JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

JAC Class 10 Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर :
हमारा देश चाहे पिछले अनेक वर्षों से स्वतंत्र हो चुका है, पर यहाँ अभी भी मानसिक गुलामी का भाव विद्यमान है। सरकारी तंत्र अपने देश की मान-मर्यादा की रक्षा करने की अपेक्षा उन विदेशियों के तलवे चाटने की इच्छा रखता है, जिन्होंने लंबे समय तक देशवासियों को अपने पैरों तले कुचला था; उन्हें परेशान किया था; देशभक्तों को अपने जुल्मों का शिकार बनाया था। सरकारी तंत्र की चिंता और बदहवासी का कोई कारण नहीं था; पर फिर भी वह परेशान था। उसे देश की जनता और देश की मान-मर्यादा से अधिक चिंता उस पत्थर की नाक की थी, जिसे आंदोलनकारियों ने अपने गुस्से का शिकार बना दिया था। इससे सरकारी तंत्र की अदूरदर्शिता, संकुचित सोच और जनता के पैसे के अपव्यय के साथ-साथ अखबारों में छपने की तीव्र इच्छा प्रकट होती है। उनकी गुलाम मानसिकता किसी भी दृष्टि से सराहनीय नहीं कही जा सकती।

प्रश्न 2.
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर :
रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का कारण रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र थे, जो उसने हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर पहनने थे। दरजी की परेशानी उसकी अपनी दृष्टि से तर्कसंगत थी। हर व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, ताकि वह दूसरों के द्वारा की जाने वाली प्रशंसा को बटोर सके।

एलिजाबेथ उस देश की रानी थी, जिसने उन देशों पर राज्य किया था जहाँ अब वह दौरे के लिए पधार रही थी। हर व्यक्ति की दृष्टि में पहली झलक शारीरिक सुंदरता और वेशभूषा की ही होती है और उसी से वह बाहर से आने वाले के बारे में अपने विचार बनाने लगता है। इसलिए दरजी रानी के लिए अति सुंदर और उच्च स्तरीय वस्त्र तैयार करना चाहता था। उसकी परेशानी तर्कसंगत और सार्थक है।

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प्रश्न 3.
‘और देखते-ही-देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा’-नई दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर :
जब रानी एलिज़ाबेथ ने तीन देशों की यात्रा में सबसे पहले हिंदुस्तान आने का निश्चय किया, तो तत्कालीन सरकार प्रसन्नता और उत्साह से भर उठी होगी। उसके मन में नई दिल्ली की शोभा के माध्यम से सारे देश की झलक दिखा देने का भाव उत्पन्न हुआ होगा। नई दिल्ली की वे सड़कें जो धूल-मिट्टी से भरी रहती हैं, उन्हें अच्छी तरह से साफ़ करके सँवारा गया होगा; उनकी टूट-फूट ठीक की गई होगी। जगह-जगह बंदनवार और फूलों से सजे स्वागत द्वार लगाए गए होंगे। रानी के स्वागत में बड़े-बड़े बैनर और रंग-बिरंगे बोर्ड तैयार किए गए होंगे। सड़क किनारे उगे झाड़-झंखाड़ काटे गए होंगे और घास को सँवारा गया होगा। न जाने कहाँ-कहाँ से फूल-पौधों के गमले लाकर सजा दिए गए होंगे।

प्रश्न 4.
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर :
(क) चर्चित हस्तियों के पहनावे, खान-पान संबंधी आदतों आदि के बारे पत्र-पत्रिकाओं में छपे वर्णन से सामान्य लोग उन तथाकथित बड़े लोगों के निजी जीवन की शाब्दिक झलक पा सकते हैं, जिनके बारे में वे न जाने क्या-क्या सोचते हैं। जिस जीवन को वे जी नहीं सकते; निकट से देख नहीं सकते, शब्दों और तसवीरों के माध्यम से उस जीवन-शैली का अहसास तो कर ही सकते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता में कुछ भी अनुचित नहीं है। पत्रकारिता का जो उद्देश्य है, पत्रों के माध्यम से वे वही पूरा करते हैं।

(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता को केवल चर्चित हस्तियों के बारे में सतही जानकारी ही प्रदान नहीं करती, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है। युवा वर्ग तो उनके जीवन-स्तर से प्रभावित होकर वैसा ही करना चाहता है, जैसा वे करते हैं। कभी-कभी ऐसा करते हुए कई युवक गलत मार्ग की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। अधिक धन न होने के कारण वे अनुचित तरीके से धन प्राप्त करने की चेष्टा करने लगते हैं और अपराध मार्ग की ओर बढ़ जाते हैं।

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प्रश्न 5.
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने सारे देश के पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया; पत्थरों की खानों को देखा। इससे पहले पुरातत्व विभाग से यह जानने की कोशिश भी की गई थी कि मूर्ति कहाँ बनी, कब बनी और किस पत्थर से बनी? मूर्ति जैसा पत्थर प्राप्त न हो पाने के कारण देशभर के महापुरुषों की मूर्तियों की नाक उस मूर्ति पर लगाने का प्रयत्न किया, लेकिन सभी मूर्तियों की नाक लंबी होने के कारण ऐसा नहीं हो सका।

उसने अपनी हिम्मत बनाए रखते हुए अंत में जॉर्ज पंचम की नाक की जगह देशवासियों में से किसी की जिंदा नाक लगाने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया। उसने इंडिया गेट के पास तालाब को सुखाकर साफ़ किया। उसकी रवाब निकलवाई और उसमें ताजा पानी भरवाया, ताकि जिंदा नाक लगने के बाद सूख न पाए।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं, जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ या ‘सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की तरफ़ ताका’ आदि। पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
(क) शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूंज हिंदुस्तान में आ रही थी।
(ख) और देखते-देखते नयी दिल्ली का कायापलट होने लगा।
(ग) अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
(घ) दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर हालत में इस नाक का होना बहुत ज़रूरी है।
(ङ) जैसे भी हो, यह काम होना है।
(च) इस मेहनत का फल हमें मिलेगा…आने वाला ज़माना खुशहाल होगा।
(छ) लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं।
(ज) लेकिन बड़ी होशियारी से।

प्रश्न 7.
नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए। उत्तर :
वास्तव में नाक मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक है। रानी एलिजाबेथ का चार सौ पौंड का हल्का नीला सूट उसकी नाक अर्थात् सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक है, तो दरजी की चिंता उसके नाक की प्रतिष्ठा को प्रकट करती है कि कहीं उसकी सिलाई-कढ़ाई रानी के स्तर से कुछ कम न रह जाए। अखबारों की नाक की प्रतिष्ठा इस बात में छिपी है कि कोई भी, कैसी भी खबर छपने से रह न जाए। रानी के इंग्लैंड में रहने वाले कुत्ते की भी फोटो समेत खबर हिंदुस्तान की जनता को अखबारों में दिख जानी चाहिए।

सरकार की नाक तभी ऊँची रह सकती है, जब सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली टूटी-फूटी सड़कें विदेशियों के सामने जगमगाती। दिखाई दें। आंदोलन करने वालों की नाक की ऊँचाई इसी बात पर टिकती है कि वे कुछ और कर सकें या न कर सकें, पर पत्थर की बनी जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक को जरूर तोड़ दें। इससे कोई लाभ होगा या हानि, उन्हें इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने एक बार निर्णय कर लिया कि मूर्ति की नाक नहीं रहनी चाहिए, तो वह नहीं रहेगी।

देश के शुभचिंतकों ने एक बार ठान लिया। कि मूर्ति की नई नाक लगानी है, तो वह लगेगी; क्योंकि यह उनके मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रश्न था। भले ही इसके लिए वे देश के महान नेताओं की मूर्तियों की नाक हटवाएँ या किसी जिंदा व्यक्ति की नाक ही क्यों न लगवाएँ। मूर्तिकार की नाक इसी में ऊँची रहनी थी कि वह किसी भी तरह मूर्ति को नाक लगा दे। ऐसा न कर पाने पर उसकी नाक दाँव पर लग जाती। लेखक ने अपनी व्यंग्य रचना में नाक को मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक मानकर अपनी बात को स्पष्ट किया है कि सभी अपने अहं को ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। इसी से उनके नाक की ऊँचाई बनी रह सकती है।

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प्रश्न 8.
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता या बच्चे की नाक फिट न हो सकने की बात से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया कि सभी भारतीय अपनी मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को सदा ध्यान में रखने वाले थे। उन्होंने किसी दूसरे देश की भूमि पर अपनी नाक स्थापित करने की कभी कोशिश नहीं की थी। इंग्लैंड की सत्ता ही ऐसी थी, जो देश-देश में अपनी नाक को घुसेड़कर अपना प्रभुत्व दिखाना चाहती थी पर इससे उनकी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी थी; चाहे उन्हें राजनैतिक लाभ उन्हें प्राप्त हुए थे। भारतीय बच्चे भी देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। वे देश की स्वतंत्रता चाहते थे, ताकि उनकी नाक ऊँची हो और विदेशी सत्ता की नाक नीची हो।

प्रश्न 9.
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर :
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को केवल इतना ही प्रस्तुत किया कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।

प्रश्न 10.
‘नयी दिल्ली में सब था… सिर्फ नाक नहीं थी।’ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से कहना चाहता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद नई दिल्ली में अब सबकुछ था, केवल जॉर्ज पंचम का अभिमान और मान-मर्यादा की प्रतीक उनकी ऊँची नाक यहाँ नहीं थी। अंग्रेजी राज में उनकी यहाँ तूती बोलती थी; उन्हीं का आदेश चलता था, पर अब इंडिया गेट के निकट लगी उसकी मूर्ति की नाक नहीं बची थी।

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प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर :
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की मूर्ति को चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक लगाने का जिम्मा लिया था। अखबारों में छप गया था कि उसे जिंदा नाक लगा दी गई। इस कृत्य से भारतवासियों को ऐसा लगा, जैसे उन सबकी नाक कट गई; सबका घोर अपमान हुआ। आज़ाद देश में उस व्यक्ति की मूर्ति को जिंदा नाक लगाई गई, जिसने सारे देश को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ रखा था। इस अपमानजनक घटना के बाद अखबार चुप थे। इस अपमान से पीड़ित होने के कारण उनके पास कहने के लिए कुछ म भी शेष नहीं बचा था।

JAC Class 10 Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
इंग्लैंड की रानी के हिंदुस्तान आगमन पर अखबारों में क्या-क्या छप रहा था?
उत्तर :
अखबारों में इंग्लैंड की रानी के हिंदुस्तान आने के उपलक्ष्य में की जाने वाली तैयारियों की ख़बरें छप रही थीं। उनमें रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों का वर्णन था। रानी की जन्मपत्री, प्रिंस फिलिप के कारनामे, नौकरों, बावरचियों, खानसामों और अंगरक्षकों की लंबी-चौड़ी बातों के साथ-साथ शाही महल में पलने वाले कुत्तों की तसवीरें तक अखबारों में छप रही थीं।

प्रश्न 2.
जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक कैसे और कहाँ चली गई थी?
उत्तर :
किसी समय दिल्ली में इस विषय पर तहलका मचा था कि हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक रहे या। न न रहे। इस विषय पर राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए; नेताओं ने भाषण दिए; गर्मागर्म बहसें हुई और अखबारों के पन्ने रंग दिए गए। कुछ लोग इस पक्ष में थे कि नाक नहीं रहनी चाहिए और कुछ लोग इसके विरोध में थे। आंदोलन को देखते हुए जॉर्ज पंचम की नाक की रक्षा के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे। किसी की क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुंच – सकता, पर उन्हीं हथियारबंद पहरेदारों की उपस्थिति में लाट की नाक चली गई। पता नहीं गश्त लगाते पहरेदार की ठीक नाक के नीचे से लाट की नाक को कौन ले गया और कहाँ ले गया।

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प्रश्न 3.
मूर्तिकार लाट की नाक लगाने को तैयार क्यों हुआ?
उत्तर :
मूर्तिकार भारतीय था और हर हिंदुस्तानी की तरह उसमें भी हिंदुस्तानी दिल धड़कता था, पर वह पैसों से लाचार था। खाली पेट व्यक्ति से कौन-सा काम नहीं कराता? इसी विवशता के कारण मूर्तिकार लाट की नाक लगाने को तैयार हो गया था।

प्रश्न 4.
मूर्तिकार ने मूर्ति की नाक के लिए उपयुक्त पत्थर प्राप्त न कर पाने का क्या कारण बताया था?
उत्तर :
मूर्तिकार ने लाट की नाक के लिए उचित पत्थर प्राप्त करने हेतु देश के सारे पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया था; उसने पत्थरों की खादानों में भी खोजबीन की थी। पर जब उसे मूर्ति के लिए उपयुक्त पत्थर नहीं मिला, तो उसने इसका कारण बताया था कि मूर्ति का पत्थर विदेशी है।

प्रश्न 5.
सभापति ने किस आधार पर कहा था कि हम भारतवासियों ने अंग्रेजी सभ्यता को स्वीकार कर लिया है?
उत्तर :
देश की आजादी के बाद भले ही अंग्रेजी शासन हिंदुस्तान से चला गया, पर अंग्रेजी प्रभाव पूरी तरह से यहाँ रह गया। सभापति ने तभी तैश में आकर कहा था कि ‘लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं-दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?’ अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव के कारण ही शुभचिंतक लाट की टूटी हुई नाक की जगह नई नाक लगवाना चाहते थे।

प्रश्न 6.
जॉर्ज पंचम की नाक की लंबी दास्तान क्या थी?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की नाक की एक लंबी दस्तान थी। किसी समय इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे; आंदोलन हुए थे; राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए थे; चंदा जमा किया था। कुछ नेताओं ने भाषण भी दिया था और गरमागरम बहसें भी हुए थीं। अखबारों में भी खूब छपा था कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए।

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प्रश्न 7.
नई दिल्ली की कायापलट क्यों और कैसे हुई ?
उत्तर :
नई दिल्ली की कायापलट इसलिए हो रही थी, क्योंकि इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत की यात्रा पर आ रही थी। भारतीय राजनेता उनके शाही सम्मान की तैयारी में जुटे थे, इसलिए नई दिल्ली की सड़कें जवान हो रही थीं; उनके बुढ़ापे की धूल साफ़ हो रही थी। इमारतों को सजाया जा रहा था।

प्रश्न 8.
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को किन-किन भारतीय नेताओं की नाक से मिलाया?
उत्तर :
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को भारत के विभिन्न नेताओं की नाक से मिलाया था। इनमें शिवाजी, तिलक, गोखले, जहाँगीर, दादा भाई नौरोजी, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद बोस, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, विट्ठल भाई पटेल, राजा राममोहन राय, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, भगतसिंह आदि थे।

प्रश्न 9.
मूर्तिकार ने अंत में परेशान होकर क्या योजना बताई ?
उत्तर :
मूर्तिकार ने अंत में परेशान होकर कहा कि जॉर्ज पंचम की मूर्ति को नाक लगाना आवश्यक है, इसलिए चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा दी जाए।

प्रश्न 10.
मूर्तिकार की योजना सुनकर राजनेता क्यों परेशान हो उठे और उन्हें शांत करने के लिए मूर्तिकार ने क्या किया?
उत्तर :
मूर्तिकार की यह योजना सुनकर कि मूर्ति पर जिंदा नाक लगानी होगी, सभी राजनेता और अधिकारी परेशान हो गए। तब मूर्तिकार ने उन सभी को शांत करते हुए कहा कि उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं ही किसी की नाक चुन लेगा जो मूर्ति पर सटीक बैठ सके।

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प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाने से पहले क्या इंतजाम किए गए और क्यों?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाने से पहले मूर्ति के चारों ओर हथियारबंद सैनिक खड़े कर दिए गए। मूर्ति के आसपास जो तालाब था, उसका पानी निकाल दिया गया और उसमें पुनः ताज़ा पानी भरा गया। यह सब इसलिए किया गया ताकि जो जिंदा नाक मूर्ति पर लगने वाली थी, वह किसी भी प्रकार से सूखने न पाए।

प्रश्न 12.
सभापति ने तैश में आकर क्या कहा था?
उत्तर :
सभापति ने तैश में आकर कहा-“लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं- दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?”

प्रश्न 13.
मूर्तिकार को शहीद बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी क्यों लगी?
उत्तर :
मूर्तिकार ने महसूस किया कि जॉर्ज पंचम ने भारत को गुलाम बनाया था; इस पर शासन किया था, जबकि बच्चों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसलिए उसे बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी लगी।

प्रश्न 14.
पत्रकारिता क्या है?
उत्तर :
पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है। वह समाज को नई दिशा प्रदान करती है। समाज की अच्छी-बुरी सोच का निर्धारण पत्रकारिता के द्वारा ही होता है। पत्रकारिता आम जनता तथा युवा पीढ़ी पर अपनी सोच का अनुकूल प्रभाव डालती है।

जॉर्ज पंचम की नाक Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

नई कहानी के सुविख्यात रचनाकार कमलेश्वर का जन्म 6 जनवरी, 1932 ई० को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी कस्बे में हुआ। बचपन में ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। मैनपुरी से इन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय इलाहाबाद से हिंदी में एम०ए० पास किया। पत्रकारिता से भी इनका विशेष लगाव रहा है। नई कहानी’, ‘सारिका’, ‘दैनिक जागरण’ और ‘दैनिक भास्कर’ का संपादन कमलेश्वर ने बहुत ही कुशलता के साथ किया। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर इन्होंने अनेक परिचर्चाओं में भी भाग लिया। जीवन के कुछ वर्ष इन्होंने मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में व्यतीत किए। वहाँ इन्होंने अनेक फ़िल्मों और दूरदर्शन धारावाहिकों की पटकथाएँ एवं संवाद लिखे। इनकी कहानियों में कस्बे मैनपुरी, इलाहाबाद, दिल्ली और बंबई (मुंबई) जैसे महानगरों का रंग स्पष्ट उभरा है। इनका देहांत 27 जनवरी, 2007 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

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रचनाएँ – कमलेश्वर की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

कहानी संग्रह – राजा निरबंसिया, कस्बे का आदमी, मांस का दरिया, बयान, खोई हुई दिशाएँ, तलाश, जिंदा मुर्दे, आधी दुनिया, मेरी प्रिय कहानियाँ आदि।
उपन्यास – काली आँधी, समुद्र में खोया हुआ आदमी, वही बात, एक सड़क सत्तावन गलियाँ, सुबह… दोपहर… शाम, डाक बंगला, कितने पाकिस्तान आदि।
नाटक – चारुलता, अधूरी आवाज़, कमलेश्वर के बाल नाटक आदि।
यात्रावृत्त – खंडित यात्राएँ। संस्मरण-अपनी निगाह में।
समीक्षा – नई कहानी की भूमिका, समांतर सोच, मेरा पन्ना आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ – कमलेश्वर नई कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनकी कहानियों में आधुनिक जन-जीवन की विभिन्न विसंगतियों, कुंठाओं, पीड़ाओं और वर्जनाओं का चित्रण यथार्थ के धरातल पर किया गया है। समाज का प्रत्येक पक्ष इनकी कहानियों में मुखरित हुआ है। इनमें आधुनिक समाज में व्याप्त स्वार्थ, घृणा, नफ़रत, घुटन, संत्रास और आत्महत्या जैसी भावनाओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

कमलेश्वर ने अपनी कहानियों के माध्यम से आधुनिक मूल्यों की अन्वेषणा की है। इनमें जीवन की त्रासदी उभरकर सामने खड़ी हो। गई है। कहीं-कहीं वे व्यंग्य-शैली के माध्यम से समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पापाचार, संवेदनहीनता तथा आर्थिक विषमताओं का चित्रण बड़ी ही बेबाकी के साथ करते हैं। इनकी कहानियों में आधुनिक जीवन में व्याप्त बनावटीपन और खोखलेपन का पर्दाफ़ाश यथार्थ दृष्टि से हुआ है।

कमलेश्वर मानव मन के कथाकार हैं। कमलेश्वर की कहानियों में सर्वत्र अंतरवंद परिभाषित होता है। इनकी कहानियों में पीड़ाग्रस्त और अभावग्रस्त आम आदमी का चित्रण मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हुआ है। आज की भाग-दौड़ और आर्थिक तंगहाली किस प्रकार आम आदमी को परेशान एवं हताश कर रही है, यह चिंतनपरक शैली में प्रस्तुत है। इन्होंने अपनी कहानियों में चित्रित पात्रों के माध्यम से गिरते-पड़ते एवं बेचैन मानव के अंदर एक नई शक्ति का संचार किया है।

आधुनिक जन-जीवन में मानवीय संबंधों में आए बिखराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में उकेरा है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच बढ़ती दूरी संबंधों में विकेंद्रीकरण की स्थिति उत्पन्न करती है। पति-पत्नी के दांपत्य संबंधों में आपसी टकराव दांपत्य जीवन को नाटकीय बना रहा है। किशोरावस्था में आया चिढ़चिढ़ापन युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट कर रहा है। मानवीय जीवन में आई इन्हीं सभी विसंगतियों के कारण समाज में बिखराव और टकराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में चित्रित किया है।

कमलेश्वर की कहानियों की भाषा परिमार्जित है, जिसमें उर्दू, अंग्रेजी तथा आंचलिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। मुहावरों के सटीक प्रयोग से इनकी भाषा प्रवाहमयी हो गई है। इनकी अधिकांश कहानियाँ वर्णनात्मक और आत्मकथात्मक-शैली में लिखी गई हैं। अपनी लेखन शैली में वे लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता से अधिक काम लेते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

पाठ का सार :

इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान पधारने वाली थी। सारे देश की अखबारे इस शाही दौरे की खबरों से भरी : थीं। लंदन से उड़ने वाली हर खबर यहाँ सुर्खियों में दिखाई देती थी। इस दौरे के लिए छोटी-से-छोटी बात पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई। थीं। वहाँ का दरजी इस बात से परेशान था कि हंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर महारानी कब-क्या पहनेंगी।

उनके सेक्रेटरी, जासूस और फ़ोटोग्राफर सब भाग-दौड़ में लगे थे। रानी ने चार सौ पौंड खर्च कर हलके नीले रंग का रेशमी सूट बनवाया था, जिसकी खबर भी। अखबारों में छपी थी। रानी की जन्मपत्री और प्रिंस फिलिप के कारनामों के अतिरिक्त अखबारों में उनके नौकरों, बावरचियों, खानसामों, अंगरक्षकों और कुत्तों की तसवीरें छापी गई थीं। दिल्ली में शाही सवारी के आगमन से धूम मची हुई थी।

वहाँ की सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली सड़कें साफ़ हो गईं। इमारतों को सजाया गया, सँवारा गया। पर एक बहुत बड़ी मुश्किल सामने आ गई थी। नई दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक नहीं थी। कई राजनीतिक पार्टियों ने इस मूर्ति को लेकर आंदोलन किए थे; कई प्रस्ताव पास हुए थे, अनेक भाषण : दिए गए थे और गरमागरम बहसें भी हुई थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए।

कुछ लोग इसके पक्ष में थे, तो कुछ विपक्ष में। सरकार ने जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए थे। पर हादसा हो ही गया। इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट की नाक अचानक गायब हो गई थी। हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे, गश्त लगती रही पर लाट की नाक चली गई। अब महारानी देश में आ रही थी और लाट की नाक न हो, तो परेशानी होनी ही थी।

देश की भलाई चाहने वालों की एक मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में उपस्थित सभी इस बात से सहमत थे कि लाट की नाक तो होनी ही चाहिए। यदि वह नाक न लगाई गई, तो देश की नाक भी नहीं बचेगी। उच्च स्तर पर सलाह-मशविरे हुए और तय किया गया कि किसी मूर्तिकार से मूर्ति की नाक लगवा दी जाए। मूर्तिकार ने कहा कि नाक तो लग जाएगी, पर उसे पता होना चाहिए कि वह मूर्ति कहाँ बनी थी, कब बनी थी और इसके लिए पत्थर कहाँ से लाया गया । था। पुरातत्व विभाग से जानकारी मांगी गई, पर वहाँ से इस बारे में कुछ पता नहीं चला।

मूर्तिकार ने सुझाव दिया कि वह देश के हर पहाड़ पर जाएगा और वैसा ही पत्थर ढूँढ़कर लाएगा, जैसा मूर्ति में लगा था। हुक्कामों से आज्ञा मिल गई। मूर्तिकार हिंदुस्तान के सभी पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल गया, पर कुछ दिनों बाद खाली हाथ लौट आया। उसे वैसा पत्थर नहीं मिला। उसने कह दिया कि वह पत्थर विदेशी है। मूर्तिकार ने सुझाव दिया कि देश में नेताओं की अनेक मूर्तियाँ लगी है। यदि उनमें से किसी एक की नाक लाट की मूर्ति पर लगा दी जाए। तो ठीक रहेगा।

सभापति ने सभा में उपस्थित सभी लोगों की सहमति से ऐसा करने की आज्ञा दे दी, पर साथ ही उन्हें सावधान रहने की बात भी समझा दी ताकि यह खबर अख़बार वालों तक न पहुँचे। मूर्तिकार ने फिर देशभर का दौरा किया। जॉर्ज पंचम की खोई हुई नाक का नाप उसके पास था। उसने दादा भाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, कॉवस जी जहाँगीर, गांधीजी, सरदार पटेल, महादेव देसाई, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, सत्यमूर्ति, लाला लाजपत राय, भगतसिंह आदि सबकी मूर्तियों को भली-भाँति देखा-परखा। सभी के नाक की नाप लो, पर सबकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी।

थी। वे इस पर फिट नहीं बैठती थी। इस बात से बड़े हुक्कामों में खलबली मच गई। अगर जॉर्ज की नाक न लग पाई, तो रानी के स्वागत का कोई मतलब नहीं था। मूर्तिकार ने फिर एक सुझाव दिया। एक ऐसा सुझाव, जिसका पता किसी को नहीं लगना चाहिए था। देश की चालीस करोड़ जनता में से किसी की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा देनी चाहिए। यह सुनकर सभापति परेशान हुआ, पर मूर्तिकार को इसकी इजाजत दे दी गई।

अखबारों में केवल इतना छपा कि ‘नाक का मसला हल हो गया है और इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।’ नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आसपास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया। उसकी रवाब निकाली गई और ताजा पानी डाला गया, ताकि लगाई जाने वाली जिंदा नाक सूख न जाए। वह दिन आ गया जब अख़बारों में छप गया कि जॉर्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है, जो बिलकुल पत्थर की नहीं लगती।

उस दिन अखबारों में किसी प्रकार के उल्लास और उत्साह की खबर नहीं छपी; किसी का ताजा चित्र नहीं छपा। ऐसा लगता था कि जैसे जॉर्ज पंचम को जिंदा नाक लगाने से सारे देशवासियों की नाक कट गई थी। जिन विदेशियों ने हमारे देश को इतने लंबे समय तक गुलाम बनाकर रखा था, उनकी नाक के लिए हम अपनी नाक कटवाने को क्यों तैयार रहते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

कठिन शब्दों के अर्थ :

मय – के साथ। पधारने – सम्मान सहित आने। तूफानी दौरा – जल्दबाज़ी में किया गया भ्रमण। बावरची – रसोइए। बेसाख्ता – स्वाभाविक रूप से। खुदा की रहमत – ईश्वर की दया। काया पलट – पूरी तरह से परिवर्तन। करिश्मा – जादू। नाज़नीनों – कोमलांगी। दास्तान – कहानी, गाथा। तहलका – शोर शराबा, फ़साद। खामोश – चुप्प, शांत। एकाएक – अचानक। लाट – खंभा, मूर्ति। खेरख्वाहों – भलाई चाहने वाले। उच्च स्तर – ऊँचा दरजा। फौरन – शीघ्र। हाज़िर – उपस्थित। लाचार – परेशान। हुक्कामों – स्वामियों। ताका – देखा। मसला – विषय, समस्या। खता – अपराध, गलती। दारोमदार – किसी कार्य के होने या न होने की पूरी ज़िम्मेदारी, कार्यभार। किस्म – प्रकार। बदहवासी – परेशानी। परिक्रमा – चारों ओर का चक्कर। हैरतअंगेज ख्याल – आश्चर्यचकित करने वाला विचार। सन्नाटा – पूर्ण शांति। खामोशी – चुप्पी। कानाफूसी – फुसफुसाहट, धीमे स्वर में बातचीत। इजाज़त – आज्ञा। हिदायत – सलाह, सावधानी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

JAC Class 10 Hindi बिहारी के दोहे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
अथवा
बिहारी के दोहों के आधार पर ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड गर्मी और दोपहरी का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
अथवा
बिहारी ने ग्रीष्म ऋतु की तुलना किससे की है?
उत्तर :
कवि ग्रीष्म ऋतु की तपोवन से तुलना करते हुए कहता है कि जून के महीने में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। उस समय ऐसा लगता है, जैसे चारों ओर अंगारे बरस रहे हों। गर्मी की ऐसी भयंकरता को देखकर लगता है कि शायद छाया भी छाया की तलाश में है। उस समय छाया घने जंगलों में अथवा घरों के अंदर होती है। छाया भी गर्मी से परेशान होकर छाया की तलाश में भटकती दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नायिका परदेस गए नायक को प्रेम-पत्र लिखती है। वह विरह की अत्यधिक पीड़ा के कारण कागज़ पर लिखने में स्वयं को असमर्थ पाती है। किसी अन्य के माध्यम से नायक को संदेश भेजने में उसे लज्जा आती है। ऐसे में वह कहती है कि अब उसे किसी साधन की आवश्यकता नहीं है। नायक का हृदय ही उसे नायिका के हृदय की विरह व्यथा का आभास करवा देगा। वह ऐसा इसलिए कहती है, क्योंकि वह नायक से सच्चा प्रेम करती है और यदि नायक भी उसे समान सच्चा प्रेम करता होगा तो उसका हृदय भी विरह की अग्नि में जल रहा होगा। ऐसे में वह अपने हृदय की पीड़ा से नायिका के हृदय की पीड़ा का सहज ही अनुमान लगा लेगा।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 3.
सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बिहारी ने ईश्वर प्राप्ति में किन साधनों को साधक और किनको बाधक माना है?
अथवा
‘सच्चे मन में ईश्वर बसते हैं। इस भाव में बिहारी के दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि का मत है कि बाह्य आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। मनकों की माला का जाप करने, रंगे वस्त्र पहनने और तिलक लगाने से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है, ईश्वर उसी पर प्रसन्न होते हैं। छल-कपटपूर्ण आचरण करने वाला व्यक्ति कितनी भी भक्ति कर ले, ईश्वर को नहीं पा सकता। ईश्वर तो सच्चे हृदय वाले व्यक्ति के मन में निवास करते हैं।

प्रश्न 4.
गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं ?
उत्तर :
गोपियों को श्रीकृष्ण की बाँसुरी से विशेष ईर्ष्या है। एक बार बाँसुरी हाथ में आने पर श्रीकृष्ण गोपियों को भूल जाते हैं। वे बाँसुरी बजाने में इतने खो हो जाते हैं कि गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। गोपियाँ चाहती हैं कि श्रीकृष्ण उनसे प्रेमपूर्ण बातचीत करें और इसलिए वे बाँसुरी को छिपा देती हैं। वे जानती हैं कि श्रीकृष्ण बाँसुरी के विषय में अवश्य पूछेगे और इस प्रकार वे श्रीकृष्ण से बातचीत करने का आनंद प्राप्त कर सकती हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नायक और नायिका एक ऐसे स्थान पर बैठे हैं, जहाँ बहुत-से लोग हैं। नायक नायिका से बातचीत करना चाहता है, किंतु लोगों की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। ऐसे में नायक और नायिका आँखों के संकेतों से सारी बात कर लेते हैं। नायक आँखों के संकेत से नायिका को कुछ कहता है। नायिका आँखों के संकेत से मना कर देती है। नायिका के मना करने के सरस ढंग पर नायक प्रसन्नता व्यक्त करता है, तो नायिका झूठी खीझ व्यक्त करती है। थोड़ी देर में उनके नेत्र पुनः मिलते हैं, तो दोनों खिल उठते हैं और शरमा जाते हैं। इस प्रकार नायक और नायिका सभी की उपस्थिति में बातचीत भी कर लेते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 6.
बिहारी ने ‘जगतु तपोबन सौ कियौ’ क्यों कहा है?
उत्तर :
ग्रीष्म ऋतु में जंगल तपोवन जैसा पवित्र बन जाता है क्योंकि शेर, हिरण, मोर साँप जैसे हिंसक जीव भी परस्पर शत्रुता भूलकर एक साथ रहने लगते हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निराघ।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
उत्तर :
1. कवि के अनुसार श्रीकृष्ण के नीले शरीर पर पीले वस्त्र ऐसे सुशोभित हैं, जैसे नीलमणि पर्वत पर सूर्य की पीली किरणें फैली हों अर्थात् प्रात:कालीन धूप फैली है।
2. इन पंक्ति के अनुसार ग्रीष्म ऋतु की गर्मी ने जंगल को तपोवन जैसा पवित्र बना दिया है। हिंसा की जगह सभी में आपसी प्रेम, सौहार्द्र और मित्रता का भाव उत्पन्न हो गया है। शेर, हिरण, मोर, साँप आदि जीव शत्रुता भूलकर एक साथ गर्मी को सहन कर रहे हैं।
3. कवि कहता है कि हाथ में माला लेकर जपने से, छपे वस्त्र पहनने से या तिलक लगाने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। चंचल मन से ईश्वर भक्ति करना केवल आडंबर है। कवि ने इन्हें व्यर्थ के नृत्य कहा है। उसके अनुसार ईश्वर की प्राप्ति केवल सच्चे हृदय वाले लोगों को ही होती है। नि:स्वार्थ भक्ति ही ईश्वर को प्रिय है।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न :
सतसैया के दोहरे ज्यौं नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करैं गंभीर।
अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

परियोजना कार्य –

प्रश्न :
बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi बिहारी के दोहे Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बिहारी ने अपने दोहों में बाह्याडंबरों का खुलकर विरोध किया है, क्यों?
उत्तर :
बिहारी के ऐसे अनेक दोहे हैं, जिनमें भक्ति-भावना का चित्रांकन किया गया है। उन्होंने भक्ति के सरल, दास्य और माधुर्य भावों का उल्लेख किया है किंतु उनकी भक्ति आडंबर रहित है। बिहारी ने बाह्याडंबरों का खुलकर खंडन किया है, क्योंकि उनका मानना है कि बाह्याडंबरों से भक्ति कलुषित हो जाती है; भक्त का ध्यान भटक जाता है। उन्होंने भक्ति के लिए मन की पवित्रता पर बल दिया है। वे बायाडंबरों को भक्ति-मार्ग में बाधक और व्यर्थ मानते हैं। उनका कहना है कि जपमाला रटने, तिलक लगाने आदि आडंबरों से कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता।

जपमाला, छाएँ, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका कागज़ पर संदेश लिखने में भी क्यों असहाय है?
उत्तर :
बिहारी की नायिका कागज़ पर संदेश लिखने में असहाय है, क्योंकि वह अपने प्रियतम की विरह-व्यथा से अत्यंत पीड़ित है। वह उसकी राह देखते-देखते अत्यंत कमज़ोर और शक्तिहीन हो गई है। उसे अपने प्रियतम से मिलने की निरंतर व्याकुलता व्यथित कर रही है। अब उसमें थोड़ी-सी भी शक्ति नहीं बची कि वह कागज़ पर संदेश लिख सके।

प्रश्न 3.
बिहारी ने लोगों से भरे भवन में भी नायक-नायिका के मिलन का कैसा शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है?
उत्तर :
बिहारी श्रृंगार रस के अनूठे कवि हैं। उन्होंने नायक-नायिका के संयोग पक्ष के विविध भावों का सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है। नायक नायिका लोगों से भरे भवन में आँखों के संकेत के माध्यम से ही सब बातें करते हैं। नायक नायिका को आँखों से संकेत करता है, तो लज्जावश नायिका इनकार कर देती है। नायक उसके इनकार पर भी मुग्ध हो जाता है। इस पर नायिका अपनी खीझ प्रकट करती है। तत्पश्चात दोनों के नेत्र पुनः एक-दूसरे से मिलते हैं। वे दोनों आनंदित हो उठते हैं और लज्जाने लगते हैं।

प्रश्न 4.
बिहारी ने माला जपने और तिलक लगाने को व्यर्थ कहकर क्या संदेश देना चाहा है?
उत्तर :
बिहारी ने अपने दोहे में माला जपने और तिलक लगाने को व्यर्थ बताया है। उनके अनुसार ये सब बाहरी आडंबर के प्रतीक हैं। मनुष्य को इन आडंबरों को छोड़कर सच्चे हृदय से ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। कवि के अनुसार ईश्वर केवल उसी को प्राप्त होता है, जो सच्चे हृदय से उसका ध्यान करते हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी के दोहों’ की रचना मुख्यतः किन भावों पर आधारित हैं? उनके मुख्य ग्रंथ और भाषा के नाम का उल्लेख , कीजिए।
उत्तर :
बिहारी के दोहे मुख्य रूप से श्रृंगारी, नीतिपरक और भक्ति से संबंधित और जीवन के व्यावहारिक पक्षों से जुड़े हुए हैं। इनका मुख्य ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ है। इनकी भाषा ब्रज है, जिसमें अन्य स्थानीय, उर्दू, फारसी के शब्दों का भी कहीं-कहीं प्रयोग मिलता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 6.
(क) “बिहारी के दोहे’ के आधार पर लिखिए कि किन प्राणियों में स्वाभाविक बैर है? वे आपसी बैर कब और क्यों भूल जाते हैं?
(ख) “बिहारी के दोहे’ के आधार पर लिखिए कि माला जपने और तिलक लगाने से क्या होता है? ईश्वर किससे प्रसन्न रहते हैं?
उत्तर :
(क) साँप, मोर, हिरण और बाघ में स्वाभाविक रूप से बैर है परंतु लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को तपोवन जैसा बना दिया है जिस कारण वे अपनी स्वाभाविक दुश्मनी भूलकर मिल-जुलकर रहने लगे हैं।

(ख) हाथ में माला ले कर जपने और तिलक लगाने मात्र से ईश्वर-भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता, इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती, क्योंकि मन तो अस्थिर था। सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास रखते हुए उनका नाम स्मरण करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं।

बिहारी के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – बिहारी हिंदी साहित्य के रीतिकाल के कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे मुख्य रूप से श्रृंगारी कवि हैं। उनका जन्म ग्वालियर के वसुआ गोविंदपुर गाँव में सन 1595 ई० में हुआ था। वे राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने ‘सतसई’ की रचना की। बिहारी राज्याश्रित होते हुए भी स्वतंत्र प्रकृति के कवि थे। अतः उन्होंने कोई भी प्रशंसात्मक काव्य नहीं लिखा। 1663 ई० में उनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – बिहारी ने अपनी सारी प्रतिभा एक ही पस्तक के निर्माण में लगा दी, जो साहित्य जगत में ‘बिहारी सतसई’ या ‘सतसैया’ नाम से विख्यात है। इसमें लगभग 719 दोहे संग्रहीत हैं। प्रत्येक दोहे के भाव गांभीर्य को देखकर पता चलता है कि बिहारी में गागर में सागर भरने की क्षमता थी। उन्होंने अपने एक ही दोहे के प्रभाव से राजा जयसिंह को सचेत कर दिया था। राजा जयसिंह आरंभ में विलासी राजा था। वह अपनी नव-विवाहिता पत्नी पर इतना आसक्त हुआ कि उसने राज-दरबार के कामों से मुँह मोड़ लिया। लेकिन बिहारी के निम्नलिखित दोहे ने राजा जयसिंह की आँखें खोल दीं नहिं पराग

नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अलि कलि ही सौं बिंध्यो, आगे कौन हवाल॥

साहित्यिक विशेषताएँ-बिहारी ने अपनी सतसई की रचना मुक्तक शैली में की है। इसमें श्रृंगार, भक्ति एवं नीति की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। सभी आलोचकों ने सतसई के महत्व को स्वीकार किया है। बिहारी को श्रृंगार रस के चित्रण में अधिक सफलता प्राप्त हुई है। श्रृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग पर बिहारी ने दोहों की रचना की है। राधा एवं कृष्ण की प्रेम-क्रीड़ा का वर्णन कितना स्वाभाविक है –

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाय॥

संयोग के समान बिहारी का वियोग वर्णन भी अनूठा है, पर कहीं-कहीं अतिशयोक्ति के प्रभाव ने अस्वाभाविकता ला दी है –

इति आवति चली जाति उत, चली छः सातक हाथ।
चढ़ी हिंडौर सी हैं, लगी उसासनु साथ ॥

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बिहारी ने सतसई में प्रकृति के सौंदर्य का भी चित्रण किया है। इस सौंदर्य में ऋतु वर्णन का विशेष महत्व है। वसंत ऋतु की मादकता का चित्रण देखिए –

छकि रसाल सौरभ सने, मधुर माधुरी गंध।
ठौर ठौर झारत झंपत, भौंर-झऔर मधु अंध॥

बिहारी भक्ति-भावना से भी प्रेरित रहे हैं। उनके बहुत-से दोहों में दीनता एवं विनय का भाव व्यक्त हुआ है –

कब को टेरत दीन ह्वै, होर न स्याम सहाइ।
तुमहूं लागी जगत गुरु, जग नाइक जग बाइ॥

बिहारी ने ब्रजभाषा को अपनाया है। भाषा पर उनका पूरा अधिकार है। इसका चित्रण बड़ा सुंदर एवं स्वाभाविक है। बिहारी के प्रत्येक दोहे में किसी-न-किसी अलंकार का प्रयोग हआ है। शुक्ल जी के अनुसार, “बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है। वाक्य-रचना व्यवस्थित है और शब्दों के रूपों का व्यवहार एक निश्चित प्रणाली पर है। ब्रजभाषा के अनेक कवियों ने शब्दों को तोड़-मरोड़ कर उन्हें विकृ कर दिया है। परंतु बिहारी की भाषा इस दोष से मुक्त है।” बिहारी की भाषा पर बुंदेलखंडी तथा अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रभाव है।

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दोहों का सार –

अपनी शत्रुता को त्यागकर एक साथ छाया में एकत्रित हो गए हैं। उन्हें देखकर जंगल भी तपोवन के समान प्रतीत होता है। तीसरे दोहे में गो उनसे बाँसुरी माँगते हैं, तो वे मना कर देती हैं। मना करते समय उनका भौंहों से हास्य प्रकट करना श्रीकृष्ण को संदेह में डाल देता है और वे पुनः अपनी बाँसुरी मांगने लगते हैं। चौथे दोहे में नायक और नायिका की संकेतों में बातचीत का वर्णन है। नायक आँखों के संकेतों से नायिका से कुछ कहता है। नायिका उसे मना कर देती है। नायक उसके मना करने के ढंग पर रीझ जाता है, तो नायिका झूठी खीझ प्रकट करती है।

जब दोनों के नेत्र पुनः मिलते हैं, तो दोनों प्रसन्न हो जाते हैं और एक-दूसरे को देखकर लजा जाते हैं। इस प्रकार वे भीड़ भरे भवन में भी बातचीत कर लेते हैं। पाँचवें दोहे में कवि कहता है कि प्रेमियों के नेत्र मिलने पर उनमें प्रेम होता है। वे आपस में तो प्रेम के बंधन में बँध जाते हैं, किंतु परिवार से छूट जाते हैं। उनके इस प्रेम को देखकर दुष्ट लोग कष्ट का अनुभव करते हैं। छठे दोहे में एक सखी द्वारा राधा को समझाने का वर्णन है। राधा श्रीकृष्ण से रूठी हुई है। उसकी सखी उसे समझाती है कि उसके सौंदर्य पर तो उर्वशी नामक अप्सरा को भी न्योछावर किया जा सकता है।

वह तो श्रीकृष्ण के हृदय में उसी प्रकार समाई है, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय पर लगा रहता है। सातवें दोहे में कवि ने गर्मी की भयंकरता का वर्णन किया है। ज्येष्ठ मास में गर्मी की प्रचंडता इतनी अधिक है कि छाया भी छाया की तलाश में है और वह घने जंगल में और घरों में जाकर छिप गई है। आठवें दोहे में विरहणी नायिका की विरह व्यथा को उसी के माध्यम से व्यक्त किया गया है। वह परदेस गए अपने प्रियतम को पत्र लिखने में असमर्थ है और उस तक संदेश भिजवाने में उसे लज्जा आती है।

अंततः वह अपने प्रियतम से कहती है कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना, वह तुम्हें मेरे दिल की बात कह देगा। नौवें दोहे में कवि ने श्रीकृष्ण से अपने संकट दूर करने की प्रार्थना की है। दसवें दोहे में कवि कहता है कि बड़े लोगों के कार्यों की पूर्ति छोटे लोगों से नहीं हो सकती। विशाल नगाड़ों का निर्माण कभी भी चूहे जैसे छोटे जीव की खाल से नहीं हुआ करता। अंतिम दोहे में बिहारी ने स्पष्ट है उसे सहज ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है।

सप्रसंग व्याख्या –

दोहे –

1. सोहत ओ पीतु पटु स्याम, सली. गाता
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

शब्दार्थ : सोहत – शोभा देना। ओढ़े – ओढ़ कर। पीतु पटु – पीले वस्त्र। सली. – साँवले। गात – शरीर। नीलमनि – नीलमणि। सैल – पर्वत, चट्टान। आतपु – धूप।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या : बिहारी श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र अत्यंत सुशोभित हो रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी नीलमणि पर्वत पर प्रात:काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्रों को सूर्य की धूप के समान माना गया है।

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2. कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ ॥

शब्दार्थ कहलाने – क्यों। एकत – इकट्ठे। बसत – रहते हैं। अहि – साँप। मयूर – मोर। मृग – हिरण। बाघ – शेर। दीरघ – लंबा। दाघ – गर्मी। निदाघ – ग्रीष्म ऋतु।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा बिहारी की प्रसिद्ध रचना ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का वर्णन किया है। इस दोहे की प्रथम पंक्ति प्रश्न के रूप में है तथा दूसरी पंक्ति में उसका उत्तर है।

व्याख्या : कवि बिहारी स्वयं प्रश्न करते हैं कि किस कारण से साँप, मोर, हिरण और बाघ एक स्थान पर इकट्ठे हो रहे हैं। इस प्रश्न का स्वयं ही उत्तर देते हुए वे कहते हैं कि शायद इसका कारण भयंकर गर्मी का होना है। लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को एक तपोवन के समान बना दिया है, जहाँ सारे जीव अपना वैर-भाव भूलकर एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहने लगे हैं।

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3. बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौह करैं भौहनु हैसै, दैन कहैं नटि जाइ॥

शब्दार्थ : बतरस – बातें करने का आनंद। लालच – लोभ। लाल – नायक अर्थात श्रीकृष्ण। मुरली – बाँसुरी। धरी – रख दी। लुकाइ – छिपाकर। सौंह – कसम। भौंहनु हँसै – भौंहों से हास्य व्यक्त करना। नटि जाइ – मना कर देना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित है। यह उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने बताया है कि नायिका ने अपने प्रिय से बात करने के लालच में उसकी बाँसुरी छिपा दी। इसके बाद उन दोनों में जो बात हुई, उसे इस दोहे में बताया गया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि नायिका ने श्रीकृष्ण से प्रेम भरी बातचीत का सुख प्राप्त करने के लिए उनकी बाँसुरी कहीं छिपाकर रख दी। श्रीकृष्ण उसे तरह-तरह की कसम देकर अपनी बाँसुरी के विषय में पूछते हैं। नायिका कसम खाकर कहती है कि उसने बाँसुरी नहीं छिपाई। श्रीकृष्ण उसकी बात पर विश्वास कर लेते हैं, किंतु तभी नायिका भौंहें घुमाकर हँसने लगी। श्रीकृष्ण को उस पर संदेह हो गया और वे फिर से उसे अपनी बाँसुरी देने के लिए कहते हैं।

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4. कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।

शब्दार्थ : नटत – इनकार करना। रीझत – मुग्ध होना। खिझत – चिढ़ना। खिलत – प्रसन्न होना। लजियात – लजा जाना, शर्माना। भौन – भवन, घर। नैननु – नेत्रों से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने नायक और नायिका की आँखों द्वारा की जाने वाली बातचीत का सुंदर चित्रण किया है। व्याख्या कवि के अनुसार नायक आँखों से कुछ संकेत करके नायिका से कुछ कहता है, परंतु नायिका आँखों के संकेत से ही इनकार कर देती है।

नायिका के इनकार करने का ढंग कुछ ऐसा है कि नायक मुग्ध हो जाता है। यह देखकर नायिका आँख के इशारे से अपनी खीझ प्रकट करती है। उसकी यह खीझ बनावटी है। थोड़ी देर बाद जब पुनः उनकी आँखें मिलती हैं, तो दोनों एक-दूसरे को देखकर खिल उठते हैं और लजा जाते हैं। इस प्रकार भीड़ भरे घर में भी नायक-नायिका आँखों-ही-आँखों में बातचीत कर लेते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

5. बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥

शब्दार्थ : सघन बन – घने जंगल। पैठि – घुसकर। सदन-तन – घरों में। जेठ – ज्येष्ठ मास, जून का महीना। छाँहौं – छाया भी। छाँह – छाया।

प्रसंग प्रस्तुत दोहा कवि बिहारी द्वारा रचित है, जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ सतसई से लिया गया है। इस दोहे में उन्होंने गर्मी की भयंकरता का सुंदर
चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जेठ मास की इस दोपहर में भयंकर गर्मी है; छाया भी गर्मी से बचने के लिए छाया चाहती है। इसी कारण छाया या तो घने जंगल में है या घरों के भीतर छिपना चाहती है। भाव यह है कि गर्मी बहुत अधिक है, जिस कारण गर्मी से घबराकर छाया भी छाया ढूँढ़ रही है। वह भी छिपना चाहती है।

6. कागद पर लिखत न बनत, कहत संदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥

शब्दार्थ : कागद – कागज़। लिखत न बनत – लिखा नहीं जाता। संदेसु – संदेश। लजात – लज्जा आना। कहिहै – कह देगा। हिय – हृदय।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी दवारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने एक नायिका की विरह-व्यथा का वर्णन किया है। वह परदेस गए हुए अपने प्रियतम को प्रेम-पत्र लिखना चाहती है, किंतु लिख नहीं पाती।

व्याख्या : नायिका कहती है कि हे प्रियतम! मैं अपनी विरह की पीड़ा को कागज पर लिखने में असमर्थ हूँ। मैं तुम्हें मौखिक रूप से किसी के द्वारा अपना प्रेम-संदेश भी नहीं भिजवा सकती, क्योंकि ऐसा करने में मुझे लज्जा का अनुभव होता है। अतः मैं केवल इतना ही कहना चाहती

हूँ कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना; वह तुम्हें मेरे हृदय की सब बातें बता देगा। भाव यह है कि तुम्हारी विरह में जैसे मेरा हृदय दुखी है, वैसे ही मेरी विरह में तुम्हारा हृदय भी दुखी होगा। इस प्रकार तुम अपने हृदय से मेरी स्थिति का सहज ही अनुमान लगा सकते हो।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

7. प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥

शब्दार्थ : प्रगट भए – उत्पन्न हुए। द्विजराज-कुल – ब्राह्मण वंश, चंद्र वंश। सुबस – अपनी इच्छा से। हरौ – दूर करो। कलेस – कष्ट, दुख। केसव – श्रीकृष्ण। केसवराइ – केशवराय, बिहारी के पिता।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का रूपक अपने पिता केशवराय से करके उनसे अपने कष्टों का निवारण करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : उनसे कवि कहता है कि हे श्रीकृष्ण! आपने चंद्रवंश में जन्म लिया है और आप अपनी इच्छा से ही ब्रज में आकर बस गए हैं। ब्रज में बसे हुए केशवराय रूपी केशव! मेरी प्रार्थना है कि आप मेरे सभी संकटों और दुखों को दूर करो। भाव यह है कि आप सर्वशक्तिमान हैं, अतः मेरे कष्टों का भी निवारण करो।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

8. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

शब्दार्थ : जपमाला – माला द्वारा ईश्वर के नाम का जाप करना। छापा – ईश्वर नाम के छपे हुए वस्त्र पहनना। सरै – पूरा होना। मन-काँचै – कच्चे मन वाला, अस्थिर मन वाला। नाचै – नाचना। बृथा – बेकार में। साँचै – सच्चे मन वाला। राँचै – प्रसन्न होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित ‘सतसई’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बाह्य आडंबरों के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हाथ में माला लेकर निरंतर जाप करने से, ईश्वर नाम के छपे वस्त्र पहनने से तथा तिलक लगाने से ईश्वर-भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता। यदि मनुष्य का मन अस्थिर है और उसके मन में ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास नहीं है, तो उसका भक्ति में नाचना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास करके भक्ति करते हैं, भगवान उन्हीं पर प्रसन्न होते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

JAC Class 10 Hindi माता का आँचल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर :
माँ बच्चे की जन्मदाता तथा पालन-पोषण करने वाली होती है। स्वाभाविक रूप से बच्चा माँ से अधिक लगाव रखता है। माँ भी एक बाप की अपेक्षा हृदय से अधिक प्यार-दुलार करती है। वह बाप की अपेक्षा बच्चों की भावनाओं को अधिक अच्छे ढंग से समझ लेती है। माँ का अपने बच्चे से आत्मिक प्रेम होता है। बच्चा चाहकर भी माँ की ममता को नहीं भुला सकता। यह भी सत्य है कि एक बाप अपने बच्चों को बहुत अधिक प्यार तो दे सकता है, लेकिन एक माँ का हृदय वह कभी प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए प्रस्तुत पाठ में पिता से अधिक लगाव होने पर भी बच्चा विपदा के समय पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर :
मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपनी आयु तथा प्रकृति के लोगों के साथ अधिक जुड़ा रहता है। वह मन से उनकी संगति लेना चाहता है। उनकी संगति में आकर उसके दुख, रोग आदि सब मिट जाते हैं। विशेषकर बच्चा अपने जैसे साथियों की संगति अवश्य चाहता है, क्योंकि उनके बिना उसकी अठखेलियाँ और मौज-मस्ती अधूरी रह जाती हैं। वह अपनी संगति में आकर अपने सारे सुख-दुख भूल जाता है। इसलिए भोलानाथ भी अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 3.
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर :
(i) अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो,
अस्सी नब्बे पूरे सौ।
सौ पे लगा धागा,
चोर निकलकर भागा।

(ii) पौशम पा भई पौशम पा
डाकिए ने क्या किया
सौ रुपये की घड़ी चुराई
अब तो जेल में जाना पड़ेगा
जेल की रोटी खानी पड़ेगी।
जेल का पानी पीना पड़ेगा।

प्रश्न 4.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
अथवा
माता के अँचल पाठ में वर्णित खेलों से आज के खेल कितने अलग हैं, उसका तुलनातमक वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री हमारे खेल और खेलने की सामग्री से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है –
(i) भोलानाथ और उसके साथी तमाशे, नाटक, चिड़ियाँ पकड़ना, घर बनाना, दुकान लगाना आदि खेल खेला करते थे।
हम क्रिकेट खेलना, कार्टून देखना, साइकिल दौड़ाना, सवारी करना, तैरना आदि खेल खेलते हैं।
(ii) भोलानाथ और उसके साथी चबूतरा, चौकी, सरकंडे, पत्ते, गीली मिट्टी, फूटे घडे के टुकडे, ठीकरे आदि सामग्री का प्रयोग करते थे। हम साइकिल, रस्सी, टी०वी०, कंप्यूटर, इंटरनेट, पेन, पेंसिल आदि सामग्री का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर :
1. देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता।

2. एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल में पानी डालने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था हम सब थक गए। तब तक गणेशजी के चूहे की रक्षा के लिए शिवजी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले।

3. इसी समय बाबूजी दौड़े आए। आकर झट हमें मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे पर हमने मइयाँ के आँचल की प्रेम और शांति के चँदोवे की छाया न छोड़ी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 6.
इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
आज की ग्रामीण संस्कृति में हमें अनेक तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं –

  • आज के ग्रामीण परिवेश में बच्चों के परस्पर स्नेह में बँधे हुए झुंड दिखाई नहीं देते।
  • बच्चे बाहर खेलने की अपेक्षा अपने घरों में अधिकांश बँधे रहते हैं।
  • खेलने के लिए पहले जैसे खुले मैदान नहीं रहे।
  • आज उनके खेल तथा खेलने की सामग्री भी बदल चुकी है।
  • आज के बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं, मिट्टी आदि के ढेलों से नहीं।

प्रश्न 7.
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर :
बचपन में हमें भी सुबह-सवेरे माँ बड़े प्यार से जगाया करती थी। जल्दी-जल्दी नहला-धुलाकर तथा साफ़ कपड़े पहनाकर फिर हमें खेलने के लिए छोड़ देती थीं। पिताजी हमें अपने कंधे पर बिठाकर दूर तक झुलाया करते थे। कभी-कभी आँगन में अपनी पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह झुला दिया करते थे। कभी-कभी वे हमें अपने साथ लेकर नदी में नहलाने के लिए ले जाते थे और अपनी गोदी में लेकर पानी में खूब डुबकियाँ लगाते थे। कई बार पिताजी हमें अपने साथ खेतों में घुमाया करते थे। माँ अपने आँचल में बिठाकर हमें दूध पिलाया करती; भोजन खिलाती थीं। पेट भर जाने पर भी हमसे और खाने के लिए कहती थीं। बच्चों के साथ बाहर खेलने जाते तो बड़े प्यार से समझा-बुझाकर भेजती थीं। अनेक नसीहतें देती थीं।

प्रश्न 8.
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत पाठ में बच्चे के प्रति माता-पिता के वात्सल्य का सजीव वर्णन किया गया है। बच्चे का माँ के आँचल में खेलना, माँ द्वारा सुबह बच्चे को नहला-धुलाकर तथा कपड़े आदि पहनाकर खेलने भेजना, पूजा-पाठ आदि करके उसके माथे पर तिलक लगाना आदि का सजीव चित्रण हुआ है। बच्चे का अपने पिता की मूंछों के साथ खेलने का अनूठा वर्णन हुआ है। पिता बच्चों को अपने कंधों पर झुला-झुलाकर उनका मन बहलाता है; उनके साथ कुश्ती करता है। बच्चों का मन खुश करने हेतु हार जाता हैं, जिससे बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। माँ बच्चों को तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम देकर उन्हें भोजन खिलाती है। बच्चों को थोड़ी-सी चोट लगने पर माता-पिता दुखी हो जाते हैं। माँ अपने बच्चे को अपने आँचल में छिपाकर उनसे प्यार करती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 9.
‘माता का अँचल’ शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर :
‘माता का अँचल’ पाठ के माध्यम से लेखक ने माँ के आँचल के प्रेम एवं शांति का वर्णन किया है। लेखक और उसका भाई वैसे तो अधिकतर अपने पिता के साथ रहते हैं। उनके पास सोते हैं, लेकिन जो प्यार और शांति उन्हें माँ के आँचल में मिलती है वैसी पिता के साथ नहीं मिलती। माँ अपने बच्चों को नहला-धुलाकर, कुरता-टोपी, तिलक आदि लगाकर बाहर खेलने के लिए भेजती है। पिता के द्वारा रोटी खिलाने पर भी माँ बच्चों को कबूतर, तोता, मैना आदि के बनावटी नाम देकर रोटी खिलाती है।

पाठ के अंत में भी जब बच्चे साँप से भयभीत होकर घर पहुँचते हैं, तो वे अपनी माँ के आँचल में छिप जाते हैं। उन्हें हुक्का गुड़गुड़ाते हुए पिता अनदेखा कर देते हैं। माँ ही अपने आँचल में लेकर बच्चों की चोट पर हल्दी का लेप लगाती है। काँपते होंठों को बार-बार देखकर उन्हें गले लगा लेती है। उसी समय बाबूजी माँ की गोद से बच्चों को लेना चाहते हैं, लेकिन बच्चे अपनी माता के अँचल की प्रेम और शांति की छाया को नहीं छोड़ते। संभवतः माता का अँचल एक उपयुक्त शीर्षक है। इसका अन्य शीर्षक ‘बचपन’ हो सकता है।

प्रश्न 10.
बच्ने माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं ?
उत्तर :
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को अपनी क्रीड़ाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। वे अपने मन की भावनाओं को अपनी क्रीड़ा के माध्यम से प्रकट करते हैं। उनकी भावनाएँ ही उनके प्रेम का प्रतीक होती हैं। वे कभी नाराज़, तो कभी प्रसन्न होकर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 11.
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह हमारे बचपन की दुनिया से पूर्णतः भिन्न है। हमारी दुनिया में परस्पर स्नेह भाव, दोस्ती, विचारों के आदान-प्रदान आदि की कमी है। आज मित्र-मंडली जैसा शब्द भी खो गया सा लगता है, जिसमें परस्पर प्रेमभाव से भरकर, मस्ती में चूर होकर कहीं बाहर खेलने जाए। फिर पहले की अपेक्षा आज की दुनिया में प्राकृतिक खेलों का चलन कम हो गया है और कृत्रिम खेल व सामग्री का चलन बढ़ा है।

आज की दुनिया कृत्रिम उपादानों से घिरी हुई है। उसमें स्वाभाविकता छिप गई है। तमाशे करना, नाटक खेलना, मिट्टी का घर बनाना, चिड़ियों संग खेलना आदि प्राकृतिक खेल तथा सामग्री अब कहीं नहीं मिलती। अब तो हमारी दुनिया कंप्यूटर, टी० वी०, क्रिकेट आदि में उलझकर रह गई है।

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प्रश्न 12.
फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर :
फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी साहित्य के महान आंचलिक कथाकार हैं। नागार्जुन भी प्रमुख आंचलिक लेखक माने जाते हैं। विद्यार्थी इनकी रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।

JAC Class 10 Hindi माता का आँचल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खर्चे का तंग’ प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से समाज में बुजुर्गों की निरंतर उपेक्षा की ओर संकेत किया गया है, कैसे?
उत्तर :
यह सत्य है कि आज के आधुनिक युग में मनुष्य पहले की अपेक्षा अधिक लालची, सीमित तथा स्वार्थी हो गया। उसमें नैतिकता, परस्पर स्नेह, बुजुर्गों का सम्मान, पारिवारिक देखभाल आदि जीवन मूल्य समाप्त हो गए हैं। इसलिए आज वह अपने बुजुर्गों की अपनी मौज-मस्ती में चूर है। बुजुर्ग इसी उपेक्षा के शिकार होकर खर्चे की तंगी के कारण अपना विडंबनापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। लेखक ने इस पंक्ति के माध्यम से जहाँ बुजुर्गों के उपेक्षित जीवन के प्रति चिंता व्यक्त की है, वहीं आज के युवा समाज पर कटु व्यंग्य भी किए हैं।

प्रश्न 2.
तारकेश्वर नाथ का नाम ‘भोलानाथ’ कैसे पड़ा?
उत्तर :
बाबूजी सुबह-सवेरे अपने साथ-साथ लेखक तथा उसके भाई को भी उठा दिया करते थे और अपने साथ उन्हें भी नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा लिया करते थे पूजा के पश्चात बाबूजी अपने दोनों बेटों के चौड़े मस्तक पर अर्ध चंद्राकार की रेखाएँ बना देते थे। उनके सिर पर लंबी-लंबी जटाएँ थीं। अतः उनके मस्तक पर भभूत बहुत अच्छी लगती थी। इस प्रकार भोले के समान वेश होने के कारण तारकेश्वरनाथ का नाम भोलानाथ पड़ गया।

प्रश्न 3.
‘मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए।’ इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक ने पुरुष समाज पर व्यंग्य किया है। यह सत्य है कि नारी की अपेक्षा पुरुष के अंदर वात्सल्य भावना बहुत कम होती है। माँ के रूप में नारी एक बच्चे को जो लाड़-प्यार दे सकती है, वैसा पिता के रूप में पुरुष नहीं दे सकता। पिता की अपेक्षा माँ बच्चों के मन को झाँककर देख लेती है। वह भावनात्मक रूप से बच्चों के साथ जुड़ी रहती है। इसलिए वह बच्चों की भावनाओं को शीघ्रता से समझ लेती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 4.
पाठ में बच्चों द्वारा जो घरौंदा बनाया था, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
लेखक की मित्र-मंडली ने जो घरौंदा बनाया था, उसमें धूल की मेंड़ से दीवार बनाई गई और तिनकों का छप्पर। उसमें दातुन के खंभे तथा दियासलाई की पेटियों के किवाड़ लगाए गए। उसके अंदर घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीये की कड़ाही और बाबूजी की पूजा वाली कलछी बनाई गई। घर में पानी का घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से मित्र-मंडली भोजन करती थी। सब लोग घर के अंदर पंगत में बैठकर यह भोजन जीमते थे। इस प्रकार लेखक ने बच्चों का यह अद्भुत घरौंदा बनाया।

प्रश्न 5.
लेखक को उसके पिताजी क्या कहकर पुकारते थे? लेखक अपने माता-पिता को क्या कहकर पुकारता था?
उत्तर :
लेखक के पिता उसे बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते थे। असल में लेखक का नाम ‘तारकेश्वरनाथ’ था। लेखक अपने पिता को ‘बाबूजी’ तथा माता को ‘मइयाँ’ कहकर पुकारता था।

प्रश्न 6.
लेखक के पिता जब रामायण का पाठ करते थे, तब लेखक क्या करता था?
उत्तर :
लेखक के पिता जब सुबह स्नान के बाद रामायण का पाठ करते थे, तब लेखक उनके बगल में बैठकर दर्पण में अपने मुख को निहारता था। ओर देखते थे, तब वह कुछ शरमाकर दर्पण को नीचे रख देता था। यह देखकर लेखक के पिता भी मुस्कुरा पड़ते थे।

प्रश्न 7.
प्रतिदिन सुबह लेखक के पिता उसे किस प्रकार तैयार करते थे?
उत्तर :
लेखक रात को अपने पिता के साथ बैठक में सोया करता था। उसके पिता जब सुबह उठते थे, तब वे अपने साथ लेखक को भी उठा . देते थे। फिर उसे नहलाकर पूजा पर बिठा लेते थे। वे लेखक के माथे पर भभूत का तिलक लगा देते थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 8.
लेखक ‘बम-भोला’ कब बन जाता था?
उत्तर :
जब लेखक के पिता उसके माथे पर भभूति तथा त्रिपुंड लगा देते थे, तो उसका माथा खिल उठता था। लेखक की लंबी-लंबी जटाएँ थीं तथा भभूत लगाने से वह अच्छा खासा ‘बम भोला’ लगता था।

प्रश्न 9.
पूजा-पाठ करने के बाद लेखक के पिता क्या करते थे?
उत्तर :
पूजा-पाठ करने के बाद लेखक के पिता राम-नाम लिखने लगते थे। वे अपनी ‘रामनामा’ बही में हज़ार राम-नाम लिखकर उसे पाठ कर रख देते थे। पाँच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकडों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते थे और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे। वहाँ वे ये गेलियाँ मछलियों को खिला देते थे।

प्रश्न 10.
जब लेखक के पिता गंगा में आटे की गोलियाँ फेंकते थे, तब लेखक क्या करता था?
उत्तर :
जब लेखक के पिता गंगा में आटे की गोलियाँ फेंककर मछलियों को खिलाते थे, तब लेखक उनके कंधे पर विराजमान होता था और बैठे-बैठे हँसा करता था। जब उसके पिताजी मछलियों को चारा खिलाकर घर वापस लौटते थे, तब बीच रास्ते में उसको पेड़ों की डालों पर बिठाकर झूला झुलाते थे।

प्रश्न 11.
बैजू कौन था ? वह किसे चिढ़ाता था?
उत्तर :
बैजू लेखक की मंडली का एक लड़का था। वह सभी लड़कों में बड़ा ढीठ था। बैजू मूसन तिवारी को चिढ़ाता था। वह उन्हें चिढ़ाने के लिए कहता था कि ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।’

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प्रश्न 12.
लेखक के पिता ने यह क्यों कहा कि ‘लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।’
उत्तर :
लेखक के पिता ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि बच्चे अपने खेल, आनंद तथा मौज-मस्ती के लिए किसी का भी मजाक उड़ाने से पीछे नहीं हटते; फिर चाहे जिसका मज़ाक वे उड़ा रहे हैं; उसे कितना ही कष्ट क्यों न हो। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता। यही काम बंदरों का भी है। इसलिए लेखक के पिता ने कहा कि लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।’

प्रश्न 13.
लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला, तब क्या हुआ?
उत्तर :
लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला, तो उसके अंदर से साँप निकल आया। उसे देखकर सभी लड़के वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए।

प्रश्न 14.
बिल में से साँप निकलने पर बच्चों का क्या हाल हुआ?
उत्तर :
जब बिल में से साँप निकला, तो बच्चे रोते-चिल्लाते बेतहाशा भागे। कोई औंधा गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। लेखक का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। उसके पैर के तलवे काँटों से छलनी हो गए थे।

माता का आँचल Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 में गाँव उनवास जिला शाहाबाद (बिहार) में हुआ। इनके बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने बनारस की अदालत में नकलनवीस की नौकरी की। बाद में ये हिंदी के अध्यापक बन गए। असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। शिवपूजन सहाय तत्कालीन लेखकों में बहुत लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्ति थे। इन्होंने जागरण, हिमालय, माधुरी, बालक आदि कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके साथ ही ये हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका मतवाला के संपादक-मंडल में थे। सन 1963 में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – शिवपूजन सहाय मुख्यतः गद्य लेखक थे। देहाती दुनिया, ग्राम सुधार, वे दिन वे लोग, स्मृतिशेष आदि इनकी दर्जन भर गद्य-कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। शिवपूजन रचनावली के चार खंडों में इनकी संपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ – शिवपूजन सहाय आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। इन्होंने युगीन समाज की विडंबनाओं, समस्याओं, सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों आदि का यथार्थ चित्रण किया है। समाज में बढ़ रहे शोषण के विरुद्ध इन्होंने आवाज़ उठाई है। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों का डटकर विरोध करते हुए नारी में चेतना जागृत करने का प्रयास भी किया। सहाय जी ने ग्राम्य संस्कृति का अनूठा चित्रण किया है। देहाती दुनिया, ग्राम-सुधार, माता का आँचल आदि ऐसी प्रमुख रचनाएँ हैं जिनमें ग्राम्य संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि का सजीव अंकन हुआ है। माता का आँचल में लेखक ने माँ के आँचल की गरिमा तथा ग्राम्य संस्कृति का अनूठा वर्णन किया है। इन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया है कि युवा वर्ग मस्ती में चूर रहता है, तो बुजुर्ग लोग बेबस होने के कारण अपनी आजीविका चलाने हेतु खर्चे से भी तंग हो जाते हैं। उन्होंने कहा है –

जहाँ लड़कों का संग, तहाँ बाजे मृदंग।
जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खर्चे का तंग॥

सहाय जी की भाषा-शैली सरल-सरस खड़ी बोली है। इनकी भाषा में लोक जीवन और लोक संस्कृति के प्रसंग सहज ही मिल जाते हैं। इनकी भाषा में आंचलिक शब्दों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ तत्सम, तद्भव, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इन्होंने वर्णनात्मक, चित्रात्मक, विवरणात्मक शैलियों का भावपूर्ण प्रयोग किया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता एवं प्रवाहमयता उत्पन्न हो गई है। संभवतः शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य के महान लेखक थे। इनका हिंदी साहित्य में अपूर्व योगदान है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

पाठ का सार :

शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ‘माता का अँचल’ उनके उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने माँ के अंचल की ‘ममता’ के साथ-साथ ग्राम्य संस्कृति का अनूठा चित्रांकन किया है। समाज में युवा जहाँ मौज-मस्ती में रहते हैं, वहाँ बजर्ग कठिनता से जीवनयापन कर पाते हैं। लेखक ने बताया है कि उसके पिता सुबह उठकर स्नान कर पूजा-पाठ करते थे। वे लेखक तथा उसके भाई को भी पूजा-स्थान पर बैठा लेते थे।

लेखक अधिकांश अपने पिता के साथ रहता था। पूजा के बाद पिता उसके माथे पर भभूत और तिलक लगाकर उसे भोलानाथ कहकर पुकारते थे। बाबूजी द्वारा रामायण पाठ करते समय वे दोनों भाई आईने में अपना मुँह निहारा करते थे। इसके बाद बाबूजी अपनी ‘रामनामा बही’ में हज़ार बार राम नाम लिखकर उसे पाठ करने की पोथी के साथ बंद करके रख देते थे। बाबूजी द्वारा गंगा में मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते समय दोनों भाई उनके कंधों पर बैठे हँसते थे।

कभी-कभी बाबूजी उनसे कुश्ती करते थे। वे दोनों अपने बाबूजी की लंबी-लंबी मूंछों के साथ खेलते थे। बाबूजी प्यार से उन्हें चूमते थे। घर आकर बाबूजी उन्हें चौके पर बिठाकर अपने हाथों से खाना खिलाया करते थे। लेखक तथा उसके भाई के मना करने पर उनकी माँ बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर आदि के बनावटी नाम से टुकड़े बनाकर उन्हें दही-भात खिलाती थी। छककर खाने के बाद वे नग-धडंग अवस्था में बाहर दौड़ पड़ते थे। कभी अचानक माँ पकड़ ले, तो वे उनकी चोटी गूंथकर तथा उन्हें कुरता-टोपी पहनाकर ही छोड़ती थीं। वे सिसकते-सिसकते बाबूजी की गोद में बाहर आते।

बाहर आते ही वे बालकों के झुंड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे। वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक किया करते थे। मिठाइयों की दुकान; जिसमें पत्ते की पूरियाँ, मिट्टी की जलेबियाँ आदि मिलती है; लगाया करते थे। सभी बच्चों के साथ मिलकर वे घर बनाते थे, जिसमें तिनकों का छप्पर, दातून के खंभे, दीए की कड़ाही आदि रखे जाते थे। उसी घरौंदे में सभी पंक्ति में बैठ जीमने लगते। बाबूजी भी उनके पास चले आते थे। कभी-कभी वे बारात का जुलूस निकालते थे, जिसमें कनस्तर का तंबूरा और आम के पौधे की शहनाई बजती।

टूटी चूहेदानी की पालकी बनती और समधी बनकर बकरे पर चढ़ जाते। यह बारात एक कोने से दूसरे कोने तक जाती थी। कभी मित्रमंडली इकट्ठी होकर खेती करने लगती। इस प्रकार के नाटक वे प्रतिदिन खेला करते थे। किसी दूल्हे के आगे चलती पालकी देखते ही ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते। एक बार बूढ़े वर ने खदेलकर लेखक मंडली को ढेलों से मारा। एक बार रास्ते में आते हुए मूसन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी ने उनको खूब खदेड़ा। उसके बाद मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए।

वहाँ चार लड़कों में से बैजू तो भाग निकला, लेकिन लेखक और उसका भाई पकड़ा गया। यह सुनकर बाबूजी पाठशाला दौड़ें आए। गुरुजी से विनती कर बाबूजी उन्हें घर ले आए। फिर वे रोना-धोना भूलकर अपनी मित्र मंडली के साथ हो गए। उनके मित्र मकई के खेत में चिड़ियों को पकड़ने लगे, वे खेत से अलग होकर ‘रामजी की चिरई, रामजी का खेत खा लो चिरई भर-भर पेट’ गीत गाते रहे। कुछ दूरी पर बाबूजी तथा अन्य गाँव के लोग यह तमाशा देख रहे थे। एक टीले पर जाकर लेखक और उसका भाई अपने मित्रों के साथ मिलकर चूहों के बिल में पानी डालने लगे।

कुछ देर बाद उसमें से गणेशजी के चूहे की रक्षा के लिए शिव का सांप निकल आया। उससे डरकर वे रोते-चिल्लाते वहाँ से भाग चले। गिरते-फिसलते, काँटों में चलते वे सब खून से लथपथ हो गए। सभी अपने-अपने घर में घुस गए। उस समय बाबूजी बरामदे में बैठे हुक्का पी रहे थे। वे दोनों अपनी माँ की गोद में जाकर बैठ गए। उन्हें डर से कांपते हुए देखकर लेखक की माँ रोने लगी। वह व्याकुल होकर कारण पूछने लगी। कभी उन्हें अपने आँचल में छिपाती, तो कभी प्यार करने लगती। माँ ने तुरंत हल्दी पीसकर लेखक और उसके भाई के घावों पर लगाई। उनका शरीर काँप रहा था। आँखें चाहकर भी खुलती न थीं। बाबूजी दौड़कर उन्हें गोद में लेने लगे, लेकिन वे अपनी माँ के आँचल में ही छुपे रहे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

कठिन शब्दों के अर्थ :

मृदंग – एक प्रकार का वाद्य-यंत्र। संग – के साथ। तड़के – प्रातः, सुबह। लिलार – ललाट, माथा। त्रिपुंड – एक प्रकार का तिलक जिसमें माथे पर तीन आड़ी या अर्धचंद्र के आकार की रेखाएँ बनाई जाती हैं। जटाएँ – बाल। भभूत – राख। विराजमान – स्थापित, बैठना। उतान – पीठ के बल लेटना। सामकर – मिलाकर। अफ़र जाते – भरपेट खा लेते। ठौर – स्थान। कड़वा तेल – सरसों का तेल। बोथकर – सराबोर कर देना। चॅदोआ – छोटा शमियाना। ज्योनार – भोज, दावत। जीमने – भोजन करना। कनस्तर – टीन का एक ओहार – परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा। अमोले – आम का उगता हुआ पौधा। कसोरे – मिट्टी का बना छिछला कटोरा। रहरी – अरहर। अँठई – कुत्ते के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े। चिरौरी – विनती, प्रार्थना। मइयाँ – माँ। महतारी – माँ। अमनिया – साफ़, शुद्ध। ओसारे में – बरामदे में।

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JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

JAC Class 10 Hindi संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार हम लोग अपनी रूढ़ियों से इस प्रकार बँधे हुए हैं कि प्रतिपल परिवर्तित होने वाले संसार के साथ चल नहीं पाते। इस कारण अपनी सीमाओं में बँधे रहते हैं। इस संकुचित दृष्टिकोण के कारण हम सभ्यता और संस्कृति के लोक कल्याणकारी रूप को भुला देते हैं और अपने व्यक्तिगत, जातिगत, वर्गगत हितों की रक्षा करने में लग जाते हैं और इसे ही अपनी सभ्यता व संस्कृति मान बैठते हैं। इसके विपरीत सभ्यता और संस्कृति में मानवीय कल्याण का स्वर प्रमुख होता है। इसके अभाव में सभ्यता ‘असभ्यता’ और संस्कृति ‘असंस्कृति’ हो जाती है। अपने स्वार्थों के कारण ही हमें सभ्यता और संस्कृति की सही समझ अब तक नहीं आई है।

प्रश्न 2.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है?
उत्तर :
इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे? आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज इसलिए मानी जाती है, क्योंकि इसके बाद मनुष्य के अनेक कार्य सुगम हो गए हैं। आग से खाना बनाया जाता है; ऊर्जा पैदा करके अनेक मशीनों को चलाया जा सकता है। आग की खोज के पीछे पेट भरने के लिए खाद्य सामग्री पकाने की प्रेरणा ही मुख्य है। अँधेरे में प्रकाश करना, ठंड में गरमी प्राप्त करना आदि आग की खोज करने के अन्य प्रेरणास्त्रोत हैं।

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प्रश्न 3.
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर :
लेखक ने उस व्यक्ति को ‘संस्कृत व्यक्ति’ बताया है जिसकी योग्यता, बुद्धि, विवेक, प्रेरणा अथवा प्रवृत्ति उसे किसी नए तथ्य का दर्शन करवाती है और वह जनकल्याण के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य करता है। संस्कृत व्यक्ति सदा अच्छे कार्य करता है। वह प्राणीमात्र के कल्याण की चिंता करता है। अपने कार्यों से वह किसी का अहित नहीं करता। वह स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों को सुख देता है।

प्रश्न 4.
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन-से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर :
न्यूटन को संस्कृत मानव इसलिए कहते हैं क्योंकि उसने अपनी योग्यता, प्रवृत्ति एवं प्रेरणा के बल पर जनकल्याण के लिए गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था। उसकी यह खोज मौलिक खोज थी। इस खोज के पीछे उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं था। उसने यह कार्य कल्याण की भावना से किया था। आज कई लोग न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अतिरिक्त भौतिक विज्ञान से संबंधित उन अनेक बातों को भी जानते हैं, जो न्यूटन को पता नहीं थीं। इस पर भी इन लोगों को न्यूटन के समान संस्कृत व्यक्ति इसलिए नहीं कह सकते, क्योंकि इन लोगों ने स्वयं कोई आविष्कार नहीं किया है। ये लोग अन्य व्यक्तियों द्वारा की गई खोजों से ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। अतः ये लोग न्यूटन की तरह संस्कृत व्यक्ति नहीं कहे जा सकते।

प्रश्न 5.
किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर :
मानव ने सूई-धागे का आविष्कार कपड़े सीने, शीतोष्ण से बचने के लिए, वस्त्र बनाने आदि के लिए किया होगा। शरीर को सजाने के लिए बनाए जाने वाले वस्त्रों के लिए भी सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। रज़ाई, गद्दे, टैंट, पर्दे आदि बनाने के लिए भी सुई-धागे
का ही उपयोग होता है।

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प्रश्न 6.
‘मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर :
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने के लिए धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाया जाता है, जैसा कि ब्रिटिश सरकार ने हिंदू-मुसलमानों को आपस में लड़ाकर हिंदुस्तान के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान कर दिए थे।
(ख) गुजरात में आए भूकंप के समय हिंदू-मुस्लिम का भेदभाव भुलाकर सभी लोगों ने एकजुट होकर पीड़ितों की सहायता की। इस घटना से मानव संस्कृति के एक होने का प्रमाण मिलता है।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए –
उत्तर :
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? लेखक का मानना है कि मनुष्य अपनी योग्यता और कुशलता के बल पर जिन विनाशकारी साधनों का आविष्कार करता है, वह हमारी संस्कृति के अनुरूप नहीं है। विनाशकारी साधनों का आविष्कार करना असंस्कृति का प्रतीक है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं? लिखिए।
उत्तर :
मेरे विचार में संस्कृति वह है, जो श्रेष्ठ कृति अथवा कर्म के रूप में व्यक्त होती है। कर्म विचार पर आधारित होता है। इसलिए जो ज्ञान एवं भाव हमारे कर्मों को श्रेष्ठ बनाते हैं, वहीं संस्कृति है। संस्कृति का कार्य ही हमें अच्छे कार्यों की ओर ले जाना है। संस्कृति हमारे भौतिक जीवन को सुधारती है और हमारी सभ्यता को विकसित तथा उन्नत बनाती है। जो समाज जितना अधिक सुसंस्कृत होगा, उसकी सभ्यता भी उतनी ही अधिक विकसित तथा उन्नत होगी।

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भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए –
[गलत-सलत, आत्म-विनाश, महामानव, पददलित, हिंदू-मुस्लिम, यथोचित, सप्तर्षि, सुलोचना]
उत्तर :

  • गलत-सलत – गलत ही गलत-अव्ययीभाव समास।
  • आत्म-विनाश – आत्मा का विनाश-तत्पुरुष समास।
  • महामानव – महान है जो मानव-कर्मधारय समास।
  • पददलित – पद से दलित-तत्पुरुष समास।
  • हिंदू-मुस्लिम – हिंदू और मुस्लिम-वंद्व समास।
  • यथोचित – जैसा उचित हो-अव्ययीभाव समास।
  • सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह-द्विगु समास।
  • सुलोचना – सुंदर हैं लोचन जिसके (स्त्री विशेष)-बहुव्रीहि समास।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं है।’ इस विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
उन खोजों और आविष्कारों की सूची तैयार कीजिए जो आपकी नज़र में बहुत महत्वपूर्ण हैं ?
उत्तर :
रेडियो, टेलीविज़न, रेलगाड़ी, हवाई जहाज़, टेलीफोन, मोबाइल, साइकिल, कार, बस, घड़ी, गैस, स्टोव, बल्ब, बिजली, हीटर, कूलर, ए०सी०, पेन, बॉलपेन, पेंसिल, कागज़, कार्बन पेपर, इंटरनेट, फ्रिज, वाशिंग मशीन, सिलाई मशीन, ट्रैक्टर, स्कूटर, बैटरी, ड्राई सैल, पेट्रोल, डीज़ल, केरोसीन, दवाइयाँ आदि।

JAC Class 10 Hindi संस्कृति Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
संस्कृत व्यक्ति की संतान के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर :
लेखक के विचार में एक संस्कृत व्यक्ति किसी नई चीज़ की खोज करता है। वह वस्तु जब उसकी संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाती है, तो वह एक संस्कृत व्यक्ति नहीं बल्कि सभ्य व्यक्ति कहलाएगा क्योंकि उस वस्तु की खोज उसने नहीं की थी। खोज करने वाला उसका पूर्वज ही संस्कृत व्यक्ति है। उसी ने अपनी बुद्धि और विवेक से उस वस्तु की खोज की थी। उसकी संतान को तो वह वस्तु उत्तराधिकारी के रूप में मिली है। इसलिए उसकी संतान सभ्य हो सकती है, संस्कृत नहीं।

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प्रश्न 2.
पेट और तन ढंकने के बाद संस्कृत मनुष्य की क्या दशा होती है ?
उत्तर :
जब संस्कृत मनुष्य का पेट भरा होता है और उसका तन ढंका होता है, तो वह खुले आकाश के नीचे लेटा हुआ भी रात के जगमगाते तारों को देखकर यह जानने के लिए व्याकुल हो उठता है कि मोतियों से भरा थाल ऐसे क्यों लटका हुआ है ? वह कभी भी निठल्ला नहीं बैठ सकता। उसकी बुद्धि उसे कुछ नया खोजने के लिए निरंतर प्रेरित करती रहती है। वे अपनी आंतरिक प्रेरणा से ही जनकल्याण के कार्य करता है।

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार जनकल्याण के क्या-क्या कार्य हो सकते हैं?
उत्तर :
लेखक ने कुछ उदाहरण देते हुए बताया है कि किसी भूखे को अपना खाना देना, रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लेकर माता का बैठे रहना, लेनिन का ब्रेड स्वयं न खाकर दूसरों को देना, कार्ल मार्क्स का आजीवन मज़दूरों को सुखी देखने के लिए प्रयास करना, सिद्धार्थ का मानवता के कल्याण के लिए सभी सुखों का त्याग करना आदि जनकल्याण के कार्य हैं।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है ? इसका संबंध किससे है?
उत्तर :
लेखक ने सभ्यता को संस्कृति का परिणाम माना है। हमारा खान-पान, रहन-सहन, ओढ़ना-पहनना, जीवन-शैली आदि सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। सभ्यता का संबंध हमारे आचरण से होता है। यदि हम विकास के कार्य करते हैं, तो हम सभ्य कहलाएँगे और विनाशकारी कार्य करने से असभ्य माने जाएँगे।

प्रश्न 5.
सभ्यता और संस्कृति खतरे में कब होती है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार सभ्यता और संस्कृति तब खतरे में पड़ जाती है, जब किसी जाति अथवा देश पर अन्य लोगों की ओर से विनाशकारी आक्रमण होता है। हिटलर के आक्रमण के कारण मानव संस्कृति खतरे में पड़ गई थी। धर्म, संप्रदाय, वर्ण-व्यवस्था आदि के नाम पर होने वाले दंगों से भी सभ्यता और संस्कृति खतरे में पड़ जाती है।

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प्रश्न 6.
ऐसे कौन से दो शब्द हैं, जो जल्दी समझ में नहीं आते? इनके साथ कौन से विशेषण जुड़कर इनके अर्थ का प्रतिपादन करते हैं?
उत्तर :
सभ्यता और संस्कृति दो ऐसे शब्द हैं, जिनका उपयोग अत्यधिक होता है लेकिन ये समझ में कम आते हैं। किंतु जब इन दोनों शब्दों के साथ विशेषण जुड़ जाते हैं, तब इनका अर्थ समझ में आने लगता है; जैसे- भौतिक सभ्यता, आध्यात्मिक सभ्यता आदि।

प्रश्न 7.
संस्कृति और सभ्यता किसे कहते हैं ? उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग और सुई-धागे का आविष्कार हुआ, वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ; जो वस्तु उसने अपने लिए तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की, उसका नाम सभ्यता है।

प्रश्न 8.
वास्तविक संस्कृत व्यक्ति कौन होता है?
उत्तर :
वास्तविक संस्कृत व्यक्ति वह होता है, जो किसी नई चीज की खोज करता है। जिस व्यक्ति की बुद्धि अथवा विवेक ने किसी नए तथ्य का दर्शन किया हो, तो वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति कहलाता है।

प्रश्न 9.
लेखक के अनुसार असंस्कृति क्या है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार वह सब असंस्कृति है, जो मानव-कल्याण से युक्त नहीं है तथा जिसमें मानव-कल्याण की भावना निहित नहीं है तथा जो विनाश की भावना से ओत-प्रोत है।

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प्रश्न 10.
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भदंत जी की रचनाओं में सरल, व्यावहारिक तथा बोलचाल की भाषा की प्रधानता है। ‘संस्कृति’ निबंध में लेखक ने ‘सभ्यता और संस्कृति’ की व्याख्या की है। इस निबंध में लेखक की भाषा तत्सम प्रधान हो गई है। लेखक की शैली व्याख्यात्मक, वर्णन प्रधान तथा सूत्रात्मक है।

प्रश्न 11.
लेखक को भारत में संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्य क्यों नहीं है?”
उत्तर :
लेखक भारत में संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्यचकित इसलिए नहीं है, क्योंकि जिस देश में पानी और रोटी का भी हिंदू-मुस्लिम में बँटवारा हो वहाँ संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्य कैसा! लेखक को ‘हिंदू संस्कृति’ में प्राचीन व नवीन संस्कृति, वर्ण-व्यवस्था आदि के नाम पर बँटवारा भी उचित नहीं नहीं लगता।

प्रश्न 12.
सई और धागे का आविष्कार क्यों हआ होगा?
उत्तर :
प्रत्येक आविष्कार के पीछे कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य रहती है। आग के आविष्कार के पीछे पेट भरने की तथा सुई-धागे के आविष्कार के पीछे तन ढंकने की प्रेरणा हो सकती है।

प्रश्न 13.
मानव संस्कृति के माता-पिता कौन हैं ?
उत्तर :
मानव संस्कृति के माता-पिता भौतिक प्रेरणा और जानने की इच्छा है, जो सदैव मानव के मन में जिज्ञासा को बनाए रखती है तथा उसे कुछ नवीन करने की प्रेरणा देती हैं।

प्रश्न 14.
मानव संस्कृति किस प्रकार की वस्तु है?
उत्तर :
वास्तव में मानव संस्कृति वस्तु न होकर एक भावना एवं संस्कार है, जो मानव को उत्तम कोटि का बनाती है तथा उसे क्रियाशील बनाने में अपना अहम योगदान देती है। यह एक ऐसी भावना एवं संस्कार है, जिसे बाँटा नहीं जा सकता। इसमें जितना भी भाग कल्याण करने का है, वह अकल्याण करने वाले की तुलना में श्रेष्ठ और स्थायी है।

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प्रश्न 15.
लेखक ने किन संस्कृतियों को ‘बला’ कहा है और क्यों?
उत्तर :
लेखक ने हिंदू संस्कृति और मुस्लिम-संस्कृति को बला कहा है। उसके अनुसार एक ही संस्कृति अखण्ड है और वह है-‘मानव संस्कृति’। देखा जाए तो हिंदू संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति की अलग से न तो अपनी कोई पहचान है और न ही कोई विशेष नाम है। अलग कहने में केवल अलगाव की स्थिति पैदा होगी, जो दोनों धर्मों में टकराव पैदा करेगी।

प्रश्न 16.
किसी भी संस्कृति में झगड़े कब होते हैं?
उत्तर :
किसी भी संस्कृति में झगड़े तब होते हैं, जब दो धर्मों की संस्कृतियाँ आमने-सामने टकराव की स्थिति में आ खड़ी हों तथा एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करती हों। अपनी संस्कृति को महान तथा दूसरे की संस्कृति को किसी भी योग्य की न कहना टकराव पैदा करता है। एक-दूसरे के उत्सवों पर दोनों धर्म किसी-न-किसी रूप में भयभीत ही रहते हैं कि कहीं अन्य धर्म उन पर भारी न पड़ जाए।

प्रश्न 17.
‘संस्कृति’ पाठ में लेखक ने आग और सुई-धागे के आविष्कारों से क्या स्पष्ट किया है?
उत्तर :
मानव ने सूई-धागे का आविष्कार कपड़े सीने, शीतोष्ण से बचने के लिए, वस्त्र बनाने आदि के लिए किया होगा। शरीर को सजाने के लिए बनाए जाने वाले वस्त्रों के लिए भी सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। रज़ाई, गद्दे, टेंट, पर्दे आदि बनाने के लिए भी सूई-धागे का ही उपयोग होता है। सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की आवश्यकता ही रही होगी। अतः स्पष्ट है कि मनुष्य चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ न कुछ जानने तथा करने की इच्छा बनी रहती है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक संस्कृत व्यक्ति किसी नई चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘संस्कृत व्यक्ति’ से क्या तात्पर्य है?
3. संस्कृत व्यक्ति की संतान संस्कृत क्यों नहीं हो सकती?
4. संस्कृत व्यक्ति की संतान को लेखक क्या मानता है और क्यों?
5. संस्कृत व्यक्ति में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर :
1. पाठ-संस्कृति,’ लेखक-भदंत आनंद कौसल्यायन।

2. संस्कृत व्यक्ति से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी नई चीज़ की खोज करता है। वह अपनी बुद्धि और विवेक की सहायता से किसी नए तथ्य के दर्शन करके उसी के अनुरूप कार्य करता है। उसके सभी कार्य सोच-विचार कर होते हैं और उनमें जनकल्याण की भावना का समावेश होता है।

3. संस्कृत व्यक्ति की संतान संस्कृत इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि संस्कृत व्यक्ति जिस नई वस्तु की खोज करता है उसकी संतान को वह वस्तु अपने पूर्वजों से उत्तराधिकारी के रूप में बिना कुछ किए ही प्राप्त हो जाती है। उसे इसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। इसलिए वह संस्कृत व्यक्ति नहीं हो सकता, क्योंकि इस वस्तु की प्राप्ति के लिए उसने कोई प्रयास नहीं किया।

4. संस्कृत व्यक्ति की संतान को लेखक सभ्य मानता है, क्योंकि उसने न तो किसी नए तथ्य के दर्शन किए हैं और न ही अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर किसी नई वस्तु की खोज की है। उसने तो अपने पूर्वजों द्वारा की गई खोज को उत्तराधिकारी के रूप में अनायास ही पा लिया है।

5. संस्कृत व्यक्ति बुद्धिमान, विचारवान, जिज्ञासु, मानवतावादी, परिश्रमी तथा कुछ नया करने की इच्छा से युक्त होता है। उसके सभी कार्यों में जनकल्याण की भावना प्रमुख होती है। वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने की अपेक्षा दूसरों की सहायता करने के लिए सदा तत्पर रहता है।

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2. आग के आविष्कार में कदाचित पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। सुई-धागे के आविष्कार में शायद शीतोष्ण से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा। अब कल्पना कीजिए उस आदमी की जिसका पेट भरा है, जिसका तन ढंका है, लेकिन जब वह खुले आकाश के नीचे सोया हुआ रात के जगमगाते तारों को देखता है, तो उसको केवल इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह यह जानने के लिए परेशान है कि आखिर वह मोती भरा थाल क्या है?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मनुष्य ने आग का आविष्कार क्यों और कैसे किया था?
2. धागे का आविष्कार किसलिए हुआ और सुई कैसे बनाई गई होगी?
3. मनुष्य के पेट भरे और तन ढके होने पर भी नींद क्यों नहीं आती?
4. मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
उत्तर :
1. आदिमानव कंद-मूल-फल आदि से अपना पेट भरता था, परंतु इससे उसकी भूख शांत नहीं होती थी। पेट की भूख को शांत करने के लिए उसने आग का आविष्कार किया, जिससे आग पर पकाकर वह अपना भोजन तैयार कर सके। आग पैदा करने के लिए उसने दो पत्थरों को आपस में रगड़ा था। इससे आग पैदा हो गई थी।

2. सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की यह आवश्यकता रही होगी कि वह स्वयं को सर्दी-गर्मी से बचाने के लिए वस्त्र, बिस्तर आदि बनाना चाहता होगा। स्वयं को सजाने के लिए अच्छे-अच्छे परिधान बनाने की इच्छा भी इस आविष्कार की प्रेरणा रही होगी। सुई बनाने के लिए उसने लोहे के एक टुकड़े को घिसकर उसके एक सिरे को छेदकर उसमें धागा पिरोने के लिए स्थान बनाया होगा।

3. जब मनुष्य का पेट भरा होता है और तन सुंदर वस्त्रों से ढका रहता है, तब भी वह जब रात के समय खुले आसमान के नीचे लेटा होता है तो उसे नींद नहीं आती। वह आसमान पर छिटके हुए तारों को देखकर सोचने लगता है कि क्या कारण है, जो इस मोतियों से भरे उल्टे पड़े हुए थाल के मोती नीचे नहीं गिरते? वह इस रहस्य को जानने की व्याकुलता के कारण सो नहीं पाता?

4. मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ-न-कुछ जानने की इच्छा बनी रहती है। वह अपनी बुद्धि के बल पर कुछ नया करने के लिए प्रयास करता है। वह कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह सदा कुछ-न-कुछ करते हुए क्रियाशील बना रहना चाहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

3. पेट भरने और तन ढकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है। पेट भरा और तन ढंका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है, जिन्होंने तथ्य-विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. संस्कृत व्यक्ति की कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं।
2. पेट भरना व तन ढंकना मनुष्य की संस्कृति की जननी क्यों नहीं है?
3. हमें हमारी सभ्यता किनसे प्राप्त हुई और कैसे?
4. रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता क्यों कहा गया है?
उत्तर :
1. संस्कृत व्यक्ति पेट भरा और तन ढंका होने पर भी कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह अपनी बुद्धि निरंतर कुछ ऐसा करना चाहता है जिससे प्राणीमात्र का कल्याण हो सके। उसकी यह सोच निःस्वार्थ भाव से होती है।

2. केवल पेट भरने और तन ढंकने के बारे में सोचने वाले व्यक्ति संसार में सुखी व आनंदमय जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। लेकिन उनकी यह सोच केवल उन तक ही सीमित होती है। दूसरों के कल्याण से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता। वे स्वार्थ में लिप्त होते हैं, इसलिए लेखन उन्हें संस्कृति की जननी नहीं कहा है।

3. हमें हमारी सभ्यता उन लोगों से प्राप्त हुई है, जो संस्कृत है। ये संस्कृत लोग अपने विवेक के बल पर हमें कोई ऐसी नई वस्तु दे जाते हैं, जो हमें सभ्य बना देती है। इनकी यह देन निःस्वार्थ भाव से प्राणीमात्र के कल्याण के लिए होती है। इनकी इस प्रकार की देनों से सभ्यता का विकास होता है।

4. लेखक ने ऐसे व्यक्ति को प्रथम पुरस्कर्ता इसलिए माना है, क्योंकि वह अपनी आंतरिक भावनाओं की प्रेरणा से मानव-कल्याण के कार्य करता है। उसके इन कार्यों के पीछे किसी प्रकार का कोई भौतिक प्रलोभन अथवा स्वार्थ नहीं होता। वह अपने सहज स्वभाव से ही समस्त कल्याणकारी कार्य करता है।

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4. और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम। हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके, हमारे गमना-गमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता है। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. सभ्यता क्या है?
2. असंस्कृति का जनक कौन है?
3. असभ्यता के अंतर्गत कौन-से कार्य आते हैं ?
4. संस्कृति में कौन-सी भावना की प्रधानता होती है ?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार सभ्यता हमारी संस्कृति का परिणाम होती है। हमारे खाने-पीने के ढंग, ओढ़ने-पहनने के तरीके, आवागमन के साधन, परस्पर मेल-मिलाप, लड़ाई-झगड़े आदि के तरीके हमारी सभ्यता को व्यक्त करते हैं। हमारा ये सब कार्य जितने अधिक सुसंस्कृत होंगे, हम उतना ही अधिक सभ्यता का पालन करने वाले लोग होंगे।

2. लेखक ने मानव के उन कार्यों को असंस्कृति का जनक माना है, जिनके कारण वह मानवीय विनाश के कार्य करनेवाले उपकरण बनाता है। मानव-कल्याण से रहित कार्यों को करने वाला व्यक्ति असंस्कृति का जनक माना जाता है। युद्ध, मारधाड़, चोरी-डकैती, लूट-पाट आदि हिंसक कार्य इसी श्रेणी में आते हैं और असंस्कृति के जनक माने जाते हैं।

3. मनुष्य अपने जिन साधनों के द्वारा दिन-रात आत्म-विनाश के कार्यों में जुटा रहता है, वे असभ्यता को जन्म देते हैं। मानवता और मानव कल्याण के विरुद्ध किए जाने वाले सभी कार्य असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। चोरी, डकैती, लूट-पाट, युद्ध, अपहरण, भ्रष्टाचार, झूठ आदि कार्य असभ्यता के सूचक हैं।

4. संस्कृति में कल्याण की भावना प्रधान होती है। इस भावना के वशीभूत होकर ही मनुष्य मानवता के उत्थान के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य करता है। वह प्राणीमात्र के कल्याण के बारे में सोचता है तथा ‘सर्वजन हिताए’ के कार्य करता है। उसे इस प्रकार की प्रेरणा अपने अंतर से प्राप्त होती है। जन-कल्याण के लिए उसे किसी भौतिक अथवा बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती।

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5. संस्कृति के नाम से जिस कूड़े-कर्कट के ढेर का बोध होता है, वह न संस्कृति है न रक्षणीय वस्तु। क्षण-क्षण परिवर्तन होने वाले संसार में किसी भी चीज़ को पकड़कर बैठा नहीं जा सकता। मानव ने जब-जब प्रज्ञा और मैत्री भाव से किसी नए तथ्य का दर्शन किया है तो उसने कोई वस्तु नहीं देखी है, जिसकी रक्षा के लिए दलबंदियों की ज़रूरत है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने किस संस्कृति को संस्कृति नहीं माना है और क्यों?
2. प्रज्ञा और मैत्री भाव किस नए तथ्य के दर्शन करवा सकता है और उसकी क्या विशेषता है?
3. मानव संस्कृति की विशेषता लिखिए।
उत्तर
1. लेखक के अनुसार संस्कृति का संबंध मानव-सभ्यता के कल्याण से है। लेकिन यदि मानव का कल्याण की भावना से संबंध टूट जाएगा और वह दूसरों के विनाश के बारे में सोचने लगेगा, तो उसे कदापि संस्कृति नहीं माना जा सकता। ऐसी स्थिति में संस्कृति का रूप असंस्कृति में परिवर्तित हो जाएगा।

2. प्रज्ञा और मैत्री भाव विश्व-बंधुत्व व मानव कल्याण के मिश्रित तथ्य का दर्शन करवा सकते हैं। इसका आधार और लक्ष्य मानव-समाज का कल्याण है, जिसमें असंस्कृति के लिए कोई स्थान नहीं है। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता भी है।

3. मानव संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसका अविभाज्य होना तथा इसमें मानव कल्याण के अंश का होना है। यह विशेषता ही र यता को संस्कृति के रूप में परिवर्तित करती है।

संस्कृति Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म अंबाला जिले के सोहाना गाँव में सन 1905 ई० में हुआ था। इनका बचपन का नाम ‘हरनाम दास’ था। इनका हिंदी से विशेष स्नेह था। इन्होंने देश-विदेश की अनेक यात्राएँ की हैं। गांधीजी से इनका विशेष संबंध रहा है। ये बहुत लंबे समय तक गांधीजी के साथ वर्धा में रहे थे। इनका निधन सन 1988 ई० में हुआ। इन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में विशेष योगदान दिया था।

रचनाएँ – इन्होंने हिंदी साहित्य को अनेक निबंधों, संस्मरणों एवं यात्रा-वृत्तांतों से समृद्ध किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ ‘भिक्षु के पत्र, बहानेबाजी, रेल का टिकट, जो भूल न सका, यदि बाबा न होते, कहाँ क्या देखा, आह! ऐसी दरिद्रता’ हैं। इन्होंने बौद्ध धर्म और दर्शन से संबंधित अनेक पुस्तकें लिखी हैं तथा अनुवाद कार्य भी किया है। इनके द्वारा जातक कथाओं के किए गए अनुवाद विशेष उल्लेखनीय हैं।

भाषा-शैली – भदंत आनंद कौसल्यायन ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए देश-विदेश में भ्रमण किया था। इस कारण इनकी रचनाओं में सरल, व्यावहारिक तथा बोलचाल की भाषा की प्रधानता है। ‘संस्कृति’ निबंध में लेखक ने ‘सभ्यता और संस्कृति’ की व्याख्या की है। इस निबंध में लेखक की भाषा तत्सम प्रधान हो गई है, जिसमें ‘प्रवृत्ति, प्रेरणा, आविष्कार, आविष्कृत, परिष्कृत, शीतोष्ण, मनीषियों, सर्वस्व’ जैसे तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ ‘दलबंदियों, हद, छीछालेदार, कूड़ा-कर्कट, बला, पेट, तन, निठल्ला, डैस्क, कौर, तरीका, कोशिश’ जैसे विदेशी और देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग हुआ है।

लेखक की शैली व्याख्यात्मक, वर्णन प्रधान तथा सूत्रात्मक है। अपनी बात को समझाने के लिए लेखक ने उदाहरणों का प्रयोग किया है। आदमी द्वारा आग और सूई धागे का आविष्कार ऐसे ही उदाहरण हैं। इन्हीं उदाहरणों के माध्यम से लेखक संस्कृति और सभ्यता का अंतर स्पष्ट करते हुए लिखता है ‘जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग का व सूई-धागे का आविष्कार हुआ, वह है व्यक्ति विशेष की संस्कृति; और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ, जो चीज़ उसने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की, उसका नाम है सभ्यता।’

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पाठ का सार :

‘संस्कृति’ निबंध भदंत आनंद कौसल्यायन द्वारा रचित है। इस निबंध में लेखक ने सभ्यता और संस्कृति में संबंध तथा अंतर स्पष्ट करने का प्रयास किया है। लेखक का मानना है कि आजकल उन दो शब्दों का सबसे अधिक प्रयोग होता है, जिन्हें हम सबसे कम समझ पाते हैं और वे दो शब्द ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ हैं। इन दोनों शब्दों को समझाने के लिए लेखक दो हैं, उदाहरण देता है।

पहला उदाहरण उस आदमी का है, जिसने पहले-पहल आग का आविष्कार किया और दूसरा उदाहरण उस व्यक्ति का है, जिसने सूई-धागे का आविष्कार किया। इस आधार पर लेखक का मानना है कि जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग और सूई-धागे का आविष्कार हुआ, वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है और उसने जो चीज़ आविष्कृत की है, उसका नाम सभ्यता है। जो व्यक्ति जितना अधिक सुसंस्कृत होगा, उसका आविष्कार भी उतना ही श्रेष्ठ होगा।

जो व्यक्ति किसी चीज़ की खोज करता है, वह संस्कृत व्यक्ति है; किंतु उसकी संतान को यह खोज अपने पूर्वजों से अनायास ही मिल जाती है, इसलिए वह संस्कृत नहीं बल्कि सभ्य कहला सकता है। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, इसलिए वह संस्कृत मानव था। आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी न्यूटन के इस सिद्धांत के अतिरिक्त अन्य सिद्धांतों से भी परिचित हैं, परंतु वे न्यूटन की अपेक्षा अधिक संस्कृत नहीं बल्कि सभ्य हो सकते हैं। प्रत्येक आविष्कार के पीछे कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य रहती है।

आग के आविष्कार के पीछे पेट भरने की तथा सूई-धागे के आविष्कार के पीछे तन ढकने की प्रेरणा हो सकती है। पेट भरा और तन ढका होने पर भी मनुष्य खाली नहीं बैठता; वह कुछ अन्य आविष्कार करने में लगा रहता है। ऐसे व्यक्ति ही संस्कृत व्यक्ति होते हैं। भौतिक प्रेरणा और जानने की इच्छा ही मानव संस्कृति के माता-पिता हैं।

भूखे को अपना भोजन दे देना, बीमार बच्चे को गोद में लेकर रात भर माँ का जागना, लेनिन का डबलरोटी के टुकड़ों को स्वयं न खाकर दूसरों को खिलाना, कार्ल मार्क्स द्वारा मजदूरों को सुखी करने के लिए जीवन भर प्रयास करना, सिद्धार्थ द्वारा मानवता के उत्थान के लिए गृह-त्याग करना। इस प्रकार सर्वस्व त्याग करने वाले महामानवों में जो भावना है, वही संस्कृति है।

लेखक ने इसी सभ्यता के परिणाम को संस्कृति माना है। हमारा खान-पान, रहन-सहन आदि सभ्यता के अंतर्गत आता है। मानव के विकास का कार्य करने वाली सभ्यता है और मानव के विनाश का कार्य करने वाली शक्तियाँ असभ्यता है। संस्कृति यदि कल्याण की भावना से रहित होगी, तो असंस्कृति हो जाएगी और ऐसी असंस्कृति का परिणाम असभ्यता होगा। हिटलर के आक्रमणों ने मानव-संस्कृति को खतरे में डाल दिया था।

आज हमारे देश में हिंदू और मुस्लिम संस्कृति के खतरे की बात कही जा रही है। लेखक के अनुसार हम न तो हिंदू संस्कृति को समझ पा रहे हैं और न ही मुस्लिम संस्कृति को। लेखक को इस बात का खेद – है कि जिस देश में पानी और रोटी का भी हिंदू-मुस्लिम में बँटवारा हो, वहाँ संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ‘हिंदू संस्कृति’ में प्राचीन व नवीन संस्कृति, वर्ण-व्यवस्था आदि के नाम पर बंटवारे भी लेखक को उचित प्रतीत नहीं होते हैं।

इस प्रकार संस्कृति की होने वाली दुर्दशा की कोई सीमा नहीं है। आज संस्कृति के नाम पर जैसी विकृति हो रही है, उसे लेखक न तो संस्कृति मानता है और न ही उसकी रक्षा करने की आवश्यकता अनुभव करता है। प्रतिक्षण परिवर्तनशील इस संसार में किसी भी वस्तु को पकड़कर बैठे रहना भी उसे उचित प्रतीत नहीं होता।

मनुष्य जब भी अपनी बुद्धि और मित्रता के भाव से किसी नए विचार का दर्शन करता है, तो उसे उसकी रक्षा के लिए किसी की भी आवश्यकता नहीं होती है। लेखक मानता है कि मानव संस्कृति एक ऐसी वस्तु है, जिसे बाँटा नहीं जा सकता और उसमें जितना भी भाग कल्याण करने का है, वह अकल्याण करने वाले की तुलना में श्रेष्ठ और स्थायी है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

कठिन शब्दों के अर्थ :

आध्यात्मिक – परमात्मा या आत्मा से संबंध रखने वाला: मन से संबंध रखने वाला। साक्षात संस्कत – जिसका संस्कार हआ हो, सँवारा हआ। आविष्कर्ता – आविष्कार करने वाला। संस्कति – शदधिः किसी जाति की वे सब बातें जो उसके मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती है। परिष्कत – सजाया हआ, शुद्ध किया हुआ, साफ़ किया हुआ। अनायास – बिना प्रयास के, आसानी से। कदाचित – कभी, शायद। ज्ञानेप्सा – जानने की इच्छा।

शीतोष्ण – ठंडा और गर्म। सर्वस्व – सबकुछ। निठल्ला – बेकार, अकर्मण्य, बिना काम-धंधे का, खाली बैठा हुआ। मनीषियों – विद्वानों, विचारशीलों। रक्षणीय – रक्षा करने योग्य। वशीभूत – अधीन, पराधीन। तृष्णा – प्यास, लोभ। अवश्यंभावी – जिसका होना निश्चित हो। ताज़िया – बाँस की तिल्लियों व रंगीन कागज़ों का बना वह ढाँचा जो इमाम हसन और इमाम हुसैन के मकबरों की आकृति का बनाया जाता है। वर्ण-व्यवस्था – वर्ण-विभाग। छीछालेदर – दुर्दशा, फ़जीहत। अविभाज्य – जो बाँटा न जा सके।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारित प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया यथानिर्देशं लिखत।
(निम्न गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में दीजिए।)

1. सरदार भगतसिंहः क्रान्तिकारिणां यूनां नेतृत्वं स्वातन्त्र्य सङ्गरे कृतवान्। सोऽभूत् च आदर्शभूतो भारतीयः युवा-वर्गस्य। न केवलं भगतसिंहः स्वतन्त्रतासंग्रामे संलग्नः आसीत्, तस्य समग्र परिवारः स्वतन्त्रतायुद्धे प्रवृत्तः आसीत्। सरदार भगतसिंहस्य जन्म-समये तस्य जनकः सरदार किशनसिंहो योऽभूत् स्वतन्त्रता सैनिकः सः कारागारे गौराङ्गैः निपातितः। स्वतन्त्रता सैनिकोऽस्य पितृव्यः सरदार अजीत सिंहः निर्वासितश्चासीत्। 1907 ई० वर्षे सितम्बरमासे, लॉयलपुर मण्डले बङ्गाख्ये ग्रामे सरदार भगतसिंहस्य जन्म बभूव। प्राथमिकी शिक्षा चास्य ग्रामे एव अभूत्। उच्चाध्ययनायायं लाहौर नगरं गतवान्। अध्ययन समकालमेव भगतसिंहोऽपि क्रान्तिकारिणां संसर्गे समागतः देशभक्ति-भावनया सोऽध्ययनं मध्ये विहाय दिल्ली-नगरं प्रत्यागच्छत्। तत्राय ‘दैनिक अर्जुन’ इत्याख्ये समाचार पत्रे संवाददातृ रूपेण कार्यमकरोत।

(सरदार भगतसिंह ने स्वाधीनता संग्राम में क्रान्तिकारी जवानों का नेतृत्व किया था। वह भारतीय युवावर्ग का आदर्श हो गया था। न केवल भगतसिंह स्वतन्त्रता संग्राम में संलग्न था, उसका सारा परिवार स्वतन्त्रतायुद्ध में लगा हुआ था। सरदार भगतसिंह के जन्म के समय उसके पिता सरदार किशनसिंह जो स्वतन्त्रता सैनिक हो गये थे, वे अंग्रेजों ने जेल में डाल दिये। स्वतन्त्रता सेनानी इनके चाचा सरदार अजीत सिंह को निर्वासित कर दिया था।

1907 ई. वर्ष में सितम्बर माह में लायलपुर मण्डल में बड़ा नाम के गाँव में भगतसिंह का जन्म हुआ। और इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। ये उच्च अध्ययन के लिए लाहौर नगर को गये। अध्ययन के समय ही भगतसिंह भी क्रान्तिकारियों के स पर्क में आए। देशभक्ति की भावना से (प्रेरित होकर) वह अध्ययन बीच में छोड़कर दिल्ली नगर लौट आये। वहाँ पर ‘दैनिक अर्जुन’ इस नाम के समाचार-पत्र में संवाददाता के रूप में कार्य किया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए) –
(i) सरदार भगतसिंहः स्वातन्त्र्यसङ्गरे केषां नेतृत्वं कृतवान्?
(सरदार भगतसिंह ने स्वतन्त्रता-संग्राम में किनका नेतृत्व किया?
उत्तरम् :
क्रान्तिकारिणां यूनाम् (क्रान्तिकारी जवानों का।)

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(ii) भगतसिंहस्य जनकस्य किं नाम आसीत्?
(भगतसिंह के पिता का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
सरदार किशनसिंहः।

(iii) भगतसिंहेन कस्मिन् समाचारपत्रे संवाददातरूपेण कार्यमकरोत्?
(भगतसिंह ने किस अखबार में संवाददाता के रूप में काम किया?)
उत्तरम् :
‘दैनिक अर्जुन’ इत्याख्ये। (‘दैनिक अर्जुन’ नाम के।)

(iv) भगतसिंहस्य प्राथमिकी शिक्षा कुत्र अभूत ?
(भगतसिंह की प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ हुई?)
उत्तरम् :
बङ्गाख्ये ग्रामे। (बंगा नाम के गाँव में।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) सरदार भगतसिंहस्य पितृव्यस्य किं नाम आसीत्?
(सरदार भगतसिंह के चाचा का नाम क्या था?)
उत्तरम् :
सरदार भगतसिंहस्य पितृव्यस्य नाम सरदार अजीत सिंहः आसीत्।
(सरदार भगतसिंह के चाचा का नाम सरदार अजीतसिंह था।)

(ii) भगतसिंहः उच्चाध्ययनाय कुत्र गतवान्?
(भगतसिंह उच्च शिक्षा के लिए कहाँ गया?)
उत्तरम् :
भगतसिंहः उच्चाध्ययनाय लाहौर नगरं गतवान्।
(भगतसिंह उच्च शिक्षा के लिये लाहौर गया।)

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(iii) भगतसिंहः कदा क्रान्तिकारिणां संसर्गे समागतः?
(भगतसिंह कब क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आया?)
उत्तरम् :
भगतसिंहः अध्ययन समकालमेव क्रान्तिकारिणां संसर्गे समागतः।
(भगतसिंह अध्ययन के समय ही क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आया।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
क्रान्तिवीरः सरदार भगतसिंहः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सरदार भगतसिंहः स्वातन्त्र्य-सैनिकोऽभवतः तस्य सम्पूर्ण परिवारः एक स्वातन्त्र्य सङ्गरे प्रवृत्तोऽभव स्वातन्त्र्य सैनिकः किशन सिंह गौराङ्गैः कारागारे निपातित पितृव्यश्च निर्वासितः बङ्गा ग्रामे जातः असौ ग्रामे एव प्राथमिकी शिक्षा प्राप्य उच्च शिक्षार्थ लाहौरम् अगच्छत्। अध्ययनकाले एव अयं क्रान्तिवीरः अभवत् दैनिक अर्जुनस्य च सम्वाददातारूपेण कार्यमकरोत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं प्रश्नान्
उत्तरत :
(निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सोऽभूच्चादर्शभूतो……।’ वाक्ये कर्तृपदं किमस्ति?
(अ) सः
(ब) अभूत
(स) च
(द) आदर्शभूतो।
उत्तरम् :
(अ) सः

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(ii) ‘प्राथिमिकी शिक्षा’ अत्र विशेषणपदं किम् अस्ति?
(अ) प्राथमिकी
(ब) शिक्षा
(स) पूर्णा
(द) ग्रामे।
उत्तरम् :
(अ) प्राथमिकी

(iii) ‘तस्य समग्रः परिवारः स्वातन्त्र्य-युद्धे प्रवृत्तः आसीत्।’ अत्र ‘तस्य’ सर्वनाम-स्थाने संज्ञापदं लिखत।
(अ) सरदार भगतसिंहस्य
(ब) सरदार किशनसिंहस्य
(स) सरदार अजयसिंहस्य
(द) सरदार अजीत सिंहस्य।
उत्तरम् :
(अ) सरदार भगतसिंहस्य

(iv) ‘परतन्त्रता’ इत्यस्य पदस्य विलोमपदमनुच्छेदात् चित्वा लिखत –
(अ) स्वतन्त्रता
(ब) स्वाधीनता
(स) पराधीनता
(द) स्वातन्त्र्यम्।
उत्तरम् :
(अ) स्वतन्त्रता

2. संस्कृत भाषायाः वैज्ञानिकतां विचार्य एव सङ्गणक-विशेषज्ञाः कथयन्ति यत् संस्कृतम् एव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तमाभाषा विद्यते। अस्याः वाङ्मयं वेदैः पुराणैः नीति शास्त्रैः चिकित्सा शास्त्रादिभिश्च समृद्धमस्ति। कालिदास सदृशानां विश्वकवीनां काव्य सौन्दर्यम् अनुपमम्। चाणक्य रचितम् अर्थशास्त्रम् जगति प्रसिद्धमस्ति। गणितशास्त्रे शून्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथमं भास्कराचार्यः सिद्धान्त शिरोमणी अकरोत्। चिकित्साशास्त्रे चरक सुश्रुतयोः योगदानं विश्व प्रसिद्धम्। भारत सर्वकारस्य विभिन्नेषु विभागेषु संस्कृतस्य सूक्तयः ध्येयवाक्यरूपेण स्वीकृताः सन्ति। भारतसर्वकारस्य राजचिहने प्रयुक्तां सूक्तिं- ‘सत्यमेव जयते’ सर्वे जानन्ति। एवमेव राष्ट्रिय शैक्षिकानुसन्धान प्रशिक्षण परिषदः ध्येय वाक्यं ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ वर्तते।

(संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता पर विचार करके ही कम्प्यूटर के विशेषज्ञों ने कहा है कि संस्कृत ही कम्प्यूटर के लिए सबसे उत्तम भाषा है। इसका साहित्य वेदों, पुराणों, नीतिशास्त्रों और चिकित्सा आदि शास्त्रों से समृद्ध है। कालिदास जैसे विश्वकवियों का काव्य सौन्दर्य अतुलनीय है। चाणक्य द्वारा रचा गया अर्थशास्त्र संसार में प्रसिद्ध है। गणित शास्त्र में शून्य का प्रतिपादन सर्वप्रथम भास्कराचार्य ने सिद्धान्त शिरोमणि में किया। चिकित्सा शास्त्र में चरक और सुश्रुत का योगदान संसार में प्रसिद्ध है। भारत सरकार के विभिन्न विभागों में संस्कृत की सूक्तियाँ ध्येय वाक्य के रूप में स्वीकार की गई हैं। भारत सरकार के राजचिहन में प्रयोग की गई सूक्ति-“सत्यमेव जयते’ को सभी जानते हैं। इसी प्रकार राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसन्धान प्रशिक्षण परिषद का ध्येयवाक्य है – “विद्ययाऽमृतमश्नुते’ (विद्या से अमृत प्राप्त होता है।) (संस्कृत में ही है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) अर्थशास्त्र केन रचितम्? (अर्थशास्त्र की रचना किसने की?)
उत्तरम् :
चाणक्येन (चाणक्य के द्वारा)।

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(ii) शन्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथम भास्कराचार्यः का अकरोत?
(शून्य का प्रतिपादन सबसे पहले भास्कराचार्य ने कहाँ किया?)
उत्तरम् :
सिद्धान्तशिरोमणौ (सिद्धान्त शिरोमणि में)।

(iii) कस्य कृते संस्कृतमेव सर्वोत्तमा भाषा विद्यते?
(किसके लिए संस्कृत ही सबसे उत्तम भाषा है?)
उत्तरम् :
सङ्गणकस्य कृते (कंप्यूटर के लिए)।

(iv) चिकित्सा शास्त्रे कयोः योगदानं विश्वप्रसिद्धम्?
(चिकित्सा शास्त्र में किनका योगदान विश्व-विख्यात है?)
उत्तरम् :
चरकसुश्रुतयोः (चरक और सुश्रुत का)।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत –
(पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) भारत सर्वकारस्य राजचिह्न किम् अस्ति?
(भारत सरकार का राजचिह्न क्या है?)
उत्तरम् :
‘सत्यमेव जयते’ इति भारत सर्वकारस्य राज-चिह्नम्।
(‘सत्य की विजय होती है’ यह भारत सरकार का राज चिह्न है।)

(ii) ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ कस्य ध्येयवाक्यम्?
(‘विद्या से अमृत प्राप्त होता है’ यह किसका ध्येयवाक्य है?)
उत्तरम् :
‘राष्ट्रिय शैक्षिकानुसन्धान प्रशिक्षण परिषदः ध्येयवाक्यं ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ वर्तते।
(राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसन्धान प्रशिक्षण परिषद का ध्येय वाक्य ‘विद्या से अमृत प्राप्त होता है।’)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) केषां कवीनां काव्य सौन्दर्यम् अनुपमम्?
(किन कवियों का काव्य सौन्दर्य अनुपम है?)
उत्तरम् :
कालिदास सदृशानां विश्वकवीनां काव्य सौन्दर्यमम् अनुपमम्।
(कालिदास जैसे विश्व-कवियों का काव्य- सौन्दर्य अनुपम है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत –
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
संस्कृत भाषायाः महत्वम्/संस्कृत भाषायाः महनीयता।
(संस्कृत भाषा का महत्त्व)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सङ्गणकाय संस्कृतभाषा एव सरलतमा। अस्य वाङ्मयं वेदादिषु सर्व शास्त्रेषु समृद्धमस्ति। संस्कृत भाषया काव्यशास्त्र-काव्य-अर्थशास्त्र, विज्ञान, गणितादिषु सर्वेषु विषयेषु विद्वद्भिः प्रभूतं लिखितम्। कालिदास-चाणक्य भास्कर-चरके-सुश्रुतादयः संस्कृतस्यैव स्तम्भाः अभवन् । अस्याः भाषायाः ध्येयवाक्यरूपेण अनेका सूक्तयः अनेकत्र ध्येयवाक्यरूपेण स्वीकृताः सन्ति। ‘सत्यमेव जयते’ ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ इत्यादीनि वाक्यानि विश्वं विश्रुतानि सन्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत – (निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सङ्गणकविशेषज्ञाः कथयन्ति’ अत्र कर्तृपदमस्ति
(अ) सङ्गणकः
(ब) विशेषज्ञाः
(स) सङ्गणकविशेषज्ञाः
(द) कथयन्ति
उत्तरम् :
(स) सङ्गणकविशेषज्ञाः

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(ii) ‘सर्वोत्तमा भाषा विद्यते’ अत्र विशेषणपदमस्ति –
(अ) सर्व
(ब) उत्तमा
(स) विद्यते
(द) सर्वोत्तमा
उत्तरम् :
(द) सर्वोत्तमा

(iii) ‘सूक्तयः स्वीकृताः सन्ति’ इत्यत्र संज्ञापदम् अस्ति –
(अ) सूक्तयः
(ब) स्वीकृताः
(स) सन्ति
(द) कश्चिन्न
उत्तरम् :
(अ) सूक्तयः

(iv) ‘अविचार्य’ इत्यस्य विलोमपद अनुच्छेदात् चित्वा लिखत्।
(अ) विचार्य
(ब) अनुपमम्
(स) स्वीकृत
(द) अश्नुते
उत्तरम् :
(अ) विचार्य

3. विवेकानन्दस्य जन्म कालिकाता नगरे अभवत्। तस्य पिता विश्वनाथ दत्तः माता च भुवनेश्वरी देवी आस्ताम्। तस्य प्रथमं नाम नरेन्द्रः आसीत्। नरेन्द्र बाल्याद् एव क्रीडापटुः, दयालुः, विचारशीलः च आसीत्। ‘ईश्वरः अस्ति न वा इति शङ्का आसीत्। शास्त्राणाम् अध्ययनेन बहूनां साधूनां च समीपं गत्वा अपि शङ्का परिहारः न अभवत्। अन्ते च श्री रामकृष्ण परमहंसस्य सकाशात् तस्य सन्देह-परिहारः अभवत्। परमहंसस्य दिव्य प्रभावेण आकृष्टः सः तस्य शिष्यः अभवत्। सः विश्वधर्म सम्मेलने भागं ग्रहीतुम् अमेरिका देशस्य शिकागो नगरंगतवान्। तत्र विविधदेशीयान् जनानुद्दिश्य हिन्दु-धर्म-विषये भाषणं कृतवान्। सः भारतीयान् ‘उत्तिष्ठ जाग्रत, दीनदेवो भव, दरिद्र देवोभव’-इति संबोधितवान्। अमूल्याः तस्योपदेशाः।

(विवेकानन्द का जन्म कालिकाता नगर में हुआ। उनके पिता विश्वनाथ दत्त तथा माता भुवनेश्वरी देवी थे। उनका पहला (बचपन का) नाम नरेन्द्र था। नरेन्द्र बचपन से ही खेलने में चतुर, दयालु और विचारशील था। ‘ईश्वर है अथवा नहीं’ यह उसकी शंका थी। शास्त्रों के अध्ययन से और बहुत से साधुओं के पास जाकर भी शङ्का का निराक श्रीरामकृष्ण परमहंस के पास से उनके सन्देह का समाधान हुआ। परमहंस के दिव्य प्रभाव से आकर्षित हुआ वह उसका शिष्य हो गया। वह विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने अमेरिका देश के शिकागो नगर को गया। वहाँ विभिन्न देशों के लोगों को लक्ष्य करके हिन्दू धर्म के विषय में भाषण किया। उन्होंने भारतीयों से उठो, जागो, दीनों के देवता, दरिद्रों के देवता हो, ऐसा संबोधित किया। उनके उपदेश अमूल्य हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) विवेकानन्दस्य जन्म कुत्र अभवत्?
(विवेकानन्द का जन्म कहाँ हुआ था?)
उत्तरम् :
कालिकातानगरे ।

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(ii) विवेकानन्दस्य प्रथमं नाम किम् आसीत्?
(विवेकानन्द का पहला नाम क्या था?)
उत्तरम् :
नरेन्द्रः ।

(iii) नरेन्द्रः कस्य प्रभावेण आकृष्टः अभवत्?
(नरेन्द्र किसके प्रभाव से आकर्षित हुआ?)
उत्तरम् :
श्रीरामकृष्ण परमहंसस्य।

(iv) विश्वधर्म सम्मेलनः कुत्र आयोजितः?
(विश्वधर्म सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ?)
उत्तरम् :
अमेरिकादेशस्य शिकागोनगरे।
(अमेरिका देश के शिकागो नगर में।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-) ।
(i) नरेन्द्रः’बाल्यकाले कीदृशः आसीत्?
(नरेन्द्र बचपन में कैसा था?)
उत्तरम् :
नरेन्द्रः बाल्यकाले क्रीडापटुः, दयालुः विचारशीलः च आसीत्।
(नरेन्द्र बचपन में खेलने में चतुर, दयालु और विचारशील था।)

(ii) नरेन्द्रस्य ईश्वरविषयक शङ्कायाः परिहारः कुत्र अभवत् ?
(नरेन्द्र की ईश्वर सम्बन्धी शंका का समाधान कहाँ हुआ?)
उत्तरम् :
नरेन्द्रस्य ईश्वरविषयक शङ्काया परिहारः श्रीरामकृष्ण परमहंसस्य सकाशात् अभवत्।
(नरेन्द्र की ईश्वर सम्बन्धी शंका का निराकरण श्री रामकृष्ण परमहंस के पास से हुआ।)

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(iii) विवेकानन्दः शिकागो सम्मेलने के विषयम् आश्रित्य भाषणं कृतवान्?
(विवेकानन्द ने शिकागो सम्मेलन में किस विषय के आधार पर भाषण दिया?)
उत्तरम् :
विवेकानन्दः हिन्दुधर्म-विषयम् आश्रित्य भाषणं कृतवान्।
(विवेकानन्द ने हिन्दूधर्म के विषय का आश्रय लेकर भाषण दिया।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
विवेकानन्दः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कालिकाता नगरे जातस्य भुवनेश्वरी देवी विश्वनाथयो रात्मजस्य प्रथमं नाम नरेन्द्रः आसीत्। सः बाल्याद् एव क्रीडादिषु कार्येषु पटुः विचारशीलः जिज्ञासुः च आसीत्। सः शस्त्रामध्येता ईश्वर चिन्तकः सत्यान्वेषक: चाभवत्। शंका निवारणत्वात् असौ रामकृष्ण परमहंसस्य शिष्योऽभवत्। सः विश्वधर्म सम्मेलने अमेरिका देशे भारतस्य धर्म तत्वम् प्रकाशितवान्। हिन्दूधर्मः विश्वविश्रुतः कृतः तस्योपदेश आसीत्- उत्तिष्ठ जाग्रत दरिद्रदेवोभव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत –
(निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
(i) ‘ईश्वरः अस्ति नास्ति वा’ अत्र ‘अस्ति’ क्रियापदस्य कर्ता अस्ति –
(अ) ईश्वर
(ब) अस्ति
(स) नास्ति
(द) वा
उत्तरम् :
(अ) ईश्वर

(ii) ‘उपदेशाः’ इत्यस्य विशेष्य पदस्य विशेषण पदं अस्ति –
(अ) अमूल्याः
(ब) तस्य
(स) उपदेशाः
(द) विशेष्याः
उत्तरम् :
(अ) अमूल्याः

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(iii) ‘अमूल्याः तस्पोपदेशाः’ वाक्ये ‘तस्य’ सर्वनाम पद प्रयुक्तम् –
(अ) रामकृष्ण परमहंसस्य
(ब) स्वामी विवेकानन्दस्य
(स) विश्वनाथ दत्तस्य
(द) भुवनेश्वरी देव्या
उत्तरम् :
(ब) स्वामी विवेकानन्दस्य

(iv) ‘दरिद्रदेवो भव’ अत्र ‘दरिद्र’ पदस्य पर्याय पद अस्ति
(अ) दरिद्रः
(ब) निर्धन
(स) संपन्नः
(द) धनिकः
उत्तरम् :
(ब) निर्धन

4. एकदा द्रोणाचार्यः कौरवान् पाण्डवान् च पाठमेकम् अपाठयत्। ‘सत्यं वद धर्म चर।’ अग्रिमे दिने सर्वे शिष्याः पाठं कण्ठस्थी कृत्य गुरुम् अश्रावयन्। किन्तु युधिष्ठिरः तूष्णीम् एव अतिष्ठत्। आचार्येण पृष्टः सः प्रत्युवाच-‘मया पाठः न स्मृतः’ उत्तरं श्रुत्वा सर्वेऽपि सहपाठिनः अहसन्। गुरुः च रुष्टः अभवत्। पञ्चमे दिवसे युधिष्ठिरः गुरवे न्यवेदयत् यन्मया सम्पूर्णः पाठः स्मृतः। गुरु अपृच्छत्- “लघीयान आसीत् एषः पाठः। किमर्थं चिरात् स्मृतः?” सः अवदत्- “हे गुरो? वचसा तु पाठैः स्मृतः आसीत्, परं प्रमादेन हास्येन वा अनेकवारम् असत्यम् अवदम्। ह्यः प्रभृति मया असत्य वचनं न भाषितम्। अधुना दृढतया वक्तुं शक्नोमि, यत् मया भवता पठितः पाठः स्मृतः।” इदं श्रुत्वा प्रीतः दोण: अवदत्-त्वं धन्योऽसि यः पाठं व्यवहारे आनीतवान्। त्वया एव पाठस्य अर्थः ज्ञातः बोधितः च?” वस्तुतः प्रयोगं विना ज्ञानं तु भारम् एव भवति।

(एक दिन द्रोणाचार्य ने कौरव और पाण्डवों को एक पाठ पढ़ाया। ‘सत्य बोलो। धर्म का आचरण करो।’ अगले दिन सभी शिष्यों ने पाठ को कण्ठस्थ कर गुरुजी को सुना दिया। किन्तु युधिष्ठिर चुप ही रहा । आचार्य के पूछे जाने पर वह
‘मैंने पाठ याद नहीं किया।’ उत्तर को सुनकर सभी सहपाठी हँस पड़े और गुरु नाराज हो गये। पाँचवें दिन युधिष्ठिर ने गुरुजी से निवेदन किया कि मैंने सम्पूर्ण पाठ याद कर लिया है। गुरु जी ने पूछा- यह पाठ तो छोटा-सा था, इतनी देर से किसलिए याद हुआ? वह बोला- गुरुजी! वाणी से तो पाठ याद हो गया था परन्तु लापरवाही अथवा हँसी-मजाक में अनेक बार झूठ बोला । कल से मैंने असत्य वचन नहीं बोला है । अब मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूँ कि मैंने आपके द्वारा पढ़ाया हुआ पाठ याद कर लिया। यह सुनकर प्रसन्न हुए गुरुजी बोले- “तुम धन्य हो, जिसने पाठ को व्यवहार में लाया। तुमने ही पाठ का अर्थ जाना है और समझा है ।” वास्तव में प्रयोग (व्यवहार) के बिना विद्या (ज्ञान) भार है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कौरवपांडवानां गुरुः कः आसीत्?
(कौरव पांडवों का गुरु कौन था?)
उत्तरम् :
द्रोणाचार्यः (द्रोणाचार्य।)

(ii) पाठः केन न स्मृतः ?
(पाठ किसने याद नहीं किया?)
उत्तरम् :
युधिष्ठिरेण (युधिष्ठिर ने।)

(ii) प्रयोगं विना ज्ञानं कीदृशम् ?
(प्रयोग के बिना ज्ञान कैसा होता है?)
उत्तरम् :
भारम् (भार)।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) युधिष्ठिरेण कः पाठः न स्मृतः ?
(युधिष्ठिर ने कौन-सा पाठ याद नहीं किया?)
उत्तरम् :
सत्यं वद धर्मं चर (सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) कीदृशं ज्ञानं भारम्?
(कैसा ज्ञान भार होता है?)
उत्तरम् :
प्रयोगं विना ज्ञानं भारम् (व्यवहार के बिना ज्ञान भार है।)

(ii) प्रीतः द्रोणः युधिष्ठिरं किम् अवदत्?
(प्रसन्न द्रोण ने युधिष्ठिर से क्या कहा?)
उत्तरम् :
प्रीतः द्रोणः युधिष्ठिरम् अवदत् यत् त्वं धन्योऽसि यः पाठं व्यवहारे आनीतवान् त्वया एव पाठस्य अर्थः ज्ञान: बोधि तश्च।” (प्रसन्न द्रोण ने युधिष्ठिर से कहा-तुम धन्य हो जो पाठ को व्यवहार में लाये। तुमने ही पाठ को जाना और समझा है।)

(ii) सहपाठिन: कस्मात् अहसन्?
(सहपाठी किसलिए हँसे?)
उत्तरम् :
‘मया पाठं न स्मृतः’ इति युधिष्ठिरस्य उत्तरं श्रुत्वा सहपाठिनः अहसन्।
(‘मैंने पाठ याद नहीं किया’ युधिष्ठिर के इस उत्तर को सुनकर सहपाठी हँस पड़े।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
ज्ञानं भारं प्रयोगं विना। (प्रयोग के बिना ज्ञान भार है।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
द्रोणाचार्यः शिष्यान् पाठमपाठयत् ‘सत्यं वद धर्मं चर’। सर्वे पाठं कण्ठस्थी कृत्य अश्रावयन् परञ्च युधिष्ठिर ना
श्रवयत्, ‘न मया स्मृत।’ पञ्चमे दिवसे न श्रावयत् गुरौ पृष्ठे सोऽवदत्- हे गुरो! वचनातु मया स्मृतः परञ्च अनेक
वारं असत्यम् अवदम्। ह्योऽहं नासत्यमपदम् अतः इदानीं सुदृढोऽस्मि। उत्तरं श्रुत्वा क्रुद्धो गुरुः प्रसन्नोऽभवत्। – धन्योऽसि। पाठं व्यवहारम् आनीय एव स्मृतः मतः। यतः प्रयोगं विना तु ज्ञानं भारम् एव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अपाठयत्’ क्रियापदस्य कर्ता अनुच्छेदे अस्ति –
(अ) द्रोणाचार्यः
(ब) युधिष्ठिरः
(स) दुर्योधनः
(द) अर्जुनः
उत्तरम् :
(अ) द्रोणाचार्यः

(ii) ‘प्रीतः द्रोणः’ इत्यनयोः विशेष्य पदमस्ति –
(अ) प्रीतः
(ब) द्रोणः
(स) युधिष्ठिरः
(द) अर्जुनः
उत्तरम् :
(ब) द्रोणः

(iii) मया पाठ: न स्मृतः’ वाक्ये मया सर्वनाम पदं प्रयुक्तम्
(अ) द्रोणाचार्याय
(ब) अर्जुनाय
(स) युधिष्ठिराय
(द) भीमाय
उत्तरम् :
(स) युधिष्ठिराय

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘त्वं धन्योऽसि’ अत्र ‘तत्वं’ पदस्य विलोम पदमस्ति
(अ) त्वम्
(ब) धन्यः
(स) वयं
(द) अन्यत्
उत्तरम् :
(स) वयं

5. कस्मिंश्चिद् वने कोऽपि काकः निवसति स्म। वर्षायाः अभावे वने कुत्रापि जलं नासीत्। नद्यः तडागाः च जलविहीनाः आसन्। एकदाः काकः अति पिपासितः आसीत्। सः इतस्त: अपश्यत् परञ्च न कुत्रापि जलाशयः दृष्टः। सः जलस्य अन्वेषणे इतस्ततः अभ्रमत्। यावत् असौ पिपासितः काकः ग्रामे गच्छति तावत् दूरे एकं घटम् अपश्यत्। काकः घटस्य समीपम् अगच्छत्। घटस्य उपरि अतिष्ठत्। सोऽपश्यत् यत् घटे जलम् अत्यल्पम् आसीत् अतः दूरम् आसीत।

सः चञ्च्वा जलं न पातुम् अशक्नोत्। किञ्चिद दूरे प्रस्तर खण्डान् दृष्ट्वा सः उपायम् अचिन्तयत्। स एकैकम् प्रस्तर खण्ड स्व चञ्च्वा आनयत् तानि प्रस्तरखण्डानि घटे न्यक्षिपत्। यथायथा पाषाण खण्डानि जले न्यमज्जन् तथा-तथा एव जलस्तरः उपरि आगच्छत्। उपर्यागतं जलमवलोक्य काकः अति प्रसन्नः जातः। सः जलम् पीतवान् मुक्तगगने च उड्डीयत। उड्डीयमानः काकोऽचिन्तयत्- उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

(किसी जंगल में कोई कौआ रहता था। वर्षा के अभाव में वन में कहीं पानी नहीं था। नदी-तालाब जलविहीन थे। एक दिन वह कौवा बहुत प्यासा था। उसने इधर-उधर देखा परन्तु कहीं भी जलाशय दिखाई नहीं पड़ा। वह जल की खोज में इधर-उधर घूमने लगा। जैसे ही वह प्यासा कौआ गाँव को गया वैसे ही दूर पर एक घड़े को देखा। कौआ घड़े के पास गया, घड़े के ऊपर बैठा। उसने देखा कि घड़े में जल बहुत थोड़ा था, अत: दूर था। वह चोंच से पानी नहीं पी सका।

कुछ दूरी पर पत्थर के टुकड़ों (कंकड़ों) को देखकर उसने उपाय सोचा। वह एक-एक कंकड़ चोंच में लाया, उन कंकड़ों को घड़े में डाल दिया। जैसे-जैसे कंकड़ पानी में डूबे वैसे-वैसे ही जलस्तर ऊपर आ गया। ऊपर आये हुए पानी को देखकर कौआ बहुत प्रसन्न हुआ। उसने पानी पिया और मुक्त गगन में उड़ गया। उड़ते हुए कौवे ने सोचा- उद्यम (परिश्रम) से ही कार्य सिद्ध होते हैं, न कि मनोरथ से।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) नद्यः तडागाः कीदृशाः आसन्? (नदी-तालाब कैसे थे?)
(ii) कांक घटे कानि न्यक्षिपत्? (कौआ ने घड़े में क्या डाले?)
(iii) घटे कियत् जलम् आसीत? (घड़े में कितना पानी था?)
(iv) कार्याणि केन सिद्ध्यन्ति? (कार्य किससे सिद्ध होते हैं?)
उत्तरम् :
(i) जलविहीनाः
(ii) प्रस्तरखण्डानि
(iii) अत्यल्पम्
(iv) उद्यमेन।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) उड्डीयमानः काकः किम् अचिन्तयत्? (उड़ते हुए कौए ने क्या सोचा?)
(ii) उपर्यागतं जलमवलोक्य काकः कीदृशः अभवत्? (ऊपर आये पानी को देखकर कौआ कैसा हो गया?)
(iii) काकः किम् उपायम् अचिन्तयत्? (कौआ ने क्या उपाय सोचा?)
उत्तरम् :
(i) सोऽचिन्तयत् यत् उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
(उसने सोचा-उद्यम (परिश्रम) से ही कार्य सिद्ध होते हैं, न कि मनोरथ से।)
(ii) काकः प्रसन्नः अभवत्। (कौआ प्रसन्न हो गया।)
(iii) काकः चञ्च्वा एकैकं प्रस्तर खण्डम् आनीय घटे न्यक्षिपत्।
(कौआ ने चोंच से एक-एक कंकड़ लाकर घड़े में डाला।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि/पिपासितः काकः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
वर्षायाः अभावे शुष्केषु जलाशयेषु एकः काकः जलस्यान्वेषणे सर्वत्र अभ्रभात्। ग्रामे एक घटं दृष्टवान्। घटेऽत्यल्पं जलम् आसीत्। अतः चञ्च्वा जलं न पातुम् शक्नोत्। किंचिद्रात् प्रस्तरखण्डान् आनीय घटे न्यक्षिपत्। जलम् उपरि आगच्छत्। काक जलं पीत्वा अति प्रसन्नः सन् आकाशे विचरन्नवदत्- उद्यमेन हि सिद्यन्ति कार्याणि न च मनोरथैः।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘जलं नासीत्’ अनयोः कर्तृपदम् अस्ति
(अ) जलम्
(ब) न
(स) आसीत्
(द) जलविहीनाः
उत्तरम् :
(अ) जलम्

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(ii) ‘काकः अति पिपासितः आसीत्’ अत्र काकस्य विशेषण पदम् अस्ति
(अ) काकः
(ब) अति
(स) पिपासितः
(द) अस्ति ।
उत्तरम् :
(स) पिपासितः

(iii) ‘सोऽपश्यत्’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् –
(अ) घटः
(ब) जलम्
(स) काकः
(द) प्रस्तर खण्डम्
उत्तरम् :
(स) काकः

(iv) ‘तृषितः’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशे प्रयुक्तम् –
(अ) पिपासितः
(ब) जलविहीनः
(स) अत्यल्पम्
(द) इतस्ततः
उत्तरम् :
(अ) पिपासितः

6. एकस्य भिक्षुकस्य भिक्षापात्रे अञ्जलि परिमिताः तण्डुलाः आसन्। सः अवदत् – ‘भगवन्। दयां कुरु। कथम् अनेन उदरपूर्तिः भविष्यति?” तदैव अन्यः भिक्षुकः तत्र आगच्छति वदति च, ‘भिक्षां देहि!’ क्रुद्धः प्रथमः भिक्षुकः अगर्जत्- ‘रे भिक्षुक! भिक्षुकम् एव भिक्षां याचते? तव लज्जा नास्ति?” द्वितीयः भिक्षुकः उक्तवान्- “तव भिक्षा पात्रे अञ्जलि परिमिताः तण्डुलाः, मम तु पात्रं रिक्तम्। दयां कुरु। अर्धं देहि।” प्रथमः भिक्षुकः तत् न स्वीकृतवान्।

द्वितीयः भिक्षुकः पुनः अवदत्, “भो कृपणः मा भव। केवलम् एकं तण्डुलं देहि।” प्रथमः भिक्षुकः तस्मै एकमेव तण्डुलं ददाति। द्वितीये भिक्षुके गते सति प्रथमः भिक्षुकः भिक्षापात्रे तण्डुलाकारं स्वर्णकणं पश्यति। आश्चर्यचकितः शिरः ताडयन् सः पश्चात्तापम् अकरोत्-धिक माम, धिङ् मम मूर्खताम्।”

(एक भिक्षुक के भिक्षापात्र में अञ्जलि भर चावल थे। वह बोला-भगवान् दया करो। इससे कैसे पेट भरेगा? तभी दूसरा भिक्षुक वहाँ आ जाता है और कहता है- ‘भिक्षा दो।’ क्रुद्ध होकर पहला भिखारी गरजा- अरे भिखारी! भिखारी से ही भीख माँगता है? तुझे शर्म नहीं आती (तेरे शर्म नहीं है)। दूसरा भिक्षुक बोला- “तेरे भिक्षा पात्र में अंजलि भर चावल तो हैं, मेरा पात्र तो खाली (ही) है।

दया करो। आधा दे दो। पहले भिक्षुक ने यह स्वीकार नहीं किया। दूसरा भिक्षुक फिर बोला- “अरे कंजूस मत हो। केवल एक चावल दे दे।” पहला भिक्षुक उसे एक ही चावल देता है। दूसरे भिक्षुक के चले जाने पर पहला भिक्षुक भिक्षापात्र में चावल के आकार का सोने का कण देखता है । आश्चर्यचकित हुआ सिर पीटता हुआ वह पश्चात्ताप करने लगा- धिक्कार है मुझे, मेरी मूर्खता को धिक्कार है।”)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भिक्षुकस्य भिक्षापात्रे कियत्परिमिता तण्डुलं आसन्? (भिक्षुक के भिक्षापात्र में कितने चावल थे?)
(ii) द्वितीयो भिक्षुकः कं भिक्षाम् अयाचत? (दूसरे भिखारी ने किससे भीख माँगी?)
(iii) द्वितीया भिक्षकः प्रथमं कति तण्डलानि अयाचत? (दसरे भिक्षक ने पहले से कितने चावल माँगे?)
(iv) द्वितीये भिक्षुके गते सति प्रथमः भिक्षुकः स्वभिक्षापात्रे किम् अपश्यत्?
(दूसरे भिक्षुक के चले जाने पर पहले भिक्षुक ने अपने भिक्षापात्र में क्या देखा?)
उत्तरम् :
(i) अञ्जलि परिमिताः
(ii) प्रथमं भिक्षुकम्
(iii) एक तण्डुलम्
(iv) स्वर्णकणम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) प्रथमः भिक्षुकः भगवन्तं किम् अयाचत? (पहले भिखारी ने भगवान से क्या माँगा?)
(ii) प्रथमः भिक्षुकः किम् अगर्जत? (पहला भिक्षुक क्या गरजा?)
(iii) द्वितीयः भिक्षुकः प्रथमं कति तण्डुलानि अयाचत? (दूसरे भिखारी ने पहले से कितने चावल माँगे?)
उत्तरम् :
(i) सोऽयाचत, भगवन् दयां कुरु। कथम् अनेन उदरपूर्तिः भविष्यति?
(उसने याचना की- भगवन् ! दया करो। इससे पेट पूर्ति कैसे होगी?)
(ii) प्रथमः भिक्षुकः अगर्जत्- रे भिक्षुक! भिक्षुकमेव भिक्षां याचते। तव लज्जा नास्ति?
(पहले भिक्षुक ने गर्जना की- अरे भिक्षुक! भिक्षुक से ही भिक्षा माँगता है। तेरे कोई शर्म नहीं है?)
(iii) द्वितीय भिक्षुकः प्रथम भिक्षुकं एकमेव तण्डुलम् अयाचत् ।
(दूसरे भिखारी ने पहले भिखारी से. एक ही चावल माँगा।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत – (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
उदारतायाः फलम् (उदारता का फल)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
एकस्य भिक्षुकस्य भिक्षापात्रे अञ्जलि मात्र तण्डुला आसन्। द्वितीय भिक्षुकः तम् अय द्वितीयोवदत् तव पात्रेषु अञ्जलिपूर्ण तण्डुलाः सन्ति मम पात्रे तु एकमपिनास्ति अत्र एकमेव तण्डुलम् यच्छ। प्रथम एकमेव तण्डुलम् अयच्छत् द्वितीये भिक्षुके गते सति प्रथमः स्व पात्रम् अपश्यत् यत् तत्र एक तण्डुलाकारं स्वर्णकण आसीत्। साश्चर्यमसौ पश्चात्तापम् करोत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘भविष्यति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) अञ्जलि
(ब) उदरपूर्तिः
(स) भिक्षा
(द) कथम्
उत्तरम् :
(ब) उदरपूर्तिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘क्रुद्धः प्रथमः भिक्षुकः अगर्जत्’ अत्र विशेष्यपदमस्ति
(अ) प्रथमः
(ब) क्रुद्धः
(स) भिक्षुकः
(द) अगर्जत्
उत्तरम् :
(स) भिक्षुकः

(iii) “धिक् मम मूर्खताम्’ अत्र ‘मय’ इति सर्वनाम पद कस्मै प्रयुक्तम् –
(अ) प्रथम भिक्षुकाय
(ब) द्वितीय भिक्षुकाय
(स) तण्डुलेभ्यः
(द) याचाय
उत्तरम् :
(अ) प्रथम भिक्षुकाय

(iv) ‘दयां कुरु’ अत्र ‘दयां’ पदस्य विलोमपदमस्ति –
(अ) दयाम्
(ब) अदयां
(स) भिक्षां
(द) देहि
उत्तरम् :
(ब) अदयां

7. परेषां प्राणिनामुपकारः परोपकारोऽस्ति। परस्य हित सम्पादनं मनसा वाचा कर्मणा च अन्येषां हितानुष्ठानमेव परोपकार शब्देन गृह्यते। संसारे परोपकारः एव सः गुणो विद्यते, येन मनुष्येषु सुखस्य प्रतिष्ठा वर्तते। परोपकारेण हृदयं पवित्र सरलं, सरसं, सदयं च भवति। सत्पुरुषा कदापि स्वार्थपराः न भवन्ति। ते परेषां दुःखं स्वीयं दुःखं मत्वा तन्नाशाय यतन्ते। सज्जनाः परोपकारेण एव प्रसन्नाः भवन्ति। परोपकार-भावनैव दधीचिः देवानां हिताय स्वकीयानि अस्थीनि ददौ। महाराजशिविः कपोत रक्षणार्थ स्वमांसं श्येनाय प्रादात्। अस्माकं शास्त्रेषु परोपकारस्य महत्ता वर्णिता। प्रकृतिरपि परोपकारस्यै शिक्षा ददाति। अतः सर्वेरपि सर्वदा परोपकारः करणीयः।

(दूसरे प्राणियों का उपकार परोपकार है। दूसरे का हित-सम्पादन और मन-वाणी और कर्म से दूसरों का हितकार्य ही परोपकार शब्द से ग्रहण किया जाता है । संसार में परोपकार ही वह गुण है जिससे मनुष्यों में सुख की प्रतिष्ठा होती है। परोपकार से हृदय पवित्र, सरल, सरस और दयालु होता है। सज्जन कभी स्वार्थ के लिए तत्पर नहीं होते। वे दूसरों के दुख को अपना दुःख मानकर उसको दूर करने का प्रयत्न करते हैं। सज्जन परोपकार से ही प्रसन्न होते हैं। परोपकार भावना से ही दधीचि ने देवताओं के हित के लिए अपनी हड्डियों को दे दिया। महाराज शिवि ने कबूतर की रक्षा के लिए अपना मांस बाज के लिए दे दिया। हमारे शास्त्रों में परोपकार की महिमा वर्णित है। प्रकृति भी परोपकार की शिक्षा देती है। अतः सभी को हमेशा परोपकार करना चाहिए।) प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

(i) के स्वार्थतत्पराः न भवन्ति ? (कौन स्वार्थ तत्पर नहीं होते?)
(ii) देवानां हिताय स्वकीयानि अस्थीनि कः ददौ? (देवताओं के हित के लिए अपनी हड्डियाँ किसने दे दी? )
(iii) मनुष्येषु परोपकारेण किं भवति? (मनुष्यों में परोपकार से क्या होता है?)
(iv) महाराजशिविः कपोत रक्षणार्थं स्वमांसं कस्मै प्रादात्?
(महाराज शिवि ने कबूतर की रक्षार्थ अपना मांस किसको दिया?)
उत्तरम् :
(i) सत्पुरुषाः
(ii) दधीचिः
(iii) सुखस्य प्रतिष्ठा
(iv) श्येनाय।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) परोपकारः कः अस्ति? (परोपकार क्या है?)
(ii) महाराज शिविः परोपकाराय किम् अकरोत?
(महाराज शिवि ने परोपकार में क्या किया?)
(iii) प्रकृति किं शिक्षते? (प्रकृति किसकी शिक्षा देती है?)
उत्तरम् :
(i) परेषां प्राणिनाम् उपकारः परोपकारः अस्ति।
(दूसरे प्राणियों का उपकार परोपकार है।)
(ii) महाराज शिवि परोपकाराय कपोतरक्षणार्थं श्येनाय स्वमांसं ददौ।
(महाराज शिवि ने परोपकार के लिए बाज को अपना मांस दे दिया।)
(ii) प्रकृति परोपकारस्य एव शिक्षां ददाति।
(प्रकृति परोपकार की ही शिक्षा देती है।)

प्रश्न 3.
अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
परोपकारस्य महत्वम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
मनसा वचसा कर्मणा च परेषां हित सम्पादनमेव परोपकारः इति कथ्यते। अनेनैव संसारे मनुष्य प्रतिष्ठति। दयादयः गुणाः भवन्ति। सञ्जनाः स्वार्थं परित्यज्यासि परेषां दुःखं स्वकीय मन्यते। ते परोपकारेणैव प्रसीदन्ति न तु स्वार्थ सिद्धि पूर्णेन। महर्षि दधीचिः महाराजाशिविस्य इत्यादय परोपकारस्य निदर्शनानि सन्ति। प्रकृति अपि परोपकारमेवशिक्षति। तस्या प्रत्येकम् अङ्गमेव परोपकारे निरतः अस्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘प्रकृतिरपि परोपकारस्यैव शिक्षा ………’ अत्र कर्तृ पदमस्ति
(अ) सत्पुरुषाः
(ब) परोपकारिणः
(स) प्रकृतिः
(स) सज्जनाः
उत्तरम् :
(स) प्रकृतिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘अपरमित सुखस्य प्रतिष्ठा वर्तते’ अत्र विशेष्य पदमस्ति
(अ) सुखस्य
(ब) प्रतिष्ठा
(स) वर्तते
(द) मनुष्येषु
उत्तरम् :
(अ) सुखस्य

(iii) ‘ते परेषां दुःखं …….’ अत्र ‘ते’ सर्वनाम पदस्य स्थाने संज्ञा पदं भवेत
(अ) सत्पुरुषा
(ब) वृक्षाः
(स) प्रकृतेः अंगानि
(द) दुर्जनाः
उत्तरम् :
(अ) सत्पुरुषा

(iv) ‘कठिन’ इति पदस्य विलोम पदं भवति
(अ) सरसम्
(ब) सदयम्
(स) सरलम्
(द) पवित्रम्
उत्तरम् :
(स) सरलम्

8. मेवाडराज्यं बहूनां शूराणां जन्मभूमिः। तस्य राजा राणाप्रतापः सिंहासनम् आरूढ़वान्। हस्तच्युतानां भागानां प्रति प्राप्तिः कथमिति विचिन्त्य सः पुर प्रमुखाणां सभामायोजितवान्। तत्र सः प्रतिज्ञां कृतवान्- ‘चित्तौड़स्थानं यावत् न प्रति प्राप्स्यामि तावत् सुवर्ण पात्रे भोजनं न करिष्यामि। राजप्रासादे वासं न करिष्यामि। मृदुतल्ये शयनम् अपि न करिष्यामि’ इति। तदा पुर प्रमुखाः अवदन् वयम् अपि सुख-साधनानि त्यक्ष्याम। देशाय यथा शक्ति धनं दास्यामः। अस्मत्पुत्रान् सैन्यं प्रति प्रेषयिष्यामः इति। तदनन्तरं ग्राम प्रमुखाः अवदन्- वयं धान्यागारं धान्येन परिपूरयिष्यामः। ग्रामे आयुधानि सज्जीकरिष्यामः। युवकान् युद्धकलां बोधयिष्यामः। अद्यैव कार्यारम्भः करिष्यामः।

(मेवाड़ राज्य बहुत से वीरों की जन्मभूमि है। उसका राजा राणा प्रताप सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, हाथ से निकले हुए भागों की वापिस प्राप्ति कैसे हो ? यह सोचकर उसनें नगर प्रमुखों की सभा आयोजित की। वहाँ उसने प्रतिज्ञा की- चित्तौड़ स्थान को जब तक वापिस प्राप्त नहीं कर लूँगा तब तक सोने की थाली में भोजन नहीं करूंगा। राजमहल में निवास नहीं करूँगा। कोमल गद्दों पर शयन भी नहीं करूंगा। तब पुर-प्रमुखों ने कहा- हम भी सुख-साधनों को त्यागेंगे। देश के लिए यथा शक्ति धन देंगे। अपने पुत्रों को सेना में भेजेंगे। इसके बाद ग्राम प्रमुखों ने कहा- हम धान्यागारों को धान से भरपूर कर देंगे। गाँव में हथियार तैयार करेंगे। जवानों को युद्ध कला का ज्ञान करायेंगे। आज ही कार्य आरंभ करेंगे।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) राणा प्रतापः कस्य राज्यस्य राजा आनीत? (राणा प्रताप किस राज्य के राजा थे?)
(ii) ‘सुवर्ण पात्रे भोजनं न करिष्यामिक प्रतिज्ञां कृतवान् ।
(‘सोने की थाली में भोजन नहीं करना’ यह प्रतिज्ञा किसने की?)
(iii) मेवाड़ राज्यं केषां जन्मभूमिः? (मेवाड़ राज्य किनकी जन्मभूमि है?)
(iv) धान्यागारं के पूरयिष्यन्ति? (धान्यागार को कौन भरेंगे?)
उत्तरम् :
(i) मेवाड़राज्यस्य
(ii) महाराणा प्रतापः
(iii) शूराणाम्
(iv) ग्रामप्रमुखाः ।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) मेवाड़ राज्यं केषां जन्मभूमिः?
(मेवाड़ राज किनकी जन्मभूमि है?)
(ii) कः पुरप्रमुखाणां सभाम् आयोजितवान् ?
(पुर प्रमुखों की सभा किसने आयोजित की?)
(iii) महाराणा किं विचिन्त्य पुरप्रमुखानां सभाम् आयोजितवान् ? ।
(महाराणा ने क्या सोचकर पुर-प्रमुखों की सभा आयोजित की?) ।
उत्तरम् :
(i) मेवाडराज्यं शूराणां जन्मभूमिः।
(मेवाड़ राज्य शूरवीरों की जन्मभूमि है।)
(ii) महाराणाप्रतापः पुरप्रमुखानां सभामायोजितवान्।
(महाराणा प्रताप ने पुरप्रमुखों की सभा का आयोजन किया।)
(iii) हस्तच्युताना भागाना प्रतिप्राप्ति कथ भवेत् इति विचिन्त्य प्रतापः पुर प्रमुखाना सभामायोजितवान्।

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
महाराणा प्रतापः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीक
उत्तरम् :
मेवाड़ राज्ये बहवः शूराः अभवन्। प्रतापादयोऽनेके सिंहासनम् आरूढ़वन्तः। सभायां प्रतापः प्रतिज्ञातवान् चित्तौड राज्यमेव प्राप्य स्वर्णपात्रे भोजनं न करिष्यामि। प्रासादे न निवत्स्यामि मृदुतल्पे न शयिष्ये पुर प्रमुखाः अपि सुखसाधनानि अत्यजन। धन-पुत्र-धान्य-आयुधादीन प्रदाय प्रतिज्ञात वन्त युद्धाय च तत्पराः आसन्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘तत्र सः प्रतिज्ञां कृतवान्’ इत्यस्मिन् वाक्ये क्रिया पदमस्ति
(अ) कृतवान्
(ब) तत्र
(स) सः
(द) प्रतिज्ञाम्
उत्तरम् :
(अ) कृतवान्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘मृदुतल्पे’ इत्यनयोः विशेषण पदमस्ति
(अ) तल्पे
(ब) मृदु
(स) प्रसाद
(द) स्वपात्राणि
उत्तरम् :
(ब) मृदु

(iii) ‘तदा पुर प्रमुखाः अवदन’ अस्मिन् वाक्ये संज्ञापदमस्ति
(अ) तदा
(ब) अवदन्
(स) वदन्
(द) पुरप्रमुखाः
उत्तरम् :
(द) पुरप्रमुखाः

(iv) ‘वयं धान्यागारं धान्येन पूरयिष्यामः’ अत्र ‘धान्येन’ पदस्य पर्याय पदमस्ति
(अ) अन्नेन
(ब) धान्यागारम्
(स) धान्यम्
(द) पूरयिष्यामः
उत्तरम् :
(अ) अन्नेन

9. शाक्यवंशीयः शुद्धोदनः नाम कश्चिद् राजा आसीत्। कपिलवस्तु नाम तस्य राजधानी आसीत्। अस्य एव राज्ञः सुपुत्रः सिद्धार्थः आसीत्। सः बाल्यकालाद् एव अति करुणापरः आसीत्। तस्य मनः क्रीडायाम् आखेटे वा नारमत। एवं स्वपुत्रस्य राजभोगं प्रति वैराग्यं दृष्ट्वा शुद्धोदनः चिन्तितः अभवत्। सः सिद्धार्थस्य यौवनारम्भे एव विवाहम् अकरोत्। तस्य पत्नी यशोधरा सुन्दरी साध्वी च आसीत्। शीघ्रमेव तयोः राहुल: नाम पुत्रः अंजायत।

एकदा सिद्धार्थः भ्रमणाय नगरात् बहिः अगच्छत्। तत्र सः एकं वृद्धम् एकं रोगार्तम्, एकं मृत पुरुषम् एकं च संन्यासिनम् अपश्यत्। एतान् दृष्ट्वा तस्य मनसि वैराग्यम् उत्पन्नम् अभवत्। ततः सः स्वधर्मपत्नीम् अबोधं सुतं राहुलं राज्यं च त्यक्त्वा गृहात् निरगच्छत्। सः कठिनं तपः अकरोत्। तपसः प्रभावात् सः बुद्धः अभवत्। अहिंसा पालनं तस्य प्रमुखा शिक्षा आसीत्। सः जनानां कल्याणाय बौद्ध-धर्मस्य प्रचारम् अकरोत्।

(शाक्यवंश का शुद्धोदन नाम का कोई राजा था। कपिलवस्तु नाम की उसकी राजधानी थी। इसी राजा का सुपुत्र सिद्धार्थ था। वह बचपन से ही अत्यन्त दयालु था। उसका मन खेल और मृगया में नहीं लगता था। इस प्रकार अपने बेटे को राजभोग के प्रति वैराग्य देखकर शुद्धोदन चिन्तित हुआ। उसने सिद्धार्थ का यौवन के आरम्भ में ही विवाह कर दिया। उसकी पत्नी यशोधरा सुन्दर और साध्वी थी। शीघ्र ही उन दोनों के राहुल नाम का पुत्र हुआ। एक दिन सिद्धार्थ भ्रमण के लिए नगर से बाहर गया। वहाँ उसने एक बुड्ढे, एक रोग से पीड़ित, एक मरे हुए पुरुष को और एक संन्यासी को देखा। इनको देखकर उसके मन में वैराग्य पैदा हो गया। तब वह अपनी पत्नी, अबोध पुत्र राहुल और राज्य को त्याग कर घर से निकल गया। उसने कठोर तप किया। तप के प्रभाव से वह बुद्ध हो गया। अहिंसा-पालन इसकी प्रमुख शिक्षा थी। उसने लोगों के कल्याण के लिए बौद्ध धर्म का प्रचार किया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) शाक्यवंशीय नृपस्य किम्, नाम आसीत्?
(शाक्यवंशीय राजा का क्या नाम था?)
(ii) शुद्धोदनस्य किं नाम राजधानी आसीत्?
(शुद्धोदन की राजधानी का क्या नाम था?)
(iii) शुद्धोदनस्य आत्मजः काः आसीत?
(शुद्धोदन का पुत्र कौन था?)
(iv) सिद्धार्थः बाल्यकालात् कीदृशः आसीत्?
(सिद्धार्थ बचपन में कैसा था?)
उत्तरम् :
(i) शुद्धोदनः
(ii) कपिलवस्तु
(iii) सिद्धार्थः
(iv) करुणापरः।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) सिद्धार्थः किमर्थं बौद्ध धर्मस्य प्रचारमकरोत् ? (सिद्धार्थ ने बौद्ध धर्म का प्रचार किसलिए किया?)
(ii) नगरात् बहिः मार्गे सिद्धार्थः किमपश्यत्? (नगर से बाहर मार्ग में सिद्धार्थ ने क्या देखा?)
(iii) बुद्धस्य प्रमुखा शिक्षा का आसीत्? (बुद्ध की प्रमुख शिक्षा क्या थी?)
उत्तरम् :
(i) सः जनानां कल्याणाय बौद्धधर्मस्यप्रचारमकरोत् ? (उन्होंने लोक-कल्याण हेतु बौद्ध धर्म का प्रचार किया।)
(ii) नगरात् बहिः सिद्धार्थः एकं वृद्धं, एकं मृतं, एकं रोगार्तम् एकं संन्यासिन चापश्यत् ।
(नगर के बाहर सिद्धार्थ ने एक बुड्ढे, एक मृत, एक बीमार और एक संन्यासी को देखा।)
(ii) अहिंसापालने तस्य प्रमुखा शिक्षा आसीत्। (अहिंसा का पालन करना उसकी प्रमुख शिक्षा थी।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
बुद्धस्य वैराग्यम् (बुद्ध का वैराग्य)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कपिलवस्तु राज्यस्य शासकस्य शुद्धोदनस्य पुत्रस्य नाम सिद्धार्थः आसीत्। सः बाल्यादेव करुणापरः क्रीडाखेटादिभ्यो विरक्तः आसीत्। वैराग्यं दृष्ट्वा नृपः तस्य विवाहमकरोत्। पुत्रः राहुलोऽपि अजायत। सिद्धार्थः भ्रमणाय वनमगच्छत् तत्रैकदा एकं वृद्ध, रोगार्तम् मृतम् संन्यासिनं च अपश्यत्। एतान् दृष्ट्वा वैराग्योऽजायत, गृहस्थं त्यक्त्वा गृहात् निरगच्छत् तपसासौ बोध प्राप्तवान् बौद्धधर्मं च संस्थाप्य प्रचारमकरोत।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अरमत्’ क्रियायाः कर्तृपदमनुच्छेदे प्रयुक्तमस्ति
(अ) शुद्धोदनः
(ब) सिद्धार्थः
(स) कपिलवस्तु
(द) यशोधरायाः
उत्तरम् :
(ब) सिद्धार्थः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘तस्य प्रमुख शिक्षा आसीत्’ अत्र विशेषण पदमस्ति
(अ) तस्य
(ब) प्रमुख
(स) शिक्षा
(द) आसीत्
उत्तरम् :
(ब) प्रमुख

(iii) ‘तस्य मनः’ अत्र ‘तस्य’ इति सर्वनाम पदं प्रयुक्तम् –
(अ) सिद्धार्थाय
(ब) शुद्धोदनाय
(स) यशोधरायै
(द) वैराग्याय
उत्तरम् :
(स) यशोधरायै

(iv) ‘वैराग्यम् उत्पन्नम् अभवत्’ अत्र ‘उत्पन्नम्’ पदस्य विलोमपदम् अस्ति
(अ) वैराग्यम्
(ब) उत्पन्नम्
(स) नष्टम्
(द) न किञ्चित्
उत्तरम् :
(अ) वैराग्यम्

10. नगरस्य समीपे एकस्मिन् वने एकः सिंहः निवसति स्म। एकदा तस्य गुहायाम् एकः मूषकः प्राविशत्। सः सिंहस्य शरीरस्योपरि इतस्तततोऽधावत्। कुपितः सिंहः तं मूषकं करे गृह्णाति स्म। भीतः मूषकः सिंहाय मोक्तु न्यवेदयत् अवदत च भो मृगराज! मां मा मारय, कदाचिदहं भवतः सहायतां करिष्यामि। सिंहः अहसत् अवदत् च-“लघुमूषक त्वं मम कथं सहायतां करिष्यसि? अस्तु, इदानीन्तु त्वां मोचयामि।” इत्युक्त्वा सिंहः मूषकम् अमुञ्चत्। एकदा कोऽपि व्याधः जालं प्रसारयति, सिंहः जाले पतित: बहिरागमनाय प्रयत्नं अकरोत्। तस्य गर्जनं श्रुत्वा मूषकः विलात् बहिरागत्य दन्तैः च जालं अकर्तयत् बन्धनमुक्तः सिंह: ‘मित्रं तु लघु अपि वरम्’ इति ब्रुवन् वने निर्गतः।

(नगर के समीप एक वन में एक शेर रहता था। एक दिन उसकी गुफा में एक चहा घुस गया। वह सिंह के शरीर पर इधर-उधर दौड़ने लगा। नाराज हुए उस शेर ने चूहे को पकड़ लिया। डरे हुए चूहे ने सिंह छोड़ने के लिए निवेदन किया और बोला- हे मृगराज! मुझे मत मारो, कभी मैं आपकी सहायता करूँगा। सिंह हँसा और बोला- छोटा-सा चूहा तू मेरी क्या सहायता करेगा? खैर, अब तो तुम्हें छोड़ देता हूँ, ऐसा कहकर सिंह ने चूहे को छोड़ दिया। एक दिन किसी बधिक ने जाल ।। सिंह जाल में पड़ा हुआ बाहर आने का प्रयत्न करने लगा। उसकी गर्जना को सुनकर चूहे ने बिल से बाहर आकर दाँतों से जाल काट दिया। बन्धन से मुक्त शेर ‘मित्र तो छोटा-सा भी श्रेष्ठ होता है’ कहता हुआ वन में निकल गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए) –
(i) नगरस्य समीपे कः निवसति स्म? (नगर के समीप कौन रहता था?)
(ii) सिंहस्य गुहायां कः प्राविशत्? (सिंह की गुफा में कौन घुस गया?)
(ii) मूषकः सिंहाय कस्मै निवेदयति? (चूहा सिंह को किसलिए निवेदन करता है?)
(iv) सिंहः कुत्र बद्धः? (सिंह कहाँ बँध गया?) ।
उत्तरम् :
(i) सिंहः
(ii) मूषकः
(iii) मोक्तुम्
(iv) जाले/पाशे।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) मूषकः सिंहस्योपरि किं कृतवान् ? (चूहे ने शेर के ऊपर क्या किया?)
(ii) भीत: मूषकः कथं निवेदयति? (डरा हुआ चूहा कैसे निवेदन करता है?)
(iii) सिंह: मषकं कथम उपहसति? (सिंह चहा पर कैसे उपहास करता है?)
उत्तरम् :
(i) मूषकः सिंहस्योपरि इतस्ततः धावति। (सिंह के ऊपर चूहा इधर-उधर दौड़ता है।)
(ii) हे मृगराज! मां मा मारय। कदाचिद् अहं भवतः सहायतां करिष्यामि।
(हे मृगराज! मुझे मत मारो। कदाचित् मैं आपकी सहायता करूँगा।)
(ii) लघुमूषकः त्वम्, मम कथं सहायतां करिष्यति? अस्तु इदानीं तु त्वां मोचयामि। ।
(तुम छोटे से चूहे, मेरी कैसे सहायता करोगे? खैर अब तो तुम्हें मैं छोड़ देता हूँ।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
मित्रं तु लघु अपि वरम्। (मित्र तो छोटा-सा ही अच्छा।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सिंहस्य गुहायाम् एकदा एक मूषकः प्राविशत्। मूषकः तस्योपरि अधावत्, स तम् गृह्णाति स्म हन्तुं चेच्छति।
मूषको न्यवेदयतः मां मा मारय, अहं कदाचित् ते सहायतां करिष्यामि। सिंहः उपहस्य तं त्यजति। एकदा मूषकः सिंहस्य गर्जनाम् अश्रृणोत्। सः तत्र अगच्छत् व्याधस्य पाशे पतितं तं सिंह मोचयति। सिंहोऽवदत्-“मित्र तु लघु अपि वरम्।”

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सः सिंहस्योपरि धावति’ अत्र अनयोः क्रियापदम् अस्ति
(अ) व्याधः
(ब) धावतिः
(स) सिंहः
(द) जालः
उत्तरम् :
(ब) धावतिः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘भीतः मूषकः’ अत्र भीत: कस्य पदस्य विशेषम्
(अ) मूषकस्य
(ब) सिंहस्य
(स) व्याधस्य
(द) जालस्य
उत्तरम् :
(अ) मूषकस्य

(iii) ‘बद्ध सिंहः’ अत्र संज्ञापदमस्ति
(अ) व्याधः
(ब) मृगराज
(स) सिंहः
(द) न कश्चिद्
उत्तरम् :
(स) सिंहः

(iv) ‘दूरे’ इति पदस्य अनुच्छेदे विलोम पदमस्ति
(अ) समीपे
(ब) करे
(स) जाले
(द) वने
उत्तरम् :
(अ) समीपे

11. कालिदासः मेघदूतं रचितवान। मेघदूते मानसून विज्ञानस्य अद्भुतं वर्णनम् अस्ति। मानसून-समय: आषाढ़मासात् आरभते। श्याममेघान् दृष्ट्वा सर्वे जनाः प्रसन्ना भवन्ति। मयूराः नृत्यन्ति। मानसून मेघाः सर्वेषा जीवानां कष्टम् अपहरन्ति। मेघानां जलं वनस्पतिभ्यः, पशु-पक्षिभ्यः किं वा सर्वेभ्यः प्राणिभ्यः जीवनं प्रयच्छति। मेघजलैः भूमेः उर्वराशक्तिः वा ति। क्षेत्राणां सिञ्चनं भवति। गगने यदा कदा इन्द्रधनुः अपि दृश्यते। वायुः शीतलः भवति। शुष्क भूमौ वर्षायाः बिन्दवः पतन्ति। भूमेः सुगन्धितं वाष्पं निर्गच्छति। कदम्ब पुष्पाणि विकसन्ति। तेषु भ्रमरा गुञ्जन्ति। हरिणाः प्रसन्ना सन्तः इतस्ततः धावन्ति।

चातका जलबिन्दून गगने एव पिवन्ति। बलाकाः पंक्तिं बद्ध्वा आकाशे उड्डीयन्ते। मेघदूते मेघः विरहि यक्ष सन्देशं नेतुं प्रार्थते। अत्र कालिदासः वायुमार्गस्य ज्ञानवर्धकं वर्णनं करोति। (कालिदास ने मेघदूत की रचना की। मेघदूत में मानसून विज्ञान का अद्भुत वर्णन है। मानसून का समय आषाढ़ माह से आरम्भ होता है। काले मेघों को देखकर सभी लोग प्रसन्न होते हैं। मोर नाचते हैं। मानसून के मेघ सभी जीवों के कष्ट का हरण करते हैं। मेघों का जल वनस्पतियों, पशु-पक्षियों अधिक तो क्या सभी प्राणियों को जीवन प्रदान करते हैं। मेघ के जल से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

खेतों की सिंचाई होती है। आकाश में जब कभी इन्द्रधनुष भी दिखाई देता है। वायु शीतल होती है। सूखी धरती पर वर्षा की बूंदें पड़ती हैं । भूमि से सुगन्धित भाप निकलती है। कदम्ब के फूल खिलते हैं। उन पर भौरे गूंजते हैं। हिरन प्रसन्न हुए इधर-उधर दौड़ते हैं। पपीहे जल बिन्दुओं को आकाश में ही पीते हैं। बगुले कतार बनाकर आकाश में उड़ते हैं। मेघदूत में मेघ से विरही यक्ष सन्देश ले. जाने के लिए प्रार्थना करता है। यहाँ कालिदास वायुमार्ग का ज्ञान-वर्धक वर्णन करता है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) मेघानां जलं प्राणिभ्यः किं प्रयच्छति? (बादलों का जल प्राणियों को क्या देता है?)
(ii) भ्रमराः कुत्र गुञ्जन्ति? (भौरे कहाँ गूंजते हैं?)
(iii) मेघ जलैः किं वर्धते? (बादल-जल से क्या बढ़ता है?)
(iv) वर्षाकाले वायु कीदृशी भवति ? (वर्षाकाल में हवा कैसी होती है?)
उत्तरम् :
(i) जीवनम्
(ii) कदम्ब पुष्पेषु
(ii) भूमेः उर्वरा शक्तिः
(iv) शीतलः।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) मेघदूतं कः रचितवान्? (मेघदूत को किसने रचा?)
(ii) मानसनमेघाः केषां कष्टम् अपहरन्ति? (मानसून के बादल किनके कष्ट को हरण करते हैं?)
(iii) मेघदूते कस्य वर्णनम् अस्ति? (मेघदूत में किसका वर्णन है?)
उत्तरम् :
(i) मेघदूतं कालिदासः रचितवान्। (मेघदूत की रचना कालिदास ने की।)
(iii) मानसून मेघाः सर्वेषां जीवानां कष्टम् अपहरन्ति। (मानसून के बादल सब जीवों के कष्ट का हरण करते हैं।)
(iii) मेघदूते मानसून विज्ञानस्य अद्भुतं वर्णनम् अस्ति। (मेघदूत में मानसून विज्ञान का अनोखा वर्णन है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
कालिदासस्य मेघदूतकाव्यम्। (कालिदास का मेघदूत काव्य।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कालिदासस्य मेघदूत काव्ये मानसून विज्ञानस्य अद्भुतम् वर्णनम् अस्ति। पृथिव्या शोभा वर्धते। मेघैः प्रदत्तेन जलेन . मनुष्या, पशवः, खगाः, वृक्षाः, पादपा च प्रसन्नाः भवन्ति। इन्द्रधनुः शोभते गगने वायुः शीतलः भवति। भूमेः
सुगन्धिः प्रसराति हरिणाः बालकाः च प्रसन्ना सन्तः इतस्ततः भ्रम्यन्ति धावन्ति च आनन्देन। मेघदूतम् वायुमार्गस्य
ज्ञानं वर्धयति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘धावन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्ता अस्ति –
(अ) भ्रमराः
(ब) मेघाः
(स) हरिणाः
(द) चातकाः
उत्तरम् :
(स) हरिणाः

(ii) ‘ज्ञानवर्धकम्’ इति कस्य विशेषणम्?
(अ) मानसून विज्ञानस्य
(ब) वायु मार्गस्य
(स) प्रकृति चित्रणस्य
(द) विरहि यक्षस्य।
उत्तरम् :
(ब) वायु मार्गस्य

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iii) ‘तेषु भ्रमरा गुञ्जन्ति’ यहाँ तेषु सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(अ) कदम्ब पुष्पेषु
(ब) श्याम मेघेषु
(स) क्षेत्रेषु
(द) गगने
उत्तरम् :
(अ) कदम्ब पुष्पेषु

(iv) ‘उर्वरा शक्तिः वर्धते’ अत्र ‘उर्वरा’ पदस्य विलोमपदमस्ति
(अ) उर्वरा
(ब) शक्तिः
(स) अनुर्वरा
(द) भूमेः
उत्तरम् :
(स) अनुर्वरा

12. सुबुद्धिः दुर्बुद्धिश्च द्वौ धनिको आस्ताम्। सुबुद्धेः विशालं भवनम् आसीत्। तस्य अनेके उद्योगाः चलन्ति स्म। अत एव सः सर्वदा प्रसन्नचित्तः ईश्वरं स्मरन् आनन्दे निमग्नः भवति स्थ। दुर्बुद्धि तावत् लोभी आसीत्। अधिकाधिकं धन-संग्रहं कर्तुम् इच्छति स्म। सर्वदा असन्तुष्टः, क्रुद्धः दुःखी च भवति स्म। एकदा दुर्बुद्धिः कार्यवशात् सुबुद्धेः गृहम् अगच्छत्। आनन्द-मग्नं तं दृष्ट्वा अपृच्छत्- “भवतः आनन्दरूप शान्तिः च किं रहस्य?” सुबुद्धिः उवाच-“मित्र! मम चत्वारः अंगरक्षकाः सन्ति। प्रथमः सत्यं यत् माम् अपराधात् सदा रक्षति। द्वितीयः स्नेहः, अहं सर्वान् कर्मचारिणः पुत्रवत् मन्ये। तृतीयः न्यायः, यः माम् अन्यायात् रक्षति। चतुर्थः त्यागः मां दानाय प्रेरयति। अतः एतेषां सहायतया अहं सर्वदा, आनन्देन जीवामि लोकहितं च करोमि इति।” दुर्बुद्धि श्रद्धया तस्य चरणयोऽपतत्।

(सुबुद्धि और दुर्बुद्धि नाम के दो धनवान थे। सुबुद्धि का विशाल भवन था। उसके अनेक उद्योग चलते थे। अतः एक वह हमेशा प्रसन्न रहता था और ईश्वर का स्मरण करता हुआ आनन्द में डूबा रहता था। दुर्बुद्धि तो लोभी था। अधिक से अधिक धन संग्रह करना चाहता था। हमेशा असन्तुष्ट, क्रुद्ध और दुखी रहता था। एक दिन दुर्बुद्धि काम से सुबुद्धि के घर गया। उसको आनन्दमग्न देखकर पूछा- आपके आनन्द और शान्ति का क्या रहस्य है? सुबुद्धि ने कहा- “मित्र! मेरे चार अंगरक्षक हैं- पहला सत्य जो मेरी अपराध से सदैव रक्षा करता है। दूसरा स्नेह, मैं सभी कर्मचारियों से पुत्र की तरह व्यवहार करता हूँ। तीसरा न्याय जो मेरी अन्याय से रक्षा करता है। चौथा त्याग मुझे दान के लिए प्रेरित करता है। अतः इनकी सहायता से मैं सदैव आनन्द में जीता हूँ और लोक-कल्याण करता हूँ।” दुर्बुद्धि श्रद्धा से उसके चरणों में गिर गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) सुबुद्धेः कति अङ्गरक्षकाः आसन्? (सुबुद्धि के कितने अंगरक्षक थे?)
(ii) सबद्धिः सर्वदा कस्मिन निमग्नः भवति स्म? (सबद्धि सदा किसमें डूबा रहता था?)
(iii) दुर्बुद्धिः किमर्थं सुबुद्धेः गृहम् आगच्छत? (दुर्बुद्धि किसलिए सुबुद्धि के घर आया?)
(iv) द्वितीयस्य अंगरक्षकस्य किम् नाम आसीत्? (दूसरे अंगरक्षक का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
(i) चत्वारः
(ii) आनन्दे
(iii) कार्यवशात्
(iv) स्नेह।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) दुर्बुद्धिः सर्वदा कस्य संग्रहं कर्तुम् इच्छति स्म?
(दुर्बुद्धि सदा क्या संग्रह करना चाहता था?)
(ii) सुबुद्धिः सर्वान् कर्मचारिणः कथं मन्यते स्म?
(सुबुद्धि सभी कर्मचारियों को कैसे मानता था?)
(iii) सुबुद्धेः चत्वारः रक्षकाः के सन्ति ?
(सुबुद्धि के चार रक्षक कौन हैं?)
उत्तरम् :
(i) दुर्बुद्धि सर्वदा अधिकाधिकं धन-संग्रहं कर्तुम् इच्छति स्म।
(दुर्बुद्धि सदा अधिक धन-संग्रह करना चा
(ii) सुबुद्धिः सर्वान् कर्मचारिणः पुत्रवत् मन्यते स्म।
(सुबुद्धि सब कर्मचारियों को पुत्रवत् मानता था।)
(iii) सत्यं, स्नेहः, न्यायः त्यागः च एते चत्वारः अंगरक्षकाः।
(सत्य, स्नेह, न्याय और त्याग ये चार अंगरक्षक हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
सुबुद्धिदेव जयते।
(सुबुद्धि की ही विजय होती है।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
सुबुद्धि दुर्बुद्धिश्च द्वौ धनिकौ आस्ताम् सुबुद्धि सुखी आसीत्, दुर्बुद्धिश्च लोभी दुःखी आसीत्। अति धन संचिते अपि सः असन्तुष्टः क्रुद्ध, दुखी आसीत, एकदा दुर्बुद्धिः सुबुद्धि तस्य आनन्दस्य कारणमपृच्छत्। सुबुद्धिः उवाच मित्र! मम सत्य-स्नेह-न्याय-त्यागाः इति चत्वारः सेवकाः सन्ति ये माम् अन्यायात् पक्षपातात्, उपराधात् रक्षन्ति त्यागः दानाय प्रेरयति। अतोऽहम् आनन्दितः अस्मि। दुर्बुद्धिः श्रद्धया तस्य चरणयोपपत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘चलन्ति स्म’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ) उद्योगाः
(ब) अङ्गरक्षकाः
(स) कर्मचारिणः
(द) सहायतया
उत्तरम् :
(अ) उद्योगाः

(ii) ‘सर्वान्’ इति विशेषणपदस्य विशेष्यमस्ति –
(अ) अङ्गरक्षकाः
(ब) कर्मचारिणः
(स) अन्यायाः
(द) सहायकाः
उत्तरम् :
(ब) कर्मचारिणः

(iii) ‘एतेषां सहायतया’ इत्यत्र एतेषां सर्वनाम पदं केभ्यः प्रयुक्तम् –
(अ) कर्मचारिणाम्
(ब) अङ्गरक्षकाणाम्
(स) उद्योगानाम्
(द) अन्यायानाम्
उत्तरम् :
(ब) अङ्गरक्षकाणाम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘मां दानाय प्रेरयति’ अत्र ‘दानाय’ पदस्य विलोमपदमस्ति –
(अ) माम्
(ब) दानाय
(स) सञ्चायः
(द) त्यागः
उत्तरम् :
(स) सञ्चायः

13. एकदा एकः वैदेशिकः प्रथम राष्ट्रपतेः श्री राजेन्द्र प्रसादस्य गृहं प्राप्तवान्। राष्ट्रपतेः परिचारकः तम् आतिथ्यगृहे प्रतीक्षितुम् अकथयत् तम् असूचयत् च यद् राष्ट्रपति महोदयः सम्प्रति पूजां कुर्वन्ति। सः अतिथिः ज्ञातुम् ऐच्छत् यद् राष्ट्रपतिः कथं करोति पूजाम्? सङ्कोचं कुर्वन् अपि सः अन्तः पूजागृह प्रविष्टः राष्ट्रपतेः समक्षं विद्यमानं मृत् पिण्डम् अवलोक्य सः अवन्दत श्रद्धया च तत्र उपविशत्। ‘पूजां परिसमाप्य राष्ट्रपति महोदयः पूजागृहे स्थिते तम् दृष्ट्वा प्रसन्नः अभवत्। ससम्मानं तय् अन्तः अनयत्। आगन्तुकस्य ललाटे विद्यमानं भावं दृष्ट्वा श्री राजेन्द्र महोदयः तस्य कौतूहल विज्ञाय तस्मै सम्बोधयत् एतद् मृत्पिण्ड भारतस्य भूम्याः प्रतीकम् अस्ति। एतेन मृत्पिण्डेन. एव भारतीया महती अन्नात्मिकां सम्पदां प्राप्नुवन्नि। अत एव वयं मृत्तिकायाः कणेषु ईश्वरस्य दर्शनपि कुर्मः। अस्माकं विचारे तु मानवेषु पशु-पक्षिषु, पाषाणेषु, वृक्षादिषु किंवा अचेतनेषु अपि ईश्वरस्य सत्ता अस्ति।

(एक दिन एक विदेशी प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद के घर पर पहुँच गया। राष्ट्रपति के सेवक ने उसको अतिथि गृह में प्रतीक्षा करने के लिए कह दिया और उसे सूचित कर दिया कि राष्ट्रपति महोदय अभी पूजा कर रहे हैं। वह अतिथि यह जानना चाहता था कि राष्ट्रपति पूजा कैसे करते हैं? संकोच करते हुए भी वह पूजागृह में प्रवेश हो गया। राष्ट्रपति के समक्ष विद्यमान मिट्टी के ढेले को देखकर उसने वन्दना की और श्रद्धापूर्वक बैठ गया। पूजा को समाप्त करके राष्ट्रपति माहेदय ने पूजागृह में बैठे उसको देखकर प्रसन्न हुए। सम्मानपूर्वक उसे अन्दर ले गये। आगन्तुक के ललाट पर विद्यमान भाव को देखकर श्री राजेन्द्र महोदय ने उसके कुतूहल को जानकर उसे संबोधित किया कि यह मिट्टी का ढेल भारत की भूमि का प्रतीक है। इस मिट्टी के ढेले से ही भारतीय बहत-सी अन्नात्म सम्पदा प्राप्त करते हैं। अतएव हम मिट्टी के कणों में भी ईश्वर के विचार से तो मानव, पशु, पक्षी, पत्थर, वृक्षादि और तो क्या अचेतनों में भी ईश्वर की सत्ता है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कः श्री राजेन्द्र प्रसादस्य गृहं प्राप्तवान् ?
(श्री राजेन्द्र प्रसाद के घर कौन पहुँच गया?)
(ii) भारत भूम्याः प्रतीक किम् अस्ति?
(भारतभूमि का प्रतीक क्या है?)
(ii) कस्याः कणेषु वयम् ईश्वर दर्शनं कुर्मः?
(किसके कणों में हम ईश्वर के दर्शन करते हैं?)
(iv) किं कुर्वन् आगन्तुकः पूजागृहं प्रविष्ट:?
(क्या करता हुआ आगन्तुक पूजागृह में घुस गया?)
उत्तरम् :
(i) वैदेशिक :
(i) मृत्पिण्डम्
(iii) मृत्तिकायाः
(iv) सङ्कोचम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) राष्ट्रपति महोदयः आगन्तुकं कुत्र दृष्ट्वा प्रसन्नः?
(राष्ट्रपति महोदय आगन्तुक को कहाँ देखकर प्रसन्न हुए?)
(ii) राजेन्द्र प्रसाद महोदयः आगन्तुकस्य कौतूहलं विज्ञाय तस्मै किं सम्बोधयत?
(राजेन्द्र प्रसाद जी ने आगन्तुक के कुतूहल को जानकर उसको क्या संबोधित किया?)
(iii) अतिथि महोदयः किं ज्ञातुम् ऐच्छत्? (अतिथि महोदय क्या जानना चाहते थे?)
उत्तरम् :
(i) तं पूजागृहे स्थितं दृष्ट्वा राष्ट्रपति महोदयः प्रसन्नः अभवत् ?
(उसे पूजागृह में बैठा देखकर राष्ट्रपति महोदय प्रसन्न हो गये।)
(ii) एतत्मृतपिण्डं भारतस्य भूम्याः प्रतीकम् अस्ति, एतेन भारतीया अन्न सम्पदां प्राप्नुवन्ति अतः वयं मृत्कणेषु ईश्वरस्य दर्शनं कुर्मः। (यह मिट्टी का पिण्ड भारतभूमि का प्रतीक है। इससे भारतीय अन्न सम्पदा को प्राप्त करते हैं। अतः हम मिट्टी के कणों में ईश्वर के दर्शन करते हैं।
(iii) अतिथि महोदयः ज्ञातुमैच्छत् यत् राष्ट्रपति महोदयः कथं करोति पूजाम्?
(अतिथि महोदय जानना चाहते थे कि राष्ट्रपति महोदय कैसे पूजा करते हैं?)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
ईश्वरः सर्वव्यापकः। (ईश्वर सर्वव्यापक है।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
एक: वैदेशिकः राष्ट्रपतेः डॉ. राजेन्द्र प्रसादस्य गृहम् आगच्छत्। तदा सः पूजां करोति स्म। परिचायक प्रतीक्षितुं न्यवेदयतः परञ्च सः तस्य पूजा विधि दृष्टुम् इच्छति स्म अतः पूजा गृहं प्रविष्ट, पूजाविधौ सम्पन्ने आगतः राष्ट्रपतिम् अपृच्छत् महोदय! किमिदं मृत्पिण्डम् त्वं पूजयसि? मित्र! एष भारत भूम्याः प्रतीकमस्ति। एषा भारतीया मृदा एव भारतीयेभ्यः अन्नादिकं प्रदाय उदरं पूरयति पालयति च। वयं भारतस्य सर्वेषु वस्तुषु ईश्वरस्य सत्तां पश्यामः। अतः ईश्वरः सर्वव्यापकः।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘प्राप्नुवन्ति’ अस्याः क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति –
(अ) अन्नात्मिकां
(ब) सम्पदाम्
(स) भारतीयाः
(द) महती
उत्तरम् :
(स) भारतीयाः

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(ii) ‘भावम्’ इति विशेष्यस्य अत्र विशेषण पदम् अस्ति –
(अ) आगन्तुकस्य
(ब) ललाटे
(स) विद्यमानम्
(द) भावम्
उत्तरम् :
(स) विद्यमानम्

(iii) ‘मृत्पिण्डं दृष्ट्वा सोऽवन्दत’ अत्र सः इति सर्वनाम पदं प्रयुक्तम्
(अ) राजेन्द्र प्रसादः
(ब) परिचायकः
(स) आगन्तुकः
(द) वैदेशिक:
उत्तरम् :
(द) वैदेशिक:

(iv) ‘तं दृष्ट्वा प्रसन्नः अभवत् अत्र ‘प्रसन्न’ शब्दस्य विलोमपदम् अस्ति
(अ) अप्रसन्नः
(ब) दृष्ट्वा
(स) प्रसन्नः
(द) अभवत्।
उत्तरम् :
(अ) अप्रसन्नः

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14. षट् कारणानि श्रियं विनाशयन्ति। प्रथमं कारणम् अस्ति असत्यम्। यः नरः असत्यं वदति तस्य कोऽपि जन: विश्वासं न करोति। निष्ठुरता अस्ति द्वितीयं कारणम्। उक्तं च – सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।’ तृतीयं कारणं अस्ति कृतघ्नता। जीवने अनेके जनाः अस्मान् उपकुर्वन्ति। प्रायः जनाः उपकारिण विस्मरन्ति, प्रत्युपकारं न कुर्वन्ति। एतादृशः स्वभावः कृतघ्नता इति उच्यते। आलस्यम् अपरः महान् दोषः, ‘आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।’ अहंकारः मनुष्या मतिं नाशयति। अहङ्कारी मनुष्यः सर्वदा आत्मप्रसंशाम् एव करोति। न कदापि कस्यचित् उपकारं करोति व्यसनानि अपि श्रियं हरन्ति। ये मद्यपानं कुर्वन्ति तेषाम् आत्मबलं, बुद्धिबलं, शारीरिक बलं च नश्यति। अतः बुद्धिमान् एतान् दोषान् सर्वथा त्यजेत्।

(छ: कारण लक्ष्मी के विनाशक होते हैं। पहला कारण है असत्य। जो मनुष्य झूठ बोलता है उसका कोई विश्वास नहीं करता। निष्ठुरता दूसरा कारण है। कहा भी गया है- सत्य बोलना चाहिए (परन्तु) प्रिय या मधुर सत्य ही बोलना चाहिए। अप्रिय (कटु) सत्य भी नहीं बोलना चाहिए। तीसरा कारण है- कृतघ्नता। जीवन में अनेक लोग हमारा उपकार करते हैं। प्रायः लोग उपकारी को भूल जाते हैं, उसके बदले में उसका उपकार नहीं करते हैं। इस प्रकार का स्वभाव कृतघ्नता कहलाता है। आलस्य एक अन्य महान् दोष है। आलस्य मनुष्यों का शरीर में ही स्थित महान् शत्रु हैं। अहंकार (घमंड) मनुष्य की मति को नष्ट करता है। अहंकारी मनुष्य हमेशा आत्मप्रशंसा ही करता है। कभी किसी का उपकार नहीं करता है। दुर्व्यसन भी लक्ष्मी का हरण करते हैं, जो लोग मद्यपान करते हैं उनका आत्म-बल, बुद्धिबल और शारीरिक बल नष्ट हो जाता है। अतः बुद्धिमान को ये दोष हमेशा त्याग देने चाहिए।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कति कारणानि श्रियं विनाशयन्ति ?
(कितने कारण लक्ष्मी का विनाश करते हैं?)
(ii) लक्ष्मी विनाशस्य किं प्रथम कारणम्?
(लक्ष्मी विनाश का पहला कारण क्या है?)
(iii) कीदृशं सत्यं ब्रूयात् ?
(कैसा सत्य बोलना चाहिए?)
(iv) मनुष्याणां कः शरीरस्थो रिपुः?
(मनुष्यों के शरीर में स्थित शत्रु कौन है?)
उत्तरम् :
(i) षड्
(ii) असत्यम्
(iii) प्रियम्
(iv) आलस्यम्।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) असत्य वादनेन का हानिः?
(असत्य बोलने से क्या हानि है?)
(ii) कीदृशाः जनाः कृतघ्नाः भवन्ति?
(कैसे मनुष्य कृतघ्न होते हैं?)
(iii) मद्यपानं किं किं हरति?
(मद्यपान क्या-क्या हरण करता है?)
उत्तरम् :
(i) यः असत्यं वदति तस्य कोऽपि विश्वासं न करोति।।
(जो झूठ बोलता है उस पर कोई विश्वास नहीं करता है।)
(ii) यो जनाः उपकारिणं विस्मरन्ति प्रत्युपकारं न कुर्वन्ति ते कृतघ्नाः भवन्ति।
(जो लोग उपकारी को भूल जाते हैं तथा बदले में उपकार नहीं करते, वे कृतघ्न होते हैं।)
(ii) मद्यपानं मानवस्य आत्मबलं, बुद्धिबलं शारीरिकं बलं च हरति।
(मद्यपान मानव के आत्मबल, बुद्धिबल और शारीरिक बल को हर लेता है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
षड्दोषान् वर्जयेत्। (छः दोषों को त्यागना चाहिए।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
षट् कारणानि श्रियं विनाशयन्ति असत्यात् न तस्मिन् कोऽपि विश्वसिति निष्ठुरता प्रियताम्, कृतघ्नता प्रत्युपकारं
विस्मारयति, आलस्यं मानवस्य महान् शत्रुः अहंकारश्च मानवस्य मतिं नाशयति आत्मश्लाघां करोति परहितम् अकृत्वा व्यसनेषु पतित्वा आत्मबलं, बुद्धिबलं शारीरिक शक्ति च नश्यति। त्याज्याः एते दोषाः।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘…..प्रत्युपकारं न कुर्वन्ति’ अत्र ‘कुर्वन्ति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ) अहंकारिणः जनाः
(ब) व्यसनिनः
(स) कृतघ्नजनाः
(द) अलसाः जना।
उत्तरम् :
(स) कृतघ्नजनाः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘प्रथमं कारणम्’ इत्यनयोः विशेषणपदमस्ति –
(अ) प्रथमम्
(ब) कारणम्
(स) अस्ति
(द) असत्यम्
उत्तरम् :
(अ) प्रथमम्

(iii) ‘तस्य कोऽपिजनः विश्वासं न करोति’ अत्र ‘तस्य’ सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) असत्य वादिनः नरस्य
(ब) कृतघ्नस्य
(स) निष्ठुरस्य
(द) अलसस्य।
उत्तरम् :
(अ) असत्य वादिनः नरस्य

(iv) ‘अहङ्कारः मनुष्यस्य मतिं नाशयति’ ‘मतिं’ शब्दस्य पर्यायपदमस्ति
(अ) अहङ्कारः
(ब) मनुष्यस्य
(स) मतिम्
(द) बुद्धिं
उत्तरम् :
(द) बुद्धिं

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

15. अस्माकं देशस्य उत्तरस्यां दिशि पर्वतराजः हिमालयः अस्ति। अस्य पर्वतस्य श्रृंखला विस्तृता वर्तते। सः ‘पर्वतराज’ इति कथ्यते। संसारस्य उच्चतमः पर्वतः अस्ति। अयं सर्वदा हिमाच्छादितः भवति। सः भारतदेशस्य मुकुटमिव रक्षकः च अस्ति। अनेकाः नद्यः इतः एव निःसरन्ति। नदीषु पवित्रतमा गङ्गा अपि हिमालयात् एव प्रभवति। अनेकानि तीर्थस्थलानि हिमालय क्षेत्रे वर्तन्ते। वस्तुतः हिमालयः तपोभूमिः अस्ति। पुरा अनेके जनाः तत्र तपः कृतवन्तः।

अत्रत्यं वातावरणं मनोहरं शान्तं चित्ताकर्षकं च भवति। हिमालयस्य विविधाः वनस्पतयः ओषधिनिर्माणे उपर सन्ति। तत्र दुर्लभ रत्नानि मिलन्ति बहुमूल्यं काष्ठं च तत्र प्राप्यते। हिमालय क्षेत्रे बहूनि मन्दिराणि सन्ति। प्रतिवर्ष भक्ताः श्रद्धालयः, पर्यटनशीलाः जनाश्च मन्दिरेषु अर्चनां कुर्वन्ति, स्वास्थ्यलाभमपि प्राप्नुवन्ति। अस्य हिमालयस्य महत्वम् आध्यात्मिक-दृष्ट्या, पर्यावरण-दृष्ट्या भारतस्य रक्षा-दृष्ट्या च अपि वर्तते। अतः अयं पर्वतराजः हिमालयः अस्माकं गौरवम् अस्ति।

(हमारे देश की उत्तर दिशा में पर्वतराज हिमालय है। इस पर्वत की श्रृंखला विस्तृत है। वह ‘पर्वतराज’ कहलाता है। संसार का सबसे ऊँचा पर्वत है। यह हमेशा बर्फ से ढका रहता है। वह भारतदेश के मुकुट की तरह और रक्षक है। अनेक नंदियाँ इसी से निकलती हैं। नदियों में पावनतम गंगा भी हिमालय से ही निकलती है। हिमालय के क्षेत्र में अनेक तीर्थस्थल हैं। वास्तव में हिमालय तपोभूमि है। पहले अनेक लोग यहाँ तप किया करते थे।

यहाँ का वातावरण मनोहर, शान्त और चित्ताकर्षक है। हिमालय की विविध वनस्पतियाँ ओषधि बनाने में उपयोगी हैं। वहाँ दुर्लभ रत्न भी मिलते हैं। बहुमूल्य लकड़ी भी वहाँ प्राप्त होती है। हिमालय के क्षेत्र में बहुत से मन्दिर हैं। प्रतिवर्ष भक्त, श्रद्धालु और पर्यटनशील लोग मन्दिरों में अर्चना करते हैं, स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करते हैं। इस हिमालय का महत्व आध्यात्मिक, पर्यावरण और भारत की रक्षा की दृष्टि से भी है। अतः यह पर्वतराज हिमालय हमारा गौरव है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) अस्माकं देशस्य उत्तरस्यां दिशि किं नाम पर्वतः अस्ति ?
(हमारे देश की उत्तर दिशा में किस नाम का पर्वत है?)
(ii) हिमालय पर्वत श्रृंखला कीदृशी अस्ति?
(हिमालय पर्वत श्रृंखला कैसी है?)
(iii) भारतदेशस्य मुकुटमिव रक्षकः च कः ?
(भारत देश का मुकुट की तरह और रक्षक कौन है?
(iv) हिमालय कस्य भूमिः ?
(हिमालय किसकी भूमि है ?)
उत्तरम् :
(i) हिमालयः नाम
(ii) विस्तृता
(iii) हिमालयः
(iv) तपोभूमिः

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) काभि दृष्टिभिः हिमालयस्य महत्वम् अस्ति ?
(किन दृष्टियों से हिमालय का महत्व है?)
(ii) जनाः मन्दिरेषु किं कुर्वन्ति ?
(लोग मन्दिरों में क्या करते हैं?)
(ii) हिमालयस्य वातावरणं कीदृश अस्ति?
(हिमालय का वातावरण कैसा है?)
उत्तरम् :
(i) आध्यात्मिक-पर्यावरण-रक्षा दृष्टिभिः हिमालयः महत्वपूर्णः अस्ति।
(अध्यात्म, पर्यावरण-रक्षा की दृष्टि से हिमालय महत्वपूर्ण है।)
(ii) मन्दिरेषु अर्चनां कुर्वन्ति स्वास्थ्य लाभं च प्राप्नुवन्ति ।
(मंदिरों में पूजा करते हैं और स्वास्थ्य- लाभ प्राप्त करते हैं।)
(iii) हिमालयस्य वातावरणं मनोहरं, शान्तं, चित्ताकर्षकं च अस्ति।
(हिमालय का वातावरण मनोहर, शांत और चित्ताकर्षक है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पर्वतराज हिमालयः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारतस्य उत्तरस्यां दिशि हिमालयः अस्ति विस्तारात् पर्वतराजः, हिमाच्छादनात् हिमालय सर्वोच्चत्वात् भारतस्य
मुकुटमिव अस्य नद्यः पावनं जलं, वनानि औषधानि यच्छन्ति तीर्थानि पावनं कुर्वति। अनेकेषु देवालयेषुजनाः
स्वइष्टानाम् अर्चनां कुर्वन्ति। स्वास्थ्य एव आध्यात्मिक लाभेन सह भारत रक्षकोऽपि। भारत गौरवस्य प्रतीतोऽयम्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘तीर्थानि पावनं कुर्वति’ वाक्ये क्रियापदमस्ति –
(अ) तीर्थानि
(ब) पावन
(स) कुर्वति
(द) पवित्र
उत्तरम् :
(स) कुर्वति

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(ii) ‘श्रृंखला विस्तृता वर्तते’ अत्र विशेषण पदमस्ति?
(अ) श्रृंखला
(ब) विस्तृता
(स) वर्तते
(द) अस्य
उत्तरम् :
(ब) विस्तृता

(iii) ‘अस्य पर्वतस्य’ इत्यत्र ‘अस्य’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्
(अ) हिमालयस्य
(ब) आडावलस्य
(स) ऋष्यमूकस्य
(द) चित्रकूटस्य
उत्तरम् :
(अ) हिमालयस्य

(iv) ‘उद्भवति’ पदस्य पर्यायवाचिपदम् अनुच्छेदे अस्ति
(अ) प्रभवति
(ब) प्राप्यते
(स) प्राप्नुवन्ति
(द) वर्तते
उत्तरम् :
(अ) प्रभवति

16.लालबहादुर शास्त्रि-महोदयस्य नाम को न जानाति? भारतस्य द्वितीयः प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री उत्तरप्रदेशस्य वाराणसी जनपदे जन्म प्राप्तवान्। 1904 तमे ईसवीये वर्षे अक्टूबर मासस्य 2 दिनांक तस्य जन्म अभवत्। तस्य जनकस्य नाम शारदा प्रसादः मातुश्च नाम रामदुलारी आसीत्। बाल्यावस्थायामेव तस्य पितुः देहावसान जातम्। सः वाराणसीस्थे हरिश्चन्द्र विद्यालये, शिक्षा प्राप्तवान्। उच्च शिक्षा तु सः काशी विद्यापीठे गृहीतवान्। महात्मागान्धी महोदयस्य नेतृत्वे सञ्चालिते स्वतन्त्रता आन्दोलने सोऽपि प्रविष्टवान्। वर्षद्वयात्मकं कारावासम् अपि प्राप्तवान्। गुणैः जनतायाः श्रद्धाभाजनम् अभूत्। स्वतन्त्रभारते विविधानि पदानि अलङ्कुर्वन् असौ भारतस्य द्वितीयः प्रधानमन्त्री अभवत्। 1966 तमे ईसवीये वर्षे जनवरीमासस्य। 11 तमे दिनाङ्के तस्य देहावसानं जातम्।

(लालबहादुर शास्त्री महोदय का नाम कौन नहीं जानता। भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री ने उत्तरप्रदेश के वाराणसी जनपद में जन्म लिया। उनका जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 ईसवी वर्ष में हुआ। उनके पिताजी का नाम शारदाप्रसाद और माँ का नाम रामदुलारी था। बचपन में ही उनके पिताजी का देहावसान हो गया। उन्होंने वाराणसी स्थित हरिश्चन्द्र विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा उन्होंने काशी विद्यापीठ में ग्रहण की। महात्मा गांधी महोदय के नेतृत्व में संचालित स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी वे प्रविष्ट हुए। दो वर्ष का कारावास भी प्राप्त किया। गुणों से जनता के श्रद्धा-पात्र हो गये। स्वतन्त्र भारत में विविध पदों को अलंकृत करते हुए भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री हुए। 11 जनवरी सन् 1966 ईस्वी वर्ष में उका देहावसान हो गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भारतस्य द्वितीयः प्रधानमंत्री कः आसीत?
(भारत का द्वितीय प्रधानमंत्री कौन था?)
(ii) लालबहादुर शास्त्रिणः जन्म कदा अभवत्?
(लालबहादुर शास्त्री का जन्म कब हुआ?
(iii) लालबहादुर शास्त्रिणः पितुः नाम किमासीत्?
(लालबहादुर शास्त्री के पिताजी का नाम क्या था?)
(iv) शास्त्रिमहाभागः कस्मिन् जनपदे अजायता?
(शास्त्री जी किस जनपद में पैदा हुए?)
उत्तरम् :
(i) लालबहादुर शास्त्री
(ii) 2 अक्टूबर 1904
(iii) शारदा प्रसादः
(iv) वाराणसी जनपदे।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) लालबहादुर शास्त्रि महाभागः कदा दिवंगतः?
(लाल बहादुर शास्त्री कब दिवंगत हुए?)
(ii) शास्त्रि महाभागः कियत् कालं कारावासे अतिष्ठत्?
(शास्त्री जी कितने दिन कारावास में रहे?)
(iii) शास्त्रि महोदयस्य उच्चशिक्षा कुत्र अभवत्?
(शास्त्री जी की उच्च शिक्षा कहाँ हुई?)
उत्तरम् :
(i) 1966 तमे ईसवीये वर्षे जनवरी मासस्य एकादश दिवसे दिवंगतः।
(ii) सः वर्षद्वयात्मकं कारावासम् प्राप्तवान्।
(iii) शास्त्रि महाभागस्य उच्चशिक्षा काशी विद्यापीठे अभवत्।

प्रश्न 3.
अस्य अनच्छेदस्य उपयक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
लालबहादुर शास्त्री महाभागः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारतस्य द्वितीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री वाराणसी जनपदे 1904 तमे अक्टूबर मासे द्वितीये दिवसे जन्म लेभे। रामदुलारी शारदा प्रसादयोऽयं सुतः तत्रैव विद्यालयी शिक्षा प्राप्य उच्च शिक्षामसौ काशी विद्यापीठ प्राप्तवान्। स्वातन्त्र्य संग्रामे प्रविश्य सोऽपि वर्षद्वयात्मकं कारावासं प्राप्तवान्। गुणैः जनतायाः श्रद्धाभाजनमभवत्। स्वतन्त्र भारते विविधानि पदानि प्राप्यासौ प्रधनमन्त्री पदमलंकृतवान्। 11-1-1960 तमे देहावसानं जातम्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अभूत्’ इति क्रियापदस्य कर्ता अनुच्छेदानुसारमस्ति
(अ) शारदाप्रसादः
(ब) रामदुलारी
(स) लालबहादुर शास्त्री
(द) श्रद्धाभाजनम्
उत्तरम् :
(स) लालबहादुर शास्त्री

(ii) ‘उच्चशिक्षा’ इत्यनयो विशेषण पदमस्ति
(अ) उच्च
(ब) शिक्षा
(स) काशी
(द) विद्यापीठ
उत्तरम् :
(अ) उच्च

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(iii) ‘तस्य जन्म अभवत्’ तस्य सर्वनाम पदस्य स्थाने संज्ञापदं भवेत
(अ) शारदा प्रसादस्य
(ब) रामदुलार्याः
(स) लाल बहादुर शास्त्रिण
(द) भारतस्य
उत्तरम् :
(स) लाल बहादुर शास्त्रिण

(iv) ‘अलभत’ इति क्रियापदस्य पर्यायवाचिपदं अनुच्छेदे अस्ति –
(अ) प्राप्तवान्
(ब) अभवत्
(स) गृहीतवान्
(द) अभूत
उत्तरम् :
(अ) प्राप्तवान्

17. गौः भारतीय-संस्कृतेः प्रधानः पशुः अस्ति। वेदेषु-शास्त्रेषु इतिहासे लोकमान्यतायां च सर्वत्र अस्याः विषये श्रद्धापूर्ण वर्णनं प्राप्यते। भारते गौः माता इव पूज्या भवति। यथा माता स्व-दुग्धेन शिशून् पालयति तथैव गौ अपि दुग्ध धृतादिदानेन अस्माकं शरीरं बुद्धिं च पोषयति। भारतवासिनः जनाः आदरेण श्रद्धया चं गोपालनं कुर्वन्ति। गौः अस्माकं कृते बहु उपयोगिनी अस्ति। सा अस्माकं कृते दुग्धं ददाति। तेन दुग्धेन दधि तक्रं मिष्ठान्नं घृतमादि निर्माय तस्य सेवनेन च वयं स्वस्थाः पुष्टाः भवामः। गावः अस्माकं क्षेत्राणि कर्षन्तिं। येन कृषिकार्यं प्रचलति। तस्य गोमयस्य इन्धनरूपेण प्रयोगः भवति। गोमयस्य, गोमूत्रस्य च उपयोगः औषधिनिर्माणे, सुगन्धवर्तिका निर्माणे, कीटनाशक द्रव्य निर्माणे इत्यादिषु कर्मसु भवति। एवं प्रकारेण गावः मानवानां सर्वदैव उपकारं कुर्वन्ति।

(गाय भारतीय संस्कृति का प्रधान पशु है। वेदों, शास्त्रों, इतिहास और लोकमान्यता में सब जगह इसके विषय में श्रद्धापूर्ण वर्णन प्राप्त होता है। भारत में गाय माता की तरह पूजी जाती है। जैसे माता अपने दूध से शिशुओं को पालती है उसी प्रकार गाय भी दूध-घी आदि देकर हमारे शरीर और बुद्धि का पोषण करती है। भारतवासी लोग आदर और श्रद्धा से गोपालन करते हैं। गाय हमारे लिए बहुत उपयोगी होती है। वह हमारे लिये दूध देती है। उस दूध से दही, छाछ, मिठाई, घी आदि बनाकर उसके सेवन से हम स्वस्थ और पुष्ट होते हैं। गायें (बैल) हमारे खेतों को जोतते हैं जिससे कृषिकार्य चलता है। उसके गोबर का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है। गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग औषधि निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, कीटनाशक निर्माण आदि कार्यों में होता है। इस प्रकार से गायें मानवों का सदैव उपकार करती हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भारतीय संस्कृतेः प्रधानपशुः कः?
(भारतीय संस्कृति का प्रधानपशु कौन है?)
(ii) भारतं गौः केषु पूज्यते?
(भारत में गौ किसकी तरह पूजी जाती है?)
(iii) गौः अस्माकं कृते किं ददाति?
(गाय हमारे लिए क्या देती है?)
(iv) गावः सर्वत्र कीदृशं वर्णनम् प्राप्यते?
(गाय का सब जगह कैसा वर्णन मिलता है?)
उत्तरम् :
(i) गौः
(ii) मातेव
(iii) दुग्धम्
(iv) श्रद्धापूर्णम्।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) गोमयस्य गोमूत्रस्य च प्रयोगः कुत्र भवति?
(गोबर और गोमूत्र का प्रयोग कहाँ होता है?)
(ii) धेनोः गोमस्य केन रूपेण प्रयोगः भवति?
(गाय के गोबर का किस रूप में प्रयोग होता है?)
(iii) गौः अस्मान् कथं पोषयति? (गाय हमारा पोषण कैसे करती है?)
उत्तरम् :
(i) औषधि निर्माण, सुगन्धवर्तिका निर्माणे, कीटनाशक द्रव्य निर्माणे इत्यादिषु गोमयस्य गोमूत्रस्य च प्रयोगः भवति।
(औषधि-निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, कीटनाशक द्रव्य निर्माण इत्यादि में गोमय और गौमूत्र का प्रयोग होता है।)
(i) धेनो गोमयम् इन्धनरूपेण प्रयुज्यते।
(गाय के गोबर का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है।)
(iii) यथा माता शिशून स्वदुग्धेन पालयति तथैव गौः दुग्धघृतादि दानेन अस्माकं शरीरं बुद्धिं च पोषयति।
(जैसे माता अपने दूध से बालक को पालती है, उसी प्रकार गाय दूध, घी देकर हमारे शरीर व बुद्धि का पोषण करती है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
गावः महत्वम् (गाय का महत्व)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
गौः भारतीय संस्कृतेः प्रधानः पशु। संस्कृत साहित्ये गौः मातेव पूज्या प्रतिष्ठापिता। सा मातेव दुग्धादिभिः पौष्टिक पदार्थैः शिशून् बालान् च पालयति। तस्या दुग्धेन दधि, तक्र, घृतं, नवनीतादयः प्राप्यन्ते। तस्य सेवनेन मानवः हृष्ट-पुष्टश्च भवति। तस्य पञ्चगव्योऽपि औषधिरूपेण हितकरः। गोमयः इंधन रूपेण प्रयुज्यते। धेनो पञ्चगव्यं . पवित्रं, कीटनाशकं, रोगावरोधक पावनं च भवति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘घृतस्य सेवनेन कः लाभः भवति?’ अत्र भवति क्रियापदस्य कर्ता अस्ति –
(अ) घृतस्य
(ब) सेवनेन
(स) कः
(द) लाभ:
उत्तरम् :
(द) लाभ:

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(ii) ‘पूज्या गौः’ अत्र विशेषणपदमस्ति
(अ) पूज्याः
(ब) गौःर्जा
(स) धेनुः
(द) पूज्याः गौ
उत्तरम् :
(अ) पूज्याः

(iii) ‘सा अस्माकं कृते दुग्धं ददाति’ अत्र ‘सा’ इति सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) माता
(ब) गौः
(स) महिषी
(द) अजा
उत्तरम् :
(ब) गौः

(iv) ‘धेनुः’ इति पदस्य स्थाने गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
(अ) गौः
(ब) पशु
(स) माता
(द) गो
उत्तरम् :
(ब) पशु

18. अद्य औद्योगिक विकासात् नगराणां विकासात् च जायते पर्यावरण प्रदूषितम्। अतः अद्य नागरिकाणां कर्त्तव्यमस्ति यद् वयं पर्यावरण संरक्षणार्थ प्रयत्नं कुर्मः तत्कृते वयं स्वच्छतां च धारयामः। महात्मागांधि महोदयस्यापि स्वच्छतोपरि विशेषः आग्रहे आसीत्। साम्प्रतमपि सर्वकारेण ‘स्वच्छ भारताभियानम्’ प्रचालितम्। तस्योद्देश्यमपि पर्यावरणस्य संरक्षण अस्ति। एवमेव नदीतडागवापीनां जलस्य स्वच्छतायाः प्रेरणा वयं ‘नमामि गड़े’ इति अभियानेन ग्रहीतुं शक्नुमः। वयम् अस्मिन् अभियाने सहभागितां च कृत्वा भारतस्य नवस्वरूपं प्रकटीकर्तुं शक्नुमः। एतस्य कृते वयं अवकरस्य समुचितं निस्तारणं कुर्मः। जनान् शौचालय निर्माणाय प्रेरणाय। जलाशयेषु स्वच्छतामाचरामः सार्वजनिक स्थानेषु प्रदूषणं न कुर्मः। प्रदूषणकराणां पदार्थानां प्रयोगं न कुर्मः। जनजागरणे सहायतां कुर्मः।

(आज औद्योगिक और नगरों के विकास से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। अतः आज नागरिकों का कर्त्तव्य है कि हम पर्यावरण-संरक्षण का प्रयत्न करें। उसके लिए हम सफाई रखें। महात्मा गांधी का भी स्वच्छता के ऊपर बहुत आग्रह था। अब भी सरकार द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान चलाया गया है। उसका उद्देश्य भी पर्यावरण का संरक्षण ही है। इसी प्रकार नदी, तालाव, बावड़ियों के जल की स्वच्छता की प्रेरणा हम ‘नमामि गंगे’ अभियान से ले सकते हैं और हम इस अभियान में सहभागिता करके भारत का नया स्वरूप प्रकट कर सकते हैं। इसके लिए हम कूड़े का उचित निस्तारण करें, लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करें। जलाशयों में स्वच्छता रखें, सार्वजनिक स्थानों पर प्रदूषण न करें। प्रदूषण करने वाले पदार्थों का प्रयोग न करें। जनजागरण में सहायता करें।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) पर्यावरणस्य संरक्षणार्थं वयं किं धारयामः?
(पर्यावरण के संरक्षण के लिए हम क्या धारण करें?)
(ii) सर्वकारेण किम् अभियान सञ्चालितम् ?
(सरकार द्वारा क्या अभियान चलाया जा रहा है?)
(ii) स्वच्छभारत अभियानस्य किमुद्देश्यम्?
(स्वच्छ भारत अभियान का क्या उद्देश्य है?)
(iv) स्वच्छतायाः प्रेरणा के ग्रहीतुं शक्यते?
(स्वच्छता की प्रेरणा किससे ली जा सकती है?)
उत्तरम् :
(i) स्वच्छताम्
(ii) स्वच्छभारताभियानम्
(ii) पर्यावरणसंरक्षणम्
(iv) ‘नमामि गङ्गे’ इति अभियानात्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) पर्यावरण प्रदूषणं कस्मात् जायते?
(पर्यावरण प्रदूषण किससे पैदा होता है?)
(ii) नागरिकाणां किं कर्त्तव्यम् अस्ति?
(नागरिकों का क्या कर्त्तव्य है?)
(iii) महात्मागान्धिनः अपि कस्योपरि विशेष आग्रहः आसीत्?
(महात्मा गाँधी का किस पर विशेष आग्रह था?)
उत्तरम् :
(i) औद्योगिक विकासात् नगराणां च विकासात् पर्यावरण प्रदूषणं जायते।
(औद्योगिक विकास से और नगरों के विकास से पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न होता है।)
(ii) नागरिकाणां कर्त्तव्यम् अस्ति पर्यावरण संरक्षणार्थं प्रयत्न कुर्वन्तु ।
(पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयत्न करना नागरिकों का कर्तव्य है।)
(iii) महात्मागान्धिन स्वच्छतायाः उपरि विशेष आग्रह आसीत्।
(महात्मा गांधी का स्वच्छता के ऊपर विशेष आग्रह था।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पर्यावरण संरक्षणम्।

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प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
औद्योगिक विकासेन सदैवं पर्यावरण प्रदूषणं वर्धते। पर्यावरण रक्षणं नागरिकानां कर्त्तव्यम् अस्ति। पर्यावरण संरक्षण उद्देश्येन एव स्वच्छता, अभियानमपि सर्वकारेण सञ्चालितम् अस्ति। जलाशयानां जल-संरक्षणम् अपि नमामि गंगेन अभियानेन प्रवर्तते। एतस्य कृते अवकरस्य निस्तारणं करणीयम्। शौचालयानां निर्माण करणीयम्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘प्रयोग न कुर्मः’ अत्र ‘कुर्मः’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति –
(अ) प्रदूषणकराणाम्
(ब) पदार्थानाम्
(स) वयम्
(द) प्रयोगम्
उत्तरम् :
(स) वयम्

(ii) ‘स्वच्छभारतम्’ इत्यनयो विशेषणपदम् अस्ति –
(अ) स्वच्छ
(ब) भारतम्
(स) साम्प्रतम्
(द) सर्वकारेण
उत्तरम् :
(अ) स्वच्छ

(iii) ‘तस्योद्देश्यमपि’ अत्र ‘तस्य’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) नमामि गङ्गे
(ब) स्वच्छ भारताभियानम्
(स) शौचालय निर्माणम्
(द) अवकर निस्तारणम्।
उत्तरम् :
(ब) स्वच्छ भारताभियानम्

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(iv) ‘अधुना’ इति पदस्य पर्यायवाचिपदं गद्यांशेऽस्ति –
(अ) अद्य
(ब) साम्प्रतम्
(स) आग्रहे
(द) अभियाने
उत्तरम् :
(ब) साम्प्रतम्

19. हृद्यया मनोरमया च रीत्या राज्यधर्मस्य लोकव्यवहारस्य च शिक्षार्थमेव पञ्चतन्त्रं प्रवृत्तम्। विष्णु शर्मणा संस्कृत भाषया लिखिताः पञ्चतन्त्र कथा: जगतः सर्वाधिक भाषासु अनूदिताः सन्ति। विष्णुशर्मा अमरशक्ति नामकस्य नृपस्य त्रीन् पुत्रान् षड्भिः मासै: राजनीतिं शिक्षायितुम् ग्रन्थमिमं रचितवान्। षष्ठ शताब्द्यां लिखितोऽयं ग्रन्थः अतीव लोकप्रियः वर्तते। अस्य कथा: नीतिं शिक्षयन्त्यः मनोरञ्जनमपि कुर्वन्ति पाठकानाम्। पञ्चतन्त्राणां नामानि मित्रभेदः मित्रसम्प्राप्तिः, काकोलूकीयः लब्धप्रणाशः, अपरिक्षित कारकञ्चं सन्ति। पञ्चतन्त्रस्य कथासु पशुपक्ष्यादीनि एव पात्राणि सन्ति तथापि तेषां माध्यमेन सर्वसाधरणोपयोगिनः व्यवहार-ज्ञानस्य मनोहररीत्या अत्र वर्णनं कृतम्।

(हार्दिक और मन को अच्छी लगने वाली रीति से राजधर्म और लोक-व्यवहार की शिक्षा के लिए पंचतन्त्र प्रवृत्त हुआ। विष्णु शर्मा द्वारा संस्कृत भाषा में लिखे गये पंचतन्त्र की कथायें संसार में सबसे अधिक भाषाओं में अनूदित हैं। विष्णु शर्मा ने अमरशक्ति नाम के राजा के तीन पुत्रों को छ: महीने में राजनीति को सिखाने के लिए इस ग्रन्थ को रचा। छटी शताब्दी में लिखा गया यह ग्रन्थ अत्यन्त लोकप्रिय है। इसकी कथाएँ पाठकों की नीति सिखाती हुई मनोरञ्जन भी करती हैं। पंचतन्त्रों के नाम हैं- मित्र भेद, मित्र सम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्ध प्रणाश तथा अपरीक्षित कारक। पंचतन्त्र की कथाओं में पशु-पक्षी आदि ही पात्र हैं। फिर भी उनके माध्यम से सर्व-साधारण के उपयोगी व्यावहारिक ज्ञान का मनोहर रीति से यहाँ वर्णन किया गया है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति ग्रन्थं केन रचितम्?
(पंचतन्त्र ग्रंथ की रचना किसने की?)
(ii) विष्णुशर्मा कस्य नृपस्य पुत्रान् पाठितवान्?
(विष्णु शर्मा ने किस राजा के पुत्रों को पढ़ाया?)
(iii) पञ्चतन्त्रम् कति तन्त्राणि सन्ति?
(पंचतन्त्र में कितने तन्त्र हैं?)
(iv) अमरशक्तिः नृपस्य कति पुत्रा आसन्?
(अमर शक्ति राजा के कितने पुत्र थे?)
उत्तरम् :
(i) विष्णुशर्माणा
(ii) अमरशक्तेः
(iii) पञ्च
(iv) त्रयः।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) पञ्चतन्त्राणाम् नामानि लिखत।
(पाँच तन्त्रों के नाम लिखिए।)
(ii) पञ्चतन्त्राणाम् ख्यातिः किं प्रमाणम्?
(पंचतन्त्र की ख्याति का क्या प्रमाण है?)
(ii) पञ्चतन्त्रं कदा लिखितम?
(पंचतंत्र कब लिखा गया?)
उत्तरम् :
(i) मित्रभेदः, मित्र सम्प्राप्तिः, काकोलूकीयः, लब्धप्रणाशः अपरीक्षित कारकञ्चेति पञ्चतन्त्राणां नामानि।
(मित्र सम्प्राप्ति, काकोलूकीयः, लब्ध प्रणाशः और अपरीक्षित कारक ये पाँच तंत्रों के नाम हैं।)
(ii) जगतः सर्वाधिक भाषासु अनूदितः इति अस्य ख्यातिः प्रमाणम्।।
(संसार की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ, यह इसकी ख्याति का प्रमाण है।)
(iii) पञ्चतन्त्रं नामग्रन्थं षष्ठ शताब्दयां रचितम्।
(पञ्चतन्त्र नामक ग्रंथ छठवीं शताब्दी में रचा गया।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पञ्चतन्त्रम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
पं. विष्णु शर्मणः संस्कृत भाषया लिखितम् पञ्चतन्त्र-नाम ग्रन्थं बालानां कृते लिखितम्। अस्य कथाः सर्वासु प्रमुखासु भाषासु अनूदिताः। आभिः कथाभिः षड्मासे एक राजनीतिज्ञाः कृताः। अस्य कथाः नीति, राजनीति कूटनीतिं च शिक्षन्ति। अस्य पञ्चतन्त्राणि सन्ति-मित्रभेदः, मित्रसम्प्राप्तिः, काकोलूकीयः लब्ध प्रणाश: अपरीक्षित कारकञ्च। अस्य कथानां पात्राणि प्रायः जन्तवः एव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अनूदिताः सन्ति’ सन्ति क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) तन्त्राणि
(ब) कथाः
(स) पात्राणि
(द) भाषासु
उत्तरम् :
(ब) कथाः

(ii) ‘ग्रन्थः अतीव लोकप्रियः वर्तते’ एतेषु पदेषु विशेषणपदम् अस्ति –
(अ) ग्रन्थः
(ब) अतीव
(स) लोकप्रिय
(द) वर्तते
उत्तरम् :
(स) लोकप्रिय

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iii) ‘अस्य कथाः’ अत्र ‘अस्य’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञायाः स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) विष्णु शर्मणः
(ब) पञ्चतन्त्रस्य
(स) मित्रभेदस्य
(द) काकोलूकीयस्य
उत्तरम् :
(ब) पञ्चतन्त्रस्य

(iv) ‘संसारस्य’ इति पदस्य अनुच्छेद पर्यायवाचि पदम् अस्ति
(अ) लोक व्यवहारस्य
(ब) जगत:
(स) लोकप्रियः
(द) व्यवहारज्ञानं
उत्तरम् :
ब) जगत:

20. एतद्विज्ञानस्य युगमस्ति। मानव जीवनस्य प्रत्येकस्मिन् क्षेत्रे विज्ञानमस्माकं महदुपकारं करोति। शिक्षाया क्षेत्रे विज्ञानेन महती उन्नतिकृता। मुद्रण यन्त्रेण पुस्तकानि मुद्रितानि भवन्ति। समाचारपत्राणि च प्रकाश्यन्ते। दूरदर्शनमपि शिक्षायाः प्रभावोत्पादकं साधनस्ति। सूचनायाः क्षेत्रे तु अनेन क्रान्तिकारीणि परिवर्तनानि कृतानि। अनेन मनोरञ्जनेन सह देशविदेशानां वृत्तमपि ज्ञायते। सङ्गणकयन्त्रम् आकाशवाणी चापि एवस्मिन् कार्ये सहाय्यौ भवतः। विज्ञानेन अस्माकं यात्रा सुकराभवत्। शकटात् आरभ्य राकेटयानपर्यन्तं सर्वमेव विज्ञानेन एव प्रदत्तम्। भूभागे वयं वाष्पयानादिभिः विविधैः यानैः यथेच्छं भ्रमामः वायुयानेन आकाशे खगवत् विचरामः जलयानेन च जलचरैरिव प्रगाढे सागरे संतरामः। इदानीं तु चन्द्रलोकस्यापि यात्रा अन्तरिक्ष यानेन सम्भवति।

(यह विज्ञान का युग है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान हमारा महान् उपकार करता है। शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान ने महान उन्नति की है। छापेखाने से अनेकों पुस्तकें छपी हैं और समाचार-पत्र प्रकाशित किये जाते हैं। दूरदर्शन भी शिक्षा का प्रभावी साधन है। सूचना के क्षेत्र में इसने क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। इससे मनोरञ्जन के साथ-साथ देश-विदेश के समाचार भी जाने जाते हैं। कम्प्यूटर और आकाशवाणी भी इस विषय में सहायक हुई है। विज्ञान से हमारी यात्रा सरल हो गई है। बैलगाड़ी से लेकर राकेट तक सब कुछ विज्ञान द्वारा ही दिया गया है । धरती के भाग को हम रेलगाड़ी आदि विविध वाहनों से इच्छानुसार भ्रमण करते हैं। वायुयान से आकाश में पक्षी की तरह विचरण करते हैं तथा जलयान से जलचरों की तरह गहरे सागर में तैरते हैं। अब तो चन्द्रलोक की यात्रा भी अन्तरिक्ष यान से सम्भव है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कस्य युगमेतत्?
(यह किसका युग है?)
(ii) शिक्षायाः प्रभावोत्पादकं साधनं किमस्ति?
(शिक्षा का प्रभावोत्पादक साधन क्या है?)
(iii) सूचनायाः क्षेत्र केन क्रान्तिकारीणि परिवर्तनानि कृतानि?
(सूचना के क्षेत्र में किसने क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं?)
(iv) दूरदर्शनेन मनोरञ्जन सह किमन्यत् ज्ञायते?
(दूरदर्शन से मनोरंजन के साथ और क्या जाना जाता है?)
उत्तरम् :
(i) विज्ञानस्य
(ii) दूरदर्शनम्
(iii) दूरदर्शनेन
(iv) देशविदेशानां वृत्तम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) विज्ञानेन मानवस्य यात्रा कीदृशी जाता?
(विज्ञान से मानव की यात्रा कैसी हो गई?)
(ii) वृत्तज्ञाने दूरदर्शनस्य के सहायकाः भवन्ति?
(समाचार जानने में दूरदर्शन के सहायक कौन होते हैं?)
(iii) दूरदर्शनम् सूचनायाः क्षेत्रे किं कृतम्?
(दूरदर्शन ने सूचना के क्षेत्र में क्या किया?)
उत्तरम् :
(1) विज्ञानेन मानवस्य यात्रा सुकरा अभवत्।
(विज्ञान से मानव की यात्रा सरल हो गई है।)
(ii) सङ्गणक-आकाशवाणी चापि अस्मिन् वृत्तज्ञाने सहाय्यौ भवतः।
(कंप्यूटर और आकाशवाणी भी समाचार जानने में सहायक होते हैं।)
(iii) सूचनायाः क्षेत्रे तु दूरदर्शनेन क्रान्तिकारीणि परिवर्तनानि कृतानि।
(सूचना के क्षेत्र में तो दूरदर्शन ने क्रांतिकारी परिवर्तन किया है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
विज्ञानस्य महत्वम् (विज्ञान का महत्व)।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
अस्मिन् युगे विज्ञानस्य महती आवश्यकता वर्तते। शिक्षायाः क्षेत्रे मुद्रण, समाचार पत्राणि, दूरदर्शनं च प्रभावोत्पादकानि च साधनानि सन्ति। सूचना-मनोरञ्जनादिषु कार्येषु, सङ्गणकयन्त्रम् आकाशवाणी च सहाय्यौ भवतः। वाष्पयान, – वायुयान, जलयानादिभि वयं स्थले जले आकाशे च स्वैरं विचरामः। चन्द्रलोकस्यापि यात्रा सम्भवति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘सागरे सन्तरामः’ अत्र ‘सन्तरामः’ क्रियाया कर्ता अस्ति –
(अ) वयम्
(ब) वायुयानैः
(स) जलयानैः
(द) चन्द्रयानैः
उत्तरम् :
(अ) वयम्

(ii) ‘महदुपकारकम्’ इत्यनयोः पदयोः विशेषण पदं अस्ति
(अ) महत्
(ब) उपकारकम्
(स) विज्ञानम्
(द) अस्माकम्
उत्तरम् :
(अ) महत्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iii) ‘अनेन क्रान्तिकारीणि …..।’ अत्र ‘अनेन’ इति सर्वनाम पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) विज्ञानेन
(ब) दूरदर्शनेन
(स) आकाशवाण्या
(द) मुद्रणेन
उत्तरम् :
(ब) दूरदर्शनेन

(iv) ‘जले आकाशे च स्वैरं विचरामः” अत्र आकाशे पदस्य पर्यायपदमस्ति
(अ) जले
(ब) नभे
(स) आकाशे
(द) स्वैरं
उत्तरम् :
(ब) नभे

21. एकस्मिन् राज्ये एकः नृपः शासनं करोति स्म। तस्य अङ्गरक्षकः एकः वानरः आसीत्। वानरः स्वामिभक्तः आसीत्। नृपोऽपि तस्मिन् वानरे प्रभूतं विश्वासं करोति स्म। किन्तु वानरः मूर्खः आसीत्। एकदा नृपः सुप्तः आसीत्। वानरः तं व्यजनं करोति स्म। तस्मिन् समये नृपस्य वक्षस्थले एका मक्षिका अतिष्ठत। वानरः वारं-वारं तां मक्षिकाम् अपसारयितुं प्रायतत। परन्तु सा मक्षिका पुनः नृपस्य ग्रीवायाम् उपविशति स्म। मक्षिका दृष्ट्वा वानरः कुपितः अभवत्। मूर्ख वानरः मक्षिकायाः उपरि प्रहारम् अकरोत्। मक्षिका तु ततः उड्डीयते स्म। परञ्च खड्गप्रहारेण नृपस्य ग्रीवाम् अच्छिनत्। तेन नृपस्य मृत्युः अभवत्। अतः मूर्खस्य मित्रता घातिका भवति।

(एक राज्य में एक राजा शासन करता था। उसका अंगरक्षक एक बन्दर था। वानर स्वामिभक्त था। राजा भी उस बन्दर पर बहुत विश्वास करता था। किन्तु वानर मूर्ख था। एक दिन राजा सोया हुआ था। वानर उसे पंखा झुला रहा था। अर्थात् हवा कर रहा था। उसी समय राजा के वक्षस्थल पर एक मक्खी आ बैठी। वानर ने बार-बार उस मक्खी को हटाने (उड़ाने) का प्रयत्न किया। परन्तु वह मक्खी पुनः राजा की गर्दन पर बैठ गई। मक्खी को देखकर वानर नाराज हुआ। मूर्ख वानर ने मक्खी पर प्रहार किया। मक्खी तो वहाँ से उड़ गई परन्तु तलवार के प्रहार से राजा की गर्दन कट गई। उससे राजा की मृत्यु हो गई। अतः मूर्ख की मित्रता घातक होती है।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) नृपस्य अपरक्षकः कः आसीत्?
(राजा का अंगरक्षक कौन था?)
(ii) वानरः कीदशः आसीत् ?
(वानर कैसा था?)
(iii) नृपः कस्मिन् विश्वसिति स्म?
(राजा किस पर विश्वास करता था?)
(iv) एकदा सप्ते नपे वानरः किं करोति स्म?
(एक दिन राजा के सो जाने पर बन्दर क्या कर रहा था?)
उत्तरम् :
(i) वानरः
(ii) स्वामिभक्तः
(iii) वानरे
(iv) व्यजनं करोति

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) नृपस्य मृत्यु कथम् अभवत्? (राजा की मौत कैसे हो गई?)
(ii) मर्खस्य मित्रता कीदशी भवति? (मर्ख की मित्रता कैसी होती है?)
(iii) वानरः कुपितः कथमभवत्? (वानर नाराज क्यों हो गया?)
उत्तरम् :
(i) मक्षिका नृपस्य ग्रीवायाम् अतिष्ठत। वानरः ते अपसारयितुमैच्छत अतः खड्गेन प्रहारम् अकरोत् नृपः च हतः।
(मक्खी राजा की गर्दन पर बैठी। बन्दर ने उसे हटाने की इच्छा से तलवार से प्रहार किया और राजा मर गया।)
(ii) मूर्खस्य मित्रता घातिका भवति। (मूर्ख की मित्रता घातक होती है।)
(iii) ग्रीवायाम् उपविष्टां मक्षिका दृष्ट्वा वानरः कुपितः अभवत।
(गर्दन पर बैठी मक्खी को देखकर बंदर क्रोधित हो गया ।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
मूर्खस्य मित्रता घातिका।
(मूर्ख की मित्रता घातक है।)

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
कस्यचित् शासकस्य अङ्गरक्षकः वानरः आसीत्। स्वामिभक्त गुणात् सः नृपस्य विश्वासपात्रम् आसीत्, परञ्च सः मूर्खः आसीत्। एकदा नृपः शेते स्म। एका मक्षिका तस्य वक्षे उड्डीयते स्म। वानरः ताम् अपासरत् परञ्च न अपासरत्। सः क्रुद्ध सन् खड्गेन तस्योपरि प्रहारमकरोत् । तेन नृपः हतः ‘मूर्खस्य मैत्री घातिका भवति।’

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘नृपः शासनं करोति’ अत्रं ‘करोति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) वानरः
(ब) नृपः
(स) अङ्गरक्षकः
(द) मक्षिका
उत्तरम् :
(ब) नृपः

(ii) ‘क्रुद्धः वानरः’ अत्र विशेषणपदम् अस्ति –
(अ) क्रुद्धः वानरः
(ब) क्रुद्धः
(स) मर्कटः
(द) वानरः
उत्तरम् :
(द) वानरः

(iii) ‘वानरः तं व्यजनं करोति स्म’ अत्र ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(अ) वानरम्
(ब) नृपम्
(स) मक्षिकाम्
(द) ग्रीवाम्
उत्तरम् :
(ब) नृपम्

(iv) ‘जागृतः’ इति पदस्य विलोमपदं अनुच्छेद अस्ति –
(अ) कुपितः
(ब) घातिका
(स) सुप्तः
(द) स्थिता
उत्तरम् :
(स) सुप्तः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

22. जिवायाः माधुर्यं स्वर्ग प्रापयति, जिह्वायाः कटुता नरके पातयति। एक एव शब्दः जीवनं विभूषयेत्, अन्यः एकः शब्दः जीवनं नाशयेत। एकदा द्वयोः धनिनोः मध्ये विवादः उत्पन्नः जातः। तौ न्यायालयं गतौ। एक धनिकः अचिन्तयत् अहं लक्ष्यं रुप्यकाणि न्यायाधीशाय यच्छामि इति। सः स्यूते लक्ष रुप्यकाणि स्थापयित्वा न्यायाधीशस्य गृहम् गतवान्। न्यायाधीशः तस्य मन्तव्यं ज्ञात्वा क्रुद्धः अभवत्। धनिकः अवदत्-भोः मत् सदृशाः लक्षरुप्यकाणां दातारः दुर्लभा एव।” न्यायाधीशः अवदत् – “लक्षरुप्यकाणां दातारः कदाचित् अन्येऽपि भवेयुः परन्तु लक्ष रुप्यकाणां निराकारः मत्सदृशाः अन्ये विरला एवं अतः कृपया गच्छतु। न्याय स्थानं मलिनं मा कुरु। लज्जितः धनिकः धनस्यूत गृहीत्वा ततः निर्गतः।

(जिह्वा की मधुरता स्वर्ग प्राप्त करा देती है (तो) जिह्वा की कटुता नरक में गिरा सकती है। एक ही शब्द जीवन को विभूषित कर दे (तो) अन्य एक शब्द जीवन को नष्ट कर दे। एक बार दो धनवानों में विवाद हो गया। दोनों न्यायालय में गये। एक धनिक सोचता था- मैं लाख रुपये न्यायाधीश को दे देता हूँ। वह थैले में लाख रुपये रखकर न्यायाधीश के घर गया। न्यायाधीश उसके मन्तव्य को जानकर नाराज हो गया। धनिक बोला- अरे! मेरे समान लाख रुपयों के दाता दुर्लभ ही हैं। न्यायाधीश ने कहा- “लाख रुपयों के दाता कदाचिद् अन्य भी हों परन्तु लाख रुपयों को त्यागने वाले मेरे जैसे अन्य विरले ही होते हैं। अत: कृपया (यहाँ से) चले जाओ। न्याय के स्थान को मलिन (अपवित्र) मत करो।” शर्मिन्दा हुआ धनिक धन का थैला लेकर वहाँ से निकल गया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) धनिकः धनम् आदाय कस्य गृहं गतवान्?
(धनिक धन लेकर किसके घर गया।)
(ii) कस्याः कटुता नरके पातयति?
(किसका कड़वापन नरक में गिरा देता है?)
(ii) केषां निराकारः विरला एव?
(किसके मना करने वाले विरले ही होते हैं?)
(iv) एक एव शब्दः किं विभूषयेत?
(एक ही शब्द क्या विभूषित कर दे?)
उत्तरम् :
(i) न्यायाधीशस्य
(ii) जिह्वायाः
(iii) लक्षरुप्याकाणाम्
(iv) जीवनम्।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) कः न्याय स्थानं मलिनं कर्तुम् इच्छति स्म?
(कौन न्याय स्थान को मलिन करना चाहता था?)
(i) न्यायाधीशः किमर्थं क्रुद्धः अभवत्?
(न्यायाधीश क्यों नाराज हुआ?)
(iii) जिहवाया माधय॑स्य कटतायाः च का परिणतिः?
(जिहवा की मधुरता और कट्ता का क्या परिणाम होता है?)
उत्तरम् :
(i) धनिकः एक लक्षम् उत्कोचं दत्त्वा न्यायस्थानं मलिनं कर्तुम् इच्छति स्म।
(धनी एक लाख रुपये रिश्वत देकर न्यायस्थान को मलिन करना चाहता था।)
(ii) न्यायाधीशः धनिकस्य उत्कोच दानस्य मन्तव्यं ज्ञात्वा क्रुद्धेऽभवत्।
(न्यायाधीश धनी के धन दाव के मन्तव्य को जानकर क्रोधित हुआ।)
(iii) जिह्वायाः माधुर्यं स्वर्गं प्रापयति, कटुता च नरके पातयति।
(जिह्वा की मधुरता स्वर्ग प्राप्त कराती है और कटुता नरक।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
जिह्वायाः माधुर्यं स्वर्गं प्रापयति, कटुता च नरके पातयति।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
मनुष्यः मधुरैः वचनैः स्वर्ग कटुभि च नरकं प्राप्नोति। विवदमानौ धनिनौ न्यायालयं गतौ। तयोः एकः धनेन प्रभावितं कर्तुम् ऐच्छत्। अतः स्यूते लक्ष रुप्यकम् अनयत् परन्तु न्यायाधीशः तं श्रुत्वा क्रुद्धोऽभवत् लक्ष रुप्यकाणां च निराकरणम् अकरोत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘कुरु’ क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति –
(अ) न्यायाधीशः,
(ब) प्रथमः धनिकः
(स) द्वितीय धनिकः
(द) त्वम्
उत्तरम् :
(द) त्वम्

(ii) ‘लज्जितः’ इति पदं कस्य विशेषणम्?
(अ) प्रथमः धनिकः
(ब) द्वितीयः धनिकः
(स) न्यायाधीशः
(द) अन्यः
उत्तरम् :
(अ) प्रथमः धनिकः

(iii) ‘तौ न्यायालयं गतौ’ इति वाक्ये ‘तौ’ इति पदं काभ्याम् प्रयुक्तम्?
(अ) धनिकाय
(ब) द्वितीय धनिकाय
(स) धनिकाभ्याम्
(द) न्यायाधीशाय
उत्तरम् :
(स) धनिकाभ्याम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘अतः कृपया गच्छतु’ अत्र गच्छतु पदस्य विलोमपदं लिखत्। –
(अ) अत्रः
(ब) कृपयाः
(स) आगच्छतु
(द) गम्यताम्
उत्तरम् :
(स) आगच्छतु

23. भारते गुरु-शिष्य-परम्परा प्राचीना वर्तते। गुरोः सन्निधौ अनेके महापुरुषा अभवन्। अस्यां परम्परायाम् एक: प्रमुखः वर्तते समर्थ गुरु रामदास शिववीरयोः। यथा विवेकानन्दः परमहंसस्य आशीर्वादेन स्व जिज्ञासायाः समाधान प्राप्य देशस्य प्रतिष्ठा पुनः स्थापितवान तथैव शिवाजी महाराजः गुरोः सान्निध्ये मार्गदर्शनं प्राप्य स्वराज्यस्य स्थापनां कृतवान्। एतादृशानि अनेकानि उदाहरणानि भारते वर्तन्ते। वयमपि एतानि उदाहरणानि अनुसृत्य जीवने गुरोः महत्वं स्वीकृत्य स्वशिक्षकानां सम्मानं कुर्मः। गुरुं प्रति सम्मान प्रकटयितुं भारते गुरुपूर्णिमोत्सवः शिक्षक दिवसस्य च आयोजनं भवति। यथा विवेकानन्दः विश्वपटले भारतस्य श्रेष्ठतां स्वाचरणेन कृत्यैः ज्ञानेन च स्थापितवान्। सः भारतीय ज्ञानं संस्कृतिं च श्रेष्ठतमां मन्यते स्म। तथैव अनेके महापुरुषाः सन्ति ये विभिन्न प्रकारेण देशस्य गौरवं वर्धितवन्तः।

(भारत में गुरु-शिष्य परम्परा प्राचीन है। गुरु के सान्निध्य में अनेक महापुरुष हो गये, इस परम्परा में एक प्रमुख है समर्थ गुरु रामदास शिवाजी का। जैसे विवेकानन्द ने परमहंस के आशीर्वाद से अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त कर देश की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया उसी प्रकार शिवाजी महाराज ने गुरु के सान्निध्य में मार्गदर्शन प्राप्त कर स्वराज्य की स्थापना की। इस प्रकार के अनेक उदाहरण भारत में हैं। हम भी इन उदाहरणों का अनुसरण करके जीवन में गुरु के महत्व को स्वीकार कर अपने शिक्षकों का सम्मान करें। गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत में गुरुपूर्णिमा उत्सव और शिक्षक दिवस का आयोजन होता है। जिस प्रकार विवेकानन्द ने विश्वपटल पर भारत की श्रेष्ठता अपने आचरण, कृत्यों और ज्ञान से स्थापित की। वह भारतीय ज्ञान और संस्कृति को श्रेष्ठतम मानते थे। उसी प्रकार अनेक महापुरुष हैं, जिन्होंने विभिन्न प्रकार से देश के गौरव को बढ़ाया।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) गुरो सन्निधौ जनाः के अभवन्? (गुरु के सान्निध्य में लोग क्या हो गये?)
(ii) शिववीरस्य गुरोः किन्नाम आसीत्? (शिवाजी के गुरु का क्या नाम था?)
(iii) विवेकानन्दः कस्य शिष्यः आसीत्? (विवेकानंद किसके शिष्य थे?)
(iv) भारतीय संस्कृति कः श्रेष्ठतमा मन्यते स्म? (भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठतम किसने माना?)
उत्तरम् :
(i) महापुरुषाः
(ii) समर्थगुरु रामदास
(ii) रामकृष्ण परमहंसस्य
(iv) विवेकानन्द।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) विवेकानन्दः किं स्थापितवान्?
(विवेकानन्द ने क्या स्थापित किया?)
(ii) गुरु-शिष्य सम्मान प्रकटयितुं के महोत्सवाः आयोज्यन्ते?
(गुरु-शिष्य सम्मान प्रकट करने के लिए कौन से महोत्सव आयोजित किए जाते हैं?)
(ii) शिवाजी: गुरोः सान्निध्ये मार्गदर्शन प्राप्य किम् अकरोत?
(शिवाजी ने गुरु के सान्निध्य में मार्गदर्शन पाकर क्या किया?)
उत्तरम :
(i) देशस्य प्रतिष्ठा पुनः स्थापितवान्। (देश की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की।)
(ii) गुरु-शिष्य सम्मान प्रकटयितुं गुरुपूर्णिमा च शिक्षक दिवसयोः आयोजनं क्रियते।
(गुरु-शिष्य सम्मान प्रकट करने के लिए गुरुपूर्णिमा और शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है।)
(iii) स्वराज्यस्य स्थापनाम् अकरोत्। (स्वराज की स्थापना की।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
गुरु-शिष्य परम्परा/गुरोः महत्वम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारते गुरु-शिष्य परम्परा प्राचीना अस्ति। अनेके गुरु-शिष्याः अभवन्। ये भारतस्य नाम-प्रतिष्ठाम् अकुर्वन्
यथा – समर्थ गुरु रामदासः परमहंसश्च स्वाशीर्वादेन शिवराजं विवेकानन्दं च शिखरमगमयगताम्। एकानि अनेकानि उदाहरणानि सन्ति गुरुपूर्णिमादिषु अनेकेषु पर्वसु एवः परंपरा शिष्यैः वर्ध्यते। अस्माभिः अपि प्रवर्धनीया।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘कृतवान्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति
(अ) समर्थ गुरु रामदासः
(ब) रामकृष्ण परमहंस
(स) शिवाजी
(द) अहम्
उत्तरम् :
(स) शिवाजी

(ii) ‘परम्परा प्राचीना वर्तते’ एतेषु पदेषु विशेषणम् अस्ति
(अ) परम्परा
(ब) प्राचीना
(स) वर्तते
(द) भारते
उत्तरम् :
(ब) प्राचीना

(iii) ‘ज्ञातुमिच्छायाः’ इति पदस्य स्थाने अनुच्छेदे पदं प्रयुक्तम् –
(अ) सन्निधौ
(ब) परम्परा
(स) जिज्ञासायाः
(द) अनुसृत्य
उत्तरम् :
(स) जिज्ञासायाः

(iv) ‘नवीना’ इति पदस्य विलोमपदम् अस्ति –
(अ) परम्परा
(ब) प्रमुखा
(स) प्राचीना
(द) भारतीया
उत्तरम् :
(अ) परम्परा

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

24. अद्य स्वस्थं स्वच्छं पर्यावरणस्य आवश्यकता वर्तते। पर्यावरणस्य रक्षा धर्मसम्मतमेव अस्ति। इति अस्माकं ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। आवश्यकं वर्तते यद् वयं स्वजीवनं सन्तुलितं कुर्मः। प्रकृतेः संसाधनानां संरक्षणं कुर्मः। अपशिष्ट पदार्थानामवकरस्य वा निक्षेपण सावधानेन कुर्मः। अद्य प्रदूषणाद् निवारणार्थ सर्वकारेण महान्तः प्रयासाः क्रियन्ते। तेषु प्रयासेषु वयमपि सहभागिने: भवाम। अधिकाधिक वृक्षारोपणं तेषां संरक्षणंचं कुर्मः। प्राकृतिक जलस्रोतानां सुरक्षां कुर्मः। अनेन एव सौरोर्जायाः वायूर्जायाः च उपयोगं कुर्मः। सर्वत्र स्वच्छता च पालयामः। जीवमात्रस्य संरक्षणं कुर्मः। नदीतडागवापीना च स्वच्छतां स्थापयामः। ध्वनि विस्तारकयंत्राणां उपयोगं अवरोधयामः। पर्यावरणस्य महत्वमावश्यकतां च संस्मृत्य सर्वे वयं तस्य संरक्षणाय प्रयत्नं करिष्यामः। तर्हि विश्वः सुखी-सम्पन्नश्च भविष्यति। तदैव अस्माकं ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।’ कामना सफला भविष्यति।

(आज स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता है। पर्यावरण की रक्षा धर्मसम्मत है। ऐसा हमारे ऋषियों ने प्रतिपादन किया है। आवश्यक है कि हम अपना जीवन सन्तुलित करें। प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण करें। उच्छिष्ट पदार्थों अथवा कूड़े-करकट को सावधानी से फेंकें (डालें)। आज प्रदूषण के निवारण के लिए सरकार ने महान प्रयास किए हैं। उन प्रयासों में हम सभी सहयोगी हों। अधिकाधिक वृक्षों का आरोपण तथा संरक्षण करें। प्राकृतिक जलस्रोतों की सुरक्षा करें। इससे इस प्रकार सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा का उपयोग करें। सर्वत्र स्वच्छता का पालन करें। जीवमात्र का संरक्षण करें। नदी-तालाब और वावड़ियों में सफाई स्थापित करें। ध्वनि विस्तारक यन्त्रों का प्रयोग रोकें। पर्यावरण का महत्व और आवश्यकता के महत्व को याद कर हम सभी उसकी सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेंगे तो विश्व सुखी और समृद्ध होगा। तभी हमारा ‘सभी सुखी हों और नीरोग हों।’ की कामना सफल होगी।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) अद्य कीदृशस्य पर्यावरणस्य आवश्यकता वर्तते?
(आज कैसे पर्यावरण की आवश्यकता है?)
(ii) ‘पर्यावरणस्य रक्षा धर्मसम्मतमेक’ इति के प्रतिपादयन्ति।’
(‘पर्यावरण की रक्षा धर्मसम्मत ही है’ यह किसने प्रतिपादित किया है?)
(iii) कस्य ऊर्जायाः प्रयोगः कर्तव्यः?
(किस ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए?)
(iv) वयं स्वजीवनं कीदृशं कुर्मः?
(हम अ जीवन कैसा करें?)
उत्तरम् :
(i) स्वस्थं-स्वच्छं
(ii) ऋषयः
(iii) सौरोर्जायाः वायूर्जायाः च
(iv) सन्तुलितम्।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) अद्य कस्य आवश्यकता वर्तते?
(आज किसकी आवश्यकता है?)
(ii) जीवनस्य आवश्यकं किं वर्तते?
(जीवन के लिए आवश्यक क्या है?)
(ii) पर्यावरण-प्रदूषण-निवारणाय मानवेन किं करणीयम्? एकं कार्यं लिखत।
(पर्यावरण प्रदूषण निवारण के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? एक कार्य लिखिये।)
उत्तरम् :
(i) अद्य स्वस्थं-स्वच्छं पर्यावरणस्य आवश्यकता वर्तते।
(आज स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता है।)
(ii) आवश्यकं वर्तते यद् वयं स्व-जीवनं सन्तुलितं कुर्मः।
(आवश्यकता है कि हम अपने जीवन को संतुलित करें।)
(iii) अधिकाधिक वृक्षारोपण तेषां संरक्षणं च मानवेन करणीयम्।
(अधिकाधिक वृक्षारोपण, उनका संरक्षण मनुष्यों को करना चाहिए।)

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
पर्यावरणम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
पर्यावरण रक्षणं धर्मसम्मतम्। प्रकृते रक्षणं अपशिष्टस्य अपसारणं वृक्षारोपणं च करणीयाः कार्याः। जल-स्वच्छता पर्यावरण संरक्षणम् अस्माभि अवश्यमेव करणीयम्। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया इति इच्छा स्वस्थ पर्यावरणेन एक सम्भाव्या अस्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत- (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) वयम् सहभागिनः भवामः प्रयासेषु। अत्र ‘भवामः’ क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति
(अ) वयम्
(ब) सहभागिनः
(स) भवामः
(द) प्रयासेषु।
उत्तरम् :
(अ) वयम्

(ii) ‘स्वच्छ पर्यावरणम्’ अत्र किं पदं विशेष्यम्
(अ) स्वच्छ
(ब) पर्यावरणम्
(स) स्वच्छपर्यावरणम्
(द) अन्यत्
उत्तरम् :
(ब) पर्यावरणम्

(iii) ‘सर्वे भवन्त सखिनः’ अत्र ‘सर्वे’ कस्य पदस्य सर्वनामपदम वर्तते –
(अ) भवन्तु
(ब) सुखिन्
(स) प्राणिनाम्
(द) वृक्षानाम्
उत्तरम् :
(स) प्राणिनाम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘दुःखिनः’ इति पदस्य अनुच्छेदात् विलोम पदं लिखत
(अ) सन्तुलितं
(ब) सुखिनः
(स) सहभागिनः
(द) सम्पन्ना
उत्तरम् :
(ब) सुखिनः

25. अस्त्युज्जयिन्यां माधवो नाम विप्रः। एकदा तस्य भार्या स्वबालापत्यस्य रक्षार्थं तमवस्थाप्य स्नातुं गता। अथ ब्राह्मणो राज्ञा श्राद्धार्थे निमन्त्रितः। ब्राह्मणस्तु सहजदारिद्रयात् अचिन्तयत्-यदि सरवरं न गच्छामि तदान्यः कश्चित् श्राद्धार्थं वृतो भवेत्। परन्तु बालकस्य अत्र रक्षको नास्ति। तत् किं करोमि? भवतु चिरकाल पालितम् इयं पुत्रविशेष नकुलं बाल रक्षायां व्यवस्थाप्य गच्छामि। तथा कृत्वा सः गतः। ततः तेन नकुलेन बालसमीपम् उपसर्पन कृष्ण सर्पो दृष्टः। स तं व्यापाद्य खण्डशः कृतवान्। अत्रान्तरे ब्राह्मणोऽपि श्राद्धं कृत्वा गृहमुपावृतः ब्राह्मणं दृष्ट्वा नकुलो रक्त विलिप्त मुखपादः तच्चरणयोः अलुठत्। विप्रस्तथाविधं तं दृष्ट्वा बालकोऽनेन खादित इति अवधार्य कोपात् नकुलं व्यापादितवान्। अनन्तरं यावत उपसृत्यापत्यं पश्यति तावत् बालकः सर्पश्च व्यापादितः तिष्ठति। ततः तमोपकारकं नकुलं मृतं निरीक्ष्य आत्मानं मुषितं मन्यमानः ब्राह्मण परम विषादमगमत्।

(उज्जयिनी में एक माधव नाम का ब्राह्मण था। एक दिन इसकी पत्नी अपने छोटे बच्चे की रक्षा के लिए उसे रखकर स्नान करने चली गई। इसके बाद ब्राह्मण राजा द्वारा श्राद्ध के लिए निमन्त्रित कर लिया गया। ब्राह्मण स्वाभाविक रूप से दरिद्री होने के कारण सोचने लगा- यदि मैं जल्दी नहीं जाता हूँ तो दूसरा कोई श्राद्ध को ले जायेगा। परन्तु यहाँ बालक का कोई रक्षक नहीं है। तो क्या करूँ । खैर बहुत समय से पाले हुए इस. विशेष नेवला को बच्चे की रक्षा के लिए रखकर जाता हूँ। ऐसा ही करके वह गया। तब उस नेवले ने बालक के समीप रेंगता हुआ एक काला साँप देखा।

उस (नेवले) ने उसको मार कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इसके बाद ब्राह्मण भी श्राद्ध करके घर आ गया। ब्राह्मण को देखकर खून से लथपथ मुख वाला नेवला उसके पैरों में लोटने लगा। ब्राह्मण ने इस प्रकार के उसको देखकर ‘बालक को इसने खा लिया है।’ ऐसा समझकर क्रोध के कारण नेवले को मार दिया। इसके पश्चात् जब पास जाकर बालक को देखता है तो बालक अच्छी तरह तथा सर्प मरा हुआ पड़ा है। तब उस उपकार करने वाले नेवले को मरा हुआ देखकर अपने को ठगा मानता हुआ ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ।

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) उज्जयिन्यां किन्नाम विप्रः अस्ति?
(उज्जयिनी में किस नाम का विप्र है?)
(ii) एकदा तस्य भार्या कुत्र अगच्छत्?
(एक दिन उसकी पत्नी कहाँ गई?)
(iii) ‘नकुल रक्षायां व्यवस्थाप्य माधवः कुत्र अगच्छत्?
(नेवले को रक्षा व्यवस्था में छोड़कर माधव कहाँ गया?)
(iv) नकुलेन बालकस्य समीपे किं दृष्टम्?
(नेवले ने बच्चे के पास क्या देखा?)
उत्तरम् :
(i) माधवः
(ii) स्नातुम्
(iii) श्राद्धाय
(iv) कृष्णसर्पम्।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) “राज्ञः निमन्त्रणं प्राप्य किम् अचिन्तयत्?
(राजा के निमन्त्रण को पाकर ब्राह्मण ने क्या सोचा?)
(ii) माधवः बालकस्य रक्षायां के व्यवस्थापयत्?
(माधव ने बालक की रक्षा-व्यवस्था में किसको रखा?)
(iii) उपसर्पन कृष्णसर्पम् दृष्ट्वा नकुलः किमकरोत्?
(रेंगते साँप को देखकर नेवले ने क्या किया?)
उत्तरम् :
(i) यदि सत्वरं न गच्छामि तदन्यः कश्चित् श्राद्धाय व्रतो भवेत्।
(यदि जल्दी नहीं जाता हूँ, तो कोई और श्राद्ध को ले जाएगा।)
(ii) माधवः बालकस्य रक्षायां नकुलं व्यवस्थापयत्।
(माधव ने बालक की रक्षा में नकुल की व्यवस्था की।)
(iii) नकुलेन कृष्ण सर्पः व्यापाद्य खण्डशः कृतः।
(नेवले ने काले साँप को मारकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत। (इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
अविवेकं परमापदा/सहसा विदधीत न क्रियाम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
विप्रस्य भार्या नकुलं पुत्रस्य रक्षार्थं नियुज्य जलाशये स्नातुम् अगच्छत् तदैव सः राज्ञा निमन्त्रितः श्राद्धाय अगच्छत्। सः नकुलं बालके रक्षितुं नियुज्य अगच्छत्। तदैव एकः सर्पः तत्रागतः। नकुलेन सर्पः हतः द्वारे च अगच्छत्। भार्या नकुलम् अपश्यत् बालकस्य हन्तारं च ज्ञात्वा तम् अहनत्। बालकस्य समीपे गते सा अपश्यत् यत् तम नकुलेन हतः एक: सर्पः आसीत्। सा सर्वम् अजानत् यत् तेन अज्ञानात् नकुलः हतः। बालकः तत्र सुरक्षितः आसीत्।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘ब्राह्मणः परम विषादम् अगमत्’ अत्र ‘अगमत्’ क्रियायाः कर्तपदम् अस्ति –
(अ) बालकः
(ब) नकुलः
(स) सर्पः
(द) ब्राह्मण (माधव:)
उत्तरम् :
(अ) बालकः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) तमुपकारकम् नकुलम् अयं किं विशेषण पदम्?
(अ) माधवम्
(ब) सर्पम्
(स) नकुलम्
(द) भार्याम्
उत्तरम् :
(स) नकुलम्

(iii) ‘तथा कृत्वा सः गत:’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(अ) माधवाय
(ब) बालाय
(स) नकुलाय
(द) सर्पाय
उत्तरम् :
(अ) माधवाय

(iv) ‘पुत्रस्य’ इति पदस्य पर्यायपदमस्ति –
(अ) आत्मजस्य
(ब) अपत्यस्य
(स) बालस्य
(द) बालकस्य
उत्तरम् :
(ब) अपत्यस्य

26. देशाटनं मानवायं अतिहितकरम्। देशाटनस्य बहवः गुणाः भवन्ति। नानादेशजलवायु प्रभावेण अस्माकं स्वास्थ्य लाभः भवति। देशान्तर कला कौशल-ज्ञानेन वयं स्वदेशमपि कला कौशल सम्पन्नं कुर्मः अधिकोन्नतस्य देशस्य नागरिकाः प्रायः पर्यटनप्रिया भवन्ति। ब्रिटिश शासनकाले शासकाः भारतीयानाम् देशाटनरुविं नोत्साहयन्ति स्म। भारतीयाश्च प्रेरणां बिना न किमपि कुर्वन्ति इति सर्वविदितम्। परमधुना न वयं परतन्त्राः, अतः शासकानामेतत् कर्तव्यमापद्यते यत्रे भारतीयानां देशाटनं प्रति अभिरुचिं प्रोत्साहयेयुः। अधुना बहवः भारतीयाश्छात्रा अमरीका इङ्गलैण्ड, रूस प्रभृति देशेषु विविध कला कौशल ज्ञानार्जनाय गताः सन्ति। स्वदेशमागत्य ते स्वोपार्जितज्ञानेन स्वदेशामवश्यमेव उन्नमयिष्यन्ति इति जानीमः।

(देशाटन मनुष्य के लिए अति हितकर होता है। देशाटन के बहुत से गुण होते हैं। विविध देशों की जलवायु के प्रभाव से हमें स्वास्थ्य लाभ हो गया है। दूसरे देशों के कला-कौशल के ज्ञान से हम अपने देश को भी कला-कौशल से सम्पन्न करते हैं। अधिक उन्नत देश के नागरिक प्रायः पर्यटन प्रिय होते हैं। अंग्रेजी शासन काल में शासकों ने भारतीयों की देशाटन रुचि को उत्साहित नहीं किया और भारतीय बिना प्रेरणा के कुछ नहीं करते हैं, यह सर्वविदित है। लेकिन अब हम परतन्त्र नहीं हैं। अतः शासकों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे भारतीयों की देशाटन के प्रति अभिरुचि को प्रोत्साहित करें। आजकल बहुत से भारतीय छात्र अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस आदि देशों में विविध कला-कौशल ज्ञानार्जन के लिए गये हुए हैं। अपने देश में आकर वे अपने उपार्जित ज्ञान से अपने देश को अवश्य उन्नत करेंगे, ऐसा हम जानते हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कस्य बहवः गुणाः भवन्ति?
(किसके बहुत से गुण होते हैं?)
(ii) अधिकोन्नतस्य देशस्य नागरिकाः कीदृशाः भवन्ति?
(अधिक उन्नत देश के नगारिक कैसे होते हैं?)
(ii) भारतीयाः कां विना न किमपि कुर्वन्ति?
(भारतीय किसके बिना कुछ नहीं कर सकते?)
(iv) कदा शासकाः भारतीयानां देशाटन रुचिं नोत्साहन्ति स्म?
(कब शासक भारतीयों की देशाटन की रुचि को उत्साहित नहीं करते थे?)
उत्तरम् :
(i) देशाटनस्य
(ii) पर्यटनप्रियाः
(iii) प्रेरणाम्
(iv) ब्रिटिशशासनकाले।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) अस्माकं स्वास्थ्य लाभ: केन भवति?
(हमारा स्वास्थय लाभ किससे होता है?)
(ii) देशान्तरकला कौशल ज्ञाननेन वयं कि कुर्मः?
(दूसरे देश के कला-कौशल के ज्ञान से हम क्या करें?)
(iii) अद्य शासकानां किं कर्त्तव्यम् आपद्यते?
(आज शासकों का क्या कर्त्तव्य आ पड़ा है?)
उत्तरम् :
(i) नानादेश जलवायु प्रभावेण अस्माकं लाभो भवति।
(अनेक देश की जलवायु के प्रभाव से हमको लाभ होता है।)
(ii) वयं स्वदेशमपि कला-कौशल सम्पन्नं कुर्मः।
(हम अपने देश को भी कला-कौशल से संपन्न करें।)
(iii) यत्रे भारतीयानां देशाटनं प्रत्यभि रुचिं प्रोत्साहयेयुः।
(यहाँ भारतीयों की देशाटन के प्रति रुचि को प्रोत्साहित करें।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
देशाटनस्य महत्वम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
देशाटनेन मनुष्यः स्वास्थ्य लाभ, ज्ञान लाभं, व्यवहार, कलाकौशलं च प्राप्य स्वदेशं च वर्धयति। यदा वयं परतन्त्राः आसन् तदा देशाटनाय रुचिः नासीत् परञ्च इदानीं तु वयं स्वाधीना स्मः अतएव अनेके भारतीयाः छात्रा अध्येतुम् अन्य देशान् गच्छन्ति तथा ज्ञान, कला, संस्कृति च ज्ञात्वा स्वदेशं संवर्धयन्ति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘नागरिकाः प्रायः पर्यटनप्रियाः भवन्ति’ अत्र ‘भवन्ति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ). नागरिकाः
(ब) प्रायः
(स) पर्यटन
(द) प्रियाः
उत्तरम् :
(अ). नागरिकाः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) ‘अनेक’ जनाः अत्र विशेषणपदमस्ति –
(अ) बहवः
(ब) प्रायः
(स) जनाः
(द) विना।
उत्तरम् :
(स) जनाः

(iii) ‘ते अध्येतुम् गच्छन्ति’ अत्र ‘ते’ सर्वनामपदस्य संज्ञापद भवति –
(अ) तेन
(ब) अध्येतुम्
(स) गच्छन्ति
(द) छात्रा
उत्तरम् :
(द) छात्रा

(iv) ‘स्वतन्त्रता’ इति पदस्य विलोमार्थक पदम् अस्ति –
(अ) परतन्त्राः
(ब) देशान्तरम्
(स) शासकाः
(द) भारतीयाः
उत्तरम् :
(अ) परतन्त्राः

27. आतङ्कवादः आधुनिक विश्वस्य गुरुतमा समस्या अस्ति। संसारस्य प्रत्येकं देशः आतङ्कवादेन येन केन प्रकारेण पीडितः अस्ति। आतङ्कवादः विनाशस्य सा लीला या विश्वं ग्रसितुं तत्परा अस्ति। आतङ्कवादेन विश्वस्य अनेकानि क्षेत्राणि रक्तविलिप्तानि सन्ति। अनेन अनेके निर्दोषाः जनाः प्राणान् अत्यजन्। महिलाः विधवाः जाताः। बालाश्च अनाथाः अभवन्। सर्वशक्तिमान् अमेरिकादेशोऽपि अनेन सन्तप्तः अस्ति। भारतदेशस्तु आतङ्कवादेन्य अनेकैः वर्षेः पीड़ितः वर्तते। आतलवादस्य राक्षसस्य विनाशाय मिलित्वा एव प्रयत्नाः समाधेयां: अन्यथा एषा समस्या सुरसा मुखम् इव प्रतिदिनं वृद्धिं पास्यति।

(आतङ्कवाद आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। संसार का प्रत्येक देश आतङ्कवाद से जिस किसी भी प्रकार से पीड़ित है। आतङ्कवाद विनाश की वह लीला है जो संसार को ग्रसित करने के लिए तत्पर है। आतङ्कवाद से संसार के अनेक क्षेत्र रक्त से लथपथ हैं। इससे अनेक निर्दोष लोगों ने प्राणों को त्याग दिया। महिलाएं विधवा हो गई । बच्चे अनाथ हो गये। सर्वशक्तिमान अमेरिका देश भी इससे सन्तप्त है। भारत देश तो आतङ्कवाद से अनेकों वर्षों से पीड़ित है। आतवाद में तो वे ही लोग सम्मिलित हैं जो स्वार्थपूर्ति करना चाहते हैं और संसार में अशान्त वातावरण देखना चाहते हैं। शान्तिप्रिय देशों द्वारा आतङ्कवाद के असुर के विनाश करने के लिए मिलकर प्रयत्न करना चाहिए, अन्यथा यह समस्या सुरसा के मुख की तरह से प्रतिदिन बढ़ती जायेगी।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) आधुनिक विश्वस्य गुरुतमा समस्या का?
(आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी समस्या क्या है?)
(i) आतङ्कवादस्य प्रमुख कारणं किम् उक्तम्?
(आतंकवाद का प्रमुख कारण क्या कहा गया है?)
(iii) आतङ्कवादः किमिव प्रतिदिनं बुद्धिं यास्यति?
(आतंकवाद किसकी तरह प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त होगा?)
(iv) अनुच्छेदे कः देशः सर्वशक्तिमान् इति उक्तः?
(अनुच्छेद में किस देश को सर्वशक्तिमान् कहा गया है?)
उत्तरम् :
(i) आतङ्कवादः
(ii) स्वार्थः
(iii) सुरसामुखमिव
(iv) अमेरिकादेशः।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) आतङ्कवादः कीदृशी लीला अस्ति?
(आतङ्कवाद कैसी लीला है?)
(ii) शान्तिप्रियैः देशैः आतङ्कवादस्य समस्या समाधानुं किं कर्त्तव्यम्?
(शान्तिप्रिय देशों को आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए क्या करना चाहिए?)
(iii) आतङ्कवादे के जनाः सम्मिलिताः भवन्ति?
(आतंकवाद में कौन लोग सम्मिलित होते हैं?)
उत्तरम् :
(i) आतङ्कवादः विनाशस्य लीला या विश्वं ग्रसितुं तत्परा अस्ति।
(ii) सर्वेः मिलित्वा एव प्रयत्नाः समाधेयाः।
(iii) आतङ्कवादे तु एव जनाः सम्मिलिताः, ये स्वार्थपूर्ति कर्तुम् इच्छन्ति, संसारे च अशान्तेः वातावरणं द्रष्टुम् इच्छन्ति।

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
आतङ्कवादः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
आतङ्कवादेन प्रत्येकं देशः पीडितः। आतङ्कवादः विनाश लीलां कुर्वन् रक्तविलिप्तानि करोति। निर्दोष जनाः निष्प्राणाः भवन्ति। समर्थैः देशैः एषा समस्या समाधेया। एषः सुरसा-मुखमेव प्रतिदिनं वर्धते एव।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘ये स्वार्थपूर्तिम् इच्छन्ति’ अत्र ‘इच्छन्ति’ क्रियापदस्य कर्तृपदमस्ति –
(अ) अनेके
(ब) ये
(स) निर्दोषाः
(द) अनाथाः
उत्तरम् :
(ब) ये

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(ii) विश्वस्य गुरुतरा समस्या अस्ति। अत्र ‘गुरुतमा’ इति पदं कस्य पदस्य विशेषणम्?
(अ) विश्वस्य
(ब) समस्यायाः
(स) अस्ति
(द) गुरु
उत्तरम् :
(ब) समस्यायाः

(ii) ‘अनेन सन्तप्तः अस्ति’ अत्र अनेन सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् –
(अ) विनाशेन
(ब) आतङ्वादेन
(स) समस्यया
(द) पीडिता
उत्तरम् :
(स) समस्यया

(iv) ‘लघुतमा’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशेऽस्ति –
(अ) गुरुतमा
(ब) समस्या
(स) तत्परा
(द) अन्यथा
उत्तरम् :
(अ) गुरुतमा

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

28. दीपावली अस्माकं राष्ट्रियोत्सवः वर्तते। अस्मिन् उत्सवे सर्वेजनाः परस्परं भेदभावं विस्मृत्य आनन्दमग्नाः भवन्ति। त्रेतायुगे कैकेय्याः वरयाचनात् अयोध्यायाः राज्ञा दशरथेन रामाय चतुर्दशानां वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः। श्रीरामः अस्मिन्नेव दिवसे सीतालक्ष्मणाभ्यां सह अयोध्या प्रत्यावर्तितवान्। तान् स्वागतं व्याहतम् अयोध्यावासिनः नगरे सर्वत्र दीपा प्रज्वलितवन्तः। तदा आरभ्य अधावधि प्रतिवर्ष कार्तिक मासे अमावस्यायां तिथौ भारते दीपावली महोत्सवः महता उत्साहेन आयोजितः भवति। दीपावल्या जनाः गृहाणि परिष्कर्वन्ति। अस्मिन्नवसरे ते स्वमित्रेभ्यः बन्धुभ्यश्च उपहारान् यच्छन्ति, परस्परम् अभिनन्दन्ति च। बालकेभ्यः मिष्ठान्नं यच्छन्ति । सर्वेजनाः लक्ष्मी-गणेशयोः पूजनं कुर्वन्ति। पितरः स्व सन्ततिभ्य स्फोटकानि ददति। अस्मिन् महोत्सवे सर्वे सर्वेभ्यः सुखाय समृखये च शुभेच्छाः प्रकटयन्ति।

(दीपावली हमारा राष्ट्रीय उत्सव है। इस उत्सव में सभी लोग आपस में भेदभाव भूलकर आननदमग्न हो जाते हैं। त्रेतायुग में कैकेई के वर माँगने के कारण अयोध्या के राजा दशरथ ने राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास दिया। श्रीराम इसी दिन सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापिस लौटे थे। उनका स्वागत करने के लिए अयोध्यावासियों ने सब जगह दीप जलाये। तभी से लेकर आज तक प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में अमावस्या को भारत में दीपावली महोत्सव महान् उत्साह के साथ आयोजित होता है। दीपावली पर लोग घरों की सफाई करते हैं। इस अवसर पर वे अपने मित्रों और भाई-बन्धुओं के लिए उपहार प्रदान करते हैं और परस्पर अभिनन्दन करते हैं। बालकों के लिए मिठाइयाँ दी जाती हैं। सभी लोग लक्ष्मी-गणेश का पूजन करते हैं। माता-पिता अपनी सन्तान को पटाखे देते हैं। इस महोत्सव पर सभी सबके लिए सुख और समृद्धि के लिए शुभेच्छाएँ प्रकट करते हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) कस्याः वरयाचनात् दशरथेन रामाय वनवास प्रदत्तः?
(किसके वर माँगने के कारण दशरथ ने राम के लिए वनवास प्रदान किया।)
(ii) श्रीरामः काभ्यां सह अयोध्यां प्रत्यावर्तितवान्?
(श्रीराम किनके साथ अयोध्या लौटे?)
(iii) कदा जनाः गृहाणि परिष्कुर्वन्ति?
(कब लोग घरों की सफाई करते हैं?)
(iv) पितरः स्वसन्ततिभ्यः कानि ददति?
(माता-पितादि अपनी सन्तान को क्या देते हैं ?)
उत्तरम् :
(i) कैकेय्याः
(ii) सीतालक्ष्मणाभ्याम्
(ii) दीपावल्याम्
(iv) स्फोटकानि।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) सर्वेजनाः किं विस्मृत्य आनन्दमग्नाः भवन्ति?
(सब लोग क्या भूलकर आनन्दमग्न हो जाते हैं? )
(ii) दशरथेन रामाय कति वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः।
(दशरथ ने राम को कितने वर्ष का वनवास दिया?)
(iii) भारते कदा दीपावली महोत्सवः आयोजितः भवति?
(भारत में कब दीपावली का त्योहार आयोजित होता है?)
उत्तरम् :
(i) सर्वेजनाः परस्परं भेदभावं विस्मृत्य आनन्दमग्नाः भवन्ति।
(सब लोग परस्पर भेदभाव को भूलकर आनन्दमग्न होते हैं।)
(ii) दशरथेन रामाय चतुर्दशानां वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः।
(दशरथ ने राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास दिया।)
(iii) भारते प्रतिवर्ष कार्तिक मासे अमावस्यायां तिथौ दीपावली महोत्सवः आयोजितः भवति।
(भारत में प्रतिवर्ष कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि को दीपावली महोत्सव आयोजित होता है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
दीपावली-महोत्सवः।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
दीपावली उत्सवे सर्वेजनाः उच्चनीचयोः भेद-भावं त्यक्त्वा महता उत्साहने महोत्सव आयोजयन्ति। पितुः दशरथस्या देशेन वनं गतः रामः यदा अयोध्याम्आगच्छत् तदा सर्वे अयोध्यावासिनः दीपान् प्रज्वाल्य स्वागतंमकुर्वन्। ततः अस्मिन् अवसरे जनाः गृहाणि परिष्कुर्वन्ति, सज्जयन्ति, उपहारान् यच्छन्ति, अभिनन्दन्ति, बालकेभ्यः मिष्ठान्नं वितरन्ति ‘सर्वे सर्वेभ्यः वर्धापनं वितरन्ति।

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प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘मिष्ठान्नं यच्छन्ति’ अत्र किं क्रियापदम् –
(अ) मिष्ठान्नम्
(ब) यच्छन्ति
(स) पूजनं कुर्वन्ति
(द) स्फोटकानि ददति
उत्तरम् :
(ब) यच्छन्ति

(ii) ‘राष्ट्रीयोत्सवः’ इत्यत्र किं विशेषण पदम् –
(अ) राष्ट्रीयः
(ब) उत्सवः
(स) दीपावली
(द) महोत्सवः
उत्तरम् :
अ) राष्ट्रीयः

(iii) ‘अस्मिन् अवसरे’ अत्र अस्मिन्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम् –
(अ) उत्सवे
(ब) त्रेतायुगे
(स) दीपावल्याम्
(द) महोत्सवम्
उत्तरम् :
(स) दीपावल्याम्

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(iv) ‘स्मृत्वा’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशेऽस्ति –
(अ) विस्मृत्वा
(ब) स्मृत्वा
(स) विस्मृत्य
(द) व्याहृत्य
उत्तरम् :
(स) विस्मृत्य

29. तस्य परिवारस्य आर्थिक स्थितिः समीचीना नासीत्। सः न्यूनातिन्यून समये अधिकाधिकपुस्तकानाम् अध्ययनं करोति स्म। 11 वर्षात्मके वयसि सः कुमारसम्भवम् रघुवंशादि साहित्यिक ग्रन्थानां व्याख्या कर्तुं समर्थः अभवत्। कक्षायां प्रथम स्थानं लब्धवान्। अस्मात् कारणात् शासनेन तस्मै छात्रवृत्तिः प्रदत्ता। सः स्व-अपेक्षया अपि अधिकम् अभावग्रस्तं जीवनं यः छात्र जीवति स्म तस्य सहाय्यं करोति स्म।।

एकदा सः मातरम् उक्तवान्-अम्बगृहस्य सर्वाणि कार्याणि त्वमेकाकीरोषि, कोऽपि सेवकः नास्ति। अतः अद्य आरभ्य अहमेव भोजनं पक्ष्यामि। माता पुत्रस्य निश्चयं दृष्ट्वा आह्लादिता अभवत्। भोजन पाकात् अतिरिच्य सः गृहनिर्मितं वस्त्र धृत्वा अपि धनस्य सञ्चय करोति स्म। सञ्चितं धनम् अपरेषां सहाय्यार्थं व्ययं करोति स्म। अयम् ईश्वरचन्द्रः विद्यासागर अग्रे महान् त्यागी सेवाभावी श्रमनिष्ठः च अभवत्।।

(उस परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वे थोड़े से थोड़े समय में अधिक से अधिक पुस्तकों का अध्ययन करते थे। ग्यारह वर्ष की उम्र में वे कुमारसंभव, रघुवंश आदि साहित्यिक ग्रन्थों की व्याख्या करने के लिए समर्थ हो गये थे। कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, इस कारण से सरकार ने उनके लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। वे अपनी अपेक्षाकृत अधिक अभावग्रस्त जीवन जो छात्र जी रहे थे, उनकी सहायता करते थे।

एक दिन वे’माँ से बोले- माँ घर के सारे काम तुम अकेली ही करती हो, कोई नौकर नहीं है। अतः आज से लेकर मैं ही भोजन पकाऊँगा। माता पुत्र के निश्चय को देखकर आह्लादित हुई। भोजन पकाने के अलावा वह घर में बने हुए वस्त्र पहनकर भी धन संचय करते थे। संचित धन का दूसरों की सहायता के लिए व्यय करते थे। ये ईश्वरचन्द्र विद्यासागर आगे चलकर महान त्यागी, सेवाभावी और परिश्रमी हुए।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) विद्यासागरः कक्षायां किं स्थान प्राप्तवान्?
(विद्यासागर ने कक्षा में कौन-सा स्थान प्राप्त किया?)
(ii) विद्यासागराय केन छात्रवृत्तिः प्रदत्ता?
(विद्यासागर को किसने छात्रवृत्ति दी?)
(iii) विद्यासागरस्य निर्णयं श्रुत्वा माता किमन्वभवत्?
(विद्यासागर के निर्णय को सुनकर माता ने कैसा अनुभव.किया?)
(iv) विद्यासागरः कीदृक् वस्त्राणि धारयति स्म?
(विद्यासागर कैसे वस्त्र पहनते थे?)
उत्तरम् :
(i) प्रथमम्
(ii) शासनेन
(iii) आह्लादम्
(iv) गृहनिर्मितानि।

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) विद्यासागरः कथम् अध्ययनं करोति स्म?
(विद्यासागर कैसे अध्ययन करता था?)
(ii) एकादश वर्षदेशीयोऽसौ किं कर्तुं समर्थेऽभवत्?
(ग्यारह वर्ष की उम्र में वह क्या करने में समर्थ हो गया?)
(iii) विद्यासागरः स्वः अर्जितं धनं कथं व्ययते स्म?
(विद्यासागर अर्जित धन को कैसे खर्च करता था?)
उत्तरम् :
(i) सः न्यूनातिन्यून समये अधिकाधिक पुस्तकानाम् अध्ययनं करोति स्म।
(वह कम से कम समय में अधिकाधिक पुस्तकों का अध्ययन करता था।)
(ii) एकादश वयसि सः कुमारसम्भवम् रघुवंशादि साहित्यिक ग्रन्थानां व्याख्यां कर्तुं समर्थः अभवत्। (ग्यारह
वर्ष की उम्र में उसने कुमारसंभव, रघुवंश आदि साहित्यिक ग्रंथों की व्याख्या करने में समर्थ हो गया।)
(iii) सः अर्जितं धनं स्व अपेक्षया अपि अधिकं अभावग्रस्तं जीवनं य छात्रः जीवति स्म तस्य सहाय्यं करोति स्म।’
(वह अर्जित धन को अपनी अपेक्षा अधिक अभावग्रस्त जीवन वाले जो छात्र थे, उनकी सहायता करते थे।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरस्य महनीयता।

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प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
ईश्वर चन्द्र विद्यासागरः बाल्यकाले निर्धनः आसीत्। अल्पकाले एव प्रभूतं साहित्यं पठति स्म। एकादशवर्षे कुमार सम्भवस्य टीका सम्पादितवान्। सः छात्रवृत्ति प्राप्तवान् परन्तु अन्येषामपि सहाय्यं करोति स्म। माता नाधिकपीडिता भवेत् अतः भोजनं स्वयमेव पचति स्म। गृहनिर्मितं वस्त्रं धारयति स्म। सञ्चितं धनं अन्येभ्यः निर्धनेभ्य एव ददाति स्म।।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘भोजनं पक्ष्यामि’ अत्र ‘पक्ष्यामि’ क्रियापदस्य कर्ता अस्ति
(अ) माता
(ब) श्रमनिष्ठ
(स) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (अहम)
(द) शिष्य
उत्तरम् :
(स) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (अहम)

(ii) ‘अभावग्रस्तं जीवनम्’ इत्यत्र विशेषण पदमस्ति –
(अ) जीवनम्
(ब) अभावग्रस्तम्
(स) अभाव
(द) ग्रस्तम्
उत्तरम् :
(ब) अभावग्रस्तम्

(iii) ‘तस्य परिवारस्य’ अत्र ‘तस्य’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(अ) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
(ब) सेवाभावी
(स) कर्मनिष्ठ
(द) परिवारस्य
उत्तरम् :
(अ) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘माता’ इति पदस्य विलोम पदं अस्ति –
(अ) जननी
(ब) पिता
(स) अम्बा
(द) भगिनी
उत्तरम् :
(ब) पिता

30. भारतीय संविधानस्य निर्माणं 1949 ईसवीये वर्षे नवम्बर मासस्य 26 दिनाङ्के सम्पन्नमभवत्। 1950 ईसवीये वर्षे जनवरी मासस्य 26 दिनांके देशेन स्वीकृतम्। संविधान सभायाः अध्यक्षः डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रारूपाध्यक्षः डॉ. भीमराव अम्बेडकरश्चासीत्। अस्माकं संविधानं विश्वस्य विशालं संविधानमस्ति। लिखिते अस्मिन् संविधाने 395 अनुच्छेदाः 10 अनुसूच्यश्च सन्ति। अस्माकं संविधानं सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्नं पंथनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्यस्य स्वरूपं देशस्य कृते प्रददाति। अत्रत्यं लोकतन्त्र संसदीय व्यवस्थानुरूपं कार्यं करोति यत्र नागरिकाणां मूलाधिकाराः कर्त्तव्याणि च लिखितानि सन्ति। अस्माकं संविधानम् न्यायिक-पुनरवलोकनस्य अधिकारमपि अस्मभ्यं प्रददाति। समये-समये आवश्यकताम् अनुभूय अस्मिन् संविधाने परिवर्तनम् संशोधनं च भवति। इदानं संशोधनानि जातानि।

(भारतीय संविधान का निर्माण सन् 1949 ई. वर्ष में नवम्बर माह की 26 तारीख को सम्पन्न हुआ। सन् 1950 ई. वर्ष में 26 जनवरी को देश ने इसे स्वीकार किया। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रारूपाध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे। हमारा संविधान विश्व का विशाल संविधान है। इस लिखित संविधान में 395 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियाँ हैं। हमारा संविधान सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न (सम्प्रभुतासम्पन्न) सम्प्रदाय-निरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य का स्वरूप देश के लिए प्रदान करता है।

यहाँ का लोकतन्त्र संसदीय व्यवस्था के अनुरूप कार्य करता है। जहाँ पर नागरिकों के मूल अधिकार और कर्त्तव्य लिखे हुए हैं। हमारा संविधान न्यायिक पुनरावलोकन का भी हमें अधिकार प्रदान करता है। समय-समय पर आवश्यकता का अनुभव करके इस संविधान में परिवर्तन और संशोधन भी होते हैं। अभी तक 80 संशोधन हो चुके हैं।)

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(i) भारतीय संविधानस्य निर्माणं कदा सम्पन्नं अभवत्?
(भारतीय संविधान का निर्माण कब सम्पन्न हुआ?)
(ii) भारतीय संविधान राष्ट्रिण कदा स्वीकृतम्?
(भारतीय संविधान राष्ट्र ने कब स्वीकार किया?)
(iii) संविधान सभायाः अध्यक्षः कः आसीत्?
(संविधान सभा का अध्यक्ष कौन था?)
(iv) संविधान सभायां डॉ. भीमराव अम्बेडकरस्य किं पदम् आसीत्?
(संविधान सभा में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का क्या पद था ?)
उत्तरम् :
(i) 26 नवम्बर 1949 ई. तमे
(ii) 26 जनवरी 1950 ई. वर्षे
(iii) डॉ. राजेन्द्र प्रसादः
(iv) प्रारूपाध्यक्षः

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(i) अस्माकं लिखिते संविधाने कति अनुच्छेदाः अनुसूचयश्च सन्ति?
(हमारे लिखित संविधान में कितने अनुच्छेद और अनुसूचियाँ हैं?)
(ii) अस्माकं संविधानं देशस्य कृते कीदृशं स्वरूपं प्रददाति?
(हमारा संविधान देश के लिए कैसा स्वरूप प्रदान करता है?)
(iii) अत्रत्यं लोकतन्त्रं कथं कार्यं करोति? (यहाँ का लोकतन्त्र कैसे काम करता है?)
उत्तरम् :
(i) अस्माकं लिखिते संविधाने 395 अनुच्छेदाः 10 अनुसूच्यः च सन्ति।
(हमारे लिखित संविधान में 395 अनुच्छेद और 10 अनुसूची हैं।)
(ii) अस्माकं संविधानं सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्नं पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्यस्य स्वरूपं देशस्य कते प्रददाति।
(हमारा संविधान संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक-गणराज्य का स्वरूप देश के लिए प्रदान करता है।)
(iii) अत्रत्यं लोकतन्त्रं संसदीय व्यवस्थानुरूपं कार्यं करोति।
(यहाँ का लोकतंत्र संसदीय व्यवस्था के अनुरूप कार्य करता है।)

प्रश्न 3.
अस्य अनुच्छेदस्य उपयुक्तं शीर्षकं लिखत।
(इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।)
उत्तरम् :
अस्माकं संविधानम्।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांशस्य संक्षिप्तीकरणं कुरुत।
उत्तरम् :
भारतीय संविधानस्य निर्माणं 26-11-1949 तमे स्वीकृतिश्च 26-1-1950 दिनाङ्के अभवत्। लिखितेऽस्मिन् संविधाने अनुच्छेदाः 395 अनुसूच्यश्च 10 सन्ति। विश्वस्य विशालं संविधानं सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नं पंथनिरपेक्षं लोकतान्त्रिक गणराज्यस्य स्वरूपाय देशाय प्रददाति। अत्र नागरिकाणां मूलाधिकाराः कर्त्तव्यानि च सन्ति। एषः न्यायिक पुनरावलोकनस्य अधिकारं ददाति परिवर्तनीय संशोधनीय परिवर्धनीय च अस्ति।

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

प्रश्न 5.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(i) ‘अधिकारमपि अस्मभ्यं ददाति’ अत्र ‘ददाति’ क्रियायाः कर्तामस्ति –
(अ) अधिकारम्
(ब) अस्मभ्यं
(स) संविधानम्
(द) देश:
उत्तरम् :
(स) संविधानम्

(ii) ‘सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नम्’ अत्र विशेषणपदमस्ति –
(अ) सम्पूर्णम्
(ब) प्रभुत्वसम्पन्नम्
(स) संविधानम्
(द) देशः
उत्तरम् :
(अ) सम्पूर्णम्

(iii) ‘अस्माकं संविधानम् अत्र ‘अस्माकम्’ इति सर्वनामपदस्य स्थानने संज्ञा पदं भविष्यति –
(अ) भारतीयानाम्
(ब) सांसदानाम्
(स) अधिकारिणाम्
(द) संविधान सभा-सदस्याणाम्
उत्तरम् :
(अ) भारतीयानाम्

JAC Class 10 Sanskrit अपठित-अवबोधनम् अपठित गद्यांशः

(iv) ‘संसारस्य’ इति पदस्य स्थाने किं पर्याय पदं प्रयुक्तम्?
(अ) जगतः
(ब) विश्वस्य
(स) संविधानस्य
(द) मासस्य
उत्तरम् :
(ब) विश्वस्य

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् सन्धिकार्यम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

सन्धिशब्दय व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् डुधाञ् (धा) धातोः ‘उपसर्गे धोः किः’ इति सूत्रेण ‘किः’ प्रत्यये कृते सन्धिरिति शब्दो निष्पद्यते। (सम् उपसर्गपूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से “उपसर्गे धोः किः” इस सूत्र से ‘किः’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ यह शब्द बनता है।)

सन्धिशब्दस्य परिभाषा – ‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् द्वयोः वर्णयोः परस्परं यत् सन्धानं मेलनं वा भवति तत्सन्धिरिति कथ्यते। (‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णों का परस्पर जो सन्धान या मेल होता है वह सन्धि कहा जाता है।)

पाणिनीयपरिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णानाम् अत्यन्तनिकटता संहिता इति कथ्यते। यथा-सुधी + उपास्यः इत्यत्र ईकार-उकारवर्णयोः अत्यन्तनिकटता अस्ति। एतादृशी वर्णनिकटता एव संस्कृतव्याकरणे संहिता इति कथ्यते। संहितायाः विषये एव सन्धिकार्ये सति ‘सुध्युपास्यः’ इति शब्दसिद्धिर्जायते। (‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णों की अत्यधिक निकटता संहिता कही जाती है। जैसे- ‘सुधी+उपास्यः’ यहाँ पर ‘ईकार’ तथा ‘उकार’ वर्गों की अत्यधिक निकटता है। इस प्रकार की वर्णों की निकटता ही संस्कृत व्याकरण में संहिता कही जाती है। संहिता के विषय में ही सन्धि कार्य होने पर ‘सुध्युपास्य’ इस शब्द की सिद्धि होती है।)

सन्धिभेदाः – संस्कृतव्याकरणे सन्धेः त्रयो भेदाः सन्ति। ते इत्थं सन्ति (1) अचसन्धिः (स्वरसन्धिः)। (2) हलसन्धिः (व्यंजनसन्धिः)। (3) विसर्गसन्धिः। नोट-यहाँ व्यंजन संधि एवं विसर्ग सन्धि का ज्ञान अपेक्षित है। अतः इन्हें यहाँ विस्तार से समझाया गया है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

हल्सन्धिः (व्यंजन सन्धिः)

परिभाषा – यदा व्यञ्जनात् परे व्यञ्जनम् अथवा स्वरः आयाति तदा हल्सन्धिः भवति। (जब व्यञ्जन से परे (आगे) व्यञ्जन अथवा स्वर आता है तब हल् सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) होती है।)

अर्थात् – व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन या स्वर के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन (विकार) होता है उसे हल् सन्धि कहते हैं। हल् सन्धि का दूसरा नाम व्यञ्जन सन्धि भी है।

1. श्चुत्व सन्धिः- सूत्र- “स्तोः श्चुना श्चुः”। अर्थः – सकारतवर्गयोः शकारचवर्गाभ्यां योगे शकारचवर्गों स्तः।

व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वम् पश्चात् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा- (श्चुत्व सन्धि – “स्तोः श्चुना श्चुः” यदि ‘स्’ या ‘त्’ वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में ‘श्’ या ‘च’ वर्ग (च्, छ, ज, झ, ञ्) हो तो ‘स्’ का ‘श्’ और त वर्ग का चवर्ग अर्थात ‘त् का च’, ‘थ् का छ्’, ‘द् का ज्’, ‘ध् का झ्’, ‘न’ का ज्’ हो जाता है जैसे- सत् + चरितम् में ‘सत्’ के अन्त में ‘त’ है और ‘चरितम’ के आदि में च है, इन ‘त’ तथा ‘च’ दोनों वर्गों की सन्धि होने पर ‘त’ जो कि त का प्रथम अक्षर (वर्ण) है, के स्थान पर चवर्ग का प्रथम वर्ण अर्थात् ‘च’ हो जाएगा। इस प्रकार सत् + चरितम् की सन्धि हो पर ‘सच्चरितम्’ रूप होगा।)

उदाहरण –

सत् + चित् = सच्चित्
रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति
हरिस् + शेते. = हरिश्शेते
शाङ्गिन् + जय = शाङ्गिञ्जय
रामस् + च = रामश्च।
कस् + चित् = कश्चित्
उद् + ज्वलः = उज्ज्वल:

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. ष्टुत्व सन्धिः – सूत्र – ष्टुना ष्टुः। अर्थः – स्तोः ष्टुना योगे ष्टुः स्यात्।
व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वं पश्चाद् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा –
अर्थात् ‘स्’ तथा तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के पहले या बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट्, ठ्, ड्, द, ण) में से कोई वर्ण हो तो ‘स्’ को ‘ए’ तथा तवर्ग को क्रमशः टवर्ग त् का ट्, थ् का ठ्, द् का ड्, ध् का द, न् का ण हो जाता है। जैसे- इष् + त: में ‘इष्’ का अन्तिम वर्ण ‘ए’ है और उसके परे ‘तः’ है। अतः सन्धि कार्य होने पर तवर्ग टवर्ग में बदल जाएगा। अर्थात् ‘त:’ के स्थान पर ‘ट:’ होने पर इष् + तः = इष्टः रूप होगा।

उदाहरण –

तत् + टीका = तट्टीका
रामस् + षष्ठः रामष्षष्ठी:
रामस् + टीकते = रामष्टीकते
पेष् + ता = पेष्टा
चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्ढौकसे
उद् + डयनम् = उड्डयनम्
राष् + त्रम् = राष्ट्रम्
इष् + तः = इष्टः

3. जश्त्व सन्धिः -सूत्र – झलां जशोऽन्ते। अर्थः- पदान्ते झलां जशः स्युः। (“झलां जशोऽन्ते” अर्थात् पद के अन्त में ‘झूल’ ‘जश्’ हो जाता है।)
व्याख्या – पदान्ते झल् प्रत्याहारान्तर्गतवर्णानां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 वर्णानां श् ष स ह वर्णानां च) स्थाने जश्प्रत्याहारस्य (ज् ब् ग् ड् द्) वर्णाः भवन्ति। यथा
(पद के अन्त में ‘झल्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्णों (झ्, भ, ध्, द, ध्, ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, त्, थ्, च्, ट्, त्, क्, प, श, ष, स, ह) के स्थान पर ‘जश्’ प्रत्याहार, (ज, ब, ग, ड्, द्) के वर्ण हो जाते हैं।)
इस संधि के दो भाग हैं – प्रथम भाग व द्वितीय भाग। प्रथम भाग पद के अन्त में होने वाली जश्त्व सन्धि है और द्वितीय भाग पद के मध्य में होने वाली जश्त्व सन्धि है।)

प्रथम भाग – जब पद (सुबन्त और तिङन्त अर्थात् शब्दरूप, धातु रूप-युक्त शब्द) के अन्त में होने वाले किसी भी वर्ग के प्रथम वर्ण अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् में से किसी भी एक वर्ग के ठीक बाद कोई भी घोष वर्ण अर्थात् ङ्, ञ, ण, न्, म्, य, र, ल, व् और ह को छोड़कर कोई भी व्यञ्जन अथवा स्वर वर्ण आता है तो पूर्वोक्त प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त् और प्) अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (‘क्’ के स्थान पर ‘ग्’, ‘च’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ट्’ के स्थान पर ‘ड्’, ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ . तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘ब’ में बदल जाते हैं।) जैसे –

वाक् + ईशः = वागीशः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग्’ होने पर)
जगत + ईश = जगदीशः (यहाँ ‘त्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘द्’ होने पर)
षट् + आननः = षडाननः (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ग ‘ग्’ होने पर)
अच् + अन्तः अजन्तः (यहाँ ‘च’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ज्’ होने पर)
अन्तः सुबन्तः (यहाँ ‘प्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ब्’ होने पर)
षट् + दर्शनम् = षड्दर्शनम् (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + गजः = दिग्गजः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग’ होने पर)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि :

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 1

4. चवं सन्धिः – सूत्र-खरि च। अर्थः – खरि परे झलां चरः स्युः। (“खरि च” अर्थ- खर् परे हो तो झलों के स्थान में चर आदेश हो।)।
व्याख्या – खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे झलां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 श् ष् स् ह) स्थाने चर् (क् च् ट् त् प् श् स्) प्रत्याहारस्य वर्णाः भवन्ति। यथा –
खरि (वर्ग के क्, ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्, प, फ्, श्, ष, स्) परे हों तो झल् (वर्ग के क्, ख, ग, घ, च्, छ, ज, झ्, ट्, ठ्, ड्, द, त्, थ्, द्, ध्, प, फ, ब्, भ्, श, ष, स्, ह्) के स्थान पर चर् (क्, च्, ट्, त्, प् श् स्) प्रत्याहार के वर्ण होते हैं। जैसे –
सद् + कारः = सत्कारः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
विपद् + कालः = विपत्कालः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्प्रान्तः (यहाँ ‘भ्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘प्’ होने पर)
उद् + पन्नः = उत्पन्नः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. अनुस्वार-सन्धिः – सूत्र – मोऽनुस्वारः अर्थः – मान्तस्य पदस्यानुस्वारः स्याद् हलि। (‘मोऽनुस्वारः’ अर्थ मान्त पद के स्थान में अनुस्वार आदेश हो हल् परे होने पर।)
व्याख्या – पदान्तस्य मकारस्य स्थाने अनुस्वारः आदेशो भवति हलि (व्यञ्जने) परे। यथा –
(पदान्त मकार के स्थान पर अनुस्वार आदेश होता है हल् (व्यञ्जन) परे होने पर। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 2

ध्यातव्य – यदि शब्द के अन्त में ‘म्’ आये और उसके पश्चात् कोई हल् (व्यञ्जन) वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार (-) हो जाता है। पदान्त ‘म्’ के पश्चात् कोई स्वर वर्ण आये तो ‘म्’ को अनुस्वार नहीं होता। जैसे: –
अहम् + अपि = अहमपि (यहाँ पर अहम् के स्थान पर अहं नहीं होगा।)

विसर्गसन्धिः

यदा विसर्गस्य स्थाने किमपि परिवर्तनं भवति तदा सः विसर्गसन्धिः इति कथ्यते। (जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब उसे विसर्ग सन्धि कहा जाता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

1. विसर्गस्य लोपः

1.1 आतोऽशि विसर्गस्य लोपः – आकारात् परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदुव्यञ्जने च) परे लोपो भवति। उदाहरणानि- आकार से परे विसर्ग का अशि (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे होने का लोप हो जाता है। (अर्थात् विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और उसके (विसर्ग के) पश्चात् कोई भी स्वर हो या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य व र ‘ल ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 3

1.2 “अतोऽनत्यचि विसर्ग लोपः” – अकारात् परस्य विसर्गस्य अकारं वर्जयित्वा स्वरे परे लोपो भवति।
उदाहरणानि –
(विसर्ग से पहले अकार हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 8

1.3 “एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनञ्समासे हलि” अककारयोः एतत्तदोः यः ‘सुः’ (स-विसर्गः) तस्य लोपः स्याद् हलि न तु नसमासे। (ककार रहित एतद् और तद् शब्द का जो ‘सु’ (प्रथमा विभक्ति का एकवचन) (स – विसर्गः) उसका लोप हो हल् परे होने पर परन्तु नबसमास में न हो।)

अयं भावः – नसमासं विहाय ‘एषः’ ‘सः’ इत्यनयो पदयोः विसर्गस्य अकारं विहाय यत्किञ्चवर्णे परे लोपो भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – नबसमास को छोड़कर ‘एषः”सः’ इन पदों में विसर्ग के अकार को छोड़कर अर्थात् ‘सः’ ‘एषः’ के पश्चात् ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या व्यञ्जन हो, वहाँ विसर्ग का लोप होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 4

1.4 ‘रो रि” रेफस्य रेफे परे लोप: स्यात्।
अयं भावः – स्वरात्परस्य विसर्गस्य रेफे परे लोपो भवति। लोपे कृते पूर्वस्वरः दीर्घश्च भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – विसर्ग से बने ‘र’ के पश्चात् यदि ‘र’ आये तो पूर्व के ‘र’ का लोप हो जाता है तथा लोप होने वाले ‘र’ से पूर्व के अ, ई, उ का दीर्घ हो जाता है जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 5

2. उत्वसन्धिः – अतो रोरप्लुतादप्लुते।
अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्यादप्लुतेऽति। (अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो अप्लुत अकार परे होने पर।)
व्याख्या- हस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति ह्रस्वे अकारे परे। (हस्व अकार से पर (बाद में) रोः (रेफ के स्थान पर) का उकार आदेश होता है ह्रस्व अकार परे होने पर।)
विशेषः – अः + अ इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति, अन्तिमस्य अकारस्य च स्थाने अवग्रहः (s) भवति। अर्थात् उत्सवसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः पररूपसन्धिः च भवतः। यथा –
(अः + अ इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है और अन्तिम अकार के स्थान पर (s) अवग्रह होता है। अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुणसन्धि और पररूप सन्धि होती हैं। जैसे-)

कः + अपि . = कोऽपि।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्
रामः + अयम् = रामोऽयम्
शिवः + अर्चः = शिवोऽर्थ्य:
सः + अपि = सोऽपि
छात्रः + अयम् = छात्रोऽयम्
नृपः + अस्ति = नृपोऽस्ति

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि

कुतः + अत्र = कुतोऽत्र
नामधेयः + असि = नामधेयोऽसि
भीतः + अस्मि = भीतोऽस्मि
कोऽत्र कुमारः + अयम् = कुमारोऽयम्
अस्य = कोऽस्य भणितः असि = भणितोऽसि
कः + अभूत् = कोऽभूत्
पथिकः + अपि = पथिकोऽपि
इतः + अपि = इतोऽपि
एकल: + अपि = एकलोऽपि
प्रवेशितः + अयं = प्रवेशितोऽयं
विलक्षणः + अयम् = विलक्षणोऽयम्
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं
वाक्यांशः + अपि = वाक्यांशोऽपि
मुक्तः + अथवा = मुक्तोऽथवा
शिखरस्थः + अपि = शिखरस्थोऽपि
विवेकः + अस्ति विवेकोऽस्ति
धन्यः + असि = धन्योऽसि
शुष्कः + अपि = शुष्कोऽपि कोऽपि
अरयः + अपि = अरण्योऽपि शासकः
रहितः + अपि = रहितोऽपि
एकः + अपि = एकोऽपि
श्रेयः + अन्यत् = श्रेयोऽन्यत्
संग्रहः + अस्ति संग्रहोऽस्ति
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं”
कः + अयम् = कोऽयम्
प्राप्तः + अहं = प्राप्तोऽहं
सः + अपि = सोऽपि

उत्वसन्धिः – हशि च।

अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्याद्धशि। (अर्थ – हश् (ह य व र ल ब म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द) परे रहने पर भी अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो।)

व्याख्या – ह्रस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति हशि (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य् व् र ल्)
(ह्रस्व अकार से बाद का रोः (रेफ के स्थान पर) उकार आदेश होता है हशि (वर्ग का 3, 4, 5, ह य व् र ल्) परे होने पर भी।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

विशेषः – अः + हश् (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य व र ल) इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति। अर्थात् उत्वसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः भवति। यथा – (अः + हश् (वर्ग का 3, 4, 5, वर्ण या ह् य् व् र् ल्) इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है। अर्थात्, उत्व सन्धि के बाद गुण सन्धि होती है। जैसे-)

शिवः + वन्द्यः = शिवो वन्द्यः
रामः + हसति = रामो हसति
बालः + याति = बालो याति
बुधः + लिखति = बुधो लिखति
बालः + रौति = बालो रौति
नमः + नमः = नमो नमः
रामः + जयति = रामो जयति
क्षीणः + भवति = क्षीणो भवति
मनः + हरः = मनोहरः
यशः + दा = यशोदा

3. रुत्व सन्धिः – “इचोऽशि विसर्गस्य रेफः” – इचः (अ, आ इत्येतौ वर्जयित्वा स्वरात्) परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदु-व्यञ्जने च) परे रेफादेशो भवति। उदाहरणानि –
(अ आ इन दोनों वर्जित स्वर से) पर विसर्ग हो (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे रेफ आदेश होता है। अर्थात्
(यदि प्रथम पद के विसर्ग से पूर्व ‘अ’ अथवा ‘आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा विसर्ग के बाद कोई स्वर, वर्गों का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण या य व र ल ह में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है।)
जैसे – हरिः + अयम् = हरिरयम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 6

अव्ययसम्बन्धिनः – ऋकारान्तशब्दस्य सम्बोधनसम्बन्धिनश्च विसर्गस्य अकारात् आकारात् च परस्यापि रेफादेशो भवति। उदाहरणानि- (ऋकारान्त और सम्बोधन सम्बन्धी शब्दों के विसर्ग का अकार और अकार से परे का भी.रेफ आदेश होता है।) उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 7

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. सत्वसन्धिः – विसर्जनीयस्य सः
अर्थः – खरि परे विसर्जनीयस्य सः स्यात्। (“विसर्जनीयस्य सः’ विसर्ग के स्थान में सकार आदेश हो ‘खर्’ परे होने पर। ‘खर्’ = ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स)

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने सकारो भवति खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे। यथा- (विसर्ग के स्थान पर सकार होता है खर (वर्ग के 1, 2, श, ष, स्) परे होने पर।)

अर्थात् विसर्ग के परे (क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स) इनमें से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है। जैसे- ‘नमः + ते’ यहाँ विसर्ग से परे ‘त’ वर्ण है जो खर् प्रत्याहार के अन्तर्गत है अतः विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ होकर ‘नम स + ते = ‘नमस्ते’ सिद्ध होता है। उदाहरण –

विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता
रामः + च = रामश्च
धनुः + टङ्कार = धनुष्टङ्कारः
निः + छलः = निश्छलः
विसर्गसन्धिः – वा शरि

अर्थः – शरि विसर्गस्य विसर्गो वा स्यात्।

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने विकल्पेन विसर्गादेशो भवति शरिश (श् ‘स्) परे। यथा –

हरिः + शेते – हरिः शेते/हरिश्शेते
निः + सन्देहः = निःसन्देह/निस्सन्देह
नृपः + षष्ठः = नृपः षष्ठः/नृपष्षष्ठ

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि –

पुनः + च = पुनश्च (विसर्ग का श् होकर)
व्याकुलः + चलितः = व्याकुलश्चलितः (विसर्ग का श् होकर)
कपोताः + तत्रोपविष्टाः = कपोतास्तत्रोपविष्टाः (विसर्ग का स् होकर)
अवलम्बिताः + तं = अवलम्बितास्त (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
प्रतीकारः + चिन्त्यताम् = प्रतीकारश्चिन्त्यताम् (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
ततः + तेषु ततस्तेषु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
भ्रान्ताः + सन्ति भ्रान्तास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
चिन्तकैः च = चिन्तकैश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
हिमाद्रेः + चैव = हिमाद्रेश्चैव (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
धन्याः + तु = धन्यास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
जन्मभूमिः + च = जन्मभूमिश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
भवतः + सर्वदा = भवतस्सर्वदा (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
शिक्षणीयाः + तु = शिक्षणीयास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
देवगुरोः + तपोवने = देवगुरोस्तपोवने (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
क्रः + तस्य = क्रस्तस्य (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
धीरनायकः + च = धीरनायकश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
मातुः + च = मातुश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
मधुर + च = मधुरश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
शब्दाः + सन्ति = शब्दास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
मनः + तोषः = मनस्तोषः (विसर्ग का ‘स्’ होकर)

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उचित विकल्पं चित्वा लिखत –
1. “हिमादेश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदो भविष्यति –
(अ) हिमाद्रिः + च
(ब) हिमाद्रे + च
(स) हिमाद्रेः + च
(द) हिमाद्रेश + च
उत्तरम् :
(अ) हिमाद्रिः + च

2. ‘धन्यास्तु’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) धन्याः + तु
(ब) धन्या + अस्तु
(स) धन्य + अस्तु
(द) धन्य + आस्तु
उत्तरम् :
(अ) धन्याः + तु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. ‘जन्मभूमिश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) जन्मभूमि + श्च
(ब) जन्मभूमिः + च
(स) जन्मभू + मिश्च
(द) जन्म + भूमिश्च।
उत्तरम् :
(ब) जन्मभूमिः + च

4. ‘भवतस्सर्वदा’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) भवतस + सर्वदा
(ब) भवतस् + सर्वदा
(स) भवतः + सर्वदा
(द) भवत् + सर्वदा
उत्तरम् :
(स) भवतः + सर्वदा

5. ‘गत एव’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) गतः + एव
(ब) गत + एव
(स) गते + एव
(द) गतम् + एव
उत्तरम् :
(अ) गतः + एव

6. अभूमिः + इयम् इत्यनयोः पदयोः सन्धिः अस्ति।
(अ) अभूमिरियम्
(ब) अभूमीयम्
(स) अभूमि इयम्
(द) अभूमिसियम्।
उत्तरम् :
(अ) अभूमिरियम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. ‘अतः एव’ इति पदयोः सन्धि भवति –
(अ) अतदेव
(ब) अत एव
(स) अतैव
(द) अतसेव।
उत्तरम् :
(ब) अत एव

8. कः + अयम् पदयोः सन्धि अस्ति –
(अ) कअयम
(ब) करयम्
(स) कसमयम्
(द) कोऽयम्
उत्तरम् :
(द) कोऽयम्

9. ‘एषः + उपदेशः’ इत्यत्र सन्धिः स्यात् –
(अ) एषोपदेशः
(ब) एषउपदेश
(स) एषरूपदेशः
(द) एषसुपदेश
उत्तरम् :
(ब) एषउपदेश

10. ‘काकः + न’ इत्यनयोः सन्धिः भवति
(अ) काकन
(ब) काकरन
(स) काको न
(द) काकसन
उत्तरम् :
(स) काको न

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 2.
प्रकोष्ठात् चितं विकल्पं चित्वा रिक्त स्थान पुरयत –
1. ‘मातुराम …………………. केसरम्। (मातुः + आमद/मातु + आमद)
2. तस्य ‘पितुः + नाम’ ……………… ठाकुरसी ढाका आसीत्। (पितुरनाम्/पितुनमि)
3. ‘शुष्कोऽपि नित्यं सरसः ‘स देश’ ………… (सः + देश/सो. + देश:)
4. ‘गृहीत इव’ ……………………. केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्। (गृहीतः + इव/गृहीतो इव)
5. ‘को नु’ खल्वेष ………….. निषिध्यते। (क + उनु/कः + नु)
उत्तरम् :
1. मातुः + आमर्द,
2. पितुर्नाम,
3. स: + देश,
4. गृहीतः + इव,
5. कः + नु।

प्रश्न 3.
अधोलिखित पदेष सन्धिं/सन्धि विच्छेदं वा कुरुत सन्धि-नाम अपि लिखत (निम्न पदों में सन्धि/संधि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. दिग्गजाः चत्वारः भवन्ति।
उत्तरम् :
दिक् + गजाः (हल – जश्त्व)

2. सत् + चरित्रः जनः पूज्यते।
उत्तरम् :
सच्चरित्रः (हल् – श्चुत्व)

3. चलदनिशम्
उत्तरम् :
चलत् + अनिशम् (हल्-जश्त्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. स्यान्नैव
उत्तरम् :
स्यात् + न + एव (हल् – अनुनासिक)

5. प्राकृतिरेव
उत्तरम् :
प्रकृतिः + एव (विसर्ग रुत्व)

6. अस्मात् + नगरात्
उत्तरम् :
अस्मान्नगरात् (हल् – अनुनासिक)

7. आकृतिः + न
उत्तरम् :
आकृतिर्न (विसर्ग सन्धि रुत्व)

8. ततस्तया
उत्तरम् :
ततः + तया (विसर्ग सत्व)

9. मनोहरः
उत्तरम् :
मनः + हरः (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

10. यशोदा
उत्तरम् :
यशः + दा (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

11. वागीशः
उत्तरम् :
वाक् + ईशः (जश्त्व विधान)

12. नमस्ते
उत्तरम् :
नमः + ते (विसर्गे, सत्व विधान)

13. कथं तच्छत्रुः ?
उत्तरम् :
तत् + शत्रुः (हल् – छत्व)

14. कोलोऽयं विद्यते तव भारती।
उत्तरम् :
कोषः + अयम् (विसर्ग-पूर्वरूप)

15. पदच्छेदं कृत्वा पठेत्।
उत्तरम् :
पद + छेदम् (हल् – तुक् आगम)

16. जगत् + ईशः सर्वान् रक्षति।
उत्तरम् :
जगदीशः (हल् – जश्त्व)

प्रश्न 4.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तरपुस्तिका में लिखिए)
1. (i) मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।
(ii) जय जगदीश हरे !
(ii) नीरोगः जनः सुखी भवति।
(iv) षट् + आनन: गणेशः।
उत्तरम् :
(i) मृगाः + चरन्ति
(ii) जगत् + ईश
(ii) निर् + रोगः
(iv) षडाननः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. (i) पश्य एतच्चित्रम्।
(i) तच्छ्लोकं श्रुत्वा राजा प्रसन्नोऽभवत्।
(iii) एतच्छ्रुत्वा जनाः तत्र आगताः।
(iv) सूतः उवाच।
उत्तरम् :
(i) एतत् + चित्रम्।
(i) तत् + श्लोकम्।
(iii) एतत् + श्रुत्वा
(iv) सूत उवाच

3. (ii) पापिनाञ्च विनाशः भवति।
(ii) उद् + शिष्टम् उपसार्येत्।
(iii) एतत् + शोभनं चित्रम्।
(iv) अत्र अजाश्चरन्ति।
उत्तरम् :
(i) पापिनाम् + च।
(i) उच्छिष्टम्
(iii) एतच्छोभनम्।
(iv) अजाः + चरन्ति।

4. (i) श्रीमच्छरच्चन्द्रः।
(ii) चञ्चलः एष बालकः।
(iii) त्वं धन्योऽसि।
(iv) द्वयोः + अपि
उत्तरम् :
(i) श्रीमत् + शरत् + चन्द्रः
(ii) चम् + चलः।
(iii) धन्यः + असि
(iv) द्वयोरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 5.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं अथवा सन्धि कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) कपिः इतस्ततः भ्रमति।
(ii) केचन जनाः विद्याम् इच्छन्ति, केचन धनम् + च।
(iii) तच्छ्लोकं श्रुत्वा कः प्रसन्नः न भविष्यति ?
(iv) एतच्छ्रुत्वा जनाः ततो गताः।
उत्तरम् :
(i) इतः + ततः
(ii) धनञ्च
(iii) तत्+श्लोकम्
(iv) एतत् + श्रुत्वा

2. (i) रामः + च लक्ष्मणश्च वनं गतौ।
(ii) सन्तोषः एव सत् + निधानम्।
(iii) मेघः + गर्जति।
(iv) कामात् क्रोधोऽभिजायते।
उत्तरम् :
(i) रामश्च
(ii) सन्निधानम्
(iii) मेघो गर्जति
(iv) क्रोधः + अभिजायते

3. (i) अनिच्छन् + अपि वार्ष्णेय ! बलादिव नियोजितः।
(ii) तत् + श्रुत्वा यूथपतिः सगद्गदम् उक्तवान्।
(iii) अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति।
(iv) मन्ये वायोः + इव सुदुष्करम्।
उत्तरम् :
(i) अनिच्छन्नपि
(ii) तच्छ्रुत्वा
(iii) कोशः + अयम्
(iv) वायोरेव

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) दहन्निव प्रचण्डज्वालः अग्निः प्रचलति।
(ii) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
(iii) सर्वदा विद्यमानोऽस्य कार्यकलापं पश्यामि।
(iv) पश्य एतच्चित्रम्।
उत्तरम् :
(i) दहन् + इव
(ii) पापिनाञ्च
(iii) विद्यमानः + अस्य
(iv) एतत् + चित्रम्

5. (i) सा एव कीर्ति धनं च प्राप्नोति।
(ii) जय जगदीश हरे।
(iii) वने मृगाः + चरन्ति।
(iv) तच्छ्रुत्वा तेषु एकः बालकः उवाच – ‘अपि भोः।’
उत्तरम् :
(i) धनञ्च
(ii) जगत् + ईशः
(iii) मृगाश्चरन्ति
(iv) तत् + श्रुत्वा

6. (i) अपि इदं श्रेयः + करम्।
(ii) कोऽनर्थफल मानः।
(iii) कस्मिन् + चित् नगरे चन्द्रो नाम भूपतिः अवसत्।
(iv) पाण्डवास्त्वं च राष्ट्र च सदा संरक्ष्यमेव हि।
उत्तरम् :
(i) श्रेयस्करम्
(ii) कः + अनर्थफलः
(iii) कस्मिंश्चित्
(iv) पाण्डवाः + तम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. (i) मृण्मयं भाजनं, तेन तम् आशु ताडयन्ति स्म।
(ii) न कुर्यात् + अहितं कर्म।
(iii) राजा सुधीभ्यः धनं मानम् + च यच्छति।
(iv) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
उत्तरम् :
(i) मृद् + मयम्
(i) कुर्यादहितम्
(iii) मानञ्च।
(iv) पापिनाञ्च

प्रश्न 6.
अधोलिखित पदेषु सन्धिं / सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धि-नाम अपि लिखत।
(निम्न पदों में सन्धि/सन्धि विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) अधोमुखी
(i) मुहुर्मुहुः
(iii) अत एव
उत्तरम् :
(i) अधः + मुखी (विसर्ग-उत्व)
(ii) मुहुः + मुहुः (विसर्ग-रुत्व)
(iii) अतः + एवः (विसर्ग-लोप)

2. (i) केतकच्छदत्वम्
(ii) कश्चित्
(iii) उत्खाता
उत्तरम् :
(i) केतक + छदत्वम् (तुकागम)
(ii) कः + चित् (विसर्ग श्चुत्व)
(iii) उद् + खाता (हल् – चव)

3. (i) कान्तिः + गात्राणाम्
(ii) वयोरूप
(iii) व्यायामो हि
उत्तरम् :
(i) कान्तिर्गात्राणाम् (विसर्ग-रुत्व)
(ii) वयः + रूप (विसर्ग)
(iii) व्यायामः + हि (विसर्ग-उत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) वायुर्यदा
(ii) एकः + तावत्
(iii) तावद्विभज्य
उत्तरम् :
(i) वायुः + यदा (विसर्ग-रुत्व)
(ii) एकस्तावत (विसर्ग सत्व)
(iii) तावत् + विभज्य (हल्-जश्त्व)

5. (i) महतोभयात्
(ii) यन्मानुषात्
(iii) पुनः + आयान्तम्
उत्तरम् :
(i) महतः + भयात् (विसर्ग-उत्व)
(ii) यत् + मानुषात् (हल्-अनु)
(iii) पुनरायान्तम् (विसर्ग रुत्व)

6. (i) हसन्नाह
(ii) बुद्धिर्बलवती
(iii) पुनरपि
उत्तरम् :
(i) हसन् + आह (हल् – द्वित्व)
(ii) बुद्धिः+बलवती (विसर्ग-रुत्व)
(iii) पुनः + अपि (विसर्ग-रुत्व)

7. (i) मनस्तु
(ii) क्रोधो हि
(iii) अश्वः + चेत्
उत्तरम् :
(i) मनः + तु (विसर्ग-रुत्व)
(ii) क्रोधः + हि (विसर्ग-उत्व)
(iii) अश्वश्चेत् (विसर्ग-सत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 7.
स्थूलपदेषु सन्धिं
सन्धि विच्छेदंवा कृत्वा उत्तर पुस्तिकायां लिखत – (मोटे अक्षर वाले पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए।)
1. (i) कस्मिन्नपि कर्मणि वा
(ii) अथ राजानं मुनिरुवाच
(iii) उपचारेण स्वस्थो जातः।
(iv) अस्मद् + जन आदिष्यते।
उत्तरम् :
(i) कस्मिन् + अपि (हल्)
(ii) मुनिः + उवाच (विसर्ग)
(iii) स्वस्थः + जातः (विसर्ग-उत्व)
(iv) अस्मज्जन (हल् – श्चुत्व)

2. (i) वराको जनः क्षन्तव्योऽयम्।
(ii) एष एव ते निश्चयः ?
(iii) किं पुनः + असन्तम्।।
(iv) रिक्तोऽसि यज्जलद।
उत्तरम् :
(i) वराकः + जनः (विसर्ग-उत्व)
(ii) एषः + एव (विसर्ग लोप)
(iii) पुनरसन्तम् (विसर्ग रुत्व)
(iv) यत् + जलद (हल् – श्चुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) चौरः + एव उच्चे क्रोशितुमारभत।
(ii) पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ।
(iii) यदुक्तं तद् वर्णयामि।
(iv) कश्चिज्जनः केनापि हतः।
उत्तरम् :
(i) चौर एव (विसर्ग लोप)
(ii) पुनः + तौ (विसर्ग)
(iii) यत् + उक्त (हल)
(iv) कश्चित् + जनः (हल्-श्चुत्व)

4. (i) एक एव खगोमानी।
(ii) सरः + त्वयि सङ्कोचमञ्चति
(iii) तरोरस्य पुष्टिः।
उत्तरम् :
(i) खगः + मानी (विसर्ग-उत्व)
(ii) सरस्त्वयि (विसर्ग-सत्व)
(iii) तरोः + अस्य (विसर्ग)

5. (i) श्वोवा कथं नु भवितेति। .
(ii) रात्रौ जानुर्दिवाभानुः।
(iii) प्र + छादनं दोषमुत्पादयति।
(iv) परैर्न परिभूयते।
उत्तरम् :
(i) श्वः + वा (विसर्ग-उत्व)
(ii) जानुः + दिवा (विसर्ग रुत्व)
(iii) प्रच्छादनम् (तुकागम्)
(iv) परैः + न (विसर्ग-रुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 8.
रेखाङ्कितपदेषु सन्धिविच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं उत्तरपुस्तिकायां लिखत – (रेखांकित पदों में सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि कर उत्तर उत्तरपुस्तिका में लिखिए-)
1. (i) ब्रह्ममयि जय वागीश्वरी
(ii) बाला: + अत्र
(iii) मतिरास्ताम् नः तव पद कमले
(iv) साधुः + भव
उत्तरम् :
(i) वाक् + ईश्वरी
(ii) बाला अत्र
(iii) मतिः + आस्ताम्
(iv) साधुर्भव

2. (i) लताः + एधन्ते
(ii) पुन: + च
(iii) नानादिक् + देशात्
(iv) मनीषा
उत्तरम् :
(i) लता एधन्ते
(ii) पुनश्च
(iii) नानादिग्देशात्
(iv) मनस् + ईषा

3. (i) अद्य प्रातरेव अनिष्ट दर्शनं जातम्
(ii) तस्मिन्नेव काले
(iii) कुतोऽत्र निर्जने वने तण्डुलकणान्
(iv) पुनः + अपि
उत्तरम् :
(i) प्रातः + एव
(ii) तस्मिन् + एव
(iii) कुतः + अत्र
(iv) पुनरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) पतञ्जलि
(ii) धन्याः + तु
(iii) वाग् + मूलम्
(iv) भीतोऽस्मि
उत्तरम् :
(i) पतत् + अञ्जलि
(ii) धन्यास्तु
(iii) वाङ्मूलम्/वाग्मूलम्
(iv) भीतः + अस्मि

5. (i) एतत् + मुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ताः + गच्छन्ति
(iv) कः + अत्र
उत्तरम् :
(i) एतन्मुरारि/एतमुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ता गच्छन्ति
(iv) कोऽत्र

6. (i) विभ्रत् + न
(ii) व्याकुलश्चलितः
(iii) जगदीश्वरान्
(iv) ततः + तेषु
उत्तरम् :
(i) विभ्रन्न।
(ii) व्याकुलः + चलितः
(iii) जगत् + ईश्वरान्
(iv) ततस्तेषु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 9.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत।
(निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि विच्छेद करके सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) भूमिरस्ति
(ii) वृद्धाः यान्ति
(iii) सवैरेकचित्तीयभूय
उत्तरम् :
(i) भूमिः + अस्ति (सत्व विसर्ग)
(ii) वृद्ध यान्ति (विसर्ग लोप)
(iii) सर्वैः + एकचित्तीयभूय (रुत्व विसर्ग)

2. (i) बालाः + हसन्ति
(ii) भ्रान्तासन्ति
(iii) दिक् + अम्बरः
उत्तरम् :
(i) बाला हसन्ति (विसर्ग लोपः)
(ii) भ्रान्तः + सन्ति (सत्व विसर्ग)
(iii) दिगम्बरः (जश्त्व सन्धि)

3. (i) भणितो + असि
(ii) उज्ज्वलः
(ii) विपत्काल:
उत्तरम् :
(i) भणितः + असि (उत्व विसर्ग)
(ii) उद् + ज्वलः (श्चुत्व सन्धिः)
(iii) विपद् + कालः (चर्व सन्धिः)

4. (i) बालः + याति
(ii) कः + अपि
(iii) नमः + ते
उत्तरम् :
(i) बालो याति (उत्व सन्धिः)
(ii) कोऽपि (उत्व सन्धिः)
(iii) नमस्ते (सत्व सन्धिः)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. (i) सत्यं वद
(ii) कालादेव
(iii) सद् + काल:
उत्तरम् :
(i) सत्यम् + वद् (अनुस्वार सन्धिः)
(ii) कालांत् + एव (जश्त्व सन्धिः)
(iii) सत्कारः (चर्व सन्धिः)

6. (i) दिक् + गजः
(ii) गृहं गच्छति
उत्तरम् :
(i) दिग्गजः (जश्त्व सन्धिः)
(ii) कं + पते (परसवर्ण)
(iii) गृहम् + गच्छति (मोऽनुस्वार)।

7. (i) रामः + आगच्छति
(ii) चित्तकैः + च
(iii) दुखं प्राप्नोति
उत्तरम् :
(i) राम आगच्छति (विसर्ग लोप)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) दुखम् प्राप्नोति (मोऽनुस्वार)

8. (i) सच्चित्
(ii) इष्टः
(iii) जगत् + ईशः
उत्तरम् :
(i) सत् + चित् (श्चुत्व सन्धिः)
(ii) इष् + त्: (ष्टुत्व सन्धिः)
(iii) जगदीशः (जश्त्व सन्धिः)

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं व कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत (निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. (i) सम्पद् + समयः
(ii) त्वं पठसि
(iii) सत् + उपदेश
उत्तरम् :
(i) सम्पत्समयः (चर्व सन्धिः)
(ii) त्वम् + पठसि (मोऽनुस्वार)
(iii) सदुपदेश (जश्त्व सन्धिः)

2. (i) एकल: + अपि
(ii) चित्तकैः + च
(iii) कृषेः + भयम्
उत्तरम् :
(i) एकलोऽपि (उत्व विसर्ग)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) कृषेर्भयम् (रुत्व विसर्ग)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) अजन्तः
(ii) विपद् + काल
(iii) सुबन्त
उत्तरम् :
(i) अच + अन्त (जश्त्व सन्धिः)
(ii) विपत्काल (चर्व सन्धिः)
(iii) सुप् + अन्त (जश्त्व)

4. (i) अरयोऽपि
(ii) भवतः + सर्वद
(iii) वाक् + ईशः
उत्तरम् :
(i) अरयः + अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) भवतस्सर्वदा (सत्व विसर्ग)
(iii) वागीश (जश्त्व सन्धिः)

5. (i) कोऽभूत्
(ii) विलक्षण: + अयम्
(iii) अहम् + धावामि
उत्तरम् :
(i) कः + अभूत (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) विलक्षणोऽयम् (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) अहं धावामि (मोऽनुस्वार)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

6. (i) शुष्कोऽपि
(ii) जन्मभूमिश्चः
(iii) देवैः + अनिशं
उत्तरम् :
(i) शुष्कः अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) जन्मभूमिः + च (सत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) देवैरनिशं (रुत्व विसर्ग सन्धिः)

7. (i) कृष्ण एति
(ii) मनः + तोषः
(iii) प्रागेव
उत्तरम् :
(i) कृष्णः एति (विसर्ग लोप)
(ii) मन स्तोषः (सत्व विसर्ग)
(iii) प्राक् + एव (जश्त्व)

8. (i) भूमिः + इयम्
(ii) बाल: + इच्छति
(iii) कस्तस्य
उत्तरम् :
(i) भूमिरियम् (रुत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) बाल इच्छति (विसर्ग लोप)
(iii) कः + तस्य (सत्व विसर्ग सन्धिः)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संख्याज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

संख्या-ज्ञान – इस संसार में सभी लोगों के लिए संख्या (अंकों) का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि संख्या के ज्ञान के बिना हमारे जीवन में आदान-प्रदान का कोई भी कार्य सम्भव नहीं हो सकता है। अतः हम यहाँ 100 से आगे की संख्याओं (अंकों) का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

हिन्दी अर्थ सहित संख्यावाची शब्द :

यहाँ कुछ पारिभाषिक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए दिया जा रहा है –

(i) शतम् – सौ
(ii) सहस्रम् – हजार
(iii) अयुतम् – दस हजार
(iv) लक्षम् – लाख
(v) प्रयुतम्/नियुतम् – दस लाख
(vi) कोटि: – करोड़
(vii) दशकोटि: – दस करोड़
(viii) अर्बुदम् – अरब
(ix) दशार्बुदम् – दस अरब
(x) खर्वम् – खरब
(xi) दशखर्वम् – दस खरब
(xii) नीलम् – नील
(xiii) दशनीलम् – दस नील
(xiv) पद्मम् – पद्म
(xv) दशपद्मम् – दस पद्म
(xvi) शंखम् – शंख
(xvii) दशशंखम्-दस शंख
(xviii) महाशंखम्-महाशंख

शतम् (100) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द बनाना

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

नियम – (i) ‘शत’ (100) आदि संख्यावाचक शब्दों के साथ लघु (छोटी) संख्या के मिलाने के लिए लघु (छोटी) संख्या के साथ ‘अधिक’ या ‘उत्तर’ शब्द वृहत्तर (बड़ी) संख्या के पहले लगा दिया जाता है। यथा-‘एक सौ तेरह’; यहाँ लघु संख्या तेरह है, इसकी संस्कृत है-‘त्रयोदश’। इसके आगे अधिक लगाकर इसके बाद वृहत्तर (बड़ी) संख्या ‘शतम्’ लगाने से ‘एक सौ तेरह’ की संस्कृत हुई- “त्रयोदशाधिकशतम्”।

(ii) शत् (100) सहस्र (1000) इत्यादि संख्याओं के साथ यदि उनका आधा (50, 500 आदि) हो तो सार्धं (आधा सहित), चौथाई साथ हो (25, 250 आदि) तो ‘सपादम्’ (चौथाई साथ) और चौथाई ‘कम हो तो’ पादोन (चौथाई कम) शब्द का उनके साथ प्रयोग किया जाता है। यथा-450 ‘सार्द्ध-शत-चतुष्टयम्” (आधे सहित सौ चार) इसी प्रकार 125 को ‘सपादशतम्’ (चौथाई सहित सौ) लिखते हैं। 1750 को ‘पादोनसहस्रद्वयम्’ (चौथाई कम दो हजार) लिखा जायेगा।

विशेष-शत, सहस्र इत्यादि के पहले द्वि, त्रि आदि के आने पर, समाहार द्विगु हो जाने से वे विशेषण नहीं रहते, क्योंकि समाहार द्विगु हो जाने पर वे विशेष्य पद हो जाते हैं। यथा-द्विशती (200), त्रिशती (300) आदि।

(iii) अवयव दिखाने के लिए द्वय, त्रय, चतुष्टय, पञ्चक, षट्क, सप्तक, अष्टक इत्यादि ‘क’ प्रत्ययान्त एकवचनान्त नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(iv) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग करने में यदि संशय हो तो संख्यावाचक शब्द के साथ ‘संख्यक’ शब्द लगाकर अकारान्त पद की तरह रूप चलाकर सरलता से अनुवाद किया जा सकता है।

ध्यातव्य – संस्कृत में संख्या को उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-101 में, पहले एक को फिर सौ को लिखेंगे। बीच में ज्यादा का शब्द ‘अधिक’ लिखेंगे। याद करें हमारे पुराने बुजुर्ग लोग कैसे गिनती बताते थे। 130 को = तीस ज्यादा सौ, 19 को = एक कम बीस, 540 को = चालीस ज्यादा पाँच सौ, यही तरीका संस्कृत का है। जैसे –

1. 101 = उल्टाक्रम = एक अधिक सौ = एक + अधिकशतम् = एकाधिकशतम्।
2. 140 = उल्टाक्रम = चालीस अधिक सौ = चत्वारिंशत् + अधिकशतम् = चत्वारिंशदधिकशतम्।
3. 165 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक सौ = पंच षष्टि + अधिक शतम् = पंचषष्ट्यिधिकशतम्।
4. 300 = तीन सौ = त्रिशतम्।
5. 1965 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक एक कम बीस सौ = पंचषष्टि + अधिक + एकोनविंशतिशतम् = पंचषष्ट्य धिकैकोनविंशतिशतम्
6. 2000 = दो हजार = द्विसहस्रम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

उपर्युक्त नियम के अनुसार 100 (शतम्) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द –

101. एकाधिकशतम्
102. यधिकशतम्
103. त्र्यधिकशतम्
104. चतुरधिकशतम्
105. पञ्चाधिकशतम्
106. षडधिकशतम्
107. सप्ताधिकशतम्
108. अष्टाधिकशतम्
109. नवाधिकशतम्
110. दशाधिकशतम्
111. एकादशाधिकशतम्
112. द्वादशाधिकशतम्
113. त्रयोदशाधिकशतम्
114. चतुर्दशाधिकशतम्
115. पञ्चदशाधिकशतम्
116. षोडशाधिकशतम्
117. सप्तदशाधिकशतम्
118. अष्टादशाधिकशतम्
119. नवदशाधिकशतम्
120. विंशत्यधिकशतम्
121. एकविंशत्यधिकशतम्
122. द्वारिंशत्यधिकशतम्
123. ज्योविंशत्यधिकशतम्
124. चतुर्विंशत्यधिकशतम्
125. पञ्चविंशत्यधिकशतम्
126. षड्विंशत्यधिकशतम्
127. सप्तविंशत्यधिकशतम्
128. अष्टाविंशत्यधिक शतम्
129. नवविंशत्यधिकशतम्
130. त्रिंशदधिकशतम्
131. एकत्रिंशदधिकशतम्
132. द्वात्रिंशदधिकशतम्।
133. त्रयस्त्रिंशदधिकशतम्
134. चतुत्रिंशदधिकशतम्
135. पञ्चत्रिंशदधिकशतम्
136. षट्त्रिंशदधिकशतम्
137. सप्तत्रिंशदधिकशतम्
138. अष्टत्रिंशदधिकशतम्
139. नवत्रिंशदधिकशतम्
140. चत्वारिंशदधिकशतम्
141. एकचत्वारिंशदधिकशतम्
142. द्विचत्वारिंशदधिकशतम्
143. त्रिचत्वारिंशदधिकशतम्
144. चतुश्चत्वारिंशदधिकशतम्
145. पञ्चचत्वारिंशदधिकशतम्
146. षट्चत्वारिंशदधिकशतम्
147. सप्तचत्वारिंशदधिकशतम
148. अष्टचत्वारिंशदधिकशतम्
149. नवचत्वारिंशदधिकशंतम्
150. पञ्चाशदधिकशतम्
151. एकपञ्चाशदधिकशतम्
152. द्विपञ्चाशदधिकशतम्
153. त्रिपञ्चाशदधिकशतम्
154. चतुःपञ्चाशदधिकशतम्
155. पञ्चपञ्चाशदधिकशतम्
156. षट्पञ्चाशदधिकशतम्
157. सप्तपञ्चाशदधिकशतम्
158. अष्टपञ्चाशदधिकशतम्
159. नवपञ्चाशदधिकशतम्
160. षष्ट्यधिकशतम्
161. एकषष्ट्यधिकशतम्
162. द्विषष्ट्यधिकशतम्
163. त्रिषष्ट्यधिकशतम्
164. चतुःषष्ट्यधिकशतम्
165. पञ्चषष्ट्यधिकशतम्
166. षट्षष्ट्यधिकशतम्
167. सप्तषधिकशतम्
168. अष्टषष्ट्यधिकशतम्
169. नवषष्ट्यधिकशतम्
170. सप्तत्यधिकशतम्
171. एकसप्तत्यधिकशतम्
172. द्विसप्तत्यधिकशतम्
173. त्रिसप्तत्यधिकशतम्
174. चतुःसप्तत्यधिकशतम्
175. पञ्चसप्तत्यधिकशतम्
176. षष्टसप्तत्यधिकशतम्
177. सप्तसप्तत्यधिकशतम्
178. अष्टसप्तत्यधिकशतम्
179. नवसप्तत्यधिकशतम्
180. अशीत्यधिकशतम्।
181. एकाशीत्यधिकशतम्
182. द्वयशीत्यधिकशतम्
183. व्यशीत्यधिक शतम्
184. चतुरशीत्यधिकशतम्
185. पञ्चाशीत्यधिकशतम्
186. षडशीत्यधिकशतम्
187. सप्ताशीत्यधिकशतम्
188. अष्टाशीत्यधिकशतम्
189. नवाशीत्यधिकशतम्
190. नवत्यधिकशतम्
191. एकनवत्यधिकशतम्
192. द्विनवत्यधिकशत्
193. त्रिनवत्यधिकशतम्
194. चतुर्नवत्यधिकशतम्
195. पञ्चनवत्यधिकशतम्
196. षण्णवत्यधिकशतम्
197. सप्तनवत्यधिकशतम्
198. अष्टनवत्यधिकशतम्
199. नवनवत्यधिकशतम्
200. द्विशती द्विशतम्/द्विशतकम् शतद्वयम् इसी प्रकार
201 (एकाधिकद्विशती) आदि संख्याएँ लिखी जायेंगी। उपर्युक्त नियम के अनुसार
200 के ऊपर संख्यावाचक शब्द
201 एकाधिकद्विशतम्।
301 एकाधिकत्रिशतम्।
401 एकाधिकचतुःशतम्/एकोत्तरचतुःशतम्/एकाधिकं चतुःशतम्/एकोत्तरं चतुःशतम्।
500 पञ्चशतम्/शतपञ्चकम्/पञ्चशतकम्।
501 एकाधिकपञ्चशतम्/एकोत्तरपञ्चशतम्/एकाधिकं पञ्चशतम्/एकोत्तरं पञ्चशतम्।
502 यधिकपञ्चशतम्/द्वयुत्तरपञ्चशतम्/यधिकं पञ्चशतम्/द्युत्तरं पञ्चशतम्।
503 व्यधिकपञ्चशतम्/व्युत्तरपञ्चशतम्/त्र्यधिकं पञ्चशतम्/युत्तरं पञ्चशतम्।
504 चतुरधिकपञ्चशतम्/चतुरुत्तरपञ्चशतम्/चतुरधिकं पञ्चशतम्/चतुरुत्तरं पञ्चशतम्।
505 पञ्चाधिकपञ्चशतम्/पञ्चोत्तरपञ्चशतम्/पञ्चाधिकं पञ्चशतम्/पञ्चोत्तरं पञ्चशतम्।
506 षडधिकपञ्चशतम्/षडुत्तरपञ्चशतम्/षडधिकं पञ्चशतम्/षडुत्तरं पञ्चशतम्।
507 सप्ताधिकपञ्चशतम्/सप्तोत्तरपञ्चशतम्/सप्ताधिकं पञ्चशतम्/सप्तोत्तरं पञ्चशतम्।
508 अष्टाधिकपञ्चशतम्/अष्टोत्तरपञ्चशतम्/अष्टाधिकं पञ्चशतम्/अष्टोत्तरं पञ्चशतम्।
509 नवाधिकपञ्चशतम्/नवोत्तरपञ्चशतम्/नवाधिकं पञ्चशतम्/नवोत्तरं पञ्चशतम्।
510 दशाधिकपञ्चशतम्/दशोत्तरपञ्चशतम्/दशाधिकं पञ्चशतम्/दशोत्तरं पञ्चशतम्।
517 सप्तदशाधिकपञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरपञ्चशतम्।सप्तदशाधिकं पञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरं पञ्चशतम्।
600 षट्शतम्/शतषट्कम्/षट्शतकम्।
625 पञ्चविंशत्यधिकषट्शतम्/पञ्चविंशत्यधिकं षट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरं षट्शतम्।
637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्/सप्तत्रिंशदुत्तरषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्।
646 षट्चत्वारिंशदधिकषट्शतम् षट्चत्वारिशदधिकं षट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरषट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरं षट्शतम्।
655 पञ्चपञ्चाशदधिकषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्।
666 षट्षष्ट्यधिकषट्शतम्/षट्षष्ट्यधिकं षट्शतम्/षट्षष्ट्युत्तरषट्शतम् षट्षष्ट्युत्तरं षट्शतम्।
673 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्/त्रिसप्तत्यधिकं षट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरषट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरं षट्शतम्।
684 चतुरशीत्यधिकषट्शतम्/चतुरशीत्यधिक षट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरषट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरं षट्शतम्।
695 पञ्चनवत्यधिकषट्शतम्/पञ्चनवत्यधिक षट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरं षट्शतम्।
700 सप्तशतम्/शतसप्तकम्/सप्तशतकम्।
704 चतुरधिकसप्तशतम्/चतुरुत्तरसप्तशतम्/चतुरधिकं सप्तशतम्/चतुरुत्तरं सप्तशतम्।
795 पञ्चनवत्यधिकसप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरसप्तशतम्/पञ्चनवत्यधिकं सप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरं सप्तशतम्।
800 अष्टशतम्/शताष्टकम्/अष्टशतकम्।
805 पञ्चाधिकाष्टशतम्/पञ्चोत्तराष्टशतम्/पञ्चाधिकमष्टशतम्/पञ्चोत्तरमष्टशतम्।
900 नवशतम्/शतनवकम्/नवशतकम्।
1000 सहस्रम् (एक हजार)।
1324 चतुविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/चतुविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ चौबीस/एक हजार तीन सौ चौबीस)।
1325 पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/पञ्चविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ पच्चीस/एक हजार तीन सौ पच्चीस)।
1928 अष्टाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशतम्/अष्टाविंशत्यधिकनवशताधिकसहस्रम् (उन्नीस सौ अट्ठाइस/एक हजार नौ सौ अट्ठाईस)।
1939 एकोनचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशतम्/एकोनचत्वारिंशदधिकनवशताधिकसहस्रम् (उन्नीस सौ उन्तालीस/एक हजार नौ सौ उन्तालीस)।
10,000 अयुतम् (दस हजार)।
59637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शताधिकनवसहस्राधिकपञ्चायुतम् (उनसठ हजार, छ: सौ सैंतीस)।
(i) शतम् सहस्रम्, अयुतम्, लक्षम् इत्यादि शब्द नित्य एकवचनान्त ही प्रयुक्त होते हैं।
(ii) कोटि तथा दशकोटि शब्द के रूप स्त्रीलिंग में ‘मति’ शब्द के समान बनेंगे। जैसे –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

‘शत’ ‘सहस्र’, ‘लक्ष’, ‘कोटि’ और ‘दशकोटि संख्यावाची शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम् 1

संख्या जानने के लिए ‘कति’ (कितने) शब्द से प्रश्न बनाया जाता है। अतः विद्यार्थियों की सुविधा के लिए ‘कति’ शब्द के रूप दिये जा रहे हैं।

विभक्ति – कति (कितने)

प्रथमा – कति
द्वितीया – कति
तृतीया – कतिभिः
चतुर्थी – कतिभ्यः
पंचमी – कतिभ्यः
षष्ठी – कतीनाम्
सप्तमी – कतिषु

नोट – (i) ‘कति’ के रूप तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।
(ii) कति शब्द के रूप नित्य बहुवचनान्त बनते हैं।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानां उत्तरस्य उचित विकल्प चित्वा लिखत –
(i) ‘2021’ इत्यस्य संस्कृतभाषायां रूप भवति
(क) एकविंशत्यधिकैकशतम्
(ख) एकविंशतिद्विशतम्
(ग) एकविंशतिशतम्
(घ) एकविंशत्यधिकद्विशतम्
उत्तरम् :
(ख) एकविंशतिद्विशतम्

(ii) लता समीपे ……………… (110) रूप्यकाणि सन्ति।
(क) दशीनशतम्
(ख) एकादशशतम्
(ग) दशाधिकशतानि
(घ) दशशतम्
उत्तरम् :
(ग) दशाधिकशतानि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

(iii) अस्माकं ग्रामे …………….. (3000) जनाः सन्ति ।
(क) त्रिसहस्र
(ख) त्रिसहस्राणि
(ग) त्रिसहस्रनं
(घ) त्रिसहस्रस्य
उत्तरम् :
(ख) त्रिसहस्राणि

(iv) विद्यालये …………….. (500) छात्राः सन्ति।
(क) पञ्चदशशतम्
(ख) पञ्चाशत्
(ग) पञ्चाधिकशतं
(घ) पञ्चशतम्
उत्तरम् :
(घ) पञ्चशतम्

(v) सीता तस्मै ……………… (175) रूप्यकाणि ददाति।
(क) पञ्चसप्तत्यधिकशतानि
(ख) पञ्चदशशतानि
(ग) पञ्चसप्ततिशतानि
(घ) पञ्चसप्तदशशतानि
उत्तरम् :
(क) पञ्चसप्तत्यधिकशतानि

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 103,
(ख) 180
उत्तरम् :
(क) व्यधिकशतम्,
(ख) अशीत्यधिकैकशतम्।

प्रश्न 3.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 117
(ख) 180
उत्तरम् :
(क) सप्तदशाधिकैकशतम्,
(ख) अशीत्यधिकैकशतम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 4.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 401
(ख) 183
उत्तरम् :
(क) एकाधिकचतुः शतम्,
(ख) त्र्यशीत्यधिकैकशतम्।

प्रश्न 5.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 115
(ख) 231
उत्तरम् :
(क) पञ्चदशाधिकशतम्,
(ख) एकत्रिंशदधिकद्विशतम्।

प्रश्न 6.
अधोलिखितसंख्याः संस्कृतभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
188 – अष्टाशीत्यधिकशतम्।
159 – एकोनषट्यधिकशतम्।
300 – त्रिशतम्।
1965 – पञ्चषष्ट्यधिकैकोनविंशतिशतम्।
2000 – द्विसहस्रम्।
101 – एकाधिकशतम्।
140 – चत्वारिंशदधिकशतम्।
165 – पञ्चषष्ट्यधिकशतम्।
177 – सप्तसप्तत्यधिकशतम्।

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प्रश्न 7.
अधोलिखित संख्याशब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
एकपञ्चाशदधिकशतम् – 151
एकाधिकद्विशतम् – 201
एकत्रिंशदधिकत्रिशतम् – 331
पञ्चचत्वारिंशदधिकचतुः शतम् – 445
दशाधिकपञ्चशतम् – 510

प्रश्न 8.
अधोलिखितसंख्याशब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्
1325 चतुःशतम् एकसप्तत्यधिकशतम्
171 नवाधिकशतम्
109 द्विशतम्
सप्तदशाधिकपञ्चशतम्
517 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्

प्रश्न 9.
अधोलिखित संख्याशब्दान् संस्कृत भाषायां लिखत।
उत्तरम् :
620 – विंशत्यधिकषट्शतम्
751 – एकपञ्चाशदधिकसप्तशतम्
1021 – एकविंशत्यधिकसहस्रम्
1513 – त्रयोदशाधिकपञ्चदशशतम्
1966 – षट्पष्ट्यधिकैकोनविंशतिशतम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 10.
अधोलिखित संख्याशब्दान् संस्कृत भाषायां लिखत।
उत्तरम् :
2000 – द्विसहस्रम्
2020 – विंशत्यधिकद्विसहस्त्रम्
5200 – द्विशताधिकपञ्चसहस्त्रम्
10000 – दशसहस्रम्
1500000 – पञ्चदशलक्षम्

प्रश्न 11.
निम्नलिखितसंख्याः संस्कृतभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
111 – एकादशाधिकशतम्
125 – पञ्चविंशत्यधिकशतम्
131 – एकत्रिंशदधिकशतम्
501 – एकाधिकपञ्चशतम्
650 – पञ्चाशदधिकष्टशतम्

प्रश्न 12.
अधोलिखित संख्या शब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
पञ्चसप्तत्यधिकसप्तशतम् – 775
चत्वरिंशदधिकाष्टशतम् – 840
त्रिंशदधिकनवशतम् – 930
पञ्चषष्ट्यधिकनवशतम् – 965
एकाधिकसहस्रम् – 1001
अष्टाधिकसहस्रम् – 1008

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 13.
अधोलिखित संख्या शब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
शताधिकसहस्रम् – 1100
एकादशाधिकैकादशशतम् – 1111
पंचविंशदधिकचतुर्दशशतम् – 1425
पंचाशित्यधिकपञ्चदशशतम् – 1585
चतुरशित्यधिकाष्टादशशतम् – 1884
एकोनद्विसहस्रम् – 1999

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

धातु – क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे – पठ् (पढ़ना), गम् (जाना), हस् (हँसना), क्रीड् (खेलना) आदि। धातु दो प्रकार की होती हैं –
1. सकर्मक – जिन धातुओं के साथ अपना कर्म रहता है वे सकर्मक धातुएँ होती हैं, जैसे- पठ्, गम आदि।
2. अकर्मक – जिन धातुओं के साथ अपना कर्म नहीं रहता, वे अकर्मक धातुएँ होती हैं, जैसे- वृद्धि, नर्तन, निद्रा आदि।

पद – संस्कृत भाषा में तीन पद होते हैं –

  1. परस्मैपद – जिन क्रियाओं का फल कर्ता को प्राप्त न होकर किसी अन्य व्यक्ति को मिलता है वह परस्मैपद धातु कहलाती है।
  2. आत्मनेपद – जिन क्रियाओं का फल कर्ता स्वयं प्राप्त करता है वे आत्मनेपदी धातु होती हैं।।।
  3. उभयपद – जो धातुएँ परस्मैपद तथा आत्मनेपद दोनों में प्रयोग की जाती हैं उन्हें उभयपदी धातु कहते हैं। पाठ्यक्रम में निर्धारित धातु रूप इस प्रकार हैं –

परस्मैपद धातव –
(i) भू, पठ्, हस्, वच्, लिख्, अस्, हन्, पा, नृत्, आप्, शक्, कृ, ज्ञा, चिन्त् तथा इनकी समानार्थक धातुएँ।
(ii) आत्मनेपद- सेव, लभ्, रुच्, मुद्, याच्।
(ii) उभयपद – नी, हृ, भज, पच्।

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गण-क्रिया को संस्कृत में ‘धातु’ कहते हैं। संस्कृत की समस्त धातुओं को 10 गणों में बाँटा गया है। इन गणों के नाम इनकी प्रथम धातु के आधार पर रखे गये हैं। गण तथा उनकी कुछ मुख्य धातुएँ इस प्रकार हैं –

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लकार: – 1. लट् लकार-वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। जिस काल में क्रिया का प्रारम्भ होना तथा चालू रहना सूचित होता हो और क्रिया की समाप्ति न पाई जाये, उसे वर्तमान काल कहते हैं ; जैसे – ‘रामः पुस्तकं पठति’-राम पुस्तक पढ़ता है, यहाँ पर पठन क्रिया प्रचलित है तथा समाप्ति का बोध नहीं होता। अतः वर्तमान काल है। इसी प्रकार ‘सः लिखति’ (वह लिखता है), ‘ते गच्छन्ति’ (वे जाते हैं) आदि वाक्यों में भी वर्तमान काल समझना चाहिए।

2. लृट् लकार – लृट् लकार का प्रयोग भविष्यत् काल में होता है अर्थात् क्रिया का वह काल जिसमें क्रिया का प्रारम्भ होना तो न पाया जाये किन्तु उसका आगे होना पाया जाये, उसे भविष्यत् काल कहते हैं; जैसे –

‘स: वाराणसीं गमिष्यति’ (वह वाराणसी जायेगा)। इस वाक्य में गमन क्रिया का आगे होना पाया जाता है। अतः यह भविष्यत् काल है। इसके लिए लट् लकार का प्रयोग किया जाता है।

3. लङ् लकार – अनद्यतन भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग होता है। अनद्यतन भूत वह काल है जो आज का न हो, अर्थात् आज बारह बजे रात से पूर्व का काल अथवा आज प्रातः से पूर्व का समय; जैसे . देवदत्तः विद्यालयम् अगच्छत्। (देवदत्त विद्यालय गया।)

4. लोट् लकार – लोट् लकार का प्रयोग आज्ञा देने के अर्थ में होता है। अतः सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे ‘आज्ञा काल’ कहते हैं। यथा-‘देवदत्तः गृहं गच्छतु। (देवदत्त घर जाये)। यहाँ देवदत्त को घर जाने की आज्ञा दी गई है। अतः लोट् लकार का प्रयोग हुआ है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

5. विधिलिङ् – इस लकार का प्रयोग विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अभीष्ट, सलाह और प्रार्थना आदि अर्थों में किया जाता है। सामान्यतः यह ‘चाहिए’ वाले वाक्य में प्रयुक्त होता है। जैसे – ‘देवदत्तः इदं कार्य कुर्यात्।’ (देवदत्त को यह कार्य करना चाहिए), ‘स: गृहं गच्छेत्’ (उसे घर जाना चाहिए)।

धातु-रूप 

1. भू(होना) धातु (वर्तमान काल) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 2

2. गम् (गच्छ्) (जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 3

3. इष (इच्छ) (इच्छा करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 4

4. प्रच्छ (पृच्छ) (पूछना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 5

5. लिख (लिखना) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 6

6. हन् (मारना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 7

7. भी (डरना) धातु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 8

8. दा (देना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 9

9. नृत् (नाचना) धातु परस्मैपदी

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10. जन् (पैदा होना) धातुः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 11

11. कृ (कर) (करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 12

12. की (द्रव्यविनिमये) धातु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 13

13. क्रीड् (खेलना) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 14

14. चिन्त् (चिन्तय) (सोचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 15

15. त्यज् (हानौ) धातुः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 16

16. सेव् (सेवा करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 17

17. लभ् (पाना) धातु आत्मनेपदी

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अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित वाक्येषु सम्यक् विकल्प चिनुत् –
1. ‘भाष्’ धातोः लङ्लकारः उत्तम पुरुष, द्विवचने रूपं भवति –
(क) अभाषत
(ख) अभाषध्वम्
(ग) अभाषावहि
(घ) अभाषथाः
उत्तरम् :
(ग) अभाषावहि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

2. ‘वद्’ धातोः लङ्लकार उत्तमपुरुष एकवचने रूपं भवति –
(क) अवदम्
(ख) वदति
(ग) वदथः
(घ) वदिष्यथः।
उत्तरम् :
(क) अवदम्

3. इष् धातोः लट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) इच्छसि
(ख) इच्छामः
(ग) एषिष्यामि
(घ) इच्छामि।
उत्तरम् :
(घ) इच्छामि।

4. प्रच्छ धातोः लुट्लकारस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) प्रक्ष्यन्ति
(ख) प्रक्ष्यसि
(ग) प्रक्ष्यतः
(घ) प्रक्ष्यामः
उत्तरम् :
(क) प्रक्ष्यन्ति

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5. हन् धातोः लोट्लकारस्य मध्यमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) हनतु
(ख) जहि
(ग) हत
(घ) हतम्
उत्तरम् :
(ख) जहि

6. भी धातोः लङलकारस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क), अबिभेत्
(ख) अबिभेः
(ग) अबिभीत
(घ) अबिभयुः
उत्तरम् :
(घ) अबिभयुः

7. दा धातोः विधिलिङ्लकारे मध्यमपुरुषैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) दद्युः
(ख) दद्यात्
(ग) दद्याः
(घ) दद्याव
उत्तरम् :
(ग) दद्याः

8. नृत् धातोः लुट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) नृत्यन्ति
(ख) नृत्यथ
(ग) नर्तिष्यामः
(घ) नृत्येमः
उत्तरम् :
(ग) नर्तिष्यामः

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9. जन् धातोः लङलकारस्य मध्यमपुरुषैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) जाये
(ख) जायै
(ग) अजाये
(घ) जायेम
उत्तरम् :
(ग) अजाये

10. क्री धातोः लट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) क्रीणीमः
(ख) क्रेष्यामः।
(ग) क्रीणाम
(घ) अक्रीणीम
उत्तरम् :
(क) क्रीणीमः

11. चिन्त् धातोः विधिलिङलकारस्य उत्तमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) चिन्तयेत्
(ख) चिन्तयेयम्
(ग) चिन्तयानि
(घ) चिन्तयेः
उत्तरम् :
(ख) चिन्तयेयम्

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12. त्यज़ धातोः लट्लकारस्य मध्यमपुरुषस्य बहवचने रूपं भविष्यति –
(क) त्यजथ
(ख) त्यजत
(ग) त्यक्ष्यथ
(घ) त्यजेत
उत्तरम् :
(ग) त्यक्ष्यथ

प्रश्न 2.
निर्देशानुसारं धातुरूपं लिखित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(निर्देशानुसार धातुरूप लिखकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
1. महान्तं विकार …………………. (कृ, लट् लकार)
2. अयं योगी परिव्राजकः ……………. (क्रीड्, लुट लकार)
3. त्वं मां खादितुम् ………………. (इच्छ, लृट् लकार)
4. जनाः मयि स्नानं ……………….. (कृ, लट् लकार)
उत्तराणि-
1. करिष्यति
2. क्रीडिष्यति
3. एषिष्यसि
4. करिष्यन्ति।

प्रश्न 3.
अधोलिखितेषु वाक्यानां रिक्तस्थानेषु निर्देशानुसारं धातु-रूपं लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों के रिक्तस्थानों में निर्देशानुसार धातुरूप लिखिए)
1. सिंहः एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा …………… । (चिन्त, लङ्लकार)
2. सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानम् ……………… (कृ, लङ् लकार)
4. अन्येऽपि पशवः भयभीताः ……………… (भू, लङ्लकार)
5. चञ्चलः नदी जलम्………….. (पृच्छ, लङ्लकार)
6. नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम्…………….. (त्यज, लङ् लकार)
उत्तराणि :
1. अचिन्तयत्
2. अकरोत्
3. अभवन्
4. अपृच्छत्
5. अत्यजन्।

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प्रश्न 4.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत –
(उचित धातु रूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए-)
(i) विद्यार्थी ज्ञानं …………………………… (लभ-लट्लकारे, आत्मनेपदी)
(ii) श्वः मम मित्रं …………………………….. (गम्-लुटलकारे)
(iii) शिक्षकः विद्यालये किं …………. (कृ-लुट्लकारे)
(iv) शिष्यः गुरून् …………………….. (सेव्-लोट्लकारे)
(v) श्व: भौमवासरः ………. (भू लुट्लकारे)
(vi) सः संगीतमाध्यमेन निर्माणम् ………… (कृ-लङ्लकारे)
(vii) मन्द-मन्दम् पवनः मधुरं संगीतं ………….. (जन् लट्लकारे)
(viii) आयुष्मान् …………………… (भू-लोट्लकारे)
(ix) रीना शीघ्रम् उन्नति ……………….. (कृ-लट्लकारे)
(x) तौ गुरुम् ………………… (सेव्-लट्लकारे)
(xi) वयं विद्यालयं ………………. (गम्- लट्लकारे)
उत्तरम् :
(i) लभते
(ii) गमिष्यति
(iii) करोति
(iv) सेवताम्
(v) भविष्यति
(vi) अकरोत्
(vii) जनयति
(viii) भव
(ix) करोति
(x) सेवेते
(xi) गमिष्यामः

प्रश्न 5.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत – (उचित धातुरूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए)
(i) रमा सीता च श्वः तत्र …………… (गम्)
(ii) सः प्रातः व्यायामं ……… (कृ)
(iii) ह्यः अहं विद्यालयम् …………….. (गम्)
(iv) सीता ह्यः मातुः पत्रम् …………… (लभ)
उत्तरम् :
(i) गमिष्यतः
(ii) करोति
(iii) अगच्छम्
(iv) अलभत।

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प्रश्न 6.
निर्देशानुसारं धातु-रूपं लिखत –
(निर्देशानुसार धातुरूप लिखिए-)
1. भू (लोट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
2. दृश् (लट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन)
3. गम् (विधिलिङ् लकार उत्तम पुरुष द्विवचन)
4. चिन्त् (लट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
5. गम् (लट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
6. सेव् (लट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
7. कृ (विधिलिङ् लकार उत्तम पुरुष एकवचन)
8. जन् (लङ् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन)
9. क्रीड् (लोट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
10. लिख (लट् लकार उत्तम पुरुष एकवचन)
11. इष् (इच्छ्) (लुट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
उत्तराणि :
1. भवत
2. पश्यसि
3. गच्छेव
4. चिन्तयथः
5. गमिष्यथ:
6. सेवध्वे
7. कुर्याम्
8. अजायन्त
9. क्रीडतम्
10. लेखिष्यामि
11. एषिष्यथ।

प्रश्न 7.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) क्रीडति
(ii) करोमि
(iii) जनिष्ये
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 19

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 8.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) भवथ
(ii) गच्छामः
(iii) इच्छसि
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 20

प्रश्न 9.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) पृच्छन्ति
(ii) अपृच्छत्
(iii) लिखन्ति
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 21

प्रश्न 10.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) लिखेम
(ii) हनिष्यामः
(iii) हन्याः
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 22

प्रश्न 11.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत
(i) बिभ्यन्ति
(ii) भेस्यथ
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 23

प्रश्न 12.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) ददति
(ii) अदत्ताम्
(iii) नर्तिस्यथः
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 24

प्रश्न 13.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) जायसे
(ii) कुरुथः
(iii) कुर्याम्
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 25

प्रश्न 14.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) क्रेष्यथ:
(ii) क्रीडानि
(iii) क्रीडेयम्
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 26

प्रश्न 15.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) चिन्तयिष्यथ:
(ii) त्यजताम्
(iii) सेवते
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 27

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

JAC Class 10 Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर :
गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में व्यंग्य का भाव छिपा हुआ है। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण के साथ ही रहते थे, पर फिर भी उनके हृदय में पूरी तरह से प्रेमहीनता थी। वे प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त थे। उनका मन किसी के प्रेम में डूबता नहीं था। श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी वे प्रेमभाव से वंचित थे।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर :
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पत्ता पानी में डूबा रहता है, पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती। उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। इसी तरह तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए हैं। उन्होंने उसे बडभागी’ कहकर प्रेम से रहित माना है, जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण गोपियाँ वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियों को पहले आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल जाएँगी, पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग-साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था।

गोपियों के अनुसार उद्धव का योग कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह उन्हें योगरूपी बीमारी देने वाला था। गोपियों ने जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव को उलाहने दिए हैं, वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्रतिपादन हुआ है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर :
गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि जला रही थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं, पर फिर भी उनके मन में हें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापस ब्रज-क्षेत्र में आएंगे, तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापस मिल उनके सामने प्रकट कर सकेंगी। पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आया तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई।

उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा। योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर :
श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के कारण गोपियों ने अपना सुख-चैन खो दिया था। उन्होंने घर-बाहर का विरोध करते हुए अपनी मान-मर्यादा की परवाह भी नहीं की, जिस कारण उन्हें सबसे भला-बुरा भी सुनना पड़ा। पर अब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भिजवाया, तब उन्हें ऐसा लगा कि कृष्ण के द्वारा उन्हें त्याग देने से उनकी पूरी मर्यादा नष्ट हो गई है। उनकी प्रतिष्ठा पूरी तरह से मिट ही गई है।

प्रश्न 6.
कृष्णा के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर :
गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। उन्हें सिवाय श्रीकृष्ण के कुछ और सूझता ही नहीं था। वे उनकी रूप माधुरी में इस प्रकार उलझी हुई थी, जिस प्रकार चींटी गुड़ पर आसक्त होती है। जब एक बार चींटी गुड़ से चिपट जाती है, तो फिर वहाँ से कभी छूट नहीं पाती। वे उसके लगाव में वहीं अपना जीवन त्याग देती हैं। गोपियों को ऐसा प्रतीत होता था कि उनका मन श्रीकृष्ण के साथ ही मथुरा चला गया है। वे हारिल पक्षी के तिनके के समान मन, वचन और कर्म से उनसे जुड़ी हुई थीं। उनकी प्रेम की अनन्यता ऐसी थी कि रात-दिन, सोते-जागते वे उन्हें ही याद करती रहती थीं।

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प्रश्न 7.
गोपियों ने उदधव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है, जिनके मन में चकरी हो; जो अस्थिर बुद्धि हो; जिनका मन चंचल हो। योग की शिक्षा उन्हें नहीं दी जानी चाहिए, जिनके मन प्रेम-भाव के कारण स्थिरता पा चुके हैं। ऐसे लोगों के लिए योग की शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर :
कोमल हृदय वाली गोपियाँ केवल श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती हैं। उनको कृष्ण की भक्ति ही स्वीकार्य है। योग-साधना से उनका कोई संबंध नहीं है। इसलिए वे मानती हैं कि जो युवतियों के लिए योग का संदेश लेकर घूमते रहते है, वे बड़े अज्ञानी हैं। संभव है कि योग महासुख का भंडार हो, पर गोपियों के लिए वह बीमारी से अधिक कुछ नहीं है।

योग के संदेश विरह में जलने वालों को और अधिक जला देते हैं। योग-साधना मानसिक रोग के समान है, जिसे गोपियों ने न कभी पहले सुना था और न देखा था। कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ योग गोपियों के लिए नहीं बल्कि चंचल स्वभाव वालों के लिए उपयुक्त है। गोपियों को योग संदेश भिजवाना किसी भी अवस्था में बुद्धिमत्ता का कार्य नहीं है। प्रेम की रीति को छोड़कर योग-साधना का मार्ग अपनाना मूर्खता है।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर :
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म होना चाहिए कि वह किसी भी दशा में प्रजा को न सताए। वह प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखे।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण जब ब्रज-क्षेत्र में रहते थे, तब गोपियों को बहुत अधिक प्रेम करते थे। लेकिन गोपियों को प्रतीत होता है कि मथुरा जाकर राजा बन जाने के पश्चात उनका व्यवहार बदल गया है। उन्होंने उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भिजवाकर अन्याय और अत्याचारपूर्ण कार्य किया है। वे अब उनको सुखी नहीं अपितु दुखी देखना चाहते हैं। वे राजनीति का पाठ पढ़ चुके हैं। वे अब चालें चलने लगे हैं। इसलिए गोपियाँ चाहती हैं कि वे उन्हें उनके हृदय वापस कर दें, जिन्हें मथुरा जाते समय वे चुराकर अपने साथ ले गए थे।

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प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत में गोपियाँ श्रीकृष्ण की याद में केवल रोती-तड़पती ही नहीं बल्कि उद्धव को उसका अनुभव करवाने के लिए मुस्कुराती भी हैं। वे उद्धव और कृष्ण को कोसती हैं और उन पर व्यंग्य भी करती हैं। उद्धव को अपने निर्गुण ज्ञान पर बड़ा अभिमान था, पर गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर उसे परास्त कर दिया। वे तों, उलाहनों और व्यंग्यपूर्ण उक्तियों से कभी अपने हृदय की वेदना प्रकट करती हैं, कभी रोने लगती हैं। उनका वाक्चातुर्य अनूठा है, जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ प्रमुख हैं –

1. निर्भीकता – गोपियाँ अपनी बात कहने में पूर्ण रूप से निडर और निर्भीक हैं। किसी भी बात को कहने में वे झिझकती नहीं हैं। योग-साधना को ‘कड़वी ककड़ी’ और ‘व्याधि’ कहना उनकी निर्भीकता का परिचायक है –

सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
सु तो व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

2. व्यंग्यात्मकता-वाणी में छिपा हुआ गोपियों का व्यंग्य बहुत प्रभावशाली है। उद्धव से मज़ाक करते हुए वे उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी वह उनके प्रेम से दूर ही रहा –

प्रीति-नदी मैं पाउँ बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।

व्यंग्य का सहारा लेकर वे श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र का ज्ञाता कहती हैं –

इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।’
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।

3. स्पष्टता – गोपियों को अपनी बात साफ़-साफ़ शब्दों में कहनी आती है। यदि वे बात को घुमा-फिरा कर कहना जानती हैं, तो उन्हें साफ़-स्पष्ट रूप में कहना भी आता है –

अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।

वे साफ़ स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करती हैं कि वे सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का नाम रटती रहती हैं –

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

पर वे क्या करें? वे अपने मुँह से अपने प्रेम का वर्णन नहीं करना चाहतीं। उनकी बात उनके हृदय में ही अनकही रह गई है।

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

4. भावुकता और सहृदयता-गोपियाँ भावुकता और सहृदयता से परिपूर्ण हैं, जो उनकी बातों से सहज ही प्रकट हो जाती हैं। जब उनकी भावुकता बढ़ जाती है, तब वे अपने हृदय की वेदना पर नियंत्रण नहीं रख सकती। उन्हें जिस पर सबसे अधिक विश्वास था; जिसके कारण उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की, जब वही उन्हें दुख देने के लिए तैयार था तब बेचारी गोपियाँ क्या कर सकती थीं –

अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही॥

सहृदयता के कारण ही वे श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानती हैं। वे स्वयं को मन-वचन-कर्म से श्रीकृष्ण का ही मानती हैं –

हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

वास्तव में गोपियाँ सहृदय और भावुक थीं, लेकिन समय और परिस्थितियों ने उन्हें चतुर और वाग्विदग्ध बना दिया। वाक्चातुर्य के आधार पर ही उन्होंने ज्ञानवान उद्धव को परास्त कर दिया था।

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प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी-साहित्य का भावपूर्ण उलाहनों को प्रकट करने वाला काव्य है। यह काव्य मानव हृदय की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम का सच्चा, भव्य और सात्विक पक्ष प्रस्तुत हुआ है। कवि ने कृष्ण और गोपियों के हृदय की गहराइयों को अनेक ढंगों से परखा है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम – गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ गहरा प्रेम था। वे उन्हें पलभर भी भुला नहीं पातीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन के आधार हैं, जिनके बिना वे पलभर जीवित नहीं रह सकतीं। वे उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान थे, जो उन्हें जीने के लिए मानसिक सहारा देते थे –

हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

गोपियाँ सोते-जागते श्रीकृष्ण की ओर अपना ध्यान लगाए रहती थीं। उन्हें लगता था कि उनका हृदय उनके पास था ही नहीं। उसे श्रीकृष्ण चुराकर ले गए थे। इसलिए वे अपने मन को योग की तरफ़ नहीं लगा सकती थीं।।

2. वियोग श्रृंगार – गोपियाँ हर समय श्रीकृष्ण के वियोग में तड़पती रहती थीं। वे उनकी सुंदर छवि को अपने मन से दूर नहीं कर पाती थीं। श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे, पर गोपियाँ रात-दिन उन्हीं की यादों में डूबकर उन्हें रटती रहती थीं –

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

वे अपने हृदय की वियोग पीड़ा को अपने मन में छिपाकर रखना चाहती थीं। वे उसे दूसरों के सामने कहना भी नहीं चाहती थीं। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे कभी-न-कभी अवश्य वापस आएँगे। श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण उन्होंने अपने जीवन में मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

3. व्यंग्यात्मकता – गोपियाँ भले ही श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, पर उन्हें सदा यही लगता था कि श्रीकृष्ण ने उनसे चालाकी की है; उन्हें धोखा दिया है। वे मथुरा में रहकर उनसे चालाकियाँ कर रहे हैं; राजनीति के खेल से उन्हें मूर्ख बना रहे हैं। इसलिए व्यंग्य करते हुए वे कहती हैं –

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

उद्धव पर व्यंग्य करते हुए वे उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं, जो प्रेम के स्वरूप श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम से दूर रहा। उसने कभी प्रेम की नदी में अपने पैर तक डुबोने का प्रयत्न नहीं किया। वे श्रीकृष्ण को बड़ी बुद्धि वाला मानती हैं, जिन्होंने उन्हें योग का पाठ भिजवाया था।

4. स्पष्टवादिता – गोपियाँ बीच-बीच में अपनी स्पष्टवादिता से प्रभावित करती हैं। वे योग-साधना को ऐसी ‘व्याधि’ कहती हैं, जिसके बारे में कभी देखा या सुना न गया हो। उनके अनुसार योग केवल उनके लिए ही उपयोगी हो सकता था, जिनके मन में चकरी हो; जो अस्थिर और चंचल हों।

5. भावुकता – गोपियाँ स्वभाव से ही भावुक और सरल हृदय वाली थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था और उसी प्रेम में डूबी रहना चाहती थीं। वे प्रेम में उसी प्रकार से मर-मिटना चाहती थीं, जिस प्रकार से चींटी गुड़ से चिपट जाती है और उससे अलग न होकर अपना जीवन गँवा देना चाहती है। भावुक होने के कारण वे योग के संदेश को सुनकर दुखी हो जाती हैं। अधिक भावुकता ही उनकी पीड़ा का बड़ा कारण बनती है।

6. सहज ज्ञान – गोपियाँ भले ही गाँव में रहती थीं, पर उन्हें अपने वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि राजा के अपनी प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य है और उसे क्या करना चाहिए

ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राजधरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए॥

7. संगीतात्मकता-सूरदास का भ्रमरगीत संगीतमय है। कवि ने विभिन्न राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर भ्रमरगीत की रचना की है। उनमें गेयता है, जिस कारण सूरदास के भ्रमरगीत का साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर :
गोपियाँ श्रीकृष्ण से अपार प्रेम करती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण के बिना वे रह ही नहीं सकतीं। जब श्रीकृष्ण ने उद्धव के द्वारा उन्हें योग-साधना का उपदेश भिजवाया, तब गोपियों का विरही मन इसे सहन नहीं कर सका और उन्होंने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए थे।

यदि गोपियों की जगह हमें तर्क देने होते, तो हम उद्धव से पूछते कि श्रीकृष्ण ने उनसे प्रेम करके फिर उन्हें योग की शिक्षा देने का कपट क्यों किया? उन्होंने मथुरा में रहने वाली कुब्जा को निर्गुण ब्रह्म का संदेश क्यों नहीं दिया? प्रेम सदा दो पक्षों में होता है। यदि गोपियों ने प्रेम की पीडा झेली थी, तो श्रीकृष्ण ने उस पीडा का अनुभव क्यों नहीं किया? यदि पीडा का अनुभव किया था, तो वे स्वयं ही योग-साधना क्यों नहीं करने लगे?

यदि गोपियों के भाग्य में वियोग की पीड़ा लिखी थी, तो श्रीकृष्ण ने उनके भाग्य को बदलने के लिए उद्धव को वहाँ क्यों भेजा? किसी का भाग्य बदलने का अधिकार किसी के पास नहीं है। यदि श्रीकृष्ण ने गोपियों को योग-साधना का संदेश भिजवाया था, तो अन्य सभी ब्रजवासियों, यशोदा माता, नंद बाबा आदि को भी वैसा ही संदेश क्यों नहीं भिजवाया? वे सब भी तो श्रीकृष्ण से प्रेम करते थे।

प्रश्न 14.
उद्धव जानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर :
किसी भी मनुष्य के पास सबसे बड़ी शक्ति उसके मन की होती है; मन में उत्पन्न प्रेम के भाव और सत्य की होती है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। उन्होंने अपने प्रेम के लिए सभी प्रकार की मान-मर्यादाओं की परवाह करनी छोड़ दी थी। जब उन्हें उद्धव के दुवारा श्रीकृष्ण के योग-साधना का संदेश मिला, तो उन्हें अपने प्रेम पर ठेस लगने का अनुभव हुआ।

उन्हें वह झेलना पड़ा था, जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी। उनके विश्वास को गहरा झटका लगा था, जिस कारण उनकी आहत भावनाएँ फूट पड़ी थीं। उद्धव चाहे ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; पर वे गोपियों के हृदय में छिपे प्रेम, विश्वास और आत्मिक बल का सामना नहीं कर पाए। गोपियों के वाक्चातुर्य के सामने वे किसी भी प्रकार टिक नहीं पाए।

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प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गोपियों ने सोच-विचारकर ही कहा था कि अब हरि राजनीति पढ़ गए हैं। राजनीति मनुष्य को दोहरी चालें चलना सिखाती है। श्रीकृष्ण गोपियों से प्रेम करते थे और प्रेम सदा सीधी राह पर चलता है। जब वे मथुरा चले गए थे, तो उन्होंने उद्धव के माध्यम से गोपियों को योग का संदेश भिजवाया था। कृष्ण के इस दोहरे आचरण के कारण ही गोपियों को कहना पड़ा था कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं।

गोपियों का यह कथन आज की राजनीति में साफ़-साफ़ दिखाई देता है। नेता जनता से कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं। वे धर्म, अपराध, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में दोहरी चालें चलकर जनता को मूर्ख बनाते हैं और अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी करनी-कथनी में सदा अंतर दिखाई देता है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पदों की सबसे बड़ी विशेषता है गोपियों की वाग्विदग्धता’। आपने ऐसे और चरित्रों के बारे में पढ़ा या सुना होगा जिन्होंने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई; जैसे-बीरबल, तेनालीराम, गोपालभांड, मुल्ला नसीरुद्दीन आदि। अपने किसी मनपसंद चरित्र के कुछ किस्से संकलित कर एक एलबम तैयार करें।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

प्रश्न 2.
सूर रचित अपने प्रिय पदों को लय एवं ताल के साथ गाएँ।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

JAC Class 10 Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
‘श्रमरगीत’ से आपका क्या तात्यर्य है?
उत्तर :
‘भ्रमरगीत’ दो शब्दों-‘भ्रमर’ और ‘गीत’ के मेल से बना है। ‘भ्रमर’ छ: पैर वाला एक काला कीट होता है। इसे भंवरा भी कहते हैं। ‘गीत’ गाने का पर्याय है। इसलिए ‘भ्रमरगीत’ का शाब्दिक अर्थ है-भँवरे का गान, भ्रमर संबंधी गान या भ्रमर को लक्ष्य करके लिखा गया गान। श्रीकृष्ण ने उद्धव को मथुरा से निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान देकर ब्रज-क्षेत्र में भेजा था ताकि वह विरह-वियोग की आग में झुलसती गोपियों को समझा सके कि श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को भुलाकर योग-साधना में लीन होना ही उनके लिए उचित है।

गोपियों को उद्धव की बातें कड़वी लगी थीं। वे उसे बुरा-भला कहना चाहती थीं, पर मर्यादावश श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए उद्धव को वे ऐसा कह नहीं पातीं। संयोगवश एक भँवरा उड़ता हुआ वहाँ से गुजरा। गोपियों ने झट से भँवरे को आधार बनाकर अपने हृदय में व्याप्त क्रोध को सुनाना आरंभ कर दिया। उद्धव का रंग भी भँवरे के समान काला था। इस प्रकार भ्रमरगीत का अर्थ है-‘उद्धव को लक्ष्य करके लिखा गया गान’। कहीं-कहीं गोपियों ने श्रीकृष्ण को भी ‘भ्रमर’ कहा है।

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प्रश्न 2.
सूरदास के ‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य है-‘ज्ञान और योग का खंडन करके निर्गुण भक्ति के स्थान पर सगुण भक्ति की प्रतिष्ठा करना।’ सूरदास ने उद्धव की पराजय दिखाकर ऐसा करने में सफलता प्राप्त की है।

प्रश्न 3.
भ्रमरगीत में प्रयुक्त सूरदास की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत की भाषा ब्रज है। उन्होंने अत्यंत मार्मिक शब्दावली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लालित्य है। उन्होंने व्यंग्य-प्रधान शब्दों का सहजता और सुंदरता से प्रयोग किया है। उनकी उलाहने भरी भाषा और चुभते हुए शब्द बहुत अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उनकी भाषा में व्यंजना शक्ति और प्रभाव-क्षमता के साथ माधुर्य और प्रसाद गुणों की अधिकता है। उनका शब्द-चयन सुंदर और भावानुकूल है।

प्रश्न 4.
भ्रमरगीत के आधार पर गोपियों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत में गोपियाँ अत्यंत निर्भीक, स्वाभिमानी, वाक्पटु और हँसमुख हैं। उनमें नारी सुलभ लज्जा की अपेक्षा चंचलता की अधिकता है। वे उद्धव से बिना किसी संकोच के बातचीत ही नहीं करतीं बल्कि अपनी वाक्चातुरी का परिचय भी देती हैं। वे अपने प्रेम के लिए सामाजिक-पारिवारिक मर्यादाओं का विरोध करने में भी नहीं झिझकतीं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसी, ज्यौं करुई ककरी।
स तौ व्याधि हमकौं ले आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥

(क) श्रीकृष्ण गोपियों के लिए किस पक्षी की लकड़ी के समान हैं?
(i) कबूतर की
(ii) तीतर की
(iii) हारिल की
(iv) तोता की
उत्तर :
(iii) हारिल की।

(ख) गोपियाँ सोते-जागते किस नाम का जाप करती रहती हैं?
(i) कान्ह-कान्ह
(ii) नंद-नंद
(iii) राम-राम
(iv) पान्ह-पान्ह
उत्तर :
(i) कान्ह-कान्ह

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(ग) योग का संदेश गोपियों को किसके समान लगता है?
(i) तीखी मूली
(ii) कड़वी ककड़ी
(iii) मीठी तोरई
(iv) कड़वा खीरा
उत्तर :
(ii) कड़वी ककड़ी

(घ) ‘सु तौ व्याधि हमकौं ले आए’-पंक्ति में व्याधि का क्या अर्थ है?
(i) बाधा
(ii) रोग
(iii) शिकारी
(iv) मरीज
उत्तर :
(ii) रोग

(ङ) योग संदेश को गोपियाँ कैसे लोगों के लिए उपयुक्त मानती है?
(i) जिनके मन शांत और गंभीर हैं।
(ii) जिनके मन चकरी की भाँति अस्थिर हैं।
(iii) जिनके पास वैभव है।
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
(ii) जिनके मन चकरी की भाँति अस्थिर हैं।

2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, विरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार वही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।

(क) गोपियों के मन में किसके दर्शन की इच्छा अधूरी रह गई?
(i) श्रीकृष्ण की
(ii) यशोदा की
(iii) उद्धव की
(iv) सूरदास की
उत्तर :
(i) श्रीकृष्ण की

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ख) गोपियाँ किससे संदेश प्राप्त करती हैं?
(i) उद्धव से
(ii) सुदामा से
(iii) श्रीकृष्ण से
(iv) सूरदास से
उत्तर :
(i) उद्धव से

(ग) किसने प्रेम की मर्यादा का उल्लंघन किया है?
(i) गोपियों ने
(ii) श्रीकृष्ण ने
(iii) उद्धव ने
(iv) बलराम ने
उत्तर :
(ii) श्रीकृष्ण ने

(घ) उद्धव कृष्ण का कौन-सा संदेश लेकर आए थे?
(i) प्रेम-संदेश
(ii) अनुराग-संदेश
(iii) योग-संदेश
(iv) वैदिक संदेश
उत्तर :
(iii) योग-संदेश

(ङ) गोपियाँ तन-मन की व्यथा क्यों सहन कर रही थीं?
(i) उद्धव से मिलने की आस में
(ii) नंदबाबा से मिलने की आस में
(iii) बलराम से मिलने की आस में
(iv) श्रीकृष्ण से मिलने की आस में
उत्तर :
(iv) श्रीकृष्ण से मिलने की आस में

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

3. ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी में पाउँ! न बोर्यो, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी॥

(क) बड़भागी का संबोधन किसके लिए किया गया है?
(i) श्रीकृष्ण
(ii) प्रेमी
(iii) क्रोधी
(iv) उद्धव
उत्तर :
(i) श्रीकृष्ण

(ख) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है?
(i) कुमुदिनी के पत्तों से
(ii) बारिश की बूंदों से
(iii) नदी की लहरों से
(iv) गुड़ पर चिपकी चींटियों से
उत्तर :
(iv) गुड़ पर चिपकी चीटियों से

(ग) गोपियों द्वारा उद्धव की तुलना किससे की गई है?
(i) पानी में उगे कमल के पत्तों से
(ii) पानी में पड़ी रहने वाली तेल की गगरी से
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(i) और (ii) दोनों

(घ) उद्धव किनके संग रहकर भी उनके प्रेम से वंचित रहे?
(i) नंदबाबा के
(ii) माता-पिता के
(iii) श्रीकृष्ण के
(iv) सुदामा के
उत्तर :
(iii) श्रीकृष्ण के

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ङ) ‘अपराध रहत सनेह तगा तें’-पंक्ति में ‘तगा’ का क्या भाव निहित है?
(i) ताकना
(ii) धागा
(iii) दगा देना
(iv) बंधन
उत्तर :
(iv) बंधन

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) सूरदास के पद किस भाषा में रचित हैं?
(i) अवधी भाषा
(ii) ब्रजभाषा
(iii) भोजपुरी
(iv) मैथिली भाषा
उत्तर :
(ii) ब्रजभाषा

(ख) सूरदास किस रस के महान कवि हैं?
(i) करुण रस
(ii) संयोग शृंगार रस
(iii) वियोग शृंगार रस और वात्सल्य रस।
(iv) भयानक रस
उत्तर :
(iii) वियोग शृंगार रस और वात्सल्य रस

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ग) ‘अवधि आधार आस आवन की’ पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार है –
(i) रूपक अलंकार
(ii) अनुप्रास अलंकार
(iii) यमक अलंकार
(iv) श्लेष अलंकार
उत्तर :
(ii) अनुप्रास अलंकार

(घ) ‘मधुकर’ का संबोधन किसके लिए किया गया है?
(i) श्रीकृष्ण के लिए
(ii) सुदामा के लिए
(iii) उद्धव के लिए
(iv) बलराम के लिए
उत्तर :
(iv) बलराम के लिए

सिप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

पद :

1. ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

शब्दार्थ बड़भागी – भाग्यवान। अपरस – अलिप्त; नीरस, अछूता। तगा – धागा; डोरा; बंधन। पुरइनि पात – कमल का पत्ता। रस – जल। न दागी – दाग तक नहीं लगता। माहँ – में। प्रीति-नदी – प्रेम की नदी। पाउँ – पैर। बोरयौ – डुबोया परागी – मुग्ध होना। भोरी – भोली। गुर चाँटी ज्यौं पागी – जिस प्रकार चौंटी गुड़ में लिपटती है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद कृष्ण-भक्ति के प्रमुख कवि सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ से लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित किया गया है। गोपियाँ सगुण प्रेमपथ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करती हैं और मानती हैं कि वे किसी भी प्रकार स्वयं को श्रीकृष्ण के प्रेम से दूर नहीं कर सकतीं।

व्याख्या – गोपियाँ उद्धव की प्रेमहीनता पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! तुम सचमुच बड़े भाग्यशाली हो, क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त हो; अनासक्त हो और तुम्हारा मन किसी के प्रेम में डूबता नहीं । तुम श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम बंधन से उसी तरह मुक्त हो, जैसे कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है पर फिर भी उस पर जल का एक दाग भी नहीं लग पाता; उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती।

इसी प्रकार तुम भी श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं करते और उनके प्रभाव से सदा मुक्त बने रहते हो। तुमने आज तक कभी भी प्रेमरूपी नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देखकर भी उसमें उलझी नहीं। पर हम तो भोली-भाली अबलाएँ हैं, जो अपने प्रियतम श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रेम में उसी प्रकार उलझ गई हैं जैसे चींटी गुड़ पर आसक्त हो उस पर चिपट जाती है और फिर कभी छूट नहीं पाती; वह वहीं प्राण त्याग देती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों ने किसके प्रति अपनी अनन्यता प्रकट की है?
3. ‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य-भाव को स्पष्ट कीजिए।
4. उद्धव के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन क्यों नहीं था?
5. सूरदास ने किन दृष्टांतों से उद्धव की अनासक्ति को प्रकट किया है ?
6. पद में निहित गेयता का आधार स्पष्ट कीजिए।
7. ‘गुर चींटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को प्रतिपादित कीजिए।
8. अंतिम पंक्तियों में गोपियों ने स्वयं को ‘अबला’ और ‘भोरी’ क्यों कहा है ?
9. उद्धव के मन में अनुराग नहीं है, फिर भी गोपियाँ उन्हें बड़भागी क्यों कहती हैं ?
10. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
11. इस पद में परोक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है?
12. उद्धव को बड़भागी किस लिए कहा गया है ?
13. गोपियों ने ऊधो को क्या कहा है?
14. ‘पुरइनि पात’ के माध्यम से कवि ने क्या कहा है?
उत्तर :
1. गोपियाँ उद्धव की प्रेमहीनता का मजाक उड़ाती हुए कहती हैं कि उसके हृदय में प्रेम की भावना का अभाव है। वह पूर्ण रूप से प्रेम के बंधन से मुक्त और अनासक्त है। उसने कभी प्रेम की नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और उसकी आँखें श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देखकर भी उनमें नहीं उलझीं। लेकिन हम गोपियाँ तो भोली-भाली थीं और श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी पर आसक्त हो गईं। अब हम किसी भी अवस्था में उस प्रेम-भाव से दूर नहीं हो सकतीं।

2. गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है। उनकी अनन्यता श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रति है।

3. गोपियों के द्वारा प्रयुक्त ‘अति बड़भागी’ शब्द व्यंग्य के भाव को अपने भीतर छिपाए हुए है। मज़ाक में गोपियाँ उद्धव को बड़ा भाग्यशाली मानती हैं, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति प्रेम-भाव में नहीं बँधा।

4. उद्धव निर्गुण ब्रह्म के प्रति विश्वास रखता था। उसका ब्रह्म रूप आकार से परे था, इसलिए वह स्वयं को श्रीकृष्ण के साकार रूप के प्रति नहीं बाँध पाया। उसके हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन भाव नहीं था।

5. सूरदास ने उद्धव को अनासक्त और श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सर्वथा मुक्त माना है। सूरदास कहते हैं कि जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा जल में रहता है, पर फिर भी उस पर जल की एक बूंद तक नहीं ठहर पाती; उसी प्रकार उद्धव श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति भक्ति भावों से रहित था। तेल की किसी मटकी को जल के भीतर डुबोने पर उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती, उसी प्रकार उद्धव के हृदय पर श्रीकृष्ण की भक्ति थोड़ा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकी थी।

6. सूरदास के द्वारा रचित पद ‘राग मलार’ पर आधारित है। इसमें स्वर-मैत्री का सफल प्रयोग और ब्रज–भाषा की कोमलकांत शब्दावली गेयता के आधार बने हैं।

7. गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भरा मन चाहकर भी कहीं और नहीं टिकता। वे पूरी तरह से अपने प्रियतम की रूप-माधुरी पर आसक्त थीं; उनके प्रेम में पगी हुई थीं। जिस प्रकार चींटी गुड़ पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती है और फिर छूट नहीं पाती; वह वहीं अपने प्राण दे देती है। इसी तरह गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव में डूबी रहना चाहती हैं और कभी उनसे दूर नहीं होना चाहतीं।

8. गोपियों ने स्वयं को ‘भोरी’ कहा है। वे छल-कपट और चतुराई से दूर थीं, इसलिए वे अपने प्रियतम की रूप-माधुरी पर शीघ्रता से आसक्त हो गईं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण से किसी भी प्रकार से दूर करने में असमर्थ मानती थीं। वे चाहकर भी उन्हें प्राप्त नहीं कर सकतीं, इसलिए उन्होंने स्वयं को अबला कहा है।

9. श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी उद्धव के मन में प्रेम-भाव नहीं है। इस कारण उसे विरह-भाव का अनुभव नहीं होता; उसे वियोग की पीड़ा नहीं उठानी पड़ती। इसलिए गोपियों ने उद्धव को बड़भागी कहा है।

10. उद्धव के व्यवहार की तुलना पानो पर तैरते कमल के पत्ते और जल में पड़ी तेल की मटकी से की गई है। दोनों पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी तरह उद्धव भी सब प्रकार से अनासक्त था।

11. इस पद में उद्धव को समझाया गया है कि वह ज्ञानवान है: नीतिवान है, प्रेम से विरक्त है, इसलिए उसका प्रेम-संदेश गोपियों के लिए निरर्थक है। श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न गोपियों पर उसके उपदेश का कोई असर नहीं होने वाला था।

12. उद्धव को बड़भागी व्यंग्य में कहा गया है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम में नहीं डब पाया।

13. गोपियों ने उधव से कहा है कि वह अभागा है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी उनके प्रेम से दूर रहा, गोपियाँ स्पष्ट कहती हैं कि वे कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव से समर्पित हैं। वे किसी भी अवस्था में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को नहीं त्याग सकती।

14. ‘पुरइनि पात’ के माध्यम कवि ने उन लोगों पर कटाक्ष किया है, जो संसार में रहकर भी प्रेम-मार्ग पर नहीं चल पाते; जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति विरक्त बने रहते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. कवि ने पद में किस भाषा का प्रयोग किया है?
2. गोपियों की भाषा में किस भाव की अधिकता है ?
3. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
4. गोपियों के प्रेम-भाव में निहित विशिष्टता को स्पष्ट कीजिए।
5. यह पद किस काव्य-विधा से संबंधित है?
6. इस पद में कौन-सा काव्य गुण प्रधान है?
7. ‘अति बड़भागी’ में कौन-सी शब्द-शक्ति निहित है?
8. भक्तिकाल के किस भाग से इस पद का संबंध है?
9. गोपियों का कथन किस भाव-मुद्रा से संबंधित है?
10. पद को संगीतात्मकता किस गुण ने प्रदान की है?
11. किन्हीं दो प्रयुक्त तद्भव शब्दों को लिखिए।
उत्तर
1. ब्रजभाषा।
2. व्यंग्य भाव।

3. अनुप्रास –
सनेह तगा तैं,
पुरइनि पात रहत,
ज्यौं जल।

उपमा –
गुर चाँटी ज्यौं पागी। रूपक
अपरस रहत सनेह तगा तें
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ।

उदाहरण –
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।

दृष्टांत –
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

4. सूरदास के इस पद में गोपियों की निश्छल प्रेम-भावना की अभिव्यक्ति हुई है। वे कृष्ण के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। उनके प्रेम को ठेस लगाने वाला कोई भी विचार उन्हें क्रोधित कर देता है। क्रोध-प्रेरित व्यंग्य उनके प्रेम-भाव की विशिष्टता है।

5. नीति काव्य।
6. माधुर्य गुण।
7. लक्षणा शब्दशक्ति।
8. कृष्ण भक्ति काव्य।
9. वक्रोक्ति।
10. छंद प्रयोग और स्वर मैत्री के प्रयोग।
11. अपरस, सनेह।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही॥

शब्दार्थ : माँझ – में। अधार – आधार; सहारा। आवन – आगमन; आने की। बिथा – व्यथा। सँदेसनि – संदेश। बिरहिनि – वियोग में जीने वाली। बिरह दही – विरह की आग में जल रही। हुती – थी। गुहारि – रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तें – जहाँ से। उत – उधर; वहाँ। धार – धारा; लहर। धीर – धैर्य। मरजादा – मर्यादा; प्रतिष्ठा। लही – नहीं रही; नहीं रखी।

प्रसंग – प्रस्तुत पद भक्त सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। श्रीकृष्ण के द्वारा ब्रज भेजे गए उद्धव ने गोपियों को ज्ञान का उपदेश दिया था, जिसे सुनकर वे हताश हो गई थीं। वे श्रीकृष्ण को ही अपना एकमात्र सहारा मानती थीं, पर उन्हीं के द्वारा भेजा हुआ हृदय-विदारक संदेश सुनकर वे पीड़ा और निराशा से भर उठीं। उन्होंने कातर स्वर में उद्धव के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई थी।

व्याख्या – गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे मन में छिपी बात तो मन में ही रह गई। हम सोचती थीं कि जब श्रीकृष्ण वापिस आएँगे, तब हम उन्हें विरह-वियोग में झेले सारे कष्टों की बातें सुनाएँगी। परंतु उन्होंने निराकार ब्रह्म को प्राप्त करने का संदेश भेज दिया है। उनके द्वारा त्याग दिए जाने पर अब हम अपनी असहनीय विरह-पीड़ा की कहानी किसे जाकर सुनाएँ? हमसे यह और अधिक कही भी नहीं जाती। अब तक हम उनके वापस लौटने की उम्मीद के सहारे अपने तन और मन से इस विरह-पीड़ा को सहती आ रही थीं।

अब इन योग के संदेशों को सुनकर हम विरहिनियाँ वियोग में जलने लगी हैं। विरह के सागर में डूबती हुई हम गोपियों को जहाँ से सहायता मिलने की आशा थी; जहाँ हम अपनी रक्षा के लिए पुकार लगाना चाहती थीं, अब उसी स्थान से योग संदेशरूपी जल की ऐसी प्रबल धारा बही है कि यह हमारे प्राण लेकर ही रुकेगी अर्थात श्रीकृष्ण ने हमें योग-साधना करने का संदेश भेजकर हमारे प्राण ले लेने का कार्य किया है। हे उद्धव! तुम्हीं बताओ कि अब हम धैर्य धारण कैसे करें? जिन श्रीकृष्ण के लिए हमने अपनी सभी मर्यादाओं को त्याग दिया था, उन्हीं श्रीकृष्ण के द्वारा हमें त्याग देने से हमारी संपूर्ण मर्यादा नष्ट हो गई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों की कौन-सी मन की बात मन में ही रह गई?
3. गोपियाँ अब किसके पास जाने का साहस नहीं कर सकतीं और क्यों?
4. गोपियाँ अब तक विरह-वियोग को किस आधार पर सहती आ रही थीं?
5. योग के संदेशों ने गोपियों के हृदय पर क्या प्रभाव डाला था?
6. गोपियाँ किससे गुहार लगाना चाहती थीं?
7. ‘धार बही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
8. ‘मरजादा न लही’ से क्या तात्पर्य है?
9. गोपियाँ किसे अपनी मर्यादा समझती थीं?
10. गोपियों के लिए प्रिय और अप्रिय क्या है?
उत्तर :
1. गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे सोच भी नहीं सकती थीं कि उन्हें कभी उनके प्रेम से वंचित होना पड़ेगा। उद्धव द्वारा दिए जाने वाले निर्गुण भक्ति के ज्ञान ने उनके धैर्य को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। वे निराशा के भावों से भर उठी थीं और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उनकी मर्यादा पूरी तरह से नष्ट हो गई है।

2. गोपियाँ अपने हृदय की पीड़ा श्रीकृष्ण को सुनाना चाहती थीं, लेकिन निर्गुण ज्ञान के संदेश को सुनकर वे कुछ न कर पाईं। उनके वियोग से उत्पन्न पीड़ा संबंधी बात उनके मन में ही रह गई।

3. गोपियाँ अब श्रीकृष्ण के पास जाकर अपनी वियोग से उत्पन्न पीड़ा को कहने का साहस नहीं कर सकती थीं। गोपियों को पहले विश्वास था कि जब कभी श्रीकृष्ण मिलेंगे, तब वे उन्हें अपनी पीड़ा सुनाएँगी। लेकिन अब श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्धव द्वारा निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें संदेश रूप में भेज दिया था।

4. गोपियाँ अब तक विरह-वियोग को इस आधार पर सहती आ रही थीं कि वे श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और श्रीकृष्ण भी उनसे उतना ही प्रेम करते हैं। परिस्थितियों के कारण उन्हें अलग होना पड़ा है। वे श्रीकृष्ण के प्रेम के आधार पर विरह-वियोग को सहती आ रही थीं।

5. योग के संदेशों ने गोपियों के हृदय को अपार दुख से भर दिया था। उन संदेशों ने उनके प्राण लेने का काम कर दिया था।

6. गोपियाँ उन श्रीकृष्ण से गुहार लगाना चाहती थीं, जिनके प्रेम के प्रति उन्हें अपार विश्वास था। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ने उद्धव के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म का संदेश भिजवाकर उनके प्रेम को धोखा दिया था।

7. ‘धार बही’ लाक्षणिक प्रयोग है। गोपियों को प्रतीत होता है कि निर्गुण भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बहकर उन तक पहुँचती है। उन्होंने ही उद्धव को उनके पास निर्गुण ज्ञान की धारा ले जाने के लिए भेजा है।

8. गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को ही अपनी मर्यादा मानती थीं। लेकिन जब स्वयं श्रीकृष्ण ने निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें भिजवा दिया, तो उनकी उस प्रेम संबंधी मर्यादा का कोई अर्थ ही नहीं रहा। ‘मरजादा न लही’ से तात्पर्य उनके प्रेम भाव के प्रति श्रीकृष्ण का वह संदेश था, जिसके कारण गोपियों ने अपने जीवन की सभी सामाजिक-धार्मिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

9. गोपियाँ अपने प्रति श्रीकृष्ण के प्रेम को ही अपनी मर्यादा समझती थीं।

10. गोपियों के लिए कृष्ण का प्रेम प्रिय और योग का संदेश अप्रिय है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है ?
2. प्रयुक्त भाषा-शैली का नाम लिखिए।
3. किन्हीं दो तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
4. कौन-सा काव्य गुण प्रधान है?
5. कवि ने किस रस का प्रयोग किया है ?
6. किसने लयात्मकता की सृष्टि की है?
7. कवि ने किस प्रकार की शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है?
8. किस शब्द में प्रतीकात्मकता विद्यमान है?
9. किस शब्द शक्ति ने गोपियों के स्वर को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
10. यह पद किस काल से संबंधित है?
11. पद में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. ब्रजभाषा।
2. नीति काव्य/गीति-शैली।
3. विथा, माँझ।
4. माधुर्य गुण।
5. वियोग श्रृंगार रस।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. कोमलकांत ब्रजभाषा के प्रयोग में तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
8. ‘धार’ में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
9. लाक्षणिकता के प्रयोग ने गोपियों के स्वर को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
10. हिंदी साहित्य के भक्तिकाल से।
11. अनुप्रास –
मन की मन ही माँझ,
सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही,
धीर धरहिं

रूपकातिशयोक्ति –
उत तँ धार बही

पुनरुक्ति प्रकाश –
सुनि-सुनि

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

3. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दुद करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
सु तो व्याधि हम को लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तो सूर’ तिनहिं ले सौंपी, जिनके मन चकरी॥

शब्दार्थ हरि – श्रीकृष्ण। हारिल की लकरी – एक पक्षी, जो अपने पंजों में सदा कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकड़े रहता है। क्रम – कर्म। नंद-नंदन – श्रीकृष्ण। उर – हृदय। पकरी – पकड़ना। कान्ह – कृष्ण। जकरी – रटती रहती है। करुई – कड़वी। ककरी – ककड़ी। व्याधि – बीमारी, पीड़ा पहुँचाने वाली वस्तु। तिनहिं – उनको। मन चकरी – जिनका मन स्थिर नहीं होता।

प्रसंग – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित सूरदास के पदों से लिया गया है। गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अपार प्रेम था। मथुरा आने के बाद श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव के निर्गुण ज्ञान पर सगुण भक्ति की विजय के लिए उन्हें गोपियों के पास भेजा था। गोपियों ने उद्धव के निर्गुण ज्ञान को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट किया कि उनका प्रेम केवल श्रीकृष्ण के लिए है। उनका प्रेम अस्थिर नहीं है।

व्याख्या – श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम की दृढ़ता को प्रकट करते हुए गोपियों ने उद्धव से कहा कि श्रीकृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बन गए हैं। जैसे हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, वैसे हम भी सदा श्रीकृष्ण का ध्यान करती हैं ! हमने मन, द के नंदन श्रीकृष्ण के रूप और उनकी स्मृति को कसकर पकड़ लिया है। अब कोई भी उसे हमसे छुड़ा नहीं सकता। हमारा मन जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा कृष्ण-कृष्ण की रट लगाए है; वह सदा उन्हीं का स्मरण करता है। हे उद्धव!

तुम्हारी योग की बातें सुनकर हमें ऐसा लगता है, मानो कड़वी ककड़ी खा ली हो! तुम्हारी योग की बातें हमें बिलकुल अरुचिकर लगती हैं। तुम हमारे लिए योगरूपी ऐसी बीमारी लेकर आए हो, जिसे हमने न तो कभी देखा, न सुना और न कभी भोगा है। हम तुम्हारी योगरूपी बीमारी से पूरी तरह अपरिचित हैं। तुम इस बीमारी को उन लोगों को दो, जिनके मन सदा चकई के समान चंचल रहते हैं। भाव है कि हमारा मन श्रीकृष्ण के प्रेम में दृढ और स्थिर है। जिनका मन चंचल है, वही योग की बातें स्वीकार कर सकते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियाँ कृष्ण को ‘हारिल की लकड़ी’ क्यों कहती हैं?
3. गोपियों ने श्रीकृष्ण को किस प्रकार अपने हृदय में धारण कर रखा था?
4. गोपियाँ कब-कब श्रीकृष्ण को रटती थीं?
अथवा गोपियों को रात-दिन किस बात की रट लगी रहती है? क्यों?
5. उद्धव की योग संबंधी बातें गोपियों को कैसी लगती थीं?
6. गोपियों की दृष्टि में ‘व्याधि’ क्या थीं?
7. गोपियों ने व्याधि को किसे देने की सलाह दी?
8. गोपियों के अनुसार योग संबंधी बातें कौन स्वीकार कर सकते हैं?
अथवा
गोपियों को योग कैसा लगता है और वस्तुतः उनकी आवश्यकता कैसे लोगों को है ?
9. गोपियों के लिए योग व्यर्थ क्यों था?
उत्तर :
1. गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति गहरा प्रेम-भाव है। उनका हृदय दृढ़ और स्थिर है। श्रीकृष्ण के प्रति चित्त-वृत्ति होने के कारण उन्हें योग का संदेश व्यर्थ लगता है।
2. गोपियों ने कृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान माना था। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकडे रहता है, उसी तरह गोपियों के हृदय ने भी श्रीकृष्ण को पकड लिया है।
3. गोपियों ने श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान अपने हृदय धारण कर रखा था।
4. गोपियाँ श्रीकृष्ण को जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा रटती रहती थीं, क्योंकि वे उनसे प्रेम करती थीं और उन्हें पाना चाहती थीं।
5. उद्धव की योग संबंधी बातें गोपियों को कड़वी ककड़ी के समान लगती थीं।
6. गोपियों की दृष्टि में उद्धव के द्वारा बताई जाने वाली योग संबंधी बातें ही ‘व्याधि’ थीं।
7. गोपियों ने सलाह दी कि उद्धव योगरूपी व्याधि उन्हें दें, जिनका मन चकई के समान सदा चंचल रहता है।
8. गोपियों को योग रूपी ज्ञान व्यर्थ लगता था। उनके अनुसार योग-संबंधी बातें वही लोग स्वीकार कर सकते हैं, जिनका मन अस्थिर होता है। जिनका मन पहले ही श्रीकृष्ण के प्रेम में स्थिर हो चुका हो, उनके लिए योग व्यर्थ था।
9. गोपियों का मन श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति में पूरी तरह से डूब गया था। वे स्वयं को मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण का मानती थीं; इसलिए उनके लिए योग व्यर्थ था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. यह पद हिंदी साहित्य के किस काल से संबंधित है ?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है ?
3. पद में किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. कौन-सा काव्य रस प्रधान है?
5. काव्य की कौन-सी शैली प्रयुक्त हुई है?
6. कवि ने किस राग पर गेयता का गुण आधारित किया है ?
7. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहन-गंभीरता प्रदान की है?
8. पद में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
9. पद में से ब्रजभाषा के पाँच शब्दों को चुनकर उनके सही रूप लिखिए।
10. पद में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. भक्तिकाल से।
2. ब्रजभाषा।
3. माधुर्य गुण।
4. वियोग शृंगार।
5. गीति शैली।
6. राग सारंग।
7. लाक्षणिकता ने।
8. जोग, करुई।
9. तद्भव तत्सम
बचन – वचन
जोग – योग
ककरी – ककड़ी
ब्याधि – व्याधि
निसि – निशि

10. रूपक –
हमारे हरि हारिल की लकरी।

अनुप्रास –
हमारे हरि हारिल,
जागत सोवत स्वप्न दिव

स-निसि,
करुई ककरी,
नंद-नंदन

उपमा –
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।

रूपकातिशयोक्ति –
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए।

स्वरमैत्री –
देखी सुनी न करी।

पुनरुक्तिप्रकाश –
कान्ह-कान्ह।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

4. हरि है राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।

शब्दार्थ : मधुकर – भँवरा, उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त संबोधन। हुते – थे। पठाए – भेजा। आगे के – पहले के। पर हित – दूसरों के कल्याण के लिए। डोलत धाए – घूमते-फिरते थे। फेर – फिर से। पाइहैं – पा लेंगी। अनीति – अन्याय।

प्रसंग – प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ प्रसंग से लिया गया है, जोकि हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। गोपियों ने उद्धव से निर्गुण-भक्ति संबंधी जिस ज्ञान को पाया था, उससे वे बहुत व्यथित हुईं। उन्होंने कृष्ण को कुटिल राजनीति का पोषक, अन्यायी और धोखेबाज़ सिद्ध करने का प्रयास किया है।

व्याख्या – गोपियाँ श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए योग संदेश को उनका अन्याय और अत्याचार मानते हुए कहती हैं कि हे सखी! अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। यह भँवरा हमसे जो बात कह रहा है, वह क्या तुम्हें समझ आई ? क्या तुम्हें कुछ समाचार प्राप्त हुआ? एक तो श्रीकृष्ण पहले ही बहुत चतुर-चालाक थे और अब गुरु ने उन्हें ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान इसी बात से हो गया है कि वे युवतियों के लिए योग-साधना का संदेश भेज रहे हैं।

यह सिद्ध हो गया है कि वे बुद्धिमान नहीं हैं, क्योंकि कोई भी युवतियों के लिए योग-साधना को उचित नहीं मान सकता। हे उद्धव! पुराने ज़माने के सज्जन दूसरों का भला करने के लिए इधर-उधर भागते-फिरते थे, पर आजकल के सज्जन दूसरों को दुख देने और सताने के लिए ही यहाँ तक दौड़े चले आए हैं। हम केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए, जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय चुपचाप चुराकर अपने साथ ले गए थे। पर उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम की आशा कैसे की जा सकती है!

वे तो दूसरों के द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को छुड़ाने का प्रयत्न करते हैं। भाव यह है कि हम श्रीकृष्ण से प्रेम करने की रीति अपना रहे थे, पर वे चाहते हैं कि हम प्रेम की रीति को छोड़कर योग-साधना के मार्ग को अपना लें। यह अन्याय है। सच्चा राजधर्म उसी को माना जाता है, जिसमें प्रजाजन को कभी न सताया जाए। श्रीकृष्ण अपने स्वार्थ के लिए हमारे सारे सुख-चैन को छीनकर हमें दुखी करने की कोशिश कर रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों ने क्यों कहा कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है? अथवा गोपियाँ उद्धव से क्यों कहती हैं- “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।”
3. गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ से क्या कहना चाहा है ?
4. पुराने जमाने में सज्जन क्या करते थे?
5. गोपियों के अनुसार आजकल के सज्जन उनके पास क्या करने आए थे?
6. गोपियाँ क्या पाना चाहती थीं?
7. कृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ क्या ले गए थे?
8. कृष्ण के व्यवहार में गोपियों की अपेक्षा क्या अंतर था?
9. सच्चा राजधर्म किसे कहा गया है?
उत्तर :
1. गोपियाँ श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र में निपुण एक स्वार्थी और धोखेबाज़ राजनीतिज्ञ सिद्ध करना चाहती थी, जो मथुरा जाते समय उनके मन को चुराकर अपने साथ ले गए थे। अब वे उनके प्रेमभाव को लेकर बदले में योग-साधना का पाठ पढ़ाना चाहते थे। वे कृष्ण को राजधर्म की शिक्षा देना चाहती थीं।

2. गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, क्योंकि अब वे प्रेम के संबंध में राजनीति के क्षेत्र में अपनायी जाने वाली कुटिलता और छल-कपट से काम लेने लगे हैं। वे अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीनकर उन्हें दुखी करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

3. गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ में व्यंजना का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण की बुद्धि कितनी बड़ी थी- इसका अनुमान इसी बात से हो गया कि वे युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे हैं। इससे तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान श्रीकृष्ण ने अच्छा कार्य नहीं किया। कोई मूर्ख ही युवतियों के लिए योग-साधना को उचित मान सकता था, बुद्धिमान नहीं।

4. पुराने जमाने में लोग दूसरों का उपकार करने के लिए इधर-उधर भागते फिरते थे।

5. गोपियों के अनुसार आजकल के सज्जन दूसरों को दुख देने और सताने के लिए उन तक दौड़े चले आते हैं।

6. गोपियाँ केवल अपना-अपना मन वापस पाना चाहती थीं, जिन्हें श्रीकृष्ण चुराकर अपने साथ मथुरा ले गए थे।

7. श्रीकृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ गोपियों का मन चुराकर ले गए थे।

8. श्रीकृष्ण का व्यवहार गोपियों की अपेक्षा भिन्न था। गोपियाँ प्रेम की राह पर चलना चाहती थीं, परंतु कृष्ण चाहते थे कि गोपियाँ प्रेम की राह छोड़कर योग-साधना पर चलना आरंभ कर दें।

9. सच्चा राजधर्म प्रजा को सदा सुखी रखना कहा गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
2. कवि ने किन शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है?
3. गोपियों के माध्यम से किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
4. कवि ने किसकी सुंदर व्याख्या करने की चेष्टा की है?
5. किस काव्य गुण का प्रयोग किया गया है?
6. स्वरमैत्री का प्रयोग क्यों किया गया है?
7. किन्हीं दो तद्भव शब्दों को चुनकर लिखिए।
8. किस काव्य-शैली का प्रयोग किया गया है ?
9. किसी एक मुहावरे को चुनकर लिखिए।
10. पद से अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. ब्रजभाषा का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग दिखाई देता है।
3. गोपियों ने व्यंजना का प्रयोग किया है। कृष्ण और उद्धव पर मार्मिक और चुभता हुआ व्यंग्य किया गया है।
4. कवि द्वारा नीति की सुंदर व्याख्या करने की सफल चेष्टा की गई है।
5. माधुर्य गुण का प्रयोग है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. जोग, धरम।
8. गीति शैली।
9. हृदय चुराना।

10. अनुप्रास –

  • हरि हैं
  • समाचार सब पाए।
  • गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
  • बढ़ी बुद्धि जानी जो।
  • क्यौँ अनीति करें आपुन।
  • जो प्रजा न जाहिं सताए।

वक्रोक्ति –

  • हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
  • बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
  • समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
  • ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।

सूरदास के पद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी में कृष्ण-काव्य की श्रेष्ठता का प्रमुख श्रेय महात्मा सूरदास को जाता है। वे साहित्याकाश के देदीप्यमान सूर्य थे, जिन्होंने भक्ति, काव्य और संगीत की त्रिवेणी बहाकर भक्तों, संगीतकारों और साधारणजन के मन को रससिक्त कर दिया था।

सूरदास का जन्म सन 1478 ई० की वैशाख पंचमी को वल्लभगढ़ के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार इनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था। वे सारस्वत ब्राह्मण थे। इसके अतिरिक्त उनकी पारिवारिक स्थिति का कुछ और ज्ञान नहीं है। सूरदास नेत्रहीन थे परंतु यह अब तक निश्चित नहीं हो पाया कि वे जन्मांध थे अथवा बाद में अंधे हुए।

उनके काव्य में दृश्य जगत के सूक्ष्मातिसूक्ष्म दृश्यों का सजीव अंकन देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे जन्मांध हों। चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार वे संन्यासी वेष में मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे। यहीं उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई थी।

उन्होंने सूरदास को अपने संप्रदाय में दीक्षित कर उन्हें भागवत के आधार पर लीलापद रचने को कहा। गुरु आज्ञा से वे श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन और स्व-रचित पदों का गायन करने लगे। उन्होंने तैंतीस वर्ष की अवस्था में श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन करना आरंभ किया था और सन 1583 ई० तक मृत्युपर्यंत र नियमित रूप से यह कार्य करते रहे। उनका देहांत पारसौली में हुआ था। मान्यता है कि अपने 105 वर्ष के जीवन में उन्होंने लगभग सवा लाख पदों की रचना की। सूरदास ने भागवत के आधार पर कृष्णलीला संबंधी पदों की रचना की, जो बाद में संगृहीत होकर ‘सूरसागर’ कहलाने लगा। अब इसमें मात्र चार-पाँच हजार पद हैं।

इसके अतिरिक्त सूर-कृत लगभग चौबीस ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है, पर उनकी प्रामाणिकता विवादास्पद है। उनके तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं – ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’ और ‘साहित्य लहरी’। ‘सूर सारावली’ एक प्रकार से सूरसागर की विषय-सूची सी है और ‘साहित्य लहरी’ में सूरसागर से लिए गए कूट पदों का संग्रह है। इस प्रकार ‘सूरसागर’ ही उनकी कीर्ति का आधार स्तंभ बन जाता है। इसमें भागवत की तरह बारह स्कंध हैं, पर यह भागवत का अनुवाद नहीं है और न ही इसमें भागवत जैसी वर्णनात्मकता है।

यह एक गेय मुक्तक काव्य है, जिसमें श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवन का चित्रण न करके उनकी लीलाओं का विस्तारपूर्वक फुटकर पदों में वर्णन किया है। सूरदास को ‘वात्सल्य’ और ‘शृंगार’ का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। इन्होंने मानव-जीवन की सहज-स्वाभाविक विशेषताओं को अति सुंदर ढंग से कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया। राधा और कृष्ण के प्रेम की प्रतिष्ठा करने में इन्होंने अपार सफलता प्राप्त की। इनकी कविता 3 में कोमलकांत ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। इन्होंने गीति काव्य का सुंदर रूप प्रस्तुत किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

पदों का सार :

सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में संकलित ‘भ्रमरगीत’ से लिए गए चार पदों में गोपियों के विरह-भाव को प्रकट किया गया है। : ब्रजक्षेत्र से मथुरा जाने के बाद श्रीकृष्ण ने गोपियों को कभी कोई संदेश नहीं भेजा और न ही स्वयं वहाँ गए। जिस कारण गोपियों पीड़ा बढ़ गई थी। श्रीकृष्ण ने ज्ञान-मार्ग पर चलने वाले उद्धव को ब्रज भेजा ताकि वे गोपियों को संदेश देकर उनकी वियोग-पीड़ा को कुछ कम कर सकें, पर उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की पीड़ा को घटाने के स्थान पर बढ़ा दिया।

गोपियों को उद्धव के द्वारा दिया जाने वाला शुष्क निर्गुण संदेश बिलकुल भी पसंद नहीं आया। उन्होंने अन्योक्ति के द्वारा उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। उन्होंने उसके द्वारा ग्रहण किए गए निर्गुण-मार्ग को उचित नहीं माना। सूरदास ने इन भ्रमरगीतों के द्वारा निर्गुण भक्ति की पराजय और सगुण भक्ति की विजय दिखाने का सफल प्रयत्न किया है।

गोपियाँ मानती हैं कि उद्धव बड़े भाग्यशाली हैं, जिनके हृदय में कभी किसी के लिए प्रेम का भाव जागृत ही नहीं हुआ। वे तो श्रीकृष्ण के पास रहते हुए भी उनके प्रेम-बंधन में नहीं बँधे। जैसे कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है, पर फिर भी उस पर जल की बूंद नहीं ठहर पाती तथा तेल की मटकी को जल के भीतर डुबोने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती।

उद्धव ने प्रेम-नदी में कभी अपना पैर तक नहीं डुबोया, पर वे बेचारी भोली-भाली गोपियाँ श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य के प्रति रीझ गई थीं। वे उनके प्रेम में डूब चुकी हैं। उनके हृदय की सारी अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं। वे मन ही मन वियोग की पीड़ा को झेलती रहीं। योग के संदेशों ने उन्हें और भी अधिक पीड़ित कर दिया है। श्रीकृष्ण का प्रेम उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान है, जिसे वे कदापि नहीं छोड़ सकती।

उन्हें सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का ही ध्यान रहता है। योग-साधना का नाम ही उन्हें कड़वी ककड़ी-सा लगता है। वह उनके लिए किसी मानसिक बीमारी से कम नहीं है। गोपियाँ श्रीकृष्ण को ताना मारती हैं कि उन्होंने अब राजनीति पढ़ ली है। एक तो वे पहले ही बहुत चतुर थे और अब गुरु के ज्ञान को भी उन्होंने प्राप्त कर लिया है। गोपियाँ उद्धव को याद दिलाती हैं कि राजा को कभी भी अपनी प्रजा को नहीं सताना चाहिए: यही राजधर्म है।

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना पत्र-लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana पत्र-लेखनम्

कक्षा 10 की परीक्षा में पत्र-लेखन का ज्ञान अपेक्षित है। उक्त प्रश्न के अन्तर्गत दी गयी मंजूषा (तालिका) में दिये गये शब्दों के द्वारा पत्र के रिक्त स्थानों की पूर्ति करके पत्र को पूर्ण करना होता है। कुछ पत्र लिखवाये भी जा सकते हैं।
इन पत्रों को मुख्यतः हम दो भागों में विभाजित करते हैं – (1) औपचारिक (2) अनौपचारिक।

1. औपचारिक पत्र – ये व्यावसायिक अथवा कार्यालयीय पत्र होते हैं।
2. अनौपचारिक पत्र – ये पत्र नितान्त व्यक्तिगत होते हैं और अपने मित्रों, सम्बन्धियों, परिचितों एवं परिजनों को उनकी कुशल – क्षेम जानने, परामर्श, प्रेरणा, सन्देश आदि के आदान-प्रदान करने हेतु लिखे जाते हैं। इनमें किसी निश्चित प्रविधि
अथवा प्रारूप का पालन नहीं किया जाता, अपितु सम्बन्धों की घनिष्ठता के आधार पर इनका प्रारूप कुछ भी हो सकता है। औपचारिकताओं के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता, इसीलिए इन्हें अनौपचारिक पत्र कहा जाता है।

प्राचीनकाल में तो पत्र-लेखन-प्रणाली आज की प्रणाली से पूर्णतया भिन्न थी। उस समय पत्र-लेखन का आरम्भ ‘स्वस्ति’ या ‘शुभमस्तु’ से किया जाता था और प्रथम वाक्य में लिखने के स्थान अर्थात् लेखक के स्थान की सूचना देते हुए पत्र-लेखक जहाँ और जिसके पास अपना पत्र भेजना चाहता था, उसका उल्लेख करते हुए अपना परिचय (नाम-निवासादि) लिखता था, परन्तु वर्तमान काल में हिन्दी भाषा में लिखे जाने वाले पत्रों के समान संस्कृत में भी पत्र लिखे जाने लगे हैं। हिन्दी पत्र-लेखन पर अंग्रेजी पत्र-लेखन का प्रभाव स्पष्ट है। अतः यहाँ जो भी पत्र दिए जाएँगे, वे नूतन शैली पर ही होंगे।

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

पत्र – लेखन सम्बन्धी आवश्यक निर्देश

पत्र जितना संक्षिप्त एवं व्यवस्थित रूप में लिखा जाएगा, वह पाठक को उतना ही अधिक प्रभावित करेगा। अत: पत्र को अधिक आकर्षक, बोधगम्य एवं असंदिग्ध बनाने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए

  1. पत्र-लेखन बहुत ही सरल एवं स्पष्ट भाषा में होना चाहिए।
  2. वाक्य यथासंभव छोटे और सारगर्भित होने चाहिए।
  3. पत्र जिस उद्देश्य से लिखा जा रहा हो, उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
  4. पत्र में अनावश्यक बातों एवं विशेषणों का प्रयोग न करें।
  5. जिसके लिए पत्र लिखा जा रहा है, उसके लिए यथोचित संबोधन प्रयुक्त करना चाहिए।

संक्षेप में पत्र का प्रारूप

(i) स्थान ……………..
(ii) दिनाङ्क ……………

(iii) सम्बोधन
(iv) अभिवादन

(v) कुशल-सूचना (vi) सन्देश (मुख्य विषय) ……………………………………………………
…………………………………………………………………………………………
(vii) उपसंहार ……………………………………………………………………………………………..

(viii) पत्र लिखने वाले का नाम
(हस्ताक्षर)

1. अनौपचारिकपत्रम् :

1. पादकन्दुकस्पर्धायां विजयात् मित्राय वर्धापनपत्रम्
(फुटबाल प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने से मित्र के लिए बधाई-पत्र)

हनुमानगढ़तः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र स्वदेश !
नमो नमः।

अत्र कशलं तत्रास्त। अद्य चिरात तव पत्रं प्राप्तम। अहम अतीव हर्षम अनभवामि। भवान पादकन्दकस्पर्धायां विजयं प्राप्तवान् इति ज्ञात्वा महती प्रसन्नता जाता। सफलतायै अभिनन्दनम्। भवान् सम्यक् परिश्रमं करोति, अतः फलम् अपि प्राप्नोति। अत एव मां बहु आनन्दः अभवत्। भवत्सकाशमागन्तुं मम प्रायः अभिलाषा भवति। ग्रीष्मावकाशे अहं भवत्सकाशम् आगमिष्यामि।

अत्र मम अध्ययनं सम्यक् प्रचलति। आशासे भवतः अध्ययनम् अपि निर्विघ्नं तत्र प्रचलेत्। सर्वेभ्य: ज्येष्ठेभ्यः प्रणामाः कनिष्ठेभ्यः च आशिष: वक्तव्याः।

कुशलम् अन्यत्।

भवदभिन्न मित्रम्
मनोजः

हिन्दी-अनुवाद

हनुमानगढ़
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र स्वदेश!
नमो नमः।

यहाँ सब कुशल है, वहाँ भी हो। आज बहुत समय बाद तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। मैं अत्यन्त हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। तुमने फुटबाल प्रतियोगिता में विजय प्राप्त की, यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। सफलता के लिए अभिनन्दन। तुम अच्छी तरह परिश्रम करते हो, अत: फल भी प्राप्त करते हो। इसीलिए मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। तुम्हारे पास मेरी प्रायः आने की अभिलाषा होती है। ग्रीष्मावकाश में मैं तुम्हारे पास आऊँगा। यहाँ मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही है। आशा है, तुम्हारी पढ़ाई भी वहाँ निर्विघ्न चल रही होगी। सभी बड़ों को प्रणाम और छोटों को आशीर्वाद कहना।
शेष कुशल है।

तुम्हारा अभिन्न मित्र
मनोज

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

2. राकेशः पितृभ्यां सह हरिद्वारनगरं पर्यटनाय अगच्छत्। परावृत्य सः स्वमित्रं मुकेशं यात्रायाः संस्मरण-स्वरूपं पत्रं लिखति।

भरतपुरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र मुकेश !
सस्नेहं वन्दे !

अत्र कुशलं तत्रापि कुशली भवान्। अहं ग्रीष्मावकाशे हरिद्वारनगरं भ्रमणाय अगच्छम्। मम पितरौ अपि मया सह तत्र पर्यटनाय शोभा-दर्शनाय च अगच्छताम्। तत्र हरिसोपाने सायंकाले मन्दिरेषु घण्टानादं भवति। गङ्गा कलकलध्वनिना सह सामावकाश हारद्वारनगरं भ्रमणाय गच्छम्। मम पितरौ अपि मया सह तत्र प्रवहति। दर्शकाः तत्र एकत्रीभूय स्नानं कुर्वन्ति, हरिदर्शनं कुर्वन्ति, शोभां पश्यन्ति आनन्दं च अनुभवन्ति। आशासे यत् आगामिनि वर्षे ग्रीष्मावकाशे त्वम् अपि मया सह गमिष्यसि। तत्र तव स्वास्थ्यं शोभनम्, आनन्द-लाभश्च भविष्यति। मातापितरौ प्रणामाः अनुजायै च स्नेहाशिषा: वक्तव्याः। शेषं कुशलम् अस्ति।

भवदीयः अभिन्नहृदयः
राकेशः

हिन्दी-अनुवाद

(राकेश अपने माता-पिता के साथ हरिद्वार नगर को पर्यटन के लिए गया। लौटकर वह अपने मित्र मुकेश को यात्रा-संस्मरण स्वरूप पत्र लिखता है।)

भरतपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र मुकेश !
सस्नेह नमस्ते।

यहाँ कुशल है, वहाँ तुम भी सकुशल होगे। मैं ग्रीष्मावकाश में भ्रमण के लिए हरिद्वार नगर गया था। मेरे माता-पिता भी मेरे साथ पर्यटन और शोभादर्शन के लिए गये थे। वहाँ हरि की पौड़ी पर सायंकाल मन्दिरों में घण्टानाद होता है। गंगा . कलकल ध्वनि के साथ बहती है। दर्शक वहाँ इकट्ठे होकर स्नान करते हैं, हरिदर्शन करते हैं। शोभा देखते हैं और आनन्द का अनुभव करते हैं। मैं आशा करता हूँ कि अगले वर्ष ग्रीष्मावकाश में तुम भी मेरे साथ चलोगे। वहाँ तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा और आनन्द-लाभ होगा।

माता – पिता को प्रणाम और छोटी बहिन के लिए स्नेहयुक्त आशीर्वाद कहना। शेष कुशल है।

तुम्हारा अभिन्न हृदय
राकेश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

3. भवत: नाम अरुणः। भवान् छात्रावासे निवसति। आगरास्थितं ताजमहलं द्रष्टुकामः शैक्षिकभ्रमणाय गन्तुं भवान् इच्छति। तदर्थं धनप्रेषणाय पितरं प्रति पत्रं लिखत।

विद्याभवनछात्रावासः
उदयपुरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

परमादरणीयाः पितृमहाभागाः !
सादरं प्रणामाः।

भवतां कृपया अत्र कुशली अहम्। सविनयं निवेदनं यत् मम वार्षिकी परीक्षा समाप्ता जाता। मम उत्तरपत्राणि शोभनानि अभवन्। विद्यालयेन एकस्याः शैक्षिकयात्रायाः आयोजनं कृतम्। एषा शैक्षिकयात्रा आगरास्थितं ताजमहलं द्रष्टुम् आयोजिता अस्ति। अतः यात्राव्ययार्थं सहस्रमेकं रूप्यकाणि प्रेषयन्तु भवन्तः। शेषं सर्वं कुशलम्। मात्रे अग्रजाय च मम प्रणामाः, अनुजाय निमेषाय च आशिषः वक्तव्यः।

भवदीयः प्रियपुत्रः
अरुणः

हिन्दी-अनुवाद

(आपका नाम अरुण है। आप छात्रावास में रहते हैं। आगरा स्थित ताजमहल देखने के इच्छुक आप शैक्षिक भ्रमण के लिए जाना चाहते हैं। इसके लिए धन भेजने के लिए पिताजी को एक पत्र लिखिए।)

विद्याभवन – छात्रावास
उदयपुर
दिनांक 25.03.20_ _

परमादरणीय पिताजी !

सादर प्रणाम,
आपकी कृपा से यहाँ मैं सकुशल हूँ। सविनय निवेदन है कि मेरी वार्षिक परीक्षा समाप्त हो गई है। मेरे उत्तर-पत्र अच्छे हो गए हैं। विद्यालय ने एक शैक्षिक यात्रा का आयोजन किया है। यह शैक्षिक यात्रा आगरा के ताजमहल को देखने के लिए आयोजित की गई है। अत: यात्रा व्यय के लिए आप एक हजार रुपये भेज दें। शेष सब कुशल है। माताजी और बड़े भाई साहब के लिए प्रणाम और छोटे भाई निमेश के लिए आशीष कहिए।

आपका प्रिय पुत्र
अरुण

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

4. मित्राय विवाहस्य निमन्त्रणपत्रम्

5, उद्योगनगरम्
बीकानेरः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र अंकुर !
सप्रेम नमो नमः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। मित्र ! अहम् इदं प्रसन्नतापूर्वकं ज्ञापयामि यत् मम अग्रजस्य विवाहः अग्रिममासस्य सप्तम्यां तिथौ निश्चितो जातः। वरयात्रा च अत्रत: जयपुरं गमिष्यति। अहं त्वां प्रेम्णा पूर्वतः एव ज्ञापयामि येन त्वम् अत्र त्रिचतुर्दिनानि पूर्वतः एव प्राप्तः स्याः। त्वया अत्र अवश्यमेव आगन्तव्यम्। नात्र कस्यापि मिषस्य अवसरो देयः। तव स्निग्धां संगति साहाय्यं च अहं कामये। आदरणीयाभ्यां पितृभ्यां सादरं प्रणामाः।

भवन्मित्रम्
प्रदीपः

हिन्दी-अनुवाद

5, उद्योगनगर
बीकानेर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र अंकुर !
सप्रेम नमोनमः।
यहाँ कुशल है, आशा है, वहाँ पर भी हो। मित्र ! मैं यह प्रसन्नतापूर्वक निवेदन करता हूँ कि मेरे बड़े भाई का विवाह आगामी महीने की सात तारीख को निश्चित हुआ है और बारात यहाँ से जयपुर को जाएगी। मैं तुम्हें प्रेमपूर्वक पहले से ही निवेदन करता हूँ, जिससे तुम यहाँ तीन-चार दिन पूर्व ही पहुँच जाओ। तुम्हें यहाँ अवश्य ही आना है। इस विषय में कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हारी स्नेहमयी संगति और सहायता की मैं कामना करता हूँ। आदरणीय माताजी और पिताजी को सादर प्रणाम।

तुम्हारा मित्र
प्रदीप

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

5. अध्ययन प्रति उपेक्षारतम् अनुजं प्रति पत्रं लिखत –

ज्ञानदीपविद्यालयछात्रावासः
भरतपुरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय कुणाल !
शुभाशिषः।

अत्र कुशलं तत्रास्तु। अद्य पितृपादानां पत्रं प्राप्तम्। विविधेषु विषयेषु त्वया ये अङ्काः प्राप्ताः, तान् पठित्वा अतिदुःखं जातम्। तव अङ्काः सर्वेषु एव विषयेषु हीनाः सन्ति। तत् कथम् ? मन्ये त्वं नियमेन न पठसि समयं च व्यर्थम् अतिवाहयसि। त्वया समयेन एव सर्वं कार्यं कर्त्तव्यम्। अध्ययनस्य काले अध्ययनम्, क्रीडनस्य काले एव क्रीडनम्, विश्रामस्य काले च विश्रामं कर्त्तव्यम्। मनसा पठनीयम्। समयं व्यर्थं न अतिवाहयेत्। ततः एव उच्चाङ्काः प्राप्याः। अस्तु, किञ्चित् समयानन्तरम् अहं त्वया सूचनीयः यत् का तव समयपालने उन्नतिः इति।

आदरणीयाभ्यां पितृभ्यां सादरं प्रणामाः अनुजायै च आशिषः।

तव ज्येष्ठभ्राता
देवदत्तः

हिन्दी-अनुवाद

ज्ञानदीप विद्यालय छात्रावास
भरतपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय कुणाल !
शुभाशिष।

यहाँ कुशल है, वहाँ भी हो। आज पिताजी का पत्र प्राप्त हुआ। विविध विषयों में तुमने जो अंक प्राप्त किए हैं, उनको पढ़कर बहुत दुःख हुआ। तुम्हारे अंक सभी विषयों में न्यून (कम) हैं। यह कैसे ? मुझे लगता है कि तुम नियमित रूप से नहीं पढ़ते हो। समय व्यर्थ गँवाते हो। तुम्हें समय से सब काम करने चाहिए। पढ़ाई के समय पढ़ाई, खेल के समय खेल और विश्राम के समय विश्राम करना चाहिए। मन से पढ़ना चाहिए। समय व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए, तब ही उच्च अंक प्राप्त किये जा सकते हैं। खैर, कुछ समय पश्चात् मुझे सूचित करना समय-पालन में क्या उन्नति हुई ?
आदरणीय माताजी और पिताजी को प्रणाम तथा छोटे भाई को को आशीष।

तुम्हारा बड़ा भाई,
देवदत्त

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

6. विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवम् अधिकृत्य मित्रं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयत।
(विद्यालय के वार्षिक उत्सव के आधार पर मित्र को लिखे गये पत्र के रिक्तस्थानों की पूर्ति मञ्जूषा में दिये पदों की सहायता से कीजिए।)
[मञ्जूषा – वार्षिकोत्सवः, कार्यक्रमम्, मित्रम्, प्रणामः, व्यस्ताः, मुख्यातिथि, पारितोषिकानि, राम।]

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25-03-20_ _

प्रिंय (i) ……………..
अद्य तव पत्रं प्राप्तम्। अग्रे समाचारः अयम्, यत् गते सप्ताहे विद्यालयस्य (ii) …………… आसीत्। अहं सर्वे च अध्यापका: (iii) ……………… आस्मः। शिक्षानिदेशकः कार्यक्रमस्य (iv) ……………. आसीत्। सः अस्माकम (v) ………….. प्राशंसत्। सः योग्येभ्यः छात्रेभ्यः (vi) …………… अयच्छत्। पितृभ्यां मम (vii) ……….. निवेदयतु।

भवतः (viii) ………….
क ख ग

उत्तरम् :

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय राम!
अद्य तव पत्रं प्राप्तम्। अग्रे समाचारः अयम्, यत् गते सप्ताहे विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः आसीत्। अहं सर्वे च अध्यापकाः व्यस्ताः आस्मः। शिक्षानिदेशकः कार्यक्रमस्य मुख्यातिथिः आसीत्। सः अस्माकं कार्यक्रमं प्राशंसत्। सः योग्येभ्यः छात्रेभ्यः पारितोषिकानि अयच्छत्। पितृभ्यां मम प्रणामः निवेदयतु।

भवतः मित्रम्
क ख ग

हिन्दी-अनुवाद

परीक्षा भवन
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय राम !
आज तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। आगे समाचार यह है कि गत सप्ताह विद्यालय का वार्षिक उत्सव हुआ। मैं और सभी अध्यापक व्यस्त थे। शिक्षा निदेशक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने हमारे कार्यक्रम की प्रशंसा की। उन्होंने योग्य छात्रों को पारितोषिक भी प्रदान किये। माताजी और पिताजी को प्रणाम निवेदन करना।

तुम्हारा मित्र
क ख ग

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

7. मित्रं प्रति लिखितं निम्नलिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः उचितैः शब्दैः पूरयत।
(मित्र को लिखे गए निम्नलिखित पत्र को मञ्जूषा में दिये गये पदों से भरिए।)
[मञ्जूषा – विना, तत्र, वयं, सस्नेहं, चेन्नईत:, ह्यः, मग्ना: अपि।]

(i)…………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र दिवाकर !
(ii) …………….. नमस्ते।
(iii) ……………… अहं मित्रः सह जन्तुशालां द्रष्टुं काननवनम् अगच्छम्। तत्र (iv) ……………… नेकान् पशून् अपश्याम। सर्वे पशवः इतस्ततः भ्रमन्ति स्म। सिंहाः उच्चस्वरैः अगर्जन्। मयूराः नृत्ये (v) ………………………… आसन्। वस्तुतः मयूरं (vi) …………………….. कुत्र जन्तुशालायाः भव्यशोभा ? तत्र आम्रवृक्षाः अपि आसन्, कोकिला (vii) ……………….। वस्तुतः यत्र आम्रवृक्षाः (viii) ……………….. कोकिला तु भविष्यति एव। अग्रे पुनः लेखिष्यामि। सर्वेभ्यः मम नमस्कारः कथनीयः।

भवदीयम् अभिन्नमित्रम्
शेखरः

उत्तरम् :

चेन्नईतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र दिवाकर !
सस्नेह नमस्ते।

ह्यः अहं मित्रैः सह जन्तुशालां द्रष्टुं काननवनम् अगच्छम्। तत्र वयम् अनेकान् पशून् अपश्याम। सर्वे पशवः इतस्ततः भ्रमन्ति स्म। सिंहाः उच्चस्वरैः अगर्जन्। मयूराः नृत्ये मग्नाः आसन्। वस्तुतः मयूरं विना कुत्र जन्तुशालायाः भव्यशोभा ? तत्र आम्रवृक्षाः अपि आसन्, कोकिला अपि। वस्तुतः यत्र आम्रवृक्षाः तत्र कोकिला तु भविष्यति एव। अग्रे पुनः लेखिष्यामि। सर्वेभ्यः मम नमस्कारः कथनीयः।

भवदीयम् अभिन्नमित्रम्
शेखरः

हिन्दी-अनुवाद

चेन्नई
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रियमित्र दिवाकर !
सप्रेम नमस्ते।

कल मैं मित्रों के साथ चिड़ियाघर देखने काननवन गया। वहाँ हमने अनेक पशुओं को देखा। सभी पशु इधर उधर घूम रहे थे। सिंह उच्च स्वर में गर्जना कर रहे थे। मोर नाचने में मग्न थे। वास्तव में मोर के बिना चिड़ियाघर की भव्य शोभा कहाँ ? वहाँ आम के वृक्ष भी थे, कोयल भी (थी)। वास्तव में जहाँ आम के पेड़ (हों), वहाँ कोयल भी होगी ही। आगे फिर लिखूगा। सभी के लिए मेरा नमस्कार कहना।

तुम्हारा अभिन्न मित्र
शेखर

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

8. अनुजं प्रति लिखिते पत्रे मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत।
(छोटे भाई को लिखे गए पत्र में मञ्जूषा में दिये गये शब्दों से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए।)
[मञ्जूषा- गणितविषये, छात्रावासतः, अनुज, आशिषः, ह्यः, शोभनः, तव, प्राप्ताः।]

(i) …………………
आगरा
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii) …………….. सोमेश !
संस्नेहं (iii) ………………।
(iv) ……………….. अहं तव पत्रं प्राप्तवान्। (v) ………………. परीक्षा परिणामः (vi) ………………… अस्ति, परं (vii) ……………… भवता न्यूनाः अङ्काः (viii) …………….. इति सखेदं मया अधीतम्। त्वं प्रतिदिनं प्रातःकाले उत्थाय गणितस्य अभ्यासं कुरु, गणिताध्यापकं च पुनः पुनः प्रश्नान् पृच्छ। अभ्यासेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति। पित्रोः चरणयोः सादरं प्रणामः।

भवदीयः अग्रजः
श्रीशः

उत्तरम् :

छात्रावासतः
आगरा
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सोमेश !

सस्नेहम् आशिषः।
ह्यः अहं तव पत्रं प्राप्तवान्। तव परीक्षापरिणामः शोभन: अस्ति, परं गणितविषये भवता न्यूना: अङ्काः प्राप्ताः इति सखेदं मया अधीतम्। त्वं प्रतिदिनं प्रात:काले उत्थाय गणितस्य अभ्यासं कुरु, गणिताध्यापकं च पुनः पुनः प्रश्नान् पृच्छ। अभ्यासेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति। पित्रो: चरणयोः सादरं प्रणामः।

भवदीयः अग्रजः
श्रीशः

हिन्दी-अनुवाद

छात्रावास
आगरा
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सोमेश !
सस्नेह आशीर्वाद।
कल मुझे तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारा परीक्षा परिणाम अच्छा है, परन्तु गणित विषय में तुमने कम अंक प्राप्त किये, ऐसा मैंने खेद के साथ पढ़ा। तुम प्रत्येक दिन प्रातःकाल उठकर गणित का अभ्यास न करो, गणित के अध्यापक से बार-बार प्रश्न पूछो। अभ्यास से ही सारे कार्य सिद्ध होते हैं। माता-पिताजी के चरणों में सादर प्रणाम।

तुम्हारा बड़ा भाई
श्रीश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

9. स्वविद्यालयस्य वर्णनं कुर्वन् मित्रं संजीवं प्रति अधः लिखितं पत्रम् उत्तर-पुस्तिकायां रिक्तस्थानपूर्ति कृत्वा पुनः लिखत। सहायतायै मञ्जूषायां पदानि दत्तानि।
(अपने विद्यालय का वर्णन करते हुए मित्र संजीव को नीचे लिखे पत्र को उत्तर-पुस्तिका में रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पुनः लिखिए। सहायतार्थ मञ्जूषा में पद दिये हुए हैं।)
[मञ्जूषा – पुस्तकालये, सजीव, सस्नेह नमस्कारः, शतप्रतिशतम मनोयोगेन, करोमि, क्रीडाक्षेत्र विद्यालयः]

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (i) ……………….
(ii) ………………।
भवतः पत्रं प्राप्तम्। मनः प्रासीदत्। यथा भवता कथितं तथा अहं पत्रोत्तरे स्व विद्यालयस्य वर्णनं (iii) ………..। मम (iv) …………………. अतीव विशालः सुन्दरः च अस्ति। अत्र त्रिसहस्रछात्राः। (v) ……………….. पठन्ति। (vi) ………………. पुस्तकानां पत्र-पत्रिकाणां च सुव्यवस्था अस्ति। (vit) ………………….. वालीबाल-बैडमिण्टन क्रिकेट-रज्जु-आकर्षणादि-खेलानाम् उत्तमः प्रबन्धः अस्ति। बोईस्य परीक्षापरिणामः प्रतिवर्षम् (viii) ………. भवति। मातापित्रोः चरणयोः प्रणामाः।

भवतः अभिन्नमित्रम्
क ख ग

उत्तरम् :

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय संजीव !

सस्नेह नमस्कारः।
भवतः पत्रं प्राप्तम्। मनः प्रासीदत्। यथा भवता कथितं तथा अहं पत्रोत्तरे स्व-विद्यालयस्य वर्णनं करोमि। मम ‘विद्यालयः अतीव विशालः सुन्दरः च अस्ति। अत्र त्रिसहस्रछात्रा: मनोयोगेन पठन्ति। पुस्तकालये पुस्तकानां पत्र-पत्रिकाणां च सुव्यवस्था अस्ति। क्रीडाक्षेत्रे वालीबाल-बैडमिण्टन-क्रिकेट-रज्जु-आकर्षणादिखेलानाम् उत्तमः प्रबन्धः अस्ति। बोईस्य परीक्षापरिणाम: प्रतिवर्ष शतप्रतिशतं भवति। मातापित्रोः चरणयोः प्रणामाः।

भवतः अभिन्नमित्रम्
क ख ग

हिन्दी-अनुवाद

परीक्षाभवन
दिनांक : 25.03.20_ _

प्रिय संजीव !
सस्नेह नमस्कार।

आपका पत्र प्राप्त हुआ। मन प्रसन्न हुआ। जैसा आपने कहा था, वैसे ही मैं पत्र के उत्तर में अपने विद्यालय का वर्णन कर रहा हूँ। मेरा विद्यालय अत्यन्त विशाल और सुन्दर है। यहाँ तीन हजार छात्र मनोयोग से पढ़ते हैं। पुस्तकालय में पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं की सुव्यवस्था है। क्रीडा के क्षेत्र में वालीबाल, बैडमिण्टन, क्रिकेटे और रस्साकशी आदि खेलों का उत्तम प्रबन्ध है। बोर्ड का परीक्षा परिणाम प्रतिवर्ष शत-प्रतिशत रहता है। माता-पिताजी के चरणों में प्रणाम।

आपका अभिन्न मित्र
क ख ग

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

10. भवती रश्मिः। भवती छात्रावासे पठति। भवत्याः अनुजः सूर्यः नवमकक्षायां संस्कृतं पठितुं न इच्छति। तं प्रेरयितम अधोलिखितं पत्रं मञ्जषापदसहायतया परयित्वा उत्तरपस्तिकायां पनः लिखत।
(आप रश्मि है। आप छात्रावास में पढ़ती है। आपका खेटा भाई सूर्य नवम कक्षा में संस्कृत पढ़ना नहीं चाहता है। उसको प्रेरित करने के लिए निम्नलिखित पत्र मञ्जूषा के पदों की सहायता से भरकर उत्तर-पुस्तिका में पुनः लिखें।)

[मञ्जूषा – संस्कृतभाषायाः, प्रेरणाप्रदम्, भोपालतः, जन्मीलितम्, शुभाशिषः कृत्वा, अनुज, भवतः]

गङ्गाात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
(i) ……………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii)………….. सूर्य !
(iii) ……………।

भवान् अष्टं कक्षायां नवतिप्रतिशतम् अङ्कान् प्राप्य उत्तीर्ण: जातः इति (iv) …………….पत्रात् ज्ञात्वा अहम् अतीव प्रसन्ना अस्मि। शतश: वर्धापनानि। मया इदम् अपि ज्ञातं यत् भवान् नवम्यां कक्षायां संस्कृतविषयं स्वीकर्तुं न इच्छति। प्रिय वत्स ! (v) ………………… ज्ञानं विना अस्माकं जीवनम् एव अपूर्णं भवति। अस्माकं संस्कृतसाहित्यं तु सम्पूर्णविश्वाय (vi) …………… अस्ति। तत्कथं भवान् तस्मात् अपूर्वज्ञानात् वञ्चितः भवितुम् इच्छति। मम तु ज्ञानचक्षुः एव अनेन (vii) …………….. जातम्।

आशासे यद् भवान् नवमकक्षातः एव स्वज्ञानवर्धनं (viii) …………….. अन्यान् अपि प्रेरयिष्यति। मातृपितृचरणयोः मे प्रणामाः निवेद्यन्ताम् इति।

भवतः अग्रजा
रश्मिः

उत्तरम् :

गङ्गांछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
भोपालतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सूर्य !
शुभाशिषः।
भवान् अष्टं कक्षायां नवतिप्रतिशतम् अङ्कान् प्राप्य उत्तीर्णः जातः इति भवतः पत्रात् ज्ञात्वा अहम् अतीव प्रसन्ना अस्मि। शतशः वर्धापनानि। मया इदम् अपि ज्ञातं यत् भवान् नवम्यां कक्षायां संस्कृतविषयं स्वीकर्तुं न इच्छति। प्रिय वत्स! संस्कृतभाषायाः ज्ञानं विना अस्माकं जीवनम् एव अपूर्णं भवति। अस्माकं संस्कृतसाहित्यं तु सम्पूर्णविश्वाय प्रेरणाप्रदम् अस्ति। तत्कथं भवान् तस्मात् अपूर्वज्ञानात् वञ्चितः भवितुम् इच्छति। मम तु ज्ञानचक्षुः एव अनेन उन्मीलितं जातम्। :

आशासे यद् भवान् नवमकक्षातः एव स्वज्ञानवर्धनं कृत्वा अन्यान् अपि प्रेरयिष्यति। मातृपितृचरणयोः मे प्रणामाः निवेद्यन्ताम् इति।

भवतः अग्रजा
रश्मिः

हिन्दी-अनुवाद

गंगा छात्रावास
नवोदय विद्यालय
भोपाल
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सूर्य !
शुभाशिष।
आप आठवीं कक्षा में नब्बे प्रतिशत अंक प्राप्त करके उत्तीर्ण हुए, आपके पत्र से यह जानकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। शत-शत बधाईयाँ। मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि आप नवमी कक्षा में संस्कृत विषय स्वीकार करना नहीं चाहते हैं। प्रिय भाई (बच्चे)! संस्कृत ज्ञान के बिना हमारा जीवन अपूर्ण होता है। हमारा संस्कृत साहित्य तो संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा देने वाला है। तो क्यों आप उस अपूर्व ज्ञान से वञ्चित रहना (होना) चाहते हैं। मेरे तो ज्ञानचक्षु ही इसने खोल दिये।

आशा है कि आप नवम कक्षा से ही अपना ज्ञान-वर्धन करके दूसरों को भी प्रेरित करेंगे। माता-पिता के चरणों में मेरा प्रणाम निवेदन करें।

आपकी बड़ी बहिन
रश्मि

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

11. भवान् ‘चन्द्रः’। भवतां विद्यालये संस्कृतस्य सम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत्। स्व-अनुभवान् वर्णयन् भवान् स्वमित्रं सुरेशं प्रति पत्रं लिखति, परन्तु मध्ये कानिचित् पदानि त्यक्तानि। पत्रं पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु। सहायतायै अधः मञ्जूषा दत्ता।

(आप’चन्द्र’ हैं। आपके विद्यालय में संस्कृत-सम्भाषण-शिविर आयोजित किया गया था। अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए आप अपने मित्र सुरेश को पत्र लिखते हैं परन्तु बीच में कुछ पद छूट गए हैं। पत्र को पूरा करके फिर से उत्तर-पुस्तिका में लिखिए। सहायता के लिए नीचे मञ्जूषा दी हुई है।)
[मञ्जूषा – इन्द्रपुरीतः, हसित्वा, अभ्यासम्, सुरेश, सस्नेह नमस्ते, वयम्, अभिनयं, मयि।]

अ 77, शालीमारबागः
(i) …………………………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii) …………….
(iii) ………………
अत्र सर्वगतं कुशलम्। मन्ये भवान् अपि कुशली। गत सप्ताहे अस्माकं विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत्। दशदिनानि वयं संस्कृतेन सम्भाषणस्य (iv) ……………. कृतवन्तः। एकस्याः लघुनाटिकायाः मञ्चनम् अपि (v) …………………. अकुर्म। अहं तु विदूषकस्य (vi) …………………….. कृतवान्। सर्वे जनाः हसित्वा ………………. पौन:पुन्येन करतलध्वनिम् अकुर्वन्। अहं तु इदानीं सर्वदा संस्कृते एव वदामि। मम शिक्षकाः अपि (viii) ………………. स्नेहं कुर्वन्ति। त्वम् अपि प्रयत्नं कुरु। नूनं यशस्वी भविष्यसि। पितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिं निवेदयतु।

भवताम् अभिन्नहृदयः
चन्द्रः

उत्तरम् :

अ 77, शालीमारबागः
इन्द्रपुरीतः
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय सुरेश !
सस्नेह नमस्ते।
अत्र सर्वगतं कुशलम्। मन्ये भवान् अपि कुशली। गत सप्ताहे अस्माकं विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत्। दशदिनानि वयं संस्कृतेन सम्भाषणस्य अभ्यासं कृतवन्तः। एकस्याः लघुनाटिकायाः मञ्चनमपि वयम् अकुर्म। अहं तु विदूषकस्य अभिनयं कृतवान्। सर्वे जनाः हसित्वा हसित्वा पौन:पुन्येन करतलध्वनिम् अकुर्वन्। अहं तु इदानीं सर्वदा संस्कृते एव वदामि। मम शिक्षका: अपि मयि स्नेहं कुर्वन्ति। त्वम् अपि प्रयत्नं कुरु। नूनं यशस्वी भविष्यसि। पितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिं निवेदयतु।

भवताम् अभिन्नहृदयः
चन्द्रः

हिन्दी-अनुवाद

अ 77, शालीमार बाग
इन्द्रपुरी
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय सुरेश !
सस्नेह नमस्ते।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। मानता हूँ, आप भी सकुशल होंगे। गत सप्ताह हमारे विद्यालय में संस्कृत-सम्भाषण शिविर आयोजित किया गया था। दस दिन तक हमने संस्कृत सम्भाषण का अभ्यास किया। एक लघु नाटिका का मंचन भी हमने किया। मैंने तो विदूषक का अभिनय किया। सभी लोगों ने हँस-हँसकर बार-बार करतल ध्वनि की। मैं तो अब सदैव संस्कृत में ही बोलता हूँ। मेरे शिक्षक भी मुझसे स्नेह करते हैं। तुम भी प्रयत्न करो। निश्चित यशस्वी होओगे। माता-पिता को मेरा प्रणाम निवेदन करना।

आपका अभिन्न हृदय
चन्द्र

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

12. भवती सरोजिनी। भवत्याः वर्गेण अनाथबालकैः सह प्रतियोगितायां पराजयः अनुभूतः। आत्मानुभवान् वर्णयन्त्या भवत्या मातरं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः लेखनीयम्।
(आप सरोजिनी हैं। आपके वर्ग ने अनाथ बालकों के साथ प्रतियोगिता में पराजय का अनुभव किया। अपने अनुभवों का वर्णन करती हुई आप माताजी के लिए लिखे गए पत्र को मंजूषा के पदों की सहायता से पूरा करके फिर से लिखिए।)
[मञ्जूषा – सर्वे, पराजिताः, मातः, कुशलिनः, आयोजितवान्, सह, चरणस्पर्शः, सर्वगतम्।]

नूतनविद्यापीठम्
कर्णाटकतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पूज्ये (i) ……………
सादरं (ii) ……………
अत्र खलु (iii) …………………… कुशलम्। मन्ये तत्रापि सर्वे (iv) ……………..। मातः ! अस्माकं विद्यालयस्य समीपे एकः अन्यः विद्यालयः अस्ति। यत्र (v) ……………….. दीनाः असहायाः छात्राः एव पठन्ति। अस्माकं प्राचार्यः तस्य विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रैः (vi) …………… गीतान्त्याक्षरी-प्रतियोगिताम् (vii) ………..। जानाति भवती, वयं सर्वे तस्यां (viii) …………… जाताः। तेषां प्रदर्शनं तु अभूतपूर्वम् आसीत्। नूनं दर्पः सर्वं नाशयति, श्रमः सर्वत्र विजयते।
पितृचरणयोः प्रणामाः।

भवत्याः प्रिया सुता
सरोजिनी

उत्तरम् :

नूतनविद्यापीठम्
कर्णाटकतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पूज्ये मातः !
सादरं चरणस्पर्शः।
अत्र खलु सर्वगतं कुशलम्। मन्ये तत्रापि सर्वे कुशलिनः। मातः ! अस्माकं विद्यालयस्य समीपे एक: अन्यः विद्यालयः अस्ति। यत्र सर्वे दीनाः असहायाः छात्राः एव पठन्ति। अस्माकं प्राचार्यः तस्य विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रैः सह प्रतियोगिताम् आयोजितवान्। जानाति भवती, वयं सर्वे तस्यां पराजिता: जाताः। तेषां प्रदर्शनं तु अभूतपूर्वम आसीत्। नूनं दर्पः सर्वं नाशयति, श्रमः सर्वत्र विजयते।
पितृचरणयोः प्रणामाः।

भवत्याः प्रिया सुता
सरोजिनी

हिन्दी-अनुवाद

नूतन विद्यापीठ
कर्णाटक
दिनांक : 25.03.20_ _

पूज्य माताजी !
सादर चरणस्पर्श।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। मानती हूँ वहाँ भी सभी कुशल से हैं। माताजी ! हमारे विद्यालय के समीप एक अन्य विद्यालय है जहाँ सभी दीन-असहाय छात्र ही पढ़ते हैं। हमारे प्राचार्य ने उस विद्यालय की दशमी कक्षा के छात्रों के साथ गीतान्त्याक्षरी की प्रतियोगिता आयोजित की। आप जानती हैं, हम सब उस प्रतियोगिता में पराजित हो गये। उनका प्रदर्शन तो अभूतपूर्व था। निश्चित ही घमण्ड सबका नाश कर देता है, श्रम की सर्वत्र विजय होती है।
पिताजी के चरणों में प्रणाम।

आपकी प्यारी बेटी
सरोजिनी

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

13. भवान् आशुतोषः। भवतः मित्रं शुभम् ऊन-एकोनविंशतिवर्षीयां क्रिकेट प्रतियोगितां विजित्य आगतः। स्वानुभवान् वर्णयन् भवान् स्वपितरं प्रति पत्रं लिखति। तस्मिन् पत्रे विद्यमानानि रिक्तस्थानानि मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखतु।
(आप आशुतोष हैं। आपका मित्र शुभम् उन्नीस वर्ष से कम आयु की क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी होकर आया है। अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए आप अपने पिता को पत्र लिख रहे हैं। उस पत्र में विद्यमान रिक्तस्थानों को मञ्जूषा के पदों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा-पितचरणाः, प्रार्थये, प्रणामाः, परितोषम्, विजयी, समाचार:, शुभम, कुशलिनः।]

प्रतिभाविकासविद्यालयः,
इन्द्रप्रस्थम्
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रातः स्मरणीयाः (i) ……………
सादरं (ii) ……………
अत्र सर्वं कुशलम्। तत्रापि सर्वे (iii) …………….. सन्तु इति श्रीपतिं ‘विष्णुं’ (iv) ……………..। आनन्दप्रदः (v) ………….. अस्ति यत् मम मित्रम् (vi) ……………….. ऊन-एकोनविंशतिवर्षीयां क्रिकेटप्रतियोगितायां (vii) ……………….. भूत्वा प्रतिनिवृत्तः। अतः अंहं महान्तं (viii) …………… अनुभवामि। आशासे यत् स भूयों भूयः बहवीः प्रतियोगिताः विजेष्यते। भवानपि तस्मै वर्धापनपत्रं लिखत्।
मातृचरणयोः साभिवादनं प्रणामाः, राधिकायै शुभाशिषः।

भवतां वशंवदः
आशुतोषः

उत्तरम् :

इन्द्रप्रस्थम्
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रातः स्मरणीयाः पितृचरणाः !
सादरं प्रणामाः।

अत्र सर्वं कुशलम्। तत्रापि सर्वे कुशलिनः सन्तु इति श्रीपति विष्णुं प्रार्थये। आनन्दप्रदः समाचारः अस्ति यत् मम मित्रं शुभम् ऊन एकोनविंशतिवर्षीयां क्रिकेटप्रतियोगितायां विजयी भूत्वा प्रतिनिवृत्तः। अतः अहं महान्तं परितोषम् अनुभवामि। आशासे यत् सः भूयो भूयः बह्वीः प्रतियोगिताः विजेष्यते। भवानपि तस्मै वर्धापनपत्रं लिखतु।
मातचरणयोः साभिवादनं प्रणामाः, राधिकायै शुभाशिषः।

भवतां वशंवदः
आशुतोषः

हिन्दी-अनुवाद

प्रतिभाविकास विद्यालय,
इन्द्रप्रस्थ
दिनांक 25.03.20_ _

प्रातः स्मरणीय पिताजी !
सादर प्रणाम।

यहाँ सब सकुशल हैं। वहाँ भी सब कुशल हों, ऐसी श्रीपति विष्णु से प्रार्थना करता हूँ। (एक) सुखद समाचार है कि मेरा मित्र शुभम् उन्नीस वर्ष से कम उम्र वालों की क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी होकर लौटा है। अतः मैं बहुत सन्तोष का अनुभव कर रहा हूँ। आशा है कि वह बार-बार बहुत-सी प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त करेगा। आप भी उसके लिए बधाई पत्र लिख दें।
माताजी के चरणों में अभिवादन सहित प्रणाम, राधिका के लिए शुभ आशीष।

आपका आज्ञाकारी
आशुतोष

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

14. मित्रं प्रति लिखितं निम्नलिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः पदैः पूरयत।
(मित्र को लिखे गए निम्नलिखित पत्र को मंजूषा में दिये पदों से पूरा कीजिए।)
[मञ्जूषा- वृक्षः, मित्रम्, नमस्ते, अरुणाचलतः, अस्य, एव, वयं, गतसप्ताहे]

(i) ………………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii) ……………….. भास्कर !
सस्नेहं (iii) …………..
(iv) …………. अहं मित्रैः सह शैक्षिकभ्रमणाय ‘दार्जिलिङ्ग’ इति पर्वतीयस्थलं गतवान्। (v) ………… स्थानस्य सौन्दर्यम् अद्भुतम् (vi) …………. अस्ति। विशालैः (vii) ………….. सुसज्जिता इयं देवभूमिः एव अस्ति। एवं प्रतीयते यत् (viii) …………….. अन्यस्मिन् एव संसारे वसामः। इमं सुरम्यं प्रदेशं दृष्ट्वा इदम् असत्यम् एव प्रतीयते यत पर्वताः केवलं दरतः एव रम्याः। पर्वताः त सदैव रम्याः एव भवन्ति। अहं त्वया सह अपि एकवारं तत्र पुनः गन्तुम् इच्छामि। आशासे आवां शीघ्रं गमिष्यावः। अधुना विरमामि। सर्वेभ्यो मम नमस्कारः कथनीयः।

भवतः मित्रम्
शैलज

उत्तरम् :

अरुणाचलतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियं मित्रं भास्कर !
सस्नेहं नमस्ते।

गतसप्ताहे अहं मित्रैः सह शैक्षिकभ्रमणाय ‘दार्जिलिङ्ग’ इति पर्वतीयस्थलं गतवान्। अस्य स्थानस्य सौन्दर्यम् अद्भुतम् एव अस्ति। विशालैः वृक्षैः सुसज्जिता इयं देवभूमिः एव अस्ति। एवं प्रतीयते यत् वयम् अन्यस्मिन् एव संसारे वसामः। इमं सुरम्य प्रदेशं दृष्ट्वा इदम् असत्यम् एव प्रतीयते यत् पर्वताः केवलं दूरतः एव रम्याः। पर्वताःतु सदैव रम्याः एव भवन्ति। अहं त्वया सह ‘अपि एकवार तत्र पुनः गन्तुम् इच्छामि। आशासे आवां शीघ्रं गमिष्यावः। अधुना विरमामि। सर्वेभ्यो मम नमस्कारः कथनीयः।

भवतः मित्रम्
शैलजा

हिन्दी-अनुवाद

अरुणाचल
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र भास्कर !
सस्नेह नमस्ते।
गत सप्ताह मैं मित्रों के साथ शैक्षिक भ्रमण के लिए ‘दार्जिलिंग’ पर्वतीय स्थल को गया। इस स्थान का सौन्दर्य अद्भुत ही है। विशाल वृक्षों से सुसज्जित यह देवभूमि ही है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम दूसरे ही संसार में रह रहे हैं। इस सुरम्य प्रदेश को देखकर यह असत्य ही प्रतीत होता है कि पर्वत केवल दूर से ही सुन्दर लगते हैं। पर्वत तो सदैव रम्य ही होते हैं। मैं तुम्हारे साथ भी एक बार वहाँ फिर जाना चाहता हूँ। आशा है हम दोनों शीघ्र ही जाएँगे। अब विराम देता हूँ। सभी को मेरा नमस्कार कहना।

आपका मित्र
शैलज

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

15. मित्रं प्रति परीक्षासफलतायां लिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(मित्र के लिए परीक्षा की सफलता पर लिखे गए पत्र को मंजूषा में दिये गये शब्दों से पूरा करो।)
[मञ्जूषा- परीक्षाभवनात्, सन्तोषः, अङ्कान्, साधुवादान्, कामये, प्राप्तम्, प्रिय मित्र, सप्रेमनमस्कारम्।]

(i) ………………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

(i) …………….!
(iii) ………………..
भवतः परीक्षासफलतापत्रम् अधुनैव (iv) ………………। भवतः उत्तीर्णतां ज्ञात्वा मयि अति (v) ……………. अस्ति। अहोरात्रं प्रयासं विधाय भवान् 95 प्रतिशतम् (vi) ……………….. लब्धवान्। त्वं मम परिवारजनः (vii) ………………. अर्हसि। पत्रसमाप्तौ तुभ्यं पुनः वर्धापनम् (viii) ………… । पितृभ्यां सादरं नमः।
भवतः प्रियमित्रम्
अ ब स
उत्तरम् :

परीक्षाभवनात्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र !
सप्रेमनमस्कारम्।
भवतः परीक्षासफलतापत्रम् अधुनैव प्राप्तम्। भवतः उत्तीर्णतां ज्ञात्वा मयि अति सन्तोषः अस्ति। अहोरात्रं प्रयासं विधाय भवान् 95 प्रतिशतम् अङ्कान् लब्धवान्। त्वं मम परिवारजनस्य साधुवादान् अर्हसि। पत्रसमाप्तौ तुभ्यं पुनः वर्धापनं कामये। पितृभ्यां सादरं नमः।

भवतः प्रियमित्रम्
अ ब स

हिन्दी-अनुवाद

परीक्षाभवन
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र !
सप्रेम नमस्कार।

आपका परीक्षाफल पत्र अभी प्राप्त हुआ। आपकी उत्तीर्णता को जानकर मुझे अत्यंत सन्तोष हुआ है। दिन-रात प्रयास करके आपने 95 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। तुम मेरे परिवारीजनों के साधुवादों के योग्य हो। पत्र-समाप्ति पर तुम्हें फिर बधाई की कामना करता हूँ। माता-पिता जी को सादर नमस्कार।

आपका प्रिय मित्र
अ ब स

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

16. भवतां नाम सौरभः। भवतां विद्यालये वार्षिकोत्सवे संस्कृतनाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। तदर्थं स्वमित्रं गौरवं प्रति लिखितं निमन्त्रणपत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(आपका नाम सौरभ है। आपके विद्यालय में वार्षिकोत्सव में संस्कृत नाटक का मञ्चन होगा। इसके लिए अपने मित्र गौरव को लिखे गये निमन्त्रण पत्र को मंजूषा के पदों की सहायता से भरकर पुनः उत्तरपुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – द्रष्टुम्, दिल्लीतः, कुशली, मञ्चनम्, गौरव !, दीपावल्याः, करिष्यामि, उत्साहवर्धनम्]

सर्वोदयविद्यालयः
(i) …………..।
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र (ii) ………………….
दीपावलिपर्वणः शुभाशंसाः। अत्र सर्वगतं कुशलम्। भवान् अपि (iii) ……………….. इति मन्ये। अस्माकं विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः (iv) ………… पर्वणः शुभावसरे भविष्यति। तत्र अस्माकं पुस्तकस्य ‘रमणीया हि सृष्टिः एषा’ इति नाटकस्य (v) ……………… भविष्यति। अहं तस्मिन् नाटके काकस्य अभिनयं (vi) ……। भवान् अवश्यमेव तत् (vii) ……………….. आगच्छतु। मम अपि (viii) … भविष्यति। सर्वेभ्यः अग्रजेभ्यः मम प्रणामाञ्जलिः निवेद्यताम् इति।

भवदीयः वयस्यः
सौरभः

उत्तरम् :

सर्वोदयविद्यालयः
दिल्लीतः
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र गौरव !
दीपावलिपर्वणः शुभाशंसाः। अत्र सर्वगतं कुशलम्। भवान् अपि कुशली इति मन्ये। अस्माकं विद्यालयस्य सवः दीपावल्याः पर्वणः शुभावसरे भविष्यति। तत्र अस्माकं पुस्तकस्य ‘रमणीया हि सृष्टिः एषा’ इति नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। अहं तस्मिन् नाटके काकस्य अभिनयं करिष्यामि। भवान् अवश्यमेव तत् द्रष्टुम् आगच्छतु। मम अपि उत्साहवर्धनं भविष्यति। सर्वेभ्यः अग्रजेभ्यः मम प्रणामाञ्जलिः निवेद्यताम् इति।

भवदीयः वयस्यः
सौरभः

हिन्दी-अनुवाद

सर्वोदय विद्यालय
दिल्ली
दिनांक 25.08.20_ _

प्रिय मित्र गौरव !
दीपावली पर्व की शुभकामनाएँ। यहाँ सब प्रकार कुशल है। आप भी सकुशल होंगे, ऐसा मानता हूँ। हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर होगा। वहाँ हमारी पुस्तक के यह सृष्टि रमणीय है’ इस नाटक का मंचन होगा। मैं इस नाटक में कौए का अभिनय करूँगा। आप अवश्य ही उसे देखने आएँ। मेरा भी उत्साहवर्धन होगा। सभी बड़ों के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करें।

आपका मित्र
सौरभ

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

17. भवती सुनीता। भवती पुस्तकालयात् एकं पुस्तकं ‘चुटुकुल्याशतकम्’ प्राप्य पठितवती। तस्य पुस्तकस्य छायाप्रति स्वभगिन्याः स्मितायाः सकाशं प्रेषयति। तदर्थं लिखितं पत्रं मञ्जूषादत्तपदैः पूरयित्वा पुनः लिखतु।
(आप सुनीता हैं। आपने पुस्तकालय से एक पुस्तक ‘चुटुकुल्याशतकम्’ लेकर पढ़ी। उस पुस्तक की छायाप्रति (फोटोकॉपी) अपनी बहन स्मिता के पास भेज रही हैं। इस आशय से लिखे गये पत्र को मंजूषा में दिये गये पदों से भरकर पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – वर्धताम्, कुशलिनी, स्मिते, संस्कृतपुस्तकम्, भवत्याः, हसित्वा, लिखतु, कानपुरतः]

ए 10, विष्णुनगरम्
(i) ……………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये (ii) ……………..
सस्नेहं नमः।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति। मन्ये भवती अपि (iii) ……………। भवती लिखितवती यत् भवती संस्कृत भाषायां लिखितं सरलपुस्तकं पठितुम् इच्छति। मया पुस्तकालयात् ‘चुटुकुल्याशतकम्’ (iv) …………….. प्राप्य पठितम्। हसित्वा (v) …………… मम उदरे तु पीडा जाता। तस्य पुस्तकस्य छायाप्रतिं कारयित्वा अहं (vi) ………………. सकाशं प्रेषयामि। पठन-पाठने भवत्याः रुचिः सर्वदा (vii) ……………. पठतु तावत्। कथम् अस्ति इति (viii) ……………….। स्वपितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिः निवेदनीया।

भवदीया स्नेहसिक्ता भगिनी,
सुनीता

उत्तरम् :

ए 10, विष्णुपुरम्
कानपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये स्मिते !
सस्नेहं नमः।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति। मन्ये भवती अपि कुशलिनी। भवती लिखितवती यत् भवती संस्कृतभाषायां लिखितं सरलपुस्तकं पठितुम् इच्छति। मया पुस्तकालयात् ‘चुटुकुल्याशतकम्’ संस्कृतपुस्तकं प्राप्य पठितम्। हसित्वा-हसित्वा मम उदरे तु पीडा जाता। तस्य पुस्तकस्य छायाप्रति कारयित्वा अहं भवत्याः सकाशं प्रेषयामि। पठन-पाठने भवत्याः रुचिः सर्वदा वर्धताम्। पठतु तावत्। कथम् अस्ति इति लिखतु। स्वपितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिः निवेदनीया।

भवदीया स्नेहसिक्ता भगिनी,
सुनीता

हिन्दी-अनुवाद

ए 10, विष्णुपुर
कानपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिये स्मिते !
सस्नेह नमस्ते।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। मानती हूँ, आप भी सकुशल हैं। आपने लिखा है कि आप संस्कृत भाषा में लिखी हुई सरल पुस्तक पढ़ना चाहती हैं। मैंने पुस्तकालय से ‘चुटुकुल्याशतकम्’ संस्कृत-पुस्तक लेकर पढ़ी। हँसते-हँसते मेरे तो पेट में दर्द होने लगा। उस पुस्तक की छायाप्रति मैं आपके पास भेज रही हूँ। पठन-पाठन में आपकी रुचि हमेशा बढ़े। तो पढ़ो। कैसी है ? यह लिखना। अपने माता-पिताजी को मेरी प्रणामाञ्जलि कहना।

आपकी स्नेहमयी बहन,
सुनीता

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

18. भवान् सोमेशः। भवतः ज्येष्ठा भगिनी रमा जयपुरे छात्रावासे निवसति। रक्षाबन्धनपर्वणि भवतां विद्यालये संस्कृतदिवसस्य भव्यम् आयोजनम् अस्ति। तदर्थं तां निमन्त्रयितुं लिखिते पत्रे मञ्जूषापदसाहाय्येन रिक्तस्थानपूर्ति कृत्वा पत्रं पुनः लिखतु।
(आप सोमेश हैं। आपकी बड़ी बहन रमा जयपुर में छात्रावास में रहती है। रक्षाबन्धन पर्व पर आपके विद्यालय में संस्कृत दिवस का भव्य आयोजन है। इस प्रयोजन से उसे निमन्त्रित करने के लिए लिखे गये पत्र में मंजूषा के पदों की सहायता से रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पत्र को पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – चारुदत्तमिति, चारुदत्तस्य, भगिनि !, तत्रास्तु, अभिवादनम्, प्रतिवर्षम, जानाति, प्रसन्नचित्ता।]

115, शालीमारबागः
दिल्लीतः
दिनाङ्कः 25.07.20_ _

प्रिये (i) …………….
सस्नेहं (ii) ……………..
अत्र कुशलम् (iii) ……………….। मन्ये भवती सर्वथा स्वस्था (iv) ………………. च भविष्यति। भवती (v) ………………….. एव यत् श्रावणमासस्य पौर्णमास्यां रक्षाबन्धनपर्वणि अस्माकं विद्यालये (vi) ……………………… संस्कृतदिवसस्य आयोजनं भवति। अस्मिन् वर्षे (vii) ……………… नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। अहं तत्र (viii) …………….. अभिनयं करिष्यामि। भवत्याः आगमनेन ‘रक्षाबन्धनम्’ इति पर्वणः अपि आयोजनं भविष्यति। विद्यालये भवत्याः उपस्थित्या मम उत्साहवर्धनम् अपि भविष्यति।

भवत्याः स्नेहपात्रम्
सोमेशः

उत्तरम् :

115, शालीमारबागः
दिल्लीतः
दिनाङ्कः 25.07.20_ _

प्रिये भगिनि !
सस्नेहम् अभिवादनम्।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। मन्ये भवती सर्वथा स्वस्था प्रसन्नचित्ता च भविष्यति। भवती जानाति एव यत् श्रावणमासस्य पौर्णमास्यां रक्षाबन्धनपर्वणि अस्माकं विद्यालये प्रतिवर्ष संस्कृतदिवसस्य आयोजनं भवति। अस्मिन् वर्षे ‘चारुदत्तमिति’. नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। अहं तत्र चारुदत्तस्य अभिनयं करिष्यामि। भवत्याः आगमनेन ‘रक्षाबन्धनम्’ इति पर्वणः अपि आयोजनं भविष्यति। विद्यालये भवत्याः उपस्थित्या मम उत्साहवर्धनम् अपि भविष्यति।

भवत्याः स्नेहपात्रम्
सोमेशः

हिन्दी-अनुवाद

115, शालीमार बाग
दिल्ली
दिनांक 25.07.20_ _

प्रिय बहन !
सस्नेह अभिवादन।
यहाँ कुशल है, वहाँ (भी) होंगे। मानता हूँ (कि) आप पूर्णतः स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगी। आप जानती ही हैं कि श्रावण मास पूर्णिमा पर रक्षाबन्धन त्योहार पर हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष संस्कृत दिवस का आयोजन होता है। इस वर्ष ‘चारुदत्तम्’ नाटक का मंचन होगा। मैं वहाँ चारुदत्त का अभिनय करूँगा। आपके आगमन से रक्षाबन्धन त्योहार का भी आयोजन हो जाएगा। विद्यालय में आपकी उपस्थिति से मेरा उत्साहवर्धन भी होगा।

आपका स्नेह पात्र
सोमेश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

19. भवान् नीरजः। भवतः ग्रामे स्वास्थ्यकेन्द्रस्योद्घाटनं भवति। भवतः मनसः आह्लादस्य वर्णनं कुर्वन् भवान् मित्रं सुनन्दं प्रति पत्रं लिखति। तस्मिन् पत्रे मञ्जूषायाः रिक्तस्थानानि पूरयन् पत्रं पूर्णं कृत्वा पुनः लिखतु।
(आप नीरज हैं। आपके गाँव में स्वास्थ्य केन्द्र का उद्घाटन हो रहा है। आपके मन की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए आप मित्र सुनन्द को पत्र लिखते हैं। उस पत्र में मञ्जूषा से रिक्त-स्थानों को भरते हुए पत्र को पूरा करके फिर लिखिए।)
[मञ्जूषा – चिकित्सायै, सुनन्द !, पञ्चविंशत्याम्, प्रसन्नाः, ग्रामीणाः, नमः, ग्रामे, आर्तवानाम्।]

गुरुग्रामः
पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र (i) …………..
सस्नेहं (ii) …………….
भवतः पत्रं प्राप्तम्। समाचाराः अवगताः। हर्षस्य विषयोऽयं यद् अस्माकं (iii) …………. मण्डलाधिकारिभिः स्वास्थ्यकेन्द्रस्योद्घाटनं (iv) ………………….. रिकायां भविष्यति। सर्वे (v) ………………. समाचारम् एतं ज्ञात्वा ……….. सजाताः। अनेन स्वास्थ्यकेन्द्रेण (vii) ……………… रोगाणाम् उपचारो ग्रामे एव भविष्यति। ग्रामीणाः अधुना उपनगरं (viii) ……………. न गमिष्यन्ति। एतेन न केवलं ग्रामीणानां धनस्य अपव्ययो न भविष्यति, परं तेषां समयस्य नाशोऽपि न भविष्यति। क्षणेन रोगेषु नष्टेषु ग्रामे वातावरणं सुखदं भविष्यति।
भाव जनाना ज्ञातुं भवान् अवश्यं मम ग्रामम् आगच्छतु। मातृचरणयोः प्रणामः स्निग्धायै च शुभाशिषः।

भवतां सुहृद्
नीरजः

उत्तरम् :

गुरुग्रामः
पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र सुनन्द !
सस्नेहं नमः।
भवत: पत्रं प्राप्तम्। समाचारा: अवगताः। हर्षस्य विषयोऽयं यद् अस्माकं ग्रामे मण्डलाधिकारिभिः स्वास्थ्यकेन्द्रोद्घाटनं पञ्चविंशत्यां तारिकायां भविष्यति। सर्वे ग्रामीणाः समाचारम् एतं ज्ञात्वा प्रसन्नाः सञ्जाताः। अनेन स्वास्थ्यकेन्द्रेण आर्तवानां रोगाणाम् उपचारो ग्रामे एव भविष्यति। ग्रामीणाः अधुना उपनगरं चिकित्सायै न गमिष्यन्ति। एतेन न केवलं ग्रामीणानां धनस्य अपव्ययो न भविष्यति, परं तेषां समयस्य नाशोऽपि न भविष्यति। क्षणेन रोगेषु नष्टेषु ग्रामे वातावरणं सुखदं भविष्यति।
भावं जनानां ज्ञातुं भवान् अवश्यं मम ग्रामम् आगच्छतु। मातृचरणयोः प्रणामाः स्निग्धायै च शुभाशिषः।

भवतां सुहृद्
नीरजः

हिन्दी-अनुवाद

गुरुग्राम
पाटलिपुत्र
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रियमित्र सुनन्द !
सप्रेम नमस्कार। आपका पत्र प्राप्त हुआ। समाचार ज्ञात हुए। हर्ष का विषय यह है कि हमारे गाँव में मंडल अधिकारियों द्वारा स्वास्थ्य केन्द्र का उद्घाटन पच्चीस तारीख को होगा। सभी ग्रामीण इस समाचार को जानकर प्रसन्न हो गए हैं। इस स्वास्थ्य केन्द्र से रोगियों के रोगों का इलाज गाँव में ही हो जाएगा। ग्रामीण अब चिकित्सा के लिए कस्बे को नहीं जाएँगे। इससे न केवल ग्रामीणों के धन का अपव्यय ही नहीं होगा, अपितु उनका समय भी नष्ट नहीं होगा। क्षणभर में रोगों के नष्ट होने पर गाँव में वातावरण सुखद होगा।

लोगों की भावना को जानने के लिए आप अवश्य गाँव आएँ। माताजी के चरणों में प्रणाम और स्निग्धा के लिए शुभ आशीष।

आपका मित्र
नीरज

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

20. भवान् कमलेशः। बैंगलुरुनगरे निवसति। भवतां मित्रं सोमेशः दिल्लीनगरे वसति। सः संस्कृतभाषण प्रतियोगितायां प्रथम स्थान प्राप्तवान्। तं प्रति लिखितं वर्धापनपत्रं पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु। सहायतार्थं मञ्जूषायां पदानि दत्तानि। (आप कमलेश हैं। बैंगलुरु नगर में रहते हैं। आपका मित्र सोमेश दिल्ली नगर में रहता है। उसने संस्कृत भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। उसको लिखे गये बधाई पत्र को भरकर दोबारा उत्तरपुस्तिका में लिखिए। सहायतार्थ मंजूषा में शब्द दिए हुए हैं।)
[मञ्जूषा – सोमेश, आनन्दितम्, कोटिशः, प्रशंसनीयः, भवताम्, बैंगलुरुः, प्राप्तवान्, साफल्यम्।]

10, गिरिनगरम्
(i) ……..
कर्णाटकप्रदेशतः।
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र (ii) …………….
नमोनमः।
(iii) ………… पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा मम मनः (iv) ……….. जातम्। भव [ संस्कृतभाषण प्रतियोगितायां प्रथम स्थानं (v) …………….। भवतां संस्कृतानुरागः (vi) ………….। अस्मत्पक्षतः (vii) ………………. वर्धापनानि। भगवान् इतः अपि अधिकं (viii) ………… ददातु। पितृचरणयोः प्रणामः निवेद्यते।

भवतां प्रियसुहृद्
कमलेशः

सेवायाम,
श्रीमान् सोमेशः
120, शक्तिनगरम्, दिल्ली
उत्तरम् :

10, गिरिनगरम्
बैंगलुरुः
कर्णाटकप्रदेशतः।
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र सोमेश !
नमो नमः।
भवतां पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा मम मनः आनन्दितं जातम्। भवान् संस्कृतभाषण-प्रतियोगितायां प्रथमस्थानं प्राप्तवान्। भवतां संस्कृतानुरागः प्रशंसनीयः। अस्मत्पक्षतः कोटिशः वर्धापनानि। भगवान् इतः अपि अधिकं साफल्यं ददातु। पितृचरणयोः प्रणाम: निवेद्यते।

भवतां प्रिय सुहृत्
कमलेशः

सेवायाम्,
श्रीमान् सोमेशः
120, शक्तिनगरं, दिल्ली

हिन्दी-अनुवाद

10, गिरिनगरम्
बैंगलुरु
कर्नाटक प्रदेश
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र सोमेश !
नमोनमः।
आपका पत्र प्राप्त हुआ। पत्र पढ़कर मेरा मन आनन्दित हो गया। आपने संस्कृत-भाषण-प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आपका संस्कृत-अनुराग प्रशंसनीय है। हमारी ओर से कोटि-कोटि बधाईयाँ। भगवान् आपको इससे भी अधिक सफलता प्रदान करें। पिताजी के चरणों में प्रणाम निवेदन करें।
सेवा में,

आपका प्रिय मित्र
कमलेश

श्रीमान् सोमेश
120, शक्ति नगर, दिल्ली

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

21. भवान् सुरेशः, छात्रावासे वसति। शारदीये अवकाशे भवतां विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरं प्रचलिष्यति, अतः भवान् गृहं न गमिष्यति इति सूचयन् पितरं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां पुनः लिखत। (आप सुरेश हैं और छात्रावास में रह रहे हैं। शीतकालीन अवकाश में आपके विद्यालय में संस्कृत सम्भाषण शिविर चलेगा, अतः आप घर नहीं जाएँगे। ऐसा सूचित करते हुए पिता के प्रति लिखे हुए पत्र को मंजूषा के शब्दों द्वारा पूर्ण करके उत्तर-पुस्तिका में पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – सम्यक्, जयपुरतः, कुशलिनः, मातृचरणयोः सुरेशः, सादरं वन्दनानि, समाप्ता, संस्कृतसम्म]

नर्मदाछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
(i) …………………
दिनाङ्कः 25.11.20_ _

परमपूज्यपितृमहाभागाः !
(ii) ……………….
अत्र कुशलं तत्रास्तु। तत्रापि भवन्तः सर्वे (iii) ……….. इति मन्ये। अत्र मम पठनं (iv) ………. प्रचलति। अर्धवार्षिकी परीक्षा (v) ……………….। मम विद्यालये शारदीयेऽवकाशे (vi) ………… प्रचलिष्यति। अतः अहम् अवकाशदिनेषु गृहम् आगन्तुं न शक्नोमि। भवतां दर्शनेन अहं वञ्चितः भवामि इति खेदः, तथापि शिविरेण मम ज्ञानवर्धनं भविष्यति इति नास्ति सन्देहः। (vii) ………… अपि मम वन्दनानि। स्वकीयं क्षेमसमाचारं सूचयन्तु इति।।

भवदीयः पुत्रः
(viii) …………..

उत्तरम् :

नर्मदाछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.11.20_ _

परमपूज्यपितृमहाभागाः!
सादरं वन्दनानि।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। तत्रापि भवन्तः सर्वे कुशलिनः इति मन्ये। अत्र मम पठनं सम्यक् प्रचलति। अर्धवार्षिकी परीक्षा समाप्ता। मम विद्यालये शारदीयेऽवकाशे संस्कृतसम्भाषणशिविरं प्रचलिष्यति। अतः अहम् अवकाशदिनेषु गृहम् आगन्तुं न शक्नोमि। भवतां दर्शनेन अहं वञ्चितः भवामि इति खेदः, तथापि शिविरेण मम ज्ञानवर्धनं भविष्यति इति नास्ति सन्देहः। मातृचरणयोः अपि मम वन्दनानि। स्वकीयं क्षेमसमाचारं सूचयन्तु इति।

भवदीयः पुत्रः
सुरेशः

हिन्दी-अनुवाद

नर्मदा छात्रावास,
नवोदय विद्यालय,
जयपुर
दिनाङ्कः 25.11.20_ _

परमपूज्य पिताजी !
सादर वन्दना। यहाँ सब कुशल हैं, वहाँ भी हों। वहाँ पर भी आप सब सकुशल हैं, ऐसा मानता हूँ। यहाँ मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। अर्द्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हुई। मेरे विद्यालय में शीतकालीन अवकाश में संस्कृत सम्भाषण शिविर चलेगा। अतः मैं अवकाश के दिनों में घर नहीं आ सकता हूँ। आपके दर्शनों से वंचित रहूँगा, यही खेद है, फिर भी शिविर से मेरा ज्ञानवर्धन होगा, इसमें सन्देह नहीं। माँ के चरणों में भी मेरा प्रणाम। अपने कुशल समाचार सूचित करें।

आपका पुत्र
सुरेश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

22. भवती श्यामला। भवती पितरं प्रति एक पत्रं लिखति। मञ्जूषायाः उचितानि पदानि चित्वा पत्रं पूरयतु। (आप श्यामला हैं। आप पिताजी को एक पत्र लिखती हैं। मंजूषा से उचित पद चुनकर पत्र पूर्ण कीजिए।)
[मञ्जूषा – अभवत्, श्रीनगरतः, स्वास्थ्यविषये, प्रियपुत्री, आगत्य, वन्दनानि, मातृचरणयों:, कुशलिनी]

(i) ………………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पितृश्रीचरणसन्निधौ,
सादरं (ii) ………………।

भवतः पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा बहु आनन्दः (iii) ……………….। अहम् अत्र (iv) ……………..। भवतः मातुः च (v) ………………….. अधिकं चिन्तयामि। अत्र मम प्रशिक्षणं सम्यक् प्रचलति। भवता दत्तं पुस्तकम् आगमनसमये मार्गे एव मया पठितम्। प्रशिक्षणस्य पश्चात् अहं शैक्षिकप्रवासाय गमिष्यामि। ततः (vi) …………. गृहम् आगमिष्यामि। एतं विषयं पूज्यमातरम् अपि सूचयतु। (vii) ……….. अपि मम वन्दनानि अनुजाय च शुभाशिषः।

भवदीया (viii) …………….
श्यामला

उत्तरम् :

श्रीनगरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पितृश्रीचरणसन्निधौ,
सादरं वन्दनानि।
भवतः पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा बहु आनन्दः अभवत्। अहम् अत्र कुशलिनी। भवतः मातुः च स्वास्थ्यविषये अधिक चिन्तयामि। अत्र मम प्रशिक्षणं सम्यक् प्रचलति। भवता दत्तं पुस्तकम् आगमनसमये मार्गे एव मया पठितम्। प्रशिक्षणस्य पश्चात् अहं शैक्षिकप्रवासाय गमिष्यामि। ततः आगत्य गृहम् आगमिष्यामि। एतं विषयं पूज्यमातरम् अपि सूचयतु। मातृचरणयोः अपि मम वन्दनानि, अनुजाय च शुभाशिषः।

भवदीया प्रियपुत्री
श्यामला

हिन्दी-अनुवाद

श्रीनगर
दिनांक 25.03.20_ _

पिताजी के श्रीचरणों में,
सादर वन्दना।
आपका पत्र प्राप्त हुआ। पत्र पढ़कर बहुत आनन्द हुआ। मैं यहाँ पर सकुशल हूँ। आप और माताजी के स्वास्थ्य के विषय में चिन्तित हूँ। यहाँ मेरा प्रशिक्षण ठीक चल रहा है। आपके द्वारा दी गयी पुस्तक आगमन के समय रास्ते में ही मैंने पढ़ ली थी। प्रशिक्षण के पश्चात् मैं शैक्षिक प्रवास पर जाऊँगी। वहाँ से आकर घर आऊँगी। इस विषय में पूज्य माताजी को भी सूचित कर दें। माताजी के चरणों में भी मेरी वन्दना। अनुज के लिए शुभ आशीर्वाद।

आपकी प्रिय पुत्री
श्यामला

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

23. भवती सुशीला। भवती छात्रावासे पठति। और्णवस्त्राणि पुस्तकानि च क्रेतुं धनप्रेषणार्थं पितरं प्रति अध: अपूर्णपत्रं लिखितम्। मञ्जूषायाः सहायतया उचितशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयित्वा पुनः पत्रम् उत्तरपुस्तिकायां लिखतु। (आप सुशीला हैं। आप छात्रावास में पढ़ती हैं। ऊनी वस्त्र और पुस्तकें खरीदने के लिए धन भेजने के लिए पिता को नीचे अधूरा पत्र लिखा है। मंजूषा की सहायता से उचित शब्दों से रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पुनः पत्र उत्तरपुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – प्रणामाः, धनादेशद्वारा, छात्रावासतः, चिराद्, पूज्यपितृचरणेषु, और्णवस्त्राणि, सुशीला, स्नेहवचनानि।]

(i) ……………….
दिनाङ्कः 25.12.20_ _

(ii) …………………..
सादरं (iii) ………………
अत्र अहं स्वस्था अस्मि। (iv) ……………… भवतां कृपापत्रं न आयातम्। चिन्तिता अस्मि। अत्र मम सकाशे धनाभावः वर्तते। शीत: वर्धते। (v) ……….. ……………. क्रेतव्यानि। पुस्तकानि चापि क्रेतव्यानि सन्ति। अतः सहस्ररूप्यकाणि। (vi) ……………… शीघ्रमेव प्रेषणीयानि। मातृचरणेषु प्रणती: समर्पये। रमायै अतुलाय च (vii) …………….. दद्यात् भवान्।

भवतः पुत्री
(viii) ……………..

उत्तरम् :

छात्रावासतः
दिनाङ्कः 25.12.20_ _

पूज्य पितृचरणेषु
सादर प्रणामाः।
अत्र अहं स्वस्था अस्मि। चिराद् भवतां कृपापत्रं न आयातम्। चिन्तिता अस्मि। अत्र मम सकाशे धनाभावः वर्तते। शीत: वर्धते। और्णवस्त्राणि क्रेतव्यानि। पुस्तकानि चापि क्रेतव्यानि सन्ति। अतः सहस्ररूप्यकाणि धनादेशद्वारा शीघ्रमेव प्रेषणीयानि। मातृचरणेषु प्रणती: समर्पये। रमायै अतुलाय च स्नेहवचनानि दद्यात् भवान्।

भवतः पुत्री
सुशीला

हिन्दी-अनुवाद

छात्रावास
दिनांक 25.12.20_ _

पूज्य पिताजी के चरणों में,
सादर प्रणाम !
यहाँ मैं स्वस्थ हूँ। बहुत दिनों से आपका कृपापत्र नहीं आया। चिन्तित हूँ। यहाँ मेरे पास धन का अभाव है। सर्दी बढ़ रही है। ऊनी कपड़े खरीदने हैं और पुस्तकें भी खरीदनी हैं। अतः एक हजार रुपये मनीऑर्डर (धनादेश) द्वारा शीघ्र ही भेज दें। माताजी को प्रणाम समर्पित करती हूँ। रमा और अतुल के लिए स्नेहवचन कहें।

आपकी पुत्री
सुशीला

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

24. विनीतः नागपुरनगरे वसति। तस्य मित्रं प्रगीतः कर्णपुरनगरे वसति। विनीतेन गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः गृहीतः। सः स्वानुभवान् स्वमित्रं प्रगीतं प्रति पत्रे लिखति। भवान् मञ्जूषातः पदानि चित्वा पत्रं पूरयतु। (विनीत नागपुर नगर में रहता है। उसका मित्र प्रगीत कानपुर नगर में रहता है। विनीत ने गणतन्त्र दिवस की शोभायात्रा में भाग लिया। वह अपने अनुभवों को अपने मित्र प्रगीत को पत्र में लिखता है। आप मञ्जूषा से पदों को चुनकर पत्र पूरा करें।)
[मञ्जूषा – गृहीतः, नमस्ते, मम, वाद्यवृन्दम्, राजमार्गम्, लोकनृत्यानि, गणतन्त्रदिवससमारोहस्य, प्रमुखसञ्चालकः]

नागपुरतः
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र प्रगीत !
(i) ………………….
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अहं (ii) ……………… सज्जायां व्यस्तः आसम्। अतः विलम्बेन तव पत्रस्य उत्तरं ददामि। अस्मिन् वर्षे मयापि गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः (iii) ………………। अस्माकं विद्यालयस्य (iv) ………….. स्वकलायाः प्रदर्शनम् अकरोत्। अहं नृत्यस्य (v) ……….. आसम्। छात्राणां राष्ट्रगानस्य ओजोयुक्तध्वनिः (vi) ……………….. गुञ्जितम् अकरोत्। स्वराष्ट्रस्य सैन्यबलानां पराक्रम- प्रदर्शनानि विचित्रवर्णानि परिदृश्यानि (vii) ………………. च दृष्ट्वा अहं गौरवान्वितः अस्मि। (viii) ……… बाल्यावस्थायाः स्वप्नः तत्र पूर्णः जातः। पितरौ वन्दनीयौ।

भवतः सुहृद्
विनीतः

उत्तरम् :

नागपुरतः
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र प्रगीत !
नमस्ते
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अहं गणतन्त्रदिवससमारोहस्य सज्जायां व्यस्तः आसम्। अतः विलम्बेन तव पत्रस्य उत्तरं ददामि। अस्मिन् वर्षे मयापि गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः गृहीतः।
अस्माकं विद्यालयस्य वाद्यवृन्दम् स्वकलायाः प्रदर्शनम् अकरोत्। अहं नृत्यस्य प्रमुखसञ्चालक: आसम्। छात्राणां राष्ट्रगानस्य ओजोयुक्तध्वनिः राजमार्गं गुञ्जितम् अकरोत्। स्वराष्ट्रस्य सैन्यबलानां पराक्रमप्रदर्शनानि, विचित्रवर्णानि, परिदृश्यानि लोकनृत्यानि च दृष्ट्वा अहं गौरवान्वितः अस्मि। मम बाल्यावस्थायाः स्वप्नः तत्र पूर्णः जातः। पितरौ वन्दनीयौ।

भवतः सुहृद्
विनीतः

हिन्दी-अनुवाद

नागपुर
दिनांक 25.08.20_ _

प्रियमित्र प्रगीत !
नमस्ते।

यहाँ कुशल है, वहाँ भी हो। मैं गणतन्त्र दिवस समारोह की तैयारी में व्यस्त था। अतः तुम्हारे पत्र का उत्तर विलम्ब से दे रहा हूँ। इस वर्ष मैंने भी गणतन्त्र दिवस शोभायात्रा में भाग लिया।

हमारे विद्यालय के वाद्यवृन्द ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। मैं नृत्य का प्रमुख सञ्चालक था। छात्रों के राष्ट्रगान की ओजस्वी ध्वनि ने राजमार्ग को गुंजित कर दिया। अपने राष्ट्र की सेना के पराक्रम का प्रदर्शन, विचित्र वर्गों के परिदृश्यों तथा लोकनृत्यों को देखकर मैं गौरवान्वित हूँ। मेरे बचपन का स्वप्न वहाँ पूरा हो गया। माता-पिता वन्दनीय हैं।

आपका सुहृद्
विनीत

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

25. भवती स्मृतिः। अमृतसरे निवसति। स्वस्य जन्म-दिवसे आमन्त्रणाय सखीम् अनितां प्रति अधोलिखितम् अपूर्णपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु।
(आप स्मृति हैं। अमृतसर में रहती हैं। अपने जन्मदिन पर बुलाने के लिए सहेली अनिता को लिखे गये निम्न अधूरे पत्र को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके फिर से उत्तर पुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – दिवसे, अवसरे, सखी, आगन्तव्यम्, हर्षस्य, कुशलं, जन्मदिवसः, उत्साहवर्धनम्।]

अमृतसरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (i) ………………. अनिते !
सप्रेम नमः।
अत्र (ii) ………… तत्रास्तु। अपरं च अयम् अतीव (iii) ……………. विषयः यत् विगतवर्षाणि इव अस्मिन् अपि वर्षे मम (iv) …………….. ऐप्रिलमासस्य अष्टमे (v) ……………. मन्यते। अस्मिन् (vi) ……………. भवत्या अपि अवश्यमेव (vii) ……………। तवागमनेन मे (viii) …………. भविष्यति। भवत्याः पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः अनुजाय स्नेहश्च।

भवत्याः सखी
स्मृतिः

उत्तरम् :

अमृतसरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियसखि अनिते !
सप्रेम नमः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अपरं च अयम् अतीव हर्षस्य विषयः यत् विगतवर्षाणि इव अस्मिन् अपि वर्षे मम जन्मदिवसः ऐप्रिलमासस्य अष्टमे दिवसे मन्यते। अस्मिन् अवसरे भवत्या अपि अवश्यमेव आगन्तव्यम्। तवागमनेन मे उत्साहवर्धनं भविष्यति। भवत्याः पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः अनुजाय स्नेहश्च।

भवत्याः सखी
स्मृतिः

हिन्दी-अनुवाद

अमृतसर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय सखी अनिता !
सप्रेम नमस्कार !
यहाँ कुशल है (आशा है) वहाँ भी (कुशल होंगे)। और दूसरा यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी मेरा जन्म दिवस आठ अप्रैल को मनाया जा रहा है। इस अवसर पर आपको भी अवश्य ही आना. है। आपके आगमन से मेरे उत्साह में वृद्धि होगी। आपके माता-पिता जी के चरणों में प्रणाम और अनुज के लिए स्नेह।।

आपकी सखी
स्मृति

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

26. भवती कविता। जयपुरे निवसति कैलाशपुर्याम्। स्वस्य दिनचर्याविषयकं स्वसखीं स्मितां प्रति अधोलिखितमपूर्णपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु।
(आप कविता हैं। जयपुर में कैलाशपुरी में रहती हैं। अपनी सखी स्मिता को अपनी दिनचर्याविषयक निम्नलिखित अधूरे पत्र को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – दिनचर्याम्, चिरात्, पञ्चवादने, हर्षम्, सार्धषड्वादनपर्यन्तं, दशवादने, निवृत्य, भुक्त्वा

कैलाशपुरी
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियसखि स्मिते !
सस्नेह नमस्ते।
अत्र सर्वं कुशलम्। भवती अपि कुशलिनी इत्यहं कामये। अद्य (i) ………… भवत्पत्रं प्राप्तम्। अहम् अतीव (ii) ………………… अनुभवामि। भवती मम (iii) ……………………. ज्ञातुम् इच्छति। अतोऽहम् अत्र मे दिनचर्यां लिखामि। सखि ! अहं प्रातः (iv) ……………… उत्तिष्ठामि। सार्धपञ्चवादनात् (v) ……………. प्रातः भ्रमणं करोमि। ततः स्नानादिभिः (vi) ………… नववादनतः दशवादनपर्यन्तम् अध्ययनं करोमि। (vii) ………………….. विद्यालयं गच्छामि। सायं पञ्चवादने विद्यालयात् आगत्य कीडाङ्गणे क्रीडामि। सप्तवादने अहं भोजनं (viii) …………………. पठामि गृहकार्यं च करोमि। रात्रौ दशवादने शये। मातापित्रोः चरणयोः मे प्रणत्यः।

भवदीया प्रिय सखी
कविता

उत्तरम् :

कैलाशपुरी
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियसखि स्मिते !
सस्नेह नमस्ते।
अत्र सर्वं कुशलम्। भवती अपि कुशलिनी इत्यहं कामये। अद्य चिरात् भवत्पत्रं प्राप्तम्। अहम् अतीव हर्षम् अनुभवामि। भवती मम दिनचर्यां ज्ञातुम् इच्छति। अतोऽहम् अत्र मे दिनचर्या लिखामि।
सखि ! अहं प्रातः पञ्चवादने उत्तिष्ठामि। सार्धपञ्चवादनात् सार्धषड्वादनपर्यन्तं प्रातः भ्रमणं करोमि। ततःस्नानादिभिः

निवृत्य नववादनतः दशवादनपर्यन्तम् अध्ययनं करोमि। दशवादने विद्यालयं गच्छामि। सायं पञ्चवादने विद्यालयात् आगत्य क्रीडाङ्गणे क्रीडामि। सप्तवादने अहं भोजनं भुक्त्वा पठामि गृहकार्यं च करोमि। रात्रौ दशवादने शये। मातापित्रो: चरणयोः मे प्रणत्यः।

भवदीया प्रिय सखी,
कविता

हिन्दी-अनुवाद

कैलाशपुरी
जयपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय सखी स्मिता !
सस्नेह नमस्ते।
यहाँ सब कुशल है। आप भी कुशल हों ऐसी मेरी कामना है। आज बहुत दिनों बाद आपका पत्र मिला। मैं अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ। आप मेरी दिनचर्या जानना चाहती हैं। इसलिए यहाँ मैं अपनी दिनचर्या लिख रही हूँ। सखि! मैं प्रात:काल पाँच बजे उठती हूँ। साढ़े पांच बजे से साढ़े छ: बजे तक प्रातः भ्रमण करती हूँ। तब स्नान आदि से निवृत्त होकर नौ बजे से दस बजे तक अध्ययन करती हूँ। दस बजे विद्यालय जाती हूँ। सायं पाँच बजे विद्यालय से आकर खेल के मैदान में खेलती हूँ। सात बजे मैं खाना खाकर पढ़ती हूँ और गृहकार्य करती हूँ। रात को दस बजे सोती हूँ। माता जी और पिताजी के चरणों में मेरा प्रणाम।

आपकी प्यारी सखी
कविता

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

27. भवती राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः रामनगरम् इत्यस्य दशमकक्षायाः नन्दिनी नामा छात्रा अस्ति। भवत्याः सखी प्रतिभाम् एकं पत्रं लिखत, यस्मिन् ‘मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिकं रोचते’ इति वर्णनं स्यात्।।
(आप राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रामनगर की कक्षा दस की नन्दिनी नामक छात्रा हैं। अपनी सखी प्रतिभा को एक पत्र लिखिए कि जिसमें मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है’ ऐसा वर्णन हो।)

राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः
(i) ………………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये सखि प्रतिभे !
सादरं वन्दे।
अत्र सर्वगतं (ii) ……………….. अस्ति। भवती अपि तत्र कुशलिनी इत्यहं मन्ये। अद्य चिरात् प्राप्तम् (iii) ……………………. स्नेहसिक्तं पत्रम्। भवती इच्छति यद् अहं मम विद्यालयस्य विषये भवतीं प्रति लिखेयम्। निः संशयोऽयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिकं रोचते यतः अस्य भवनम् अतिविस्तृतं, भव्यम्, (iv) ………….. च। अस्य पुस्तकालये बहूनि (v) ……………. सन्ति, वाचनालये विविधाः नूतनाः (vi) …………….. च समायान्ति। अत्र पठन-पाठनस्य क्रीडायाः च सम्यग् व्यवस्था अस्ति। एष एकः सुव्यवस्थितः, सम्यगनुशासितः प्रशासितश्च (vii) ………………….. अस्ति। अतः अयं मम विद्यालय: मह्यम् अत्यधिक रोचते। शेषं कुशलम्। पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः मनीषायै च स्नेहः (viii) ………….।

भवत्याः प्रिय सखी
नन्दिनी।

उत्तरम् :

राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः
रामनगरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये सखि प्रतिभे !
सादरं वन्दे।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति। भवती अपि तत्र कुशलिनी इत्यहं मन्ये। अद्य चिरात् प्राप्तम् भवत्याः स्नेहसिक्तं पत्रम्। भवती इच्छति यद् अहं मम विद्यालयस्य विषये भवतीं प्रति लिखेयम्। निः संशयोऽयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिक रोचते यतः अस्य भवनम् अतिविस्तृतं, भव्यम्, सुसज्जितं द्विभूमिकं च। अस्य पुस्तकालये बहूनि पुस्तकानि सन्ति, वाचनालये विविधाः नूतनाः पत्र-पत्रिकाः च समायान्ति। अत्र पठन-पाठनस्य क्रीडायाः च सम्यग् व्यवस्था अस्ति। एष एकः सुव्यवस्थितः, सम्यगनुशासितः प्रशासितश्च आदर्शविद्यालयः अस्ति। अतः अयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिक रोचते। शेषं कुशलम्। पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः मनीषायै च स्नेहः निवेद्यताम्।

भवत्याः प्रियसखी
नन्दिनी।

हिन्दी-अनुवाद

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
रामनगर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय सखी प्रतिभा !
सादर वन्दे।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। आप भी वहाँ कुशल हैं, ऐसा मानती हूँ। आज बहुत दिन बाद आपका स्नेहसिक्त पत्र प्राप्त हुआ। आप चाहती हैं कि मैं अपने विद्यालय के विषय में आपको लिखें। निस्सन्देह यह मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इसका भवन अति विस्तृत, भव्य, सुसज्जित और दोमंजिला है। इसके पुस्तकालय में बहुत-सी पुस्तकें हैं। वाचनालय में विविध नवीन पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। यहाँ पठन, पाठन और क्रीड़ा की सम्यक् व्यवस्था है। यह एक सुव्यवस्थित, सम्यक अनुशासित और प्रशासित आदर्श विद्यालय है। अतः यह मेरा विद्यालय मुझे बहुत रुचिकर लगता है। शेष कुशल है। माता-पिताजी के चरणों में प्रणाम और मनीषा को प्यार कहें।

आपकी प्यारी सहेली
नन्दिनी

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

28. भवती कनकग्रामवासिनी रेखा स्वकीयां सखीम् अंकितां प्रति संस्कृतभाषाशिक्षणम्’ इति विषये अधोलिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायता पूरयित्वा लिखतु।
(आप कनक ग्राम की निवासी रेखा हैं। मञ्जूषा में दिये शब्दों की सहायता से अपनी सखी अंकिता को ‘संस्कृतभाषाशिक्षणम्’ विषय पर अधोलिखित पत्र लिखिए।)
[मञ्जूषा – कनकग्रामतः, अस्माकम्, इच्छति, रेखा, पृथक्, पठित्वा, प्राप्तम्, सुगन्धम्]

(i) ……………….
दिनाङ्कः 18.03.20_ _

प्रिये अंकिते !
नमस्ते।
भवत्या पत्रं (ii) …………….। भवती संस्कृतभाषां पठितुम् (iii) ………….. एषा भाषा वैज्ञानिकी।। संस्कृतम् (iv) ………………. देशस्य प्रसिद्धा भाषा। भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतं (v) ………………….. कर्ता तथैव न शक्यते यथा पुष्पेभ्य (vi) ………. । अतः भवती अपि संस्कृतं पठतु एवं च (vii) ………………… प्रचारं करोतु।

भवत्याः प्रिय सखी
(viii) ………..

उत्तरम् :

कनकग्रामतः
दिनाङ्कः 18.03.20_ _

प्रिये अंकिते !
नमस्ते।
भवत्या पत्रं प्राप्तम्। भवती संस्कृतभाषां पठितुम् इच्छति। एषा भाषा वैज्ञानिकी। संस्कृतम् अस्माकं देशस्य प्रसिद्धा भाषा। भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतं पृथक् कर्तुं तथैव न शक्यते यथा पुष्पेभ्यः सुगन्धम्। अतः भवती अपि संस्कृतं पठतु एवं च पठित्वा प्रचारं करोतु।

भवत्याः प्रियसखी
रेखा।

हिन्दी-अनुवाद

प्रिय अंकिता !
नमस्ते।
आपका पत्र मिला। आप संस्कृत पढ़ना चाहती हो। यह एक वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत हमारे देश की प्रसिद्ध भाषा है। संस्कृति को संस्कृत से, फूलों से सुगन्ध की भाँति अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए आप भी संस्कृत पढ़ें और इस प्रकार पढ़कर (इसका) प्रचार करें।

आपकी प्यारी सहेली
रेखा

2. औपचारिक पत्रम्

29. अस्वस्थतायाः कारणात् दिवसत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(बीमारी के कारण तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम,
………………. प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि. ………….
भरतपुरम्।
विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं ……………………. यत् अद्य अहं शीतज्वरेण……………..। अस्मात् कारणात …………… यावत् विद्यालये शक्नोमि। अतः ………………. यत् दि. 11-5-20_ _ तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं ………….मामनुगृहीष्यन्ति ………………।

दिनांक 11-5-20_ _

भवदाज्ञाकारी …………….
सुदर्शनः
कक्षा 10 (जी)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – निवेदयामि, भवन्तः, श्रीमन्तः, स्वीकृत्य, विद्यालयः, प्रार्थये, दिनत्रयस्य, शिष्यः, पीडितोऽस्मिं, उपस्थातुम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि.,
भरतपुरम्।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामि यत् अद्य अहं शीतज्वरेण पीडितोऽस्मि। अस्मात् कारणात् अहं दिनत्रयं यावत् विद्यालये उपस्थातुं न शक्नोमि। अतः प्रार्थये यत् दि. 11-5-20_ _ तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य मामनुगृहीष्यन्ति भवन्तः।
दिनांक : 11-5-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुदर्शनः
कक्षा 10 (जी)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राज. उ. माध्य. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि आज मैं शीतज्वर से पीड़ित हूँ। इस कारण से मैं तीन दिन तक विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ। इसलिए प्रार्थना करता हूँ कि दिनांक 11-5-20_ _ से 13-5-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझ पर अनुग्रह करेंगे।
दिनांक : 11-5-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुदर्शन
कक्षा 10 (जी)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

30. शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये………………”छात्रोऽस्मि। मम……………… आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता…………….”प्रतिदिवसं कार्ये केवलं पञ्चाशद् रूप्यकाणाम् …………….. भवति। तेन…………….. पालन-पोषणञ्च कथमपि भवितुं न शक्नोति। अतः अहं………….. शिक्षणशुल्क……………… असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्ति:…………….। नवमकक्षायाः……………… अहं प्रथम श्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

……………… शिष्यः

दिनांक : 11-8-20_ _

सुरेशचन्द्रः
कक्षा 9 (स)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – आसीत्, भवदाज्ञाकारी, विद्यालयस्य, पितुः, अर्जनमेव, दशमकक्षायाः, वृद्धोऽस्ति, परिवारस्य, परीक्षायाम्, प्रदातुम्।]
उत्तरम् :

शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थनापत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये दशमकक्षायाः छात्रोऽस्मि। मम पितुः आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता वृद्धोऽस्ति, प्रतिदिवसं केवलं पञ्चाशद् रूप्यकाणाम् अर्जनमेव भवति। तेन परिवारस्य पालन-पोषणञ्च कथमपि भवितुं न शक्नोति। अतः अहं विद्यालयस्य शिक्षणशुल्क प्रदातुम् असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्तिः स्वीकृता आसीत्। नवम-कक्षायाः परीक्षायाम् अहं प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुरेशचन्द्रः
कक्षा 10 (स)

दिनांक : 11-8-20_ _

हिन्दी-अनुवाद
शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – शिक्षण-शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं श्रीमान्जी के विद्यालय में दशवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता की आर्थिक स्थिति शोचनीय है। मेरे पिता वृद्ध हैं, प्रतिदिन कार्य में केवल पचास रुपये कमा पाते हैं। उससे परिवार का पालन-पोषण किसी प्रकार भी नहीं हो सकता है। इसलिए मैं विद्यालय का शिक्षण शुल्क देने में असमर्थ हूँ। गतवर्ष मेरी शिक्षण शुल्क-मुक्ति स्वीकार हुई थी। नौवीं कक्षा की परीक्षा में मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था।
इसलिए पुनः निवेदन है कि आप अध्ययन में मेरी रुचि को देखकर मुझे शिक्षण-शुल्क से मुक्ति प्रदान कर अनुगृहीत करेंगे।
दिनांक: 11-8-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुरेशचन्द्र
कक्षा 10 (स)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

31. ज्येष्ठभ्रातुः विवाहकारणात् दिनद्वयस्य अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः चितपदैः पूरयत।
(बड़े भाई के विवाह के कारण से दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः
राजकीयः उच्चः ……………… विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य …………….. ‘प्रार्थना-पत्रम्।

सविनयं निवेदनम् ………… यत् मम ज्येष्ठभ्रातुः ………………16-5-20_ _ दिनाङ्के..। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न………..।
अत:. “यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं ………. अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति …………..।

सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारतः शर्मा
(कक्षा-10)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, श्रीमन्तः, निवेदनमस्ति, निश्चितः, शक्नोमि, माध्यमिकः, महोदयाः, पाणिग्रहणसंस्कार:, पाणिग्रहणसस्कार:,।। अस्ति, अवकाशार्थम्।]

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम ज्येष्ठधातुः पाणिग्रहणसंस्कारः 16-5-20_ _ दिनाङ्के निश्चितः। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।
अतः निवेदनमस्ति यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारतः शर्मा
(कक्षा-10)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय-दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे बड़े भाई की शादी दिनांक 16-5-20_ _ को निश्चित हुई है। इस कारण से दो दिन तक मैं अपनी कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ।
अतः निवेदन है कि दिनांक 16-5-20 से 17-5-20_ _ तक दो दिन का अवकाश स्वीकृत कर श्रीमान् मुझ पर अनुग्रह करेंगे।

सधन्यवाद।
दिनांक 16-5-20_ _

आपका शिष्य
भारत शर्मा
(कक्षा-10)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

32. चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।।
(चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
……………..,
श्रीमन्तः ………….,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं ………….अस्ति यत् अहं आंग्ल………… वाद-विवाद ………….”भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् ………. चरित्र-प्रमाण ………………….. आवश्यकता………………… अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं ……………. अनुग्रहीष्यन्ति ……………..
सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(दशमी कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – प्रदाय, भाषया, पत्रस्य, भवन्तः, प्रधानाचार्यमहोदयाः, निवेदनम्, सेवायाम्, कारणात्, वर्तते, प्रतियोगितायाम्]

चरित्र-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् अहम् आंग्लभाषया वाद-विवादप्रतियोगितायां भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् कारणात् चरित्र-प्रमाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते।
अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
चरित्र-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जयपुर।

विषय – चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं अंग्रेजी भाषा की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ। इस कारण से चरित्र-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है।
अतः प्रार्थना है कि आप चरित्र-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुग्रहीत करेंगे।
दिनांक : 7-9-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
अनूप
(कक्षा दसवीं)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

33. मातुः सेवार्थं दिनत्रयस्य अवकाशाय प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः चितपदैः पूरयत।
(माता की सेवा के लिए तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
………………………..
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
……………. उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य…………”प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
……………. निवेदनम् अस्ति यत् ……………. गतदिवसात् शीतज्वरेण……………… अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयं ………………. न शक्नोमि। अतः कृपया 7-7-20_ _ दिनांकत: 9-7-20_ _ दिनांक …………….. दिनत्रयस्य
…………….. अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-7-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्य
रमनः
(दशमी कक्षा)

[संकेतसूची/मञ्जूषा – मम, माम् पर्यन्तम्, माता, अवकाशार्थम्, राजकीय, आगन्तुम्, पीडिता, स्वीकृत्य, सविनयम्, सेवायाम्]

अवकाशाय प्रार्थना – पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम माता गतदिवसात् शीतज्वरेण पीडिता अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयम् आगन्तुं न शक्नोमि। अत: कृपया 7-7-20_ _ दिनांकतः 9-7-20_ _ दिनांकपर्यन्तं दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-7-20_ _

भवदाकारी शिष्यः
रमनः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
अजमेर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरी माताजी कल से बुखार से पीड़ित हैं। इस कारण मैं विद्यालय नहीं आ सकता हूँ। कृपया दिनांक 7-7-20_ _ से दिनांक 9-7-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझे अनुगृहीत करेंगे।

सधन्यवाद।
दिनांक 7-7-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रमन
(कक्षा दसवीं)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

34. स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
……………..

विषय: – ……………”प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र…………… अस्ति। …………… तस्य स्थानान्तरणं……………… अभवत्। मम ……………… मम पित्रा सह भरतपुरम् गमिष्यति। अहम् अस्मात् …………….”नवमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, दशमीकक्षायाम् अहं भरतपुरे………………। अत: मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाए। ”अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति।

सधन्यवादम्।
दिनांक 6-4-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रामकुमारः
(दशमी कक्षा)

संकेत सूची/मञ्जूषा-स्थानान्तरणम्, लिपिकः, पठिष्यामि, अधुना, दौसानगरम्, भरतपुरम्, परिवारः, प्रदाय, विद्यालयात्, भवदाज्ञाकारी
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम् उत्तरम् सेवायाम्, श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः, दौसानगरम्।
विषय-स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्। महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र लिपिकः अस्ति। अधुना तस्य स्थानान्तरणं भरतपुरम् अभवत्। मम परिवारः मम पित्रा सह भरतपुरं गमिष्यति। अहम् अस्मात् विद्यालयात् नवमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, दशमीकक्षायाम् अहं भरतपुरे पठिष्यामि। अतः मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति।

सधन्यवादमा
दिनांक 8-4-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रामकुमारः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
दौसानगर।

विषय-स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी यहाँ लिपिक हैं। अब उनका स्थानान्तरण भरतपुर हो गया है। मेरा परिवार मेरे पिताजी के साथ भरतपुर जाएगा। मैंने इस विद्यालय से कक्षा नौ उत्तीर्ण की है, कक्षा दसवीं में मैं भरतपुर में पर्दैगा। अतः आप स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।

सधन्यवाद।
दिनांक 6-4-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रामकुमार
(कक्षा दसवीं)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

35. क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(खेलकूद की उचित व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः ……………. महोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः
जोधपुरम्।

विषय: – ……………… सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं …………….. क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न ………………। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि………….. रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां……… अस्मान् अनुग्रहणन्तु ……………….।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(दशमी कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-श्रीमन्तः, अस्मभ्यम्, प्रधानाचार्यमहोदयाः, विद्यालये, विधाय, वर्तते, क्रीडायाः]

क्रीडाव्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय-उच्च-माध्यमिक विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषय: – क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं विद्यालये क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न वर्तते। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि अस्मभ्यं रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां विधाय अस्मान् अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
खेलकूद-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय – खेलकूद की उचित व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय. निवेदन है कि हमारे विद्यालय में खेल की व्यवस्था ठीक नहीं है। अध्ययन के साथ ही खेलना भी हमको अच्छा लगता है। अतः खेल की समुचित व्यवस्था कराकर आदरणीय आप हमारे ऊपर अनुग्रह करें।
सधन्यवाद।
दिनांक 15-8-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
हरीश
(कक्षा दसर्वी)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

36. विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(विद्यालय में स्वच्छता की व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
…………………….
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये……………. व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् ……………….. विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छतायाः …………………. वर्तते। अस्मिन् ……………. त्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता: जायन्ते। ……………………… अस्माकं मनांसि न………………। अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित-व्यवस्थायै प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।

दिनांकः 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्त: ………………..
…………………………..

[संकेत सूची/मम्जूना-छात्रवृन्दः, कर्मकरान्, अध्ययने, वातावरणे, रमन्ते, साम्राज्यम्, सेवायाम्, अस्माकम्, स्वच्छतायाः]

स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् अस्माकं विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छतायाः साम्राज्यं वर्तते। अस्मिन् वातावरणे छात्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता जायन्ते। अध्ययने अस्माकं मनांसि न रमन्ते। अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित व्यवस्थायै कर्मकरान् प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।

दिनांकः 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्तः छात्रवृन्दः
कक्षा दशमी

हिन्दी-अनुवाद
स्वच्छता-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राज. सीनि. सै. विद्यालय, श्रीकरनपुर।

विषय – विद्यालय में स्वच्छता-व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि हमारे विद्यालय में इस समय अस्वच्छता का साम्राज्य है। इस वातावरण में छात्र और शिक्षक रोगग्रस्त हो जाते हैं। अध्ययन में हमारा मन नहीं लगता है। अतः कृपया स्वच्छता की समुचित व्यवस्था हेतु श्रीमान् जी कर्मचारियों को प्रेरित करें।

दिनांक 10-8-20_ _

आपके आज्ञाकारी
समस्त छात्रगण
कक्षा दसवीं

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

37. शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(शैक्षिक शिविर के आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्चमाध्यमिक ………….,
बीकानेरम्।

विषय: – शैक्षिक……..”आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं …………..”यद् अस्मद्विद्यालये……………. पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि ……………………. तृप्ति न एति। अतः प्रार्थयामो …………………… यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् ‘अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

दिनांक 16-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिण: ………..
दशमीकक्षास्थाः छात्राः

[संकेत सूची/मञ्जूषा-निवेद्यते, वयम्, शिक्षण-व्यवस्था, विद्यालयः, शिविरस्य, शिष्याः, अस्माकं, आयोज्य, ज्ञान-पिपासा]

शैक्षिक शिविर आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः।
राजकीय-उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
बीकानेरम्

विषयः – शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यद् अस्मद्विद्यालये शिक्षण-व्यवस्था पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि अस्माकं ज्ञान-पिपासा तृप्ति न एति। अतः प्रार्थयामो वयं यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् आयोज्य अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।
दिनांकः 11-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणः शिष्याः
दशमी कक्षास्थाः छात्राः

हिन्दी-अनुवाद
शैक्षिक शिविर-आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बीकानेर।

विषय – शैक्षिक शिविर के आयोजन हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण व्यवस्था पूर्ण सन्तोषजनक है। फिर भी हमारी ज्ञान-पिपासा तृप्त नहीं हो पाती है। अतः हम सभी प्रार्थना करते हैं कि हमारे लिए 15 दिन का एक शैक्षिक शिविर श्रीमान् आप आयोजित कर अनुगृहीत करें।
दिनांक: 16-7-20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा 10 के छात्र

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

38. प्रधानाध्यापिकां प्रति अवकाशहेतोः प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(प्रधानाध्यापिका को अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
……………….. माध्यमिकविद्यालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनयं ……….. यत् मम ज्येष्ठभगिन्या:.. “दिनद्वयं पश्चात् ……..। एतत्कारणात् दिनद्वयं अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न……………..। अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ त: 17-7-20_ _ पर्यन्तं …………….. अवकाशं …………………. माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः। सधन्यवादम्।

दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-दशमी (अ)

[संकेतसूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, भविष्यति, पाणिग्रहणसंस्कारः, शक्नोमि, निवेदनमस्ति, यावद्, राजकीयः बालिका, स्वीकृत्य]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
राजकीयः बालिका माध्यमिकविधालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेदनमस्ति यत् मम ज्येष्ठभगिन्याः पाणिग्रहणसंस्कारः दिनद्वयं पश्चात् भविष्यति। एतत्कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।

अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ तः 17-7-20_ _पर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः।
सधन्यवादम्।
दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-दशमी (अ)

हिन्दी अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमती प्रधानाध्यापिका महोदया,
राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।
महोदया,
सविनय निवेदन है कि मेरी बड़ी बहिन का विवाह-संस्कार दो दिन बाद होगा। इस कारण दो दिन तक मैं अपनी कक्षा। उपस्थित होने में असमर्थ हूँ।
इसलिए निवेदन है कि दिनांक 16-7-20_ _ से 17-7-20_ _ तक दो दिनों का अवकाश स्वीकृत करके श्रीमती मुझे अनुगृहीत करेंगी।

सधन्यवाद
दिनांक : 14-7-20_ _

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-10 (अ)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

39. भवान् दिवाकरः दशम कक्षायाः छात्रः। आदर्श माध्यमिक विद्यालये पठन्ति। आधारकार्ड प्राप्तुं अध्ययन पाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते। अतः प्रधानाध्यापकाय अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना पत्रम् लिखत।
(आप दिवाकर दसर्वी कक्षा के छात्र हैं। आदर्श माध्यमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए अध्ययन-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है। अतः प्रधानाध्यापक से अध्ययन प्रमाणपत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।)
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः
आदर्श माध्यमिक विद्यालयः
…………….।

विषयः – अध्ययन-प्रमाण-पत्र प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहं ई-मित्रात्…………प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य…………प्रमाण-पत्रम् नाते। अहं……………कक्षायाः छात्रः अस्मि। अतः………….निरन्तराध्ययनस्य …………….. कक्षायाः छात्रः आस्म। अतः………….निरन्तराध्ययनस्य………….प्रदाय………..माम……….।

भवताम्………….शिष्यः

…………….
दिनांक : 6.3.20_ _

दिवाकरः
(दशमी कक्षा)

[संकेतसूची-सूची/मजूवा-आधारकार्डम, आशाकारी, मौलपुरम्, अध्ययन, नवम अनुगृह्णन्तु, मह्यम्, सधन्यवादम्, श्रीमन्तः प्रमाण-पत्रम]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
धौलपुरम्।

विषय – अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहम् ई-मित्रात् आधारकार्ड प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य अध्ययन-प्रमाण पत्रम् अपेक्षते। अहं दशम कक्षायाः छात्रः अस्मि। अतः मह्यम् निरन्तराध्ययनस्य प्रमाण-पत्रम् प्रदाय अनुगृह्णन्तु माम् श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्
दिनाङ्कः 6.3.20_ _

भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः
दिवाकर
(दशमी कक्षा)

हिन्दी अनुवाद

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाध्यापक महोदय,
धौलपुर

विषय – अध्ययन प्रमाण-पत्र प्राप्ति हेतु प्रार्थना-पत्र

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं ई-मित्र से आधार कार्ड प्राप्त करना चाहता हूँ। इसके लिए विद्यालय से अध्ययन प्रमाण-पत्र की अपेक्षा है। मैं नौवीं कक्षा का छात्र हूँ। अतः अध्ययनरत होने का प्रमाण-पत्र देकर श्रीमान मुझे अनुग्रहीत करें।

धन्यवाद सहित
दिनांक : 06-03-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
दिवाकर
(कक्षा 10)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

40. यूयं राजकीय-माध्यमिक विद्यालय लखनपुरस्य दशमी कक्षायाः छात्राः। स्वकीयं प्रधानाध्यापकं प्रति एकं प्रार्थना पत्रं शैक्षणिक भ्रमणार्थम् अनुमति हेतुः लिखत।
(तुम राजकीय माध्यमिक विद्यालय लखनपुर के दशवीं कक्षा के छात्र है। अपने प्रधानाध्यापक के लिए एक प्रार्थना-पत्र शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति के लिए लिखिए।)

सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापकाः महोदया:
राजकीयः माध्यमिकः विद्यालयः
लखनपुरम्

विषय – शैक्षिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।

महोदयाः,
सविनय………..यद् अस्माकं………शिक्षणस्तु………..प्रवर्तते। वयं सर्वे…………स्मः। तथापि अस्माकं……….तृप्तिः न भवति। अतः निवेदयामः………यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं……………आयोजानीयम् कक्षायाः सर्वे….. एवमेव इच्छन्ति। वयमास्वस्थाः स्मः यत्………..प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्त।
दिनाङ्क : 18.11.20_ _

भवदाज्ञाकारिणः ………………….
दशमी-कक्षास्थाः

[मञ्जूषा – छात्राः, क्यम्, शिष्या, अनुमति, शैक्षिक-भ्रमणम्, सन्तुष्टाः, निवेदनम्, विद्यालये, सम्यक्, ज्ञान-पिपासायाः।]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
राजकीयः माध्यमिक: विद्यालयः
लखनपुरम्।
विषय – शैक्षणिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयम् निवेदनम् यद् अस्माकं विद्यालये शिक्षणस्तु सम्यक् प्रवर्तते। वयं सर्वे सन्तुष्टाः स्मः। तथापि अस्माकं ज्ञान पिपासायाः तृप्तिः न भवति। अत: निवेदयामः वयं यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं शैक्षिक-भ्रमणम् आयोजनीयम्। कक्षायाः सर्वे छात्राः एवमेव इच्छन्ति। वयम् आस्वस्थाः स्मः यतु अनुमति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः।,

दिनांङ्क : 18.12.20

भवदाज्ञाकारिणः शिष्याः
दशमी-कक्षास्थाः

हिन्दी अनुवाद

सेवा में
श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय
राजकीय माध्यमिक विद्यालय,
लखनपुर।

विषय – शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण तो अच्छी तरह चल रहा है। फिर भी हमारे ज्ञान की प्यास तृप्ति को प्राप्त नहीं हो रही है। अतः हम निवेदन करते हैं कि इस तृप्ति के लिए एक सप्ताह का एक शैक्षणिक-भ्रमण आयोजित किया जाय। कक्षा के सभी छात्र ऐसा ही चाहते हैं। हमें विश्वास है कि आप अनुमति देकर हमें अनुगृहीत करेंगे।

दिनांक : 18.11.20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा 10