है।
3. यदि हम सम्पूर्ण देश पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि भारत में 82.74% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग 17.26% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोज़गार उपलब्ध है।